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हम जानते हैं कि हम में से प्रत्येक के पास एक रखवाल दूत है। लेकिन हम कितनी बार उससे मदद माँगते हैं?
जब मुझे एक ईसाई लेखन सम्मेलन में तीन कार्यशालाएँ पढ़ाने के लिए जाना था, तब पहली बार मुझे एहसास हुआ कि मेरा रखवाल दूत मेरे लिए सबसे अच्छी उम्मीद थी। मेरे घर से कार्यशाला की जगह पहुंचने में कार से कई घंटे लगते थे। मैं एक भयानक माइग्रेन के साथ उठी और रोयी, क्योंकि मैं सोच रही थी कि मैं इतना दूर कैसे गाडी चला पाऊंगी। मैं अंतिम समय में रद्द करके अव्यवसायिक नहीं होना चाहती थी। मैं रोयी क्योंकि लंबे समय से मैं माइग्रेन के सिरदर्द से पीड़ित हूं – इस बीमारी के कारण मुझे शर्मिन्दा होना पड़ता है – क्योंकि हर महीने में लगभग आधा महीना यह बीमारी मुझे दुर्बल कर देती है- और मैं कितनी कमजोर थी, यह बात मैं स्वीकार नहीं करना चाहती थी। इसलिए, मैंने अपने रखवाल दूत से प्रार्थना की कि वह मुझे सुरक्षित रूप से उस स्थान तक पहुंचा दें और मुझे सकुशल वापस घर भी लाए।
मुझे अभी भी नहीं पता कि मैंने किस तरह इतनी लम्बी दूरी गाड़ी चलाई। मैंने गाड़ी चलाते समय, रोज़री माला की अपनी सीडी लगा दी और फिर योहन के सुसमाचार को सुना, यह सोचती हुई कि यदि मैं रास्ते में मर जाऊं तो कितना अच्छा और सुन्दर होगा कि येशु को अपने हृदय में रखती हुई मरूं। ऐसा नहीं है कि मैं मरना चाहती थी। मेरे बच्चे अभी छोटे थे। मेरे बिना मेरा पति परेशान रहेंगे। और जब से हमने कैथलिक धर्म को अपनाया था, तब से मैं अपने लेखन के जीवन को और भी अधिक प्यार कर रही थी। मैं चाहती थी कि जो येशु मेरे पास है वह सबके पास हो!
और अद्भुत रूप से दिमाग में ख्याल आया! एक आत्मप्रकाश की किरण ने मुझे प्रभावित किया – मेरे रखवाल देवदूत सिर्फ मुझे शारीरिक नुकसान से बचाने के लिए यहां नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करने के लिए है कि मैं स्वर्ग जाऊं। स्वर्ग! हाँ वही जीवन का लक्ष्य है।
परमेश्वर हमसे इतना प्रेम करता है कि वह हमारे गर्भधारण के क्षण से ही एक स्वर्गदूत को नियुक्त करता है जो हमें सभी खतरों से बचाता है और हमें अपने अनंत घर की ओर रास्ता दिखाता है। यह जागरूकता, जो मेरे पास तब से है जब मैं एक छोटी बच्ची थी, अभी भी मुझे चकित करती है। एक बच्ची के रूप में, मुझे परमेश्वर की सुरक्षा पर पूरा भरोसा था। लेकिन मेरे जीवन में मौजूद इस बीमारी की दुख-पीड़ा की समस्या को एक सर्वशक्तिमान ईश्वर में विश्वास के साथ सामंजस्य बिठाना मुश्किल कार्य था। इसलिए, बारह साल की उम्र में मैंने अपना विश्वास खो दिया और अपने रखवाल दूत से बात करना छोड़ दिया। लेकिन, मेरी जानकारी के बिना, मेरा रखवाल दूत तभी भी मेरा मार्गदर्शन कर रहा था।
मैं अपने रखवाल दूत की बहुत आभारी हूँ कि जब मैं बीस और तीस के बीच की उम्र में थी, उस दौरान उसने मुझे मौत से बचाया, क्योंकि उन दिनों मेरी बुद्धि पाप से घिरी रहती थी, और ऐसी परिस्थिति में अगर मैं मौत के करीब आती तो शायद मैं ईश्वर की दया को अस्वीकार कर देती और नरक में चली जाती। यह ईश्वर की कृपा और लंबे समय तक बीमारी के कारण मैं रखवाल दूत की प्रेरणाओं को सुनने और ईश्वर के पास लौटने में सक्षम हूं, और जब मेरी योजना पटरी से उतरती है, तो मैं “मेरी इच्छा नहीं, बल्कि तेरी इच्छा पूरी हो जाए” यह प्रार्थना कर सकती हूं।
मैं पूर्ण विश्वास और समर्पण की उस बचपन की अवस्था में लौट रही हूं। अगर मुझे किसी बात की चिंता है, तो मैं अपने रखवाल दूत से स्थिति को संभालने के लिए कहती हूं। जब मैं अपना धैर्य खोने के कगार पर होती हूं तो मैं अपने बच्चों के रखवाल दूतों को बुलाती हूं। मैं उन सारे लोगों के रखवाल दूतों का भी आह्वान करती हूँ जिनके लिए मैं एक विश्वासयोग्य गवाह बनना चाहती हूँ। स्वर्गीय सहायता प्राप्त करना कितना सुखद है।
रखवाल दूत हमारी प्रार्थनाओं और भेंट को परमेश्वर के सिंहासन तक ले जाते है; वे हमारे साथ पवित्र मिस्सा बलिदान में आते हैं और यदि हम उपस्थित होने में असमर्थ हैं, जैसा कि महामारी के दौरान कई लोगों के लिए था, तो हम अपने स्थान पर हमारे रखवाल दूत को भेजकर हमारे धन्य प्रभु की स्तुति और पूजा करने के लिए कह सकते हैं।
ये स्वर्गीय प्राणी हमारे लिए एक उपहार हैं। आइए हम हमेशा याद रखें कि वे हम पर नज़र रखे हुए हैं और चाहते हैं कि हम स्वर्ग पहुँच जाएँ! अपने रखवाल दूत के साथ एक रिश्ता बनाएं। वे हम में से प्रत्येक के लिए ईश्वर का उपहार हैं।
हर वक्त मेरी तरफ रहनेवाले मेरे प्रिय रखवाल दूत!
मेरे जैसे दोषी नीच की रक्षा के लिए
स्वर्ग का तेरा घर छोड़ने वाला
तू कितना प्यारा होगा ।
~फादर फ्रेडरिक विलियम फेबर (1814-1863 ई.)
Vijaya Bodach is a scientist-turned-children’s writer with more than 60 books for children and just as many stories, articles and poems in children’s magazines. You can find out more about her at vijayabodach.blogspot.com
एक अभिनेता और निर्देशक के रूप में, पैट्रिक रेनॉल्ड्स ने सोचा कि ईश्वर केवल पवित्र लोगों के लिए है। एक दिन जब रोजरी माला की प्रार्थना करते समय उन्हें एक अलौकिक अनुभव हुआ, और उसी दिन वे ईश्वर की योजना समझ पाए। यहां उनकी अविश्वसनीय यात्रा का वर्णन है। मेरा जन्म और पालन-पोषण एक कैथलिक परिवार में हुआ था। हम हर सप्ताह मिस्सा बलिदान के लिए जाते थे, दैनिक प्रार्थना करते थे, कैथलिक स्कूल में जाते थे, और घर में बहुत सारी पवित्र वस्तुएँ रखी थीं, लेकिन किसी भी तरह से विश्वास हमें प्रभावित नहीं कर सका। जब भी हम घर से बाहर निकलते, माँ हम पर पवित्र जल छिड़कती थी, लेकिन दुर्भाग्य से, हमारा येशु के साथ कोई व्यक्तिगत संबंध नहीं था। मैं यह भी नहीं जानता था कि यह संभव है। मैं समझता था कि ईश्वर कहीं बादलों में रहता है। वह वहाँ से हम सभी पर दृष्टि रखता है, लेकिन मेरे दिल और दिमाग में वह बहुत दूर और अप्राप्य था। हालाँकि मैंने ईश्वर के बारे में सीखा, लेकिन मैंने यह नहीं सीखा कि वह कौन और कैसा था। जब मैं लगभग दस साल का था, मेरी माँ ने एक करिश्माई प्रार्थना समूह में जाना शुरू किया, और मैंने देखा कि उनका विश्वास बहुत वास्तविक और व्यक्तिगत हो गया है। वह अवसाद से ठीक हो गई थी, इसलिए मुझे पता था कि ईश्वर की शक्ति वास्तविक थी, परन्तु मैंने सोचा कि ईश्वर केवल मेरी माँ जैसे पवित्र लोगों के लिए थे। जो मुझे दिया जा रहा था उससे कहीं अधिक गहरी चीज़ की मैं चाहने लगा था । जब संतों की बात आई, तो मुझे उनकी भूमिका समझ में नहीं आई और मुझे नहीं लगा कि उनके पास मुझे देने के लिए कुछ है क्योंकि मुझे नहीं लगता था कि मैं भी पवित्र हो सकता हूं। अधूरा और खाली जब मैंने स्कूल छोड़ा, तो मैं अमीर और मशहूर बनना चाहता था ताकि मुझे हर कोई प्यार कर सके। मैंने सोचा कि इससे मुझे खुशी मिलेगी। मैंने निर्णय लिया कि अभिनेता बनना मेरे लक्ष्यों को प्राप्त करने का सबसे आसान तरीका होगा। इसलिए, मैंने अभिनय का अध्ययन किया और अंततः एक सफल अभिनेता और निर्देशक बन गया। इसने मेरे जीवन में एक ऐसे द्वार को खोल दिया जिसका मैंने कभी अनुभव नहीं किया था और मुझे बहुत अधिक पैसा मिला, मुझे नहीं पता था कि इस पैसे का मुझे क्या करना है। इसलिए मैंने इसे उद्योग में जो महत्वपूर्ण लोग हैं उन्हें प्रभावित करने की कोशिश में खर्च कर दिया। मेरा पूरा जीवन लोगों को प्रभावित करने के लिए चीजें खरीदने का एक अनवरत चक्र था, ताकि मैं लोगों को प्रभावित करने के लिए और चीजें खरीदने के लिए और अधिक पैसे कमा सकूं। पूर्णता महसूस करने के बजाय, मुझे खालीपन महसूस हुआ। मैं ठगा सा महसूस करने लगा । मैं अपने पूरा जीवन वैसा बनने का दिखावा करता रहा जैसा दूसरे लोग चाहते थे। मैं कुछ और खोज रहा था लेकिन कभी समझ नहीं पाया कि ईश्वर के पास मेरे लिए कोई योजना थी। मेरा जीवन पार्टियों, शराब पीने और रिश्तों तक ही सीमित था, लेकिन असंतोष से भरा हुआ था। एक दिन, मेरी माँ ने मुझे स्कॉटलैंड में एक बड़े करिश्माई कैथलिक सम्मेलन में आमंत्रित किया। सच कहूँ तो, मैं जाना नहीं चाहता था क्योंकि मुझे लगता था कि मैंने ईश्वर से जुड़ी सभी चीज़ों को अपने पीछे छोड़ दिया है, लेकिन माताएँ भावनात्मक ब्लैकमेल करने में अच्छी होती हैं; वे आपसे वो काम करवा सकती हैं जो कोई और नहीं करा सकता। उन्होंने कहा, “बीटा पैट्रिक, मैं दो साल के लिए अफ़्रीका में सेवा कार्य करने जा रही हूँ। यदि तुम इस साधना में नहीं आओगे, तो मुझे जाने से पहले तुम्हारे साथ कोई समय बिताने का मौका नहीं मिलेगा। उनके ऐसा अपील सुनने के बाद मैं उस सम्मलेन में चला गया। मैं अभी खुश हूं, लेकिन उस समय मुझे असहजता महसूस हो रही थी। इतने सारे लोगों को एक साथ गाते और ईश्वर की स्तुति करते हुए देखना अजीब लगा। जैसे ही मैंने कमरे के चारों ओर आलोचनात्मक रूप से देखा, ईश्वर अचानक मेरे जीवन में आ गया। पुरोहित ने आस्था के बारे में, पवित्र यूखरिस्त में येशु के बारे में, संतों के बारे में, और माँ मरियम के बारे में इतने वास्तविक और ठोस तरीके से बताया कि मुझे अंततः समझ में आ गया कि ईश्वर कहीं बादलों में नहीं, बल्कि वह मेरे बहुत करीब है, और उसके पास मेरे जीवन के लिए एक योजना है। कुछ और मैं समझ गया कि ईश्वर ने मुझे किसी कारण से बनाया है। मैंने उस दिन पहली बार ईमानदारी से प्रार्थना की, “हे ईश्वर, यदि तेरा अस्तित्व है, यदि तेरे पास मेरे लिए कोई योजना है, तो मुझे तेरी सहायता की आवश्यकता है। तेरी योजना को मुझपे इस तरह से प्रकट कर कि मैं उसे समझ सकूँ।“ लोगों ने माला विनती करना शुरू कर दिया, जिसे मैंने बचपन में ही छोड़ दिया था, इसलिए मुझे जो भी प्रार्थना याद आती थी मैं उसमें शामिल हो गया। जब उन्होंने गाना शुरू किया, तो मेरे दिल में कुछ पिघलने लगा और जीवन में पहली बार मुझे ईश्वर के प्रेम का अनुभव हुआ। मैं इस प्यार से इतना अभिभूत हो गया कि मैं रोने लगा। माता मरियम की मध्यस्थता के माध्यम से मैं ईश्वर की उपस्थिति को महसूस कर सका। मैं उस दिन मिस्सा बलिदान के लिए गया लेकिन मुझे पता था कि मैं परमप्रसाद ग्रहण नहीं कर सकता था क्योंकि मैंने लंबे समय से पापस्वीकार नहीं किया था। मेरा दिल ईश्वर के करीब रहने के लिए उत्सुक था, इसलिए मैंने अगले कुछ सप्ताह, एक ईमानदार और अच्छा पापस्वीकार करने की तैयारी में समय बिताया। एक बच्चे के रूप में, मैं नियमित रूप से पापस्वीकार केलिए जाता था, लेकिन मुझे नहीं लगता कि मैं कभी भी वास्तव में ईमानदार था। मैं अपने पापों की खरीदारी की सूची में हर बार वही तीन या चार चीज़ें ले कर जाता था। इस बार जब मुझे पाप क्षमा मिली तो मुझे बहुत शांति और प्रेम का अनुभव हुआ। मैंने निर्णय लिया कि मुझे अपने जीवन में इसकी और अधिक ज़रुरत है। अभिनय करूं या नहीं? एक अभिनेता के रूप में, अपने विश्वास को जीना बहुत कठिन था। मुझे जो भी भूमिका दी जा रही थी, वह एक कैथलिक के रूप में विश्वास का खंडन करता था, लेकिन मेरी आस्था में पर्याप्त प्रशिक्षण नहीं था। मुझे पता था कि मुझे और मदद की ज़रूरत है। मैं एक पेंटेकोस्टल चर्च में जाने लगा, जहाँ मेरी मुलाकात ऐसे लोगों से हुई जिन्होंने मुझे बाइबिल के बारे में और स्तुति और आराधना कैसे करनी है इन सबके बारे में सिखाया । उन्होंने मुझे आत्मिक सलाह, दोस्ती और समुदाय की संगति दी, लेकिन मैं यूखरिस्त में उपस्थित येशु को त्याग नहीं सकता था, इसलिए मैं कैथलिक कलीसिया में ही रहा। हर हफ्ते वे मेरी कैथलिक मान्यताओं को चुनौती देते थे, इसलिए मैं जाता था और उनके लिए उत्तर के साथ वापस आने के लिए अपनी धार्मिक शिक्षा का अध्ययन करता था। उन्होंने मुझे एक बेहतर कैथलिक बनने में मदद की, इससे मैं क्यों विश्वास करता हूँ, इसे समझकर विश्वास करने में मुझे मदद मिली। एक समय, मेरे मन में इस बात को लेकर मानसिक और भावनात्मक अवरोध था कि कैथलिकों को माता मरियम के प्रति इतनी भक्ति क्यों है। उन्होंने मुझसे पूछा, "आप मरियम से प्रार्थना क्यों करते हैं? आप सीधे येशु के पास क्यों नहीं जाते?" यह बात मेरे दिमाग में पहले से ही थी। मुझे ऐसा उत्तर ढूंढने में संघर्ष करना पड़ा जो सार्थक हो। संत पाद्रे पियो एक चमत्कारिक व्यक्ति थे जिनके जीवन ने मुझे एक बेहतर इंसान बनने के लिए प्रेरित किया। जैसा कि मैंने पढ़ा था कि कैसे माता मरियम के प्रति उनकी भक्ति ने उन्हें येशु मसीह और कलीसिया के दिल में गहराई तक पहुंचा दिया। मैंने संत पिता जॉन पॉल द्वितीय के बारे में भी सुना। इन दो महान व्यक्तियों की गवाही ने मुझे माता मरियम पर भरोसा करने और उनके उदाहरण का पालन करने के लिए प्रेरित किया। इसलिए, मैंने मरियम के निष्कलंक हृदय के माध्यम से संत पिता के मतलबों के लिए हर दिन प्रार्थना की। मैं और अधिक जानने के लिए मरियन आत्मिक साधना में भाग लिया। मैंने सुना कि संत लुइस डी मोंटफोर्ट की माता मरियम के प्रति महान भक्ति है, और प्रार्थना में मरियम से बात करना येशु की तरह बनने का सबसे तेज़ और सरल तरीका है। उन्होंने बताया कि मूर्ति बनाने के दो तरीके हैं - इसे हथौड़े और छेनी से किसी सख्त सामग्री से गढ़ना, या एक सांचे में राल भरना और इसे सख्त होने के लिए छोड़ देना। एक साँचे में बनी प्रत्येक मूर्ति अपने आकार का पूर्णतया वही सुन्दर आकार लेती है (जब तक वह भरी हुई है)। माता मरियम वह साँचा है जिसमें येशु मसीह का शरीर बना था। ईश्वर ने उन्हें उस उद्देश्य के लिए परिपूर्ण बनाया। यदि आप माता मरियम द्वारा ढाले गए हैं, तो वह आपको पूर्णता में बनाएगी, बर्शते आप खुद को पूरी तरह से समर्पित कर देंगे। जब मैंने यह सुना तो मैं समझ गया कि यह सच है। जब हमने माला विनती की, तो मैंने केवल शब्दों का उच्चारण करने के बजाय, पूरे ह्रदय से भेदों पर मनन करते हुए प्रार्थना की। कुछ अप्रत्याशित हुआ। मैंने हमारी धन्य माँ के प्रेम का अनुभव किया। यह ईश्वर के प्रेम की तरह था, और मैं जानता था कि यह ईश्वर के प्रेम से आया है। लेकिन यह अनुभव बिलकुल भिन्न था। माँ मरियम ने मुझे ईश्वर से प्रेम करने में इस तरह से मदद की जिस प्रकार मैं अपने आप कभी नहीं कर पाया था। मैं इस प्रेम से इतना अभिभूत हो गया कि मेरी आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े। ऐसा अद्भुत उपहार पाना खेत में खज़ाना मिलने वाले दृष्टान्त के समान था। आप उस खेत को खरीदने के लिए सब कुछ बेचने को तैयार होंगे ताकि आप इस खजाने को पा सकें। उस क्षण से, समझ गया कि मैं अभिनय जारी नहीं रख पाऊंगा। मैं उस धर्म विहीन और धर्म विरोधी दुनिया में रहकर एक अच्छा कैथलिक नहीं बन सकता। मैं यह भी जानता था कि लोगों को ईश्वर के प्रेम के बारे में जानने की ज़रूरत है। इसलिए मैंने अपना करियर एक तरफ रख दिया ताकि मैं प्रचार कर सकूं। गहरी खुदाई मैं ईश्वर से यह पूछने के लिए आयरलैंड में दस्तक देने आया था कि वह मुझसे क्या चाहता है। माता मरियम ने १८७९ में दर्शन दिया था। उस दर्शन में मरियम संत युसूफ, संत योहन और वेदी पर ईश्वर के मेमने के रूप में येशु के साथ स्वर्गदूतों से घिरी हुई थीं। मरियम लोगों को येशु के पास ले जाने के लिए आयी। उनकी भूमिका लोगों को ईश्वर के मेमने के पास ले जाने की है। नॉक में, मैं उस महिला से मिला जिससे मेरी शादी बाद में हुई थी, और मैं उन लोगों से भी मिला जिन्होंने मुझे मिशन कार्य करने के लिए नौकरी की पेशकश की थी। मैं एक सप्ताहांत के लिए आया था, और 20 साल बाद भी, मैं अभी भी आयरलैंड में रह रहा हूँ। एक बार जब मैंने ठीक से माला विनती करना सीख लिया तो धन्य माँ के प्रति मेरा प्रेम बढ़ता गया। मुझे अपने आप से माला विनती करना हमेशा बहुत कठिन लगता था। जब मैं इंग्लैंड के वालसिंघम में राष्ट्रीय तीर्थस्थल पर गया, तब यह कठिनाई दूर हो गयी। वालसिंघम की माँ मरियम के प्रतिमा वाले छोटे प्रार्थनालय में, मैंने धन्य माँ मरियम से प्रार्थना करने और माला विनती को समझने की कृपा मांगी। कुछ अविश्वसनीय घटित हुआ! जैसे ही मैंने आनंद के भेद बोलना शुरू किया, प्रत्येक भेद में, मुझे समझ आया कि माता मरियम सिर्फ येशु की माँ नहीं थी, वह मेरी माँ भी थी, और मैंने महसूस किया कि मैं बचपन में येशु के साथ-साथ बढ़ रहा हूँ। इसलिए जब मरियम ने ईश्वर की माँ होने के सन्देश के लिए मंजूरी में "हाँ" कहा, तो वह मुझे भी "हाँ" कह रही थी, येशु के साथ अपने गर्भ में वह मेरा भी स्वागत कर रही थी। जब मरियम अपनी कुटुम्बिनी एलिज़ाबेथ से मिलने गई, मैंने महसूस किया कि मैं येशु के साथ उसके गर्भ में हूँ। और जब योहन बप्तिस्मा खुशी से उछल पड़ा तब मैं वहाँ मसीह के शरीर में था। येशु मसीह के जन्म के समय, ऐसा महसूस हुआ जैसे मरियम ने मुझे बड़ा करने के लिए "हाँ" कहकर मुझे नया जीवन दिया। जैसे ही उसने और संत युसूफ ने येशु को मंदिर में चढ़ाया, उन्होंने मुझे भी अपने बच्चे के रूप में स्वीकार करते हुए, पिता को अर्पित किया। जब उन्होंने येशु को मंदिर में पाया, तो मुझे लगा कि मरियम मुझे भी ढूंढ रहीं थी। मैं खो गया था, लेकिन मरियम मुझे खोज रहीं थी। मुझे एहसास हुआ कि मरियम इतने वर्षों से मेरी माँ के साथ मेरा विश्वास वापस लौटने के लिए प्रार्थना कर रहीं थी। मैंने होली फ़ैमिली मिशन की स्थापना में मदद की, एक ऐसा घर जहाँ युवा लोग अपने विश्वास के बारे में जानने के लिए आ सकते हैं और जिस शिक्षण को वे बचपन के बाद भूल गए थे उस वे फिर से प्राप्त कर सकते हैं। हमने पवित्र परिवार को अपने संरक्षक के रूप में चुना, यह जानते हुए कि हम मरियम के माध्यम से येशु के दिल में आते हैं। मरियम हमारी मां हैं और हम उनके गर्भ में हम संत युसूफ की देखरेख में येशु मसीह की तरह बने हैं। अनुग्रह पर अनुग्रह हमारी धन्य माँ ने नॉक में मेरी पत्नी को ढूंढने और उसे जानने में मेरी मदद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी क्योंकि हमने यूथ 2000 नामक एक आंदोलन में एक-दूसरे के साथ काम किया था, जो माता मरियम और परम प्रसाद पर केंद्रित था। हमने अपनी शादी के दिन, खुद को, अपने वैवाहिक जीवन को और अपने भावी बच्चों को ग्वाडालूप की माता मरियम को समर्पित कर दिया। अब हमारे नौ खूबसूरत बच्चे हैं, जिनमें से प्रत्येक का माता मरियम के प्रति अद्वितीय विश्वास और समर्पण है, जिसके लिए हम बहुत आभारी हैं। माला विनती मेरे विश्वास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है और मेरे जीवन में बहुत सारी कृपाओं का माध्यम बन गया है। जब भी मेरे पास कोई समस्या होती है, तो सबसे पहले मैं अपनी रोज़री माला उठाता हूँ और माता मरियम की ओर मुड़ता हूँ। संत जॉन पॉल द्वितीय ने कहा कि यह माता मरियम का हाथ थामने जैसा है ताकि वह किसी भी अंधेरे समय में, मुसीबतों में हमारा सुरक्षित मार्गदर्शन सकेगी। एक बार, मेरे एक करीबी दोस्त के साथ मेरी अनबन हो गई और मुझे सामंजस्य बैठाना बहुत मुश्किल हो रहा था। मैं जानता था कि उसने मेरे साथ अन्याय किया है और मुझे माफ करना कठिन लग रहा था। वह व्यक्ति उस चोट को नहीं देख सका जो उसने मुझे और दूसरों को पहुंचाई थी। मेरे अंतरतम का एक हिस्सा इसके बारे में कुछ करना चाहता था, एक दूसरा हिस्सा उससे प्रतिशोध लेना चाहता था। लेकिन इसके बजाय, मैंने अपना हाथ अपनी जेब में डाला और अपनी रोज़री माला के मोती उठा लिए। अभी मैंने केवल मला विनती का एक भेद पूरा किया ही था कि वह मित्र अपने बदले हुए अंतरात्मा के साथ मेरी ओर मुड़ा और मुझसे बोला, "पैट्रिक, मुझे अभी एहसास हुआ कि मैंने तुम्हारे साथ क्या किया और मैंने तुम्हें कितना नुकसान पहुँचाया है। मैं क्षमा चाहता हूं।" जैसे ही हमने गले लगाया और मेल-मिलाप किया, वैसे ही मैंने माता मरियम के पास हमारे दिल को बदलने की उस शक्ति को पहचाना। मरियम वह साधन है जिसे ईश्वर ने इस दुनिया में प्रवेश करने के लिए चुना है, और वह अभी भी उसके माध्यम से हमारे पास आना चाहता है। मैं अब समझ गया हूं कि हम येशु के बजाय मरियम के पास नहीं जाते हैं, हम मरियम के पास जाते हैं क्योंकि येशु उसके अन्दर हैं। पुराने नियम में, विधान की मञ्जूषा में वह सब कुछ था जो पवित्र था। मरियम नई विधान की मञ्जूषा है, सभी पवित्रता का स्रोत, वह स्वयं ईश्वर का जीवित मंदिर है। इसलिए, जब मैं येशु मसीह के करीब रहना चाहता हूं, तो मैं हमेशा मरियम की ओर रुख करता हूं, जिन्होंने येशु के साथ अपने शरीर के भीतर सबसे घनिष्ठ संबंध साझा किया। उनके करीब आने में, मैं येशु के करीब आ जाता हूँ।
By: Patrick Reynolds
Moreआज यदि आप स्पष्ट रूप से सुनते हैं कि ईश्वर आपसे क्या करवाना चाहता है...तो इसे करने का साहस करें! "पहले मठवासी बनो।" जब मैं 21 साल का था तब मुझे ईश्वर से यही शब्द मिले थे; जिन सपनों, योजनाओं, आकांक्षाओं और ख्वाहिशों के साथ एक औसतन 21 वर्षीय व्यक्ति से अपेक्षा की जाती है, ऐसे में 21 साल की उम्र में मुझे यही आदेश प्राप्त हुआ था। एक वर्ष के भीतर कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई करने की मेरी योजना थी। हॉलीवुड में स्टंटमैन के रूप में काम करते हुए युवको के बीच धर्मसेवा के कार्य करने का सपना भी था। मैंने कल्पना की कि मैं एक दिन फिलीपींस जाऊंगा, और एक दूरस्थ द्वीप पर जनजातियों के बीच रहते हुए कुछ समय बिताऊँगा। और हां, शादी और बच्चों के प्रति मेरा बहुत मजबूत आकर्षण था। जब परमेश्वर मुझसे उन चार अचूक शब्दों को बोला, तब मेरी ये आकाक्षाएँ आचानक से अवरुद्ध हो गयीं। जब मैं लोगों को बताता हूं कि कैसे ईश्वर ने मेरे जीवन के लिए अपनी इच्छा स्पष्ट की, तब कुछ उत्साही ईसाई ईर्ष्या व्यक्त करते हैं। वे अक्सर कहते हैं, "काश ईश्वर मुझसे इस तरह बात करता।" इसके जवाब में, मैं अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर ईश्वर के बोलने के तरीके पर कुछ स्पष्टीकरण देना चाहता हूं। ईश्वर तब तक नहीं बोलता जब तक कि हम, जो वह कहना चाहता है उसे सुनने और ग्रहण करने के लिए तैयार नहीं होते। उसे क्या कहना है यह इस बात से निर्धारित हो सकता है कि हमें तैयार होने में कितना समय लगता है। जब तक हम परमेश्वर के वचन को सुन और ग्रहण नहीं कर सकते, तब तक वह केवल प्रतीक्षा करेगा; और परमेश्वर बहुत लंबे समय तक प्रतीक्षा कर सकता है, जैसा उड़ाऊ पुत्र के दृष्टांत में दिखाया गया है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि जो लोग उसकी बाट जोहते हैं उन्हें पूरे पवित्रग्रन्थ में सम्मानित किया गया है। मुझे मठवासी बनने की अपनी बुलाहट की शुरुआत इस बात के विवरण के साथ करनी चाहिए कि मेरी बुलाहट वास्तव में कैसे शुरू हुई। जब मैंने एक किशोर के रूप में कलीसिया के श्रेष्ठ आचार्यों को पढ़ना शुरू किया, या अधिक सटीक रूप से, जब मैंने प्रतिदिन बाइबल पढ़ना शुरू किया, तब मैंने परमेश्वर की आवाज़ सुनी। इन विवरणों पर गौर करने से पता चलता है कि सात साल के विवेक के बाद ही मुझे परमेश्वर से सिर्फ चार शब्द मिले। किताबों में गहन खोज मुझे बचपन में किताब पढ़ने से नफरत थी। जब अंतहीन रोमांच भरे साहस के कार्य मेरे दरवाजे के ठीक बाहर थे, तब एक उमस भरे कमरे में एक किताब के साथ घंटों तक बैठे रहने का कोई मतलब नहीं था। हालाँकि, प्रतिदिन बाइबल पढ़ने की अनिवार्यता ने एक अनसुलझी दुविधा पैदा कर दी। प्रत्येक सुसमाचार के उद्घोषक जानता है कि कोई भी ईसाई जो बाइबिल पर धूल जमा होने देता है वह ईसाई नहीं है। लेकिन मैं पवित्र शास्त्र का अध्ययन कैसे कर सकता था जब मुझे पढ़ना ही पसंद नहीं था? एक युवा पादरी के प्रभाव और उनके आदर्श से प्रेरित होकर, मैंने अपने आप को समझाया और एक समय में एक किताब पढ़ते हुए अपने आप को ईश्वर के वचन पर मनन करने के कार्य में लगा दिया। जितना अधिक मैंने पढ़ा, उतना ही अधिक मैं प्रश्न पूछने लगा। अधिक प्रश्नों ने मुझे अधिक उत्तरों के लिए और किताबों को पढ़ने के लिए प्रेरित किया। किशोर लोग स्वभाव से तीव्र होते हैं। सूक्षम्ता कुछ ऐसी चीज़ है जो वे जीवन में बाद में सीखते हैं, यही कारण है कि कलीसिया के आचार्यों ने मुझे एक युवा व्यक्ति के रूप में इतना मुग्ध कर दिया। इग्नेसियुस सूक्ष्म नहीं था। ओरिजन परिष्कृत व्यक्ति नहीं था। कलीसिया के आचार्य हर दृष्टि से अतिवादी थे, उन्होंने सांसारिक वस्तुओं को त्याग दिया, रेगिस्तान में रहते थे, और अक्सर प्रभु के लिए अपने जीवन का बलिदान कर देते थे। एक किशोर के रूप में चरम की ओर झुकाव के साथ, मुझे ऐसा कोई नहीं मिला जो कलीसिया के आचार्यों का मुकाबला कर सके। किसी एम.एम.ए. के लड़ाकू का पेरपेतुआ के साथ तुलना नहीं की जा सकती। हेरमास के चरवाहे से बड़ा कोई सर्फर नहीं था। और फिर भी, इन प्रारंभिक मौलिकवादियों ने जिस चीज की परवाह की, वह बाइबल में बताए गए मसीह के जीवन की नकल करने के अलावा और कुछ नहीं थी। इसके अलावा, वे सभी ब्रह्मचर्य और ध्यान मनन का जीवन जीने पर सहमत थे। यह विरोधाभास मुझपर प्रभाव डालने वाला था। कलीसिया के आचार्यों की तरह अतिवादी होना सतही तौर पर सांसारिक जीवनशैली दिखाई देती थी। विचार करने के लिए और भी प्रश्न थे। ईश्वर के साथ बातचीत मेरे स्नातक स्तर की पढ़ाई लगभग पूरी होने के साथ, मैं नौकरी के प्रस्तावों को लेकर परेशान था जो कॉलेज के बाद मेरी आगे की शिक्षा के लिए सामुदायिक संबद्धता के साथ ही संभावित संस्थानों को निर्धारित करेगा। उस समय, मेरे एंग्लिकन पादरी मित्र ने मुझे इस मामले को प्रार्थना में ईश्वर के सामने रखने की सलाह दी। मुझे ईश्वर की सेवा कैसे करनी चाहिए, यह निर्णय अंततः मेरा नहीं बल्कि ईश्वर का निर्णय होना था। और प्रार्थना के द्वारा ईश्वर की इच्छा को जानने के लिए एक मठ से बेहतर जगह कौन हो सकती है? इसलिए मैं सेंट एंड्रयूज मठ में गया। वहां रहते हुए पास्का रविवार को मेरे पास एक महिला आई जिससे मैं पहले कभी नहीं मिला था और वह मुझसे बोली, "मैं तुम्हारे लिए प्रार्थना कर रही हूं, और मैं तुमसे प्यार करती हूं।" मेरा नाम पूछने के बाद, उसने मुझे संत लूकस के पहले अध्याय को पढ़ने की सलाह दी, और बोली "यह पाठ आपको अपनी बुलाहट निर्धारित करने में मदद करेगा।" मैंने उसे धन्यवाद दिया और जैसा उसने निर्देश दिया था वैसा ही किया। जब मैं प्रार्थनालय के लॉन में बैठकर योहन बप्तिस्ता के जन्म की कहानी के बारे में पढ़ रहा था, मैंने अपने और योहन के जीवन के बीच कई समानताएँ देखीं। मैं यहां पूर्ण विवरण नहीं देना चाहूँगा। मैं बस इतना ही कहूँगा कि यह ईश्वर के वचन के साथ मेरा अब तक का सबसे आंतरिक अनुभव था। ऐसा लगा जैसे वह वाक्य उसी क्षण मेरे लिए लिखा गया हो। मैंने प्रार्थना करना जारी रखा और घास के लॉन पर बैठकर ईश्वर के निर्देश की प्रतीक्षा करता रहा। क्या वह मुझे न्यूपोर्ट बीच, या वापस मेरे गृहनगर सैन पेड्रो में कोई नौकरी ढूँढने के लिए निर्देशित करेगा? बड़े सब्र के साथ मैं ईश्वर का दिशानिर्देश का इंतज़ार करता रहा। घंटों बीत गए। अचानक मेरे मन में एक अनपेक्षित आवाज गूंजी; "पहले मठवासी बनो।" यह चौंकाने वाला था, क्योंकि यह वह उत्तर नहीं था जिसकी मुझे तलाश थी। स्नातक स्तर की पढ़ाई के बाद मठ में प्रवेश करने का विचार मेरे मन की आखिरी सोच थी। इसके अलावा, मेरे पास आगे के जीने के लिए एक मजेदार और रंगीन जीवन था। मैंने हठपूर्वक ईश्वर की आवाज़ को यह कहते हुए अनसुना कर दिया कि यह मेरे अवचेतन से उठने वाला कोई उटपटाँग विचार होगा। दोबारा प्रार्थना करते हुए, मैंने फिर से ईश्वर को सुनने की कोशिश की ताकि वह अपनी इच्छा मुझ पर प्रकट करे। अगले ही क्षण, एक छवि ने मेरे दिमाग पर कब्जा कर लिया; तीन सूखी नदियों के तट दिखाई दिए। किसी तरह, मुझे पता था कि एक नदी का किनारा मेरे गृहनगर सैन पेड्रो को दर्शाता था, दूसरी नदी का किनारा न्यूपोर्ट को दर्शाता था, लेकिन बीच वाली नदी का किनारा एक मठवासी बनने का संकेत देता था। मेरी इच्छा के विरुद्ध बीच वाली नदी का तट सफेद पानी से लबालब होने लगा। मैंने जो देखा वह पूरी तरह से मेरे नियंत्रण से बाहर था; मैं इसे नहीं देख सका। उस समय मैं डर गया कि या तो मैं पागल हो रहा था, या फिर ईश्वर मुझे कुछ अप्रत्याशित करने के लिए बुला रहा था। अखंडनीय जैसे ही मेरे गालों पर आंसू छलक पड़े, घंटी बजी। यह संध्या वंदना का समय था। मैं मठवासियों के साथ प्रार्थनालय में प्रवेश किया। जैसे-जैसे हम भजन गाते गए, मेरा रोना बेकाबू होता गया। अब मैं भजन नहीं गा पा रहा था। मुझे याद है कि मैं जिस तरह से बर्ताव कर रहा था उससे मुझे शर्मिंदगी महसूस हो रही थी। जैसे ही मठ के धर्म बंधू एक-एक करके बाहर आए, मैं प्रार्थनालय में ही रहा। वेदी के सामने मुँह के बल लेटकर मैं जितना उस दिन रोया था शायद ही अपने पूरे जीवन में उतना कभी रोया हूँगा। मेरे रोने के साथ मेरी भावनाओं का पूर्ण अभाव था, और यह बात मुझे अजीब लगी। न गम था न गुस्सा, बस सिसकियां थीं। मैं अपने फूट-फूट कर रोने की केवल एक ही व्याख्या कर सकता था, वह थी पवित्र आत्मा का स्पर्श। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि ईश्वर मुझे मठवासी जीवन के लिए बुला रहा था। मैं उस रात अपनी सूजी हुई आँखों के साथ सोने गया, लेकिन अपने लिए ईश्वर का मार्ग जानकर मुझे शांति का अनुभव मिला। अगली सुबह, मैंने ईश्वर से वादा किया कि मैं उनकी आज्ञा का पालन करते हुए, सबसे पहले मठवासी बनने की कोशिश करूंगा। मेरी बात अभी पूरी नहीं हुई? यद्यपि परमेश्वर कई बार समय का पाबंद होता है, जैसा कि सीनई पर्वत पर मूसा या कार्मेल पर्वत पर एलियाह के साथ हुआ था, लेकिन ज्यादातर परमेश्वर के शब्द असामयिक हैं। हम यह नहीं मान सकते कि हमारे अपने जीवन को दांव पर लगाने से, ईश्वर बोलने के लिए मजबूर हो जायेगा। हम उसके साथ जरा भी हेरा-फेरी नहीं कर सकते। इस प्रकार, हमारे पास अपने नीरस कार्यों को जारी रखने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता जब तक कि हम उसे लगभग भूल न जाएँ — यही वह समय है जब वह प्रकट होता है। युवा समूएल ने ईश्वर की आवाज़ तब सुनी जब वह अपने दैनिक (सांसारिक) कर्तव्यों को पूरा कर रहा था, यानी यह सुनिश्चित कर रहा था कि तम्बू की मोमबत्ती जलती रहे। बुलाहटों के अन्दर भी बुलाहट होती है; बुलाहट में बुलाहट। इस प्रकार, एक छात्रा अपनी बीजगणित के सवालों को हल करते हुए भी ईश्वर की वाणी को अच्छी तरह से सुन सकती है। शहर के व्यस्त ट्रैफिक के बीचोबीच चुपचाप बैठी एक अकेली माँ को ईश्वर की वाणी सुनने को मिल सकती है। आशय यह है कि हमेशा देखते रहें और प्रतीक्षा करें, क्योंकि हम नहीं जानते कि प्रभु कब प्रकट होंगे। यह एक प्रश्न को जन्म देता है; ईश्वर की एक वाणी को सुनना इतना दुर्लभ और अस्पष्ट क्यों है? ईश्वर हमें केवल उतनी ही स्पष्टता प्रदान करता है जितनी हमें उसका अनुसरण करने के लिए चाहिए; उससे ज्यादा नहीं। ईश माता ने बिना किसी स्पष्टीकरण के ईश्वर के शब्द को ग्रहण किया। नबी, जो लगातार ईश्वर की वाणी प्राप्त करते रहते थे, अक्सर उलझन में पड़ जाते थे। योहन बपतिस्मा, जो मसीहा को पहचानने वाले पहले व्यक्ति थे, बाद में उन्होंने स्वयं येसु के मसीह होने के बारे में अनुमान लगाया। यहाँ तक कि उनके चेले और रिश्तेदार जो उनके सबके करीबी थे, प्रभु के वचनों को समझने में कठिनाई महसूस करते थे। जो लोग ईश्वर की वाणी को सुनते हैं अक्सर उनके पास प्रश्न अधिक रह जाते हैं, उत्तर नहीं। ईश्वर ने मुझे पुरोहित बनने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि कैसे और कहाँ। अपनी बुलाहट के बारे में और अधिक पता लगाने के लिए उसने मुझ पर छोड़ दिया। मुझे अपनी बुलाहट को पहचानने में चार साल लगे; मुझे सेंट एंड्रयूज में प्रवेश मिलने से पूर्व, चार साल की अवधि में मैंने अठारह अन्य मठों का दौरा किया था। भ्रम, शंका और अनुमान लगाना, ये सभी बुलाहटों को पहचानने की लंबी प्रक्रिया का हिस्सा हैं। इसके अतिरिक्त, ईश्वर हवा में नहीं बोलता है। उसके शब्द दूसरों के शब्दों से पहले और बाद में हैं। मेरे जीवन में एक युवा पादरी ने, एक एंग्लिकन पादरी ने और सेंट एंड्रयूज मठ के एक साधू ने ईश्वर के जागीरदारों के रूप में काम किया। परमेश्वर के वचन ग्रहण करने से पहले इनके शब्दों को सुनना आवश्यक था। मेरी बुलाहट अभी अधूरी है। यह अभी भी खोजी जा रही है, अभी भी हर दिन महसूस की जा रही है। मैं अब छह साल से मठवासी हूं। बस इसी साल मैंने अपना व्रतधारण किया है। हो सकता है कोई बोले कि मैंने वह किया है जो परमेश्वर ने मुझे करने के लिए कहा। कुछ भी हो, ईश्वर ने अभी बोलना पूरा नहीं किया है। उसने सृष्टि के पहले दिन के बाद से बोलना बंद नहीं किया है, और वह तब तक नहीं करेगा जब तक उसकी महान रचना पूरी नहीं हो जाती। कौन जानता है कि वह क्या कहेगा या वह अगली बार कब बोलेगा? अजीब बातें बोलने का ईश्वर का इतिहास रहा है। हमारा भाग प्रतीक्षा करना और देखना है; उसके भण्डार में जो कुछ भी है, उसकी प्रतीक्षा करना हमारी ज़िम्मेदारी है।
By: Brother John Baptist Santa Ana, O.S.B.
Moreजब ईश्वर हमें बुलाता है तब वह रास्ते में आने वाली किसी भी बाधा को दूर करने की शक्ति भी हमें देता है। जीवन के तूफानी हमलों के दौर में फादर पीटर परमेश्वर से कैसे लिपटे रहे, इस अद्भुत कहानी को पढ़ें। अप्रैल 1975 में जब कम्युनिस्टों ने वियतनाम पर कब्जा कर लिया, तब उस देश के दक्षिणी छोर में रहने वाले लोगों का जीवन हमेशा के लिए बदल गया। कम्युनिस्टों ने दस लाख से अधिक दक्षिण वियतनामी सैनिकों को पकड़ लिया और उन्हें पूरे देश के विभिन्न जगहों पर बनाए गए नज़रबंदी शिविरों में कैद कर दिया था। इसके अलावा सैकड़ों हजारों ख्रीस्तीय पुरोहितों, सेमिनारी में रहनेवाले बंधुओं, साध्वियों, मठवासी भिक्षुओं और धर्मबन्धुओं को कारागारों और सुधार गृहों में बंद कर दिया गया था ताकि उनका ब्रेनवॉश किया जा सके। उनमें से लगभग 60% की मृत्यु उन शिविरों में हुई जहाँ उन्हें कभी भी अपने परिवार या दोस्तों से मिलने की अनुमति नहीं थी। वे ऐसे रहते थे जैसे उन्हें भुला दिया गया हो। युद्ध से बिखरा राष्ट्र मेरा जन्म 1960 के दशक में, युद्ध के दौरान, अमेरिकियों के मेरे देश में आने के ठीक बाद हुआ था। उत्तर और दक्षिण के बीच लड़ाई के दौरान मेरी परवरिश हुई थी, इसलिए युद्ध सम्बंधित घटनाएं मेरे बचपन की पृष्ठभूमि बन गयी। जब युद्ध समाप्त हुआ, तब तक मैं लगभग माध्यमिक विद्यालय समाप्त कर चुका था। मुझे इस बारे में ज्यादा समझ नहीं आया कि यह सब क्या है, लेकिन मुझे यह देखकर बहुत दु:ख हुआ कि इतने सारे लोग जो मारे गए या कैद किए गए अपने सभी प्रियजनों के लिए दुखी हैं। जब कम्युनिस्टों ने हमारे देश पर कब्जा कर लिया, तो सब कुछ उल्ट गया। हम अपने विश्वास के लिए लगातार सताए जाने के डर में जी रहे थे। वस्तुतः कोई स्वतंत्रता नहीं थी। हमें नहीं पता था कि कल हमारे साथ क्या होगा। हमारा भाग्य पूरी तरह से कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों के हाथों में था। ईश्वर की पुकार का जवाब इन अशुभ परिस्थितियों में मैंने ईश्वर की पुकार को महसूस किया। प्रारंभ में, मैंने इसके खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की, क्योंकि मैं जानता था कि मेरे लिए उस पुकार का पालन करना असंभव था। सबसे पहले, कोई गुरुकुल या सेमिनरी नहीं था जहाँ मैं पुरोहिताई के लिए अध्ययन कर सकता था। दूसरी बात, अगर सरकार को पता चल गया तो यह न केवल मेरे लिए खतरनाक होगा, बल्कि मेरे परिवार को भी दंडित किया जाएगा। और इन सबके अलावा, मैं येशु का शिष्य बनने के लिए अपने आप को अयोग्य महसूस कर रहा था। हालाँकि, परमेश्वर के पास अपनी योजना को पूरा करने का अपना तरीका है। इसलिए मैं 1979 में भूमिगत सेमिनरी में शामिल हो गया। सोलह महीने बाद, स्थानीय पुलिस को पता चला कि मैं एक ख्रीस्तीय पुरोहित बनने की तैयारी कर रहा हूँ, इसलिए मुझे जबरन सेना में भर्ती कर लिया गया। मुझे उम्मीद थी कि चार साल बाद मुझे रिहा किया जा सकता है, ताकि मैं अपने परिवार और अपनी पढ़ाई में वापस आ सकूं, लेकिन सैनिक प्रशिक्षण के दौरान एक साथी सैनिक ने मुझे चेतावनी दी कि हमें कंपूचिया में लड़ने के लिए भेजे जायेंगे। मैं जानता था कि कंपूचिया में लड़ने गए 80% सैनिक कभी वापस नहीं आए। मैं इस संभावना से इतना डर गया था, कि मैंने खतरनाक जोखिमों के बावजूद सैनिक शिविर से भाग जाने की योजना बनाई। हालांकि मैं सफलतापूर्वक बच निकला, फिर भी मैं खतरे में था। मैं घर लौटकर अपने परिवार को खतरे में नहीं डाल सकता था, इसलिए मैं लगातार इस डर से इधर-उधर भटक रहा था कि कहीं कोई मुझे देख लेगा और पुलिस को रिपोर्ट कर देगा। जीवन के लिए पलायन इस प्रतिदिन के आतंक का कोई अंत नज़र नहीं आ रहा था। उस एक वर्ष के कठिन दौर के बाद, मेरे परिवार ने मुझसे कहा कि, सभी की सुरक्षा के लिए, मुझे वियतनाम से भागने का प्रयास करना चाहिए। एक अंधेरी रात में, आधी रात के बाद, मैंने गुप्त निर्देशों का पालन करते हुए, मछली पकड़ने वाली छोटी लकड़ी की एक नाव की ओर रेंगना शुरू किया, जहाँ कम्युनिस्ट गश्ती दल से बचकर भागने के लिए पचास लोग सवार थे। छोटे बच्चों से लेकर बूढ़ों तक, हमने अपनी सांसें और एक-दूसरे का हाथ तब तक थामे रखा जब तक हम खुले समुद्र में सुरक्षित बाहर नहीं निकल गए। लेकिन हमारी परेशानी अभी शुरू ही हुई थी। हमें कहाँ जाना है, इसके बारे में हमारे पास केवल एक अस्पष्ट विचार था और वहाँ जाने के लिए कहाँ कहाँ से होकर जाना है, इसकी बहुत कम समझ थी। हमारा पलायन कठिनाइयों और खतरों से भरा था। हमने भयानक मौसम में समुद्र के उबड़-खाबड़ लहरों के बीच उठते गिरते उछलते-कूदते चार दिन बिताए। एक समय आया जब हमने सारी उम्मीदें छोड़ दी थीं। हम अगले तूफान से बच पायेंगे या नहीं इसका हमें संदेह था। हम मानने लगे थे कि हम अपनी मंजिल पर कभी नहीं पहुंचेंगे क्योंकि हम समुद्र की दया पर ही निर्भर थे जो हमें कहीं नहीं ले जा रहा था। हमें बिलकुल पता नहीं चल रहा था कि हम कहां हैं। हम केवल इतना ही कर सकते थे कि परमेश्वर के विधान पर भरोसा करके अपने जीवन को उनके हाथ में छोड़ दें। इस पूरे समय में, परमेश्वर ने हमें अपने संरक्षण में रखा था। जब आखिरकार हमें मलेशिया के एक छोटे से द्वीप पर शरण मिली, तब हमें अपने सौभाग्य पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। मैंने वहां के एक शरणार्थी शिविर में आठ महीने बिताए, और उसके बाद मुझे ऑस्ट्रेलिया में शरण मिली। मजबूती से खड़ा जीवन इस तरह के आतंकों को सहने के बाद, मुझे आखिरकार पता चला कि "बारिश के बाद धूप आती है"। हमारे पास एक पारंपरिक कहावत है, "हर प्रवाह में एक भाटा या उतार होगा"। जीवन में हर किसी के पास आनंद और संतोष के दिनों के विपरीत कुछ उदास दिन होने चाहिए। शायद यही मानव जीवन का नियम है। जन्म से कोई भी सभी दुखों से मुक्त नहीं हो सकता। कुछ दुःख शारीरिक हैं, कुछ मानसिक और कुछ आध्यात्मिक हैं। हमारे दु:ख एक दूसरे से भिन्न हैं, लेकिन लगभग सभी को दुःख का स्वाद चखना पड़ेगा। हालाँकि, दुःख स्वयं मनुष्य को नहीं मार सकता। केवल ईश्वर की इच्छा के प्रति समर्पण में बने रहने की इच्छाशक्ति की कमी ही कुछ लोगों को इतना हतोत्साहित कर सकती है कि वे भ्रामक सुखों में शरण लेते हैं, या दुःख से बचने के व्यर्थ प्रयास में आत्महत्या का विकल्प चुनते हैं। मैं अपने आप को सौभाग्यशाली मानता हूं कि मैंने एक कैथलिक के रूप में अपने जीवन के लिए पूरी तरह से ईश्वर पर भरोसा करना सीखा है। मुझे विश्वास है कि जब भी मैं मुसीबत में हूँ, वह मेरी सहायता करेगा, विशेष रूप से जब ऐसा लगता है कि मेरे पास कोई विकल्प नहीं है, या मैं शत्रुओं से घिरा हुआ हूँ। मैंने अपने अनुभव से सीखा हैकि ईश्वर को ही अपने जीवन की ढाल और गढ़ मानकर उनकी शरण लेनी चाहिए। जब वह मेरे साथ होता है तो कोई भी ताकत मुझे हानि नहीं पहुंचा सकता (भजन संहिता 22)। नई भूमि में नया जीवन जब मैं ऑस्ट्रेलिया पहुंचा, तो मैंने अंग्रेजी सीखने में पूरी ताकत लगा दी ताकि मैं पुरोहिताई के लिए अध्ययन जारी रखने की अपने दिल की लालसा का पालन कर सकूं। शुरुआत में इतनी अलग संस्कृति में रहना मेरे लिए आसान नहीं था। अक्सर, अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए सही शब्द नहीं मिलते थे, इसलिए अक्सर गलतफहमियाँ हो जाती थीं। कभी-कभी हताशा में जोर-जोर से चिल्लाने का मन करता था। परिवार, या दोस्तों, या पैसे के बिना, नया जीवन शुरू करना कठिन था। मैंने अकेलापन, तन्हाई और अलग-थलग होने का दर्द महसूस किया, मुझे परमेश्वर के अलावा किसी का भी समर्थन नहीं मिला। परमेश्वर हमेशा मेरे साथी रहा है, वह मुझे सभी बाधाओं के बावजूद डटे रहने की शक्ति और साहस देता है। अंधेरे के बीचे में परमेश्वर के प्रकाश ने ही मेरा मार्गदर्शन किया, ऐसे दौर में भी जब मैं उसकी उपस्थिति को पहचानने में असफल रहा। मैंने जो कुछ भी हासिल किया है वह उसकी कृपा से है और मुझे उसका अनुसरण करने हेतु बुलाने के लिए मैं उसका आभारी रहूंगा।
By: Father Peter Hung Tran
Moreमैं काम करने और अपनी कॉलेज की शिक्षा के लिए पैसे कमाने के उद्देश्य से घर लौटने वाली थी, लेकिन ईश्वर ने मेरे जीवन में एक बड़ा आश्चर्य खडा कर दिया जब मैं कई साल पहले कॉलेज में पढ़ाई कर रही थी, मैं मेक्सिको की सीमा पर, उन दिनों टेक्सास में एक मिशन यात्रा पर गयी ताकि मैं माँ मरियम युवा केंद्र और लॉर्ड्स रेंच समुदाय के साथ स्वयंसेविका का कार्य कर् सकूं। इस लोकधर्मी सेवा दल की स्थापना एक प्रसिद्ध जेसुइट पादरी, फादर रिक थॉमस ने की थी। इस दल ने मैक्सिको के जुआरेज, और एल पासो की मलिन बस्तियों के गरीबों तक अपनी पहुंच बनाई थी। मैंने ओहियो के स्टुबेनविले में फ्रांसिस्कन विश्वविद्यालय में अपनी पढाई का पहला वर्ष पूरा किया था, और मिशन के इस तीन सप्ताह के अनुभव के बाद, मुझे गर्मियों में काम करने और पैसे बचाने के लिए घर लौटना था, फिर अपनी कॉलेज की शिक्षा जारी रखने के लिए ओहियो वापस जाना था। कम से कम, वह मेरी योजना थी। लेकिन ईश्वर के पास मेरे लिए एक बड़ा आश्चर्य था। एक क्रांतिकारी प्रस्थान लॉर्ड्स रैंच में अपने पहले सप्ताह के दौरान, मुझे असहजता का आभास होने लगा कि प्रभु मुझे इसी मिशन कार्य में ही ठहरने के लिए बुला रहा है। मैं भयभीत थी! मैं कभी भी रेगिस्तान में नहीं गयी थी और न ही मैंने शुष्क, उमस भरे गर्म मौसम का अनुभव किया था। मेरा जन्म और पालन-पोषण प्रशांत महासागर के बीच में स्थित हवाई द्वीप के उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में हुआ था, जो नारियल के पेड़ों, फूलों की बहुतायत और वर्षा वनों से घिरा हुआ है जो अदन की वाटिका जैसा था। दूसरी ओर, रेंच मेस्काई झाड़ियों, चुबना घास और एक सूखा, झुलसा, अर्ध-शुष्क परिदृश्य से घिरा हुआ है। "ईश्वर, मैं यह काम नहीं कर पाऊंगी, तेरे दिमाग में गलत व्यक्ति है", मैं अपनी प्रार्थना में रोयी। "मैं यहां कभी नहीं रह सकती, कठिन शारीरिक श्रम, बिना एयर कंडीशनिंग, और बहुत कम आराम के इस जीवन को जीना मेरे लिए असंभव है। किसी और को चुनें, मुझे नहीं!" लेकिन यह प्रबल भावना मुझमें बढ़ती रही कि ईश्वर मुझे मेरे सावधानीपूर्वक नियोजित जीवन से भिन्न एक क्रांतिकारी प्रस्थान के लिए बुला रहा है। एक दिन लॉर्ड्स रेंच की प्रार्थनालय में, मुझे रूत की किताब से यह पढ़ने को मिला: "मैंने सुना है कि तुमने क्या किया है ... तुम अपने माता-पिता और अपनी जन्मभूमि को छोड़ कर, ऐसे लोगों के यहाँ चली आयी हो, जिन्हें तुम पहले नहीं जानती थी। तुमने जो किया, प्रभु तुम्हें उसका प्रतिफल दें! प्रभु इस्राएल के ईश्वर, जिसकी छत्रछाया में तुम आ गयी हो, तुम्हें पूरा पूरा प्रतिफल दे।” रूत 2:11-12 मैंने बाइबिल को बंद कर दिया। यह मुझे कहाँ ले जा रहा है यही सोचकर मुझे बड़ी मुझे चिंता होने लगी! गिदआन की तरह ऊन का खाल फेंका प्रभु के साथ दो सप्ताह मल्लयुद्ध करने के बाद, मैंने प्रार्थना करना बंद कर दिया। प्रभु जो कह रहा था वह मुझे पसंद नहीं आया। मुझे यकीन था कि उसे गलत लड़की मिल गई है। मैं केवल 18 साल की थी! बहुत कम उम्र की, बहुत ही अनुभवहीन, बहुत अधिक डरपोक, और जिसके अन्दर पर्याप्त मजबूती या सख्ती भी नहीं। मेरे बहाने मुझे अच्छे लगे। इसलिए जिस तरह न्यायकर्ताओं के ग्रन्थ में (6:36....) गिदआन ने किया था, उसी तरह मैंने भी एक ऊनी खाल नीचे फेंक दी। "ईश्वर, अगर तू वास्तव में इस बारे में गंभीर हैं, तो सिस्टर के माध्यम से मुझसे बात कर।" सिस्टर मेरी वर्जीनिया क्लार्क, डॉटर्स ऑफ़ चैरिटी धर्म समाज की बहन थीं, जो फादर रिक थॉमस के साथ रेंच में धर्मसेवा का सह-नेतृत्व कर रही थी। उन्हें भविष्यवाणी का एक प्रामाणिक वरदान प्राप्त था और वह प्रार्थना सभाओं में पवित्र आत्मा से प्रेरित वचनों की घोषणा करती थी। उस सप्ताह प्रार्थना सभा में, उन्होंने खड़े होकर कहा, "मेरे पास स्टुबेनविल की युवतियों के लिए एक भविष्यवाणी है।" मेरा ध्यान उस पर गया। मुझे कुछ भी याद नहीं है जो उन्होंने कहा था, सिवाए इन शब्दों के, "पुराने नियम की स्त्रियों के नमूने का अनुसरण करो।" वाह! मुझे प्रार्थना के दौरान रूत ग्रन्थ के पाठ में प्राप्त हुए वचन के बारे में तुरंत विचार आया। "ठीक है, प्रभु। यह बहुत ज़्यादा वास्तविक बन रहा है।" इसलिए एक और ऊनी खाल मैंने निकाल लिया: "यदि तू वास्तव में गंभीर हैं, तो ऐसा कर कि सिस्टर मेरी वर्जीनिया मुझसे सीधे कुछ कहें।" वहाँ, मैंने सोचा कि बस यही सब कुछ समाप्त हो जाना चाहिए। सिस्टर मेरी लॉर्ड्स रांच से आने वाले सभी आगंतुकों के साथ व्यक्तिगत रूप से बात करती थी, इसलिए यह असामान्य नहीं था कि उन्होंने उस सप्ताह के अंत में उनसे मुलाकात करने के लिए मुझसे कहा। हमारे बीच अच्छी बातचीत हुई, जिसमें उन्होंने मुझसे मेरे परिवार, मेरी पृष्ठभूमि, मुझे रैंच तक जाने का कारण आदि के बारे में पूछा। उन्होंने हमारी बातचीत के अंत में एक प्रार्थना की, और मैं जाने के लिए उठी। जब मेरे मन में बस यही सोच थी "वाह, मैं गोली से बच गयी," तब अचानक उन्होंने पूछा, "क्या तुमने कभी यहाँ रहने के बारे में सोचा है?" मेरा दिल बैठ गया। मैं जवाब नहीं दे सकी, बस हां में सिर हिला दिया। उन्होंने मुझसे सिर्फ इतना कहा, "मैं तुम्हारे लिए प्रार्थना करूंगी।" और मैं उदास होकर दरवाजे से बाहर चली गयी। मैं कुछ ताजी हवा पाने के लिए बाहर चली गयी। मैं लॉर्ड्स रांच में निर्मित छोटी, और कृत्रिम झील की ओर चल पड़ी। मैं समुद्र से घिरे एक द्वीप पर पली बढ़ी थी, इसलिए पानी के पास होना मेरे लिए हमेशा सुकून देने वाला अनुभव था जिस से मैं परिचित थी। वह छोटा तालाब जिसमें मांगुर की मछलियाँ पाली जा रही थीं वह उस रेगिस्तान में एक मरुद्वीप जैसा था जहाँ मैं बैठ सकती थी और अपनी परेशान आत्मा को शांत कर सकती थी। मैं रोई, मैंने याचना की, मैंने प्रभु से बहस की, उसे समझाने की कोशिश की कि वास्तव में कोई न कोई गड़बड़ी थी। "प्रभु, मुझे पक्का मालूम है कि तुझे गलत व्यक्ति मिल गयी है। मेरे पास ऐसा कठिन जीवन जीने की ताकत नहीं है। सिर्फ मौन। आकाश मानो ठहर गया हो। कोई हलचल या चहल पहल नहीं। जब पपड़ी गिर गयी वहाँ शांत पानी के पास, ऊपर की ओर तैरते हुए सफेद बादलों की छाया में मैं अकेली बैठकर शांत हो गयी। मैंने अपने जीवन पर विचार करना शुरू किया। जब मैं छोटी बच्ची थी तब से मैंने हमेशा अपने आप को परमेश्वर के करीब महसूस किया था। वह मेरे सबसे करीबी दोस्त, मेरे विश्वासपात्र, मेरी चट्टान था। मुझे पता था कि वह मुझसे प्यार करता है। मुझे पता था कि उसके दिल में मेरे लिए कल्याण है, मेरी भलाई है, सबसे अच्छा हित है और वह मुझे किसी भी तरह से नुकसान नहीं पहुंचाएगा। मैं यह भी जानती थी कि उसने मुझसे जो कुछ कहा, चाहे वह कितना भी अप्रिय क्यों न हो, मैं वह सब करना चाहती थी। इसलिए मैंने अनिच्छा से हार मान ली। “ठीक है, ईश्वर। तू जीता। मैं यहीं रहूंगी।" उस वक्त मैंने अपने दिल में आवाज़ सुनी, "मुझे तुम्हारा इस्तीफा नहीं चाहिए। मुझे एक हंसमुख, हर्षित आनंदपूर्ण ‘हाँ’ चाहिए। "क्या! अब प्रभु तू इसे फिर और आगे खींच रहा है! मैंने अभी हाँ कह दिया, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है क्या?" अधिक सन्नाटा। अधिक आंतरिक संघर्ष। फिर मैंने यहां रहने की इच्छा के लिए प्रार्थना की - जिसे मैं इतने समय तक मांगने से बचती रही। "ईश्वर, अगर यह वास्तव में मेरे लिए तेरी योजना है, तो कृपया मेरे अन्दर इसकी इच्छा पैदा कर दे।" तुरंत, मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे पैरों से जड़ें बनकर बढ़ रही हैं, मुझे यहां मजबूती से खड़ा कर रही है, और मुझे पता था कि मेरा असली घर यही है। यही मेरे लिए असली घर था। यह वह जगह थी जहां मुझे होना चाहिए था। मेरी मानवीय इंद्रियों के लिए अवांछित, अनचाही, अनाकर्षक जगह। अपने जीवन की मेरे द्वारा लिखित पटकथा में बिल्कुल नहीं, बल्कि मेरे लिए परमेश्वर की पसंद यही है। जैसे ही मैं वहाँ बैठी रहे, ऐसा लगा जैसे मेरी आँखों से पपड़ी गिर गई हो। मुझे रेगिस्तान में सुंदरता दिखाई देना शुरू हुआ - पहाड़ जो लॉर्ड्स रांच का चौखट बनते हैं, रेगिस्तान के पौधे, जंगली बत्तख जो उस शाम मेरे साथ इस छोटे तालाब में मेरा साथ दे रहे थे। हर एक चीज़ इतनी अलग लग रहे थी, इतनी आकर्षक लग रही थी।मैं यह जानकर उठ गयी कि मेरे अंदर एक नाटकीय बदलाव आया है। मैं एक अलग व्यक्ति थी -- एक नए दृष्टिकोण, एक नए उद्देश्य, एक नए मिशन के साथ, एक नया व्यक्तित्व। मेरा जीवन यही होना चाहिए था। इसे अपनाने और इसे पूर्ण रूप से जीने का समय आ गया है। वह 40 साल पहले था। मेरा जीवन वैसा बिलकुलनहीं रहा जैसा मैंने किशोरावस्था में जो कल्पना की थी। मेरे लिए परमेश्वर की योजना मेरे विचारों से बिलकुल भिन्न दिशा में नाटकीय रूप से मुड़ गई। लेकिन मैं बहुत खुश और आभारी हूं कि मैंने उसके मार्ग का अनुसरण किया और अपने पथ का अनुसरण नहीं किया। मेरे आराम क्षेत्र से बाहर, मैं खींचकर निकाल ली गयी हूँ, और मैंने अपनी सोच में अपनी क्षमता के बारे में सोचती थी मैं उससे भी बाहर निकाल ली गयी हूँ; और मैं जानती हूं कि चुनौतियां और सबक अभी खत्म नहीं हुई हैं। लेकिन जिन लोगों से मैं मिली हूं, जो गहरी दोस्ती मैंने बनाई है, जो अनुभव मेरे पास हैं, जो कौशल मैंने सीखा है, उन सबने मिलकर जितना मैं सोचती थी उससे कहीं अधिक समृद्ध किया है। और भले ही मैंने शुरुआत में परमेश्वर और मेरे जीवन के लिए उसकी पागलपन भरी योजना का विरोध किया, लेकिन अब मैं किसी और तरीके से जीने की कल्पना नहीं कर सकती। यह कितना पूर्ण, जीवंत, चुनौतीपूर्ण और आनंद से भरा जीवन रहा है! धन्यवाद येशु।
By: Ellen Hogarty
Moreउस छोटी सी, धीमी सी आवाज को सुनें ... फुसफुसाहट अप्रत्याशित रूप से आती है। किसी पुस्तक में पाए गए या किसी मित्र या वक्ता से सुने गए वे शांत और धीमी आवाज़ या वचन जो हमारे जीवन के मार्ग में सही समय पर सुनाई देते हैं - एक ऐसे क्षण पर जब हमारे दिल उन्हें नए या अनोखे तरीके से सुनने के लिए तैयार रहते हैं। यह बिजली की चमक की तरह होता है, जो अचानक आसमान के नीचे के परिदृश्य को रोशन कर देता है। इस तरह के एक वाक्यांश ने हाल ही में मेरा ध्यान आकर्षित किया, "जब आप दोष लगाने की इच्छा को जिज्ञासा से बदल देते हैं, तो सब कुछ बदल जाता है।" हम्म...मैं इस वाक्य पर विचार करने के लिए रुक गयी। मुझे लगा कि इस वाक्य में दम है! मैंने वर्षों से नकारात्मक विचारों को सकारात्मक पुष्टि और धर्मग्रन्थ के विभिन्न पाठों के बल पर बदलने का अभ्यास किया था, और इसके परिणामस्वरूप सोचने का एक नया तरीका सामने आया था। मुझे लग रहा था कि नकारात्मकता की ओर एक आनुवंशिक प्रवृत्ति है। जैसे जैसे मैं उम्र में बड़ी होती जा रही थी, वैसे वैसे मैंने अपने माता-पिता में यह प्रवृत्ति देखी थी, और वह प्रवृत्ति मुझमें समा गई थी, लेकिन मैं वैसा नहीं बनना चाहती थी। परिणामस्वरूप, मैंने अपने अन्दर आशावादी मित्रों के प्रति आकर्षण महसूस किया! वे मेरे पूर्व अनुभवों से भिन्न, कुछ अलग सोच रखते थे, और मैं उनके इस प्रकार की सोच पर आधारित व्यवहार के प्रति आकर्षित हुई! दूसरों में जो अच्छा था उसकी तलाश करना मेरा उद्देश्य था, लेकिन यह कठिन परिस्थितियों के बीच भी सकारात्मकता की तलाश में परिणत हुआ। जो कोई भी इस धरती पर कुछ समय तक रहा है, वह जानता है कि जीवन बाधाओं और चुनौतियों से भरा है। योहन के सुसमाचार में येशु इस सत्य को प्रकट करते हैं: “मैं ने ये बातें तुम से इसलिये कही हैं, कि तुम मुझ में शान्ति प्राप्त करें। इस दुनिया में तुम्हें समस्याएं तो झेलनी ही होंगी। लेकिन दिल थाम लो! मैने संसार पर काबू पा लिया है।" हम देखते हैं कि येशु के ये वचन हेलेन केलर जैसे लोगों में सच साबित हुए हैं। एक बीमारी ने हेलेन कलर को बचपन में ही बहरी और अंधी बना ली, इस के बावजूद, यह साबित करने में सक्षम थी कि "यद्यपि यह संसार दुखों से भरा है, यह संसार उस पर काबू पाने वालों से भी भरा हुआ है। तब मेरा आशावाद बुराई की अनुपस्थिति पर नहीं टिका हुआ है, बल्कि अच्छाई की प्रधानता में एक सुखद विश्वास और हमेशा अच्छाई के साथ सहयोग करने के इच्छुक प्रयास पर टिका हुआ है, ताकि यह अच्छाई ही प्रबल हो। मैं उस शक्ति को बढ़ाने की कोशिश करती हूं जिसे ईश्वर ने मुझे हर चीज और हर किसी में सर्वश्रेष्ठ को देखने और अपने जीवन का सबसे अच्छा हिस्सा बनाने के लिए दी है।” समय के आगे बढ़ने पर, मेरे प्रयासों और ईश्वर की कृपा के परिणामस्वरूप, प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद जिन बातों के लिए मुझे आभारी होना चाहिए, उन बातों पर मेरा ध्यान तुरंत केंद्रित करके कठिनाइयों का जावाब देने के लिए मुझे प्रेरणा मिली। "बदबूदार सोच" में फंसना आसान है! शिकायतों, आलोचनाओं और निंदाओं से दूर, आंतरिक और बाहरी बातचीत को पुनर्निर्देशित करने के लिए इरादे और साहस की आवश्यकता होती है! मैंने पहली बार एक युवती के रूप में ऐसे कुछ शब्द सुने थे जिन पर मैंने अक्सर विचार किया है; वे शब्द हैं: "विचार बोओ, कार्य की फसल काटो। कार्य बोओ, आदत की फसल काटो। आदत बोओ, जीवन शैली की फसल काटो। जीवन शैली बोओ, किस्मत की फसल काटो।" हम पहले सोचते हैं उसके बाद कार्य करते हैं। जो कार्य हम बार-बार करते हैं वह हमारी आदत बन जाती है। हमारी आदतों में हमारे जीवन जीने का तरीका शामिल होता है। जिस तरह से हम अपना जीवन जीते हैं, समय के साथ हम अपनी पसंद तय करते हैं, वे सब मिलकर हम जो हैं, हमें बनाते हैं। किसी ने ये शब्द कहे थे, लेकिन, सिर्फ इसलिए मुझे इन शब्दों पर विश्वास नहीं हुआ। इस सच्चाई को जानने के लिए किसी की अंत्येष्टि में शामिल होने और मृतक व्यक्ति के बारे में जो बात कही जाती है, उसे ध्यान से सुनने की ही आवश्यकता है! कोई अपना जीवन कैसे जीता है यह निर्धारित करता है कि उन्हें कैसे याद किया जाएगा... दुसरे शब्दों में कहें तो अगर वह व्यक्ति याद किये जाने लायक था तो वह उसके जीने के तरीके पर निर्भर है। बेशक, अच्छा जीवन जीने के लिए लगातार मनन चिंतन की आवश्यकता होती है, साथ ही साथ परिस्थितियों के अनुसार अनुकूलन करने की इच्छा भी ज़रूरी है। अब मैं 'दोष लगाने की इच्छा को जिज्ञासा से बदलने' की नसीहत पर विचार कर रही हूं। मेरे चारों ओर बहुत सारे अवसर हैं! जिस तरह मैं अतीत में नकारात्मक दृष्टिकोण के साथ जीवन नहीं जीना चाहती थी, अब, मैं पड़ोसियों को दोषी के रूप में देखने की आदत नहीं डालना चाहती, ताकि अपने पड़ोसी को अपने समान प्रेम करने केलिए येशु की आज्ञा का पालन करना मेरे लिए आसान हो जाए। मुझे इस नई प्रतिक्रिया को आज़माने का अवसर तुरंत मिल गया! अगले दिन एक मित्र ने मेरे साथ जो कुछ साझा किया, वह जल्दी से किसी अन्य व्यक्ति को दोषी के रूप में नजरिया रखने की प्रवृत्ति में बदल गया, और बिजली की तरह ही, मैं अपने मित्र के साथ सहमत हुई! लेकिन जैसे ही वह धीमी आवाज़ आई, "यदि तुम दोष लगाने के निर्णय को जिज्ञासा में बदल दोगी, तब सब कुछ बदल जाएगा।" एक पल में, उस व्यक्ति ने ऐसा कार्य क्यों चुना, हमने इस जिज्ञासा का चयन किया। उसके बाद जिस बात पर हम दोनों को दोष लगाना इतना आसान लगा, हमारे दिमाग में आया कि वैसा कार्य करने का उसके पास एक प्रशंसनीय कारण था! यह सच था....जिज्ञासा सब कुछ बदल देती है! और अगर ऐसा नहीं भी होता है, तो यह मुझे बदल सकती है...और यह हमेशा इसी लक्ष्य केलिए ही तो था! "यदि हम अपने शत्रुओं के गुप्त इतिहास को पढेंगे तो हम पायेंगे कि प्रत्येक मानव के जीवन में दुःख और पीड़ा हैं जो सभी प्रकार की शत्रुता को समाप्त करने के लिए पर्याप्त है।" - हेनरी वड्सवर्थ लॉन्गफेलो
By: Karen Eberts
Moreयोहन के सुसमाचार के अध्याय 2 में येशु द्वारा यरूशलेम मंदिर जाने के बारे में और येरूशलेम मंदिर की सफाई के बारे में नाटकीय विवरण मिलता है, जहां येशु व्यापारियों को बैल, भेड़, और कबूतर बेचते हुए और पैसे बदलने वाले साहूकारों को अपनी मेज पर बैठे हुए पाते हैं। रस्सियों से एक कोड़ा बनाकर, येशु उन्हें मंदिर परिसर से बाहर निकालते हैं, साहूकारों की मेजों को उलट देते हैं और उन्हें आदेश देते हैं कि "मेरे पिता के घर को बाज़ार मत बनाओ" (पद.16)। येशु ने किसी को नहीं मारा, लेकिन पास्का पर्व के इतने करीब की इस नाटकीय कार्रवाई ने निश्चित रूप से भीड़ का ध्यान आकर्षित किया और धर्माधिकारियों से और उन लोगों से एक प्रतिक्रिया को जन्म दिया जिनके आर्थिक हितों को खतरा था। इस वृत्तांत में येशु का व्यवहार हमें चुनौती देता है कि हम अपने फायदे और स्वार्थी हितों की नहीं, बल्कि उस परमेश्वर की महिमा की तलाश करें जो वास्तव में प्रेम है। येशु के साहसिक हस्तक्षेप ने मंदिर को "कबाड़ के धर्म" से मुक्त कर वास्तविक धर्म के लिए जगह बनाने का कार्य किया। आज के दौर में कबाड़ का धर्म क्या है और कैसा दिखता है? सीधे शब्दों में कहें तो कबाड़ धर्म कैथलिक परंपरा के वे तत्व हैं, जो हमारे व्यक्तिगत और स्वार्थी परिपाटी का समर्थन करने वाले हैं, और जो कैथलिक तत्व हमारे स्वार्थी एजंडा में नहीं हैं, उन पर पर्दा डालते हैं। हम उन सारी सही कार्य कर सकते हैं - नियमित रूप से मिस्सा में भाग लेना, अच्छी धर्मविधि की सराहना करना, उदारता से दान देना, पवित्र ग्रन्थ को उद्धृत करना, और यहां तक कि ईशशास्त्र के कुछ हिस्से को भी समझ लेना - लेकिन अगर हम सुसमाचार को अपने दिल की गहराई तक नहीं जाने देते हैं, तो हम कैथलिक विश्वास को पालतू बना लेते हैं, और इसे "कबाड़ धर्म" के रूप में सीमित और छोटा बनाते हैं। उस गहरी प्रतिबद्धता के बिना, धर्म सुसमाचार के बारे में कम, बल्कि अपने बारे में और अपने व्यक्तिगत विचारधारा के बारे में अधिक हो जाता है - चाहे हम खुद को किसी भी राजनीतिक परिदृश्य में पाते हैं। सुसमाचार हमारा आह्वान करता है कि स्वयं को दास का रूप देनेवाला और क्षमाशील येशु के मार्ग को हम अपनावें। हम अहिंसक बनने और न्याय और भलाई को बढ़ावा देने के लिए बुलाये गए हैं। और हमें उन कार्यों को अनुकूल और प्रतिकूल दोनों परिस्थितियों में करने की जरूरत है चाहे वह आसान हो या कठिन हो। जब इस्राएली कनान देश की ओर जा रहे थे और जब यात्रा कठिन हो गई, तो वे मिस्र में अपने पुराने जीवन के आराम और सुरक्षा की ओर लौटना चाहते थे। उनकी तरह, हम धर्म को हमें पहचान देनेवाले एक ऐसे परिधान के रूप में पहनने के प्रलोभन में पड़ सकते हैं, जबकि धर्म एक ऐसा ख़मीर बने जो हमें भीतर से बदल देता है। हमें यह याद रखना चाहिए कि हम ईश्वर के उदार और सुरक्षापूर्ण प्रेम के साधन हैं; हम अपनी इस पुकार के प्रति दृढ़ रहें। हमारे अनुष्ठान और भक्ति अभ्यास हमें याद दिलाएंगे कि ईश्वर की सच्ची आराधना करना है, जीवन के लिए निरंतर धन्यवाद देना है और दूसरों के साथ अपने जीवन को साझा करके कृतज्ञता व्यक्त करना है। यदि हम ऐसा करते हैं, तो यहां और वर्त्तमान में मौजूद पुनर्जीवित मसीह के देहधारण में हम भी शामिल हो जायेंगे, हम भी उस देह्धारण को अपने जीवन में साकार करेंगे। हम अपने समुदाय में न्याय के साथ शांति की शुरुआत करेंगे। संक्षेप में, हम सच्चे धर्म का पालन करेंगे, अपने आप को एक ऐसे ईश्वर से जोड़ेंगे जो केवल हमसे प्रेम करना चाहता है और बदले में प्रेम पाना चाहता है।
By: Deacon Jim McFadden
Moreक्या आपकी चेकबुक अनंत सच्चाइयों का दर्पण है? अगर नहीं, तो स्थायी प्रभाव के लिए निवेश करने का समय आ गया है। जिस वक्त मैंने कॉलेज में दाखिला लिया उस वक्त मैं अपने पारिवारिक परेशानियों की वजह से अंदर ही अंदर काफी बिखरी हुई थी। इसी वजह से मैंने गलत जगहों में जीवन का मतलब तलाशने की गलती की। हालांकि मैं कैथलिक परिवेश में पली बढ़ी थी, फिर भी उस वक्त मैं ईश्वर और कैथलिक विश्वास से दूर होती जा रही थी। उन दिनों मैंने रविवार के मिस्सा बलिदान में भाग लेना छोड़ दिया था और मेरा जीवन पार्टियों और अन्य सांसारिक चीज़ों में उलझ कर रह गया था। मुलाकात का वह पल एक रविवार की बात है, मैं मिस्सा बलिदान में भाग लेने की चाह से जागी। मिस्सा के दौरान जब पुरोहित ने परमप्रसाद को ऊंचा उठाया तब मैंने सच्चे दिल से प्रार्थना की, "हे ईश्वर, मैं इस योग्य नहीं हूं कि तू मेरे यहां आए, किंतु एक शब्द कह दे और मेरी आत्मा चांगी हो जाएगी।" मैं यह जानती थी कि मेरे लिए कृपा प्राप्त करने की आशा थी, पर मैं इस उलझन में थी कि ईश्वर मुझे वह कृपा प्रदान करेगा या नहीं। परमप्रसाद संस्कार के दौरान जब मैं परमप्रसाद ग्रहण कर रही थी तब मुझे येशु के शुद्धीकरण और क्षमा भरे प्रेम का अलौकिक अनुभव प्राप्त हुआ। उस पल मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मुझे सर से पांव तक धो दिया जा रहा है, जिसके बाद मुझे स्वच्छता और गर्माहट महसूस हुई। एक तीव्र प्रेम ने मुझे भर लिया जो मुझे आज भी महसूस होता है। मेरे बिखरेपन में भी ईश्वर ने मुझे अपनाया, गले लगाया। उस पल में मैं खुशी से झूम उठी। इसी तरह मेरे नए जीवन की शुरुआत हुई। ख्रीस्त के साथ इस अनोखे अनुभव को प्राप्त करने के बावजूद, बाहरी दुनिया अब भी मुझे प्रभावित कर रही थी। अब मैं पार्टियों में जा कर अपना समय बर्बाद नहीं कर रही थी, फिर भी मेरा सम्पूर्ण ध्यान धन, दौलत, मान मर्यादा, नाम और शोहरत को कमाने के तरीकों पर था। मैं ख्रीस्त की राह पर चल रही थी फिर भी खुद में आत्मविश्वास भरने के लिए मुझे स्कूल में अव्वल आने की संतुष्टि पर निर्भर रहना पड़ता था । नर्सिंग में डबल मेजर का प्रशिक्षण सफलता पूर्वक पूरा करने के बाद, अमेरिका के सबसे अच्छे बच्चों के अस्पताल से मुझे नौकरी का प्रस्ताव मिला। मैं अपना लक्ष्य प्राप्त कर चुकी थी, पर तब तक मेरा दिल कुछ और चाहने लगा - अब मेरे अंदर मिशनरी बनने की तीव्र इच्छा जागने लगी। उस दैविक मुलाकात के बाद से मेरी इच्छा थी कि मैं ईश्वर के प्रेम की वह ज्योति जो मैंने कैथलिक चर्च में प्राप्त की उसे औरों तक पहुंचाऊं। मैं ईश्वर से मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना करने लगी, जिसके बाद मैं जीसस यूथ के एक सदस्य से मिली। जीसस यूथ कलीसिया से जुड़ी हुई एक अंतरराष्ट्रीय मिशनरी मुहिम है। मैं इस विचार से बहुत प्रभावित हुई कि प्रभु ने मेरे जीवन के सभी अनुभवों को ध्यान में रखा और ख्रीस्त के बारे में गहराई से जानने के लिए मुझे प्रेरित किया। दैनिक प्रेरणा आखिरकार, मैंने उस नौकरी के प्रस्ताव को मना कर के जीसस यूथ के साथ थाईलैंड के बैंगकॉक शहर जाने का फैसला किया। वहां जाने से पहले मैंने जिस प्रशिक्षण में भाग लिया वह एक अद्भुत अनुभव था। इन सब बातों ने मेरी ज़िंदगी बदल दी और आज भी मेरी दैनिक दिनचर्या में ये बातें मुझे अपने मिशन पर ध्यान केंद्रित रखने की प्रेरणा देती हैं। जैसे कि, मेरी पहली संतान के जन्म के बाद मुझे लाइम नामक बीमारी हो गई थी, लेकिन ईश्वर की कृपा से मुझे सारी दवाइयां और सारी मदद आसानी से प्राप्त हुई जबकि उन दिनों मैं चार एंटीबायोटिक दवाओं पर निर्भर थी। मुझे याद है ट्रेनिंग के दिनों में हमें सिखाया गया था: जब ईश्वर हमें स्वास्थ्य और समृद्धि से अनुग्रहीत करता है, तब हम ईश्वर से कभी नहीं पूछते हैं "प्रभु मैं ही क्यों?" लेकिन जब दुख तकलीफें आती हैं तब हम अक्सर ईश्वर से पूछ बैठते हैं, "प्रभु मैं ही क्यों?" इसीलिए जब मैं बीमार थी उन दिनों मैंने ईश्वर से अपने दुख तकलीफों की वजह पूछने के बजाय अपनी हालत को स्वीकारा और उन सारी आशीषों के लिए ईश्वर को धन्यवाद दिया जो मुझे ईश्वर से मिली थीं - जैसे की मेरा बच्चा, मेरा परिवार, और मेरा इलाज करने वाले लोग। ईश्वर ने मुझे उनकी अलौकिक मर्ज़ी को समझने की कृपा दी और इसीलिए मैं बार बार दोहराती रही, "तेरी इच्छा जैसे स्वर्ग में है, वैसे इस पृथ्वी पर भी पूरी हो।" मेरे पास यही सिद्ध करने के लिए कई उदाहरण हैं कि कैसे मेरी ट्रेनिंग में बिताए दिनों और मेरे बहुत से मिशनरी अनुभवों ने हर दिन मुझे प्रोत्साहित किया। मिशनरी जीवन को अनुभव करने से पहले मैं अपनी मर्ज़ी के हिसाब से चलती थी। मैं सिर्फ अपनी ज़रूरतों और अपने लक्ष्यों के बारे में सोचा करती थी। हालांकि मेरे पास काफी अच्छे दोस्त थे, फिर भी उन लोगों को इस बात का अंदाज़ा भी नहीं था कि मेरे दिल में क्या चल रहा होता था। पहले मैंने अपने इर्द गिर्द ऊंची दीवारें खड़ी कर रखी थीं। जब मैंने ट्रेनिंग प्रोग्राम में भाग लिया तब ये दीवारें टूट कर बिखर गईं। येशु के बपतिस्मा के त्योहार के दिन मिस्सा बलिदान में भाग लेते हुए मुझे यह कृपा प्राप्त हुई कि मैं ख्रीस्त को गहराई से जान सकूं और यह समझ सकूं कि बपतिस्मा कैसे मेरे जीवन को परिवर्तित करता है। स्वर्ग का एक पूर्वाभास बपतिस्मा संस्कार के द्वारा हम ईश्वर के राज्य के वारिस बन जाते हैं। वह क्षण मेरे लिए जीवन बदलने वाला क्षण था। मैं अक्सर अपने परिवार और दोस्तों की ओर देख कर सोचा करती थी, "मेरे परिवार वाले किस तरह मेरे काम आ सकते हैं?" पर उस दिन मुझे एहसास हुआ कि ईश्वर की प्यारी बेटी के रूप में, मुझे यह सोचना चाहिए कि, "मैं किस तरह उनकी सेवा कर सकती हूं? मैं परमेश्वर के प्रेम को दूसरों को कैसे दे सकती हूँ?” धीरे धीरे मुझे अपने आप में एक बड़ा बदलाव महसूस होने लगा। जीसस यूथ की सदस्य बन कर, मैंने सामुदायिक जीवन का अनुभव किया जो पूरी तरह से मसीह के इर्द-गिर्द घूमता था। रेक्स बैंड में शामिल होने के बाद, मुझे ईश्वर की महिमा के गीत गाने के अनेक अदभुत अवसर प्राप्त हुए। खासकर पोलैंड में विश्व युवा दिवस का वो समारोह, जहां हम स्टेज पर गीत गा रहे थे, उस वक्त दुनिया के अलग अलग राष्ट्रों से आए लाखों लोगों को ईश्वर की महिमा के लिए झंडे लहराते देखना बड़ा ही विस्मयकारी था। पूरी दुनिया को ईश्वर की स्तुति करने के लिए इकट्ठा होते देखना, एक अद्भुत अनुभव था, जो कि स्वर्ग के एक पूर्वस्वाद की तरह था। वह आनंद, ईश्वर के लिए गीत गाना और मिशन कार्यों को करते हुए साथ रहना, जीवन बदलने वाला अनुभव था! उस साल जो मैंने जीसस यूथ के साथ मिशन कार्यों को करते हुए बिताया, वह मेरे जीवन में एक महत्वपूर्ण बदलाव ले कर आया। मैंने महसूस किया कि परमेश्वर ने मुझे एक अनोखे उद्देश्य के लिए चुना है और मैंने ख्रीस्त के साथ एक गहरा और मजबूत संबंध स्थापित किया। ----------------------------- यह लेख शालोम वर्ल्ड कार्यक्रम, "गॉड्स क्रेजी पीपल" के लिए उनकी गवाही पर आधारित है। एपिसोड देखने के लिए यहां जाएं: shalomworld.org/show/gods-crazy-people
By: Katie Bass
Moreमैंने ईश्वर से पूछा, "हमारे जीवन पर क्रूस क्यों निर्धारित किया गया है?" और उसने मुझे एक अद्भुत उत्तर दिया! सिरीन के सिमोन की तरह हर ईसाई व्यक्ति मसीह के क्रूस को ढोने के लिए बुलाया गया है। इसीलिए संत जॉन मेरी वियनी ने कहा, "हर बात हमें ईश्वर के क्रूस का स्मरण दिलाती है। यहां तक कि हम खुद क्रूस के आकार में बनाए गए हैं।" देखा जाए तो इस सरल प्रवचन में बहुत गहरा ज्ञान छुपा हुआ है। हम जो दुख तकलीफें झेलते हैं, उनके द्वारा हम ईश्वर के दुखभोग में भाग लेते हैं। जब तक हमारे अंदर ईश्वर की पीड़ा को सहने की इच्छा नही होगी तब तक हम इस धरती पर अपने ईसाई मिशन को पूरा नहीं कर पाएंगे। देखा जाए तो ईसाई धर्म दुनिया का एकलौता ऐसा धर्म है जो दुख तकलीफों को मुक्ति से जोड़ता है और हमें यह सिखाता है कि हम अपनी परेशानियों के सहारे अनंत मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं - अगर हम ख्रीस्त के दुखभोग में भाग लें। परम सम्माननीय बिशप फुल्टन शीन ने कहा है कि जब तक हमारे जीवन में कोई क्रूस नही है, तब तक हमारा पुनरुत्थान मुमकिन नहीं है। येशु खुद हमें बताते हैं कि उनका शिष्य बनने के लिए किस बात की ज़रूरत है "जो मेरा अनुसरण करना चाहता है, वह आत्मत्याग करें और अपना क्रूस उठा कर मेरे पीछे हो ले" (मत्ति 16:24)। मत्ति 10:38 में येशु फिर से कहते हैं, "जो शिष्य अपना क्रूस उठा कर मेरा अनुसरण नहीं करता, वह मेरे योग्य नहीं"। येशु दुनिया के उद्धार के लिए क्रूस पर मर गए। अपनी मृत्यु के बाद वे स्वर्ग में उठा लिए गए पर वे धरती पर अपना क्रूस छोड़ गए। येशु जानते थे कि जो कोई उनके साथ स्वर्ग में शामिल होना चाहता है वह उनके पीछे पीछे क्रूस की राह पर चल पड़ेगा। संत जॉन वियनी हमें इस बात का भी स्मरण कराते हैं कि "क्रूस स्वर्ग की ओर ले जाने वाली सीढ़ी है।" क्रूस को अपनाने की हमारी तत्परता ही हमें इस सीढ़ी पर चढ़ने के योग्य बनाती है। क्योंकि खुद को बर्बाद करने के तरीके तो कई सारे हैं, पर स्वर्ग का रास्ता केवल क्रूस की राह है। मेरे हृदय की गहराई साल 2016 में, जब मैं अपने मास्टर्स की पढ़ाई कर रहा था, तब अचानक मेरी मां की हालत बिगड़ने लगी। डॉक्टरों ने हमें उनकी बायोप्सी कराने की सलाह दी। पवित्र सप्ताह के दौरान हमें डॉक्टरों के द्वारा बताया गया कि मेरी मां को कैंसर है। मेरा पूरा परिवार इस खबर से हिल गया। उस शाम, मैंने अपने कमरे में बैठे बैठे येशु की क्रूसित मूर्ति को निहारना शुरू किया। धीरे धीरे मेरी आंखों से आंसू बहने लगे और मैंने येशु से शिकायत की "दो साल से मैं हर दिन पवित्र मिस्सा में भाग लेता आया हूं। मैंने हर दिन रोज़री माला की प्रार्थना की है और मैंने अपना ज़्यादा से ज़्यादा समय ईश्वर के राज्य की सेवा में दिया है (उस वक्त मैं चर्च की युवा सभा में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया करता था)। मेरी प्यारी मां माता मरियम की बहुत बड़ी भक्त हैं। इसीलिए मैंने अपने दिल की गहराई से येशु से सवाल किया, "क्यों? आखिर हमारे जीवन में यह क्रूस क्यों?" उस पवित्र सप्ताह, मैं बड़ी अंदरूनी पीड़ा से गुज़रा था। उस वक्त जब में अपने कमरे में बैठ कर येशु की क्रूसित मूर्ति को देख रहा था, तभी मेरे मन में एक खयाल आया। येशु अकेले अपना क्रूस ढोते हैं। कुछ समय बाद मुझे मेरे दिल में एक आवाज़ सुनाई दी, "जोसिन, क्या तुम क्रूस ढोने में मेरी मदद करोगे?" उस समय मुझे इस बात का अहसास हुआ कि येशु मुझे किस कार्य के लिए बुला रहे थे, और मेरे लिए मेरी बुलाहट और स्पष्ट हो गई। मुझे भी सिरीनी सिमोन की तरह क्रूस ढोने में येशु की सहायता करनी थी। उन्ही दिनों, मैं युवा सभा के अपने गुरु से मिलने गया। मैंने उन्हें मां के कैंसर ग्रस्त होने और अपनी अंदरूनी पीड़ा के बारे में बताया। मेरी दुख तकलीफों के बारे में सुनने के बाद उन्होंने मुझे एक सलाह दी: "जोसिन, जब तुम अपनी इन तकलीफों के लिए प्रार्थना करोगे, तब तुम्हें या तो यह जवाब मिलेगा कि ईश्वर तुम्हारी मां को पूरी तरह ठीक कर देंगे, या फिर यह जवाब मिलेगा कि उनका ठीक होना ईश्वर की योजना में शामिल नही है, और यह एक तरह का क्रूस है जो तुम्हें ढोना पड़ेगा। पर एक बात हमेशा याद रखना, कि अगर यह एक क्रूस है जो तुम्हें ढोने दिया जा रहा है, तो फिर ईश्वर तुम्हें और तुम्हारे परिवार को इसे ढोने की शक्ति और अनुग्रह भी प्रदान करेंगे।" धीरे धीरे मुझे यह समझ आने लगा कि ईश्वर ने मुझे एक क्रूस ढोने के लिए दिया था। लेकिन मेरे गुरु के कहे अनुसार ही ईश्वर ने ना केवल मुझे, बल्कि मेरे पूरे परिवार को अपना क्रूस ढोने के लिए शक्ति और अनुग्रह प्रदान किया। जैसे जैसे समय बीतता गया, मुझे इस बात का अहसास होने लगा कि कैंसर का यह क्रूस धीरे धीरे मेरे परिवार को शुद्ध कर रहा था। इसने हमारे विश्वास को बढ़ाया, इसने मेरे पिता को एक धार्मिक इंसान बनाया। इसने मुझे मेरी बुलाहाट को पहचानने और अपनाने का साहस दिया। इसने मेरी बहन को येशु के सानिध्य में आने में मदद की। इसी क्रूस के द्वारा मेरी मां शांतिपूर्ण तरीके से स्वर्ग सिधार पाईं। याकूब के पत्र (1:12) में लिखा है, "धन्य है वह, जो विपत्ति में दृढ़ बना रहता है! परीक्षा में खरा उतरने पर उसे जीवन का मुकुट प्राप्त होगा, जिसे प्रभु ने अपने भक्तों को देने की प्रतिज्ञा की है।" जून 2018 के आते आते मेरी मां की तबियत हद से ज़्यादा बिगड़ने लगी। वे बहुत तकलीफ में थी, पर अपनी इस हालत में भी वह हमेशा खुश दिखती थीं। एक दिन उन्होंने मेरे पिता से कहा, "अब बस हो गया यह इलाज, बंद करो यह सब, आखिरकार मैं स्वर्ग ही तो जा रही हूं।" इसके कुछ दिनों बाद, उन्होनें एक सपना देखा। सपने से जागकर उन्होंने मेरे पिता से कहा, "मैंने एक अद्भुत सपना देखा!" पर जब तक वह उस सपने के बारे में कुछ कह पाती, मेरी मां सेलीन थॉमस इस दुनिया को छोड़ स्वर्ग की ओर प्रस्थान कर चुकी थी। दो साल, तीस कीमो थेरेपी और दो बड़े ऑपरेशनों के बीच मेरी मां ने लगातार पीड़ा सहते हुए भी, पूरे विश्वास के साथ अपने क्रूस को ढोया। इसीलिए मुझे पूरा भरोसा है कि आज वे ईश्वर को उनकी पूरी महिमा में देख रही होंगी। वह रहस्य क्या हम इस बात कि कल्पना कर सकते हैं कि ईश्वर हमसे कह रहे हैं, "मेरी मेज़ पर मेरे कई दोस्त मौजूद हैं, पर मेरे क्रूस के पास बहुत कम।" येशु को क्रूसित किए जाते वक्त मरियम मगदलेना बड़ी बहादुरी के साथ क्रूस के पास खड़ी रही। उसने ख्रीस्त के दुखभोग में उनका साथ देने की कोशिश की। और उसके इसी कार्य के फल स्वरूप तीन दिन बाद येशु के पुनर्जीवित होने पर मरियम मगदलेना को ही येशु के सबसे पहले दर्शन पाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस सौभाग्य ने उसके दुख को आनंद में बदल दिया और उसे प्रेरितों से भी ऊंचा दर्जा प्रदान किया। कार्मेल के महान संत योहन कहते हैं, "जो लोग ख्रीस्त के क्रूस को नहीं खोजते, उन्हें ख्रीस्त की महिमा भी नही मिलती।" ख्रीस्त की महिमा उसके दुखभोग में छिपी है। यही क्रूस का अद्भुत रहस्य है। संत पेत्रुस हमें याद दिलाते हैं, "यदि आप लोगों पर अत्याचार किया जाए, तो मसीह के दुखभोग के सहभागी बन जाने के नाते आप प्रसन्न हो जाएं। जिस दिन मसीह की महिमा प्रकट होगी, आप लोग अत्याधिक आनंदित हो उठेंगे (1 पेत्रुस 4:13)। संत मरियम मगदलेना की तरह ही, अगर हम भी अपनी इच्छा से क्रूस के नीचे खड़े रह कर ईश्वर के दुख में भाग लेते हैं, तब हम भी उस पुनर्जीवित ईश्वर को देखेंगे। वह ईश्वर जो हमारी समस्याओं को समाधान, हमारी परीक्षाओं को साक्ष्य और हमारी चुनौतियों को जीत में बदल देता है। हे प्रभु येशु, मैं मां मरियम के माध्यम से स्वयं को तुझे समर्पित करता हूं। मुझे जीवन भर तेरे पीछे पीछे अपना क्रूस ढोकर चलने की शक्ति दे। आमेन।
By: Brother Josin Thomas O.P
Moreएक पुरोहित रोम का दौरा कर रहा था। उन्हें संत पापा जॉन पॉल द्वितीय से निजी मुलाक़ात करने की अनुमति मिल चुकी थी। अपने रास्ते में, उन्होंने रोम के कई सुन्दर महागिरजाघरों में से एक का दौरा किया। हमेशा की तरह, गिरजाघर की सीढ़ियों पर भिखारियों की भीड़ लगी रही, लेकिन उनमें से एक पर उनकी दृष्टि पडी और वे रुक गए। "मैं तुम्हें जानता हूं। क्या हम एक साथ सेमिनरी में नहीं थे?” भिखारी ने पुष्टि में सिर हिलाया। "तो आप का पुरोहिताई अभिषेक हुआ था, है ना?" उस पुरोहित ने उससे पूछा। लेकिन उस भिखारी ने गुस्से से जवाब दिया "अब और कुछ मत बोलना! मुझे अकेला छोड़ दो!" संत पापा के साथ अपनी आसन्न मुलाक़ात को ध्यान में रखते हुए, वह पुरोहित उसके लिए प्रार्थना करने का वादा देकर चलने लगे, लेकिन भिखारी ने उनका उपहास किया, "वाह, तुम्हारी प्रार्थना से बहुत अच्छा परिणाम निकलेगा क्या, जाओ यहाँ से।" आम तौर पर, संत पापा के साथ निजी भेंट बहुत कम लोगों को ही मिलती है – संत पापा अपना आशीर्वाद और एक आशीष की गयी रोज़री माला प्रदान करते हैं, इस दौरान बहुत कम शब्दों का आदान-प्रदान किया जाता है। जब इस पुरोहित की बारी आई, उस भिखारी-पुरोहित के साथ आकस्मिक मुलाक़ात अभी भी उनके दिमाग में चल रही थी, इसलिए उन्होंने संत पापा से अपने उस मित्र के लिए प्रार्थना करने की याचना की, फिर पूरी कहानी सुनाई। संत पापा चिंतित और परेशान थे, और अधिक विवरण मांग रहे थे और उनके लिए प्रार्थना करने का वादा कर रहे थे। इतना ही नहीं, उन्हें और उनके भिखारी-मित्र को संत पापा जॉन पॉल द्वितीय के साथ अकेले रात में भोजन करने का निमंत्रण मिला। भोजन के बाद, संत पापा ने भिखारी के साथ एकांत में बात की। भिखारी आँसुओं के साथ कमरे से बाहर निकला। "क्या हुआ भीतर?" पुरोहित ने उस भिखारी से पूछा। सबसे अप्रत्याशित और अचंभित करनेवाला उत्तर आया। "संत पापा ने अपना पाप स्वीकार सुनने के लिए मुझसे कहा," बोलते बोलते भिखारी पुरोहित का गला अवरुद्ध हो गया। कुछ देर बाद पुनः आत्मसंयमित होकर, उन्होंने बोलना जारी रखा, "मैंने उनसे कहा, 'परम पावन संत पिता, मुझे देखिये। मैं एक भिखारी हूं, पुरोहित नहीं।'” "संत पापा ने कोमलता से मेरी ओर देखा और कहा, 'मेरे बेटे, एक बार पुरोहित के रूप में अभिषिक्त व्यक्ति हमेशा केलिए अभिषिक्त होता है। और हम में से कौन भिखारी नहीं है? मैं भी अपने पापों की क्षमा मांगने के लिए एक भिखारी के रूप में प्रभु के सामने आता हूं।'" एक पाप स्वीकार को सुने हुए इतना लंबा समय बीत चुका था कि पाप मुक्ति की आशीष की प्रार्थाना पूरा करने के लिए संत पापा को भिखारी पुरोहित की मदद करनी पड़ी। सब सुनाने के बाद पुरोहित ने संदेह प्रकट किया, "लेकिन आप इतने लंबे समय से वहां थे। निश्चित रूप से संत पापा को अपना पाप स्वीकार करने में इतना समय तो नहीं लगा होगा।" “नहीं", भिखारी ने कहा, "जब मैंने उनका पाप स्वीकार सुन लिया, उसके बाद मैंने उनसे मेरा पाप स्वीकार भी सुनने के लिए कहा।" दोनों के पाप स्वीकार के उपरांत, एक दूसरे से विदा लेने से पहले, संत पापा जॉन पॉल द्वितीय ने इस उडाऊ पुत्र को एक नए मिशन का दायित्व सौंप दिया – जिस गिरजाघर की सीढ़ियों में बैठकर वे भीख मांगते थे, उसी जगह जाकर वहां जानेवाले बेघरों और भिखारियों के बीच में सेवा कार्य का दायित्व।
By: Shalom Tidings
Moreफादर क्रिस दीसूज़ा अंधे थें लेकिन फिर वे फातिमा की माँ मरिया के तीर्थ पर गए जिसके बाद उनके जीवन में एक चमत्कार हुआ, पर यह उनके परिवार में होने वाला आखिरी चमत्कार नही था| मेरी माँ मरियम पर श्रद्धा जीवन के शुरूआती दिनों से है| मैं ऑस्ट्रेलिया में पैदा हुआ लेकिन मेरे माता पिता पुर्तगाल से यहां आए थे, इसीलिए फातिमा की माँ मरियम पर हमारी हमेशा से श्रद्धा रही है| हम हर दिन घर पर उनकी मूर्ती के रोज़री माला बोलते थे, इसी लिए मुझे हमेशा से उनकी मध्यस्था पर भरोसा रहा है| मैं जन्म से ही दाहिने आँख से अँधा हूँ और एक बीमारी के चलते साल दर साल मेरी बाईं आँख की रौशनी भी कम होती गयी| इसीलिए बचपन से ही मेरे मातापिता ने मुझे कई आई स्पेशलिस्ट्स को दिखाया, इस उम्मीद में कि उन्हें कहीं ना कहीं मेरी बीमारी का कोई ना कोई इलाज ज़रूर मिल जाएगा, पर हर जगह उन्हें बस निराशा ही हाथ लगी|मुझे जो बीमारी थी उसका कोई इलाज नही था और यह बात तय थी कि मेरे बड़े होने तक मैं पूरी तरह से अँधा हो जाऊँगा| जोखिम लें जब तक मैं बड़ा हुआ मेरी बाईं आँख की रौशनी काफी हद तक जा चुकी थी, जिसकी वजह से मेरी क़ानून की पढ़ाई पर काफी असर पड़ा| मेरे मातापिता जब मुझे अपनी कमज़ोर आँखों से क़ानून की मोटी मोटी किताबों को पढ़ने की कोशिश करते हुए देखते थे, तो उनका दिल दुख से टूट जाता था। इसीलिए मेरी पढ़ाई के आखिरी साल वे दोनो फातिमा की माँ मरियम के तीर्थ पर गए और उन्होंने मेरी आंखों की रौशनी के लिए माँंमरियम से मध्यस्थता मांगी। मैं उनके साथ नही गया क्योंकि मैं अपने आखिरी साल की पढ़ाई के बीच कहीं आ जा नहीं सकता था। जब वे तीर्थ से दृढ़ विश्वास के साथ और एक नए उत्साह के साथ लौटे, तब उन्हें एक नए स्पेशलिस्ट के बारे में पता चला जो बेल्जियम से एक नई तकनीक सीखकर लौटे थें जो की मेरी मदद कर सकता था।हालांकि उन स्पेशलिस्ट के साथ एक अपॉइंटमेंट मिल पाना नामुमकिन सा लग रहा था, लेकिन माँ मरियम की मध्यस्थता के द्वारा हमें किसी तरह एक कंसल्टेशन मिल ही गई।और हालांकि मुझे यह बचपन से ही समझा दिया गया था कि जल्द ही मैं अपनी दोनो आंखों की रौशनी खो दूंगा, मैं अपने मातापिता की कोशिशों को अनदेखा नही कर सकता था, इसी लिए मैं इस नए डॉक्टर से मिलने केलिए राज़ी हो गया। मेरी आँखों की जांचकरने के बाद स्पेशलिस्ट डॉक्टर ने कहा कि वे इस बात का दावा नहीं कर सकते थे कि जो नयी तकनीक वह सीख कर आए थे वह मेरे काम आएगी| यह सब काफी रिस्की भी था क्योंकि मेरे पास सरकार की रज़ामंदी नहीं थी और यह इलाज बहुत महंगा था| लेकिन मेरे मातापिता का माँ मरियम की मध्यस्था पर विश्वास इतना मज़बूत था कि वे इस इलाज के लिए तुरंत मान गए और उन्होंने मुझे भी इस इलाज को कराने केलिए मना लिया| मैं मन ही मन अभी भी दुविधा में था पर फिर मैं ने खुद को माँ मरियम देखरेख में छोड़ दिया| चांस लेकर देखें उन्होंने इलाज मेरी दाईं आँख से शुरू किया, वह आँख जिसमे मैं जन्म से ही अँधा था| सर्जन ने हमसे कहा था कि इस इलाज का असर दिखने में कुछ महीने लग सकते थे इसीलिए मैं तुरंत ही अपनी आँखों कीरौशनी केबेहतर होने की उम्मीद नहीं कर रहा था| लेकिन ऑपरेशन के खत्म होने के 15 से 20 मिनट बाद ही मैं अपनी जन्म से खराब आंख से ज़िंदगी में पहली बार सब कुछ साफ साफ देख पा रहा था। मुझे अपनी पूरी ज़िंदगी में सब कुछ इतना साफ, इतना स्पष्ट कभी नही दिखा था। मैं ऑपरेशन थिएटर से ईश्वर की महिमा गाता, माँ मरियम को उनकी मध्यस्था केलिए धन्यवाद कहता हुआ दौड़ा चला आया। जैसे ही मैंने ख़ुशी में अपने मातापिता को गले लगाया, मेरे सर्जन जिन्हें ईश्वर में विश्वास नही था, वेभी इसे एक चमत्कार मानने से इन्कार नही कर पाए। क्योंकि वे भी हमें यह समझाने में नाकाम थे कि उस आंख पर इस इलाज का इतनी जल्दी असर कैसे हुआ जो जन्म से ही पूरी तरह खराब थी। एक महीने बाद उन्होंने मेरी दूसरी आंख, मेरी बाईं आंख का ऑपरेशन किया। इस बार भी एक चमत्कार की आशा रखना ईश्वर से कुछ ज़्यादा ही मांगने जैसा था, लेकिन ईश्वर के घर में आशीषों की कभी कमी नही पड़ती। फिर से ऑपरेशन के 15 से 20 मिनट बाद मैं अपनी बाईं आंख से साफ साफ देख पा रहा था। मेरी दोनों आंखों की रौशनी वापस आ चुकी थी। पवित्र कुंवारी मरियम की मध्यस्थता से और मेरे मातापिता के दृढ़ विश्वास के कारण अब मैं एक वकील के तौर पर अपनी नई ज़िंदगी शुरू कर सकता था। एक बदलाव लाएं मेरी हमेशा से एक वकील बनने की इच्छा थी, लेकिन फिर मैं ने ईश्वर केलिए अपने दिल को खोला। वे मुझसे क्या चाह रहें थे? मैं जानता था कि ये चमत्कार मेरे जीवन में उनके दिए तोहफे थे जिनकी मुझे कीमत चुकाने की ज़रूरत नहीं थी, लेकिन माँ मरियम की मध्यस्था से मैं उनसे पूछता था कि "हे ईश्वर, आप मुझ से क्या चाहते हैं? आपने मेरी आंखों की रौशनी मुझे क्यों वापस की, क्योंकि दुनिया में ऐसे कई लोग हैं जिन्हें ऐसे एक चमत्कार की ज़्यादा ज़रूरत है। मन में इसी उलझन को लिए मैं ने काम करना शुरू किया। और हालांकि एक वकील की ज़िंदगी जी कर मैं खुश था, और लोगों की नज़र में मैं शादी और खुद का परिवार शुरू करने की राह पर था, फिर भी मुझे मेरे दिल में एक पुरोहित के तौर पर ईश्वर केलिए जीने की बुलाहट तब महसूस हुई जब मैं विश्व युवा दिवस की तीर्थयात्रा पर था। सच कहूं तो उस वक्त मेरा मन घबराहट से भर गया था और मुझे अपनी इस बुलाहाट को समझने और अपनाने में कई महीने लगें। 13 मई की बात है, फातिमा की माँ मरियम की फीस्ट के मिस्सा के दौरान मैं ने पवित्र कुंवारी मरियम से कहा, "अगर मेरे जीवन केलिए आपके बेटे की यही इच्छा है, तो मुझे यह योजना मेरे आंखों के सामने साफ साफ दिखाइए, उसी तरह जिस तरह पहले सब कुछ साफ साफ देखने में आपने मेरी मदद की। इसके बाद मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी आंखों के सामने से एक पर्दा सा हट गया। मुझे अब यकीन था कि माँ मरियम के बेटे येसु मुझे धार्मिक जीवन जीने केलिए बुला रहे थें। येसुमुझे पुरोहिताई केलिए बुला रहे थे। खुद को माँ के हाथों में सौंप कर मैंने यह तय किया कि मुझे एक सोमस्कन फादर के तौर पर ईश्वर को अपना जीवन समर्पित करना चाहिए। अपने धार्मिक संगठन के रीति रिवाजों के हिसाब से मैंने निर्धनता, पवित्रता और आज्ञाकारिता की शपथ ली। मैंने ख़ुद को माँ मरियम को भी समर्पित किया और अपने नाम में मारिया नाम शामिल किया। हमारे धार्मिक संगठन के संस्थापक संत जेरोम एमिलियानी को मां मरियम ने चमत्कारिक रूप से तब छुड़ाया था जब वे 500 साल पहले युद्ध में कैद कर लिए गए थें। मुझे भी मां की मध्यस्था ने ही मेरे अंधेपन से छुड़ाया था, जिसकी वजह से मैं येसु को अपना जीवन सौंप पाया। चमत्कार सच में होते हैं जब मैं रोम में आपने थियोलॉजी के आखिरी एक्जाम की तैयारी कर रहा था तब मेरे पिता ब्लड कैंसर की वजह से काफी बीमार हो गाएं। जब वह अपनी बीमारी के इलाज की तैयारी में लगे हुए थें तब मैं फातिमा की माँ मरियम के तीर्थ पर गया ताकि मैं अपनी ठीक हो चुकीआंखों केलिए उन्हें धन्यवाद कह सकूं और अपने पिता की अच्छी सेहत केलिए प्रार्थनाक र सकूं। वहां जाकर जिस दिन मैंने घुटनों के बल चलक र वह राह नापीं जहां माँ मरियम ने 100 साल पहले कुछ बच्चों को दर्शन दिए थे, उसी दिन मेरे पिता जिन स्पेशलिस्ट को से अपना इलाज करा रहे थे उन्होंने यह पाया कि मेरे पिता के खून से कैंसर जा चुका था। एक बार फिर से, पवित्र कुंवारी मरियम की मध्यस्था ने एक चमत्कार द्वारा मेरे परिवार के एक सदस्य को चंगा कर दिया था। इसके बाद कभी भारत तो कभी श्रीलंका तो कभी मोज़ाम्बिक में सेवा काई करने के बाद मैं आखिर कार अपनी पुरोहियाई की दीक्षा पाने केलिए ऑस्ट्रेलिया वापस आया। मेरा दीक्षांत समारोह मां मरियम के महीने, मई महीने में एक शनिवार को रखा गया। मैंने अपनी पुरोहिताई मां के हाथों में समर्पित की। अगले दिन, 13 मई को फातिमा की माँ मरियम की फीस्ट के दिन मैंने अपना पहला मिस्सा चढ़ाया ।इसके बाद, फ्रीमेंटल की सड़कों पे मां मरियम के आदर में मोमबत्तियों के साथ एक सुन्दर सा जुलूस निकाला गया। हम उसस मय अपने जीवन में खुशियों केशिखर पर थे जब मेरी मां बुरी तरह बीमार पड़ गईं और हमें उन्हें तुरंत एम्बुलेंस में अस्पताल ले जाना पड़ा। मैंभी जल्दी जल्दी अस्पताल पहुंचाता कि मैं उन्हें बीमारों का संस्कार दे पाऊं, जो की चंगाई का संस्कार होता है। मैं वह पहली इन्सान थी जिन्हें मैंने यह संस्कार दिया। उनको यह संस्कार देकर मैंने अपनी पुरोहित को और भी मज़बूत होते हुए महसूस किया क्योंकि उनको इस हालत में देखते हुए भी मैं उनके सामने एक पुरोहित के रूप में उनकी सेवा कर पाया। डॉक्टरों को लगा कि उन्हें दिल का दौरा पड़ा था और इसी वजह से वे उन्हें खून पतलाकरने वाली दवाइयां देने लगें लेकिन उन्हें असल में एन्यूरिज्म था जिसकी वजह से उनके शरीर में अंदर ही अंदर खून बह रहा था। डॉक्टरों को उन दवाइयों के उल्टे अस र के बारे में कई दिनों बाद पता चला। वह दवाइयां मां के अंदर के है मरेजको और भी बढ़ा रहीं थीं। उन्हें जल्द से जल्द इमरजेंसी ऑपरेशन के लिए ले जाया गया, और उनके बचने की उम्मीद कम ही थीं, पर मां मरियम की मध्यस्थता के द्वारा ईश्वर ने हमें एक और चमत्कार का तो हफा दिया। डॉक्टर यह समझ पाने और समझा पाने में नाकाम थे कि इतने दिन इतना खून बह जाने केबाद भी मेरी मां इस वक्त ज़िंदा कैसे थीं। मेरी मां ने उन्हें समझाया कि पवित्र कुंवारी मरियम ने ईश्वर से हमारे लिए मध्यस्था की थीं। "मेरे बेटे ने एक पुरोहित के रू प में खुद को मां मरियम को सौंपा है और वह हर दिन मेरे लिए मिस्सा चढ़ाता आया है। इसीलिए यह चमत्कार हुआ और मैं ठीक हो पाई।" माँ राह दिखाती हैं इन सारे गहरे अनुभवों ने मां मरियम में मेरी श्रद्धा को और भी मज़बूत कर दिया है। मैं आप लोगों को भी मां की स्वर्गीय मध्यस्था में भरोसा करने केलिए प्रोत्साहित करता हूं।मैं ने उन चमत्कारों का स्वाद चखा है जिन्हें मांने मेरे जीवन केलिए येसु से मांग लिया। वह जिन्होंने पवित्र रूप से गर्भधारण किया, और वे सारी कृपायें पाईं जिन्हें येसु ने क्रूस पर लटक ते हुए उनके लिए निर्धारित किया। उन्होंने ईश्वर की मां बनने केलिए खुद को समर्पित किया, उसी तरह जिस तरह सालों बाद ये सुने गेथसेमिनी बाड़ी में अपने दुखभोग के पहले खुद को ईश्वर को समर्पित किया। पवित्र कुंवारी मरियम की काना के विवाहित जोड़े की मदद करने की इच्छा की वजह से ही येसु ने अपना पहला चमत्कार किया। मां मरियम का दिल दुख से उसी तरह छिदा गया जिस तरह सालों बाद येसु का दिल क्रूस पर बरछे से छेदा गया। इसी लिए हमें मां मरियम पर पूरे दिल से भरोसा रखना चाहिए क्योंकि वह हमें सुख में और दुख में येसु के दिखाएं रास्ते पर चलना सिखातीहैं।
By: Father Chris da Sousa
Moreमुसीबत के समय में, क्या आपने कभी सोचा है कि 'काश कोई मेरी मदद करता'? आप शायद अनभिज्ञ हैं कि वास्तव में आपकी मदद करने के लिए आपके पास आपके अपने एक निजी समूह है। मेरी बेटी मुझसे आजकल पूछती है कि अगर तुम सौ प्रतिशत पोलिश (पोलन्ड की) हो तो तुम सामान्य पोलेंड-वासी की तरह क्यों नहीं दिखती हो। पिछले सप्ताह तक मेरे पास इसका कोई सही उत्तर नहीं था, फिर मुझे पता चला कि मेरे कुछ पूर्वज दक्षिणी पोलैंड के गोरल हाइलैंडर्स यानी गोरल गोत्र समुदाय के पहाड़ी लोग थे। गोरल हाइलैंडर्स पोलेंड की दक्षिणी सीमा पर पहाड़ों में रहते हैं। वे अपनी दृढ़ता, स्वतंत्रता के प्रति प्रेम, तथा विशिष्ट पोशाक, संस्कृति और संगीत के लिए जाने जाते हैं। इस समय, एक विशेष गोरल लोक गीत मेरे दिल में बार-बार गूंजता रहता है, उस गीत ने मुझे इतना प्रभावित किया कि मैंने अपने पति के साथ उस गीत को साझा किया कि यह गीत वास्तव में मुझे अपने देश में वापस बुला रहा है। यह जानकर कि मेरा वंशीय इतिहास गोरल है, वास्तव में मेरा दिल ख़ुशी से उच्छल रहा है! वंशावली की खोज मेरा मानना है कि हममें से प्रत्येक के अन्दर अपनी वंशावली की खोज करने की इच्छा होती है। यही कारण है कि इन दिनों कई वंशावली साइट और डीएनए-जांच के व्यवसाय सामने आए हैं। ऐसा क्यों? शायद यह चाह हमें बतलाती है कि हम अपने से भी बड़ी किसी चीज़ का हिस्सा हैं। जो हमसे पहले इस दुनिया से चले गए हैं, उन लोगों के साथ हम मायने और संबंध की चाहत रखते हैं। हमारे वंश की खोज से पता चलता है कि हम एक बहुत गहरे कथानक का हिस्सा हैं। इतना ही नहीं, बल्कि अपनी पैतृक जड़ों को जानने से हमें पहचान और एकजुटता की भावना मिलती है। हम सभी कहीं न कहीं से आए हैं, हम कहीं न कहीं के वासी हैं, और हम एक साथ यात्रा कर रहे हैं। इस पर विचार करने पर मुझे एहसास हुआ कि केवल अपनी भौतिक ही नहीं, बल्कि अपनी आध्यात्मिक विरासत की खोज करना कितना महत्वपूर्ण है। आख़िरकार, हम मनुष्य शरीर और आत्मा हैं। हमें उन संतों को जानने से बहुत लाभ होगा जो हमसे पहले थे। हमें न केवल उनकी कहानियाँ सीखनी चाहिए, बल्कि उनसे परिचित भी होना चाहिए। संबंध ढूंढें मैं स्वीकारना चाहती हूँ कि मैं पहले किसी संत से मध्यस्थता मांगने की प्रथा में बहुत अच्छी नहीं रही हूँ। यह निश्चित रूप से मेरी प्रार्थना-दिनचर्या में एक नया जुड़ाव है। जिस चीज़ ने मुझे इस वास्तविकता से अवगत कराया वह संत फिलिप नेरी की यह सलाह थी: “आध्यात्मिक शुष्कता के खिलाफ सबसे अच्छी दवा खुद को ईश्वर और संतों की उपस्थिति में भिखारियों की तरह रखना है। और एक भिखारी की तरह, एक से दूसरे के पास जाना और उसी आग्रह के साथ आध्यात्मिक भिक्षा माँगना, जैसे कि सड़क पर एक गरीब आदमी भिक्षा माँगता है।“ पहला कदम यह जानना है कि संत कौन हैं। ऑनलाइन पर बहुत सारे अच्छे संसाधन मौजूद हैं। दूसरा तरीका है बाइबल पढ़ना। पुराने और नए विधान दोनों में शक्तिशाली मध्यस्थ हैं, और आप एक से अधिक मध्यस्थों से संबंधित हो सकते हैं। साथ ही, संतों और उनके लेखन पर अनगिनत किताबें हैं। मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना करें, और ईश्वर आपको आपके व्यक्तिगत मध्यस्थों के समूह तक पहुंचा देगा। उदाहरण के लिए, मैंने अपने संगीत की सेवकाई के लिए संत राजा दाउद से मध्यस्थता मांगी है। जब मुझे अपने पति के लिए या नौकरी चुनने के लिए मध्यस्थ की खोज करनी है तो मैं संत युसूफ के पास जाती हूँ। जब कलीसिया के लिए प्रार्थना करने का बुलावा मुझे मिलता है तो मैं संत जॉन पॉल द्वितीय, संत पेत्रुस और संत पिउस दसवें से मदद मांगती हूँ। मैं संत ऐनी और संत मोनिका की मध्यस्थता के माध्यम से माताओं के लिए प्रार्थना करती हूँ। बुलाहटों के लिए प्रार्थना करते समय, मैं कभी-कभी संत थेरेसा और संत पाद्रे पियो को पुकारती हूँ। यह सूची लम्बी है। तकनीकी समस्याओं के लिए धन्य कार्लो एक्यूटिस मेरे पसंदीदा हैं। संत जेसीन्ता और संत फ्रांसिस्को मुझे प्रार्थना के बारे में, तथा बेहतर तरीके से बलिदान अर्पित करने के बारे में सिखाते हैं। प्रेरित संत जॉन चिंतन करने में मेरी सहायता करते हैं। मैं अक्सर अपने दादा-दादी से मध्यस्थता की माँग करती हूँ, यह मैं नहीं बताती तो वह मेरी गलती होगी। जब वे हमारे साथ थे तब वे मेरे लिए प्रार्थना करते थे, और मैं जानती हूँ कि वे अनन्त जीवन में भी मेरे लिए प्रार्थना कर रहे हैं। परन्तु मेरी सार्वकालिक पसंदीदा मध्यस्थ हमेशा हमारी सबसे प्रिय धन्य कुंवारी माता मरियम रही हैं। बस एक प्रार्थना की दूरी पर यह मायने रखता है कि हम किसके साथ समय बिताते हैं। हम क्या बन जायेंगे, यह इसी पर निर्भर करता है। वास्तव में हमारी चारों ओर "गवाहों का बादल" है जिससे हम वास्तविक रूप से जुड़े हुए हैं (इब्रानी 12:1)। आइए हम उन्हें बेहतर तरीके से जानने का प्रयास करें। हम सरल, हार्दिक प्रार्थनाएँ भेज सकते हैं जैसे, "हे संत ____, मैं आपको बेहतर तरीके से जानना चाहती/ता हूँ। कृपया मेरी सहायता करें।" इस विश्वास यात्रा में चलने के लिए हम अकेले नहीं हैं। हम एक जन समूह के रूप में, मसीह के शरीर के रूप में एक साथ मुक्त किये गए लोग हैं। संतों से जुड़े रहने से, हमें वह मार्ग मिलता है जो हमारी स्वर्गीय जन्मभूमि तक सुरक्षित यात्रा करने के लिए दिशा और ठोस सहायता प्रदान करता है। पवित्र आत्मा हमें अपनी आध्यात्मिक जड़ों से जुड़ने में मदद करे ताकि हम संत बन सकें और अपना अनंत जीवन ईश्वर के एक गौरवशाली परिवार के रूप में बिता सकें!
By: Denise Jasek
Moreजब अयोग्यता के विचार मन में आएं, तो यह आजमायें... उससे बदबू आ रही थी. उसका गंदा, भूखा शरीर उसकी बर्बाद विरासत की तरह नष्ट हो रहा था। उसे लज्जा ने घेर लिया। उसने सब कुछ खो दिया था - अपनी संपत्ति, अपनी प्रतिष्ठा, अपना परिवार - उसका जीवन टूटकर बिखर गया था। निराशा ने उसे निगल लिया था। फिर, अचानक, उसे अपने पिता का सौम्य चेहरा याद आया। सुलह असंभव लग रही थी, लेकिन अपनी हताशा में, वह “उठ कर अपने पिता के घर की ओर चल पडा। वह दूर ही था कि उसके पिता ने उसे देख लिया, और दया से द्रवित हो उठा। उसने दौड़कर उसे गले लगा लिया और उसका चुम्बन किया। तब पुत्र ने उससे कहा, “पिता जी, मैंने स्वर्ग के विरूद्ध और आपके विरुद्ध पाप किया है; मैं आपका पुत्र कहलाने योग्य नहीं रहा।'... लेकिन पिता ने कहा... 'मेरा यह पुत्र मर गया था और फिर से जी गया है; वह खो गया था और फिर मिल गया है!' और वे आनंद मनाने लगे” (लूकस 15:20-24)। ईश्वर की क्षमा स्वीकार करना कठिन है। अपने पापों को स्वीकार करने का अर्थ है यह स्वीकार करना कि हमें अपने पिता की आवश्यकता है। और जब आप और मैं पिछले अपराधों के कारण अपराधबोध और शर्मिंदगी से जूझ रहे हैं, तो आरोप लगाने वाला शैतान हम पर अपने झूठ से हमला करता है: "तुम प्रेम और क्षमा के योग्य नहीं हो।" लेकिन प्रभु हमें इस झूठ को अस्वीकार करने के लिए कहते हैं! बपतिस्मा के समय, ईश्वर की संतान के रूप में आपकी पहचान, आपकी आत्मा पर हमेशा के लिए अंकित हो गई। और उड़ाऊ पुत्र की तरह, आप अपनी असली पहचान और योग्यता की खोज करने के लिए बुलाये गए हैं। चाहे आपने कुछ भी किया हो, ईश्वर आपसे प्यार करना कभी नहीं छोड़ते। "जो मेरे पास आता है, मैं उसे कभी नहीं ठुकराऊँगा।" (योहन 6:37)। आप और मैं कोई अपवाद नहीं हैं! तो, हम ईश्वर की क्षमा को स्वीकार करने के लिए व्यावहारिक कदम कैसे उठा सकते हैं? प्रभु को खोजें, उनकी दया को अपनाएं, और उनकी शक्तिशाली कृपा से बहाल हो जायें। प्रभु को खोजें अपने निकटतम गिरजाघर या आराधनालय को ढूंढें और प्रभु से आमने-सामने मुलाक़ात कर ले। ईश्वर से प्रार्थना करें कि वह अपनी दयालु आँखों से, अपने निस्वार्थ प्रेम के माध्यम से स्वयं को देखने और पहचानने में आपकी मदद करे। इसके बाद, अपनी आत्मा की एक ईमानदार और साहसी सूची बनाएं। बहादुर बनो और मनन चिंतन करते हुए क्रूसित प्रभु येशु को देखो - अपने आप को प्रभु के पास लाओ। हमारे पापों की वास्तविकता को स्वीकार करना कठिन है, लेकिन एक सच्चा, कमजोर हृदय क्षमा का फल प्राप्त करने के लिए तैयार है। याद रखें, आप ईश्वर की संतान हैं—प्रभु आपको विमुख नहीं करेंगे! ईश्वर की दया को अपनायें अपराधबोध और शर्मिंदगी के साथ लड़ना, पानी की सतह के नीचे गेंद को पकड़ने की कोशिश करने जैसा हो सकता है। इसमें बहुत मेहनत लगती है! इसके अलावा, शैतान अक्सर हमें यह विश्वास दिलाता है कि हम ईश्वर के प्रेम और क्षमा के योग्य नहीं हैं। लेकिन क्रूस से, मसीह का रक्त और जल हमें शुद्ध करने, चंगा करने और बचाने के लिए बहता रहा। आप और मैं इस दिव्य दया पर मूल रूप से भरोसा करने के लिए बुलाये गए हैं। यह कहने का प्रयास करें: “मैं ईश्वर की संतान हूँ। येशु मुझसे प्यार करते हैं। मैं क्षमा के योग्य हूँ।” इस सत्य को हर दिन दोहराएँ। इसे ऐसी जगह लिखें, जहां आप अक्सर दृष्टि दौडाते हैं। प्रभु से प्रार्थना करें कि उनकी दया के कोमल आलिंगन में स्वयं को देने में वह आपकी सहायता करें। गेंद को जाने दो और इसे येशु को सौंप दो—ईश्वर के लिए कुछ भी असंभव नहीं है! बहाल हो जाएँ पापस्वीकार संस्कार में, हम ईश्वर के उपचार और शक्ति की कृपा से बहाल होते हैं। शैतान के झूठ के विरुद्ध लड़ें और इस शक्तिशाली संस्कार में मसीह से मुलाकात कर लें। यदि आप अपराधबोध या शर्मिंदगी से जूझ रहे हैं तो पुरोहित को बताएं, और जब आप अपने पश्चाताप के कार्य के बारे में बताएं, तो अपने दिल को प्रेरित करने के लिए पवित्र आत्मा को आमंत्रित करें। जैसे ही आप पाप मुक्ति के शब्द सुनते हैं, ईश्वर की असीम दया पर विश्वास करना चुनें: "ईश्वर आपको क्षमा और शांति दे, और मैं आपको पिता, और पुत्र, और पवित्र आत्मा के नाम पर पापक्षमा प्रदान करता हूँ।" अब आप ईश्वर के अनंत प्रेम और क्षमा में बहाल हो गए हैं! अपनी असफलताओं के बावजूद, मैं हर दिन ईश्वर से उनके प्रेम और क्षमा को स्वीकार करने में मेरी मदद करने के लिए कहता हूं। हो सकता है कि हम उड़ाऊ पुत्र की तरह गिर गए हों, लेकिन आप और मैं अभी भी ईश्वर के बेटे और बेटियाँ हैं, उनके अनंत प्रेम और करुणा के योग्य हैं। ईश्वर आपसे प्रेम करता है, यहीं, इसी क्षण — उसने प्रेम के कारण आपके लिए अपना जीवन त्याग दिया। यह सुसमाचार की परिवर्तनकारी आशा है! इसलिए, ईश्वर की क्षमा को अपनाएं और साहसपूर्वक उसकी दिव्य दया को स्वीकार करने का साहस करें। ईश्वर की अनंत करुणा आपका इंतजार कर रही है! “नहीं डरो, मैंने तुम्हारा उद्धार किया है। मैंने तुमको अपनी प्रजा के रूप में अपनाया है।” (इसायाह 43:1)
By: Jody Weis
Moreबीसवीं सदी के आरंभिक यूनानी उपन्यासकार निकोलस कज़ान्तज़ाकिस का एक काव्यात्मक चिंतन है, जिसे मैं हर साल आगमन काल के आने पर अपने पलंग के बगल के टेबल पर रखता हूँ। उपन्यासकार कज़ान्तज़ाकिस येशु मसीह को एक किशोर के रूप में चित्रित करते हैं, जो दूर पहाड़ी की चोटी से इस्राएल के लोगों को देख रहा है, जो अभी अपनी सेवकाई शुरू करने के लिए तैयार नहीं है, लेकिन अपने लोगों की लालसा और पीड़ा के प्रति पूरी तरह से, दर्द और बोझ के साथ संवेदनशील है। इस्राएल का परमेश्वर उनके बीच में है—परन्तु वे अभी इस सच्चाई को नहीं जानते। मैं इसे एक दिन अपने छात्रों को पढ़कर सुना रहा था, जैसा कि मैं प्रतिवर्ष, आगमन की शुरुआत में करता हूँ, और उनमें से एक ने कक्षा के बाद मुझसे कहा: "मैं शर्त लगा सकता हूँ कि प्रभु येशु अभी भी ऐसा ही महसूस करते हैं।" मैंने उससे पूछा कि उसका क्या मतलब है। उसने कहा: "आप जानते हैं कि येशु, वहाँ पवित्र मंजूषा के अन्दर से हमें ऐसे चलते हुए देखते हैं जैसे कि हम जानते ही नहीं कि वे वहां उपस्थित हैं।" तब से, मेरे पास आगमन प्रार्थनाओं में ऐसे येशु का चित्र है, जो मंजूषा में इंतजार कर रहे हैं, अपने लोगों की ओर देख रहे हैं - हमारी कराहें, हमारी दलीलें और हमारी पुकारें सुन रहे हैं। हमारा इंतज़ार करते हुए ... किसी न किसी तरह, ईश्वर हमारे पास आने के लिए यही तरीका चुनता है। मसीह का जन्म पूरे मानव इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना है, और फिर भी, ईश्वर चाहता था कि यह 'इतनी शांति से हो कि संसार अपने काम में व्यस्त रहा जैसा कि कुछ भी नहीं हुआ हो।' कुछ चरवाहों ने ध्यान दिया, और पूरब से आये ज्ञानियों ने भी ऐसा ही किया। (हम हेरोद का भी उल्लेख कर सकते हैं, जिसने सभी गलत कारणों से ध्यान दिया!)। फिर, जाहिरा तौर पर, पूरी बात भुला दी गई। कुछ समय के लिए। किसी न किसी तरह... इंतज़ार करते हुए कुछ ऐसा होना चाहिए जो हमारे लिए अच्छा हो। ईश्वर हमारे लिए इंतजार करने को चुनता है। वह हमें अपने लिए इंतज़ार करवाना चुनता है। और जब आप इसके बारे में सोचते हैं, तो मुक्ति का पूरा इतिहास प्रतीक्षा का इतिहास बन जाता है। तो, आप देखते हैं कि यहाँ अत्यावश्यकता के दो भाव हैं - कि हमें ईश्वर के आह्वान का उत्तर देने की आवश्यकता है तथा इसकी भी आवश्यकता है कि वह हमारी पुकार का उत्तर दे, और जल्द ही। स्तोत्रकार लिखता है, "हे प्रभु, जब मैं तुझे पुकारूं, मुझे उत्तर दे।" इस पद में कुछ बड़ी विनम्रता है, दर्द है, जो आकर्षक रूप से हमारा ध्यान खींचता है। स्तोत्र में एक अत्यावश्यकता है। लेकिन यह भी स्पष्ट है कि हमें धैर्य रखना और इंतजार करना सीखना चाहिए - आनंदमय आशा के साथ इंतजार करना चाहिए - और इंतजार में इश्वर का उत्तर ढूंढना चाहिए।
By: Father Augustine Wetta O.S.B
Moreछह साल की उम्र में, एक छोटी लड़की ने फैसला किया कि उसे 'जेल' और 'फाँसी' शब्द पसंद नहीं हैं। उसे क्या पता था कि 36 साल की उम्र में वह मौत की सज़ा पाए कैदियों के साथ घूम रही होगी। 1981 में, दो छोटे बच्चों की चौंकाने वाली हत्याएं सिंगापुर और दुनिया भर में पहले पन्ने की खबर बन गईं थीं। पूरी जांच के बाद एड्रियन लिम की गिरफ्तारी हुई, जिसने अपने कई ग्राहकों को यह विश्वास दिलाकर कि उसके पास अलौकिक शक्तियां हैं, उनका यौन शोषण किया, उनसे जबरन वसूली की और उन्हें बिजली के झटके की 'थेरेपी' देकर प्रताड़ित किया। उनमें से एक, कैथरीन, मेरी एक छात्रा थी जो अपनी दादी की मृत्यु के बाद अवसाद के इलाज के लिए उसके पास गई थी। उस आदमी ने उससे वेश्यावृत्ति कराई और उसके भाई-बहनों के साथ दुर्व्यवहार किया। जब मैंने सुना कि कैथरीन पर हत्याओं में भाग लेने का आरोप लगाया गया है, तो मैंने उसे येशु के पवित्र हृदय की सुंदर तस्वीर के साथ एक चिट्टी भेजी। छह महीने बाद, उसने जवाब में लिखा, "जब मैंने इतने बुरे काम किए हैं तो आप मुझसे कैसे प्यार कर सकती हैं?" अगले सात वर्षों तक मैं जेल में कैथरीन से साप्ताहिक मुलाकात करती रही। महीनों तक एक साथ प्रार्थना करने के बाद, वह ईश्वर और उन सभी लोगों से माफ़ी मांगना चाहती थी, जिन्हें उसने चोट पहुंचाई थी। अपने पापों को स्वीकार करने के बाद, उसे ऐसी शांति मिली, जैसे वह एक अलग ही अनोखा व्यक्तित्व हो। जब मैंने उसका रूपांतरण देखा, तो मैं खुशी से पागल हो गयी। लेकिन कैदियों के लिए मेरी सेवा अभी शुरू ही हुई थी! अतीत की ओर नज़र मैं 10 बच्चों वाले एक प्यारे कैथोलिक परिवार में बड़ी हुई। हर सुबह, हम सभी एक साथ पवित्र मिस्सा बलिदान के लिए जाते थे, और मेरी माँ हमें गिरजाघर के पास एक कॉफी शॉप में नाश्ता खिलाती थी। लेकिन कुछ समय बाद मेरे लिए शरीर के भोजन से ज्यादा, आत्मा के लिए भोजन का महत्त्व बढ़ गया। पीछे मुड़कर दखती हूँ तो पता चलता है कि मेरे बचपन में अपने परिवार के साथ सुबह-सुबह होती रही उन पवित्र मिस्साओं के द्वारा ही मेरे अन्दर मेरी बुलाहट का बीज बोया गया था। मेरे पिता ने हममें से प्रत्येक को विशेष रूप से अपने प्यार का एहसास कराया, और हम उनके काम से लौटने पर खुशी से उनकी बाहों की ओर दौड़ने से कभी नहीं चूके। युद्ध के दौरान, जब हमें सिंगापुर से भागना पड़ा, तो वे हमें घर पर ही पढ़ाते थे। वे हर सुबह हमें उच्चारण सिखाते थे और हमसे उस अनुच्छेद को दोहराने के लिए कहते थे जिसमें किसी को सिंग सिंग जेल में मौत की सजा सुनाई गई थी। छह साल की छोटी उम्र में ही मुझे एहसास हुआ था कि मुझे वह अंश पसंद नहीं है। जब मेरी बारी आई तो मैंने इसे पढ़ने के बजाय “प्रणाम रानी, दया की माँ” प्रार्थना का पाठ किया। मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था कि मैं एक दिन कैदियों के साथ प्रार्थना करुंगी। अभी देर नहीं हुई है जब मैंने जेल में कैथरीन से मुलाक़ात करना शुरू किया, तो कई अन्य कैदियों ने हमारे कार्य में रुचि दिखाई। जब भी किसी कैदी ने मुलाकात का अनुरोध किया, तो मुझे उनसे मिलकर और ईश्वर की प्रेमपूर्ण दया साझा करके खुशी हुई। ईश्वर एक प्यारा पिता है जो हमेशा हमारे पश्चाताप करने और उसके पास वापस आने का इंतजार कर रहा है। एक कैदी जिसने कानून तोड़ा है वह उड़ाऊ पुत्र के समान है, जो जीवन के सबसे निचले पांवदान पर लुढ़क गया और उसने महसूस किया, "मैं अपने पिता के पास वापस जा सकता हूं।" जब वह अपने पिता के पास वापस लौटा और क्षमा मांगी, तो उसके पिता उसका स्वागत करने के लिए दौड़ते हुए बाहर आये। किसी को भी अपने पापों का पश्चाताप करने और ईश्वर की ओर लौटने में कभी देर नहीं करनी चाहिए। प्यार का आलिंगन हत्या की आरोपी फ्लोर नामक फिलिपिनो महिला ने अन्य कैदियों से हमारे सेवा कार्यों के बारे में सुना और समझा, इसलिए मैंने उससे मुलाकात की और उसका समर्थन और सहयोग किया, क्योंकि उसने अपनी मौत की सजा की अपील की थी। अपनी अपील खारिज होने के बाद, वह ईश्वर से बहुत नाराज थी और मुझसे बात करना नहीं चाहती थी। जब भी मैं उसके दरवाजे से गुजरती थी, तो मैं उससे कहती थी कि चाहे कुछ भी हो जाए, ईश्वर अब भी उससे प्यार करता है। लेकिन वह निराशा में खाली दीवार की ओर देखती रहती थी। मैंने अपने प्रार्थना समूह से नित्य सहायक माता से नौ रोज़ी प्रार्थना करने और विशेष रूप से अपनी दुःख पीडाओं को उसके लिए चढाने को कहा। दो सप्ताह बाद, फ़्लोर का हृदय अचानक बदल गया और उसने मुझसे कहा कि मैं किसी पुरोहित के साथ उसके पास वापस आऊँ। वह खुशी से फूल रही थी क्योंकि माता मरियम उसकी कोठरी में आई थीं और माँ मरियम ने उससे कहा था कि वह डरे नहीं क्योंकि माँ अंत तक उसके साथ रहेगी। उस क्षण से लेकर उसकी मृत्यु के दिन तक, फ्लोर के हृदय में केवल आनंद ही आनंद था। एक और यादगार कैदी एक ऑस्ट्रेलियाई व्यक्ति था जिसे मादक पदार्थों की तस्करी के आरोप में जेल में डाल दिया गया था। जब उसने मुझे एक अन्य कैदी के लिए माता मरियम का भजन गाते हुए सुना, तो वह इतना प्रभावित हुआ कि उसने मुझसे नियमित रूप से उससे मिलने के लिए कहा। जब उसकी माँ ऑस्ट्रेलिया से मिलने आईं तो वे हमारे साथ हमारे घर में रहीं। आख़िरकार, उसने एक काथलिक के रूप में बपतिस्मा लेने का आग्रह किया। उस दिन से, फाँसी के तख्ते तक जाते समय भी वह खुशी से भरा हुआ था। वहां का जेल निरीक्षक एक युवा व्यक्ति था, और जब यह मादक द्रव्य का पूर्व तस्कर अपनी मृत्यु की ओर बढ़ रहा था, तो यह अधिकारी आगे आया और उसे गले लगा लिया। यह बहुत असामान्य था, और हमें ऐसा लगा मानो ईश्वर स्वयं इस युवक को गले लगा रहे हो। आप वहां ईश्वर की उपस्थिति को महसूस किए बिना नहीं रह सकते थे। वास्तव में, मैं जानता हूं कि हर बार, माता मरियम और प्रभु येशु उन सज़ा-ए-मौत पाए कैदियों को स्वर्ग में स्वागत करने के लिए वहां मौजूद होते हैं। यह विश्वास करना मेरे लिए खुशी की बात है कि जिस प्रभु ने मुझे बुलाया है वह मेरे प्रति ईमानदार रहा है। उसके और उसके लोगों के लिए जीने का आनंद किसी भी अन्य चीज़ की तुलना में कहीं अधिक लाभप्रद रहा है।
By: Sister M. Gerard Fernandez RGS
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