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क्या आप अपने ह्रदय में ईश्वर के प्रेम को गहराई से महसूस करने के लिए तरस रहे हैं ? इसके लिए आपको बस प्रभु से मांगने की जरुरत है
मैंने अपने बेटे के ट्रक को घर के आंगन में रुकते हुए सुना। अपने आंसुओं को रोकते हुए मैंने अपने पल्लू से अपना चेहरा पोंछा लिया और उससे मिलने के लिए गैराज की ओर चल पड़ी।
उसने मुस्कुराते हुए कहा, “अरे माँ, तुम”।
“मेरा प्यारा बच्चा, आज इतनी सुबह कैसे आना हुआ?” मैंने पूछा।
“पापा ने कहा कि मेरे लिए कोई पार्सल है, इसलिए सोचा कि ऑफिस जाने से पहले उसे ले लूँ।“ उसने यही जवाब दिया!
मैंने कहा, “ठीक है बेटा!”
उसने अपना पार्सल उठा लिया, और मैं उसके पीछे-पीछे उसके ट्रक की ओर बढ़ने लगी।
उसने मुझे अपने गले से लगा लिया, और पूछा “माँ तुम ठीक तो हो ना?”
“मैं बिल्कुल ठीक हूँ”, रूंधते हुए स्वर में मैंने जवाब दिया। अपने आंसुओं को छिपाने के लिए मैंने अपना मुँह फेर लिया।
“वह अपने मुश्किल दौर से गुजर रही है। वह बिल्कुल ठीक हो जाएगी”, उसने धीमे स्वर से अपनी बहन के बारे में बताया।
“हाँ, मुझे पता है, लेकिन यह दौर उसके लिए कठिन है। उसके ऊपर दुःखों का पहाड़ है। मेरे लिए उसका दुःख सहना बहुत कठिन है। पता नहीं क्यों, मेरे बचपन से ही मैंने अपने आप को, जो जीवन की उदासी से जूझ रहे हैं, उन लोगों के बीच घिरी हुई पायी हूँ। क्या मेरे भाग्य में यही है?
उसने प्रश्नभरी दृष्टि से मेरी ओर देखा।
मैंने अपनी बातों को जारी रखते हुए कहा, “शायद मुझे इस परिस्थिति में कुछ ढूंढने की ज़रूरत है।“
“शायद आप का कहना सही है। इसलिए यदि आपको मेरी ज़रूरत है तो मैं यहाँ हूँ माँ”, उसने कहा।
मेरे मनोचिकित्सक ने कहा: “पारिवारिक जीवन में अवसाद का होना स्वाभाविक है। आप और आपकी बेटी एक दूसरे को बहुत चाहते हैं, पर कभी-कभी उस रिश्ते में उलझन पैदा हो जाता है। मेरे कहने का तात्पर्य है कि रिश्तों में कुछ सीमा या परिधि भी होनी चाहिए, विकास, स्वालंबन और आज़ादी के लिए एक स्वस्थ दूरी चाहिए।
“मुझे ऐसा लगता है कि मैंने बदलाव करने के लिए बहुत मेहनत की है, लेकिन ईमानदारी से कहूं तो मैं उसका दुख बर्दाश्त नहीं कर सकती” मैंने जवाब दिया। “और छोटी चीजें इतनी बड़ी लगती हैं। ईस्टर की शाम की तरह। रात के भोजन के बाद, मेरी बेटी ने पूछा कि क्या वह अपने प्रेमी से मिलने जा सकती है। जैसा कि मैंने उसे ड्राइव वे से बाहर निकलते हुए देखा, मेरे ऊपर भय और घबराहट की लहर दौड़ गई। मुझे पता है कि उसके जाने का मुझसे कोई मतलब नहीं था, लेकिन मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई,” मैंने कहा।
“क्या आप याद कर सकती हैं कब आपने पहली बार उस प्रकार की घबराहट और भय महसूस किया था?” चिकित्सक ने पूछा।
मैंने उस कठिन स्मृति को साझा करना शुरू किया जो तुरंत सामने आ गई।
“हम सब मेरे माता पिता के बेडरूम में थे,” मैंने कहा। “पिताजी नाराज थे। माँ बिलकुल टूट चुकी थी। वह मेरे छोटे भाई को गोद में ली हुई थी और मेरे पिता को शांत करने की कोशिश कर रही थी, लेकिन पिताजी बहुत पागल की तरह हो गए थे। हम अपने घर को बेचने और एक नए घर में जाने की तैयारी में थे। “घर जर्जर अवस्था में है” ऐसा कहकर पिताजी बड़े गुस्से में थे।
“आप कितने साल की थी?”
“लगभग सात साल की,” मैंने कहा।
“चलिए, आपकी याद में उस कमरे में वापस चलते हैं और कुछ काम करते हैं,” उसने कहा।
जैसा कि हमने उस स्मृति की समीक्षा की, मुझे पता चला कि मैंने अपने माता-पिता और भाई-बहनों की भावनाओं पर ध्यान केंद्रित किया था, लेकिन मेरी अपनी भावनाओं पर नहीं। अंत में मैं जो महसूस कर रही थी, उसी भावना के साथ कुछ देर समय बिताया, मेरे दुःख का बाँध फूट कर बहने लगा। मुझे अपना रोना बंद करना कठिन था; बस इतना अधिक दु:ख था।
मुझे लगता था कि सबकी खुशी मेरी जिम्मेदारी है। जब मेरे चिकित्सक ने पूछा कि मुझे उस अनुभव में सुरक्षित महसूस करने और मेरी देखभाल करने में क्या मदद मिली होगी, तो मुझे एहसास हुआ कि मुझे किस बात की ज़रूरत थी, लेकिन मुझे वह प्राप्त नहीं हुआ था। मैंने अपने अंदर के घायल सात साल की बच्ची की जिम्मेदारी ली। भले ही उसे वह नहीं मिला जिसकी उसे तब जरूरत थी, मैं अपने वयस्क स्थिति में उन जरूरतों को पूरा कर सकती थी और इस झूठ को दूर कर सकती थी कि दूसरों को खुश करने की जिम्मेदारी मेरी थी।
जब हम ने वह सत्र समाप्त कर लिया, मेरे चिकित्सक ने कहा, “मुझे पता है कि यह मुश्किल था। लेकिन मैं आपको आश्वस्त कर सकता हूं कि इसका आपको फ़ायदा होगा। मैंने कई माता-पिता को अपने बच्चों के संघर्षों से ठीक होते देखा है।”
मेरे सत्र के कुछ ही समय बाद, मेरे मित्र ऐनी ने अप्रत्याशित रूप से फोन किया।
“क्या आप आज चंगाई की मिस्सा पूजा में मुझसे मिलना चाहेंगी,” उसने पूछा।
“ज़रूर,” मैंने कहा।
मिस्सा के बाद, चंगाई प्रार्थना करने वाले लोगों की एक पंक्ति बन गई। मैंने इंतजार किया और जल्द ही दो महिला आध्यात्मिक निर्देशकों की ओर जाने के लिए मुझे बताया गया।
“आप येशु से क्या माँगना चाहेंगी?”
“मेरे बचपन के घावों को ठीक करने के लिए,” मैंने कहा।
वे चुपचाप मेरे लिए प्रार्थना करने लगी।
फिर उनमें से एक महिला ने जोर से प्रार्थना की,
“येशु, इसके बचपन के घावों को चंगा कर। वह सिर्फ एक छोटी लड़की थी जो उस क्रोध, भ्रम और अराजकता के बीच में खड़ी थी, अकेली महसूस कर रही थी और राहत के लिए बेताब थी। येशु, हम जानते हैं कि वह अकेली नहीं थी। हम जानते हैं कि तू उसके साथ था। और हम जानते हैं कि तू जीवन भर हमेशा उसके साथ रहा है। उसकी चंगाई और उसके परिवार की चंगाई के लिए येशु, धन्यवाद।”
मेरे मन की आँखों में मैंने येशु को अपने बगल में खड़ा देखा। उसने मुझे प्यार और करुणा के साथ गौर से देखा। मैं समझ गयी कि मेरे माता-पिता और भाई-बहनों के दुःख और दर्द को उठाने का काम कभी भी मेरा नहीं था, और यह कि येशु हमेशा मेरे दुख और दर्द का भार साझा करने के लिए मेरे साथ था। उसने ठीक उसी क्षण की व्यवस्था की थी जब मेरे दिल में छिपे हुए स्थान उसकी चंगाई के प्रेम और दया से भर जाएंगे।
चुपचाप, मैं रोयी।
मैं विस्मित होकर वहां से चली गयी। जो मैंने बहुत पहले अनुभव किया था उसी अनुभव को उस महिला की प्रार्थना ने पूरी तरह से वर्णन किया। येशु के साथ यह अंतरंग मुलाकात अविश्वसनीय रूप से चंगाई देने वाली थी।
मुझे जल्द ही एहसास हुआ कि दूसरों को ऊपर उठाने और उनकी जरूरतों को पूरा करने की मेरी इच्छा आंशिक रूप से मेरी खुद की जरूरतों को पूरा करने और ठीक होने की अवचेतन इच्छा थी। जबकि मैं दूसरे लोगों के दुखों का भार उठा रही थी, मुझे नहीं पता था कि मैं अपने अन्दर दर्द के सागर ले चल रही थी जिसे मैंने कभी व्यक्त नहीं किया था।
हाल ही में, मेरी बेटी ने मुझे बताया कि वह अपनी उदासी के लिए ग्लानी महसूस करती है और उसे लगता है कि वह मेरे लिए बोझ है। मुझे यह बात भयानक लगी। वह ऐसा कैसे महसूस कर सकती है? लेकिन तब मैं समझ गयी। मेरे लिए वह बोझ नहीं थी, लेकिन उसकी उदासी बोझ थी। मैंने उसे बेहतर बनाने का दबाव अपने अन्दर महसूस किया था ताकि मैं स्वयं बेहतर महसूस कर सकूं। और इस वजह से वह ग्लानी महसूस कर रही थी।
मेरी चंगाई से मुझे राहत मिली है। येशु मेरी बेटी के साथ है, उसे चंगाई दे रहा है, इस जानकारी के आधार पर मुझे जैसी वह है वैसे ही उससे प्यार करने के लिए स्वतंत्रता मिलती है।
ईश्वर की कृपा से, मैं उस सुंदर जीवन की जिम्मेदारी लेती रहूंगी जिसे ईश्वर ने मुझे दिया है। मैं उसे मेरी चंगाई जारी रखने की अनुमति दूँगी ताकि मैं परमेश्वर के प्रेम के प्रवाहित होने के लिए एक खुला पात्र बन सकूँ।
मैंने एक बार एक बुद्धिमान परामर्शदाता से पूछा,
“मुझे पता है कि येशु हमेशा मेरे साथ है और मैं अपनी देखभाल करने के लिए उसकी भलाई पर भरोसा कर सकती हूं, लेकिन क्या मैं कभी इसे अपने दिल में महसूस कर पाऊंगी?”
“हाँ, आप करेंगी,” उन्होंने कहा। “वह इसे ऐसा कर देगा।”
आमेन। सो ऐसा ही है।
Rosanne Pappas एक कलाकार, लेखिका और वक्ता हैं। पप्पस अपने जीवन में ईश्वर की कृपा की व्यक्तिगत कहानियों को साझा करके दूसरों को प्रेरित करती हैं। 35 से अधिक वर्षों से विवाहित, वह और उसका पति फ्लोरिडा में रहते हैं, और उनकी चार संतानें हैं।
अपने बेटे की लत और शराब के अतिमात्र सेवन के कारण अंततः उसकी मृत्यु से भी, वे संघर्ष करते रहे। वे कैसे टिके रहे? भले ही मेरा बपतिस्मा हो गया था, फिर भी बड़े होते समय गिरजाघर से मेरा कोई ख़ास वास्ता नहीं था। मेरी माँ और पिता के कैथलिक चर्च के साथ कुछ गंभीर अनसुलझे मुद्दे थे, इसलिए हम कभी भी मिस्सा बलिदान में नहीं गए, और मुझे कभी भी धर्मशिक्षा नहीं दी गई। हालाँकि, मुझे आध्यात्मिक संबंध की चाहत थी, और मैं ‘द रॉब’, ‘द टेन कमांडमेंट्स’, ‘बेनहर’, ‘ए मैन कॉल्ड पीटर’ और ‘द ग्रेटेस्ट स्टोरी एवर टोल्ड’ जैसी लोकप्रिय बाइबिल फिल्मों की ओर आकर्षित हुआ। उन फिल्मों में ईश्वर को बहुत ही दिलचस्प तरीके से प्रस्तुत किया गया था और मुझमें धीरे-धीरे व्यक्तिगत स्तर पर प्रभु को जानने की भूख विकसित हुई। 60 के दशक के दौरान, लोक गायक जिम क्रोस ने ‘टाइम इन ए बॉटल’ गाया था, जिसमें कहा गया था, "मैंने यह जानने के लिए चारों ओर काफी ढूंढा है कि तू ही वह व्यक्ति है जिसके संग मैं समय की यात्रा करना चाहता हूं।" मैं वास्तव में प्रभु ईश्वर के साथ 'समय की यात्रा' करना चाहता था, लेकिन मुझे नहीं पता था कि उसके साथ कैसे जुड़ूं। घुमावदार पथ सैन फ्रांसिस्को में अब्राहम लिंकन हाई स्कूल में एक कनिष्ठ छात्र के रूप में, मुझे एक आयरिश कैथलिक परिवार के बारे में पता चला जो वास्तव में अपने विश्वास में पक्के और गंभीर थे। उन्होंने रोज़ शाम को रोज़री माला की विनती की (वह भी लातीनी भाषा में!), दैनिक मिस्सा बलिदान में भाग लिया और येशु के शिष्यत्व का जीवन जीने का प्रयास किया। उनका धार्मिक रूप से पालन करने वाला जीवन रहस्यमय और आश्चर्य जनक था। उनके नमूने के माध्यम से, मैंने अंततः कैथलिक धर्म में पूरी तरह से दीक्षित होने का निर्णय लिया। हालाँकि, मेरे माता-पिता मेरे निर्णय से खुश नहीं थे। जब मेरे दृढीकरण और प्रथम पवित्र संस्कार के बड़े समारोह का दिन आया, तो हमारे बीच एक पारिवारिक लड़ाई हुई। पूरे घर में आँसू, क्रोधित शब्द और दोषारोपण गूँज रहे थे। मुझे यह कहते हुए याद है, "माँ और पिताजी, मैं आपसे प्यार करता हूँ, लेकिन मैं येशु की पूजा-आराधना करता हूँ, और मैं दृढ़ीकरण संस्कार पाना चाहता हूँ। कैथलिक कलीसिया मेरा आध्यात्मिक घर जैसा लगता है।'' इसलिए, मैंने घर छोड़ दिया और लेक मर्सिड के पास सेंट थॉमस मोर गिरजाघर में अकेले चला गया, जहां मुझे अपने माता-पिता के आशीर्वाद के बिना संस्कार प्राप्त हुए। इसके तुरंत बाद, मुझे मत्ती के सुसमाचार का एक संदर्भ मिला जिसमें येशु ने कहा था, "जो अपने पिता या अपनी माता को मुझसे अधिक प्रेम करता है, वह मेरे योग्य नहीं ..." (10:37)। मैं ठीक-ठीक जानता था कि उसका क्या मतलब था। हाईवे से भटक कर उप मार्गों पर काश मैं कह पाता कि किशोरावस्था पार करने के बाद भी मैंने येशु के प्रति इतनी गहरी प्रतिबद्धता जारी रखी। मेरा प्रारंभिक मन परिवर्त्तन मेरे जीवन को उसके प्रति समर्पित करने का सिर्फ सतही प्रयास था। मैंने अपने जीवन की गाड़ी को 'सुपर हाइवे येशु' पर यात्रा की शुरुआत की, लेकिन दुनिया के आकर्षक सामान्य चीज़ों का पीछा करते हुए इन उप मार्गों पर मैं अपनी गाड़ी ले चलता रहा: धन और सुरक्षा, पेशेवर सफलता और उपलब्धियां, सुखवादी आनंद और, सबसे ऊपर, नियंत्रण की मेरी अधिग्रहणात्मक खोज जारी रही। ‘बोनफ़ायर ऑफ़ द वैनिटीज़’ में टॉम वोल्फ के किरदार की तरह, मैं वास्तव में अपने ब्रह्मांड का स्वामी बनना चाहता था। मेरी इन सब योजनाओं के बीच येशु का स्थान क्या था? मुझे मूलतः उम्मीद थी कि येशु सवारी केलिए मेरी गाड़ी में बैठेंगे। मैं उनसे अपनी शर्तों पर जुड़ना चाहता था। मैं चाहता था कि येशु मेरे द्वारा बनाई जा रही मेरी आत्म-संदर्भित जीवनशैली को मान्यता दें। यात्रा वापस प्रेम के दायरे में मेरे शाही अहंकार को समायोजित करने के लिए बनाई गई यह मायावी मीनार 30 साल पहले तब ढह गई जब हमारा परिवार हमारे बेटे की नशीली दवाओं की लत से जूझ रहा था। कठिन तथ्य यह है कि उसकी लत, और अंततः घातक ओवरडोज़ ने मुझे एक बहुत ही अंधेरी, खाली जगह में गिरा दिया। मुझे लगा कि मैं बहुत गहरे गड्ढे में गिर गया हूँ जहाँ कुछ भी काम नहीं आ रहा था: मेरा बेटा वापस नहीं आ रहा था, और नुकसान की भावना भारी थी। मैं पूरी तरह से निराश हो गया और महसूस किया कि अंतरंगता, संवाद और संगति की हमारी गहरी भूख का सामना करने में दुनिया की वस्तुएं कितनी बेकार हैं। मैंने येशु से प्रार्थना की कि वह मुझे अंधकार, पीड़ा और तन्हाई के गहरे गड्ढे से बचाए। मैंने उनसे मेरी पीड़ा दूर करने और मेरे जीवन को फिर से व्यवस्थित करने की विनती की। हालाँकि उसने मेरे जीवन को "ठीक" नहीं किया, लेकिन उसने कुछ बेहतर किया: येशु मेरे साथ गड्ढे में आये, उन्होंने मेरे क्रूस को गले लगाया, और मुझे बताया कि वे मुझे, मेरे परिवार या हमारे दिवंगत बेटे को कभी नहीं छोड़ेंगे। मैंने पीड़ित सेवक येशु की प्रेमपूर्ण दया का अनुभव किया, जो अपने लोगों के साथ, यानी कलीसिया के साथ स्वयं पीड़ित रहते हैं। वे ईश्वर हैं जिनसे मैं प्रेम कर सकता हूँ। येशु हमारे सामने परमेश्वर का चेहरा प्रकट करते हैं। जैसा कि संत पौलुस कुलुस्सियों को भेजे अपने पत्र में लिखते हैं, येशु "अदृश्य ईश्वर के प्रतिरूप" हैं (1:15)। इसलिए, हमारे पास अभी यहीं, खुश और प्रसन्न रहने के लिए आवश्यक सभी चीजें मौजूद हैं। येशु में, जो स्वर्ग और पृथ्वी के बीच एकमात्र मध्यस्थ है, सब कुछ ठीक हो जाता है; कुछ भी उसके प्रेम के दायरे से बाहर नहीं है - हमारे प्रभु येशु मसीह हमें ईश्वर के साथ, हमारे भाइयों और बहनों और पूरी सृष्टि के साथ एक गहरे रिश्ते के लिए आमंत्रित करते हैं।
By: Deacon Jim McFadden
Moreशालोम टाइडिंग्स के नियमित स्तंभकार फादर जोसेफ गिल अपने जीवन की कहानी साझा करने के लिए अपने दिल की बातें खुलकर रखते हैं और बताते हैं कि उन्हें कैसे प्यार हुआ मैं मानता हूं कि मेरी बुलाहट को बुलाहट कम माना जाना चाहिए, बल्कि जिस व्यक्ति ने मुझे बनाया और मेरे दिल को उसने अपनी ओर आकर्षित किया, यह बुलाहट उस व्यक्ति के साथ मेरी प्रेम लीला मानी जानी चाहिए। जब मैं बहुत छोटा था, तभी से मैं प्रभु से प्रेम करता था। मुझे याद है जब मैं आठ या नौ साल का था, तब मैं अपने कमरे में बैठकर बाइबल पढ़ता था। मैं परमेश्वर के वचन से इतना प्रेरित हुआ कि मैंने बाइबल की मेरी अपनी किताब लिखने की भी कोशिश की (कहने की जरूरत नहीं है, यह कोशिश सफल नहीं हुई!)। मैंने मिशनरी या शहीद होने का, उदारतापूर्वक अपना जीवन मसीह को देने का सपना देखा। फिर मेरी किशोरावस्था आ गई और मसीह के प्रति मेरा जुनून सांसारिक चिंताओं के नीचे दब गया। मेरा जीवन बेसबॉल, लड़कियों और संगीत के इर्द-गिर्द घूमने लगा। मेरी नई महत्वाकांक्षा एक अमीर और प्रसिद्ध रॉक संगीतकार या खेल उद्घोषक बनने की थी। आत्मा पर आघात शुक्र है, प्रभु ने मेरा साथ नहीं छोड़ा। जब मैं चौदह वर्ष का था, तो मुझे अपने युवा समूह के साथ रोम की तीर्थयात्रा पर जाने का सौभाग्य मिला। कोलोसियम में खड़े होकर मैंने सोचा, “इस स्थान पर दस हजार से अधिक पुरुषों, महिलाओं और बच्चों ने येशु मसीह के लिए अपना खून बहाया है। मुझे अपने विश्वास की अधिक परवाह क्यों नहीं करना चाहिए?” सिस्टाइन गिरजाघर ने मुझे प्रभावित किया - सुन्दर चित्रों से भरपूर उस छत के कारण नहीं, बल्कि दूर की दीवार पर बनी उस कला के कारण: माइकल एंजेलो द्वारा "अंतिम न्यायविधि” का सुन्दर चित्र वहां अंकित था। वहाँ, जीवन भर लिए गए फैसलों के परिणाम को अर्थात स्वर्ग और नरक को सशक्त रूप से दर्शाया गया है। यह सोचकर मुझे अंदर तक आघात लगा कि मैं उन दो स्थानों में से एक में अनंत काल बिताऊंगा, मैंने सोचा... "तो मैं कहाँ जा रहा हूँ?" जब मैं लौटा, तो मुझे पता था कि मुझे अपने जीवन में कुछ परिवर्त्तन लाने की ज़रूरत है... लेकिन ऐसा करना कठिन हो सकता है। मैं किशोरावस्था में बहुत सारे पाप, गुस्से और नाटकबाजी में फंस गया था। मैंने आधे-अधूरे मन से प्रार्थना जीवन विकसित करने की कोशिश की, लेकिन यह जड़ नहीं जमा सका। मैं यह नहीं कह सकता कि मैं वास्तव में पवित्रता के लिए प्रयासरत हूँ। प्रभु को मेरा दिल जीतने के लिए और अधिक मुठभेड़ों की जरूरत पड़ी। सबसे पहले, मेरी पल्ली ने सतत आराधना शुरू की, जिससे लोगों को परम प्रसाद के पवित्र संस्कार के सामने प्रार्थना करने का 24 x 7 अवसर प्रदान किया गया। मेरे माता-पिता ने आराधना के एक साप्ताहिक घंटे के लिए साइन अप किया और मुझे आने के लिए आमंत्रित किया। पहले तो मैंने मना कर दिया; मैं अपने पसंदीदा टीवी कार्यक्रम छोड़ना नहीं चाहता था! लेकिन फिर मैंने तर्क दिया, "अगर मैं वास्तव में पवित्र परम प्रसाद के बारे में जो कहता हूं और उस पर विश्वास करता हूं - कि यह वास्तव में यीशु मसीह का शरीर और रक्त है - तो मैं उस संस्कार के साथ एक घंटा क्यों नहीं बिताना चाहूंगा?" इसलिए, अनिच्छा से, मैंने आराधना में जाना शुरू किया... और मुझे उससे प्यार हो गया। मौन मनन-चिंतन, धर्मग्रंथ का पाठ और प्रार्थना आदि के उस साप्ताहिक घंटे ने मेरे लिए परमेश्वर के व्यक्तिगत, और भावुक प्रेम का एहसास कराया... और मैं अपने प्यारे प्रभु को अपने पूरे जीवन के माध्यम से वह प्रेम लौटाने की इच्छा करने लगा। केवल सच्ची ख़ुशी लगभग उसी समय, ईश्वर मुझे कुछ आत्मिक साधनाओं में ले गया जो बहुत परिवर्तनकारी थी। एक साधना ओहियो में थी, जो कैथलिक फ़ैमिली लैंड नामक एक ग्रीष्मकालीन कैथलिक पारिवारिक शिविर था। वहाँ, पहली बार, मुझे मेरी ही उम्र के लड़के मिले जिनके मन में येशु के प्रति गहरा प्रेम था, और मुझे एहसास हुआ कि एक युवा व्यक्ति के रूप में पवित्रता के लिए प्रयास करना संभव (और अच्छा भी!) था। फिर मैंने क्रूस वीर के द्वारा आयोजित हाई स्कूल के लड़कों के लिए सप्ताहांत साधना में भाग लेना शुरू किया, और मैंने और भी अधिक दोस्त बनाए। येशु मसीह के प्रति उनके प्रेम को देखकर मेरी आध्यात्मिक यात्रा में वृद्धि हुई। अंततः, हाई स्कूल के एक वरिष्ठ छात्र के रूप में, मैंने एक स्थानीय सामुदायिक कॉलेज की कक्षाओं में जाना शुरू कर दिया। तब तक, मेरी पढ़ाई घर पर ही हुआ करती थी, इसलिए मुझे घर का सुरक्षा कवच और आश्रय मिला हुआ था। लेकिन इन कॉलेज की कक्षाओं में, मेरा सामना नास्तिक प्रोफेसरों और सुखवादी साथी छात्रों से हुआ, जिनका जीवन अगली पार्टी, अगली तनख्वाह और अगले हुकअप के इर्द-गिर्द घूमता था। लेकिन मैंने देखा कि वे बहुत दुखी लग रहे थे! वे लगातार अगली सुखदायक चीज़ के लिए प्रयास कर रहे थे। वे कभी भी अपने स्वार्थ की पूर्ती से बड़ी किसी चीज़ के लिए नहीं जी रहे थे। इससे मुझे एहसास हुआ कि दूसरों के लिए और मसीह के लिए अपना जीवन अर्पित करने में ही एकमात्र सच्ची खुशी है। उस समय से, मुझे पता था कि मेरा जीवन प्रभु येशु और उसके इर्द गिर्द होना चाहिए। मैंने फ्रांसिस्कन विश्वविद्यालय में अपनी पढ़ाई शुरू की और मैरीलैंड में माउंट सेंट मैरी के सेमिनरी में दाखिला लिया। लेकिन एक पुरोहित बनाने के बाद भी मेरी यात्रा जारी है। हर दिन प्रभु अपने प्रेम का और अधिक प्रमाण दिखाता है और मुझे अपने हृदय की गहराई में ले जाता है। यह मेरी प्रार्थना है कि आप सभी, मेरे प्रिय शालोम टाइडिंग्स के पाठको, आप अपने विश्वास को "हमारी आत्माओं के महान प्रेमी" के साथ एक क्रांतिकारी, सुंदर प्रेम संबंध के रूप में देखें!
By: Father Joseph Gill
Moreआपका पसंदीदा हीरो कौन है? क्या आप अपने जीवन में कभी किसी सुपरहीरो से मिले हैं? हमारा बचपन सैन फ्रांसिस्को में १९50 के दशक में बीता, उन दीनों हमारे पास हमारे अपने हीरो या नायक हुआ करते थे, आमतौर पर वे हीरो काउबॉय किस्म के थे - उनमें से जॉन वेन सर्वश्रेष्ठ माने जाते थे, जो जहां जाना चाहते थे वहां जा सकते थे, उनके पास एक सूत्र था जिसके अनुसार वे रहते थे, जिन लोगों को समाज बुरा मानता था उन बुरे लोगों को वे पराजित करते थे, आखिरी में वे अपने पसंद की लड़की को पकड़ लेते, और उसके साथ सूर्यास्त में ओझल हो जाते। जैसे ही द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका धुरी शक्तियों पर अपनी जीत से आगे बढ़कर शीत युद्ध (परमाणु युद्ध अभ्यास, क्यूबा मिसाइल संकट, आदि) के खतरों की ओर बढ़ रहा था, उस दौरान जॉन वेन की वीरतापूर्ण छवि आकर्षक थी, क्योंकि हम कोई खुशहाल समय के लिए तरस रहे थे। असली हीरो से मिलें आइये, 2022-2023 के दौर में आइये। नायकों की चाहत अभी भी बनी हुई है। बस उन सुपरहीरो फ्रेंचाइजी को देखें जो मुख्यधारा की फिल्मों पर हावी हैं। मार्वल फिल्में और उनके जैसे, जो हमारे मानवीय अनुभव की जटिलताओं की खोज की तुलना में अधिक 'थीम पार्क' अनुभवों से मिलते जुलते हैं, हमें सुपरहीरो (केवल 'हीरो' नहीं बल्कि 'सुपरहीरो'!) की अंतहीन आपूर्ति प्रदान करते हैं जो हमारे दुश्मनों को हराते हैं। वैश्विक महामारी, यूरोप में युद्ध, परमाणु कृपाण-धमकाने, ग्लोबल वार्मिंग, आर्थिक अनिश्चितता और संयुक्त राज्य अमेरिका की सड़कों पर हिंसा के विनाश से निपटने के दौरान, सुपरहीरो हमारी इच्छा को संबोधित करते हैं कि महान पुरुष और महिलाएं उन खतरों पर काबू पा सकते हैं हम पर थोपे गए हैं। इस समय, एक ईसाई अपना हाथ उठा सकता है और कह सकता है, "ठीक है, हमारे पास एक हीरो है जो सभी 'सुपरहीरो' से ऊपर है, और उसका नाम येशु है।" इससे यह सवाल उठता है कि क्या येशु हीरो हैं? मैं ऐसा नहीं सोचता, क्योंकि एक हीरो या नायक कुछ ऐसा करता है जो सामान्य व्यक्ति नहीं कर सकता या नहीं करेगा, इसलिए, हम परोक्ष रूप से उन्हें दुश्मनों पर विजय प्राप्त करते हुए देखते हैं, जो हमें अस्थायी रूप से हमारी चिंता से राहत देता है जब तक कि यह अनिवार्य रूप से अगले संकट के साथ वापस न आ जाए। जबकि येशु पारंपरिक अर्थों में नायक नहीं है, वह निश्चित रूप से एक अद्वितीय प्रकार का योद्धा है: वह परमेश्वर का वचन है जो हमें पाप और मृत्यु से बचाने के लिए मानव बन गया। वह इन कट्टर शत्रुओं के साथ युद्ध करने जा रहा है, लेकिन वह आक्रामकता, हिंसा और विनाश के हथियारों का उपयोग नहीं करने जा रहा है। बल्कि, वह दया, क्षमा और करुणा के माध्यम से उन पर विजय प्राप्त करेगा, यह सब उसकी दुःख पीड़ा, मृत्यु और पुनरुत्थान के माध्यम से सामने लाया गया है। ध्यान दें कि उसने पाप और मृत्यु पर कैसे विजय प्राप्त की। गेथसमेनी बाग़ से शुरुआत करते हुए, उसने हमारे पापों - हमारी शिथिलता, अव्यवस्था, अमानवीयता, आत्म-अवशोषण - को अवशोषित कर लिया और स्वयं पाप बन गया। संत पौलुस के अनुसार: "मसीह का कोई पाप नहीं था। फिर भी ईश्वर ने हमारे कल्याण केलिए उन्हें पाप का भागी बनाया जिससे हम उनके द्वारा ईश्वर की पवित्रता के भागे बन सकें" (2 कुरिन्थियों 5:21)। हालाँकि येशु पापी नहीं हैं क्योंकि वह दिव्य हैं - पवित्र त्रीत्व का दूसरा व्यक्ति - उनसे हमारा पाप अपने ऊपर ले लिया और कुछ समय के लिए 'पाप बन गए,' जिसके कारण उन्हें मार डाला। कठोर वास्तविकता यह है कि हमारे पापों ने परमेश्वर के पुत्र येशु को मार डाला। लेकिन, मसीही कथा पुण्य शुक्रवार को समाप्त नहीं हुई, क्योंकि तीन दिन बाद, परमपिता परमेश्वर ने पवित्र आत्मा की शक्ति के माध्यम से येशु को मृतकों में से जीवित कर दिया। ऐसा करने पर, हमारे कट्टर शत्रु—पाप और मृत्यु—परास्त हो गये। तो, येशु निश्चित रूप से सर्वोच्च आध्यात्मिक योद्धा हैं, लेकिन वह पारंपरिक अर्थों में नायक या हीरो नहीं हैं। क्यों नहीं? दिव्य चित्रपट के धागे येशु की दुःख पीड़ा, मृत्यु और पुनरुत्थान हमारे पास्का रहस्य, हमारे विश्वास का रहस्य, के प्रमुख चिह्न हैं। 'हमारे' पर ध्यान दें। येशु अपनी पीड़ा और मृत्यु से गुज़रे - हमें इससे गुज़रने से बचाने के लिए नहीं - बल्कि हमें यह दिखाने के लिए कि कैसे जीना है और पीड़ा भोगना है ताकि हम अभी और अनंत काल तक पुनर्जीवित जीवन का अनुभव कर सकें। आप देखते हैं, उनके रहस्यमय शरीर यानी कलीसिया के बपतिस्मा प्राप्त सदस्यों के रूप में, हम येशु में जीवन जीते हैं; "क्योंकि उसी में हमारा जीवन, हमारी गति तथा हमारा अस्तित्व निहित है" (प्रेरितों 17:28)। निश्चित रूप से, वह चाहता है कि हम उस पर विश्वास करें, क्योंकि, जैसा कि हम योहन 14:6 में सुनते हैं, "मार्ग, सत्य और जीवन मैं ही हूं। मुझ से होकर गए बिना कोई पिता के पास नहीं आ सकता।" उस मूलभूत विश्वास के आधार पर, हम उनके शिष्य बनने के लिए, उनके मिशन को पूरा करने के लिए बुलाये गये हैं, जो मिशन उन्होंने अपने स्वर्गारोहण पर अपनी कलीसिया को दिया था (मारकुस 16:19-20 और मत्ती 28:16-20)। इसके अलावा, हम उसके अस्तित्व में भाग लेने के लिए बुलाये गए हैं। जैसा कि रोमानो गार्डिनी ने अपने आध्यात्मिक क्लासिक, द लॉर्ड में लिखा है, "हम एक दिव्य चित्रपट में एक धागे की तरह हैं: हम उसमें और उसके माध्यम से अपनी मानवता का एहसास करते हैं।" दूसरे शब्दों में, हम वैसा ही करते हैं किस प्रकार येशु ने हमें आकार दिया था। कलीसिया के पवित्र जीवन, विशेष रूप से परम पवित्र संस्कार के माध्यम से येशु की पुनर्जीवित और गौरवशाली उपस्थिति में भाग लेते हुए, हम पवित्र आत्मा के सशक्तिकरण के माध्यम से पास्का रहस्य को जीते हैं। तो, क्या येशु एक नायक हैं? सुनिए पेत्रुस ने क्या कहा जब येशु ने उससे पूछा: "लोग मेरे विषय में क्या कहते हैं?" पेत्रुस का उत्तर: "आप मसीह हैं, जीवंत ईश्वर के पुत्र हैं" (मत्ती 16:1६)। येशु एक नायक से भी बढ़कर हैं; वह एक अनोखे प्रकार का योद्धा है। वह एकमात्र और सार्वभौमिक उद्धारकर्ता है।
By: Deacon Jim MC Fadden
Moreजब आपके आस-पास सब कुछ उथल पुथल हो जाता है, तो क्या आपने कभी पूछा है, "परमेश्वर मुझसे क्या चाहता है?" मेरा जीवन, अन्य सभी की तरह, अद्वितीय और अपूरणीय है। ईश्वर अच्छा है, और मैं अपने जीवन के तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद भी ईश्वर के प्रति आभारी हूं। कैथलिक माता-पिता ने मुझे जन्म दिया और मैंने ख्रीस्त राजा पर्व के दिन बपतिस्मा लिया। मैंने एक कैथलिक प्राइमरी स्कूल में और एक वर्ष कैथलिक हाई स्कूल में पढ़ाई की। दृढीकरण संस्कार पाकर येशु मसीह के लिए एक सैनिक बनने की बड़ी तीव्र इच्छा मेरे अन्दर थी। मुझे याद है कि मैंने येशु से कहा था कि मैं प्रतिदिन मिस्सा बलिदान में भाग लेने जाऊंगी। मैंने एक कैथलिक पुरुष से शादी की और अपने बच्चों को कैथलिक विश्वास में पाला। हालाँकि, मेरा विश्वास सिर्फ मेरे दिमाग में था और अभी तक मेरे दिल तक नहीं पहुँचा था। पीछे मुड़कर एक खोज अपने जीवन के मार्ग में कहीं पर, मैं येशु को अपने मित्र के रूप में पहचानना छोड़ दिया। मुझे याद है कि एक नवविवाहित युवा महिला के रूप में, कुछ दिन मैं मिस्सा बलिदान में भाग नहीं ले पायी थी क्योंकि मैंने सोचा था कि मैं अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ सुख प्राप्ति के लिए काम करूंगी। मैं बहुत गलत थी. मैं अपनी सास के अनजाने हस्तक्षेप के लिए धन्यवाद देती हूं: उन रविवारों में से एक रविवार को, उन्होंने मुझसे पूछा कि मिस्सा बलिदान कैसा था। मैं उनके सवाल को नजरअंदाज करने और विषय बदलने में कामयाब रही, लेकिन ईश्वर उनके सवाल के माध्यम से मुझ तक पहुंचा। अगले रविवार, मैं मिस्सा में गयी और फिर कभी मिस्सा न चूकने का संकल्प लिया। कई माताओं की तरह, मैं पारिवारिक जीवन, स्कूल में स्वयंसेवा, धार्मिक शिक्षा का अध्यापन, अंशकालिक काम करना आदि में व्यस्त थी। सच कहूँ तो, मुझे नहीं पता था कि किसी को "नहीं" कैसे कहना है। इसका परिणाम यह हुआ कि मैं थककर चकनाचूर हो चुकी थी। हां, मैं एक अच्छी महिला थी और अच्छे काम करने की कोशिश करती थी, लेकिन मैं येशु को अच्छी तरह से नहीं जानती थी। मैं जानती थी कि वह मेरा दोस्त था और हर हफ्ते मिस्सा बलिदान में उसको मैं ग्रहण करती थी, लेकिन अब मुझे एहसास हुआ कि मैं बस कुछ रस्मों की पूर्ती करती थी। जब मेरे बच्चे जूनियर हाईस्कूल में थे, तो मुझे फाइब्रोमायल्जिया रोग का पता चला और मुझे लगातार दर्द का अनुभव होता था। मैं काम से घर आती और आराम करती थी। दर्द के कारण मुझे कई काम बंद करना पड़ा। एक दिन एक दोस्त ने फोन करके पूछा कि तुम्हारा हाल क्या है। मैंने उससे बस अपने बारे में और अपने दर्द के बारे में शिकायत की थी। तब मेरे मित्र ने मुझसे पूछा, "ईश्वर तुमसे क्या चाहता है?" मैं असहज हो गयी और रोने लगी. फिर मुझे गुस्सा आ गया और मैंने तुरंत फोन रख दिया. मैंने सोचा, "ईश्वर को मेरे दर्द से क्या लेना-देना है।" बस मुझे इतना ही याद है कि मेरे मित्र के प्रश्न ने मुझे परेशान कर दिया था। हालाँकि आज तक, मुझे यह याद नहीं है कि मुझे महिलाओं के सप्ताहांत बैठक में किसने आमंत्रित किया था, जैसे ही मैंने अपनी पल्ली में “ख्रीस्त अपनी पल्ली का नवीकरण करता है” (सी.आर.एच.पी.) नामक एक साधना के बारे में सुना, मैंने तुरंत उसमें भाग लेने की हामी भर दी! मेरी बस इच्छा थी की मैं सप्ताह के अंत में घर से दूर रहूँ, खूब आराम करूं और दूसरों से अपनी मदद करा लूं। मैं गलत थी। व्यावहारिक रूप से सप्ताहांत के हर मिनट की योजना बनाई गई थी। क्या मुझे आराम मिला? मुझे कुछ मिला, लेकिन जैसा मैंने सोचा था वैसा नहीं। मैं ने अपने “मैं, मैं और मैं" पर केन्द्रित होने की प्रवृत्ति पर ध्यान दिया। वहां ईश्वर कहाँ था ? मुझे नहीं पता था कि पवित्र आत्मा द्वारा संचालित सप्ताहांत में मेरी हामी मेरे दिल का दरवाज़ा खोल देगी। जबरदस्त उपस्थिति उस साधना के बीच, एक प्रवचन सुनने के दौरान मेरी आंखों में आंसू आ गए। मुझे लगा कि ईश्वर मुझसे कह रहा है “ठहरो”। और मेरे जीवन को बदलने वाले शब्दों को सीधे ईश्वर को सुनाने के लिए मैं ने अपने दिल में एक प्रेरणा महसूस की। जो शब्द मैंने पूरे दिल से ईश्वर से कहे थे, उन शब्दों ने मेरे दिल में येशु के प्रवेश के लिए द्वार खोल दिया और ईश्वर के बारे में मेरे दिमाग के अन्दर से उतारकर मेरे दिल के अन्दर रखने का काम शुरू हुआ! "हे ईश्वर, मैं तुझसे प्यार करती हूँ," मैंने कहा, "मैं पूरी तरह तेरी हूँ। तू मुझसे जो कुछ भी कहेगा मैं वह करूँगी, और जहाँ भी तू मुझे भेजेगा, मैं वहाँ जाऊँगी।” मेरे दिल का विस्तार करने की ज़रूरत थी ताकि जिस तरह ईश्वर मुझसे प्यार करता हैं, उस तरह मैं प्यार करना सीख सकूं। "ईश्वर ने संसार से इतना प्रेम किया कि उस ने इसके लिए अपने एकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया, जिससे जो उस पर विश्वास करता है, उसका सर्वनाश न हो, बल्कि अनन्त जीवन प्राप्त कर सके।" (योहन 3:16)। उस वार्तालाप ने एक रूपांतरण, एक मेटानोइया थापित किया यानी मेरे हृदय को ईश्वर की ओर मोड़ दिया। मैंने ईश्वर के बिना शर्त प्यार का अनुभव किया था, और अचानक ईश्वर मेरे जीवन में सबसे प्रथम और सबसे महत्वपूर्ण बन गया। इसका वर्णन करना बहुत कठिन है, सिवाय इसके कि मैं इसे कभी नहीं भूलूंगी। मुझे ऐसा लगा जैसे ईश्वर ने अंधेरे में मेरा हाथ थाम लिया हो और मेरे साथ दौड़ा हो। मैं जोश में थी और खुश और आश्चर्यचकित थी कि ईश्वर मेरे जीवन में क्या कर रहा था और क्या कर रहा है। मेरे रूपांतरण के कुछ ही समय बाद और लाइफ इन द स्पिरिट सेमिनार के बाद, मैं अपने फाइब्रोमायल्जिया से ठीक हो गयी। मैंने अपने जीवन को देखा और प्रभु से प्रार्थना की कि वह मुझे उसके जैसा बनने में मदद करे। मुझे एहसास हुआ कि मुझे क्षमा करना सीखने की आवश्यकता है, इसलिए मैंने ईश्वर से यह दिखाने के लिए कहा कि मुझे किसे क्षमा करने या किससे क्षमा माँगने की आवश्यकता है। उसने ऐसा ही किया, और धीरे-धीरे, मैंने सीखा कि क्षमा कैसे करें और क्षमा कैसे स्वीकार करें। मैंने अपने सबसे महत्वपूर्ण रिश्तों में से एक - अपनी माँ के साथ अपने रिश्ते में सुधार का अनुभव किया। आख़िरकार मैंने सीख लिया कि ईश्वर की तरह उससे कैसे प्यार करना है। मेरे परिवार को भी उपचार का अनुभव हुआ। मैं और अधिक प्रार्थना करने लगी। प्रार्थना मेरे लिए रोमांचक थी. मैंने मौन प्रार्थना में समय बिताया, मौन ही वह जगह थी जहाँ प्रभु से मेरी मुलाक़ात हुई। 2003 में मुझे लगा कि ईश्वर मुझे केन्या बुला रहा है, और 2004 में, मैंने तीन महीने के लिए एक धर्मशाला के अनाथालय में स्वेच्छा से काम किया। सी.आर.एच.पी. के बाद से, मुझे लगा कि मुझे एक आध्यात्मिक निदेशक बनने की बुलाहट मिल रही है और मैं एक प्रमाणित आध्यात्मिक निदेशक बन गयी। प्रभु ने मेरे जीवन में और भी बहुत कुछ किया है। जब आप येशु मसीह को जानते हैं तो हमेशा बहुत कुछ होता है। पीछे मुड़कर अपने जीवन पर नजर डालूँ तो मैं कुछ भी नहीं बदलूंगी, क्योंकि इस जीवन ने हे मुझे वह बनाया है जो मैं आज हूं। हालाँकि, मुझे आश्चर्य है कि अगर मैंने जीवन बदलने वाले वे शब्द न कहे होते तो मेरे साथ क्या होता। ईश्वर आपसे प्यार करता है। ईश्वर आपको पूरी तरह से जानता है - अच्छा और बुरा - लेकिन फिर भी आपसे प्यार करता है। ईश्वर चाहता है कि आप उसके प्रेम के प्रकाश में रहें। ईश्वर चाहता है कि आप खुश रहें और अपना सारा बोझ उस पर लाएँ। “हे सब थके मांदे और बोझ से दबे हुए लोगो, तुम सब मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा।” ( मत्ती 11:28) मैं आपको अपने हृदय की गहराइयों से यह प्रार्थना कहने के लिए प्रोत्साहित करती हूँ: “प्रभु, मैं तुमसे प्यार करती हूँ। मैं सिर्फ तुम्हारी हूँ। तुम मुझसे जो कुछ भी कहोगे मैं वह करूँगी, और जहाँ भी तुम मुझे भेजोगे मैं वहाँ जाऊँगी।” मैं प्रार्थना करती हूं कि आपका जीवन कभी भी पहले जैसा न हो और चाहे आपके आसपास कुछ भी हो रहा हो, आपको आराम और शांति मिलेगी क्योंकि आप ईश्वर के साथ चलते हैं।
By: Carol Osburn
Moreसंत जनुवारियुस (या संत गेनारो, जैसा कि वे अपने देश इटली में जाने जाते हैं) का जन्म दूसरी शताब्दी में नेपल्स में एक धनी और कुलीन परिवार में हुआ था। उन्हें पंद्रह वर्ष की उल्लेखनीय आयु में पुरोहित नियुक्त किया गया था। बीस वर्ष की आयु में, वे नेपल्स के बिशप बने थे। सम्राट डायोक्लेशियन द्वारा शुरू किए गए मसीही उत्पीड़न के दौरान, जनुवारियुस ने अपने पूर्व सहपाठी सोसियुस सहित कई ईसाइयों को छुपाया, बाद में सोसियुस संत बन गए। सोसियुस को एक ईसाई के रूप में उजागर किया गया और उन्हें कैद कर लिया गया। जब जनुवारियुस सोसियुस से जेल में मिलने गए तो उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया। कहानियाँ अलग-अलग हैं कि क्या उन्हें और उनके साथी ईसाइयों को जंगली जानवरों के सामने फेंक दिया गया था (जिन्होंने उन पर हमला करने से इनकार कर दिया था), या उन्हें भट्टी में फेंक दिया गया था जहाँ से वे सुरक्षित निकल आए। लेकिन सभी कहानियाँ इस बात से सहमत हैं कि अंततः जनुवारियुस का सिर वर्ष 305 ई. के आसपास काट दिया गया था और यहीं से कहानी बहुत दिलचस्प मोड़ लेती है। धर्मपरायण अनुयायियों ने उनका कुछ रक्त कांच की शीशियों में इकट्ठा किया और इसे पवित्र अवशेष के रूप में संरक्षित किया। वह रक्त, जो आज तक सुरक्षित रखा गया है, उल्लेखनीय गुण प्रदर्शित करता है। जमा हुआ रक्त द्रवित हो जाने का बड़ा चमत्कार, सन 1389 से लेकर आज तक, प्रत्येक वर्ष तीन अवसरों पर होता आ रहा है। कांच की शीशियों में संग्रहित, बोतल के एक तरफ चिपका हुआ सूखा गहरा लाल रक्त चमत्कारिक ढंग से तरल में बदल जाता है जो बोतल को एक तरफ से दूसरी तरफ भर देता है। यह चमत्कार संत जनुवारियुस के पर्व के दिन, 19 सितंबर के अलावा, उस दिन भी होता है जो 1631 में माउंट वेसुवियस के ज्वालामुखी विस्फोट के प्रभाव से नेपल्स को बचाए जाने की सालगिरह है, जब उनके पवित्र अवशेषों को नेपल्स ले जाया गया था। ठोस रक्त कैसे तरल हो सकता है, इस पर कई वैज्ञानिक जांचों ने यह समझाने की कोशिश की है और उसमें असफल भी हुए। और इसमें किसी भी प्रकार की चालबाज़ी या बेईमानी नहीं सम्मिलित है। "चमत्कार हुआ, महान चमत्कार! " ऐसे हर्षित नारे नेपल्स महागिरजाघर में गूंजने लगते हैं जब संत के रक्त के अवशेष को रखे हुए मंजूषा को श्रद्धालु चूमते हैं। इस उल्लेखनीय संत के रूप में और चमत्कार के रूप में ईश्वर ने कलीसिया को कितना अद्भुत उपहार दिया है, जो हर साल हमें याद दिलाता है कि कैसे जनुवारियुस और कई अन्य लोगों ने अपने प्रभु के लिए अपना खून बहाया। जैसा कि तेर्तुलियन ने कहा है, "शहीदों का खून कलीसिया का बीज है।"
By: Graziano Marcheschi
Moreगैर-मौखिक स्वलीनता या आटिज्म के साथ जन्मे और आँख की रोशनी धीरे धीरे समाप्त कर देने वाली रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा बीमारी से पीड़ित होने के कारण, वह निराशा के एक खामोश पिंजरे में फंसा हुआ महसूस करता था। वह संवाद करने में अक्षम था और बड़ी मुश्किल से देख पाता था .. ऐसे में कोलम का जीवन कैसे गुज़रता रहा होगा? लेकिन उस केलिए परमेश्वर की योजना कुछ और ही थी... मेरा नाम कोलम है, लेकिन अपने 24 वर्षों के जीवन दौरान, मैं कभी भी अपना नाम नहीं बोला हूँ, क्योंकि मैं जन्म से ही बोल नहीं पाता हूँ। मेरे बचपन से यह पाया गया कि मैं स्वलीनता (आटिज्म) और सीखने की अक्षमता से पीड़ित हूँ। मेरी जिंदगी बहुत उबाऊ थी। मेरे माता-पिता ने मेरे शिक्षा के अधिकार के लिए लड़ाई लड़ी, अन्य स्वलिन्तिक बच्चों के माता-पिता के साथ एक स्कूल की स्थापना की और इसे जारी रखने के लिए धन संचय हेतु संघर्ष किया। चूँकि मैं संवाद नहीं कर सकता था, इसलिए उन्हें नहीं पता था कि मेरा मस्तिष्क क्या करने में सक्षम है, और मुझे अध्ययन की सारी सामग्री नीरस लगी। लोगों को लगा कि मैं घर पर डी.वी.डी. देखकर ज्यादा खुश हूं। मैं 8 साल का होने के बाद कभी भी छुट्टी मनाने बाहर नहीं गया। मुझे विश्वास नहीं था कि मैं निराशा और हताशा के अपने इस ख़ामोशी के पिंजरे से कभी मुक्त हो पाऊंगा। दूसरों को जीते हुए देखने का दुःख मुझे हमेशा लगता था कि येशु मेरे करीब हैं। मेरे शुरुआती दिनों से, वे मेरे सबसे करीबी दोस्त बन गए और आज भी वैसे ही हैं। मेरे सबसे अंधकारमय क्षणों में, वे मुझे आशा और आराम देने के लिए मेरे साथ मौजूद थे। दूसरों द्वारा अपने लिए शिशु समान हमदर्दी पाना ही बहुत थका देने वाला काम था जब कि मै अंदर से बुद्धिमान था। मेरा जीवन असहनीय लग रहा था। ऐसा लग रहा था कि मैं एक दर्शक के रूप में आधा-अधूरा जीवन जी रहा हूं, दूसरों को जीवन जीते हुए देख रहा हूं, जबकि मुझे जीवन की पूर्णता से बाहर रखा गया है। मैंने कितनी बार यह चाहा कि मैं भी उनकी गतिविधियों में भाग ले सकूं और अपनी असली क्षमता दिखा सकूं। जब मैं 13 वर्ष का था, तब मेरी दृष्टि कमजोर हो रही थी, इसलिए मुझे इलेक्ट्रो रेटिनोग्राम (ई.आर.जी.) नामक नेत्र परीक्षण के लिए टेम्पल स्ट्रीट चिल्ड्रेन हॉस्पिटल ले जाया गया। परमेश्वर ने मुझे एक और चुनौती दी थी। मुझे रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा (आर.पी.) का पता चला था, ऐसी स्थिति जहां आंख के पीछे रेटिना की कोशिकाएं मर जाती हैं और उन्हें प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता है, इसलिए दृष्टि धीरे-धीरे ख़त्म हो जाती है। इसे ठीक करने का कोई चिकित्सकीय इलाज नहीं है। मैं बरबाद हो गया था। यह मेरे लिए बहुत भयानक आघात था और मैं दुःख से अभिभूत हो गया। कुछ समय के लिए, मेरी दृष्टि स्थिर हो गई, जिससे मुझे आशा हुई कि मैं कुछ दृष्टि बनाए रख पाऊंगा, लेकिन जैसे-जैसे मैं बड़ा होता गया, मेरी दृष्टि और भी बदतर होती गई। मैं इतना अंधा हो गया कि अब मैं अलग-अलग रंगों के बीच अंतर नहीं बता पा रहा था। मेरा भविष्य अंधकारमय दिख रहा था| मैं संवाद नहीं कर सकता था, और अब मैं मुश्किल से देख पा रहा था। समावेशन और दूसरों के साथ संवाद के अभाव में मेरा जीवन और भी धूसर निराशा में आगे सरकता रहा। मेरी माँ को अब विश्वास हो गया कि जब मैं बड़ा हो जाऊंगा तो मुझे किसी संस्था में भर्ती करना होगा। मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मैं पागलपन की कगार पर लड़खड़ा रहा था। मेरे और पागलपन के बीच केवल परमेश्वर खड़ा था। प्रभु येशु का प्रेम ही मुझे स्वस्थ रखता था। मेरे परिवार को मेरे संघर्ष के बारे में कुछ भी नहीं पता था, क्योंकि मैं उनसे बात नहीं कर सकता था, लेकिन मेरे दिल में, मुझे लगता था कि येशु मुझसे कह रहे हैं कि मैं जल्द ही ठीक हो जाऊंगा। मेरे अंदर का भंवर अप्रैल 2014 में कुछ अद्भुत घटित हुआ। मेरी मां मुझे मेरी पहली आर.पी.एम. (रैपिड प्रॉम्प्ट मेथड) कार्यशाला में ले गईं। मैं शायद ही उस पर विश्वास कर पाया था। अंततः मैं किसी ऐसे व्यक्ति से मिला जो मुझ पर विश्वास करता था, जिसे विश्वास था कि मैं संवाद कर सकता हूँ, और जो मुझे यह सीखने में और कड़ी मेहनत करने में मदद करेगा। क्या आप मेरी ख़ुशी की कल्पना कर सकते हैं? एक पल के लिए, मेरे दिल में आशा उमड़ पडी – हाँ आशा, डर नहीं, इसकी आशा कि मेरा असली व्यक्तित्व सामने आ सकता है। आख़िरकार मदद आ ही गई। यह सोचकर मेरे अंदर खुशी का संचार हो गया कि अन्ततोगत्वा किसी ने मेरी क्षमता को देख लिया था । इस प्रकार मेरे जीवन को बदलने वाली यात्रा शुरू हुई। शुरुआत में यह बहुत कठिन काम था, हर वर्तनी के सटीक उच्चारण में सक्षम होने के लिए, मोटर मेमोरी हासिल करने के लिए कई हफ्तों का अभ्यास करना पड़ा। यह हर मिनट में फायेदेमंद था| जैसे ही मुझे आख़िरकार अपनी आवाज़ मिली, मेरी आज़ादी की भावनाएँ बढ़ने लगीं। जैसे ही परमेश्वर ने मेरी कहानी में यह नया अध्याय शुरू किया, ऐसा लगा जैसे मेरा जीवन आखिरकार शुरू हो गया है। आख़िरकार, मैं अपने परिवार को बता सका कि मैं कैसा महसूस कर रहा था और मैं परमेश्वर के प्रति बहुत आभारी महसूस कर रहा था। लात मार और काट चलिए, मई 2017 की ओर। मेरी दादी ने हमें बताया कि कुछ साल पहले उन्होंने संत पापा जॉन पॉल द्वितीय के बारे में एक बहुत ही अद्भुत सपना देखा था। सपने में, व पोप जॉन पॉल से अपने पोते-पोतियों के लिए प्रार्थना करने के लिए कह रहीं थीं और यह इतना अद्भुत था कि उन्होंने इसे एक कॉपी में लिख लिया। बाद में वह इसके बारे में भूल चुकी थीं, बहुत दिनों बाद कॉपी मिलने पर उन्होंने मेरे और मेरे भाई-बहनों को संत पापा जॉन पॉल द्वितीय के प्रति एक नव रोज़ी प्रार्थना शुरू करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने लोगों के एक समूह से, सोमवार, 22 मई से शुरू होने वाली नोवेना प्रार्थना, हमारे साथ करने के लिए कहा। मंगलवार, 23 तारीख को सुबह लगभग 9 बजे, मैं रसोई के बाहर अपने कमरे में एक डी.वी.डी. देख रहा था। पिताजी काम पर गए थे और माँ रसोई में सफ़ाई कर रहीं थीं । अचानक, हमारे घर का कुत्ता बेली, मेरे कमरे के दरवाजे पर भौंकने लगा। उसने पहले कभी ऐसा कुछ नहीं किया था, इसलिए माँ को लगा कि कुछ गड़बड़ है। वह दौड़कर अंदर आई और मुझे दौरे की हालत में पाया। यह उनके लिए बहुत डरावना था| मैं इधर-उधर हाथ-पैर मार रहा था और मैंने अपनी जीभ काट ली थी इसलिए मेरे चेहरे पर खून लग गया था। अपनी परेशानी में माँ को ऐसा लगा जैसे कोई कह रहा हो, “बस भरोसा करो। कभी-कभी चीज़ें बेहतर होने के लिए ही ख़राब हो जाती हैं।” माँ ने पिताजी को फोन किया, और उन्होंने घर आने का वादा किया। उन्होंने माँ से मेरा एक वीडियो लेने के लिए कहा जो अस्पताल पहुंचने पर बहुत उपयोगी बन गया था। जब झटके बंद हो गए तो मैं दो मिनट से अधिक समय तक बेहोश पड़ा रहा। इस कठिन परीक्षा के दौरान मैं होश खो बैठा था और मुझे इसके बारे में कुछ भी याद नहीं था, लेकिन माँ मेरे लिए प्रार्थना कर रहीं थीं और मेरी सुरक्षा के लिए मेरी देखभाल और निगरानी कर रहीं थीं । रोशनी का एक क्षण जब मुझे होश आया और लड़खड़ाते हुए अपने पैरों पर खड़ा हुआ, तो मैं बहुत अस्थिर था। माँ और पिताजी ने मुझे अस्पताल (यू.सी.एच.जी.) तक ले जाने के लिए कार में बिठाया। अस्पताल में डॉक्टरों ने मेरी जांच की और आगे की जांच के लिए मुझे भर्ती कर लिया। कर्मचारी मुझे एक्यूट मेडिकल वार्ड में ले जाने के लिए व्हीलचेयर के साथ आया। जब मुझे गलियारे में घुमाया जा रहा था, अचानक मेरी दृष्टि में एक बहुत ही आकस्मिक सुधार हुआ। उस पल की अपनी भावनाओं का वर्णन मै कैसे कर सकता हूँ ? मैं अपने आस-पास के दृश्यों की सुंदरता से मंत्रमुग्ध हो गया। सब कुछ बहुत अलग और स्पष्ट दिख रहा था। यह अद्भुत था! यह बताना असंभव है कि रोशनी के उस क्षण में मुझे कैसा महसूस हुआ। मैं रंग और आकार की दुनिया में लौटने पर अपने आश्चर्य की सीमा को व्यक्त नहीं कर सकता था। यह मेरे जीवन का अब तक का सबसे अच्छा पल था! जब माँ ने मुझसे पूछा कि क्या मुझे कुछ कहना है तो मैंने कहा, "मेरी आँखें बेहतर हैं।" माँ आश्चर्यचकित थीं। उन्होंने पूछा कि क्या मैं अपने कक्ष के बाहर मशीन पर स्टिकर देख सकता हूँ। मैने कहा हाँ। "उन्होंने पूछा कि क्या मैं पढ़ सकता हूँ कि स्टिकर के ऊपर क्या लिखा है। मैंने कह दिया, "मैं साफ़ साफ़ देख और पढ़ रहा हूँ।" वह इतनी चकित थी कि उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या सोचे या कैसी प्रतिक्रिया दे। मैं स्वयं नहीं जानता था कि उस क्षण मुझे कैसा महसूस हो रहां था ! जब पिताजी और मेरी बुआ अंदर आए, तो माँ ने उन्हें बताया कि क्या क्या हुआ था। पिताजी ने कहा, "हमें इसकी जांच करनी होगी"। वे मेरे बिस्तर के आगे पर्दे के पास गये और चॉकलेट का एक छोटा बैग उठाया। बैग पर जो लिखा था, उसे मैंने बता दिया। फिर थोड़ी देर के लिए यह तीव्र आग का दौर था क्योंकि वे मुझे अगले कुछ मिनटों में बहुत सारे शब्द बोलते रहे जिनको मुझे लिखना था। मुझे सभी शब्दों की वर्तनी सही से मिलने लगी थी। मेरी चाची और माता-पिता आश्चर्यचकित थे। यह कैसे संभव हुआ? एक अंधा आदमी सभी शब्द सही-सही कैसे लिख सकता है? यह चिकित्सकीय दृष्टि से असंभव था। रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा में कोई भी चिकित्सकीय उपचार मदद नहीं कर सकता है। आयुर्विज्ञान में इसका कोई इलाज नहीं है| अवश्य ईश्वर ने संत जॉन पॉल द्वितीय की मध्यस्थता के माध्यम से चमत्कारिक ढंग से मुझे ठीक किया था। इसे किसी अन्य तरीके से नहीं समझाया जा सकता| मैं अपनी दृष्टि बहाल करने के लिए परमेश्वर का बहुत आभारी हूं। यह सच्ची ईश्वरीय दया का कार्य है। अब मैं बोलने के स्वतंत्र संचार के लिए एक की-बोर्ड का उपयोग करने में सक्षम हूं जो बहुत तेज़ है। मेरी प्रार्थनामई माँ मैं आपको बताना चाहता हूं कि मैंने अपने विश्वास को कैसे बनाए रखा। जब कभी मुझे निराशा महसूस हुई तब तब मुझे कई बार संदेह भी हुआ। यह केवल येशु ही थे जिन्होंने मुझे स्वस्थ रखा। मुझे अपना विश्वास अपनी माँ से मिला था। उनका विश्वास बहुत मजबूत है। जब समय कठिन था तब उन्होंने मुझे आगे बढ़ते रहने के लिए प्रेरित किया। अब मुझे पता है कि हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर दिया गया है। मुझे अपनी आंखों की रोशनी वापस पाने की आदत डालने में थोड़ा समय लगा। मेरे मस्तिष्क और शरीर का वियोग बहुत अधिक था और मेरा मस्तिष्क कार्यात्मक तरीके से दृष्टि का उपयोग करने के लिए तैयार नहीं था। चारों ओर दृष्टि डालना और देखना ठीक था, लेकिन मेरे मस्तिष्क को मेरी दृष्टि से जानकारी का उपयोग करने में कठिनाई हो रही थी। उदाहरण के लिए, हालाँकि मैं देख सकता था, फिर भी मुझे यह पहचानने में कठिनाई हो रही थी कि मैं क्या ढूँढ रहा था। कभी-कभी मैं लड़खड़ाकर निराश हो जाता था क्योंकि दृष्टि होने के बावजूद मैं नहीं देख पाता था कि मैं कहाँ जा रहा हूँ। सितंबर में, मैं जांच के लिए वापस अस्पताल गया। मेरी दृष्टि और रंग पहचान के लिए मुझे 20:20 स्कोर मिला था, इसका मतलब मेरी दृष्टि अब सामान्य है। हालाँकि, रेटिना की तस्वीर अभी भी अध:पतन दिखाती है। इसमें सुधार नहीं हुआ था। चिकित्सा विज्ञान के अनुसार मेरे लिए स्पष्ट देखना असंभव है। इसका मतलब मुझे अभी भी एक धुंधली, धूसर दुनिया में फंसा रहना चाहिए। लेकिन परमेश्वर ने अपनी दया से मुझे उस नीरस पिंजरे से मुक्त कर दिया और मुझे रंग और रोशनी की एक खूबसूरत दुनिया में पहुंचा दिया। डॉक्टर हैरान थे| वे अभी भी चकित हैं, लेकिन मैं खुश हूं क्योंकि मैं अभी स्पष्ट देख सकता हूं। अब, मैं कई काम पहले से बेहतर कर सकता हूं। अब मैं माँ को बातें बहुत तेजी से बता सकता हूँ क्योंकि मैं लेमिनेटेड वर्णमाला शीट का उपयोग कर सकता हूँ। यह स्टेंसिल की तुलना में बहुत तेज़ है। मैं अपनी प्रतिभाशाली मां का बहुत आभारी हूं क्योंकि कठिनाइयों के बावजूद उसने मेरी शिक्षा को जारी रखा और मेरे उपचार के लिए इतनी ईमानदारी से वह प्रार्थना करती रही। सुसमाचारों में, हम येशु द्वारा कई अंधों की दृष्टि बहाल करने के बारे में सुनते हैं, वैसे ही येशु ने मेरी दृष्टि बहाल की। इस आधुनिक समय में बहुत से लोग चमत्कारों के बारे में भूल गए हैं। वे उपहास करते हैं और सोचते हैं कि विज्ञान के पास सभी जवाब हैं। ईश्वर उनकी सोच और विचारों से बाहर हो गया है। जब मेरी चंगाई जैसा कोई चमत्कार होता है, तो वह प्रकट करता है कि वह अभी भी जीवित और शक्तिशाली है। मुझे आशा है कि चमत्कार की मेरी यह कहानी आपको आप से बेहद प्यार करनेवाले उस ईश्वर के प्रति अपना हृदय खोलने के लिए प्रेरित करेगी। दयालु पिता आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा कर रहा है।
By: Colum Mc Nabb
Moreक्या आपको लगता है कि आपका संघर्ष कभी खत्म न होने वाला है? जब हताशा आपके दिल को जकड़ लेती है, तो आप क्या करते हैं? मैं मनोचिकित्सक के कमरे में एक बड़ी कुर्सी पर हाथ मलते हुए बैठी थी और उनके आने का इंतज़ार कर रही थी। मैं उठकर भागना चाह रही थी। मनोचिकित्सक ने मेरा अभिवादन किया, कुछ साधारण से प्रश्न पूछे और फिर परामर्श की प्रक्रिया शुरू हुई। उनके पास एक डिजिटल टैबलेट और कलम थी। हर बार जब मैंने कुछ कहा या हाथ का इशारा किया, तो वे टैबलेट पर कुछ लिखते रहे। मैं अपने दिल की गहराई से जानती थी कि थोड़े समय के बाद वे निर्धारित करेंगे कि मेरी मानसिक हालत ऐसी है कि मैं मदद से परे हूं। वह सत्र इस सुझाव के साथ समाप्त हुआ कि मैं अपने जीवन की गड़बड़ी से निपटने में मदद के लिए ट्रैंक्विलाइज़र लूं। मैंने उनसे कहा कि मैं इसके बारे में सोचूँगी; लेकिन सहज रूप से मुझे पता था कि यह कोई समाधान नहीं था। हताश और अकेली एक और अपॉइंटमेंट लेने के लिए, मैं स्वागत कक्ष में बैठी महिला से अपने जीवन की गड़बड़ी के बारे में बात करती रही। उसके पास सुनने वाला दयालु कान था और उसने पूछा कि क्या मैंने कभी ‘अल-अनॉन’ की बैठक में जाने पर विचार किया था। उसने समझाया कि ‘अल-अनॉन’ उन लोगों के लिए है, जिनका जीवन परिवार के किसी सदस्य के अत्यधिक शराब पीने से प्रभावित हो रहा है। उसने मुझे एक नाम और फोन नंबर दिया और मुझे बताया कि यह ‘अल-अनॉन’ महिला मुझे एक बैठक में ले जायेगी। अपनी कार में बैठकर, बहते हुए आंसुओं के साथ, मैंने नाम और फ़ोन नंबर को देखा। मनोचिकित्सक से और अपने जीवन की परेशानियों से कोई राहत नहीं मिलने के बाद, मैं कुछ भी आजमाने के लिए तैयार थी। मैंने यह भी निष्कर्ष निकाला कि मनोचिकित्सक ने दवाइयों के अलावा कोई दूसरा हल न होने की बात पहले ही मुझसे कही थी। इसलिए, मैंने अल-अनॉन महिला को फोन किया। उसी क्षण मेरे जीवन की गड़बड़ी में ईश्वर ने प्रवेश किया, और मेरे ठीक होने की यात्रा शुरू हुई। मैं कहना चाहूंगी कि अल-अनोन के 12-चरणों वाले चंगाई कार्यक्रम की प्रक्रिया की शुरुआत के बाद यह सुचारू रूप से चल रहा था, लेकिन रास्तें में बड़ी पहाड़ियाँ तथा अंधेरी और सुनसान घाटियाँ खड़ी थीं, हालांकि वे हमेशा आशा की किरण के साथ खड़ी थीं। मैं प्रति सप्ताह दो अल-अनोन बैठकों में ईमानदारी से भाग लेती थी। अल-अनॉन के 12-चरणीय कार्यक्रम मेरी जीवन रेखा बन गया। मैंने अन्य सदस्यों के साथ खुल कर अपने बारे में बात की। धीरे-धीरे मेरे जीवन में प्रकाश की एक किरण आई। मैं फिर से प्रार्थना करने लगी और ईश्वर पर भरोसा करने लगी। दो साल की अल-अनोन बैठकों के बाद, मुझे पता था कि मुझे अतिरिक्त पेशेवर मदद की ज़रूरत है। एक दयालु अल-अनोन मित्र ने मुझे 30-दिवसीय अन्तरंग-रोगी उपचार कार्यक्रम में प्रवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया। मेरा दिल नरम हुआ क्योंकि मुझे शराब पर गुस्सा था, मैं इस उपचार कार्यक्रम में किसी भी ‘शराबी’ के आसपास नहीं रहना चाहती थी। उस गहन कार्यक्रम के दौरान, मैं वास्तव में शराब और नशीली दवाओं के लत में डूबे कई लोगों से घिरी हुई थी। ऐसा लगता है कि ईश्वर को पता था कि मुझे क्या ठीक करने की आवश्यकता है: जब मैंने अपने लत में डूबे साथियों के व्यक्तिगत दर्द और उनके कारण उनके परिवारों को हुए गहरे तकलीफों को देखा तो मेरा दिल नरम होने लगा। इस समर्पण के दौरान ही अपनी ही शराब की लत पर मैंने काबू पाया। मुझे पता चला कि मैं अपना दर्द छुपाने के लिए शराब पीती थी। मुझे पता चला कि मैं भी शराब का दुरुपयोग कर रही थी और यह सबसे अच्छा होगा कि मैं पूरी तरह से शराब से दूर रहूँ। उस महीने मैंने अपने पति के प्रति अपने क्रोध को दूर किया और उन्हें ईश्वर के हाथों में सौंप दिया। मेरे ऐसा करने के बाद, मैं उन्हें क्षमा कर सकी। मेरे 30 दिनों के उपचार कार्यक्रम के बाद, ईश्वर की कृपा से, मेरे पति ने भी शराब की लत के उपचार कार्यक्रम में प्रवेश किया। मेरा और मेरे पति का और हमारे दो किशोर बेटों का जीवन बेहतर हो रहा था। हम कैथलिक चर्च में वापस आ गए थे और एक एक दिन हमारा वैवाहिक जीवन दुरुस्त किया जा रहा था। दिल दहला देने वाला दर्द तब जीवन ने हमें एक अकल्पनीय झटका दिया जिसने हमारे दिलों को एक लाख टुकड़ों में तोड़ दिया। हमारा सत्रह वर्षीय बेटा और उसका दोस्त एक विनाशकारी कार दुर्घटना में मारे गए। यह हादसा गाड़ी के तेज रफ्तार और उन दोनों के शराब पीने के कारण हुआ। हम हफ्तों तक सदमे में रहे। हमारे बेटे के इस तरह हिंसात्मक ढंग से छीन जाने के कारण चार लोगों का हमारा परिवार अचानक तीन में सिमट गया। मेरे पति, मैं और हमारा 15 साल का बेटा एक-दूसरे से, अपने दोस्तों से, और अपने विश्वास से लिपटे रहे। इस दर्द को एक दिन में भी सहना मेरी सहनशक्ति के बाहर था, पर मुझे इसे हर मिनट, हर घंटे तक सहना था। मुझे लगा यह दर्द हमें कभी नहीं छोड़ेगा। ईश्वर की कृपा से, हमने मनोवैज्ञानिक परामर्श की एक विस्तारित अवधि में प्रवेश किया। दयालु और हमारी अच्छी परवाह करने वाले वह सलाहकार जानता था कि परिवार का प्रत्येक सदस्य किसी प्रियजन की मृत्यु से अपने तरीके से और अपने समय में निपटता है। इसलिए हमें अपने दुःख का सामना करने के लिए उन्होंने हममें से प्रत्येक के साथ व्यक्तिगत रूप से काम किया। मेरे बेटे की मौत के महीनों बाद भी, मैं गुस्से और रोष से भरी हुई थी। मेरे लिए यह जानना डरावना था कि मेरी भावनाएँ इतनी बेतहाशा नियंत्रण से बाहर हो गई थीं। मैं अपने बेटे के छीन जाने पर ईश्वर से नाराज नहीं थी, लेकिन अपने बेटे की मृत्यु की रात ही उसके गैर-जिम्मेदाराना फैसले के लिए उससे मैं नाराज थी। उसने शराब पीने का निर्णय लिया और एक ऐसी गाड़ी में सफ़र करने का निर्णय लिया जिसे किसी शराबी व्यक्ति द्वारा चलाया जा रहा था। मैं शराब पर और उसके विभिन्न रूपों और परिणामों पर क्रोधित थी। एक दिन हमारे स्थानीय सुपरमार्केट में, मैंने गलियारे के अंत में एक बियर की प्रदर्शनी देखी। हर बार जब भी मैं प्रदर्शनी के पास से गुजरती, तब मैं गुस्से से भर जाती। मैं प्रदर्शनी को तब तक ध्वस्त करना चाहती थी जब तक कि उसमें कुछ भी न बचा हो। इससे पहले कि मेरा गुस्सा बेकाबू होकर फूट पड़ता, मैं दुकान से बाहर निकल गयी। मैंने अपने पारिवारिक परामर्शदाता के साथ इस घटना को साझा किया। उन्होंने मुझे निशानबाज़ी के मैदान में ले जाने की पेशकश की, जहां मैं उनकी राइफल का इस्तेमाल निशाना लगाने, गोली मारने और अधिक से अधिक बीयर के खाली बोतलों को ध्वस्त करने के लिए कर सकती थी, ताकि मुझ पर हावी हो रहे शक्तिशाली क्रोध को सुरक्षित रूप से मैं मुक्त कर सकूं। प्यार जो चंगा करता है लेकिन ईश्वर के अपने अनंत ज्ञान में मेरे लिए अन्य कोमल योजनाएँ थीं। मैंने काम से एक सप्ताह की छुट्टी ली और एक आध्यात्मिक साधना में भाग लिया। साधना के दूसरे दिन, मैंने एक आंतरिक चँगाई वाले मनन चिंतन में भाग लिया जिसमें मैंने रंगीन फूलों, समृद्ध हरी घास और चहचहाने वाले नीले कोमल पक्षियों से भरे, शानदार पेड़ों से घिरे एक सुंदर बगीचे में येशु, अपने बेटे, और खुद को पाया। यह शांतिपूर्ण और निर्मल अनुभव था। मैं येशु की उपस्थिति में होने और अपने अनमोल बेटे को गले लगाने में सक्षम होने के लिए बहुत खुश थी। येशु, मेरा बेटा, और मैं इत्मीनान से हाथ में हाथ डाले, चुपचाप हमारे बीच में बहते अपार प्रेम को अनुभव करते हुए टहल रहे थे। ध्यान के बाद, मुझे गहन शांति का अनुभव हुआ। साधना से वापस घर लौटने के बाद ही मुझे एहसास हुआ कि मेरा गुस्सा और रोष ख़तम हो चुका था। येशु ने मेरे बेकाबू क्रोध से मुझे चंगा किया था और उसके स्थान पर अपने अनुग्रह से भर दिया था। क्रोध के बजाय मुझे अपने अनमोल बेटे के लिए केवल प्यार महसूस हुआ। मेरे बेटे ने अपने बहुत छोटे जीवन में मुझे जो प्यार, खुशी और आनंद दिया है, उसके लिए मैं आभार महसूस कर रही थी। मेरा भारी बोझ हल्का होता जा रहा था। जब किसी परिवार में दु:खद मौत आती है, तो हर सदस्य की दिल में शोक भर जाता है। नुकसान को संभालना चुनौतीपूर्ण कार्य है, जिसके लिए हमें अंधेरी घाटियों से गुजरना पड़ता है। लेकिन ईश्वर का प्रेम और उसकी अद्भुत कृपा हमारे जीवन में धूप और आशा की किरणें वापस ला सकती है। ईश्वर के प्रेम से संतृप्त होने पर दुःख हमें अंदर से बाहर तक बदलता है, हमें धीरे-धीरे प्रेम और करुणा से भरे लोगों में परिवर्तित करता है। स्थिर आशा नशे की लत के प्रभावों और उसके साथ आने वाले मानसिक विभ्रांति के प्रभावों से और साथ साथ मेरे बेटे की मौत के शोक से भी निपटने के कई वर्षों के दौरान, मैं येशु मसीह, मेरी चट्टान और मेरे उद्धारकर्त्ता से जुड़ी हुई हूं। हमारे बेटे की मौत के बाद हमारे वैवाहिक जीवन को काफी नुकसान हुआ। लेकिन ईश्वर की कृपा से और उससे और मदद मांगने की हमारी इच्छा के कारण, हम प्रतिदिन एक-दूसरे से प्यार करते हैं और एक-दूसरे को स्वीकार करते हैं। हमारे उद्धारकर्ता और हमारे प्रभु येशु मसीह में आशा रखने के लिए यह दैनिक समर्पण, विश्वास, स्वीकृति और प्रार्थना आवश्यक है। हम में से प्रत्येक के पास दूसरों के साथ साझा करने के लिए अपने जीवन की एक कहानी है। अक्सर यह आनंद और आशा के मिश्रण के साथ दिल के दर्द, चुनौती और दुख की कहानी होती है। चाहे हम इसे स्वीकार करें या न करें, सच्चाई यह है कि हम सभी ईश्वर को खोज कर रहे हैं। जैसा कि संत अगस्टिन ने कहा है: "हे ईश्वर, तूने हमें अपने लिए बनाया है, और हमारा दिल तब तक बेचैन है जब तक यह तुझ में विश्राम नहीं पाता।" ईश्वर की खोज में हम में से बहुत से लोगों ने ऐसे रास्ते निकाले हैं, जो अंधेरी और सुनसान जगहों की ओर हमें ले जाते हैं। हममें से कुछ लोगों ने उस मार्ग से भटक जाने से अपने आप को बचाकर रखा है और येशु के साथ गहरे संबंध की हमने तलाश की है। लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप अपने जीवन के किस दौर से गुजर रहे हैं, क्योंकि आगे आशा और चंगाई ज़रूर है। हर पल ईश्वर हमें खोज रहा है। हमें बस इतना करना है कि हम अपना हाथ आगे बढ़ाएँ और उसे थामने दें और उसे हमारी अगुवाई करने दें। “यदि तुम समुद्र पार करोगे, तो मैं तुम्हारे साथ होऊँगा। जलधाराएं तुम्हें बहा कर नहीं ले जायेंगी। यदि तुम आग पार करोगे, तो तुम नहीं जलोगे। ज्वालाएँ तुम को भस्म नहीं करेंगी; क्योंकि मैं, प्रभु, तुम्हारा ईश्वर हूँ; मैं इस्राएल का परम पावन उद्धारक हूँ। (इसायाह 43:2-3)
By: Connie Beckman
Moreजब मुसीबतें आती हैं, तब हम बहुत जल्दी सोचने लगते हैं कि यह कोई नहीं समझ रहा है कि हम किस दौर से गुजर रहे हैं? लगभग हर गिरजाघर में, हम वेदी के ऊपर एक क्रूस लटका हुआ पाते हैं। हमें अपने उद्धारकर्ता की छवि, जेवरों का ताज पहने, सिंहासन पर बैठे हुए या स्वर्गदूतों द्वारा उठाए हुए बादलों पर उतरते हुए नहीं दिखाई देती है, बल्कि वह छवि एक आम व्यक्ति के रूप में, घायल, बुनियादी मानवीय गरिमा से वंचित, और प्राणदंड के सबसे अपमानजनक और दर्दनाक पीड़ा को सहते हुए व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करती है। हम एक ऐसे व्यक्ति को देखते हैं जिसने प्यार किया और हार गया, जिसे चोट लगी है और उसके साथ विश्वासघात हुआ है। हमें अपने ही जैसे एक व्यक्ति दिखाई देता है। और फिर भी, इस सबूत के बावजूद, जब हम खुद पीड़ित होते हैं, तो हम कितनी जल्दी विलाप करते हैं कि कोई भी हमें नहीं समझता, कोई नहीं जानता कि हमपे क्या बीत रही है? हम त्वरित धारणाएँ बनाते हैं और सांत्वना से परे दु:ख से भरे अकेलापन में डूब जाते हैं। जीवन की दिशा में परिवर्तन कुछ साल पहले मेरी जिंदगी हमेशा के लिए बदल गई। बचपन में मैं हमेशा एक स्वस्थ बच्ची थी, बैले डांसर बनना मेरा सपना था, जिसे मैंने बारह साल की उम्र तक साकार करना शुरू कर दिया। मैं नियमित रूप से सन्डे स्कूल में धर्मशिक्षा में भाग लेती थी और मेरे अन्दर ईश्वर के प्रति आकर्षण का अनुभव करती थी, लेकिन बाद में मैं इसके बारे में ज्यादा ध्यान नहीं देती थी। इसलिए मैं अपने जीवन का आनंद लेती रही, दोस्तों के साथ मैं ने अपना समय बिताया, और उत्तम बैले डांस स्कूलों में मुख्य नर्त्तकी की भूमिका निभाई। मैं अपने जीवन से संतुष्ट थी। मुझे पता था कि ईश्वर है, लेकिन वह हमेशा वहां बहुत दूर था। मेरा उस पर भरोसा था, लेकिन मैंने कभी उसके बारे में ज्यादा नहीं सोचा। फिर भी आठवीं कक्षा में, मेरे बचपन के नृत्य करियर के चरम उत्कर्ष पर, मेरा स्वास्थ्य गिरने लगा, और चार साल बाद भी मैं ठीक नहीं हुई। यह सब मेट्रोपॉलिटन ओपेरा हाउस में एक बैले में प्रदर्शन करने के ठीक एक सप्ताह बाद शुरू हुआ। जिस दिन मुझे दृढ़ीकरण संस्कार मिला, और इससे दो हफ्ते बाद मुझे संयुक्त राज्य अमेरिका के दूसरे सबसे प्रतिष्ठित डांस स्कूल में ग्रीष्मकालीन गहन पाठ्यक्रम में भाग लेना था। मेरे टखने की हड्डी पहले से टूटी थी और अब स्नायुबंधन के खराब तनाव ने समस्या और अधिक बढ़ा दी। इसलिए अब सर्जरी की आवश्यकता थी। फिर मुझे अपेंडीसैटिस हो गयी, जिसके लिए एक और सर्जरी की आवश्यकता थी। एक के बाद एक हुई दो सर्जरी ने मेरी तंत्रिकाओं और रोगप्रतिरोध क्षमता को गंभीर नुकसान पहुंचाया और मुझे इस हद तक कमजोर कर दिया कि कोई भी डॉक्टर मेरा इलाज नहीं कर सकता था या पूरी तरह से मेरी स्थिति को समझ भी नहीं सकता था। मैंने बैले जारी रखने के लिए अपने शरीर पर दबाव डालना जारी रखा, इससे मेरे शारीर पर ज़ोर पड़ा और मेरी रीढ़ की हड्डी टूट गई, जिससे मेरा बैले करियर समाप्त हो गया। मेरे दृढ़ीकरण से पूर्व के वर्षों के दौरान, मैंने येशु को उन रूपों में अनुभव किया जो मैंने पहले कभी नहीं किया था। मैंने उनके प्रेम और दया को सुसमाचारों के अध्ययन और उनके सेवाकार्य की चर्चाओं में पाया। मैंने हर रविवार को गिरजाघर जाना शुरू किया और पवित्र परम प्रसाद की शक्ति का अनुभव किया। मेरे पल्ली पुरोहित ने दृढ़ीकरण की कक्षाओं के दौरान मुझे येशु के प्रेम के बारे में इतने स्पष्ट रूप से सिखाया था, उससे पहले किसी ने भी नहीं सिखाया था। उनकी शिक्षा ने ईश्वर के बारे में मेरे ज्ञान को स्पष्ट किया कि वास्तव में वह कौन है। प्रभु येशु, जिन्हें मैं हमेशा से अपने उद्धारकर्ता के रूप में जानती थी, अब मेरे सबसे प्रिय मित्र और मेरा सबसे बड़ा प्रेम बन गये थे। वह गिरजाघर में लटकी हुई मूर्ति मात्र नहीं थे या कहानियों के एक पात्र नहीं थे; वह वास्तविक थे, और वह सत्य का अवतार थे, वह सत्य जिसे मैं कभी नहीं जानती थी, जिसे मैं खोज रही थी। उस साल के अध्ययन के माध्यम से, मैंने अपना जीवन पूरी तरह से येशु के लिए जीने का निर्णय लिया। मैं उसके जैसा बनने के अलावा और कुछ नहीं चाहती थी। मेरी चोट के बाद से, जैसे-जैसे मेरा स्वास्थ्य ऊपर-नीचे होता गया और मुझे उस रास्ते से दूर ले गया जिस पर मुझे हमेशा रहने की उम्मीद थी, मैं आशान्वित रहने के लिए संघर्ष कर रही थी। मैंने बैले खो दिया था और कुछ दोस्त भी। मैं स्कूल जाने के लिए मुश्किल से बिस्तर से उठ पाती थी, और जब मैं उठ पाती, तो पूरा दिन खड़ी नहीं हो पाती थी। मेरा जीवन चरमरा रहा था और मुझे यह समझने की जरूरत थी कि ऐसा क्यों है। मुझे इतना कष्ट और इतना नुकसान क्यों उठाना पड़ा? क्या मैंने कुछ गलत किया? क्या यह कुछ अच्छाई में बदल जायेगी? हर बार जब मेरा स्वास्थ्य सुधरना शुरू हुआ, तब कोई नई स्वास्थ्य-समस्या उत्पन्न हुई और मुझे फिर से कमज़ोर कर दिया। फिर भी मेरे कठिन घड़ियों मे, येशु ने हमेशा मुझे अपने पैरों पर वापस खड़ा किया, और अपनी ओर खींच लिया। उद्देश्य की ढूँढ मैंने अपने दुःख को दूसरे लोगों के लिए ईश्वर को अर्पित करना सीख लिया और उन लोगों के जीवन में अच्छे बदलाव होते देखा। जैसे-जैसे चीजें मुझसे छीनी गईं, बेहतर अवसरों के लिए जगह बनती गयी। उदाहरण के लिए, बैले डांस न कर पाने की वजह से मुझे अपने बैले स्कूल में नर्त्तकों की तस्वीरें लेने और उनकी प्रतिभा दिखाने का मौका मिला। आखिरकार मेरे पास अपने भाई के फुटबॉल खेलों को देखने के लिए खाली समय मिला और मैंने उसकी तस्वीरें लेना शुरू कर दिया। मैंने जल्द ही पूरी टीम की तस्वीरें खींचनी शुरू कर दीं, जिनमें वे लड़के भी शामिल थे, जिनको खेलते हुए देखेने केलिए कोई नहीं आते थे, उनके कौशल को किसी के द्वारा एक तस्वीर में कैद करना तो दूर की बात थी। जब मैं मुश्किल से ही चल पाती थी, तब मैं घर में बैठकर दूसरों को देने के लिए रोजरी माला बनाती थी। जैसे-जैसे मैंने शारीरिक रूप से और बुरा महसूस करना शुरू किया, मेरा दिल हल्का होता गया, क्योंकि मुझे न केवल खुद के लिए जीने का मौका मिला, बल्कि ईश्वर के लिए जीने और उसके प्रेम और करुणा को दूसरों में तथा अपने ह्रदय में कार्य करते देखने का मौका मिला। मैं ने येशु को देखा फिर भी मेरे लिए दु:ख में अच्छाई खोजना हमेशा आसान नहीं होता है। मैं अक्सर अपने आप को यह कामना करती हुई पाती हूं कि काश मेरा दर्द दूर हो जाए, काश मैं शारीरिक पीड़ा से मुक्त एक सामान्य जीवन जी पाऊँ। फिर भी पिछले मार्च की एक शाम मैंने अपने शाश्वत प्रश्नों की स्पष्ट अंतर्दृष्टि प्राप्त की। मैं आराधना में, गिरजाघर में लकड़ी की बेंच पर बैठी हुई, सुस्त मोमबत्ती की रोशनी में क्रूस को टकटकी लगाए हुए देख रही थी। और मुझे सिर्फ क्रूस दिखाई नहीं दे रहा था, बल्कि पहली बार मैं क्रूस पर टंगे प्रभु येशु को निहार रही थी। मेरा पूरा शरीर दर्द से तड़प रहा था। मेरी कलाई और टखने दर्द से काँप रहे थे, मेरी पीठ नए चोट से दर्द कर रही थी, एक पुराने माइग्रेन के दर्द से मेरा सिर फट रहा था, और हरेक क्षण, एक तेज दर्द ने मेरी पसलियों को छेदते हुए मुझे जमीन पर गिरा दिया। मेरे सामने, येशु अपनी कलाइयों और टखनों में छिदे कीलों से क्रूस पर लटके हुए थे। कोड़ों की मार से उनकी पीठ पर चीरने के घाव बने थे, उनके सिर पर काँटों का ताज दर्दनाक तरीके से धँसा था, और उनकी पसलियों के बीच भाले से छिदा एक गहरा घाव था – जो यह सुनिश्चित करने के लिए भोंका गया था कि वह मर गया है या नहीं। एक विचार मुझे इतना कष्ट दे रहा था कि मैं लगभग बेंच पर ही गिर पड़ी। वह विचार था: हरेक पीड़ा जो मैंने महसूस की, यहां तक कि सबसे छोटी पीड़ा भी, मेरे उद्धारकर्ता ने भी महसूस की। मेरी पीठ दर्द और सिरदर्द, यहां तक कि मेरा यह विश्वास कि कोई और मुझे नहीं समझ सकता, मेरे प्रभु ये सारी पीडाएं जानते हैं, क्योंकि उन्होंने भी इन सबका अनुभव किया है, और इसे हमारे साथ सहना जारी रखता है। दु:ख कोई सजा नहीं है, बल्कि एक उपहार है जिसका उपयोग हम ईश्वर के करीब आने और अपने चरित्र को अच्छा बनाने के लिए कर सकते हैं। यद्यपि मैंने शारीरिक रूप से बहुत कुछ खोया है, आध्यात्मिक रूप से मैंने पाया है। जब वे सब जिन्हें हम महत्वपूर्ण मानते हैं, दूर हो जाता है, तब हम देख सकते हैं कि वास्तव में क्या मायने रखता है। उस रात आराधना में जब मैंने येशु के घावों को अपने ही घावों के समान देखा, तो मुझे एहसास हुआ कि अगर उन्होंने मेरे लिए इतना सब सहा है, तो मैं भी उनके लिए यह सब सहन कर सकती हूँ। यदि हम और भी ज्यादा येशु के समान बनना चाहते हैं, तो हमें वही यात्रा करनी होगी जो उन्होंने की थी, क्रूस और अन्य सब कुछ। लेकिन वह हमें अकेले चलने के लिए कभी नहीं छोड़ेगा। हमें केवल क्रूस को देखना है और स्मरण रखना है कि वह ठीक हमारे सामने है जो इन सब में हमारे साथ चल रहे हैं।
By: Sarah Barry
Moreसालों तक मार्गरेट फिट्ज़सिमोंस ने गहरे दर्द और शर्म को सहा। एक दिन उन्होंने उन चार शब्दों को सुना उन चार शब्दों ने उनकी ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल दी ... टूटा हुआ बचपन मैं ने 1945 में दुनिया में जन्म लिया था, जब युद्धग्रस्त जर्मनी के बुनियादी ढांचे क्षतिग्रस्त हो चुके थे और देश लाखों विस्थापित लोगों से जूझ रहा था। मेरे कोई पिता नहीं थे, इसलिए मेरी मां ने मुझे पालने के लिए अकेले ही संघर्ष किया। मेरी माँ अलग अलग संबंधो की एक श्रृंखला से गुजर रही थी। घर के किराए का भुगतान करने के लिए, वह बहुत सारे अतितिक्त काम करती थी, जैसे जिस इमारत में हम रहते थे, उसकी सीढ़ियों पर झाडू लगाती थी, और मैं वहाँ कूड़ेदान को खाली करने में उनकी मदद करने की कोशिश करती थी। मेरी माँ के दोस्तों में, एक मेरे पसंदीदा छद्म पिता थे, एक पुलिसकर्मी, एक अच्छे इंसान। मेरी माँ ने उनसे समबन्ध बनाकर गर्भधारण किया, लेकिन माँ उस बच्चे को जन्म देना नहीं चाहती थी, इसलिए उसका गर्भपात हो गया, फिर माँ ने उस पुलिस कर्मी के साथ रिश्ते को छोड़ दिया और होटलों में काम करना शुरू कर दिया। जब माँ नीचे काम कर रही थी और ग्राहकों के साथ शराब पी रही थी, तब मैं आमतौर पर होटल के छत के बेडरूम में अकेली रहती थी। नशा करने के बाद मेरी माँ चिड़चिड़ी हो जाती थी और घर आने पर बिना किसी कारण के मेरे ऊपर गुस्सा करने लगती थी। वह हमेशा मेरे लिए काम की एक लंबी सूची छोड़ जाती थी, लेकिन मैं उसे कभी संतुष्ट नहीं कर पाती थी। हालात बिगड़ गए और एक रात माँ उस पुलिसकर्मी की नई प्रेमिका से लड़ने लगी। उस लड़ाई के चलते माँ जेल में बंद हो गई। बद से बदतर मां का छोटा भाई ऑस्ट्रेलिया चले गए, उस के बाद, मेरे नानाजी ने सोचा कि अगर मेरी माँ और मामा एक ही देश में होते तो अच्छा होता। इसलिए, हम 1957 में उनके साथ ऑस्ट्रेलिया चले गए और कुछ समय उनके साथ रहे। माँ को एक जगह रसोइया का काम मिल गया, और मैंने सारे थाली बर्तन धोए। जब कभी वह मुझे काम पर कम ध्यान देते हुए पकडती, तो वह बार्बेक्यू का कांटा या जो कुछ उसके हाथ में रहता, वे सब मेरे ऊपर फेंक देती थी। चूँकि मैं केवल बारह वर्ष की थी और अक्सर गलतियाँ करती थी, इसलिए मेरे पूरे शरीर पर चोट के निशान बन गए। जब वह नशे की हालत में थी, तो यह और भी बुरी हो जाती थी। मुझे उससे नफरत होने लगी। हम तब तक एक बोर्डिंग हाउस में रह रहे थे, और माँ की मुलाक़ात बहुत से नए लोगों से हुई थी, जो ग्रामीण इलाकों में गाड़ी चलाना और पेड़ों के नीचे बैठकर शराब पीना पसंद करते थे। मैं तब तक लगभग तेरह साल की हो गयी थी, इसलिए वह मुझे घर पर नहीं छोड़ती थी| वह मुझे अपने साथ ले जाती थी, लेकिन वह अपने दोस्तों के साथ झाड़ी में चली जाती थी; और जो भी आसपास होते थे, मुझे उनके पास बिठा देती थी। ऐसी ही एक रात को, मेरे साथ सामूहिक बलात्कार किया गया, लेकिन माँ से कुछ भी कहने से मैं डर रही थी। एक और रात, हाईवे पर ड्राइव करते समय, एक कार हमें ओवरटेक करती रही और अंत में वे हमें रोकने में कामयाब हुए। यह रात को गश्त करनेवाली पुलिस थी। वे हमें पुलिस स्टेशन ले गए और हमें अलग-अलग कमरों में बिठाकर पूछताछ की। जब उन्हें पता चला कि मेरे साथ दुष्कर्म हुआ है, तो एक डॉक्टर मेरी जांच करने आये। उन्होंने एक या दो दिन बाद मां को कचहरी में हाजिर होने का समन दिया। लेकिन जैसे ही हम घर पहुंचे, माँ ने पैकिंग शुरू कर दी और हम दोनों अगली ट्रेन से शहर से बाहर निकल गयीं। हम एक छोटे से कस्बे में पहुँचे, जहाँ उसे रसोइया के रूप में दूसरी नौकरी मिली, और मुझे एक घर की नौकरानी के रूप में रखा गया। वहां का जीवन एक कठिन दौर था, लेकिन मैंने जीना सीख लिया। उम्मीद के लिए बेताब माँ ने विल्सन नामक एक आदमी के साथ संबंध बनाया और हम उस आदमी के साथ टली नामक जगह में रहने चले गए। अपनी पहली पत्नी की मृत्यु के बाद वह एक पागलखाने में भर्ती था। माँ ने जल्द ही उसे भ्रष्ट कर दिया, और वे नशे में लिप्त होकर आपस में लड़ने लगे। मुझे उनकी लड़ाई के बीच में रहना पसंद नहीं था। जब माँ गर्भवती हुई, तो उसने कहा, "चलो विल्सन की कार लेते हैं और सिडनी जाते हैं, और एक नया जीवन शुरू करते हैं। मैं वास्तव में फिर से न शादी करना चाहती हूँ न इस बच्चे को पैदा करना चाहती हूँ।“ मैंने भयावह अनुभव किया। मैं अकेली रहती हुई थक चुकी थी और वर्षों से एक भाई या बहन की चाह रखती थी। तो, मैंने जाकर विल्सन को बताया। जब उन्होंने मेरी मां को चुनौती दी, उसके बाद उन दोनों ने एक दुसरे से शादी कर ली, लेकिन माँ ने मुझे इन सब के लिए जिम्मेदार ठहराया। उसने मुझसे कहा कि “तुम्हें बच्ची की देखभाल करनी होगी, क्योंकि मैं इस बच्ची को नहीं चाहती थी।“ इसके बाद मेरी छोटी बहन ही मेरी दुनिया थी, हाँ टॉम से मिलने के बाद सब कुछ बदल गया। लड़ाई-झगड़ों से मैं ऊब गयी थी और टॉम ने वादा किया था कि जब मैं सयानी हो जाऊंगी तब वह मुझसे शादी कर लेगा, इसलिए मैंने घर छोड़ दिया। मैंने सोचा कि इसके बाद जीवन शानदार होगा, लेकिन ऐसा नहीं था। टॉम की माँ प्यारी थी। उसने वास्तव में मेरी देखभाल करने की कोशिश की, लेकिन टॉम नशे में धुत हो जाता, फिर घर आकर मुझे गाली देता, मेरे साथ दुर्व्यवहार करता था। वह शराब पीता रहता था और एक नौकरी के बाद दूसरी नौकरी से बर्खास्त कर दिया जाता था, इसलिए हम लगातार एक जगह से दूसरी जगह बदलते रहे। हमने शादी कर ली, और मुझे उम्मीद थी कि वह अपनी बुरी आदतें छोड़ देगा और मेरे साथ बेहतर व्यवहार करना शुरू कर देगा, लेकिन वह मुझे पीटता रहा और दूसरी लड़कियों के साथ अय्याशी करता रहा। मुझे इस दलदल से बचना था, इसलिए मैं वहां से भाग निकली और ब्रिसबेन चली गयी जहां मुझे बर्तन धोने का काम मिला। एक रात काम के बाद देर रात मैं बस से उतरी और देखा कि सड़क के उस पार कोई खड़ा है। मुझे पता था कि यह टॉम था। हालाँकि मैं घबरा गयी थी, कहीं वह कुछ बेवकूफी करने की कोशिश न करें ऐसा सोचकर मैं रोशनी में ही रही। उसने मेरा पीछा किया, लेकिन मैंने उससे कहा कि मैं वापस नहीं जाऊंगी और उससे तलाक चाहती हूं। एक नई शुरुआत जब मैं घर पहुंची, मैंने अपना बैग पैक किया, सिडनी के लिए ट्रेन पकड़ी, और उसके बाद शहर से बाहर बस में सवार हो गयी। महीनों तक, मुझे बुरे सपने आते रहे कि वह मेरा पीछा कर रहा है। मैं ने कमर कस लिया और एक अस्पताल में घरेलू कामगार के रूप में नौकरी करने लगी। यहाँ मैंने नए दोस्त बनाए। एक और जवान लड़की थी, जिसकी अंग्रेजी कमजोर थी, जो काफी हद तक मेरे जैसी थी। हमारी आपस में अच्छी पटती थी और हमने अपना नर्सिंग प्रशिक्षण एक साथ शुरू किया, फिर प्रशिक्षण के बाद एक अस्पताल में हमने काम किया। वह एक लड़के को जानती थी जो सेना में राष्ट्रके लिए सेवा दे रहा था। जब उस लड़के ने उसे एक नृत्य के कार्यक्रम लिए आमंत्रित किया, तो मेरी दोस्त ने मेरे लिए भी टिकट ली ताकि हम दोनों साथ जा सकें। नाच के कार्यक्रम में मुझे रुची नहीं थी, लेकिन यह बाहर निकलने का एक अच्छा मौका था। भोजन परोसने वाले सेना के कैटरर्स में से एक ने मुझ पर ध्यान देना शुरू किया। मुझे लगा कि यही बेहतर है, इसलिए हम दोनों ने कुछ डांस किए और उसके बाद हम दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे। हम एक-दूसरे से मिलते रहे, लेकिन कुछ हफ्तों के बाद पीटर ने मुझे बताया कि उसे एविएशन कोर्स करने के लिए भेजा जा रहा है। मुझे बहुत निराशा हुई। हम दोनों ने अपने जीवन की कहानियाँ एक दुसरे को सुनायी थीं, इसलिए वह जानता था कि मेरे साथ क्या चल रहा है, लेकिन उसने मुझे छोड़ा नहीं और मेरे संपर्क में रहा। जितना अधिक मैं उसे जानती थी, उतना ही मैं उसे पसंद करती थी। लेकिन मैं पहली शादी की आपदा के बाद दोबारा शादी नहीं करना चाहती थी। आखिरकार, उसने मुझे अपने परिवार से मिलवाया और उसकी ट्रेनिंग पूरी होने से पहले ही हमारी सगाई हो गई। वह टाउन्सविले में तैनात था जहाँ पहले मैं टॉम के साथ रहा करती थी। हालाँकि मैं अतीत की भयावहता से गुजरना नहीं चाहती थी, फिर भी मैं पीटर को ना नहीं कह सकती थी। हम कानूनी रूप से शादी करने में सक्षम होने से पहले लगभग दो साल तक साथ रहे। पीटर कैथलिक बन गया, लेकिन सैन्य प्रशिक्षण की हड़बड़ी में उसने कैथलिक विश्वास में रहना बंद कर दिया, इसलिए हमने अपने घर के ही पिछवाड़े में शादी कर ली। वे चार शब्द जिनके कारण सब कुछ बदल गया कभी-कभी मैं अकेली होती थी क्योंकि पीटर अक्सर मैदान में हेलीकॉप्टर की सर्विसिंग के लिए बाहर रहता था। मुझे एक हाई स्कूल में लैब असिस्टेंट की नौकरी मिल गई, लेकिन हमें एहसास हुआ कि हमारे जीवन में कुछ कमी है। हमारे पास सब कुछ था, फिर भी एक खालीपन था। तब पीटर ने सुझाव दिया, “चलो चर्च चलते हैं।” शुरुवाती दौर में हम दोनों चर्च में पीछे के बेंच में बैठते थे, लेकिन जैसे ही प्रभु की उपस्थिति के लिए हमारे हृदय खुल गए, हम और अधिक जुड़ गए। हमने सप्ताह के अंत में होनेवाले वैवाहिक जीवन प्रशिक्षण के बारे में सुना और साइन अप किया। यह हम दोनों के लिए एक वास्तविक आंख खोलने वाला था। हमारे हृदय द्रवित हो उठे। उस सप्ताह के अंत में हमने सीखा कि मन की बातों को लिखकर कैसे संवाद किया जाए। मैं अपने जीवन में जो महसूस करती थी, उसे शब्दों में बयां नहीं कर पाती थी। मां मुझे हमेशा चुप रहने के लिए कहा करती थी, इसलिए मैंने मुंह न खोलने की शिक्षा ली थी और इस तरह अपनी भावनाओं को साझा करने में असमर्थ हो गई थी। "ईश्वर कबाड़ नहीं बनाता", जब मैंने पहली बार ये शब्द सुने, मैं जानती थी कि ये शब्द मेरे लिए ही बने थे। भावुकता की एक लहर मुझ पर हावी हो गई। 'ईश्वर ने मुझे बनाया है। मैं ठीक हूँ। मैं कबाड़ नहीं हूं।' उन सभी वर्षों में, मैं अपने आप को हीनभावना से देखती थी, उन सारे भयानक बातों के लिए स्वयं को दोषी ठहरा रही थी - बलात्कार, पियक्कड़ से शादी करना (जब कि मुझे पता होना चाहिए था कि यह शादी ठीक नहीं होगी), फिर तलाक, मेरी मां का दुर्व्यहार ...। मैं जीवन में वापस आ रही थी। इसके बाद हर बार जब मैं मिस्सा पूजा या प्रार्थना सभा में जाती तो मेरा दिल बेहतरी और अच्छाई के लिए बदल रहा था। मैं ईश्वर और अपने पति से बहुत प्यार करती थी। नफरत के बदले प्यार इसके पहले, मैंने कभी किसी को माफ नहीं किया था। मैंने अपनी चोटों को पीछे धकेल दिया था और उन पर ताला लगा लिया था मानो कि मुझे कभी चोट लगी ही नहीं। जब पीटर और मेरी सगाई हुई, तो मैं माँ को बताना चाहती थी। मैंने पत्र भेजे, लेकिन उसने उन पत्रों को "प्रेषक को" लौटा दिया, इसलिए मैंने हार मान ली। फिर, मैंने एक बार सपने में अपनी माँ को एक पेड़ से लटकती हुई देखा। उसकी गहरी नीली आंखें खुली हुई थीं और मुझे घूर रही थीं। मैंने उसकी तरफ दयाभाव के साथ देखा और कहा, "हे ईश्वर, मैं उसे नापसंद करती हूं, लेकिन उतना ज़्यादा नहीं।" किसी तरह, उस सपने ने मुझे नफरत न करना सिखाया। यहां तक कि अगर मैं किसी के द्वारा किए गए कार्यों को पूरी तरह से नापसंद करती हूं, तो मुझे लगा कि नफरत करना गलत था। मैंने माँ को पूरी तरह से माफ़ कर दिया, और इस कारण मेरे लिए अनुग्रह के अन्य द्वार खुल गए। मैं नरम हो गयी और फिर से अपनी मां के पास पहुंचने के लिए प्रयास करती रही। आखिरकार उसने जवाब दिया, और हम कुछ दिनों तक माँ के साथ रहे। कुछ वर्षों बाद जब मेरी बहन ने मुझे यह बताने के लिए फोन किया कि माँ की अचानक दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई है, तो मैं फूट-फूट कर रोने लगी। उसकी मृत्यु के बाद, मुझे लगा कि मैंने माँ को ठीक से माफ़ नहीं किया है, लेकिन एक अच्छे पुरोहित के साथ आत्मिक परामर्श और प्रार्थना के बाद मुझे अपार शांति मिली। जब मैंने क्षमा के शब्द कहे, पवित्र आत्मा का प्रकाश मेरे अस्तित्व में प्रवेश कर गया, और मुझे पता था कि मैंने उसे क्षमा कर दिया है। टॉम को क्षमा करना कुछ कठिन काम था जिस केलिए मुझे बार बार प्रार्थना में वापस जाना पडा। इसमें काफी समय लग गया, और मुझे एक से अधिक बार जोर से कहना पड़ा कि मैं टॉम को मेरे साथ उसके दुर्व्यवहार केलिए, मेरी ठीक से देखभाल न करने केलिए, क्षमा करती हूं। मुझे पता है कि मैंने उसे माफ कर दिया है। इस प्रक्रिया से यादें दूर नहीं जाती हैं, लेकिन चोट तो दूर हो जाती है। स्लेट को साफ करना क्षमा एक बार का कार्य नहीं है। जब भी आक्रोश फिर से उभरे तो हमें क्षमा कर देना चाहिए। निरन्तर द्वेष रखने की इच्छा को हमें त्याग देना चाहिए और उन्हें येशु को सौंप देना चाहिए। इस तरह मैं प्रार्थना करती हूं: "येशु, मैं सब कुछ तुझे सौंप देती हूं, तू ही हर बात का ख्याल रखना।" और वह ख्याल रखता है। बार बार इस प्रार्थना को करने के बाद मैं पूरी तरह से शांति महसूस करती हूं। मेरे साथ हुए बलात्कार के लिए मजबूती के साथ चंगाई की क्षमा महसूस करने में मुझे काफी समय लगा। मैंने बस इसे टालने की कोशिश की। मैं इसके बारे में सोचना भी नहीं चाहती थी। फिर भी एक बार जब मैंने इसे प्रभु को समर्पित किया तो यह भी ठीक हो गयी और मैं अपने बलात्कारियों को क्षमा कर पाई। अब वह घटना मेरे ऊपर कोई असर नहीं करती है। ईश्वर ने इसे शुद्ध कर मुझे स्वस्थ कर दिया है, क्योंकि मैंने ईश्वर से कहा था कि जो कुछ उसका नहीं है, वह सब मुझसे ले ले। अब, मैं उन सब बातों को, जैसे वे घटित होती हैं, वैसे ही ईश्वर को सौंप देती हूं, और मुझे शांति मिलती है। हमारे पास एक अद्भुत ईश्वर है, जो हमें क्षमा करता है, सुबह, दोपहर और रात, हर वक्त। हमारे जीवन में चाहे जो भी अंधकार हो, परमेश्वर हमारे पश्चाताप करने और क्षमा मांगने की प्रतीक्षा कर रहा है, ताकि वह हमें शुद्ध कर सके और हमें पूर्ण बना सके।
By: Margaret Fitzsimmons
Moreपोर्न या कामोद्दीपक सामग्रियों की लत ने उन्हें कामुकता और ईश्वर से नफरत करने के लिए प्रेरित किया, लेकिन एक रात सब कुछ बदल गया। अश्लील साहित्य से बाहर निकलने की साइमन कैरिंगटन की मुक्ति यात्रा की खोज करें। मेरा सौभाग्य था कि मैं एक कैथलिक परिवार में छह बच्चों के बीच तीसरे बच्चे के रूप में जन्मा और पाला गया। मेरे पिताजी एक महान आध्यात्मिक गुरु थे। उन्होंने घर पर शाम की प्रार्थना का नेतृत्व किया और हर रात हमारे सोने से पहले रोज़री माला की प्रार्थना की। हम रविवार को मैरीलैंड्स में स्थित संत मार्गरेट मैरी गिरजाघर गए, और हमने वेदी सेवक के रूप में और गायक मंडली में सेवा दी। तो कुल मिलाकर, परमेश्वर मेरे जीवन के केंद्र में था। और अधिक पाने की लत जब मैं 15 साल का था, तब मेरी दादी का देहांत हो गया। मुझे वास्तव में दादी की कमी खलने लगी और महीनों बाद भी हर रात मैं रोता था। गहरे अकेलेपन और दर्द ने मुझे कुछ ऐसा खोजने के लिए प्रेरित किया जो मुझे प्यार का एहसास दिलाए। तभी मैंने पोर्नोग्राफी (कामोद्दीपक सामग्रियों) की तलाश शुरू की। जितना मैंने देखा, उतना ही मैं और अधक पाने के लिए तरसता रहा। धीरे-धीरे मेरा विश्वास कमजोर होने लगा। स्कूल में, मैं अभी भी अपने दोस्तों के साथ आनंदित था, खेलकूद का आनंद लिया करता था और गिरजाघर जाता था। बाहर से मैं सब कुछ ठीक कर रहा था जैसे कि दिनचर्या के हिस्से के रूप में – मिस्सा में जाना, माला विनती की प्रार्थना करना वगैरह, लेकिन मेरे अंदर विश्वास मर रहा था। मेरा दिल कहीं और था क्योंकि मैं पाप में जी रहा था। यद्यपि मैं पाप स्वीकार संस्कार में जाता था, यह परमेश्वर के प्रेम से कम, नरक के भय से अधिक था। जीवन का वह मोड़ एक पारिवारिक मित्र के यहाँ मुलाक़ात के दौरान, मुझे उनके यहाँ शौचालय में अश्लील पत्रिकाओं का एक खजाना मिला। पहले वाली पत्रिका को उठाना, और उस पूरी पत्रिका को शुरू से अंत तक पलटने की उस घटना का मैं कभी नहीं भूल सकता हूँ। यही मेरे जीवन का पहला वास्तविक, भौतिक और मूर्त पोर्न था। मैंने महसूस किया कि मेरे अन्दर बहुत सारी भावनाएं उमड़ रही हैं – एक अति उत्साह कि जिस खालीपन को मैं मह्स्सोस कर रहा हूँ, उस का जवाब बस यही है, लेकिन साथ ही गहरी लज्जा भी। लग रहा था कि मेरे दिल में प्यार के लिए जो दर्द है, उस दर्द को संतुष्ट करनेवाला "भोजन" यही है। उस दिन मैं उस बाथरूम से एक अलग व्यक्ति के रूपमें बाहर निकला था। तभी मैंने अवचेतन रूप से ईश्वर से मुंह मोड़ लिया। मैंने ईश्वर के बदले अश्लील साहित्य और अशुद्ध जीवन को चुना। उस अनुभव के बाद, मैंने अश्लील पत्रिकाएँ खरीदना शुरू किया। चूंकि मैं हर दिन जिम जाता था, इसलिए मुझे इन सभी अश्लील पत्रिकाओं को छिपाकर करने के लिए जिम की दीवार में एक दरार मिली। हर बार जब मैं जिम जाता, तो जिम के रिवाज़ के सत्र की शुरुआत और अंत में, मैं पत्रिकाओं के उस संग्रह में जाकर 20 या 30 मिनट उन्हें पलटकर पढता था। सालों तक यही मेरी जिंदगी की दिनचर्या बनी रही। पोर्नोग्राफी के प्रति मेरा इतना लत लग गया कि काम के दौरान पोर्न देखने के लिए हर घंटे मैं टॉयलेट ब्रेक लेता था और इस तरह मेरी नौकरी लगभग चली गई। इस लत ने मेरे पास मौजूद हर खाली पल को मुझ से छीन लिया। बेहद ठंडा मैंने विभिन्न कैथलिक वक्ताओं को सुनने और शुद्धता और लैंगिकता पर किताबें पढ़ने की कोशिश की। मुझे एहसास हुआ कि उन सभी ने कहा कि लैंगिकता या कामुकता ईश्वर का एक उपहार है, लेकिन मैं इसे समझ नहीं पाया। केवल एक चीज जो लैंगिकता ने मुझे दी, वह थी दर्द और खालीपन। मेरे लिए, मेरी कामुकता ईश्वर के उपहार से बिलकुल सबसे दूर की चीज थी। यह एक खूंखार जानवर जैसा था जो मुझे नरक में घसीट रहा था! मैं अपनी लैंगिकता से घृणा करने लगा और परमेश्वर से घृणा करने लगा। लैंगिकता मेरे दिल में जहर बन गया। जब मेरे परिवार ने माला विनती की प्रार्थना की, तो मैं प्रणाम मरियम और हे संत मरियम प्रार्थना नहीं कह पा रहा था। मैं अनुग्रह की स्थिति में बिलकुल नहीं था। मैं महीनों तक मिस्सा में जाता रहा लेकिन परम प्रसाद को ग्रहण नहीं करता था। यहां तक कि अगर मैं मिस्सा के बाद पाप स्वीकार संस्कार में जाता, तो मैं अगले दिन तक पोर्नोग्राफी के बिना दिन नहीं बिता पाता था। मेरे दिल में किसी प्रकार का प्यार नहीं था। जब मेरी मां मुझे गले लगाती तो मैं चट्टान की तरह तनाव में आ जाता। मुझे नहीं पता था कि प्यार और कोमल स्नेह कैसे प्राप्त करें। बाहर से मैं हमेशा मिलनसार और खुश रहता था, लेकिन अंदर से मैं खाली और मरा हुआ था। मुझे याद है कि एक दिन पोर्नोग्राफी देखने के बाद मैं अपने कमरे में आया था और आते ही मैंने अपनी दीवार पर क्रूसित प्रभु की मूर्ती को देखा। क्रोध के एक क्षण में मैंने क्रूस पर लटके येशु से कहा, "तू मुझसे कैसे उम्मीद करता है कि लैंगिकता तेरी ओर से दिया जा रहा उपहार है? यह लैंगिकता मुझे बहुत दर्द और खालीपन पैदा कर रहा है। तू झूठा है!" मैंने नीचे से अपनी चारपाई पर छलांग लगा दी और दीवार से सूली को निकाल लिया और उसे अपने घुटने पर मार कर तोड़ दिया। टूटे हुए क्रूस को देखकर मैं गुस्से से फूट पड़ा, "मैं तुझसे नफरत करता हूँ! तू झूठा है।" फिर मैंने उस क्रूस को कमरे में रखे कूड़े दान में फेंक दिया। जब मेरा जबड़ा फर्श से टकराया फिर एक दिन, माँ ने मुझसे कहा कि मैं अपने बड़े भाई के साथ जेसन एवर्ट की अध्यात्मिक सभा में जाऊं जहां शुद्धता पर प्रवचन होगा। मैंने उसे विनम्रता से कहा “माँ, मैं नहीं जाना चाहता।“ जब उसने जाने केलिए फिर अनुरोध किया, तो मैंने कहा, "माँ, प्यार असली नहीं है। मैं प्यार में विश्वास नहीं करता!" माँ ने बस इतना कहा, "तुम्हें जाना पडेगा!" अनिच्छा से मैं उस रात की सभा में भाग लेने चला गया। मुझे याद है कि उस रात जेसन की बात सुनने के बाद मैं आश्चर्य चकित था। एक लाइन ने मेरी जिंदगी बदल दी। उन्होंने कहा, "पोर्न आपके भविष्य के वैवाहिक जीवन को बर्बाद करने का सबसे सुरक्षित तरीका है।" जैसे ही उसने यह कहा, मुझे एहसास हुआ कि अगर मैंने अपने तरीके नहीं बदले, तो मैं उस महिला को नुकसान पहुँचाऊँगा जिससे भविष्य में मेरी शादी होगी, क्योंकि मुझे नहीं पता था कि उस औरत के साथ ठीक से कैसे व्यवहार किया जाए। इसके बाद शादी के लिए मेरी जो भी ख्वाहिशें थीं, वे सब मुझमें फिर से प्रकट हो गईं। वास्तव में मैं प्रेम और वैवाहिक जीवन को सबसे अधिक चाहता था, लेकिन मैंने उस चाहत को यौन पाप के साथ दफन कर दिया था। उस रात मुझे जेसन से व्यक्तिगत रूप से बात करने का मौका मिला और उन्होंने जो सलाह दी उससे मेरी जिंदगी बदल गयी। उन्होंने कहा, “देखो, तुम्हारे हृदय में प्रेम है, और साथ साथ वासना के ये सब प्रलोभन भी हैं। इनमे से जिसे भी तुम अधिक खिला पिलाने का निर्णय लेते हो, वही मजबूत हो जाएगा और अंततः वह दूसरे पर हावी हो जाएगा। अब तक तुम प्यार से अधिक वासना को खिलाते रहे हो, अब प्यार को खिलाने का समय आ गया है।" मुझे पता था कि उस रात ईश्वर ने मुझे स्पर्श किया था, और मैंने फैसला किया कि मुझे एक साफ-सुथरी शुरुआत की जरूरत है। मैंने पाप स्वीकार संस्कार के लिए एक पुरोहित को बुक किया और उन से मैंने पहले ही कह दिया कि आज का मेरा पाप स्वीकार लंबा समय लेगा! मैंने एक सामान्य पाप स्वीकार किया जिसमें लगभग डेढ़ घंटा लगा। मैंने हर उस यौन पाप को क़बूल किया जिसे मैं संभवतः याद रख पा रहा था, मैंने जिन पोर्न स्टार्स को देखा था, उनके नाम, कितनी बार, कितने घंटे और कितने सालों तक, ये सब मैंने कबूल किया। मुझे लगा कि उस रात पाप स्वीकार संस्कार से एक नया आदमी बाहर निकल रहा है। एक खूबसूरत खोज मेरे जीवन में परिवर्तन का तीसरा चरण शुरू हुआ। हालाँकि मैं अभी भी यौन अशुद्धता के उन पापों से जूझ रहा था, फिर भी मैं लगातार संघर्ष में था। धीरे-धीरे, मैं यौन पाप से छुटकारे का अनुभव करने में सक्षम हुआ, और मैंने महसूस किया कि परमेश्वर मुझे वास्तव में निमंत्रण दे रहा है ताकि मैं यह सीखना शुरू कर दूं कि मानव की लैंगिकता के लिए परमेश्वर की योजना क्या थी, और वह चाहता है कि मैं इसे दूसरों के साथ साझा करना शुरू करूँ। मुझे ऐसे वक्ताओं का सामना करना पड़ा, जिन्होंने संत जॉन पॉल के "शरीर के धर्मशास्त्र" को मेरे सामने जाहिर किया और उस पुस्तक को पढ़ने के दौरान मैं एक शक्तिशाली विचार से प्रभावित हुआ: मेरा शरीर और हर दूसरा शरीर ईश्वर का संस्कार है। मुझे एहसास हुआ कि मैं ईश्वर की छवि या प्रतिछाया हूँ और हर महिला भी ईश्वर की प्रतिछाया है। जब मैंने इस दृष्टि के माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति को ईश्वर के एक जीवित संस्कार के रूप में देखना शुरू किया, तो उन्हें यौन रूप से उनके दोहन करने के बारे में सोचना ही मेरे लिए बहुत कठिन हो गया। अगर मुझे कभी किसी के प्रति वासना पूर्ण इच्छा जागृत होती, और विशेषकर हस्तमैथुन और अश्लील साहित्य के माध्यम से वासना करनी होती, तो मुझे अपने मन और अपने दिल में उन्हें अमानवीय बनाना पड़ता। अपने आप को और अन्य महिलाओं को देखने के इस नए दृष्टिकोण से सबल होकर, मैं एक बड़ा परिवर्तन करने के लिए दैनिक मिस्सा बलिदान और नियमित पाप स्वीकार से प्राप्त अनुग्रहों से सशक्त हो गया। मैंने हर महिला को यौन सुख के लिए नहीं बल्कि वास्तव में ईश्वर के एक सुंदर संस्कार के रूप में देखना शुरू किया। मैं इस नए संदेश से इतना उत्साहित था कि मैं इसे जहाँ तक संभव था, हर किसी के साथ साझा करना चाहता था। उस समय मैं एक जिम में फिटनेस प्रशिक्षक के रूप में काम कर रहा था, लेकिन मुझे लगा कि ईश्वर मुझे उस माहौल को त्यागकर सीधे उनकी सेवा करने के लिए बुला रहे हैं। मुझे यकीन नहीं था कि मैं कहाँ जा रहा हूँ, लेकिन दरवाजे खुलने लगे। मैं युवा सेवकाई में शामिल हो गया और “परूसिया मीडिया” नामक संस्था के लिए काम करना शुरू कर दिया, जहाँ मैंने विश्वास सम्बन्धी सामग्रियों की पैकिंग और पोस्टिंग किया। जब मैं वहां सेवा दे रहा था, तब वहां मैं पूरे दिन विश्वास की बातें सुनता था, और मेरे अपने व्यक्तिगत विश्वास के बारे में शक्तिशाली तरीके से सीखता था। लगभग हर सप्ताहांत में मैंने हाई स्कूल के छात्रों के बीच एक युवा सेवक के रूप में प्रवचन देना शुरू किया, और मुझे सुसमाचार के प्रचार में बहुत अंड आने लगा और मुझे इस सेवकाई से प्यार हो गया। पहले से बिलकुल अनोखा प्यार एक दिन, एक महिला मेरे कार्यालय में पहुंची। वह किसी वक्त की तलाश में थी, जो युवा लोगों से शुद्धता और विशेष रूप से अश्लील साहित्य के बारे में बात कर सकें। पता नहीं कैसे, मैंने उस महिला से कहा कि मैं यह कार्य करूँगा। मैंने उस रात उन युवाओं के सम्मुख अपनी गवाही साझा की, और प्रतिक्रिया बहुत उत्साहजनक थी। मौखिक रूप से प्रचार हुआ, और अधिक से अधिक लोग मुझे और और मेरी कहानी को जानने लगे और अधिक जगहों पर उद्बोधन देने के निमंत्रण आने लगे। पिछले 10 वर्षों में मैंने शुद्धता, शुद्ध डेटिंग और शरीर के धर्मशास्त्र के आधार पर 30,000 से अधिक लोगों को 600 से अधिक उद्बोधन दिए हैं। इस सेवकाई के माध्यम से, मैं मेडेलीन से मिला जो मेरी पत्नी के रूप में मेरे जीवन में आयी, और प्रभु की आशीष से हमें तीन बच्चे मिल गए। प्रत्येक व्यक्ति ने जिस प्रेम के बारे में सपना देखा था, उस प्रेम का अनुभव करने के लिए, लोगों को आमंत्रित करने के लिए फायर अप मिशन की सेवकाई प्रारम्भ करने हेतु परमेश्वर हम दोनों को विभिन्न स्थानों पर ले गए! अपने जीवन के इस बिंदु पर, मुझे यौन स्वतंत्रता के उस स्तर का अनुभव करने का सौभाग्य मिला है जो मुझे पहले कभी नहीं मिला था। मैं अब जहां हूं, वहां तक मुझे पहुंचाने के लिए मैं ईश्वर का शुक्रिया अदा करता हूं, और उन दिनों को याद करता हूं जब मैं वास्तव में इस क्षेत्र में बड़े संघर्ष से जूझ रहा था। ऐसे समय भी थे, जब मैंने महसूस किया कि सुरंग के उस छोर से किसी प्रकाश की किरण नहीं आ रही थी, और इसलिए मैंने "क्या पवित्रता संभव है?" कहकर ईश्वर से चिल्लाकर सवाल पूछा था। यह निराशाजनक लग रहा था, और मुझे लगा कि मैं हमेशा के लिए इस तरह जीने को अभिशप्त हो गया था। हालांकि मैंने सोचा था कि मेरे जीवन में कभी नहीं धुलनेवाले काले धब्बे थे, फिर भी ईश्वर ने मुझे प्यार करना कभी नहीं छोड़ा। उसने मेरे साथ धैर्यपूर्वक, क्षमा और कोमलता के साथ काम किया। मैं अभी भी उस यात्रा पर हूँ, और परमेश्वर अब भी मुझे प्रतिदिन चंगा कर रहा है। "उनके जीवन में कुछ सचमुच अंधेरे क्षण थे, जिसके कारण वे यौन पाप के भारी क्रूस को धो रहे थे, लेकिन जब जब वे इसे मसीह के पास ले गये और उन्होंने उस क्रूस को मसीह को समर्पित कर दिया - तो मसीह उसे मुक्त करने में सक्षम था। साइमन ने ईश्वरीय करुणा का अमन सामना किया और उन्होंने अपने जीवन में मसीह में गहरी चंगाई का अनुभव किया। यह दया और चंगाई के उस उद्गम स्थान से था जहाँ से वे आनंद, प्रेम और सबसे बढ़कर कामुकता के साथ इसी तरह के संघर्ष को झेल रहे अन्य लोगों को आशा दिलाने में वे सक्षम रहे हैं। जब मैं साइमन को इतने सारे लोगों की सेवकाई करते हुए देखती हूँ, तो मैं लगातार इस बात से चकित होती हूँ कि कैसे वे उन सभी लोगों में ख्रिस्त के प्रेम का संचार करते हैं।” साइमन की पत्नी मेडेलीन कैरिंगटन
By: Simon Carrington
Moreमुसीबत के समय में, क्या आपने कभी सोचा है कि 'काश कोई मेरी मदद करता'? आप शायद अनभिज्ञ हैं कि वास्तव में आपकी मदद करने के लिए आपके पास आपके अपने एक निजी समूह है। मेरी बेटी मुझसे आजकल पूछती है कि अगर तुम सौ प्रतिशत पोलिश (पोलन्ड की) हो तो तुम सामान्य पोलेंड-वासी की तरह क्यों नहीं दिखती हो। पिछले सप्ताह तक मेरे पास इसका कोई सही उत्तर नहीं था, फिर मुझे पता चला कि मेरे कुछ पूर्वज दक्षिणी पोलैंड के गोरल हाइलैंडर्स यानी गोरल गोत्र समुदाय के पहाड़ी लोग थे। गोरल हाइलैंडर्स पोलेंड की दक्षिणी सीमा पर पहाड़ों में रहते हैं। वे अपनी दृढ़ता, स्वतंत्रता के प्रति प्रेम, तथा विशिष्ट पोशाक, संस्कृति और संगीत के लिए जाने जाते हैं। इस समय, एक विशेष गोरल लोक गीत मेरे दिल में बार-बार गूंजता रहता है, उस गीत ने मुझे इतना प्रभावित किया कि मैंने अपने पति के साथ उस गीत को साझा किया कि यह गीत वास्तव में मुझे अपने देश में वापस बुला रहा है। यह जानकर कि मेरा वंशीय इतिहास गोरल है, वास्तव में मेरा दिल ख़ुशी से उच्छल रहा है! वंशावली की खोज मेरा मानना है कि हममें से प्रत्येक के अन्दर अपनी वंशावली की खोज करने की इच्छा होती है। यही कारण है कि इन दिनों कई वंशावली साइट और डीएनए-जांच के व्यवसाय सामने आए हैं। ऐसा क्यों? शायद यह चाह हमें बतलाती है कि हम अपने से भी बड़ी किसी चीज़ का हिस्सा हैं। जो हमसे पहले इस दुनिया से चले गए हैं, उन लोगों के साथ हम मायने और संबंध की चाहत रखते हैं। हमारे वंश की खोज से पता चलता है कि हम एक बहुत गहरे कथानक का हिस्सा हैं। इतना ही नहीं, बल्कि अपनी पैतृक जड़ों को जानने से हमें पहचान और एकजुटता की भावना मिलती है। हम सभी कहीं न कहीं से आए हैं, हम कहीं न कहीं के वासी हैं, और हम एक साथ यात्रा कर रहे हैं। इस पर विचार करने पर मुझे एहसास हुआ कि केवल अपनी भौतिक ही नहीं, बल्कि अपनी आध्यात्मिक विरासत की खोज करना कितना महत्वपूर्ण है। आख़िरकार, हम मनुष्य शरीर और आत्मा हैं। हमें उन संतों को जानने से बहुत लाभ होगा जो हमसे पहले थे। हमें न केवल उनकी कहानियाँ सीखनी चाहिए, बल्कि उनसे परिचित भी होना चाहिए। संबंध ढूंढें मैं स्वीकारना चाहती हूँ कि मैं पहले किसी संत से मध्यस्थता मांगने की प्रथा में बहुत अच्छी नहीं रही हूँ। यह निश्चित रूप से मेरी प्रार्थना-दिनचर्या में एक नया जुड़ाव है। जिस चीज़ ने मुझे इस वास्तविकता से अवगत कराया वह संत फिलिप नेरी की यह सलाह थी: “आध्यात्मिक शुष्कता के खिलाफ सबसे अच्छी दवा खुद को ईश्वर और संतों की उपस्थिति में भिखारियों की तरह रखना है। और एक भिखारी की तरह, एक से दूसरे के पास जाना और उसी आग्रह के साथ आध्यात्मिक भिक्षा माँगना, जैसे कि सड़क पर एक गरीब आदमी भिक्षा माँगता है।“ पहला कदम यह जानना है कि संत कौन हैं। ऑनलाइन पर बहुत सारे अच्छे संसाधन मौजूद हैं। दूसरा तरीका है बाइबल पढ़ना। पुराने और नए विधान दोनों में शक्तिशाली मध्यस्थ हैं, और आप एक से अधिक मध्यस्थों से संबंधित हो सकते हैं। साथ ही, संतों और उनके लेखन पर अनगिनत किताबें हैं। मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना करें, और ईश्वर आपको आपके व्यक्तिगत मध्यस्थों के समूह तक पहुंचा देगा। उदाहरण के लिए, मैंने अपने संगीत की सेवकाई के लिए संत राजा दाउद से मध्यस्थता मांगी है। जब मुझे अपने पति के लिए या नौकरी चुनने के लिए मध्यस्थ की खोज करनी है तो मैं संत युसूफ के पास जाती हूँ। जब कलीसिया के लिए प्रार्थना करने का बुलावा मुझे मिलता है तो मैं संत जॉन पॉल द्वितीय, संत पेत्रुस और संत पिउस दसवें से मदद मांगती हूँ। मैं संत ऐनी और संत मोनिका की मध्यस्थता के माध्यम से माताओं के लिए प्रार्थना करती हूँ। बुलाहटों के लिए प्रार्थना करते समय, मैं कभी-कभी संत थेरेसा और संत पाद्रे पियो को पुकारती हूँ। यह सूची लम्बी है। तकनीकी समस्याओं के लिए धन्य कार्लो एक्यूटिस मेरे पसंदीदा हैं। संत जेसीन्ता और संत फ्रांसिस्को मुझे प्रार्थना के बारे में, तथा बेहतर तरीके से बलिदान अर्पित करने के बारे में सिखाते हैं। प्रेरित संत जॉन चिंतन करने में मेरी सहायता करते हैं। मैं अक्सर अपने दादा-दादी से मध्यस्थता की माँग करती हूँ, यह मैं नहीं बताती तो वह मेरी गलती होगी। जब वे हमारे साथ थे तब वे मेरे लिए प्रार्थना करते थे, और मैं जानती हूँ कि वे अनन्त जीवन में भी मेरे लिए प्रार्थना कर रहे हैं। परन्तु मेरी सार्वकालिक पसंदीदा मध्यस्थ हमेशा हमारी सबसे प्रिय धन्य कुंवारी माता मरियम रही हैं। बस एक प्रार्थना की दूरी पर यह मायने रखता है कि हम किसके साथ समय बिताते हैं। हम क्या बन जायेंगे, यह इसी पर निर्भर करता है। वास्तव में हमारी चारों ओर "गवाहों का बादल" है जिससे हम वास्तविक रूप से जुड़े हुए हैं (इब्रानी 12:1)। आइए हम उन्हें बेहतर तरीके से जानने का प्रयास करें। हम सरल, हार्दिक प्रार्थनाएँ भेज सकते हैं जैसे, "हे संत ____, मैं आपको बेहतर तरीके से जानना चाहती/ता हूँ। कृपया मेरी सहायता करें।" इस विश्वास यात्रा में चलने के लिए हम अकेले नहीं हैं। हम एक जन समूह के रूप में, मसीह के शरीर के रूप में एक साथ मुक्त किये गए लोग हैं। संतों से जुड़े रहने से, हमें वह मार्ग मिलता है जो हमारी स्वर्गीय जन्मभूमि तक सुरक्षित यात्रा करने के लिए दिशा और ठोस सहायता प्रदान करता है। पवित्र आत्मा हमें अपनी आध्यात्मिक जड़ों से जुड़ने में मदद करे ताकि हम संत बन सकें और अपना अनंत जीवन ईश्वर के एक गौरवशाली परिवार के रूप में बिता सकें!
By: Denise Jasek
Moreजब अयोग्यता के विचार मन में आएं, तो यह आजमायें... उससे बदबू आ रही थी. उसका गंदा, भूखा शरीर उसकी बर्बाद विरासत की तरह नष्ट हो रहा था। उसे लज्जा ने घेर लिया। उसने सब कुछ खो दिया था - अपनी संपत्ति, अपनी प्रतिष्ठा, अपना परिवार - उसका जीवन टूटकर बिखर गया था। निराशा ने उसे निगल लिया था। फिर, अचानक, उसे अपने पिता का सौम्य चेहरा याद आया। सुलह असंभव लग रही थी, लेकिन अपनी हताशा में, वह “उठ कर अपने पिता के घर की ओर चल पडा। वह दूर ही था कि उसके पिता ने उसे देख लिया, और दया से द्रवित हो उठा। उसने दौड़कर उसे गले लगा लिया और उसका चुम्बन किया। तब पुत्र ने उससे कहा, “पिता जी, मैंने स्वर्ग के विरूद्ध और आपके विरुद्ध पाप किया है; मैं आपका पुत्र कहलाने योग्य नहीं रहा।'... लेकिन पिता ने कहा... 'मेरा यह पुत्र मर गया था और फिर से जी गया है; वह खो गया था और फिर मिल गया है!' और वे आनंद मनाने लगे” (लूकस 15:20-24)। ईश्वर की क्षमा स्वीकार करना कठिन है। अपने पापों को स्वीकार करने का अर्थ है यह स्वीकार करना कि हमें अपने पिता की आवश्यकता है। और जब आप और मैं पिछले अपराधों के कारण अपराधबोध और शर्मिंदगी से जूझ रहे हैं, तो आरोप लगाने वाला शैतान हम पर अपने झूठ से हमला करता है: "तुम प्रेम और क्षमा के योग्य नहीं हो।" लेकिन प्रभु हमें इस झूठ को अस्वीकार करने के लिए कहते हैं! बपतिस्मा के समय, ईश्वर की संतान के रूप में आपकी पहचान, आपकी आत्मा पर हमेशा के लिए अंकित हो गई। और उड़ाऊ पुत्र की तरह, आप अपनी असली पहचान और योग्यता की खोज करने के लिए बुलाये गए हैं। चाहे आपने कुछ भी किया हो, ईश्वर आपसे प्यार करना कभी नहीं छोड़ते। "जो मेरे पास आता है, मैं उसे कभी नहीं ठुकराऊँगा।" (योहन 6:37)। आप और मैं कोई अपवाद नहीं हैं! तो, हम ईश्वर की क्षमा को स्वीकार करने के लिए व्यावहारिक कदम कैसे उठा सकते हैं? प्रभु को खोजें, उनकी दया को अपनाएं, और उनकी शक्तिशाली कृपा से बहाल हो जायें। प्रभु को खोजें अपने निकटतम गिरजाघर या आराधनालय को ढूंढें और प्रभु से आमने-सामने मुलाक़ात कर ले। ईश्वर से प्रार्थना करें कि वह अपनी दयालु आँखों से, अपने निस्वार्थ प्रेम के माध्यम से स्वयं को देखने और पहचानने में आपकी मदद करे। इसके बाद, अपनी आत्मा की एक ईमानदार और साहसी सूची बनाएं। बहादुर बनो और मनन चिंतन करते हुए क्रूसित प्रभु येशु को देखो - अपने आप को प्रभु के पास लाओ। हमारे पापों की वास्तविकता को स्वीकार करना कठिन है, लेकिन एक सच्चा, कमजोर हृदय क्षमा का फल प्राप्त करने के लिए तैयार है। याद रखें, आप ईश्वर की संतान हैं—प्रभु आपको विमुख नहीं करेंगे! ईश्वर की दया को अपनायें अपराधबोध और शर्मिंदगी के साथ लड़ना, पानी की सतह के नीचे गेंद को पकड़ने की कोशिश करने जैसा हो सकता है। इसमें बहुत मेहनत लगती है! इसके अलावा, शैतान अक्सर हमें यह विश्वास दिलाता है कि हम ईश्वर के प्रेम और क्षमा के योग्य नहीं हैं। लेकिन क्रूस से, मसीह का रक्त और जल हमें शुद्ध करने, चंगा करने और बचाने के लिए बहता रहा। आप और मैं इस दिव्य दया पर मूल रूप से भरोसा करने के लिए बुलाये गए हैं। यह कहने का प्रयास करें: “मैं ईश्वर की संतान हूँ। येशु मुझसे प्यार करते हैं। मैं क्षमा के योग्य हूँ।” इस सत्य को हर दिन दोहराएँ। इसे ऐसी जगह लिखें, जहां आप अक्सर दृष्टि दौडाते हैं। प्रभु से प्रार्थना करें कि उनकी दया के कोमल आलिंगन में स्वयं को देने में वह आपकी सहायता करें। गेंद को जाने दो और इसे येशु को सौंप दो—ईश्वर के लिए कुछ भी असंभव नहीं है! बहाल हो जाएँ पापस्वीकार संस्कार में, हम ईश्वर के उपचार और शक्ति की कृपा से बहाल होते हैं। शैतान के झूठ के विरुद्ध लड़ें और इस शक्तिशाली संस्कार में मसीह से मुलाकात कर लें। यदि आप अपराधबोध या शर्मिंदगी से जूझ रहे हैं तो पुरोहित को बताएं, और जब आप अपने पश्चाताप के कार्य के बारे में बताएं, तो अपने दिल को प्रेरित करने के लिए पवित्र आत्मा को आमंत्रित करें। जैसे ही आप पाप मुक्ति के शब्द सुनते हैं, ईश्वर की असीम दया पर विश्वास करना चुनें: "ईश्वर आपको क्षमा और शांति दे, और मैं आपको पिता, और पुत्र, और पवित्र आत्मा के नाम पर पापक्षमा प्रदान करता हूँ।" अब आप ईश्वर के अनंत प्रेम और क्षमा में बहाल हो गए हैं! अपनी असफलताओं के बावजूद, मैं हर दिन ईश्वर से उनके प्रेम और क्षमा को स्वीकार करने में मेरी मदद करने के लिए कहता हूं। हो सकता है कि हम उड़ाऊ पुत्र की तरह गिर गए हों, लेकिन आप और मैं अभी भी ईश्वर के बेटे और बेटियाँ हैं, उनके अनंत प्रेम और करुणा के योग्य हैं। ईश्वर आपसे प्रेम करता है, यहीं, इसी क्षण — उसने प्रेम के कारण आपके लिए अपना जीवन त्याग दिया। यह सुसमाचार की परिवर्तनकारी आशा है! इसलिए, ईश्वर की क्षमा को अपनाएं और साहसपूर्वक उसकी दिव्य दया को स्वीकार करने का साहस करें। ईश्वर की अनंत करुणा आपका इंतजार कर रही है! “नहीं डरो, मैंने तुम्हारा उद्धार किया है। मैंने तुमको अपनी प्रजा के रूप में अपनाया है।” (इसायाह 43:1)
By: Jody Weis
Moreबीसवीं सदी के आरंभिक यूनानी उपन्यासकार निकोलस कज़ान्तज़ाकिस का एक काव्यात्मक चिंतन है, जिसे मैं हर साल आगमन काल के आने पर अपने पलंग के बगल के टेबल पर रखता हूँ। उपन्यासकार कज़ान्तज़ाकिस येशु मसीह को एक किशोर के रूप में चित्रित करते हैं, जो दूर पहाड़ी की चोटी से इस्राएल के लोगों को देख रहा है, जो अभी अपनी सेवकाई शुरू करने के लिए तैयार नहीं है, लेकिन अपने लोगों की लालसा और पीड़ा के प्रति पूरी तरह से, दर्द और बोझ के साथ संवेदनशील है। इस्राएल का परमेश्वर उनके बीच में है—परन्तु वे अभी इस सच्चाई को नहीं जानते। मैं इसे एक दिन अपने छात्रों को पढ़कर सुना रहा था, जैसा कि मैं प्रतिवर्ष, आगमन की शुरुआत में करता हूँ, और उनमें से एक ने कक्षा के बाद मुझसे कहा: "मैं शर्त लगा सकता हूँ कि प्रभु येशु अभी भी ऐसा ही महसूस करते हैं।" मैंने उससे पूछा कि उसका क्या मतलब है। उसने कहा: "आप जानते हैं कि येशु, वहाँ पवित्र मंजूषा के अन्दर से हमें ऐसे चलते हुए देखते हैं जैसे कि हम जानते ही नहीं कि वे वहां उपस्थित हैं।" तब से, मेरे पास आगमन प्रार्थनाओं में ऐसे येशु का चित्र है, जो मंजूषा में इंतजार कर रहे हैं, अपने लोगों की ओर देख रहे हैं - हमारी कराहें, हमारी दलीलें और हमारी पुकारें सुन रहे हैं। हमारा इंतज़ार करते हुए ... किसी न किसी तरह, ईश्वर हमारे पास आने के लिए यही तरीका चुनता है। मसीह का जन्म पूरे मानव इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना है, और फिर भी, ईश्वर चाहता था कि यह 'इतनी शांति से हो कि संसार अपने काम में व्यस्त रहा जैसा कि कुछ भी नहीं हुआ हो।' कुछ चरवाहों ने ध्यान दिया, और पूरब से आये ज्ञानियों ने भी ऐसा ही किया। (हम हेरोद का भी उल्लेख कर सकते हैं, जिसने सभी गलत कारणों से ध्यान दिया!)। फिर, जाहिरा तौर पर, पूरी बात भुला दी गई। कुछ समय के लिए। किसी न किसी तरह... इंतज़ार करते हुए कुछ ऐसा होना चाहिए जो हमारे लिए अच्छा हो। ईश्वर हमारे लिए इंतजार करने को चुनता है। वह हमें अपने लिए इंतज़ार करवाना चुनता है। और जब आप इसके बारे में सोचते हैं, तो मुक्ति का पूरा इतिहास प्रतीक्षा का इतिहास बन जाता है। तो, आप देखते हैं कि यहाँ अत्यावश्यकता के दो भाव हैं - कि हमें ईश्वर के आह्वान का उत्तर देने की आवश्यकता है तथा इसकी भी आवश्यकता है कि वह हमारी पुकार का उत्तर दे, और जल्द ही। स्तोत्रकार लिखता है, "हे प्रभु, जब मैं तुझे पुकारूं, मुझे उत्तर दे।" इस पद में कुछ बड़ी विनम्रता है, दर्द है, जो आकर्षक रूप से हमारा ध्यान खींचता है। स्तोत्र में एक अत्यावश्यकता है। लेकिन यह भी स्पष्ट है कि हमें धैर्य रखना और इंतजार करना सीखना चाहिए - आनंदमय आशा के साथ इंतजार करना चाहिए - और इंतजार में इश्वर का उत्तर ढूंढना चाहिए।
By: Father Augustine Wetta O.S.B
Moreछह साल की उम्र में, एक छोटी लड़की ने फैसला किया कि उसे 'जेल' और 'फाँसी' शब्द पसंद नहीं हैं। उसे क्या पता था कि 36 साल की उम्र में वह मौत की सज़ा पाए कैदियों के साथ घूम रही होगी। 1981 में, दो छोटे बच्चों की चौंकाने वाली हत्याएं सिंगापुर और दुनिया भर में पहले पन्ने की खबर बन गईं थीं। पूरी जांच के बाद एड्रियन लिम की गिरफ्तारी हुई, जिसने अपने कई ग्राहकों को यह विश्वास दिलाकर कि उसके पास अलौकिक शक्तियां हैं, उनका यौन शोषण किया, उनसे जबरन वसूली की और उन्हें बिजली के झटके की 'थेरेपी' देकर प्रताड़ित किया। उनमें से एक, कैथरीन, मेरी एक छात्रा थी जो अपनी दादी की मृत्यु के बाद अवसाद के इलाज के लिए उसके पास गई थी। उस आदमी ने उससे वेश्यावृत्ति कराई और उसके भाई-बहनों के साथ दुर्व्यवहार किया। जब मैंने सुना कि कैथरीन पर हत्याओं में भाग लेने का आरोप लगाया गया है, तो मैंने उसे येशु के पवित्र हृदय की सुंदर तस्वीर के साथ एक चिट्टी भेजी। छह महीने बाद, उसने जवाब में लिखा, "जब मैंने इतने बुरे काम किए हैं तो आप मुझसे कैसे प्यार कर सकती हैं?" अगले सात वर्षों तक मैं जेल में कैथरीन से साप्ताहिक मुलाकात करती रही। महीनों तक एक साथ प्रार्थना करने के बाद, वह ईश्वर और उन सभी लोगों से माफ़ी मांगना चाहती थी, जिन्हें उसने चोट पहुंचाई थी। अपने पापों को स्वीकार करने के बाद, उसे ऐसी शांति मिली, जैसे वह एक अलग ही अनोखा व्यक्तित्व हो। जब मैंने उसका रूपांतरण देखा, तो मैं खुशी से पागल हो गयी। लेकिन कैदियों के लिए मेरी सेवा अभी शुरू ही हुई थी! अतीत की ओर नज़र मैं 10 बच्चों वाले एक प्यारे कैथोलिक परिवार में बड़ी हुई। हर सुबह, हम सभी एक साथ पवित्र मिस्सा बलिदान के लिए जाते थे, और मेरी माँ हमें गिरजाघर के पास एक कॉफी शॉप में नाश्ता खिलाती थी। लेकिन कुछ समय बाद मेरे लिए शरीर के भोजन से ज्यादा, आत्मा के लिए भोजन का महत्त्व बढ़ गया। पीछे मुड़कर दखती हूँ तो पता चलता है कि मेरे बचपन में अपने परिवार के साथ सुबह-सुबह होती रही उन पवित्र मिस्साओं के द्वारा ही मेरे अन्दर मेरी बुलाहट का बीज बोया गया था। मेरे पिता ने हममें से प्रत्येक को विशेष रूप से अपने प्यार का एहसास कराया, और हम उनके काम से लौटने पर खुशी से उनकी बाहों की ओर दौड़ने से कभी नहीं चूके। युद्ध के दौरान, जब हमें सिंगापुर से भागना पड़ा, तो वे हमें घर पर ही पढ़ाते थे। वे हर सुबह हमें उच्चारण सिखाते थे और हमसे उस अनुच्छेद को दोहराने के लिए कहते थे जिसमें किसी को सिंग सिंग जेल में मौत की सजा सुनाई गई थी। छह साल की छोटी उम्र में ही मुझे एहसास हुआ था कि मुझे वह अंश पसंद नहीं है। जब मेरी बारी आई तो मैंने इसे पढ़ने के बजाय “प्रणाम रानी, दया की माँ” प्रार्थना का पाठ किया। मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था कि मैं एक दिन कैदियों के साथ प्रार्थना करुंगी। अभी देर नहीं हुई है जब मैंने जेल में कैथरीन से मुलाक़ात करना शुरू किया, तो कई अन्य कैदियों ने हमारे कार्य में रुचि दिखाई। जब भी किसी कैदी ने मुलाकात का अनुरोध किया, तो मुझे उनसे मिलकर और ईश्वर की प्रेमपूर्ण दया साझा करके खुशी हुई। ईश्वर एक प्यारा पिता है जो हमेशा हमारे पश्चाताप करने और उसके पास वापस आने का इंतजार कर रहा है। एक कैदी जिसने कानून तोड़ा है वह उड़ाऊ पुत्र के समान है, जो जीवन के सबसे निचले पांवदान पर लुढ़क गया और उसने महसूस किया, "मैं अपने पिता के पास वापस जा सकता हूं।" जब वह अपने पिता के पास वापस लौटा और क्षमा मांगी, तो उसके पिता उसका स्वागत करने के लिए दौड़ते हुए बाहर आये। किसी को भी अपने पापों का पश्चाताप करने और ईश्वर की ओर लौटने में कभी देर नहीं करनी चाहिए। प्यार का आलिंगन हत्या की आरोपी फ्लोर नामक फिलिपिनो महिला ने अन्य कैदियों से हमारे सेवा कार्यों के बारे में सुना और समझा, इसलिए मैंने उससे मुलाकात की और उसका समर्थन और सहयोग किया, क्योंकि उसने अपनी मौत की सजा की अपील की थी। अपनी अपील खारिज होने के बाद, वह ईश्वर से बहुत नाराज थी और मुझसे बात करना नहीं चाहती थी। जब भी मैं उसके दरवाजे से गुजरती थी, तो मैं उससे कहती थी कि चाहे कुछ भी हो जाए, ईश्वर अब भी उससे प्यार करता है। लेकिन वह निराशा में खाली दीवार की ओर देखती रहती थी। मैंने अपने प्रार्थना समूह से नित्य सहायक माता से नौ रोज़ी प्रार्थना करने और विशेष रूप से अपनी दुःख पीडाओं को उसके लिए चढाने को कहा। दो सप्ताह बाद, फ़्लोर का हृदय अचानक बदल गया और उसने मुझसे कहा कि मैं किसी पुरोहित के साथ उसके पास वापस आऊँ। वह खुशी से फूल रही थी क्योंकि माता मरियम उसकी कोठरी में आई थीं और माँ मरियम ने उससे कहा था कि वह डरे नहीं क्योंकि माँ अंत तक उसके साथ रहेगी। उस क्षण से लेकर उसकी मृत्यु के दिन तक, फ्लोर के हृदय में केवल आनंद ही आनंद था। एक और यादगार कैदी एक ऑस्ट्रेलियाई व्यक्ति था जिसे मादक पदार्थों की तस्करी के आरोप में जेल में डाल दिया गया था। जब उसने मुझे एक अन्य कैदी के लिए माता मरियम का भजन गाते हुए सुना, तो वह इतना प्रभावित हुआ कि उसने मुझसे नियमित रूप से उससे मिलने के लिए कहा। जब उसकी माँ ऑस्ट्रेलिया से मिलने आईं तो वे हमारे साथ हमारे घर में रहीं। आख़िरकार, उसने एक काथलिक के रूप में बपतिस्मा लेने का आग्रह किया। उस दिन से, फाँसी के तख्ते तक जाते समय भी वह खुशी से भरा हुआ था। वहां का जेल निरीक्षक एक युवा व्यक्ति था, और जब यह मादक द्रव्य का पूर्व तस्कर अपनी मृत्यु की ओर बढ़ रहा था, तो यह अधिकारी आगे आया और उसे गले लगा लिया। यह बहुत असामान्य था, और हमें ऐसा लगा मानो ईश्वर स्वयं इस युवक को गले लगा रहे हो। आप वहां ईश्वर की उपस्थिति को महसूस किए बिना नहीं रह सकते थे। वास्तव में, मैं जानता हूं कि हर बार, माता मरियम और प्रभु येशु उन सज़ा-ए-मौत पाए कैदियों को स्वर्ग में स्वागत करने के लिए वहां मौजूद होते हैं। यह विश्वास करना मेरे लिए खुशी की बात है कि जिस प्रभु ने मुझे बुलाया है वह मेरे प्रति ईमानदार रहा है। उसके और उसके लोगों के लिए जीने का आनंद किसी भी अन्य चीज़ की तुलना में कहीं अधिक लाभप्रद रहा है।
By: Sister M. Gerard Fernandez RGS
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