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मार्च 23, 2023 167 0 Rosanne Pappas, USA
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चंगाई देने वाला स्नेह

क्या आप अपने ह्रदय में ईश्वर के प्रेम को गहराई से महसूस करने के लिए तरस रहे हैं ? इसके लिए आपको बस प्रभु से मांगने की जरुरत है

मैंने अपने बेटे के ट्रक को घर के आंगन में रुकते हुए सुना। अपने आंसुओं को रोकते हुए मैंने अपने पल्लू से अपना चेहरा पोंछा लिया और उससे मिलने के लिए गैराज की ओर चल पड़ी।

उसने मुस्कुराते हुए कहा, “अरे माँ, तुम”।

“मेरा प्यारा बच्चा, आज इतनी सुबह कैसे आना हुआ?” मैंने पूछा।

“पापा ने कहा कि मेरे लिए कोई पार्सल है, इसलिए सोचा कि ऑफिस जाने से पहले उसे ले लूँ।“ उसने यही जवाब दिया!

मैंने कहा, “ठीक है बेटा!”

उसने अपना पार्सल उठा लिया, और मैं उसके पीछे-पीछे उसके ट्रक की ओर बढ़ने लगी।

उसने मुझे अपने गले से लगा लिया, और पूछा “माँ तुम ठीक तो हो ना?”

“मैं बिल्कुल ठीक हूँ”, रूंधते हुए स्वर में मैंने जवाब दिया। अपने आंसुओं को छिपाने के लिए मैंने अपना मुँह फेर लिया।

“वह अपने मुश्किल दौर से गुजर रही है। वह बिल्कुल ठीक हो जाएगी”, उसने धीमे स्वर से अपनी बहन के बारे में बताया।

“हाँ, मुझे पता है, लेकिन यह दौर उसके लिए कठिन है। उसके ऊपर दुःखों का पहाड़ है। मेरे लिए उसका दुःख सहना बहुत कठिन है। पता नहीं क्यों, मेरे बचपन से ही मैंने अपने आप को, जो जीवन की उदासी से जूझ रहे हैं, उन लोगों के बीच घिरी हुई पायी हूँ। क्या मेरे भाग्य में यही है?

उसने प्रश्नभरी दृष्टि से मेरी ओर देखा।

मैंने अपनी बातों को जारी रखते हुए कहा, “शायद मुझे इस परिस्थिति में कुछ ढूंढने की ज़रूरत है।“

“शायद  आप का कहना सही है। इसलिए यदि आपको मेरी ज़रूरत है तो मैं यहाँ हूँ माँ”, उसने कहा।

वे डरावनी यादें

मेरे मनोचिकित्सक ने कहा: “पारिवारिक जीवन में अवसाद का होना स्वाभाविक है। आप और आपकी बेटी एक दूसरे को बहुत चाहते हैं, पर कभी-कभी उस रिश्ते में उलझन पैदा हो जाता है। मेरे कहने का तात्पर्य है कि रिश्तों में कुछ सीमा या परिधि भी होनी चाहिए, विकास, स्वालंबन और आज़ादी के लिए एक स्वस्थ दूरी चाहिए।

“मुझे ऐसा लगता है कि मैंने बदलाव करने के लिए बहुत मेहनत की है, लेकिन ईमानदारी से कहूं तो मैं उसका दुख बर्दाश्त नहीं कर सकती” मैंने जवाब दिया। “और छोटी चीजें इतनी बड़ी लगती हैं। ईस्टर की शाम की तरह। रात के भोजन के बाद, मेरी बेटी ने पूछा कि क्या वह अपने प्रेमी से मिलने जा सकती है। जैसा कि मैंने उसे ड्राइव वे से बाहर निकलते हुए देखा, मेरे ऊपर भय और घबराहट की लहर दौड़ गई। मुझे पता है कि उसके जाने का मुझसे कोई मतलब नहीं था, लेकिन मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई,” मैंने कहा।

“क्या आप याद कर सकती हैं कब आपने पहली बार उस प्रकार की घबराहट और भय महसूस किया था?” चिकित्सक ने पूछा।

मैंने उस कठिन स्मृति को साझा करना शुरू किया जो तुरंत सामने आ गई।

“हम सब मेरे माता पिता के बेडरूम में थे,” मैंने कहा। “पिताजी नाराज थे। माँ बिलकुल टूट चुकी थी। वह मेरे छोटे भाई को गोद में ली हुई थी और मेरे पिता को शांत करने की कोशिश कर रही थी, लेकिन पिताजी बहुत पागल की तरह हो गए थे। हम अपने घर को बेचने और एक नए घर में जाने की तैयारी में थे। “घर जर्जर अवस्था में है” ऐसा कहकर पिताजी बड़े गुस्से में थे।

“आप कितने साल की थी?”

“लगभग सात साल की,” मैंने कहा।

“चलिए, आपकी याद में उस कमरे में वापस चलते हैं और कुछ काम करते हैं,” उसने कहा।

जैसा कि हमने उस स्मृति की समीक्षा की, मुझे पता चला कि मैंने अपने माता-पिता और भाई-बहनों की भावनाओं पर ध्यान केंद्रित किया था, लेकिन मेरी अपनी भावनाओं पर नहीं। अंत में मैं जो महसूस कर रही थी, उसी भावना के साथ कुछ देर समय बिताया, मेरे दुःख का बाँध  फूट कर बहने लगा। मुझे अपना रोना बंद करना कठिन था; बस इतना अधिक दु:ख था।

मुझे लगता था कि सबकी खुशी मेरी जिम्मेदारी है। जब मेरे चिकित्सक ने पूछा कि मुझे उस अनुभव में सुरक्षित महसूस करने और मेरी देखभाल करने में क्या मदद मिली होगी, तो मुझे एहसास हुआ कि मुझे किस बात की ज़रूरत थी, लेकिन मुझे वह प्राप्त नहीं हुआ था। मैंने अपने अंदर के घायल सात साल की बच्ची की जिम्मेदारी ली। भले ही उसे वह नहीं मिला जिसकी उसे तब जरूरत थी, मैं अपने वयस्क स्थिति में उन जरूरतों को पूरा कर सकती थी और इस झूठ को दूर कर सकती थी कि दूसरों को खुश करने की जिम्मेदारी मेरी थी।

चंगाई का वह अनुभव

जब हम ने वह सत्र समाप्त कर लिया, मेरे चिकित्सक ने कहा, “मुझे पता है कि यह मुश्किल था। लेकिन मैं आपको आश्वस्त कर सकता हूं कि इसका आपको फ़ायदा होगा। मैंने कई माता-पिता को अपने बच्चों के संघर्षों से ठीक होते देखा है।”

मेरे सत्र के कुछ ही समय बाद, मेरे मित्र ऐनी ने अप्रत्याशित रूप से फोन किया।

“क्या आप आज चंगाई की मिस्सा पूजा में मुझसे मिलना चाहेंगी,” उसने पूछा।

“ज़रूर,” मैंने कहा।

मिस्सा के बाद, चंगाई प्रार्थना करने वाले लोगों की एक पंक्ति बन गई। मैंने इंतजार किया और जल्द ही दो महिला आध्यात्मिक निर्देशकों की ओर जाने के लिए मुझे बताया गया।

“आप येशु से क्या माँगना चाहेंगी?”

“मेरे बचपन के घावों को ठीक करने के लिए,” मैंने कहा।

वे चुपचाप मेरे लिए प्रार्थना करने लगी।

फिर उनमें से एक महिला ने जोर से प्रार्थना की,

“येशु, इसके बचपन के घावों को चंगा कर। वह सिर्फ एक छोटी लड़की थी जो उस क्रोध, भ्रम और अराजकता के बीच में खड़ी थी, अकेली महसूस कर रही थी और राहत के लिए बेताब थी। येशु, हम जानते हैं कि वह अकेली नहीं थी। हम जानते हैं कि तू उसके साथ था। और हम जानते हैं कि तू जीवन भर हमेशा उसके साथ रहा है। उसकी चंगाई और उसके परिवार की चंगाई के लिए येशु, धन्यवाद।”

मेरे मन की आँखों में मैंने येशु को अपने बगल में खड़ा देखा। उसने मुझे प्यार और करुणा के साथ गौर से देखा। मैं समझ गयी कि मेरे माता-पिता और भाई-बहनों के दुःख और दर्द को उठाने का काम कभी भी मेरा नहीं था, और यह कि येशु हमेशा मेरे दुख और दर्द का भार साझा करने के लिए मेरे साथ था। उसने ठीक उसी क्षण की व्यवस्था की थी जब मेरे दिल में छिपे हुए स्थान उसकी चंगाई के प्रेम और दया से भर जाएंगे।

चुपचाप, मैं रोयी।

मैं विस्मित होकर वहां से चली गयी। जो मैंने बहुत पहले अनुभव किया था उसी अनुभव को उस महिला की प्रार्थना ने पूरी तरह से वर्णन किया। येशु के साथ यह अंतरंग मुलाकात अविश्वसनीय रूप से चंगाई देने वाली थी।

प्रार्थना का उत्तर

मुझे जल्द ही एहसास हुआ कि दूसरों को ऊपर उठाने और उनकी जरूरतों को पूरा करने की मेरी इच्छा आंशिक रूप से मेरी खुद की जरूरतों को पूरा करने और ठीक होने की अवचेतन इच्छा थी। जबकि मैं दूसरे लोगों के दुखों का भार उठा रही थी, मुझे नहीं पता था कि मैं अपने अन्दर दर्द के सागर ले चल रही थी जिसे मैंने कभी व्यक्त नहीं किया था।

हाल ही में, मेरी बेटी ने मुझे बताया कि वह अपनी उदासी के लिए ग्लानी महसूस करती है और उसे लगता है कि वह मेरे लिए बोझ है। मुझे यह बात भयानक लगी। वह ऐसा कैसे महसूस कर सकती है? लेकिन तब मैं समझ गयी। मेरे लिए वह बोझ नहीं थी, लेकिन उसकी उदासी बोझ थी। मैंने उसे बेहतर बनाने का दबाव अपने अन्दर महसूस किया था ताकि मैं स्वयं बेहतर महसूस कर सकूं। और इस वजह से वह ग्लानी महसूस कर रही थी।

मेरी चंगाई से मुझे राहत मिली है। येशु मेरी बेटी के साथ है, उसे चंगाई दे रहा है, इस जानकारी के आधार पर मुझे जैसी वह है वैसे ही उससे प्यार करने के लिए स्वतंत्रता मिलती है।

ईश्वर की कृपा से, मैं उस सुंदर जीवन की जिम्मेदारी लेती रहूंगी जिसे ईश्वर ने मुझे दिया है। मैं उसे मेरी चंगाई जारी रखने की अनुमति दूँगी ताकि मैं परमेश्वर के प्रेम के प्रवाहित होने के लिए एक खुला पात्र बन सकूँ।

मैंने एक बार एक बुद्धिमान परामर्शदाता से पूछा,

“मुझे पता है कि येशु हमेशा मेरे साथ है और मैं अपनी देखभाल करने के लिए उसकी भलाई पर भरोसा कर सकती हूं, लेकिन क्या मैं कभी इसे अपने दिल में महसूस कर पाऊंगी?”

“हाँ, आप करेंगी,” उन्होंने कहा। “वह इसे ऐसा कर देगा।”

आमेन। सो ऐसा ही है।

 

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Rosanne Pappas

Rosanne Pappas एक कलाकार, लेखिका और वक्ता हैं। पप्पस अपने जीवन में ईश्वर की कृपा की व्यक्तिगत कहानियों को साझा करके दूसरों को प्रेरित करती हैं। 35 से अधिक वर्षों से विवाहित, वह और उसका पति फ्लोरिडा में रहते हैं, और उनकी चार संतानें हैं।

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