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जुलाई 27, 2021 1370 0 Father Chris da Sousa
Encounter

यह एक चमत्कार है!

फादर क्रिस दीसूज़ा अंधे थें लेकिन फिर वे फातिमा की माँ मरिया के तीर्थ पर गए जिसके बाद उनके जीवन में एक चमत्कार हुआ, पर यह उनके परिवार में होने वाला आखिरी चमत्कार नही था|

मेरी माँ मरियम पर श्रद्धा जीवन के शुरूआती दिनों से है| मैं ऑस्ट्रेलिया में पैदा हुआ लेकिन मेरे माता पिता पुर्तगाल से यहां आए थे, इसीलिए फातिमा की माँ मरियम पर हमारी हमेशा से श्रद्धा रही है| हम हर दिन घर पर उनकी मूर्ती के रोज़री माला बोलते थे, इसी लिए मुझे हमेशा से उनकी मध्यस्था पर भरोसा रहा है|

मैं जन्म से ही दाहिने आँख से अँधा हूँ और एक बीमारी के चलते साल दर साल मेरी बाईं आँख की रौशनी भी कम होती गयी| इसीलिए बचपन से ही मेरे मातापिता ने मुझे कई आई स्पेशलिस्ट्स को दिखाया, इस उम्मीद में कि उन्हें कहीं ना कहीं मेरी बीमारी का कोई ना कोई इलाज ज़रूर मिल जाएगा, पर हर जगह उन्हें बस निराशा ही हाथ लगी|मुझे जो बीमारी थी उसका कोई इलाज नही था और यह बात तय थी कि मेरे बड़े होने तक मैं पूरी तरह से अँधा हो जाऊँगा|

जोखिम लें

जब तक मैं बड़ा हुआ मेरी बाईं आँख की रौशनी काफी हद तक जा चुकी थी, जिसकी वजह से मेरी क़ानून की पढ़ाई पर काफी असर पड़ा| मेरे मातापिता जब मुझे अपनी कमज़ोर आँखों से क़ानून की मोटी मोटी किताबों को पढ़ने की कोशिश करते हुए देखते थे, तो उनका दिल दुख से टूट जाता था। इसीलिए मेरी पढ़ाई के आखिरी साल वे दोनो फातिमा की माँ मरियम के तीर्थ पर गए और उन्होंने मेरी आंखों की रौशनी के लिए माँंमरियम से मध्यस्थता मांगी। मैं उनके साथ नही गया क्योंकि मैं अपने आखिरी साल की पढ़ाई के बीच कहीं आ जा नहीं सकता था।

जब वे तीर्थ से दृढ़ विश्वास के साथ और एक नए उत्साह के साथ लौटे, तब उन्हें एक नए स्पेशलिस्ट के बारे में पता चला जो बेल्जियम से एक नई तकनीक सीखकर लौटे थें जो की मेरी मदद कर सकता था।हालांकि उन स्पेशलिस्ट के साथ एक अपॉइंटमेंट मिल पाना नामुमकिन सा लग रहा था, लेकिन माँ मरियम की मध्यस्थता के द्वारा हमें किसी तरह एक कंसल्टेशन मिल ही गई।और हालांकि मुझे यह बचपन से ही समझा दिया गया था कि जल्द ही मैं अपनी दोनो आंखों की रौशनी खो दूंगा, मैं अपने मातापिता की कोशिशों को अनदेखा नही कर सकता था, इसी लिए मैं इस नए डॉक्टर से मिलने केलिए राज़ी हो गया।

मेरी आँखों की जांचकरने के बाद स्पेशलिस्ट डॉक्टर ने कहा कि वे इस बात का दावा नहीं कर सकते थे कि जो नयी तकनीक वह सीख कर आए थे वह मेरे काम आएगी| यह सब काफी रिस्की भी था क्योंकि मेरे पास सरकार की रज़ामंदी नहीं थी और यह इलाज बहुत महंगा था| लेकिन मेरे मातापिता का माँ मरियम की मध्यस्था पर विश्वास इतना मज़बूत था कि वे इस इलाज के लिए तुरंत मान गए और उन्होंने मुझे भी इस इलाज को कराने केलिए मना लिया| मैं मन ही मन अभी भी दुविधा में था पर फिर मैं ने खुद को माँ मरियम देखरेख में छोड़ दिया|

चांस लेकर देखें

उन्होंने इलाज मेरी दाईं आँख से शुरू किया, वह आँख जिसमे मैं जन्म से ही अँधा था| सर्जन ने हमसे कहा था कि इस इलाज का असर दिखने में कुछ महीने लग सकते थे इसीलिए मैं तुरंत ही अपनी आँखों कीरौशनी केबेहतर होने की उम्मीद नहीं कर रहा था| लेकिन ऑपरेशन के खत्म होने के 15 से 20 मिनट बाद ही मैं अपनी जन्म से खराब आंख से ज़िंदगी में पहली बार सब कुछ साफ साफ देख पा रहा था। मुझे अपनी पूरी ज़िंदगी में सब कुछ इतना साफ, इतना स्पष्ट कभी नही दिखा था।

मैं ऑपरेशन थिएटर से ईश्वर की महिमा गाता, माँ मरियम को उनकी मध्यस्था केलिए धन्यवाद कहता हुआ दौड़ा चला आया। जैसे ही मैंने ख़ुशी में अपने मातापिता को गले लगाया, मेरे सर्जन जिन्हें ईश्वर में विश्वास नही था, वेभी इसे एक चमत्कार मानने से इन्कार नही कर पाए। क्योंकि वे भी हमें यह समझाने में नाकाम थे कि उस आंख पर इस इलाज का इतनी जल्दी असर कैसे हुआ जो जन्म से ही पूरी तरह खराब थी।

एक महीने बाद उन्होंने मेरी दूसरी आंख, मेरी बाईं आंख का ऑपरेशन किया। इस बार भी एक चमत्कार की आशा रखना ईश्वर से कुछ ज़्यादा ही मांगने जैसा था, लेकिन ईश्वर के घर में आशीषों की कभी कमी नही पड़ती। फिर से ऑपरेशन के 15 से 20 मिनट बाद मैं अपनी बाईं आंख से साफ साफ देख पा रहा था। मेरी दोनों आंखों की रौशनी वापस आ चुकी थी। पवित्र कुंवारी मरियम की मध्यस्थता से और मेरे मातापिता के दृढ़ विश्वास के कारण अब मैं एक वकील के तौर पर अपनी नई ज़िंदगी शुरू कर सकता था।

एक बदलाव लाएं

मेरी हमेशा से एक वकील बनने की इच्छा थी, लेकिन फिर मैं ने ईश्वर केलिए अपने दिल को खोला। वे मुझसे क्या चाह रहें थे? मैं जानता था कि ये चमत्कार मेरे जीवन में उनके दिए तोहफे थे जिनकी मुझे कीमत चुकाने की ज़रूरत नहीं थी, लेकिन माँ मरियम की मध्यस्था से मैं उनसे पूछता था कि “हे ईश्वर, आप मुझ से क्या चाहते हैं? आपने मेरी आंखों की रौशनी मुझे क्यों वापस की, क्योंकि दुनिया में ऐसे कई लोग हैं जिन्हें ऐसे एक चमत्कार की ज़्यादा ज़रूरत है। मन में इसी उलझन को लिए मैं ने काम करना शुरू किया। और हालांकि एक वकील की ज़िंदगी जी कर मैं खुश था, और लोगों की नज़र में मैं शादी और खुद का परिवार शुरू करने की राह पर था, फिर भी मुझे मेरे दिल में एक पुरोहित के तौर पर ईश्वर केलिए जीने की बुलाहट तब महसूस हुई जब मैं विश्व युवा दिवस की तीर्थयात्रा पर था।

सच कहूं तो उस वक्त मेरा मन घबराहट से भर गया था और मुझे अपनी इस बुलाहाट को समझने और अपनाने में कई महीने लगें। 13  मई की बात है, फातिमा की माँ मरियम की फीस्ट के मिस्सा के दौरान मैं ने पवित्र कुंवारी मरियम से कहा, “अगर मेरे जीवन केलिए आपके बेटे की यही इच्छा है, तो मुझे यह योजना मेरे आंखों के सामने साफ साफ दिखाइए, उसी तरह जिस तरह पहले सब कुछ साफ साफ देखने में आपने मेरी मदद की। इसके बाद मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी आंखों के सामने से एक पर्दा सा हट गया। मुझे अब यकीन था कि माँ मरियम के बेटे येसु मुझे धार्मिक जीवन जीने केलिए बुला रहे थें। येसुमुझे पुरोहिताई केलिए बुला रहे थे। खुद को माँ के हाथों में सौंप कर मैंने यह तय किया कि मुझे एक सोमस्कन फादर के तौर पर ईश्वर को अपना जीवन समर्पित करना चाहिए।

अपने धार्मिक संगठन के रीति रिवाजों के हिसाब से मैंने निर्धनता, पवित्रता और आज्ञाकारिता की शपथ ली। मैंने ख़ुद को माँ मरियम को भी समर्पित किया और अपने नाम में मारिया नाम शामिल किया। हमारे धार्मिक संगठन के संस्थापक संत जेरोम एमिलियानी को मां मरियम ने चमत्कारिक रूप से तब छुड़ाया था जब वे 500 साल पहले युद्ध में कैद कर लिए गए थें। मुझे भी मां की मध्यस्था ने ही मेरे अंधेपन से छुड़ाया था, जिसकी वजह से मैं येसु को अपना जीवन सौंप पाया।

चमत्कार सच में होते हैं

जब मैं रोम में आपने थियोलॉजी के आखिरी एक्जाम की तैयारी कर रहा था तब मेरे पिता ब्लड कैंसर की वजह से काफी बीमार हो गाएं। जब वह अपनी बीमारी के इलाज की तैयारी में लगे हुए थें तब मैं फातिमा की माँ मरियम के तीर्थ पर गया ताकि मैं अपनी ठीक हो चुकीआंखों केलिए उन्हें धन्यवाद कह सकूं और अपने पिता की अच्छी सेहत केलिए प्रार्थनाक र सकूं। वहां जाकर जिस दिन मैंने घुटनों के बल चलक र वह राह नापीं जहां माँ मरियम ने 100 साल पहले कुछ बच्चों को दर्शन दिए थे, उसी दिन मेरे पिता जिन स्पेशलिस्ट को से अपना इलाज करा रहे थे उन्होंने यह पाया कि मेरे पिता के खून से कैंसर जा चुका था। एक बार फिर से,  पवित्र कुंवारी मरियम की मध्यस्था ने एक चमत्कार द्वारा मेरे परिवार के एक सदस्य को चंगा कर दिया था।

इसके बाद कभी भारत तो कभी श्रीलंका तो कभी मोज़ाम्बिक में सेवा काई करने के बाद मैं आखिर कार अपनी पुरोहियाई की दीक्षा पाने केलिए ऑस्ट्रेलिया वापस आया। मेरा दीक्षांत समारोह मां मरियम के महीने, मई महीने में एक शनिवार को रखा गया। मैंने अपनी पुरोहिताई मां के हाथों में समर्पित की। अगले दिन, 13 मई को फातिमा की माँ मरियम की फीस्ट के दिन मैंने अपना पहला मिस्सा चढ़ाया ।इसके बाद, फ्रीमेंटल की सड़कों पे मां मरियम के आदर में मोमबत्तियों के साथ एक सुन्दर सा जुलूस निकाला गया।

हम उसस मय अपने जीवन में खुशियों केशिखर पर थे जब मेरी मां बुरी तरह बीमार पड़ गईं और हमें उन्हें तुरंत एम्बुलेंस में अस्पताल ले जाना पड़ा। मैंभी जल्दी जल्दी अस्पताल पहुंचाता कि मैं उन्हें बीमारों का संस्कार दे पाऊं, जो की चंगाई का संस्कार होता है। मैं वह पहली इन्सान थी जिन्हें मैंने यह संस्कार दिया। उनको यह संस्कार देकर मैंने अपनी पुरोहित को और भी मज़बूत होते हुए महसूस किया क्योंकि उनको इस हालत में देखते हुए भी मैं उनके सामने एक पुरोहित के रूप में उनकी सेवा कर पाया। डॉक्टरों को लगा कि उन्हें दिल का दौरा पड़ा था और इसी वजह से वे उन्हें खून पतलाकरने वाली दवाइयां देने लगें लेकिन उन्हें असल में एन्यूरिज्म था जिसकी वजह से उनके शरीर में अंदर ही अंदर खून बह रहा था।

डॉक्टरों को उन दवाइयों के उल्टे अस र के बारे में कई दिनों बाद पता चला। वह दवाइयां मां के अंदर के है मरेजको और भी बढ़ा रहीं थीं। उन्हें जल्द से जल्द इमरजेंसी ऑपरेशन के लिए ले जाया गया, और उनके बचने की उम्मीद कम ही थीं, पर मां मरियम की मध्यस्थता के द्वारा ईश्वर ने हमें एक और चमत्कार का तो हफा दिया। डॉक्टर यह समझ पाने और समझा पाने में नाकाम थे कि इतने दिन इतना खून बह जाने केबाद भी मेरी मां इस वक्त ज़िंदा कैसे थीं। मेरी मां ने उन्हें समझाया कि पवित्र कुंवारी मरियम ने ईश्वर से हमारे लिए मध्यस्था की थीं। “मेरे बेटे ने एक पुरोहित के रू प में खुद को मां मरियम को सौंपा है और वह हर दिन मेरे लिए मिस्सा चढ़ाता आया है। इसीलिए यह चमत्कार हुआ और मैं ठीक हो पाई।”

माँ राह दिखाती हैं

इन सारे गहरे अनुभवों ने मां मरियम में मेरी श्रद्धा को और भी मज़बूत कर दिया है। मैं आप लोगों को भी मां की स्वर्गीय मध्यस्था में भरोसा करने केलिए प्रोत्साहित करता हूं।मैं ने उन चमत्कारों का स्वाद चखा है जिन्हें मांने मेरे जीवन केलिए येसु से मांग लिया। वह जिन्होंने पवित्र रूप से गर्भधारण किया, और वे सारी कृपायें पाईं जिन्हें येसु ने क्रूस पर लटक ते हुए उनके लिए निर्धारित किया। उन्होंने ईश्वर की मां बनने केलिए खुद को समर्पित किया, उसी तरह जिस तरह सालों बाद ये सुने गेथसेमिनी बाड़ी में अपने दुखभोग के पहले खुद को ईश्वर को समर्पित किया। पवित्र कुंवारी मरियम की काना के विवाहित जोड़े की मदद करने की इच्छा की वजह से ही येसु ने अपना पहला चमत्कार किया। मां मरियम का दिल दुख से उसी तरह छिदा गया जिस तरह सालों बाद येसु का दिल क्रूस पर बरछे से छेदा गया। इसी लिए हमें मां मरियम पर पूरे दिल से भरोसा रखना चाहिए क्योंकि वह हमें सुख में और दुख में येसु के दिखाएं रास्ते पर चलना सिखातीहैं।

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Father Chris da Sousa

Father Chris da Sousa is the first Australian priest in the Company of the Servants of the Poor – the Somascan Fathers. This article is based on the Shalom World TV program : Mary My Mother https://shalomworld.org/episode/i-was-blind-but-now-i-see-fr-christopher-john-maria-de-sousacrs.

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