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जब ईश्वर हमें बुलाता है तब वह रास्ते में आने वाली किसी भी बाधा को दूर करने की शक्ति भी हमें देता है। जीवन के तूफानी हमलों के दौर में फादर पीटर परमेश्वर से कैसे लिपटे रहे, इस अद्भुत कहानी को पढ़ें।
अप्रैल 1975 में जब कम्युनिस्टों ने वियतनाम पर कब्जा कर लिया, तब उस देश के दक्षिणी छोर में रहने वाले लोगों का जीवन हमेशा के लिए बदल गया। कम्युनिस्टों ने दस लाख से अधिक दक्षिण वियतनामी सैनिकों को पकड़ लिया और उन्हें पूरे देश के विभिन्न जगहों पर बनाए गए नज़रबंदी शिविरों में कैद कर दिया था। इसके अलावा सैकड़ों हजारों ख्रीस्तीय पुरोहितों, सेमिनारी में रहनेवाले बंधुओं, साध्वियों, मठवासी भिक्षुओं और धर्मबन्धुओं को कारागारों और सुधार गृहों में बंद कर दिया गया था ताकि उनका ब्रेनवॉश किया जा सके। उनमें से लगभग 60% की मृत्यु उन शिविरों में हुई जहाँ उन्हें कभी भी अपने परिवार या दोस्तों से मिलने की अनुमति नहीं थी। वे ऐसे रहते थे जैसे उन्हें भुला दिया गया हो।
मेरा जन्म 1960 के दशक में, युद्ध के दौरान, अमेरिकियों के मेरे देश में आने के ठीक बाद हुआ था। उत्तर और दक्षिण के बीच लड़ाई के दौरान मेरी परवरिश हुई थी, इसलिए युद्ध सम्बंधित घटनाएं मेरे बचपन की पृष्ठभूमि बन गयी। जब युद्ध समाप्त हुआ, तब तक मैं लगभग माध्यमिक विद्यालय समाप्त कर चुका था। मुझे इस बारे में ज्यादा समझ नहीं आया कि यह सब क्या है, लेकिन मुझे यह देखकर बहुत दु:ख हुआ कि इतने सारे लोग जो मारे गए या कैद किए गए अपने सभी प्रियजनों के लिए दुखी हैं।
जब कम्युनिस्टों ने हमारे देश पर कब्जा कर लिया, तो सब कुछ उल्ट गया। हम अपने विश्वास के लिए लगातार सताए जाने के डर में जी रहे थे। वस्तुतः कोई स्वतंत्रता नहीं थी। हमें नहीं पता था कि कल हमारे साथ क्या होगा। हमारा भाग्य पूरी तरह से कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों के हाथों में था।
इन अशुभ परिस्थितियों में मैंने ईश्वर की पुकार को महसूस किया। प्रारंभ में, मैंने इसके खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की, क्योंकि मैं जानता था कि मेरे लिए उस पुकार का पालन करना असंभव था। सबसे पहले, कोई गुरुकुल या सेमिनरी नहीं था जहाँ मैं पुरोहिताई के लिए अध्ययन कर सकता था। दूसरी बात, अगर सरकार को पता चल गया तो यह न केवल मेरे लिए खतरनाक होगा, बल्कि मेरे परिवार को भी दंडित किया जाएगा। और इन सबके अलावा, मैं येशु का शिष्य बनने के लिए अपने आप को अयोग्य महसूस कर रहा था। हालाँकि, परमेश्वर के पास अपनी योजना को पूरा करने का अपना तरीका है। इसलिए मैं 1979 में भूमिगत सेमिनरी में शामिल हो गया। सोलह महीने बाद, स्थानीय पुलिस को पता चला कि मैं एक ख्रीस्तीय पुरोहित बनने की तैयारी कर रहा हूँ, इसलिए मुझे जबरन सेना में भर्ती कर लिया गया।
मुझे उम्मीद थी कि चार साल बाद मुझे रिहा किया जा सकता है, ताकि मैं अपने परिवार और अपनी पढ़ाई में वापस आ सकूं, लेकिन सैनिक प्रशिक्षण के दौरान एक साथी सैनिक ने मुझे चेतावनी दी कि हमें कंपूचिया में लड़ने के लिए भेजे जायेंगे। मैं जानता था कि कंपूचिया में लड़ने गए 80% सैनिक कभी वापस नहीं आए। मैं इस संभावना से इतना डर गया था, कि मैंने खतरनाक जोखिमों के बावजूद सैनिक शिविर से भाग जाने की योजना बनाई। हालांकि मैं सफलतापूर्वक बच निकला, फिर भी मैं खतरे में था। मैं घर लौटकर अपने परिवार को खतरे में नहीं डाल सकता था, इसलिए मैं लगातार इस डर से इधर-उधर भटक रहा था कि कहीं कोई मुझे देख लेगा और पुलिस को रिपोर्ट कर देगा।
इस प्रतिदिन के आतंक का कोई अंत नज़र नहीं आ रहा था। उस एक वर्ष के कठिन दौर के बाद, मेरे परिवार ने मुझसे कहा कि, सभी की सुरक्षा के लिए, मुझे वियतनाम से भागने का प्रयास करना चाहिए। एक अंधेरी रात में, आधी रात के बाद, मैंने गुप्त निर्देशों का पालन करते हुए, मछली पकड़ने वाली छोटी लकड़ी की एक नाव की ओर रेंगना शुरू किया, जहाँ कम्युनिस्ट गश्ती दल से बचकर भागने के लिए पचास लोग सवार थे। छोटे बच्चों से लेकर बूढ़ों तक, हमने अपनी सांसें और एक-दूसरे का हाथ तब तक थामे रखा जब तक हम खुले समुद्र में सुरक्षित बाहर नहीं निकल गए। लेकिन हमारी परेशानी अभी शुरू ही हुई थी। हमें कहाँ जाना है, इसके बारे में हमारे पास केवल एक अस्पष्ट विचार था और वहाँ जाने के लिए कहाँ कहाँ से होकर जाना है, इसकी बहुत कम समझ थी।
हमारा पलायन कठिनाइयों और खतरों से भरा था। हमने भयानक मौसम में समुद्र के उबड़-खाबड़ लहरों के बीच उठते गिरते उछलते-कूदते चार दिन बिताए। एक समय आया जब हमने सारी उम्मीदें छोड़ दी थीं। हम अगले तूफान से बच पायेंगे या नहीं इसका हमें संदेह था। हम मानने लगे थे कि हम अपनी मंजिल पर कभी नहीं पहुंचेंगे क्योंकि हम समुद्र की दया पर ही निर्भर थे जो हमें कहीं नहीं ले जा रहा था। हमें बिलकुल पता नहीं चल रहा था कि हम कहां हैं। हम केवल इतना ही कर सकते थे कि परमेश्वर के विधान पर भरोसा करके अपने जीवन को उनके हाथ में छोड़ दें। इस पूरे समय में, परमेश्वर ने हमें अपने संरक्षण में रखा था। जब आखिरकार हमें मलेशिया के एक छोटे से द्वीप पर शरण मिली, तब हमें अपने सौभाग्य पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। मैंने वहां के एक शरणार्थी शिविर में आठ महीने बिताए, और उसके बाद मुझे ऑस्ट्रेलिया में शरण मिली।
इस तरह के आतंकों को सहने के बाद, मुझे आखिरकार पता चला कि “बारिश के बाद धूप आती है”। हमारे पास एक पारंपरिक कहावत है, “हर प्रवाह में एक भाटा या उतार होगा”। जीवन में हर किसी के पास आनंद और संतोष के दिनों के विपरीत कुछ उदास दिन होने चाहिए। शायद यही मानव जीवन का नियम है। जन्म से कोई भी सभी दुखों से मुक्त नहीं हो सकता। कुछ दुःख शारीरिक हैं, कुछ मानसिक और कुछ आध्यात्मिक हैं। हमारे दु:ख एक दूसरे से भिन्न हैं, लेकिन लगभग सभी को दुःख का स्वाद चखना पड़ेगा। हालाँकि, दुःख स्वयं मनुष्य को नहीं मार सकता। केवल ईश्वर की इच्छा के प्रति समर्पण में बने रहने की इच्छाशक्ति की कमी ही कुछ लोगों को इतना हतोत्साहित कर सकती है कि वे भ्रामक सुखों में शरण लेते हैं, या दुःख से बचने के व्यर्थ प्रयास में आत्महत्या का विकल्प चुनते हैं।
मैं अपने आप को सौभाग्यशाली मानता हूं कि मैंने एक कैथलिक के रूप में अपने जीवन के लिए पूरी तरह से ईश्वर पर भरोसा करना सीखा है। मुझे विश्वास है कि जब भी मैं मुसीबत में हूँ, वह मेरी सहायता करेगा, विशेष रूप से जब ऐसा लगता है कि मेरे पास कोई विकल्प नहीं है, या मैं शत्रुओं से घिरा हुआ हूँ। मैंने अपने अनुभव से सीखा हैकि ईश्वर को ही अपने जीवन की ढाल और गढ़ मानकर उनकी शरण लेनी चाहिए। जब वह मेरे साथ होता है तो कोई भी ताकत मुझे हानि नहीं पहुंचा सकता (भजन संहिता 22)।
जब मैं ऑस्ट्रेलिया पहुंचा, तो मैंने अंग्रेजी सीखने में पूरी ताकत लगा दी ताकि मैं पुरोहिताई के लिए अध्ययन जारी रखने की अपने दिल की लालसा का पालन कर सकूं। शुरुआत में इतनी अलग संस्कृति में रहना मेरे लिए आसान नहीं था। अक्सर, अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए सही शब्द नहीं मिलते थे, इसलिए अक्सर गलतफहमियाँ हो जाती थीं। कभी-कभी हताशा में जोर-जोर से चिल्लाने का मन करता था। परिवार, या दोस्तों, या पैसे के बिना, नया जीवन शुरू करना कठिन था। मैंने अकेलापन, तन्हाई और अलग-थलग होने का दर्द महसूस किया, मुझे परमेश्वर के अलावा किसी का भी समर्थन नहीं मिला।
परमेश्वर हमेशा मेरे साथी रहा है, वह मुझे सभी बाधाओं के बावजूद डटे रहने की शक्ति और साहस देता है। अंधेरे के बीचे में परमेश्वर के प्रकाश ने ही मेरा मार्गदर्शन किया, ऐसे दौर में भी जब मैं उसकी उपस्थिति को पहचानने में असफल रहा। मैंने जो कुछ भी हासिल किया है वह उसकी कृपा से है और मुझे उसका अनुसरण करने हेतु बुलाने के लिए मैं उसका आभारी रहूंगा।
Father Peter Hung Tran has a doctorate in Moral Theology, and is currently working at the University of Western Australia and St Thomas More College as a Catholic Chaplain.
लोग अक्सर आश्चर्यचकित हो जाते हैं जब मैं उन्हें बताता हूं कि मठ में मेरे सबसे करीबी दोस्त फादर फिलिप हैं, जो 94 वर्ष के हैं। वे मठ के सबसे बुजुर्ग सन्यासी हैं, और मैं सबसे छोटा हूं, और इस तरह हमारी यह जोड़ी बनती है; एक अन्य साथी सन्यासी हमें प्यार से "अल्फा और ओमेगा" कहकर बुलाते हैं। उम्र में अंतर के अलावा, हमारे बीच कई अंतर हैं। फादर फिलिप ने मठ में प्रवेश करने से पहले तट सुरक्षा बल में सेवा की, वनस्पति विज्ञान और अंग्रेजी का अध्ययन किया, रोम और रवांडा में रहकर सेवा दी, और कई भाषाओं में पारंगत हैं। संक्षेप में, उनके पास मुझसे कहीं अधिक जीवन का अनुभव है। जैसा कि कहा गया है, हममें कुछ बातें समान हैं: हम दोनों कैलिफ़ोर्निया के मूल निवासी हैं और प्रोटेस्टेंट सम्प्रदाय से धर्मान्तरित हैं (वे प्रेस्बिटेरियन और मैं बैपटिस्ट)। हम दोनों ओपेरा का भरपूर आनंद लेते हैं, और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि हम एक साथ प्रार्थना का जीवन जीते हैं। जो हमारे समान हितों को साझा करते हों, ऐसे मित्रों का चयन करना स्वाभाविक है। लेकिन जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं और जीवन में हमारी स्थितियाँ बदलती हैं, हम पाते हैं कि हम कुछ मित्रों को खो रहे हैं जबकि नए मित्र भी प्राप्त कर रहे हैं। अरस्तू का कहना है कि सभी मित्रता में कुछ न कुछ समानता अवश्य होनी चाहिए। स्थायी मित्रता वे हैं जो लंबे समय तक चलने वाली बातें साझा करती हैं। उदाहरण के लिए, पानी में सर्फिंग करनेवाले दो लोगों के बीच दोस्ती तब तक बनी रहती है जब तक पकड़ने के लिए लहरें मौजूद रहती हैं। हालाँकि, यदि कोई हलचल नहीं है या यदि कोई सर्फर घायल हो जाता है और अब बाहर नहीं निकल सकता है, तो दोस्ती तब तक फीकी रहेगी जब तक उन्हें आपस में साझा करने के लिए कुछ नया नहीं मिल जाता। इसलिए, यदि हम आजीवन मित्र बनाना चाहते हैं, तो कुंजी कुछ ऐसी चीज़ ढूंढना है जिसे जीवन भर, या इससे भी बेहतर, अनंत काल तक साझा किया जा सके। महायाजक कैफस ने येशु पर ईशनिंदा का आरोप लगाया जब उसने ईश्वर का पुत्र होने का दावा किया। इस कथन से कहीं अधिक निन्दात्मक तब था जब येशु ने अपने शिष्यों से कहा, "तुम मेरे मित्र हो।" क्योंकि परमेश्वर के पुत्र का मछुआरों, चुंगी लेनेवालों, और एक चरमपंथी से क्या मेल हो सकता है? ईश्वर और हमारे बीच संभवतः क्या समानता हो सकती है? वह हमसे बहुत बड़ा है। उसके पास जीवन का अनुभव अधिक है। वह अल्फ़ा और ओमेगा दोनों है। जो कुछ भी हम साझा करते हैं वह सबसे पहले उसी ने हमें दिया होगा। उनके द्वारा हमारे साथ साझा किए गए कई उपहारों में से, पवित्र बाइबिल इस बारे में स्पष्ट है कि कौन सा उपहार सबसे लंबे समय तक रहता है: "उनका दृढ़ प्रेम हमेशा के लिए बना रहता है।" "प्यार... सब कुछ सहता है।" "प्यार कभी खत्म नहीं होता।" जैसा कि यह पता चला है, ईश्वर के साथ दोस्ती करना काफी सरल है। हमें बस इतना करना है कि "प्यार करो क्योंकि उसने पहले हमसे प्यार किया।"
By: Brother John Baptist Santa Ana, O.S.B.
Moreस्वतंत्र कलाकार, होली रोड्रिगेज़ अपने पूरे जीवन में नास्तिक रहीं और वे कभी भी ईश्वर के बारे में नहीं सोचती थी या किसी धर्म में शामिल होने या यहां तक कि चर्च जाने के बारे में भी नहीं सोचती थी, लेकिन एक दिन ... वह 2016 के दिसंबर का महीना था, मैं सर्दियों की एक सुबह उठी और बस एक कप कॉफी से ज्यादा मैं कुछ नहीं चाह रही थी । मैं अपने जीवन भर नास्तिक थी। मैंने कभी भी परमेश्वर के बारे में नहीं सोचा था और निश्चित रूप से कभी किसी धर्म में शामिल होने या गिरजाघर जाने के बारे में भी नहीं। हालाँकि उस दिन, बिना किसी कारण के, मुझे अचानक गिरजाघर जाने की इच्छा हुई। मेरे जीवन में ऐसा कुछ भी असामान्य नहीं हो रहा था जिससे अचानक मेरा हृदय परिवर्तन हुआ हो। मैं इंग्लैंड के केंट में एक छोटे से समुद्र तटीय शहर में एक स्वतंत्र कलाकार के रूप में काफी सामान्य, शांत जीवन जी रही थी। मैंने निकटतम गिरजाघर की खोज की जो उस दिन खुला था और कुछ कदमों की दूरी पर मुझे एक रोमन कैथलिक गिरजाघर मिला। यह एक आश्चर्य था। हालाँकि मैं उस क्षेत्र से कई बार गुज़री थी, पर मैंने पहले वहाँ कभी गिरजाघर नहीं देखा था। जब हम बंद हृदय से जीवन के पथ पर चलते हैं तो यह आश्चर्यजनक है कि हम परमेश्वर की उपस्थिति के प्रति कितने अंधे हैं, जबकि वह हमारे कितने निकट है। मेरा फोन बज उठा मैंने गिरजाघर के नंबर पर फोन किया और एक दयालु महिला ने फोन उठाया। उसने खुद को पल्ली के सचिव के रूप में पेश किया और मैंने उनसे कुछ सवाल पूछे, जिसका जवाब देने में उन्होंने खुशी प्रकट की। उन्होंने मुझे बताया कि वह कैथलिक गिरजाघर है और वे वहां के फादर को बतायेंगी कि मैंने फोन किया था और हमने एक दुसरे को अलविदा कहा । मैं शर्मीली थी और मुझे नहीं पता था कि क्या उम्मीद की जाए। मैं हमेशा निर्णय लेने से पहले स्थिति के बारे में सबकुछ जानना पसंद करती हूँ। मुझे नहीं पता था कि कैथलिक कलीसिया क्या होती है, और मैं अपने जीवन में कभी किसी फादर से नहीं मिली थी। मैंने काम से छुट्टी लेने और कैथलिक धर्म के बारे में जानने का फैसला किया, और कुछ घंटों के लिए विकिपीडिया पर कैथलिक धर्म के बारे में बहुत कुछ पढ़ा। फिर मेरा फोन बजा। दूसरी लाइन पर एक सौम्य आवाज थी – जिसपर मार्क नामक एक फादर मुझसे बात कर रहे थे। वे बहुत ही मिलनसार और उत्साही थे जो मेरे लिए बहुत बड़ा आश्चर्य था। मैं अपने जीवन में कभी ऐसे किसी व्यक्ति से नहीं मिली थी जो मुझसे मिलने और मेरा स्वागत करने के लिए इतना उत्सुक हो। मैंने अगले दिन गिरजाघर जाकर फादर से मिलने का समय निर्धारित किया। जैसे ही मैं वहां पहुंची, फादर मार्क अपने पुरोहित वाले पोशाक में मेरा अभिवादन करने के लिए वहाँ खड़े थे। यह पहली बार था जब मैंने किसी पुरोहित को व्यक्तिगत रूप से देखा था और मुझे याद है कि मैं वास्तव में उनके पोशाक से मोहित हो गयी थी। मुझे लगता है कि मैंने कभी नहीं सोचा था कि एक पुरोहित कैसा दिखता होगा। मैंने कभी-कभी पोप को केवल टेलीविजन समाचारों पर संक्षिप्त रूप से देखा था, लेकिन इससे आगे कभी कुछ नहीं देखा था। फादर मार्क मेरे साथ बैठे और हमने कुछ घंटों तक बात की, फिर उन्होंने मुझे "आर.सी.आई.ए" कक्षाओं में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि उसी समय से पवित्र मिस्सा में जाना शुरू करना अच्छा विचार होगा, और मैंने वैसा ही किया। मैं उस पहले पवित्र मिस्सा को याद करती हूं जिसमें मैंने भाग लिया था। वह गौदेते यानी आनंद का रविवार था और मैं, शिष्टाचार से एकदम अनजान, बिल्कुल सामने के बेंच पर बैठी थी। मेरे आस-पास हर कोई खड़ा हो रहा था और फिर बैठ रहा था और फिर खड़ा हो रहा था और कभी-कभी घुटने टेककर, धर्मसार और अन्य प्रार्थनाओं का पाठ कर रहा था। मैं नयी थी और मुझे यह थोड़ा डराने वाला लगा, लेकिन आकर्षक और पेचीदा भी। मैंने अपनी क्षमता के अनुसार उसका अनुसरण किया, जो बाकी सभी कर रहे थे। पुरोहित एक सुंदर गुलाबी वस्त्र पहना हुआ था जो बहुत अलंकृत और शोभित लग रहा था। उनको वेदी पर प्रार्थनायें बोलते हुए मैं ने सुना और मैं ने देखा कि सुंगंधित धूप की धुआँ गिरजाघर में भर गयी। अंग्रेजी भाषा में अर्पित किया गया वह मिस्सा बलिदान मुझे बहुत अच्छा लगा और मुझे पक्का मालूम कि मैं इसी जगह वापस आनी वाली हूँ। सीधे दिल की ओर मुझे यह इतना पसंद आया कि मैं हर सप्ताहांत गिरजाघर वापस जाती रही और बाद में प्रति दिन ख्रीस्तयाग में भाग लेने लगी। येशु के लिए मेरा प्यार हर मुलाकात में बढ़ता गया। मेरे पहले क्रिसमस जागरण मिस्सा के दौरान, पुरोहित ने अपने रेशमी वस्त्र से बालक येशु की प्रतिमा को उसी तरह की कोमलता से लिपट कर संभाले हुए थे, जिस तरह पुरोहित पवित्र संस्कार को पकड़ते हैं। गीतों और प्रार्थनाओं के साथ वे जुलूस में गिरजाघर की परिक्रमा करते हुए बालक येशु के साथ चरनी की ओर चले, और मेरी आंखें नम हो गईं थीं । वह सब बहुत प्यारा था। मैंने अपने जीवन में पहले कभी ऐसा कुछ नहीं देखा था। अब मैं कैथलिक कलीसिया में स्वीकार किए जाने के लिए तैयारी कर रही थी, मैंने पल्ली के पुरोहितों द्वारा दी गई धर्मशिक्षा को घर पर पढ़ने में बहुत समय बिताया। विशेष रूप से मेरे बपतिस्मा से एक हफ्ते पहले मुझे बताया गया था कि मुझे अपने दृढ़ीकरण संस्कार के लिए किसी एक स्वर्गिक संरक्षक संत को चुनना होगा। हालाँकि, वहाँ हजारों संत थे, और मुझे नहीं पता था कि मैं उन सभी में से किसे चुनूँगी। संत फिलोमेना के अलावा मैं अन्य संतों के बारे में कुछ नहीं जानती थी क्योंकि एक रविवार को फादर ने उनपर प्रवचन दिया था। परमेश्वर की कृपा से जब मैं पैरिश कैफे में स्वयंसेवा कर रही थी तो मुझे एक आकर्षक पुस्तक मिली जिसका नाम था "इंटीरियर कैसल्स"। वह पुस्तक एक स्पैनिश कार्मेल मठवासिनी साध्वी, अविला की संत तेरेसा द्वारा लिखी गयी थी जिसके बारे में मैंने पहले कभी नहीं सुना था। चूंकि मेरा परिवार स्पेनिश विरासत का है, इसलिए मैंने उसे अपनी संरक्षिका के रूप में चुना, हालांकि मैं उसके बारे में ज्यादा नहीं जानती थी। अंत में, 15 अप्रैल 2017 को पास्का जागरण मिस्सा के दौरान, मुझे कैथलिक गिरजाघर में बपतिस्मा और दृढ़ीकरण संस्कार मिला। मैं इस बात से ज्यादा उत्साहित नहीं थी की पास्का रविवार को मुख्य मिस्सा में गायक मंडली के साथ गाने के लिए मैं सुबह तरोताजा थी और जल्दी उठ गयी थी। लेकिन मैं इतनी उत्साहित इसलिये थी क्यूँकि मैं अब वेदी की रेलिंग पर खड़ी होकर पवित्र संस्कार ग्रहण कर सकती थी। इसके तुरंत बाद, मैं मरियम की सेना में शामिल हो गयी और मैंने रोज़री माला विनती करना, रोज़री बनाना और शहर के चारों ओर मिशन का काम करना शुरू कर दिया ताकि बिछुड़ गए कैथलिकों को पवित्र मिस्सा में वापस लाया जा सके और घर पर लोगों के साथ रोज़री माला विनती की जा सके। संत तेरेसा मेरे जीवन में मार्गदर्शक बनी रहीं, जो मुझे येशु से अधिक से अधिक प्यार करना सिखाती रहीं| लेकिन मुझे कार्मेल मठवासियों के बारे में जानकारी तभी मिली जब मैं आयल्सफोर्ड प्रियोरी में संत साइमन स्टॉक के धर्मस्थल के लिए एक दिन की तीर्थयात्रा पर हमारी पल्ली के लोगों के साथ शामिल हुई| वह कार्मेल मठवासियों का ऐतिहासिक मठ था। आमूलचूल बदलाव वर्षों बाद, मुझे एक अन्य स्पेनवासी, संत जोसेमरिया एस्क्रिवा के बारे में पता चला, जिन्हें अविला की संत तेरेसा और कार्मेल के मठवासियों से बहुत प्यार था। वे ‘ओपुस देई’ नामक कैथलिक संस्था के संस्थापक थे, जिसमें मैं एक सह-संचालक के रूप में शामिल हुई, और जिसमें मेरा दायित्व संस्था के सदस्यों और पुरोहितों के लिए प्रार्थना करना था। मैंने महसूस किया कि परमेश्वर मुझे एक गहरी प्रतिबद्धता के लिए बुला रहा है, लेकिन मुझे यह नहीं पता था कि वह प्रतिबद्धता ओपुस देई के साथ थी, या किसी धर्मसंघ में साध्वी के रूप में। एक पुरोहित मित्र ने मुझे बताया कि मुझे अपना मन बनाना होगा और फैसला करना होगा कि मुझे कौन सा रास्ता चुनना है, जिससे मैं हमेशा के लिए किसी भी अनिश्चितता में न रहूँ। उनका कहना सही था, इसलिए मैं परमेश्वर की पुकार सुनकर प्रार्थना और उपवास करने लगी। मेरा जीवन बहुत कम समय में बहुत सारे परिवर्तनों से गुजरा था और मेरी आत्मा ने एक अंधेरी रात को सहा था। मेरा क्रूस मुझे बहुत भारी लग रहा था, लेकिन मैं जानती थी कि अगर मैं अपने विश्वास में दृढ़ बनी रही, तो सब ठीक हो जाएगा। मुझे अपने ऊपर मेरे द्वारा पूर्ण नियंत्रण को छोड़ देना था, मुझे मार्ग दिखाने केलिए परमेश्वर को मौक़ा देना था और उसकी इच्छा के विरुद्ध लड़ना बंद करना था। मैं अपने अहंकार में बहुत फंस गयी थी और वास्तव में अब परमेश्वर को सुनने की इच्छा मेरे अन्दर है। जब इस समझदारी का प्रकाश उदय हुआ, तब मैंने फैसला किया कि हर दिन जो परमेश्वर की ओर से एक उपहार के रूप में आता है, उसे अच्छे से जी लूंगी, और इस केलिए उससे मार्गदर्शन मांगूंगी। मैंने इस दर्शन को अपनाया कि ईश्वर हमें वहीं रखता है जहाँ हमारा प्रचुर जीवन है क्योंकि उस विशिष्ट समय में उसे हमारी आवश्यकता होती है। मैंने स्वयं को उसकी दिव्य इच्छा का साधन बना लिया। जब मैंने अपने आप को उसके लिए छोड़ दिया, तो परमेश्वर ने मुझे दिखाया कि सब कुछ उसकी इच्छा के अनुकूल हुआ था क्योंकि वह मुझे शुरू से ही बुला रहा था। हे दिव्य ज्योति, मेरा पथ प्रदर्शन कर! मुझे उन संतों से उपहार मिलते रहे जो मुझे कार्मेल तक ले जा रहे थे। एक दिन, मैं सीमेंट के फर्श पर उगते हुए चमकीले लाल गुलाब के फूल को देखकर मंत्रमुग्ध हो गयी। बाद में मुझे पता चला कि वह दिन लिस्यु के संत तेरेसा का जन्मदिन था जिन्होंने कहा था कि वह लोगों को स्वर्ग से एक संकेत के रूप में गुलाब भेजेंगी। उसी दिन, मैं अगरबत्ती की एक दुकान पर थी, जब मुझे सुंदर गुलाब से सुगंधित अगरबत्ती का एक डिब्बा मिला, जिस पर लिस्यु के संत तेरेसा की छवि छपी थी। इन छोटे संकेतों ने मेरे अन्दर बुलाहट और विश्वास के बीज बोने में मदद की। जैसे मैं यह लिख रही हूँ, मैं कैथलिक कलीसिया के सदस्य के रूप में अपनी छठवीं वर्षगांठ मनाने वाली हूं और कार्मेल पर्वत की कुँवारी मरियम के पावन उद्यान में प्रवेश करने की तैयारी कर रही हूं। यदि परमेश्वर चाहता है तो साध्वी के रूप में जीने के इस बुलाहट को स्वीकार करते हुए, मैं अपना जीवन कलीसिया के लिए, दुनिया के लिए और पुरोहितों के लिए प्रार्थना करते हुए बिताऊँगी। यह एक लंबी यात्रा रही है, और मैं रास्ते में बहुत से अद्भुत लोगों से मिली हूँ। लिस्यु के संत तेरेसा ने कार्मेल को अपने उस रेगिस्तान के रूप में वर्णित किया जहां हमारे प्रभु ने मनन चिंतन और प्रार्थना में चालीस दिन बिताए, लेकिन मेरे लिए यह गेथसेमेनी का बाग़ है जहां हमारे प्रभु प्राण-पीड़ा में जैतून के पेड़ों के बीच बैठे थे। मैं निरंकुश प्रेम के साथ उनकी पीड़ा में शामिल होती हूं, और उनके साथ कलवारी के मार्ग पर क्रूस यात्रा करती हूं। हम साथ में आत्माओं के लिए पीड़ित होते हैं और दुनिया को अपना प्यार देते हैं।
By: Holly Rodriguez
Moreपरमेश्वर को “हाँ” कहना आपके जीवन में लिए गए निर्णयों में सबसे अच्छा निर्णय है! मिस्सा बलिदान के बाद उद्घोषणा करने वाली महिला ने निवेदन किया, "कृपया मदद करें, हमें कनिष्ठ उच्च धार्मिक शिक्षा कार्यक्रम के लिए शिक्षकों की सख्त जरूरत है।" मैंने न सुनने का नाटक किया। हम इलिनोय से एरिज़ोना वापस चले गए थे, और हमारे पांच बच्चों में से सबसे बड़ा लड़का हाई स्कूल में प्रवेश कर रहा था। प्रत्येक रविवार, उसी महिला द्वारा मिस्सा के बाद उसी सरल निवेदन की घोषणा! परमेश्वर शायद सप्ताह दर सप्ताह मुझ में कार्य कर रहा था। मुझे पता था कि मैं धर्म शिक्षा स्कूल की तालिका में अपने पांच बच्चों को जोड़ रही हूं; आखिर, शायद मुझे मदद करनी चाहिए। इसमें शरीक न होने का मेरा संकल्प फीका पड़ गया, और मैंने अपना नाम दर्ज कर लिया। मैं हमेशा कहा करती थी कि मैं "हाँ" वाले जीन के साथ पैदा हुई हूं। कुछ करने का मुझ में ज़ज्बा हैं, इसलिए जिन संगठनों से मैं जुड़ी हूँ, वे लोग जानते हैं कि मैं अपनी ज़िम्मेदारी निभाने केलिए मीलों की दूरी तय कर सकती हूँ। इसलिए मैं ने “हाँ” कहा। “मैं एक पालना कैथलिक हूँ; बच्चों को पढ़ाना कितना कठिन हो सकता है?” फिर भी मैं तैयार हो गयी। अगले कुछ वर्षों में, युवाओं के बीच सेवकाई के प्रभारी आते-जाते रहे। सबसे अंतिम युवा सेवक प्रभारी के जाने के बाद, हमारे पल्ली पुरोहित ने मुझसे संपर्क किया और कहा कि आपके साथी स्वयंसेवक शिक्षकों ने आपको युवा सेवक प्रभारी के रूप में पदभार ग्रहण करने की सिफारिश की है। “मुझे?” “हाँ, क्या आप कोशिश करने को तैयार हैं?” फिर से, उस ‘हाँ जीन’ के कारण मैं ने हाँ कह दिया। ईश्वर रहस्यमय तरीके से काम करता है, और कुछ ही हफ्तों के भीतर, मैं धर्मशिक्षा के कनिष्क हाई स्कूल की नई प्रभारी बन गयी थी। मैंने पहले माना था कि कैथलिक कलीसिया के लिए केवल पुरोहित और नन (साध्वी लोग) ही काम कर सकते हैं। मुझे याद है कि पहले मैं सोचा करती थी कि प्रभु की दाखबारी में समान विचारधारा वाले सहकर्मियों के साथ ऐसे पवित्र वातावरण में काम करना कितना शानदार होगा। जल्दी ही वह कल्पना मिट गयी। अपने नए कार्य क्षेत्र में प्रवेश पाते ही, शीघ्र ही मुझे यह दु:खद अहसास हुआ कि कलीसिया के लिए काम करने वाला व्यक्ति ऐसा होना चाहिए जिसके पास कठिन सवालों के जवाब हों और धार्मिक ज्ञान हो। उस विचार ने मुझे भयभीत कर दिया। कलीसिया सम्बन्धी मेरी कोई पृष्ठभूमि या शिक्षा नहीं थी। वास्तविकता यह है कि जब विश्वास की बात आती थी तो हर पल यह सोच मुझ पर आक्रमण करती थी कि मैं एक गूंगी की तरह इस कार्य के लिए अयोग्य थी। कैथलिक होने के चालीस वर्षों में अक्सर उद्धृत की जाने वाली उस पंक्ति से मैं अनभिज्ञ थी कि “परमेश्वर जिन्हें बुलाता है, उन्हें वह सुसज्जित करता है”। हालाँकि, यह वही डर था जिसने मुझे काम करने के लिए प्रेरित किया। कॉलेज जाना कोई विकल्प नहीं था। इसका मतलब था कि मुझे रचनात्मक होने की जरूरत है। जब मेरा एक बेटा अपनी किंडरगार्टन कक्षा में था, तब मुझे सिस्टर ग्लोरिया से एक कैसेट मिला था। आठ साल तक मैंने कभी इसे सुनने का समय नहीं निकाला। एक दिन किसी अदृश्य शक्ति ने मुझे इसे सुनने के लिए मजबूर किया। इसे आप "डॉ. स्कॉट हैन की रूपांतरण कहानी" कह सकते हैं। मुझे नहीं पता था कि डॉ. हैन कौन थे, लेकिन एक शांत क्षण में, मैंने उस कैसेट को सुनना शुरू किया। सत्य की खोज में निकले प्रेस्बिटेरियन कलीसिया के इस पादरी की यात्रा आकर्षक थी, और वह यात्रा उन्हें कैथलिक कलीसिया में ले आई। मुझे और लालसा हुई। उस दौरान, हमें कैलिफोर्निया में उस गर्मी में होने वाले कैथलिक पारिवारिक सम्मेलन के बारे में सूचना दी गयी थी। मैंने अधिकांश वक्ताओं के नाम कभी नहीं सुना था, लेकिन पता चला कि डॉ. हैन रहेंगे। मेरे पति भी उत्सुक थे, और हम पूरे परिवार को ले आए। विख्यात वक्ता टिम स्टेपल्स, जेसी रोमेरो, स्टीव रे, और कई अन्य धर्मान्तरित वक्ताओं ने हमें प्रेरित किया, हमारे दिलों के अंगारों को हवा दी। हमने धर्म मंडन, विश्वास की रक्षा करने की कला सहित कई विषयों पर किताबें और कैसेट खरीदे। बच्चे उत्साहित थे, और हम भी। एक जुनून भरी आग हमारे अंदर सुलगने लगी थी जो हमारे पास पहले नहीं थी। साल-दर-साल, हम अन्य परिवारों को इस पारिवारिक वार्षिक सम्मेलन में शामिल होने के लिए आमंत्रित करते, और वे भी इसी आग से जल उठते। मुझे युवा सेवक के रूप में प्रमाण पात्र प्राप्त करने की आवश्यकता थी। एक बार फिर, ईश्वर ने मुझे मौका दिया और मैंने फ्रांसिस्कन विश्वविद्यालय में संत जॉन बॉस्को ग्रीष्मकालीन सम्मेलन में भाग लिया। यह सब मेरे लिए एक नया रोमांच था। मैंने प्रार्थना, आराधना, पूजा, धर्मशिक्षा और अविश्वसनीय वक्ताओं के माध्यम से कभी भी ईश्वर का इस प्रकार अनुभव प्राप्त नहीं किया था। मेरे अन्दर इन बातों की ऐसी भूख पैदा हुई जिसका मैं ने पहले कभी नहीं अनुभव किया था। मेरे द्वारा खाए गए हर अनमोल निवाला के साथ, मुझे और अधिक खाने की इच्छा हुई। इस ढलती उम्र में मैं परमेश्वर और अपने विश्वास के बारे में इतनी अज्ञानी कैसे हो सकती हूँ? लोगों की कल्पना के विपरीत, परमेश्वर के प्रति अपने ज्ञान और प्रेम का विस्तार करना उबाऊ नहीं है। यह उत्तेजक और प्रेरक है। ईश्वर के साथ मेरा रिश्ता आखिरकार पोषित किया जा रहा था। मिस्सा बलिदान हमारे लिए जीवंत हो गया। मेरे जीवन के जिन आयामों का मैनें सामना किया उन सब में आनंद और विश्वास की वृद्धि स्पष्ट थी। मेरे उत्साही जुनून ने मेरे जीवन के सभी पहलुओं पर आधिपत्य जमाया, विशेषकर सेवकाई के क्षेत्र में। परमेश्वर ने उदारता से मुझे आशीर्वाद दिया, हाँ, और प्रचुर मात्रा में फल मिले। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान, परमेश्वर मुझे अपने और करीब ले जा रहा था, वह मुझे अपने वचन रूपी रोटी के टुकड़े देकर मुझे संपोषित कर रहा था जो मुझे कदम-दर-कदम उसके करीब लाता गया। इक्कीस साल बाद, मैं अभी भी कैथलिक कलीसिया के लिए काम करती हूं लेकिन अब वैवाहिक तैयारी का प्रशिक्षण चलाती हूँ। मैं अभी भी उस आग को जारी रखने के कई तरीकों का अनुसरण करती हूँ जो इतने साल पहले लगी थी। मेरा अंतहीन आभार उन धर्मांतरित लोगों के लिए जाता है, जिन्होंने हर कीमत पर सत्य का अनुसरण किया और जिस दिशा में ईश्वर ने उनकी अगुवाई की, उसी ओर जाने केलिए वे तैयार थे। वे कभी नहीं जान पाएंगे कि परमेश्वर ने कितने लोगों के जीवन को उनकी हाँ के कारण प्रभावित किया, और उनमें से एक मेरा भी जीवन था। और हमारे वे पांच छोटे बच्चे बड़े हो गए, और उनकी शादी गिरजाघर में हुई और उनके अपने बच्चे प्रभु परमेश्वर को अनुभव करते हुए और अपने कैथलिक विश्वास से प्यार करते हुए बड़े हो रहे हैं। मेरे पति भी दस साल से उपयाजक (डीकन) के पद पर हैं। हे परमेश्वर, सारी महिमा और सभी श्रेय मैं तुझे देती हूँ। तू हमारे लिए कितने उदार और अच्छा है; तू मेरे दिल में आग प्रज्वलित करने का सबसे अच्छा तरीका जानता था। इसके लिए तुझे धन्यवाद देने के लिए मेरे पास शब्दों की कमी है। “ईश्वर आप लोगों को प्रचुर मात्रा में हर प्रकार का वरदान देने में समर्थ हैं, जिससे आप को कभी किसी तरह की कोई कमी नहीं हो, बल्कि हर भले काम केलिए चन्दा देने केलिए भी बहुत कुछ बच जाए।“ (2 कुरिन्थी 9:8) पीड़ा और प्रार्थना के माध्यम से, तूने मुझे जो कुछ भी दिया है, वह मुझे तेरे और मेरे मार्ग पर तेरे द्वारा लाये गए उन सभी के करीब ले आया है। धन्यवाद हे प्रभु!
By: Barbara Lishko
Moreक्या आपको लगता है कि आपका संघर्ष कभी खत्म न होने वाला है? जब हताशा आपके दिल को जकड़ लेती है, तो आप क्या करते हैं? मैं मनोचिकित्सक के कमरे में एक बड़ी कुर्सी पर हाथ मलते हुए बैठी थी और उनके आने का इंतज़ार कर रही थी। मैं उठकर भागना चाह रही थी। मनोचिकित्सक ने मेरा अभिवादन किया, कुछ साधारण से प्रश्न पूछे और फिर परामर्श की प्रक्रिया शुरू हुई। उनके पास एक डिजिटल टैबलेट और कलम थी। हर बार जब मैंने कुछ कहा या हाथ का इशारा किया, तो वे टैबलेट पर कुछ लिखते रहे। मैं अपने दिल की गहराई से जानती थी कि थोड़े समय के बाद वे निर्धारित करेंगे कि मेरी मानसिक हालत ऐसी है कि मैं मदद से परे हूं। वह सत्र इस सुझाव के साथ समाप्त हुआ कि मैं अपने जीवन की गड़बड़ी से निपटने में मदद के लिए ट्रैंक्विलाइज़र लूं। मैंने उनसे कहा कि मैं इसके बारे में सोचूँगी; लेकिन सहज रूप से मुझे पता था कि यह कोई समाधान नहीं था। हताश और अकेली एक और अपॉइंटमेंट लेने के लिए, मैं स्वागत कक्ष में बैठी महिला से अपने जीवन की गड़बड़ी के बारे में बात करती रही। उसके पास सुनने वाला दयालु कान था और उसने पूछा कि क्या मैंने कभी ‘अल-अनॉन’ की बैठक में जाने पर विचार किया था। उसने समझाया कि ‘अल-अनॉन’ उन लोगों के लिए है, जिनका जीवन परिवार के किसी सदस्य के अत्यधिक शराब पीने से प्रभावित हो रहा है। उसने मुझे एक नाम और फोन नंबर दिया और मुझे बताया कि यह ‘अल-अनॉन’ महिला मुझे एक बैठक में ले जायेगी। अपनी कार में बैठकर, बहते हुए आंसुओं के साथ, मैंने नाम और फ़ोन नंबर को देखा। मनोचिकित्सक से और अपने जीवन की परेशानियों से कोई राहत नहीं मिलने के बाद, मैं कुछ भी आजमाने के लिए तैयार थी। मैंने यह भी निष्कर्ष निकाला कि मनोचिकित्सक ने दवाइयों के अलावा कोई दूसरा हल न होने की बात पहले ही मुझसे कही थी। इसलिए, मैंने अल-अनॉन महिला को फोन किया। उसी क्षण मेरे जीवन की गड़बड़ी में ईश्वर ने प्रवेश किया, और मेरे ठीक होने की यात्रा शुरू हुई। मैं कहना चाहूंगी कि अल-अनोन के 12-चरणों वाले चंगाई कार्यक्रम की प्रक्रिया की शुरुआत के बाद यह सुचारू रूप से चल रहा था, लेकिन रास्तें में बड़ी पहाड़ियाँ तथा अंधेरी और सुनसान घाटियाँ खड़ी थीं, हालांकि वे हमेशा आशा की किरण के साथ खड़ी थीं। मैं प्रति सप्ताह दो अल-अनोन बैठकों में ईमानदारी से भाग लेती थी। अल-अनॉन के 12-चरणीय कार्यक्रम मेरी जीवन रेखा बन गया। मैंने अन्य सदस्यों के साथ खुल कर अपने बारे में बात की। धीरे-धीरे मेरे जीवन में प्रकाश की एक किरण आई। मैं फिर से प्रार्थना करने लगी और ईश्वर पर भरोसा करने लगी। दो साल की अल-अनोन बैठकों के बाद, मुझे पता था कि मुझे अतिरिक्त पेशेवर मदद की ज़रूरत है। एक दयालु अल-अनोन मित्र ने मुझे 30-दिवसीय अन्तरंग-रोगी उपचार कार्यक्रम में प्रवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया। मेरा दिल नरम हुआ क्योंकि मुझे शराब पर गुस्सा था, मैं इस उपचार कार्यक्रम में किसी भी ‘शराबी’ के आसपास नहीं रहना चाहती थी। उस गहन कार्यक्रम के दौरान, मैं वास्तव में शराब और नशीली दवाओं के लत में डूबे कई लोगों से घिरी हुई थी। ऐसा लगता है कि ईश्वर को पता था कि मुझे क्या ठीक करने की आवश्यकता है: जब मैंने अपने लत में डूबे साथियों के व्यक्तिगत दर्द और उनके कारण उनके परिवारों को हुए गहरे तकलीफों को देखा तो मेरा दिल नरम होने लगा। इस समर्पण के दौरान ही अपनी ही शराब की लत पर मैंने काबू पाया। मुझे पता चला कि मैं अपना दर्द छुपाने के लिए शराब पीती थी। मुझे पता चला कि मैं भी शराब का दुरुपयोग कर रही थी और यह सबसे अच्छा होगा कि मैं पूरी तरह से शराब से दूर रहूँ। उस महीने मैंने अपने पति के प्रति अपने क्रोध को दूर किया और उन्हें ईश्वर के हाथों में सौंप दिया। मेरे ऐसा करने के बाद, मैं उन्हें क्षमा कर सकी। मेरे 30 दिनों के उपचार कार्यक्रम के बाद, ईश्वर की कृपा से, मेरे पति ने भी शराब की लत के उपचार कार्यक्रम में प्रवेश किया। मेरा और मेरे पति का और हमारे दो किशोर बेटों का जीवन बेहतर हो रहा था। हम कैथलिक चर्च में वापस आ गए थे और एक एक दिन हमारा वैवाहिक जीवन दुरुस्त किया जा रहा था। दिल दहला देने वाला दर्द तब जीवन ने हमें एक अकल्पनीय झटका दिया जिसने हमारे दिलों को एक लाख टुकड़ों में तोड़ दिया। हमारा सत्रह वर्षीय बेटा और उसका दोस्त एक विनाशकारी कार दुर्घटना में मारे गए। यह हादसा गाड़ी के तेज रफ्तार और उन दोनों के शराब पीने के कारण हुआ। हम हफ्तों तक सदमे में रहे। हमारे बेटे के इस तरह हिंसात्मक ढंग से छीन जाने के कारण चार लोगों का हमारा परिवार अचानक तीन में सिमट गया। मेरे पति, मैं और हमारा 15 साल का बेटा एक-दूसरे से, अपने दोस्तों से, और अपने विश्वास से लिपटे रहे। इस दर्द को एक दिन में भी सहना मेरी सहनशक्ति के बाहर था, पर मुझे इसे हर मिनट, हर घंटे तक सहना था। मुझे लगा यह दर्द हमें कभी नहीं छोड़ेगा। ईश्वर की कृपा से, हमने मनोवैज्ञानिक परामर्श की एक विस्तारित अवधि में प्रवेश किया। दयालु और हमारी अच्छी परवाह करने वाले वह सलाहकार जानता था कि परिवार का प्रत्येक सदस्य किसी प्रियजन की मृत्यु से अपने तरीके से और अपने समय में निपटता है। इसलिए हमें अपने दुःख का सामना करने के लिए उन्होंने हममें से प्रत्येक के साथ व्यक्तिगत रूप से काम किया। मेरे बेटे की मौत के महीनों बाद भी, मैं गुस्से और रोष से भरी हुई थी। मेरे लिए यह जानना डरावना था कि मेरी भावनाएँ इतनी बेतहाशा नियंत्रण से बाहर हो गई थीं। मैं अपने बेटे के छीन जाने पर ईश्वर से नाराज नहीं थी, लेकिन अपने बेटे की मृत्यु की रात ही उसके गैर-जिम्मेदाराना फैसले के लिए उससे मैं नाराज थी। उसने शराब पीने का निर्णय लिया और एक ऐसी गाड़ी में सफ़र करने का निर्णय लिया जिसे किसी शराबी व्यक्ति द्वारा चलाया जा रहा था। मैं शराब पर और उसके विभिन्न रूपों और परिणामों पर क्रोधित थी। एक दिन हमारे स्थानीय सुपरमार्केट में, मैंने गलियारे के अंत में एक बियर की प्रदर्शनी देखी। हर बार जब भी मैं प्रदर्शनी के पास से गुजरती, तब मैं गुस्से से भर जाती। मैं प्रदर्शनी को तब तक ध्वस्त करना चाहती थी जब तक कि उसमें कुछ भी न बचा हो। इससे पहले कि मेरा गुस्सा बेकाबू होकर फूट पड़ता, मैं दुकान से बाहर निकल गयी। मैंने अपने पारिवारिक परामर्शदाता के साथ इस घटना को साझा किया। उन्होंने मुझे निशानबाज़ी के मैदान में ले जाने की पेशकश की, जहां मैं उनकी राइफल का इस्तेमाल निशाना लगाने, गोली मारने और अधिक से अधिक बीयर के खाली बोतलों को ध्वस्त करने के लिए कर सकती थी, ताकि मुझ पर हावी हो रहे शक्तिशाली क्रोध को सुरक्षित रूप से मैं मुक्त कर सकूं। प्यार जो चंगा करता है लेकिन ईश्वर के अपने अनंत ज्ञान में मेरे लिए अन्य कोमल योजनाएँ थीं। मैंने काम से एक सप्ताह की छुट्टी ली और एक आध्यात्मिक साधना में भाग लिया। साधना के दूसरे दिन, मैंने एक आंतरिक चँगाई वाले मनन चिंतन में भाग लिया जिसमें मैंने रंगीन फूलों, समृद्ध हरी घास और चहचहाने वाले नीले कोमल पक्षियों से भरे, शानदार पेड़ों से घिरे एक सुंदर बगीचे में येशु, अपने बेटे, और खुद को पाया। यह शांतिपूर्ण और निर्मल अनुभव था। मैं येशु की उपस्थिति में होने और अपने अनमोल बेटे को गले लगाने में सक्षम होने के लिए बहुत खुश थी। येशु, मेरा बेटा, और मैं इत्मीनान से हाथ में हाथ डाले, चुपचाप हमारे बीच में बहते अपार प्रेम को अनुभव करते हुए टहल रहे थे। ध्यान के बाद, मुझे गहन शांति का अनुभव हुआ। साधना से वापस घर लौटने के बाद ही मुझे एहसास हुआ कि मेरा गुस्सा और रोष ख़तम हो चुका था। येशु ने मेरे बेकाबू क्रोध से मुझे चंगा किया था और उसके स्थान पर अपने अनुग्रह से भर दिया था। क्रोध के बजाय मुझे अपने अनमोल बेटे के लिए केवल प्यार महसूस हुआ। मेरे बेटे ने अपने बहुत छोटे जीवन में मुझे जो प्यार, खुशी और आनंद दिया है, उसके लिए मैं आभार महसूस कर रही थी। मेरा भारी बोझ हल्का होता जा रहा था। जब किसी परिवार में दु:खद मौत आती है, तो हर सदस्य की दिल में शोक भर जाता है। नुकसान को संभालना चुनौतीपूर्ण कार्य है, जिसके लिए हमें अंधेरी घाटियों से गुजरना पड़ता है। लेकिन ईश्वर का प्रेम और उसकी अद्भुत कृपा हमारे जीवन में धूप और आशा की किरणें वापस ला सकती है। ईश्वर के प्रेम से संतृप्त होने पर दुःख हमें अंदर से बाहर तक बदलता है, हमें धीरे-धीरे प्रेम और करुणा से भरे लोगों में परिवर्तित करता है। स्थिर आशा नशे की लत के प्रभावों और उसके साथ आने वाले मानसिक विभ्रांति के प्रभावों से और साथ साथ मेरे बेटे की मौत के शोक से भी निपटने के कई वर्षों के दौरान, मैं येशु मसीह, मेरी चट्टान और मेरे उद्धारकर्त्ता से जुड़ी हुई हूं। हमारे बेटे की मौत के बाद हमारे वैवाहिक जीवन को काफी नुकसान हुआ। लेकिन ईश्वर की कृपा से और उससे और मदद मांगने की हमारी इच्छा के कारण, हम प्रतिदिन एक-दूसरे से प्यार करते हैं और एक-दूसरे को स्वीकार करते हैं। हमारे उद्धारकर्ता और हमारे प्रभु येशु मसीह में आशा रखने के लिए यह दैनिक समर्पण, विश्वास, स्वीकृति और प्रार्थना आवश्यक है। हम में से प्रत्येक के पास दूसरों के साथ साझा करने के लिए अपने जीवन की एक कहानी है। अक्सर यह आनंद और आशा के मिश्रण के साथ दिल के दर्द, चुनौती और दुख की कहानी होती है। चाहे हम इसे स्वीकार करें या न करें, सच्चाई यह है कि हम सभी ईश्वर को खोज कर रहे हैं। जैसा कि संत अगस्टिन ने कहा है: "हे ईश्वर, तूने हमें अपने लिए बनाया है, और हमारा दिल तब तक बेचैन है जब तक यह तुझ में विश्राम नहीं पाता।" ईश्वर की खोज में हम में से बहुत से लोगों ने ऐसे रास्ते निकाले हैं, जो अंधेरी और सुनसान जगहों की ओर हमें ले जाते हैं। हममें से कुछ लोगों ने उस मार्ग से भटक जाने से अपने आप को बचाकर रखा है और येशु के साथ गहरे संबंध की हमने तलाश की है। लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप अपने जीवन के किस दौर से गुजर रहे हैं, क्योंकि आगे आशा और चंगाई ज़रूर है। हर पल ईश्वर हमें खोज रहा है। हमें बस इतना करना है कि हम अपना हाथ आगे बढ़ाएँ और उसे थामने दें और उसे हमारी अगुवाई करने दें। “यदि तुम समुद्र पार करोगे, तो मैं तुम्हारे साथ होऊँगा। जलधाराएं तुम्हें बहा कर नहीं ले जायेंगी। यदि तुम आग पार करोगे, तो तुम नहीं जलोगे। ज्वालाएँ तुम को भस्म नहीं करेंगी; क्योंकि मैं, प्रभु, तुम्हारा ईश्वर हूँ; मैं इस्राएल का परम पावन उद्धारक हूँ। (इसायाह 43:2-3)
By: Connie Beckman
Moreक्या आप जीवन के बोझ से परेशान हैं? आप राहत की सांस कैसे ले सकते हैं, इसे जानिए... मेरी शादी के कई सालों बाद तक, मैंने एक ऐसे जीवनसाथी के साथ शादी करने का बोझ ढोया, जो अविश्वासी था। माता-पिता के रूप में, हममें से कई लोग अपने बच्चों और परिवार के सदस्यों का बोझ उठाते हैं। लेकिन मैं आपसे कहूंगी, ईश्वर की योजना पर भरोसा रखें, उसके दिव्य विधान की पूर्ती के लिए उसके सही समय पर भरोसा करें। स्तोत्र ग्रन्थ 68:18-20 कहता है, "धन्य है प्रभु, हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर, जो प्रति दिन हमारा बोझ उठाता है।" हमें अपने बोझ के साथ क्या करना चाहिए? सबसे पहले ज़रूरी है कि निराशा न हो। जब हम निरुत्साहित होते हैं, तो यह कभी भी प्रभु की इच्छा के अनुरूप नहीं होता। हम जानते हैं कि बाइबिल हमें मत्ती 6:34 में कहती है, "कल की चिन्ता मत करो, क्योंकि कल अपनी चिन्ता स्वयं कर लेगा।" बाइबिल यह भी कहती है, "आज की मुसीबत आज के लिए बहुत है।" जब हम शांत होते हैं, तो यह ईश्वर की इच्छानुसार होता है, लेकिन जब हम चिंतित रहते हैं, तो यह शैतान की तरफ से होती है। स्वर्ग में कोई चिंता नहीं है, केवल प्रेम, आनंद और शांति है। मेरे प्यारे पति फ्रेडी को अपने जीवन के अंतिम साढ़े आठ वर्षों में अल्जाइमर रोग हो गया था। अल्जाइमर से पीड़ित पति के साथ रहने के दौरान, मैंने पाया कि मेरे जीवन में प्रभु की कृपा अद्भुत थी। प्रभु ने मुझे पति की बीमारी का बोझ अपने ऊपर न उठाने का अनुग्रह दिया। यह बोझ मुझे नष्ट कर सकता था। मैंने अपने आप को उस स्थिति में पाया जहाँ मुझे प्रार्थना करनी थी और लगातार सब कुछ प्रभु को देना था, पल-पल के आधार पर। जब आप किसी ऐसे व्यक्ति के साथ रहते हैं जिसे अल्ज़ाइमर है, तो जीवन लगातार बदलता है। हर सुबह जब मैं उठती हूँ, मैं बाइबिल के पास जाती हूँ। मैं इसे अपने दिन का पहले फल के रूप में बदल देती हूं। मैं जानती हूं कि मेरे येशु ने हमारे लिए क्रूस पर मरकर पहले ही हमारे हर एक बोझ को अपने ऊपर उठा लिया है। उसने हम में से प्रत्येक के लिए कीमत चुकाई है और वह प्रतीक्षा करता है कि हम में से प्रत्येक उन आशीषों को हथिया ले जो उन्होंने क्रूस पर अपनी मृत्यु के द्वारा हमारे लिए खरीदी हैं। मुझे सम्भालने वाली प्रतिज्ञाएँ उस सीजन में मैंने कई सबक सीखे। मैंने सीखा कि कभी-कभी परमेश्वर हमारी परिस्थितियों को बदलना नहीं चाहता, लेकिन जिन परिस्थितियों से हम गुजर रहे हैं, उनके द्वारा परमेश्वर हमारे ह्रदय को बदलना चाहता है। ठीक ऐसा ही मेरे साथ हुआ। मैंने प्रतिज्ञात देश से और पहाड़ की चोटियों से ज़्यादा जीवन की घाटियों में सीख ली। जब आप चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों का सामना करते हैं, तो आप या तो तैरना सीखते हैं या नीचे डूब जाते हैं। आप सीखते हैं कि जहां कोई रास्ता नहीं है वहां ईश्वर कोई रास्ता खोज लेता है। मैं प्रभु से निरन्तर विनती किया करती थी, "मुझे अनुग्रह दे कि मैं पौलुस के समान हर परिस्थिति में सन्तुष्ट रहूँ।" फिलिप्पियों को लिखे पत्र में, पौलुस लिखते हैं कि उन्होंने परिस्थितियों की परवाह किए बिना संतुष्ट रहना सीख लिया है। उनका यह भी कथन है, "जो मुझे बल प्रदान करता है, उनकी सहायता से मैं सब कुछ कर सकता हूं।" हमें यह जानना होगा कि हमें आगे बढ़ाने वाली शक्ति प्रभु की शक्ति है न कि हमारी शक्ति। हमें प्रभु पर भरोसा रखना है और हमें अपनी समझ पर निर्भर नहीं रहना है। हमें अपना बोझ उस पर डाल देना चाहिए और हमें संभालने की अनुमति हम उसे दे। जब हम चिंता में डूबने लगते हैं, तो हमारा सफ़र नीचे की ओर होता है। वहीं हमें प्रभु के पास आने और उन्हें अपना बोझ सौंपने की जरूरत है। “थके मांदे और बोझ से दबे हुए लोगो, तुम सभी मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा। मेरा जूआ अपने ऊपर ले लो और मुझ से सीखो। मैं स्वभाव से नम्र और विनीत हूं। इस तरह तुम अपनी आत्मा में शांति पाओगे" (मत्ती 11:28,29)। यह एक शानदार पवित्र वचन है जिसके बल पर मुझे साढ़े आठ वर्षों में ज़िन्दगी के कठिन डगर पर चलने की ताकत मिली है। यह एक प्रतिज्ञा है! इसलिए, विश्वास में हम में से प्रत्येक को अपने लिए और अपने प्रियजनों के लिए अपनी चिंताओं और आशंकाओं का पूरा भार प्रभु पर डालने के लिए तैयार रहना होगा। मिशन संभव! अभी कुछ समय निकालकर जिन सभी लोगों को आप अपने हृदय में लिए हुए हैं, उन्हें प्रभु को दें। चाहे वह आपका जीवनसाथी हो, आपके बच्चे हो, या कोई और जो भटक गया हो या विद्रोही हो। अब विश्वास की एक छलांग लें और इन सबको प्रभु को दे दें क्योंकि प्रभु आपकी परवाह करता है। आपकी आत्मा के शत्रु ने जहां आपकी शांति को लूट लिया है उन सभी बातों को भी प्रभु को दे दे। मेरा पति येशु के बारे में जानें, इस केलिए मुझे अट्ठाईस साल का लंबा इंतजार करना पड़ा। मैं उसे हर समय प्रभु को समर्पित करती थी। मैं प्रभु से कहा करती थी कि वह एक 'गवाही बनेगा’ और मैंने कभी हार नहीं मानी। परमेश्वर ने उसे परिवर्तित किया और एक स्वप्न के द्वारा उसकी आत्मा को चंगा किया। परमेश्वर का समय हमारे समय से बिलकुल भिन्न है। लूकस 15:7 कहता है, "निन्यानबे धर्मियों की अपेक्षा, जिन्हें पश्चाताप की आवश्यकता नहीं है, एक पश्चातापी पापी केलिए स्वर्ग में अधिक आनन्द मनाया जाएगा।" मैं आपको बता सकती हूँ, मेरे फ्रेडी के मनपरिवर्तन पर स्वर्ग में एक बड़ी पार्टी ज़रूर रही होगी! प्रभु ने मुझे दिखाया कि फ्रेडी का मन परिवर्तन मेरे महान मिशनों में से एक था। आपका महान मिशन कौन है? क्या आपका मिशन आपका पति, आपकी पत्नी, बेटा या बेटी है? प्रभु से कहें कि वह उन्हें छू लें और प्रभु उनके लिए आपकी प्रार्थनाओं को स्वीकार करेंगे। देर नहीं हुई, अब भी अवसर है मेरा फ्रेडी 14 मई, 2017 को प्रभु की महिमा के घर चले गए। मुझे पता है कि वह अब वहां है, और वह मुझे देख रहा है। लूकस 5:32 में येशु कहते हैं, "मैं धर्मियों को नहीं, पापियों को पश्चाताप के लिए बुलाने आया हूं।" इसलिए, परमेश्वर की दया पापियों के लिए है, इसलिए हम सब उसके अनुग्रह से बचाए गए हैं। इसायास 65:1 में परमेश्वर कहता है, “मैं ने उन लोगों पर अपने को प्रकट किया जो मुझ से परामर्श नहीं लेते थे। जो लोग मेरी खोज नहीं करते थे, मैं उन्हें मिला। जो राष्ट्र मेरा नाम नहीं लेता, मैं ने उससे कहा, “देखो मैं प्रस्तुत हूँ”। संत फौस्तीना की डायरी में मरने वालों के प्रति ईश्वर की दया के बारे में हम पढ़ते हैं: “मैं अक्सर मरने वालों का ख्याल करती हूँ और विनती के माध्यम से उनके लिए ईश्वर की दया में विश्वास प्राप्त करती हूं, और ईश्वर से हमेशा विजयी रहनेवाली ईश्वरीय कृपा की प्रचुरता के लिए विनती करती हूं। परमेश्वर की दया कभी-कभी पापी को अंतिम क्षण में अद्भुत और रहस्यमय तरीके से स्पर्श कर लेती है। बाहर से देखने पर ऐसा लगता है जैसे सब कुछ समाप्त हो गया हो, लेकिन ऐसा नहीं है। ईश्वर की शक्तिशाली अंतिम कृपा की एक किरण से प्रकाशित आत्मा, अंतिम क्षण में प्रेम की ऐसी शक्ति के साथ ईश्वर की ओर मुड़ती है कि एक पल में, वह ईश्वर से पापों से क्षमा और दंड से छुटकारा प्राप्त कर लेती है, जबकि बाहरी रूप से यह किसी पश्चाताप या पछतावा का संकेत नहीं दिखाती है, क्योंकि आत्माएं [उस अवस्था में] अब बाहरी बातों पर प्रतिक्रिया नहीं करती हैं। ओह, ईश्वर की दया हमारी समझ से कितने परे है! (पैराग्राफ 1698) आइए प्रार्थना करें: प्रभु हम तेरे अनुग्रह के सिंहासन कक्ष में आते हैं जहां आवश्यकता के समय हमें तेरे अनुग्रह प्राप्त हो जायेंगे। जिन्हें हम अपने दिलों में संजोकर रखते हैं उन्हें हम तेरे सम्मुख लाते हैं। उन्हें पश्चाताप और परिवर्तन का अनुग्रह प्रदान कर। आमेन।
By: Ros Powell
Moreमारियो फोर्ट ने अपने जीवन का साक्ष्य देते हुए कहा : "मैं अपनी दृष्टि नहीं बल्कि अपने विश्वास के सहारे आगे बढ़ता हूं"। मुझे जन्म से ही ग्लूकोमा था, इसलिए मेरे जीवन की शुरुआत से ही मुझे अपनी बाईं आंख से थोड़ा थोड़ा और दाईं आंख से कुछ भी नही दिखता था। जैसे जैसे साल गुज़रते गए मेरी आंखों के ऑपरेशन होते गए। कुल मिला कर मेरी तीस से ज़्यादा सर्जरियां हुई हैं। मेरी पहली सर्जरी तब हुई जब मैं तीन महीने का था। जब मैं सात साल का था तब डॉक्टरों ने इस उम्मीद में मेरी दाईं आंख निकाल दी कि शायद ऐसा करने से मेरी बाईं आंख बच जाएगी। जब मैं बारह साल का था, स्कूल से घर जाते वक्त मैं सड़क पार कर रहा था, तब एक गाड़ी ने मुझे टक्कर मार दी। धक्के की वजह से मैं हवा में उछल कर बड़ी ज़ोर से ज़मीन पर जा गिरा, जिससे मेरी आंख पर बड़ी गहरी चोट आई। इन सब की वजह से मेरी और सर्जरियां हुईं, मुझे तीन महीने तक स्कूल से छुट्टी लेनी पड़ी, जिसकी वजह से मुझे सातवी कक्षा की परीक्षाएं फिर से देनी पड़ीं। सब कुछ संभव है जब मैं छोटा बच्चा था, तब यह अंधापन मेरे लिए बिल्कुल सामान्य सी बात थी, क्योंकि मैं अपनी दृष्टि को किसी और की दृष्टि से तोल तो नहीं सकता था। लेकिन फिर ईश्वर ने मुझे अंतर्दृष्टि दी। बहुत छोटी उम्र से ही बिना किसी के सिखाए मैं ईश्वर से उसी तरह बात किया करता था, जिस तरह मैं हर उस इंसान से बात करता था जिसे मैं ठीक से देख नही पाता था। पहले मैं बस अंधेरे और रौशनी में फर्क कर पाता था। पर एक दिन, पलक झपकते ही मेरी आंखों के सामने ऐसा अंधेरा छा गया जैसे किसी ने कमरे की बत्ती बुझा दी हो। और हालांकि तब से ले कर आज तक लगभग तीस साल मैंने इसी अंधियारे में काटे हैं, फिर भी ईश्वर की कृपा मुझे हिम्मत के साथ आगे बढ़ने में मदद करती है। अब मैं दुनिया की रौशनी को नहीं, बल्कि ईश्वर की रौशनी को देखता हूं। बिना ईश्वर के, मैं एक लकड़ी के टुकड़े से बढ़ कर नहीं हूं। पवित्र आत्मा मेरे लिए सब कुछ संभव बनाती है। कभी कभी लोग भूल जाते हैं कि मैं अंधा हूं क्योंकि मैं घर में चल फिर पाता हूं, मैं कंप्यूटर चला लेता हूं और अपना खयाल भी खुद रख लेता हूं। इन सब का श्रेय मेरे माता पिता को जाता है, जिन्होंने मुझे हमेशा हर काम खुद से करने के लिए प्रोत्साहित किया। मेरे पिता बिजली का काम करते थे और वे अक्सर मुझे अपने साथ काम पर ले जाते थे ताकि मैं उनके काम के बारे में सीख सकूं। उन्होंने ही मुझे बिजली के कई काम खुद करने सिखाए। उन्होंने मुझे अपने दिमाग से फैसले लेने सिखाए, ताकि मैं सोच समझ कर चीज़ें अपने आप ही ठीक कर सकूं। मेरी मां ने अपने प्यारे स्वभाव के द्वारा मुझमें विश्वास के बीज बोए। मां हमारे साथ हर दिन रोज़री माला और करुणा की माला बोला करती थी, इसीलिए ये दो प्रार्थनाएं मुझे आज भी मुंह ज़बानी याद है। इन्हीं सब की बदौलत मैंने मेहनत कर के आईटी की डिग्री हासिल की। उन्हीं के प्रोत्साहन की वजह से मैं अपने शिक्षकों से मदद ले पाया। इसके बाद हम लाइब्रेरी जा कर नोट्स जमा किया करते थे, ताकि रॉयल ब्लाइंड सोसाइटी उन नोट्स को मेरे लिए ब्रेल लिपि में तैयार कर सके। ईश्वर का बुलावा अपनी युवावस्था में मेरे साथ एक ऐसा अनुभव हुआ जहां मुझे ईश्वर की पुकार सुनाई दी। उस वक्त मुझे मेरी बाईं आंख से थोड़ा थोड़ा दिखाई देता था। उस वक्त मैं चर्च में प्रार्थना कर रहा था जब अचानक वेदी चमक उठी और मुझे एक आवाज़ सुनाई दी जो कह रही थी, "आओ, मेरे पास आओ।" ऐसा तीन बार हुआ। तब से मुझे खुद पर ईश्वर के प्रेम और कृपा भरे हाथ का अनुभव होता है। इस बुलावे ने मुझे यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि शायद मैं पुरोहित बन सकता हूं। दूर से तो यह असंभव लग रहा था, पर ईशशास्त्र या थियोलजी की पढ़ाई ने मेरे विश्वास को दृढ़ किया। मैं अपने पल्ली पुरोहित के समर्थन से एक चमत्कारिक प्रार्थना सभा में पवित्र कृपा की प्रार्थना का मार्गदर्शन करने लगा। और चाहे मुझे कितनी भी दुख तकलीफों का सामना करना हो, फिर भी मुझे इस बात की खुशी है कि मैं ईश्वर की सेवा कर पा रहा हूं। और जिन लोगों से मैं पवित्र कृपा की आराधना, रात्रि आराधना, और चालीस दिन की प्रार्थनाओं के वक्त मिला, आगे चल कर उन्हीं लोगों ने तब मेरी मदद की जब मेरे माता पिता, मेरी बहन और मेरी भतीजी की मृत्यु हुई। अब ये अंजान लोग ही मेरा परिवार हैं, और वे मेरी रोज़मर्रा की ज़रूरतों से ले कर आने जाने की सारी समस्याओं का खयाल रखते हैं। दिल की गहराई में जब मेरी आंखों की रौशनी चली गई थी, तब मेरी ज़िंदगी की सबसे बुरी घटना वह नही थी, बल्कि जब मैंने अपने सबसे करीबी लोगों को खो दिया, तब मुझे लगा कि यह सव से बुरी घटना है। इसीलिए मैं ईश्वर का शुक्रगुज़ार हूं कि उन्होंने मुझे ऐसे दोस्त दिये, जो मेरे साथ मेरे अपनों की कब्र पर गए और उनकी आत्माओं के लिए करुणा की माला वाली प्रार्थना बोले। मैं हमेशा सकारात्मक चीज़ों पर ध्यान लगाने की कोशिश करता हूं। मैं उन चीज़ों पर ध्यान देता हूं जो मेरे पास है, ना कि उन पर जो मुझे नही दी गई हैं। मैं अपनी पूरी कोशिश करता हूं कि ईश्वर के दूसरों से अपने जैसा प्रेम करने की इश्वर की आज्ञा का पालन कर सकूं। हर दिन मेरी कोशिश रहती है कि मैं ईश्वर को प्रथम स्थान पर रखूं और उनके सुसमाचार के हिसाब से कार्य करूं। संत पौलुस ने कहा है, "हम आंखों देखी बातों पर नही, बल्कि विश्वास पर चलते हैं" (2 कुरिंथियों 5:7)। मैं अक्सर मज़ाक मज़ाक में कहता हूं कि मैं सच में ऐसे ही चल फिर पाता हूं। यह छोटा सा वचन कितना गहरा है। हमें अपनी मेहनत का फल इस जीवन में देखने को नही मिलेगा। फिर भी, ईश्वर की दाखबारी में काम करने में कितना आनंद है। येशु ने मेरे लिए दुख उठाया और मरे। हर एक व्यक्ति यह कह सकता है। जो कोई भी ईश्वर को जानना चाहता है वह आ कर उसे ग्रहण कर सकता है। मैं ईश्वर को धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने हमें यह मौका दिया है कि हम उसकी महिमामय उपस्थिति में भाग ले सकते हैं। उसका जीवित वचन हमें पुनरुत्थान की आशा से भरता है, ताकि हम हर दिन उसकी उपस्थिति में गुज़ार सकें और उसके प्रेम के नियम का पालन कर सकें। यह सब सोच कर मेरा दिल ईश्वर की प्रशंसा में गा उठता है आलेलुयाह ! हे सर्वशक्तिमान शाश्वत ईश्वर, अपने परम प्रिय पुत्र के हृदय पर दृष्टि डाल और जो स्तुति तथा प्रायश्चित पापियों के नाम पर उन्होंने तुझे चढ़ाया है, उस पर भी ध्यान दे। इससे प्रसन्न हो कर तेरी दया मांगने वालों को क्षमा कर। यह निवेदन हम करते हैं, उन्हीं प्रभु ख्रीस्त के द्वारा, जो तेरे तथा पवित्र आत्मा के साथ युगानुयुग जीते और राज्य करते हैं। आमेन।
By: Mario Forte
Moreमुझे क्या पता था कि एक पारिवारिक चढ़ाई मुझे जीवन जीने की एक नायाब तरकीब सिखा जाएगी। पिछले साल मेरे बेटे की इच्छा थी कि हम उसके कॉलेज कैंपस आएं। हालांकि मैंने उसकी महंगी यूनिवर्सिटी और उसके आसपास के पहाड़ देखे थे, मेरे पति और बाकी बच्चे उस कैंपस में अभी तक नही गए थे। क्योंकि हमारा रेस्टोरेंट का बिज़नेस था, इसीलिए हमारे लिए समय निकाल कर पांच घंटे गाड़ी चला कर बेटे के कैंपस जाना मुश्किल ही था, फिर भी बेटे की ज़िद पर मैंने समय निकाल कर सारी तैयारियां की। चूंकि हमारे पास एक पूरे दिन रुकने का ही समय था, मैंने बेटे से कहा कि वह एक दिन के अंदर ही सारे घूमने फिरने के इंतज़ाम कर ले। इसीलिए बेटे ने हाइकिंग या पर्वतारोहण का प्रोग्राम बनाया। काबिलियत से बढ़ कर संकल्प मेरा मानना है कि उनचास साल की उम्र में अब मैं थोड़ी कमज़ोर हो चली हूं। मेरे पास कसरत करने का वक्त नही रहता है, क्योंकि मैं कपड़े धोती, बिखरे सामान को समेटती और अपने तीन मंज़िला घर की साफ सफाई करती करती थक जाती हूं। इसीलिए जब मैंने पहाड़ की चढ़ाई करना शुरू किया, तभी मुझे समझ आ गया था कि हाइकिंग पूरी करने के लिए मेरी काबिलियत नही बस मेरी हिम्मत काम आएगी। जैसे जैसे हम आगे बढ़ने लगे, वे लोग जो मुझसे ज़्यादा ताकतवर और फुर्तीले थे आगे निकलने लगे और मैं पीछे रह गई। कुछ दूर आगे बढ़ने पर मेरी सांस थमने लगी और मुझे थकान होने लगी। मेरे पैरों में तेज़ दर्द शुरू हो गया। तब मुझे समझ आ गया कि इस चढ़ाई को पूरा करने के लिए मुझे कोई विशेष रणनीति बनानी पड़ेगी। मैंने लक्ष्य से ध्यान हटा कर छोटी छोटी बातों पर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया। तीन मील की चढ़ाई के लक्ष्य से ध्यान हटा कर मैंने बस अगले कदम के बारे में सोचना शुरू कर दिया। कई बार ऐसे बड़े लक्ष्य मुझे भयभीत कर देते हैं। पर जब मैं उन लक्ष्यों की बारीकियों पर ध्यान देती हूं तब मैं खुद को वर्तमान समय में स्थिर कर पाती हूं। मैंने इस बात से डरना छोड़ दिया कि मैं इस चढ़ाई को पूरा कर भी पाऊंगी या नही। मैंने बस हर छोटे छोटे कदम और आस पास की छोटी छोटी बातों पर ध्यान देना शुरू कर दिया। वह अनदेखा नज़ारा धीरे धीरे मेरा मन प्रकृति की खूबसूरती में डूबने लगा, और मैं पूरी तरह अपने लक्ष्य को भूल गई। मुझे हवाओं की मीठी धुन, और पत्तों की सरसराहट मोहने लगी, जो बच्चों की खिलखिलाहट से मिल कर जैसे एक नया गीत बुन रही थीं। जैसे जैसे मैं कदम बढ़ाने लगी, मेरी सांसे मेरा साथ देने लगीं और मेरे पूरे शरीर में खुशी की लहर दौड़ गई। मैं पहाड़ी ज़मीन पर खिले फूलों और कलियों, और उनके आस पास की हरियाली को, और पेड़ों की टहनियों से छनती धूप की किरणों को निहारने लगी। मेरे मन की आंखें उस अनदेखे नज़ारे के मोह में खो गई जो मेरे आगे, पीछे, और मेरे आसपास था। उस पथरीली ज़मीन पर चलते हुए मेरे मन में कीड़े मकौड़ों की सेना की टुकड़ियों की छवि आने लगी। मैं चिड़ियों से ले कर चूहों, गिलहरियों, यहां तक कि मधुमक्खियों के बारे में सोचने लगी। मैंने ईश्वर को इन सब छोटी बड़ी जिंदगियों के लिए धन्यवाद दिया, और इस पहाड़ी जगह के लिए भी धन्यवाद दिया जहां ईश्वर ने मुझे यह दोपहर बिताने का सौभाग्य दिया था। जीवन जीने का नुस्खा कुछ समय के लिए मैं रुक कर एक कटे पेड़ के तने की तस्वीर लेने लगी, ताकि मैं यह याद रख सकूं कि इस पेड़ के मरने में भी कहीं ना कहीं ईश्वर की मर्ज़ी थी। समय के साथ यह तना भी गायब हो जाएगा और इस पेड़ की जड़ें पहाड़ की ज़मीन से जा मिलेंगी। यही सब सोच कर जब मैं तस्वीर खींच रही थी तभी मेरे आगे आसमान पर एक इंद्रधनुष का नज़ारा छा गया। इंद्रधनुष से मुझे ईश्वर का मानव जाति के साथ किया गया वादा याद आया। मुझे याद आया कि ईश्वर का वह वादा आज भी जीवित है, और इसीलिए मैंने ईश्वर को उनकी वफादारी के लिए धन्यवाद दिया। धीरे धीरे मैंने अपने कदमों को गिनना बंद कर दिया जिससे मुझे काफी आसानी हुई। मेरा सफर तब और आसानी से कटने लगा जब मैंने अपनी चिंताओं का भार ख्रीस्त पर डाल दिया और उन्हें अपने साथ चलने का बुलावा दिया। जब मुझे प्रलोभन ने जकड़ा तब मैंने येशु को खुद के और करीब कर लिया। चुनौती से भागने या उससे डर जाने की जगह, मैंने आत्मसमर्पण की प्रार्थना कही और अपने इस सफर को ईश्वर के हवाले कर दिया। साल 2021 की शुरुआत में उस पर्वत की चढ़ाई करते वक्त मैंने जो कुछ सीखा, उस सीख की आज दुनिया को ज़रूरत है। आज भी जब दुनिया नए खतरों, नई मुसीबतों से लड़ रही है, तब मुझे वर्तमान काल में जीने के महत्व का एहसास है। और हालांकि बड़े लक्ष्य को समझ कर उसके हिसाब से फैसले लेना कई मामलों में ज़रूरी है, फिर भी भविष्य की चिंता हमें आज की खूबसूरती, शांति और प्रेम से दूर कर सकती है। आज़ादी राह ताकती है अगर मैंने चढ़ाई की तकलीफों और अपनी नाकाबिलियत पर ध्यान दिया होता, तो शायद मैं वह चढ़ाई कभी पूरी नहीं कर पाती। पर अपना ध्यान आज और वर्तमान में लगा कर मैंने प्रकृति के सौंदर्य और आशीषों का अनुभव किया। इसीलिए अब से मैं भविष्य के भय के बजाय आज की आशीषों को चुनती हूं। चाहे वह किसी अपने के साथ समय गुज़ारना हो, या अपनी कोई पसंदीदा किताब पढ़ना, या अपने लिए एक प्याली कॉफी बना कर उसकी महक के मज़े लेना, या किसी दोस्त से बातें करना, उनके साथ मुस्कुराना। मैं अब आज में ज़्यादा केंद्रित हूं और रोज़ ईश्वर के प्रेम को अलग अलग रूप से प्रकट करने की कोशिश करती हूं। पहाड़ पर एक छोटी सी चढ़ाई ने मुझे जीवन जीने का यह बहुमूल्य नुस्खा दे दिया: कि हमें वर्त्तमान में उपस्थित रह कर रोज़ ईश्वर को उनकी आशीषों के लिए धन्यवाद देना चाहिए। इस नुस्खे ने मेरा सफर आसान कर दिया है, (चाहे वह पहाड़ पर चढ़ाई का सफर हो या कोई दैनिक कार्य करने की मुश्किल हो, या ईश्वर के दिए क्रूस को उठाने की कठिनाई हो या एक वैश्विक महामारी के बीच जीवन जीने का संघर्ष)। वर्तमान में जीना ही उस आज़ादी की चाभी है, जिस अलौकिक आज़ादी को दुनिया की कोई ताकत नहीं दबा सकती है। ख्रीस्त वर्तमान काल में ही निवास करते हैं। आइये, हम उन्हें वर्त्तमान में ढूंढें, और भरोसा रखिए कि वे हमें ज़रूर मिलेंगे।
By: Tara K. E. Brelinsky
Moreमुसीबत के समय में, क्या आपने कभी सोचा है कि 'काश कोई मेरी मदद करता'? आप शायद अनभिज्ञ हैं कि वास्तव में आपकी मदद करने के लिए आपके पास आपके अपने एक निजी समूह है। मेरी बेटी मुझसे आजकल पूछती है कि अगर तुम सौ प्रतिशत पोलिश (पोलन्ड की) हो तो तुम सामान्य पोलेंड-वासी की तरह क्यों नहीं दिखती हो। पिछले सप्ताह तक मेरे पास इसका कोई सही उत्तर नहीं था, फिर मुझे पता चला कि मेरे कुछ पूर्वज दक्षिणी पोलैंड के गोरल हाइलैंडर्स यानी गोरल गोत्र समुदाय के पहाड़ी लोग थे। गोरल हाइलैंडर्स पोलेंड की दक्षिणी सीमा पर पहाड़ों में रहते हैं। वे अपनी दृढ़ता, स्वतंत्रता के प्रति प्रेम, तथा विशिष्ट पोशाक, संस्कृति और संगीत के लिए जाने जाते हैं। इस समय, एक विशेष गोरल लोक गीत मेरे दिल में बार-बार गूंजता रहता है, उस गीत ने मुझे इतना प्रभावित किया कि मैंने अपने पति के साथ उस गीत को साझा किया कि यह गीत वास्तव में मुझे अपने देश में वापस बुला रहा है। यह जानकर कि मेरा वंशीय इतिहास गोरल है, वास्तव में मेरा दिल ख़ुशी से उच्छल रहा है! वंशावली की खोज मेरा मानना है कि हममें से प्रत्येक के अन्दर अपनी वंशावली की खोज करने की इच्छा होती है। यही कारण है कि इन दिनों कई वंशावली साइट और डीएनए-जांच के व्यवसाय सामने आए हैं। ऐसा क्यों? शायद यह चाह हमें बतलाती है कि हम अपने से भी बड़ी किसी चीज़ का हिस्सा हैं। जो हमसे पहले इस दुनिया से चले गए हैं, उन लोगों के साथ हम मायने और संबंध की चाहत रखते हैं। हमारे वंश की खोज से पता चलता है कि हम एक बहुत गहरे कथानक का हिस्सा हैं। इतना ही नहीं, बल्कि अपनी पैतृक जड़ों को जानने से हमें पहचान और एकजुटता की भावना मिलती है। हम सभी कहीं न कहीं से आए हैं, हम कहीं न कहीं के वासी हैं, और हम एक साथ यात्रा कर रहे हैं। इस पर विचार करने पर मुझे एहसास हुआ कि केवल अपनी भौतिक ही नहीं, बल्कि अपनी आध्यात्मिक विरासत की खोज करना कितना महत्वपूर्ण है। आख़िरकार, हम मनुष्य शरीर और आत्मा हैं। हमें उन संतों को जानने से बहुत लाभ होगा जो हमसे पहले थे। हमें न केवल उनकी कहानियाँ सीखनी चाहिए, बल्कि उनसे परिचित भी होना चाहिए। संबंध ढूंढें मैं स्वीकारना चाहती हूँ कि मैं पहले किसी संत से मध्यस्थता मांगने की प्रथा में बहुत अच्छी नहीं रही हूँ। यह निश्चित रूप से मेरी प्रार्थना-दिनचर्या में एक नया जुड़ाव है। जिस चीज़ ने मुझे इस वास्तविकता से अवगत कराया वह संत फिलिप नेरी की यह सलाह थी: “आध्यात्मिक शुष्कता के खिलाफ सबसे अच्छी दवा खुद को ईश्वर और संतों की उपस्थिति में भिखारियों की तरह रखना है। और एक भिखारी की तरह, एक से दूसरे के पास जाना और उसी आग्रह के साथ आध्यात्मिक भिक्षा माँगना, जैसे कि सड़क पर एक गरीब आदमी भिक्षा माँगता है।“ पहला कदम यह जानना है कि संत कौन हैं। ऑनलाइन पर बहुत सारे अच्छे संसाधन मौजूद हैं। दूसरा तरीका है बाइबल पढ़ना। पुराने और नए विधान दोनों में शक्तिशाली मध्यस्थ हैं, और आप एक से अधिक मध्यस्थों से संबंधित हो सकते हैं। साथ ही, संतों और उनके लेखन पर अनगिनत किताबें हैं। मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना करें, और ईश्वर आपको आपके व्यक्तिगत मध्यस्थों के समूह तक पहुंचा देगा। उदाहरण के लिए, मैंने अपने संगीत की सेवकाई के लिए संत राजा दाउद से मध्यस्थता मांगी है। जब मुझे अपने पति के लिए या नौकरी चुनने के लिए मध्यस्थ की खोज करनी है तो मैं संत युसूफ के पास जाती हूँ। जब कलीसिया के लिए प्रार्थना करने का बुलावा मुझे मिलता है तो मैं संत जॉन पॉल द्वितीय, संत पेत्रुस और संत पिउस दसवें से मदद मांगती हूँ। मैं संत ऐनी और संत मोनिका की मध्यस्थता के माध्यम से माताओं के लिए प्रार्थना करती हूँ। बुलाहटों के लिए प्रार्थना करते समय, मैं कभी-कभी संत थेरेसा और संत पाद्रे पियो को पुकारती हूँ। यह सूची लम्बी है। तकनीकी समस्याओं के लिए धन्य कार्लो एक्यूटिस मेरे पसंदीदा हैं। संत जेसीन्ता और संत फ्रांसिस्को मुझे प्रार्थना के बारे में, तथा बेहतर तरीके से बलिदान अर्पित करने के बारे में सिखाते हैं। प्रेरित संत जॉन चिंतन करने में मेरी सहायता करते हैं। मैं अक्सर अपने दादा-दादी से मध्यस्थता की माँग करती हूँ, यह मैं नहीं बताती तो वह मेरी गलती होगी। जब वे हमारे साथ थे तब वे मेरे लिए प्रार्थना करते थे, और मैं जानती हूँ कि वे अनन्त जीवन में भी मेरे लिए प्रार्थना कर रहे हैं। परन्तु मेरी सार्वकालिक पसंदीदा मध्यस्थ हमेशा हमारी सबसे प्रिय धन्य कुंवारी माता मरियम रही हैं। बस एक प्रार्थना की दूरी पर यह मायने रखता है कि हम किसके साथ समय बिताते हैं। हम क्या बन जायेंगे, यह इसी पर निर्भर करता है। वास्तव में हमारी चारों ओर "गवाहों का बादल" है जिससे हम वास्तविक रूप से जुड़े हुए हैं (इब्रानी 12:1)। आइए हम उन्हें बेहतर तरीके से जानने का प्रयास करें। हम सरल, हार्दिक प्रार्थनाएँ भेज सकते हैं जैसे, "हे संत ____, मैं आपको बेहतर तरीके से जानना चाहती/ता हूँ। कृपया मेरी सहायता करें।" इस विश्वास यात्रा में चलने के लिए हम अकेले नहीं हैं। हम एक जन समूह के रूप में, मसीह के शरीर के रूप में एक साथ मुक्त किये गए लोग हैं। संतों से जुड़े रहने से, हमें वह मार्ग मिलता है जो हमारी स्वर्गीय जन्मभूमि तक सुरक्षित यात्रा करने के लिए दिशा और ठोस सहायता प्रदान करता है। पवित्र आत्मा हमें अपनी आध्यात्मिक जड़ों से जुड़ने में मदद करे ताकि हम संत बन सकें और अपना अनंत जीवन ईश्वर के एक गौरवशाली परिवार के रूप में बिता सकें!
By: Denise Jasek
Moreजब अयोग्यता के विचार मन में आएं, तो यह आजमायें... उससे बदबू आ रही थी. उसका गंदा, भूखा शरीर उसकी बर्बाद विरासत की तरह नष्ट हो रहा था। उसे लज्जा ने घेर लिया। उसने सब कुछ खो दिया था - अपनी संपत्ति, अपनी प्रतिष्ठा, अपना परिवार - उसका जीवन टूटकर बिखर गया था। निराशा ने उसे निगल लिया था। फिर, अचानक, उसे अपने पिता का सौम्य चेहरा याद आया। सुलह असंभव लग रही थी, लेकिन अपनी हताशा में, वह “उठ कर अपने पिता के घर की ओर चल पडा। वह दूर ही था कि उसके पिता ने उसे देख लिया, और दया से द्रवित हो उठा। उसने दौड़कर उसे गले लगा लिया और उसका चुम्बन किया। तब पुत्र ने उससे कहा, “पिता जी, मैंने स्वर्ग के विरूद्ध और आपके विरुद्ध पाप किया है; मैं आपका पुत्र कहलाने योग्य नहीं रहा।'... लेकिन पिता ने कहा... 'मेरा यह पुत्र मर गया था और फिर से जी गया है; वह खो गया था और फिर मिल गया है!' और वे आनंद मनाने लगे” (लूकस 15:20-24)। ईश्वर की क्षमा स्वीकार करना कठिन है। अपने पापों को स्वीकार करने का अर्थ है यह स्वीकार करना कि हमें अपने पिता की आवश्यकता है। और जब आप और मैं पिछले अपराधों के कारण अपराधबोध और शर्मिंदगी से जूझ रहे हैं, तो आरोप लगाने वाला शैतान हम पर अपने झूठ से हमला करता है: "तुम प्रेम और क्षमा के योग्य नहीं हो।" लेकिन प्रभु हमें इस झूठ को अस्वीकार करने के लिए कहते हैं! बपतिस्मा के समय, ईश्वर की संतान के रूप में आपकी पहचान, आपकी आत्मा पर हमेशा के लिए अंकित हो गई। और उड़ाऊ पुत्र की तरह, आप अपनी असली पहचान और योग्यता की खोज करने के लिए बुलाये गए हैं। चाहे आपने कुछ भी किया हो, ईश्वर आपसे प्यार करना कभी नहीं छोड़ते। "जो मेरे पास आता है, मैं उसे कभी नहीं ठुकराऊँगा।" (योहन 6:37)। आप और मैं कोई अपवाद नहीं हैं! तो, हम ईश्वर की क्षमा को स्वीकार करने के लिए व्यावहारिक कदम कैसे उठा सकते हैं? प्रभु को खोजें, उनकी दया को अपनाएं, और उनकी शक्तिशाली कृपा से बहाल हो जायें। प्रभु को खोजें अपने निकटतम गिरजाघर या आराधनालय को ढूंढें और प्रभु से आमने-सामने मुलाक़ात कर ले। ईश्वर से प्रार्थना करें कि वह अपनी दयालु आँखों से, अपने निस्वार्थ प्रेम के माध्यम से स्वयं को देखने और पहचानने में आपकी मदद करे। इसके बाद, अपनी आत्मा की एक ईमानदार और साहसी सूची बनाएं। बहादुर बनो और मनन चिंतन करते हुए क्रूसित प्रभु येशु को देखो - अपने आप को प्रभु के पास लाओ। हमारे पापों की वास्तविकता को स्वीकार करना कठिन है, लेकिन एक सच्चा, कमजोर हृदय क्षमा का फल प्राप्त करने के लिए तैयार है। याद रखें, आप ईश्वर की संतान हैं—प्रभु आपको विमुख नहीं करेंगे! ईश्वर की दया को अपनायें अपराधबोध और शर्मिंदगी के साथ लड़ना, पानी की सतह के नीचे गेंद को पकड़ने की कोशिश करने जैसा हो सकता है। इसमें बहुत मेहनत लगती है! इसके अलावा, शैतान अक्सर हमें यह विश्वास दिलाता है कि हम ईश्वर के प्रेम और क्षमा के योग्य नहीं हैं। लेकिन क्रूस से, मसीह का रक्त और जल हमें शुद्ध करने, चंगा करने और बचाने के लिए बहता रहा। आप और मैं इस दिव्य दया पर मूल रूप से भरोसा करने के लिए बुलाये गए हैं। यह कहने का प्रयास करें: “मैं ईश्वर की संतान हूँ। येशु मुझसे प्यार करते हैं। मैं क्षमा के योग्य हूँ।” इस सत्य को हर दिन दोहराएँ। इसे ऐसी जगह लिखें, जहां आप अक्सर दृष्टि दौडाते हैं। प्रभु से प्रार्थना करें कि उनकी दया के कोमल आलिंगन में स्वयं को देने में वह आपकी सहायता करें। गेंद को जाने दो और इसे येशु को सौंप दो—ईश्वर के लिए कुछ भी असंभव नहीं है! बहाल हो जाएँ पापस्वीकार संस्कार में, हम ईश्वर के उपचार और शक्ति की कृपा से बहाल होते हैं। शैतान के झूठ के विरुद्ध लड़ें और इस शक्तिशाली संस्कार में मसीह से मुलाकात कर लें। यदि आप अपराधबोध या शर्मिंदगी से जूझ रहे हैं तो पुरोहित को बताएं, और जब आप अपने पश्चाताप के कार्य के बारे में बताएं, तो अपने दिल को प्रेरित करने के लिए पवित्र आत्मा को आमंत्रित करें। जैसे ही आप पाप मुक्ति के शब्द सुनते हैं, ईश्वर की असीम दया पर विश्वास करना चुनें: "ईश्वर आपको क्षमा और शांति दे, और मैं आपको पिता, और पुत्र, और पवित्र आत्मा के नाम पर पापक्षमा प्रदान करता हूँ।" अब आप ईश्वर के अनंत प्रेम और क्षमा में बहाल हो गए हैं! अपनी असफलताओं के बावजूद, मैं हर दिन ईश्वर से उनके प्रेम और क्षमा को स्वीकार करने में मेरी मदद करने के लिए कहता हूं। हो सकता है कि हम उड़ाऊ पुत्र की तरह गिर गए हों, लेकिन आप और मैं अभी भी ईश्वर के बेटे और बेटियाँ हैं, उनके अनंत प्रेम और करुणा के योग्य हैं। ईश्वर आपसे प्रेम करता है, यहीं, इसी क्षण — उसने प्रेम के कारण आपके लिए अपना जीवन त्याग दिया। यह सुसमाचार की परिवर्तनकारी आशा है! इसलिए, ईश्वर की क्षमा को अपनाएं और साहसपूर्वक उसकी दिव्य दया को स्वीकार करने का साहस करें। ईश्वर की अनंत करुणा आपका इंतजार कर रही है! “नहीं डरो, मैंने तुम्हारा उद्धार किया है। मैंने तुमको अपनी प्रजा के रूप में अपनाया है।” (इसायाह 43:1)
By: Jody Weis
Moreबीसवीं सदी के आरंभिक यूनानी उपन्यासकार निकोलस कज़ान्तज़ाकिस का एक काव्यात्मक चिंतन है, जिसे मैं हर साल आगमन काल के आने पर अपने पलंग के बगल के टेबल पर रखता हूँ। उपन्यासकार कज़ान्तज़ाकिस येशु मसीह को एक किशोर के रूप में चित्रित करते हैं, जो दूर पहाड़ी की चोटी से इस्राएल के लोगों को देख रहा है, जो अभी अपनी सेवकाई शुरू करने के लिए तैयार नहीं है, लेकिन अपने लोगों की लालसा और पीड़ा के प्रति पूरी तरह से, दर्द और बोझ के साथ संवेदनशील है। इस्राएल का परमेश्वर उनके बीच में है—परन्तु वे अभी इस सच्चाई को नहीं जानते। मैं इसे एक दिन अपने छात्रों को पढ़कर सुना रहा था, जैसा कि मैं प्रतिवर्ष, आगमन की शुरुआत में करता हूँ, और उनमें से एक ने कक्षा के बाद मुझसे कहा: "मैं शर्त लगा सकता हूँ कि प्रभु येशु अभी भी ऐसा ही महसूस करते हैं।" मैंने उससे पूछा कि उसका क्या मतलब है। उसने कहा: "आप जानते हैं कि येशु, वहाँ पवित्र मंजूषा के अन्दर से हमें ऐसे चलते हुए देखते हैं जैसे कि हम जानते ही नहीं कि वे वहां उपस्थित हैं।" तब से, मेरे पास आगमन प्रार्थनाओं में ऐसे येशु का चित्र है, जो मंजूषा में इंतजार कर रहे हैं, अपने लोगों की ओर देख रहे हैं - हमारी कराहें, हमारी दलीलें और हमारी पुकारें सुन रहे हैं। हमारा इंतज़ार करते हुए ... किसी न किसी तरह, ईश्वर हमारे पास आने के लिए यही तरीका चुनता है। मसीह का जन्म पूरे मानव इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना है, और फिर भी, ईश्वर चाहता था कि यह 'इतनी शांति से हो कि संसार अपने काम में व्यस्त रहा जैसा कि कुछ भी नहीं हुआ हो।' कुछ चरवाहों ने ध्यान दिया, और पूरब से आये ज्ञानियों ने भी ऐसा ही किया। (हम हेरोद का भी उल्लेख कर सकते हैं, जिसने सभी गलत कारणों से ध्यान दिया!)। फिर, जाहिरा तौर पर, पूरी बात भुला दी गई। कुछ समय के लिए। किसी न किसी तरह... इंतज़ार करते हुए कुछ ऐसा होना चाहिए जो हमारे लिए अच्छा हो। ईश्वर हमारे लिए इंतजार करने को चुनता है। वह हमें अपने लिए इंतज़ार करवाना चुनता है। और जब आप इसके बारे में सोचते हैं, तो मुक्ति का पूरा इतिहास प्रतीक्षा का इतिहास बन जाता है। तो, आप देखते हैं कि यहाँ अत्यावश्यकता के दो भाव हैं - कि हमें ईश्वर के आह्वान का उत्तर देने की आवश्यकता है तथा इसकी भी आवश्यकता है कि वह हमारी पुकार का उत्तर दे, और जल्द ही। स्तोत्रकार लिखता है, "हे प्रभु, जब मैं तुझे पुकारूं, मुझे उत्तर दे।" इस पद में कुछ बड़ी विनम्रता है, दर्द है, जो आकर्षक रूप से हमारा ध्यान खींचता है। स्तोत्र में एक अत्यावश्यकता है। लेकिन यह भी स्पष्ट है कि हमें धैर्य रखना और इंतजार करना सीखना चाहिए - आनंदमय आशा के साथ इंतजार करना चाहिए - और इंतजार में इश्वर का उत्तर ढूंढना चाहिए।
By: Father Augustine Wetta O.S.B
Moreछह साल की उम्र में, एक छोटी लड़की ने फैसला किया कि उसे 'जेल' और 'फाँसी' शब्द पसंद नहीं हैं। उसे क्या पता था कि 36 साल की उम्र में वह मौत की सज़ा पाए कैदियों के साथ घूम रही होगी। 1981 में, दो छोटे बच्चों की चौंकाने वाली हत्याएं सिंगापुर और दुनिया भर में पहले पन्ने की खबर बन गईं थीं। पूरी जांच के बाद एड्रियन लिम की गिरफ्तारी हुई, जिसने अपने कई ग्राहकों को यह विश्वास दिलाकर कि उसके पास अलौकिक शक्तियां हैं, उनका यौन शोषण किया, उनसे जबरन वसूली की और उन्हें बिजली के झटके की 'थेरेपी' देकर प्रताड़ित किया। उनमें से एक, कैथरीन, मेरी एक छात्रा थी जो अपनी दादी की मृत्यु के बाद अवसाद के इलाज के लिए उसके पास गई थी। उस आदमी ने उससे वेश्यावृत्ति कराई और उसके भाई-बहनों के साथ दुर्व्यवहार किया। जब मैंने सुना कि कैथरीन पर हत्याओं में भाग लेने का आरोप लगाया गया है, तो मैंने उसे येशु के पवित्र हृदय की सुंदर तस्वीर के साथ एक चिट्टी भेजी। छह महीने बाद, उसने जवाब में लिखा, "जब मैंने इतने बुरे काम किए हैं तो आप मुझसे कैसे प्यार कर सकती हैं?" अगले सात वर्षों तक मैं जेल में कैथरीन से साप्ताहिक मुलाकात करती रही। महीनों तक एक साथ प्रार्थना करने के बाद, वह ईश्वर और उन सभी लोगों से माफ़ी मांगना चाहती थी, जिन्हें उसने चोट पहुंचाई थी। अपने पापों को स्वीकार करने के बाद, उसे ऐसी शांति मिली, जैसे वह एक अलग ही अनोखा व्यक्तित्व हो। जब मैंने उसका रूपांतरण देखा, तो मैं खुशी से पागल हो गयी। लेकिन कैदियों के लिए मेरी सेवा अभी शुरू ही हुई थी! अतीत की ओर नज़र मैं 10 बच्चों वाले एक प्यारे कैथोलिक परिवार में बड़ी हुई। हर सुबह, हम सभी एक साथ पवित्र मिस्सा बलिदान के लिए जाते थे, और मेरी माँ हमें गिरजाघर के पास एक कॉफी शॉप में नाश्ता खिलाती थी। लेकिन कुछ समय बाद मेरे लिए शरीर के भोजन से ज्यादा, आत्मा के लिए भोजन का महत्त्व बढ़ गया। पीछे मुड़कर दखती हूँ तो पता चलता है कि मेरे बचपन में अपने परिवार के साथ सुबह-सुबह होती रही उन पवित्र मिस्साओं के द्वारा ही मेरे अन्दर मेरी बुलाहट का बीज बोया गया था। मेरे पिता ने हममें से प्रत्येक को विशेष रूप से अपने प्यार का एहसास कराया, और हम उनके काम से लौटने पर खुशी से उनकी बाहों की ओर दौड़ने से कभी नहीं चूके। युद्ध के दौरान, जब हमें सिंगापुर से भागना पड़ा, तो वे हमें घर पर ही पढ़ाते थे। वे हर सुबह हमें उच्चारण सिखाते थे और हमसे उस अनुच्छेद को दोहराने के लिए कहते थे जिसमें किसी को सिंग सिंग जेल में मौत की सजा सुनाई गई थी। छह साल की छोटी उम्र में ही मुझे एहसास हुआ था कि मुझे वह अंश पसंद नहीं है। जब मेरी बारी आई तो मैंने इसे पढ़ने के बजाय “प्रणाम रानी, दया की माँ” प्रार्थना का पाठ किया। मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था कि मैं एक दिन कैदियों के साथ प्रार्थना करुंगी। अभी देर नहीं हुई है जब मैंने जेल में कैथरीन से मुलाक़ात करना शुरू किया, तो कई अन्य कैदियों ने हमारे कार्य में रुचि दिखाई। जब भी किसी कैदी ने मुलाकात का अनुरोध किया, तो मुझे उनसे मिलकर और ईश्वर की प्रेमपूर्ण दया साझा करके खुशी हुई। ईश्वर एक प्यारा पिता है जो हमेशा हमारे पश्चाताप करने और उसके पास वापस आने का इंतजार कर रहा है। एक कैदी जिसने कानून तोड़ा है वह उड़ाऊ पुत्र के समान है, जो जीवन के सबसे निचले पांवदान पर लुढ़क गया और उसने महसूस किया, "मैं अपने पिता के पास वापस जा सकता हूं।" जब वह अपने पिता के पास वापस लौटा और क्षमा मांगी, तो उसके पिता उसका स्वागत करने के लिए दौड़ते हुए बाहर आये। किसी को भी अपने पापों का पश्चाताप करने और ईश्वर की ओर लौटने में कभी देर नहीं करनी चाहिए। प्यार का आलिंगन हत्या की आरोपी फ्लोर नामक फिलिपिनो महिला ने अन्य कैदियों से हमारे सेवा कार्यों के बारे में सुना और समझा, इसलिए मैंने उससे मुलाकात की और उसका समर्थन और सहयोग किया, क्योंकि उसने अपनी मौत की सजा की अपील की थी। अपनी अपील खारिज होने के बाद, वह ईश्वर से बहुत नाराज थी और मुझसे बात करना नहीं चाहती थी। जब भी मैं उसके दरवाजे से गुजरती थी, तो मैं उससे कहती थी कि चाहे कुछ भी हो जाए, ईश्वर अब भी उससे प्यार करता है। लेकिन वह निराशा में खाली दीवार की ओर देखती रहती थी। मैंने अपने प्रार्थना समूह से नित्य सहायक माता से नौ रोज़ी प्रार्थना करने और विशेष रूप से अपनी दुःख पीडाओं को उसके लिए चढाने को कहा। दो सप्ताह बाद, फ़्लोर का हृदय अचानक बदल गया और उसने मुझसे कहा कि मैं किसी पुरोहित के साथ उसके पास वापस आऊँ। वह खुशी से फूल रही थी क्योंकि माता मरियम उसकी कोठरी में आई थीं और माँ मरियम ने उससे कहा था कि वह डरे नहीं क्योंकि माँ अंत तक उसके साथ रहेगी। उस क्षण से लेकर उसकी मृत्यु के दिन तक, फ्लोर के हृदय में केवल आनंद ही आनंद था। एक और यादगार कैदी एक ऑस्ट्रेलियाई व्यक्ति था जिसे मादक पदार्थों की तस्करी के आरोप में जेल में डाल दिया गया था। जब उसने मुझे एक अन्य कैदी के लिए माता मरियम का भजन गाते हुए सुना, तो वह इतना प्रभावित हुआ कि उसने मुझसे नियमित रूप से उससे मिलने के लिए कहा। जब उसकी माँ ऑस्ट्रेलिया से मिलने आईं तो वे हमारे साथ हमारे घर में रहीं। आख़िरकार, उसने एक काथलिक के रूप में बपतिस्मा लेने का आग्रह किया। उस दिन से, फाँसी के तख्ते तक जाते समय भी वह खुशी से भरा हुआ था। वहां का जेल निरीक्षक एक युवा व्यक्ति था, और जब यह मादक द्रव्य का पूर्व तस्कर अपनी मृत्यु की ओर बढ़ रहा था, तो यह अधिकारी आगे आया और उसे गले लगा लिया। यह बहुत असामान्य था, और हमें ऐसा लगा मानो ईश्वर स्वयं इस युवक को गले लगा रहे हो। आप वहां ईश्वर की उपस्थिति को महसूस किए बिना नहीं रह सकते थे। वास्तव में, मैं जानता हूं कि हर बार, माता मरियम और प्रभु येशु उन सज़ा-ए-मौत पाए कैदियों को स्वर्ग में स्वागत करने के लिए वहां मौजूद होते हैं। यह विश्वास करना मेरे लिए खुशी की बात है कि जिस प्रभु ने मुझे बुलाया है वह मेरे प्रति ईमानदार रहा है। उसके और उसके लोगों के लिए जीने का आनंद किसी भी अन्य चीज़ की तुलना में कहीं अधिक लाभप्रद रहा है।
By: Sister M. Gerard Fernandez RGS
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