Encounter
प्रेम का दायरा
अपने बेटे की लत और शराब के अतिमात्र सेवन के कारण अंततः उसकी मृत्यु से भी, वे संघर्ष करते रहे। वे कैसे टिके रहे?
भले ही मेरा बपतिस्मा हो गया था, फिर भी बड़े होते समय गिरजाघर से मेरा कोई ख़ास वास्ता नहीं था। मेरी माँ और पिता के कैथलिक चर्च के साथ कुछ गंभीर अनसुलझे मुद्दे थे, इसलिए हम कभी भी मिस्सा बलिदान में नहीं गए, और मुझे कभी भी धर्मशिक्षा नहीं दी गई। हालाँकि, मुझे आध्यात्मिक संबंध की चाहत थी, और मैं ‘द रॉब’, ‘द टेन कमांडमेंट्स’, ‘बेनहर’, ‘ए मैन कॉल्ड पीटर’ और ‘द ग्रेटेस्ट स्टोरी एवर टोल्ड’ जैसी लोकप्रिय बाइबिल फिल्मों की ओर आकर्षित हुआ। उन फिल्मों में ईश्वर को बहुत ही दिलचस्प तरीके से प्रस्तुत किया गया था और मुझमें धीरे-धीरे व्यक्तिगत स्तर पर प्रभु को जानने की भूख विकसित हुई। 60 के दशक के दौरान, लोक गायक जिम क्रोस ने ‘टाइम इन ए बॉटल’ गाया था, जिसमें कहा गया था, “मैंने यह जानने के लिए चारों ओर काफी ढूंढा है कि तू ही वह व्यक्ति है जिसके संग मैं समय की यात्रा करना चाहता हूं।” मैं वास्तव में प्रभु ईश्वर के साथ ‘समय की यात्रा’ करना चाहता था, लेकिन मुझे नहीं पता था कि उसके साथ कैसे जुड़ूं।
घुमावदार पथ
सैन फ्रांसिस्को में अब्राहम लिंकन हाई स्कूल में एक कनिष्ठ छात्र के रूप में, मुझे एक आयरिश कैथलिक परिवार के बारे में पता चला जो वास्तव में अपने विश्वास में पक्के और गंभीर थे। उन्होंने रोज़ शाम को रोज़री माला की विनती की (वह भी लातीनी भाषा में!), दैनिक मिस्सा बलिदान में भाग लिया और येशु के शिष्यत्व का जीवन जीने का प्रयास किया। उनका धार्मिक रूप से पालन करने वाला जीवन रहस्यमय और आश्चर्य जनक था। उनके नमूने के माध्यम से, मैंने अंततः कैथलिक धर्म में पूरी तरह से दीक्षित होने का निर्णय लिया।
हालाँकि, मेरे माता-पिता मेरे निर्णय से खुश नहीं थे। जब मेरे दृढीकरण और प्रथम पवित्र संस्कार के बड़े समारोह का दिन आया, तो हमारे बीच एक पारिवारिक लड़ाई हुई। पूरे घर में आँसू, क्रोधित शब्द और दोषारोपण गूँज रहे थे। मुझे यह कहते हुए याद है, “माँ और पिताजी, मैं आपसे प्यार करता हूँ, लेकिन मैं येशु की पूजा-आराधना करता हूँ, और मैं दृढ़ीकरण संस्कार पाना चाहता हूँ। कैथलिक कलीसिया मेरा आध्यात्मिक घर जैसा लगता है।” इसलिए, मैंने घर छोड़ दिया और लेक मर्सिड के पास सेंट थॉमस मोर गिरजाघर में अकेले चला गया, जहां मुझे अपने माता-पिता के आशीर्वाद के बिना संस्कार प्राप्त हुए। इसके तुरंत बाद, मुझे मत्ती के सुसमाचार का एक संदर्भ मिला जिसमें येशु ने कहा था, “जो अपने पिता या अपनी माता को मुझसे अधिक प्रेम करता है, वह मेरे योग्य नहीं …” (10:37)। मैं ठीक-ठीक जानता था कि उसका क्या मतलब था।
हाईवे से भटक कर उप मार्गों पर
काश मैं कह पाता कि किशोरावस्था पार करने के बाद भी मैंने येशु के प्रति इतनी गहरी प्रतिबद्धता जारी रखी। मेरा प्रारंभिक मन परिवर्त्तन मेरे जीवन को उसके प्रति समर्पित करने का सिर्फ सतही प्रयास था। मैंने अपने जीवन की गाड़ी को ‘सुपर हाइवे येशु’ पर यात्रा की शुरुआत की, लेकिन दुनिया के आकर्षक सामान्य चीज़ों का पीछा करते हुए इन उप मार्गों पर मैं अपनी गाड़ी ले चलता रहा: धन और सुरक्षा, पेशेवर सफलता और उपलब्धियां, सुखवादी आनंद और, सबसे ऊपर, नियंत्रण की मेरी अधिग्रहणात्मक खोज जारी रही। ‘बोनफ़ायर ऑफ़ द वैनिटीज़’ में टॉम वोल्फ के किरदार की तरह, मैं वास्तव में अपने ब्रह्मांड का स्वामी बनना चाहता था। मेरी इन सब योजनाओं के बीच येशु का स्थान क्या था? मुझे मूलतः उम्मीद थी कि येशु सवारी केलिए मेरी गाड़ी में बैठेंगे। मैं उनसे अपनी शर्तों पर जुड़ना चाहता था। मैं चाहता था कि येशु मेरे द्वारा बनाई जा रही मेरी आत्म-संदर्भित जीवनशैली को मान्यता दें।
यात्रा वापस प्रेम के दायरे में
मेरे शाही अहंकार को समायोजित करने के लिए बनाई गई यह मायावी मीनार 30 साल पहले तब ढह गई जब हमारा परिवार हमारे बेटे की नशीली दवाओं की लत से जूझ रहा था। कठिन तथ्य यह है कि उसकी लत, और अंततः घातक ओवरडोज़ ने मुझे एक बहुत ही अंधेरी, खाली जगह में गिरा दिया। मुझे लगा कि मैं बहुत गहरे गड्ढे में गिर गया हूँ जहाँ कुछ भी काम नहीं आ रहा था: मेरा बेटा वापस नहीं आ रहा था, और नुकसान की भावना भारी थी। मैं पूरी तरह से निराश हो गया और महसूस किया कि अंतरंगता, संवाद और संगति की हमारी गहरी भूख का सामना करने में दुनिया की वस्तुएं कितनी बेकार हैं।
मैंने येशु से प्रार्थना की कि वह मुझे अंधकार, पीड़ा और तन्हाई के गहरे गड्ढे से बचाए। मैंने उनसे मेरी पीड़ा दूर करने और मेरे जीवन को फिर से व्यवस्थित करने की विनती की। हालाँकि उसने मेरे जीवन को “ठीक” नहीं किया, लेकिन उसने कुछ बेहतर किया: येशु मेरे साथ गड्ढे में आये, उन्होंने मेरे क्रूस को गले लगाया, और मुझे बताया कि वे मुझे, मेरे परिवार या हमारे दिवंगत बेटे को कभी नहीं छोड़ेंगे। मैंने पीड़ित सेवक येशु की प्रेमपूर्ण दया का अनुभव किया, जो अपने लोगों के साथ, यानी कलीसिया के साथ स्वयं पीड़ित रहते हैं। वे ईश्वर हैं जिनसे मैं प्रेम कर सकता हूँ।
येशु हमारे सामने परमेश्वर का चेहरा प्रकट करते हैं। जैसा कि संत पौलुस कुलुस्सियों को भेजे अपने पत्र में लिखते हैं, येशु “अदृश्य ईश्वर के प्रतिरूप” हैं (1:15)। इसलिए, हमारे पास अभी यहीं, खुश और प्रसन्न रहने के लिए आवश्यक सभी चीजें मौजूद हैं। येशु में, जो स्वर्ग और पृथ्वी के बीच एकमात्र मध्यस्थ है, सब कुछ ठीक हो जाता है; कुछ भी उसके प्रेम के दायरे से बाहर नहीं है – हमारे प्रभु येशु मसीह हमें ईश्वर के साथ, हमारे भाइयों और बहनों और पूरी सृष्टि के साथ एक गहरे रिश्ते के लिए आमंत्रित करते हैं।
Deacon Jim McFadden कैलिफोर्निया के फॉल्सम में संत जॉन द बैपटिस्ट कैथलिक चर्च में सेवारत हैं। वह ईशशास्त्र के शिक्षक हैं और वयस्क विश्वास निर्माण और आध्यात्मिक निर्देशन के क्षेत्र में कार्य करते हैं।
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एक विजयी संयोजन भीतर पक रहा है। क्या आप उसका स्वाद चखना चाहते हैं?
1953 में, बिशप फुल्टन शीन ने लिखा, "पश्चिमी सभ्यताओं में अधिकांश लोग धन संपत्ति और दौलत प्राप्त करने के कार्य में लगे हुए हैं।" इन शब्दों में आज भी उतनी ही सच्चाई है।
हम ईमानदारी से विचार करें। इन दिनों, प्रभावशाली लोगों की एक पूरी उपसंस्कृति है, और जिन विशेष उत्पादों की वे वकालत करते हैं, उन्हें खरीदने केलिए उनके अनुयायियों को सफल रूप से प्रेरित करने हेतु उनकी भव्य और अति महंगी जीवन शैली को प्रायोजित किया जाता है।
आज प्रभाव, उपभोक्तावाद और लालच प्रचुर मात्रा में है। हम स्मार्टफ़ोन के नवीनतम मॉडल की चाहत उसके बाज़ार में आने से पहले ही रखते हैं। हम सबसे आधुनिक वस्तुओं पर, प्रचलन में आने से पूर्व ही, अपना हाथ जमाना चाहते हैं। हम जानते हैं कि लगातार बदलते रुझान के पैटर्न को देखते हुए, इन्हीं उत्पादों को 'उत्कृष्ट प्रयुक्त स्थिति में' या इससे भी बदतर, 'टैग के साथ बिल्कुल नया' लेबल वाले वैकल्पिक मीडिया के माध्यम से विज्ञापित किए जाने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।
शीन कहती है, “धन का संचयन आत्मा पर एक अजीब प्रभाव डालता है; यह और अधिक पाने की इच्छा को तीव्र करता है।” दूसरे शब्दों में, जितना अधिक हम प्राप्त करते हैं, उतना ही अधिक हम बटोरना चाहते हैं। धन के माध्यम से संतुष्टि की यह अंतहीन खोज हमें थका देती है और हमारे अस्तित्व में थकान पैदा कर देती है, चाहे हमें इसका एहसास हो या न हो।
तो फिर, अगर धन इकट्ठा करना अनिवार्य रूप से एक निर्विवाद इच्छा है, तो जिस उपभोक्तावादी दुनिया में हम रहते हैं उसमें हमें खुशी, आत्म-सम्मान और संतुष्टि कैसे मिलेगी?
धैर्य और कृतज्ञता
संत पौलुस हमें निर्देश देते हैं, “आप लोग हर समय प्रसन्न रहें, निरंतर प्रार्थना करते रहें, सब बातों केलिए ईश्वर को धन्यवाद दें; क्योंकि येशु मसीह के अनुसार आप लोगों के विषय में ईश्वर की इच्छा यही है” (1 थेसलनीकी 5:16-18)। हममें से अधिकांश लोग यह स्वीकार करेंगे कि यह कहना जितना आसान है, करना उतना आसान नहीं है। लेकिन क्या इसका मतलब यह है कि यह असंभव है?
जोखिम और संघर्ष का जीवन जीने के बावजूद, मसीही धर्म के पूर्वजों में से एक, संत पौलुस ने नमूना पेश किया। क्या उन्हें मसीही धर्म का प्रचार करने के लिए जेल में डाल दिया गया था? बिल्कुल सही। क्या उसकी जान ख़तरे में थी? निरंतर खतरे में थी। क्या उनका जहाज़ पोतभंग होकर नष्ट किया गया, उन पर पथराव किया गया और उनको ताना मारा गया? जी बिलकुल, बिना किसी संशय के।
और इन सब के, और अधिक चुनौतियों के बावजूद, संत पौलुस नियमित रूप से मसीहियों को प्रोत्साहित करते थे, "किसी बात की चिंता न करें। हर ज़रुरत में प्रार्थना करें और विनय तथा धन्यवाद के साथ ईश्वर के सामने अपने निवेदन प्रस्तुत करें और ईश्वर की शांति, जो हमारी समझ से परे है, आपके हृदयों और विचारों को येशु मसीह में सुरक्षित रखेगी” (फिलिप्पियों 4:6-7)।
वास्तव में, ईश्वर के प्रति कृतज्ञता और उचित धन्यवाद और प्रशंसा करना, कलीसियाओं के साथ पौलुस के पत्राचार का एक आवर्ती और निरंतर विषय था। रोम से कुरिंथ, एफेसुस से फिलिप्पी तक, प्रारंभिक ईसाइयों को सभी परिस्थितियों में - न कि केवल अच्छे परिस्थितियों में - धन्यवाद देने यानी आभारी होने के लिए प्रोत्साहित किया गया।
फिर, जैसा कि अब है, यह प्रोत्साहन सामयिक और संघर्षपूर्ण दोनों है। हालाँकि, सभी परिस्थितियों में आभारी होने के लिए प्रार्थना, प्रयास और दृढ़तापूर्ण निरंतरता की आवश्यकता होती है।
आभारी और उदार परोपकार
यदि हम संत पौलुस के उदाहरण का अनुसरण करें और जो हमारे पास है उसकी कृतज्ञता के साथ जांच करें, तो वह कैसा दिखेगा? हमारे सिर के ऊपर छत है , बिलों का भुगतान करने और परिवार को खिलाने के लिए पैसा है, और रास्ते में छोटी-छोटी सुविधाओं पर खर्च करने के लिए पर्याप्त पैसा है - क्या हम इसके लिए आभारी होंगे? क्या हम अपने परिवार और आसपास मौजूद अन्य परिवारों, मित्रों, व्यवसायों और ईश्वर द्वारा हमें प्रदान की गई प्रतिभाओं के प्रति आभारी होंगे?
क्या हम अब भी जो चलन में है उसका आंख मूंदकर अनुसरण करना चाहेंगे और अपना पैसा, ऊर्जा और खुशियां उन चीजों पर बर्बाद कर देंगे जिनकी हमें जरूरत नहीं है और जिन्हें हम नहीं चाहते हैं? क्या हमारे पास जो कुछ है और जिस पर हम अपना पैसा खर्च करते हैं, उसके प्रति अधिक व्यवस्थित और विवेकपूर्ण दृष्टिकोण अपनाया जा सकता है?
बेशक, कृतज्ञता के अभ्यास में हमारी सफलता का माप हमारे द्वारा इसमें लगाई गई ऊर्जा से तय होता है। किसी भी आध्यात्मिक प्रयास की तरह, हम रातोंरात कृतज्ञता में कुशल नहीं बनने जा रहे हैं। इसमें समय और प्रयास लगने वाला है।
धीरे-धीरे, लेकिन निश्चित रूप से, कृतज्ञता दुनिया को देखने के हमारे तरीके को बदल देगी। हमारे पास जो कुछ भी है उसकी सराहना करने और उसके लिए आभारी होने और जरूरत से ज्यादा चीज़ों के पीछे न भागने से, हम खुद को अपने लिए चीज़ें बटोरने या पाने के बजाय दूसरों को देने के लिए बेहतर तरीके से प्रवृत्त होते हैं। कृतज्ञता और उदारता से दूसरों को देने का यह संयोजन एक विजयी संयोजन है।
एक बार फिर, बिशप फुल्टन शीन सहमत हैं, "लेने की तुलना में देना अधिक धन्य है क्योंकि यह आत्मा को भौतिक और लौकिक से अलग करने में मदद करता है ताकि उसे परोपकारिता और दान की भावना से जोड़ा जा सके जो कि धर्म का सार है।" अपनी भलाई में आनंदित होने की अपेक्षा दूसरों की भलाई में आनंदित होने में अधिक खुशी है। लेने वाला अपनी भलाई से आनन्दित होता है; दाता दूसरों की खुशी में आनन्दित होता है, और इस तरह के लोगों को ऐसी शांति मिलती है जो दुनिया की कोई भी चीज़ नहीं दे सकती है।''
कृतज्ञता को आगे बढ़ाएँ
आभार व्यक्त करने में आगे बढ़ने की मानसिकता शामिल होती है। कृतज्ञता में बढ़ने का अर्थ है आत्म-ज्ञान, ईश्वर के ज्ञान और हमारे लिए उनकी योजना में आगे बढ़ना। धन इकट्ठा करने की चक्रीय प्रकृति और खुशी की व्यर्थ खोज से खुद को अलग करके, हम जहां हैं वहीं खुशी खोजने के लिए खुद को खोल देते हैं।
हम ईश्वर की भलाई के परिणामस्वरूप अपने और अपने लाभों की सही प्राथमिकता भी सुनिश्चित करते हैं। संत पौलुस की तरह, हम पहचान सकते हैं, "ईश्वर सबकुछ का मूल कारण, प्रेरणा स्रोत तथा लक्ष्य है। उसी को अनंत काल तक महिमा! आमेन!" (रोमी 11:30)
कृतज्ञता का यह रवैया - जो जीभ से लयबद्ध और काव्यात्मक रूप से निकलता है - हमें उन चीजों में उम्मीद की किरण देखने में भी मदद करता है जो हमेशा उस तरह से नहीं बनती हैं जैसा हम चाहते हैं। और यह कृतज्ञता का सबसे मार्मिक और सुंदर पहलू है, यह आभार का आध्यात्मिक पहलू है। जैसा कि संत अगस्तीन बताते हैं, "ईश्वर इतना अच्छा है कि उसके हाथ में बुराई भी अच्छाई लाती है। यदि वह अपनी संपूर्ण अच्छाई के कारण इसका उपयोग करने में सक्षम नहीं होता, तो वह कभी भी बुराई घटित नहीं होने देता।”
जनवरी 10, 2024
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जनवरी 10, 2024
प्रश्न - मेरे परिवार को मेरी एक बहन से समस्या है, और मुझे अक्सर अपने अन्य भाई-बहनों से उसके बारे में बात करनी पड़ती है। क्या यह अपने अन्दर की अशुद्ध हवा निकालने जैसा है? क्या यह गपशप है? क्या यह ठीक है, या पापपूर्ण है?
उत्तर- जीभ को नियंत्रित करना बड़ा चुनौती पूर्तिण कार्य है। संत याकूब इन चुनौतियों को पहचानते हैं। अपने पत्र के तीसरे अध्याय में, वे लिखते हैं, "यदि हम घोड़ों को वश में रखने के लिए उनके मुँह में लगाम लगाते हैं, तो उनके पूरे शरीर को इधर उधर घुमा सकते हैं... इसी प्रकार, जीभ शरीर का एक छोटा सा अंग है, किन्तु वह शक्तिशाली होने का दावा कर सकती है। देखिये, एक छोटी सी चिंगारी कितने विशाल वन में आग लगाा सकती है। जीभ भी एक आग है, जो हमारे अंगों के बीच हर प्रकार की बुराई का स्रोत है। वह हमारा समस्त शरीर को दूषित करती और नरकाग्नी से प्रज्वलित होकर हमारे पूरे जीवन में आग लगा देती है। हर प्रकार के पशु और पक्षी, रेंगने वाले और जलचर जीवजन्तु - सब के सब मानव जाति द्वारा वश में किये जा सकते हैं या वश में किये जा चुके हैं, परन्तु कोई मनुष्य अपने जीभ को वश में नहीं कर सकता। वह वक ऐसी बुराई है, जो कभी शांत नहीं रहती और प्राणघातक विष से भरी हुई है। हम सब उससे अपने प्रभु एवं पिता की स्तुति करते हैं, और उसी से मनुष्यों को अभिशाप देते हैं, जिन्हें ईश्वर ने अपना प्रतिरूप बनाया है। एक ही मुँह से स्तुति भी निकलती है और अभिशाप भी। मेरे भाइयो-बहनो, यह उचित नहीं है। क्या जलस्रोत के एक ही धारा से मीठा पानी भी निकलता है और खारा भी ?” (याकूब 3:3-12).
हमें दूसरे के बारे में कुछ कहना चाहिए या नहीं, इस मुद्दे पर अमेरिकी रेडियो होस्ट बर्नार्ड मेल्टज़र ने एक बार तीन नियम बनाए थे: क्या यह जरूरी है? क्या यह सच है? क्या यह करुणापूर्ण है?
ये तीन बड़े प्रश्न हैं जिन्हें हमें पूछना चाहिए। अपनी बहन के बारे में बोलते समय, क्या यह आवश्यक है कि आपके परिवार के अन्य सदस्य उसकी गलतियों और असफलताओं के बारे में जानें? क्या आप वस्तुनिष्ठ सत्य को प्रसारित कर रहे हैं या उसकी कमजोरियों को बढ़ा-चढ़ाकर बता रहे हैं? क्या आप उसके अच्छे इरादों को मानते हैं, या आप उसके कार्यों में नकारात्मक इरादों का आरोप लगाते हैं?
एक बार, एक महिला संत फिलिप नेरी के पास गई और पाप स्वीकार संस्कार में गपशप का पाप कबूल कर लिया। प्रायश्चित्त के रूप में, फादर नेरी ने उसे पंखों से भरा एक तकिया लेने और उसे एक ऊंची मीनार के शीर्ष पर ले जाकर खोलने का काम सौंपा। महिला ने सोचा कि यह एक अजीब तपस्या है, लेकिन उसने ऐसा किया और पंखों को चारों दिशाओं में उड़ते देखा। संत के पास लौटकर उसने उनसे पूछा कि इसका क्या मतलब है। उन्होंने उत्तर दिया, "अब, जाओ और उन सभी पंखों को इकट्ठा करो।" उसने उत्तर दिया कि यह असंभव है। उन्होंने कहा, “ऐसा ही उन शब्दों के साथ है जो हमारे मुंह से निकलते हैं। हम उन्हें कभी वापस नहीं ले आ सकते क्योंकि उन्हें हवाओं के ज़रिए ऐसी जगहों पर भेज दिया गया है जिन्हें हम कभी नहीं समझ पाएंगे।”
अब, ऐसे समय आते हैं जब हमें दूसरों के बारे में नकारात्मक बातें साझा करने की ज़रूरत होती है। मैं एक कैथलिक स्कूल में पढ़ाता हूँ, और कभी-कभी मुझे किसी छात्र के व्यवहार के बारे में किसी सहकर्मी के साथ कुछ साझा करने की आवश्यकता होती है। यह मुझे हमेशा सोचने और मंथन करने का अवसर देता है — क्या मैं इसे अच्छे उद्देश्यों से कर रहा हूँ? क्या मैं सचमुच चाहता हूँ कि इस छात्र के लिए सबसे अच्छा क्या हो? कई बार, मुझे छात्रों के बारे में ऐसी कहानियाँ सुनाने में आनंद आता है जो उन्हें ख़राब रूप में दर्शाती हैं, और जब मुझे किसी अन्य व्यक्ति के दुर्भाग्य या बुरे व्यवहार से आनंद मिलता है, तो मैं निश्चित रूप से पाप की सीमा पार कर चुका हूँ।
तीन प्रकार के पाप हैं जो दूसरे व्यक्ति की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाते हैं। पहला, किसी पर जल्दबाजी में फैसला लेना, जिसका मतलब है कि हम किसी व्यक्ति के व्यवहार या इरादे के बारे में बहुत जल्दी ही बिना सोचे समझे बुरा मान लेते हैं। दूसरा है, निंदा, जिसका मतलब है, दूसरे के बारे में नकारात्मक झूठ बोलना। तीसरा है, अपमान, यानी ना किसी गंभीर कारण के किसी अन्य व्यक्ति के दोषों या असफलताओं का खुलासा करना। तो, आप स्वयं से यह सवाल पूछ सकते हैं: आपकी बहन के मामले में, क्या उसकी गलतियों को बिना किसी गंभीर कारण के साझा करना उसका अपमान करना है? यदि आप उसकी गलतियों को साझा नहीं करेंगे, तो क्या उसे या किसी अन्य व्यक्ति को नुकसान होगा? यदि नहीं - और यह केवल "अपने अन्दर की अशुद्धता को बाहर निकालने" के लिए है - तो हम वास्तव में परनिंदा के पाप में लिप्त हो गए हैं। लेकिन अगर यह सचमुच परिवार की भलाई के लिए जरूरी है तो उस बहन के पीठ पीछे उसके बारे में बोलना जायज है।'
जीभ के पापों से निपटने के लिए, मैं तीन चीजें सुझाता हूं। सबसे पहले, अपनी बहन के बारे में अच्छी बातें फैलाएं! हर किसी में मुक्तिदायक गुण होते हैं जिनके बारे में हम बात कर सकते हैं। दूसरा, जिस तरह से हमने अपनी जीभ का नकारात्मक उपयोग किया है उसके लिए क्षतिपूर्ति के रूप में, एक सुंदर प्रार्थना, ईश्वरीय स्तुति की प्रार्थना करें, जो ईश्वर की महिमा और स्तुति करती है। अंत में, हम कैसे चाहेंगे कि हमारे बारे में अन्य लोगों द्वारा बात की जाए, इस बात पर विचार करें। कोई भी यह नहीं चाहेगा कि उसकी खामियों का प्रदर्शन हो। इसलिए दूसरों के साथ, अच्छे शब्दों का करुणापूर्ण प्रयोग करके अच्छा व्यवहार करें, इस उम्मीद में कि हमें भी वही करुणा मिलेगी!
By: Father Joseph Gill
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एक सौम्य और दयालु महिला के रूप में, मेरी झू-वू को उनके अनुकरणीय विश्वास के लिए सम्मानित किया गया था। वह चार बच्चों की माँ थी और 1800 के दशक के मध्य में अपने पति झू डियानशुआन के साथ रहती थी, जो चीन के हेबेई प्रांत के झुजियाहे गांव में एक ग्रामीण नेता थे।
जब बॉक्सर विद्रोह छिड़ गया और ईसाई और विदेशी मिशनरियों की हत्या कर दी गई, तो छोटे से झुजियाहे गाँव ने पड़ोसी गाँवों से लगभग 3000 कैथलिक शरणार्थियों को अपने यहाँ शरण दी। पल्ली पुरोहित, फादर लियोन इग्नेस मैंगिन, और उनके येशु संघी साथी, फादर पॉल डेन ने उस परेशानी के समय में पूरे दिन दैनिक मिस्सा बलिदान चढाने की पेशकश की और लोगों के पाप स्वीकार को सूना। 17 जुलाई को बॉक्सर सेना और शाही सेना के लगभग 4,500 सैनिकों ने गांव पर हमला किया। झू डियानशुआन ने गांव की रक्षा के लिए लगभग 1000 पुरुषों को इकट्ठा किया और युद्ध में उनका नेतृत्व किया। वे दो दिनों तक बहादुरी से लड़े लेकिन जिस तोप पर झू और साथियों ने कब्जा कर लिया था, वह गलती से गोलियां दागने लगा, और झू की मृत्यु हो गई। गाँव के कुछ सक्षम लोग उस दहशत में गांव से भाग गए।
तीसरे दिन, सैनिकों ने गाँव में प्रवेश किया और सैकड़ों महिलाओं और बच्चों को मार डाला। लगभग 1000 कैथलिकों ने पहले ही चर्च में शरण ले ली थी, जहां पुरोहितों ने उन्हें सामूहिक पाप क्षमा की आशिष दी और उन्हें अंतिम मिस्सा बलिदान के लिए तैयार किया। हालांकि मेरी झू-वू अपने पति के लिए शोक मना रही थी, फिर भी वह शांत रही और वहां एकत्रित लोगों को ईश्वर पर भरोसा करने और धन्य कुँवारी मरियम से प्रार्थना करने के लिए प्रोत्साहित कर रही थी। जब सैनिकों ने अंततः चर्च का दरवाजा तोड़ दिया और अंधाधुंध ढंग से गोलीबारी शुरू कर दी, तो मेरी झू-वू अद्भुत साहस के साथ उठी: उसने फादर मैंगिन को बचाने के लिए उनके सामने अपने हाथ फैलाकर अपने शरीर का ढाल बनाकर खड़ी रही। तुरंत ही, उसे एक गोली लगी और वह वेदी पर गिर गई। बॉक्सर्स ने फिर चर्च को घेर लिया और बचे लोगों को मारने के लिए चर्च में आग लगा दी, चर्च की छत आखिरकार गिर गई और फादर्स मैंगिन और डेन की जलकर मौत हो गई।
अपनी अंतिम सांस तक, मेरी झू-वू ने साथी विश्वासियों के विश्वास को मजबूत करना जारी रखा और उनके साहस को बढ़ाया। उसके वचनों ने उन्हें अपने डर पर काबू पाने और शहादत को स्वीकार करने के लिए प्रेरित किया। मेरी झू-वू के शक्तिशाली नेतृत्व के कारण, झुजियाहे गांव में धर्मत्याग करनेवालों की संख्या सिर्फ दो थी। 1955 में, संत पापा पायस बारहवें ने दोनों येशुसंघी पुरोहितों और कई अन्य शहीदों के साथ, मेरी झू-वू को भी धन्य घोषित किया; वे सभी सन् 2000 में संत पापा जॉन पॉल द्वितीय द्वारा संत घोषित किए गए।