Encounter
अपवित्र बनाम पवित्र
पोर्न या कामोद्दीपक सामग्रियों की लत ने उन्हें कामुकता और ईश्वर से नफरत करने के लिए प्रेरित किया, लेकिन एक रात सब कुछ बदल गया। अश्लील साहित्य से बाहर निकलने की साइमन कैरिंगटन की मुक्ति यात्रा की खोज करें।
मेरा सौभाग्य था कि मैं एक कैथलिक परिवार में छह बच्चों के बीच तीसरे बच्चे के रूप में जन्मा और पाला गया। मेरे पिताजी एक महान आध्यात्मिक गुरु थे। उन्होंने घर पर शाम की प्रार्थना का नेतृत्व किया और हर रात हमारे सोने से पहले रोज़री माला की प्रार्थना की। हम रविवार को मैरीलैंड्स में स्थित संत मार्गरेट मैरी गिरजाघर गए, और हमने वेदी सेवक के रूप में और गायक मंडली में सेवा दी। तो कुल मिलाकर, परमेश्वर मेरे जीवन के केंद्र में था।
और अधिक पाने की लत
जब मैं 15 साल का था, तब मेरी दादी का देहांत हो गया। मुझे वास्तव में दादी की कमी खलने लगी और महीनों बाद भी हर रात मैं रोता था। गहरे अकेलेपन और दर्द ने मुझे कुछ ऐसा खोजने के लिए प्रेरित किया जो मुझे प्यार का एहसास दिलाए।
तभी मैंने पोर्नोग्राफी (कामोद्दीपक सामग्रियों) की तलाश शुरू की। जितना मैंने देखा, उतना ही मैं और अधक पाने के लिए तरसता रहा। धीरे-धीरे मेरा विश्वास कमजोर होने लगा। स्कूल में, मैं अभी भी अपने दोस्तों के साथ आनंदित था, खेलकूद का आनंद लिया करता था और गिरजाघर जाता था। बाहर से मैं सब कुछ ठीक कर रहा था जैसे कि दिनचर्या के हिस्से के रूप में – मिस्सा में जाना, माला विनती की प्रार्थना करना वगैरह, लेकिन मेरे अंदर विश्वास मर रहा था। मेरा दिल कहीं और था क्योंकि मैं पाप में जी रहा था। यद्यपि मैं पाप स्वीकार संस्कार में जाता था, यह परमेश्वर के प्रेम से कम, नरक के भय से अधिक था।
जीवन का वह मोड़
एक पारिवारिक मित्र के यहाँ मुलाक़ात के दौरान, मुझे उनके यहाँ शौचालय में अश्लील पत्रिकाओं का एक खजाना मिला। पहले वाली पत्रिका को उठाना, और उस पूरी पत्रिका को शुरू से अंत तक पलटने की उस घटना का मैं कभी नहीं भूल सकता हूँ। यही मेरे जीवन का पहला वास्तविक, भौतिक और मूर्त पोर्न था। मैंने महसूस किया कि मेरे अन्दर बहुत सारी भावनाएं उमड़ रही हैं – एक अति उत्साह कि जिस खालीपन को मैं मह्स्सोस कर रहा हूँ, उस का जवाब बस यही है, लेकिन साथ ही गहरी लज्जा भी। लग रहा था कि मेरे दिल में प्यार के लिए जो दर्द है, उस दर्द को संतुष्ट करनेवाला “भोजन” यही है। उस दिन मैं उस बाथरूम से एक अलग व्यक्ति के रूपमें बाहर निकला था। तभी मैंने अवचेतन रूप से ईश्वर से मुंह मोड़ लिया। मैंने ईश्वर के बदले अश्लील साहित्य और अशुद्ध जीवन को चुना।
उस अनुभव के बाद, मैंने अश्लील पत्रिकाएँ खरीदना शुरू किया। चूंकि मैं हर दिन जिम जाता था, इसलिए मुझे इन सभी अश्लील पत्रिकाओं को छिपाकर करने के लिए जिम की दीवार में एक दरार मिली। हर बार जब मैं जिम जाता, तो जिम के रिवाज़ के सत्र की शुरुआत और अंत में, मैं पत्रिकाओं के उस संग्रह में जाकर 20 या 30 मिनट उन्हें पलटकर पढता था। सालों तक यही मेरी जिंदगी की दिनचर्या बनी रही। पोर्नोग्राफी के प्रति मेरा इतना लत लग गया कि काम के दौरान पोर्न देखने के लिए हर घंटे मैं टॉयलेट ब्रेक लेता था और इस तरह मेरी नौकरी लगभग चली गई। इस लत ने मेरे पास मौजूद हर खाली पल को मुझ से छीन लिया।
बेहद ठंडा
मैंने विभिन्न कैथलिक वक्ताओं को सुनने और शुद्धता और लैंगिकता पर किताबें पढ़ने की कोशिश की। मुझे एहसास हुआ कि उन सभी ने कहा कि लैंगिकता या कामुकता ईश्वर का एक उपहार है, लेकिन मैं इसे समझ नहीं पाया। केवल एक चीज जो लैंगिकता ने मुझे दी, वह थी दर्द और खालीपन। मेरे लिए, मेरी कामुकता ईश्वर के उपहार से बिलकुल सबसे दूर की चीज थी। यह एक खूंखार जानवर जैसा था जो मुझे नरक में घसीट रहा था!
मैं अपनी लैंगिकता से घृणा करने लगा और परमेश्वर से घृणा करने लगा। लैंगिकता मेरे दिल में जहर बन गया। जब मेरे परिवार ने माला विनती की प्रार्थना की, तो मैं प्रणाम मरियम और हे संत मरियम प्रार्थना नहीं कह पा रहा था। मैं अनुग्रह की स्थिति में बिलकुल नहीं था। मैं महीनों तक मिस्सा में जाता रहा लेकिन परम प्रसाद को ग्रहण नहीं करता था। यहां तक कि अगर मैं मिस्सा के बाद पाप स्वीकार संस्कार में जाता, तो मैं अगले दिन तक पोर्नोग्राफी के बिना दिन नहीं बिता पाता था। मेरे दिल में किसी प्रकार का प्यार नहीं था। जब मेरी मां मुझे गले लगाती तो मैं चट्टान की तरह तनाव में आ जाता। मुझे नहीं पता था कि प्यार और कोमल स्नेह कैसे प्राप्त करें। बाहर से मैं हमेशा मिलनसार और खुश रहता था, लेकिन अंदर से मैं खाली और मरा हुआ था।
मुझे याद है कि एक दिन पोर्नोग्राफी देखने के बाद मैं अपने कमरे में आया था और आते ही मैंने अपनी दीवार पर क्रूसित प्रभु की मूर्ती को देखा। क्रोध के एक क्षण में मैंने क्रूस पर लटके येशु से कहा, “तू मुझसे कैसे उम्मीद करता है कि लैंगिकता तेरी ओर से दिया जा रहा उपहार है? यह लैंगिकता मुझे बहुत दर्द और खालीपन पैदा कर रहा है। तू झूठा है!” मैंने नीचे से अपनी चारपाई पर छलांग लगा दी और दीवार से सूली को निकाल लिया और उसे अपने घुटने पर मार कर तोड़ दिया। टूटे हुए क्रूस को देखकर मैं गुस्से से फूट पड़ा, “मैं तुझसे नफरत करता हूँ! तू झूठा है।” फिर मैंने उस क्रूस को कमरे में रखे कूड़े दान में फेंक दिया।
जब मेरा जबड़ा फर्श से टकराया
फिर एक दिन, माँ ने मुझसे कहा कि मैं अपने बड़े भाई के साथ जेसन एवर्ट की अध्यात्मिक सभा में जाऊं जहां शुद्धता पर प्रवचन होगा। मैंने उसे विनम्रता से कहा “माँ, मैं नहीं जाना चाहता।“ जब उसने जाने केलिए फिर अनुरोध किया, तो मैंने कहा, “माँ, प्यार असली नहीं है। मैं प्यार में विश्वास नहीं करता!” माँ ने बस इतना कहा, “तुम्हें जाना पडेगा!” अनिच्छा से मैं उस रात की सभा में भाग लेने चला गया।
मुझे याद है कि उस रात जेसन की बात सुनने के बाद मैं आश्चर्य चकित था। एक लाइन ने मेरी जिंदगी बदल दी। उन्होंने कहा, “पोर्न आपके भविष्य के वैवाहिक जीवन को बर्बाद करने का सबसे सुरक्षित तरीका है।”
जैसे ही उसने यह कहा, मुझे एहसास हुआ कि अगर मैंने अपने तरीके नहीं बदले, तो मैं उस महिला को नुकसान पहुँचाऊँगा जिससे भविष्य में मेरी शादी होगी, क्योंकि मुझे नहीं पता था कि उस औरत के साथ ठीक से कैसे व्यवहार किया जाए।
इसके बाद शादी के लिए मेरी जो भी ख्वाहिशें थीं, वे सब मुझमें फिर से प्रकट हो गईं। वास्तव में मैं प्रेम और वैवाहिक जीवन को सबसे अधिक चाहता था, लेकिन मैंने उस चाहत को यौन पाप के साथ दफन कर दिया था।
उस रात मुझे जेसन से व्यक्तिगत रूप से बात करने का मौका मिला और उन्होंने जो सलाह दी उससे मेरी जिंदगी बदल गयी। उन्होंने कहा, “देखो, तुम्हारे हृदय में प्रेम है, और साथ साथ वासना के ये सब प्रलोभन भी हैं। इनमे से जिसे भी तुम अधिक खिला पिलाने का निर्णय लेते हो, वही मजबूत हो जाएगा और अंततः वह दूसरे पर हावी हो जाएगा। अब तक तुम प्यार से अधिक वासना को खिलाते रहे हो, अब प्यार को खिलाने का समय आ गया है।”
मुझे पता था कि उस रात ईश्वर ने मुझे स्पर्श किया था, और मैंने फैसला किया कि मुझे एक साफ-सुथरी शुरुआत की जरूरत है। मैंने पाप स्वीकार संस्कार के लिए एक पुरोहित को बुक किया और उन से मैंने पहले ही कह दिया कि आज का मेरा पाप स्वीकार लंबा समय लेगा! मैंने एक सामान्य पाप स्वीकार किया जिसमें लगभग डेढ़ घंटा लगा। मैंने हर उस यौन पाप को क़बूल किया जिसे मैं संभवतः याद रख पा रहा था, मैंने जिन पोर्न स्टार्स को देखा था, उनके नाम, कितनी बार, कितने घंटे और कितने सालों तक, ये सब मैंने कबूल किया। मुझे लगा कि उस रात पाप स्वीकार संस्कार से एक नया आदमी बाहर निकल रहा है।
एक खूबसूरत खोज
मेरे जीवन में परिवर्तन का तीसरा चरण शुरू हुआ। हालाँकि मैं अभी भी यौन अशुद्धता के उन पापों से जूझ रहा था, फिर भी मैं लगातार संघर्ष में था। धीरे-धीरे, मैं यौन पाप से छुटकारे का अनुभव करने में सक्षम हुआ, और मैंने महसूस किया कि परमेश्वर मुझे वास्तव में निमंत्रण दे रहा है ताकि मैं यह सीखना शुरू कर दूं कि मानव की लैंगिकता के लिए परमेश्वर की योजना क्या थी, और वह चाहता है कि मैं इसे दूसरों के साथ साझा करना शुरू करूँ।
मुझे ऐसे वक्ताओं का सामना करना पड़ा, जिन्होंने संत जॉन पॉल के “शरीर के धर्मशास्त्र” को मेरे सामने जाहिर किया और उस पुस्तक को पढ़ने के दौरान मैं एक शक्तिशाली विचार से प्रभावित हुआ: मेरा शरीर और हर दूसरा शरीर ईश्वर का संस्कार है। मुझे एहसास हुआ कि मैं ईश्वर की छवि या प्रतिछाया हूँ और हर महिला भी ईश्वर की प्रतिछाया है। जब मैंने इस दृष्टि के माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति को ईश्वर के एक जीवित संस्कार के रूप में देखना शुरू किया, तो उन्हें यौन रूप से उनके दोहन करने के बारे में सोचना ही मेरे लिए बहुत कठिन हो गया। अगर मुझे कभी किसी के प्रति वासना पूर्ण इच्छा जागृत होती, और विशेषकर हस्तमैथुन और अश्लील साहित्य के माध्यम से वासना करनी होती, तो मुझे अपने मन और अपने दिल में उन्हें अमानवीय बनाना पड़ता। अपने आप को और अन्य महिलाओं को देखने के इस नए दृष्टिकोण से सबल होकर, मैं एक बड़ा परिवर्तन करने के लिए दैनिक मिस्सा बलिदान और नियमित पाप स्वीकार से प्राप्त अनुग्रहों से सशक्त हो गया।
मैंने हर महिला को यौन सुख के लिए नहीं बल्कि वास्तव में ईश्वर के एक सुंदर संस्कार के रूप में देखना शुरू किया। मैं इस नए संदेश से इतना उत्साहित था कि मैं इसे जहाँ तक संभव था, हर किसी के साथ साझा करना चाहता था। उस समय मैं एक जिम में फिटनेस प्रशिक्षक के रूप में काम कर रहा था, लेकिन मुझे लगा कि ईश्वर मुझे उस माहौल को त्यागकर सीधे उनकी सेवा करने के लिए बुला रहे हैं। मुझे यकीन नहीं था कि मैं कहाँ जा रहा हूँ, लेकिन दरवाजे खुलने लगे। मैं युवा सेवकाई में शामिल हो गया और “परूसिया मीडिया” नामक संस्था के लिए काम करना शुरू कर दिया, जहाँ मैंने विश्वास सम्बन्धी सामग्रियों की पैकिंग और पोस्टिंग किया। जब मैं वहां सेवा दे रहा था, तब वहां मैं पूरे दिन विश्वास की बातें सुनता था, और मेरे अपने व्यक्तिगत विश्वास के बारे में शक्तिशाली तरीके से सीखता था। लगभग हर सप्ताहांत में मैंने हाई स्कूल के छात्रों के बीच एक युवा सेवक के रूप में प्रवचन देना शुरू किया, और मुझे सुसमाचार के प्रचार में बहुत अंड आने लगा और मुझे इस सेवकाई से प्यार हो गया।
पहले से बिलकुल अनोखा प्यार
एक दिन, एक महिला मेरे कार्यालय में पहुंची। वह किसी वक्त की तलाश में थी, जो युवा लोगों से शुद्धता और विशेष रूप से अश्लील साहित्य के बारे में बात कर सकें। पता नहीं कैसे, मैंने उस महिला से कहा कि मैं यह कार्य करूँगा। मैंने उस रात उन युवाओं के सम्मुख अपनी गवाही साझा की, और प्रतिक्रिया बहुत उत्साहजनक थी। मौखिक रूप से प्रचार हुआ, और अधिक से अधिक लोग मुझे और और मेरी कहानी को जानने लगे और अधिक जगहों पर उद्बोधन देने के निमंत्रण आने लगे।
पिछले 10 वर्षों में मैंने शुद्धता, शुद्ध डेटिंग और शरीर के धर्मशास्त्र के आधार पर 30,000 से अधिक लोगों को 600 से अधिक उद्बोधन दिए हैं। इस सेवकाई के माध्यम से, मैं मेडेलीन से मिला जो मेरी पत्नी के रूप में मेरे जीवन में आयी, और प्रभु की आशीष से हमें तीन बच्चे मिल गए। प्रत्येक व्यक्ति ने जिस प्रेम के बारे में सपना देखा था, उस प्रेम का अनुभव करने के लिए, लोगों को आमंत्रित करने के लिए फायर अप मिशन की सेवकाई प्रारम्भ करने हेतु परमेश्वर हम दोनों को विभिन्न स्थानों पर ले गए!
अपने जीवन के इस बिंदु पर, मुझे यौन स्वतंत्रता के उस स्तर का अनुभव करने का सौभाग्य मिला है जो मुझे पहले कभी नहीं मिला था। मैं अब जहां हूं, वहां तक मुझे पहुंचाने के लिए मैं ईश्वर का शुक्रिया अदा करता हूं, और उन दिनों को याद करता हूं जब मैं वास्तव में इस क्षेत्र में बड़े संघर्ष से जूझ रहा था। ऐसे समय भी थे, जब मैंने महसूस किया कि सुरंग के उस छोर से किसी प्रकाश की किरण नहीं आ रही थी, और इसलिए मैंने “क्या पवित्रता संभव है?” कहकर ईश्वर से चिल्लाकर सवाल पूछा था। यह निराशाजनक लग रहा था, और मुझे लगा कि मैं हमेशा के लिए इस तरह जीने को अभिशप्त हो गया था। हालांकि मैंने सोचा था कि मेरे जीवन में कभी नहीं धुलनेवाले काले धब्बे थे, फिर भी ईश्वर ने मुझे प्यार करना कभी नहीं छोड़ा। उसने मेरे साथ धैर्यपूर्वक, क्षमा और कोमलता के साथ काम किया। मैं अभी भी उस यात्रा पर हूँ, और परमेश्वर अब भी मुझे प्रतिदिन चंगा कर रहा है।
“उनके जीवन में कुछ सचमुच अंधेरे क्षण थे, जिसके कारण वे यौन पाप के भारी क्रूस को धो रहे थे, लेकिन जब जब वे इसे मसीह के पास ले गये और उन्होंने उस क्रूस को मसीह को समर्पित कर दिया – तो मसीह उसे मुक्त करने में सक्षम था। साइमन ने ईश्वरीय करुणा का अमन सामना किया और उन्होंने अपने जीवन में मसीह में गहरी चंगाई का अनुभव किया। यह दया और चंगाई के उस उद्गम स्थान से था जहाँ से वे आनंद, प्रेम और सबसे बढ़कर कामुकता के साथ इसी तरह के संघर्ष को झेल रहे अन्य लोगों को आशा दिलाने में वे सक्षम रहे हैं। जब मैं साइमन को इतने सारे लोगों की सेवकाई करते हुए देखती हूँ, तो मैं लगातार इस बात से चकित होती हूँ कि कैसे वे उन सभी लोगों में ख्रिस्त के प्रेम का संचार करते हैं।”
- साइमन की पत्नी मेडेलीन कैरिंगटन
Simon Carrington co-founded Fire Up Ministries with his wife, Madeleine. They live in Sydney, Australia with their three beautiful children. This article is based on the testimony he shared in the Shalom World program “Jesus My Savior”. To watch the episode visit: shalomworld.org/show/jesus-my-savior
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लोग अक्सर आश्चर्यचकित हो जाते हैं जब मैं उन्हें बताता हूं कि मठ में मेरे सबसे करीबी दोस्त फादर फिलिप हैं, जो 94 वर्ष के हैं। वे मठ के सबसे बुजुर्ग सन्यासी हैं, और मैं सबसे छोटा हूं, और इस तरह हमारी यह जोड़ी बनती है; एक अन्य साथी सन्यासी हमें प्यार से "अल्फा और ओमेगा" कहकर बुलाते हैं। उम्र में अंतर के अलावा, हमारे बीच कई अंतर हैं। फादर फिलिप ने मठ में प्रवेश करने से पहले तट सुरक्षा बल में सेवा की, वनस्पति विज्ञान और अंग्रेजी का अध्ययन किया, रोम और रवांडा में रहकर सेवा दी, और कई भाषाओं में पारंगत हैं। संक्षेप में, उनके पास मुझसे कहीं अधिक जीवन का अनुभव है। जैसा कि कहा गया है, हममें कुछ बातें समान हैं: हम दोनों कैलिफ़ोर्निया के मूल निवासी हैं और प्रोटेस्टेंट सम्प्रदाय से धर्मान्तरित हैं (वे प्रेस्बिटेरियन और मैं बैपटिस्ट)। हम दोनों ओपेरा का भरपूर आनंद लेते हैं, और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि हम एक साथ प्रार्थना का जीवन जीते हैं।
जो हमारे समान हितों को साझा करते हों, ऐसे मित्रों का चयन करना स्वाभाविक है। लेकिन जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं और जीवन में हमारी स्थितियाँ बदलती हैं, हम पाते हैं कि हम कुछ मित्रों को खो रहे हैं जबकि नए मित्र भी प्राप्त कर रहे हैं। अरस्तू का कहना है कि सभी मित्रता में कुछ न कुछ समानता अवश्य होनी चाहिए। स्थायी मित्रता वे हैं जो लंबे समय तक चलने वाली बातें साझा करती हैं। उदाहरण के लिए, पानी में सर्फिंग करनेवाले दो लोगों के बीच दोस्ती तब तक बनी रहती है जब तक पकड़ने के लिए लहरें मौजूद रहती हैं। हालाँकि, यदि कोई हलचल नहीं है या यदि कोई सर्फर घायल हो जाता है और अब बाहर नहीं निकल सकता है, तो दोस्ती तब तक फीकी रहेगी जब तक उन्हें आपस में साझा करने के लिए कुछ नया नहीं मिल जाता। इसलिए, यदि हम आजीवन मित्र बनाना चाहते हैं, तो कुंजी कुछ ऐसी चीज़ ढूंढना है जिसे जीवन भर, या इससे भी बेहतर, अनंत काल तक साझा किया जा सके।
महायाजक कैफस ने येशु पर ईशनिंदा का आरोप लगाया जब उसने ईश्वर का पुत्र होने का दावा किया। इस कथन से कहीं अधिक निन्दात्मक तब था जब येशु ने अपने शिष्यों से कहा, "तुम मेरे मित्र हो।" क्योंकि परमेश्वर के पुत्र का मछुआरों, चुंगी लेनेवालों, और एक चरमपंथी से क्या मेल हो सकता है? ईश्वर और हमारे बीच संभवतः क्या समानता हो सकती है? वह हमसे बहुत बड़ा है। उसके पास जीवन का अनुभव अधिक है। वह अल्फ़ा और ओमेगा दोनों है। जो कुछ भी हम साझा करते हैं वह सबसे पहले उसी ने हमें दिया होगा। उनके द्वारा हमारे साथ साझा किए गए कई उपहारों में से, पवित्र बाइबिल इस बारे में स्पष्ट है कि कौन सा उपहार सबसे लंबे समय तक रहता है: "उनका दृढ़ प्रेम हमेशा के लिए बना रहता है।" "प्यार... सब कुछ सहता है।" "प्यार कभी खत्म नहीं होता।" जैसा कि यह पता चला है, ईश्वर के साथ दोस्ती करना काफी सरल है। हमें बस इतना करना है कि "प्यार करो क्योंकि उसने पहले हमसे प्यार किया।"
By: Brother John Baptist Santa Ana, O.S.B.
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अक्टूबर 28, 2023
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वर्तमान विश्व की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक यह गलत धारणा है कि विज्ञान और धर्म के बीच युद्ध होना ही है...
मैंने अपने प्राथमिक और माध्यमिक पढ़ाई का पूरा समय सरकारी स्कूलों में बिताया है जहां आस्था और धर्मनिरपेक्ष संस्कृति के बीच टकराव है। वर्षों से, मैंने बार बार यह घोषणा सुनी है कि आस्था और वास्तविक दुनिया एक साथ नहीं चल सकते। आस्था उन लोगों के लिए है जिन्हें गुमराह किया गया है, जो दिवास्वप्न देखते हैं और जो जीवन को उसके वास्तविक रूप में देखने से इनकार करते हैं। कई लोगों की नज़र में धर्म पुराने ज़माने का विचार है, जिसकी अब कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि हमारे पास यह सब समझाने के लिए आधुनिक विज्ञान और दर्शनशास्त्र है। यह टकराव मेरे विज्ञान पाठ्यक्रमों में हमेशा सबसे अधिक दिखाई देता था। शिक्षकों तथा छात्रों द्वारा यह बताया गया है कि कोई भी व्यक्ति ईश्वर और विज्ञान दोनों में विश्वास नहीं कर सकता है। दोनों बस परस्पर अनन्य हैं। मेरे लिए, सत्य से बढ़कर कुछ भी नहीं हो सकता। मेरी नज़र में, प्रकृति की हर चीज़ ईश्वर के अस्तित्व को साबित करने का काम करती है।
ईश्वर की उत्तम योजना
जब हम प्राकृतिक दुनिया को देखते हैं, तो सब कुछ बहुत ही उत्तम तरीके से या अभियांत्रिक तरीके से निर्मित किया गया है। पृथ्वी पर जीवन का समर्थन करने के लिए सूर्य एकदम सही दूरी पर है। बिना किसी उद्देश्य के समुद्र में रहने वाले जीव वास्तव में पृथ्वी को अन्य प्रजातियों के लिए रहने योग्य बनाए रखने के लिए हमारे समुद्र और वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को हटाने का काम करते हैं। अंतरिक्ष में कई मील दूर चंद्रमा का चक्र हमारे ठीक सामने ज्वार-भाटा बदलने का कारण बनता है। जब हम करीब से देखते हैं तो प्रकृति में प्रतीत होने वाली यादृच्छिक घटनाएं भी इतनी यादृच्छिक नहीं होती हैं।
जब मैं उच्चविद्यालय में एक कनिष्ट छात्रा थी, मैंने पर्यावरण विज्ञान में पाठ्यक्रम लेने का निर्णय लिया। यह मेरी पसंदीदा विषय था और हम ने प्रकृति के चक्रों के बारे में सीखा। नाइट्रोजन चक्र ने मुझे विशेष रूप से प्रभावित किया। नाइट्रोजन पौधों के विकास के लिए महत्वपूर्ण पोषक तत्व है, फिर भी नाइट्रोजन, अपने वायुमंडलीय रूप में, उस उद्देश्य के लिए उपयोग योग्य नहीं है। नाइट्रोजन को वायुमंडल से उपयोगी रूप में परिवर्तित करने के लिए मिट्टी में जीवाणु या बिजली की चमक की आवश्यकता होती है। बिजली की चमक, जो इतना यादृच्छिक और महत्वहीन लगता है, वह कहीं अधिक बड़े उद्देश्य को पूरा करता है!
हमारे जीवन के लिए ईश्वर की योजना की तरह, प्रकृति पूरी तरह से एक-दूसरे से जुड़ी हुई है। यहां तक कि छोटी सी छोटी चीज़ में भी कारणों और प्रभावों की एक शृंखला होती है, जो एक अंतिम उद्देश्य को पूरा करती है, जो अपनी जगह से गायब हो जाने पर दुनिया के भाग्य को बदल देगी। चंद्रमा के बिना, अनगिनत जानवर और पौधे जो भोजन के लिए ज्वार भाटा के उतार-चढ़ाव पर निर्भर हैं, मर जाएंगे। बिजली के उन "यादृच्छिक" गाज के बिना, मिट्टी की उर्वरता कम होने के कारण हमारे पौधे बढ़ नहीं पाएंगे।
इसी तरह, हमारे जीवन की हर घटना, चाहे वह कितनी भी भ्रामक या महत्वहीन क्यों न लगे, पहले से ही अनुमानित और हमारे लिए ईश्वर की तैयार की गई योजना में शामिल हो जाती है, बर्शते हम अपनी इच्छाओं को उसकी इच्छा के अनुरूप बनाते हैं। यदि प्रकृति में हर चीज़ का एक उद्देश्य है, तो हमारे जीवन में भी हर चीज़ का बड़ा अर्थ होना चाहिए।
सृष्टि में सृष्टिकर्ता
मैं हमेशा सुनती आई हूँ कि हम ईश्वर को तीन चीजों में पाते हैं: सत्य, सौंदर्य और अच्छाई।
प्रकृति के कार्य का तार्किक विश्लेषण सत्य के प्रमाण के रूप में और ईश्वर उस सत्य को कैसे मूर्त रूप देता है इसके बारे में सबूत के तौर पर काम कर सकता है। लेकिन ईश्वर न केवल सत्य का प्रतीक है, बल्कि सौंदर्य का सार भी है। इसी तरह, प्रकृति न केवल चक्रों और कोशिकाओं की एक प्रणाली है, बल्कि बेहद खूबसूरत भी है, जो ईश्वर के कई पहलुओं का एक और प्रतिनिधित्व है।
प्रार्थना करने के लिए, समुद्र के बीच में मेरे सर्फ़बोर्ड, मेरी पसंदीदा जगहों में से एक रही है। ईश्वर की रचना की सुंदरता को चारों ओर देखने का अवसर मुझे सृष्टिकर्ता के बहुत करीब लाता है। लहरों की ताकत का एहसास और विशाल समुद्र के बीच अपनी लघुता की पहचान हमेशा मुझे ईश्वर की अपार शक्ति की याद दिलाती है। पानी हर जगह है और हर चीज़ में मौजूद है, यह हमारे भीतर है, समुद्र के भीतर है, आकाश के भीतर है, और प्रकृति में पौधों और जानवरों के भीतर है।
जब यह पानी ठोस, तरल, गैस में परिवर्तित होता है, तब भी यह पानी ही रहता है। यह हमें याद दिलाता है कि ईश्वर पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के रूप में मौजूद है। सभी जीवित चीज़ें अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए पानी पर निर्भर हैं। हमें न केवल पानी की आवश्यकता है, बल्कि हमारे शरीर में भी बड़ी मात्रा में पानी होता है। ईश्वर भी सर्वव्यापी है; वह समस्त जीवन का स्रोत और जीवन को कायम रखने की कुंजी है। वह हमारे भीतर है और हमारे चारों ओर मौजूद हर चीज़ में मौजूद है।
जब मैं संसार को देखता हूँ तो मुझे इसका रचयिता दिखाई देता है। जब मैं नरम घास और फूलों के बीच धूप में लेटी रहती हूँ तो मैं ईश्वर के दिल की धड़कन को महसूस करती हूँ। मैं देखती हूँ कि उसने कितनी अच्छी तरह से जंगली फूलों को चित्रित किया, किसी चित्रकार की रंग मिलाने की पटिया के समान ज्वलंत रंगों के साथ। सृष्टिकर्ता जानता है कि वे रंगबिरंगे फूल मुझे खुशी देंगे। प्राकृतिक जगत का सौंदर्य अथाह है। मनुष्य सुंदरता की ओर आकर्षित होता है और कला और संगीत के माध्यम से इसे स्वयं बनाने की कोशिश करता है। हम ईश्वर की छवि और सादृश्य में बने हैं और सौंदर्य के प्रति उसका प्रेम हम मानव की सृष्टि से अधिक रूप में स्पष्ट नहीं हो सकता है। हम इसे अपनी चारों ओर हर जगह देखते हैं। उदाहरण के लिए, हम पतझड़ के पत्ते के जटिल योजना में ईश्वर की कला देखते हैं, और हर सुबह समुद्र की टकराती लहरों और पक्षियों के गायन की आवाज़ में उसका संगीत सुनते हैं।
अनंत रहस्य
दुनिया हमें यह बताने की कोशिश कर सकती है कि ईश्वर का अनुसरण करना, बाइबिल के प्राचीन ज्ञान पर ध्यान देना या आस्था पर ध्यान केंद्रित करना सत्य की अज्ञानतापूर्ण अस्वीकृति है। हमें बताया गया है कि विज्ञान सत्य है, और धर्म सत्य नहीं है। फिर भी कई लोग यह नहीं देख पाते कि येशु सत्य के मूर्तिभाव बनकर आया था। ईश्वर और विज्ञान परस्पर अनन्य नहीं हैं; बल्कि एक सम्पूर्ण सृष्टि की रचना इस बात का और अधिक सबूत है कि एक सम्पूर्ण और आदर्श रचनाकार या सृष्टिकर्त्ता अवश्य होना चाहिए। धार्मिक परंपरा और वैज्ञानिक खोज दोनों ही सच्ची और अच्छी हो सकती हैं। हमारे आधुनिक समय में आस्था अप्रचलित नहीं हो रही है; हमारी वैज्ञानिक प्रगति हमारे प्रभु के अनंत रहस्यों पर और अधिक सुंदर दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है।
अक्टूबर 20, 2023
Engage
अक्टूबर 20, 2023
प्रश्न - मैं हमेशा अपने परिवार, अपने स्वास्थ्य, अपनी आर्थिक स्थिति, अपनी नौकरी आदि के बारे में चिंता से ग्रसित रहता हूँ। मुझे इस बात की चिंता भी होती है कि मेरा उद्धार हुआ है या नहीं। इतने सारे भयों के बीच, मैं हृदय की शांति कैसे पा सकता हूँ?
उत्तर - यह महत्वपूर्ण है कि बाइबिल में "डरो मत" वाक्यांश 365 बार आता है - वर्ष के प्रत्येक दिन के लिए एक! परमेश्वर जानता था कि हमें प्रतिदिन स्मरण दिलाने की आवश्यकता होगी कि वही मालिक है और हम अपना भय उस पर डाल सकते हैं!
यह विश्वास करना कठिन हो सकता है कि हमारे जीवन की प्रत्येक परिस्थिति पहले से ही एक सर्वशक्तिमान और प्रेमी ईश्वर के हाथों में है। लेकिन जब हम अपनी समस्याओं को नहीं, बल्कि परमेश्वर की विश्वसनीयता को देखते हैं तब अचानक हमें एहसास होता है कि वह कैसे हर चीज़ में अच्छाई निकाल सकता है।
उदाहरण के लिए, धर्म ग्रन्थ को पढ़ें और देखें कि कैसे परमेश्वर बाइबल के महान नायकों के प्रति विश्वासयोग्य था! पुराने नियम में, यूसुफ को मिस्र में गुलामी के लिए बेच दिया गया था और फिर उसे कारागार में डाल दिया गया था। लेकिन परमेश्वर ने इस त्रासदी को अवसर में बदल दिया: पहले यूसुफ मिस्र की सरकार में ऊंचे पद पर पहुँच गए और फिर जब देश में अकाल पड़ा, तब उसे अपने परिवार को बचाने का अवसर मिला। या, नए नियम में, पौलुस को कैद किया गया था, और उसका जीवन कई बार खतरे में डाला गया था, लेकिन हर बार, परमेश्वर ने उसे उसके शत्रुओं से बचाया।
संतों के जीवन को देखें - क्या ईश्वर ने कभी उन्हें त्याग दिया था? संत जॉन बोस्को के बारे में सोचें - कई लोगों ने इस पवित्र पुरोहित की जान लेनी चाही, लेकिन हर बार ईश्वर ने चमत्कारिक रूप से उन्हें एक विशेष अभिभावक प्रदान किया - एक बड़ा धूसर कुत्ता जो उसकी रक्षा के लिए मौके पर दिखाई देता है! संत फ्रांसिस के बारे में सोचिए, जिसे युद्ध में बंदी बना लिया गया और एक वर्ष के लिए कैद कर लिया गया - और उसी वर्ष उसे रूपांतरण का अनुभव प्राप्त हुआ। संत कार्लो एक्यूटिस के बारे में सोचें, वह युवा किशोर जो 2006 में 15 साल की उम्र में ल्यूकेमिया से गुज़र गया और कैसे ईश्वर ने इतनी कम उम्र की मौत से बहुत अच्छा कल्याण का कार्य किया है, क्योंकि लाखों लोग उसकी जीवन कहानी से और उसे आदर्श मानकर पवित्रता के लिए प्रेरित हुए हैं।
मैं आपको बता सकता हूं कि मेरे जीवन का सबसे कठिन क्षण तब था जब मुझे स्कूल से बाहर निकाल दिया गया था और पुरोहिताई के लिए अपनी योजनाओं को त्यागने के लिए कहा गया था। यह मेरे जीवन के सबसे गौरवशाली और धन्य अनुभवों में से एक बन गया, क्योंकि इसने मेरी पुरोहिताई केलिए दूसरे बेहतर द्वार खोल दिये - एक बेहतर धर्मप्रांत, जहाँ मैं अपनी क्षमताओं और प्रतिभाओं का उपयोग ईश्वर की महिमा के लिए कर सकता हूँ। यह केवल दूरदर्शिता थी कि मैंने अपने जीवन में ईश्वर के हस्तक्षेप को पहचाना। लेकिन जिस तरह से ईश्वर ने मुझे सुरक्षित रखा है और अतीत में मुझे उसके करीब लाया है, यह मुझे विश्वास दिलाता है कि जो उस समय विश्वसनीय था वह भविष्य में भी विश्वसनीय रहेगा। और अब अपने जीवन के बारे में सोचें। आपने ईश्वर को अपने जीवन में आते हुए कैसे देखा?
पवित्र धर्मग्रन्थ में किए गए परमेश्वर के वादों पर ध्यान दें। उसने हमसे कभी आसान जीवन का वादा नहीं किया - उसने वादा किया कि वह हमें कभी नहीं छोड़ेगा। उसने वादा किया कि “परमेश्वर ने जो तैयार किया है, उसे न तो कोई आँख देख सकती है और न ही कोई कान सुन सकता है।" उसने कभी भी यह वादा नहीं किया कि जीवन हमेशा सुचारू रूप से चलेगा, लेकिन उसने वादा किया कि "जो लोग परमेश्वर से प्रेम करते हैं और उसके विधान के अनुसार बुलाये गए हैं, परमेश्वर उनके कल्याण केलिए सभी बातों में उनकी सहायता करता है" (रोमी 8:28) ये वे वायदे हैं जिन पर हम अपने जीवन का निर्माण कर सकते हैं!
अंत में भरोसे की स्तुति विनती करें। न्यूयॉर्क में सिस्टर्स ऑफ लाइफ की बहनों ने यह सुंदर स्तुति विनती लिखी है जो हमें अपनी चिंताओं को ईश्वर को समर्पित करने के लिए आमंत्रित करती है। यह विनती कहती है:
भविष्य की चिंता से, मुझे मुक्त कर, येशु।
वर्तमान क्षण में बेचैन स्वार्थ से, मुझे मुक्त कर, येशु।
तेरे प्यार और तेरी उपस्थिति में मेरे अविश्वास से, मुझे मुक्त कर, येशु।
इस संक्षिप्त प्रार्थना को निरंतर करते रहें: “येशु मैं तुझ पर भरोसा रखता हूँ!” और वह आपके ह्रदय को ऐसी शांति से भर सकता है जो समझ से परे है।
By: Father Joseph Gill
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जून 03, 2023
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जून 03, 2023
प्रश्न: मेरे बच्चे किशोरावस्था तक नहीं पहुंचे हैं। वे बार बार मोबाइल फोन की मांग कर रहे हैं ताकि वे अपने सभी दोस्तों की तरह सोशल-मीडिया में आ सकें। मैं बहुत दु:खी हूँ, क्योंकि मैं नहीं चाहती कि उन्हें ऐसी छूट दी जाए, क्योंकि मुझे पता है कि यह कितना खतरनाक हो सकता है। आप की राय क्या है?
उत्तर: सोशल-मीडिया का इस्तेमाल अच्छाई के लिए किया जा सकता है। मैं एक बारह वर्षीय बालक को जानता हूँ जो टिक-टॉक पर बाइबल से प्रेरित चिंतन की वीडियो बनाता है, और उसे सैकड़ों लोग देखते हैं। एक युवक इंस्टाग्राम अकाउंट में संतों के बारे में पोस्ट करता है। अन्य युवक नास्तिकों से वाद-विवाद करने या युवाओं को उनके विश्वास में प्रोत्साहित करने के लिए डिस्कॉर्ड जेसे एप्स का इस्तमाल करते हैं। बिना किसी संदेह के, सुसमाचार-प्रचार और ईसाई समुदाय को विश्वास में बढ़ाने में सोशल-मीडिया का अच्छा उपयोग किया जा सकता है।
फिर भी ... क्या लाभ जोखिमों से अधिक हैं? आध्यात्मिक जीवन में एक अच्छी सूक्ति है: "ईश्वर पर अत्यधिक भरोसा करें... स्वयं पर कभी भरोसा न करें!" क्या हमें किशोरों को इंटरनेट के असीमित उपयोग का अवसर देना चाहिए? अगर वे सबसे अच्छे इरादों से शुरू करते हैं, तो क्या वे प्रलोभनों का विरोध करने के लिए पर्याप्त रूप से मजबूत या सक्षम हैं? सोशल-मीडिया एक खतरनाक गड्ढा बन सकता है - न केवल अश्लील साहित्य या हिंसा का महिमामंडन जैसे स्पष्ट प्रलोभन, बल्कि इससे भी अधिक कपटपूर्ण प्रलोभन, जैसे: लिंग सम्बन्धी गलत विचारधारा, साइबर धमकियां, ‘लाइक्स’ और ‘व्यूस’ प्राप्त करने का नशा, और जब युवक सोशल-मीडिया पर दूसरों के साथ खुद की तुलना करना शुरू करते हैं तो उनमें अपर्याप्तता की भावना उत्पन होती है। मेरी राय में, लाभों से अधिक जोखिम हैं जो युवाओं को एक धर्मविहीन दुनिया तक पहुंचने की अनुमति देने और उन्हें मसीही सोच से दूर करने की अनगिनत कोशिशें हैं।
हाल ही में एक माँ और मैं उनकी किशोर-बेटी के खराब व्यवहार और रवैये पर चर्चा कर रहे थे, जो कि उसके टिक-टॉक के उपयोग और इंटरनेट में उसकी असीमित उपयोग से संबंधित था। माँ ने आह भरते हुए कहा, "यह कितना दु:खद है कि बच्चे अपने मोबाइल फोन के इतने आदी हैं... लेकिन हम क्या कर सकते हैं?"
हम क्या कर सकते हैं? हम ज़िम्मेदार माता-पिता बन सकते हैं! हाँ, मुझे पता है कि आपके ऊपर जबरदस्त दबाव है कि आप अपने बच्चों को एक फोन या डिवाइस दें, जो मानवता के लिए सबसे खराब तोहफा यानी सोशल मीडिया का असीमित उपयोग करने की अनुमति देने की बात है। लेकिन माता-पिता के रूप में आपका कर्तव्य अपने बच्चों को संत बनाना है। उनकी आत्मा आपके हाथों में हैं। हमें दुनिया के खतरों के खिलाफ रक्षा की पहली दीवार बननी चाहिए। हम उन्हें कभी भी बच्चों का यौन शोषण करने वालों के साथ समय बिताने की अनुमति नहीं देंगे; अगर हमें पता होता कि उन्हें धमकाया जा रहा है तो हम उन्हें बचाने की कोशिश करेंगे; अगर वे बीमार हो रहे हैं, तो हम उन्हें डॉक्टर के पास ले जाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। फिर हम उन्हें अश्लीलता, घृणा और समय बर्बाद करने वाले कचरे के ढेर, जो इंटरनेट पर आसानी से उपलब्ध है, सावधानीपूर्वक मार्गदर्शन दिये बिना उसमें घुसने की अनुमति क्यों देंगे? अध्ययन ने इंटरनेट के नकारात्मक प्रभावों को दिखाया है - और विशेष रूप से सोशल-मीडिया के प्रभावों को - फिर भी हम आंखें मूंद लेते हैं और आश्चर्य की बात है कि हम खुद से पूछते हैं कि हमारे नन्हें बेटे और बेटियां पहचान का संकट, अवसाद, आत्म-घृणा, विभिन्न व्यसन, भ्रष्ट व्यवहार, आलस्य, पवित्रता की इच्छा के अभाव से क्यों जूझते हैं!
हे माता-पिताओ, अपने अधिकार और ज़िम्मेदारियों से दूर न भागें! आपके जीवन के अंत में, प्रभु आपसे पूछेगा कि जिन आत्माओं को उसने आपको सौंपा था, आपने उन की किस तरह से देखभाल की - आप उन्हें स्वर्ग में ले गए या नहीं, और उनकी आत्माओं को पाप से अपनी सर्वोत्तम क्षमता के साथ सुरक्षित रखा कि नहीं। "ओह, अन्य सब लोगों के बच्चों के पास फोन है, अगर मेरे बच्चे के पास फोन नहीं होगा, तो बड़ा अजीब लगेगा!” हम इस बहाने का उपयोग नहीं कर सकते हैं।
यदि आप उनके फोन पर प्रतिबंध लगाते हैं, तो क्या आपके बच्चे आपसे नाराज होंगे, क्या वे आपसे नफरत करेंगे? शायद। लेकिन उनका क्रोध अस्थायी होगा — उनकी कृतज्ञता अनंत होगी। मेरी एक दोस्त सोशल-मीडिया के खतरों के बारे में बात करती हुई देश-भर घूमती रहती है, हाल ही में उसने मुझे बताया कि उसके व्याख्यानों के बाद उसके पास हमेशा कई युवा वयस्क दो प्रतिक्रियायें लेकर आते हैं, पहला: "उस समय मेरा मोबाइल फ़ोन मुझसे छीन लेने के लिए मैं अपने माता-पिता के प्रति बहुत गुस्से में था, लेकिन अब मैं उनका आभारी हूँ।" दूसरा: "मैं वास्तव में सोचता हूँ कि मेरे माता-पिता ने मुझे अपनी मासूमियत खोने से बचाया होता।" उनके माता-पिता ने उन्हें छूट दिए थे, इस बात के लिए कोई भी युवक आभारी नहीं!
तो अब क्या करें? सबसे पहले, किशोरों (या उन से भी छोटों!) को इंटरनेट या ऐप्स से भरे हुए फ़ोन न दें। अभी भी बहुत सारे साधारण फोन मिलते हैं! यदि आप उन्हें ऐसे फोन देते हैं जो इंटरनेट से चलते हैं, तो उन पर प्रतिबंध लगाएं। अपने बेटे के फोन पर और अपने घर के कंप्यूटर पर “कवनंट आईस” ऐप (Covenent Eyes App) डाउनलोड करें (लगभग हर पापस्वीकर जो मैंने सुना है उसमें पोर्नोग्राफी शामिल है, जो घातक रूप से पापमय है और आपके बेटे को महिलाओं के प्रति केवल वस्तुओं के रूप में देखने के लिए प्रेरित कर सकती है, जिसका उसके भविष्य के रिश्तों पर बहुत बड़ा प्रभाव होगा)। उन्हें भोजन के समय या अकेले अपने शयनकक्ष में वीडियोस न देखने दें। समान नीतियों वाले अन्य परिवारों का समर्थन प्राप्त करें। सबसे महत्वपूर्ण बात - अपने बच्चे का दोस्त बनने की कोशिश न करें, बल्कि उसके माता-पिता बनें। सच्चे प्रेम के लिए सीमाओं, अनुशासन और त्याग की आवश्यकता होती है।
आपके बच्चे का शाश्वत कल्याण आपके हाथ में है, इसलिए यह न कहें, "अब मैं कुछ नहीं कर सकता- मेरे बच्चे को इसमें फिट होने की जरूरत है।" यहाँ पृथ्वी पर फिट होने से बेहतर है अलग दिखना, ताकि हम संतों की संगति में फिट हो सकें!
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मार्च 23, 2023
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मार्च 23, 2023
प्रश्न - कैथलिक लोग क्रूस का चिन्ह क्यों बनाते हैं? इसके पीछे क्या प्रतीकवाद है?
उत्तर - कैथलिक होने के नाते, हम प्रत्येक दिन कई बार क्रूस के चिन्ह की प्रार्थना करते हैं। हम यह प्रार्थना क्यों करते हैं, और इन सब के पीछे मतलब क्या है?
सबसे पहले, विचार करें कि हम क्रूस का चिन्ह कैसे बनाते हैं। पश्चिम की कलीसिया में, लोग एक खुले हाथ का उपयोग करते हैं - जिसका उपयोग आशीर्वाद देने में किया जाता है (इसलिए हम कहते हैं कि हम "स्वयं को आशीर्वाद देते हैं")। पूर्व में, वे पवित्र त्रीत्व (पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा) के संकेत के रूप में तीन अंगुलियों को एक साथ रखते हैं, जबकि अन्य दो उंगलियां भी मसीह की दिव्यता और मानवता के संकेत के रूप में एक हो होती हैं।
हम जो शब्द कहते हैं उसके द्वारा हम त्रीत्व के रहस्य को स्वीकार करते हैं। ध्यान दें कि हम कहते हैं, "पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम पर..." सिर्फ "पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा के नामों पर" नहीं, - परमेश्वर एक है, इसलिए हम कहते हैं कि उसका केवल एक ही नाम है - और फिर हम पवित्र त्रीत्व के तीन व्यक्तियों के नाम लेते हैं। हर बार जब हम प्रार्थना शुरू करते हैं, तो हम पहचानते हैं कि हमारे विश्वास का सार यह है कि हम एक ऐसे ईश्वर में विश्वास करते हैं जो तीन होते हुए भी एक है: एकता और त्रीत्व दोनों।
जैसा कि हम अपने विश्वास का अंगीकार और घोषणा करते हैं, हम स्वयं पर क्रूस के चिह्न से मुहरबंद करते हैं। आप सार्वजनिक रूप से अपने ऊपर चिह्न लगा रहे हैं कि आप कौन हैं और आप किसके हैं या किससे संबंधित हैं! यदि आप चाहें तो क्रूस हमारी छुड़ाई की रकम है, हमारा "मूल्य-चिह्न" है, इसलिए हम स्वयं को याद दिलाते हैं कि हम क्रूस द्वारा खरीदे गए हैं। इसलिए जब शैतान हमें लुभाने आता है, तो हम उसे यह दिखाने के लिए क्रूस का चिन्ह बनाते हैं कि हम पर पहले से ही निशान लगा हुआ है!
एज़किएल की पुस्तक में एक अद्भुत कहानी है, जहाँ एक स्वर्गदूत एज़किएल के पास आता है और उसे बताता है कि परमेश्वर पूरे इस्राएल को उसकी बेवफाई के लिए दंडित करने जा रहा है - लेकिन अभी भी यरूशलेम में कुछ अच्छे लोग बचे हैं, इसलिए स्वर्गदूत घूमता है और उन लोगों के माथे पर निशान लगा देता है जो अभी भी परमेश्वर के प्रति विश्वासयोग्य हैं। वह जो चिह्न बनाता है वह "ताऊ" है - इब्रानी वर्णमाला का अंतिम अक्षर, और इसे एक क्रूस की तरह खींचा जाता है! परमेश्वर उन पर दया करता है जिन पर ताऊ चिन्हित है, और जिन पर यह चिन्ह नहीं है, उन्हें वह मार डालता है।
उसी तरह, हममें से जो क्रूस के साथ अंकित हैं, परमेश्वर के न्याय के दिन उनके दंड से सुरक्षित रहेंगे, और बदले में उनकी दया प्राप्त करेंगे। प्राचीन मिस्र में, परमेश्वर ने इस्राएलियों से फसह के पर्व पर मेमने के लहू को अपने दरवाजे पर लगाने को कहा था, ताकि वे मृत्यु के दूत से बचाए जा सकें। अब, हमारे शरीर पर क्रूस के द्वारा अंकित होकर, हम मेमने के लहू का आह्वान करते हैं, ताकि हम मृत्यु की शक्ति से बच जाएं!
परन्तु हम क्रूस के चिन्ह को कहाँ अंकित करें? हम इसे अपने माथे, अपने दिल और अपने कंधों पर लगाते हैं। क्यों? क्योंकि हमें इस पृथ्वी पर परमेश्वर को जानने, प्रेम करने और उसकी सेवा करने के लिए रखा गया है, इसलिए हम मसीह को हमारे मनों, हमारे हृदयों (हमारी इच्छा और प्रेम) और हमारे कार्यों का राजा बनने के लिए आग्रह करते हैं। हमारे जीवन के हर पहलू को क्रूस के चिन्ह के अधीन रखा गया है, ताकि हम उसे जान सकें, उससे प्रेम कर सकें और उसकी सेवा कर सकें।
क्रूस का चिन्ह एक अविश्वसनीय रूप से शक्तिशाली प्रार्थना है। अक्सर इसे प्रार्थना की प्रस्तावना के रूप में प्रयोग किया जाता है, लेकिन इसमें अपने आप में अपार शक्ति होती है। प्रारंभिक कलीसिया के उत्पीड़न के दौरान, कुछ मूर्तीपूजकों ने प्रेरित संत योहन को मारने की कोशिश की क्योंकि उनका उपदेश कई लोगों को देवी-देवताओं से दूर कर ख्रीस्तीय धर्म अपनाने के लिए प्रेरित कर रहा था। मूर्तिपूजकों ने योहन को रात के भोजन के लिए आमंत्रित किया और उसके प्याले में जहर मिला दिया। परन्तु भोजन आरम्भ करने से पहले, योहन ने अनुग्रह की प्रार्थना की और अपने प्याले के ऊपर क्रूस का चिन्ह बनाया। तुरन्त एक साँप प्याले से बाहर रेंगता हुआ निकला, और योहन किसी तरह की हनी के बिना सकुशल बच निकलने में सफल रहा।
संत जॉन वियानी के शब्दों पर ध्यान दें: “क्रूस का चिह्न शैतान के खिलाफ सबसे भयानक हथियार है। इस प्रकार, कलीसिया न केवल यह चाहती है कि क्रूस का चिन्ह हमारे पास और हमारे दिमाग के सामने लगातार रहे, हमें यह याद दिलाने के लिए कि हमारी आत्मा का मूल्य क्या है और येशु मसीह के लिए इसका मूल्य क्या है, लेकिन यह भी कि हमें हर मोड़ पर क्रूस का चिन्ह खुद बनाना चाहिए: जब हम सोने के लिए जाते हैं, जब हम रात में जागते हैं, सुबह जब हम उठते हैं, जब हम कोई काम शुरू करते हैं, और सबसे बढ़कर, जब हम परीक्षा में पड़ते हैं,तब हमें क्रूस का चिन्ह बनाना चाहिए।”
क्रूस का चिन्ह हमारे पास सबसे शक्तिशाली प्रार्थनाओं में से एक है - यह पवित्र त्रीत्व का आह्वान करता है, हमें क्रूस के रक्त से मुहरबंद करता है, शैतान को भगाता है, और हमें याद दिलाता है कि हम कौन हैं। आइए हम उस चिन्ह को भक्ति के साथ, श्रद्धा के साथ, सावधानी के साथ बनाएं, और हम इसे पूरे दिन में बार-बार बनाएं। हम कौन हैं और हम किसके हैं, इसका यह बाहरी संकेत है।
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मार्च 09, 2023
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मार्च 09, 2023
क्या आप ने विश्व युवा दिवस के बारे में सुना है? सिस्टर जेन एम. एबेलन आपको एक मौका लेने और स्वर्ग को पृथ्वी पर लानेवाले इस अविश्वसनीय उत्सव का अनुभव करने के लिए प्रेरित करती है
जिस दिन संत पापा जॉन पॉल द्वितीय नए पोप के रूप में "डरिये मत!" शब्दों के साथ प्रकट हुए, उसी दिन से मैं ने उनका बहुत सम्मान किया और उनका अनुसरण किया। युवाओं के साथ काम करने में मुझे उन्हीं से प्ररणा मिली है, क्योंकि युवाओं के लिए उनके पास एक विशेष आकर्षण और गुण था। 1984 और 1985 में, उन्होंने खजूर रविवार के दिन युवाओं को उनके साथ रोम में शामिल होने के लिए एक विशेष निमंत्रण जारी किया। यह इतना सफल था कि उन्होंने इसे "विश्व युवा दिवस" में (सप्ताह कहना चाहिए) विस्तारित किया जिसका आयोजन अब हर दो साल में दुनिया भर के किसी न किसी देश में होता है।
पोलैंड में जन्मे एक पत्रकार ने इस बारे में एक अद्भुत अंतर्दृष्टि साझा किया कि कैसे संत पापा जॉन पॉल द्वितीय ने विश्व युवा दिवस के विचार को विकसित किया। “कम्युनिस्ट पोलैंड में कैथलिकों को अपना विश्वास व्यक्त करने में मदद करने केलिए उन्हें तरीके खोजने थे। हर साल, उन्होंने 14-15 अगस्त के लिए ब्लैक मैडोना का तीर्थ स्थल जसना गोरा की तीर्थयात्रा का आयोजन किया। उन्होंने पाया कि इससे लोगों का आपसी संबंध अच्छा बना और उनका विश्वास भी मज़बूत हुआ।”
हालाँकि मैं अब किशोरी या युवती नहीं हूँ, इसके बावजूद, परमेश्वर ने अपने विधान में मेरे लिए उत्तरी अमेरिका में आयोजित विश्व युवा दिवस में भाग लेने का अवसर दिया। विश्व युवा दिवस की अभिकल्पना 16-35 आयु वर्ग के लिए बनायी गयी है, लेकिन पुरोहितों, धर्म बहनों और धर्म बंधुओं, परिवारों और पुराने संरक्षकों को भी इसमें भाग लेने का अवसर दिया जाता है। लिस्बन, पुर्तगाल में सन 2023 के 1 से लेकर 7 अगस्त तक आयोजित विश्व युवा दिवस में जाने के लिए एक वर्ष से भी कम समय है, इसलिए मैं अपने कुछ अनुभव यहाँ साझा कर रही हूं ताकि आपको तीर्थयात्रा में शामिल होने, दूसरों को भाग लेने में मदद करने में और प्रार्थना में शामिल होने के लिए प्रेरणा मिले ।
विश्वा युवा दिवस 1993 - संयुक्त राज्य अमेरिका के कोलोराडो के डेनवर में
संत पापा जॉन पॉल द्वितीय 1993 में अमेरिका में पहले विश्व युवा दिवस के लिए डेनवर आने वाले थे। मैंने इसके साथ जुड़ने के लिए हमारे महाधर्मप्रांत में एक स्थानीय कार्यक्रम की योजना बनाना शुरू किया। इस कार्यक्रम के बाद मैंने सलेशियन फादर लोगों द्वारा कम कीमत पर दिए जा रहे एक अधिशेष "पैकेट" के बारे में पढ़ा, जिसके अंतर्गत आने जाने केलिए हवाई जहाज का टिकट और होटल में रहने की सुविधा शामिल थी। मैं ने एक स्थानीय युवा समूह के साथ इसमें भाग लेने की व्यवस्था की।
डेनवर विश्व युवा दिवस का आदर्श वाक्य था: "मैं तुम्हें परिपूर्ण जीवन देने आया हूँ" (योहन 10:10)। जैसे ही हम वहां के हवाई अड्डे में पहुंचे, उसी क्षण से परमेश्वर की स्तुति में दुनिया भर की भाषाओं में गीत गाने वाले युवा वयस्कों की हर्षित ध्वनि को हमने सुना और महसूस किया कि इसका हम पर अच्छा प्रभाव हो रहा है। यह आनंददायक शोर शुरुवाती दिनों से जारी रहा। युवा लोगों और उनके संरक्षकों का उल्लासपूर्ण उत्साह स्वर्ग के पूर्वाभास की तरह था क्योंकि वे हंसते थे, भोजन साझा करते थे, मुस्कुराते थे और गहन संवाद करते थे। वे जहां भी गए, उन्होंने सड़कों पर अपने बैनर और झंडे लहराते हुए गाया, नृत्य किया और प्रार्थना की। जैसे-जैसे लोग मेल-मिलाप के संस्कार को ग्रहण करने, यूखरिस्तीय आराधना में चौबीसों घंटे प्रार्थना करने और भक्तिमय, प्रार्थनामय मिस्सा पूजा के लिए एकत्रित हुए, आशीषों की धारा प्रवाहित होने लगी। जब संत पापा जॉन पॉल पहुंचे, तो तालियों की गड़गड़ाहट और "जॉन पॉल द्वितीय, हम आपसे प्यार करते हैं" का नारा लगाते हुए उनका स्वागत किया गया।
विश्व युवा दिवस का समापन अंतिम पवित्र मिस्सा बलिदान के स्थल तक पद यात्रा के साथ शुरू हुआ। तीर्थयात्री 15 मील चल सकते थे, या ट्रॉली से सफ़र करने के बाद सिर्फ 3 मील पैदल चल सकते थे। मैंने 33 डिग्री सेल्सियस की गर्मी वाले उस दिन ट्राली से जाना तय किया, लेकिन संत पापा के साथ शाम की प्रार्थना के बाद, डेनवर की ऊँचाई पर स्थित उस मैदान का तापमान 4 डिग्री तक नीचे आ गया। हालाँकि मैं ठण्ड से ठिठुर रही थी क्योंकि मैं गर्म कपड़े नहीं लाई थी, लेकिन स्पेनिश और फ्रांसीसी युवाओं ने पूरी रात नृत्य करके मेरा मनोरंजन किया। अगले दिन की सुबह, हमारे शरीर में गर्माहट लौट आई क्योंकि हम अंतिम मिस्सा बलिदान की तैयारी के लिए अच्छे भविष्य की आशा के साथ अपने स्लीपिंग बैग से बाहर निकले।
संत पापा जॉन पॉल द्वितीय ने अपने सामने एकत्रित लाखों लोगों के लिए दिए दिलचस्प उपदेश में, हमें "जीवन की संस्कृति" को बढ़ावा देने के लिए सक्रिय होने की चुनौती दी ताकि गर्भनिरोधक दवा, गर्भपात, इच्छा मृत्यु, तलाक, निराशा और आत्महत्या को बढ़ावा देने वाली "मौत की संस्कृति" द्वारा बरबाद की जा रही तबाही का मुकाबला किया जा सके। इस आह्वान ने स्टुबेनविले के फ्रांसिस्कन विश्वविद्यालय में शुरू हुई सेवा "क्रॉसरोड्स" और अन्य कई नई सेवाओं के गठन को प्रेरित किया, और तीन देशों में प्रो-लाइफ वार्षिक ग्रीष्मकालीन तीर्थयात्राओं में विस्तारित हुआ, युवा लोग प्रार्थनामय बलिदान द्वारा सार्वजनिक रूप से उन समुदायों के साक्षी बने।
विश्व युवा दिवस 2002, कनाडा के टोरंटो में
2002 में, कनाडा के टोरंटो शहर में संत पापा जॉन पॉल द्वितीय के अंतिम विश्व युवा दिवस में भाग लेने के लिए मुझे मौका मिला था। किसी उदार व्यक्ति ने मेरा खर्च उठा लिया। हालाँकि संत पापा अब उम्र के साथ झुक गये थे, और पार्किंसंस रोग से काँप रहे थे, फिर भी उनके पास मिशन को आगे बढ़ाने के लिए एक नई पीढ़ी को प्रेरित करने और उनमें जोश भरने की क्षमता थी। हालाँकि रविवार की सुबह मूसलाधार बारिश हुई थी, फिर भी मैं इस उम्मीद पर टिकी रही कि मौसम साफ हो जाएगा। उस दिन का सुसमाचार मत्ती 5 से लिया गया था। जैसे ही, "तुम जगत की ज्योति हो," यह वचन (मत्ती 5:14) स्टेडियम में गूँज उठा, सूरज बादलों को चीर कर निकल आया।
संत पापा का उपदेश सीधे उनके चरवाहा वाले हृदय से निकल आया: "दुनिया के घोर अंधकार में येशु मसीह प्रकाश हैं। अंधेरे में मत फंसो। हालांकि मैं बहुत अधिक अंधकार से गुजरा हूं... मैंने दृढ़ता से आश्वस्त होने के लिए पर्याप्त साक्ष्य देखे हैं कि कोई भी कठिनाई, कोई भी भय इतना बड़ा नहीं है कि यह उस आशा का दम घोंट दे जो युवाओं के दिलों में हमेशा जागृत है।“
उन्होंने सीधे-सीधे यौन-दुर्व्यवहार कांड के बारे में बताया जो हाल ही में प्रकाश में सामने आया था: "अंधकार के पापों से हतोत्साहित न हों, चाहे वह अन्धकार पुरोहितों और धर्म संघियों में भी विद्यमान हो। लेकिन (वे ऊँची आवाज़ में बोले) बहुत से अच्छे पुरोहितों और धर्म संघी लोगों को याद करें जिनकी एकमात्र इच्छा सेवा करना और भलाई करना है।” उन्होंने युवाओं को धर्मसंघीय और पुरोहितीय बुलाहटों का पालन करने के लिए प्रोत्साहित किया, - "क्रूस के राजकीय मार्ग" पर चलने के लिए भी जिस पर कठिन दौर में चलते हुए, "पवित्रता की खोज और भी जरूरी हो जाती है।" उस वर्ष कई बुलाहटों का जन्म हुआ।
जब हमारे संत पापा ने अगला युवा सम्मलेन का स्थान 2005 में कोलोन, जर्मनी में होने की घोषणा की, तो उन्होंने कहा, "येशु मसीह वहां आपसे मिलेंगे।" मेरे दिल की धड़कन रुक गई और मेरी आंखों में आंसू भर आए, क्योंकि संत पापा जॉन पॉल अक्सर कहा करते थे, "मैं आप से मिलूंगा।" मैं जानती थी, हम सब जानते थे, कि उन्हें मालूम था कि उनके अंतिम दिन निकट हैं।
2005 और उसके बाद
अगस्त 2005 में संत पापा बेनेदिक्ट जब दुनिया भर के युवाओं से मिलने के लिए कोलोन की राइन नदी में जलयात्रा कर रहे थे तब मैं अपने पिताजी के साथ (जो मरने के कगार पर थे) बैठकर टेलीविजन पर संत पापा को देख रही थी क्योंकि मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि जो संत पापा जॉन पॉल द्वितीय के उत्तराधिकारी बने थे, वे उसी देश के मूल निवासी थे, जिसे अगले विश्व युवा दिवस के पहले ही चयनित किया जा चुका है! 2013 में भी ऐसा ही हुआ था। अंटार्टिका को छोड़कर, हर महाद्वीप के युवा, ब्राजील के रियो डी जनेरियो में विश्व युवा दिवस के लिए तैयार हो गए, तभी संत पापा बेनेदिक्ट ने इस्तीफा दे दिया, और पहले से चयनित महाद्वीप से ही संत पापा फ्रांसिस उनके उतराधिकारी बने। संत पापा बेनेदिक्ट और पोप फ्रांसिस दोनों ने अपने पूर्वाधिकारी की विरासत को पूरी तरह से अपनाया। विश्व युवा दिवस युवाओं को पवित्रता के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते रहे हैं।
विश्व युवा दिवस 2023, पुर्तगाल के लिस्बन में
दुनिया भर के युवा अब अगले विश्व युवा दिवस के लिए लिस्बन की यात्रा करने की योजना बना रहे हैं। मेजबान देश युवाओं को पूरे पुर्तगाल के विभिन्न धर्म्प्रान्तो में ठहराकर वहां की संस्कृति का अनुभव कराने के लिए कई दिनों से योजना बना रहा है, और उनके पास कलीसिया के कुछ सर्वश्रेष्ठ वक्ताओं, संगीतकारों और कलाकारों का प्रवचनों, कार्यशालाओं और विभिन्न कार्यक्रमों से भरा एक आकर्षक परिपाटी है। स्थानीय परिवार, स्कूल और पल्ली युवा तीर्थयात्रियों को समायोजित करने की तैयारी कर रहे हैं। मेलमिलाप का संस्कार और यूखरिस्त की आराधना हर जगह होगी और कुछ प्रार्थना दल पहले से ही अपेक्षित आगंतुकों के लिए प्रार्थना कर रही हैं। दुनिया भर के देशों में तीर्थयात्रियों के समूह बनाए जा रहे हैं, और अपने युवाओं को भाग लेने में सहायता करने के लिए पल्ली के लोग धन एकत्रित कर रहे हैं। यदि परमेश्वर आपको वहाँ बुला रहा है, तो वहाँ पहुँचने में वह आपकी मदद कर सकता है, और आपको जीवन की यात्रा पर आगे बढ़ने में आपकी मदद कर सकता है। यह विश्व युवा दिवस हमारे समय में कैथलिक कलीसिया के खजानों में से एक है। (आधिकारिक प्रोमो, पांच भाषाओं में गीत, लोगो और दृश्यों के लिए आप अपने धर्मप्रांत के वेबसाइट, यूट्यूब और फेसबुक देखें)।
जो लोग शामिल नहीं हो सकते वे सोशल मीडिया के माध्यम से कुछ कार्यक्रमों में भाग ले सकते हैं और तीर्थयात्रियों के साथ प्रार्थना कर सकते हैं।
By: Sister Jane M. Abeln SMIC
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मार्च 09, 2023
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मार्च 09, 2023
प्रश्न– ऐसा क्यों है कि केवल पुरुष ही पुरोहित बन पाते हैं? क्या यह महिलाओं के साथ भेदभाव नहीं है?
उत्तर- एक शरीर में कई अंग होते हैं, जिनमें से प्रत्येक की एक अलग भूमिका होती है। कान पैर नहीं हो सकता, न आंख हाथ बनने की इच्छा कर सकती है। पूरे शरीर को अच्छी तरह से काम करने के लिए, प्रत्येक भाग की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
इसी तरह ख्रीस्त के शरीर अर्थात कलीसिया की भी कई अलग-अलग और सुंदर-सुन्दर पूरक भूमिकाएं हैं! प्रत्येक व्यक्ति की बुलाहट पुरोहित बनने के लिए नहीं है, परन्तु संत बनने की बुलाहट उन सभी के लिए है चाहे वे किसी भी प्रकार की बुलाहट में हो।
पुरोहिताई जीवन कई कारणों से पुरुषों के लिए आरक्षित किया गया है। पहला, येशु ने स्वयं अपने प्रेरितों के रूप में केवल पुरुषों को चुना। जैसा कि कुछ लोग दावा करते है, यह केवल उस समय की संस्कृति के कारण नहीं है। येशु ने अक्सर महिलाओं के साथ अपने संबंधों में उस समय के सांस्कृतिक मानदंडों को तोड़ा — उन्होंने सामरी महिला के साथ खुशनुमा माहौल में बातें की, उन्होंने अपने दिल में महिलाओं का स्वागत किया, उनके पुनरुथान की सबसे पहले गवाह महिलाएं ही थी। येशु ने महिलाओं के साथ समान व्यवहार करते हुए उन्हें एक उल्लेखनीय गरिमा और सम्मान प्रदान किया - लेकिन उन्होंने, उन्हें प्रेरित की अनूठी भूमिका के लिए नहीं चुना। यहाँ तक कि उनकी अपनी माँ मरियम, जो अन्य सभी प्रेरितों की तुलना में पवित्र और अधिक वफादार थीं, उसे भी प्रेरित के रूप में नहीं चुना। प्रेरित ही पहले धर्माचार्य या बिशप थे, और सभी पुरोहित और धर्माचार्य लोग प्रेरितों में अपनी आध्यात्मिक वंशावली का पता लगा सकते हैं।
एक दूसरा कारण है, जब एक पुरोहित संस्कारों का अनुष्ठान करता है, तब वह मसीह के व्यक्तित्व को धारण करके उपस्थित रहता है। एक पुरोहित यह नहीं कहता है, "यह ख्रीस्त का शरीर है" – बल्कि वह कहता है, "यह मेरा शरीर है"। वह यह नहीं कहता है कि "ख्रीस्त तुम्हारे पाप क्षमा करते हैं" बल्कि यह कहता हैं, "मैं तुम्हारे पाप क्षमा करता हूँ।" एक पुरोहित के रूप में, इन वचनों को अपने ऊपर लागू करने में मुझे अयोग्यता एवं भय महसूस होता है! लेकिन जैसा कि पुरोहित मसीह के व्यक्तित्व में उपस्थित रहता है, वह स्वयं को अपनी दुल्हन कलीसिया को समर्पित कर देता है, इसलिए यह उचित है कि पुरोहित एक पुरुष ही हो।
एक अंतिम कारण सृष्टि के क्रम में है। हम देखते हैं कि परमेश्वर पहले चट्टानों, तारों और अन्य निर्जीव वस्तुओं की रचना करता है। यह कोई बड़ी बात नहीं। तब परमेश्वर पेड़-पौधों की सृष्टि करता है — इस तरह जीवन आया! तब परमेश्वर जानवरों की रचना करता है - चलता-फिरता और सचेत जीवन आया! तब परमेश्वर मनुष्य की रचना करता है – वह जीवन जो उसके प्रतिरूप और सदृश्य है! लेकिन ईश्वर का कार्य अभी समाप्त नहीं हुआ है। उसकी सृष्टि का चरम बिन्दु स्त्री है - ईश्वर की सुंदरता, कोमलता और प्रेम का पूर्ण प्रतिबिम्ब! केवल एक स्त्री ही जीवन को उत्पन्न कर सकती है जैसा परमेश्वर करता है; एक महिला संबंधपरक होने के लिए बनाई गई है, क्योंकि ईश्वर रिश्ते को प्यार करता है। अतः हम यह कह सकते है कि स्त्री ईश्वर की रचना का शिखर है।
पुरोहिताई जीवन की बुलाहट सेवा और भेड़ों के लिए अपना जीवन देने पर केन्द्रित है। इसलिए महिलाओं द्वारा पुरुषों की सेवा करना उचित नहीं होगा, बल्कि पुरुषों द्वारा महिलाओं की सेवा करना उचित होगा। पुरुषों को दूसरों की हिफाज़त करने और साधन प्रदान करने के लिए बनाया गया है – पुरोहिताई जीवन एक ऐसा तरीका है जिसमें वह उस बुलाहट को जीता है, क्योंकि वह बुराई से आत्माओं की रक्षा और सुरक्षा करता है, और संस्कारों के माध्यम से कलीसिया की आवश्यकताओं की पूर्ती करता है। एक पुरोहित को उसके जिम्मे में सौंपी गई आत्माओं की भलाई के लिए उसे अपना जीवन देने को भी तैयार रहना चाहिए!
यह सोच आधुनिक समय की एक भूल है कि नेतृत्व शक्ति और दमन के समान है। हम देखते हैं कि अक्सर लोग आदिपाप के कारण, नेतृत्व की भूमिकाओं का दुरुपयोग करते हैं, लेकिन ईश्वर के राज्य में नेतृत्व करने का मतलब सेवा करना होता है। अतः हम यह कह सकते हैं कि पुरोहिताई जीवन बलिदान के लिए है, यहां तक कि यह क्रूसित येशु का अनुकरण करने की बुलाहट है। यह पुरुषों के लिए एक विशिष्ट भूमिका है।
इसका यह मतलब नहीं है कि महिलाएँ कलीसिया में दूसरे दर्जे की नागरिक हैं! बल्कि उनकी भी बुलाहट बराबर है, लेकिन अलग है। कई वीर महिलाओं ने शहीदों, संत कुंवारियों, समर्पित धर्म संघियों, मिशनरियों, अगुओं के रूप में - एक विशिष्ट स्त्रैण रूप में - आध्यात्मिक जीवन को धारण करते हुए, रिश्तों को पोषित करते हुए, स्वयं को दुल्हे मसीह के साथ एक होते हुए मसीह के लिए अपना जीवन दिया है।
कलीसिया में विभिन्न प्रकार की विभिन्न पूरक बुलाहटों का होना कितनी सुन्दर बात है!
By: Father Joseph Gill
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नवम्बर 24, 2022
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नवम्बर 24, 2022
मुझे पुरानी फिल्में देखना पसंद है। पिछले कई महीनों में, मैंने अल्फ्रेड हिचकॉक के कई थ्रिलर, तीस और चालीस के दशक के कुछ कॉमेडी और क्लासिक्स देखा, उनमें कुछ फिल्म दुबारा देखा। पिछले हफ्ते, तीन शामों के दौरान, मैं 1956 में बनी चार्लटन हेस्टन की फिल्म “टेन कमांडमेंट्स” को देखा, जिसे देखने में तीन घंटे चालीस मिनिट लगे। मैंने वह पुराना अद्भुत टेक्नीकलर, जो आज भी आकर्षक है, खूबसूरत वस्त्र विन्यास, शानदार शेक्सपियरियन संवाद, और जबरदस्त अभिनय, सब कुछ को बड़ी ख़ुशी के साथ आत्मसात कर लिया, क्योंकि कोई भी इसे अच्छा ही कहेगा। लेकिन जिस चीज़ ने मुझे विशेष रूप से प्रभावित किया, वह थी फिल्म की लंबाई। यह जानते हुए कि दर्शकों को इतनी लम्बी देर की फिल्म पर लम्बी अवधि तक ध्यान देना एक असाधारण कार्य रहा होगा। इसके बावजूद, यह याद रखना आश्चर्यजनक है कि यह फिल्म बेतहाशा लोकप्रिय थी, अनायास ही अपने समय की सबसे सफल फिल्म थी। यह अनुमान है कि, मुद्रास्फीति के लिए समायोजित, इस फिल्म ने लगभग दो अरब डॉलर की कमाई अर्जित की। मैंने सोचा, क्या “टेन कमांडमेंट्स” जैसी फिल्म को आज के दौर में फिल्म देखने वाले, उतना ही लोकप्रिय बनाने के लिए आवश्यक धैर्य जुटा पाएंगे? मुझे लगता है कि सवाल का जवाब उसी सवाल में ही है।
फिल्म की लंबाई और लोकप्रियता के संगम पर सोचते हुए मुझे सांस्कृतिक इतिहास से इस संयोजन के कई अन्य उदाहरण याद आ गए। उन्नीसवीं शताब्दी में, चार्ल्स डिकेंस के उपन्यासों की इतनी मांग थी कि साधारण लंदनवासी एक एक अध्याय के लिए लंबी लाइनों में प्रतीक्षा करते थे क्योंकि वे धारावाहिक, अध्याय दर अध्याय बनकर प्रकाशित होते थे। और इसको समझना ज़रूरी है: डिकेंस के उपन्यासों में नाटकीय रूप से आकर्षक बातें बहुत कुछ नहीं होती हैं; मेरा मतलब है कि बहुत कम चीजें दिमाग को अप्रत्याशित रूप से प्रभावित करती हैं; कोई विदेशी आक्रमण नहीं हैं; बुरे लोगों को जान से उड़ाने से पहले नायकों द्वारा बोले गए कोई तेज़ वन-लाइनर संवाद नहीं। अधिकांश हिस्सों में, उनमें आकर्षक और विचित्र पात्रों के बीच लंबी बातचीत होती है।
दोस्तोवस्की के उपन्यासों और कहानियों के बारे में भी यही कहा जा सकता है। यद्यपि ‘द ब्रदर्स करमाज़ोव’ के कथानक के केंद्र में वास्तव में एक हत्या और एक पुलिसिया जांच है। उस प्रसिद्ध उपन्यास के अधिकाँश हिस्से के लिए, राजनीतिक, सांस्कृतिक और धार्मिक मामलों पर लम्बे लम्बे संवाद के लिए बहुत सारे पन्नों को भरते हुए, दोस्तोवस्की विभिन्न पात्रों की व्यवस्था उनके ड्राइंग रूम में करता है। उसी अवधि के दौरान, अब्राहम लिंकन और स्टीफन डगलस ने अमेरिका में गुलामी के जटिल मुद्दे पर बहस की एक श्रृंखला में भाग लिया। वे घंटों बात करते थे—और बौद्धिक रूप से उन्नत तरीके से बहस करते थे। यदि आप मुझ पर संदेह करते हैं, तो ग्रंथों को ऑनलाइन देखें। उनके दर्शक सांस्कृतिक रूप से अभिजात वर्ग या राजनीतिक दर्शन के छात्र नहीं थे, बल्कि अमेरिका के इलिनोई राज्य के सामान्य किसान थे, जो खेत के कीचड़ में खड़े थे, उन्होंने बहस पर अपना पूरा ध्यान दिया, और वक्ताओं की अनमनी आवाजों को सुनने के लिए अपने कान खड़े कर के बड़े ध्यान से सुन रहे थे। क्या आज ऐसी एक अमेरिकी भीड़ की कल्पना करना संभव है, जो आज इस तरह इतनी लम्बी अवधि के लिए खड़े होने और सार्वजनिक नीति पर जटिल प्रस्तुतियों को सुनने के लिए तैयार है - और उस मामले के लिए, क्या आप किसी भी अमेरिकी राजनेता की कल्पना कर सकते हैं, जो लिंकन की तरह इतनी लंबाई और गहराई से बोलने के लिए तैयार या सक्षम है? एक बार फिर सवालों के जवाब अपने आप मिल जाते हैं।
बीते युग के इस तरह के संचार के तौर-तरीकों और शैलियों को क्यों देखना है? क्योंकि उस युग की तुलना में हम इतने गरीब लगते हैं! मैं निश्चित रूप से सोशल मीडिया के मूल्य को समझता हूं और मैं अपने सुसमाचार के प्रचार के कार्य में उसका आसानी से उपयोग करता हूं, लेकिन साथ ही, मैं इस बात से पूरी तरह अवगत हूं कि कैसे सोशल मीडिया ने परिष्कृत बातचीत के लिए हमारे ध्यान अवधि और क्षमता को कम किया है और सच्चाई की ओर वास्तविक प्रगति करने में हमें कमज़ोर किया है। फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और विशेष रूप से ट्विटर आकर्षक सुर्खियों, भ्रामक शीर्षकों, प्रतिद्वंद्वी के तर्कों के विरुद्ध सरलीकृत लक्षण वर्णन, तथ्यों पर आधारित बहस के स्थान पर ध्वनि बढाने और काटने और विद्वेष से भरपूर बयानबाजी के विशेषज्ञ हैं। बस इनमें से किसी भी साइट पर कमेंट बॉक्स में डुबकी लगाएँ, और आप तुरंत देखेंगे कि मेरा क्या मतलब है।
किसी व्यक्ति के तर्क का एक वाक्यांश या एक शब्द को उठाकर इसे संदर्भ से बाहर निकालना, इसे सबसे खराब संभावित व्याख्या देना, और फिर पूरे इंटरनेट पर अपनी नाराजगी फैलाना आदि सोशल मीडिया का एक प्रचलित तकनीक है। सोशल मीडिया मानती है कि सब कुछ तेज गति से होना चाहिए, आसानी से पचने वाला हो, समझने में आसान हो, दूध का दूध और पानी का पानी होना चाहिए- क्योंकि उन्हें अपनी साइट पर क्लिक प्राप्त करने होते हैं, और यह दुनिया कुत्तों की जैसी है, जहाँ एक कुत्ता दुसरे कुत्ते को मार खाने के लिए तैयार बैठा है। मेरी चिंता इस बात पर है कि संचार के इस तरीके से एक पूरी पीढ़ी को पालन पोषण करके वयस्क बना चुके हैं और इसलिए यह पीढ़ी जटिल मुद्दों के बुद्धिमान जुड़ाव के लिए आवश्यक धैर्य और ध्यान पाने में काफी हद तक असमर्थ हो गयी है। वैसे, मैंने सेमिनरी में अपने लगभग बीस वर्षों के अध्यापन में इस पर ध्यान दिया। उन दो दशकों में, मेरे छात्रों को संत अगस्टिन के “कन्फेशंस” या प्लेटो के “रिपब्लिक” के सौ पृष्ठों को पढ़ने के लिए कहना मुश्किल हो गया। विशेष रूप से हाल के वर्षों में, वे कहते हैं, "फादर, हम अभी इतना अधिक ध्यान नहीं दे पाते।" ठीक है, लिंकन-डगलस बहस पर कम पढ़े लिखे किसान ध्यान दे सकते थे, और ऐसा ही डिकेंस के पाठक भी कर सकते थे, और ऐसा ही वे भी कर सकते थे जो साठ साल पहले सिनेमा थिएटर में “द टेन कमांडमेंट्स” देखने केलिए बैठे थे।
निराशाजनक टिप्पणी से मैं इस चिंतन को समाप्त न करूँ, इसलिए मुझे आपका ध्यान उस ओर आकर्षित करने की अनुमति दें जिसे मैं आशा का वास्तविक संकेत मानता हूं। पिछले कुछ वर्षों में, लम्बी अवधि के पॉडकास्ट की दिशा में एक प्रचालन बढ़ रहा है जो बड़ी तादाद में युवा दर्शकों को आकर्षित कर रहा है। देश में सबसे लोकप्रिय शो में से एक की मेजबानी जो रोगन करता है, वह अपने मेहमानों से तीन घंटे से अधिक समय तक बात करता है, और उस पॉडकास्ट को लाखों लोग देखते हैं। पिछले एक साल में, जॉर्डन पीटरसन के साथ दो पॉडकास्ट पर मुझे भी आमंत्रित किया गया, प्रत्येक एपिसोड दो घंटे से अधिक समय का बहुत उच्च-स्तरीय चर्चा का कार्यक्रम रहा और दोनों पॉडकास्ट को करीब दस लाख लोगों ने देखा है।
शायद हम एक बड़े मोड़ पर हैं। टेलीविज़न शो में ध्वनि बढाकर प्रतिद्वंदी को हराने की सतही छद्म-बौद्धिकता से भरपूर चैट शोज और त्वरित संतुष्टि की खोज में लगे सोशल मीडिया से युवा लोग शायद थक चुके हैं। सोशल मीडिया के प्रति इस उदासीनता की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करने के लिए, मैं आप सभी को आमंत्रित करना चाहता हूं कि आप सोशल मीडिया का बहुत कम उपयोग करें – हाँ, आप शायद “द ब्रदर्स करमाज़ोव” को चुनेंगे तो बेहतर होगा।
By: Bishop Robert Barron
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जून 03, 2022
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जून 03, 2022
प्रश्न:
क्या यह सच है कि येशु मसीह ही उद्धार का एकमात्र मार्ग है? मेरे परिवार के कुछ सदस्य येशु पर विश्वास नहीं करते हैं। उन जैसे लोगों का क्या होगा ? क्या उन्हें बचाया जा सकता है?
उत्तर:
वास्तव में, येशु अपने बारे में कुछ साहसिक दावे करते हैं कि वे कौन है। वे कहते हैं कि वे "मार्ग, सत्य, जीवन" हैं — वे बहुतों में से केवल एक मार्ग या जीवन के अलग अलग मार्गों में से एक मार्ग नहीं है। वे आगे कहते हैं कि "मुझ से होकर गए बिना कोई पिता के पास नहीं आ सकता।" (योहन 14:6)।
मसीही होने के नाते, हम मानते हैं कि केवल येशु मसीह ही दुनिया के उद्धारकर्ता हैं। जो कोई उद्धार पाता है, वह येशु में और उसके द्वारा उद्धार पाता है—उसकी मृत्यु और पुनरुत्थान ने संसार के पापों को उठा लिया गया और पिता के साथ हमारा मेल करा लिया; और उस पर हमारे विश्वास के माध्यम से हमें उसकी कृपाओं और दया तक पहुँचने की अनुमति मिलती है। मुक्ति केवल येशु के द्वारा ही है—बुद्ध द्वारा नहीं, मुहम्मद, या अन्य कोई महान आध्यात्मिक नेता द्वारा नहीं।
लेकिन क्या इसका मतलब यह है कि केवल ईसाई ही स्वर्ग जाते हैं? यह इस बात पर निर्भर करता है कि उस व्यक्ति ने सुसमाचार सुना है या नहीं। अगर किसी ने कभी येशु का नाम नहीं सुना है, तो उसे बचाया जा सकता है, क्योंकि ईश्वर ने प्रत्येक मानव हृदय में "ईश्वर के लिए क्षमता” और प्राकृतिक कानून (हमारे दिलों पर लिखे गए सही और गलत की सहज भावना) को रखा है। जिस व्यक्ति ने कभी भी सुसमाचार की घोषणा नहीं सुनी है, वह येशु के बारे में अपनी अज्ञानता के लिए दोषी नहीं है, और वे अपने ज्ञान के अनुसार परमेश्वर को सर्वोत्तम तरीके से खोजकर और प्राकृतिक नियमों का पालन करके, मोक्ष की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
लेकिन अगर किसी ने येशु के बारे में सुना है और उसे अस्वीकार करने का निर्णय लिया है, तो जिस उद्धार को येशु ने उस व्यक्ति के लिए हासिल किया है, वह व्यक्ति उस उद्धार को अस्वीकार करने का फैसला करता है। कभी-कभी लोग येशु का अनुसरण नहीं करने का निर्णय लेते हैं क्योंकि, शायद उनका परिवार उन्हें अस्वीकार कर देगा, या उन्हें एक पापी जीवन शैली को छोड़ना होगा, या उनका अभिमान उन्हें एक उद्धारकर्ता की आवश्यकता को स्वीकार करने की अनुमति नहीं देता है। जो उद्धार मसीह हम में से प्रत्येक को देना चाहता है, उस अविश्वसनीय उपहार से मुंह मोड़ना कितना दु:खद होगा!
इसके साथ ही, हम मानते हैं कि हम किसी व्यक्ति की आत्मा के उद्धार के बारे में फैसला नहीं कर सकते। शायद किसी ने सुसमाचार सुना था, लेकिन वह सही रीति से नहीं सुनाया गया था; हो सकता है कि वे येशु के बारे में जो कुछ भी जानते हैं वह किसी टी.वी. सीरियल से आता विकृत जानकारी हो; हो सकता है कि वे ईसाइयों के बुरे व्यवहार के कारण मसीही विश्वास के बारे में गलतफहमी रखते हों और इस तरह वे मसीह को स्वीकार करने में असमर्थ हों। गांधी के जीवन का एक प्रसिद्ध वाकया है, जिसमें वह महान हिंदू व्यक्ति ईसाई धर्म की प्रशंसा करते हैं। गांधी सुसमाचार पढ़ना पसंद करते थे और उसमें निहित ज्ञान का आनंद लेते थे। लेकिन जब उनसे पूछा गया, "यदि आप स्पष्ट रूप से मसीह में विश्वास करते हैं, तो आप अपना धर्मांतरण करके ईसाई क्यों नहीं बन जाते हैं?" उन्होंने जवाब दिया, "आह, मैं आपके मसीह से प्यार करता हूँ, लेकिन आप ईसाई लोग उस मसीह से बिलकुल विपरीत हैं!" ईसाइयों के बुरे व्यवहार ने इस महान नेता को ईसाई बनने से रोका!
तो, उत्तर को सारांशित कर लेते हैं: परमेश्वर, उन तरीकों के माध्यम से, जो केवल स्वयं वही जानता है, उन लोगों को बचा सकता है जिन्होंने कभी सुसमाचार नहीं सुना है, या शायद इसे प्रचारित करते हुए नहीं सुना है, या इसे सही ढंग से नहीं सुना है, या इसे ईसाइयों के जीवन में अमल होते हुए नहीं देखा है। हालाँकि, जिन्होंने सुसमाचार को सुना है, लेकिन इसे अस्वीकार कर दिया है, वे उद्धार के उपहार से दूर हो गए हैं।
यह जानते हुए कि आत्माएं स्वर्ग और नरक के बीच लटकी हुई हैं, इसलिए हम जो प्रभु को जानते हैं, हमें सुसमाचार प्रचार का महत्वपूर्ण कार्य दिया जाता है! हमें अपने अविश्वासी मित्रों और उनके परिवार के सदस्यों के लिए प्रार्थना करनी चाहिए, अपने आनंद और अपने प्रेम के साथ उन्हें अपनी गवाही देनी चाहिए, और उन्हें "हमारी आशा के आधार" समझाने में सक्षम होना चाहिए (1 पतरस 3:15)। शायद हमारे शब्द या हमारे कर्म आत्मा को अंधकार से के उद्धार वाले विश्वास के प्रकाश में लाएंगे!
By: Father Joseph Gill
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जनवरी 20, 2022
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जनवरी 20, 2022
क्या नई तकनीकियां आपकी चेतना को आकार दे रही है? यदि हां, तो पुनर्विचार करने का समय आ गया है।
सयुक्त राज्य अमेरिका में हाल ही में साइबर हमला हुआ, जिसके कारण गैस की कमी, घबराहट में अनावश्यक खरीददारी, और खाद्य पदार्थ की कमी के बारे में लोगों की चिंताएँ बढ़ गयीं। इस से एक सीख लोगों को मिली कि हम अपने आधुनिक समाज में कार्य करने के लिए प्रौद्योगिकी पर निर्भर हैं। इस तरह की निर्भरता ने नई और अनोखी मानसिक, मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक चुनौतियों को जन्म दिया है। हमारा कीमती समय टी.वी. के परदे के सामने हमारे समाचार, मनोरंजन, और भावनात्मक और बौद्धिक उत्तेजना की तलाश में व्यतीत होते हैं। लेकिन जब हम अपने डिजिटल उपकरणों और प्रौद्योगिकी के माध्यम से जीवन की राह में आगे बढ़ते हैं, तो हमें यह नहीं पता होता है कि ये सारे उपकरण हमारी चेतना को कैसे आकार दे रहे हैं।
इस तरह की निर्भरता एक बुनियादी सवाल उठाती है: क्या तकनीक, जो बौद्धिकता का विस्तार है, हमारी चेतना का निर्माण करती है; क्या यह जीवन के प्रति हमारा प्राथमिक नजरिया बन गया है? आज बहुत से लोग बिना हिचके “हाँ” में जवाब देंगे। कई लोगों के लिए, "देखने" का एकमात्र तरीका बुद्धिमत्ता और तर्क ही है। लेकिन कुरिन्थियों के नाम संत पौलुस का दूसरा पत्र एक गूढ़ कथन के माध्यम से एक अलग दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है जो कि ख्रीस्तीय जीवन का सार प्रस्तुत करता है: "... हम आँखों देखी बातों पर नहीं, बल्कि विश्वास पर चलते हैं" (5:7)।
एक शक्तिशाली अंतर्दृष्टि
ख्रीस्तीय के रूप में, हम अपनी शारीरिक इंद्रियों के माध्यम से दुनिया को देखते हैं, और हम उस संवेदिक तथ्यों की व्याख्या अपने तर्कसंगत व्याख्यात्मक चश्मे के द्वारा करते हैं जैसे कि गैर-विश्वासी करते हैं। लेकिन हमारा प्राथमिक नजरिया हमें शरीर या बौद्धिक तर्क से नहीं दिया जाता है, यह विश्वास द्वारा दिया जाता है। आस्था का या विश्वास का मतलब भोलापन, अंधविश्वास या अनभिज्ञता नहीं है। हमें अपने क्रोमबुक्स, आइ-पैड और स्मार्टफ़ोन को काली कोठरी में रखने की ज़रूरत नहीं है। विश्वास के माध्यम से हम अपनी संवेदिक धारणाओं और तर्कसंगत निष्कर्षों को ईश्वर और अन्य लोगों के साथ अपने संबंधों के साथ एकीकृत करते हैं। येशुसमाजी कवि जेराल्ड मैनली हॉपकिंस की कविता है: "ईश्वर की भव्यता और महानता से यह दुनिया भरी हुई है।" इन सार्थक शब्दों को हम अपने विश्वास के द्वारा समझ सकते हैं।
धारणा और बुद्धि, अर्थात आंखों देखी बातों पर चलना, अच्छा और आवश्यक है; वास्तव में, हम वहीं से शुरू करते हैं। लेकिन ख्रीस्तीय होने के नाते हम मुख्य रूप से विश्वास पर चलते हैं। इसका मतलब है कि हम अपने सामान्य अनुभव के भीतर ईश्वर और ईश्वर की गति के प्रति चौकस हैं। वर्त्तमान समय के आध्यात्मिक लेखक पाउला डी आर्सी इस सत्य को इस तरह समझाते हैं, "ईश्वर हमारी जीवनशैली के प्रछन्न वेश को अपनाकर हमारे पास आता है।" और यह प्रत्यक्ष दृष्टि या तर्कसंगत अंतर्दृष्टि का विषय नहीं हो सकता। ईश्वर की भव्यता से परिपूर्ण जीवन को देखने और समझने के लिए या यह समझने के लिए कि हमें ईश्वर की तलाश करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि ईश्वर हमारे जीवन के ताने-बाने में है, इस के लिए विश्वास की ज़रुरत है। यह विश्वास, तर्क और बुद्धिमता का विरोध किये बिना उसके परे जाता है।
कार्य से लापता?
बड़ी तादाद में लोगों को बहुत दर्द और नुकसान से पीड़ित करनेवाली महामारी के निर्वासन से चुपके से निकलते हुए, हम पूछ सकते हैं कि इन सब में ईश्वर कहाँ थे? ईश्वर का मंशा क्या है? आमतौर पर, बुद्धि की आंखें उत्तर नहीं देख सकतीं। लेकिन हम केवल आँखों देखी बातों से नहीं, विश्वास से चलते हैं। ईश्वर जो कर रहा है वह धीरे-धीरे होता है और भारी विपरीत प्रमाणों के सामने होता है। ईश्वर हमेशा कार्य कर रहा है! वह कभी भी कार्य से लापता नहीं है! छोटी सी छोटी शुरुआत से ही परमेश्वर के उद्देश्यों की सिद्धि आ सकती है। हम इसे नबी एज़ेकिएल से जानते हैं जिन्होंने इस्राएल के महान सार्वभौमिक भाग्य के बारे में गाया था। निर्वासन के दौरान इस्राएलियों ने सब कुछ खो दिया था, और उसी दौरान नबी ने इसकी भविष्यवाणी की थी!
एजकिएल के पांच सौ साल बाद, येशु ने भी यही बात कही है। संत मारकुस के अनुसार सुसमाचार में हम सुनते हैं, "ईश्वर का राज्य उस मनुष्य के सदृश है, जो भूमि में बीज बोता है। वह रात को सोने जाता है और सुबह उठता है। बीज उगता है और बढ़ता जाता है, हालांकि उसे वह पता नहीं कि यह कैसे हो रहा है" (4:26-27)।
आश्चर्यचकित होने के लिए तैयार हो जाएँ
ईश्वर काम कर रहा है, लेकिन हम इसे अपनी साधारण आंखों से नहीं देख सकते हैं; हम इसे अपनी सामान्य क्षमता से नहीं समझ सकते हैं; ऐसा कोई ऐप भी नहीं है जो हमें इस समझदारी तक जोड़ सकेगा। ईश्वर अपने काम पर सक्रिय है और हम नहीं जानते कि कैसे। यह ठीक है। हम आँखों देखी, नहीं विश्वास पर चलते हैं।
यही कारण है कि मारकुस के सुसमाचार में, येशु यह भी कहते हैं कि परमेश्वर का राज्य राई के दाने की तरह है - पृथ्वी के सभी बीजों में सबसे छोटा, लेकिन बोये जाने के बाद, वह उगता है और बढ़ते बढ़ते वह सब पौधों में सबसे बड़ा हो जाता है, इसलिए कि "आकाश के पंछी उसकी छाया में बसेरा कर सकते हैं" (4:32)। ईश्वर के अप्रत्याशित स्वरूप के इस तर्क में प्रवेश करना और अपने जीवन में उसकी रहस्यमय उपस्थिति को स्वीकार करना हमारे लिए आसान नहीं है। लेकिन अनिश्चितता, मृत्यु, और सांस्कृतिक/राजनीतिक विभाजन के इस समय पर विशेष रूप से ईश्वर हमें विश्वास पर चलने के लिए प्रोत्साहित करता है जो हमारी अपनी योजनाओं, गणनाओं और पूर्वानुमानों से परे है। ईश्वर हमेशा कार्य कर रहा है और वह हमेशा हमें आश्चर्यचकित करेगा। राई के बीज का दृष्टान्त हमें आमंत्रित करता है कि हम अपने दिलों को व्यक्तिगत स्तर पर और समुदाय के लिए ईश्वर की योजनाओं के लिए अर्थात उन अपार आश्चर्यपूर्ण बातों के लिए के लिए खोल कर रखें।
यह महत्वपूर्ण है कि हम अपने पारिवारिक स्तर पर, पल्ली स्तर पर, राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक स्तर पर सभी रिश्तों में ईश्वर और पड़ोसी से प्यार करने की महान आज्ञाओं को जीने के उन छोटे और बड़े अवसरों पर ध्यान दें। इसका मतलब है कि हम टेलीविजन और सोशल मीडिया पर इतनी प्रचलित विभाजनकारी बयानबाजी से दूर रहें, जिसके कारण हम अपनी बहनों और भाइयों को सिर्फ उपभोग की वस्तुओं जैसा मानने लगते हैं। चूँकि हम विश्वास से चलते हैं न कि आँखों देखी बातों से, इसलिए हम प्रेम की गतिशीलता में, दूसरों का स्वागत करने और उन के प्रति दया दिखाने में सक्रिय हो जाएँ।
कभी हार न मानें
कलीसिया के मिशन की प्रामाणिकता, जो कि पुनर्जीवित और महिमान्वित ख्रीस्त का मिशन है, कार्यक्रमों या सफल परिणामों के माध्यम से नहीं आता है, लेकिन मसीह येशु में और येशु के माध्यम से निरंतर आगे बढ़ने से, और उसके साथ साहसपूर्वक चलने से, और हमारे पिता की इच्छा हमेशा फल देगी ऐसा अटूट विश्वास करने से होता है। हम इसकी घोषणा करते हुए आगे बढ़ते हैं कि येशु प्रभु हैं, न कि कैसर या उनके उत्तराधिकारी। हम समझते हैं और स्वीकार करते हैं कि हम अपने प्यारे स्वर्गीय पिता के हाथों में एक छोटा राई हैं और पिता हमारे माध्यम से ईश्वर के राज्य को यहाँ स्थापित करने लिए कार्य कर सकता है।
By: Deacon Jim McFadden
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