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दिसम्बर 03, 2022 179 0 Sean Booth, UK
Engage

स्वतंत्र रहें

मैं क्षमा करता हूँयह कहना और वास्तव में क्षमा करना आसान नहीं है…”

“मसीह ने स्वतंत्र बने रहने केलिए हमें स्वतंत्र बनाया है।” (गलाती 5:1)

मुझे यकीन है कि अधिकांश लोग इस बात से अवगत होंगे कि क्षमा क्रिश्चियन संदेश के मूल में है, लेकिन बहुतों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि किसी को क्षमा न करने से शारीरिक पीड़ा हो सकती है। मैं इसे अपने निजी अनुभव से जानता हूं। कई बार, मैंने इस भयानक, अक्सर अपंग करनेवाली बीमारी को चंगा करने में पवित्र आत्मा की शक्ति को अनुभव किया है।

क्षमा आसान नहीं

क्रूस पर मरते समय येशु ने जो पहले शब्द कहे थे, वे क्षमा के शब्द थे (लूकस 23:34)। मानव जाति को पाप और मृत्यु से मुक्त करने के लिए येशु का प्रेममय बलिदान वह क्षण था जिसकी प्रतीक्षा मानव को लम्बे अरसे से थी। जब येशु मृतकों में से जी उठने के बाद अपने शिष्यों से मिले, तब क्षमा फिर से उनके होठों पर थी, और उन्होंने अपनी ओर से इस क्षमा को  देने की शक्ति शिष्यों को दी (योहन 20:19-23)। जब प्रेरितों ने येशु से प्रार्थना करने का तरीका पूछा, तो उस ने एक प्रार्थना के माध्यम से इसका जवाब दिया, इसी प्रार्थना के द्वारा ईश्वर को ‘हमारे पिता’  कहकर संबोधित करने और और जिस तरह हमारे विरुद्ध अपराध करनेवालों को हम क्षमा करते हैं, उसी तरह ‘हमारे अपराधों (पापों) को क्षमा करने के लिए उस से निवेदन करने की अनुमति हमें मिली (मत्ती 6:12)। यदि हम स्वयं क्षमा की अपेक्षा करते हैं, तो हमें दूसरों को क्षमा करना चाहिए (मत्ती  5:23-26; 6:14)।

क्षमा न करने की तुलना बंद मुट्ठी से की जा सकती है। बंधी हुई मुट्ठी तनी हुई होती है, और अक्सर क्रोध में जकड़ी और तनाव से पूर्ण रहती है। बंद मुट्ठी वास्तव में केवल एक ही कार्य के काम में आ सकती है; किसी को मारने के लिए, या कम से कम मारने के लिए तैयार होने के काम में। अगर वह मुट्ठी किसी पर लग जाती है, तो वापस मार खाने और अधिक शत्रुता पैदा करने की उम्मीद करना गलत नहीं होगा। अगर मुट्ठी बंद है, तो वह खुली नहीं है। खुला हाथ उपहार या कोई भी वस्तु प्राप्त करने में सक्षम है, लेकिन अगर वह बंद और जकड़ा हुआ है तो जो भेंट दी जा रही है उसे स्वीकार करना संभव नहीं है। दुसरे शब्दों में कहें तो, जब हम अपने हाथ खोलते हैं, तभी हम प्राप्त कर सकते हैं, तभी जो हम प्राप्त करते हैं उसे दूसरों को देने में भी हम सक्षम होते हैं।

जब वह स्वतन्त्र करता है

जब मैंने इस बारे में मिस्सा बलिदान में प्रार्थना की, तो मेरे दिमाग में एक छड़ी की छवि आयी, और मैंने यह महसूस किया कि जब हम क्षमा नहीं करते हैं, तो हमारे जीवन में चलने में दिक्कत आती है। मिस्सा के बाद, जब हम बाहर बातें कर रहे थे, एक आदमी आया, जिसने गिरजाघर के बाहर उसका फोटो लेने के लिए हमसे कहा। जब मैंने देखा कि वह छडी के सहारे चलता है, तो मुझे लगा कि उस की बीमारी क्षमा न करने के कारण हुई है। -जैसे बातचीत जारी रही, उसने मुझे अपने अतीत के बारे में बताना शुरू कर दिया, और अंत में उसने मुझसे मेरी प्रार्थनाओं का अनुरोध किया, क्योंकि वह भयंकर पीठ दर्द से परेशान था।

तुरंत मैंने उसे मेरे साथ प्रार्थना करने के लिए आमंत्रित किया और मैं ने कहा कि येशु उसे चंगा करना चाहता है, लेकिन इसके लिए कुछ कार्य करना पड़ेगा। उत्सुक और खुले दिल से वह सहमत हो गया, और मुझ से पूछ रहा था कि क्या कार्य करना होगा। मैंने उससे कहा कि उन्हें उन लोगों को माफ करना होगा जिनका उल्लेख उन्होंने अभी अभी बातचीत में मुझसे किया है और अन्य किसी भी व्यक्ति को माफ़ करना होगा जिसने उसे चोट पहुंचाई है। मैं उस व्यक्ति को देख पा रहा था कि वह आंतरिक रूप से संघर्ष कर रहा है, इसलिए मैंने उसे इस आश्वासन के साथ प्रोत्साहित किया कि क्षमा करने के लिए उसे अपनी ही ताकत पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। यदि वह येशु के नाम से क्षमा करता, तो येशु उसे सामर्थ्य देता, उसकी अगुवाई करता और उसे स्वतंत्र करता। फुसफुसाते हुए उसकी आँखें चमक उठीं, “हाँ, अपने प्रभु की शक्ति से मैं क्षमा कर सकता हूँ।”

मैंने प्रार्थना में उसकी अगुवाई की, और उसकी पीठ पर हाथ रखकर उसे ठीक होने की चंगाई प्रार्थना के साथ (मारकुस 16:15-18) वह प्रार्थना सत्र समाप्त हुआ मैंने उससे कहा कि जो कुछ येशु ने कहा है वह सब करे और उसने जो माँगा उसे प्राप्त कर लिया है, ऐसे विश्वास के साथ परमेश्वर का धन्यवाद करे (मारकुस 11:22-25), और इस तरह वह येशु से चंगाई की प्राप्ति कर सकता है। यह शुक्रवार की शाम को था।

रविवार को, उसने मुझे मोबाइल पर एक संदेश भेजा, “प्रभु की स्तुति हो, येशु ने मेरी पीठ को चंगा कर दिया। मैं ने प्रभु की स्तुति की, और पूरे मन से उसका धन्यवाद किया। मैं इस पूरी घटना से विशेष रूप से प्रभावित था। हमने शुक्रवार को क्रूस की शक्ति और गुणों से चंगाई के लिए प्रार्थना की थी। और तीसरे दिन, रविवार को अर्थात पुनरुत्थान के दिन उस प्रार्थना का जवाब मिल गया।

महान लेखक सी.एस. लुइस ने एक बार लिखा था, “जब तक कि लोगों के पास क्षमा करने के लिए कुछ न हो, तब तक वे सोचते हैं कि क्षमा एक सहज चीज है।” यह जानना महत्वपूर्ण है कि क्षमा इच्छा शक्ति का कार्य है; जिसे हम चुनते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि यह निर्णय लेना आसान है, जितनी बार क्षमा करें, उतनी बार यह दुनिया में सबसे कठिन, सबसे दर्दनाक निर्णय की तरह लग सकता है, लेकिन जब हम येशु के नाम पर ‘उन्हीं के द्वारा, उन्हीं के साथ, और उन्हीं में सब कुछ का सामना करने के लिए तैयार हो जाते हैं’, तब हम सीखते हैं कि ‘परमेश्वर के साथ कुछ भी असंभव नहीं है’ (लूकस 1:37)। यह आवश्यक है कि हम अपने आप से पूछें कि क्या हमारे जीवन में ऐसा कोई है जिसे हमें क्षमा करने की आवश्यकता है। येशु हमें सिखाते हैं, “जब तुम प्रार्थना के लिये खड़े हो, और तुम्हें किसी से कुछ शिकायत हो तो क्षमा कर दो, जिससे तुम्हारा स्वर्गिक पिता तुम्हारे अपराध क्षमा कर दे” (मारकुस 11:25)। इसलिए, हमें येशु के पास सब कुछ लाना चाहिए और उसे हमें स्वतंत्र करने की अनुमति देनी चाहिए, क्योंकि  “यदि पुत्र तुम्हें स्वतंत्र बना देगा, तो तुम सचमुच स्वतंत्र होगे  (योहन  8:36)।

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Sean Booth

Sean Booth is a member of the Lay Missionaries of Charity and Men of St. Joseph. He is from Manchester, England, currently pursuing a degree in Divinity at the Maryvale Institute in Birmingham.

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