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मार्च 16, 2022 217 0 Dr. Thomas D Jones
Encounter

येशु के साथ आकाश यात्रा

नासा के साथ चार अलग-अलग शटल मिशन पर गए डॉ. थॉमस डी. जोन्स के साथ एक विशेष साक्षात्कार। उन मिशनों में से एक पर, वे वास्तव में पवित्र यूखरिस्त को अपने साथ ले जाने में सक्षम थे!

 हमें इस बारे में बताएं कि अंतरिक्ष में सितारों को और नीचे पृथ्वी को देखकर कैसा लगता था। येशु में आपका विश्वास इस अनुभव द्वारा कैसे प्रभावित हुआ ?

हर अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष में उड़ान भरने के अपने पेशेवर सपने को साकार करने की उम्मीद करता है, उसी तरह मुझे भी लगभग 30 वर्षों तक इंतजार करना पड़ा। बचपन में हवा में उड़ने का सपना देखा करता था तो मेरी पहली उड़ान से इसी बचपन के सपने का साकार हो गया था। हमारे गृह ग्रह पृथ्वी के आसपास के ब्रह्मांड के इस विशाल दृश्य को देखकर, मुझे यह सोचने का मौका मिला कि मैं वहां क्यों था। यह वास्तव में ब्रह्मांड की अविश्वसनीय सुंदरता को और हमारे गृह ग्रह को इसकी सभी प्यारी विविधता में देखने का एक ऐसा भावनात्मक अनुभव था, – वास्तव में दिल थामकर मैं ने इन अद्भुत दृश्यों को निहारा। शारीरिक रूप से वहाँ रहने का अवसर देने के लिए और ईश्वर की कृपा और उपस्थिति से अभिभूत होकर मैंने लगातार ईश्वर के प्रति अपना आभार प्रकट किया।

आप उन अंतरिक्ष यात्रियों में से एक के रूप में जाने जाते हैं जो पवित्र यूखरिस्त को अंतरिक्ष में लाने में सक्षम थे। हम सभी विश्वासियों के लिए इससे बड़ी प्रेरणा मिलती है। क्या आप वह पूरा अनुभव साझा कर सकते हैं?

यह निश्चित रूप से इसमें भाग लेने वाले हम सभी के लिए आश्चर्यजनक था। कोई भी व्यक्ति न अंतरिक्ष से अधिक दूर कहीं भी जा सकता है और न अपने आध्यात्मिक जीवन को भूल सकता है। विश्वास के कारण मैं पृथ्वी पर सफल था और उसी विश्वास से मैं अंतरिक्ष में सफल होने में मदद की उम्मीद कर रहा था। 1994 में मेरी पहली उड़ान एंडेवर नामक शटल में, दो अन्य कैथलिक अंतरिक्ष यात्री भी थे। जब हम 11 दिवसीय मिशन की तैयारी के लिए एकत्रित हुए, तो हमने इस बारे में बात की कि पवित्र यूखरिस्त को अपने साथ अंतरिक्ष में ले जाना कितना अद्भुत होगा। चूँकि उड़ान में हमारे पायलट, केविन चिल्टन, पवित्र भोज के एक असाधारण अनुष्ठाता थे,  इसलिए हम अपने पादरी से परम पवित्र संस्कार को अपने साथ लाने की अनुमति प्राप्त करने में सफल हुए।

ग्यारह दिन की उड़ान के हर पल को बड़ी सूक्ष्मता से निर्धारित किया गया था, लेकिन लगभग सात दिनों के बाद जब हम अपने मिशन में सहज हो चुके थे, तब हमारे कैथलिक कमांडर, सिड गुटियरेज़ कम्युनियन सेवा के लिए इस व्यस्त शेड्यूल में दस मिनट का समय ढूँढने में कामयाब हुए। इसलिए, उस रविवार को (अंतरिक्ष में वह हमारा दूसरा रविवार था) हमने मिशन के सभी कामों से विराम लिया और कॉकपिट में अकेले दस मिनट उस ईश्वर के साथ समय बिताया जिसने यह सब संभव बनाया था, और हमने पवित्र परम प्रसाद को ग्रहण किया। वास्तव में, इसके द्वारा यह पुष्टि हो रही थी कि हमारे बीच उनकी उपस्थिति के बिना हम उस मुकाम तक कभी नहीं पहुंच सकते थे। हमारे विश्वास-जीवन को अंतरिक्ष में लाना और यह जानना कि प्रभु वहां, शारीरिक रूप से हमारे साथ है, यह वास्तव में संतोषजनक था।

क्या विज्ञान और आस्था को एक साथ लाना आप के लिए मुश्किल था? क्या आप विज्ञान और आस्था के बीच संबंध के बारे में विस्तार से बता सकते हैं?

अपने पेशेवर करियर के दौरान, मैंने कई ऐसे वैज्ञानिकों को जाना है जो आध्यात्मिक हैं, और उनकी अपनी आस्था की परम्पराएं हैं। यहीं उत्तरी वर्जीनिया में,  मेरे अपने चर्च में कई कैथलिक वैज्ञानिकों और इंजीनियरों से मैं मिला हूं, जो मजबूत विश्वास के जीवन को जीते हैं। वे ईश्वर की सृष्टि में विश्वास करते हैं, और बाइबिल की प्रेरणा से ब्रह्मांड की समझ रखते हैं।

मुझे लगता है कि ज्यादातर लोगों के जीवन में कुछ आध्यात्मिक तत्व होते हैं। मैं ऐसे अंतरिक्ष यात्रियों को जानता हूं जो औपचारिक रूप से धार्मिक नहीं हैं, लेकिन वे सभी अंतरिक्ष यात्रा के आध्यात्मिक अनुभव से प्रभावित थे। इसलिए मैंने देखा है कि ब्रह्मांड और हमारे आस-पास की प्राकृतिक धरती और सृष्टि को समझने के तरीके के संदर्भ में अधिकांश लोग खुली और उदार समझ रखते हैं। सभी मनुष्यों की तरह वैज्ञानिक भी ब्रह्मांड की प्रकृति के बारे में उत्सुक हैं और इससे क्या सीख सकते हैं, इस बारे में बहुत ही उत्सुक हैं।

मेरे लिए, यह एक संकेत है कि विज्ञान और अध्यात्म साथ-साथ चलते हैं। प्रकृति कैसे कार्य करती है, कैसे ब्रह्मांड को एक साथ रखा गया है और इसे कैसे बनाया गया है, इन सब पर तथा प्रकृति के प्रति हमारी जिज्ञासा और रुचि हमें दी गई थी, क्योंकि हम ईश्वर के स्वरूप और प्रतिछाया में बनाए गए हैं। यह जिज्ञासा ईश्वर के व्यक्तित्व का हिस्सा है जो हमें प्रदान किया गया है। इसलिए मुझे लगता है कि प्राकृतिक दुनिया के बारे में सच्चाई की यह खोज मनुष्य के रूप में हमारी सहज प्रकृति का एक हिस्सा है। मेरा मानना ​​​​है कि ज्ञान की खोज एक ऐसी चीज है जो ईश्वर को बहुत आनंद देती है – ईश्वर ने ब्रह्मांड को किस प्रकार एक साथ रखा, इस रहस्य की तलाश में उसकी सृष्टि, विशेषकर मानव, लगा रहता है तो ईश्वर का आनंद और बढ़ता होगा। ध्यान रहे, वह इसे गुप्त रखने या भेद के रूप में रखने की कोशिश नहीं कर रहा है। वह सिर्फ यह चाहता है कि हम अपने प्रयासों, सरलता और जिज्ञासा के माध्यम से इसका अनावरण करें। तो, मेरे लिए, विज्ञान, प्रकृति और अध्यात्म के बीच बहुत अधिक संघर्ष नहीं है। मुझे लगता है कि उन्हें अलग करने की कोशिश कर रहे लोग मानव स्वभाव का आधा हिस्सा बौद्धिक या तर्कसंगत हिस्से में और दूसरा आधा आध्यात्मिक हिस्से में विभाजित करने का प्रयास कर रहे हैं। बेशक, ऐसा नहीं किया जा सकता है। हर व्यक्ति ऐसा इंसान है जिसकी प्रकृति को अलग अलग नहीं किया जा सकता है।

अपने अंतरिक्ष अभियानों में आप कई मायनों में मानवीय उपलब्धि के निचोड़ या सार को पूरा कर रहे थे। वास्तव में कुछ महान कार्य करना, और वह भी परमेश्वर की सृष्टि की महिमा और प्रताप को इतनी अधिक विस्तार में सामना करना परमेश्वर की उस महानता की तुलना में अपनी नगण्यता को पहचानते हुए भी इतना कुछ हासिल करना, यह कैसा अनुभव था?

मेरे लिए यह सब मेरे आखिरी मिशन पर निश्चित रूप ले रहा था। मैं अंतरिक्ष में स्पेस स्टेशन बनाने में मदद कर रहा था, डेस्टिनी नामक एक विज्ञान प्रयोगशाला स्थापित करने के लिए तीन स्पेस वॉक कर रहा था। अपने आखिरी स्पेसवॉक के अंत के करीब, मैं स्पेस स्टेशन के बिल्कुल सामने के छोर पर था। चूंकि मैं अपने निर्धारित शेड्यूल से आगे था, नासा के मिशन कंट्रोल ने मुझे वहां लगभग पांच मिनट तक घूमने की अनुमति दी। अपनी उँगलियों से स्पेस स्टेशन के सामने के हिस्से को पकड़ते हुए, मैं चारों ओर घूमने में सक्षम था ताकि मैं अपने आस-पास के अंतरिक्ष की विशालता को देख सकूं।

मेरे पैरों के 220 मील सीधे नीचे प्रशांत महासागर के गहरे नीले रंग में, मैंने पृथ्वी को देखा। मैं वहाँ तैर रहा था और ऊपर की ओर मेरे सिर के ऊपर एक हजार मील दूर, अंतहीन, काला आकाश और क्षितिज की ओर देख रहा था।  मुझसे लगभग 100 फीट ऊपर, स्पेस स्टेशन अपने सौर पैनलों से परावर्तित सूर्य के प्रकाश के साथ सोने की तरह चमक रहा था, उस समय हम लोग चुपचाप दुनिया के फेरे में एक साथ मंडरा रहे थे। यह अद्भुत दृश्य इतना अविश्वसनीय रूप से सुंदर था कि मेरी आंखों में आंसू आ गए। मैं इस भावना से अभिभूत था, “यहाँ मैं हूँ, इस अंतरिक्ष स्टेशन पर एक उच्च प्रशिक्षित अंतरिक्ष यात्री, जो पृथ्वी के चारों ओर मंडरा रहा है, फिर भी मैं इस विशाल ब्रह्मांड की तुलना में सिर्फ एक अदना सा इंसान हूँ।“

ईश्वर ने मेरे लिए पर्दे को थोड़ा पीछे खींच लिया, जिससे मुझे व्यक्तिगत रूप से उस शानदार प्रतापपूर्ण और भव्य विशालता को देखने का मौका मिला। मैंने महसूस किया, “हां, तुम बहुत खास हो क्योंकि तुम्हें यह दृश्य देखने को मिल रहा है”, लेकिन उसी समय मुझे याद दिलाया गया कि हम सभी ईश्वर के द्वारा बनाए गए इस विशाल ब्रह्मांड में कितने महत्वहीन हैं। एक ही समय में अपने महत्व को और अपनी नगण्यता को अनुभव करना ईश्वर की ओर से एक विशेष उपहार था। मैंने रोमांचित होकर, मेरे साथ इस दृश्य को साझा करने के लिए, प्रभु को धन्यवाद दिया, तब सचमुच मेरी आंखों में आंसू भर आये। बहुत कम मनुष्यों के पास पृथ्वी को उस दृष्टिकोण से देखने का अनुभव और विशेषाधिकार मिला होगा, और यह सब प्रभु की कृपा से थी।

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इस समय दुनिया में बहुत भ्रम है… बहुत अँधेरा और पीड़ा है; लेकिन जब आप दुनिया को या तो अंतरिक्ष में उस अद्वितीय और अनुकूल प्रेक्षण स्थान से देखते हैं, या अब आपके जीवन की वर्तमान स्थिति में होकर देखते हैं, आपको किस तरह की आशा मिल रही है?

ईश्वर ने हमें बहुत जिज्ञासु दिमाग दिया है। मुझे लगता है कि यही बात मुझे सबसे अधिक प्रेरणा देती है। हमारे पास यह सहज जिज्ञासा है, और इसने हमें समस्या के समाधानकर्ता और खोजकर्ता बना दिया है। इसलिए, आज हम जिन सभी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, चाहे वह महामारी हो, या युद्ध का खतरा हो, या दुनिया भर में सात अरब लोगों को भोजन खिलाने की चुनौती हो, हमारे पास वह कौशल है जो हमें दिया गया है और उस कौशल का सदुपयोग करके इन समस्याओं को हल करने के लिए हम बुलाये गए हैं। यह एक विशाल ब्रह्मांड है, और यह संसाधनों से भरा हुआ है। यह हमें चुनौती देता है, लेकिन अगर हम अपने घर की दुनिया से परे सौर मंडल और ब्रह्मांड की ओर देखें, तो ऐसी बहुत सी चीजें हैं जिनका हम उपयोग कर सकते हैं।

चंद्रमा और आस-पास के क्षुद्रग्रहों पर उपलब्ध विशाल भौतिक संसाधन उन चीज़ों के पूरक हो सकते हैं जिन्हें  हम पृथ्वी पर पाते हैं। सौर ऊर्जा की एक विशाल आपूर्ति है जिसे अंतरिक्ष से निकाला जा सकता है और दुनिया के लिए बीमित किया जा सकता है ताकि सभी को कामयाब होने के लिए आवश्यक ऊर्जा और बिजली की आपूर्ति करने में मदद मिल सके। हमारे पास अक्सर पृथ्वी से टकरानेवाले दुष्ट क्षुद्रग्रहों को दूर भगाने का कौशल है, और चूँकि हमारे पास अंतरिक्ष कौशल और हमारे ग्रह की रक्षा करने का एक तरीका विकसित करने के लिए दिमाग है, इसलिए हम इन सब के माध्यम से भयानक प्राकृतिक आपदाओं को रोक सकते हैं। इसलिए, यदि हम अपने द्वारा हासिल किए गए कौशल का उपयोग करते हैं, और खुद को इस कार्य में लगाते हैं, तो हमें डायनासोर के रास्ते पर जाने की ज़रूरत नहीं है ।

हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जो हमें इन समस्याओं को हल करने के लिए अपनी जिज्ञासा और बुद्धि का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करती है। इसलिए मैं बहुत आशावादी हूं कि अपने कौशल और हमारे द्वारा विकसित की जाने वाली तकनीक को लागू करके हम इन सभी चुनौतियों से आगे रह सकते हैं। उदाहरण केलिए, उस वैक्सीन को देखिये, जिसे हमने इस वर्ष ही विषाणु से लड़ने के लिए विकसित किया है। यह इस बात का प्रतीक है कि जब हम किसी चीज़ पर अपना दिमाग लगाते हैं, तब हम क्या क्या हासिल कर सकते हैं, चाहे वह किसी पुरुष को चंद्रमा पर रखने की बात हो या पहली महिला को मंगल ग्रह पर भेजने की बात हो। मुझे लगता है कि हम भविष्य के लिए भी अच्छी स्थिति में हैं।

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Dr. Thomas D Jones

Dr. Thomas D Jones द्वारा शालोम वर्ल्ड कार्यक्रम "ग्लोरी टू गॉड" के लिए दिए गए विशेष साक्षात्कार पर यह लेख आधारित है। एपिसोड देखने के लिए यहां जाएं: shalomworld.org/episode/an-astronauts-faith-dr-thomas-d-jones

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