Encounter
येशु के साथ आकाश यात्रा
नासा के साथ चार अलग-अलग शटल मिशन पर गए डॉ. थॉमस डी. जोन्स के साथ एक विशेष साक्षात्कार। उन मिशनों में से एक पर, वे वास्तव में पवित्र यूखरिस्त को अपने साथ ले जाने में सक्षम थे!
हमें इस बारे में बताएं कि अंतरिक्ष में सितारों को और नीचे पृथ्वी को देखकर कैसा लगता था। येशु में आपका विश्वास इस अनुभव द्वारा कैसे प्रभावित हुआ ?
हर अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष में उड़ान भरने के अपने पेशेवर सपने को साकार करने की उम्मीद करता है, उसी तरह मुझे भी लगभग 30 वर्षों तक इंतजार करना पड़ा। बचपन में हवा में उड़ने का सपना देखा करता था तो मेरी पहली उड़ान से इसी बचपन के सपने का साकार हो गया था। हमारे गृह ग्रह पृथ्वी के आसपास के ब्रह्मांड के इस विशाल दृश्य को देखकर, मुझे यह सोचने का मौका मिला कि मैं वहां क्यों था। यह वास्तव में ब्रह्मांड की अविश्वसनीय सुंदरता को और हमारे गृह ग्रह को इसकी सभी प्यारी विविधता में देखने का एक ऐसा भावनात्मक अनुभव था, – वास्तव में दिल थामकर मैं ने इन अद्भुत दृश्यों को निहारा। शारीरिक रूप से वहाँ रहने का अवसर देने के लिए और ईश्वर की कृपा और उपस्थिति से अभिभूत होकर मैंने लगातार ईश्वर के प्रति अपना आभार प्रकट किया।
आप उन अंतरिक्ष यात्रियों में से एक के रूप में जाने जाते हैं जो पवित्र यूखरिस्त को अंतरिक्ष में लाने में सक्षम थे। हम सभी विश्वासियों के लिए इससे बड़ी प्रेरणा मिलती है। क्या आप वह पूरा अनुभव साझा कर सकते हैं?
यह निश्चित रूप से इसमें भाग लेने वाले हम सभी के लिए आश्चर्यजनक था। कोई भी व्यक्ति न अंतरिक्ष से अधिक दूर कहीं भी जा सकता है और न अपने आध्यात्मिक जीवन को भूल सकता है। विश्वास के कारण मैं पृथ्वी पर सफल था और उसी विश्वास से मैं अंतरिक्ष में सफल होने में मदद की उम्मीद कर रहा था। 1994 में मेरी पहली उड़ान एंडेवर नामक शटल में, दो अन्य कैथलिक अंतरिक्ष यात्री भी थे। जब हम 11 दिवसीय मिशन की तैयारी के लिए एकत्रित हुए, तो हमने इस बारे में बात की कि पवित्र यूखरिस्त को अपने साथ अंतरिक्ष में ले जाना कितना अद्भुत होगा। चूँकि उड़ान में हमारे पायलट, केविन चिल्टन, पवित्र भोज के एक असाधारण अनुष्ठाता थे, इसलिए हम अपने पादरी से परम पवित्र संस्कार को अपने साथ लाने की अनुमति प्राप्त करने में सफल हुए।
ग्यारह दिन की उड़ान के हर पल को बड़ी सूक्ष्मता से निर्धारित किया गया था, लेकिन लगभग सात दिनों के बाद जब हम अपने मिशन में सहज हो चुके थे, तब हमारे कैथलिक कमांडर, सिड गुटियरेज़ कम्युनियन सेवा के लिए इस व्यस्त शेड्यूल में दस मिनट का समय ढूँढने में कामयाब हुए। इसलिए, उस रविवार को (अंतरिक्ष में वह हमारा दूसरा रविवार था) हमने मिशन के सभी कामों से विराम लिया और कॉकपिट में अकेले दस मिनट उस ईश्वर के साथ समय बिताया जिसने यह सब संभव बनाया था, और हमने पवित्र परम प्रसाद को ग्रहण किया। वास्तव में, इसके द्वारा यह पुष्टि हो रही थी कि हमारे बीच उनकी उपस्थिति के बिना हम उस मुकाम तक कभी नहीं पहुंच सकते थे। हमारे विश्वास-जीवन को अंतरिक्ष में लाना और यह जानना कि प्रभु वहां, शारीरिक रूप से हमारे साथ है, यह वास्तव में संतोषजनक था।
क्या विज्ञान और आस्था को एक साथ लाना आप के लिए मुश्किल था? क्या आप विज्ञान और आस्था के बीच संबंध के बारे में विस्तार से बता सकते हैं?
अपने पेशेवर करियर के दौरान, मैंने कई ऐसे वैज्ञानिकों को जाना है जो आध्यात्मिक हैं, और उनकी अपनी आस्था की परम्पराएं हैं। यहीं उत्तरी वर्जीनिया में, मेरे अपने चर्च में कई कैथलिक वैज्ञानिकों और इंजीनियरों से मैं मिला हूं, जो मजबूत विश्वास के जीवन को जीते हैं। वे ईश्वर की सृष्टि में विश्वास करते हैं, और बाइबिल की प्रेरणा से ब्रह्मांड की समझ रखते हैं।
मुझे लगता है कि ज्यादातर लोगों के जीवन में कुछ आध्यात्मिक तत्व होते हैं। मैं ऐसे अंतरिक्ष यात्रियों को जानता हूं जो औपचारिक रूप से धार्मिक नहीं हैं, लेकिन वे सभी अंतरिक्ष यात्रा के आध्यात्मिक अनुभव से प्रभावित थे। इसलिए मैंने देखा है कि ब्रह्मांड और हमारे आस-पास की प्राकृतिक धरती और सृष्टि को समझने के तरीके के संदर्भ में अधिकांश लोग खुली और उदार समझ रखते हैं। सभी मनुष्यों की तरह वैज्ञानिक भी ब्रह्मांड की प्रकृति के बारे में उत्सुक हैं और इससे क्या सीख सकते हैं, इस बारे में बहुत ही उत्सुक हैं।
मेरे लिए, यह एक संकेत है कि विज्ञान और अध्यात्म साथ-साथ चलते हैं। प्रकृति कैसे कार्य करती है, कैसे ब्रह्मांड को एक साथ रखा गया है और इसे कैसे बनाया गया है, इन सब पर तथा प्रकृति के प्रति हमारी जिज्ञासा और रुचि हमें दी गई थी, क्योंकि हम ईश्वर के स्वरूप और प्रतिछाया में बनाए गए हैं। यह जिज्ञासा ईश्वर के व्यक्तित्व का हिस्सा है जो हमें प्रदान किया गया है। इसलिए मुझे लगता है कि प्राकृतिक दुनिया के बारे में सच्चाई की यह खोज मनुष्य के रूप में हमारी सहज प्रकृति का एक हिस्सा है। मेरा मानना है कि ज्ञान की खोज एक ऐसी चीज है जो ईश्वर को बहुत आनंद देती है – ईश्वर ने ब्रह्मांड को किस प्रकार एक साथ रखा, इस रहस्य की तलाश में उसकी सृष्टि, विशेषकर मानव, लगा रहता है तो ईश्वर का आनंद और बढ़ता होगा। ध्यान रहे, वह इसे गुप्त रखने या भेद के रूप में रखने की कोशिश नहीं कर रहा है। वह सिर्फ यह चाहता है कि हम अपने प्रयासों, सरलता और जिज्ञासा के माध्यम से इसका अनावरण करें। तो, मेरे लिए, विज्ञान, प्रकृति और अध्यात्म के बीच बहुत अधिक संघर्ष नहीं है। मुझे लगता है कि उन्हें अलग करने की कोशिश कर रहे लोग मानव स्वभाव का आधा हिस्सा बौद्धिक या तर्कसंगत हिस्से में और दूसरा आधा आध्यात्मिक हिस्से में विभाजित करने का प्रयास कर रहे हैं। बेशक, ऐसा नहीं किया जा सकता है। हर व्यक्ति ऐसा इंसान है जिसकी प्रकृति को अलग अलग नहीं किया जा सकता है।
अपने अंतरिक्ष अभियानों में आप कई मायनों में मानवीय उपलब्धि के निचोड़ या सार को पूरा कर रहे थे। वास्तव में कुछ महान कार्य करना, और वह भी परमेश्वर की सृष्टि की महिमा और प्रताप को इतनी अधिक विस्तार में सामना करना — परमेश्वर की उस महानता की तुलना में अपनी नगण्यता को पहचानते हुए भी इतना कुछ हासिल करना, यह कैसा अनुभव था?
मेरे लिए यह सब मेरे आखिरी मिशन पर निश्चित रूप ले रहा था। मैं अंतरिक्ष में स्पेस स्टेशन बनाने में मदद कर रहा था, डेस्टिनी नामक एक विज्ञान प्रयोगशाला स्थापित करने के लिए तीन स्पेस वॉक कर रहा था। अपने आखिरी स्पेसवॉक के अंत के करीब, मैं स्पेस स्टेशन के बिल्कुल सामने के छोर पर था। चूंकि मैं अपने निर्धारित शेड्यूल से आगे था, नासा के मिशन कंट्रोल ने मुझे वहां लगभग पांच मिनट तक घूमने की अनुमति दी। अपनी उँगलियों से स्पेस स्टेशन के सामने के हिस्से को पकड़ते हुए, मैं चारों ओर घूमने में सक्षम था ताकि मैं अपने आस-पास के अंतरिक्ष की विशालता को देख सकूं।
मेरे पैरों के 220 मील सीधे नीचे प्रशांत महासागर के गहरे नीले रंग में, मैंने पृथ्वी को देखा। मैं वहाँ तैर रहा था और ऊपर की ओर मेरे सिर के ऊपर एक हजार मील दूर, अंतहीन, काला आकाश और क्षितिज की ओर देख रहा था। मुझसे लगभग 100 फीट ऊपर, स्पेस स्टेशन अपने सौर पैनलों से परावर्तित सूर्य के प्रकाश के साथ सोने की तरह चमक रहा था, उस समय हम लोग चुपचाप दुनिया के फेरे में एक साथ मंडरा रहे थे। यह अद्भुत दृश्य इतना अविश्वसनीय रूप से सुंदर था कि मेरी आंखों में आंसू आ गए। मैं इस भावना से अभिभूत था, “यहाँ मैं हूँ, इस अंतरिक्ष स्टेशन पर एक उच्च प्रशिक्षित अंतरिक्ष यात्री, जो पृथ्वी के चारों ओर मंडरा रहा है, फिर भी मैं इस विशाल ब्रह्मांड की तुलना में सिर्फ एक अदना सा इंसान हूँ।“
ईश्वर ने मेरे लिए पर्दे को थोड़ा पीछे खींच लिया, जिससे मुझे व्यक्तिगत रूप से उस शानदार प्रतापपूर्ण और भव्य विशालता को देखने का मौका मिला। मैंने महसूस किया, “हां, तुम बहुत खास हो क्योंकि तुम्हें यह दृश्य देखने को मिल रहा है”, लेकिन उसी समय मुझे याद दिलाया गया कि हम सभी ईश्वर के द्वारा बनाए गए इस विशाल ब्रह्मांड में कितने महत्वहीन हैं। एक ही समय में अपने महत्व को और अपनी नगण्यता को अनुभव करना ईश्वर की ओर से एक विशेष उपहार था। मैंने रोमांचित होकर, मेरे साथ इस दृश्य को साझा करने के लिए, प्रभु को धन्यवाद दिया, तब सचमुच मेरी आंखों में आंसू भर आये। बहुत कम मनुष्यों के पास पृथ्वी को उस दृष्टिकोण से देखने का अनुभव और विशेषाधिकार मिला होगा, और यह सब प्रभु की कृपा से थी।
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इस समय दुनिया में बहुत भ्रम है… बहुत अँधेरा और पीड़ा है; लेकिन जब आप दुनिया को या तो अंतरिक्ष में उस अद्वितीय और अनुकूल प्रेक्षण स्थान से देखते हैं, या अब आपके जीवन की वर्तमान स्थिति में होकर देखते हैं, आपको किस तरह की आशा मिल रही है?
ईश्वर ने हमें बहुत जिज्ञासु दिमाग दिया है। मुझे लगता है कि यही बात मुझे सबसे अधिक प्रेरणा देती है। हमारे पास यह सहज जिज्ञासा है, और इसने हमें समस्या के समाधानकर्ता और खोजकर्ता बना दिया है। इसलिए, आज हम जिन सभी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, चाहे वह महामारी हो, या युद्ध का खतरा हो, या दुनिया भर में सात अरब लोगों को भोजन खिलाने की चुनौती हो, हमारे पास वह कौशल है जो हमें दिया गया है और उस कौशल का सदुपयोग करके इन समस्याओं को हल करने के लिए हम बुलाये गए हैं। यह एक विशाल ब्रह्मांड है, और यह संसाधनों से भरा हुआ है। यह हमें चुनौती देता है, लेकिन अगर हम अपने घर की दुनिया से परे सौर मंडल और ब्रह्मांड की ओर देखें, तो ऐसी बहुत सी चीजें हैं जिनका हम उपयोग कर सकते हैं।
चंद्रमा और आस-पास के क्षुद्रग्रहों पर उपलब्ध विशाल भौतिक संसाधन उन चीज़ों के पूरक हो सकते हैं जिन्हें हम पृथ्वी पर पाते हैं। सौर ऊर्जा की एक विशाल आपूर्ति है जिसे अंतरिक्ष से निकाला जा सकता है और दुनिया के लिए बीमित किया जा सकता है ताकि सभी को कामयाब होने के लिए आवश्यक ऊर्जा और बिजली की आपूर्ति करने में मदद मिल सके। हमारे पास अक्सर पृथ्वी से टकरानेवाले दुष्ट क्षुद्रग्रहों को दूर भगाने का कौशल है, और चूँकि हमारे पास अंतरिक्ष कौशल और हमारे ग्रह की रक्षा करने का एक तरीका विकसित करने के लिए दिमाग है, इसलिए हम इन सब के माध्यम से भयानक प्राकृतिक आपदाओं को रोक सकते हैं। इसलिए, यदि हम अपने द्वारा हासिल किए गए कौशल का उपयोग करते हैं, और खुद को इस कार्य में लगाते हैं, तो हमें डायनासोर के रास्ते पर जाने की ज़रूरत नहीं है ।
हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जो हमें इन समस्याओं को हल करने के लिए अपनी जिज्ञासा और बुद्धि का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करती है। इसलिए मैं बहुत आशावादी हूं कि अपने कौशल और हमारे द्वारा विकसित की जाने वाली तकनीक को लागू करके हम इन सभी चुनौतियों से आगे रह सकते हैं। उदाहरण केलिए, उस वैक्सीन को देखिये, जिसे हमने इस वर्ष ही विषाणु से लड़ने के लिए विकसित किया है। यह इस बात का प्रतीक है कि जब हम किसी चीज़ पर अपना दिमाग लगाते हैं, तब हम क्या क्या हासिल कर सकते हैं, चाहे वह किसी पुरुष को चंद्रमा पर रखने की बात हो या पहली महिला को मंगल ग्रह पर भेजने की बात हो। मुझे लगता है कि हम भविष्य के लिए भी अच्छी स्थिति में हैं।
Dr. Thomas D Jones द्वारा शालोम वर्ल्ड कार्यक्रम "ग्लोरी टू गॉड" के लिए दिए गए विशेष साक्षात्कार पर यह लेख आधारित है। एपिसोड देखने के लिए यहां जाएं: shalomworld.org/episode/an-astronauts-faith-dr-thomas-d-jones
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इस बात का व्यावहारिक अनुभव प्राप्त करें कि ईश्वर स्वर्ग की बातों का संचार करने के लिए पृथ्वी की चीज़ों का उपयोग कैसे कर सकते हैं
एक दिन जब मैं कूड़े के डिब्बे लाने के लिए अपने सामने वाले दरवाजे से बाहर निकली, तो मैं डर के मारे वहीं रुक गयी। घर के बगल में नाली के ढक्कन पर साँप की एक ताज़ा खाल पडी हुई थी। मैंने तुरंत अपने पति को बुलाया, क्योंकि मुझे सांपों से बहुत डर लगता है।
जब यह स्पष्ट हो गया कि यह मृत साँप की खाल है, आस-पास कोई जीवित साँप नहीं है, तो मैंने निश्चिंत होकर ईश्वर से पूछा कि वह इस दिन मुझे क्या सबक सिखाने की कोशिश कर रहा है।
पूरा मामला क्या है?
मेरे शिक्षक लोग मुझे ‘गतिज शिक्षार्थी’ कहते हैं। मैं वस्तुओं के साथ घूमने या उनके साथ बातचीत करने से सबसे अच्छा सीख पाती हूं। हाल ही में, मैंने देखा है कि ईश्वर अक्सर भौतिक वस्तुओं के माध्यम से स्वयं को मेरे सामने प्रकट करता है। इस दिव्य शिक्षाशास्त्र का उल्लेख कैथलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा में भी किया गया है।
"ईश्वर अपने वचन के द्वारा सभी चीज़ों की रचना और संरक्षण करता है, वह सृजित वास्तविकताओं के द्वारा स्वयं का प्रमाण मानव को निरंतर प्रदान करता है।" (सी.सी.सी., 54)
उदाहरण के लिए, परमेश्वर ने इब्राहीम के लिए धूआं देने वाला अग्नि पात्र और धधकती मशाल, याकूब के लिए कुश्ती लड़ने वाला स्वर्गदूत, और मूसा के लिए जलती हुई झाड़ी भेजी। परमेश्वर ने नूह के पास जैतून की शाखा और फिर इंद्रधनुष, गियदोन के लिए कुछ ओस, और एलियाह के लिए रोटी और मांस के साथ कौआ भेजा।
इब्राहीम का परमेश्वर, याकूब का परमेश्वर, और मूसा का परमेश्वर हमारा भी परमेश्वर है। समस्त सृष्टि का ईश्वर स्वर्ग की अदृश्य और अमूर्त वास्तविकताओं को संप्रेषित करने के लिए पृथ्वी के दृश्य, मूर्त पदार्थ का उपयोग क्यों नहीं करेगा?
फादर जैक्स फिलिप ने लिखा है, "मांस और रक्त के प्राणियों के रूप में, हमें आध्यात्मिक वास्तविकताओं को प्राप्त करने के लिए भौतिक चीज़ों के समर्थन की आवश्यकता है। ईश्वर इसे जानता है, और यही बात ईश्वर के देह्धारण के पूरे रहस्य को समझाती है" (टाइम फॉर गॉड, पृष्ठ 58)।
ईश्वर हमें लाइसेंस प्लेट या बम्पर स्टिकर के माध्यम से संदेश भेज सकते हैं। पिछले सप्ताह एक ट्रक के पीछे लिखे शब्द, "चलते रहो," मेरे मन में गूंज उठे। उन शब्दों ने मुझे उस धार्मिक अंतर्दृष्टि की याद दिलाई जो मैंने उसी सुबह सुनी थी - कि हम सुसमाचार साझा करते रहने के लिए बुलाये गए हैं ।
ईश्वर हमें सिखाने के लिए प्रकृति का भी उपयोग कर सकता है। हाल ही में पेड़ से चेरी या आलूबालू तोड़ते समय, मुझे याद आया कि फसल की बहुतायत, और मजदूरों की कमी कैसे होती हैं। एक तूफानी दिन मन में विचार ला सकता है कि "बड़ी संख्या में हमारे चारों ओर गवाह विद्यमान हैं" (इब्रानी 12:1)। एक सुंदर पक्षी या भव्य सूर्यास्त हमारी शिथिल आत्मा को स्फूर्ती देने के ईश्वर का तरीका हो सकता है।
जब कभी मैं किसी चीज़ से विशेष रूप से आश्चर्यचकित होती हूं, तो मैं ईश्वर से पूछने की कोशिश करती हूं कि वह मुझे क्या सबक सिखा रहा होगा। उदाहरण के लिए, एक रात को, जब मेरी बेटी सो रही है या नहीं इसकी जांच करने के लिए मैं बिस्तर से उठने के बारे में मन में बहस कर रही थी, माताओं की संरक्षिका संत मोनिका का सम्मान करने वाला एक प्रार्थना कार्ड अचानक मेरे मेज़ से गिर गया। मैं तुरंत उठी और बेटी के पास जाकर उसकी हालचाल लेने लगी। या इसके अलावा, उस समय जब मैं देर रात या भोर के शुरुआती घंटों में उठी और हाल ही में मृत परिवार के सदस्य की तरफ से माला विनती की प्रार्थना करने के लिए बुलायी गयी और आसमान से सबसे शानदार उल्का पिंड को गिरते देखकर मुझे बड़ी खुशी हुई।
कभी-कभी ईश्वर अपना संदेश दूसरे लोगों के माध्यम से भेजता है। आपने कितनी बार किसी ऐसे व्यक्ति से कार्ड, फ़ोन कॉल या टेक्स्ट प्राप्त किया होगा जो आपके लिए आवश्यक प्रोत्साहन था?
एक बार गर्मियों में, जब मैं बाइक पर यात्रा कर रही थी और बाइबल अध्ययन बंद करने की संभावना पर विचार कर रही थी, तो मेरी मुलाकात एक मित्र से हुई। अचानक, उसने यह तथ्य सामने रखा कि उसने अपना बाइबल अध्ययन जारी रखने की योजना बनाई है क्योंकि एक बार जब आप कुछ बंद कर देते हैं, तो उसे दोबारा शुरू करना बहुत कठिन होता है।
ईश्वर हमें अनुशासित करने या अपने शिष्यत्व में हमारी प्रगति हेतु हमें मदद करने के लिए ठोस वस्तुओं का भी उपयोग कर सकता है।
एक सुबह मेरी नज़र तीन बड़ी कीलों पर पड़ी। वे तीनों एक समान थे, लेकिन मैंने उन्हें तीन अलग-अलग स्थानों पर पाया था: एक गैस स्टेशन पर, एक मेरे घर के अन्दर की पगडण्डी पर, और एक सड़क पर। तीसरी कील देखने के बाद मैं रुकी और मैंने ईश्वर से पूछा कि वह मुझे क्या बताना चाह रहा था और मुझे एहसास हुआ कि मुझे अपने जीवन में किसी बात को लेकर पश्चाताप की आवश्यकता है।
मैं उस समय को कभी नहीं भूलूंगी जब मैं बाहर निकली और तुरंत एक मक्खी मेरी आंख में घुस गई। मै चाहती हूँ कि उस दिन मैंने जो सबक सीखी उसकी कल्पना आप स्वयं करें ।
सीखने की शैली
ईश्वर हमें हर समय सिखाता है, और वह सभी प्रकार के शिक्षार्थियों को समायोजित करता है। जो चीज़ एक व्यक्ति के लिए काम करती है वह दूसरे के लिए काम नहीं कर सकती। कुछ लोग ईश्वर की आवाज़ को स्पष्ट रूप से प्रार्थना सभा में सुनेंगे, अन्य लोग परम प्रसाद की आराधना में सुनेंगे, कोई और बाइबिल पढ़ते समय सुनेंगे, या अपनी निजी प्रार्थना के समय सुनेंगे। हालाँकि, ईश्वर हमेशा काम पर रहता है और हमारे विचारों, भावनाओं, छवियों, पवित्र ग्रन्थ के वाक्यांशों से, लोगों से, कल्पना से, ज्ञान के शब्दों से, संगीत से और हमारे दिन की प्रत्येक घटना के माध्यम से हमें लगातार सिखाता रहता है।
जब ईश्वर भौतिक वस्तुओं के माध्यम से सम्प्रेषण करता है तो व्यक्तिगत रूप से मैं इसकी सराहना करती हूँ, क्योंकि मैं इस तरह से शिक्षा को बेहतर ढंग से याद रखती हूँ। आप सोच रहे होंगे कि मैंने साँप की खाल से क्या सीखा। इस से धर्मग्रंथ का निम्नलिखित वाक्यांश ध्यान में आया: “लोग पुरानी मशकों में नई अंगूरी को नहीं भरते। नहीं तो मशकें फट जाती हैं, अंगूरी बह जाती है, और मशकें बर्बाद हो जाती हैं। लोग नयी अंगूरी नयी मशकों में भरते हैं, इस तरह दोनों ही बची रहती हैं” (मत्ती 9:17)।
पवित्र आत्मा, आज तू हमें जो भी सबक सिखा रहा है, उसके बारे में अधिक जागरूक होने में हमारी मदद कर।
नवम्बर 03, 2023
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नवम्बर 03, 2023
मेरे सामने एक पुरुष का सिर और कंधा दिखाई दे रहा था, और इस पुरुष का बाल कन्धों तक लटका हुआ था और उसके माथे के ऊपर कुछ लकीरें थीं |
शाम हो चुकी थी| मैं उस तात्कालिक प्रार्थनालय में बैठी थी जिसे हमने वार्षिक धर्मप्रान्तीय युवा आत्मिक साधना के लिए खड़ा किया था। मैं थक गयी थी। सप्ताह के अंत के तीन दिवसीय कार्यक्रम के आयोजन से, युवा सेवकाई में कार्यकर्ता के रूप में अपनी जिम्मेदारियों से; और इसके अलावा मेरी गर्भावस्था की पहली तिमाही के कारण मैं पूरी तरह थक चुकी थी।
मैं परम प्रसाद की आराधना में यह घंटा बिताने केलिए स्वयं आगे आयी थी। चौबीस घंटे की आराधना का अवसर साधना में भाग लेने वालों के लिए एक बड़ा आकर्षण था। युवाओं को परमेश्वर के साथ समय बिताते हुए देखना मेरे लिए भी एक गहन अनुभव था।
लेकिन मैं थक चुकी थी| मैं जानती थी कि मुझे यहां समय बिताना चाहिए और फिर भी, मुझे लगा कि समय धीरे धीरे सरकता जा रहा है । मैं अपने विश्वास की कमी के लिए खुद को डांटती रही । यहाँ मैं येशु की उपस्थिति में थी, और मैं इतनी थक गयी थी कि अपनी थकावट के आलावा मुझे और कुछ नहीं सूझ रही थी| मैं वहां बिना सोची समझी बैठी थी और मुझे आश्चर्य होने लगा कि क्या मेरा विश्वास बौद्धिक स्तर पर ही सीमित है या उससे अधिक कुछ है । अर्थात विश्वास की बातें मैं केवल दिमाग से जानती थी दिल से नहीं |
मेरा जीवन एक नए मोड़ पर
बीते समय को देखें तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए थी। मैं हमेशा से कुछ हद तक अकादमिक विचारधारा वाली रही हूं-मुझे सीखना पसंद है। जीवन के महत्वपूर्ण और गहन विषयों को पढ़ने और उन पर चर्चा करने से मेरी आत्मा को प्रेरणा मिलती है । दूसरों के विचारों और राय को सुनने से जिस दुनिया में हम रहते हैं, उस दुनिया पर विचार करने या उस पर पुनर्विचार करने का मुझे अवसर मिलता है।
सीखने की इस जूनून के चलते ही मैं कैथलिक आस्था में गहराई से डूबती चली गयी। मैं इसे 'वापसी' कहने में संकोच करती हूं क्योंकि मैंने अपनीआस्था का अभ्यास कभी नहीं छोड़ा था, लेकिन मैं निश्चित रूप से सतही स्तर की कैथलिक थी।
हाई स्कूल की पढ़ाई के उपरांत कॉलेज जीवन के मेरे पहले वर्ष के दौरान, मेरे जीवन की दिशा अचानक बदल गयी। मेरे बचपन की पल्ली में एक धर्म समाज की साध्वी लोग आयीं और धार्मिक शिक्षा का कार्य उन लोगों ने संभाला। कैथलिक शिक्षा और सुसमाचार-प्रचार के लिए उनका उत्साह अद्भुत था - उनके उपदेशों के कारण और उनके साथ नियमित बातचीत के कारण एक पक्का कैथलिक होने का मेरा दंभ टूट गया।
जल्द ही मैं कैथलिक धर्म की एक उत्साही और जिज्ञासु छात्रा बन गयी। जितना अधिक मैंने सीखा उतना ही अधिक मुझे एहसास हुआ कि मुझे और सीखने की आवश्यकता है। इस समझ ने मुझे नम्र और ऊर्जावान व्यक्ति बनाया।
मैंने सोमवार से लेकर शनिवार तक मिस्सा बलिदान में भाग लिया। सप्ताह भर पवित्र संस्कार की आराधना और प्रार्थना सभाएं मेरे रोजमर्रा के कार्यक्रम में शामिल हो गयीं और मैंने आत्मिक साधना में भी भाग लेना शुरू किया। इन सबकी सुखद परिसमाप्ति अंतर्राष्ट्रीय विश्व युवा दिवस में मेरी भागीदारी से हुई। मैंने पुरोहिताभिषेक की धर्मविधि, तेलों के अभिषेक का पवित्र मिस्सा आदि समारोहों में भाग लेकर उन सबका आनंद लिया। अधिकांशतः मैं स्वयं ही इनमें भाग लेती थी।
अप्राप्त कड़ी ?
मैंने अपने विश्वास के बारे में ज्ञान बढ़ाया| पत्रकारिता और युवा सेवकाई कार्य के माध्यम से मैंने अपनी बुलाहट को समझा । मैंने विश्वविद्यालय की डिग्रियाँ बदलीं, उस शख्स से मिली जो अब मेरे पति हैं , और मातृत्व की नयी बुलाहट की शुरुआत की|
और फिर भी, विश्वास में डुबकी लेने के पांच साल बाद भी, मेरा विश्वास व्यावहारिक कम बल्कि अकादमिक या बौद्धिक अधिक था। जो ज्ञान मैंने अर्जित किया था वह अभी तक मेरी आत्मा में उतरना शुरू नहीं हुआ था। मैंने वही किया जिसे दुनिया की नज़र में पूरा करने की आवश्यकता थी, लेकिन मैंने अपने हृदय में परमेश्वर के प्रति उस अगाध प्रेम को 'महसूस' नहीं किया।
मै इस आस्था सम्बन्धी कार्य को बाकी कार्यों के समान बस निभा रही थी। इस थकावट से तंग आकर फिर मैंने वही किया जो मुझे शुरू से ही करना चाहिए था। मैंने येशु से मदद मांगी। मैंने येशु से प्रार्थना की कि वह मेरे विश्वास को, और उसके प्रति मेरे प्यार को वास्तविक और मूर्तरूप देने में मदद करे।
परछाइयाँ बढ़ती गईं, और पवित्र संस्कार की सोने से अलंकृत प्रदर्शिका के दोनों ओर की मोमबत्तियाँ टिमटिमाने लगीं। मैं अपने प्रभु की ओर निहारती रही, अपने मन को केवल उसी पर केंद्रित रखने की कोशिश करती रही।
उसकी उपस्थिति में प्राप्त प्रेम और आनंद
पवित्र संस्कार पर छा रही परछाइयों से उसकी दाहिनी ओर एक अद्भुत तस्वीर उभरती गयी जो हमारे प्रभु येशु ख्रीस्त के समान प्रतीत हो रही थी। यह उन पुराने विक्टोरियन प्रोफ़ाइल चित्रों जैसा था, जो परछाई में प्रभु के चेहरे की छवि जैसी स्पष्ट तस्वीर थी।
मेरे सामने एक पुरुष का सिर और कंधा दिखाई दे रहा था, उसका सिर झुका हुआ था और वह बाईं ओर देख रहा था। पृष्ठभूमि की कुछ परछाइयों ने मिलकर अस्पष्ट आकृतियाँ बना ली थीं और इसमें कोई संदेह नहीं था कि इस पुरुष का बाल कन्धों तक लटका हुआ था और उसके माथे के ऊपर कुछ लकीरें थीं।
यह वही था। क्रूस पर लटकाया गया प्रभु। वहाँ, पवित्र संस्कार की प्रदर्शिका पर, येशु की वास्तविक उपस्थिति को अतिव्यापित करते हुए, मेरे उद्धारकर्ता की छायादार रूपरेखा थी, जो क्रूस पर मेरे लिए अपना प्यार बरसा रहा था। और मैं उसके प्रेम और आनंद में सराबोर थी |
प्रेम में सुस्थिर
मैं इतनी अभिभूत और अचंभित हो गयी थी कि मैंने प्रभु के साथ निर्धारित समय से अधिक समय बिताया। मेरी थकान दूर हो गई और मैं प्रभु की प्रेममय उपस्थिति का आनंद लेना चाहती थी। मैं कभी भी येशु से उतना प्यार नहीं कर सकती जितना वह मुझसे प्यार करता है, लेकिन मैं नहीं चाहती कि वह कभी भी मेरे प्यार पर संदेह करे।
पंद्रह साल पहले की उस शाम, प्रभु येशु ने हमारे विश्वास पर एक महत्वपूर्ण सच्चाई प्रदर्शित की थी और वह यह थी कि यदि हमारा विश्वास उसके प्रेम में सुरक्षित रूप से सुस्थिर नहीं है तो वह फलदायी नहीं है।
कुछ बातें जो सही हैं उन्हें वैसा करना सही है, लेकिन उन्हीं बातों को परमेश्वर के प्रेम के लिए करना इस संदर्भ में और भी सार्थक हो जाता है |
नवम्बर 02, 2023
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नवम्बर 02, 2023
हम में से कई लोग लूकस के सुसमाचार (लूकस 18:9-14) के दृष्टांत से परिचित हैं जो फरीसी और चुंगी लेनेवाले की प्रार्थनाओं को नाटकीय और एक दूसरे से विपरीत रूप से प्रस्तुत करता है। जब हम उनकी प्रार्थनाओं की तुलना करते हैं, तो शायद हम अपनी पहचान फरीसी की प्रार्थना के साथ कर सकते हैं जो ईश्वर को धन्यवाद देता है कि वह उस चुंगी लेने वाले की तरह पापी नहीं था। उस प्रार्थना में निहित आत्मतुष्टि के भाव तथा श्रेष्ठता के भाव को पहचाने बिना ही हमने स्वयं को उदार समझते हुए ऐसी प्रार्थना की होगी। इसके विपरीत येशु चुंगी लेने वाले की विनम्र प्रार्थना की प्रशंसा करते हैं जिसकी विनम्रता और ईमानदारी उसे न्याय के साथ सानंद घर जाने की अनुमति देती है।
यदि हम चुंगी लेने वाले का रवैया अपनाएंगे, तो हम अन्य लोगों के साथ अन्याय नहीं करेंगे। यदि हम ईमानदारी से स्वयं को पापी के रूप में देखते हैं, तो हम दूसरे पर दोष कैसे लगा सकते हैं? दूसरों को दोष देना या उनकी अंतिम नियति का आकलन करना श्रेष्ठता के दृष्टिकोण यानि अहंकार की भावना से आता है और हम कह सकते हैं कि यह अहंकार ही पहला पाप और सब से बड़ा पाप था। हमारा प्रभु अंतिम क्षण तक दया का द्वार हमेशा खुला रखता है।
जैसे-जैसे हम अपना दिन गुजारते हैं, क्या हम यह विचार करना बंद कर देते हैं कि कितनी बार हम बाहरी धारणाओं के आधार पर दूसरों का मूल्यांकन करते हैं, जब कि प्रभु उनके दिलों के भीतर देखते हैं। क्या आप कभी समाचार देखते या पढ़ते समय स्वयं को दूसरों की निंदा करते हुए पाते हैं? कितनी बार किसी व्यक्ति की जाति, धर्म, यौन रुझान, या कोई अन्य गुण जो हम से भिन्न होता है, हमें उस पर दोष लगाने या नकारात्मक निर्णय देने का कारण बनता है?
दुर्भाग्य की बात है कि हम में से बहुत से लोग अपने कार्यों और प्रेरणाओं की बारीकी से जांच करने में विफल रहते हुए दूसरों को आंकने की गंभीरता का एहसास नहीं करते हैं। सुसमाचार में येशु बहिष्कृतों और पापियों को गले लगाते हैं। वह उन लोगों के प्रति प्रेम और स्वीकृति दिखाता है जिन्हें स्व-धर्मी फरीसियों और शास्त्रियों ने अस्वीकार कर दिया था। जब भी हम उन लोगों के साथ व्यवहार कर रहे हैं जो हम से अलग हैं या जिनके कार्यों से हमें ठेस पहुँचती है, तब पापियों के प्रति येशु की करुणा हमारे दिलों में भर जानी चाहिए।
जब हम विनम्रता पूर्वक महसूस करते हैं कि हम वास्तव में पापी हैं, तो हम खुद को ईश्वर की दया पर छोड़ देंगे और महसूस करेंगे कि कलवारी पर येशु ने जो खून बहाया था वह हमारे लिए, हमारे दुश्मनों केलिए और उन लोगों केलिए बहाया गया था जिनके लिए हम न्याय करने के इच्छुक हैं। वे भी बहुमूल्य आत्माएँ हैं जिन्हें येशु मुक्त करना चाहते हैं।
लोगों केलिए जब हम प्रार्थना करते हैं, तो आइए सब से पहले उनके प्रति अपना अभिवृति देखें। क्या हमारा रवैया करुणामय है या पूरी तरह से आलोचनात्मक है? प्रेमपूर्ण हृदय से निकली प्रार्थना न्याय से उत्पन्न प्रार्थना से अधिक लाभकर होगी।
आइए हम प्रभु से उन पलों केलिए क्षमा मांगें, जब हम ने दूसरों के साथ अन्याय किया था और उस से विनती करें कि वह हमें अपने जैसा दयालु हृदय प्रदान करें।