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दिसम्बर 03, 2022 184 0 Stephen Santos, USA
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जब परीक्षाएं और मुसीबतें आते हैं

क्या आप अपने जीवन में मुसीबतों और संघर्षों से परेशान हैं? उन संघर्षों को आशीर्वाद में बदलने के लिए आज ही अपनी सोच बदलें!

क्या याकूब की पुस्तक हमें परीक्षाओं में आनन्दित होने के लिए कहती है? लेकिन क्या यह संभव है, खासकर जब आपको लगता है कि आप एक भंवर में फंस गए हैं और आप के लिए सबसे अच्छा यही होगा कि आप फिर से डूबने से पहले बस एक और सांस लें? क्या यह तीन साल की इस महामारी के दौरान संभव है, क्योंकि इस महामारी ने हममें से कई लोगों को उन तरीकों से चुनौती दी है जिनकी हमने कभी कल्पना भी नहीं की थी?

पिछले कुछ वर्षों के दौरान ऐसे दिन आए जब मुझे ऐसा लगा जैसे मैं किसी फिल्म को देख रहा हूं। फिल्में हमें बहुत सी चीजें सिखा सकती हैं और वे बेहतरीन फिल्में जो आपको आत्मविश्वास से भरी मुस्कान के साथ हंसाती हैं, उनका अंत अच्छा नहीं होता। उनमें एक अंतर्निहित सच्चाई होती है जो पूरी कहानी में रहती है और वह सच्चाई चढ़ते चढ़ते उत्कर्ष में पहुँच जाती है। इस तरह की फिल्में दर्शक के अंदर एक अकथनीय खींच या टीस पैदा करती हैं जो चिल्लाती है, ‘आप जो देख रहे हैं उससे कहीं और अधिक बातें छिपी है, एक गहरा सच छिपा हुआ है

जब मैं पुराने नियम में अय्यूब की पुस्तक पढ़ता हूं तो मुझे यही लगता है, हालांकि वह कोई फिल्म नहीं है। अय्यूब की परीक्षा हुई, उसने सब कुछ खो दिया और बाद में पहले की तुलना में उसे अधिक वापस मिल गया,’ अगर यह कहानी सच है, तो मैं यही कहूंगा, “नहीं, धन्यवाद, मैं इतनी सारी परीक्षाओं से गुज़रना नहीं चाहता, बस मेरे पास पहले से जो कुछ है बस उतना ही काफी है।”

लेकिन अय्यूब की सभी परीक्षाओं और क्लेशों के बीच कुछ अदृश्य बातें हैं। अय्यूब की कहानी में चल रही यह अदृश्य बात हम सभी के लिए एक शक्तिशाली संसाधन हो सकती है क्योंकि हम कोविड के घटने के दिन देख रहे हैं और जीवन की अन्य चुनौतियों का अनुभव कर रहे हैं।

सब कुछ खो देना

अय्यूब की किताब के पहले वचन में हम देखते हैं कि अय्यूब निर्दोष और निष्कपट था, ईश्वर पर श्रद्धा रखता था और बुराई से दूर रहता था।अय्यूब एक अच्छा आदमी था, एक अनुकरणीय व्यक्ति था, और यदि किसी को विपत्ति से बचाया जाना है, तो वह यह अय्यूब ही होना चाहिए। मैं उम्मीद करता था कि चूँकि मैं सही काम कर रहा था, चूँकि मैंने अपना जीवन ईश्वर को समर्पित कर दिया था और उसका अनुसरण करना चाहता था, इसलिए कम से कम कुछ हद तक, मेरे जीवन की राह सुगम और आसान होगी। लेकिन मेरे जीवन के बहुत से अनुभव ऐसे हैं जिस के कारण मेरे दिमाग से इस तरह के विचार को मिटाने में वे अनुभव कामयाब हुए हैं। अय्यूब हमें याद दिलाता है कि परमेश्वर किसी के लिए भी आसान जीवन की गारंटी नहीं देता, उसके दोस्तों को भी नहीं। ईश्वर हमें बस एक बात की गारंटी देता है कि संघर्ष में वह हमारे साथ चलेगा!

अय्यूब सब कुछ खो देता है, और मेरा मतलब है – सब कुछ। अंत में, उसे चर्म रोग होता है, जो कुष्ठ रोग या एक्जिमा जैसा बन जाता है। इन सबके बावजूद वह कभी भी ईश्वर को शाप नहीं देता। ध्यान रहें, अय्यूब के पास प्रेरणा पाने के लिए कोई बाइबल नहीं है। उसके पास केवल वे कहानियां हैं, जो पीढ़ियों से चली आ रही हैं कि परमेश्वर कौन है और परमेश्वर ने कैसे काम किया इत्यादि। किसी बिंदु पर, अय्यूब ने एक निर्णय लिया – वही निर्णय जो हम में से प्रत्येक को लेना चाहिए: क्या हम जिस चीज़ को नहीं देख पाते हैं उस पर विश्वास कर सकते हैं, जिसे हम प्राप्त करते हुए हम देख नहीं पा रहे हैं क्या उसे अस्वीकार नहीं करने का निर्णय ले सकते हैं?

जबरदस्त पीड़ा और नुकसान को सहने के बाद, अय्यूब सोचता है “मेरा जन्म न हुआ होता तो अच्छा होता।“ यह कोई चंचल किशोर का नखरा नहीं था, जैसे किशोर प्रेमी लोग आपसी इश्क के झगड़े और ब्रेक-अप के बाद नखरेपन के साथ सोचते हैं। अय्यूब को अपनी सहन शक्ति के चरम बिंदु के आगे तक धकेल दिया गया था। उसकी सारी दौलत, उसके सारे जानवर, उसकी ज़मीन, इमारतें, नौकर, और सबसे दुखद, उसकी संतान मर गए। और घाव में नमक मलने जैसा, अब उसे चर्म रोग भी हो गया, जो उसे लगातार ढोल की थाप के समान उसके नुकसानों की याद दिलाता है।

सही समय पर

इस बिंदु पर (अध्याय 38), परमेश्वर अंततः अय्यूब को सुधारता है। आप उम्मीद करते होंगे कि सांत्वना देने वाले परमेश्वर के लिए यह एक अच्छा समय होता कि वह अय्यूब को अपने आलिंगन में खींच लेता, या योद्धा राजा की तरह ईश्वर अय्यूब के दुश्मन शैतान पर लात मार कर उसे काबू में लाता। इसके बजाय, परमेश्वर सुधार की बातें कहता है। हमारे लिए इसे समझना मुश्किल हो सकता है, लेकिन अय्यूब को किसी अन्य प्रकार की प्रतिक्रिया की आवश्यकता नहीं थी, उसे सबसे से अधिक परमेश्वर से उस विशेष प्रतिक्रिया की आवश्यकता थी।

मैं इसे आत्म-विश्वास के साथ कैसे कह सकता हूं? क्योंकि ईश्वर हमेशा जानता है कि हमें क्या चाहिए। ईश्वर हमें वह देता है जो हमें विकास, पूर्णता और मुक्ति की ओर ले जाता है – बर्शते हम ऐसा होने देते हैं। हमारा काम यह तय करना है कि क्या हम इस बात पर भरोसा करते हैं कि परमेश्वर जो कर रहा है वह हमारी अपनी भलाई के लिए है।

अय्यूब की कहानी में अंतर्निहित सुंदर सत्य अंत में अध्याय 42 की शुरुआत में सामने आता है, जहां अय्यूब कबूल करता है, “मैंने दूसरों से तेरी चर्चा सुनी थी अब मैं ने तुझे अपनी आँखों से देखा है। इसलिए मैं ने जो कुछ कहा, उस मैं वापस लेता हूँ, अब धूल और राख में बैठकर रोते हुए पश्चात्ताप कर रहा हूँ।”

इस एकल वाक्य में हम अय्यूब की यात्रा की जड़ को पाते हैं। जो हम देख सकते थे उससे कहीं अधिक भाव उसमें है, एक गहरा सत्य जिसे हम समझ सकते थे लेकिन उसका नामकरण नहीं कर सकते, वह अब स्पष्ट हो गया है।

अब तक, अय्यूब ने दूसरों से परमेश्वर के बारे में सुना है। परमेश्वर के बारे में उनका ज्ञान “कही सुनी” बातों के आधार पर था। लेकिन जिस तबाही से वह गुजरा है वह एक ऐसा मार्ग बन गया है जो उसे एकमात्र सच्चे ईश्वर को सीधे अपनी आँखों से देखने की अनुमति देता है।

यदि परमेश्वर आपसे आमने-सामने मिलना चाहता है, यदि वह आपकी कल्पना से अधिक आपके करीब होना चाहता है, तो ऐसा होने के लिए आप क्या क्या परीक्षाएं और मुसीबतें सहने को तैयार होंगे? क्या आप महामारी के इन पिछले तीन वर्षों को परमेश्वर की आराधना की भेंट के रूप में देखने का निर्णय ले सकते हैं? क्या आप अपने जीवन में सभी मुसीबतों, सभी नुकसानों और कठिनाइयों को देख पाते हैं, और उनके माध्यम से काम कर रहे परमेश्वर की रहस्यमय इच्छा को समझ सकते हैं?

अभी एक क्षण लें और अपने जीवन की परीक्षाओं और मुसीबतों को परमेश्वर को आराधना के रूप में अर्पित करें, और फिर उस शांति का अनुभव करें जो शीघ्रता से आपके पास आयेगी!

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Stephen Santos

Stephen Santos is an author, songwriter, worship leader and speaker. He lives with his family in South Carolina, USA.

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