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यह है आपके साहस को परखने का पैमाना…
कैलिफ़ोर्निया के ऊंचे रेगिस्तान में छिपे एक मठ में भर्ती लेने से पूर्व, मैं स्किड रो की सीमा, लॉस एंजिल्स शहर के मुख्य मार्ग पर पांचवीं गली में रहता था। लॉस एंजिल्स शहर की एक अप्रिय खासियत यह है कि यहाँ बड़े पैमाने पर लोग बेघर हैं। अपनी बदकिस्मती से भागकर बहुत से लोग दूर-दूर से आते हैं। यहाँ सर्दियां कम प्रतिकूल होती हैं, इसलिए सड़कों पर घूम फिरकर ज़िन्दगी बसर करने के लिए और भीख मांगकर अपनी परिस्थितियों से ऊपर उठने के लिए लोग अक्सर ग्रे हाउंड बस के एक तरफ़ा टिकट के माध्यम से यहाँ पहुँचते हैं। इन व्यक्तियों के दैनिक जीवन की निराशा को देखे बिना शहर के कुछ हिस्सों को पार करना असंभव है। लॉस एंजिल्स शहर में बेघरों की संख्या बड़ी होने के कारण आर्थिक और सामाजिक तौर पर अधिक भाग्यशाली लोगों के अन्दर ऐसी भावना रहती है कि वे कभी भी इस समस्या को दूर नहीं कर सकते हैं, इसलिए वे शहर के 41,290 की बेघर आबादी के अस्तित्व को ही नकारने की रणनीति को अपनाकर अपनी आंखों के संपर्क से उनसे बचने की कोशिश करते हैं।
एक दिन मैं ग्रैंड सेंट्रल मार्केट में एक दोस्त के साथ दोपहर का भोजन कर रहा था। हमारे भोजन के दौरान उन्होंने अप्रत्याशित रूप से मुझे आलिशान और विलासी बोनावेंचर होटल के एक कमरे की चाबी सौंप दी, और मुझसे बोला कि यह कमरा अगले कुछ हफ्तों तक आनंद लेने के लिए तुम्हारा होगा! बोनावेंचर लॉस एंजिल्स का सबसे बड़ा होटल था, जिसमे एक आकाशकीय रेस्तरां था जो उस होटल के सबसे ऊपरी मंजिल पर घूमता रहता था। यह मेरे कार्य स्थल के स्टूडियो अपार्टमेंट से केवल दस मिनट की पैदल की दूरी पर था। मुझे एक फैंसी होटल के कमरे की कोई ज़रूरत नहीं थी, लेकिन मैं जानता था कि शहर में ऐसे 41,290 व्यक्ति हैं जिनको रात बिताने के लिए बिस्तर की ज़रूरत थी। मेरी एकमात्र दुविधा यह थी कि मेरे लिए दिए जा रहे उस कमरे में आश्रय प्राप्त करने वाले एकल व्यक्ति का चयन मुझे कैसे करना चाहिए? मैं सुसमाचार के उस सेवक की तरह महसूस कर रहा था, जिसे उसके स्वामी ने “शीघ्र ही नगर के बाज़ारों और गलियों में जाकर कंगालों, लूलों, अंधों और लंगड़ों को यहाँ बुला” लाने के लिए नियुक्त किया था (लूकस 14:21)।
जब मैं उस दिन की ड्यूटी करके निकला था, तो आधी रात बीत चुकी थी। मेट्रो स्टेशन के बाहर खाली सड़क पर स्केटिंग करते हुए निकलते ही मैंने अपना “शिकार” शुरू किया। मैं ईश्वर से प्रार्थना कर रहा था कि वह जिस व्यक्ति को इस सौभाग्य का आशीर्वाद देना चाहता है उस व्यक्ति को चुनकर मुझे दिखावे। गली-मोहल्लों में झाँकते हुए, मैं अपने स्केटबोर्ड पर शहर में घूमता रहा, और कोशिश कर रहा था कि लोग मुझे किसी रहस्यमय मिशन पर निकला आदमी की तरह नहीं पहचानें । मैं लॉस एंजिल्स कैफे की ओर रवाना हुआ, मुझे विश्वास था कि मुझे वहां कोई ज़रूरतमंद मिल जाएगा। निश्चित रूप से मैंने दुकान के सामने फुटपाथ पर बैठे एक आदमी को देखा। वह बूढ़ा और दुबला पतला था, दाग से सना हुआ सफेद टी-शर्ट के अन्दर उनके कन्धों की हड्डियां साफ़ झलक रही थी। मैं कुछ फीट दूर बैठ गया। “नमस्कार”, मैंने उनका अभिवादन किया। उन्होंने जवाब दिया: “हाय”। मैंने पूछ लिया: “सर, क्या आप आज रात सोने के लिए जगह ढूंढ रहे हैं?” उन्होंने पूछा: “क्या?” मैंने दोहराया: “क्या आप सोने के लिए जगह ढूंढ रहे हैं?” अचानक वह चिढ़ गया और पूछने लगे: “क्या तुम मेरा मज़ाक उड़ाने की कोशिश कर रहे हो? मैं यहाँ जैसा हूँ, वैसा ठीक हूं। मुझे अकेला छोड़ दो!”
इस जवाब से मैं हतप्रभ था। उन्हें अपमानित करने के लिए खेद महसूस करते हुए, मैंने माफी मांगी और निराश होकर वहां से खिसक गया। यह मिशन मेरी अपेक्षा से कहीं अधिक कठिन होगा। आखिरकार, यह आधी रात के बाद का वक्त था, और मैं इस मिशन से पूरी तरह से अजनबी था। शायद मैं असंभव जैसी बात को संभव होने का दावा कर रहा था। लेकिन, मैंने सोचा कि हालात मेरे पक्ष में है। मेरा प्रस्ताव ठुकराया जा सकता है, ठीक उसी तरह जैसे उस महान भोज के दृष्टांत में नौकर के साथ हुआ था। लेकिन देर-सबेर कोई न कोई मेरे निमंत्रण को स्वीकार करने के लिए बाध्य होगा। एकमात्र सवाल यह था कि इसमें कितना समय लगेगा? पहले ही देर हो चुकी थी, और मैं सुबह से आधी रात के काम के बाद थक गया था। मैंने सोचा कि शायद मुझे कल फिर से कोशिश करनी चाहिए।
स्केटिंग और प्रार्थना करते हुए, मैंने विभिन्न शरणार्थियों को निहारते हुए, उस कंक्रीट के जंगलनुमा शहर से अपने रास्ते पर आगे बढ़ रहा था। रास्ते में एक नुक्कड़ पर व्हीलचेयर में अकेले बैठे हुए एक आदमी की छाया आकृति मैंने देखी। वह आधा सोया हुआ और आधा जागता हुआ दिखाई दिया, जैसा कि सड़कों पर रहनेवाले कई लोग करते हैं। उसे परेशान करने में मैं हिचकिचा रहा था, इसलिए मैं उसके पास पहुँच कर सावधानी से तब तक खडा रहा जब तक उसने अपनी थकी हुई आँखों से मेरी ओर नहीं देखा। “क्षमा करें सर,” मैंने कहा, “मेरे पास बिस्तर के साथ एक कमरा उपलब्ध है। मुझे पता है कि आप मुझे नहीं जानते हैं, लेकिन अगर आप मुझ पर भरोसा करते हैं तो मैं आपको वहां ले जा सकता हूं।” बिना भौंह उठाए उसने ‘हाँ’ करते हुए अपना सिर हिलाया। “बहुत अच्छा। आपका नाम क्या है?” मैंने पूछ लिया। उसने जवाब दिया, “जेम्स” ।
मैंने जेम्स को मेरा स्केटबोर्ड पकड़ने के लिए कहा, और उसे उसकी व्हीलचेयर में धकेलते हुए साथ साथ हमने बोनावेंचर के लिए प्रस्थान कर लिया। जैसे-जैसे हमारा परिवेश सभ्य होता गया, उसके चेहरे पर सतर्कता के भाव आने लगे। उसे अंधेरे के बीच में से धकेलते हुए, मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था कि उसकी पीठ रेत से ढका हुआ है। तब मुझे एहसास हुआ कि रेत आगे पीछे बह रही थी। लेकिन प्रकाश में आते ही मैं ने पाया कि यह रेत बिल्कुल नहीं था, बल्कि हजारों छोटे छोटे कीड़े थे।
पञ्च सितारे होटल लॉबी में प्रवेश करते हुए, सारे के सारे लोग जेम्स और मुझे स्तब्ध और सदमे के भाव से देख रहे थे। उन सब से नज़रें मिलाने से बचते हुए, हम एक आलीशान फव्वारे के बगल से गुजरे, एक शीशे की लिफ्ट में सवार हुए, और कमरे में पहुँचे। जेम्स ने पूछा कि क्या वह स्नान कर सकता है। मैंने उसे बाथरूम के अंदर ले जाकर स्नान करने में उसकी मदद की। एक बार सफाई होने के बाद, जेम्स आराम से सफेद चादरों के बीच लेट गया और तुरंत सो गया। उस रात जेम्स ने मुझे एक महत्वपूर्ण सबक सिखाया: परमेश्वर का निमंत्रण अक्सर अप्रत्याशित रूप से आता है , और वह निमंत्रण हमसे विश्वास के एक ऐसा अनुपात की मांग करता है जो आमतौर पर हमें असहज करता है। कभी-कभी हम उसके निमंत्रण को स्वीकार करने के लिए तैयार होने के पहले, हमें स्वयं को ऐसी स्थितियों में ढालना चाहिए जिसमें खोने के लिए कुछ भी न हो। और अक्सर, दूसरों के लिए आशीषें लाने में ही हम वास्तव में आशीष पाते हैं।
Brother John Baptist Santa Ana, O.S.B. कैलिफ़ोर्निया के वल्येर्मो में सेंट एंड्रयूज में मठवासी हैं। वर्तमान में वे वाशिंगटन डीसी में डोमिनिकन हाउस ऑफ स्टडीज से ईशशास्त्र में एम.ए. कर रहे हैं। वे मार्शल आर्ट, सर्फिंग और ड्राइंग के शौकीन हैं।
जब संघर्ष और दर्द रहता है, आगे बढ़ने के लिए हमें क्या प्रेरित करता है? जब डॉक्टर मेरे 11-वर्षीय बेटे की मांसपेशियों की ताकत का परीक्षण कर रही थी, तब वह धैर्यपूर्वक जांच की मेज पर बैठा रहा। पिछले आठ वर्षों में, मैंने उस डॉक्टर को मेरे बेटे की त्वचा की जाँच करती और उसकी मांसपेशियों की ताकत का परीक्षण करती हुई देखा था, और हर बार, मेरे अंदर एक घबराहट पैदा हो जाती थी। अपनी जांच समाप्त करने के बाद वे पीछे हटी, मेरे बेटे का सामना किया, और धीरे से वे शब्द बोले जिनसे मैं डरती थी: “तुम्हारी मांसपेशियां कमजोरी के लक्षण दिखा रही हैं। मेरा मानना है कि बीमारी फिर से सक्रिय हो गयी है।” मेरे बेटे ने मेरी तरफ देखा और फिर अपना सिर लटका लिया। मेरा पेट मरोड़ गया। डॉक्टर ने अपना हाथ मेरे बेटे के कंधों पर रख दिया। “यहीं रुको, मैं जानती हूं कि पिछले कुछ वर्ष तुम्हारे लिए बहुत दर्दनाक रहे हैं, लेकिन हम उन पर पहले से कामयाब कर चुके हैं, और हम इस पर फिर से कामयाबी पा सकते हैं। धीरे-धीरे साँस छोड़ती हुई, मैं अपने आप को स्थिर करने के लिए बगल वाली डेस्क पर झुक गयी। डॉक्टर ने पीछे मुड़कर मेरी ओर देखा. "आप ठीक हैं?" "हाँ, मेरा बच्चा बड़ी अजीब स्थिति में है, बस इतना ही," मैंने कहा। "क्या आप बैठना नहीं चाहती? एक रंगीन मुस्कान के साथ, मैं बुदबुदायी, "नहीं, मैं ठीक हूँ, धन्यवाद।" वह वापस मेरे बेटे की ओर मुड़ी. "हम एक नई चिकित्सा आज़माने जा रहे हैं।" "क्यों? पुरानी चिकित्सा इस केलिए अच्छी थी," मैंने कहा। "जी हाँ, अच्छी थी, लेकिन स्टेरॉयड की भारी खुराक शरीर पर कठोर काम करती है।" मैंने सोचा, जब मैं वास्तव में उत्तर सुनना ही नहीं चाहती थी, तो मैंने प्रश्न क्यों पूछे। "मुझे लगता है, अब एक अलग इलाज आज़माने का समय आ गया है।" मेरे बेटे ने दूसरी ओर देखा और उत्सुकता से अपने घुटनों को रगड़ा। “चिंता न करो, अनावश्यक उत्कंठा से बचने का प्रयास करो। हम इस पर नियंत्रण पा लेंगे।” "ठीक है," मेरे बेटे ने कहा। "उस इलाज में कुछ कमियां हैं, लेकिन जो कमियाँ आएँगी हम उसे पूरा करेंगे।" मेरा दिल मेरे सीने में धड़क उठा। कमियां? वह मेरी ओर मुड़ी, “चलिए, खून की जाँच का कुछ काम करवा लें। मैं एक योजना बना लूंगी, और आपको एक सप्ताह में कॉल करूंगी। एक चिंताजनक सप्ताह के बाद, डॉक्टर ने परीक्षण के परिणामों को बताने केलिए फोन किया। “मेरे संदेह की पुष्टि हो गई है। उसे बुखार हो रहा है, इसलिए हम तुरंत नई दवा शुरू करेंगे। हालाँकि, उसे कुछ कठिन दुष्प्रभावों का अनुभव हो सकता है।” "दुष्प्रभाव?" "हाँ।" जैसे ही उसने संभावित दुष्प्रभाव गिनाए तो घबराहट फैल गई। क्या मेरी प्रार्थनाओं का उत्तर दिया जा रहा था, या मैं धीरे-धीरे अपने बेटे को खो रही थी? उन्होंने कहा, "अगर आपको इनमें से कोई भी दुष्प्रभाव नजर आए तो तुरंत मुझे फोन करें।" मेरे गालों पर आँसू लुढ़क पड़े। मैंने यह खबर अपने पति के साथ साझा किया और कहा, “मैं अभी ठीक नहीं हूं। मेरी अथिति ऐसी है मानो एक धागे से लटकी हुई हूं। बच्चे मुझे इस तरह नहीं देख सकते। मुझे ज़ोर से रोने की इच्छा हो रही है ताकि मैं अपने आप को संभाल लूं ।'' उन्होंने मेरे कंधों पर हाथ रखा और मेरी आँखों में देखते हुए कहा, “तुम कांप रही हो, मुझे तुम्हारे साथ चलना चाहिए। मैं नहीं चाहता कि तुम्हें समय से पूर्व प्रसव पीड़ा हो।" “नहीं, मुझे कुछ नहीं होगा; मैं बिल्कुल ठीक हो जाउंगी. मुझे बस खुद को संभालने की ज़रूरत है।” "ठीक है। मैंने यहां सब कुछ नियंत्रण में कर लिया है। सब ठीक होने जा रहा है।" समर्पण... प्रार्थनालय की ओर गाड़ी चलाते हुए, मैंने रोती हुई कहा, “मैं अब और अधिक झेल नहों सकती। इतना बहुत काफ़ी है। ईश्वर, मेरी मदद कर! मेरी सहायता कर!" प्रार्थनालय में अकेली बैठकर, मैं दुःख से येशु को परम पवित्र संस्कार में देखती रही। “येशु, कृपया, मेहरबानी से ...यह सब बंद कर। मेरे बेटे को अब भी यह बीमारी क्यों है? उसे इतनी खतरनाक दवा क्यों लेनी पड़ती है? उसे कष्ट क्यों सहना पड़ता है? यह बहुत कठिन है। कृपया, येशु, कृपया उसकी रक्षा कर। मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं और येशु के चेहरे की कल्पना की। मैंने एक गहरी साँस ली और मेरे मन और हृदय को उसकी कृपा से भरने की विनती की। जैसे ही मेरे आंसुओं की धार कम हुई, मुझे आर्च बिशप फुल्टन शीन की पुस्तक, ‘लाइफ ऑफ क्राइस्ट’ में येशु के शब्द याद आए। "मैंने ब्रह्मांड का निर्माण किया, मैंने ग्रहों को गति दी, और तारे, चंद्रमा और सूर्य मेरी आज्ञा का पालन करते हैं।" अपने मन में, मैंने उसे यह कहते हुए सुना: “सब कुछ मेरे अधीन है! तुम्हारे बेटे के इलाज का प्रभाव मेरे लिए कोई मुकाबला नहीं है। अपनी चिंताएं मुझ पर छोड़ दो। मुझ पर भरोसा करो।" क्या ये मेरे विचार थे, या ईश्वर मुझसे बात कर रहे थे? मुझे यकीन नहीं था, लेकिन मुझे पता था कि ये शब्द सच थे; मुझे अपने डर को छोड़ना पड़ा और अपने बेटे की देखभाल के लिए ईश्वर पर भरोसा करना पड़ा। मैंने अपने डर को दूर करने के इरादे से गहरी सांस ली और धीरे-धीरे सांस छोड़ी। “येशु, मैं जानती हूं कि तू हमेशा मेरे साथ है। कृपया अपनी बांहें मेरे चारों ओर लपेट ले और मुझे आराम दे। मैं डर के कारण थककर चकनाचूर हो गयी हूँ।” आया जवाब …. अचानक, पीछे से दो बाहें मेरी चारों ओर लिपट गईं। यह मेरा भाई था! "तुम यहां पर क्या कर रहे हो?" मैंने पूछ लिया। “मैंने तुम्हें ढूंढते हुए घर पर फोन किया। मुझे लगा कि तुम यहां हो सकती हो. जब मैंने तुम्हारी कार पार्किंग में देखी, तो मैंने सोचा कि मैं अंदर आऊंगा और तुम्हें ढूंढ लूँगा।” "मैं ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि वह मुझे अपनी बांहों में भर लें, तभी तुम आये और मुझे गले लगा लिया।" उसकी आँखें खुली रह गईं। "सच?" "हाँ, सच में!" जैसे ही हम पार्किंग स्थल की ओर निकले, मैंने उसे मेरा हालचाल लेने के लिए धन्यवाद दिया। “तुम्हारा आलिंगन मुझे याद दिलाया कि ईश्वर प्रेमपूर्ण कार्यों द्वारा अपनी उपस्थिति प्रकट करता है। यहाँ तक कि जब मैं पीड़ित होती हूँ, तब भी वह देखता है, सुनता है और समझता है। उसकी उपस्थिति यह सब सहने योग्य बनाती है और मुझे उस पर भरोसा करने और उसे लिपट कर रहने में सक्षम बनाती है, इसलिए, आज मेरे लिए उसके प्यार का पात्र बनने के लिए धन्यवाद। हम गले मिले और मेरी आँखों से आँसू लरझते रहे। ईश्वर की प्रेमपूर्ण उपस्थिति का जबरदस्त अहसास मुझे अंदर तक छू गया।
By: Rosanne Pappas
Moreबाइबिल की एक पंक्ति ने किस तरह एक हिंदू लड़की के जीवन और उसकी परिवर्तनकारी यात्रा को बदल दिया, इस सच्ची कहानी को अंत तक पढ़ें ... मेरा जन्म और मेरा पालन-पोषण भारत में एक हिंदू परिवार में हुआ था। एक धार्मिक परिवार में पली-बढ़ी होने के कारण मुझे हमेशा प्रार्थना में समय बिताने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था। बचपन में, मैं कभी भी माथे पर बिंदी लगाए बिना स्कूल नहीं गयी (बिंदी एक निशान है, जो आम तौर पर एक हिंदू के माथे पर लगायी जाती है, जो किसी व्यक्ति के सांप्रदायिक जुड़ाव का संकेत देती है)। मैं हिंदू देवी-देवताओं में विश्वास करती थी, लेकिन यह सिर्फ लेन-देन वाला रिश्ता था। उनसे मेरी प्रार्थनाएँ स्कूल की परीक्षाओं से एक सप्ताह पहले तक ही सीमित थीं। विडंबना यह है कि मैं एक कैथलिक स्कूल में जाती थी जहां मुझे ईसाई धर्म से परिचित कराया गया, लेकिन मैंने हमेशा ईसाई धर्म को इस रूप में देखा कि इसका मुझसे कोई लेना-देना नहीं है। उस कैथलिक स्कूल में बारह साल बिताने के बावजूद, मुझे कभी समझ नहीं आया कि येशु वास्तव में कौन थे और न ही यह कि उन्होंने मेरे लिए क्या किया। मैंने अच्छे अंकों के साथ हाई स्कूल पास किया। मुझे बेहद खुशी हुई कि हिंदू देवी-देवताओं से की गई मेरी प्रार्थनाओं का फल मुझे मिल गया है। मैं शहर के सबसे अच्छे कॉलेज में दाखिला लेने में सफल रही। विरोधाभासी रूप से, यह येशु समाज के पुरोहितों द्वारा संचालित एक कैथलिक कॉलेज था। मैं विस्मित रह गयी कॉलेज के अपने पहले वर्ष के दौरान, मैंने धर्म पर आधारित एक अनिवार्य कक्षा में भाग लिया, जहाँ लोगों ने अपने विश्वास के बारे में बात की। मैंने देखा कि जहां ईसाई छात्रों के पास येशु के बारे में कहने के लिए बहुत कुछ था, वहीं मेरे जैसे हिंदू जब अपने विश्वास को स्वीकार करने की बात आती थी तो चुप रहते थे। मैं भगवद गीता (भगवद गीता हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथों में से एक है) के बारे में कुछ नहीं जानती थी। मुझे बस इतना पता था कि अपनी इच्छाएं पूरी करने के लिए भगवान से कैसे प्रार्थना करनी है। मुझे खुद को हिंदू कहने में शर्मिंदगी महसूस होती थी।' तभी एक ईसाई प्रोफेसर ने ‘द पैशन ऑफ क्राइस्ट’ फिल्म से येशु के बारे में एक वीडियो चलाया। मैंने देखा कि उन्हें कितनी बेरहमी से कोड़े मारे गए थे और जब उन्हें सूली पर चढ़ाया गया तो उन्होंने कितनी पीड़ा सही। मेरी आंखों में आंसू थे. सूली पर चढ़ने का दृश्य मैं बमुश्किल देख सकी। दु:ख की बात है कि तब भी, मुझे वास्तविक कारण नहीं पता था कि कलवारी पर क्रूस पे उनकी मृत्यु क्यों हुई थी। लेकिन उस वीडियो को देखने के बाद, मुझे येशु के बारे में और जानने में दिलचस्पी होने लगी। मैंने बाइबिल की खोज में सार्वजनिक पुस्तकालयों का दौरा किया लेकिन मेरी किस्मत अच्छी नहीं थी। फिर मैंने इंटरनेट पर उपलब्ध बाइबिल का पीडीएफ संस्करण पढ़ने का फैसला किया। मैंने उत्पत्ति ग्रन्थ की पुस्तक से शुरुआत की लेकिन वहां येशु नहीं मिले। फिर, मैंने बेतरतीब ढंग से गूगल पर बाइबिल के वाक्यांश खोजे। संत मत्ती के अनुसार सुसमाचार के एक वाक्यांश ने मुझे प्रभावित किया: “जब तुम्हें अपनी ही आँख की धरन का पता नहीं तो तुम अपने भाई की आँख का तिनका क्यों देखते हो?” (मत्ती 7:3) यह वचन हमें दूसरों का न्याय न करने की शिक्षा देता है। कुछ सप्ताह बाद, हमारे पास एक अलग प्रोफेसर द्वारा पढ़ायी जाने वाली एक और धर्म कक्षा थी। उन्होंने हममें से प्रत्येक से अपने संबंधित धर्मों के बारे में अपनी मान्यताओं और विचारों को साझा करने के लिए कहा। अचानक, मैंने अपना हाथ उठाया और संत मत्ती से लिए उपरोक्त वाक्यांश को समझाया - एक शर्मीली हिंदू लड़की एक ईसाई बाइबिल से लिए गए वाक्यांश के बारे में अपना विचार साझा कर रही थी! मेरा माननाहै कि मेरी निर्भीकता पवित्र आत्मा का कार्य था। प्रोफेसर को इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि मैं एक हिंदू हूं। उन्हें बाइबिल पर मेरा व्याख्यान पसंद आया और उन्होंने अधिक लोगों को अपने धर्म के बारे में बोलने के लिए प्रोत्साहित किया। यह घटना कैथलिक धर्म में मेरे परिवर्तन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। सत्य के क्षण इस दौरान, जब मैं येशु और ईसाई धर्म को जान रही थी, तो मैं अक्सर खुद से पूछती थी, "मुझे गिरजाघर में हमेशा इतनी शांति क्यों महसूस होती है?" हिंदू मंदिरों में मेरा अनुभव बिल्कुल अलग था। वहां दुकानदारों की चीख-पुकार, मंदिर की घंटियों की आवाज, मंत्रोच्चार करते पुजारियों की आवाज़ और बड़ी भीड़ के बीच से देवताओं का चेहरा देखने के लिए लोगों की होड़, आदि की वजह से मैं खुद को विचलित अनुभव करती थी। गिरजाघर में मुझे जो शांति मिली, वह बिल्कुल विपरीत थी। कोविड लॉकडाउन के दौरान एक दिन मेरी नजर यूट्यूब पर एक वीडियो पर पड़ी, जिसमें एक पुरोहित ने स्पष्ट तरीके से समझाया कि हमने अपने जीवन में चाहे कितने भी पाप किए हों, हम ईश्वर के साथ फिर से जुड़ सकते हैं क्योंकि उनके पुत्र ने इसकी कीमत चुकाई है। ईश्वर के पुत्र येशु मसीह मानव बन गये, हमारे बीच रहे, हमसे प्यार किया, हमें ठीक किया, पापों को क्षमा किया, क्रूस पर मरे और मृतकों में से फिर से जी उठे, और अब समय के अंत तक हमारे साथ रहते हैं। सुसमाचार को जानने के बाद मेरा जीवन बदल गया। मुझे पता चला कि येशु मुझे जानते हैं और एक हिंदू होने के बावजूद वे मुझसे प्यार करेंगे। पहले, मैंने येशु को उन कई देवताओं में से एक समझा था जिनकी लोग पूजा करते थे, लेकिन अब मुझे एहसास हुआ कि सच्चा ईश्वर कौन है। जिन हिंदू देवताओं को मैं जानती थी उनमें से किसी ने भी मेरे पापों के कारण दुःख नहीं सहा और अपने प्राण नहीं दिए। मेरा हृदय येशु के प्रति प्रेम से भर गया और उस दिन से मैं स्वयं को येशु मसीह का अनुयायी मानने लगी। खुशी के आंसू पवित्र आत्मा ने मुझे येशु के बारे में और अधिक जानने के लिए मार्गदर्शन किया। मैंने एक बाइबिल खरीदी और उसे पढ़ना शुरू कर दिया। मैं येशु के प्रति बड़े सम्मान, आदर और प्रेम से भर गयी। पहले, ईश्वर के साथ मेरा रिश्ता लेन-देन का था। ईश्वर मुझसे वैसे ही प्यार करता है जैसे मैं हूं, यह सच्चाई मेरे लिए एक अनजान अवधारणा थी। मुझे पता चला कि येशु हर दिन मुझसे बात करना चाहते हैं और मेरे साथ व्यक्तिगत संबंध निभाना चाहते हैं। मेरे पापी होने के बावजूद वे मुझसे प्रेम करते हैं। वे मेरे सभी पापों को माफ करने और मुझे प्यार से अपनी बाहों में स्वीकार करने को तैयार हैं। मैं उनके प्यार के लायक नहीं थी, लेकिन फिर भी वे मुझसे प्यार करते थे। आज, येशु के साथ मेरा व्यक्तिगत संबंध मेरे जीवन की सबसे महत्वपूर्ण चीज़ है। जब मैं उनके साथ व्यक्तिगत संबंध स्थापित करने की इस यात्रा पर थी, तो मुझे एक सपना आया जिसमें मैंने भूरा-लाल लबादा पहने एक आदमी को मेरे सामने सड़क पर चलते हुए देखा। सड़क दोनों ओर राक्षसों से घिरी हुई थी। राक्षस मुझे नुकसान पहुंचाना चाहते थे और भयानक आवाजें निकाल रहे थे। हालाँकि, जो आदमी मेरे आगे चल रहा था, उसकी वजह से इन प्राणियों ने अपनी शक्ति खोनी शुरू कर दी। चूँकि वह इतना शक्तिशाली था, वे मुझे डरा नहीं सकते थे या मुझे चोट नहीं पहुँचा सकते थे। मैं उसकी उपस्थिति में संरक्षित और सुरक्षित महसूस कर रही थी। मुझे समझ नहीं आया कि सपना किस चीज़ के बारे में था। लेकिन बहुत दिनों बाद, मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी की मेरी परिचित एक साध्वी ने मुझे सपने की व्याख्या करने में मदद की। मेरे आगे चलने वाला व्यक्ति येशु था। वह अपने प्रति मेरे विश्वास को मजबूत करने और मुझे शैतान से बचाने के लिए मेरे पास आये। यह महसूस करने के बाद कि सूर्य, चंद्रमा और सितारों का निर्माता मुझे जानता है और मेरी परवाह करता है, मैं खुशी के आँसू बहाती हुई रो पड़ी। मुझे कैथलिक धर्म में परिवर्तित होने में दो साल लग गए, लेकिन जब ईश्वर कोई दरवाजा खोलता है, तो कोई भी व्यक्ति उसे बंद नहीं कर सकता। पवित्र आत्मा ने मेरे कैथलिक धर्म के रास्ते पर पुरुषों और महिलाओं के वेश में स्वर्गदूतों को रखा। 25 जून, 2022 को मैंने बपतिस्मा, परम प्रसाद और दृढ़ीकरण के संस्कार ग्रहण किये। आज, मैं लोगों को बताती हूँ कि येशु ने क्रूस पर उन सब के लिए क्या किया। मैं जिस भी व्यक्ति से मिलती हूँ उसमें मसीह को देखती हूँ। मैं जहां भी संभव हो सुसमाचार का आनंद साझा करना जारी रखना चाहती हूं।
By: Sarina Christina Pradhan
Moreदुनिया भर में विभिन्न कारागार में कैद एक करोड़ लोगों में से किसी से भी मुलाक़ात करना किसी भी समय संभव है। आप आश्चर्यचकित होंगे कि यह कैसे संभव होगा? पढ़ते रहिये... "जब मैं कारागार में था, तब तुम मुझसे मिलने आये।" ये वे लोग हैं जिन्हें येशु ने न्याय दिवस पर पुरस्कृत करने का वादा किया था। कैदियों से मुलाकात को नियंत्रित करने वाले नियम हैं, लेकिन क्या ऐसे तरीके हैं कि कोई दुनिया भर में कैद किसी एक या सभी एक करोड़ लोगों से मुलाकात कर सके? हाँ! सबसे पहले सभी कैदियों के लिए नियमित रूप से प्रार्थना करें, किसी ऐसे व्यक्ति का नाम लेकर प्रार्थना करें, जिसे आप व्यक्तिगत रूप से नाम से जानते हों। इस प्रार्थना के समय मोमबत्ती जलायें: यह परमेश्वर तक प्रार्थना के उठने और कैदी के जीवन के अंधेरे में रोशनी लाने का प्रतीक भी हो सकता है। जब मुझे जेल में डाल दिया गया तो मेरे परिवार और दोस्तों ने, विशेष रूप से, मेरे लिए, सर्वशक्तिमान ईश्वर को अर्पित करने की जीवित लौ के रूप में मोमबत्तियाँ जलाईं। मुझे यह बहुत प्रभावी लगा. यह आश्चर्यजनक था कि सामान्य जेल जीवन की निराशा में अचानक खुशी की किरण चमकती थी। कुछ छोटा, लेकिन इतना सार्थक कि मैं एक पल के लिए भूल जाऊँगा कि मैं कहाँ था और किन परिस्थितियों में था, जिसने मुझे 'आखिरकार यहाँ भी एक परमेश्वर है” ऐसा सोचने के लिए प्रेरित किया। लेकिन मेरा मानना है कि जेल में बंद लोगों का या प्रार्थना की अत्यधिक आवश्यकता वाले किसी भी व्यक्ति की मदद करने का सबसे शक्तिशाली तरीका उन पवित्र अनमोल घावों पर विचार करना है जो हमारे प्रभु ने पुण्य बृहस्पतिवार की रात को उनकी गिरफ्तारी से लेकर पुण्य शुक्रवार तीसरे पहर को उनकी मृत्यु तक अपनी दुःख पीड़ा के दौरान झेले थे। अटल प्रतिज्ञा प्रभु के शरीर पर हुए सभी प्रहारों और हमलों पर विचार करें, जिसमें क्रूर कोड़े और कांटों के मुकुट के घावों का निरंतर दर्द भी शामिल है, लेकिन विशेष रूप से उसके हाथों, पैरों और बगल पर लगे पांच सबसे कीमती घावों पर। संत फॉस्टिना हमें बताती हैं कि जब हम येशु के घावों पर विचार करते हैं तो इससे प्रभु को ख़ुशी होती है, और जब हम ऐसा करते हैं तो वह हम पर करुना की वर्षा बरसाने की प्रतिज्ञा करते हैं। इस दयालु, उदार प्रस्ताव का लाभ उठाएँ जो उसने इस युग के लिए आरक्षित रखा है। अपने लिए, उन लोगों के लिए जिन्हें आप नाम से जानते हैं, और उन सभी एक करोड़ कैदियों के लिए, जो न्यायसंगत और अन्यायपूर्ण, सभी प्रकार के कारणों से जेल में बंद हैं, उन पर अनुग्रह और दया के लिए प्रार्थना करें। वह हर एक आत्मा को बचाना चाहता है, हर एक को उसकी दया और क्षमा प्राप्त करने के लिए अपने पास वापस बुलाता है। पददलितों, हाशिये पर रहनेवाले लोगों, गरीबों, बीमारों और अपाहिजों तथा उन मूक पीड़ितों के लिए भी प्रार्थना करें जिनके लिए बोलने वाला कोई नहीं है। उन सभी के लिए प्रार्थना करें जो भूखे हैं –ताकि उन्हें भोजन और ज्ञान मिलें, या अपनी ईश्वर प्रदत्त प्रतिभाओं का उपयोग करने के अवसर उन्हें मिलें। अजन्मे और ईश्वरविहीनों के लिए प्रार्थना करें। हम सभी किसी न किसी प्रकार के कैदी हैं, लेकिन विशेष रूप से, हम पाप के सभी घातक रूपों के कैदी हैं। वह हमसे अपने बहुमूल्य रक्त से भिगोये गए क्रूस के चरणों में आने के लिए कहता है, उसके सामने अपनी याचिकाएँ रखें, और हमारे निवेदन जो भी हो, वह दया उर करुना के साथ हमें जवाब देगा। आइए हम उस अथाह खज़ाने की भीख माँगने का कोई अवसर न चूकें जिसका वादा हमारे दयालु प्रभु ने हमसे किया है। जब हम दुनिया भर में उन एक करोड़ कैदियों के लिए प्रार्थना करते हैं, तो उनमें से हर एक को हमारी प्रार्थना का 100 प्रतिशत लाभ मिलता है, क्योंकि जिस तरह हमारा अच्छा ईश्वर पवित्र परम प्रसाद में खुद को पूरी तरह से हम में से प्रत्येक को देता है, वह हमारी एक अकेली प्रार्थना को मेगाफोने की तरह कई गुना बढ़ा देता है, जो उनमें से प्रत्येक के दिल तक पहुंच रहा है। कभी मत सोचो "मेरी एक अकेली प्रार्थना इतने सारे लोगों के लिए क्या करेगी?" रोटियों और मछलियों के चमत्कार को याद रखें और अब संदेह न करें।
By: Sean Hampsey
Moreअपने प्रार्थनामय जीवन में एक नया उपमार्ग खोजने के लिए इस लेख को पढ़ते रहें | कुछ सालों पहले, मेरी बहन के घर के नल से कहीं पानी का लगातार रिसाव की बड़ी समस्या थी। घर पर कहीं भी पानी के रिसाव का पता नहीं चल रहा था, लेकिन उसका पानी का बिल 70 डॉलर प्रति माह से बढ़कर 400 डॉलर प्रति माह हो गया। उन्होंने रिसाव के स्रोत का पता लगाने की कोशिश की, उसके बेटे ने बहुत खुदाई की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। कई दिनों की निरर्थक खोज के बाद, एक मित्र को एक उपाय सूझा। उसका विचार था कि रिसाव को खोजने की कोशिश करनी बंद की जाये। बजाय इसके, पानी के पाइप के सिरे पर जाया जाये, नई पाइपिंग की जाये, और नए पाइप को किसी उपमार्ग से अर्थात नए रास्ते पर बिछाया जाये और पुरानी पाइपलाइन को पूरी तरह से छोड़ दिया जाये। उन्होंने वैसा ही किया। एक दिन की कड़ मशक्कत और बहुत सी खुदाई के बाद, उन्होंने उस योजना को पूरा किया और देखो! समस्या ठीक हो गई, और मेरी बहन के पानी का बिल फिर से सामान्य हो गया | जैसा ही मैंने इस पर विचार किया, मेरे विचार अनुत्तरित प्रार्थनाओं पर गया। कभी-कभी हम लोगों के लिए या कुछ परिस्थितयों को बदलने के लिए प्रार्थना कर रहे होते हैं और उन प्रार्थनाओं से कोई फर्क नहीं पड़ता। परमेश्वर के कान तक पाइप लाइन में लगता है कि “रिसाव” है। या हम लगातार प्रार्थना करते हैं जिससे कि किसी का मन परिवर्त्तन हो, किसी का गिरजाघर में वापसी हो जाए, या हम किसी ऐसे व्यक्ति के लिए प्रार्थना करते हैं जो कुछ समय से बेरोजगार हो, या हम गंभीर स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं से जूझ रहे किसी व्यक्ति के उपचार के लिए प्रार्थना करते हैं। स्थिति कैसी भी हो, हमें कोई प्रगति दिखाई नहीं देती और हमारी प्रार्थनाएँ व्यर्थ या बेकार लगने लगती हैं। मुझे याद है कि मैं जिस मिशनरी संगठन के साथ काम करती हूँ, उसमें एक बहुत ही कठिन व्यक्तिगत संघर्ष के लिए मुझे प्रार्थना करनी थी। यह एक ऐसी स्थिति थी जो बहुत तनावपूर्ण थी और मेरी भावनात्मक और शारीरिक ऊर्जा को खत्म कर रही थी। प्राकृतिक स्तर पर मैंने जो कुछ भी करने की कोशिश की,मानो ऐसा लग रहा था कि उसका कोई हल ही नहीं है , और समाधान के लिए मेरी प्रार्थनाओं का कोई असर नहीं दिख रहा था। एक दिन अपनी प्रार्थना में, मैंने हताशा में फिर से परमेश्वर को पुकारा और अपने दिल में एक शांत, सौम्य आवाज़ सुनी, “इसे मुझे सौंप दो। मैं इसका हल करूंगा| “ मुझे एहसास हुआ कि मुझे अपने दृष्टिकोण में बदलाव की जरूरत है, बिलकुल एक प्लंबिंग बाईपास के सामान। इस बिंदु तक मेरा रवैया ही मेरे प्रयासों से स्थिति को हल करने की कोशिश कर रहा था: मध्यस्थता करना, बातचीत करना, विभिन्न प्रकार के समझौते करना और उसमें शामिल विभिन्न पक्षों को शांत करना। लेकिन चूंकि कुछ भी काम नहीं आया था और चीजें केवल बदतर होती गईं, मुझे पता था कि परमेश्वर को इन्हें संभालने की अनुमति देने की जरूरत है। इसलिए मैंने उसे अपनी स्वीकृति दी। “हे प्रभु, मैं यह सब तुझे सौंप देती हूं। तुझे जो कुछ भी करना है वह कर, और मैं सहयोग करूँगी।” प्रार्थना के लगभग 48 घंटों के भीतर ही स्थिति पूरी तरह से सुलझ गई। जितनी तेजी से मेरी सांसें रुकी हुई थी, उतनी ही तेजी से उनमें से एक पक्ष ने अच्छा निर्णय लिया, जिसके कारण सब कुछ पूरी तरह से बदल गया, और तनाव और संघर्ष भी समाप्त हो गया। मैं विस्मित थी और जो हुआ था उस पर विश्वास नही कर पा रही थी। मैंने क्या सीखा? अगर मैं किसी चीज या किसी के लिए एक निश्चित तरीके से प्रार्थना कर रही हूं और मुझे कोई सफलता नहीं दिख रही है, तो शायद मुझे प्रार्थना करने के तरीके को बदलने की जरूरत है। पवित्र आत्मा से पूछने की ज़रुरत है कि “मुझे इस व्यक्ति के लिए प्रार्थना करने की क्या कोई और तरीका है? क्या मुझे कुछ और माँगना चाहिए, कोई विशिष्ट अनुग्रह जो उन्हें अभी चाहिए?” शायद हमें “नल का कोई उपमार्ग ” जैसे कोई दूसरा मार्ग मिल जाए। रिसाव का स्रोत या प्रतिरोध के स्रोत को खोजने की कोशिश करने के बजाय, हम प्रार्थना कर सकते हैं कि हे परमेश्वर इसे दरकिनार कर दे। परमेश्वर बहुत रचनाशील है (वही रचनात्मकता का स्रोत या मूल निर्माता है) और अगर हम उनके साथ सहयोग करना जारी रखते हैं, तो वह मुद्दों को हल करने और अनुग्रह लाने के लिए अन्य तरीकों के साथ आएगा जिनके बारे में हमने सोचा भी नहीं होगा। परमेश्वर को परमेश्वर रहने दो और उसे चलने और चलाने के लिए जगह दें। मेरे मामले में, मुझे रास्ते से हटना था, विनम्रता से स्वीकार करना था कि मैं जो कर रही थी वह व्यर्थ था, और उसे प्रभु को और अधिक गहराई से समर्पण करना था जिससे प्रभु को कार्य करने का अवसर मिले। लेकिन प्रत्येक स्थिति अलग होती है, इसलिए परमेश्वर से पूछें कि वह आपसे क्या चाहता है और उसके निर्देशों को सुनें। अपनी क्षमता के अनुसार उनका पालन करें और परिणाम उसके हाथों में छोड़ दें। और याद रखें कि येशु ने क्या कहा: “जो मनुष्यों के लिए असंभव है, वह परमेश्वर के लिए संभव है।“ (लूकस 18:27)
By: Ellen Hogarty
Moreशब्द ने शरीर धारण कर हमारे बीच निवास किया । हमने उसकी महिमा देखी| वह पिता के एकलौते की महिमा- जैसी है – अनुग्रह और सत्य से परिपूर्ण । (योहन 1:14) पहली बार ऐनी को पवित्र मिस्सा के दौरान देखा था। सप्ताहांत के दिनों में, मैं एक छोटे से प्रार्थनालय में जहाँ केवल दो पंक्तियों रहती हैं, मिस्सा बलिदान में भाग लेती हूं। आप हर दिन कम लोगों को देखते हैं, इसलिए आप सभी से परिचित हो जाते हैं। मुझे लगा कि ऐनी को कभी-कभी झटके के दौरे लगते हैं। सबसे पहले, मुझे लगा कि उसे पार्किंसंस रोग है। हालांकि, करीब से अवलोकन के बाद, मैंने देखा कि परम प्रसाद ग्रहण करते समय उसे इसकी समस्या थी। जैसे ही वह पुरोहित से परम प्रसाद को स्वीकार करती, उसका शरीर, विशेष रूप से उसके हाथ, हिलते थे। कंपन कुछ मिनटों के लिए जारी रहती थी। एक दिन, मैंने ऐनी से कम्युनियन के दौरान उसके साथ हो रहे झटकों के बारे में पूछने का फैसला किया। ऐनी ने शालीनता से इस असामान्य ‘उपहार’ के बारे में समझाया। उसके झटके किसी भी प्रकार की स्वास्थ्य संबंधित विषय नहीं था, हालांकि कई लोग सोचते थे कि यह कोई बीमारी है। वह अपने शरीर की प्रतिक्रिया से थोड़ी शर्मिंदा थी, क्योंकि इसके कारण उस पर लोगों का अवांछित ध्यान पड़ जाता था। यह प्रतिभास कई साल पहले शुरू हुई जब उसने अचानक पहचान लिया कि येशु ख्रीस्त के शरीर को ग्रहण करने का मतलब क्या है। येशु, परमेश्वर का पुत्र, हमारे लिए एक मनुष्य बना। अनुग्रह और सत्य से परिपूर्ण, वह हमारे बीच रहा। वह हमारे पापों के लिए बलि चढ़ गया। ऐनी का कहना है कि विश्वास के इस सत्य के प्रति जागरूकता के बाद, जब भी वह परम प्रसाद को स्वीकार करती है तो उसका शरीर अनैच्छिक रूप से कांपता है। परम प्रसाद के प्रति ऐनी की श्रद्धा ने इस संस्कार के प्रति मेरे मन में भी बड़ा आदर और सम्मान बढ़ गया । संत अगस्टीन के अनुसार संस्कार की परिभाषा है 'आंतरिक और अदृश्य अनुग्रह का बाहरी और दृश्य संकेत'। हम कितनी बार अनुग्रह के संकेतों को पहचानते हैं? जब हम संस्कारों को केवल अनुष्ठानों तक सीमित कर देते हैं, तो हम परमेश्वर की प्रेमपूर्ण उपस्थिति को महसूस नहीं कर पाते हैं। जो लोग चौकस और जागरूक हैं, वही लोग संस्कारों में विद्यमान पावन वास्तविकताओं की सराहना कर सकते हैं। हे प्रभु येशु, मैं प्रार्थना करती हूं कि जो कुछ पवित्र है, उन सब के प्रति तू मुझे गहरी श्रद्धा दें । मैं जो कुछ भी हूँ और जो कुछ भी करूं उसमें मसीह को मूर्त रूप दे सकूं। मुझे एक जीवित संस्कार में ढाल ताकिमैं आपके आंतरिक और अदृश्य अनुग्रह का एक बाहरी और दृश्य संकेत बन जाऊं। आमेन।
By: Nisha Peters
Moreक्या आप अपने जीवन में कुछ और तलाश रहे हैं? ज़िन्दगी के राज़ को खोलने के लिए इस कुंजी को पकड़ें। प्रत्येक पवित्र शनिवार को, ईस्टर की तैयारी में, हमारा परिवार फसह-भोजन का मसीही संस्करण मनाता है। हम मेमने के साथ सेव, खजूर और अखरोट का मिश्रित भोजन और कड़वी जड़ी-बूटियाँ खाते हैं और हम यहूदी लोगों की कुछ प्राचीन प्रार्थनाएँ करते हैं। 'दयेनु' एक जीवंत गीत है जो निर्गमन के दौरान परमेश्वर की दयालुता और कृपा का वर्णन करता है, जो फसह भोजन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। "दयेनु" एक इब्रानी शब्द है जिसका अर्थ है "यह हमारे लिए पर्याप्त होता।" यह गीत निर्गमन की घटनाओं की समीक्षा करता है और घोषणा करता है, "क्या परमेश्वर ने हमें मिस्र से बाहर निकाला होता और मिस्रियों के खिलाफ न्याय नहीं किया होता, दयानु! इतना काफी होता. यदि उसने उनके विरुद्ध निर्णय लिया होता, न कि उनकी मूर्तियों के विरुद्ध...दयेनु, इत्यादि। ईश्वर की कोई भी दया पर्याप्त होती। लेकिन उसने हमें ये साड़ी कृपाएं दे दी! हममें से कई लोगों की तरह, मैंने भी अपनी अधिकांश युवावस्था किसी ऐसी चीज़ की अंतहीन खोज में बिताई जो मुझे संतुष्ट करती हो। हमेशा यह अदम्य लालसा रहती थी - एक एहसास कि कभी यहाँ तो कभी वहाँ 'कुछ और' है, फिर भी मैं कभी भी ठीक से समझ नहीं पाया कि वह क्या, कहाँ, या कौन था। मैंने अच्छे ग्रेड, रोमांचक अवसरों, सच्चे प्यार और एक पूर्ण करियर के विशिष्ट अमेरिकी सपनों का पीछा किया। लेकिन इन सब से मुझे अधूरापन महसूस हुआ। जब मैंने उसे पाया मुझे याद है आख़िरकार वह पल जब मुझे वह मिल गया जिसकी मुझे तलाश थी। मैं 22 वर्ष की थी और मैं ऐसे ईमानदार और प्रामाणिक ईसाइयों से मिली जो सक्रिय रूप से येशु का अनुसरण करना चाह रहे थे। उनके प्रभाव ने मुझे अपने ही ईसाई धर्म को पूरी तरह से अपनाने में मदद की, और अंततः मुझे वह शांति मिल गई जिसकी मुझे चाहत थी। येशु ही वह था जिसकी मुझे तलाश थी। मैंने उसे दूसरों की सेवा करते हुए, उसकी पूजा करते हुए, उसके लोगों के बीच घूमते हुए, उसके वचन पढ़ते हुए और उसकी इच्छा पूरी करते हुए पाया। मुझे पहली बार एहसास हुआ कि मेरा विश्वास रविवार के दायित्व से कहीं अधिक है। मुझे एहसास हुआ कि मैं लगातार उस ईश्वर की अच्छी संगति में था जो मेरी परवाह करता था और चाहता था कि मैं दूसरों की परवाह करूँ। मैं इस प्रेमी परमेश्वर के बारे में और अधिक जानना चाहता था। मैंने अपनी धूल भरी बाइबिल खोल दी। मैं अफ़्रीका के कैमरून की एक मिशन यात्रा पर गयी थी। मैंने कैथलिक वर्कर हाउस में गरीबों के साथ एकजुटता दिखाते हुए एक साल बिताया। ‘मसीह की शांति सारी समझ से परे है' और उसी शान्ति ने मुझे घेर लिया और मुझे जाने नहीं दिया। मैं येशु के प्रेम से इतना अभिभूत थी कि लोग अनायास ही मेरे पास आते थे और पूछते थे कि मैं शांतिपूर्ण क्यों हूं, और लोग कभी-कभी वास्तव में मेरे पीछे-पीछे आते थे। मेरे प्रभु और उद्धारकर्ता की धन्य माँ मरियम ने मेरे हर कदम का मार्गदर्शन किया। माला विनती और दैनिक मिस्सा बलिदान मेरे आध्यात्मिक आहार के अपरिहार्य अंग बन गए और मैं येशु और मरियम दोनों से इस तरह चिपक गयी जैसे कि मेरा जीवन उन पर निर्भर हो। हालाँकि, मेरे जीवन के अगले चरण में, मैंने दयनु की इस संतुष्टि की भावना और सभी समझ से परे गहरी शांति को खो दिया। मैं बिल्कुल नहीं कह सकती कि यह कैसे हुआ या कब हुआ। यह क्रमिक था। किसी तरह, सक्रिय जीवन जीती हुई, पांच बच्चों का पालन-पोषण करती हुई और कार्यबल में लौटती हुई, मैं जीवन की व्यस्तता में फंस गई। मैंने सोचा कि मुझे हर जागते पल को उत्पादकता से भरने की जरूरत है। जब तक मैं कुछ या कई चीज़ें पूरी नहीं कर लेती, तब तक वह मुझे अच्छा दिन नहीं लगता था। वक्त खामोशी के अब जबकि मेरे पांच बच्चे बड़े हो गए हैं, मैं अभी भी पूरी ताकत से दुनिया में वापस आने और हर एक घंटे को कार्यों से भरने के लिए प्रलोभित हूं। लेकिन प्रभु मेरे दिल को उसके साथ अधिक समय बिताने के लिए प्रेरित करते रहते हैं और जानबूझकर मेरे दिन में मौन की जगहें बनाते हैं ताकि मैं उनकी आवाज को स्पष्ट रूप से सुन सकूं। दुनिया के शोर से अपने दिल और दिमाग को सक्रिय रूप से बचाने के लिए मैंने एक दिनचर्या विकसित की है जो मुझे ईश्वर के संपर्क में रहने में मदद करती है। हर सुबह, सबसे पहला काम जो मैं करती हूं (कॉफी जैसी जरूरी चीजें निपटाने और बच्चों को स्कूल छोड़ने के बाद) वह है दैनिक मिस्सा बलिदान का पाठ पढ़ना, प्रार्थना करना, रोज़री वॉक पर जाना और दैनिक मिस्सा में भाग लेना। बाइबिल, माला विनती, ख्रीस्त याग। वह दिनचर्या ही मुझे शांति देती है और मेरा ध्यान इस बात पर केंद्रित करती है कि मैं अपना शेष दिन कैसे व्यतीत करूं। कभी-कभी प्रार्थना करते समय कुछ लोग, कुछ मुद्दे और विभिन्न कार्य मन में आते हैं, और मैं (दिन में बाद में) उस व्यक्ति तक पहुंचने या उसके लिए प्रार्थना करने, उस चिंता के लिए प्रार्थना करने, या उस कार्य को पूरा करने का एक कार्यक्रम बनाती हूं। मैं बस ईश्वर की बात सुनता हूं, और मुझे विश्वास है कि वह उस दिन मुझसे जो मांग रहा है, मैं उस पर अमल करती हूं। कोई भी दिन एक जैसा नहीं होता. कुछ दिन दूसरों की तुलना में बहुत अधिक व्यस्त होते हैं। मैं हमेशा उतनी जल्दी प्रतिक्रिया नहीं देती जितना मैं दे सकती थी या उतना प्यार नहीं करती जितना मुझे देना चाहिए। लेकिन मैं प्रत्येक दिन की शुरुआत में अपनी सभी प्रार्थनाएँ, कार्य, खुशियाँ और कष्ट प्रभु को अर्पित करती हूँ। मैं दूसरों को उनके अपराधों के लिए क्षमा करती हूं, और प्रत्येक दिन के अंत में किसी भी विफलता के लिए पश्चाताप करती हूं। मेरा लक्ष्य अपने दिल की गहराई से यह जानना है कि मैं एक अच्छा और वफादार सेवक रही हूँ और मेरा प्रभु मुझसे प्रसन्न है। जब मैं प्रभु की प्रसन्नता महसूस करती हूं, तो मुझे गहरी, स्थायी शांति मिलती है। और दयनु...यही पर्याप्त है!
By: Denise Jasek
Moreक्या आप अपने जीवन में मुसीबतों और संघर्षों से परेशान हैं? उन संघर्षों को आशीर्वाद में बदलने के लिए आज ही अपनी सोच बदलें! क्या याकूब की पुस्तक हमें परीक्षाओं में आनन्दित होने के लिए कहती है? लेकिन क्या यह संभव है, खासकर जब आपको लगता है कि आप एक भंवर में फंस गए हैं और आप के लिए सबसे अच्छा यही होगा कि आप फिर से डूबने से पहले बस एक और सांस लें? क्या यह तीन साल की इस महामारी के दौरान संभव है, क्योंकि इस महामारी ने हममें से कई लोगों को उन तरीकों से चुनौती दी है जिनकी हमने कभी कल्पना भी नहीं की थी? पिछले कुछ वर्षों के दौरान ऐसे दिन आए जब मुझे ऐसा लगा जैसे मैं किसी फिल्म को देख रहा हूं। फिल्में हमें बहुत सी चीजें सिखा सकती हैं और वे बेहतरीन फिल्में जो आपको आत्मविश्वास से भरी मुस्कान के साथ हंसाती हैं, उनका अंत अच्छा नहीं होता। उनमें एक अंतर्निहित सच्चाई होती है जो पूरी कहानी में रहती है और वह सच्चाई चढ़ते चढ़ते उत्कर्ष में पहुँच जाती है। इस तरह की फिल्में दर्शक के अंदर एक अकथनीय खींच या टीस पैदा करती हैं जो चिल्लाती है, 'आप जो देख रहे हैं उससे कहीं और अधिक बातें छिपी है, एक गहरा सच छिपा हुआ है'। जब मैं पुराने नियम में अय्यूब की पुस्तक पढ़ता हूं तो मुझे यही लगता है, हालांकि वह कोई फिल्म नहीं है। 'अय्यूब की परीक्षा हुई, उसने सब कुछ खो दिया और बाद में पहले की तुलना में उसे अधिक वापस मिल गया,' अगर यह कहानी सच है, तो मैं यही कहूंगा, "नहीं, धन्यवाद, मैं इतनी सारी परीक्षाओं से गुज़रना नहीं चाहता, बस मेरे पास पहले से जो कुछ है बस उतना ही काफी है।" लेकिन अय्यूब की सभी परीक्षाओं और क्लेशों के बीच कुछ अदृश्य बातें हैं। अय्यूब की कहानी में चल रही यह अदृश्य बात हम सभी के लिए एक शक्तिशाली संसाधन हो सकती है क्योंकि हम कोविड के घटने के दिन देख रहे हैं और जीवन की अन्य चुनौतियों का अनुभव कर रहे हैं। सब कुछ खो देना अय्यूब की किताब के पहले वचन में हम देखते हैं कि अय्यूब “निर्दोष और निष्कपट था, ईश्वर पर श्रद्धा रखता था और बुराई से दूर रहता था।” अय्यूब एक अच्छा आदमी था, एक अनुकरणीय व्यक्ति था, और यदि किसी को विपत्ति से बचाया जाना है, तो वह यह अय्यूब ही होना चाहिए। मैं उम्मीद करता था कि चूँकि मैं सही काम कर रहा था, चूँकि मैंने अपना जीवन ईश्वर को समर्पित कर दिया था और उसका अनुसरण करना चाहता था, इसलिए कम से कम कुछ हद तक, मेरे जीवन की राह सुगम और आसान होगी। लेकिन मेरे जीवन के बहुत से अनुभव ऐसे हैं जिस के कारण मेरे दिमाग से इस तरह के विचार को मिटाने में वे अनुभव कामयाब हुए हैं। अय्यूब हमें याद दिलाता है कि परमेश्वर किसी के लिए भी आसान जीवन की गारंटी नहीं देता, उसके दोस्तों को भी नहीं। ईश्वर हमें बस एक बात की गारंटी देता है कि संघर्ष में वह हमारे साथ चलेगा! अय्यूब सब कुछ खो देता है, और मेरा मतलब है - सब कुछ। अंत में, उसे चर्म रोग होता है, जो कुष्ठ रोग या एक्जिमा जैसा बन जाता है। इन सबके बावजूद वह कभी भी ईश्वर को शाप नहीं देता। ध्यान रहें, अय्यूब के पास प्रेरणा पाने के लिए कोई बाइबल नहीं है। उसके पास केवल वे कहानियां हैं, जो पीढ़ियों से चली आ रही हैं कि परमेश्वर कौन है और परमेश्वर ने कैसे काम किया इत्यादि। किसी बिंदु पर, अय्यूब ने एक निर्णय लिया - वही निर्णय जो हम में से प्रत्येक को लेना चाहिए: क्या हम जिस चीज़ को नहीं देख पाते हैं उस पर विश्वास कर सकते हैं, जिसे हम प्राप्त करते हुए हम देख नहीं पा रहे हैं क्या उसे अस्वीकार नहीं करने का निर्णय ले सकते हैं? जबरदस्त पीड़ा और नुकसान को सहने के बाद, अय्यूब सोचता है “मेरा जन्म न हुआ होता तो अच्छा होता।“ यह कोई चंचल किशोर का नखरा नहीं था, जैसे किशोर प्रेमी लोग आपसी इश्क के झगड़े और ब्रेक-अप के बाद नखरेपन के साथ सोचते हैं। अय्यूब को अपनी सहन शक्ति के चरम बिंदु के आगे तक धकेल दिया गया था। उसकी सारी दौलत, उसके सारे जानवर, उसकी ज़मीन, इमारतें, नौकर, और सबसे दुखद, उसकी संतान मर गए। और घाव में नमक मलने जैसा, अब उसे चर्म रोग भी हो गया, जो उसे लगातार ढोल की थाप के समान उसके नुकसानों की याद दिलाता है। सही समय पर इस बिंदु पर (अध्याय 38), परमेश्वर अंततः अय्यूब को सुधारता है। आप उम्मीद करते होंगे कि सांत्वना देने वाले परमेश्वर के लिए यह एक अच्छा समय होता कि वह अय्यूब को अपने आलिंगन में खींच लेता, या योद्धा राजा की तरह ईश्वर अय्यूब के दुश्मन शैतान पर लात मार कर उसे काबू में लाता। इसके बजाय, परमेश्वर सुधार की बातें कहता है। हमारे लिए इसे समझना मुश्किल हो सकता है, लेकिन अय्यूब को किसी अन्य प्रकार की प्रतिक्रिया की आवश्यकता नहीं थी, उसे सबसे से अधिक परमेश्वर से उस विशेष प्रतिक्रिया की आवश्यकता थी। मैं इसे आत्म-विश्वास के साथ कैसे कह सकता हूं? क्योंकि ईश्वर हमेशा जानता है कि हमें क्या चाहिए। ईश्वर हमें वह देता है जो हमें विकास, पूर्णता और मुक्ति की ओर ले जाता है – बर्शते हम ऐसा होने देते हैं। हमारा काम यह तय करना है कि क्या हम इस बात पर भरोसा करते हैं कि परमेश्वर जो कर रहा है वह हमारी अपनी भलाई के लिए है। अय्यूब की कहानी में अंतर्निहित सुंदर सत्य अंत में अध्याय 42 की शुरुआत में सामने आता है, जहां अय्यूब कबूल करता है, "मैंने दूसरों से तेरी चर्चा सुनी थी अब मैं ने तुझे अपनी आँखों से देखा है। इसलिए मैं ने जो कुछ कहा, उस मैं वापस लेता हूँ, अब धूल और राख में बैठकर रोते हुए पश्चात्ताप कर रहा हूँ।” इस एकल वाक्य में हम अय्यूब की यात्रा की जड़ को पाते हैं। जो हम देख सकते थे उससे कहीं अधिक भाव उसमें है, एक गहरा सत्य जिसे हम समझ सकते थे लेकिन उसका नामकरण नहीं कर सकते, वह अब स्पष्ट हो गया है। अब तक, अय्यूब ने दूसरों से परमेश्वर के बारे में सुना है। परमेश्वर के बारे में उनका ज्ञान “कही सुनी” बातों के आधार पर था। लेकिन जिस तबाही से वह गुजरा है वह एक ऐसा मार्ग बन गया है जो उसे एकमात्र सच्चे ईश्वर को सीधे अपनी आँखों से देखने की अनुमति देता है। यदि परमेश्वर आपसे आमने-सामने मिलना चाहता है, यदि वह आपकी कल्पना से अधिक आपके करीब होना चाहता है, तो ऐसा होने के लिए आप क्या क्या परीक्षाएं और मुसीबतें सहने को तैयार होंगे? क्या आप महामारी के इन पिछले तीन वर्षों को परमेश्वर की आराधना की भेंट के रूप में देखने का निर्णय ले सकते हैं? क्या आप अपने जीवन में सभी मुसीबतों, सभी नुकसानों और कठिनाइयों को देख पाते हैं, और उनके माध्यम से काम कर रहे परमेश्वर की रहस्यमय इच्छा को समझ सकते हैं? अभी एक क्षण लें और अपने जीवन की परीक्षाओं और मुसीबतों को परमेश्वर को आराधना के रूप में अर्पित करें, और फिर उस शांति का अनुभव करें जो शीघ्रता से आपके पास आयेगी!
By: Stephen Santos
Moreविश्वास की छलांग लगाने में आप झिझक रहे हैं? तो यह लेख आपके लिए है। पांच साल पहले, मेरे तत्कालीन प्रेमी (जो अब मेरे पति बन चुके हैं) और मैं गंभीरता से डेटिंग कर रहे थे, जबकि हम एक दुसरे से दूर रह रहे थे। मैं टेनेसे के नैशविले में रहती थी और वह उत्तरी डकोटा के विलिस्टन पर रहते थे, जो 1,503 मील दूर था। पैंतीस के आसपास की उम्र वाले दो लोग, जिनके मन में प्रेम और विवाह हो, उनके लिए यह दूरी व्यावहारिक नहीं थी। लेकिन हम इन अलग-अलग राज्यों में अच्छी तरह से स्थापित हो चुके थे। डेटिंग के दौरान, हमने अपने भविष्य के बारे में अलग-अलग और एक साथ प्रार्थना की, खासकर दूरी के बारे में। जब हमने आत्म-समर्पण की नौरोज़ी प्रार्थना की, तो अचानक उनकी कंपनी ने उन्हें वापस अपने गृह राज्य वाशिंगटन में स्थानांतरित कर दिया, और जल्द ही मैंने भी वाशिंगटन जाने का फैसला किया, जहां हम अंततः एक ही शहर में रहते हुए डेट कर सकते थे। एक नया रोमांचक साहस एक दोपहर, मेरी एक दोस्त के साथ बातचीत करते हुए मैंने उससे कहा कि मैं ने वाशिंगटन जाने का निर्णय लिया है। जब उसने कहा, "तुम बहुत बहादुर हो!" यह सुनकर मैं दंग रह गयी। मैं अपने फैसले का वर्णन करने के लिए सौ शब्दों का इस्तेमाल कर सकती थी, लेकिन 'बहादुर' शब्द उनमें से एक नहीं होता। मुझे नहीं लगता कि मेरा यह निर्णय बहादुरी का था; यह निर्णय सिर्फ इसलिए सही लगा क्योंकि यह चिंतन और विवेक पर आधारित था। मैं अपने भविष्य के बारे में लम्बी और गहरी प्रार्थना कर रही थी, और जब मैंने प्रार्थना की, तो मैंने महसूस किया कि ईश्वर न केवल मेरे दिल को बदल रहां है, बल्कि मुझे इस नए साहसिक कार्य के लिए तैयार भी कर रहा है। मैं जिस शहर में पिछले लगभग दस वर्षीं से रहती थी, और समय के साथ उस शहर से मेरा बेहद प्यार हो गया था और जिन चीजों ने मुझे उस शहर से बांधे रखा था, इस निर्णय को लेते ही अचानक उन चीज़ों ने मुझ पर अपनी पकड़ छोड़ दी। एक के बाद एक, मेरे दायित्वों को मैं ने बड़े करीने से लपेटना शुरू कर दिया या पूरी तरह से पुनर्निर्देशित किया। जैसे ही मैंने उन परिवर्तनों का अनुभव किया, मैं अपने उस व्यस्त जीवन से दूर हो गयी और मैं ने अपने भविष्य के बारे में प्रार्थना करना जारी रखा। मैंने एक नई स्वतंत्रता का अनुभव किया जिसने मुझे कुछ हद तक आज्ञाकारी घूमंतू जैसे बनने की अनुमति दी जिससे पवित्र आत्मा की प्रेरणाओं का पालन करने में मुझे आसान हो गया था। जो सही है वही करें जैसा कि मैंने कहा, 'बहादुर' होना मेरे दिमाग में कभी नहीं आया था। जब मैंने लोगों को अपनी योजनाएँ बताईं, तब उनके चेहरों पर आश्चर्य की नज़र दिखाई देने लगे। इस के बावजूद और अज्ञात की परवाह किए बिना, मुझे लगा कि मैं अपने जीवन के लिए अगला सही कदम उठा रही हूं। बाद में यह स्पष्ट पता चला कि मैं अपने जीवन के लिए सही कदम ही उठा रही थी। यह मेरे द्वारा किए गए सबसे सही कामों में से एक था। इसके तीन वर्ष बाद मेरे प्रेमी और मैंने अंततः शादी कर ली। शादी के दो साल बाद मैंने अपनी पहली प्यारे बेटे को गर्भ में धारण किया, जिसे मैं ने गर्भाशय में खो दिया, और फिर अगले साल हमारी खूबसूरत बच्ची का जन्म हुआ। हाल ही में, मेरे दोस्त के द्वारा बहादुर कहे जाने के बारे में मैं बराबर सोच रही थी। उसकी टिप्पणी पवित्र ग्रन्थ के एक अंश के साथ मेल खाती है जो मेरे दिमाग में लगातार गूँज रही है: "... ईश्वर ने हमें भीरुता का नहीं, बल्कि सामर्थ्य, प्रेम तथा आत्मसंयम का मनोभाव प्रदान किया।" (2 तिमथी 1:7) पवित्र आत्मा ने मुझे जो साहस दिया है, उसके स्थान पर यदि मैं भय को चुनी होती, तो मैं उस भविष्य को नष्ट कर देती जिसकी योजना परमेश्वर ने मेरे लिए बनाई थी। मेरे लिए पति के रूप में ईश्वर के मन में जो व्यक्ति था, मैं शायद उस आदमी से शादी नहीं कर पाती। मेरे पास मेरी बच्ची नहीं होती या हमारा पहला बेटा स्वर्ग में नहीं होता। मेरे पास वह जीवन नहीं होता जिसे मैं अभी जी रही हूं। डर सड़ा हुआ है। डर विचलित करने वाला है। डर झूठ बोलता है। डर चोर है। परमेश्वर ने हमें डर की आत्मा नहीं दी है। मैं आपको अपने जीवन के लिए एक स्वस्थ दिमाग और पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन के साथ साहसपूर्वक, और प्रेमपूर्वक बहादुरी का मार्ग चुनने के लिए प्रोत्साहित करती हूं। आत्मा की प्रेरणाओं को सुनने की क्षमता बढावें और भीरुता को दूर करें। भीरुता प्रभु का नहीं है। निष्क्रिय रूप से अपने जीवन को अपने पास से गुजरते देखते हुए, कायरता की भावना के साथ यात्रा न करें। इसके बजाय, सामर्थ्य, प्रेम और आत्म-संयम के मनोभाव लेकर, पवित्र आत्मा के साथ एक सक्रिय भागीदार बनें। साहसिक बनें। बहादुर बनें। वह जीवन जिएं जिसकी योजना ईश्वर ने आपके लिए, सिर्फ अकेले आपके लिए बनाई है।
By: Jackie Perry
More"मांगो और तुम्हें दिया जाएगा। ढूँढो और तुम्हें मिल जाएगा। खटखटाओ और तुम्हारे लिये खोला जाएगा।” - मत्ती 7:7 सन 2020 का पतझड़ का मौसम था, और वह दिन भी उन खूबसूरत दिनों में से एक था। मेरे पति मार्क, और मैं घर के आसपास कुछ काम कर रहे थे। मैं कोविड के कारण घर के अन्दर और आसपास ही पूरा दिन बिताकर बोर हो चुकी थी, इसलिए मैंने मार्क से कहा कि मैं एक ड्राइव के लिए बाहर जा रही हूं और कुछ घंटों में घर वापस आ जाऊंगी। उसने मुझे ड्राइव करके खुश रहने के लिए शुभकामनाएं दी और कहा कि हम बाद में एक-दूसरे से मिलेंगे। अपनी कार में बैठने के बाद, मैंने मॉल की ओर जाने का फैसला किया। जब मैं मॉल के नज़दीक पहुँच रही थी तो मैंने ज़ोर से प्रभु से पूछा, "प्रभु, मुझे कहाँ जाना चाहिए?" मैंने तुरंत अपने दिल में सुना, "पैट्रीशिया"। पैट्रीशिया मेरी पुरानी पड़ोसिन है जो अपने स्वाश्य की बेहतर देखभाल ले लिए इन दिनों एक संस्था में भर्त्ती कर दी गयी है। मैंने सोचा कि पैट्रीशिया के पास जाना एक अच्छा विचार है, और मुझे उससे मिले हुए काफी समय हो चुका था। अब तक मैं आधा रास्ता पार चुकी थी। मैंने फैसला किया कि पहुँचने के पहले फोन नहीं करूंगी, बल्कि पार्किंग में पहुँचने के बाद फोन करूंगी। उस समय कोविड की पाबंदियों ने मुझे उस संस्था के अंदर जाने से रोक दिया था। मैंने सोचा कि शायद पैट और मैं बाहर घूम सकती हैं। शायद मुझे कुछ देर इंतजार करना होगा। मैंने सीधे पार्किंग में पहुंचकर पैट को फोन किया। उसने तुरंत जवाब दिया! मुझे लगा कि फोन बजा ही नहीं है। पैट के पहले शब्द थे, "कैरोल, तुम कहाँ हो?", मानो कि वह जानती थी कि मैं आ रही हूँ। मैंने उससे कहा कि मैं उस संस्था के स्थान पर पार्किंग में थी। उसने मुझे बताया कि वह बाहर आँगन में है और मैं वहाँ मास्क पहन कर उसके साथ जा सकती हूँ। इसलिए, मैं गाड़ी लेकर आँगन की ओर गयी, मास्क लगायी और गेट पर उससे मिली। वह मुझे अंदर ले गयी। हम दोनों एक दूसरे को देखकर बहुत खुश हुई। सूरज हमारे चेहरों पर चमक रहा था; और प्रभु येशु हमारे दिलों में चमक रहा था। वहाँ हम आँगन में बैठी थीं, बस हम दोनों; एक घंटे से अधिक देर तक बातें करती और हँसती रहीं। हमने एक साथ प्रार्थना भी की। क्या अद्भुत मुलाकात है! मुझे कहना चाहिए, वह ईश्वरीय विधान था। ज़रा सोचिए, अगर मैंने उस शांत स्वर को, उस छोटी सी आवाज़ को, जो घर पर, मुझे धूप में बाहर निकलने के लिए उकसा रही थी, उस आवाज़ को जो बाद में गाडी चलाते समय भी, नहीं सुना होता, तो मैं अपनी दोस्त, पैट्रीशिया के साथ एक शानदार मुलाक़ात से चूक जाती! धन्यवाद, येशु, तू जिस तरह से मुझे प्यार करता हैं, उसके लिए धन्यवाद!
By: Carol Osburn
Moreमैंने अपने कॉलेज के एक अध्यापक के माध्यम से धन्य चार्ल्स डी फुकॉल्ड द्वारा लिखित "परित्याग की प्रार्थना" (प्रेयर ऑफ़ अबान्डेन्मेंट) की परिवर्तन शक्ति को जाना। उन दिनों मैं और मेरे पति अस्थाई रूप से तीन छोटे बच्चों की देखरेख कर रहे थे। मैं मातृत्व की इस नई ज़िम्मेदारी के बोझ से जूझ रही थी, जब मेरे शिक्षक ने मुझे इस प्रार्थना को करने का सुझाव दिया। उनका मानना था कि यह प्रार्थना मुझे मानसिक शांति प्रदान करेगी। "अगर तुम अपने जीवन में परिवर्तन लाना चाहती हो," उन्होंने कहा, "तो फिर इस प्रार्थना को रोज़ किया करो... और अगर तुम अपने वैवाहिक जीवन में परिवर्तन लाना चाहती हो, तो इस प्रार्थना को अपने पति के साथ बोला करो!" यह सुन कर उत्साहित मन से मैंने उनके हाथों से वह प्रार्थना की पर्ची ली और जा कर उसे अपने बाथरूम के शीशे पर चिपका दिया। फिर मैं हर सुबह उस प्रार्थना को इस प्रकार ज़ोर ज़ोर से बोला करती थी: स्वर्गिक पिता, मैं अपने आप को आपके हाथों में सौंपती हूं; आपकी इच्छा मुझ में पूरी हो। आपकी जो भी इच्छा है, उसके लिए मैं आपको धन्यवाद देती हूं: मैं आपके हर फैसले के लिए तैयार हूं, मुझे सब मंज़ूर है। आपकी इच्छा मुझ में और सारे जीव जंतुओं में पूरी हो। इससे बढ़ कर मैं आपसे और कुछ भी नहीं मांग रही हूं, मेरे पिता। मैं अपनी आत्मा आपके हाथों में सौंपती हूं: मैं प्रेम भरे दिल से आपको यह भेंट चढ़ाती हूं, क्योंकि मैं आपसे प्रेम करती हूं, इसी लिए मैं खुद को समर्पित करती हूं, बिना किसी झिझक, बिना किसी मजबूरी के, मैं खुद को समर्पित करती हूं, अटूट और अनंत विश्वास से भर कर, मैं खुद को समर्पित करती हूं, क्योंकि आप मेरे पिता हैं। इस प्रार्थना ने बीस साल से हमारा साथ दिया है, हमारा मार्गदर्शन किया है। यह प्रार्थना येशु की दी गई प्रार्थना (हे हमारे पिता) पर आधारित है, और इस प्रार्थना ने तब हमारे रास्तों को रोशन किया जब हम उन बच्चों की देखरेख कर रहे थे। आखिर में हम ने उन में से दो बच्चों को साल 2005 में गोद ले लिया। हमारे जीवन की सारी दुख तकलीफों में मैंने इस प्रार्थना में आश्रय पाया, और अब जब मेरी मां हमारे साथ रहने लगी हैं, तब फिर से इस प्रार्थना ने मुझे सहारा दिया है। मेरी मां को जब भी डिमेंशिया या मनोभ्रंश घेर लेती है, तब इसी प्रार्थना के द्वारा मैं बहादुरी के साथ उनकी मदद कर पाती हूं। क्योंकि इस प्रार्थना ने मुझे ईश्वर के प्रेम पर अनंत विश्वास रखना सिखाया है। ईश्वर हम सब से बहुत प्रेम करते हैं।
By: Heidi Hess Saxton
Moreमुसीबत के समय में, क्या आपने कभी सोचा है कि 'काश कोई मेरी मदद करता'? आप शायद अनभिज्ञ हैं कि वास्तव में आपकी मदद करने के लिए आपके पास आपके अपने एक निजी समूह है। मेरी बेटी मुझसे आजकल पूछती है कि अगर तुम सौ प्रतिशत पोलिश (पोलन्ड की) हो तो तुम सामान्य पोलेंड-वासी की तरह क्यों नहीं दिखती हो। पिछले सप्ताह तक मेरे पास इसका कोई सही उत्तर नहीं था, फिर मुझे पता चला कि मेरे कुछ पूर्वज दक्षिणी पोलैंड के गोरल हाइलैंडर्स यानी गोरल गोत्र समुदाय के पहाड़ी लोग थे। गोरल हाइलैंडर्स पोलेंड की दक्षिणी सीमा पर पहाड़ों में रहते हैं। वे अपनी दृढ़ता, स्वतंत्रता के प्रति प्रेम, तथा विशिष्ट पोशाक, संस्कृति और संगीत के लिए जाने जाते हैं। इस समय, एक विशेष गोरल लोक गीत मेरे दिल में बार-बार गूंजता रहता है, उस गीत ने मुझे इतना प्रभावित किया कि मैंने अपने पति के साथ उस गीत को साझा किया कि यह गीत वास्तव में मुझे अपने देश में वापस बुला रहा है। यह जानकर कि मेरा वंशीय इतिहास गोरल है, वास्तव में मेरा दिल ख़ुशी से उच्छल रहा है! वंशावली की खोज मेरा मानना है कि हममें से प्रत्येक के अन्दर अपनी वंशावली की खोज करने की इच्छा होती है। यही कारण है कि इन दिनों कई वंशावली साइट और डीएनए-जांच के व्यवसाय सामने आए हैं। ऐसा क्यों? शायद यह चाह हमें बतलाती है कि हम अपने से भी बड़ी किसी चीज़ का हिस्सा हैं। जो हमसे पहले इस दुनिया से चले गए हैं, उन लोगों के साथ हम मायने और संबंध की चाहत रखते हैं। हमारे वंश की खोज से पता चलता है कि हम एक बहुत गहरे कथानक का हिस्सा हैं। इतना ही नहीं, बल्कि अपनी पैतृक जड़ों को जानने से हमें पहचान और एकजुटता की भावना मिलती है। हम सभी कहीं न कहीं से आए हैं, हम कहीं न कहीं के वासी हैं, और हम एक साथ यात्रा कर रहे हैं। इस पर विचार करने पर मुझे एहसास हुआ कि केवल अपनी भौतिक ही नहीं, बल्कि अपनी आध्यात्मिक विरासत की खोज करना कितना महत्वपूर्ण है। आख़िरकार, हम मनुष्य शरीर और आत्मा हैं। हमें उन संतों को जानने से बहुत लाभ होगा जो हमसे पहले थे। हमें न केवल उनकी कहानियाँ सीखनी चाहिए, बल्कि उनसे परिचित भी होना चाहिए। संबंध ढूंढें मैं स्वीकारना चाहती हूँ कि मैं पहले किसी संत से मध्यस्थता मांगने की प्रथा में बहुत अच्छी नहीं रही हूँ। यह निश्चित रूप से मेरी प्रार्थना-दिनचर्या में एक नया जुड़ाव है। जिस चीज़ ने मुझे इस वास्तविकता से अवगत कराया वह संत फिलिप नेरी की यह सलाह थी: “आध्यात्मिक शुष्कता के खिलाफ सबसे अच्छी दवा खुद को ईश्वर और संतों की उपस्थिति में भिखारियों की तरह रखना है। और एक भिखारी की तरह, एक से दूसरे के पास जाना और उसी आग्रह के साथ आध्यात्मिक भिक्षा माँगना, जैसे कि सड़क पर एक गरीब आदमी भिक्षा माँगता है।“ पहला कदम यह जानना है कि संत कौन हैं। ऑनलाइन पर बहुत सारे अच्छे संसाधन मौजूद हैं। दूसरा तरीका है बाइबल पढ़ना। पुराने और नए विधान दोनों में शक्तिशाली मध्यस्थ हैं, और आप एक से अधिक मध्यस्थों से संबंधित हो सकते हैं। साथ ही, संतों और उनके लेखन पर अनगिनत किताबें हैं। मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना करें, और ईश्वर आपको आपके व्यक्तिगत मध्यस्थों के समूह तक पहुंचा देगा। उदाहरण के लिए, मैंने अपने संगीत की सेवकाई के लिए संत राजा दाउद से मध्यस्थता मांगी है। जब मुझे अपने पति के लिए या नौकरी चुनने के लिए मध्यस्थ की खोज करनी है तो मैं संत युसूफ के पास जाती हूँ। जब कलीसिया के लिए प्रार्थना करने का बुलावा मुझे मिलता है तो मैं संत जॉन पॉल द्वितीय, संत पेत्रुस और संत पिउस दसवें से मदद मांगती हूँ। मैं संत ऐनी और संत मोनिका की मध्यस्थता के माध्यम से माताओं के लिए प्रार्थना करती हूँ। बुलाहटों के लिए प्रार्थना करते समय, मैं कभी-कभी संत थेरेसा और संत पाद्रे पियो को पुकारती हूँ। यह सूची लम्बी है। तकनीकी समस्याओं के लिए धन्य कार्लो एक्यूटिस मेरे पसंदीदा हैं। संत जेसीन्ता और संत फ्रांसिस्को मुझे प्रार्थना के बारे में, तथा बेहतर तरीके से बलिदान अर्पित करने के बारे में सिखाते हैं। प्रेरित संत जॉन चिंतन करने में मेरी सहायता करते हैं। मैं अक्सर अपने दादा-दादी से मध्यस्थता की माँग करती हूँ, यह मैं नहीं बताती तो वह मेरी गलती होगी। जब वे हमारे साथ थे तब वे मेरे लिए प्रार्थना करते थे, और मैं जानती हूँ कि वे अनन्त जीवन में भी मेरे लिए प्रार्थना कर रहे हैं। परन्तु मेरी सार्वकालिक पसंदीदा मध्यस्थ हमेशा हमारी सबसे प्रिय धन्य कुंवारी माता मरियम रही हैं। बस एक प्रार्थना की दूरी पर यह मायने रखता है कि हम किसके साथ समय बिताते हैं। हम क्या बन जायेंगे, यह इसी पर निर्भर करता है। वास्तव में हमारी चारों ओर "गवाहों का बादल" है जिससे हम वास्तविक रूप से जुड़े हुए हैं (इब्रानी 12:1)। आइए हम उन्हें बेहतर तरीके से जानने का प्रयास करें। हम सरल, हार्दिक प्रार्थनाएँ भेज सकते हैं जैसे, "हे संत ____, मैं आपको बेहतर तरीके से जानना चाहती/ता हूँ। कृपया मेरी सहायता करें।" इस विश्वास यात्रा में चलने के लिए हम अकेले नहीं हैं। हम एक जन समूह के रूप में, मसीह के शरीर के रूप में एक साथ मुक्त किये गए लोग हैं। संतों से जुड़े रहने से, हमें वह मार्ग मिलता है जो हमारी स्वर्गीय जन्मभूमि तक सुरक्षित यात्रा करने के लिए दिशा और ठोस सहायता प्रदान करता है। पवित्र आत्मा हमें अपनी आध्यात्मिक जड़ों से जुड़ने में मदद करे ताकि हम संत बन सकें और अपना अनंत जीवन ईश्वर के एक गौरवशाली परिवार के रूप में बिता सकें!
By: Denise Jasek
Moreजब अयोग्यता के विचार मन में आएं, तो यह आजमायें... उससे बदबू आ रही थी. उसका गंदा, भूखा शरीर उसकी बर्बाद विरासत की तरह नष्ट हो रहा था। उसे लज्जा ने घेर लिया। उसने सब कुछ खो दिया था - अपनी संपत्ति, अपनी प्रतिष्ठा, अपना परिवार - उसका जीवन टूटकर बिखर गया था। निराशा ने उसे निगल लिया था। फिर, अचानक, उसे अपने पिता का सौम्य चेहरा याद आया। सुलह असंभव लग रही थी, लेकिन अपनी हताशा में, वह “उठ कर अपने पिता के घर की ओर चल पडा। वह दूर ही था कि उसके पिता ने उसे देख लिया, और दया से द्रवित हो उठा। उसने दौड़कर उसे गले लगा लिया और उसका चुम्बन किया। तब पुत्र ने उससे कहा, “पिता जी, मैंने स्वर्ग के विरूद्ध और आपके विरुद्ध पाप किया है; मैं आपका पुत्र कहलाने योग्य नहीं रहा।'... लेकिन पिता ने कहा... 'मेरा यह पुत्र मर गया था और फिर से जी गया है; वह खो गया था और फिर मिल गया है!' और वे आनंद मनाने लगे” (लूकस 15:20-24)। ईश्वर की क्षमा स्वीकार करना कठिन है। अपने पापों को स्वीकार करने का अर्थ है यह स्वीकार करना कि हमें अपने पिता की आवश्यकता है। और जब आप और मैं पिछले अपराधों के कारण अपराधबोध और शर्मिंदगी से जूझ रहे हैं, तो आरोप लगाने वाला शैतान हम पर अपने झूठ से हमला करता है: "तुम प्रेम और क्षमा के योग्य नहीं हो।" लेकिन प्रभु हमें इस झूठ को अस्वीकार करने के लिए कहते हैं! बपतिस्मा के समय, ईश्वर की संतान के रूप में आपकी पहचान, आपकी आत्मा पर हमेशा के लिए अंकित हो गई। और उड़ाऊ पुत्र की तरह, आप अपनी असली पहचान और योग्यता की खोज करने के लिए बुलाये गए हैं। चाहे आपने कुछ भी किया हो, ईश्वर आपसे प्यार करना कभी नहीं छोड़ते। "जो मेरे पास आता है, मैं उसे कभी नहीं ठुकराऊँगा।" (योहन 6:37)। आप और मैं कोई अपवाद नहीं हैं! तो, हम ईश्वर की क्षमा को स्वीकार करने के लिए व्यावहारिक कदम कैसे उठा सकते हैं? प्रभु को खोजें, उनकी दया को अपनाएं, और उनकी शक्तिशाली कृपा से बहाल हो जायें। प्रभु को खोजें अपने निकटतम गिरजाघर या आराधनालय को ढूंढें और प्रभु से आमने-सामने मुलाक़ात कर ले। ईश्वर से प्रार्थना करें कि वह अपनी दयालु आँखों से, अपने निस्वार्थ प्रेम के माध्यम से स्वयं को देखने और पहचानने में आपकी मदद करे। इसके बाद, अपनी आत्मा की एक ईमानदार और साहसी सूची बनाएं। बहादुर बनो और मनन चिंतन करते हुए क्रूसित प्रभु येशु को देखो - अपने आप को प्रभु के पास लाओ। हमारे पापों की वास्तविकता को स्वीकार करना कठिन है, लेकिन एक सच्चा, कमजोर हृदय क्षमा का फल प्राप्त करने के लिए तैयार है। याद रखें, आप ईश्वर की संतान हैं—प्रभु आपको विमुख नहीं करेंगे! ईश्वर की दया को अपनायें अपराधबोध और शर्मिंदगी के साथ लड़ना, पानी की सतह के नीचे गेंद को पकड़ने की कोशिश करने जैसा हो सकता है। इसमें बहुत मेहनत लगती है! इसके अलावा, शैतान अक्सर हमें यह विश्वास दिलाता है कि हम ईश्वर के प्रेम और क्षमा के योग्य नहीं हैं। लेकिन क्रूस से, मसीह का रक्त और जल हमें शुद्ध करने, चंगा करने और बचाने के लिए बहता रहा। आप और मैं इस दिव्य दया पर मूल रूप से भरोसा करने के लिए बुलाये गए हैं। यह कहने का प्रयास करें: “मैं ईश्वर की संतान हूँ। येशु मुझसे प्यार करते हैं। मैं क्षमा के योग्य हूँ।” इस सत्य को हर दिन दोहराएँ। इसे ऐसी जगह लिखें, जहां आप अक्सर दृष्टि दौडाते हैं। प्रभु से प्रार्थना करें कि उनकी दया के कोमल आलिंगन में स्वयं को देने में वह आपकी सहायता करें। गेंद को जाने दो और इसे येशु को सौंप दो—ईश्वर के लिए कुछ भी असंभव नहीं है! बहाल हो जाएँ पापस्वीकार संस्कार में, हम ईश्वर के उपचार और शक्ति की कृपा से बहाल होते हैं। शैतान के झूठ के विरुद्ध लड़ें और इस शक्तिशाली संस्कार में मसीह से मुलाकात कर लें। यदि आप अपराधबोध या शर्मिंदगी से जूझ रहे हैं तो पुरोहित को बताएं, और जब आप अपने पश्चाताप के कार्य के बारे में बताएं, तो अपने दिल को प्रेरित करने के लिए पवित्र आत्मा को आमंत्रित करें। जैसे ही आप पाप मुक्ति के शब्द सुनते हैं, ईश्वर की असीम दया पर विश्वास करना चुनें: "ईश्वर आपको क्षमा और शांति दे, और मैं आपको पिता, और पुत्र, और पवित्र आत्मा के नाम पर पापक्षमा प्रदान करता हूँ।" अब आप ईश्वर के अनंत प्रेम और क्षमा में बहाल हो गए हैं! अपनी असफलताओं के बावजूद, मैं हर दिन ईश्वर से उनके प्रेम और क्षमा को स्वीकार करने में मेरी मदद करने के लिए कहता हूं। हो सकता है कि हम उड़ाऊ पुत्र की तरह गिर गए हों, लेकिन आप और मैं अभी भी ईश्वर के बेटे और बेटियाँ हैं, उनके अनंत प्रेम और करुणा के योग्य हैं। ईश्वर आपसे प्रेम करता है, यहीं, इसी क्षण — उसने प्रेम के कारण आपके लिए अपना जीवन त्याग दिया। यह सुसमाचार की परिवर्तनकारी आशा है! इसलिए, ईश्वर की क्षमा को अपनाएं और साहसपूर्वक उसकी दिव्य दया को स्वीकार करने का साहस करें। ईश्वर की अनंत करुणा आपका इंतजार कर रही है! “नहीं डरो, मैंने तुम्हारा उद्धार किया है। मैंने तुमको अपनी प्रजा के रूप में अपनाया है।” (इसायाह 43:1)
By: Jody Weis
Moreबीसवीं सदी के आरंभिक यूनानी उपन्यासकार निकोलस कज़ान्तज़ाकिस का एक काव्यात्मक चिंतन है, जिसे मैं हर साल आगमन काल के आने पर अपने पलंग के बगल के टेबल पर रखता हूँ। उपन्यासकार कज़ान्तज़ाकिस येशु मसीह को एक किशोर के रूप में चित्रित करते हैं, जो दूर पहाड़ी की चोटी से इस्राएल के लोगों को देख रहा है, जो अभी अपनी सेवकाई शुरू करने के लिए तैयार नहीं है, लेकिन अपने लोगों की लालसा और पीड़ा के प्रति पूरी तरह से, दर्द और बोझ के साथ संवेदनशील है। इस्राएल का परमेश्वर उनके बीच में है—परन्तु वे अभी इस सच्चाई को नहीं जानते। मैं इसे एक दिन अपने छात्रों को पढ़कर सुना रहा था, जैसा कि मैं प्रतिवर्ष, आगमन की शुरुआत में करता हूँ, और उनमें से एक ने कक्षा के बाद मुझसे कहा: "मैं शर्त लगा सकता हूँ कि प्रभु येशु अभी भी ऐसा ही महसूस करते हैं।" मैंने उससे पूछा कि उसका क्या मतलब है। उसने कहा: "आप जानते हैं कि येशु, वहाँ पवित्र मंजूषा के अन्दर से हमें ऐसे चलते हुए देखते हैं जैसे कि हम जानते ही नहीं कि वे वहां उपस्थित हैं।" तब से, मेरे पास आगमन प्रार्थनाओं में ऐसे येशु का चित्र है, जो मंजूषा में इंतजार कर रहे हैं, अपने लोगों की ओर देख रहे हैं - हमारी कराहें, हमारी दलीलें और हमारी पुकारें सुन रहे हैं। हमारा इंतज़ार करते हुए ... किसी न किसी तरह, ईश्वर हमारे पास आने के लिए यही तरीका चुनता है। मसीह का जन्म पूरे मानव इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना है, और फिर भी, ईश्वर चाहता था कि यह 'इतनी शांति से हो कि संसार अपने काम में व्यस्त रहा जैसा कि कुछ भी नहीं हुआ हो।' कुछ चरवाहों ने ध्यान दिया, और पूरब से आये ज्ञानियों ने भी ऐसा ही किया। (हम हेरोद का भी उल्लेख कर सकते हैं, जिसने सभी गलत कारणों से ध्यान दिया!)। फिर, जाहिरा तौर पर, पूरी बात भुला दी गई। कुछ समय के लिए। किसी न किसी तरह... इंतज़ार करते हुए कुछ ऐसा होना चाहिए जो हमारे लिए अच्छा हो। ईश्वर हमारे लिए इंतजार करने को चुनता है। वह हमें अपने लिए इंतज़ार करवाना चुनता है। और जब आप इसके बारे में सोचते हैं, तो मुक्ति का पूरा इतिहास प्रतीक्षा का इतिहास बन जाता है। तो, आप देखते हैं कि यहाँ अत्यावश्यकता के दो भाव हैं - कि हमें ईश्वर के आह्वान का उत्तर देने की आवश्यकता है तथा इसकी भी आवश्यकता है कि वह हमारी पुकार का उत्तर दे, और जल्द ही। स्तोत्रकार लिखता है, "हे प्रभु, जब मैं तुझे पुकारूं, मुझे उत्तर दे।" इस पद में कुछ बड़ी विनम्रता है, दर्द है, जो आकर्षक रूप से हमारा ध्यान खींचता है। स्तोत्र में एक अत्यावश्यकता है। लेकिन यह भी स्पष्ट है कि हमें धैर्य रखना और इंतजार करना सीखना चाहिए - आनंदमय आशा के साथ इंतजार करना चाहिए - और इंतजार में इश्वर का उत्तर ढूंढना चाहिए।
By: Father Augustine Wetta O.S.B
Moreछह साल की उम्र में, एक छोटी लड़की ने फैसला किया कि उसे 'जेल' और 'फाँसी' शब्द पसंद नहीं हैं। उसे क्या पता था कि 36 साल की उम्र में वह मौत की सज़ा पाए कैदियों के साथ घूम रही होगी। 1981 में, दो छोटे बच्चों की चौंकाने वाली हत्याएं सिंगापुर और दुनिया भर में पहले पन्ने की खबर बन गईं थीं। पूरी जांच के बाद एड्रियन लिम की गिरफ्तारी हुई, जिसने अपने कई ग्राहकों को यह विश्वास दिलाकर कि उसके पास अलौकिक शक्तियां हैं, उनका यौन शोषण किया, उनसे जबरन वसूली की और उन्हें बिजली के झटके की 'थेरेपी' देकर प्रताड़ित किया। उनमें से एक, कैथरीन, मेरी एक छात्रा थी जो अपनी दादी की मृत्यु के बाद अवसाद के इलाज के लिए उसके पास गई थी। उस आदमी ने उससे वेश्यावृत्ति कराई और उसके भाई-बहनों के साथ दुर्व्यवहार किया। जब मैंने सुना कि कैथरीन पर हत्याओं में भाग लेने का आरोप लगाया गया है, तो मैंने उसे येशु के पवित्र हृदय की सुंदर तस्वीर के साथ एक चिट्टी भेजी। छह महीने बाद, उसने जवाब में लिखा, "जब मैंने इतने बुरे काम किए हैं तो आप मुझसे कैसे प्यार कर सकती हैं?" अगले सात वर्षों तक मैं जेल में कैथरीन से साप्ताहिक मुलाकात करती रही। महीनों तक एक साथ प्रार्थना करने के बाद, वह ईश्वर और उन सभी लोगों से माफ़ी मांगना चाहती थी, जिन्हें उसने चोट पहुंचाई थी। अपने पापों को स्वीकार करने के बाद, उसे ऐसी शांति मिली, जैसे वह एक अलग ही अनोखा व्यक्तित्व हो। जब मैंने उसका रूपांतरण देखा, तो मैं खुशी से पागल हो गयी। लेकिन कैदियों के लिए मेरी सेवा अभी शुरू ही हुई थी! अतीत की ओर नज़र मैं 10 बच्चों वाले एक प्यारे कैथोलिक परिवार में बड़ी हुई। हर सुबह, हम सभी एक साथ पवित्र मिस्सा बलिदान के लिए जाते थे, और मेरी माँ हमें गिरजाघर के पास एक कॉफी शॉप में नाश्ता खिलाती थी। लेकिन कुछ समय बाद मेरे लिए शरीर के भोजन से ज्यादा, आत्मा के लिए भोजन का महत्त्व बढ़ गया। पीछे मुड़कर दखती हूँ तो पता चलता है कि मेरे बचपन में अपने परिवार के साथ सुबह-सुबह होती रही उन पवित्र मिस्साओं के द्वारा ही मेरे अन्दर मेरी बुलाहट का बीज बोया गया था। मेरे पिता ने हममें से प्रत्येक को विशेष रूप से अपने प्यार का एहसास कराया, और हम उनके काम से लौटने पर खुशी से उनकी बाहों की ओर दौड़ने से कभी नहीं चूके। युद्ध के दौरान, जब हमें सिंगापुर से भागना पड़ा, तो वे हमें घर पर ही पढ़ाते थे। वे हर सुबह हमें उच्चारण सिखाते थे और हमसे उस अनुच्छेद को दोहराने के लिए कहते थे जिसमें किसी को सिंग सिंग जेल में मौत की सजा सुनाई गई थी। छह साल की छोटी उम्र में ही मुझे एहसास हुआ था कि मुझे वह अंश पसंद नहीं है। जब मेरी बारी आई तो मैंने इसे पढ़ने के बजाय “प्रणाम रानी, दया की माँ” प्रार्थना का पाठ किया। मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था कि मैं एक दिन कैदियों के साथ प्रार्थना करुंगी। अभी देर नहीं हुई है जब मैंने जेल में कैथरीन से मुलाक़ात करना शुरू किया, तो कई अन्य कैदियों ने हमारे कार्य में रुचि दिखाई। जब भी किसी कैदी ने मुलाकात का अनुरोध किया, तो मुझे उनसे मिलकर और ईश्वर की प्रेमपूर्ण दया साझा करके खुशी हुई। ईश्वर एक प्यारा पिता है जो हमेशा हमारे पश्चाताप करने और उसके पास वापस आने का इंतजार कर रहा है। एक कैदी जिसने कानून तोड़ा है वह उड़ाऊ पुत्र के समान है, जो जीवन के सबसे निचले पांवदान पर लुढ़क गया और उसने महसूस किया, "मैं अपने पिता के पास वापस जा सकता हूं।" जब वह अपने पिता के पास वापस लौटा और क्षमा मांगी, तो उसके पिता उसका स्वागत करने के लिए दौड़ते हुए बाहर आये। किसी को भी अपने पापों का पश्चाताप करने और ईश्वर की ओर लौटने में कभी देर नहीं करनी चाहिए। प्यार का आलिंगन हत्या की आरोपी फ्लोर नामक फिलिपिनो महिला ने अन्य कैदियों से हमारे सेवा कार्यों के बारे में सुना और समझा, इसलिए मैंने उससे मुलाकात की और उसका समर्थन और सहयोग किया, क्योंकि उसने अपनी मौत की सजा की अपील की थी। अपनी अपील खारिज होने के बाद, वह ईश्वर से बहुत नाराज थी और मुझसे बात करना नहीं चाहती थी। जब भी मैं उसके दरवाजे से गुजरती थी, तो मैं उससे कहती थी कि चाहे कुछ भी हो जाए, ईश्वर अब भी उससे प्यार करता है। लेकिन वह निराशा में खाली दीवार की ओर देखती रहती थी। मैंने अपने प्रार्थना समूह से नित्य सहायक माता से नौ रोज़ी प्रार्थना करने और विशेष रूप से अपनी दुःख पीडाओं को उसके लिए चढाने को कहा। दो सप्ताह बाद, फ़्लोर का हृदय अचानक बदल गया और उसने मुझसे कहा कि मैं किसी पुरोहित के साथ उसके पास वापस आऊँ। वह खुशी से फूल रही थी क्योंकि माता मरियम उसकी कोठरी में आई थीं और माँ मरियम ने उससे कहा था कि वह डरे नहीं क्योंकि माँ अंत तक उसके साथ रहेगी। उस क्षण से लेकर उसकी मृत्यु के दिन तक, फ्लोर के हृदय में केवल आनंद ही आनंद था। एक और यादगार कैदी एक ऑस्ट्रेलियाई व्यक्ति था जिसे मादक पदार्थों की तस्करी के आरोप में जेल में डाल दिया गया था। जब उसने मुझे एक अन्य कैदी के लिए माता मरियम का भजन गाते हुए सुना, तो वह इतना प्रभावित हुआ कि उसने मुझसे नियमित रूप से उससे मिलने के लिए कहा। जब उसकी माँ ऑस्ट्रेलिया से मिलने आईं तो वे हमारे साथ हमारे घर में रहीं। आख़िरकार, उसने एक काथलिक के रूप में बपतिस्मा लेने का आग्रह किया। उस दिन से, फाँसी के तख्ते तक जाते समय भी वह खुशी से भरा हुआ था। वहां का जेल निरीक्षक एक युवा व्यक्ति था, और जब यह मादक द्रव्य का पूर्व तस्कर अपनी मृत्यु की ओर बढ़ रहा था, तो यह अधिकारी आगे आया और उसे गले लगा लिया। यह बहुत असामान्य था, और हमें ऐसा लगा मानो ईश्वर स्वयं इस युवक को गले लगा रहे हो। आप वहां ईश्वर की उपस्थिति को महसूस किए बिना नहीं रह सकते थे। वास्तव में, मैं जानता हूं कि हर बार, माता मरियम और प्रभु येशु उन सज़ा-ए-मौत पाए कैदियों को स्वर्ग में स्वागत करने के लिए वहां मौजूद होते हैं। यह विश्वास करना मेरे लिए खुशी की बात है कि जिस प्रभु ने मुझे बुलाया है वह मेरे प्रति ईमानदार रहा है। उसके और उसके लोगों के लिए जीने का आनंद किसी भी अन्य चीज़ की तुलना में कहीं अधिक लाभप्रद रहा है।
By: Sister M. Gerard Fernandez RGS
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