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लोकप्रिय इतिहासकार टॉम हॉलैंड ने ‘डोमिनियन: हाउ द क्रिश्चियन रेवोल्यूशन रीमेड द वर्ल्ड’ (प्रभुत्व, मसीही क्रांति ने किस प्रकार दुनिया का पुन:सृजन किया) नामक एक असाधारण पुस्तक लिखी है। उपशीर्षक उनके तर्क को सारांशित करता है। लेखक टॉम हॉलैंड धर्मनिरपेक्षतावादी विचारधारा के साथ असहज महसूस करते हैं| उनकी सोच शिक्षा जगत में सर्वोच्च शासन करती है और ईसाई धर्म को एक खंडित, पुराने धर्म, एक आदिम, पूर्व-वैज्ञानिक युग से जुडा हुआ, तथा नैतिक और बौद्धिक दोनों की प्रगति के लिए एक अवरोध के रूप में मना जाता है। वास्तव में, उनका तर्क है, ईसाई धर्म पश्चिमी दिमाग का सबसे शक्तिशाली आकार देने वाला रहा है और जारी है, हालांकि इसका प्रभाव इतना व्यापक और इतना गहरा है कि इसे आसानी से अनदेखा किया जाता है।
इसे खुले में लाने के लिए लेखक टॉम होलैंड एक बहुत ही प्रभावी रणनीति को अपनाते हैं | उनकी सबसे पहली रणनीति है कि वे येशु सूली पर चढ़ाए जाने का क्या मतलब है, इसका एक क्रूर यथार्थवादी लेखांकन के माध्यम से परिचित कराते हैं तकि पाठक लोग ईसाई धर्म के बारे में एक नयी समझ विक्सित करें। उस ज़माने के लोगों की कल्पना के मुताबिक़ रोमी क्रूस पर मौत के घाट उतार दिया जाना सबसे बुरी किस्मत थी। तथ्य यह है कि अंग्रेजी शब्द excruciating “कष्टदायी”, जो सबसे अधिक पीड़ादायक प्रकार के दर्द को दर्शाता है, लातीनी शब्द cruce (क्रॉस) से आता है जो काफी हद तक इस तथ्य का खुलासा करता है। लेकिन क्रूस की भयानक शारीरिक पीड़ा से अधिक पीड़ा उससे होनेवाला भयंकर अपमान से थी। नग्न किया जाना, लकड़ी के दो टुकड़ों पर कीलों से ठोंका जाना, कई घंटों या दिनों तक मरने के लिए छोड़ दिया जाना, और राहगीरों के उपहास का शिकार होना, और फिर, मृत्यु के बाद भी, क्रूसित व्यक्ति की लाश को आसमान के पक्षियों और मैदान के जानवरों के द्वारा नोचकर खा जाने के लिए छोड़ देना, ये सारी बातें बड़े अपमानजनक अनुभव को पैदा करनेवाली थीं। इसलिए, आदिम ईसाइयों द्वारा क्रूस पर चढ़ाए गए एक अपराधी को ईश्वर के पुनर्जीवित पुत्र के रूप में घोषित करना, इससे अधिक हास्यपूर्ण, परेशान करने वाला और साथ साथ क्रांतिकारी संदेश नहीं हो सकता था। इसने ईश्वर, मानवता और समाज की सही व्यवस्था के बारे में प्राचीन दुनिया की सभी धारणाओं को उलट दिया। यदि ईश्वर को एक सूली पर चढ़ाए गए व्यक्ति के साथ पहचाना जा सकता है, तो इसका मतलब है कि मानव परिवार के सबसे छोटे और सबसे भूले हुए सदस्य भी प्रेम के योग्य हैं। और यह सही है कि येशु के प्रारम्भिक अनुयायियों ने न केवल इस सत्य की घोषणा की, बल्कि बेघर, बीमार, नवजात और वृद्धों की देखभाल करके इसे ठोस रूप से उन्होंने जीया और येशु के संदेश को और भी क्रांतिकारी बना दिया।
हालांकि हॉलैंड ने उन बाकी सारे तरीकों पर गौर किया जिनके द्वारा ईसाई दर्शन ने पश्चिमी सभ्यता को प्रभावित किया, फिर भी हॉलैंड ने पाया कि क्रूसित येशु की छवि से निकलने वाली अवधारणा सबसे ज़्यादा प्रभावशाली रही है। हॉलैंड के मुताबिक हम यह अक्सर भूल जाते हैं कि हर व्यक्ति आदर सम्मान के योग्य है, कि सब मनुष्य सामान्य अधिकार और प्रतिष्ठा के धारक हैं, कि करुणामय प्रेम मानव संवेदनाओं में सबसे ज़्यादा सराहनीय भाव है। और यही भाव सदियों से हमारे ईसाई समुदाय का सबसे सरल, सबसे महत्वपूर्ण अंग रहा है, चाहे हम यह माने, या ना माने। इस बात का सबूत हम उन प्राचीन सभ्यताओं में प्राप्त कर सकते हैं, जहां ऐसी संवेदनाएं मौजूद नहीं थी। और आज भी देखें तो ऐसी कई संस्कृतियां हैं जो ईसाइयत से निर्मित नहीं है लेकिन इस बात को झुठलाया नहीं जा सकता कि वहां भी ख्रीस्तीय भाव सराहे जाते हैं।
हॉलैंड अपनी किताब में ज़्यादातर पश्चिमी इतिहास के उन महत्वपूर्ण अवधियों की बात करते हैं जो क्रूस की अवधारणा के प्रभाव को दर्शाती है। मैं उनके पश्चिमी ज्ञानोदय के अध्ययन पर विशेष ध्यान दूंगा | ज्ञानोदय , जिनके राजनीतिक मूल्य सुसमाचार के अलावा अकल्पनीय हैं, और पीड़ितों और हाशिए पर रहने वाले लोगों की पीड़ा पर केन्द्रित समकालीन विभिन्न “जागृत” आंदोलन एक ऐसी संस्कृति का फल है, जिसके केंद्र पर दो हजार वर्षों से, एक क्रूस की लकड़ी पर चढ़ाया गया और अन्यायपूर्ण रूप से निंदा किया गया व्यक्ति रहा है।
मुझे वह भाग सबसे प्रिय है जहां हॉलैंड बीटल्स बैंड के सुप्रसिद्ध गाने “ऑल यू नीड इज लव” की चर्चा करते हैं, जिसे उन्होंने सन 1967 में एबी रोड पर एक बड़ी भीड़ के सामने गाते हुए रिकॉर्ड किया था। उस गाने के भाव ऐसे हैं जिस पर ना तो कैसर अगस्तस, ना चंगेज़ खां और ना ही फ्रेडरिक नीत्शे की सोच विचार मेल खायेगा, बल्कि उस गीत का सार काफी हद तक संत अगस्तीन, संत थॉमस एक्विनस, असिसी के संत फ्रांसिस और प्रेरित संत पौलुस के विचारों से मेल खाता है। कोई चाहे या ना चाहे, ईसाई आंदोलन ने बड़े भारी रूप में पश्चिम की छवि को बदला है और जिस नज़रिए से हम दुनिया को देखते हैं, उसको रूप प्रदान करने में बड़ा योगदान दिया है ।
हॉलैंड की यही बातें उसकी किताब का नब्बे प्रतिशत हिस्सा हैं – जिससे मैं पूरी तरह सहमत भी हूं। वह जिन बातों का दावा करता है वे ना केवल सच हैं, बल्कि वे वर्तमान काल के लिए महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि वर्तमान काल में ईसाई धर्म को अक्सर अलग या किनारे रखा जाने लगा है। गौरतलब है कि मेरे लिए, यह पूरी किताब तब पलटती सी मालूम हुई जब आखिर में लेखक ने इस बात को माना कि ना तो वे किसी ईश्वर को मानते हैं, और ना ही पुनरुत्थान में विश्वास रखते हैं। ईसाई विश्वास ने जिन आंदोलनों को जन्म दिया, उन्हें लेखक झुठला नहीं सकते हैं, लेकिन उस विश्वास की पुष्टि करना लेखक के बस में नहीं है। आजकल सामाजिक व्यवस्था को धार्मिक संवेदनाओं से अलग कर के देखना आधुनिक दर्शन शास्त्रियों में बहुत ही प्रचलित तरीका है। इमैनुअल कान्त और थॉमस जेफर्सन जैसे प्रसिद्ध दर्शन शास्त्रियों ने ऐसा किया है। लेकिन यह एक निरर्थक प्रयास है, क्योंकि ख्रीस्तीय मूल्यों को इतिहास से पूरी तरह अलग नहीं किया जा सकता। अगर कोई ईश्वर नहीं है, और येशु मृतकों में से नहीं जी उठे, तो फिर यह कैसे मुमकिन है कि इस दुनिया में हर व्यक्ति अनंत आदर का हकदार है और अनेक अधिकारों से सुशोंभित है? अगर कोई ईश्वर नहीं है और मसीह कभी नहीं जी उठे तो हम क्यों यह नहीं कहते हैं कि अपने क्रूस की शक्ति से कैसर जीत गया? शायद लोग येशु को बस एक धार्मिक शिक्षक और एक साहसी व्यक्ति के रूप में सराहते होंगे, पर अगर वे मर कर कब्र में ही रह गए होते तो आज भी उनका बुरा करने वालों का राज होता, और अपना हक मांगने वालों पर दुनिया हंसा करती।
यह बात इतिहास की किताबों में कैद है, कि जब शुरू शुरू में ईसाइयों ने सुसमाचार का प्रचार करना शुरू किया, तब वे मानव अधिकारों की बात नही कर रहे थे; वे केवल उस येशु की बात कर रहे थे जो पवित्र आत्मा के द्वारा मृतकों में से जिलाए गए थे। वे बस इस बात का प्रचार कर रहे थे कि जिसे कैसर के राज ने मौत दी, उसे ईश्वर ने फिर से जीवित किया। टॉम हॉलैंड अपनी जगह बिल्कुल सही हैं कि पश्चिमी सभ्यता में कई सियासी और सामाजिक बदलाव ख्रीस्त के द्वारा ही आए हैं। पर जिस प्रकार कागज़ के फूल पानी में ज़्यादा देर टिक नहीं सकते, उसी तरह येशु के क्रूस से नहीं निकलने वाले विचार बदलते समय के सामने ज़्यादा समय तक टिक नही पाएंगे।
'माला विनती जिसे हम रोज़री माला की प्रार्थना भी कहते हैं, एक अंतरंग आध्यात्मिक बातचीत है जिस के द्वारा आप अपने डर, अपनी जरूरतों और इच्छाओं को धन्य कुँवारी मरियम और ईश्वर के सम्मुख प्रकट करते हैं। जीवन में जो कुछ भी आप चाहते हैं उसे पूरा करने और असंभव को आप के जीवन से दूर करने के लिए जपमाला आपको आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करती है।
यह ध्यानपूर्ण आध्यात्मिक वार्तालाप को कभी भी और जहाँ कहीं भी जाने पर आप कर सकते हैं। आप इसे सामूहिक परिदृश्य में या स्वयं अकेले भी कर सकते हैं। आप अपने बच्चों के साथ, अपने जीवनसाथी के साथ या जिस व्यक्ति को आप प्यार कर रहे हैं, और अपने दोस्तों के साथ माला विनती की प्रार्थना कर सकते हैं। आप इसे अपना पारिवारिक कार्यक्रम बना सकते हैं। आप खाना बनाते समय, गाड़ी चलाते समय, सार्वजनिक परिवहन में चलते समय, लाइन में प्रतीक्षा करते हुए, या स्नान करते समय भी माला विनती की प्रार्थना कर सकते हैं। आप माला विनती की प्रार्थना कहाँ कहाँ कर सकते हैं इसकी कोई सीमा नहीं है।
हर बार जब आप माला विनती की प्रार्थना करते हैं, आप अधिक आध्यात्मिक रूप से सशक्त हो जाते हैं, आप अधिक चंगाई, अधिक आत्मविश्वास, अधिक प्रेरणा, अपने जीवन में अधिक चमत्कारी परिवर्तन, अधिक आध्यात्मिक जागरूकता और अपने जीवन में अधिक दिव्य कृपा प्राप्त करते हैं। हाँ… माला विनती में चमत्कारी शक्ति है!
माला विनती की प्रार्थना आपको अपने लिए और दुनिया के लिए शांति देती है, और आपके लिए और अपने परिवार के लिए उत्कृष्ट उद्देश्य, शक्ति, जीत, चंगाई, चमत्कार, शांति, स्पष्टता, दृढ़ संकल्प, दृष्टि, एकता और सद्भाव देती है। जब आप माला विनती करते हैं तब आपके जीवन में और भी आशीषें प्रवेश कर सकती हैं!
हर बार जब आप माला विनती की प्रार्थना करते हैं, तब आपकी आत्मा नई आशा, प्रेरणा, ऊर्जा और चंगाई से भर जाती है। मैं इसकी एक गवाह हूं। प्रत्येक ‘प्रणाम मरिया’ प्रार्थना अनुग्रह का क्षण है, दया का क्षण है, चंगाई का क्षण है, आशा का क्षण है, कृतज्ञता का क्षण है, नम्रता का क्षण है और आत्म समर्पण का क्षण है।
जब भी आपको संदेह होता है, या आप अपने लक्ष्यों तक पहुँचने में बाधा का सामना करते हैं; जब भी आप अकेला, उदास या आशंकित महसूस करते हैं; हर बार जब आप अनुभव करते हैं कि दूसरे आप को धमकाते हैं, तिरस्कृत करते हैं या मानो पूरी दुनिया आपके खिलाफ हो, तो अपने मन, शरीर और आत्मा को मजबूत करने के लिए अपने दिल में विश्वास और प्यार के साथ माला विनती करें। आध्यात्मिक रूप से सशक्त करने वाला यह शस्त्र आपको हार न मानने और विजयी होने के लिए प्रोत्साहित करेगा।
व्यक्तिगत निवेदन करने और दूसरों और दुनिया की जरूरतों के लिए प्रार्थना करने के लिए विशेष रूप से चंगाई की प्रार्थना के लिए माला विनती आपके काम आवें। चिंतन और प्रार्थना के उन पलों में, जब आप सुसमाचार की घटनाओं के लिए परमेश्वर और धन्य कुँवारी मरियम के प्रति अपना आभार प्रकट करते हैं, तब आप आवश्यक आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं। यदि आप माला विनती के बारे में नहीं जानते हैं, तो यह आपके लिए इसकी शक्ति को खोजने और इसे आजमाने का अवसर है! माला सबसे बड़ी विरासतों में से एक है जिसे आप अपने बच्चों के लिए छोड़ सकते हैं और अपने परिवार और दोस्तों के साथ साझा करने के लिए यह एक शानदार उपहार है।
'ज़िंदगी में संघर्ष कर सफल होने के तीन तरीके हैं।
कभी सोचा है कि ऐसा क्यों होता है कि जो चीज़ें हम करना चाहते हैं उन्हें नहीं कर पाते हैं और जिन चीज़ों से हम दूर रहना चाहते हैं उन्हें ही कर डालते हैं। संत पौलुस के मन में भी यही उलझन थी (रोमियों 7:15)। और क्यों आखिर में हमें एक वैश्विक महामारी से गुज़र कर ही यह समझ आया कि कौनसी आदतें लाभकारी हैं और कौनसी आदतें बेवजह? इस महामारी से पहले न जाने हमारी ज़िंदगी को कितनी ही फिज़ूल बातों ने घेर रखा था। पर फिर इस महामारी ने आकर दुनिया में बीमारी और मौत फैलाई जिसने कहीं न कहीं हमारे कठोर दिल को पिघलाने का काम किया।
कई लोगों के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना बड़ी ही मुश्किल का काम रहा है लेकिन कई लोगों के लिए यह नियम लाभकारी रहा है। जितना ज़्यादा समय हमने एकांत में बिताया उतना ही ज़्यादा हम ईश्वर के करीब आ पाए हैं और हमें अपने जीवन में जो ज़रूरी है उस पर मनन चिंतन करने का अवसर मिला। जब हम इन पाबंदियों से मुक्त हो कर वापस बाहर की दुनिया में प्रवेश करेंगे तब हम फिर से पुरानी आदतों को अपनाने की भूल कर सकते हैं। इसीलिए पिछले कुछ महीनों में अपने निजी जीवन में जो प्रगति की है उसे बरकरार रखने के लिए हमें एक अच्छे कैथलिक की तरह अपने हाथों को गंदा करने, रोज़री की धूल झाड़ने, वेदी पर मोमबत्ती जलाने और अपने मन को स्वर्ग की ओर करने की आवश्यकता है। इन सब के साथ हमें तीन कदम उठाने हैं जिससे हम अपनी आध्यात्मिक प्रगति में दृढ़ रह पाएं।
लगातार प्रार्थना करें
यह अच्छी बात है कि हम अपनी हर दुख तकलीफ में ज़ोरों से प्रार्थना करते हैं, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जब हमारे जीवन में किसी बात की आवश्यकता होती है तब खूब प्रार्थना करना आसान होता है। लेकिन जब ज़िंदगी आराम से चल रही हो, ध्यान रहे, तब आलस्य होकर उत्साह न खो दें, बल्कि उस समय लगातार प्रार्थना करना बहुत ज़रूरी है।
जब आप वापस अपनी पुरानी दिनचर्या में जाएं तब अपनी प्रार्थना के समय को अपनी दिनचर्या के अनुसार न बदलें। बल्कि अपनी दिनचर्या को अपनी प्रार्थना के समय के अनुसार बदलें। अगर इस महामारी के दौरान आपने प्रार्थना, ध्यान और मनन चिंतन को ज़्यादा समय दिया तो कोशिश होनी चाहिए कि स्कूल और काम पर वापस जाने के बाद आप प्रार्थना, ध्यान और मनन चिंतन के समय में कटौती न करें।
प्रार्थना की मात्रा में कटौती न करने के नए उपाय खोजें – काम पर जाते वक्त आप कार में भजन, प्रार्थनाएं या प्रवचन सुन सकते हैं, आप डिनर के ठीक बाद खाने की मेज़ पर ही शाम की प्रार्थना कह सकते हैं, किसी दिन रोज़री, तो किसी दिन नोवेना, तो किसी दिन सिर्फ बाइबल पाठ कर सकते हैं।
रविवार मिस्सा को एक जिम्मेदारी से अधिक महत्त्व देना
इस वक्त हम पवित्र मिस्सा में भाग लेने और पवित्र यूखरिस्त ग्रहण करने के लिए लालायित हैं। इतने महीने हम इस कृपा से वंचित जो रहे हैं। जैसा कि लोग कहते हैं, “किसी चीज़ की कमी हमें उसकी असल अहमियत से परिचित करा देती है।”
लेकिन जब चर्च जा पाना फिर से आसान हो जाएगा तब भी क्या हम इसी प्रकार पवित्र मिस्सा और यूखरिस्त के लिए भूखे होंगे? अपनी पुरानी दिनचर्या में वापस जाने पर हर रविवार के मिस्सा में शामिल होना हमारे लिए किसी संघर्ष से कम नही होगा। इसीलिए हमें रविवार के मिस्सा को एक आदत, एक ज़िम्मेदारी से बढ़कर एक आशीष, एक कृपा के रूप में देखना चाहिए।
इसी विचार पर मनन चिंतन करते हुए जोसव् मारिया एस्क्रिवा ने कहा है, “कई ईसाई जन अपनी ज़िंदगियां आराम से जीते हैं (उन्हें किसी बात की जल्दबाज़ी नही होती)। अपने व्यवसायिक जीवन में भी वह हर काम आराम से करते हैं (वे हर काम को समय देते हैं)। लेकिन कितनी अजीब बात है कि यही लोग प्रार्थना के मामले में जल्दबाज़ी करते हुए देखे जाते हैं। वे चाहते हैं कि पुरोहित प्रार्थनाएं जल्दी जल्दी पढ़े और मिस्सा बलिदान की विधि को छोटा किया जाए।
हम ईश्वर को अपना ज़्यादा समय कैसे दे सकते हैं?
आप अपना पूरा रविवार ईश्वर को समर्पित करें। हां मिस्सा बलिदान में भाग लें पर यहीं अपनी भक्ति न रोकें। अपनी पल्ली में एक समुदाय का निर्माण करें। रविवार के मिस्सा के बाद एक दूसरे के साथ चाय पानी पिएं या किसी परिवार को अपने घर चाय या खाने पर बुलाएं। कभी रविवार के मिस्सा के लिए जल्दी आ कर पाप स्वीकार करने की कोशिश करें, या सुबह के मिस्सा से पहले अपने परिवार के साथ मिलकर रोज़री माला बोलें, या एकांत में प्रार्थना करें।
अतिरिक्त चीज़ो को अलग करें
लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग ने हमारे जीवन की उन तमाम बातों को छांट दिया जिसमें हम अपना वक्त बर्बाद किया करते थे। शायद इस महामारी ने हमें अपनी गतिविधियों को जांचने का मौका दिया। ऐसी कौनसी चीज़ें, आदतें हैं जिनकी हमें याद आई या याद नही आई। और वो कौनसी ऐसी चीज़ें, आदतें थी जिनकी हमें ज़रूरत थी, या ज़रूरत नही थी?
क्या हमारी दिनचर्या बेमतलब की उलझी हुई है? क्या जो भी हम करते हैं वह हमें सिर्फ तनाव और डरावने सपने देता है? क्या बच्चों को हर एक पाठ्येतर कार्यक्रम (एक्स्ट्रा करिकुलर प्रोग्राम) में डालना ज़रूरी है? क्या हम बच्चों को पाठ्येतर कार्यक्रमों से दूर रख कर उनके साथ गलत कर रहे हैं या उन्हें पाठ्येतर कार्यक्रमें में डाल कर उनका भला कर रहे हैं? शायद अब वक्त आ गया है कि हम जापान की मशहूर प्रबंधन विशेषज्ञ मेरी कोंडो की तरह इन पाठ्येतर कार्यों को भी छांटे ताकि हमारा परिवार हर चीज़ का एक स्वस्थ मिश्रण बन सके।
हमें कोशिश करनी चाहिए कि हमारा काम, हमारी ज़िम्मेदारियों को जाने वाला समय, हमारे पारिवारिक समय से कम हो। परिवार का एक साथ होना, एक दूसरे के साथ समय बिताना, परिवार को अंदर से मज़बूत करने के लिए बहुत ज़रूरी है। एक साथ बैठ के खेल खेलना, कभी मिलकर खाना बनाना, कभी सैर पर जाना, साइकिल चलाना, इन्हीं सारी बातों से ही तो वे यादें बनती हैं जिन्हें बच्चे आगे चलकर याद करते हैं।
इस महामारी ने हमें हमारी प्राथमिकताओं और हमारे आध्यात्मिक जीवन को गहराई से जांचने का अवसर दिया है। और इस बात में कोई शक नही है कि इस समय हम जिन तकलीफों और परेशानियों से गुज़रते हैं, उसके बदले ईश्वर से हमें वे कृपाएं मिलेंगी जिससे हम अपने जीवन में ज़रूरी बदलाव ला पाएंगे।
देखा जाए तो यह समय खुद में बदलाव लाने के लिए बहुमूल्य समय है।
'जिनसे आप प्यार करते हैं उनसे कैसे बात करनी चाहिए? आइए जानते हैं कुछ आसान तरीके।
चबाने की खुशी
मैंने संत पौलुस की “प्रेम से प्रेरित सत्य बोलने” की सलाह (एफेसियों 4:15) को बड़ी ही गंभीरता से लिया है। और ऐसा करते हुए मेरी नीयत बिल्कुल साफ रहती है। साथ ही साथ मैंने यह सलाह औरों में भी बांटी हैं, पर अक्सर इसके परिणाम के रूप में मुझे बस निराशा, मतभेद, और गलतफहमी ही हाथ लगी है। क्या आपने भी कभी ऐसा महसूस किया है? एक दिन मैं बैठ कर यही सब सोच रहा था कि क्यों मुझे इस सलाह के नकारात्मक परिणाम ही मिले हैं, तभी मैंने खुद से यह सवाल किया कि इस बारे में हमारी पवित्र माता मरियम की क्या राय होगी? तुरंत ही मेरे कानों में उनके वे शब्द सुनाई दिए जो उन्होंने काना के विवाह में सेवकों से कहे थे: “वे तुम लोगों से जो कुछ कहे, वही करना” (योहन 2:5)। पर बात यहीं खत्म नही होती।
जब मैंने मां मरियम का हाथ थाम कर सुसमाचार पढ़ना शुरू किया, मुझे याद आया कि लूकस के सुसमाचार में येशु की जन्म गाथा के ठीक बाद मां मरियम के बारे में कहा गया है : “उनकी माता ने इन सब बातों को अपने हृदय में संचित रखा।” (लूकस 2:51)। इसी वचन ने मुझे समझाया कि क्यों मेरे चंचल दिल ने कभी अच्छे फल नहीं पैदा किए। मुझे पहले मां मरियम की आंखों से चीज़ों को देखना, समझना, उन पर मनन चिंतन करना है। और फिर मुझे येशु की नकल उतारने से पहले समझना है कि किस तरह येशु प्रेम से प्रेरित सत्य को कहते थे। मुझे ईश्वर के वचन को खोजना है, समझना है और उसे ठीक तरह चबाने के बाद ही निगलने की कोशिश करनी है। तो अब सवाल यह उठता है की येशु किस प्रकार प्रेम से प्रेरित सच कहा करते थे?
कुंठा का दर्द
येशु का प्रेम से प्रेरित सच कहने का एक उदाहरण हमें तब मिलता है जब येशु की मुलाकात एक अमीर युवा व्यक्ति से होती है। वह युवा येशु से सवाल करता है कि अनंत जीवन पाने के लिए उसे क्या करना चाहिए? जिसके जवाब में येशु कहते हैं कि उसे अपने पड़ोसियों को अपने समान प्यार करना चाहिए। इसके जवाब में वह युवा कहता है “गुरुवर, इन सब का पालन तो मैं अपने बचपन से करता आया हूं” (मारकुस 10:20)।
इस चर्चा की शुरुआत येशु उस बात से करते हैं जिसमें वह नवयुवक पहले से ही अच्छा है; वे कार्य या विचार धारा जो उस नवयुवक में पहले से सराहनीय रूप से विद्यमान है। लेकिन इसके बाद जो वचन में लिखा है, वह और भी दिलचस्प है। मारकुस अपने सुसमाचार में हमें बताते हैं कि “येशु ने उसे ध्यानपूर्वक देखा और उनके हृदय में प्रेम उमड़ पड़ा।” (मारकुस 10:21)। यहां हमें येशु की मानसिकता का प्रारंभिक छोर मिलता है, जो कि प्रेम है। येशु किसी से भी जीवन का सच कहने की शुरुआत प्रेम से करते हैं।
अक्सर जब मैं किसी से अपना विश्वास साझा करता हूँ और सामने वाले व्यक्ति पर सुसमाचार का कोई असर नहीं पड़ता तो मैं सच कहूंगा मुझे गुस्सा चढ़ता है। फिर भी इस कहानी में येशु यह जानते हुए भी कि उस नवयुवक का क्या जवाब होगा, उसकी ओर देखते हैं और उससे प्रेम रखते हैं। उन्हें उसके जवाब से कोई चिढ़ नही होती। येशु यह भी जानते थे कि जब वह नवयुवक येशु की सलाह को सुनेगा तो दुखी हो कर वहां से चला जाएगा। लेकिन शायद उस वक्त येशु के दिल में उम्मीद थी कि वह नवयुवक आखिर में येशु की सलाह को अपना कर ईश्वर की कृपा प्राप्त करेगा।
क्या हम भी वैसा ही व्यवहार करते हैं जैसा येशु ने किया? क्या हम भी अपना सत्य बोलने की शुरुआत प्रेम से करते हैं
आप ही वह व्यक्ति हैं
प्रेम से प्रेरित सच कहने का एक और उदाहरण है जो हम पुराने विधान में पाते हैं। यह वह कहानी है जिसमे नबी नातान राजा दाऊद को उनके किए व्यभिचार और हत्या का लेखा जोखा देने जाते हैं। (2 समूएल 12)। अब यहां सवाल यह उठता है कि राजा दाऊद को उनके पापों की याद दिलाने से पहले नबी नातान उन्हें अमीर इंसान और गरीब इंसान की कहानी क्यों सुनाते है? नबी नातान राजा दाऊद से सीधे सीधे भी तो कह सकते थे कि उन्होंने दूसरे व्यक्ति के साथ घोर अन्याय किया है। लेकिन नबी नातान ने ऐसा नहीं किया, पर क्यों?
हम पढ़ते हैं कि राजा दाऊद नबी नातान की कहानी सुन कर उस अमीर इंसान पर क्रोधित हो कर कहते हैं, “जीवंत प्रभु की शपथ! जिस व्यक्ति ने ऐसा किया, वह प्राणदंड के योग्य है।” (2 समूएल 12:5)। इस प्रकार नबी नातान राजा दाऊद को उनके पापों का स्मरण कराने से पहले उनके दिल में न्याय की चिंगारी जलाते हैं, ताकि उसकी रौशनी में वे अपनी गलतियां देख सकें। अगर राजा दाऊद एक न्याय प्रिय इंसान नही होते तो ना तो वे उस अमीर व्यक्ति के किए कार्यों से नाराज़ होते, और ना ही उसका नाम पूछते। जब नबी नातान ने उनसे कहा, “आप ही वह धनी व्यक्ति हैं”, तब राजा दाऊद का दिल पछतावे से भर गया और आगे चलकर उन्होंने इसी भाव को स्त्रोत 51 में लिखा। इसीलिए अगर हममें से किसी को कभी किसी व्यक्ति के साथ उनकी मौलिकता की चर्चा करनी पड़े तो हमें नबी नातान के उदाहरण को ध्यान में रख कर लोगों से आराम से बात करनी चाहिए।
अंतिम छोर
सुसमाचार में एक और उदाहरण हैं जहां हम येशु को प्रेम से प्रेरित सच कहते हुए पाते हैं। यहां येशु अपने पुनरुत्थान के बाद पेत्रुस से बातें कर रहे हैं। (योहन 21:15-18)। झील के किनारे अपने शिष्यों को खाना खिलाने के बाद येशु पेत्रुस से तीन बार पूछते हैं, “सिमोन, योहन के पुत्र! क्या तुम मुझे प्यार करते हो?” हम जानते हैं कि पेत्रुस मन ही मन शर्म और ग्लानि से जूझ रहा था, क्योंकि उसने पहले येशु को तीन बार अस्वीकार किया था। तो सोचने वाली बात है कि येशु ने यह सवाल ही क्यों किया? येशु ने यह सवाल इसीलिए किया क्योंकि वे जानते थे कि पेत्रुस उन से सच में प्रेम करता था।
फादर डेनियल पूवन्नात्तिल दक्षिण भारत में केरल के मशहूर धर्म प्रचारक हैं। वे कहते हैं कि जब येशु को गेथसेमनी बाड़ी में गिरफ्तार किया गया था तब पेत्रुस जानता था कि अब येशु के साथ बहुत बुरा होने वाला है। फिर भी उसने येशु का पीछा किया, दूर से ही सही, पर अपनी जान जोखिम में डाल कर उसने ऐसा किया। उसका सबसे बड़ा संघर्ष उसके विश्वास और उसके डर के बीच किसी एक को चुनना था। आखिर में जब उससे पूछताछ की गई, तब उसने अपने डर के वश में आकर येशु को अस्वीकार किया। लेकिन लूकस अपने सुसमाचार में इसके बारे में कहते हैं, “प्रभु ने मुड़ कर पेत्रुस की ओर देखा।”
फादर डेनियल इसके बारे में समझाते हुए कहते हैं कि पेत्रुस का येशु को अस्वीकार करना यूदस के धोखे से अलग इसीलिए था क्योंकि पेत्रुस इतना निराश नहीं हुआ था कि वह येशु की नज़रों से गिर जाए। येशु के लिए पेत्रुस के प्रेम ने ही उसे उसकी दुर्बलता और उसकी शर्मनाक गलती के बावजूद कृपा के अंतिम छोर में स्थान दिया। इसीलिए जब येशु ने पलट कर देखा, उनकी नज़र ने जैसे उस उलझन भरे माहौल में एक जाल फेंक कर पेत्रुस को अपनी ओर खींच लिया, और उसे तब तक संभाले रखा जब तक येशु ने वापस आ कर उसकी आत्मा को बचा नहीं लिया।
जब हम उन लोगों से आमना सामना करते हैं जिन्होंने अपनी जिंदगी अपने हाथों से बिगाड़ी है, तब हम उनसे किस प्रकार बात करने की कोशिश करते हैं?
इसीलिए हमें खुद से यह सवाल करना चाहिए, “क्या मैं खुद को बताए गए उदाहरणों की तरह आचरण करता हुआ पाता हूं? क्या मैं नबी नातान और येशु की तरह ही मुश्किल वक्त में संयम रख पाता हूं?
प्रसिद्ध कैथलिक उपदेशक डॉक्टर मार्क नीमो अक्सर कहते हैं, “हमारी जीवन कहानी पाप से शुरू नही हुई थी, वह प्रेम से शुरू हुई थी।” अगर येशु पापियों से बात करते वक्त पहले उनमें छिपी अच्छाई को बाहर लाने की कोशिश करते हैं, तो क्या मुझे और आप को भी ऐसा नहीं करना चाहिए?
प्यारे येशु, मुझे आप ही की तरह प्रेम से प्रेरित सच बोलने की कृपा प्रदान दीजिए। मेरे शब्द दूसरों को मज़बूती दें। और जब भी मैं खुद को निराशा में पाऊं, मैं दुनिया को आपके नज़रिए से देख कर यह भरोसा रखूं कि आपका जीवनदाई संदेश मेरे दिल में प्रवेश करेगा। मैं खास तौर से उन लोगों के लिए प्रार्थना करता हूं जो आपकी राह से भटक गए हैं। आपकी आत्मा मेरे हर शब्द का मार्गदर्शन करे और मुझे प्रेम और चंगाई का स्त्रोत बनाए। आमेन।
'क्या आप आज सुबह एक औसत दर्जे का जीवन जीने के लिए उठे हैं?
आप एक बेहतर और महत्वपूर्ण योजना के लिए बुलाए गए हैं।
चिन्ह और चमत्कार
“मैं तुम लोगों से यह कहता हूं – जो मुझ में विश्वास करता है, वह स्वयं वे कार्य करेगा, जिन्हें मैं करता हूं। वह उन से भी महान कार्य करेगा, क्योंकि मैं पिता के पास जा रहा हूं। तुम मेरा नाम ले कर जो कुछ मांगोगे, मैं तुम्हे वही प्रदान करूंगा, जिससे पुत्र के द्वारा पिता की महिमा प्रकट हो। यदि तुम मेरा नाम ले कर मुझ से कुछ भी मांगोगे, तो मैं तुम्हें वही प्रदान करूंगा।” (योहन 14:12-14)।
हां आपने सही पढ़ा, येशु मसीह ने हमसे कहा है कि हम उनसे भी ज़्यादा महान कार्य करेंगे! जिस ईश्वर ने मनुष्य रूप धारण कर हमारे बीच निवास किया, उस ईश्वर से भी ज़्यादा महान कार्य! क्या हमें यह बात ठीक से समझ भी आ रही है? क्या येशु ने सच में ऐसा वादा किया है? क्या हम इस बात को ठीक तरह समझ भी पा रहे हैं? कोढियों को चंगा करने, अंधों को दृष्टि देने, बहरों को ठीक करने से भी महान कार्य? मृतकों को ज़िंदा करने से भी महान कार्य? क्या येशु के कहने का मतलब था कि हम वे सब कार्य करेंगे जो येशु ने किया, लेकिन उनसे भी ज़्यादा की तादात में, क्योंकि वे अपने पिता के पास जाने की तैयारी कर रहे थे? क्या हम सच में विश्वास करते हैं कि जिन चिन्हों के बारे में येशु ने हमें बताया था वे चिन्ह उन लोगों पर प्रकट होंगे जो येशु पर विश्वास करते हैं? और क्या हम इन चिन्ह और चमत्कारों के भागी बनेंगे? क्योंकि येशु ने कहा है, “वे मेरा नाम ले कर अपदूतों को निकालेंगे, नवीन भाषाएं बोलेंगे और सांपों को उठा लेंगे। यदि वे विष पियेंगे, तो उस से उन्हें कोई हानि नही होगी। वे रोगियों पर हाथ रखेंगे और रोगी स्वस्थ हो जाएंगे।” (मारकुस 16:17-18)।
पिछले कुछ सालों से मैं अपने शहर मैनचेस्टर, इंग्लैंड में स्थित एक चैरिटी में सयाम्सेवक के रूप में काम कर रहा था। यहां अलग अलग चर्च और अलग अलग संप्रदाय के लोग साथ आ कर बेघर लोगों की सेवा किया करते थे, उन्हें रात को रहने के लिए जगह, सोने के लिए बिस्तर, शाम का खाना, और जाने से पहले सुबह का नाश्ता दिया करते थे। शनिवार को मेरे कैथलिक चर्च की बारी थी। अक्सर मुझे रात को जाग कर इन बेघर लोगों की सेवा करने, उन्हें खाना देने और उनका खयाल रखने की कृपा मिलती थी। मैं इन लोगों की सेवा करना बड़े सौभाग्य की बात समझता हूं। इन लोगों में काफी लोग मुसलमान थे।
अराजकता का सिद्धांत
वहां कई सालों से कई चमत्कार होते आ रहे थे। उनमें से एक चमत्कार बड़ा ही अनोखा था। रात शुरू ही हुई थी, हमेशा की तरह मैं एक वॉलंटियर साथी (जो मेरे दोस्त भी थे) के साथ बेघर लोगों को इकट्ठा करने निकला। हमने घंटी बजाई और बिल्डिंग के अंदर गए। वहां मुझे एक औरत मिली जिन्होंने मुझे एक पर्चा दिया जिसमें एक नाम लिखा था। उस औरत ने मुझसे कहा कि यह नाम एक ऐसे व्यक्ति का था जिसे कुछ समय पहले पुलिस यहां छोड़ गई थी क्योंकि वह सड़क पर बैठा नशा कर रहा था। और हालांकि मुझे बताया गया कि वह व्यक्ति अब ठीक था और सो रहा था, फिर भी मैं इन बातों से खुश नही था और मैंने खुद उससे मिलने की इच्छा जताई। जब मैं उससे मिला, उसकी आंखों में मुझे घना अंधेरा दिखाई दिया। मुझे उससे तुरंत दूर हो जाने का मन हुआ इसीलिए मैंने उससे कहा कि दुर्भाग्यवश आज रात वह यहां नही रह सकता। मेरे लिए ऐसा कहना बड़ा मुश्किल था, क्योंकि इसका मतलब था कि वह रात उसे सड़क पर बितानी पड़ेगी। लेकिन उसके लिए यहां आ कर रहना भी ठीक नही था। मैंने उसे समझाया कि हमें पता चला था कि वह नशा कर रहा था, और क्योंकि यहां कुछ औरतें भी रात गुज़ार रही थी हम उसे यहां रहने की इजाज़त नहीं दे सकते।
हम एक इंसान को आश्रय देने के लिए बाकी लोगों को बुरी हालत में नहीं रख सकते थे। और हालांकि उसने हमसे कहा कि वह चुपचाप आराम से रहेगा, मैंने उससे कहा कि हम उसे इसलिए यहां रुकने की इजाज़त नहीं दे सकते क्योंकि इस आश्रय में नशा करने और नशा रखने की मनाही थी। मेरे इतना कहने पर वह चिल्लाने लगा और कसम खाने लगा कि वह खुद बाहर चला जाएगा। मैंने उससे कहा कि एक बार वह बाहर गया तो फिर उसे हमारी इजाज़त के बगैर फिर से अंदर नहीं आने दिया जाएगा। मेरे इतना कहते ही वह बाहर शहर की ओर भागा, इसी बीच पास वाले कमरे में दो आदमी लड़ने लगे। चारों तरफ हंगामा होने लगा। इन सब के बीच मुझे एक और व्यक्ति को आश्रय से निकालना पड़ा। इसके बाद भी खूब हंगामा हुआ। मैंने खूब समझाया पर वह इंसान इतना थका था, इतने गुस्से में था और इतने नशे में था कि वह कुछ सुनने समझने की हालत में ही नही था।
ईश्वर को सुझाव देना?
जब हम इन सब हंगामे के बाद बाहर निकले तब बाकी लोग आ कर हमसे हाथ मिला कर हमें शुक्रिया अदा करने लगे कि हमने उन दो व्यक्तियों को बाहर निकाल दिया, क्योंकि उन लोगों ने बाकी लोगों को काफी परेशान कर रखा था। ये लोग बड़े खुश थे कि उस रात वे शांति से सो पाएंगे। जब हम आगे बढ़े तब हमने एक पुलिस वैन को बीच रोड खड़े देखा। पुलिस ऑफिसर सबको पीछे हटने का आदेश दे रहे थे, क्योंकि बीच रास्ते में एक इंसान बेहोश पड़ा था। दूसरा पुलिस वाला झुक कर उस इंसान की नब्ज़ देखने लगा। मुझे जल्दी ही इस बात का अहसास हुआ कि ज़मीन पर पड़ा इंसान वही पहला मुसलमान है जो हमसे लड़ाई कर के शहर की ओर भागा था। मैं तुरंत पुलिस वाले के बगल से गुज़रता हुआ उस इंसान के पास पहुंचा और मैंने उस पर अपने हाथ रखे।
“अरे तुम यह क्या कर रहे हो?” पुलिस वाले ने गुस्से में पूछा, लेकिन मैंने उनसे कहा कि मेरा इस व्यक्ति के लिए प्रार्थना करना बेहद ज़रूरी है। फिर मैंने तुरंत ईश्वर से प्रार्थना की ” हे ईश्वर तू ने सृष्टि के प्रारंभ में इस दुनिया में जान फूंकी थी, इस इंसान में भी जान फूंक दे। येशु, तू ने अपने दोस्त लाजरुस को कब्र में से जिलाया था, इस इंसान को भी जिला दे।” बीच में मैं रुक कर सोचने लगा, “मैं कौन होता हूं अपनी साधारण जुबान से ईश्वर को सलाह देने वाला? आखिर वे ईश्वर हैं। और उनके सामने मेरे शब्द कितने मामूली हैं। हां यह बात ज़रूर है कि यह प्रार्थना मैंने सच्चे दिल से की थी। फिर मैंने पवित्र आत्मा से मिले वरदान जो की “अनोखी भाषाओं के वरदान” का प्रयोग कर प्रार्थना की ( 1 कुरिंथी 12:1-11)
जब मेरा दिल बैठ गया
संत पौलुस हमसे कहते हैं कि, “आत्मा भी हमारी दुर्बलता में हमारी सहायता करता है। हम यह नही जानते कि हमें कैसे प्रार्थना करनी चाहिए, किंतु हमारी अस्पष्ट आहों द्वारा आत्मा स्वयं हमारे लिए विनती करता है। ईश्वर हमारे हृदय का रहस्य जानता है। वह समझता है कि आत्मा क्या कहता है, क्योंकि आत्मा ईश्वर के इच्छानुसार संतों के लिए विनती करता है।” मुझे याद नहीं कि मैं वहां कितनी देर अपने घुटनों में रह कर प्रार्थना करता रहा, पर कुछ समय बाद अचानक एक पुलिस वाला चिल्ला उठा, “मुझे इसकी नब्ज़ मिल गई!!! यह सुनकर मेरा दिल झूम उठा। मैं उत्साहित हो कर लगातार येशु को धन्यवाद दिए जा रहा था। कुछ समय बाद एंबुलेंस भी आ गई और हार्ट मॉनिटर में उसकी धड़कन देख कर मैं ईश्वर को और धन्यवाद देने लगा।
इन सब के बीच मैंने अपने आसपास के लोगों पर ध्यान ही नही दिया था क्योंकि उस समय मेरा सारा ध्यान उस इंसान को बचाने में लगा हुआ था। और मैं यह विश्वास करता हूं कि ईश्वर ने ही मुझे उस इंसान की मदद करने के लिए प्रेरित किया। इन सब के बाद जब मैं वहां से उठा तो मुझे अहसास हुआ कि उस स्थान पर काफी बड़ी भीड़ इकट्ठी हो गई थी। फिर से कई लोग मुझसे मिले और उन्होंने मुझे धन्यवाद कहा, क्योंकि इतने हंगामे के बाद भी मैंने उस व्यक्ति के लिए प्रार्थना की थी।
कुछ हफ्तों बाद मैं फिर से आश्रय में वॉलंटियर के रूप में कार्य कर रहा था जब एक दूसरा मुसलमान व्यक्ति मेरे पास आया। उसके चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान थी और वह मुझसे उस व्यक्ति के बारे में बात करना चाहता था जिसके लिए उस रात मैंने प्रार्थना की थी। उसने मुझे बताया कि उस रात वाला व्यक्ति तीन साल पहले इंग्लैंड आया था और वह तभी से शराब और नशे का आदी था। लेकिन कुछ दिनों पहले इस व्यक्ति की मुलाकात उस शराबी व्यक्ति से हुई और वह यह देख कर हैरान रह गया कि वह शराबी व्यक्ति पूरी तरह नशा मुक्त हो कर वापस अपने घर जा कर रहने लगा था। अब वह व्यक्ति बेघर नही था। मैंने यह सब सुनकर उत्साहित हो कर ईश्वर की स्तुति की। हालांकि कहानी यहीं समाप्त नही होती। मैंने महसूस किया कि जिस व्यक्ति ने मुझे यह खबर दी थी उसके दिल में भी कोई दुख था। इसीलिए मैंने उससे सुसमाचार सुनाया जिसके बाद हमने साथ में प्रार्थना की। हमारा ईश्वर आशिषों की बौछार करने वाला ईश्वर है।
ईश्वर सच में महान है!
हमें विश्वास में दृढ़ होना चाहिए। येशु ने हमसे कहा है कि विश्वास का एक छोटा सा बीज भी अपने अंदर पहाड़ों को हिलाने की ताकत रखता है और “ईश्वर के लिए सब कुछ संभव है” (मत्ती 19:26)। त्रियेक ईश्वर, सृष्टिकर्ता, मुक्तिदाता और शुद्धिकर्ता, पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा हर बपतिस्मा प्राप्त विश्वासी में निवास करते हैं। हमें इसी बात पर विश्वास करते हुए अपना जीवन बिताना चाहिए। “येशु मसीह एकरूप रहते हैं – कल, आज और अनंत काल तक। और उनके शब्द “आत्मा और जीवन” हैं (योहन 6:63)।
'“देखिये। देखिये घावों को। घावों के अन्दर प्रवेश कीजिये । उन्ही घावों के द्वारा हम चंगे हुए हैं। क्या आप कटुता का अनुभव कर रहे हैं, या उदास महसूस कर रहे हैं, क्या आप को लगता है कि जीवन सही रास्ते पर नहीं है और आप बीमार भी हैं? वहाँ देखिये, शांत भाव से देखिये ।“
इन्हीं शब्दों के साथ संत पापा फ्रांसिस हमें बताते हैं कि येसु के पांच घावों – उनके छिदे हुए हाथ, पाँव और बाजू के द्वारा कोई भी व्यक्ति किस तरह पूर्ण चंगाई पा सकता है। प्रायः सभी काथलिक इन पांच घावों की भक्ति से परिचित हैं। लेकिन क्या आपने येशु के छठवें घाव के बारे में सुना है?
बारहवीं शताब्दी के फ़्रांसीसी मठाध्यक्ष और आध्यात्मिक रहस्यवादी संत बर्नार्ड क्लेयरवॉक्स ने येशु से पूछा कि उनकी सबसे बड़ी अप्रिय पीड़ा क्या थी? येशु ने कहा: वह पीड़ा मेरे कंधे पर थी जिसे मैंने क्रूस के दु:खदायी रास्ते में सहन किया था । उस घातक घाव की पीड़ा बाकि अन्य घावों से अधिक थी, जिसके विषय में किसी भी व्यक्ति ने कभी कोई विवरण नहीं दिया है।
बीसवीं शताब्दी में पियत्रेलसीना के संत पिओ ने इस छठवें घाव की पुष्टि की । वे एक जीवित संत के रूप में लोकप्रिय थे, जिन्होने 50 से अधिक वर्षों तक अपने शरीर पर मसीह के घावों को वहन किया। एक बार कैरल वोज्टीला (जो बाद में संत जॉन पॉल द्वितीय बने) के साथ पाद्रे पिओ की दिलचस्प बातचीत हुई। उस बातचीत के दौरान फादर वोज्टीला ने उन से पूछा कि उनके क्षतचिन्ह (stigmata) के किस घाव से उन्हें सबसे अधिक दर्द हुआ । उन्हें उम्मीद थी कि पाद्रे पिओ अपनी छाती के घाव के विषय में कहेंगे। लेकिन पाद्रे पिओ ने उत्तर दिया, “यह मेरे कंधे का घाव है, जिसके बारे में कोई नहीं जानता है और न ही इसे कभी ठीक किया गया या इलाज किया गया है।”
पाद्रे पिओ की मृत्यु के बाद, संत की सारी संपत्ति की सूचि बनाने का काम ब्रदर मॉडेस्टिनो को सौंपा गया था । उन्होंने पाया कि पाद्रे पिओ के गंजी पर खून का धब्बा था जो गोल आकार में था, जो उनके दाहिने कंधे के पास का था। उसी शाम ब्रदर मॉडेस्टिनो ने अपनी प्रार्थना में पाद्रे पिओ से उनकी गंजी के रक्तरंजित निशान का अर्थ पूछा। मसीह के घावों को कंधे पर धारण करने के सबूत के रूप में उसने पाद्रे पिओ से एक चिन्ह की मांग की। उसी रात को मध्यरात्रि के समय ब्रदर मॉडेस्टिनो अपने दाहिने कंधे के असहनीय दर्द से जाग उठे। उन्हें लगा कि कोई चाकू उनके कंधे की हड्डी तक चुभा दिया हो। वे सोचने लगे कि अगर यह दर्द जारी रहा तो उस दर्द से उनकी मृत्यु हो जाएगी, लेकिन कुछ समय बाद दर्द खत्म हो गया। पाद्रे पिओ की आध्यात्मिक उपस्थिति के संकेत स्वरूप उनका कमरा एक स्वर्गीय इत्र की सुगंध से भर गया। और उन्हें एक आवाज़ सुनाई दी, “यह वही है जिसे मुझे सहना पड़ा।“
इस पर विचार करें: येशु ने अपने पांवों को क्रूस पर ठोके जाने की अनुमति दी। उसने स्वेच्छा से अपने हाथों को समर्पित कर दिया। उन्हें अपनी बगल को भेदा जाना स्वीकार्य था। संत योहन के सुसमाचार के अनुसार, येशु के कंधे पर क्रूस का भरी बोझ लादा गया, कंधा घाव और खून से भर गया था। जिस कंधे पर बिना किसी और की सहायता से येशु ने हमारे पापों का बोझ उठाया, वही कंधा उनके पूरे संकट भरी यात्रा के दौरान क्रूस का भार ढोने के लिए उपलब्ध रहा।
यह कंधा आज भी हम सभी के लिए उपलब्ध है, और उन लोगों के लिए भी, जिनको इसकी जरूरत है।
इसलिए, संत पिता फ्रांसिस हमसे अनुरोध करते हैं कि, हम सब शांत भाव से उनकी ओर देखें। जो हमें अपना कंधा दे रहे हैं, उन येशु की आवाज़ को सुनने ओर समझने की कोशिश करें, ताकि उनके कंधो पर आप अपना सिर रख कर आराम करें और उनके भयानक घावों की पीड़ा को हम सब की खातिर सहने के लिए सक्षम बनानेवाले उनके प्यार को महसूस करें|
मसीह के कंधे के घाव के प्रति भक्ति को बढ़ावा देने के लिए, संत बर्नार्ड क्लेयरवॉक्स ने मसीह के कंधे के घाव के प्रति इस प्रार्थना को लिखा:
हे प्राण प्यारे येसु, ईश्वर के विनम्र मेमने, मैं अभागा पापी, तेरे कंधो के पवित्र घावों की वंदना और पूजा करता हूँ जिस पर तूने क्रूस का भारी बोझ उठाया था, वह भारी बोझ जो मांस को फाड़ देता है और हड्डियों को नग्न कर देता है। तेरे अति पवित्र शरीर पर अन्य सभी पीड़ाओं से अधिक इस घाव ने सबसे अधिक पीड़ा पहुंचाई है। हे दुःख से घिरे येशु, मैं तेरी आराधना करता हूँ, तेरे अति पवित्र और दर्दभरे घाव के लिए मैं तेरी स्तुति करता हूँ, तुझे महिमान्वित करता हूँ और तुझे धन्यवाद देता हूँ। मुझ पापी पर दया कर। अपने पवित्र क्रूस के भारी बोझ के तले मेरे क्षम्य और अक्षम्य पापों को कुचल दे और मुझे अपने क्रूस पथ से स्वर्ग की ओर ले चल। आमेन।
'कभी कभी ईश्वर आपकी हालात नहीं बदलता, क्योंकि वह आप के दिल को बदलना चाहता है |
ईश्वर हमें पापमय जीवन को छोड़ने और उसकी शरण लेने के लिए हर वक्त आमंत्रित करता रहता है | हमारा ईश्वर प्रेम है और उसकी करुणा अनंत है | कठिन ह्रदय की तुलना मैं एक कंक्रीट ह्रदय से करता हूँ | कठोर हो चुके और ईश्वर की कृपाओं के प्रति बंद हो चुके ह्रदय के अन्दर प्रवेश करना मुश्किल है |
क्या कठोर दिलों के लिए कोई आशा है ? जी हाँ आशा हमेशा बनी रहती है | पीछे मुड़कर देखता हूँ तो अनुभव करता हूँ कि जब मैं अपने जीवन की समस्याओं के भूल भुलैय्या में खो गया था, तब लोग मेरे लिए प्रार्थना कर रहे थे। मेरी माँ ने मेरी मुक्ति के लिए कई माला विनती की |
पाप, नशे की लत और दुनियावी भोग विलास के कुंड में डूबे हुए लोगों पर कृपाओं की वर्षा होने में स्वर्ग के फाटक पर अपनी प्रार्थनाओं से लगातार भूचाल मचानेवाले शक्तिशाली प्रार्थना योद्धाओं की मध्यस्थ प्रार्थना बड़ा कार्य करती है |
यदि आप एक लंबी अवधि से कंक्रीट से बने फुटपाथ पर चलते हैं और उसके किनारे की ओर ध्यान देंगे, तो आपको एक हल्की दरार बननी दिखाई दे सकती है | इस दरार में कोई बीज और पानी प्रवेश कर जाता है । फिर अचानक हरे पत्ते निकल आते हैं, और दरार अधिक चौडी हो जाती है तथा और अधिक पानी और अन्य चीज़े दरार में प्रवेश कर लेते हैं | धीरे धीरे वह छोटी दरार फैलती हुई बड़ी दरार बन जाती है, और उसमें भरपूर जीवन पनपता है। यह कठोर दिल जैसा ही है। जो लोग इन खोई हुई आत्माओं के लिए प्रार्थना करते हैं, उपवास करते हैं और अपने कष्टों का समर्पण करते हैं, हो सकता है कि कुछ समय बाद अपने दिलों के आसपास रखी उन बाधाओं में मामूली दरारें देखना शुरू कर दें । ईश्वर को उनकी कृपा, प्रेम और उपचार को व्यक्ति के दिल में टपक कर आने के लिए बस एक दरार की आवश्यकता होती है । कोई व्यक्ति पापी जीवन से दूर निकलकर दूसरों की सेवा करने के लिए ईश्वर की सेना में प्रवेश करें, यह दृश्य कितना मनोरम है | परमेश्वर तथा सभी स्वर्गदूत और संत इस पर आनंद मानते हैं |
अपने प्रिय लोगों के लिए विश्वास में लौटने की चिंता लेकर आप लंबे समय से प्रार्थना कर रहे हैं तो आप हार न मानें। प्रार्थना में दृढ़ रहें। स्वर्ग की उस ओर की बात आप शायद कभी नहीं जानेंगे, जहां आपकी प्रार्थनाओं ने किसी को परमेश्वर की ओर लौटने में कितनी मदद की है। मुझे पता है कि जब आप स्वर्ग में इन खूबसूरत आत्माओं को देखेंगे, उस समय उनके लिए प्रार्थना करने के लिए वे आपको धन्यवाद देंगे |
“प्रभु ईश्वर यह कहता हैं, “मैं तुम्हें एक नया ह्रदय दूंगा और तुम में एक नई आत्मा रखूंगा; मैं तुम्हारे शरीर से पत्थर का ह्रदय निकाल कर तुम लोगों को रक्त मांस का ह्रदय प्रदान करूंगा | ” (एज़ेकिएल 36:26)
मेरे प्रिय परमेश्वर, जब मैं अपने प्रियजनों के पास पहुंच जाती हूं, तब मैं समझ जाती हूं कि यह तू ही है जो उनके दिलों को बदल देता है | तेरे उद्देश्य को पूरा करने के लिए तू मुझे अपनी शांति का साधन बना। आमेन।
'