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अक्टूबर 27, 2021 258 0 Shalom Tidings
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आपका मिशन क्या है?

रेमंड कोलबे का जन्म सन 1849 में एक गरीब पोलिश परिवार में हुआ। बचपन में वे इतने नटखट और शरारती थे कि कोई यह अंदाज़ा भी नहीं लगा सकता था कि आगे चल कर लोग उन्हें परोपकार के शहीद, ऑशविट्ज़ के संत, मिलिशिया इमाकुलाटा के संस्थापक, माँ मरियम के प्रेरित और बीसवीं शताब्दी के संरक्षक संत के रूप में जानेंगे और याद करेंगे। एक दिन उनकी माँ उनके व्यवहार से इतनी परेशान हो गईं कि उन्होंने गुस्से में उन पर चिल्लाते हुए कहा: “रेमंड, तुम्हारा क्या होगा?!”

इस बात ने उन्हें झकझोर दिया। दुख भरे दिल के साथ वह गिरजाघर गया और प्रार्थना करते वक्त उसने ईश्वर के सामने वह सवाल दोहराते हुए पूछा, “मेरा क्या होगा? मेरा क्या बनेगा?” तब उसे मां मरियम के दर्शन हुए जिसमें उसने देखा कि मां मरियम अपने दोनो हाथों में एक एक मुकुट पकड़ी हुई है। एक मुकुट सफेद रंग का था और एक लाल रंग का। माँ मरियम ने रेमंड की ओर प्यार भरी नज़रों से देख कर उससे पूछा कि क्या वह दोनों में से किसी मुकुट को लेना चाहेंगे? रेमंड ने जवाब में कहा, “हां”, उसे दोनों मुकुट चाहिए थे।

रेमंड को पवित्रता का सफेद मुकुट पहले प्राप्त हुआ, जब उसने मैक्सिमिलियन कोल्बे का नाम स्वीकारा और धार्मिक प्रतिज्ञाओं को स्वीकार किया, जिनमें से एक प्रतिज्ञा पवित्रता की भी थी। अपने जूनियर सेमिनरी के दिनों में वह अक्सर अपने दोस्तों से कहा करता था कि वह किसी बड़े उद्देश्य पर अपना सारा जीवन न्यौछावर कर देना चाह रहा था। आखिर में उसने सन 1917 में मिलिशिया इमाकुलाटा की स्थापना इस उद्देश्य से की कि एक दिन वह निष्कलंक मां मरियम के नेतृत्व में मसीह की मध्यस्थता द्वारा सारी दुनिया को सच्चे ईश्वर से जोड़ पाएंगे। इस मिशन को पूरा करने के लिए उसने सब कुछ कुर्बान कर दिया, और इसी के सहारे उसे शहादत का लाल मुकुट प्राप्त हुआ।

साल 1941 में कोल्बे को नाज़ी सेना ने गिरफ्तार कर लिया और ऑशविट्ज़ प्रताड़ना शिविर भेज दिया। वहां एक कैदी का तब रो रो कर बुरा हाल हो गया जब किसी कैदी के फरार होने की सज़ा के रूप में एक कैदी को बिना दाना पानी से वंचित रखने की कैद की सज़ा सुनाई गई। अपने बीवी बच्चों की याद में उस व्यक्ति का बुरा हाल था। जब फादर कोल्बे को इस बात का पता चला तब उन्होंने उस कैदी की जगह खुद कैद होने का प्रस्ताव दिया। फादर कोल्बे ने जो दिन कैद में गुज़ारे, उन दिनों में उन्होंने कई लोगों को प्रार्थना करने के लिए प्रेरित किया। हर निरीक्षण के दौरान, जब बाकी लोग फर्श पर लेटे रहते थे, तब फादर मैक्सिमिलियन घुटने टेक कर या बीचों बीच खड़े हो गए, अधिकारियों से खुशी से मिला करते थे। दो हफ्तों की सज़ा के बाद, फादर कोल्बे को छोड़ कर बाकी सभी कैदी भूख प्यास से मर गए। मां मरियम के स्वर्ग में उद्ग्रहण की शाम को, नाज़ियों ने परेशान हो कर फादर कोल्बे को कार्बोलिक एसिड का इंजेक्शन लगा कर मार डालने का फैसला किया, और फादर कोल्बे ने भी शांत मन से उस घातक इंजेक्शन को लेने के लिए अपना बायां हाथ प्रस्तुत कर दिया। साल 1982 में पोप जॉन पॉल द्वितीय ने मैक्सिमिलियन कोल्बे को संत घोषित करते हुए उन्हें परोपकार के संत और बीसवीं शताब्दी के संरक्षक संत की उपाधि दी।

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