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उस छोटी सी, धीमी सी आवाज को सुनें …
फुसफुसाहट अप्रत्याशित रूप से आती है। किसी पुस्तक में पाए गए या किसी मित्र या वक्ता से सुने गए वे शांत और धीमी आवाज़ या वचन जो हमारे जीवन के मार्ग में सही समय पर सुनाई देते हैं – एक ऐसे क्षण पर जब हमारे दिल उन्हें नए या अनोखे तरीके से सुनने के लिए तैयार रहते हैं। यह बिजली की चमक की तरह होता है, जो अचानक आसमान के नीचे के परिदृश्य को रोशन कर देता है।
इस तरह के एक वाक्यांश ने हाल ही में मेरा ध्यान आकर्षित किया, “जब आप दोष लगाने की इच्छा को जिज्ञासा से बदल देते हैं, तो सब कुछ बदल जाता है।” हम्म…मैं इस वाक्य पर विचार करने के लिए रुक गयी। मुझे लगा कि इस वाक्य में दम है! मैंने वर्षों से नकारात्मक विचारों को सकारात्मक पुष्टि और धर्मग्रन्थ के विभिन्न पाठों के बल पर बदलने का अभ्यास किया था, और इसके परिणामस्वरूप सोचने का एक नया तरीका सामने आया था। मुझे लग रहा था कि नकारात्मकता की ओर एक आनुवंशिक प्रवृत्ति है। जैसे जैसे मैं उम्र में बड़ी होती जा रही थी, वैसे वैसे मैंने अपने माता-पिता में यह प्रवृत्ति देखी थी, और वह प्रवृत्ति मुझमें समा गई थी, लेकिन मैं वैसा नहीं बनना चाहती थी। परिणामस्वरूप, मैंने अपने अन्दर आशावादी मित्रों के प्रति आकर्षण महसूस किया! वे मेरे पूर्व अनुभवों से भिन्न, कुछ अलग सोच रखते थे, और मैं उनके इस प्रकार की सोच पर आधारित व्यवहार के प्रति आकर्षित हुई! दूसरों में जो अच्छा था उसकी तलाश करना मेरा उद्देश्य था, लेकिन यह कठिन परिस्थितियों के बीच भी सकारात्मकता की तलाश में परिणत हुआ।
जो कोई भी इस धरती पर कुछ समय तक रहा है, वह जानता है कि जीवन बाधाओं और चुनौतियों से भरा है। योहन के सुसमाचार में येशु इस सत्य को प्रकट करते हैं: “मैं ने ये बातें तुम से इसलिये कही हैं, कि तुम मुझ में शान्ति प्राप्त करें। इस दुनिया में तुम्हें समस्याएं तो झेलनी ही होंगी। लेकिन दिल थाम लो! मैने संसार पर काबू पा लिया है।” हम देखते हैं कि येशु के ये वचन हेलेन केलर जैसे लोगों में सच साबित हुए हैं। एक बीमारी ने हेलेन कलर को बचपन में ही बहरी और अंधी बना ली, इस के बावजूद, यह साबित करने में सक्षम थी कि “यद्यपि यह संसार दुखों से भरा है, यह संसार उस पर काबू पाने वालों से भी भरा हुआ है। तब मेरा आशावाद बुराई की अनुपस्थिति पर नहीं टिका हुआ है, बल्कि अच्छाई की प्रधानता में एक सुखद विश्वास और हमेशा अच्छाई के साथ सहयोग करने के इच्छुक प्रयास पर टिका हुआ है, ताकि यह अच्छाई ही प्रबल हो। मैं उस शक्ति को बढ़ाने की कोशिश करती हूं जिसे ईश्वर ने मुझे हर चीज और हर किसी में सर्वश्रेष्ठ को देखने और अपने जीवन का सबसे अच्छा हिस्सा बनाने के लिए दी है।”
समय के आगे बढ़ने पर, मेरे प्रयासों और ईश्वर की कृपा के परिणामस्वरूप, प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद जिन बातों के लिए मुझे आभारी होना चाहिए, उन बातों पर मेरा ध्यान तुरंत केंद्रित करके कठिनाइयों का जावाब देने के लिए मुझे प्रेरणा मिली। “बदबूदार सोच” में फंसना आसान है! शिकायतों, आलोचनाओं और निंदाओं से दूर, आंतरिक और बाहरी बातचीत को पुनर्निर्देशित करने के लिए इरादे और साहस की आवश्यकता होती है! मैंने पहली बार एक युवती के रूप में ऐसे कुछ शब्द सुने थे जिन पर मैंने अक्सर विचार किया है; वे शब्द हैं: “विचार बोओ, कार्य की फसल काटो। कार्य बोओ, आदत की फसल काटो। आदत बोओ, जीवन शैली की फसल काटो। जीवन शैली बोओ, किस्मत की फसल काटो।”
हम पहले सोचते हैं उसके बाद कार्य करते हैं। जो कार्य हम बार-बार करते हैं वह हमारी आदत बन जाती है। हमारी आदतों में हमारे जीवन जीने का तरीका शामिल होता है। जिस तरह से हम अपना जीवन जीते हैं, समय के साथ हम अपनी पसंद तय करते हैं, वे सब मिलकर हम जो हैं, हमें बनाते हैं। किसी ने ये शब्द कहे थे, लेकिन, सिर्फ इसलिए मुझे इन शब्दों पर विश्वास नहीं हुआ। इस सच्चाई को जानने के लिए किसी की अंत्येष्टि में शामिल होने और मृतक व्यक्ति के बारे में जो बात कही जाती है, उसे ध्यान से सुनने की ही आवश्यकता है! कोई अपना जीवन कैसे जीता है यह निर्धारित करता है कि उन्हें कैसे याद किया जाएगा… दुसरे शब्दों में कहें तो अगर वह व्यक्ति याद किये जाने लायक था तो वह उसके जीने के तरीके पर निर्भर है।
बेशक, अच्छा जीवन जीने के लिए लगातार मनन चिंतन की आवश्यकता होती है, साथ ही साथ परिस्थितियों के अनुसार अनुकूलन करने की इच्छा भी ज़रूरी है। अब मैं ‘दोष लगाने की इच्छा को जिज्ञासा से बदलने’ की नसीहत पर विचार कर रही हूं। मेरे चारों ओर बहुत सारे अवसर हैं! जिस तरह मैं अतीत में नकारात्मक दृष्टिकोण के साथ जीवन नहीं जीना चाहती थी, अब, मैं पड़ोसियों को दोषी के रूप में देखने की आदत नहीं डालना चाहती, ताकि अपने पड़ोसी को अपने समान प्रेम करने केलिए येशु की आज्ञा का पालन करना मेरे लिए आसान हो जाए।
मुझे इस नई प्रतिक्रिया को आज़माने का अवसर तुरंत मिल गया! अगले दिन एक मित्र ने मेरे साथ जो कुछ साझा किया, वह जल्दी से किसी अन्य व्यक्ति को दोषी के रूप में नजरिया रखने की प्रवृत्ति में बदल गया, और बिजली की तरह ही, मैं अपने मित्र के साथ सहमत हुई! लेकिन जैसे ही वह धीमी आवाज़ आई, “यदि तुम दोष लगाने के निर्णय को जिज्ञासा में बदल दोगी, तब सब कुछ बदल जाएगा।” एक पल में, उस व्यक्ति ने ऐसा कार्य क्यों चुना, हमने इस जिज्ञासा का चयन किया। उसके बाद जिस बात पर हम दोनों को दोष लगाना इतना आसान लगा, हमारे दिमाग में आया कि वैसा कार्य करने का उसके पास एक प्रशंसनीय कारण था! यह सच था….जिज्ञासा सब कुछ बदल देती है! और अगर ऐसा नहीं भी होता है, तो यह मुझे बदल सकती है…और यह हमेशा इसी लक्ष्य केलिए ही तो था!
“यदि हम अपने शत्रुओं के गुप्त इतिहास को पढेंगे तो हम पायेंगे कि प्रत्येक मानव के जीवन में दुःख और पीड़ा हैं जो सभी प्रकार की शत्रुता को समाप्त करने के लिए पर्याप्त है।” – हेनरी वड्सवर्थ लॉन्गफेलो
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क्या आप अपने जीवन में मुसीबतों और संघर्षों से परेशान हैं? उन संघर्षों को आशीर्वाद में बदलने के लिए आज ही अपनी सोच बदलें!
क्या याकूब की पुस्तक हमें परीक्षाओं में आनन्दित होने के लिए कहती है? लेकिन क्या यह संभव है, खासकर जब आपको लगता है कि आप एक भंवर में फंस गए हैं और आप के लिए सबसे अच्छा यही होगा कि आप फिर से डूबने से पहले बस एक और सांस लें? क्या यह तीन साल की इस महामारी के दौरान संभव है, क्योंकि इस महामारी ने हममें से कई लोगों को उन तरीकों से चुनौती दी है जिनकी हमने कभी कल्पना भी नहीं की थी?
पिछले कुछ वर्षों के दौरान ऐसे दिन आए जब मुझे ऐसा लगा जैसे मैं किसी फिल्म को देख रहा हूं। फिल्में हमें बहुत सी चीजें सिखा सकती हैं और वे बेहतरीन फिल्में जो आपको आत्मविश्वास से भरी मुस्कान के साथ हंसाती हैं, उनका अंत अच्छा नहीं होता। उनमें एक अंतर्निहित सच्चाई होती है जो पूरी कहानी में रहती है और वह सच्चाई चढ़ते चढ़ते उत्कर्ष में पहुँच जाती है। इस तरह की फिल्में दर्शक के अंदर एक अकथनीय खींच या टीस पैदा करती हैं जो चिल्लाती है, ‘आप जो देख रहे हैं उससे कहीं और अधिक बातें छिपी है, एक गहरा सच छिपा हुआ है‘।
जब मैं पुराने नियम में अय्यूब की पुस्तक पढ़ता हूं तो मुझे यही लगता है, हालांकि वह कोई फिल्म नहीं है। ‘अय्यूब की परीक्षा हुई, उसने सब कुछ खो दिया और बाद में पहले की तुलना में उसे अधिक वापस मिल गया,’ अगर यह कहानी सच है, तो मैं यही कहूंगा, “नहीं, धन्यवाद, मैं इतनी सारी परीक्षाओं से गुज़रना नहीं चाहता, बस मेरे पास पहले से जो कुछ है बस उतना ही काफी है।”
लेकिन अय्यूब की सभी परीक्षाओं और क्लेशों के बीच कुछ अदृश्य बातें हैं। अय्यूब की कहानी में चल रही यह अदृश्य बात हम सभी के लिए एक शक्तिशाली संसाधन हो सकती है क्योंकि हम कोविड के घटने के दिन देख रहे हैं और जीवन की अन्य चुनौतियों का अनुभव कर रहे हैं।
सब कुछ खो देना
अय्यूब की किताब के पहले वचन में हम देखते हैं कि अय्यूब “निर्दोष और निष्कपट था, ईश्वर पर श्रद्धा रखता था और बुराई से दूर रहता था।” अय्यूब एक अच्छा आदमी था, एक अनुकरणीय व्यक्ति था, और यदि किसी को विपत्ति से बचाया जाना है, तो वह यह अय्यूब ही होना चाहिए। मैं उम्मीद करता था कि चूँकि मैं सही काम कर रहा था, चूँकि मैंने अपना जीवन ईश्वर को समर्पित कर दिया था और उसका अनुसरण करना चाहता था, इसलिए कम से कम कुछ हद तक, मेरे जीवन की राह सुगम और आसान होगी। लेकिन मेरे जीवन के बहुत से अनुभव ऐसे हैं जिस के कारण मेरे दिमाग से इस तरह के विचार को मिटाने में वे अनुभव कामयाब हुए हैं। अय्यूब हमें याद दिलाता है कि परमेश्वर किसी के लिए भी आसान जीवन की गारंटी नहीं देता, उसके दोस्तों को भी नहीं। ईश्वर हमें बस एक बात की गारंटी देता है कि संघर्ष में वह हमारे साथ चलेगा!
अय्यूब सब कुछ खो देता है, और मेरा मतलब है – सब कुछ। अंत में, उसे चर्म रोग होता है, जो कुष्ठ रोग या एक्जिमा जैसा बन जाता है। इन सबके बावजूद वह कभी भी ईश्वर को शाप नहीं देता। ध्यान रहें, अय्यूब के पास प्रेरणा पाने के लिए कोई बाइबल नहीं है। उसके पास केवल वे कहानियां हैं, जो पीढ़ियों से चली आ रही हैं कि परमेश्वर कौन है और परमेश्वर ने कैसे काम किया इत्यादि। किसी बिंदु पर, अय्यूब ने एक निर्णय लिया – वही निर्णय जो हम में से प्रत्येक को लेना चाहिए: क्या हम जिस चीज़ को नहीं देख पाते हैं उस पर विश्वास कर सकते हैं, जिसे हम प्राप्त करते हुए हम देख नहीं पा रहे हैं क्या उसे अस्वीकार नहीं करने का निर्णय ले सकते हैं?
जबरदस्त पीड़ा और नुकसान को सहने के बाद, अय्यूब सोचता है “मेरा जन्म न हुआ होता तो अच्छा होता।“ यह कोई चंचल किशोर का नखरा नहीं था, जैसे किशोर प्रेमी लोग आपसी इश्क के झगड़े और ब्रेक-अप के बाद नखरेपन के साथ सोचते हैं। अय्यूब को अपनी सहन शक्ति के चरम बिंदु के आगे तक धकेल दिया गया था। उसकी सारी दौलत, उसके सारे जानवर, उसकी ज़मीन, इमारतें, नौकर, और सबसे दुखद, उसकी संतान मर गए। और घाव में नमक मलने जैसा, अब उसे चर्म रोग भी हो गया, जो उसे लगातार ढोल की थाप के समान उसके नुकसानों की याद दिलाता है।
सही समय पर
इस बिंदु पर (अध्याय 38), परमेश्वर अंततः अय्यूब को सुधारता है। आप उम्मीद करते होंगे कि सांत्वना देने वाले परमेश्वर के लिए यह एक अच्छा समय होता कि वह अय्यूब को अपने आलिंगन में खींच लेता, या योद्धा राजा की तरह ईश्वर अय्यूब के दुश्मन शैतान पर लात मार कर उसे काबू में लाता। इसके बजाय, परमेश्वर सुधार की बातें कहता है। हमारे लिए इसे समझना मुश्किल हो सकता है, लेकिन अय्यूब को किसी अन्य प्रकार की प्रतिक्रिया की आवश्यकता नहीं थी, उसे सबसे से अधिक परमेश्वर से उस विशेष प्रतिक्रिया की आवश्यकता थी।
मैं इसे आत्म-विश्वास के साथ कैसे कह सकता हूं? क्योंकि ईश्वर हमेशा जानता है कि हमें क्या चाहिए। ईश्वर हमें वह देता है जो हमें विकास, पूर्णता और मुक्ति की ओर ले जाता है – बर्शते हम ऐसा होने देते हैं। हमारा काम यह तय करना है कि क्या हम इस बात पर भरोसा करते हैं कि परमेश्वर जो कर रहा है वह हमारी अपनी भलाई के लिए है।
अय्यूब की कहानी में अंतर्निहित सुंदर सत्य अंत में अध्याय 42 की शुरुआत में सामने आता है, जहां अय्यूब कबूल करता है, “मैंने दूसरों से तेरी चर्चा सुनी थी अब मैं ने तुझे अपनी आँखों से देखा है। इसलिए मैं ने जो कुछ कहा, उस मैं वापस लेता हूँ, अब धूल और राख में बैठकर रोते हुए पश्चात्ताप कर रहा हूँ।”
इस एकल वाक्य में हम अय्यूब की यात्रा की जड़ को पाते हैं। जो हम देख सकते थे उससे कहीं अधिक भाव उसमें है, एक गहरा सत्य जिसे हम समझ सकते थे लेकिन उसका नामकरण नहीं कर सकते, वह अब स्पष्ट हो गया है।
अब तक, अय्यूब ने दूसरों से परमेश्वर के बारे में सुना है। परमेश्वर के बारे में उनका ज्ञान “कही सुनी” बातों के आधार पर था। लेकिन जिस तबाही से वह गुजरा है वह एक ऐसा मार्ग बन गया है जो उसे एकमात्र सच्चे ईश्वर को सीधे अपनी आँखों से देखने की अनुमति देता है।
यदि परमेश्वर आपसे आमने-सामने मिलना चाहता है, यदि वह आपकी कल्पना से अधिक आपके करीब होना चाहता है, तो ऐसा होने के लिए आप क्या क्या परीक्षाएं और मुसीबतें सहने को तैयार होंगे? क्या आप महामारी के इन पिछले तीन वर्षों को परमेश्वर की आराधना की भेंट के रूप में देखने का निर्णय ले सकते हैं? क्या आप अपने जीवन में सभी मुसीबतों, सभी नुकसानों और कठिनाइयों को देख पाते हैं, और उनके माध्यम से काम कर रहे परमेश्वर की रहस्यमय इच्छा को समझ सकते हैं?
अभी एक क्षण लें और अपने जीवन की परीक्षाओं और मुसीबतों को परमेश्वर को आराधना के रूप में अर्पित करें, और फिर उस शांति का अनुभव करें जो शीघ्रता से आपके पास आयेगी!
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प्रश्न – येशु हमें बताते हैं कि हमें स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के लिए “छोटे बच्चों की तरह बनने” की आवश्यकता है, लेकिन संत पौलुस हमें बताते हैं कि हमें परिपक्व मसीही होना चाहिए (इफिसियों 4)। इनमे क्या सही है?
उत्तर – दोनों सही है! लेकिन आइए देखें कि येशु और संत पौलुस का क्या मतलब है, क्योंकि बच्चों और परिपक्व विश्वासियों के गुण अलग-अलग हैं, फिर भी पूरक हैं।
सबसे पहले, बच्चों की सकारात्मक विशेषताएं क्या हैं? वे निर्दोष और शुद्ध हैं, वे उमंग से भरे होते हैं, और वे पूरे दिल से प्यार करते हैं।
क्रिस्टोफर नाम के एक सात वर्षीय लड़के की माँ ने मुझे उस समय के बारे में बताया जब वह अपने बेटे को संत जॉन वियानी की कहानी सुना रही थी। संत जॉन वियानी इतने पवित्र थे कि एक बार शैतान उनके सामने प्रकट हुए और उनसे कहा कि यदि पृथ्वी पर उनके जैसे तीन पवित्र व्यक्ति होते, तो शैतान का राज्य नष्ट हो जाता। यह कहानी सुनकर क्रिस्टोफर रोने लगा। जब उसकी मां ने उससे पूछा कि वह क्यों रो रहा है, तो क्रिस्टोफर ने कहा, “मुझे दु:ख है कि पृथ्वी पर केवल एक ही व्यक्ति पवित्र है। मैं दूसरा बनना चाहता हूँ!” येशु हमसे कहते हैं कि हम बच्चों के इस संपूर्ण-हृदय के प्रेम का अनुकरण करें।
बच्चे अक्सर हंसते हैं, क्योंकि वे खुद को बहुत गंभीरता से नहीं लेते हैं। वे भोले हो सकते हैं, क्योंकि वे संकोची और अभिमानी नहीं हैं। येशु चाहते हैं कि हम संकोच और अभिमान के बिना उसी परित्याग के साथ रहें!
अक्सर, एक छोटा बच्चा मुझे एक बड़ा आलिंगन देगा – भले ही मैं उससे पहले कभी नहीं मिला हो! अपनी मासूमियत और पवित्रता में, बच्चे दूसरों से बिना शर्त प्यार कर सकते हैं। इस तरह का व्यवहार करने के लिए हमें कहा जाता है। बच्चे दूसरों को उनके कपड़ों या रूप-रंग से नहीं आंकते; वे केवल एक संभावित मित्र देखते हैं।
येशु हमसे कहते हैं कि हम बच्चों के समान बन जाएँ। लेकिन हमें बच्चों के समान होने और बचकाने होने के बीच अंतर समझना चाहिए; बचकाने का अर्थ है स्वार्थ, अज्ञानता और चंचलता को प्रदर्शित करना, ये भी बच्चों की विशेषता है।
संत पौलुस हमें बताते हैं कि हमें विश्वास में बच्चे नहीं होना चाहिए, लेकिन मसीह में परिपक्व लोग बनना चाहिए। मसीह में परिपक्व होने का क्या अर्थ है? एक परिपक्व विश्वासी ने कठिनाइयों को झेला है, वह मसीह के साथ गहरी आत्मीयता में चलता है, और उसके पास ज्ञान है।
मैं कार्डिनल कुंग अकादमी नामक एक कैथलिक स्कूल में पढ़ाता हूँ, जिसका नाम कार्डिनल इग्नाशियुस कुंग के नाम पर रखा गया है। कार्डिनल कुंग एक चीनी बिशप थे जिन्हें 1955 में सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा गिरफ्तार किया गया था और 30 से अधिक वर्षों के लिए कैद किया गया था, वे कई वर्ष एकांत कारावास में थे। इतने सारे वर्षों की कैद और यातना के बाद, अधिकारी उन्हें बीजिंग के एक खचाखच भरे स्टेडियम में ले आए, जहाँ उनसे विश्वास को नकारने की मांग की गई थी। इसके बजाय, उन्होंने हज़ारों लोगों के सामने खड़े होकर घोषणा की, “ख्रीस्त राजा अमर रहे!” लोगों ने बड़े प्यार से जवाब दिया, “बिशप कुंग दीर्घायु हों!” इस तरह के नारे से अधिकारी और अधिक क्रोधित हो गए, और उन्होंने बिशप की यातना को अत्यधिक बढ़ा दिया, लेकिन उन्होंने विश्वास को कभी नहीं छोड़ा।
बिशप कुंग एक ऐसा शिष्य है जो कठिन यातनाओं और कष्टों के कठोर क्रूस ढोते हुए आध्यात्मिक परिपक्वता के लिए, तीव्र पीड़ा के माध्यम से दृढ़ रहा। 1986 में अमेरिका जाकर बस जाने के बाद, उन्होंने गवाही दी कि येशु मसीह के साथ उनकी दैनिक, अंतरंग प्रार्थना के कारण ही उन्हें विश्वास में दृढ़ रहने की शक्ति मिली। इन सब यातनाओं के द्वारा वे बिना किसी कड़वाहट या क्रोध के जीवन गुज़ारे, परन्तु प्रज्ञा से ओत-प्रोत रहे।
इसलिए, मसीह का अनुसरण करना बच्चों के उन सुंदर गुणों को प्राप्त करना है – सच्चा, निष्कपट और बेशर्त प्यार; बुदबुदाती खुशी और आश्चर्य; मासूमियत और पवित्रता – और निरंतर प्रयासरत सच्ची दृढ़प्रतिज्ञा, ज्ञान, और प्रभु के साथ दैनिक अंतरंगता, जो विश्वास में परिपक्व लोगों की विशेषता है। आइए, हम बच्चों के समान परिपक्वता के विश्वास को जीते हुए मसीह का अनुसरण करें!
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ब्रह्मांड की उस सबसे बड़ी शक्ति को जानिए जो आपको… और दुनिया के चेहरे को परिवर्तित करने में सक्षम है
2019 में हमारी पल्ली ने गिरजाघर के नवीनीकरण और सुन्दरीकरण पूरा किया जिसमें एक मुलाक़ात स्थान, घुटने टेकने केलिए लकड़ी की पंक्तियाँ, लिफ्ट और स्नानघर शामिल थे, जिस के कारण हमारा गिरजाघर अधिक सुलभ और स्वागत योग्य बन गया। लेकिन नवीनीकरण के तीन साल बाद भी, ऐसा लगता है कि सबसे सबसे परिवर्तनकारी नए कार्य के बारे में कोई भी पल्लीवासी को कोई जानकारी नहीं है: हमारे गिरजाघर के तहखाने में स्थित स्थाई आराधना स्थल।
पृथ्वी पर सबसे अच्छा समय
किशोरों और वयस्कों के लिए बने हमारे नए कक्ष और एक व्यस्त सीढ़ी के बीच एक सुंदर, अंतरंग, अति पवित्र स्थान परम संस्कार की आराधना के लिए अलग रखा गया है। कैथलिकों का मानना है कि परम पवित्र संस्कार में येशु वास्तव में मौजूद है – शरीर, रक्त, आत्मा और दिव्यता के साथ। परम पवित्र संस्कार की आराधना, मिस्सा के बाहर परम संस्कार की हमारी उपासना है। दिन में चौबीस घंटे, सप्ताह में सात दिन कोई भी इस अंतरंग स्थान में प्रवेश कर सकता है, ताकि वेदी पर एक सुंदर मंजूषा में प्रदर्शित पवित्र संस्कार में उपस्थित प्रभु की आराधना में समय बिताया जा सके। कलकत्ता की संत तेरेसा ने एक बार कहा था, “आप येशु के साथ परम पवित्र संस्कार में जो समय बिताते हैं वह आपके द्वारा पृथ्वी पर बिताये जा रहा सबसे अच्छा और उपयुक्त समय है। हर पल जो आप येशु के साथ बिताते हैं, वह उसके साथ आपकी एकात्मता को गहरा कर देगा और आपकी आत्मा को स्वर्ग में हमेशा के लिए और अधिक शानदार और महिमामय बना देगा, और पृथ्वी पर एक चिरस्थायी शांति लाने में मदद करेगा। “पृथ्वी पर चिरस्थायी शांति लाना” कौन ऐसा नहीं करना चाहेगा?! फिर भी, ज्यादातर दिनों में मैं सिर्फ एक बेहतर माँ बनने की कोशिश कर रही हूँ।
एक मजबूत संगति
पिछले एक साल के दौरान, पवित्र संस्कार की आराधना येशु के साथ मेरे रिश्ते का, और मेरे बच्चों के लिए अधिक प्यार के साथ अच्छी माँ बनने के मेरी कोशिस का भी, एक अनिवार्य हिस्सा बन गया है। क्योंकि “मेरा विश्वास इतना परिपूर्ण हो कि मैं पहाड़ों को हटा सकूं, किन्तु यदि मुझ में प्रेम का अभाव है, तो मैं कुछ भी नहीं” (1 कुरीन्थी 13:2)।
जब मैं अपने आप को येशु से दूर महसूस करती हूँ, तब स्थाई आराधना स्थल ही वह स्थान है जहाँ मैं जाती हूँ। यह वह जगह है जहां मैं अपने परिवार के साथ पवित्रता और संतत्व की राह पर चलने के दैनिक संघर्ष को निपटाती हूं। मैंने एक बार एक गिरजाघर के बाहर एक चिन्ह देखा था जिस पर लिखा था, “जैसे तुम हो वैसे आओ; तुम अंदर आकर अपने को बदल सकते हो।” इस तरह मुझे लगता है कि मैं आराधना में जा रही हूँ – विशेष परिधान पहनकर तैयार होने या अन्य किसी विशेष तैयारी करने की कोई आवश्यकता नहीं है। भले ही कुछ समय बीत गया हो, मैं उस आराधनालय में प्रवेश करती हूं और मैं ने जहां से प्रार्थना या मनन चिंतन छोड़ा था वहां से उठाती हूं। मेरी आराधना का समय बहुत कुछ वैसा ही है जैसा मैं उन लोगों के साथ बिताती हूं जिन्हें मैं सबसे ज्यादा प्यार करती हूं। जैसे हमारे जीवन साथी के साथ “डेट की रात” या एक अच्छे दोस्त के साथ लंबी बातचीत करना उन रिश्तों को मजबूत करता है, उसी तरह आराधना के द्वारा ईश्वर के साथ विश्वास का निर्माण होता है। जिस तरह मौन उपस्थिति के साथ हम अपनों के साथ सार्थक समय बिताते हैं, उसी तरह आराधना उस तरह की संगति और साहचर्य विकसित करती है। आराधना में कोई क्या करता है? मेरी कार्यशैली बदलती रहती है। कभी-कभी मैं माला विनती की प्रार्थना करती हूं, कभी-कभी मैं किसी धर्मग्रन्थ के पाठ पर ध्यान करती हूं या अपनी डायरी लिखने में समय बिताती हूं। हम ईश्वर को खोजने के लिए इतना प्रयास करते हैं कि हम ईश्वर को समय ही नहीं देते कि वह हमें खोजें। इसलिए, सबसे अधिक बार, मैं बस अपने आप को प्रभु की उपस्थिति में रखती हूँ और कहती हूँ, “प्रभु, मैं यहाँ हूँ। कृपया मेरा मार्गदर्शन कर।” मैं तब परिस्थितियों को या जीवन के उन “गांठों” को उठाती हूं जिन में मुझे मदद की ज़रुरत है, और जिन लोगों से उस सप्ताह प्रार्थना करने का वादा किया था, उन सारे लोगों के लिए प्रार्थना करती हूँ। आमतौर पर मैं आराधनालय से सशक्त होकर, शांति के साथ, एक नई दिशा और प्रेरणा पाने की भावना के साथ निकल जाती हूँ। हमारे प्रभु के साथ आमने सामने समय बिताना हमारे रिश्ते को और अधिक घनिष्ठ बनाता है। जब आप परिवार के किसी सदस्य को सीढ़ियों से नीचे आते हुए सुनते हैं, तो आप उनके कदमों की आवाज से ही जान जाते हैं कि वह कौन है। परिवार के सदस्यों के साथ जितना समय हम बिताते हैं, उससे ऐसा परिचय मिलता है और हमें उनमें से प्रत्येक को जानने और उसकी सराहना करने की गहरी समझ मिलती है। आराधना ईश्वर के साथ उस तरह के परिचय को बढ़ावा देती है। आप से मेरा अपील है कि आप आराधनालय में जाकर परम पवित्र संस्कार में उपस्थित येशु के साथ समय बिताने पर विचार करें। यदि आप नियमित रूप से मिस्सा में भाग नहीं ले रहे हैं, यदि आपको अपने संघर्ष को प्रभु के चरणों में समर्पित करने की आवश्यकता है, यदि आप अधिक प्यार करने वाले माता या पिता बनना चाहते हैं, या यदि आपको अपने दिन की अराजकता और बदहाली से दूर जाने की आवश्यकता है, – आपकी हालात जो भी हो, कोई फर्क नहीं पड़ता – आप आराधना के पवित्र मौन में कदम रखें, प्रभु की उपस्थिति में आपका हमेशा स्वागत होगा। आराधना में नियमित समय देने से हमें वह आकार देगा जिस अच्छे ईसाई शिष्यों और माता-पिता के रूप में हमारा आकार होना चाहिए। जैसा कि मदर तेरेसा हमें बताती हैं, यह “पृथ्वी पर चिरस्थायी शांति” भी ला सकती है।
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योहन के सुसमाचार के अध्याय 2 में येशु द्वारा यरूशलेम मंदिर जाने के बारे में और येरूशलेम मंदिर की सफाई के बारे में नाटकीय विवरण मिलता है, जहां येशु व्यापारियों को बैल, भेड़, और कबूतर बेचते हुए और पैसे बदलने वाले साहूकारों को अपनी मेज पर बैठे हुए पाते हैं। रस्सियों से एक कोड़ा बनाकर, येशु उन्हें मंदिर परिसर से बाहर निकालते हैं, साहूकारों की मेजों को उलट देते हैं और उन्हें आदेश देते हैं कि “मेरे पिता के घर को बाज़ार मत बनाओ” (पद.16)।
येशु ने किसी को नहीं मारा, लेकिन पास्का पर्व के इतने करीब की इस नाटकीय कार्रवाई ने निश्चित रूप से भीड़ का ध्यान आकर्षित किया और धर्माधिकारियों से और उन लोगों से एक प्रतिक्रिया को जन्म दिया जिनके आर्थिक हितों को खतरा था।
इस वृत्तांत में येशु का व्यवहार हमें चुनौती देता है कि हम अपने फायदे और स्वार्थी हितों की नहीं, बल्कि उस परमेश्वर की महिमा की तलाश करें जो वास्तव में प्रेम है। येशु के साहसिक हस्तक्षेप ने मंदिर को “कबाड़ के धर्म” से मुक्त कर वास्तविक धर्म के लिए जगह बनाने का कार्य किया। आज के दौर में कबाड़ का धर्म क्या है और कैसा दिखता है?
सीधे शब्दों में कहें तो कबाड़ धर्म कैथलिक परंपरा के वे तत्व हैं, जो हमारे व्यक्तिगत और स्वार्थी परिपाटी का समर्थन करने वाले हैं, और जो कैथलिक तत्व हमारे स्वार्थी एजंडा में नहीं हैं, उन पर पर्दा डालते हैं। हम उन सारी सही कार्य कर सकते हैं – नियमित रूप से मिस्सा में भाग लेना, अच्छी धर्मविधि की सराहना करना, उदारता से दान देना, पवित्र ग्रन्थ को उद्धृत करना, और यहां तक कि ईशशास्त्र के कुछ हिस्से को भी समझ लेना – लेकिन अगर हम सुसमाचार को अपने दिल की गहराई तक नहीं जाने देते हैं, तो हम कैथलिक विश्वास को पालतू बना लेते हैं, और इसे “कबाड़ धर्म” के रूप में सीमित और छोटा बनाते हैं। उस गहरी प्रतिबद्धता के बिना, धर्म सुसमाचार के बारे में कम, बल्कि अपने बारे में और अपने व्यक्तिगत विचारधारा के बारे में अधिक हो जाता है – चाहे हम खुद को किसी भी राजनीतिक परिदृश्य में पाते हैं।
सुसमाचार हमारा आह्वान करता है कि स्वयं को दास का रूप देनेवाला और क्षमाशील येशु के मार्ग को हम अपनावें। हम अहिंसक बनने और न्याय और भलाई को बढ़ावा देने के लिए बुलाये गए हैं। और हमें उन कार्यों को अनुकूल और प्रतिकूल दोनों परिस्थितियों में करने की जरूरत है चाहे वह आसान हो या कठिन हो। जब इस्राएली कनान देश की ओर जा रहे थे और जब यात्रा कठिन हो गई, तो वे मिस्र में अपने पुराने जीवन के आराम और सुरक्षा की ओर लौटना चाहते थे। उनकी तरह, हम धर्म को हमें पहचान देनेवाले एक ऐसे परिधान के रूप में पहनने के प्रलोभन में पड़ सकते हैं, जबकि धर्म एक ऐसा ख़मीर बने जो हमें भीतर से बदल देता है। हमें यह याद रखना चाहिए कि हम ईश्वर के उदार और सुरक्षापूर्ण प्रेम के साधन हैं; हम अपनी इस पुकार के प्रति दृढ़ रहें।
हमारे अनुष्ठान और भक्ति अभ्यास हमें याद दिलाएंगे कि ईश्वर की सच्ची आराधना करना है, जीवन के लिए निरंतर धन्यवाद देना है और दूसरों के साथ अपने जीवन को साझा करके कृतज्ञता व्यक्त करना है। यदि हम ऐसा करते हैं, तो यहां और वर्त्तमान में मौजूद पुनर्जीवित मसीह के देहधारण में हम भी शामिल हो जायेंगे, हम भी उस देह्धारण को अपने जीवन में साकार करेंगे। हम अपने समुदाय में न्याय के साथ शांति की शुरुआत करेंगे। संक्षेप में, हम सच्चे धर्म का पालन करेंगे, अपने आप को एक ऐसे ईश्वर से जोड़ेंगे जो केवल हमसे प्रेम करना चाहता है और बदले में प्रेम पाना चाहता है।
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”मैं क्षमा करता हूँ‘ यह कहना और वास्तव में क्षमा करना आसान नहीं है…”
“मसीह ने स्वतंत्र बने रहने केलिए हमें स्वतंत्र बनाया है।” (गलाती 5:1)
मुझे यकीन है कि अधिकांश लोग इस बात से अवगत होंगे कि क्षमा क्रिश्चियन संदेश के मूल में है, लेकिन बहुतों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि किसी को क्षमा न करने से शारीरिक पीड़ा हो सकती है। मैं इसे अपने निजी अनुभव से जानता हूं। कई बार, मैंने इस भयानक, अक्सर अपंग करनेवाली बीमारी को चंगा करने में पवित्र आत्मा की शक्ति को अनुभव किया है।
क्षमा आसान नहीं
क्रूस पर मरते समय येशु ने जो पहले शब्द कहे थे, वे क्षमा के शब्द थे (लूकस 23:34)। मानव जाति को पाप और मृत्यु से मुक्त करने के लिए येशु का प्रेममय बलिदान वह क्षण था जिसकी प्रतीक्षा मानव को लम्बे अरसे से थी। जब येशु मृतकों में से जी उठने के बाद अपने शिष्यों से मिले, तब क्षमा फिर से उनके होठों पर थी, और उन्होंने अपनी ओर से इस क्षमा को देने की शक्ति शिष्यों को दी (योहन 20:19-23)। जब प्रेरितों ने येशु से प्रार्थना करने का तरीका पूछा, तो उस ने एक प्रार्थना के माध्यम से इसका जवाब दिया, इसी प्रार्थना के द्वारा ईश्वर को ‘हमारे पिता’ कहकर संबोधित करने और और जिस तरह हमारे विरुद्ध अपराध करनेवालों को हम क्षमा करते हैं, उसी तरह ‘हमारे अपराधों (पापों) को क्षमा करने के लिए उस से निवेदन करने की अनुमति हमें मिली (मत्ती 6:12)। यदि हम स्वयं क्षमा की अपेक्षा करते हैं, तो हमें दूसरों को क्षमा करना चाहिए (मत्ती 5:23-26; 6:14)।
क्षमा न करने की तुलना बंद मुट्ठी से की जा सकती है। बंधी हुई मुट्ठी तनी हुई होती है, और अक्सर क्रोध में जकड़ी और तनाव से पूर्ण रहती है। बंद मुट्ठी वास्तव में केवल एक ही कार्य के काम में आ सकती है; किसी को मारने के लिए, या कम से कम मारने के लिए तैयार होने के काम में। अगर वह मुट्ठी किसी पर लग जाती है, तो वापस मार खाने और अधिक शत्रुता पैदा करने की उम्मीद करना गलत नहीं होगा। अगर मुट्ठी बंद है, तो वह खुली नहीं है। खुला हाथ उपहार या कोई भी वस्तु प्राप्त करने में सक्षम है, लेकिन अगर वह बंद और जकड़ा हुआ है तो जो भेंट दी जा रही है उसे स्वीकार करना संभव नहीं है। दुसरे शब्दों में कहें तो, जब हम अपने हाथ खोलते हैं, तभी हम प्राप्त कर सकते हैं, तभी जो हम प्राप्त करते हैं उसे दूसरों को देने में भी हम सक्षम होते हैं।
जब वह स्वतन्त्र करता है
जब मैंने इस बारे में मिस्सा बलिदान में प्रार्थना की, तो मेरे दिमाग में एक छड़ी की छवि आयी, और मैंने यह महसूस किया कि जब हम क्षमा नहीं करते हैं, तो हमारे जीवन में चलने में दिक्कत आती है। मिस्सा के बाद, जब हम बाहर बातें कर रहे थे, एक आदमी आया, जिसने गिरजाघर के बाहर उसका फोटो लेने के लिए हमसे कहा। जब मैंने देखा कि वह छडी के सहारे चलता है, तो मुझे लगा कि उस की बीमारी क्षमा न करने के कारण हुई है। -जैसे बातचीत जारी रही, उसने मुझे अपने अतीत के बारे में बताना शुरू कर दिया, और अंत में उसने मुझसे मेरी प्रार्थनाओं का अनुरोध किया, क्योंकि वह भयंकर पीठ दर्द से परेशान था।
तुरंत मैंने उसे मेरे साथ प्रार्थना करने के लिए आमंत्रित किया और मैं ने कहा कि येशु उसे चंगा करना चाहता है, लेकिन इसके लिए कुछ कार्य करना पड़ेगा। उत्सुक और खुले दिल से वह सहमत हो गया, और मुझ से पूछ रहा था कि क्या कार्य करना होगा। मैंने उससे कहा कि उन्हें उन लोगों को माफ करना होगा जिनका उल्लेख उन्होंने अभी अभी बातचीत में मुझसे किया है और अन्य किसी भी व्यक्ति को माफ़ करना होगा जिसने उसे चोट पहुंचाई है। मैं उस व्यक्ति को देख पा रहा था कि वह आंतरिक रूप से संघर्ष कर रहा है, इसलिए मैंने उसे इस आश्वासन के साथ प्रोत्साहित किया कि क्षमा करने के लिए उसे अपनी ही ताकत पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। यदि वह येशु के नाम से क्षमा करता, तो येशु उसे सामर्थ्य देता, उसकी अगुवाई करता और उसे स्वतंत्र करता। फुसफुसाते हुए उसकी आँखें चमक उठीं, “हाँ, अपने प्रभु की शक्ति से मैं क्षमा कर सकता हूँ।”
मैंने प्रार्थना में उसकी अगुवाई की, और उसकी पीठ पर हाथ रखकर उसे ठीक होने की चंगाई प्रार्थना के साथ (मारकुस 16:15-18) वह प्रार्थना सत्र समाप्त हुआ मैंने उससे कहा कि जो कुछ येशु ने कहा है वह सब करे और उसने जो माँगा उसे प्राप्त कर लिया है, ऐसे विश्वास के साथ परमेश्वर का धन्यवाद करे (मारकुस 11:22-25), और इस तरह वह येशु से चंगाई की प्राप्ति कर सकता है। यह शुक्रवार की शाम को था।
रविवार को, उसने मुझे मोबाइल पर एक संदेश भेजा, “प्रभु की स्तुति हो, येशु ने मेरी पीठ को चंगा कर दिया। मैं ने प्रभु की स्तुति की, और पूरे मन से उसका धन्यवाद किया। मैं इस पूरी घटना से विशेष रूप से प्रभावित था। हमने शुक्रवार को क्रूस की शक्ति और गुणों से चंगाई के लिए प्रार्थना की थी। और तीसरे दिन, रविवार को अर्थात पुनरुत्थान के दिन उस प्रार्थना का जवाब मिल गया।
महान लेखक सी.एस. लुइस ने एक बार लिखा था, “जब तक कि लोगों के पास क्षमा करने के लिए कुछ न हो, तब तक वे सोचते हैं कि क्षमा एक सहज चीज है।” यह जानना महत्वपूर्ण है कि क्षमा इच्छा शक्ति का कार्य है; जिसे हम चुनते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि यह निर्णय लेना आसान है, जितनी बार क्षमा करें, उतनी बार यह दुनिया में सबसे कठिन, सबसे दर्दनाक निर्णय की तरह लग सकता है, लेकिन जब हम येशु के नाम पर ‘उन्हीं के द्वारा, उन्हीं के साथ, और उन्हीं में सब कुछ का सामना करने के लिए तैयार हो जाते हैं’, तब हम सीखते हैं कि ‘परमेश्वर के साथ कुछ भी असंभव नहीं है’ (लूकस 1:37)। यह आवश्यक है कि हम अपने आप से पूछें कि क्या हमारे जीवन में ऐसा कोई है जिसे हमें क्षमा करने की आवश्यकता है। येशु हमें सिखाते हैं, “जब तुम प्रार्थना के लिये खड़े हो, और तुम्हें किसी से कुछ शिकायत हो तो क्षमा कर दो, जिससे तुम्हारा स्वर्गिक पिता तुम्हारे अपराध क्षमा कर दे” (मारकुस 11:25)। इसलिए, हमें येशु के पास सब कुछ लाना चाहिए और उसे हमें स्वतंत्र करने की अनुमति देनी चाहिए, क्योंकि “यदि पुत्र तुम्हें स्वतंत्र बना देगा, तो तुम सचमुच स्वतंत्र होगे (योहन 8:36)।
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मुझे पुरानी फिल्में देखना पसंद है। पिछले कई महीनों में, मैंने अल्फ्रेड हिचकॉक के कई थ्रिलर, तीस और चालीस के दशक के कुछ कॉमेडी और क्लासिक्स देखा, उनमें कुछ फिल्म दुबारा देखा। पिछले हफ्ते, तीन शामों के दौरान, मैं 1956 में बनी चार्लटन हेस्टन की फिल्म “टेन कमांडमेंट्स” को देखा, जिसे देखने में तीन घंटे चालीस मिनिट लगे। मैंने वह पुराना अद्भुत टेक्नीकलर, जो आज भी आकर्षक है, खूबसूरत वस्त्र विन्यास, शानदार शेक्सपियरियन संवाद, और जबरदस्त अभिनय, सब कुछ को बड़ी ख़ुशी के साथ आत्मसात कर लिया, क्योंकि कोई भी इसे अच्छा ही कहेगा। लेकिन जिस चीज़ ने मुझे विशेष रूप से प्रभावित किया, वह थी फिल्म की लंबाई। यह जानते हुए कि दर्शकों को इतनी लम्बी देर की फिल्म पर लम्बी अवधि तक ध्यान देना एक असाधारण कार्य रहा होगा। इसके बावजूद, यह याद रखना आश्चर्यजनक है कि यह फिल्म बेतहाशा लोकप्रिय थी, अनायास ही अपने समय की सबसे सफल फिल्म थी। यह अनुमान है कि, मुद्रास्फीति के लिए समायोजित, इस फिल्म ने लगभग दो अरब डॉलर की कमाई अर्जित की। मैंने सोचा, क्या “टेन कमांडमेंट्स” जैसी फिल्म को आज के दौर में फिल्म देखने वाले, उतना ही लोकप्रिय बनाने के लिए आवश्यक धैर्य जुटा पाएंगे? मुझे लगता है कि सवाल का जवाब उसी सवाल में ही है।
फिल्म की लंबाई और लोकप्रियता के संगम पर सोचते हुए मुझे सांस्कृतिक इतिहास से इस संयोजन के कई अन्य उदाहरण याद आ गए। उन्नीसवीं शताब्दी में, चार्ल्स डिकेंस के उपन्यासों की इतनी मांग थी कि साधारण लंदनवासी एक एक अध्याय के लिए लंबी लाइनों में प्रतीक्षा करते थे क्योंकि वे धारावाहिक, अध्याय दर अध्याय बनकर प्रकाशित होते थे। और इसको समझना ज़रूरी है: डिकेंस के उपन्यासों में नाटकीय रूप से आकर्षक बातें बहुत कुछ नहीं होती हैं; मेरा मतलब है कि बहुत कम चीजें दिमाग को अप्रत्याशित रूप से प्रभावित करती हैं; कोई विदेशी आक्रमण नहीं हैं; बुरे लोगों को जान से उड़ाने से पहले नायकों द्वारा बोले गए कोई तेज़ वन-लाइनर संवाद नहीं। अधिकांश हिस्सों में, उनमें आकर्षक और विचित्र पात्रों के बीच लंबी बातचीत होती है।
दोस्तोवस्की के उपन्यासों और कहानियों के बारे में भी यही कहा जा सकता है। यद्यपि ‘द ब्रदर्स करमाज़ोव’ के कथानक के केंद्र में वास्तव में एक हत्या और एक पुलिसिया जांच है। उस प्रसिद्ध उपन्यास के अधिकाँश हिस्से के लिए, राजनीतिक, सांस्कृतिक और धार्मिक मामलों पर लम्बे लम्बे संवाद के लिए बहुत सारे पन्नों को भरते हुए, दोस्तोवस्की विभिन्न पात्रों की व्यवस्था उनके ड्राइंग रूम में करता है। उसी अवधि के दौरान, अब्राहम लिंकन और स्टीफन डगलस ने अमेरिका में गुलामी के जटिल मुद्दे पर बहस की एक श्रृंखला में भाग लिया। वे घंटों बात करते थे—और बौद्धिक रूप से उन्नत तरीके से बहस करते थे। यदि आप मुझ पर संदेह करते हैं, तो ग्रंथों को ऑनलाइन देखें। उनके दर्शक सांस्कृतिक रूप से अभिजात वर्ग या राजनीतिक दर्शन के छात्र नहीं थे, बल्कि अमेरिका के इलिनोई राज्य के सामान्य किसान थे, जो खेत के कीचड़ में खड़े थे, उन्होंने बहस पर अपना पूरा ध्यान दिया, और वक्ताओं की अनमनी आवाजों को सुनने के लिए अपने कान खड़े कर के बड़े ध्यान से सुन रहे थे। क्या आज ऐसी एक अमेरिकी भीड़ की कल्पना करना संभव है, जो आज इस तरह इतनी लम्बी अवधि के लिए खड़े होने और सार्वजनिक नीति पर जटिल प्रस्तुतियों को सुनने के लिए तैयार है – और उस मामले के लिए, क्या आप किसी भी अमेरिकी राजनेता की कल्पना कर सकते हैं, जो लिंकन की तरह इतनी लंबाई और गहराई से बोलने के लिए तैयार या सक्षम है? एक बार फिर सवालों के जवाब अपने आप मिल जाते हैं।
बीते युग के इस तरह के संचार के तौर-तरीकों और शैलियों को क्यों देखना है? क्योंकि उस युग की तुलना में हम इतने गरीब लगते हैं! मैं निश्चित रूप से सोशल मीडिया के मूल्य को समझता हूं और मैं अपने सुसमाचार के प्रचार के कार्य में उसका आसानी से उपयोग करता हूं, लेकिन साथ ही, मैं इस बात से पूरी तरह अवगत हूं कि कैसे सोशल मीडिया ने परिष्कृत बातचीत के लिए हमारे ध्यान अवधि और क्षमता को कम किया है और सच्चाई की ओर वास्तविक प्रगति करने में हमें कमज़ोर किया है। फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और विशेष रूप से ट्विटर आकर्षक सुर्खियों, भ्रामक शीर्षकों, प्रतिद्वंद्वी के तर्कों के विरुद्ध सरलीकृत लक्षण वर्णन, तथ्यों पर आधारित बहस के स्थान पर ध्वनि बढाने और काटने और विद्वेष से भरपूर बयानबाजी के विशेषज्ञ हैं। बस इनमें से किसी भी साइट पर कमेंट बॉक्स में डुबकी लगाएँ, और आप तुरंत देखेंगे कि मेरा क्या मतलब है।
किसी व्यक्ति के तर्क का एक वाक्यांश या एक शब्द को उठाकर इसे संदर्भ से बाहर निकालना, इसे सबसे खराब संभावित व्याख्या देना, और फिर पूरे इंटरनेट पर अपनी नाराजगी फैलाना आदि सोशल मीडिया का एक प्रचलित तकनीक है। सोशल मीडिया मानती है कि सब कुछ तेज गति से होना चाहिए, आसानी से पचने वाला हो, समझने में आसान हो, दूध का दूध और पानी का पानी होना चाहिए- क्योंकि उन्हें अपनी साइट पर क्लिक प्राप्त करने होते हैं, और यह दुनिया कुत्तों की जैसी है, जहाँ एक कुत्ता दुसरे कुत्ते को मार खाने के लिए तैयार बैठा है। मेरी चिंता इस बात पर है कि संचार के इस तरीके से एक पूरी पीढ़ी को पालन पोषण करके वयस्क बना चुके हैं और इसलिए यह पीढ़ी जटिल मुद्दों के बुद्धिमान जुड़ाव के लिए आवश्यक धैर्य और ध्यान पाने में काफी हद तक असमर्थ हो गयी है। वैसे, मैंने सेमिनरी में अपने लगभग बीस वर्षों के अध्यापन में इस पर ध्यान दिया। उन दो दशकों में, मेरे छात्रों को संत अगस्टिन के “कन्फेशंस” या प्लेटो के “रिपब्लिक” के सौ पृष्ठों को पढ़ने के लिए कहना मुश्किल हो गया। विशेष रूप से हाल के वर्षों में, वे कहते हैं, “फादर, हम अभी इतना अधिक ध्यान नहीं दे पाते।” ठीक है, लिंकन-डगलस बहस पर कम पढ़े लिखे किसान ध्यान दे सकते थे, और ऐसा ही डिकेंस के पाठक भी कर सकते थे, और ऐसा ही वे भी कर सकते थे जो साठ साल पहले सिनेमा थिएटर में “द टेन कमांडमेंट्स” देखने केलिए बैठे थे।
निराशाजनक टिप्पणी से मैं इस चिंतन को समाप्त न करूँ, इसलिए मुझे आपका ध्यान उस ओर आकर्षित करने की अनुमति दें जिसे मैं आशा का वास्तविक संकेत मानता हूं। पिछले कुछ वर्षों में, लम्बी अवधि के पॉडकास्ट की दिशा में एक प्रचालन बढ़ रहा है जो बड़ी तादाद में युवा दर्शकों को आकर्षित कर रहा है। देश में सबसे लोकप्रिय शो में से एक की मेजबानी जो रोगन करता है, वह अपने मेहमानों से तीन घंटे से अधिक समय तक बात करता है, और उस पॉडकास्ट को लाखों लोग देखते हैं। पिछले एक साल में, जॉर्डन पीटरसन के साथ दो पॉडकास्ट पर मुझे भी आमंत्रित किया गया, प्रत्येक एपिसोड दो घंटे से अधिक समय का बहुत उच्च-स्तरीय चर्चा का कार्यक्रम रहा और दोनों पॉडकास्ट को करीब दस लाख लोगों ने देखा है।
शायद हम एक बड़े मोड़ पर हैं। टेलीविज़न शो में ध्वनि बढाकर प्रतिद्वंदी को हराने की सतही छद्म-बौद्धिकता से भरपूर चैट शोज और त्वरित संतुष्टि की खोज में लगे सोशल मीडिया से युवा लोग शायद थक चुके हैं। सोशल मीडिया के प्रति इस उदासीनता की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करने के लिए, मैं आप सभी को आमंत्रित करना चाहता हूं कि आप सोशल मीडिया का बहुत कम उपयोग करें – हाँ, आप शायद “द ब्रदर्स करमाज़ोव” को चुनेंगे तो बेहतर होगा।
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अपनी समस्याओं के समाधान के लिए सदियों पुरानी विधि को फिर से खोजें!
राजनीतिक और सामाजिक सक्रियता, निरंतर बनी रहने वाली घटना बन गई है। बहुत ज़रूरी बदलाव लाने के उद्देश से अपने अच्छे आदर्शों से उत्साहित होकर, लोग पूरे विश्व की बेहतरी और कल्याण के लिए पहल करते हैं और विभिन्न प्रकार के अभियान एवं आन्दोलन चलाते हैं|
सोशल मीडिया के सन्देश हमसे आग्रह करते हैं: “जो बदलाव तुम दुनिया में देखना चाहते हो, तुम स्वयं वह बदलाव बन जाओ।”
लेकिन हम यह निर्णय कैसे लें कि अपना समय और पैसा किस सामाजिक कार्य में निवेश करना है? किन किन अभियानों का समर्थन किया जाए? दुनिया में इतनी सारी सेवा संस्थाएं या धर्मार्थ संगठन हैं जो हमारे समय, हुनर, प्रतिभा और धन के अनुदान का उपयोग कर सकते हैं।
वास्तव में, हमारी परिस्थितियों में, हमारे समुदायों में, हमारी कलीसियाओं में और हमारे देशों में बहुत सारी ऐसी बातें हैं जिनमें हम बदलाव देखना चाहते हैं |
मेरा मतलब है, ठण्ड के दिनों में जूते और गरम कपडे जुटाना बहुत ज़रूरी है, लेकिन यही बात अपने बच्चों को समझाना मेरे लिए टेढ़ी खीर है, ऐसे में मैं प्रभावशाली विश्व नेताओं के दिमाग को कैसे बदल सकती हूं?
कठोर वास्तविकता यह है कि यह काम मैं नहीं कर सकती। लेकिन यह मुझे शक्तिहीन या नपुंसक नहीं बनाती है।
और अधिक बनने की ओर बदलें
मैं दुनिया में जो बदलाव देखना चाहती हूं, उसके बजाय मुझे उसी बदलाव केलिए प्रार्थना करने की जरूरत है। लेकिन रुकिए, मैं आप को शायद यह कहते हुए सुन रही हूँ कि क्या प्रार्थना निष्क्रियता का कार्य नहीं है? क्या हमें इससे बेहतर कोई कुछ और अच्छा कार्य नहीं करना चाहिए… मतलब… कोई सक्रिय कार्य?
प्रार्थना में कोई निष्क्रियता नहीं है। बहुत सी बातें प्रार्थना में हैं – प्रार्थना चिंतनशील, व्यवस्थित, अव्यवस्थित, नियमित, ध्यान परक हैं – लेकिन निश्चित रूप से निष्क्रिय नहीं। यह सही है कि हमारे समुदायों में बहुत सी सक्रिय सेवायें हैं। लेकिन हमारे कार्यों को बढ़ावा देने के प्रार्थनामय मनन-चिंतन के इंधन के बिना, हमारे सेवा कार्य कमजोर पड़ जाते हैं और इसी तरह, यदि हमारे द्वारा सक्रिय सेवा कार्य न हो, तो हमारी प्रार्थना भी कमज़ोर हो सकती है।
कुरिंथियों के नाम अपने पत्र में संत पौलुस बताते हैं कि जब हमारे पास आध्यात्मिक आधार नहीं होता है, तब हमारे सक्रिय सेवाओं की नियति क्या होती है:
मैं भले ही मनुष्यों तथा स्वर्गदूतों की सब भाषाएँ बोलूँ, किन्तु यदि मुझ में प्रेम का अभाव है, तो मैं खनखनाता घड़ियाल या झनझनाती झांझ मात्र हूँ। मुझे भले ही भविष्यवाणी का वरदान मिला हो, मैं सभी रहस्य जानता होऊँ, मुझे समस्त ज्ञान प्राप्त हो गया हो, मेरा विश्वास इतना परिपूर्ण हो कि मैं पहाड़ों को हटा सकूं, किन्तु यदि मुझ में प्रेम का अभाव है, तो मैं कुछ भी नहीं हूँ। मैं भले ही अपनी सारी संपत्ति दान कर दूं और अपना शरीर भस्म होने के लिए अर्पित करूँ, किन्तु यदि मुझ में प्रेम का अभाव है, तो इस से मुझे कुछ भी लाभ नहीं। (1 कुरिन्थी 13:1-3)
यदि विश्वास के मामले में, वर्तमान-संत पापा, बिशप या पुरोहित के प्रति मेरे अन्दर क्रोध है और यदि उनके प्रति मेरे मन में उचित उदारता नहीं है, तो उनके खिलाफ असहमति द्वारा बिखराव और फूट फैलाने के बदले, मुझे उनके लिए प्रार्थना करने की आवश्यकता है। यही बात नेतृत्व पद पर बैठे किसी के लिए भी कहा जा सकता है जिससे हम असहमत हैं, या जब हमारी परिस्थितियां हमारे नियंत्रण से बाहर हैं, जिनके कारण हमारे जीवन में कहर बरपा है। दूसरे लोग क्या सोचते हैं, क्या कहते हैं या क्या करते हैं, इसे मैं नियंत्रित नहीं कर सकता, लेकिन मैं अपनी प्रतिक्रिया को नियंत्रित कर सकता हूं। और प्रार्थना के बारे में सबसे सरल बात यह है कि यह हमारे लिए हमेशा एक अच्छा विकल्प है।
तलाश करें
यदि आप एक उत्कृष्ट तकनीकी जानकार हैं, तो आप ऑनलाइन सर्च इंजन के बारे में सब कुछ जानते हैं। और मैं लगभग गारंटी दे सकती हूं कि आप जो कुछ भी कर रहे हैं या आप जिस तकलीफ से गुज़र रहे हैं – उस हर एक बात के लिए कोई न कोई प्रार्थना है और/या कोई संरक्षक संत है। बस आप ऑनलाइन सर्च इंजन से तलाश कर लें |
पूरी ईमानदारी से कह रही हूँ, वहाँ आप के कंप्यूटर में प्रार्थनाओं का खजाना है। कभी-कभी केवल आराधना, विनती और याचिका के संकलन को पढ़ने से बड़ा सुकून मिलता है। हमारे पीडाओं और संघर्षों के बीच अकेलापन महसूस होना आम बात है, यह भूल जाना भी आसान है कि दूसरों को भी हमारे जैसे संघर्ष और अकेलापन के अनुभव हुए हैं।
अवसाद और चिंता से पीड़ित इस तरह के अप्रत्याशित दौर में संत डिम्फना के पास आप ज़रूर मदद लेने जाएँ। क्या आप सभी जातियों और पंथों के लोगों के बीच वैश्विक समानता देखना चाहते हैं? जोसेफिन बखिता जैसे संतों को देखें। क्या आप सामाजिक सक्रियता, या शरणार्थियों की दुर्दशा और हमारे पर्यावरण के बारे में सोचकर चिंतित हैं? डोरोथी डे, संत फ्रांसिस जेवियर कैब्रिनी या असीसी के संत फ्रांसिस की मध्यस्थता से ईश्वर के सम्मुख अपनी चिंताओं को प्रकट करें, प्रार्थना करें।
सेवा कार्य से पहले थोड़ी देर रुक कर मंथन द्वारा समझदारी पावें
उपरोक्त बातों को सुनकर, शायद आप तर्क देंगे कि वर्त्तमान दौर में और आज की दुनिया में बहुत सारी परेशानियाँ हैं। कुछ परेशानियां छोटी हैं, कुछ बड़ी हैं और हम अपनी तत्काल शक्ति से उन्हें बदल सकते हैं। अन्य समस्याएं वैश्विक स्तर पर हैं और हमारे प्रयास, बस समुद्र में एक बूंद की तरह होगा।
किसी भी कार्य को करने का निर्णय लेने से पहले, उस मुद्दे पर विवेचना केलिए प्रार्थना और मनन-मंथन में समय बिताना विवेकपूर्ण कार्य होगा। शायद भूखों के बीच सेवा दे रही स्थानीय खाद्य वैन को देखकर उन भूखों और बेघरों के लिए स्वयंसेवक बनने की प्रबल इच्छा आपके दिल में उमड़ रही होगी, लेकिन आप छोटे छोटे जुड़वे शिशुओं की माँ हैं, और घर पर उनकी देखभाल में लगे रहना आपकी मजबूरी है और आप केलिये समय एक ऐसी वस्तु है जो अभी आपके पास नहीं है।
ऐसी परिस्थिति में, समय मिलते ही, प्रार्थना करें, मंथन कर समझदारी पावें और पुनर्मूल्यांकन करें। हो सकता है कि आप भविष्य में पर-सेवा के किसी दौर में शामिल हों, उस मार्गदर्शन पर भरोसा करें जो ईश्वर आपको प्रार्थना में देता है।
प्रार्थना में अपनी चिंताओं, सपनों और इच्छाओं को येशु के पास ले जाएं। माइकल जैक्सन अपने गीत के द्वारा आप को प्रोत्साहित कर सकता है: “यदि आप दुनिया को एक बेहतर जगह बनाना चाहते हैं, तो खुद को देखें और वह बदलाव लावें”। लेकिन सच में, यह उतना आसान नहीं है।
अगर आप दुनिया को एक बेहतर जगह बनाना चाहते हैं: प्रार्थना करें। और बाकी बातें वहीं से आएंगे।
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माल्टा महाधर्मप्रांत के प्रसिद्ध फादर एलियास वेला ओ.एफ.एम. के साथ एक विशेष साक्षात्कार, जो अपनी अविश्वसनीय सेवकाई-यात्रा का वर्णन कर रहे हैं।
माल्टा के सूबा के लिए एक एक्सोर्सिस्ट या अपदूत निरासक के रूप में और दुनिया भर में रोग मुक्ति और दुष्टात्मा से छुटकारे की साधना में सेवकाई के द्वारा, मुझे कई आत्माओं की चंगाई का तथा दुष्ट शक्तियों के आधिपत्य, उत्पीड़न और प्रलोभन से मुक्ति का गवाह बनने का आशीर्वाद मिला है।
मैं भूमध्य सागर में स्थित एक छोटे से कैथलिक देश, माल्टा द्वीप का निवासी हूँ। 24 वर्षों तक सेमिनरी में ईशशास्त्र व्याख्याता का कार्य करते हुए, मैं शैतान के अस्तित्व में विश्वास नहीं करता था, क्योंकि मैं डच और जर्मन ईशशास्त्रियों से प्रभावित था, जिन्होंने शैतान की वास्तविकता पर संदेह किया था। हालाँकि, जब मैं कैथलिक करिश्माई नवीनीकरण में शामिल हुआ, तो लोग मेरे पास जादू-टोना, शैतान की पूजा, और शैतान से जुड़ी समस्याओं को लेकर आने लगे। मुझे नहीं पता था कि क्या करना है। मैं स्पष्ट रूप से देख पा रहा था कि यह सब उनके दिमाग की कपोकल्पना नहीं थी, और मैं उनकी मदद करना चाहता था, इसलिए मैं अपने धर्माचार्य के पास गया और पूछा कि क्या उन लोगों को धर्माचार्य के पास ही मुझे भेज देना चाहिए। उन्होंने मुझसे कहा: “जाकर इस विषय का अध्ययन करो और यह समझो कि परमेश्वर आपको क्या करने के लिए बुला रहा है”। जितना अधिक मैंने इस मुद्दे की जांच की, उतना ही मैं शैतान के कार्य को देख पा रहा था और मुझे अब संदेह नहीं हुआ। मुझे इस सेवा में रुचि थी, अपने लिए नहीं, बल्कि इसलिए कि लोगों को इस सेवा की ज़रूरत थी, इसलिए धर्माचार्य ने मुझ से पूरे सूबा के लिए अप्दूत निरासक बनने के लिए कहा।
शैतान का आधिपत्य तब होता है जब कोई दुष्टात्मा किसी को अपने नियंत्रण में ले लेता है, ताकि वह व्यक्ति अब अपने लिए सोचने के लिए स्वतंत्र न रहे। उस व्यक्ति की इच्छा, भावना और बुद्धि दुष्टात्मा के प्रभाव के अधीन हो जाती है। हालाँकि, एक दुष्टात्मा, मानव की आत्मा पर पूरा अधिपत्य नहीं कर सकता है और किसी को पाप करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है, क्योंकि आप तभी पाप कर सकते हैं जब आप अपनी इच्छानुसार पाप करने के लिए स्वतंत्र हैं, तथा आप को मालूम है कि आप क्या कर रहे हैं और इसे करने की इच्छा या चाहत आप रखते हैं। भूत या अपदूत को भगाने के दौरान, कोई व्यक्ति पाप पूर्ण इशारे कर सकता है, उदाहरण के लिए ईश निन्दा करना या रोजरी माला को तोड़ना, लेकिन ये पाप नहीं हैं, क्योंकि उस व्यक्ति के पास अपने शरीर पर नियंत्रण की क्षमता नहीं है।
भूत भगाने की प्रक्रिया में, अपदूत निरासक (जो एक विशेष रूप से प्रशिक्षित पुरोहित होता है) दुष्टात्मा को आदेश देता है की वह ईश्वर के नाम पर और कलीसिया की सामर्थ्य से उस व्यक्ति के शरीर को छोड़ दे। यह अक्सर बड़े संघर्ष का कार्य होता है, क्योंकि दुष्टात्मा उस शरीर को नहीं छोड़ना चाहता जहां उसने घर बनाया है, लेकिन ईश्वर शैतान से अधिक शक्तिशाली है, इसलिए अन्ततोगत्वा उसे छोड़ना होगा। सभी भूत प्रेत के हमलों में आधिपत्य शामिल नहीं है।
हालाँकि, मैंने व्यक्तिगत रूप से भूत-प्रेत के आधिपत्य के कई मामलों का सामना किया है, जिनमें अपदूत निरासन या भूत भगाने की आवश्यकता पडी थी। मैं एक अपदूत निरासक या ओझा हूं, इसलिए वे मेरे पास आते हैं। यह वास्तव में बहुत दुर्लभ है। बहुत से लोग जो सोचते हैं कि उन्हें भूतप्रेत से मुक्ति के लिए किसी अपदूत निरासक या ओझा के पास जाना चाहिए, लेकिन वास्तव में उन्हें इसकी ज़रुरत नहीं है। उन्हें अन्य आध्यात्मिक, मनोवैज्ञानिक और शारीरिक सहायता की आवश्यकता है। हालांकि मैं अक्सर अन्य देशों का दौरा करता हूं, फिर भी मैं अपने सूबा के बाहर, केवल स्थानीय धर्माचार्य की अनुमति लेकर ही भूत भगाने का कार्य कर सकता हूं। अगर मेरे पास वह अनुमति नहीं है, तो मैं एक उद्धार प्रार्थना कर सकता हूं, लेकिन अपदूत निरासन की धर्मविधि नहीं कर सकता। हर भूत-प्रेत या अपदूत एक दूसरे से भिन्न है। शैतान बुद्धिमान और चालाक है, इसलिए हमें छलने और धोखा देने के लिए वह अपनी तकनीक बदलता रहता है।
चेक गणराज्य में रोग मुक्ति के मिस्सा बलिदान के दौरान, मैंने उपस्थित विश्वासियों को उनके चेहरे को पवित्र जल से धोने के लिए आमंत्रित किया ताकि उन्हें शुद्धीकरण की आवश्यकता की याद दिलाई जा सके। एक लड़की ने अपना चेहरा धोने के बाद, एक क्रूस लिया और मुझे उस क्रूस से पीटना शुरू कर दिया। मैं ने किसी प्रकार की हिंसक प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन दूसरे लोगों द्वारा उसे रोका गया, उसके बाद हमने उस पर अपदूत निरासन की धर्मविधि शुरू कर दी। यह बहुत कठिन था क्योंकि उसके पिता ने एक शैतानी पूजा समारोह के दौरान उसे शैतान को समर्पित कर दिया था, जहाँ उस पर जानवरों के खून छिड़काया गया था।
ब्राजील में, एक 16 वर्षीय दुर्बल लड़की मिस्सा बलिदान के दौरान होश खोकर उच्छल कूद करने लगी। जब हमने उसके लिए प्रार्थना की, तो वह इतनी हिंसक हो गई कि वह बिना किसी प्रयास से एक कुर्सी तोड़ सकती थी और कोई मजबूत आदमी भी उसे पकड़ नहीं सकता था। उस पर दुष्टात्मा का अधिपत्य मूर्तियों के अंधविश्वास पूर्ण भक्ति से शुरू हुआ था, लेकिन अच्छा हुआ कि काफी कठिनाई के बावजूद, प्रभु येशु के परम संस्कार की शक्ति से उसे छुटकारा मिल गया।
हम सभी लोग प्रलोभनों या उत्पीड़नों के दौर से गुज़रते हैं। यहां तक कि हमारे प्रभु येशु को और माँ मरियम को भी कई बार स्वर्गिक पिता की इच्छा पूरी न करने का प्रलोभन दिया गया, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उत्पीड़न तब होता है जब शैतान हमारी दुर्बलताओं को निशाना बनाकर हमला करता है। यह शैतानी आधिपत्य के बराबर नहीं है। अक्सर, जिस व्यक्ति पर आध्यात्मिक हमला किया जाता है, वह मनोवैज्ञानिक समस्याओं से भी पीड़ित हो जाता है। आध्यात्मिक समस्या से क्या उत्पन्न होता है और मनोवैज्ञानिक समस्या क्या है, यह समझना हमेशा आसान नहीं होता है।
अक्सर, इसे बहुआयामी प्रतिक्रिया की आवश्यकता होती है। शैतानी प्रपंचों से पूरी तरह से ठीक होने के लिए प्रार्थना, संस्कारों की कृपा, थेरेपी और उचित चिकित्सा सहायता की आवश्यकता हो सकती है। मैं चंगाई और दुष्ट शक्तियों से छुटकारा, दोनों के लिए प्रार्थना करता हूं। कलीसिया के संस्कार, शैतान के हमलों के खिलाफ सबसे शक्तिशाली हथियार हैं। शैतान संस्कारों से डरता है, विशेष रूप से मेलमिलाप या पाप स्वीकार के संस्कार से, क्योंकि यह सीधे पाप के खिलाफ और पाप के प्रलोभन के खिलाफ लड़ता है। जब पश्चाताप से पूर्ण पापी लोग अपने पापों को स्वीकार करते हैं और पाप को त्याग देते हैं, और एक प्रेमपूर्ण परमेश्वर से क्षमा मांगते हैं, तब वे उस शैतान के धोखे को अस्वीकार करते हैं जो हमें यह सोच देकर लुभाने की कोशिश करता है कि हमारे पाप गलत नहीं हैं; या कि हमें क्षमा किये जाने की आवश्यकता नहीं है; या यह कि परमेश्वर हम से प्रेम नहीं रखता; या यह कि वह हमें दयापूर्वक क्षमा नहीं करेगा। पाप क्षमा प्राप्त करने से हमारे ऊपर शैतान की पकड़ को घातक आघात पहुँचता है। इसलिए हमें नियमित पाप स्वीकार संस्कार की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए।
पवित्र यूखरिस्त शैतान के खिलाफ एक शक्तिशाली हथियार है क्योंकि हमारे प्रभु बड़ी विनम्रता और प्रेम के साथ स्वयं को हमें दे रहे हैं। ये दो बातें हैं जिनसे शैतान को पीड़ा होती है। शैतान प्रभु के विपरीत है, घमंड और घृणा से भरा हुआ है। क्योंकि शैतान के पास शक्ति प्राप्त करने की एक अतृप्त इच्छा है, वह कभी नहीं समझ पाएगा कि परमेश्वर स्वयं को हमारे लिए कैसे अर्पित कर देता है। इसलिए, जब हम पवित्र यूखरिस्त में अपने प्रभु को प्राप्त करते हैं, या यूखरिस्त के सामने रहकर उसकी पूजा करते हैं, तो शैतान भाग जाता है, क्योंकि वह इसे सहन नहीं कर सकता और इससे बचना चाहता है। इसलिए, जब परेशान लोगों की मदद करने के लिए कोई अपदूत निरासक नहीं है, तो उन्हें यूखरिस्त में प्रभु की उपस्थिति की तलाश करनी चाहिए।
सुरक्षा प्रार्थना
हे सर्वशक्तिमान ईश्वर, तेरे प्रिय पुत्र, हमारे प्रभु येशु मसीह के दुखभोग, मृत्यु और पुनरुत्थान के गुणों के द्वारा मुझे अपनी कृपा प्रदान कर। मैं येशु को अपने प्रभु और उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करता हूं। येशु के बहुमूल्य लहू से मेरी, मेरे परिवार की और मेरे आस-पास के सभी परिवेश की रक्षा कर। मैं येशु के शक्तिशाली नाम और उसके बहुमूल्य रक्त की शक्ति से मुझे परेशान कर रहे उन सभी बुरे प्रभावों का त्याग करता हूँ और उनका बंधन करता हूं और उन्हें येशु के क्रूस के पाँव में बांध देता हूँ। आमेन।
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प्रश्न – मुझे पता है कि हमें मरियम के प्रति भक्ति करनी चाहिए, लेकिन कभी-कभी मुझे ऐसा लगता है कि येशु के साथ मेरे रिश्ते को यह भक्ति विचलित कर देती है। मैं माँ मरियम को अपने बहुत करीब अनुभव नहीं कर पाता हूँ। मैं येशु के प्रति अपने प्रेम से वंचित हुए बिना, माँ मरियम के प्रति गहरी भक्ति कैसे प्राप्त कर सकता हूं?
उत्तर – कभी मैं भी अपने जीवन में, इसी प्रश्न से जूझता था। मैं संयुक्त राज्य अमेरिका के एक ऐसे क्षेत्र में पला-बढ़ा हूं जो ज्यादतर प्रोटेस्टेंट था, और मेरे किसी भी प्रोटेस्टेंट मित्र ने कभी भी माँ मरियम के प्रति भक्ति नहीं की थी। एक बार जब मैं किशोर था, वॉल-मार्ट में चेकआउट लाइन में किसी महिला के साथ मेरी बातचीत हुई, और जब उसे पता चला कि मैं कैथलिक पुरोहित बनने के लिए पढ़ाई कर रहा हूं, तो उसने मुझसे पूछा कि कैथलिक लोग मरियम की पूजा क्यों करते हैं!
बेशक, कैथलिक लोग माँ मरियम की आराधना या पूजा नहीं करते हैं। केवल ईश्वर ही आराधना और पूजा के योग्य है। बल्कि, हम मरियम को सर्वोच्च सम्मान देते हैं। चूँकि वह पृथ्वी पर येशु के सबसे निकट थी, इसलिए अब वह स्वर्ग में येशु के सबसे निकट है। वह येशु की सम्पूर्ण अनुयायी थी, इसलिए उसका अनुकरण करने से हमें येशु का अधिक विश्वासपूर्वक अनुसरण करने में मदद मिलेगी। जिस तरह हम अपने माता-पिता या किसी मित्र या पुरोहित से हमारे लिए प्रार्थना करने के लिए कहते हैं, उसी तरह हम माँ मरियम से हमारे लिए प्रार्थना करने के लिए कहते हैं – और मरियम की प्रार्थनाएं कहीं अधिक प्रभावी हैं, क्योंकि वह मसीह के बहुत करीब है!
मरियम के प्रति एक स्वस्थ भक्ति में बढ़ने के लिए, मैं तीन चीजों की सिफारिश करता हूं।
सबसे पहले प्रतिदिन रोज़री माला का जाप करें। संत पापा जॉन पॉल द्वितीय ने कहा कि रोज़री माला के माध्यम से हम “मरियम की आंखों से येशु के जीवन को देखते हैं।” यह एक ख्रीस्त-केंद्रित प्रार्थना है, जिस सबसे अच्छे ह्रदय (निष्कलंक हृदय) से येशु से प्यार किया जाता है, उसी हृदय से येशु से प्रेम करने की महत् प्रार्थना है यह। रोज़री माला ने मेरी ज़िंदगी बदल दी- जब मैं किशोर था तब मैंने इसे चालीसा काल की तपस्या के रूप में लिया था… और मुझे हर दिन इसके प्रति डर लगता था। मेरे लिए, वे सभी दोहराव वाली प्रार्थनाएँ बहुत उबाऊ लग रहा था …। लेकिन एक बार जब चालीसा काल खत्म हो गया, तो मैंने पाया कि मैं इस रोज़री माला को नीचे नहीं रख सकता। दोहराव अब उबाऊ नहीं, बल्कि शांत करने और सांत्वना देने वाला था। मैंने मसीह के जीवन के दृश्यों में स्वयं की कल्पना की और उन दृश्यों में येशु से मुलाक़ात की।
दूसरा, अपने आप को मरियम को समर्पित करें। संत लुइस डी मोंटफोर्ट ने माँ मरियम के प्रति एक समृद्ध 33-दिवसीय समर्पण प्रार्थना बनायी है, या आप हाल ही के “33 डेज़ टू मॉर्निंग ग्लोरी” प्रार्थना का उपयोग कर सकते हैं। जब हम मरियम को अपना जीवन समर्पित करते हैं, तो वह हमें शुद्ध करती और निर्मल बनाती है, और फिर हमारे जीवन को अपने पुत्र के सामने खूबसूरती से प्रस्तुत करती है।
“मरियम के प्रति सच्ची भक्ति, पूर्ण समर्पण की तैयारी के साथ” प्रार्थना पुस्तिका के द्वारा संत लुइस डी मोंटफोर्ट आपके प्रश्न का उत्तर देते हैं:: “यदि तब, हम अपनी धन्य माँ मरियम के प्रति ठोस भक्ति स्थापित करते हैं, तो यह येशु मसीह के प्रति अधिक पूर्ण भक्ति स्थापित करना है, और येशु मसीह को खोजने के लिए एक आसान और सुरक्षित साधन प्रदान करना है। अगर आपको लगता है कि माँ मरियम की भक्ति ने आपको येशु मसीह से दूर कर दिया, तो आपको इसे शैतान द्वारा लाया गया भ्रम मानकर अस्वीकार करना चाहिए; लेकिन इस से से विपरीत, येशु मसीह को पूरी तरह से खोजने, उसे कोमलता से प्यार करने, ईमानदारी से उसकी सेवा करने के साधन के रूप में माँ मरियम के प्रति भक्ति हमारे लिए आवश्यक है …।”
अंत में, अपनी दैनिक आवश्यकताओं के लिए माँ मरियम की ओर मुड़ें। एक बार मैं एक बहुत ही पवित्र दम्पति के विवाह के रस्म के पूर्वाभ्यास का नेतृत्व कर रहा था। अचानक हमें एहसास हुआ कि वे अपने विवाह का सिविल लाइसेंस लाना भूल गए हैं! हम सभी मामले की गंभीररा भांपते हुए आतंकित थे। मैं सिविल लाइसेंस के बिना उनके विवाह की धर्मविधि नहीं करा सकता था, लेकिन बहुत देर हो चुकी थी, अगले दिन शादी से पहले इसे पाना संभव नहीं था। मैं दूल्हा-दुल्हन को गिरजाघर के गर्भगृह के पीछे के कक्ष में लाया और मैं ने उन्हें यह खबर दी- जब तक कोई चमत्कार नहीं होता, मैं उनकी शादी नहीं करा पाऊंगा। वे बिलकुल टूट गए! इसलिए, हमने माँ मरियम से प्रार्थना की, जो खुद शादीशुदा थीं और जिन दम्पतियों की सगाई हो चुकी है उन के प्रति मरियम के दिल में विशेष प्यार है। हमने यह समस्या उसे सौंपी थी—और उसने एक चमत्कार किया! पता चला कि हमारी पल्ली का एक सदस्य उस कार्यालय के एक महिला लिपिक को संयोग से जानता था, जो उस दिन छुट्टी पर थी, इसके बावजूद, वह महिला बड़े सबेरे अपने कार्यालय गयी, और लाइसेंस तैयार करके दिया और विवाह का रस्म पूर्व योजना के अनुसार संपन्न हुआ। मरियम सबकी माँ है – हमें अपनी सभी समस्याओं और चिंताओं को अपनी उस माँ के सम्मुख लाना चाहिए!
कभी न भूलें- मरियम की सच्ची भक्ति हमें येशु से दूर नहीं ले जाती है, यह हमें मरियम के माध्यम से येशु तक ले जाती है। हम कभी भी मरियम का ज़रुरत से ज्यादा सम्मान नहीं कर सकते क्योंकि हम कभी भी उनका उतना सम्मान नहीं कर सकते जितना येशु ने उनका सम्मान किया। मरियम के पास आवें—और भरोसा रखें कि वह आपको अपने पुत्र के पास ले जाएगी।
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किसी की तस्वीर को बनाने का एक विशेष तरीका होता है। उस व्यक्ति के चेहरे की विशेषताओं का अध्ययन करना, सूक्ष्म विवरणों की खोज करना और एक तरह की विशेष अभिव्यक्ति को संवेदनशील रूप से कैद करना इस प्रक्रिया का हिस्सा है। चेहरे की पहचान की आधुनिक तकनीक इस बात की गवाही देती है कि प्रत्येक व्यक्ति का चेहरा कितना अनूठा है। डी.एन.ए. या फिंगरप्रिंट की तरह, आपकी छवि बस आपकी और आपकी ही है। जबकि प्रत्येक व्यक्ति की छवि पूरी तरह से अद्वितीय है, फिर भी, हम सभी एक नमूने के आधार पर प्रतिरूपित या प्रतिबिंबित होते हैं। उत्पत्ति की पुस्तक कहती है कि परमेश्वर ने नर और नारी को अपनी प्रतिछाया में बनाया। परमेश्वर एक कलाकार है। पवित्र ग्रन्थ में हम सबसे पहले परमेश्वर के बारे में यही बात सीखते हैं। ईश्वर चित्र बनाता है। वह अपने स्वयं का चित्र बनाता है।
यदि प्रत्येक व्यक्ति परमेश्वर की प्रतिछाया में बना है, तो हम सब इतने भिन्न क्यों दिखते हैं और इतने भिन्न प्रकार के व्यवहार क्यों करते हैं? ईश्वर असीम है। ईश्वर की असीम संपूर्णता पर किसी भी व्यक्ति की पकड़ संभव नहीं है। इसलिए उसने बहुत से मनुष्यों की सृष्टि की है। पाब्लो पिकासो ने अपने जीवनकाल में अपने कम से कम 14 स्व-चित्रों को बनाया। उनके प्रत्येक स्व-चित्र निर्विवाद रूप से अलग है। हालाँकि, पाब्लो पिकासो के व्यक्तित्व की कुछ झलक उनके सभी चित्रों में व्यक्त की गई है। इसी तरह, प्रत्येक व्यक्ति ईश्वर के उदार चरित्र का एक अनूठा लेकिन सच्चा प्रतिनिधित्व है।
विश्वास के विरुद्ध किये गए कार्य ही पाप है। जब आदम और हेवा ने अदन वाटिका में परमेश्वर की आज्ञा की अवहेलना की, तो परमेश्वर-प्रदत्त उनकी छवि बिगड़ गयी। इसी तरह, जब भी हम ईश्वर या दूसरों के खिलाफ रुख करते हैं तो हमारी छवि बिगड़ती है। साफ़ कैनवास पर पड़े गीले बदरंग धब्बे को पाप कहा जा सकता है। अर्थात् पाप ईश्वर की सुंदर कलाकृति का विरूपण है। परमेश्वर की प्रतिछाया में सृष्ट किये गए हम मानव में परमेश्वर की पह्चान होनी चाहिए। जो परमेश्वर को हममें पहचानने में कम योग्य बनाता है, वह पाप है। और इसलिए वही पाप हमें स्वयं को पहचान देने में कम योग्य बनाता है। लेकिन शुक्र है कि परमेश्वर भी, हर कलाकार की तरह, अपनी कलाकृति को बचाने के लिए हठपूर्वक समर्पित हैं। यही कारण है कि परमेश्वर की सबसे सिद्ध छवि, पुत्र ईश्वर ने देह का माध्यम धारण किया।
हमारी विकृत छवि को फिर से रंग देकर सुन्दर बनाने और नवीनीकरण करने केलिए येशु मसीह आये। प्रेम, प्रज्ञा और क्षमा पूर्ण जीवन का नमूना बनकर, मसीह हमें याद दिलाते हैं कि परमेश्वर का स्वरूप कैसा है। अपने लहू से मसीह हमारे दोषों और धब्बों को मिटाते हैं, हमारे दागों को मिटाकर चिकना-चुपड़ा करते हैं, और हमारी खाइयों को भरना आरंभ करते हैं। पवित्र आत्मा के आंतरिक परिकल्पना के माध्यम से, ईश्वर द्वारा रचित हमारी मूल कृति एक बार फिर स्पष्टता प्राप्त करती है। एक ईसाई का जीवन एक निरंतर चल रही कला-पुनरुद्धार की प्रक्रिया है। हर कलाकार जानता है कि रचनात्मक प्रक्रिया कितनी कठिन हो सकती है, लेकिन परिणाम हमेशा सुखदायक होता है।
वाशिंगटन डी.सी. से गुजरते समय, राष्ट्रीय कला वीथिका का दौरा करना ज़रूरी है। वहां एक विशेष कलाकृति के आसपास दुनिया भर से आये लोगों की भीड़ उस तस्वीर की प्रशंसा करते हुए मिलेंगे । यह लियोनार्डो दा विंची द्वारा चित्रित एक रहस्यमयी युवती के मामूली आकार का चित्र है। दा विन्ची की बहुत कम मूल कृतियाँ उपलब्ध हैं, यह तस्वीर आज कला की दुनिया की सबसे कीमती कृतियों में से एक मानी जाती है। चित्र के पीछे की तरफ लातीनी भाषा में लिखा हुआ है, “विर्चुतेम फ़ोर्मा डेकोरात” यानी “सौंदर्य सद्गुणों को सुशोभित करता है”। ईश्वर की छवि एक आध्यात्मिक वास्तविकता है। यह छवि हमारे चरित्र के आचरण से प्रकट होता है। जब हम अपने जीवन को परमेश्वर की तूलिका के स्पर्श के अनुरूप होने देते हैं, तो सुंदरता अपने सबसे वास्तविक और स्थायी वैभव में आ जाती है। ईश्वर सबसे उत्कृष्ट चित्रकार है। उसकी आँखें दा विंची की तुलना में अधिक गहरी हैं, और उसके हाथ सुप्रसिद्ध चित्रकार कारवागियो की तुलना में नरम हैं। आपकी सुंदरता लूवर कला वीथिका में रखी गयी हर कलाकृति से बढ़कर है, क्योंकि आप ईश्वर की मूल कलाकृति हैं। अगली बार जब आप क्रूस का चिन्ह बनाते हैं, तो याद रखें कि आप अपने ऊपर परमेश्वर की तूलिका से उसका हस्ताक्षर बना रहे हैं । †
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