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ब्रह्मांड की उस सबसे बड़ी शक्ति को जानिए जो आपको… और दुनिया के चेहरे को परिवर्तित करने में सक्षम है
2019 में हमारी पल्ली ने गिरजाघर के नवीनीकरण और सुन्दरीकरण पूरा किया जिसमें एक मुलाक़ात स्थान, घुटने टेकने केलिए लकड़ी की पंक्तियाँ, लिफ्ट और स्नानघर शामिल थे, जिस के कारण हमारा गिरजाघर अधिक सुलभ और स्वागत योग्य बन गया। लेकिन नवीनीकरण के तीन साल बाद भी, ऐसा लगता है कि सबसे सबसे परिवर्तनकारी नए कार्य के बारे में कोई भी पल्लीवासी को कोई जानकारी नहीं है: हमारे गिरजाघर के तहखाने में स्थित स्थाई आराधना स्थल।
किशोरों और वयस्कों के लिए बने हमारे नए कक्ष और एक व्यस्त सीढ़ी के बीच एक सुंदर, अंतरंग, अति पवित्र स्थान परम संस्कार की आराधना के लिए अलग रखा गया है। कैथलिकों का मानना है कि परम पवित्र संस्कार में येशु वास्तव में मौजूद है – शरीर, रक्त, आत्मा और दिव्यता के साथ। परम पवित्र संस्कार की आराधना, मिस्सा के बाहर परम संस्कार की हमारी उपासना है। दिन में चौबीस घंटे, सप्ताह में सात दिन कोई भी इस अंतरंग स्थान में प्रवेश कर सकता है, ताकि वेदी पर एक सुंदर मंजूषा में प्रदर्शित पवित्र संस्कार में उपस्थित प्रभु की आराधना में समय बिताया जा सके। कलकत्ता की संत तेरेसा ने एक बार कहा था, “आप येशु के साथ परम पवित्र संस्कार में जो समय बिताते हैं वह आपके द्वारा पृथ्वी पर बिताये जा रहा सबसे अच्छा और उपयुक्त समय है। हर पल जो आप येशु के साथ बिताते हैं, वह उसके साथ आपकी एकात्मता को गहरा कर देगा और आपकी आत्मा को स्वर्ग में हमेशा के लिए और अधिक शानदार और महिमामय बना देगा, और पृथ्वी पर एक चिरस्थायी शांति लाने में मदद करेगा। “पृथ्वी पर चिरस्थायी शांति लाना” कौन ऐसा नहीं करना चाहेगा?! फिर भी, ज्यादातर दिनों में मैं सिर्फ एक बेहतर माँ बनने की कोशिश कर रही हूँ।
पिछले एक साल के दौरान, पवित्र संस्कार की आराधना येशु के साथ मेरे रिश्ते का, और मेरे बच्चों के लिए अधिक प्यार के साथ अच्छी माँ बनने के मेरी कोशिस का भी, एक अनिवार्य हिस्सा बन गया है। क्योंकि “मेरा विश्वास इतना परिपूर्ण हो कि मैं पहाड़ों को हटा सकूं, किन्तु यदि मुझ में प्रेम का अभाव है, तो मैं कुछ भी नहीं” (1 कुरीन्थी 13:2)।
जब मैं अपने आप को येशु से दूर महसूस करती हूँ, तब स्थाई आराधना स्थल ही वह स्थान है जहाँ मैं जाती हूँ। यह वह जगह है जहां मैं अपने परिवार के साथ पवित्रता और संतत्व की राह पर चलने के दैनिक संघर्ष को निपटाती हूं। मैंने एक बार एक गिरजाघर के बाहर एक चिन्ह देखा था जिस पर लिखा था, “जैसे तुम हो वैसे आओ; तुम अंदर आकर अपने को बदल सकते हो।” इस तरह मुझे लगता है कि मैं आराधना में जा रही हूँ – विशेष परिधान पहनकर तैयार होने या अन्य किसी विशेष तैयारी करने की कोई आवश्यकता नहीं है। भले ही कुछ समय बीत गया हो, मैं उस आराधनालय में प्रवेश करती हूं और मैं ने जहां से प्रार्थना या मनन चिंतन छोड़ा था वहां से उठाती हूं। मेरी आराधना का समय बहुत कुछ वैसा ही है जैसा मैं उन लोगों के साथ बिताती हूं जिन्हें मैं सबसे ज्यादा प्यार करती हूं। जैसे हमारे जीवन साथी के साथ “डेट की रात” या एक अच्छे दोस्त के साथ लंबी बातचीत करना उन रिश्तों को मजबूत करता है, उसी तरह आराधना के द्वारा ईश्वर के साथ विश्वास का निर्माण होता है। जिस तरह मौन उपस्थिति के साथ हम अपनों के साथ सार्थक समय बिताते हैं, उसी तरह आराधना उस तरह की संगति और साहचर्य विकसित करती है। आराधना में कोई क्या करता है? मेरी कार्यशैली बदलती रहती है। कभी-कभी मैं माला विनती की प्रार्थना करती हूं, कभी-कभी मैं किसी धर्मग्रन्थ के पाठ पर ध्यान करती हूं या अपनी डायरी लिखने में समय बिताती हूं। हम ईश्वर को खोजने के लिए इतना प्रयास करते हैं कि हम ईश्वर को समय ही नहीं देते कि वह हमें खोजें। इसलिए, सबसे अधिक बार, मैं बस अपने आप को प्रभु की उपस्थिति में रखती हूँ और कहती हूँ, “प्रभु, मैं यहाँ हूँ। कृपया मेरा मार्गदर्शन कर।” मैं तब परिस्थितियों को या जीवन के उन “गांठों” को उठाती हूं जिन में मुझे मदद की ज़रुरत है, और जिन लोगों से उस सप्ताह प्रार्थना करने का वादा किया था, उन सारे लोगों के लिए प्रार्थना करती हूँ। आमतौर पर मैं आराधनालय से सशक्त होकर, शांति के साथ, एक नई दिशा और प्रेरणा पाने की भावना के साथ निकल जाती हूँ। हमारे प्रभु के साथ आमने सामने समय बिताना हमारे रिश्ते को और अधिक घनिष्ठ बनाता है। जब आप परिवार के किसी सदस्य को सीढ़ियों से नीचे आते हुए सुनते हैं, तो आप उनके कदमों की आवाज से ही जान जाते हैं कि वह कौन है। परिवार के सदस्यों के साथ जितना समय हम बिताते हैं, उससे ऐसा परिचय मिलता है और हमें उनमें से प्रत्येक को जानने और उसकी सराहना करने की गहरी समझ मिलती है। आराधना ईश्वर के साथ उस तरह के परिचय को बढ़ावा देती है। आप से मेरा अपील है कि आप आराधनालय में जाकर परम पवित्र संस्कार में उपस्थित येशु के साथ समय बिताने पर विचार करें। यदि आप नियमित रूप से मिस्सा में भाग नहीं ले रहे हैं, यदि आपको अपने संघर्ष को प्रभु के चरणों में समर्पित करने की आवश्यकता है, यदि आप अधिक प्यार करने वाले माता या पिता बनना चाहते हैं, या यदि आपको अपने दिन की अराजकता और बदहाली से दूर जाने की आवश्यकता है, – आपकी हालात जो भी हो, कोई फर्क नहीं पड़ता – आप आराधना के पवित्र मौन में कदम रखें, प्रभु की उपस्थिति में आपका हमेशा स्वागत होगा। आराधना में नियमित समय देने से हमें वह आकार देगा जिस अच्छे ईसाई शिष्यों और माता-पिता के रूप में हमारा आकार होना चाहिए। जैसा कि मदर तेरेसा हमें बताती हैं, यह “पृथ्वी पर चिरस्थायी शांति” भी ला सकती है।
Jessica Braun Article is based on the Shalom World TV program “My Jesus My Savior” featuring Jessica Braun. To watch the episode visit: https://www.shalomworldtv.org/videos/index/1897
कई आध्यात्मिक उपहारों से संपन्न संत जॉन बोस्को अक्सर सपने देखते थे जिनमें स्वर्गीय संदेशों का प्रकाशन होता था। उनमें से एक सपने में, उन्हें खेल के मैदान के पास हरी घास में ले जाया गया और एक विशाल सांप घास में लिपटा हुआ दिखाया गया। वास्तव में वे डर गए थे और इसलिए वे भागना चाहते थे, लेकिन उनके साथ गए एक व्यक्ति ने उन्हें रोक लिया और उनसे कह रहा था की निकट जाकर अच्छी तरह से देखें। जॉन डरा हुआ था, लेकिन उनके दोस्त ने उन्हें आगे बढ़ने के लिए मजबूर कर दिया, उसे एक रस्सी दी और उस रस्सी के सहारे सांप को मारने की हिदायत दी। झिझकते हुए, जॉन ने रस्सी का फंदा सांप की पीठ पर फेंकी, लेकिन जैसे ही सांप उछला, वह फंदे में फँस गया। सांप ने फंदे में फंसकर थोड़ा संघर्ष किया और जल्दी ही उसकी मौत हो गई। उसके साथी ने रस्सी उठा कर एक सन्दूक में रख दी; कुछ देर के बाद बक्सा खोलने पर, जॉन ने देखा कि रस्सी ने "प्रणाम मरिया" शब्दों का आकार ले लिया है। साँप, शैतान का प्रतीक, "प्रणाम मरिया" की शक्ति से पराजित हो गया, उसका सर्वनाश हो गया। यदि एक अकेली ‘प्रणाम मरिया’ की प्रार्थना ऐसा कर सकती है, तो पूरी रोज़री माला की शक्ति की कल्पना करें! जॉन बोस्को ने इस सबक को गंभीरता से लिया और यहां तक कि मरियम की मध्यस्थता में उनके विश्वास की और भी पुष्टि हुई। अपने प्रिय शिष्य डोमिनिक सावियो की मृत्यु के बाद, संत जॉन बोस्को को सावियो का स्वर्गीय वेशभूषा में दर्शन हुआ; इस विनम्र शिक्षक ने बाल संत सावियो से पूछा कि मृत्यु के समय उनकी सबसे बड़ी सांत्वना क्या थी। और उसने उत्तर दिया: “मृत्यु के क्षण में जिस बात ने मुझे सबसे अधिक सांत्वना दी, वह उद्धारकर्ता की शक्तिशाली और प्यारी माँ, अति पवित्र माँ मरियम की सहायता थी। आप अपने नवयुवकों से यह कहिये कि जब तक वे जीवित रहें, वे उस से प्रार्थना करना न भूलें!” संत जॉन बोस्को ने बाद में लिखा, "आइए जब भी हमें प्रलोभन दिया जाए, तब हम श्रद्धापूर्वक प्रणाम मरिया कहें, और हम निश्चित रूप से कामयाब होंगे।"
By: Shalom Tidings
Moreफरवरी की शुरुआत में, संयुक्त राज्य अमेरिका में कलीसिया द्वारा कैथलिक स्कूल सप्ताह मनाया जाता है। मैं इस अवसर को कैथलिक स्कूलों द्वारा दी जा रही अच्छी शिक्षा केलिए उनका सम्मान करने और कैथलिक और गैर-कैथलिक सभी को उन स्कूलों का समर्थन हेतु आमंत्रित करने के अवसर के रूप में उपयोग करता हूँ। मैंने पहली कक्षा से लेकर ग्रेजुएट स्कूल तक, बर्मिंघम, मिशिगन में होली नेम एलीमेंट्री स्कूल से लेकर पेरिस में इंस्टीट्यूट कैथलिक नामक शिक्षा संस्थान तक, कलीसिया से जुड़े शैक्षणिक संस्थानों में पढ़ाई की। वर्षों तक चले उस तल्लीनता से भरपूर सघन और गहरी शिक्षा के अनुभव ने मेरे चरित्र, मेरे मूल्यों की भावना, दुनिया को देखने के मेरे पूरे तरीके को बड़े पैमाने पर आकार दिया। मेरा मानना है कि, विशेष रूप से अब, जब धर्म-विहीनवादी, भौतिकतावादी दर्शन हमारी संस्कृति में बड़े पैमाने पर प्रभाव रखता है, तो ऐसे में कैथलिक लोकाचार एवं शिष्टाचार को शिक्षा पद्धति में शामिल करने की आवश्यकता है। निश्चित रूप से, जिन कैथलिक स्कूलों में मैंने पढ़ाई की, उनके विशिष्ट चिह्न मिस्सा बलिदान और अन्य संस्कारों, धर्म कक्षाओं, पुरोहितों और साध्वियों की उपस्थिति (जो मेरी शिक्षा के शुरुआती वर्षों में थोड़ा अधिक मात्रा में थी), और कैथलिक संतों, प्रतीकों और छवियों की व्यापकता के अवसर थे। लेकिन जो बात शायद सबसे महत्वपूर्ण थी वह उन स्कूलों द्वारा आस्था और वैज्ञानिक सोच के एकीकरण का वह तरीका था। निश्चित रूप से, कोई "कैथलिक गणित” नहीं है, लेकिन वास्तव में गणित पढ़ाने का एक कैथलिक तरीका है। गुफा के अपने प्रसिद्ध दृष्टांत में, प्लेटो ने दिखाया कि दुनिया की विशुद्ध भौतिकवादी दृष्टि से दूर पहला कोई कदम है तो वह गणित है। जब कोई सबसे सरल समीकरण, या किसी संख्या की प्रकृति, या किसी जटिल अंकगणितीय सूत्र की सच्चाई को समझ लेता है, तो वह, बहुत ही वास्तविक अर्थों में, नश्वर वस्तुओं के दायरे को त्याग देता है और आध्यात्मिक वास्तविकता के ब्रह्मांड में प्रवेश कर जाता है। धर्मशास्त्री डेविड ट्रेसी ने टिप्पणी की है कि आज अदृश्य का सबसे सामान्य अनुभव गणित और रेखा गणित के शुद्ध अमूर्त को समझने के माध्यम से है। इसलिए, उचित ढंग से पढ़ाया गया गणित, धर्म द्वारा प्रदान किए गए उच्च आध्यात्मिक अनुभवों द्वारा, ईश्वर के अदृश्य क्षेत्र का द्वार खोल देता है। इसी तरह, कोई विशिष्ट "कैथलिक भौतिकी” या "कैथलिक जीव विज्ञान” नहीं है, लेकिन वास्तव में उन विज्ञानों के लिए एक कैथलिक दृष्टिकोण है। कोई भी वैज्ञानिक तब तक अपने काम को जमीन पर नहीं उतार सकता जब तक कि वह दुनिया की मौलिक समझदारी में विश्वास नहीं करता - कहने का मतलब यह है कि भौतिक वास्तविकता के हर पहलू को, समझने योग्य पैटर्न द्वारा चिह्नित किया जाता है। यह किसी भी खगोलशास्त्री, रसायनज्ञ, खगोलभौतिकीविद्, मनोवैज्ञानिक या भूवैज्ञानिक के लिए सच है। लेकिन यह स्वाभाविक रूप से इस सवाल की ओर ले जाता है: ये समझदार पैटर्न कहां से आए? दुनिया को व्यवस्था, सद्भाव और तर्कसंगत पैटर्न द्वारा इतना चिह्नित क्यों किया जाना चाहिए? बीसवीं सदी के भौतिक विज्ञानी यूजीन विग्नर द्वारा रचित एक अद्भुत लेख है जिसका शीर्षक है "प्राकृतिक विज्ञान में गणित की अनुचित प्रभावशीलता।" विग्नर का तर्क था कि यह महज संयोग नहीं हो सकता कि सबसे जटिल गणित, भौतिक दुनिया का सफलतापूर्वक वर्णन करता है। महान कैथलिक परंपरा का उत्तर यह है कि यह समझदारी, वास्तव में, एक महान रचनात्मक बुद्धि से आती है जो इस संसार की सृष्टि के पीछे खड़ी है। इसलिए, जो लोग विज्ञान का अभ्यास करते हैं, उन्हें यह विश्वास करने में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए कि "आरंभ में शब्द था।" कोई "कैथलिक इतिहास” भी नहीं है, हालाँकि इतिहास को देखने का निश्चित रूप से एक कैथलिक तरीका है। आमतौर पर, इतिहासकार केवल अतीत की घटनाओं का वर्णन नहीं करते हैं। बल्कि, वे इतिहास के भीतर कुछ व्यापक विषयों और प्रक्षेप पथों की तलाश करते हैं। हममें से अधिकांश को शायद इसका एहसास भी नहीं है क्योंकि हम एक उदार लोकतांत्रिक संस्कृति के भीतर पले-बढ़े हैं, लेकिन हम स्वाभाविक रूप से ज्ञानोदय को इतिहास के निर्णायक मोड़ के रूप में देखते हैं, विज्ञान और राजनीति में महान क्रांतियों का समय जिसने आधुनिक दुनिया को परिभाषित किया। इस बात पर कोई संदेह नहीं कर सकता कि ज्ञानोदय एक महत्वपूर्ण क्षण था, लेकिन कैथलिक निश्चित रूप से इसे इतिहास के चरमोत्कर्ष के रूप में नहीं देखते हैं। इसके बजाय, हमारा मानना है कि धुरी बिंदु वर्ष 30 ईस्वी के आसपास यरूशलेम के बाहर एक गंदी पहाड़ी पर था, जब रोमियों द्वारा एक युवा रब्बी को यातना देकर मार डाला जा रहा था। हम हर चीज़ की - राजनीति, कला, संस्कृति, आदि - की व्याख्या ईश्वर के पुत्र के बलिदान के दृष्टिकोण से करते हैं। 2006 के अपने विवादास्पद रेगेन्सबर्ग संबोधन में, दिवंगत पोप बेनेडिक्ट ने तर्क दिया कि देह-अवतार के सिद्धांत के कारण ही ईसाई धर्म, संस्कृति के साथ एक जीवंत बातचीत में प्रवेश कर सकता है। हम ईसाई यह दावा नहीं करते हैं कि येशु कई लोगों में से एक दिलचस्प शिक्षक थे, बल्कि ईश्वर के वचन, मन या विवेक ने येशु के रूप में देहधारण किया था। तदनुसार, जो कुछ भी वचन या विवेक द्वारा चिह्नित है वे सभी ईसाई धर्म का स्वाभाविक मौसेरा भाई है। विज्ञान, दर्शन, साहित्य, इतिहास, मनोविज्ञान - यह सब - ईसाई धर्म में पाया जाता है, इसलिए, एक स्वाभाविक संवाद (वह शब्द फिर से है!) का भागीदार भी है। यह बुनियादी विचार है, जो पापा रत्ज़िंगर (बेनेडिक्ट सोलहवें) को बहुत प्रिय है, जो कैथलिक स्कूलों के स्वभाव को सर्वोत्तम रूप से सूचित करता है। और यही कारण है कि उन स्कूलों का फलना-फूलना न केवल कलीसिया के लिए, बल्कि हमारे पूरे समाज के लिए महत्वपूर्ण है।
By: Bishop Robert Barron
Moreइस परिवार की कहानी एक ख़राब फ़िल्म जैसी लगती है, लेकिन उसका अंत आपको चौंका देगा हमारी कहानी घर से शुरू होती है, जहां मैं अपने दो छोटे भाइयों, ऑस्कर और लुइस के साथ टेक्सास के सान एंटोनियो में पला-बढ़ा हूं। पिताजी हमारे गिरजाघर में गीतमंडली के प्रभारी थे, जबकि माँ पियानो बजाती थीं। हमारा बचपन खुशहाल था - क्योंकि वह गिरजाघर और परिवार के इर्द गिर्द ही था, मेरे दादा-दादी पास में ही रहते थे। हमने सोचा कि सब कुछ ठीक है, लेकिन जब मैं छठवीं कक्षा में था, तो माँ और पिताजी ने हमें बताया कि वे तलाक ले रहे हैं। पहले हमें नहीं पता था कि इसका क्या मतलब है, क्योंकि मेरे परिवार में किसी का तलाक नहीं हुआ था, लेकिन हमें जल्द ही पता चल गया। जब वे हम बच्चों पर अधिकार के लिए अदालत में लड़ रहे थे तो हमें एक घर से दूसरे घर भटकना पड़ा। लगभग एक साल बाद, पिताजी सप्ताहांत में शहर से बाहर गए। मुझे और मेरे भाइयों को माँ के साथ रहना था, लेकिन आखिरी समय में हम कुछ दोस्तों के साथ रहने लगे। हमें आश्चर्य हुआ जब पिताजी हमें लेने अप्रत्याशित रूप से जल्दी घर आए, लेकिन जब उन्होंने हमें कारण बताया तो हम टूट गए। माँ एक सुनसान पार्किंग स्थल में अपनी कार में मृत पाई गई थीं। जाहिर तौर पर, दो लोगों ने बंदूक की नोक पर माँ को लूट लिया था और उनका पर्स और गहने चुरा लिए थे। फिर, दोनों ने पिछली सीट पर उसके साथ बलात्कार किया, उसके चेहरे पर तीन बार गोली मारने के बाद उन्हें अपनी कार के फर्श पर मरने के लिए छोड़ दिया। जब पिताजी ने हमें बताया तो हमें विश्वास ही नहीं हुआ। कोई माँ को क्यों मारना चाहेगा? हमें आश्चर्य हुआ कि क्या वे चोर हमारे पीछे आने वाले थे। डर हमारे बचपन का हिस्सा बन गया। बाद का परिणाम अंतिम संस्कार के बाद, हमने पिताजी के साथ सामान्य जीवन में लौटने की कोशिश की, लेकिन मैंने अनुभव किया कि हमारे जैसे गंभीर अपराध के पीड़ितों के लिए सामान्य जीवन कभी नहीं लौटता। पिताजी का निर्माण कार्य का धंधा था। माँ की हत्या के एक साल बाद, पिताजी को उनके दो कर्मचारियों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर माँ की हत्या के लिए इन दो लोगों को नियुक्त करने तथा हत्या और आपराधिक दबाव का आरोप लगाया गया। वे तीनों एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे थे। कर्मचारियों में से एक ने दावा किया कि उसने पिताजी को माँ की हत्या के लिए दूसरे व्यक्ति को काम पर रखते हुए सुना था। पिताजी ने अपनी बेगुनाही की घोषणा की, और हमने उन पर विश्वास किया, लेकिन उनकी जमानत की अर्जी अस्वीकार कर दी गई, और हमारे लिए सब कुछ बदल गया। जब माँ की हत्या हुई थी, तब हम पीड़ित के बच्चे थे। लोग, विशेषकर चर्च के लोग, हमारी मदद करना चाहते थे। वे मदद दे रहे थे और वे दयालु थे। हालाँकि, पिताजी की गिरफ्तारी के बाद, हमारे साथ अचानक अलग व्यवहार होने लगा। अपराधी की संतान होने का कलंक हमारे ऊपर लग गया। लोग हमें क्षतिग्रस्त सामान के रूप में, जिसका कोई मूल्य नहीं है, देखने लगे। हम अपनी चाची और चाचा के साथ रहने लगे, और मैंने ऑस्टिन में हाई स्कूल की पढ़ाई शुरू की, लेकिन स्थानीय कारागार में पिताजी से मिलने जाता रहा क्योंकि हम उनसे प्यार करते थे और उनकी बेगुनाही पर विश्वास करते थे। ढाई साल बाद आख़िरकार पिताजी पर मुक़दमा चलाया गया। हमारे लिए पूरे समाचार में छपे सभी विवरणों को पढ़ पाना वास्तव में कठिन था, खासकर मेरे लिए, क्योंकि मेरा और पिताजी का नाम एक ही था। जब उन्हें दोषी पाया गया, खासकर जब उन्हें मौत की सजा सुनाई गई, और उन्हें फांसी का इंतजार करने के लिए हंट्सविले में स्थानांतरित कर दिया गया, तब हम लोग पूरी तरह अशान्त और विचलित हो गए। यदि आप किसी कैदी के परिवार के सदस्य हैं, तो ऐसा लगता है कि आपका जीवन बिलकुल रुका और ठहरा हुआ है। जुर्म का चौंकाने वाला कबूल कॉलेज में मेरी पढ़ाई के अंतिम वर्ष के दौरान, एक नया मोड़ आया। जिला न्यायाधीश के सचिव ने खुलासा किया कि अभियोक्ता वकील ने पिताजी को दोषी साबित करने के लिए सबूतों में हेराफेरी की थी। हमें हमेशा पिताजी की निर्दोषता पर विश्वास था, इसलिए इस नए मोड़ से हम बहुत खुश थे। पिताजी पर से मौत की सजा हट गयी और मुकदमे की नयी प्रक्रिया की प्रतीक्षा के लिए काउंटी जेल में वापस भेज दिया गया, और चार साल बाद नयी प्रक्रिया शुरू हुई । मैं और मेरे भाइयों ने पिताजी के लिए गवाही दी, और न्यायाधीशों ने उन्हें मृत्युदंड का दोषी नहीं पाया, जिसका मतलब था कि उन्हें कभी भी फाँसी नहीं दी जाएगी। मुझे यह जानकर एहसास हुआ कि अब मैं पिताजी को इस तरह नहीं खोऊंगा, और इस बड़ी राहत को मैं व्यक्त नहीं कर सकता। हालाँकि, उन न्यायाधीशों ने पिता जी को हत्या के छोटे आरोप का दोषी पाया, जिसमें आजीवन कारावास की सज़ा शामिल थी। इसके बावजूद सभी को पता था कि उन्हें जल्द ही पैरोल पर रिहा किया जाएगा। हमने इन सभी वर्षों में पिताजी को घर लाने के लिए हर संभव प्रयास किया था, इसलिए हम इतने उत्साहित थे कि यह होने वाला था और वे आएंगे और हमारे परिवार के साथ रहेंगे। जब मैं उनकी रिहाई से पहले उनसे मिलने गया था, तो मैंने उनसे मुकदमे के दौरान सामने आए कुछ मुद्दों को स्पष्ट करने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि मैं उनसे कुछ भी पूछ सकता हूं, लेकिन जब मैं इस विशेष प्रश्न पर पहुंचा, तो उन्होंने सीधे मेरे चेहरे पर देखा और कहा, "जिम, मैंने यह किया, और वह इसकी हकदार थी।" मैं चौंक पड़ा, क्योंकि वे अपनी जुर्म को कबूल कर रहे थे, और उन्होंने जो किया उसके लिए उन्हें खेद भी नहीं था और वे इन सब चीज़ों का दोष माँ पर डाल रहे थे। वे सोच रहे थे कि वही पीड़ित हैं क्योंकि वे जेल में थे। मुझे बहुत गुस्सा आया और में चाहता था कि उनको पता चले कि वह पीड़ित नहीं थे। दफनाई गयी मेरी माँ, हाँ वही पीड़ित थी। मैं बयान नहीं कर सकता कि हम सभी को कितना धोखा महसूस हुआ कि वह इतने समय से हमसे झूठ बोल रहे थे। ऐसा लगा जैसे हम सभी पहली बार माँ के लिए शोक मना रहे थे, क्योंकि जब पिताजी गिरफ्तार हुए, तो सब कुछ, हमारी चिंता और ख्याल उनके इर्द गिर्द था। मेरे परिवार ने उनकी पैरोल का विरोध किया, इसलिए पैरोल बोर्ड ने उन्हें पैरोल देने से इनकार कर दिया। मैं उनसे मिलने जेल में गया और उनको बताया कि वे जेल में ही रहेंगे, मृत्यु दंड पाने वालों की कतार में नहीं, वहां वे अन्य कैदियों से सुरक्षित थे, बल्कि अपने पूरे जीवन के लिए अधिकतम सुरक्षा वाली जेल में जायेंगे। मैंने उनसे कहा कि वे हममें से किसी को फिर कभी नहीं देख पायेंगे। इससे पूर्व इन सभी वर्षों में हम उनसे मिलने जाते रहे, उन्हें लिखते रहे, और उनके जेल खाते में पैसे डालते रहे। वे हमारे जीवन के एक बड़े हिस्सा थे, लेकिन अब हम उनसे मुंह मोड़ रहे थे। बंधन से मुक्ति चार साल तक पिताजी से मेरा कोई संपर्क नहीं था, लेकिन इस के बाद, मैं पिताजी से जेल में मिलने वापस गया। अब मेरा अपना बेटा है, और मैं कभी भी उसे चोट पहुँचाने की कल्पना नहीं कर सकता, खासकर जब से मुझे पता चला कि पिताजी ने मेरे भाइयों और मुझे भी मारने के लिए लोगों को काम पर रखा था। मैं उनसे कुछ सवालों का उत्तर चाहता था, लेकिन हमारी मुलकात पर सबसे पहले उन्होंने माँ, मेरे भाइयों और मेरे साथ जो किया उसके लिए मुझसे माफी माँगी। वह एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने इस से पहले कभी किसी बात के लिए खेद नहीं जताया था। मुझे विश्वास नहीं हुआ, लेकिन मैंने सीखा कि जब आप किसी को यह कहते हुए सुनते हैं कि उन्हें खेद है, तो आप की चंगाई वहीँ शुरू हो जाती है। अगली बात जो उन्होंने कही, वह यह थी, "जिम, मैंने आखिरकार अपना जीवन ईश्वर को दे दिया है और जेल में जीवन की सबसे बुरी हालत पर पहुंचने के बाद में प्रभु येशु का अनुयायी बन गया हू।" अगले साल, मैं महीने में एक बार पिताजी से मिलने जाता रहा। उस दौरान, मैं माफ़ी की प्रक्रिया से गुज़रा। पहली नज़र में, अपनी माँ की हत्या के लिए अपने पिता को माफ कर पाना असंभव सा लगा। मैं बहुत सारे अपराध पीड़ितों के साथ काम करता हूं। मैंने जो सीखा है कि यदि आप किसी अपराधी या किसी ऐसे व्यक्ति को माफ नहीं करते हैं जिसने आपको चोट पहुंचाई है, तो आप कड़वे, क्रोधित और उदास हो जाते हैं। मैं नहीं चाहता था कि पिताजी अब मुझ पर नियंत्रण रखें, इसलिए मैंने पिताजी को माफ कर दिया, उन्हें बंधन से छुडाने नहीं, बल्कि मुझे खुद को बंधन से मुक्त करने के लिए। मैं इतना कड़वा, गुस्सैल, उदास आदमी नहीं बनना चाहता था। सुलह की इस प्रक्रिया में, मैंने पिताजी से माँ के लिए बात की, जिनकी आवाज़ उनसे छीन ली गई थी। उस वर्ष, जैसे-जैसे हमने इन मुद्दों पर बात की, मैंने पिताजी के जीवन में बदलाव देखा। संपर्क फिर से बन जाने के लगभग एक साल बाद, मुझे जेल के पादरी से फोन आया कि पिताजी मस्तिष्क धमनी विस्फार के रोग का शिकार होकर अंतिम अवस्था में हैं। उनका मस्तिष्क पूरी तरह मर चुका था, इसलिए हमें उसे लाइफ सपोर्ट से हटाने का निर्णय लेना पड़ा। यह बोलने में आसान लगता है, लेकिन ऐसा नहीं था। सब कुछ के बावजूद, मैं अब भी उनसे प्यार करता था। हमने उनके शव के लिए अनुरोध किया ताकि हमें अपने पिता को जेल की जमीन पर दफनाने की विरासत न मिले। जेल में आयोजित अंतिम संस्कार के रस्म के दौरान हम वार्डन और जेल पादरी को देखकर आश्चर्यचकित थे, और उन्होंने हमें बताया कि, पहली बार, जेल के प्रार्थनालय में हमारे पिताजी के लिए एक स्मृति समारोह रखने की मंजूरी मिल गई है। जब हम उपस्थित हुए, तो हम आगे की पंक्ति में बैठे थे और 300 जेल कैदी हमारे पीछे बैठे थे, जो जेल के सुरक्षा गार्डों से घिरे हुए थे। अगले तीन घंटों तक, वे लोग एक-एक करके माइक्रोफ़ोन के पास आए, सीधे हम लोगों के चेहरे को देखा, और उन्होंने अपनी-अपनी कहानियाँ हमें सुनाईं कि कैसे वे येशु मसीह की ओर मुड़ गए क्योंकि पिताजी ने उनके साथ अपना विश्वास साझा किया था और उनके जीवन को बदल दिया था। अपने बुरे कार्यों को स्वीकार करके और पश्चाताप करके, अपने गुनाहों की ज़िम्मेदारी स्वीकार करते हुए, और ईश्वर से क्षमा माँगकर, उन्होंने अपने जीवन को एक नई दिशा दी, और अन्य लोगों को भी अपने साथ उस नयी दिशा में ले गए । जब आप एक व्यक्ति को यह कहते हुए सुनते हैं, तो यह शक्तिशाली अनुभव होता है- और जब 300 लोगों को सुनते हैं तो आप अभिभूत हो जाते हैं। मैंने गिरजाघरों में, जेलों में, पुनर्वास केन्द्रों और न्याय सुधार के कार्यक्रमों में बोलना शुरू किया – हमने पीड़ितों और पुनर्वास की इच्छा रखने वाले अपराधियों के लिए क्षमा प्रक्रिया के बाद बहाली की हमारी इस कहानी को साझा किया। मैंने बार-बार देखा है कि लोग कैसे बदल जाते हैं। जब मैं अपनी कहानी सुनाता हूं, तो मैं अपने माता-पिता दोनों का सम्मान करता हूं - हमारे जीवन पर उनके सकारात्मक प्रभाव के लिए मां का, और अपने पापों के लिए वास्तव में पश्चाताप करने के फैसले के लिए पिताजी का। हमारी कहानी का अंत यह है कि आज हम यह देखने में सक्षम हैं कि ईश्वर कैसे भयानक परिस्थितियों को अपने काबू में लेते हैं और उन्हें भलाई में बदल देते हैं। पश्चाताप और क्षमा के बारे में हमने जो सीखा है, उस सीख ने हमें बेहतर पति और पिता बनाया है क्योंकि हम जानबूझकर अपने परिवारों को कुछ और बेहतर देने के इच्छुक थे। हमने कड़वे अनुभव से सीखा है कि वास्तव में पश्चाताप करने के लिए, आपको पश्चाताप करते रहना होगा, और वास्तव में क्षमा करने के लिए, आपको एक बार नहीं, बल्कि लगातार क्षमा करते रहना होगा।
By: Shalom Tidings
Moreमेरे बच्चों की आया के ताड़ना भरे शब्दों को सुनकर मैं स्तब्ध होकर अविश्वास भरी दृष्टि से देख रही थी। उसके निराशाजनक रूप और लहजे से मेरा उलझन तथा घबराहट और अधिक बढ़ गया। मानवीय अनुभव में अस्वीकृति या आलोचना के दंश का एहसास सब केलिये सामान है। किसी भी समय हमारे व्यवहार या चरित्र के बारे में चापलूसी भरे शब्दों को सुनना आसान है, और कडवी बातों को सुनना कठिन है, लेकिन विशेष रूप से यह और कठिन होता है जब आलोचना अनुचित या गलत होती है। जैसा कि मेरे पति अक्सर कहते थे, "धारणा वास्तविकता है; "मैं बार-बार उस बयान की सच्चाई देख चुकी हूं। इस प्रकार, जब हमारे कार्यों पर दूसरों के द्वारा प्रकट किये गए फैसले हमारे दिल के इरादों को प्रतिबिंबित नहीं करता है, तब आरोप सबसे अधिक गहरा घाव करते हैं। कुछ वर्ष पहले, मैं ऐसे एक व्यक्ति के कृत्यों की भुक्तभोगी थी जिसने मेरे इरादों को गलत समझा था । चमत्कार की प्रतीक्षा में उस समय, मैं लगभग 30 वर्ष की माँ थी, जो दो शिशुओं को पाकर बहुत खुश और आभारी थी। गर्भधारण के लिए पूरे इरादे के साथ, सही समय पर प्रयास करने के बावजूद, पूरे एक साल तक माता-पिता बनना मेरे पति और मेरे लिए केवल एक सपना ही बनकर रह गया था। स्त्री रोग विशेषज्ञ से एक और मुलाकात के बाद उनके कार्यालय को छोड़ते वक्त, मैंने अनिच्छा से अपरिहार्य लग रही सच्चाई को स्वीकार कर लिया था| अब हमारा एकमात्र विकल्प प्रजनन दवाओं का उपयोग करना था। कार की ओर बढ़ते हुए मैंने निराशाजनक टिप्पणी की, "हमें घर जाते समय दवा लेने केलिए फार्मेसी में रुकना चाहिए क्या?" तभी मैंने अपने पति को यह कहते हुए सुना, "परमेश्वर को एक और महीने की मोहलत दे कर देखते हैं।" क्या?? हमने पहले ही उसे एक साल की मोहलत दे दी थी और अब हमारी शादी को दो साल हो चुके हैं। हमारा वैवाहिक और पारिवारिक जीवन का पौधा फलने-फूलने में समय ले रहा था। साल जुड़ते गए और अब मैं 33 साल की हो गयी थी और अपनी "जैविक घड़ी" की लगातार टिक-टिक सुन रही थी। अब घर जाते हुए, मुझे लगा कि मैं उस दवा को शुरू करने के लिए एक महीना और इंतजार कर सकती हूं... एक दिन जब मैं बाथरूम में थी और जैसे ही मुझे एहसास हुआ कि मेरे कोख में बच्चा है, वैसे ही एक अनोखी उत्तेजना ने मुझे जकड़ ली, और मैं बेतहाशा चिल्लाती हुई बाथरूम से बाहर भागी, "मै गर्भवती हूँ!!" 10 दिन बाद मैंने अपने प्रार्थना समुदाय या यूँ कहें "विश्वासी परिवार" के सामने खड़ी होकर इस खुशखबरी की घोषणा की, यह जानते हुए कि इनमें से कई दोस्त इस बच्चे के अस्तित्व के लिए महीनों से हमारे साथ प्रार्थना कर रहे थे। झूलता हुआ लोलक अब, चार साल बाद, लंबे समय से प्रतीक्षित हमारी बच्ची क्रिस्टन, और हमारा मिलनसार एक वर्षीय बेटा टिम्मी दोनों थे, और मैं एक दिन कार्यालय से अपने बच्चों के डे केयर सेंटर पर पहुंची, तब मैंने अचानक बच्चों की आया, "मिस फीलिस" के कडवे शब्दों को सुना। "इन बच्चों के विद्रोह को कुचलने की ज़रूरत है", उसका यह वाक्यांश, मेरे तरीकों की स्पष्ट त्रुटि के परिणामों को रेखांकित करता हुआ, लंबे समय से लिखे गए पवित्र धर्मशास्त्र के समान प्रतीत हो रहा था। उसके निराशाजनक रूप और लहजे ने मेरे उलझन और घबराहट को और अधिक बढ़ा दिया। मैं अपना बचाव करना चाहती थी, यह बताना चाहती थी कि कैसे मैंने एक के बाद एक अच्छी परवरिश देने की किताबें पढ़ीं थीं और मैंने "विशेषज्ञों" के सुझाव के अनुसार सब कुछ करने की कोशिश की थी। मैं हकलाती हुई बोली कि मैं अपने बच्चों से कितना प्यार करती हूँ और एक अच्छी माँ बनने के लिए पूरे दिल से कोशिश कर रही हूँ। अपने आंसुओं को रोकते हुए, मैं अपने बच्चों को लेकर मिस फीलिस के उस सेंटर से निकल गयी। घर पहुँचकर, मैंने टिम्मी को सुलाने के लिए लिटाया और क्रिस्टन को उसके कमरे में एक किताब देकर बिठाया, ताकि जो कुछ हुआ था उस पर विचार करने के लिए मेरे पास कुछ समय हो। मेरे जीवन में कोई भी संकट या समस्या आने पर मेरी सामान्य प्रतिक्रिया तुरंत प्रार्थना करना होता है। इसी के अनुसार, मैंने प्रार्थना शुरू की और अच्छी समझ के लिए प्रभु की सहायता मांगी। मुझे एहसास हुआ कि मेरे पास दो विकल्प थे: या तो मैं उस महिला के शब्दों को अस्वीकार करूं जो अब तक मेरी 13 महीने की बेटी के लिए एक धैर्यवान, प्यार करने वाली अच्छी आया थी। दूसरा विकल्प यही था कि मैं अपने कार्यों को सही ठहराने की कोशिश करने का प्रयत्न करूं, अपने इरादों पर फिर से जोर दूं और अपने बच्चों के लिए एक नयी आया खोजने की प्रक्रिया शुरू करूं। या मैं इस बात की जांच करूं कि किस वजह से उस महिला को अस्वाभाविक रूप से प्रतिक्रिया करनी पड़ी और यह देखती कि क्या वास्तव में उसकी तीखी चोट में सच्चाई का अंश था। मैंने यही विकल्प चुना, और जैसे ही मैंने प्रभु की मदद की खोज की, मुझे एहसास हुआ कि मैंने अपने बच्चों के प्रति प्रेम और दया की दिशा में अपनी ममतारूपी लोलक को बहुत दूर तक झूलने दिया है। मैंने अपने बच्चों की अवज्ञा का बहाना बनाने के लिए उनकी कम उम्र का सहारा लिया था, यह विश्वास करते हुए कि अगर मैं उन पर प्यार उंडेल दूंगी, तो वे मेरी आज्ञानुसार ही कार्य करेंगे। गिरने से पहले मैं यह दिखावा नहीं कर सकती थी कि फीलिस के शब्दों से मुझे कोई ठेस नहीं पहुंची थी। उसके शब्दों ने मुझे गहरा घाव दिया था। मेरे पालन-पोषण के बारे में उसकी धारणा वास्तव में सच थी या नहीं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। इस बात का महत्त्व था कि क्या मैं खुद को विनम्र बनाने और इस स्थिति से सीखने को तैयार थी या नहीं। कहा जाता है कि "गिरने से पहले अभिमान चला जाता है", और यह सच है कि मैं पहले से ही आदर्श पालन-पोषण के उस पायदान से काफी दूर गिर चुकी थी जो मैंने अपने लिए निर्धारित किया था। मैं निश्चित रूप से अपने अभिमान और चोट पर टिके रहकर एक और पतन बर्दाश्त नहीं कर सकती थी । यह स्वीकार करने का समय आ गया है कि किताबें लिखने वाले "विशेषज्ञ" लोगों को हमेशा सुनने की ज़रुरत नहीं है। कभी-कभी अनुभव की आवाज़ को ही ध्यान देने की ज़रुरत है। अगली सुबह, मैंने बच्चों को गाडी में बिठाया और क्रिस्टन और टिम्मी की देखभाल करने वाली फीलिस के घर तक के उस परिचित रास्ते पर चल पड़ी। मुझे पता था कि भविष्य में उनसे मिलने वाली सलाह से हर बार मैं सहमत नहीं हो पाऊंगी, लेकिन मैं यह जानती थी कि हमारे परिवार की भलाई के लिए, मुझे चुनौती देने का जोखिम उठाने वाली एक बुद्धिमान और साहसी महिला की जरूरत होगी। आख़िरकार, "शिक्षण" शब्द "शिष्य" शब्द से आया है, जिसका अर्थ है "सीखना।" मैं कई वर्षों तक येशु की शिष्य रही, उनके आदर्शों और सिद्धांतों को जीने का प्रयास करती रही। जब मैंने अपने जीवन में बार-बार उसके स्थायी प्रेम का अनुभव किया तो मैं उस पर भरोसा करने लगी। मैं अब इस अनुशासन को स्वीकार करूंगी, यह जानते हुए कि यह प्रभु के प्यार का प्रतिबिंब है जो न केवल मेरे लिए, बल्कि हमारे परिवार के लिए भी सर्वश्रेष्ठ चाहता है । कार से बाहर निकलते हुए, हम तीनों सामने के दरवाजे के पास पहुंचे, मेरी आंखों के सामने लकड़ी पर, हाथ से बनी हुई पट्टी लगी थी, जिसे मैं एक बार फिर से पढ़ने के लिए रुकी, "मैं और मेरा परिवार, हम सब प्रभु की सेवा करेंगे।” हाँ, फिलिस ने यही किया था। अगर हमारे पास सुनने के लिए कान हो तो प्रभु हमारे लिए हर दिन ऐसा ही करते हैं, वह "उन लोगों को अनुशासित करते हैं जिनसे वह प्यार करते हैं।" येशु, हमारे शिक्षक, उन लोगों के माध्यम से काम करते हैं जो दूसरे व्यक्ति की भलाई के लिए अस्वीकृति का जोखिम उठाने को तैयार हैं। निश्चित रूप से, फीलिस उनके नक्शे-कदम पर चलने का प्रयास कर रही थी। यह पहचानते हुए कि इस आस्थावान महिला का इरादा हमारे गुरु प्रभु येशु से सीखी गई बातों को मेरे लाभ के लिए मुझ तक पहुंचाने का था, मैंने सामने का दरवाज़ा खटखटाया। जैसे ही हमें अन्दर प्रवेश करने की इजाजत देने के लिए वह दरवाज़ा खुला, वैसे ही मेरे दिल का दरवाजा भी खुला।
By: Karen Eberts
Moreप्रश्न: मेरे बच्चे किशोरावस्था तक नहीं पहुंचे हैं। वे बार बार मोबाइल फोन की मांग कर रहे हैं ताकि वे अपने सभी दोस्तों की तरह सोशल-मीडिया में आ सकें। मैं बहुत दु:खी हूँ, क्योंकि मैं नहीं चाहती कि उन्हें ऐसी छूट दी जाए, क्योंकि मुझे पता है कि यह कितना खतरनाक हो सकता है। आप की राय क्या है? उत्तर: सोशल-मीडिया का इस्तेमाल अच्छाई के लिए किया जा सकता है। मैं एक बारह वर्षीय बालक को जानता हूँ जो टिक-टॉक पर बाइबल से प्रेरित चिंतन की वीडियो बनाता है, और उसे सैकड़ों लोग देखते हैं। एक युवक इंस्टाग्राम अकाउंट में संतों के बारे में पोस्ट करता है। अन्य युवक नास्तिकों से वाद-विवाद करने या युवाओं को उनके विश्वास में प्रोत्साहित करने के लिए डिस्कॉर्ड जेसे एप्स का इस्तमाल करते हैं। बिना किसी संदेह के, सुसमाचार-प्रचार और ईसाई समुदाय को विश्वास में बढ़ाने में सोशल-मीडिया का अच्छा उपयोग किया जा सकता है। फिर भी ... क्या लाभ जोखिमों से अधिक हैं? आध्यात्मिक जीवन में एक अच्छी सूक्ति है: "ईश्वर पर अत्यधिक भरोसा करें... स्वयं पर कभी भरोसा न करें!" क्या हमें किशोरों को इंटरनेट के असीमित उपयोग का अवसर देना चाहिए? अगर वे सबसे अच्छे इरादों से शुरू करते हैं, तो क्या वे प्रलोभनों का विरोध करने के लिए पर्याप्त रूप से मजबूत या सक्षम हैं? सोशल-मीडिया एक खतरनाक गड्ढा बन सकता है - न केवल अश्लील साहित्य या हिंसा का महिमामंडन जैसे स्पष्ट प्रलोभन, बल्कि इससे भी अधिक कपटपूर्ण प्रलोभन, जैसे: लिंग सम्बन्धी गलत विचारधारा, साइबर धमकियां, ‘लाइक्स’ और ‘व्यूस’ प्राप्त करने का नशा, और जब युवक सोशल-मीडिया पर दूसरों के साथ खुद की तुलना करना शुरू करते हैं तो उनमें अपर्याप्तता की भावना उत्पन होती है। मेरी राय में, लाभों से अधिक जोखिम हैं जो युवाओं को एक धर्मविहीन दुनिया तक पहुंचने की अनुमति देने और उन्हें मसीही सोच से दूर करने की अनगिनत कोशिशें हैं। हाल ही में एक माँ और मैं उनकी किशोर-बेटी के खराब व्यवहार और रवैये पर चर्चा कर रहे थे, जो कि उसके टिक-टॉक के उपयोग और इंटरनेट में उसकी असीमित उपयोग से संबंधित था। माँ ने आह भरते हुए कहा, "यह कितना दु:खद है कि बच्चे अपने मोबाइल फोन के इतने आदी हैं... लेकिन हम क्या कर सकते हैं?" हम क्या कर सकते हैं? हम ज़िम्मेदार माता-पिता बन सकते हैं! हाँ, मुझे पता है कि आपके ऊपर जबरदस्त दबाव है कि आप अपने बच्चों को एक फोन या डिवाइस दें, जो मानवता के लिए सबसे खराब तोहफा यानी सोशल मीडिया का असीमित उपयोग करने की अनुमति देने की बात है। लेकिन माता-पिता के रूप में आपका कर्तव्य अपने बच्चों को संत बनाना है। उनकी आत्मा आपके हाथों में हैं। हमें दुनिया के खतरों के खिलाफ रक्षा की पहली दीवार बननी चाहिए। हम उन्हें कभी भी बच्चों का यौन शोषण करने वालों के साथ समय बिताने की अनुमति नहीं देंगे; अगर हमें पता होता कि उन्हें धमकाया जा रहा है तो हम उन्हें बचाने की कोशिश करेंगे; अगर वे बीमार हो रहे हैं, तो हम उन्हें डॉक्टर के पास ले जाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। फिर हम उन्हें अश्लीलता, घृणा और समय बर्बाद करने वाले कचरे के ढेर, जो इंटरनेट पर आसानी से उपलब्ध है, सावधानीपूर्वक मार्गदर्शन दिये बिना उसमें घुसने की अनुमति क्यों देंगे? अध्ययन ने इंटरनेट के नकारात्मक प्रभावों को दिखाया है - और विशेष रूप से सोशल-मीडिया के प्रभावों को - फिर भी हम आंखें मूंद लेते हैं और आश्चर्य की बात है कि हम खुद से पूछते हैं कि हमारे नन्हें बेटे और बेटियां पहचान का संकट, अवसाद, आत्म-घृणा, विभिन्न व्यसन, भ्रष्ट व्यवहार, आलस्य, पवित्रता की इच्छा के अभाव से क्यों जूझते हैं! हे माता-पिताओ, अपने अधिकार और ज़िम्मेदारियों से दूर न भागें! आपके जीवन के अंत में, प्रभु आपसे पूछेगा कि जिन आत्माओं को उसने आपको सौंपा था, आपने उन की किस तरह से देखभाल की - आप उन्हें स्वर्ग में ले गए या नहीं, और उनकी आत्माओं को पाप से अपनी सर्वोत्तम क्षमता के साथ सुरक्षित रखा कि नहीं। "ओह, अन्य सब लोगों के बच्चों के पास फोन है, अगर मेरे बच्चे के पास फोन नहीं होगा, तो बड़ा अजीब लगेगा!” हम इस बहाने का उपयोग नहीं कर सकते हैं। यदि आप उनके फोन पर प्रतिबंध लगाते हैं, तो क्या आपके बच्चे आपसे नाराज होंगे, क्या वे आपसे नफरत करेंगे? शायद। लेकिन उनका क्रोध अस्थायी होगा — उनकी कृतज्ञता अनंत होगी। मेरी एक दोस्त सोशल-मीडिया के खतरों के बारे में बात करती हुई देश-भर घूमती रहती है, हाल ही में उसने मुझे बताया कि उसके व्याख्यानों के बाद उसके पास हमेशा कई युवा वयस्क दो प्रतिक्रियायें लेकर आते हैं, पहला: "उस समय मेरा मोबाइल फ़ोन मुझसे छीन लेने के लिए मैं अपने माता-पिता के प्रति बहुत गुस्से में था, लेकिन अब मैं उनका आभारी हूँ।" दूसरा: "मैं वास्तव में सोचता हूँ कि मेरे माता-पिता ने मुझे अपनी मासूमियत खोने से बचाया होता।" उनके माता-पिता ने उन्हें छूट दिए थे, इस बात के लिए कोई भी युवक आभारी नहीं! तो अब क्या करें? सबसे पहले, किशोरों (या उन से भी छोटों!) को इंटरनेट या ऐप्स से भरे हुए फ़ोन न दें। अभी भी बहुत सारे साधारण फोन मिलते हैं! यदि आप उन्हें ऐसे फोन देते हैं जो इंटरनेट से चलते हैं, तो उन पर प्रतिबंध लगाएं। अपने बेटे के फोन पर और अपने घर के कंप्यूटर पर “कवनंट आईस” ऐप (Covenent Eyes App) डाउनलोड करें (लगभग हर पापस्वीकर जो मैंने सुना है उसमें पोर्नोग्राफी शामिल है, जो घातक रूप से पापमय है और आपके बेटे को महिलाओं के प्रति केवल वस्तुओं के रूप में देखने के लिए प्रेरित कर सकती है, जिसका उसके भविष्य के रिश्तों पर बहुत बड़ा प्रभाव होगा)। उन्हें भोजन के समय या अकेले अपने शयनकक्ष में वीडियोस न देखने दें। समान नीतियों वाले अन्य परिवारों का समर्थन प्राप्त करें। सबसे महत्वपूर्ण बात - अपने बच्चे का दोस्त बनने की कोशिश न करें, बल्कि उसके माता-पिता बनें। सच्चे प्रेम के लिए सीमाओं, अनुशासन और त्याग की आवश्यकता होती है। आपके बच्चे का शाश्वत कल्याण आपके हाथ में है, इसलिए यह न कहें, "अब मैं कुछ नहीं कर सकता- मेरे बच्चे को इसमें फिट होने की जरूरत है।" यहाँ पृथ्वी पर फिट होने से बेहतर है अलग दिखना, ताकि हम संतों की संगति में फिट हो सकें!
By: Father Joseph Gill
Moreउसको जितना किसी और चीज़ से गर्व नहीं होता उतना मम्मी का बेटा कहलाने पर गर्व होता है। रोब ओ हारा ईश माता के करीब रहने की अपनी सुंदर जीवन कहानी सुनाते हैं यह सब कहां से शुरू हुआ? कई साल पहले जब मैं एक बच्चा था, डबलिन में अपने माता-पिता के एकमात्र बच्चे के रूप में पला-बढ़ा। वे दोनों बिना किसी झिझक के रोज़ माला विनती की प्रार्थना करते थे। फादर पैट्रिक पायटन का आदर्श वाक्य, "परिवार जो एक साथ प्रार्थना करता है, एक साथ रहता है" मेरे घर का भी नारा था। पहली बार माँ मरियम से अपनी मुलाकात मुझे याद है, उस समय मैं एक छोटा लड़का था। मेरे माता-पिता ने लोगों को मई के महीने में, जो माँ मरियम का विशेष महीना है, रोज़री की प्रार्थना करने के लिए आमंत्रित किया था। यह मेरे लिए बहुत मायने नहीं रखता था, लेकिन अचानक, जैसे ही मैं रोज़री प्रार्थना करने वाले लोगों की भीड़ के बीच बैठा, मुझे प्रार्थना करने की तीव्र इच्छा महसूस हुई। गुलाबों की सुगंध चारों तरफ भर गई, और मैंने माता मरियम की उपस्थिति को महसूस किया। जब रोज़री माला समाप्त हो गई, तो मैंने प्रार्थना करते रहने की तीव्र इच्छा महसूस की और लोगों से और कुछ समय तक रुकने का आग्रह किया, "आइए एक और रोज़री माला जपें, माँ मरियम यहाँ उपस्थित हैं।" इसलिए, हमने एक बार और माला की विनती की, लेकिन वह अभी भी पर्याप्त नहीं थी। लोग जाने लगे, लेकिन मैं वहीं रुका रहा और माता मरियम के साथ 10-15 बार माला विनती की। मैंने माँ मरियम को नहीं देखा, लेकिन मुझे पता था कि वह वहाँ थी। जब मैं चार या पाँच साल का था, मैंने पहली बार मूर्त रूप में माता मरियम की कृपा और सहायता का अनुभव किया। 80 के दशक में बेरोजगारी अधिक थी। मेरे पिता की नौकरी चली गई थी, और चूंकि उनकी उम्र करीब पैंतालीस थी, इसलिए दूसरी नौकरी पाना आसान नहीं था। बड़े होते हुए मैंने यह कहानी कई बार सुनी है, इसलिए मेरे दिमाग में इसका विवरण स्पष्ट है। मेरे माता-पिता विश्वास के साथ माता मरियम की शरण में गए। उन्होंने रोजरी की एक नौरोजी प्रार्थना शुरू कर दी और नौरोजी प्रार्थना के अंत में, मेरे पिताजी को वह नौकरी मिल गई जो वे वास्तव में चाह रहे थे। सताता हुआ खालीपन जब मैं अपनी किशोरावस्था में पहुंचा, तो मुझे लगा कि विश्वास, प्रार्थना और यहाँ तक कि माता मरियम के बारे में बात करना भी उतने मजेदार बातें नहीं हैं। इसलिए मैंने रोज़री माला जपना बंद कर दिया और जब मेरे माता-पिता प्रार्थना कर रहे होते तो मैं वहाँ न होने के बहाने खोजता था। दु:ख की बात है कि मैं धर्मविहीन दुनिया में फँस गया और वास्तव में खुद को उसमें झोंक दिया। मैं उस शांति, आनंद और तृप्ति के बारे में भूल गया जो मैंने अपने बचपन में और अपनी किशोरावस्था से पूर्व प्रार्थना में पाया था। मैंने खुद को खेल, सामाजिकता और अंततः अपने करियर में पूरी तरह झोंक दिया। मैं सफल और लोकप्रिय था, लेकिन मेरे अंदर हमेशा एक कुतरता हुआ खालीपन था। मैं किसी चीज़ के लिए तरस रहा था, लेकिन मुझे नहीं पता था कि वह क्या है। मेरे घर आते ही मेरे माता-पिता माला विनती करते हुए दिखाई देते थे और मैं अपने आप पर हँसता और आगे बढ़ जाता। जब यह सताता हुआ खालीपन मेरे जीवन को झुलसाता रहा, तो मैंने सोचा कि चाहे मैं कुछ भी कर लूँ यह खालीपन मुझे क्यों नहीं छोड़ता। हालाँकि मेरे पास एक अच्छी नौकरी थी, लेकिन मैं इतनी बुरी तरह से परेशान हो जा रहा था कि मैं अवसाद से घिरता गया। एक दिन, अवसाद के एक और भयानक दिन के बाद, मैं घर आया और अपने माता-पिता को हमेशा की तरह अपने घुटने टेक कर माला विनती करते हुए देखा। वे खुशी से मेरी ओर मुड़े और मुझे उनके साथ प्रार्थना में शामिल होने के लिए कहा। मुझे कोई बहाना नहीं सूझ रहा था, इसलिए मैंने कहा, "ठीक है।" मैंने उन मालाओं को उठाया जो कभी मेरे स्पर्श से परिचित थीं और मैंने प्रार्थना में अपना सिर झुका लिया। मरियम के आंचल में मैं मिस्सा बलिदान के लिए गया जहां कुछ पुराने मित्रों ने मुझे गिरजाघर के पीछे की पंक्ति में बैठे हुए देखा, तो उन्होंने मुझे एक प्रार्थना सभा में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया। जब मैं गया, तो अन्य युवाओं को रोज़री की प्रार्थना करते हुए देखकर मुझे आश्चर्य हुआ। जैसे ही मैंने प्रार्थना करने के लिए घुटने टेका, मेरे मन में बचपन की माला विनती करते हुए आनंदपूर्ण यादे उमड़ने लगीं। चूंकि मैंने अपनी "माँ" के साथ वह रिश्ता तोड़ दिया था, इसलिए बहुत लंबे समय तक मैंने उनसे बात नहीं की थी। उस दिन के बाद काम करने जाते वक्त रास्ते में नियमित रूप से माला विनती करते हुए, मैंने अपने दिल की बातें माता मरियम से कहनी शुरू कर दी। माता मरियम के मातृ आलिंगन में वापस आने के बाद, मेरे जीवन के सभी क्षेत्रों से अंधेरापन और भारीपन दूर होने लगा और मुझे काम का समय बहुत अच्छा लगने लगा। जब मुझे एहसास हुआ कि माँ मरियम मुझसे कितना प्यार करती है, तो मैंने अपने दिल की बातें उन्हें ज्यादा से ज्यादा बतानी शुरू कर दी। मैंने अपने आप को उनके आँचल में लिपटा और शान्ति से घिरा हुआ महसूस किया। लोगों ने ध्यान देना शुरू कर दिया कि मैं कितना खुश हूँ और मुझसे पूछने लगे किस चीज़ ने तुम्हारा जीवन इतना बदल दिया। "ओह, बस इसलिए कि मैंने फिर से माला विनती करना शुरू कर दिया है।" मुझे यकीन है कि मेरे दोस्तों ने सोचा होगा कि 20 की उम्र पर करने वाले एक युवक के लिया के यह कुछ अजीब लग रहा है, लेकिन वे देख सकते थे कि मैं कितना खुश था। जितना अधिक मैंने प्रार्थना की, उतना ही अधिक मैं पवित्र संस्कार एवं परम प्रसाद में उपस्थित प्रभु येशु के प्रेम में डूबता चला गया। जैसे-जैसे येशु के साथ मेरा संबंध बढ़ता गया मैं अधिक से अधिक येशु की ओर मुड़ता गया, मैंने आयरलैंड में कैथलिक युवा आंदोलनों में शामिल होना शुरू कर दिया जैसे प्योर इन हार्ट आन्दोलन और यूथ 2000। मैं सेंट लुइस डी मोंटफोर्ट द्वारा लिखित “ मरियम के द्वारा येशु के प्रति सम्पूर्ण समर्पण” और “मरियम की सच्ची भक्ति” जैसी किताबें पढ़ने लगा। संत पापा जॉन पॉल द्वितीय ने इससे प्रेरित होकर आदर्श वाक्य "टोटस टूस" (सम्पूर्ण रूप से तेरा) अपनाया था। इस वाक्य ने मुझे गहराई से प्रभावित किया। मैंने माता मरियम से भी कहा, "मैं खुद को पूरी तरह से तुझे देता हूं।" जैसे-जैसे इन महान संगठनों की मदद द्वारा मेरा विश्वास बढ़ता गया, और मुझे बहुत अधिक आनंद महसूस हुआ। मैंने सोचा, "यह स्वर्ग है, यह महान है!" “उस सही एक" की तलाश मैं अपने दिल में जानता था कि मेरी बुलाहट वैवाहिक जीवन की है, लेकिन मैं उस समय सही महिला से नहीं मिल पा रहा था। इसलिए मैंने माता मरियम से निवेदन किया, "मेरे लिए सही पत्नी खोजने में मेरी मदद कर, ताकि हम एक साथ तुझसे प्रार्थना कर सकें और तेरे बेटे को और अधिक गहराई से प्यार कर सकें।" मैंने हर दिन यह प्रार्थना की और मैंने अपनी भावी पत्नी के लिए और हमें आशीर्वाद में मिलने वाले बच्चों के लिए येशु और मरियम को धन्यवाद देना शुरू कर दिया। तीन महीने बाद, मैं अपनी भावी पत्नी बर्नी से मिला। अपनी पहली मुलाक़ात पर मैंने उससे कहा, "चलो गिरजाघर में चलते हैं और माता मरियम से माला विनती की प्रार्थना करते हैं।" बर्नी ना कह सकती थी, लेकिन उसने कहा, "हाँ, चलो करते हैं" और हमने माता मरियम की मूर्ति के सामने घुटने टेक कर एक साथ माला विनती की। वह मेरी प्रेमावस्था की सबसे अच्छी मुलाक़ात थी! अपने पूरे प्रेमालाप के दौरान हमने विवाह संस्कार के लिए तैयार होने और हमारे विवाह में हमारे साथ रहने के लिए हर रोज माता मरियम और संत जोसेफ से माला विनती करते थे। हमने रोम में शादी की और यह हमारे जीवन का सबसे अच्छा दिन था। कुछ ही समय बाद बर्नी ने गर्भधारण किया। जब हमारी नन्हीं बेटी लुसी का जन्म हुआ, तो हमने उसे बपतिस्मा के दिन माता मरियम को समर्पित किया। तूफानों का वह दौर हमारी शादी के शुरुआती वर्षों में, मैंने कॉर्पोरेट बैंकिंग की दुनिया से नौकरी छोड़ दी। यह कई कारणों से मेरे लिए सही जगह नहीं थी। जब मैं बेरोजगार था, किराए का भुगतान करने और एक छोटे बच्चे को पालने की कोशिश कर रहा था, हमने सही नौकरी मिलने के लिए माला विनती की। आखिरकार, हमारी प्रार्थनाओं का जवाब ह्यूमन लाइफ इंटरनेशनल नामक एक धर्मार्थ संगठन के लिए एक अद्भुत काम के रूप में मिला। ईश्वर की जय और माता मरियम को धन्यवाद! जब बर्नी ने जुड़वाँ लड़कों को जन्म दिया तो हमें और खुशी हुई, हालाँकि गर्भावस्था के सोलहवें सप्ताह में, प्रसव पीड़ा में बर्नी को लेकर हम अस्पताल पहुंचे। स्कैन से पता चला कि जुड़वा बच्चे जीवित नहीं रह पाएंगे। लेकिन निराश होने के बजाय हमने माता मरियम की ओर रुख किया। वह हमारे साथ थी, हमें वास्तव में अपने पर निर्भर रहने के लिए प्रोत्साहित कर रहीं थी। हमने प्रार्थना की कि वह एक चमत्कारी चंगाई के लिए मध्यस्थता करे। जो हफ्ता हमने अस्पताल में बिताया, हम आनंदित थे, मजाक कर रहे थे और हंस रहे थे। हम आशा से भरे हुए थे और कभी निराश नहीं हुए। अस्पताल के कर्मचारी हैरान थे कि इतने कठिन समय से गुजर रहा यह युवा जोड़ा किसी तरह अपनी खुशी और उम्मीद बनाए हुए है। मैं बिस्तर पर घुटने टेकता और हम माता मरियम से हमारे साथ रहने के लिए निवेदन करते हुए हम दोनों माला विनती करते थे। हमने जुड़वां बच्चों को येशु और मरियम की देखभाल में सौंप दिया, लेकिन छठवें दिन बर्नी का गर्भपात हो गया, और हमने अपने बेटों को येशु और मरियम की प्यार भरी देखभाल में सौंप दिया। यह एक कठिन दिन था। हमें उन्हें हाथों में उठाना है और उन्हें दफनाना है। लेकिन माता मरियम हमारे दुख में हमारे साथ थीं। जब मुझे कमजोरी महसूस हुई, जैसे मैं जमीन पर गिर रहा था, माता मरियम ने मुझे पकड़ लिया। जब मैंने अपनी पत्नी को रोते हुए देखा और यह जानता कि मुझे मजबूत बने रहना है, तो माता मरियम ने मेरी मदद की। कृपा का इशारा जब हम अभी भी दुःखी थे, हम मेडजुगोरजे की तीर्थ यात्रा पर गए। पहले दिन, हमें अप्रत्याशित रूप से पता चला कि पवित्र मिस्सा बलिदान चढ़ाने वाले फादर रोरी थे जो हमारे बहुत अच्छे मित्र थे। हालाँकि वे नहीं जानते थे कि हम वहाँ हैं, हमें लगा कि उनका उपदेश हमारे लिए और हमारे प्रति था। उन्होंने वर्णन किया कि कैसे एक प्रसिद्ध व्यक्ति ने अपने युवा मित्र की दारुण मृत्यु पर अपनी रोज़री माला उठाकर उसका सामना किया। रोज़री माला ने उसे उस अंधेरी जगह से बाहर निकला। हमारे लिए, वह एक पुष्टिकरण था — येशु और मरियम का एक संदेश; हम उनकी ओर मुड़कर और माला विनती करके इस कठिन घड़ी से बाहर निकल सकते हैं। दो साल बाद, हमें एक और प्यारी सी बच्ची जेम्मा मिली। बाद में, मेरे पिता बीमार हो गए और जब वे अपनी मृत्यु शैय्या पर थे, मेरी पत्नी ने मुझे प्रोत्साहित किया कि मैं उनसे पूछूं कि उनके पसंदीदा संत कौन हैं। जब मैंने उनसे पूछा, तो उनके चेहरे पर एक खूबसूरत मुस्कान आ गई और उन्होंने कोमलता से उत्तर दिया, “मरियम…। क्योंकि वह मेरी माँ है।” मैं इसे कभी नहीं भूलूंगा। यह उनके जीवन के अंत के बहुत करीब की घटना है और उनका आनंद उस चीज़ को दर्शा रहा था जो आगे उनका इंतजार कर रहा था।
By: Rob O'Hara
Moreआप यह जानते हों या नहीं, जब आप सत्य की तलाश करते हैं, तो आप ईश्वर की तलाश में होते हैं बचपन में जब मैं नौ साल का था, गर्मी के मौसम में एक दिन कुछ दोस्तों के साथ घूमने गया। मेरा एक दोस्त, जो हमसे कुछ साल बड़ा था, अपने साथ एयर राइफल लाया था। जैसे ही हम एक कब्रिस्तान से गुजरे, उसने चर्च की छत के ऊपर एक पक्षी की ओर इशारा किया और पूछा “क्या तुम्हें लगता है कि तुम इसे मार सकते हो?“ बिना किसी विचार के, मैंने बंदूक उठाई, लोड की और सीधा निशाना लगाया। जैसे ही मैंने ट्रिगर दबाया, मेरे अन्दर आतंक सा छा गया। इससे पहले कि गोली बंदूक से निकलती, मुझे पता था कि मैं इस जीवित प्राणी को मारने जा रहा हूँ जो मेरे कारण मर जाएगा। जैसे ही मैंने पक्षी को ज़मीन पर गिरते हुए देखा, मुझे उदासी और ग्लानि का अनुभव हुआ, और भ्रम की स्थिति मेरे अंदर छा गई। मैंने सवाल किया कि मैंने ऐसा क्यों किया, लेकिन मेरे पास कोई जवाब नहीं था। मुझे नहीं पता था कि मैंने इस दुष्ट कर्म को करने केलिए क्यूँ राज़ी हुआ। मैं स्वयं को तुच्छ और पापी कह रहा था। हर बार की तरह, मैंने इस घटना को भी अपने अंदर दबा ली और जल्द ही इसके बारे में भूल गया। उस पुरानी त्रासदी की चोट मेरे तीस साल के होने से पूर्व, मैं जिस महिला के साथ रिश्ते में था वह गर्भवती हो गई। यह बात हमने गुप्त रखी। मुझे वैसे भी किसी से समर्थन या सलाह की उम्मीद नहीं थी, और यह कोई बड़ी बात भी नहीं थी। मैंने खुद को विश्वास दिलाया कि मैं 'उचित काम' कर रहा हूँ। मैंने प्रेमिका को यह आश्वस्त करते हुए कहा कि मैं उसके किसी भी फैसले का समर्थन करूंगा, चाहे बच्चे को पालना हो या गर्भपात कराना हो। कई कारणों से हमने गर्भावस्था को समाप्त करने का निर्णय लिया। इस निर्णय पर पहुँचने में मुझे जिस बात ने ज्यादा प्रोत्साहन दिया वह इस देश में गर्भपात की वैधता और बड़ी संख्या में गर्भपात होने की वजह थी। यह निर्णय इतना भी बुरा कैसे हो सकता है? विडंबना तो देखिये, मेरे खुद के बच्चों की परवरिश करना ही मेरे जीवन का सबसे बड़ा सपना था। हमने गर्भपात चिकित्सालय में ऑपरेशन के लिए समय निर्धारित कर लिया। वहाँ जाना, मेरे लिए केमिस्ट से एक नुस्खा लेने समान, सिर्फ साधारण यात्रा की तरह लगा; इतना ही नहीं, मैं इस निर्णय के परिमाण और प्रभाव से बेखबर होकर आराम से गाड़ी में इंतजार कर रहा था। जब मेरी प्रेमिका चिकित्सालय से बाहर आई तो मैंने तुरंत उसमें बदलाव देखा। उसका चेहरा बहुत मुरझाया हुआ था। मैंने अपने-आप को दुबारा नौ साल के लड़के के रूप में और उस पक्षी को मारते हुए उन भावनाओं को महसूस किया। हम चुपचाप घर गए और इसके बारे में हमने बात ही नहीं की। लेकिन हम दोनों जानते थे कि उस दिन हममें कुछ बदलाव आ गया था, कुछ भयंकर, कुछ अन्धकार पूर्ण त्रासदी जैसी। आज़ादी दो साल बाद, मुझ पर एक ऐसे अपराध का आरोप लगाया गया जिसे मैंने किया ही नहीं था और मुकदमे की प्रतीक्षा करने के लिए मैनचेस्टर के एच.एम.पी. में (अनोखे अपरादों का कारागार) में रखा गया। मैं दिल से ईश्वर से बात करने लगा और जीवन में पहली बार पूरे विश्वास के साथ रोज़री भी करने लगा। कुछ दिन बाद, मैं अपने जीवन की समीक्षा करने लगा और पाए गए आशीषों और साथ ही साथ अपने बहुत से पापों को भी देखा। जब मैं गर्भपात के पाप पर पहुँचा, तब अपने जीवन में पहली बार मैंने स्पष्ट रूप से महसूस किया कि यह गर्भ में पल रहा एक असली जीवित बच्चा था, और वह मेरा अपना बच्चा था। अपने ही बच्चे का जीवन समाप्त करने के फैसले का एहसास होते ही, मेरा दिल टूट गया, और उस जेल की कोठरी में घुटनों के बल रोते हुए मैंने खुद से कहा, 'मैं माफ़ी का हक़दार नहीं हूँ।' लेकिन उसी क्षण, येशु मेरे पास आया और उसने मुझे क्षमा कर दिया जिससे मुझे वहीं पता चल गया कि वह मेरे पापों के लिए मरा था। मैं तुरन्त उसके प्रेम, दया और अनुग्रह से भर गया। पहली बार मैं अपने जीवन को समझा। मैं मृत्यु के योग्य था परन्तु जीवन उससे पाया जिसने कहा था - 'मैं जीवन हूँ' (योहन 14:6)। चाहे हमारे पाप कितने भी बड़े क्यों न हों, मैंने महसूस किया है कि ईश्वर का प्रेम असीम है (योहन 3:16-17)! एक मुलाकात हाल ही में, लंदन के एक रेलवे स्टेशन पर अपनी ट्रेन की प्रतीक्षा करते हुए, मैंने चुपचाप येशु से किसी ऐसे व्यक्ति से मिलवाने की प्रार्थना की, जिसके साथ बैठकर मैं प्रभु के बारे में साझा कर सकूँ। जब मैंने अपनी सीट ली, मैंने पाया कि मेरे सामने दो महिलाएं हैं । थोड़ी देर बाद हम बात करने लगे और उनमें से एक ने मेरे विश्वास के बारे में पूछा और यह भी कि क्या मैं हमेशा से विश्वासी रहा हूँ। मैंने गर्भपात सहित अपने कुछ अतीत को साझा किया, और समझाया कि जिस क्षण मुझे एहसास हुआ कि मैंने अपने बच्चे की जान ली, मैं क्रूस पर चढ़ाए गए मसीह के साथ आमने-सामने आया, और उसने मुझे क्षमा और मुक्त कर दिया। उनका सुखद मिजाज तुरंत बदल गया। मैंने जाने-अनजाने में उनमें से एक महिला को निराश कर दिया जिसके कारण वह मुझ पर चिल्लाने लगी। मैंने उन्हें याद दिलाया कि उन्होंने ही मुझसे मेरी गवाही की मांग की थी इसलिए मैं केवल उनके सवाल का जवाब दे रहा था। दुर्भाग्य से, उनको समझाने की कोशिश व्यर्थ साबित हुई। वह चिल्लाई "गर्भ में बच्चा नहीं है!" दूसरी महिला ने सहमति में सिर हिलाया। मैं धैर्य से बैठा रहा और फिर उनसे पूछा कि गर्भ में जो है उसे "बच्चा" क्या बनाता है। एक ने उत्तर दिया "डी एन ए," और दूसरे ने सहमति व्यक्त की। मैंने उन्हें बताया कि बच्चे के गर्भ में आते ही ‘डी एन ए’ मौजूद होता है और लिंग और आंखों का रंग पहले से ही तय हो जाता है। फिर से, वे मुझ पर इस हद तक चिल्लाए कि उनमें से एक काँपने लगी। अजीब सी शांति के बाद, मैंने कहा कि मुझे बहुत अफ़सोस हुआ कि वह इतनी परेशान हो गई। मुझे पता चला कि इस महिला ने कई साल पहले गर्भपात करवाया था और स्पष्ट रूप से अभी भी उस घाव को लेकर जी रही थी। जब वह उतरने के लिए खड़ी हुई, तो हमने हाथ मिलाया और मैंने उसे अपनी प्रार्थनाओं का आश्वासन दिया। अबाध गर्भ में एक निर्दोष जीवन को समाप्त करने जैसी त्रासदी पूर्ण घटना के बारे में आज बहुत ही कम बात की जाती है, और जब बात होती भी है तो हम सही जानकारी के बजाय बहुत गलत सूचना और यहाँ तक कि अत्याधिक झूठ भी सुनते हैं। किसी बच्चे का गर्भपात कराना कोई पल-भर का निर्णय नहीं है। इसका स्थायी नकारात्मक प्रभाव होटा है। ‘प्रो-चोइस’ आन्दोलन के लोग जोर देते हैं कि "यह माँ का शरीर है, इसलिए यह उनकी पसंद है।" लेकिन यह माँ के शरीर और पसंद से कहीं अधिक है। गर्भ में एक छोटा, चमत्कारी जीवन पनप रहा है। गर्भपात हुए एक बच्चे के पिता के रूप में, मेरी उपचार प्रक्रिया चल रही है... यह जारी है और शायद कभी खत्म भी न हो। ईश्वर को धन्यवाद क्योंकि जो लोग सत्य की तलाश करते हैं वे इसे पा सकते हैं, बर्शते वे केवल अपने दिल खोल लें। और जब वे 'सत्य' को जानेंगे, तो 'सत्य उन्हें स्वतंत्र बना देगा' (योहन 8:31-32)।
By: Sean Booth
Moreपवित्र मिस्सा शुरू होने में सिर्फ एक मिनट बाकी है, और मुझे लगता है कि हर बार की तरह, इस बार भी मिस्सा हमारे परिवार के लिए बड़े संघर्ष का कार्य होने जा रहा है। जब तक पुरोहित सुसमाचार पढ़कर समाप्त कर लेता है, तब तक मैं थक हारकर चूर चूर हो जाती हूँ। फिर जैसे ही धर्मसार की प्रार्थना होती है – मैं यह चिल्लाने की इच्छा को दबा रही हूं, कि "हम बाथरूम की ओर कोई और यात्रा नहीं करनेवाले हैं!" – तब तक मेरा तीन साल का बच्चा जो हमेशा “काम में व्यस्त” रहता है, घुटने टेकने के आसन पर अपना जीभ लगाकर चाटता है, जबकि मेरा सात साल का बच्चा मुझसे कहता है कि वह फिर से प्यासा है और पूछता है कि परम प्रसाद के “अभिन्न तत्व” का क्या अर्थ है। मिस्सा पूजा में जाना हमेशा बड़ा संघर्ष का काम रहा है। मिस्सा में बेहतर ध्यान न देने के लिए मैं निराशा और शर्मिंदगी महसूस करती हूं। अपने ध्यान और एकाग्रता को बनाए रखने केलिए इतनी सारी मांगों को पूरा करती हुई मैं ईश्वर की आराधना कैसे कर पाऊँगी? मेरा उत्तर है: सादगी भरा ह्रदय। मुझे लगता था कि "मिस्सा में सक्रिय भागीदारी" वाक्यांश का अर्थ यह है कि हर एक शब्द जो मैं सुनती हूँ, उस के गहरे अर्थ को अपने अन्दर समाहित करना है। लेकिन जिंदगी के इस दौर में एकाग्र चित्त रहना एक विलासिता है। जब मैं अपने बच्चों की परवरिश करती हूं, तो मैं यह समझने लगती हूं कि ईश्वर अपने निमंत्रण या अपनी उपस्थिति से सिर्फ इसलिए मुझे वंचित नहीं रखता है क्योंकि मेरा जीवन अस्त व्यस्त रहता है। वह मुझसे प्यार करता है और मुझे वैसे ही स्वीकार करता है जैसी मैं हूं – गड़बड़, अस्त-व्यस्त, अव्यवस्थित और बाकी सब कुछ - यहां तक कि एक अस्त-व्यस्त मिस्सा बलिदान की अव्यवस्था या अराजकता के अनुभव के मध्य में भी। यदि हम इसे याद रखें, तो आप और मैं यूखरिस्त रूपी परम पवित्र संस्कार में परमेश्वर के प्रेम के सर्वोच्च उपहार हेतु अपने हृदयों को तैयार करने के लिए सरल कदम उठा सकते हैं। एक लघु वाक्यांश ढूंढ लें प्रत्येक मिस्सा बलिदान के दौरान मैं जिन शब्दों को सुनती हूँ, उनके बारे में सोचकर मैं अक्सर अभिभूत हो जाती हूं। मेरा ध्यान भटक जाता है, और मैं बोले गए कई भागों पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए संघर्ष करती हूं। यदि आप इस चुनौती पर भी जीत पा लेते हैं, तो जान लें कि अभी भी आप और मैं मिस्सा को भक्ति के साथ सुनने और उसमें सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए बुलाये गए हैं। कैसे? आइए इसे सरल बना लेते हैं। आप किसी एक छोटा वाक्यांश को सुनें, जो आपका ध्यान आकर्षित करता है। उस पर चिंतन करें। इसे दोहरावें। इसे येशु के पास लायें और उनसे कहें कि वे आपको दिखाएं कि यह वाक्यांश क्यों महत्वपूर्ण है। इस वाक्यांश को पूरे मिस्सा बलिदान में अपने दिल में रखें और जिस समय आप अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभा रहे हैं, उस समय इसे आपके मनन चिंतन का एक लंगर बनने दें। आपका खुला हृदय येशु मसीह के अनुग्रह केलिए एक परिदृश्य हैं। प्रेमपूर्ण दृष्टि प्यार को हमेशा शब्दों की जरूरत नहीं होती। कभी-कभी एक साधारण नज़र प्यार के सागर को प्रकट कर सकती है। यदि शब्द आप पर हावी हो जाते हैं, तो अपने हृदय की आवाज़ सुन लें और अपनी आँखों को क्रूस पर या क्रूस यात्रा के किसी एक स्थान पर केंद्रित करके अपने प्रेम को प्रभु की ओर मोड़ दें। जो चीज़ें आप को दिखाई देती हैं उन पर मनन करें: येशु का चेहरा, उनका कांटों का ताज, उनका रक्त रंजित ह्रदय ....। आपके द्वारा चुना गया प्रत्येक विवरण आपके हृदय को येशु के करीब खींच लाता है और आपको परम प्रसाद में हमारे प्रभु के प्रेम के अपार उपहार को प्राप्त करने के लिए तैयार करता है। अपना दिल लायें यदि सब कुछ विफल हो जाता है, तो अपने आप को येशु केलिए प्रेम की भेंट के रूप में उस के पास ले आवें। प्रभु आपके इरादों और आपकी सच्ची इच्छाओं को जानता है। यदि आप अपने नियंत्रण से बाहर की चीज़ों से व्याकुल और भूले भटके हुए महसूस करते हैं, तब भी आप प्रभु की आराधना करने, उनका स्वागत करने और उनसे प्रेम करने के लिए हृदय से उनके सामने आ सकते हैं। अपने दिल के स्नेह को जगायें और दोहरायें "हे प्रभु, मैं यहाँ हाजिर हूँ। मैं आपको स्वीकार करता हूँ। मेरे दिल को बदल दे प्रभु!" जब भी हम अपने प्रभु से मिस्सा बलिदान में मुलाकात करते हैं, तब प्रभु हर बार आनन्दित होते हैं, चाहे हमारी परिस्थितियाँ जो भी हो, उन बातों की वे परवाह नहीं करते। येशु मानव थे — वे थक गए थे, उनके कार्य में बाधाएं आ गयीं थीं। इसलिए हमारे प्रभु जीवन की गड़बड़ियों और परेशानियों को समझते हैं! और इन सब गड़बड़ियों के बीच में भी, वे अपने आप को परम प्रसाद के रूप में आपको देना चाहते हैं। तो अगली बार जब आप मिस्सा बलिदान में जाएँ, तब येशु को अपना इच्छुक हृदय समर्पित करें, और जैसे आप हैं, वैसे ही उसके सामने आने के लिए अपनी "हाँ" उसे दें। गिरजा घर में बच्चों के साथ आपकी प्रार्थना के दौरान हो रही पारिवारिक अराजकता से बढ़कर, मसीह का प्रेम सबसे महत्त्वपूर्ण सच्चाई है।
By: Jody Weis
Moreशालोम टाइडिंग्स के अतिथि संपादक, ग्राज़ियानो मार्चेस्की द्वारा धन्य कार्लो एक्यूटिस की मां एंटोनिया साल्ज़ानो के साथ एक विशेष साक्षात्कार सात साल की उम्र में उसने लिखा, "हमेशा येशु के करीब रहना ही मेरे जीवन का लक्ष्य है।" जब वह पंद्रह वर्ष का था, तब तक वह उस प्रभु के घर जा चुका था, जिससे उसने अपने सम्पूर्ण लघु जीवन में अथाह प्रेम किया था। बीच में है, असाधारण रूप से एक साधारण लड़के की अनोखी और असाधारण कहानी । साधारण, क्योंकि वह कोई ख्याति प्राप्त एथलीट नहीं था, न ही कोई खूबसूरत फिल्म सितारा, न ही कोई बुद्धिशाली विद्वान, उसने स्नातक की डिग्री तक हासिल की हो, जब उसकी उम्र के अन्य बच्चे जूनियर-हाई स्कूल की पढ़ाई से संघर्ष कर रहे हो। वह एक सुशील लड़का था, एक शालीन बच्चा। निश्चित रूप से बहुत ही उज्ज्वल: नौ साल की उम्र में उसने कंप्यूटर प्रोग्रामिंग स्वयं सीखने के लिए कॉलेज की पाठ्यपुस्तकें पढ़ीं। लेकिन उसने न तो कोई पुरस्कार जीता और न ही लोगों को ट्विटर पर प्रभावित किया। उसके आसपास के लोगों को बिलकुल पता नहीं था कि वह कौन है - अपने माता-पिता के साथ उत्तरी इटली में रहने वाला उनका एकमात्र बेटा, जो स्कूल जाता था, खेल खेलता था, अपने दोस्तों के साथ आनंद लेता था, और जो जोयस्टिक के माध्यम से डिजिटल गेम खेलता था। विशिष्ट नहीं, लेकिन असाधारण बहुत छोटी उम्र में उसे ईश्वर से प्यार हो गया और तब से, एक विलक्षण एकाग्रता के साथ, ईश्वर के प्रति बड़ी भूख के साथ वह रहता था जिसे बहुत ही कम लोग कभी प्राप्त करते हैं। और जब तक उसने इस दुनिया को छोड़ा, तब तक उसने इस पर एक अमिट छाप छोड़ी। वह हमेशा एक मिशन पर केन्द्रित था, उसने कोई समय बर्बाद नहीं किया। उसने जो देखा, उसे अन्य लोग नहीं देख सके, यहाँ तक कि उसकी माँ ने भी नहीं देखा, ऐसे में उसने उनकी आँखें खोलने में मदद की। ज़ूम के माध्यम से, मैंने उसकी मां, एंटोनिया साल्ज़ानो का साक्षात्कार लिया, और ईश्वर के प्रति उसकी भूख को समझाने के लिए कहा, जिसे पोप फ्रांसिस ने भी "अनमोल भूख" के रूप में वर्णित किया था। "यह मेरे लिए एक रहस्य है," उस की माँ ने कहा। "लेकिन कई संतों के जीवन में कम उम्र में ही ईश्वर के साथ उनका विशेष संबंध था, भले ही उनका परिवार धार्मिक न हो।" जब कार्लो साढ़े तीन साल का था, तब वह अपनी माँ को मिस्सा पूजा में भाग लेने के लिए मज़बूर करता था, जबकि उसके पूर्व कार्लो की माँ अपने जीवन में केवल तीन बार मिस्सा जाने की बात कहती है। साल्जानो एक पुस्तक प्रकाशक की बेटी है, वह कलाकारों, लेखकों और पत्रकारों से प्रभावित थी, न कि संत पापा या संतों से। उसे विश्वास के मामलों में कोई दिलचस्पी नहीं थी और अब कहती है कि उसे "भेड़" के बजाय "बकरी" बनना था। लेकिन फिर यह अद्भुत लड़का आया जो "हमेशा आगे दौड़ता रहा - वह तीन महीने की उम्र में अपना पहला शब्द बोला, उसने पाँच महीने में बात करना शुरू किया, और चार साल की उम्र में लिखना शुरू किया।" और विश्वास के मामले में, वह अधिकांश वयस्कों से भी आगे था। तीन साल की उम्र में, उसने ऐसे प्रश्न पूछना शुरू कर दिया - संस्कारों, पवित्र त्रीत्व, आदि पाप, पुनरुत्थान आदि के बारे में बहुत सारे प्रश्न - जिनका उत्तर उसकी माँ नहीं दे सकती थी। एंटोनिया ने कहा, "इससे मेरे अंदर एक संघर्ष पैदा किया, क्योंकि मैं खुद तीन साल के बच्चे की तरह अज्ञानी थी।" कार्लो की आया, जो पोलैंड की मूल निवासी थी, उसके सवालों का बेहतर जवाब देने में सक्षम थी और अक्सर उसके साथ विश्वास के मुद्दों पर बात करती थी। साल्ज़ानो के शब्दों में उसके बेटे के सवालों का जवाब देने में उसकी असमर्थता, "एक अभिभावक के रूप में मेरे अधिकार को कम कर दिया।" जिस तरह की भक्ति के कार्यों को साल्जानो ने कभी अभ्यास नहीं किया था, जैसे संतों का आदर करना, धन्य माँ मरियम की मूर्ती के सामने फूल सजाना, गिरजाघर में क्रूस और परम प्रसाद की मंजूषा के सम्मुख घंटों बिताना; कार्लो इन सभी भक्ति के कार्यों में शामिल होना चाहता था। अपने बेटे की असाधारण आध्यात्मिकता से कैसे निपटा जाए, इस बात को लेकर वह असमंजस में थी। एक यात्रा की शुरुआत दिल का दौरा पड़ने से एंटोनिया के पिता की अप्रत्याशित मृत्यु हुई। इसके बाद ही उसे मृत्यु के बाद के जीवन के बारे में अपने ही प्रश्न पूछने के लिए प्रेरित किया। फिर, एक बुजुर्ग पवित्र पुरोहित फादर इलियो, जो बोलोग्ना के पाद्रे पियो के नाम से जाने जाते हैं, उनसे वह एक मित्र के माध्यम से मिली। उन्होंने एंटोनिया को विश्वास की यात्रा करने के लिए प्रेरित किया, जिस पर कार्लो उसका प्राथमिक मार्गदर्शक बन जाता है। एंटोनियो द्वारा जीवन के सभी पापों को पापस्वीकार संस्कार में क़ुबूल करने से पहले ही फादर इलियो ने उसे इन पापों के बारे में बताया और उस के बाद उन्होंने भविष्यवाणी की कि कार्लो का एक विशेष मिशन है जो कलीसिया के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा। आखिरकार, एंटोनिया ने ईशशास्त्र का अध्ययन करना शुरू कर दिया, लेकिन कार्लो ही है जिसे वह अपने "धर्मांतरण" का श्रेय देती है, उसे "अपना उद्धारकर्ता" मानती है। कार्लो के कारण, वह प्रत्येक पवित्र मिस्सा में होने वाले चमत्कार को पहचानने लगी। "कार्लो के माध्यम से मैंने समझा कि रोटी और दाखरस हमारे बीच ईश्वर की वास्तविक उपस्थिति बन जाती है। यह मेरे लिए एक शानदार खोज थी," उसने कहा। युवा कार्लो ने परमेश्वर के प्रति अपना प्रेम और परम प्रसाद के प्रति सम्मान को अपने तक ही सीमित नहीं रखा था। उसकी माँ ने कहा, "साक्षी बनना ही कार्लो की खासियत थी।"... हमेशा खुश, हमेशा मुस्कुराता हुआ, कभी उदास नहीं। कार्लो कहा करता था: 'उदासी का मतलब स्वयं की ओर देखना है; जबकि आनंद ईश्वर की ओर देखता है।" कार्लो ने अपने सहपाठियों और हर किसी में ईश्वर को देखा। एंटोनिया ने कहा, "क्योंकि वह ईश्वर के इस सान्निध्य से अवगत था, उसने इस सान्निध्य की गवाही दी।" प्रतिदिन पवित्र परम प्रसाद और दिव्य आराधना द्वारा पोषित होकर, कार्लो ने बेघरों की तलाश की, उन्हें कंबल और भोजन पहुंचाया। उसने उन सहपाठियों का बचाव किया जो साथियों द्वारा धमकाये और उत्पीडित किये जा रहे थे और उन सहपाठी लोगों की मदद की, जिन्हें गृहकार्य करने में सहायता की ज़रुरत थी। उसका एक लक्ष्य था "परमेश्वर के बारे में बोलना और दूसरों को परमेश्वर के करीब आने में मदद करना।" दिन को जब्त कर लो! शायद कार्लो को पता था कि उसका जीवन छोटा होगा, इसलिए उस ने समय का सदुपयोग किया। एंटोनिया ने कहा, "जब येशु आया, उसने हमें दिखाया कि कैसे समय बर्बाद नहीं करना है। येशु के जीवन का प्रत्येक क्षण परमेश्वर की महिमा थी।” कार्लो ने इस बात को अच्छी तरह से समझा और उसने वर्तमान में जीने के महत्व पर जोर दिया। उसने आग्रह किया, "दिन को जब्त कर लो! क्योंकि बर्बाद किया गया हर मिनट ईश्वर की महिमा करने के लिए नष्ट किया हुआ एक एक मिनट है।" यही कारण है कि इस किशोर ने वीडियो गेम खेलने केलिए प्रति सप्ताह केवल एक घंटे का समय बिताया! कार्लो के बारे में पढ़ने वाले कई लोगों ने उसके प्रति जो आकर्षण महसूस किया, वह उसके पूरे जीवन की विशेषता थी। उसकी माँ ने कहा "चूंकि वह एक छोटा लड़का था, लोग स्वाभाविक रूप से उसकी ओर आकर्षित होते थे - इसलिए नहीं कि वह एक नीली आंखों वाला, गोरा-बालों वाला बच्चा था, बल्कि इसलिए कि उसके अंदर कुछ ख़ास था। उसके पास असाधारण लोगों से जुड़ने का एक तरीका था।" स्कूल में भी वह लोकप्रिय था। "येशु समाजी फादर लोगों ने उसके इस गुण पर ध्यान दिया।" उसके सहपाठी उच्च और कुलीन वर्ग के प्रतिस्पर्धी बच्चे थे, जिनका फोकस उपलब्धि और सफलता पर ही केंद्रित था। "स्वाभाविक रूप से, सहपाठियों के बीच बहुत ईर्ष्या होती है, लेकिन कार्लो के साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ। उसने उन चीजों को जादू की तरह पिघला दिया; अपनी मुस्कान और हृदय की पवित्रता से उसने सभी को जीत लिया। उसमें लोगों के दिलों में जोश भरने, उनके ठंडे दिलों को प्रज्वलित करने की क्षमता थी।" उसके जीवन का राज़ येशु था। वह येशु से इतना भरा हुआ था, दैनिक मिस्सा बलिदान, मिस्सा से पहले या बाद में आराधना, और मरियम के निर्मल हृदय के प्रति भक्ति के साथ साथ उसने अपना जीवन येशु के साथ, येशु के लिए और येशु में बिताया। स्वर्ग का एक पूर्वाभास "वास्तव में, कार्लो ने अपने जीवन में ईश्वर की उपस्थिति को महसूस किया," उसकी माँ ने कहा, "और इसने लोगों के उसे देखने के तरीके को पूरी तरह से बदल दिया। लोग समझ गए थे कि इस लड़के में कुछ खास है।" अजनबी, शिक्षक, सहपाठी, एक पवित्र पुरोहित, सभी ने इस लड़के में कुछ अनोखी बात को पहचाना। और वह विशिष्टता परम पवित्र संस्कार के प्रति उसके प्रेम में सबसे अधिक स्पष्ट थी। कार्लो कहता था, "जितना अधिक हम परम प्रसाद ग्रहण करते हैं, उतना अधिक हम येशु के समान बनेंगे, इस तरह हमें पृथ्वी पर स्वर्ग का स्वाद मिलेगा।" उसने अपने पूरे जीवन में स्वर्ग की ओर देखा और वह कहता था कि परम प्रसाद उसका "स्वर्ग का राजमार्ग ... हमारे पास उपलब्ध सबसे अलौकिक चीज" था। एंटोनिया ने कार्लो से सीखा कि परम प्रसाद आध्यात्मिक पोषण है जो ईश्वर और पड़ोसी से प्रेम करने की हमारी क्षमता को बढ़ाने में मदद करता है - और पवित्रता में विकसित होता है। कार्लो कहा करता था "जब हम सूर्य का सामना करते हैं तो हमारे त्वचा का रंग बदलता है, लेकिन जब हम परम पवित्र संस्कार में येशु के सामने खड़े होते हैं तो हम संत में बदल जाते हैं।" कार्लो की सबसे प्रसिद्ध उपलब्धियों में से एक उसकी वेबसाइट है, जो विश्व के सम्प्पोर्ण इतिहास में परम प्रसाद के चमत्कारों का वर्णन करती है। इसी वेबसाइट से विकसित एक प्रदर्शनी, यूरोप से जापान तक, अमेरिका से चीन तक, दुनिया की यात्रा करना जारी रखी हुई है। प्रदर्शनी में आगंतुकों की अद्भुत संख्या के अलावा, कई चमत्कारों का दस्तावेजीकरण किया गया है, इनमे सबसे महत्वपूर्ण चमत्कार यही है कि इसके द्वारा बहुत सारे लोग फिर से संस्कारों को अपनाने और परम प्रसाद को ग्रहण करने केलिए प्रेरित किये गये हैं। घटाव की प्रक्रिया कार्लो को धन्य घोषित किया गया है और उसको संत घोषित किया जाना सुनिश्चित है। बस एक दूसरे चमत्कार का प्रमाणीकरण ही बाकी है। लेकिन एंटोनिया ने यह भी बताया कि कार्लो चमत्कारों के कारण नहीं बल्कि उसके पवित्र जीवन के कारण संत घोषित किया जाएगा। पवित्रता किसी के जीवन की गवाही द्वारा निर्धारित की जाती है कि उस व्यक्ति ने सद्गुणों को - विश्वास, आशा, दान, विवेक, न्याय, संयम और धैर्य को - कितनी अच्छी तरह जीया। कैथलिक चर्च की धर्म शिक्षा "गुणों को वीरता से जीने" की परिभाषा इस प्रकार देती है: 'अच्छे कार्य करने के लिए एक आदत और दृढ़ स्वभाव' - वही स्वभाव एक संत बनाता है।" और कार्लो ने ठीक यही करने का प्रयास किया। वह बहुत ज्यादा बात करता था, इसलिए उसने कम बोलने की कोशिश की। जब कभी उसने देखा कि भोजन के प्रति उसका आकर्षण बढ़ रहा है, तब वह कम खाने का प्रयास करता। रात में, सोने से पहले उसने दोस्तों, शिक्षकों, माता-पिता के साथ अपने व्यवहार के बारे में अपनी अंतरात्मा की जांच की। उसकी माँ ने कहा, "वह समझ गया कि मन परिवर्तन जोड़ने की प्रक्रिया नहीं है बल्कि घटाव की प्रक्रिया है।" इतने कम उम्र के बालक केलिए इतना गहन अंतर्दृष्टि! और इसलिए कार्लो ने अपने जीवन से हर लघुपाप के हर निशान को खत्म करने के लिए भी काम किया। वह कहा करता था, "मैं नहीं, बल्कि ईश्वर... मुझे घटने की जरूरत है ताकि मैं ईश्वर को रहने केलिए और जगह छोड़ सकूं।" इस प्रयास ने उसे इस बात का अहसास कराया कि सबसे बड़ी लड़ाई खुद से होती है। एक सवाल उसके सबसे प्रसिद्ध उद्धरणों में से ख़ास है, "यदि आप एक हजार लड़ाई जीतते हैं, लेकिन अपने स्वयं के भ्रष्ट जुनूनों के खिलाफ नहीं जीत सकते, तो इससे क्या फायदा है?" एंटोनिया ने कहा, “हमें आध्यात्मिक रूप से कमजोर बनाने वाले उन दोषों को दूर करने का प्रयास हृदय की पवित्रता है। जब कार्लो छोटा था, वह जानता था कि "आदि पाप के कारण हमारे अंदर की भ्रष्ट प्रवृत्ति का विरोध करने के हमारे प्रयास के पीछे पवित्रता है।" एक डरावनी अंतर्दृष्टि बेशक, अपने इकलौते बच्चे को खोना एंटोनिया के लिए एक भारी क्रूस धोना जैसा अनुभव था। लेकिन सौभाग्य से, जब तक कार्लो की मृत्यु हुई, तब तक एंटोनिया अपने विश्वास में वापस आ गई थी और यह जान चुकी थी कि "मृत्यु ही सच्चे जीवन का मार्ग है।" वह कार्लो को खो देगी, इस सत्य को जानने के झटके के बावजूद, अस्पताल में अपने बेटे के साथ बिताये गए समय के दौरान उसके अंदर जो शब्द गूंजते थे, वे अय्यूब की किताब से थे: "प्रभु ने दिया था, प्रभु ने ले लिया। धन्य है प्रभु का नाम !" (अय्यूब 1:21)। कार्लो की मृत्यु के बाद, एंटोनिया को अपने बेटे के कंप्यूटर पर उसके द्वारा बनाई गई एक वीडियो दिखाई दी। हालांकि उस समय उसे अपने ल्यूकेमिया बीमारी के बारे में कुछ नहीं पता था, लेकिन वीडियो में वह कहता है कि जब उसका वजन सत्तर किलो हो जाएगा, तब उसकी मृत्यु हो जाएगी। किसी तरह वह अपनी मृत्यु के बारे में जानता था। फिर भी, वह मुस्कुरा रहा है और अपनी भुजाओं को ऊपर उठाकर आकाश की ओर देख रहा है। अस्पताल में, उसने अपनी खुशी और शांति के बीच एक डरावनी अंतर्दृष्टि का खुलासा किया: "याद रखें," उसने अपनी मां से कहा, "मैं इस अस्पताल से जीवित नहीं निकलूंगा, लेकिन मैं आपको कई, कई संकेत दूंगा।" और उसने जो संकेत दिए हैं - स्तन कैंसर से पीड़ित एक महिला ने कार्लो की अंत्येष्टि के दौरान उससे प्रार्थना की थी, वह बिना किसी कीमोथेरेपी के स्तन कैंसर से ठीक हो गई। एक 44 वर्षीय महिला, जिसके कभी कोई बच्चा नहीं था, उस ने भी कार्लो के अंतिम संस्कार के समय उससे प्रार्थना की और एक महीने बाद वह गर्भवती हुई। कई मनपरिवर्त्तन हुए हैं, लेकिन एंटोनिया कहती है कि शायद सबसे खास चमत्कार कार्लो ने अपनी "माँ को भेंट किया।" कार्लो के जन्म के वर्षों बाद एंटोनिया ने गर्भ धारण करने की कोशिश की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। कार्लो की मृत्यु के बाद, एक सपने में वह अपनी माँ के पास आया और कहा कि वह फिर से माँ बनेगी। 44 साल की उम्र में, उसकी मृत्यु की चौथी वर्षगांठ पर, एंटोनिया ने जुड़वा बच्चों - फ्रांसिस्का और मिशेल - को जन्म दिया। अपने भाई की तरह, दोनों प्रतिदिन मिस्सा में भाग लेती हैं और माला विनती की प्रार्थना करती हैं, और उम्मीद है कि एक दिन वे अपने भाई के मिशन को आगे बढ़ाने में मदद करेंगी। जब उसके डॉक्टरों ने उससे पूछा कि क्या उसे दर्द हो रहा है, तो कार्लो ने जवाब दिया कि "ऐसे बहुत से लोग हैं जो मुझसे ज्यादा पीड़ित हैं। मैं प्रभु, संत पापा (बेनेडिक्ट सोलहवें) और कलीसिया के लिए अपना दुख अर्पित करता हूं।" जांच के परिणाम आने के तीन दिन बाद ही कार्लो की मृत्यु हो गई। अपने अंतिम शब्दों के साथ, कार्लो ने स्वीकार किया कि "मैं खुश होकर विदा ले रहा हूँ, क्योंकि मैंने अपने जीवन का कोई भी मिनट उन चीज़ों में नहीं बिताया जो परमेश्वर को पसंद नहीं हैं।" स्वाभाविक रूप से, एंटोनिया को अपने बेटे की कमी खलती है। उसने कहा, "मुझे कार्लो की अनुपस्थिति महसूस होती है, लेकिन कुछ मायनों में मुझे लगता है कि कार्लो पहले से कहीं अधिक मेरे साथ मौजूद है। मैं उसे एक खास तरीके से, आध्यात्मिक रूप से, उसे महसूस करती हूं। और मैं उसकी प्रेरणा को भी महसूस करती हूं। मैं देख रही हूँ कि उसका आदर्श युवा लोगों के लिए क्या फल ला रहा है। यह मेरे लिए बहुत बड़ी सांत्वना है। कार्लो के माध्यम से, ईश्वर एक उत्कृष्ट कृति बना रहा है और यह बहुत महत्वपूर्ण है, खासकर इस अन्धकार के दौर में जब लोगों का विश्वास इतना कमजोर है, और ईश्वर हमारे जीवन में अनावश्यक प्रतीत होता हैं। मुझे लगता है कि कार्लो बहुत अच्छा काम कर रहा है।"
By: Graziano Marcheschi
Moreसबसे महान पिता को खोजने में मेरे पिताजी ने मेरी मदद की। 15 जून, 1994 को मेरे पिताजी ने अपने स्वर्गिक पिता के पास रहने के लिए इस दुनिया से विदा ले लिया। यद्यपि शारीरिक रूप से वे मेरे साथ नहीं है, उनकी आत्मा मेरी स्मृति में जीवित है। मेरे सम्पूर्ण जीवन के अंतराल में उनके द्वारा जो भी बातें सिखाईं गई, उस के कारण आज मुझे ऐसा व्यक्ति बनने में मदद मिली है, जिस प्रकार के व्यक्ति बनने के लिए मैं लगातार कोशिश कर रही थी। उन्होंने मेरे अन्दर, छोटे बड़े, बुजुर्ग, सभी लोगों के लिए आदर और सम्मान की भावना भर दी। मेरे जीवन की अन्य बहुत सारी बातों की तरह, दूसरों को आदर देने की सीख भी मुझे कठिन प्रक्रिया से सीखनी पड़ी। मुझे वह दिन याद है जब मैंने अपनी माँ को कड़े शब्दों में जवाब दिया था, और अपना जीभ दिखाकर मैं उसे मुंह चिढाने लगी थी। मेरे पिताजी बस इतनी दूर पर थे कि वे मुझे सुन सकते थे, देख सकते थे। यह बताने की ज़रूरत नहीं, कि उस दिन मुझे खूब डांट मिली और माँ को आदर देने के बारे में लंबा लेक्चर सुनना पड़ा। कुछ लोग कह सकते हैं कि माँ को देखकर मुंह चिढाना बालकपन का खेल समझना चाहिए, लेकिन पिता जी केलिए यह अनादर का मामला था, और उनके विचार में इसे ठीक करने की ज़रुरत थी। परिणाम यह हुआ कि माँ को, और अधिकारप्राप्त बड़ों को आदर देने के विषय में मैं ने उस दिन बड़ी शिक्षा पायी। मेरे पिताजी मोंटाना के बुट्टे में ताम्बे के खदानों में काम करने वाले खादानी मजदूर थे और बहुत ही मेहनती थे। वे कठिन परिश्रम पर और अपनी सर्वोत्तम क्षमता द्वारा परिवार को सहारा देने में विश्वास करते थे। खदान का काम जोखिम से भरा था। अपने काम के दौरान बहुत बार वे जख्मी हो गए थे। 1964 में एक भयानक खदान दुर्घटना में वे चोटिल हो गए, और इस से उन्होंने अपना खदान करियर और फिर से काम करने की क्षमता खो दी। वह हमारे परिवार के लिए बहुत ही कठिन और नाजुक दौर था। अब आगे बिलकुल ही काम नहीं कर पायेंगे, और आगे चलकर विकलांग पेंशन से गुज़ारा करना पडेगा, इस सच्चाई को स्वीकार करने में उन्हें दिक्कत हुई। अपने परिवार को इज्जत की रोटी और बच्चों को अच्छी परवरिश करनेवाले उस कर्मठ पिता और पति के लिए, यह बहुत ही दुखदायी था। पिताजी बहुत ज़्यादा पीने लगे, अपने दुःख दर्द को शराब के बोत्तल में डुबाने की कोशिश वे कर रहे थे। हालांकि, कुछ महीनों के अन्दर, पिताजी के दिल में कुछ कुछ होने लगा। उन्होंने पीना छोड़ दिया और बाइबिल पढ़ना शुरू किया। मेरे पिताजी जिन्हें सिर्फ पांचवीं कक्षा तक की पढ़ाई हासिल थी, बहुत कष्ट सहकर परमेश्वर के वचन को बारीकी से अध्ययन करने और उसे अपने दिल में आत्मसात करने लगे। रोज़ ब रोज़, घड़ी दर घड़ी, उन्होंने ईश वचन का अध्ययन और मनन-चिन्तन किया। ईश्वर ने मेरे पिताजी के दिल को बदल डाला। वे ईश्वर के प्रेम का अनुभव करते हुए, प्रतिदिन का जीवन भरपूर जीने लगे। एक कार दुर्घटना में अपनी 18 वर्ष की बेटी को खोने और अन्य बहुत से दिल तोड़नेवाले दौर से गुजरने के बावजूद, उन्होंने जीवन का श्रेष्ठ आनंद उठाया। हम भाई बहनों के चार नाती पोते और एक पोती हुए । एक दादा और नाना के तौर पर उनमें से किसी बच्चे के प्रति उन्होंने विशिष्ट प्रेम प्रकट नहीं किया। हर नाती-पोते को लगा कि वही दादा/नाना की आँखों की पुतली है । यद्यपि खदान की दुर्घटना के कारण काम करने की उनकी क्षमता ख़तम हो गयी, लेकिन यह हम सब केलिए एक चमत्कार पूर्ण आशीष बन गयी। हर नाती पोते के साथ अपना वक्त बिताने और उसका पूरा ख्याल करने और उसे प्यार करने का उनके पास काफी समय था। कानूनी तौर पर ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त करने की उम्र पंहुंचने से बहुत पहले ही, उन चारों नाती पोते को पिताजी नें अपने पुराने डाटसन पिकअप वैन चलाना सिखाया। खदान की दुर्घटना के कारण वे लंगड़ कर चलते थे, और उनके सभी नाती पोतों ने दादा/नाना की तरह ही चलकर उनकी नक़ल करने की कोशिश की। पिताजी और उन बच्चों का सड़क पर एक साथ चलना एक अभूतपूर्व दृश्य बनता था, क्योंकि सब के सब लंगड़ कर चलते थे। वे सभी दादा/नाना को अपना आदर्श मानते थे और उन्हीं की तरह बनना चाह रहे थे। वे बड़े क्षमावान और सब्र के आदमी थे, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उनमें में से एक एक के साथ उन्होंने समय बिताया और इस अनुभव के हर पल का आनंद उन्होंने उठाया । एक शादीशुदा औरत और बच्चों की माँ होने के नाते, बहुत बार मैं अपने पिताजी की सलाह लेने और उनके प्रोत्साहन प्राप्त करने उनके पास जाया करती थी। वह अपने दिल से मुझे सुना करते थे और कभी दोष नहीं लगाते थे, लेकिन मुझे प्रार्थना करने और ईश्वर पर भरोसा करने का प्रोत्साहन देकर मेरी समस्याओं का समाधान ढूँढने का वे प्रयास करते थे। उनसे सीख लेकर मैं भी बाइबिल पढने लगी। पिताजी की बहुत सारी अमूल्य स्मृतियाँ मेरे मन में हैं। सबसे महत्वपूर्ण सीख जो उन्होंने मुझे दी है, वह मेरे स्वर्गिक पिता की प्रेममय उपस्थिति में प्रातिदिन स्वयं को समर्पित करने की सीख है। इस के द्वारा दुनिया के सबसे महान, और सबके अच्छे पिता से मैं प्रतिदिन कुछ न कुछ सीख ग्रहण कर सकूं।
By: Connie Beckman
Moreमुसीबत के समय में, क्या आपने कभी सोचा है कि 'काश कोई मेरी मदद करता'? आप शायद अनभिज्ञ हैं कि वास्तव में आपकी मदद करने के लिए आपके पास आपके अपने एक निजी समूह है। मेरी बेटी मुझसे आजकल पूछती है कि अगर तुम सौ प्रतिशत पोलिश (पोलन्ड की) हो तो तुम सामान्य पोलेंड-वासी की तरह क्यों नहीं दिखती हो। पिछले सप्ताह तक मेरे पास इसका कोई सही उत्तर नहीं था, फिर मुझे पता चला कि मेरे कुछ पूर्वज दक्षिणी पोलैंड के गोरल हाइलैंडर्स यानी गोरल गोत्र समुदाय के पहाड़ी लोग थे। गोरल हाइलैंडर्स पोलेंड की दक्षिणी सीमा पर पहाड़ों में रहते हैं। वे अपनी दृढ़ता, स्वतंत्रता के प्रति प्रेम, तथा विशिष्ट पोशाक, संस्कृति और संगीत के लिए जाने जाते हैं। इस समय, एक विशेष गोरल लोक गीत मेरे दिल में बार-बार गूंजता रहता है, उस गीत ने मुझे इतना प्रभावित किया कि मैंने अपने पति के साथ उस गीत को साझा किया कि यह गीत वास्तव में मुझे अपने देश में वापस बुला रहा है। यह जानकर कि मेरा वंशीय इतिहास गोरल है, वास्तव में मेरा दिल ख़ुशी से उच्छल रहा है! वंशावली की खोज मेरा मानना है कि हममें से प्रत्येक के अन्दर अपनी वंशावली की खोज करने की इच्छा होती है। यही कारण है कि इन दिनों कई वंशावली साइट और डीएनए-जांच के व्यवसाय सामने आए हैं। ऐसा क्यों? शायद यह चाह हमें बतलाती है कि हम अपने से भी बड़ी किसी चीज़ का हिस्सा हैं। जो हमसे पहले इस दुनिया से चले गए हैं, उन लोगों के साथ हम मायने और संबंध की चाहत रखते हैं। हमारे वंश की खोज से पता चलता है कि हम एक बहुत गहरे कथानक का हिस्सा हैं। इतना ही नहीं, बल्कि अपनी पैतृक जड़ों को जानने से हमें पहचान और एकजुटता की भावना मिलती है। हम सभी कहीं न कहीं से आए हैं, हम कहीं न कहीं के वासी हैं, और हम एक साथ यात्रा कर रहे हैं। इस पर विचार करने पर मुझे एहसास हुआ कि केवल अपनी भौतिक ही नहीं, बल्कि अपनी आध्यात्मिक विरासत की खोज करना कितना महत्वपूर्ण है। आख़िरकार, हम मनुष्य शरीर और आत्मा हैं। हमें उन संतों को जानने से बहुत लाभ होगा जो हमसे पहले थे। हमें न केवल उनकी कहानियाँ सीखनी चाहिए, बल्कि उनसे परिचित भी होना चाहिए। संबंध ढूंढें मैं स्वीकारना चाहती हूँ कि मैं पहले किसी संत से मध्यस्थता मांगने की प्रथा में बहुत अच्छी नहीं रही हूँ। यह निश्चित रूप से मेरी प्रार्थना-दिनचर्या में एक नया जुड़ाव है। जिस चीज़ ने मुझे इस वास्तविकता से अवगत कराया वह संत फिलिप नेरी की यह सलाह थी: “आध्यात्मिक शुष्कता के खिलाफ सबसे अच्छी दवा खुद को ईश्वर और संतों की उपस्थिति में भिखारियों की तरह रखना है। और एक भिखारी की तरह, एक से दूसरे के पास जाना और उसी आग्रह के साथ आध्यात्मिक भिक्षा माँगना, जैसे कि सड़क पर एक गरीब आदमी भिक्षा माँगता है।“ पहला कदम यह जानना है कि संत कौन हैं। ऑनलाइन पर बहुत सारे अच्छे संसाधन मौजूद हैं। दूसरा तरीका है बाइबल पढ़ना। पुराने और नए विधान दोनों में शक्तिशाली मध्यस्थ हैं, और आप एक से अधिक मध्यस्थों से संबंधित हो सकते हैं। साथ ही, संतों और उनके लेखन पर अनगिनत किताबें हैं। मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना करें, और ईश्वर आपको आपके व्यक्तिगत मध्यस्थों के समूह तक पहुंचा देगा। उदाहरण के लिए, मैंने अपने संगीत की सेवकाई के लिए संत राजा दाउद से मध्यस्थता मांगी है। जब मुझे अपने पति के लिए या नौकरी चुनने के लिए मध्यस्थ की खोज करनी है तो मैं संत युसूफ के पास जाती हूँ। जब कलीसिया के लिए प्रार्थना करने का बुलावा मुझे मिलता है तो मैं संत जॉन पॉल द्वितीय, संत पेत्रुस और संत पिउस दसवें से मदद मांगती हूँ। मैं संत ऐनी और संत मोनिका की मध्यस्थता के माध्यम से माताओं के लिए प्रार्थना करती हूँ। बुलाहटों के लिए प्रार्थना करते समय, मैं कभी-कभी संत थेरेसा और संत पाद्रे पियो को पुकारती हूँ। यह सूची लम्बी है। तकनीकी समस्याओं के लिए धन्य कार्लो एक्यूटिस मेरे पसंदीदा हैं। संत जेसीन्ता और संत फ्रांसिस्को मुझे प्रार्थना के बारे में, तथा बेहतर तरीके से बलिदान अर्पित करने के बारे में सिखाते हैं। प्रेरित संत जॉन चिंतन करने में मेरी सहायता करते हैं। मैं अक्सर अपने दादा-दादी से मध्यस्थता की माँग करती हूँ, यह मैं नहीं बताती तो वह मेरी गलती होगी। जब वे हमारे साथ थे तब वे मेरे लिए प्रार्थना करते थे, और मैं जानती हूँ कि वे अनन्त जीवन में भी मेरे लिए प्रार्थना कर रहे हैं। परन्तु मेरी सार्वकालिक पसंदीदा मध्यस्थ हमेशा हमारी सबसे प्रिय धन्य कुंवारी माता मरियम रही हैं। बस एक प्रार्थना की दूरी पर यह मायने रखता है कि हम किसके साथ समय बिताते हैं। हम क्या बन जायेंगे, यह इसी पर निर्भर करता है। वास्तव में हमारी चारों ओर "गवाहों का बादल" है जिससे हम वास्तविक रूप से जुड़े हुए हैं (इब्रानी 12:1)। आइए हम उन्हें बेहतर तरीके से जानने का प्रयास करें। हम सरल, हार्दिक प्रार्थनाएँ भेज सकते हैं जैसे, "हे संत ____, मैं आपको बेहतर तरीके से जानना चाहती/ता हूँ। कृपया मेरी सहायता करें।" इस विश्वास यात्रा में चलने के लिए हम अकेले नहीं हैं। हम एक जन समूह के रूप में, मसीह के शरीर के रूप में एक साथ मुक्त किये गए लोग हैं। संतों से जुड़े रहने से, हमें वह मार्ग मिलता है जो हमारी स्वर्गीय जन्मभूमि तक सुरक्षित यात्रा करने के लिए दिशा और ठोस सहायता प्रदान करता है। पवित्र आत्मा हमें अपनी आध्यात्मिक जड़ों से जुड़ने में मदद करे ताकि हम संत बन सकें और अपना अनंत जीवन ईश्वर के एक गौरवशाली परिवार के रूप में बिता सकें!
By: Denise Jasek
Moreजब अयोग्यता के विचार मन में आएं, तो यह आजमायें... उससे बदबू आ रही थी. उसका गंदा, भूखा शरीर उसकी बर्बाद विरासत की तरह नष्ट हो रहा था। उसे लज्जा ने घेर लिया। उसने सब कुछ खो दिया था - अपनी संपत्ति, अपनी प्रतिष्ठा, अपना परिवार - उसका जीवन टूटकर बिखर गया था। निराशा ने उसे निगल लिया था। फिर, अचानक, उसे अपने पिता का सौम्य चेहरा याद आया। सुलह असंभव लग रही थी, लेकिन अपनी हताशा में, वह “उठ कर अपने पिता के घर की ओर चल पडा। वह दूर ही था कि उसके पिता ने उसे देख लिया, और दया से द्रवित हो उठा। उसने दौड़कर उसे गले लगा लिया और उसका चुम्बन किया। तब पुत्र ने उससे कहा, “पिता जी, मैंने स्वर्ग के विरूद्ध और आपके विरुद्ध पाप किया है; मैं आपका पुत्र कहलाने योग्य नहीं रहा।'... लेकिन पिता ने कहा... 'मेरा यह पुत्र मर गया था और फिर से जी गया है; वह खो गया था और फिर मिल गया है!' और वे आनंद मनाने लगे” (लूकस 15:20-24)। ईश्वर की क्षमा स्वीकार करना कठिन है। अपने पापों को स्वीकार करने का अर्थ है यह स्वीकार करना कि हमें अपने पिता की आवश्यकता है। और जब आप और मैं पिछले अपराधों के कारण अपराधबोध और शर्मिंदगी से जूझ रहे हैं, तो आरोप लगाने वाला शैतान हम पर अपने झूठ से हमला करता है: "तुम प्रेम और क्षमा के योग्य नहीं हो।" लेकिन प्रभु हमें इस झूठ को अस्वीकार करने के लिए कहते हैं! बपतिस्मा के समय, ईश्वर की संतान के रूप में आपकी पहचान, आपकी आत्मा पर हमेशा के लिए अंकित हो गई। और उड़ाऊ पुत्र की तरह, आप अपनी असली पहचान और योग्यता की खोज करने के लिए बुलाये गए हैं। चाहे आपने कुछ भी किया हो, ईश्वर आपसे प्यार करना कभी नहीं छोड़ते। "जो मेरे पास आता है, मैं उसे कभी नहीं ठुकराऊँगा।" (योहन 6:37)। आप और मैं कोई अपवाद नहीं हैं! तो, हम ईश्वर की क्षमा को स्वीकार करने के लिए व्यावहारिक कदम कैसे उठा सकते हैं? प्रभु को खोजें, उनकी दया को अपनाएं, और उनकी शक्तिशाली कृपा से बहाल हो जायें। प्रभु को खोजें अपने निकटतम गिरजाघर या आराधनालय को ढूंढें और प्रभु से आमने-सामने मुलाक़ात कर ले। ईश्वर से प्रार्थना करें कि वह अपनी दयालु आँखों से, अपने निस्वार्थ प्रेम के माध्यम से स्वयं को देखने और पहचानने में आपकी मदद करे। इसके बाद, अपनी आत्मा की एक ईमानदार और साहसी सूची बनाएं। बहादुर बनो और मनन चिंतन करते हुए क्रूसित प्रभु येशु को देखो - अपने आप को प्रभु के पास लाओ। हमारे पापों की वास्तविकता को स्वीकार करना कठिन है, लेकिन एक सच्चा, कमजोर हृदय क्षमा का फल प्राप्त करने के लिए तैयार है। याद रखें, आप ईश्वर की संतान हैं—प्रभु आपको विमुख नहीं करेंगे! ईश्वर की दया को अपनायें अपराधबोध और शर्मिंदगी के साथ लड़ना, पानी की सतह के नीचे गेंद को पकड़ने की कोशिश करने जैसा हो सकता है। इसमें बहुत मेहनत लगती है! इसके अलावा, शैतान अक्सर हमें यह विश्वास दिलाता है कि हम ईश्वर के प्रेम और क्षमा के योग्य नहीं हैं। लेकिन क्रूस से, मसीह का रक्त और जल हमें शुद्ध करने, चंगा करने और बचाने के लिए बहता रहा। आप और मैं इस दिव्य दया पर मूल रूप से भरोसा करने के लिए बुलाये गए हैं। यह कहने का प्रयास करें: “मैं ईश्वर की संतान हूँ। येशु मुझसे प्यार करते हैं। मैं क्षमा के योग्य हूँ।” इस सत्य को हर दिन दोहराएँ। इसे ऐसी जगह लिखें, जहां आप अक्सर दृष्टि दौडाते हैं। प्रभु से प्रार्थना करें कि उनकी दया के कोमल आलिंगन में स्वयं को देने में वह आपकी सहायता करें। गेंद को जाने दो और इसे येशु को सौंप दो—ईश्वर के लिए कुछ भी असंभव नहीं है! बहाल हो जाएँ पापस्वीकार संस्कार में, हम ईश्वर के उपचार और शक्ति की कृपा से बहाल होते हैं। शैतान के झूठ के विरुद्ध लड़ें और इस शक्तिशाली संस्कार में मसीह से मुलाकात कर लें। यदि आप अपराधबोध या शर्मिंदगी से जूझ रहे हैं तो पुरोहित को बताएं, और जब आप अपने पश्चाताप के कार्य के बारे में बताएं, तो अपने दिल को प्रेरित करने के लिए पवित्र आत्मा को आमंत्रित करें। जैसे ही आप पाप मुक्ति के शब्द सुनते हैं, ईश्वर की असीम दया पर विश्वास करना चुनें: "ईश्वर आपको क्षमा और शांति दे, और मैं आपको पिता, और पुत्र, और पवित्र आत्मा के नाम पर पापक्षमा प्रदान करता हूँ।" अब आप ईश्वर के अनंत प्रेम और क्षमा में बहाल हो गए हैं! अपनी असफलताओं के बावजूद, मैं हर दिन ईश्वर से उनके प्रेम और क्षमा को स्वीकार करने में मेरी मदद करने के लिए कहता हूं। हो सकता है कि हम उड़ाऊ पुत्र की तरह गिर गए हों, लेकिन आप और मैं अभी भी ईश्वर के बेटे और बेटियाँ हैं, उनके अनंत प्रेम और करुणा के योग्य हैं। ईश्वर आपसे प्रेम करता है, यहीं, इसी क्षण — उसने प्रेम के कारण आपके लिए अपना जीवन त्याग दिया। यह सुसमाचार की परिवर्तनकारी आशा है! इसलिए, ईश्वर की क्षमा को अपनाएं और साहसपूर्वक उसकी दिव्य दया को स्वीकार करने का साहस करें। ईश्वर की अनंत करुणा आपका इंतजार कर रही है! “नहीं डरो, मैंने तुम्हारा उद्धार किया है। मैंने तुमको अपनी प्रजा के रूप में अपनाया है।” (इसायाह 43:1)
By: Jody Weis
Moreबीसवीं सदी के आरंभिक यूनानी उपन्यासकार निकोलस कज़ान्तज़ाकिस का एक काव्यात्मक चिंतन है, जिसे मैं हर साल आगमन काल के आने पर अपने पलंग के बगल के टेबल पर रखता हूँ। उपन्यासकार कज़ान्तज़ाकिस येशु मसीह को एक किशोर के रूप में चित्रित करते हैं, जो दूर पहाड़ी की चोटी से इस्राएल के लोगों को देख रहा है, जो अभी अपनी सेवकाई शुरू करने के लिए तैयार नहीं है, लेकिन अपने लोगों की लालसा और पीड़ा के प्रति पूरी तरह से, दर्द और बोझ के साथ संवेदनशील है। इस्राएल का परमेश्वर उनके बीच में है—परन्तु वे अभी इस सच्चाई को नहीं जानते। मैं इसे एक दिन अपने छात्रों को पढ़कर सुना रहा था, जैसा कि मैं प्रतिवर्ष, आगमन की शुरुआत में करता हूँ, और उनमें से एक ने कक्षा के बाद मुझसे कहा: "मैं शर्त लगा सकता हूँ कि प्रभु येशु अभी भी ऐसा ही महसूस करते हैं।" मैंने उससे पूछा कि उसका क्या मतलब है। उसने कहा: "आप जानते हैं कि येशु, वहाँ पवित्र मंजूषा के अन्दर से हमें ऐसे चलते हुए देखते हैं जैसे कि हम जानते ही नहीं कि वे वहां उपस्थित हैं।" तब से, मेरे पास आगमन प्रार्थनाओं में ऐसे येशु का चित्र है, जो मंजूषा में इंतजार कर रहे हैं, अपने लोगों की ओर देख रहे हैं - हमारी कराहें, हमारी दलीलें और हमारी पुकारें सुन रहे हैं। हमारा इंतज़ार करते हुए ... किसी न किसी तरह, ईश्वर हमारे पास आने के लिए यही तरीका चुनता है। मसीह का जन्म पूरे मानव इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना है, और फिर भी, ईश्वर चाहता था कि यह 'इतनी शांति से हो कि संसार अपने काम में व्यस्त रहा जैसा कि कुछ भी नहीं हुआ हो।' कुछ चरवाहों ने ध्यान दिया, और पूरब से आये ज्ञानियों ने भी ऐसा ही किया। (हम हेरोद का भी उल्लेख कर सकते हैं, जिसने सभी गलत कारणों से ध्यान दिया!)। फिर, जाहिरा तौर पर, पूरी बात भुला दी गई। कुछ समय के लिए। किसी न किसी तरह... इंतज़ार करते हुए कुछ ऐसा होना चाहिए जो हमारे लिए अच्छा हो। ईश्वर हमारे लिए इंतजार करने को चुनता है। वह हमें अपने लिए इंतज़ार करवाना चुनता है। और जब आप इसके बारे में सोचते हैं, तो मुक्ति का पूरा इतिहास प्रतीक्षा का इतिहास बन जाता है। तो, आप देखते हैं कि यहाँ अत्यावश्यकता के दो भाव हैं - कि हमें ईश्वर के आह्वान का उत्तर देने की आवश्यकता है तथा इसकी भी आवश्यकता है कि वह हमारी पुकार का उत्तर दे, और जल्द ही। स्तोत्रकार लिखता है, "हे प्रभु, जब मैं तुझे पुकारूं, मुझे उत्तर दे।" इस पद में कुछ बड़ी विनम्रता है, दर्द है, जो आकर्षक रूप से हमारा ध्यान खींचता है। स्तोत्र में एक अत्यावश्यकता है। लेकिन यह भी स्पष्ट है कि हमें धैर्य रखना और इंतजार करना सीखना चाहिए - आनंदमय आशा के साथ इंतजार करना चाहिए - और इंतजार में इश्वर का उत्तर ढूंढना चाहिए।
By: Father Augustine Wetta O.S.B
Moreछह साल की उम्र में, एक छोटी लड़की ने फैसला किया कि उसे 'जेल' और 'फाँसी' शब्द पसंद नहीं हैं। उसे क्या पता था कि 36 साल की उम्र में वह मौत की सज़ा पाए कैदियों के साथ घूम रही होगी। 1981 में, दो छोटे बच्चों की चौंकाने वाली हत्याएं सिंगापुर और दुनिया भर में पहले पन्ने की खबर बन गईं थीं। पूरी जांच के बाद एड्रियन लिम की गिरफ्तारी हुई, जिसने अपने कई ग्राहकों को यह विश्वास दिलाकर कि उसके पास अलौकिक शक्तियां हैं, उनका यौन शोषण किया, उनसे जबरन वसूली की और उन्हें बिजली के झटके की 'थेरेपी' देकर प्रताड़ित किया। उनमें से एक, कैथरीन, मेरी एक छात्रा थी जो अपनी दादी की मृत्यु के बाद अवसाद के इलाज के लिए उसके पास गई थी। उस आदमी ने उससे वेश्यावृत्ति कराई और उसके भाई-बहनों के साथ दुर्व्यवहार किया। जब मैंने सुना कि कैथरीन पर हत्याओं में भाग लेने का आरोप लगाया गया है, तो मैंने उसे येशु के पवित्र हृदय की सुंदर तस्वीर के साथ एक चिट्टी भेजी। छह महीने बाद, उसने जवाब में लिखा, "जब मैंने इतने बुरे काम किए हैं तो आप मुझसे कैसे प्यार कर सकती हैं?" अगले सात वर्षों तक मैं जेल में कैथरीन से साप्ताहिक मुलाकात करती रही। महीनों तक एक साथ प्रार्थना करने के बाद, वह ईश्वर और उन सभी लोगों से माफ़ी मांगना चाहती थी, जिन्हें उसने चोट पहुंचाई थी। अपने पापों को स्वीकार करने के बाद, उसे ऐसी शांति मिली, जैसे वह एक अलग ही अनोखा व्यक्तित्व हो। जब मैंने उसका रूपांतरण देखा, तो मैं खुशी से पागल हो गयी। लेकिन कैदियों के लिए मेरी सेवा अभी शुरू ही हुई थी! अतीत की ओर नज़र मैं 10 बच्चों वाले एक प्यारे कैथोलिक परिवार में बड़ी हुई। हर सुबह, हम सभी एक साथ पवित्र मिस्सा बलिदान के लिए जाते थे, और मेरी माँ हमें गिरजाघर के पास एक कॉफी शॉप में नाश्ता खिलाती थी। लेकिन कुछ समय बाद मेरे लिए शरीर के भोजन से ज्यादा, आत्मा के लिए भोजन का महत्त्व बढ़ गया। पीछे मुड़कर दखती हूँ तो पता चलता है कि मेरे बचपन में अपने परिवार के साथ सुबह-सुबह होती रही उन पवित्र मिस्साओं के द्वारा ही मेरे अन्दर मेरी बुलाहट का बीज बोया गया था। मेरे पिता ने हममें से प्रत्येक को विशेष रूप से अपने प्यार का एहसास कराया, और हम उनके काम से लौटने पर खुशी से उनकी बाहों की ओर दौड़ने से कभी नहीं चूके। युद्ध के दौरान, जब हमें सिंगापुर से भागना पड़ा, तो वे हमें घर पर ही पढ़ाते थे। वे हर सुबह हमें उच्चारण सिखाते थे और हमसे उस अनुच्छेद को दोहराने के लिए कहते थे जिसमें किसी को सिंग सिंग जेल में मौत की सजा सुनाई गई थी। छह साल की छोटी उम्र में ही मुझे एहसास हुआ था कि मुझे वह अंश पसंद नहीं है। जब मेरी बारी आई तो मैंने इसे पढ़ने के बजाय “प्रणाम रानी, दया की माँ” प्रार्थना का पाठ किया। मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था कि मैं एक दिन कैदियों के साथ प्रार्थना करुंगी। अभी देर नहीं हुई है जब मैंने जेल में कैथरीन से मुलाक़ात करना शुरू किया, तो कई अन्य कैदियों ने हमारे कार्य में रुचि दिखाई। जब भी किसी कैदी ने मुलाकात का अनुरोध किया, तो मुझे उनसे मिलकर और ईश्वर की प्रेमपूर्ण दया साझा करके खुशी हुई। ईश्वर एक प्यारा पिता है जो हमेशा हमारे पश्चाताप करने और उसके पास वापस आने का इंतजार कर रहा है। एक कैदी जिसने कानून तोड़ा है वह उड़ाऊ पुत्र के समान है, जो जीवन के सबसे निचले पांवदान पर लुढ़क गया और उसने महसूस किया, "मैं अपने पिता के पास वापस जा सकता हूं।" जब वह अपने पिता के पास वापस लौटा और क्षमा मांगी, तो उसके पिता उसका स्वागत करने के लिए दौड़ते हुए बाहर आये। किसी को भी अपने पापों का पश्चाताप करने और ईश्वर की ओर लौटने में कभी देर नहीं करनी चाहिए। प्यार का आलिंगन हत्या की आरोपी फ्लोर नामक फिलिपिनो महिला ने अन्य कैदियों से हमारे सेवा कार्यों के बारे में सुना और समझा, इसलिए मैंने उससे मुलाकात की और उसका समर्थन और सहयोग किया, क्योंकि उसने अपनी मौत की सजा की अपील की थी। अपनी अपील खारिज होने के बाद, वह ईश्वर से बहुत नाराज थी और मुझसे बात करना नहीं चाहती थी। जब भी मैं उसके दरवाजे से गुजरती थी, तो मैं उससे कहती थी कि चाहे कुछ भी हो जाए, ईश्वर अब भी उससे प्यार करता है। लेकिन वह निराशा में खाली दीवार की ओर देखती रहती थी। मैंने अपने प्रार्थना समूह से नित्य सहायक माता से नौ रोज़ी प्रार्थना करने और विशेष रूप से अपनी दुःख पीडाओं को उसके लिए चढाने को कहा। दो सप्ताह बाद, फ़्लोर का हृदय अचानक बदल गया और उसने मुझसे कहा कि मैं किसी पुरोहित के साथ उसके पास वापस आऊँ। वह खुशी से फूल रही थी क्योंकि माता मरियम उसकी कोठरी में आई थीं और माँ मरियम ने उससे कहा था कि वह डरे नहीं क्योंकि माँ अंत तक उसके साथ रहेगी। उस क्षण से लेकर उसकी मृत्यु के दिन तक, फ्लोर के हृदय में केवल आनंद ही आनंद था। एक और यादगार कैदी एक ऑस्ट्रेलियाई व्यक्ति था जिसे मादक पदार्थों की तस्करी के आरोप में जेल में डाल दिया गया था। जब उसने मुझे एक अन्य कैदी के लिए माता मरियम का भजन गाते हुए सुना, तो वह इतना प्रभावित हुआ कि उसने मुझसे नियमित रूप से उससे मिलने के लिए कहा। जब उसकी माँ ऑस्ट्रेलिया से मिलने आईं तो वे हमारे साथ हमारे घर में रहीं। आख़िरकार, उसने एक काथलिक के रूप में बपतिस्मा लेने का आग्रह किया। उस दिन से, फाँसी के तख्ते तक जाते समय भी वह खुशी से भरा हुआ था। वहां का जेल निरीक्षक एक युवा व्यक्ति था, और जब यह मादक द्रव्य का पूर्व तस्कर अपनी मृत्यु की ओर बढ़ रहा था, तो यह अधिकारी आगे आया और उसे गले लगा लिया। यह बहुत असामान्य था, और हमें ऐसा लगा मानो ईश्वर स्वयं इस युवक को गले लगा रहे हो। आप वहां ईश्वर की उपस्थिति को महसूस किए बिना नहीं रह सकते थे। वास्तव में, मैं जानता हूं कि हर बार, माता मरियम और प्रभु येशु उन सज़ा-ए-मौत पाए कैदियों को स्वर्ग में स्वागत करने के लिए वहां मौजूद होते हैं। यह विश्वास करना मेरे लिए खुशी की बात है कि जिस प्रभु ने मुझे बुलाया है वह मेरे प्रति ईमानदार रहा है। उसके और उसके लोगों के लिए जीने का आनंद किसी भी अन्य चीज़ की तुलना में कहीं अधिक लाभप्रद रहा है।
By: Sister M. Gerard Fernandez RGS
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