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मार्च 23, 2023 274 0 Father Peter Hung Tran, Australia
Encounter

पूजा वेदी की ओर वह तूफानी सड़क

जब ईश्वर हमें बुलाता है तब वह रास्ते में आने वाली किसी भी बाधा को दूर करने की शक्ति भी हमें देता है। जीवन के तूफानी हमलों के दौर में फादर पीटर परमेश्वर से कैसे लिपटे रहे, इस अद्भुत कहानी को पढ़ें।

अप्रैल 1975 में जब कम्युनिस्टों ने वियतनाम पर कब्जा कर लिया, तब उस देश के दक्षिणी छोर में रहने वाले लोगों का जीवन हमेशा के लिए बदल गया। कम्युनिस्टों ने दस लाख से अधिक दक्षिण वियतनामी सैनिकों को पकड़ लिया और उन्हें पूरे देश के विभिन्न जगहों पर बनाए गए नज़रबंदी शिविरों में कैद कर दिया था। इसके अलावा सैकड़ों हजारों ख्रीस्तीय पुरोहितों, सेमिनारी में रहनेवाले बंधुओं, साध्वियों, मठवासी भिक्षुओं और धर्मबन्धुओं को कारागारों और सुधार गृहों में बंद कर दिया गया था ताकि उनका ब्रेनवॉश किया जा सके। उनमें से लगभग 60% की मृत्यु उन शिविरों में हुई जहाँ उन्हें कभी भी अपने परिवार या दोस्तों से मिलने की अनुमति नहीं थी। वे ऐसे रहते थे जैसे उन्हें भुला दिया गया हो।

युद्ध से बिखरा राष्ट्र

मेरा जन्म 1960 के दशक में, युद्ध के दौरान, अमेरिकियों के मेरे देश में आने के ठीक बाद हुआ था। उत्तर और दक्षिण के बीच लड़ाई के दौरान मेरी परवरिश हुई थी, इसलिए युद्ध सम्बंधित घटनाएं मेरे बचपन की पृष्ठभूमि बन गयी। जब युद्ध समाप्त हुआ, तब तक मैं लगभग माध्यमिक विद्यालय समाप्त कर चुका था। मुझे इस बारे में ज्यादा समझ नहीं आया कि यह सब क्या है, लेकिन मुझे यह देखकर बहुत दु:ख हुआ कि इतने सारे लोग जो मारे गए या कैद किए गए अपने सभी प्रियजनों के लिए दुखी हैं।

जब कम्युनिस्टों ने हमारे देश पर कब्जा कर लिया, तो सब कुछ उल्ट गया। हम अपने विश्वास के लिए लगातार सताए जाने के डर में जी रहे थे। वस्तुतः कोई स्वतंत्रता नहीं थी। हमें नहीं पता था कि कल हमारे साथ क्या होगा। हमारा भाग्य पूरी तरह से कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों के हाथों में था।

ईश्वर की पुकार का जवाब

इन अशुभ परिस्थितियों में मैंने ईश्वर की पुकार को महसूस किया। प्रारंभ में, मैंने इसके खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की, क्योंकि मैं जानता था कि मेरे लिए उस पुकार का पालन करना असंभव था। सबसे पहले, कोई गुरुकुल या सेमिनरी नहीं था जहाँ मैं पुरोहिताई के लिए अध्ययन कर सकता था। दूसरी बात, अगर सरकार को पता चल गया तो यह न केवल मेरे लिए खतरनाक होगा, बल्कि मेरे परिवार को भी दंडित किया जाएगा। और इन सबके अलावा, मैं येशु का शिष्य बनने के लिए अपने आप को अयोग्य महसूस कर रहा था। हालाँकि, परमेश्वर के पास अपनी योजना को पूरा करने का अपना तरीका है। इसलिए मैं 1979 में भूमिगत सेमिनरी में शामिल हो गया। सोलह महीने बाद, स्थानीय पुलिस को पता चला कि मैं एक ख्रीस्तीय पुरोहित बनने की तैयारी कर रहा हूँ, इसलिए मुझे जबरन सेना में भर्ती कर लिया गया।

मुझे उम्मीद थी कि चार साल बाद मुझे रिहा किया जा सकता है, ताकि मैं अपने परिवार और अपनी पढ़ाई में वापस आ सकूं, लेकिन सैनिक प्रशिक्षण के दौरान एक साथी सैनिक ने मुझे चेतावनी दी कि हमें कंपूचिया में लड़ने के लिए भेजे जायेंगे। मैं जानता था कि कंपूचिया में लड़ने गए 80% सैनिक कभी वापस नहीं आए। मैं इस संभावना से इतना डर गया था, कि मैंने खतरनाक जोखिमों के बावजूद सैनिक शिविर से भाग जाने की योजना बनाई। हालांकि मैं सफलतापूर्वक बच निकला, फिर भी मैं खतरे में था। मैं घर लौटकर अपने परिवार को खतरे में नहीं डाल सकता था, इसलिए मैं लगातार इस डर से इधर-उधर भटक रहा था कि कहीं कोई मुझे देख लेगा और पुलिस को रिपोर्ट कर देगा।

जीवन के लिए पलायन

इस प्रतिदिन के आतंक का कोई अंत नज़र नहीं आ रहा था। उस एक वर्ष के कठिन दौर के बाद, मेरे परिवार ने मुझसे कहा कि, सभी की सुरक्षा के लिए, मुझे वियतनाम से भागने का प्रयास करना चाहिए। एक अंधेरी रात में, आधी रात के बाद, मैंने गुप्त निर्देशों का पालन करते हुए, मछली पकड़ने वाली छोटी लकड़ी की एक नाव की ओर रेंगना शुरू किया, जहाँ कम्युनिस्ट गश्ती दल से बचकर भागने के लिए पचास लोग सवार थे। छोटे बच्चों से लेकर बूढ़ों तक, हमने अपनी सांसें और एक-दूसरे का हाथ तब तक थामे रखा जब तक हम खुले समुद्र में सुरक्षित बाहर नहीं निकल गए। लेकिन हमारी परेशानी अभी शुरू ही हुई थी। हमें कहाँ जाना है, इसके बारे में हमारे पास केवल एक अस्पष्ट विचार था और वहाँ जाने के लिए कहाँ कहाँ से होकर जाना है, इसकी बहुत कम समझ थी।

हमारा पलायन कठिनाइयों और खतरों से भरा था। हमने भयानक मौसम में समुद्र के उबड़-खाबड़ लहरों के बीच उठते गिरते उछलते-कूदते चार दिन बिताए। एक समय आया जब हमने सारी उम्मीदें छोड़ दी थीं। हम अगले तूफान से बच पायेंगे या नहीं इसका हमें संदेह था। हम मानने लगे थे कि हम अपनी मंजिल पर कभी नहीं पहुंचेंगे क्योंकि हम समुद्र की दया पर ही निर्भर थे जो हमें कहीं नहीं ले जा रहा था। हमें बिलकुल पता नहीं चल रहा था कि हम कहां हैं। हम केवल इतना ही कर सकते थे कि परमेश्वर के विधान पर भरोसा करके अपने जीवन को उनके हाथ में छोड़ दें। इस पूरे समय में, परमेश्वर ने हमें अपने संरक्षण में रखा था। जब आखिरकार हमें मलेशिया के एक छोटे से द्वीप पर शरण मिली, तब हमें अपने सौभाग्य पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। मैंने वहां के एक शरणार्थी शिविर में आठ महीने बिताए, और उसके बाद मुझे ऑस्ट्रेलिया में शरण मिली।

मजबूती से खड़ा जीवन

इस तरह के आतंकों को सहने के बाद, मुझे आखिरकार पता चला कि “बारिश के बाद धूप आती है”। हमारे पास एक पारंपरिक कहावत है, “हर प्रवाह में एक भाटा या उतार होगा”। जीवन में हर किसी के पास आनंद और संतोष के दिनों के विपरीत कुछ उदास दिन होने चाहिए। शायद यही मानव जीवन का नियम है। जन्म से कोई भी सभी दुखों से मुक्त नहीं हो सकता। कुछ दुःख शारीरिक हैं, कुछ मानसिक और कुछ आध्यात्मिक हैं। हमारे दु:ख एक दूसरे से भिन्न हैं, लेकिन लगभग सभी को दुःख का स्वाद चखना पड़ेगा। हालाँकि, दुःख स्वयं मनुष्य को नहीं मार सकता। केवल ईश्वर की इच्छा के प्रति समर्पण में बने रहने की इच्छाशक्ति की कमी ही कुछ लोगों को इतना हतोत्साहित कर सकती है कि वे भ्रामक सुखों में शरण लेते हैं, या दुःख से बचने के व्यर्थ प्रयास में आत्महत्या का विकल्प चुनते हैं।

मैं अपने आप को सौभाग्यशाली मानता हूं कि मैंने एक कैथलिक के रूप में अपने जीवन के लिए पूरी तरह से ईश्वर पर भरोसा करना सीखा है। मुझे विश्वास है कि जब भी मैं मुसीबत में हूँ, वह मेरी सहायता करेगा, विशेष रूप से जब ऐसा लगता है कि मेरे पास कोई विकल्प नहीं है, या मैं शत्रुओं से घिरा हुआ हूँ। मैंने अपने अनुभव से सीखा हैकि ईश्वर को ही अपने जीवन की ढाल और गढ़ मानकर उनकी शरण लेनी चाहिए। जब वह मेरे साथ होता है तो कोई भी ताकत मुझे हानि नहीं पहुंचा सकता (भजन संहिता 22)।

नई भूमि में नया जीवन

जब मैं ऑस्ट्रेलिया पहुंचा, तो मैंने अंग्रेजी सीखने में पूरी ताकत लगा दी ताकि मैं पुरोहिताई के लिए अध्ययन जारी रखने की अपने दिल की लालसा का पालन कर सकूं। शुरुआत में इतनी अलग संस्कृति में रहना मेरे लिए आसान नहीं था। अक्सर, अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए सही शब्द नहीं मिलते थे, इसलिए अक्सर गलतफहमियाँ हो जाती थीं। कभी-कभी हताशा में जोर-जोर से चिल्लाने का मन करता था। परिवार, या दोस्तों, या पैसे के बिना, नया जीवन शुरू करना कठिन था। मैंने अकेलापन, तन्हाई और अलग-थलग होने का दर्द महसूस किया, मुझे परमेश्वर के अलावा किसी का भी समर्थन नहीं मिला।

परमेश्वर हमेशा मेरे साथी रहा है, वह मुझे सभी बाधाओं के बावजूद डटे रहने की शक्ति और साहस देता है। अंधेरे के बीचे में परमेश्वर के प्रकाश ने ही मेरा मार्गदर्शन किया, ऐसे दौर में भी जब मैं उसकी उपस्थिति को पहचानने में असफल रहा। मैंने जो कुछ भी हासिल किया है वह उसकी कृपा से है और मुझे उसका अनुसरण करने हेतु बुलाने के लिए मैं उसका आभारी रहूंगा।

 

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Father Peter Hung Tran

Father Peter Hung Tran has a doctorate in Moral Theology, and is currently working at the University of Western Australia and St Thomas More College as a Catholic Chaplain.

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