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दिसम्बर 03, 2022 202 0 Bishop Robert Barron, USA
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ज्ञान वाणी: अपनी दृष्टि में जो सही है, वही करना बुरा क्यों है?

हमारे वर्तमान सांस्कृतिक इंद्रजाल, जिसमें हम अपनी आवाज़ें ढूंढते हैं, अपना एजेंडा निर्धारित करते हैं, चीजों को अपनी दृष्टि की रोशनी के अनुसार करते हैं, इस के बारे पवित्र बाइबल क्या कहती है? (वैसे, आज ऐसा रवैया हावी है या नहीं, यदि इस पर आपको संदेह है, तो मैं आपको कोई भी फिल्म व्यावहारिक रूप से देखने, किसी भी लोकप्रिय गीत को व्यावहारिक रूप से सुनने, या किसी के नवीनतम ब्लॉग या फेसबुक पोस्टिंग को व्यावहारिक रूप से पढ़ने के लिए आमंत्रित करता हूं)। क्या बाइबिल जीवन के प्रति इस अहं-नाटकीय दृष्टिकोण के पक्ष में है या उसके विरुद्ध है? मेरा सुझाव है कि हम न्यायकर्ताओं की पुस्तक के आखिरी हिस्से को देखें, तो आप को वहाँ वर्त्तमान ज़माने के खूंखार हत्यारों को भी शर्मसार करने के लिए पर्याप्त हत्या, तबाही और कुप्रथाओं से चिह्नित पाठ पढने को मिलेगा।

हमें बताया गया है कि इस्राएल के अंतिम न्यायकर्ता शिमशोन की मृत्यु के बाद, इस्राएली जनजातियाँ बिखराव के शिकार हो गईं और  एक दूसरे के खिलाफ़ हिंसा को प्रकट करना शुरू कर दिया। ऐसी कहानियों से भरी इस न्यायकर्त्ताओं की पुस्तक में, सबसे उल्लेखनीय और स्पष्ट रूप से पीड़ित करने वाली कहानी, गिबआ में हुए अत्याचार, बड़ी चिंताजनक घटना है। उत्तर में एफ्रेम के एक आदमी के बारे में हम सुनते हैं, जिसने दक्षिण में बेथलेहेम से अपने लिए एक रखैल (उप पत्नी) ले ली थी। जब वह महिला भाग निकली और बेथलेहम में अपने घर लौटी, तो वह व्यक्ति उसके पीछे आया और उसे वापस अपने कब्जे में ले लिया। तब वह उसके संग गिबआ नगर में आया। हमें बताया गया है कि जिस तरह की कुख्यात बदनाम घटना के बारे में हम उत्पत्ति ग्रन्थ में पढ़ते हैं, वही गिबआ में उस रात को हुआ। शहर के “बदमाशों” ने घर को घेर लिया। भीड़ ने उस घर के मालिक से चिल्लाकर कहा: “उस पुरुष को, जो तुम्हारे घर में आया है, उसे बाहर निकालो, ताकि हम उसका भोग करें।” उस घर के मालिक ने, स्तब्ध करनेवाले नैतिक पतन के साथ, यह उत्तर दिया, “यह कुकर्म मत करो। वह मेरा अतिथि है। इसके बजाय, मैं अपनी कुंवारी बेटी और इस आदमी की रखैल को बाहर निकाल दूंगा। उन्हें अपमानित करें या जो चाहें करें; परन्तु उस आदमी के विरुद्ध ऐसा कुकर्म मत करो।” उस पर, उस आदमी ने ही अपनी रखैल को उनके हवाले कर दिया, और वे बदमाश उस महिला को बाहर ले गए, और हमें निष्ठुरता से बताया जाता है कि उन पुरुषों ने “उसके साथ बलात्कार किया और पूरी रात, सबेरे तक उसके साथ दुष्कर्म किया।”

उस महिला की पीड़ा और अपमान के प्रति पूरी तरह से उदासीन, एफ्रेम वासी उस आदमी ने अगली सुबह उसे अपने गधे पर लादा और एफ्रेम की ओर यात्रा शुरू की। जब वह घर पहुंचा, तो उस ने एक छुरी ली, और उस स्त्री के अंग अंग को बारह टुकड़े कर डाले, और फिर उस ने सम्पूर्ण इस्राएल देश भर में भेज दिया। क्या जब उसने उस सुबह उसे पाया था, तब तक वह मर चुकी थी? क्या वह रास्ते में मर गई? क्या उसी ने उसे मार डाला? हमें बताया नहीं गया है, और यही बात कथा की भयावहता को बढ़ाता है। जब इस्राएल की जाति में यह भयानक सन्देश सुनाया गया, तब अगुओं ने एक सेना इकट्ठी की, और गिबआ नगर पर चढ़ाई की, और परिणामस्वरूप वहां की प्रजा का संहार हो गया।

अब, मैं इस भयानक कहानी क्यों दुहरा रहा हूँ? यद्यपि सर्वश्रेष्ठ कहानी पद की प्राप्ति पाने के लिए बहुत सी कहानियों के बीच काफी प्रतिस्पर्धा है, तब भी मेरा मानना ​​है कि यह भीषण और क्रूर प्रसंग बाइबल में वर्णित मानव व्यवहार के निम्नतम नमूनों का प्रतिनिधित्व करता है। इन दिनों हमारी वर्त्तमान संस्कृति में क्रूरता, कच्ची शारीरिक हिंसा, मानवीय गरिमा की घोर अवहेलना, यौन अनैतिकता, बलात्कार, सबसे बुरे प्रकार के यौन शोषण के साथ सहयोग, हत्या, विकृति और नरसंहार की अनगिनत घटनाएं हो रही हैं। विषय से हटकर कहना चाहूँगा कि मुझे तब हंसी आती है, जब कुछ ईसाई मुख्य रूप से मेरी आलोचना करते हैं, क्योंकि मैं ऐसी फिल्मों की सिफारिश करता हूँ जिनमें हिंसा और अनैतिकता स्पष्ट रूप से प्रदर्शित होती है। मैं पूछना चाहूँगा: “क्या उन्होंने कभी बाइबिल पढ़ी भी है?” यदि फिल्म में बाइबिल को ईमानदारी से चित्रित किया जाता, तो फिल्म को “केवल बालिगों के लिए” वाला सर्टिफिकेट प्राप्त होता। पवित्र ग्रन्थ बाइबिल के महान गुणों में से एक यह है कि वह इंसानों के बारे में तथा असंख्य तरीकों से हम गलत हो जाते हैं, हजारों बुरे रास्ते जिन पर हम चलते हैं, इन सबके बारे में बाइबिल बड़ी क्रूरता के साथ और ईमानदारी के साथ पूरा विवरण देती है।

बाइबिल का एक और गुण यह है कि इसके लेखक ठीक-ठीक जानते हैं कि यह सारी गड़बड़ी कहाँ से आती है। न्यायकर्त्ताओं की पुस्तक स्पष्ट रूप से इंगित करती है कि वह जिस नैतिक अराजकता का वर्णन करती है वह लोगों के बीच नैतिक नेतृत्व के गायब होने का परिणाम है। जब न्यायाधीश कमज़ोर पड़ गए, तो लोगों के बीच कानून को नहीं पढ़ाया गया और लागू नहीं किया गया, और इसलिए लोग भयावह कुकर्म के व्यवहार में भटक गए। पतवार रहित और बिना कप्तान के, जहाज बस चट्टानों से टकराता है। न्यायकर्त्ताओं की पुस्तक की अंतिम पंक्ति आध्यात्मिक स्थिति का सार प्रस्तुत करती है: “उन दिनों इस्राएल में कोई राजा नहीं था;  सब ने वही किया जो उनकी दृष्टि में सही था।” मैं इसे अनिवार्य रूप से राजनीतिक अर्थों में राजाओं के समर्थन के रूप में नहीं, बल्कि नैतिक अर्थों में नेतृत्व के रूप में व्याख्या करूंगा। एक स्वस्थ समाज को ऐसे नेताओं की आवश्यकता होती है – राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, धार्मिक आदि – जो वस्तुनिष्ठ नैतिक मूल्य की गहरी भावना से अनुप्राणित हों, जो केवल व्यक्तिपरक स्वार्थ से ऊपर उठे हों। धर्मग्रंथ के सभी लेखक जानते थे कि जिस प्रकार के स्वार्थभरे अधिकार जो आज प्रदर्शित किए जा रहे हैं, अर्थात किसी के अपने निजी विशेषाधिकारों का कड़ा दावा, किसी भी मानव समुदाय के लिए बुनियादी तौर पर छिछोरा है और नैतिक रूप से विनाशकारी है। यही कारण है कि बाइबिल के नायक कभी वे नहीं होते जो “स्वयं को ढूंढते हैं”, बल्कि वे जो परमेश्वर की आवाज पर ध्यान देते हैं और उस मिशन के प्रति आज्ञाकारी रहते हैं जो परमेश्वर ने उन्हें दिया है। ध्यान रहे, जैसा कि अक्सर होता है, बाइबिल हमारा ध्यान आकर्षित करने के लिए अतिशयोक्ति और अतिकथन का उपयोग करती है, ठीक उसी तरह जैसे फ़्लेनरी ओ’कॉनर अपनी भयानक कहानियों में नियोजित करती थी। तो न्यायकर्त्ताओं में प्रदर्शित लगभग अत्यंत भयावह हिंसा हमारे जैसे समाज के लिए एक चेतावनी के रूप में है जो तेजी से अपने नैतिक मूल्यों को खो रहा है: आप अभी तक उस जगह नहीं पहुंचे होंगे, लेकिन आप जिस सड़क पर चल रहे हैं, वह मार्ग आपको उसी जगह ले जा रहा है। अगली बार जब आप यह सोचने लगें कि दुनिया इतनी अनिश्चितता की स्थिति में क्यों है, तो न्यायकर्त्ताओं की पुस्तक की अंतिम पंक्तियों पर विचार करें: “सब ने वही किया जो उनकी दृष्टि में सही था।”

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Bishop Robert Barron

Bishop Robert Barron लेख मूल रूप से wordonfire.org पर प्रकाशित हुआ था। अनुमति के साथ पुनर्मुद्रित।

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