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नवम्बर 02, 2023 219 0 फादर जोसेफ गिल, USA
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कैथलिक विश्वास में संदेह और कठिनाइयों से कैसे उबरे ?

प्रश्न: मैं कैथलिक कलीसिया की कुछ शिक्षाओं से असहमत हूँ। यदि मैं कलीसिया की सभी शिक्षाओं से सहमत नहीं हूँ तो क्या मैं एक अच्छा कैथलिक कहा जाऊंगा ?

उत्तर: कलीसिया एक मानवीय संस्था से कहीं अधिक है – यह मानवीय और दिव्य दोनों है। इसके पास सिखाने का कोई अधिकार स्वयं का कुछ भी नहीं है। बल्कि, इसकी ज़िम्मेदारी ईमानदारी से उन बातों को सिखाने की है जो येशु मसीह ने पृथ्वी पर रहते हुए सिखाई: धर्मग्रंथों की प्रामाणिक रूप से व्याख्या करना और प्रेरितिक परंपरा को आगे बढ़ाना जो स्वयं प्रेरितों द्वारा हम तक पहुँची है।

हालाँकि, कलीसिया की मुख्य परम्पराओं और लघु परम्पराओं के बीच अंतर हैं। कलीसिया की मुख्य परम्पराएँ अपरिवर्तनीय और शाश्वत शिक्षा है जिनकी जड़ें प्रेरितों और येशु मसीह में हैं। इसके उदाहरण हैं: पवित्र परम प्रसाद केलिए केवल गेहूं की रोटी और अंगूर के दाखरस का उपयोग किया जा सकता है; केवल पुरुष ही पुरोहित बन सकते हैं; कुछ अनैतिक कार्य हमेशा और हर जगह गलत होते हैं; आदि। लघु परंपराएं मानव निर्मित परंपराएं हैं जो परिवर्तनशील हैं, जैसे शुक्रवार को मांस से परहेज करना (कलीसिया के इतिहास के दौरान यह बार बार बदला गया है), हाथों में परम प्रसाद ग्रहण करना आदि। लघु परंपराएं जो मनुष्यों से आई हैं, उनके बारे में विश्वासियों की ज़रूरतों, स्थानीय प्रथाओं और कलीसिया के अनुशासन के अनुरूप अच्छे विचारवाले लोगों की राय ली जाती है।

हालाँकि, जब प्रेरितिक परंपराओं की बात आती है, तो एक अच्छा कैथलिक होने का मतलब है कि हमें इसे प्रेरितों के माध्यम से मसीह द्वारा दी गयी परम्परा के रूप में स्वीकार करना चाहिए।

एक और अंतर समझने की आवश्यकता है: यह है संदेह और कठिनाई के बीच अंतर। एक ओर “कठिनाई” का मतलब है कि हम यह समझने केलिए संघर्ष करते हैं कि कलीसिया कोई विशिष्ट शिक्षा क्यों सिखाती है, लेकिन दूसरी ओर कठिनाई का मतलब है कि हम इसे विनम्रता से स्वीकार करते हैं और उत्तर ढूंढना चाहते हैं। आख़िरकार आस्था अंधी नहीं होती! मध्ययुगीन धर्मशास्त्रियों में एक वाक्य प्रचलित था: ‘फ़ीदेस क्वारेन्स इंटेलेक्टम’ – समझदारी की इच्छा रखनेवाली आस्था ।हमें प्रश्न पूछने चाहिए और उस आस्था को समझने का प्रयास करना चाहिए जिस पर हम विश्वास करते हैं!

इसके विपरीत, संदेह कहता है, “क्योंकि मैं नहीं समझता, मैं विश्वास नहीं करता! “जब कि कठिनाइयाँ विनम्रता से उत्पन्न होती हैं, संदेह अहंकार से उत्पन्न होता है – हम सोचते हैं कि विश्वास करने से पहले हमें हर चीज़ को समझने की आवश्यकता है। लेकिन आइए, ईमानदारी से सोचिये –क्या हम में से कोई पवित्र त्रीत्व जैसे रहस्यों को समझने में सक्षम है? क्या हम वास्तव में संत अगस्तीन, संत थोमस अक्विनस और कैथलिक कलीसिया के सभी संतों और मनीषियों से अधिक बुद्धिमान हैं? क्या हम सोच सकते हैं कि 2,000 साल पुरानी परंपरा, जो प्रेरितों से प्राप्त हुई थी, किसी तरह त्रुटिपूर्ण है?

यदि हमें कोई ऐसी शिक्षा मिलती है जिससे हम जूझते हैं, तो जूझते रहें – लेकिन विनम्रता के साथ ऐसा करें और पहचानें कि हमारी बुद्धि सीमित हैं और हमें अक्सर सीखने की आवश्यकता होती है! ढूंढो, और तुम पाओगे — धर्मशिक्षा को पढ़ें या कलिसिया के मठाधीशों, संत पिता के विश्वपत्रों, या अन्य ठोस कैथलिक सामग्री को पढ़ें। किसी पवित्र पुरोहित की तलाश करें जिन से अपने प्रश्न पूछ सकें। और यह कभी न भूलें कि कलीसिया जो कुछ भी सिखाती है वह आपकी खुशी केलिए है! कलीसिया की शिक्षाएँ हमें दुखी करने केलिए नहीं हैं, बल्कि हमें वास्तविक स्वतंत्रता और आनंद का रास्ता दिखाने केलिए हैं – जो केवल येशु मसीह में पवित्रता के उत्साही जीवन में ही पाया जा सकता है!

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फादर जोसेफ गिल

फादर जोसेफ गिल हाई स्कूल पादरी के रूप में एक पल्ली में जनसेवा में लगे हुए हैं। इन्होंने स्टुबेनविल के फ्रांसिस्कन विश्वविद्यालय और माउंट सेंट मैरी सेमिनरी से अपनी पढ़ाई पूरी की। फादर गिल ने ईसाई रॉक संगीत के अनेक एल्बम निकाले हैं। इनका पहला उपन्यास “Days of Grace” (कृपा के दिन) amazon.com पर उपलब्ध है।

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