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अक्टूबर 20, 2023 268 0 Shalom Tidings
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मुकुट को चुनें

“मैं एक कैथलिक हूं और मैं ख़ुशी ख़ुशी परमेश्वर के लिए मर जाऊंगा। अगर मेरे पास एक हजार जीवन होते, तो मैं वे एक हज़ार जीवन परमेश्वर को अर्पित कर देता।“

ये उस आदमी के मरते हुए शब्द थे जिस को यह निर्णय लेने का अवसर दिया गया था कि उसे जीना है या मरना है।

लोरेंजो रुइज़ का जन्म 1594 में मनीला में हुआ था। उनके चीनी पिता और फिलिपिनो माँ दोनों कैथलिक थे। बचपन में उसे डोमिनिकन फादर लोगों ने शिक्षा दी, उसने वेदी सेवक और गिरजाघर- परिचर के रूप में सेवा की, और अंततः एक पेशेवर सुलेखक (कैलीग्राफेर) बन गया। लोरेंजो अति पवित्र रोज़री माला संघ के एक सदस्य थे, उन्होंने रोसारियो के साथ शादी की और उन दोनों के दो बेटे थे।

सन १636 में उनके जीवन में एक दुखद मोड़ आया। उन पर हत्या का झूठा आरोप लगाया गया। उन्होंने तीन डोमिनिकन पादरियों की मदद मांगी, जो जापान के लिए एक मिशनरी यात्रा करने वाले थे, जबकि उन दिनों जापान में ईसाइयों पर क्रूर उत्पीड़न का दौर चल रहा था। लोरेंजो को जापान की और यात्रा का तब तक कोई अंदाजा नहीं था। नाव जापान की ओर रवाना होने के बाद ही लोरेंजों को उसके और उसके समूह की यात्रा का मंजिल और वहां के खतरे के बारे में पता चला।

जापानियों को डर था कि ​​​​स्पेन ने जिस तरह फिलीपींस पर आक्रमण किया था, उसी तरह जापान पर भी आक्रमण करने केलिए धर्म का उपयोग किया जाएगा, इसलिए जापान ने ईसाई धर्म का जमकर विरोध किया। मिशनरियों को जल्द ही ढूंढा गया, कैद किया गया, और कई क्रूर यातनाओं के अधीन किया गया। उत्पीडन का एक यह भी तरीका था कि मिशनरियों के गले में भारी मात्रा में पानी डाला जाता, फिर सैनिक बारी-बारी से मिशनरियों के पेट पर रखे बोर्ड के आर-पार खड़े हो जाते, जिससे उनके मुंह, नाक और आंखों से पानी तेजी से बहता।

अंत में, उन्हें एक गड्ढे के ऊपर उल्टा लटका दिया गया, उनके शरीर को कसकर बांधे गए, जिससे उनके शरीर में रक्त का धीमी गति से परिसंचरण होता था, लंबे समय तक दर्द और धीमी गति से मृत्यु होती थी। लेकिन पीड़ित का एक हाथ हमेशा खुला छोड़ दिया जाता था, ताकि वह पीछे हटने के अपने इरादे का संकेत दे सके। न तो लोरेंजो और न ही उनके साथी पीछे हटे। वास्तव में, जब उसके उत्पीड़कों ने उससे पूछताछ की और जान से मारने की धमकी दी, तो उसका विश्वास और मजबूत हो गया। ये पवित्र शहीद तीन दिनों तक गड्ढे के ऊपर लटके रहे। तब तक, लोरेंजो मर चुका था और जो तीन पुरोहित अभी भी जीवित थे, उनके सिर काट दिए गए थे।

उनके विश्वास का एक त्वरित त्याग उनके जीवन को बचा सकता था। इसके बजाय, उन्होंने शहीद का मुकुट पहनकर मरना चुना। उनकी वीरता हमें साहस के साथ और बिना समझौता किए अपने विश्वास को जीने के लिए प्रेरित करे।

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