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जून 03, 2022 292 0 Carol Osburn, USA
Encounter

यह मैं हूँ, येशु!

कई साल पहले वह एक ठंडी और बर्फीली दोपहर थी, और मेरे मन में इच्छा हुई कि मैं आराधना में जाकर भाग लूं। मेरी अपनी पल्ली में अभी तक सतत-आराधना की व्यवस्था नहीं हुई थी, इसलिए मैं उस गिरजाघर की ओर गाडी चलाती हुई चली गयी, जहां सतत अराधना होती थी। इस गिरजाघर में एक छोटा, बहुत ही अंतरंग प्रार्थनालय है जहां मुझे येशु के साथ समय बिताना और अपने दिल की बात उनके सामने रखना अच्छा लगता था।

जब मैंने दो लोगों को प्रार्थनालय के पीछे बातें करते सुना, तब मेरा समय लगभग समाप्त हो गया था। गिरजाघर की ड्योढ़ी में पड़े एक बेघर व्यक्ति के बारे में वे बात कर रहे थे। उस आदमी के प्रति उनकी असंवेदनशीलता से मैं विचलित और दु:खी थी, इसलिए मैंने वहां से उठने का फैसला किया। वैसे भी मेरी आराधना का एक घंटा लगभग समाप्त हो गया था।

जैसे ही मैं वहां से निकली, मैं गिरजाघर की ड्योढ़ी से गुज़री जहां वही आदमी इतनी गहरी नींद सो रहा था कि जब मैं उसके लिए प्रार्थना करने के लिए रुकी तो उसका शरीर बिलकुल भी नहीं हिला। मुझे राहत महसूस हुई कि प्रभु ने आराधना के लिए दरवाजे खोल दिए थे, ताकि वह आदमी यहाँ आश्रय पा सके। वह बेघर लग रहा था, लेकिन मुझे पक्का पता नहीं था।

मुझे बस इतना पता है कि इस आदमी के लिए चिंता करते हुए मैं आंसू बहा रही थी। जब मैं खुद को रोक नहीं पायी, तब मैं गिरजाघर के बाहर टहलने लगी। वहां पवित्र हृदय की एक मूर्ति खड़ी थी, जो मुझे याद दिला रही थी कि हर व्यक्ति के लिए येशु के दिल में प्रेमपूर्ण चिंता और प्रचुर दया है। मैंने प्रभु से विनती की कि वह मुझे बताए कि मुझे क्या करना है। मेरे दिल में मैंने महसूस किया, कि प्रभु मुझसे कह रहा है कि मैं पास की दुकान में जाऊं और इस आदमी के लिए कुछ जरूरी सामान खरीद लूं। मैंने प्रभु को धन्यवाद दिया और तुरंत दुकान जाकर कुछ ऐसी चीजें खरीदीं जो मुझे लगा कि उस आदमी के लिए ज़रूरी और उपयोगी है।

गिरजाघर की ओर वापस जाते समय, मुझे उम्मीद थी कि वह आदमी अभी भी वहाँ होगा। मैं वास्तव में उसे वह सब देना चाहती थी जिन्हें मैंने खरीदी थी। जब मैं वहां पहुंची तब भी वह सो रहा था। मैंने चुपचाप सामान का बैग उसके पास रख दिया, एक प्रार्थना की, और मैं चलने लगी। मैं लगभग बाहर निकल ही चुकी थी कि मैंने किसी को “बहन, बहन” कहते हुए सुना। मैंने पलट कर जवाब दिया, “जी हां”। वह आदमी अब जाग गया था और मेरे पास आया और पूछा कि क्या मैंने उसके लिए यह बैग छोड़ रखा है। मैंने उत्तर दिया, “जी हाँ, मैंने रखा है।” उसने मुझे यह कहते हुए धन्यवाद दिया कि मेरी यह उदारता कितनी अच्छी थी। ऐसा पहले कभी किसी ने उनके साथ नहीं किया था। मैंने मुस्कुराते हुए कहा, “आपका स्वागत है”। वह आदमी करीब आ रहा था और मुझे लगा जैसे मैं येशु की उपस्थिति में थी। मैंने अपने दिल में बहुत प्यार महसूस किया। फिर उसने कहा, “बहन, स्वर्ग में मेरी मुलाक़ात आपसे होगी।” मुझे लगा कि मैं फूट-फूट कर रोने लगूंगी। उनकी आवाज बहुत दयापूर्ण और प्यार से भरपूर थी। उसके गाल पर चुम्बन देने की प्रेरणा मुझे मिली। हमने एक-दूसरे को अलविदा कहा और अपने-अपने रास्ते चल दिए।

बाहर आने पर भी,  मेरा रोना बंद नहीं हुआ। मैं घर पहुँचने तक रोती रही। आज भी, उस दोपहर को याद करते ही मेरे आंसू छलक पड़ते हैं। मुझे एहसास हुआ कि उस ठंडी, बर्फीली दोपहर को, वास्तव में उस खूबसूरत आदमी में मैंने येशु से मुलाक़ात की थी। अब, जब मैं पीछे मुड़कर देखती हूं, तो मैं कल्पना करती हूं कि चेहरे पर एक बड़ी मुस्कान के साथ येशु मुझसे कह रहा है, “यह मैं हूं, येशु!”

धन्यवाद, येशु, मुझे यह याद दिलाने के लिए कि मुझसे मिलने वाले प्रत्येक व्यक्ति जिस से मेरी मुलाक़ात होती है उनमें मैं तेरा दर्शन कर सकती हूं।

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Carol Osburn

Carol Osburn आध्यात्मिक निर्देशिका और लेखिका हैं। 44 से अधिक वर्षों से विवाहित हैं, और अपने पति के साथ अमेरिका के इलिनोई में रहती हैं। उनकी तीन संतान और नौ पोते-पोतियां हैं।

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