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फरवरी 20, 2024 117 0 Patricia Moitie
Encounter

क्या आप दूसरों के अनुकूल बनने की कोशिश कर रहे हैं?

एक किशोरी के रूप में, मैंने वही किया जो हर किशोरी करने की कोशिश करती है- मैंने दूसरों के साथ  फिट होने की, यानी दूसरों के अनुकूल बनने की कोशिश की। हालाँकि, मुझे यह एहसास था कि मैं अपने साथियों से अलग हूँ। रास्ते में कहीं, मुझे एहसास हुआ कि मेरी आस्था और धार्मिक विश्वास ने मुझे दूसरों से अलग बनाया। मुझे अपने माता-पिता से नाराजगी थी कि उन्होंने मुझे वह चीज़ दी जो मुझे दूसरों से अलग बनाती थी। मैं विद्रोही हो गयी और पार्टियों, डिस्को और नाइट क्लबों में जाने लगी।

मैं अब और प्रार्थना नहीं करना चाहती थी। मैं बस मेकअप करने, बढ़िया बढ़िया कपड़ा पहनने, पार्टियों में कौन कौन आने वाले हैं, इस बारे में सपने देखने, पूरी रात नाचने और सबसे बढ़कर, बस ‘वहाँ दूसरों के अनुकूल बनने’ का पूरा रोमांच चाहती थी।

लेकिन, रात को घर आकर, अपने बिस्तर पर अकेली बैठी हुई, मुझे अंदर से खालीपन महसूस हुआ। मैं जो बन गयी थी, उससे मुझे नफरत थी; यह एक पूर्ण विरोधाभास था; क्योंकि जहाँ जो मैं थी, मुझे वह पसंद नहीं था, और फिर भी मुझे नहीं पता था कि कैसे बदलना है और खुद को क्या बनाना है।

ऐसी एक रात, अकेली रोती हुई, मुझे बचपन का वह सहज आनंद याद आया, जिन दिनों मुझे पता था कि ईश्वर और मेरा परिवार मुझसे प्यार करता है। उन दिनों, यही सब मायने रखता था। इसलिए, उस रात को लंबे दौर के बाद पहली बार, मैंने प्रार्थना की। मैंने प्रभु के सामने रोया और मुझे उस खुशी में वापस लाने के लिए कहा।

मैंने उसे एक तरह से अंतिम चेतावनी दे दी थी कि अगर उसने अगले साल तक मुझे खुद को नहीं प्रकट किया, तो मैं कभी उसके पास नहीं लौटूंगी। यह बहुत ही खतरनाक प्रार्थना थी, लेकिन साथ ही, यह बहुत शक्तिशाली भी थी। मैंने यह प्रार्थना की और फिर इसके बारे में पूरी तरह से भूल गयी।

 कुछ महीने बाद, मुझे होली फैमिली मिशन समुदाय से परिचित कराया गया, यह मिशन समुदाय एक आवासीय समुदाय है जहाँ लोग अपने विश्वास को सीखने और ईश्वर को जानने के लिए आते हैं। वहाँ दैनिक प्रार्थना, पवित्र संस्कारों का जीवन, बार-बार पाप स्वीकार, दैनिक रोजरी माला और पवित्र घंटे की आराधना होती थी। मेरे मन में विचार आया, “एक दिन के लिए इतनी प्रार्थना ज़रुरत से अधिक और बहुत ज़्यादा है!” उस समय, मैं अपने दिन के पाँच मिनट भी ईश्वर को नहीं दे पाती थी।

किसी तरह, मैंने मिशन के लिए आवेदन कर दिया। हर एक दिन, मैं पवित्र परम प्रसाद में विराजमान प्रभु  के सामने प्रार्थना में बैठती और उनसे पूछती कि मैं कौन हूँ और मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है। धीरे-धीरे, लेकिन निश्चित रूप से, धर्मग्रन्थ के माध्यम से और उनके साथ बिताये गए मौन प्रार्थना में प्रभु ने खुद को मेरे सामने प्रकट किया। मुझे धीरे-धीरे अपने आंतरिक घावों से चंगाई मिली और मैं प्रार्थना और प्रभु के साथ रिश्ते में आगे बढ़ी।

अपने आप को पूरी तरह से खोई हुई महसूस करनेवाली वह विद्रोही किशोरी लड़की बदल कर ईश्वर की खुशमिजाज बेटी बन गयी; इस तरह मैं काफी बदलाव से गुज़री। हाँ, ईश्वर चाहता है कि हम उसे जानें। वह खुद को हमारे सामने प्रकट करता है, क्योंकि हम उससे जो भी प्रार्थना करते हैं, उन में से हर एक का वह ईमानदारी से जवाब देता है।

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