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जब ईश्वर हमें बुलाता है तब वह रास्ते में आने वाली किसी भी बाधा को दूर करने की शक्ति भी हमें देता है। जीवन के तूफानी हमलों के दौर में फादर पीटर परमेश्वर से कैसे लिपटे रहे, इस अद्भुत कहानी को पढ़ें।
अप्रैल 1975 में जब कम्युनिस्टों ने वियतनाम पर कब्जा कर लिया, तब उस देश के दक्षिणी छोर में रहने वाले लोगों का जीवन हमेशा के लिए बदल गया। कम्युनिस्टों ने दस लाख से अधिक दक्षिण वियतनामी सैनिकों को पकड़ लिया और उन्हें पूरे देश के विभिन्न जगहों पर बनाए गए नज़रबंदी शिविरों में कैद कर दिया था। इसके अलावा सैकड़ों हजारों ख्रीस्तीय पुरोहितों, सेमिनारी में रहनेवाले बंधुओं, साध्वियों, मठवासी भिक्षुओं और धर्मबन्धुओं को कारागारों और सुधार गृहों में बंद कर दिया गया था ताकि उनका ब्रेनवॉश किया जा सके। उनमें से लगभग 60% की मृत्यु उन शिविरों में हुई जहाँ उन्हें कभी भी अपने परिवार या दोस्तों से मिलने की अनुमति नहीं थी। वे ऐसे रहते थे जैसे उन्हें भुला दिया गया हो।
युद्ध से बिखरा राष्ट्र
मेरा जन्म 1960 के दशक में, युद्ध के दौरान, अमेरिकियों के मेरे देश में आने के ठीक बाद हुआ था। उत्तर और दक्षिण के बीच लड़ाई के दौरान मेरी परवरिश हुई थी, इसलिए युद्ध सम्बंधित घटनाएं मेरे बचपन की पृष्ठभूमि बन गयी। जब युद्ध समाप्त हुआ, तब तक मैं लगभग माध्यमिक विद्यालय समाप्त कर चुका था। मुझे इस बारे में ज्यादा समझ नहीं आया कि यह सब क्या है, लेकिन मुझे यह देखकर बहुत दु:ख हुआ कि इतने सारे लोग जो मारे गए या कैद किए गए अपने सभी प्रियजनों के लिए दुखी हैं।
जब कम्युनिस्टों ने हमारे देश पर कब्जा कर लिया, तो सब कुछ उल्ट गया। हम अपने विश्वास के लिए लगातार सताए जाने के डर में जी रहे थे। वस्तुतः कोई स्वतंत्रता नहीं थी। हमें नहीं पता था कि कल हमारे साथ क्या होगा। हमारा भाग्य पूरी तरह से कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों के हाथों में था।
ईश्वर की पुकार का जवाब
इन अशुभ परिस्थितियों में मैंने ईश्वर की पुकार को महसूस किया। प्रारंभ में, मैंने इसके खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की, क्योंकि मैं जानता था कि मेरे लिए उस पुकार का पालन करना असंभव था। सबसे पहले, कोई गुरुकुल या सेमिनरी नहीं था जहाँ मैं पुरोहिताई के लिए अध्ययन कर सकता था। दूसरी बात, अगर सरकार को पता चल गया तो यह न केवल मेरे लिए खतरनाक होगा, बल्कि मेरे परिवार को भी दंडित किया जाएगा। और इन सबके अलावा, मैं येशु का शिष्य बनने के लिए अपने आप को अयोग्य महसूस कर रहा था। हालाँकि, परमेश्वर के पास अपनी योजना को पूरा करने का अपना तरीका है। इसलिए मैं 1979 में भूमिगत सेमिनरी में शामिल हो गया। सोलह महीने बाद, स्थानीय पुलिस को पता चला कि मैं एक ख्रीस्तीय पुरोहित बनने की तैयारी कर रहा हूँ, इसलिए मुझे जबरन सेना में भर्ती कर लिया गया।
मुझे उम्मीद थी कि चार साल बाद मुझे रिहा किया जा सकता है, ताकि मैं अपने परिवार और अपनी पढ़ाई में वापस आ सकूं, लेकिन सैनिक प्रशिक्षण के दौरान एक साथी सैनिक ने मुझे चेतावनी दी कि हमें कंपूचिया में लड़ने के लिए भेजे जायेंगे। मैं जानता था कि कंपूचिया में लड़ने गए 80% सैनिक कभी वापस नहीं आए। मैं इस संभावना से इतना डर गया था, कि मैंने खतरनाक जोखिमों के बावजूद सैनिक शिविर से भाग जाने की योजना बनाई। हालांकि मैं सफलतापूर्वक बच निकला, फिर भी मैं खतरे में था। मैं घर लौटकर अपने परिवार को खतरे में नहीं डाल सकता था, इसलिए मैं लगातार इस डर से इधर-उधर भटक रहा था कि कहीं कोई मुझे देख लेगा और पुलिस को रिपोर्ट कर देगा।
जीवन के लिए पलायन
इस प्रतिदिन के आतंक का कोई अंत नज़र नहीं आ रहा था। उस एक वर्ष के कठिन दौर के बाद, मेरे परिवार ने मुझसे कहा कि, सभी की सुरक्षा के लिए, मुझे वियतनाम से भागने का प्रयास करना चाहिए। एक अंधेरी रात में, आधी रात के बाद, मैंने गुप्त निर्देशों का पालन करते हुए, मछली पकड़ने वाली छोटी लकड़ी की एक नाव की ओर रेंगना शुरू किया, जहाँ कम्युनिस्ट गश्ती दल से बचकर भागने के लिए पचास लोग सवार थे। छोटे बच्चों से लेकर बूढ़ों तक, हमने अपनी सांसें और एक-दूसरे का हाथ तब तक थामे रखा जब तक हम खुले समुद्र में सुरक्षित बाहर नहीं निकल गए। लेकिन हमारी परेशानी अभी शुरू ही हुई थी। हमें कहाँ जाना है, इसके बारे में हमारे पास केवल एक अस्पष्ट विचार था और वहाँ जाने के लिए कहाँ कहाँ से होकर जाना है, इसकी बहुत कम समझ थी।
हमारा पलायन कठिनाइयों और खतरों से भरा था। हमने भयानक मौसम में समुद्र के उबड़-खाबड़ लहरों के बीच उठते गिरते उछलते-कूदते चार दिन बिताए। एक समय आया जब हमने सारी उम्मीदें छोड़ दी थीं। हम अगले तूफान से बच पायेंगे या नहीं इसका हमें संदेह था। हम मानने लगे थे कि हम अपनी मंजिल पर कभी नहीं पहुंचेंगे क्योंकि हम समुद्र की दया पर ही निर्भर थे जो हमें कहीं नहीं ले जा रहा था। हमें बिलकुल पता नहीं चल रहा था कि हम कहां हैं। हम केवल इतना ही कर सकते थे कि परमेश्वर के विधान पर भरोसा करके अपने जीवन को उनके हाथ में छोड़ दें। इस पूरे समय में, परमेश्वर ने हमें अपने संरक्षण में रखा था। जब आखिरकार हमें मलेशिया के एक छोटे से द्वीप पर शरण मिली, तब हमें अपने सौभाग्य पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। मैंने वहां के एक शरणार्थी शिविर में आठ महीने बिताए, और उसके बाद मुझे ऑस्ट्रेलिया में शरण मिली।
मजबूती से खड़ा जीवन
इस तरह के आतंकों को सहने के बाद, मुझे आखिरकार पता चला कि “बारिश के बाद धूप आती है”। हमारे पास एक पारंपरिक कहावत है, “हर प्रवाह में एक भाटा या उतार होगा”। जीवन में हर किसी के पास आनंद और संतोष के दिनों के विपरीत कुछ उदास दिन होने चाहिए। शायद यही मानव जीवन का नियम है। जन्म से कोई भी सभी दुखों से मुक्त नहीं हो सकता। कुछ दुःख शारीरिक हैं, कुछ मानसिक और कुछ आध्यात्मिक हैं। हमारे दु:ख एक दूसरे से भिन्न हैं, लेकिन लगभग सभी को दुःख का स्वाद चखना पड़ेगा। हालाँकि, दुःख स्वयं मनुष्य को नहीं मार सकता। केवल ईश्वर की इच्छा के प्रति समर्पण में बने रहने की इच्छाशक्ति की कमी ही कुछ लोगों को इतना हतोत्साहित कर सकती है कि वे भ्रामक सुखों में शरण लेते हैं, या दुःख से बचने के व्यर्थ प्रयास में आत्महत्या का विकल्प चुनते हैं।
मैं अपने आप को सौभाग्यशाली मानता हूं कि मैंने एक कैथलिक के रूप में अपने जीवन के लिए पूरी तरह से ईश्वर पर भरोसा करना सीखा है। मुझे विश्वास है कि जब भी मैं मुसीबत में हूँ, वह मेरी सहायता करेगा, विशेष रूप से जब ऐसा लगता है कि मेरे पास कोई विकल्प नहीं है, या मैं शत्रुओं से घिरा हुआ हूँ। मैंने अपने अनुभव से सीखा हैकि ईश्वर को ही अपने जीवन की ढाल और गढ़ मानकर उनकी शरण लेनी चाहिए। जब वह मेरे साथ होता है तो कोई भी ताकत मुझे हानि नहीं पहुंचा सकता (भजन संहिता 22)।
नई भूमि में नया जीवन
जब मैं ऑस्ट्रेलिया पहुंचा, तो मैंने अंग्रेजी सीखने में पूरी ताकत लगा दी ताकि मैं पुरोहिताई के लिए अध्ययन जारी रखने की अपने दिल की लालसा का पालन कर सकूं। शुरुआत में इतनी अलग संस्कृति में रहना मेरे लिए आसान नहीं था। अक्सर, अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए सही शब्द नहीं मिलते थे, इसलिए अक्सर गलतफहमियाँ हो जाती थीं। कभी-कभी हताशा में जोर-जोर से चिल्लाने का मन करता था। परिवार, या दोस्तों, या पैसे के बिना, नया जीवन शुरू करना कठिन था। मैंने अकेलापन, तन्हाई और अलग-थलग होने का दर्द महसूस किया, मुझे परमेश्वर के अलावा किसी का भी समर्थन नहीं मिला।
परमेश्वर हमेशा मेरे साथी रहा है, वह मुझे सभी बाधाओं के बावजूद डटे रहने की शक्ति और साहस देता है। अंधेरे के बीचे में परमेश्वर के प्रकाश ने ही मेरा मार्गदर्शन किया, ऐसे दौर में भी जब मैं उसकी उपस्थिति को पहचानने में असफल रहा। मैंने जो कुछ भी हासिल किया है वह उसकी कृपा से है और मुझे उसका अनुसरण करने हेतु बुलाने के लिए मैं उसका आभारी रहूंगा।
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क्यों का सवाल
33 वर्षीय भौतिक विज्ञानी क्रिश्चियन साइमन लंबे समय से नास्तिक थे और जीवन के सभी महत्वपूर्ण सवालों के जवाब विज्ञान से चाहते थे – जब तक कि उन्होंने अपनी सीमाओं को देख लिया
मैं कैथलिक के रूप में बड़ा हुआ, उस समय की प्रथा के अनुसार मैंने सभी संस्कार प्राप्त किए, एक बच्चे के रूप में भी मैं काफी धर्मनिष्ठ था। दुर्भाग्य से, समय के साथ मैंने ईश्वर की एक भयानक झूठी छवि विकसित की: ईश्वर को एक कठोर न्यायाधीश के रूप में मैंने देखा, जो पापियों को नरक में फेंक देता है, लेकिन वह ईश्वर मेरे लिए बहुत दूर था और जिसका वास्तव में मेरे प्रति कोई दिलचस्पी नहीं है। मुझे इस बात पर बहुत संदेह था कि ईश्वर मेरी भलाई सोचता है। अपनी युवावस्था में, मैं और भी अधिक आश्वस्त हो गया कि परमेश्वर के मन में मेरे खिलाफ कुछ है। मैंने कल्पना की कि मैंने जो कुछ करने के लिए उससे विनती की थी, उसने हमेशा ठीक उसके विपरीत किया। किसी समय परमेश्वर पर मेरा विश्वास खत्म हो चुका था। मैं ईश्वर के बारे में और कुछ नहीं जानना चाहता था।
धर्म – सनकी लोगों के लिए है
करीब 18 साल की उम्र में मुझे यकीन हो गया था कि ईश्वर है ही नहीं। मेरे लिए, केवल वही है जिसे मैं अपनी इंद्रियों से अनुभव कर सकता था या जिसे प्राकृतिक विज्ञान द्वारा मापा जा सकता था। धर्म मुझे केवल संकी या अजीबोगरीब लोगों के लिए कुछ लगता था, जिनके पास या तो बहुत अधिक कल्पना थी या वे पूरी तरह से भ्रमित थे; मेरा मना था की शायद ऐसे लोगों ने कभी भी अपनी आस्था पर सवाल नहीं उठाया होगा। मुझे विश्वास हो गया था कि अगर हर कोई मेरे जैसा होशियार होता, तो कोई भी ईश्वर में विश्वास नहीं करता।
स्व-रोज़गार के कुछ वर्षों के बाद, मैंने 26 वर्ष की आयु में भौतिक विज्ञान का अध्ययन करना शुरू किया। मुझे इस बात में अत्यधिक दिलचस्पी थी कि दुनिया कैसे काम करती है और मुझे भौतिकी में अपने उत्तर खोजने की उम्मीद थी। मुझ पर कौन दोष लगा सकता है? भौतिकी अपने अविश्वसनीय रूप से परिष्कृत गणित के साथ बहुत रहस्यमयी लग सकती है जिसे दुनिया में बहुत कम लोग समझते हैं। यह विचार प्राप्त करना आसान है कि यदि आप इन कोडित रूपों और प्रतीकों को तोड़ सकते हैं, तो ज्ञान के अकल्पनीय क्षितिज खुल जाएंगे – और सचमुच कुछ भी संभव होगा।
भौतिकी के सभी प्रकार के उप-विषयों का अध्ययन करने और यहाँ तक कि सबसे आधुनिक मौलिक भौतिकी के साथ पकड़ बनाने के बाद, मैं अपने मास्टर्स की थीसिस पर एक अमूर्त सैद्धांतिक विषय पर काम करने के लिए बैठ गया – जिस पर मुझे यकीन था कि इसका वास्तविक दुनिया से कभी कोई संबंध बिलकुल नहीं होगा। मैं अंत में भौतिकी की सीमाओं के बारे में बहुत जागरूक हो गया: भौतिकी जिस सर्वोच्च लक्ष्य तक पहुँच सकता है वह प्रकृति का एक पूर्ण गणितीय विवरण होगा। और यह पहले से ही बहुत आशावादी सोच है। सर्वोत्तम रूप से, भौतिकी यह बता सकती है कि कोई चीज़ कैसे काम करती है, लेकिन यह कभी नहीं बताती है कि जैसे यह काम करती है ठीक उसी तरह क्यों काम करती है और अलग तरीके से क्यों नहीं। लेकिन इस समय यह क्यों का सवाल मुझे परेशान कर रहा था।
ईश्वर की संभावना
मैं 2019 के शरद ऋतु में इस सवाल से घिर गया था कि क्या कोई ईश्वर है। पता नहीं किन कारणों से यहसवाल मुझे परेशान कर रहा था। यह एक ऐसा सवाल था जो मैंने खुद से बार-बार पूछा था, लेकिन इस बार इसने मुझे जकड लिया। यह सवाल बस एक उत्तर की मांग कर रहा था, और जब तक मुझे इसका उत्तर नहीं मिल जाता, मैं तब तक नहीं रुकने वाला नहीं था। कोई महत्वपूर्ण अनुभव नहीं था, भाग्य का कोई आघात नहीं था जो इसके जवाब तक मुझे पहुंचाता। यहां तक कि उस समय कोरोना भी कोई मुद्दा नहीं था। आधे साल तक मैं हर दिन “ईश्वर” के विषय पर जो कुछ भी पा सकता था, निगल लेता था। इस सवाल ने मुझे इतना आकर्षित किया कि इस दौरान मैंने लगभग कुछ नहीं किया। मैं जानना चाहता था कि क्या ईश्वर का अस्तित्व है और इसके बारे में विभिन्न धर्मों और विश्व के दर्शन शास्त्रों का क्या कहना है। ऐसा करने में मेरा दृष्टिकोण बहुत ही वैज्ञानिक था। मैंने सोचा कि एक बार जब मैंने सभी तर्क और सुराग एकत्र कर लिए, तो मैं अंतत: इस बात की संभावना निर्धारित करने में सक्षम हो जाऊँगा कि ईश्वर का अस्तित्व है या नहीं। यदि ईश्वर के अस्तित्व की संभावना 50 प्रतिशत से अधिक होती, तो मैं ईश्वर में विश्वास करता, अन्यथा नहीं। काफी सरल, है ना? लेकिन वास्तव में ऐसा सरल नहीं था!
शोध की इस गहन अवधि के दौरान, मैंने अविश्वसनीय मात्रा में नयी बातें सीखीं। सबसे पहले, मुझे एहसास हुआ कि मैं अपने लक्ष्य तक सिर्फ तर्क के सहारे नहीं पहुंच पाऊँगा। दूसरा, मैंने परमेश्वर के बिना वास्तविकता के परिणामों के बारे में अंत तक सोचा था। मैं अनिवार्य रूप से इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि ईश्वर के बिना दुनिया में, सब कुछ अंततः अर्थहीन होगा। बेशक, कोई अपने जीवन को भी अर्थ देने की कोशिश कर सकता है, लेकिन वह एक भ्रम, एक दंभ, एक झूठ के अलावा क्या होगा? विशुद्ध वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, हम जानते हैं कि ब्रह्मांड में किसी बिंदु पर सभी रोशनी बुझ जाएगी। यदि इससे परे कुछ भी नहीं है, तो मेरे छोटे और बड़े निर्णयों से, चाहे वे निर्णय वास्तव में कुछ भी हो, उनसे क्या फर्क पड़ता है?
परमेश्वर के बिना दुनिया की इस दुखद संभावना को देखते हुए, मैंने 2020 के वसंत में ईश्वर को दूसरा मौका देने का फैसला किया। कुछ समय के लिए परमेश्वर में विश्वास करने का दिखावा करने से, और परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोग जो कुछ करते हैं वे सभी चीज़ें करने की कोशिश करने से कोई नुकसान थोड़े हो सकता है? इसलिए मैंने प्रार्थना करने की कोशिश की, गिरजाघर की आराधनाओं और सेवाओं में भाग लिया, और बस यह देखना चाहता था कि इससे मेरा क्या होगा। निस्संदेह, परमेश्वर के अस्तित्व के प्रति मेरे बुनियादी खुलेपन ने मुझे अभी तक ईसाई नहीं बनाया है; आखिर दूसरे धर्म भी थे। लेकिन मेरे शोध ने मुझे जल्दी ही आश्वस्त कर दिया था कि येशु का पुनरुत्थान एक ऐतिहासिक तथ्य था। मेरे लिए, कलीसिया का अधिकार और उसके साथ-साथ पवित्र ग्रन्थ भी इसी पुनरुत्थान के ऐस्तिहासिक तथ्य से चलते हैं।
ईश्वर के अस्तित्व का प्रमाण
तो, “विश्वास” पर मेरे प्रयोग से क्या निकला? पवित्र आत्मा ने मेरे विवेक को उसके वर्षों के शीतनिद्रा से जगाया। उसने मुझे यह बहुत स्पष्ट कर दिया कि मुझे आमूलचूल तरीके से अपने जीवन को बदलने की जरूरत है। और पवित्र आत्मा ने बाहें फैलाकर मेरा स्वागत किया। मूल रूप से, बाइबिल में वर्णित उड़ाऊ पुत्र का दृष्टांत मेरी कहानी है (लूका 15:11-32)। मैंने अपनी पूरी शक्ति के साथ पहली बार पापस्वीकार का संस्कार ग्रहण किया। आज भी, प्रत्येक पाप स्वीकार के बाद, मुझे ऐसा लगता है जैसे मेरा पुनर्जन्म हुआ है। मैं इसे अपने पूरे शरीर में महसूस करता हूं: राहत, और ईश्वर का उमड़ता हुआ प्रेम जो आत्मा के सभी काले बादलों को धो देता है। केवल यह अनुभव ही मेरे लिए ईश्वर का प्रमाण है, क्योंकि यह स्पष्टीकरण के किसी भी वैज्ञानिक प्रयास से कहीं अधिक है।
इसके अलावा, पिछले दो वर्षों में, ईश्वर ने मुझे ढेर सारी शानदार मुलाकातों का तोहफा दिया है। शुरुआत में ही, जब मैंने गिरजाघर की आराधनाओं में भाग लेना शुरू किया, तो मैं एक ऐसे व्यक्ति से मिला, जो उस समय मेरी स्थिति में मेरे लिए मेरे सभी सवालों और समस्याओं के साथ एकदम सही व्यक्ति था। आज तक वह एक वफादार और अच्छे दोस्त हैं। तब से, लगभग हर महीने मेरे जीवन में महान नए लोग आए हैं, जिन्होंने येशु के रास्ते में मेरी बहुत मदद की है – और यह प्रक्रिया अभी भी चल रही है! इस तरह के “खुशनुमा संयोग” इतनी अधिक मात्रा में जमा हो गए हैं कि मैं अब संयोगों पर विश्वास नहीं कर पा रहा हूं।
आज, मैंने अपने जीवन को पूरी तरह से येशु पर केन्द्रित किया है। बेशक, मैं इसमें हर दिन असफल होता हूँ! लेकिन मैं भी हर बार उठ लेता हूं। ईश्वर का शुक्र है कि वह दयालु है! मैं उसे हर दिन थोड़ा बेहतर जान पाता हूं और मुझे पुराने क्रिश्चियन साइमन को पीछे छोड़ने की इजाजत मिली है। यह अक्सर बहुत दर्दनाक होता है, लेकिन इससे हमेशा चंगाई मिलती है और मैं मजबूत होता जाता हूं। परमप्रसाद संस्कार को नियमित रूप से ग्रहण करने से मेरी मजबूती में एक बड़ा योगदान होता है। येशु के बिना जीवन आज मेरे लिए अकल्पनीय है। मैं उसे अपनी दैनिक प्रार्थना, स्तुति, पवित्र वचन, दूसरों की सेवा और संस्कारों में खोजता हूं। जैसा प्रेम वह मुझसे करते हैं वैसा कभी किसी ने मुझसे प्रेम नहीं किया। और मेरा दिल उसी का है। हमेशा के लिए।
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माँ मरियम की भक्ति अपने आप में एक लक्ष्य नहीं है … यह एक पवित्र मार्ग है जो हमेशा मसीह की ओर जाता है
मेरी माँ और नानी माँ मरियम और पवित्र हृदय के प्रति बड़ी श्रद्धा रखती थीं। जब हम बच्चे थे, उन दिनों हम अक्सर माँ मरियम से उन बहुत सी चीज़ों के लिए प्रार्थना करते थे, जिनकी हमें आवश्यकता होती है। जब हम किसी खोई हुई गुड़िया या चोरी हुई बाइक को खोजने की कोशिश कर रहे थे, तब भी हम माता मरियम की ओर मुड़ते थे। मेरे पिता भवन निर्माण क्षेत्र में काम करते थे। जब काम दुर्लभ था, जो अक्सर हुआ करता था, मेरी माँ ने मरियम से प्रार्थना की और अनिवार्य रूप से, थोड़े समय बाद, कोई न कोई ठेकेदार मेरे पिता के लिए काम की पेशकश करने घर आते थे।
क्योंकि हम बच्चों को लगता था रोज़री बड़ी लम्बी प्रार्थना है, हम में से अधिकांश बच्चे जब भी ‘रोज़री’ शब्द सुनते थे, तो भाग कर छिप जाते थे। लेकिन हमारी माँ अंततः हमें ढूंढ लेती और हमें प्रार्थना करने के लिए साथ ले आती थी। दुर्भाग्य से, जैसे-जैसे हम बड़े होते गए, बचपन के समय की तुलना में माता मरियम हमारे लिए कम महत्वपूर्ण हो गई।
वापस मरियम की बाहों में
सन 2006 में, सेंट पैट्रिक चर्च का एक दल एक आध्यात्मिक मिशन कार्यक्रम देने के लिए हमारी पल्ली में आया। उनके मिशन कार्य में प्रत्येक दिन सुबह में पवित्र मिस्सा और शाम को प्रवचन और गवाही शामिल थी। सप्ताह के अंत में, मैंने पाया कि मेरा हृदय बदलने लगा था। माता मरियम से प्रार्थना करने की बचपन की यादों की एक लहर मुझ पर छा गई, और मुझे याद आया कि माँ मरियम ने हमारे जीवन में कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। मैं माँ मरियम के साथ अपने बचपन के रिश्ते को फिर से हासिल करना चाहती थी।
मिशन के अंतिम दिन, हमने एक अति सुंदर पवित्र मिस्सा में भाग लिया। बाद में, पल्ली के बच्चे जलती मोमबत्तियाँ लेकर माता मरियम के इर्द गिर्द इकट्ठे हो गए। हम वयस्क लोग उनके साथ जुड़ गए। जब हम मोमबत्तियाँ जला रहे थे और प्रार्थना कर रहे थे, तो बच्चों ने धन्य माँ के बारे में कई सवाल पूछे: वे जानना चाहते थे, “वह अब कहाँ हैं?” और “हम उससे कैसे बात कर सकते हैं?” उन्होंने आँखें बंद करके और हाथ जोड़कर, भावपूर्ण प्रार्थना की। उस समय मुझे अपने बचपन की भक्ति और धर्मपरायणता को फिर से प्राप्त करने की इच्छा महसूस हुई। मैंने माता मरियम से उसी तरह बात करना शुरू किया जैसे मैं बचपन में किया करती थी। हम वयस्क लोग कभी-कभी उसके सम्मुख निवेदन रखकर उस से प्रार्थना करने में संतुष्ट होते हैं, लेकिन उसके साथ बात करने या संवाद करने में नहीं। हम उससे उस तरह बात नहीं करते जैसे हम अपनी मां से करते हैं। पल्ली में उस आध्यात्मिक मिशन के दौरान, मैंने फिर से सीखा कि कैसे मैं माता मरियम के पास विश्राम पाऊँ और किस तरह मैं अपनी प्रार्थनाओं को मेरे मन के अन्दर से बाहर प्रवाहित करूँ।
एक दिन कार में अपनी छोटी बेटी सारा के साथ यात्रा करते हुए, मैंने कहा कि मुझे माता मरियम से मिलना अच्छा लगेगा। उसने जवाब दिया कि यह “बहुत अच्छा” होगा। फिर उसने कहा, “रुको माँ, हम माता मरियम को बराबर देखते हैं। हम उसे हर दिन देखते हैं, लेकिन कोई भी उसे देखने या उससे बात करने का समय नहीं निकालता है।“ मैं उसकी टिप्पणी से इतना हैरान थी कि मेरी गाड़ी लगभग सड़क से बाहर चली गयी। सारा ने जो कहा वह मुझे तार्किक और विवेकपूर्ण बात लगी। जब मैंने इस बात को मुझे समझाने के लिए कहा, तो उस समय वह अपनी गुड़िया के साथ खेल में लौट चुकी थी। मुझे यकीन था कि उसकी टिप्पणी पवित्र आत्मा से प्रेरित थी। “तूने इन बातों को ज्ञानियों और समझदारों से छिपाकर, निरे बच्चों पर प्रकट किया है।” (मत्ती 11:25)।
मरियम के हाथ पकड़े हुए
बेशक, हमारी धन्य माँ के प्रति मेरी भक्ति में रोज़री माला विनती शामिल है। हालाँकि यह एक महत्वपूर्ण और सुंदर प्रार्थना है, कई वर्षों तक मुझे इस प्रार्थना को करने के लिए संघर्ष करना पडा, क्योंकि मैं अभी तक अपने बचपन की शिकायत से दूर नहीं हुई थी कि यह प्रार्थना बड़ी लंबी थी। लेकिन मैंने रोज़री माला के महत्व को तब पहचाना जब मैंने येशु के जीवन पर ध्यान देना शुरू किया। इससे पहले, रोज़री माला एक प्रार्थना थी जिसे पूरा करने के लिए मैं जल्दी जल्दी प्रार्थना बोलती थी। लेकिन जैसा कि मैंने येशु के जीवन पर विचार करना शुरू किया, वैसे वैसे माता मरियम ने मुझे सिखाया कि रोज़री माला हमें उसके दिल में गहराई तक ले जाती है। क्योंकि वह ईश्वर की माँ है और हमारी माँ भी, हम उस पर भरोसा कर सकते हैं कि वह हमारी उंगली पकड़कर हमें ले जाए और हमें येशु मसीह के साथ उस गहरी यात्रा में ले जाए जिसे केवल वही पूरी तरह से समझती है।
जैसे-जैसे हम जीवन में आगे बढ़ते हैं, हम जिन कठिनाइयों का सामना करते हैं, वे हमें ईश्वर के प्रेम पर संदेह करने या माता मरियम से दूर करने का कारण बन सकती हैं। मेरी भाभी की कैंसर से मृत्यु हो गई जब वह केवल बयालीस वर्ष की थी। वह अपने पीछे अपने पति और तीन बच्चे छोड़ गई। ऐसे समय में “ऐसा क्यों हुआ?” यह सवाल उठाना स्वाभाविक है, लेकिन हमारी परीक्षाओं को मरियम से बेहतर कौन समझ सकता है? क्रूस के नीचे खड़ी होकर उसने अपने बेटे को तड़पते और मरते हुए देखा। हम जिस भी रास्ते पर चलते हैं, दुख के रास्ते में भी, मरियम हमारे लिए एक हमसफ़र हो सकती है।
मसीह के हृदय तक जाने का सबसे छोटा मार्ग
माता मरियम के माध्यम से ही परमेश्वर ने मुझे मेरे दिल की इच्छा तक पहुँचाया। लेकिन इसमें कुछ समय लगा। उसके माध्यम से मुझे यूखरिस्त का महत्व समझ में आया। कभी-कभी माँ मरियम के प्रति लोगों की भक्ति, मसीह के बारे में अधिक ज्ञान की ओर नहीं ले जाती है। लेकिन माँ मरियम की भक्ति उसके पुत्र के बारे में ही है और हमें येशु के साथ गहरे रिश्ता जोड़ने के बारे में है। माँ मरियम के माध्यम से मैंने येशु के सम्मुख अपना पूर्ण समर्पण किया है। यह मरियम के साथ उसके दिव्य पुत्र की ओर एक व्यक्तिगत यात्रा है। मरियम एक मार्गदर्शक हैं जो हमेशा हमें येशु के पवित्र हृदय तक ले जाती हैं।
मेडजुगोरे के छह छोटे बच्चों को माता मरियम दर्शन दे रही हैं यह बात सुनकर सन 2009 में मैं वहां गयी। मेडजुगोरे एक सरल लेकिन सुंदर जगह है जहाँ शांति को मूर्त रूप से अनुभव किया जाता है। मेडजुगोरे में येशु के पवित्र ह्रदय की एक प्रतिमा थी, जिसकी चारों ओर कई तीर्थयात्री प्रार्थना करने के लिए एकत्रित हुए थे। जब उस प्रतिमा के पास जाने की मेरी बारी आई, तो मैं उसके पास गयी, अपनी आँखें बंद कीं, और मूर्ति के कंधे पर हाथ रखकर प्रार्थना की। लेकिन जब मैंने अपनी आँखें खोलीं, तो मैंने पाया कि मेरा हाथ कंधे पर नहीं बल्कि येशु के हृदय पर टिका हुआ था! मेरी सरल प्रार्थना थी, “येशु, मैं जितना तेरी माँ को जानती हूँ, उतना तुझे नहीं जानती।” मेरा मानना है कि माँ मरियम मुझसे कह रही थी, “ठीक है, अब समय आ गया है। यह समय है कि तुम मेरे बेटे के दिल में जाओ।“ मैं इस बात से अनभिज्ञ थी कि अगले दिन येशु के पवित्र हृदय का पर्व था!
एक नयी सेवकाई की शुरुआत
अगस्त 2009 में, एक अतिथि पुरोहित ने मुझे अपनी पल्ली में ईश्वरीय करुणा की भक्ति शुरू करने के लिए प्रेरित किया। मैंने रोज़री माला से संबंधित कुछ करने की उम्मीद की थी, लेकिन मैंने देखा कि माँ मरियम मुझे सीधे अपने पुत्र येशु के पास ला रही थी। मैंने पूरे आयरलैंड में ईश्वरीय करुणा पर प्रवचनों और यूखरिस्तीय आराधना के कार्यक्रमों का भी आयोजन किया। आखिरकार, आयरलैंड में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय यूखरिस्टिक कांग्रेस की योजना बनाने में मदद करने के लिए मुझे आमंत्रित किया गया। वह सब कुछ, जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी!
यूखरिस्तीय कांग्रेस के अंत में मेरे हृदय में मेरी सेवकाई का बीज बोया गया था। क्योंकि मैंने यूखरिस्तीय कांग्रेस से इतना आनंद और अनुग्रह प्रवाहित होते पाया था, मैंने अपने आप से पूछा, “अनुग्रह की वर्षा के एक सप्ताह के बाद क्या इसे समाप्त होने देना है? यह जारी क्यों नहीं रह सकता?” ईश्वर की कृपा से, अनुग्रह की वह वर्षा समाप्त नहीं हुई। पिछले दस वर्षों से, मैं ‘पवित्र संस्कार के बच्चे’ (चिल्ड्रन ऑफ़ द यूखरिस्ट) का समन्वयन कर रही हूँ, जो आयरलैंड में यूखरिस्तीय आराधना की सेवकाई के तत्वावधान में स्थापित किया गया है। इस सेवकाई का उद्देश्य हमारे बच्चों के विश्वास को बढ़ाना और परम प्रसाद की आराधना के माध्यम से उन्हें प्रभु के करीब लाना है। बच्चों को यूखारिस्तीय आराधना के बारे में अधिक जानकारी देने और बच्चों के अनुकूल तरीके से इसे नियमित रूप से अनुभव करने की आवश्यकता को पहचानते हुए मैं ने इस सेवकाई को शुभारम्भ किया। हमारे स्थानीय प्राथमिक विद्यालय में इसका संचालन करने के बाद, यह कार्यक्रम शीघ्र ही पूरे आयरलैंड के कई विद्यालयों में फैल गया।
एक किशोरी के रूप में, मैंने नर्सिंग या किसी अन्य पेशे को अपनाने की उम्मीद की थी, लेकिन जब मैंने 22 साल की उम्र में शादी कर ली तो वे सब सपने फीके पड़ गए। बच्चों के बीच यूखरिस्तीय सेवकाई शुरू करने के बाद, एक पुरोहित ने मुझसे कहा, “हो सकता है कि अगर तुम एक नर्स बन गयी होती, तब तुम्हें आत्माओं की सेवा करने का अवसर नहीं मिलता। अब तुम आराधना करने केलिए बच्चों की नर्सिंग कर रही हो, उनकी मदद कर रही हो और उनका सही मार्गदर्शन कर रही हो।”
माँ मरियम ने न केवल मुझे अपने पुत्र येशु के करीब पहुंचाया, बल्कि उसने मुझे बच्चों को भी उनके करीब आने में मदद करने के लिए प्रेरित किया। जब हम माता मरियम को उसकी तरह ‘हाँ’ कहते हैं, अपनी गहराई से, ईमानदारी से ‘हां’ कहते हैं, तो एक यात्रा शुरू होती है। वह हमारे ‘हाँ’ के साथ साथ चलती है, हमें येशु के साथ एक गहरे मिलन में लाती है और हमारे जीवन के लिए येशु की जो भी योजनाएँ हैं उन्हें पूरा करती है।
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मादक पदार्थों की लत के कारण, नव जवान जिम वाह्लबर्ग ने महसूस किया कि दुनिया में वह तिरस्कृत और उपेक्षित है… एक दिन परमेश्वर ने उससे एक विशेष व्यक्ति के माध्यम से बात की। उनकी मुक्ति की प्रेरक कहानी पढ़ें
मेरा बचपन कैथलिक परिवार में बीता, मेरा कैथलिक परम्परा अधिक मज़बूत थी, लेकिन कैथलिक विश्वास में मैं कमजोर था। मैंने बपतिस्मा लिया और अपना पहला पवित्र संस्कार भी ग्रहण किया। हमारे मातापिता ने हम बच्चों को गिरजाघर भेजा, लेकिन हमारा पूरा परिवार एक साथ रविवारीय मिस्सा पूजा में नहीं जाता था। मेरे परिवार में हम लोग नौ बच्चे थे, इस लिए जो भी बच्चा गिरजाघर जाने लायक बड़ा हो गया था, वह गिरजाघर चला जाता। मुझे अपनापन न होने का एहसास याद है; मैं गिरजाघर जाता, वहां बांटी जा रही पत्रिका ले लेता, और फिर कुछ और करने के लिए निकल जाता था। कुछ समय बाद मैंने जाना बिल्कुल बंद कर दिया। मेरे अधिकांश भाई बहनों में भी ऐसा ही किया। किसी ने मुझे यह नहीं बताया था कि येशु ने मेरे लिए अपने प्राण अर्पित किये या परमेश्वर मुझसे प्रेम करता है या कुँवारी मरियम मेरे लिए मध्यस्थ प्रार्थना करेगी। मुझे लगा कि मैं योग्य नहीं था, गिरजाघर में घुटने टेककर प्रार्थना करने वाले लोग मुझसे बेहतर थे और वे किसी तरह मेरा निरीक्षण और आलोचना कर रहे थे। मैं दूसरों के ध्यान और स्वीकृति के लिए भूखा था।
स्वीकृति की भूख
जब मैं आठ साल का था तब मैंने पड़ोस के लड़कों को बीयर पीते देखा था। मैं किसी न किसी तरह उनके छोटे से समूह में शामिल हो गया और मुझे बीयर पिलाने के लिए मैंने उन्हें मना लिया। उस दिन मैं एकाएक शराबी नहीं बना था, लेकिन मैं ने उस दिन स्वीकृति और आकर्षण का पहला स्वाद बड़े लड़कों से प्राप्त किया। दूसरों द्वारा स्वीकृत किया जाना मुझे अच्छा लगा और जो लोग शराब पी रहे थे, ड्रग्स या धूम्रपान कर रहे थे, मैं ने उनके साथ घूमना जारी रखा, क्योंकि मुझे वहां स्वीकृति मिल रही थी। मैंने अपनी शेष किशोरावस्था उस आकर्षण का पीछा करते हुए बिताया।
बोस्टन पब्लिक स्कूल प्रणाली के अंतर्गत मुझे जबरन किशोर सुधार गृह में डाला गया और इस तरह सरकारी एकीकरण कार्यक्रम का मैं हिस्सा बन गया। हर साल मैं किसी बस में बिठाया जाता था और हर बार इलाके के किसी नए स्कूल में भेजा जाता था। मैं शुरुआत के सात वर्षों की पढ़ाई के दौरान सात अलग-अलग स्कूलों में गया, जिसका मतलब था कि हर साल मैंने “नए छात्र” के रूप में शुरुआत की। मेरे जीवन के कथानक से परमेश्वर पूरी तरह बाहर था। परमेश्वर के साथ मेरा एकमात्र रिश्ता डर का था। मुझे याद है कि मैंने बार-बार यह कहते हुए सुना था कि परमेश्वर मुझे पकड़ने जा रहा है, वह मेरा निरीक्षण कर रहा है, और वह मुझे मेरे सभी बुरे कामों के लिए दंडित करने जा रहा है।
एक खोया हुआ छोटा बालक
वह दिन मेरी सातवीं कक्षा का अंतिम दिन था; उस शुक्रवार की रात को मैं बाहर जाने के लिए तैयार हो रहा था जब मेरे पिताजी ने मेरी ओर मुड़कर कहा, “भूलना मत, बेहतर होगा कि अन्धेरा होने के पहले ही तुम घर में आ जाओ, वरना घर आने की जहमत नहीं उठाना।’’ मैं नियमों का पालन करूँ, यह सुनिश्चित करने के लिए उनकी ओर से यह धमकी थी। टूटे बिखरे परिवारों से आने वाले अन्य लड़कों की तरह मैं भी 12 साल का लड़का था और हम लोगों ने पूरा दिन घूमने फिरने में बिताया। उस दिन हम सबों ने बियर पिया, सिगरेट पिया और ड्रग्स लिया। दिन के अंत में जब मैं ने देखा कि रात हो चुकी है और स्ट्रीट लाइटें जल रही हैं, मुझे पता था कि अब मैं घर में प्रवेश नहीं कर पाऊंगा। चूंकि देर हो चुकी थी, इसलिए घर जाना कोई विकल्प नहीं था, इसलिए मैंने वह पूरी गर्मी की अवधि घर से एक या दो मील दूर, सड़क पर, अपने दोस्तों के साथ घूमने में बिताई। हमने हर दिन ड्रग्स लिया और शराब पी। मैं बस एक खोया हुआ छोटा लड़का था। उस गर्मी के दौरान, मैं कई बार गिरफ्तार किया गया और इस तरह मैं सरकार का अतिथि बन गया। घर से निकाले जाने के कुछ ही समय बाद यह सब हो गया। मुझे कभी दुसरे पालक पिता की देखभाल में, कभी समूह वाले घरों में और कभी किशोर सुधार गृहों में रखा गया था। मैं बेघर था और पूरी तरह से खोया हुआ और अकेलापन का शिकार था। खालीपन को भरने वाली एकमात्र चीज शराब और ड्रग्स थी। मैं उनका सेवन करता और फिर या तो बेहोश हो जाता या सो जाता। जब मैं जागता, तो मैं डर से भर जाता, और मुझे और अधिक ड्रग्स और शराब की आवश्यकता होती। 12 से 17 साल की उम्र तक, मैं या तो बेघर था, या किसी और के घर में रह रहा था, या किशोर सुधार गृह में हिरासत में, यानी बच्चों के जेल में था।
बेड़ियों में जकड़ा और टूटा हुआ
17 साल की उम्र में मुझे किसी को घायल करने के आरोप में फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। अंत में मुझे 3 से 5 साल की सजा पर सरकारी जेल भेज दिया गया। मैंने फिर खुद को उसी पहली वाली आंतरिक लड़ाई से लड़ते हुए पाया, जब मैं छोटा था, दूसरों का ध्यान और स्वीकृति के लिए संघर्ष कर रहा था, और कोई मोहभ्रम या मरीचिका पैदा करने की कोशिश कर रहा था। मैंने अपनी सजा के पांच साल पूरे किए। जेल की अवधि के अंत में, उन अधिकारियों ने कहा: “अब तुम घर जा सकते हो?” लेकिन समस्या यह थी कि मेरे पास जाने के लिए कोई घर ही नहीं था। एक बड़े भाई ने बड़ी दया के साथ कहा, “जब तक तुम अपने पैरों पर खड़े नहीं हो जाते, तब तक तुम मेरे साथ रह सकते हो।” लेकिन ऐसा कभी होनेवाला नहीं था। मेरे भाई मुझे जेल से ले गए ताकि मैं अपनी माँ से भेंट कर सकूं। लेकिन रास्ते में हम अपने पड़ोस की पुरानी मधुशाला में पीने के लिए रुके। अपनी माँ को देखने से पहले शराब पीना मेरे लिए ज़रूरी था। मैं 21 साल से अधिक का हो चुका था और पहली बार कानूनी हिसाब से शराब पीने के अधिकार का उपयोग करते हुए मैं ने खूब पिया। जब मैं अपनी माँ की रसोई में बैठा, तो उसने मुझे नहीं पहचाना; उसे लगा कि मैं कोई अजनबी हूं।
मैं लगभग छह महीने तक जेल से बाहर था, लेकिन किसी घर पर धावा बोलने के जुर्म में मैं फिर से गिरफ्तार हो गया। मैं जिस घर में धावा बोला था, वह बोस्टन के एक पुलिस अधिकारी का घर था। अदालत में, उस पुलिस अधिकारी ने मेरी तरफ से पैरवी की। उन्होंने कहा, “इस बच्चे को देखिए, इसकी हालत देखिए। आप उसे मदद क्यों नहीं दिलाते? मुझे नहीं लगता कि जेल उसके लिए सही जगह है।“ उन्होंने मुझे सहानुभूति दिखाई, क्योंकि वे देख पा रहे थे कि मैं पूरी तरह नशे का आदी था।
अचानक मैं वापस जेल में पहुँच गया और छह साल की सजा काटने लगा। मैंने यह भ्रम पैदा करने का नाटक किया कि मुझमे बदलाव आ रहा है, ताकि पुलिस मुझे पुनर्वास के लिए जल्दी छोड़ दे। लेकिन मुझे पुनर्वास की नहीं, परमेश्वर की जरूरत थी।
आज़ादी की ओर मार्ग
जीवन को बदलने के मेरे इस अभिनय करने के कुछ महीनों के बाद, जेल के आत्मिक सलाहकार फादर जेम्स ने मुझ पर ध्यान दिया और मुझे अपने प्रार्थनालय में एक सुरक्षा कर्मचारी के रूप में नौकरी देने की पेशकश की। मेरा पहला विचार था, “मैं इस आदमी को उल्लू बनाने जा रहा हूँ”। वे सिगरेट पीते थे, कॉफी की चुस्की लेते थे, और उनके पास एक फोन भी था – उनके पास वे सभी चीजें थीं, जिनका उपयोग करने का सौभाग्य कैदियों को नहीं मिलता था। तो, मैंने अपने उन गुप्त उद्देश्यों की पूर्ती के लिए वह नौकरी स्वीकार कर ली।
लेकिन मुझे नहीं पता था कि उनके पास भी एक योजना थी। जब उन्होंने मुझसे संपर्क किया, जितना मैं उन्हें परेशान करने की योजना बना रहा था, उतना ही मुझे परेशान करना उनकी योजना थी। मैं उन्हें उल्लू बनाना चाह रहा था, तो वे ईश्वर की महिमा के लिए मुझे उल्लू बनाना चाह रहे थे। वे मुझे मिस्सा बलिदान में वापस लाना चाह रहे थे, क्रूस के पाँव तले वापस लाना चाह रहे थे।
प्रार्थनालय में काम करना शुरू करने के तुरंत बाद, मैंने फादर जेम्स से कुछ मदद मांगी। जब उन्होंने मेरे अनुरोध को मान लिया, तो मुझे ऐसा लगा कि उल्लू बनाने का मेरा काम कामयाब हो रहा है। एक दिन, हालांकि, उन्होंने मेरे पास आकर कहा कि वे चाहते हैं कि मैं शनिवार की शाम की मिस्सा पूजा के बाद प्रार्थनालय आकर उसकी सफाई करूं ताकि रविवारीय मिस्सा के लिए प्रार्थनालय तैयार हो जाए। जब मैं ने उनसे कहा कि मैं शाम के मिस्सा के बाद पहुँच जाऊंगा तो उन्होंने बलपूर्वक आग्रह किया कि मैं मिस्सा के पहले पहुंच जाऊं और पूरे मिस्सा बलिदान के दौरान उनके साथ रहूँ। वे पहले से ही मुझे विश्वास की दिशा में आगे ले जाना चाह रहे थे।
एक दिव्य नियुक्ति
मिस्सा पूजा के दौरान, मुझे अजीब और असहज महसूस हुआ। मुझे नहीं पता था कि कब प्रार्थना बोलना है या कब बैठना या खड़ा होना है, इसलिए मैं बस देख रहा था कि बाकी लोग क्या कर रहे हैं। इसके तुरंत बाद, फादर जेम्स ने आधिकारिक तौर पर मुझे उस प्रार्थनालय के सुरक्षा प्रभारी के पद पर नियुक्त किया और मुझे बताया कि जेल में हमारे एक विशेष अतिथि के रूप में “मदर टेरेसा” आ रही हैं। मैंने कहा, “ओह, यह बहुत अच्छी बात है! लेकिन ये मदर टेरेसा कौन हैं?” पीछे मुड़कर देखता हूं, तो शायद मैं उन दिनों यह भी नहीं जानता था कि उस समय संयुक्त राज्य अमेरिका का राष्ट्रपति कौन था; मेरा जीवन पूरी तरह से शराब के सेवन के इर्द-गिर्द घूमता था, और अपने व्यसन के बुलबुले के बाहर के लोगों और घटनाओं के बारे में शायद ही मैं कुछ जानता था।
जल्द ही, मदर टेरेसा हमारे जेल में आ गईं। मुझे याद है कि मैं उन्हें दूर से देख रहा था और सोच रहा था, “यह कौन व्यक्ति है कि सभी गणमान्य व्यक्ति, वार्डन और कैदी उनकी चारों ओर घूम रहे हैं, उनके हर शब्द पर ध्यान दे रहे हैं?” पास जाकर देखा तो उनका स्वेटर और जूते हज़ार साल पुराने लग रहे थे। लेकिन मैंने उनकी आँखों में शांति और उनकी जेब में रखे पैसों को भी देखा। लोग उन्हें खूब पैसा दान दे रहे थे। लोगों को पता था कि वे इसे गरीबों को देंगी।
चूंकि मैंने जेल के प्रार्थनालय में काम किया था, इसलिए मुझे मदर टेरेसा के साथ मिस्सा के पूर्व प्रवेश जुलूस का हिस्सा बनने का सौभाग्य मिला। कार्डिनल, अन्य गणमान्य लोग और मदर की संस्था की बहनों से घिरा हुआ एक कैदी के रूप में मैं भी खड़ा था। कार्डिनल ने मदर टेरेसा को अपने साथ वेदी पर बैठने के लिए आमंत्रित किया, लेकिन उन्होंने विनम्रतापूर्वक मना कर दिया, और बड़ी श्रद्धा के साथ वेदी के सामने झुकने के बाद फर्श पर घुटने टेक दिए। उनके अगल बगल में जो कोई बैठे थे वे जेल के सबसे खतरनाक अपराधी थे।
परमेश्वर की आँखों से आँखें मिलाते हुए
जैसे ही मैं फर्श पर बैठा, मैंने मदर टेरसा को देखा, और मेरी आँखें उनकी आँखों को ही देखती रहीं और मुझे लगा जैसे मैं ईश्वर को देख रहा हूं। मदर टेरेसा तब वेदी की सीढ़ियों पर चढ़ीं और उन्होंने ऐसे शब्द कहे जो मुझे गहराई तक छू गए, ऐसे शब्द जो मैंने पहले कभी नहीं सुने थे। उन्होंने कहा कि येशु मेरे पापों के लिए मरा, कि ईश्वर की नज़र में मेरे किये हुए अपराधों से बढ़कर मैं मूल्यवान हूँ, कि मैं परमेश्वर की सन्तान हूँ, और मैं परमेश्वर के लिए महत्वपूर्ण हूँ। उस क्षण, उस अपार शांति में, मुझे ऐसा लगा जैसे कमरे में कोई और नहीं है, जैसे वह मुझसे सीधे बात कर रही हो। उनके एक एक शब्द मेरी आत्मा के गहरे हिस्से तक पहुँचा।
मैं अगले दिन प्रार्थनालय में वापस दौड़ते हुए गया और मैं ने फादर से कहा, “मुझे उस येशु के बारे में, परमेश्वर और कैथलिक विश्वास के बारे में और अधिक जानने की ज़रूरत है जिसके बारे में मदर टेरेसा बात कर रही थी।” फादर जेम्स खुश थे! वे मुझे क्रूस के ठीक नीचे ले गए जहाँ वे मुझे तब से चाहते थे जब से उन्होंने मुझसे सुरक्षा कर्मी की नौकरी का प्रस्ताव रखा था। मैं येशु के बारे में और जानने के लिए कुछ भी करने को तैयार था, इसलिए फादर जेम्स ने मुझे दृढीकरण संस्कार के लिए तैयार करना शुरू कर दिया।
हम हर हफ्ते मिलते थे और विश्वास के बारे में जानने के लिए धर्मशिक्षा का अध्ययन करते थे। हालाँकि मुझे दो बार अन्य जेलों में स्थानांतरित किया गया था, मैं उन जेलों में भी पुरोहितों के साथ संपर्क जोड़ा और अपने विश्वास में आगे बढ़ने में सक्षम रहा।
एक नई शुरुआत
एक साल बाद, मेरे लिए अपने विश्वास के प्रति अपनी औपचारिक प्रतिबद्धता बनाने का समय आ गया था। मेरा दृढीकरण संस्कार मेरे जीवन का एक विचारशील और इरादतन क्षण था। एक वयस्क के रूप में, मुझे पता था कि यह एक बड़ा कदम था जो मुझे येशु मसीह के साथ गहरे रिश्ते की राह पर ले जाएगा।
जब समय आया, तो मैंने अपनी माँ को यह बताने के लिए फोन किया कि मेरा दृढीकरण संस्कार होने जा रहा है, और मुझे अच्छा लगेगा कि माँ वहाँ रहे। उसने वादा किया था कि वह जेल में मुझसे कभी मिलने नहीं आएगी, इसलिए वह चौकन्ना थी। आखिरकार मैंने उसके साथ जो बुरा व्यवहार किया था, उसके कारण एक माँ के रूप में उनके दिल में बड़ी चोट लगी थी। लेकिन दो दिन बाद जब मैंने दोबारा फोन किया तो वह आने को तैयार हो गईं। दृढीकरण संस्कार का दिवस अद्भुत और यादगार दिन था। यह न केवल मेरे लिए और मसीह के साथ मेरे चलने के लिए महत्वपूर्ण था, बल्कि मेरी मां के साथ मेरे रिश्ते के लिए भी महत्वपूर्ण था।
अगले साल, मेरे लिए पैरोल बोर्ड के सामने खड़े होने का समय आ गया था। उन अधिकारियों ने कहा कि उनके पास मेरी मां का एक पत्र है जो उसने मेरी ओर से लिखा था। मुझे पता था कि मेरी मां मुझे जेल से छुड़ाने के लिए अधिकारियों से कभी झूठ नहीं बोलेगी। उसके पत्र में यह लिखा था, “आपके सम्मुख ईश्वर का आदमी खड़ा है। कोई चिन्ता की बात नहीं, अब आप उसे बाहर जाने दें। वह वापस जेल नहीं आएगा।“ वे शब्द मेरे लिए सब कुछ थे। जब तक मेरी मां का निधन हुआ, उन्हें डिमेंशिया की बीमारी हो गयी थी। कुछ वर्षों से उसने कहानी सुनाने की अपनी क्षमता खो दी थी और उसकी दुनिया छोटी हो गई थी। लेकिन उन पलों में भी जब वह मनोभ्रंश की चपेट में थी, वह मेरे दृढीकरण संस्कार को याद करने में सक्षम थी, क्योंकि वह जानती थी कि वाही मेरे जीवन का महत्वपूर्ण दिन है जिस दिन मेरा उद्धार हुआ था।
येशु मसीह मेरा उद्धारकर्ता है, और मैं अपने जीवन में उसकी उपस्थिति को महसूस करता हूँ। जबकि इसके लिए काम और प्रयास की आवश्यकता होती है, येशु के साथ मेरा रिश्ता मेरे जीवन में सबसे महत्वपूर्ण है। वह हमेशा मुझे प्यार करेगा और मेरा समर्थन करेगा, लेकिन जब तक मैं पूरी तरह से रिश्ते में शामिल नहीं हो जाता, तब तक मुझे वह आराम और प्यार नहीं मिलेगा जिसे वह मेरे साथ साझा करना चाहता है।
ईश्वर आपको अनुग्रह प्रदान करें। अपनी यात्रा को आपके साथ साझा करना मेरे लिए गौरव की बात है। येशु मसीह हमारा मुक्तिदाता है।
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मैं काम करने और अपनी कॉलेज की शिक्षा के लिए पैसे कमाने के उद्देश्य से घर लौटने वाली थी, लेकिन ईश्वर ने मेरे जीवन में एक बड़ा आश्चर्य खडा कर दिया
जब मैं कई साल पहले कॉलेज में पढ़ाई कर रही थी, मैं मेक्सिको की सीमा पर, उन दिनों टेक्सास में एक मिशन यात्रा पर गयी ताकि मैं माँ मरियम युवा केंद्र और लॉर्ड्स रेंच समुदाय के साथ स्वयंसेविका का कार्य कर् सकूं। इस लोकधर्मी सेवा दल की स्थापना एक प्रसिद्ध जेसुइट पादरी, फादर रिक थॉमस ने की थी। इस दल ने मैक्सिको के जुआरेज, और एल पासो की मलिन बस्तियों के गरीबों तक अपनी पहुंच बनाई थी। मैंने ओहियो के स्टुबेनविले में फ्रांसिस्कन विश्वविद्यालय में अपनी पढाई का पहला वर्ष पूरा किया था, और मिशन के इस तीन सप्ताह के अनुभव के बाद, मुझे गर्मियों में काम करने और पैसे बचाने के लिए घर लौटना था, फिर अपनी कॉलेज की शिक्षा जारी रखने के लिए ओहियो वापस जाना था। कम से कम, वह मेरी योजना थी। लेकिन ईश्वर के पास मेरे लिए एक बड़ा आश्चर्य था।
एक क्रांतिकारी प्रस्थान
लॉर्ड्स रैंच में अपने पहले सप्ताह के दौरान, मुझे असहजता का आभास होने लगा कि प्रभु मुझे इसी मिशन कार्य में ही ठहरने के लिए बुला रहा है। मैं भयभीत थी! मैं कभी भी रेगिस्तान में नहीं गयी थी और न ही मैंने शुष्क, उमस भरे गर्म मौसम का अनुभव किया था। मेरा जन्म और पालन-पोषण प्रशांत महासागर के बीच में स्थित हवाई द्वीप के उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में हुआ था, जो नारियल के पेड़ों, फूलों की बहुतायत और वर्षा वनों से घिरा हुआ है जो अदन की वाटिका जैसा था। दूसरी ओर, रेंच मेस्काई झाड़ियों, चुबना घास और एक सूखा, झुलसा, अर्ध-शुष्क परिदृश्य से घिरा हुआ है।
“ईश्वर, मैं यह काम नहीं कर पाऊंगी, तेरे दिमाग में गलत व्यक्ति है”, मैं अपनी प्रार्थना में रोयी। “मैं यहां कभी नहीं रह सकती, कठिन शारीरिक श्रम, बिना एयर कंडीशनिंग, और बहुत कम आराम के इस जीवन को जीना मेरे लिए असंभव है। किसी और को चुनें, मुझे नहीं!” लेकिन यह प्रबल भावना मुझमें बढ़ती रही कि ईश्वर मुझे मेरे सावधानीपूर्वक नियोजित जीवन से भिन्न एक क्रांतिकारी प्रस्थान के लिए बुला रहा है।
एक दिन लॉर्ड्स रेंच की प्रार्थनालय में, मुझे रूत की किताब से यह पढ़ने को मिला: “मैंने सुना है कि तुमने क्या किया है … तुम अपने माता-पिता और अपनी जन्मभूमि को छोड़ कर, ऐसे लोगों के यहाँ चली आयी हो, जिन्हें तुम पहले नहीं जानती थी। तुमने जो किया, प्रभु तुम्हें उसका प्रतिफल दें! प्रभु इस्राएल के ईश्वर, जिसकी छत्रछाया में तुम आ गयी हो, तुम्हें पूरा पूरा प्रतिफल दे।” रूत 2:11-12
मैंने बाइबिल को बंद कर दिया। यह मुझे कहाँ ले जा रहा है यही सोचकर मुझे बड़ी मुझे चिंता होने लगी!
गिदआन की तरह ऊन का खाल फेंका
प्रभु के साथ दो सप्ताह मल्लयुद्ध करने के बाद, मैंने प्रार्थना करना बंद कर दिया। प्रभु जो कह रहा था वह मुझे पसंद नहीं आया। मुझे यकीन था कि उसे गलत लड़की मिल गई है। मैं केवल 18 साल की थी! बहुत कम उम्र की, बहुत ही अनुभवहीन, बहुत अधिक डरपोक, और जिसके अन्दर पर्याप्त मजबूती या सख्ती भी नहीं। मेरे बहाने मुझे अच्छे लगे।
इसलिए जिस तरह न्यायकर्ताओं के ग्रन्थ में (6:36….) गिदआन ने किया था, उसी तरह मैंने भी एक ऊनी खाल नीचे फेंक दी। “ईश्वर, अगर तू वास्तव में इस बारे में गंभीर हैं, तो सिस्टर के माध्यम से मुझसे बात कर।” सिस्टर मेरी वर्जीनिया क्लार्क, डॉटर्स ऑफ़ चैरिटी धर्म समाज की बहन थीं, जो फादर रिक थॉमस के साथ रेंच में धर्मसेवा का सह-नेतृत्व कर रही थी। उन्हें भविष्यवाणी का एक प्रामाणिक वरदान प्राप्त था और वह प्रार्थना सभाओं में पवित्र आत्मा से प्रेरित वचनों की घोषणा करती थी। उस सप्ताह प्रार्थना सभा में, उन्होंने खड़े होकर कहा, “मेरे पास स्टुबेनविल की युवतियों के लिए एक भविष्यवाणी है।” मेरा ध्यान उस पर गया। मुझे कुछ भी याद नहीं है जो उन्होंने कहा था, सिवाए इन शब्दों के, “पुराने नियम की स्त्रियों के नमूने का अनुसरण करो।” वाह! मुझे प्रार्थना के दौरान रूत ग्रन्थ के पाठ में प्राप्त हुए वचन के बारे में तुरंत विचार आया।
“ठीक है, प्रभु। यह बहुत ज़्यादा वास्तविक बन रहा है।” इसलिए एक और ऊनी खाल मैंने निकाल लिया: “यदि तू वास्तव में गंभीर हैं, तो ऐसा कर कि सिस्टर मेरी वर्जीनिया मुझसे सीधे कुछ कहें।” वहाँ, मैंने सोचा कि बस यही सब कुछ समाप्त हो जाना चाहिए।
सिस्टर मेरी लॉर्ड्स रांच से आने वाले सभी आगंतुकों के साथ व्यक्तिगत रूप से बात करती थी, इसलिए यह असामान्य नहीं था कि उन्होंने उस सप्ताह के अंत में उनसे मुलाकात करने के लिए मुझसे कहा। हमारे बीच अच्छी बातचीत हुई, जिसमें उन्होंने मुझसे मेरे परिवार, मेरी पृष्ठभूमि, मुझे रैंच तक जाने का कारण आदि के बारे में पूछा। उन्होंने हमारी बातचीत के अंत में एक प्रार्थना की, और मैं जाने के लिए उठी। जब मेरे मन में बस यही सोच थी “वाह, मैं गोली से बच गयी,” तब अचानक उन्होंने पूछा, “क्या तुमने कभी यहाँ रहने के बारे में सोचा है?”
मेरा दिल बैठ गया। मैं जवाब नहीं दे सकी, बस हां में सिर हिला दिया। उन्होंने मुझसे सिर्फ इतना कहा, “मैं तुम्हारे लिए प्रार्थना करूंगी।” और मैं उदास होकर दरवाजे से बाहर चली गयी।
मैं कुछ ताजी हवा पाने के लिए बाहर चली गयी। मैं लॉर्ड्स रांच में निर्मित छोटी, और कृत्रिम झील की ओर चल पड़ी। मैं समुद्र से घिरे एक द्वीप पर पली बढ़ी थी, इसलिए पानी के पास होना मेरे लिए हमेशा सुकून देने वाला अनुभव था जिस से मैं परिचित थी। वह छोटा तालाब जिसमें मांगुर की मछलियाँ पाली जा रही थीं वह उस रेगिस्तान में एक मरुद्वीप जैसा था जहाँ मैं बैठ सकती थी और अपनी परेशान आत्मा को शांत कर सकती थी।
मैं रोई, मैंने याचना की, मैंने प्रभु से बहस की, उसे समझाने की कोशिश की कि वास्तव में कोई न कोई गड़बड़ी थी। “प्रभु, मुझे पक्का मालूम है कि तुझे गलत व्यक्ति मिल गयी है। मेरे पास ऐसा कठिन जीवन जीने की ताकत नहीं है।
सिर्फ मौन। आकाश मानो ठहर गया हो। कोई हलचल या चहल पहल नहीं।
जब पपड़ी गिर गयी
वहाँ शांत पानी के पास, ऊपर की ओर तैरते हुए सफेद बादलों की छाया में मैं अकेली बैठकर शांत हो गयी। मैंने अपने जीवन पर विचार करना शुरू किया। जब मैं छोटी बच्ची थी तब से मैंने हमेशा अपने आप को परमेश्वर के करीब महसूस किया था। वह मेरे सबसे करीबी दोस्त, मेरे विश्वासपात्र, मेरी चट्टान था। मुझे पता था कि वह मुझसे प्यार करता है। मुझे पता था कि उसके दिल में मेरे लिए कल्याण है, मेरी भलाई है, सबसे अच्छा हित है और वह मुझे किसी भी तरह से नुकसान नहीं पहुंचाएगा। मैं यह भी जानती थी कि उसने मुझसे जो कुछ कहा, चाहे वह कितना भी अप्रिय क्यों न हो, मैं वह सब करना चाहती थी।
इसलिए मैंने अनिच्छा से हार मान ली। “ठीक है, ईश्वर। तू जीता। मैं यहीं रहूंगी।”
उस वक्त मैंने अपने दिल में आवाज़ सुनी, “मुझे तुम्हारा इस्तीफा नहीं चाहिए। मुझे एक हंसमुख, हर्षित आनंदपूर्ण ‘हाँ’ चाहिए।
“क्या! अब प्रभु तू इसे फिर और आगे खींच रहा है! मैंने अभी हाँ कह दिया, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है क्या?”
अधिक सन्नाटा। अधिक आंतरिक संघर्ष।
फिर मैंने यहां रहने की इच्छा के लिए प्रार्थना की – जिसे मैं इतने समय तक मांगने से बचती रही। “ईश्वर, अगर यह वास्तव में मेरे लिए तेरी योजना है, तो कृपया मेरे अन्दर इसकी इच्छा पैदा कर दे।” तुरंत, मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे पैरों से जड़ें बनकर बढ़ रही हैं, मुझे यहां मजबूती से खड़ा कर रही है, और मुझे पता था कि मेरा असली घर यही है।
यही मेरे लिए असली घर था। यह वह जगह थी जहां मुझे होना चाहिए था। मेरी मानवीय इंद्रियों के लिए अवांछित, अनचाही, अनाकर्षक जगह। अपने जीवन की मेरे द्वारा लिखित पटकथा में बिल्कुल नहीं, बल्कि मेरे लिए परमेश्वर की पसंद यही है।
जैसे ही मैं वहाँ बैठी रहे, ऐसा लगा जैसे मेरी आँखों से पपड़ी गिर गई हो। मुझे रेगिस्तान में सुंदरता दिखाई देना शुरू हुआ – पहाड़ जो लॉर्ड्स रांच का चौखट बनते हैं, रेगिस्तान के पौधे, जंगली बत्तख जो उस शाम मेरे साथ इस छोटे तालाब में मेरा साथ दे रहे थे। हर एक चीज़ इतनी अलग लग रहे थी, इतनी आकर्षक लग रही थी।मैं यह जानकर उठ गयी कि मेरे अंदर एक नाटकीय बदलाव आया है। मैं एक अलग व्यक्ति थी — एक नए दृष्टिकोण, एक नए उद्देश्य, एक नए मिशन के साथ, एक नया व्यक्तित्व। मेरा जीवन यही होना चाहिए था। इसे अपनाने और इसे पूर्ण रूप से जीने का समय आ गया है।
वह 40 साल पहले था। मेरा जीवन वैसा बिलकुलनहीं रहा जैसा मैंने किशोरावस्था में जो कल्पना की थी। मेरे लिए परमेश्वर की योजना मेरे विचारों से बिलकुल भिन्न दिशा में नाटकीय रूप से मुड़ गई। लेकिन मैं बहुत खुश और आभारी हूं कि मैंने उसके मार्ग का अनुसरण किया और अपने पथ का अनुसरण नहीं किया। मेरे आराम क्षेत्र से बाहर, मैं खींचकर निकाल ली गयी हूँ, और मैंने अपनी सोच में अपनी क्षमता के बारे में सोचती थी मैं उससे भी बाहर निकाल ली गयी हूँ; और मैं जानती हूं कि चुनौतियां और सबक अभी खत्म नहीं हुई हैं। लेकिन जिन लोगों से मैं मिली हूं, जो गहरी दोस्ती मैंने बनाई है, जो अनुभव मेरे पास हैं, जो कौशल मैंने सीखा है, उन सबने मिलकर जितना मैं सोचती थी उससे कहीं अधिक समृद्ध किया है। और भले ही मैंने शुरुआत में परमेश्वर और मेरे जीवन के लिए उसकी पागलपन भरी योजना का विरोध किया, लेकिन अब मैं किसी और तरीके से जीने की कल्पना नहीं कर सकती।
यह कितना पूर्ण, जीवंत, चुनौतीपूर्ण और आनंद से भरा जीवन रहा है! धन्यवाद येशु।
'खुद को त्यागने और ईश्वर को ह्रदय में स्वीकारने का यह उपयुक्त समय है
मैं 76 साल का हूँ तथा बचपन से नामधारी कैथलिक था। मैं एक अंतर-कलीसियाई परिवार यानि एक कैथलिक माँ और एक एंग्लिकन पिता की देखरेख में पला-बढ़ा हूँ। मैं एक यूरोपियन चार्टर्ड इंजीनियर हूँ जिसने येशु को अपने जीवन में काफी विलम्ब से स्वीकार किया।
मेरा जन्म उस समय हुआ था जब कैथलिक कलीसिया भिन्न-संप्रदाय के विवाहित जोड़ों के बच्चों को बपतिस्मा देने और “विश्वास” में लाने की मांग कर रही थी। मैंने कैथलिक स्कूलों में पढ़ा, पवित्र संस्कारों के बारे में सीखा, और विधिवत रूप से अपना पहला पापस्वीकार, पहला परमप्रसाद और ढृढीकरण संस्कार ग्रहण किया। जब तक मैं स्कूल में था, मैं वेदी सेवक भी था और एक कर्तव्यनिष्ठ कैथलिक बना रहा। मैने एक प्रमुख इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी में नौसिखिया के रूप में काम करना शुरू किया। इसके बाद मैं नई नौकरी के लिए एक नए शहर में चला गया। वहाँ जाने के बाद, मुझे ईश्वर और धर्म के बारे में संदेह होने लगा। हालाँकि मैं नियमित रूप से मिस्सा में भाग लेता था, मुझे याद है कि मैंने पाप स्वीकार के दौरान कहा था कि मैं शायद अपना विश्वास खो रहा हूँ। फादर ने मुझे इसके बारे में प्रार्थना करने के लिए सलाह दी। मेरे ख्याल से उस समय मैंने वह सुझाव बहुत हलके में लिया था।
जीवन का वह मोड़
आखिरकार, मुझे एक एंग्लिकन महिला पॉलीन से प्यार हो गया और मैंने उससे शादी कर ली। जीवन यूँ ही चलता रहा। हमारे दो लड़के हुए जिनको हमने कैथलिक कलीसिया में बपतिस्मा दिलाया, और मैं वही पुराना “कर्तव्यपरायण” कैथलिक बना रहा जो मैं हमेशा से था। 1989 में मैंने हमारी पल्ली में होने वाले नवीनीकरण कार्यक्रम में भाग लिया। यह मेरी ईश्वर्य-तीर्थयात्रा में एक सुनहरा अवसर था। इस कार्यक्रम के माध्यम से मैंने खुद से प्यार करने का महत्व सीखा, क्योंकि अगर आप खुद से प्यार नहीं कर सकते तो आप किसी और से कैसे प्यार कर सकेंगे?
तीन साल बाद, हमारी पल्ली के लोगों ने ‘अल्फा कार्यक्रम’ की तरह, ‘लाइफ इन द स्पिरिट सेमिनार’ का आयोजन किया। मैं भी शामिल हुआ क्योंकि मैं अपने आध्यात्मिक जीवन को बेहतर बनाने के लिए कुछ करना चाहता था। मेरे पास इस बात का कोई सुराग नहीं था कि मैं अपने आप को कहाँ लेकर जा रहा हूँ। कार्यक्रम की आखिरी शाम को मेरे ऊपर पवित्र आत्मा की बपतिस्मा के लिए प्रार्थना की गयी, हालाँकि उस समय मुझे इसका मतलब समझ में नहीं आया था। बाद में, जलपान के लिए जब मैं कतार में खड़ा हुआ था तब मुझे पता चला कि मेरे साथ कुछ महत्वपूर्ण वाकया हुआ है।
अगले दिन, मैं आध्यात्मिक रूप से 30,000 फीट की ऊँचाई पर था और मुझे ज़मीन पर वापस आने में कई दिन लगे! मैं ईसाई बन गया था! मैंने अपनी पत्नी द्वारा दी गयी बाइबल को धूल झाडकर साफ़ किया, और मैं ईश-वचन को पढ़ने लगा। ईश्वर के बारे में मेरे लंबे समय से चले आ रहे संदेह दर बदर दूर होने लगे। जब मैं पल्ली प्रार्थना समूह में शामिल हुआ तो मैंने विचित्र लोगों को देखा जिन्हें ‘करिश्माई’ कहा जाता था। वे अन्य भाषाओं में प्रार्थना और गीत गाते थे जिसके कारण मुझे उन्हें समझने में काफी मशक्कत करना पडा। मैंने ईश्वर से कहा कि मैं अन्य भाषाओं के इस वरदान के बारे में समझ नहीं पा रहा हूँ। आश्चर्यजनक रूप से मुझे ईश्वर के चालाक मजाकिया करतूत के बारे में तब पता चला जब कुछ ही समय बाद यह वरदान मुझे भी दिया गया।
साफ़ हो रहे धुंध
प्रभु ने यह भी बताया कि यह वरदान मुझे क्यों दिया गया है। मेरा विश्लेषणात्मक दिमाग अक्सर प्रार्थना के रास्ते में बाधा बन जाता है, इसलिए प्रभु ने मुझे अन्य भाषाओं का वरदान दिया ताकि मैं अपने दिमाग को केन्द्रित करके दिल से प्रार्थना कर सकूं। मेरा विश्वास मजबूत और गहरा हो गया है। मिस्सा के दौरान मैं पाठ करता हूँ और ईश-वचन की घोषणा करने में सम्मानित महसूस करता हूँ। मुझे अभी भी प्रार्थना करना मुश्किल लगता है, इसलिए प्रभु ने फिर से अपना मजाकिया करतूत दिखाया जब डनफर्मलाइन के गिरजाघरों से मसीहियों के एक मध्यस्थ प्रार्थना समूह के नेतृत्व की जिम्मेदारी मुझे दी गयी और इस समूह को “बेघर लोगों की सहायता करने” के लिए प्रेरणा मिली है।
इन अनुभवों के बाद मैंने अपने बचपन से चली आ रही बुरी यादों का लगभग पूर्ण रूप से ठीक होने का अनुभव किया। मैं ‘लगभग’ इसलिए कहता हूँ क्योंकि मुझे एहसास है कि संत पौलुस की तरह, घमंड के पाप से बचने के लिए मेरे शरीर में भी एक कांटा छोड़ दिया गया है।
हम सभी अपने बपतिस्मा में पवित्र आत्मा के वरदानों को ग्रहण करते हैं और उन्हें अपने ढृढीकरण संस्कार के द्वारा पूर्ण रूप से जीवन में लागू होते देखते हैं। लेकिन मेरे जीवन में यह लागू होने में करीब 30 साल लगे, मुझे अपने नवीकरण होने तक लम्बा समय लगा। तब से, प्रभु ने मेरे विवेक, भविष्यवाणी और चंगाई के वरदानों का उपयोग किया है। पहले मुझे लगता था कि येशु पर ध्यान केंद्रित करना पिता के प्रति विश्वासघाती होना है। इस तरह की सभी गलत धारणाओं को भी ईश्वर ने मेरे दिमाग से निकाल लिया है। मैंने हमेशा पिता और पवित्र आत्मा को करीबी से महसूस किया था, लेकिन अब येशु मुझे अपने भाई और दोस्त के रूप में प्रकट कर रहे हैं।
आध्यात्मिक रूप से, मैं वह तीस वर्ष पहले वाला व्यक्ति नहीं रहा। हाँ, मैं थक जाता हूँ, चिंतित और निराश हो जाता हूँ क्योंकि मैं साधारण मनुष्य हूँ। चाहे बाहरी रूप से कुछ भी हो रहा हो, अब मैं एक गहरी आंतरिक शांति महसूस करता हूँ। यह ईश्वर ही था जिसने मेरे जीवन में इन परिवर्तनों को लाने के लिए पहल की। मुझे उनकी कृपा के साथ केवल हाथ बढ़ाना था।
हे पिता, मैं अपने मुक्तिदाता, तेरे पुत्र येशु मसीह और तेरे पवित्र आत्मा के लिए तुझे धन्यवाद देता हूँ जिनके बिना मैं कुछ नहीं कर सकता। मेरे जीवन के सफ़र में मुझे हमेशा याद दिला कि तू हर पल मेरे साथ हमराही बनकर चल रहा है। आमेन।
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फादर फिओ ने नाउम्मीदी की मोटी दीवाल को फांदा है और यह अनुभव किया है कि ईश्वर टेढ़ी लकीरों पर सीधा लिखता है !
उन्नीस साल की उम्र में, दो साल कॉलेज में पढ़ाई के बाद, मैंने मुंबई के जेसुइट नव शिष्यालय में प्रवेश किया। चार साल की धार्मिक प्रशिक्षण के बाद, मुझे रसायन विज्ञान में डिग्री पूरी करने के लिए सेंट ज़ेवियर्स कॉलेज में वापस भेज दिया गया। मैं कॉलेज के प्रोफेसर के रूप में अपने भविष्य के करियर को लेकर खुश और गौरवान्वित था! मैंने कठिन अध्ययन किया और प्रारंभिक परीक्षाओं में बहुत अच्छा किया। हालाँकि 1968 में अंतिम परीक्षा के समय, मेरा दिमाग अचानक ठप पड़ गया। मैंने जो कुछ भी पढ़ा था, उसका एक भी शब्द मुझे याद नहीं आया! अपने-आप को गर्व के साथ सिर ऊँचा करने की बात तो दूर, मैं परीक्षा में फेल हो गया! मैं भ्रमित, अपमानित और क्रोधित महसूस कर रहा था। मैंने पूछा, “ईश्वर मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकता है?”
हालाँकि, मेरे लिए आगे और भी परेशानियाँ थीं। मैंने प्रार्थना की और अधिक दृढ़ संकल्प के साथ अध्ययन किया और कुछ महीनों बाद रसायन विज्ञान की परीक्षा के लिए फिर बैठ गया। मैंने तैयारी ठीक से की थी, फिर भी परीक्षा हॉल में मेरा दिमाग पहले की तरह ठप पड़ गया और मैं दूसरी बार फेल हो गया! अब मैं विश्वास को लेकर गहरे संकट में प्रवेश कर चुका था। मैंने अपने आप से पूछा, “क्या वास्तव में कोई ईश्वर है? यदि वह प्रेमी परमेश्वर है, तो वह मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकता है?” धीरे-धीरे मैंने प्रार्थना करना छोड़ दिया। मेरा धार्मिक जीवन संकट में था और मैं सांसारिक जीवन जीने लगा।
दीवार से टक्कर
सन् 1970 में, मैंने रसायन विज्ञान की परीक्षा के तीसरे प्रयास के लिए तैयारी की। हॉल में प्रवेश करने से पहले, मैं फुसफुसाया, “ईश्वर, मुझे पता है कि तू मुझसे प्यार नहीं करता, इसलिए तुझसे मदद मांगने का कोई मतलब ही नहीं है। लेकिन मुझे आशा है कि तू अभी भी मेरी माँ से प्यार करता है, इसलिए कृपया उनकी प्रार्थना का उत्तर दे!” लेकिन, तीसरी बार भी वही हुआ और मैं फेल हो गया। इस घटना के बाद मुझे जेसुइट मनोवैज्ञानिकों के पास भेजा गया जिन्होंने कई परीक्षण के बाद मेरी समस्या का निदान बताया कि मुझमें “रसायन विज्ञान के लिए एक मनोवैज्ञानिक अवरोध विकसित हुआ है।” परन्तु उनमें से कोई भी मुझे यह नहीं बता सका कि इस अवरोध से कैसे छुटकारा पाया जाए!
मेरी तीसरी असफलता के दो साल बाद, दर्शनशास्त्र में धार्मिक प्रशिक्षण को सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद, जब मैं रसायन विज्ञान की परीक्षा में चौथे प्रयास की तैयारी कर रहा था, तो उस महान और अच्छे ईश्वर, जिसने मुझ पर भरोसा नहीं खो दिया था, उसके हाथों से “अद्भुत कृपा” अप्रत्याशित रूप से मुझ पर बरस पड़ी! 11 फरवरी 1972 को, मुझे अचानक अपने कमरे में घुटने टेकने की प्रेरणा मिली और प्रथम व्रतधारण के अवसर पर मिले क्रूसित प्रभु की प्रतिमा अपने हाथ में लेकर मैंने अपने जीवन को इश्वर को समर्पित क्र दिया।
अपनी दरिद्रता और शून्यता की गहराई से, मैंने रोते हुए कहा: “हे प्रभु, तुझे देने के लिए मेरे पास कुछ नहीं है! मैं नाकामयाब आदमी हूँ, और मेरा कोई भविष्य नहीं है! लेकिन अगर तेरे पास मेरे जीवन के लिए कोई योजना है, अगर तू मुझे किसी तरह अपने राज्य के लिए इस्तेमाल करना चाहता है, तो मैं हाजिर हूँ!”
वह मेरे लिए येशु मसीह के प्रभुत्व के प्रति समर्पण करने और “पवित्र आत्मा में बपतिस्मा लेने” का क्षण था। मैं अब अपने जीवन की गाड़ी की सीट पर बैठ कर प्रभु को यह नहीं बता रहा था कि मेरे लिए क्या करना है; इसके बजाय, मैं उससे कह रहा था कि जैसा वह चाहता है वैसा ही मेरे साथ हो।
जीवन-परिवर्तन का क्षण
ईश्वर ने तत्काल प्रतिक्रिया दी! यहाँ तक कि जब मैं वहाँ घुटने पर था, तब मैंने स्पष्ट रूप से ईश्वर को मुझसे यह कहते सुना, “फियो, तुम मेरे प्रिय पुत्र हो, तुमसे मैं बहुत प्रसन्न हूँ!” वे अंतिम शब्द- “बहुत प्रसन्न हूँ” उनका मैं मतलब ही नहीं समझा! यदि ईश्वर ने मेरे उन कई महीनों के अविश्वास के लिए तथा प्रार्थना और अन्य धार्मिक कार्य को छोड़ने के लिए मुझे डाँटा होता, तो मैं वे शब्द समझ जाता। लेकिन मेरा स्वीकार किया जाना और यही नहीं इतने प्रेम से स्वागत किया जाना मेरे छोटे से दिमाग के लिए समझ से परे था! फिर भी, मेरे दिल की गहराई में, मैंने जबरदस्त आनंद उमड़ते हुए महसूस किया जो मेरे लिए दिव्य सांत्वना थी। उसी क्षण, मैं इतने आनंद से भर गया कि मैं जोर से चिल्लाया, “येशु, तू जीवित है, अल्लेलूया!” यह ऐसे समय में हुआ था जब करिश्माई नवीनीकरण अभी तक भारत नहीं पहुंचा था।
प्रभु के प्रेम भरे शब्दों का अनुभव करने से मेरा जीवन पूरी तरह से बदल गया। अब मैं समझ गया कि ईश्वर की योजनाएँ पूरी होने से पहले, मुझे अपने अहंकार को तोड़ना होगा। मेरी परीक्षाओं की असामान्य असफलताओं ने मुझे सही राह दिखायी! ईश्वर ने मुझे नई मानसिकता दी जिससे मैं मसीह में उपस्थित अमूल्य उद्धार के चरित्र को सराहना शुरू कर सका। हम में से प्रत्येक के लिए ईश्वर का प्रचुर प्रेम एक उपहार है, क्योंकि हम अपनी योग्यताओं के द्वारा नहीं, परन्तु प्रभि के अनुग्रह से, विश्वास के द्वारा बचाए गए हैं।
मेरे जीवन की दिशा जल्द ही बदल गई! आखिरकार जब मैंने रसायन विज्ञान की परीक्षा उत्तीर्ण की और सम्मान के साथ अपनी विज्ञान की डिग्री प्राप्त की, तो मेरे अधिकारी ने एक आश्चर्यजनक घोषणा की: “फियो,” उन्होंने कहा, “हम अब नहीं चाहते कि आप हमारे कॉलेज में प्रोफेसर बनें! आपको विशेष आध्यात्मिक अनुभव हुआ है; इसे पूरे संसार को सुनाइये!”
ईश्वर ने मेरे जीवन में जो कुछ किया, उसकी दिव्य विडंबना पर आप मेरे आश्चर्य की कल्पना कर ही सकते हैं। अगर मैंने उन परीक्षाओं को तुरंत पास कर लिया होता, तो मेरा पूरा पुरोहिताई जीवन रोजाना रसायन विज्ञान प्रयोगशाला जाकर, कॉलेज के छात्रों को हाइड्रोजन और सल्फाइड को कैसे मिलाना है, यह सिखाने के लिए चला जाता… और फिर उस घिनौने बदबू में ही सांस लेता!
ईश्वर के पास वास्तव में मेरे जीवन के लिए एक योजना थी। कुल 30 वर्ष उसने मुझे भारत और दुनिया भर के कैथलिक करिश्माई नवीकरण में एक अग्रणी सेवक और नेतृत्व की भूमिका की कृपा दी और उनमें से आठ वर्ष रोम में बिताने का मुझे सौभाग्य मिला। पिछले बीस वर्षों से ईश्वर ने मुझे प्रचारक और लेखक के रूप में बाइबिल के द्वारा आत्मिक परामर्श के सेवा कार्य में इस्तेमाल किया है। ईश्वर के अद्भुत अनुग्रह से, मैंने खुशी-खुशी अस्सी से अधिक देशों में ईश वचन के लिए भूखे लोगों को सुसमाचार सुनाया है। मैंने बाइबिल की आध्यात्मिकता पर अठारह पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें से कुछ को अन्य भारतीय और विदेशी भाषाओं में अनुवाद किया गया है। यह सब मेरी शर्मनाक और हतोत्साहित असफलता का परिणाम था। किन्तु ईश्वर टेढ़ी लकीरों पर सीधा लिखता है!
'वह जीवन को बदलने वाला क्षण तब है जब आपको एहसास होता है कि ईश्वर आपको में किसी से भी अधिक प्यार करता है …
मैं संभवतः उन सभी अवसरों की गिनती नहीं कर सकता, जब मैंने कितनी बार दूसरों को बताया कि परमेश्वर उनसे प्रेम करता है, और मैंने उन्हें इस पर विश्वास करने की चुनौती भी दी है। हमारे लिए ईश्वर का बेशर्त प्रेम हर कार्यक्रम में एक प्रमुख विषय रहा है, चाहे वह कई वर्षों तक मेरी अगुवाई में आयोजित हर साधना हो, या हर पल्ली-मिशन हो या हर ध्यान दिवस में हो। मैं बहुत से लोगों के सम्मुख, उनके लिए परमेश्वर के प्रेम की वास्तविकता पर, उनके जीवन को दांव पर लगाने के लिए राजी कराने में कामयाब मेहनत की है।
लेकिन जब मेरे अपने जीवन में यह बात आयी, उस सत्य को जो मेरे मूल में प्रवेश करने वाले सत्य की तरह पकड़ लेना, मेरे लिए हमेशा एक मायावी लक्ष्य था। मैं चाहता था कि यह विश्वास मेरी सांसों की तरह स्वत: हो जाए, लेकिन यह मानना कि ईश्वर मुझसे प्यार करता है, यह कुछ ऐसी बात थी, जिसे मैंने अपने दिमाग में समझा, लेकिन शायद ही कभी अपने दिल में महसूस किया हो।
और फिर मेरी मुलाकात माया एंजेलो से हुई। पहले से ही वे राष्ट्रीय स्तर पर अपने लेखन और कविता के लिए जानी जाती थीं; गायिका, नर्तकी, अभिनेत्री और ओपरा विन्फ्रे की अच्छी दोस्त होने के कारण भी वे विख्यात थीं। जब उन्होंने राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के पहले उद्घाटन पर एक कविता लिखी और उसका पाठ किया तो उनका नाम सब केलिए सुपरिचित हो गया। अगले वर्ष, वे वार्षिक लॉस एंजिल्स धार्मिक शिक्षा कांग्रेस में मुख्य वक्ता थीं – यह संयुक्त राज्य अमेरिका में सबसे बड़ा कैथलिक आयोजन है, जिसमें एक लंबे सप्ताहांत के दौरान पच्चीस हजार वयस्कों और किशोरों को शामिल किया जाता है। मेरी पत्नी नैन्सी और मैं भी वक्ताओं की सूचि में थे और माया के मुख्य भाषण के समापन पर, नैन्सी को नृत्य के लिए आमंत्रित किया गया, जब माया ने अपनी कविता सुनाई।
उनका मुख्य प्रबोधन चौंकाने वाला था। वे बड़ी शिद्दत से बोलीं। उन्होंने कविता पाठ किया। उन्होंने गाया। और उन्होंने हॉल में उपस्थित सभी को प्रेरणा और ऊर्जा से भर दिया – हम सभी छह हजार लोग थे। उनके परिचय में दिये गए किस्से से मैं प्रभावित हुआ। वह किस्सा इस प्रकार है: जब एक रिपोर्टर ने उनसे पूछा, “आपके जीवन का वह कौन सा क्षण है जो आपके अंदर बदलाव लाया?” माया ने तुरंत उत्तर दिया, “क्यों, यह आसान है। यह वह क्षण था जब मुझे एहसास हुआ था कि ईश्वर वास्तव में मुझसे प्यार करता है।
जब प्रवचन और नृत्य समाप्त हो गया, तो मैंने नैन्सी को बधाई दी और सुझाव दिया कि हम वक्ताओं के लाउंज में जाएँ। “यदि माया वहां हैं, तो मैं उनका ऑटोग्राफ माँगने जा रहा हूँ।” आम तौर पर भीड़भाड़ से भरा रहनेवाले कमरे को हमने खाली पाया तो मुझे बड़ी ख़ुशी हुई; सिवाए वे सिस्टर जिन्होंने माया के प्रवचन के पहले उनका परिचय और स्वागत किया था और स्वयं माया एंजेलो के अलावा और कोई नहीं थे। हमने बैठकर बातें कीं, लेकिन जल्द ही सिस्टर को जाना पड़ा। उन्होंने अपने बैग से नोटबुक और कलम निकाल कर माया को सौंपते हुए कहा, “”मेरे जाने से पहले, क्या आप मुझे अपना ऑटोग्राफ देंगी?” माया ने जवाब दिया, “ओह मेरी प्यारी सिस्टर, मैं ऑटोग्राफ नहीं देती!” सिस्टर के निकल जाने के बाद टेबल पर हम तीनों ही बचे थे।
मैं तुरंत माया की ओर मुड़ा और कबूल किया कि मैंने भी उनसे ऑटोग्राफ मांगने की योजना बनाई थी। मैंने कहा, “लेकिन मुझे अब एहसास हुआ है कि मुझे वास्तव में आपका ऑटोग्राफ नहीं चाहिए, मुझे कुछ और चाहिए।
“वह क्या है?” उन्होंने पूछा।
“मैं आपका हाथ पकड़ना चाहता हूं,” मैंने कहा।
“क्यों, मुझे वह अच्छा लगेगा,” उन्होंने जवाब दिया।
मैंने अपना दाहिना हाथ टेबल पर रखा। उन्होंने अपना बायाँ हाथ मेरे हाथ में रखा। मैंने अपना बायाँ हाथ उसके ऊपर रख दिया, और उन्होंने अपना दाहिना हाथ मेरे हाथ के ऊपर रख दिया। जैसे ही हम इस “चार हाथ खेल” के साथ बैठे, मैंने सीधे उनकी आँखों में देखा और उनसे कहा, “सिस्टर ने आपका परिचय देते हुए जो कहानी साझा की, उससे मैं बहुत प्रभावित हुआ, जब आपसे उस क्षण के बारे में पूछा गया जिससे आपके अंदर बदलाव आया।”
माया ने संकोच नहीं किया। मेरी आँखों में झांकते हुए उन्होंने कहा, “ओह हाँ, हाँ, अब भी.. अब भी, सिर्फ इसके बारे में सोचती हूँ … मैं सिर्फ यही सोचती हूँ कि ईश्वर मुझसे कितना प्यार करता है … ।” जैसे ही उन्होंने यह कहा, उनकी बड़ी-बड़ी आँखों में बड़े-बड़े आँसू आ गए जो मोती बनकर उनके गालों पर लुढ़क गए। जब मैंने परमेश्वर के प्रेम के बारे में उनकी जागरूकता को उन अनमोल आँसुओं में बदलते देखा, तो मैंने मन ही मन सोचा, “मुझे यही चाहिए। मैं यही चाहता हूँ कि मैं अपने लिए परमेश्वर के प्रेम को पूरी तरह जानना चाहता हूँ जैसे ये जानती हैं।”
कई वर्षों तक यही मेरी आशा और प्रार्थना बनी रही। हां, मुझे पता था कि ईश्वर मुझसे प्यार करता है, लेकिन माया की तरह मेरे अंतरतम की गहराई तक नहीं। उस दृढ़ विश्वास के साथ नहीं कि मेरे आँखों से आंसू लुढ़क जाएँ।
वर्षों बाद मुझे वह सौभाग्य मिला जब मुझे एक संपादक से एक ईमेल मिला जिसमें मेरे लिखे एक लेख केलिए मुझे धन्यवाद दिया गया। उन्होंने मुझे बताया कि मैं उनके मीडिया संगठन केलिए एक “वास्तविक आशीर्वाद” था। उन्होंने कहा, “ईश्वर आपसे बहुत प्यार करता है।”
इस पत्र से वह चमत्कार हुआ। परमेश्वर वास्तव में मुझसे प्यार करता है, इस दृढ़ विश्वास की इतने वर्षों तक की खोज के बाद, उस एक वाक्य ने यह चमत्कार कर दिखाया! मैं संपादक से व्यक्तिगत रूप से कभी नहीं मिला था, फिर भी समुद्र के उस पार से भेजे गए उनके शब्दों ने मेरे दिल को छलनी कर दिया। यह ऐसा था मानो परमेश्वर ने स्वयं ये शब्द कहे: “मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ, ग्राज़ियानो!” मैं जानता था कि यह सच था। यह एक जबरदस्त और अप्रत्याशित उपहार था। और इससे मेरे जीवन में बहुत फर्क आया!
ईश्वर मुझसे प्यार करता है चाहे मैं अच्छा हूँ या बुरा। जब मैं प्रार्थना कर रहा हूँ, और जब मैं प्रार्थना नहीं कर रहा हूँ, तब भी परमेश्वर मुझसे प्रेम करता है। मैं इसके लायक बनूँ या न बनूँ, यह कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि परमेश्वर इसे मुफ्त में देता है। और मैं ऐसा कुछ नहीं कर सकता कि परमेश्वर मुझसे प्रेम करना बंद कर दे। पाप भी नहीं। मुझे परमेश्वर के दिल को तोड़ने और उसके प्रेम को अस्वीकार करने की स्वतंत्रता है। लेकिन फिर भी, परमेश्वर मुझसे प्रेम करता रहेगा।
और निश्चित रूप से, परमेश्वर मुझे हमेशा से प्यार करता आ रहा है। जब मुझे पता चला कि वह मुझसे प्यार करता है, उसने उसी दिन मुझे प्यार करना शुरू नहीं किया था। पहले मैं इस सत्य को अपने “दिमाग” में जानता था। उस दिन, परमेश्वर ने एक अलग तरह की जानकारी के साथ मेरे दिल में प्रवेश किया… एक शांत और शांतिपूर्ण आश्वासन जो जीवन की सभी परिस्थितियों से परे है।
इतनी स्पष्टता और निश्चितता के उस बिंदु पर आने में मुझे काफी समय लगा, उस शांति का अनुभव पाने में वक्त लगा जो शान्ति अपने आप को कंबल की तरह आपके चारों ओर लपेट लेती है। और परमेश्वर ने मेरे लिए जो किया, वह आपके लिए भी कर सकता है। क्या आप परमेश्वर के प्रेम का आश्वासन चाहते हैं? सिर्फ मांगें। और फिर प्रतीक्षा करें। यह आश्चर्य की बात हो सकती है कि परमेश्वर अपने प्रेम को प्रकट करने के लिए किसे चुनता है। ऐसा होने के बाद, आप खुद को यह कहते हुए पायेंगे, “ओह हाँ, हाँ, अब भी.. अब भी, सिर्फ इसके बारे में सोचती हूँ … मैं सिर्फ यही सोचती हूँ कि ईश्वर मुझसे कितना प्यार करता है…।”
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मैं इस बात से हैरान था कि उस जून महीने में येशु कैसे आए
मुझे आमतौर पर 35 डिग्री सेल्सियस के मौसम में, खासकर बिना एयर कंडीशनिंग वाली कार में सफ़र करते हुए, रोंवा का बना भारी ऊनी सूट पहनने की आदत नहीं है। फिर भी उस गर्म और उमस भरी दोपहर में, न केवल सूट, बल्कि बूट, चेहरे पर एक बर्फीली सफेद दाढ़ी और एक मोटी ऊनी टोपी पहने हुए मैं मिशिगन में उपस्थित था ।
चलती गाड़ी के अन्दर पसीने से तर बतर होकर ऐसा लगा मानो मैं भांप में गर्म स्नान कर रहा हूँ, लेकिन मुझे वास्तव में कोई आपत्ति नहीं थी। यह कोई साधारण दिन नहीं था, और मैं कोई साधारण व्यक्ति नहीं था: मैं सांता क्लॉस था, मैं एक प्रकार की करुणा की विशेष सेवा के मिशन पर था, एक छोटी बच्ची के लिए, जो पास के बच्चों के अस्पताल में ल्यूकेमिया से मर रही थी।
मैं एक अन्य बाल चिकित्सा अस्पताल में एक आत्मिक सलाहकार के रूप में काम कर चुका था – एक ऐसा कार्य जिस के कारण मुझे अक्सर प्यारे बच्चों की बीमारी और मृत्यु से जूझ रहे परिवारों के संघर्षों और दुखों का अनुभव था, पीड़ा भी थी। जब क्रिसमस आया, तो मेरे पास विभिन्न दुकानों में और और कुछ क्रिसमस कार्यक्रमों में सांता क्लॉस की भूमिका निभाने का काम भी था, जिसमें एक कार्यक्रम जे.एल. हडसन वार्षिक परेड भी था जो डेट्रोइट शहर के बीच से गुज़रता था।
दोनों कार्यों में अधिक फर्क नहीं था, फिर भी दोनों परमेश्वर के प्रेम को दूसरों तक पहुंचाने का खूबसूरत मौके थे। सांता क्लॉज़ के रूप में और एक अस्पताल के पादरी के रूप में, मुझे यह देखने का सौभाग्य मिला था कि ईश्वर किस तरह आश्चर्यजनक तरीके से लोगों के जीवन और दिलों में प्रवेश करता है।
एक दादा का प्यार
इस विशेष दोपहर में, मेरी दो भूमिकाओं का घालमेल हो गया। जैसे ही मैं अस्पताल के लिए तेजी से गाड़ी चला रहा था, मैंने समय का सदुपयोग करते हुए प्रभु से प्रार्थना की कि वह चार साल की एंजेला (यह उसका असली नाम नहीं) को खुश रखें और उसके दुःखी दादाजी को सांत्वना दें। एंजेला के दादा ने, यह जानने के बाद कि एंजेला के पास जीने के लिए सिर्फ पांच सप्ताह थे, इस “जून में क्रिसमस” समारोह की व्यवस्था की थी।
उन्होंने ईश्वर से यह सवाल किया था: “मैं अपनी पोती केलिए क्या कर सकता हूँ? मैं अपनी छोटी पोती के दिल में जीवन भर का प्यार कैसे डाल सकता हूँ?”
जब वे रसोई में बैठकर कॉफी पी रहे थे, तब उन्होंने देखा कि एंजेला ने क्रेयॉन से सांता क्लॉस की ड्राइंग बनाई थी, जो अभी भी रेफ्रिजरेटर पर चिपकाई गयी थी। उन्हें याद आया कि एक बार जब वे डेट्रायट के क्रिसमस परेड को एक साथ देख रहे थे, तब उस बच्ची ने यह सवाल किया था: “दादाजी, इस परेड का समापन क्यों किया जा रहा है? … काश क्रिसमस हमेशा के लिए होता तो कितना अच्छा होता!”
तुरंत, उन्हें पता चल गया था कि उन्हें क्या करना है।
अस्पताल में सांता क्लॉस का पड़ाव
अस्पताल के निकट पहुंचते ही, मैं आश्चर्यचकित था, मुख्य प्रवेश द्वार पर सांता की प्रतीक्षा में कई सहायक खड़े थे – सांता की टोपी पहने एक डॉक्टर, नर्स लोग, और क्रिसमस के मसखरी करनेवाले बौनों के वेश में सामाजिक कार्यकर्ता और स्वयंसेवक बाहर खड़े थे।
“जून क्रिसमस मुबारक हो! मेर्री क्रिसमस!” उन्होंने जोर से कहा। “सब कुछ तैयार है! हम बहुत उत्साहित हैं कि आप बच्चों से मिलने के लिए उत्तरी ध्रुव से इतनी दूर आए हैं।” मुझे उसी वक्त सन्देश मिला कि बाल चिकित्सा कैंसर इकाई के सभी रोगी, एंजेला केलिए आयोजित इस आश्चर्य का आनंद लेने वाले हैं।
लॉबी में आराम से घूमते फिरते हुए, मेरा काफिला लिफ्ट में चढ़ गया। जब हम कैंसर विभाग के फर्श पर चढ़े तो उत्साह बढ़ गया। जब दरवाजे खुले तो एक जादुई दृश्य ने हमारा स्वागत किया। अस्पताल का वह वार्ड त्यौहार के दीप माला के चकाचौंध की रोशनी से जगमगा रहा था और वह हाल क्रिसमस संगीत की आवाज़ से गूँज रहा था। सुंदर आकर्षक तोरण और मालाओं से वह हॉल सजाया गया था, जहां चार क्रिसमस ट्री बड़ी भव्यता के साथ खड़े थे। एक जीवंत स्नोमैन हमारा स्वागत करने के लिए वहां मौजूद था, जो अपनी लम्बी टोपी के माध्यम से और एक टोंटी के सहारे बर्फ बिखेर रहा था।
जैसे ही व्हीलचेयर में बैठे छह-सात बच्चों ने सांता को पहचान लिया, उनके मुंह से खुशी की चीखें निकल आयीं। मैं उन बच्चों का अभिवादन करने के लिए रुका, फिर दूसरे बच्चों के कमरे में गया। इस बीच, एंजेला के दादाजी मुस्कुराते हुए खड़े रहे।
अद्भुत स्वर्गीय शांति
आखिरकार, जब मैं एंजेला के बिस्तर के पास पहुंचा, तो दो बड़ी नीली आंखें चादर के ऊपर से मुझे झाँक रही थीं। “एंजेला!” मैंने कहा था। नीली आँखें और भी चौड़ी हो गईं। उसके चेहरे पर असीम खुशी की झलक आ गई।
पूरे स्टाफ की भीड़ चारों ओर खड़ी होकर देख रही थी, तभी मैं अपनी झोली में हाथ डाला और एंजेला के दादाजी द्वारा चयनित उपहार की भेंट उसे दी; एक नई नीली पोशाक जो एंजेला लंबे समय से चाह रही थी; लाल टेनिस जूते और रखवाल दूत की एक गुड़िया भी, जिसके बाल सुंदर सुनहरे थे – ठीक वैसे ही जैसे कीमोथेरेपी से पहले एंजेला का बाल था। उसके दादाजी के बटुए में दिखी एंजेला की एक छोटी तस्वीर अभी भी मेरी स्मृति में थी। उसके हाथों में गुड़िया देते वक्त मैं ने कहा “यह काफी हद तक तुम्हारी तरह दिखती है”। मैं सांता ने उसे एक छोटा सा बटन भी दिया था जिसे मैंने उसके अस्पताली गाउन में पिन किया, जिस पर लिखा था, “सांता मुझसे कहता है कि तुम एक अच्छी लड़की हो!”
इतनी खुशमिजाज मनोदशा के साथ, हमने कुछ जाने-पहचाने क्रिसमस गीतों को गाना शुरू किया- “जिंगल बेल्स,” “रूडोल्फ द रेड-नोज्ड रेनडियर,” और “सांता क्लॉज़ इज़ कमिंग टू टाउन” आदि। फिर मैंने अपना पसंदीदा गीत “साइलेंट नाइट” गाना चालू किया।
मेरे पास वास्तव में यह बताने के लिए शब्द नहीं हैं कि जब हमने आखिरी गाना गाया तो क्या हुआ। मैं बस इतना ही कह सकता हूं कि कमरे में लगभग एक ऐसी शांति उतर आई थी जिसका हम सभी अनुभव कर रहे थे, जिसको हम सब स्पर्श कर सकते थे। पवित्र आत्मा की शक्ति से, येशु वहाँ उपस्थित था। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था कि हमारा उत्सव वर्ष के गलत समय पर था, या यहाँ तक कि कुछ गायक शायद यह नहीं समझ पाए होंगे कि परमेश्वर ने उस पवित्र “शांत रात” में मानव जाति के लिए क्या किया। इन सब के बावजूद, परमेश्वर का शाश्वत पुत्र जिसने चरनी में एक शिशु के रूप में खुद को गरीब चरवाहों के सामने प्रकट किया था, वह खुद को एक और असंभावित माहौल में एक और असंभावित समूह के सामने उपस्थित कर रहा था।
मैं हैरान रह गया, हमेशा की तरह, जब कभी मुझे इस तरह की घटनाओं को देखने का सौभाग्य मिला, मैं हैरान था कि पवित्र आत्मा कैसे काम करता है—लेकिन इस बात पर किसी तरह का आश्चर्य नहीं हुआ कि पवित्र आत्मा आया और वहां हमारे बीच मौजूद था।
असली क्रिसमस का भाव
दस दिन बाद ही एंजेला की मृत्यु हो गई। उसके अंतिम संस्कार के बाद, राज्य के दूसरे हिस्से से, उसके दादाजी ने मुझे यह बताने के लिए फोन किया। उन्होंने कहा, “मैं इस मिथ्या में नहीं रहने जा रहा हूं कि मेरे लिए सब कुछ ठीक होगा। मैं आपको फोन करने से पहले बुरी तरह रोया था।” इसके बाद वे कब्रस्तान में अपने अनुभव को बताना जारी रखा।
“मैं देख रहा था कि मेरी छोटी पोती एक सफेद ताबूत में लेटी हुई है – अपनी नई नीली पोशाक पहनी हुई, रखवाल दूत की गुड़िया के साथ, और आपने जो पिन दिया था, उसे पहनी हुई, जिस पर लिखा हुआ था: ‘सांता मुझसे कहता है कि तुम एक अच्छी लड़की हो!” यह सब सुनते हुए मेरा दुख लगभग असहनीय था।
“लेकिन ठीक उसी समय, जब मैं दर्द को सबसे अधिक गहराई से महसूस कर रहा था … मैं इसे समझा नहीं सकता, लेकिन मुझे अचानक एक गहरी शांति, यहां तक कि खुशी भी महसूस हुई। उस पल, मुझे पता था कि एंजेला ईश्वर के साथ थी और हम अनंतता में फिर से एक दुसरे से मिलेंगे।“
जैसे ही मैंने उनकी कहानी सुनी, मेरे अन्दर एक अद्भुत आश्चर्य का भाव उमड़ आया। वाह, यह चमत्कार फिर से हुआ है! जिस तरह हमने उस जून के क्रिसमस के दौरान येशु को एंजेला के बिस्तर के पास महसूस किया था, उसी तरह उसके दादाजी ने येशु को उसके ताबूत में देखा था। ज्योति जो दो हज़ार साल पहले दुनिया में आयी थी, उस ज्योति ने एंजेला के दिल को भर दिया था, वह ज्योति दुःख और मृत्यु के स्थान पर आशा और आनंद लाई।
यही वास्तविक “क्रिसमस का भाव” है – वह भाव नहीं जो वर्ष में एक बार आता है, बल्कि येशु मसीह का ज्ञान जो पवित्र आत्मा के द्वारा आता है। अगर हम अपने हृदयों को खोलते हैं और उसके लिए जीते हैं तो क्रिसमस की सच्ची आत्मा – त्रित्व का तीसरा व्यक्ति – वर्ष में 365 दिन उपलब्ध है।
फिर, “क्रिसमस हमेशा के लिए हो” यह केवल एक छोटी लड़की का सपना नहीं है, बल्कि जून, दिसंबर और पूरे साल में एक ठोस वास्तविकता है।
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कीथ केली ने बहुत ही कम आयु में शराब पीना और ड्रग्स लेना शुरू किया था। उसने एक खतरनाक जीवन शैली को तब तक जिया जब तक उसने अंधेरी रात में शैतान को उसे घूरते हुए पाया।
मेरे और मेरे भाई-बहनों को बड़े होते समय काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा, क्योंकि हमारे पिता शराबी थे और उनके साथ मेरा सम्बन्ध न के बराबर था। हम सभी ने पिताजी की शराबीपन का अलग-अलग तरीकों से सामना किया। मेरा तरीका क्रोध और हताशा को अपने अन्दर दबाना था। इन भावनाओं से निपटने के लिए, मैंने बहुत ही कम उम्र में शराब पीना और ड्रग्स लेना शुरू कर दिया। मैं सरकारी अधिकारियों के खिलाफ बहुत विद्रोह करता था, इसलिए ‘वेस्टपोर्ट’ में कानून-प्रवर्तनों के साथ मेरा नियमित टकराव होता था और फिर मैं अपने विद्यालय से भी निष्कासित कर दिया गया था।
उन दिनों, मुझे नियमित रूप से अपने चारों ओर एक अंधेरी ताक़त की उपस्थिति महसूस होने लगी। पहले तो मुझे वास्तव में पता नहीं था कि क्या चल रहा है। मुझे इस बात का अंतर्ज्ञान था कि यह कुछ राक्षसी या दुष्ट शक्ति है, लेकिन मैं इसे पूरी तरह से अभिव्यक्त करने में सक्षम नहीं था। फिर रात में मेरे साथ अजीब घटनाएँ होने लगी: मैं शक्तिहीन और पसीने से लिपटे हुए जगता था। मैं अपने कमरे में बहुत डरावनी अंधेरी ताक़त की उपस्थिति को महसूस कर सकता था । मुझे इसकी उपस्थिति से घुटन महसूस होता था और इससे मुक्त होने के लिए मैं संघर्ष करता था। एक बार, मैंने सभी को बीच रात में अपनी चीखों से जगा दिया था।
शब्द दर शब्द
इन सभी राक्षसी प्रदर्शनों का अंत एक रात मेरे बाथरूम में बहुत ही डरावनी घटना से हुआ जब मैंने आईने में अपने अंदर के शैतान को देखा। मैंने जो देखा उसे शब्दों में बयान करना बहुत मुश्किल है। वह वास्तव में मेरा एक भयानक और पाशविक रूप था। मैं उसे यह कहते हुए सुन पा रहा था, ‘तुम्हारा जीवन समाप्त हो गया है, तुम्हारा जीवन समाप्त हो गया है, अब तुम मेरे हो… मैं तुम्हें नष्ट करने वाला हूँ।’ मैंने नियमित रूप से आवाजें सुनीं और मेरे खिलाफ बहुत सारी धमकियाँ दी जा रही थीं।
इन बुरे अनुभवों ने अक्सर मुझे हताशा के आँसुओं में डुबा दिया था। एक दिन, मुझे अपने घुटनों पर आने का अनुग्रह ईश्वर ने दिया। हालाँकि मुझे नहीं पता था कि ईश्वर कौन था या विश्वास क्या होता था, मैंने किसी कैथलिक स्कूल में पढ़ते वक्त, ‘हे हमारे पिता’ और ‘प्रणाम मरिया’ को सीखा था। इसलिए मैं ‘हे हमारे पिता’ की प्रार्थना बोलने लगा। प्रार्थनाओं को निरर्थक यांत्रिक रूप से बोलने और दिल से न आने का हमेशा खतरा रहता है। लेकिन उस दिन मेरा पूरा मन और ह्रदय उस प्रार्थना के हर शब्द में था। यह वास्तव में पिता ईश्वर के लिए मेरी पुकार थी। मैंने उसे पूरे मन से पुकारा, उससे विनती की कि कृपया मुझे छुटकारा दे।
‘हे हमारे’ प्रार्थना के बीचो बीच में पहुँचते ही मैंने कमरे में किसी और की उपस्थिति को महसूस किया … ईश्वर की उपस्थिति, मेरे प्रभु और ईश्वर की उपस्थिति, मेरे स्वर्गीय पिता की उपस्थिति। उसकी उपस्थिति ने मेरे कमरे से इस दुष्ट शक्ति को भौतिक रूप से हटा दिया। मुझे याद है कि मैं ज़मीन पर पड़ा हुआ था और आभारी दिल से रो रहा था। उस क्षण से मैं निश्चित रूप से जान गया कि ईश्वर वास्तव में मेरे पिता है। एक दिव्य शांति मुझ पर छा गई जो इतनी मूर्त थी कि मैं उसे महसूस कर सकता था। मैंने तब से लेकर आज तक इसके समान कुछ भी महसूस नहीं किया है। मैं वहीं पड़ा रहा और राहत तथा खुशी से रोया।
अंतिम चेतावनी
वर्षों बाद ईश्वर के साथ रहते हुए मैंने जाना कि ‘हे हमारे पिता’ मुक्त करने वाली प्रार्थना हैं। यह ‘… हमें बुराई से बचा। आमेन’ के साथ समाप्त होता है। और यह दुष्टात्मा को भगाने की कलीसया के आधिकारिक रस्म की महत्वपूर्ण प्रार्थना भी है। पीड़ित को शैतानी प्रदर्शनों से बचाने के लिए ‘हे हमारे पिता’ की प्रार्थना की जाती है। उस समय मुझे इसके बारे में जानकारी नहीं थी। उस पल से (जब मैं 16 या 17 साल का था) मैंने सहायता के लिए प्रार्थना करना शुरू किया। हर रात, नशीले पदार्थों और शराब पीने को छोड़ने और अपने जीवन को वापस ठीक करने के लिए मदद माँगते हुए मैं प्रार्थना करता था और इसलिए भी क्योंकि मेरे खिलाफ अदालत में मुकदमा चल रहा था। मुझ पर 11 अपराधों का इलज़ाम लगाया गया था और मेरा वकील साफ़ साफ़ कहता ष्ट था- “तुम जेल के बहुत करीब हो।”
उस दौरान मेरे पिता को अपने शराबीपन से छुटकारा मिल गया था। ‘एल्कोहलिक्स एनोनिमस प्रोग्राम’ के जरिए उन्होंने अपनी शराब की लत पर काबू पाया। उनके ठीक होने में मदद करने के लिए, उनके पास एक प्रायोजक जिम ब्राउन था, जो स्वयं एक गहरे विश्वास के अनुभव के बाद शराब की लत से मुक्त हुआ था। तब से वह लोगों को “मेडजुगोरजे” की तीर्थ में ले जा रहा था। मेरे पिता ने जिम से मुझे मेडजुगोरजे लाने के लिए कहा। जिम ने मेरे पिताजी से कहा कि वे हर रात रोज़री करते समय एक भेद मेरे लिए चढ़ाएँ। हालाँकि पहले जिम मेरी बदनामी के कारण मुझे तीर्थ में ले जाने में झिझक रहा था, फिर उसने मुझे एक मौका दिया।
हम 2005 के पास्का काल के दौरान मेडजुगोरजे गए, लेकिन मैं सिर्फ शराब पी रहा था, लड़कियों की तलाश कर रहा था; वास्तव में मैं किसी भी तरह के कार्यक्रम में भाग नहीं ले रहा था। तीसरे दिन, मैं उस पहाड़ी पर चढ़ा जो कथित तौर पर वह स्थान है जहाँ माता मरियम पहली बार छः लोगों को दिखाई दी थी। बहुत से लोगों को वहाँ बहुत सुन्दर-सा अनुभव होता है, लेकिन मुझे उस समय इसके बारे में जानकारी नहीं थी। मुझे नहीं पता था कि मैं क्या कर रहा था, लेकिन मेरा सामना जीवित-ईश्वर से हुआ। मुझे विश्वास का उपहार दिया गया। मेरे अन्दर से अचानक सारे संदेह दूर हो गए। मुझे अब पता चला कि ईश्वर सच में है, और मुझे माता मरियम से प्यार हो गया। मैंने इश्वर के असीम प्रेम को अनुभव किया, इसलिए मैं परिवर्तित व्यक्ति के रूप में उस पहाड़ से नीचे उतरा।
किसी व्यक्ति ने वर्षों बाद मुझसे कहा, “जब आप उस पर्वत से नीचे आए तो आप अलग थे, आप आँखों से संपर्क बनाए रखने में सक्षम हो रहे थे, आप स्वतंत्र और सहज बन गए थे। आप मन के उस भारीपन और उदासी से मुक्त होकर अधिक आनंदित लग रहे थे।” उसने मुझमें एक परिवर्तन देखा। मैं ईश्वरीय करुणा वाले रविवार की पूर्व संध्या पर संस्कारों में वापस आया, उस दिन संत जॉन पॉल द्वितीय की मृत्यु हुई। मैं उड़ाऊ पुत्र की तरह था, जो ईश्वर, अपने पिता के पास वापस आ रहा था।
मेडजुगोरजे से वापस आने के दो हफ्ते बाद, मुझे अदालत में पेश होना था। मैं अभी 18 साल का था जिसका मतलब था कि मुझे खुद के लिए खड़े होकर अपने बचाव में दलील पेश करना था। इसलिए यह काफी डरावना था। तीन पुलिसवाले, दो जासूस, अधीक्षक, जज, मेरे माता-पिता, मेरा वकील और कुछ पत्रकार वहां उपस्थित थे। जब भी मैं अपनी कहानी बताने के लिए अपना मुंह खोलता, तो पुलिसवाले टोकते हुए कहते थें, “यह आदमी समाज के लिए बहुत बड़ा खतरा है, इसे बंद करने की जरूरत है, यह बहुत विनाशकारी है और हम इसकी कई हरकतों से वाकिफ़ हैं।” वे मुझे टोकते रहे, इसलिए मैं कोई बात स्पष्ट रूप से व्यक्त नहीं कर सका। मैं बहुत घबराया हुआ था लेकिन वहाँ बहुत से लोग मेरे लिए दुआ कर रहे थे।
अचानक कुछ अजीब हुआ। जज जिनका नाम मैरी डेवन्स था, उन्होंने पुलिसवालों की ओर इशारा किया और उनसे बोली, “मैं ने बहुत कुछ सुना! मेरे अदालत से बाहर निकल जाओ।” वे एकदम सन्न हो गए। उनके जाने के बाद, वे मेरी ओर मुड़ी और बोली, “ठीक है, मुझे अपनी कहानी बताओ।” मैंने उन्हें बस इस बारे में बताया कि मैं किस प्रकार मेडजुगोरजे नामक तीर्थ स्थान गया और वहाँ के अपने अनुभवों के बारे में बताया। मैंने ईमानदारी से रोते हुए घोषणा की, “मुझे बस यह विश्वास है कि ईश्वर मेरे जीवन को बदलने जा रहा है।” उन्होंने मेरी आँखों में देखा और कहा, “मैं तुम्हें दूसरा मौका देने जा रही हूँ।” मुझे निलंबित सजा, 200 घंटे की सामुदायिक सेवा और एक साल के लिए नौ बजे की निषेधाज्ञा दी गयी। यही वह पल था! यही मेरे जीवन का अंतिम मौका था जिसकी मुझे जरूरत थी और मैंने इसे ले लिया।
पीछे मुड़कर देखने पर, और जो कुछ हुआ था उसका आध्यात्मिक रूप से विश्लेषण करने पर, मुझे लगता है कि उस दिन ईश्वर मेरा न्यायाधीश था। यह वही था जिसने मेरे हृदय में ईमानदारी देखी और हस्तक्षेप किया। मैरी डेवॉन्स सिर्फ उसकी दया का साधन थी। यह एक शक्तिशाली अनुभव था। वह दिन मेरा उद्धार का दिन था। और मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। मुझे एहसास हुआ कि मेरा जीवन एक उपहार है और सभी का जीवन एक उपहार है। हमने अपने अस्तित्व को प्रमाणित करने के लिए कुछ भी नहीं किया है। ईश्वर ने हमें मुफ्त में दिया है।
मैंने बाइबल का अध्ययन करने, संतों के जीवन को पढ़ने और अपने विश्वास को गहराई में लेकर जाने लगा। मैंने सन् 2000 ई. से युवा लोगों के समूहों को मेडजुगोरजे में ले जाना शुरू किया। हाल ही में, मैंने एक फादर को “परिवर्तन का चिन्ह क्या है?” इस प्रश्न का उत्तर देते हुए सुना, उन्होंने उत्तर दिया कि परिवर्त्तन का चिन्ह सुसमाचार का प्रचार करने की इच्छा है। यदि आपका सामना जीवित ईश्वर के साथ हुआ है, तो आप इस अनुभव को अपने तक नहीं रखें बल्कि इसे साझा करें। और मैं इसे साझा करना चाहता था क्योंकि मैं ईश्वर के प्रेम से प्रज्वलित था। और यही मेरे लिए वास्तविक उपहार है।
विश्वास ईश्वर के स्वयं प्रकटीकरण की प्रतिक्रिया है, जो ईश्वर जो हमारे लिए मर गया, जिसने हमें अपने लहू से खरीदा। मैं उस प्रेम को प्रतिदान करना चाहता हूँ, जो ईश्वर ने मेरे लिए क्रूस पर व्यक्त किया।
एक बाइबिल वचन है जिसने हमेशा मेरे दिल से बात की है। “पहले ईश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज में लगे रहो और बाकी सब चीज़ें तुम्हें यों ही मिल जायेगी।” तो अगर आप ईश्वर को पहला स्थान देते हैं, तो बाकी सब ठीक हो जाएगा। हम उदारता में ईश्वर से आगे नहीं निकल सकते। यह मेरा ईश्वरीय अनुभव है। यदि आप ईश्वर को एक मिलीमीटर देते हैं, तो वह आपको पूरा ब्रह्मांड देगा। जब हम ईश्वर को कुछ भी देते हैं, जैसे रोटियां और मछलियां, वह उसे कई गुना बढ़ा देगा। आप उदारता में उससे आगे नहीं निकल सकते।
अक्सर नवयुवकों में यह पूर्वकल्पित विचार होता है कि ईश्वर का अनुसरण करने का मतलब है कि सब कुछ त्याग देना, इसलिए जीवन नीरस और उदासहीन हो जाता है। लेकिन इसके ठीक उलट होता है। संत अगस्टीन कहते हैं, “ईश्वर के साथ प्यार में पड़ना सबसे बड़ी प्रेमलीला है, उसे खोजना सबसे बड़ा साहसिक कार्य है और उसे पाना सबसे बड़ी मानवीय उपलब्धि है।” तो, यह साहसिक कार्य है। ईश्वर के साथ रहना यकीनन एक साहसिक कार्य रहा है। इसलिए जब ईश्वर पहल करते हैं तब उसे उत्तर देने से न डरें।
'लिया डारो के साथ एक विशेष साक्षात्कार – अमेरिका के नेक्स्ट टॉप मॉडल प्रतियोगिता की पूर्व प्रतियोगी – जिसे मनपरिवर्तन का एक अद्भुत अनुभव हुआ जिसके कारण अप्रत्याशित रूप से उनका जीवन बदल गया
अपने पालन-पोषण के बारे में बताएं?
मैं अपने परिवार के साथ एक खूबसूरत कृषि स्थल में काम करते हुए बड़ी हुई हूं। हमारा कोई पड़ोसी नहीं था; लेकिन मैं अकेली नहीं थी क्योंकि मेरे भाई-बहन मेरे सबसे अच्छे दोस्त थे। मेरे माता-पिता ने अपने मजबूत कैथलिक विश्वास और धन्य माँ मरियम के प्रति समर्पण को हम सब के साथ साझा किया, वे हमें रविवार के मिस्सा बलिदान में लाये और हर रात पुरे परिवार ने एक साथ माला विनती की प्रार्थना की। लेकिन मैं लोगों को यह आभास नहीं देना चाहती कि हम फातिमा के बच्चों की तरह थे। मेरे माता-पिता हमेशा घर में विश्वास बनाए रखने का प्रयास करते थे।
यह वास्तव में एक सुंदर परवरिश थी। मेरे अच्छे और वफादार माता-पिता पूरे दिल से येशु से प्यार करते थे और हर दिन एक साथ प्रार्थना करते थे। उनके नमूने ने हमारे लिए एक मजबूत नींव रखी जिससे मुझे बाद के जीवन में मदद मिली। दुर्भाग्य से, इस अनुभव के बावजूद, मैं अपने विश्वास से दूर भटक गयी। हाई स्कूल में, मैंने कुछ बहुत ही खराब निर्णय लिए, जिसकी परिणति के रूप में मुझे 15 साल की उम्र में अपना कौमार्य खोना पड़ा। हमने जो सोचा था परिस्थितियाँ उससे बिलकुल भिन्न थीं। समय मायने रखता है। जिस कार्य के द्वारा हम अपने शरीर को एक दूसरे को दे देते हैं यदि उस कार्य की नियति अच्छी नहीं है, तो यह हमें अत्यधिक शर्म की भावना के साथ भर देता है। इस घटना ने मुझे एक महिला के रूप में मेरे अपने बारे में मेरे दृष्टिकोण बदल डाला और मुझे इतना परेशान किया कि मैंने हर उस चीज़ को दूर करने की कोशिश की जो मुझे याद दिलाती थी कि मैं एक पापिनी थी। प्रभु को अपनी पसंद के उन सभी दुर्भाग्यपूर्ण हिस्सों को देकर शुरू कर सकूं, इसके लिए पश्चाताप करने और ईश्वर की दया की तलाश करने के बजाय, मैंने शर्म की आवाज सुनी और उसी शर्म को ही मेरे जीवन को आगे बढाने के निर्णय को तय करने की अनुमति दी।
उस समय से, मैं अपने विश्वास और इसके अभ्यास से दूर चली गयी, हालाँकि जानती थी कि मेरे बचपन का विशवास और परम्परा ही सही है। लेकिन मुझे लगता था कि मेरे लिए कलीसिया में अब कोई जगह है, क्योंकि मैंने सोचा था कि मैंने सभी को निराश किया है, खासकर मेरे वफादार माता-पिता जिन्होंने मुझे वह सब अच्छी चीज़ें दी थी।
उस शर्म से भरे अनुभव के कारण मैंने अपने जीवन से ईश्वरीय दिशा निर्देशन को पूरी तरह से हटा दिया और दुनिया की ओर अपनी नज़र बढ़ाई ताकि मुझे दुनिया से ही मार्गदर्शन मिले। इन दिनों हमारे समाज और संस्कृति में महिलाओं की आवाज़ बुलंद सुनाई देती है, जो हमें लगातार यह बता रही है कि हमें क्या करना चाहिए, हमें क्या बनना चाहिए और यहां तक कि हमें कैसा दिखना चाहिए। मैंने येशु मसीह के बजाय इस समाज-संस्कृति से आध्यात्मिक मार्गदर्शन ढूंढा और इससे मेरे जीवन में ऐसे ऐसे विकल्प निकले जो निश्चित रूप से ईश्वर से दूर और विश्वास से भी दूर थे।
मॉडलिंग ने आपको कैसे प्रभावित किया?
हम ऐसी संस्कृति में रहते हैं जो विडंबनापूर्ण रूप से सुंदरता से ग्रस्त है, लेकिन यह टिकनेवाली सुंदरता नहीं है। यह हमारी सुविधानुसार चयनित, काल्पनिक और नकली है। ईश्वर ही सुंदरता का रचनाकार है, लेकिन हम शायद ही कभी उसे खोजने के लिए उसकी ओर देखते हैं। हम एक मनगढ़ंत, खाली संस्करण के पीछे पड़े हुए हैं। जब मैं छोटी थी, तो मुझे पत्रिकाओं के पन्ने पलटने का रोमांच याद आता है जिसमें फिल्मों और टीवी शो की महिलाओं को दिखाया जाता है जिन्होंने ग्लैमरस जीवन शैली का नेतृत्व किया। वे सिर्फ सुंदरता नहीं बेचती हैं। वे एक जीवन शैली बेच रही हैं – एक विचारधारा या जीवन का एक ख़ास तरीका, विशेष रूप से महिलाओं के लिए, जो कहती है कि परिवार, विवाह और बच्चे निश्चित रूप से पुराने दकियानूसी बातें हैं, आपकी खुशी की आकांक्षाओं में वे बाधा बनती हैं। इस विचार के अनुसार ,आपकी खुशी केवल बाहरी गुणों पर निर्भर करते हैं- आपके रूप, आपके कपड़े, आपकी नौकरी, आपकी परिस्थिति … दुख की बात है कि मैं उस झांसे में, उस चक्रव्यूह में और फंदे में उलझकर फंस गयी। मैंने कम उम्र में मॉडलिंग शुरू कर दी थी, जिसके कारण मुझे टीवी शो, अमेरिका की नेक्स्ट टॉप मॉडल के सीज़न तीन के लिए ऑडिशन देने का मौक़ा मिला। मैं चुनी जाने पर अत्यधिक उत्साहित थी, लेकिन मैं उस दर्दनाक अनुभव के लिए तैयार नहीं थी जो किसी भी रियलिटी टीवी शो में भाग लेने पर मिलता है, जिसमे प्रतिभागियों के फुटेज के साथ छेड़छाड़ करके और संदर्भ से बाहर उसे प्रसारित करके नाटक का निर्माण होता है। आखिरकार मुझे शो से बाहर कर दिया गया, मैंने फैसला किया कि मैं न्यूयॉर्क में रहने और अपने करियर को आगे बढ़ाने के लिए अपनी कड़ी मेहनत से जीते गए हाई प्रोफाइल का उपयोग करने की हकदार हूं।
इस मुकाम पर पहुँचने के बाद – मैंने लगभग 10 वर्षों के लिए अपने विश्वास को त्याग दिया था, मैं गिरजाघर नहीं जाती थी, संस्कारों को ग्रहण नहीं करती थी और प्रार्थना बिल्कुल भी नहीं करती थी। उस गहरे आध्यात्मिक रिश्ते से मैं बुरी तरह वंचित रह गयी। मेरी आत्मा इसके लिए तरस रही थी, लेकिन लज्जाजनक यादों ने मुझे पीछे धकेल दिया, “जब तुम छोटी थी तब तुम ने अपने कौमार्य को खो दिया, और तुम्हारा लगातार नैतिक पतन होता रहा, इसलिए तुम्हारे लिए अब कोई उम्मीद नहीं है। बस इस नए बिगड़े जीवन में ही बने रहो और इसका सर्वोत्तम दोहन कर उसे लूट लो।” इसलिए, मैंने यही किया, मेरे दिल में छिपे दर्द को नजरअंदाज किया जबकि इसे येशु के द्वारा ठीक किया जा सकता था, और मैं अंदर से कितनी मरी हुई महसूस कर ही थी, इस पर पर्दा डालकर उसे ढकने की कोशिश कर रही थी।
आप वह जीवन जी रही थी जिस जीवन का ज्यादातर लोग सपना देखते हैं – एक खूबसूरत मॉडल होने के नाते, टाइम्स स्क्वायर में आपकी छवि प्रसारित जी जा रही थी, जिस से आप बहुत पैसा कमा रही थी और फिर भी आप खुश नहीं थी?
अंदर से, मैं बेहद नाखुश और दुखी थी। जब मैं मॉडलिंग कर रही थी तब मैं खुश होने का नाटक करने में आश्चर्यजनक रूप से अच्छी थी। वास्तव में, न्यूयॉर्क में मेरा जीवन तेजी से बिगड़ रहा था क्योंकि मैं एक ऐसी जीवन शैली में डूब गयी थी जिसमें भयंकर अकेलापन है। वह जीवन जो आपको उन चीज़ों से भर देता है जिससे आप जबरन नकली रूप से खुश किये जाते हैं, वह पूरी तरह नकली था, वह ख़ुशी का सिर्फ दिखावा था, वहां किसी प्रकार का सच्चा आनंद नहीं था। मुझे न तो सच्ची खुशी थी और न ही शांति और मैं गहरे अवसाद और आत्मघाती विचारों से उत्पीडित महसूस कर रही थी।
किसी ऐसी चीज को पीछे छोड़ने के लिए बहुत साहस चाहिए जिसके लिए आपने निश्चित रूप से वर्षों की कड़ी मेहनत की थी। वास्तव में आपको अपने मॉडलिंग करियर से दूर जाने के लिए क्या प्रेरित किया?
पहला उत्तर है, ईश्वर की कृपा। वास्तव में ईश्वर की कृपा ने ही मुझे इससे दूर जाने के उस साहसी निर्णय लेने के लिए मजबूत किया। यह एक फोटोशूट के ठीक बीच में हुआ। मैंने सचमुच अपने दिल में इन शब्दों को सुना, “मैंने तुम्हें और बेहतर कार्य के लिए बनाया है …” और मैं इस आवाज़ को अनदेखा नहीं कर सकी। अचानक मेरी अंतरात्मा की गहराई में कुछ प्रज्वलित हुआ – कुछ ऐसा जो मुझ में पहले से विद्यमान था जिसे मैं अपनी आत्मा में पूरी तरह से भूल गयी थी। मुझे पता था कि यह सत्य की आवाज़ थी। मैं फोटोशूट के बीच में थी और यह किसी प्रकार के आध्यात्मिक चमत्कार के घटित होने के लिए यह उत्तम समय और स्थान नहीं था, फिर भी मैं इसे अनदेखा नहीं कर सकती थी। मैंने फोटोग्राफर की तरफ देखा और कहा, “मुझे जाना है…” सेट पर मेरे आस-पास का हर कोई हैरान था। मुझे यकीन है कि वे सोच रहे थे, “तुम पागल हो गयी हो, या तुम्हारे दिमाग में कुछ अजीब हरकत हो रही है।” उन्होंने मुझे बाहर जाकर थोड़ा पानी पीने और उसके बाद वापस आने के लिए प्रोत्साहित किया, लेकिन मैंने मना कर दिया। मैंने अपनी सारी चीजें बटोर लीं, फोटोशूट छोड़ दिया और उस जीवन शैली से बाहर निकल कर घर की ओर चल दिया।
मैंने सबसे पहले, अपने पिताजी को फोन करके बुलाया। मुझे लगा कि यह अनुभव एक सच्चा आध्यात्मिक, मानसिक और शारीरिक जागृति का कार्य था। ईश्वर ने मुझे यह देखने का अनुग्रह दिया कि मेरा जीवन वास्तव में कैसा था, और यह कैसे टूट कर बिखर रहा था। मैं पिछले वर्षो लगातार अपने आप से झूठ बोल रही थी कि सब कुछ ठीक है और मेरी जिंदगी ठीक है, लेकिन ऐसा नहीं था। तो, सचमुच यह ईश्वर की कृपा थी, जिसने मुझे वह साहसी निर्णय लेने में मदद की। हर श्रेय उसी को जाता है!
पिताजी ने अपना सारा काम छोड़ दिया और सीधे मेरे पास आ गए। सबसे पहले वे मुझे पाप स्वीकार संस्कार में ले जाना चाहते थे। मुझे याद है कि उस समय मैं सोच रही थी, “कलीसिया को मेरी जैसी लड़की नहीं चाहिए। कलीसिया केवल उन पवित्र लोगों के लिए है जो हमेशा वफादार रहे हैं।” लेकिन पिताजी ने मुझे बड़ी कोमलता से देखा और कहा, “लिआ, तुमने फोन किया और तुम घर आना चाहती थी। मैं यहां तुम्हें घर ले जाने के लिए आया हूं। येशु और कैथलिक कलीसिया तुम्हारा घर हैं।” उस समय मुझे एहसास हुआ कि पिताजी सही कह रहे थे। यह सच था, मैं घर आ गयी थी और पिताजी मेरे वापस आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। न्यूयॉर्क छोड़ने से पहले, मैंने परमेश्वर को वह सब कुछ दिया, जिन बातों से मैं गुज़री थी और मैंने उससे कहा कि वह मुझे वापस ले। यह आसान नहीं था, और मैं यह दिखावा नहीं करने जा रही हूं कि यह आसान था, लेकिन ईश्वर हमसे यही माँगता है। वह यह सब चाहता है, जिसमें सारी गंदगी भी शामिल है। उस पाप स्वीकार संस्कार में प्रवेश करना, कैथलिक विश्वास के लिए घर जाने के रास्ते में मेरा पहला कदम था।
उस पाप स्वीकार संस्कार के बाद मुझे सचमुच ऐसा लगा कि मैं घर आ गयी हूँ — कैथलिक चर्च में मैं वापस आ गयी हूँ। मैंने यह कहते हुए स्वयं से मेलमिलाप कर लिया “ठीक है, ईश्वर। तू सही है। मैं गलत हूँ। कृपया मेरी मदद कर।” इससे मेरे आत्मविश्वास और मेरी भावना नवीनीकृत हो गए और मैं कहने लगी “मैं यह करना चाहती हूं।” मैं अब यह कहने से नहीं डरती थी, “मैं एक मसीही हूं…मैं एक कैथलिक हूं”। मैं एक मसीही की तरह दिखना चाहती थी, एक मसीही की तरह काम करना और एक मसीही की तरह बात करना चाहती थी। इसलिए जब मैं वापस आयी, तो मैंने उन गुणों के पुनर्वास और सुदृढ़ीकरण पर ध्यान केंद्रित किया जिनका मैंने अपने पिछले पापपूर्ण कार्यों से विरोध किया था। मुझे अपने जीवन में साहस लेने, सही बात कहने और ईमानदार होने के लिए शुद्धता का पुनर्वास करना था। मुझे अपने निर्णयों में विवेकपूर्ण होना था और आत्म-नियंत्रण और संयम विकसित करना था ताकि मेरे जुनून मुझे नियंत्रित न कर सकें, ताकि मैं आत्म संयम और प्रभु के नियंत्रण में रह सकूं। मसीही के रूप में हम यही कार्य करने के लिए बुलाये गए हैं।
बाद के वर्षों में, ईश्वर ने मुझे अच्छे अवसर प्रदान किए, जिससे मैं ने संयमित और सौम्य फैशन, सद्गुण और शुद्धता के बारे में लोगों से बात की, व्याख्यान दिया। मुझे यकीन नहीं था कि मुझे पहले ऐसा करना चाहिए, लेकिन मुझे पवित्र आत्मा से प्रेरणा मिलती रही। उस समय मैं अपनी कॉलेज की डिग्री के बलबूते एक नौकरी में पूर्णकालिक काम कर रही थी, और मैं कोई प्रेरितिक काम नहीं कर रही थी। धीरे-धीरे, सभाओं को संबोधित करने के मेरे कार्य अधिक बढ़ते गये। तब तक यह स्पष्ट हो गया कि परमेश्वर मुझे पूर्णकालिक कार्य के लिए बुला रहा है। और मैंने परमेश्वर से कहा, “तू मुझे यहाँ तक ले आया और तू मुझे और आगे ले जाता रहेगा”। और उसने ऐसा ही किया। मैंने परमेश्वर के प्रेम और दया के बारे में और कैसे हम पवित्रता और विश्वास में जीने के लिए ईमानदार और बिना किसी समझौता के निर्णय ले सकते हैं, इन विषयों पर बात करने के लिए दुनिया की यात्रा की है।
क्या आप हमें अपने पॉडकास्ट, लक्स पहल और उन सभी परियोजनाओं के बारे में बता सकती हैं जिन पर आप वर्तमान में काम कर रही हैं?
महिलायें जिस माहौल में हैं, वहां उनके बीच में ख्रीस्त को पहुँचाने के लिए ये सारी परियोजनाएं हैं। आइए पॉडकास्ट के साथ शुरू करते हैं जिसे “कुछ सुंदर कार्य करो” कहा जाता है। आप इसे किसी भी पॉडकास्ट प्लेटफॉर्म से प्राप्त कर सकते हैं। कई तरह के लोग हैं जो महिलाओं को अपने जीवन के साथ कुछ सुंदर कार्य करने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं, मैं उन लोगों का साक्षात्कार करती हूं ताकि महिलायें समझें कि हम दुनिया में प्रभु येशु ख्रीस्त और अन्य लोगों के लिए क्या कर सकती हैं। सच्ची सुंदरता ईश्वर की सुंदरता का प्रतिबिंब है और इसके दो गुण हैं – पूर्णता और पवित्रता – पूर्णता वह गुण है जिस केलिए और जिस रूप में ख्रीस्त ने हमें बनाया है, और हम महिलाओं को सद्गुणों के अभ्यास के माध्यम से पवित्रता के लिए प्रयास करना भी है।
एक नई पहल है लक्स कैथलिक ऐप — कैथलिक महिलाओं के लिए एक मुफ्त ऐप, जहां हर शाम हम दुनिया भर की महिलाओं के साथ रोज़री माला की प्रार्थना की जाती हैं। एक दूसरे के इरादों के लिए प्रार्थना करने हजारों महिलाएं हमारे साथ शामिल हुई हैं, जिससे मसीह के शरीर अर्थात कलीसिया के भीतर गहरा रिश्ता बुना गया है।
मैं इसके अलावा, “पावर मेड परफेक्ट” नामक हमारे नए कार्यक्रम के बारे में आपको बताने के लिए उत्साहित हूं – यह एक पहला कैथलिक व्यक्तिगत विकास कार्यक्रम है! व्यक्तिगत विकास का सर्वोत्तम लाभ उठाते हुए और सब कुछ पवित्र बाइबल से जोड़ते हुए, जीवन को बदलने में मदद करने के लिए, येशु मसीह की शक्ति पर भरोसा करते हुए हम इस नए उद्यम को शुरू करने वाली हैं।
यदि आप मेरी गवाही को पढ़ रहे हैं, तो जान लें कि हम भी आज आपके लिए प्रार्थना कर रही हैं। आप अकेले नहीं हैं। यदि आप निराश महसूस करते हैं, तो मैं आपको बताना चाहती हूं कि प्रभु येशु मसीह हमेशा आपके लिए हैं। वे हमेशा आपकी ओर हाथ बढ़ा रहे हैं। आपको केवल उसके पास पहुंचने की जरूरत है और वह आपको अपने पवित्र हृदय के निकट खींच लेंगे।
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