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अगस्त 20, 2021 1686 0 Mario Forte
Encounter

मैं अंधा हूं, फिर भी मुझे दिखाई देता है

मारियो फोर्ट ने अपने जीवन का साक्ष्य देते हुए कहा : “मैं अपनी दृष्टि नहीं बल्कि अपने विश्वास के सहारे आगे बढ़ता हूं”।

मुझे जन्म से ही ग्लूकोमा था, इसलिए मेरे जीवन की शुरुआत से ही मुझे अपनी बाईं आंख से थोड़ा थोड़ा और दाईं आंख से कुछ भी नही दिखता था। जैसे जैसे साल गुज़रते गए मेरी आंखों के ऑपरेशन होते गए। कुल मिला कर मेरी तीस से ज़्यादा सर्जरियां हुई हैं। मेरी पहली सर्जरी तब हुई जब मैं तीन महीने का था। जब मैं सात साल का था तब डॉक्टरों ने इस उम्मीद में मेरी दाईं आंख निकाल दी कि शायद ऐसा करने से मेरी बाईं आंख बच जाएगी। जब मैं बारह साल का था, स्कूल से घर जाते वक्त मैं सड़क पार कर रहा था, तब एक गाड़ी ने मुझे टक्कर मार दी। धक्के की वजह से मैं हवा में उछल कर बड़ी ज़ोर से ज़मीन पर जा गिरा, जिससे मेरी आंख पर बड़ी गहरी चोट आई। इन सब की वजह से मेरी और सर्जरियां हुईं, मुझे तीन महीने तक स्कूल से छुट्टी लेनी पड़ी, जिसकी वजह से मुझे सातवी कक्षा की परीक्षाएं फिर से देनी पड़ीं।

सब कुछ संभव है

जब मैं छोटा बच्चा था, तब यह अंधापन मेरे लिए बिल्कुल सामान्य सी बात थी, क्योंकि मैं अपनी दृष्टि को किसी और की दृष्टि से तोल तो नहीं सकता था। लेकिन फिर ईश्वर ने मुझे अंतर्दृष्टि दी। बहुत छोटी उम्र से ही बिना किसी के सिखाए मैं ईश्वर से उसी तरह बात किया करता था, जिस तरह मैं हर उस इंसान से बात करता था जिसे मैं ठीक से देख नही पाता था।

पहले मैं बस अंधेरे और रौशनी में फर्क कर पाता था। पर एक दिन, पलक झपकते ही मेरी आंखों के सामने ऐसा अंधेरा छा गया जैसे किसी ने कमरे की बत्ती बुझा दी हो। और हालांकि तब से ले कर आज तक लगभग तीस साल मैंने इसी अंधियारे में काटे हैं, फिर भी ईश्वर की कृपा मुझे हिम्मत के साथ आगे बढ़ने में मदद करती है। अब मैं दुनिया की रौशनी को नहीं, बल्कि ईश्वर की रौशनी को देखता हूं। बिना ईश्वर के, मैं एक लकड़ी के टुकड़े से बढ़ कर नहीं हूं। पवित्र आत्मा मेरे लिए सब कुछ संभव बनाती है।

कभी कभी लोग भूल जाते हैं कि मैं अंधा हूं क्योंकि मैं घर में चल फिर पाता हूं, मैं कंप्यूटर चला लेता हूं और अपना खयाल भी खुद रख लेता हूं। इन सब का श्रेय मेरे माता पिता को जाता है, जिन्होंने मुझे हमेशा हर काम खुद से करने के लिए प्रोत्साहित किया। मेरे पिता बिजली का काम करते थे और वे अक्सर मुझे अपने साथ काम पर ले जाते थे ताकि मैं उनके काम के बारे में सीख सकूं। उन्होंने ही मुझे बिजली के कई काम खुद करने सिखाए। उन्होंने मुझे अपने दिमाग से फैसले लेने सिखाए, ताकि मैं सोच समझ कर चीज़ें अपने आप ही ठीक कर सकूं। मेरी मां ने अपने प्यारे स्वभाव के द्वारा मुझमें विश्वास के बीज बोए। मां हमारे साथ हर दिन रोज़री माला और करुणा की माला बोला करती थी, इसीलिए ये दो प्रार्थनाएं मुझे आज भी मुंह ज़बानी याद है।

इन्हीं सब की बदौलत मैंने मेहनत कर के आईटी की डिग्री हासिल की। उन्हीं के प्रोत्साहन की वजह से मैं अपने शिक्षकों से मदद ले पाया। इसके बाद हम लाइब्रेरी जा कर नोट्स जमा किया करते थे, ताकि रॉयल ब्लाइंड सोसाइटी उन नोट्स को मेरे लिए ब्रेल लिपि में तैयार कर सके।

ईश्वर का बुलावा

अपनी युवावस्था में मेरे साथ एक ऐसा अनुभव हुआ जहां मुझे ईश्वर की पुकार सुनाई दी। उस वक्त मुझे मेरी बाईं आंख से थोड़ा थोड़ा दिखाई देता था। उस वक्त मैं चर्च में प्रार्थना कर रहा था जब अचानक वेदी चमक उठी और मुझे एक आवाज़ सुनाई दी जो कह रही थी, “आओ, मेरे पास आओ।” ऐसा तीन बार हुआ। तब से मुझे खुद पर ईश्वर के प्रेम और कृपा भरे हाथ का अनुभव होता है।

इस बुलावे ने मुझे यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि शायद मैं पुरोहित बन सकता हूं। दूर से तो यह असंभव लग रहा था, पर ईशशास्त्र या थियोलजी की पढ़ाई ने मेरे विश्वास को दृढ़ किया। मैं अपने पल्ली पुरोहित के समर्थन से एक चमत्कारिक प्रार्थना सभा में पवित्र कृपा की प्रार्थना का मार्गदर्शन करने लगा। और चाहे मुझे कितनी भी दुख तकलीफों का सामना करना हो, फिर भी मुझे इस बात की खुशी है कि मैं ईश्वर की सेवा कर पा रहा हूं। और जिन लोगों से मैं पवित्र कृपा की आराधना, रात्रि आराधना, और चालीस दिन की प्रार्थनाओं के वक्त मिला, आगे चल कर उन्हीं लोगों ने तब मेरी मदद की जब मेरे माता पिता, मेरी बहन और मेरी भतीजी की मृत्यु हुई। अब ये अंजान लोग ही मेरा परिवार हैं, और वे मेरी रोज़मर्रा की ज़रूरतों से ले कर आने जाने की सारी समस्याओं का खयाल रखते हैं।

 दिल की गहराई में

जब मेरी आंखों की रौशनी चली गई थी, तब मेरी ज़िंदगी की सबसे बुरी घटना वह नही थी, बल्कि जब मैंने अपने सबसे करीबी लोगों को खो दिया, तब मुझे लगा कि यह सव से बुरी घटना है। इसीलिए मैं ईश्वर का शुक्रगुज़ार हूं कि उन्होंने मुझे ऐसे दोस्त दिये, जो मेरे साथ मेरे अपनों की कब्र पर गए और उनकी आत्माओं के लिए करुणा की माला वाली प्रार्थना बोले। मैं हमेशा सकारात्मक चीज़ों पर ध्यान लगाने की कोशिश करता हूं। मैं उन चीज़ों पर ध्यान देता हूं जो मेरे पास है, ना कि उन पर जो मुझे नही दी गई हैं। मैं अपनी पूरी कोशिश करता हूं कि ईश्वर के दूसरों से अपने जैसा प्रेम करने की इश्वर की आज्ञा का पालन कर सकूं। हर दिन मेरी कोशिश रहती है कि मैं ईश्वर को प्रथम स्थान पर रखूं और उनके सुसमाचार के हिसाब से कार्य करूं।

संत पौलुस ने कहा है, “हम आंखों देखी बातों पर नही, बल्कि विश्वास पर चलते हैं” (2 कुरिंथियों 5:7)। मैं अक्सर मज़ाक मज़ाक में कहता हूं कि मैं सच में ऐसे ही चल फिर पाता हूं। यह छोटा सा वचन कितना गहरा है। हमें अपनी मेहनत का फल इस जीवन में देखने को नही मिलेगा। फिर भी, ईश्वर की दाखबारी में काम करने में कितना आनंद है। येशु ने मेरे लिए दुख उठाया और मरे। हर एक व्यक्ति यह कह सकता है।  जो कोई भी ईश्वर को जानना चाहता है वह आ कर उसे ग्रहण कर सकता है। मैं ईश्वर को धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने हमें यह मौका दिया है कि हम उसकी महिमामय उपस्थिति में भाग ले सकते हैं। उसका जीवित वचन हमें पुनरुत्थान की आशा से भरता है, ताकि हम हर दिन उसकी उपस्थिति में गुज़ार सकें और उसके प्रेम के नियम का पालन कर सकें। यह सब सोच कर मेरा दिल ईश्वर की प्रशंसा में गा उठता है आलेलुयाह !

हे सर्वशक्तिमान शाश्वत ईश्वर, अपने परम प्रिय पुत्र के हृदय पर दृष्टि डाल और जो स्तुति तथा प्रायश्चित पापियों के नाम पर उन्होंने तुझे चढ़ाया है, उस पर भी ध्यान दे। इससे प्रसन्न हो कर तेरी दया मांगने वालों को क्षमा कर। यह निवेदन हम करते हैं, उन्हीं प्रभु ख्रीस्त के द्वारा, जो तेरे तथा पवित्र आत्मा के साथ युगानुयुग जीते और राज्य करते हैं। आमेन।

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Mario Forte

Mario Forte Article is based on the interview given by Mario Forte for the Shalom World TV program “Triumph”. To watch the episode visit: shalomworld.org/episode/mario-forte

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