Home/Evangelize/Article
Trending Articles
“मैं एक कैथलिक हूं और मैं ख़ुशी ख़ुशी परमेश्वर के लिए मर जाऊंगा। अगर मेरे पास एक हजार जीवन होते, तो मैं वे एक हज़ार जीवन परमेश्वर को अर्पित कर देता।“
ये उस आदमी के मरते हुए शब्द थे जिस को यह निर्णय लेने का अवसर दिया गया था कि उसे जीना है या मरना है।
लोरेंजो रुइज़ का जन्म 1594 में मनीला में हुआ था। उनके चीनी पिता और फिलिपिनो माँ दोनों कैथलिक थे। बचपन में उसे डोमिनिकन फादर लोगों ने शिक्षा दी, उसने वेदी सेवक और गिरजाघर- परिचर के रूप में सेवा की, और अंततः एक पेशेवर सुलेखक (कैलीग्राफेर) बन गया। लोरेंजो अति पवित्र रोज़री माला संघ के एक सदस्य थे, उन्होंने रोसारियो के साथ शादी की और उन दोनों के दो बेटे थे।
सन १636 में उनके जीवन में एक दुखद मोड़ आया। उन पर हत्या का झूठा आरोप लगाया गया। उन्होंने तीन डोमिनिकन पादरियों की मदद मांगी, जो जापान के लिए एक मिशनरी यात्रा करने वाले थे, जबकि उन दिनों जापान में ईसाइयों पर क्रूर उत्पीड़न का दौर चल रहा था। लोरेंजो को जापान की और यात्रा का तब तक कोई अंदाजा नहीं था। नाव जापान की ओर रवाना होने के बाद ही लोरेंजों को उसके और उसके समूह की यात्रा का मंजिल और वहां के खतरे के बारे में पता चला।
जापानियों को डर था कि स्पेन ने जिस तरह फिलीपींस पर आक्रमण किया था, उसी तरह जापान पर भी आक्रमण करने केलिए धर्म का उपयोग किया जाएगा, इसलिए जापान ने ईसाई धर्म का जमकर विरोध किया। मिशनरियों को जल्द ही ढूंढा गया, कैद किया गया, और कई क्रूर यातनाओं के अधीन किया गया। उत्पीडन का एक यह भी तरीका था कि मिशनरियों के गले में भारी मात्रा में पानी डाला जाता, फिर सैनिक बारी-बारी से मिशनरियों के पेट पर रखे बोर्ड के आर-पार खड़े हो जाते, जिससे उनके मुंह, नाक और आंखों से पानी तेजी से बहता।
अंत में, उन्हें एक गड्ढे के ऊपर उल्टा लटका दिया गया, उनके शरीर को कसकर बांधे गए, जिससे उनके शरीर में रक्त का धीमी गति से परिसंचरण होता था, लंबे समय तक दर्द और धीमी गति से मृत्यु होती थी। लेकिन पीड़ित का एक हाथ हमेशा खुला छोड़ दिया जाता था, ताकि वह पीछे हटने के अपने इरादे का संकेत दे सके। न तो लोरेंजो और न ही उनके साथी पीछे हटे। वास्तव में, जब उसके उत्पीड़कों ने उससे पूछताछ की और जान से मारने की धमकी दी, तो उसका विश्वास और मजबूत हो गया। ये पवित्र शहीद तीन दिनों तक गड्ढे के ऊपर लटके रहे। तब तक, लोरेंजो मर चुका था और जो तीन पुरोहित अभी भी जीवित थे, उनके सिर काट दिए गए थे।
उनके विश्वास का एक त्वरित त्याग उनके जीवन को बचा सकता था। इसके बजाय, उन्होंने शहीद का मुकुट पहनकर मरना चुना। उनकी वीरता हमें साहस के साथ और बिना समझौता किए अपने विश्वास को जीने के लिए प्रेरित करे।
Shalom Tidings
आप चाहे जिस भी परिस्थिति से गुज़र रहे हों, परमेश्वर वहाँ भी रास्ता बना देगा जहाँ कोई रास्ता नज़र नहीं आता… आज, मेरा बेटा आरिक अपनी श्रुतलेख की कॉपी (डिक्टेशन बुक) लेकर घर आया। उसे 'अच्छा' टिप्पणी के साथ लाल सितारा मिला। शायद यह किंडरगार्टन में पढनेवाले किसी बच्चे के लिए कोई बड़ी बात नहीं हो सकती है, लेकिन हमारे लिए, यह एक शानदार उपलब्धि है। स्कूल जैसे आरम्भ हुआ, पहले सप्ताह में ही, मुझे उसके क्लास टीचर का फोन आया। मेरे पति और मैं इस कॉल से घबरा गए। जब मैंने उसके शिक्षक को उसके संचार कौशल की कमी के बारे में समझाने की बहुत कोशिश की, तो मैंने कबूल किया था कि जब मैं विकलांगता के साथ जन्मी उसकी बड़ी बहन की विशेष ज़रूरतों की परवाह और देखभाल करती थी, तो मैं मुझसे बिन मांगे ही उसकी ज़रूरतों की पूर्ती केलिए काम करने की आदत में पड़ गई थी। चूँकि आरिक की दीदी एक भी शब्द नहीं बोल पाती थी, इसलिए मुझे उसकी ज़रूरतों का अंदाज़ा लगाना पड़ता था। आरिक के जीवन के शुरुआती दिनों में उसके लिए भी यही तरीका जारी था। इससे पहले कि वह पानी मांगे, मैं उसे पानी पिला देती। हमारे बीच एक ऐसा रिश्ता था जिसे शब्दों की ज़रूरत नहीं थी, यह प्यार की भाषा थी, या ऐसा मुझे लगता था। लेकिन चीज़ें मेरी सोच से बिलकुल उलटकर आ गयी , मैं पूरी तरह से गलत थी! थोड़ी देर बाद, जब उसका छोटा भाई अब्राम तीन महीने का हो गया, तो मुझे स्कूल में काउंसलर से मिलने के लिए फिर से वही भारी कदम उठाने पड़े। इस बार, यह आरिक के खराब लेखन कौशल के बारे में था। उसकी प्यारी क्लास टीचर घबरा गई जब उसने देखा कि उसने अपनी पेंसिल टेबल पर रख दी और ज़िद करते हुए अपने हाथ जोड़ लिए जैसे कि कह रहा हो: “मैं नहीं लिखूँगा।” हमें इसका भी डर था। उसकी छोटी बहन अक्षा दो साल की उम्र में ही लिखने में माहिर थी, लेकिन आरिक पेंसिल भी नहीं पकड़ना चाहता था। उसे लिखना बिल्कुल पसंद नहीं था। पहला कदम काउंसलर से निर्देश प्राप्त करने के बाद, मैं प्रिंसिपल से मिली, जिन्होंने जोर देकर कहा कि अगर उसकी संचार क्षमता कमज़ोर बनी रही, तो हमें उसका गहन जांच करवानी चाहिए। उन दिनों मैं इसके बारे में सोच भी नहीं सकती थी। हमारे लिए, वह एक चमत्कारी बच्चा था। हमारे पहले बच्चे के साथ हमने बहुत कष्ट झेले थे और उसके बाद तीन गर्भपात हुए, लेकिन आरिक ने सभी बाधाओं को पार कर लिया था। डॉक्टरों ने जो भविष्यवाणी की थी, उसके विपरीत, वह पूर्ण अवधि में पैदा हुआ था। जन्म के समय उसकी महत्वपूर्ण अंग सामान्य थे। "यह बच्चा कुछ ज़्यादा ही बड़ा है!" डॉक्टर ने सी-सेक्शन ऑपरेशन के ज़रिए उसे बाहर लाते हुए कहा। हमने उसे लगभग साँस रोककर कदम दर कदम बढाते देखा, यह प्रार्थना करते हुए कि कुछ भी गलत न हो। आरिक ने जल्द ही अपने सभी मील के पत्थर हासिल कर लिए। हालाँकि, जब वह सिर्फ़ एक साल का था, तो मेरे पिता ने कहा था कि उसे स्पीच थेरेपी की ज़रूरत हो सकती है। सिर्फ एक साल की उम्र में यह जांच करना ठीक नहीं है, ऐसा कहकर मैं ने उस सुझाव को टाल दिया। सच तो यह था कि मेरे पास एक और समस्या का सामना करने की ताकत नहीं थी। हम पहले से ही अपने पहले बच्चे के साथ होने वाली सभी परेशानियों से थक चुके थे। अन्ना का जन्म निर्धारित समय से 27 सप्ताह पहले हुआ था। एन.आई.सी.यू. में कई दिनों तक रहने के बाद, तीन महीने की उम्र में उसे गंभीर मस्तिष्क क्षति का पता चला और उसे मिर्गी के दौरे पड़ने लगे। सभी उपचारों और दवाओं के बाद, हमारी 9 वर्षीय बेटी अभी भी सेरेब्रल पाल्सी और बौद्धिक विकलांगता से जूझ रही है। वह बैठने, चलने या बात करने में असमर्थ है। अनगिनत आशीर्वाद अपरिहार्य को टालने की एक सीमा होती है, इसलिए छह महीने पहले, हम अनिच्छा से आरिक को प्रारंभिक जांच परीक्षण के लिए ले गए। ADHD (अवधानता, अतिसक्रियता-आवेगशीलता) का निदान कठिन था। हमें इसे स्वीकार करने में कठिनाई हुई, लेकिन फिर भी हमने उसे स्पीच थेरेपी की प्रक्रिया से गुज़रने दिया। उस अवसर पर, वह सिर्फ कुछ ही शब्द बोल पा रहा था। कुछ दिन पहले, मैंने आरिक के साथ अस्पताल जाने और पूर्ण गहन जांच करने का साहस जुटाया। उन्होंने कहा कि उसे हल्का ऑटिज़्म है। जब हम जांच की प्रक्रिया से गुजर रहे थे, तो कई सवाल पूछे गए। मुझे आश्चर्य हुआ, इनमें से अधिकांश सवालों के लिए मेरी प्रतिक्रिया थी: "वह ऐसा करने में सक्षम नहीं था, लेकिन अब वह कर सकता है।" प्रभु की स्तुति हो! आरिक के अन्दर विराजमान पवित्र आत्मा की शक्ति से, सब कुछ संभव हुआ। मेरा मानना है कि स्कूल जाने से पहले हर दिन उसके लिए प्रार्थना करने और उसे आशीर्वाद देने से एक बड़ा बदलाव लाया। जब उसने बाइबल की आयतें याद करना शुरू किया तो यह बदलाव क्रांतिकारी था। और सबसे अच्छी बात यह है कि वह उन आयतों को ठीक उसी समय पढ़ता है जब मुझे उनकी ज़रूरत होती है। वास्तव में, परमेश्वर का वचन जीवित और सक्रिय है। मेरा मानना है कि परिवर्तन जारी है। जब भी मैं उदास महसूस करती हूँ, तो परमेश्वर मुझे आश्चर्यचकित कर देता है और उसे एक नया शब्द कहलवाता है। उसके नखरे के बीच, और जब सब कुछ बिखरता हुआ लगता है, मेरी छोटी लड़की, तीन साल की अक्षा, बस मेरे पास आती है और मुझे गले लगाती है और मुझे चूमती है। वह वास्तव में जानती है कि अपनी माँ को कैसे दिलासा देना है। मेरा मानना है कि परमेश्वर निश्चित रूप से हस्तक्षेप करेगा और हमारी सबसे बड़ी बेटी, अन्ना को भी ठीक करेगा, क्योंकि उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं है। परिवर्तन पहले से ही दिखाई दे रहा है - मिर्गी के दौरे की संख्या में काफी कमी आई है। हमारे जीवन की यात्रा में, हो सकता है कि चीजें उम्मीद के मुताबिक न चल रही हों, लेकिन ईश्वर हमें कभी नहीं छोड़ता या त्यागता। ऑक्सीजन की तरह जो ज़रूरी तो है लेकिन अदृश्य है, ईश्वर हमेशा मौजूद है और हमें वह जीवन देता है जिसकी हमें बहुत ज़रूरत है। आइए हम उससे चिपके रहें और अंधेरे में संदेह न करें। हमारी गवाही इस सच्चाई को उजागर करे कि हमारा ईश्वर कितना सुंदर, अद्भुत और प्रेममय है और वह हमें कैसे बदल देता है ताकि हम कहें: "मैं ... था, लेकिन अब मैं ... हूँ।"
By: Reshma Thomas
Moreप्रश्न - पवित्र यूखरिस्त में मसीह की वास्तविक उपस्थिति में अधिक विश्वास को प्रेरित करने के प्रयास में इन दिनों संयुक्त राज्य अमेरिका तीन साल का "यूखरिस्तीय पुनर्जागरण" अभियान चला रहा है। ऐसे कौन से पारंपरिक तरीके हैं जिनसे मेरा परिवार यूखरिस्त के प्रति अधिक श्रद्धा का अभ्यास कर सकता है? उत्तर - एक कैथलिक अध्ययन में कहा गया है कि केवल एक-तिहाई कैथलिक विश्वास करते हैं कि येशु मसीह वास्तव में पवित्र यूखरिस्त में मौजूद हैं। इसलिए इस के प्रत्त्युत्तर में, कलीसिया वह बात फिर से जागृत करने की कोशिश कर रही है जिसे संत जॉन पॉल द्वितीय "यूखरिस्तीय विस्मय" कहते हैं - वास्तविक उपस्थिति में एक विस्मय और आश्चर्य: येशु, यूखरिस्त में छिपा हुआ फिर भी वास्तव में मौजूद है। हम एक परिवार के रूप में यूखरिस्त के प्रति श्रद्धा कैसे विकसित कर सकते हैं? यहाँ कुछ सुझाव हैं: पहला, उपस्थिति यदि हमें पता होता कि कोई व्यक्ति किसी निश्चित स्थान पर हर सप्ताह एक हजार डॉलर मुफ्त में दे रहा है, तो हम निश्चित रूप से वहां मौजूद रहेंगे। हमें इससे कहीं अधिक मूल्यवान चीज़ यूखरिस्त में प्राप्त होती है — स्वयं परमेश्वर। वह ईश्वर जिसने ब्रह्मांड का सारा सोना बनाया। वह ईश्वर जिसने आपको प्रेम करके आपके व्यक्तित्व को अस्तित्व में लाया। वह परमेश्वर जो आपके लिए शाश्वत उद्धार को खरीदने के लिए क्रूस पर अपनी जान दी। वह ईश्वर जो अकेले ही हमें अनन्त जीवन में खुश रख सकता है। यूखरिस्तीय जीवन के लिए पहला कदम कम से कम साप्ताहिक (या यदि आवश्यक हो तो और अधिक बार) मिस्सा बलिदान तक पहुंचने के लिए आवश्यक त्याग उठाना है। स्काउट में कैंप-आउट के बाद मेरे पिता अक्सर मुझे और मेरे भाइयों को मिस्सा में ले जाने के लिए हर संभव कोशिश करते थे। मेरा भाई एक विशिष्ट बेसबॉल टीम के ट्रायल में भागीदारी नहीं कर सका क्योंकि ट्रायल रविवार की सुबह था। हम जहां भी छुट्टियों पर जाते थे, मेरे माता-पिता निकटतम कैथलिक चर्च का पता लगाना सुनिश्चित करते थे। यह देखते हुए कि यूखरिस्त कितना मूल्यवान है, वह प्रभु हर त्याग और बलिदान से भी बढ़कर है! दूसरा, पवित्रता यह सुनिश्चित करना कि हमारी आत्माएँ गंभीर पापों की अशुद्धता से विरत हैं, यह यूखरिस्तीय भोज की एक शर्त है। कोई भी व्यक्ति बड़े भोज में अपने हाथ धोए बिना नहीं बैठेगा - न ही किसी मसीही को पाप स्वीकार द्वारा अपने आप को शुद्ध हुए बिना यूखरिस्त या परम प्रासाद के पास जाना नहीं चाहिए। तीसरा, जुनून पूरे इतिहास को पढने से पता चलता है कि कैथलिक लोगों ने मिस्सा बलिदान में भाग लेने के लिए अपनी जान जोखिम में डाली है। आज भी दुनिया में, चीन, उत्तर कोरिया और ईरान जैसे कम से कम 12 देश ऐसे हैं जहां कैथलिकों पर कड़े प्रतिबंध हैं। इन चुनौतियों के बावजूद कैथलिक लोग अभी भी मिस्सा बलिदान में भाग लेने के इच्छुक हैं। क्या हमारे अंदर भी उसके लिए वही भूख है? इस भूख को अपने दिल में जगाओ! एहसास करें कि हमें राजा के सिंहासन कक्ष में बुलाया गया है; हमें कलवारी के बलिदान के लिए अग्रिम पंक्ति की सीट मिलती है। हमें वास्तव में प्रत्येक मिस्सा बलिदान द्वारा स्वर्ग के पूर्वाभास में भाग लेने की अनुमति है! चौथा, प्रार्थना एक बार जब हमने प्रभु को ग्रहण कर लिया, तो हमें प्रार्थना में महत्वपूर्ण समय व्यतीत करना चाहिए। रोम के महान प्रचारक, संत फिलिप नेरी, परम प्रसाद प्राप्त करने के बाद, मिस्सा समाप्ती से पहले गिरजाघर से बाहर निकलने वाले किसी भी व्यक्ति के पीछे जलती हुई मोमबत्तियों के साथ दो वेदी सेवकों को भेजते थे - इस सत्य को पहचानते हुए कि मसीह को प्राप्त करने के बाद वह व्यक्ति सचमुच एक जीवित मंजूषा है ! प्रभु को ग्रहण करने के तुरंत बाद, उसके साथ अपने दिल की बात साझा करने का सौभाग्यशाली समय हमारे पास होता है, क्योंकि वह काफी हद तक हमारे दिल से केवल कुछ इंच नीचे, हमारे शरीर में रहता है! लेकिन मसीह की यूखरिस्तीय उपस्थिति के लिए प्रार्थना मिस्सा समाप्त होने के बाद भी लंबे समय तक चलनी चाहिए। एक बार एक संत थी जो यूखरिस्तीय जीवन जीना चाहती थी, लेकिन केवल रविवार को ही मिस्सा बलिदान में जा पाती थी। उन्होंने गुरुवार, शुक्रवार और शनिवार को पवित्र भोज की आध्यात्मिक तैयारी के लिए समर्पित किया। फिर रविवार को, उन्हें खुशी हुई कि वे प्रभु को ग्रहण कर सकी - और सोमवार, मंगलवार और बुधवार को उसे प्राप्त करने के लिए धन्यवाद देने में बिताया! इसलिए, हमें प्राप्त यूखरिस्त के लिए ईश्वर को धन्यवाद देने और इस उपहार को दोबारा प्राप्त करने के लिए अपने दिलों को तैयार करने के लिए पूरे सप्ताह प्रार्थना में समय बिताना चाहिए! पांचवां, आराधना यूखरिस्तीय जीवन यूखरिस्तीय आराधना के साथ जारी रहता है, जो हमारे यूखरिस्तीय ईश्वर की पूजा को जारी रखता है। जितनी बार संभव हो, आराधना में जाएँ। जैसा कि धन्य कार्लो अक्यूटिस ने कहा, "जब हम सूरज का सामना करते हैं, तो हम भूरे हो जाते हैं, लेकिन जब हम खुद को यूखरिस्तीय येशु के सामने रखते हैं, तो हम संत बन जाते हैं।" वह जानता था कि केवल परमेश्वर ही है जिसने हमें पवित्र बनाया है, और उसकी उपस्थिति में रहकर, येशु कार्य करेगा! मैं इसकी गवाही दे सकता हूं. जब मैं किशोर था तब मेरे पल्ली ने सतत या अनवरत आराधना (प्रति दिन 24 घंटे, सप्ताह के सातों दिन) शुरू की और मैंने साप्ताहिक आराधना में एक घंटा बिताना शुरू कर दिया। वहां मुझे एहसास हुआ कि प्रभु मुझसे कितना प्यार करते हैं और वहीँ मैं एक पुरोहित के रूप में अपना जीवन उन्हें देने के लिए बुलाया गया था। यह मेरे अपने मन परिवर्त्तन का एक बड़ा हिस्सा था। वास्तव में, मेरी गृह पल्ली में, 160 से अधिक वर्षों से किसी युवा पल्लीवासी को धर्मसंघी बुलाहट प्राप्त नहीं हुआ था। सतत आराधना के केवल 20 वर्षों के बाद, हमारी पल्ली से 12 से अधिक धर्मसंघी बुलाहट हुए हैं ! धन्य कार्लो अक्यूटिस हमें फिर से याद दिलाते हैं, "यूखरिस्त स्वर्ग के लिए मेरा राजमार्ग है।" हमें यह जानने के लिए दूर तक देखने की ज़रूरत नहीं है कि ईश्वर कहाँ रहता है और उसे कैसे खोजा जाए - वह दुनिया के हर कैथलिक गिरजाघर के हर पवित्र मंजूषा में रहता है!
By: फादर जोसेफ गिल
Moreक्या आपके जीवन में ऐसे दरवाजे हैं जो आपके प्रयासों के बावजूद खुलने से इनकार करते हैं? इस हृदयस्पर्शी अनुभव से जानिए उन बंद दरवाजों के पीछे का रहस्य। मेरे पति और मैं कैथेड्रल ऑफ़ सेंट जूड के दरवाजे पर थे। दरवाज़ा खोलने पर एक बड़ी भीड़ के बीच हम दोनों को सीटें मिलीं। हम एक महिला के अंतिम संस्कार के लिए आये थे, जिनसे बहुत पहले, जब मैं केवल 20 वर्ष की थी, तब मिली थी। वह और उनके पति उस समय कैथलिक करिश्माई प्रार्थना समुदाय के आत्मिक अगुए थे। हालाँकि वह और मैं घनिष्ठ व्यक्तिगत मित्र नहीं थे, लेकिन जब मैं इस गतिशील विश्वास से भरे समूह में शामिल हुई तो उसने मेरे जीवन को महत्वपूर्ण तरीकों से प्रभावित किया था। उनका मंझला बेटा, केन, अब फादर केन थे, और वह अंतिम संस्कार का दिन उनके पुरोहिताई अभिषेक की 25-वीं वर्षगांठ का दिन भी था। वहां उपस्थित मण्डली को सरसरी निगाहों से देखने पर मेरे अतीत और वर्तमान दोनों दौर के कई परिचित चेहरे सामने आए। फादर केन की अपनी माँ को दी गई मार्मिक श्रद्धांजलि और उनके भाई-बहनों द्वारा की गई प्रेमपूर्ण स्मृति के वचनों ने उनके परिवार पर और साथ ही उस दिन उपस्थित कई लोगों के जीवन में भी प्रार्थना समूह का प्रभाव को प्रतिबिंबित किया। उनके शब्दों ने मेरे दिमाग में यादें ताज़ा कर दीं - कैसे पवित्र आत्मा ने इस समुदाय का उपयोग कई लोगों के जीवन को बदलने के लिए किया, खासकर मेरे जीवन को बदलने के लिए। प्यार में घसीटी गयी मेरा पालन-पोषण बहुत ही समर्पित कैथलिक माता-पिता ने किया था, जो प्रतिदिन मिस्सा बलिदान में भाग लेते थे, लेकिन एक किशोरी के रूप में, मैंने केवल अनिच्छा से कलीसिया के जीवन में भाग लिया। मुझे अपने पिता द्वारा हर रात पारिवारिक माला विनती पर जोर देने और न केवल भोजन से पहले, बल्कि भोजन के बाद भी अनुग्रह की प्रार्थना बोलने पर नाराजगी महसूस होती थी। शुक्रवार की रात 10 बजे परम पवित्र संस्कार की आराधना में भाग लेना मुझ 15 साल की किशोरी की अपनी सामाजिक स्थिति के लिए अच्छा नहीं था, खासकर तब, जब मेरे दोस्त मुझसे पूछते थे कि मैंने सप्ताहांत में क्या किया है। उस समय मेरे लिए कैथलिक होना सिर्फ बहुत सारे नियमों, आवश्यकताओं और अनुष्ठानों के बारे में ही था। प्रत्येक सप्ताह मेरा अनुभव अन्य विश्वासियों के साथ खुशी या संगति का नहीं था, बल्कि कर्तव्य के बोझ का था। फिर भी, जब मेरी बहन ने मुझे हाई स्कूल से पास होने के बाद अपने कॉलेज के सप्ताहांत अवकाश समारोह में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया, तो मैं सहमत हो गयी। मेरे छोटे से शहर में नए अनुभव बहुत कम मिलते थे और यह निश्चित रूप से मेरे लिए अब तक के अनुभवों से बिलकुल भिन्न था। मैं ने नहीं सोचा था कि यह आत्मिक साधना मेरे शेष जीवन का पथ निर्धारित करेगी! प्रतिभागियों के सौहार्दपूर्ण मित्रता के साथ-साथ फादर बिल के चेहरे पर छाई भारी मुस्कान के बीच जब उन्होंने प्रभु के बारे में हमारे साथ साझा किया, मैंने कुछ ऐसा देखा जो मैंने अपनी गृह पल्ली में कभी नहीं देखा था, और मुझे पता था कि मैं अपने जीवन में वास्तव में यही चाहती थी : आनंद! सप्ताहांत के अंत में, बाहर शांत समय बिताने के दौरान, मैंने अपना जीवन ईश्वर को अर्पित कर दिया, बिना यह जाने कि इसका वास्तव में क्या मतलब है। निराशाजनक मामले दो साल से भी कम समय के बाद, मैं और मेरी बहन फ्लोरिडा के पूर्वी तट से पश्चिम की ओर चली गयीं, पहले उसकी नौकरी के कारण और बाद में, सेंट पीटर्सबर्ग में एक कॉलेज में पढ़ाई के लिए मुझे एडमिशन मिलने के कारण। अपनी सीमित आर्थिक क्षमता के भीतर रहने के लिए हम दोनों बहनें एक ही बेडरूम को ढूंढ रहे थे। कई अपार्टमेंट प्रबंधकों द्वारा दो लड़कियों को एक ही बेडरूम को किराए पर देने की अनिच्छा के कारण हमारे प्रयास बार-बार विफल हो गए - भले ही हमने अपने पूरे जीवन में एक ही बेडरूम साझा किया था और आखिर हम तो बहनें थीं! एक और इनकार के बाद निराश होकर, हम प्रार्थना करने के लिए संत जूड्स कैथेड्रल के अन्दर चली गयीं। इस संत के बारे में कुछ भी न जानते हुए, हमने एक प्रार्थना कार्ड को पाया जिसमें लिखा था कि संत जूड 'निराशाजनक मामलों के संरक्षक' थे। किफायती आवास की कठिन खोज के बाद, हमारी निरर्थक स्थिति एक निराशाजनक मामला कहा जा सकता था, इसलिए हमने संत जूड की मध्यस्थता मांगने के लिए घुटने टेक दिए। लो और देखो, अगले अपार्टमेंट परिसर में पहुंचने के बाद, हमारे साथ उसी झिझक के साथ व्यवहार किया गया। हालाँकि, इस बार, उस वृद्ध महिला ने मेरी ओर देखा, रुकी और बोली, “तुम मुझे मेरी पोती की याद दिलाती हो। मैं दो महिलाओं को एक-बेडरूम किराए पर नहीं देती, लेकिन... तुम मुझे अच्छी लग रही हो, और इसलिए तुम लोगों के लिए मैं अपने उसूल तोड़ने जा रही हूं!' हमें पता चला कि हमारे नए घर का निकटतम कैथलिक चर्च होली क्रॉस चर्च था, जहां "ईश्वर की उपस्थिति प्रार्थना समुदाय" नामक एक समूह प्रत्येक मंगलवार की रात को मिलता था। यदि हम किसी अन्य एपार्टमेंट को किराए पर लेने में सक्षम होती, तो हमें खुशी से भरे लोगों के इस समूह से मुलाक़ात नहीं होती, जिसे हम जल्द ही "परिवार" कहने लगी। यह स्पष्ट था कि पवित्र आत्मा काम कर रहा था, और 17 वर्षों में यानी जब तक मैं इस समूह में सक्रिय रूप से शामिल थी तब तक पवित्र आत्मा की उपस्थिति बार-बार प्रकट हुई। जीवन का वृत्त सेंट जूड्स कैथीड्रल चर्च में लौटते हुए, उस दिन जीवन का वह उत्सव न केवल हमारे बहुत पहले के आत्मिक अगुओं का था, बल्कि यह मेरा भी अपना उत्सव था! एक युवती के रूप में अपनी टूटन और उस समय महसूस किए गए अकेलेपन और असुरक्षा को याद करते हुए, मुझे आश्चर्य हुआ कि ईश्वर ने मेरे जीवन को कैसे बदल दिया है। उन्होंने मुझे भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से ठीक करने के लिए अपनी पवित्र आत्मा और अपने लोगों का उपयोग किया, मेरे जीवन को गहरी और समृद्ध मित्रता से भर दिया जो समय की कसौटी पर खरी उतरी है। उन्होंने मुझे जो उपहार पहले से ही दिए थे, न उपहारों को खोजने में मदद की - समुदाय ने मुझे विभिन्न तरीकों से सेवा करने के लिए उचित जगह प्रदान की। तब जाकर मुझे एहसास हुआ कि संगठन की तरह मेरी प्राकृतिक क्षमताओं का उपयोग आध्यात्मिक उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है। कई वर्षों के बाद, मुझे एक नई आध्यात्मिक टीम में आमंत्रित किया गया जिसके गतिशील नेता ने अपनी स्वयं की मिसाल द्वारा मेरा मार्गदर्शन किया। उनके प्रोत्साहन और समर्थन के माध्यम से, मैंने नेतृत्व कौशल विकसित किया जिसके परिणाम स्वरूप प्रार्थना समुदाय में "आस्था के घर" और गिरजाघर के दरवाजे के बाहर "दीन हीनों" की सेवा के लिए नयी सेवकाई शुरू हुई। कुछ साल बाद जब पास में एक नया पैरिश शुरू हुआ, तो मुझे वहां संगीत की सेवकाई में शामिल होने के लिए कहा गया, और पवित्र आत्मा की प्रेरणा से, मैंने कई अन्य सेवा इकाइयों में भी भाग लिया। पिछले कुछ वर्षों में मैंने जो कुछ भी सीखा और अनुभव किया है, उसे ध्यान में रखते हुए, मैं कई कार्यक्रम आयोजित करने में सक्षम हुई, जो हमारे पल्ली समुदाय के भीतर चंगाई, मन परिवर्त्तन और अभिवृद्धि के अवसर प्रदान करते हैं। पिछले 14 वर्षों से, मुझे अपने एक दूसरे मित्र द्वारा शुरू किए गए महिला फ़ेलोशिप समूह का आयोजन करने का सौभाग्य मिला है, जो मेरी तरह, मसीही समुदायों के प्यार और देखभाल के द्वारा बदल गयी थी। मैंने पाया है कि धर्मग्रंथों में परमेश्वर के द्वारा दिए गए सभी वादे मेरे जीवन में सच साबित हुए हैं। वह विश्वासयोग्य, क्षमाशील, दयालु, करूणामय और आनंद का स्रोत है, जितना मैंने कभी कल्पना की थी, उससे कहीं अधिक! उन्होंने मेरे जीवन में अर्थ और उद्देश्य प्रदान किया है, और उनकी कृपा और निर्देशन से, मैं 40 वर्षों से अधिक समय से येशु के साथ सेवकाई में भागीदार बनने में सक्षम हूं। उन वर्षों तक मुझे इस्राएलियों की तरह "रेगिस्तान में भटकना" नहीं पड़ा। वही परमेश्वर जिसने "दिन में बादल के खम्भे और रात में अग्नि-स्तम्भ" के द्वारा अपने लोगों की अगुवाई की (निर्गमन 13:22) उसने दिन-ब-दिन, साल-दर-साल मेरी अगुवाई की, और रास्ते में मेरे लिए अपनी योजनाओं को प्रकट किया। मेरे प्रार्थना समूह के दिनों का एक गीत मेरे मन में गूंजता है, "ओह, भाई बहनों का एक साथ रहना कितना भला है, कितना सुखद!" (भजन 133:1) उस दिन चारों ओर देखने पर मुझे इसका स्पष्ट प्रमाण दिखाई दिया। फादर केन की माँ में काम करने वाली पवित्र आत्मा, फादर केन के घर और हमारे विश्वास के समुदाय में उनकी माँ के द्वारा बोये गए बीजों से बहुत फल लाए। उसी आत्मा ने वर्षों तक मेरे जीवन में बोए और सींचे गए बीजों से फ़सल पैदा की। प्रेरित पौलुस ने एफीसियों को लिखे अपने पत्र में इसे सर्वोत्तम रूप से कहा: “जिसका सामर्थ्य हम में क्रियाशील है और जो वे सब कार्य संपन्न कर सकता है, जो हमारी प्रार्थना और कल्पना से अत्यधिक परे है, उसी को कलीसिया और येशु मसीह द्वारा पीढ़ी-दर-पीढ़ी, युग युगों तक महिमा! आमेन!" (3:20-21)
By: करेन एबर्ट्स
Moreहम कितनी बार सोचते हैं कि हमें अपनी पसंद की चीज़ें करने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाता? इस नए साल में, आइए कुछ नया करें। वास्तव में मैं कभी भी नए साल के संकल्प लेने वाली नहीं रही हूँ। मुझे यह बात तब याद आती है जब मैं अपनी मेज़ पर धूल जमी, बिना पढ़ी हुई किताबों के ढेर को देखती हूँ, जिन्हें मैंने पिछले सालों में एक महत्वाकांक्षी, लेकिन बुरी तरह से असफल प्रयास के तहत खरीदा था। एक महीने में एक किताब पढ़ने का संकल्प अधूरा रह गया, और किताबों का ढेर खडा हो गया, उसी तरह बिना पूरे किये गए संकल्पों का भी ढेर खडा हो गया। मेरे पास अपने संकल्प में सफल न होने के लाखों कारण थे, लेकिन समय की कमी उनमें से एक नहीं थी। अब अपने आप में थोड़ी निराशा के साथ खोए हुए वर्षों को देखने पर, मुझे एहसास होता है कि मैं वास्तव में अपने समय का बेहतर उपयोग कर सकती थी। अपने जीवन में मैंने अनगिनत बार शिकायत की है कि मेरे पास उन चीजों को करने के लिए पर्याप्त समय नहीं है जो मैं करना चाहती हूँ। निश्चित रूप से, जितनी मैं गिन सकती हूँ उससे कहीं ज़्यादा! कुछ साल पहले, मेरे पति अस्पताल में अपना नियमित उपचार करवा रहे थे, और मैं नए साल की पूर्व संध्या पर उनके बगल में बैठी हुई थी, तब मेरे दिल में कुछ हलचल हुई। उनकी धमनियों में रक्त चढ़ाया जा रहा था। इस असहज परिस्थिति में, मैंने देखा कि उनकी आँखें बंद थीं, और उनके हाथ प्रार्थना की मुद्रा में जुड़े हुए थे। जाहिर तौर पर मेरी जिज्ञासा भरी निगाहों को महसूस करते हुए, उन्होंने एक आँख को थोड़ा खोला और मेरी तरफ देखते हुए, धीरे से फुसफुसाए: "सभी के लिए।" किसी तरह, उन्होंने मेरे मन की बात पढ़ ली। हम अक्सर अपने आसपास के उन लोगों के लिए प्रार्थना करते थे जिन्हें हम पीड़ित या प्रार्थना की ज़रूरतमंद समझते थे। लेकिन आज, हम अकेले बैठे थे, और मैं हैरान थी कि वे किसके लिए प्रार्थना कर रहे होंगे। यह सोचना भावुक और प्रेरणादायक था कि वे "सभी" के लिए प्रार्थना कर रहे थे, न कि केवल उन लोगों के लिए जिन्हें हम उनके बाहरी रूप के कारण प्रार्थना की ज़रूरतमंद समझते हैं। हम में से हर किसी को प्रार्थना की ज़रूरत है। हम सभी को ईश्वर की कृपा और दया की ज़रूरत है, चाहे हम दुनिया के सामने अपनी छवि कुछ भी पेश करें। यह सच लगता है, खासकर अब जब इतने सारे लोग चुपचाप अकेलेपन, वित्तीय परेशानी और यहाँ तक कि मानसिक स्वास्थ्य संघर्षों से पीड़ित हैं, जिन संघर्षों को अक्सर छिपाया जाता है। कोई भी वास्तव में नहीं जानता कि दूसरा व्यक्ति किस दौर से गुज़र रहा है, गुज़र चुका है या गुज़रेगा। अगर हम सब एक-दूसरे के लिए प्रार्थना करें तो यह कितना शक्तिशाली होगा? यह कितना जीवन को बदलनेवाला, दुनिया को बदलनेवाला हो सकता है। इसलिए इस नए साल में, मैं अपने खाली समय का अधिक बुद्धिमानी और सोच-समझकर उपयोग करने का संकल्प ले रही हूँ - दूसरों की पीड़ा और ज़रूरतों पर प्रार्थनापूर्वक विचार करती हुई, उन लोगों के बारे में जिन्हें मैं जानती हूँ, जिन्हें मैं नहीं जानती, जो मुझसे पहले आए हैं और जो बहुत बाद में आएंगे, सब के लिए प्रार्थना करने का मैं संकल्प लेती हूँ। मैं पूरी मानवता के लिए प्रार्थना करने जा रही हूँ, इस बात पर भरोसा करती हुई कि हमारे प्यारे ईश्वर, अपनी उदारपूर्ण दया और असीम प्रेम से, हम सभी को आशीर्वाद देंगे।
By: मेरी थेरेस एमन्स
More6 अगस्त, सन् 1945 को द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान के हिरोशिमा शहर पर परमाणु बम गिराया गया था। इसमें 140,000 लोग मारे गए या घायल हुए। इस तबाही के बीच भी आठ येशुसंघी मिशनरी बच गए, जो हमले के अवकेंद्र के पास अपने निवास स्थान में थे। विस्फोट के बाद उनमे से कोई भी बहरा नहीं हुआ। उनका गिरजाघर ‘अवर लेडी ऑफ द एसेम्शन चर्च’, की रंगीन काँच खिड़कियाँ चकनाचूर हो गयीं, लेकिन गिरजाघर नहीं गिरा; व्यापक विनाश के बीच खड़ी बहुत कम इमारतों में से एक यह गिरजाघर भी था। ये पुरोहित न केवल शुरुआती विस्फोट से सुरक्षित रहे – बल्कि उनपर हानिकारक विकिरण का कोई बुरा प्रभाव भी नहीं पड़ा। विस्फोट के बाद उनकी देखभाल करने वाले डॉक्टरों ने चेतावनी दी थी कि विकिरण के जहर के संपर्क में आने से उन्हें गंभीर घाव, बीमारी और यहां तक कि उनकी मौत भी हो सकती है। लेकिन आने वाले वर्षों में 200 चिकित्सा परीक्षण में भी कोई बुरा प्रभाव सामने नहीं आया। जिन डॉक्टरों ने गंभीर परिणामों की भविष्यवाणी की थी, वे इस बात से चकित थे। हिरोशिमा पर बम गिराए जाने के समय फादर शिफर केवल 30 वर्ष के थे, उन्होंने 31 साल बाद 1976 में फिलाडेल्फिया में यूखरिस्तीय कांग्रेस में अपनी आपबीती सुनाई। येशुसंघी समुदाय के सभी आठ सदस्य जो बमबारी के बाद जिन्दा बच गए थे, वे सभी उस कांग्रेस के दौरान जीवित थे। फादर शिफर ने यूखरिस्तीय कांग्रेस में एकत्रित विश्वासियों के सामने बयान किया कि वे आठों लोग सुबह-सुबह मिस्सा बलिदान चढ़ाने के बाद नाश्ते के लिए उनके निवास की रसोई में बैठे थे। फादर शिफर ने एक फल को काटकर अपना चम्मच उसमें डाला ही था कि प्रकाश की तेज चमक दिखाई दी। पहले उन्होंने सोचा कि यह विस्फोट पास के बंदरगाह में हुआ होगा। फिर उन्होंने अपने अनुभव का वर्णन किया: “अचानक, एक भयानक विस्फोट ने एक धमाकेदार गड़गड़ाहट के साथ आसमान को भर दिया। एक अदृश्य शक्ति ने मुझे कुर्सी से उठा कर हवा में उछाल दिया, मुझे हिला दिया, मुझे पीटा, मुझे गोल-गोल घुमा दिया, जिस प्रकार शरद ऋतु की हवा के झोंके में एक पत्ता हिलता है।“ अगली बात उन्होंने याद किया कि उन्होंने अपनी आँखें खोलीं और अपने आप को ज़मीन पर पाया। उन्होंने इधर-उधर देखा, और देखा कि किसी भी दिशा में कुछ भी नहीं बचा था: रेलवे स्टेशन और सभी दिशाओं की सारी इमारतें ढह चुकी थीं। वे सभी पुरोहित अपेक्षाकृत मामूली चोटों के साथ न केवल जीवित बच गए, बल्कि वे सभी बिना किसी विकिरण बीमारी के, बहरापन और अन्य छोटे मोटे कुप्रभावों से बचे रहे। यह पूछे जाने पर कि इतने सारे लोग या तो विस्फोट से या उसके बाद के विकिरण से मर गए, ऐसे में वे क्यों मानते हैं कि उन्हें बख्शा गया था, तब फादर शिफर ने अपने और अपने साथियों की ओर से कहा: "हम मानते हैं कि हम बच गए, क्योंकि हम फातिमा के संदेश को जी रहे थे। हम उस घर में रहकर प्रतिदिन रोजरी माला की प्रार्थना करते थे।“
By: Shalom Tidings
Moreकई साल पहले वह एक ठंडी और बर्फीली दोपहर थी, और मेरे मन में इच्छा हुई कि मैं आराधना में जाकर भाग लूं। मेरी अपनी पल्ली में अभी तक सतत-आराधना की व्यवस्था नहीं हुई थी, इसलिए मैं उस गिरजाघर की ओर गाडी चलाती हुई चली गयी, जहां सतत अराधना होती थी। इस गिरजाघर में एक छोटा, बहुत ही अंतरंग प्रार्थनालय है जहां मुझे येशु के साथ समय बिताना और अपने दिल की बात उनके सामने रखना अच्छा लगता था। जब मैंने दो लोगों को प्रार्थनालय के पीछे बातें करते सुना, तब मेरा समय लगभग समाप्त हो गया था। गिरजाघर की ड्योढ़ी में पड़े एक बेघर व्यक्ति के बारे में वे बात कर रहे थे। उस आदमी के प्रति उनकी असंवेदनशीलता से मैं विचलित और दु:खी थी, इसलिए मैंने वहां से उठने का फैसला किया। वैसे भी मेरी आराधना का एक घंटा लगभग समाप्त हो गया था। जैसे ही मैं वहां से निकली, मैं गिरजाघर की ड्योढ़ी से गुज़री जहां वही आदमी इतनी गहरी नींद सो रहा था कि जब मैं उसके लिए प्रार्थना करने के लिए रुकी तो उसका शरीर बिलकुल भी नहीं हिला। मुझे राहत महसूस हुई कि प्रभु ने आराधना के लिए दरवाजे खोल दिए थे, ताकि वह आदमी यहाँ आश्रय पा सके। वह बेघर लग रहा था, लेकिन मुझे पक्का पता नहीं था। मुझे बस इतना पता है कि इस आदमी के लिए चिंता करते हुए मैं आंसू बहा रही थी। जब मैं खुद को रोक नहीं पायी, तब मैं गिरजाघर के बाहर टहलने लगी। वहां पवित्र हृदय की एक मूर्ति खड़ी थी, जो मुझे याद दिला रही थी कि हर व्यक्ति के लिए येशु के दिल में प्रेमपूर्ण चिंता और प्रचुर दया है। मैंने प्रभु से विनती की कि वह मुझे बताए कि मुझे क्या करना है। मेरे दिल में मैंने महसूस किया, कि प्रभु मुझसे कह रहा है कि मैं पास की दुकान में जाऊं और इस आदमी के लिए कुछ जरूरी सामान खरीद लूं। मैंने प्रभु को धन्यवाद दिया और तुरंत दुकान जाकर कुछ ऐसी चीजें खरीदीं जो मुझे लगा कि उस आदमी के लिए ज़रूरी और उपयोगी है। गिरजाघर की ओर वापस जाते समय, मुझे उम्मीद थी कि वह आदमी अभी भी वहाँ होगा। मैं वास्तव में उसे वह सब देना चाहती थी जिन्हें मैंने खरीदी थी। जब मैं वहां पहुंची तब भी वह सो रहा था। मैंने चुपचाप सामान का बैग उसके पास रख दिया, एक प्रार्थना की, और मैं चलने लगी। मैं लगभग बाहर निकल ही चुकी थी कि मैंने किसी को "बहन, बहन" कहते हुए सुना। मैंने पलट कर जवाब दिया, "जी हां"। वह आदमी अब जाग गया था और मेरे पास आया और पूछा कि क्या मैंने उसके लिए यह बैग छोड़ रखा है। मैंने उत्तर दिया, "जी हाँ, मैंने रखा है।" उसने मुझे यह कहते हुए धन्यवाद दिया कि मेरी यह उदारता कितनी अच्छी थी। ऐसा पहले कभी किसी ने उनके साथ नहीं किया था। मैंने मुस्कुराते हुए कहा, "आपका स्वागत है"। वह आदमी करीब आ रहा था और मुझे लगा जैसे मैं येशु की उपस्थिति में थी। मैंने अपने दिल में बहुत प्यार महसूस किया। फिर उसने कहा, "बहन, स्वर्ग में मेरी मुलाक़ात आपसे होगी।" मुझे लगा कि मैं फूट-फूट कर रोने लगूंगी। उनकी आवाज बहुत दयापूर्ण और प्यार से भरपूर थी। उसके गाल पर चुम्बन देने की प्रेरणा मुझे मिली। हमने एक-दूसरे को अलविदा कहा और अपने-अपने रास्ते चल दिए। बाहर आने पर भी, मेरा रोना बंद नहीं हुआ। मैं घर पहुँचने तक रोती रही। आज भी, उस दोपहर को याद करते ही मेरे आंसू छलक पड़ते हैं। मुझे एहसास हुआ कि उस ठंडी, बर्फीली दोपहर को, वास्तव में उस खूबसूरत आदमी में मैंने येशु से मुलाक़ात की थी। अब, जब मैं पीछे मुड़कर देखती हूं, तो मैं कल्पना करती हूं कि चेहरे पर एक बड़ी मुस्कान के साथ येशु मुझसे कह रहा है, "यह मैं हूं, येशु!" धन्यवाद, येशु, मुझे यह याद दिलाने के लिए कि मुझसे मिलने वाले प्रत्येक व्यक्ति जिस से मेरी मुलाक़ात होती है उनमें मैं तेरा दर्शन कर सकती हूं।
By: कैरल ऑसबर्न
Moreमैं 65 वर्ष का था और अपनी जीवन बीमा पॉलिसी बदलना चाह रहा था। जैसा अक्सर होता है, बीमा वालों को मेरे स्वास्थ्य सम्बन्धी कुछ जांच करनी थी। मैंने सोचा, "ठीक है, मैं सहयोग करूंगा।" उस समय तक, मैंने जो भी लैब टेस्ट लिया था, जैसे सीने का एक्स-रे, ईकेजी और कॉलोनोस्कोपी, ये सब सामान्य थे। मेरा रक्तचाप 126/72 था और मेरा बीएमआई 26 था। मैं प्रति सप्ताह चार बार व्यायाम करता था और काफी स्वस्थ भोजन खाता था। मैं अच्छा महसूस कर रहा था और किसी भी प्रकार की बीमारी के लक्षण मुझ में नहीं था। मेरी सभी जांचों का परिणाम सामान्य आए ... मेरे पीएसए को छोड़कर, जो 11 एनजी/एमएल था (सामान्य 4.5 एनजी/एमएल से कम होना चाहिए)। तीन साल पहले यह सामान्य था। एक झटका लगा ! इसलिए मैं अपना पीसीपी देखने गया। मलाशय की जांच के दौरान, उन्होंने पाया कि मेरा प्रोस्टेट बढ़ा हुआ और कुछ हिस्सा सिकुड़ा हुआ है। "मुझे कैंसर का संदेह है, मैं आपको एक मूत्र रोग विशेषज्ञ के पास भेजने जा रहा हूं," उन्होंने कहा। एक और झटका। प्रोस्टेट की ग्यारह बायोप्सियों में से ग्यारहों ने कैंसर पॉजिटीव दिखाया। मेरा ग्लीसन स्कोर 4+5 था जिसका मतलब था कि यह एक उच्च श्रेणी का कैंसर था और यह तेजी से बढ़ सकता है और फैल सकता है। इसलिए, मैंने ल्यूप्रोन के साथ एक गंभीर प्रोस्टेटैक्टोमी, विकिरण चिकित्सा और हार्मोन थेरेपी की। ऊह! वो गर्म गर्म लालिमा! जब मैं यह बोलता हूं तो महिलाएं ज़रूर मुझ पर विश्वास करेंगी; अब मुझे पता है कि आप किस दौर से गुजर रही हैं। एक बार फिर झटका! आप सोचते होंगे कि "झटका" सिर्फ क्यों? "मेरा विश्वास उड़ गया है”, “यह नहीं हो सकता”, “मैं मरने जा रहा हूं”, “ईश्वर मुझे सजा दे रहा है” ऐसे ऐसे प्रलाप क्यों नहीं? अच्छा, मैं बताता हूँ कि ऐसे प्रलाप मेरी तरफ से क्यों नहीं है। मेरी माँ के गुर्दे खराब होने से पहले, घर पर ही उन्हें पेरिटोनियल डायलिसिस की आवश्यकता थी, मेरे माता-पिता काफी यात्रा किया करते थे, खासकर मेक्सिको की तरफ। जब रोजाना डायलिसिस ने यात्राक्रम को रोक दिया, तो उन्होंने घर में बैठकर पहेलियों पर काम करने, अपनी बाइबल पढ़ने और उसका अध्ययन करने में अधिक समय बिताया। इससे वे प्रभु के काफी करीब आ गए। इसलिए, जब माँ के डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि वे उसके स्वास्थ्य के लिए और कुछ नहीं कर सकते, तो माँ विचलित नहीं थी। उसने मुझसे कहा, "मैं थक गई हूँ, मैं अपने स्वर्गिक पिता के साथ रहने के लिए तैयार हूँ। मैं परिवार और दोस्तों के साथ और अपने साथ भी शांति का अनुभव कर रही हूँ, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मैं ईश्वर के साथ शांति का अनुभव करती हूँ।” कुछ दिनों बाद, चेहरे पर मुस्कान के साथ, बड़ी अपार शांति के साथ उसने इस दुनिया से विदा ली। ”मैं ईश्वर के साथ शांति का अनुभव करती हूँ"। मैं भी यही चाहता था। मैं अब केवल रविवारीय मिस्सा में भाग लेने वाला नामधारी कैथलिक बने रहना नहीं चाहता था। उस समय से मैंने उस रास्ते पर चलना शुरू किया जो मुझे ईश्वर के करीब ले आया है: अंग्रेजी और स्पेनिश दोनों भाषाओं में बाइबल पढ़कर उसकी गहराई से अध्ययन करना, प्रार्थना करना, माला विनती करना, जीवन में प्राप्त कृपाओं के लिए धन्यवाद देना, और एक धर्मशिक्षा के अध्यापक के रूप में स्वयंसेवा करना। आशा करता हूं कि जल्द ही, मैं एक अस्पताल के अध्यात्मिक मार्गदर्शक के रूप में अपनी इंटर्नशिप पूरा कर लूँगा और मैं अपना आध्यात्मिक मार्गदर्शन पाठ्यक्रम पूरा करने वाला हूं। तो, हाँ, प्रोस्टेट कैंसर होना एक झटका है, लेकिन वह बस एक झटका मात्र ही है, क्योंकि मैं ईश्वर के साथ शांति का अनुभव करता हूँ।
By: Dr. Victor M. Nava
Moreअसीसी के संत फ्रांसिस को एक समय कोढियों से बहुत भय और घृणा थी। उन्होंने कबूल किया कि कोढ़ी की झलक पाने से ही उनके मन में इतनी घृणा पैदा होती थी कि वे उन कोढियों की बस्ती के पास से गुजरने से कतराते थे। अगर वे अपनी यात्रा के दौरान गलती से किसी कोढ़ी की एक झलक पा लें या किसी कुष्ठरोग आश्रम से गुजरते हैं, तो वे अपना मुंह दूसरी तरफ घुमा देते थे और अपनी नाक बंद कर लेते थे। जैसे-जैसे फ्रांसिस अपने विश्वास में और अधिक गहरे होते गए और उन्होंने अपने सामान दूसरों को प्यार करने की मसीह की नसीहत स्वीकार कर ली, वे अपने इस रवैये पर शर्मिंदा हो गए। एक दिन जब फ्रांसिस घोड़े पर सवार होकर यात्रा कर रहे थे, अचानक कुष्ठ रोग से पीड़ित एक आदमी उसके सामने सड़क पार कर रहा था। फ्रांसिस ने आतंकित भय और घृणा की अपनी भावनाओं पर काबू पा लिया और, बजाय दूर भागने का, वे अपने घोड़े के ऊपर से नीचे कूदे, कोढ़ी को चूमे और उसके हाथ में कुछ पैसे दे दिए। लेकिन जब फ्रांसिस ने फिर से घोड़े पर सवार होकर पीछे मुड़कर देखा, तो उन्हें कहीं भी कोढ़ी नहीं दिखाई दिया। बढती उत्तेजना के साथ, उन्होंने महसूस किया कि मैं ने जिसे चूमा था, वह येशु है। कुछ धन जुटाने के बाद, वे कोढ़ी अस्पताल के पास गए और वहां उपस्थित हर एक कोढ़ी को भिक्षा दे दी, और श्रद्धा के साथ उन कोढियों में से एक एक के हाथ का चुंबन किया। पहले किसी कोढ़ी की दृष्टि या स्पर्श जो उनके लिए अरुचिकर लग रहा था – वह अब मिठास में परिवर्तित हो गया। बाद में फ्रांसिस ने लिखा, “जब मैं पाप में था, कोढ़ियों की मात्र झलक पाने से मेरा जी मचलता था; लेकिन तब परमेश्वर ने स्वयं मुझे उनकी संगति में पहुंचाया, और मेरे अन्दर उन पर करुणा उमड़ पड़ी। जब मैं उनसे परिचित हो गया, तो जिसके कारण मेरा जी मचलता था, वह मेरे लिए आध्यात्मिक और भौतिक सांत्वना का स्रोत बन गया। ” आज हम अक्सर अपने आस-पास ऐसे लोगों को देखते हैं जो आध्यात्मिक कोढ़ से त्रस्त हैं। ज़्यादातर हम उनसे दूर रहने की कोशिश करते हैं, लेकिन हम यह महसूस करने में नाकाम रहते हैं कि यह कोढ़ की बीमारी हमारे दिल में भी है। इसलिए दूसरों पर उंगली उठाने और इशारा करने के बजाय, अपने मन की विकलांगता और दिल की कठोरता पर मुक्ति पावें। यद्यपि हम टूटे हुए और जख्मी हैं, पहले स्थान
By: Shalom Tidings
Moreआप शायद उस शतपति से परिचित हैं जिसने क्रूस पर लटके येशु के बगल में भाला भोंका था। कुछ परंपराओं और किंवदंतियों के अनुसार,उस सैनिक का नाम लोंजिनुस था, एक ऐसा नाम जो निकोदेमुस के गैर प्रामाणिक सुसमाचार में पहली बार उभरा था । इस सैनिक का नाम प्रामाणिक सुसमाचारों में दर्ज नहीं है। किंवदंतियों के अनुसार, इस से पूर्व हुए युद्धों में लोंजिनुस बुरी तरह घायल हुआ था इसलिए उस के साथी सैनिक उसके अंधापन के लिए उसके साथ मजाक किया करते थे। जिस वक्त उसने प्रभु के बगल में छेद किया, खून का बौछार उसकी आँखों में पड़ा। तुरंत उसकी दृष्टि बहाल हुई। संत मारकुस के सुसमाचार में हम उसे सुनते हैं,"वास्तव में, यह परमेश्वर का बेटा था!" किंवदंतियाँ यह भी बताती है कि लोंजिनुस ने सेना छोड़ दी,प्रेरितों से आध्यात्मिक सलाह ली और कप्पादोचिया में एक मठवासी सन्यासी बन गया। वहां वह अपने ख्रीस्तीय विश्वास के लिए गिरफ्तार किया गया,उसके दांतों को बाहर निकाला गया और उसकी जीभ काट दी गई। हालांकि,लोंजिनुस ने चमत्कारिक ढंग से साफ़ साफ बोलना जारी रखा और राज्यपाल की उपस्थिति में कई मूर्तियों को नष्ट करने में कामयाब रहा। मूर्तियों से निकली दुष्ट शक्तियों ने राज्यपाल को अंधा बना दिया था। लोंजिनुस ने राज्यपाल की दृष्टि चमत्कारिक रूप से कैसे बहाल की थी, इसके बारे में बताया जाता है कि उसका का सिर काट दिया गया, उसी समय उसके गर्दन से निकले खून के कुछ बूँद राज्यपाल की आँखों पर पडी और राज्यपाल तुरंत चंगा हो गया। संत लोंजिनुस कलीसिया के पहले शहीदों में से एक है। ख्रीस्त प्रभु से जुड़े कई अवशेषों में से एक लोंजिनुस का भाला भी है और इसे रोम में संत पेत्रुस के महागिरजाघर की मुख्य वेदी के ऊपर के चार स्तंभों में से एक में पाया जा सकता है।
By: Shalom Tidings
Moreक्रिस्टोफर गिरजाघर में बैठकर अपने पिता का इंतजार कर रहा था| पिता ने उसे लेने का वादा किया था। वह अपने धर्म शिक्षा के शिक्षक की बातों पर सोच रहा था। शिक्षक ने कक्षा में ब्लैक मास और शैतान के उपासकों के बारे में बताया था। शैतान के ये उपासक येशु के साथ दुर्व्यवहार करते हैं और पवित्र संस्कार की रोटी या ओस्तिया को अपमानित करते हैं। उसने पहले कभी भी ब्लैक मास के बारे में नहीं सुना था और येशु के लिए उसके ह्रदय में बड़े दुःख का अनुभव हुआ। अपने निर्दोष सोच विचार में, क्रिस्टोफर ने एक रणनीति बनाने की कोशिश की। अचानक एक छिपकली ने उसका ध्यान आकर्षित किया| भूरे रंग का एक चित्तीदार पक्षी छिपकली का शिकार करने के प्रयास में लगा था। उस पक्षी को विचलित करने के लिए छिपकली ने स्वयं अपनी पूंछ को विच्छिन्न कर दिया और उसे त्याग दिया। क्रिस्टोफर ने देखा कि कटी हुई पूंछ उलट पलट कर तड़प रही थी और भूरे रंग के पक्षी ने पूंछ को उठा लिया, यह महसूस किए बिना कि छिपकली वास्तव में वहां से भाग चुकी थी। इसे देखते हुए क्रिस्टोफर ने सोचा, ‘अगर येशु पवित्र संस्कार से बाहर निकल आवें तो अच्छा होगा न? छिपकली की तरह अगर येशु शैतान के उपासकों से बच सके तो बढ़िया होगा न ? येशु को पवित्र संस्कार में अपनी उपस्थिति को त्याग देना चाहिए ताकि उसे दुःख और अपमान झेलना न पडे। यदि येशु ने अपनी उपस्थिति पवित्र संस्कार में से अलग कर दिया, तो प्रतिष्ठित रोटी साधारण रोटी बन जाएगी। इस तरह, शैतान उपासक, या जो लोग ब्लैक मास में भाग लेते हैं, वे येशु को अपमानित करने में सफल नहीं होंगे।‘ दोपहर बाद, जब उनके पिताजी उसे लेने आए, तो क्रिस्टोफर ने पिताजी को येशु के लिए अपनी इस नई योजना को विस्तार से और बड़ी तत्परता के साथ बताया। "पापा, येशु पवित्र संस्कार से क्यों नहीं निकल आ सकते? इस तरह, उसे दुःख झेलना नहीं पड़ेगा, ठीक है न?" क्रिस्टोफर ने पूछा। एक पल के लिए, उसके पिता चुप थे। यह एक विचित्र प्रश्न था और उसके पिता ने इसके बारे में पहले कभी नहीं सोचा था। उसके पिता ने आखिरकार कहा। "मेरे बेटे, यीशु पवित्र संस्कार को त्यागकर बाहर निकल नहीं सकते, क्योंकि वह अपने वचन में और अपने वादे में पक्के हैं। जब पुरोहित पवित्र संस्कार को प्रतिष्ठित करते हैं, तो वे येशु के शब्दों का उपयोग करते हैं। येशुकहते हैं: ‘यह मेरा शरीर है जो तुम्हारे पापों की क्षमा के लिए अर्पित है',इन शब्दों के द्वारा उसने हमसे एक वादा किया है।वह अपने वादे से कभी पीछे नहीं हटेगा। इसलिए, मानव जाति के लिए, वह किसी भी अपमान को सहने के लिए तैयार है। येशु ने दो हज़ार साल पहले मानव जाति को बचाने के लिए कलवारी पर पीड़ा भोगते हुए अपनी जान दे दी। वह अभी भी पीड़ा भोग रहे हैं।” क्या हमें एहसास है कि येशु हमारे पाप, अज्ञानता और अपमानपूर्ण व्यवहार के कारण पवित्र संस्कार में कितनी पीड़ा भोग रहे हैं? आइए हम ब्लैक मास में भाग लेने वाले लोगों के लिए और अन्य सभी पापियों के मन परिवर्तन के लिए प्रार्थना करें । हम संपूर्ण मानव जाति के लिए प्रार्थना करें कि सभी लोग पवित्र संस्कार में येशु का सम्मान और प्यार करें।
By: Rosemaria Thomas
Moreअपने आराम क्षेत्र से बाहर निकलना कभी भी आसान काम नहीं होता, तो फिर क्यों परेशानी उठानी है? जीवन के किसी मोड़ पर, येशु हम सभी से पूछते हैं: “क्या तुम मेरे राज्य के लिए बाहर निकलने को तैयार हो?” इसके लिए कोई योग्यता की ज़रुरत नहीं है; कोई नौकरी का विवरण नहीं, कोई बायोडाटा स्क्रीनिंग नहीं… यह एक सरल हाँ या नहीं वाला प्रश्न है। जब मुझे यह बुलावा मिला, तो मेरे पास उसे देने के लिए कुछ भी नहीं था। मैंने जब अपने सेवा क्षेत्र में प्रवेश किया, तब किसी प्रकार का लाभ पाने की मेरी कोई इच्छा नहीं थी। समय ने साबित कर दिया कि येशु के लिए एक इच्छुक और प्रेमपूर्ण हृदय ही वह सब था जिसकी मुझे आवश्यकता थी। उसने बाकी सब संभाल लिया। एक बार जब आप हाँ कहते हैं, तो आप अपने आप में बदलाव देख सकते हैं! जीवन अधिक सार्थक, आनंदमय और रोमांचकारी हो जाता है। इसका मतलब यह नहीं है कि दुख कभी मौजूद नहीं होगा। "जब येशु के लिए इस संसार को छोड़कर अपने पिता के पास लौटने का समय निकट था, तो उसने अपने शिष्यों के पैर धोए। उसने पेत्रुस से कहा: 'यदि मैं तुम्हारे पैर न धोऊँगा, तो तुम्हारा मेरे साथ कोई सम्बन्ध नहीं रह जाएगा।'" उसने आगे कहा: "इसलिए यदि मैं - तुम्हारे प्रभु और गुरु – ने तुम्हारे पैर धोए हैं, तो तुम्हें भी एक दूसरे के पैर धोने चाहिए।" (योहन 13:14) एक तरह से, येशु पूछ रहे हैं: "क्या तुम भीगने के लिए तैयार हो?" पेत्रुस की तरह, हम स्वाभाविक रूप से सूखे और आरामदायक रहना पसंद करते हैं, लेकिन वह हमें अपने प्यार और अनुग्रह के जल में भीगने के लिए बुला रहा है। सबसे खूबसूरत बात यह है कि वह हमें अपने लिए नहीं बुला रहा है... जब येशु अपने शिष्यों के पैर धोने के लिए नीचे झुका, तो न केवल उसके शिष्य भीग गए, बल्कि इस प्रक्रिया में येशु के हाथ भी गीले और गंदे हो गए। जब हम मसीह के पदचिन्हों पर चलते हैं, तो उसके नाम पर दूसरों की सेवा करते हुए, हम भी उस बोझ और दर्द का हिस्सा बनेंगे जिससे दूसरा व्यक्ति गुज़र रहा है। पवित्र बाइबिल हमें निर्देश देती है: “भारी बोझ धोने में एक दूसरे की सहायता करें, और इस प्रकार तुम मसीह की विधि पूरी करें।” (गलाती 6:2) येशु के रूपान्तरण के बाद, पेत्रुस ने कहा: “प्रभु, यहाँ होना हमारे लिए कितना अच्छा है; आप चाहें, तो मैं यहाँ तीन तम्बू खड़ा कर दूंगा - एक आपके लिए, एक मूसा, और एक एलियस के लिए।” (मत्ती 17:4) ऐसा लगता है कि हम कई मायनों में पेत्रुस के जैसे हैं। तंबू लगाना और उस आरामदायक क्षेत्र में रहना हम पसंद करते हैं, चाहे वह हमारा गिरजाघर हो, घर हो या कार्यस्थल। सौभाग्य से, हमारे लिए पवित्र बाइबिल हमें ऐसे कई योग्य उदाहरण प्रदान करती है जिनसे हम सीख सकते हैं। होना या न होना हमारे पल्ली पुरोहित श्रद्धेय क्रिस्टोफर स्मिथ ने एक बार इस बात पर मनन किया कि कैसे योहन बपतिस्ता ने अपने आराम क्षेत्र जंगल को छोड़ दिया और मसीहा के आने की घोषणा करने के लिए शहर में आया। मूसा मिस्र से भाग गया और अपने ससुर के साथ अपने लिए एक तम्बू बनाया लेकिन परमेश्वर ने उसे बाहर निकाला और उसे एक मिशन सौंपा। उसे उसी मिस्र में वापस लाया गया जहाँ से वह भागा था, और परमेश्वर ने उसे अपने लोगों को बचाने के लिए शक्तिशाली रूप से इस्तेमाल किया। एलियस ईज़ेबेल से भाग गया और एक झाड़ी के नीचे शरण ली (1 राजा 19:4), लेकिन परमेश्वर ने उसे अपने लोगों के लिए अपनी योजना को स्थापित करने के लिए वापस लाया। अब्राहम को अपने रिश्तेदारों को छोड़ना पड़ा और यात्रा करनी पड़ी जहाँ परमेश्वर उसे ले गया, लेकिन उस राज्य को देखें जो परमेश्वर में अब्राहम के भरोसे के कारण विकसित हुआ! अगर मूसा घर पर रहता, तो इस्राएलियों का क्या हश्र होता? और अगर एलियस डर के मारे पीछे हट जाता और वापस आने से इनकार कर देता तो क्या होता? पेत्रुस को देखें, जिसने समुद्र में उग्र लहरों पर अपने पैर रखने के लिए नाव से विश्वास की छलांग लगाई। वह बिलकुल अकेला था, डूबने का डर उसके मन में था, लेकिन येशु ने उसे डगमगाने नहीं दिया। बाहर निकलने की उसकी इच्छा ने एक अविस्मरणीय चमत्कार की शुरुआत की, जिसका आनंद नाव के अंदर मौजूद अन्य डर से भरे शिष्यों में से कोई भी नहीं ले सका, क्योंकि उन्होंने अपने आराम के क्षेत्र से बाहर निकलने से इनकार कर दिया था। और इसी तरह, हमारे जीवन में भी, अपने तंबू से बाहर निकलने का पहला कदम उठाने केलिए परमेश्वर हमारा इंतज़ार कर रहा है। जब पवित्र आत्मा ने मुझे लेखन के माध्यम से सुसमाचार प्रचार करने के लिए प्रेरित किया, तो मेरे लिए पहले इसे हाँ कहना बहुत मुश्किल था। मैं स्वभाव से डरपोक और शर्मीली हूँ, और जैसे पेत्रुस लहरों को देखता था, वैसे ही मैं केवल अपनी अक्षमताओं को देखती थी। लेकिन जब मैंने खुद को परमेश्वर की इच्छा के आगे समर्पित कर दिया और उस पर भरोसा करना शुरू कर दिया, तो उसने मुझे अपनी महिमा के लिए इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। आइए हम अपने आराम क्षेत्र से बाहर निकलें और पवित्र आत्मा के अभिषेक में भीगें, क्योंकि यह जलती हुई झाड़ी की शक्तिशाली आग थी जिसने मूसा का अभिषेक किया था। याद रखें कि कैसे (एक मिस्री को मारकर!) इस्राएलियों को 'बचाने' का मूसा का पहला प्रयास उन इस्राएलियों के द्वारा अस्वीकार कर दिया गया था? ऊपर से आने वाले आह्वान का धैर्यपूर्वक इंतज़ार करें, उसका अभिषेक प्राप्त करें, और उसके नाम का प्रचार करने के लिए दुनिया में जाएँ! ------------------------- लिडिया बोस्को एक कार्मेलाइट धर्म बहन हैं जो कैथलिक सेवा ‘अभिषेकाग्नि’ के माध्यम से प्रभु की सेवा करती हैं। वे अपने पति और तीन बच्चों के साथ दक्षिणी यू.एस.ए के दक्षिण कैरोलिना में रहती हैं।
By: लीडिया बोस्को
Moreड्राइविंग सीखना मेरे जीवन में बार-बार आने वाली एक बड़ी बाधा थी। इस घटना ने मेरे लिए इसे बदल दिया! दस साल पहले, ईश्वर ने मुझे पहली बार मेरे होने वाले पति से मुलाक़ात कराई। मैं उस समय श्रीलंका में रह रही थी जबकि वह ऑस्ट्रेलिया में रहता था। प्यार में पड़ने से मिलने वाली नई ऊर्जा से भरकर, श्रीलंका में रहते हुए, ड्राइविंग की तैयारी के लिए एक ड्राइविंग स्कूल में मैंने दाखिला लिया। पहले कभी गाड़ी न चलाने के कारण, मैं चिंतित थी, फिर भी दृढ़ थी, और ईश्वर की कृपा से, मैंने पहले प्रयास में ही अपना ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त कर लिया। छोटी शुरुआत ऑस्ट्रेलिया पहुँचने के तुरंत बाद, मैंने एक स्थानीय ड्राइविंग स्कूल में दाखिला लिया और अभ्यास जारी रखने के लिए एक सेकंड-हैंड कार खरीदी। मेरी पहली गलती यह थी कि मैंने अपने पति को मुझे सिखाने का मौक़ा दिया। आप अच्छी तरह से कल्पना कर सकते हैं कि इसका क्या परिणाम हुआ होगा! चाहे मैं जितनी भी सीखती रही, मेरे अन्दर का डर मुझे पीछे खींचता रहा। मैं तब तक ठीक-ठाक गाडी चलाती थी, जब तक कि कोई कार मेरे पीछे नहीं आ जाती और यह मुझे परेशान कर देता, मानो मैं जांच के दायरे में हूं। मेरी उम्र पच्चीस के आसपास थी| ऐसी उम्र में इस तरह का डर बहुत ही अतार्किक था। पेशेवर ड्राइविंग प्रशिक्षक से सबक लेने से भी कोई मदद नहीं मिली। मैं अभ्यास करने में हिचकिचाने लगी और मेरी कार धीरे-धीरे धूल जमा करने लगी, जबकि मैं खुद को यह समझाने की कोशिश कर रही थी कि ड्राइविंग मेरे लिए नहीं है। काम पर जाने और वापस आने के लिए, मैंने दो बसें और एक ट्रेन ली, लेकिन खुद को ड्राइव करने के लिए मजबूर नहीं कर सकी। मैंने अपनी कार बेच दी। हार मानने को तैयार नहीं यह जीवन शैली स्पष्ट रूप से हमारे लिए काम नहीं कर रही थी, इसलिए मैंने एक बार फिर कोशिश करने का फैसला किया। अब 2017 था और मैंने एक नए प्रशिक्षक के साथ साइन अप किया। लग रहा था कि कुछ सुधार हो रहा है। हालांकि, मेरा पहला ड्राइविंग टेस्ट फिर से बहुत ही बेचैनी भरा था। मेरा प्रशिक्षक काफी क्रोधित था, और जब परीक्षक मेरे स्कोर का मूल्यांकन करने के लिए चला गया, तो उसने कहा “तुम निश्चित रूप से असफल हो जाओगी”। निराश और भारी मन से, मैं फैसला सुनने के लिए ड्राइविंग सेंटर में चली गयी। परीक्षक ने कहा “आप पास हो गयी हैं”! हैरान और अविश्वास में, मैंने पूरे दिल से ईश्वर का शुक्रिया अदा किया। मेरे पति भी बहुत खुश थे और मेरे नए आत्मविश्वास के आधार पर हमने फिर से एक सेकंड-हैंड कार खरीदी, बहुत उम्मीद थी कि इस बार यह काम करेगी। इसकी शुरुआत अच्छी रही और फिर धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से, यह सब वापस आने लगा - घबराहट, डर, झिझक। छह महीने से थोड़ा ज़्यादा समय बीतने के बाद, मैंने फिर से अपना सारा आत्मविश्वास खो दिया। मैंने अपनी कार बेच दी। मेरे धैर्यवान पति का मानना था कि मैं अपनी क्षमताओं के साथ न्याय नहीं कर रही थी, इसलिए उन्होंने न केवल मेरे लिए प्रार्थना की बल्कि जब मैं हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी, तब भी उन्होंने मुझ पर विश्वास बनाए रखा। उस समस्या के जड़ का पर्दाफाश साल बीतते गए...2020 में, हम एक ऑनलाइन आतंरिक चंगाई सेवा में भाग ले रहे थे। वह असरदार और प्रभावशाली सेवा अपने अंत के करीब थी, और तब तक मुझे कुछ खास महसूस नहीं हुआ था। यह मेरे पति की प्रार्थना ही रही होगी जिसने स्वर्ग को हिला दिया, क्योंकि जब पुरोहित आंतरिक घावों की चंगाई के लिए प्रार्थना कर रहे थे, तो मुझे थीम पार्क में बम्पर कार खेलने की एक ज्वलंत घटना की स्पष्ट याद आई। मैं लगभग छह साल की रही होगी और इस खेल को आज़माने के लिए बहुत उत्सुक थी। मैंने एक छोटी गुलाबी कार को चुना, मैं उसमें कूद गई और खुशी से उसे चला रही थी, जब अचानक मुझे लगा कि पीछे वाली कार बार-बार मेरी कार से टकरा रही है। हालाँकि यह खेल का हिस्सा था, मुझे लगा कि मुझ पर हमला हुआ है, और अब उस वर्तमान क्षण में, मैं उस डरावनी और भयंकर भय और बेचैनी को फिर से महसूस कर रही हूँ जो बिल्कुल वैसा ही था जैसा मुझे गाड़ी चलाते समय महसूस होता था! मुझे याद है कि मैं अपने पिता को जल्द से जल्द वहाँ से निकलने के लिए बेचैनी से उकसा रही थी। यह एक ऐसी याद थी जो उस घटना के बाद से इतने सालों में एक बार भी मेरे मन में नहीं आई थी। मेरी समस्या के मूल कारण से हमारे प्रभु येशु मसीह मुझे ठीक कर रहे थे। यह मेरे लिए एक बहुत बड़ा बयान था कि हमारे पिता परमेश्वर ने गाड़ी चलाने की क्षमता के साथ मेरी सृष्टि की है, जिस पर मैं लगातार सवाल उठाती रही थी। सड़क पर वापस आने के लिए उत्सुक, मैंने अपने पति के साथ लंबी दूरी तक गाड़ी चलाई और इस डर से मेरी मुक्ति स्पष्ट थी। ड्राइविंग में मैं ने अच्छी प्रगति कर ली थी और अब मुझे मेरे पीछे वाली कार से कोई परेशानी नहीं थी। कोई सोच सकता है कि यही आखिरी झटका था जिसकी अपनी ज़िंदगी को बदलने के लिए मुझे ज़रूरत थी। मैं जितना भी सुधार करने वाली थी, और चूँकि मेरी ड्राइविंग का अभ्यास लगातार नहीं चल रहा था, मैं अभी भी अपने सर्वश्रेष्ठ स्तर पर नहीं थी। हमारे नवजात शिशु ने मेरे जीवन का अधिक समय ले लिया था, इसलिए मेरी प्राथमिकताएँ बदल गई थीं। हम जिस छोटे से शहर के अपार्टमेंट में रहते थे, वह हमारे छोटे बच्चे के पालन-पोषण के लिए उपयुक्त नहीं था। हम जो परवरिश उसे देना चाहते थे उस केलिए उपनगरीय जीवन ज़्यादा अनुकूल होगा, और जब तक मैं आसानी से गाड़ी नहीं चला पाती हूँ, तब तक हम यह कदम नहीं उठा सकते हैं। सैंतो निनोटो द्वारा मेरा बचाव उस समय मेरी सास हमसे मिलने आई थीं। वे प्राग के शिशु येशु की उत्साही भक्त थी, उन्होंने मुझे शिशु येशु के प्रति नव रोज़ी प्रार्थना (नोवेना) दी, और मैंने चमत्कार के लिए मन्नत रखती हुई प्रतिदिन प्रार्थना की। नोवेना पूरा करने के तुरंत बाद एक प्रथम शुक्रवार को, हम येशु के पवित्र हृदय के सम्मान में पवित्र मिस्सा में भाग लेने के लिए किसी गिरजाघर की तलाश कर रहे थे। हमने जितने भी गिरजाघर देखे वे सभी बंद थे, आखिरकार हम एक ऐसे गिरजाघर में पहुँचे जो न केवल खुला था बल्कि जहां सैंतो निनो* (पवित्र शिशु) का पर्व मनाया जा रहा था। समारोही पवित्र मिस्सा और गिरजाघर की सारी गतिविधियाँ शिशु येशु के प्रति श्रद्धा और प्रेम से भरी हुई थी। समारोह के अंत में गायक मंडली ने एक शक्तिशाली, गूंजती हुई ढोल की थाप बजाई, जिसने पूरे वातावरण को भर दिया। उस ढोल की हर थाप मेरी आत्मा को छेदती थी और मुझे लगता था कि मेरे सारे डर उड़ गए हैं। एक नया साहस और आशा ने डर की जगह ले ली। मेरा आत्मविश्वास अब मेरी अपनी क्षमताओं पर निर्भर नहीं था, बल्कि येशु मेरे भीतर क्या कर सकते हैं, इस पर निर्भर था। मेरी कमियों के बावजूद ईश्वर का अटल प्रेम मेरे पीछे दौड़ रहा था और अब समय आ गया था कि मैं सब कुछ उनके हवाले कर दूँ। ड्राइविंग प्रशिक्षक के साथ प्रशिक्षण के नए सत्रों को पूरा करने के बाद, हमने घर के सारे सामान समेट लिए और उपनगर में चले गए। मेरे पिता और ससुर ने मेरी ड्राइविंग में बाकी बची कुछ कमियों को दूर करने में मेरी मदद की और मेरी माँ ने मेरे लिए प्रार्थना की। लाइसेंस प्राप्त करने के सात साल बाद, मैं अब रोज़ाना आसानी से गाड़ी चला रही हूँ। हाईवे के पाँच लेन वाले हिस्से पर 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से गाड़ी चलाना मुझे हमारे ईश्वर की अथाह शक्ति और दया की निरंतर याद दिलाता है। सारी महिमा, सम्मान और प्रशंसा येशु को मिले, जिसने स्टीयरिंग व्हील संभाला और मेरे परिवार के जीवन को बदल दिया। "जो मुझे बल प्रदान करते हैं, मैं उनकी सहायता से सब कुछ कर सकता हूँ।" – फिलिप्पी 4:13 * सैंतो नीनो डे सेबू शिशु येशु की एक चमत्कारी छवि है, जिसका आदर फिलिपिनो कैथलिक समुदाय द्वारा किया जाता है|
By: मिशेल हेरोल्ड
Moreहमारे पास जो कुछ भी है वह ऊपर से एक उपहार है, लेकिन कभी सोचा है कि जब ईश्वर ने आपको यह दिया तो उसका क्या इरादा था? जब मैं तीन भाइयों में सबसे छोटा था, तब तक मेरा परिवार ख्रीस्तीय परिवार था, लेकिन मेरा परिवार कोई ख्रीस्तीय रीति रिवाज़ का पालन नहीं करता था। मेरे माता-पिता शुरू से कैथलिक नहीं थे, इसलिए मुझे याद है कि प्रोविडेंस कैथलिक हाई स्कूल में एक नए छात्र के रूप में मेरे पहले दिन, मैं बिलकुल डर गया था, क्योंकि कभी किसी पुरोहित या धर्म बहन से मेरी भेंट नहीं हुई थी। मुझे कैथलिक मिस्सा के बारे में कुछ भी नहीं पता था, लेकिन मुझे स्कूल में सभी मिस्साओं में भाग लेने के लिए कहा गया था। मुझे ईश शिक्षा के पाठ्यक्रम में भी हिस्सा लेना था, लेकिन उसके अंतर्गत नियमित रूप से आयोजित बेसबॉल कार्यक्रम में मुझे रूचि थी, इसलिए बेसबॉल खेलने के इरादे से मैं ने ईश शास्त्र की कक्षा में भाग लेने से कोई आपत्ति नहीं जताई। कुछ ढूँढ रहे हो ... 14 साल की उम्र में, मेरे साथियों के सामने विश्वास की बातों को लेकर शर्मिन्दगी का एहसास होने का बड़ा डर मुझे सताता था – मुझे दर था कि मुझसे कैथलिक विश्वास के बारे में बुनियादी सवाल पूछा जाएगा और मैं जवाब नहीं दे पाऊँगा। लेकिन हम नए छात्रों को ईशशास्त्र पढ़ाने वाली सिस्टर मार्गरेट ने कभी भी मुझे असहज नहीं किया। एक दिन कक्षा के बाद, वह मेरे लिए दरवाज़े पर इंतज़ार कर रही थी। मेरा इरादा सीधे उनके बगल से निकल जाने का था, लेकिन उन्होंने मुझे रोका, मेरी आँखों में देखा और कहा: "बर्क, तुम कुछ ढूँढ रहे हो।" मैंने वहाँ से जाने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने फिर से मुझे रोका और कहा: "इसे पढ़ो।" उन्होंने मुझे मेरी पहली बाइबल दी। उस शाम, बेसबॉल का अभ्यास, होमवर्क और रात के खाने के बाद, मैं अपने कमरे में गया, दरवाज़े बंद किए और बाइबल से मत्ती के सुसमाचार को पढ़ना शुरू किया। इसने मुझे वास्तव में इस तरह से आकर्षित किया कि यह मेरी आदत बन गई। धीरे-धीरे, ईशशास्त्र मेरी पसंदीदा कक्षाओं में से एक बन गया। पूरे स्कूल केलिए होने वाले मिस्सा समारोहों के दौरान, मैं अपने दोस्तों को परम प्रसाद स्वीकार करने के लिए जाते हुए देखता था और जिस रोटी के टुकड़े को वे ग्रहण कर रहे थे, उसके प्रति उनकी श्रद्धा के बारे में जानने के लिए मैं उत्सुक रहता था। हम कानिष्ठ लोगों के लिए आयोजित एक साधना के अवसर पर, अंतिम दिन के मिस्सा बलिदान के दौरान, परम प्रसाद से मेरी गहन साक्षात्कार हुआ, इसके द्वारा मेरे भीतर ईश्वर की शक्ति का एहसास हुआ। पुरोहित ने हमें परम प्रसाद की अभिषेक प्रार्थना और वितरण के लिए पवित्र वेदी की चारों ओर इकट्ठा किया; मैं पवित्र वेदी के इतने करीब कभी नहीं गया था। परम प्रसाद वितरण के दौरान, पुरोहित परमप्रसाद लेकर हम में से प्रत्येक के पास आये; मुझे नहीं पता था कि क्या करना है। जैसे ही वे मेरे पास आये और कहा: "ख्रीस्त का शरीर", मेरा इरादा उन्हें यह बताना था कि मैं कैथलिक नहीं हूं। लेकिन यह कहने केलिए जैसे ही मैंने अपना मुंह खोला, उन्होंने परम प्रसाद को मेरी जीभ पर रख दिया। मैंने उस क्षण महसूस किया कि ईश्वर की शक्ति मेरे पूरे शरीर से गुजर रही है। हालाँकि अब मैं जानता हूँ कि बपतिस्मा न पाए हुए व्यक्ति के लिए - यहाँ तक कि जो परम प्रसाद में येशु मसीह की वास्तविक उपस्थिति पर विश्वास नहीं करने वाले बपतिस्मा प्राप्त व्यक्ति के लिए भी – परम प्रसाद ग्रहण करना सही नहीं है, परिस्थितियाँ ऐसी थीं कि मैंने अपना पहला पवित्र संस्कार संयोग से ग्रहण किया! इस घटना ने मेरे जीवन को बहुत गहराई से बदल दिया; मैंने विश्वास के बारे में और अधिक अध्ययन करना शुरू किया, और जब मैं मिसिसिपी चला गया, तब तक मैं एक कैथलिक बन चुका था जो हर दिन वास्तव में येशु मसीह को ग्रहण कर सकता था। उतार-चढ़ाव बेसबॉल अच्छा चल रहा था, और टीम अक्सर राष्ट्रीय स्तर पर रैंक करती थी। अपने अंतिम वर्ष के दौरान, जब मैं ज़ोन में आया, तो मैंने एक ग्रैंड स्लैम मारा (चौका, जो बेसबॉल खेल में बहुत कम लोग मार पाते हैं), जिस के कारण हम कॉलेज वर्ल्ड सीरीज़ में पहुँच गए। मुझे उस टूर्नामेंट का सबसे मूल्यवान खिलाड़ी नामित किया गया। लेकिन अगले तीन खेलों में कुछ त्रुटियों ने सब कुछ खत्म कर दिया। वर्ल्ड सीरीज़ मेजर लीग ड्राफ्ट के दौरान, मेरे आठ साथियों को ड्राफ्ट किया गया, लेकिन मेरे फोन की घंटी नहीं बजी। मैं टूट गया। मैं घर आया और मुझे नहीं पता था कि क्या करना है। मेरे हाई स्कूल के पूर्व बेसबॉल कोच, शिकागो व्हाइट सॉक्स के कोच बन चुके थे। कुछ हफ़्तों बाद उन्होंने मुझे फ़ोन किया और पेशेवर बेसबॉल खेलने के लिए ट्रायल के बारे में बताया। यह मेरे लिए अच्छा रहा, और अगले दिन, मैंने व्हाइट सॉक्स टीम के साथ एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए। लेकिन यह वैसा नहीं हुआ जैसा मैंने योजना बनाई थी। सीज़न के अंत में, उन्होंने कहा: "बर्क, तुम सब कुछ अच्छा करते हो, लेकिन तुम कुछ भी महान नहीं करते, हम महानता की तलाश में हैं।" उन्होंने मेरे अनुबंध को नवीनीकृत नहीं किया। मैं कुछ समय तक कोशिश करता रहा, लेकिन आखिरकार मुझे इस सच्चाई का सामना करना पड़ा कि यह सब खत्म हो चुका है। मैं 23 साल का था और मेरे पास सिर्फ़ गणित की डिग्री थी। किसी ने बताया कि बीमांक विज्ञान (एक्चुरियल साइंस) में करियर बनाना संभव है, इसलिए मैंने वह पढ़ाई की, मुझे नौकरी मिल गई और मैंने खूब पैसे कमाए। लेकिन काम का तनाव इतना कम था कि मैं ऊब गया और मैंने अपनी नौकरी छोड़ दी। ओहियो विश्वविद्यालय से अपनी मास्टर डिग्री पूरी करने के बाद, मुझे एक माइनर लीग बेसबॉल टीम, केन काउंटी कुगर्स, में नौकरी मिल गई। चार साल बाद, मेरे पास दो नौकरियों के प्रस्ताव आये - एक ही समय में बेसबॉल में दो नौकरी! मेरे सपनों के मुताबिक़! मैंने स्टेफ़नी को डेट करना शुरू ही किया था, जिससे मैं स्थानीय गिरजाघर में मिला था। एक रात, हम डिनर के लिए बाहर गए और जब हम रेस्तराँ से निकल रहे थे, तो उसने कहा: "चलो परम प्रसाद की आराधना के लिए गिरजाघर चलते हैं।" हालाँकि मैं कम से कम आठ या नौ साल से कैथलिक था, लेकिन मैंने परम प्रसाद की आराधना के बारे में कभी नहीं सुना था। स्टेफ़नी ने समझाया कि हम परम प्रसाद के संस्कार के सामने एक घंटे की शांत प्रार्थना करेंगे। उस आराधना के दौरान मुझे एहसास हुआ कि मौन में, हमारी मुलाक़ात ईश्वर से होती है। हम हर मंगलवार की रात को एक घंटे की आराधना के लिए जाने लगे, और मौन से मेरा डर मौन की लालसा में बदल गया। यह मेरे हर सप्ताह का सबसे शांतिपूर्ण घंटा बन गया। और मेरे दिल में, पुरोहित बनने की भावना सतह पर उभरती रही। ऐसा लग रहा था जैसे ईश्वर मुझसे पुरोहित बनने के लिए कह रहा था; बार-बार एक सौम्य निमंत्रण। मेरे परिवार के सदस्य, दोस्त और यहाँ तक कि पूरी तरह से अजनबी लोग भी मेरे पास आने लगे और कहने लगे कि उन्हें लगता है कि तुम एक अच्छा पुरोहित बन सकता हो। मुझे लगा कि पवित्र आत्मा आंतरिक और बाहरी दोनों तरह से काम कर रही है। इसलिए, मैंने स्टेफ़नी से बात की, और उसने मुझसे कहा कि अगर यह मेरी बुलाहट है, तो मुझे इसका पालन करना होगा। मेरा इरादा था कि मैं एक साल के लिए सेमिनरी जाऊँ और फिर स्टेफ़नी के पास लौट आऊँ। लेकिन जैसे ही मैं सेमिनरी के दरवाज़े से अंदर गया, मुझे ऐसी शांति महसूस हुई जो कभी खत्म नहीं हुई। मई 1998 में, जब मैं सेमिनरी का पहला साल पूरा कर रहा था, मुझे अपने पिता का फोन आया और उन्होंने मुझे तुरंत घर जाने के लिए कहा, क्योंकि मेरी माँ को फेफड़ों के कैंसर का पता चला था, जो मस्तिष्क और कलेजे तक फैल गया था। मैंने सब कुछ छोड़ दिया और घर चला गया। कैंसर की बीमारी चौथे चरण पर पहुँच चुकी थी। हालाँकि हम उम्मीद करते रहे, दो महीने बाद, माँ टेलीविजन देखती हुई मेरी बाहों में गिर पड़ी और चली गयी। यह भयानक था। जब मैंने खिड़की से बाहर देखा और ड्राइव वे में अपनी माँ की कार देखी, तो मैंने कल्पना की कि मेरी माँ ईश्वर के आमने-सामने आ रही हैं। ईश्वर उनसे यह नहीं पूछ रहा था कि वह किस तरह की कार चलाती हैं या वह कितना पैसा कमाती हैं, बल्कि इसके बजाय, कुछ और बुनियादी बात पूछ रहा था, जैसे: "क्या तुमने अपने पूरे दिल, दिमाग और आत्मा से अपने ईश्वर से प्यार किया है, और अपने पड़ोसी से अपने जैसा प्यार किया है?" भले ही मेरी माँ, गिरजाघर नहीं जाती थीं, फिर भी उन्होंने हमें ईश्वर के प्यार के बारे में सिखाया था। सबसे बेहतर आनंद मैं आस्था के संकट से गुज़रा। मैंने यह भी सोचा कि क्या मृत्यु के बाद भी जीवन है। मैं अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति को मुझसे दूर करने के लिए ईश्वर से नाराज़ था, लेकिन ऐसा हुआ कि ईश्वर ने मुझे इससे बाहर निकाला। मैं सेमिनरी वापस गया और कुछ वर्षों बाद मुझे पुरोहिताई का अभिषेक मिला। मैं ईश्वर का शुक्रिया अदा करता हूँ कि मैं कभी भी बेसबॉल के प्रमुख दलों में नहीं पहुँच पाया, क्योंकि पुरोहित के रूप में मैंने जो आनंद और शांति का अनुभव किया है, वह बेसबॉल के मैदान पर मेरे द्वारा अनुभव की गई किसी भी आनंद से कहीं ज़्यादा है। मैं न केवल शिकागो के बेसबॉल क्लबों के लिए धार्मिक परामर्शदाता रहा हूँ, बल्कि मैंने कैथलिक खेल शिविरों को स्थापित और संचालित किया है, जिनका अब विस्तार हो रहा है। यह ईश्वर का अनोखा तरीका था, जिस तरीके से खेलों में मेरे शौक और मेरी पसंद को आत्मसात करने और इसे अपने सेवा क्षेत्र में लाने की ईश्वर ने मुझे अनुमति दी। ईश्वर हमें एक उद्देश्य के साथ उपहार देता है, और वह चाहता है कि जिन तरीकों से हमने कभी कल्पना भी नहीं की थी, उन तरीकों से हम उनकी महिमा के लिए उन उपहारों का उपयोग करें। ------------------------- फादर बर्क मास्टर्स इलिनोई के हिंसडेल में सेंट आइजैक जोग्स पल्ली में सेवा करते हैं। वे ‘ए ग्रैंड स्लैम फॉर गॉड: ए जर्नी फ्रॉम बेसबॉल स्टार टू कैथलिक प्रीस्ट’ नामक पुस्तक के लेखक हैं।
By: फादर बर्क मास्टर्स
Moreहर क्रिया के साथ, हम एक तीर लक्ष्य की ओर निशाना साध रहे हैं। क्या हम हर बार कहते हैं "अरे निशाने पर सही नहीं गया! क्या मैं इसे फिर से कर सकता हूं?" बातचीत पिछली रात शुरू हुई थी, जैसे कई अन्य बातचीत होती हैं, पूरी तरह से निर्दोष बातचीत। घर के रास्ते पर, मुझे असहजता का एहसास हुआ। उन शब्दों पर विचार करते हुए जो मैंने पहले अपनी दोस्त से साझा किए थे, मुझे लगा कि क्या मैं वही पुराना संकेत महसूस कर रही हूं जो शायद पवित्र आत्मा की ओर से मुझे मिल रहा है। रात के अँधेरे में भी ईश्वर का आत्मा मुझे सलाह देता है, जिसे स्तोत्र 16:7 में वर्णित किया गया है? “मैं अपने परामर्शदाता ईश्वर को धन्य कहता हूँ। रात को भी मेरा अंत:करण मुझे पथ दिखाता है।” गेराज में गाड़ी लगाते हुए, मैंने तुरंत उस विचार को नकार दिया... आखिरकार, यह महिला कुछ अन्य महिलाओं के साथ कुछ समस्या का सामना कर रही थी, इसलिए उसने उन समस्याओं को लेकर मुझसे संपर्क किया, और मैं अपनी प्रतिक्रिया में सहानुभूति और समझदारी दिखाने की कोशिश कर रही थी। अगली सुबह, हालांकि, यह स्पष्ट था कि स्तोत्रकार का अनुभव अब मेरा था: प्रभु वास्तव में “मेरा परामर्शदाता ईश्वर मुझे परामर्श देता है; रात को भी मेरा अंत:करण मुझे पथ दिखाता है।” मुझे कुछ साल पहले शब्दों की शक्ति के बारे में मैंने जो सीखा था, जागते ही वह तुरंत याद आया। हाँ, जो कुछ मैंने पिछली रात साझा किया था, वह सत्य था। यह उस संदर्भ में सहायक भी था, जो मेरी इस व्यक्ति के साथ संबंधों के संदर्भ में था। मेरी प्रतिक्रिया प्रेरणादायक नहीं थी! अफसोस, इसे आवश्यक भी नहीं कहा जा सकता था! सौभाग्य से, मेरा आंकलन सकारात्मक नोट पर समाप्त हुआ, क्योंकि मेरी टिप्पणियों को दयालु माना जा सकता था, क्योंकि जब हम अपनी दोस्त की चिंताओं पर चर्चा कर रहे थे, तब मैंने इन महिलाओं के उन सुंदर गुणों को याद किया। जैसे हम में से अधिकांश किसी न किसी विशेष प्रकार का आइस क्रीम या अन्य पसंदीदा भोजन के स्वाद का बार-बार आनंद लेते हैं, वैसे ही हम में से कुछ के पास एक विशेष पाप होता है जिसका बार-बार स्वाद लेने का हमारा मन करता है। (एक कहानी याद आती है कि एक व्यक्ति पुरोहित के पास जाकर हर बार पाप स्वीकार में यह कहता है कि वह अशुद्ध विचारों में उलझा हुआ था...पुरोहित पूछते हैं: “क्या आपने उन विचारों के साथ रहकर पाप किया ?” पाप स्वीकार करनेवाला व्यक्ति जवाब देता है: “नहीं, लेकिन उन विचारों ने मेरे साथ रहकर पाप किया होगा!”) मैंने महसूस किया कि मैंने अपने विशेष 'स्वाद' वाले पाप के सामने समर्पण कर दिया था, जिसे मैं अक्सर स्वीकार करती थी, लेकिन फिर भी उसे दोहराती रहती थी... लेकिन जैसा कि कहानी में उस आदमी के पापस्वीकार से हमें हंसी आती है, उसी तरह मेरे पापस्वीकार के बारे में सोचकर मुझसे उस तरह की हंसी नहीं निकलती! अपने इस द्वंद्व पर विचार करते हुए, मैंने सोचा कि समान स्थिति में क्या कोई और इस तरह की सोच रख सकते हैं... किसी और का 'पसंदीदा पाप' क्या हो सकता है? क्या उन्होंने भी उसे बार-बार ईश्वर, पुरोहित या यहां तक कि किसी ऐसे दोस्त के सामने, जिसे वे विश्वास करते हैं, इस तरह बार बार पाप स्वीकार किया होगा,? बचपन से बड़े होने के पल बाइबिल में 'पाप' शब्द का यूनानी अनुवाद 'हमार्टानो' है, जिसका मतलब है कि एक व्यक्ति तीर चला रहा है, लेकिन निशाना चूक जाता है। जो व्यक्ति निशाने से चूकता था, उसे पापी कहा जाता था। मेरी सारी कोशिशों के बावजूद, मैं भी निशाने से चूक गयी थी! उस सुबह ईश्वर से बात करने के बाद, मैंने अपनी दोस्त को संदेश भेजा। माफी मांगने के लिए टाइप करते हुए एक ऐसा विचार जो मेरे मन में आया उसे भी साझा करने के बाद, मुझे अंततः अपने 'हमार्टानो' की जड़ समझ में आई। मैंने अपने संदेश में लिखा: “मेरे शब्दों का उपयोग करने और लोगों के साथ कहानियाँ और बातचीत साझा करने की मस्ती मुझ पर हावी थी, जिसके कारण मुझे अनावश्यक और प्रेरणा न देनेवाले कार्यों के लिए इसका उपयोग करने की अपनी इच्छाओं को मैं रोक नहीं पाती थी।” मैंने संदेश समाप्त करते हुए अपनी दोस्त से कहा कि अगर मैं भविष्य में इन 'सीमाओं' से बाहर जाऊं, तो वह मुझे जवाबदेह ठहराए। मुझे जल्द ही जवाब में एक संदेश मिला: "चाहे हम कितने भी समय से येशु के साथ चल रहे हों, हमारे पास हमेशा और प्रगति करने के अवसर होते हैं। तुम माफ़ किए गए हो! मैं सहमत हूँ कि हमारी बातचीत जितनी देर तक चली, उतनी लंबी नहीं होनी चाहिए थी, जिससे हम एक खतरनाक क्षेत्र में पहुंच गए थे। मैं उन परिस्थितियों के प्रति अधिक सचेत रहने की पूरी कोशिश करूंगी और जरूरत पड़ने पर तुम्हें जवाबदेह ठहराऊँगी, और तुम्हारे लिए भी वही करने की उम्मीद करती हूं। प्रभु का धन्यवाद कि उसने हमें अपनी कृपा और दया से दिखाया, और हमें यह समझाया कि हमें कहां बेहतर करने की आवश्यकता है।" मेरी दोस्त की कृपालु प्रतिक्रिया और ईमानदारी की सराहना करते हुए, मुझे 'बेहतर करने' की प्रेरणा मिली! मुझे एहसास हुआ कि चूंकि यह स्पष्ट है कि हमारे भीतर कुछ ऐसा है, जिसे हम अपने सामान्य प्रलोभन में शामिल होकर या उसे बढ़ावा देकर पोषित कर रहे हैं, इसलिए इस परिणामी व्यवहार की जड़ तक पहुंचना अनिवार्य है। पवित्र आत्मा से यह जड़ हमारे सामने प्रकट करने के लिए कहने से, हमें यह समझने में मदद मिलती है कि हम इस क्षेत्र में बार-बार निशाना क्यों चूकते हैं। हमारे साथ अतीत में क्या हुआ था, जिसके कारण हमारे अंदर एक खालीपन पैदा हो गया था, जिसे हम अपने पाप के स्वाद से भरना चाहते हैं? इस भोग-विलास से हम किस ज़रूरत या इच्छा को पूरा कर रहे हैं? क्या हमारे टूटेपन के कारण कोई घाव सड़ रहा है, जिसे भरने की ज़रूरत है? हम किस तरह की स्वस्थ प्रतिक्रिया पर विचार कर सकते हैं, जिससे न केवल दूसरों को चोट पहुँचने से रोका जा सके, बल्कि हम अपनी कमज़ोरियों में खुद के प्रति करुणा और अनुग्रह भी दिखा सकें? यह जानते हुए कि हमें ‘अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम करना है, दूसरों से प्रेम करने की कोशिश करने से खुद से भी प्रेम करने की ज़रूरत बढ़ती है, है न? बोयें, उगाएं और छांटें कभी-कभी, हम सालों तक एक ही व्यवहार में बने रहते हैं। मेरी दोस्त के अन्दर जवाब देने का साहस था, लेकिन बहुत से लोगों के पास ऐसा साहस नहीं होता है, इस कारण, हम ऐसे पैटर्न में बने रहते हैं जो पवित्र आत्मा के प्रयासों को सीमित करते हैं ताकि हम मसीह की प्रतिछाया के अनुरूप बन सकें। हम बदलने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन जब तक हम पर्याप्त रूप से प्रेरित नहीं होते हैं, शायद किसी और को अपना जवाबदेही के भागीदार बनाने के द्वारा, हम हार मान सकते हैं और अपनी पसंद के स्वाद पर वापस जा सकते हैं। चाहे वह रॉकी रोड आइसक्रीम हो, या मेरे द्वारा अनावश्यक शब्दों का चयन, प्रभु चाहते हैं कि हम जानें कि यदि हम उनकी आत्मा को हमें अन्य विकल्पों की ओर ले जाने देते हैं तो हमारा जीवन और हमारे आस-पास के अन्य लोगों का जीवन कितना अधिक सुखद हो सकता है । मुझे पता था कि जिस प्रवृत्ति में मैं इतनी आसानी से फंस गयी थी, उसको बदलने का तरीका खोजने की मुझे ज़रूरत है। जब मेरी दोस्त ने देखा कि मैं फिर से उस परिचित रास्ते पर चलना शुरू कर रही हूँ, तब मैंने उससे जवाबदेह होने में मेरी मदद करने के लिए कहा। चूँकि पाप से बचने के हमारे सभी प्रयास येशु के चरित्र का बेहतर अनुकरण करने की ओर ले जाते हैं, इसलिए गलाती 5:22-23 मेरे मन में आया। मैं पाप के अपने विशेष स्वाद के बजाय आत्मा के फलों में से किसी एक के साथ अपनी भूख को संतुष्ट करना चुन सकती थी। प्रेम, आनंद, शांति, सहनशीलता, मिलनसारी, दयालुता, भलाई, ईमानदारी, सौम्यता और आत्म-संयम के फल उत्पन्न करना येशु मसीह के समान बनने केलिए हमारे प्रयासों में पवित्र आत्मा के साथ हमारी भागीदारी का प्रमाण है। अभ्यास से परिपूर्णता नहीं मिलती, लेकिन यह प्रगति जरूर करता है! इन गुणों में से किसी एक का अभ्यास करने की दिशा में अपने इरादे को निर्देशित करके मुझे पता था कि मैं अंततः धार्मिकता का फल देखूंगी। प्रत्येक फल एक बीज बोने से शुरू होता है, फिर अंततः जब तक कि हम सही प्रकार का फल नहीं देखते, तब तक खाद देकर, उगाकर और छंटाई की जाती है। इस बीच, मैं अपने मन को अनुस्मारकों से खाद देना शुरू करूँगी, ऐसी कहावत के द्वारा: "शब्द तीर की तरह होते हैं; एक बार कमान से छोड़े जाने के बाद उन्हें वापस नहीं बुलाया जा सकता।" जब मैं अपने व्यवहार की जड़ जानती हूँ, और मैंने अपनी मित्र को मुझे जवाबदेह ठहराने के लिए आमंत्रित किया है, तब मैं आत्म-नियंत्रण का अभ्यास करने पर ध्यान केंद्रित करने का विकल्प चुन रही हूँ, जैसा कि मेरी मित्र ने बहुत ही संक्षेप में बताया, उसी तरह जब मुझे लगता है कि दूसरे लोग हमें 'खतरनाक क्षेत्र में डाल रहे हैं', तब उनके साथ बातचीत समाप्त कर रही हूँ। यह देखने और चखने के बाद कि प्रभु अच्छे हैं, मैं जानती हूँ कि केवल वही वास्तव में मेरे दिल की इच्छाओं को पूरा कर सकते हैं। स्तोत्र 16:8 आगे कहता है: "मैं प्रभु को सदा अपनी आँखों के सामने रखता हूँ; वह मेरे दाहिने विराजमान है, मैं विचलित नहीं होऊँगा।" मैं लक्ष्य पर निशाना लगाने के लिए एक बार फिर अपना तीर उठाती हूँ। प्रभु की कृपा से, समय के साथ, मेरा तीर निशाने के करीब पहुँच जाएगा। येशु की शिष्य बनने के लिए प्रतिबद्ध, मैं अपने स्वर्ग रुपी घर का मार्ग येशु का अनुसरण करूँगी। निश्चय ही तेरी भलाई और तेरी कृपा से मैं जीवन भर घिरा रहता हूँ। मैं चिरकाल तक प्रभु के मंदिर में निवास करूँगा। (स्तोत्र 23:6)
By: करेन एबर्ट्स
More