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मैं एक बड़े परिवार में पली बढ़ी हूँ| हम दस भाई बहन हैं और व्यवहार में एक दूसरे से काफी अलग| इसलिए हमारा घर हमेशा शोर शराबे और शरारतों से भरपूर रहा है| लेकिन इस शोरगुल के बीच ढेर सारा प्यार और ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास भी रहा है| मुझे अक्सर वे दिन याद आते हैं जब मैं और मेरे भाई-बहन रोज़ कोई ना कोई लड़ाई या किसी ना किसी बात को लेकर माँ को घेर लेते थे और उन्हें बेवजह तंग करते थें|
अक्सर, माँ हमारे इन रोज़मर्रा के लड़ाई-झगड़ों के जवाब में, अपनी शांत आवाज़ में बस येशु के पर्वत प्रवचन को धीमे से दोहरा देती थीं: “धन्य है वे जो शांति स्थापित करते हैं, वे ईश्वर की संतान कहलाएंगे|” उनकी ये बातें सुनते ही हम झगड़ना छोड़ देते थे और एक दूसरे को माफ़ कर आपस में सुलह कर लेते थे| समय के साथ साथ माँ की कही हुई कईं ऐसी ज्ञान भरी बातें अब मेरी अंतरात्मा की आवाज़ बन गई हैं| और ख़ास तौर पर जिन मुश्किल हालातों और उलझी हुई परिस्थितियों में हम इन दिनों जी रहे हैं, उस में यह आवाज़ और उभरकर मुझे राह दिखाती है|
लेकिन हैरानी की बात यह है, कि यह दुनिया उस माहौल से ज़्यादा अलग नही है, जिस मे मैं पली बढ़ी हूँ| यह दुनिया भी उतनी ही शोर शराबे और उथल पुथल अव्यवस्था से भरी है| लेकिन साथ ही साथ इस में ढेर सारा प्यार और ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास भी है| हालांकि मैं यह समझती हूँ कि इस दुनिया में सबके मिज़ाज, सबकी सोच, सबका चाल-चलन, सबकी ज़रूरतें मेल नही खाती, फिर भी, मेरा मानना है कि सामूहिक रूप से कहीं ना कहीं एक दूसरे के प्रति प्रेम और शांति की भावना है|
मेरे पापा की पसंदीदा प्रार्थना बड़ी ही सहज और सुन्दर प्रार्थना थी | यह संत फ्रांसिस की प्रार्थना है, और समय के साथ इस प्रार्थना का मतलब मेरे जीवन में और भी गहरा होता गया है| हम आजकल जिन हालातों में जी रहे हैं, उनके लिए यह प्रार्थना बहुत मददगार है| यह सिर्फ शांति की प्रार्थना ही नही बल्कि यह एक ऐसी प्रार्थना है जो उस राह को खोजती है जिससे हम शांति फैलाने का माध्यम बन सकते हैं|
यह प्रार्थना हमें दूसरों की सेवा करने केलिए खुद को त्यागने की मांग करती है, और अपनी इस दर्द भरी, घायल दुनिया को चंगा करें| जब भी मैं इस प्रार्थना के हृदय स्पर्शी शब्दों पर मनन-चिंतन करती हूँ, मेरा दिल उन लोगों केलिए करुणा और सांत्वना से भर जाता है जो किसी भी रूप में घायल हैं| और मेरे मन में उन्हें ठीक करने, उन्हें सहारा देने, और उन्हें मानसिक शांति दिलाने की इच्छा जागती है|
सब लोग असीसी के संत फ्रांसिस की प्रार्थना के शब्दों को अपने जीवन का हिस्सा बना लेंगे तो यह दुनिया कितनी अलग, अनोखी और कितनी प्यारी होगी |
हे प्रभु, मुझे अपनी शान्ति का माध्यम बना|
जहां घृणा हो, वहाँ मैं प्रेम के बीज बोऊँ
जहां चोट हो, वहां मैं क्षमा का भाव उपजाऊँ
जहां संदेह हो, वहाँ मैं विश्वास ला सकूं
जहां निराशा हो, वहाँ आशा लाऊँ
जहां अंधेरा हो, वहाँ रौशनी फैलाऊँ
जहां दुःख हो, वहाँ ख़ुशियाँ ला सकूं|
हे मेरे स्वर्गीय स्वामी, मेरी मदद कर कि मैं
दिलासा पाने की नहीं, देने की कोशिश करूँ|
समझे जाने की नहीं, समझ पाने की कोशिश करूँ
प्यार पाने की नहीं, प्यार देने की कोशिश में रहूँ
क्योंकि जब हम बांटते हैं, तभी हमें दिया जाता है
जब हम क्षमा करते हैं तभी हमें क्षमा मिलती है
और जब हम मरते हैं तभी हम अनंत जीवन प्राप्त करते हैं|
मेरी थेरेस एमन्स चार बच्चों की माँ हैं जो अपनी सेवकाई में हमेशा व्यस्त रहती हैं । उन्होंने अपने स्थानीय पल्ली में छोटे बच्चों को कैथलिक धर्मशिक्षा सिखाने में 25 से अधिक वर्ष बिताए हैं। वे अपने परिवार के साथ यू.एस.ए. के मोंटाना में रहती हैं।
आप चाहे जिस भी परिस्थिति से गुज़र रहे हों, परमेश्वर वहाँ भी रास्ता बना देगा जहाँ कोई रास्ता नज़र नहीं आता… आज, मेरा बेटा आरिक अपनी श्रुतलेख की कॉपी (डिक्टेशन बुक) लेकर घर आया। उसे 'अच्छा' टिप्पणी के साथ लाल सितारा मिला। शायद यह किंडरगार्टन में पढनेवाले किसी बच्चे के लिए कोई बड़ी बात नहीं हो सकती है, लेकिन हमारे लिए, यह एक शानदार उपलब्धि है। स्कूल जैसे आरम्भ हुआ, पहले सप्ताह में ही, मुझे उसके क्लास टीचर का फोन आया। मेरे पति और मैं इस कॉल से घबरा गए। जब मैंने उसके शिक्षक को उसके संचार कौशल की कमी के बारे में समझाने की बहुत कोशिश की, तो मैंने कबूल किया था कि जब मैं विकलांगता के साथ जन्मी उसकी बड़ी बहन की विशेष ज़रूरतों की परवाह और देखभाल करती थी, तो मैं मुझसे बिन मांगे ही उसकी ज़रूरतों की पूर्ती केलिए काम करने की आदत में पड़ गई थी। चूँकि आरिक की दीदी एक भी शब्द नहीं बोल पाती थी, इसलिए मुझे उसकी ज़रूरतों का अंदाज़ा लगाना पड़ता था। आरिक के जीवन के शुरुआती दिनों में उसके लिए भी यही तरीका जारी था। इससे पहले कि वह पानी मांगे, मैं उसे पानी पिला देती। हमारे बीच एक ऐसा रिश्ता था जिसे शब्दों की ज़रूरत नहीं थी, यह प्यार की भाषा थी, या ऐसा मुझे लगता था। लेकिन चीज़ें मेरी सोच से बिलकुल उलटकर आ गयी , मैं पूरी तरह से गलत थी! थोड़ी देर बाद, जब उसका छोटा भाई अब्राम तीन महीने का हो गया, तो मुझे स्कूल में काउंसलर से मिलने के लिए फिर से वही भारी कदम उठाने पड़े। इस बार, यह आरिक के खराब लेखन कौशल के बारे में था। उसकी प्यारी क्लास टीचर घबरा गई जब उसने देखा कि उसने अपनी पेंसिल टेबल पर रख दी और ज़िद करते हुए अपने हाथ जोड़ लिए जैसे कि कह रहा हो: “मैं नहीं लिखूँगा।” हमें इसका भी डर था। उसकी छोटी बहन अक्षा दो साल की उम्र में ही लिखने में माहिर थी, लेकिन आरिक पेंसिल भी नहीं पकड़ना चाहता था। उसे लिखना बिल्कुल पसंद नहीं था। पहला कदम काउंसलर से निर्देश प्राप्त करने के बाद, मैं प्रिंसिपल से मिली, जिन्होंने जोर देकर कहा कि अगर उसकी संचार क्षमता कमज़ोर बनी रही, तो हमें उसका गहन जांच करवानी चाहिए। उन दिनों मैं इसके बारे में सोच भी नहीं सकती थी। हमारे लिए, वह एक चमत्कारी बच्चा था। हमारे पहले बच्चे के साथ हमने बहुत कष्ट झेले थे और उसके बाद तीन गर्भपात हुए, लेकिन आरिक ने सभी बाधाओं को पार कर लिया था। डॉक्टरों ने जो भविष्यवाणी की थी, उसके विपरीत, वह पूर्ण अवधि में पैदा हुआ था। जन्म के समय उसकी महत्वपूर्ण अंग सामान्य थे। "यह बच्चा कुछ ज़्यादा ही बड़ा है!" डॉक्टर ने सी-सेक्शन ऑपरेशन के ज़रिए उसे बाहर लाते हुए कहा। हमने उसे लगभग साँस रोककर कदम दर कदम बढाते देखा, यह प्रार्थना करते हुए कि कुछ भी गलत न हो। आरिक ने जल्द ही अपने सभी मील के पत्थर हासिल कर लिए। हालाँकि, जब वह सिर्फ़ एक साल का था, तो मेरे पिता ने कहा था कि उसे स्पीच थेरेपी की ज़रूरत हो सकती है। सिर्फ एक साल की उम्र में यह जांच करना ठीक नहीं है, ऐसा कहकर मैं ने उस सुझाव को टाल दिया। सच तो यह था कि मेरे पास एक और समस्या का सामना करने की ताकत नहीं थी। हम पहले से ही अपने पहले बच्चे के साथ होने वाली सभी परेशानियों से थक चुके थे। अन्ना का जन्म निर्धारित समय से 27 सप्ताह पहले हुआ था। एन.आई.सी.यू. में कई दिनों तक रहने के बाद, तीन महीने की उम्र में उसे गंभीर मस्तिष्क क्षति का पता चला और उसे मिर्गी के दौरे पड़ने लगे। सभी उपचारों और दवाओं के बाद, हमारी 9 वर्षीय बेटी अभी भी सेरेब्रल पाल्सी और बौद्धिक विकलांगता से जूझ रही है। वह बैठने, चलने या बात करने में असमर्थ है। अनगिनत आशीर्वाद अपरिहार्य को टालने की एक सीमा होती है, इसलिए छह महीने पहले, हम अनिच्छा से आरिक को प्रारंभिक जांच परीक्षण के लिए ले गए। ADHD (अवधानता, अतिसक्रियता-आवेगशीलता) का निदान कठिन था। हमें इसे स्वीकार करने में कठिनाई हुई, लेकिन फिर भी हमने उसे स्पीच थेरेपी की प्रक्रिया से गुज़रने दिया। उस अवसर पर, वह सिर्फ कुछ ही शब्द बोल पा रहा था। कुछ दिन पहले, मैंने आरिक के साथ अस्पताल जाने और पूर्ण गहन जांच करने का साहस जुटाया। उन्होंने कहा कि उसे हल्का ऑटिज़्म है। जब हम जांच की प्रक्रिया से गुजर रहे थे, तो कई सवाल पूछे गए। मुझे आश्चर्य हुआ, इनमें से अधिकांश सवालों के लिए मेरी प्रतिक्रिया थी: "वह ऐसा करने में सक्षम नहीं था, लेकिन अब वह कर सकता है।" प्रभु की स्तुति हो! आरिक के अन्दर विराजमान पवित्र आत्मा की शक्ति से, सब कुछ संभव हुआ। मेरा मानना है कि स्कूल जाने से पहले हर दिन उसके लिए प्रार्थना करने और उसे आशीर्वाद देने से एक बड़ा बदलाव लाया। जब उसने बाइबल की आयतें याद करना शुरू किया तो यह बदलाव क्रांतिकारी था। और सबसे अच्छी बात यह है कि वह उन आयतों को ठीक उसी समय पढ़ता है जब मुझे उनकी ज़रूरत होती है। वास्तव में, परमेश्वर का वचन जीवित और सक्रिय है। मेरा मानना है कि परिवर्तन जारी है। जब भी मैं उदास महसूस करती हूँ, तो परमेश्वर मुझे आश्चर्यचकित कर देता है और उसे एक नया शब्द कहलवाता है। उसके नखरे के बीच, और जब सब कुछ बिखरता हुआ लगता है, मेरी छोटी लड़की, तीन साल की अक्षा, बस मेरे पास आती है और मुझे गले लगाती है और मुझे चूमती है। वह वास्तव में जानती है कि अपनी माँ को कैसे दिलासा देना है। मेरा मानना है कि परमेश्वर निश्चित रूप से हस्तक्षेप करेगा और हमारी सबसे बड़ी बेटी, अन्ना को भी ठीक करेगा, क्योंकि उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं है। परिवर्तन पहले से ही दिखाई दे रहा है - मिर्गी के दौरे की संख्या में काफी कमी आई है। हमारे जीवन की यात्रा में, हो सकता है कि चीजें उम्मीद के मुताबिक न चल रही हों, लेकिन ईश्वर हमें कभी नहीं छोड़ता या त्यागता। ऑक्सीजन की तरह जो ज़रूरी तो है लेकिन अदृश्य है, ईश्वर हमेशा मौजूद है और हमें वह जीवन देता है जिसकी हमें बहुत ज़रूरत है। आइए हम उससे चिपके रहें और अंधेरे में संदेह न करें। हमारी गवाही इस सच्चाई को उजागर करे कि हमारा ईश्वर कितना सुंदर, अद्भुत और प्रेममय है और वह हमें कैसे बदल देता है ताकि हम कहें: "मैं ... था, लेकिन अब मैं ... हूँ।"
By: Reshma Thomas
Moreप्रश्न - पवित्र यूखरिस्त में मसीह की वास्तविक उपस्थिति में अधिक विश्वास को प्रेरित करने के प्रयास में इन दिनों संयुक्त राज्य अमेरिका तीन साल का "यूखरिस्तीय पुनर्जागरण" अभियान चला रहा है। ऐसे कौन से पारंपरिक तरीके हैं जिनसे मेरा परिवार यूखरिस्त के प्रति अधिक श्रद्धा का अभ्यास कर सकता है? उत्तर - एक कैथलिक अध्ययन में कहा गया है कि केवल एक-तिहाई कैथलिक विश्वास करते हैं कि येशु मसीह वास्तव में पवित्र यूखरिस्त में मौजूद हैं। इसलिए इस के प्रत्त्युत्तर में, कलीसिया वह बात फिर से जागृत करने की कोशिश कर रही है जिसे संत जॉन पॉल द्वितीय "यूखरिस्तीय विस्मय" कहते हैं - वास्तविक उपस्थिति में एक विस्मय और आश्चर्य: येशु, यूखरिस्त में छिपा हुआ फिर भी वास्तव में मौजूद है। हम एक परिवार के रूप में यूखरिस्त के प्रति श्रद्धा कैसे विकसित कर सकते हैं? यहाँ कुछ सुझाव हैं: पहला, उपस्थिति यदि हमें पता होता कि कोई व्यक्ति किसी निश्चित स्थान पर हर सप्ताह एक हजार डॉलर मुफ्त में दे रहा है, तो हम निश्चित रूप से वहां मौजूद रहेंगे। हमें इससे कहीं अधिक मूल्यवान चीज़ यूखरिस्त में प्राप्त होती है — स्वयं परमेश्वर। वह ईश्वर जिसने ब्रह्मांड का सारा सोना बनाया। वह ईश्वर जिसने आपको प्रेम करके आपके व्यक्तित्व को अस्तित्व में लाया। वह परमेश्वर जो आपके लिए शाश्वत उद्धार को खरीदने के लिए क्रूस पर अपनी जान दी। वह ईश्वर जो अकेले ही हमें अनन्त जीवन में खुश रख सकता है। यूखरिस्तीय जीवन के लिए पहला कदम कम से कम साप्ताहिक (या यदि आवश्यक हो तो और अधिक बार) मिस्सा बलिदान तक पहुंचने के लिए आवश्यक त्याग उठाना है। स्काउट में कैंप-आउट के बाद मेरे पिता अक्सर मुझे और मेरे भाइयों को मिस्सा में ले जाने के लिए हर संभव कोशिश करते थे। मेरा भाई एक विशिष्ट बेसबॉल टीम के ट्रायल में भागीदारी नहीं कर सका क्योंकि ट्रायल रविवार की सुबह था। हम जहां भी छुट्टियों पर जाते थे, मेरे माता-पिता निकटतम कैथलिक चर्च का पता लगाना सुनिश्चित करते थे। यह देखते हुए कि यूखरिस्त कितना मूल्यवान है, वह प्रभु हर त्याग और बलिदान से भी बढ़कर है! दूसरा, पवित्रता यह सुनिश्चित करना कि हमारी आत्माएँ गंभीर पापों की अशुद्धता से विरत हैं, यह यूखरिस्तीय भोज की एक शर्त है। कोई भी व्यक्ति बड़े भोज में अपने हाथ धोए बिना नहीं बैठेगा - न ही किसी मसीही को पाप स्वीकार द्वारा अपने आप को शुद्ध हुए बिना यूखरिस्त या परम प्रासाद के पास जाना नहीं चाहिए। तीसरा, जुनून पूरे इतिहास को पढने से पता चलता है कि कैथलिक लोगों ने मिस्सा बलिदान में भाग लेने के लिए अपनी जान जोखिम में डाली है। आज भी दुनिया में, चीन, उत्तर कोरिया और ईरान जैसे कम से कम 12 देश ऐसे हैं जहां कैथलिकों पर कड़े प्रतिबंध हैं। इन चुनौतियों के बावजूद कैथलिक लोग अभी भी मिस्सा बलिदान में भाग लेने के इच्छुक हैं। क्या हमारे अंदर भी उसके लिए वही भूख है? इस भूख को अपने दिल में जगाओ! एहसास करें कि हमें राजा के सिंहासन कक्ष में बुलाया गया है; हमें कलवारी के बलिदान के लिए अग्रिम पंक्ति की सीट मिलती है। हमें वास्तव में प्रत्येक मिस्सा बलिदान द्वारा स्वर्ग के पूर्वाभास में भाग लेने की अनुमति है! चौथा, प्रार्थना एक बार जब हमने प्रभु को ग्रहण कर लिया, तो हमें प्रार्थना में महत्वपूर्ण समय व्यतीत करना चाहिए। रोम के महान प्रचारक, संत फिलिप नेरी, परम प्रसाद प्राप्त करने के बाद, मिस्सा समाप्ती से पहले गिरजाघर से बाहर निकलने वाले किसी भी व्यक्ति के पीछे जलती हुई मोमबत्तियों के साथ दो वेदी सेवकों को भेजते थे - इस सत्य को पहचानते हुए कि मसीह को प्राप्त करने के बाद वह व्यक्ति सचमुच एक जीवित मंजूषा है ! प्रभु को ग्रहण करने के तुरंत बाद, उसके साथ अपने दिल की बात साझा करने का सौभाग्यशाली समय हमारे पास होता है, क्योंकि वह काफी हद तक हमारे दिल से केवल कुछ इंच नीचे, हमारे शरीर में रहता है! लेकिन मसीह की यूखरिस्तीय उपस्थिति के लिए प्रार्थना मिस्सा समाप्त होने के बाद भी लंबे समय तक चलनी चाहिए। एक बार एक संत थी जो यूखरिस्तीय जीवन जीना चाहती थी, लेकिन केवल रविवार को ही मिस्सा बलिदान में जा पाती थी। उन्होंने गुरुवार, शुक्रवार और शनिवार को पवित्र भोज की आध्यात्मिक तैयारी के लिए समर्पित किया। फिर रविवार को, उन्हें खुशी हुई कि वे प्रभु को ग्रहण कर सकी - और सोमवार, मंगलवार और बुधवार को उसे प्राप्त करने के लिए धन्यवाद देने में बिताया! इसलिए, हमें प्राप्त यूखरिस्त के लिए ईश्वर को धन्यवाद देने और इस उपहार को दोबारा प्राप्त करने के लिए अपने दिलों को तैयार करने के लिए पूरे सप्ताह प्रार्थना में समय बिताना चाहिए! पांचवां, आराधना यूखरिस्तीय जीवन यूखरिस्तीय आराधना के साथ जारी रहता है, जो हमारे यूखरिस्तीय ईश्वर की पूजा को जारी रखता है। जितनी बार संभव हो, आराधना में जाएँ। जैसा कि धन्य कार्लो अक्यूटिस ने कहा, "जब हम सूरज का सामना करते हैं, तो हम भूरे हो जाते हैं, लेकिन जब हम खुद को यूखरिस्तीय येशु के सामने रखते हैं, तो हम संत बन जाते हैं।" वह जानता था कि केवल परमेश्वर ही है जिसने हमें पवित्र बनाया है, और उसकी उपस्थिति में रहकर, येशु कार्य करेगा! मैं इसकी गवाही दे सकता हूं. जब मैं किशोर था तब मेरे पल्ली ने सतत या अनवरत आराधना (प्रति दिन 24 घंटे, सप्ताह के सातों दिन) शुरू की और मैंने साप्ताहिक आराधना में एक घंटा बिताना शुरू कर दिया। वहां मुझे एहसास हुआ कि प्रभु मुझसे कितना प्यार करते हैं और वहीँ मैं एक पुरोहित के रूप में अपना जीवन उन्हें देने के लिए बुलाया गया था। यह मेरे अपने मन परिवर्त्तन का एक बड़ा हिस्सा था। वास्तव में, मेरी गृह पल्ली में, 160 से अधिक वर्षों से किसी युवा पल्लीवासी को धर्मसंघी बुलाहट प्राप्त नहीं हुआ था। सतत आराधना के केवल 20 वर्षों के बाद, हमारी पल्ली से 12 से अधिक धर्मसंघी बुलाहट हुए हैं ! धन्य कार्लो अक्यूटिस हमें फिर से याद दिलाते हैं, "यूखरिस्त स्वर्ग के लिए मेरा राजमार्ग है।" हमें यह जानने के लिए दूर तक देखने की ज़रूरत नहीं है कि ईश्वर कहाँ रहता है और उसे कैसे खोजा जाए - वह दुनिया के हर कैथलिक गिरजाघर के हर पवित्र मंजूषा में रहता है!
By: फादर जोसेफ गिल
Moreक्या आपके जीवन में ऐसे दरवाजे हैं जो आपके प्रयासों के बावजूद खुलने से इनकार करते हैं? इस हृदयस्पर्शी अनुभव से जानिए उन बंद दरवाजों के पीछे का रहस्य। मेरे पति और मैं कैथेड्रल ऑफ़ सेंट जूड के दरवाजे पर थे। दरवाज़ा खोलने पर एक बड़ी भीड़ के बीच हम दोनों को सीटें मिलीं। हम एक महिला के अंतिम संस्कार के लिए आये थे, जिनसे बहुत पहले, जब मैं केवल 20 वर्ष की थी, तब मिली थी। वह और उनके पति उस समय कैथलिक करिश्माई प्रार्थना समुदाय के आत्मिक अगुए थे। हालाँकि वह और मैं घनिष्ठ व्यक्तिगत मित्र नहीं थे, लेकिन जब मैं इस गतिशील विश्वास से भरे समूह में शामिल हुई तो उसने मेरे जीवन को महत्वपूर्ण तरीकों से प्रभावित किया था। उनका मंझला बेटा, केन, अब फादर केन थे, और वह अंतिम संस्कार का दिन उनके पुरोहिताई अभिषेक की 25-वीं वर्षगांठ का दिन भी था। वहां उपस्थित मण्डली को सरसरी निगाहों से देखने पर मेरे अतीत और वर्तमान दोनों दौर के कई परिचित चेहरे सामने आए। फादर केन की अपनी माँ को दी गई मार्मिक श्रद्धांजलि और उनके भाई-बहनों द्वारा की गई प्रेमपूर्ण स्मृति के वचनों ने उनके परिवार पर और साथ ही उस दिन उपस्थित कई लोगों के जीवन में भी प्रार्थना समूह का प्रभाव को प्रतिबिंबित किया। उनके शब्दों ने मेरे दिमाग में यादें ताज़ा कर दीं - कैसे पवित्र आत्मा ने इस समुदाय का उपयोग कई लोगों के जीवन को बदलने के लिए किया, खासकर मेरे जीवन को बदलने के लिए। प्यार में घसीटी गयी मेरा पालन-पोषण बहुत ही समर्पित कैथलिक माता-पिता ने किया था, जो प्रतिदिन मिस्सा बलिदान में भाग लेते थे, लेकिन एक किशोरी के रूप में, मैंने केवल अनिच्छा से कलीसिया के जीवन में भाग लिया। मुझे अपने पिता द्वारा हर रात पारिवारिक माला विनती पर जोर देने और न केवल भोजन से पहले, बल्कि भोजन के बाद भी अनुग्रह की प्रार्थना बोलने पर नाराजगी महसूस होती थी। शुक्रवार की रात 10 बजे परम पवित्र संस्कार की आराधना में भाग लेना मुझ 15 साल की किशोरी की अपनी सामाजिक स्थिति के लिए अच्छा नहीं था, खासकर तब, जब मेरे दोस्त मुझसे पूछते थे कि मैंने सप्ताहांत में क्या किया है। उस समय मेरे लिए कैथलिक होना सिर्फ बहुत सारे नियमों, आवश्यकताओं और अनुष्ठानों के बारे में ही था। प्रत्येक सप्ताह मेरा अनुभव अन्य विश्वासियों के साथ खुशी या संगति का नहीं था, बल्कि कर्तव्य के बोझ का था। फिर भी, जब मेरी बहन ने मुझे हाई स्कूल से पास होने के बाद अपने कॉलेज के सप्ताहांत अवकाश समारोह में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया, तो मैं सहमत हो गयी। मेरे छोटे से शहर में नए अनुभव बहुत कम मिलते थे और यह निश्चित रूप से मेरे लिए अब तक के अनुभवों से बिलकुल भिन्न था। मैं ने नहीं सोचा था कि यह आत्मिक साधना मेरे शेष जीवन का पथ निर्धारित करेगी! प्रतिभागियों के सौहार्दपूर्ण मित्रता के साथ-साथ फादर बिल के चेहरे पर छाई भारी मुस्कान के बीच जब उन्होंने प्रभु के बारे में हमारे साथ साझा किया, मैंने कुछ ऐसा देखा जो मैंने अपनी गृह पल्ली में कभी नहीं देखा था, और मुझे पता था कि मैं अपने जीवन में वास्तव में यही चाहती थी : आनंद! सप्ताहांत के अंत में, बाहर शांत समय बिताने के दौरान, मैंने अपना जीवन ईश्वर को अर्पित कर दिया, बिना यह जाने कि इसका वास्तव में क्या मतलब है। निराशाजनक मामले दो साल से भी कम समय के बाद, मैं और मेरी बहन फ्लोरिडा के पूर्वी तट से पश्चिम की ओर चली गयीं, पहले उसकी नौकरी के कारण और बाद में, सेंट पीटर्सबर्ग में एक कॉलेज में पढ़ाई के लिए मुझे एडमिशन मिलने के कारण। अपनी सीमित आर्थिक क्षमता के भीतर रहने के लिए हम दोनों बहनें एक ही बेडरूम को ढूंढ रहे थे। कई अपार्टमेंट प्रबंधकों द्वारा दो लड़कियों को एक ही बेडरूम को किराए पर देने की अनिच्छा के कारण हमारे प्रयास बार-बार विफल हो गए - भले ही हमने अपने पूरे जीवन में एक ही बेडरूम साझा किया था और आखिर हम तो बहनें थीं! एक और इनकार के बाद निराश होकर, हम प्रार्थना करने के लिए संत जूड्स कैथेड्रल के अन्दर चली गयीं। इस संत के बारे में कुछ भी न जानते हुए, हमने एक प्रार्थना कार्ड को पाया जिसमें लिखा था कि संत जूड 'निराशाजनक मामलों के संरक्षक' थे। किफायती आवास की कठिन खोज के बाद, हमारी निरर्थक स्थिति एक निराशाजनक मामला कहा जा सकता था, इसलिए हमने संत जूड की मध्यस्थता मांगने के लिए घुटने टेक दिए। लो और देखो, अगले अपार्टमेंट परिसर में पहुंचने के बाद, हमारे साथ उसी झिझक के साथ व्यवहार किया गया। हालाँकि, इस बार, उस वृद्ध महिला ने मेरी ओर देखा, रुकी और बोली, “तुम मुझे मेरी पोती की याद दिलाती हो। मैं दो महिलाओं को एक-बेडरूम किराए पर नहीं देती, लेकिन... तुम मुझे अच्छी लग रही हो, और इसलिए तुम लोगों के लिए मैं अपने उसूल तोड़ने जा रही हूं!' हमें पता चला कि हमारे नए घर का निकटतम कैथलिक चर्च होली क्रॉस चर्च था, जहां "ईश्वर की उपस्थिति प्रार्थना समुदाय" नामक एक समूह प्रत्येक मंगलवार की रात को मिलता था। यदि हम किसी अन्य एपार्टमेंट को किराए पर लेने में सक्षम होती, तो हमें खुशी से भरे लोगों के इस समूह से मुलाक़ात नहीं होती, जिसे हम जल्द ही "परिवार" कहने लगी। यह स्पष्ट था कि पवित्र आत्मा काम कर रहा था, और 17 वर्षों में यानी जब तक मैं इस समूह में सक्रिय रूप से शामिल थी तब तक पवित्र आत्मा की उपस्थिति बार-बार प्रकट हुई। जीवन का वृत्त सेंट जूड्स कैथीड्रल चर्च में लौटते हुए, उस दिन जीवन का वह उत्सव न केवल हमारे बहुत पहले के आत्मिक अगुओं का था, बल्कि यह मेरा भी अपना उत्सव था! एक युवती के रूप में अपनी टूटन और उस समय महसूस किए गए अकेलेपन और असुरक्षा को याद करते हुए, मुझे आश्चर्य हुआ कि ईश्वर ने मेरे जीवन को कैसे बदल दिया है। उन्होंने मुझे भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से ठीक करने के लिए अपनी पवित्र आत्मा और अपने लोगों का उपयोग किया, मेरे जीवन को गहरी और समृद्ध मित्रता से भर दिया जो समय की कसौटी पर खरी उतरी है। उन्होंने मुझे जो उपहार पहले से ही दिए थे, न उपहारों को खोजने में मदद की - समुदाय ने मुझे विभिन्न तरीकों से सेवा करने के लिए उचित जगह प्रदान की। तब जाकर मुझे एहसास हुआ कि संगठन की तरह मेरी प्राकृतिक क्षमताओं का उपयोग आध्यात्मिक उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है। कई वर्षों के बाद, मुझे एक नई आध्यात्मिक टीम में आमंत्रित किया गया जिसके गतिशील नेता ने अपनी स्वयं की मिसाल द्वारा मेरा मार्गदर्शन किया। उनके प्रोत्साहन और समर्थन के माध्यम से, मैंने नेतृत्व कौशल विकसित किया जिसके परिणाम स्वरूप प्रार्थना समुदाय में "आस्था के घर" और गिरजाघर के दरवाजे के बाहर "दीन हीनों" की सेवा के लिए नयी सेवकाई शुरू हुई। कुछ साल बाद जब पास में एक नया पैरिश शुरू हुआ, तो मुझे वहां संगीत की सेवकाई में शामिल होने के लिए कहा गया, और पवित्र आत्मा की प्रेरणा से, मैंने कई अन्य सेवा इकाइयों में भी भाग लिया। पिछले कुछ वर्षों में मैंने जो कुछ भी सीखा और अनुभव किया है, उसे ध्यान में रखते हुए, मैं कई कार्यक्रम आयोजित करने में सक्षम हुई, जो हमारे पल्ली समुदाय के भीतर चंगाई, मन परिवर्त्तन और अभिवृद्धि के अवसर प्रदान करते हैं। पिछले 14 वर्षों से, मुझे अपने एक दूसरे मित्र द्वारा शुरू किए गए महिला फ़ेलोशिप समूह का आयोजन करने का सौभाग्य मिला है, जो मेरी तरह, मसीही समुदायों के प्यार और देखभाल के द्वारा बदल गयी थी। मैंने पाया है कि धर्मग्रंथों में परमेश्वर के द्वारा दिए गए सभी वादे मेरे जीवन में सच साबित हुए हैं। वह विश्वासयोग्य, क्षमाशील, दयालु, करूणामय और आनंद का स्रोत है, जितना मैंने कभी कल्पना की थी, उससे कहीं अधिक! उन्होंने मेरे जीवन में अर्थ और उद्देश्य प्रदान किया है, और उनकी कृपा और निर्देशन से, मैं 40 वर्षों से अधिक समय से येशु के साथ सेवकाई में भागीदार बनने में सक्षम हूं। उन वर्षों तक मुझे इस्राएलियों की तरह "रेगिस्तान में भटकना" नहीं पड़ा। वही परमेश्वर जिसने "दिन में बादल के खम्भे और रात में अग्नि-स्तम्भ" के द्वारा अपने लोगों की अगुवाई की (निर्गमन 13:22) उसने दिन-ब-दिन, साल-दर-साल मेरी अगुवाई की, और रास्ते में मेरे लिए अपनी योजनाओं को प्रकट किया। मेरे प्रार्थना समूह के दिनों का एक गीत मेरे मन में गूंजता है, "ओह, भाई बहनों का एक साथ रहना कितना भला है, कितना सुखद!" (भजन 133:1) उस दिन चारों ओर देखने पर मुझे इसका स्पष्ट प्रमाण दिखाई दिया। फादर केन की माँ में काम करने वाली पवित्र आत्मा, फादर केन के घर और हमारे विश्वास के समुदाय में उनकी माँ के द्वारा बोये गए बीजों से बहुत फल लाए। उसी आत्मा ने वर्षों तक मेरे जीवन में बोए और सींचे गए बीजों से फ़सल पैदा की। प्रेरित पौलुस ने एफीसियों को लिखे अपने पत्र में इसे सर्वोत्तम रूप से कहा: “जिसका सामर्थ्य हम में क्रियाशील है और जो वे सब कार्य संपन्न कर सकता है, जो हमारी प्रार्थना और कल्पना से अत्यधिक परे है, उसी को कलीसिया और येशु मसीह द्वारा पीढ़ी-दर-पीढ़ी, युग युगों तक महिमा! आमेन!" (3:20-21)
By: Karen Eberts
Moreहम कितनी बार सोचते हैं कि हमें अपनी पसंद की चीज़ें करने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाता? इस नए साल में, आइए कुछ नया करें। वास्तव में मैं कभी भी नए साल के संकल्प लेने वाली नहीं रही हूँ। मुझे यह बात तब याद आती है जब मैं अपनी मेज़ पर धूल जमी, बिना पढ़ी हुई किताबों के ढेर को देखती हूँ, जिन्हें मैंने पिछले सालों में एक महत्वाकांक्षी, लेकिन बुरी तरह से असफल प्रयास के तहत खरीदा था। एक महीने में एक किताब पढ़ने का संकल्प अधूरा रह गया, और किताबों का ढेर खडा हो गया, उसी तरह बिना पूरे किये गए संकल्पों का भी ढेर खडा हो गया। मेरे पास अपने संकल्प में सफल न होने के लाखों कारण थे, लेकिन समय की कमी उनमें से एक नहीं थी। अब अपने आप में थोड़ी निराशा के साथ खोए हुए वर्षों को देखने पर, मुझे एहसास होता है कि मैं वास्तव में अपने समय का बेहतर उपयोग कर सकती थी। अपने जीवन में मैंने अनगिनत बार शिकायत की है कि मेरे पास उन चीजों को करने के लिए पर्याप्त समय नहीं है जो मैं करना चाहती हूँ। निश्चित रूप से, जितनी मैं गिन सकती हूँ उससे कहीं ज़्यादा! कुछ साल पहले, मेरे पति अस्पताल में अपना नियमित उपचार करवा रहे थे, और मैं नए साल की पूर्व संध्या पर उनके बगल में बैठी हुई थी, तब मेरे दिल में कुछ हलचल हुई। उनकी धमनियों में रक्त चढ़ाया जा रहा था। इस असहज परिस्थिति में, मैंने देखा कि उनकी आँखें बंद थीं, और उनके हाथ प्रार्थना की मुद्रा में जुड़े हुए थे। जाहिर तौर पर मेरी जिज्ञासा भरी निगाहों को महसूस करते हुए, उन्होंने एक आँख को थोड़ा खोला और मेरी तरफ देखते हुए, धीरे से फुसफुसाए: "सभी के लिए।" किसी तरह, उन्होंने मेरे मन की बात पढ़ ली। हम अक्सर अपने आसपास के उन लोगों के लिए प्रार्थना करते थे जिन्हें हम पीड़ित या प्रार्थना की ज़रूरतमंद समझते थे। लेकिन आज, हम अकेले बैठे थे, और मैं हैरान थी कि वे किसके लिए प्रार्थना कर रहे होंगे। यह सोचना भावुक और प्रेरणादायक था कि वे "सभी" के लिए प्रार्थना कर रहे थे, न कि केवल उन लोगों के लिए जिन्हें हम उनके बाहरी रूप के कारण प्रार्थना की ज़रूरतमंद समझते हैं। हम में से हर किसी को प्रार्थना की ज़रूरत है। हम सभी को ईश्वर की कृपा और दया की ज़रूरत है, चाहे हम दुनिया के सामने अपनी छवि कुछ भी पेश करें। यह सच लगता है, खासकर अब जब इतने सारे लोग चुपचाप अकेलेपन, वित्तीय परेशानी और यहाँ तक कि मानसिक स्वास्थ्य संघर्षों से पीड़ित हैं, जिन संघर्षों को अक्सर छिपाया जाता है। कोई भी वास्तव में नहीं जानता कि दूसरा व्यक्ति किस दौर से गुज़र रहा है, गुज़र चुका है या गुज़रेगा। अगर हम सब एक-दूसरे के लिए प्रार्थना करें तो यह कितना शक्तिशाली होगा? यह कितना जीवन को बदलनेवाला, दुनिया को बदलनेवाला हो सकता है। इसलिए इस नए साल में, मैं अपने खाली समय का अधिक बुद्धिमानी और सोच-समझकर उपयोग करने का संकल्प ले रही हूँ - दूसरों की पीड़ा और ज़रूरतों पर प्रार्थनापूर्वक विचार करती हुई, उन लोगों के बारे में जिन्हें मैं जानती हूँ, जिन्हें मैं नहीं जानती, जो मुझसे पहले आए हैं और जो बहुत बाद में आएंगे, सब के लिए प्रार्थना करने का मैं संकल्प लेती हूँ। मैं पूरी मानवता के लिए प्रार्थना करने जा रही हूँ, इस बात पर भरोसा करती हुई कि हमारे प्यारे ईश्वर, अपनी उदारपूर्ण दया और असीम प्रेम से, हम सभी को आशीर्वाद देंगे।
By: मेरी थेरेस एमन्स
More"मैं एक कैथलिक हूं और मैं ख़ुशी ख़ुशी परमेश्वर के लिए मर जाऊंगा। अगर मेरे पास एक हजार जीवन होते, तो मैं वे एक हज़ार जीवन परमेश्वर को अर्पित कर देता।“ ये उस आदमी के मरते हुए शब्द थे जिस को यह निर्णय लेने का अवसर दिया गया था कि उसे जीना है या मरना है। लोरेंजो रुइज़ का जन्म 1594 में मनीला में हुआ था। उनके चीनी पिता और फिलिपिनो माँ दोनों कैथलिक थे। बचपन में उसे डोमिनिकन फादर लोगों ने शिक्षा दी, उसने वेदी सेवक और गिरजाघर- परिचर के रूप में सेवा की, और अंततः एक पेशेवर सुलेखक (कैलीग्राफेर) बन गया। लोरेंजो अति पवित्र रोज़री माला संघ के एक सदस्य थे, उन्होंने रोसारियो के साथ शादी की और उन दोनों के दो बेटे थे। सन १636 में उनके जीवन में एक दुखद मोड़ आया। उन पर हत्या का झूठा आरोप लगाया गया। उन्होंने तीन डोमिनिकन पादरियों की मदद मांगी, जो जापान के लिए एक मिशनरी यात्रा करने वाले थे, जबकि उन दिनों जापान में ईसाइयों पर क्रूर उत्पीड़न का दौर चल रहा था। लोरेंजो को जापान की और यात्रा का तब तक कोई अंदाजा नहीं था। नाव जापान की ओर रवाना होने के बाद ही लोरेंजों को उसके और उसके समूह की यात्रा का मंजिल और वहां के खतरे के बारे में पता चला। जापानियों को डर था कि स्पेन ने जिस तरह फिलीपींस पर आक्रमण किया था, उसी तरह जापान पर भी आक्रमण करने केलिए धर्म का उपयोग किया जाएगा, इसलिए जापान ने ईसाई धर्म का जमकर विरोध किया। मिशनरियों को जल्द ही ढूंढा गया, कैद किया गया, और कई क्रूर यातनाओं के अधीन किया गया। उत्पीडन का एक यह भी तरीका था कि मिशनरियों के गले में भारी मात्रा में पानी डाला जाता, फिर सैनिक बारी-बारी से मिशनरियों के पेट पर रखे बोर्ड के आर-पार खड़े हो जाते, जिससे उनके मुंह, नाक और आंखों से पानी तेजी से बहता। अंत में, उन्हें एक गड्ढे के ऊपर उल्टा लटका दिया गया, उनके शरीर को कसकर बांधे गए, जिससे उनके शरीर में रक्त का धीमी गति से परिसंचरण होता था, लंबे समय तक दर्द और धीमी गति से मृत्यु होती थी। लेकिन पीड़ित का एक हाथ हमेशा खुला छोड़ दिया जाता था, ताकि वह पीछे हटने के अपने इरादे का संकेत दे सके। न तो लोरेंजो और न ही उनके साथी पीछे हटे। वास्तव में, जब उसके उत्पीड़कों ने उससे पूछताछ की और जान से मारने की धमकी दी, तो उसका विश्वास और मजबूत हो गया। ये पवित्र शहीद तीन दिनों तक गड्ढे के ऊपर लटके रहे। तब तक, लोरेंजो मर चुका था और जो तीन पुरोहित अभी भी जीवित थे, उनके सिर काट दिए गए थे। उनके विश्वास का एक त्वरित त्याग उनके जीवन को बचा सकता था। इसके बजाय, उन्होंने शहीद का मुकुट पहनकर मरना चुना। उनकी वीरता हमें साहस के साथ और बिना समझौता किए अपने विश्वास को जीने के लिए प्रेरित करे।
By: Shalom Tidings
More6 अगस्त, सन् 1945 को द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान के हिरोशिमा शहर पर परमाणु बम गिराया गया था। इसमें 140,000 लोग मारे गए या घायल हुए। इस तबाही के बीच भी आठ येशुसंघी मिशनरी बच गए, जो हमले के अवकेंद्र के पास अपने निवास स्थान में थे। विस्फोट के बाद उनमे से कोई भी बहरा नहीं हुआ। उनका गिरजाघर ‘अवर लेडी ऑफ द एसेम्शन चर्च’, की रंगीन काँच खिड़कियाँ चकनाचूर हो गयीं, लेकिन गिरजाघर नहीं गिरा; व्यापक विनाश के बीच खड़ी बहुत कम इमारतों में से एक यह गिरजाघर भी था। ये पुरोहित न केवल शुरुआती विस्फोट से सुरक्षित रहे – बल्कि उनपर हानिकारक विकिरण का कोई बुरा प्रभाव भी नहीं पड़ा। विस्फोट के बाद उनकी देखभाल करने वाले डॉक्टरों ने चेतावनी दी थी कि विकिरण के जहर के संपर्क में आने से उन्हें गंभीर घाव, बीमारी और यहां तक कि उनकी मौत भी हो सकती है। लेकिन आने वाले वर्षों में 200 चिकित्सा परीक्षण में भी कोई बुरा प्रभाव सामने नहीं आया। जिन डॉक्टरों ने गंभीर परिणामों की भविष्यवाणी की थी, वे इस बात से चकित थे। हिरोशिमा पर बम गिराए जाने के समय फादर शिफर केवल 30 वर्ष के थे, उन्होंने 31 साल बाद 1976 में फिलाडेल्फिया में यूखरिस्तीय कांग्रेस में अपनी आपबीती सुनाई। येशुसंघी समुदाय के सभी आठ सदस्य जो बमबारी के बाद जिन्दा बच गए थे, वे सभी उस कांग्रेस के दौरान जीवित थे। फादर शिफर ने यूखरिस्तीय कांग्रेस में एकत्रित विश्वासियों के सामने बयान किया कि वे आठों लोग सुबह-सुबह मिस्सा बलिदान चढ़ाने के बाद नाश्ते के लिए उनके निवास की रसोई में बैठे थे। फादर शिफर ने एक फल को काटकर अपना चम्मच उसमें डाला ही था कि प्रकाश की तेज चमक दिखाई दी। पहले उन्होंने सोचा कि यह विस्फोट पास के बंदरगाह में हुआ होगा। फिर उन्होंने अपने अनुभव का वर्णन किया: “अचानक, एक भयानक विस्फोट ने एक धमाकेदार गड़गड़ाहट के साथ आसमान को भर दिया। एक अदृश्य शक्ति ने मुझे कुर्सी से उठा कर हवा में उछाल दिया, मुझे हिला दिया, मुझे पीटा, मुझे गोल-गोल घुमा दिया, जिस प्रकार शरद ऋतु की हवा के झोंके में एक पत्ता हिलता है।“ अगली बात उन्होंने याद किया कि उन्होंने अपनी आँखें खोलीं और अपने आप को ज़मीन पर पाया। उन्होंने इधर-उधर देखा, और देखा कि किसी भी दिशा में कुछ भी नहीं बचा था: रेलवे स्टेशन और सभी दिशाओं की सारी इमारतें ढह चुकी थीं। वे सभी पुरोहित अपेक्षाकृत मामूली चोटों के साथ न केवल जीवित बच गए, बल्कि वे सभी बिना किसी विकिरण बीमारी के, बहरापन और अन्य छोटे मोटे कुप्रभावों से बचे रहे। यह पूछे जाने पर कि इतने सारे लोग या तो विस्फोट से या उसके बाद के विकिरण से मर गए, ऐसे में वे क्यों मानते हैं कि उन्हें बख्शा गया था, तब फादर शिफर ने अपने और अपने साथियों की ओर से कहा: "हम मानते हैं कि हम बच गए, क्योंकि हम फातिमा के संदेश को जी रहे थे। हम उस घर में रहकर प्रतिदिन रोजरी माला की प्रार्थना करते थे।“
By: Shalom Tidings
Moreकई साल पहले वह एक ठंडी और बर्फीली दोपहर थी, और मेरे मन में इच्छा हुई कि मैं आराधना में जाकर भाग लूं। मेरी अपनी पल्ली में अभी तक सतत-आराधना की व्यवस्था नहीं हुई थी, इसलिए मैं उस गिरजाघर की ओर गाडी चलाती हुई चली गयी, जहां सतत अराधना होती थी। इस गिरजाघर में एक छोटा, बहुत ही अंतरंग प्रार्थनालय है जहां मुझे येशु के साथ समय बिताना और अपने दिल की बात उनके सामने रखना अच्छा लगता था। जब मैंने दो लोगों को प्रार्थनालय के पीछे बातें करते सुना, तब मेरा समय लगभग समाप्त हो गया था। गिरजाघर की ड्योढ़ी में पड़े एक बेघर व्यक्ति के बारे में वे बात कर रहे थे। उस आदमी के प्रति उनकी असंवेदनशीलता से मैं विचलित और दु:खी थी, इसलिए मैंने वहां से उठने का फैसला किया। वैसे भी मेरी आराधना का एक घंटा लगभग समाप्त हो गया था। जैसे ही मैं वहां से निकली, मैं गिरजाघर की ड्योढ़ी से गुज़री जहां वही आदमी इतनी गहरी नींद सो रहा था कि जब मैं उसके लिए प्रार्थना करने के लिए रुकी तो उसका शरीर बिलकुल भी नहीं हिला। मुझे राहत महसूस हुई कि प्रभु ने आराधना के लिए दरवाजे खोल दिए थे, ताकि वह आदमी यहाँ आश्रय पा सके। वह बेघर लग रहा था, लेकिन मुझे पक्का पता नहीं था। मुझे बस इतना पता है कि इस आदमी के लिए चिंता करते हुए मैं आंसू बहा रही थी। जब मैं खुद को रोक नहीं पायी, तब मैं गिरजाघर के बाहर टहलने लगी। वहां पवित्र हृदय की एक मूर्ति खड़ी थी, जो मुझे याद दिला रही थी कि हर व्यक्ति के लिए येशु के दिल में प्रेमपूर्ण चिंता और प्रचुर दया है। मैंने प्रभु से विनती की कि वह मुझे बताए कि मुझे क्या करना है। मेरे दिल में मैंने महसूस किया, कि प्रभु मुझसे कह रहा है कि मैं पास की दुकान में जाऊं और इस आदमी के लिए कुछ जरूरी सामान खरीद लूं। मैंने प्रभु को धन्यवाद दिया और तुरंत दुकान जाकर कुछ ऐसी चीजें खरीदीं जो मुझे लगा कि उस आदमी के लिए ज़रूरी और उपयोगी है। गिरजाघर की ओर वापस जाते समय, मुझे उम्मीद थी कि वह आदमी अभी भी वहाँ होगा। मैं वास्तव में उसे वह सब देना चाहती थी जिन्हें मैंने खरीदी थी। जब मैं वहां पहुंची तब भी वह सो रहा था। मैंने चुपचाप सामान का बैग उसके पास रख दिया, एक प्रार्थना की, और मैं चलने लगी। मैं लगभग बाहर निकल ही चुकी थी कि मैंने किसी को "बहन, बहन" कहते हुए सुना। मैंने पलट कर जवाब दिया, "जी हां"। वह आदमी अब जाग गया था और मेरे पास आया और पूछा कि क्या मैंने उसके लिए यह बैग छोड़ रखा है। मैंने उत्तर दिया, "जी हाँ, मैंने रखा है।" उसने मुझे यह कहते हुए धन्यवाद दिया कि मेरी यह उदारता कितनी अच्छी थी। ऐसा पहले कभी किसी ने उनके साथ नहीं किया था। मैंने मुस्कुराते हुए कहा, "आपका स्वागत है"। वह आदमी करीब आ रहा था और मुझे लगा जैसे मैं येशु की उपस्थिति में थी। मैंने अपने दिल में बहुत प्यार महसूस किया। फिर उसने कहा, "बहन, स्वर्ग में मेरी मुलाक़ात आपसे होगी।" मुझे लगा कि मैं फूट-फूट कर रोने लगूंगी। उनकी आवाज बहुत दयापूर्ण और प्यार से भरपूर थी। उसके गाल पर चुम्बन देने की प्रेरणा मुझे मिली। हमने एक-दूसरे को अलविदा कहा और अपने-अपने रास्ते चल दिए। बाहर आने पर भी, मेरा रोना बंद नहीं हुआ। मैं घर पहुँचने तक रोती रही। आज भी, उस दोपहर को याद करते ही मेरे आंसू छलक पड़ते हैं। मुझे एहसास हुआ कि उस ठंडी, बर्फीली दोपहर को, वास्तव में उस खूबसूरत आदमी में मैंने येशु से मुलाक़ात की थी। अब, जब मैं पीछे मुड़कर देखती हूं, तो मैं कल्पना करती हूं कि चेहरे पर एक बड़ी मुस्कान के साथ येशु मुझसे कह रहा है, "यह मैं हूं, येशु!" धन्यवाद, येशु, मुझे यह याद दिलाने के लिए कि मुझसे मिलने वाले प्रत्येक व्यक्ति जिस से मेरी मुलाक़ात होती है उनमें मैं तेरा दर्शन कर सकती हूं।
By: कैरल ऑसबर्न
Moreमैं 65 वर्ष का था और अपनी जीवन बीमा पॉलिसी बदलना चाह रहा था। जैसा अक्सर होता है, बीमा वालों को मेरे स्वास्थ्य सम्बन्धी कुछ जांच करनी थी। मैंने सोचा, "ठीक है, मैं सहयोग करूंगा।" उस समय तक, मैंने जो भी लैब टेस्ट लिया था, जैसे सीने का एक्स-रे, ईकेजी और कॉलोनोस्कोपी, ये सब सामान्य थे। मेरा रक्तचाप 126/72 था और मेरा बीएमआई 26 था। मैं प्रति सप्ताह चार बार व्यायाम करता था और काफी स्वस्थ भोजन खाता था। मैं अच्छा महसूस कर रहा था और किसी भी प्रकार की बीमारी के लक्षण मुझ में नहीं था। मेरी सभी जांचों का परिणाम सामान्य आए ... मेरे पीएसए को छोड़कर, जो 11 एनजी/एमएल था (सामान्य 4.5 एनजी/एमएल से कम होना चाहिए)। तीन साल पहले यह सामान्य था। एक झटका लगा ! इसलिए मैं अपना पीसीपी देखने गया। मलाशय की जांच के दौरान, उन्होंने पाया कि मेरा प्रोस्टेट बढ़ा हुआ और कुछ हिस्सा सिकुड़ा हुआ है। "मुझे कैंसर का संदेह है, मैं आपको एक मूत्र रोग विशेषज्ञ के पास भेजने जा रहा हूं," उन्होंने कहा। एक और झटका। प्रोस्टेट की ग्यारह बायोप्सियों में से ग्यारहों ने कैंसर पॉजिटीव दिखाया। मेरा ग्लीसन स्कोर 4+5 था जिसका मतलब था कि यह एक उच्च श्रेणी का कैंसर था और यह तेजी से बढ़ सकता है और फैल सकता है। इसलिए, मैंने ल्यूप्रोन के साथ एक गंभीर प्रोस्टेटैक्टोमी, विकिरण चिकित्सा और हार्मोन थेरेपी की। ऊह! वो गर्म गर्म लालिमा! जब मैं यह बोलता हूं तो महिलाएं ज़रूर मुझ पर विश्वास करेंगी; अब मुझे पता है कि आप किस दौर से गुजर रही हैं। एक बार फिर झटका! आप सोचते होंगे कि "झटका" सिर्फ क्यों? "मेरा विश्वास उड़ गया है”, “यह नहीं हो सकता”, “मैं मरने जा रहा हूं”, “ईश्वर मुझे सजा दे रहा है” ऐसे ऐसे प्रलाप क्यों नहीं? अच्छा, मैं बताता हूँ कि ऐसे प्रलाप मेरी तरफ से क्यों नहीं है। मेरी माँ के गुर्दे खराब होने से पहले, घर पर ही उन्हें पेरिटोनियल डायलिसिस की आवश्यकता थी, मेरे माता-पिता काफी यात्रा किया करते थे, खासकर मेक्सिको की तरफ। जब रोजाना डायलिसिस ने यात्राक्रम को रोक दिया, तो उन्होंने घर में बैठकर पहेलियों पर काम करने, अपनी बाइबल पढ़ने और उसका अध्ययन करने में अधिक समय बिताया। इससे वे प्रभु के काफी करीब आ गए। इसलिए, जब माँ के डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि वे उसके स्वास्थ्य के लिए और कुछ नहीं कर सकते, तो माँ विचलित नहीं थी। उसने मुझसे कहा, "मैं थक गई हूँ, मैं अपने स्वर्गिक पिता के साथ रहने के लिए तैयार हूँ। मैं परिवार और दोस्तों के साथ और अपने साथ भी शांति का अनुभव कर रही हूँ, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मैं ईश्वर के साथ शांति का अनुभव करती हूँ।” कुछ दिनों बाद, चेहरे पर मुस्कान के साथ, बड़ी अपार शांति के साथ उसने इस दुनिया से विदा ली। ”मैं ईश्वर के साथ शांति का अनुभव करती हूँ"। मैं भी यही चाहता था। मैं अब केवल रविवारीय मिस्सा में भाग लेने वाला नामधारी कैथलिक बने रहना नहीं चाहता था। उस समय से मैंने उस रास्ते पर चलना शुरू किया जो मुझे ईश्वर के करीब ले आया है: अंग्रेजी और स्पेनिश दोनों भाषाओं में बाइबल पढ़कर उसकी गहराई से अध्ययन करना, प्रार्थना करना, माला विनती करना, जीवन में प्राप्त कृपाओं के लिए धन्यवाद देना, और एक धर्मशिक्षा के अध्यापक के रूप में स्वयंसेवा करना। आशा करता हूं कि जल्द ही, मैं एक अस्पताल के अध्यात्मिक मार्गदर्शक के रूप में अपनी इंटर्नशिप पूरा कर लूँगा और मैं अपना आध्यात्मिक मार्गदर्शन पाठ्यक्रम पूरा करने वाला हूं। तो, हाँ, प्रोस्टेट कैंसर होना एक झटका है, लेकिन वह बस एक झटका मात्र ही है, क्योंकि मैं ईश्वर के साथ शांति का अनुभव करता हूँ।
By: Dr. Victor M. Nava
Moreअसीसी के संत फ्रांसिस को एक समय कोढियों से बहुत भय और घृणा थी। उन्होंने कबूल किया कि कोढ़ी की झलक पाने से ही उनके मन में इतनी घृणा पैदा होती थी कि वे उन कोढियों की बस्ती के पास से गुजरने से कतराते थे। अगर वे अपनी यात्रा के दौरान गलती से किसी कोढ़ी की एक झलक पा लें या किसी कुष्ठरोग आश्रम से गुजरते हैं, तो वे अपना मुंह दूसरी तरफ घुमा देते थे और अपनी नाक बंद कर लेते थे। जैसे-जैसे फ्रांसिस अपने विश्वास में और अधिक गहरे होते गए और उन्होंने अपने सामान दूसरों को प्यार करने की मसीह की नसीहत स्वीकार कर ली, वे अपने इस रवैये पर शर्मिंदा हो गए। एक दिन जब फ्रांसिस घोड़े पर सवार होकर यात्रा कर रहे थे, अचानक कुष्ठ रोग से पीड़ित एक आदमी उसके सामने सड़क पार कर रहा था। फ्रांसिस ने आतंकित भय और घृणा की अपनी भावनाओं पर काबू पा लिया और, बजाय दूर भागने का, वे अपने घोड़े के ऊपर से नीचे कूदे, कोढ़ी को चूमे और उसके हाथ में कुछ पैसे दे दिए। लेकिन जब फ्रांसिस ने फिर से घोड़े पर सवार होकर पीछे मुड़कर देखा, तो उन्हें कहीं भी कोढ़ी नहीं दिखाई दिया। बढती उत्तेजना के साथ, उन्होंने महसूस किया कि मैं ने जिसे चूमा था, वह येशु है। कुछ धन जुटाने के बाद, वे कोढ़ी अस्पताल के पास गए और वहां उपस्थित हर एक कोढ़ी को भिक्षा दे दी, और श्रद्धा के साथ उन कोढियों में से एक एक के हाथ का चुंबन किया। पहले किसी कोढ़ी की दृष्टि या स्पर्श जो उनके लिए अरुचिकर लग रहा था – वह अब मिठास में परिवर्तित हो गया। बाद में फ्रांसिस ने लिखा, “जब मैं पाप में था, कोढ़ियों की मात्र झलक पाने से मेरा जी मचलता था; लेकिन तब परमेश्वर ने स्वयं मुझे उनकी संगति में पहुंचाया, और मेरे अन्दर उन पर करुणा उमड़ पड़ी। जब मैं उनसे परिचित हो गया, तो जिसके कारण मेरा जी मचलता था, वह मेरे लिए आध्यात्मिक और भौतिक सांत्वना का स्रोत बन गया। ” आज हम अक्सर अपने आस-पास ऐसे लोगों को देखते हैं जो आध्यात्मिक कोढ़ से त्रस्त हैं। ज़्यादातर हम उनसे दूर रहने की कोशिश करते हैं, लेकिन हम यह महसूस करने में नाकाम रहते हैं कि यह कोढ़ की बीमारी हमारे दिल में भी है। इसलिए दूसरों पर उंगली उठाने और इशारा करने के बजाय, अपने मन की विकलांगता और दिल की कठोरता पर मुक्ति पावें। यद्यपि हम टूटे हुए और जख्मी हैं, पहले स्थान
By: Shalom Tidings
Moreआप शायद उस शतपति से परिचित हैं जिसने क्रूस पर लटके येशु के बगल में भाला भोंका था। कुछ परंपराओं और किंवदंतियों के अनुसार,उस सैनिक का नाम लोंजिनुस था, एक ऐसा नाम जो निकोदेमुस के गैर प्रामाणिक सुसमाचार में पहली बार उभरा था । इस सैनिक का नाम प्रामाणिक सुसमाचारों में दर्ज नहीं है। किंवदंतियों के अनुसार, इस से पूर्व हुए युद्धों में लोंजिनुस बुरी तरह घायल हुआ था इसलिए उस के साथी सैनिक उसके अंधापन के लिए उसके साथ मजाक किया करते थे। जिस वक्त उसने प्रभु के बगल में छेद किया, खून का बौछार उसकी आँखों में पड़ा। तुरंत उसकी दृष्टि बहाल हुई। संत मारकुस के सुसमाचार में हम उसे सुनते हैं,"वास्तव में, यह परमेश्वर का बेटा था!" किंवदंतियाँ यह भी बताती है कि लोंजिनुस ने सेना छोड़ दी,प्रेरितों से आध्यात्मिक सलाह ली और कप्पादोचिया में एक मठवासी सन्यासी बन गया। वहां वह अपने ख्रीस्तीय विश्वास के लिए गिरफ्तार किया गया,उसके दांतों को बाहर निकाला गया और उसकी जीभ काट दी गई। हालांकि,लोंजिनुस ने चमत्कारिक ढंग से साफ़ साफ बोलना जारी रखा और राज्यपाल की उपस्थिति में कई मूर्तियों को नष्ट करने में कामयाब रहा। मूर्तियों से निकली दुष्ट शक्तियों ने राज्यपाल को अंधा बना दिया था। लोंजिनुस ने राज्यपाल की दृष्टि चमत्कारिक रूप से कैसे बहाल की थी, इसके बारे में बताया जाता है कि उसका का सिर काट दिया गया, उसी समय उसके गर्दन से निकले खून के कुछ बूँद राज्यपाल की आँखों पर पडी और राज्यपाल तुरंत चंगा हो गया। संत लोंजिनुस कलीसिया के पहले शहीदों में से एक है। ख्रीस्त प्रभु से जुड़े कई अवशेषों में से एक लोंजिनुस का भाला भी है और इसे रोम में संत पेत्रुस के महागिरजाघर की मुख्य वेदी के ऊपर के चार स्तंभों में से एक में पाया जा सकता है।
By: Shalom Tidings
Moreचाहे मुश्किल दौर कितना भी बुरा क्यों न हो, अगर उस पर आप काबू पायेंगे, तो आप कभी नहीं डगमगाएंगे। हम बहुत ही बुरे और उलझन भरे समय में जी रहे हैं। बुराई हमारी चारों तरफ है, और जिस समाज और दुनिया में हम रहते हैं, शैतान उसे नष्ट करने की पूरी कोशिश कर रहा है। कुछ मिनटों के लिए भी समाचार देखना बहुत निराशाजनक हो सकता है। जब आपको लगता है कि इससे बुरा कुछ नहीं हो सकता, तो आप दुनिया में किसी नए अत्याचार या दुष्टता के बारे में सुनते हैं। निराश होना और उम्मीद खोना आसान है। लेकिन ख्रीस्तीय होने के नाते, हमें आशावान लोग बनने के लिए कहा जाता है। यह कैसे संभव है? मेरा एक मित्र है जो मूल रूप से रोड आइलैंड का रहने वाला है। एक फादर्स डे पर, उसके बच्चों ने उसे एक टोपी दी जिस पर एक लंगर की तस्वीर थी और उस पर इब्रानी 6:19 कढ़ाई की गई थी। इसका क्या महत्व था? रोड आइलैंड के राज्य ध्वज पर एक लंगर है जिस पर "आशा" शब्द लिखा है। यह इब्रानी 6:19 का संदर्भ है, जिसमें कहा गया है: "वह आशा हमारी आत्मा केलिए एक सुस्थिर एवं सुदृढ़ लंगर के सदृश है, जो उस मंदिर गर्भ में पहुंचता है ..." इब्रानियों के नाम पत्र उन लोगों के लिए लिखा गया था जो बहुत उत्पीड़न झेल रहे थे। यह स्वीकार करने के लिए कि आप येशु के अनुयायी हैं, मृत्यु या पीड़ा, यातना या निर्वासन के लिए बुलाये गए हैं। क्योंकि यह बहुत कठिन था, कई लोग विश्वास खो रहे थे और सोच रहे थे कि क्या मसीह का अनुसरण करना सार्थक है। इब्रानियों को लिखे पत्र के लेखक उन्हें दृढ़ रहने, और विश्वासी जीवन में बने रहने के लिए प्रोत्साहित करने की कोशिश कर रहे थे - कि यह जीवन सार्थक जीवन है। वे अपने पाठकों को बताते हैं कि येशु में आधारित आशा ही उनका लंगर है। ठोस और अचल जब मैं हवाई द्वीप में हाई स्कूल की पढ़ाई कर रही थी, तो मैं एक ऐसे कार्यक्रम की हिस्सा थी जो छात्रों को समुद्री जीव विज्ञान पढ़ाता था। हमने कई हफ़्ते एक नाव पर रहकर और काम करके बिताए। हम जिन जगहों पर गए, उनमें से ज़्यादातर जगहों पर एक जेट्टी या घाट था जहाँ हम नाव को ज़मीन पर सुरक्षित रूप से बाँध सकते थे। लेकिन कुछ दूरदराज के हाई स्कूल थे जो किसी बंदरगाह या खाड़ी के पास नहीं थे जहाँ जेट्टी थी। ऐसी परिस्थिति में, हमें नाव के लंगर का उपयोग करना पड़ता था - जो एक भारी धातु की वस्तु है जिस पर कुछ नुकीले हुक लगे होते हैं। जब लंगर पानी में डाला जाता है, तो यह समुद्र तल के बिलकुल नीचे लग जाता है और नाव को बहने से रोकता है। हम मानव भी नावों की तरह हो सकते हैं, जो रोज़मर्रा की ज़िंदगी के ज्वार और लहरों पर इधर-उधर उछलते और तैरते रहते हैं। हम समाचारों में आतंकवादी हमले, विद्यालयों और गिरजाघरों में गोलीबारी, न्यायालय के बुरे फ़ैसले, आपके परिवार में बुरी ख़बरें या प्राकृतिक आपदाओं के बारे में सुनते हैं। ऐसी बहुत सी चीज़ें हैं जो हमें हिला सकती हैं और हमें खोया हुआ और निराशा से भरा हुआ महसूस करा सकती हैं। जब तक हमारी आत्मा के लिए कोई सहारा नहीं होगा, हम भटकते रहेंगे और हमें कोई शांति नहीं मिलेगी। लेकिन लंगर को काम करने के लिए, उसे कांटे के द्वारा किसी ठोस और अचल चीज़ से फंसाना चाहिए। एक नाव में सबसे मजबूत, सबसे अच्छा लंगर हो सकता है, लेकिन जब तक उसे किसी सुरक्षित और दृढ़ कांटे से नहीं फंसाया जाता, वह नाव अगली लहर में बह जाएगी। बहुत से लोगों को उम्मीद है, लेकिन वे अपनी उम्मीद अपने बैंक खाते, अपने जीवनसाथी के प्यार, अपने अच्छे स्वास्थ्य या सरकार पर लगाते हैं। वे कह सकते हैं: “जब तक मेरे पास मेरा घर, मेरी नौकरी, मेरी कार है, तब तक सब ठीक रहेगा। जब तक मेरे परिवार में हर कोई स्वस्थ है, सब ठीक है।” लेकिन क्या आप को नहीं लगता कि यह कितना अस्थिर हो सकता है? अगर आपकी नौकरी चली जाए, परिवार का कोई सदस्य बीमार हो जाए, या अर्थव्यवस्था विफल हो जाए तो क्या होगा? क्या तब आप ईश्वर में अपना विश्वास खो देंगे? कभी नहीं बह जाए मुझे याद है जब मेरे पिता अपने जीवन के अंतिम कुछ वर्षों में कैंसर से जूझ रहे थे। वह हमारे परिवार के लिए एक तूफानी, अशांत समय था क्योंकि प्रत्येक नई जाँच के साथ, हमें बारी-बारी से अच्छी खबर या बुरी खबर सुनने को मिलती थी। बार बार अस्पताल की ओर यात्राएँ हुईं, और उन्हें एक बार आपातकालीन सर्जरी के लिए दूसरे अस्पताल में भी ले जाया गया। जब हमने अपने पिता को पीड़ित होते और बीमार और कमज़ोर होते देखा तो मैं बहुत बेचैन और अस्थिर महसूस कर रही थी। मेरे पिता एक दृढ़, धर्मनिष्ठ ईसाई थे। वे हर दिन घंटों परमेश्वर के वचन को पढ़ने और उसका अध्ययन करने में बिताते थे, और उन्होंने वर्षों तक बाइबल अध्ययन की कक्षाएं ली थीं। यह सोचने केलिए मैं मजबूर हो गयी कि इन सब में येशु कहाँ थे। जांच का एक और बुरा परिणाम सुनने के बाद, इस नवीनतम तूफानी रिपोर्ट से मेरी आत्मा विचलित हो गई, मैं प्रार्थना करने के लिए एक गिरजाघर गयी। “प्रभु, मैं आशा खो रही हूँ। तू कहाँ है?" जैसे ही मैं चुपचाप बैठी, मुझे एहसास होने लगा कि मैं अपने पिता के ठीक होने की उम्मीद कर रही थी। इसलिए मैं इतना अस्थिर और असुरक्षित महसूस कर रही थी। लेकिन येशु मुझे आमंत्रित कर रहे थे कि मैं अपनी आशा, अपना भरोसा उस पर रखूँ। प्रभु मेरे पिता से प्यार करते थे, जितना प्यार मैं पिता को दे सकती थी उससे ज़्यादा और इस कठिन परीक्षा में प्रभु उनके साथ थे। ईश्वर मेरे पिता को वह सब देंगे जो उन्हें अपनी दौड़ को अच्छी तरह से अंत तक दौड़ने के लिए चाहिए, वह अंत चाहे जब भी हो। मुझे यह याद रखने की ज़रुरत थी और ईश्वर पर और मेरे पिता के लिए ईश्वर के महान प्रेम पर अपनी आशा बनाये रखने की ज़रूरत थी। मेरे पिताजी कुछ सप्ताह बाद घर पर ही प्यार और ढेर सारी प्रार्थनाओं से घिरे हुए चल बसे। मेरी माँ द्वारा उनकी बहुत देखभाल की गई। उनकी मृत्यु के समय उनके चेहरे पर सौम्य मुस्कान थी। वे प्रभु के पास जाने के लिए तैयार थे, अपने उद्धारकर्ता को आखिरकार आमने-सामने देखने के लिए उत्सुक थे। और मैं उस समय शांति का अनुभव कर रही थी, उन्हें जाने देने के लिए मैं तैयार थी। आशा लंगर है, लेकिन लंगर उतना ही मजबूत होता है जितना कि जिस कांटे से वह फंसा या जुदा हुआ है। अगर हमारा लंगर येशु में सुरक्षित है, जो हमारे आगे के मंदिर के पर्दे को पार कर गया है और वे हमारा इंतजार कर रहे हैं, तो चाहे लहरें कितनी भी ऊंची क्यों न हों, चाहे हमारे आस-पास कितने भी भयंकर तूफान क्यों न हों, हम स्थिर रहेंगे और बह नहीं जाएंगे।
By: Ellen Hogarty
Moreहम हमेशा अपने कैलेंडर को जितना संभव हो उतना भरने की कोशिश करते हैं, लेकिन क्या होगा अगर कोई अप्रत्याशित अवसर आ जाए? नया साल आने पर हमें ऐसा लगता है कि हमारे सामने एक खाली स्लेट है। आने वाला साल संभावनाओं से भरा है, और हमारे नए-नए छपे कैलेंडर को भरने के लिए हम ढेर सारे संकल्प लेते हैं। हालाँकि, ऐसा होता है कि बेहतरीन साल के लिए कई रोमांचक अवसर और विस्तृत लक्ष्य विफल हो जाते हैं। जनवरी के अंत तक, हमारी मुस्कान फीकी पड़ जाती है, और पिछले सालों की पुरानी आदतें हमारे जीवन में वापस आ जाती हैं। अगर हम इस साल, इस पल को थोड़ा अलग तरीके से लें तो कैसा होगा? अपने कैलेंडर पर खाली जगह को जल्दी जल्दी भरने के बजाय, उन खाली जगहों में जहां हमारे पास पहले से कुछ भी कार्यक्रम निर्धारित नहीं है, वहां थोड़ा और स्थान और समय क्यों न दें? इन्हीं खाली जगहों में हम पवित्र आत्मा को अपने जीवन में काम करने के लिए सबसे अधिक जगह दे सकते हैं। जो कोई भी एक घर से दूसरे घर में स्थानांतरित हुए है, वह जानता है कि एक खाली कमरा कितनी आश्चर्यजनक जगह बना सकता है। जैसे-जैसे फर्नीचर बाहर जाता है, कमरा बढ़ता हुआ प्रतीत होता है। जब पूरा कमरा खाली हो जाता है, तब यह सोचकर आश्चर्य होता है कि पर्याप्त जगह की कमी पहले बड़ी समस्या थी, अब देखो वही कमरा कितना बड़ा हो गया है! कमरा जितना अधिक कालीनों, फर्नीचर, दीवार पर लटकने वाली वस्तुओं और अन्य चीजों से भरा होता है, उतना ही जगह की कमी महसूस होती है। तभी, कोई आपके घर एक उपहार लेकर आता है, और आप सोचने लगते हैं - अब, हम इसे कहां रखेंगे? हमारा कैलेंडर भी लगभग इसी तरह काम कर सकता है। हम अपने कैलेंडर को हर दिन काम, अभ्यास, खेल, प्रतिबद्धता, प्रार्थना, सेवा आदि से भर देते हैं - वे सभी अच्छी और अक्सर ज़रूरी लगने वाले बहुत सारे काम हैं। लेकिन जब पवित्र आत्मा एक ऐसे अवसर के साथ दस्तक देता है जिसकी हमने कल्पना भी नहीं की थी, तब क्या होता है? क्या हमारे कैलेंडर में उसके लिए जगह है? पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन को स्वीकार करने के लिए हम मरियम को एक आदर्श नमूने के रूप में देख सकते हैं। मरियम स्वर्गदूत के शब्दों को सुनती है और उन्हें स्वतंत्र रूप से ग्रहण करती है। अपने जीवन को ईश्वर को अर्पित करके, वह ईश्वर के उपहारों को प्राप्त करने के लिए सही स्वभाव का प्रदर्शन करती है। इसके बारे में सोचने का एक और तरीका है जिसे बिशप बैरन ने 'अनुग्रह की कुंडली' कहा है। ईश्वर हमें भरपूर कृपा और अनुग्रह देना चाहता है। जब हम ईश्वर की प्रेमपूर्ण उदारता के प्रति स्वीकृति देते हैं, तो हम पहचानते हैं कि हमारे पास जो कुछ भी है वह सब ईश्वर का ही उपहार है। खुशी के साथ, हम आभार और धन्यवाद के द्वारा ये उपहार ईश्वर को वापस देते हैं, और इस तरह कुंडली को फिर से चालू करते हैं। ईश्वर मरियम तक पहुँचता है, और मरियम स्वतंत्र रूप से खुद को उसकी इच्छा और उद्देश्य के लिए समर्पित करती है। फिर वह येशु को स्वीकार करती है। हम इसे येशु के जीवन के अंत में फिर से देखते हैं। बहुत दुःख और भयानक दर्द में, मरियम अपने प्यारे बेटे को कलवारी की ओर जाने देती है। जब येशु क्रूस पर लटका हुआ था, तब भी मरियम उससे चिपकी नहीं रहती। उस दर्दनाक क्षण में, सब कुछ खो गया लगता है, और उसका मातृत्व खाली हो जाता है। वह भागती नहीं है, वह अपने बेटे के साथ रहती है, और लगता है कि उसके बेटे येशु ने ही उसे त्याग दिया है। फिर, येशु ने उसे योहन के रूप में न केवल एक बेटा दिया, बल्कि कलीसिया के मातृत्व में अनगिनत बेटे और बेटियाँ दीं। क्योंकि मरियम ईश्वर की योजना के प्रति उदार और ग्रहणशील रही, उन सबसे दर्दनाक क्षणों में भी, इसलिए अब हम उसे हमारी माँ कहकर पुकार सकते हैं। जैसे-जैसे साल आगे बढेगा, शायद अपने सम्पूर्ण कार्य योजना के बारे में प्रार्थना करने के लिए कुछ समय निकालें। क्या आपने अपनी तिथियों को पहले से ही ज़रूरत से ज़्यादा, बहुत ज़्यादा कामों से भर लिए हैं? पवित्र आत्मा से प्रार्थना करें कि वह आपको यह सोचने के लिए प्रेरित करे कि उसके उद्देश्यों के लिए कौन सी गतिविधियाँ ज़रूरी हैं और कौन सी आपकी व्यक्तिगत इच्छाओं और लक्ष्यों के लिए ज़्यादा ज़रूरी हैं। अपनी कार्य योजनाओं को फिर से व्यवस्थित करने के लिए साहस माँगें, ज़रूरत पड़ने पर "नहीं" कहने की बुद्धि माँगें, ताकि जब वह आपके दरवाज़े पर दस्तक दे तो आप खुशी-खुशी और आज़ादी से "हाँ!" कह सकें।
By: Kate Taliaferro
Moreआप जहां कही भी हों और जो कुछ भी करें, आप जीवन में इस महान मिशन के लिए बुलाये गए हैं। अस्सी के दशक के मध्य में, ऑस्ट्रेलियाई फिल्म निर्देशक पीटर वियर ने विटनेस नामक अपनी पहली सफल अमेरिकी थ्रिलर फिल्म बनाई, जिसमें हैरिसन फोर्ड ने अभिनय किया था। यह फिल्म एक युवा लड़के के विषय में है जो एक अंडरकवर पुलिस अधिकारी की उसके भ्रष्ट सहकर्मियों द्वारा की गयी हत्या को देखता है, और उस युवक को सुरक्षा के लिए आमिश समुदाय में छिपा दिया जाता है। जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, वह टुकड़ों को एक साथ जोड़कर याद करता है कि क्या हुआ था और फिर, वह हैरिसन फोर्ड द्वारा अभिनीत जॉन बुक नामक किरदार को सब कुछ बताता है (सुसमाचार के प्रतीक पर ध्यान दें)। फिल्म में एक गवाह के चरित्र को दिखाया गया हैं: वह गवाह जो देखता है, याद करता है, और बताता है। परिवृत्त में वापसी येशु ने अपने आतंरिक वृत्त के लोगों को दर्शन दिया ताकि उनके पुनरुत्थान की सच्चाई उन लोगों के माध्यम से सभी तक पहुँच सके। उन्होंने अपने शिष्यों के हृदयों को अपनी मृत्यु और पुनरुत्थान के रहस्य के लिए खोला और कहा: "तुम इन बातों के साक्षी हो" (लूकस 24:48)। उन्हें अपनी आँखों से देखने के बाद, प्रेरित इस अविश्वसनीय अनुभव के बारे में चुप नहीं रह सके। प्रेरितों के लिए जो सत्य है, वह हमारे लिए भी सत्य है, क्योंकि हम कलीसिया के सदस्य हैं, जो मसीह का रहस्यमय शरीर है। येशु ने अपने शिष्यों को आदेश दिया कि “इसलिए तुम लोग जाकर सब राष्ट्रों को शिष्य बनाओ, और उन्हें पिता, और पुत्र, और पवित्र आत्मा के नाम पर बपतिस्मा दो।” (मत्ती 28:19) मिशनरी शिष्यों के रूप में, हम गवाही देते हैं कि येशु जीवित हैं। इस मिशन को उत्साहपूर्वक और लगातार रूप से अपनाने का एकमात्र तरीका यह है कि हम विश्वास की आँखों से देखें कि येशु जी उठे हैं, कि वे जीवित हैं, और हमारे भीतर और हमारे बीच उपस्थित हैं। यही एक गवाह का कार्य है। उस परिवृत्त में लौटते हुए सोचें, कोई व्यक्ति पुनर्जीवित मसीह को कैसे ‘देख सकता है’? येशु ने हमें निर्देश दिया: “जब तक गेहूँ का दाना मिटटी में गिरकर मर नहीं जाता, तब तक वह अकेला ही रहता है; परन्तु यदि वह मर जाता है, तो बहुत फल देता है।” (योहन 12:23-24) सरल शब्दों में कहें तो, यदि हम वास्तव में येशु को ‘देखना चाहते हैं, यदि हम उसे गहराई से और व्यक्तिगत रूप से जानना चाहते हैं, और यदि हम उसे समझना चाहते हैं, तो हमें गेहूँ के दाने को देखना होगा जो मिट्टी में मर जाता है: दूसरे शब्दों में, हमें क्रूस की ओर देखना होगा। क्रूस का चिन्ह आत्म-संदर्भ (अहं के नाटक) से मसीह-केंद्रित (ईश्वर के नाटक) होने की ओर एक क्रांतिकारी बदलाव को दर्शाता है। अपने आप में, क्रूस केवल प्रेम, सेवा और बिना किसी शर्त के आत्म-समर्पण को व्यक्त कर सकता है। ईश्वर की स्तुति और महिमा तथा दूसरों की भलाई के लिए स्वयं को बलिदान के रूप में देने के माध्यम से ही हम मसीह को देख सकते हैं और त्रीत्ववादी प्रेम में प्रवेश कर सकते हैं। केवल इसी तरह से हम 'जीवन के वृक्ष' पर कलम हो सकते हैं और वास्तव में येशु को 'देख' सकते हैं। येशु स्वयं जीवन हैं। और हम जीवन की तलाश करने के लिए कठोर रूप से तैयार हैं क्योंकि हम ईश्वर की छवि में बने हैं। इसलिए हम येशु की ओर आकर्षित होते हैं - येशु को 'देखने' के लिए, उनसे मिलने के लिए, उन्हें जानने के लिए, और उनके साथ प्यार में पड़ने के लिए आकर्षित होते हैं। यही एकमात्र तरीका है जिससे हम पुनर्जीवित मसीह के प्रभावी गवाह बन सकते हैं। छिपा हुआ बीज हमें भी सेवा में समर्पित जीवन की गवाही के साथ जवाब देना चाहिए, एक ऐसा जीवन जो येशु के मार्ग के अनुरूप हो, जो दूसरों की भलाई के लिए बलिदानपूर्ण आत्म-समर्पण का जीवन हो, यह याद दिलाते हुए कि प्रभु हमारे पास सेवक के रूप में आए थे। व्यावहारिक रूप से, हम ऐसा क्रांतिकारी जीवन कैसे जी सकते हैं? यीशु ने अपने शिष्यों से कहा: "पवित्र आत्मा तुम पर उतारेगा, और तुम्हें सामर्थ्य प्रदान करेगा; और मेरे साक्षी होगे" (प्रेरित चरित 1:8)। जिस तरह पवित्र आत्मा ने पहले पेन्तेकोस्त के दिन किया था, वैसे ही वह भय से बंधे हमारे दिलों को मुक्त करता है। वह हमारे पिता की इच्छा को पूरा करने के हमारे प्रतिरोध पर विजय प्राप्त करता है, और वह हमें यह गवाही देने के लिए सशक्त बनाता है कि येशु जी उठे हैं, वे जीवित हैं और वे अभी और हमेशा मौजूद हैं! पवित्र आत्मा यह कैसे करता है? हमारे हृदयों को नवीनीकृत करके, हमारे पापों को क्षमा करके, और हमें सात उपहारों से भरकर जो हमें यीशु के मार्ग पर चलने में सक्षम बनाते हैं। केवल छिपे हुए बीज के क्रूस के माध्यम से, जो मरने के लिए तैयार है, हम वास्तव में यीशु को 'देख' सकते हैं और इसलिए उसकी गवाही दे सकते हैं। केवल मृत्यु और जीवन के इस अंतर्संबंध के माध्यम से ही हम उस प्रेम की खुशी और फलदायीता का अनुभव कर सकते हैं जो जी उठे मसीह के हृदय से बहता है। केवल आत्मा की शक्ति के माध्यम से ही हम उस जीवन की पूर्णता तक पहुँच सकते हैं जो उसने हमें उपहार में दिया है। इसलिए, जैसा कि हम पिन्तेकुस्त मनाते हैं, आइए हम विश्वास के उपहार द्वारा जी उठे प्रभु के गवाह बनने का संकल्प लें और उन लोगों तक खुशी और शांति के पास्का उपहार लाएँ जिनसे हम मिलते हैं। अल्लेलुया!
By: डीकन जिम मैकफैडेन
Moreमेरी नई हीरो मदर अल्फ्रेड मोस हैं। मुझे एहसास है कि वह कैथलिकों के बीच प्रचलित नाम नहीं हैं, लेकिन उन्हें होना चाहिए। वह मेरे रडार स्क्रीन पर तभी आईं जब मैं विनोना-रोचेस्टर धर्मप्रांत का धर्माध्यक्ष बन गया, जहाँ मदर आल्फ्रेड ने अपना अधिकांश काम किया और वहीँ उनका दफन हुआ है। उनका जीवन उल्लेखनीय साहस, विश्वास, दृढ़ता और विशुद्ध साहस की अद्वितीय कहानी है। विश्वास करें, एक बार जब आप उनके कारनामों के विवरण को समझेंगे, तो आपको कई अन्य साहसी कैथलिक माताओं की याद आएगी, जैसे: कैब्रिनी, टेरेसा, ड्रेक्सेल और एंजेलिका। मदर आल्फ्रेड का जन्म 1828 में यूरोप के लक्ज़मबर्ग में मारिया कैथरीन मोस के रूप में हुआ था। एक छोटी लड़की के रूप में, वह उत्तरी अमेरिका के मूलवासी लोगों के बीच मिशनरी कार्य करने की संभावना से मोहित हो गई थी। तदनुसार, वह 1851 में अपनी बहन के साथ अमेरिका की नई दुनिया की यात्रा पर निकल पड़ी। सबसे पहले, वह मिल्वौकी में स्कूल सिस्टर्स ऑफ़ नोट्रेडेम में शामिल हुईं, लेकिन फिर ला पोर्टे, इंडियाना में होली क्रॉस सिस्टर्स में स्थानांतरित हो गईं, जो कि नोट्रेडेम विश्वविद्यालय के संस्थापक फादर सोरिन, सी.एस.सी. से जुड़ा एक समूह था। अपने वरिष्ठों के साथ टकराव के बाद (यह इस बहुत ही उत्साही और आत्मविश्वासी महिला के साथ अक्सर होता था) वह जोलियट, इलिनोई चली गईं, जहाँ वह फ्रांसिस्कन बहनों की एक नई मंडली की सुपीरियर बन गईं, और उन्होंने 'मदर आल्फ्रेड' नाम अपना लिया। जब शिकागो के बिशप फोले ने उनके समुदाय के वित्त और निर्माण परियोजनाओं में हस्तक्षेप करने की कोशिश की, तो वह मिनेसोटा में सेवा के नए क्षेत्र की तलाश में निकल पड़ीं, जहाँ महान आर्चबिशप आयरलैंड ने उनका स्वागत किया और रोचेस्टर में एक स्कूल स्थापित करने की अनुमति दी। दक्षिणी मिनेसोटा के उस छोटे से शहर में ईश्वर ने मदर आल्फ्रेड के माध्यम से शक्तिशाली रूप से काम करना शुरू किया। 1883 में, रोचेस्टर में एक भयानक बवंडर आया, जिसमें कई लोग मारे गए और कई अन्य बेघर और बेसहारा हो गए। एक स्थानीय डॉक्टर विलियम वॉरेल मेयो ने आपदा के पीड़ितों की देखभाल का काम संभाला। घायलों की संख्या से परेशान होकर, उन्होंने मदर आल्फ्रेड और उनकी बहनों से मदद मांगी। हालाँकि वे नर्स नहीं बल्कि शिक्षिका थीं और उन्हें चिकित्सा में कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं था, फिर भी उन्होंने इस मिशन को स्वीकार कर लिया। उस आपदा के बाद, मदर ने बड़ी शांति से डॉक्टर मेयो को बताया कि उनका एक सपना है कि रोचेस्टर में एक अस्पताल बनाया जाना चाहिए, न केवल उस स्थानीय समुदाय की सेवा के लिए, बल्कि पूरे विश्व की सेवा के लिए। पूरी तरह से अवास्तविक इस प्रस्ताव से चकित, डॉक्टर मेयो ने मदर से कहा कि ऐसी सुविधा बनाने के लिए उन्हें $40,000 जुटाने की आवश्यकता होगी। उस समय और स्थान के हिसाब से इस रकम को जुटाना किसी साधारण व्यक्ति के बस की बात नहीं थी। उन्होंने डॉक्टर से कहा कि अगर वे धन जुटाने और अस्पताल बनाने में कामयाब हो जाती हैं, तो वे चाहती हैं कि डॉक्टर और उनके दोनों डॉक्टर बेटे इस अस्पताल में काम करें। थोड़े समय के भीतर, मदर ने धन जुटाया और सेंट मैरी अस्पताल की स्थापना हुई। आप पहले ही अनुमान लगा चुके होंगे, यह वह बीज था जिससे शक्तिशाली मेयो क्लिनिक विकसित हुआ। मदर आल्फ्रेड की बहुत पहले की कल्पना के अनुसार यह वास्तव में मेयो क्लिनिक एक नई अस्पताल प्रणाली बनेगी जो पूरी दुनिया की सेवा करेगी। इस निडर साध्वी ने न केवल अपने द्वारा स्थापित अस्पताल के निर्माता, आयोजक और प्रशासक के रूप में अपना काम जारी रखा, बल्कि सत्तर वर्ष की आयु तक, यानी 1899 में अपनी मृत्यु तक, उन्होंने दक्षिणी मिनेसोटा में कई अन्य संस्थानों के लिए भी काम किया। कुछ हफ़्ते पहले ही, मैंने अपने धर्मप्रांत में पुरोहितों की ज़रूरत के बारे में लिखा था, और मैंने सभी से पुरोहिताई की बुलाहट को बढाने के मिशन का हिस्सा बनने का आग्रह किया था। मदर आल्फ्रेड को ध्यान में रखते हुए, क्या मैं अब महिलाओं के धर्मसंघी जीवन के लिए और अधिक बुलाहटों का आह्वान कर सकता हूँ? किसी तरह महिलाओं की पिछली तीन पीढ़ियों ने धर्म संघी जीवन को अपने विचार के अयोग्य माना है। द्वितीय वेटिकन परिषद के बाद से धर्मसंघी साध्वियों की संख्या में भारी गिरावट आई है। जब इस बारे में पूछा जाता है, तो अधिकांश कैथलिक शायद कहेंगे कि हमारे नारीवादी युग में धर्मसंघी बहन बनना एक व्यवहार्य संभावना नहीं है। मैं कहूंगा कि यह बकवास है! मदर आल्फ्रेड ने बहुत कम उम्र में अपना घर छोड़ दिया, समुद्र पार करके एक विदेशी भूमि पर चली गईं, धर्मसंघी बन गईं, अपनी बुलाहट और मिशन की भावना का पालन किया, तब भी जब इससे उन्हें कई धर्माध्यक्षों सहित शक्तिशाली वरिष्ठों के साथ संघर्ष करना पड़ा, डॉक्टर मेयो को इस धरती का सबसे प्रभावशाली चिकित्सा केंद्र स्थापित करने के लिए प्रेरित किया, और बहनों के एक धर्मसंघी संस्था के विकास का नेतृत्व और अध्यक्षता की। इन साध्वियों ने चिकित्सा और शिक्षण की कई संस्थानों का निर्माण और संचालन किया। मदर आल्फ्रेड असाधारण बुद्धि, प्रेरणा, जुनून, साहस और आविष्कारशीलता वाली महिला थीं। अगर किसी ने उन्हें सुझाव दिया होता कि वे अपने उपहारों के अयोग्य या अपनी गरिमा से नीचे जीवन जी रही हैं, तो मुझे लगता है कि उनके पास जवाब में कुछ चुनिंदा शब्द होंगे। आप एक नारीवादी नायक की तलाश कर रहे हैं? आप शायद ग्लोरिया स्टीनम को चुनेगे; मैं कभी भी मदर आल्फ्रेड को चुनूंगा। इसलिए, अगर आप किसी ऐसी युवती को जानते हैं जो एक अच्छी धर्मसंघी साध्वी बन सकती है, जो बुद्धिमान, ऊर्जावान, रचनात्मक और जोश से भरी हुई है, तो उसके साथ मदर आल्फ्रेड मोस की कहानी साझा करें। और उसे बताएं कि वह भी मदर की तरह की वीरता की आकांक्षा रख सकती है।
By: बिशप रॉबर्ट बैरन
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