Home/Encounter/Article

अगस्त 20, 2021 1805 0 Mark Yates
Encounter

गलतियों से चमत्कार तक का सफर

क्या आप किसी लत से ग्रस्त, व्याकुल, खोए खोए औरनिद्रा से परेशान हैं? दिल छोटा ना करें, आपके लिए उम्मीद है।

“तुम्हारे लिए उम्मीद है।” यह मेरे पिता के आखिरी शब्द थे जो उन्होंने सतहत्तर साल की उम्र में देह त्यागते समय मुझसे कहे थे। मुझे इन शब्दों को दो बार और सुनना था, और इन्हीं शब्दों के द्वारा मेरे जीवन में बदलाव आना लिखा था। यह शायद मेरी नियति थी कि मुझे अपने जीवन के कुछ साल लत की बंदिश में गुज़ारने थे, ताकि मैं बाद में येशु का अनुयाई बन कर एक ऐसी संस्था चला सकूं जो कि लत में ग्रस्त लोगों को सही राह पर ला कर रोज़ सुसमाचार का प्रचार करते हुए उन सब में आशा की किरण जगाती है जो ईश्वर के सत्य की खोज में हैं।

मैं अपनी कहानी शुरुआत से बताता हूं। मैं अपने माता पिता की छह संतानों में सबसे छोटा हूं और मेरा पालन पोषण एक साधारण से मध्यमवर्गीय कैथलिक परिवार में हुआ, जहां मुझे बचपन से कैथलिक विश्वास के बारे में सिखाया गया। पर बचपन से ही कैथलिक विश्वास में बड़े होने के बावजूद मेरे लिए अनुशासन, धर्म की समझ और प्रार्थना करना बड़े संघर्ष का कार्य था। मैं मिस्सा बलिदान में भाग लेता था पर मेरा विश्वास कमज़ोर था।

जब तक मैं युवावस्था तक पहुंचा था, मैं पापों में गिरने लगा और जब मैंने कॉलेज जाना शुरू किया था, तब तक मुझे रॉक बैंड में गाना बजाने का शौक चढ़ चुका था। मैं दिन रात गिटार बजाने और ज़िंदगी के मज़े लेने के सपने देखा करता था।

मुझे पहचान मिली, आस पास के लोगों में मेरा नाम हुआ, पर अपनी इस शोहरत को बरकरार रखने के लिए मुझे हमेशा किसी नशे का सहारा लेना पड़ता था। शुरू शुरू में मैंने शराब का सहारा लिया, लेकिन बाद में मुझे और भी चीज़ों की लत लग गई। साल बीतते गए और मैं और भी शराब पीता गया। चाहे मैं खुश होता था या दुखी, गुस्सा होता था या शांत रहता था, मैं हर परिस्थिति में पीने लगा। चाहे मैं बाहर होता था या घर पर, चाहे काम पर जा रहा होता था या छुट्टी पर होता था, मैं बिना मौके का लिहाज़ किए पीता था। मुझे शराब की लत लग चुकी थी पर मुझे ना इस बात का अंदाज़ा हुआ, और ना मैं यह मानने को तैयार था।

मेरे पिता की मृत्यु के बाद मेरी व्याकुलता बहुत बढ़ गई। मैं दुनिया भर की दवाइयां खाने लगा जिनमें से कुछ दवाइयां चिंता रोकने के लिए थी, कुछ नींद की गोलियां थी, कुछ दर्द की दवाइयां थी, तो कुछ अवसाद की दवाइयां थी। मेरी ज़िंदगी अब मेरे नियंत्रण के बाहर हो चली थी। बीते सालों में मैं कई बार अस्पताल में भर्ती हो चुका था। एक बार जब मैं एक हफ्ते के लिए अस्पताल में भर्ती था तब मैंने अपनी शराब की लत पर थोड़ा काबू पाया। उसी वक्त मुझे मेरे पिता के आखिरी शब्द फिर से सुनाई दिए। मैं आधी नींद में अस्पताल के बिस्तर पर पड़ा कुछ बड़बड़ा रहा था जब एक नर्स ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे हौसला देते हुए कहा, मार्क, सब ठीक हो जाएगा, तुम्हारे लिए उम्मीद है।”

इसके कुछ सालों बाद मैं उसी अस्पताल में वापस आ चुका था, बस फर्क इतना था कि इस बार मुझे अस्पताल में इसीलिए भर्ती किया गया था क्योंकि मुझे आत्महत्या के विचारों ने जकड़ रखा था। मेरा शरीर दुनिया भर के नशों, दवाइयों और शराब से भरा हुआ था। एक दिन मैंने अपनी बिस्तर के बगल वाली बिस्तर पर लेटे व्यक्ति को किसी से फोन पर बात करते हुए सुना, और जो कुछ वह कह रहा था वह मुझे बहुत गुस्सा दिला रहा था। उसकी बातें मेरे मन की आवाज़ों में उलझ कर गूंजने लगी। वे आवाज़ें जो मेरी अंतरात्मा की थी और मुझे धिक्कार रही थीं। मेरा मन हुआ कि मैं अपने बगल वाले इंसान को मार डालूं। मैं आधी रात तक जाग कर सोचने लगा कि बिना शराब और नींद की गोलियों के मुझे नींद नही आएगी। मेरा गुस्सा अब काबू के बाहर था।

मेरा सारा ध्यान बगल वाले इंसान को मारने के विचारों में लग गया। मैं उसका गला घोंटने के बारे में सोचने लगा। क्या मेरे अंदर किसी का गला घोंटने की हिम्मत थी? शायद थी। मैं सोचने लगा कि मैं उस इंसान के मुंह तकिए से दबा कर उसका दम घोंट सकता था। मैंने उसका सर फोड़ने के बारे में सोचा। फिर मैंने रुक कर खुद के बारे में सोचा, “क्या मैं सच में अस्पताल में पड़े एक निर्दोष इंसान का खून करने को सोच रहा था? ना कि एक, ना कि दो बल्कि तीन तीन तरीकों से? कौन हूं मैं? मैं क्या बन चुका हूं? मैंने दिल ही दिल में एक इंसान को तीन बार मार डाला था!”

फिर मैंने अपना गुस्सा ईश्वर की ओर मोड़ दिया, “मैं तुझ पर विश्वास करता हूं, अब तुझे मेरी मदद करनी पड़ेगी,” मैंने पुकार कर कहा। पर मैंने ईश्वर पर भी दोष लगाते हुए कहा, “क्या तूने मुझे इसीलिए रचा ताकि तू मुझे परेशान कर के नरक में डाल सकें?”

मुझे समझ आने लगा कि मैं कमज़ोर हो चला था और मेरे अंदर लड़ने की ताकत नहीं बची थी। क्योंकि मानव जाति से मेरा विश्वास उठ चुका था, मुझे अब किसी नए सहारे की ज़रूरत थी। मैंने कई बार अपनी लतों से पीछा छुड़ाने की कोशिश की, पर हर बार खुद को लत कारागार में वापस कैद पाया। फिर मैंने ऐसा कुछ किया जो मैंने कई सालों में नही किया था। हालांकि इतने सालों में मैं ईश्वर से बहुत दूर हो चला था, फिर भी मुझे मेरी प्रार्थनाएं याद थी, इसीलिए मैं प्रार्थना करने लगा। “येशु, मैं खुद को तुझे सौंपता हूं। मुझे बचा। मैं जानता हूं कि तू मेरा ईश्वर और मुक्तिदाता है, मेरी मदद कर!” इसी तरह मैं प्रार्थना करने लगा। फिर मैं बाइबिल के वचनों का वर्णन करने लगा: “मांगो और तुम्हे दिया जाएगा।” मैंने कहा, “प्रभु येशु, यह तेरे वचन हैं। मैं तेरे वचनों की दुहाई दे रहा हूं, तुझे मेरी प्रार्थना सुननी ही पड़ेगी। क्योंकि यह मेरे नहीं तेरे वचन और तेरे वादे हैं।” मैं जानता था कि मैं ईश्वर के वचन की दुहाई दे रहा था, और मैं जानता था कि ईश्वर का वचन सच्चा है, पर मुझे वचन संख्या का कोई अंदाज़ा नहीं था।

अब मुझे अंदाज़ा है कि मैं मत्ति 7:7 की दुहाई दे रहा था जिसमे लिखा है “मांगो तो तुम्हे दिया जाएगा; ढूंढो तो तुम पाओगे; खटखाओ तो तुम्हारे लिए खोला जाएगा।” मेरे पिता के मुझसे कहे गए आखिरी शब्द थे “तुम्हारे लिए उम्मीद है” और आज मैं मत्ति 7:7 के द्वारा उसी उम्मीद की दुहाई दे रहा था।

सुबह के लगभग सात बजे के आसपास मैं तब जागा जब एक नर्स चाय पिलाने के लिए मुझे जगा रही थी। मैं सात घंटे सो चुका था! कई लोग इस बात से सहमत होंगे कि अस्पताल में जल्दी किसी को नींद नही आती है, और यहां मैंने बिना शराब, बिना नींद की गोलियों और बिना किसी नशे के सहारे से अपनी ज़िंदगी की सबसे गहरी नींद पूरी की थी। जब नर्स मुझे चाय और ब्रेड पकड़ा रही थी तब मुझे फिर से वे शब्द सुनाई दिए “तुम्हारे लिए उम्मीद है।” क्या यह  नर्स की आवाज़ थी या मुझे ईश्वर की वाणी सुनाई दे रही थी? उसी क्षण मैंने मान लिया कि ईश्वर ने मेरी प्रार्थना सुन ली थी: क्योंकि कल रात मुझे सुकून की नींद मिली थी और आज मैंने फिर से सुना कि “मेरे लिए आशा है।”

पर उससे भी बढ़कर, मुझे अपने अंदर एक बदलाव महसूस हो रहा था। मेरी घबराहट जा चुकी थी और मुझे अपने अंदर थोड़ी खुशी महसूस हो रही थी। मुझे यह नहीं समझ आ रहा था कि मैं क्यों खुश था, लेकिन जिन नकारात्मक बातों ने मुझे इतने सालों से परेशान किया हुआ था, मैं अब उन बातों से आज़ाद था।

यह मेरे बदलाव के चमत्कार की शुरुआत थी, मुझे आगे चल कर कई और बदलावों से गुज़रना था। मैंने शांत मन से ईश्वर को धन्यवाद दिया। उस दिन येशु ख्रीस्त के साथ मेरे नए सफर की शुरुआत हुई, और मैं आज भी उस राह पर चल रहा हूं जो मुझे मसीह की ओर ले चलता है।

Share:

Mark Yates

Mark Yates is a business owner and chairman of a charity for recovering addicts. He lives with his family in Manchester, England.

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

Neueste Artikel