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अप्रैल 19, 2022 301 0 Dr Roy Schoeman
Encounter

हार्वर्ड के प्रोफेसर की येशु से मुलाकात

डॉ. रोय शूमैन, हमें बताते हैं कि कैसे नास्तिकता ने उन्हें निराशा के गड्ढे में घसीटा और कैसे वे इससे बचकर बाहर निकले।

 मेरा जन्म और पालन पोषण एक यहूदी परिवार में हुआ था। मैं मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी गया, जहां पढ़ाई के दौरान मेरा ईश्वर में विश्वास खो गया, और मैं नास्तिक बन गया। मैं हार्वर्ड बिजनेस स्कूल गया, और वहां से डिग्री प्राप्त करने के बाद, वहां हार्वर्ड बिजनेस संकाय में ही प्रोफेसर के रूप में कार्य करने के लिए मुझे आमंत्रित किया गया। इस तरह 29 साल की उम्र में, मैं हार्वर्ड बिजनेस स्कूल में मार्केटिंग का प्रोफेसर बन गया। हालांकि यह आश्चर्यजनक लग सकता है, लेकिन सच्चाई यही है कि मेरी सफलता के शीर्ष पर मेरी दुनिया पलट गई। जब से मैं एक छोटा बच्चा था, मुझे पता था कि जीवन का एक वास्तविक अर्थ होना चाहिए, और मैं मानता था कि ईश्वर के साथ एक व्यक्तिगत संबंध में प्रवेश करने से जीवन का अर्थ मिलेगा। मुझे उम्मीद थी कि ईश्वर के साथ यह सम्बन्ध 13 साल की उम्र में मेरे यहूदी धार्मिक अनुष्ठान “बार मिट्ज्वा” होने पर स्थापित होगा (बार मिट्ज्वा कैथलिक कलीसिया के दृढीकरण संस्कार की तरह होता है)। जब ऐसा नहीं हुआ, तो यह मेरे जीवन के सबसे दुखद दिनों में से एक बन गया। उसके बाद मैंने सोचा था कि जीवन का वास्तविक अर्थ सांसारिक जीवन में सफलता से आएगा, लेकिन हार्वर्ड में एक प्रोफेसर के रूप में, मैं सांसारिक करियर में पहले से कहीं अधिक सफल था, जिसकी मैंने कभी उम्मीद नहीं की थी, फिर भी मुझे अपने जीवन में कोई अर्थ या उद्देश्य नहीं दिखाई दिया। इसलिए, उस दौर में, मैं अपने जीवन की सबसे गहरी निराशा में पड़ गया।

 रहस्यमय मार्ग

एक दिन सुबह, मैं समुद्र के किनारे, प्रकृति के एक विशिष्ट स्थान पर, चीड़ के पेड़ों और रेत के टीलों के बीच टहल रहा था। मैं बस अपने ख्यालों में खोया हुआ चल रहा था। मैंने काफी समय से ईश्वर के अस्तित्व पर विश्वास करने की आशा खो दी थी। लेकिन अचानक, पृथ्वी और स्वर्ग के बीच का पर्दा अप्रत्यक्ष हो गया, और मैंने खुद को ईश्वर की उपस्थिति में पाया, मानो मौत के बाद मैं अपने जीवन को पीछे मुड़कर देख रहा हो। मैंने देखा कि मेरे साथ जो कुछ भी हुआ, वह सर्वश्रेष्ठ था, जिसकी व्यवस्था एक सर्वज्ञ, सर्व-प्रेमी ईश्वर के द्वारा ही कर सकता था। ईश्वर ने  विशेष रूप से उन बातों को दिखाया, जिनके कारण मुझे सबसे अधिक दु:ख मिला था। मैंने देखा कि मेरे मरने के बाद मुझे दो बड़े पछतावे होंगे। सबसे पहले, जितनी कल्पना मैं कर सकता था, उस से बहुत अधिक मुझे प्यार के सागर में रखा गया था, फिर भी प्यार न होने की चिंता में मैंने अपना सारा समय और ऊर्जा बर्बाद कर दी थी। मेरे अस्तित्व के हर पल में यह प्यार मेरे सर्वज्ञ, सर्व-प्रेमी ईश्वर से मुझे प्राप्त हो रहा था। और प्रायश्चित की दूसरी बात यह थी कि प्रत्येक क्षण में परमेश्वर की दृष्टि में कुछ मूल्यवान कार्य करने की संभावना थी, लेकिन मैंने हर वक्त ऐसे कार्य किये जिसका स्वर्ग की दृष्टि में कोई मूल्य नहीं था। जब हम उस अवसर का हर बार लाभ उठाते हैं, तो इसके लिए हमें अनंत काल के लिए पुरस्कृत किया जाएगा, और हर अवसर जिसे हम चूकने देते हैं, और जिसका लाभ नहीं उठाते हैं, वह अनंत काल के लिए एक खोया हुआ अवसर होगा।

लेकिन इस अनुभव का सबसे ज़बरदस्त पहलू यह था कि इस अंतरंग, गहरे और निश्चित ज्ञान को प्राप्त करना था कि स्वयं ईश्वर – जिसने जो कुछ अस्तित्व में है उसे न केवल वह सब कुछ बनाया, बल्कि स्वयं अस्तित्व बनाया है – वह ईश्वर न केवल मुझे नाम से जानता है और मेरी परवाह करता है, वह मेरी निगरानी कर रहा था, वह मेरे अस्तित्व के हर पल को देख रहा था, जो कुछ भी मेरे साथ हुआ था, उसे सबसे सही तरीके से वह व्यवस्थित कर रहा था। वह वास्तव में जानता था कि मैं हर पल कैसा महसूस करता हूं, और इसकी वह परवाह करता था। एक बहुत ही वास्तविक तरीके से वे सारी बातें जिसने मुझे खुश किया, उन सब बातों ने उसे भी खुश किया, और हर चीज जिसने मुझे दुखी किया, उस चीज़ ने उसे भी दुखी किया।

मुझे एहसास हुआ कि मेरे जीवन का अर्थ और उद्देश्य मेरे उस प्रभु, ईश्वर और गुरु की आराधना करना और उनकी सेवा करना था, जो मुझे खुद को प्रकट कर रहे थे, लेकिन मुझे पता नहीं था कि उनका नाम क्या है, या यह कौन सा धर्म है। मैं उसे पुराने नियम का परमेश्वर नहीं मान सकता था, या इस धर्म को यहूदी धर्म के रूप में नहीं सोच सकता था। परमेश्वर का जो चित्र पुराने नियम में से निकलता है, वह इस परमेश्वर की तुलना में कहीं अधिक दूर रहनेवाले, कठोर और दंड देने वाले परमेश्वर का है। मैं जानता था कि वह मेरे प्रभु, ईश्वर और मेरे स्वामी है, और मुझे उसकी आराधना और सेवा करने के अलावा और किसी बात की इच्छा नहीं थी, लेकिन मुझे नहीं पता था कि वह कौन था या मुझे किस धर्म का अनुगमन करना है।

इसलिए मैंने प्रार्थना की, “मुझे अपना नाम बताएं ताकि मैं जान सकूं कि किस धर्म का मुझे पालन करना है। यदि तुम बुद्ध हो, और मुझे बौद्ध बनना है, तो इसका मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ता और मैं इसके लिए तैयार हूँ; अगर तुम कृष्ण हो और मुझे हिंदू बनना है; तो इसका मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ता, और मैं इसके लिए तैयार हूँ; अगर तुम अपोलो हो और मुझे रोमी मूर्तिपूजक बनना है, तो इसका मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ता, और मैं इसके लिए तैयार हूँ। जब तक तुम मसीह नहीं हो और मुझे ईसाई नहीं बनना है तो मेरे लिए सब कुछ ठीक है!” खैर, उसने उस प्रार्थना का सम्मान किया और अपना नाम मुझे नहीं बताया। हाँ, मैं घर लौटा, अपने जीवन में पहले से कहीं ज्यादा खुश होकर। मैं केवल अपने प्रभु, ईश्वर और स्वामी का नाम जानना चाहता था, जिसने खुद को मुझ पर प्रकट किया था, और मैं जानना चाह रहा था कि मुझे किस धर्म का पालन करना है। इसलिए हर रात सोने से पहले मैं एक छोटी प्रार्थना कहता था, जो मैंने अपने प्रभु, अपने ईश्वर और अपने स्वामी के नाम को जानने के लिए करता था, जिस प्रभु ने उस अनोखे अनुभव के दौरान अपने को मुझ पर प्रकट किया था।

शब्दों से परे सौंदर्य

उस पहले अनुभव के एक साल पूरे होने के दिन,  उस रात को, उस प्रार्थना को बोलने के बाद, साथ ही ठीक एक साल पहले जो हुआ था उसके लिए धन्यवाद की प्रार्थना करने के बाद मैं सो गया। मुझे लगा कि कोई हाथ मेरे कंधे को धीरे से छू रहा है और इससे मैं जाग गया, और मुझे एक कमरे में ले जाया गया और मैं अकेला रह गया उस सबसे खूबसूरत युवती के साथ, जिसकी मैं जीवन में कभी कल्पना भी नहीं कर सकता था। किसी ने मुझे बताया नहीं, फिर भी, मुझे पता चल गया कि यह धन्य कुँवारी मरियम है। जब मैंने खुद को उसकी उपस्थिति में पाया तो मैं बस इतना चाहता था कि मैं अपने घुटनों पर गिर जाऊं और किसी तरह उसे योग्य सम्मान करूं।

वास्तव में यह पहला विचार मेरे दिमाग में आया: “ओह, काश, मैं कम से कम ‘प्रणाम मरियम’ प्रार्थना को जानता!” लेकिन मैं कोई प्रार्थना नहीं जानता था। मरियम ने मुझसे सबसे पहले यह कहा कि वह मेरे किसी भी प्रश्न का उत्तर देने के लिए तैयार है। ठीक है, मेरा पहला विचार था कि मैं उसे कहूं कि वह मुझे ‘प्रणाम मरियम’ प्रार्थना सिखाये, ताकि मैं उसका उचित सम्मान कर सकूं, लेकिन इस प्रार्थना को मैं नहीं जानता हूँ, यह स्वीकार करने में बहुत लज्जा महसूस हो रही थी। तो मुझे ‘प्रणाम मरियम’ प्रार्थना सिखाने के लिए एक अप्रत्यक्ष तरीके के रूप में, मैंने उससे पूछा कि उसकी पसंदीदा प्रार्थना क्या थी। उसकी पहली प्रतिक्रिया थी, “मेरे आदर में की गयी सभी प्रार्थनाएँ मुझे पसंद हैं।” लेकिन मैं ने थोड़ा दबाव बनाने की इच्छा से कहा, “लेकिन आपको अन्य की तुलना में कुछ-एक प्रार्थना को अधिक पसंद करना चाहिए।” वह तैयार हो गयी और पुर्तगाली में एक प्रार्थना बोली। मैं पुर्तगाली भाषा बिलकुल नहीं जानता था, इसलिए मैं ने बस शुरुवात के कुछ शब्दों को ध्वन्यात्मक रूप से याद करने की कोशिश की और अगली सुबह उठते ही उन्हें लिख डाला। बाद में जब मैं एक पुर्तगाली कैथलिक महिला से मिला, तो मैंने उसे मेरे लिए पुर्तगाली में मरियम की प्रार्थना सुनाने के लिए कहा, और मैंने प्रार्थना की पहचान इस तरह की ‘पाप-रहित गर्भधारण करनेवाली हे मरियम, तेरी शरण में आये हम दीनों केलिए प्रार्थना कर’।

देखने में मरियम जितनी सुंदर थी, उससे भी अधिक उसकी आवाज की सुंदरता का गहरा प्रभाव मुझ पर पड़ा। मेरे लिए इसका वर्णन करने का एकमात्र तरीका यह है कि जो संगीत को संगीत बनाता है, उसी से मरियम की आवाज़ बनी थी। जब उसने बात की तो उसके स्वर की सुंदरता मेरे अन्दर प्रवाहित हुई, उस आवाज़ के साथ उसके प्यार को अपने साथ ले आई, और मुझे उस परमानंद की स्थिति में ले गई, जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी।

उस महान अद्वितीय आकर्षक व्यक्तित्व से अभिभूत होकर ही बहुत सारे प्रश्न मेरे मन में उभरने लगे। एक बिंदु पर, मैंने हकलाते हुए कहा, “यह कैसे संभव है कि आप इतनी गौरवशाली हैं, कि आप इतनी शानदार हैं, कि आप इतनी महान और धन्य हैं?” मेरी ओर दयाभाव के साथ देखती हुई और धीरे से अपना सिर हिलाती हुई उसने जवाब दिया: ‘नहीं, नहीं, आप नहीं समझ रहे हैं। मैं कुछ भी नहीं हूँ। मैं एक प्राणी हूँ। मैं एक बनाई हुई सृष्टि हूं। बस इतना ही है’।

फिर उसे उचित आदर देने की इच्छा से मैं ने उससे पूछा कि उसे किस प्रकार का पदनाम सबसे अच्छा लगता है: उसका जवाब था: “मैं पिता ईश्वर की प्यारी पुत्री हूँ, पुत्र ईश्वर की माँ हूँ, और पवित्र आत्मा की जीवन संगिनी हूँ”। मैं ने उससे और भी बहुत सारे कम महत्त्व के सवाल पूछे, जिसके बाद उसने मुझसे दस पंद्रह मिनट बात की। इस साक्षात्कार के समाप्त होने पर मैं फिर सोने गया। अगली सुबह जब मैं जागा, तब मैं धन्य कुँवारी मरियम के प्यार में पूरी तरह डूब गया था, और मैं जानता था कि मेरे अन्दर बस एक ही इच्छा थी: पूर्ण रूप से एक सम्पूर्ण ख्रीस्तीय बनना। इस अनुभव के आधार पर मुझे मालूम हुआ कि एक वर्ष पूर्व मुझसे मिलनेवाला ईश्वर येशु ख्रीस्त ही था।

मेरी तलाश

मेरे निवास स्थान से करीब ४५ मिनट की यात्रा करने पर विख्यात ‘ला सलेट की माँ मरियम’ का तीर्थ मंदिर था। मैं हर सप्ताह के तीन या चार दिन वहां जाने लगा, वहां के मैदान में मैं टहलता था, ताकि माँ मरियम की उपस्थिति को अनुभव करके मैं उससे संवाद कर सकूं। वह तीर्थ मंदिर कैथलिक कलीसिया का गिरजाघर था, इसलिए वहां पवित्र मिस्सा बलिदान होता था। जब कभी मैं मिस्सा बलिदान में भाग लेता था, परम प्रसाद को पाने की तीव्र इच्छा मेरे अन्दर पनपती थी, जबकि मैं नहीं जानता था कि परम प्रसाद क्या है। माँ मरियम को जानने और परम प्रसाद को, संभव हो तो प्रति दिन प्राप्त करने की इच्छा, ये दोनों बातों ने मुझे किसी घुमाव फिराव के बिना ही, कैथलिक कलीसिया की ओर जल्दी ही खींच लिया।     

कैथलिक कलीसिया में प्रवेश करने पर, मैं न केवल यहूदी बना रहा, बल्कि पहले से ज्यादा तीव्र यहूदी बना, क्योंकि ऐसा करने से मसीह-पूर्व यहूदी धर्म में रहकर यहूदियों के मसीह को न पह्चाननेवाला नहीं, बल्कि मैं यहूदी मसीहा का यहूदी अनुयायी बना।  मैं कैथलिक कलसिया को मसीह-उत्तर यहूदी धर्म मानता हूँ और यहूदी धर्म को मसीह-पूर्व कैथलिक धर्म मानता हूँ: मानवजाति की मुक्ति के लिए एक ही योजना के दो काल।

इन अनुभवों की प्राप्ति के लिए मैं आजीवन आभारी हूँ । सत्य की पूर्णता में मुझे लाया गया, ईश्वर के साथ एक व्यक्तिगत सम्बन्ध जिसके अस्तित्व की जितनी मैं कल्पना कर सकता था, उससे अत्यधिक सम्बन्ध और जीवन यात्रा में आगे बढ़ते हुए, मानव के बारे में, ईश्वर के बारे में, मृत्यु के बाद आपके साथ क्या होता है, आदि इत्यादि के बारे में, जो भी सवाल मुझे कचोटते थे, इन सबके जवाब भी मैं ने पाया। सबसे बढ़कर, ईश्वर की उपस्थिति में कल्पनातीत आनंद और प्रेम की अनंतता की दृढ़ आशा मैं ने प्राप्त की।

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यह लेख, शालोम वर्ल्ड में ‘मरियम मेरी माँ’ कार्यक्रम के लिए डॉ. रोय शूमैन द्वारा साझी की गयी गवाही पर आधारित है । इस एपिसोड को देखने केलिये shalomworld.org/episode/mary-my-mother पर जाएँ|

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