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अगस्त 12, 2021 1521 0 Jenson Joseph, USA
Evangelize

प्रेम से प्रेरित सत्य की बोल

जिनसे आप प्यार करते हैं उनसे कैसे बात करनी चाहिए? आइए जानते हैं कुछ आसान तरीके।

चबाने की खुशी

मैंने संत पौलुस की “प्रेम से प्रेरित सत्य बोलने” की सलाह (एफेसियों 4:15) को बड़ी ही गंभीरता से लिया है। और ऐसा करते हुए मेरी नीयत बिल्कुल साफ रहती है। साथ ही साथ मैंने यह सलाह औरों में भी बांटी हैं, पर अक्सर इसके परिणाम के रूप में मुझे बस निराशा, मतभेद, और गलतफहमी ही हाथ लगी है। क्या आपने भी कभी ऐसा महसूस किया है? एक दिन मैं बैठ कर यही सब सोच रहा था कि क्यों मुझे इस सलाह के नकारात्मक परिणाम ही मिले हैं, तभी मैंने खुद से यह सवाल किया कि इस बारे में हमारी पवित्र माता मरियम की क्या राय होगी? तुरंत ही मेरे कानों में उनके वे शब्द सुनाई दिए जो उन्होंने काना के विवाह में सेवकों से कहे थे: “वे तुम लोगों से जो कुछ कहे, वही करना” (योहन 2:5)। पर बात यहीं खत्म नही होती।

जब मैंने मां मरियम का हाथ थाम कर सुसमाचार पढ़ना शुरू किया, मुझे याद आया कि लूकस के सुसमाचार में येशु की जन्म गाथा के ठीक बाद मां मरियम के बारे में कहा गया है : “उनकी माता ने इन सब बातों को अपने हृदय में संचित रखा।” (लूकस 2:51)। इसी वचन ने मुझे समझाया कि क्यों मेरे चंचल दिल ने कभी अच्छे फल नहीं पैदा किए। मुझे पहले मां मरियम की आंखों से चीज़ों को देखना, समझना, उन पर मनन चिंतन करना है। और फिर मुझे येशु की नकल उतारने से पहले समझना है कि किस तरह येशु प्रेम से प्रेरित सत्य को कहते थे। मुझे ईश्वर के वचन को खोजना है, समझना है और उसे ठीक तरह चबाने के बाद ही निगलने की कोशिश करनी है। तो अब सवाल यह उठता है की येशु किस प्रकार प्रेम से प्रेरित सच कहा करते थे?

कुंठा का दर्द

येशु का प्रेम से प्रेरित सच कहने का एक उदाहरण हमें तब मिलता है जब येशु की मुलाकात एक अमीर युवा व्यक्ति से होती है। वह युवा येशु से सवाल करता है कि अनंत जीवन पाने के लिए उसे क्या करना चाहिए? जिसके जवाब में येशु कहते हैं कि उसे अपने पड़ोसियों को अपने समान प्यार करना चाहिए। इसके जवाब में वह युवा कहता है “गुरुवर, इन सब का पालन तो मैं अपने बचपन से करता आया हूं” (मारकुस 10:20)।

इस चर्चा की शुरुआत येशु उस बात से करते हैं जिसमें वह नवयुवक पहले से ही अच्छा है; वे कार्य या विचार धारा जो उस नवयुवक में पहले से सराहनीय रूप से विद्यमान है। लेकिन इसके बाद जो वचन में लिखा है, वह और भी दिलचस्प है। मारकुस अपने सुसमाचार में हमें बताते हैं कि “येशु ने उसे ध्यानपूर्वक देखा और उनके हृदय में प्रेम उमड़ पड़ा।” (मारकुस 10:21)। यहां हमें येशु की मानसिकता का प्रारंभिक छोर मिलता है, जो कि प्रेम है। येशु किसी से भी जीवन का सच कहने की शुरुआत प्रेम से करते हैं।

अक्सर जब मैं किसी से अपना विश्वास साझा करता हूँ और सामने वाले व्यक्ति पर सुसमाचार का कोई असर नहीं पड़ता तो मैं सच कहूंगा मुझे गुस्सा चढ़ता है। फिर भी इस कहानी में येशु यह जानते हुए भी कि उस नवयुवक का क्या जवाब होगा, उसकी ओर देखते हैं और उससे प्रेम रखते हैं। उन्हें उसके जवाब से कोई चिढ़ नही होती। येशु यह भी जानते थे कि जब वह नवयुवक येशु की सलाह को सुनेगा तो दुखी हो कर वहां से चला जाएगा। लेकिन शायद उस वक्त येशु के दिल में उम्मीद थी कि वह नवयुवक आखिर में येशु की सलाह को अपना कर ईश्वर की कृपा प्राप्त करेगा।

क्या हम भी वैसा ही व्यवहार करते हैं जैसा येशु ने किया? क्या हम भी अपना सत्य बोलने की शुरुआत प्रेम से करते हैं

आप ही वह व्यक्ति हैं

प्रेम से प्रेरित सच कहने का एक और उदाहरण है जो हम पुराने विधान में पाते हैं। यह वह कहानी है जिसमे नबी नातान राजा दाऊद को उनके किए व्यभिचार और हत्या का लेखा जोखा देने जाते हैं। (2 समूएल 12)। अब यहां सवाल यह उठता है कि राजा दाऊद को उनके पापों की याद दिलाने से पहले नबी नातान उन्हें अमीर इंसान और गरीब इंसान की कहानी क्यों सुनाते है? नबी नातान राजा दाऊद से सीधे सीधे भी तो कह सकते थे कि उन्होंने दूसरे व्यक्ति के साथ घोर अन्याय किया है। लेकिन नबी नातान ने ऐसा नहीं किया, पर क्यों?

हम पढ़ते हैं कि राजा दाऊद नबी नातान की कहानी सुन कर उस अमीर इंसान पर क्रोधित हो कर कहते हैं, “जीवंत प्रभु की शपथ! जिस व्यक्ति ने ऐसा किया, वह प्राणदंड के योग्य है।” (2 समूएल 12:5)। इस प्रकार नबी नातान राजा दाऊद को उनके पापों का स्मरण कराने से पहले उनके दिल में न्याय की चिंगारी जलाते हैं, ताकि उसकी रौशनी में वे अपनी गलतियां देख सकें। अगर राजा दाऊद एक न्याय प्रिय इंसान नही होते तो ना तो वे उस अमीर व्यक्ति के किए कार्यों से नाराज़ होते, और ना ही उसका नाम पूछते। जब नबी नातान ने उनसे कहा, “आप ही वह धनी व्यक्ति हैं”, तब राजा दाऊद का दिल पछतावे से भर गया और आगे चलकर उन्होंने इसी भाव को स्त्रोत 51 में लिखा। इसीलिए अगर हममें से किसी को कभी किसी व्यक्ति के साथ उनकी मौलिकता की चर्चा करनी पड़े तो हमें नबी नातान के उदाहरण को ध्यान में रख कर लोगों से आराम से बात करनी चाहिए।

अंतिम छोर

सुसमाचार में एक और उदाहरण हैं जहां हम येशु को प्रेम से प्रेरित सच कहते हुए पाते हैं। यहां येशु अपने पुनरुत्थान के बाद पेत्रुस से बातें कर रहे हैं। (योहन 21:15-18)। झील के किनारे अपने शिष्यों को खाना खिलाने के बाद येशु पेत्रुस से तीन बार पूछते हैं, “सिमोन, योहन के पुत्र! क्या तुम मुझे प्यार करते हो?” हम जानते हैं कि पेत्रुस मन ही मन शर्म और ग्लानि से जूझ रहा था, क्योंकि उसने पहले येशु को तीन बार अस्वीकार किया था। तो सोचने वाली बात है कि येशु ने यह सवाल ही क्यों किया? येशु ने यह सवाल इसीलिए किया क्योंकि वे जानते थे कि पेत्रुस उन से सच में प्रेम करता था।

फादर डेनियल पूवन्नात्तिल दक्षिण भारत में केरल के मशहूर धर्म प्रचारक हैं। वे कहते हैं कि जब येशु को गेथसेमनी बाड़ी में गिरफ्तार किया गया था तब पेत्रुस जानता था कि अब येशु के साथ बहुत बुरा होने वाला है। फिर भी उसने येशु का पीछा किया, दूर से ही सही, पर अपनी जान जोखिम में डाल कर उसने ऐसा किया। उसका सबसे बड़ा संघर्ष उसके विश्वास और उसके डर के बीच किसी एक को चुनना था। आखिर में जब उससे पूछताछ की गई, तब उसने अपने डर के वश में आकर येशु को अस्वीकार किया। लेकिन लूकस अपने सुसमाचार में इसके बारे में कहते हैं, “प्रभु ने मुड़ कर पेत्रुस की ओर देखा।”

फादर डेनियल इसके बारे में समझाते हुए कहते हैं कि पेत्रुस का येशु को अस्वीकार करना यूदस के धोखे से अलग इसीलिए था क्योंकि पेत्रुस इतना निराश नहीं हुआ था कि वह येशु की नज़रों से गिर जाए। येशु के लिए पेत्रुस के प्रेम ने ही उसे उसकी दुर्बलता और उसकी शर्मनाक गलती के बावजूद कृपा के अंतिम छोर में स्थान दिया। इसीलिए जब येशु ने पलट कर देखा, उनकी नज़र ने जैसे उस उलझन भरे माहौल में एक जाल फेंक कर पेत्रुस को अपनी ओर खींच लिया, और उसे तब तक संभाले रखा जब तक येशु ने वापस आ कर उसकी आत्मा को बचा नहीं लिया।

जब हम उन लोगों से आमना सामना करते हैं जिन्होंने अपनी जिंदगी अपने हाथों से बिगाड़ी है, तब हम उनसे किस प्रकार बात करने की कोशिश करते हैं?

इसीलिए हमें खुद से यह सवाल करना चाहिए, “क्या मैं खुद को बताए गए उदाहरणों की तरह आचरण करता हुआ पाता हूं? क्या मैं नबी नातान और येशु की तरह ही मुश्किल वक्त में संयम रख पाता हूं?

प्रसिद्ध कैथलिक उपदेशक डॉक्टर मार्क नीमो अक्सर कहते हैं, “हमारी जीवन कहानी पाप से शुरू नही हुई थी, वह प्रेम से शुरू हुई थी।” अगर येशु पापियों से बात करते वक्त पहले उनमें छिपी अच्छाई को बाहर लाने की कोशिश करते हैं, तो क्या मुझे और आप को भी ऐसा नहीं करना चाहिए?

प्यारे येशु, मुझे आप ही की तरह प्रेम से प्रेरित सच बोलने की कृपा प्रदान दीजिए। मेरे शब्द दूसरों को मज़बूती दें। और जब भी मैं खुद को निराशा में पाऊं, मैं दुनिया को आपके नज़रिए से देख कर यह भरोसा रखूं कि आपका जीवनदाई संदेश मेरे दिल में प्रवेश करेगा। मैं खास तौर से उन लोगों के लिए प्रार्थना करता हूं जो आपकी राह से भटक गए हैं। आपकी आत्मा मेरे हर शब्द का मार्गदर्शन करे और मुझे प्रेम और चंगाई का स्त्रोत बनाए। आमेन।

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Jenson Joseph

Jenson Joseph has been part of Shalom Media as a speaker at the Shalom Conferences. He lives with his family in Michigan, USA. Watch his series at shalomworld.org/show/discipleship

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