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अगस्त 12, 2021 1526 0 Cintia Ramos Sozinho Amorim
Encounter

दूसरा मौका

यह कहानी है सिंथिया की जिसने चमत्कारी रूप से आत्महत्या के चंगुल से मुक्ति पाई।

हर्षित होठों से

मैं ब्राज़ील के एक मध्यम वर्गीय परिवार में पली बढ़ी हूं। मेरे पिता एक पीडियाट्रिक सर्जन थे जो स्वास्थ्य प्रबंधन में काम करने से पहले छात्रों को पढ़ाया करते थे। मेरी मां नर्स हैं इसीलिए हमारे घर में कभी पैसों की कमी नहीं रही है। हम अच्छे स्कूलों में जाते थे, हमारे पास एक सुंदर सा घर था, हमारे घर का खाना बड़ा ज़ायकेदार होता था। लेकिन क्योंकि यह मेरे पिता की दूसरी शादी थी, और उन्हें दो परिवारों को खर्चा-पानी देखना पड़ता था, इसीलिए मेरे माता पिता बड़ी मेहनत से काम किया करते थे। कभी कभी मां दो तीन दिन तक घर नहीं आती थी, क्योंकि अस्पताल में उन्हें बहुत काम होता था। और हालांकि हमारे घर में हमारा खयाल रखने के लिए और हमारा होमवर्क कराने के लिए नौकरानी थी, फिर भी मुझे अपने माता पिता की कमी बड़ी खलती थी।

जब मैं सोलह साल की थी, तब मेरे पिता का किसी और औरत के साथ चक्कर चलने लगा, जिसके चलते मेरे माता पिता ने अलग होने का फैसला लिया। उस वक्त मैंने खुद को और भी अकेला पाया और मेरा मन गुस्से से भर गया, लेकिन मैं लाचार थी। क्योंकि कहने को तो हमारे पास सारी सांसारिक चीज़े थी, पर हम खुश नही थे।

मेरा और मेरे भाइयों का बप्तिस्मा तो हुआ था, पर हमने कभी धर्म शिक्षा नही ली थी। कभी कभार हम रविवार का मिस्सा सुन लिया करते थे। चूँकि किसी ने हमें पवित्र मिस्सा के बारे में कुछ सिखाया ही नही, इसलिए हमें मिस्सा बलिदान से बोरियत होती थी। हम ईश्वर में विश्वास करते थे लेकिन हमारा ईश्वर के साथ कोई रिश्ता, या कोई जुड़ाव नही था। हमारे जीवन में दैनिक प्रार्थना और कैथलिक विश्वास की समझ की बहुत कमी थी।

एक दिन मैं और मेरी दोस्त साथ बैठ कर इस बात पर दुखी हो रहे थे कि हमारे बहुत अच्छे दोस्त नही हैं और हमें अपने जीवन में कुछ अच्छा कर दिखाना चाहिए। इसी बीच मेरे भाई के दोस्त ने हमसे कहा “मुझे एक जगह के बारे में पता है, जहां तुम्हें अच्छे दोस्त मिलेंगे क्योंकि वे लोग ईश्वर को मानते हैं। तुम्हे मिस्सा या साधना में जा कर कैथलिक चर्च के लोगों से दोस्ती करने की कोशिश करनी चाहिए।

मुझे और मेरी दोस्त को यह सुझाव पसंद आया इसीलिए हम चर्च गए। और वहां जो कुछ भी मैंने अनुभव किया वह मेरे पिछले अनुभव से बिल्कुल अलग था। वहां बहुत सारे जवान लोग बड़ी खुशी के साथ ईश्वर की स्तुति-प्रशंसा कर रहे थे और ईश्वर के लिए प्यारे प्यारे गीत गा रहे थे। वहीं पर मैंने एक इंसान को प्रार्थना करते सुना जो वे सारी बातें कह रहा जो मेरे जीवन में लागू होती थीं। वे सारी बातें जो मैं अपने दिल में दबाए चल रही थी – वो खालीपन, वो सारा दुःख और ईश्वर के लिए वो प्यास जिसे मैं आजतक कभी समझ नही पाई थी। मुझे अब तक यह समझ नही आया था कि इन सब उलझनों के बीच मैं असल में ईश्वर को खोज रही थी।

चार दिन की इस आत्मिक साधना के दौरान ही मैंने पहली बार ईश्वर को करीब से अनुभव किया। उन चार दिनों में मैं खूब रोई क्योंकि उन चार दिनों में मैंने पहली बार हमारे कैथलिक विश्वास के मौलिक सिद्धांतों को सीखा, समझा। ज़िंदगी में पहली बार मैंने ईश्वर की उपस्थिति को महसूस किया, इसीलिए मैं खूब बाइबल पढ़ने लगी और हर दिन अपने कमरे में अकेले प्रार्थना करने लगी।

कठिन डगर

मेरे माता पिता ने हमेशा हमारी अच्छी पढ़ाई लिखाई पर ज़ोर दिया था ताकि अच्छी शिक्षा पा कर अच्छी नौकरी मिल सके। और अच्छी नौकरी पा कर, अपने खर्चे खुद उठा कर मैं आत्मनिर्भर बन सकूं। मैं अपने माता पिता की इस बात को बड़ी गंभीरता से लिया करती थी लेकिन कहीं ना कहीं, दिल ही दिल में मैं एक खालीपन महसूस किया करती थी, जैसे मैं कुछ और ही ढूंढ रही थी। पर मुझे क्या ही पता था कि ईश्वर किस किस तरह से हमारी सहायता कर सकता है।

क्योंकि उन दिनों मैं अपने पारिवारिक हालातों से काफी परेशान चल रही थी इसीलिए जब स्कूल में एक लड़के ने मुझे उसकी गर्लफ्रेंड बनने के लिए कहा तो मैंने हां कह दी। मैं बस किसी तरह घर से बाहर निकलने का बहाना चाहती थी। चूंकि किसी ने मुझे कभी ईश्वर की इच्छा के बारे में ठीक से समझाया ही नहीं था, इसीलिए मैं जानती नहीं थी कि मैं जो कर रही थी वह सही भी था या नही। इसी वजह से जल्दी ही मैंने खुद को एक बड़े ही मुश्किल रिश्ते में जकड़ा हुआ पाया।

हम बहुत सारी ऐसी  चीज़ें करने लगे जो कि सही नही थीं। वह मेरी जिंदगी की हर छोटी बड़ी बात को नियंत्रित करने लगा। शुरू शुरू में वह भी मेरे साथ चर्च जाया करता था, पर फिर उसने मेरे मन को बहकाना शुरू कर दिया। वह चर्च में बाइबिल की जो बातें सुनता था, उन्हीं बातों को घुमा फिरा कर मुझे इस तरह बहलाने लगा कि मैं उसके अधीन रहने लगी और उसकी सारी बातें मानने लगी। बाइबिल के बारे में मेरी जानकारी इतनी कम थी कि मुझे ना उसकी चालाकियां समझ आई और ना ही मुझे अहसास हुआ कि कैसे वह धीरे धीरे मुझे जानबूझ कर चर्च से दूर कर रहा था।

उस पर भरोसा करने की वजह से ही मैंने अपना सबकुछ खो दिया। उसने मुझे मेरे परिवार वालों से और मेरे दोस्तों से दूर कर दिया। यहां तक कि उसने मेरी कॉलेज की पढ़ाई में भी अड़चन डाल दी। चार साल इस रिश्ते को निभाते निभाते उसके दबाव में अब मेरा दम घुटने लगा था। आखिर में मैंने फिर से अकेले में प्रार्थना करना शुरू किया। मैंने येशु से कहा, “तीन साल पहले मैंने आप के सानिध्य में सच्चा प्रेम महसूस किया था, लेकिन आज मैं बहुत दुखी हूं। ये मेरे साथ क्या हो गया?” मैंने ईश्वर से भीख मांगी कि वे उन सारी चीज़ों में मेरी मदद करें जो मुझे उस वक्त परेशान कर रही थीं। मैंने सब कुछ फिर से ईश्वर को सौंप दिया और उनसे वादा किया कि अब से मैं उनकी राह पर चलूंगी। मैं अब बस इस घुटन से आज़ाद होना चाहती थी, और मुझे विश्वास था कि अगर ईश्वर ने मेरे लिए अपनी जान दी है तो वे मुझे ज़रूर बचाएंगे।

उस वक्त मेरे अंदर इतनी ताकत ही नही बची थी कि मैं यह रिश्ता तोड़ सकूं। लेकिन फिर मेरे बॉयफ्रेंड की नौकरी किसी दूसरे शहर में लग गई जिसकी वजह से वह मुझसे दूर रहने लगा। इसी बात के सहारे मैं उस रिश्ते से बाहर निकल पाई क्योंकि अब वह दूर रह कर मुझपे दबाव नहीं बना पा रहा था। देखा जाए तो यह सब किसी चमत्कार से कम नही था क्योंकि अपने बलबूते पर इस रिश्ते को तोड़ पाना मेरे बस की बात नही थी।

किनारे के करीब

इन सब के बावजूद, जिन सारी बातों से मैं गुज़री थी उसकी वजह से मैंने अपने दिल में काफी दर्द बटोर रखा था। एक दिन मुझसे इस दर्द का बोझ और उठाया नही जा रहा था। मैं सोचने लगी कि आखिर और कब तक मैं अपने सीने में यह बोझ ढोकर चलूंगी? मुझे आत्महत्या के खयाल दिन रात सताने लगे, और आखिरकार एक दिन मैंने उन खयालों के सामने हार मान ली। मैं अपने कमरे की खिड़की के पास गई और खिड़की से कूद कर अपनी जान देने की तैयारी करने लगी। मैं ज़िंदगी से तंग आकर खुद को खत्म करना चाहती थी पर खुशकिस्मती से मैं खिड़की से छलांग मारने की हिम्मत ही नही जुटा पाई। मैं बस खिड़की के पास खड़ी रह कर धीरे धीरे आगे की तरफ झुकने लगी ताकि मेरे वज़न की मदद से आखिर में मैं खिड़की से बाहर गिर जाऊं। लेकिन इन्ही सब के बीच मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे कहीं से एक बड़े हाथ ने आ कर मेरे सीने को पीछे कमरे की ओर धकेल दिया। मैं अपने कमरे की ज़मीन पर जा गिरी और ज़ोर ज़ोर से रोने लगी क्योंकि मुझे समझ नही आ रहा था कि मैं जो महसूस कर रही थी वह क्यों महसूस कर रही थी।

उस वक्त ईश्वर ने मुझे एक दूसरा मौका दिया। उसने मुझे बचाया पर मुझे नही समझ आ रहा था कि उसने मुझे क्यों बचाया। मैं रोते हुए कह उठी, “आप मुझसे चाहते क्या हैं?” मुझे मेरे मन में सुनाई दिया, “टीवी चालू करो।” जब मैंने टीवी चालू किया, तब टीवी पर एक पुरोहित प्रवचन दे रहे थे और वे समझा रहे थे कि क्यों हमें आत्महत्या नहीं करती चाहिए। उनकी बातें सीधे मेरे दिल पर लगी और मेरी आंखें भर आईं। मैं एक घंटे तक उनका प्रवचन सुनती रही जिस बीच उन्होंने बड़ी गहराई में जीवन रूपी उपहार के बारे में बात की। अपने प्रवचन में बार बार उन्होंने दोहराया, “आपका जीवन महत्वपूर्ण है।” प्रवचन के अंत तक मुझे समझ आ गया कि येशु ने मुझे क्यों बचाया और यह भी कि अपने जीवन को सुधारने संवारने के लिए मुझे ईश्वर की मदद चाहिए थी।

मेरी मां ने मेरी आंखों में आंसू देखे और उन्होंने मुझसे पूछा “क्या तुम्हें कोई मदद चाहिए?” मैंने आखिरकार यह स्वीकारा कि मुझे सच में मदद चाहिए थी। जब मैं थेरेपी लेने लगी तब मैं इस काबिल बन पाई कि मैं अपनी पढ़ाई पूरी कर सकूं। उसी समय मुझे इस बात का भी अहसास हुआ कि मुझे चर्च वापस जाने की आवश्यकता थी। मुझे येशु की ज़रुरत थी। क्योंकि उन्होंने मेरी जान बचा कर मुझे एक दूसरा मौका दिया था, इसीलिए मैंने उनसे वादा किया कि मैं उनपे भरोसा करूंगी और उनकी इच्छाओं के बारे में सीखूंगी।

साल 2009 में मैंने पलावरा वीवा कम्युनिटी के सुसमाचारीकरण स्कूल में एक साल बिताया। वहां कुछ महीने बिताने के अंदर ही ईश्वर ने मुझे मेरे जीवन का मकसद प्रकट किया। ईश्वर ने बड़ी गहराई से मुझसे बात की और मुझे एक धर्म बहन बनने को कहा। इस बात ने मुझे थोड़ी उलझन में डाल दिया क्योंकि उस वक्त तक मेरी इच्छा थी कि मैं शादी करूं, घर बसाऊं क्योंकि मुझे बच्चे बहुत पसंद थे। मैं सोच में पड़ गई कि क्या धर्म बहन बनने की यह बुलाहट सच हो सकती थी? आखिर में मैंने बहुत लोगों से बात की और धर्म बहन बनने की इस बुलाहट पर कई लोगों की राय ली। फिर जब मुझे समझ आ गया कि एक धर्म बहन बनकर अपना जीवन बिताना ही ईश्वर की इच्छा है तब मैंने ईश्वर से कहा, “ठीक है, मैं ऐसा ही करूंगी”। हालांकि उस वक्त भी मैं ईश्वर की इच्छा को पूरी तरह समझ नही पाई थी। साल 2011 में मैंने निर्धनता, ब्रह्मचर्य और आज्ञाकारिता का व्रत लिया। 2017 में मैं तस्मानिया आ गई और अब यहीं से मैं एक धर्म बहन के रूप में ईश्वर की सेवा करती हूं। मैं बस एक साधारण इंसान हूं जिसने बहुत पाप किए हैं। लेकिन मुझे इस बात का भरोसा है कि अगर मैं ईश्वर पर विश्वास रख कर अपना जीवन बिताऊंगी तो सब ठीक हो जाएगा।

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Cintia Ramos Sozinho Amorim

Cintia Ramos Sozinho Amorim has consecrated her life to Christ with the lay movement, Palavra Viva. This article is based on Cintia’s personal testimony and her interview featured on Shalom World TV program “Jesus My Savior”. To watch the episode visit: shalomworld.org/episode/god-saved-me-from-suicide-cintia-ramos-sozinho-amorim-jesus-my-saviour

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