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प्रश्न – कैथलिक लोग क्रूस का चिन्ह क्यों बनाते हैं? इसके पीछे क्या प्रतीकवाद है?
उत्तर – कैथलिक होने के नाते, हम प्रत्येक दिन कई बार क्रूस के चिन्ह की प्रार्थना करते हैं। हम यह प्रार्थना क्यों करते हैं, और इन सब के पीछे मतलब क्या है?
सबसे पहले, विचार करें कि हम क्रूस का चिन्ह कैसे बनाते हैं। पश्चिम की कलीसिया में, लोग एक खुले हाथ का उपयोग करते हैं – जिसका उपयोग आशीर्वाद देने में किया जाता है (इसलिए हम कहते हैं कि हम “स्वयं को आशीर्वाद देते हैं”)। पूर्व में, वे पवित्र त्रीत्व (पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा) के संकेत के रूप में तीन अंगुलियों को एक साथ रखते हैं, जबकि अन्य दो उंगलियां भी मसीह की दिव्यता और मानवता के संकेत के रूप में एक हो होती हैं।
हम जो शब्द कहते हैं उसके द्वारा हम त्रीत्व के रहस्य को स्वीकार करते हैं। ध्यान दें कि हम कहते हैं, “पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम पर…” सिर्फ “पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा के नामों पर” नहीं, – परमेश्वर एक है, इसलिए हम कहते हैं कि उसका केवल एक ही नाम है – और फिर हम पवित्र त्रीत्व के तीन व्यक्तियों के नाम लेते हैं। हर बार जब हम प्रार्थना शुरू करते हैं, तो हम पहचानते हैं कि हमारे विश्वास का सार यह है कि हम एक ऐसे ईश्वर में विश्वास करते हैं जो तीन होते हुए भी एक है: एकता और त्रीत्व दोनों।
जैसा कि हम अपने विश्वास का अंगीकार और घोषणा करते हैं, हम स्वयं पर क्रूस के चिह्न से मुहरबंद करते हैं। आप सार्वजनिक रूप से अपने ऊपर चिह्न लगा रहे हैं कि आप कौन हैं और आप किसके हैं या किससे संबंधित हैं! यदि आप चाहें तो क्रूस हमारी छुड़ाई की रकम है, हमारा “मूल्य-चिह्न” है, इसलिए हम स्वयं को याद दिलाते हैं कि हम क्रूस द्वारा खरीदे गए हैं। इसलिए जब शैतान हमें लुभाने आता है, तो हम उसे यह दिखाने के लिए क्रूस का चिन्ह बनाते हैं कि हम पर पहले से ही निशान लगा हुआ है!
एज़किएल की पुस्तक में एक अद्भुत कहानी है, जहाँ एक स्वर्गदूत एज़किएल के पास आता है और उसे बताता है कि परमेश्वर पूरे इस्राएल को उसकी बेवफाई के लिए दंडित करने जा रहा है – लेकिन अभी भी यरूशलेम में कुछ अच्छे लोग बचे हैं, इसलिए स्वर्गदूत घूमता है और उन लोगों के माथे पर निशान लगा देता है जो अभी भी परमेश्वर के प्रति विश्वासयोग्य हैं। वह जो चिह्न बनाता है वह “ताऊ” है – इब्रानी वर्णमाला का अंतिम अक्षर, और इसे एक क्रूस की तरह खींचा जाता है! परमेश्वर उन पर दया करता है जिन पर ताऊ चिन्हित है, और जिन पर यह चिन्ह नहीं है, उन्हें वह मार डालता है।
उसी तरह, हममें से जो क्रूस के साथ अंकित हैं, परमेश्वर के न्याय के दिन उनके दंड से सुरक्षित रहेंगे, और बदले में उनकी दया प्राप्त करेंगे। प्राचीन मिस्र में, परमेश्वर ने इस्राएलियों से फसह के पर्व पर मेमने के लहू को अपने दरवाजे पर लगाने को कहा था, ताकि वे मृत्यु के दूत से बचाए जा सकें। अब, हमारे शरीर पर क्रूस के द्वारा अंकित होकर, हम मेमने के लहू का आह्वान करते हैं, ताकि हम मृत्यु की शक्ति से बच जाएं!
परन्तु हम क्रूस के चिन्ह को कहाँ अंकित करें? हम इसे अपने माथे, अपने दिल और अपने कंधों पर लगाते हैं। क्यों? क्योंकि हमें इस पृथ्वी पर परमेश्वर को जानने, प्रेम करने और उसकी सेवा करने के लिए रखा गया है, इसलिए हम मसीह को हमारे मनों, हमारे हृदयों (हमारी इच्छा और प्रेम) और हमारे कार्यों का राजा बनने के लिए आग्रह करते हैं। हमारे जीवन के हर पहलू को क्रूस के चिन्ह के अधीन रखा गया है, ताकि हम उसे जान सकें, उससे प्रेम कर सकें और उसकी सेवा कर सकें।
क्रूस का चिन्ह एक अविश्वसनीय रूप से शक्तिशाली प्रार्थना है। अक्सर इसे प्रार्थना की प्रस्तावना के रूप में प्रयोग किया जाता है, लेकिन इसमें अपने आप में अपार शक्ति होती है। प्रारंभिक कलीसिया के उत्पीड़न के दौरान, कुछ मूर्तीपूजकों ने प्रेरित संत योहन को मारने की कोशिश की क्योंकि उनका उपदेश कई लोगों को देवी-देवताओं से दूर कर ख्रीस्तीय धर्म अपनाने के लिए प्रेरित कर रहा था। मूर्तिपूजकों ने योहन को रात के भोजन के लिए आमंत्रित किया और उसके प्याले में जहर मिला दिया। परन्तु भोजन आरम्भ करने से पहले, योहन ने अनुग्रह की प्रार्थना की और अपने प्याले के ऊपर क्रूस का चिन्ह बनाया। तुरन्त एक साँप प्याले से बाहर रेंगता हुआ निकला, और योहन किसी तरह की हनी के बिना सकुशल बच निकलने में सफल रहा।
संत जॉन वियानी के शब्दों पर ध्यान दें: “क्रूस का चिह्न शैतान के खिलाफ सबसे भयानक हथियार है। इस प्रकार, कलीसिया न केवल यह चाहती है कि क्रूस का चिन्ह हमारे पास और हमारे दिमाग के सामने लगातार रहे, हमें यह याद दिलाने के लिए कि हमारी आत्मा का मूल्य क्या है और येशु मसीह के लिए इसका मूल्य क्या है, लेकिन यह भी कि हमें हर मोड़ पर क्रूस का चिन्ह खुद बनाना चाहिए: जब हम सोने के लिए जाते हैं, जब हम रात में जागते हैं, सुबह जब हम उठते हैं, जब हम कोई काम शुरू करते हैं, और सबसे बढ़कर, जब हम परीक्षा में पड़ते हैं,तब हमें क्रूस का चिन्ह बनाना चाहिए।”
क्रूस का चिन्ह हमारे पास सबसे शक्तिशाली प्रार्थनाओं में से एक है – यह पवित्र त्रीत्व का आह्वान करता है, हमें क्रूस के रक्त से मुहरबंद करता है, शैतान को भगाता है, और हमें याद दिलाता है कि हम कौन हैं। आइए हम उस चिन्ह को भक्ति के साथ, श्रद्धा के साथ, सावधानी के साथ बनाएं, और हम इसे पूरे दिन में बार-बार बनाएं। हम कौन हैं और हम किसके हैं, इसका यह बाहरी संकेत है।
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क्या आप ने विश्व युवा दिवस के बारे में सुना है? सिस्टर जेन एम. एबेलन आपको एक मौका लेने और स्वर्ग को पृथ्वी पर लानेवाले इस अविश्वसनीय उत्सव का अनुभव करने के लिए प्रेरित करती है
जिस दिन संत पापा जॉन पॉल द्वितीय नए पोप के रूप में “डरिये मत!” शब्दों के साथ प्रकट हुए, उसी दिन से मैं ने उनका बहुत सम्मान किया और उनका अनुसरण किया। युवाओं के साथ काम करने में मुझे उन्हीं से प्ररणा मिली है, क्योंकि युवाओं के लिए उनके पास एक विशेष आकर्षण और गुण था। 1984 और 1985 में, उन्होंने खजूर रविवार के दिन युवाओं को उनके साथ रोम में शामिल होने के लिए एक विशेष निमंत्रण जारी किया। यह इतना सफल था कि उन्होंने इसे “विश्व युवा दिवस” में (सप्ताह कहना चाहिए) विस्तारित किया जिसका आयोजन अब हर दो साल में दुनिया भर के किसी न किसी देश में होता है।
पोलैंड में जन्मे एक पत्रकार ने इस बारे में एक अद्भुत अंतर्दृष्टि साझा किया कि कैसे संत पापा जॉन पॉल द्वितीय ने विश्व युवा दिवस के विचार को विकसित किया। “कम्युनिस्ट पोलैंड में कैथलिकों को अपना विश्वास व्यक्त करने में मदद करने केलिए उन्हें तरीके खोजने थे। हर साल, उन्होंने 14-15 अगस्त के लिए ब्लैक मैडोना का तीर्थ स्थल जसना गोरा की तीर्थयात्रा का आयोजन किया। उन्होंने पाया कि इससे लोगों का आपसी संबंध अच्छा बना और उनका विश्वास भी मज़बूत हुआ।”
हालाँकि मैं अब किशोरी या युवती नहीं हूँ, इसके बावजूद, परमेश्वर ने अपने विधान में मेरे लिए उत्तरी अमेरिका में आयोजित विश्व युवा दिवस में भाग लेने का अवसर दिया। विश्व युवा दिवस की अभिकल्पना 16-35 आयु वर्ग के लिए बनायी गयी है, लेकिन पुरोहितों, धर्म बहनों और धर्म बंधुओं, परिवारों और पुराने संरक्षकों को भी इसमें भाग लेने का अवसर दिया जाता है। लिस्बन, पुर्तगाल में सन 2023 के 1 से लेकर 7 अगस्त तक आयोजित विश्व युवा दिवस में जाने के लिए एक वर्ष से भी कम समय है, इसलिए मैं अपने कुछ अनुभव यहाँ साझा कर रही हूं ताकि आपको तीर्थयात्रा में शामिल होने, दूसरों को भाग लेने में मदद करने में और प्रार्थना में शामिल होने के लिए प्रेरणा मिले ।
विश्वा युवा दिवस 1993 – संयुक्त राज्य अमेरिका के कोलोराडो के डेनवर में
संत पापा जॉन पॉल द्वितीय 1993 में अमेरिका में पहले विश्व युवा दिवस के लिए डेनवर आने वाले थे। मैंने इसके साथ जुड़ने के लिए हमारे महाधर्मप्रांत में एक स्थानीय कार्यक्रम की योजना बनाना शुरू किया। इस कार्यक्रम के बाद मैंने सलेशियन फादर लोगों द्वारा कम कीमत पर दिए जा रहे एक अधिशेष “पैकेट” के बारे में पढ़ा, जिसके अंतर्गत आने जाने केलिए हवाई जहाज का टिकट और होटल में रहने की सुविधा शामिल थी। मैं ने एक स्थानीय युवा समूह के साथ इसमें भाग लेने की व्यवस्था की।
डेनवर विश्व युवा दिवस का आदर्श वाक्य था: “मैं तुम्हें परिपूर्ण जीवन देने आया हूँ” (योहन 10:10)। जैसे ही हम वहां के हवाई अड्डे में पहुंचे, उसी क्षण से परमेश्वर की स्तुति में दुनिया भर की भाषाओं में गीत गाने वाले युवा वयस्कों की हर्षित ध्वनि को हमने सुना और महसूस किया कि इसका हम पर अच्छा प्रभाव हो रहा है। यह आनंददायक शोर शुरुवाती दिनों से जारी रहा। युवा लोगों और उनके संरक्षकों का उल्लासपूर्ण उत्साह स्वर्ग के पूर्वाभास की तरह था क्योंकि वे हंसते थे, भोजन साझा करते थे, मुस्कुराते थे और गहन संवाद करते थे। वे जहां भी गए, उन्होंने सड़कों पर अपने बैनर और झंडे लहराते हुए गाया, नृत्य किया और प्रार्थना की। जैसे-जैसे लोग मेल-मिलाप के संस्कार को ग्रहण करने, यूखरिस्तीय आराधना में चौबीसों घंटे प्रार्थना करने और भक्तिमय, प्रार्थनामय मिस्सा पूजा के लिए एकत्रित हुए, आशीषों की धारा प्रवाहित होने लगी। जब संत पापा जॉन पॉल पहुंचे, तो तालियों की गड़गड़ाहट और “जॉन पॉल द्वितीय, हम आपसे प्यार करते हैं” का नारा लगाते हुए उनका स्वागत किया गया।
विश्व युवा दिवस का समापन अंतिम पवित्र मिस्सा बलिदान के स्थल तक पद यात्रा के साथ शुरू हुआ। तीर्थयात्री 15 मील चल सकते थे, या ट्रॉली से सफ़र करने के बाद सिर्फ 3 मील पैदल चल सकते थे। मैंने 33 डिग्री सेल्सियस की गर्मी वाले उस दिन ट्राली से जाना तय किया, लेकिन संत पापा के साथ शाम की प्रार्थना के बाद, डेनवर की ऊँचाई पर स्थित उस मैदान का तापमान 4 डिग्री तक नीचे आ गया। हालाँकि मैं ठण्ड से ठिठुर रही थी क्योंकि मैं गर्म कपड़े नहीं लाई थी, लेकिन स्पेनिश और फ्रांसीसी युवाओं ने पूरी रात नृत्य करके मेरा मनोरंजन किया। अगले दिन की सुबह, हमारे शरीर में गर्माहट लौट आई क्योंकि हम अंतिम मिस्सा बलिदान की तैयारी के लिए अच्छे भविष्य की आशा के साथ अपने स्लीपिंग बैग से बाहर निकले।
संत पापा जॉन पॉल द्वितीय ने अपने सामने एकत्रित लाखों लोगों के लिए दिए दिलचस्प उपदेश में, हमें “जीवन की संस्कृति” को बढ़ावा देने के लिए सक्रिय होने की चुनौती दी ताकि गर्भनिरोधक दवा, गर्भपात, इच्छा मृत्यु, तलाक, निराशा और आत्महत्या को बढ़ावा देने वाली “मौत की संस्कृति” द्वारा बरबाद की जा रही तबाही का मुकाबला किया जा सके। इस आह्वान ने स्टुबेनविले के फ्रांसिस्कन विश्वविद्यालय में शुरू हुई सेवा “क्रॉसरोड्स” और अन्य कई नई सेवाओं के गठन को प्रेरित किया, और तीन देशों में प्रो-लाइफ वार्षिक ग्रीष्मकालीन तीर्थयात्राओं में विस्तारित हुआ, युवा लोग प्रार्थनामय बलिदान द्वारा सार्वजनिक रूप से उन समुदायों के साक्षी बने।
विश्व युवा दिवस 2002, कनाडा के टोरंटो में
2002 में, कनाडा के टोरंटो शहर में संत पापा जॉन पॉल द्वितीय के अंतिम विश्व युवा दिवस में भाग लेने के लिए मुझे मौका मिला था। किसी उदार व्यक्ति ने मेरा खर्च उठा लिया। हालाँकि संत पापा अब उम्र के साथ झुक गये थे, और पार्किंसंस रोग से काँप रहे थे, फिर भी उनके पास मिशन को आगे बढ़ाने के लिए एक नई पीढ़ी को प्रेरित करने और उनमें जोश भरने की क्षमता थी। हालाँकि रविवार की सुबह मूसलाधार बारिश हुई थी, फिर भी मैं इस उम्मीद पर टिकी रही कि मौसम साफ हो जाएगा। उस दिन का सुसमाचार मत्ती 5 से लिया गया था। जैसे ही, “तुम जगत की ज्योति हो,” यह वचन (मत्ती 5:14) स्टेडियम में गूँज उठा, सूरज बादलों को चीर कर निकल आया।
संत पापा का उपदेश सीधे उनके चरवाहा वाले हृदय से निकल आया: “दुनिया के घोर अंधकार में येशु मसीह प्रकाश हैं। अंधेरे में मत फंसो। हालांकि मैं बहुत अधिक अंधकार से गुजरा हूं… मैंने दृढ़ता से आश्वस्त होने के लिए पर्याप्त साक्ष्य देखे हैं कि कोई भी कठिनाई, कोई भी भय इतना बड़ा नहीं है कि यह उस आशा का दम घोंट दे जो युवाओं के दिलों में हमेशा जागृत है।“
उन्होंने सीधे-सीधे यौन-दुर्व्यवहार कांड के बारे में बताया जो हाल ही में प्रकाश में सामने आया था: “अंधकार के पापों से हतोत्साहित न हों, चाहे वह अन्धकार पुरोहितों और धर्म संघियों में भी विद्यमान हो। लेकिन (वे ऊँची आवाज़ में बोले) बहुत से अच्छे पुरोहितों और धर्म संघी लोगों को याद करें जिनकी एकमात्र इच्छा सेवा करना और भलाई करना है।” उन्होंने युवाओं को धर्मसंघीय और पुरोहितीय बुलाहटों का पालन करने के लिए प्रोत्साहित किया, – “क्रूस के राजकीय मार्ग” पर चलने के लिए भी जिस पर कठिन दौर में चलते हुए, “पवित्रता की खोज और भी जरूरी हो जाती है।” उस वर्ष कई बुलाहटों का जन्म हुआ।
जब हमारे संत पापा ने अगला युवा सम्मलेन का स्थान 2005 में कोलोन, जर्मनी में होने की घोषणा की, तो उन्होंने कहा, “येशु मसीह वहां आपसे मिलेंगे।” मेरे दिल की धड़कन रुक गई और मेरी आंखों में आंसू भर आए, क्योंकि संत पापा जॉन पॉल अक्सर कहा करते थे, “मैं आप से मिलूंगा।” मैं जानती थी, हम सब जानते थे, कि उन्हें मालूम था कि उनके अंतिम दिन निकट हैं।
2005 और उसके बाद
अगस्त 2005 में संत पापा बेनेदिक्ट जब दुनिया भर के युवाओं से मिलने के लिए कोलोन की राइन नदी में जलयात्रा कर रहे थे तब मैं अपने पिताजी के साथ (जो मरने के कगार पर थे) बैठकर टेलीविजन पर संत पापा को देख रही थी क्योंकि मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि जो संत पापा जॉन पॉल द्वितीय के उत्तराधिकारी बने थे, वे उसी देश के मूल निवासी थे, जिसे अगले विश्व युवा दिवस के पहले ही चयनित किया जा चुका है! 2013 में भी ऐसा ही हुआ था। अंटार्टिका को छोड़कर, हर महाद्वीप के युवा, ब्राजील के रियो डी जनेरियो में विश्व युवा दिवस के लिए तैयार हो गए, तभी संत पापा बेनेदिक्ट ने इस्तीफा दे दिया, और पहले से चयनित महाद्वीप से ही संत पापा फ्रांसिस उनके उतराधिकारी बने। संत पापा बेनेदिक्ट और पोप फ्रांसिस दोनों ने अपने पूर्वाधिकारी की विरासत को पूरी तरह से अपनाया। विश्व युवा दिवस युवाओं को पवित्रता के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते रहे हैं।
विश्व युवा दिवस 2023, पुर्तगाल के लिस्बन में
दुनिया भर के युवा अब अगले विश्व युवा दिवस के लिए लिस्बन की यात्रा करने की योजना बना रहे हैं। मेजबान देश युवाओं को पूरे पुर्तगाल के विभिन्न धर्म्प्रान्तो में ठहराकर वहां की संस्कृति का अनुभव कराने के लिए कई दिनों से योजना बना रहा है, और उनके पास कलीसिया के कुछ सर्वश्रेष्ठ वक्ताओं, संगीतकारों और कलाकारों का प्रवचनों, कार्यशालाओं और विभिन्न कार्यक्रमों से भरा एक आकर्षक परिपाटी है। स्थानीय परिवार, स्कूल और पल्ली युवा तीर्थयात्रियों को समायोजित करने की तैयारी कर रहे हैं। मेलमिलाप का संस्कार और यूखरिस्त की आराधना हर जगह होगी और कुछ प्रार्थना दल पहले से ही अपेक्षित आगंतुकों के लिए प्रार्थना कर रही हैं। दुनिया भर के देशों में तीर्थयात्रियों के समूह बनाए जा रहे हैं, और अपने युवाओं को भाग लेने में सहायता करने के लिए पल्ली के लोग धन एकत्रित कर रहे हैं। यदि परमेश्वर आपको वहाँ बुला रहा है, तो वहाँ पहुँचने में वह आपकी मदद कर सकता है, और आपको जीवन की यात्रा पर आगे बढ़ने में आपकी मदद कर सकता है। यह विश्व युवा दिवस हमारे समय में कैथलिक कलीसिया के खजानों में से एक है। (आधिकारिक प्रोमो, पांच भाषाओं में गीत, लोगो और दृश्यों के लिए आप अपने धर्मप्रांत के वेबसाइट, यूट्यूब और फेसबुक देखें)।
जो लोग शामिल नहीं हो सकते वे सोशल मीडिया के माध्यम से कुछ कार्यक्रमों में भाग ले सकते हैं और तीर्थयात्रियों के साथ प्रार्थना कर सकते हैं।
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‘ना‘ कहने का मतलब अपने परिवार को आर्थिक तंगी के अँधेरे में धकेलना होगा, फिर भी उसने वह कड़ा कदम उठाया…
मैं भारत की रहनेवाली 31 वर्षीय पूर्व सहायक प्रोफेसर हूं। ‘पूर्व’ इसलिए कि कई महीनों पहले मैं उस उपाधि को छोड़ चुकी हूँ। 2011 में कॉलेज से स्नातक की डिग्री पाने के बाद, मैंने अगले चार साल चार्टर्ड अकाउंटेंसी कोर्स की तैयारी में बिताए। मुझे जल्द ही एहसास हुआ कि सी.ए. करना मेरी बुलाहट नहीं थी, और मैं उससे बाहर हो गयी।
सपना साकार हो गया
आकर्षक करियर को छोड़ना बहुतो को मूर्खतापूर्ण लग सकता है, लेकिन मेरे निर्णय ने मुझे अपने वास्तविक जुनून को पहचानने और स्वीकार करने के लिए प्रेरित किया। वह है अध्यापन, एक ऐसा कार्य जिस का सपना मैं बचपन से देखा करती थी। जब मैंने अपना ध्यान अध्यापन करियर पर स्थानांतरित कर दिया, तब ईश्वर ने मुझे एक प्रसिद्ध विद्यालय के प्राथमिक खंड में पढ़ाने का वरदान दिया। हालाँकि मैंने उस स्कूल में चार साल तक पढ़ाया था, लेकिन मैं संतुष्ट नहीं थी, क्योंकि मेरे बचपन का सपना कॉलेज में प्रोफेसर बनने का था। ईश्वर की कृपा से, लगभग चार वर्षों के अध्यापन के बाद, मुझे एक स्थानीय कॉलेज में सहायक प्रोफेसर के रूप में आवेदन करने का अवसर प्राप्त हुआ। जब मुझे नौकरी की पेशकश की गई, तो मैंने खुशी-खुशी एक सहायक प्रोफेसर के रूप में अपने सपने को पूरा किया और दो साल के लिए मेरे छात्रों की जरूरतों को पूरा किया।
मुश्किल निर्णय
मेरे तीसरे वर्ष के बीच में, हमारे कॉलेज ने गुणवत्ता दर्जा (अक्रेडिटेशन) की प्रक्रिया शुरू की, जो कि उच्च शिक्षा के संस्थानों को ‘गुणवत्ता की स्थिति’ का प्रमाण देती है । हालांकि यह एक लंबी, श्रमसाध्य प्रक्रिया थी, जिसमें बहुत अधिक कार्यभार था, लेकिन शुरुआत में चीजें सुचारू रूप से आगे बढ़ीं। लेकिन अंततः, हम पर अनैतिक व्यवहार में भाग लेने के लिए दबाव डाला गया जिससे मैं बहुत परेशान होने लगी। प्रशासन ने हमें नकली रिकॉर्ड बनाने और ऐसी अकादमिक गतिविधियों (जो गतिविधियाँ कभी हुई ही नहीं) का दस्तावेजीकरण करने के लिए दबाव बनाया।
मेरे मन में असंतोष और नाराजगी उत्पन्न हुई – वह इतनी मजबूत कि मैं अपनी नौकरी छोड़ना चाहती थी। हालांकि घर में चीजें ठीक नहीं थीं। परिवार में हम चार लोग हैं। मेरे माता-पिता काम नहीं कर रहे थे, और मेरे भाई की नौकरी चली गई थी। परिवार में कमाने वाली मैं इकलौती होने के कारण मेरे लिए नौकरी छोड़ना मुश्किल होगा। महामारी के कारण दूसरी नौकरी ढूंढना भी मुश्किल होगा। इन सबके बावजूद मैंने किसी तरह हिम्मत जुटाई और अपना इस्तीफा सौंप दिया। लेकिन मेरे पर्यवेक्षकों ने इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया, यह वादा करते हुए कि मुझे अब झूठे दस्तावेज़ बनाने की आवश्यकता नहीं होगी और मैं घर से भी काम कर सकती हूँ। अनिच्छा से, मैंने शर्तों को स्वीकार कर लिया। हालाँकि, महीनों के भीतर, मुझे फिर से एक अकादमिक संगोष्ठी का दस्तावेजीकरण करने के लिए कहा गया, जो संगोष्ठी कभी नहीं हुई थी। हर बार जब मैं इस तरह के कदाचार में लिप्त होती, मुझे ऐसा लगता था कि मैं प्रभु को धोखा दे रही हूँ। मैंने इस दुविधा को अपने आध्यात्मिक गुरुओं के सामने रखा जिन्होंने मुझे ऐसी नौकरी को छोड़ने के लिए प्रोत्साहित किया जिसमें प्रभु की महिमा नहीं थी।
किस्मत का खेल
अंत में, मैंने हिम्मत जुटाई और मैंने अपने पर्यवेक्षकों को ‘ना’ कहा। और यह एक मज़बूत और बड़ा ‘ना’ था। मैंने सौंपे गए कार्य को जमा करने के बजाय अपना इस्तीफा सौंप दिया। मैंने तुरंत नौकरी छोड़ दी और पिछले महीने के अपने वेतन को लेने से इनकार कर दिया क्योंकि मैं बिना नोटिस दिए जा रही थी।
आर्थिक रूप से, मैं घोर अंधकार में कूद चुकी थी। मेरा परिवार मेरी आय पर निर्भर था। मेरी मां की हाल की सर्जरी ने परिवार की बचत को खत्म कर दिया था। मेरे पास मुश्किल से सिर्फ अगले महीने के खर्चे को पूरा करने के लिए पर्याप्त पैसा था। मुझे नहीं पता था कि क्या करना है। मैंने अपने पिता और भाई को अपनी नौकरी छोड़ने के बारे में नहीं बताया क्योंकि वे कभी स्वीकृति नहीं देते।
मैंने केवल वही किया जो मैं कर सकती थी — मैंने प्रभु को दृढ़ता से थामे रखा और उसकी शक्ति और सामर्थ्य पर भरोसा किया। मैंने लगातार पवित्र मालाविनती करके माँ मरियम की मध्यस्थता मांगी। दिन और सप्ताह बीत गए, और मुझे साक्षात्कार के लिए कोई कॉल नहीं आया। डर मेरी आत्मा को जकड़ने लगा। जिन सभी रिक्रूट करनेवालों से मैंने संपर्क किया था, सितंबर के अंत तक, उनकी तरफ से मेरे पास कोई निर्धारित साक्षात्कार नहीं था। मैं हताश थी।
एक अविश्वसनीय आश्चर्य
आखिरकार, 30 सितंबर को, मेरे घर के पास स्थित एक इंटरनेशनल स्कूल से एक फोन आया। मैंने कॉलेज में जिन विषयों को पढ़ाया था, उन्हीं विषयों को इस स्कूल में पढ़ाने के लिए साक्षात्कार का आमंत्रण मुझे मिला। यह एक अविश्वसनीय आश्चर्य था। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम पर आधारित इस स्कूल को किसी भारतीय विश्वविद्यालय में स्नातक संकाय के बराबर विषय ज्ञान के स्तर की आवश्यकता होती है। मेरे सामने अध्यापक पद की पेशकश की गई और अक्टूबर 2021 की शुरुआत में मेरे रोजगार को अंतिम रूप दिया गया। और ईश्वर की कृपा से पूर्व कॉलेज में मैं जितना वेतन पाती थी, उसकी तुलना में मुझे अधिक वेतन दिया गया। ईश्वर की स्तुति हो!
आज, जब लोग पूछते हैं कि मैंने हाई स्कूल में पढ़ाने के लिए कॉलेज क्यों छोड़ा, तो मैं बताती हूं कि मेरे ईश्वर मेरे लिए कितने अद्भुत हैं। यहां तक कि अगर मेरा नया पद, कम वेतन के साथ एक छोटी नौकरी होती, तो भी मैं इसे अपने प्रभु येशु के लिए खुशी से स्वीकार करती। जब मैं पीछे मुड़कर देखती हूं, तो मुझे एहसास होता है कि सांसारिक पद, उपाधि और खिताब मायने नहीं रखते। हम शाश्वत मुकुट को जीतें यही मायने रखता है। इब्रानियों के नाम पत्र कहता है, “आओ… हमारे अगुआ और विश्वास के प्रवर्तक येशु पर अपनी दृष्टि लगाकर, धैर्य के साथ उस दौड़ में आगे बढ़ते जाएँ, जिसमें हमारा नाम लिखा गया है” (12:1ब-2)।
मैं अपनी गवाही को आनंद के साथ साझा करती हूं, अपने पिछले नियुक्तिकर्ता को बदनाम करने के लिए नहीं, या यह शेखी बघारने के लिए भी नहीं कि ईश्वर ने मुझे आशीर्वाद दिया है क्योंकि मैं कितनी प्रार्थनापूर्ण रही हूं। ऐसा बिलकुल मेरा उद्देश नहीं है। मेरा उद्देश्य मेरे विश्वास को साझा करना है कि जब हम प्रभु के लिए एक कदम उठाएंगे, तो वह हमारे लिए सौ कदम उठाएगा। यदि कभी भी आप परमेश्वर की आज्ञाओं से समझौता करने के लिए बाध्य किये जाते हैं, लेकिन आपको डर है कि आप के ना कहने से आप और आपके परिवार पर नकारात्मक वित्तीय परिणाम होगा, मेरे प्यारे भाई या बहन, मैं सिफारिश करने का साहस करूंगी, कि आप प्रभु की खातिर वित्तीय अंधेरे में कूदने का जोखिम उठावें … और उसकी दया पर भरोसा करें।
संतों का अनुभव, और मेरा अपना विनम्र अनुभव, मुझे विश्वास दिलाता है कि हमारा ईश्वर हमें कभी नहीं छोड़ता।
'उस प्यार का अनुभव करें जिसका आपने हमेशा सपना देखा था…
येशु मसीह के कई और विभिन्न प्रकार के चित्र उपलब्ध हैं। पवित्र ह्रदय की तस्वीर मेरे मन को दुखी करती है, साथ साथ मेरे अन्दर बहुत आशा भी जगाती है। इस काफी प्रचलित चित्र में, येशु अपने लबादे को हटा रहे हैं, ताकि आग का शोला उगलता हुआ, छेदा हुआ और कांटों के मुकुट से घिरा हुआ अपने दिल को वह हमें दिखा सकें। यदि हम इसकी सही समझ नहीं रखते हैं, तो हम इसे पराजय का संकेत मानने की भूल करेंगे। शायद कोई गलती से यह भी सोच सकता है कि येशु दर्द और पीड़ा का महिमा मंडन कर रहे हैं।
बीमारी की पीड़ा भोगनेवाले ऐसे व्यक्ति होने के नाते, मैं उस पीड़ादायक तस्वीर को, सांत्वना देने वाली तस्वीर के रूप में पहचानती हूं। कई बार, जब भौतिक दुनिया में, कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं था, जो मेरे अकेलापन और पीड़ा की गहराई में, मुझे शांत कर सकता था। मेरी मदद करने के अच्छे इरादे रखने वाले लोग भी मुझे सांत्वना नहीं दे पाते थे। ऐसे में मैं हमेशा क्रूस के चरणों पर और येशु के उस छिदे हुए हृदय में साहस और सांत्वना पाती थी। येशु मुझे जानता था। वह उस स्थान पर मुझसे मिलने के लिए हर वक्त उपलब्ध था।
येशु ने संत मार्गरेट अलकोक को दर्शन दिए और उससे कहा, “मानव जाति से तीव्र प्रेम करने वाला मेरा हृदय, अब उसकी दयालुता की लपटों को समाहित नहीं कर सकता है; उसके लिए यह आवश्यक है कि वह अपने ह्रदय को लोगों पर प्रकट करें, ताकि वे उसमें निहित निधि से समृद्ध हों।”
क्या अभी भी संदेह है?
मसीह के प्रेम का हृदय हमारे लिए इतनी गहराई से और उदारता से जल रहा है कि वह स्वयं को समा नहीं सकता। वह अपने पवित्र हृदय के खजाने को साझा करते हुए मानव जाति पर अपने अति उदार, अथाह प्रेम को उंडेलना चाहता है।
तो हमें किस बात का डर है? शुद्ध, निःस्वार्थ, अथाह प्रेम से? सबसे उदार इस उपहार को स्वीकार करने में हमें कौन रोक रहा है?
मानव को इस प्रेम से कौन वंचित रखता है? और वह प्यार हमें समाहित कर लें, तो इस पर हम क्यों अनिच्छुक हैं और किस बात का हमें डर है? कभी-कभी, मैं उस स्तर के उदार, और हृदय विशाल प्रेम के लिए अपने आप को अयोग्य महसूस करती हूँ। क्या यह प्यार मेरे जैसे लोगों के लिए भी मुफ़्त में उपलब्ध है?
परमेश्वर के हृदय को प्यार ही दिशा निर्देश देता है। परमेश्वर प्रेम है! शायद हमारी विकृत समझ, और प्यार का विकृत अनुभव ही हमें सबसे ज्यादा डराते हैं। हो सकता है कि पूर्व में हमारे साथ ठीक से प्यार किये जाने के बजाय, हमें इस्तेमाल किया गया हो। हो सकता है कि अतीत में हमें किसी ऐसे व्यक्ति ने प्यार दिखाया हो, जो हमारे निकट थे, जो प्यार हमारे लिये नाप तौल करके दिया गया था, हमसे वह प्यार जबरन लिया गया, या शर्तों के आधार पर हमसे प्यार किया गया। जब उनका पेट भर गया या वे ऊब गए, तो उन्होंने हमें त्याग दिया और कुछ अन्य चीज़ों या दिलचस्प व्यक्ति की ओर वे बढ़ गए।
हमारा मूल परिवार कैसा था? क्या वह बिखरा हुआ था या निष्क्रिय था? हमारा पहला घर “प्यार की पाठशाला” रहा होगा, जहां हमें प्यार के बारे में जीवन केलिए उपयोगी कई मूल्यवान शिक्षा दी जाती थी, जहां गलती करने और उन गलतियों से सीखने के लिए हमें आज़ादी मिलती थी। अफसोस की बात है कि कुछ लोगों के लिए उनका परिवार शायद विश्वासघात, दर्द और दुर्व्यवहार के स्थान रहे होंगे। आपको अकेलापन और चोट के उस स्थान पर रहने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि आप पवित्र हृदय की ओर कदम बढायें।
उन्नीसवीं सदी के फ्रांसीसी सन्यासी और आध्यात्मिक लेखक, फादर बर्लियो, प्रभु ख्रीस्त के बारे में यह लिखते हैं, “यह प्रेम ही था जिसके कारण उसने इस धरती पर जन्म लिया, कार्य किया, पीड़ा भोगी, और रोया; यह प्रेम ही था, जिसने आखिरकार उसे मरने के लिए मजबूर कर दिया। और यह प्रेम ही है जो युखरिस्त अर्थात पवित्र संस्कार में, स्वयं को हमें देने के लिए, हमारा अतिथि बनने, हमारा साथी बनने, हमारा उद्धारकर्ता बनने, हमारा भोजन बनने और हमारा पोषण बनने केलिए, उसे प्रेरित करता है।”
प्रेम का रसातल
मसीह जो कुछ भी करता है और कहता है, वह प्रेम के कारण ही करता है! यदि वह हमसे कोई भी चीज़ माँगता है, जो अंततः हमारे अपने लाभ के लिए है, तो उस से डरने की ज़रूरत नहीं है। मेरे अपने जीवन में मैं ने जब प्रत्येक भारी क्रूस का सामना किया, तब मैंने शुरू में सोचा था कि उन्हें संभालने की क्षमता मुझ में बिलकुल नहीं होगी। यह सच है कि मेरी क्षमता उतनी ही थी। संत पौलुस कहते हैं, “… ख्रीस्त के प्रति, हम मजबूत हैं” (2 कुरिन्थी 12:10)। जब हम यह विश्वास करने के भ्रम में रहते हैं कि हमारे पास सब कुछ है, तब हमें आगे ले जाने और संपोषित रखने के लिए वहाँ मसीह के पास कोई स्थान नहीं रह जाता ।
यदि आपके अतीत ने आपको केवल नकली प्रेम के विकृत रूप दिखाए हैं, यदि आपकी वर्तमान स्थिति “दूसरे की भलाई के लिए निस्वार्थ दान” का सबसे अच्छा प्रदर्शन नहीं है, तो मैं आपको दृढ़ता के साथ सिफारिश कर सकती हूं कि आप के अन्दर की जो भी कमी हैं, उसे भरने के लिए आप येशु के सच्चे ह्रदय से प्यार करें। येशु के अति पवित्र हृदय से ही आप सीखेंगे कि वास्तविक प्यार कैसे देना और कैसे प्राप्त करना है।
अंत में, संत जेत्रूद, जिन्हें येशु के साथ अंतरंग मिलन का आनंद प्राप्त था, इन शब्दों में अपनी बात रखती हैं, “हे अनंत दयालुता के महान रहस्य और प्रेम के रसातल, यदि लोग जानते कि तू उनसे कितना प्यार करता है, यदि तू उन्हें अपने दिल की अनंत खजाने की खोज करने की अनुमति उन्हें देता, तो वे सभी तेरे चरणों में गिर जाते, और केवल तुझसे प्यार करते … ।”
इसलिए हर इंसान के दिल से यह सवाल पूछा जाता है; क्या आप पृथ्वी पर अपने सीमित दिनों को नकली प्यार को स्वीकार करते हुए, अतीत के दुखों में डूबते हुए, और अपने दिल को नए सिरे से और अधिक दुर्व्यवहार के लिए उजागर करना जारी रखेंगे? या, क्या आप “अनंत दयालुता के रहस्य और प्रेम के रसातल” की शरण की ओर भागेंगे?
हमेशा की तरह, हमारे प्रेमी परमेश्वर इस निर्णय को लेने की छूट हम पर छोड़ देता है, और हमारी अनुमति प्राप्त किये बिना अपने प्रेम के इस अद्भुत उपहार को वह हम पर नहीं थोपेगा। तो क्या यह अनुमति उन्हें देने के लिए आप तैयार हैं?
'1950 के दशक में, कैथलिक श्रमिक आन्दोलन (कैथलिक वर्कर मूवमेंट) की सह-संस्थापिका, डोरोथी डे ने एक ऐसे दृष्टिकोण को स्पष्ट करना शुरू किया, जिसे द्वितीय वेटिकन अधिवेशन में बड़े पैमाने पर अनुमोदित किया गया था। उन्होंने कहा कि लोक धर्मियों के लिए “आज्ञाओं की आध्यात्मिकता” और पुरोहित (पादरी) वर्ग के लिए “सलाह- आध्यात्मिकता” की प्रचलित धारणा अव्यवहारिक थी। वे उस समय के मानक दृष्टिकोण का उल्लेख कर रही थी कि लोकधर्मी दस आज्ञाओं का पालन के न्यूनतम कार्य निभाने लिए बुलाया गए थे – यानी लोकधर्मियों को प्रेम और न्याय के विरुद्ध सबसे बुनियादी बातों के उल्लंघनों से परहेज करना होगा। जबकि पुरोहित और धर्मसंघी लोग निर्धनता, ब्रह्मचर्य और आज्ञाकारिता के सुसमाचारी प्रतिज्ञाओं का पालन करने के एक वीर जीवन जीने केलिए बुलाया गए थे। लोक धर्मी साधारण खिलाड़ी थे, और पुरोहित वर्ग आध्यात्मिक एथलीट वर्ग था। इस तरह की सोच और समझ के विरुद्ध डोरोथी डे ने काफी जोरदार शब्दों में विरोध किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि प्रत्येक बपतिस्मा प्राप्त व्यक्ति, वीर पवित्रता के लिए बुलाया गया था – जिसका अर्थ है, आज्ञाओं और सुसमाचारी प्रतिज्ञाओं दोनों बातों का पालन।
जैसा कि मैं कहता हूं, पवित्रता के लिए सार्वभौमिक आह्वान पर अपने सिद्धांत में, द्वितीय वेटिकन अधिवेशन ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया। यद्यपि वैटिकन परिषद् में उपस्थित आचार्यों ने सिखाया कि जिस तरह से पुरोहित और लोक धर्मी निर्धनता, ब्रह्मचर्य और आज्ञाकारिता के सुसमाचारी प्रतिज्ञाओं को अपने अपने जीवन में व्यवहार में लाते हैं, उसमें काफी अंतर है, परिषद् के आचार्यों ने स्पष्ट रूप से निर्देश दिया कि मसीह के सभी अनुयायियों को उन आदर्शों को अपने जीवन में व्यवहार में ला करके वास्तविक पवित्रता की तलाश करना चाहिए। तो, यह कैसे होगा? आइए पहले निर्धनता को लें। हालांकि, आम तौर पर, जिस तरह एक ट्रैपिस्ट मठवासी कठोर निर्धनता का जीवन जीता है, उसी प्रकार की निर्धनता के लिए लोक धर्मी नहीं बुलाया जाता है। जिस प्रकार लोकधर्मियों को संसार में उनके अपने मिशन के लिए एक बुलावा हैं, उस हिसाब से उन्हें दुनिया की वस्तुओं से अनासक्ति या अपरिग्रह का अभ्यास करना चाहिए। जब तक एक साधारण व्यक्ति धन, शक्ति, सुख, पद, सम्मान आदि की लत से आंतरिक स्वतंत्रता प्राप्त नहीं करता, तब तक जिस प्रकार उसे ईश्वर की इच्छा का पालन करना चाहिए, उस प्रकार वह नहीं कर सकता। जब सामरी स्त्री ने अपना पानी का घडा कुएं पर छोड़ दिया, केवल जब उसने दुनिया के सुखों के पानी से अपनी प्यास बुझाने की कोशिश करना बंद कर दिया, तभी वह सुसंचार का प्रचार करने में सक्षम बनी। (योहन 4)। इसी तरह, जब एक बपतिस्मा प्राप्त व्यक्ति आज खुद को धन, अधिकार, या स्वार्थपूर्ण भावनाओं की लत से मुक्त करता है, तभी वह ईश्वर की इच्छा के अनुरूप संत बनने के लिए सक्षम होता है। तो, वैराग्य या अपरिग्रह के अर्थ में, लोक धर्मियों की पवित्रता के लिए निर्धनता आवश्यक है।
सुसमाचारी परामर्शों में से दूसरा, शुद्धता भी लोक धर्मी आध्यात्मिकता के लिए महत्वपूर्ण है। हालांकि जिस तरह से पुरोहित और धर्मसंघी शुद्धता को ब्रह्मचारी के रूप में जीते हैं, उनके लिए यह विशेष है, लेकिन इस का पुण्य या इसकी धार्मिकता अपने में लोक धर्मियों के लिए भी लागू होता है। शुद्धता का सीधा सा मतलब है यौन संबंधों में विश्वस्तता या सही ढंग से व्यवस्थित यौन जीवन। और इसका अर्थ है किसी के यौन जीवन को प्रेम के तत्वावधान में लाना। जैसा कि थॉमस एक्विनास ने सिखाया है कि प्रेम एक भावना या भावुकता नहीं है, बल्कि व्यक्ति का आग्रह, संकल्प या इच्छा का कार्य है, अधिक सटीक शब्दों में कहें तो, प्रेम दूसरे की भलाई के लिए एक संकल्प है। यह आह्लाद या उल्लास में भाव विभोर होने का आनंदपूर्ण कार्य है जिसके द्वारा हम उस अहम् की भावना से मुक्त हो जाते हैं, जिस अहम् का गुरुत्वाकर्षण खिंचाव हर चीज को अपनी ओर खींचना चाहता है। खाने-पीने की सहज प्रवृत्ति या इच्छा की तरह, सेक्स भी जीवन से जुड़ा एक जुनून है। यही वजह है कि सेक्स का यह जूनून इतना शक्तिशाली है और इसलिए आध्यात्मिक रूप से इतना खतरनाक भी है, जो सब कुछ और हर किसी को अपने नियंत्रण में लेने के लिए उत्तरदायी है। ध्यान दें कि सेक्स रुपी इस नकारात्मक प्रवृत्ति को रोकने के लिए ही कलीसिया यह शिक्षा देती है कि सेक्स का संबंध सिर्फ विवाह के संदर्भ में ही है। हमारी कामुकता को वैवाहिक एकत्व (जीवनसाथी के प्रति अनन्य या आत्यंतिक निष्ठा) और प्रजनन (उसी समान बच्चों के प्रति आत्यंतिक निष्ठा) के अधीन होना चाहिए। ऐसा कहते हुए कलीसिया हमारे यौन जीवन को पूरी तरह से प्यार की छत्रछाया में लाने का प्रयास करती है। अव्यवस्थित यौन जीवन एक व्यक्ति के भीतर गहरी अस्थिर करने वाली शक्ति बन जाती है, जो समय के साथ, उसके प्रेम करने की क्षमता को नष्ट कर देती है।
अंत में, लोक धर्मी लोगों को आज्ञाकारिता का अभ्यास करने की बुलाहट मिली हैं। यह भी धर्मसंघी तरीके से नहीं, बल्कि विशिष्ट तरीके से लोक धर्मी दशा के लिए। यह अपने स्वयं के अहं की आवाज सुनने के लिए नहीं, बल्कि परमेश्वर के परम स्वर को सुनने के लिए, अर्थात पवित्र आत्मा के अनुबोधनों और प्रेरणाओं को (लातीनी भाषा में ओबेदिरे) सुनने के लिए और उसका पालन करने की इच्छाशक्ति है। हान्स उर्स वॉन बलथसार द्वारा लिखित, निर्मित, निर्देशित और स्वयं अभिनीत स्वार्थ लीला (अहं-नाटक) और ईश्वर द्वारा लिखित, निर्मित और निर्देशित ईश लीला (थियो-ड्रामा) के बीच के अंतर के बारे में मैं ने अक्सर बात की है। हम कह सकते हैं कि आध्यात्मिक जीवन का संपूर्ण उद्देश्य स्वार्थ लीला (अहम् नाटक) से मुक्त होना है ताकि ईश लीला को गले लगाया जा सके। हम में से अधिकांश लोग जो पापी हैं, अधिकांश समय, अपने स्वयं की धन दौलत, सफलता, जीविका की योजनाओं और व्यक्तिगत सुख में व्यस्त रहते हैं। परमेश्वर की आज्ञा मानने का अर्थ है उन आत्मघातक चिंताओं से बाहर निकलना और चरवाहे की आवाज सुनना।
कल्पना कीजिए कि यदि, रातोंरात, प्रत्येक कैथलिक व्यक्ति दुनिया की धन दौलत से आत्यंतिक वैराग्य या अपरिग्रह की भावना के साथ रहना शुरू कर दे तो क्या होगा? कैसे राजनीति, अर्थशास्त्र और संस्कृति नाटकीय रूप से इस दुनिया की बेहतरी और अच्छाई के लिए बदल जाएगी। कल्पना कीजिए कि यदि, आज, प्रत्येक कैथलिक पवित्रता से जीने का संकल्प करे तो यह कैसा होगा? हम अश्लील यौन साहित्य और दृश्य श्रव्य सामग्री (पोर्नोग्राफ़ी) के व्यवसाय में भारी सेंध लगा पायेंगे; मानव तस्करी नाटकीय रूप से कम हो जाएगी; परिवारों को काफी सार्थक रूप से मजबूत किया जाएगा; गर्भपात में काफी कमी आएगी। और कल्पना करें कि यदि, अभी, प्रत्येक कैथलिक ने परमेश्वर की वाणी के आज्ञाकारिता में जीने का निर्णय लिया है तो कैसा होगा? आत्म-चिंता और आशंका के कारण होने वाले कष्ट कितने कम होंगे!
इस लेख में मैं जो बात बता रहा हूं, वह एक बार फिर, महान द्वितीय वैटिकन परिषद् द्वारा दी गयी पवित्रता के लिए सार्वभौमिक आह्वान पर शिक्षा का हिस्सा है। परिषद् के आचार्यों ने सिखाया कि पुरोहित और बिशप का मतलब है कि लोक धर्मियों को शिक्षा देने और पवित्र करने के लिए हैं। बदले में, लोक धर्मियों की बुलाहट दुनियावी व्यवस्था को पवित्र करने के लिए हैं और राजनीति, वित्त, मनोरंजन, व्यवसाय, शिक्षण, पत्रकारिता आदि में ख्रीस्त को लाना है। और जब निर्धनता, शुद्धता और आज्ञा पालन की सुसमचारी प्रतिज्ञाओं को अपनाने से वे इसमें कामयाब होते हैं।
© यह लेख मूल रूप से wordonfire.org पर प्रकाशित किया गया था। अनुमति के साथ पुनर्मुद्रित।
'कड़ी मेहनत करने और प्रार्थना करने की सीख
जब मैंने पिछले साल अपनी 10-वीं कक्षा में जीव विज्ञान के लिए साइन-अप किया था, तो मैंने कभी नहीं सोचा था कि जीव विज्ञान मेरे लिए मुश्किल होगी। पहले दिन, मुझे आत्मविश्वास और स्वयं पर भरोसा महसूस हुआ। लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतते गए, मैं पिछड़ने लगी। जबकि मेरे साथियों ने सवालों के जवाब दिए और प्रत्ययों को आत्मविश्वास से रट रट कर सुनाया, तब मैं भ्रमित और हतप्रभ महसूस कर रही थी। दिन-ब-दिन, मैं मुस्कुराती रही, अपना सिर हिलाती रही, और नाटक करती रही कि मुझे पता है कि क्या चल रहा है, क्या होना है।
जीव विज्ञान की पहली परीक्षा से एक रात पहले, मैंने बमुश्किल पढ़ाई की थी। मैंने कुछ शब्दावली को देखा और कुछ परिभाषाओं को याद करने का प्रयास किया। जब मैंने प्रश्न पत्र में पहला प्रश्न देखा तो मेरा सिर चकराने लगा। प्रश्न लंबे थे, एक एक पैराग्राफ की तरह, और उन्हें बार-बार पढ़ने के बावजूद मैं समझ नहीं पायी!
अगले दिन, मुझे अपना उत्तर पुस्तिका वापस मिल गयी। और उसमें मेरे लिए दिए गए 53% अंक देखकर मैं हैरान नहीं थी। लेकिन कुछ निराशा तो ज़रूर हुई, क्योंकि मेरे कई सहपाठियों ने बेहतर अंक प्राप्त किए थे। जब मैंने अपना ग्रेड ऑनलाइन चेक किया, तो मैंने देखा कि मेरे समग्र ग्रेड को “सी” तक कम कर दिया गया था। मुझे नहीं पता था कि अब क्या करना है।
जैसे-जैसे महीने बीत गए और अन्य परीक्षाएं भी बीत गयीं, मेरे ग्रेड में उतार-चढ़ाव होता रहा। मेरी माँ ने मुझे सबसे अच्छी सलाह दी: अधिक प्रार्थना करो और परमेश्वर की सहायता लो। तब से, हर परीक्षा देने से पहले, मैंने पवित्र आत्मा का आह्वान करना शुरू किया और मुझे लगा कि परमेश्वर सचमुच मेरी मदद कर रहा है। मुझे पता था कि मैं अकेली नहीं थी। मेरे टेस्ट स्कोर तेजी से बढ़ने लगे। मैंने अधिक समय प्रार्थना में बिताया। जैसे-जैसे मैं परमेश्वर से प्रेम करने और उस पर भरोसा करने में और गहरा होती गयी, सभी ने मुझमें एक आमूलचूल परिवर्तन देखा।
अगले सत्र परीक्षा देने से पहले, मैंने महीनों के अध्ययन, प्रार्थना और परीक्षा की तैयारी में बिताया। यह जानते हुए कि इस साल की परीक्षा कोविड-19 के कारण ऑनलाइन होगी, मैं घबरा गयी थी। परीक्षा का दिन आ गया और मेरे होठों पर एक ही आकांक्षा थी। “तुम्हें सफलता देनेवाला मैं तुम्हारा प्रभु हूं।”
जैसे ही मैंने परीक्षा शुरू की और डेटा, ग्राफ़ और बहुत सारे शब्दों से भरपूर प्रश्नों को देखा, मैं निराशा का अनुभव कर रही थी और कम समय के बारे में अत्यधिक चिंतित हो रही थी। हालाँकि, मैं किसी तरह मेहनत करती रही। अंत में मुझे लगा कि मैंने ठीक किया। महीने बीत गए। जिस दिन परिणाम ऑनलाइन पोस्ट किए गए, मेरा भाई सबसे पहले उठा, मेरे अकाउंट में साइन इन किया और और मेरे स्कोर की जाँच की। फिर उसने इस बारे में मेरी माँ और पिताजी को बताया। मैंने अपने परिवार से कहा था कि जब तक मैं उनसे नहीं पूछूंगी, तब तक मुझे मेरा अंक न बताएं।
घंटों बाद, खुद को नियंत्रित करने में असमर्थ होकर, मैंने अपने भाई को मेरा स्कोर बताने केलिए कहा। जब उसने कहा कि मैंने जीव विज्ञान परीक्षा में “4” स्कोर प्राप्त किया है, तब मुझे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। मेरा एक सहपाठी, जिसका कक्षा में सबसे अच्छा ग्रेड था और जिसे उच्चतम अंक प्राप्त करने की उम्मीद थी, उसने मुझसे कम अंक प्राप्त किए। यह कैसे हुआ?
मुझे पता है कि यह मेरी अपनी योग्यता के कारण नहीं था और मैं अपने जीवन में इस आशीर्वाद के लिए हमेशा ईश्वर की आभारी रहूंगी। बेशक, मैंने कड़ी मेहनत करने और सभी आवश्यक अध्ययन करने के महत्व को सीखा है। लेकिन मैंने परमेश्वर पर भरोसा रखने का महत्व भी सीखा है। मुझे विश्वास है कि मेरे जीवन में ईश्वर हमेशा मेरे साथ रहेगा, चाहे मैं कितनी भी बाधाओं का सामना करूं।
'परम प्रेक्षक की दृष्टि के माध्यम से एक नया दृष्टिकोण प्राप्त करें।
प्रेक्षक कौन है? जब प्रार्थना के दौरान मैं इस सवाल पर मनन करती हूँ, तब मुझे लगता है कि मेरे द्वारा ईश्वर के अच्छे कार्यों का साक्ष्य देने के लिए जब वह मुझे अनुमति देता है, उस समय मैं ईश्वर के प्रेम का प्रेक्षण मेरे अपने गहरे अंत:स्थल से और व्यक्तिगत नज़रिए से करती हूँ। एक परिचारिका की भूमिका में रहते हुए मुझे ईश्वर के लिए गवाही देना सबसे स्पष्ट और आसान है। प्रतिदिन मैं ऐसे लोगों से मिलती हूँ जब वे स्वयं टूटे हुए महसूस करते हैं, और बिलकुल नाजुक अवस्था में हैं। उन अवसरों पर ईश्वर मेरे कानों में फुसफुसाता है, क्या मैं तेरी मदद के लिए आगे आ जाऊं ? जब मैं उसके सामने आत्म समर्पण करती हूँ, और उसे अपना हाँ कहती हूँ, ऐसे अवसरों पर जिन लोगों की मैं देखभाल करती हूँ, उनके हृदयों को स्पर्श करने केलिये ईश्वर का आत्मा मुझसे होकर कार्य करता है: मुझे लगता है कि सौम्य और कोमल बनकर मेरी नज़र मेरे मरीज़ के चेहरे पर पड़ती है, और मुझे पता है कि ईश्वर मेरी आँखों से होकर उस मरीज़ को देख रहा है।
मेरे मरीजों की प्रतिक्रिया से यह बात साबित हो जाती है। उनके चेहरे बदल जाते हैं, और शान्ति और ज्योति उनकी चारों ओर फैल जाती है। उन क्षणों में मैं विश्वास करती हूँ कि मेरे मरीजों में ईश्वर के स्वर्गिक प्रेम और करुणा के अनुभव को मैं परम प्रेक्षक के रूप में देखती हूँ। मेरे मरीजों के साथ इस तरह जो भी घटित होता है, उनका सम्बन्ध मुझ से बिलकुल नहीं है, बल्कि यह कार्य पूरा का पूरा ईश्वर का है, जो अपनी इच्छा को मेरे द्वारा क्रियान्वित करता है। यह तभी संभव है जब मैं पीछे हटती हूँ, और ईश्वर के साथ मेरे व्यक्तिगत सम्बन्ध को और गहरा होने देती हूँ। लेकिन यह कार्य वहीं समाप्त नहीं होता। इस सम्बन्ध को दूसरों के साथ साझा करने के लिए वह मुझे आमंत्रित करता है।
इसका शुभारम्भ
पिछले पेंतकोस्त पर्व के दिन जब मेरा बप्तिस्मा हुआ था, ईश्वर के परिवार की एक दत्तक सदस्य के रूप में मेरा व्यक्तिगत सम्बन्ध का शुभारम्भ हुआ। परमेश्वर की बुलाहट के प्रति मेरी प्रतिक्रिया तत्काल, निरपेक्ष और अडिग थी। उस दिन से, उसके प्रति मेरे समर्पण और भक्ति का कोई जवाब नहीं था। उस भक्ति के चलते मैं समझ गयी कि प्रभु ख्रीस्त की उपस्थिति के बिना मैं कुछ भी नहीं कर पाऊंगी। और मेरी अन्य सारी ज़रूरतों से अधिक मुझे अपने जीवन में उसकी अत्यधिक ज़रुरत थी। मैं जहाँ थी, पूरी तरह शक्तिहीन, दुर्बल और मदद की ज़रूरत में थी, और मेरी सभी अपूर्णताओं और कमियों और शून्यता में, वहीँ उसने मुझसे मुलाक़ात की। मैं ने सबकुछ उसे समर्पित किया। मैं ने जानबूझकर मेरे जीवन का लगाम पूरी तरह उसके हाथों में दे दिया, मेरा दाम्पत्य जीवन, दोस्त, परिवार, घर के पालतू जानवर, मेरा धंधा, धन दौलत सब कुछ… । आप जो भी नाम ले, सब कुछ… । अब उन सब चीज़ों का मालिक वही है।
दिन भर उनसे मेरी व्यक्तिगत प्रार्थना में मैं अपने पुराने स्वभाव की एक-एक परत को त्यागना शुरू कर देती थी और ईश्वर से यही कहती कि हे प्रभु, मेरी इच्छा नहीं, बल्कि तेरी इच्छा पूरी हो। नतीजतन, ईश्वर ने मुझे अंदर और बाहर से पूरी तरह बदल दिया। मैंने अपने लंबे समय से चले आ रहे सदमे के बाद का तनाव विकार और दर्द संबंधी विभिन्न बीमारियों से ठीक हो जाने का अनुभव किया। लोगों ने मेरे साथ सकारात्मक तरीके से व्यवहार करना शुरू कर दिया। जब मुझे अपने शिक्षकों की आवश्यकता हुई, तो उन्होंने आकर मेरी मदद की, मेरी पहले से ही खुशहाल वैवाहिक जीवन कल्पना से परे और अधिक आनंदमय हो गई, नकारात्मक प्रभाव धीरे-धीरे बिना संघर्ष के ही दूर हो गए, और मुझे शांति का अनुभव हुआ। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि मैंने अपने अन्दर परमेश्वर की उपस्थिति को महसूस किया, और मैंने उसकी आवाज को सुनना शुरू किया।
मेरे लिए अपने प्रभु से बात करने से अधिक, उसको सुनना हमेशा स्वाभाविक रहा है, और प्रत्येक दिन, मैं येशु के चेहरे पर मनन-चिंतन करने के लिए अपना समय देती हूं। इस दौरान प्रभु के वचनों को मैं अपने ऊपर और अपने भीतर बहने देती हूं। मेरा विश्वास है कि हमारे पिता परमेश्वर हम में से प्रत्येक के साथ व्यक्तिगत संबंध रखना चाहता है, और वह हमारे साथ अपना बोझ साझा करना चाहता है। जब हम अपना समय येशु को समर्पित करते हैं तो वह इस बोझ का खुलासा करता है।
येशु को समय समर्पित करने का एक हिस्सा है, अपनी इच्छा को उन्हें समर्पित करना और लोगों को उनके कष्टों से मुक्ति दिलाने के लिए हमारे माध्यम से कार्य करने देना। मुझे यह बताया गया है कि पापियों के साथ संगति करना उनके धार्मिक मूल्यों के विरुद्ध है, हालाँकि मुझे आश्चर्य होता है कि यदि हम अपने आप को येशु के द्वारा काम करने के लिए उपलब्ध नहीं कराते हैं तो हम कैसे उम्मीद करते हैं कि येशु पीड़ितों को चंगा करना जारी रखेंगे?
हमेशा के लिए परिवर्तित
ईश्वर आसपास के लोगों को हमारे माध्यम से छू दे, इस केलिए हमें नर्स होने की जरूरत नहीं है। हम सभी के अपने अपने मित्र, परिवार, सहकर्मी और परिचित होते हैं, जिन्हें परमेश्वर की चंगाईपूर्ण प्रेम की आवश्यकता होती है। हर बार जब हम ईश्वर के सामने आत्मसमर्पण करते हैं, तब हम कहते हैं कि मेरी इच्छा नहीं, बल्कि तेरी इच्छा पूरी हो, और उस समय हमारी आत्मा ईश्वर की आत्मा के साथ जुड़ जाती है। इस तरह ईश्वर हमसे मुलाकात करता है। हम इसलिए सृष्ट किये गए थे कि हम ईश्वर के साथ घनिष्ठता में रहें, निरंतर प्रार्थना करें, आराधना स्थल पर रहें। जैसे-जैसे हम जीवन जीने के इस तरीके में आगे बढ़ते हैं, हम अपने अन्दर आत्मनिरीक्षण करने लगते हैं। हम परमेश्वर के बेशर्त प्रेम को गहराई से प्राप्त करते हैं, और हम हमेशा के लिए परिवर्त्तित हो जाते हैं। हम वापस नहीं जा सकते, क्योंकि हम बदल गए हैं, क्योंकि हमारे लिए उसका प्यार सिर्फ दिमाग के सतही ज्ञान से बढ़कर ह्रदय के गहरे रहस्योद्घाटन में बदल जाता है, जो हमारी पहचान का मूल तथ्य बन जाता है।
अथक प्रेम के केंद्र में प्रार्थना, आराधना, न्याय और शिष्यत्व की जीवन शैली है। यह सब आत्म समर्पण और अपने अहम् को समाप्त करने से शुरू होता है: दूसरे शब्दों में, हमें मसीह के साथ सूली पर चढ़ाया जाता है। परमेश्वर की विस्मयकारी शक्ति का पर्यवेक्षक बनने का कार्य प्रेम पर आधारित है। यह तब होता है जब हम आत्मसमर्पण करते हैं और परमेश्वर के प्रेम को प्रवाहित करते हैं, लोगों और परिस्थितियों में पुनरुद्धार और बहाली लाते हैं। हम प्रेम करते हैं, क्योंकि पहले उसने हमसे प्रेम किया, और जैसे ही हम परमेश्वर के प्रेम को अपने अन्दर से निर्मुक्त या प्रवाहित करते हैं, तब न्याय प्रवाहित होता है।
जब जब हम भूखे लोगों को खाना खिलाते हैं, जब जब हम अपने विश्वास को लोगों के साथ साझा करते हैं, जब जब हम भविष्यवाणी करते हैं, जब जब हम ईश्वर की अलौकिक शक्ति को प्रवाहित करके चंगाई लाते हैं, जब जब हम दया, विनम्रता और आज्ञाकारिता के साथ रहते हैं, तब तब हम परमेश्वर के प्रेम को प्रवाहित करते हैं और उसके गवाह बन जाते हैं। ईश्वर को हमारे द्वारा कार्य करने की अनुमति देकर हम उसके प्रेक्षक बनते हैं और संसार के प्रति उसके प्रेम को व्यक्त करते हैं, और तब लोगों का ईश्वर के साथ साक्षात्कार होता है।
'छोटी छोटी बातें मायने रखती हैं …
बड़े लम्बे अर्से से हम लोग अलास्का के डेनाली नेशनल पार्क जाना चाह रहे थे। आखिरकार उस प्रतीक्षित यात्रा का समय आ गया। हमने अगले दिन की आठ घंटे की बस यात्रा के लिए टिकट खरीदे, जहाँ हमें सृष्टि के वैभव और वन्य जीवन की प्रचुरता देखने की उम्मीद थी। हमारे साहसिक यात्रा में मौसम बाधा न बने, इस उम्मीद से हमने मौसम पूर्वानुमान देखा, और हम यह जानकर बहुत अधिक निराश हो गए कि पूरे दिन में 100% वर्षा होने की भविष्यवाणी की गई है! बारिश के दिन बस के अंदर बैठने के अलावा, शायद और कुछ भी देखने की संभावना नहीं है, यह जानते हुए, मेरे पति और मैंने निराश होकर यह फैसला किया कि हमारी योजनाओं को कुछ कुछ बदलना ही बुद्धिमानी होगी। अगली सुबह, फेयरबैंक्स में प्रवासी जलपक्षी अभयारण्य में सिर्फ एक बगेरी पक्षी को देखकर हमें संतोष करना पडा।
सृष्टि की पूर्णता मेरी हथेलियों में
हमारे छोटे समूह के दौरे का नेतृत्व करने वाले जानकार स्वयंसेवक ने रेतीले पहाड़ी सारस पक्षी के बारे में कुछ तथ्यों को बताकर हमारी यात्रा की शुरुआत की। रेतीले पहाड़ी सारस ऐसे पक्षियों की प्रजातियों में से एक है, जो शिशिर ऋतु में भोजन और विश्राम के लिए दक्षिण की ओर लम्बी यात्रा करता है। हमें यह जानकर आश्चर्य हुआ कि इन सारसों की श्वासनली सात फीट लंबी होती है, जो एक फ्रांसीसी सींग की कुंडलियों की तरह एक जटिल तरीके से लिपटी हुई है। इस विशेष डिजाइन के परिणामस्वरूप एक अलग ज़िम्मेदारी इन पक्षियों को मिलती है, जो माँ चिड़िया और उसके बच्चे के लिए अद्वितीय थी, और हर मौसम में उड़ने वाले सारसों की विशाल भीड़ के बीच माँ और बच्चा सारस आपस में जुड़े रहते हैं। जब हम आकाश की ओर चुपचाप ताक रहे थे, तभी इन राख रंग के चिकने सारसों का एक विशाल झुण्ड दूर से उड़ता हुआ हमारे सर केऊपर से गुजर गया।
ओस से भींगे ज़मीन को रौंदते हुए, हम फिर एक तम्बू की ओर बढ़े, जहाँ स्वयंसेवक और एक पक्षी विज्ञानी मिलकर पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों का वजन, माप और टैगिंग कर रहे थे, ताकि वर्षों की अवधि में इनकी बढ़ती घटती आबादी को ट्रैक किया जा सके। प्रत्येक पक्षी की पहचान करने और उनकी जानकारी दर्ज करने के बाद, उन्हें वापस जंगल में छोड़ने का समय आ गया था। एक कार्यकर्ता ने हमारे समूह के एक सदस्य के हाथ में एक कोयल पक्षी सौंप दिया, जैसे ही एक हथेली से दूसरी हथेली तक स्थानांतरण किया गया, उस पक्षी ने जल्दी से उड़ान भरी। इस तरह मेरे हाथों में एक फुदकी रखी गयी, मैं ने अपनी उँगलियाँ से उसकी नाजुक पीठ को सहलाया। मेरे हाथों में इससे पहले रखे गए दो पक्षियों से यह फुदकी बिलकुल भिन्न था, ऐसा लग रहा था कि इस फुदकी को मेरी हथेलियों में रहना पसंद है, इसलिए मुझे इसके पंखों को सहलाने का अवसर मिला और हमारी आँखें आपस में मौन संवाद कर रही थीं।
मेरे हाथों में तीन इंच से भी कम आकार की पूर्ण सृष्टि के रूप में, निर्माता की कोमलता झलक रही थी, इसलिए मुझे अचानक ईश्वर की एक जीवंत उपस्थिति का अनुभव हुआ। इस अनुभव को पाने पर मेरे मन में एक गीत की धुन बजने लगी: “इस स्थान पर सभी का स्वागत है, यहाँ ईश्वर की अद्भुत कृपा में, सभी का स्वागत है, सभी का स्वागत है”, मेरे आंसू बहने लगे। मानो वक्त ठहर गया, फिर भी फुदकी पक्षी को सीधे होने में मदद करने का एक तीव्र आग्रह मुझ में जाग उठा और इसमें बस कुछ ही सेकंड लगे। बस इतना ही प्रोत्साहन की जरूरत थी, और उस पक्षी ने आकाश की ओर अपना रास्ता बना लिया। वापस कार की ओर बढ़ती हुई, मौन ही मेरा साथी था। अनुग्रह के इस क्षण के लिए, एक पवित्र मौन ही एकमात्र उपयुक्त प्रतिक्रिया लग रही थी।
खुली बाहें
हमारे एजेंडा-रहित दिन का दूसरा पड़ाव फेयरबैंक्स का एक नयी तरह का गाँव और उसकी कुछ इमारतें थीं, जिन्हें किसी अन्य गाँव से यहाँ स्थानांतरित किया गया गया था। केबिनों और दुकानों के बीच घूमते हुए, मैं ने एक सादगी भरा गिरजाघर देखा। दरवाजा खोलकर, मैं खुरदुरे फर्श से होते हुए, उस स्थान की ओर पहुँच गयी, जहां येशु की एक नक्काशीदार चित्र छत से लटक रहा था। हाथ फैलाए येशु, मानो अंदर आने वालों को आमंत्रित कर रहा हो। गीत के बोल एक बार फिर मेरे दिमाग में कौंध गए। “इस स्थान पर सभी का स्वागत है।” अप्रत्याशित रूप से मुझे आज के दिन बार-बार जीवन के रचनाकार के उदार प्रेम के प्रमाण का सामना करना पड़ा। रेतीले पहाड़ी सारस मां और उसके बच्चे को जोड़ने वाली श्वासनली की जिस प्रेम के साथ खूबसूरत बुनावट की गयी थी, ऊपर उड़ने में और गीत गाने में सक्षम चुटकी भर वजन की पीली फुदकी, मेरे साथी लोगों की खुली हथेलियाँ जो पक्षियों की देखभाल में उन्हें पकड़ने, फिर विश्वास में उड़ान के लिए छोड़ने के लिए बनाई गई हैं। और अंत में गिरजाघर की छत्त का वह चित्रण, परमेश्वर के अद्भुत अनुग्रह में प्रवेश करने का निर्णय लेनेवाले सभी लोगों को दिया जा रहा अद्भुत निमंत्रण।
हमेशा, सभी का स्वागत है…
'क्रिसमस का जादू मुझे हमेशा मंत्रमुग्ध कर देता है, चाहे क्रिसमस काल को अनुभव करने से पहले मुझे कितनी ही दुख तकलीफों का सामना करना पड़े। कई साल ऐसे होते हैं जिसमे हम क्रिसमस का उत्साह और खुशी त्योहार गुज़रने के बाद अनुभव करते हैं। लेकिन एक बार जो क्रिसमस का उत्साह हम पर चढ़ जाता है, तो फिर वह उतरने का नाम नहीं लेता है।
परमेश्वर के इकलौते पुत्र को उपहार स्वरूप प्राप्त करने से हमें जिस आनंद का अनुभव होता हैं, वही इस अद्भुत त्योहार की नीव रखता है। इसी कारण से थोड़े समय के लिए ही सही, पर इस प्यारे जश्न के मौसम में सब से अच्छे से पेश आना हमारे स्वभाव का एक अभिन्न हिस्सा बन जाता है। क्योंकि छोटे बच्चों के लिए, सैंटा क्लॉज से तोहफे मिलने की उम्मीद उन्हें अपना आचरण सुधारने की प्रेरणा देती है, इसीलिए मैं यह अक्सर सोचा करती हूं कि इस त्योहार में ऐसा क्या है जिसकी वजह से हम वयस्क लोग भी अपने आचरण को सुधारने के लिए प्रेरित होते हैं और हम किस तरह से साल के बाकी दिनों में भी अच्छाई के प्रति उस झुकाव को कायम रख सकते हैं जिसे हम क्रिसमस के इस जादुई मौसम में अनुभव करते हैं।
एक गहरी यादगार
पिछले साल मैंने और मेरे पति ने विक्टोरिया नामक जगह की यात्रा की। वहां हम एक बेर के खेत में गए जहां की फसल खरीदते हुए हमने वहां की मालकिन से बात की। गर्मी के मौसम में भी वह दिन काफी शीतल था, और हम इस बारे में बात कर रहे थे कि पिछले साल का मौसम कितना भयंकर था। पिछले साल सूखा पड़ने की वजह से और जंगल में आग लगने की वजह से किसानों और फसलों की हालत बहुत बुरी थी। क्योंकि खेत की मालकिन आग बुझाने में भी मदद करती थी, उन्होंने आग बुझाते हुए कई करीबी दोस्तों को खोने का दुख भी झेला था।
इस दुखभरी बात को सुन कर मुझे तब और दुख हुआ जब खेत की मालकिन ने कहा कि “इस बार भी मैं आग से लड़ने के लिए पूरी तैयारी करके बैठी हूँ”। जब हम खेत से बाहर जा रहे थे, तब उसने अपने बच्चे को उठाया और उन दोनों ने हमें अलविदा कहा। खेत की यात्रा बेशक हमारी यात्रा का सबसे यादगार हिस्सा था और हमने वहां के लोगों में जो दृढ़ संकल्प देखा, वह हमें इस बात की याद दिलाता रहेगा कि किस तरह हमें तब अच्छाई करनी चाहिए जब हमसे इसकी उम्मीद की जाती है – चाहे साल का कोई भी समय हो।
छोटे छोटे कदम
एक बार जब हम दिसंबर में क्रिसमस की खुशी और नए साल के आने के उत्साह से गुज़र चुके होते है, तो हमें अच्छाई करने की ओर अपने मन को झुकाने के लिए थोड़ा ज़्यादा प्रयास करना पड़ सकता है। मैं आमतौर पर देखती हूं कि हमारी व्यस्तता हमारे जीवन को निर्देशित करने लगती है और व्यस्तता की गति थमने की कोई जगह दिखाई देनी बंद हो जाती है। जैसे-जैसे हमारे व्यवसायिक और व्यक्तिगत प्राथमिकताएँ हमारा ध्यान अपनी ओर खींचने लगती है, मैं सोचने लगती हूं कि कि क्या मैं ईश्वर के निर्देशों के प्रति उतनी ही सचेत रह सकती हूँ जितनी सचेत मैं तब होती हूं जब मैं क्रिसमस के मौसम में उपहार लपेटते और क्रिसमस भजन गाते समय होती हूं।
हालांकि, हमारे प्रभु कभी भी अपनी गति को धीमा नहीं करते हैं – वे कभी संघर्ष कर रहे स्थानीय व्यवसाय की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करते हैं, तो कभी हमें किसी ऐसे व्यक्ति को फोन करने की याद दिलाते हैं जो अकेला है, वे हमें क्षमा करने के लिए प्रोत्साहित करते है, और हमें दान देने के लिए प्रेरित करते है। मेरे पति कहते हैं कि ईश्वर की यह प्रेरणाएं ही हमें उनके नज़दीक लाने का मार्ग बनती है। मैं उन्हें ईश्वर की ओर बढ़े छोटे छोटे कदमों के रूप में देखती हूं जिन्हें प्राप्त करने से हम आशीष पाते हैं।
अगर हम अपनी व्यस्तता को दूर करने का बंदोबस्त भी कर लें, तो भी हमारे जीवन में अक्सर दूसरी बाधाएं होती हैं जो हमें ईश्वर के संकेतों का जवाब देने से निराश करती हैं। उदाहरण के लिए, जब हम किसी की मदद की पुकार सुनते हैं, तो हम यह तर्क देने लगते हैं कि हमारे योगदान से कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा या मदद मांगने वाले इंसान को शायद हमारी मदद लेना पसंद ना आए। या हम किसी व्यक्ति के साथ पुरानी दुश्मनी सुलझा लेने का ईश्वरीय संकेत यह सोच कर टाल देते हैं कि उसकी किसी नई बात ने हमें ठेस पहुंचाई है।
एक अच्छी लड़ाई लड़ें
इन सब बाधाओं के बावजूद, ईश्वर की बातें, उनकी सलाह हमारे दिल में चुभती रहती है। पर ऐसा क्यों होता है, क्या आपने कभी सोचा है? ऐसा इसीलिए होता है क्योंकि येशु ने हमारे अंदर के और बाहर के अंधकार को जीत लिया है। उनका प्रेम और उनका प्रकाश तेज़ी से जलता है, और हमेशा के लिए अच्छाई की चिंगारी को प्रज्वलित रखता है। यदि हम ईश्वर की अच्छाई के करीब आना चाहते हैं तो हमें उनके संकेतों पर अमल करना चाहिए। जैसा कि हमारी प्रिय फातिमा की मां मरियम ने हमें याद दिलाया था, कि हमारा भविष्य ईश्वर में है और हम उस भविष्य को बनाने के सक्रिय और जिम्मेदार भागीदार हैं।
अगर हम यह याद रखें कि हमारे साथ जो कुछ भी अच्छा हुआ है, जो भी प्रतिभाएं और आशीर्वाद हमें मिले हैं, वे सब प्रभु की ओर से हैं, तो हम अपने मन में आने वाले अच्छाई के प्रति हर झुकाव का स्वेच्छा से स्वागत करेंगे। आज के ज़माने में यह और भी जरूरी हो गया है कि हम अंधेरे से लड़ें, और मां मरियम से प्रार्थना करें कि वह हमें ध्यान केंद्रित करने और बुलाए जाने पर अच्छी लड़ाई लड़ने में मदद करें। किसी के जीवन को रोशन करने में, उन तक क्रिसमस की आशा और खुशी लाने में ज़्यादा समय नहीं लगता है। जब उन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता होती है, खासकर तब जब उन्हें इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है। चाहे वह क्रिसमस के त्योहार का मौसम हो या वर्ष का कोई अन्य समय हो।
“जिसका सामर्थ्य हम में क्रियाशील है और जो वे सब कार्य संपन्न कर सकता है, जो हमारी प्रार्थना और कल्पना से परे है, उसी की महिमा कलीसिया में और येशु मसीह में पीढ़ी दर पीढ़ी, युग युगों तक होती रहे! आमेन! (एफिसियों 3:20-21)
'रेमंड कोलबे का जन्म सन 1849 में एक गरीब पोलिश परिवार में हुआ। बचपन में वे इतने नटखट और शरारती थे कि कोई यह अंदाज़ा भी नहीं लगा सकता था कि आगे चल कर लोग उन्हें परोपकार के शहीद, ऑशविट्ज़ के संत, मिलिशिया इमाकुलाटा के संस्थापक, माँ मरियम के प्रेरित और बीसवीं शताब्दी के संरक्षक संत के रूप में जानेंगे और याद करेंगे। एक दिन उनकी माँ उनके व्यवहार से इतनी परेशान हो गईं कि उन्होंने गुस्से में उन पर चिल्लाते हुए कहा: “रेमंड, तुम्हारा क्या होगा?!”
इस बात ने उन्हें झकझोर दिया। दुख भरे दिल के साथ वह गिरजाघर गया और प्रार्थना करते वक्त उसने ईश्वर के सामने वह सवाल दोहराते हुए पूछा, “मेरा क्या होगा? मेरा क्या बनेगा?” तब उसे मां मरियम के दर्शन हुए जिसमें उसने देखा कि मां मरियम अपने दोनो हाथों में एक एक मुकुट पकड़ी हुई है। एक मुकुट सफेद रंग का था और एक लाल रंग का। माँ मरियम ने रेमंड की ओर प्यार भरी नज़रों से देख कर उससे पूछा कि क्या वह दोनों में से किसी मुकुट को लेना चाहेंगे? रेमंड ने जवाब में कहा, “हां”, उसे दोनों मुकुट चाहिए थे।
रेमंड को पवित्रता का सफेद मुकुट पहले प्राप्त हुआ, जब उसने मैक्सिमिलियन कोल्बे का नाम स्वीकारा और धार्मिक प्रतिज्ञाओं को स्वीकार किया, जिनमें से एक प्रतिज्ञा पवित्रता की भी थी। अपने जूनियर सेमिनरी के दिनों में वह अक्सर अपने दोस्तों से कहा करता था कि वह किसी बड़े उद्देश्य पर अपना सारा जीवन न्यौछावर कर देना चाह रहा था। आखिर में उसने सन 1917 में मिलिशिया इमाकुलाटा की स्थापना इस उद्देश्य से की कि एक दिन वह निष्कलंक मां मरियम के नेतृत्व में मसीह की मध्यस्थता द्वारा सारी दुनिया को सच्चे ईश्वर से जोड़ पाएंगे। इस मिशन को पूरा करने के लिए उसने सब कुछ कुर्बान कर दिया, और इसी के सहारे उसे शहादत का लाल मुकुट प्राप्त हुआ।
साल 1941 में कोल्बे को नाज़ी सेना ने गिरफ्तार कर लिया और ऑशविट्ज़ प्रताड़ना शिविर भेज दिया। वहां एक कैदी का तब रो रो कर बुरा हाल हो गया जब किसी कैदी के फरार होने की सज़ा के रूप में एक कैदी को बिना दाना पानी से वंचित रखने की कैद की सज़ा सुनाई गई। अपने बीवी बच्चों की याद में उस व्यक्ति का बुरा हाल था। जब फादर कोल्बे को इस बात का पता चला तब उन्होंने उस कैदी की जगह खुद कैद होने का प्रस्ताव दिया। फादर कोल्बे ने जो दिन कैद में गुज़ारे, उन दिनों में उन्होंने कई लोगों को प्रार्थना करने के लिए प्रेरित किया। हर निरीक्षण के दौरान, जब बाकी लोग फर्श पर लेटे रहते थे, तब फादर मैक्सिमिलियन घुटने टेक कर या बीचों बीच खड़े हो गए, अधिकारियों से खुशी से मिला करते थे। दो हफ्तों की सज़ा के बाद, फादर कोल्बे को छोड़ कर बाकी सभी कैदी भूख प्यास से मर गए। मां मरियम के स्वर्ग में उद्ग्रहण की शाम को, नाज़ियों ने परेशान हो कर फादर कोल्बे को कार्बोलिक एसिड का इंजेक्शन लगा कर मार डालने का फैसला किया, और फादर कोल्बे ने भी शांत मन से उस घातक इंजेक्शन को लेने के लिए अपना बायां हाथ प्रस्तुत कर दिया। साल 1982 में पोप जॉन पॉल द्वितीय ने मैक्सिमिलियन कोल्बे को संत घोषित करते हुए उन्हें परोपकार के संत और बीसवीं शताब्दी के संरक्षक संत की उपाधि दी।
'इंग्लैंड के प्रमुख क्रिश्चियन रेडियो ने एक सर्वेक्षण कराया जहां उन्होंने इस बात की जांच करने की कोशिश की, कि कोरोना महामारी ने धार्मिक विश्वास और पूजा पाठ को किस तरह प्रभावित किया। इस सर्वेक्षण में तीन बातों का पता चला – पहली बात यह कि सड़सठ प्रतिशत लोग जो कि खुद को धार्मिक समझते हैं उनके ईश्वर पर विश्वास को इस महामारी ने चुनौती दी। एक चौथाई लोगों ने यह कहा कि इस महामारी ने उनके मन में मौत का डर पैदा कर दिया। और एक तिहाई लोगों ने यह माना कि उनका आध्यात्मिक जीवन कोरोना के कारण बुरी तरह प्रभावित हुआ। जस्टिन ब्रायरली, जो कि लोकप्रिय कार्यक्रम “अनबिलीवेबल” (अविश्वसनीय) की मेज़बानी करते हैं, उन्होंने यह टिप्पणी की कि उन्हें इस बात ने प्रभावित किया कि किस तरह कोरोना की वजह से अनेक लोगों को ईश्वर के प्रेम पर विश्वास करने में मुश्किल हुई। मैं भी इसी विषय पर बात करना चाहता हूं।
यह सच है कि मैं कुछ हद तक इस समस्या को समझ पा रहा हूं। ईश्वर पर विश्वास करने के बीच जो सबसे बड़ी बाधा है, वह है मानव पीड़ा और खासकर तब, जब हम मासूमों पर अत्याचार होते देखते हैं। नास्तिक लोग हमेशा धार्मिक लोगों से यह सवाल करते हैं कि, “कोई एक प्रेममय ईश्वर पर विश्वास क्यों और कैसे करे, जब दुनिया में विध्वंस, नरसंहार, प्रलय, विश्वयुद्ध और महामारी से हजारों, लाखों लोगों ने अपनी जान गंवाई है।” पर मैं यह भी स्वीकारूंगा कि एक तरह से, मुझे यह बहस बेबुनियाद लगती है, और बाइबिल पर आधारित शिक्षा के आधार पर और ख्रीस्तीय धर्म की शिक्षाओं को औरों को पढ़ानेवाले एक कैथलिक बिशप की हैसियत से मैं कहता हूं कि यह बहस बेबुनियाद है: क्योंकि मुझे नहीं लगता कि कोई भी व्यक्ति जो पवित्रशास्त्र को ध्यान से पढ़ता है, वह आसानी से इस निष्कर्ष पर पहुंच सकता है कि एक प्रेमपूर्ण परमेश्वर में विश्वास रखने का मतलब किसी भी तरह से मानव पीड़ा को झुठलाना नहीं है।
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि ईश्वर नूह से प्रेम रखते थे, पर फिर भी उन्होंने नूह को उस जल प्रलय में जूझने दिया, जिस प्रलय ने पृथ्वी के लगभग सारे जीव जंतुओं का नाश कर डाला। इस बात पर कोई शक नहीं है कि ईश्वर अब्राहम से बहुत प्यार करते थे, फिर भी ईश्वर उससे अपने इकलौते बेटे इसहाक की बलि चढ़ाने को कहते हैं। देखा जाए तो बाइबिल के इतिहास में शायद ईश्वर ने मूसा से सबसे ज़्यादा प्रेम रखा, फिर भी मूसा को प्रतिज्ञात देश में कदम रखने की इजाज़त नहीं मिली। दाऊद ईश्वर की आंखों का तारा समझा जाता था, दाऊद की मधुर आवाज़ इज़राइल की शान थी, फिर भी ईश्वर ने दाऊद को उसके बुरे कर्मों और उसकी बुरी नीयत के लिए दंडित किया। यिरमियाह को खास तौर पर ईश्वर ने अपने दिव्य वचन का प्रचार करने के लिए चुना था, फिर भी वह अस्वीकृत और निष्कासित किया गया था। इज़राइल देश ईश्वर की चुनी हुई प्रजा है, वह देश ईश्वर का प्रतिज्ञात देश है, फिर भी ईश्वर ने कई बार इज़राइल को गुलाम होने दिया है, इज़राइल ने सदियों से कई युद्ध, कई त्रासदियां झेली हैं। और तो और, ईश्वर ने अपने इकलौते पुत्र को मानव उद्धार के लिए क्रूस पर बलि चढ़ने दिया।
इसी तरह वह बात, जो आज विश्वासियों और गैर-विश्वासियों दोनों के लिए कुछ दर्जे तक असंगत है, वह यह है कि बाइबल के लेखकों ने एक प्रेमपूर्ण परमेश्वर के अस्तित्व को मानव पीड़ा से कभी जोड़ कर नहीं देखा। बाइबिल दोनों ही बातों को झुठलाती नहीं है, फर्क बस इतना है कि वह इन दोनों बातों को एक दूसरे के विरुद्ध खड़ा नहीं करती। बल्कि बाइबिल इन दोनों बातों की सराहना करती है और इन सब बातों को जीवन के रहस्य के रूप में देखती है, कि ईश्वर की योजनाएं कितनी भिन्न और कितनी गहरी होती हैं। उदाहरण के तौर पर, कभी कभी बाइबिल के लेखकों ने मानव पीड़ा को पापी लोगों पर भेजी हुई ईश्वर की सज़ा के रूप में देखा। कभी कभी मानव पीड़ा के द्वारा ईश्वर ने अपनी प्रजा का शुद्धीकरण किया। कभी कभी मानव पीड़ा ने भविष्य में आने वाली आशिषों के द्वार खोले। पर बाइबिल के लेखकों ने यह भी माना कि ज़्यादातर परिस्थितियों में हमें इस बात का ज़रा सा भी अंदाज़ा नहीं होता कि मानव पीड़ा ईश्वर की योजना में क्या भूमिका निभा रही होती है। और ऐसा इसलिए है, क्योंकि हमारी सीमित सोच और सीमित ऐतिहासिक जानकारी ईश्वर के उस असीमित मन को समझने के काबिल ही नहीं, जो इस ब्रम्हांड का सृष्टिकर्ता और संचालक है। देखा जाए तो अय्यूब का ग्रंथ इन्हीं सारी बातों की चर्चा करता है। जब अय्यूब अपनी दुख तकलीफों के लिए ईश्वर को दोषी ठहराता है, तब ईश्वर एक लंबे प्रवचन के द्वारा अय्यूब को जवाब देता है। यह प्रवचन पूरे बाइबिल में ईश्वर का सबसे लंबा प्रवचन है और इसमें ईश्वर अय्यूब को याद दिलाता है कि ईश्वर के कितने ही ऐसे कार्य हैं जिनका मकसद समझने में मनुष्य जाति असमर्थ है। “तुम कहां थे जब मैंने पृथ्वी की नींव रखी…”
एक बार फिर से, बाइबिल के लेखकों को चाहे मानव पीड़ा के पीछे का मकसद समझ आया या नही आया, फिर भी किसी भी लेखक ने कभी भी यह कहने की कोशिश नहीं की, कि अगर मानव जाति पीड़ा में हैं तो इसका मतलब यह है कि ईश्वर हमसे प्यार नहीं करते। इन लेखकों ने शिकायतें की, शोक मनाया पर यह सब उन्होंने ईश्वर की उपस्थिति में किया, क्योंकि उनका ईश्वर और उसके अनंत प्रेम पर गहरा विश्वास था। मुझे इस बात पर भी कोई शक नहीं है कि आजकल कई लोग ऐसा सोचते हैं कि मानव पीड़ा लोगों को ईश्वर पर विश्वास करने से रोकती है। पर मेरा मानना है कि ऐसा इसीलिए है क्योंकि आजकल के धार्मिक अगुवे, लोगों को धर्मग्रंथ की सही और सशक्त शिक्षा देने में असमर्थ रहे हैं। क्योंकि अगर आपको मानव पीड़ा का दुख ईश्वर के प्रेम से दूर करता है, तो इसका सीधा मतलब यह है कि आपने कभी बाइबिल में उपस्थित ईश्वर पर विश्वास ही नहीं किया।
मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि मेरा मकसद मानव पीड़ा को नकारना या छोटा दिखाना नहीं है। ना ही मैं उस मानसिक तनाव को झुठलाने की कोशिश कर रहा हूं जो मानव पीड़ा से उपजती है। मेरा मकसद सिर्फ लोगों को ईश्वर के रहस्य की गहराई की ओर आने के लिए प्रेरित करना है। जिस प्रकार याकुब ने रात भर स्वर्गदूत से कुश्ती लड़ी, उसी प्रकार हमें भी अपने विश्वास को कमज़ोर होने देने की जगह ईश्वर के साथ संघर्ष करना चाहिए। हमें अपनी दुख तकलीफों को ईश्वर के दिव्य प्रेम से दूर जाने का ज़रिया नहीं बनने देना चाहिए। पर हमें उसे जीवन के एक अभिन्न और अकल्पनिक भाग के रूप में देखना चाहिए। यह बिल्कुल स्वाभाविक है कि अय्यूब की तरह हम ईश्वर के सामने धरना दे कर अपनी बात रखने की कोशिश करें। पर अगर हम ऐसा करते है तो फिर हमें अय्यूब की ही तरह ईश्वर के प्रवचन को सुनने और अपनाने के लिए भी तैयार रहना चाहिए।
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