- Latest articles

जब संघर्ष और दर्द रहता है, आगे बढ़ने के लिए हमें क्या प्रेरित करता है?
जब डॉक्टर मेरे 11-वर्षीय बेटे की मांसपेशियों की ताकत का परीक्षण कर रही थी, तब वह धैर्यपूर्वक जांच की मेज पर बैठा रहा। पिछले आठ वर्षों में, मैंने उस डॉक्टर को मेरे बेटे की त्वचा की जाँच करती और उसकी मांसपेशियों की ताकत का परीक्षण करती हुई देखा था, और हर बार, मेरे अंदर एक घबराहट पैदा हो जाती थी।
अपनी जांच समाप्त करने के बाद वे पीछे हटी, मेरे बेटे का सामना किया, और धीरे से वे शब्द बोले जिनसे मैं डरती थी: “तुम्हारी मांसपेशियां कमजोरी के लक्षण दिखा रही हैं। मेरा मानना है कि बीमारी फिर से सक्रिय हो गयी है।”
मेरे बेटे ने मेरी तरफ देखा और फिर अपना सिर लटका लिया। मेरा पेट मरोड़ गया। डॉक्टर ने अपना हाथ मेरे बेटे के कंधों पर रख दिया। “यहीं रुको, मैं जानती हूं कि पिछले कुछ वर्ष तुम्हारे लिए बहुत दर्दनाक रहे हैं, लेकिन हम उन पर पहले से कामयाब कर चुके हैं, और हम इस पर फिर से कामयाबी पा सकते हैं।
धीरे-धीरे साँस छोड़ती हुई, मैं अपने आप को स्थिर करने के लिए बगल वाली डेस्क पर झुक गयी। डॉक्टर ने पीछे मुड़कर मेरी ओर देखा. “आप ठीक हैं?”
“हाँ, मेरा बच्चा बड़ी अजीब स्थिति में है, बस इतना ही,” मैंने कहा।
“क्या आप बैठना नहीं चाहती?
एक रंगीन मुस्कान के साथ, मैं बुदबुदायी, “नहीं, मैं ठीक हूँ, धन्यवाद।”
वह वापस मेरे बेटे की ओर मुड़ी. “हम एक नई चिकित्सा आज़माने जा रहे हैं।”
“क्यों? पुरानी चिकित्सा इस केलिए अच्छी थी,” मैंने कहा।
“जी हाँ, अच्छी थी, लेकिन स्टेरॉयड की भारी खुराक शरीर पर कठोर काम करती है।”
मैंने सोचा, जब मैं वास्तव में उत्तर सुनना ही नहीं चाहती थी, तो मैंने प्रश्न क्यों पूछे।
“मुझे लगता है, अब एक अलग इलाज आज़माने का समय आ गया है।”
मेरे बेटे ने दूसरी ओर देखा और उत्सुकता से अपने घुटनों को रगड़ा।
“चिंता न करो, अनावश्यक उत्कंठा से बचने का प्रयास करो। हम इस पर नियंत्रण पा लेंगे।”
“ठीक है,” मेरे बेटे ने कहा।
“उस इलाज में कुछ कमियां हैं, लेकिन जो कमियाँ आएँगी हम उसे पूरा करेंगे।”
मेरा दिल मेरे सीने में धड़क उठा। कमियां?
वह मेरी ओर मुड़ी, “चलिए, खून की जाँच का कुछ काम करवा लें। मैं एक योजना बना लूंगी, और आपको एक सप्ताह में कॉल करूंगी।
एक चिंताजनक सप्ताह के बाद, डॉक्टर ने परीक्षण के परिणामों को बताने केलिए फोन किया। “मेरे संदेह की पुष्टि हो गई है। उसे बुखार हो रहा है, इसलिए हम तुरंत नई दवा शुरू करेंगे। हालाँकि, उसे कुछ कठिन दुष्प्रभावों का अनुभव हो सकता है।”
“दुष्प्रभाव?”
“हाँ।”
जैसे ही उसने संभावित दुष्प्रभाव गिनाए तो घबराहट फैल गई।
क्या मेरी प्रार्थनाओं का उत्तर दिया जा रहा था, या मैं धीरे-धीरे अपने बेटे को खो रही थी?
उन्होंने कहा, “अगर आपको इनमें से कोई भी दुष्प्रभाव नजर आए तो तुरंत मुझे फोन करें।”
मेरे गालों पर आँसू लुढ़क पड़े।
मैंने यह खबर अपने पति के साथ साझा किया और कहा, “मैं अभी ठीक नहीं हूं। मेरी अथिति ऐसी है मानो एक धागे से लटकी हुई हूं। बच्चे मुझे इस तरह नहीं देख सकते। मुझे ज़ोर से रोने की इच्छा हो रही है ताकि मैं अपने आप को संभाल लूं ।”
उन्होंने मेरे कंधों पर हाथ रखा और मेरी आँखों में देखते हुए कहा, “तुम कांप रही हो, मुझे तुम्हारे साथ चलना चाहिए। मैं नहीं चाहता कि तुम्हें समय से पूर्व प्रसव पीड़ा हो।”
“नहीं, मुझे कुछ नहीं होगा; मैं बिल्कुल ठीक हो जाउंगी. मुझे बस खुद को संभालने की ज़रूरत है।”
“ठीक है। मैंने यहां सब कुछ नियंत्रण में कर लिया है। सब ठीक होने जा रहा है।”
समर्पण…
प्रार्थनालय की ओर गाड़ी चलाते हुए, मैंने रोती हुई कहा, “मैं अब और अधिक झेल नहों सकती। इतना बहुत काफ़ी है। ईश्वर, मेरी मदद कर! मेरी सहायता कर!”
प्रार्थनालय में अकेली बैठकर, मैं दुःख से येशु को परम पवित्र संस्कार में देखती रही।
“येशु, कृपया, मेहरबानी से …यह सब बंद कर। मेरे बेटे को अब भी यह बीमारी क्यों है? उसे इतनी खतरनाक दवा क्यों लेनी पड़ती है? उसे कष्ट क्यों सहना पड़ता है? यह बहुत कठिन है। कृपया, येशु, कृपया उसकी रक्षा कर।
मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं और येशु के चेहरे की कल्पना की। मैंने एक गहरी साँस ली और मेरे मन और हृदय को उसकी कृपा से भरने की विनती की। जैसे ही मेरे आंसुओं की धार कम हुई, मुझे आर्च बिशप फुल्टन शीन की पुस्तक, ‘लाइफ ऑफ क्राइस्ट’ में येशु के शब्द याद आए। “मैंने ब्रह्मांड का निर्माण किया, मैंने ग्रहों को गति दी, और तारे, चंद्रमा और सूर्य मेरी आज्ञा का पालन करते हैं।” अपने मन में, मैंने उसे यह कहते हुए सुना: “सब कुछ मेरे अधीन है! तुम्हारे बेटे के इलाज का प्रभाव मेरे लिए कोई मुकाबला नहीं है। अपनी चिंताएं मुझ पर छोड़ दो। मुझ पर भरोसा करो।”
क्या ये मेरे विचार थे, या ईश्वर मुझसे बात कर रहे थे? मुझे यकीन नहीं था, लेकिन मुझे पता था कि ये शब्द सच थे; मुझे अपने डर को छोड़ना पड़ा और अपने बेटे की देखभाल के लिए ईश्वर पर भरोसा करना पड़ा। मैंने अपने डर को दूर करने के इरादे से गहरी सांस ली और धीरे-धीरे सांस छोड़ी। “येशु, मैं जानती हूं कि तू हमेशा मेरे साथ है। कृपया अपनी बांहें मेरे चारों ओर लपेट ले और मुझे आराम दे। मैं डर के कारण थककर चकनाचूर हो गयी हूँ।”
आया जवाब ….
अचानक, पीछे से दो बाहें मेरी चारों ओर लिपट गईं। यह मेरा भाई था!
“तुम यहां पर क्या कर रहे हो?” मैंने पूछ लिया।
“मैंने तुम्हें ढूंढते हुए घर पर फोन किया। मुझे लगा कि तुम यहां हो सकती हो. जब मैंने तुम्हारी कार पार्किंग में देखी, तो मैंने सोचा कि मैं अंदर आऊंगा और तुम्हें ढूंढ लूँगा।”
“मैं ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि वह मुझे अपनी बांहों में भर लें, तभी तुम आये और मुझे गले लगा लिया।”
उसकी आँखें खुली रह गईं। “सच?”
“हाँ, सच में!”
जैसे ही हम पार्किंग स्थल की ओर निकले, मैंने उसे मेरा हालचाल लेने के लिए धन्यवाद दिया। “तुम्हारा आलिंगन मुझे याद दिलाया कि ईश्वर प्रेमपूर्ण कार्यों द्वारा अपनी उपस्थिति प्रकट करता है। यहाँ तक कि जब मैं पीड़ित होती हूँ, तब भी वह देखता है, सुनता है और समझता है। उसकी उपस्थिति यह सब सहने योग्य बनाती है और मुझे उस पर भरोसा करने और उसे लिपट कर रहने में सक्षम बनाती है, इसलिए, आज मेरे लिए उसके प्यार का पात्र बनने के लिए धन्यवाद।
हम गले मिले और मेरी आँखों से आँसू लरझते रहे। ईश्वर की प्रेमपूर्ण उपस्थिति का जबरदस्त अहसास मुझे अंदर तक छू गया।
'
क्या कोई विचार पाप बन सकता है? इस पर मनन करने का यह अवसर है।
जहां तक मेरी स्मृति पीछे की और जाती है, मैं एक अच्छी मसीही थी, कलीसिया के कार्यकलापों में शामिल हो रही थी, लेकिन कोई भी यह अनुमान नहीं लगा सका कि मैं सिर्फ बाहरी गतिविधियों से गुजर रही थी। हालाँकि, 2010 में, एक घटना ने गहराई तक मुझ में परिवर्तन ला दिया और मुझे पीड़ाओं के बीच ईश्वर की आवाज़ सुनने के लिए प्रेरित किया। इस प्रकाशन ने मुझे एक सच्चा मसीही बनने की यात्रा शुरू करने में मदद की।
वेरोनिका और मैं सिर्फ सबसे अच्छे दोस्त नहीं थीं; हम एक साथ घूमती थीं, क्योंकि हमारे बेटे हमें एक साथ लाये थे। लेकिन हम दोस्त थी जो वास्तव में एक-दूसरे को पसंद करती थी और हम माताएं थीं जो हमारे बच्चों से प्यार करती थीं। वेरोनिका मधुर, सुंदर और वास्तव में दयालु व्यक्ति थी। मेरा बेटा उसके बेटे का सबसे अच्छा दोस्त था।
28 अगस्त 2010 को वेरोनिका ने मुझे फोन किया और पूछा कि क्या मेरा बेटा उसके घर पर रात बिता सकता है। हालाँकि मैंने उसे पहले भी दर्जनों बार अनुमति दी थी, लेकिन उस रात, किसी कारण से, मैं व्याकुल थी। मैंने उससे ना कहा, लेकिन मैं ने यह भी कहा कि वह जा सकता है और दोपहर के बाद कुछ समय खेल सकता है और मैं उसे रात के खाने से पहले उठा लूंगी। लगभग 4 बजे, मैं उसे लेने के लिए वेरोनिका के घर गयी। जब मैं वेरोनिका के रसोई में खड़ी थी और हम दोनों अपने लड़कों के बारे में बात कर रही थी, उसने मुझे बताया कि उनमें से प्रत्येक एक उपहार था और वे कितने विशेष बच्चे थे। वह उन्हें उनकी पसंदीदा आइसक्रीम खरीदने के लिए किराने की दुकान पर ले गई थी। मेरा बेटा भी नाश्ता चाह रहा था, जिसे वेरोनिका ने उदारतापूर्वक उसके लिए खरीदा और उस में से कुछ मुझे घर ले जाने के लिए दिया। मैंने उसे धन्यवाद दिया और वहां से घर चली आयी।
अगली सुबह, जब मैं उठी, तब यह खबर सुनी कि वेरोनिका की हत्या कर दी गई है। वहीं, जहां मैं एक शाम पहले उससे बात कर रही थी… उसका पति जो उससे जल्दी ही तलक लेने वाला था, उसने उसकी हत्या करने के लिए एक हत्यारे को भाड़े पर रखा था, क्योंकि वे अलग हो गए थे। वास्तव में कौन जानता है कि और क्या क्या कारण था। मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरे पेट में मुक्का मार दिया गया हो। मैं साँस नहीं ले पा रही थी। मैं रोना बंद नहीं कर सकी।
अपनी पीड़ा में, मैं अपने सोने के कमरे के फर्श पर लेटकर रो रही थी, सचमुच चिल्ला रही थी। 39 साल की एक खूबसूरत युवा मां की हत्या कर दी गई, जिससे उसका 8 साल का बेटा मातृहीन हो गया। और किस लिए? मैंने पीड़ा और क्रोध में ईश्वर को पुकारा। तू ऐसा कैसे होने दे सकता है? क्यों प्रभु?
मेरी पीड़ा के बीच, एक विचार मेरे मन में आया। और जीवन में पहली बार मैंने इस विचार को ईश्वर की वाणी के रूप में पहचाना। ईश्वर ने कहा, “मैं यह नहीं चाहता; लोग इसे चुनते हैं।” मैंने ईश्वर से पूछा, “क्या, इस भयानक स्थिति में मैं क्या कर सकती हूँ?” उसने मुझे उत्तर दिया, “सूसन, दुनिया में अच्छाई की शुरुआत तुमसे होती है।” मैं सोचने लगी। मैंने सोचा कि कैसे मैंने वेरोनिका और उसके पति को गिरजाघर में एक साथ देखा था, और मुझे आश्चर्य हुआ कि जो व्यक्ति हत्या की साजिश रच रहा था वह गिरजाघर में कैसे जा सकता था। ईश्वर ने मुझे फिर उत्तर दिया।
ईश्वर ने मुझे बताया कि उसका पति शुरु से एक हत्यारा नहीं था, बल्कि उसका पाप उसके दिल में बढ़ गया था, अनियंत्रित हो गया था, और वह एक लंबे अंधेरे रास्ते पर ले जाया गया था। मुझे बाइबल का वचन याद आया, “परन्तु मैं तुम से कहता हूं – जो बुरी इच्छा से किसी स्त्री पर दृष्टि डालता है, वह अपने मन में उस के साथ व्यभिचार कर चुका है” (मत्ती 5:28)। उस क्षण, यह वचन मेरी समझ में आया। मैंने हमेशा सोचा था, “एक विचार पाप कैसे हो सकता है?” वेरोनिका की हत्या के बाद, मुझे यह सब समझ में आया। पाप आपके हृदय में शुरू होता है और जब आप उस पर अपने हाथों से कार्य करते हैं तो वह हावी हो जाता है। और अगर हम कभी भी अपने विवेक की जांच करने या यह सोचने के लिए समय नहीं निकालते हैं कि क्या सही है और क्या गलत है, तो ज़्यादा संभावना है कि हम वास्तव में गलत रास्ते पर चले जायें।
गूँजती आवाज़
तो ईश्वर, “मैं क्या कर सकती हूँ?” उसने मुझसे कहा कि एकमात्र व्यक्ति जिसे मैं नियंत्रित कर सकती हूं वह मैं खुद हूं – मैं प्यार करना चुन सकती हूं और उस प्यार को बाहर फैला सकती हूं। मेरे लिए, इसका मतलब अपनी अंतरात्मा की जांच करना और एक बेहतर इंसान बनने की कोशिश करना था। क्या मैं अपने शत्रु से प्रेम करती हूँ? या यहाँ तक कि मेरे पड़ोसी से भी? दुर्भाग्य से, इसका उत्तर एक जोरदार ‘न’ था। जब मुझे एहसास हुआ कि मैं अपने आस-पास के लोगों से प्रेमपूर्ण व्यवहार नहीं कर रही हूँ, तब मैं निराश हो गई।
कैथलिक चर्च में, हमारे पास पाप स्वीकार का संस्कार है, जहां हम किसी पुरोहित के पास जाते हैं और अपने पापों को स्वीकार करते हैं। मुझे हमेशा से यह संस्कार नापसंद था, और मैं इस संस्कार में जाने से डरती था। लेकिन यहां, इस जगह पर, जमीन पर रोती हुई, मुझे लगा कि यह एक उपहार है। एक उपहार जिसके लिए मैं वास्तव में आभारी थी। अपने पापों को बताने में, मैं मसीह का सामना करने में सक्षम हुई। मेरा पापस्वीकार ऐसा था जैसा मैंने पहले कभी नहीं किया था। इस संस्कार में, मुझे वह अनुग्रह प्राप्त हुआ जो येशु हमें तब प्रदान करते हैं जब हम उसे माँगने का निर्णय लेते हैं। मैंने अपने आप पर अच्छी तरह से गौर किया, और पाप स्वीकार स्थान में ईश्वर के बेशर्त प्यार के साथ साक्षात्कार के कारण मेरा स्वार्थ पिघलने लगा। संस्कार मुझे बेहतर करने का प्रयास करने देता है, और यद्यपि मैं जानती हूं कि मैं एक पापी हूं और मुझे असफलताएं मिलती रहेंगी, मैं हमेशा प्रभु की पवित्र कृपा और क्षमा प्राप्त करने की आशा कर सकती हूं, चाहे कुछ भी हो। इससे मुझे उसकी अच्छाइयों को आगे फैलाने में मदद मिलती है।’ मुझे नहीं लगता कि इसे समझने के लिए आपको कैथलिक बनना होगा।
वेरोनिका की हत्या मेरी गलती नहीं थी, लेकिन मैं निश्चित रूप से उसे व्यर्थ नहीं मरने दूंगी; मैं दूसरों को यह बताए बिना उसका जीवन बर्बाद नहीं होने दूंगी कि इसका मुझ पर क्या प्रभाव पड़ा और ऐसी भयानक परिस्थितियों की राख से भी अच्छाई निकल सकती है। इस प्रकार, वास्तव में मसीही होने की दिशा में मेरी यात्रा शुरू हुई।
मैंने बाइबिल में वेरोनिका के बारे में सोचा। जब येशु अपनी प्राण पीड़ा के दौरान दुःख पीड़ा भोग रहे थे, गोलगोथा की ओर जा रहे थे, पीटे गये थे और खून से लथपथ थे , तो उनकी मुलाकात वेरोनिका नाम की एक महिला से हुई। वेरोनिका ने येशु का चेहरा पोंछ दिया। दयालुता का एक छोटा सा कार्य। यह आदमी, यह ईश्वर-पुरुष, पीटा गया था, खून से लथपथ था, थका हुआ था और पीड़ा में था, फिर भी इस महिला, वेरोनिका ने थोड़ी राहत प्रदान की। कुछ ही पलों में पसीना और खून पोंछ लिया गया, और एक पल के लिए, चाहे वह कितना भी छोटा क्यों न हो, येशु को इस महिला से प्यार का एहसास हुआ। इससे न तो उसकी दुःख-पीड़ा रुकी और न ही उसका दर्द, लेकिन एक ऐसी भीड़ के बीच में जो उसका मज़ाक उड़ा रही थी, उसे कोड़े मार रही थी, कपड़े के साथ उस महिला का स्पर्श येशु केलिए गौरवशाली लगा होगा। इसलिए, उन्होंने उसके कपड़े पर अपनी छवि अंकित कर दी।
“वेरोनिका” नाम का अर्थ है “सच्ची छवि”। येशु ने वेरोनिका पर अपने प्रेम की छाप छोड़ी। और इसलिए, मेरी दोस्त वेरोनिका के कारण, जिसने मेरे अपने जीवन के कठिन दौर में प्यार और राहत प्रदान की, मेरा फ़र्ज़ है कि जहां भी मैं जाऊं, प्यार और दयालुता फैलाऊं। मैं दुख-पीड़ा को रोक नहीं सकती, लेकिन मैं उन लोगों को राहत दे सकती हूं जो खो गए हैं, गरीब हैं, अकेले हैं, अवांछित हैं, या जो प्यार नहीं किये गये हैं। और इसी कारण, मैं येशु का चेहरा तब तक पोछूँगी, जब तक उनकी कृपा और दया मुझे अनुमति देगी।
'
जीवन की घुमावदार यात्रा में, यह जानकर दिलचस्प लगता है कि, आपके जीवन में कुछ अंधे मोड़ भी हैं जिन पर आपको ध्यान देना चाहिए!
हम जानते हैं कि कार से यात्रा करते हुए अंधे मोड़ों की जांच करना कितना महत्वपूर्ण है, खासकर लेन बदलने, वापस मुड़ने या नए मार्ग पर मोड़ने से पहले। दुर्भाग्य से, हम कभी-कभी मुश्किलों से सीखते हैं।
हाल ही में, मैं इस धारणा से प्रभावित हुई हूं कि हम सभी में शारीरिक और आध्यात्मिक दृष्टिहीनता होती है। जब येशु ने कहा, “”मैं लोगों के पृथक्करण का निमित्त बनकर संसार में आया हूं, जिससे जो अंधे हैं, वे देखने लगें और जो देखते हैं वे अंधे हो जाएं”, तब येशु ने हमें इस दृष्टिहीनता से सावधान रहना सिखाया। जो फरीसी उनके साथ थे, वे यह सुनकर बोले, “क्या? हम भी अंधे हैं?” येशु ने उनसे कहा, “यदि तुम लोग अन्धे होते, तो तुम्हें पाप नहीं लगता, परन्तु तुम तो कहते हो कि हम देखते हैं; इसलिए तुम्हारा पाप बना रहता है” (योहन 9:39-41)। येशु यहाँ हमें क्या बता रहे हैं?
हमें बहुत सावधान रहने की ज़रूरत है कि हम येशु के चरणों में बैठे रहें, उनके निर्देशों पर ध्यान दें, उनसे सीखें और उनके द्वारा दिए गए सुधार के निर्देशों को खुले मन से स्वीकार करें। जैसे ही हम सोचते हैं कि हम मुक्ति के मार्ग पर ‘आ गए हैं’ या हमने ‘इस मसीही जीवनशैली को अपना लिया है’, हम खतरे के क्षेत्र में हैं। ईश्वर की अनंत प्रेमपूर्ण बुद्धि की तुलना में हमारे सबसे बुद्धिमान विचार, महान बलिदान और सबसे गहरा प्यार, सिर्फ हवा के बराबर है।
क्योंकि हम केवल थोडा ही देखते हैं; हम पूरी तस्वीर, या ईश्वर की महायोजना को नहीं देखते हैं। केवल ईश्वर ही ऐसा करता है। संत पौलुस इसे इस प्रकार कहते हैं, ”अभी तो हमें आइने में धुंधला सा दिखाई देता है, परन्तु तब हम आमने सामने देखेंगे। अभी तो मेरा ज्ञान अपूर्ण है; परन्तु तब मैं उसी तरह पूर्ण रूप से जान जाऊंगा, जिस तरह ईश्वर मुझे जान गया है।” (1 कुरिन्थी 13:12)।
मुश्किलों से मेरी सीख
अपने जीवन को पीछे मुड़कर देखने पर, मुझे याद आता है कि मैं बार बार अपने घमंड, पापों, कमियों, निर्णयों, धारणाओं, पूर्वाग्रहों और भय तथा विश्वास की कमी के बारे में पूरी तरह अनजान थी। शुक्र है, ईश्वर ने कुछ लोगों और कुछ घटनाओं को मेरे जीवन में ला दिया, जिससे आध्यात्मिक अंधेपन के कुछ पहलुओं को उजागर करने में मुझे मदद मिली।
मैं मुश्किलों से सीखना चाहती हूँ। वर्षों तक, मैं इस बात को नहीं समझ पायी कि एक महिला मेरा क्यों किनारा कर के निकल जाती थी। इससे बहुत तनाव पैदा हो गया, क्योंकि हम खेलने और प्रार्थना करने वाले एक ही समूह में थे। आख़िरकार, मुझे यह पूछने का साहस और विनम्रता मिली कि मैंने उसे कैसे नाराज किया था। उत्तर दु:खदायी था, और यद्यपि हम कभी दोस्त नहीं बने, कम से कम अब मुझे अपने एक अंधे मोड़ के बारे में पता चला जो पहले रडार के नीचे था।
लोगों को हमारी आँखों से धरन हटाने की अनुमति देने के लिए एक विनम्र हृदय की आवश्यकता होती है। और हमारी परेशानी यह है कि हम अक्सर पर्याप्त विनम्र नहीं होते हैं।
मेरे जीवन में ऐसे कई उदाहरण हैं जब मैं इस बात से अनजान थी कि मेरी क्षमा न करने की प्रवृत्ति, अहंकार, आत्म संयम की कमी, पाप के प्रति समझौता या आभार भावना की कमी के कारण मुझे कितना नुकसान हुआ है। मैं यहां सार्वजनिक रूप से पाप स्वीकार नहीं कर रही हूँ, लेकिन यह गवाही देना चाहती हूँ कि ईश्वर धीरे-धीरे मुझमें आध्यात्मिक अंधेपन की परत उतार रहा है। हालाँकि यह दर्दनाक प्रक्रिया थी, लेकिन मुझे अधिक आध्यात्मिक स्वतंत्रता प्राप्त हुई है।
हर दिन सीखने के लिए और भी बहुत कुछ है
मेरी एक बुद्धिमान मित्र ने एक बार मुझसे कहा था कि वह प्रत्येक वर्ष चालीसा या तपस्या काल का इंतजार करती है। मैं कभी भी उसकी जैसी पवित्र व्यक्ति नहीं थी, इसलिए जब उसने ऐसा कहा तो मेरे कान खड़े हो गए। उसने मुझसे कहा कि चालीसा में किस चीज़ का परित्याग करना है, उस पर निर्णय वह स्वयं नहीं लेती है। यह काम वह अपने पति पर छोड़ देती है। मैं उस अवधारणा से बिल्कुल अभिभूत थी ।
क्या होगा अगर हम अपने जीवनसाथी या किसी भरोसेमंद साथी मसीही के पास जाएं और उनसे पूछें कि हम आध्यात्मिक रूप से कैसे बढ़ सकते हैं या पाप स्वीकार में हमें कौन सी पापपूर्ण आदत के बारे में बताना चाहिए?
कई बार, हमारा मूल पाप अधिक स्पष्ट मुद्दों के नीचे दबा रहता है। उदाहरण के लिए, क्षमा न करने के कारण क्रोध हो सकता है, आत्मसंयम की कमी के कारण चिंता उत्पन्न हो सकती है, और अक्सर पूर्णतावाद के कारण घमंड उत्पन्न हो जाता है। ईश्वर की भलाई में विश्वास की कमी से अधिकांश पाप उत्पन्न होते हैं।
आत्मिक निर्देशन की शक्ति
आपके मूल पाप को चिन्हित करने में सक्षम हो जाने से आपके अन्दर एक वास्तविक शक्ति उत्पन्न होती है। यदि आप इसे पहचान सकते हैं, तो आप पश्चाताप करके इससे मुक्त हो सकते हैं। हालाँकि, मूल पाप पेचीदा हैं; वे नीचे दबे रहना पसंद करते हैं। पाप स्वीकार सुनने वाला कोई अच्छा नियमित व्यक्ति या आध्यात्मिक निर्देशक बड़े मददगार साबित होंगे। संत फॉस्टिना ने लिखा, “ओह, अगर मेरे पास शुरू से ही कोई आध्यात्मिक निर्देशक होते, तो मैं ईश्वर की इतनी सारी कृपा बर्बाद नहीं करती ।”
जवाबदेही के लिए हम साझेदारों की तलाश कर सकते हैं। ईश्वर हमें स्वयं को बेहतर ढंग से ‘देखने’ में मदद करने के लिए अक्सर अन्य लोगों का उपयोग करता है। परिवार के सदस्य, विशेष रूप से वे जो सक्रिय रूप से येशु मसीह का अनुसरण कर रहे हैं, वे अंधे मोड़ों पर महान जांचकर्ता बन सकते हैं, क्योंकि वे हमें हमें सबसे अच्छे और सबसे बुरे रूप में देखते हैं। आइए, हम ईश्वर से यह प्रार्थना करना न भूलें कि वह हमारी जीवन यात्रा के अंधे मोड़ों को हमारे सामने प्रकट कर दे।
जिस पाप के प्रति हम बेखबर हैं या अनदेखा करते हैं, यदि हम पवित्र आत्मा से उस पाप को हमें प्रकट करने केलिए कहें और पाप स्वीकार की तैयारी कर लें तो कैसा होगा ?
मैं विशेष रूप से आप को सलाह देना चाहती हूँ कि आप बड़े निर्णय लेने से पहले बुद्धिमान मसीहियों से दिशा निर्देश प्राप्त कर ले। जिस तरह जब हम बाहर निकलने या किसी वाहन में दिशा बदलने की योजना बना रहे होते हैं तो अंधे मोड़ की जांच करना अधिक महत्वपूर्ण होता है, उसी तरह जब हम अपने पेशा, जीवन-यात्रा के विकल्पों और अन्य प्रमुख जीवन निर्णयों पर विचार कर रहे होते हैं तो हमें अतिरिक्त सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है।
स्वर्गीय पिता, हमें सुनने वाला विनम्र हृदय दे ताकि तू हमें बेहतर जीवन के लिए बदल सके। हमें तेरे प्रति और हमारे पड़ोसियों के प्रति प्यार को बढ़ाने के लिए अपनी दृष्टि प्रदान कर।
'
1000 हिस्सों वाली पहेली को जोड़ने का खेल शुरू करने और उसे खत्म करने के लिए साहस की जरूरत होती है; जीवन के साथ भी यही होता है।
पिछले क्रिसमस पर, मुझे अपने कार्यस्थल पर क्रिस क्रिंगल से 1000 हिस्सों वाली पहेली मिली, जिसमें प्रसिद्ध ग्रेट ओशन रोड (ऑस्ट्रेलिया के दक्षिण-पश्चिमी विक्टोरिया में चट्टानों की संरचनाओं का एक शानदार समूह) के बारह प्रेरितों को दिखाया गया था।
मैं शुरू करने के लिए उत्सुक नहीं थी। मैंने कुछ साल पहले अपनी बेटी के साथ उनमें से तीन पहेलियाँ पूरी की थी, इसलिए मुझे पता था कि उन्हें बनाने में कितनी मेहनत करनी पड़ती है। हालाँकि, जब मैंने घर पर लटकी हुई तीन पूरी की गयी पहेलियों को देखा, तो शुरुवाती आलस्य महसूस करने के बावजूद, मुझे “बारह प्रेरितों” पर ध्यान लगाने की आंतरिक प्रेरणा महसूस हुई।
अस्थिर जमीन पर
मुझे आश्चर्य हुआ कि जब येशु क्रूस पर मर गए और वे प्रेरित उन्हें छोड़ कर चले गए तो उन प्रेरितों को कैसा लगा होगा। सुसमाचार सहित प्रारंभिक ख्रीस्तीय स्रोत बताते हैं कि शिष्य तबाह हो गए थे, अविश्वास और भय से भरे हुए थे और वे छिप गए थे। येशु के जीवन के अंत में वे अपने सर्वश्रेष्ठ रूप में नहीं थे।
किसी तरह, मैंने वर्ष की शुरुआत में ऐसा ही महसूस किया – भयभीत, बेचैन, उदास, टूटा हुआ दिल और अनिश्चित। मैं अपने पिता और एक करीबी दोस्त की मृत्यु के दुःख से पूरी तरह से उबर नहीं पायी थी। मुझे स्वीकार करना चाहिए कि मेरा विश्वास अस्थिर जमीन पर खड़ा था। ऐसा लग रहा था जैसे जीवन के प्रति मेरे जुनून और ऊर्जा को सुस्ती, गुनगुनापन और आत्मा की एक अंधेरी रात ने काबू कर लिया था, जिस के कारण मेरे आनंद, ऊर्जा और प्रभु की सेवा करने की इच्छा खत्म हो जाने का खतरा था। मैं बहुत प्रयासों के बावजूद इसे दूर नहीं कर सकी।
अगर हम शिष्यों के अपने गुरु से भागने के उस निराशाजनक प्रकरण पर ही नहीं रुकते हैं, तो सुसमाचार के अंत में वही प्रेरित लोग दुनिया से लड़ने और मसीह के लिए मरने के लिए तैयार दिखाई देते हैं। क्या बदल गया?
सुसमाचार में लिखा हुआ है कि पुनर्जीवित मसीह को देखने पर शिष्यों में बदलाव आया। जब वे उनके स्वर्गारोहण को देखने के लिए बेथानिया गए, उनके साथ समय बिताया, उनसे सीखा और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया, तो इसका एक शक्तिशाली प्रभाव पड़ा। येशु ने उन्हें न केवल निर्देश दिया बल्कि एक उद्देश्य और एक वादा भी दिया। उन्हें न केवल संदेशवाहक बनना था, बल्कि गवाह भी बनना था। येशु ने उनके मिशन में उनका साथ देने का वादा किया और उन्हें एक शक्तिशाली सहायक दिया।
मैं पिछले दिनों में इसी के लिए प्रार्थना कर रही थी – मृतकों में से जी उठे येशु से मुलाक़ात करने ताकि मेरा जीवन दिव्य रूप से नवीनीकृत हो जाए।
अंत तक डटे रहें
जब मैंने पहेली शुरू की, बारह प्रेरितों के इस सुंदर चमत्कार को एक साथ रखने की कोशिश की, तो मैंने पाया कि हर टुकड़ा महत्वपूर्ण था। इस नए साल में मैं जिस भी व्यक्ति से मिलूँगी वह मेरे विकास में योगदान देगा और मेरे जीवन को रंग देगा। वे अलग–अलग रंगों में आएंगे – कुछ मजबूत, दूसरे सूक्ष्म, कुछ चमकीले रंगों में, दूसरे भूरे, कुछ रंगों के जादुई संयोजन में, जबकि कोई फीके या भयंकर रूप में, लेकिन तस्वीर को पूरा करने के लिए सभी की ज़रूरत है।
ऐसी पहेलियों को जोड़ने में समय लगता है, और जीवन में भी ऐसा ही होता है। जब हम एक-दूसरे से जुड़ते हैं, तो हमें बहुत धैर्य की आवश्यकता होती है। जब संपर्क स्थापित हो जाता है, तो आभार प्रकट होता है। और जब टुकड़े फिट नहीं होते हैं, तो उम्मीद है कि हार न मानने के लिए एक भरोसेमंद प्रोत्साहन होगा। कभी-कभी, हमें इससे आराम करने, वापस आने और फिर से प्रयास करने की आवश्यकता हो सकती है। जीवन की तरह पहेली भी हर समय चमकीले, खुशनुमा रंगों से ढकी नहीं रहती। विपरीतता पैदा करने के लिए काले, भूरे और गहरे रंगों की आवश्यकता होती है।
पहेली शुरू करने के लिए साहस की आवश्यकता होती है, लेकिन इसे खत्म करने के लिए और भी अधिक। धैर्य, दृढ़ता, समय, प्रतिबद्धता, ध्यान, त्याग और भक्ति की मांग की जाएगी। यह वैसा ही है जैसे जब हम येशु का अनुसरण करना शुरू करते हैं। प्रेरितों की तरह, क्या हम अंत तक डटे रहेंगे? क्या हम अपने प्रभु से आमने-सामने मिल सकेंगे और उन्हें यह कहते हुए सुन सकेंगे: “भले और ईमानदार सेवक” (मत्ती 25:23), या जैसा कि संत पौलुस कहते हैं: “मैं अच्छी लड़ाई लड़ चुका हूँ, अपनी दौड़ पूरी कर चुका हूँ, और पूर्ण रूप से ईमानदार रह चुका हूँ।” (2 तिमथी 4:7)
इस साल, आपसे भी पूछा जा सकता है: क्या आपके पास पहेली का वह टुकड़ा है जो किसी के जीवन को बेहतर बना सकता है? क्या आप ही वह टुकड़ा है जो खो गया है?
'
जीवन के बोझ हमें दबाकर गिरा सकते हैं, लेकिन हिम्मत रखें! भला सामरी आपका इंतज़ार कर रहा है।
पिछले कुछ सालों में, मैंने पोर्टलैंड, ओरेगन से पोर्टलैंड, मेन तक की यात्रा की है, पूरे देश में घूमकर, महिलाओं की आत्मिक साधनाओं में प्रवचन दिया और उन साधनाओं का नेतृत्व किया है। मुझे अपना काम पसंद है और मैं अक्सर इससे अभिभूत हो जाती हूँ। यात्रा करना और इतनी सारी वफादार महिलायें जो अपने घुटनों पर बैठकर ईश्वर का चेहरा तलाशती हैं, उनसे मिलना मैं अपने जीवन की सबसे बड़ी कृपा मानती हूँ।
लेकिन इस साल की शुरुआत में, जब मुझे स्तन कैंसर का पता चला, तब मेरा काम रुक गया। मेरे लिए यह इस बीमारी का दूसरा दौरा था। शुक्र है, हमें इसकी जानकारी बहुत पहले ही मिली; यह फैला नहीं था। हमने उपचार के लिए अपने विकल्पों पर विचार किया और डबल मास्टेक्टॉमी पर सहमत हुए। हमें उम्मीद थी कि उस सर्जरी के बाद, आगे के उपचार की आवश्यकता नहीं होगी। लेकिन जब उन्होंने माइक्रोस्कोप के नीचे ट्यूमर को अच्छी तरह से देखा, तो यह निर्धारित किया गया कि निवारक कीमोथेरेपी को ही करना पडेगा ताकि कीमो के कुछ दौर के साथ बीमारी की पुनरावृत्ति दर काफी कम हो जाएगी।
मेरा दिल डर से भरा था और मेरे दिमाग में उल्टी और अपने सिर में गंजेपन की तस्वीरें ही घूम रहीं थीं। मैंने ऑन्कोलॉजिस्ट को फोन किया और अपॉइंटमेंट ले लिया। तभी, मेरे पति काम से आए और उन्होंने कहा: “मुझे अभी-अभी नौकरी से निकाल दिया गया है।”
जब ऊपरवाला देता है, तब छप्पर फाड़कर देता है।
त्रासदी ही त्रासदी
इसलिए, बिना किसी आय के और हमारे मेलबॉक्स में आने वाले भारी चिकित्सा बिलों की संभावनाओं के साथ, हमने मेरे उपचार के लिए तैयारी की। मेरे पति ने बड़े लगन से अपना बायोडाटा अलग अलग जगह भेजे और कुछ साक्षात्कार केलिए आमंत्रण प्राप्त किए। हम आशान्वित थे।
मेरे लिए, कीमोथेरेपी बहुत ज़्यादा उबकाई नहीं थी, लेकिन बहुत दर्दनाक थी। हड्डी के दर्द से मैं कई बार रो पड़ती थी, और कुछ भी इसे कम नहीं कर सकता था। मैं आभारी थी कि मेरे पति घर पर थे और मेरी देखभाल करने में मदद कर सकते थे। यहां तक कि उन क्षणों में भी जब वे कुछ नहीं कर सकते थे, बस उनका आस-पास होना एक बड़ी राहत थी। उनके नौकरी से निकाले जाने पर यह एक अप्रत्याशित अनुग्रह था। हमने ईश्वर की योजना पर भरोसा किया।
सप्ताह बीतते गए। मेरे सर से सारे बाल गायब हो गए, मेरी ऊर्जा कम हो गई, और मैंने बस थोड़ा ही काम किया जो मैं कर सकती थी। मेरे प्रतिभाशाली पति के लिए कोई नौकरी का प्रस्ताव नहीं आया। हमने प्रार्थना की, हमने उपवास किया, हमने प्रभु पर भरोसा किया, और हमने उस त्रासदीपूर्ण समय के तनाव को महसूस करना शुरू कर दिया।
गहराई से प्रभावित
इस वर्ष, मेरी महिलाओं का प्रार्थना समूह संत मरियम मगदलीनी समुदाय के फादर गेब्रियल की उत्कृष्ट कृति ’दिव्य अंतरंगता’ के माध्यम से प्रार्थना कर रहा है। एक रविवार को, जब मुझे लगा कि मैं इन बोझों का एक और कदम नहीं उठा पाऊंगी, तो भले सामरी पर उनके विचार ने मुझ पर गहरा असर डाला। आपको लूकस 10 से वह लोकप्रिय दृष्टांत याद है जब एक आदमी को लूट लिया जाता है, वह पीटा जाता है, और उसे सड़क के किनारे छोड़ दिया जाता है। एक पुजारी और लेवी कोई सहायता दिए बिना उसके पास से गुजरते हैं। केवल सामरी ही उसकी देखभाल करने के लिए रुकता है। फादर गेब्रियल कहते हैं: “हमें भी अपने रास्ते में लुटेरों का सामना करना पड़ा है। संसार, शैतान और हमारी वासनाओं ने हमें नंगा कर दिया है और घायल कर दिया है… असीम प्रेम के साथ वह सर्वोत्कृष्ट भले सामरी हमारे खुले घावों पर झुके हुए हैं, उन्हें अपनी कृपा के तेल और दाखरस से ठीक किया है… फिर उन्होंने हमें अपनी बाहों में लिया और हमें एक सुरक्षित स्थान पर ले आए।” (दिव्य अंतरंगता #273)
इस अंश के बारे में मुझे कितनी उत्सुकता से आत्मिक अनुभूति मिली! मेरे पति और मैं महसूस करते हैं कि हम लूटे गए हैं, पीटे गए हैं और परित्यक्त किये गए हैं। हमसे हमारी आय, हमारा काम, हमारी गरिमा छीन ली गई है। हमसे मेरे स्तन, मेरा स्वास्थ्य, यहाँ तक कि मेरे बाल भी छीन लिए गए हैं। जब मैं प्रार्थना कर रही थी, मुझे ऐसा महसूस हो रहा था कि प्रभु हमारे ऊपर झुक रहे हैं, हमें अभिषेक कर रहे हैं और हमें ठीक कर रहे हैं, और फिर मुझे अपनी बाहों में ले रहे हैं और मेरे पति मेरे और प्रभु के साथ-साथ चल रहे हैं, और प्रभु हम दोनों को सुरक्षित स्थान पर ले जा रहे हैं। मैं राहत और कृतज्ञता के आँसुओं से भर गई।
फादर गेब्रियल आगे कहते हैं: “हमें उनसे, भले सामरी से मिलने के लिए मिस्सा बलिदान में जाना चाहिए … जब वह पवित्र परम प्रसाद में हमारे पास आएंगे, तो वह हमारे घावों को ठीक करेंगे, न केवल हमारे बाहरी घावों को, बल्कि हमारे आंतरिक घावों को भी, उनमें प्रचुर मात्रा में उनकी कृपा का मीठा तेल और मजबूत करने वाला दाखरस की औषधि डालेंगे।”
उस दिन शाम को, हम पाप स्वीकार और मिस्सा बलिदान में गए। अफ्रीका से एक आकर्षक पादरी हमारे पल्ली के लोगों से मुलाकात करने आए थे, जिनकी श्रद्धा और सौम्यता ने मुझे एक ही बार में प्रभावित कर दिया। पापस्वीकार संस्कार के दौरान उन्होंने मेरे लिए प्रार्थना की, मेरे दिल की इच्छाएँ पूरी करने के लिए —मेरे पति के लिए सम्मानजनक काम और मुझे ठीक करने के लिए – उन्होंने प्रभु से कहा। जब तक परम प्रसाद के वितरण का समय आया, मैं भले सामरी से मिलने के लिए अपने रास्ते पर खडी खडी रो रही थी, यह जानते हुए कि वह हमें सुरक्षित स्थान पर ले जा रहा है—उसके पास, उसमे।
कभी भी मेरे पास से गुज़रता भला सामरी
मुझे पता है कि इसका मतलब यह होगा कि मेरे पति को नौकरी मिल जाए, या न मिल जाए और मैं बिना ज़्यादा दर्द के कीमोथेरेपी से गुज़र जाऊँ। लेकिन मेरे मन, दिल या शरीर में इस बात को लेकर कोई संदेह नहीं है कि मैंने उस पवित्र परम प्रसाद में भले सामरी से मुलाक़ात की थी। वह मेरे पास से नहीं गुज़रा, बल्कि उसने रुककर मेरी देखभाल की और मेरे घावों पर मरहम पट्टी बांधी थी। वह भला सामरी मेरे लिए बिलकुल ही वास्तविक था जितना वह पहले कभी था, और यद्यपि मेरे पति और मैं अभी भी पराजित महसूस कर रहे हैं, मैं प्रभु को धन्यवाद देती हूं कि वह हमारे लिए एक भले सामरी के रूप में मौजूद है जो हमें रोकता है, देखभाल करता है, चंगा करता है, और फिर हमें सुरक्षित स्थान पर ले जाता है।
उनकी सुरक्षा दुनिया की सुरक्षा नहीं है। इस “हमले” और डकैती के बीच में खडी होकर प्रतीक्षा करना, सबसे कठिन आध्यात्मिक कार्यों में से एक है जिसे करने के लिए मुझे बार बार आमंत्रित किया गया है। ओह, लेकिन मुझे हमारे भले सामरी पर पूरा भरोसा है। वह मुझे ले जाने के लिए वहाँ प्रतीक्षा कर रहा है – किसी को भी इकट्ठा करने के लिए जो लूटा हुआ, पीटा हुआ और परित्यक्त महसूस करता है – और, परम पवित्र संस्कार के माध्यम से, हमारे दिलों और आत्माओं पर सुरक्षा की अपनी मुहर लगाता है।
'
प्रश्न – मेरे परिवार को मेरी एक बहन से समस्या है, और मुझे अक्सर अपने अन्य भाई-बहनों से उसके बारे में बात करनी पड़ती है। क्या यह अपने अन्दर की अशुद्ध हवा निकालने जैसा है? क्या यह गपशप है? क्या यह ठीक है, या पापपूर्ण है?
उत्तर– जीभ को नियंत्रित करना बड़ा चुनौती पूर्तिण कार्य है। संत याकूब इन चुनौतियों को पहचानते हैं। अपने पत्र के तीसरे अध्याय में, वे लिखते हैं, “यदि हम घोड़ों को वश में रखने के लिए उनके मुँह में लगाम लगाते हैं, तो उनके पूरे शरीर को इधर उधर घुमा सकते हैं… इसी प्रकार, जीभ शरीर का एक छोटा सा अंग है, किन्तु वह शक्तिशाली होने का दावा कर सकती है। देखिये, एक छोटी सी चिंगारी कितने विशाल वन में आग लगाा सकती है। जीभ भी एक आग है, जो हमारे अंगों के बीच हर प्रकार की बुराई का स्रोत है। वह हमारा समस्त शरीर को दूषित करती और नरकाग्नी से प्रज्वलित होकर हमारे पूरे जीवन में आग लगा देती है। हर प्रकार के पशु और पक्षी, रेंगने वाले और जलचर जीवजन्तु – सब के सब मानव जाति द्वारा वश में किये जा सकते हैं या वश में किये जा चुके हैं, परन्तु कोई मनुष्य अपने जीभ को वश में नहीं कर सकता। वह वक ऐसी बुराई है, जो कभी शांत नहीं रहती और प्राणघातक विष से भरी हुई है। हम सब उससे अपने प्रभु एवं पिता की स्तुति करते हैं, और उसी से मनुष्यों को अभिशाप देते हैं, जिन्हें ईश्वर ने अपना प्रतिरूप बनाया है। एक ही मुँह से स्तुति भी निकलती है और अभिशाप भी। मेरे भाइयो-बहनो, यह उचित नहीं है। क्या जलस्रोत के एक ही धारा से मीठा पानी भी निकलता है और खारा भी ?” (याकूब 3:3-12).
हमें दूसरे के बारे में कुछ कहना चाहिए या नहीं, इस मुद्दे पर अमेरिकी रेडियो होस्ट बर्नार्ड मेल्टज़र ने एक बार तीन नियम बनाए थे: क्या यह जरूरी है? क्या यह सच है? क्या यह करुणापूर्ण है?
ये तीन बड़े प्रश्न हैं जिन्हें हमें पूछना चाहिए। अपनी बहन के बारे में बोलते समय, क्या यह आवश्यक है कि आपके परिवार के अन्य सदस्य उसकी गलतियों और असफलताओं के बारे में जानें? क्या आप वस्तुनिष्ठ सत्य को प्रसारित कर रहे हैं या उसकी कमजोरियों को बढ़ा-चढ़ाकर बता रहे हैं? क्या आप उसके अच्छे इरादों को मानते हैं, या आप उसके कार्यों में नकारात्मक इरादों का आरोप लगाते हैं?
एक बार, एक महिला संत फिलिप नेरी के पास गई और पाप स्वीकार संस्कार में गपशप का पाप कबूल कर लिया। प्रायश्चित्त के रूप में, फादर नेरी ने उसे पंखों से भरा एक तकिया लेने और उसे एक ऊंची मीनार के शीर्ष पर ले जाकर खोलने का काम सौंपा। महिला ने सोचा कि यह एक अजीब तपस्या है, लेकिन उसने ऐसा किया और पंखों को चारों दिशाओं में उड़ते देखा। संत के पास लौटकर उसने उनसे पूछा कि इसका क्या मतलब है। उन्होंने उत्तर दिया, “अब, जाओ और उन सभी पंखों को इकट्ठा करो।” उसने उत्तर दिया कि यह असंभव है। उन्होंने कहा, “ऐसा ही उन शब्दों के साथ है जो हमारे मुंह से निकलते हैं। हम उन्हें कभी वापस नहीं ले आ सकते क्योंकि उन्हें हवाओं के ज़रिए ऐसी जगहों पर भेज दिया गया है जिन्हें हम कभी नहीं समझ पाएंगे।”
अब, ऐसे समय आते हैं जब हमें दूसरों के बारे में नकारात्मक बातें साझा करने की ज़रूरत होती है। मैं एक कैथलिक स्कूल में पढ़ाता हूँ, और कभी-कभी मुझे किसी छात्र के व्यवहार के बारे में किसी सहकर्मी के साथ कुछ साझा करने की आवश्यकता होती है। यह मुझे हमेशा सोचने और मंथन करने का अवसर देता है — क्या मैं इसे अच्छे उद्देश्यों से कर रहा हूँ? क्या मैं सचमुच चाहता हूँ कि इस छात्र के लिए सबसे अच्छा क्या हो? कई बार, मुझे छात्रों के बारे में ऐसी कहानियाँ सुनाने में आनंद आता है जो उन्हें ख़राब रूप में दर्शाती हैं, और जब मुझे किसी अन्य व्यक्ति के दुर्भाग्य या बुरे व्यवहार से आनंद मिलता है, तो मैं निश्चित रूप से पाप की सीमा पार कर चुका हूँ।
तीन प्रकार के पाप हैं जो दूसरे व्यक्ति की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाते हैं। पहला, किसी पर जल्दबाजी में फैसला लेना, जिसका मतलब है कि हम किसी व्यक्ति के व्यवहार या इरादे के बारे में बहुत जल्दी ही बिना सोचे समझे बुरा मान लेते हैं। दूसरा है, निंदा, जिसका मतलब है, दूसरे के बारे में नकारात्मक झूठ बोलना। तीसरा है, अपमान, यानी ना किसी गंभीर कारण के किसी अन्य व्यक्ति के दोषों या असफलताओं का खुलासा करना। तो, आप स्वयं से यह सवाल पूछ सकते हैं: आपकी बहन के मामले में, क्या उसकी गलतियों को बिना किसी गंभीर कारण के साझा करना उसका अपमान करना है? यदि आप उसकी गलतियों को साझा नहीं करेंगे, तो क्या उसे या किसी अन्य व्यक्ति को नुकसान होगा? यदि नहीं – और यह केवल “अपने अन्दर की अशुद्धता को बाहर निकालने” के लिए है – तो हम वास्तव में परनिंदा के पाप में लिप्त हो गए हैं। लेकिन अगर यह सचमुच परिवार की भलाई के लिए जरूरी है तो उस बहन के पीठ पीछे उसके बारे में बोलना जायज है।’
जीभ के पापों से निपटने के लिए, मैं तीन चीजें सुझाता हूं। सबसे पहले, अपनी बहन के बारे में अच्छी बातें फैलाएं! हर किसी में मुक्तिदायक गुण होते हैं जिनके बारे में हम बात कर सकते हैं। दूसरा, जिस तरह से हमने अपनी जीभ का नकारात्मक उपयोग किया है उसके लिए क्षतिपूर्ति के रूप में, एक सुंदर प्रार्थना, ईश्वरीय स्तुति की प्रार्थना करें, जो ईश्वर की महिमा और स्तुति करती है। अंत में, हम कैसे चाहेंगे कि हमारे बारे में अन्य लोगों द्वारा बात की जाए, इस बात पर विचार करें। कोई भी यह नहीं चाहेगा कि उसकी खामियों का प्रदर्शन हो। इसलिए दूसरों के साथ, अच्छे शब्दों का करुणापूर्ण प्रयोग करके अच्छा व्यवहार करें, इस उम्मीद में कि हमें भी वही करुणा मिलेगी!
'
लोग अक्सर आश्चर्यचकित हो जाते हैं जब मैं उन्हें बताता हूं कि मठ में मेरे सबसे करीबी दोस्त फादर फिलिप हैं, जो 94 वर्ष के हैं। वे मठ के सबसे बुजुर्ग सन्यासी हैं, और मैं सबसे छोटा हूं, और इस तरह हमारी यह जोड़ी बनती है; एक अन्य साथी सन्यासी हमें प्यार से “अल्फा और ओमेगा” कहकर बुलाते हैं। उम्र में अंतर के अलावा, हमारे बीच कई अंतर हैं। फादर फिलिप ने मठ में प्रवेश करने से पहले तट सुरक्षा बल में सेवा की, वनस्पति विज्ञान और अंग्रेजी का अध्ययन किया, रोम और रवांडा में रहकर सेवा दी, और कई भाषाओं में पारंगत हैं। संक्षेप में, उनके पास मुझसे कहीं अधिक जीवन का अनुभव है। जैसा कि कहा गया है, हममें कुछ बातें समान हैं: हम दोनों कैलिफ़ोर्निया के मूल निवासी हैं और प्रोटेस्टेंट सम्प्रदाय से धर्मान्तरित हैं (वे प्रेस्बिटेरियन और मैं बैपटिस्ट)। हम दोनों ओपेरा का भरपूर आनंद लेते हैं, और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि हम एक साथ प्रार्थना का जीवन जीते हैं।
जो हमारे समान हितों को साझा करते हों, ऐसे मित्रों का चयन करना स्वाभाविक है। लेकिन जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं और जीवन में हमारी स्थितियाँ बदलती हैं, हम पाते हैं कि हम कुछ मित्रों को खो रहे हैं जबकि नए मित्र भी प्राप्त कर रहे हैं। अरस्तू का कहना है कि सभी मित्रता में कुछ न कुछ समानता अवश्य होनी चाहिए। स्थायी मित्रता वे हैं जो लंबे समय तक चलने वाली बातें साझा करती हैं। उदाहरण के लिए, पानी में सर्फिंग करनेवाले दो लोगों के बीच दोस्ती तब तक बनी रहती है जब तक पकड़ने के लिए लहरें मौजूद रहती हैं। हालाँकि, यदि कोई हलचल नहीं है या यदि कोई सर्फर घायल हो जाता है और अब बाहर नहीं निकल सकता है, तो दोस्ती तब तक फीकी रहेगी जब तक उन्हें आपस में साझा करने के लिए कुछ नया नहीं मिल जाता। इसलिए, यदि हम आजीवन मित्र बनाना चाहते हैं, तो कुंजी कुछ ऐसी चीज़ ढूंढना है जिसे जीवन भर, या इससे भी बेहतर, अनंत काल तक साझा किया जा सके।
महायाजक कैफस ने येशु पर ईशनिंदा का आरोप लगाया जब उसने ईश्वर का पुत्र होने का दावा किया। इस कथन से कहीं अधिक निन्दात्मक तब था जब येशु ने अपने शिष्यों से कहा, “तुम मेरे मित्र हो।” क्योंकि परमेश्वर के पुत्र का मछुआरों, चुंगी लेनेवालों, और एक चरमपंथी से क्या मेल हो सकता है? ईश्वर और हमारे बीच संभवतः क्या समानता हो सकती है? वह हमसे बहुत बड़ा है। उसके पास जीवन का अनुभव अधिक है। वह अल्फ़ा और ओमेगा दोनों है। जो कुछ भी हम साझा करते हैं वह सबसे पहले उसी ने हमें दिया होगा। उनके द्वारा हमारे साथ साझा किए गए कई उपहारों में से, पवित्र बाइबिल इस बारे में स्पष्ट है कि कौन सा उपहार सबसे लंबे समय तक रहता है: “उनका दृढ़ प्रेम हमेशा के लिए बना रहता है।” “प्यार… सब कुछ सहता है।” “प्यार कभी खत्म नहीं होता।” जैसा कि यह पता चला है, ईश्वर के साथ दोस्ती करना काफी सरल है। हमें बस इतना करना है कि “प्यार करो क्योंकि उसने पहले हमसे प्यार किया।”
'
एक अभिनेता और निर्देशक के रूप में, पैट्रिक रेनॉल्ड्स ने सोचा कि ईश्वर केवल पवित्र लोगों के लिए है। एक दिन जब रोजरी माला की प्रार्थना करते समय उन्हें एक अलौकिक अनुभव हुआ, और उसी दिन वे ईश्वर की योजना समझ पाए। यहां उनकी अविश्वसनीय यात्रा का वर्णन है।
मेरा जन्म और पालन-पोषण एक कैथलिक परिवार में हुआ था। हम हर सप्ताह मिस्सा बलिदान के लिए जाते थे, दैनिक प्रार्थना करते थे, कैथलिक स्कूल में जाते थे, और घर में बहुत सारी पवित्र वस्तुएँ रखी थीं, लेकिन किसी भी तरह से विश्वास हमें प्रभावित नहीं कर सका। जब भी हम घर से बाहर निकलते, माँ हम पर पवित्र जल छिड़कती थी, लेकिन दुर्भाग्य से, हमारा येशु के साथ कोई व्यक्तिगत संबंध नहीं था। मैं यह भी नहीं जानता था कि यह संभव है। मैं समझता था कि ईश्वर कहीं बादलों में रहता है। वह वहाँ से हम सभी पर दृष्टि रखता है, लेकिन मेरे दिल और दिमाग में वह बहुत दूर और अप्राप्य था। हालाँकि मैंने ईश्वर के बारे में सीखा, लेकिन मैंने यह नहीं सीखा कि वह कौन और कैसा था। जब मैं लगभग दस साल का था, मेरी माँ ने एक करिश्माई प्रार्थना समूह में जाना शुरू किया, और मैंने देखा कि उनका विश्वास बहुत वास्तविक और व्यक्तिगत हो गया है। वह अवसाद से ठीक हो गई थी, इसलिए मुझे पता था कि ईश्वर की शक्ति वास्तविक थी, परन्तु मैंने सोचा कि ईश्वर केवल मेरी माँ जैसे पवित्र लोगों के लिए थे। जो मुझे दिया जा रहा था उससे कहीं अधिक गहरी चीज़ की मैं चाहने लगा था । जब संतों की बात आई, तो मुझे उनकी भूमिका समझ में नहीं आई और मुझे नहीं लगा कि उनके पास मुझे देने के लिए कुछ है क्योंकि मुझे नहीं लगता था कि मैं भी पवित्र हो सकता हूं।
अधूरा और खाली
जब मैंने स्कूल छोड़ा, तो मैं अमीर और मशहूर बनना चाहता था ताकि मुझे हर कोई प्यार कर सके। मैंने सोचा कि इससे मुझे खुशी मिलेगी। मैंने निर्णय लिया कि अभिनेता बनना मेरे लक्ष्यों को प्राप्त करने का सबसे आसान तरीका होगा। इसलिए, मैंने अभिनय का अध्ययन किया और अंततः एक सफल अभिनेता और निर्देशक बन गया। इसने मेरे जीवन में एक ऐसे द्वार को खोल दिया जिसका मैंने कभी अनुभव नहीं किया था और मुझे बहुत अधिक पैसा मिला, मुझे नहीं पता था कि इस पैसे का मुझे क्या करना है। इसलिए मैंने इसे उद्योग में जो महत्वपूर्ण लोग हैं उन्हें प्रभावित करने की कोशिश में खर्च कर दिया। मेरा पूरा जीवन लोगों को प्रभावित करने के लिए चीजें खरीदने का एक अनवरत चक्र था, ताकि मैं लोगों को प्रभावित करने के लिए और चीजें खरीदने के लिए और अधिक पैसे कमा सकूं। पूर्णता महसूस करने के बजाय, मुझे खालीपन महसूस हुआ। मैं ठगा सा महसूस करने लगा । मैं अपने पूरा जीवन वैसा बनने का दिखावा करता रहा जैसा दूसरे लोग चाहते थे। मैं कुछ और खोज रहा था लेकिन कभी समझ नहीं पाया कि ईश्वर के पास मेरे लिए कोई योजना थी। मेरा जीवन पार्टियों, शराब पीने और रिश्तों तक ही सीमित था, लेकिन असंतोष से भरा हुआ था।
एक दिन, मेरी माँ ने मुझे स्कॉटलैंड में एक बड़े करिश्माई कैथलिक सम्मेलन में आमंत्रित किया। सच कहूँ तो, मैं जाना नहीं चाहता था क्योंकि मुझे लगता था कि मैंने ईश्वर से जुड़ी सभी चीज़ों को अपने पीछे छोड़ दिया है, लेकिन माताएँ भावनात्मक ब्लैकमेल करने में अच्छी होती हैं; वे आपसे वो काम करवा सकती हैं जो कोई और नहीं करा सकता। उन्होंने कहा, “बीटा पैट्रिक, मैं दो साल के लिए अफ़्रीका में सेवा कार्य करने जा रही हूँ। यदि तुम इस साधना में नहीं आओगे, तो मुझे जाने से पहले तुम्हारे साथ कोई समय बिताने का मौका नहीं मिलेगा। उनके ऐसा अपील सुनने के बाद मैं उस सम्मलेन में चला गया। मैं अभी खुश हूं, लेकिन उस समय मुझे असहजता महसूस हो रही थी। इतने सारे लोगों को एक साथ गाते और ईश्वर की स्तुति करते हुए देखना अजीब लगा। जैसे ही मैंने कमरे के चारों ओर आलोचनात्मक रूप से देखा, ईश्वर अचानक मेरे जीवन में आ गया। पुरोहित ने आस्था के बारे में, पवित्र यूखरिस्त में येशु के बारे में, संतों के बारे में, और माँ मरियम के बारे में इतने वास्तविक और ठोस तरीके से बताया कि मुझे अंततः समझ में आ गया कि ईश्वर कहीं बादलों में नहीं, बल्कि वह मेरे बहुत करीब है, और उसके पास मेरे जीवन के लिए एक योजना है।
कुछ और
मैं समझ गया कि ईश्वर ने मुझे किसी कारण से बनाया है। मैंने उस दिन पहली बार ईमानदारी से प्रार्थना की, “हे ईश्वर, यदि तेरा अस्तित्व है, यदि तेरे पास मेरे लिए कोई योजना है, तो मुझे तेरी सहायता की आवश्यकता है। तेरी योजना को मुझपे इस तरह से प्रकट कर कि मैं उसे समझ सकूँ।“ लोगों ने माला विनती करना शुरू कर दिया, जिसे मैंने बचपन में ही छोड़ दिया था, इसलिए मुझे जो भी प्रार्थना याद आती थी मैं उसमें शामिल हो गया। जब उन्होंने गाना शुरू किया, तो मेरे दिल में कुछ पिघलने लगा और जीवन में पहली बार मुझे ईश्वर के प्रेम का अनुभव हुआ। मैं इस प्यार से इतना अभिभूत हो गया कि मैं रोने लगा। माता मरियम की मध्यस्थता के माध्यम से मैं ईश्वर की उपस्थिति को महसूस कर सका। मैं उस दिन मिस्सा बलिदान के लिए गया लेकिन मुझे पता था कि मैं परमप्रसाद ग्रहण नहीं कर सकता था क्योंकि मैंने लंबे समय से पापस्वीकार नहीं किया था। मेरा दिल ईश्वर के करीब रहने के लिए उत्सुक था, इसलिए मैंने अगले कुछ सप्ताह, एक ईमानदार और अच्छा पापस्वीकार करने की तैयारी में समय बिताया। एक बच्चे के रूप में, मैं नियमित रूप से पापस्वीकार केलिए जाता था, लेकिन मुझे नहीं लगता कि मैं कभी भी वास्तव में ईमानदार था। मैं अपने पापों की खरीदारी की सूची में हर बार वही तीन या चार चीज़ें ले कर जाता था। इस बार जब मुझे पाप क्षमा मिली तो मुझे बहुत शांति और प्रेम का अनुभव हुआ। मैंने निर्णय लिया कि मुझे अपने जीवन में इसकी और अधिक ज़रुरत है।
अभिनय करूं या नहीं?
एक अभिनेता के रूप में, अपने विश्वास को जीना बहुत कठिन था। मुझे जो भी भूमिका दी जा रही थी, वह एक कैथलिक के रूप में विश्वास का खंडन करता था, लेकिन मेरी आस्था में पर्याप्त प्रशिक्षण नहीं था। मुझे पता था कि मुझे और मदद की ज़रूरत है। मैं एक पेंटेकोस्टल चर्च में जाने लगा, जहाँ मेरी मुलाकात ऐसे लोगों से हुई जिन्होंने मुझे बाइबिल के बारे में और स्तुति और आराधना कैसे करनी है इन सबके बारे में सिखाया । उन्होंने मुझे आत्मिक सलाह, दोस्ती और समुदाय की संगति दी, लेकिन मैं यूखरिस्त में उपस्थित येशु को त्याग नहीं सकता था, इसलिए मैं कैथलिक कलीसिया में ही रहा। हर हफ्ते वे मेरी कैथलिक मान्यताओं को चुनौती देते थे, इसलिए मैं जाता था और उनके लिए उत्तर के साथ वापस आने के लिए अपनी धार्मिक शिक्षा का अध्ययन करता था। उन्होंने मुझे एक बेहतर कैथलिक बनने में मदद की, इससे मैं क्यों विश्वास करता हूँ, इसे समझकर विश्वास करने में मुझे मदद मिली।
एक समय, मेरे मन में इस बात को लेकर मानसिक और भावनात्मक अवरोध था कि कैथलिकों को माता मरियम के प्रति इतनी भक्ति क्यों है। उन्होंने मुझसे पूछा, “आप मरियम से प्रार्थना क्यों करते हैं? आप सीधे येशु के पास क्यों नहीं जाते?” यह बात मेरे दिमाग में पहले से ही थी। मुझे ऐसा उत्तर ढूंढने में संघर्ष करना पड़ा जो सार्थक हो। संत पाद्रे पियो एक चमत्कारिक व्यक्ति थे जिनके जीवन ने मुझे एक बेहतर इंसान बनने के लिए प्रेरित किया। जैसा कि मैंने पढ़ा था कि कैसे माता मरियम के प्रति उनकी भक्ति ने उन्हें येशु मसीह और कलीसिया के दिल में गहराई तक पहुंचा दिया। मैंने संत पिता जॉन पॉल द्वितीय के बारे में भी सुना। इन दो महान व्यक्तियों की गवाही ने मुझे माता मरियम पर भरोसा करने और उनके उदाहरण का पालन करने के लिए प्रेरित किया। इसलिए, मैंने मरियम के निष्कलंक हृदय के माध्यम से संत पिता के मतलबों के लिए हर दिन प्रार्थना की।
मैं और अधिक जानने के लिए मरियन आत्मिक साधना में भाग लिया। मैंने सुना कि संत लुइस डी मोंटफोर्ट की माता मरियम के प्रति महान भक्ति है, और प्रार्थना में मरियम से बात करना येशु की तरह बनने का सबसे तेज़ और सरल तरीका है। उन्होंने बताया कि मूर्ति बनाने के दो तरीके हैं – इसे हथौड़े और छेनी से किसी सख्त सामग्री से गढ़ना, या एक सांचे में राल भरना और इसे सख्त होने के लिए छोड़ देना। एक साँचे में बनी प्रत्येक मूर्ति अपने आकार का पूर्णतया वही सुन्दर आकार लेती है (जब तक वह भरी हुई है)। माता मरियम वह साँचा है जिसमें येशु मसीह का शरीर बना था। ईश्वर ने उन्हें उस उद्देश्य के लिए परिपूर्ण बनाया। यदि आप माता मरियम द्वारा ढाले गए हैं, तो वह आपको पूर्णता में बनाएगी, बर्शते आप खुद को पूरी तरह से समर्पित कर देंगे।
जब मैंने यह सुना तो मैं समझ गया कि यह सच है। जब हमने माला विनती की, तो मैंने केवल शब्दों का उच्चारण करने के बजाय, पूरे ह्रदय से भेदों पर मनन करते हुए प्रार्थना की। कुछ अप्रत्याशित हुआ। मैंने हमारी धन्य माँ के प्रेम का अनुभव किया। यह ईश्वर के प्रेम की तरह था, और मैं जानता था कि यह ईश्वर के प्रेम से आया है। लेकिन यह अनुभव बिलकुल भिन्न था। माँ मरियम ने मुझे ईश्वर से प्रेम करने में इस तरह से मदद की जिस प्रकार मैं अपने आप कभी नहीं कर पाया था। मैं इस प्रेम से इतना अभिभूत हो गया कि मेरी आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े। ऐसा अद्भुत उपहार पाना खेत में खज़ाना मिलने वाले दृष्टान्त के समान था। आप उस खेत को खरीदने के लिए सब कुछ बेचने को तैयार होंगे ताकि आप इस खजाने को पा सकें। उस क्षण से, समझ गया कि मैं अभिनय जारी नहीं रख पाऊंगा। मैं उस धर्म विहीन और धर्म विरोधी दुनिया में रहकर एक अच्छा कैथलिक नहीं बन सकता। मैं यह भी जानता था कि लोगों को ईश्वर के प्रेम के बारे में जानने की ज़रूरत है। इसलिए मैंने अपना करियर एक तरफ रख दिया ताकि मैं प्रचार कर सकूं।
गहरी खुदाई
मैं ईश्वर से यह पूछने के लिए आयरलैंड में दस्तक देने आया था कि वह मुझसे क्या चाहता है। माता मरियम ने १८७९ में दर्शन दिया था। उस दर्शन में मरियम संत युसूफ, संत योहन और वेदी पर ईश्वर के मेमने के रूप में येशु के साथ स्वर्गदूतों से घिरी हुई थीं। मरियम लोगों को येशु के पास ले जाने के लिए आयी। उनकी भूमिका लोगों को ईश्वर के मेमने के पास ले जाने की है। नॉक में, मैं उस महिला से मिला जिससे मेरी शादी बाद में हुई थी, और मैं उन लोगों से भी मिला जिन्होंने मुझे मिशन कार्य करने के लिए नौकरी की पेशकश की थी। मैं एक सप्ताहांत के लिए आया था, और 20 साल बाद भी, मैं अभी भी आयरलैंड में रह रहा हूँ।
एक बार जब मैंने ठीक से माला विनती करना सीख लिया तो धन्य माँ के प्रति मेरा प्रेम बढ़ता गया। मुझे अपने आप से माला विनती करना हमेशा बहुत कठिन लगता था। जब मैं इंग्लैंड के वालसिंघम में राष्ट्रीय तीर्थस्थल पर गया, तब यह कठिनाई दूर हो गयी। वालसिंघम की माँ मरियम के प्रतिमा वाले छोटे प्रार्थनालय में, मैंने धन्य माँ मरियम से प्रार्थना करने और माला विनती को समझने की कृपा मांगी। कुछ अविश्वसनीय घटित हुआ! जैसे ही मैंने आनंद के भेद बोलना शुरू किया, प्रत्येक भेद में, मुझे समझ आया कि माता मरियम सिर्फ येशु की माँ नहीं थी, वह मेरी माँ भी थी, और मैंने महसूस किया कि मैं बचपन में येशु के साथ-साथ बढ़ रहा हूँ।
इसलिए जब मरियम ने ईश्वर की माँ होने के सन्देश के लिए मंजूरी में “हाँ” कहा, तो वह मुझे भी “हाँ” कह रही थी, येशु के साथ अपने गर्भ में वह मेरा भी स्वागत कर रही थी। जब मरियम अपनी कुटुम्बिनी एलिज़ाबेथ से मिलने गई, मैंने महसूस किया कि मैं येशु के साथ उसके गर्भ में हूँ। और जब योहन बप्तिस्मा खुशी से उछल पड़ा तब मैं वहाँ मसीह के शरीर में था। येशु मसीह के जन्म के समय, ऐसा महसूस हुआ जैसे मरियम ने मुझे बड़ा करने के लिए “हाँ” कहकर मुझे नया जीवन दिया। जैसे ही उसने और संत युसूफ ने येशु को मंदिर में चढ़ाया, उन्होंने मुझे भी अपने बच्चे के रूप में स्वीकार करते हुए, पिता को अर्पित किया। जब उन्होंने येशु को मंदिर में पाया, तो मुझे लगा कि मरियम मुझे भी ढूंढ रहीं थी। मैं खो गया था, लेकिन मरियम मुझे खोज रहीं थी। मुझे एहसास हुआ कि मरियम इतने वर्षों से मेरी माँ के साथ मेरा विश्वास वापस लौटने के लिए प्रार्थना कर रहीं थी।
मैंने होली फ़ैमिली मिशन की स्थापना में मदद की, एक ऐसा घर जहाँ युवा लोग अपने विश्वास के बारे में जानने के लिए आ सकते हैं और जिस शिक्षण को वे बचपन के बाद भूल गए थे उस वे फिर से प्राप्त कर सकते हैं। हमने पवित्र परिवार को अपने संरक्षक के रूप में चुना, यह जानते हुए कि हम मरियम के माध्यम से येशु के दिल में आते हैं। मरियम हमारी मां हैं और हम उनके गर्भ में हम संत युसूफ की देखरेख में येशु मसीह की तरह बने हैं।
अनुग्रह पर अनुग्रह
हमारी धन्य माँ ने नॉक में मेरी पत्नी को ढूंढने और उसे जानने में मेरी मदद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी क्योंकि हमने यूथ 2000 नामक एक आंदोलन में एक-दूसरे के साथ काम किया था, जो माता मरियम और परम प्रसाद पर केंद्रित था। हमने अपनी शादी के दिन, खुद को, अपने वैवाहिक जीवन को और अपने भावी बच्चों को ग्वाडालूप की माता मरियम को समर्पित कर दिया। अब हमारे नौ खूबसूरत बच्चे हैं, जिनमें से प्रत्येक का माता मरियम के प्रति अद्वितीय विश्वास और समर्पण है, जिसके लिए हम बहुत आभारी हैं।
माला विनती मेरे विश्वास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है और मेरे जीवन में बहुत सारी कृपाओं का माध्यम बन गया है। जब भी मेरे पास कोई समस्या होती है, तो सबसे पहले मैं अपनी रोज़री माला उठाता हूँ और माता मरियम की ओर मुड़ता हूँ। संत जॉन पॉल द्वितीय ने कहा कि यह माता मरियम का हाथ थामने जैसा है ताकि वह किसी भी अंधेरे समय में, मुसीबतों में हमारा सुरक्षित मार्गदर्शन सकेगी।
एक बार, मेरे एक करीबी दोस्त के साथ मेरी अनबन हो गई और मुझे सामंजस्य बैठाना बहुत मुश्किल हो रहा था। मैं जानता था कि उसने मेरे साथ अन्याय किया है और मुझे माफ करना कठिन लग रहा था। वह व्यक्ति उस चोट को नहीं देख सका जो उसने मुझे और दूसरों को पहुंचाई थी। मेरे अंतरतम का एक हिस्सा इसके बारे में कुछ करना चाहता था, एक दूसरा हिस्सा उससे प्रतिशोध लेना चाहता था। लेकिन इसके बजाय, मैंने अपना हाथ अपनी जेब में डाला और अपनी रोज़री माला के मोती उठा लिए। अभी मैंने केवल मला विनती का एक भेद पूरा किया ही था कि वह मित्र अपने बदले हुए अंतरात्मा के साथ मेरी ओर मुड़ा और मुझसे बोला, “पैट्रिक, मुझे अभी एहसास हुआ कि मैंने तुम्हारे साथ क्या किया और मैंने तुम्हें कितना नुकसान पहुँचाया है। मैं क्षमा चाहता हूं।” जैसे ही हमने गले लगाया और मेल-मिलाप किया, वैसे ही मैंने माता मरियम के पास हमारे दिल को बदलने की उस शक्ति को पहचाना।
मरियम वह साधन है जिसे ईश्वर ने इस दुनिया में प्रवेश करने के लिए चुना है, और वह अभी भी उसके माध्यम से हमारे पास आना चाहता है। मैं अब समझ गया हूं कि हम येशु के बजाय मरियम के पास नहीं जाते हैं, हम मरियम के पास जाते हैं क्योंकि येशु उसके अन्दर हैं। पुराने नियम में, विधान की मञ्जूषा में वह सब कुछ था जो पवित्र था। मरियम नई विधान की मञ्जूषा है, सभी पवित्रता का स्रोत, वह स्वयं ईश्वर का जीवित मंदिर है। इसलिए, जब मैं येशु मसीह के करीब रहना चाहता हूं, तो मैं हमेशा मरियम की ओर रुख करता हूं, जिन्होंने येशु के साथ अपने शरीर के भीतर सबसे घनिष्ठ संबंध साझा किया। उनके करीब आने में, मैं येशु के करीब आ जाता हूँ।
'
मेरे सामने एक पुरुष का सिर और कंधा दिखाई दे रहा था, और इस पुरुष का बाल कन्धों तक लटका हुआ था और उसके माथे के ऊपर कुछ लकीरें थीं |
शाम हो चुकी थी| मैं उस तात्कालिक प्रार्थनालय में बैठी थी जिसे हमने वार्षिक धर्मप्रान्तीय युवा आत्मिक साधना के लिए खड़ा किया था। मैं थक गयी थी। सप्ताह के अंत के तीन दिवसीय कार्यक्रम के आयोजन से, युवा सेवकाई में कार्यकर्ता के रूप में अपनी जिम्मेदारियों से; और इसके अलावा मेरी गर्भावस्था की पहली तिमाही के कारण मैं पूरी तरह थक चुकी थी।
मैं परम प्रसाद की आराधना में यह घंटा बिताने केलिए स्वयं आगे आयी थी। चौबीस घंटे की आराधना का अवसर साधना में भाग लेने वालों के लिए एक बड़ा आकर्षण था। युवाओं को परमेश्वर के साथ समय बिताते हुए देखना मेरे लिए भी एक गहन अनुभव था।
लेकिन मैं थक चुकी थी| मैं जानती थी कि मुझे यहां समय बिताना चाहिए और फिर भी, मुझे लगा कि समय धीरे धीरे सरकता जा रहा है । मैं अपने विश्वास की कमी के लिए खुद को डांटती रही । यहाँ मैं येशु की उपस्थिति में थी, और मैं इतनी थक गयी थी कि अपनी थकावट के आलावा मुझे और कुछ नहीं सूझ रही थी| मैं वहां बिना सोची समझी बैठी थी और मुझे आश्चर्य होने लगा कि क्या मेरा विश्वास बौद्धिक स्तर पर ही सीमित है या उससे अधिक कुछ है । अर्थात विश्वास की बातें मैं केवल दिमाग से जानती थी दिल से नहीं |
मेरा जीवन एक नए मोड़ पर
बीते समय को देखें तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए थी। मैं हमेशा से कुछ हद तक अकादमिक विचारधारा वाली रही हूं-मुझे सीखना पसंद है। जीवन के महत्वपूर्ण और गहन विषयों को पढ़ने और उन पर चर्चा करने से मेरी आत्मा को प्रेरणा मिलती है । दूसरों के विचारों और राय को सुनने से जिस दुनिया में हम रहते हैं, उस दुनिया पर विचार करने या उस पर पुनर्विचार करने का मुझे अवसर मिलता है।
सीखने की इस जूनून के चलते ही मैं कैथलिक आस्था में गहराई से डूबती चली गयी। मैं इसे ‘वापसी’ कहने में संकोच करती हूं क्योंकि मैंने अपनीआस्था का अभ्यास कभी नहीं छोड़ा था, लेकिन मैं निश्चित रूप से सतही स्तर की कैथलिक थी।
हाई स्कूल की पढ़ाई के उपरांत कॉलेज जीवन के मेरे पहले वर्ष के दौरान, मेरे जीवन की दिशा अचानक बदल गयी। मेरे बचपन की पल्ली में एक धर्म समाज की साध्वी लोग आयीं और धार्मिक शिक्षा का कार्य उन लोगों ने संभाला। कैथलिक शिक्षा और सुसमाचार-प्रचार के लिए उनका उत्साह अद्भुत था – उनके उपदेशों के कारण और उनके साथ नियमित बातचीत के कारण एक पक्का कैथलिक होने का मेरा दंभ टूट गया।
जल्द ही मैं कैथलिक धर्म की एक उत्साही और जिज्ञासु छात्रा बन गयी। जितना अधिक मैंने सीखा उतना ही अधिक मुझे एहसास हुआ कि मुझे और सीखने की आवश्यकता है। इस समझ ने मुझे नम्र और ऊर्जावान व्यक्ति बनाया।
मैंने सोमवार से लेकर शनिवार तक मिस्सा बलिदान में भाग लिया। सप्ताह भर पवित्र संस्कार की आराधना और प्रार्थना सभाएं मेरे रोजमर्रा के कार्यक्रम में शामिल हो गयीं और मैंने आत्मिक साधना में भी भाग लेना शुरू किया। इन सबकी सुखद परिसमाप्ति अंतर्राष्ट्रीय विश्व युवा दिवस में मेरी भागीदारी से हुई। मैंने पुरोहिताभिषेक की धर्मविधि, तेलों के अभिषेक का पवित्र मिस्सा आदि समारोहों में भाग लेकर उन सबका आनंद लिया। अधिकांशतः मैं स्वयं ही इनमें भाग लेती थी।
अप्राप्त कड़ी ?
मैंने अपने विश्वास के बारे में ज्ञान बढ़ाया| पत्रकारिता और युवा सेवकाई कार्य के माध्यम से मैंने अपनी बुलाहट को समझा । मैंने विश्वविद्यालय की डिग्रियाँ बदलीं, उस शख्स से मिली जो अब मेरे पति हैं , और मातृत्व की नयी बुलाहट की शुरुआत की|
और फिर भी, विश्वास में डुबकी लेने के पांच साल बाद भी, मेरा विश्वास व्यावहारिक कम बल्कि अकादमिक या बौद्धिक अधिक था। जो ज्ञान मैंने अर्जित किया था वह अभी तक मेरी आत्मा में उतरना शुरू नहीं हुआ था। मैंने वही किया जिसे दुनिया की नज़र में पूरा करने की आवश्यकता थी, लेकिन मैंने अपने हृदय में परमेश्वर के प्रति उस अगाध प्रेम को ‘महसूस’ नहीं किया।
मै इस आस्था सम्बन्धी कार्य को बाकी कार्यों के समान बस निभा रही थी। इस थकावट से तंग आकर फिर मैंने वही किया जो मुझे शुरू से ही करना चाहिए था। मैंने येशु से मदद मांगी। मैंने येशु से प्रार्थना की कि वह मेरे विश्वास को, और उसके प्रति मेरे प्यार को वास्तविक और मूर्तरूप देने में मदद करे।
परछाइयाँ बढ़ती गईं, और पवित्र संस्कार की सोने से अलंकृत प्रदर्शिका के दोनों ओर की मोमबत्तियाँ टिमटिमाने लगीं। मैं अपने प्रभु की ओर निहारती रही, अपने मन को केवल उसी पर केंद्रित रखने की कोशिश करती रही।
उसकी उपस्थिति में प्राप्त प्रेम और आनंद
पवित्र संस्कार पर छा रही परछाइयों से उसकी दाहिनी ओर एक अद्भुत तस्वीर उभरती गयी जो हमारे प्रभु येशु ख्रीस्त के समान प्रतीत हो रही थी। यह उन पुराने विक्टोरियन प्रोफ़ाइल चित्रों जैसा था, जो परछाई में प्रभु के चेहरे की छवि जैसी स्पष्ट तस्वीर थी।
मेरे सामने एक पुरुष का सिर और कंधा दिखाई दे रहा था, उसका सिर झुका हुआ था और वह बाईं ओर देख रहा था। पृष्ठभूमि की कुछ परछाइयों ने मिलकर अस्पष्ट आकृतियाँ बना ली थीं और इसमें कोई संदेह नहीं था कि इस पुरुष का बाल कन्धों तक लटका हुआ था और उसके माथे के ऊपर कुछ लकीरें थीं।
यह वही था। क्रूस पर लटकाया गया प्रभु। वहाँ, पवित्र संस्कार की प्रदर्शिका पर, येशु की वास्तविक उपस्थिति को अतिव्यापित करते हुए, मेरे उद्धारकर्ता की छायादार रूपरेखा थी, जो क्रूस पर मेरे लिए अपना प्यार बरसा रहा था। और मैं उसके प्रेम और आनंद में सराबोर थी |
प्रेम में सुस्थिर
मैं इतनी अभिभूत और अचंभित हो गयी थी कि मैंने प्रभु के साथ निर्धारित समय से अधिक समय बिताया। मेरी थकान दूर हो गई और मैं प्रभु की प्रेममय उपस्थिति का आनंद लेना चाहती थी। मैं कभी भी येशु से उतना प्यार नहीं कर सकती जितना वह मुझसे प्यार करता है, लेकिन मैं नहीं चाहती कि वह कभी भी मेरे प्यार पर संदेह करे।
पंद्रह साल पहले की उस शाम, प्रभु येशु ने हमारे विश्वास पर एक महत्वपूर्ण सच्चाई प्रदर्शित की थी और वह यह थी कि यदि हमारा विश्वास उसके प्रेम में सुरक्षित रूप से सुस्थिर नहीं है तो वह फलदायी नहीं है।
कुछ बातें जो सही हैं उन्हें वैसा करना सही है, लेकिन उन्हीं बातों को परमेश्वर के प्रेम के लिए करना इस संदर्भ में और भी सार्थक हो जाता है |

हम में से कई लोग लूकस के सुसमाचार (लूकस 18:9-14) के दृष्टांत से परिचित हैं जो फरीसी और चुंगी लेनेवाले की प्रार्थनाओं को नाटकीय और एक दूसरे से विपरीत रूप से प्रस्तुत करता है। जब हम उनकी प्रार्थनाओं की तुलना करते हैं, तो शायद हम अपनी पहचान फरीसी की प्रार्थना के साथ कर सकते हैं जो ईश्वर को धन्यवाद देता है कि वह उस चुंगी लेने वाले की तरह पापी नहीं था। उस प्रार्थना में निहित आत्मतुष्टि के भाव तथा श्रेष्ठता के भाव को पहचाने बिना ही हमने स्वयं को उदार समझते हुए ऐसी प्रार्थना की होगी। इसके विपरीत येशु चुंगी लेने वाले की विनम्र प्रार्थना की प्रशंसा करते हैं जिसकी विनम्रता और ईमानदारी उसे न्याय के साथ सानंद घर जाने की अनुमति देती है।
यदि हम चुंगी लेने वाले का रवैया अपनाएंगे, तो हम अन्य लोगों के साथ अन्याय नहीं करेंगे। यदि हम ईमानदारी से स्वयं को पापी के रूप में देखते हैं, तो हम दूसरे पर दोष कैसे लगा सकते हैं? दूसरों को दोष देना या उनकी अंतिम नियति का आकलन करना श्रेष्ठता के दृष्टिकोण यानि अहंकार की भावना से आता है और हम कह सकते हैं कि यह अहंकार ही पहला पाप और सब से बड़ा पाप था। हमारा प्रभु अंतिम क्षण तक दया का द्वार हमेशा खुला रखता है।
जैसे-जैसे हम अपना दिन गुजारते हैं, क्या हम यह विचार करना बंद कर देते हैं कि कितनी बार हम बाहरी धारणाओं के आधार पर दूसरों का मूल्यांकन करते हैं, जब कि प्रभु उनके दिलों के भीतर देखते हैं। क्या आप कभी समाचार देखते या पढ़ते समय स्वयं को दूसरों की निंदा करते हुए पाते हैं? कितनी बार किसी व्यक्ति की जाति, धर्म, यौन रुझान, या कोई अन्य गुण जो हम से भिन्न होता है, हमें उस पर दोष लगाने या नकारात्मक निर्णय देने का कारण बनता है?
दुर्भाग्य की बात है कि हम में से बहुत से लोग अपने कार्यों और प्रेरणाओं की बारीकी से जांच करने में विफल रहते हुए दूसरों को आंकने की गंभीरता का एहसास नहीं करते हैं। सुसमाचार में येशु बहिष्कृतों और पापियों को गले लगाते हैं। वह उन लोगों के प्रति प्रेम और स्वीकृति दिखाता है जिन्हें स्व-धर्मी फरीसियों और शास्त्रियों ने अस्वीकार कर दिया था। जब भी हम उन लोगों के साथ व्यवहार कर रहे हैं जो हम से अलग हैं या जिनके कार्यों से हमें ठेस पहुँचती है, तब पापियों के प्रति येशु की करुणा हमारे दिलों में भर जानी चाहिए।
जब हम विनम्रता पूर्वक महसूस करते हैं कि हम वास्तव में पापी हैं, तो हम खुद को ईश्वर की दया पर छोड़ देंगे और महसूस करेंगे कि कलवारी पर येशु ने जो खून बहाया था वह हमारे लिए, हमारे दुश्मनों केलिए और उन लोगों केलिए बहाया गया था जिनके लिए हम न्याय करने के इच्छुक हैं। वे भी बहुमूल्य आत्माएँ हैं जिन्हें येशु मुक्त करना चाहते हैं।
लोगों केलिए जब हम प्रार्थना करते हैं, तो आइए सब से पहले उनके प्रति अपना अभिवृति देखें। क्या हमारा रवैया करुणामय है या पूरी तरह से आलोचनात्मक है? प्रेमपूर्ण हृदय से निकली प्रार्थना न्याय से उत्पन्न प्रार्थना से अधिक लाभकर होगी।
आइए हम प्रभु से उन पलों केलिए क्षमा मांगें, जब हम ने दूसरों के साथ अन्याय किया था और उस से विनती करें कि वह हमें अपने जैसा दयालु हृदय प्रदान करें।
'
20 साल की उम्र में, एंथनी ने अपने माता-पिता को खो दिया। अब उसके पास एक बड़ी विरासत थी और अपनी बहन की देखभाल करने की जिम्मेदारी। लगभग उसी समय, एंथनी ने ख्रीस्तयाग के दौरान मत्ती के सुसमाचार से एक पाठ सुना, जहां येशु ने एक अमीर युवक से कहा, “यदि तुम पूर्ण होना चाहते हो, तो जाओ और अपना सब कुछ बेच दो और उस धन को गरीबों में बाँट दो।” एंथनी को विश्वास था कि वह धनी युवक वह स्वयं है। कुछ ही समय बाद, उसने अपनी अधिकांश संपत्ति दान कर दी, बाकी जो कुछ था, लगभग सब कुछ बेच दिया, और केवल उतना ही रखा जितना उसे अपनी और अपनी बहन की देखभाल के लिए चाहिए था। परन्तु यह बिल्कुल वैसी नहीं है जैसी प्रभु ने आज्ञा दी थी!
कुछ समय बाद, एंथनी एक बार फिर ख्रीस्तयाग में भाग ले रहा था और उसने सुसमाचार का अंश सुना, “कल की चिंता मत करो; कल अपनी चिंता स्वयं कर लेगा” (मत्ती 6:34)। फिर से, वह जानता था कि येशु सीधे उससे बात कर रहे थे, इसलिए उसने जो कुछ बचाया था, उसे भी दे दिया, अपनी बहन की देखभाल के लिए, उसे कुछ भक्त महिलाओं को सौंप दिया, और गरीबी, एकांत, प्रार्थना और वैराग्य का जीवन जीने के लिए रेगिस्तान में चला गया। .
उस कठोर रेगिस्तानी वातावरण में, शैतान ने उस पर अनगिनत तरीकों से यह कहते हुए हमला किया, “सोचो कि जो पैसा तुमने दान में बाँट दिया था, तुम उस पैसे से कितना बढ़िया मजेदार कार्य कर सकते थे!” प्रार्थना और वैराग्य में दृढ़, एंथनी ने शैतान और उसके उत्पीड़नों से लड़ाई लड़ी। बहुत से लोग एंथनी की प्रज्ञा से आकर्षित हुए, और उन्होंने उन्हें आत्म-त्याग और तपस्वी जीवन की तलाश करने के लिए प्रोत्साहित किया। कोई आश्चर्य नहीं कि उनकी मृत्यु के बाद वे महान संत एंथनी या रेगिस्तान के संत एंथनी बन गए, जो ईसाई मठवासी परंपरा के पितामाह मने जाते हैं।
एक बार एक बंधु ने संसार को त्याग कर अपना माल गरीबों को दे दिया, लेकिन अपने निजी खर्चों के लिए कुछ अपने पास रखे रहा। वह अब्बा एंथनी से मिलने गया। जब उसने पितामह एंथनी को यह बताया, तो बूढ़े एंथनी ने उससे कहा, “यदि आप एक तपस्वी बनना चाहते हैं, तो गाँव में जाएँ, कुछ मांस खरीदें, अपने नग्न शरीर को इससे ढँक लें और यहाँ उसी तरह आ जाएँ।” उस बंधु ने ऐसा ही किया, और कुत्तों और पक्षियों ने उसका मांस नोच डाला। जब वह वापस आया तो बूढ़े एंथनी ने उससे पूछा कि क्या उसने उसकी सलाह का पालन किया है। उसने उन्हें अपना घायल शरीर दिखाया, और संत एंथनी ने कहा, “जो दुनिया को त्याग देते हैं, लेकिन अपने लिए कुछ रखना चाहते हैं, वे उन पर युद्ध करनेवाले दुष्टात्माओं द्वारा इस तरह से फाड़े जाते हैं।”
'