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प्रश्न – येशु मसीह को हमारे लिए क्यों मरना पड़ा? यह क्रूर लगता है कि हमें बचाने के लिए पिता को अपने इकलौते बेटे की मृत्यु की आवश्यकता होती है। क्या कोई और रास्ता नहीं था?
उत्तर – हम जानते हैं कि येशु की मृत्यु ने हमें अपने पापों से क्षमा कर दिया। लेकिन क्या यह आवश्यक था; और इस से हमारा उद्धार कैसे पूरा हुआ?
इस पर विचार करें: यदि स्कूल में कोई छात्र अपने सहपाठी को मुक्का मार दे, तो स्वाभाविक परिणाम यह होगा कि उसे एक निश्चित सजा दी जाएगी – शायद उसे हिरासत में ले लिया जाएगा, या निलंबित किया जाएगा। लेकिन अगर वही छात्र किसी शिक्षक को मुक्का मार दे, तो सज़ा अधिक गंभीर होगी – शायद स्कूल से निकाल दिया जाएगा। यदि वही छात्र राष्ट्रपति को मुक्का मार दे, तो संभवतः उन्हें जेल जाना पड़ेगा। जिसे ठेस पहुंची है, उसकी गरिमा पर निर्भर करते हुए परिणाम बड़ा होगा।
तो फिर, सर्व-पवित्र, सर्व-प्रेमी ईश्वर को अपमानित करने का परिणाम क्या होगा? जिसने आपको बनाया और चाँद सितारों की सृष्टि की, वह समस्त सृष्टि द्वारा पूजा और आराधना पाने का हकदार है – जब हम उसे अपमानित करते हैं, तो स्वाभाविक परिणाम क्या होता है? अनन्त मृत्यु और विनाश, पीड़ा और उस प्रभु से अलगाव। इस प्रकार, ईश्वर का हम पर मृत्यु का ऋण है। लेकिन हम इसके बदले उसे कुछ नहीं दे पाए – क्योंकि वह असीम रूप से भला है, हमारे अपराध ने हमारे और उसके बीच एक अनंत खाई पैदा कर दी। हमें किसी ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता थी जो अनंत और परिपूर्ण हो, लेकिन मानवीय भी हो (क्योंकि कर्ज चुकाने के लिए उन्हें मरना होगा)।
केवल येशु मसीह ही इस वर्णन में योग्य बैठते हैं। अनन्त विनाश की ओर ले जाने वाले अवैतनिक ऋण में हम फंसे हुए हैं यह देखकर, अपने महान प्रेम से, वह वास्तव में मनुष्य बन गया, ताकि वह हमारी ओर से हमारा ऋण चुका सके। महान ईशशास्त्री संत एंसलम ने ‘कुर देउस होमो’ (ईश्वर मनुष्य क्यों बने?) शीर्षक से एक संपूर्ण ग्रंथ लिखा था,, और उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि ईश्वर मनुष्य बने ताकि वह उस ऋण को चुका सके जो हम पर था लेकिन हम उस ऋण को चुका नहीं सके, इसलिए हमें ईश्वर से मेलमिलाप कराने केलिए येशु जो स्वयं ईश्वर और मानवता का पूर्ण मिलन है, उसे मनुष्य बनना पड़ा।
इस पर भी विचार करें: यदि ईश्वर सभी जीवन का स्रोत है, और पाप का अर्थ है कि हम ईश्वर से मुंह मोड़ लेते हैं, तो हम क्या चुन रहे हैं? मौत! वास्तव में, संत पौलुस कहते हैं कि “पाप की मज़दूरी मृत्यु है” (रोमी 6:23)। और पाप संपूर्ण व्यक्ति की मृत्यु लाता है। हम देख सकते हैं कि वासना के कारण लैंगिक बीमारियाँ फैल सकती हैं और लोगों के दिल टूट सकती हैं; हम जानते हैं कि पेटूपन ऐसी जीवनशैली बन सकती है, जो स्वास्थ्य केलिए बहुत ही हानिकारक है, ईर्ष्या हमें ईश्वर द्वारा दिए गए उपहारों के प्रति असंतोष की ओर ले जाती है, लालच हमें अत्यधिक काम करने और आत्म-भोग के लिए प्रेरित कर सकता है, और अहंकार एक दूसरे के साथ और ईश्वर के साथ हमारे संबंधों को तोड़ सकता है। ऐसे में, पाप वास्तव में घातक और मौत का बुलावा है!
तो, हमें फिर से जीवन में लाने के लिए एक मृत्यु की आवश्यकता होती है। जैसा कि पुण्य शनिवार को दिए गए एक प्राचीन उपदेश में येशु के दृष्टिकोण का वर्णन इस तरह किया गया था, “मेरे चेहरे पर पड़े थूक को देखो, यह इसलिए है ताकि तुम सृष्टि में उस प्रथम दिव्य श्वास को पुनः प्राप्त कर सको। मेरे गालों पर पड़े प्रहारों को देखो, जिन्हें मैंने तुम्हारे विकृत रूप को अपनी छवि में नया रूप देने के लिए स्वीकार किया। मेरी पीठ पर कोड़े की मार देखो, जिन्हें मैंने इसलिये स्वीकार किया ताकि तुम्हारी पीठ पर लादे गए तुम्हारे पापों के बोझ को मैं दूर कर दूँ। बुराई और पाप के लिये तुमने अपने हाथ वृक्ष की ओर बढ़ाया, तो बदले में देखो, तुम्हारे लिए, तुम्हारी मुक्ति केलिए वृक्ष पर कीलों से ठोंके गए मेरे हाथ।”
अंत में, मेरा मानना है कि येशु की मृत्यु हमें उनके प्रेम की गहराई दिखाने के लिए आवश्यक थी। यदि उन्होंने केवल अपनी उंगली चुभाई होती और अपने बहुमूल्य रक्त की एक बूंद भी बहा दी होती (जो हमें बचाने के लिए पर्याप्त है), तो हम सोचते कि वह हमसे इतना प्यार नहीं करता। लेकिन, जैसा कि संत पाद्रे पियो ने कहा: “जिससे आप प्यार करते हैं उसके लिए कष्ट सहना ही प्यार का प्रमाण है।” जब हम उन अविश्वसनीय कष्टों को देखते हैं जिन्हें येशु ने हमारे लिए सहे, तो हम एक पल के लिए, ईश्वर हमसे प्यार करता है, इस सत्य पर संदेह नहीं कर सकते हैं। ईश्वर हमसे इतना प्यार करता है कि वह हमारे बिना अनंत काल बिताने के बजाय मर जाना पसंद करेगा।
इसके अलावा, हमारी पीड़ा में उनकी पीड़ा हमें राहत और सांत्वना देती है। हमारे जीवन में ऐसी कोई पीड़ा और दुःख नहीं है जिससे येशु पहले ही न गुजरा हो। क्या आप शारीरिक कष्ट में हैं? येशु ने भी ऐसे कष्ट झेला था। क्या आपको सिरदर्द है? येशु के सिर पर कांटों का ताज पहनाया गया। क्या आप अकेला और परित्यक्त महसूस कर रहे हैं? उनके सभी मित्रों ने उन्हें छोड़ दिया था और उनका इन्कार कर दिया था। क्या आपको लज्जा महसूस होती है? सबके उपहास के लिए उसे नंगा कर दिया गया था। क्या आप चिंता और भय से जूझते हैं? येशु इतने चिंतित थे कि उन्होंने गेथसेमनी बाग में खून पसीना बहाया। क्या आप दूसरों से इतने आहत हुए हैं कि आप क्षमा नहीं कर सकते? येशु ने अपने पिता से अपने हाथों में कील ठोंकने वाले लोगों को क्षमा करने के लिए कहा। क्या आपको ऐसा लगता है जैसे ईश्वर ने आपको त्याग दिया है? येशु ने स्वयं ऊंची आवाज़ में कहा: “हे ईश्वर, हे मेरे ईश्वर, तू ने मुझे क्यों त्याग दिया?”
इसलिए हम कभी नहीं कह सकते: “हे ईस्वर, तू नहीं जानता कि मैं किस दौर से गुज़र रहा हूँ!” क्योंकि वह हमेशा जवाब दे सकता है: “हाँ, मेरे प्यारे बच्चे, मैं जानता हूँ, । मैं वहां इन पीडाओं में रहा हूं—और इस समय मैं तुम्हारे साथ कष्ट भोग रहा हूं।”
यह जानकर कितनी सांत्वना मिलती है कि क्रूस ने ईश्वर को उन लोगों के करीब ला दिया है जो पीड़ित हैं! इस क्रूस ने हमारे लिए ईश्वर के अनंत प्रेम की गहराई दिखाई है! क्रूस ने हमें यह दिखाया है कि हमें बचाने के लिए ईश्वर कितनी दूर तक जा सकता है! इस क्रूस ने दिखाया है कि येशु ने हमारे पाप का कर्ज़ चुका दिया है ताकि हम उसके सामने क्षमा प्राप्त और छुटकारा पाये हुए लोग बनकर उनके सामने खड़े हो सकें!
'गर्भधारण की बहुप्रतीक्षित खुशखबरी से आनंदित होने के बाद 12वें सप्ताह के नियमित अल्ट्रासाउंड के दौरान उनकी दुनिया उलट-पुलट हो गई
हमारी पहली संतान मैरी ग्रेस बड़ी हो रही थी और खूबसूरत बच्ची बन रही थी। हमारा परिवार और दोस्त सक्रिय रूप से हमारे दूसरे बच्चे के लिए प्रार्थना कर रहे थे, इसलिए गर्भावस्था के बारे में जानकर हमें बहुत खुशी हुई! आनुवंशिक परीक्षण के परिणाम सामान्य आए, और हमने बच्चे के लिंग को एक रहस्य के रूप में रखने की इच्छा से उसकी कोई जानकारी न लेने का निर्णय लिया ।
जब मैं 12वें सप्ताह के नियमित अल्ट्रासाउंड के लिए गई तो तकनीशियन ने मुझे बच्चे का साइड प्रोफाइल दिखाया और फिर तुरंत स्क्रीन को मेरी नज़रों से दूर कर दिया। वे मेरी बेटी ग्रेस को बाहर ले गए और मुझे तुरंत पता चल गया कि कुछ गड़बड़ है। मैंने सोचा: “हो सकता है कि मेरी कोख में पल रहे बच्चे को किसी प्रकार की हृदय संबंधी समस्या या दोष हो, लेकिन यह ठीक है। ईश्वर कुछ भी ठीक कर सकता है, और हम सर्जरी करा सकते हैं।” लेकिन एक डॉक्टर होने के नाते, मैंने प्रार्थना की: “हे ईश्वर, इसे एनेन्सेफली (अभिमस्तिष्कता) होने न दें।” (अभिमस्तिष्कता ऐसी बीमारी है जिसमें बच्चा मस्तिष्क और खोपड़ी के कुछ हिस्से के बिना जन्म लेता है)। चूँकि मैंने अल्ट्रासाउंड की एक झलक देखी थी, मुझे विश्वास था कि यह कुछ और होगा।
जैसे ही डॉक्टर कमरे में आये, मैंने कहा: “कृपया मुझे बताएं कि बच्चा जीवित है या नहीं।” अपने चेहरे पर गंभीरता दिखाते हुए, उन्होंने कहा: “हां, बच्चे के दिल की धड़कन सुनाई दे रही है, लेकिन सब कुछ अच्छा नहीं लग रहा है।” मैं रोने लगी और अपने पति को फेसटाइम पर कॉल किया। मुझे सबसे अधिक डर इसीसे था – हमारे बच्चे को एनेन्सेफली है, जो गर्भाशय में बच्चे के गंभीर दोषों में से एक हो सकता है, जहां खोपड़ी उचित रूप से विकसित नहीं होती है – और डॉक्टर ने मुझे बताया कि भ्रूण लंबे समय तक जीवित नहीं रहेगा।
यह हृदयविदारक खबर थी। यह अनमोल बच्चा, जिसका हम इतने वर्षों से इंतज़ार कर रहे थे, जीवित नहीं रहने वाला था! मैंने सोचा कि मेरी बड़ी बेटी कितनी उत्साहित थी। हमारी दैनिक पारिवारिक प्रार्थना में, वह कहती थी: “येशु, कृपया मुझे एक छोटा भाई या बहन दीजिए।” मैं मन में कहती रही: “हे प्रभु, तू ठीक कर सकता है, तू बच्चे को ज़रूर ठीक कर सकता है।”
मेरे पति तुरंत आये। शांत रहने की भरपूर कोशिश करते हुए, मैंने अपनी बेटी को बताया कि मैं खुशी के आँसू रो रही हूँ। मैं और क्या कह सकती थी?
डॉक्टर ने कहा कि हम गर्भ के भ्रूण को समाप्त कर सकते हैं। मैंने कहा, “बिल्कुल नहीं। जब तक बच्चा जीवित रहेगा, मैं उसे अपने पास रखूंगी। यदि यह 40 सप्ताह जीवित रहने वाला है, तो मैं उसे 40 सप्ताह अपने पास रहने दूंगी।” डॉक्टर ने मुझे चेतावनी दी कि मैं संभवतः इसे इतना लंबा नहीं रख पाऊँगी, और यदि गर्भ में बच्चा मर जाता है, तो मुझे गंभीर रक्त संक्रमण होने की संभावना थी। मुझे बार-बार जांच की ज़रूरत पड़ेगी, क्योंकि मेरे गर्भाशय में तरल पदार्थ का जमा होना बहुत खतरनाक हो सकता है। मैंने उनसे कहा कि मैं किसी भी बात का सामना करने के लिए तैयार हूं। शुक्र है, डॉक्टर के साथ अगली मुलाकातों में मुझ पर अधिक दबाव नहीं डाला गया। वे जानते थे कि मैंने पक्का फैसला कर लिया है!
आशा के लिए नियत
हम घर आये और एक साथ प्रार्थना करते हुए और रोते हुए समय बिताया। मैंने अपनी बहन को फोन किया, जो प्रसूति और स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर थी। उसने बहुत सारे दोस्तों को बुलाया, खासकर जो जीसस यूथ में सक्रिय थे, और उसी रात ऑनलाइन नौरोज़ी प्रार्थना शुरू की गयी। हमने बस अपनी बेटी से कहा कि बच्चे में “थोड़ा सा घाव है, लेकिन यह ठीक हो जाएगा।” हमने अपने माता-पिता या ससुराल वालों को नहीं बताया; मेरी बहन की एक महीने में शादी होने वाली थी और हम नहीं चाहते थे कि शादी प्रभावित हो। हमने यह भी सोचा था कि जिस ताकत के साथ इस दुःख को हमने संभाला था, उतनी ताकत से वे इसे नहीं संभाल पायेंगे।
पहले कुछ दिनों में, कई लोगों ने मुझसे बात की, जिससे मुझे ईश्वर की व्यवस्था पर भरोसा करने और यह विश्वास करने में मदद मिली कि ईश्वर ऐसा कुछ भी नहीं करता जो हमारे लिए अच्छा न हो। मुझे असीम शांति महसूस हुई। मैंने माँ मरियम के बारे में सोचा – देवदूत गाब्रियेल द्वारा की गयी घोषणा के समय अच्छी खबर प्राप्त करने की खुशी, और बाद में यह जानने का दुःख कि वह मरने वाला है। हमने उस दिन, रक्त के जांच वाले फाइल को खोलने का निर्णय लिया, जिससे बच्चे के लिंग का पता चला, क्योंकि हम चाहते थे कि अपने बच्चे के लिए एक नाम दिया जाये और उस नाम के साथ उसके लिए प्रार्थना की जाए।
हमने उसका नाम इवांजेलिन होप रखा, जिसका अर्थ है ‘अच्छी खबर लाने वाली’; क्योंकि, हमारे लिए, वह अभी भी मसीह के प्रेम और दया की आशा को प्रसारित करने वाली है। हमने एक बार भी उसका गर्भपात कराने के बारे में नहीं सोचा, क्योंकि वह न केवल हमारे लिए बल्कि हमारे सभी शुभचिंतकों के लिए एक अच्छी खबर, सुसमाचार थी – एक ऐसी बच्ची जो कई मायनों में दुनिया को सुसमाचार सुनाएगी।
मैं एक एनेंसेफली सहायता समूह में शामिल हो गयी, जिससे मुझे अपनी इस कठिन यात्रा में काफी मदद मिली। मैं कई लोगों से मिली, यहां तक कि उन नास्तिकों से भी, जिन्हें अपने बच्चों का गर्भपात कराने के फैसले पर गहरा अफसोस हुआ था। मैं उन महिलाओं के संपर्क में लायी गयी, जिन्होंने दान किए गए शादी के गाउन से परियों के गाउन सी दिया था। पेशेवर फोटोग्राफर लोगों से भी मेरा संपर्क हुआ, जो सुंदर तस्वीरों के माध्यम से मेरी बच्ची के जन्म का दस्तावेजीकरण करने के लिए स्वेच्छा से तैयार हुए।
हमने अपनी बहन की शादी के दौरान बच्चे के लिंग का खुलासा किया, लेकिन किसी को यह नहीं बताया कि बच्ची बीमार है। हम सिर्फ उसकी छोटी सी जिंदगी का सम्मान करना और जश्न मनाना चाहते थे। मेरी बहन और सहेलियों ने एक खूबसूरत शिशु-स्नान का (ज़िंदगी के उत्सव की तरह) भी आयोजन किया और उपहारों के बजाय, सभी ने उसके नाम पत्र लिखे जिन्हें प्रसव के बाद हम उसे पढ़कर सूना सकें।
सतत आराधना
मैं उसे 37वें सप्ताह तक अपने कोख में ढोती रही।
गर्भाशय की दीवार के फटने सहित जटिल प्रसव के बाद भी, इवांजेलिन जीवित पैदा नहीं हुई। लेकिन इसके बावजूद, मुझे याद है, मुझे स्वर्गीय शांति की गहरी अनुभूति महसूस हो रही थी। बहुत प्यार, सम्मान और आदर के साथ उसका स्वागत किया गया। एक पुरोहित और इवांजेलिन के धर्म माता पिता उससे मिलने का इंतज़ार कर रहे थे। वहाँ अस्पताल के कमरे में, हमने प्रार्थना, स्तुति और आराधना का एक सुंदर समय बिताया।
हमारे पास उसके लिए खूबसूरत पोशाकें थीं। हमने वे पत्र पढ़े जो सभी ने उसे लिखे थे। एक ‘सामान्य’ बच्चे को जितना सम्मान दिया जाता, उसकी तुलना में, अधिक गरिमा और सम्मान के साथ हम उसके साथ व्यवहार करना चाहते थे। हम रोए, क्योंकि हमें उसकी संगति नहीं मिली, और हम उस खुशी के कारण भी रोये, क्योंकि वह अब येशु के साथ थी। अस्पताल के उस कमरे में, हम सोच रहे थे, “वाह, हम स्वर्ग जाने के लिए बेसब्र हैं लेकिन अब तुरंत नहीं जा सकते। इसलिए, आइए हम सभी संतों के साथ वहां रहने की पूरी कोशिश करें।”
दो दिन बाद, हमने उसके लिए ‘जीवन का जश्न’ मनाया, जिसमें सभी ने सफेद कपड़े पहने। चार पुरोहितों द्वारा पवित्र मिस्सा अर्पित किया गया, और हमारी अनमोल बच्ची का सम्मान करने के लिए हमारे पास गुरुकुल के तीन पुरोहितार्थी और एक सुंदर गायक मंडली भी थी। इवांजेलिन को कब्रिस्तान में बच्चों के लिए बने फरिश्तों वाले हिस्से में दफनाया गया, जहाँ हम अभी भी अक्सर जाते हैं। हालाँकि वह इस धरती पर नहीं है, लेकिन वह हमारे जीवन का एक हिस्सा है। मैं येशु के करीब अपने को महसूस करती हूं क्योंकि मैं देखती हूं कि ईश्वर मुझसे कितना प्यार करता है और उसने इवांजेलिन को मेरे गर्भ में ढोने के लिए मुझे कैसे चुना।
मैं अपने को धन्य और सौभाग्यशाली मानती हूं। वह हमारे परिवार के लिए प्रभु की सतत आराधना करती है जिसके द्वारा हम सन्तों के बराबर लाये गए हैं। पवित्रता की इस स्थिति में कोई और तत्व हमें कभी नहीं ला सकता। यह ईश्वर की कृपा और उसकी इच्छा की पूर्ण स्वीकृति थी जिसने हमें इस पीड़ा से गुजरने की ताकत दी। जब हम ईश्वर की इच्छा को स्वीकार करते हैं, तो हमें किसी भी स्थिति से गुजरने के लिए जिन अनुग्रहों की ज़रुरत होती है, ईश्वर उन सारी कृपाओं की वर्षा करता है। हमें बस अपने आप को उसकी दयालुता और ईश विधान पर छोड़ देना है।
संतों का पालन पोषण
प्रत्येक अजन्मा बच्चा अनमोल है; स्वस्थ हो या बीमार, वे अभी भी ईश्वर के उपहार हैं। मेरे विचार में जो विशेष आवश्यकता वाले बच्चे हैं, वे “सामान्य” बच्चों से भी अधिक कीमती हैं, इसलिए मसीह की छवि में बने उन बच्चों से प्यार करने के लिए हमें अपना दिल खोलना चाहिए। उनकी देखभाल करना घायल मसीह की देखभाल करने जैसा है। विकलांग या विशेष आवश्यकता वाले बच्चे का होना एक सम्मान की बात है क्योंकि उनकी देखभाल करने से हमें जीवन में कुछ हासिल करने से भी बढ़कर पवित्रता की गहरी स्थिति तक पहुंचने में मदद मिलेगी। यदि हम इन बीमार अजन्मे बच्चों को उपहार – शुद्ध आत्मा रुपी उपहार – के रूप में देख सकें तो हमें नहीं लगेगा कि यह बोझ है। आप अपने भीतर एक ऐसे संत बैठाएंगे जो सभी देवदूतों और संतों की संगति में बैठा होगा।
हम वर्तमान में एक बच्चे (गेब्रियल) की उम्मीद कर रहे हैं, और मुझे ईश्वर पर भरोसा है कि अगर उसे कुछ बीमारी हो भी जाती है, तो भी हम उसे खुले दिल और खुली बाहों से प्राप्त करेंगे। सबका जीवन एक अनमोल उपहार है, और हम जीवन के सृष्टिकर्ता नहीं हैं। हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि ईश्वर देता है और ईश्वर लेता है। उस प्रभु ईश्वर के नाम की महिमा हो!
'जब मैं छोटी थी तब पवित्र मिस्सा बलिदान में पढ़ा गया धर्मग्रंथ पाठ सुनने में मुझे हमेशा अच्छा लगता था। हालाँकि, यह समझने में पेचीदा था, इसलिए मैंने इसे समझने में “बहुत कठिन” की सूचि में डाल दिया। इस तरह मैने पूरे धर्मग्रंथ को एक रहस्य के रूप में वर्गीकृत कर दिया और अपने आप से कहा, कि किसी दिन जब मैं ईश्वर के साथ स्वर्ग में रहूंगी, तब इसे समझा जाएगा।
बाद में, एक युवती के रूप में, मैंने सन्त जेरोम द्वारा दिए गए जीवन बदलने वाले उद्धरण को सुना: “धर्मग्रंथ की अज्ञानता येशु मसीह की अज्ञानता है।” सन्त जेरोम मुझसे कह रहे थे कि मुझे “किसी दिन” का इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा। इसके बजाय, इसी क्षण मसीह को समझने और जानने के लिए ईश्वर की अनुमति मेरे लिए प्राप्त थी।
ईश्वर के वचन के साथ मेरी यात्रा एक पहेली को जोड़ने जैसी थी जो हर टुकड़े को सही जगह पर रखने के साथ ही स्पष्ट होती गई। धर्मग्रंथ से, विशेष रूप से सन्त योहन के सुसमाचार से पता चलता है कि ईश्वर का सर्वशक्तिमान शब्द, हर चीज का निर्माता, देहधारी हो गया क्योंकि वह मुझसे प्यार करता था। अपनी रचना के एक हिस्से के रूप में, वह चाहता है कि मैं उनकी बेटी बनूं, उनके राज्य की उत्तराधिकारी बनूं और अनंत काल तक उनके साथ शांति से रहूं।
हालाँकि, महिमा के राजा ने विनम्रतापूर्वक एक बालक के रूप में शरीर धारण करने का फैसला किया, वे कष्ट सहे और अपनी योजना को पूरी करने के लिए मेरे लिए क्रूस पर मर गए। पन्ने के प्रत्येक मोड़ के साथ, अज्ञानता का पर्दा हट जाता है जबकि उसके प्रति मेरी आस्था और प्रेम बढ़ता है; अब मैं जानती हूं कि मैं उसकी हूं।
पवित्र आत्मा की सहायता से, मैं दूसरों को प्रोत्साहित करने का प्रयास करती हूँ कि वे धर्मग्रंथ की समझ की कमी के कारण मसीह से अनभिज्ञ न रहें। कई वर्षों से, मैं और मेरे पति दूसरों को ईश्वर के वचन की ओर आकर्षित करने और देहधारी ईश्वर के पुत्र येशु को जानने की आशा में हमारी पल्ली में धर्मग्रंथ अध्ययन कार्यक्रम के समन्वयक का कार्य किया है।
'अँधेरी रात में हमें सबसे चमकीले तारे दिखाई देते हैं। आपकी ज्योति जलती रहे।
एक कच्ची गुफा की गहराई में एक शांत रात की कल्पना करें। वह गुफा शहर से इतनी करीब थी कि इसके किनारों पर बेथलेहम की गपशप सुनाई दे रही थी, लेकिन इतनी दूर भी थी कि वह गुफा अलग थलग महसूस होती है। भूसे से ढका वह अस्तबल, जिस में जानवरों की आवाज़ और गंदगी की तीव्र गंध है, लेकिन अंधेरे में डूबी हुई।
सुनो, ध्यान से सुनो, उस दबी हुई प्रार्थनाओं और फुसफुसाहटों को सुनो, अपनी माँ के स्तन से संतृप्ति के साथ दूध पीता एक बच्चा, हृष्ट-पुष्ट और अनमोल, अपनी माँ और पिता की गोद में। ऊपर, इस गुफा पर एक चमकदार आकाशीय रोशनी पड़ती है, यह एकमात्र संकेत बताता है कि यह एक शुभ घटना है।
यही बच्चा, जिसका अभी-अभी जन्म हुआ है वह अपनी मां द्वारा बुने गए, काढ़े गए कपड़ों में लिपटा हुआ है… अपनी माँ का दूध पीकर, वह शांति से विश्राम कर रहा है। बाहर, बेथलेहम के हलचल भरे शहर में, इस घटना की महानता का अंदाजा किसी को भी नहीं है।
एक गहरी, अँधेरी गुफा
ओर्थोडोक्स कलीसिया की परंपरा में येशु के जन्म की प्रतीकात्मक तस्वीर में एक गुफा की गहराई को दर्शाया गया है। यह दोतरफा है. पहले, हमारे प्रभु येशु के जन्म के समय अक्सर चट्टान को ऊबड़-खाबड़ काट कर अस्तबल बनाया जाता था। दूसरा अधिक प्रतीकात्मक है।
वास्तव में यह अँधेरी गुफा ही है जो प्रकाश, समय, स्थान और चट्टान को तोड़ते हुए – ईश्वर के पृथ्वी पर आने के उद्देश्य को, ख्रीस्त के प्रकाश को प्रदर्शित करती है। यह गुफा भी दिखने में कब्र जैसी ही है, जो उनकी पीड़ा और मृत्यु को दर्शाती है।
यहां इस एक तस्वीर में उस भूकंपीय घटना की हकीकत लिखी है जिसने इंसान की जिंदगी को हमेशा के लिए बदल दिया। अपनी दयालु माँ की गोद में लेटा यह प्यारा बच्चा “इस्राएल में बहुतों का पतन और उत्थान का कारण बनने और एक ऐसा चिन्ह ठहराया जाने के लिए निर्धारित किया गया है जिसका विरोध किया जायेगा।” ( लूकस 2: 34)
एक गहरा, अंधेरा दिल
हम सभी को एक गिरा हुआ मानव स्वभाव विरासत में मिला हुआ है। यह हमारी कामवासना है – पाप के प्रति हमारा झुकाव – जो हमारे हृदयों को अँधेरा कर देता है। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि हम मत्ती के सुसमाचार में यह उपदेश पाते हैं: “धन्य हैं वे जो हृदय के निर्मल हैं, क्योंकि वे ईश्वर के दर्शन करेंगे” (मत्ती 5:8)।
हम शायद यह सोचना चाहेंगे कि यदि हम येशु के समय में जीवित होते, तो हम उसे अपने बीच में पहचानने में असफल नहीं होते। लेकिन मुझे डर है कि यह विचार, घमंड भरा विचार है। इसकी बहुत अधिक संभावना है कि जब तक हमारा विश्वास एक ठोस आधार पर नहीं बना होता और हम येशु के आगमन के लिए तैयार नहीं होते, तब तक हमें उसे ढूंढने में परेशानी होती, भले ही वह हमारे सामने ही क्यों न खड़ा हो।
और कभी-कभी, जब वह ठीक हमारे सामने होता है, तो हम उसे देखने में असफल हो जाते हैं। क्या हम वास्तव में प्रभु भोज में उसे पहचानते हैं? या गरीबों के कष्टकारी वेश में? या यहां तक कि हमारे आस-पास के लोगों में भी — खासकर उन लोगों में जो हमें परेशान करते हैं?
हमेशा नहीं। और शायद लगातार भी नहीं. लेकिन उसके लिए उपाय हैं।
प्रकाश को प्रतिबिंबित करें
संत जोसे मारिया एस्क्रिवा हमें सावधान करती हैं: “यह मत भूलो कि हम इस प्रकाश का स्रोत नहीं हैं: हम केवल इसे प्रतिबिंबित करते हैं।” यदि हम अपने हृदय को एक दर्पण के रूप में सोचते हैं, तो हमें एहसास होता है कि उस जगह छोटे-छोटे निशान भी प्रतिबिंब को बदल देंगे। दर्पण जितना अधिक गंदा हो जाता है, उतना ही कम हम दूसरों को मसीह का प्रकाश प्रतिबिंबित करते हैं। हालाँकि, यदि हम नियमित रूप से दर्पण की सफाई बनाए रखें, तो इसका प्रतिबिंब किसी भी तरह से धुंधला नहीं होता है।
तो फिर, हम अपने हृदयों को कैसे साफ़ रखें? इस क्रिसमस पर इन पाँच सरल कदमों को आज़माएँ, ताकि हमारे दिल इतने साफ़ हो जाएँ कि वे उस बच्चे, शांति के राजकुमार की रोशनी को दूसरों तक प्रतिबिंबित कर सकें। आइए हम उसे गुफा में, दुनिया में और अपने आस-पास के लोगों में पहचानें ।
1. निर्मल ह्रदय के लिए प्रार्थना करें
हमारे प्रभु से पाप के लोभ का संघर्ष से बाहर निकलने और अपनी दैनिक प्रार्थना की आदतों को मजबूत करने के लिए कहें। प्रभु भोज में उनको सम्मानपूर्वक स्वागत करें ताकि वह आपको ग्रहण कर सके। “ईश्वर! मेरा ह्रदय फिर शुद्ध कर और मेरा मन फिर सुदृढ़ बना।” (स्तोत्र ग्रन्थ 51:1१)।
2. विनम्रता का अभ्यास करें
आप अपनी आध्यात्मिक यात्रा में कई बार लड़खड़ाएँगे। पाप स्वीकार संस्कार के लिए बार-बार जाएँ और आध्यात्मिक मार्गदर्शन के लिए एक अच्छे, पवित्र पुरोहित की तलाश करें।
3. सुसमाचार पढ़ें
सुसमाचार पढ़ना और उस पर मनन करना गहरी समझ और हमारे प्रभु के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने के अद्भुत तरीके हैं। “ईश्वर के पास जाएँ, और वह आपके पास आएगा।” (याकूब 4:8)
4. प्रकाश को ग्रहण करे
मसीह और उनकी कलीसिया की शिक्षाओं को खुशी से और प्रेमपूर्वक स्वीकार करें, भले ही यह कठिन हो। जब आप सुनिश्चित नहीं हों कि आपसे क्या अपेक्षा की जा रही है तो स्पष्टता और समझ पाने के लिए प्रार्थना करें।
5. अंधेरे को हटाओ
कलकत्ता की संत मदर तेरेसा ने एक बार कहा था: “जो शब्द येशु मसीह की रोशनी नहीं देते, वे शब्द अंधकार को बढ़ाते हैं।” इसका तात्पर्य है, यदि हम जो भी बातचीत करते हैं या जिस मीडिया का हम ज़्यादा उपयोग करते हैं, वे हम तक मसीह का प्रकाश नहीं ला रहे हैं, तो इसका मतलब है कि वे विपरीत कार्य कर रहे हैं। जिन मनोरंजन या प्रभावी तत्वों के प्रति यदि हम सम्वेदनशील और सतर्क रहते हैं, तो हम मसीह के प्रकाश को प्रतिबिंबित नहीं करने वाले माध्यमों से लोगों का ध्यान हटाकर सत्य ज्योति की ओर ध्यान केन्द्रित करने में उनकी मदद करते हैं।
'हम सभी कभी न कभी ईश्वर से जूझते हैं, लेकिन हमें वास्तव में शांति कब मिलती है?
हाल ही में, एक संघर्षरत मित्र ने मुझसे कहा: “मुझे यह भी नहीं पता कि किस बात के लिए प्रार्थना करनी है।” वह प्रार्थना करना चाहती थी, लेकिन वह कुछ ऐसी बात माँगते-माँगते थक गई थी जो नहीं मिल रह थी। मुझे तुरंत संत पीटर जूलियन आइमार्ड की यूखरिस्तिक तरीके की प्रार्थना याद आयी। वे हमें प्रार्थना के समय को मिस्सा बलिदान के चार छोरों के अनुसार ढालने के लिए आमंत्रित करता है: आराधना, धन्यवाद, प्रायश्चित और निवेदन।
एक बेहतर तरीका
प्रार्थना सिर्फ़ माँगने से कहीं ज़्यादा है, फिर भी कई बार ऐसा होता है जब हमारे प्रियजनों के बारे में हमारी ज़रूरतें और चिंताएँ इतनी ज़्यादा होती हैं कि हम सिर्फ़ माँगते हैं, माँगते हैं, विनती करते हैं और फिर कुछ और माँगते हैं। हम कह सकते हैं: “येशु, मैं इसे तेरे हाथों में छोड़ता हूँ,” लेकिन 30 सेकंड बाद, हम इसे ईश्वर के हाथों से छीन लेते हैं और समझाने लगते हैं कि हमें इसकी फिर से ज़रूरत क्यों है। हम चिंता करते हैं, परेशान होते हैं और नींद खो देते हैं। हम लंबे समय तक माँगना बंद नहीं करते इसलिए ईश्वर हमारे थके हुए दिलों में जो बात फुसफुसा रहा है, उसे हम सुन नहीं पाते हैं। हम कुछ समय तक ऐसे ही घूमते रहते हैं, और ईश्वर हमें जाने देता है। वह हमारे थक जाने का इंतज़ार करता है, यह महसूस करने के लिए कि हम उससे मदद नहीं माँग रहे हैं, बल्कि हम उसे यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि उसे हमारी मदद किस किस तरह करने की ज़रूरत है। जब हम संघर्ष करते-करते थक जाते हैं और आखिरकार हार मान लेते हैं, तो हम प्रार्थना करने का एक बेहतर तरीका सीख जाते हैं।
फिलिप्पियों को लिखे अपने पत्र में, संत पौलुस हमें निर्देश देते हैं कि हमें परमेश्वर से अपनी याचनाएँ किस तरह से करनी चाहिए: “किसी भी बात की चिन्ता मत करो; परन्तु हर बात में प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ अपने निवेदन परमेश्वर को प्रकट करो। तब परमेश्वर की शान्ति, जो हमारी समझ से बिलकुल परे है, तुम्हारे हृदय और विचारों को मसीह येशु में सुरक्षित रखेगी।” (4:6-7)
झूठ का मुकाबला करें
हम चिंता क्यों करते हैं? हम उत्कंठा में क्यों पड़ जाते हैं? क्योंकि, संत पेत्रुस की तरह, जिन्होंने येशु को देखना बंद कर दिया और डूबने लगे (मत्ती 14:22-33), हम भी सत्य को भूल जाते हैं और झूठ को सुनने का निर्णय लेते हैं। हर चिंता पूर्ण सोच की जड़ में एक बड़ा झूठ छिपा होता है — कि ईश्वर मेरी देखभाल नहीं करेगा, कि जो भी समस्या मुझे अभी परेशान कर रही है वह ईश्वर से बड़ी है, कि ईश्वर मुझे छोड़ देगा और मुझे भूल जाएगा … कि आखिरकार मुझसे प्यार करने वाला मेरा कोई पिता नहीं है।
हम इन झूठों का मुकाबला कैसे करें? सत्य के साथ।
सेंट पीटर जूलियन आइमार्ड याद दिलाते हैं, “हमें सरल और शांत दृष्टिकोण से ईश्वर की सच्चाइयों के बारे में अपने दिमाग के काम को सरल बनाना चाहिए।”
सत्य क्या है? मुझे संत मदर तेरेसा का उत्तर पसंद है: “विनम्रता ही सत्य है।” धर्मशिक्षा हमें बताती है कि “विनम्रता प्रार्थना का आधार है।” प्रार्थना हमारे दिल और दिमाग को ईश्वर की ओर उठाता है। यह एक वार्तालाप है, एक रिश्ता है। मैं किसी ऐसे व्यक्ति के साथ संबंध में नहीं रह सकती जिसे मैं नहीं जानती। जब हम अपनी प्रार्थना विनम्रता से शुरू करते हैं, तो हम ईश्वर कौन है और हम कौन हैं, इस सत्य को स्वीकार करते हैं। हम पहचानते हैं कि, अपने आप में, हम पाप और दुख के अलावा कुछ नहीं हैं, लेकिन ईश्वर ने हमें अपनी संतान बनायी है और उसमें हम सब कुछ कर सकते हैं (फिलिप्पी 4:13)।
यह वह विनम्रता, वह सत्य है, जो हमें पहले आराधना, फिर धन्यवाद, फिर पश्चाताप और अंत में निवेदन तक ले जाती है। यह उस व्यक्ति की स्वाभाविक प्रगति है जो पूरी तरह से ईश्वर पर निर्भर है। इसलिए जब हम नहीं जानते कि ईश्वर से क्या कहना है, तब हम उसकी स्तुति करें और उसके नाम की महिमा करें। आइए हम ईश्वर के सभी आशीर्वादों के बारे में सोचें और उसके द्वारा हमारे लिए किए गए सभी कार्यों के लिए उसे धन्यवाद दें। इससे हमें यह भरोसा करने में मदद मिलेगी कि यह वही ईश्वर है, जो हमेशा हमारे साथ रहा है, आज भी यहाँ है और अच्छे समय और मुश्किल समय में हमेशा हमारे साथ है।
'मैं अपनी पुरानी प्रार्थना की डायरी देख रही थी, जिसमें मैंने प्रार्थना के लिए बहुत से अनुरोध लिखे थे। मुझे आश्चर्य हुआ कि उनमें से हर एक का उत्तर दिया गया!
आजकल खबरों पर सरसरी नज़र डालने वाला कोई भी व्यक्ति निराश हो सकता है, वह सोच सकता है कि ईश्वर कहाँ है, उसे लगता है कि प्रत्याशा की बड़ी ज़रूरत है। मुझे पता है कि मैंने खुद को कुछ दिनों में इस स्थिति में पाया है। हम अपने आप को नियंत्रण से बाहर महसूस करते हैं, और हम सोचते हैं कि हम उन सभी भयानक बातों के बारे में क्या कर सकते हैं जिनका हम इन दिनों सामना करते हैं। मैं आपके साथ एक घटना साझा करना चाहती हूँ।
कुछ साल पहले, जिन लोगों और बातों के लिए मैं प्रार्थना कर रही थी, मैंने उन प्रार्थना-अनुरोधों की एक डायरी रखनी शुरू की थी। मैं अक्सर इन बातों के लिए रोज़री माला की प्रार्थना करती थी, जैसा कि मैं आज भी प्रार्थना निवेदनों के लिए करती हूँ। एक दिन, मुझे अपनी लिखी हुई प्रार्थना अनुरोधों की एक पुरानी डायरी मिली। मैंने बहुत पहले लिखे गए मेरे उन पन्नों को पढ़ना शुरू किया। मैं चकित रह गयी। हर प्रार्थना का उत्तर मिला था – शायद हमेशा उस तरीके से नहीं, जैसा मैंने सोचा था, लेकिन ज़रूर उनका उत्तर मिला था। ये कोई छोटी-मोटी प्रार्थनाएँ नहीं थीं। “हे प्यारे परमेश्वर, कृपया मेरी चाची को शराब की लत से मुक्त कर। प्यारे ईश्वर, कृपया मेरी मित्र जो बांझ है, उसे बच्चे पैदा करने में मदद कर। प्यारे ईश्वर, कृपया मेरे दोस्त को कैंसर से चंगाई दे।”
जैसे ही मैंने हर पृष्ठ को ऊपर से नीचे की ओर नज़र दौड़ाई, मुझे एहसास हुआ कि हर एक प्रार्थना का उत्तर मिला था। कई प्रार्थनाएँ मेरी कल्पना से भी बड़े और बेहतर तरीके से सुनी गयीं। कुछ ऐसी भी थीं, जिनके बारे में पहली नज़र में मुझे लगा कि उनका उत्तर नहीं मिला है। एक दोस्त जिसे कैंसर से चंगाई की ज़रूरत थी, वह मर गई थी, लेकिन फिर मुझे याद आया कि मरने से पहले उसने मेलमिलाप का संस्कार और रोगियों का विलेपन संस्कार प्राप्त किया था। वह ईश्वर की दया का अनुभव करती हुई, अपनी चारों ओर ईश्वर की चंगाई की कृपा के आलोक में, शांति से गुज़र गई। इसके अलावा, ज़्यादातर प्रार्थनाएँ इस दुनिया में ही सुनी गईं। कई प्रार्थनाएँ असंभव पहाड़ों की तरह लग रही थीं, लेकिन उन पहाड़ों को हटा दिया गया। हमारी प्रार्थनाओं और प्रार्थना में हमारी दृढ़ता को ईश्वर अपनी कृपा में लेता है, और वह सभी बातों को भलाई की ओर ले जाता है। मेरी प्रार्थनामय मौन और शांत अवस्था में, मैंने एक फुसफुसाहट सुनी, “मैं इन सभी बातों पर समय-समय पर काम करता रहा हूँ। चमत्कारों की ये कहानियाँ मैं लिखता रहा हूँ। मुझ पर भरोसा करो।”
मेरा मानना है कि हम एक ख़तरनाक दौर में हैं। लेकिन मैं यह भी मानती हूँ कि हम ऐसे दौर के लिए बने हैं। आप मुझसे कह सकते हैं, “आपके व्यक्तिगत प्रार्थना अनुरोधों का उत्तर मिलना बहुत अच्छा लगता है, लेकिन विभिन्न राष्ट्र आपस में युद्ध लड़ रहे हैं।” और मेरा जवाब फिर से यही है कि, ईश्वर के लिए कुछ भी असंभव नहीं है, यहाँ तक कि हमारी प्रार्थनाओं का उपयोग करके युद्ध को रोकना भी असंभव नहीं है। मुझे याद है कि ऐसा पहले हुआ है। हमें विश्वास करना चाहिए कि ईश्वर अभी भी इससे बड़ा काम कर सकता है।
जो लोग याद करने के लिए पर्याप्त उम्र तक नहीं पहुंचे हैं, उनको मैं बताना चाहती हूँ कि कुछ वर्ष पहले एक डरावना दौर था जब ऐसा लग रहा था कि खूनी युद्ध होने वाला है। लेकिन रोज़री माला की शक्ति से, स्थिति बदल गई। मैं 8-वीं कक्षा में थी, और मुझे याद है कि फिलीपींस में सभी प्रकार के उथल-पुथल हो रहे थे। उस समय फ़र्डिनेंड मार्कोस उस देश के तानाशाही शासक थे। यह एक खूनी लड़ाई बनने जा रही थी जिसमें कुछ लोग पहले ही मर चुके थे। मार्कोस के एक कट्टर आलोचक, बेनिग्नो एक्विनो की हत्या कर दी गई। लेकिन यह खूनी लड़ाई नहीं हुई। मनीला के कार्डिनल जैम सिन ने लोगों से प्रार्थना करने को कहा था। लोग सेना के सामने गए, और ज़ोर ज़ोर से रोज़री माला की प्रार्थना करने लगे। वे सेना के लड़ाकू टैंकों के सामने खड़े होकर प्रार्थना कर रहे थे। और फिर, एक चमत्कारी घटना घटी। सेना ने अपने हथियार डाल दिए। यहां तक कि धर्म पर विश्वास नहीं करनेवाली मीडिया, शिकागो ट्रिब्यून ने भी रिपोर्ट की कि कैसे “बंदूकें रोज़री माला के सामने अभ्यर्पित की गईं।” क्रांति समाप्त हो गई, और परमेश्वर की महिमा दिखाई दी।
चमत्कारों पर विश्वास करना बंद न करें। उन की प्रतीक्षा करें। और हर मौके पर रोज़री माला की प्रार्थना करें। प्रभु जानता है कि हमारी दुनिया को इसकी ज़रूरत है।
'जब संघर्ष और दर्द रहता है, आगे बढ़ने के लिए हमें क्या प्रेरित करता है?
जब डॉक्टर मेरे 11-वर्षीय बेटे की मांसपेशियों की ताकत का परीक्षण कर रही थी, तब वह धैर्यपूर्वक जांच की मेज पर बैठा रहा। पिछले आठ वर्षों में, मैंने उस डॉक्टर को मेरे बेटे की त्वचा की जाँच करती और उसकी मांसपेशियों की ताकत का परीक्षण करती हुई देखा था, और हर बार, मेरे अंदर एक घबराहट पैदा हो जाती थी।
अपनी जांच समाप्त करने के बाद वे पीछे हटी, मेरे बेटे का सामना किया, और धीरे से वे शब्द बोले जिनसे मैं डरती थी: “तुम्हारी मांसपेशियां कमजोरी के लक्षण दिखा रही हैं। मेरा मानना है कि बीमारी फिर से सक्रिय हो गयी है।”
मेरे बेटे ने मेरी तरफ देखा और फिर अपना सिर लटका लिया। मेरा पेट मरोड़ गया। डॉक्टर ने अपना हाथ मेरे बेटे के कंधों पर रख दिया। “यहीं रुको, मैं जानती हूं कि पिछले कुछ वर्ष तुम्हारे लिए बहुत दर्दनाक रहे हैं, लेकिन हम उन पर पहले से कामयाब कर चुके हैं, और हम इस पर फिर से कामयाबी पा सकते हैं।
धीरे-धीरे साँस छोड़ती हुई, मैं अपने आप को स्थिर करने के लिए बगल वाली डेस्क पर झुक गयी। डॉक्टर ने पीछे मुड़कर मेरी ओर देखा. “आप ठीक हैं?”
“हाँ, मेरा बच्चा बड़ी अजीब स्थिति में है, बस इतना ही,” मैंने कहा।
“क्या आप बैठना नहीं चाहती?
एक रंगीन मुस्कान के साथ, मैं बुदबुदायी, “नहीं, मैं ठीक हूँ, धन्यवाद।”
वह वापस मेरे बेटे की ओर मुड़ी. “हम एक नई चिकित्सा आज़माने जा रहे हैं।”
“क्यों? पुरानी चिकित्सा इस केलिए अच्छी थी,” मैंने कहा।
“जी हाँ, अच्छी थी, लेकिन स्टेरॉयड की भारी खुराक शरीर पर कठोर काम करती है।”
मैंने सोचा, जब मैं वास्तव में उत्तर सुनना ही नहीं चाहती थी, तो मैंने प्रश्न क्यों पूछे।
“मुझे लगता है, अब एक अलग इलाज आज़माने का समय आ गया है।”
मेरे बेटे ने दूसरी ओर देखा और उत्सुकता से अपने घुटनों को रगड़ा।
“चिंता न करो, अनावश्यक उत्कंठा से बचने का प्रयास करो। हम इस पर नियंत्रण पा लेंगे।”
“ठीक है,” मेरे बेटे ने कहा।
“उस इलाज में कुछ कमियां हैं, लेकिन जो कमियाँ आएँगी हम उसे पूरा करेंगे।”
मेरा दिल मेरे सीने में धड़क उठा। कमियां?
वह मेरी ओर मुड़ी, “चलिए, खून की जाँच का कुछ काम करवा लें। मैं एक योजना बना लूंगी, और आपको एक सप्ताह में कॉल करूंगी।
एक चिंताजनक सप्ताह के बाद, डॉक्टर ने परीक्षण के परिणामों को बताने केलिए फोन किया। “मेरे संदेह की पुष्टि हो गई है। उसे बुखार हो रहा है, इसलिए हम तुरंत नई दवा शुरू करेंगे। हालाँकि, उसे कुछ कठिन दुष्प्रभावों का अनुभव हो सकता है।”
“दुष्प्रभाव?”
“हाँ।”
जैसे ही उसने संभावित दुष्प्रभाव गिनाए तो घबराहट फैल गई।
क्या मेरी प्रार्थनाओं का उत्तर दिया जा रहा था, या मैं धीरे-धीरे अपने बेटे को खो रही थी?
उन्होंने कहा, “अगर आपको इनमें से कोई भी दुष्प्रभाव नजर आए तो तुरंत मुझे फोन करें।”
मेरे गालों पर आँसू लुढ़क पड़े।
मैंने यह खबर अपने पति के साथ साझा किया और कहा, “मैं अभी ठीक नहीं हूं। मेरी अथिति ऐसी है मानो एक धागे से लटकी हुई हूं। बच्चे मुझे इस तरह नहीं देख सकते। मुझे ज़ोर से रोने की इच्छा हो रही है ताकि मैं अपने आप को संभाल लूं ।”
उन्होंने मेरे कंधों पर हाथ रखा और मेरी आँखों में देखते हुए कहा, “तुम कांप रही हो, मुझे तुम्हारे साथ चलना चाहिए। मैं नहीं चाहता कि तुम्हें समय से पूर्व प्रसव पीड़ा हो।”
“नहीं, मुझे कुछ नहीं होगा; मैं बिल्कुल ठीक हो जाउंगी. मुझे बस खुद को संभालने की ज़रूरत है।”
“ठीक है। मैंने यहां सब कुछ नियंत्रण में कर लिया है। सब ठीक होने जा रहा है।”
समर्पण…
प्रार्थनालय की ओर गाड़ी चलाते हुए, मैंने रोती हुई कहा, “मैं अब और अधिक झेल नहों सकती। इतना बहुत काफ़ी है। ईश्वर, मेरी मदद कर! मेरी सहायता कर!”
प्रार्थनालय में अकेली बैठकर, मैं दुःख से येशु को परम पवित्र संस्कार में देखती रही।
“येशु, कृपया, मेहरबानी से …यह सब बंद कर। मेरे बेटे को अब भी यह बीमारी क्यों है? उसे इतनी खतरनाक दवा क्यों लेनी पड़ती है? उसे कष्ट क्यों सहना पड़ता है? यह बहुत कठिन है। कृपया, येशु, कृपया उसकी रक्षा कर।
मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं और येशु के चेहरे की कल्पना की। मैंने एक गहरी साँस ली और मेरे मन और हृदय को उसकी कृपा से भरने की विनती की। जैसे ही मेरे आंसुओं की धार कम हुई, मुझे आर्च बिशप फुल्टन शीन की पुस्तक, ‘लाइफ ऑफ क्राइस्ट’ में येशु के शब्द याद आए। “मैंने ब्रह्मांड का निर्माण किया, मैंने ग्रहों को गति दी, और तारे, चंद्रमा और सूर्य मेरी आज्ञा का पालन करते हैं।” अपने मन में, मैंने उसे यह कहते हुए सुना: “सब कुछ मेरे अधीन है! तुम्हारे बेटे के इलाज का प्रभाव मेरे लिए कोई मुकाबला नहीं है। अपनी चिंताएं मुझ पर छोड़ दो। मुझ पर भरोसा करो।”
क्या ये मेरे विचार थे, या ईश्वर मुझसे बात कर रहे थे? मुझे यकीन नहीं था, लेकिन मुझे पता था कि ये शब्द सच थे; मुझे अपने डर को छोड़ना पड़ा और अपने बेटे की देखभाल के लिए ईश्वर पर भरोसा करना पड़ा। मैंने अपने डर को दूर करने के इरादे से गहरी सांस ली और धीरे-धीरे सांस छोड़ी। “येशु, मैं जानती हूं कि तू हमेशा मेरे साथ है। कृपया अपनी बांहें मेरे चारों ओर लपेट ले और मुझे आराम दे। मैं डर के कारण थककर चकनाचूर हो गयी हूँ।”
आया जवाब ….
अचानक, पीछे से दो बाहें मेरी चारों ओर लिपट गईं। यह मेरा भाई था!
“तुम यहां पर क्या कर रहे हो?” मैंने पूछ लिया।
“मैंने तुम्हें ढूंढते हुए घर पर फोन किया। मुझे लगा कि तुम यहां हो सकती हो. जब मैंने तुम्हारी कार पार्किंग में देखी, तो मैंने सोचा कि मैं अंदर आऊंगा और तुम्हें ढूंढ लूँगा।”
“मैं ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि वह मुझे अपनी बांहों में भर लें, तभी तुम आये और मुझे गले लगा लिया।”
उसकी आँखें खुली रह गईं। “सच?”
“हाँ, सच में!”
जैसे ही हम पार्किंग स्थल की ओर निकले, मैंने उसे मेरा हालचाल लेने के लिए धन्यवाद दिया। “तुम्हारा आलिंगन मुझे याद दिलाया कि ईश्वर प्रेमपूर्ण कार्यों द्वारा अपनी उपस्थिति प्रकट करता है। यहाँ तक कि जब मैं पीड़ित होती हूँ, तब भी वह देखता है, सुनता है और समझता है। उसकी उपस्थिति यह सब सहने योग्य बनाती है और मुझे उस पर भरोसा करने और उसे लिपट कर रहने में सक्षम बनाती है, इसलिए, आज मेरे लिए उसके प्यार का पात्र बनने के लिए धन्यवाद।
हम गले मिले और मेरी आँखों से आँसू लरझते रहे। ईश्वर की प्रेमपूर्ण उपस्थिति का जबरदस्त अहसास मुझे अंदर तक छू गया।
'क्या कोई विचार पाप बन सकता है? इस पर मनन करने का यह अवसर है।
जहां तक मेरी स्मृति पीछे की और जाती है, मैं एक अच्छी मसीही थी, कलीसिया के कार्यकलापों में शामिल हो रही थी, लेकिन कोई भी यह अनुमान नहीं लगा सका कि मैं सिर्फ बाहरी गतिविधियों से गुजर रही थी। हालाँकि, 2010 में, एक घटना ने गहराई तक मुझ में परिवर्तन ला दिया और मुझे पीड़ाओं के बीच ईश्वर की आवाज़ सुनने के लिए प्रेरित किया। इस प्रकाशन ने मुझे एक सच्चा मसीही बनने की यात्रा शुरू करने में मदद की।
वेरोनिका और मैं सिर्फ सबसे अच्छे दोस्त नहीं थीं; हम एक साथ घूमती थीं, क्योंकि हमारे बेटे हमें एक साथ लाये थे। लेकिन हम दोस्त थी जो वास्तव में एक-दूसरे को पसंद करती थी और हम माताएं थीं जो हमारे बच्चों से प्यार करती थीं। वेरोनिका मधुर, सुंदर और वास्तव में दयालु व्यक्ति थी। मेरा बेटा उसके बेटे का सबसे अच्छा दोस्त था।
28 अगस्त 2010 को वेरोनिका ने मुझे फोन किया और पूछा कि क्या मेरा बेटा उसके घर पर रात बिता सकता है। हालाँकि मैंने उसे पहले भी दर्जनों बार अनुमति दी थी, लेकिन उस रात, किसी कारण से, मैं व्याकुल थी। मैंने उससे ना कहा, लेकिन मैं ने यह भी कहा कि वह जा सकता है और दोपहर के बाद कुछ समय खेल सकता है और मैं उसे रात के खाने से पहले उठा लूंगी। लगभग 4 बजे, मैं उसे लेने के लिए वेरोनिका के घर गयी। जब मैं वेरोनिका के रसोई में खड़ी थी और हम दोनों अपने लड़कों के बारे में बात कर रही थी, उसने मुझे बताया कि उनमें से प्रत्येक एक उपहार था और वे कितने विशेष बच्चे थे। वह उन्हें उनकी पसंदीदा आइसक्रीम खरीदने के लिए किराने की दुकान पर ले गई थी। मेरा बेटा भी नाश्ता चाह रहा था, जिसे वेरोनिका ने उदारतापूर्वक उसके लिए खरीदा और उस में से कुछ मुझे घर ले जाने के लिए दिया। मैंने उसे धन्यवाद दिया और वहां से घर चली आयी।
अगली सुबह, जब मैं उठी, तब यह खबर सुनी कि वेरोनिका की हत्या कर दी गई है। वहीं, जहां मैं एक शाम पहले उससे बात कर रही थी… उसका पति जो उससे जल्दी ही तलक लेने वाला था, उसने उसकी हत्या करने के लिए एक हत्यारे को भाड़े पर रखा था, क्योंकि वे अलग हो गए थे। वास्तव में कौन जानता है कि और क्या क्या कारण था। मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरे पेट में मुक्का मार दिया गया हो। मैं साँस नहीं ले पा रही थी। मैं रोना बंद नहीं कर सकी।
अपनी पीड़ा में, मैं अपने सोने के कमरे के फर्श पर लेटकर रो रही थी, सचमुच चिल्ला रही थी। 39 साल की एक खूबसूरत युवा मां की हत्या कर दी गई, जिससे उसका 8 साल का बेटा मातृहीन हो गया। और किस लिए? मैंने पीड़ा और क्रोध में ईश्वर को पुकारा। तू ऐसा कैसे होने दे सकता है? क्यों प्रभु?
मेरी पीड़ा के बीच, एक विचार मेरे मन में आया। और जीवन में पहली बार मैंने इस विचार को ईश्वर की वाणी के रूप में पहचाना। ईश्वर ने कहा, “मैं यह नहीं चाहता; लोग इसे चुनते हैं।” मैंने ईश्वर से पूछा, “क्या, इस भयानक स्थिति में मैं क्या कर सकती हूँ?” उसने मुझे उत्तर दिया, “सूसन, दुनिया में अच्छाई की शुरुआत तुमसे होती है।” मैं सोचने लगी। मैंने सोचा कि कैसे मैंने वेरोनिका और उसके पति को गिरजाघर में एक साथ देखा था, और मुझे आश्चर्य हुआ कि जो व्यक्ति हत्या की साजिश रच रहा था वह गिरजाघर में कैसे जा सकता था। ईश्वर ने मुझे फिर उत्तर दिया।
ईश्वर ने मुझे बताया कि उसका पति शुरु से एक हत्यारा नहीं था, बल्कि उसका पाप उसके दिल में बढ़ गया था, अनियंत्रित हो गया था, और वह एक लंबे अंधेरे रास्ते पर ले जाया गया था। मुझे बाइबल का वचन याद आया, “परन्तु मैं तुम से कहता हूं – जो बुरी इच्छा से किसी स्त्री पर दृष्टि डालता है, वह अपने मन में उस के साथ व्यभिचार कर चुका है” (मत्ती 5:28)। उस क्षण, यह वचन मेरी समझ में आया। मैंने हमेशा सोचा था, “एक विचार पाप कैसे हो सकता है?” वेरोनिका की हत्या के बाद, मुझे यह सब समझ में आया। पाप आपके हृदय में शुरू होता है और जब आप उस पर अपने हाथों से कार्य करते हैं तो वह हावी हो जाता है। और अगर हम कभी भी अपने विवेक की जांच करने या यह सोचने के लिए समय नहीं निकालते हैं कि क्या सही है और क्या गलत है, तो ज़्यादा संभावना है कि हम वास्तव में गलत रास्ते पर चले जायें।
गूँजती आवाज़
तो ईश्वर, “मैं क्या कर सकती हूँ?” उसने मुझसे कहा कि एकमात्र व्यक्ति जिसे मैं नियंत्रित कर सकती हूं वह मैं खुद हूं – मैं प्यार करना चुन सकती हूं और उस प्यार को बाहर फैला सकती हूं। मेरे लिए, इसका मतलब अपनी अंतरात्मा की जांच करना और एक बेहतर इंसान बनने की कोशिश करना था। क्या मैं अपने शत्रु से प्रेम करती हूँ? या यहाँ तक कि मेरे पड़ोसी से भी? दुर्भाग्य से, इसका उत्तर एक जोरदार ‘न’ था। जब मुझे एहसास हुआ कि मैं अपने आस-पास के लोगों से प्रेमपूर्ण व्यवहार नहीं कर रही हूँ, तब मैं निराश हो गई।
कैथलिक चर्च में, हमारे पास पाप स्वीकार का संस्कार है, जहां हम किसी पुरोहित के पास जाते हैं और अपने पापों को स्वीकार करते हैं। मुझे हमेशा से यह संस्कार नापसंद था, और मैं इस संस्कार में जाने से डरती था। लेकिन यहां, इस जगह पर, जमीन पर रोती हुई, मुझे लगा कि यह एक उपहार है। एक उपहार जिसके लिए मैं वास्तव में आभारी थी। अपने पापों को बताने में, मैं मसीह का सामना करने में सक्षम हुई। मेरा पापस्वीकार ऐसा था जैसा मैंने पहले कभी नहीं किया था। इस संस्कार में, मुझे वह अनुग्रह प्राप्त हुआ जो येशु हमें तब प्रदान करते हैं जब हम उसे माँगने का निर्णय लेते हैं। मैंने अपने आप पर अच्छी तरह से गौर किया, और पाप स्वीकार स्थान में ईश्वर के बेशर्त प्यार के साथ साक्षात्कार के कारण मेरा स्वार्थ पिघलने लगा। संस्कार मुझे बेहतर करने का प्रयास करने देता है, और यद्यपि मैं जानती हूं कि मैं एक पापी हूं और मुझे असफलताएं मिलती रहेंगी, मैं हमेशा प्रभु की पवित्र कृपा और क्षमा प्राप्त करने की आशा कर सकती हूं, चाहे कुछ भी हो। इससे मुझे उसकी अच्छाइयों को आगे फैलाने में मदद मिलती है।’ मुझे नहीं लगता कि इसे समझने के लिए आपको कैथलिक बनना होगा।
वेरोनिका की हत्या मेरी गलती नहीं थी, लेकिन मैं निश्चित रूप से उसे व्यर्थ नहीं मरने दूंगी; मैं दूसरों को यह बताए बिना उसका जीवन बर्बाद नहीं होने दूंगी कि इसका मुझ पर क्या प्रभाव पड़ा और ऐसी भयानक परिस्थितियों की राख से भी अच्छाई निकल सकती है। इस प्रकार, वास्तव में मसीही होने की दिशा में मेरी यात्रा शुरू हुई।
मैंने बाइबिल में वेरोनिका के बारे में सोचा। जब येशु अपनी प्राण पीड़ा के दौरान दुःख पीड़ा भोग रहे थे, गोलगोथा की ओर जा रहे थे, पीटे गये थे और खून से लथपथ थे , तो उनकी मुलाकात वेरोनिका नाम की एक महिला से हुई। वेरोनिका ने येशु का चेहरा पोंछ दिया। दयालुता का एक छोटा सा कार्य। यह आदमी, यह ईश्वर-पुरुष, पीटा गया था, खून से लथपथ था, थका हुआ था और पीड़ा में था, फिर भी इस महिला, वेरोनिका ने थोड़ी राहत प्रदान की। कुछ ही पलों में पसीना और खून पोंछ लिया गया, और एक पल के लिए, चाहे वह कितना भी छोटा क्यों न हो, येशु को इस महिला से प्यार का एहसास हुआ। इससे न तो उसकी दुःख-पीड़ा रुकी और न ही उसका दर्द, लेकिन एक ऐसी भीड़ के बीच में जो उसका मज़ाक उड़ा रही थी, उसे कोड़े मार रही थी, कपड़े के साथ उस महिला का स्पर्श येशु केलिए गौरवशाली लगा होगा। इसलिए, उन्होंने उसके कपड़े पर अपनी छवि अंकित कर दी।
“वेरोनिका” नाम का अर्थ है “सच्ची छवि”। येशु ने वेरोनिका पर अपने प्रेम की छाप छोड़ी। और इसलिए, मेरी दोस्त वेरोनिका के कारण, जिसने मेरे अपने जीवन के कठिन दौर में प्यार और राहत प्रदान की, मेरा फ़र्ज़ है कि जहां भी मैं जाऊं, प्यार और दयालुता फैलाऊं। मैं दुख-पीड़ा को रोक नहीं सकती, लेकिन मैं उन लोगों को राहत दे सकती हूं जो खो गए हैं, गरीब हैं, अकेले हैं, अवांछित हैं, या जो प्यार नहीं किये गये हैं। और इसी कारण, मैं येशु का चेहरा तब तक पोछूँगी, जब तक उनकी कृपा और दया मुझे अनुमति देगी।
'जीवन की घुमावदार यात्रा में, यह जानकर दिलचस्प लगता है कि, आपके जीवन में कुछ अंधे मोड़ भी हैं जिन पर आपको ध्यान देना चाहिए!
हम जानते हैं कि कार से यात्रा करते हुए अंधे मोड़ों की जांच करना कितना महत्वपूर्ण है, खासकर लेन बदलने, वापस मुड़ने या नए मार्ग पर मोड़ने से पहले। दुर्भाग्य से, हम कभी-कभी मुश्किलों से सीखते हैं।
हाल ही में, मैं इस धारणा से प्रभावित हुई हूं कि हम सभी में शारीरिक और आध्यात्मिक दृष्टिहीनता होती है। जब येशु ने कहा, “”मैं लोगों के पृथक्करण का निमित्त बनकर संसार में आया हूं, जिससे जो अंधे हैं, वे देखने लगें और जो देखते हैं वे अंधे हो जाएं”, तब येशु ने हमें इस दृष्टिहीनता से सावधान रहना सिखाया। जो फरीसी उनके साथ थे, वे यह सुनकर बोले, “क्या? हम भी अंधे हैं?” येशु ने उनसे कहा, “यदि तुम लोग अन्धे होते, तो तुम्हें पाप नहीं लगता, परन्तु तुम तो कहते हो कि हम देखते हैं; इसलिए तुम्हारा पाप बना रहता है” (योहन 9:39-41)। येशु यहाँ हमें क्या बता रहे हैं?
हमें बहुत सावधान रहने की ज़रूरत है कि हम येशु के चरणों में बैठे रहें, उनके निर्देशों पर ध्यान दें, उनसे सीखें और उनके द्वारा दिए गए सुधार के निर्देशों को खुले मन से स्वीकार करें। जैसे ही हम सोचते हैं कि हम मुक्ति के मार्ग पर ‘आ गए हैं’ या हमने ‘इस मसीही जीवनशैली को अपना लिया है’, हम खतरे के क्षेत्र में हैं। ईश्वर की अनंत प्रेमपूर्ण बुद्धि की तुलना में हमारे सबसे बुद्धिमान विचार, महान बलिदान और सबसे गहरा प्यार, सिर्फ हवा के बराबर है।
क्योंकि हम केवल थोडा ही देखते हैं; हम पूरी तस्वीर, या ईश्वर की महायोजना को नहीं देखते हैं। केवल ईश्वर ही ऐसा करता है। संत पौलुस इसे इस प्रकार कहते हैं, ”अभी तो हमें आइने में धुंधला सा दिखाई देता है, परन्तु तब हम आमने सामने देखेंगे। अभी तो मेरा ज्ञान अपूर्ण है; परन्तु तब मैं उसी तरह पूर्ण रूप से जान जाऊंगा, जिस तरह ईश्वर मुझे जान गया है।” (1 कुरिन्थी 13:12)।
मुश्किलों से मेरी सीख
अपने जीवन को पीछे मुड़कर देखने पर, मुझे याद आता है कि मैं बार बार अपने घमंड, पापों, कमियों, निर्णयों, धारणाओं, पूर्वाग्रहों और भय तथा विश्वास की कमी के बारे में पूरी तरह अनजान थी। शुक्र है, ईश्वर ने कुछ लोगों और कुछ घटनाओं को मेरे जीवन में ला दिया, जिससे आध्यात्मिक अंधेपन के कुछ पहलुओं को उजागर करने में मुझे मदद मिली।
मैं मुश्किलों से सीखना चाहती हूँ। वर्षों तक, मैं इस बात को नहीं समझ पायी कि एक महिला मेरा क्यों किनारा कर के निकल जाती थी। इससे बहुत तनाव पैदा हो गया, क्योंकि हम खेलने और प्रार्थना करने वाले एक ही समूह में थे। आख़िरकार, मुझे यह पूछने का साहस और विनम्रता मिली कि मैंने उसे कैसे नाराज किया था। उत्तर दु:खदायी था, और यद्यपि हम कभी दोस्त नहीं बने, कम से कम अब मुझे अपने एक अंधे मोड़ के बारे में पता चला जो पहले रडार के नीचे था।
लोगों को हमारी आँखों से धरन हटाने की अनुमति देने के लिए एक विनम्र हृदय की आवश्यकता होती है। और हमारी परेशानी यह है कि हम अक्सर पर्याप्त विनम्र नहीं होते हैं।
मेरे जीवन में ऐसे कई उदाहरण हैं जब मैं इस बात से अनजान थी कि मेरी क्षमा न करने की प्रवृत्ति, अहंकार, आत्म संयम की कमी, पाप के प्रति समझौता या आभार भावना की कमी के कारण मुझे कितना नुकसान हुआ है। मैं यहां सार्वजनिक रूप से पाप स्वीकार नहीं कर रही हूँ, लेकिन यह गवाही देना चाहती हूँ कि ईश्वर धीरे-धीरे मुझमें आध्यात्मिक अंधेपन की परत उतार रहा है। हालाँकि यह दर्दनाक प्रक्रिया थी, लेकिन मुझे अधिक आध्यात्मिक स्वतंत्रता प्राप्त हुई है।
हर दिन सीखने के लिए और भी बहुत कुछ है
मेरी एक बुद्धिमान मित्र ने एक बार मुझसे कहा था कि वह प्रत्येक वर्ष चालीसा या तपस्या काल का इंतजार करती है। मैं कभी भी उसकी जैसी पवित्र व्यक्ति नहीं थी, इसलिए जब उसने ऐसा कहा तो मेरे कान खड़े हो गए। उसने मुझसे कहा कि चालीसा में किस चीज़ का परित्याग करना है, उस पर निर्णय वह स्वयं नहीं लेती है। यह काम वह अपने पति पर छोड़ देती है। मैं उस अवधारणा से बिल्कुल अभिभूत थी ।
क्या होगा अगर हम अपने जीवनसाथी या किसी भरोसेमंद साथी मसीही के पास जाएं और उनसे पूछें कि हम आध्यात्मिक रूप से कैसे बढ़ सकते हैं या पाप स्वीकार में हमें कौन सी पापपूर्ण आदत के बारे में बताना चाहिए?
कई बार, हमारा मूल पाप अधिक स्पष्ट मुद्दों के नीचे दबा रहता है। उदाहरण के लिए, क्षमा न करने के कारण क्रोध हो सकता है, आत्मसंयम की कमी के कारण चिंता उत्पन्न हो सकती है, और अक्सर पूर्णतावाद के कारण घमंड उत्पन्न हो जाता है। ईश्वर की भलाई में विश्वास की कमी से अधिकांश पाप उत्पन्न होते हैं।
आत्मिक निर्देशन की शक्ति
आपके मूल पाप को चिन्हित करने में सक्षम हो जाने से आपके अन्दर एक वास्तविक शक्ति उत्पन्न होती है। यदि आप इसे पहचान सकते हैं, तो आप पश्चाताप करके इससे मुक्त हो सकते हैं। हालाँकि, मूल पाप पेचीदा हैं; वे नीचे दबे रहना पसंद करते हैं। पाप स्वीकार सुनने वाला कोई अच्छा नियमित व्यक्ति या आध्यात्मिक निर्देशक बड़े मददगार साबित होंगे। संत फॉस्टिना ने लिखा, “ओह, अगर मेरे पास शुरू से ही कोई आध्यात्मिक निर्देशक होते, तो मैं ईश्वर की इतनी सारी कृपा बर्बाद नहीं करती ।”
जवाबदेही के लिए हम साझेदारों की तलाश कर सकते हैं। ईश्वर हमें स्वयं को बेहतर ढंग से ‘देखने’ में मदद करने के लिए अक्सर अन्य लोगों का उपयोग करता है। परिवार के सदस्य, विशेष रूप से वे जो सक्रिय रूप से येशु मसीह का अनुसरण कर रहे हैं, वे अंधे मोड़ों पर महान जांचकर्ता बन सकते हैं, क्योंकि वे हमें हमें सबसे अच्छे और सबसे बुरे रूप में देखते हैं। आइए, हम ईश्वर से यह प्रार्थना करना न भूलें कि वह हमारी जीवन यात्रा के अंधे मोड़ों को हमारे सामने प्रकट कर दे।
जिस पाप के प्रति हम बेखबर हैं या अनदेखा करते हैं, यदि हम पवित्र आत्मा से उस पाप को हमें प्रकट करने केलिए कहें और पाप स्वीकार की तैयारी कर लें तो कैसा होगा ?
मैं विशेष रूप से आप को सलाह देना चाहती हूँ कि आप बड़े निर्णय लेने से पहले बुद्धिमान मसीहियों से दिशा निर्देश प्राप्त कर ले। जिस तरह जब हम बाहर निकलने या किसी वाहन में दिशा बदलने की योजना बना रहे होते हैं तो अंधे मोड़ की जांच करना अधिक महत्वपूर्ण होता है, उसी तरह जब हम अपने पेशा, जीवन-यात्रा के विकल्पों और अन्य प्रमुख जीवन निर्णयों पर विचार कर रहे होते हैं तो हमें अतिरिक्त सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है।
स्वर्गीय पिता, हमें सुनने वाला विनम्र हृदय दे ताकि तू हमें बेहतर जीवन के लिए बदल सके। हमें तेरे प्रति और हमारे पड़ोसियों के प्रति प्यार को बढ़ाने के लिए अपनी दृष्टि प्रदान कर।
'1000 हिस्सों वाली पहेली को जोड़ने का खेल शुरू करने और उसे खत्म करने के लिए साहस की जरूरत होती है; जीवन के साथ भी यही होता है।
पिछले क्रिसमस पर, मुझे अपने कार्यस्थल पर क्रिस क्रिंगल से 1000 हिस्सों वाली पहेली मिली, जिसमें प्रसिद्ध ग्रेट ओशन रोड (ऑस्ट्रेलिया के दक्षिण-पश्चिमी विक्टोरिया में चट्टानों की संरचनाओं का एक शानदार समूह) के बारह प्रेरितों को दिखाया गया था।
मैं शुरू करने के लिए उत्सुक नहीं थी। मैंने कुछ साल पहले अपनी बेटी के साथ उनमें से तीन पहेलियाँ पूरी की थी, इसलिए मुझे पता था कि उन्हें बनाने में कितनी मेहनत करनी पड़ती है। हालाँकि, जब मैंने घर पर लटकी हुई तीन पूरी की गयी पहेलियों को देखा, तो शुरुवाती आलस्य महसूस करने के बावजूद, मुझे “बारह प्रेरितों” पर ध्यान लगाने की आंतरिक प्रेरणा महसूस हुई।
अस्थिर जमीन पर
मुझे आश्चर्य हुआ कि जब येशु क्रूस पर मर गए और वे प्रेरित उन्हें छोड़ कर चले गए तो उन प्रेरितों को कैसा लगा होगा। सुसमाचार सहित प्रारंभिक ख्रीस्तीय स्रोत बताते हैं कि शिष्य तबाह हो गए थे, अविश्वास और भय से भरे हुए थे और वे छिप गए थे। येशु के जीवन के अंत में वे अपने सर्वश्रेष्ठ रूप में नहीं थे।
किसी तरह, मैंने वर्ष की शुरुआत में ऐसा ही महसूस किया – भयभीत, बेचैन, उदास, टूटा हुआ दिल और अनिश्चित। मैं अपने पिता और एक करीबी दोस्त की मृत्यु के दुःख से पूरी तरह से उबर नहीं पायी थी। मुझे स्वीकार करना चाहिए कि मेरा विश्वास अस्थिर जमीन पर खड़ा था। ऐसा लग रहा था जैसे जीवन के प्रति मेरे जुनून और ऊर्जा को सुस्ती, गुनगुनापन और आत्मा की एक अंधेरी रात ने काबू कर लिया था, जिस के कारण मेरे आनंद, ऊर्जा और प्रभु की सेवा करने की इच्छा खत्म हो जाने का खतरा था। मैं बहुत प्रयासों के बावजूद इसे दूर नहीं कर सकी।
अगर हम शिष्यों के अपने गुरु से भागने के उस निराशाजनक प्रकरण पर ही नहीं रुकते हैं, तो सुसमाचार के अंत में वही प्रेरित लोग दुनिया से लड़ने और मसीह के लिए मरने के लिए तैयार दिखाई देते हैं। क्या बदल गया?
सुसमाचार में लिखा हुआ है कि पुनर्जीवित मसीह को देखने पर शिष्यों में बदलाव आया। जब वे उनके स्वर्गारोहण को देखने के लिए बेथानिया गए, उनके साथ समय बिताया, उनसे सीखा और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया, तो इसका एक शक्तिशाली प्रभाव पड़ा। येशु ने उन्हें न केवल निर्देश दिया बल्कि एक उद्देश्य और एक वादा भी दिया। उन्हें न केवल संदेशवाहक बनना था, बल्कि गवाह भी बनना था। येशु ने उनके मिशन में उनका साथ देने का वादा किया और उन्हें एक शक्तिशाली सहायक दिया।
मैं पिछले दिनों में इसी के लिए प्रार्थना कर रही थी – मृतकों में से जी उठे येशु से मुलाक़ात करने ताकि मेरा जीवन दिव्य रूप से नवीनीकृत हो जाए।
अंत तक डटे रहें
जब मैंने पहेली शुरू की, बारह प्रेरितों के इस सुंदर चमत्कार को एक साथ रखने की कोशिश की, तो मैंने पाया कि हर टुकड़ा महत्वपूर्ण था। इस नए साल में मैं जिस भी व्यक्ति से मिलूँगी वह मेरे विकास में योगदान देगा और मेरे जीवन को रंग देगा। वे अलग–अलग रंगों में आएंगे – कुछ मजबूत, दूसरे सूक्ष्म, कुछ चमकीले रंगों में, दूसरे भूरे, कुछ रंगों के जादुई संयोजन में, जबकि कोई फीके या भयंकर रूप में, लेकिन तस्वीर को पूरा करने के लिए सभी की ज़रूरत है।
ऐसी पहेलियों को जोड़ने में समय लगता है, और जीवन में भी ऐसा ही होता है। जब हम एक-दूसरे से जुड़ते हैं, तो हमें बहुत धैर्य की आवश्यकता होती है। जब संपर्क स्थापित हो जाता है, तो आभार प्रकट होता है। और जब टुकड़े फिट नहीं होते हैं, तो उम्मीद है कि हार न मानने के लिए एक भरोसेमंद प्रोत्साहन होगा। कभी-कभी, हमें इससे आराम करने, वापस आने और फिर से प्रयास करने की आवश्यकता हो सकती है। जीवन की तरह पहेली भी हर समय चमकीले, खुशनुमा रंगों से ढकी नहीं रहती। विपरीतता पैदा करने के लिए काले, भूरे और गहरे रंगों की आवश्यकता होती है।
पहेली शुरू करने के लिए साहस की आवश्यकता होती है, लेकिन इसे खत्म करने के लिए और भी अधिक। धैर्य, दृढ़ता, समय, प्रतिबद्धता, ध्यान, त्याग और भक्ति की मांग की जाएगी। यह वैसा ही है जैसे जब हम येशु का अनुसरण करना शुरू करते हैं। प्रेरितों की तरह, क्या हम अंत तक डटे रहेंगे? क्या हम अपने प्रभु से आमने-सामने मिल सकेंगे और उन्हें यह कहते हुए सुन सकेंगे: “भले और ईमानदार सेवक” (मत्ती 25:23), या जैसा कि संत पौलुस कहते हैं: “मैं अच्छी लड़ाई लड़ चुका हूँ, अपनी दौड़ पूरी कर चुका हूँ, और पूर्ण रूप से ईमानदार रह चुका हूँ।” (2 तिमथी 4:7)
इस साल, आपसे भी पूछा जा सकता है: क्या आपके पास पहेली का वह टुकड़ा है जो किसी के जीवन को बेहतर बना सकता है? क्या आप ही वह टुकड़ा है जो खो गया है?
'जीवन के बोझ हमें दबाकर गिरा सकते हैं, लेकिन हिम्मत रखें! भला सामरी आपका इंतज़ार कर रहा है।
पिछले कुछ सालों में, मैंने पोर्टलैंड, ओरेगन से पोर्टलैंड, मेन तक की यात्रा की है, पूरे देश में घूमकर, महिलाओं की आत्मिक साधनाओं में प्रवचन दिया और उन साधनाओं का नेतृत्व किया है। मुझे अपना काम पसंद है और मैं अक्सर इससे अभिभूत हो जाती हूँ। यात्रा करना और इतनी सारी वफादार महिलायें जो अपने घुटनों पर बैठकर ईश्वर का चेहरा तलाशती हैं, उनसे मिलना मैं अपने जीवन की सबसे बड़ी कृपा मानती हूँ।
लेकिन इस साल की शुरुआत में, जब मुझे स्तन कैंसर का पता चला, तब मेरा काम रुक गया। मेरे लिए यह इस बीमारी का दूसरा दौरा था। शुक्र है, हमें इसकी जानकारी बहुत पहले ही मिली; यह फैला नहीं था। हमने उपचार के लिए अपने विकल्पों पर विचार किया और डबल मास्टेक्टॉमी पर सहमत हुए। हमें उम्मीद थी कि उस सर्जरी के बाद, आगे के उपचार की आवश्यकता नहीं होगी। लेकिन जब उन्होंने माइक्रोस्कोप के नीचे ट्यूमर को अच्छी तरह से देखा, तो यह निर्धारित किया गया कि निवारक कीमोथेरेपी को ही करना पडेगा ताकि कीमो के कुछ दौर के साथ बीमारी की पुनरावृत्ति दर काफी कम हो जाएगी।
मेरा दिल डर से भरा था और मेरे दिमाग में उल्टी और अपने सिर में गंजेपन की तस्वीरें ही घूम रहीं थीं। मैंने ऑन्कोलॉजिस्ट को फोन किया और अपॉइंटमेंट ले लिया। तभी, मेरे पति काम से आए और उन्होंने कहा: “मुझे अभी-अभी नौकरी से निकाल दिया गया है।”
जब ऊपरवाला देता है, तब छप्पर फाड़कर देता है।
त्रासदी ही त्रासदी
इसलिए, बिना किसी आय के और हमारे मेलबॉक्स में आने वाले भारी चिकित्सा बिलों की संभावनाओं के साथ, हमने मेरे उपचार के लिए तैयारी की। मेरे पति ने बड़े लगन से अपना बायोडाटा अलग अलग जगह भेजे और कुछ साक्षात्कार केलिए आमंत्रण प्राप्त किए। हम आशान्वित थे।
मेरे लिए, कीमोथेरेपी बहुत ज़्यादा उबकाई नहीं थी, लेकिन बहुत दर्दनाक थी। हड्डी के दर्द से मैं कई बार रो पड़ती थी, और कुछ भी इसे कम नहीं कर सकता था। मैं आभारी थी कि मेरे पति घर पर थे और मेरी देखभाल करने में मदद कर सकते थे। यहां तक कि उन क्षणों में भी जब वे कुछ नहीं कर सकते थे, बस उनका आस-पास होना एक बड़ी राहत थी। उनके नौकरी से निकाले जाने पर यह एक अप्रत्याशित अनुग्रह था। हमने ईश्वर की योजना पर भरोसा किया।
सप्ताह बीतते गए। मेरे सर से सारे बाल गायब हो गए, मेरी ऊर्जा कम हो गई, और मैंने बस थोड़ा ही काम किया जो मैं कर सकती थी। मेरे प्रतिभाशाली पति के लिए कोई नौकरी का प्रस्ताव नहीं आया। हमने प्रार्थना की, हमने उपवास किया, हमने प्रभु पर भरोसा किया, और हमने उस त्रासदीपूर्ण समय के तनाव को महसूस करना शुरू कर दिया।
गहराई से प्रभावित
इस वर्ष, मेरी महिलाओं का प्रार्थना समूह संत मरियम मगदलीनी समुदाय के फादर गेब्रियल की उत्कृष्ट कृति ’दिव्य अंतरंगता’ के माध्यम से प्रार्थना कर रहा है। एक रविवार को, जब मुझे लगा कि मैं इन बोझों का एक और कदम नहीं उठा पाऊंगी, तो भले सामरी पर उनके विचार ने मुझ पर गहरा असर डाला। आपको लूकस 10 से वह लोकप्रिय दृष्टांत याद है जब एक आदमी को लूट लिया जाता है, वह पीटा जाता है, और उसे सड़क के किनारे छोड़ दिया जाता है। एक पुजारी और लेवी कोई सहायता दिए बिना उसके पास से गुजरते हैं। केवल सामरी ही उसकी देखभाल करने के लिए रुकता है। फादर गेब्रियल कहते हैं: “हमें भी अपने रास्ते में लुटेरों का सामना करना पड़ा है। संसार, शैतान और हमारी वासनाओं ने हमें नंगा कर दिया है और घायल कर दिया है… असीम प्रेम के साथ वह सर्वोत्कृष्ट भले सामरी हमारे खुले घावों पर झुके हुए हैं, उन्हें अपनी कृपा के तेल और दाखरस से ठीक किया है… फिर उन्होंने हमें अपनी बाहों में लिया और हमें एक सुरक्षित स्थान पर ले आए।” (दिव्य अंतरंगता #273)
इस अंश के बारे में मुझे कितनी उत्सुकता से आत्मिक अनुभूति मिली! मेरे पति और मैं महसूस करते हैं कि हम लूटे गए हैं, पीटे गए हैं और परित्यक्त किये गए हैं। हमसे हमारी आय, हमारा काम, हमारी गरिमा छीन ली गई है। हमसे मेरे स्तन, मेरा स्वास्थ्य, यहाँ तक कि मेरे बाल भी छीन लिए गए हैं। जब मैं प्रार्थना कर रही थी, मुझे ऐसा महसूस हो रहा था कि प्रभु हमारे ऊपर झुक रहे हैं, हमें अभिषेक कर रहे हैं और हमें ठीक कर रहे हैं, और फिर मुझे अपनी बाहों में ले रहे हैं और मेरे पति मेरे और प्रभु के साथ-साथ चल रहे हैं, और प्रभु हम दोनों को सुरक्षित स्थान पर ले जा रहे हैं। मैं राहत और कृतज्ञता के आँसुओं से भर गई।
फादर गेब्रियल आगे कहते हैं: “हमें उनसे, भले सामरी से मिलने के लिए मिस्सा बलिदान में जाना चाहिए … जब वह पवित्र परम प्रसाद में हमारे पास आएंगे, तो वह हमारे घावों को ठीक करेंगे, न केवल हमारे बाहरी घावों को, बल्कि हमारे आंतरिक घावों को भी, उनमें प्रचुर मात्रा में उनकी कृपा का मीठा तेल और मजबूत करने वाला दाखरस की औषधि डालेंगे।”
उस दिन शाम को, हम पाप स्वीकार और मिस्सा बलिदान में गए। अफ्रीका से एक आकर्षक पादरी हमारे पल्ली के लोगों से मुलाकात करने आए थे, जिनकी श्रद्धा और सौम्यता ने मुझे एक ही बार में प्रभावित कर दिया। पापस्वीकार संस्कार के दौरान उन्होंने मेरे लिए प्रार्थना की, मेरे दिल की इच्छाएँ पूरी करने के लिए —मेरे पति के लिए सम्मानजनक काम और मुझे ठीक करने के लिए – उन्होंने प्रभु से कहा। जब तक परम प्रसाद के वितरण का समय आया, मैं भले सामरी से मिलने के लिए अपने रास्ते पर खडी खडी रो रही थी, यह जानते हुए कि वह हमें सुरक्षित स्थान पर ले जा रहा है—उसके पास, उसमे।
कभी भी मेरे पास से गुज़रता भला सामरी
मुझे पता है कि इसका मतलब यह होगा कि मेरे पति को नौकरी मिल जाए, या न मिल जाए और मैं बिना ज़्यादा दर्द के कीमोथेरेपी से गुज़र जाऊँ। लेकिन मेरे मन, दिल या शरीर में इस बात को लेकर कोई संदेह नहीं है कि मैंने उस पवित्र परम प्रसाद में भले सामरी से मुलाक़ात की थी। वह मेरे पास से नहीं गुज़रा, बल्कि उसने रुककर मेरी देखभाल की और मेरे घावों पर मरहम पट्टी बांधी थी। वह भला सामरी मेरे लिए बिलकुल ही वास्तविक था जितना वह पहले कभी था, और यद्यपि मेरे पति और मैं अभी भी पराजित महसूस कर रहे हैं, मैं प्रभु को धन्यवाद देती हूं कि वह हमारे लिए एक भले सामरी के रूप में मौजूद है जो हमें रोकता है, देखभाल करता है, चंगा करता है, और फिर हमें सुरक्षित स्थान पर ले जाता है।
उनकी सुरक्षा दुनिया की सुरक्षा नहीं है। इस “हमले” और डकैती के बीच में खडी होकर प्रतीक्षा करना, सबसे कठिन आध्यात्मिक कार्यों में से एक है जिसे करने के लिए मुझे बार बार आमंत्रित किया गया है। ओह, लेकिन मुझे हमारे भले सामरी पर पूरा भरोसा है। वह मुझे ले जाने के लिए वहाँ प्रतीक्षा कर रहा है – किसी को भी इकट्ठा करने के लिए जो लूटा हुआ, पीटा हुआ और परित्यक्त महसूस करता है – और, परम पवित्र संस्कार के माध्यम से, हमारे दिलों और आत्माओं पर सुरक्षा की अपनी मुहर लगाता है।
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