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जब कोई अजनबी आपके दरवाज़े 0पर दस्तक दे तो आप क्या करेंगे? अगर वह अजनबी एक कठोर आदमी निकला तो क्या होगा?
वह अपना नाम स्पेनिश भाषा में, ज़ोर से, एक निश्चित गर्व और गरिमा के साथ कहता है, ताकि आपको याद रहे कि वह कौन है- जोस लुइस सैंडोवल कास्त्रो। वह रविवार की शाम को कैलिफ़ोर्निया के स्टॉकटन में हमारे दरवाज़े पर यानी सेंट एडवर्ड कैथलिक चर्च में आया, जब हम अपना संरक्षक संत का पर्व मना रहे थे। किसी ने उसे हमारे अपेक्षाकृत गरीब, मज़दूर वर्ग के पड़ोस में छोड़ दिया था। संगीत और लोगों की भीड़ ने जाहिर तौर पर उसे हमारे पल्ली के मैदान की ओर चुंबक की तरह खींचा।
सच्चाई का खुलासा
वह रहस्यमय जड़ों का व्यक्ति था – हमें नहीं पता था कि वह चर्च में कैसे पहुंचा, यह भी नहीं पता था कि उसका परिवार कौन था और कहां था। हमें बस इतना पता था कि वह 76 साल का था, चश्मा लगाए हुए था, हल्के रंग की बनियान अच्छी तरह से पहना हुआ था, और अपना लगेज हाथ से खींच रहा था। उसके पास आप्रवासन और प्राकृतिककरण सेवा विभाग का एक दस्तावेज था, जिसके बल पर उसे मेक्सिको से देश में प्रवेश करने की अनुमति मिली थी। उसके निजी दस्तावेज लूट लिए गए थे और उसके पास कोई अन्य पहचान पत्र नहीं था।
हमने यह पता लगाना शुरू किया कि जोस लुइस कौन था, उसकी जड़ें क्या थीं, उसके रिश्तेदार कौन थे और क्या उनका उससे कोई संपर्क था। वह मेक्सिको के सिनालोआ राज्य के लॉस मोचिस शहर का रहने वाला था।
उसके मुंह से गुस्सा, कड़वाहट और जहर निकल रहा था। उसने दावा किया कि उसके रिश्तेदारों ने उसे ठगा है और संयुक्त राज्य अमेरिका में उसकी पेंशन छीन ली है, जहां वह सालों से काम कर रहा था, क्योंकि वह मैक्सिको आता-जाता रहता था। हमने जिन रिश्तेदारों से संपर्क किया, उन्होंने दावा किया कि उन्होंने कई मौकों पर उसकी मदद करने की कोशिश की, फिर भी उसने उन्हें चोर कहा।
हम किस पर विश्वास करें? हम बस इतना जानते थे कि हमारे हाथों में मैक्सिको से आया एक भटकता हुआ, नियमित आवारा आदमी था, और हम उसका तिरस्कार नहीं कर सकते थे और न ही उस बूढ़े, बीमार आदमी को सड़क पर छोड़ सकते थे। एक रिश्तेदार ने बेरुखी से, बेरहमी से कहा: “उसे सड़कों पर खुद की देखभाल करने दो।”
जोस लुईस घमंडी, बहादुर और कर्कश व्यक्ति था, फिर भी वह बार-बार कमज़ोरी के लक्षण दिखाता था। उसकी आँखों में आँसू आ जाते थे, और वह लगभग रोता हुआ बताता था कि कैसे लोगों ने उसके साथ गलत किया और उसे धोखा दिया। ऐसा लगता था कि वह बिलकुल अकेला था, दूसरों ने उसे छोड़ दिया था।
सच्चाई यह थी कि उसकी मदद करना आसान नहीं था। वह चिड़चिड़ा, जिद्दी और घमंडी था। उसे हर चीज़ में खामियाँ नज़र आती थीं: उसके लिए दलिया को या तो बहुत ज़्यादा चबाना पड़ता था या पर्याप्त चिकना नहीं होता था, कॉफी बहुत कड़वी और पर्याप्त मीठी नहीं होती थी। वह एक ऐसा व्यक्ति था जो अपने कंधों पर एक बहुत बड़ा बोझ ढो रहा था, और जीवन से नाराज़ और निराश था।
उन्होंने दुख जताते हुए कहा, “लोग बुरे और मतलबी होते हैं, वे आपको चोट पहुँचाएँगे।”
इस पर मैंने जवाब दिया कि अच्छे लोग भी होते हैं। वह दुनिया के उस क्षेत्र में था जहाँ अच्छाई और बुराई दोनों एक दूसरे के साथ रहती है, जहाँ अच्छाई और दयालुता के लोग एक साथ मिलते हैं, जैसे सुसमाचार में गेहूँ और भूसा।
स्वागत से भी बढ़कर
चाहे उसकी कमियाँ कुछ भी हों, उसका रवैया या उसका अतीत कुछ भी हो, हम जानते थे कि हमें उसका स्वागत करना चाहिए और येशु के सबसे दीन हीन भाई-बहनों में से एक के रूप में उसकी मदद करनी चाहिए।
“जब तुमने किसी अजनबी का स्वागत किया, तो तुमने मेरा ही स्वागत किया।” हम येशु की सेवा कर रहे थे, उसके लिए आतिथ्य के द्वार खोल रहे थे।
हमारी पल्ली के एक सदस्य लालो लोपेज़ ने उसे एक रात के लिए अपने घर में रखा, उसे अपने परिवार से मिलवाया और अपने बेटे के बेसबॉल खेल में ले गए, उन्होंने कहा: “ईश्वर हमें परख रहे हैं कि हम उनके बच्चों के रूप में कितने अच्छे और आज्ञाकारी हैं।”
कई दिनों तक, हमने उसे पुरोहित के आवास में रखा। वह कमज़ोर था, हर सुबह बलगम थूकता था। यह स्पष्ट था कि वह अब स्वतंत्र रूप से घूम-फिर नहीं सकता था जैसा कि वह अपने युवावस्था में करता था। उसका रक्तचाप 200 से अधिक था। स्टॉकटन की एक यात्रा पर, उसने कहा कि उसे शहर के एक चर्च के निकट उसके गर्दन के पीछे चोट लगी थी।
मेक्सिको के कुलियाकन में उसके एक बेटे ने हमसे कहा कि जोस लुईस ने ज़रूर “मुझे पैदा तो किया” लेकिन उसने कभी भी जोस लुईस को अपने पिता के रूप में नहीं जाना, क्योंकि वह कभी आसपास नहीं था, हमेशा यात्रा करता रहता था, एल नॉर्टे की ओर जाता रहता था।
उसके जीवन की कहानी सामने आने लगी। उसने कई साल पहले खेतों में काम किया था, चेरी की कटाई की थी। उसने कुछ साल पहले एक स्थानीय चर्च के सामने आइसक्रीम भी बेची थी। वह, बॉब डायलन के क्लासिक गीत को उद्धृत करते हुए, “बिना किसी दिशा के घर जैसा, पूरी तरह से अज्ञात, लुढ़कते पत्थर जैसा था।”
येशु ने एक भटकी हुई भेड़ को बचाने के लिए 99 भेड़ों को पीछे छोड़ दिया, इसी तरह हमारा ध्यान इस एक व्यक्ति पर गया, जो जाहिर तौर पर अपने ही लोगों द्वारा तिरस्कृत था। हमने उसका स्वागत किया, उसे रहने के लिए जगह दी, उसे खाना खिलाया और उससे दोस्ती की। हम उसकी जड़ों और इतिहास को जान पाए, एक व्यक्ति के रूप में उसकी गरिमा और पवित्रता को जान पाए, शहर की सड़कों पर फेंके गए एक और व्यक्ति के रूप में हम ने उसके साथ व्यवहार नहीं किया था ।
मेक्सिको में गुमशुदा व्यक्तियों के वीडियो संदेश भेजनेवाली एक महिला ने उसकी दुर्दशा को फेसबुक पर प्रचारित किया।
लोगों ने पूछा: “हम कैसे मदद कर सकते हैं?”
एक आदमी ने कहा: “मैं उसे घर जाने के टिकट का भुगतान करूंगा।”
जोस लुइस, एक अनपढ़, असभ्य और अपरिष्कृत व्यक्ति, हमारी पल्ली के त्यौहार में आया था, और ईश्वर की कृपा से, हमने कुछ हद तक, गरीबों, लंगड़ों, बीमारों और दुनिया के बहिष्कृत लोगों का अपने प्रेम के घेरे में, जीवन के भोज में स्वागत करनेवाली संत मदर टेरेसा के उदाहरण का अनुकरण करने की कोशिश की।
संत जॉन पॉल द्वितीय के शब्दों में, दूसरों के साथ एकजुटता, उनके दुर्भाग्य पर अस्पष्ट करुणा या उथली पीड़ा की भावना नहीं है। यह हमें याद दिलाती है कि हम सभी की भलाई के लिए प्रतिबद्ध हैं क्योंकि हम सभी एक दूसरे के लिए जिम्मेदार हैं।
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दुनिया की सभी समस्याओं का एकमात्र समाधान!
मसीह जी उठे हैं! मसीह सचमुच जी उठे हैं!
ईस्टर का उल्लासपूर्ण आनंद सबसे अच्छे ढंग से उस दृश्य के द्वारा प्रकट होता है जहां झील में नाव में खड़ा पेत्रुस, तट पर खड़े येशु तक पहुँचने के लिए उत्साह के साथ नाव से कूद जाता है। ईस्टर के रविवार को हमें येशु की ओर से यह विजयी घोषणा प्राप्त होती है कि हम अब ईश्वर की संतान हैं। इस पुनरुत्थान के चमत्कार की महानता के सामने पेत्रुस की यह प्रतिक्रया ही सबसे उत्तम है।
क्या यह पर्याप्त है?
हाल ही में, हमारे मठ के एक बुद्धिमान वृद्ध भिक्षु (जिन्हें हम ‘बूढ़े दिल वाले’ कहते हैं) के साथ मैं इस विषय पर चर्चा कर रहा था। उन्होंने जो कुछ कहा, उससे मैं बहुत प्रभावित हुआ: “हाँ! यह महान घटना आपको किसी को बताने के लिए प्रेरित करती है।” मैं बार-बार उनके इस कथन पर लौटता रहा: “…आपको किसी को बताने के लिए प्रेरित करती है।” यह सच है।
हालांकि मेरे एक और दोस्त का नज़रिया कुछ अलग था: “आपको क्या लगता है कि इस विषय में आप सही हैं? क्या आपको नहीं लगता कि “हमारा धर्म सभी के लिए पर्याप्त है” ऐसी सोच रखना अहंकार नहीं है ?
मैं इन दोनों टिप्पणियों के बारे में सोच रहा हूँ।
मैं सिर्फ़ पुनरुत्थान की इस घटना को साझा नहीं करना चाहता; मैं इसे अन्य लोगों को समझाना चाहता हूँ । क्योंकि यह एक घटना से कहीं ज़्यादा है। यह सभी की समस्याओं का उत्तर है। यह घटना शुभ सन्देश है। संत पेत्रुस कहते हैं, “किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा मुक्ति नहीं मिल सकती, क्योंकि समस्त संसार में येशु नाम के सिवा मनुष्यों को कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया है, जिसके द्वारा हमें मुक्ति मिल सकती है” (प्रेरित चरित 4:12)। तो, मुझे यह स्वीकार करना होगा कि मैं इस मामले में सही हूँ, इस ख़बर को साझा किया जाना चाहिए!
क्या ऐसी सोच से आप अहंकारी लगेंगे ?
सच तो यह है कि अगर मसीह के पुनरुत्थान की कहानी सच नहीं है, तो मेरे जीवन का कोई मतलब नहीं है – और उससे भी बढ़कर, जीवन का कोई मतलब इसलिए नहीं है क्योंकि मैं, एक ईसाई के रूप में, एक अनोखी संकटमय स्थिति में हूँ। मेरा विश्वास एक ऐतिहासिक घटना की सच्चाई पर टिका है। संत पौलुस कहते हैं: “यदि मसीह नहीं जी उठे, तो आप लोगों का विश्वास व्यर्थ है” (1 कुरिन्थियों 15:14-20)।
आपको क्या जानने की आवश्यकता है
कुछ लोग इसे ‘विशेषता का कलंक’ कहते हैं। यह बात नहीं है कि यह ‘मेरे लिए सच है’ या ‘आपके लिए सच है’। सवाल यह है कि क्या इसमें किसी प्रकार की सच्चाई है या नहीं। अगर येशु मसीह मृतकों में से जी उठे, तो कोई भी दूसरा धर्म, कोई दूसरा दर्शन, कोई दूसरा पंथ या विश्वास पर्याप्त नहीं है। उनके पास कुछ उत्तर हो सकते हैं, लेकिन जब दुनिया के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना की बात आती है, तो वे सभी कमजोर पड़ जाते हैं। अगर, दूसरी ओर, येशु मृतकों में से नहीं जी उठे – अगर उनका पुनरुत्थान एक ऐतिहासिक तथ्य नहीं है – तो हम सभी को अभी इस तथाकथित विश्वास की मूर्खता को रोकने की जरूरत है। लेकिन मुझे पता है कि वे जी उठे थे, और अगर मैं सही हूं, तो लोगों को यह जानने की जरूरत है।
यह हमें इस संदेश के अंधेरे पक्ष की ओर ले जाता है: हम चाहे जितना भी शुभ सन्देश साझा करना चाहें, और इस गारंटी के बावजूद कि अंत में इसकी जीत होगी, हम पाएंगे कि हमारी अपार निराशा के लिए अक्सर ही इस संदेश को अस्वीकार कर दिया जाएगा। सिर्फ़ अस्वीकार ही नहीं किया जाएगा, इसका उपहास किया जाएगा, इस सन्देश के वहाक को बदनाम किया जाएगा, शहीद कर दिया जाएगा। संत योहन कहते हैं: “संसार हमें नहीं पहचानता, क्योंकि उस ने ईश्वर को नहीं पहचाना।” (1 योहन 3:1)
फिर भी यह जानना कितना आनंददायक है! विश्वास में कितना आनंद है! स्वयं के पुनरुत्थान की आशा में कितना आनंद है! परमेश्वर मनुष्य बन गया, यह एहसास पाकर कितना आनंद आता है, हमारे उद्धार के लिए क्रूस पर पीड़ा सही और मृत्यु पर विजय प्राप्त की। उसने हमें स्वर्गिक जीवन में भागीदारी का प्रस्ताव दिया! बपतिस्मा से शुरू होने वाले संस्कारों में परमेश्वर हम पर पवित्रतापूर्ण अनुग्रह प्रवाहित करता है। जब वह हमें, अपने परिवार में स्वागत करता है, तो हम वास्तव में मसीह में भाई-बहन बन जाते हैं, उसके पुनरुत्थान में भागीदार बनते हैं।
हम कैसे जानते हैं कि यह सच है? कि येशु जी उठे हैं? शायद यह लाखों शहीदों की गवाही है। दो हज़ार साल के ईश शास्त्र और दर्शन द्वारा, पुनरुत्थान में विश्वास के परिणामों का पता चलता हैं। मदर तेरेसा या असीसी के फ्रांसिस जैसे संतों में, हम ईश्वर के प्रेम की शक्ति का एक जीवंत प्रमाण देखते हैं। परम प्रसाद में उसे प्राप्त करना मेरे लिए हमेशा इसकी पुष्टि करता है। क्योंकि मैं उसकी जीवित उपस्थिति प्राप्त करता हूँ, और वह मुझे भीतर से बदल देता है। शायद, अंत में, यह केवल आनंद है: वह परमानंद ‘असंतुष्ट तृष्णा है जो किसी भी अन्य संतुष्टि से अधिक श्रेय है।’ लेकिन जब परिस्थितियों द्वारा मैं धकेला जाता हूँ, तो मुझे पता है कि मैं इस विश्वास के लिए मरने को तैयार हूँ – या इससे भी बेहतर, इसके लिए जीने को तैयार हूँ: ख्रीस्त जी उठे हैं, ख्रीस्त वास्तव में जी उठे हैं! अल्लेलुया!
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बीसवीं सदी के आरंभिक यूनानी उपन्यासकार निकोलस कज़ान्तज़ाकिस का एक काव्यात्मक चिंतन है, जिसे मैं हर साल आगमन काल के आने पर अपने पलंग के बगल के टेबल पर रखता हूँ।
उपन्यासकार कज़ान्तज़ाकिस येशु मसीह को एक किशोर के रूप में चित्रित करते हैं, जो दूर पहाड़ी की चोटी से इस्राएल के लोगों को देख रहा है, जो अभी अपनी सेवकाई शुरू करने के लिए तैयार नहीं है, लेकिन अपने लोगों की लालसा और पीड़ा के प्रति पूरी तरह से, दर्द और बोझ के साथ संवेदनशील है।
इस्राएल का परमेश्वर उनके बीच में है—परन्तु वे अभी इस सच्चाई को नहीं जानते।
मैं इसे एक दिन अपने छात्रों को पढ़कर सुना रहा था, जैसा कि मैं प्रतिवर्ष, आगमन की शुरुआत में करता हूँ, और उनमें से एक ने कक्षा के बाद मुझसे कहा: “मैं शर्त लगा सकता हूँ कि प्रभु येशु अभी भी ऐसा ही महसूस करते हैं।”
मैंने उससे पूछा कि उसका क्या मतलब है। उसने कहा: “आप जानते हैं कि येशु, वहाँ पवित्र मंजूषा के अन्दर से हमें ऐसे चलते हुए देखते हैं जैसे कि हम जानते ही नहीं कि वे वहां उपस्थित हैं।” तब से, मेरे पास आगमन प्रार्थनाओं में ऐसे येशु का चित्र है, जो मंजूषा में इंतजार कर रहे हैं, अपने लोगों की ओर देख रहे हैं – हमारी कराहें, हमारी दलीलें और हमारी पुकारें सुन रहे हैं। हमारा इंतज़ार करते हुए …
किसी न किसी तरह, ईश्वर हमारे पास आने के लिए यही तरीका चुनता है। मसीह का जन्म पूरे मानव इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना है, और फिर भी, ईश्वर चाहता था कि यह ‘इतनी शांति से हो कि संसार अपने काम में व्यस्त रहा जैसा कि कुछ भी नहीं हुआ हो।’ कुछ चरवाहों ने ध्यान दिया, और पूरब से आये ज्ञानियों ने भी ऐसा ही किया। (हम हेरोद का भी उल्लेख कर सकते हैं, जिसने सभी गलत कारणों से ध्यान दिया!)। फिर, जाहिरा तौर पर, पूरी बात भुला दी गई। कुछ समय के लिए।
किसी न किसी तरह… इंतज़ार करते हुए कुछ ऐसा होना चाहिए जो हमारे लिए अच्छा हो। ईश्वर हमारे लिए इंतजार करने को चुनता है। वह हमें अपने लिए इंतज़ार करवाना चुनता है। और जब आप इसके बारे में सोचते हैं, तो मुक्ति का पूरा इतिहास प्रतीक्षा का इतिहास बन जाता है।
तो, आप देखते हैं कि यहाँ अत्यावश्यकता के दो भाव हैं – कि हमें ईश्वर के आह्वान का उत्तर देने की आवश्यकता है तथा इसकी भी आवश्यकता है कि वह हमारी पुकार का उत्तर दे, और जल्द ही। स्तोत्रकार लिखता है, “हे प्रभु, जब मैं तुझे पुकारूं, मुझे उत्तर दे।” इस पद में कुछ बड़ी विनम्रता है, दर्द है, जो आकर्षक रूप से हमारा ध्यान खींचता है।
स्तोत्र में एक अत्यावश्यकता है। लेकिन यह भी स्पष्ट है कि हमें धैर्य रखना और इंतजार करना सीखना चाहिए – आनंदमय आशा के साथ इंतजार करना चाहिए – और इंतजार में इश्वर का उत्तर ढूंढना चाहिए।
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छह साल की उम्र में, एक छोटी लड़की ने फैसला किया कि उसे ‘जेल’ और ‘फाँसी’ शब्द पसंद नहीं हैं। उसे क्या पता था कि 36 साल की उम्र में वह मौत की सज़ा पाए कैदियों के साथ घूम रही होगी।
1981 में, दो छोटे बच्चों की चौंकाने वाली हत्याएं सिंगापुर और दुनिया भर में पहले पन्ने की खबर बन गईं थीं। पूरी जांच के बाद एड्रियन लिम की गिरफ्तारी हुई, जिसने अपने कई ग्राहकों को यह विश्वास दिलाकर कि उसके पास अलौकिक शक्तियां हैं, उनका यौन शोषण किया, उनसे जबरन वसूली की और उन्हें बिजली के झटके की ‘थेरेपी’ देकर प्रताड़ित किया। उनमें से एक, कैथरीन, मेरी एक छात्रा थी जो अपनी दादी की मृत्यु के बाद अवसाद के इलाज के लिए उसके पास गई थी। उस आदमी ने उससे वेश्यावृत्ति कराई और उसके भाई-बहनों के साथ दुर्व्यवहार किया। जब मैंने सुना कि कैथरीन पर हत्याओं में भाग लेने का आरोप लगाया गया है, तो मैंने उसे येशु के पवित्र हृदय की सुंदर तस्वीर के साथ एक चिट्टी भेजी।
छह महीने बाद, उसने जवाब में लिखा, “जब मैंने इतने बुरे काम किए हैं तो आप मुझसे कैसे प्यार कर सकती हैं?” अगले सात वर्षों तक मैं जेल में कैथरीन से साप्ताहिक मुलाकात करती रही। महीनों तक एक साथ प्रार्थना करने के बाद, वह ईश्वर और उन सभी लोगों से माफ़ी मांगना चाहती थी, जिन्हें उसने चोट पहुंचाई थी। अपने पापों को स्वीकार करने के बाद, उसे ऐसी शांति मिली, जैसे वह एक अलग ही अनोखा व्यक्तित्व हो। जब मैंने उसका रूपांतरण देखा, तो मैं खुशी से पागल हो गयी। लेकिन कैदियों के लिए मेरी सेवा अभी शुरू ही हुई थी!
अतीत की ओर नज़र
मैं 10 बच्चों वाले एक प्यारे कैथोलिक परिवार में बड़ी हुई। हर सुबह, हम सभी एक साथ पवित्र मिस्सा बलिदान के लिए जाते थे, और मेरी माँ हमें गिरजाघर के पास एक कॉफी शॉप में नाश्ता खिलाती थी। लेकिन कुछ समय बाद मेरे लिए शरीर के भोजन से ज्यादा, आत्मा के लिए भोजन का महत्त्व बढ़ गया। पीछे मुड़कर दखती हूँ तो पता चलता है कि मेरे बचपन में अपने परिवार के साथ सुबह-सुबह होती रही उन पवित्र मिस्साओं के द्वारा ही मेरे अन्दर मेरी बुलाहट का बीज बोया गया था।
मेरे पिता ने हममें से प्रत्येक को विशेष रूप से अपने प्यार का एहसास कराया, और हम उनके काम से लौटने पर खुशी से उनकी बाहों की ओर दौड़ने से कभी नहीं चूके। युद्ध के दौरान, जब हमें सिंगापुर से भागना पड़ा, तो वे हमें घर पर ही पढ़ाते थे। वे हर सुबह हमें उच्चारण सिखाते थे और हमसे उस अनुच्छेद को दोहराने के लिए कहते थे जिसमें किसी को सिंग सिंग जेल में मौत की सजा सुनाई गई थी। छह साल की छोटी उम्र में ही मुझे एहसास हुआ था कि मुझे वह अंश पसंद नहीं है। जब मेरी बारी आई तो मैंने इसे पढ़ने के बजाय “प्रणाम रानी, दया की माँ” प्रार्थना का पाठ किया। मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था कि मैं एक दिन कैदियों के साथ प्रार्थना करुंगी।
अभी देर नहीं हुई है
जब मैंने जेल में कैथरीन से मुलाक़ात करना शुरू किया, तो कई अन्य कैदियों ने हमारे कार्य में रुचि दिखाई। जब भी किसी कैदी ने मुलाकात का अनुरोध किया, तो मुझे उनसे मिलकर और ईश्वर की प्रेमपूर्ण दया साझा करके खुशी हुई। ईश्वर एक प्यारा पिता है जो हमेशा हमारे पश्चाताप करने और उसके पास वापस आने का इंतजार कर रहा है। एक कैदी जिसने कानून तोड़ा है वह उड़ाऊ पुत्र के समान है, जो जीवन के सबसे निचले पांवदान पर लुढ़क गया और उसने महसूस किया, “मैं अपने पिता के पास वापस जा सकता हूं।” जब वह अपने पिता के पास वापस लौटा और क्षमा मांगी, तो उसके पिता उसका स्वागत करने के लिए दौड़ते हुए बाहर आये। किसी को भी अपने पापों का पश्चाताप करने और ईश्वर की ओर लौटने में कभी देर नहीं करनी चाहिए।
प्यार का आलिंगन
हत्या की आरोपी फ्लोर नामक फिलिपिनो महिला ने अन्य कैदियों से हमारे सेवा कार्यों के बारे में सुना और समझा, इसलिए मैंने उससे मुलाकात की और उसका समर्थन और सहयोग किया, क्योंकि उसने अपनी मौत की सजा की अपील की थी। अपनी अपील खारिज होने के बाद, वह ईश्वर से बहुत नाराज थी और मुझसे बात करना नहीं चाहती थी। जब भी मैं उसके दरवाजे से गुजरती थी, तो मैं उससे कहती थी कि चाहे कुछ भी हो जाए, ईश्वर अब भी उससे प्यार करता है। लेकिन वह निराशा में खाली दीवार की ओर देखती रहती थी। मैंने अपने प्रार्थना समूह से नित्य सहायक माता से नौ रोज़ी प्रार्थना करने और विशेष रूप से अपनी दुःख पीडाओं को उसके लिए चढाने को कहा। दो सप्ताह बाद, फ़्लोर का हृदय अचानक बदल गया और उसने मुझसे कहा कि मैं किसी पुरोहित के साथ उसके पास वापस आऊँ। वह खुशी से फूल रही थी क्योंकि माता मरियम उसकी कोठरी में आई थीं और माँ मरियम ने उससे कहा था कि वह डरे नहीं क्योंकि माँ अंत तक उसके साथ रहेगी। उस क्षण से लेकर उसकी मृत्यु के दिन तक, फ्लोर के हृदय में केवल आनंद ही आनंद था।
एक और यादगार कैदी एक ऑस्ट्रेलियाई व्यक्ति था जिसे मादक पदार्थों की तस्करी के आरोप में जेल में डाल दिया गया था। जब उसने मुझे एक अन्य कैदी के लिए माता मरियम का भजन गाते हुए सुना, तो वह इतना प्रभावित हुआ कि उसने मुझसे नियमित रूप से उससे मिलने के लिए कहा। जब उसकी माँ ऑस्ट्रेलिया से मिलने आईं तो वे हमारे साथ हमारे घर में रहीं। आख़िरकार, उसने एक काथलिक के रूप में बपतिस्मा लेने का आग्रह किया। उस दिन से, फाँसी के तख्ते तक जाते समय भी वह खुशी से भरा हुआ था। वहां का जेल निरीक्षक एक युवा व्यक्ति था, और जब यह मादक द्रव्य का पूर्व तस्कर अपनी मृत्यु की ओर बढ़ रहा था, तो यह अधिकारी आगे आया और उसे गले लगा लिया। यह बहुत असामान्य था, और हमें ऐसा लगा मानो ईश्वर स्वयं इस युवक को गले लगा रहे हो। आप वहां ईश्वर की उपस्थिति को महसूस किए बिना नहीं रह सकते थे।
वास्तव में, मैं जानता हूं कि हर बार, माता मरियम और प्रभु येशु उन सज़ा-ए-मौत पाए कैदियों को स्वर्ग में स्वागत करने के लिए वहां मौजूद होते हैं। यह विश्वास करना मेरे लिए खुशी की बात है कि जिस प्रभु ने मुझे बुलाया है वह मेरे प्रति ईमानदार रहा है। उसके और उसके लोगों के लिए जीने का आनंद किसी भी अन्य चीज़ की तुलना में कहीं अधिक लाभप्रद रहा है।
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उपहार क्रिसमस का अभिन्न अंग हैं, लेकिन क्या हमें उस महान उपहार के मूल्य का एहसास है जो हमें इतनी आसानी से दिया गया है?
एक दिसंबर की सुबह मुझे मेरे बेटे टिम्मी की उत्साहपूर्ण उद्घोषणा ने जगाया: “माँ! तुम्हें पता है?” (प्रतिक्रिया देने के लिए निमंत्रण व्यक्त करने का उसका यही अनोखा तरीका रहा है)। वह अत्यावश्यक जानकारी देने की भावुकता से भरा हुआ था… वह भी तुरंत!
मेरी पलकों को जबरदस्ती अलग होते देख, वह ख़ुशी से बोला, ” माँ, सांता मेरे लिए एक बाइक लाया और आप के लिए भी एक बाइक!” बेशक, सच्चाई यह थी कि बड़ी बाइक उसकी बड़ी बहन के लिए थी, लेकिन जैसा कि आप कल्पना कर सकते हैं, वह वास्तव में थोड़ी अप्रासंगिक सूचना थी; वास्तव में जो बात मायने रखती थी वह यह थी कि टिम्मी को उसके दिल की सबसे प्यारी चीज़ मिल गई थी—एक नई बाइक!
वह मौसम तेजी से नजदीक आ रहा है, जिस मौसम के कारण हममें से कई लोग रुक जाते हैं और अतीत की यादों में खोए रहते हैं। क्रिसमस के बारे में कुछ ऐसा है जो हमें बचपन के उस दौर में वापस ले जाता है जब जीवन सरल था, और हमारी खुशी क्रिसमस पेड़ के नीचे रखे उपहार खोलते समय हमारे दिल की इच्छाओं को पूरा करने पर आधारित थी।
बदलते चश्मे
जैसा कि कोई भी माता-पिता जानता है, हमारे पास कोई बच्चा होने से जीवन पर हमारा दृष्टिकोण पूरी तरह से बदल जाता है। हमारे लिए क्या महत्वपूर्ण है, यह अक्सर हमारे बच्चे की जरूरतों और उसकी इच्छाओं को पूरा करने के बारे में है। यह लगभग वैसा ही है जैसे कि हमने अपने व्यू-मास्टर खिलौने को बिना सोचे-समझे अपनी संतानों को स्वतंत्र रूप से और खुशी से सौंप दिया हो! आप में से जो क्रिसमस की सुबह उन खिलौनों में से एक को खोलने में भाग्यशाली थे, आपको याद होगा कि यह एक पतली कार्डबोर्ड रील के साथ छोटे कोडाक्रोम फोटोज के जोड़ों के साथ आते थे, जिसे उस व्यू-मास्टर के माध्यम से देखने पर त्री डी दृश्यों का भ्रम पैदा करता था। एक बार जब कोई बच्चा हमारे परिवार में आता है, तो हम हर चीज़ को न केवल अपने चश्मे से बल्कि उनके चश्मे से भी देखते हैं। हमारी दुनिया का विस्तार हो रहा है, और हम उस बचपन की मासूमियत को याद करते हैं, और कुछ मायनों में उसे दोबारा जीते हैं, जिसे हम बहुत पहले पीछे छोड़ आए थे।
हर किसी का बचपन बिंदास और सुरक्षित नहीं होता है, लेकिन कई लोग भाग्यशाली होते हैं जो अपने जीवन में अच्छाइयों को याद रखते हैं जबकि बड़े होने पर हमें जिन कठिनाइयों का अनुभव होता है वे समय के साथ कम हो जाती हैं। फिर भी, जिस बात पर हम बार-बार ध्यान केंद्रित करते हैं वह अंततः हमारे जीवन जीने के तरीके को आकार देगी। शायद इसीलिए कहा जाता है, “खुशहाल बचपन बिताने में कभी विलम्ब नहीं करना चाहिए!” हालाँकि, इसके लिए इरादे और अभ्यास की आवश्यकता होती है, विशेष रूप से कृतज्ञता व्यक्त करने जैसे विकल्पों के माध्यम से। जिन तस्वीरों ने एक बार हमारी छोटी दुनिया के परिदृश्य को बड़ा कर दिया था, उन्हें व्यू-मास्टर के माध्यम से बार-बार झाँकने से, हमारे जीवन की दृष्टि के क्षेत्र के चित्रों में सुंदरता, रंगों और विभिन्न आयामों को पहचानने के लिए प्रेरणा मिलती थी। उसी तरह, कृतज्ञता का लगातार अभ्यस्त जीवन को निराशाओं, दुखों और अपराधों की एक श्रृंखला के बजाय अवसरों, उपचार और क्षमा की संभावना के रूप में देखने का कारण बन सकता है।
मानव एक-दूसरे के साथ किस प्रकार बातचीत करते हैं और व्यवहार करते हैं, इस पर जांच और निरीक्षण करनेवाले सामाजिक वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि कृतज्ञता की भावना रखने और उसे प्रकट करने की प्रथाएं मनोवैज्ञानिक रूप से सहायक हैं। “दूसरों को धन्यवाद देना, खुद को धन्यवाद देना, प्रकृति माँ या सर्वशक्तिमान को धन्यवाद देना – कृतज्ञता किसी भी रूप में हो, वह मन को प्रबुद्ध कर सकती है और हमें खुशी महसूस करा सकती है। इसका हम पर उपचारात्मक प्रभाव पड़ता है” (रसेल और फोशा, 2008)। एक बुद्धिमान कहावत कहती है, “कृतज्ञता की भावना आम दिनों को आभार के दिनों में बदल सकती है, बोरियत से भरे कार्यों को खुशी में बदल सकती है, और सामान्य अवसरों को आशीर्वाद में बदल सकती है।”
अछूता उपहार
अतीत पर विचार करने से दिमाग में बहुत सी स्मृतियाँ उभरकर आती हैं। जिन चीज़ों के लिए हमें आभारी होना चाहिए उन पर ध्यान केंद्रित करने से पता चलता है कि हम अपनी युवावस्था में क्या नहीं समझ पाए… यानी, जब तक हमें क्रिसमस पर व्यू-मास्टर का उपहार नहीं मिलता, तब तक हम जीवन की बहु आयामी रंगीनता को समझ ही नहीं पाए थे! सच में, हम सभी को एक विशेष उपहार दिया गया है, लेकिन सभी ने अपना वह विशेष उपहार नहीं खोला है। क्रिसमस पेड़ के नीचे पड़ा वह उपहार वहीं रह सकता है, जबकि हमारे हाथ सुसज्जित रंग-बिरंगे अन्य उपहारों के प्रति उत्सुकता से बढ़ते हैं और उन्हीं आकर्षक उपहारों को हम उठा लेते हैं। किसी विशेष पैकेट का चयन करने में प्राप्तकर्ता की अनिच्छा क्या हल्के रंगों के सादे आवरण के कारण था? या घुमावदार रिबन और उपहार टैग की कमी के कारण था? अंदर का व्यू-मास्टर नए परिदृश्य खोलेगा, नए रोमांच लाएगा और इसे खोलने वाले की दुनिया बदल देगा, लेकिन उस तरह की सही पहचान के लिए प्राप्तकर्ता में ग्रहणशीलता की आवश्यकता होती है। और जब कोई उपहार किसी अन्य व्यक्ति द्वारा इस तरह से प्रस्तुत किया जाता है कि उसमें उत्सुकता न हो, तो संभवतः वह अछूता ही रहेगा।
जो लोग व्यू-मास्टर की चाहत रखते हैं, जो सक्रिय रूप से इसे क्रिसमस पेड़ के नीचे खोजते हैं, जो यह भरोसा करने में सक्षम हैं कि साधारण बाहरी हिस्से के नीचे कुछ बेहतर छिपा है, वे निराश नहीं होंगे। वे जानते हैं कि सबसे अच्छे उपहार अक्सर अप्रत्याशित रूप से आते हैं, और एक बार जब उन्हें खोला जाता है, तो उनके मूल्य की पहचान होने पर उनके प्रति सम्मान, प्यार और सराहना बढ़ती है। आखिरकार, जैसे-जैसे उपहार के कई पहलुओं की खोज में अधिक समय व्यतीत होता है, खजाना अब प्राप्तकर्ता के जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन जाता है।
उपहार खोलने का समय!
बहुत समय पहले लोगों का एक निश्चित समूह था जो यह आशा कर रहा था कि उन्हें वह दिया जाएगा जिसका उनसे वर्षों से वादा किया गया था। इसके लिए तरसते हुए, वे इस प्रत्याशा में रहते थे कि एक दिन वे इसे प्राप्त करेंगे। जब इस वादे को पूरा करने का समय आया, तो इसे साधारण कपड़े में लपेटा गया था, और यह इतना छोटा था कि रात के अंधेरे में, केवल कुछ चरवाहों को इसके आगमन के बारे में पता चला। जैसे-जैसे रोशनी बढ़ने लगी, कुछ लोगों ने इसे रोकने की कोशिश की, लेकिन परछाइयों ने इस रोशनी के प्रभाव का सबूत दिया। दोबारा बच्चा बनने के महत्व को याद दिलाते हुए, कई लोग इस रोशनी के साथ चलने लगे जिसने उनके रास्ते को रोशन कर दिया। बढ़ी हुई स्पष्टता और दृष्टि के साथ, अर्थ और उद्देश्य ने उनके दैनिक जीवन को आकार देना शुरू कर दिया। आश्चर्य और विस्मय से भर कर उनकी समझ और गहरी हो गई। तब से पीढ़ियों तक, अनेक व्यक्तियों की भक्ति, देहधारी हुए वचन को प्राप्त करने की याद से मजबूत हुई है। उन्हें जो दिया गया था उसके अहसास ने सब कुछ बदल दिया।
इस क्रिसमस पर, आपके दिल की इच्छा पूरी हो, जैसा कि मेरे बेटे ने कई साल पहले किया था। जैसे ही हमारी आँखें खुलती हैं, हम भी कह सकते हैं, “पता है क्या?” ईश्वर मेरे लिए एक “अद्भुत परामर्शदाता” लाए और आप के लिये “शांति के राजकुमार!” यदि आप इस अनमोल उपहार को खोल चुके हैं, तो आप इसके बाद मिलने वाली तृप्ति और खुशी को जानते हैं। जैसे ही हम कृतज्ञता के साथ प्रतिक्रिया करते हैं, इससे हम चाहते हैं कि जो हमने प्राप्त किया है, इसका अनुभव दूसरों को भी मिले। हम जो देना चाहते हैं उसे हम कैसे प्रस्तुत करते हैं, इस पर ध्यानपूर्वक विचार करने से इस बात की संभावना बढ़ जाती है कि उपहार खोला जाएगा। मैंने जो ख़ज़ाना खोजा है उसे मैं कैसे वितरित करूँगा? क्या मैं इसे प्यार से लिपटा लूँ? इसे आनंद से ढक दूं? इसे शांतिपूर्ण हृदय में रख दूं? इसे धैर्य में लपेट दूं? इसे दयालुता के आवरण में रख दूं? इसे उदारता में पैक करूं? वफ़ादारी से इसकी रक्षा करूं? इसे नम्रता और सौम्यता के साथ बाँध दूं?
यदि प्राप्तकर्ता अभी तक इस उपहार को खोलने के लिए तैयार नहीं है तो शायद पवित्र आत्मा के अंतिम फल पर विचार किया जा सकता है। क्या तब हम अपने खजाने को आत्म-नियंत्रण में रखना का फैसला ले सकते हैं?
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प्रश्न – येशु मसीह को हमारे लिए क्यों मरना पड़ा? यह क्रूर लगता है कि हमें बचाने के लिए पिता को अपने इकलौते बेटे की मृत्यु की आवश्यकता होती है। क्या कोई और रास्ता नहीं था?
उत्तर – हम जानते हैं कि येशु की मृत्यु ने हमें अपने पापों से क्षमा कर दिया। लेकिन क्या यह आवश्यक था; और इस से हमारा उद्धार कैसे पूरा हुआ?
इस पर विचार करें: यदि स्कूल में कोई छात्र अपने सहपाठी को मुक्का मार दे, तो स्वाभाविक परिणाम यह होगा कि उसे एक निश्चित सजा दी जाएगी – शायद उसे हिरासत में ले लिया जाएगा, या निलंबित किया जाएगा। लेकिन अगर वही छात्र किसी शिक्षक को मुक्का मार दे, तो सज़ा अधिक गंभीर होगी – शायद स्कूल से निकाल दिया जाएगा। यदि वही छात्र राष्ट्रपति को मुक्का मार दे, तो संभवतः उन्हें जेल जाना पड़ेगा। जिसे ठेस पहुंची है, उसकी गरिमा पर निर्भर करते हुए परिणाम बड़ा होगा।
तो फिर, सर्व-पवित्र, सर्व-प्रेमी ईश्वर को अपमानित करने का परिणाम क्या होगा? जिसने आपको बनाया और चाँद सितारों की सृष्टि की, वह समस्त सृष्टि द्वारा पूजा और आराधना पाने का हकदार है – जब हम उसे अपमानित करते हैं, तो स्वाभाविक परिणाम क्या होता है? अनन्त मृत्यु और विनाश, पीड़ा और उस प्रभु से अलगाव। इस प्रकार, ईश्वर का हम पर मृत्यु का ऋण है। लेकिन हम इसके बदले उसे कुछ नहीं दे पाए – क्योंकि वह असीम रूप से भला है, हमारे अपराध ने हमारे और उसके बीच एक अनंत खाई पैदा कर दी। हमें किसी ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता थी जो अनंत और परिपूर्ण हो, लेकिन मानवीय भी हो (क्योंकि कर्ज चुकाने के लिए उन्हें मरना होगा)।
केवल येशु मसीह ही इस वर्णन में योग्य बैठते हैं। अनन्त विनाश की ओर ले जाने वाले अवैतनिक ऋण में हम फंसे हुए हैं यह देखकर, अपने महान प्रेम से, वह वास्तव में मनुष्य बन गया, ताकि वह हमारी ओर से हमारा ऋण चुका सके। महान ईशशास्त्री संत एंसलम ने ‘कुर देउस होमो’ (ईश्वर मनुष्य क्यों बने?) शीर्षक से एक संपूर्ण ग्रंथ लिखा था,, और उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि ईश्वर मनुष्य बने ताकि वह उस ऋण को चुका सके जो हम पर था लेकिन हम उस ऋण को चुका नहीं सके, इसलिए हमें ईश्वर से मेलमिलाप कराने केलिए येशु जो स्वयं ईश्वर और मानवता का पूर्ण मिलन है, उसे मनुष्य बनना पड़ा।
इस पर भी विचार करें: यदि ईश्वर सभी जीवन का स्रोत है, और पाप का अर्थ है कि हम ईश्वर से मुंह मोड़ लेते हैं, तो हम क्या चुन रहे हैं? मौत! वास्तव में, संत पौलुस कहते हैं कि “पाप की मज़दूरी मृत्यु है” (रोमी 6:23)। और पाप संपूर्ण व्यक्ति की मृत्यु लाता है। हम देख सकते हैं कि वासना के कारण लैंगिक बीमारियाँ फैल सकती हैं और लोगों के दिल टूट सकती हैं; हम जानते हैं कि पेटूपन ऐसी जीवनशैली बन सकती है, जो स्वास्थ्य केलिए बहुत ही हानिकारक है, ईर्ष्या हमें ईश्वर द्वारा दिए गए उपहारों के प्रति असंतोष की ओर ले जाती है, लालच हमें अत्यधिक काम करने और आत्म-भोग के लिए प्रेरित कर सकता है, और अहंकार एक दूसरे के साथ और ईश्वर के साथ हमारे संबंधों को तोड़ सकता है। ऐसे में, पाप वास्तव में घातक और मौत का बुलावा है!
तो, हमें फिर से जीवन में लाने के लिए एक मृत्यु की आवश्यकता होती है। जैसा कि पुण्य शनिवार को दिए गए एक प्राचीन उपदेश में येशु के दृष्टिकोण का वर्णन इस तरह किया गया था, “मेरे चेहरे पर पड़े थूक को देखो, यह इसलिए है ताकि तुम सृष्टि में उस प्रथम दिव्य श्वास को पुनः प्राप्त कर सको। मेरे गालों पर पड़े प्रहारों को देखो, जिन्हें मैंने तुम्हारे विकृत रूप को अपनी छवि में नया रूप देने के लिए स्वीकार किया। मेरी पीठ पर कोड़े की मार देखो, जिन्हें मैंने इसलिये स्वीकार किया ताकि तुम्हारी पीठ पर लादे गए तुम्हारे पापों के बोझ को मैं दूर कर दूँ। बुराई और पाप के लिये तुमने अपने हाथ वृक्ष की ओर बढ़ाया, तो बदले में देखो, तुम्हारे लिए, तुम्हारी मुक्ति केलिए वृक्ष पर कीलों से ठोंके गए मेरे हाथ।”
अंत में, मेरा मानना है कि येशु की मृत्यु हमें उनके प्रेम की गहराई दिखाने के लिए आवश्यक थी। यदि उन्होंने केवल अपनी उंगली चुभाई होती और अपने बहुमूल्य रक्त की एक बूंद भी बहा दी होती (जो हमें बचाने के लिए पर्याप्त है), तो हम सोचते कि वह हमसे इतना प्यार नहीं करता। लेकिन, जैसा कि संत पाद्रे पियो ने कहा: “जिससे आप प्यार करते हैं उसके लिए कष्ट सहना ही प्यार का प्रमाण है।” जब हम उन अविश्वसनीय कष्टों को देखते हैं जिन्हें येशु ने हमारे लिए सहे, तो हम एक पल के लिए, ईश्वर हमसे प्यार करता है, इस सत्य पर संदेह नहीं कर सकते हैं। ईश्वर हमसे इतना प्यार करता है कि वह हमारे बिना अनंत काल बिताने के बजाय मर जाना पसंद करेगा।
इसके अलावा, हमारी पीड़ा में उनकी पीड़ा हमें राहत और सांत्वना देती है। हमारे जीवन में ऐसी कोई पीड़ा और दुःख नहीं है जिससे येशु पहले ही न गुजरा हो। क्या आप शारीरिक कष्ट में हैं? येशु ने भी ऐसे कष्ट झेला था। क्या आपको सिरदर्द है? येशु के सिर पर कांटों का ताज पहनाया गया। क्या आप अकेला और परित्यक्त महसूस कर रहे हैं? उनके सभी मित्रों ने उन्हें छोड़ दिया था और उनका इन्कार कर दिया था। क्या आपको लज्जा महसूस होती है? सबके उपहास के लिए उसे नंगा कर दिया गया था। क्या आप चिंता और भय से जूझते हैं? येशु इतने चिंतित थे कि उन्होंने गेथसेमनी बाग में खून पसीना बहाया। क्या आप दूसरों से इतने आहत हुए हैं कि आप क्षमा नहीं कर सकते? येशु ने अपने पिता से अपने हाथों में कील ठोंकने वाले लोगों को क्षमा करने के लिए कहा। क्या आपको ऐसा लगता है जैसे ईश्वर ने आपको त्याग दिया है? येशु ने स्वयं ऊंची आवाज़ में कहा: “हे ईश्वर, हे मेरे ईश्वर, तू ने मुझे क्यों त्याग दिया?”
इसलिए हम कभी नहीं कह सकते: “हे ईस्वर, तू नहीं जानता कि मैं किस दौर से गुज़र रहा हूँ!” क्योंकि वह हमेशा जवाब दे सकता है: “हाँ, मेरे प्यारे बच्चे, मैं जानता हूँ, । मैं वहां इन पीडाओं में रहा हूं—और इस समय मैं तुम्हारे साथ कष्ट भोग रहा हूं।”
यह जानकर कितनी सांत्वना मिलती है कि क्रूस ने ईश्वर को उन लोगों के करीब ला दिया है जो पीड़ित हैं! इस क्रूस ने हमारे लिए ईश्वर के अनंत प्रेम की गहराई दिखाई है! क्रूस ने हमें यह दिखाया है कि हमें बचाने के लिए ईश्वर कितनी दूर तक जा सकता है! इस क्रूस ने दिखाया है कि येशु ने हमारे पाप का कर्ज़ चुका दिया है ताकि हम उसके सामने क्षमा प्राप्त और छुटकारा पाये हुए लोग बनकर उनके सामने खड़े हो सकें!
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गर्भधारण की बहुप्रतीक्षित खुशखबरी से आनंदित होने के बाद 12वें सप्ताह के नियमित अल्ट्रासाउंड के दौरान उनकी दुनिया उलट-पुलट हो गई
हमारी पहली संतान मैरी ग्रेस बड़ी हो रही थी और खूबसूरत बच्ची बन रही थी। हमारा परिवार और दोस्त सक्रिय रूप से हमारे दूसरे बच्चे के लिए प्रार्थना कर रहे थे, इसलिए गर्भावस्था के बारे में जानकर हमें बहुत खुशी हुई! आनुवंशिक परीक्षण के परिणाम सामान्य आए, और हमने बच्चे के लिंग को एक रहस्य के रूप में रखने की इच्छा से उसकी कोई जानकारी न लेने का निर्णय लिया ।
जब मैं 12वें सप्ताह के नियमित अल्ट्रासाउंड के लिए गई तो तकनीशियन ने मुझे बच्चे का साइड प्रोफाइल दिखाया और फिर तुरंत स्क्रीन को मेरी नज़रों से दूर कर दिया। वे मेरी बेटी ग्रेस को बाहर ले गए और मुझे तुरंत पता चल गया कि कुछ गड़बड़ है। मैंने सोचा: “हो सकता है कि मेरी कोख में पल रहे बच्चे को किसी प्रकार की हृदय संबंधी समस्या या दोष हो, लेकिन यह ठीक है। ईश्वर कुछ भी ठीक कर सकता है, और हम सर्जरी करा सकते हैं।” लेकिन एक डॉक्टर होने के नाते, मैंने प्रार्थना की: “हे ईश्वर, इसे एनेन्सेफली (अभिमस्तिष्कता) होने न दें।” (अभिमस्तिष्कता ऐसी बीमारी है जिसमें बच्चा मस्तिष्क और खोपड़ी के कुछ हिस्से के बिना जन्म लेता है)। चूँकि मैंने अल्ट्रासाउंड की एक झलक देखी थी, मुझे विश्वास था कि यह कुछ और होगा।
जैसे ही डॉक्टर कमरे में आये, मैंने कहा: “कृपया मुझे बताएं कि बच्चा जीवित है या नहीं।” अपने चेहरे पर गंभीरता दिखाते हुए, उन्होंने कहा: “हां, बच्चे के दिल की धड़कन सुनाई दे रही है, लेकिन सब कुछ अच्छा नहीं लग रहा है।” मैं रोने लगी और अपने पति को फेसटाइम पर कॉल किया। मुझे सबसे अधिक डर इसीसे था – हमारे बच्चे को एनेन्सेफली है, जो गर्भाशय में बच्चे के गंभीर दोषों में से एक हो सकता है, जहां खोपड़ी उचित रूप से विकसित नहीं होती है – और डॉक्टर ने मुझे बताया कि भ्रूण लंबे समय तक जीवित नहीं रहेगा।
यह हृदयविदारक खबर थी। यह अनमोल बच्चा, जिसका हम इतने वर्षों से इंतज़ार कर रहे थे, जीवित नहीं रहने वाला था! मैंने सोचा कि मेरी बड़ी बेटी कितनी उत्साहित थी। हमारी दैनिक पारिवारिक प्रार्थना में, वह कहती थी: “येशु, कृपया मुझे एक छोटा भाई या बहन दीजिए।” मैं मन में कहती रही: “हे प्रभु, तू ठीक कर सकता है, तू बच्चे को ज़रूर ठीक कर सकता है।”
मेरे पति तुरंत आये। शांत रहने की भरपूर कोशिश करते हुए, मैंने अपनी बेटी को बताया कि मैं खुशी के आँसू रो रही हूँ। मैं और क्या कह सकती थी?
डॉक्टर ने कहा कि हम गर्भ के भ्रूण को समाप्त कर सकते हैं। मैंने कहा, “बिल्कुल नहीं। जब तक बच्चा जीवित रहेगा, मैं उसे अपने पास रखूंगी। यदि यह 40 सप्ताह जीवित रहने वाला है, तो मैं उसे 40 सप्ताह अपने पास रहने दूंगी।” डॉक्टर ने मुझे चेतावनी दी कि मैं संभवतः इसे इतना लंबा नहीं रख पाऊँगी, और यदि गर्भ में बच्चा मर जाता है, तो मुझे गंभीर रक्त संक्रमण होने की संभावना थी। मुझे बार-बार जांच की ज़रूरत पड़ेगी, क्योंकि मेरे गर्भाशय में तरल पदार्थ का जमा होना बहुत खतरनाक हो सकता है। मैंने उनसे कहा कि मैं किसी भी बात का सामना करने के लिए तैयार हूं। शुक्र है, डॉक्टर के साथ अगली मुलाकातों में मुझ पर अधिक दबाव नहीं डाला गया। वे जानते थे कि मैंने पक्का फैसला कर लिया है!
आशा के लिए नियत
हम घर आये और एक साथ प्रार्थना करते हुए और रोते हुए समय बिताया। मैंने अपनी बहन को फोन किया, जो प्रसूति और स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर थी। उसने बहुत सारे दोस्तों को बुलाया, खासकर जो जीसस यूथ में सक्रिय थे, और उसी रात ऑनलाइन नौरोज़ी प्रार्थना शुरू की गयी। हमने बस अपनी बेटी से कहा कि बच्चे में “थोड़ा सा घाव है, लेकिन यह ठीक हो जाएगा।” हमने अपने माता-पिता या ससुराल वालों को नहीं बताया; मेरी बहन की एक महीने में शादी होने वाली थी और हम नहीं चाहते थे कि शादी प्रभावित हो। हमने यह भी सोचा था कि जिस ताकत के साथ इस दुःख को हमने संभाला था, उतनी ताकत से वे इसे नहीं संभाल पायेंगे।
पहले कुछ दिनों में, कई लोगों ने मुझसे बात की, जिससे मुझे ईश्वर की व्यवस्था पर भरोसा करने और यह विश्वास करने में मदद मिली कि ईश्वर ऐसा कुछ भी नहीं करता जो हमारे लिए अच्छा न हो। मुझे असीम शांति महसूस हुई। मैंने माँ मरियम के बारे में सोचा – देवदूत गाब्रियेल द्वारा की गयी घोषणा के समय अच्छी खबर प्राप्त करने की खुशी, और बाद में यह जानने का दुःख कि वह मरने वाला है। हमने उस दिन, रक्त के जांच वाले फाइल को खोलने का निर्णय लिया, जिससे बच्चे के लिंग का पता चला, क्योंकि हम चाहते थे कि अपने बच्चे के लिए एक नाम दिया जाये और उस नाम के साथ उसके लिए प्रार्थना की जाए।
हमने उसका नाम इवांजेलिन होप रखा, जिसका अर्थ है ‘अच्छी खबर लाने वाली’; क्योंकि, हमारे लिए, वह अभी भी मसीह के प्रेम और दया की आशा को प्रसारित करने वाली है। हमने एक बार भी उसका गर्भपात कराने के बारे में नहीं सोचा, क्योंकि वह न केवल हमारे लिए बल्कि हमारे सभी शुभचिंतकों के लिए एक अच्छी खबर, सुसमाचार थी – एक ऐसी बच्ची जो कई मायनों में दुनिया को सुसमाचार सुनाएगी।
मैं एक एनेंसेफली सहायता समूह में शामिल हो गयी, जिससे मुझे अपनी इस कठिन यात्रा में काफी मदद मिली। मैं कई लोगों से मिली, यहां तक कि उन नास्तिकों से भी, जिन्हें अपने बच्चों का गर्भपात कराने के फैसले पर गहरा अफसोस हुआ था। मैं उन महिलाओं के संपर्क में लायी गयी, जिन्होंने दान किए गए शादी के गाउन से परियों के गाउन सी दिया था। पेशेवर फोटोग्राफर लोगों से भी मेरा संपर्क हुआ, जो सुंदर तस्वीरों के माध्यम से मेरी बच्ची के जन्म का दस्तावेजीकरण करने के लिए स्वेच्छा से तैयार हुए।
हमने अपनी बहन की शादी के दौरान बच्चे के लिंग का खुलासा किया, लेकिन किसी को यह नहीं बताया कि बच्ची बीमार है। हम सिर्फ उसकी छोटी सी जिंदगी का सम्मान करना और जश्न मनाना चाहते थे। मेरी बहन और सहेलियों ने एक खूबसूरत शिशु-स्नान का (ज़िंदगी के उत्सव की तरह) भी आयोजन किया और उपहारों के बजाय, सभी ने उसके नाम पत्र लिखे जिन्हें प्रसव के बाद हम उसे पढ़कर सूना सकें।
सतत आराधना
मैं उसे 37वें सप्ताह तक अपने कोख में ढोती रही।
गर्भाशय की दीवार के फटने सहित जटिल प्रसव के बाद भी, इवांजेलिन जीवित पैदा नहीं हुई। लेकिन इसके बावजूद, मुझे याद है, मुझे स्वर्गीय शांति की गहरी अनुभूति महसूस हो रही थी। बहुत प्यार, सम्मान और आदर के साथ उसका स्वागत किया गया। एक पुरोहित और इवांजेलिन के धर्म माता पिता उससे मिलने का इंतज़ार कर रहे थे। वहाँ अस्पताल के कमरे में, हमने प्रार्थना, स्तुति और आराधना का एक सुंदर समय बिताया।
हमारे पास उसके लिए खूबसूरत पोशाकें थीं। हमने वे पत्र पढ़े जो सभी ने उसे लिखे थे। एक ‘सामान्य’ बच्चे को जितना सम्मान दिया जाता, उसकी तुलना में, अधिक गरिमा और सम्मान के साथ हम उसके साथ व्यवहार करना चाहते थे। हम रोए, क्योंकि हमें उसकी संगति नहीं मिली, और हम उस खुशी के कारण भी रोये, क्योंकि वह अब येशु के साथ थी। अस्पताल के उस कमरे में, हम सोच रहे थे, “वाह, हम स्वर्ग जाने के लिए बेसब्र हैं लेकिन अब तुरंत नहीं जा सकते। इसलिए, आइए हम सभी संतों के साथ वहां रहने की पूरी कोशिश करें।”
दो दिन बाद, हमने उसके लिए ‘जीवन का जश्न’ मनाया, जिसमें सभी ने सफेद कपड़े पहने। चार पुरोहितों द्वारा पवित्र मिस्सा अर्पित किया गया, और हमारी अनमोल बच्ची का सम्मान करने के लिए हमारे पास गुरुकुल के तीन पुरोहितार्थी और एक सुंदर गायक मंडली भी थी। इवांजेलिन को कब्रिस्तान में बच्चों के लिए बने फरिश्तों वाले हिस्से में दफनाया गया, जहाँ हम अभी भी अक्सर जाते हैं। हालाँकि वह इस धरती पर नहीं है, लेकिन वह हमारे जीवन का एक हिस्सा है। मैं येशु के करीब अपने को महसूस करती हूं क्योंकि मैं देखती हूं कि ईश्वर मुझसे कितना प्यार करता है और उसने इवांजेलिन को मेरे गर्भ में ढोने के लिए मुझे कैसे चुना।
मैं अपने को धन्य और सौभाग्यशाली मानती हूं। वह हमारे परिवार के लिए प्रभु की सतत आराधना करती है जिसके द्वारा हम सन्तों के बराबर लाये गए हैं। पवित्रता की इस स्थिति में कोई और तत्व हमें कभी नहीं ला सकता। यह ईश्वर की कृपा और उसकी इच्छा की पूर्ण स्वीकृति थी जिसने हमें इस पीड़ा से गुजरने की ताकत दी। जब हम ईश्वर की इच्छा को स्वीकार करते हैं, तो हमें किसी भी स्थिति से गुजरने के लिए जिन अनुग्रहों की ज़रुरत होती है, ईश्वर उन सारी कृपाओं की वर्षा करता है। हमें बस अपने आप को उसकी दयालुता और ईश विधान पर छोड़ देना है।
संतों का पालन पोषण
प्रत्येक अजन्मा बच्चा अनमोल है; स्वस्थ हो या बीमार, वे अभी भी ईश्वर के उपहार हैं। मेरे विचार में जो विशेष आवश्यकता वाले बच्चे हैं, वे “सामान्य” बच्चों से भी अधिक कीमती हैं, इसलिए मसीह की छवि में बने उन बच्चों से प्यार करने के लिए हमें अपना दिल खोलना चाहिए। उनकी देखभाल करना घायल मसीह की देखभाल करने जैसा है। विकलांग या विशेष आवश्यकता वाले बच्चे का होना एक सम्मान की बात है क्योंकि उनकी देखभाल करने से हमें जीवन में कुछ हासिल करने से भी बढ़कर पवित्रता की गहरी स्थिति तक पहुंचने में मदद मिलेगी। यदि हम इन बीमार अजन्मे बच्चों को उपहार – शुद्ध आत्मा रुपी उपहार – के रूप में देख सकें तो हमें नहीं लगेगा कि यह बोझ है। आप अपने भीतर एक ऐसे संत बैठाएंगे जो सभी देवदूतों और संतों की संगति में बैठा होगा।
हम वर्तमान में एक बच्चे (गेब्रियल) की उम्मीद कर रहे हैं, और मुझे ईश्वर पर भरोसा है कि अगर उसे कुछ बीमारी हो भी जाती है, तो भी हम उसे खुले दिल और खुली बाहों से प्राप्त करेंगे। सबका जीवन एक अनमोल उपहार है, और हम जीवन के सृष्टिकर्ता नहीं हैं। हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि ईश्वर देता है और ईश्वर लेता है। उस प्रभु ईश्वर के नाम की महिमा हो!
'जब मैं छोटी थी तब पवित्र मिस्सा बलिदान में पढ़ा गया धर्मग्रंथ पाठ सुनने में मुझे हमेशा अच्छा लगता था। हालाँकि, यह समझने में पेचीदा था, इसलिए मैंने इसे समझने में “बहुत कठिन” की सूचि में डाल दिया। इस तरह मैने पूरे धर्मग्रंथ को एक रहस्य के रूप में वर्गीकृत कर दिया और अपने आप से कहा, कि किसी दिन जब मैं ईश्वर के साथ स्वर्ग में रहूंगी, तब इसे समझा जाएगा।
बाद में, एक युवती के रूप में, मैंने सन्त जेरोम द्वारा दिए गए जीवन बदलने वाले उद्धरण को सुना: “धर्मग्रंथ की अज्ञानता येशु मसीह की अज्ञानता है।” सन्त जेरोम मुझसे कह रहे थे कि मुझे “किसी दिन” का इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा। इसके बजाय, इसी क्षण मसीह को समझने और जानने के लिए ईश्वर की अनुमति मेरे लिए प्राप्त थी।
ईश्वर के वचन के साथ मेरी यात्रा एक पहेली को जोड़ने जैसी थी जो हर टुकड़े को सही जगह पर रखने के साथ ही स्पष्ट होती गई। धर्मग्रंथ से, विशेष रूप से सन्त योहन के सुसमाचार से पता चलता है कि ईश्वर का सर्वशक्तिमान शब्द, हर चीज का निर्माता, देहधारी हो गया क्योंकि वह मुझसे प्यार करता था। अपनी रचना के एक हिस्से के रूप में, वह चाहता है कि मैं उनकी बेटी बनूं, उनके राज्य की उत्तराधिकारी बनूं और अनंत काल तक उनके साथ शांति से रहूं।
हालाँकि, महिमा के राजा ने विनम्रतापूर्वक एक बालक के रूप में शरीर धारण करने का फैसला किया, वे कष्ट सहे और अपनी योजना को पूरी करने के लिए मेरे लिए क्रूस पर मर गए। पन्ने के प्रत्येक मोड़ के साथ, अज्ञानता का पर्दा हट जाता है जबकि उसके प्रति मेरी आस्था और प्रेम बढ़ता है; अब मैं जानती हूं कि मैं उसकी हूं।
पवित्र आत्मा की सहायता से, मैं दूसरों को प्रोत्साहित करने का प्रयास करती हूँ कि वे धर्मग्रंथ की समझ की कमी के कारण मसीह से अनभिज्ञ न रहें। कई वर्षों से, मैं और मेरे पति दूसरों को ईश्वर के वचन की ओर आकर्षित करने और देहधारी ईश्वर के पुत्र येशु को जानने की आशा में हमारी पल्ली में धर्मग्रंथ अध्ययन कार्यक्रम के समन्वयक का कार्य किया है।
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अँधेरी रात में हमें सबसे चमकीले तारे दिखाई देते हैं। आपकी ज्योति जलती रहे।
एक कच्ची गुफा की गहराई में एक शांत रात की कल्पना करें। वह गुफा शहर से इतनी करीब थी कि इसके किनारों पर बेथलेहम की गपशप सुनाई दे रही थी, लेकिन इतनी दूर भी थी कि वह गुफा अलग थलग महसूस होती है। भूसे से ढका वह अस्तबल, जिस में जानवरों की आवाज़ और गंदगी की तीव्र गंध है, लेकिन अंधेरे में डूबी हुई।
सुनो, ध्यान से सुनो, उस दबी हुई प्रार्थनाओं और फुसफुसाहटों को सुनो, अपनी माँ के स्तन से संतृप्ति के साथ दूध पीता एक बच्चा, हृष्ट-पुष्ट और अनमोल, अपनी माँ और पिता की गोद में। ऊपर, इस गुफा पर एक चमकदार आकाशीय रोशनी पड़ती है, यह एकमात्र संकेत बताता है कि यह एक शुभ घटना है।
यही बच्चा, जिसका अभी-अभी जन्म हुआ है वह अपनी मां द्वारा बुने गए, काढ़े गए कपड़ों में लिपटा हुआ है… अपनी माँ का दूध पीकर, वह शांति से विश्राम कर रहा है। बाहर, बेथलेहम के हलचल भरे शहर में, इस घटना की महानता का अंदाजा किसी को भी नहीं है।
एक गहरी, अँधेरी गुफा
ओर्थोडोक्स कलीसिया की परंपरा में येशु के जन्म की प्रतीकात्मक तस्वीर में एक गुफा की गहराई को दर्शाया गया है। यह दोतरफा है. पहले, हमारे प्रभु येशु के जन्म के समय अक्सर चट्टान को ऊबड़-खाबड़ काट कर अस्तबल बनाया जाता था। दूसरा अधिक प्रतीकात्मक है।
वास्तव में यह अँधेरी गुफा ही है जो प्रकाश, समय, स्थान और चट्टान को तोड़ते हुए – ईश्वर के पृथ्वी पर आने के उद्देश्य को, ख्रीस्त के प्रकाश को प्रदर्शित करती है। यह गुफा भी दिखने में कब्र जैसी ही है, जो उनकी पीड़ा और मृत्यु को दर्शाती है।
यहां इस एक तस्वीर में उस भूकंपीय घटना की हकीकत लिखी है जिसने इंसान की जिंदगी को हमेशा के लिए बदल दिया। अपनी दयालु माँ की गोद में लेटा यह प्यारा बच्चा “इस्राएल में बहुतों का पतन और उत्थान का कारण बनने और एक ऐसा चिन्ह ठहराया जाने के लिए निर्धारित किया गया है जिसका विरोध किया जायेगा।” ( लूकस 2: 34)
एक गहरा, अंधेरा दिल
हम सभी को एक गिरा हुआ मानव स्वभाव विरासत में मिला हुआ है। यह हमारी कामवासना है – पाप के प्रति हमारा झुकाव – जो हमारे हृदयों को अँधेरा कर देता है। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि हम मत्ती के सुसमाचार में यह उपदेश पाते हैं: “धन्य हैं वे जो हृदय के निर्मल हैं, क्योंकि वे ईश्वर के दर्शन करेंगे” (मत्ती 5:8)।
हम शायद यह सोचना चाहेंगे कि यदि हम येशु के समय में जीवित होते, तो हम उसे अपने बीच में पहचानने में असफल नहीं होते। लेकिन मुझे डर है कि यह विचार, घमंड भरा विचार है। इसकी बहुत अधिक संभावना है कि जब तक हमारा विश्वास एक ठोस आधार पर नहीं बना होता और हम येशु के आगमन के लिए तैयार नहीं होते, तब तक हमें उसे ढूंढने में परेशानी होती, भले ही वह हमारे सामने ही क्यों न खड़ा हो।
और कभी-कभी, जब वह ठीक हमारे सामने होता है, तो हम उसे देखने में असफल हो जाते हैं। क्या हम वास्तव में प्रभु भोज में उसे पहचानते हैं? या गरीबों के कष्टकारी वेश में? या यहां तक कि हमारे आस-पास के लोगों में भी — खासकर उन लोगों में जो हमें परेशान करते हैं?
हमेशा नहीं। और शायद लगातार भी नहीं. लेकिन उसके लिए उपाय हैं।
प्रकाश को प्रतिबिंबित करें
संत जोसे मारिया एस्क्रिवा हमें सावधान करती हैं: “यह मत भूलो कि हम इस प्रकाश का स्रोत नहीं हैं: हम केवल इसे प्रतिबिंबित करते हैं।” यदि हम अपने हृदय को एक दर्पण के रूप में सोचते हैं, तो हमें एहसास होता है कि उस जगह छोटे-छोटे निशान भी प्रतिबिंब को बदल देंगे। दर्पण जितना अधिक गंदा हो जाता है, उतना ही कम हम दूसरों को मसीह का प्रकाश प्रतिबिंबित करते हैं। हालाँकि, यदि हम नियमित रूप से दर्पण की सफाई बनाए रखें, तो इसका प्रतिबिंब किसी भी तरह से धुंधला नहीं होता है।
तो फिर, हम अपने हृदयों को कैसे साफ़ रखें? इस क्रिसमस पर इन पाँच सरल कदमों को आज़माएँ, ताकि हमारे दिल इतने साफ़ हो जाएँ कि वे उस बच्चे, शांति के राजकुमार की रोशनी को दूसरों तक प्रतिबिंबित कर सकें। आइए हम उसे गुफा में, दुनिया में और अपने आस-पास के लोगों में पहचानें ।
1. निर्मल ह्रदय के लिए प्रार्थना करें
हमारे प्रभु से पाप के लोभ का संघर्ष से बाहर निकलने और अपनी दैनिक प्रार्थना की आदतों को मजबूत करने के लिए कहें। प्रभु भोज में उनको सम्मानपूर्वक स्वागत करें ताकि वह आपको ग्रहण कर सके। “ईश्वर! मेरा ह्रदय फिर शुद्ध कर और मेरा मन फिर सुदृढ़ बना।” (स्तोत्र ग्रन्थ 51:1१)।
2. विनम्रता का अभ्यास करें
आप अपनी आध्यात्मिक यात्रा में कई बार लड़खड़ाएँगे। पाप स्वीकार संस्कार के लिए बार-बार जाएँ और आध्यात्मिक मार्गदर्शन के लिए एक अच्छे, पवित्र पुरोहित की तलाश करें।
3. सुसमाचार पढ़ें
सुसमाचार पढ़ना और उस पर मनन करना गहरी समझ और हमारे प्रभु के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने के अद्भुत तरीके हैं। “ईश्वर के पास जाएँ, और वह आपके पास आएगा।” (याकूब 4:8)
4. प्रकाश को ग्रहण करे
मसीह और उनकी कलीसिया की शिक्षाओं को खुशी से और प्रेमपूर्वक स्वीकार करें, भले ही यह कठिन हो। जब आप सुनिश्चित नहीं हों कि आपसे क्या अपेक्षा की जा रही है तो स्पष्टता और समझ पाने के लिए प्रार्थना करें।
5. अंधेरे को हटाओ
कलकत्ता की संत मदर तेरेसा ने एक बार कहा था: “जो शब्द येशु मसीह की रोशनी नहीं देते, वे शब्द अंधकार को बढ़ाते हैं।” इसका तात्पर्य है, यदि हम जो भी बातचीत करते हैं या जिस मीडिया का हम ज़्यादा उपयोग करते हैं, वे हम तक मसीह का प्रकाश नहीं ला रहे हैं, तो इसका मतलब है कि वे विपरीत कार्य कर रहे हैं। जिन मनोरंजन या प्रभावी तत्वों के प्रति यदि हम सम्वेदनशील और सतर्क रहते हैं, तो हम मसीह के प्रकाश को प्रतिबिंबित नहीं करने वाले माध्यमों से लोगों का ध्यान हटाकर सत्य ज्योति की ओर ध्यान केन्द्रित करने में उनकी मदद करते हैं।
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हम सभी कभी न कभी ईश्वर से जूझते हैं, लेकिन हमें वास्तव में शांति कब मिलती है?
हाल ही में, एक संघर्षरत मित्र ने मुझसे कहा: “मुझे यह भी नहीं पता कि किस बात के लिए प्रार्थना करनी है।” वह प्रार्थना करना चाहती थी, लेकिन वह कुछ ऐसी बात माँगते-माँगते थक गई थी जो नहीं मिल रह थी। मुझे तुरंत संत पीटर जूलियन आइमार्ड की यूखरिस्तिक तरीके की प्रार्थना याद आयी। वे हमें प्रार्थना के समय को मिस्सा बलिदान के चार छोरों के अनुसार ढालने के लिए आमंत्रित करता है: आराधना, धन्यवाद, प्रायश्चित और निवेदन।
एक बेहतर तरीका
प्रार्थना सिर्फ़ माँगने से कहीं ज़्यादा है, फिर भी कई बार ऐसा होता है जब हमारे प्रियजनों के बारे में हमारी ज़रूरतें और चिंताएँ इतनी ज़्यादा होती हैं कि हम सिर्फ़ माँगते हैं, माँगते हैं, विनती करते हैं और फिर कुछ और माँगते हैं। हम कह सकते हैं: “येशु, मैं इसे तेरे हाथों में छोड़ता हूँ,” लेकिन 30 सेकंड बाद, हम इसे ईश्वर के हाथों से छीन लेते हैं और समझाने लगते हैं कि हमें इसकी फिर से ज़रूरत क्यों है। हम चिंता करते हैं, परेशान होते हैं और नींद खो देते हैं। हम लंबे समय तक माँगना बंद नहीं करते इसलिए ईश्वर हमारे थके हुए दिलों में जो बात फुसफुसा रहा है, उसे हम सुन नहीं पाते हैं। हम कुछ समय तक ऐसे ही घूमते रहते हैं, और ईश्वर हमें जाने देता है। वह हमारे थक जाने का इंतज़ार करता है, यह महसूस करने के लिए कि हम उससे मदद नहीं माँग रहे हैं, बल्कि हम उसे यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि उसे हमारी मदद किस किस तरह करने की ज़रूरत है। जब हम संघर्ष करते-करते थक जाते हैं और आखिरकार हार मान लेते हैं, तो हम प्रार्थना करने का एक बेहतर तरीका सीख जाते हैं।
फिलिप्पियों को लिखे अपने पत्र में, संत पौलुस हमें निर्देश देते हैं कि हमें परमेश्वर से अपनी याचनाएँ किस तरह से करनी चाहिए: “किसी भी बात की चिन्ता मत करो; परन्तु हर बात में प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ अपने निवेदन परमेश्वर को प्रकट करो। तब परमेश्वर की शान्ति, जो हमारी समझ से बिलकुल परे है, तुम्हारे हृदय और विचारों को मसीह येशु में सुरक्षित रखेगी।” (4:6-7)
झूठ का मुकाबला करें
हम चिंता क्यों करते हैं? हम उत्कंठा में क्यों पड़ जाते हैं? क्योंकि, संत पेत्रुस की तरह, जिन्होंने येशु को देखना बंद कर दिया और डूबने लगे (मत्ती 14:22-33), हम भी सत्य को भूल जाते हैं और झूठ को सुनने का निर्णय लेते हैं। हर चिंता पूर्ण सोच की जड़ में एक बड़ा झूठ छिपा होता है — कि ईश्वर मेरी देखभाल नहीं करेगा, कि जो भी समस्या मुझे अभी परेशान कर रही है वह ईश्वर से बड़ी है, कि ईश्वर मुझे छोड़ देगा और मुझे भूल जाएगा … कि आखिरकार मुझसे प्यार करने वाला मेरा कोई पिता नहीं है।
हम इन झूठों का मुकाबला कैसे करें? सत्य के साथ।
सेंट पीटर जूलियन आइमार्ड याद दिलाते हैं, “हमें सरल और शांत दृष्टिकोण से ईश्वर की सच्चाइयों के बारे में अपने दिमाग के काम को सरल बनाना चाहिए।”
सत्य क्या है? मुझे संत मदर तेरेसा का उत्तर पसंद है: “विनम्रता ही सत्य है।” धर्मशिक्षा हमें बताती है कि “विनम्रता प्रार्थना का आधार है।” प्रार्थना हमारे दिल और दिमाग को ईश्वर की ओर उठाता है। यह एक वार्तालाप है, एक रिश्ता है। मैं किसी ऐसे व्यक्ति के साथ संबंध में नहीं रह सकती जिसे मैं नहीं जानती। जब हम अपनी प्रार्थना विनम्रता से शुरू करते हैं, तो हम ईश्वर कौन है और हम कौन हैं, इस सत्य को स्वीकार करते हैं। हम पहचानते हैं कि, अपने आप में, हम पाप और दुख के अलावा कुछ नहीं हैं, लेकिन ईश्वर ने हमें अपनी संतान बनायी है और उसमें हम सब कुछ कर सकते हैं (फिलिप्पी 4:13)।
यह वह विनम्रता, वह सत्य है, जो हमें पहले आराधना, फिर धन्यवाद, फिर पश्चाताप और अंत में निवेदन तक ले जाती है। यह उस व्यक्ति की स्वाभाविक प्रगति है जो पूरी तरह से ईश्वर पर निर्भर है। इसलिए जब हम नहीं जानते कि ईश्वर से क्या कहना है, तब हम उसकी स्तुति करें और उसके नाम की महिमा करें। आइए हम ईश्वर के सभी आशीर्वादों के बारे में सोचें और उसके द्वारा हमारे लिए किए गए सभी कार्यों के लिए उसे धन्यवाद दें। इससे हमें यह भरोसा करने में मदद मिलेगी कि यह वही ईश्वर है, जो हमेशा हमारे साथ रहा है, आज भी यहाँ है और अच्छे समय और मुश्किल समय में हमेशा हमारे साथ है।
'मैं अपनी पुरानी प्रार्थना की डायरी देख रही थी, जिसमें मैंने प्रार्थना के लिए बहुत से अनुरोध लिखे थे। मुझे आश्चर्य हुआ कि उनमें से हर एक का उत्तर दिया गया!
आजकल खबरों पर सरसरी नज़र डालने वाला कोई भी व्यक्ति निराश हो सकता है, वह सोच सकता है कि ईश्वर कहाँ है, उसे लगता है कि प्रत्याशा की बड़ी ज़रूरत है। मुझे पता है कि मैंने खुद को कुछ दिनों में इस स्थिति में पाया है। हम अपने आप को नियंत्रण से बाहर महसूस करते हैं, और हम सोचते हैं कि हम उन सभी भयानक बातों के बारे में क्या कर सकते हैं जिनका हम इन दिनों सामना करते हैं। मैं आपके साथ एक घटना साझा करना चाहती हूँ।
कुछ साल पहले, जिन लोगों और बातों के लिए मैं प्रार्थना कर रही थी, मैंने उन प्रार्थना-अनुरोधों की एक डायरी रखनी शुरू की थी। मैं अक्सर इन बातों के लिए रोज़री माला की प्रार्थना करती थी, जैसा कि मैं आज भी प्रार्थना निवेदनों के लिए करती हूँ। एक दिन, मुझे अपनी लिखी हुई प्रार्थना अनुरोधों की एक पुरानी डायरी मिली। मैंने बहुत पहले लिखे गए मेरे उन पन्नों को पढ़ना शुरू किया। मैं चकित रह गयी। हर प्रार्थना का उत्तर मिला था – शायद हमेशा उस तरीके से नहीं, जैसा मैंने सोचा था, लेकिन ज़रूर उनका उत्तर मिला था। ये कोई छोटी-मोटी प्रार्थनाएँ नहीं थीं। “हे प्यारे परमेश्वर, कृपया मेरी चाची को शराब की लत से मुक्त कर। प्यारे ईश्वर, कृपया मेरी मित्र जो बांझ है, उसे बच्चे पैदा करने में मदद कर। प्यारे ईश्वर, कृपया मेरे दोस्त को कैंसर से चंगाई दे।”
जैसे ही मैंने हर पृष्ठ को ऊपर से नीचे की ओर नज़र दौड़ाई, मुझे एहसास हुआ कि हर एक प्रार्थना का उत्तर मिला था। कई प्रार्थनाएँ मेरी कल्पना से भी बड़े और बेहतर तरीके से सुनी गयीं। कुछ ऐसी भी थीं, जिनके बारे में पहली नज़र में मुझे लगा कि उनका उत्तर नहीं मिला है। एक दोस्त जिसे कैंसर से चंगाई की ज़रूरत थी, वह मर गई थी, लेकिन फिर मुझे याद आया कि मरने से पहले उसने मेलमिलाप का संस्कार और रोगियों का विलेपन संस्कार प्राप्त किया था। वह ईश्वर की दया का अनुभव करती हुई, अपनी चारों ओर ईश्वर की चंगाई की कृपा के आलोक में, शांति से गुज़र गई। इसके अलावा, ज़्यादातर प्रार्थनाएँ इस दुनिया में ही सुनी गईं। कई प्रार्थनाएँ असंभव पहाड़ों की तरह लग रही थीं, लेकिन उन पहाड़ों को हटा दिया गया। हमारी प्रार्थनाओं और प्रार्थना में हमारी दृढ़ता को ईश्वर अपनी कृपा में लेता है, और वह सभी बातों को भलाई की ओर ले जाता है। मेरी प्रार्थनामय मौन और शांत अवस्था में, मैंने एक फुसफुसाहट सुनी, “मैं इन सभी बातों पर समय-समय पर काम करता रहा हूँ। चमत्कारों की ये कहानियाँ मैं लिखता रहा हूँ। मुझ पर भरोसा करो।”
मेरा मानना है कि हम एक ख़तरनाक दौर में हैं। लेकिन मैं यह भी मानती हूँ कि हम ऐसे दौर के लिए बने हैं। आप मुझसे कह सकते हैं, “आपके व्यक्तिगत प्रार्थना अनुरोधों का उत्तर मिलना बहुत अच्छा लगता है, लेकिन विभिन्न राष्ट्र आपस में युद्ध लड़ रहे हैं।” और मेरा जवाब फिर से यही है कि, ईश्वर के लिए कुछ भी असंभव नहीं है, यहाँ तक कि हमारी प्रार्थनाओं का उपयोग करके युद्ध को रोकना भी असंभव नहीं है। मुझे याद है कि ऐसा पहले हुआ है। हमें विश्वास करना चाहिए कि ईश्वर अभी भी इससे बड़ा काम कर सकता है।
जो लोग याद करने के लिए पर्याप्त उम्र तक नहीं पहुंचे हैं, उनको मैं बताना चाहती हूँ कि कुछ वर्ष पहले एक डरावना दौर था जब ऐसा लग रहा था कि खूनी युद्ध होने वाला है। लेकिन रोज़री माला की शक्ति से, स्थिति बदल गई। मैं 8-वीं कक्षा में थी, और मुझे याद है कि फिलीपींस में सभी प्रकार के उथल-पुथल हो रहे थे। उस समय फ़र्डिनेंड मार्कोस उस देश के तानाशाही शासक थे। यह एक खूनी लड़ाई बनने जा रही थी जिसमें कुछ लोग पहले ही मर चुके थे। मार्कोस के एक कट्टर आलोचक, बेनिग्नो एक्विनो की हत्या कर दी गई। लेकिन यह खूनी लड़ाई नहीं हुई। मनीला के कार्डिनल जैम सिन ने लोगों से प्रार्थना करने को कहा था। लोग सेना के सामने गए, और ज़ोर ज़ोर से रोज़री माला की प्रार्थना करने लगे। वे सेना के लड़ाकू टैंकों के सामने खड़े होकर प्रार्थना कर रहे थे। और फिर, एक चमत्कारी घटना घटी। सेना ने अपने हथियार डाल दिए। यहां तक कि धर्म पर विश्वास नहीं करनेवाली मीडिया, शिकागो ट्रिब्यून ने भी रिपोर्ट की कि कैसे “बंदूकें रोज़री माला के सामने अभ्यर्पित की गईं।” क्रांति समाप्त हो गई, और परमेश्वर की महिमा दिखाई दी।
चमत्कारों पर विश्वास करना बंद न करें। उन की प्रतीक्षा करें। और हर मौके पर रोज़री माला की प्रार्थना करें। प्रभु जानता है कि हमारी दुनिया को इसकी ज़रूरत है।
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