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हम सभी ने जीवन भर अनगिनत आँसू बहाए हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ईश्वर ने उनमें से हर एक बूँद को इकट्ठा किया है?
हम क्यों रोते हैं? हम रोते हैं, क्योंकि हम दुखी हैं या हम किसी संकट से तंग आ चुके हैं। हम रोते हैं, क्योंकि हम आहत हैं और अकेले हैं। हम रोते हैं, क्योंकि हमें धोखा दिया गया है या हमारा मोहभंग हो गया है। हम रोते हैं, क्योंकि हमें खेद है, हम आश्चर्य करते हैं कि क्यों, कैसे, कहाँ, क्या। हम इसलिए रोते हैं, क्योंकि… कभी-कभी हमें पता ही नहीं चलता कि हम क्यों रो रहे हैं! यदि आपने कभी बच्चों की परवरिश की है, विशेषकर यदि आपने उन्हें खिलाया है, उनके कपडे बदल दिया है, उन्हें सुलाया है, तो आप ज़रूर जानते हैं कि बच्चा क्यों रो रहा है, यह पता लगाने की कोशिश करने का तनाव कितना है! कभी-कभी वे सिर्फ गोदी में, आपके बाहों में या आपके आलिंगन में रहना चाहते हैं। उसी तरह, कभी-कभी हम भी ईश्वर के आलिंगन में रहना चाहते हैं, लेकिन हम अपने पापपूर्णता के प्रति चिंतित रहते हैं, जो हमें उनसे दूर करती प्रतीत होती है।
आँखों से ईश्वर के दिल तक
पवित्र ग्रंथ हमें बताता है कि येशु भी रोया: “और येशु रो पड़े” (योहन 11:35); सुसमाचार का यह सबसे छोटा वाक्य येशु के दिल की तरफ एक खिड़की खोल देता है। लूकस 19:41-44 में हमें पता चलता है कि येशु ने ‘यरूशलेम के लिए आंसू बहाए’ क्योंकि उसके निवासियों को “(उनकी) मुलाक़ात का समय नहीं पता था।” प्रकाशना ग्रन्थ की पुस्तक में योहन फूट फूट कर रोया क्योंकि पुस्तक को खोलने और पढ़ने के योग्य कोई नहीं था (प्रकाशना ग्रन्थ 5:4)। मानवीय स्थिति के बारे में यह समझ जीवन की परिपूर्णता को समझने की हमारी क्षमता को सीमित कर सकती है, उस क्षमता को परमेश्वर हममें से प्रत्येक को लगातार प्रदान करता है। प्रकाशना ग्रन्थ 21:4 हमें स्मरण दिलाता है कि ‘परमेश्वर सब आंसू पोंछ डालेगा’। फिर भी स्तोत्र ग्रन्थ 80:6 कहता है कि ईश्वर ने ‘उसे विलाप की रोटी खिलाई, और उसे भरपूर आंसू पिलाए।’ तो सत्य क्या है? क्या परमेश्वर आंसुओं को पोंछ डालना और हमें दिलासा देना चाहता है, या वह हमें रुलाना चाहता है?
येशु रोये, क्योंकि आंसुओं में शक्ति है। आँसुओं में एकात्मता है। क्योंकि येशु प्रत्येक व्यक्ति से इतना अधिक प्रेम करते हैं कि वह उस अंधेपन को सहन नहीं कर सकता जो हमें उन अवसरों को स्वीकार करने से रोकता है, जो अवसर परमेश्वर हमें उसके निकट रहने, उसके द्वारा प्रेम किए जाने और उसकी महान दया का अनुभव करने के लिए देता है। जब येशु ने मार्था और मरियम को उनके भाई लाज़रुस की मौत का दुःख सहते देखा तो वह करुणा से भर गया। लेकिन उनके आंसू भी पाप के गहरे घाव की प्रतिक्रिया हो सकते हैं जो मृत्यु का कारण बनता है। आदम और हेवा के समय से ही मृत्यु ने परमेश्वर की सृष्टि को निगल लिया है। हाँ, येशु रोये … लाज़रुस और उसकी बहनों के लिए। फिर भी इस दर्दनाक अनुभव के दौरान येशु अपने सबसे बड़े चमत्कारों में से एक को अंजाम देते हैं: येशु कहते हैं, “बाहर निकल आओ!” और उसका अच्छा दोस्त लाज़रुस कब्र से बाहर निकल आता है। हमेशा प्रेम के शब्दों में बड़ी ताकत है।
एक और सुंदर पवित्र वचन जो आँसुओं की बात करता है और एक छवि पेश करता है जिसे मैं संजोता हूँ, वह स्तोत्र ग्रन्थ 56:9 में पाया जाता है: “मेरी विपत्तियों का विवरण और मेरे आंसुओं का लेखा तेरे पास है; क्या मेरे आंसू तेरी कुप्पी में नहीं रखे हैं।” प्रभु हमारे आंसुओं को एकत्रित करता है, ऐसी सोच विनम्र और सांत्वना देने वाली सोच है। वे आंसू परम पिता के लिए अनमोल हैं; वे हमारे दयालु परमेश्वर के लिए हमारी भेंट जैसी हैं।
शब्दहीन प्रार्थनाएँ
आँसू हृदय को ठीक कर सकते हैं और आत्मा को शुद्ध कर सकते हैं और हमें ईश्वर के करीब ला सकते हैं। अपनी महान कृति, ‘द डायलॉग’ में, सिएना की संत कैथरीन ने आंसुओं के आध्यात्मिक महत्व के लिए एक पूरा अध्याय समर्पित किया। उनके अनुसार, आँसू “एक उत्कृष्ट, गहन संवेदनशीलता है, संवेदनशीलता, भावुकता और कोमलता की क्षमता” को व्यक्त करते हैं। अपनी पुस्तक, ‘डिसेर्निंग हार्ट्स’ में, डॉ. एंथोनी लिलेस कहते हैं कि संत कैथरीन “उस पवित्र प्रेम को क्रूस पर चढ़ाए गए ख्रीस्त में प्रकट किए गए महान प्रेम के लिए एकमात्र उचित प्रतिक्रिया के रूप में प्रस्तुत करती है। ये आंसू हमें पाप से दूर और परमेश्वर के हृदय में ले जाते हैं।” उस स्त्री को याद कीजिये, जिसने अपने आँसुओं से येशु के चरणों को धोया, जटामांसी के बहुमूल्य इत्र से उन चरणों का विलेपन किया, और अपने केशों से उनके चरण पोंछे। उस स्त्री का दर्द वास्तविक है, लेकिन असीम रूप से प्यार किए जाने का उसका अनुभव भी ऐसा ही वास्तविकं है।
हमारे आंसू हमें याद दिलाते हैं कि अपनी तीर्थयात्रा के मार्ग में हमारे साथ चलने के लिए हमें ईश्वर और दूसरों की जरूरत है। जीवन की परिस्थितियाँ हमें रुला सकती हैं, लेकिन कभी-कभी वे आँसू हमारे भविष्य की खुशियों के बीजों को सींच सकते हैं। चार्ल्स डिकेंस ने हमें याद दिलाया कि ‘हमें अपने आँसुओं पर कभी शर्म नहीं करनी चाहिए, क्योंकि वे हमारे कठोर हृदयों पर हावी होकर हमें अंधा करनेवाली धरती की धूल पर बरस रहे हैं।’ कभी-कभी, ईश्वर तक पहुँचने के लिए, मृत्यु से जीवन तक पहुँचने केलिए, क्रूसारोहण से पुनरुत्थान तक पहुँचने के लिए आँसू ही एकमात्र सेतु होते हैं। पुनरुत्थान के दिन जब येशु का सामना मरियम मगदलेना से हुआ, तो येशु ने पूछा, “भद्रे, आप क्यों रोती हैं?” लेकिन वह जल्द ही उसके आँसुओं को पास्का खुशी के विस्फोट में बदल देते हैं, जैसे वह उसे पुनरुत्थान की पहली संदेशवाहक बनाते हैं।
जैसा कि हम अपनी तीर्थ यात्रा जारी रखते हैं, कई बार क्रूस की मूर्खता को समझने के लिए संघर्ष करते हैं, हम उन बातों के लिए रोयें जिनके लिए येशु रोते हैं – युद्ध, बीमारी, गरीबी, अन्याय, आतंकवाद, हिंसा, घृणा, कुछ भी जो हमारे भाइयों और बहनों को दुखी बनाते हैं। हम उनके साथ रोते हैं; हम उनके लिए रोते हैं। और जब सबसे अप्रत्याशित क्षणों में हमारे गालों पर आंसू बहते हैं, तब हम यह जानकर शांति से आराम करें कि हमारा परमेश्वर हर एक को कोमलता और सौम्यतापूर्ण परवाह के साथ संभालता है। वह हर आंसू को जानता है और वह जानता है कि उस आंसू के पीछे क्या कारण है। वह उन्हें इकट्ठा करता है और उन्हें अपने पुत्र के दिव्य आँसुओं के साथ मिलाता है। एक दिन, मसीह के साथ संयुक्त होकर, हमारे आंसू खुशी के आंसू बनेंगे!
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जीवन में कभी-कभी छोटी-छोटी बातें हमें मूल्यवान सबक सिखा सकती हैं…
हाल ही में मेरी एक मित्र ने एक दिलचस्प कहानी सुनायी। वह और उसके पति गर्मी के दिनों में एक दिन दोपहर को गाड़ी चला रहे थे और उन्होंने एयर कंडीशनिंग को चालू करने का फैसला किया, जिसका उपयोग सर्दी के दिनों से लेकर अब तक कभी नहीं किया गया था। ए.सी. चालू की गयी और देखते ही देखते कार में भयानक दुर्गंध भर गई। यह बहुत बुरा था, मेरी दोस्त को उल्टी आने लगी। उसने अपने पति से कहा, ” इसे तुरन्त बंद करो! ऐसा लगता है कि इसके अन्दर कुछ मरा पड़ा है!” उसने ए.सी. बंद कर दिया और भयानक गंध को खत्म करने के लिए गाड़ी की खिड़कियां खोल दीं।
जब वे घर पहुंचे, तो उसके पति ने गाड़ी की जांच की। उसने एयर फिल्टर से शुरुआत की, और जैसा सोचा गया था उसने फ़िल्टर के अंदर एक मरा हुआ चूहा पाया। क्योंकि कड़ाके की ठंड के दौरान चूहा मर गया था, वसंत के आने तक कोई दुर्गंध नहीं थी। मेरे दोस्त के पति ने चूहे और उसके घोंसले को हटा दिया और ए.सी. को तब तक चालू रखा जब तक कि दुर्गंध दूर नहीं हुई।
परमेश्वर के बोलने के तरीके
इस तरह की घटनाएं मुझे दृष्टान्तों के बारे में सोचने पर मजबूर कर देती है। सुसमाचारों में, येशु अपने और पिता के बारे में सच्चाइयों को प्रकट करने के लिए, तथा जीवन कैसे जीना है यह सिखाने केलिए, अक्सर रोज़मर्रा के जीवन के उदाहरणों का इस्तेमाल करते थे। अय्यूब 33:14 कहता है, “परमेश्वर कभी एक रीति से, कभी दूसरी रीति से बारंबार बोलता है, किन्तु कोई उसकी बात पर ध्यान नहीं देता।” मैं एक ऐसी व्यक्ति बनने का प्रयास करती हूँ जो प्रभु पर ध्यान देती है, इसलिए मैं यह पूछने की आदत बना लेती हूँ, “हे प्रभु, क्या तू इसके माध्यम से मुझे कुछ सिखाने की कोशिश कर रहा है? यहाँ मेरे लिए क्या संदेश है?”
जैसा कि मैंने अपने दोस्तों की कार में छिपे कृंतक और उसके कारण होने वाली बदबू पर विचार किया, मैंने सोचा कि कैसे हमारे जीवन में कुछ बातें छिपी रहती हैं और फिर अचानक सामने आ जाती हैं और अप्रत्याशित परेशानी का कारण बनती हैं। क्षमा की कमी या आक्रोश इसके अच्छे उदाहरण हैं। ये भावनाएँ, सड़ने वाले कृंतक की तरह, अक्सर हमारे ध्यान दिए बिना हमारे अंदर निष्क्रिय रहती हैं। फिर एक दिन एक भावनात्मक बटन दब जाता है, और बदबू आने लगती है। नाराजगी, क्षमा की कमी, प्रतिशोध की भावना या अन्य नकारात्मक भावनाओं को मन में रखने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। वे हमारे दिमाग, हमारे दिल और हमारे रिश्तों में कहर बरपाते हैं और बड़ी त्रासदी का कारण बन जाते हैं। जब तक हम स्रोत से नहीं निपटेंगे, वे बहुत नुकसान करेंगे।
अंदर क्या है?
तो, हम कैसे पता लगा सकते हैं कि हमारे दिल में छिपे हुए, कोई बदबूदार “कृंतक” हैं या नहीं? लोयोला के संत इग्नेशियस की एक उत्कृष्ट विधि है: वे सलाह देते हैं कि हम अपनी आत्माओं की आंतरिक हलचलों पर ध्यान दें, यह एक ऐसी विधि है जिसे वे “आत्माओं की पहचान” कहते हैं। अपने आप से पूछें, “मुझे उत्तेजित या परेशान करने वाला तत्व (आत्मा) क्या है? मुझे आनंद, शांति और संतोष से भरनेवाले तत्व (आत्माएं) क्या हैं?” अपने जीवन में “आत्माओं” को पहचानने के लिए हमें पहले यह स्वीकार करना चाहिए कि हमारे जीवन में आत्माएँ हैं – अच्छी और बुरी। हमारे पास सहायक और दुश्मन दोनों हैं। हमारा सहायक और सलाहकार, पवित्र आत्मा हमें पूर्णता और शांति के लिए प्रेरित और मार्गदर्शन करता है। हमारे प्राणों का शत्रु, दोष लगाने वाला, झूठा और चोर वह शैतान जो है जो “केवल चुराने, मारने और नष्ट करने आता है” (योहन 10:10)।
संत इग्नेशियस की सलाह है कि हम हर दिन शांत होकर मनन चिंतन में समय बिताएं ताकि यह पता चल सके कि हमारे अंदर क्या चल रहा है। मनन चिंतन करने और जीवन का आंकलन करने में आपकी मदद करने के लिए प्रभु को आमंत्रित करें। “क्या मैं चिंतित हूँ, शांत हूँ, खुश हूँ, अस्वस्थ हूँ? मेरे अन्दर के हलचल का क्या कारण है? क्या मुझे सुधार के कुछ कदम उठाने की आवश्यकता है … क्या किसी को क्षमा करने की ज़रुरत है… ? किसी बात के लिए क्या मैं पश्चाताप करूँ और पाप स्वीकार के लिए जाऊँ? क्या मुझे शिकायत करना बंद करने और अधिक आभारी होने की ज़रूरत है?” परमेश्वर की सहायता से, हृदय की इन आंतरिक हलचलों और गतिविधियों पर ध्यान देने से, हमें समस्या वाले क्षेत्रों की पहचान करने में मदद मिलेगी जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है, ताकि वे भविष्य में हमें अंधा न कर सकें।
मेरे दोस्तों ने “कुछ बदबू पैदा कर रहा है” इस सत्य को महसूस करने के बाद ही कार्रवाई की। और शीघ्र ही उस समस्या से निपटने से, वे गर्मियों के बाकी दिनों में अपनी कार में स्वच्छ और ठंडी हवा का आनंद लेने में सक्षम थे। यदि हम प्रत्येक दिन प्रभु के साथ शांत होकर समय बिताते हैं और उससे यह प्रकट करने के लिए कहते हैं कि हमारी आत्माओं में क्या “बंद” है, तो वह हमें दिखाएगा और हमें सिखाएगा कि इस समस्या से कैसे निपटना है। तब पवित्र आत्मा की ताज़ी हवा हमारे अन्दर प्रवाहित हो सकती है और हमारे जीवन और संबंधों में आनंद और स्वतंत्रता ला सकती है।
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प्रश्न – कैथलिक लोग क्रूस का चिन्ह क्यों बनाते हैं? इसके पीछे क्या प्रतीकवाद है?
उत्तर – कैथलिक होने के नाते, हम प्रत्येक दिन कई बार क्रूस के चिन्ह की प्रार्थना करते हैं। हम यह प्रार्थना क्यों करते हैं, और इन सब के पीछे मतलब क्या है?
सबसे पहले, विचार करें कि हम क्रूस का चिन्ह कैसे बनाते हैं। पश्चिम की कलीसिया में, लोग एक खुले हाथ का उपयोग करते हैं – जिसका उपयोग आशीर्वाद देने में किया जाता है (इसलिए हम कहते हैं कि हम “स्वयं को आशीर्वाद देते हैं”)। पूर्व में, वे पवित्र त्रीत्व (पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा) के संकेत के रूप में तीन अंगुलियों को एक साथ रखते हैं, जबकि अन्य दो उंगलियां भी मसीह की दिव्यता और मानवता के संकेत के रूप में एक हो होती हैं।
हम जो शब्द कहते हैं उसके द्वारा हम त्रीत्व के रहस्य को स्वीकार करते हैं। ध्यान दें कि हम कहते हैं, “पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम पर…” सिर्फ “पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा के नामों पर” नहीं, – परमेश्वर एक है, इसलिए हम कहते हैं कि उसका केवल एक ही नाम है – और फिर हम पवित्र त्रीत्व के तीन व्यक्तियों के नाम लेते हैं। हर बार जब हम प्रार्थना शुरू करते हैं, तो हम पहचानते हैं कि हमारे विश्वास का सार यह है कि हम एक ऐसे ईश्वर में विश्वास करते हैं जो तीन होते हुए भी एक है: एकता और त्रीत्व दोनों।
जैसा कि हम अपने विश्वास का अंगीकार और घोषणा करते हैं, हम स्वयं पर क्रूस के चिह्न से मुहरबंद करते हैं। आप सार्वजनिक रूप से अपने ऊपर चिह्न लगा रहे हैं कि आप कौन हैं और आप किसके हैं या किससे संबंधित हैं! यदि आप चाहें तो क्रूस हमारी छुड़ाई की रकम है, हमारा “मूल्य-चिह्न” है, इसलिए हम स्वयं को याद दिलाते हैं कि हम क्रूस द्वारा खरीदे गए हैं। इसलिए जब शैतान हमें लुभाने आता है, तो हम उसे यह दिखाने के लिए क्रूस का चिन्ह बनाते हैं कि हम पर पहले से ही निशान लगा हुआ है!
एज़किएल की पुस्तक में एक अद्भुत कहानी है, जहाँ एक स्वर्गदूत एज़किएल के पास आता है और उसे बताता है कि परमेश्वर पूरे इस्राएल को उसकी बेवफाई के लिए दंडित करने जा रहा है – लेकिन अभी भी यरूशलेम में कुछ अच्छे लोग बचे हैं, इसलिए स्वर्गदूत घूमता है और उन लोगों के माथे पर निशान लगा देता है जो अभी भी परमेश्वर के प्रति विश्वासयोग्य हैं। वह जो चिह्न बनाता है वह “ताऊ” है – इब्रानी वर्णमाला का अंतिम अक्षर, और इसे एक क्रूस की तरह खींचा जाता है! परमेश्वर उन पर दया करता है जिन पर ताऊ चिन्हित है, और जिन पर यह चिन्ह नहीं है, उन्हें वह मार डालता है।
उसी तरह, हममें से जो क्रूस के साथ अंकित हैं, परमेश्वर के न्याय के दिन उनके दंड से सुरक्षित रहेंगे, और बदले में उनकी दया प्राप्त करेंगे। प्राचीन मिस्र में, परमेश्वर ने इस्राएलियों से फसह के पर्व पर मेमने के लहू को अपने दरवाजे पर लगाने को कहा था, ताकि वे मृत्यु के दूत से बचाए जा सकें। अब, हमारे शरीर पर क्रूस के द्वारा अंकित होकर, हम मेमने के लहू का आह्वान करते हैं, ताकि हम मृत्यु की शक्ति से बच जाएं!
परन्तु हम क्रूस के चिन्ह को कहाँ अंकित करें? हम इसे अपने माथे, अपने दिल और अपने कंधों पर लगाते हैं। क्यों? क्योंकि हमें इस पृथ्वी पर परमेश्वर को जानने, प्रेम करने और उसकी सेवा करने के लिए रखा गया है, इसलिए हम मसीह को हमारे मनों, हमारे हृदयों (हमारी इच्छा और प्रेम) और हमारे कार्यों का राजा बनने के लिए आग्रह करते हैं। हमारे जीवन के हर पहलू को क्रूस के चिन्ह के अधीन रखा गया है, ताकि हम उसे जान सकें, उससे प्रेम कर सकें और उसकी सेवा कर सकें।
क्रूस का चिन्ह एक अविश्वसनीय रूप से शक्तिशाली प्रार्थना है। अक्सर इसे प्रार्थना की प्रस्तावना के रूप में प्रयोग किया जाता है, लेकिन इसमें अपने आप में अपार शक्ति होती है। प्रारंभिक कलीसिया के उत्पीड़न के दौरान, कुछ मूर्तीपूजकों ने प्रेरित संत योहन को मारने की कोशिश की क्योंकि उनका उपदेश कई लोगों को देवी-देवताओं से दूर कर ख्रीस्तीय धर्म अपनाने के लिए प्रेरित कर रहा था। मूर्तिपूजकों ने योहन को रात के भोजन के लिए आमंत्रित किया और उसके प्याले में जहर मिला दिया। परन्तु भोजन आरम्भ करने से पहले, योहन ने अनुग्रह की प्रार्थना की और अपने प्याले के ऊपर क्रूस का चिन्ह बनाया। तुरन्त एक साँप प्याले से बाहर रेंगता हुआ निकला, और योहन किसी तरह की हनी के बिना सकुशल बच निकलने में सफल रहा।
संत जॉन वियानी के शब्दों पर ध्यान दें: “क्रूस का चिह्न शैतान के खिलाफ सबसे भयानक हथियार है। इस प्रकार, कलीसिया न केवल यह चाहती है कि क्रूस का चिन्ह हमारे पास और हमारे दिमाग के सामने लगातार रहे, हमें यह याद दिलाने के लिए कि हमारी आत्मा का मूल्य क्या है और येशु मसीह के लिए इसका मूल्य क्या है, लेकिन यह भी कि हमें हर मोड़ पर क्रूस का चिन्ह खुद बनाना चाहिए: जब हम सोने के लिए जाते हैं, जब हम रात में जागते हैं, सुबह जब हम उठते हैं, जब हम कोई काम शुरू करते हैं, और सबसे बढ़कर, जब हम परीक्षा में पड़ते हैं,तब हमें क्रूस का चिन्ह बनाना चाहिए।”
क्रूस का चिन्ह हमारे पास सबसे शक्तिशाली प्रार्थनाओं में से एक है – यह पवित्र त्रीत्व का आह्वान करता है, हमें क्रूस के रक्त से मुहरबंद करता है, शैतान को भगाता है, और हमें याद दिलाता है कि हम कौन हैं। आइए हम उस चिन्ह को भक्ति के साथ, श्रद्धा के साथ, सावधानी के साथ बनाएं, और हम इसे पूरे दिन में बार-बार बनाएं। हम कौन हैं और हम किसके हैं, इसका यह बाहरी संकेत है।
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हम जानते हैं कि हम में से प्रत्येक के पास एक रखवाल दूत है। लेकिन हम कितनी बार उससे मदद माँगते हैं?
जब मुझे एक ईसाई लेखन सम्मेलन में तीन कार्यशालाएँ पढ़ाने के लिए जाना था, तब पहली बार मुझे एहसास हुआ कि मेरा रखवाल दूत मेरे लिए सबसे अच्छी उम्मीद थी। मेरे घर से कार्यशाला की जगह पहुंचने में कार से कई घंटे लगते थे। मैं एक भयानक माइग्रेन के साथ उठी और रोयी, क्योंकि मैं सोच रही थी कि मैं इतना दूर कैसे गाडी चला पाऊंगी। मैं अंतिम समय में रद्द करके अव्यवसायिक नहीं होना चाहती थी। मैं रोयी क्योंकि लंबे समय से मैं माइग्रेन के सिरदर्द से पीड़ित हूं – इस बीमारी के कारण मुझे शर्मिन्दा होना पड़ता है – क्योंकि हर महीने में लगभग आधा महीना यह बीमारी मुझे दुर्बल कर देती है- और मैं कितनी कमजोर थी, यह बात मैं स्वीकार नहीं करना चाहती थी। इसलिए, मैंने अपने रखवाल दूत से प्रार्थना की कि वह मुझे सुरक्षित रूप से उस स्थान तक पहुंचा दें और मुझे सकुशल वापस घर भी लाए।
मुझे अभी भी नहीं पता कि मैंने किस तरह इतनी लम्बी दूरी गाड़ी चलाई। मैंने गाड़ी चलाते समय, रोज़री माला की अपनी सीडी लगा दी और फिर योहन के सुसमाचार को सुना, यह सोचती हुई कि यदि मैं रास्ते में मर जाऊं तो कितना अच्छा और सुन्दर होगा कि येशु को अपने हृदय में रखती हुई मरूं। ऐसा नहीं है कि मैं मरना चाहती थी। मेरे बच्चे अभी छोटे थे। मेरे बिना मेरा पति परेशान रहेंगे। और जब से हमने कैथलिक धर्म को अपनाया था, तब से मैं अपने लेखन के जीवन को और भी अधिक प्यार कर रही थी। मैं चाहती थी कि जो येशु मेरे पास है वह सबके पास हो!
और अद्भुत रूप से दिमाग में ख्याल आया! एक आत्मप्रकाश की किरण ने मुझे प्रभावित किया – मेरे रखवाल देवदूत सिर्फ मुझे शारीरिक नुकसान से बचाने के लिए यहां नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करने के लिए है कि मैं स्वर्ग जाऊं। स्वर्ग! हाँ वही जीवन का लक्ष्य है।
परमेश्वर हमसे इतना प्रेम करता है कि वह हमारे गर्भधारण के क्षण से ही एक स्वर्गदूत को नियुक्त करता है जो हमें सभी खतरों से बचाता है और हमें अपने अनंत घर की ओर रास्ता दिखाता है। यह जागरूकता, जो मेरे पास तब से है जब मैं एक छोटी बच्ची थी, अभी भी मुझे चकित करती है। एक बच्ची के रूप में, मुझे परमेश्वर की सुरक्षा पर पूरा भरोसा था। लेकिन मेरे जीवन में मौजूद इस बीमारी की दुख-पीड़ा की समस्या को एक सर्वशक्तिमान ईश्वर में विश्वास के साथ सामंजस्य बिठाना मुश्किल कार्य था। इसलिए, बारह साल की उम्र में मैंने अपना विश्वास खो दिया और अपने रखवाल दूत से बात करना छोड़ दिया। लेकिन, मेरी जानकारी के बिना, मेरा रखवाल दूत तभी भी मेरा मार्गदर्शन कर रहा था।
मैं अपने रखवाल दूत की बहुत आभारी हूँ कि जब मैं बीस और तीस के बीच की उम्र में थी, उस दौरान उसने मुझे मौत से बचाया, क्योंकि उन दिनों मेरी बुद्धि पाप से घिरी रहती थी, और ऐसी परिस्थिति में अगर मैं मौत के करीब आती तो शायद मैं ईश्वर की दया को अस्वीकार कर देती और नरक में चली जाती। यह ईश्वर की कृपा और लंबे समय तक बीमारी के कारण मैं रखवाल दूत की प्रेरणाओं को सुनने और ईश्वर के पास लौटने में सक्षम हूं, और जब मेरी योजना पटरी से उतरती है, तो मैं “मेरी इच्छा नहीं, बल्कि तेरी इच्छा पूरी हो जाए” यह प्रार्थना कर सकती हूं।
मैं पूर्ण विश्वास और समर्पण की उस बचपन की अवस्था में लौट रही हूं। अगर मुझे किसी बात की चिंता है, तो मैं अपने रखवाल दूत से स्थिति को संभालने के लिए कहती हूं। जब मैं अपना धैर्य खोने के कगार पर होती हूं तो मैं अपने बच्चों के रखवाल दूतों को बुलाती हूं। मैं उन सारे लोगों के रखवाल दूतों का भी आह्वान करती हूँ जिनके लिए मैं एक विश्वासयोग्य गवाह बनना चाहती हूँ। स्वर्गीय सहायता प्राप्त करना कितना सुखद है।
रखवाल दूत हमारी प्रार्थनाओं और भेंट को परमेश्वर के सिंहासन तक ले जाते है; वे हमारे साथ पवित्र मिस्सा बलिदान में आते हैं और यदि हम उपस्थित होने में असमर्थ हैं, जैसा कि महामारी के दौरान कई लोगों के लिए था, तो हम अपने स्थान पर हमारे रखवाल दूत को भेजकर हमारे धन्य प्रभु की स्तुति और पूजा करने के लिए कह सकते हैं।
ये स्वर्गीय प्राणी हमारे लिए एक उपहार हैं। आइए हम हमेशा याद रखें कि वे हम पर नज़र रखे हुए हैं और चाहते हैं कि हम स्वर्ग पहुँच जाएँ! अपने रखवाल दूत के साथ एक रिश्ता बनाएं। वे हम में से प्रत्येक के लिए ईश्वर का उपहार हैं।
हर वक्त मेरी तरफ रहनेवाले मेरे प्रिय रखवाल दूत!
मेरे जैसे दोषी नीच की रक्षा के लिए
स्वर्ग का तेरा घर छोड़ने वाला
तू कितना प्यारा होगा ।
~फादर फ्रेडरिक विलियम फेबर (1814-1863 ई.)
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क्या आप अपने ह्रदय में ईश्वर के प्रेम को गहराई से महसूस करने के लिए तरस रहे हैं ? इसके लिए आपको बस प्रभु से मांगने की जरुरत है
मैंने अपने बेटे के ट्रक को घर के आंगन में रुकते हुए सुना। अपने आंसुओं को रोकते हुए मैंने अपने पल्लू से अपना चेहरा पोंछा लिया और उससे मिलने के लिए गैराज की ओर चल पड़ी।
उसने मुस्कुराते हुए कहा, “अरे माँ, तुम”।
“मेरा प्यारा बच्चा, आज इतनी सुबह कैसे आना हुआ?” मैंने पूछा।
“पापा ने कहा कि मेरे लिए कोई पार्सल है, इसलिए सोचा कि ऑफिस जाने से पहले उसे ले लूँ।“ उसने यही जवाब दिया!
मैंने कहा, “ठीक है बेटा!”
उसने अपना पार्सल उठा लिया, और मैं उसके पीछे-पीछे उसके ट्रक की ओर बढ़ने लगी।
उसने मुझे अपने गले से लगा लिया, और पूछा “माँ तुम ठीक तो हो ना?”
“मैं बिल्कुल ठीक हूँ”, रूंधते हुए स्वर में मैंने जवाब दिया। अपने आंसुओं को छिपाने के लिए मैंने अपना मुँह फेर लिया।
“वह अपने मुश्किल दौर से गुजर रही है। वह बिल्कुल ठीक हो जाएगी”, उसने धीमे स्वर से अपनी बहन के बारे में बताया।
“हाँ, मुझे पता है, लेकिन यह दौर उसके लिए कठिन है। उसके ऊपर दुःखों का पहाड़ है। मेरे लिए उसका दुःख सहना बहुत कठिन है। पता नहीं क्यों, मेरे बचपन से ही मैंने अपने आप को, जो जीवन की उदासी से जूझ रहे हैं, उन लोगों के बीच घिरी हुई पायी हूँ। क्या मेरे भाग्य में यही है?
उसने प्रश्नभरी दृष्टि से मेरी ओर देखा।
मैंने अपनी बातों को जारी रखते हुए कहा, “शायद मुझे इस परिस्थिति में कुछ ढूंढने की ज़रूरत है।“
“शायद आप का कहना सही है। इसलिए यदि आपको मेरी ज़रूरत है तो मैं यहाँ हूँ माँ”, उसने कहा।
वे डरावनी यादें
मेरे मनोचिकित्सक ने कहा: “पारिवारिक जीवन में अवसाद का होना स्वाभाविक है। आप और आपकी बेटी एक दूसरे को बहुत चाहते हैं, पर कभी-कभी उस रिश्ते में उलझन पैदा हो जाता है। मेरे कहने का तात्पर्य है कि रिश्तों में कुछ सीमा या परिधि भी होनी चाहिए, विकास, स्वालंबन और आज़ादी के लिए एक स्वस्थ दूरी चाहिए।
“मुझे ऐसा लगता है कि मैंने बदलाव करने के लिए बहुत मेहनत की है, लेकिन ईमानदारी से कहूं तो मैं उसका दुख बर्दाश्त नहीं कर सकती” मैंने जवाब दिया। “और छोटी चीजें इतनी बड़ी लगती हैं। ईस्टर की शाम की तरह। रात के भोजन के बाद, मेरी बेटी ने पूछा कि क्या वह अपने प्रेमी से मिलने जा सकती है। जैसा कि मैंने उसे ड्राइव वे से बाहर निकलते हुए देखा, मेरे ऊपर भय और घबराहट की लहर दौड़ गई। मुझे पता है कि उसके जाने का मुझसे कोई मतलब नहीं था, लेकिन मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई,” मैंने कहा।
“क्या आप याद कर सकती हैं कब आपने पहली बार उस प्रकार की घबराहट और भय महसूस किया था?” चिकित्सक ने पूछा।
मैंने उस कठिन स्मृति को साझा करना शुरू किया जो तुरंत सामने आ गई।
“हम सब मेरे माता पिता के बेडरूम में थे,” मैंने कहा। “पिताजी नाराज थे। माँ बिलकुल टूट चुकी थी। वह मेरे छोटे भाई को गोद में ली हुई थी और मेरे पिता को शांत करने की कोशिश कर रही थी, लेकिन पिताजी बहुत पागल की तरह हो गए थे। हम अपने घर को बेचने और एक नए घर में जाने की तैयारी में थे। “घर जर्जर अवस्था में है” ऐसा कहकर पिताजी बड़े गुस्से में थे।
“आप कितने साल की थी?”
“लगभग सात साल की,” मैंने कहा।
“चलिए, आपकी याद में उस कमरे में वापस चलते हैं और कुछ काम करते हैं,” उसने कहा।
जैसा कि हमने उस स्मृति की समीक्षा की, मुझे पता चला कि मैंने अपने माता-पिता और भाई-बहनों की भावनाओं पर ध्यान केंद्रित किया था, लेकिन मेरी अपनी भावनाओं पर नहीं। अंत में मैं जो महसूस कर रही थी, उसी भावना के साथ कुछ देर समय बिताया, मेरे दुःख का बाँध फूट कर बहने लगा। मुझे अपना रोना बंद करना कठिन था; बस इतना अधिक दु:ख था।
मुझे लगता था कि सबकी खुशी मेरी जिम्मेदारी है। जब मेरे चिकित्सक ने पूछा कि मुझे उस अनुभव में सुरक्षित महसूस करने और मेरी देखभाल करने में क्या मदद मिली होगी, तो मुझे एहसास हुआ कि मुझे किस बात की ज़रूरत थी, लेकिन मुझे वह प्राप्त नहीं हुआ था। मैंने अपने अंदर के घायल सात साल की बच्ची की जिम्मेदारी ली। भले ही उसे वह नहीं मिला जिसकी उसे तब जरूरत थी, मैं अपने वयस्क स्थिति में उन जरूरतों को पूरा कर सकती थी और इस झूठ को दूर कर सकती थी कि दूसरों को खुश करने की जिम्मेदारी मेरी थी।
चंगाई का वह अनुभव
जब हम ने वह सत्र समाप्त कर लिया, मेरे चिकित्सक ने कहा, “मुझे पता है कि यह मुश्किल था। लेकिन मैं आपको आश्वस्त कर सकता हूं कि इसका आपको फ़ायदा होगा। मैंने कई माता-पिता को अपने बच्चों के संघर्षों से ठीक होते देखा है।”
मेरे सत्र के कुछ ही समय बाद, मेरे मित्र ऐनी ने अप्रत्याशित रूप से फोन किया।
“क्या आप आज चंगाई की मिस्सा पूजा में मुझसे मिलना चाहेंगी,” उसने पूछा।
“ज़रूर,” मैंने कहा।
मिस्सा के बाद, चंगाई प्रार्थना करने वाले लोगों की एक पंक्ति बन गई। मैंने इंतजार किया और जल्द ही दो महिला आध्यात्मिक निर्देशकों की ओर जाने के लिए मुझे बताया गया।
“आप येशु से क्या माँगना चाहेंगी?”
“मेरे बचपन के घावों को ठीक करने के लिए,” मैंने कहा।
वे चुपचाप मेरे लिए प्रार्थना करने लगी।
फिर उनमें से एक महिला ने जोर से प्रार्थना की,
“येशु, इसके बचपन के घावों को चंगा कर। वह सिर्फ एक छोटी लड़की थी जो उस क्रोध, भ्रम और अराजकता के बीच में खड़ी थी, अकेली महसूस कर रही थी और राहत के लिए बेताब थी। येशु, हम जानते हैं कि वह अकेली नहीं थी। हम जानते हैं कि तू उसके साथ था। और हम जानते हैं कि तू जीवन भर हमेशा उसके साथ रहा है। उसकी चंगाई और उसके परिवार की चंगाई के लिए येशु, धन्यवाद।”
मेरे मन की आँखों में मैंने येशु को अपने बगल में खड़ा देखा। उसने मुझे प्यार और करुणा के साथ गौर से देखा। मैं समझ गयी कि मेरे माता-पिता और भाई-बहनों के दुःख और दर्द को उठाने का काम कभी भी मेरा नहीं था, और यह कि येशु हमेशा मेरे दुख और दर्द का भार साझा करने के लिए मेरे साथ था। उसने ठीक उसी क्षण की व्यवस्था की थी जब मेरे दिल में छिपे हुए स्थान उसकी चंगाई के प्रेम और दया से भर जाएंगे।
चुपचाप, मैं रोयी।
मैं विस्मित होकर वहां से चली गयी। जो मैंने बहुत पहले अनुभव किया था उसी अनुभव को उस महिला की प्रार्थना ने पूरी तरह से वर्णन किया। येशु के साथ यह अंतरंग मुलाकात अविश्वसनीय रूप से चंगाई देने वाली थी।
प्रार्थना का उत्तर
मुझे जल्द ही एहसास हुआ कि दूसरों को ऊपर उठाने और उनकी जरूरतों को पूरा करने की मेरी इच्छा आंशिक रूप से मेरी खुद की जरूरतों को पूरा करने और ठीक होने की अवचेतन इच्छा थी। जबकि मैं दूसरे लोगों के दुखों का भार उठा रही थी, मुझे नहीं पता था कि मैं अपने अन्दर दर्द के सागर ले चल रही थी जिसे मैंने कभी व्यक्त नहीं किया था।
हाल ही में, मेरी बेटी ने मुझे बताया कि वह अपनी उदासी के लिए ग्लानी महसूस करती है और उसे लगता है कि वह मेरे लिए बोझ है। मुझे यह बात भयानक लगी। वह ऐसा कैसे महसूस कर सकती है? लेकिन तब मैं समझ गयी। मेरे लिए वह बोझ नहीं थी, लेकिन उसकी उदासी बोझ थी। मैंने उसे बेहतर बनाने का दबाव अपने अन्दर महसूस किया था ताकि मैं स्वयं बेहतर महसूस कर सकूं। और इस वजह से वह ग्लानी महसूस कर रही थी।
मेरी चंगाई से मुझे राहत मिली है। येशु मेरी बेटी के साथ है, उसे चंगाई दे रहा है, इस जानकारी के आधार पर मुझे जैसी वह है वैसे ही उससे प्यार करने के लिए स्वतंत्रता मिलती है।
ईश्वर की कृपा से, मैं उस सुंदर जीवन की जिम्मेदारी लेती रहूंगी जिसे ईश्वर ने मुझे दिया है। मैं उसे मेरी चंगाई जारी रखने की अनुमति दूँगी ताकि मैं परमेश्वर के प्रेम के प्रवाहित होने के लिए एक खुला पात्र बन सकूँ।
मैंने एक बार एक बुद्धिमान परामर्शदाता से पूछा,
“मुझे पता है कि येशु हमेशा मेरे साथ है और मैं अपनी देखभाल करने के लिए उसकी भलाई पर भरोसा कर सकती हूं, लेकिन क्या मैं कभी इसे अपने दिल में महसूस कर पाऊंगी?”
“हाँ, आप करेंगी,” उन्होंने कहा। “वह इसे ऐसा कर देगा।”
आमेन। सो ऐसा ही है।
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क्या आप जीवन के बोझ से परेशान हैं? आप राहत की सांस कैसे ले सकते हैं, इसे जानिए…
मेरी शादी के कई सालों बाद तक, मैंने एक ऐसे जीवनसाथी के साथ शादी करने का बोझ ढोया, जो अविश्वासी था। माता-पिता के रूप में, हममें से कई लोग अपने बच्चों और परिवार के सदस्यों का बोझ उठाते हैं। लेकिन मैं आपसे कहूंगी, ईश्वर की योजना पर भरोसा रखें, उसके दिव्य विधान की पूर्ती के लिए उसके सही समय पर भरोसा करें। स्तोत्र ग्रन्थ 68:18-20 कहता है, “धन्य है प्रभु, हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर, जो प्रति दिन हमारा बोझ उठाता है।” हमें अपने बोझ के साथ क्या करना चाहिए?
सबसे पहले ज़रूरी है कि निराशा न हो। जब हम निरुत्साहित होते हैं, तो यह कभी भी प्रभु की इच्छा के अनुरूप नहीं होता। हम जानते हैं कि बाइबिल हमें मत्ती 6:34 में कहती है, “कल की चिन्ता मत करो, क्योंकि कल अपनी चिन्ता स्वयं कर लेगा।” बाइबिल यह भी कहती है, “आज की मुसीबत आज के लिए बहुत है।” जब हम शांत होते हैं, तो यह ईश्वर की इच्छानुसार होता है, लेकिन जब हम चिंतित रहते हैं, तो यह शैतान की तरफ से होती है। स्वर्ग में कोई चिंता नहीं है, केवल प्रेम, आनंद और शांति है।
मेरे प्यारे पति फ्रेडी को अपने जीवन के अंतिम साढ़े आठ वर्षों में अल्जाइमर रोग हो गया था। अल्जाइमर से पीड़ित पति के साथ रहने के दौरान, मैंने पाया कि मेरे जीवन में प्रभु की कृपा अद्भुत थी। प्रभु ने मुझे पति की बीमारी का बोझ अपने ऊपर न उठाने का अनुग्रह दिया। यह बोझ मुझे नष्ट कर सकता था। मैंने अपने आप को उस स्थिति में पाया जहाँ मुझे प्रार्थना करनी थी और लगातार सब कुछ प्रभु को देना था, पल-पल के आधार पर। जब आप किसी ऐसे व्यक्ति के साथ रहते हैं जिसे अल्ज़ाइमर है, तो जीवन लगातार बदलता है। हर सुबह जब मैं उठती हूँ, मैं बाइबिल के पास जाती हूँ। मैं इसे अपने दिन का पहले फल के रूप में बदल देती हूं। मैं जानती हूं कि मेरे येशु ने हमारे लिए क्रूस पर मरकर पहले ही हमारे हर एक बोझ को अपने ऊपर उठा लिया है। उसने हम में से प्रत्येक के लिए कीमत चुकाई है और वह प्रतीक्षा करता है कि हम में से प्रत्येक उन आशीषों को हथिया ले जो उन्होंने क्रूस पर अपनी मृत्यु के द्वारा हमारे लिए खरीदी हैं।
मुझे सम्भालने वाली प्रतिज्ञाएँ
उस सीजन में मैंने कई सबक सीखे। मैंने सीखा कि कभी-कभी परमेश्वर हमारी परिस्थितियों को बदलना नहीं चाहता, लेकिन जिन परिस्थितियों से हम गुजर रहे हैं, उनके द्वारा परमेश्वर हमारे ह्रदय को बदलना चाहता है। ठीक ऐसा ही मेरे साथ हुआ। मैंने प्रतिज्ञात देश से और पहाड़ की चोटियों से ज़्यादा जीवन की घाटियों में सीख ली। जब आप चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों का सामना करते हैं, तो आप या तो तैरना सीखते हैं या नीचे डूब जाते हैं। आप सीखते हैं कि जहां कोई रास्ता नहीं है वहां ईश्वर कोई रास्ता खोज लेता है। मैं प्रभु से निरन्तर विनती किया करती थी, “मुझे अनुग्रह दे कि मैं पौलुस के समान हर परिस्थिति में सन्तुष्ट रहूँ।” फिलिप्पियों को लिखे पत्र में, पौलुस लिखते हैं कि उन्होंने परिस्थितियों की परवाह किए बिना संतुष्ट रहना सीख लिया है। उनका यह भी कथन है, “जो मुझे बल प्रदान करता है, उनकी सहायता से मैं सब कुछ कर सकता हूं।” हमें यह जानना होगा कि हमें आगे बढ़ाने वाली शक्ति प्रभु की शक्ति है न कि हमारी शक्ति। हमें प्रभु पर भरोसा रखना है और हमें अपनी समझ पर निर्भर नहीं रहना है। हमें अपना बोझ उस पर डाल देना चाहिए और हमें संभालने की अनुमति हम उसे दे।
जब हम चिंता में डूबने लगते हैं, तो हमारा सफ़र नीचे की ओर होता है। वहीं हमें प्रभु के पास आने और उन्हें अपना बोझ सौंपने की जरूरत है। “थके मांदे और बोझ से दबे हुए लोगो, तुम सभी मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा। मेरा जूआ अपने ऊपर ले लो और मुझ से सीखो। मैं स्वभाव से नम्र और विनीत हूं। इस तरह तुम अपनी आत्मा में शांति पाओगे” (मत्ती 11:28,29)। यह एक शानदार पवित्र वचन है जिसके बल पर मुझे साढ़े आठ वर्षों में ज़िन्दगी के कठिन डगर पर चलने की ताकत मिली है। यह एक प्रतिज्ञा है! इसलिए, विश्वास में हम में से प्रत्येक को अपने लिए और अपने प्रियजनों के लिए अपनी चिंताओं और आशंकाओं का पूरा भार प्रभु पर डालने के लिए तैयार रहना होगा।
मिशन संभव!
अभी कुछ समय निकालकर जिन सभी लोगों को आप अपने हृदय में लिए हुए हैं, उन्हें प्रभु को दें। चाहे वह आपका जीवनसाथी हो, आपके बच्चे हो, या कोई और जो भटक गया हो या विद्रोही हो। अब विश्वास की एक छलांग लें और इन सबको प्रभु को दे दें क्योंकि प्रभु आपकी परवाह करता है। आपकी आत्मा के शत्रु ने जहां आपकी शांति को लूट लिया है उन सभी बातों को भी प्रभु को दे दे।
मेरा पति येशु के बारे में जानें, इस केलिए मुझे अट्ठाईस साल का लंबा इंतजार करना पड़ा। मैं उसे हर समय प्रभु को समर्पित करती थी। मैं प्रभु से कहा करती थी कि वह एक ‘गवाही बनेगा’ और मैंने कभी हार नहीं मानी। परमेश्वर ने उसे परिवर्तित किया और एक स्वप्न के द्वारा उसकी आत्मा को चंगा किया। परमेश्वर का समय हमारे समय से बिलकुल भिन्न है। लूकस 15:7 कहता है, “निन्यानबे धर्मियों की अपेक्षा, जिन्हें पश्चाताप की आवश्यकता नहीं है, एक पश्चातापी पापी केलिए स्वर्ग में अधिक आनन्द मनाया जाएगा।” मैं आपको बता सकती हूँ, मेरे फ्रेडी के मनपरिवर्तन पर स्वर्ग में एक बड़ी पार्टी ज़रूर रही होगी! प्रभु ने मुझे दिखाया कि फ्रेडी का मन परिवर्तन मेरे महान मिशनों में से एक था।
आपका महान मिशन कौन है? क्या आपका मिशन आपका पति, आपकी पत्नी, बेटा या बेटी है? प्रभु से कहें कि वह उन्हें छू लें और प्रभु उनके लिए आपकी प्रार्थनाओं को स्वीकार करेंगे।
देर नहीं हुई, अब भी अवसर है
मेरा फ्रेडी 14 मई, 2017 को प्रभु की महिमा के घर चले गए। मुझे पता है कि वह अब वहां है, और वह मुझे देख रहा है। लूकस 5:32 में येशु कहते हैं, “मैं धर्मियों को नहीं, पापियों को पश्चाताप के लिए बुलाने आया हूं।” इसलिए, परमेश्वर की दया पापियों के लिए है, इसलिए हम सब उसके अनुग्रह से बचाए गए हैं।
इसायास 65:1 में परमेश्वर कहता है, “मैं ने उन लोगों पर अपने को प्रकट किया जो मुझ से परामर्श नहीं लेते थे। जो लोग मेरी खोज नहीं करते थे, मैं उन्हें मिला। जो राष्ट्र मेरा नाम नहीं लेता, मैं ने उससे कहा, “देखो मैं प्रस्तुत हूँ”।
संत फौस्तीना की डायरी में मरने वालों के प्रति ईश्वर की दया के बारे में हम पढ़ते हैं: “मैं अक्सर मरने वालों का ख्याल करती हूँ और विनती के माध्यम से उनके लिए ईश्वर की दया में विश्वास प्राप्त करती हूं, और ईश्वर से हमेशा विजयी रहनेवाली ईश्वरीय कृपा की प्रचुरता के लिए विनती करती हूं। परमेश्वर की दया कभी-कभी पापी को अंतिम क्षण में अद्भुत और रहस्यमय तरीके से स्पर्श कर लेती है। बाहर से देखने पर ऐसा लगता है जैसे सब कुछ समाप्त हो गया हो, लेकिन ऐसा नहीं है। ईश्वर की शक्तिशाली अंतिम कृपा की एक किरण से प्रकाशित आत्मा, अंतिम क्षण में प्रेम की ऐसी शक्ति के साथ ईश्वर की ओर मुड़ती है कि एक पल में, वह ईश्वर से पापों से क्षमा और दंड से छुटकारा प्राप्त कर लेती है, जबकि बाहरी रूप से यह किसी पश्चाताप या पछतावा का संकेत नहीं दिखाती है, क्योंकि आत्माएं [उस अवस्था में] अब बाहरी बातों पर प्रतिक्रिया नहीं करती हैं। ओह, ईश्वर की दया हमारी समझ से कितने परे है! (पैराग्राफ 1698)
आइए प्रार्थना करें: प्रभु हम तेरे अनुग्रह के सिंहासन कक्ष में आते हैं जहां आवश्यकता के समय हमें तेरे अनुग्रह प्राप्त हो जायेंगे। जिन्हें हम अपने दिलों में संजोकर रखते हैं उन्हें हम तेरे सम्मुख लाते हैं। उन्हें पश्चाताप और परिवर्तन का अनुग्रह प्रदान कर। आमेन।
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हममें से प्रत्येक के अन्दर अपनी अपनी कमजोरियां हैं; हम इन कमजोरियों से संघर्ष करते हैं। लेकिन पवित्र आत्मा हमारा सहायक है!
आशा आपको आनन्दित बनाए रखे। आप संकट में धैर्य रखें तथा प्रार्थना में लगे रहें। (रोमी 12:12)
विश्वास में नवीकृत होने से पहले मेरा धैर्य मजबूत नहीं था।
जिन अवसरों पर मैंने अपना आपा खो दिया था, उन क्षणों को याद करते हुए अब मुझे शर्म महसूस होता है; कभी किसी दुकान पर मेरी माँ के पक्ष में किसी को मैं ने “नस्लवादी” होने का अभियोग लगाया; जब मैं फिलीपींस में काम कर रही थी, तब मैं कर्मचारियों के लिए न्याय की मांग करते हुए जनरल के कार्यालय में जबरन घुस गयी; कई मौकों पर जब मैं गाडी चला रही थी, तब मुझ से आगे निकलने वालों की ओर मैने बड़ी कठोरता से उंगली उठाई (शायद यही कारण है कि ईश्वर ने मुझे ड्राइविंग जारी रखने की अनुमति नहीं दी!); और जब कभी मुझे अपनी इच्छा के अनुसार आगे बढ़ने में रुकावट हुई तब की उदास खिन्नता, असहिष्णुता, असभ्य व्यवहार, या इस तरह की कई दयनीय छोटी छोटी घटनाएँ।
मैं बहुत अधीर और बेसब्र थी। जिस समय किसी से मिलने के लिए सहमती हुई, यदि वह ठीक समय पर नहीं पहुँचता, तो मैं यह कहते हुए तुरंत चली जाती थी कि वह मेरे समय के अनुसार मुझसे मिलने के लिए योग्य नहीं था। जब प्रभु ने मुझे बुलाया, तब मैं ने महसूस किया कि पवित्र आत्मा से प्राप्त उन पहले फलों में से एक था सहनशीलता का धैर्य। प्रभु ने मुझे प्रभावशाली तरीके से समझाया कि यदि मेरे पास दयालु, धैर्यवान, सहनशील और समझदार हृदय नहीं है तो मैं एक अच्छी सेविका नहीं बन सकती।
प्रतीक्षा करने की सीख
हाल ही में, मेरे पति मुझे आपातकालीन जांच के लिए मेलबर्न के आँख और कान अस्पताल ले गए। उस समय उन वर्षों की यादें ताजा हो गयीं जब मैं रोजाना सी.बी.डी. (सेंट्रल बिजनेस डिस्ट्रिक्ट) की यात्रा करती थी, शहर के उन हजारों उदास कर्मचारियों की भीड़ की मैं भी हिस्सा बन जाती थी जो बहुत नाखुश दिखते थे, लेकिन वे इस सोच से खुद को तसल्ली देते थे कि उनके पास जीवन यापन के लिए नौकरी है। मैंने भी बहुत अधिक ओवरटाइम किया था, यह सोचकर कि ऐसा करने से मैं अमीर हो जाऊंगी (लेकिन मैं अमीर नहीं हुई)।
कॉर्पोरेट क्षेत्र में काम करते हुए, मुझे एकमात्र खुशी तब मिलती थी, जब मैं मध्यान्ह भोजन के अवकाश पर सेंट पैट्रिक चर्च या सेंट फ्रांसिस चर्च में मिस्सा के लिए दौड़ती थी। इसके बावजूद, जब कभी मैं जीवन से ऊब जाती थी, तब मैं बिना किसी ख़ास उद्देश्य से मायेर मॉल में घूमती फिरती थी, व्यर्थ में उन चीजों की खरीदारी करती थी जिससे मुझे अस्थायी खुशी मिलती थी।
हर दिन, मैं प्रभु से सवाल करती थी, मुझे इस रोज़ की थकाऊ यात्रा और उन नौकरियों से जिनसे मुझे कोई संतृप्ति नहीं मिलती थी, कब वह “छुटकारा” देंगे? यदि मैं दैनिक मिस्सा में नहीं भाग लिया होती, यदि अच्छे दोस्तों से मेरी मुलाक़ात नहीं हुई होती, यदि मैं रेल गाडी में प्रार्थना करके, अच्छी किताबें पढ़कर और कढाई-बुनाई करते हुए समय का उपयोग नहीं किया होती, तो मुझे कहना पड़ता कि जीवन का वह महत्वपूर्ण दौर वास्तव में समय की बर्बादी थी।
जैसे जैसे मैं पीछे मुड़कर देखती हूं, मेरी प्रार्थना का जवाब देने में प्रभु ने कई साल लगा दिए – आखिरकार मुझे अपने क्षेत्र में सार्थक और संतोषजनक नौकरी दी गयी, वह भी घर से सिर्फ पंद्रह मिनट की ड्राइव पर। प्रभु मुझ पर दया करेगा और मेरे अनुरोध पर ध्यान देगा, यह आशा और भरोसा मैंने कभी नहीं छोड़ी और मैं अपनी प्रार्थना में लगी रही।
जब मैंने शहर के काम को अलविदा कह दिया, तो मैंने महसूस किया कि मेरे कंधों से एक बड़ा बोझ उतार दिया गया है। मैं आखिरकार उस प्रति दिन के कठिन और थकाऊ दौर से मुक्त हो गयी। हालाँकि मैं काम के उस अनुभव के लिए आभारी थी, फिर भी मैं तरोताजा महसूस कर रही थी, जीवन की एकं नए और अधिक शांतिपूर्ण दौर की प्रतीक्षा कर रही थी। ढलती उम्र के कमज़ोर शरीर के साथ, मेरे दिमाग की गति भी धीमी हो रही थी, और ज़िन्दगी की दुश्वारियों से मुकाबला करने की मेरी क्षमता अधिक सीमित होती जा रही थी।
जब मैं उन परिचित सड़कों पर चलने के लिए फिर से लौटी, तो ऐसा लगा कि कुछ खास नहीं बदला है – सड़क पर अभी भी भिखारी लोग थे; कुछ नुक्कड़ों से अभी भी पेशाब और उल्टी की गंध आ रही थी; लोग चलते-फिरते, दौड़ते भागते अगली ट्रेन का पीछा करते हुए ऊपर-नीचे बढ़ रहे थे; भोजनालयों की संख्या बढ़ गयी थी, और लोग उन रेस्त्रां में भोजन का ऑर्डर देने के लिए कतारबद्ध खड़े थे; और खुदरा स्टोर अभी भी लोगों के जेब ढीली करने के लिए अपने माल को मोहक रूप से प्रदर्शित करने के लिए उत्साहित थे। सायरन की आवाज गूंज रही थी। पुलिस की मज़बूत उपस्थिति थी, और मैंने यह सोचकर अपनी बेटी के लिए प्रार्थना की, कि वह शहर में काम करते हुए अपने आप को शहरी जीवन से किस तरह सुरक्षा पूर्ण तरीके से निपट रही है।
यह सब इतना जाना-पहचाना था कि यह पूर्वानुभव की तरह महसूस होता था, लेकिन मुझे जो एकमात्र आरामदायक शरण मिली, वह सेंट पैट्रिक कथीड्रल में थी, जहां मैं दोपहर के भोजन अवकाश के दौरान मिस्सा बलिदान में वेदी पर पवित्र पाठ पढ़ा करती थी, और सेंट फ्रांसिस चर्च जहां ऑस्ट्रेलिया में मेरे पहले आगमन पर मैंने मोमबत्ती जलाने के लिए माँ मरियम के सामने घुटने टेका था। एक अच्छे जीवन साथी पाने के लिए मेरी उस दिन की उत्कट प्रार्थना का तीन सप्ताह में उत्तर दिया गया। ईश्वर जानता है कि मेरे लिए चीजें कब और कहाँ अति आवश्यक हैं।
बहुत जरूरी पुण्य
‘आइ बिलीव’ (IBelieve) नामक वेबसाइट इस अद्भुत शिक्षण को साझा करती है। सन 1360 के आसपास लिखी गयी एक कविता से एक लोकप्रिय कहावत “धैर्य एक सद्गुण है” आती है। हालाँकि, इससे पहले भी बाइबल अक्सर धैर्य को एक मूल्यवान सद्गुण के रूप में उल्लेख करती है। धैर्य को आमतौर पर विलम्ब को, परेशानी या पीड़ा को, गुस्सा या परेशान हुए बिना स्वीकार करने या सहन करने की क्षमता के रूप में परिभाषित किया जाता है। दूसरे शब्दों में, धैर्य अनिवार्य रूप से “अनुग्रह के साथ प्रतीक्षा” है। मसीही होने का एक हिस्सा इसमें है कि हम दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों को अनुग्रहपूर्वक स्वीकार करने की क्षमता रखें, इस विश्वास के साथ कि हम अंततः ईश्वर में समाधान पाएंगे।
गलाती 5:22 में, धैर्य या सहनशीलता को पवित्र आत्मा के फलों में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। यदि धैर्य या सहनशीलता एक सद्गुण है, तो प्रतीक्षा करना सबसे अच्छा (और अक्सर सबसे अप्रिय) साधन है जिसके द्वारा पवित्र आत्मा हममें धैर्य/सहनशीलता विकसित करता है। लेकिन हमारी संस्कृति धैर्य को उतना महत्व नहीं देती, जितना कि परमेश्वर देता है। धैर्य क्यों रखें? तत्क्षण अनुतोषण या तत्काल सुख की अनुभूति कहीं अधिक मजेदार है! अपनी आवश्यकताओं को तुरंत तुष्ट करने के लिए हमें बहुत से अवसर इन दिनों प्राप्त हो रहे हैं। शायद इसी कारण अच्छी तरह से प्रतीक्षा करने की सीख के वरदान हमसे छीना जा रहा है।
तो हम “अच्छे” की प्रतीक्षा कैसे करें? मेरा सुझाव है कि आप ‘आइ बिलीव’ (IBelieve) वेबसाइट पर लिखे पूरा लेख पढ़ें। “धैर्य चुपचाप प्रतीक्षा कर रहा है; यह बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहा है। धैर्य अंत तक प्रतीक्षा कर रहा है; यह उम्मीद के साथ प्रतीक्षा कर रहा है। धैर्य आनंदपूर्वक प्रतीक्षा कर रहा है; यह अनुग्रह के साथ प्रतीक्षा कर रहा है। लेकिन जिस एक बात के लिए हमें प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए और अगले सेकंड के लिए स्थगित नहीं करना चाहिए, वह है येशु को हमारे जीवन के प्रभु और उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करना।“ अपना जीवन उन्हें समर्पित करने के लिए पलक झपकते ही हमें बुलाया जा सकता है।
धैर्य का पीछा करना
20 साल पहले पेन्तकोस्त पर्व के दिन से, मुझे अपने विश्वास में नवीनीकृत किया गया है। मुझे धैर्य का गुण देने के लिए पवित्र आत्मा का मैं बहुत आभारी हूँ, और मुझे एक दयनीय, क्रुद्ध पापी से एक ऐसे व्यक्ति में बदलने के लिए भी, जो उसकी अगुवाई और मदद पाने की प्रतीक्षा करने के लिए क्षमता रखती है। यही इस उपहार का रहस्य है। आप इसे अकेले नहीं कर सकते – आपको ईश्वरीय कृपा की आवश्यकता है। मैं रातों-रात एक सौम्य, धैर्यवान व्यक्ति नहीं बन गयी, और हर दिन मेरे लिए एक परीक्षा का मैदान-ए-जंग है। धैर्य को पवित्र आत्मा के फलों का “केला का फल” कहा जाता है, क्योंकि यह जल्दी सड़ सकता है। मेरी परीक्षा होती रहती है, लेकिन पवित्र आत्मा ने मुझे निराश नहीं किया है। जब मैं यह लेख लिख रही थी, तब मैं एक समस्या के समाधान के लिए फोन पर चार घंटे तक प्रतीक्षा करने में सफल रही! दुनिया मुझे जल्दबाज़ी करने के लिए उकसाती रहती है। जब तक मैं नियंत्रण नहीं खो देती, तब तक शैतान मुझे परेशान करके दूसरे जाल में फँसाने की कोशिश करता रहता है। मेरा स्वार्थी और घमंडी अहम् हमेशा मांग करता है कि हर काम में मुझे पहले और अव्वल आना चाहिए। इसलिए आत्म-संयम के साथ अपना धैर्य बनाए रखने में मेरी मदद करने के लिए मुझे पवित्र आत्मा की बहुत आवश्यकता है। हालाँकि, संत फ्रांसिस डी सेल्स हमें बताते हैं कि वास्तव में हमारे आस-पास के सभी लोगों के लिए धैर्य का प्रयोग करने के पहले, हमें पहले खुद के साथ धैर्य रखना चाहिए।
फिर भी सतर्क रहने की ज़रूरत है। धैर्य का अर्थ यह नहीं है कि हम स्वयं को दुर्व्यवहार का शिकार होने दें या दूसरों को हमारे साथ पापपूर्ण व्यवहार की अनुमति दें। लेकिन इस विषय पर फिर कभी बात करूंगी, इसलिए मैं आप से धैर्य बनाए रखने की कामना करती हूं।
“सब कुछ की कुंजी धैर्य है। अंडा सेने से ही मुर्गी का चूजा हमें मिलता है, उसे तोड़ने से नहीं।” -अर्नोल्ड ग्लासो
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हमारे दैनिक जीवन में जो बातें हमें महत्वहीन लगती हैं, वे स्वर्ग के दृष्टिकोण में अत्यधिक मूल्य धारण कर सकती हैं। विश्वास नहीं होता? और अधिक जानने के लिए आगे पढ़ें…
“बड़े प्यार के साथ छोटे काम करो” – मेरी टी-शर्ट में मदर टेरेसा का यह विख्यात उद्धरण है। हालाँकि मैं अक्सर घर पर टी-शर्ट पहनती हूँ, लेकिन मैंने कभी इसके संदेश पर गहराई से विचार नहीं किया। कौन वास्तव में छोटी-छोटी चीज़ें करना चाहता है या सच कहूं तो हममें से ज्यादातर लोग कुछ बड़ा, कुछ असाधारण और उल्लेखनीय कार्य करने का सपना देखते हैं, जो हमें लोगों की तालियाँ, प्रशंसा, पहचान, आत्म-संतुष्टि और महानता की भावना दिलाएगा।
दुनिया हमें कहती है, या तो बड़ा बनो या घर पे बैठे रहो। जब हम जीवन के हर क्षेत्र में सफल होते हैं तभी हमारी प्रशंसा की जाती है और हम महान माने जाते हैं। तो, किसी तरह, हमने इस धारणा को स्वीकार कर लिया है – बड़े कार्य = महानता।
सच्ची महानता
अपने अधिकांश जीवन के लिए, मैं एक ही बात पर विश्वास करती थी। शायद यही वजह थी कि मैं कभी संतुष्ट नहीं हो पाती थी। मैंने ईश्वर से अपनी परिस्थितियों को बदलने के लिए विनती की। मुझसे पैदा हुए बच्चे विशेष देखभाल की आवश्यकता वाले बच्चे थे, इस लिए मैं ने लाखों आँसू बहाए। मैं एक अलग जीवन चाहती थी। अपने बच्चों की ज़रूरतों की पूर्ति के लिए मेरा घर में होना ज़रूरी था और इसलिए मुझे ऐसा लगता था जैसे घर में चार दीवारों के बीच फँसी हुई हूँ।
मैंने परमेश्वर की योजनाओं के बाहर जीवन का अर्थ और उद्देश्य की तलाश की। वह मुझसे जो चाहता है उस पर पूरा ध्यान देने के बजाय, मैंने अपनी इच्छाओं का पीछा किया। लोग मुझे पहचानें इसलिए मैं केवल बड़े काम की खोज में लगी रही और मैंने “छोटी चीजें” करने से इनकार कर दिया। मैंने अलग-अलग चीजें और काम करना पसंद किया जिन्हें करने से मुझे लगा कि मेरे जीवन का मूल्य बढेगा, और महानता और संतुष्टि की भावना बढ़ेगी।
यह सब गलत था। ईश्वर ने जहां मुझे रखा था, उस क्षेत्र में संतुष्ट होने के बजाय, मैं अपनी खुशी और महिमा के लिए अपना अलग राज्य बना रही थी। मुझे यह समझने में कई साल लग गए कि मेरी अपनी मर्जी करने से महानता नहीं आती, दुनिया के लिए अपनी काबिलियत साबित करने से महानता नहीं आती, प्रशंसा पाने या यहां तक कि अपनी प्रतिभा और कौशल का प्रदर्शन करने से महानता नहीं आती, बल्कि ईश्वर की मर्जी के केंद्र में रहने से महानता आती है। मेरे अपने घर में, मेरे अपने समुदाय में लोगों को प्रभावित करने से, उन पर असर डालने से, और उनकी सेवा करने से महानता आती है। कभी-कभी यह क्षेत्र छोटा और महत्वहीन लग सकता है लेकिन जैसा प्रभु ने जिस तरह प्रेम से सेवा की, उसी तरह प्रेम और सेवा करने से अंततः ईश्वर की योजनाओं का बड़ा बृहद चित्र प्रकट होगा।
जैसा कि पास्टर टोनी इवांस ने अपनी पुस्तक ‘तकदीर’ (डेस्टिनी) में लिखा है, “जब आप अपना जीवन परमेश्वर के उद्देश्य के अनुसार जी रहे हैं, तो वह आपके जीवन में सभी चीजों को अच्छाई के लिए एक साथ समन्वयित करेगा। जब आप सब से बढ़कर उसके प्रति प्रतिबद्ध होते हैं, तो वह आपके जीवन में हर चीज को मापेगा – अच्छा, बुरा और कड़वा और उन सब बातों को कुछ दिव्यतापूर्ण और स्वर्गिक बातों में मिला देगा।
संक्षेप में, यदि आपको सौंपे गए उस छोटे से कार्य के प्रति आप वफादार रहते हैं, तो आपके जीवन में सब कुछ, यहां तक कि सबसे छोटी बात भी, उसकी महिमा के लिए एक महत्वपूर्ण परिणाम दे सकती है (अर्शाफियों के दृष्टान्त को याद करते हुए; मत्ती 25)।
हमारे गुरु की मिसाल
येशु संसार के विपरीत मार्ग दिखाकर महानता की परिभाषा हमें पुनः परिभाषित करके देते हैं। छोटी बातें = महानता। येशु ने अपने शिष्यों से कहा, “जो तुम में बड़ा होना चाहता है वह तुम्हारा सेवक बने, और जो तुममें प्रधान होना चाहता है, वह तुम्हारा दास बने” (मत्ती 20:26-27)।
उसने इसे बार-बार दोहराया और अपनी मृत्यु की पिछली रात को जब उसने अपने प्रेरितों के सामने घुटने टेककर उनके पैर धोते हुए इसे प्रदर्शित किया।
हम अक्सर “सेवा” को महत्वहीन और निम्न कोटि का मानते हैं, लेकिन येशु हमें दिखाते हैं कि हर शब्द और कार्य में, उनके राज्य के निर्माण में छोटी-छोटी चीजों का कितना बड़ा महत्व हो सकता है। अपने दृष्टान्तों में, वह उन कार्यों की तुलना एक छोटे से राई के दाने से करते हैं, जो बड़े से बड़े पेड़ बन जाते हैं, या एक चुटकी खमीर जिससे आटा बढ़ता है और अधिक स्वादिष्ट बनता है। उसने शाही महल के बजाय एक सामान्य गोशाले में पैदा होना पसंद किया। उसने अमीरों को अपनी अपार धन संपत्ति में से जो कुछ बचा था, उससे खजाने में डाली गई दौलत की तुलना में विधवा के दो सिक्कों के अधिक मूल्य को पहचाना और उसी को ही महत्व दिया। उसने एक बालक के दोपहर के भोजन के उपहार को पांच हजार से अधिक लोगों में से सब के सब के खाने केलिए दिया। उसने अपनी थकावट के बावजूद छोटों को अपने पास आने के लिए आमंत्रित किया। उसने अपने आप की तुलना भले चरवाहे से की जो झुण्ड से एक भेड़ गायब होने पर उसी पर ध्यान देता है और अँधेरे में उसकी तलाश करता है। उसने अपनी मृत्यु की तुलना गेहूँ के दाने से की जो भूमि पर गिरकर मर जाता है, परन्तु अंत में बड़ी फसल लाता है।
उसने घोषणा की कि सबसे कम लोग ईश्वर की दृष्टि में सबसे मूल्यवान हैं। उसके राज्य में छोटी-छोटी चीजें बड़ी मानी जाती हैं! उसने हम में से एक बनकर हमें यह दिखाया। “मनुष्य का पुत्र सेवा करवाने नहीं, परन्तु सेवा करने आया है, और बहुतों के उद्धार के लिये अपना प्राण देने आया है।” मत्ती 20:28। वास्तव में उसका अनुसरण करने के लिए, मुझे अपने से बढ़कर दूसरों की ज़रूरतों की पूर्ती के लिए तैयार रहने की ज़रूरत है, खुद को दूसरों की सेवा में देने के लिए तैयार रहना चाहिए और जो आचरण मैं दूसरों से चाहता हूँ, वही आचरण मुझे दूसरों के साथ करना होगा।
अपनी पुस्तक “इन चार्ज” में, डॉ. माइल्स मुनरो लिखते हैं, “हमारी भौतिकतावादी दुनिया में महानता को प्रसिद्धि, लोकप्रियता, विद्वता या आर्थिक उपलब्धि और गुंडागर्दी के रूप में परिभाषित किया गया है। महानता इन गुणों से उत्पन्न हो सकती है, लेकिन ये महानता की परिभाषा नहीं हैं। बल्कि महानता आपकी सेवा से दुनिया में आती है। जब आप अपने जीवन में पाए गए उपहारों से दूसरों की सेवा करते हैं, तो आप मानवता के लिए महत्वपूर्ण हो जाते हैं और लोग आपको “महान” के रूप में पहचानेंगे। संक्षेप में, महत्वपूर्ण होना या असरदार होना महानता है। आप दूसरों की सेवा करके उनके जीवन में जो मूल्य जोड़ते हैं उसी मूल्य से यह महानता आती है। महानता इस बात में नहीं है कि कितने लोग आपकी सेवा कर रहे हैं, बल्कि इस बात में है कि आप अपने जीवन में कितने लोगों की सेवा कर रहे हैं।”
तो क्या चीज़ आपको महान बनाती है?
जब आप दूसरों की सेवा करते हैं तो आप महान होते हैं। आप महान हैं जब आप अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए उस कम प्रशंसनीय काम को कर रहे हैं। आप महान हैं जब आप किसी ऐसे प्रियजन की देखभाल कर रहे हैं जो अस्वस्थ है। आप महान हैं जब आप अपने समय और प्रतिभा के द्वारा वंचितों के जीवन में बदलाव ला रहे हैं। जब आप किसी मित्र को प्रोत्साहित कर रहे होते हैं तब आप महान होते हैं। आप महान हैं जब आप एक सकारात्मक ऊर्जा के साथ ब्रह्मांड में अपने जीवन को सेंध लगाने दे रहे हैं। जब आप अपने परिवार के लिए खाना बना रहे होते हैं तो आप बहुत अच्छे होते हैं। जब आप अपने बच्चों की परवरिश कर रहे होते हैं तो आप महान होते हैं। और जब आप छोटे काम बड़े प्यार से करते हैं तो आप महान होते हैं!
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नीलकंठन पिल्लई का जन्म सन 1712 ई. में दक्षिण भारत के एक हिंदू परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता उच्च जाति के हिंदू थे। नीलकंठन के परिवार का स्थानीय राजमहल के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध था, और नीलकंठन ने त्रावणकोर के राजा के लिए राजमहल के अधिकारी के रूप में राजमहल के बही खातों के प्रभारी बनकर सेवा की।
1741 ई. में त्रावणकोर और डच ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच लड़ी गई कोलचल की लड़ाई में, डच नौसैनिक सेनाध्यक्ष कप्तान यूस्ताचियुस डी लानोय को त्रावणकोर के राजा ने पराजित और कब्जा कर लिया। डी लानोय और उनके साथी सैनिकों को बाद में क्षमा कर दिया गया और उन्होंने त्रावणकोर सेना की सेवा की। आधिकारिक कार्यों ने नीलकंठन और डी लानोय को नज़दीक ला दिया और दोनों के बीच घनिष्ठ मित्रता बन गई।
इस दौरान, नीलकंठन को कई दुर्भाग्यपूर्ण त्रासदियों का सामना करना पड़ा, और वह संदेह और भय से मानसिक रूप से परेशान था। डी लानोय ने अपने मित्र को सांत्वना देते हुए अपने ख्रीस्तीय विश्वास के बारे में उसे विस्तार से बताया। बाइबल में अय्यूब की कहानी से नीलकंठन को बहुत दिलासा मिला, और डी लानोय के साथ बातचीत के कारण वह येशु मसीह के पास खींचा गया। नीलकंठन ने बपतिस्मा लेने का फैसला किया, हालांकि उन्हें पता था कि इस फैसले का मतलब होगा कि उन्हें अपनी सामाजिक रिश्तों का और राजा की सेवा का त्याग करना होगा। 14 मई 1745 को, 32 वर्ष की आयु में, नीलकंठन को कैथलिक कलीसिया में बपतिस्मा दिया गया। उन्होंने देवसहायम नाम अपनाया, जो बाइबिल में वर्णित लाजरुस नाम का तमिल अनुवाद था।
देवसहायम ने अपने नए ख्रीस्तीय विश्वास को जीने में अपार आनंद का अनुभव किया और येशु के सच्चे शिष्य बनने का उन्होंने प्रयास किया। उन्होंने अपने मन परिवर्त्तन की कृपा के लिए हर दिन ईश्वर को धन्यवाद दिया और दूसरों के साथ अपने कैथलिक विश्वास को उत्सुकता से साझा किया। उन्होंने जल्द ही अपनी पत्नी और अपने कई सैन्य सहयोगियों को मुक्तिदाता येशु मसीह में विश्वास कबूल करने के लिए मना लिया। देवसहायम जाति व्यवस्था को नहीं मानते थे और तथाकथित “निम्न जाति” के लोगों को अपने समान मानते हुए उनके साथ बराबरी का व्यवहार करते थे।
जल्द ही नीलकंठन के नए विश्वास का विरोध करने वाले राजमहल के अधिकारी उनके खिलाफ खड़े हो गए। उन्हें गिरफ्तार करने की साजिश रची गई। राजा ने देवसहायम से उनके ख्रीस्तीय धर्म को त्यागने के लिए कहा और उन्हें अपने दरबार में एक प्रमुख पद देने का वादा किया। लेकिन प्रलोभनों और धमकियों के बावजूद, देवसहायम अपने विश्वास पर अडिग रहे, इस से राजा और भी क्रोधित हो गए।
देवसहायम के साथ एक अपराधी की तरह व्यवहार करते हुए अगले तीन वर्षों तक उन्हें अमानवीय यातनाएँ दी गयीं। उन्हें रोजाना कोड़े मारे जाते थे, और उनके घावों पर और नाक में मिर्च की बुकनी मली जाती थी। पीने के लिए केवल गंदा पानी दिया गया, हाथों को पीछे बांधकर उसे एक भैंस की पीठ पर बैठाकर राज्य के चारों ओर घुमाया गया – यही कुख्यात सजा गद्दारों के लिए दी जाती थी। राज्य की प्रजा के लिए यह एक संकेत था; ताकि लोगों को किसी भी प्रकार के धर्मांतरण से हतोत्साहित किया जाना था। देवसहायम ने बड़े धैर्य और ईश्वर में विश्वास के साथ अपमान और यातना को सहन किया। उनके सौम्य और दयालु व्यवहार ने सैनिकों को भी हैरान कर दिया। हर सुबह और रात वे प्रार्थना में समय बिताते थे और जो उनके पास आते थे, उन सभी को वे सुसमाचार सुनाते थे ।
जिन मंत्रियों ने देवसहायम के खिलाफ साजिश रची थी, उन्होंने उसे गुप्त रूप से मार डालने की अनुमति राजा से प्राप्त की। 14 जनवरी 1752 को, उन्हें एक सुनसान पहाड़ पर ले जाया गया। गोली मारने के लिए तैनात सैनिकों के दस्ते के सामने उन्हें खड़ा कर दिया गया। देवसहायम का एकमात्र अनुरोध था कि उन्हें प्रार्थना करने के लिए समय दिया जाय। सैनिकों ने इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया। जैसे ही उन्होंने प्रार्थना की, गोलियां चलीं और उन्होंने अपने होठों पर येशु और मरियम के नाम लेते हुए प्राण त्याग दिए।
260 वर्ष बाद, यानी 2 दिसंबर, 2012 को देवसहायम शहीद और धन्य घोषित किये गए। फरवरी 2020 में, पोप फ्रांसिस ने देवसहायम की मध्यस्थता द्वारा घटित एक चमत्कार को मान्यता दी और 15 मई, 2022 को, उन्हें संत घोषित किया गया। इस तरह वे भारत के पहले लोक धर्मी संत बन गए।
'कई साल पहले, एक हाई स्कूल में धर्म के संदर्भ में हो रही एक सत्र में, एक बहुत ही बुद्धिशाली बेनेदिक्ताइन साध्वी ने आगमन काल के बारे में समझाने के लिए मुझे एक उदाहरण दिया था, जिसे मैं कभी नहीं भूल पाऊंगा। बस इतना ही है कि आगमन मसीह के तीन “आने” को ध्यान में रखता है: पहला आना इतिहास में, दूसरा अभी वर्तमान में, और तीसरा काल के अंत में। अभी जो पवित्र काल चल रहा है, उस की तैयारी केलिए इनमें से प्रत्येक पर ध्यान करना यह सहायक होगा।
आइए पहले बीते समय पर गौर करें। फुल्टन शीन ने कहा है कि येशु ही एकमात्र धर्म संस्थापक हैं जिनके आने की स्पष्ट भविष्यवाणी की गई थी। और वास्तव में हम सम्पूर्ण पुराने नियम में मसीह के आगमन के संकेत और प्रत्याशा पा सकते हैं। नए नियम के लेखक कई बार पूर्णता की भाषा का उपयोग करते हैं और इस बात पर जोर देते हैं कि येशु के आसपास की घटनाएँ पवित्र ग्रंथों के अनुसार हुईं। उन्होंने दो हज़ार साल पहले के इस विशेष व्यक्ति येशु की सराहना की, जिसने इज़राइल की सभी संस्थाओं को पूर्ण अभिव्यक्ति दी। मरे हुओं में से उसका जी उठना यह प्रदर्शित करता है कि येशु ख्रीस्त नया मंदिर, नया विधान, अंतिम नबी, व्यवस्था या तोराह (पंचग्रंथी) का मूर्त रूप है। इसके अलावा, नए नियम के रचयिताओं ने समझ लिया था कि येशु ने पूरे इतिहास को, एक बहुत ही वास्तविक अर्थ में, उसके चरमोत्कर्ष पर पहुँचा दिया था। इसलिए मानव इतिहास में सबसे बड़ा मोड़ आधुनिकता का उदय नहीं है, अठारहवीं शताब्दी की क्रांतियां नहीं हैं, बल्कि इस्राएल के मसीहा येशु का मरना और जी उठना है। यदि हम येशु को एक काल्पनिक या पौराणिक कथाओं के पात्र में बदल देते हैं या हम उसे केवल एक प्रेरक धार्मिक शिक्षक के रूप में देखते हैं, तो हम इस अत्यंत महत्वपूर्ण सत्य को खो देते हैं। नए नियम का प्रत्येक लेखक इस तथ्य का गवाह है कि येशु के संबंध में कुछ घटित हुआ था, वास्तव में कुछ इतना नाटकीय कि उसकी वजह से समय या काल दो हिस्सों में विभाजित हो गया, एक उसके आने से पहले का और दूसरा उसके आने के बाद का काल। और इसलिए, आगमन काल के दौरान, हम उस पहले आगमन की ओर गहरी दिलचस्पी और आत्मिक ध्यान से पीछे मुड़कर देखते हैं।
मसीह समय पर, बहुत समय पहले आये थे, लेकिन हमें आगमन के दूसरे आयाम पर ध्यान देना चाहिए – अर्थात्, उसके यहाँ और अभी वर्त्तमान में आने के बारे में। हम येशु की उस प्रसिद्ध तस्वीर को याद करें जिसमें वे दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं। यह मसीह है जो हर दिन हमारे दिल और दिमाग में प्रवेश करने के लिए खुद को प्रस्तुत करते हैं। अपने पहले आगमन में, वह इस्राएल के संदर्भ में प्रकट हुआ। इस वर्तमान आगमन काल में, वह कलीसिया के संस्कारों के माध्यम से, अच्छे उपदेशों के माध्यम से, संतों की गवाही के माध्यम से, विशेष रूप से परम प्रसाद के माध्यम से, और उन गरीबों के माध्यम से प्रकट होता हैं जो प्रेमपूर्ण परवरिश पाने और सांत्वना पूर्ण देखरेख के लिए, मदद केलिए रोते हैं। हम येशु के शब्दों को याद करते हैं, “जो भी तुमने मेरे इन दीन हीन लोगों में से किसी एक के लिए किया, वह तुमने मेरे लिए ही किया है।” जिस तरह कई लोगों ने उसके बहुत पहले इतिहास में आने पर उसे स्वीकार नहीं किया था, उसी तरह, दु:ख की बात है कि आज भी कई लोग उसे अस्वीकार कर चुके हैं। क्या हम देख सकते हैं कि अपनी जिंदगी के सबसे महत्वपूर्ण निर्णय जो हम कभी लेंगे – नौकरी, परिवार, आजीविका, आदि निर्णयों से अधिक महत्वपूर्ण निर्णय – क्या हम मसीह को अपने जीवन का स्वामी और मालिक बनने की अनुमति देंगे? आगमन-काल के दौरान, हमे रुकना है और गंभीर विचार करना है। येशु हमारे पास कैसे आ रहा है और कैसे हम उसके आगमन के लिए तैयारियां कर रहे हैं?
अंततः, आगमन संसार के अंत में मसीह के अंतिम आगमन को ध्यान में रखता है। ईसाई धर्म के विशेष लक्षणों में से एक यह विश्वास है कि समय कहीं न कहीं निश्चित आगे की ओर जा रहा है। यह सिर्फ “एक के बाद एक हो रही साधारण बात” नहीं है, न ही यह एक अंतहीन चक्र है, और न ही “हर चीज़ की शाश्वत वापसी।” बल्कि, समय की एक दिशा है, जो अपनी पूर्णता की ओर बढ़ रही है, जब सभी में परमेश्वर ही सब कुछ होगा। कलीसिया इस अंतिम चरमबिन्दु को येशु के “दूसरे आगमन” के रूप में पहचानती है, और सुसमाचार अक्सर इसके बारे में बोलते हैं। यहाँ लूकस के सुसमाचार से सिर्फ एक उदाहरण दिया गया है: “येशु ने अपने शिष्यों से कहा: ‘सूर्य, चंद्रमा और तारों द्वारा चिन्ह प्रकट होंगे। समुद्र के गर्जन और बाढ़ से व्याकुल होकर पृथ्वी के राष्ट्र व्यथित हो उठेंगे… दुनिया पर क्या आ रहा है, इसकी सोच में लोग डर से मर जाएंगे।…. और तब लोग मानव पुत्र को बड़े सामर्थ्य और महिमा के साथ बादल पर आते हुए देखेंगे।’” यह उल्लेखनीय भाषा यह संदेश देती है कि यह हमारा दृढ़ विश्वास है कि, युग के अंत में, पुरानी व्यवस्था समाप्त हो जाएगी और परमेश्वर सत्य का नवीनीकरण करेगा। मसीह के इस दूसरे आगमन पर, पूरी प्रकृति और इतिहास में बोए गए सभी बीज फल देंगे, ब्रह्माण्ड की सभी छिपी हुई क्षमताएँ वास्तविक हो जाएँगी, और परमेश्वर का न्याय पृथ्वी को वैसे ही ढँक देगा जैसे पानी समुद्र को ढँक लेता है।
यह कलीसिया की मान्यता है – और यह कलीसिया के पूरे जीवन और अस्तित्व को नियंत्रित करती है – कि हम बीच के काल में रह रहे हैं; कहने का अर्थ है, क्रूस और पुनरुत्थान के इतिहास के चरमबिन्दु के बीच और येशु के दूसरे आगमन में इतिहास की निश्चित और अंतिम पूर्णता के बीच। एक अर्थ में, पाप और मृत्यु के विरुद्ध युद्ध जीत लिया गया है, और फिर भी सफाई का कार्य जारी हैं। कलीसिया उस मध्य क्षेत्र में रहता है जहाँ लड़ाई का अंतिम चरण अभी भी लड़ा जा रहा है। विशेष रूप से आगमन के काल के दौरान, पवित्र मिस्सा में हमारे दैनिक सुसमाचारों पर ध्यान दें। मुझे लगता है कि आपको आश्चर्य होगा कि सुसमाचार के पाठ कितनी बार समय के अंत में येशु के दूसरे आगमन का संदर्भ देते हैं। मैं केवल दो प्रसिद्ध उदाहरण पेश कर सकता हूं: “हे प्रभु हम तेरी मृत्यु तथा पुनरुत्थान की घोषणा, तेरे पुनरागमन तक करते रहेंगे,” और “उस दिन की प्रतीक्षा करते रहें जब हमारे मुक्तिदाता येसु ख्रीस्त फिर प्रकट जोकर हमारी मंगलमय आशा पूरी करेंगे।” इस बीच के काल के दौरान कलीसिया की भाषा यही है। यद्यपि हम हर तरफ असफलता, दर्द, पाप, बीमारी और मृत्यु के भय से घिरे हुए हैं, हम आनंदपूर्ण आशा में जीते हैं, क्योंकि हम जानते हैं कि इतिहास आगे की ओर बढ़ रहा है, कि परमेश्वर ने निर्णायक लड़ाई जीत ली है और युद्ध जीतेंगे।
इसलिए, इस आगमन काल में, पीछे मुड़कर देखें; चारों ओर देखें; और आगे भी देखें। प्रत्येक नज़र के साथ, आप आने वाले मसीह को पहचानेंगे।
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क्या आपने कभी सोचा है कि आत्मा का रंग क्या होता है? जब मैं डायरी लिखने का कार्य कर रही थी उस समय ईश्वर ने मेरे दिमाग में जो विचार रखा, उसे मैं आप लोगों के साझा करना चाहती हूँ…
मैं डायरी लिखने में विश्वास करती हूं। मेरा मानना है कि हर कोई इसे लिख सकता है। यदि आप सोच सकते हैं और बोल सकते हैं, तो आप लिख भी सकते हैं; क्योंकि लिखने का तात्पर्य बोली गयी बात को लिखित रूप में रखने से है। लेकिन हाल ही में मैंने एक नया सबक सीखा है। जब आप हाथ में कलम या पेंसिल (या कीबोर्ड) लिए, उन विचारों, चिंताओं और सामान्य ज्ञान को लिखते हैं, तब एक और आवाज को आप सुन सकते हैं। कभी-कभी, परमेश्वर आपसे, आपके द्वारा ही बात करता है!
मेरी दिनचर्या है कि मिस्सा में भाग लेने के बाद मैं तीन दैनिक प्रार्थनाओं का पाठ करती हूँ। मैं परमेश्वर के वचन से प्रेम करती हूँ और मैं जानती हूँ कि यह जीवंत और सशक्त है, इसलिए जब पवित्र ग्रन्थ का कोई वचन मुझसे “बात” करता है, तो मैं इसे अपनी डायरी में लिख लेती हूँ। उसके बाद मैं अपने विचार को लिख देती हूं।
24 जून, 2021 को मैं बस यही कर रही थी। मैं अपनी दुनिया में हो रहे सभी विभाजनों से बहुत परेशान महसूस कर रही थी। यह समूह बनाम उस समूह, ऐसी सोच, और हर जगह मनमुटाव और झगड़े। मैंने महसूस किया कि मानवजाति के पास हमें बांटने के बजाय जोड़ने के लिए बहुत कुछ है। मैंने कलम उठाई और लिखने लगी। मैंने बिना रुके लगभग 15 मिनट तक लिखा। मैंने काव्यात्मक रूप में भी लिखा जो मुझसे कभी कभार ही होता है। शब्दों और वाक्यों की धारा बहती गयी, और मैंने इसे बहने दिया। आखिरकार लिखना खत्म हो गया, और तब तक यह पूरा हो चुका था। मानव जाति के संबंधों के बारे में मैंने जो कुछ सोचा था, परमेश्वर उसकी पुष्टि करता हुआ प्रतीत हो रहा था। उसने मुझे उस संबंध का कारण बताया। उसने मुझे शीर्षक भी दिया – “आत्मा का रंग क्या है?”
कैथलिक चर्च की धर्मशिक्षा के अनुसार, “मनुष्य की आत्मा की सृष्टि ईश्वर द्वारा की गई है वह माता-पिता द्वारा “उत्पन्न” नहीं की गई है। (कैथलिक धर्मशिक्षा: 366-368, 382) बिंगन की संत हिल्डेगार्ड ने कहा, “आत्मा बोलती है: मुझे स्वर्गदूतों का साथी बनने के लिया बुलाया गया है, क्योंकि मैं ईश्वर द्वारा सूखी मिट्टी में भेजी गई जीवित सांस हूं।” फिर से, हम धर्मशिक्षा में पढ़ते हैं, “आत्मा भौतिक शरीर को एक जीवित शरीर बनाती है।” (कैथलिक धर्मशिक्षा: 362-365,382)
अब, मेरी डायरी लेखन में कैथलिक चर्च की धर्म शिक्षा के संदर्भ सम्बंधित निर्देश अंक शामिल नहीं थे, लेकिन अब मैं उन्हें शामिल करती हूं, क्योंकि मैंने जो लिखा है इन सन्दर्भों से उसका समर्थन होता हैं। चलिए मेरी डायरी में मैंने क्या लिखा है उसे देखिये: ईश्वर सूखी गंदगी की मिट्टी को उठाते हैं और फिर उसे मिलाते और सानते हैं। जब उसके पास बिल्कुल सही मिश्रण होता है, तो वह उसे पूर्णता के हिस्से में लाता है – ईश्वर के हिस्से में। क्या वह इसे अपने पवित्र हृदय से निकालते है? ईश्वर के हिस्से में, ईश्वर उस पर एक सांस और शायद एक चुंबन देता है। और इस तरह एक नई सृष्टि धरती पर भेजी जाती है। हर इंसान आत्मा के साथ बनाया गया है। आत्मा के बिना कोई व्यक्ति जीवित नहीं है। कोई अपवाद नहीं! क्या यह बात इस ग्रह के सभी प्राणियों को एकजुट नहीं करती है? हम यह भी जानते हैं कि यह आत्मा कभी नहीं मरती। देह सड़ जाता है, उमे ईश्वर का अंश जो था, वह जीवित रहता है। यह पिता द्वारा दिया गया अनन्त जीवन है।
हमारे परमेश्वर को विविधता प्रिय है। उसने सिर्फ “फूल” नहीं बनाए। उसने फूलों के हर रूप, रंग, आकार, किस्म, कार्य और इत्र की भी रचना की। किसी भी प्रकार के सृजन को चुनें: पशु, खनिज, आकाशीय वस्तुएं आदि और आपको प्रत्येक के असंख्य भाव मिलेंगे। ईश्वर की कल्पना अच्छी है, वह ईश्वरीय है। और जो कुछ वह बनाता है वह अच्छा है। तो हम जानते हैं कि आत्मा को धारण करने वाला मानव हर रूप, रंग, आकार, उपहार और अनुग्रह में बनाया गया है। दुनिया के हर हिस्से में, इंसान ईश्वर द्वारा दी गयी आत्माओं के अद्भुत उपहार से जुड़े हुए हैं… आत्मा किस रंग की होती है? यह काला, सफ़ेद, लाल, भूरा, पीला आदि रंग का नहीं है। स्वर्ग में हमारा कलाकार ब्रह्मांड के सभी रंगों को इकट्ठा करता है। अपनी छवि में, वह हमें प्रतापी और भव्य रंग देता है। हम में से प्रत्येक जगमगाने और चमकने के लिए है। क्या आपको नहीं लगता कि यह एक पवित्र संकेत है कि हम आंतरिक रूप से दिव्य हैं। आत्मा किस रंग की होती है? यह ईश्वरीय और दिव्य है!
यह डायरी लेखन मुझे शांत करता है और सुकून देता है। यह मुझे बताता है कि परमेश्वर नियंत्रण में है, और वह चाहता है कि मैं उस पर भरोसा करूं। मेरा उद्धारकर्ता मेरे विचार जानता है! उन शब्दों में निहित ज्ञान मेरा ज्ञान नहीं था। मैं इसका उत्तर खोज रही थी, और वह मुझे मिल गया। मुझे लगता है कि मेरी प्रार्थना के बाद ईश्वर ने मुझे लिखा, मेरे माध्यम से लिखा। ईश्वर की उपस्थिति हमेशा हमारे साथ और हमारे भीतर है। परमेश्वर हमसे दूसरे लोगों के द्वारा और हमारे चारों ओर की प्रकृतिक सुंदरता के द्वारा बात करता है। वह हमारी हंसी, हमारे संगीत और यहां तक कि हमारे आंसुओं के माध्यम से हमसे बात करता है। कई बार हम गौर नहीं करते हैं, लेकिन जब हम गौर करते हैं, उस अवसर पर हम क्या देखते हैं? क्या हम खुद को उस पवित्र क्षण से बाहर समझते हैं? जब हमारे विचारों की पुष्टि हो जाती है, या जब हमारे पठन किसी ऐसे प्रश्न का उत्तर देते हैं जो हमारे दिमाग में चल रहे होते है या जब हमें “सिखाया” जाता है जैसा कि मेरे साथ था, क्या हम इसके बारे में किसी को बताते हैं? हमें ईश्वर के साथ अपनी इन मुलाकातों को बार-बार साझा करने की आवश्यकता है। जब हम ऐसा करते हैं तो इसके द्वारा हम पृथ्वी पर परमेश्वर के राज्य को स्थापित करते हैं। परमेश्वर हमसे कितना प्रेम करता है! हम में से प्रत्येक अपने अच्छे ईश्वर के प्रिय बच्चे हैं। हम उसका प्यार अर्जित नहीं करते हैं। हम इसे खो भी नहीं सकते। इसमें हमारे दयालु परमेश्वर की महानता निहित है।
पवित्र वचन पढ़ें। प्रार्थना करें। ध्यान लगायें। लिखें। परमेश्वर आपके माध्यम से आपको लिख सकता है! ओह, और याद रखें कि डायरी लेखन बिना संपादित लेखन है। स्पेलिंग चेक करने के लिए रुकें नहीं। पूर्ण वाक्य के शुरू होने की प्रतीक्षा न करें। बस लिखें! आप कभी नहीं जानते कि परमेश्वर आपसे क्या कहना चाहता है।
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