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जून 03, 2023
Engage जून 03, 2023

जब मुसीबतें आती हैं, तब हम बहुत जल्दी सोचने लगते हैं कि यह कोई नहीं समझ रहा है कि हम किस दौर से गुजर रहे हैं?

लगभग हर गिरजाघर में, हम वेदी के ऊपर एक क्रूस लटका हुआ पाते हैं। हमें अपने उद्धारकर्ता की छवि, जेवरों का ताज पहने, सिंहासन पर बैठे हुए या स्वर्गदूतों द्वारा उठाए हुए बादलों पर उतरते हुए नहीं दिखाई देती है, बल्कि वह छवि एक आम व्यक्ति के रूप में, घायल, बुनियादी मानवीय गरिमा से वंचित, और प्राणदंड के सबसे अपमानजनक और दर्दनाक पीड़ा को सहते हुए व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करती है। हम एक ऐसे व्यक्ति को देखते हैं जिसने प्यार किया और हार गया, जिसे चोट लगी है और उसके साथ विश्वासघात हुआ है। हमें अपने ही जैसे एक व्यक्ति दिखाई देता है।

और फिर भी, इस सबूत के बावजूद, जब हम खुद पीड़ित होते हैं, तो हम कितनी जल्दी विलाप करते हैं कि कोई भी हमें नहीं समझता, कोई नहीं जानता कि हमपे क्या बीत रही है? हम त्वरित धारणाएँ बनाते हैं और सांत्वना से परे दु:ख से भरे अकेलापन में डूब जाते हैं।

जीवन की दिशा में परिवर्तन

कुछ साल पहले मेरी जिंदगी हमेशा के लिए बदल गई। बचपन में मैं हमेशा एक स्वस्थ बच्ची थी, बैले डांसर बनना मेरा सपना था, जिसे मैंने बारह साल की उम्र तक साकार करना शुरू कर दिया। मैं नियमित रूप से सन्डे स्कूल में धर्मशिक्षा में भाग लेती थी और मेरे अन्दर ईश्वर के प्रति आकर्षण का अनुभव करती थी, लेकिन बाद में मैं इसके बारे में ज्यादा ध्यान नहीं देती थी। इसलिए मैं अपने जीवन का आनंद लेती रही, दोस्तों के साथ मैं ने अपना समय बिताया, और उत्तम बैले डांस स्कूलों में मुख्य नर्त्तकी की भूमिका निभाई। मैं अपने जीवन से संतुष्ट थी। मुझे पता था कि ईश्वर है, लेकिन वह हमेशा वहां बहुत दूर था। मेरा उस पर भरोसा था, लेकिन मैंने कभी उसके बारे में ज्यादा नहीं सोचा।

फिर भी आठवीं कक्षा में, मेरे बचपन के नृत्य करियर के चरम उत्कर्ष पर, मेरा स्वास्थ्य गिरने लगा, और चार साल बाद भी मैं ठीक नहीं हुई। यह सब मेट्रोपॉलिटन ओपेरा हाउस में एक बैले में प्रदर्शन करने के ठीक एक सप्ताह बाद शुरू हुआ। जिस दिन मुझे दृढ़ीकरण संस्कार मिला, और इससे दो हफ्ते बाद मुझे संयुक्त राज्य अमेरिका के दूसरे सबसे प्रतिष्ठित डांस स्कूल में ग्रीष्मकालीन गहन पाठ्यक्रम में भाग लेना था। मेरे टखने की हड्डी पहले से टूटी थी और अब स्नायुबंधन के खराब तनाव ने समस्या और अधिक बढ़ा दी। इसलिए अब सर्जरी की आवश्यकता थी। फिर मुझे अपेंडीसैटिस हो गयी, जिसके लिए एक और सर्जरी की आवश्यकता थी। एक के बाद एक हुई दो सर्जरी ने मेरी तंत्रिकाओं और रोगप्रतिरोध क्षमता को गंभीर नुकसान पहुंचाया और मुझे इस हद तक कमजोर कर दिया कि कोई भी डॉक्टर मेरा इलाज नहीं कर सकता था या पूरी तरह से मेरी स्थिति को समझ भी नहीं सकता था। मैंने बैले जारी रखने के लिए अपने शरीर पर दबाव डालना जारी रखा, इससे मेरे शारीर पर ज़ोर पड़ा और मेरी रीढ़ की हड्डी टूट गई, जिससे मेरा बैले करियर समाप्त हो गया।

मेरे दृढ़ीकरण से पूर्व के वर्षों के दौरान, मैंने येशु को उन रूपों में अनुभव किया जो मैंने पहले कभी नहीं किया था। मैंने उनके प्रेम और दया को सुसमाचारों के अध्ययन और उनके सेवाकार्य की चर्चाओं में पाया। मैंने हर रविवार को गिरजाघर जाना शुरू किया और पवित्र परम प्रसाद की शक्ति का अनुभव किया। मेरे पल्ली पुरोहित ने दृढ़ीकरण की कक्षाओं के दौरान मुझे येशु के प्रेम के बारे में इतने स्पष्ट रूप से सिखाया था, उससे पहले किसी ने भी नहीं सिखाया था। उनकी शिक्षा ने ईश्वर के बारे में मेरे ज्ञान को स्पष्ट किया कि वास्तव में वह कौन है। प्रभु येशु, जिन्हें मैं हमेशा से अपने उद्धारकर्ता के रूप में जानती थी, अब मेरे सबसे प्रिय मित्र और मेरा सबसे बड़ा प्रेम बन गये थे। वह गिरजाघर में लटकी हुई मूर्ति मात्र नहीं थे या कहानियों के एक पात्र नहीं थे; वह वास्तविक थे, और वह सत्य का अवतार थे, वह सत्य जिसे मैं कभी नहीं जानती थी, जिसे मैं खोज रही थी। उस साल के अध्ययन के माध्यम से, मैंने अपना जीवन पूरी तरह से येशु के लिए जीने का निर्णय लिया। मैं उसके जैसा बनने के अलावा और कुछ नहीं चाहती थी।

मेरी चोट के बाद से, जैसे-जैसे मेरा स्वास्थ्य ऊपर-नीचे होता गया और मुझे उस रास्ते से दूर ले गया जिस पर मुझे हमेशा रहने की उम्मीद थी, मैं आशान्वित रहने के लिए संघर्ष कर रही थी। मैंने बैले खो दिया था और कुछ दोस्त भी। मैं स्कूल जाने के लिए मुश्किल से बिस्तर से उठ पाती थी, और जब मैं उठ पाती, तो पूरा दिन खड़ी नहीं हो पाती थी। मेरा जीवन चरमरा रहा था और मुझे यह समझने की जरूरत थी कि ऐसा क्यों है। मुझे इतना कष्ट और इतना नुकसान क्यों उठाना पड़ा? क्या मैंने कुछ गलत किया? क्या यह कुछ अच्छाई में बदल जायेगी? हर बार जब मेरा स्वास्थ्य सुधरना शुरू हुआ, तब कोई नई स्वास्थ्य-समस्या उत्पन्न हुई और मुझे फिर से कमज़ोर कर दिया। फिर भी मेरे कठिन घड़ियों मे, येशु ने हमेशा मुझे अपने पैरों पर वापस खड़ा किया, और अपनी ओर खींच लिया।

उद्देश्य की ढूँढ

मैंने अपने दुःख को दूसरे लोगों के लिए ईश्वर को अर्पित करना सीख लिया और उन लोगों के जीवन में अच्छे बदलाव होते देखा। जैसे-जैसे चीजें मुझसे छीनी गईं, बेहतर अवसरों के लिए जगह बनती गयी। उदाहरण के लिए, बैले डांस न कर पाने की वजह से मुझे अपने बैले स्कूल में नर्त्तकों की तस्वीरें लेने और उनकी प्रतिभा दिखाने का मौका मिला। आखिरकार मेरे पास अपने भाई के फुटबॉल खेलों को देखने के लिए खाली समय मिला और मैंने उसकी तस्वीरें लेना शुरू कर दिया। मैंने जल्द ही पूरी टीम की तस्वीरें खींचनी शुरू कर दीं, जिनमें वे लड़के भी शामिल थे, जिनको खेलते हुए देखेने केलिए कोई नहीं आते थे, उनके कौशल को किसी के द्वारा एक तस्वीर में कैद करना तो दूर की बात थी। जब मैं मुश्किल से ही चल पाती थी, तब मैं घर में बैठकर दूसरों को देने के लिए रोजरी माला बनाती थी। जैसे-जैसे मैंने शारीरिक रूप से और बुरा महसूस करना शुरू किया, मेरा दिल हल्का होता गया, क्योंकि मुझे न केवल खुद के लिए जीने का मौका मिला, बल्कि ईश्वर के लिए जीने और उसके प्रेम और करुणा को दूसरों में तथा अपने ह्रदय में कार्य करते देखने का मौका मिला।

मैं ने येशु को देखा

फिर भी मेरे लिए दु:ख में अच्छाई खोजना हमेशा आसान नहीं होता है। मैं अक्सर अपने आप को यह कामना करती हुई पाती हूं कि काश मेरा दर्द दूर हो जाए, काश मैं शारीरिक पीड़ा से मुक्त एक सामान्य जीवन जी पाऊँ। फिर भी पिछले मार्च की एक शाम मैंने अपने शाश्वत प्रश्नों की स्पष्ट अंतर्दृष्टि प्राप्त की। मैं आराधना में, गिरजाघर में लकड़ी की बेंच पर बैठी हुई, सुस्त मोमबत्ती की रोशनी में क्रूस को टकटकी लगाए हुए देख रही थी। और मुझे सिर्फ क्रूस दिखाई नहीं दे रहा था, बल्कि पहली बार मैं क्रूस पर टंगे प्रभु येशु को निहार रही थी।

मेरा पूरा शरीर दर्द से तड़प रहा था। मेरी कलाई और टखने दर्द से काँप रहे थे, मेरी पीठ नए चोट से दर्द कर रही थी, एक पुराने माइग्रेन के दर्द से मेरा सिर फट रहा था, और हरेक क्षण, एक तेज दर्द ने मेरी पसलियों को छेदते हुए मुझे जमीन पर गिरा दिया। मेरे सामने, येशु अपनी कलाइयों और टखनों में छिदे कीलों से क्रूस पर लटके हुए थे। कोड़ों की मार से उनकी पीठ पर चीरने के घाव बने थे, उनके सिर पर काँटों का ताज दर्दनाक तरीके से धँसा था, और उनकी पसलियों के बीच भाले से छिदा एक गहरा घाव था – जो यह सुनिश्चित करने के लिए भोंका गया था कि वह मर गया है या नहीं। एक विचार मुझे इतना कष्ट दे रहा था कि मैं लगभग बेंच पर ही गिर पड़ी। वह विचार था: हरेक पीड़ा जो मैंने महसूस की, यहां तक कि सबसे छोटी पीड़ा भी, मेरे उद्धारकर्ता ने भी महसूस की। मेरी पीठ दर्द और सिरदर्द, यहां तक कि मेरा यह विश्वास कि कोई और मुझे नहीं समझ सकता, मेरे प्रभु ये सारी पीडाएं जानते हैं, क्योंकि उन्होंने भी इन सबका अनुभव किया है, और इसे हमारे साथ सहना जारी रखता है।

दु:ख कोई सजा नहीं है, बल्कि एक उपहार है जिसका उपयोग हम ईश्वर के करीब आने और अपने चरित्र को अच्छा बनाने के लिए कर सकते हैं। यद्यपि मैंने शारीरिक रूप से बहुत कुछ खोया है, आध्यात्मिक रूप से मैंने पाया है। जब वे सब जिन्हें हम महत्वपूर्ण मानते हैं, दूर हो जाता है, तब हम देख सकते हैं कि वास्तव में क्या मायने रखता है। उस रात आराधना में जब मैंने येशु के घावों को अपने ही घावों के समान देखा, तो मुझे एहसास हुआ कि अगर उन्होंने मेरे लिए इतना सब सहा है, तो मैं भी उनके लिए यह सब सहन कर सकती हूँ। यदि हम और भी ज्यादा येशु के समान बनना चाहते हैं, तो हमें वही यात्रा करनी होगी जो उन्होंने की थी, क्रूस और अन्य सब कुछ। लेकिन वह हमें अकेले चलने के लिए कभी नहीं छोड़ेगा। हमें केवल क्रूस को देखना है और स्मरण रखना है कि वह ठीक हमारे सामने है जो इन सब में हमारे साथ चल रहे हैं।

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By: सारा बैरी

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जून 03, 2023
Engage जून 03, 2023

क्या आपने कभी सोचा है कि जीवन में बुरी बातें क्यों घटती हैं? वजह आपको हैरान कर सकती है

अक्सर, जब हम गंभीर संकटों और कष्टों का सामना करते हैं, तब हममें ईश्वर पर दोष लगाने का प्रलोभन होता है: “ईश्वर मेरे साथ ऐसा क्यों कर रहा है,” या “यदि ईश्वर प्रेमी है तो मेरी सहायता के लिए तुरंत क्यों नहीं आता?” इस प्रक्रिया में, हम आसानी से भूल जाते हैं कि बाइबल हमें बताती है कि हमारी इस दुनिया में कार्यरत एक रहस्यमयी दुष्ट शक्ति भी है जिसका एकमात्र उद्देश्य “चोरी करना, घात करना और नष्ट करना” है (योहन 10:10)। येशु ने इस दुष्ट शक्ति को शैतान कहा और उसे “आरंभ से हत्यारा… झूठा और झूठ का पिता” बताया (योहन 8:44)।
“यह किसी शत्रु ने किया है” (मत्ती 13:28)। येशु ने विशेष रूप से हमें सिखाया कि हमें कभी भी अपने कष्टों के लिए उसके/हमारे “अब्बा पिता” को दोष नहीं देना चाहिए! अपने अंतर्दृष्टि से पूर्ण एक दृष्टान्त में येशु हमें सुनाते हैं कि जब सेवकों ने अच्छे गेहूँ के बीच खरपतवार की उपस्थिति के बारे में प्रश्न किया, तो स्वामी ने स्पष्ट रूप से उत्तर दिया, “यह किसी शत्रु ने किया है, मैंने नहीं।”

अपनी जीत चुनो

ईश्वर एक बदमिज़ाज, अत्याचारी, या बेपरवाह देवता नहीं है जो अपने प्यारे बच्चों पर महामारी, सुनामी, या कैंसर भेजते हैं या फिर विवाहितों की शादी टूटने का कारण बनते हैं! इसका कारण अच्छाई की ताकतों और बुराई की ताकतों के बीच चल रही रहस्यमयी आध्यात्मिक लड़ाई में निहित है जिसमें हर इंसान शामिल है! स्वतंत्र इच्छा हमारे सृष्टिकर्ता द्वारा दिया गया एक अनमोल उपहार है, जो खुश रहने के लिए ईश्वर के पक्ष में या शत्रु के पक्ष में जाने के लिए, हम में से प्रत्येक को “जीवन को चुनने या मृत्यु को चुनने” की अनुमति देता है (विधि विवरण 30:15-20)।

और यह गलत चयन केवल व्यक्तियों द्वारा ही नहीं, व्यवस्थाओं और संस्थाओं द्वारा भी किया जाता है। व्यक्तिगत पाप के अलावा, व्यवस्थागत पाप भी है – सुव्यवस्थित दमनकारी प्रणालियाँ और संस्थाएँ जो सामाजिक अन्याय और धार्मिक उत्पीड़न को कायम रखती हैं। बाइबिल हमें बताती है कि येशु ने बुराई की सभी ताकतों पर विजय प्राप्त की है, और यह कि “नए स्वर्ग और नई पृथ्वी” में (प्रकाशना ग्रन्थ 21, 22) जो कुछ भी सृष्टि को उसके मूल उद्देश्य से दूर कर देता है, उसे नई सृष्टि के खातिर नष्ट कर दिया जाएगा। इससे प्रभु की प्रार्थना ‘तेरा राज्य आए’ पूर्ण हो जायेगा।

पवित्र आत्मा पर अपने 1986 के सार्वभौम पत्र में, संत जॉन पॉल द्वितीय ने इस व्यापक आध्यात्मिक युद्ध की व्याख्या की जब उन्होंने समझाया कि कैसे आदम और हेवा के पाप द्वारा दुनिया में “संदेह बोने में पथभ्रष्ट प्रतिभाशाली को” लाया गया। यह उपयुक्त वाक्यांश सही ढंग से व्यक्त करता है कि शत्रु एक प्रतिभाशाली है (एक पदच्युत स्वर्गदूत के रूप में, उसकी बुद्धि हमसे बेहतर है)। लेकिन वह एक पथभ्रष्ट प्रतिभाशाली है (वह अच्छे के बजाय बुरे उद्देश्यों के लिए अपनी बुद्धि का उपयोग करता है), और उसकी (सफल) रणनीति ईश्वर की सृष्टि, अर्थात हमारे मन में स्वयं सृष्टिकर्ता ईश्वर के विरुद्ध संदेह बोने की रही है! असली दुश्मन बच निकलता है:

“सृष्टि की सम्पूर्ण गवाही के बावजूद, अंधेरे की दुष्टात्मा ईश्वर को अपनी खुद की सृष्टि के शत्रु के रूप में और सबसे पहले मनुष्य के शत्रु के रूप में दिखाने में सक्षम है। इस तरह, शैतान मनुष्य की आत्मा में उस ईश्वर के विरोध का बीज बोने में कामयाब होता है, उसे ही शुरू से मनुष्य का शत्रु माना जाना चाहिए — पिता को नहीं। पाप का यह विश्लेषण इंगित करता है कि मानवता के पूरे इतिहास में मनुष्य पर ईश्वर को अस्वीकार करने का और यहाँ तक कि उससे घृणा करने का एक निरंतर दबाव रहेगा। मनुष्य का झुकाव मुख्य रूप से ईश्वर को स्वयं की सीमा के रूप में देखने का होगा, न कि अपनी स्वतंत्रता और अच्छाई की परिपूर्णता के स्रोत के रूप में” (डोमिनुम एत विविफिकांतेम, नं.38)।

संदेह का कारण

क्या हमारे अपने निजी अनुभव इसकी पुष्टि नहीं करते? पूरे मानव इतिहास में, ईश्वर पर संदेह करने के लिए मानवता पर निरन्तर दबाव रहा है! और इस वजह से, संत जॉन पॉल द्वितीय बताते हैं, “ईश्वर के ह्रदय में एक अकल्पनीय और अकथनीय दर्द है। यह रहस्यमय और अवर्णनीय पितृवत् ‘पीड़ा’, सबसे बढ़कर, वह पीड़ा येशु मसीह में मुक्ति के प्रेम की अद्भुत व्यवस्था को लाएगी, ताकि मानव इतिहास में पाप से अधिक शक्तिशाली के रूप में प्रेम स्वयं को प्रकट कर सकेगा” (डोमिनम एट विविफेंटेम, नं.39)।

जब मैं होली फैमिली चर्च, मुंबई में पल्ली पुरोहित था, तो मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि मैं ईश्वर के खिलाफ अपने गिरजाघर का बीमा करने केलिए बाध्य किया जा रहा था! जिस बीमा अनुबंध को मुझे नवीनीकृत करना था, उस में यह लिखा हुआ था: “हम इस इमारत को बाढ़, आग, भूकंप और ईश्वर के इस तरह के हर कार्य के खिलाफ बीमा करते हैं!” मैंने बीमा दलाल के सामने अपना विरोध दर्ज किया कि येशु मसीह द्वारा प्रकट किए गए मेरे ईश्वर को कभी भी प्राकृतिक आपदाओं के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है, बल्कि इसके बजाय वह अनंत प्रेम का ईश्वर है। (मैंने अंततः अनुबंध पर हस्ताक्षर किए, लेकिन अपमानजनक शब्दों को काटने के बाद ही)।

इस घटना ने मुझे सिखाया कि कैसे “ईश्वर के लिए विकृत संदेह” मानव रीति-रिवाजों और परंपराओं में इतना गहरा हो गया है कि एक अच्छे ईश्वर को एक बदमिज़ाज, अत्याचारी देवता के रूप में प्रस्तुत किया जाता है! हमारे संसार में व्याप्त दु:ख और पीड़ा का कारण ईश्वर की सृष्टि का एक आज्ञाकारी प्रबंधक होने के कर्त्तव्य से मनुष्य इनकार करता है (उत्पत्ति ग्रन्थ 1:28 देखें) इस बात को पहचानने के बजाय धर्मनिरपेक्ष लोग (और अक्सर धार्मिक लोग भी), जो कुछ गड़बड़ हैं उन सब केलिये ईश्वर को बलि का बकरा बनाना पसंद करते हैं!

जो भी हो, हम वैश्विक ताप, आतंकवाद, युद्ध, गरीबी, क्षमा की कमी, संक्रामक रोग आदि के परिणामस्वरूप होने वाली हमारी मानवीय बीमारियों के लिए ईश्वर को दोष नहीं दे सकते। इसके विपरीत, उनके अपने पुत्र की क्रूस पर भयानक मृत्यु और पुनरुत्थान के रहस्य से, हमें यह निष्कर्ष निकालना चाहिए कि ईश्वर हमेशा हमारी भलाई चाहता है, और “जहां कहीं बुराई बढ़ती है, वहां उसका अनुग्रह भी अधिक होता है” (रोमियों 5:20)।

अच्छाई की ताकतों और बुराई की ताकतों के बीच अगोचर रूप से एक आध्यात्मिक लड़ाई चल रही है। 2023 में भी, मानवता को याद दिलाने की आवश्यकता है कि, अपनी तमाम तकनीकी प्रगति और वैज्ञानिक उपलब्धियों के बावजूद, यह आध्यात्मिक लड़ाई जारी है, और इसमें हर इंसान शामिल है!

“क्योंकि हमें निरे मनुष्यों से नहीं, बल्कि इस अंधकारमय संसार के अधिपतियों, अधिकारियों तथा शासकों और आकाश के दुष्ट आत्माओं से संघर्ष करना पड़ता है।” (एफीसी 6:12)।

तो कृपया, आइए उस पर दोष लगाए जो असल में दोषी है और कभी भी येशु और हमारे पिता ईश्वर को दोष न दें!

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By: Father Fiorello Mascarenhas SJ

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जून 03, 2023
Engage जून 03, 2023

6 अगस्त, सन् 1945 को द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान के हिरोशिमा शहर पर परमाणु बम गिराया गया था। इसमें 140,000 लोग मारे गए या घायल हुए। इस तबाही के बीच भी आठ येशुसंघी मिशनरी बच गए, जो हमले के अवकेंद्र के पास अपने निवास स्थान में थे।

विस्फोट के बाद उनमे से कोई भी बहरा नहीं हुआ। उनका गिरजाघर ‘अवर लेडी ऑफ द एसेम्शन चर्च’, की रंगीन काँच खिड़कियाँ चकनाचूर हो गयीं, लेकिन गिरजाघर नहीं गिरा; व्यापक विनाश के बीच खड़ी बहुत कम इमारतों में से एक यह गिरजाघर भी था।

ये पुरोहित न केवल शुरुआती विस्फोट से सुरक्षित रहे – बल्कि उनपर हानिकारक विकिरण का कोई बुरा प्रभाव भी नहीं पड़ा। विस्फोट के बाद उनकी देखभाल करने वाले डॉक्टरों ने चेतावनी दी थी कि विकिरण के जहर के संपर्क में आने से उन्हें गंभीर घाव, बीमारी और यहां तक कि उनकी मौत भी हो सकती है। लेकिन आने वाले वर्षों में 200 चिकित्सा परीक्षण में भी कोई बुरा प्रभाव सामने नहीं आया। जिन डॉक्टरों ने गंभीर परिणामों की भविष्यवाणी की थी, वे इस बात से चकित थे।

हिरोशिमा पर बम गिराए जाने के समय फादर शिफर केवल 30 वर्ष के थे, उन्होंने 31 साल बाद 1976 में फिलाडेल्फिया में यूखरिस्तीय कांग्रेस में अपनी आपबीती सुनाई। येशुसंघी समुदाय के सभी आठ सदस्य जो बमबारी के बाद जिन्दा बच गए थे, वे सभी उस कांग्रेस के दौरान जीवित थे। फादर शिफर ने यूखरिस्तीय कांग्रेस में एकत्रित विश्वासियों के सामने बयान किया कि वे आठों लोग सुबह-सुबह मिस्सा बलिदान चढ़ाने के बाद नाश्ते के लिए उनके निवास की रसोई में बैठे थे। फादर शिफर ने एक फल को काटकर अपना चम्मच उसमें डाला ही था कि प्रकाश की तेज चमक दिखाई दी। पहले उन्होंने सोचा कि यह विस्फोट पास के बंदरगाह में हुआ होगा। फिर उन्होंने अपने अनुभव का वर्णन किया:

“अचानक, एक भयानक विस्फोट ने एक धमाकेदार गड़गड़ाहट के साथ आसमान को भर दिया। एक अदृश्य शक्ति ने मुझे कुर्सी से उठा कर हवा में उछाल दिया, मुझे हिला दिया, मुझे पीटा, मुझे गोल-गोल घुमा दिया, जिस प्रकार शरद ऋतु की हवा के झोंके में एक पत्ता हिलता है।“

अगली बात उन्होंने याद किया कि उन्होंने अपनी आँखें खोलीं और अपने आप को ज़मीन पर पाया। उन्होंने इधर-उधर देखा, और देखा कि किसी भी दिशा में कुछ भी नहीं बचा था: रेलवे स्टेशन और सभी दिशाओं की सारी इमारतें ढह चुकी थीं।

वे सभी पुरोहित अपेक्षाकृत मामूली चोटों के साथ न केवल जीवित बच गए, बल्कि वे सभी बिना किसी विकिरण बीमारी के, बहरापन और अन्य छोटे मोटे कुप्रभावों से बचे रहे। यह पूछे जाने पर कि इतने सारे लोग या तो विस्फोट से या उसके बाद के विकिरण से मर गए, ऐसे में वे क्यों मानते हैं कि उन्हें बख्शा गया था, तब फादर शिफर ने अपने और अपने साथियों की ओर से कहा: “हम मानते हैं कि हम बच गए, क्योंकि हम फातिमा के संदेश को जी रहे थे। हम उस घर में रहकर प्रतिदिन रोजरी माला की प्रार्थना करते थे।“

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By: Shalom Tidings

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जून 03, 2023
Engage जून 03, 2023

ईश्वर किसी को खाली हाथ नहीं भेजता, सिवाय उनको जो अपने आप से भरे हुए हैं।

मैंने एक बार किसी टायक्वोंडो मास्टर को, उनका मार्शल आर्टस् का छात्र बनने की चाह रखनेवाले एक युवा को चतुराई से सलाह देते हुए सुना: “यदि तुम मुझसे मार्शल आर्टस् सीखना चाहते हो,” उन्होंने कहा, “तुम्हें पहले अपने प्याले से चाय बाहर निकालने की आवश्यकता है, और फिर खाली प्याला वापस मेरे पास ले आना होगा।” मेरे लिए मास्टर का अर्थ स्पष्ट और संक्षिप्त था: वह एक घमंडी छात्र नहीं चाहते थे। चाय से भरे प्याले में अधिक के लिए कोई जगह नहीं है; इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप प्याले में कितना अधिक डालने की कोशिश करते हैं, प्याला भरकर चाय बाहर बह जायेगी। इसी तरह, कोई भी छात्र यदि वह पहले से ही अपने आप में भरा हुआ हो, वह सर्वश्रेष्ठ गुरुओं से भी नहीं सीख पायेगा। जैसा कि मेरी आँखें उस युवक का पीछा कर रही थीं, और वह क्रोध में तपकर वहां से निकल रहा था, मैंने अपने आप से कहा कि मैं उस घमण्ड के जाल में कभी नहीं फँसूँगी। फिर भी कुछ वर्षों के बाद, मैंने अपने गुरु ईश्वर के पास, स्वयं को कड़वी चाय से भरा हुआ प्याला लाते हुए पाया।

लबालब भरा हुआ

मुझे टेक्सस शहर के एक छोटे से कैथलिक स्कूल में नर्सरी से दूसरी कक्षा तक के छात्रों को धर्मशिक्षा पढ़ाने का काम सौंपा गया था। अपनी धार्मिक अधिकारिणी से मैंने यह नियुक्ति कड़वाहट और निराशा के साथ प्राप्त की। कारण बिलकुल स्पष्ट था: मैंने ईशशास्त्र में मास्टर्स पूरी कर ली थी, आगे मैं पवित्र बाइबिल पढ़ानेवाली कॉलेज प्रोफेसर बनना चाहती थी, और बाद में एक लोकप्रिय सार्वजनिक वक्ता बनने का सपना देख रही थी। छोटे बच्चों को पढ़ाने का यह कार्यभार स्पष्ट रूप से मेरी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा और मेरी क्षमता से बहुत कम का था। आंअश्रुधारा बहाते हुए मैं कॉन्वेंट के प्रार्थनालय में औंधे मुंह गिरी और काफी देर तक वहीं पड़ी रही। मैं छोटे बच्चों के एक समूह को पढ़ाने के लिए खुद को कैसे मना सकती हूँ? बच्चों के बीच काम करने से मुझे कैसे फायदा हो सकता है? दरअसल, मेरी चाय का प्याला लबालब भरा हुआ था। लेकिन अपने अभिमान में भी, मैं अपने गुरु से दूर जाना सहन नहीं कर सकती थी। उससे मदद की भीख माँगना ही एकमात्र रास्ता था।

गुरुवर ने मुझे देखा और मेरी चाय के प्याले को खाली करने में मेरी मदद करने के लिए तैयार हुआ, ताकि वह इसे और अधिक स्वादिष्ट चाय से भर सके। विडंबना यह है कि उसने मुझे विनम्रता सिखाने और मेरे अभिमान के प्याले को खाली करने के लिए मेरी ज़िम्मेदारी में दिए गए बच्चों का उपयोग किया। आश्चर्य की बात तो यह है कि मुझे एहसास हुआ कि बच्चे नवोदित छोटे ईशशास्त्रियों की तरह थे। नियमित रूप से, उनके प्रश्नों और टिप्पणियों ने मुझे ईश्वर के स्वभाव के बारे में अधिक समझ और अंतर्दृष्टि प्रदान की।

एक दिन चार साल के एंड्रू के एक सवाल ने एक आश्चर्यजनक परिणाम दिया। उसने पूछा: “ईश्वर मेरे अंदर कैसे आ सकता है?” उसे सही जवाब देने केलिए जब मैं अपने विचारों को व्यवस्थित कर रही थी और एक परिष्कृत ईशशास्त्रीय उत्तर तैयार कर रही थी, नन्ही-सी लूसी ने बिना किसी हिचकिचाहट से उत्तर दिया, “ईश्वर हवा की तरह है। वह हर जगह जा सकता है।” फिर उसने एक गहरी सांस ली यह दिखाने के लिए कि कैसे हवा की तरह ईश्वर उसके अंदर आ सकता है।

सच्चे गुरु द्वारा प्रशिक्षित

ईश्वर ने न केवल मेरे प्याले को खाली करने में मेरी मदद करने के लिए बच्चों का इस्तेमाल किया, बल्कि मेरी आध्यात्मिक लड़ाई के लिए मुझे ‘मार्शल आर्ट’ सिखाने के लिए भी इस्तेमाल किया। फरीसी और नाकेदार की कहानी पर एक छोटा वीडियो देखते समय, नन्हा-सा मैथ्यू फूट-फूट कर रोने लगा। जब मैंने रोने का कारण पूछा, तो उसने विनम्रतापूर्वक स्वीकार किया, “मैंने एक दिन डींग मारी थी कि मैंने अपनी आइसक्रीम अपने दोस्त के साथ बांटी थी।” उसके शब्दों ने मुझे अहंकार के पाप से सावधान रहने की याद दिलाई। साल के अंत तक, मुझे पता चल गया था कि जैसे ही मैंने अपना प्याला खाली किया, ईश्वर उसे अपनी आत्मा से भर रहा था। बच्चों ने भी मुझे ऐसा बताया। एक दिन ऑस्टिन ने चुपके से पूछा, “सिस्टर, बाइबल क्या है?” जवाब की प्रतीक्षा न करते हुए, उसने मेरी ओर इशारा किया और कहा: “आप बाइबिल हैं।” मैं थोड़ा हैरान और भ्रमित थी लेकिन निकोल ने स्पष्टीकरण दिया, “क्योंकि आप स्वयं ईश्वर के बारे में हमें बताते हैं।” बच्चों के माध्यम से ईश्वर ने मेरे प्याले में नई चाय डाली।

हममें से बहुत से लोग ईश्वर से यह माँगने जाते हैं कि वह हमें यह सिखाए कि हम अपनी आत्मिक लड़ाई कैसे लड़ें, बिना यह जाने कि हमारा प्याला इतना घमण्ड से भरा हुआ है कि उसकी शिक्षा के लिए कोई जगह ही नहीं है। मैंने यह सीखा है कि एक खाली प्याला लाना और गुरु से इसे अपने जीवन और ज्ञान से भरने के लिए आग्रह करना आसान है। आइए उस सच्चे गुरु को अनुमति दें कि वह हमें प्रशिक्षित करें और हमें अपनी जीवन यात्रा की अनिवार्य लड़ाइयों को लड़ने के लिए हमें वह अभ्यास दें। वह छोटे बच्चों का उपयोग कर सकता है, या अन्य लोग जिन्हें हम बहुत नीच समझते हैं, उनके माध्यम से हमें सीख देकर वह हमें आश्चर्यचकित कर सकता है। लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि “गण्य-मान्य लोगों का घमण्ड चूर करने के लिए ईश्वर ने उन लोगों को चुना है, जो दुनिया की दृष्टि में तुच्छ और नगण्य हैं, जिससे कोई भी मनुष्य ईश्वर के सामने गर्व न करे” (1 कुरिन्थी 1:28-29)।

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By: सिस्टर तेरेसा जोसेफ गुयेन ओ.पी.

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मार्च 23, 2023
Engage मार्च 23, 2023

हम सभी ने जीवन भर अनगिनत आँसू बहाए हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ईश्वर ने उनमें से हर एक बूँद को इकट्ठा किया है?

हम क्यों रोते हैं? हम रोते हैं, क्योंकि हम दुखी हैं या हम किसी संकट से तंग आ चुके हैं। हम रोते हैं, क्योंकि हम आहत हैं और अकेले हैं। हम रोते हैं, क्योंकि हमें धोखा दिया गया है या हमारा मोहभंग हो गया है। हम रोते हैं, क्योंकि हमें खेद है, हम आश्चर्य करते हैं कि क्यों, कैसे, कहाँ, क्या। हम इसलिए रोते हैं, क्योंकि… कभी-कभी हमें पता ही नहीं चलता कि हम क्यों रो रहे हैं! यदि आपने कभी बच्चों की परवरिश की है, विशेषकर यदि आपने उन्हें खिलाया है, उनके कपडे बदल दिया है, उन्हें सुलाया है, तो आप ज़रूर जानते हैं कि बच्चा क्यों रो रहा है, यह पता लगाने की कोशिश करने का तनाव कितना है! कभी-कभी वे सिर्फ गोदी में, आपके बाहों में या आपके आलिंगन में रहना चाहते हैं। उसी तरह, कभी-कभी हम भी ईश्वर के आलिंगन में रहना चाहते हैं, लेकिन हम अपने पापपूर्णता के प्रति चिंतित रहते हैं, जो हमें उनसे दूर करती प्रतीत होती है।

आँखों से ईश्वर के दिल तक

पवित्र ग्रंथ हमें बताता है कि येशु भी रोया: “और येशु रो पड़े” (योहन 11:35); सुसमाचार का यह सबसे छोटा वाक्य येशु के दिल की तरफ एक खिड़की खोल देता है। लूकस 19:41-44 में हमें पता चलता है कि येशु ने ‘यरूशलेम के लिए आंसू बहाए’ क्योंकि उसके निवासियों को “(उनकी) मुलाक़ात का समय नहीं पता था।” प्रकाशना ग्रन्थ की पुस्तक में योहन फूट फूट कर रोया क्योंकि पुस्तक को खोलने और पढ़ने के योग्य कोई नहीं था (प्रकाशना ग्रन्थ 5:4)। मानवीय स्थिति के बारे में यह समझ जीवन की परिपूर्णता को समझने की हमारी क्षमता को सीमित कर सकती है, उस क्षमता को परमेश्वर हममें से प्रत्येक को लगातार प्रदान करता है। प्रकाशना ग्रन्थ 21:4 हमें स्मरण दिलाता है कि ‘परमेश्‍वर सब आंसू पोंछ डालेगा’। फिर भी स्तोत्र ग्रन्थ 80:6 कहता है कि ईश्वर ने ‘उसे विलाप की रोटी खिलाई, और उसे भरपूर आंसू पिलाए।’ तो सत्य क्या है? क्या परमेश्वर आंसुओं को पोंछ डालना और हमें दिलासा देना चाहता है, या वह हमें रुलाना चाहता है?

येशु रोये, क्योंकि आंसुओं में शक्ति है। आँसुओं में एकात्मता है। क्योंकि येशु प्रत्येक व्यक्ति से इतना अधिक प्रेम करते हैं कि वह उस अंधेपन को सहन नहीं कर सकता जो हमें उन अवसरों को स्वीकार करने से रोकता है, जो अवसर परमेश्वर हमें उसके निकट रहने, उसके द्वारा प्रेम किए जाने और उसकी महान दया का अनुभव करने के लिए देता है। जब येशु ने मार्था और मरियम को उनके भाई लाज़रुस की मौत का दुःख सहते देखा तो वह करुणा से भर गया। लेकिन उनके आंसू भी पाप के गहरे घाव की प्रतिक्रिया हो सकते हैं जो मृत्यु का कारण बनता है। आदम और हेवा के समय से ही मृत्यु ने परमेश्वर की सृष्टि को निगल लिया है। हाँ, येशु रोये … लाज़रुस और उसकी बहनों के लिए। फिर भी इस दर्दनाक अनुभव के दौरान येशु अपने सबसे बड़े चमत्कारों में से एक को अंजाम देते हैं: येशु कहते हैं, “बाहर निकल आओ!” और उसका अच्छा दोस्त लाज़रुस कब्र से बाहर निकल आता है। हमेशा प्रेम के शब्दों में बड़ी ताकत है।

एक और सुंदर पवित्र वचन जो आँसुओं की बात करता है और एक छवि पेश करता है जिसे मैं संजोता हूँ, वह स्तोत्र ग्रन्थ 56:9 में पाया जाता है: “मेरी विपत्तियों का विवरण और मेरे आंसुओं का लेखा तेरे पास है; क्या मेरे आंसू तेरी कुप्पी में नहीं रखे हैं।” प्रभु हमारे आंसुओं को एकत्रित करता है, ऐसी सोच विनम्र और सांत्वना देने वाली सोच है। वे आंसू परम पिता के लिए अनमोल हैं; वे हमारे दयालु परमेश्वर के लिए हमारी भेंट जैसी हैं।

शब्दहीन प्रार्थनाएँ

आँसू हृदय को ठीक कर सकते हैं और आत्मा को शुद्ध कर सकते हैं और हमें ईश्वर के करीब ला सकते हैं। अपनी महान कृति, ‘द डायलॉग’ में, सिएना की संत कैथरीन ने आंसुओं के आध्यात्मिक महत्व के लिए एक पूरा अध्याय समर्पित किया। उनके अनुसार, आँसू “एक उत्कृष्ट, गहन संवेदनशीलता है, संवेदनशीलता, भावुकता और कोमलता की क्षमता” को व्यक्त करते हैं। अपनी पुस्तक, ‘डिसेर्निंग हार्ट्स’ में, डॉ. एंथोनी लिलेस कहते हैं कि संत कैथरीन “उस पवित्र प्रेम को क्रूस पर चढ़ाए गए ख्रीस्त में प्रकट किए गए महान प्रेम के लिए एकमात्र उचित प्रतिक्रिया के रूप में प्रस्तुत करती है। ये आंसू हमें पाप से दूर और परमेश्वर के हृदय में ले जाते हैं।” उस स्त्री को याद कीजिये, जिसने अपने आँसुओं से येशु के चरणों को धोया, जटामांसी के बहुमूल्य इत्र से उन चरणों का विलेपन किया, और अपने केशों से उनके चरण पोंछे। उस स्त्री का दर्द वास्तविक है, लेकिन असीम रूप से प्यार किए जाने का उसका अनुभव भी ऐसा ही वास्तविकं है।

हमारे आंसू हमें याद दिलाते हैं कि अपनी तीर्थयात्रा के मार्ग में हमारे साथ चलने के लिए हमें ईश्वर और दूसरों की जरूरत है। जीवन की परिस्थितियाँ हमें रुला सकती हैं, लेकिन कभी-कभी वे आँसू हमारे भविष्य की खुशियों के बीजों को सींच सकते हैं। चार्ल्स डिकेंस ने हमें याद दिलाया कि ‘हमें अपने आँसुओं पर कभी शर्म नहीं करनी चाहिए, क्योंकि वे हमारे कठोर हृदयों पर हावी होकर हमें अंधा करनेवाली धरती की धूल पर बरस रहे हैं।’ कभी-कभी, ईश्वर तक पहुँचने के लिए, मृत्यु से जीवन तक पहुँचने केलिए, क्रूसारोहण से पुनरुत्थान तक पहुँचने के लिए आँसू ही एकमात्र सेतु होते हैं। पुनरुत्थान के दिन जब येशु का सामना मरियम मगदलेना से हुआ, तो येशु ने पूछा, “भद्रे, आप क्यों रोती हैं?” लेकिन वह जल्द ही उसके आँसुओं को पास्का खुशी के विस्फोट में बदल देते हैं,  जैसे वह उसे पुनरुत्थान की पहली संदेशवाहक बनाते हैं।

जैसा कि हम अपनी तीर्थ यात्रा जारी रखते हैं, कई बार क्रूस की मूर्खता को समझने के लिए संघर्ष करते हैं, हम उन बातों के लिए रोयें जिनके लिए येशु रोते हैं – युद्ध, बीमारी, गरीबी, अन्याय, आतंकवाद, हिंसा, घृणा, कुछ भी जो हमारे भाइयों और बहनों को दुखी बनाते हैं। हम उनके साथ रोते हैं; हम उनके लिए रोते हैं। और जब सबसे अप्रत्याशित क्षणों में हमारे गालों पर आंसू बहते हैं, तब हम यह जानकर शांति से आराम करें कि हमारा परमेश्वर हर एक को कोमलता और सौम्यतापूर्ण परवाह के साथ संभालता है। वह हर आंसू को जानता है और वह जानता है कि उस आंसू के पीछे क्या कारण है। वह उन्हें इकट्ठा करता है और उन्हें अपने पुत्र के दिव्य आँसुओं के साथ मिलाता है। एक दिन, मसीह के साथ संयुक्त होकर, हमारे आंसू खुशी के आंसू बनेंगे!

 

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By: Sister M. Louise O’Rourke

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मार्च 23, 2023
Engage मार्च 23, 2023

जीवन में कभी-कभी छोटी-छोटी बातें हमें मूल्यवान सबक सिखा सकती हैं…

हाल ही में मेरी एक मित्र ने एक दिलचस्प कहानी सुनायी। वह और उसके पति गर्मी के दिनों में एक दिन दोपहर को गाड़ी चला रहे थे और उन्होंने एयर कंडीशनिंग को चालू करने का फैसला किया, जिसका उपयोग सर्दी के दिनों से लेकर अब तक कभी नहीं किया गया था। ए.सी. चालू की गयी और देखते ही देखते कार में भयानक दुर्गंध भर गई। यह बहुत बुरा था, मेरी दोस्त को उल्टी आने लगी। उसने अपने पति से कहा, ” इसे तुरन्त बंद करो! ऐसा लगता है कि इसके अन्दर कुछ मरा पड़ा है!” उसने ए.सी. बंद कर दिया और भयानक गंध को खत्म करने के लिए गाड़ी की खिड़कियां खोल दीं।

जब वे घर पहुंचे, तो उसके पति ने गाड़ी की जांच की। उसने एयर फिल्टर से शुरुआत की, और जैसा सोचा गया था उसने फ़िल्टर के अंदर एक मरा हुआ चूहा पाया। क्योंकि कड़ाके की ठंड के दौरान चूहा मर गया था, वसंत के आने तक कोई दुर्गंध नहीं थी। मेरे दोस्त के पति ने चूहे और उसके घोंसले को हटा दिया और ए.सी. को तब तक चालू रखा जब तक कि दुर्गंध दूर नहीं हुई।

परमेश्वर के बोलने के तरीके

इस तरह की घटनाएं मुझे दृष्टान्तों के बारे में सोचने पर मजबूर कर देती है। सुसमाचारों में, येशु अपने और पिता के बारे में सच्चाइयों को प्रकट करने के लिए, तथा जीवन कैसे जीना है यह सिखाने केलिए, अक्सर रोज़मर्रा के जीवन के उदाहरणों का इस्तेमाल करते थे। अय्यूब 33:14 कहता है, “परमेश्‍वर कभी एक रीति से, कभी दूसरी रीति से बारंबार बोलता है, किन्तु कोई उसकी बात पर ध्यान नहीं देता।” मैं एक ऐसी व्यक्ति बनने का प्रयास करती हूँ जो प्रभु पर ध्यान देती है, इसलिए मैं यह पूछने की आदत बना लेती हूँ, “हे प्रभु, क्या तू इसके माध्यम से मुझे कुछ सिखाने की कोशिश कर रहा है? यहाँ मेरे लिए क्या संदेश है?”

जैसा कि मैंने अपने दोस्तों की कार में छिपे कृंतक और उसके कारण होने वाली बदबू पर विचार किया, मैंने सोचा कि कैसे हमारे जीवन में कुछ बातें छिपी रहती हैं और फिर अचानक सामने आ जाती हैं और अप्रत्याशित परेशानी का कारण बनती हैं। क्षमा की कमी या आक्रोश इसके अच्छे उदाहरण हैं। ये भावनाएँ, सड़ने वाले कृंतक की तरह, अक्सर हमारे ध्यान दिए बिना हमारे अंदर निष्क्रिय रहती हैं। फिर एक दिन एक भावनात्मक बटन दब जाता है, और बदबू आने लगती है। नाराजगी, क्षमा की कमी, प्रतिशोध की भावना या अन्य नकारात्मक भावनाओं को मन में रखने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। वे हमारे दिमाग, हमारे दिल और हमारे रिश्तों में कहर बरपाते हैं और बड़ी त्रासदी का कारण बन जाते हैं। जब तक हम स्रोत से नहीं निपटेंगे, वे बहुत नुकसान करेंगे। 

अंदर क्या है?

तो, हम कैसे पता लगा सकते हैं कि हमारे दिल में छिपे हुए, कोई बदबूदार “कृंतक” हैं या नहीं? लोयोला के संत इग्नेशियस की एक उत्कृष्ट विधि है: वे सलाह देते हैं कि हम अपनी आत्माओं की आंतरिक हलचलों पर ध्यान दें, यह एक ऐसी विधि है जिसे वे “आत्माओं की पहचान” कहते हैं। अपने आप से पूछें, “मुझे उत्तेजित या परेशान करने वाला तत्व (आत्मा) क्या है? मुझे आनंद, शांति और संतोष से भरनेवाले तत्व (आत्माएं) क्या हैं?” अपने जीवन में “आत्माओं” को पहचानने के लिए हमें पहले यह स्वीकार करना चाहिए कि हमारे जीवन में आत्माएँ हैं – अच्छी और बुरी। हमारे पास सहायक और दुश्मन दोनों हैं। हमारा सहायक और सलाहकार, पवित्र आत्मा हमें पूर्णता और शांति के लिए प्रेरित और मार्गदर्शन करता है। हमारे प्राणों का शत्रु, दोष लगाने वाला, झूठा और चोर वह शैतान जो है जो “केवल चुराने, मारने और नष्ट करने आता है” (योहन 10:10)।

संत इग्नेशियस की सलाह है कि हम हर दिन शांत होकर मनन चिंतन में समय बिताएं ताकि यह पता चल सके कि हमारे अंदर क्या चल रहा है। मनन चिंतन करने और जीवन का आंकलन करने में आपकी मदद करने के लिए प्रभु को आमंत्रित करें। “क्या मैं चिंतित हूँ, शांत हूँ, खुश हूँ, अस्वस्थ हूँ? मेरे अन्दर के हलचल का क्या कारण है? क्या मुझे सुधार के कुछ कदम उठाने की आवश्यकता है … क्या किसी को क्षमा करने की ज़रुरत है… ? किसी बात के लिए क्या मैं पश्चाताप करूँ और पाप स्वीकार के लिए जाऊँ? क्या मुझे शिकायत करना बंद करने और अधिक आभारी होने की ज़रूरत है?” परमेश्वर की सहायता से, हृदय की इन आंतरिक हलचलों और गतिविधियों पर ध्यान देने से, हमें समस्या वाले क्षेत्रों की पहचान करने में मदद मिलेगी जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है, ताकि वे भविष्य में हमें अंधा न कर सकें।

मेरे दोस्तों ने “कुछ बदबू पैदा कर रहा है” इस सत्य को महसूस करने के बाद ही कार्रवाई की। और शीघ्र ही उस समस्या से निपटने से, वे गर्मियों के बाकी दिनों में अपनी कार में स्वच्छ और ठंडी हवा का आनंद लेने में सक्षम थे। यदि हम प्रत्येक दिन प्रभु के साथ शांत होकर समय बिताते हैं और उससे यह प्रकट करने के लिए कहते हैं कि हमारी आत्माओं में क्या “बंद” है, तो वह हमें दिखाएगा और हमें सिखाएगा कि इस समस्या से कैसे निपटना है। तब पवित्र आत्मा की ताज़ी हवा हमारे अन्दर प्रवाहित हो सकती है और हमारे जीवन और संबंधों में आनंद और स्वतंत्रता ला सकती है।

 

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By: एलेन होगार्टी

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मार्च 23, 2023
Engage मार्च 23, 2023

प्रश्न – कैथलिक लोग क्रूस का चिन्ह क्यों बनाते हैं? इसके पीछे क्या प्रतीकवाद है?

उत्तर – कैथलिक होने के नाते, हम प्रत्येक दिन कई बार क्रूस के चिन्ह की प्रार्थना करते हैं। हम यह प्रार्थना क्यों करते हैं, और इन सब के पीछे मतलब क्या है?

सबसे पहले, विचार करें कि हम क्रूस का चिन्ह कैसे बनाते हैं। पश्चिम की कलीसिया में, लोग एक खुले हाथ का उपयोग करते हैं – जिसका उपयोग आशीर्वाद देने में किया जाता है (इसलिए हम कहते हैं कि हम “स्वयं को आशीर्वाद देते हैं”)। पूर्व में, वे पवित्र त्रीत्व (पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा) के संकेत के रूप में तीन अंगुलियों को एक साथ रखते हैं, जबकि अन्य दो उंगलियां भी मसीह की दिव्यता और मानवता के संकेत के रूप में एक हो होती हैं।

हम जो शब्द कहते हैं उसके द्वारा हम त्रीत्व के रहस्य को स्वीकार करते हैं। ध्यान दें कि हम कहते हैं, “पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम पर…” सिर्फ “पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा के नामों पर” नहीं, – परमेश्वर एक है, इसलिए हम कहते हैं कि उसका केवल एक ही नाम है – और फिर हम पवित्र त्रीत्व के तीन व्यक्तियों के नाम लेते हैं। हर बार जब हम प्रार्थना शुरू करते हैं, तो हम पहचानते हैं कि हमारे विश्वास का सार यह है कि हम एक ऐसे ईश्वर में विश्वास करते हैं जो तीन होते हुए भी एक है: एकता और त्रीत्व दोनों।

जैसा कि हम अपने विश्वास का अंगीकार और घोषणा करते हैं, हम स्वयं पर क्रूस के चिह्न से मुहरबंद करते हैं। आप सार्वजनिक रूप से अपने ऊपर चिह्न लगा रहे हैं कि आप कौन हैं और आप किसके हैं या किससे संबंधित हैं! यदि आप चाहें तो क्रूस हमारी छुड़ाई की रकम है, हमारा “मूल्य-चिह्न” है, इसलिए हम स्वयं को याद दिलाते हैं कि हम क्रूस द्वारा खरीदे गए हैं। इसलिए जब शैतान हमें लुभाने आता है, तो हम उसे यह दिखाने के लिए क्रूस का चिन्ह बनाते हैं कि हम पर पहले से ही निशान लगा हुआ है!

एज़किएल की पुस्तक में एक अद्भुत कहानी है, जहाँ एक स्वर्गदूत एज़किएल के पास आता है और उसे बताता है कि परमेश्वर पूरे इस्राएल को उसकी बेवफाई के लिए दंडित करने जा रहा है – लेकिन अभी भी यरूशलेम में कुछ अच्छे लोग बचे हैं, इसलिए स्वर्गदूत घूमता है और उन लोगों के माथे पर निशान लगा देता है जो अभी भी परमेश्वर के प्रति विश्वासयोग्य हैं। वह जो चिह्न बनाता है वह “ताऊ” है – इब्रानी वर्णमाला का अंतिम अक्षर, और इसे एक क्रूस की तरह खींचा जाता है! परमेश्वर उन पर दया करता है जिन पर ताऊ चिन्हित है, और जिन पर यह चिन्ह नहीं है, उन्हें वह मार डालता है।

उसी तरह, हममें से जो क्रूस के साथ अंकित हैं, परमेश्वर के न्याय के दिन उनके दंड से सुरक्षित रहेंगे, और बदले में उनकी दया प्राप्त करेंगे। प्राचीन मिस्र में, परमेश्वर ने इस्राएलियों से फसह के पर्व पर मेमने के लहू को अपने दरवाजे पर लगाने को कहा था, ताकि वे मृत्यु के दूत से बचाए जा सकें। अब, हमारे शरीर पर क्रूस के द्वारा अंकित होकर, हम मेमने के लहू का आह्वान करते हैं, ताकि हम मृत्यु की शक्ति से बच जाएं!

परन्तु हम क्रूस के चिन्ह को कहाँ अंकित करें? हम इसे अपने माथे, अपने दिल और अपने कंधों पर लगाते हैं। क्यों? क्योंकि हमें इस पृथ्वी पर परमेश्वर को जानने, प्रेम करने और उसकी सेवा करने के लिए रखा गया है, इसलिए हम मसीह को हमारे मनों, हमारे हृदयों (हमारी इच्छा और प्रेम) और हमारे कार्यों का राजा बनने के लिए आग्रह करते हैं। हमारे जीवन के हर पहलू को क्रूस के चिन्ह के अधीन रखा गया है, ताकि हम उसे जान सकें, उससे प्रेम कर सकें और उसकी सेवा कर सकें।

क्रूस का चिन्ह एक अविश्वसनीय रूप से शक्तिशाली प्रार्थना है। अक्सर इसे प्रार्थना की प्रस्तावना के रूप में प्रयोग किया जाता है, लेकिन इसमें अपने आप में अपार शक्ति होती है। प्रारंभिक कलीसिया के उत्पीड़न के दौरान, कुछ मूर्तीपूजकों ने प्रेरित संत योहन को मारने की कोशिश की क्योंकि उनका उपदेश कई लोगों को देवी-देवताओं से दूर कर ख्रीस्तीय धर्म अपनाने के लिए प्रेरित कर रहा था। मूर्तिपूजकों ने योहन को रात के भोजन के लिए आमंत्रित किया और उसके प्याले में जहर मिला दिया। परन्तु भोजन आरम्भ करने से पहले, योहन ने अनुग्रह की प्रार्थना की और अपने प्याले के ऊपर क्रूस का चिन्ह बनाया। तुरन्त एक साँप प्याले से बाहर रेंगता हुआ निकला, और योहन किसी तरह की हनी के बिना सकुशल बच निकलने में सफल रहा।

संत जॉन वियानी के शब्दों पर ध्यान दें: “क्रूस का चिह्न शैतान के खिलाफ सबसे भयानक हथियार है। इस प्रकार, कलीसिया न केवल यह चाहती है कि क्रूस का चिन्ह हमारे पास और हमारे दिमाग के सामने लगातार  रहे, हमें यह याद दिलाने के लिए कि हमारी आत्मा का मूल्य क्या है और येशु मसीह के लिए इसका मूल्य क्या है, लेकिन यह भी कि हमें हर मोड़ पर क्रूस का चिन्ह खुद बनाना चाहिए: जब हम सोने के लिए जाते हैं, जब हम रात में जागते हैं, सुबह जब हम उठते हैं, जब हम कोई काम शुरू करते हैं, और सबसे बढ़कर, जब हम परीक्षा में पड़ते हैं,तब हमें  क्रूस का चिन्ह बनाना चाहिए।”

क्रूस का चिन्ह हमारे पास सबसे शक्तिशाली प्रार्थनाओं में से एक है – यह पवित्र त्रीत्व का आह्वान करता है, हमें क्रूस के रक्त से मुहरबंद करता है, शैतान को भगाता है, और हमें याद दिलाता है कि हम कौन हैं। आइए हम उस चिन्ह को भक्ति के साथ, श्रद्धा के साथ, सावधानी के साथ बनाएं, और हम इसे पूरे दिन में बार-बार बनाएं। हम कौन हैं और हम किसके हैं, इसका यह बाहरी संकेत है।

 

 

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By: फादर जोसेफ गिल

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मार्च 23, 2023
Engage मार्च 23, 2023

हम जानते हैं कि हम में से प्रत्येक के पास एक रखवाल दूत है। लेकिन हम कितनी बार उससे मदद माँगते हैं?

जब मुझे एक ईसाई लेखन सम्मेलन में तीन कार्यशालाएँ पढ़ाने के लिए जाना था, तब पहली बार मुझे एहसास हुआ कि मेरा रखवाल दूत मेरे लिए सबसे अच्छी उम्मीद थी। मेरे घर से कार्यशाला की जगह पहुंचने में कार से कई घंटे लगते थे। मैं एक भयानक माइग्रेन के साथ उठी और रोयी, क्योंकि मैं सोच रही थी कि मैं इतना दूर कैसे गाडी चला पाऊंगी। मैं अंतिम समय में रद्द करके अव्यवसायिक नहीं होना चाहती थी। मैं रोयी क्योंकि लंबे समय से मैं माइग्रेन के सिरदर्द से पीड़ित हूं – इस बीमारी के कारण मुझे शर्मिन्दा होना पड़ता है – क्योंकि हर महीने में लगभग आधा महीना यह बीमारी मुझे दुर्बल कर देती है- और मैं कितनी कमजोर थी, यह बात मैं स्वीकार नहीं करना चाहती थी। इसलिए, मैंने अपने रखवाल दूत से प्रार्थना की कि वह मुझे सुरक्षित रूप से उस स्थान तक पहुंचा दें और मुझे सकुशल वापस घर भी लाए।

मुझे अभी भी नहीं पता कि मैंने किस तरह इतनी लम्बी दूरी गाड़ी चलाई। मैंने गाड़ी चलाते समय, रोज़री माला की अपनी सीडी लगा दी और फिर योहन के सुसमाचार को सुना, यह सोचती हुई कि यदि मैं रास्ते में मर जाऊं तो कितना अच्छा और सुन्दर होगा कि येशु को अपने हृदय में रखती हुई मरूं। ऐसा नहीं है कि मैं मरना चाहती थी। मेरे बच्चे अभी छोटे थे। मेरे बिना मेरा पति परेशान रहेंगे। और जब से हमने कैथलिक धर्म को अपनाया था, तब से मैं अपने लेखन के जीवन को और भी अधिक प्यार कर रही थी। मैं चाहती थी कि जो येशु मेरे पास है वह सबके पास हो!

और अद्भुत रूप से दिमाग में ख्याल आया! एक आत्मप्रकाश की किरण ने मुझे प्रभावित किया – मेरे रखवाल  देवदूत सिर्फ मुझे शारीरिक नुकसान से बचाने के लिए यहां नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करने के लिए है कि मैं स्वर्ग जाऊं। स्वर्ग! हाँ वही जीवन का लक्ष्य है।

परमेश्वर हमसे इतना प्रेम करता है कि वह हमारे गर्भधारण के क्षण से ही एक स्वर्गदूत को नियुक्त करता है जो हमें सभी खतरों से बचाता है और हमें अपने अनंत घर की ओर रास्ता दिखाता है। यह जागरूकता, जो मेरे पास तब से है जब मैं एक छोटी बच्ची थी, अभी भी मुझे चकित करती है। एक बच्ची के रूप में, मुझे परमेश्वर की सुरक्षा पर पूरा भरोसा था। लेकिन मेरे जीवन में मौजूद इस बीमारी की दुख-पीड़ा की समस्या को एक सर्वशक्तिमान ईश्वर में विश्वास के साथ सामंजस्य बिठाना मुश्किल कार्य था। इसलिए, बारह साल की उम्र में मैंने अपना विश्वास खो दिया और अपने रखवाल दूत से बात करना छोड़ दिया। लेकिन, मेरी जानकारी के बिना, मेरा रखवाल दूत तभी भी मेरा मार्गदर्शन कर रहा था।

मैं अपने रखवाल दूत की बहुत आभारी हूँ कि जब मैं बीस और तीस के बीच की उम्र में थी, उस दौरान उसने मुझे मौत से बचाया, क्योंकि उन दिनों मेरी बुद्धि पाप से घिरी रहती थी, और ऐसी परिस्थिति में अगर मैं मौत के करीब आती तो शायद मैं ईश्वर की दया को अस्वीकार कर देती और नरक में चली जाती। यह ईश्वर की कृपा और लंबे समय तक बीमारी के कारण मैं रखवाल दूत की प्रेरणाओं को सुनने और ईश्वर के पास लौटने में सक्षम हूं, और जब मेरी योजना पटरी से उतरती है, तो मैं “मेरी इच्छा नहीं, बल्कि तेरी इच्छा पूरी हो जाए” यह प्रार्थना कर सकती हूं।

मैं पूर्ण विश्वास और समर्पण की उस बचपन की अवस्था में लौट रही हूं। अगर मुझे किसी बात की चिंता है, तो मैं अपने रखवाल दूत से स्थिति को संभालने के लिए कहती हूं। जब मैं अपना धैर्य खोने के कगार पर होती हूं तो मैं अपने बच्चों के रखवाल दूतों को बुलाती हूं। मैं उन सारे लोगों के रखवाल दूतों का भी आह्वान करती हूँ जिनके लिए मैं एक विश्वासयोग्य गवाह बनना चाहती हूँ। स्वर्गीय सहायता प्राप्त करना कितना सुखद है।

रखवाल दूत हमारी प्रार्थनाओं और भेंट को परमेश्वर के सिंहासन तक ले जाते है; वे हमारे साथ पवित्र मिस्सा बलिदान में आते हैं और यदि हम उपस्थित होने में असमर्थ हैं, जैसा कि महामारी के दौरान कई लोगों के लिए था, तो हम अपने स्थान पर हमारे रखवाल दूत को भेजकर हमारे धन्य प्रभु की स्तुति और पूजा करने के लिए कह सकते हैं।

ये स्वर्गीय प्राणी हमारे लिए एक उपहार हैं। आइए हम हमेशा याद रखें कि वे हम पर नज़र रखे हुए हैं और चाहते हैं कि हम स्वर्ग पहुँच जाएँ! अपने रखवाल दूत के साथ एक रिश्ता बनाएं। वे हम में से प्रत्येक के लिए ईश्वर  का उपहार हैं।

हर वक्त मेरी तरफ रहनेवाले मेरे प्रिय रखवाल दूत!

मेरे जैसे दोषी नीच की रक्षा के लिए

स्वर्ग का तेरा घर छोड़ने वाला

तू कितना प्यारा होगा ।

~फादर फ्रेडरिक विलियम फेबर (1814-1863 ई.)

 

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By: Vijaya Bodach

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मार्च 23, 2023
Engage मार्च 23, 2023

क्या आप अपने ह्रदय में ईश्वर के प्रेम को गहराई से महसूस करने के लिए तरस रहे हैं ? इसके लिए आपको बस प्रभु से मांगने की जरुरत है

मैंने अपने बेटे के ट्रक को घर के आंगन में रुकते हुए सुना। अपने आंसुओं को रोकते हुए मैंने अपने पल्लू से अपना चेहरा पोंछा लिया और उससे मिलने के लिए गैराज की ओर चल पड़ी।

उसने मुस्कुराते हुए कहा, “अरे माँ, तुम”।

“मेरा प्यारा बच्चा, आज इतनी सुबह कैसे आना हुआ?” मैंने पूछा।

“पापा ने कहा कि मेरे लिए कोई पार्सल है, इसलिए सोचा कि ऑफिस जाने से पहले उसे ले लूँ।“ उसने यही जवाब दिया!

मैंने कहा, “ठीक है बेटा!”

उसने अपना पार्सल उठा लिया, और मैं उसके पीछे-पीछे उसके ट्रक की ओर बढ़ने लगी।

उसने मुझे अपने गले से लगा लिया, और पूछा “माँ तुम ठीक तो हो ना?”

“मैं बिल्कुल ठीक हूँ”, रूंधते हुए स्वर में मैंने जवाब दिया। अपने आंसुओं को छिपाने के लिए मैंने अपना मुँह फेर लिया।

“वह अपने मुश्किल दौर से गुजर रही है। वह बिल्कुल ठीक हो जाएगी”, उसने धीमे स्वर से अपनी बहन के बारे में बताया।

“हाँ, मुझे पता है, लेकिन यह दौर उसके लिए कठिन है। उसके ऊपर दुःखों का पहाड़ है। मेरे लिए उसका दुःख सहना बहुत कठिन है। पता नहीं क्यों, मेरे बचपन से ही मैंने अपने आप को, जो जीवन की उदासी से जूझ रहे हैं, उन लोगों के बीच घिरी हुई पायी हूँ। क्या मेरे भाग्य में यही है?

उसने प्रश्नभरी दृष्टि से मेरी ओर देखा।

मैंने अपनी बातों को जारी रखते हुए कहा, “शायद मुझे इस परिस्थिति में कुछ ढूंढने की ज़रूरत है।“

“शायद  आप का कहना सही है। इसलिए यदि आपको मेरी ज़रूरत है तो मैं यहाँ हूँ माँ”, उसने कहा।

वे डरावनी यादें

मेरे मनोचिकित्सक ने कहा: “पारिवारिक जीवन में अवसाद का होना स्वाभाविक है। आप और आपकी बेटी एक दूसरे को बहुत चाहते हैं, पर कभी-कभी उस रिश्ते में उलझन पैदा हो जाता है। मेरे कहने का तात्पर्य है कि रिश्तों में कुछ सीमा या परिधि भी होनी चाहिए, विकास, स्वालंबन और आज़ादी के लिए एक स्वस्थ दूरी चाहिए।

“मुझे ऐसा लगता है कि मैंने बदलाव करने के लिए बहुत मेहनत की है, लेकिन ईमानदारी से कहूं तो मैं उसका दुख बर्दाश्त नहीं कर सकती” मैंने जवाब दिया। “और छोटी चीजें इतनी बड़ी लगती हैं। ईस्टर की शाम की तरह। रात के भोजन के बाद, मेरी बेटी ने पूछा कि क्या वह अपने प्रेमी से मिलने जा सकती है। जैसा कि मैंने उसे ड्राइव वे से बाहर निकलते हुए देखा, मेरे ऊपर भय और घबराहट की लहर दौड़ गई। मुझे पता है कि उसके जाने का मुझसे कोई मतलब नहीं था, लेकिन मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई,” मैंने कहा।

“क्या आप याद कर सकती हैं कब आपने पहली बार उस प्रकार की घबराहट और भय महसूस किया था?” चिकित्सक ने पूछा।

मैंने उस कठिन स्मृति को साझा करना शुरू किया जो तुरंत सामने आ गई।

“हम सब मेरे माता पिता के बेडरूम में थे,” मैंने कहा। “पिताजी नाराज थे। माँ बिलकुल टूट चुकी थी। वह मेरे छोटे भाई को गोद में ली हुई थी और मेरे पिता को शांत करने की कोशिश कर रही थी, लेकिन पिताजी बहुत पागल की तरह हो गए थे। हम अपने घर को बेचने और एक नए घर में जाने की तैयारी में थे। “घर जर्जर अवस्था में है” ऐसा कहकर पिताजी बड़े गुस्से में थे।

“आप कितने साल की थी?”

“लगभग सात साल की,” मैंने कहा।

“चलिए, आपकी याद में उस कमरे में वापस चलते हैं और कुछ काम करते हैं,” उसने कहा।

जैसा कि हमने उस स्मृति की समीक्षा की, मुझे पता चला कि मैंने अपने माता-पिता और भाई-बहनों की भावनाओं पर ध्यान केंद्रित किया था, लेकिन मेरी अपनी भावनाओं पर नहीं। अंत में मैं जो महसूस कर रही थी, उसी भावना के साथ कुछ देर समय बिताया, मेरे दुःख का बाँध  फूट कर बहने लगा। मुझे अपना रोना बंद करना कठिन था; बस इतना अधिक दु:ख था।

मुझे लगता था कि सबकी खुशी मेरी जिम्मेदारी है। जब मेरे चिकित्सक ने पूछा कि मुझे उस अनुभव में सुरक्षित महसूस करने और मेरी देखभाल करने में क्या मदद मिली होगी, तो मुझे एहसास हुआ कि मुझे किस बात की ज़रूरत थी, लेकिन मुझे वह प्राप्त नहीं हुआ था। मैंने अपने अंदर के घायल सात साल की बच्ची की जिम्मेदारी ली। भले ही उसे वह नहीं मिला जिसकी उसे तब जरूरत थी, मैं अपने वयस्क स्थिति में उन जरूरतों को पूरा कर सकती थी और इस झूठ को दूर कर सकती थी कि दूसरों को खुश करने की जिम्मेदारी मेरी थी।

चंगाई का वह अनुभव

जब हम ने वह सत्र समाप्त कर लिया, मेरे चिकित्सक ने कहा, “मुझे पता है कि यह मुश्किल था। लेकिन मैं आपको आश्वस्त कर सकता हूं कि इसका आपको फ़ायदा होगा। मैंने कई माता-पिता को अपने बच्चों के संघर्षों से ठीक होते देखा है।”

मेरे सत्र के कुछ ही समय बाद, मेरे मित्र ऐनी ने अप्रत्याशित रूप से फोन किया।

“क्या आप आज चंगाई की मिस्सा पूजा में मुझसे मिलना चाहेंगी,” उसने पूछा।

“ज़रूर,” मैंने कहा।

मिस्सा के बाद, चंगाई प्रार्थना करने वाले लोगों की एक पंक्ति बन गई। मैंने इंतजार किया और जल्द ही दो महिला आध्यात्मिक निर्देशकों की ओर जाने के लिए मुझे बताया गया।

“आप येशु से क्या माँगना चाहेंगी?”

“मेरे बचपन के घावों को ठीक करने के लिए,” मैंने कहा।

वे चुपचाप मेरे लिए प्रार्थना करने लगी।

फिर उनमें से एक महिला ने जोर से प्रार्थना की,

“येशु, इसके बचपन के घावों को चंगा कर। वह सिर्फ एक छोटी लड़की थी जो उस क्रोध, भ्रम और अराजकता के बीच में खड़ी थी, अकेली महसूस कर रही थी और राहत के लिए बेताब थी। येशु, हम जानते हैं कि वह अकेली नहीं थी। हम जानते हैं कि तू उसके साथ था। और हम जानते हैं कि तू जीवन भर हमेशा उसके साथ रहा है। उसकी चंगाई और उसके परिवार की चंगाई के लिए येशु, धन्यवाद।”

मेरे मन की आँखों में मैंने येशु को अपने बगल में खड़ा देखा। उसने मुझे प्यार और करुणा के साथ गौर से देखा। मैं समझ गयी कि मेरे माता-पिता और भाई-बहनों के दुःख और दर्द को उठाने का काम कभी भी मेरा नहीं था, और यह कि येशु हमेशा मेरे दुख और दर्द का भार साझा करने के लिए मेरे साथ था। उसने ठीक उसी क्षण की व्यवस्था की थी जब मेरे दिल में छिपे हुए स्थान उसकी चंगाई के प्रेम और दया से भर जाएंगे।

चुपचाप, मैं रोयी।

मैं विस्मित होकर वहां से चली गयी। जो मैंने बहुत पहले अनुभव किया था उसी अनुभव को उस महिला की प्रार्थना ने पूरी तरह से वर्णन किया। येशु के साथ यह अंतरंग मुलाकात अविश्वसनीय रूप से चंगाई देने वाली थी।

प्रार्थना का उत्तर

मुझे जल्द ही एहसास हुआ कि दूसरों को ऊपर उठाने और उनकी जरूरतों को पूरा करने की मेरी इच्छा आंशिक रूप से मेरी खुद की जरूरतों को पूरा करने और ठीक होने की अवचेतन इच्छा थी। जबकि मैं दूसरे लोगों के दुखों का भार उठा रही थी, मुझे नहीं पता था कि मैं अपने अन्दर दर्द के सागर ले चल रही थी जिसे मैंने कभी व्यक्त नहीं किया था।

हाल ही में, मेरी बेटी ने मुझे बताया कि वह अपनी उदासी के लिए ग्लानी महसूस करती है और उसे लगता है कि वह मेरे लिए बोझ है। मुझे यह बात भयानक लगी। वह ऐसा कैसे महसूस कर सकती है? लेकिन तब मैं समझ गयी। मेरे लिए वह बोझ नहीं थी, लेकिन उसकी उदासी बोझ थी। मैंने उसे बेहतर बनाने का दबाव अपने अन्दर महसूस किया था ताकि मैं स्वयं बेहतर महसूस कर सकूं। और इस वजह से वह ग्लानी महसूस कर रही थी।

मेरी चंगाई से मुझे राहत मिली है। येशु मेरी बेटी के साथ है, उसे चंगाई दे रहा है, इस जानकारी के आधार पर मुझे जैसी वह है वैसे ही उससे प्यार करने के लिए स्वतंत्रता मिलती है।

ईश्वर की कृपा से, मैं उस सुंदर जीवन की जिम्मेदारी लेती रहूंगी जिसे ईश्वर ने मुझे दिया है। मैं उसे मेरी चंगाई जारी रखने की अनुमति दूँगी ताकि मैं परमेश्वर के प्रेम के प्रवाहित होने के लिए एक खुला पात्र बन सकूँ।

मैंने एक बार एक बुद्धिमान परामर्शदाता से पूछा,

“मुझे पता है कि येशु हमेशा मेरे साथ है और मैं अपनी देखभाल करने के लिए उसकी भलाई पर भरोसा कर सकती हूं, लेकिन क्या मैं कभी इसे अपने दिल में महसूस कर पाऊंगी?”

“हाँ, आप करेंगी,” उन्होंने कहा। “वह इसे ऐसा कर देगा।”

आमेन। सो ऐसा ही है।

 

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By: Rosanne Pappas

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मार्च 23, 2023
Engage मार्च 23, 2023

क्या आप जीवन के बोझ से परेशान हैं? आप राहत की सांस कैसे ले सकते हैं, इसे जानिए…

मेरी शादी के कई सालों बाद तक, मैंने एक ऐसे जीवनसाथी के साथ शादी करने का बोझ ढोया, जो अविश्वासी था। माता-पिता के रूप में, हममें से कई लोग अपने बच्चों और परिवार के सदस्यों का बोझ उठाते हैं। लेकिन मैं आपसे कहूंगी, ईश्वर की योजना पर भरोसा रखें, उसके दिव्य विधान की पूर्ती के लिए उसके सही समय पर भरोसा करें। स्तोत्र ग्रन्थ 68:18-20 कहता है, “धन्य है प्रभु, हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर, जो प्रति दिन हमारा बोझ उठाता है।” हमें अपने बोझ के साथ क्या करना चाहिए?

सबसे पहले ज़रूरी है कि निराशा न हो। जब हम निरुत्साहित होते हैं, तो यह कभी भी प्रभु की इच्छा के अनुरूप नहीं होता। हम जानते हैं कि बाइबिल हमें मत्ती 6:34 में कहती है, “कल की चिन्ता मत करो, क्योंकि कल अपनी चिन्ता स्वयं कर लेगा।” बाइबिल यह भी कहती है, “आज की मुसीबत आज के लिए बहुत है।” जब हम शांत होते हैं, तो यह ईश्वर की इच्छानुसार होता है, लेकिन जब हम चिंतित रहते हैं, तो यह शैतान की तरफ से होती है। स्वर्ग में कोई चिंता नहीं है, केवल प्रेम, आनंद और शांति है।

मेरे प्यारे पति फ्रेडी को अपने जीवन के अंतिम साढ़े आठ वर्षों में अल्जाइमर रोग हो गया था। अल्जाइमर से पीड़ित पति के साथ रहने के दौरान, मैंने पाया कि मेरे जीवन में प्रभु की कृपा अद्भुत थी। प्रभु ने मुझे पति की बीमारी का बोझ अपने ऊपर न उठाने का अनुग्रह दिया। यह बोझ मुझे नष्ट कर सकता था। मैंने अपने आप को उस स्थिति में पाया जहाँ मुझे प्रार्थना करनी थी और लगातार सब कुछ प्रभु को देना था, पल-पल के आधार पर। जब आप किसी ऐसे व्यक्ति के साथ रहते हैं जिसे अल्ज़ाइमर है, तो जीवन लगातार बदलता है। हर सुबह जब मैं उठती हूँ, मैं बाइबिल के पास जाती हूँ। मैं इसे अपने दिन का पहले फल के रूप में बदल देती हूं। मैं जानती हूं कि मेरे येशु ने हमारे लिए क्रूस पर मरकर पहले ही हमारे हर एक बोझ को अपने ऊपर उठा लिया है। उसने हम में से प्रत्येक के लिए कीमत चुकाई है और वह प्रतीक्षा करता है कि हम में से प्रत्येक उन आशीषों को हथिया ले जो उन्होंने क्रूस पर अपनी मृत्यु के द्वारा हमारे लिए खरीदी हैं।

मुझे सम्भालने वाली प्रतिज्ञाएँ  

उस सीजन में मैंने कई सबक सीखे। मैंने सीखा कि कभी-कभी परमेश्वर हमारी परिस्थितियों को बदलना नहीं चाहता, लेकिन जिन परिस्थितियों से हम गुजर रहे हैं, उनके द्वारा परमेश्वर हमारे ह्रदय को बदलना चाहता है। ठीक ऐसा ही मेरे साथ हुआ। मैंने प्रतिज्ञात देश से और पहाड़ की चोटियों से ज़्यादा जीवन की घाटियों में सीख ली। जब आप चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों का सामना करते हैं, तो आप या तो तैरना सीखते हैं या नीचे डूब जाते हैं। आप सीखते हैं कि जहां कोई रास्ता नहीं है वहां ईश्वर कोई रास्ता खोज लेता है। मैं प्रभु से निरन्तर विनती किया करती थी, “मुझे अनुग्रह दे कि मैं पौलुस के समान हर परिस्थिति में सन्तुष्ट रहूँ।” फिलिप्पियों को लिखे पत्र में, पौलुस लिखते हैं कि उन्होंने परिस्थितियों की परवाह किए बिना संतुष्ट रहना सीख लिया है। उनका यह भी कथन है, “जो मुझे बल प्रदान करता है, उनकी सहायता से मैं सब कुछ कर सकता हूं।” हमें यह जानना होगा कि हमें आगे बढ़ाने वाली शक्ति प्रभु की शक्ति है न कि हमारी शक्ति। हमें प्रभु पर भरोसा रखना है और हमें अपनी समझ पर निर्भर नहीं रहना है। हमें अपना बोझ उस पर डाल देना चाहिए और हमें संभालने की अनुमति हम उसे दे।

जब हम चिंता में डूबने लगते हैं, तो हमारा सफ़र नीचे की ओर होता है। वहीं हमें प्रभु के पास आने और उन्हें अपना बोझ सौंपने की जरूरत है। “थके मांदे और बोझ से दबे हुए लोगो, तुम सभी मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा। मेरा जूआ अपने ऊपर ले लो और मुझ से सीखो। मैं स्वभाव से नम्र और विनीत हूं। इस तरह तुम अपनी आत्मा में शांति पाओगे” (मत्ती 11:28,29)। यह एक शानदार पवित्र वचन है जिसके बल पर मुझे साढ़े आठ वर्षों में ज़िन्दगी के कठिन डगर पर चलने की ताकत मिली है। यह एक प्रतिज्ञा है! इसलिए, विश्वास में हम में से प्रत्येक को अपने लिए और अपने प्रियजनों के लिए अपनी चिंताओं और आशंकाओं का पूरा भार प्रभु पर डालने के लिए तैयार रहना होगा।

मिशन संभव!

अभी कुछ समय निकालकर जिन सभी लोगों को आप अपने हृदय में लिए हुए हैं, उन्हें प्रभु को दें। चाहे वह आपका जीवनसाथी हो, आपके बच्चे हो, या कोई और जो भटक ​​गया हो या विद्रोही हो। अब विश्वास की एक छलांग लें और इन सबको प्रभु को दे दें क्योंकि प्रभु आपकी परवाह करता है। आपकी आत्मा के शत्रु ने जहां आपकी शांति को लूट लिया है उन सभी बातों को भी प्रभु को दे दे।

मेरा पति येशु के बारे में जानें, इस केलिए मुझे अट्ठाईस साल का लंबा इंतजार करना पड़ा। मैं उसे हर समय प्रभु को समर्पित करती थी। मैं प्रभु से कहा करती थी कि वह एक ‘गवाही बनेगा’ और मैंने कभी हार नहीं मानी। परमेश्वर ने उसे परिवर्तित किया और एक स्वप्न के द्वारा उसकी आत्मा को चंगा किया। परमेश्वर का समय हमारे समय से बिलकुल भिन्न है। लूकस 15:7 कहता है, “निन्यानबे धर्मियों की अपेक्षा, जिन्हें पश्चाताप की आवश्यकता नहीं है, एक पश्चातापी पापी केलिए स्वर्ग में अधिक आनन्द मनाया जाएगा।” मैं आपको बता सकती हूँ, मेरे फ्रेडी के मनपरिवर्तन पर स्वर्ग में एक बड़ी पार्टी ज़रूर रही होगी! प्रभु ने मुझे दिखाया कि फ्रेडी का मन परिवर्तन मेरे महान मिशनों में से एक था।

आपका महान मिशन कौन है? क्या आपका मिशन आपका पति, आपकी पत्नी, बेटा या बेटी है? प्रभु से कहें कि वह उन्हें छू लें और प्रभु उनके लिए आपकी प्रार्थनाओं को स्वीकार करेंगे।

 देर नहीं हुई, अब भी अवसर है

मेरा फ्रेडी 14 मई, 2017 को प्रभु की महिमा के घर चले गए। मुझे पता है कि वह अब वहां है, और वह मुझे देख रहा है। लूकस 5:32 में येशु कहते हैं, “मैं धर्मियों को नहीं, पापियों को पश्चाताप के लिए बुलाने आया हूं।” इसलिए, परमेश्वर की दया पापियों के लिए है, इसलिए हम सब उसके अनुग्रह से बचाए गए हैं।

इसायास 65:1 में परमेश्वर कहता है, “मैं ने उन लोगों पर अपने को प्रकट किया जो मुझ से परामर्श नहीं लेते थे। जो लोग मेरी खोज नहीं करते थे, मैं उन्हें मिला। जो राष्ट्र मेरा नाम  नहीं लेता, मैं ने उससे कहा, “देखो मैं प्रस्तुत हूँ”।

संत फौस्तीना की डायरी में मरने वालों के प्रति ईश्वर की दया के बारे में हम पढ़ते हैं: “मैं अक्सर मरने वालों का ख्याल करती हूँ और विनती के माध्यम से उनके लिए ईश्वर की दया में विश्वास प्राप्त करती हूं, और ईश्वर से हमेशा विजयी रहनेवाली ईश्वरीय कृपा की प्रचुरता के लिए विनती करती हूं। परमेश्वर की दया कभी-कभी पापी को अंतिम क्षण में अद्भुत और रहस्यमय तरीके से स्पर्श कर लेती है। बाहर से देखने पर ऐसा लगता है जैसे सब कुछ समाप्त हो गया हो, लेकिन ऐसा नहीं है। ईश्वर की शक्तिशाली अंतिम कृपा की एक किरण से प्रकाशित आत्मा, अंतिम क्षण में प्रेम की ऐसी शक्ति के साथ ईश्वर की ओर मुड़ती है कि एक पल में, वह ईश्वर से पापों से क्षमा और दंड से छुटकारा प्राप्त कर लेती है, जबकि बाहरी रूप से यह किसी पश्चाताप या पछतावा का संकेत नहीं दिखाती है, क्योंकि आत्माएं [उस अवस्था में] अब बाहरी बातों पर प्रतिक्रिया नहीं करती हैं। ओह, ईश्वर की दया हमारी समझ से कितने परे है! (पैराग्राफ 1698)

आइए प्रार्थना करें: प्रभु हम तेरे अनुग्रह के सिंहासन कक्ष में आते हैं जहां आवश्यकता के समय हमें तेरे अनुग्रह प्राप्त हो जायेंगे। जिन्हें हम अपने दिलों में संजोकर रखते हैं उन्हें हम तेरे सम्मुख लाते हैं। उन्हें पश्चाताप और परिवर्तन का अनुग्रह प्रदान कर। आमेन।

 

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By: Ros Powell

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मार्च 23, 2023
Engage मार्च 23, 2023

हममें से प्रत्येक के अन्दर अपनी अपनी कमजोरियां हैं; हम इन कमजोरियों से संघर्ष करते हैं। लेकिन पवित्र आत्मा हमारा सहायक है!

आशा आपको आनन्दित बनाए रखे। आप संकट में धैर्य रखें तथा प्रार्थना में लगे रहें। (रोमी 12:12)

विश्वास में नवीकृत होने से पहले मेरा धैर्य मजबूत नहीं था।

जिन अवसरों पर मैंने अपना आपा खो दिया था, उन क्षणों को याद करते हुए अब मुझे शर्म महसूस होता है; कभी किसी दुकान पर मेरी माँ के पक्ष में किसी को मैं ने “नस्लवादी” होने का अभियोग लगाया; जब मैं फिलीपींस में काम कर रही थी, तब मैं कर्मचारियों के लिए न्याय की मांग करते हुए जनरल के कार्यालय में जबरन घुस गयी; कई मौकों पर जब मैं गाडी चला रही थी, तब मुझ से आगे निकलने वालों की ओर मैने बड़ी कठोरता से उंगली उठाई (शायद यही कारण है कि ईश्वर ने मुझे ड्राइविंग जारी रखने की अनुमति नहीं दी!); और जब कभी मुझे अपनी इच्छा के अनुसार आगे बढ़ने में रुकावट हुई तब की उदास खिन्नता, असहिष्णुता, असभ्य व्यवहार, या इस तरह की कई दयनीय छोटी छोटी घटनाएँ।

मैं बहुत अधीर और बेसब्र थी। जिस समय किसी से मिलने के लिए सहमती हुई, यदि वह ठीक समय पर नहीं पहुँचता, तो मैं यह कहते हुए तुरंत चली जाती थी कि वह मेरे समय के अनुसार मुझसे मिलने के लिए योग्य  नहीं था। जब प्रभु ने मुझे बुलाया, तब मैं ने महसूस किया कि पवित्र आत्मा से प्राप्त उन पहले फलों में से एक था सहनशीलता का धैर्य। प्रभु ने मुझे प्रभावशाली तरीके से समझाया कि यदि मेरे पास दयालु, धैर्यवान, सहनशील और समझदार हृदय नहीं है तो मैं एक अच्छी सेविका नहीं बन सकती। 

प्रतीक्षा करने की सीख

हाल ही में, मेरे पति मुझे आपातकालीन जांच के लिए मेलबर्न के आँख और कान अस्पताल ले गए। उस समय उन वर्षों की यादें ताजा हो गयीं जब मैं रोजाना सी.बी.डी. (सेंट्रल बिजनेस डिस्ट्रिक्ट) की यात्रा करती थी, शहर के उन हजारों उदास कर्मचारियों की भीड़ की मैं भी हिस्सा बन जाती थी जो बहुत नाखुश दिखते थे, लेकिन वे इस सोच से खुद को तसल्ली देते थे कि उनके पास जीवन यापन के लिए नौकरी है। मैंने भी बहुत अधिक ओवरटाइम किया था, यह सोचकर कि ऐसा करने से मैं अमीर हो जाऊंगी (लेकिन मैं अमीर नहीं हुई)।

कॉर्पोरेट क्षेत्र में काम करते हुए, मुझे एकमात्र खुशी तब मिलती थी, जब मैं मध्यान्ह भोजन के अवकाश पर सेंट पैट्रिक चर्च या सेंट फ्रांसिस चर्च में मिस्सा के लिए दौड़ती थी। इसके बावजूद, जब कभी मैं जीवन से ऊब जाती थी, तब मैं बिना किसी ख़ास उद्देश्य से मायेर मॉल में घूमती फिरती थी, व्यर्थ में उन चीजों की खरीदारी करती थी जिससे मुझे अस्थायी खुशी मिलती थी।

हर दिन, मैं प्रभु से सवाल करती थी, मुझे इस रोज़ की थकाऊ यात्रा और उन नौकरियों से जिनसे मुझे कोई संतृप्ति नहीं मिलती थी, कब वह “छुटकारा” देंगे? यदि मैं दैनिक मिस्सा में नहीं भाग लिया होती, यदि अच्छे दोस्तों से मेरी मुलाक़ात नहीं हुई होती, यदि मैं रेल गाडी में प्रार्थना करके, अच्छी किताबें पढ़कर और कढाई-बुनाई करते हुए समय का उपयोग नहीं किया होती, तो मुझे कहना पड़ता कि जीवन का वह महत्वपूर्ण दौर वास्तव में समय की बर्बादी थी।

जैसे जैसे मैं पीछे मुड़कर देखती हूं, मेरी प्रार्थना का जवाब देने में प्रभु ने कई साल लगा दिए – आखिरकार मुझे अपने क्षेत्र में सार्थक और संतोषजनक नौकरी दी गयी, वह भी घर से सिर्फ पंद्रह मिनट की ड्राइव पर। प्रभु मुझ पर दया करेगा और मेरे अनुरोध पर ध्यान देगा, यह आशा और भरोसा मैंने कभी नहीं छोड़ी और मैं अपनी प्रार्थना में लगी रही।

जब मैंने शहर के काम को अलविदा कह दिया, तो मैंने महसूस किया कि मेरे कंधों से एक बड़ा बोझ उतार दिया गया है। मैं आखिरकार उस प्रति दिन के कठिन और थकाऊ दौर से मुक्त हो गयी। हालाँकि मैं काम के उस अनुभव के लिए आभारी थी, फिर भी मैं तरोताजा महसूस कर रही थी, जीवन की एकं नए और अधिक शांतिपूर्ण दौर की प्रतीक्षा कर रही थी। ढलती उम्र के कमज़ोर शरीर के साथ, मेरे दिमाग की गति भी धीमी हो रही थी, और ज़िन्दगी की दुश्वारियों से मुकाबला करने की मेरी क्षमता अधिक सीमित होती जा रही थी।

जब मैं उन परिचित सड़कों पर चलने के लिए फिर से लौटी, तो ऐसा लगा कि कुछ खास नहीं बदला है – सड़क पर अभी भी भिखारी लोग थे; कुछ नुक्कड़ों से अभी भी पेशाब और उल्टी की गंध आ रही थी; लोग चलते-फिरते, दौड़ते भागते अगली ट्रेन का पीछा करते हुए ऊपर-नीचे बढ़ रहे थे; भोजनालयों की संख्या बढ़ गयी थी, और लोग उन रेस्त्रां में भोजन का ऑर्डर देने के लिए कतारबद्ध खड़े थे; और खुदरा स्टोर अभी भी लोगों के जेब ढीली करने के लिए अपने माल को मोहक रूप से प्रदर्शित करने के लिए उत्साहित थे। सायरन की आवाज गूंज रही थी। पुलिस की मज़बूत उपस्थिति थी, और मैंने यह सोचकर अपनी बेटी के लिए प्रार्थना की, कि वह शहर में काम करते हुए अपने आप को शहरी जीवन से किस तरह सुरक्षा पूर्ण तरीके से निपट रही है।

यह सब इतना जाना-पहचाना था कि यह पूर्वानुभव की तरह महसूस होता था, लेकिन मुझे जो एकमात्र आरामदायक शरण मिली, वह सेंट पैट्रिक कथीड्रल में थी, जहां मैं दोपहर के भोजन अवकाश के दौरान मिस्सा बलिदान में वेदी पर पवित्र पाठ पढ़ा करती थी, और सेंट फ्रांसिस चर्च जहां ऑस्ट्रेलिया में मेरे पहले आगमन पर मैंने मोमबत्ती जलाने के लिए माँ मरियम के सामने घुटने टेका था। एक अच्छे जीवन साथी पाने के लिए मेरी उस दिन की उत्कट प्रार्थना का तीन सप्ताह में उत्तर दिया गया। ईश्वर जानता है कि मेरे लिए चीजें कब और कहाँ अति आवश्यक हैं।

बहुत जरूरी पुण्य

‘आइ बिलीव’ (IBelieve) नामक वेबसाइट इस अद्भुत शिक्षण को साझा करती है। सन 1360 के आसपास लिखी गयी एक कविता से एक लोकप्रिय कहावत “धैर्य एक सद्गुण है” आती है। हालाँकि, इससे पहले भी बाइबल अक्सर धैर्य को एक मूल्यवान सद्गुण के रूप में उल्लेख करती है। धैर्य को आमतौर पर विलम्ब को, परेशानी या पीड़ा को, गुस्सा या परेशान हुए बिना स्वीकार करने या सहन करने की क्षमता के रूप में परिभाषित किया जाता है। दूसरे शब्दों में, धैर्य अनिवार्य रूप से “अनुग्रह के साथ प्रतीक्षा” है। मसीही होने का एक हिस्सा इसमें है कि हम दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों को अनुग्रहपूर्वक स्वीकार करने की क्षमता रखें, इस विश्वास के साथ कि हम अंततः ईश्वर में समाधान पाएंगे।

गलाती 5:22 में, धैर्य या सहनशीलता को पवित्र आत्मा के फलों में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। यदि धैर्य या सहनशीलता एक सद्गुण है, तो प्रतीक्षा करना सबसे अच्छा (और अक्सर सबसे अप्रिय) साधन है जिसके द्वारा पवित्र आत्मा हममें धैर्य/सहनशीलता विकसित करता है। लेकिन हमारी संस्कृति धैर्य को उतना महत्व नहीं देती, जितना कि परमेश्वर देता है। धैर्य क्यों रखें? तत्क्षण अनुतोषण या तत्काल सुख की अनुभूति कहीं अधिक मजेदार है! अपनी आवश्यकताओं को तुरंत तुष्ट करने के लिए हमें बहुत से अवसर इन दिनों प्राप्त हो रहे हैं। शायद इसी कारण अच्छी तरह से प्रतीक्षा करने की सीख के वरदान हमसे छीना जा रहा है।

तो हम “अच्छे” की प्रतीक्षा कैसे करें? मेरा सुझाव है कि आप ‘आइ बिलीव’ (IBelieve) वेबसाइट पर लिखे पूरा लेख पढ़ें। “धैर्य चुपचाप प्रतीक्षा कर रहा है; यह बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहा है। धैर्य अंत तक प्रतीक्षा कर रहा है; यह उम्मीद के साथ प्रतीक्षा कर रहा है। धैर्य आनंदपूर्वक प्रतीक्षा कर रहा है; यह अनुग्रह के साथ प्रतीक्षा कर रहा है। लेकिन जिस एक बात के लिए हमें प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए और अगले सेकंड के लिए स्थगित नहीं करना चाहिए, वह है येशु को हमारे जीवन के प्रभु और उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करना।“ अपना जीवन उन्हें समर्पित करने के लिए पलक झपकते ही हमें बुलाया जा सकता है। 

धैर्य का पीछा करना

20 साल पहले पेन्तकोस्त पर्व के दिन से, मुझे अपने विश्वास में नवीनीकृत किया गया है। मुझे धैर्य का गुण देने के लिए पवित्र आत्मा का मैं बहुत आभारी हूँ, और मुझे एक दयनीय, क्रुद्ध पापी से एक ऐसे व्यक्ति में बदलने के लिए भी, जो उसकी अगुवाई और मदद पाने की प्रतीक्षा करने के लिए क्षमता रखती है। यही इस उपहार का रहस्य है। आप इसे अकेले नहीं कर सकते – आपको ईश्वरीय कृपा की आवश्यकता है। मैं रातों-रात एक सौम्य, धैर्यवान व्यक्ति नहीं बन गयी, और हर दिन मेरे लिए एक परीक्षा का मैदान-ए-जंग है। धैर्य को पवित्र आत्मा के फलों का “केला का फल” कहा जाता है, क्योंकि यह जल्दी सड़ सकता है। मेरी परीक्षा होती रहती है, लेकिन पवित्र आत्मा ने मुझे निराश नहीं किया है। जब मैं यह लेख लिख रही थी, तब मैं एक समस्या के समाधान के लिए फोन पर चार घंटे तक प्रतीक्षा करने में सफल रही! दुनिया मुझे जल्दबाज़ी करने के लिए उकसाती रहती है। जब तक मैं नियंत्रण नहीं खो देती, तब तक शैतान मुझे परेशान करके दूसरे जाल में फँसाने की कोशिश करता रहता है। मेरा स्वार्थी और घमंडी अहम् हमेशा मांग करता है कि हर काम में मुझे पहले और अव्वल आना चाहिए। इसलिए आत्म-संयम के साथ अपना धैर्य बनाए रखने में मेरी मदद करने के लिए मुझे पवित्र आत्मा की बहुत आवश्यकता है। हालाँकि, संत फ्रांसिस डी सेल्स हमें बताते हैं कि वास्तव में हमारे आस-पास के सभी लोगों के लिए धैर्य का प्रयोग करने के पहले, हमें पहले खुद के साथ धैर्य रखना चाहिए।

फिर भी सतर्क रहने की ज़रूरत है। धैर्य का अर्थ यह नहीं है कि हम स्वयं को दुर्व्यवहार का शिकार होने दें या दूसरों को हमारे साथ पापपूर्ण व्यवहार की अनुमति दें। लेकिन इस विषय पर फिर कभी बात करूंगी, इसलिए मैं आप से धैर्य बनाए रखने की कामना करती हूं।

“सब कुछ की कुंजी धैर्य है। अंडा सेने से ही मुर्गी का चूजा हमें मिलता है, उसे तोड़ने से नहीं।-अर्नोल्ड ग्लासो

 

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By: दीना मननक्विल-डेल्फिनो

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