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अक्टूबर 20, 2023
Engage अक्टूबर 20, 2023

जीवन में आने वाली आकस्मिक घटनाएँ और बदलाव अक्सर दिल दहला सकती हैं l लेकिन हिम्मत न‌ हारें ! आप अकेले नहीं हैं।

परमेश्वर और मेरे बीच सम्बन्ध के बारे में मेरे एहसास के बारे में व्याख्या करना मुझे यह स्मरण कराने जैसा है कि मैंने कब सांस लेनी शुरू की; यह मेरे लिए संभव नहीं l मैं अपने जीवन में हमेशा परमेश्वर के बारे में अवगत रही हूँ। ऐसा कोई विशेष चमात्कारिक क्षण नहीं है जिसने मुझे परमेश्वर के प्रति जागरूक किया हो, परन्तु ऐसे अनेक अनगणित क्षण हैं जो मुझे याद दिलाते हैं कि वह हमेशा मेरे साथ मौजूद है। भजन 139 इसे खूबसूरती से कहता है: “तूने मेरे शरीर की सृष्टि की, तूने माता के गर्भ में मुझे गढ़ा l मैं तेरा धन्यावाद करता हूँ – मेरा निर्माण अपूर्व है l तेरे कार्य अद्भुत हैं, मैं यह अ‌‍च्छी तरह जानता हूँ ” (स्तोत्र ग्रन्थ 139:13-14)।

एकमात्र उत्तर

हालाँकि परमेश्वर हमेशा मेरे जीवन में निरंतर उपस्थित रहा है, पर कई बार अन्य चीजें उतनी सुसंगत नहीं रही हैं। उदाहरण के लिए, दोस्त, घर, स्वास्थ्य, विश्वास और भावनाएँ समय और परिस्थितियों के साथ बदल सकते हैं।

कभी-कभी परिवर्तन नया और रोमांचक लगता है, लेकिन कई बार यह डरावना होता है और मुझे कमजोर और असुरक्षित महसूस कराता है। घटनाएँ ऐसे प्रतीत होती हैं मानो मेरे पैर एक हवादार, रेतीले समुद्र तट के किनारे पर गाड़े गए हैं जहाँ ज्वार लगातार मेरी नींव को हिला देता है और पुनः मुझे अपना संतुलन बनाए रखने के लिए बाध्य करता है l हम कैसे उन दैनिक परिवर्तनों का प्रबंधन करते हैं जो हमारे संतुलन को बिगाड़ देते हैं? मेरा उत्तर केवल एक है, और मुझे लगता है कि आपके लिए भी वही सच है: अनुग्रह – स्वयं परमेश्वर का जीवन हमारे अन्दर विद्यमान है , परमेश्वर का अनर्जित उपहार जिसके हम योग्य नहीं हैं, जिसे हम कमा या खरीद नहीं सकते, और वही उपहार जो हमें इस जीवन से अनन्त जीवन की ओर अग्रसर करता हैl

राहत के बिना निवास परिवर्त्तन

औसतन, लगभग हर पांच से छः सालों में एक बार मेरा निवास परिवर्त्तन होता आ रहा है। कुछ तो अधिक स्थानीय और अस्थायी थीं; अन्य मुझे बहुत दूर और अधिक समय तक ले चलीं। लेकिन वे सभी निवास परिवर्त्तन और बदलाव एक जैसे थे।

पहला बड़ा बदलाव तब आया जब मेरे पिताजी की नौकरी के कारण हमें देश के एक कोने से दुसरे कोने जाना पडा। जिस राज्य में हमारा परिवार पहले से था, वहां हमारी गहरी जड़ें थीं, और नए राज्य की तुलना में भौगोलिक और सांस्कृतिक रूप से हमारा पुराना राज्य बहुत ही अलग और अनोखा था। कुछ नया करने की उत्तेजना ने अपरिचित और अनजान के प्रति मेरे डर को अस्थायी रूप से कम कर दिया। हालाँकि, जब हम अपने नए घर पहुँचे, तो मेरा घर, हमारे रिश्तेदार, दोस्त, स्कूल, चर्च और वह सब जो परिचित था – उन सारी वास्तविकता को जिसे मैंने छोड़ दिया था और जिससे मैं परिचित थी – उस वास्तविकता ने मुझे भारी उदासी और खालीपन से भर दिया।

निवास परिवर्त्तन ने हमारे परिवार को गतिशील बना दिया। जैसे जैसे हर कोई परिवर्तनों के साथ तालमेल बिठा रहा था, वैसे ही वे अपनी व्यक्तिगत जरूरतों में लीन हो गए। हमें नहीं लग रहा था कि हमारा वही पुराना परिवार है। कुछ भी सुरक्षित या परिचित नहीं लग रह था । एकाकीपन घर करने लगा था।

क्रूस से टपकती आशीष

हमारे निवास परिवर्त्तन के बाद के हफ्तों के दौरान हमने अपने सामानों को खोला और छांटा। एक दिन जब मैं स्कूल में थी, मेरी माँ ने उस क्रूसित प्रभु की मूर्ती को बक्से से निकाला जो मेरे जन्म के समय से ही मेरे बिस्तर के ऊपर दीवार पर लटकी हुई थी। माँ ने उसे निकालकर मेरे नए बेडरूम में लटका दिया।

बात छोटी सी थी, लेकिन इससे बहुत फर्क पड़ा। क्रूसित प्रभु की मूर्ती मेरे लिए परिचित और प्रिय थी। इससे मुझे याद आया कि मैं परमेश्वर से कितना प्यार करती थी और कैसे मैं अक्सर अपने पिछले घर में उससे बातें किया करती थी। वह बचपन से मेरा दोस्त रहा, लेकिन किसी तरह, मैंने सोचा कि मैंने उसे पीछे छोड़ दिया है। मैंने क्रूस को दीवार से उठा लिया और उसे हाथ में कस कर पकड़ कर रोने लगीI मुझमें कुछ बदलाव आने लगा। मेरा सबसे अच्छा दोस्त मेरे साथ था, और मैं उससे फिर बात कर सकती थी। मैंने उसे बताया कि वह नई जगह कितनी अजीब लग रही थी और मैं घर वापस जाने के लिए कैसे तरस रही थी। घंटों तक मैंने उसे बताया कि मैं कितनी अकेली हो गयी थी, उस डर के बारे में भी बताया जिसने मेरे दिल को जकड़ रखा था, और मैंने उससे मदद माँगी।

थोड़ा-थोड़ा करके, मेरे गालों पर बहने वाले आँसुओं ने मेरे दिल को जकड़े हुए घने अँधेरे को धो डाला। शांति मेरे दिल में बस गयी, जिसे मैंने काफी लम्बे अरसे से महसूस नहीं किया था। आँसू धीरे-धीरे सूख गए, आशा ने मेरे दिल में प्रवेश किया और यह जानकर कि परमेश्वर मेरे साथ है, मैं फिर खुश हो गयी। उस दिन मेरे कमरे में परमेश्वर की उपस्थिति ने मेरे स्वभाव, मेरे हृदय और मेरे दृष्टिकोण को बदल दिया। अपने ही दम पर मैं ऐसा नहीं कर सकती थी। यह मेरे लिए परमेश्वर का उपहार था … उसकी कृपा।

जीवन की एकमात्र स्थिरता

वचन में परमेश्वर हमें कहता है : “डरो मत क्योंकि मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ”। मेरे पसंदीदा वचनों में से एक मुझे परिवर्तन के डर से निपटने में मदद करता है: “प्रभु तुम्हारे आगे-आगे चलेगा और तुम्हारे साथ रहेगाl वह तुम्हें निराश नहीं करेगा और तुम को नहीं छोड़ेगा l भयभीत न हो और मत डरो।” (विधि-विवरण ग्रन्थ 31:8)

जब से मैं छोटी लड़की थी, तब से मैं ने कई बार स्थान परिवर्त्तन किया और बदलाव लाया, लेकिन मुझे एहसास हुआ है कि मैं ही स्थान परिवर्त्तन करती हूँ और बदलती हूँ, परमेश्वर नहीं। वह कभी नहीं बदलता। चाहे मैं कहीं भी जाऊं और मेरे जीवन में कई बदलाव आया हो, वह हमेशा मेरे साथ रहता है। हर स्थान परिवर्त्तन, हर नयेपन और रेत में हर बदलाव के बाद परमेश्वर ने मेरा संतुलन बहाल किया है। वह सदैव मेरे जीवन का हिस्सा रहा है। कभी-कभी मैं उसे भूल जाती हूँ, लेकिन वह मुझे कभी नहीं भूलता। उसने ऐसा कैसे किया? वह मुझे इतने करीब से जानता है कि “(मेरे) सिर के बाल भी गिने हुए हैं”(मत्ती 10:30-31)। यह भी उसकी कृपा है।

जिस दिन मैंने उस क्रूस को अपने बेडरूम की दीवार से उतारकर कस कर पकड़ लिया, उसी दिन यह उस रिश्ते का प्रतीक बन गया जिसे मैं अपने शेष जीवन में उसके साथ रखने वाली थी। मुझे उसकी निरंतर उपस्थिति की आवश्यकता है ताकि वह अँधेरे को हटा सके, मुझे आशा दे सके, और मुझे रास्ता दिखा सके। वह “मार्ग, सत्य और जीवन” है (योहन 14:6)l प्रार्थना करना, वचन पढ़ना, पवित्र मिस्सा में भाग लेना, पवित्र संस्कारों को प्राप्त करना, और दूसरों के साथ उनके द्वारा दिए गए अनुग्रह को साझा करना, इसी के माध्यम से जितना हो सके मैंने उसे मजबूती से पकड़ रखा है। मैं चाहती हूँ कि मेरा दोस्त हमेशा मेरे साथ रहे जैसा उसने वादा किया था। मुझे उसकी सभी अद्भुत कृपाओं की आवश्यकता है और मैं उन्हें प्रतिदिन माँगती हूँ। मुझे यकीन है कि मैं इस तरह के उपहारों के लायक नहीं हूँ, लेकिन वह उन्हें वैसे भी मुझे देता है क्योंकि वह प्यार है और ‘मुझ जैसी नीच’ को बचाना चाहता है।

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By: तेरेसा एन वीडर

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अक्टूबर 20, 2023
Engage अक्टूबर 20, 2023

इसका अभ्यास करें और आपको कभी इस पर पछतावा नहीं होगा …

बीते आगमन काल के अंतिम दिनों में एक अग्रसूत्र ने मुझे आकर्षित किया: “आइए हम उसका चेहरा देखें और हम मुक्त किये जाएंगे।” हां, मैंने प्रार्थना की, हे येशु, मुझे आपका चेहरा देखने दें। मैं मरियम और जोसेफ के बारे में सोचती हूं जैसे वे पहली बार तुझे अपने गोद में लिए हुए हैं, बड़ी कोमलता से तुझे पकडे हुए हैं, तेरे चेहरे को देख रहे हैं और उस चेहरे को चूम रहे हैं, फिर वे तुझे पुआल पर लिटाकर गरम कम्बल से तुझे ढक रहे हैं। तू कितना सुंदर है, तुम्हारी आंखें खुलने के पहले ही तू मुझे देख रहा है।

अपने प्रेम को प्रज्वलित करें

उन दिनों मैंने कार्मेल मठ की साध्वी, सिस्टर इम्माकुलाता द्वारा लिखित एक किताब “द पाथवेज ऑफ प्रेयर: कम्युनियन विथ गॉड” (माउंट कार्मेल हर्मिटेज द्वारा 1981 में प्रकाशित) पढ़ी, और यह मेरे दिल को भी छू गया। उन्होंने लिखा कि, येशु, हम तेरे लिए जिस प्यार को औपचारिक प्रार्थना के समय में और मिस्सा बलिदान के समय, तुझे अपने शरीर और आत्मा में प्राप्त करते हैं, अनुभव करते है, उस प्यार को हम कैसे बनाए रख सकते हैं। मैंने इस बारे में उत्सुकता से पढ़ा, क्योंकि मैं इस इच्छा से जूझ रही थी कि पास की रसोई में खाने या पीने के लिए कोई चीज़ मिल जाए। जैसे ही मैं अपने प्रार्थना कक्ष में बैठी, मुझे उस कहावत की सच्चाई का एहसास हुआ जो किसी ने अपने रेफ्रिजरेटर पर पोस्ट की थी: “आप जो खोज रहे हैं वह यहाँ नहीं है।” हां, मैं अपने फ्रिज में जाने के बजाय तेरी ओर मुड़ सकती हूं, है ना? इसलिए मैं पढ़ना चाहती थी कि मेरे प्यार को फिर से जगाने के बारे में सिस्टर इम्माकुलाता का क्या विचार है।

उन्होंने पुष्टि की: “ईश्वर के साथ उनकी जीवित उपस्थिति में लगातार बातचीत करना आत्मा को बड़ी ऊर्जा देती है। यह आत्मा में गर्मी और रक्त प्रवाहित करता है … विश्वास में ईश्वर के साथ इस प्रेमपूर्ण स्मरण के अभ्यास के लिए एक बड़ी समर्पित निष्ठा होनी चाहिए। उन्होंने दिखाया कि कैसे “इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि ईश्वर पर यह आंतरिक नज़र, चाहे वह कितना भी थोड़े समय के लिए हो, हर बाहरी क्रिया से पहले होनी चाहिए और उसी से अंत भी होना चाहिए”। उन्होंने यह साझा करना शुरू किया कि कैसे महान रहस्यदर्शी, अविला की संत तेरेसा ने अपनी साध्वी बहनों के साथ इस बारे में बात की:

यदि वह कर सकती है, तो उसे प्रतिदिन कई बार मनन चिंतन करने दें।” संत तेरेसा ने समझा कि यह पहली बार में आसान नहीं होगा, लेकिन “यदि आप इसे एक वर्ष के लिए अभ्यास करते हैं, या शायद केवल छह महीने के लिए, तो आप इस बड़े लाभ और खज़ाने को प्राप्त करने में सफल होंगे।” संत लोग हमें सिखाते हैं कि “ईश्वर के साथ यह निरंतर एकात्मकता पवित्रता के उच्च स्तर पर शीघ्रता से पहुंचने का सबसे प्रभावशाली साधन है।” ये प्रेमपूर्ण कार्य आत्मा को पवित्र आत्मा के स्पर्श की जागरूकता के लिए व्यवस्थित करते हैं और इसे आत्मा में ईश्वर के उस प्रेमपूर्ण संचार के लिए तैयार करते हैं जिसे हम मनन चिंतन कहते हैं … जो हमें हर जगह और हमेशा प्रार्थना करते रहने के ख्रीस्तीय दायित्व को पूरा करने में सक्षम बनाता है।

आदत के चक्र में

ये कुछ तरीके हैं जिनसे मैं इस अभ्यास को शामिल करती आ रही हूँ। सीढ़ियों से ऊपर और नीचे जाते समय, या यहाँ तक कि कुछ रास्तों पर चलते समय, मैं अपने कदमों की लय में कहती हूँ: “येशु, मरियम और यूसुफ, मैं तुमसे प्यार करती हूँ। आत्माओं को बचाओ।“ जब मैं भोजन के लिए बैठती हूं, तो मैं येशु से मेरे साथ बैठने के लिए कहती हूं। अपना भोजन समाप्त करते समय, मैं उन्हें धन्यवाद देती हूँ। सबसे कठिन अभ्यास जब किसी भी पकवान मुंह में रखने से पहले प्रार्थना करना था, और जब मैं भोजन नहीं कर रही थी, या भोजन के लिए तैयारी कर रही थी, तब प्रार्थना करना कठिन था; मैंने इसे चैसा काल के लिए एक त्यागपूर्ण अभ्यास के रूप में लिया, और अंत में इसे एक नई आदत बना रही हूं।

जब मैं किसी गिरजाघर या प्रार्थनालय से गुजरती हूं, तो मैं कहती हूं “हे येशु, परम प्रसाद में तेरी उपस्थिति के लिए धन्यवाद। कृपया इस पवित्र स्थान से सभी को आशीर्वाद दे। चालीसे के दौरान या शुक्रवार को किसी को मिठाई देते समय, मैं किसी व्यक्ति के लिए या बड़ी विपत्ति में पड़े किसी देश के लिए प्रार्थना करती हूं।

सिस्टर इम्माकुलाता हमें आश्वस्त करती हैं: “परमेश्वर स्वयं को प्रकट करेंगा। वह ऐसा करने के लिए प्यासा है, परन्तु वह तब तक नहीं प्रकट कर सकता जब तक कि हृदय और मन उसे प्राप्त करने के लिए तैयार न हों। हमारा प्रार्थना का जीवन वास्तव में तब तक शुरू नहीं होता जब तक कि हम एक शुद्ध अंतरात्मा की, वैराग्य की और उनकी उपस्थिति में रहने के अभ्यास की नींव नहीं डालते हैं

“सच्ची स्वतंत्रता स्वार्थ से मुक्ति है। ईश्वर की उपस्थिति में निरंतर स्मरण और निरंतर प्रार्थना की आदत स्वयं और स्वार्थ के प्रति मर जाने के उस डर का इलाज है जो हममें इतनी गहराई से समाया हुआ है … प्रार्थना और आत्म-त्याग इतने अविभाज्य रूप से जुड़े हुए हैं … क्योंकि येशु का प्रेम एक व्यक्ति को खुद को तुच्छ समझने केलिए उसे तैयार करता है। यह अध्याय इमीटेशन ऑफ़ क्राइस्ट किताब के एक उद्धरण के साथ समाप्त होता है: “विनम्र और शांतिपूर्ण बनो और येशु तुम्हारे साथ रहेगा। भक्ति और शान्ति में रहें और येशु आपके साथ रहेगा … आपको नग्न होना चाहिए और एक शुद्ध हृदय को परमेश्वर के पास ले जाना चाहिए, यदि आप आराम से ध्यान देंगे तो आप देखेंगे कि प्रभु कितना प्यारा है” (पुस्तक II, अध्याय 8)।

जैसा कि मैं उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करती हूं जहां मैं पहले प्रार्थना किए बिना काम में लिप्त हो रही हूं, मैं खुद को प्रभु के करीब लाने के लिए एक प्रार्थना खोजने के लिए प्रेरणा महसूस करती हूं जिस प्रभु को मैं प्यार करती हूं, सेवा करती हूं और हर दिन पहले से ही घंटों तक प्रार्थना करती हूं। येशु, हां, कृपया मुझे तेरी उपस्थिति में रहने के अभ्यास में बढ़ने, तेरे चेहरे को अधिक से अधिक देखने की कोशिश में बढ़ने में मदद कर ”।

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By: Sister Jane M. Abeln SMIC

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अक्टूबर 20, 2023
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प्रश्न – मैं हमेशा अपने परिवार, अपने स्वास्थ्य, अपनी आर्थिक स्थिति, अपनी नौकरी आदि के बारे में चिंता से ग्रसित रहता हूँ। मुझे इस बात की चिंता भी होती है कि मेरा उद्धार हुआ है या नहीं। इतने सारे भयों के बीच, मैं हृदय की शांति कैसे पा सकता हूँ?

उत्तर – यह महत्वपूर्ण है कि बाइबिल में “डरो मत” वाक्यांश 365 बार आता है – वर्ष के प्रत्येक दिन के लिए एक! परमेश्वर जानता था कि हमें प्रतिदिन स्मरण दिलाने की आवश्यकता होगी कि वही मालिक है और हम अपना भय उस पर डाल सकते हैं!

यह विश्वास करना कठिन हो सकता है कि हमारे जीवन की प्रत्येक परिस्थिति पहले से ही एक सर्वशक्तिमान और प्रेमी ईश्वर के हाथों में है। लेकिन जब हम अपनी समस्याओं को नहीं, बल्कि परमेश्वर की विश्वसनीयता को देखते हैं तब अचानक हमें एहसास होता है कि वह कैसे हर चीज़ में अच्छाई निकाल सकता है।

उदाहरण के लिए, धर्म ग्रन्थ को पढ़ें और देखें कि कैसे परमेश्वर बाइबल के महान नायकों के प्रति विश्वासयोग्य था! पुराने नियम में, यूसुफ को मिस्र में गुलामी के लिए बेच दिया गया था और फिर उसे कारागार में डाल दिया गया था। लेकिन परमेश्वर ने इस त्रासदी को अवसर में बदल दिया: पहले यूसुफ मिस्र की सरकार में ऊंचे पद पर पहुँच गए और फिर जब देश में अकाल पड़ा, तब उसे अपने परिवार को बचाने का अवसर मिला। या, नए नियम में, पौलुस को कैद किया गया था, और उसका जीवन कई बार खतरे में डाला गया था, लेकिन हर बार, परमेश्वर ने उसे उसके शत्रुओं से बचाया।

संतों के जीवन को देखें – क्या ईश्वर ने कभी उन्हें त्याग दिया था? संत जॉन बोस्को के बारे में सोचें – कई लोगों ने इस पवित्र पुरोहित की जान लेनी चाही, लेकिन हर बार ईश्वर ने चमत्कारिक रूप से उन्हें एक विशेष अभिभावक प्रदान किया – एक बड़ा धूसर कुत्ता जो उसकी रक्षा के लिए मौके पर दिखाई देता है! संत फ्रांसिस के बारे में सोचिए, जिसे युद्ध में बंदी बना लिया गया और एक वर्ष के लिए कैद कर लिया गया – और उसी वर्ष उसे रूपांतरण का अनुभव प्राप्त हुआ। संत कार्लो एक्यूटिस के बारे में सोचें, वह युवा किशोर जो 2006 में 15 साल की उम्र में ल्यूकेमिया से गुज़र गया और कैसे ईश्वर ने इतनी कम उम्र की मौत से बहुत अच्छा कल्याण का कार्य किया है, क्योंकि लाखों लोग उसकी जीवन कहानी से और उसे आदर्श मानकर पवित्रता के लिए प्रेरित हुए हैं।

मैं आपको बता सकता हूं कि मेरे जीवन का सबसे कठिन क्षण तब था जब मुझे स्कूल से बाहर निकाल दिया गया था और पुरोहिताई के लिए अपनी योजनाओं को त्यागने के लिए कहा गया था। यह मेरे जीवन के सबसे गौरवशाली और धन्य अनुभवों में से एक बन गया, क्योंकि इसने मेरी पुरोहिताई केलिए दूसरे बेहतर द्वार खोल दिये – एक बेहतर धर्मप्रांत, जहाँ मैं अपनी क्षमताओं और प्रतिभाओं का उपयोग ईश्वर की महिमा के लिए कर सकता हूँ। यह केवल दूरदर्शिता थी कि मैंने अपने जीवन में ईश्वर के हस्तक्षेप को पहचाना। लेकिन जिस तरह से ईश्वर ने मुझे सुरक्षित रखा है और अतीत में मुझे उसके करीब लाया है, यह मुझे विश्वास दिलाता है कि जो उस समय विश्वसनीय था वह भविष्य में भी विश्वसनीय रहेगा। और अब अपने जीवन के बारे में सोचें। आपने ईश्वर को अपने जीवन में आते हुए कैसे देखा?

पवित्र धर्मग्रन्थ में किए गए परमेश्वर के वादों पर ध्यान दें। उसने हमसे कभी आसान जीवन का वादा नहीं किया – उसने वादा किया कि वह हमें कभी नहीं छोड़ेगा। उसने वादा किया कि “परमेश्वर ने जो तैयार किया है, उसे न तो कोई आँख देख सकती है और न ही कोई कान सुन सकता है।” उसने कभी भी यह वादा नहीं किया कि जीवन हमेशा सुचारू रूप से चलेगा, लेकिन उसने वादा किया कि “जो लोग परमेश्वर से प्रेम करते हैं और उसके विधान के अनुसार बुलाये गए हैं, परमेश्वर उनके कल्याण केलिए सभी बातों में उनकी सहायता करता है” (रोमी 8:28) ये वे वायदे हैं जिन पर हम अपने जीवन का निर्माण कर सकते हैं!

अंत में भरोसे की स्तुति विनती करें। न्यूयॉर्क में सिस्टर्स ऑफ लाइफ की बहनों ने यह सुंदर स्तुति विनती लिखी है जो हमें अपनी चिंताओं को ईश्वर को समर्पित करने के लिए आमंत्रित करती है। यह विनती कहती है:

भविष्य की चिंता से, मुझे मुक्त कर, येशु।
वर्तमान क्षण में बेचैन स्वार्थ से, मुझे मुक्त कर, येशु।
तेरे प्यार और तेरी उपस्थिति में मेरे अविश्वास से, मुझे मुक्त कर, येशु।

इस संक्षिप्त प्रार्थना को निरंतर करते रहें: “येशु मैं तुझ पर भरोसा रखता हूँ!” और वह आपके ह्रदय को ऐसी शांति से भर सकता है जो समझ से परे है।

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By: फादर जोसेफ गिल

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अक्टूबर 20, 2023
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क्या आपको लगता है कि आपका संघर्ष कभी खत्म न होने वाला है? जब हताशा आपके दिल को जकड़ लेती है, तो आप क्या करते हैं?

मैं मनोचिकित्सक के कमरे में एक बड़ी कुर्सी पर हाथ मलते हुए बैठी थी और उनके आने का इंतज़ार कर रही थी। मैं उठकर भागना चाह रही थी। मनोचिकित्सक ने मेरा अभिवादन किया, कुछ साधारण से प्रश्न पूछे और फिर परामर्श की प्रक्रिया शुरू हुई। उनके पास एक डिजिटल टैबलेट और कलम थी। हर बार जब मैंने कुछ कहा या हाथ का इशारा किया, तो वे टैबलेट पर कुछ लिखते रहे। मैं अपने दिल की गहराई से जानती थी कि थोड़े समय के बाद वे निर्धारित करेंगे कि मेरी मानसिक हालत ऐसी है कि मैं मदद से परे हूं।

वह सत्र इस सुझाव के साथ समाप्त हुआ कि मैं अपने जीवन की गड़बड़ी से निपटने में मदद के लिए ट्रैंक्विलाइज़र लूं। मैंने उनसे कहा कि मैं इसके बारे में सोचूँगी; लेकिन सहज रूप से मुझे पता था कि यह कोई समाधान नहीं था।

हताश और अकेली

एक और अपॉइंटमेंट लेने के लिए, मैं स्वागत कक्ष में बैठी महिला से अपने जीवन की गड़बड़ी के बारे में बात करती रही। उसके पास सुनने वाला दयालु कान था और उसने पूछा कि क्या मैंने कभी ‘अल-अनॉन’ की बैठक में जाने पर विचार किया था। उसने समझाया कि ‘अल-अनॉन’ उन लोगों के लिए है, जिनका जीवन परिवार के किसी सदस्य के अत्यधिक शराब पीने से प्रभावित हो रहा है। उसने मुझे एक नाम और फोन नंबर दिया और मुझे बताया कि यह ‘अल-अनॉन’ महिला मुझे एक बैठक में ले जायेगी।

अपनी कार में बैठकर, बहते हुए आंसुओं के साथ, मैंने नाम और फ़ोन नंबर को देखा। मनोचिकित्सक से और अपने जीवन की परेशानियों से कोई राहत नहीं मिलने के बाद, मैं कुछ भी आजमाने के लिए तैयार थी। मैंने यह भी निष्कर्ष निकाला कि मनोचिकित्सक ने दवाइयों के अलावा कोई दूसरा हल न होने की बात पहले ही मुझसे कही थी। इसलिए, मैंने अल-अनॉन महिला को फोन किया। उसी क्षण मेरे जीवन की गड़बड़ी में ईश्वर ने प्रवेश किया, और मेरे ठीक होने की यात्रा शुरू हुई।

मैं कहना चाहूंगी कि अल-अनोन के 12-चरणों वाले चंगाई कार्यक्रम की प्रक्रिया की शुरुआत के बाद यह सुचारू रूप से चल रहा था, लेकिन रास्तें में बड़ी पहाड़ियाँ तथा अंधेरी और सुनसान घाटियाँ खड़ी थीं, हालांकि वे हमेशा आशा की किरण के साथ खड़ी थीं।

मैं प्रति सप्ताह दो अल-अनोन बैठकों में ईमानदारी से भाग लेती थी। अल-अनॉन के 12-चरणीय कार्यक्रम मेरी जीवन रेखा बन गया। मैंने अन्य सदस्यों के साथ खुल कर अपने बारे में बात की। धीरे-धीरे मेरे जीवन में प्रकाश की एक किरण आई। मैं फिर से प्रार्थना करने लगी और ईश्वर पर भरोसा करने लगी।

दो साल की अल-अनोन बैठकों के बाद, मुझे पता था कि मुझे अतिरिक्त पेशेवर मदद की ज़रूरत है। एक दयालु अल-अनोन मित्र ने मुझे 30-दिवसीय अन्तरंग-रोगी उपचार कार्यक्रम में प्रवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया।

मेरा दिल नरम हुआ

क्योंकि मुझे शराब पर गुस्सा था, मैं इस उपचार कार्यक्रम में किसी भी ‘शराबी’ के आसपास नहीं रहना चाहती थी। उस गहन कार्यक्रम के दौरान, मैं वास्तव में शराब और नशीली दवाओं के लत में डूबे कई लोगों से घिरी हुई थी। ऐसा लगता है कि ईश्वर को पता था कि मुझे क्या ठीक करने की आवश्यकता है: जब मैंने अपने लत में डूबे साथियों के व्यक्तिगत दर्द और उनके कारण उनके परिवारों को हुए गहरे तकलीफों को देखा तो मेरा दिल नरम होने लगा।

इस समर्पण के दौरान ही अपनी ही शराब की लत पर मैंने काबू पाया। मुझे पता चला कि मैं अपना दर्द छुपाने के लिए शराब पीती थी। मुझे पता चला कि मैं भी शराब का दुरुपयोग कर रही थी और यह सबसे अच्छा होगा कि मैं पूरी तरह से शराब से दूर रहूँ। उस महीने मैंने अपने पति के प्रति अपने क्रोध को दूर किया और उन्हें ईश्वर के हाथों में सौंप दिया। मेरे ऐसा करने के बाद, मैं उन्हें क्षमा कर सकी।

मेरे 30 दिनों के उपचार कार्यक्रम के बाद, ईश्वर की कृपा से, मेरे पति ने भी शराब की लत के उपचार कार्यक्रम में प्रवेश किया। मेरा और मेरे पति का और हमारे दो किशोर बेटों का जीवन बेहतर हो रहा था। हम कैथलिक चर्च में वापस आ गए थे और एक एक दिन हमारा वैवाहिक जीवन दुरुस्त किया जा रहा था।

दिल दहला देने वाला दर्द

तब जीवन ने हमें एक अकल्पनीय झटका दिया जिसने हमारे दिलों को एक लाख टुकड़ों में तोड़ दिया। हमारा सत्रह वर्षीय बेटा और उसका दोस्त एक विनाशकारी कार दुर्घटना में मारे गए। यह हादसा गाड़ी के तेज रफ्तार और उन दोनों के शराब पीने के कारण हुआ। हम हफ्तों तक सदमे में रहे। हमारे बेटे के इस तरह हिंसात्मक ढंग से छीन जाने के कारण चार लोगों का हमारा परिवार अचानक तीन में सिमट गया। मेरे पति, मैं और हमारा 15 साल का बेटा एक-दूसरे से, अपने दोस्तों से, और अपने विश्वास से लिपटे रहे। इस दर्द को एक दिन में भी सहना मेरी सहनशक्ति के बाहर था, पर मुझे इसे हर मिनट, हर घंटे तक सहना था। मुझे लगा यह दर्द हमें कभी नहीं छोड़ेगा।

ईश्वर की कृपा से, हमने मनोवैज्ञानिक परामर्श की एक विस्तारित अवधि में प्रवेश किया। दयालु और हमारी अच्छी परवाह करने वाले वह सलाहकार जानता था कि परिवार का प्रत्येक सदस्य किसी प्रियजन की मृत्यु से अपने तरीके से और अपने समय में निपटता है। इसलिए हमें अपने दुःख का सामना करने के लिए उन्होंने हममें से प्रत्येक के साथ व्यक्तिगत रूप से काम किया।

मेरे बेटे की मौत के महीनों बाद भी, मैं गुस्से और रोष से भरी हुई थी। मेरे लिए यह जानना डरावना था कि मेरी भावनाएँ इतनी बेतहाशा नियंत्रण से बाहर हो गई थीं। मैं अपने बेटे के छीन जाने पर ईश्वर से नाराज नहीं थी, लेकिन अपने बेटे की मृत्यु की रात ही उसके गैर-जिम्मेदाराना फैसले के लिए उससे मैं नाराज थी। उसने शराब पीने का निर्णय लिया और एक ऐसी गाड़ी में सफ़र करने का निर्णय लिया जिसे किसी शराबी व्यक्ति द्वारा चलाया जा रहा था। मैं शराब पर और उसके विभिन्न रूपों और परिणामों पर क्रोधित थी।

एक दिन हमारे स्थानीय सुपरमार्केट में, मैंने गलियारे के अंत में एक बियर की प्रदर्शनी देखी। हर बार जब भी मैं प्रदर्शनी के पास से गुजरती, तब मैं गुस्से से भर जाती। मैं प्रदर्शनी को तब तक ध्वस्त करना चाहती थी जब तक कि उसमें कुछ भी न बचा हो। इससे पहले कि मेरा गुस्सा बेकाबू होकर फूट पड़ता, मैं दुकान से बाहर निकल गयी।

मैंने अपने पारिवारिक परामर्शदाता के साथ इस घटना को साझा किया। उन्होंने मुझे निशानबाज़ी के मैदान में ले जाने की पेशकश की, जहां मैं उनकी राइफल का इस्तेमाल निशाना लगाने, गोली मारने और अधिक से अधिक बीयर के खाली बोतलों को ध्वस्त करने के लिए कर सकती थी, ताकि मुझ पर हावी हो रहे शक्तिशाली क्रोध को सुरक्षित रूप से मैं मुक्त कर सकूं।

प्यार जो चंगा करता है

लेकिन ईश्वर के अपने अनंत ज्ञान में मेरे लिए अन्य कोमल योजनाएँ थीं। मैंने काम से एक सप्ताह की छुट्टी ली और एक आध्यात्मिक साधना में भाग लिया। साधना के दूसरे दिन, मैंने एक आंतरिक चँगाई वाले मनन चिंतन में भाग लिया जिसमें मैंने रंगीन फूलों, समृद्ध हरी घास और चहचहाने वाले नीले कोमल पक्षियों से भरे, शानदार पेड़ों से घिरे एक सुंदर बगीचे में येशु, अपने बेटे, और खुद को पाया। यह शांतिपूर्ण और निर्मल अनुभव था। मैं येशु की उपस्थिति में होने और अपने अनमोल बेटे को गले लगाने में सक्षम होने के लिए बहुत खुश थी। येशु, मेरा बेटा, और मैं इत्मीनान से हाथ में हाथ डाले, चुपचाप हमारे बीच में बहते अपार प्रेम को अनुभव करते हुए टहल रहे थे।

ध्यान के बाद, मुझे गहन शांति का अनुभव हुआ। साधना से वापस घर लौटने के बाद ही मुझे एहसास हुआ कि मेरा गुस्सा और रोष ख़तम हो चुका था। येशु ने मेरे बेकाबू क्रोध से मुझे चंगा किया था और उसके स्थान पर अपने अनुग्रह से भर दिया था। क्रोध के बजाय मुझे अपने अनमोल बेटे के लिए केवल प्यार महसूस हुआ। मेरे बेटे ने अपने बहुत छोटे जीवन में मुझे जो प्यार, खुशी और आनंद दिया है, उसके लिए मैं आभार महसूस कर रही थी। मेरा भारी बोझ हल्का होता जा रहा था।

जब किसी परिवार में दु:खद मौत आती है, तो हर सदस्य की दिल में शोक भर जाता है। नुकसान को संभालना चुनौतीपूर्ण कार्य है, जिसके लिए हमें अंधेरी घाटियों से गुजरना पड़ता है। लेकिन ईश्वर का प्रेम और उसकी अद्भुत कृपा हमारे जीवन में धूप और आशा की किरणें वापस ला सकती है। ईश्वर के प्रेम से संतृप्त होने पर दुःख हमें अंदर से बाहर तक बदलता है, हमें धीरे-धीरे प्रेम और करुणा से भरे लोगों में परिवर्तित करता है।

स्थिर आशा

नशे की लत के प्रभावों और उसके साथ आने वाले मानसिक विभ्रांति के प्रभावों से और साथ साथ मेरे बेटे की मौत के शोक से भी निपटने के कई वर्षों के दौरान, मैं येशु मसीह, मेरी चट्टान और मेरे उद्धारकर्त्ता से जुड़ी हुई हूं।

हमारे बेटे की मौत के बाद हमारे वैवाहिक जीवन को काफी नुकसान हुआ। लेकिन ईश्वर की कृपा से और उससे और मदद मांगने की हमारी इच्छा के कारण, हम प्रतिदिन एक-दूसरे से प्यार करते हैं और एक-दूसरे को स्वीकार करते हैं। हमारे उद्धारकर्ता और हमारे प्रभु येशु मसीह में आशा रखने के लिए यह दैनिक समर्पण, विश्वास, स्वीकृति और प्रार्थना आवश्यक है।

हम में से प्रत्येक के पास दूसरों के साथ साझा करने के लिए अपने जीवन की एक कहानी है। अक्सर यह आनंद और आशा के मिश्रण के साथ दिल के दर्द, चुनौती और दुख की कहानी होती है। चाहे हम इसे स्वीकार करें या न करें, सच्चाई यह है कि हम सभी ईश्वर को खोज कर रहे हैं। जैसा कि संत अगस्टिन ने कहा है: “हे ईश्वर, तूने हमें अपने लिए बनाया है, और हमारा दिल तब तक बेचैन है जब तक यह तुझ में विश्राम नहीं पाता।”

ईश्वर की खोज में हम में से बहुत से लोगों ने ऐसे रास्ते निकाले हैं, जो अंधेरी और सुनसान जगहों की ओर हमें ले जाते हैं। हममें से कुछ लोगों ने उस मार्ग से भटक जाने से अपने आप को बचाकर रखा है और येशु के साथ गहरे संबंध की हमने तलाश की है। लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप अपने जीवन के किस दौर से गुजर रहे हैं, क्योंकि आगे आशा और चंगाई ज़रूर है। हर पल ईश्वर हमें खोज रहा है। हमें बस इतना करना है कि हम अपना हाथ आगे बढ़ाएँ और उसे थामने दें और उसे हमारी अगुवाई करने दें।

“यदि तुम समुद्र पार करोगे, तो मैं तुम्हारे साथ होऊँगा। जलधाराएं तुम्हें बहा कर नहीं ले जायेंगी। यदि तुम आग पार करोगे, तो तुम नहीं जलोगे। ज्वालाएँ तुम को भस्म नहीं करेंगी; क्योंकि मैं, प्रभु, तुम्हारा ईश्वर हूँ; मैं इस्राएल का परम पावन उद्धारक हूँ। (इसायाह 43:2-3)

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By: कॉनी बेकमैन

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अक्टूबर 20, 2023
Engage अक्टूबर 20, 2023

क्या आप अपने जीवन में कुछ और तलाश रहे हैं? ज़िन्दगी के राज़ को खोलने के लिए इस कुंजी को पकड़ें।

प्रत्येक पवित्र शनिवार को, ईस्टर की तैयारी में, हमारा परिवार फसह-भोजन का मसीही संस्करण मनाता है। हम मेमने के साथ सेव, खजूर और अखरोट का मिश्रित भोजन और कड़वी जड़ी-बूटियाँ खाते हैं और हम यहूदी लोगों की कुछ प्राचीन प्रार्थनाएँ करते हैं।

‘दयेनु’ एक जीवंत गीत है जो निर्गमन के दौरान परमेश्वर की दयालुता और कृपा का वर्णन करता है, जो फसह भोजन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। “दयेनु” एक इब्रानी शब्द है जिसका अर्थ है “यह हमारे लिए पर्याप्त होता।” यह गीत निर्गमन की घटनाओं की समीक्षा करता है और घोषणा करता है, “क्या परमेश्वर ने हमें मिस्र से बाहर निकाला होता और मिस्रियों के खिलाफ न्याय नहीं किया होता, दयानु! इतना काफी होता. यदि उसने उनके विरुद्ध निर्णय लिया होता, न कि उनकी मूर्तियों के विरुद्ध…दयेनु, इत्यादि। ईश्वर की कोई भी दया पर्याप्त होती। लेकिन उसने हमें ये साड़ी कृपाएं दे दी!

हममें से कई लोगों की तरह, मैंने भी अपनी अधिकांश युवावस्था किसी ऐसी चीज़ की अंतहीन खोज में बिताई जो मुझे संतुष्ट करती हो। हमेशा यह अदम्य लालसा रहती थी – एक एहसास कि कभी यहाँ तो कभी वहाँ ‘कुछ और’ है, फिर भी मैं कभी भी ठीक से समझ नहीं पाया कि वह क्या, कहाँ, या कौन था। मैंने अच्छे ग्रेड, रोमांचक अवसरों, सच्चे प्यार और एक पूर्ण करियर के विशिष्ट अमेरिकी सपनों का पीछा किया। लेकिन इन सब से मुझे अधूरापन महसूस हुआ।

जब मैंने उसे पाया

मुझे याद है आख़िरकार वह पल जब मुझे वह मिल गया जिसकी मुझे तलाश थी। मैं 22 वर्ष की थी और मैं ऐसे ईमानदार और प्रामाणिक ईसाइयों से मिली जो सक्रिय रूप से येशु का अनुसरण करना चाह रहे थे। उनके प्रभाव ने मुझे अपने ही ईसाई धर्म को पूरी तरह से अपनाने में मदद की, और अंततः मुझे वह शांति मिल गई जिसकी मुझे चाहत थी। येशु ही वह था जिसकी मुझे तलाश थी।

मैंने उसे दूसरों की सेवा करते हुए, उसकी पूजा करते हुए, उसके लोगों के बीच घूमते हुए, उसके वचन पढ़ते हुए और उसकी इच्छा पूरी करते हुए पाया।

मुझे पहली बार एहसास हुआ कि मेरा विश्वास रविवार के दायित्व से कहीं अधिक है। मुझे एहसास हुआ कि मैं लगातार उस ईश्वर की अच्छी संगति में था जो मेरी परवाह करता था और चाहता था कि मैं दूसरों की परवाह करूँ। मैं इस प्रेमी परमेश्वर के बारे में और अधिक जानना चाहता था। मैंने अपनी धूल भरी बाइबिल खोल दी। मैं अफ़्रीका के कैमरून की एक मिशन यात्रा पर गयी थी। मैंने कैथलिक वर्कर हाउस में गरीबों के साथ एकजुटता दिखाते हुए एक साल बिताया।

‘मसीह की शांति सारी समझ से परे है’ और उसी शान्ति ने मुझे घेर लिया और मुझे जाने नहीं दिया। मैं येशु के प्रेम से इतना अभिभूत थी कि लोग अनायास ही मेरे पास आते थे और पूछते थे कि मैं शांतिपूर्ण क्यों हूं, और लोग कभी-कभी वास्तव में मेरे पीछे-पीछे आते थे।

मेरे प्रभु और उद्धारकर्ता की धन्य माँ मरियम ने मेरे हर कदम का मार्गदर्शन किया। माला विनती और दैनिक मिस्सा बलिदान मेरे आध्यात्मिक आहार के अपरिहार्य अंग बन गए और मैं येशु और मरियम दोनों से इस तरह चिपक गयी जैसे कि मेरा जीवन उन पर निर्भर हो।

हालाँकि, मेरे जीवन के अगले चरण में, मैंने दयनु की इस संतुष्टि की भावना और सभी समझ से परे गहरी शांति को खो दिया। मैं बिल्कुल नहीं कह सकती कि यह कैसे हुआ या कब हुआ। यह क्रमिक था। किसी तरह, सक्रिय जीवन जीती हुई, पांच बच्चों का पालन-पोषण करती हुई और कार्यबल में लौटती हुई, मैं जीवन की व्यस्तता में फंस गई। मैंने सोचा कि मुझे हर जागते पल को उत्पादकता से भरने की जरूरत है। जब तक मैं कुछ या कई चीज़ें पूरी नहीं कर लेती, तब तक वह मुझे अच्छा दिन नहीं लगता था।

वक्त खामोशी के

अब जबकि मेरे पांच बच्चे बड़े हो गए हैं, मैं अभी भी पूरी ताकत से दुनिया में वापस आने और हर एक घंटे को कार्यों से भरने के लिए प्रलोभित हूं। लेकिन प्रभु मेरे दिल को उसके साथ अधिक समय बिताने के लिए प्रेरित करते रहते हैं और जानबूझकर मेरे दिन में मौन की जगहें बनाते हैं ताकि मैं उनकी आवाज को स्पष्ट रूप से सुन सकूं।

दुनिया के शोर से अपने दिल और दिमाग को सक्रिय रूप से बचाने के लिए मैंने एक दिनचर्या विकसित की है जो मुझे ईश्वर के संपर्क में रहने में मदद करती है। हर सुबह, सबसे पहला काम जो मैं करती हूं (कॉफी जैसी जरूरी चीजें निपटाने और बच्चों को स्कूल छोड़ने के बाद) वह है दैनिक मिस्सा बलिदान का पाठ पढ़ना, प्रार्थना करना, रोज़री वॉक पर जाना और दैनिक मिस्सा में भाग लेना। बाइबिल, माला विनती, ख्रीस्त याग। वह दिनचर्या ही मुझे शांति देती है और मेरा ध्यान इस बात पर केंद्रित करती है कि मैं अपना शेष दिन कैसे व्यतीत करूं। कभी-कभी प्रार्थना करते समय कुछ लोग, कुछ मुद्दे और विभिन्न कार्य मन में आते हैं, और मैं (दिन में बाद में) उस व्यक्ति तक पहुंचने या उसके लिए प्रार्थना करने, उस चिंता के लिए प्रार्थना करने, या उस कार्य को पूरा करने का एक कार्यक्रम बनाती हूं। मैं बस ईश्वर की बात सुनता हूं, और मुझे विश्वास है कि वह उस दिन मुझसे जो मांग रहा है, मैं उस पर अमल करती हूं।

कोई भी दिन एक जैसा नहीं होता. कुछ दिन दूसरों की तुलना में बहुत अधिक व्यस्त होते हैं। मैं हमेशा उतनी जल्दी प्रतिक्रिया नहीं देती जितना मैं दे सकती थी या उतना प्यार नहीं करती जितना मुझे देना चाहिए। लेकिन मैं प्रत्येक दिन की शुरुआत में अपनी सभी प्रार्थनाएँ, कार्य, खुशियाँ और कष्ट प्रभु को अर्पित करती हूँ। मैं दूसरों को उनके अपराधों के लिए क्षमा करती हूं, और प्रत्येक दिन के अंत में किसी भी विफलता के लिए पश्चाताप करती हूं।

मेरा लक्ष्य अपने दिल की गहराई से यह जानना है कि मैं एक अच्छा और वफादार सेवक रही हूँ और मेरा प्रभु मुझसे प्रसन्न है। जब मैं प्रभु की प्रसन्नता महसूस करती हूं, तो मुझे गहरी, स्थायी शांति मिलती है।

और दयनु…यही पर्याप्त है!

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By: डेनीस जैसेक

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जून 03, 2023
Engage जून 03, 2023

“हे प्रभु, मुझ पापी पर दया कर।”

ये शब्द मेरे जीवन की रणभेरी रहे हैं। मेरे शुरुआती वर्षों में भी, वे मेरे आदर्श वाक्य थे, जब मुझे उसका एहसास भी नहीं हुआ था।

करुणा। यदि ईश्वर का कोई दूसरा नाम होता, तो वह “करुणा” होता।

हर बार, जब मैं पापस्वीकार में जाती थी, तो करुणा मेरी हाथ थामे रहती थी।

करुणा ने मेरी आत्मा का आवरण बनकर मुझे ढँकते हुए और मुझे क्षमा करते हुए मुझे बार-बार बचाया।

मेरी आस्था की यात्रा दशकों पहले शुरू हुई जब मेरे माता-पिता ने मेरे लिए वह चुना जो मैं उस समय अपने लिए नहीं चुन पाती, यानी मुझे कैथलिक कलीसिया में बपतिस्मा का महान अनुग्रह दिया गया।

मुझे सही और गलत जानने की शिक्षा मिली। और जब मैं सही मार्ग से भटक गयी तो मुझे इसका परिणाम भुगतना पड़ा। मेरे माता-पिता ने अपनी जिम्मेदारियों को गंभीरता से लिया और मुझे येशु और कलीसिया के बारे में सिखाने में उन्होंने गर्व महसूस किया। मेरे जीवन में वे ईश्वर के हाथ थे और वे ईश्वर की कृपा से मेरी अंतरात्मा को आकार दे रहे थे।

जैसे-जैसे मैं बढ़ती गयी, मैं ईश्वर के लिए और अधिक भूखी और प्यासी होने लगी। फिर भी, दुनिया तथा कई डर और चिंता के साथ मेरे अपने संघर्ष रास्ते में बाधा बनकर आ गए।

अच्छे और बुरे के बीच की दुविधा ने मेरे जीवन को वर्षों तक त्रस्त किया। मैंने इसे “स्वर्ग और नरक के बीच तनी रस्सी पर चलने का जोखिम” नाम दिया। मुझे याद आती है कि कॉलेज के दिनों में, मैं एक मधुशाला के बाथरूम में शराब के नशे में रात के 1 बजे, दारु पी-पीकर रोज़री माला कर रही थी, इस डर से कि मैं एक दिन भी माला विनती से न चूँकूँ।

जैसे मैं मेरे आंतरिक रस्साकशी को दर्शानेवाले इस प्रकार के क्षणों को याद करती हूँ, वैसे ही मुझे करुणा की याद आती है। मुझे पता था कि मैं किसकी हूँ, लेकिन बार बार भटक जाने के मोह और बहकावे में मैं फंसती रहती थी।

आदि पाप के कारण होने वाला एक सहज संघर्ष हमारे जीवन में व्याप्त है, चाहे हम इसे नाम दे पाएं या नहीं:

मसीह के लिए हमारी गहरी इच्छा का विरोध संसार के प्रलोभनों और दुष्ट शक्तियों द्वारा किया जाता है।

फिर भी करुणा ने मुझे पाप की नाली से बाहर निकाला है, मेरी गंदगी से मुझे साफ किया है और मुझे नए सिरे से धोया है।

जब तक कि मैं उठायी जाने और घर लायी जाने के लिए तैयार हो गयी, तब तक करुणा ने मेरी ओर से सन्देश के लिए इंतजार किया, वह रात के सभी घंटों तक फोन पर बैठी रही।

करुणा ने मुझे जीवन रक्षक की तरह सहारा देते हुए गहरे पानी में डूबने से बचा लिया है।

करुणा ने मेरी चीख़, मेरे आंसू, मेरे गुस्से वाले अपशब्द सुने हैं, और अंत में जब मैं शांत हुई तब उसने मुझे अपने पास रखा है।

करुणा ने मुझे धैर्यपूर्वक पकड़ रखा है क्योंकि मैं बार-बार उसके विरुद्ध लडती रही।

करुणा अंत है। शुरुआत है। वह मेरे जीवन के हर पल में, हर मध्य में है।

करुणा के ईश्वर ने मेरी बाट जोही है, मेरा पीछा किया है, और जब से मैं उसे जानती हूँ तब से वह मुझे क्षमा करता आ रहा है।

और उसकी कृपा से, उसने मुझे आश्वासन दिया है कि वह हमेशा मेरे साथ रहेगा, वह बाहें फैलाकर खडा है, प्यार करता है और बार-बार क्षमा करता है।

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By: Betsey Sawyer Estrade

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जून 03, 2023
Engage जून 03, 2023

दुनिया का सबसे बड़ा खज़ाना हर व्यक्ति की पहुँच में है!

परम पवित्र संस्कार (पवित्र यूखरिस्त) में येशु की उपस्थिति की वास्तविकता असल में महान और अद्भुत है। येशु वास्तव में पवित्र संस्कार में उपस्थित हैं, मैं अपने अनुभव से जानता हूँ, केवल इसलिए नहीं कि कलीसिया इस सच्चाई को सिखाता है।

पहला स्पर्श

कैथलिक करिश्माई नवीकरण में मेरे शुरुआती दिनों में पवित्र आत्मा में बपतिस्मा लेने के बाद का अनुभव प्रभु में मेरे विश्वास को बढ़ाने में मदद करनेवाले मेरे विभिन्न अनुभवों में से एक महत्वपूर्ण अनुभव था। मैं उस समय पुरोहित नहीं था। मैं एक प्रार्थना सभा का नेतृत्व कर रहा था और उस सभा के दौरान हम लोगों के ऊपर प्रार्थना की जा रही थी। परम पवित्र संस्कार आराधना के लिए प्रदर्शित किया गया था और फिर लोग एक-एक करके प्रार्थना करने के लिए आगे बढ़ रहे थें।

एक महिला ने हाथ जोड़कर मुझसे प्रार्थना करने के लिए विनती की। मुझे लगा कि वह मेरे साथ भी प्रार्थना कर रही है। उसने मुझे अपने पति के लिए प्रार्थना करने के लिए आग्रह किया। उनके पति के पैर में समस्या थी। लेकिन जब मैं प्रार्थना कर रहा था, मैंने अपने दिल में महसूस किया कि प्रभु उस महिला को भी चंगा करना चाहता है। इसलिए, मैंने उससे पूछा कि क्या उसे किसी प्रकार के शारीरिक उपचार की आवश्यकता है। उसने मुझसे कहा, “मेरे हाथ ऐसे हैं क्योंकि मेरे कंधे जम गए हैं।” उसे अपने हाथों के कारण हिलने-ढुलने में समस्या थी। जब हम उसकी चंगाई के लिए प्रार्थना कर रहे थे, उसने कहा कि परम पवित्र संस्कार से मानो ऊष्म किरणें निकली, उसके जमे हुए कंधों पर उतरी और वह उसी समय ठीक हो गई।

यह पहली बार था जब मैंने वास्तव में परम पवित्र संस्कार की शक्ति के माध्यम से इस तरह की चंगाई को होते देखा था। यह ठीक वैसा ही है जैसा हमने सुसमाचारों में पढ़ा है — लोगों ने येशु को छुआ और सामर्थ उसमें से निकली और उन्हें चंगा किया।

अविस्मरणीय पल

मुझे अपने जीवन में परम पवित्र संस्कार का एक और शक्तिशाली अनुभव याद है। एक बार मैं किसी ऐसे व्यक्ति के साथ प्रार्थना कर रहा था जो तंत्र-मन्त्र और ओझाई में शामिल था, और उसे मुक्ति की आवश्यकता थी। हम एक समूह के रूप में प्रार्थना कर रहे थे और हमारे साथ एक पुरोहित भी था। लेकिन यह महिला, जो फर्श पर थी, उस पुरोहित को नहीं देख पाई जो परम पवित्र संस्कार को गिरजाघर के पूजा-सामग्री-कक्ष में ले जा रहा था। ठीक उसी क्षण जब पुरोहित उसके मुंह के पास पवित्र संस्कार लाया, एक पुरुष हिंसक आवाज ने ये शब्द कहे: “जिन्हें तुम अपने हाथ में लाए हो, उन्हें मुझसे दूर हटा दो!” इसने मुझे हैरान कर डाला क्योंकि अपदूत ने ‘इसे’ या ‘रोटी का एक टुकड़ा’ नहीं कहा, लेकिन “उन्हें” कहा। शैतान पवित्र संस्कार में येशु की जीवित उपस्थिति को पहचानता है। मैं अपने जीवन के उस पल को कभी नहीं भूलूंगा। जब मैं बाद में पुरोहित बना, तो मैंने शैतान में येशु की वास्तविक उपस्थिति पर दिल और मन से विश्वास करने और प्रचार करने के लिए उन दो घटनाओं को अपने दिल में रखा।

अकथनीय आनंद

एक पुरोहित के रूप में मुझे एक और अनुभव याद आती है जिसे मैं कभी नहीं भूलूंगा। मैं कभी-कभी जेल में धर्म सेवा का कार्य करने जाता हूँ। एक बार मैं जेल के एक विशेष विभाग में परम-प्रसाद दे रहा था। अचानक मैंने अपने दिल में खुशी महसूस की जो स्वयं को कैदियों को देने में येशु महसूस कर रहे थे। यह कुछ ऐसा है जो मैं आपको समझा नहीं सकता। यदि आप पवित्र संस्कार में हम में से हर एक के अन्दर प्रवेश करने में येशु के उस आनंद को अनुभव करें और जान पाएं तो कितना अच्छा होता!

पवित्र-संस्कार का एक और अनुभव जो मुझे याद है वह मेरे लिए एक व्यक्तिगत, भावनात्मक चंगाई थी। एक बार गिरजाघर में मौजूद किसी व्यक्ति ने अपने शब्दों से मुझे बहुत आहत किया। मैं गुस्से को काबू नहीं कर पा रहा था। हालांकि मैं स्वभाव से आक्रामक नहीं हूँ, लेकिन इस चोट ने उस व्यक्ति के खिलाफ बहुत सारी भावनाएं और बुरे विचार पैदा कर दिए। मैं पवित्र-संस्कार में येशु के पास दौड़ा और केवल रोया। उस क्षण जिसने मुझे चोट पहुंचाई उस व्यक्ति केलिए येशु के प्रेम को मैंने महसूस कियावह प्रेम पवित्र संस्कार से निकलकर मेरे हृदय में प्रवेश कर गया। मैंने में उपस्थित येशु ने मुझे चंगा किया, लेकिन इससे भी अधिक, एक पुरोहित के रूप में उन्होंने मुझे यह महसूस करने में मदद की कि हमारे जीवन में प्रेम और चंगाई का वास्तविक स्रोत कहाँ है।

न केवल मेरे लिए एक पुरोहित के रूप में, बल्कि विवाहित व्यक्तियों और युवा लोगों के लिए – वास्तव में वह प्यार कौन दे सकता है जिसकी हम तलाश कर रहे हैं? हमें वह प्रेम कहाँ मिल सकता है जो पाप और घृणा से बढ़कर है? जो प्रभु पवित्र संस्कार में मौजूद है, उसमें वह प्रेम मौजूद है। जिसने मुझे चोट पहुंचाई थी, उस व्यक्ति के लिए प्रभु ने मुझे बहुत प्रेम दिया है।

जिस दिन मैं अपना पहला व्रत लेने वाला था, उसी दिन अचानक मेरे दिल में एक अंधेरा छा गया। मैं समुदाय में अपना नया कमरा खोजने के बजाय सीधे पवित्र संस्कार के प्रकोश की ओर गया। फिर मैंने अपने दिल की गहराइयों में प्रभु को मुझसे यह कहते सुना, “हेयडन, तुम मेरे लिए यहाँ आ रहे हो।” और अचानक सारी खुशी लौट आई। पवित्र संस्कार में येशु ने मुझे फ्रांसिस्कन पुरोहित के रूप में मेरे जीवन के बारे में एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात सिखाई- उसने मुझे अपने लिए बुलाया है, मैं उसके लिए जीवित हूँ। परम प्रसाद का पवित्र संस्कार हम में से प्रत्येक को सिखाता है कि हम येशु से अलग होकर कुछ नहीं कर सकते – यह हमारे बारे में नहीं है, यह केवल उसके बारे में है। हम उसके साथ रहने के लिए कलीसिया में हैं!

एक पुरोहित के रूप में, प्रभु के साथ मिस्सा बलिदान चढ़ाना मेरे लिए सबसे अद्भुत क्षण है और यह मुझे ख्रीस्तीय समुदाय के और भी करीब लाता है। पवित्र संस्कार में येशु ही हमारे बीच एकता के स्रोत हैं। एक पुरोहित के रूप में, मैं पवित्र संस्कार के बिना नहीं रह सकता। जब हम येशु को अपने हृदय में ग्रहण करते हैं, तब वह सबसे बड़ी बात क्या है जो हम उससे पूछ सकते हैं? हम उससे एक बार फिर अपनी पवित्र आत्मा से भरने के लिए आग्रह करते हैं। जब येशु मृतकों में से जी उठे, तो उसने प्रेरितों में पवित्र आत्मा फूंक दी। जब हम पवित्र संस्कार में उसे अपने हृदय में ग्रहण करते हैं, तो वे हमें एक बार फिर हमारे जीवन में पवित्र आत्मा की उपस्थिति और शक्ति प्रदान करते हैं। उससे मांगे कि वे आपको पवित्र आत्मा के वरदानों और सामर्थ्य से भर दे।

आपके लिए तोड़ा गया येशु

एक बार जब मैं परम-प्रसाद को उठाकर उसे तोड़ रहा था, तो मुझे पुरोहिताई के बारे में एक गहरा विश्वास हो गया। हम लोगों को पवित्र संस्कार में ख्रीस्त की उपस्थिति के माध्यम से देखते हैं, हम पुरोहित ख्रिस्त की तरह एक टूटा हुआ शरीर है। एक पुरोहित को ऐसा होना चाहिए। वह अपने जीवन को तोड़ता है ताकि वह अपने जीवन को समुदाय और बाकी दुनिया को दे सके। इस सुंदरता को वैवाहिक जीवन में भी खोजा जा सकता है। प्रेम परम प्रसाद की तरह है। स्वयं को दूसरों को देने के लिए स्वयं को तोड़ना पड़ता है। यूखरिस्त ने मुझे सिखाया है कि ब्रह्मचर्य का जीवन कैसे जीना है, कैसे समुदाय के लिए येशु बनना है, उनके लिए अपना पूरा जीवन देना है। वैवाहिक जीवन में भी ऐसा ही होना है।

अंत में, मैं आपको बता सकता हूँ कि जब भी मैंने अकेलापन या निराश महसूस किया है, तो बस उसके पास जान काफ़ी है – पर्याप्त शक्ति प्राप्त करने के लिए वाही काफ़ी है, भले ही मुझे थकावट महसूस हो रही हो या नींद आ रही हो। मैंने अपनी यात्राओं में और अपने प्रचार में कितनी बार इसका अनुभव किया है कि मैं इसकी गिनती नहीं कर सकता। उसके करीब जाने में ही सबसे अच्छा आराम है। मैं आश्वासन दे सकता हूँ; येशु हमें शारीरिक, आध्यात्मिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से नवीनीकृत कर सकते हैं। क्योंकि परम पवित्र संस्कार में येशु जीवित हैं — वे हमारे लिए हैं!

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By: Father Hayden Williams OFM Cap

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जून 03, 2023
Engage जून 03, 2023

प्रश्न: मेरे बच्चे किशोरावस्था तक नहीं पहुंचे हैं। वे बार बार मोबाइल फोन की मांग कर रहे हैं ताकि वे अपने सभी दोस्तों की तरह सोशल-मीडिया में आ सकें। मैं बहुत दु:खी हूँ, क्योंकि मैं नहीं चाहती कि उन्हें ऐसी छूट दी जाए, क्योंकि मुझे पता है कि यह कितना खतरनाक हो सकता है। आप की राय क्या है?

उत्तर: सोशल-मीडिया का इस्तेमाल अच्छाई के लिए किया जा सकता है। मैं एक बारह वर्षीय बालक को जानता हूँ जो टिक-टॉक पर बाइबल से प्रेरित चिंतन की वीडियो बनाता है, और उसे सैकड़ों लोग देखते हैं। एक युवक इंस्टाग्राम अकाउंट में संतों के बारे में पोस्ट करता है। अन्य युवक नास्तिकों से वाद-विवाद करने या युवाओं को उनके विश्वास में प्रोत्साहित करने के लिए डिस्कॉर्ड जेसे एप्स का इस्तमाल करते हैं। बिना किसी संदेह के, सुसमाचार-प्रचार और ईसाई समुदाय को विश्वास में बढ़ाने में सोशल-मीडिया का अच्छा उपयोग किया जा सकता है।

फिर भी … क्या लाभ जोखिमों से अधिक हैं? आध्यात्मिक जीवन में एक अच्छी सूक्ति है: “ईश्वर पर अत्यधिक भरोसा करें… स्वयं पर कभी भरोसा न करें!” क्या हमें किशोरों को इंटरनेट के असीमित उपयोग का अवसर देना चाहिए? अगर वे सबसे अच्छे इरादों से शुरू करते हैं, तो क्या वे प्रलोभनों का विरोध करने के लिए पर्याप्त रूप से मजबूत या सक्षम हैं? सोशल-मीडिया एक खतरनाक गड्ढा बन सकता है – न केवल अश्लील साहित्य या हिंसा का महिमामंडन जैसे स्पष्ट प्रलोभन, बल्कि इससे भी अधिक कपटपूर्ण प्रलोभन, जैसे: लिंग सम्बन्धी गलत विचारधारा, साइबर धमकियां, ‘लाइक्स’ और ‘व्यूस’ प्राप्त करने का नशा, और जब युवक सोशल-मीडिया पर दूसरों के साथ खुद की तुलना करना शुरू करते हैं तो उनमें अपर्याप्तता की भावना उत्पन होती है। मेरी राय में, लाभों से अधिक जोखिम हैं जो युवाओं को एक धर्मविहीन दुनिया तक पहुंचने की अनुमति देने और उन्हें मसीही सोच से दूर करने की अनगिनत कोशिशें हैं।

हाल ही में एक माँ और मैं उनकी किशोर-बेटी के खराब व्यवहार और रवैये पर चर्चा कर रहे थे, जो कि उसके टिक-टॉक के उपयोग और इंटरनेट में उसकी असीमित उपयोग से संबंधित था। माँ ने आह भरते हुए कहा, “यह कितना दु:खद है कि बच्चे अपने मोबाइल फोन के इतने आदी हैं… लेकिन हम क्या कर सकते हैं?”

हम क्या कर सकते हैं? हम ज़िम्मेदार माता-पिता बन सकते हैं! हाँ, मुझे पता है कि आपके ऊपर जबरदस्त दबाव है कि आप अपने बच्चों को एक फोन या डिवाइस दें, जो मानवता के लिए सबसे खराब तोहफा यानी सोशल मीडिया का असीमित उपयोग करने की अनुमति देने की बात है। लेकिन माता-पिता के रूप में आपका कर्तव्य अपने बच्चों को संत बनाना है। उनकी आत्मा आपके हाथों में हैं। हमें दुनिया के खतरों के खिलाफ रक्षा की पहली दीवार बननी चाहिए। हम उन्हें कभी भी बच्चों का यौन शोषण करने वालों के साथ समय बिताने की अनुमति नहीं देंगे; अगर हमें पता होता कि उन्हें धमकाया जा रहा है तो हम उन्हें बचाने की कोशिश करेंगे; अगर वे बीमार हो रहे हैं, तो हम उन्हें डॉक्टर के पास ले जाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। फिर हम उन्हें अश्लीलता, घृणा और समय बर्बाद करने वाले कचरे के ढेर, जो इंटरनेट पर आसानी से उपलब्ध है, सावधानीपूर्वक मार्गदर्शन दिये बिना उसमें घुसने की अनुमति क्यों देंगे? अध्ययन ने इंटरनेट के नकारात्मक प्रभावों को दिखाया है – और विशेष रूप से सोशल-मीडिया के प्रभावों को – फिर भी हम आंखें मूंद लेते हैं और आश्चर्य की बात है कि हम खुद से पूछते हैं कि हमारे नन्हें बेटे और बेटियां पहचान का संकट, अवसाद, आत्म-घृणा, विभिन्न व्यसन, भ्रष्ट व्यवहार, आलस्य, पवित्रता की इच्छा के अभाव से क्यों जूझते हैं!

हे माता-पिताओ, अपने अधिकार और ज़िम्मेदारियों से दूर न भागें! आपके जीवन के अंत में, प्रभु आपसे पूछेगा कि जिन आत्माओं को उसने आपको सौंपा था, आपने उन की किस तरह से देखभाल की – आप उन्हें स्वर्ग में ले गए या नहीं, और उनकी आत्माओं को पाप से अपनी सर्वोत्तम क्षमता के साथ सुरक्षित रखा कि नहीं। “ओह, अन्य सब लोगों के बच्चों के पास फोन है, अगर मेरे बच्चे के पास फोन नहीं होगा, तो बड़ा अजीब लगेगा!” हम इस बहाने का उपयोग नहीं कर सकते हैं।

यदि आप उनके फोन पर प्रतिबंध लगाते हैं, तो क्या आपके बच्चे आपसे नाराज होंगे, क्या वे आपसे नफरत करेंगे? शायद। लेकिन उनका क्रोध अस्थायी होगा — उनकी कृतज्ञता अनंत होगी। मेरी एक दोस्त सोशल-मीडिया के खतरों के बारे में बात करती हुई देश-भर घूमती रहती है, हाल ही में उसने मुझे बताया कि उसके व्याख्यानों के बाद उसके पास हमेशा कई युवा वयस्क दो प्रतिक्रियायें लेकर आते हैं, पहला: “उस समय मेरा मोबाइल फ़ोन मुझसे छीन लेने के लिए मैं अपने माता-पिता के प्रति बहुत गुस्से में था, लेकिन अब मैं उनका आभारी हूँ।” दूसरा: “मैं वास्तव में सोचता हूँ कि मेरे माता-पिता ने मुझे अपनी मासूमियत खोने से बचाया होता।” उनके माता-पिता ने उन्हें छूट दिए थे, इस बात के लिए कोई भी युवक आभारी नहीं!

तो अब क्या करें? सबसे पहले, किशोरों (या उन से भी छोटों!) को इंटरनेट या ऐप्स से भरे हुए फ़ोन न दें। अभी भी बहुत सारे साधारण फोन मिलते हैं! यदि आप उन्हें ऐसे फोन देते हैं जो इंटरनेट से चलते हैं, तो उन पर प्रतिबंध लगाएं। अपने बेटे के फोन पर और अपने घर के कंप्यूटर पर “कवनंट आईस” ऐप (Covenent Eyes App) डाउनलोड करें (लगभग हर पापस्वीकर जो मैंने सुना है उसमें पोर्नोग्राफी शामिल है, जो घातक रूप से पापमय है और आपके बेटे को महिलाओं के प्रति केवल वस्तुओं के रूप में देखने के लिए प्रेरित कर सकती है, जिसका उसके भविष्य के रिश्तों पर बहुत बड़ा प्रभाव होगा)। उन्हें भोजन के समय या अकेले अपने शयनकक्ष में वीडियोस न देखने दें। समान नीतियों वाले अन्य परिवारों का समर्थन प्राप्त करें। सबसे महत्वपूर्ण बात – अपने बच्चे का दोस्त बनने की कोशिश न करें, बल्कि उसके माता-पिता बनें। सच्चे प्रेम के लिए सीमाओं, अनुशासन और त्याग की आवश्यकता होती है।

आपके बच्चे का शाश्वत कल्याण आपके हाथ में है, इसलिए यह न कहें, “अब मैं कुछ नहीं कर सकता- मेरे बच्चे को इसमें फिट होने की जरूरत है।” यहाँ पृथ्वी पर फिट होने से बेहतर है अलग दिखना, ताकि हम संतों की संगति में फिट हो सकें!

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By: फादर जोसेफ गिल

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जून 03, 2023
Engage जून 03, 2023

उसको जितना किसी और चीज़ से गर्व नहीं होता उतना मम्मी का बेटा कहलाने पर गर्व होता है। रोब ओ हारा ईश माता के करीब रहने की अपनी सुंदर जीवन कहानी सुनाते हैं

यह सब कहां से शुरू हुआ?

कई साल पहले जब मैं एक बच्चा था, डबलिन में अपने माता-पिता के एकमात्र बच्चे के रूप में पला-बढ़ा। वे दोनों बिना किसी झिझक के रोज़ माला विनती की प्रार्थना करते थे। फादर पैट्रिक पायटन का आदर्श वाक्य, “परिवार जो एक साथ प्रार्थना करता है, एक साथ रहता है” मेरे घर का भी नारा था।

पहली बार माँ मरियम से अपनी मुलाकात मुझे याद है, उस समय मैं एक छोटा लड़का था। मेरे माता-पिता ने लोगों को मई के महीने में, जो माँ मरियम का विशेष महीना है, रोज़री की प्रार्थना करने के लिए आमंत्रित किया था। यह मेरे लिए बहुत मायने नहीं रखता था, लेकिन अचानक, जैसे ही मैं रोज़री प्रार्थना करने वाले लोगों की भीड़ के बीच बैठा, मुझे प्रार्थना करने की तीव्र इच्छा महसूस हुई। गुलाबों की सुगंध चारों तरफ भर गई, और मैंने माता मरियम की उपस्थिति को महसूस किया। जब रोज़री माला समाप्त हो गई, तो मैंने प्रार्थना करते रहने की तीव्र इच्छा महसूस की और लोगों से और कुछ समय तक रुकने का आग्रह किया, “आइए एक और रोज़री माला जपें, माँ मरियम यहाँ उपस्थित हैं।” इसलिए, हमने एक बार और माला की विनती की, लेकिन वह अभी भी पर्याप्त नहीं थी। लोग जाने लगे, लेकिन मैं वहीं रुका रहा और माता मरियम के साथ 10-15 बार माला विनती की। मैंने माँ मरियम को नहीं देखा, लेकिन मुझे पता था कि वह वहाँ थी।

जब मैं चार या पाँच साल का था, मैंने पहली बार मूर्त रूप में माता मरियम की कृपा और सहायता का अनुभव किया। 80 के दशक में बेरोजगारी अधिक थी। मेरे पिता की नौकरी चली गई थी, और चूंकि उनकी उम्र करीब पैंतालीस थी, इसलिए दूसरी नौकरी पाना आसान नहीं था। बड़े होते हुए मैंने यह कहानी कई बार सुनी है, इसलिए मेरे दिमाग में इसका विवरण स्पष्ट है। मेरे माता-पिता विश्वास के साथ माता मरियम की शरण में गए। उन्होंने रोजरी की एक नौरोजी प्रार्थना शुरू कर दी और नौरोजी प्रार्थना के अंत में, मेरे पिताजी को वह नौकरी मिल गई जो वे वास्तव में चाह रहे थे।

सताता हुआ खालीपन

जब मैं अपनी किशोरावस्था में पहुंचा, तो मुझे लगा कि विश्वास, प्रार्थना और यहाँ तक कि माता मरियम के बारे में बात करना भी उतने मजेदार बातें नहीं हैं। इसलिए मैंने रोज़री माला जपना बंद कर दिया और जब मेरे माता-पिता प्रार्थना कर रहे होते तो मैं वहाँ न होने के बहाने खोजता था। दु:ख की बात है कि मैं धर्मविहीन दुनिया में फँस गया और वास्तव में खुद को उसमें झोंक दिया। मैं उस शांति, आनंद और तृप्ति के बारे में भूल गया जो मैंने अपने बचपन में और अपनी किशोरावस्था से पूर्व प्रार्थना में पाया था। मैंने खुद को खेल, सामाजिकता और अंततः अपने करियर में पूरी तरह झोंक दिया। मैं सफल और लोकप्रिय था, लेकिन मेरे अंदर हमेशा एक कुतरता हुआ खालीपन था। मैं किसी चीज़ के लिए तरस रहा था, लेकिन मुझे नहीं पता था कि वह क्या है। मेरे घर आते ही मेरे माता-पिता माला विनती करते हुए दिखाई देते थे और मैं अपने आप पर हँसता और आगे बढ़ जाता।

जब यह सताता हुआ खालीपन मेरे जीवन को झुलसाता रहा, तो मैंने सोचा कि चाहे मैं कुछ भी कर लूँ यह खालीपन मुझे क्यों नहीं छोड़ता। हालाँकि मेरे पास एक अच्छी नौकरी थी, लेकिन मैं इतनी बुरी तरह से परेशान हो जा रहा था कि मैं अवसाद से घिरता गया। एक दिन, अवसाद के एक और भयानक दिन के बाद, मैं घर आया और अपने माता-पिता को हमेशा की तरह अपने घुटने टेक कर माला विनती करते हुए देखा। वे खुशी से मेरी ओर मुड़े और मुझे उनके साथ प्रार्थना में शामिल होने के लिए कहा। मुझे कोई बहाना नहीं सूझ रहा था, इसलिए मैंने कहा, “ठीक है।” मैंने उन मालाओं को उठाया जो कभी मेरे स्पर्श से परिचित थीं और मैंने प्रार्थना में अपना सिर झुका लिया।

मरियम के आंचल में

मैं मिस्सा बलिदान के लिए गया जहां कुछ पुराने मित्रों ने मुझे गिरजाघर के पीछे की पंक्ति में बैठे हुए देखा, तो उन्होंने मुझे एक प्रार्थना सभा में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया। जब मैं गया, तो अन्य युवाओं को रोज़री की प्रार्थना करते हुए देखकर मुझे आश्चर्य हुआ। जैसे ही मैंने प्रार्थना करने के लिए घुटने टेका, मेरे मन में बचपन की माला विनती करते हुए आनंदपूर्ण यादे उमड़ने लगीं। चूंकि मैंने अपनी “माँ” के साथ वह रिश्ता तोड़ दिया था, इसलिए बहुत लंबे समय तक मैंने उनसे बात नहीं की थी। उस दिन के बाद काम करने जाते वक्त रास्ते में नियमित रूप से माला विनती करते हुए, मैंने अपने दिल की बातें माता मरियम से कहनी शुरू कर दी।

माता मरियम के मातृ आलिंगन में वापस आने के बाद, मेरे जीवन के सभी क्षेत्रों से अंधेरापन और भारीपन दूर होने लगा और मुझे काम का समय बहुत अच्छा लगने लगा। जब मुझे एहसास हुआ कि माँ मरियम मुझसे कितना प्यार करती है, तो मैंने अपने दिल की बातें उन्हें ज्यादा से ज्यादा बतानी शुरू कर दी। मैंने अपने आप को उनके आँचल में लिपटा और शान्ति से घिरा हुआ महसूस किया।

लोगों ने ध्यान देना शुरू कर दिया कि मैं कितना खुश हूँ और मुझसे पूछने लगे किस चीज़ ने तुम्हारा जीवन इतना बदल दिया। “ओह, बस इसलिए कि मैंने फिर से माला विनती करना शुरू कर दिया है।” मुझे यकीन है कि मेरे दोस्तों ने सोचा होगा कि 20 की उम्र पर करने वाले एक युवक के लिया के यह कुछ अजीब लग रहा है, लेकिन वे देख सकते थे कि मैं कितना खुश था। जितना अधिक मैंने प्रार्थना की, उतना ही अधिक मैं पवित्र संस्कार एवं परम प्रसाद में उपस्थित प्रभु येशु के प्रेम में डूबता चला गया। जैसे-जैसे येशु के साथ मेरा संबंध बढ़ता गया मैं अधिक से अधिक येशु की ओर मुड़ता गया, मैंने आयरलैंड में कैथलिक युवा आंदोलनों में शामिल होना शुरू कर दिया जैसे प्योर इन हार्ट आन्दोलन और यूथ 2000। मैं सेंट लुइस डी मोंटफोर्ट द्वारा लिखित “ मरियम के द्वारा येशु के प्रति सम्पूर्ण समर्पण” और “मरियम की सच्ची भक्ति” जैसी किताबें पढ़ने लगा। संत पापा जॉन पॉल द्वितीय ने इससे प्रेरित होकर आदर्श वाक्य “टोटस टूस” (सम्पूर्ण रूप से तेरा) अपनाया था। इस वाक्य ने मुझे गहराई से प्रभावित किया। मैंने माता मरियम से भी कहा, “मैं खुद को पूरी तरह से तुझे देता हूं।” जैसे-जैसे इन महान संगठनों की मदद द्वारा मेरा विश्वास बढ़ता गया, और मुझे बहुत अधिक आनंद महसूस हुआ। मैंने सोचा, “यह स्वर्ग है, यह महान है!”

“उस सही एक” की तलाश

मैं अपने दिल में जानता था कि मेरी बुलाहट वैवाहिक जीवन की है, लेकिन मैं उस समय सही महिला से नहीं मिल पा रहा था। इसलिए मैंने माता मरियम से निवेदन किया, “मेरे लिए सही पत्नी खोजने में मेरी मदद कर, ताकि हम एक साथ तुझसे प्रार्थना कर सकें और तेरे बेटे को और अधिक गहराई से प्यार कर सकें।” मैंने हर दिन यह प्रार्थना की और मैंने अपनी भावी पत्नी के लिए और हमें आशीर्वाद में मिलने वाले बच्चों के लिए येशु और मरियम को धन्यवाद देना शुरू कर दिया। तीन महीने बाद, मैं अपनी भावी पत्नी बर्नी से मिला। अपनी पहली मुलाक़ात पर मैंने उससे कहा, “चलो गिरजाघर में चलते हैं और माता मरियम से माला विनती की प्रार्थना करते हैं।”

बर्नी ना कह सकती थी, लेकिन उसने कहा, “हाँ, चलो करते हैं” और हमने माता मरियम की मूर्ति के सामने घुटने टेक कर एक साथ माला विनती की। वह मेरी प्रेमावस्था की सबसे अच्छी मुलाक़ात थी! अपने पूरे प्रेमालाप के दौरान हमने विवाह संस्कार के लिए तैयार होने और हमारे विवाह में हमारे साथ रहने के लिए हर रोज माता मरियम और संत जोसेफ से माला विनती करते थे। हमने रोम में शादी की और यह हमारे जीवन का सबसे अच्छा दिन था। कुछ ही समय बाद बर्नी ने गर्भधारण किया। जब हमारी नन्हीं बेटी लुसी का जन्म हुआ, तो हमने उसे बपतिस्मा के दिन माता मरियम को समर्पित किया।

तूफानों का वह दौर

हमारी शादी के शुरुआती वर्षों में, मैंने कॉर्पोरेट बैंकिंग की दुनिया से नौकरी छोड़ दी। यह कई कारणों से मेरे लिए सही जगह नहीं थी। जब मैं बेरोजगार था, किराए का भुगतान करने और एक छोटे बच्चे को पालने की कोशिश कर रहा था, हमने सही नौकरी मिलने के लिए माला विनती की। आखिरकार, हमारी प्रार्थनाओं का जवाब ह्यूमन लाइफ इंटरनेशनल नामक एक धर्मार्थ संगठन के लिए एक अद्भुत काम के रूप में मिला। ईश्वर की जय और माता मरियम को धन्यवाद!

जब बर्नी ने जुड़वाँ लड़कों को जन्म दिया तो हमें और खुशी हुई, हालाँकि गर्भावस्था के सोलहवें सप्ताह में, प्रसव पीड़ा में बर्नी को लेकर हम अस्पताल पहुंचे। स्कैन से पता चला कि जुड़वा बच्चे जीवित नहीं रह पाएंगे। लेकिन निराश होने के बजाय हमने माता मरियम की ओर रुख किया। वह हमारे साथ थी, हमें वास्तव में अपने पर निर्भर रहने के लिए प्रोत्साहित कर रहीं थी। हमने प्रार्थना की कि वह एक चमत्कारी चंगाई के लिए मध्यस्थता करे। जो हफ्ता हमने अस्पताल में बिताया, हम आनंदित थे, मजाक कर रहे थे और हंस रहे थे। हम आशा से भरे हुए थे और कभी निराश नहीं हुए।
अस्पताल के कर्मचारी हैरान थे कि इतने कठिन समय से गुजर रहा यह युवा जोड़ा किसी तरह अपनी खुशी और उम्मीद बनाए हुए है। मैं बिस्तर पर घुटने टेकता और हम माता मरियम से हमारे साथ रहने के लिए निवेदन करते हुए हम दोनों माला विनती करते थे। हमने जुड़वां बच्चों को येशु और मरियम की देखभाल में सौंप दिया, लेकिन छठवें दिन बर्नी का गर्भपात हो गया, और हमने अपने बेटों को येशु और मरियम की प्यार भरी देखभाल में सौंप दिया। यह एक कठिन दिन था। हमें उन्हें हाथों में उठाना है और उन्हें दफनाना है। लेकिन माता मरियम हमारे दुख में हमारे साथ थीं। जब मुझे कमजोरी महसूस हुई, जैसे मैं जमीन पर गिर रहा था, माता मरियम ने मुझे पकड़ लिया। जब मैंने अपनी पत्नी को रोते हुए देखा और यह जानता कि मुझे मजबूत बने रहना है, तो माता मरियम ने मेरी मदद की।

कृपा का इशारा

जब हम अभी भी दुःखी थे, हम मेडजुगोरजे की तीर्थ यात्रा पर गए। पहले दिन, हमें अप्रत्याशित रूप से पता चला कि पवित्र मिस्सा बलिदान चढ़ाने वाले फादर रोरी थे जो हमारे बहुत अच्छे मित्र थे। हालाँकि वे नहीं जानते थे कि हम वहाँ हैं, हमें लगा कि उनका उपदेश हमारे लिए और हमारे प्रति था। उन्होंने वर्णन किया कि कैसे एक प्रसिद्ध व्यक्ति ने अपने युवा मित्र की दारुण मृत्यु पर अपनी रोज़री माला उठाकर उसका सामना किया। रोज़री माला ने उसे उस अंधेरी जगह से बाहर निकला। हमारे लिए, वह एक पुष्टिकरण था — येशु और मरियम का एक संदेश; हम उनकी ओर मुड़कर और माला विनती करके इस कठिन घड़ी से बाहर निकल सकते हैं।

दो साल बाद, हमें एक और प्यारी सी बच्ची जेम्मा मिली। बाद में, मेरे पिता बीमार हो गए और जब वे अपनी मृत्यु शैय्या पर थे, मेरी पत्नी ने मुझे प्रोत्साहित किया कि मैं उनसे पूछूं कि उनके पसंदीदा संत कौन हैं। जब मैंने उनसे पूछा, तो उनके चेहरे पर एक खूबसूरत मुस्कान आ गई और उन्होंने कोमलता से उत्तर दिया, “मरियम…। क्योंकि वह मेरी माँ है।” मैं इसे कभी नहीं भूलूंगा। यह उनके जीवन के अंत के बहुत करीब की घटना है और उनका आनंद उस चीज़ को दर्शा रहा था जो आगे उनका इंतजार कर रहा था।

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By: Rob O'Hara

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जून 03, 2023
Engage जून 03, 2023

सही निर्णय लेना महत्वपूर्ण है; आपका क्या निर्णय है?

चालीस साल पहले, मशहूर गायक बॉब डिलन ने ईसाई धर्म की खोज में खुद को डुबो दिया, जो उनके ‘स्लो ट्रेन कमिंग’ नामक एल्बम (1979) में स्पष्ट झलकता था। निम्नलिखित गीत में, डिलन प्रश्न पूछते हैं ‘आप अपनी परम निष्ठा किसे देते हैं?’

“हाँ, आपको किसी की सेवा करनी होगी। खैर, यह शैतान हो सकता है, या यह ईश्वर हो सकता है, लेकिन आपको किसी की सेवा करनी होगी।”

हम इस प्रश्न को टाल नहीं सकते, क्योंकि हम वास्तव में “किसी की सेवा करने के लिए” बने हैं। ऐसा क्यों है? हम किसी भी चीज या किसी के प्रति अपनी निष्ठा दिए बिना सिर्फ एक अनुभव से दूसरे अनुभव की ओर क्यों नहीं उछल सकते? उत्तर हमारे मानव स्वभाव से आता है: हमारे पास एक मन (चिंतनशील चेतना) और एक इच्छा है (जो अच्छाई की इच्छा रखता है)। हमारे दिमाग में, हमारे मानव अस्तित्व में अर्थ तलाशने की अंतर्निहित क्षमता है। अन्य प्राणियों के विपरीत, हम केवल अनुभव नहीं करते हैं; बल्कि, हम एक कदम पीछे जाते हुए जो अभी-अभी हुआ उसकी व्याख्या करते हैं और उसे अर्थ देते हैं। अपने अनुभवों से अर्थ निकालने की हमारी प्रक्रिया में, हमें डिलन के प्रश्न का सामना करना चाहिए: मैं किसकी सेवा करूं?

क्या आप अपने अंत की ओर बढ़ रहे हैं?

येशु अपनी आदत के अनुसार निर्णय को सरल व्याख्या देते हुए कहते हैं, “कोई भी दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता। वह या तो एक से घृणा करेगा और दूसरे से प्रेम, या एक के प्रति समर्पित रहेगा और दूसरे का तिरस्कार करेगा। तुम ईश्वर और धन दोनों की सेवा नहीं कर सकते” (मत्ती 6:24)।

येशु जानते हैं कि हम या तो हमारे अस्तित्व का स्रोत ईश्वर के साथ संबंध में रहकर पूर्णता की तलाश करते हैं, या हम ईश्वर से अलग रहकर खुशी की तलाश करते हैं। हम दोनों तरीकों से एक साथ जीवन नहीं जी सकतें: “…या तो शैतान, नहीं तो ईश्वर, लेकिन आपको किसी की सेवा तो करनी ही होगी।” हम जो चयन करते हैं, वही हमारे भविष्य को निर्धारित करता है।

जब हम ‘धन’ के प्रति अपनी निष्ठा देते हैं तो हम अपने सच्चे आत्मन् को अस्वीकार कर देते हैं, क्योंकि हमारे अस्तित्व का सही अर्थ ईश्वर और पड़ोसी के साथ वास्तविक संबंध होना है। ‘धन’ को चुनने में हम उपभोग करने वाले व्यक्ति में बदल जाते हैं, जो संपत्ति, प्रतिष्ठा, शक्ति और आनंद में अपनी पहचान पाता है। जब हम ऐसा करते हैं, तो हम खुद को केवल वस्तु या भौतिक चीज़ के समान देखते हैं। समकालीन शब्दों में, हम इसे ‘स्वयं का भौतिकीकरण’ कहते हैं। दूसरे शब्दों में, हम वही हैं जिसपर हम स्वामित्व रखते हैं।

संपत्ति, प्रतिष्ठा, शक्ति और आनंद का मार्ग एक गतिरोध की ओर ले जाता है। क्यों? क्योंकि वे हैं…
• दुर्लभ — हर कोई धन, प्रशंसा, आनंद और शक्ति का वारिस नहीं हो सकता। यदि संसार की वस्तुओं का होना सुख का द्वार है, तो अधिकांश मनुष्यों के पास सुख का कोई अवसर नहीं हो सकता है।
• विशिष्ट – जो उनकी कमी का परिणाम है। जीवन शून्य-राशि का खेल बन जाता है, जिसमें समाज ‘अमीर’ और ‘गरीब’ में बंट जाता है। ब्रूस स्प्रिन्गस्टन अपने एक गीत में लिखते हैं, “इधर केवल विजेता और कायर हैं, बस तुम उस लकीर के गलत पाले में मत फंसो”।
• परिवर्त्तनशील – जिसका मतलब है कि हमारी ज़रूरतें और चाहें बदलती रहती हैं; हम कभी भी किसी अंतिम बिंदु तक नहीं पहुंच पाते क्योंकि पाने के लिए हमेशा कुछ और होता है।
• अल्पकालिक – उनका मुख्य दोष सतहीपन है। जबकि भौतिकतावाद, प्रशंसा, स्थिति और नियंत्रण में रहना हमें कुछ समय के लिए संतुष्ट कर सकता है, वे हमारी गहरी लालसा को संबोधित नहीं करते हैं। अंत में, वे गुजर जाते हैं: “व्यर्थ ही व्यर्थ, व्यर्थ ही व्यर्थ, सब कुछ व्यर्थ है” (उपदेशक 1:2ख)।

हमारी सही पहचान

इस दुनिया के धन और सुखों का पीछा करने से मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक रूप में विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है। यदि मेरा आत्म-मूल्य मेरी संपत्ति और उपलब्धियों पर निर्भर करता है, तो नवीनतम गैजेट्स की कमी या कुछ विफलता का अनुभव करने का अर्थ है कि मेरे पास न केवल दूसरों की तुलना में कम है या मैं किसी प्रयास में विफल रहा हूं, बल्कि यह गलत सोच है कि मैं एक व्यक्ति के रूप में विफल रहा हूं। खुद की तुलना दूसरों से करना और खुद से पूर्णता की उम्मीद करना आज इतने सारे युवाओं द्वारा अनुभव की गई चिंता को समझाता है। और जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है और हम कम उत्पादक होते जाते हैं, हम अपनी उपयोगिता और आत्म-मूल्य की भावना खो सकते हैं।

येशु हमें बताते हैं कि हमारा दूसरा विकल्प “प्रभु की सेवा करना” है जो प्रभु स्वयं जीवन है और जो अपने जीवन को हमारे साथ साझा करना चाहता है ताकि हम उसके जैसा बन सकें और उसके अस्तित्व के आश्चर्य को प्रतिबिंबित कर सकें। मिथ्यापूर्ण व्यक्तित्व, पुराना व्यक्तित्व, भौतिक वस्तुओं पर केन्द्रित व्यक्तित्व हमें आत्म-अवशोषण और आध्यात्मिक मृत्यु की ओर ले जाता है। लेकिन “प्रभु की सेवा” करने से हम प्रभु के आत्मन् में प्रवेश करते हैं। नया आत्मन्, सच्चा आत्मन् मसीह हम में बसा हुआ है; यह वह आत्मन् है जिसे प्रेम करने का आदेश दिया गया है, क्योंकि संत योहन हमें याद दिलाते हैं, “ईश्वर प्रेम है” (1 योहन 4:7ब)। संत पोलुस कहते हैं कि जब हमारे पास वह सच्चा आत्मन् है, तो हम अपने निर्माता की छवि में नए हो रहे हैं (कलोसी 3: 1-4)।

‘हम कौन हैं’ यह जानना, ‘हमें क्या करना है’ इस के बारे में जानने में हमारी मदद करता है। हमारे पास जो है उससे कहीं अधिक मायने रखता है कि हम कौन हैं। क्योंकि यदि हम जानते हैं कि हम कौन हैं तो इससे हमें पता चलेगा कि हमें क्या करना है। हम ईश्वर के प्रिय बच्चे हैं जिन्हें ईश्वर के प्रेम में बसने के लिए बनाया गया है। यदि हम उस सत्य पर ध्यान केंद्रित करते हैं; तो यह जानना कि किसकी सेवा करनी है, यह कोई कठिन निर्णय नहीं होगा। योशुआ की प्रतिध्वनि करते हुए, हम पूरे विश्वास के साथ कह सकते हैं, “मैं और मेरा परिवार, हम सब प्रभु की उपासना करना चाहते हैं” (योशुआ 24:15)।

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By: डीकन जिम मैकफैडेन

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जून 03, 2023
Engage जून 03, 2023

आज यदि आप स्पष्ट रूप से सुनते हैं कि ईश्वर आपसे क्या करवाना चाहता है…तो इसे करने का साहस करें!

“पहले मठवासी बनो।” जब मैं 21 साल का था तब मुझे ईश्वर से यही शब्द मिले थे; जिन सपनों, योजनाओं, आकांक्षाओं और ख्वाहिशों के साथ एक औसतन 21 वर्षीय व्यक्ति से अपेक्षा की जाती है, ऐसे में 21 साल की उम्र में मुझे यही आदेश प्राप्त हुआ था। एक वर्ष के भीतर कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई करने की मेरी योजना थी। हॉलीवुड में स्टंटमैन के रूप में काम करते हुए युवको के बीच धर्मसेवा के कार्य करने का सपना भी था। मैंने कल्पना की कि मैं एक दिन फिलीपींस जाऊंगा, और एक दूरस्थ द्वीप पर जनजातियों के बीच रहते हुए कुछ समय बिताऊँगा। और हां, शादी और बच्चों के प्रति मेरा बहुत मजबूत आकर्षण था। जब परमेश्वर मुझसे उन चार अचूक शब्दों को बोला, तब मेरी ये आकाक्षाएँ आचानक से अवरुद्ध हो गयीं। जब मैं लोगों को बताता हूं कि कैसे ईश्वर ने मेरे जीवन के लिए अपनी इच्छा स्पष्ट की, तब कुछ उत्साही ईसाई ईर्ष्या व्यक्त करते हैं। वे अक्सर कहते हैं, “काश ईश्वर मुझसे इस तरह बात करता।” इसके जवाब में, मैं अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर ईश्वर के बोलने के तरीके पर कुछ स्पष्टीकरण देना चाहता हूं।

ईश्वर तब तक नहीं बोलता जब तक कि हम, जो वह कहना चाहता है उसे सुनने और ग्रहण करने के लिए तैयार नहीं होते। उसे क्या कहना है यह इस बात से निर्धारित हो सकता है कि हमें तैयार होने में कितना समय लगता है। जब तक हम परमेश्वर के वचन को सुन और ग्रहण नहीं कर सकते, तब तक वह केवल प्रतीक्षा करेगा; और परमेश्वर बहुत लंबे समय तक प्रतीक्षा कर सकता है, जैसा उड़ाऊ पुत्र के दृष्टांत में दिखाया गया है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि जो लोग उसकी बाट जोहते हैं उन्हें पूरे पवित्रग्रन्थ में सम्मानित किया गया है। मुझे मठवासी बनने की अपनी बुलाहट की शुरुआत इस बात के विवरण के साथ करनी चाहिए कि मेरी बुलाहट वास्तव में कैसे शुरू हुई। जब मैंने एक किशोर के रूप में कलीसिया के श्रेष्ठ आचार्यों को पढ़ना शुरू किया, या अधिक सटीक रूप से, जब मैंने प्रतिदिन बाइबल पढ़ना शुरू किया, तब मैंने परमेश्वर की आवाज़ सुनी। इन विवरणों पर गौर करने से पता चलता है कि सात साल के विवेक के बाद ही मुझे परमेश्वर से सिर्फ चार शब्द मिले।

किताबों में गहन खोज

मुझे बचपन में किताब पढ़ने से नफरत थी। जब अंतहीन रोमांच भरे साहस के कार्य मेरे दरवाजे के ठीक बाहर थे, तब एक उमस भरे कमरे में एक किताब के साथ घंटों तक बैठे रहने का कोई मतलब नहीं था। हालाँकि, प्रतिदिन बाइबल पढ़ने की अनिवार्यता ने एक अनसुलझी दुविधा पैदा कर दी। प्रत्येक सुसमाचार के उद्घोषक जानता है कि कोई भी ईसाई जो बाइबिल पर धूल जमा होने देता है वह ईसाई नहीं है। लेकिन मैं पवित्र शास्त्र का अध्ययन कैसे कर सकता था जब मुझे पढ़ना ही पसंद नहीं था? एक युवा पादरी के प्रभाव और उनके आदर्श से प्रेरित होकर, मैंने अपने आप को समझाया और एक समय में एक किताब पढ़ते हुए अपने आप को ईश्वर के वचन पर मनन करने के कार्य में लगा दिया। जितना अधिक मैंने पढ़ा, उतना ही अधिक मैं प्रश्न पूछने लगा। अधिक प्रश्नों ने मुझे अधिक उत्तरों के लिए और किताबों को पढ़ने के लिए प्रेरित किया।

किशोर लोग स्वभाव से तीव्र होते हैं। सूक्षम्ता कुछ ऐसी चीज़ है जो वे जीवन में बाद में सीखते हैं, यही कारण है कि कलीसिया के आचार्यों ने मुझे एक युवा व्यक्ति के रूप में इतना मुग्ध कर दिया। इग्नेसियुस सूक्ष्म नहीं था। ओरिजन परिष्कृत व्यक्ति नहीं था। कलीसिया के आचार्य हर दृष्टि से अतिवादी थे, उन्होंने सांसारिक वस्तुओं को त्याग दिया, रेगिस्तान में रहते थे, और अक्सर प्रभु के लिए अपने जीवन का बलिदान कर देते थे। एक किशोर के रूप में चरम की ओर झुकाव के साथ, मुझे ऐसा कोई नहीं मिला जो कलीसिया के आचार्यों का मुकाबला कर सके। किसी एम.एम.ए. के लड़ाकू का पेरपेतुआ के साथ तुलना नहीं की जा सकती। हेरमास के चरवाहे से बड़ा कोई सर्फर नहीं था। और फिर भी, इन प्रारंभिक मौलिकवादियों ने जिस चीज की परवाह की, वह बाइबल में बताए गए मसीह के जीवन की नकल करने के अलावा और कुछ नहीं थी। इसके अलावा, वे सभी ब्रह्मचर्य और ध्यान मनन का जीवन जीने पर सहमत थे। यह विरोधाभास मुझपर प्रभाव डालने वाला था। कलीसिया के आचार्यों की तरह अतिवादी होना सतही तौर पर सांसारिक जीवनशैली दिखाई देती थी। विचार करने के लिए और भी प्रश्न थे।

ईश्वर के साथ बातचीत

मेरे स्नातक स्तर की पढ़ाई लगभग पूरी होने के साथ, मैं नौकरी के प्रस्तावों को लेकर परेशान था जो कॉलेज के बाद मेरी आगे की शिक्षा के लिए सामुदायिक संबद्धता के साथ ही संभावित संस्थानों को निर्धारित करेगा। उस समय, मेरे एंग्लिकन पादरी मित्र ने मुझे इस मामले को प्रार्थना में ईश्वर के सामने रखने की सलाह दी। मुझे ईश्वर की सेवा कैसे करनी चाहिए, यह निर्णय अंततः मेरा नहीं बल्कि ईश्वर का निर्णय होना था। और प्रार्थना के द्वारा ईश्वर की इच्छा को जानने के लिए एक मठ से बेहतर जगह कौन हो सकती है? इसलिए मैं सेंट एंड्रयूज मठ में गया। वहां रहते हुए पास्का रविवार को मेरे पास एक महिला आई जिससे मैं पहले कभी नहीं मिला था और वह मुझसे बोली, “मैं तुम्हारे लिए प्रार्थना कर रही हूं, और मैं तुमसे प्यार करती हूं।” मेरा नाम पूछने के बाद, उसने मुझे संत लूकस के पहले अध्याय को पढ़ने की सलाह दी, और बोली “यह पाठ आपको अपनी बुलाहट निर्धारित करने में मदद करेगा।” मैंने उसे धन्यवाद दिया और जैसा उसने निर्देश दिया था वैसा ही किया। जब मैं प्रार्थनालय के लॉन में बैठकर योहन बप्तिस्ता के जन्म की कहानी के बारे में पढ़ रहा था, मैंने अपने और योहन के जीवन के बीच कई समानताएँ देखीं। मैं यहां पूर्ण विवरण नहीं देना चाहूँगा। मैं बस इतना ही कहूँगा कि यह ईश्वर के वचन के साथ मेरा अब तक का सबसे आंतरिक अनुभव था। ऐसा लगा जैसे वह वाक्य उसी क्षण मेरे लिए लिखा गया हो।

मैंने प्रार्थना करना जारी रखा और घास के लॉन पर बैठकर ईश्वर के निर्देश की प्रतीक्षा करता रहा। क्या वह मुझे न्यूपोर्ट बीच, या वापस मेरे गृहनगर सैन पेड्रो में कोई नौकरी ढूँढने के लिए निर्देशित करेगा? बड़े सब्र के साथ मैं ईश्वर का दिशानिर्देश का इंतज़ार करता रहा। घंटों बीत गए। अचानक मेरे मन में एक अनपेक्षित आवाज गूंजी; “पहले मठवासी बनो।” यह चौंकाने वाला था, क्योंकि यह वह उत्तर नहीं था जिसकी मुझे तलाश थी। स्नातक स्तर की पढ़ाई के बाद मठ में प्रवेश करने का विचार मेरे मन की आखिरी सोच थी। इसके अलावा, मेरे पास आगे के जीने के लिए एक मजेदार और रंगीन जीवन था। मैंने हठपूर्वक ईश्वर की आवाज़ को यह कहते हुए अनसुना कर दिया कि यह मेरे अवचेतन से उठने वाला कोई उटपटाँग विचार होगा। दोबारा प्रार्थना करते हुए, मैंने फिर से ईश्वर को सुनने की कोशिश की ताकि वह अपनी इच्छा मुझ पर प्रकट करे। अगले ही क्षण, एक छवि ने मेरे दिमाग पर कब्जा कर लिया; तीन सूखी नदियों के तट दिखाई दिए। किसी तरह, मुझे पता था कि एक नदी का किनारा मेरे गृहनगर सैन पेड्रो को दर्शाता था, दूसरी नदी का किनारा न्यूपोर्ट को दर्शाता था, लेकिन बीच वाली नदी का किनारा एक मठवासी बनने का संकेत देता था। मेरी इच्छा के विरुद्ध बीच वाली नदी का तट सफेद पानी से लबालब होने लगा। मैंने जो देखा वह पूरी तरह से मेरे नियंत्रण से बाहर था; मैं इसे नहीं देख सका। उस समय मैं डर गया कि या तो मैं पागल हो रहा था, या फिर ईश्वर मुझे कुछ अप्रत्याशित करने के लिए बुला रहा था।

अखंडनीय

जैसे ही मेरे गालों पर आंसू छलक पड़े, घंटी बजी। यह संध्या वंदना का समय था। मैं मठवासियों के साथ प्रार्थनालय में प्रवेश किया। जैसे-जैसे हम भजन गाते गए, मेरा रोना बेकाबू होता गया। अब मैं भजन नहीं गा पा रहा था। मुझे याद है कि मैं जिस तरह से बर्ताव कर रहा था उससे मुझे शर्मिंदगी महसूस हो रही थी। जैसे ही मठ के धर्म बंधू एक-एक करके बाहर आए, मैं प्रार्थनालय में ही रहा।

वेदी के सामने मुँह के बल लेटकर मैं जितना उस दिन रोया था शायद ही अपने पूरे जीवन में उतना कभी रोया हूँगा। मेरे रोने के साथ मेरी भावनाओं का पूर्ण अभाव था, और यह बात मुझे अजीब लगी। न गम था न गुस्सा, बस सिसकियां थीं। मैं अपने फूट-फूट कर रोने की केवल एक ही व्याख्या कर सकता था, वह थी पवित्र आत्मा का स्पर्श। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि ईश्वर मुझे मठवासी जीवन के लिए बुला रहा था। मैं उस रात अपनी सूजी हुई आँखों के साथ सोने गया, लेकिन अपने लिए ईश्वर का मार्ग जानकर मुझे शांति का अनुभव मिला। अगली सुबह, मैंने ईश्वर से वादा किया कि मैं उनकी आज्ञा का पालन करते हुए, सबसे पहले मठवासी बनने की कोशिश करूंगा।

मेरी बात अभी पूरी नहीं हुई?

यद्यपि परमेश्वर कई बार समय का पाबंद होता है, जैसा कि सीनई पर्वत पर मूसा या कार्मेल पर्वत पर एलियाह के साथ हुआ था, लेकिन ज्यादातर परमेश्वर के शब्द असामयिक हैं। हम यह नहीं मान सकते कि हमारे अपने जीवन को दांव पर लगाने से, ईश्वर बोलने के लिए मजबूर हो जायेगा। हम उसके साथ जरा भी हेरा-फेरी नहीं कर सकते। इस प्रकार, हमारे पास अपने नीरस कार्यों को जारी रखने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता जब तक कि हम उसे लगभग भूल न जाएँ — यही वह समय है जब वह प्रकट होता है। युवा समूएल ने ईश्वर की आवाज़ तब सुनी जब वह अपने दैनिक (सांसारिक) कर्तव्यों को पूरा कर रहा था, यानी यह सुनिश्चित कर रहा था कि तम्बू की मोमबत्ती जलती रहे। बुलाहटों के अन्दर भी बुलाहट होती है; बुलाहट में बुलाहट। इस प्रकार, एक छात्रा अपनी बीजगणित के सवालों को हल करते हुए भी ईश्वर की वाणी को अच्छी तरह से सुन सकती है। शहर के व्यस्त ट्रैफिक के बीचोबीच चुपचाप बैठी एक अकेली माँ को ईश्वर की वाणी सुनने को मिल सकती है। आशय यह है कि हमेशा देखते रहें और प्रतीक्षा करें, क्योंकि हम नहीं जानते कि प्रभु कब प्रकट होंगे। यह एक प्रश्न को जन्म देता है; ईश्वर की एक वाणी को सुनना इतना दुर्लभ और अस्पष्ट क्यों है?

ईश्वर हमें केवल उतनी ही स्पष्टता प्रदान करता है जितनी हमें उसका अनुसरण करने के लिए चाहिए; उससे ज्यादा नहीं। ईश माता ने बिना किसी स्पष्टीकरण के ईश्वर के शब्द को ग्रहण किया। नबी, जो लगातार ईश्वर की वाणी प्राप्त करते रहते थे, अक्सर उलझन में पड़ जाते थे। योहन बपतिस्मा, जो मसीहा को पहचानने वाले पहले व्यक्ति थे, बाद में उन्होंने स्वयं येसु के मसीह होने के बारे में अनुमान लगाया। यहाँ तक कि उनके चेले और रिश्तेदार जो उनके सबके करीबी थे, प्रभु के वचनों को समझने में कठिनाई महसूस करते थे। जो लोग ईश्वर की वाणी को सुनते हैं अक्सर उनके पास प्रश्न अधिक रह जाते हैं, उत्तर नहीं। ईश्वर ने मुझे पुरोहित बनने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि कैसे और कहाँ। अपनी बुलाहट के बारे में और अधिक पता लगाने के लिए उसने मुझ पर छोड़ दिया। मुझे अपनी बुलाहट को पहचानने में चार साल लगे; मुझे सेंट एंड्रयूज में प्रवेश मिलने से पूर्व, चार साल की अवधि में मैंने अठारह अन्य मठों का दौरा किया था। भ्रम, शंका और अनुमान लगाना, ये सभी बुलाहटों को पहचानने की लंबी प्रक्रिया का हिस्सा हैं। इसके अतिरिक्त, ईश्वर हवा में नहीं बोलता है। उसके शब्द दूसरों के शब्दों से पहले और बाद में हैं। मेरे जीवन में एक युवा पादरी ने, एक एंग्लिकन पादरी ने और सेंट एंड्रयूज मठ के एक साधू ने ईश्वर के जागीरदारों के रूप में काम किया। परमेश्वर के वचन ग्रहण करने से पहले इनके शब्दों को सुनना आवश्यक था।

मेरी बुलाहट अभी अधूरी है। यह अभी भी खोजी जा रही है, अभी भी हर दिन महसूस की जा रही है। मैं अब छह साल से मठवासी हूं। बस इसी साल मैंने अपना व्रतधारण किया है। हो सकता है कोई बोले कि मैंने वह किया है जो परमेश्वर ने मुझे करने के लिए कहा। कुछ भी हो, ईश्वर ने अभी बोलना पूरा नहीं किया है। उसने सृष्टि के पहले दिन के बाद से बोलना बंद नहीं किया है, और वह तब तक नहीं करेगा जब तक उसकी महान रचना पूरी नहीं हो जाती। कौन जानता है कि वह क्या कहेगा या वह अगली बार कब बोलेगा? अजीब बातें बोलने का ईश्वर का इतिहास रहा है। हमारा भाग प्रतीक्षा करना और देखना है; उसके भण्डार में जो कुछ भी है, उसकी प्रतीक्षा करना हमारी ज़िम्मेदारी है।

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By: Brother John Baptist Santa Ana, O.S.B.

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