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अक्टूबर 27, 2021
Engage अक्टूबर 27, 2021

प्रश्न: मैं अपनी बहन के बहुत करीब हूं, लेकिन हाल ही में उसने मुझे बताया कि उसने ईसाई धर्म का पालन करना बंद कर दिया है। उसने एक साल से मिस्सा बलिदान में भाग नही लिया है, और उसे अब लगने लगा है कि शायद कैथलिक विश्वास में कोई सच्चाई नही है। मैं उसे किस प्रकार चर्च जाने के लिए फिर से प्रोत्साहित कर सकता हूं?

उत्तर: आजकल कई परिवारों में यह परिस्थिति देखी जाती है। जब भाई बहन, बच्चे या दोस्त चर्च से मुंह मोड़ लेते हैं तब जो उनसे प्रेम करते हैं उनका दिल बहुत टूटता है। मेरे दो भाई बहन हैं जो अब कैथलिक विश्वास का पालन नहीं करते हैं और यह बात मुझे बहुत दुखी करती है। मैं इस परिस्थिति में क्या कर सकता हूं?

सबसे पहला और सबसे सरल उपाय (जो कि हमेशा सबसे आसान नही होता) है कि उनके लिए प्रार्थना और उपवास करें। यह उपाय लगता सरल है, लेकिन यह बहुत प्रभावशाली है। आखिर में ईश्वर की कृपा ही भूली भटकी आत्माओं को वापस ला सकती हैं। इसीलिए इस भटकी हुई भेड़ के मामले में कुछ भी कहने, करने से पहले हमें ईश्वर से विनती करनी चाहिए कि वह आपकी बहन का दिल नरम करे, उसके मन को आलोकित करे, और उसकी आत्मा को अपने प्रेम के स्पर्श से भर दे। आप बाकी लोगों से भी निवेदन करें, कि वे प्रार्थना करें कि ईश्वर आपकी बहन की आत्मा को परिवर्तित करे।

प्रार्थना करने के पश्चात हमें अपने कार्यों द्वारा आनंद और दयालुता का प्रदर्शन करना चाहिए। संत फ्रांसिस डी सेल्स को अक्सर उनकी विनम्रता के कारण “सज्जन संत” कहा जाता है। उन्होंने कहा है “जितना हो सके सौम्य आचरण रखें, और हमेशा याद रखें कि पूरे डब्बे भर सिरके ले कर चलने वालों की तुलना में चम्मच भर शहद ले कर चलने वाले लोग ज़्यादा मक्खियां आकर्षित करते हैं।” अक्सर लोग भटके हुए लोगों को वापस लाने की कोशिश में उन्हें डांटने लगते हैं या उन्हें दोष देने लगते हैं। लेकिन लोग यह भूल जाते हैं कि हम ख्रीस्त विश्वासी सिर्फ इसलिए नहीं हैं कि हम कैथलिक पैदा हुए हैं और इस नाते कैथलिक विश्वास का पालन हमारा फर्ज़ है, बल्कि हम ख्रीस्त विश्वासी इसलिए हैं क्योंकि हमें ख्रीस्त से आलौकिक आनंद प्राप्त होता है। अगर ख्रीस्त सच में हमारा जीवन, हमारे आनंद का स्त्रोत हैं तो हमारी खुशी हमारे चेहरे में झलकनी चाहिए। इस प्रकार हम बिना येशु का नाम लिए भटकी आत्माओं को येशु के पास ला सकते हैं, क्योंकि खुशी और दयालुता अपने आप में बहुत आकर्षक होती है। आखिरकार, फ़्रांसीसी येसु समाजी पियरे तेयार्ड डी शार्दीन ने कहा है, “आनंद ईश्वर की उपस्थिति का अचूक संकेत है।”

देखा जाए तो पूछे गए सवाल में एक और सवाल छिपा है: क्या हम सांस्कृतिक रूप से अपने विश्वास को जी रहे हैं? अगर हमारी जीवन शैली लौकिक संस्कृति से पूरी तरह मेल खाती है तब हमें खुद से यह सवाल करने की ज़रूरत है कि क्या हम ख्रीस्त की परिवर्तन शक्ति के प्रबल साक्षी हैं? अगर हम निरंतर अपनी संपत्ति की चर्चा करते हैं या हमें प्रशंसा पाने की अत्यधिक इच्छा है या अपनी नौकरी से अत्याधिक लगाव है, या हम दिन रात गपशप करते हैं, या बेमतलब के टीवी कार्यक्रम देखते हैं, तो हम किसी भी सूरत में औरों को ख्रीस्त का अनुसरण करने के लिए प्रोत्साहित नहीं कर सकते हैं। आदिम ख्रीस्तीय लोग  सुसमाचार के प्रचार में इतने सफल इसलिए हुए थे, क्योंकि उनका जीवन उनके आसपास रहने वालों की तुलना में ज़्यादा पवित्र और भक्तिमय था। हम आज भी गुज़रे ज़माने की तरह एक पापमय पर्यावरण में रहते हैं, इसीलिए अगर हम चाहें तो हमारा जीवन भी पवित्र और भक्तिमय हो कर औरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकता है।

आपके लिए आपकी बहन से बात करना भी बहुत ज़रूरी है। हो सकता है कि वह इसलिए कैथलिक विश्वास से दूर हुई हो, क्योंकि किसी पुरोहित के साथ उसके अनुभव अच्छे नहीं रहां हो, या हो सकता है कि उसके मन में ख्रीस्त द्वारा दी गई किसी शिक्षा के बारे में गलतफहमी हो। हो सकता है कि वह अपने व्यक्तिगत जीवन में पाप से संघर्ष कर रही हो, और यही मानसिक अंतर्द्वंद उसके चर्च ना जाने की वजह हो। उससे लड़ाई ना कर बैठें, बल्कि धैर्य के साथ उसकी बातें सुनें और अगर वह कुछ अच्छा या सही कहती है तो उस बात का समर्थन करें। अगर उसके कुछ सवाल हैं, तो उनके जवाब देने के लिए तैयार रहें। ध्यान रखें कि आपको चर्च की शिक्षाओं के बारे में सही तरीके से सबकुछ पता हो, और अगर उसके किसी सवाल का आपके पास जवाब ना हो तो आप उसे आश्वस्त कीजिए कि आप और पढ़कर, समझकर उसके सवाल का जवाब देंगे।

अगर आपको लगता है कि वह कैथलिक विश्वास को नए सिरे से समझने के लिए तैयार है, तो आप उसे अपने साथ किसी सत्संग पर जाने के लिए या किसी धार्मिक प्रवचन को सुनने के लिए आमंत्रित करें। आप उसे तोहफे में कोई धार्मिक किताब या किसी अच्छे प्रवचन की सी.डी. दे सकते हैं। अगर उसकी मंज़ूरी है तो किसी पुरोहित के साथ उसकी मुलाकात तय करें। मैं समझता हूं कि यह राह कठिन है, क्योंकि आपको इस बात का हर समय ध्यान रखना है कि आप उसके साथ कोई ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं कर रहे हैं।

आखिर में, ईश्वर पर विश्वास रखें। ईश्वर आपकी बहन से अत्याधिक प्रेम करता है, आपसे भी ज़्यादा प्रेम, और वह हर संभव प्रयास कर रहा है कि आपकी बहन उसके सानिध्य में वापस आ जाए। यह जान कर धैर्य रखें कि हर व्यक्ति एक व्यक्तिगत आध्यात्मिक सफर का राही है। हो सकता है कि आपकी बहन संत अगस्टीन की तरह बन जाए, जिन्होंने ईश्वर से दूर जाने के बाद, जब कलीसिया में वापसी की, तब वे चर्च के डॉक्टर कहलाए। अपनी बहन से प्रेम बनाए रखें और ईश्वर की कृपा पर भरोसा रखें, क्योंकि ईश्वर हर आत्मा को अनंत जीवन प्रदान करना चाहता है।

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By: फादर जोसेफ गिल

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अक्टूबर 27, 2021
Engage अक्टूबर 27, 2021

क्या अतीत में अपने सांसारिक पिता के साथ आपका जो संबंध था, आपने उसे भविष्य में स्वर्गिक पिता के साथ पनपने वाले संबंध की नीव बनने दिया है?

मैं संयुक्त राज्य अमेरिका के फ्लोरिडा प्रदेश के टंपा ज़िले में पला-बढ़ा था। मेरे माता पिता दोनो कैथलिक थे और उन्होंने मुझे भी बचपन से कैथलिक विश्वास में बड़ा किया। हालांकि जब मैं छह साल का था, तब मेरा जीवन बदलने लगा। मेरे माता पिता अलग हुए और मेरे पिता ने तलाक की अर्ज़ी डाली। दो साल तक मेरे माता पिता मेरी परवरिश का हक पाने के लिए एक दूसरे से लड़ते रहे, फिर जब मैं आठ साल का हुआ, उन दोनों ने फिर से एक साथ रहने का फैसला किया। मगर उस समय मुझे अंदाज़ा भी नही था कि यह सब तो बस शुरुआत थी।

जब मैं दस साल का हुआ तो मेरी मां ने तलाक की अर्ज़ी डाली। उन्हें मेरी देखरेख का हक भी मिल गया, पर तब भी मुझे मेरे पिता से कभी कभी मिलने जाने का आदेश दिया गया था। मेरे पिता में काफी सारे अच्छे गुण थे – वे मेहनती थे, किफायती थे, और खेलकूद का शौक रखते थे – पर उनके अंदर का सबसे बड़ा दोष यह था कि उनमें धैर्य की कमी थी, और इसी बात ने आगे चल कर ईश्वर और मेरे संबंध को प्रभावित किया। वे एक पल खुश तो दुसरे पल झट से गुस्सा करते थे। अगर मुझसे गलती से दूध का एक गिलास भी गिर जाता तो वे आगबबूला हो कर मुझे बुरी तरह डांटने लगते थे। अक्सर ऐसे भयानक गुस्से का बच्चों पर दो तरह का असर होता है। या तो बच्चा मोटी चमड़ी वाला बन जाता है और अपने आप को अंदर से इतना कठोर बना लेता है कि उसे किसी बात से कोई फर्क नहीं पड़ता, या फिर उसके अंदर एक गहरा डर बैठ जाता है और वह गलती करने के डर से खुद को सब से अलग करके जीवन जीने लगता है। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। इस बात ने मेरी परवरिश को बहुत प्रभावित किया।

हमारे सांसारिक पिता को हमारे स्वर्गिक पिता का, ईश्वर का प्रतिबिंब होना चाहिए (एफेसियों 3:14-15)। जो कुछ भी आपके सांसारिक पिता करते हैं, उनके गुण, उनके बात करने का तरीका और उनका चाल चलन, यह सब कुछ हमारे मन में स्वर्गिक पिता की छवि बनाता है। इसीलिए, जब मैं युवावस्था में था, तब मैं स्वर्गिक पिता से उसकी तरह डरने लगा जिस तरह मैं अपने पिता से डरा करता था। मैं हर दिन डरे सहमे गुज़ारता था, यह सोच कर कि मैं कभी ना कभी कोई भयंकर पाप कर बैठूंगा और फिर अनंत काल तक नरक की आग में जलूंगा। हर बात, हर काम, हर विचार में मुझे पाप कर डालने का डर सताता था।

मैं आपको एक उदाहरण देता हूं: अगर मैं बाहर एक छोटा चिकन सैंडविच खाता था और मुझे एक और सैंडविच मंगाने का मन होता था तो मैं लालच में आ कर पाप कर बैठने के डर से खुद को रोक लेता था। चूँकि मुझे कोई समझाने वाला नही था, इसीलिए मैं अपनी ज़रूरतों और अपने डर के बीच उलझ कर रह जाता था। इस मनोग्रसित-बाध्यता विकार ने मेरे खाने पीने पर इतना गहरा असर डाला कि मेरा वज़न नौ किलो घट गया।

मुझे वे बातें भी पापमय लगती थीं जो असल में पापमय नही थीं। बात यहां तक आ पहुंची कि पापस्वीकार के मौकों पर मैं पुरोहित के सामने घंटों तक अपने छोटे छोटे पाप गिनते रहता था। वह तो ईश्वर का शुक्र है कि मेरे चर्च के पुरोहित बहुत अच्छे थे और धैर्य के साथ मेरी बातें सुन कर मेरी उलझनों को सुलझाने की कोशिश किया करते थे। लेकिन यह सब तो मेरी परेशानी का एक छोटा सा हिस्सा था। मेरे मन में ईश्वर की बड़ी अजीब छवि थी। और मुझे एक सौम्य और धैर्यवान पिता की ज़रूरत थी। स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद मैंने दक्षिण पश्चिमी फ्लोरिडा के आवे मारिया विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। वहीं जा कर धीरे धीरे मुझे मेरे डर से छुटकारा मिला। वहां मैं रोज़ प्रार्थनाघर जाया करता था और अब्बा पिता के प्रेम को समझने की कोशिश किया करता था।

उन दिनों जब भी मैं प्रार्थना किया करता था, एक गीत मेरे मन में गूंजा करता था। वह गीत है “फॉर किंग एंड कंट्री” एल्बम का गाना “शोल्डर्स”। उस गाने की इस पंक्ति “मुझे देख कर ही विश्वास करने की ज़रूरत नहीं है, कि तू मुझे कंधों पे, अपने कंधों पे उठा कर चल रहा है” ने मेरे मन में घर करके मेरे दिल को परिवर्तित किया। धीरे धीरे मेरा डर प्रेम में परिवर्तित होने लगा। मुझे विश्वास होने लगा कि ईश्वर मुझे उनके परमप्रिय पुत्र के रूप में देखते हैं, जिससे वे अत्यंत प्रसन्न हैं (मारकुस 1:11)। वे एक सौम्य पिता हैं जो मेरी सारी दुर्बलताओं को ध्यान में रखते हैं। जैसा कि स्तोत्र ग्रंथ में लिखा है, “प्रभु दया और अनुकंपा से परिपूर्ण है। वह सहनशील और अत्यंत प्रेममय है।” आगे चल कर मैंने स्वर्गिक पिता ईश्वर के लिए एक स्तुति विनती रची जो कि इस प्रकार है:

सबसे सौम्य स्वर्गिक पिता (1 राजा 19:12)
सबसे दयालु स्वर्गिक पिता (यशायाह 40:11)
सबसे उदार स्वर्गिक पिता (मत्ति 7:11)
सबसे मधुर स्वर्गिक पिता (भजन संहिता 23:1)
सबसे विनीत स्वर्गिक पिता (लूकस 2:7)
सबसे सौम्य भाषी स्वर्गिक पिता (1 राजा 19:12)
सबसे आनंदित स्वर्गिक पिता (सफन्याह 3:17)
सबसे सहायक स्वर्गिक पिता (होशे 11:3-4)
सबसे प्यारे स्वर्गिक पिता (1 योहन 4:6)
सबसे प्रेममय स्वर्गिक पिता (यिरमयाह 31:20)
सबसे कोमल स्वर्गिक पिता (यशायाह 43:4)
मेरे संरक्षक स्वर्गिक पिता (भजन संहिता 91)

मैं आप सबसे निवेदन करता हूं कि आप बाइबिल के इन वचनों को पढ़ें और मेरी तरह ईश्वर और अपने संबंध की गहराई को बढ़ाएं। आपके लिए चंगाई और परिपूर्णता का मार्ग खुला है। मेरी इस यात्रा में मेरा साथ दीजिए।

आइए हम लिस्यु की संत थेरेसा के उन वचनों को याद करें जहां वे कहती हैं – “इस बात को सोचने में कितना मधुर आनंद है कि ईश्वर सच्चा है, कि वह हमारी दुर्बलताओं का हिसाब रखता है और हमारे स्वभाव की नाज़ुकता को अच्छी तरह समझता है। फिर मुझे किस बात का डर?” (संत थेरेसा द्वारा लिखित आत्मा की कहानी)।

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By: Luke Lancaster

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अगस्त 20, 2021
Engage अगस्त 20, 2021

आपका दिन बड़ा खराब बीत रहा है ? तो अब ‘बदबूदार सोच’ से बाहर निकलिए

आज सुबह जब मैं नींद से जागी, तो गुस्सैल थी और अजीब प्रकार की सोच से परेशान थी। आप इस कहावत से परिचित हैं, ‘मैं बिस्तर के गलत बाजू से उठ गया’ – निश्चित रूप से यह कहावत पूरी तरह मुझ पर सही बैठ रहा था। दिन की शुरुआत इस तरह करना निश्चित रूप से अच्छा नहीं था। ऐसा लग रहा था मानो कि मैंने कीड़ों का एक खट्टे और चिपचिपे गुच्छा खा लिया हो। हालाँकि, जैसे ही मैं अपनी रसोई की मेज पर नाश्ता करने के बाद वहीँ बैठकर पवित्र ग्रन्थ का दैनिक पाठ पढ़ रही थी, मैंने बाहर की धूप और प्रकाश को अंदर आने देने के लिए सामने का दरवाजा खोला। फिर यह चमत्कार हुआ! मैंने पक्षियों के अति सुन्दर समूह गायन की शानदार आवाज सुनी। मैं वहाँ आँखें बंद करके बैठ गयी और सुनती जा रही थी, ऐसा लगा कि पक्षी एक और सुन्दर दिन प्राप्त होने पर अपने सृष्टिकर्ता की स्तुति कर रहे थे। “आकाश के पक्षी उनके पास रहते हैं और डालियों में चहचहाते हैं।”  (स्तोत्र 104:12)

यह अनुभव ऐसा था, मानो पवित्र आत्मा ने मेरे हृदय में स्तुति का एक राग उंडेला हो। खुशी-खुशी अपने सृजनहार परमेश्वर की स्तुति कर रहे पक्षियों के समूह के बीच में मेरा गुस्सा गायब हो गया। “आओ, हम आनंद मनाते हुए प्रभु की स्तुति करें, अपने शक्तिशाली त्राणकर्ता का गुणगान करें!” (स्तोत्र 95).

पवित्र आत्मा के इस क्षण ने मुझे यह महसूस करने में मदद की कि बुरे मूड को दूर करने के लिए, मेरी सबसे अच्छी ढाल होगी हमारे ईश्वर की स्तुति गाना करना। मुझे पता नहीं है कि पक्षियों का भी कभी बुरा दिन होता है या वे भी गुस्सैल हो जाते हैं। लेकिन अगर वे ऐसा करते भी हैं, तब भी वे अपने सृजनहार की स्तुति गाते ही हैं। येशु हमें बताते हैं: “आकाश के पक्षियों को देखो: वे न तो बोते हैं, न लुनते हैं, और न बखारों में जमा करते हैं, फिर भी तुम्हारा स्वर्गिक पिता उन्हें खिलाता है। क्या तुम उनसे बढ़कर नहीं हो ?”

मैंने यह कहते सुना है कि बदबूदार सोच को रोकने का तरीका तीन सकारात्मक विचारों से उसका मुकाबला करना है। मैं स्तोत्र भजनों को पढ़ती रहूँ और मुझे प्राप्त सभी आशीर्वादों केलिए तथा मुझे, मेरे परिवार तथा दोस्तों को मिली प्रभु की प्रेमपूर्ण देखभाल के लिए उसे धन्यवाद देना अपने आप को नकारात्मक दृष्टिकोण से बाहर निकालने के लिए एक निश्चित उपाय है।

कभी-कभी मैं अपनी बदबूदार सोच वाली दुनिया में कुछ समय के लिए अपनी हताशा, उदासी और अवसाद के साथ रहना चाहती हूँ। लेकिन पवित्र आत्मा मुझे अपनी छत्त पर बैठने, अपनी आँखें बंद करने और पक्षियों के सामूहिक अति मधुर संगीत को सुनने के लिए आमंत्रित करता है। जब मैं ऐसा करती हूं, तो मैं मसीह के प्रकाश में सांस लेती हूं,  मैं अपनी उदासी को धन्यवाद के और स्तुति के आनंदमय मनोवृत्ति में बदल देती हूं।

मधुर गीत-संगीत गाने वाले पक्षियों और प्रकृति की सुन्दरता का बखान करनेवाले जंगली फूलों के माध्यम से मुझे येशु यह दिखा रहे हैं कि मैं भी आनन्दित रह सकती हूं और अपने सृजनहार की स्तुति में गीत गा सकती हूँ,  इस केलिए हे येशु तुझे धन्यवाद। “पृथ्वी पर फूल खिलने लगे हैं। गीत गाने का समय आ गया है, और हमारे देश में कपोत की कूजन सुनाई दे रही है।” (सुलैमान का सर्वश्रेष्ठ गीत 2:12)

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By: कॉनी बेकमैन

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अगस्त 20, 2021
Engage अगस्त 20, 2021

मैंने ईश्वर से पूछा, “हमारे जीवन पर क्रूस क्यों निर्धारित किया गया है?” और उसने मुझे एक अद्भुत उत्तर दिया!

सिरीन के सिमोन की तरह हर ईसाई व्यक्ति मसीह के क्रूस को ढोने के लिए बुलाया गया है। इसीलिए संत जॉन मेरी वियनी ने कहा, “हर बात हमें ईश्वर के क्रूस का स्मरण दिलाती है। यहां तक कि हम खुद क्रूस के आकार में बनाए गए हैं।” देखा जाए तो इस सरल प्रवचन में बहुत गहरा ज्ञान छुपा हुआ है।

हम जो दुख तकलीफें झेलते हैं, उनके द्वारा हम ईश्वर के दुखभोग में भाग लेते हैं। जब तक हमारे अंदर ईश्वर की पीड़ा को सहने की इच्छा नही होगी तब तक हम इस धरती पर अपने ईसाई मिशन को पूरा नहीं कर पाएंगे। देखा जाए तो ईसाई धर्म दुनिया का एकलौता ऐसा धर्म है जो दुख तकलीफों को मुक्ति से जोड़ता है और हमें यह सिखाता है कि हम अपनी परेशानियों के सहारे अनंत मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं – अगर हम ख्रीस्त के दुखभोग में भाग लें।

परम सम्माननीय बिशप फुल्टन शीन ने कहा है कि जब तक हमारे जीवन में कोई क्रूस नही है, तब तक हमारा पुनरुत्थान मुमकिन नहीं है। येशु खुद हमें बताते हैं कि उनका शिष्य बनने के लिए किस बात की ज़रूरत है “जो मेरा अनुसरण करना चाहता है, वह आत्मत्याग करें और अपना क्रूस उठा कर मेरे पीछे हो ले” (मत्ति 16:24)। मत्ति 10:38 में येशु फिर से कहते हैं, “जो शिष्य अपना क्रूस उठा कर मेरा अनुसरण नहीं करता, वह मेरे योग्य नहीं”।

येशु दुनिया के उद्धार के लिए क्रूस पर मर गए। अपनी मृत्यु के बाद वे स्वर्ग में उठा लिए गए पर वे धरती पर अपना क्रूस छोड़ गए। येशु जानते थे कि जो कोई उनके साथ स्वर्ग में शामिल होना चाहता है वह उनके पीछे पीछे क्रूस की राह पर चल पड़ेगा। संत जॉन वियनी हमें इस बात का भी स्मरण कराते हैं कि “क्रूस स्वर्ग की ओर ले जाने वाली सीढ़ी है।” क्रूस को अपनाने की हमारी तत्परता ही हमें इस सीढ़ी पर चढ़ने के योग्य बनाती है। क्योंकि खुद को बर्बाद करने के तरीके तो कई सारे हैं, पर स्वर्ग का रास्ता केवल क्रूस की राह है।

मेरे हृदय की गहराई

साल 2016 में, जब मैं अपने मास्टर्स की पढ़ाई कर रहा था, तब अचानक मेरी मां की हालत बिगड़ने लगी। डॉक्टरों ने हमें उनकी बायोप्सी कराने की सलाह दी। पवित्र सप्ताह के दौरान हमें डॉक्टरों के द्वारा बताया गया कि मेरी मां को कैंसर है। मेरा पूरा परिवार इस खबर से हिल गया। उस शाम, मैंने अपने कमरे में बैठे बैठे येशु की क्रूसित मूर्ति को निहारना शुरू किया। धीरे धीरे मेरी आंखों से आंसू बहने लगे और मैंने येशु से शिकायत की “दो साल से मैं हर दिन पवित्र मिस्सा में भाग लेता आया हूं। मैंने हर दिन रोज़री माला की प्रार्थना की है और मैंने अपना ज़्यादा से ज़्यादा समय ईश्वर के राज्य की सेवा में दिया है (उस वक्त मैं चर्च की युवा सभा में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया करता था)। मेरी प्यारी मां माता मरियम की बहुत बड़ी भक्त हैं। इसीलिए मैंने अपने दिल की गहराई से येशु से सवाल किया, “क्यों? आखिर हमारे जीवन में यह क्रूस क्यों?”

उस पवित्र सप्ताह, मैं बड़ी अंदरूनी पीड़ा से गुज़रा था। उस वक्त जब में अपने कमरे में बैठ कर येशु की क्रूसित मूर्ति को देख रहा था, तभी मेरे मन में एक खयाल आया। येशु अकेले अपना क्रूस ढोते हैं। कुछ समय बाद मुझे मेरे दिल में एक आवाज़ सुनाई दी, “जोसिन, क्या तुम क्रूस ढोने में मेरी मदद करोगे?” उस समय मुझे इस बात का अहसास हुआ कि येशु मुझे किस कार्य के लिए बुला रहे थे, और मेरे लिए मेरी बुलाहट और स्पष्ट हो गई। मुझे भी सिरीनी सिमोन की तरह क्रूस ढोने में येशु की सहायता करनी थी।

उन्ही दिनों, मैं युवा सभा के अपने गुरु से मिलने गया। मैंने उन्हें मां के कैंसर ग्रस्त होने और अपनी अंदरूनी पीड़ा के बारे में बताया। मेरी दुख तकलीफों के बारे में सुनने के बाद उन्होंने मुझे एक सलाह दी: “जोसिन, जब तुम अपनी इन तकलीफों के लिए प्रार्थना करोगे, तब तुम्हें या तो यह जवाब मिलेगा कि ईश्वर तुम्हारी मां को पूरी तरह ठीक कर देंगे, या फिर यह जवाब मिलेगा कि उनका ठीक होना ईश्वर की योजना में शामिल नही है, और यह एक तरह का क्रूस है जो तुम्हें ढोना पड़ेगा। पर एक बात हमेशा याद रखना, कि अगर यह एक क्रूस है जो तुम्हें ढोने दिया जा रहा है, तो फिर ईश्वर तुम्हें और तुम्हारे परिवार को इसे ढोने की शक्ति और अनुग्रह भी प्रदान करेंगे।”

धीरे धीरे मुझे यह समझ आने लगा कि ईश्वर ने मुझे एक क्रूस ढोने के लिए दिया था। लेकिन मेरे गुरु के कहे अनुसार ही ईश्वर ने ना केवल मुझे, बल्कि मेरे पूरे परिवार को अपना क्रूस ढोने के लिए शक्ति और अनुग्रह प्रदान किया। जैसे जैसे समय बीतता गया, मुझे इस बात का अहसास होने लगा कि कैंसर का यह क्रूस धीरे धीरे मेरे परिवार को शुद्ध कर रहा था। इसने हमारे विश्वास को बढ़ाया, इसने मेरे पिता को एक धार्मिक इंसान बनाया। इसने मुझे मेरी बुलाहाट को पहचानने और अपनाने का साहस दिया। इसने मेरी बहन को येशु के सानिध्य में आने में मदद की। इसी क्रूस के द्वारा मेरी मां शांतिपूर्ण तरीके से स्वर्ग सिधार पाईं।

याकूब के पत्र (1:12) में लिखा है, “धन्य है वह, जो विपत्ति में दृढ़ बना रहता है! परीक्षा में खरा उतरने पर उसे जीवन का मुकुट प्राप्त होगा, जिसे प्रभु ने अपने भक्तों को देने की प्रतिज्ञा की है।” जून 2018 के आते आते मेरी मां की तबियत हद से ज़्यादा बिगड़ने लगी। वे बहुत तकलीफ में थी, पर अपनी इस हालत में भी वह हमेशा खुश दिखती थीं। एक दिन उन्होंने मेरे पिता से कहा, “अब बस हो गया यह इलाज, बंद करो यह सब, आखिरकार मैं स्वर्ग ही तो जा रही हूं।” इसके कुछ दिनों बाद, उन्होनें एक सपना देखा। सपने से जागकर उन्होंने मेरे पिता से कहा, “मैंने एक अद्भुत सपना देखा!” पर जब तक वह उस सपने के बारे में कुछ कह पाती, मेरी मां सेलीन थॉमस इस दुनिया को छोड़ स्वर्ग की ओर प्रस्थान कर चुकी थी।

दो साल, तीस कीमो थेरेपी और दो बड़े ऑपरेशनों के बीच मेरी मां ने लगातार पीड़ा सहते हुए भी, पूरे विश्वास के साथ अपने क्रूस को ढोया। इसीलिए मुझे पूरा भरोसा है कि आज वे ईश्वर को उनकी पूरी महिमा में देख रही होंगी।

वह रहस्य

क्या हम इस बात कि कल्पना कर सकते हैं कि ईश्वर हमसे कह रहे हैं, “मेरी मेज़ पर मेरे कई दोस्त मौजूद हैं, पर मेरे क्रूस के पास बहुत कम।” येशु को क्रूसित किए जाते वक्त मरियम मगदलेना बड़ी बहादुरी के साथ क्रूस के पास खड़ी रही। उसने ख्रीस्त के दुखभोग में उनका साथ देने की कोशिश की। और उसके इसी कार्य के फल स्वरूप तीन दिन बाद येशु के पुनर्जीवित होने पर मरियम मगदलेना को ही येशु के सबसे पहले दर्शन पाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस सौभाग्य ने उसके दुख को आनंद में बदल दिया और उसे प्रेरितों से भी ऊंचा दर्जा प्रदान किया। कार्मेल के महान संत योहन कहते हैं, “जो लोग ख्रीस्त के क्रूस को नहीं खोजते, उन्हें ख्रीस्त की महिमा भी नही मिलती।” ख्रीस्त की महिमा उसके दुखभोग में छिपी है। यही क्रूस का अद्भुत रहस्य है। संत पेत्रुस हमें याद दिलाते हैं, “यदि आप लोगों पर अत्याचार किया जाए, तो मसीह के दुखभोग के सहभागी बन जाने के नाते आप प्रसन्न हो जाएं। जिस दिन मसीह की महिमा प्रकट होगी, आप लोग अत्याधिक आनंदित हो उठेंगे (1 पेत्रुस 4:13)। संत मरियम मगदलेना की तरह ही, अगर हम भी अपनी इच्छा से क्रूस के नीचे खड़े रह कर ईश्वर के दुख में भाग लेते हैं, तब हम भी उस पुनर्जीवित ईश्वर को देखेंगे। वह ईश्वर जो हमारी समस्याओं को समाधान, हमारी परीक्षाओं को साक्ष्य और हमारी चुनौतियों को जीत में बदल देता है।

हे प्रभु येशु, मैं मां मरियम के माध्यम से  स्वयं को तुझे समर्पित करता हूं। मुझे जीवन भर तेरे पीछे पीछे अपना क्रूस ढोकर चलने की शक्ति दे। आमेन।

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By: Brother Josin Thomas O.P

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अगस्त 20, 2021
Engage अगस्त 20, 2021

एक पुरोहित रोम का दौरा कर रहा था। उन्हें संत पापा जॉन पॉल द्वितीय से निजी मुलाक़ात करने की अनुमति मिल चुकी थी। अपने रास्ते में, उन्होंने रोम के कई सुन्दर महागिरजाघरों में से एक का दौरा किया। हमेशा की तरह, गिरजाघर की सीढ़ियों पर भिखारियों की भीड़ लगी रही, लेकिन उनमें से एक पर उनकी दृष्टि पडी और वे रुक गए। “मैं तुम्हें जानता हूं। क्या हम एक साथ सेमिनरी में नहीं  थे?” भिखारी ने पुष्टि में सिर हिलाया। “तो आप का पुरोहिताई अभिषेक हुआ था, है ना?” उस पुरोहित ने उससे पूछा। लेकिन उस भिखारी ने गुस्से से जवाब दिया “अब और कुछ मत बोलना! मुझे अकेला छोड़ दो!” संत पापा के साथ अपनी आसन्न मुलाक़ात को ध्यान में रखते हुए, वह पुरोहित उसके लिए प्रार्थना करने का वादा देकर चलने लगे, लेकिन भिखारी ने उनका उपहास किया, “वाह, तुम्हारी प्रार्थना से बहुत अच्छा परिणाम निकलेगा क्या, जाओ यहाँ से।”

आम तौर पर, संत पापा के साथ निजी भेंट बहुत कम लोगों को ही मिलती है – संत पापा अपना आशीर्वाद और एक आशीष की गयी रोज़री माला प्रदान करते हैं, इस दौरान बहुत कम शब्दों का आदान-प्रदान किया जाता है। जब इस पुरोहित की बारी आई, उस भिखारी-पुरोहित के साथ आकस्मिक मुलाक़ात अभी भी उनके दिमाग में चल रही थी, इसलिए उन्होंने संत पापा से अपने उस मित्र के लिए प्रार्थना करने की याचना की, फिर पूरी कहानी सुनाई। संत पापा चिंतित और परेशान थे, और अधिक विवरण मांग रहे थे और उनके लिए प्रार्थना करने का वादा कर रहे थे। इतना ही नहीं, उन्हें और उनके भिखारी-मित्र को संत पापा जॉन पॉल द्वितीय के साथ अकेले रात में भोजन करने का निमंत्रण मिला। भोजन के बाद, संत पापा ने भिखारी के साथ एकांत में बात की।

भिखारी आँसुओं के साथ कमरे से बाहर निकला। “क्या हुआ भीतर?” पुरोहित ने उस भिखारी से पूछा। सबसे अप्रत्याशित और अचंभित करनेवाला उत्तर आया। “संत पापा ने अपना पाप स्वीकार सुनने के लिए मुझसे कहा,”  बोलते बोलते भिखारी पुरोहित का गला अवरुद्ध हो गया। कुछ देर बाद पुनः आत्मसंयमित होकर, उन्होंने बोलना जारी रखा, “मैंने उनसे कहा, ‘परम पावन संत पिता, मुझे देखिये। मैं एक भिखारी हूं, पुरोहित नहीं।’” “संत पापा ने कोमलता से मेरी ओर देखा और कहा, ‘मेरे बेटे, एक बार पुरोहित के रूप में अभिषिक्त व्यक्ति हमेशा केलिए अभिषिक्त होता है। और हम में से कौन भिखारी नहीं है? मैं भी अपने पापों की क्षमा मांगने के लिए एक भिखारी के रूप में प्रभु के सामने आता हूं।'” एक पाप स्वीकार को सुने हुए इतना लंबा समय बीत चुका था कि पाप मुक्ति की आशीष की प्रार्थाना पूरा करने के लिए संत पापा को भिखारी पुरोहित की मदद करनी पड़ी। सब सुनाने के बाद पुरोहित ने संदेह प्रकट किया, “लेकिन आप इतने लंबे समय से वहां थे। निश्चित रूप से संत पापा को अपना पाप स्वीकार करने में इतना समय तो नहीं लगा होगा।” “नहीं”, भिखारी ने कहा, “जब मैंने उनका पाप स्वीकार सुन लिया, उसके बाद मैंने उनसे मेरा पाप स्वीकार भी सुनने के लिए कहा।” दोनों के पाप स्वीकार के उपरांत, एक दूसरे से विदा लेने से पहले, संत पापा जॉन पॉल द्वितीय ने इस उडाऊ पुत्र को एक नए मिशन का दायित्व सौंप दिया  – जिस गिरजाघर की सीढ़ियों में बैठकर वे भीख मांगते थे, उसी जगह जाकर वहां जानेवाले बेघरों और भिखारियों के बीच में सेवा कार्य का दायित्व।

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By: Shalom Tidings

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अगस्त 20, 2021
Engage अगस्त 20, 2021

प्रश्न: मैं कुछ महीनों में शादी करने की तैयारी में लगा हूं, लेकिन इस प्रकार की आजीवन प्रतिबद्धता के विचार से मेरे मन में उत्कंठा और आशंका हो रही है। मैं ऐसे कई विवाहों को जानता हूं जो तलाक या दुखभरी दुर्गति में समाप्त होते हैं – मैं कैसे सुनिश्चित कर सकता हूं कि मेरा विवाह मजबूत होगा और खुशियों से भरा रहेगा?

उत्तर: आपकी सगाई हुई है, यह जानकार ख़ुशी हुई। बधाई! यह आपके जीवन का एक रोमांचक समय है, और साथ साथ तैयारी के लिए भी यह एक महत्वपूर्ण समय है – न केवल शादी के लिए, बल्कि शादी के कई वर्षों के लिए जिन्हें ईश्वर आपको आशीर्वाद के रूप में देगा!

मानवीय दृष्टिकोण से देखें तो, विवाह एक कठिन सच्चाई है, क्योंकि यह दो बहुत ही अपूर्ण और अपरिपक्व लोगों को उनके शेष जीवन के लिए एक परिवार में एक साथ बाँध देता है। लेकिन शुक्र है कि विवाह केवल एक मानवीय वास्तविकता नहीं है: इसे मसीह द्वारा एक संस्कार के रूप में स्थापित किया गया था! इस प्रकार, यह उन सभी के लिए अनुग्रह का स्रोत है जो इसमें प्रवेश करते हैं – ऐसी कृपा जिसे हम हर क्षण प्राप्त कर सकते हैं!

इसलिए, एक सुखी विवाह के लिए पहला कदम है: ईश्वर को वैवाहिक जीवन के केंद्र में रखना। पूजनीय धर्माध्यक्ष फुल्टन शीन ने “थ्री टू गेट मैरिड ” (तीन व्यक्ति विवाह बंधन की ओर) नामक एक पुस्तक लिखी, क्योंकि विवाह केवल एक पुरुष और एक महिला के बीच नहीं है, इसमें एक तीसरा व्यक्ति भी शामिल है – ईश्वर। और ईश्वर को ही केंद्र में रहना चाहिए। इसलिए एक जोड़े के रूप में एक साथ प्रार्थना करें और अपने जीवनसाथी के लिए प्रार्थना करें।

जितना अधिक समय आप ईश्वर के साथ बिताएंगे, उतना ही आप उसके जैसे बनेंगे – यही अच्छा है, क्योंकि आपको अपने वैवाहिक जीवन में सद्गुणों को विकसित करने की आवश्यकता होगी! धैर्य, दया, क्षमा, ईमानदारी, सत्यनिष्ठा और आत्म-बलिदान से भरपूर प्रेम अपरिहार्य सद्गुण हैं। अपनी शादी से पहले ही इन सद्गुणों को अपने अन्दर विकसित करने का काम करें। नियमित रूप से पाप स्वीकार संस्कार में जाइए, क्योंकि आप मसीह की तरह बनते हुए जीवन में प्रगति पाना चाहते हैं। इन गुणों के लिए प्रार्थना करें; प्रतिदिन उनका अभ्यास करें—विशेषकर क्षमा के गुण के लिए।

अच्छी शादी कभी भी अपने समुदाय से हटकर नहीं हो सकती है, इसलिए अपने सफल दाम्पत्य जीवन हेतु समुदाय के अनुभवी लोगों से सलाह लें – ऐसे लोगों के साथ जुड़ जाएँ जिनकी शादी कुछ वर्षों पहले हुई हो और उन्होंने अपने दाम्पत्य जीवन में कुछ तूफानों का सामना किया हो, लेकिन वे और उनके दाम्पत्य जीवन इससे मजबूत हो गए हो। आपके वैवाहिक जीवन में संकट के दौर आने पर आप सलाह और प्रेरणा के लिए उन लोगों की मदद ले सकते हैं। ज़रूरी नहीं है कि ये सभी परामर्शदाता जीवित हो: कुछ महान संतों ने विवाहित जीवन जिया, जैसे संत लुइस और ज़ेली मार्टिन, या संत मोनिका, जिनके कठिनाई से भरपूर विवाह ने उन्हें महान संत बना दिया।

आपके विवाह पर हमला होगा – दुष्टात्मा अच्छे वैवाहिक जीवन से घृणा करता है, क्योंकि विवाह पृथ्वी पर पवित्र त्रित्व का सबसे स्पष्ट प्रतीक है। जिस तरह पवित्र त्रित्व प्रेम पूर्ण जीवन देने वाला समुदाय है, जैसे तीन दिव्य व्यक्ति एक-दूसरे को अनंत काल के लिए समर्पित कर देते हैं, उसी तरह एक अच्छा विवाह पृथ्वी पर इस त्रित्व का दृश्यमान और जीवंत नमूना होना चाहिए – दो व्यक्ति जो स्वयं को दूसरे को यानि अपने जीवनसाथी को देते हैं, पूरी तरह से इतना देते हैं कि उनका प्रेम नए लोगों (बच्चों) के सृजन में परिणत होता है। इसलिए दुष्टात्मा शादी से खास नफरत करता है। तब आत्मिक युद्ध के लिए स्वयं को तैयार कीजिए। आमतौर पर दुष्टात्मा का हमला प्रारम्भ में एक प्राकृतिक मानवीय असहमति का रूप ले लेता है, जिसे अनुपात से अधिक बड़ा बनाया जाता है। हो सकता है कि आपके बीच एक छोटी सी असहमति हो और अचानक तलाक के विचार आपके मन में कौंधने लगे; हो सकता है कि आपके विवाहित होने के कुछ समय बाद, अन्य पतियों या पत्नियों के बारे में आप दिवास्वप्न देखने के प्रलोभन में आप पड़ जाएँ; शायद आप अन्य कार्यों में व्यस्त रहकर अपने जीवनसाथी के साथ संवाद करने में चूक जाएँ।

इन हमलों का मुकाबला करें! जैसा कि प्रोटेस्टेंट लेखक जॉन एल्ड्रेज कहते हैं, विवाह में दो लोग शामिल होते हैं “एक दूसरे को पीठ दिखाकर तलवार से लड़ रहे दो लोग” दुश्मन कभी भी आपका जीवनसाथी नहीं होता है – आप दोनों वैवाहिक प्रतिज्ञा और ईश्वरीय कृपा से बंधे हुए एक टीम हैं, जो अपने वैवाहिक जीवन को बचने के लिए एक साथ, अपने असली दुश्मन दुष्टात्मा से लड़ रहे हैं।

और हमारे पास कई हथियार हैं! संस्कार, परमेश्वर का वचन, प्रार्थना, उपवास … ये सभी आपके विवाह का एक नियमित हिस्सा होना चाहिए। निश्चिंत रहें कि चाहे कुछ भी हो जाए, ईश्वर आपको अपनी शादी में ली गयी प्रतिज्ञाओं को पूरा करने की कृपा देंगे। जो उसके साथ उदार हैं, उन लोगों के साथ वह हमेशा उदार रहता है; वह अपने वफादार लोगों के लिए वफादार है। विवाह और परिवार पर कलीसिया की शिक्षाओं का अध्ययन करें, जैसे कि संत पापा का परिपत्र “शरीर का धर्मशास्त्र” (ह्यूमने विते) और “प्रेम और जिम्मेदारी” (फमिलियारिस कन्सोर्शियो ) । अपने विवाह को, वैवाहिक प्रेम के लिए कलीसिया द्वारा प्रस्तावित इस सुंदर दर्शन के अनुरूप बनाएं।

सबसे बढ़कर, कभी हार मत मानो! एक बार जब मैं धर्म शिक्षा कक्षा में पढ़ा रहा था, मैं उस कक्षा में एक ऐसे जोड़े को लाया, जिनकी शादी 50 से अधिक वर्ष पहले हुई थी। उन्होंने बच्चों के सामने अपनी शादी के बारे में एक शानदार प्रस्तुति दी, और फिर उन्होंने बच्चों से पूछा कि क्या तुम लोगों के कोई प्रश्न हैं। 12 साल के एक अधपके लड़के ने एक सवाल उठाया, “क्या आपने कभी अलग होने के बारे में सोचा?”

कमरे में बड़ी बेचैनी थी। अनिच्छा से, पत्नी ने कहा, “हाँ, मैं तो ऐसे बहुत बार सोचा करती थी…”। उसके पति ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा और पूछा, “सच में? क्या तुम भी मेरी तरह सोचा करती थी?”

वे लगे रहे – और 50 साल से अधिक वर्षों तक लगे रहे। मैं प्रार्थना करता हूं कि आप का विवाह बंधन भी ऐसा ही हो!

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By: फादर जोसेफ गिल

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अगस्त 20, 2021
Engage अगस्त 20, 2021

क्या आप अपने प्रिय जनों के लिए प्रार्थना कर रहे हैं? यह कहानी आप में आशा का नया संचार करेगी।

कल की ही बात है

ऐसा लगता है जैसे कल की ही बात हो, मैं अपने घर की बैठक में मेरे होने वाले ससुर जी के साथ बैठी हुई थी। यह पहली बार था जब मैं अपने बॉयफ्रेंड के माता पिता से मिल रही थी और मैं काफी घबराई हुई थी। रात को भोजन  करने के बाद परिवार के बाकी लोग इधर उधर चले गए थे, तो कमरे में मैं और मेरे होनेवाले ससुरजी ही थे। मैंने उनके बारे में काफी कुछ सुन रखा था, इसीलिए मैं उनसे बात करने का यह अवसर पाकर काफी उत्साहित थी। हैरी बड़े ही लाजवाब इंसान थे, और बहुत मज़ाकिया भी। वे छह बच्चों के पिता थे, वे मेहनती थे, उन्होंने कई पुरस्कार जीते थे और वे सेना में भी रह चुके थे। मैं उनके सबसे बड़े बेटे से शादी करने वाली थी।

मैंने उनके बारे में जितना भी सुना था, अच्छा ही सुना था, इसीलिए मैं चाह रही थी कि उनसे मेरी अच्छी मुलाक़ात हो और मैं उन्हें पसंद आऊं। मैं भी उन लोगों की तरह एक बड़े कैथलिक परिवार से थी, और मुझे उम्मीद थी कि उन्हें यह बात पसंद आएगी। मैं जानती थी कि हैरी कैथलिक विशवास में बड़े हुए थे, पर फिर उन्होंने कैथलिक चर्च छोड़ कर शादी कर ली थी और अपना पारिवारिक जीवन शुरू किया था। उनके बारे में एक यही बात थी जो मुझे हज़म नहीं हुई थी। मैं जानना चाहती थी कि ऐसा क्या हुआ होगा, जिसकी वजह से उन्हें अपनी युवावस्था में उस विश्वास से मुंह मोड़ना पड़ा जो उन्हें इतना प्रिय था। इसीलिए बातें करते करते जब हम धर्म के बारे में बात करने लगे तब मैंने उन्हें बताया कि कैसे मेरा विश्वास मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण था। उन्होंने बिना कोई रुचि दिखाए मुझे बताया कि कभी वे भी कैथलिक हुआ करते थे और वेदीसेवक के रूप में पुरोहित की मदद भी किया करता था, पर अब उन्हें शायद प्रभु की प्रार्थना भी याद नहीं थी। उन्हें बुरा ना लगे इसीलिए मैंने उनसे बस इतना कहा कि यह बड़े ही दुख की बात थी। तब से उनसे की गई बातें मैंने अपने दिल में सहेज कर रख ली थीं।

झिलमिलाती रौशनी

उस बात को अब कई साल गुज़र गए थे। मैं और मेरे पति अक्सर हैरी के लिए प्रार्थना किया करते थे, इस उम्मीद में कि एक दिन वह कैथलिक विश्वास में वापस लौट आएंगे। हैरी ने हमारी शादी के मिस्सा में भाग लिया था। उन्होंने हमारे बच्चों के संस्कारों के मिस्सा में भी भाग लिया था, और उन्होंने उस मिस्सा बलिदान में भी भाग लिया था जिसमें मेरे पति ने कैथलिक विश्वास को अपनाया था।

जब मैं अपने पति को मेरी आंखों के सामने बपतिस्मा लेते देख रही थी तब मेरे आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। उसी वक्त मुझे अपने ससुरजी से की हुई वह बात याद आई, और हालांकि उस बात को अब दस साल गुज़र चुके थे, फिर भी मेरा मन गुस्से से भर गया। मुझे गुस्सा इस बात पर आ रहा था कि इतने साल मेरे ससुरजी ने मेरे पति को विश्वास से दूर रखा था। मेरे पति बच्चों को नमूने के माध्यम से सिखाने में विश्वास रखते थे। उन्होंने मेरे विश्वास को बढ़ावा देने के साथ ही बच्चों की ठोस परवरिश के लिए खुद भी कैथलिक विश्वास में कदम रखा। ताकि हमारे बच्चे हम दोनों से धार्मिक बातें सीख सकें।

इसी विश्वास की झिलमिलाहट मैंने कहीं ना कहीं हैरी की आंखों में भी झिलमिलाती हुई देखी थीं। और मुझे विश्वास था कि उनके दिल में दबा हुआ ही सही, पर उनका विश्वास आज भी सांस ले रहा था। जब मेरे पति को कैंसर की बीमारी ने जकड़ा, तब मेरे ससुरजी ने मुझसे अकेले में यह स्वीकार किया कि वे मेरे पति के लिए मां मरियम से प्रार्थना कर रहे थे, क्योंकि उनकी हमेशा से मां मरियम में श्रद्धा रही है। उन्होंने कभी इस बारे में किसी को भी नहीं बताया था, लेकिन उन्होंने मेर साथ यह राज़ साझा किया। उनका यह राज़ सुनकर मैं बहुत खुश हुई थी क्योंकि मेरी प्रार्थना सच साबित हुई थी, उनमें आज भी विश्वास की किरण मौजूद थी। इसके बाद मैं और मेरे पति मेरे ससुरजी की कैथलिक विश्वास में पूरी तरह वापसी के लिए और भी ज़ोर शोर से प्रार्थना करने लगे।

एक बहुमूल्य तोहफा

साल 2020 कई लोगों के लिए बड़ा ही बुरा साल साबित हुआ, और मेरे ससुरजी के लिए भी वह साल तकलीफ भरा रहा। पीठ के बल गिरने की वजह से उन्हें काफी चोट आई थी, और उन्हें हफ्तों तक सबसे दूर रहना पड़ा था। उनकी तबियत खराब होने लगी थी, और हम बस उनके मज़बूत शरीर को दिन पर दिन कमज़ोर होता देख रहे थे। उनकी हालत इतनी खराब हो गई थी कि अब उन्हें पागलपन के दौरे आना शुरू हो गए थे। इन सब के बीच मेरे पति ने मेरे ससुरजी से जा कर पूछा कि क्या वह किसी कैथलिक पुरोहित से मिलना चाहेंगे? उनकी हां ने हमें बड़ा आश्चर्यचकित किया, इसके साथ ही उन्होंने मुझसे येशु की सिखाई प्रार्थना की एक कॉपी भी मांगी ताकि वह ईश्वर की प्रार्थना को याद कर सकें। एक बार फिर से मुझे उनके साथ पहली मुलाकात याद आई, पर इस बार मैं उत्साहित थी।

आने वाले दिनों में मेरे पति एक कैथलिक पुरोहित को मेरे ससुरजी से मिलाने ले गए क्योंकि मेरे ससुरजी अब चल फिर नहीं पा रहे थे। हैरी ने पाप स्वीकार संस्कार लिया फिर अपने बेटे के हाथों परम प्रसाद ग्रहण किया। हैरी का साठ साल बाद यह दोनों संस्कार ग्रहण करना उनकी आत्मा के लिए किसी बहुमूल्य तोहफे से कम नहीं था। हैरी को रोगी विलेपन संस्कार दिया गया, और इन्हीं संस्कारों की बदौलत उनके जीवन के आखिरी हफ्ते शांति से गुज़रे।

मेरे ससुरजी के आखिरी दिनों में मेरे पति उनके लिए एक रोज़री माला ले आए और हमारा पूरा परिवार मेरे ससुरजी के बिस्तर के पास बैठ कर रोज़री माला बोला करता था, क्योंकि हम जानते थे कि अब वह अनंत जीवन के बहुत करीब आ चुके थे। क्योंकि मेरे ससुरजी की मां मरियम में हमेशा से श्रद्धा रही थी, इसीलिए हमने रोज़री माला कह कर उन्हें अलविदा कहना ठीक समझा। इन सब के बाद हैरी सुकून से स्वर्ग सिधार गए और इस कृपा के लिए हमारा पूरा परिवार दिल से प्रभु ईश्वर और मां मरियम का शुक्रगुज़ार रहेगा। क्योंकि उन्हीं की बदौलत हैरी मरने से पहले कैथलिक विश्वास में लौट सके। हमें इस बात से शांति मिलती है कि हैरी की आत्मा अब शांति में, प्रभु के सानिध्य में स्वर्गदूतों के बीच निवास कर रही है। हां यह बात सच है कि मेरे ससुरजी को अपने विश्वास को फिर से अपनाने में कई साल लग गए, और हमें भी उनके लिए प्रार्थना करते हुए, उन्हें मनाते हुए कई साल लग गए। पर हम इस बात को झुठला नहीं सकते कि इन सब के बीच उनके अंदर उनका विश्वास कहीं ना कहीं हमेशा से झिलमिला रहा था। और यह हमारे लिए ईश्वर की सबसे बड़ी कृपा थी।

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By: मेरी थेरेस एमन्स

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अगस्त 20, 2021
Engage अगस्त 20, 2021

एक शाम, मेरी पत्नी ने मुझे बताया कि उसने एक मालाविनती समूह को हमारे घर में आमंत्रित किया है। वे माँ मरियम की एक मूर्ति लाएंगे और माला विनती की प्रार्थना करेंगे। मैंने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया, क्योंकि मुझे प्रार्थना में कोई विश्वास नहीं था। मेरी बुद्धि यह स्वीकार करने को तैयार नहीं थी कि कैसे कुछ शब्दों के उच्चारण से ईश्वर के साथ एक अर्थपूर्ण संबंध स्थापित हो सकता है।

माँ मरियम की मूर्ति को भव्य और सुन्दर रूप से प्रतिष्ठित करने के लिए, मेरी पत्नी ने चमकदार लाल गुलाब के दो फूलदान खरीदे। प्रार्थना समूह माँ मरियम की सुंदर प्रतिमा लेकर आया। जब वे पहुंचे, तो मैं घर के पिछवाड़े की ओर भाग गया। लेकिन जैसे ही माला विनती की प्रार्थना चल रही थी, मैं उस कमरे के दरवाजे पीछे खड़े होकर मूर्ति को देख रहा था और माला विनती प्रार्थना के बारे में सोच रहा था। “क्या वास्तव में ये लोग एक मूर्ति से प्रार्थना कर रहे हैं?” ऐसे प्रश्न  मेरे दिमाग में उभरने लगे। लेकिन मैं अपने आप से यह भी सवाल पूछ रहा था, “क्या तुम सच में यहाँ मौजूद हो? सच्चाई को जानना मेरे लिए बहुत ज़रूरी है!” मुझे यह कहने की इच्छा हुई, “तू यहाँ है, यह साबित करने केलिए मुझे तेरी ओर से एक चिन्ह की आवश्यकता है”।

मेरी नज़र चमकीले लाल गुलाबों पर पड़ी और मैंने प्रार्थना की, “काश तू उन गुलाबों में से एक या दो का रंग बदल देती …” अगली सुबह, मैं अपने काम पर निकल पड़ा। जब मैं शाम को घर आया, तो मेरी पत्नी ने दरवाजे पर ही बड़े उत्साह से मुझसे कहा, “गुलाबों को देखो … किसी ने चिन्ह या संकेत मांगा होगा।” जब मैंने उनकी जाँच करने के लिए नज़र डाली, तो मैं चमकीले लाल गुलाबों के बजाय गुलाबी रंग के गुलाबों को देखकर चकित रह गया। मैं अवाक था। अपने संयम को पुनः प्राप्त करते हुए, मैंने अपनी पत्नी से कहा, “जानेमन, मुझे लगता है कि किसी व्यक्ति ने चिन्ह मांगा … और वह ‘किसी व्यक्ति’ मैं ही हूं।” मेरी पत्नी खुशी से झूम उठी, “वाह! चमत्कार!”

मैंने उन गुलाबों की सावधानीपूर्वक जांच की कि क्या गुलाबी रंग के गुलाब, लाल रंग के गुलाब से भिन्न किस्म के हैं? लेकिन रंग को छोड़कर बाकी सब मामलों में वे दोनों रंग के गुलाब स्पष्ट रूप से समान थे। वास्तव में यह माँ मरियम की ओर से चिन्ह था जो मुझसे कह रही थी, “मैं यहाँ हूँ। मैं यहाँ तुम्हारी सहायता के लिए हूँ। मुझ से बातें करो”।

तब से, मैंने माला विनती को “कहने” के बजाय “प्रार्थना” करना शुरू कर दिया। हर बार जब मैं पूरे मन से माला विनती की प्रार्थना करता हूं, तो हमारी स्वर्गीय माँ का एक बहुत ही शक्तिशाली अनुभव मुझे होता है। वह हमेशा मेरे साथ है, मेरा हाथ थामी हुई, जीवन की यात्रा पर वह मेरे साथ चल रही है।

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By: Shalom Tidings

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अगस्त 20, 2021
Engage अगस्त 20, 2021

मेरे परिवार का जीवन सुख और दु:ख दोनों का एक संगम रहा है। प्रिय लोगों के गुज़र जाने से, परीक्षा में असफल होने से, बार बार स्कूल बदलने से और आवास की परेशानियों से प्यार और खुशी पर अक्सर दुःख का बदल मंडराता रहा। इन सभी परीक्षणों के दौरान मैंने बहुत दुख और अकेलेपन का अनुभव किया है, लेकिन इसके बावजूद, मैं माँ मरियम से लिपटी रहकर उनसे मदद लेती थी और वह मेरा समर्थन और सांत्वना देती थी।

हाई स्कूल की पढ़ाई शुरू करते ही मेरे जीवन में एक बड़ा बदलाव आया। प्राथमिक विद्यालय के दिनों के  मेरे कई मित्र और सहपाठी दूसरे विद्यालयों में चले गए थे इसलिए मुझे नए लोगों के साथ जुड़ने और मेरे मित्र बनने के लिए नए लोगों को खोजने की कोशिश करनी पड़ी। मेरे नए स्कूल में अधिक काम और लगातार समीक्षा का कार्य होता था. जो मेरे लिए किसी करीबी दोस्त के बिना यह कार्य मुश्किल था।

जैसे-जैसे महीने बीतते गए, मैंने सोचा कि क्या इन कठिनाइयों और परीक्षण का दौर कभी समाप्त होगा। मैंने इस मुश्किल दौर के दौरान सांत्वना पाने के लिए माँ मरियम से प्रार्थना की और मरियम के सम्मुख समर्पण की तैयारी के लिए फादर माइकल ई. गैटले द्वारा तैयार किया गया “महिमा की सुबह हेतु 33 दिन” नामक एक ‘स्व निर्देशित आत्मिक साधना’ शुरू किया। उस साधना के प्रत्येक दिन में संतों की जीवनी से दैनिक पाठ शामिल हैं। मुझे संत लुइस डी मोंटफोर्ट, संत मैक्सिमिलियन कोल्बे, कोलकत्ता की संत  टेरेसा और पोप संत जॉन पॉल द्वितीय  की शिक्षाओं के प्रमुख अंशों से प्रेरणा मिली। इस पुस्तक ने माँ मरियम के साथ मेरे रिश्ते को मज़बूत किया और प्रतिदिन माला विनती करते समय पाठों पर मनन चिंतन करते हुए माँ मरियम की मातृ सेवा पर मेरा भरोसा बढ़ता रहा।

इन दिनों, जब तनाव या चिंता मेरे ऊपर हावी हो जाते हैं, तब मैं केवल मालाविनती की प्रार्थना करती हूं और मैं अपने कंधे पर माँ मरियम का सांत्वना भरे हाथ का स्पर्श महसूस करती हूं। “जब मैं मालाविनती  का पाठ करता हूं, मैं पवित्र माता का हाथ थामे रहता हूं। मालाविनती के बाद पवित्र माता मेरा हाथ थाम लेती है” (संत पापा जॉन पॉल द्वितीय)। जैसे-जैसे साधना के प्रत्येक दिन के दौरान माँ मरियम के लिए मेरा प्यार और विश्वास गहराता गया, मुझे अब स्कूल में उदासी और अकेलापन महसूस नहीं होता था। मालाविनती और मरियम की अन्य भक्ति प्रार्थनाओं से मेरे आध्यात्मिक जीवन में एक बड़ा बदलाव आया। समर्पण के आखिरी दिन, समर्पण की प्रार्थना करने के लिए मैं भोर में जल्दी उठी। जैसे ही समर्पण प्रार्थना के शब्द मेरे होठों से निकले, मेरा दिल बहुत खुशी और उल्लास से भर गया, क्योंकि मुझे इस ज्ञान में आनंद आया कि मैं आखिरकार मरियम को समर्पित हो गयी।

हम में से कई लोग, जो अपने जीवन में इसी तरह की कठिनाइयों का सामना करते हैं, अक्सर नहीं जानते हैं कि उन्हें क्या करना है या कहाँ जाना है। आइए हम इस अवसर पर माँ मरियम की मध्यस्थता पर भरोसा करें। हमें यह याद रखने की आवश्यकता है कि मरियम ने पृथ्वी पर रहते हुए कई दुखों और कठिनाइयों का अनुभव किया और हम किस अनुभव से गुज़र रहे हैं यह वही ठीक से समझ सकती हैं। उसका हाथ पकड़ना और उसे हमारे कष्टों में साथ देने के लिए माँ मरियम से कहने पर हमें ‘गुलाब के पुष्पों और मधु जैसे मधुर मार्ग’ की ओर चलें अका मीठा अनुभव होगा।

आइए हम अपने जीवन की कठिनाइयों के दौरान इस शक्तिशाली प्रार्थना को करते हुए मरियम की मदद मांगे:

ईश्वर की प्यारी माँ और हमारी प्यारी माँ,

हमारे दयालु पिता ईश्वर से हमारे लिए प्रार्थना कर, ,

ताकि यह बड़ी पीड़ा समाप्त हो जाए और वह आशा और शांति फिर से जाग उठें।

आमेन ।

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By: Eva Treesa

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अगस्त 20, 2021
Engage अगस्त 20, 2021

मैं मिस्सा बलिदान में बैठकर पुरोहित को लूकस  के अनुसार सुसमाचार (6: 12-19) पढ़ते हुए सुन रही थी।  मैंने उन वचनों को नए सिरे से सुना और नए तरीके से समझा, और इस तरह मैंने पहले कभी नहीं किया था।

सुसमाचार का संदेश: येशु ने बारहों को चुना। हाँ, बारह! अपने बहुत से अनुयायियों में से, येशु ने केवल बारह को चुना। उन बारहों की टोली में एक बन जाना, उनके लिए इसका मायना क्या था? मैं सोच रही थी कि येशु ने पिछली रात को पहाड़ पर क्या प्रार्थना की होगी? क्या शिष्यों की सूचि पर निर्णय लेना उनके लिए मुश्किल था या उन्होंने तुरंत फैसला लिया था? क्या एक-एक प्रेरित को चुनना एक सटीक चयन था?  येशु ने अपना फैसला करने के लिए किन मापदंडों का उपयोग किया?

फिर, अचानक, मेरा दिल तेज़ी से धड़कने लगा और मैं परेशान होने लगी। कुछ घबराहट आ गई क्योंकि मैंने सुसमाचार की कहानी के अंदर अपने आप को रखा। अन्य शिष्यों के बीच, चुने हुए बारह नाम ईश्वर के पुत्र के मुंह से उच्चरित होने की प्रतीक्षा में वहाँ चुपचाप खड़े होने की कल्पना करते हुए मैं ने मेरी बगल में खड़े लोगों को देखा।

अचानक, मेरे द्वारा किए गए हर फैसले और हर कार्य और मेरे द्वारा बोले गए प्रत्येक शब्द की गंभीरता से मैं घबरा गयी।  येशु अपने अनुयायियों के मूल समूह का चयन कर रहे थे – और ये अनुयायी ही उनके कार्यों को पूरा करेंगे। अपने जीवन के बारे में मैंने  मन में विस्तार से छान-बीन की और मैं खुद से यह सवाल पूछ रही थी, “क्या मैं ऐसा जीवन जी रही हूं जिसे देखकर येशु मेरा चयन करते?” क्या मैंने अपने आप को इस योग्य बनाया था? ”

निश्चित रूप से, कई शिष्य ऐसे भी थे, जिन्होंने प्रभु के नाम पर अविश्वसनीय कार्य किए, लेकिन उनके नाम बारह प्रेरितों की सूचि में नहीं थे। अच्छे काम सिर्फ उन बारहों तक ही सीमित नहीं थे, लेकिन हम जानते हैं कि प्रेरितों ने येशु के सबसे करीबी दोस्तों और अनुयायियों के रूप में एक बहुत ही अंतरंग, अभिन्न भूमिका निभाई थी। चयनित होना एक अनूठा सम्मान था। इसके अतिरिक्त, येशु ने यूदस इस्करियोती को बारहों में शामिल करके अपने अविश्वसनीय प्रेम और दया की एक झलक हमें दी। हालाँकि यूदस ने बाद में येशु के साथ विश्वासघात किया था, इस के बावजूद इस बात पर बहस करने की ज़रुरत नहीं है कि बारह शिष्य येशु के अनुयायियों का एक बहुत ही विशेष समूह था।

बारह में से एक होना क्या मायना रखता है?

शायद प्रेरित येशु के प्रति कृतज्ञ थे और उत्साहित भी थे, लेकिन ईश्वर के द्वारा उनके लिए चुने गए रास्ते के बारे में सोचकर वे घबराये हुए भी थे। उन बारहों में अन्य शिष्य नहीं चुने गए थे, इसलिए क्या उन्होंने निराशापूर्ण प्रतिक्रिया दी थी, या मसीह के प्रेरितों के सामने निश्चित रूप से कठिन मार्ग निर्धारित होगा, यह जानते हुए उनमें क्या राहत की भावना थी ?

बस चुना जाना अपने आप में एक त्यागपूर्ण बलिदान था। प्रेरित बनना एक भारी क्रूस साबित होगा। चुना जाना आगे के कठिनाई भरे जीवन की सिर्फ शुरुआत थी।

ईसाई जीवन आसान नहीं है, लेकिन इसका पुरस्कार स्वर्गिक है।

क्या आप “चुने जाने” के लिए अपना जीवन जीते हैं या आप जीवन को बस गुजारने के लिए अपना जीवन जीते हैं?

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By: जैकी पेरी

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अगस्त 20, 2021
Engage अगस्त 20, 2021

मुझे क्या पता था कि एक पारिवारिक चढ़ाई मुझे जीवन जीने की एक नायाब तरकीब सिखा जाएगी।

पिछले साल मेरे बेटे की इच्छा थी कि हम उसके कॉलेज कैंपस आएं। हालांकि मैंने उसकी महंगी यूनिवर्सिटी और उसके आसपास के पहाड़ देखे थे, मेरे पति और बाकी बच्चे उस कैंपस में अभी तक नही गए थे। क्योंकि हमारा रेस्टोरेंट का बिज़नेस था, इसीलिए हमारे लिए समय निकाल कर पांच घंटे गाड़ी चला कर बेटे के कैंपस जाना मुश्किल ही था, फिर भी बेटे की ज़िद पर मैंने समय निकाल कर सारी तैयारियां की। चूंकि हमारे पास एक पूरे दिन रुकने का ही समय था, मैंने बेटे से कहा कि वह एक दिन के अंदर ही सारे घूमने फिरने के इंतज़ाम कर ले। इसीलिए बेटे ने हाइकिंग या पर्वतारोहण का प्रोग्राम बनाया।

काबिलियत से बढ़ कर संकल्प

मेरा मानना है कि उनचास साल की उम्र में अब मैं थोड़ी कमज़ोर हो चली हूं। मेरे पास कसरत करने का वक्त नही रहता है, क्योंकि मैं कपड़े धोती, बिखरे सामान को समेटती और अपने तीन मंज़िला घर की साफ सफाई करती करती थक जाती हूं। इसीलिए जब मैंने पहाड़ की चढ़ाई करना शुरू किया, तभी मुझे समझ आ गया था कि हाइकिंग पूरी करने के लिए मेरी काबिलियत नही बस मेरी हिम्मत काम आएगी।

जैसे जैसे हम आगे बढ़ने लगे, वे लोग जो मुझसे ज़्यादा ताकतवर और फुर्तीले थे आगे निकलने लगे और मैं पीछे रह गई। कुछ दूर आगे बढ़ने पर मेरी सांस थमने लगी और मुझे थकान होने लगी। मेरे पैरों में तेज़ दर्द शुरू हो गया। तब मुझे समझ आ गया कि इस चढ़ाई को पूरा करने के लिए मुझे कोई विशेष रणनीति बनानी पड़ेगी।

मैंने लक्ष्य से ध्यान हटा कर छोटी छोटी बातों पर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया। तीन मील की चढ़ाई के लक्ष्य से ध्यान हटा कर मैंने बस अगले कदम के बारे में सोचना शुरू कर दिया। कई बार ऐसे बड़े लक्ष्य मुझे भयभीत कर देते हैं। पर जब मैं उन लक्ष्यों की बारीकियों पर ध्यान देती हूं तब मैं खुद को वर्तमान समय में स्थिर कर पाती हूं। मैंने इस बात से डरना छोड़ दिया कि मैं इस चढ़ाई को पूरा कर भी पाऊंगी या नही। मैंने बस हर छोटे छोटे कदम और आस पास की छोटी छोटी बातों पर ध्यान देना शुरू कर दिया।

वह अनदेखा नज़ारा

धीरे धीरे मेरा मन प्रकृति की खूबसूरती में डूबने लगा, और मैं पूरी तरह अपने लक्ष्य को भूल गई। मुझे हवाओं की मीठी धुन, और पत्तों की सरसराहट मोहने लगी, जो बच्चों की खिलखिलाहट से मिल कर जैसे एक नया गीत बुन रही थीं। जैसे जैसे मैं कदम बढ़ाने लगी, मेरी सांसे मेरा साथ देने लगीं और मेरे पूरे शरीर में खुशी की लहर दौड़ गई। मैं पहाड़ी ज़मीन पर खिले फूलों और कलियों, और उनके आस पास की हरियाली को, और पेड़ों की टहनियों से छनती धूप की किरणों को निहारने लगी। मेरे मन की आंखें उस अनदेखे नज़ारे के मोह में खो गई जो मेरे आगे, पीछे, और मेरे आसपास था। उस पथरीली ज़मीन पर चलते हुए मेरे मन में कीड़े मकौड़ों की सेना की टुकड़ियों की छवि आने लगी। मैं चिड़ियों से ले कर चूहों, गिलहरियों, यहां तक कि मधुमक्खियों के बारे में सोचने लगी। मैंने ईश्वर को इन सब छोटी बड़ी जिंदगियों के लिए धन्यवाद दिया, और इस पहाड़ी जगह के लिए भी धन्यवाद दिया जहां ईश्वर ने मुझे यह दोपहर बिताने का सौभाग्य दिया था।

जीवन जीने का नुस्खा

कुछ समय के लिए मैं रुक कर एक कटे पेड़ के तने की तस्वीर लेने लगी, ताकि मैं यह याद रख सकूं कि इस पेड़ के मरने में भी कहीं ना कहीं ईश्वर की मर्ज़ी थी। समय के साथ यह तना भी गायब हो जाएगा और इस पेड़ की जड़ें पहाड़ की ज़मीन से जा मिलेंगी। यही सब सोच कर जब मैं तस्वीर खींच रही थी तभी मेरे आगे आसमान पर एक इंद्रधनुष का नज़ारा छा गया। इंद्रधनुष से मुझे ईश्वर का मानव जाति के साथ किया गया वादा याद आया। मुझे याद आया कि ईश्वर का वह वादा आज भी जीवित है, और इसीलिए मैंने ईश्वर को उनकी वफादारी के लिए धन्यवाद दिया।

धीरे धीरे मैंने अपने कदमों को गिनना बंद कर दिया जिससे मुझे काफी आसानी हुई। मेरा सफर तब और आसानी से कटने लगा जब मैंने अपनी चिंताओं का भार ख्रीस्त पर डाल दिया और उन्हें अपने साथ चलने का बुलावा दिया। जब मुझे प्रलोभन ने जकड़ा तब मैंने येशु को खुद के और करीब कर लिया। चुनौती से भागने या उससे डर जाने की जगह, मैंने आत्मसमर्पण की प्रार्थना कही और अपने इस सफर को ईश्वर के हवाले कर दिया।

साल 2021 की शुरुआत में उस पर्वत की चढ़ाई करते वक्त मैंने जो कुछ सीखा, उस सीख की आज दुनिया को ज़रूरत है। आज भी जब दुनिया नए खतरों, नई मुसीबतों से लड़ रही है, तब मुझे वर्तमान काल में जीने के महत्व का एहसास है। और हालांकि बड़े लक्ष्य को समझ कर उसके हिसाब से फैसले लेना कई मामलों में ज़रूरी है, फिर भी भविष्य की चिंता हमें आज की खूबसूरती, शांति और प्रेम से दूर कर सकती है।

आज़ादी राह ताकती है

अगर मैंने चढ़ाई की तकलीफों और अपनी नाकाबिलियत पर ध्यान दिया होता, तो शायद मैं वह चढ़ाई कभी पूरी नहीं कर पाती। पर अपना ध्यान आज और वर्तमान में लगा कर मैंने प्रकृति के सौंदर्य और आशीषों का अनुभव किया। इसीलिए अब से मैं भविष्य के भय के बजाय आज की आशीषों को चुनती हूं। चाहे वह किसी अपने के साथ समय गुज़ारना हो, या अपनी कोई पसंदीदा किताब पढ़ना, या अपने लिए एक प्याली कॉफी बना कर उसकी महक के मज़े लेना, या किसी दोस्त से बातें करना, उनके साथ मुस्कुराना। मैं अब आज में ज़्यादा केंद्रित हूं और रोज़ ईश्वर के प्रेम को अलग अलग रूप से प्रकट करने की कोशिश करती हूं।

पहाड़ पर एक छोटी सी चढ़ाई ने मुझे जीवन जीने का यह बहुमूल्य नुस्खा दे दिया: कि हमें वर्त्तमान में उपस्थित रह कर रोज़ ईश्वर को उनकी आशीषों के लिए धन्यवाद देना चाहिए।

इस नुस्खे ने मेरा सफर आसान कर दिया है, (चाहे वह पहाड़ पर चढ़ाई का सफर हो या कोई दैनिक कार्य करने की मुश्किल हो, या ईश्वर के दिए क्रूस को उठाने की कठिनाई हो या एक वैश्विक महामारी के बीच जीवन जीने का संघर्ष)। वर्तमान में जीना ही उस आज़ादी की चाभी है, जिस अलौकिक आज़ादी को दुनिया की कोई ताकत नहीं दबा सकती है। ख्रीस्त वर्तमान काल में ही निवास करते हैं। आइये, हम उन्हें वर्त्तमान में ढूंढें, और भरोसा रखिए कि वे हमें ज़रूर मिलेंगे।

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By: Tara K. E. Brelinsky

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