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यह कहानी है सिंथिया की जिसने चमत्कारी रूप से आत्महत्या के चंगुल से मुक्ति पाई।
हर्षित होठों से
मैं ब्राज़ील के एक मध्यम वर्गीय परिवार में पली बढ़ी हूं। मेरे पिता एक पीडियाट्रिक सर्जन थे जो स्वास्थ्य प्रबंधन में काम करने से पहले छात्रों को पढ़ाया करते थे। मेरी मां नर्स हैं इसीलिए हमारे घर में कभी पैसों की कमी नहीं रही है। हम अच्छे स्कूलों में जाते थे, हमारे पास एक सुंदर सा घर था, हमारे घर का खाना बड़ा ज़ायकेदार होता था। लेकिन क्योंकि यह मेरे पिता की दूसरी शादी थी, और उन्हें दो परिवारों को खर्चा-पानी देखना पड़ता था, इसीलिए मेरे माता पिता बड़ी मेहनत से काम किया करते थे। कभी कभी मां दो तीन दिन तक घर नहीं आती थी, क्योंकि अस्पताल में उन्हें बहुत काम होता था। और हालांकि हमारे घर में हमारा खयाल रखने के लिए और हमारा होमवर्क कराने के लिए नौकरानी थी, फिर भी मुझे अपने माता पिता की कमी बड़ी खलती थी।
जब मैं सोलह साल की थी, तब मेरे पिता का किसी और औरत के साथ चक्कर चलने लगा, जिसके चलते मेरे माता पिता ने अलग होने का फैसला लिया। उस वक्त मैंने खुद को और भी अकेला पाया और मेरा मन गुस्से से भर गया, लेकिन मैं लाचार थी। क्योंकि कहने को तो हमारे पास सारी सांसारिक चीज़े थी, पर हम खुश नही थे।
मेरा और मेरे भाइयों का बप्तिस्मा तो हुआ था, पर हमने कभी धर्म शिक्षा नही ली थी। कभी कभार हम रविवार का मिस्सा सुन लिया करते थे। चूँकि किसी ने हमें पवित्र मिस्सा के बारे में कुछ सिखाया ही नही, इसलिए हमें मिस्सा बलिदान से बोरियत होती थी। हम ईश्वर में विश्वास करते थे लेकिन हमारा ईश्वर के साथ कोई रिश्ता, या कोई जुड़ाव नही था। हमारे जीवन में दैनिक प्रार्थना और कैथलिक विश्वास की समझ की बहुत कमी थी।
एक दिन मैं और मेरी दोस्त साथ बैठ कर इस बात पर दुखी हो रहे थे कि हमारे बहुत अच्छे दोस्त नही हैं और हमें अपने जीवन में कुछ अच्छा कर दिखाना चाहिए। इसी बीच मेरे भाई के दोस्त ने हमसे कहा “मुझे एक जगह के बारे में पता है, जहां तुम्हें अच्छे दोस्त मिलेंगे क्योंकि वे लोग ईश्वर को मानते हैं। तुम्हे मिस्सा या साधना में जा कर कैथलिक चर्च के लोगों से दोस्ती करने की कोशिश करनी चाहिए।
मुझे और मेरी दोस्त को यह सुझाव पसंद आया इसीलिए हम चर्च गए। और वहां जो कुछ भी मैंने अनुभव किया वह मेरे पिछले अनुभव से बिल्कुल अलग था। वहां बहुत सारे जवान लोग बड़ी खुशी के साथ ईश्वर की स्तुति-प्रशंसा कर रहे थे और ईश्वर के लिए प्यारे प्यारे गीत गा रहे थे। वहीं पर मैंने एक इंसान को प्रार्थना करते सुना जो वे सारी बातें कह रहा जो मेरे जीवन में लागू होती थीं। वे सारी बातें जो मैं अपने दिल में दबाए चल रही थी – वो खालीपन, वो सारा दुःख और ईश्वर के लिए वो प्यास जिसे मैं आजतक कभी समझ नही पाई थी। मुझे अब तक यह समझ नही आया था कि इन सब उलझनों के बीच मैं असल में ईश्वर को खोज रही थी।
चार दिन की इस आत्मिक साधना के दौरान ही मैंने पहली बार ईश्वर को करीब से अनुभव किया। उन चार दिनों में मैं खूब रोई क्योंकि उन चार दिनों में मैंने पहली बार हमारे कैथलिक विश्वास के मौलिक सिद्धांतों को सीखा, समझा। ज़िंदगी में पहली बार मैंने ईश्वर की उपस्थिति को महसूस किया, इसीलिए मैं खूब बाइबल पढ़ने लगी और हर दिन अपने कमरे में अकेले प्रार्थना करने लगी।
कठिन डगर
मेरे माता पिता ने हमेशा हमारी अच्छी पढ़ाई लिखाई पर ज़ोर दिया था ताकि अच्छी शिक्षा पा कर अच्छी नौकरी मिल सके। और अच्छी नौकरी पा कर, अपने खर्चे खुद उठा कर मैं आत्मनिर्भर बन सकूं। मैं अपने माता पिता की इस बात को बड़ी गंभीरता से लिया करती थी लेकिन कहीं ना कहीं, दिल ही दिल में मैं एक खालीपन महसूस किया करती थी, जैसे मैं कुछ और ही ढूंढ रही थी। पर मुझे क्या ही पता था कि ईश्वर किस किस तरह से हमारी सहायता कर सकता है।
क्योंकि उन दिनों मैं अपने पारिवारिक हालातों से काफी परेशान चल रही थी इसीलिए जब स्कूल में एक लड़के ने मुझे उसकी गर्लफ्रेंड बनने के लिए कहा तो मैंने हां कह दी। मैं बस किसी तरह घर से बाहर निकलने का बहाना चाहती थी। चूंकि किसी ने मुझे कभी ईश्वर की इच्छा के बारे में ठीक से समझाया ही नहीं था, इसीलिए मैं जानती नहीं थी कि मैं जो कर रही थी वह सही भी था या नही। इसी वजह से जल्दी ही मैंने खुद को एक बड़े ही मुश्किल रिश्ते में जकड़ा हुआ पाया।
हम बहुत सारी ऐसी चीज़ें करने लगे जो कि सही नही थीं। वह मेरी जिंदगी की हर छोटी बड़ी बात को नियंत्रित करने लगा। शुरू शुरू में वह भी मेरे साथ चर्च जाया करता था, पर फिर उसने मेरे मन को बहकाना शुरू कर दिया। वह चर्च में बाइबिल की जो बातें सुनता था, उन्हीं बातों को घुमा फिरा कर मुझे इस तरह बहलाने लगा कि मैं उसके अधीन रहने लगी और उसकी सारी बातें मानने लगी। बाइबिल के बारे में मेरी जानकारी इतनी कम थी कि मुझे ना उसकी चालाकियां समझ आई और ना ही मुझे अहसास हुआ कि कैसे वह धीरे धीरे मुझे जानबूझ कर चर्च से दूर कर रहा था।
उस पर भरोसा करने की वजह से ही मैंने अपना सबकुछ खो दिया। उसने मुझे मेरे परिवार वालों से और मेरे दोस्तों से दूर कर दिया। यहां तक कि उसने मेरी कॉलेज की पढ़ाई में भी अड़चन डाल दी। चार साल इस रिश्ते को निभाते निभाते उसके दबाव में अब मेरा दम घुटने लगा था। आखिर में मैंने फिर से अकेले में प्रार्थना करना शुरू किया। मैंने येशु से कहा, “तीन साल पहले मैंने आप के सानिध्य में सच्चा प्रेम महसूस किया था, लेकिन आज मैं बहुत दुखी हूं। ये मेरे साथ क्या हो गया?” मैंने ईश्वर से भीख मांगी कि वे उन सारी चीज़ों में मेरी मदद करें जो मुझे उस वक्त परेशान कर रही थीं। मैंने सब कुछ फिर से ईश्वर को सौंप दिया और उनसे वादा किया कि अब से मैं उनकी राह पर चलूंगी। मैं अब बस इस घुटन से आज़ाद होना चाहती थी, और मुझे विश्वास था कि अगर ईश्वर ने मेरे लिए अपनी जान दी है तो वे मुझे ज़रूर बचाएंगे।
उस वक्त मेरे अंदर इतनी ताकत ही नही बची थी कि मैं यह रिश्ता तोड़ सकूं। लेकिन फिर मेरे बॉयफ्रेंड की नौकरी किसी दूसरे शहर में लग गई जिसकी वजह से वह मुझसे दूर रहने लगा। इसी बात के सहारे मैं उस रिश्ते से बाहर निकल पाई क्योंकि अब वह दूर रह कर मुझपे दबाव नहीं बना पा रहा था। देखा जाए तो यह सब किसी चमत्कार से कम नही था क्योंकि अपने बलबूते पर इस रिश्ते को तोड़ पाना मेरे बस की बात नही थी।
किनारे के करीब
इन सब के बावजूद, जिन सारी बातों से मैं गुज़री थी उसकी वजह से मैंने अपने दिल में काफी दर्द बटोर रखा था। एक दिन मुझसे इस दर्द का बोझ और उठाया नही जा रहा था। मैं सोचने लगी कि आखिर और कब तक मैं अपने सीने में यह बोझ ढोकर चलूंगी? मुझे आत्महत्या के खयाल दिन रात सताने लगे, और आखिरकार एक दिन मैंने उन खयालों के सामने हार मान ली। मैं अपने कमरे की खिड़की के पास गई और खिड़की से कूद कर अपनी जान देने की तैयारी करने लगी। मैं ज़िंदगी से तंग आकर खुद को खत्म करना चाहती थी पर खुशकिस्मती से मैं खिड़की से छलांग मारने की हिम्मत ही नही जुटा पाई। मैं बस खिड़की के पास खड़ी रह कर धीरे धीरे आगे की तरफ झुकने लगी ताकि मेरे वज़न की मदद से आखिर में मैं खिड़की से बाहर गिर जाऊं। लेकिन इन्ही सब के बीच मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे कहीं से एक बड़े हाथ ने आ कर मेरे सीने को पीछे कमरे की ओर धकेल दिया। मैं अपने कमरे की ज़मीन पर जा गिरी और ज़ोर ज़ोर से रोने लगी क्योंकि मुझे समझ नही आ रहा था कि मैं जो महसूस कर रही थी वह क्यों महसूस कर रही थी।
उस वक्त ईश्वर ने मुझे एक दूसरा मौका दिया। उसने मुझे बचाया पर मुझे नही समझ आ रहा था कि उसने मुझे क्यों बचाया। मैं रोते हुए कह उठी, “आप मुझसे चाहते क्या हैं?” मुझे मेरे मन में सुनाई दिया, “टीवी चालू करो।” जब मैंने टीवी चालू किया, तब टीवी पर एक पुरोहित प्रवचन दे रहे थे और वे समझा रहे थे कि क्यों हमें आत्महत्या नहीं करती चाहिए। उनकी बातें सीधे मेरे दिल पर लगी और मेरी आंखें भर आईं। मैं एक घंटे तक उनका प्रवचन सुनती रही जिस बीच उन्होंने बड़ी गहराई में जीवन रूपी उपहार के बारे में बात की। अपने प्रवचन में बार बार उन्होंने दोहराया, “आपका जीवन महत्वपूर्ण है।” प्रवचन के अंत तक मुझे समझ आ गया कि येशु ने मुझे क्यों बचाया और यह भी कि अपने जीवन को सुधारने संवारने के लिए मुझे ईश्वर की मदद चाहिए थी।
मेरी मां ने मेरी आंखों में आंसू देखे और उन्होंने मुझसे पूछा “क्या तुम्हें कोई मदद चाहिए?” मैंने आखिरकार यह स्वीकारा कि मुझे सच में मदद चाहिए थी। जब मैं थेरेपी लेने लगी तब मैं इस काबिल बन पाई कि मैं अपनी पढ़ाई पूरी कर सकूं। उसी समय मुझे इस बात का भी अहसास हुआ कि मुझे चर्च वापस जाने की आवश्यकता थी। मुझे येशु की ज़रुरत थी। क्योंकि उन्होंने मेरी जान बचा कर मुझे एक दूसरा मौका दिया था, इसीलिए मैंने उनसे वादा किया कि मैं उनपे भरोसा करूंगी और उनकी इच्छाओं के बारे में सीखूंगी।
साल 2009 में मैंने पलावरा वीवा कम्युनिटी के सुसमाचारीकरण स्कूल में एक साल बिताया। वहां कुछ महीने बिताने के अंदर ही ईश्वर ने मुझे मेरे जीवन का मकसद प्रकट किया। ईश्वर ने बड़ी गहराई से मुझसे बात की और मुझे एक धर्म बहन बनने को कहा। इस बात ने मुझे थोड़ी उलझन में डाल दिया क्योंकि उस वक्त तक मेरी इच्छा थी कि मैं शादी करूं, घर बसाऊं क्योंकि मुझे बच्चे बहुत पसंद थे। मैं सोच में पड़ गई कि क्या धर्म बहन बनने की यह बुलाहट सच हो सकती थी? आखिर में मैंने बहुत लोगों से बात की और धर्म बहन बनने की इस बुलाहट पर कई लोगों की राय ली। फिर जब मुझे समझ आ गया कि एक धर्म बहन बनकर अपना जीवन बिताना ही ईश्वर की इच्छा है तब मैंने ईश्वर से कहा, “ठीक है, मैं ऐसा ही करूंगी”। हालांकि उस वक्त भी मैं ईश्वर की इच्छा को पूरी तरह समझ नही पाई थी। साल 2011 में मैंने निर्धनता, ब्रह्मचर्य और आज्ञाकारिता का व्रत लिया। 2017 में मैं तस्मानिया आ गई और अब यहीं से मैं एक धर्म बहन के रूप में ईश्वर की सेवा करती हूं। मैं बस एक साधारण इंसान हूं जिसने बहुत पाप किए हैं। लेकिन मुझे इस बात का भरोसा है कि अगर मैं ईश्वर पर विश्वास रख कर अपना जीवन बिताऊंगी तो सब ठीक हो जाएगा।
'क्या आप जानते हैं कि सबसे पहले दर्ज यूखरिस्तीय चमत्कार मिस्र की मरुभूमि में रहनेवाले सन्यासियों से आता है, जो सबसे पुराने ख्रीस्तीय मठवासी थे| रोमन-शासित मिस्र के स्केटिक्स के मठों में से एक मैथ का सन्यासी कठिन परिश्रम करता था, लेकिन विश्वास के मामले में उसे कम प्रशिक्षण प्राप्त था। एक दिन अपनी अज्ञानता में वह कहता हैं: ‘हमें मिस्सा बलिदान के दौरान जो रोटी मिलती है वह वास्तव में मसीह का शरीर नहीं है, बल्कि उस शरीर का प्रतीक है।’
दो और अनुभवी सन्यासियों ने उसकी यह टिप्पणी सुनी और यह जानकर कि वह एक अच्छे और पवित्र सन्यासी है, उन्होंने उससे बात करने का फैसला किया। उन्होंने धीरे से उससे कहा: आप जो कह रहे हैं, वह हमारे विश्वास के बिलकुल विरुद्ध है। अशिक्षित सन्यासी ने उत्तर दिया: “जब तक मुझे सबूत नहीं मिलता, मैं अपना विचार नहीं बदलूंगा।’ वरिष्ठ सन्यासियों ने कहा, “हम इस रहस्य के बारे में ईश्वर से प्रार्थना करेंगे, और हमें विश्वास है कि ईश्वर हमें सच्चाई दिखाएगा।“
अगले रविवार को, मिस्सा बलिदान के दौरान रोटी और दाखरस पर अभिषेक के शब्द बोले जा रहे थे, उस अशिक्षित साधु को छोड़कर बाकी सब साधुओं को पवित्र रोटी के स्थान पर एक छोटा बालक दिखाई दिया। जब पुरोहित ने पवित्र रोटी तोड़ने के लिए उठाया, तो भिक्षुओं ने एक फरिश्ते को तलवार से बच्चे को छेदते देखा। जैसे ही पुरोहित ने पवित्र रोटी को तोड़ा, उस रोटी में से रक्त बह निकला। सन्यासियों ने परम प्रसाद प्राप्त करने के लिए वेदी की ओर कदम बढ़ाया और संदेह करने वाले सन्यासी ने देखा कि उसे दी गयी पवित्र रोटी खून से लथपथ मांस का एक टुकड़ा बन गया है। यह देखकर, वह चिल्लाया: “ईश्वर, मुझे विश्वास है कि रोटी तेरा शरीर है और तेरा रक्त कटोरी में है।” तुरंत मांस फिर से रोटी बन गया, और उस सन्यासी ने ईश्वर को धन्यवाद देते हुए बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ परम प्रसाद ग्रहण किया।
यह घटना ख्रीस्तीय धर्म की पहली शताब्दियों में से ली गयी एक सच्ची घटना है और इसका वर्णन मरुभूमि के मठाचार्य संत एंथोनी के अनुयायी संत-सन्यासियों पर लिखी गयी किताबों में पाया जाता है । अन्य बहुत सारे सन्यासियों और संत लोगों ने भी पिछली सदियों में इस तरह के चमत्कार का अनुभव किया है । उन्हें विश्वास हो गया कि हर मिस्सा बलिदान क्रिसमस की तरह होता है, जब मसीह रोटी और दाखरस के रूप में स्वर्ग से हमारी वेदियों और हमारे दिलों में “हमारे बीच निवास करनेवाले ईश्वर” बनकर नीचे उतरता है ।
'मरियम द्वारा दिए गए दर्शनों में प्रमुख सन्देश है “अच्छी तरह प्रार्थना करों”| क्या अपने अपने जीवन में प्रार्थना की शक्ति को जाना है?
क्रिसमस पर हमारे बेटे- बेटियों और उनके बच्चों को घर में बुलाना मेरी और मेरी पत्नी की एक परंपरा रही है| क्रिसमस के अगले दिन (26 दिसंबर, जिसे राष्ट्र मंडल देशों में बॉक्सिंग दिवसकहते हैं) को मेरी पत्नी छोटे बच्चों को कुछ प्रहसन दिखाने ले जाती है, साथ में कुछ बड़े लोग भी रहते हैं| मुझे पता है कि हमारे नाती-पोते बड़ी उत्सुकता से नाटक देखने की प्रतीक्षा करते हैं| आखिरी बार यह कार्य हमने चार साल पहले किया था | चूँकि हमारे नाती-पोते अब बड़े हो गए हैं, उन्हें ये प्रहसन उतने आकर्षक नहीं लगते हैं |
चौदह वर्ष पहले मुझे हृदयाघात हुआ था | दो स्टेंट्स मेरे दिल में लगाए गए हैं और कुछ दिन के उपचार के बाद मैं बिलकुल ठीक हूँ | लेकिन 10 साल बाद बॉक्सिंग दिवस के भोर में तीन बजे असहनीय दर्द के साथ मैं जाग गया | मुझे लगा की फिर से हृदयाघात हो रहा है | मैं अपनी पत्नी को जगाना नहीं चाहता था, इस लिए मैं बिस्तर से उठा और घर के निचले तल पर स्थित रसोई में जाकर प्रार्थना करने लगा | चूँकि मैं नहीं चाहता था कि क्रिसमस समारोह पर कोई खलल डाला जाये, इसलिए मैं ने एम्बुलेंस न बुलाने का निर्णय लिया|
मैं ने अपने पूरे जीवन में कभी भी इतनी ईमानदारी से प्रार्थना नहीं की थी जैसे उस दिन किया | मैं कुँवारी मरियम से उसके पुत्र येशु से यह मध्यस्थता करने के लिए प्रार्थना करता रहा कि हृदयाघात अब इस समय न हो, मेरे लिए नहीं, बल्कि मेरे परिवार के लिए। मैंने कल्पना की कि अगर मुझे अस्पताल ले जाया जाए तो यह सब उनके लिए बड़े दर्द का कारण बनेगा। मैं ने अपनी प्रार्थना में याद किया कि किस तरह, काना नगर में विवाह भोज के दौरान माँ मरियम ने येशु के सम्मुख अपना निवेदन रखा था। इससे मेरे दिल में बड़ी उम्मीद जागी कि वह मेरी प्रार्थना को सुनेगी। जैसे-जैसे समय बीतता गया, दर्द और अधिक बढ़ गया। दस साल पहले, मुझे वही लक्षण दिखाई दिए थे। कई घंटों की उत्कट और तीव्र प्रार्थना के बाद मुझे आराम मह्सूस होने लगा; दर्द कम होता गया और फिर दर्द पूरी तरह ख़त्म हो गया। मेरे दर्द और पीड़ा में मुझे आराम देने और मेरे लिए मध्यस्थता करने के लिए मैं पवित्र माँ मरियम का बहुत आभारी था।
अब उस घटना के चार साल बाद, मैं अपने ह्रदय की उस स्थिति से पूरी तरह उबरा हूँ और प्रति सप्ताह मैं बहुत मील साइकिल चलाता हूँ |
प्रार्थना की शक्ति पर भरोसा कीजिये |
'आप अपने साथी को ईश्वर के करीब लाने में एक बड़ी भूमिका निभा सकते है!
उम्मीद है इस राह में स्टीफन किंग द्वारा कैथलिक विश्वास को अपनाने की यात्रा आपकी सहायता करेगी।
वैज्ञानिक रूप से विकलांग
जब स्टीफन किंग उत्तरी आयरलैंड में एक प्रोटेस्टेंट परिवार में बड़े हो रहे थे तब उन्होंने कभी नहीं सोचा होगा कि एक दिन वह अपनी परवरिश की दहलीज़ पार कर कैथलिक बन जाएंगे। उन दिनों उत्तरी आयरलैंड में कैथलिक और प्रोटेस्टेंट लोगों के बीच लगातार मुठभेड़ हुआ करती थी, जिसने स्टीफन और उनके परिवार को धार्मिक बातों से दूर रहने के लिए प्रेरित किया। कभी कभी स्टीफन बाल्यावस्था में संडे स्कूल चले जाते थे, पर ग्यारह साल की उम्र में अपने पिता को खो देने के बाद उनके पूरे परिवार ने ही चर्च जाना छोड़ दिया।
इन सब बातों की वजह से उन्होंने ज़िन्दगी की तरफ एक बहुत ही दुनियाई और भौतिकवादी नज़रिया अपना लिया और उन्होनें विज्ञान को ही अपने सारे सवालों का जवाब मान लिया। उन्हें लगा कि उन्हें ईश्वर की कोई ज़रूरत नहीं है और धर्म ने आजतक लोगों को सिर्फ दुख तकलीफें दी हैं इसीलिए वे उससे दूर ही रहने लगे। “एक भौतिकवादी या विज्ञानवादी किस्म का इन्सान होना आपनेआप में धार्मिक रूप से विकलांग होने जैसा है। क्योंकि यह आपको एक ऐसा गुरूर देता है जिससे छुटकारा पाना बहुत मुश्किल है।”
भूगर्भ शास्त्र में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वे एक कंपनी में काम करने लगे, जो कि ट्रिनिटी कॉलेज, डबलिन में स्थित थी। हालांकि स्टीफन को उस कॉलेज के नाम से कोई लेना देना नहीं था पर ईश्वर को स्टीफन से लेना देना था, क्योंकि उन्होंने अभी तक स्टीफन को त्यागा नहीं था। स्टीफन को काम के सिलसिले में अक्सर देश के बाहर यात्रा करनी पड़ती थी, इसी बीच उन्हें ब्रिसबेन, ऑस्ट्रेलिया भेज दिया गया। जब वे ऑस्ट्रेलिया आए तब वे किसी को नहीं जानते थे पर ईश्वर ने उनका खयाल रखा।
इश्क़ हवाओं में है
एक दिन जब वह ट्रेन में बैठे अपने काम पर जा रहे थे तब उन्होंने एक सुंदर सी, जवान लड़की को देखा जो अन्य औरतों और कुछ मर्दों से भी ज़्यादा लम्बी थी। निकोल डेविस ने भी स्टीफन को देखा क्योंकि वे उन चंद मर्दों में से थे जो उसके खुद के कद से ज़्यादा लम्बे थे।
छह महीने तक स्टीफन को दूर से देखने के बाद आखिरकार निकोल की बहन ने ही उसे स्टीफन से बात करने के लिए हिम्मत दी। “उस दिन, प्लेटफॉर्म पर भी सिर्फ हम दोनों ही मौजूद थे और ट्रेन की उस डिब्बे में भी बस हम दोनों ही थे, लेकिन मेरी उनसे बात करने की हिम्मत ही नहीं हो रही थी। पर जब हम ट्रेन से बाहर निकले और मैंने उन्हें दूर जाते देखा तब मुझे अपनी बहन की कही बातें याद आईं “अगर अब तुम उस इन्सान से बात नहीं कर पाई तो आगे से मेरे सामने उसका ज़िक्र भी मत करना।” तब जा कर निकोल ने हिम्मत जुटाई, स्टीफन को पुकारा और उनसे पूछा कि क्या वह उनके साथ खाने पर चलेंगे। पहले तो स्टीफन ने मना कर दिया, पर फिर मान गए।
धीरे धीरे उन्हें समझ आने लगा कि वे दोनों एक दूसरे को पसंद करते हैं, बात यहां तक आ गई कि निकोल अब शादी की बातें करने लगी थीं। स्टीफन बेशक निकोल से प्यार करने लगे थे पर उन्हें लगा की उस वक्त वे शादी के लिए तैयार नहीं थे। लेकिन निकोल ने इरादा बना लिया था कि अगर अगले डेढ़ साल में उनका रिश्ता शादी की तरफ नहीं बढ़ता तो वह स्टीफन को छोड़कर आगे बढ़ जाएंगी। तो फिर एक साल तक डेट करने के बाद स्टीफन ने निकोल को यूरोप में अपने परिवार से मिलने और सैर सपाटा करने के लिए आमंत्रित किया।
एक बड़ा रहस्योद्घाटन
निकोल कैथलिक विश्वास से मुंह मोड़ चुकी थी पर उनकी मां ने उन दिनों कैथलिक विश्वास को फिर से अपनाया था। यूरोप की यात्रा पर निकलने के ठीक पहले निकोल ने अपनी मां के साथ एक कैथलिक दर्शंनद्रष्टा का प्रवचन सुनने गई। उस रात निकोल के साथ कुछ अनोखा हुआ। उसे ईश्वर की तरफ से एक बड़े दर्शन प्राप्त हुए। बस यह सुन पाना कि येशु उससे प्यार करते हैं उसके जीवन को परिवर्तित करने के लिए काफी था। अब उसे अपनी ज़िन्दगी की उलझनें समझ आने लगीं और इस बात ने उसे अभिभूत कर दिया। उसी दिन से निकोल ने कैथलिक विश्वास में वापसी की और एक मज़बूत विश्वासी होने का प्रण लिया। पर जहां निकोल इस बात से बेहद खुश थी, वह इस बात से भी अनजान थी कि यहीं से उसके और स्टीफन के रिश्ते का कठिन समय भी शुरू हो रहा था।
“द केस फॉर क्राइस्ट” नामक मूवी की कहानी भी कुछ इसी तरह की है जहां एक नास्तिक पत्रकार और उसकी पत्नी के बीच के मतभेद को दिखाया गया है, क्योंकि उसकी पत्नी येशु पर विश्वास करने लगती है। उसी नास्तिक पत्रकार की तरह स्टीफन का मन भी गुस्से और चिढ़ से भर गया। उसे इस बात पर गुस्सा आ रहा था कि निकोल की मां ने निकोल को उस प्रवचन में ले जा कर उसका मन बदल दिया। इसका सीधा असर उनकी यूरोप की यात्रा पर पड़ा। “निकोल आसपास के हर चर्च को देखना चाहती थी और यूरोप तो चर्चों से भरा पड़ा है।” हर दिन किसी ना किसी बात पर लड़ाइयां होने लगीं और हर शाम डिनर टेबल पर आंसुओं के साथ गुज़रती थी। “मुझे लगने लगा था कि अब शायद रेस्टोरेंट के वेटरों तक को मुझसे नफरत हो गई होगी।” आखिर में निकोल ऑस्ट्रेलिया के लिए पहले निकल गई।
स्टीफन को अब लगने लगा था कि यही उनके रिश्ते का अंत है। क्योंकि इतनी लड़ाइयों के बाद कोई कैसे इस रिश्ते को आगे बढ़ा पाता? और हालांकि स्टीफन धार्मिक विश्वास में वापस जाने का सोच भी नहीं रहे थे फिर भी उसे निकोल से प्यार था और उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि निकोल के बगैर उनका गुज़ारा कैसे चलेगा। इसीलिए ऑस्ट्रेलिया वापस आने के बाद स्टीफन ने निकोल से मिल कर सुलह करने की पूरी कोशिश की। और कुछ महीनों बाद उन्होंने शादी कर ली। “हालांकि धार्मिक स्तर पर मैं और मेरी पत्नी एक दूसरे से कोसों दूर थे पर मुझे उससे प्यार था और नैतिक रूप से हम एक जैसे थे, जो कि किसी भी रिश्ते को चलाने के लिए बहुत ज़रूरी होता है।”
निकोल के लिए भी समस्याएं कम नहीं थी क्योंकि उसका कोई भी दोस्त धार्मिक नहीं था। किसी भी चर्चा में वह खुद को अकेला महसूस करती थी क्योंकि उसके सभी दोस्त उसे ग़लत साबित करने में लग जाते थे। लेकिन किसी तरह उसने अपने विश्वास पर टिके रहने की हिम्मत जुटाई। और क्योंकि निकोल के विश्वास की यात्रा एक दर्शनद्रष्टा की गवाही से शुरू हुई थी, इसीलिए स्टीफन के लिए धर्म का यह रूप बिल्कुल अनजान और नया था। स्टीफन को लगता था कि इन दर्शनों और चमत्कारों में कोई सच्चाई नहीं है। जबकि निकोल अपनी मां के साथ धर्म के कार्यों में ज़ोर शोर से हिस्सा ले रही थी। स्टीफन इसलिए भी इन सब चीज़ों से दूर भाग रहे थे क्योंकि जिन धार्मिक लोगों से निकोल का उठना बैठना था उनके प्रति स्टीफन का लगाव नहीं था क्योंकि वे बाहर से धार्मिक दीखते थे लेकिन स्वभाव से अच्छे इंसान नहीं लग रहे थे।
एक एहसान
समय के साथ निकोल और भी चिंतनशील होने लगी और कई चर्चों में जाने के बाद उसने आखिर में लैटिन मिस्सा में जाना शुरू किया। वहां के पुरोहित थे येशु समाजी फादर ग्रेगोरी जे.जॉर्डन और जल्दी ही वे स्टीफन और निकोल के दोस्त के रूप में उनकी ज़िन्दगी का एक अनमोल हिस्सा बन गए। एक दिन उन्होंने स्टीफन से कहा “निकोल मिस्सा के दौरान अपने बच्चों को अकेले नहीं संभाल पा रही है। क्या तुम मुझ पर एक एहसान करोगे? क्या तुम रविवार मिस्सा में आ कर बच्चों को संभालने में निकोल की मदद करोगे? मैं तुमसे मिस्सा में भाग लेने के लिए नहीं कह रहा, बस आ कर निकोल की मदद कर दो, उसकी ज़िन्दगी थोड़ी आसान हो जाएगी।” स्टीफन को बात ठीक लगी इसीलिए उसने हर रविवार निकोल के साथ मिस्सा बलिदान के लिए चर्च आना शुरू किया। धीरे धीरे उसे मिस्सा का समय अपने बच्चों के साथ बिताना और मिस्सा के बाद दोस्तों से बातें करना अच्छा लगने लगा।
“लैटिन मिस्सा सुनना मुझे इसीलिए अच्छा लगने लगा क्योंकि इस धर्मविधि में कोई फ़िज़ूल का दबाव नहीं बनाया जा रहा था। लोग अक्सर लैटिन मिस्सा के बारे में सोच कर ही थोड़ा डर जाते हैं लेकिन मुझे तो इसकी सीधीसादी श्रद्धा ने आकर्षित किया। एक दिन मेरे एक दोस्त ने मुझे “क्या विज्ञान ने ईश्वर को दफना दिया है?” नामक किताब दी। यह किताब प्रोफेसर जॉन लेनोक्स ने लिखी थी जो कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में गणित पढ़ाते थे। इस किताब को पढ़ने के बाद मेरी आंखें धार्मिक विश्वास की ओर खुल गईं। इस किताब ने वे सारे सवाल पूछे जिसका जवाब विज्ञान के पास नहीं था। ईश्वर द्वारा रचित यह सृष्टि हमारी समझ से कहीं ज़्यादा पेचीदा है, और यह बात हम अक्सर भूल जाते हैं। मुझे आज तक समझ नहीं आया कि कोई यह कैसे सोच सकता है कि इतना सब कुछ, कुछ नहीं से सृजित हुआ।
कैथलिक चर्च में इतना समय बिताने के बाद मुझे यह बात स्पष्ट हो गई कि सारे सवालों का जवाब उस एक सच्चे ईश्वर में था। पर मैंने अपने विश्वास की इस यात्रा को धीरे धीरे तय करने का निश्चय किया। ईश्वर ने 2015 में मुझे सबसे बड़ा झटका तब दिया जब मुझे हार्ट अटैक आया और मेरे आसपास की चीज़ें तेज़ी से बदलने लगीं। इसने मेरी सोच को बदला। मुझे अहसास हुआ कि मैं अमर नहीं हूं। मुझे अब जल्द ही उन बातों पर ध्यान देना चाहिए जो कि सच हैं और ज़रूरी भी। अभी तक ईश्वर मुझसे बातें करते आ रहे थे पर मैं उनकी बातें अनसुना करता जा रहा था। तभी शायद ईश्वर को मुझे इतना बड़ा झटका देना पड़ा।”
स्टीफन को ठीक होने में तीन महीने लगे, जिसके लिए उन्हें काम से छुट्टी लेनी पड़ी। इसी बीच उन्होंने बाइबिल पढ़ना शुरू किया। जैसे जैसे वे मनन चिंतन और प्रार्थना करने लगे उन्हें अहसास हुआ कि अब उन्हें एक फैसला लेना पड़ेगा। “मैंने कोई दर्शन प्राप्त नहीं किया पर मुझे अहसास होने लगा कि अब मुझे अपने बच्चों के लिए एक अच्छा पिता होने के लिए और अपनी पत्नी के लिए एक अच्छा पति होने के लिए यह कदम उठाना पड़ेगा।”
तीन महीने बाद उन्होंने खुद को कैथलिक चर्च का हिस्सा बना लिया। यह दिन, सबसे ज़्यादा उनके परिवार के लिए महत्वपूर्ण था क्योंकि इतने सालों बाद उन्होंने आखिरकार चर्च को अपना लिया था। जब स्टीफन ने पहली बार परम प्रसाद ग्रहण किया तब उन्हें अहसास हुआ कि उन्हें ईश्वर की इस शक्ति की कितनी ज़रूरत थी। “मुझे हमेशा से खुद पर पूरा भरोसा था और मुझे लगता था कि इस जीवन को जीने के लिए मेरे पास सबकुछ है। लेकिन परम प्रसाद ग्रहण करने के बाद ही मुझे समझ आया कि यह जीवन जीने के लिए मुझे ईश्वर की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है।”
“पहली बार जब निकोल ने कैथलिक विश्वास को अपनाया था, तब मुझे उस बात से चिढ़ हुई थी, क्योंकि वह हमारी ज़िन्दगी में एक ऐसी चीज़ ले आई थी जिसकी मुझे कोई ज़रूरत नहीं थी। ना ही मेरा इस ओर कोई रुझान ही था। फिर मैं कैथलिक लोगों से मिलने लगा और मुझे उनका व्यवहार, उनकी बातें अच्छी लगने लगी। मुझे समझ आया कि ये अच्छे लोग हैं। फादर जॉर्डन का इन सब में बड़ा हाथ रहा है। उनके बिना शायद मैं आज अपनी ज़िन्दगी के इस मोड़ पर खड़ा नहीं होता।”
“अब मैं हमारे ईश्वर के मार्गदर्शन और उनकी सहायता पर पूरी तरह निर्भर हूं। और मैं अपना जीवन उसी तरह जीने की कोशिश करता हूं जिस तरह उस हर व्यक्ति को, जो ख्रीस्त पर विश्वास करते हैं, अपना जीवन जीना चाहिए। अब मैं अपने परिवार के साथ रोज़री माला बोलता हूं, हर दिन बाइबिल पढ़ता हूं और ईश्वर की कृपाओं पर मनन चिंतन करता हूं। अब जब मैं मिस्सा में भाग लेता हूं तब मैं ईश्वर के बलिदान के बारे में सोच कर मंत्रमुग्ध रह जाता हूं। मेरा जीवन अब पूरी तरह बदल चुका है। और अब जीवन में कठिनाइयों का सामना करना भी पड़े, तो भी मैं जीवन भर कैथलिक रहने का प्रण ले चुका हूं।”
'आप अपना सर्वश्रेष्ठ व्यक्तित्व निखारना चाहते हैं? तो पहला कदम बढ़ाइए !
गायब कड़ी
मेरी यह गवाही किसी शक्तिशाली रूपांतरण के बारे में, जीवन में परिवर्तन के किसी पल के बारे में , या किसी चमत्कारी उपचार के बारे में नहीं है। यह छोटे कदमों की एक यात्रा है। ऎसी यात्रा जिसके दौरान मैं लगातार लड़खड़ाती और गिरती रही, लेकिन ईश्वर मुझे हमेशा उठाता रहा और वह मेरे साथ चलता रहा। मेरा जन्म कैथलिक परिवार में हुआ था और मेरी परवरिश एक कैथलिक के रूप में हुई थी| हालाँकि, सब लोग सहमत होंगे कि बचपन में कैथलिक के रूप में परिवरिश किया जाना कोई ख़ास बात नहीं है। मैंने ख्रीस्तीय संस्कारों में भाग लिया और नियमित रूप से चर्च जाती रही, लेकिन मेरे जीवन में येशु के साथ एक व्यक्तिगत संबंध की कमी थी।
अपने कॉलेज की पढ़ाई के दौरान, जब भी मुझे कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, मैंने सांत्वना के लिए ईश्वर की ओर रुख किया। वह हमेशा मेरे लिए उपलब्ध था, लेकिन मैं हमेशा उसके लिए उपलब्ध नहीं थी। मैंने ईश्वर को एक कमरे में बंद रखा और सिर्फ कोई ख़ास जरूरत महसूस होने पर मैं उसकी ओर मुडती थी। ईश्वर निश्चित रूप से मेरे जीवन का हिस्सा था, क्योंकि मैंने रविवार को चर्च जाना और अक्सर प्रार्थना करना जारी रखा था, लेकिन ईश्वर मेरे जीवन का केंद्र बिंदु नहीं था। मेरी निजी रुचि और इच्छाएँ मेरे दिमाग में सबसे आगे थीं। मैंने कभी भी ईश्वर की इच्छा के बारे में सोचा ही नहीं।
स्नातक की पढ़ाई पूरा करने के छह महीने पहले, मेरी पूरी दुनिया उलट गई। मैं वास्तव में गहरे अवसाद से गुज़री और लंबे समय तक मेरे लिए केवल अंधेरा था। मुझे जो निराशा और निस्सहायता महसूस हुई, उसे शब्दों में व्यक्त करना कठिन है, लेकिन मुझे लगता है कि जो इसे पढ़ रहे हैं, आप में से बहुत से लोगों ने, कभी न कभी इस तरह की निराशा को महसूस किया होगा। ऐसी परिस्थिति में हम किसी न किसी रास्ते को चुनते हैं। या तो हम ईश्वर की ओर भागते हैं और उसकी शरण लेते हैं या क्रोध में उससे दूर भागते हैं।
अफसोस की बात है, मैंने दूसरा रास्ता चुना। मैं समझ नहीं पा रही थी कि अगर ईश्वर मुझसे प्यार कर रहा है तो क्यों वह मुझे इतनी भयावह परिस्थिति में डाल रहा है। एक साल की अधिकांश अवधि के लिए, मैंने खुद को दूसरों से पूरी तरह से अलग कर लिया। मैंने चर्च जाना बंद कर दिया। मैंने कहीं भी जाना बंद कर दिया। मैं शर्म और बेकार होने की भावनाओं में फंस गई थी। “तुम एक बोझ हो” और “तुम्हारे बिना सबकी हालत बेहतर होगी” जैसी सोच मेरे दिमाग में लगातार हमला कर रही थी। मेरा दिमाग एक जेल की तरह था जिस में से मेरा बाहर निकलना असंभव जैसा था।
शुक्र है, यह मेरी जीवन कहानी का अंत नहीं था। मेरे पसंदीदा बाइबल वाक्यों में से एक रोमी 8:28 है। “हम जानते हैं कि जो लोग ईश्वर को प्यार करते हैं और उसके विधान के अनुसार बुलाये गये हैं ईश्वर उन के कल्याण के लिए सभी बातों में उनकी सहायता करता है।“ यह हमें आश्वस्त करता है कि हमारे जीवन में जो कुछ भी हो सकता है, इश्वर उसके द्वारा हमारी भलाई के लिए काम करेंगे। वह हमें प्यार से याद दिलाता है कि हम उसके द्वारा चुने गए हैं और हमारे जीवन का एक उद्देश्य है। यह मेरे जीवन में स्पष्ट हो गया जब मैं धीरे-धीरे विभिन्न लोगों की मदद से और उन घटनाओं की मदद से विश्वास में लौट आयी| ये घटनाएँ निश्चित रूप से ईश्वर के द्वारा संचालित थी।
शिशुओं के जैसे छोटे कदम
इस बार का अनुभव वह बिलकुल भिन्न था। मैंने दैनिक मिस्सा बलिदान में और आत्मिक साधनाओं में भाग लिया क्योंकि मैंने वास्तव में ईश्वर के प्यार की खोज की। हालांकि, मेरे मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में मुझे लगातार संघर्ष करना पडा। कोई प्रगति या सुधार नहीं हो रहा था इसलिए मेरा भविष्य अंधकारमय लग रहा था। मैं लगातार जीवन से तंग आ गयी थी। येशु ने जो आशा और शांति का वादा किया था वह बहुत दूर लग रहा था। जैसा कि मैंने पहले कहा था, कोई एक जादुई क्षण नहीं था जब चीजें मेरे हिसाब से या मेरी पसंद से बन रही थीं। मुझे ईश्वर के समय की प्रतीक्षा करनी थी। फिर भी, अधिक सकारात्मक स्थिति की ओर प्रगति करने में शिशुओं जैसे कुछ छोटे कदमों ने मदद की।
मेरा परिवार मेरे लिए सबसे बड़ा अनुग्रह है। वे सबसे अंधेरे समय में भी मेरे साथ खड़े थे और उनके लिए सचमुच मैं ईश्वर की आभारी हूं। लगभग दो साल पहले, हमने रोज़ाना तीस मिनट बाइबिल पढ़ना शुरू किया था – जो हम तब से अब तक करते आ रहे हैं। भले ही यह कठिन हो सकता है, खासकर पुराने नियम के कुछ हिस्से जब हम पढ़ते हैं, निश्चित रूप से दृढ़ता की अधिक आवश्यकता होती है। जब हम यह मानते हैं कि बाइबिल परमेश्वर का जीवित वचन है, तो हमें एहसास होता है कि वहाँ हर चीज के लिए एक उत्तर है।
“शैतान का लक्ष्य आपका दिमाग है और उसका हथियार झूठ है। इसलिए अपने मन को परमेश्वर के वचन से भर दो”– ग्रेग लोक।
यह उद्धरण इस बात पर जोर देता है कि शैतान हमारे खिलाफ किस तरह हथियार के रूप में झूठ का उपयोग करता है। मेरा संघर्ष मुख्य रूप से मेरे मन के साथ था और मुझे महसूस हुआ कि मैं मन के असत्य की सोच में फंसी हुई हूँ। मैं बार बार अपने जीवन में आये कई पापों के साथ जूझती रही। शैतान ने मुझे बताया कि मैं प्यार से वंचित, टूटी हुई और बेकार थी, जबकि वास्तविकता यह थी कि मैं ईश्वर की बच्ची हूं जो मुझे असीम रूप से प्यार करता था। इस सत्य की पुष्टि कर रहे परमेश्वर के कुछ वचन यहाँ हैं जो हम में से प्रत्येक को दिए गए हैं:
“ईश्वर ने हमारी रचना की है, उसने येशु मसीह द्वारा हमारी सृष्टि की, जिससे हम पुण्य के कार्य करते रहे और उसी मार्ग पर चलते रहे, जिसे इश्वर ने हमारे लिये तैयार किया है” (एफीसी 2:10)।
“मैं ईश्वर की हूँ और मैंने उन लोगों पर विजय पायी है: क्योंकि जो मुझ में है, वह उस से महान है, जो संसार में है|” (1 योहन 4: 4)।
“ईश्वर ने मुझे अन्धकार से निकालकर अपनी अलौकिक ज्योति में बुला लिया, जिससे मैं उसके महान कार्यों का बखान करूं” (1 पतरस 2: 9)।
निर्दोष प्रेम
कैथलिक विश्वास में मेलमिलाप या पाप स्वीकार का संस्कार मुझे सबसे अधिक पसंद है। पाप स्वीकार के लिए दौड़ना और येशु को अपना दिल देना, इसे मैं बड़े मूल्यवान अवसर के रूप में देखती हूँ। शैतान हमें अपराध और शर्म की भावना में धकेल देता है| जबकि येशु की क्षमा प्राप्त करने पर इस बोझ से हम मुक्त हो जाते हैं। जब हम गलत रास्ते पर हैं तब पवित्र आत्मा हमें अपनी गलती को महसूस करने, पश्चाताप करने और ईश्वर की ओर मुड़ने की आवश्यकता को अनुभव करने में हमारी मदद करता है। जब तक हम ऐसा करते हैं, तब तक हमें चिंता करने की कोई ज़रुरत नहीं है, हालांकि हमें इसे बार-बार करना पड़ सकता है। जितना दूर हम ईश्वर से भटक गए हैं, जब हम वापस आते हैं, उतने ही अधिक ईश्वर आनन्दित होते हैं, ठीक उसी तरह जैसे उडाऊ पुत्र के लौटने पर उसके पिता ने उत्सव मनाया।
ईश्वर के प्यार को पाने के लिए, मुझे कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं है, इस सच्चाई को महसूस करने में मुझे थोड़ा समय लगा और मैंने अभी भी इसे पूरी तरह से समझा नहीं है। यह एक बेशर्त उपहार है जो ईश्वर हमें भेंट करता है। उसका प्रेम मेरे ऊपर या मेरे दोषपूर्ण स्वभाव पर निर्भर नहीं है। यह उसके प्रेममय और दयालु स्वभाव पर निर्भर है। मेरे और आपके सबसे अंधकारपूर्ण समय के दौरान भी यह प्यार हमें आशा देता है। नबी होशेया की पुस्तक में, ईश्वर घोषणा करता है कि “मैं कष्ट की घाटी को आशा के द्वार में परिणत करूंगा” (होशेआ 2:15)। यह वचन मेरे जीवन में हुई घटनाओं को सुन्दर तरीके से चित्रित करता है। ईश्वर ने अपने प्रेम के द्वारा, मेरी परेशानियों को आशा बनाए रखने और उस आशा को आपके साथ साझा करने के अवसर में बदल दिया।
एक एक कदम
पीछे मुड़कर देखूं तो पता चलता है कि मेरे दर्द ने मुझे अंततः ईश्वर के करीब जाने के लिए प्रेरित किया। ईश्वर ही एकमात्र व्यक्ति है जो वास्तव में हर परिस्थिति में मेरे लिए और मेरे साथ खडा है। वह न केवल प्रतापी, सर्वशक्तिशाली ईश्वर है, वह मेरे सहचर और दोस्त भी है। मैंने ईश्वर की इच्छा और उसके समय को और अधिक स्वीकार करना सीखा है। मैं ने जिस तरह अपने जीवन के लिए योजना बनाई, निश्चित रूप से उसी तरीके से मेरा जीवन आगे बढ़ा नहीं, लेकिन इसमें कोई बुराई नहीं है क्योंकि ईश्वर के तरीके मेरे तरीकों से अधिक अच्छे और ऊंचे हैं। क्योंकि प्रभु की घोषणा है: “तुम लोगों के विचार मेरे विचार नहीं हैं, और मेरे मार्ग टीम लोगों के मार्ग नहीं हैं, जिस तरह आकाश पृथ्वी के ऊपर बहुत ऊँचा हैं, उसी तरह मेरे मार्ग तुम्हारे मार्गों से और मेरे विचार तुम्हारे विचारों से ऊंचे हैं।” (इसायाह 55: 8-9)
कई छोटे तत्वों ने मेरे विश्वास को बढ़ाने में समय के साथ योगदान दिया। इस से मुझ में परमेश्वर की गहरी समझ और उनके प्रति गहरी आस्था बढ़ी। मेरा यह भी मानना है कि प्रार्थना की शक्ति ने मुझे जीवन की कई चुनौतियों का सामना करने में मदद की है। मैं विनम्रतापूर्वक निवेदन करता हूं कि आप अपनी प्रार्थनाओं में मुझे याद करें और हम सभी एक-दूसरे के लिए प्रार्थना करने की मानसिकता अपनाएं। मेरी गवाही से पता चलता है कि ईश्वर के करीब आने के लिए हमें बड़े कार्य करने की ज़रूरत नहीं है। छोटे कदम: बस इसी की ज़रुरत है। मुझे आशा है कि आप आज ईश्वर की ओर एक छोटा कदम उठाने में सक्षम हैं। वह प्यार भरी, खुली बाहों से आप का इंतजार कर रहा है।
प्यारे परमेश्वर, मैं दृढ़ता से तुझ पर विश्वास करती हूं और तुझ पर आशा रखती हूं। तेरे करीब आने में एक और कदम उठाने के लिए मैं प्रति दिन भोर में उठती हूं। मेरा एक मात्र निवेदन है कि मैं तुझे जानूं और तुझ से प्यार करने की कृपा पा लूं । मुझे अपनी प्यार भरी बाँहों में जकड़ ले प्रभु। आमेन।
'फादर क्रिस दीसूज़ा अंधे थें लेकिन फिर वे फातिमा की माँ मरिया के तीर्थ पर गए जिसके बाद उनके जीवन में एक चमत्कार हुआ, पर यह उनके परिवार में होने वाला आखिरी चमत्कार नही था|
मेरी माँ मरियम पर श्रद्धा जीवन के शुरूआती दिनों से है| मैं ऑस्ट्रेलिया में पैदा हुआ लेकिन मेरे माता पिता पुर्तगाल से यहां आए थे, इसीलिए फातिमा की माँ मरियम पर हमारी हमेशा से श्रद्धा रही है| हम हर दिन घर पर उनकी मूर्ती के रोज़री माला बोलते थे, इसी लिए मुझे हमेशा से उनकी मध्यस्था पर भरोसा रहा है|
मैं जन्म से ही दाहिने आँख से अँधा हूँ और एक बीमारी के चलते साल दर साल मेरी बाईं आँख की रौशनी भी कम होती गयी| इसीलिए बचपन से ही मेरे मातापिता ने मुझे कई आई स्पेशलिस्ट्स को दिखाया, इस उम्मीद में कि उन्हें कहीं ना कहीं मेरी बीमारी का कोई ना कोई इलाज ज़रूर मिल जाएगा, पर हर जगह उन्हें बस निराशा ही हाथ लगी|मुझे जो बीमारी थी उसका कोई इलाज नही था और यह बात तय थी कि मेरे बड़े होने तक मैं पूरी तरह से अँधा हो जाऊँगा|
जोखिम लें
जब तक मैं बड़ा हुआ मेरी बाईं आँख की रौशनी काफी हद तक जा चुकी थी, जिसकी वजह से मेरी क़ानून की पढ़ाई पर काफी असर पड़ा| मेरे मातापिता जब मुझे अपनी कमज़ोर आँखों से क़ानून की मोटी मोटी किताबों को पढ़ने की कोशिश करते हुए देखते थे, तो उनका दिल दुख से टूट जाता था। इसीलिए मेरी पढ़ाई के आखिरी साल वे दोनो फातिमा की माँ मरियम के तीर्थ पर गए और उन्होंने मेरी आंखों की रौशनी के लिए माँंमरियम से मध्यस्थता मांगी। मैं उनके साथ नही गया क्योंकि मैं अपने आखिरी साल की पढ़ाई के बीच कहीं आ जा नहीं सकता था।
जब वे तीर्थ से दृढ़ विश्वास के साथ और एक नए उत्साह के साथ लौटे, तब उन्हें एक नए स्पेशलिस्ट के बारे में पता चला जो बेल्जियम से एक नई तकनीक सीखकर लौटे थें जो की मेरी मदद कर सकता था।हालांकि उन स्पेशलिस्ट के साथ एक अपॉइंटमेंट मिल पाना नामुमकिन सा लग रहा था, लेकिन माँ मरियम की मध्यस्थता के द्वारा हमें किसी तरह एक कंसल्टेशन मिल ही गई।और हालांकि मुझे यह बचपन से ही समझा दिया गया था कि जल्द ही मैं अपनी दोनो आंखों की रौशनी खो दूंगा, मैं अपने मातापिता की कोशिशों को अनदेखा नही कर सकता था, इसी लिए मैं इस नए डॉक्टर से मिलने केलिए राज़ी हो गया।
मेरी आँखों की जांचकरने के बाद स्पेशलिस्ट डॉक्टर ने कहा कि वे इस बात का दावा नहीं कर सकते थे कि जो नयी तकनीक वह सीख कर आए थे वह मेरे काम आएगी| यह सब काफी रिस्की भी था क्योंकि मेरे पास सरकार की रज़ामंदी नहीं थी और यह इलाज बहुत महंगा था| लेकिन मेरे मातापिता का माँ मरियम की मध्यस्था पर विश्वास इतना मज़बूत था कि वे इस इलाज के लिए तुरंत मान गए और उन्होंने मुझे भी इस इलाज को कराने केलिए मना लिया| मैं मन ही मन अभी भी दुविधा में था पर फिर मैं ने खुद को माँ मरियम देखरेख में छोड़ दिया|
चांस लेकर देखें
उन्होंने इलाज मेरी दाईं आँख से शुरू किया, वह आँख जिसमे मैं जन्म से ही अँधा था| सर्जन ने हमसे कहा था कि इस इलाज का असर दिखने में कुछ महीने लग सकते थे इसीलिए मैं तुरंत ही अपनी आँखों कीरौशनी केबेहतर होने की उम्मीद नहीं कर रहा था| लेकिन ऑपरेशन के खत्म होने के 15 से 20 मिनट बाद ही मैं अपनी जन्म से खराब आंख से ज़िंदगी में पहली बार सब कुछ साफ साफ देख पा रहा था। मुझे अपनी पूरी ज़िंदगी में सब कुछ इतना साफ, इतना स्पष्ट कभी नही दिखा था।
मैं ऑपरेशन थिएटर से ईश्वर की महिमा गाता, माँ मरियम को उनकी मध्यस्था केलिए धन्यवाद कहता हुआ दौड़ा चला आया। जैसे ही मैंने ख़ुशी में अपने मातापिता को गले लगाया, मेरे सर्जन जिन्हें ईश्वर में विश्वास नही था, वेभी इसे एक चमत्कार मानने से इन्कार नही कर पाए। क्योंकि वे भी हमें यह समझाने में नाकाम थे कि उस आंख पर इस इलाज का इतनी जल्दी असर कैसे हुआ जो जन्म से ही पूरी तरह खराब थी।
एक महीने बाद उन्होंने मेरी दूसरी आंख, मेरी बाईं आंख का ऑपरेशन किया। इस बार भी एक चमत्कार की आशा रखना ईश्वर से कुछ ज़्यादा ही मांगने जैसा था, लेकिन ईश्वर के घर में आशीषों की कभी कमी नही पड़ती। फिर से ऑपरेशन के 15 से 20 मिनट बाद मैं अपनी बाईं आंख से साफ साफ देख पा रहा था। मेरी दोनों आंखों की रौशनी वापस आ चुकी थी। पवित्र कुंवारी मरियम की मध्यस्थता से और मेरे मातापिता के दृढ़ विश्वास के कारण अब मैं एक वकील के तौर पर अपनी नई ज़िंदगी शुरू कर सकता था।
एक बदलाव लाएं
मेरी हमेशा से एक वकील बनने की इच्छा थी, लेकिन फिर मैं ने ईश्वर केलिए अपने दिल को खोला। वे मुझसे क्या चाह रहें थे? मैं जानता था कि ये चमत्कार मेरे जीवन में उनके दिए तोहफे थे जिनकी मुझे कीमत चुकाने की ज़रूरत नहीं थी, लेकिन माँ मरियम की मध्यस्था से मैं उनसे पूछता था कि “हे ईश्वर, आप मुझ से क्या चाहते हैं? आपने मेरी आंखों की रौशनी मुझे क्यों वापस की, क्योंकि दुनिया में ऐसे कई लोग हैं जिन्हें ऐसे एक चमत्कार की ज़्यादा ज़रूरत है। मन में इसी उलझन को लिए मैं ने काम करना शुरू किया। और हालांकि एक वकील की ज़िंदगी जी कर मैं खुश था, और लोगों की नज़र में मैं शादी और खुद का परिवार शुरू करने की राह पर था, फिर भी मुझे मेरे दिल में एक पुरोहित के तौर पर ईश्वर केलिए जीने की बुलाहट तब महसूस हुई जब मैं विश्व युवा दिवस की तीर्थयात्रा पर था।
सच कहूं तो उस वक्त मेरा मन घबराहट से भर गया था और मुझे अपनी इस बुलाहाट को समझने और अपनाने में कई महीने लगें। 13 मई की बात है, फातिमा की माँ मरियम की फीस्ट के मिस्सा के दौरान मैं ने पवित्र कुंवारी मरियम से कहा, “अगर मेरे जीवन केलिए आपके बेटे की यही इच्छा है, तो मुझे यह योजना मेरे आंखों के सामने साफ साफ दिखाइए, उसी तरह जिस तरह पहले सब कुछ साफ साफ देखने में आपने मेरी मदद की। इसके बाद मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी आंखों के सामने से एक पर्दा सा हट गया। मुझे अब यकीन था कि माँ मरियम के बेटे येसु मुझे धार्मिक जीवन जीने केलिए बुला रहे थें। येसुमुझे पुरोहिताई केलिए बुला रहे थे। खुद को माँ के हाथों में सौंप कर मैंने यह तय किया कि मुझे एक सोमस्कन फादर के तौर पर ईश्वर को अपना जीवन समर्पित करना चाहिए।
अपने धार्मिक संगठन के रीति रिवाजों के हिसाब से मैंने निर्धनता, पवित्रता और आज्ञाकारिता की शपथ ली। मैंने ख़ुद को माँ मरियम को भी समर्पित किया और अपने नाम में मारिया नाम शामिल किया। हमारे धार्मिक संगठन के संस्थापक संत जेरोम एमिलियानी को मां मरियम ने चमत्कारिक रूप से तब छुड़ाया था जब वे 500 साल पहले युद्ध में कैद कर लिए गए थें। मुझे भी मां की मध्यस्था ने ही मेरे अंधेपन से छुड़ाया था, जिसकी वजह से मैं येसु को अपना जीवन सौंप पाया।
चमत्कार सच में होते हैं
जब मैं रोम में आपने थियोलॉजी के आखिरी एक्जाम की तैयारी कर रहा था तब मेरे पिता ब्लड कैंसर की वजह से काफी बीमार हो गाएं। जब वह अपनी बीमारी के इलाज की तैयारी में लगे हुए थें तब मैं फातिमा की माँ मरियम के तीर्थ पर गया ताकि मैं अपनी ठीक हो चुकीआंखों केलिए उन्हें धन्यवाद कह सकूं और अपने पिता की अच्छी सेहत केलिए प्रार्थनाक र सकूं। वहां जाकर जिस दिन मैंने घुटनों के बल चलक र वह राह नापीं जहां माँ मरियम ने 100 साल पहले कुछ बच्चों को दर्शन दिए थे, उसी दिन मेरे पिता जिन स्पेशलिस्ट को से अपना इलाज करा रहे थे उन्होंने यह पाया कि मेरे पिता के खून से कैंसर जा चुका था। एक बार फिर से, पवित्र कुंवारी मरियम की मध्यस्था ने एक चमत्कार द्वारा मेरे परिवार के एक सदस्य को चंगा कर दिया था।
इसके बाद कभी भारत तो कभी श्रीलंका तो कभी मोज़ाम्बिक में सेवा काई करने के बाद मैं आखिर कार अपनी पुरोहियाई की दीक्षा पाने केलिए ऑस्ट्रेलिया वापस आया। मेरा दीक्षांत समारोह मां मरियम के महीने, मई महीने में एक शनिवार को रखा गया। मैंने अपनी पुरोहिताई मां के हाथों में समर्पित की। अगले दिन, 13 मई को फातिमा की माँ मरियम की फीस्ट के दिन मैंने अपना पहला मिस्सा चढ़ाया ।इसके बाद, फ्रीमेंटल की सड़कों पे मां मरियम के आदर में मोमबत्तियों के साथ एक सुन्दर सा जुलूस निकाला गया।
हम उसस मय अपने जीवन में खुशियों केशिखर पर थे जब मेरी मां बुरी तरह बीमार पड़ गईं और हमें उन्हें तुरंत एम्बुलेंस में अस्पताल ले जाना पड़ा। मैंभी जल्दी जल्दी अस्पताल पहुंचाता कि मैं उन्हें बीमारों का संस्कार दे पाऊं, जो की चंगाई का संस्कार होता है। मैं वह पहली इन्सान थी जिन्हें मैंने यह संस्कार दिया। उनको यह संस्कार देकर मैंने अपनी पुरोहित को और भी मज़बूत होते हुए महसूस किया क्योंकि उनको इस हालत में देखते हुए भी मैं उनके सामने एक पुरोहित के रूप में उनकी सेवा कर पाया। डॉक्टरों को लगा कि उन्हें दिल का दौरा पड़ा था और इसी वजह से वे उन्हें खून पतलाकरने वाली दवाइयां देने लगें लेकिन उन्हें असल में एन्यूरिज्म था जिसकी वजह से उनके शरीर में अंदर ही अंदर खून बह रहा था।
डॉक्टरों को उन दवाइयों के उल्टे अस र के बारे में कई दिनों बाद पता चला। वह दवाइयां मां के अंदर के है मरेजको और भी बढ़ा रहीं थीं। उन्हें जल्द से जल्द इमरजेंसी ऑपरेशन के लिए ले जाया गया, और उनके बचने की उम्मीद कम ही थीं, पर मां मरियम की मध्यस्थता के द्वारा ईश्वर ने हमें एक और चमत्कार का तो हफा दिया। डॉक्टर यह समझ पाने और समझा पाने में नाकाम थे कि इतने दिन इतना खून बह जाने केबाद भी मेरी मां इस वक्त ज़िंदा कैसे थीं। मेरी मां ने उन्हें समझाया कि पवित्र कुंवारी मरियम ने ईश्वर से हमारे लिए मध्यस्था की थीं। “मेरे बेटे ने एक पुरोहित के रू प में खुद को मां मरियम को सौंपा है और वह हर दिन मेरे लिए मिस्सा चढ़ाता आया है। इसीलिए यह चमत्कार हुआ और मैं ठीक हो पाई।”
माँ राह दिखाती हैं
इन सारे गहरे अनुभवों ने मां मरियम में मेरी श्रद्धा को और भी मज़बूत कर दिया है। मैं आप लोगों को भी मां की स्वर्गीय मध्यस्था में भरोसा करने केलिए प्रोत्साहित करता हूं।मैं ने उन चमत्कारों का स्वाद चखा है जिन्हें मांने मेरे जीवन केलिए येसु से मांग लिया। वह जिन्होंने पवित्र रूप से गर्भधारण किया, और वे सारी कृपायें पाईं जिन्हें येसु ने क्रूस पर लटक ते हुए उनके लिए निर्धारित किया। उन्होंने ईश्वर की मां बनने केलिए खुद को समर्पित किया, उसी तरह जिस तरह सालों बाद ये सुने गेथसेमिनी बाड़ी में अपने दुखभोग के पहले खुद को ईश्वर को समर्पित किया। पवित्र कुंवारी मरियम की काना के विवाहित जोड़े की मदद करने की इच्छा की वजह से ही येसु ने अपना पहला चमत्कार किया। मां मरियम का दिल दुख से उसी तरह छिदा गया जिस तरह सालों बाद येसु का दिल क्रूस पर बरछे से छेदा गया। इसी लिए हमें मां मरियम पर पूरे दिल से भरोसा रखना चाहिए क्योंकि वह हमें सुख में और दुख में येसु के दिखाएं रास्ते पर चलना सिखातीहैं।
'अकेलेपन की सबसे बड़ी मारक प्रतिरोधक औषधि क्या है?
वह एक साधारण रविवार की शाम थी। मैं छात्रावास में रहती थी। सप्ताह का अंत होने के कारण मेरे ज्यादातर दोस्त घर गए हुए थे। दिन के सारे काम और पढ़ाई खत्म करने के बाद, मैं पास के कॉन्वेंट के छोटे प्रार्थनालय में शाम की मिस्सा पूजा में भाग लेने के लिए तैयार हो गयी। जैसे ही मैं प्रार्थनालय की ओर बढ़ रही थी, वैसे ही अकेलापन की एक भारी भावना ने मुझे अपने गिरफ्त में ले ली। मैं अपने परिवार से मीलों दूर थी, इस तथ्य के अलावा, कोई और बात मेरे ऊपर बोझ डाल रही थी, लेकिन मैं उस की पहचान नहीं कर पा रही थी। अकेलापन मेरे लिए कोई नई बात नहीं थी। मैंने कॉलेज/विश्वविद्यालय के छात्रावास में पहले ही 6 साल से अधिक समय बिताया था। दूसरे देश में काम कर रहे मेरे माता पिता से मैं सेमेस्टर ब्रेक के दौरान ही मिल पाती थी।
जब मैं प्रार्थनालय पहुँची, तो मुझे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि वह असामान्य रूप से लोगों से भरा हुआ था। हालांकि, मैं सामने की पंक्ति में अपने लिए थोड़ी जगह खोजने में कामयाब रही और बैठ गयी, फिर भी मैं अपने विचारों में तल्लीन रही। मिस्सा पूजा आगे बढ़ती रही, लेकिन मैं प्रार्थनाओं पर ध्यान केंद्रित करने में असमर्थ थी। जैसे-जैसे पवित्र संस्कार ग्रहण करने का समय नजदीक आया, मेरे अंदर का दर्द बढ़ चुका था। मैं पवित्र संस्कार लेनेवालों की पंक्ति में शामिल हो गई और येशु को प्राप्त करने के बाद, वापस आकर धन्यवाद देने के लिए घुटने टेक लिया।
अगले ही पल मुझे एहसास हुआ कि अकेलापन और उदासी की तीव्र भावना गायब हो गई थी! मानो कि पल में मेरे कंधे से भारी वजन उठा लिया गया हो। मैं इस परिवर्तन पर आश्चर्यचकित थी, क्योंकि मैं महसूस कर रही थी कि मैंने न तो मिस्सा पूजा के दौरान कोई ख़ास प्रार्थना की थी, न ही येशु से इसके बारे में कुछ भी कहा था। लेकिन प्रभु पवित्र वेदी से मुझे देख रहा था। वह जानता था कि मैं संघर्ष कर रही थी और मुझे मदद की ज़रूरत थी।
इस छोटी सी घटना ने मेरे स्मृति पटल में एक गहरा निशान छोड़ा। कई सालों के बाद भी, मुझे याद रहता है कि कैसे प्रभु ने मेरी कोमल परवरिश की थी। मेरे जीवन के सभी कठिन क्षणों के दौरान पवित्र संस्कार में उपस्थित प्रभु मेरी शरणस्थली रहा है। अपनी कृपा और दया के साथ मेरी मदद करने में एक बार भी वह विफल नहीं रहा है। जब हम जीवन के तूफानों से त्रस्त महसूस करते हैं, सही दिशा पाने में अनिश्चितता का अनुभव करते हैं, हमें बस उसकी ओर दौड़ना है। हम में से कुछ लोग मनोवैज्ञानिक सलाहकार के साथ बात करने के लिए बहुत पैसा खर्च करते हैं, लेकिन हम अक्सर यह महसूस नहीं करते हैं कि सबसे बड़ा सलाहकार बिना किसी नियुक्ति के हमारी समस्याओं को सुनने के लिए हमेशा तैयार रहता है!
अकेलापन के लिए ईश्वर की उपस्थिति से बढकर और कोई अधिक मारक औषधि नहीं है। यदि आपको कभी लगता है कि कोई भी आपको नहीं समझ पाता है या आपकी परवाह नहीं करता है, तो पूर्ण आत्मविश्वास के साथ पवित्र संस्कार के सम्मुख चलें। हमारे प्रभु येशु आपकी प्रतीक्षा कर रहां है, ताकि आप उनसे आराम, शक्ति और अत्यधिक प्रेम का अनुभव कर सकें!
“जब आप पवित्र संस्कार में यीशु के साथ समय बिताते हैं तो वह पृथ्वी पर आपके द्वारा बिताये गए सबसे अच्छा समय होता है।” – कोलकत्ता की संत तेरेसा
पवित्र संस्कार में वास्तविक रूप में मौजूद मेरे प्यारे येशु, भविष्य के बारे में मेरी सभी चिंताओं को तेरे चरणों में अर्पित करने में मेरी मदद कर। तुझ पर मेरा पूरा भरोसा है और मेरा दृढ़ विश्वास है कि तेरे लिए कुछ भी असंभव नहीं है। अपने अत्यधिक प्यार से मुझे सांत्वना दे और मुझे मजबूत कर। आमेन।
'आप सच में, पूरी तरह उतने ही अद्भुत हैं जैसा कि ईश्वर कहता है |
निराशा की लहरें
बात वर्ष 2011 की है| क्रिसमस की छुट्टियों के ठीक पहले मुझे एक रहयस्यमय बीमारी ने जकड़ लिया | कोई भी डॉक्टर यह पता नहीं कर पा रहे थे कि यह बीमारी असल में क्या थी| 23 दिसंबर की बात है| मेरे पूरे शरीर में कम्पन सी होने लगी| मेरे हाथों और गर्दन में तेज़ दर्द उठा, सिर तकलीफ से फटा जा रहा था| किसी तरह मैंने खुद को अपने बिस्तर तक पहुँचाया, इस उम्मीद में कि मेरी यह पीड़ा क्रिसमस के पहले समाप्त हो जाएगी| लेकिन मेरा अनुमान गलत था|
26 दिसंबर को मैंने खुद को असहनीय पीड़ा से जूझते हुए इमरजेंसी रूम में पाया| दर्द अब मेरे सर और हाथों से, मेरे कन्धों और पैरों तक जा पहुंचा था| डॉक्टर को डर था की मुझे पोलिमेल्जिया रुमेटिका हुआ था, जिसका कोई इलाज नहीं था| इसीलिए मुझे दर्द की दवाई के साथ घर भेज दिया गया|
जैसे जैसे दिन बीतते गए, मेरी हालत में कोई सुधार ना होने के कारण मैं सोचने लगा कि मैं शायद अपनी क्लास में मेरे छात्रों के बीच लौट नहीं पाऊंगा| मेरी लड़ाई मेरे शारीरिक दर्द से नहीं थी, मेरी लड़ाई निराशा से थी| हर दिन मैं इन निराशा की लहरों में डूबता जा रहा था| मैं नहीं समझ पा रहा था कि मैं जीवन भर ऐसे कैसे जियूँगा|
एक आसान सी प्रार्थना
मैं हर दिन अपने आध्यात्मिक निर्देशक से फ़ोन पर बात करता था| एक दिन मैंने उनसे कहा “मैं जिनके लिए सेवकाई करता हूँ, वो भी इसी दर्द से हर रोज़ गुज़रते होंगे ना?|” एक डेकन या उपयाजक के तौर पर, मैं मानसिक रोग से पीड़ित लोगों के लिए सेवकाई करता हूँ| मेरी इस बीमारी ने मुझे उन अँधेरी और कठिनाई भरी गलियों की झलक दी, जिससे हर मानसिक रोगी गुज़रता है| इस प्रकार ख्रीस्त के दुःखभोग में भाग ले रहे उन लोगों के लिए करुणा और सांत्वना से भर गया जो |
एक दिन, मेरे आध्यात्मिक निर्देशक ने मुझे इस प्रकार प्रार्थना करने के लिए कहा, “ हे ईश्वर, मैं अपनी आत्मा आपके हाथों में सौंपता हूँ, हे ईश्वर मैं अपनी आत्मा आपको समर्पित करता हूँ|” ये लाइनें उस रात्रि प्रार्थना का हिस्सा हैं जिसे मैं कई सालों से हर रात कहता आया हूँ| पर अक्सर जब हम किसी प्रार्थना को अनगिनत बार दोहराते हैं, तो हम उसके शब्दों की गहराई को भूलते जाते हैं| मैंने आजतक इस प्रार्थना को अपने दर्द से जोड़ कर नहीं देखा था| उस दिन के बाद से मैं इस प्रार्थना को और ध्यान से पढ़ने लगा| मैंने एक नए विश्वास के साथ कहना शुरू किया “हे ईश्वर, मैं अपनी आत्मा आपके हाथों में सौंपता हूँ, आपकी इच्छा मुझमे पूरी हो| अगर ये आपकी इच्छा है की मैं अपनी क्लास में वापस न जाऊं, तो यही सही|”
उस रात मुझे अच्छी नींद आई| अगली सुबह मैंने अपनी आत्मा में एक नयी ख़ुशी महसूस की| मैं अब भी काफी दर्द में था, पर निराशा का वो अँधेरा अब जा चुका था| उसके तुरंत बाद, मेरा दर्द धीरे धीरे कम होने लगा और मेरी दवाइयों की खुराक घटाई जाने लगी| मैं अब फिर से अपनी क्लास जाने लगा, और मैंने अगले 8 साल तक अपनी क्लास में पढ़ाया| ना ही मेरे पारिवारिक डॉक्टर और ना ही विशेषज्ञ कभी ये पता कर पाए की मुझे जो बीमारी थी वो क्या थी| अपनी बिमारी के बारे में आखरी बार मैंने जिस विशेषज्ञ से बात की, उनका मानना था की मेरी बीमारी पोलिमेल्जिया रुमेटिका तो बिलकुल नहीं थी| क्या थी वो उन्हें भी समझ नहीं आया| उनका अंदाज़ा था की शायद मुझे किसी तरह वायरस ने जकड़ा था|
यातना का स्वाद
बीते कुछ सालों में मैंने अपने इस अनुभव को एक अनुग्रह, एक उपहार की तरह देखना शुरू किया है| इस अनुभव ने मुझे मानसिक रोगों से पीड़ित लोगों को एक नए नज़रिये से देखने में सहायता की है| मुझे उनकी साल दर साल की पीड़ा का जैसे एक स्वाद सा मिला| मेरे लिए, उनकी स्थितियों को उनके स्तर पर समझ पाना ज़रूरी था, ताकी मैं उनकी निराशा में उनके साथ वैसे ही खड़ा रह सकूँ, जैसे मेरे आध्यात्मिक निर्देशक मेरे मुश्किल वक़्त में मेरे थे| यही त्रियेक ईश्वर में पुत्र परमेश्वर की भी भूमिका है| पुत्र परमेश्वर, मानव रूप ले कर हमारे इस अंधियारे संसार में प्रवेश करते हैं| इसके द्वारा वों खुद को मानव पीड़ा से जोड़तें हैं|
येसु इस संसार में आए ताकि वो हमारे अन्धकार में अपनी रौशनी और हमारी मृत्यु में अपना जीवन फूँक सकें| ताकि हमें हमारी दुःख तकलीफें और मृत्यु अकेले ना झेलनी पड़ें| हम अपनी परेशानियों में, और अपनी मृत्यु की घड़ी में, येसु को साथ पाते हैं, और ये देखते हैं की वो हमारे लिए असीम कृपा के स्त्रोत हैं| ये असीम कृपा हमारी तकलीफों से लेकर हमारी मृत्यु तक हमारे साथ चलती है|
जानें सच्चा प्रेम
ईश्वर का आलौकिक न्याय, आलौकिक कृपा के रूप में, हमें येसु मसीह के द्वारा मिला है| ये कृपा, येसु के दुःखभोग, मृत्यु और पुनर्जीवित होने के द्वारा हमें मिलती है| हालांकि हम इस कृपा के लायक नहीं थे, फिर भी अनादि ईश्वर, क्रूस पर अपनी मृत्यु के द्वारा हमें अपनी कृपा की गहराई का अनुभव कराते हैं| अपनी मृत्यु के के द्वारा वों मृत्यु की स्थिरता, उसके अन्धकार उसकी निराशा को ख़तम करते हैं|
ईश्वर ये बलिदान तब भी देते अगर सिर्फ मुझे और आप को इस अनंत मृत्यु से मुक्ति चाहिए होती| मेरे कहने का मतलब है की ईश्वर सिर्फ पूरी मानवता से प्यार नहीं करते, वों हर एक इंसान से व्यक्तिगत स्तर पर प्रेम करते हैं| हालांकि हम हर वक़्त ईश्वर का ध्यान नहीं करते, पर ईश्वर हर वक़्त हर एक इंसान को देखते हैं, याद करते हैं| ईश्वर हर इंसान से इतना ज़्यादा प्यार करते हैं|
अपने डर को बह जाने दें
यह हमारी ज़िन्दगी, उस सिद्ध प्रेम को जानने का नाम है| हममें से कई लोग खुद को उस प्रेम के स्पर्श से दूर रखते हैं क्योंकि यह प्रेम सूरज की किरणों की तरह अपनी छुई हर चीज़ को गर्माहट देता है| ये गर्माहट हमारे अंदर छिपी हर नाराज़गी, या दुःख तकलीफ को पिघलाती है| लेकिन हममें से कुछ के लिए, ये बातें हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन चुकी हैं, इसीलिए हम ईश्वर के प्रेम से कतराते हैं| ईश्वर का प्रेम हमारे डर को भी पिघलाता है, लेकिन कुछ लोग अपने डर को जकड़े बैठे हैं क्योंकि उनके पिछले अनुभवों ने उन्हें नयी चीज़ों से दूर रहना सिखाया है| ईश्वर के प्रेम को अपनाने की शर्त यही है की हम बिना किसी बंधन के, ईश्वर के सम्मुख अपने आप को समर्पित करें, और उन्हें हमारा मार्गदर्शन करने दें|
ईश्वर की कृपा, जो ख्रीस्त के दुखभोग, मृत्यु और पुनरुत्थान के द्वारा हमें मिलती है, वह बिलकुल अनोखी है| हम यह कृपा क्रूस की छवि में देखते हैं, लेकिन हमें उस छवि को अपने अंदर लाने की ज़रुरत है| हमें ईश्वर की रोशनी, और उनके प्रेम को अपने जीवन में अपनाने की ज़रूरत है, इस कृपा को सिर्फ दूर से नहीं निहारना है| यह जीवन भर की कोशिश और जीवन भर की साधना है, लेकिन जिस दिन हम इस राह की तरफ अपने कदम बढ़ाते हैं, उसी दिन हम असल मायने में जीना शुरू करते हैं|
'यदि आप की यह काली रात बीत जाती है, तो आगे एक उज्जवल दिन है … यदि आप प्रभु के साथ डटे रहेंगे तो सब कुछ ठीक हो जाएगा।
आशंका से त्रस्त
जब महामारी हमारे बीच आयी, तो इस महामारी ने एक तूफान की तरह हमारे जीवन को, हमारे घरों और हमारी वास्तविकता को उथल पुथल कर दिया । अचानक – छह फीट की दूरी, अपने हाथ धो लें, घर में ही रहें, दूसरों से दूर रहें, यही सब प्रतिदिन के मंत्र बन गए । हम भविष्य से भयभीत हो गए, जिस व्यक्ति के पास से गुजर रहे थे, उससे डरने लगे या सुबह उठते ही गले में खिचखिच होने पर हमें सबसे पहले डर सताने लगा |
क्या मुझे कोविड-19 हुआ है? क्या मेरे पति कोविड से संक्रमित हैं ? क्या मेरे घर में इस बीमारी ने प्रवेश कर लिया है ? लोग आपस में फुसफुसाने लगे “आप बीमार हो जाएंगे और जब आप मरेंगे तो आपके परिवार के लोग आपके आसपास नहीं होंगे । आप अपने परिवार के लोगों को खाना नहीं खिला पायेंगे या आप अपने खर्चे नहीं उठा पाएंगे । इन फुफुसाह्त के बीच में भय और चिंता ने केंद्र स्थान ले लिया | नवीनतम प्रतिबंधों की सूचनाओं और मृत्यु के आंकड़ों की भविष्यवाणियों ने हमारे सोशल मीडिया और प्रिंट मीडिया को भर दिया, और इस तरह हमारे चारों ओर से आ रहे अदृश्य कयामत के बोझ से दबकर ये सारी बातें हमारी इस त्रासदी को और अधिक भड़काती रहीं । हमें बताया गया कि ‘हम इस संकट को पार कर लेंगे’; ‘इस संकट में हम सब एक साथ हैं’ | लेकिन ईश्वर कहाँ है? यह सब क्यों हुआ?
अवर्णनीय उत्कंठा
कई साल पहले, जब मैं एक अनिर्वचनीय पीड़ा में डूबा हुआ था, तब डर और दहशत ने मुझे अपने गिरफ्त में ले लिया था । एक बाल रोग विशेषज्ञ ने मुझे और मेरे पति को बताया कि हमारा साढ़े तीन साल का बेटा एक दुर्लभ बीमारी से मर जाएगा और यह भी कि इसके लिए हम कुछ नहीं कर पाएंगे । उनके शब्दों ने मुझे झकझोर कर रख दिया। उन शब्दों ने मुझे निराशा की गहराई में धकेल दिया और मैं अपने घुटनों पर गिरकर ईश्वर से मेरे बेटे के जीवन के लिए से भीख माँगने लगी । प्रार्थनाओं, चमत्कारों और उम्मीद के लिए बेताब होकर, मैंने हमारे स्थानीय पुरोहित से उनकी सलाह मांगी | उन्होंने मुझे सलाह दी कि इस अवसर का उपयोग कर के मैं प्रार्थना करना सीखूंगी और अपने परिवार को प्रार्थना करने सिखाऊंगी । सत्य यह है की मैं इस तरह की सांत्वना की तलाश नहीं कर रही थी।
सारी नाउम्मीदी के खिलाफ उम्मीद
मेरे पति और मैंने इस विशेष बीमारी से निजात पाने के लिए दुनिया के सर्वश्रेष्ठ विशेषज्ञ को ढूंढ निकाला | उस महिला डॉक्टर ने हमें साफ़ तौर पर कहा, “हम इस बीमारी का कारण नहीं जानते हैं, इसलिए कोई इलाज नहीं है, लेकिन मैं आपकी मदद करने की कोशिश करूंगा।” मेरे बेटे को शिकागो के एक विशाल शिशु अस्पताल में भर्ती कराया गया था जो हमारे घर से दो हजार मील की दूरी पर था और यहाँ हमें बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था। एक दिन मेरे बेटे के शरीर में एक आईवी का इंजक्शन देने के असफल प्रयास में उसके शरीर में बार बार सुई भोंकी जा रही थी , और इस कारण मेरा बेटा बेहोश हो गया |
जैसे-जैसे मैं कराहती हुई फर्श पर गिर रही थी, एक महिला मुझे ऊपर उठाने के लिए झुक गयी । उसकी आँखें प्यार और करुणा से भरी हुई थीं | उसने पूछा, “क्या आपने आज सुबह अपना नाश्ता खाया? क्या आपने अपना सौन्दर्य प्रसाधन का उपयोग किया है? ”
मैंने अविश्वास भरी दृष्टि से उसे देखा। क्या वह मजाक कर रही थी? “नहीं”।
“आपके बेटे की बीमारी क्या है ?” उसने पूछा | जब मैंने उसे बताया, तो उसने कहा, “अच्छा, आप केलिए उम्मीद है | यह कहते हुए उसने बगल के बिस्तर में लेटे लगभग 12 साल के एक लड़के को दिखाने के लिए पर्दा खींच लिया। “यह मेरा बेटा चार्ल्स है। उसके भेजे के अन्दर एक नहीं, दो ब्रेन ट्यूमर है। डॉक्टरों ने सिर्फ उस का ऑपरेशन किया है, लेकिन ट्यूमर को निकाल नहीं पाए । ऑपरेशन के कारण इसके बोलने की क्षमता समाप्त हो गयी है। ”
वे क्या करने जा रहे हैं?” मैं ने हाँफते हुए पूछा ।
“कुछ भी नहीं। उन्होंने उसे जीने का सिर्फ दो महीने का समय दिया है ।
मैं हैरान रह गया, लेकिन उसने कहा, “मैं हर सुबह उठता हूं और मैं अपना मेकअप लगाती हूं और अपना नाश्ता करती हूं, अपने लिए नहीं, बल्कि इसी छोटे बालक के लिए | और मैं प्रार्थना करती हूं ‘येशु, तुझे धन्यवाद कि आज मेरा बेटा चार्ल्स मेरे साथ है । बस आज उसका ज़िंदा रहना मेरे लिए मायने रखता है।'”
मैं अवाक रह गयी | उस महिला के पास उम्मीद रखने का कोई वजह नहीं थी, फिर भी वह आशा से लबालब भरी हुई थी । मुझे आशा थी लेकिन मैं बिलकुल टूटी हुई थी । अगले आठ दिनों में, मैंने देखा कि वह महिला एक कमरे से दूसरे कमरे में जा रही है, अन्य पीड़ित परिवारों से मुलाक़ात कर रही है और उन सब के दिल में खुशी और आशा भर रही है । यह अविश्वसनीय था। वह ऐसा कैसे कर सकती है जबकि उसका बेटा अस्पताल के बिस्तर पर मूक और मौन होकर लेटा है, जबकि मेरा बेटा उससे लगातार स्टार वॉर्स के बारे में बात कर रहा था ?
जलती भट्टी के बीच में
एक सप्ताह में तीन बार सुई लगाने के लिए एक मेरे बेटे के हाथ में विशेष व्यवस्था का प्रत्यारोपण करने की योजना के साथ हम लोग घर लौट गए | मेरे बेटे के डॉक्टर से मिलने का एक अपॉइंटमेंट भी लेकर कुछ दिन बाद हमें चिकागो लौटना था | घर से मेरे पति ने चार्ल्स को एक अमेरिका का मशहूर गैटर फुटबॉल टीम की टोपी भेजी, जिसपर गैटर टीम का सिग्नेचर भी था | क्योंकि हमें पता चला था कि चार्ल्स गैटर्स का बड़ा फैन था । लेकिन अफसोस की बात है कि इसके बाद हमें चार्ल्स या उसकी माँ के बारे में कोई खबर नहीं मिली ।
आखिरकार जब हमारे बेटे की तबीयत सुधरने लगी, तब मैं अपने घुटनों पर रहकर प्रार्थना करती रही । हमारे पिछले सपने और महत्वाकांक्षाएं सभी ख़तम हो चुके थे । हम अपने बेटे के स्वास्थ्य में कभी सुधरते हुए, कभी पिछडते हुए, फिर प्रगति करते हुए, फिर अवनति करते हुए देखकर हम लोग मनो सुई की नोक पर खड़े थे । बार-बार, उसका स्वास्थ्य ऊपर नीचे होते हुए देखना, इंतजार करना, प्रार्थना करना, उम्मीद करना, यही बस लगातार चल रहा था ।
लगभग दो साल बाद, एक बार फिर अस्पताल के गलियारे में खून की जांच के परिणाम के इंतजार में हम खड़े थे, मैंने अपना नाम सुना। मैं चारों ओर मुड़ी, तो मैं देख रही हूँ कि चार्ल्स और उसकी माँ हमारी और आ रहे हैं ! मैं ख़ुशी से नाच उठी | चार्ल्स मेरे बेटे की ओर दौड़ते हुए आया और यह कहते हुए उसे उठाकर घुमाया, “मैं उन दिनों तुमसे बात नहीं कर सकता था, लेकिन मैं अब तुमसे बात कर सकता हूं।” अपनी सजल आँखों से मुझे देखती हुई चार्ल्स की माँ ने कहा, “वह अपने बास्केटबॉल टीम में नंबर वन नहीं है, और वह पढ़ाई में अव्वल छात्र नहीं है, बल्कि येशु का शुक्र है कि मेरा चार्ल्स आज मेरे साथ है और मेरे लिए बस यही मायने रखता है।” इश्वर की योजना को रोकने के लिए दोहरा ब्रेन ट्यूमर भी बड़ा नहीं था! मैं उसके विश्वास पर आश्चर्य चकित होकर मनन कर रही थी, मैंने धर्म ग्रन्थ के शब्दों को सुना,
क्या तुमने यह नहीं सुना
कि प्रभु अनादि अनंत ईश्वर है
वह समस्त पृथ्वी का सृष्टिकर्ता है ?
वह कभी क्लांत अथवा परिभ्रांत नहीं होता |
कोई भी उसकी प्रज्ञा की थाह नहीं ले सकता।
वह थके- को बल देता
और अशक्त को संभालता है।
जवान भले ही थक कर चूर हो जायें
और फिसल कर गिर पड़े,
किन्तु प्रभु पर भरोसा रखने वालों को
नयी स्फूर्ती मिलती रहती है ।
वे गरुड़ की तरह अपने पंख फैलाते हैं;
वे दौड़ते रहते हैं, किन्तु थकते नहीं,
वे आगे बढ़ते हैं, पर शिथिल नहीं होते।
(इसायाह 40: 28-31)
मेरा बेटा चार साल जीवित रहने वाला नहीं था, लेकिन वह जीवित रहा । फिर वह किंडरगार्टन स्कूल गया, फिर मिडिल स्कूल। उसने हाई स्कूल की परीक्षा सर्वोच्च अंकों से पास की । इन दिनों वह धर्मविज्ञान में एक शोध अध्ययन के आखिरी दौर में है । वह अपने पूरे जीवन काल में बीमारी का उतर चढ़ाव को बहुत झेलटा रहा है, इसलिए मैं अपने घुटनों पर रहकर लगातार प्रार्थना में रही हूं। वह पुरोहित ने सही कहा था। पीडाओं ने मुझे प्रार्थना में तपाया है और मुझे सिखाया है कि मैं कितनी छोटी हूं, मेरे नियंत्रण में कुछ भी नहीं है, और वास्तव में क्या मायने रखता है।
मेरा जीवन वह जीवन नहीं है जिसका मैंने सपना देखा था, लेकिन आज पीछे मुड़कर देखती हूं तो पता चलता है कि इस पीड़ा के कारण कितनी आशीषें मेरे जीवन में आयी। इस बोध के चलते मेरा दिल करुणा से भर गया और मुझे प्रेरणा मिली कि चाहे जो कुछ भी हो ईश्वर के सहारे मैं हर पीड़ा को जीत लूंगी । मैं आने वाली सभी बातों के लिए येशु को धन्यवाद देना जारी रखूंगी, यह जानते हुए कि स्थिति चाहे कितनी भी निराशाजनक क्यों न दिखाई दें, मैं अपनी और परिवार की देखभाल के लिए ईश्वर की भलाई पर भरोसा कर सकती हूं।
'