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शराब पीने, धूम्र पान करने और अपने मन मुताबिक़ कुछ भी बिंदास करने से मैं बिलकुल खोखली हो गयी ।
मेरी पूरी ज़िन्दगी में, ईश्वर ने मुझ पर कृपा की है, भले ही मैं उनकी कृपा के लायक नहीं थी। मैं अक्सर यह सवाल पूछती थी, “क्यों प्रभु? मैं कितनी अयोग्य पापी हूँ।” बिना किसी हिचकिचाहट के, एक उत्तर हमेशा मेरे लिए उसकी ओर से मिलता था: उसके प्रेम के बारे में आश्वस्त करता हुआ उत्तर।
संत फाउस्टीना की डायरी, ईश्वर की दया का इतनी खूबसूरती से वर्णन करती है, “हालांकि पाप दुष्टता और कृतघ्नता का रसातल है, फिर भी हमारे लिए चुकाई गई कीमत की कभी भी बराबरी नहीं की जा सकती है। इसलिए, प्रत्येक आत्मा प्रभु की दु:ख-पीड़ा पर भरोसा करे, और उसकी दया पर अपनी आशा रखे। परमेश्वर किसी पर भी अपनी दया से तिरस्कृत नहीं करेगा। स्वर्ग और पृथ्वी बदल सकते हैं, लेकिन ईश्वर की दया कभी समाप्त नहीं होगी। ” (संत मारिया फाउस्टीना कोवाल्स्का की डायरी, 72)।
हमारे प्रभु की कृपा और करुणा के अनगिनत प्रत्यक्ष अनुभव ने मेरे विश्वास को बदल दिया है और उसके साथ गहरी घनिष्ठता में बढ़ने में मेरी मदद की है।
दुनियावी तौर तरीके
आज के समाज में प्रतिदिन अपने विश्वास को जीनेवाले नौजवानों और किशोरों को ढूंढ पाना मुश्किल है। भौतिक दुनिया के आकर्षण बहुत ही मजबूत है। मैं ने अपने 24 वर्ष के जीवन में इसे व्यक्तिगत तौर पर अनुभव किया है। करीब आठ साल तक, एक किशोरी और एक नव जवान के रूप में मैं ने दुनिया के लोगों के अभिप्राय को ईश्वर से ऊपर माना। मैं पार्टी गर्ल के नाम से विख्यात थी – मैं शराब पीने, धूम्र पान करने और अपने मन मुताबिक़ कुछ भी बिंदास करने वाली युवती थी। मेरी चारों ओर जो भी थे, वे सभी मेरी तरह उसी नाव में सवार थे, यद्यपि हम जो कर रहे थे उसमें आत्म संतुष्टि नहीं थी, फिर भी हम जो कुछ कर रहे थे, उसमें हम लोगों ने कुछ सुख पाया।
मेरे जीवन की इस अवधि में मैं ने रविवार को गिरजाघर जाना नहीं छोड़ा था, लेकिन मैं अपने विश्वास को पूरी तरह नहीं समझ पा रही थी। जब मैं उम्र में बढ़ रही थी, तब मेरे माता पिता ने मुझे बहुत सारी आत्मिक साधनाओं में भेजा। यद्यपि इन साधनाओं में मुझे अलौकिक अनुभव मिलता था और येशु के साथ साक्षात्कार और दर्शन होते थे, इसके बावजूद, मैं दुनिया के तौर तरीकों में फँसी हुई थी। साधानाओं में प्राप्त अनुभव अपने ख्रीस्तीय विश्वास के प्रति मेरी उत्सुकता को बढ़ाया, लेकिन यह उत्सुकता ज्यादा दिन नहीं टिकी। मैं पुन: अपने दोस्तों के साथ पार्टियों में शराब पीने जाती थी और अपने सारे अच्छे संकल्पों को भूल जाती थी। मुझे लगता है कि मेरी उम्र के कई लोगों की कहानी मेरी जैसी है।
मुझे यह महसूस करने में लगभग आठ साल लग गए कि भौतिक सुखों से अधिक जीवन में कुछ और भी है। ईश्वर की कृपा और सहायता से मैं दुनिया के इन बुरे तौर-तरीकों से दूर हो गयी और ईश्वर को हर बात में ढूंढने में मुझे मदद मिली। मैंने अंततः ईश्वर में संतुष्टि पाई, क्योंकि वह एक ऐसा आनंद देता है जो चिरस्थायी है, क्षणभंगुर नहीं। हालाँकि, इससे पहले कि मैं सांसारिक सुखों से पूरी तरह से दूर हो पाती, मैंने मोह-माया के संसार में एक पैर रखने की कोशिश की, और साथ साथ प्रभु ने मेरे लिए जो मार्ग निर्धारित किया था, उस मार्ग पर बने रहने की भी मैं कोशिश करती रही। मैंने पाया कि दोनों मार्ग पर चलना सर्कस में रस्सी पर चलने जैसा बहुत ही कठिन कार्य था, जिसे मैं संभाल नहीं पा रही थी।
चंगाई
प्रारंभ में, मुझे लगा कि मैं अपनी विश्वास-यात्रा में अच्छा कर रही हूं, और यहां तक कि ईशशास्त्र की डिग्री पाने केलिए मैं ने अध्ययन भी किया। हालाँकि, मैंने हमेशा लड़कों के साथ संबंधों से अधिक अधिक ध्यान केंद्रित किया था, मैं ईश्वर के साथ अपने रिश्ते को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता बनाने की कोशिश कर रही थी। हालांकि, मैंने शराब, मादक द्रव्य और पार्टी जीवनशैली से अपना लगाव नहीं छोड़ा था। एक लड़के के साथ एक नया रिश्ता तेजी से बढ़ने लगा और हम दोनों अंतरंग यौन सम्बन्ध बनाने लगे, हालांकि मुझे पता था कि ईश्वर मुझसे इस सम्बन्ध से दूर होने के लिए कह रहा है। शराब और नशीले पदार्थों की वजह से मैं पाप में जीने और अपने प्रलोभनों पर काबू पाने में बुरी तरह असफल हो रही थी।
लेकिन, प्रभु की करुणा ने मुझे जगाया। दूसरी बार जब मैं इस आदमी के साथ यौन संबंध बना रही थी, तब मुझे अचानक भयानक दर्द हुआ, मानो कि मेरे शरीर पर छुरा घोंपा गया हो। यह क्रिसमस की पूर्व संध्या थी। मैं एक अस्पताल के आपात कक्ष में गयी जहाँ, डॉक्टरों ने पाया कि यौन सम्बन्ध के दौरान मेरी पुटी फट गई थी। उन्होंने सिफारिश की कि मैं जल्द से जल्द अपने स्त्रीरोग विशेषज्ञ को दिखाऊं। लेकिन क्रिसमस की छुट्टी और सप्ताह का आखिरी दिन होने के कारण, मेरी चिकित्सा नहीं हो पायी। डॉक्टर से मुलाकात से पूर्व मैं कई दिन दर्द से कराहती रही। बाद में मेरी जब डॉक्टर से भेंट हुई, तब उन्होंने मेरे असहनीय दर्द के कारण का पता लगाने के लिए और जांच की और उन्होंने मुझसे कहा कि जैसे ही परिणाम आएगा वे मुझे फोन करेंगी।
नए साल की पूर्व संध्या पर, मैंने गिरजाघर जाकर मिस्सा बलिदान में, और पवित्र मंजूषा में हमारे प्रभु के सामने प्रार्थना में काफी समय बिताया। मैं बहुत शर्मिंदा और अयोग्य महसूस कर रही थी, और लगातार दर्द का अनुभव कर रही थी। मुझे अपने अंदर और बाहर चोट का एहसास हो रहा था। मैंने बाइबिल से एक अंश पढ़ने के लिए अपना फोन निकाला और देखा कि मेरे डॉक्टर के क्लिनिक से एक कॉल आया हुआ है, इसलिए मैं डॉक्टर को कॉल करने के लिए बाहर निकली। नर्स ने फोन पर मुझे बताया कि जब उन्होंने यौन संचारित रोगों के लिए मेरी जांच की, तो मुझ में सूजाक की बीमारी का पॉजिटिव परिणाम मिला है। मैं वहीँ चौंक कर खड़ी रही, समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहूं, इसलिए मैंने नर्स से उस बात को दोहराने केलिए कहा। यह अभी भी वास्तविक नहीं लग रहा था, लेकिन उसने मुझसे कहा कि अगर मैं सिर्फ एक बार सुई लगवाने के लिए जाऊं तो सब कुछ ठीक हो जाएगा। एक बार फिर मैं गिरजाघर जाकर फर्श में गिरकर, अपने पापों के लिए पश्चाताप करती हुई, इन परिणामों के लिए अपार दुःख का अनुभव करती हुई, और राहत के लिए ईश्वर के सम्मुख प्रार्थना करती हुई अपने दिल से रोती रही। मैंने प्रभु को बार-बार धन्यवाद दिया और वादा किया कि मैं सुधर जाऊंगी।
सुई लगने के बाद, मैं निराश थी, क्योंकि दर्द कायम था। यह दर्द आखिर कब तक रहेगा? एक और दिन घर के भीतर दर्द से कराहती हुई दुबकी रहने के बाद, और इस पीड़ा के अंत होने की बेसब्री से प्रतीक्षा करती हुई, जब मैंने ब्रैंडन लेक का गीत “हाउस ऑफ मिरेकल्स” सुन रही थी, तब मुझे एहसास हुआ कि पवित्र आत्मा मुझे चंगाई की प्रार्थना के लिए प्रोत्साहित कर रहा है।
गीत के उस भाग में पहुँचने पर, जहां चंगाई की प्रार्थना शुरू होती है, मैंने महसूस किया कि पवित्र आत्मा मुझमें कार्य कर रहा है। मेरे हाथ जो प्रभु की स्तुति करने के लिए हवा में उठे हुए थे, धीरे-धीरे प्रभु की आज्ञा से मेरे पेट के निचले हिस्से पर चलने लगे। जैसे ही मेरे हाथ वहाँ टिके हुए थे, मैंने बार-बार ठीक होने के लिए प्रार्थना की और ईश्वर से इस दर्द से राहत देने की मैं ने अनुनय विनय किया। मैं अनायास ही अन्य भाषाओं में प्रार्थना करने लगी। जैसे ही प्रार्थना समाप्त हुई और गीत समाप्त हुआ, मुझे लगा कि मेरे देह से कुछ शारीरिक बोझ निकल गया है। मैं इसे पूरी तरह से समझा नहीं सकती, लेकिन मुझे लगा कि कुछ अलौकिक शक्ति की मदद से मेरा शरीर साफ हो रहा है। मैंने अपने पेट के निचले हिस्से को दबा दिया, जहां सारा दर्द था, लेकिन एक झुनझुनी तक नहीं रह गई। मैं स्तब्ध थी कि कष्टदायी दर्द से शुरू होकर एक गीत के दौरान सब दर्द चला गया है। येशु ने मेरे लिए जो किया उसके लिए मैं ने अपने अन्दर बहुत आभार महसूस किया। मुझे दर्द के वापस आने की आधी उम्मीद थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उस पूरे दिन में कभी कोई दर्द नहीं हुआ, और मैं जानती थी कि उस पल में येशु ने मुझे चंगा किया था। मैंने अपने जीवन में पहले भी शारीरिक और आंतरिक रूप से चंगाई का अनुभव किया था, लेकिन यह अलग तरह की चंगाई थी। हालाँकि मैं उसकी चंगाई पाने में अपने आप को इतनी अयोग्य महसूस कर रही थी, क्योंकि मैंने खुद अपने ऊपर बीमारी ला दी थी, फिर भी मैंने परमेश्वर की स्तुति और प्रशंसा की और मुझे ऐसी दया दिखाने के लिए धन्यवाद दिया। उस पल में, मैंने महसूस किया कि परमेश्वर के दयालु प्रेम में फिर से मैं डूबी हुई हूँ।
परिवर्तन
हम पापपूर्ण संसार में रहते हैं, और सभी किसी न किसी समय और विभिन्न तरीकों से हमारे जीवन के लिए प्रभु की योजना से वंचित रह जाएंगे। हालाँकि, परमेश्वर नहीं चाहता है कि हम अपने पाप में फँसे रहें। इसके बजाय, वह हमें वापस लेने के लिए अनुग्रह और दया के साथ प्रतीक्षा करता है और हमें वह अपने पास वापस ले जाता है। वह खुले हाथों से धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करता है। मैंने इसे और भी कई बार अनुभव किया है। जब मैं उसे अपने दर्द और अपनी टूटन में उपस्थित होने के लिए आमंत्रित करती हूं, तो वह मुझे बदल देता है, मेरे विश्वास का पोषण करता है और उसे और अधिक गहराई से समझने में मेरी मदद करता है। दुनिया में कई विकर्षण हैं जिनमें हम अस्थायी सुख पा सकते हैं, लेकिन येशु ही एकमात्र ऐसा व्यक्ति है जो पूरी तरह से, सम्पूर्ण रूप से और अंतहीन रूप से संतुष्ट कर सकता है। पार्टी, शराब, ड्रग्स, पैसा या सेक्स की कोई भी राशि उसके बराबर नहीं हो सकती जो वह हम में से प्रत्येक को दे सकता है। मैंने कड़वे अनुभव से सीखा है कि सच्चा आनंद केवल पूरी तरह से आत्मसमर्पण करने और हर चीज में उस पर भरोसा करने से ही मिल सकता है। जब मैं उसके प्रेम के चश्मे से अपने इरादों की जांच करता हूं, तो मुझे सच्ची खुशी मिलती है और उसके प्रेम को साझा करने में ईश्वर की महिमा होती है।
'करीब साढ़े दस वर्षों के दाम्पत्य जीवन के बाद सूसन स्किनर की प्रार्थना आखिरकार सुनी गयी। किस तरह वह एक सच्चे चमत्कार की साक्षी बनी, इसके बारे में पढ़िए।
जब हमारी शादी हुई थी, उन दिनों मेरा पति कैथलिक नहीं था। उसकी परवरिश बैप्टिस्ट और प्रेसबिटेरियन गिरजाघरों में अराधना में भाग लेते हुए हुई थी, लेकिन येशु के लिए और मेरे लिए उसका प्रेम अपार था। दम्पति के रूप में हम एक दूसरे के पूरक बने, इस कारण हम एक दूसरे के निकट आ गए। शादी के कुछ ही दिन बाद कैथलिक धर्म में उसका धर्म परिवर्त्तन हुआ। उसने मुझे बताया कि वह जानता था कि मैं कभी भी दूसरी कलीसिया में शामिल नहीं होऊँगी, लेकिन हमें एक साथ गिरजाघर जाना चाहिए, इसलिए बेहतर यही होगा कि वह कैथलिक कलीसिया का सदस्य बन जाए। उन्होंने यूखरिस्त में विश्वास किया और हमने अपने बच्चों की परवरिश कैथलिक धर्म में की।
कहानी के भीतर की एक कहानी
उस दौरान, हालांकि मैं उसे कभी कभार बाप्लिक (बैप्टिस्ट + कैथलिक) बुलाती थी, क्योंकि उसे कैथलिक धर्मशिक्षा से कुछ मतभेद था। मरियम के प्रति हमारे आदर-सम्मान को वह नहीं समझ पा रहा था। अपने परिवार में मैं आध्यात्मिक नेतृत्व की ज़िम्मेदारी अपनी ही मानती थी, और इसलिए मैं सबको मिस्सा बलिदान में ले जाती थी, और बच्चों को धार्मिक शिक्षा देने की ज़िम्मेदारी भी मैं ने अपने ऊपर ले लिया था। हम सभी एक साथ गिरजाघर जाते थे, और बच्चों की परवरिश में मेरे पति ने मेरा पूरा साथ दिया, इसलिए मैं अपने को धन्य समझती थी, लेकिन मेरी तीव्र इच्छा थी कि यह नेतृत्व मेरा पति ही करें, और इस केलिए मैंने माँ मरियम की मध्यस्थता माँगी। एक दिन जैसे हम आत्मिक बातों पर चर्चा कर रहे थे, मरियम का मुद्दा उभरकर आया। मैं मरियम के बारे में उसे समझाने के लिए प्रयास कर रही थी, तभी मुझे याद आया, कि फादर स्टीफन शेइयर द्वारा निर्मित एक विडियो देखने के लिए एक मित्र ने सिफारिश की थी। फादर स्टीफन शेइयर उस विडियो में बताते हैं कि कैसे वह मौत के बिलकुल नज़दीक पहुँच गए थे, और उन्हें किस तरह लगा कि माँ मरियम ने उनको बचाया था। उस विडियो का मेरे पति पर प्रभावशाली असर हुआ, और माँ मरियम के बारे में उसने जितना सोचा था, उससे और बहुत कुछ है, ऐसी सोच उसके दिमाग में आयी। उसके बाद हुई घटनाएं एक चमत्कार से कम नहीं थीं। मेरे पति ने स्वयं अपने शब्दों में उन बातों का वर्णन करने का फैसला लिया है:
मोटे तौर पर, मैं एक अंतर्मुखी व्यक्तित्व हूँ, और अपनी निजी बातों को अपने सीमित मित्रों के छोटे दायरे से बाहर बताने में सकुचाता हूँ। फिर भी, मुझे लगता है कि मेरी गवाही से दूसरों को प्रेरणा मिल सकती है, और इसके प्रभाव से कम से कम एक व्यक्ति रोज़री माला को जपने केलिए तैयार हो जाए, तो मैं समझूंगा कि मेरा प्रयास सार्थक होगा।
सन 2011 के जनवरी महीने में मैं ने निर्णय लिया कि मैं रोज़री माला की प्रार्थनाएं सीखूंगा। एक बड़े कागज़ पर सभी भेदों और प्रार्थनाओं की तस्वीर थी, उसका उपयोग करके मैं ने मेरी पहली रोज़री माला की प्रार्थना की।
एक दिन शाम को, सूसन ने मुझसे कहा कि बहुत से नए लोग जो रोज़री माला बोलने लगे हैं, उनके निवेदनों में से कोई एक निवेदन सुना जाता है, इसलिए माँ मरियम से कुछ बड़ी बात मांगने में मुझे डरना नहीं चाहिए। यह सुनकर मैं विस्मित था, लेकिन इस पर अधिक ध्यान नहीं दिया। मेरे अधिकाँश निवेदन ऐसे नहीं थे, जो ठोस रूप में पूरा किया हुआ दिखाई दे सकें। वे सामान्य बातें थीं, जैसे मेरे परिवार को दुष्ट शक्तियों से और दुर्घटनाओं से बचाकर रखने, बच्चों की स्कूल में बेहतर पढ़ाई हो आदि इत्यादि।
कुछ दिन बाद मुझे पता चला कि मेरे बॉस कुछ भाग्यशाली कर्मचारियों को रिन्गलिंग ब्रदर्स सर्कस देखने केलिए फर्स्ट क्लास टिकट दे रहे थे। यह समझते हुए कि यह मेरे बेटों को सर्कस का आनंद दिलाने का एक अच्छा अवसर है, मैं ने शुक्रवार और शनिवार के बहुत से कार्यक्रमों में से इसको चुनकर अपना नाम दर्ज किया।
उस रात को रोज़री माला प्रार्थना के दौरान मैं ने अपने सामान्य निवेदन रखा और सूसन ने भी अपने निवेदन प्रस्तुत किया। अंतिम क्रूस के चिन्ह के बाद, हम लोगों ने अपनी रोज़री मालाओं को उचित स्थान पर रखा, और जाने के लिए उठे, तब मैं ने रुककर कहा, “माँ, यदि सर्कस जाने के लिए मैं उन टिकटों को जीत लेता तो बहुत अच्छा होता। शनिवार का खेल बहुत बढ़िया होता, आमेन।“ अगले दिन दोपहर को मुझे ईमेल से सन्देश मिला कि शनिवार के सर्कस खेल के लिए मैं ने चार टिकट जीत लिये हैं। मैं आश्चर्यचकित और स्तब्ध होकर वहीँ बैठा रहा और उस ईमेल को बार बार पढ़ा। मुझे लगा कि मरियम मुझ से कह रही है: “तुम ने कुछ माँगा था न? वाह, जाओ, आनंद लो”। मैं अवाक् रह गया और बहुत उत्तेजित भी था। देखिये, मैं अर्थशास्त्र का तर्कसंगत आदमी हूँ, और मैं अपने से कहने लगा कि इस तरह की बातें यूँ ही हो जाती हैं। मेर लिए शायद 1-2% का अवसर था, और किसी न किसी को जीतना ही था। यह लाटरी जैसा नहीं था। लेकिन, न केवल मैं ने जीता था, बल्कि यह शनिवार के शो केलिए था जिसके लिए मैं ने मांग की थी। मेरे लिए यह सिर्फ संयोग नहीं था। मरियम ने मेरा ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया और मेरा दिल भी जीत लिया।
स्वर्गिक दर्शन
उन टिकटों को जीतने के पहले मैं अक्सर रोज़री बोलता था, लेकिन प्रतिदिन नहीं। उस दिन के बाद, प्रतिदिन पांच भेद की प्रार्थना करने की मैं ने प्रतिज्ञा ली, और मैं ने मरियम और रोज़री माला के बारे में अध्ययन जारी रखा, खासकर संत लुइस मारी दी मोंटफोर्ट की लेखनी से। फातिमा की माँ मरियम के आज्ञानुसार, पांच प्रथम शनिवार की भक्ति करने का भी मैं ने फैसला किया।
इस भक्ति के अनुसार पांच महीने लगातार, हर महीने के प्रथम शनिवार को, मरियम के निर्मल ह्रदय के प्रति किये गए पापों के पश्चाताप के लिए रोजरी माला जपना, पाप स्वीकार के लिए जाना, मिस्सा बलिदान में परम प्रसाद को ग्रहण करना, कम से कम 15 मिनट येशु की उपस्थिति में प्रार्थना करना होता है।
पहले शनिवार को, मैं ने गिरजाघर जाकर मिस्सा बलिदान के पूर्व पाप स्वीकार किया। यह मेरे जीवन का तीसरा पाप स्वीकार था, लेकिन इस बार बड़ी गंभीरता के साथ, सोच विचार और मनन चिंतन के साथ, मैं ने पाप स्वीकार किया। मैं ने अपने जीवन की बहुत ही गहराई में गोता लगाया, विशेषकर अपने सुदूर अतीत से भी, बड़ी पीड़ा के साथ, पापों को बताया। पापों के लिए पापक्षमा मिलने के बाद मुझे लगा कि मेरी आत्मा के अन्दर से एक बहुत भारी बोझ उठाया गया है। मरियम के निर्मल ह्रदय के प्रति किये गए पापों के प्रायश्चित के लिए, मैं ने सारे निर्देशों को पूरा करने केलिए, अपने ह्रदय को तैयार किया। यह कठिन कार्य था, खासकर पाप स्वीकार बहुत ही कठिन था, लेकिन मुझे अच्छा लगा।
उस रात को, मुझे नींद में अचानक एक अजीब और तीव्र गर्मी का एहसास हुआ, जो मेरे पूरे शरीर में एक लहर की तरह चल रही थी। तब, उस घोर काले अँधेरे कमरे में क्या हो रहा है, इतना सोचने के अवसर प्राप्त होने के पहले ही, मेरी बंद आँखों के सामने एक आकृति दिखाई दी, ठीक उसी तरह, जब बहुत ही प्रकाशित किसी वस्तु को देखने के बाद. आपको लगता है कि वह वस्तु आप की आँखों के पलकों के नीचे टिक गयी है। वह एक प्रकाश के बिंदु जैसा शुरू हुआ, और तुरंत एक गुलाब के फूल की आकृति में परिवर्तित हुआ। वह बिम्ब करीब तीन सेकंड तक रहा, और उसके तुरंत बाद बहुत से छोटे छोटे गुलाबों से बने दिल की आकृति के गुलदस्ता में उसका विस्तार हुआ और आखिरी में आपस में गूंथे गए गुलाबों से एक मुकुट का रूप लिया।
जब यह सब समाप्त हुआ, तो उस अँधेरे कमरे में मैं ने अपनी आँखें खोली और विस्मित होकर अभी अभी घटित उस वाकया को समझने के प्रयास करते हुए बैठ गया। मेरे तार्किक मस्तिष्क का एक हिस्सा उसे एक प्राकृतिक और किसी सपने से उत्प्रेरित घटना कहकर एक सोच स्थापित कर रहा था। लेकिन मेरी ज़िन्दगी में पहले या शुरुआत से अब तक, इस तरह की किसी घटना से दूर से भी कोई साक्षात्कार नहीं हुआ था, और यह उन पाँचों में से पहले शनिवार को घटित हुई थी। मेरे विचार में, इस भक्ति में आगे बढ़ने केलिए, यह मरियम की ओर से, मेरे लिए एक सहमति और प्रोत्साहन था। पहला गुलाब रोज़री माला का प्रतिबिम्ब था। वास्तव में, अंतिम दो बिम्बों का पूरा अर्थ उस समय मेरी समझ में नहीं आया, लेकिन बाद में मनन चिंतन करने पर, मुझे मालूम हुआ कि ये मरियम के निर्मल ह्रदय से सम्बंधित बिम्ब थे।
यह मेरे पति के जीवन की गवाही है। और इस तरह, शादी के साढ़े दस साल बाद, मेरी प्रार्थना सुनी गयी। मेरे पति ने मेरे घर का आत्मिक नेतृत्व संभाल लिया। यह सचमुच मेरे परिवार में घटित एक वास्तविक चमत्कार था। मानव होने के नाते, मैं आभारी थी, लेकिन साथ साथ आत्मिक रूप से कुछ ईर्ष्यालु भी। मैं ने वर्षों तक रोज़री माला की प्रार्थना की थी, लेकिन दर्शन पानेवाला व्यक्ति बस मेरा पति था। मुझे पता था कि यह मेरी स्वार्थी सोच है, इसलिए जल्दी ही मैं ने इस पर काबू पाया, और मेरे पति को एक नए व्यक्ति के रूप में परिवर्तित होते हुए देख रही थी। वह आज भी वही आदमी है, जिससे मैं ने शादी की थी, लेकिन वह और सौम्य, और कोमल, और अधिक उदार व्यक्ति बन गया है और गिरजाघर की गतिविधियों में सक्रिय भाग लेते हुए उनका ह्रदय बदल गया। हम लोग अभी भी इस सफ़र में एक साथ हैं, और एक लंबा रास्ता हमें तय करना है, लेकिन हमारे जीवन के लिए मध्यस्थता करने वाली माँ मरियम के प्रति मैं आजीवन आभारी हूँ।
'उन दिनों मैं अपने माता-पिता को खुश करने के लिए ही गिरजाघर जाती थी। मुझे उम्मीद नहीं थी कि वहां ऐसा कोई है, जो मुझ से प्यार करता है, जब मुझे इसकी परवाह नहीं है तब भी वह प्यार करता है।
भारत देश के एक कैथलिक परिवार में मेरा जन्म हुआ था, इस लिए मेरा कैथलिक होकर जीवन जीना बस परम्परा के कारण ही था, विश्वास के कारण नहीं। इतवार को गिरजाघर जाना और परम प्रसाद ग्रहण करना बस एक रीति रिवाज़ बन गया था, और येशु के साथ मेरा कोई रिश्ता नहीं था। मैं ने अपने विश्वास पर कभी गंभीरता से सोच विचार नहीं किया था। यह मेरे माता-पिता को खुश करने के लिए था, इसलिए उनके लिए मैं गिरजाघर जाया करती थी ।
तेरह साल की नाजुक उम्र में जब मैं इंग्लैंड पहुंची, मेरी ज़िन्दगी एक बड़ी उलटफेर से गुजरी। मेरे विस्थापन के अनुभव के बीच में, स्कूल में मेरे साथ रैगिंग की गयी। वह इतना भयंकर और डरावना अनुभव था कि मुझे लगा कि मैं कूड़े के अम्बार में पडी कीड़ा हूँ। मैं नहीं समझ पायी कि मेरे साथ क्या हो रहा है, और मैं अवसाद की शिकार हो गयी और सोचने लगी, “मैं क्यों ज़िंदा हूँ?”
मैं ने अपनी पढ़ाई पर पूरा ध्यान दिया, मेरा रिजल्ट बेहतर होने लगा, इसलिए बेर्मिंघाम विश्वविद्यालय में फार्मेसी की पढ़ाई करने का मुझे अवसर मिला। कुछ युवा लोगों के एक दल से मेरी मुलाक़ात हुई। जीवन में पहली बार अनुभव किया कि जैसा मैं हूँ वैसा उन्होंने मुझे स्वीकार किया, इस अनुभव से मैं आश्चर्यचकित और अभिभूत थी। हालांकि वह अच्छा अनुभव था, लेकिन जब वे प्रार्थना करने के लिए एकत्रित होते थे, तो मुझे बड़ा अजीब लगता था, क्योंकि मैं इस तरीके की प्रार्थना से परिचित नहीं थी। जब वे परमेश्वर की स्तुति करते थे, मुझे यह बिलकुल अजीबो गरीब लगता था, क्योंकि येशु के साथ मेरा कोई रिश्ता नहीं था ।
वे ‘जीसस यूथ’ नामक युवाओं के एक अंतर्राष्ट्रीय कैथलिक करिश्माई आन्दोलन के हिस्से थे। यद्यपि मैं उन्हें समझ नहीं सकी, फिर भी मैं उनकी प्रार्थना सभा में जाती रही, क्योंकि उन्होंने मुझे स्वीकार किया था, और मैं ने उनके साथ “जाने की हिम्मत उठाओ” नामक एक सम्मलेन में जाने का निर्णय लिया। आतंरिक चंगाई के सत्र में अतीत में मेरे साथ घटित सभी बातों की स्मृतियों की बाढ़ मेरे अन्दर उमड़ने लगी | मैं अपने रुदन को रोक नहीं पायी, लेकिन मुझे अनुभव हुआ कि पिता ईश्वर मुझे अपने आलिंगन में ले रहा है और मैं जान गयी कि उस दौरान प्रभु येशु मुझे अपने बाहों में लेकर चल रहा था।
मुझे आखिरकार एहसास हुआ कि मैं जैसी थी, उस स्थिति में किसी ने मुझे प्रेम किया और उसने मेरे ऊपर दोष नहीं लगाया। जब मैं उसे जानती तक नहीं थी और जब मैं ने उसके प्रेम के बदले अपना प्रेम नहीं दिया था, उस समय भी वह हमेशा मेरे साथ था। इस लिये मैं उन युवा लोगों, और उस विचार के अन्य लोगों के साथ अधिक समय बिताने लगी। मैं ने ईश्वर से पूछा कि मैं कैसे उसकी सेवा कर सकती हूँ, और उसने मेरे मार्ग पर सही लोगों को भेजा। मैं ने पाया कि उसने मुझे संगीत का उपहार दिया था – संगीत के माध्यम से गाकर उसको महिमान्वित करने और उसके प्रेम को दूसरों के साथ साझा करने का उपहार। जितना अधिक मैं उसके लिए गाती हूँ, जितना अधिक मैं अपने स्वर के माध्यम से ईश्वर की स्तुति और महिमा गाती हूँ, उतना ही अधिक मैं ख्रीस्त प्रभु की ओर आकर्षित हो जाती हूँ। ख्रीस्त का बेशर्त प्रेम ही मुझे आगे बढाता है और मुझे उसके साथ जोड़कर रखता है।
लेकिन मैं पूर्णता की मिसाल नहीं थी। बहुत सारे अन्य युवा लोग जिन चीजों से सुख पाने का प्रयास करते थे, उन चीज़ों को हासिल करने का मैं ने भी निर्णय लिया। उस भीड़ का हिस्सा होने के लिए मैं ने शराब की मदद ली। और इस तरह भटक जाने पर भी मुझे वापस पटरी पर लाने के लिए ईश्वर मेरे साथ रहा। उसने कुछ लोगों को मेरी ज़िन्दगी में रख दिया जो मुझे बड़ी सौम्यता के साथ ईश्वर की ओर वापस ले आये। वह बहुत ही प्रेमी ईश्वर है। उसने मुझे कभी न जबरन धकेला, न जबरन अपनी ओर खींचा। उसने बड़े सब्र के साथ मेरे लिए इंतज़ार किया और मेरे लिए अनगिनत मौके, बार बार प्रदान किये, ताकि मैं उसके पास वापस आऊँ और उसके प्रेम को अनुभव करूँ।
जितना अधिक मैंने ख्रीस्त को जाना, उतना ही अधिक मैंने अपनी दुर्बलता को पहचाना। प्रतिदिन उसने मेरे बारे में कुछ न कुछ पर्दाफ़ाश किया, जिसके बारे में मुझे जानकारी नहीं थी। मेरी कमजोरियां और मेरे संघर्ष उसके निकट पहुंचने में मेरे लिए अवसर बन गए, जबकि मैं सोचती थी की यदि मैं ने अपनी कमियों को दूसरों के साथ साझा किया तो वे मेरा तिरस्कार करेंगे, और मुझ पर दोष लगायेंगे। लेकिन मैं मिस्सा बलिदान या आराधना में बारबार उसके पास जा सकती हूँ, अपनी दुर्बलताओं को उसे दे सकती हूँ, और उन दुर्बलताओं को मुझ से उठाने का निवेदन कर सकती हूँ। एक अमूल्य रत्न की तरह वह मुझे प्रतिदिन परिष्कृत करता है। उसके प्रेम के प्रति आकर्षित होने से मैं अपने आपको रोक नहीं पाती हूँ।
हमारा आपसी रिश्ता इतना मज़बूत हो गया कि यदि मैं उसका तिरस्कार करना चाहूं, तब भी नहीं कर पाऊँगी, और यदि मैं पाप में गिरकर उसका तिरस्कार करूंगी, तब भी ईश्वर का प्रेम मुझे फिर उठाता है। हर बार जब मैं गिरती हूँ, तब वह बोलता है कि “कोई बात नहीं”, और यही बात मुझे उससे जोड़कर रखती है। जब मैं मिस्सा बलिदान में जाती हूँ, तो मिस्सा बलिदान में मुझे येशु ख्रीस्त से मुलाक़ात करने का मूर्त और ठोस अनुभव होता है। जब जब मैं उसे ग्रहण करती हूँ, मैं आंसू बहाती हूँ, क्योंकि मैं अपने दुर्बल और पापमय शरीर में पवित्रतम येशु को ग्रहण कर रही हूँ, और वही मुझे दिन प्रतिदिन मज़बूत करता है।
जब मैं ने ख्रीस्त के साथ यह सफ़र शुरू किया, और उसे व्यक्तिगत रूप से अनुभव करने लगी, तब मुझे एहसास हुआ कि मेरे चारों तरफ क्या हो रहा है। मुझे यह भी एहसास हुआ कि मेरे पास कितना धन है, या कितने मित्र हैं, इन सब का कोई मतलब या महत्त्व नहीं है। पहले मुझे लोगों की सहमति और प्रोत्साहन की तलाश थी, और जिस वक्त उन्होंने मेरा तिरस्कार किया, उस वक्त मेरा आनंद गायब हो जाता था। जब ख्रीस्त आप के साथ हैं, तो कोई मायना नहीं रहता कि लोग आपको सहमति या प्रोत्साहन देते हैं या नहीं। वह कहता है, “मैं ने तुम्हें चुना है”, और जब मैं यह वचन सुनती हूँ, मुझे लगता है कि मैं ने सब कुछ हासिल किया है। इस से मुझे अपार ख़ुशी, शांति और आनंद मिल जाते हैं। येशु को एक अवसर देकर आप के जीवन में फरक लाने के लिए मैं आप को भी आमंत्रित करती हूँ। वह आपके दरवाज़े पर खटखटाते हुए खड़ा है, लेकिन उसे खोलने केलिए वह बल प्रयोग नहीं करेगा, आप को आमंत्रण दिया जाता है कि आप उसके लिए द्वार खोल दें। यदि आप द्वार खोलेंगे, तो आप को कभी पछताना नहीं पडेगा। इस तरह आप अनगिनत अच्छी बातों के लिए द्वार खोल देंगे। जो अनुग्रह की वर्षा वह आप के ऊपर बरसाएंगे और उसकी मदद से आप जो भी प्राप्त करेंगे, वे अगण्य और असीमित होंगे। उस के लिए कुछ भी असंभव नहीं। जिन बातों की मैं जभी कल्पना भी नहीं कर सकती थी, उनके प्रति हाँ कहने केलिए उसने मुझे अपार हिम्मत दी है।
अपने रोज़मर्रा की गतिविधियों में से एक साल का अवकाश लेकर जीसस यूथ के साथ मिलकर मिशन कार्य करने का बल और साहस येशु ने मुझे साहस और बल दिया। मैं ने उसे स्पष्ट रूप से यह कहते हुए सुना: ”शेलीना, मैं चाहता हूँ कि तुम इस एक साल की छुट्टी ले लो। मैं तुम्हें दिखाऊंगा कि तुम मेरे द्वारा और कितनी अधिक उपलब्धि प्राप्त करोगी।“ यात्रा करने, नए लोगों से मिलने, और अपरिचित लोगों के साथ समय बिताने को लेकर मैं हमेशा आशंकित रहती थी। उसकी संगति में मैं अपने आराम और सुविधापूर्ण परिधि से बाहर निकलकर उपरोक्त कार्यों को कर पा रही थी, और उसका मज़ा भी ले रही थी।
वह निरंतर आत्म केन्द्रित भय कि लोग मुझ पर आरोप लगायेंगे, मुझे दोषी ठहराएंगे, अब वह भय मुझसे गायब हो गया है, क्योंकि येशु ख्रीस्त को दूसरों को देना मेरे जीवन का एक ख़ास मकसद बन गया है। इससे बढ़कर कोई उपहार मैं किसी को नहीं दे सकती, और प्रभु हमारे प्रेम के लायक है। यदि उसने 99 को छोड़कर मेरी खोज में आया है, तो मुझे पक्का विश्वास है कि वह आप की भी तलाश में है, और आप को घर वापस बुला रहे हैं।
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शालोम वर्ल्ड कार्यक्रम यू –टर्न के लिए शेलीना गुएदेस द्वारा दी गयी गवाही पर यह लेख आधारित है। उन एपिसोड्स को देखने के लिए shalomworld.org/episode/u-turn पर जाएँ।
'डॉ. रोय शूमैन, हमें बताते हैं कि कैसे नास्तिकता ने उन्हें निराशा के गड्ढे में घसीटा और कैसे वे इससे बचकर बाहर निकले।
मेरा जन्म और पालन पोषण एक यहूदी परिवार में हुआ था। मैं मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी गया, जहां पढ़ाई के दौरान मेरा ईश्वर में विश्वास खो गया, और मैं नास्तिक बन गया। मैं हार्वर्ड बिजनेस स्कूल गया, और वहां से डिग्री प्राप्त करने के बाद, वहां हार्वर्ड बिजनेस संकाय में ही प्रोफेसर के रूप में कार्य करने के लिए मुझे आमंत्रित किया गया। इस तरह 29 साल की उम्र में, मैं हार्वर्ड बिजनेस स्कूल में मार्केटिंग का प्रोफेसर बन गया। हालांकि यह आश्चर्यजनक लग सकता है, लेकिन सच्चाई यही है कि मेरी सफलता के शीर्ष पर मेरी दुनिया पलट गई। जब से मैं एक छोटा बच्चा था, मुझे पता था कि जीवन का एक वास्तविक अर्थ होना चाहिए, और मैं मानता था कि ईश्वर के साथ एक व्यक्तिगत संबंध में प्रवेश करने से जीवन का अर्थ मिलेगा। मुझे उम्मीद थी कि ईश्वर के साथ यह सम्बन्ध 13 साल की उम्र में मेरे यहूदी धार्मिक अनुष्ठान “बार मिट्ज्वा” होने पर स्थापित होगा (बार मिट्ज्वा कैथलिक कलीसिया के दृढीकरण संस्कार की तरह होता है)। जब ऐसा नहीं हुआ, तो यह मेरे जीवन के सबसे दुखद दिनों में से एक बन गया। उसके बाद मैंने सोचा था कि जीवन का वास्तविक अर्थ सांसारिक जीवन में सफलता से आएगा, लेकिन हार्वर्ड में एक प्रोफेसर के रूप में, मैं सांसारिक करियर में पहले से कहीं अधिक सफल था, जिसकी मैंने कभी उम्मीद नहीं की थी, फिर भी मुझे अपने जीवन में कोई अर्थ या उद्देश्य नहीं दिखाई दिया। इसलिए, उस दौर में, मैं अपने जीवन की सबसे गहरी निराशा में पड़ गया।
रहस्यमय मार्ग
एक दिन सुबह, मैं समुद्र के किनारे, प्रकृति के एक विशिष्ट स्थान पर, चीड़ के पेड़ों और रेत के टीलों के बीच टहल रहा था। मैं बस अपने ख्यालों में खोया हुआ चल रहा था। मैंने काफी समय से ईश्वर के अस्तित्व पर विश्वास करने की आशा खो दी थी। लेकिन अचानक, पृथ्वी और स्वर्ग के बीच का पर्दा अप्रत्यक्ष हो गया, और मैंने खुद को ईश्वर की उपस्थिति में पाया, मानो मौत के बाद मैं अपने जीवन को पीछे मुड़कर देख रहा हो। मैंने देखा कि मेरे साथ जो कुछ भी हुआ, वह सर्वश्रेष्ठ था, जिसकी व्यवस्था एक सर्वज्ञ, सर्व-प्रेमी ईश्वर के द्वारा ही कर सकता था। ईश्वर ने विशेष रूप से उन बातों को दिखाया, जिनके कारण मुझे सबसे अधिक दु:ख मिला था। मैंने देखा कि मेरे मरने के बाद मुझे दो बड़े पछतावे होंगे। सबसे पहले, जितनी कल्पना मैं कर सकता था, उस से बहुत अधिक मुझे प्यार के सागर में रखा गया था, फिर भी प्यार न होने की चिंता में मैंने अपना सारा समय और ऊर्जा बर्बाद कर दी थी। मेरे अस्तित्व के हर पल में यह प्यार मेरे सर्वज्ञ, सर्व-प्रेमी ईश्वर से मुझे प्राप्त हो रहा था। और प्रायश्चित की दूसरी बात यह थी कि प्रत्येक क्षण में परमेश्वर की दृष्टि में कुछ मूल्यवान कार्य करने की संभावना थी, लेकिन मैंने हर वक्त ऐसे कार्य किये जिसका स्वर्ग की दृष्टि में कोई मूल्य नहीं था। जब हम उस अवसर का हर बार लाभ उठाते हैं, तो इसके लिए हमें अनंत काल के लिए पुरस्कृत किया जाएगा, और हर अवसर जिसे हम चूकने देते हैं, और जिसका लाभ नहीं उठाते हैं, वह अनंत काल के लिए एक खोया हुआ अवसर होगा।
लेकिन इस अनुभव का सबसे ज़बरदस्त पहलू यह था कि इस अंतरंग, गहरे और निश्चित ज्ञान को प्राप्त करना था कि स्वयं ईश्वर – जिसने जो कुछ अस्तित्व में है उसे न केवल वह सब कुछ बनाया, बल्कि स्वयं अस्तित्व बनाया है – वह ईश्वर न केवल मुझे नाम से जानता है और मेरी परवाह करता है, वह मेरी निगरानी कर रहा था, वह मेरे अस्तित्व के हर पल को देख रहा था, जो कुछ भी मेरे साथ हुआ था, उसे सबसे सही तरीके से वह व्यवस्थित कर रहा था। वह वास्तव में जानता था कि मैं हर पल कैसा महसूस करता हूं, और इसकी वह परवाह करता था। एक बहुत ही वास्तविक तरीके से वे सारी बातें जिसने मुझे खुश किया, उन सब बातों ने उसे भी खुश किया, और हर चीज जिसने मुझे दुखी किया, उस चीज़ ने उसे भी दुखी किया।
मुझे एहसास हुआ कि मेरे जीवन का अर्थ और उद्देश्य मेरे उस प्रभु, ईश्वर और गुरु की आराधना करना और उनकी सेवा करना था, जो मुझे खुद को प्रकट कर रहे थे, लेकिन मुझे पता नहीं था कि उनका नाम क्या है, या यह कौन सा धर्म है। मैं उसे पुराने नियम का परमेश्वर नहीं मान सकता था, या इस धर्म को यहूदी धर्म के रूप में नहीं सोच सकता था। परमेश्वर का जो चित्र पुराने नियम में से निकलता है, वह इस परमेश्वर की तुलना में कहीं अधिक दूर रहनेवाले, कठोर और दंड देने वाले परमेश्वर का है। मैं जानता था कि वह मेरे प्रभु, ईश्वर और मेरे स्वामी है, और मुझे उसकी आराधना और सेवा करने के अलावा और किसी बात की इच्छा नहीं थी, लेकिन मुझे नहीं पता था कि वह कौन था या मुझे किस धर्म का अनुगमन करना है।
इसलिए मैंने प्रार्थना की, “मुझे अपना नाम बताएं ताकि मैं जान सकूं कि किस धर्म का मुझे पालन करना है। यदि तुम बुद्ध हो, और मुझे बौद्ध बनना है, तो इसका मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ता और मैं इसके लिए तैयार हूँ; अगर तुम कृष्ण हो और मुझे हिंदू बनना है; तो इसका मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ता, और मैं इसके लिए तैयार हूँ; अगर तुम अपोलो हो और मुझे रोमी मूर्तिपूजक बनना है, तो इसका मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ता, और मैं इसके लिए तैयार हूँ। जब तक तुम मसीह नहीं हो और मुझे ईसाई नहीं बनना है तो मेरे लिए सब कुछ ठीक है!” खैर, उसने उस प्रार्थना का सम्मान किया और अपना नाम मुझे नहीं बताया। हाँ, मैं घर लौटा, अपने जीवन में पहले से कहीं ज्यादा खुश होकर। मैं केवल अपने प्रभु, ईश्वर और स्वामी का नाम जानना चाहता था, जिसने खुद को मुझ पर प्रकट किया था, और मैं जानना चाह रहा था कि मुझे किस धर्म का पालन करना है। इसलिए हर रात सोने से पहले मैं एक छोटी प्रार्थना कहता था, जो मैंने अपने प्रभु, अपने ईश्वर और अपने स्वामी के नाम को जानने के लिए करता था, जिस प्रभु ने उस अनोखे अनुभव के दौरान अपने को मुझ पर प्रकट किया था।
शब्दों से परे सौंदर्य
उस पहले अनुभव के एक साल पूरे होने के दिन, उस रात को, उस प्रार्थना को बोलने के बाद, साथ ही ठीक एक साल पहले जो हुआ था उसके लिए धन्यवाद की प्रार्थना करने के बाद मैं सो गया। मुझे लगा कि कोई हाथ मेरे कंधे को धीरे से छू रहा है और इससे मैं जाग गया, और मुझे एक कमरे में ले जाया गया और मैं अकेला रह गया उस सबसे खूबसूरत युवती के साथ, जिसकी मैं जीवन में कभी कल्पना भी नहीं कर सकता था। किसी ने मुझे बताया नहीं, फिर भी, मुझे पता चल गया कि यह धन्य कुँवारी मरियम है। जब मैंने खुद को उसकी उपस्थिति में पाया तो मैं बस इतना चाहता था कि मैं अपने घुटनों पर गिर जाऊं और किसी तरह उसे योग्य सम्मान करूं।
वास्तव में यह पहला विचार मेरे दिमाग में आया: “ओह, काश, मैं कम से कम ‘प्रणाम मरियम’ प्रार्थना को जानता!” लेकिन मैं कोई प्रार्थना नहीं जानता था। मरियम ने मुझसे सबसे पहले यह कहा कि वह मेरे किसी भी प्रश्न का उत्तर देने के लिए तैयार है। ठीक है, मेरा पहला विचार था कि मैं उसे कहूं कि वह मुझे ‘प्रणाम मरियम’ प्रार्थना सिखाये, ताकि मैं उसका उचित सम्मान कर सकूं, लेकिन इस प्रार्थना को मैं नहीं जानता हूँ, यह स्वीकार करने में बहुत लज्जा महसूस हो रही थी। तो मुझे ‘प्रणाम मरियम’ प्रार्थना सिखाने के लिए एक अप्रत्यक्ष तरीके के रूप में, मैंने उससे पूछा कि उसकी पसंदीदा प्रार्थना क्या थी। उसकी पहली प्रतिक्रिया थी, “मेरे आदर में की गयी सभी प्रार्थनाएँ मुझे पसंद हैं।” लेकिन मैं ने थोड़ा दबाव बनाने की इच्छा से कहा, “लेकिन आपको अन्य की तुलना में कुछ-एक प्रार्थना को अधिक पसंद करना चाहिए।” वह तैयार हो गयी और पुर्तगाली में एक प्रार्थना बोली। मैं पुर्तगाली भाषा बिलकुल नहीं जानता था, इसलिए मैं ने बस शुरुवात के कुछ शब्दों को ध्वन्यात्मक रूप से याद करने की कोशिश की और अगली सुबह उठते ही उन्हें लिख डाला। बाद में जब मैं एक पुर्तगाली कैथलिक महिला से मिला, तो मैंने उसे मेरे लिए पुर्तगाली में मरियम की प्रार्थना सुनाने के लिए कहा, और मैंने प्रार्थना की पहचान इस तरह की ‘पाप-रहित गर्भधारण करनेवाली हे मरियम, तेरी शरण में आये हम दीनों केलिए प्रार्थना कर’।
देखने में मरियम जितनी सुंदर थी, उससे भी अधिक उसकी आवाज की सुंदरता का गहरा प्रभाव मुझ पर पड़ा। मेरे लिए इसका वर्णन करने का एकमात्र तरीका यह है कि जो संगीत को संगीत बनाता है, उसी से मरियम की आवाज़ बनी थी। जब उसने बात की तो उसके स्वर की सुंदरता मेरे अन्दर प्रवाहित हुई, उस आवाज़ के साथ उसके प्यार को अपने साथ ले आई, और मुझे उस परमानंद की स्थिति में ले गई, जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी।
उस महान अद्वितीय आकर्षक व्यक्तित्व से अभिभूत होकर ही बहुत सारे प्रश्न मेरे मन में उभरने लगे। एक बिंदु पर, मैंने हकलाते हुए कहा, “यह कैसे संभव है कि आप इतनी गौरवशाली हैं, कि आप इतनी शानदार हैं, कि आप इतनी महान और धन्य हैं?” मेरी ओर दयाभाव के साथ देखती हुई और धीरे से अपना सिर हिलाती हुई उसने जवाब दिया: ‘नहीं, नहीं, आप नहीं समझ रहे हैं। मैं कुछ भी नहीं हूँ। मैं एक प्राणी हूँ। मैं एक बनाई हुई सृष्टि हूं। बस इतना ही है’।
फिर उसे उचित आदर देने की इच्छा से मैं ने उससे पूछा कि उसे किस प्रकार का पदनाम सबसे अच्छा लगता है: उसका जवाब था: “मैं पिता ईश्वर की प्यारी पुत्री हूँ, पुत्र ईश्वर की माँ हूँ, और पवित्र आत्मा की जीवन संगिनी हूँ”। मैं ने उससे और भी बहुत सारे कम महत्त्व के सवाल पूछे, जिसके बाद उसने मुझसे दस पंद्रह मिनट बात की। इस साक्षात्कार के समाप्त होने पर मैं फिर सोने गया। अगली सुबह जब मैं जागा, तब मैं धन्य कुँवारी मरियम के प्यार में पूरी तरह डूब गया था, और मैं जानता था कि मेरे अन्दर बस एक ही इच्छा थी: पूर्ण रूप से एक सम्पूर्ण ख्रीस्तीय बनना। इस अनुभव के आधार पर मुझे मालूम हुआ कि एक वर्ष पूर्व मुझसे मिलनेवाला ईश्वर येशु ख्रीस्त ही था।
मेरी तलाश
मेरे निवास स्थान से करीब ४५ मिनट की यात्रा करने पर विख्यात ‘ला सलेट की माँ मरियम’ का तीर्थ मंदिर था। मैं हर सप्ताह के तीन या चार दिन वहां जाने लगा, वहां के मैदान में मैं टहलता था, ताकि माँ मरियम की उपस्थिति को अनुभव करके मैं उससे संवाद कर सकूं। वह तीर्थ मंदिर कैथलिक कलीसिया का गिरजाघर था, इसलिए वहां पवित्र मिस्सा बलिदान होता था। जब कभी मैं मिस्सा बलिदान में भाग लेता था, परम प्रसाद को पाने की तीव्र इच्छा मेरे अन्दर पनपती थी, जबकि मैं नहीं जानता था कि परम प्रसाद क्या है। माँ मरियम को जानने और परम प्रसाद को, संभव हो तो प्रति दिन प्राप्त करने की इच्छा, ये दोनों बातों ने मुझे किसी घुमाव फिराव के बिना ही, कैथलिक कलीसिया की ओर जल्दी ही खींच लिया।
कैथलिक कलीसिया में प्रवेश करने पर, मैं न केवल यहूदी बना रहा, बल्कि पहले से ज्यादा तीव्र यहूदी बना, क्योंकि ऐसा करने से मसीह-पूर्व यहूदी धर्म में रहकर यहूदियों के मसीह को न पह्चाननेवाला नहीं, बल्कि मैं यहूदी मसीहा का यहूदी अनुयायी बना। मैं कैथलिक कलसिया को मसीह-उत्तर यहूदी धर्म मानता हूँ और यहूदी धर्म को मसीह-पूर्व कैथलिक धर्म मानता हूँ: मानवजाति की मुक्ति के लिए एक ही योजना के दो काल।
इन अनुभवों की प्राप्ति के लिए मैं आजीवन आभारी हूँ । सत्य की पूर्णता में मुझे लाया गया, ईश्वर के साथ एक व्यक्तिगत सम्बन्ध जिसके अस्तित्व की जितनी मैं कल्पना कर सकता था, उससे अत्यधिक सम्बन्ध और जीवन यात्रा में आगे बढ़ते हुए, मानव के बारे में, ईश्वर के बारे में, मृत्यु के बाद आपके साथ क्या होता है, आदि इत्यादि के बारे में, जो भी सवाल मुझे कचोटते थे, इन सबके जवाब भी मैं ने पाया। सबसे बढ़कर, ईश्वर की उपस्थिति में कल्पनातीत आनंद और प्रेम की अनंतता की दृढ़ आशा मैं ने प्राप्त की।
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यह लेख, शालोम वर्ल्ड में ‘मरियम मेरी माँ’ कार्यक्रम के लिए डॉ. रोय शूमैन द्वारा साझी की गयी गवाही पर आधारित है । इस एपिसोड को देखने केलिये shalomworld.org/episode/mary-my-mother पर जाएँ|
'ख़टख़ट ख़टख़ट।
“कौन है वहाँ?” मैंने पूछ लिया।
“मैं प्रेम हूँ,” जवाब आया।
“अंदर आ जाइए। आ जाइए न अंदर,” मैंने बड़ी तीव्रता से विनती की। क्योंकि किसी को मेरे घर के अन्दर आए हुए बहुत दिन हो गए थे, और मैं उत्सुक थी कि कोई इतने आदरणीय व्यक्ति मेरे पास आए।
खड़खड़ाहट, खड़खड़ाहट…. दरवाजे की घुंडी आगे-पीछे मुड़ती चली गई।
“आपने अपना दरवाजा बंद कर लिया है,” बाहर से आवाज आई।
“मैं इसे तुरंत खोल देती हूँ,” मैंने जवाब दिया।
पर मैं दरवाज़ा खोल नहीं सकी। मैंने पाया कि मेरे प्रवेश द्वार का रास्ता अवरुद्ध था। वास्तव में, मेरा कमरा विभिन्न चीजों से इतना भरा हुआ था कि मैं दहलीज तक पहुंचने के लिए रास्ते को साफ करने का कार्य शुरू भी नहीं कर पा रही थी।
“कृपया, आप कल यहाँ वापस आ जाइयेगा,” मैंने निर्देश दिया। “कल आपके लिए मेरा दरवाज़ा खुला रहेगा।”
तो प्रेम पीछे हट गया।
और मैंने उसकी वापसी के लिए रास्ता साफ करने का काम तय किया। मैंने कूड़ा-करकट को साफ़ करके बाहर निकाला और उपयोगी प्रतीत होने वाली चीजों को बटोर करके रखा। मैंने दरवाज़े तक पहुँचने के लिए एक रास्ता बनाया और दरवाज़े पर पहुँच कर मैंने जंजीरें खोल दीं।
ख़टख़ट ख़टख़ट।
“कौन है वहाँ?” मैंने उत्साह से पूछा और मेरे दरवाजे की दरारों से सूरज की तेज किरणें आ रही हैं।
“मैं प्रेम हूँ,” उसने जवाब दिया।
“अंदर आ जाइए। आ जाइए न अंदर,” मैंने कुंडी खोलकर और भारी दरवाजे को खोलते हुए निर्देश दिया। “बैठ जाइए। बैठिए न,” साथ-साथ रखे दोनों सीटों की ओर इशारा करते हुए, मैंने निवेदन किया।
प्रेम ने प्रवेश किया और झुक गया।
मैं एक मिनट के लिए उसके पास बैठी, लेकिन फिर मैंने उछलकर मेरे मेहमान को मनोरंजन प्रदान करने के काम में लग गयी।
“यहाँ देखिये,” मेरी दीवारों पर सुंदर अलंकरण की ओर इशारा करते हुए मैंने कहा। “इन्हें देखें,” अपने सभी सांसारिक खजाने को उसके सामने रखते हुए मैंने उसे निर्देश दिया। मैं काफी देर तक बड़बड़ाती रही। मैंने प्रेम को अपनी उपलब्धियों और अपने सपनों के बारे में बताया। मैंने उसे अपने ब्लूप्रिंट बताए। जब तक मैं कमरे में इधर-उधर भागती रही, वह घंटों मौन होकर बैठा रहा। इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाती दिन ढल चुका था और प्रेम जाने के लिए खड़ा था।
“कल फिर आइयेगा,” मैंने उसे अगले दिन केलिए आमंत्रित किया। “कल मेरे पास आपको देने के लिए और भी बहुत कुछ होगा।”
प्रेम दरवाजे से बाहर निकल आया और गली में उतर गया।
“मुझे सोना चाहिए,” मैंने मन ही मन सोचा, लेकिन मैं अपने सिर को तकिये पर रखने के लिए बहुत उत्साहित नहीं थी। इसके बजाय, मैंने कमरे की सजावट को फिर से व्यवस्थित करती हुई भोर तक काम करती रही। मैंने एक गोल मेज को कमरे के बीच में घसीटा और उसके चारों ओर अपनी कुर्सियाँ लगा दीं। मैंने मेज पर एक सफेद रंग का सफेद कपड़ा बिछाया और उसके ऊपर एक प्राचीन फूलदान रख दिया। फिर, मैंने अपनी कोठरी के निचले तल्ले की गहराई में खोजा और अपना सर्वश्रेष्ठ फ्रॉक उठा लिया। मैंने रात भर अपना कमरा सजाने और स्वयं को सजाने का काम किया। प्रेम के पिछले आगमन के दौरान अपनी सभी कहानियों, योजनाओं और उपलब्धियों को उजागर करने के बाद, मैंने मनोरंजन के नए स्रोतों की तलाश की। मैंने धूल भरी बाजे के पाइप से एक पुराना विनाइल रिकॉर्ड ढूंढकर निकाला और इसे लंबे समय से गोदाम में पड़े अप्रयुक्त प्लेयर पर सेट किया। एक बार मेरी सभी नई व्यवस्थाओं से संतुष्ट होने के बाद, कल पर्याप्त तेजी से आ जाएँ इस के लिए प्रतीक्षा करने लगी।
खटख़ट खटख़ट।
“कौन है वहाँ?” जैसे ही सुबह की किरणें खिड़की की दरारों से कमरे में प्रवेश कर रही थी, कमरे की सजावट को अंतिम रूप देती हुई मैंने पूछा।
“मैं प्रेम हूँ” जवाब आया।
“अंदर आ जाइए, आइए न। अंदर आ जाइए,” मैंने दरवाज़े के दोनों पल्ले विस्तार से खोल दिया। “आइये और मेरी मेज के बगल में बैठिये।”
प्रेम ने प्रवेश किया और अपनी जगह ले ली।
“इसे सुन लीजिये,” मैंने विनाइल के खांचे पर सुई लगाती हुई निवेदन किया। रिकॉर्ड घूमते ही कमरा संगीत के शोर से भर गया और एक नई ऊर्जा उमड़ने लगी। अगले घंटों में मैं अपने फैशनेबल पोशाक में घूमती और नाचती रही। मैंने प्रेम के सामने अंतहीन उत्साह के साथ नृत्य किया। मैंने उन गीतों के कुछ हिस्सों को गाया जिन्हें मैं जानती थी और जब गीत के बोल मेरी याददाश्त से बाहर हो जाते थे तो सिर्फ धुन को गुनगुनाती थी। एक नर्तकी के रूप में मेरी भूमिका में मेरा दिल उत्साहित था और मैंने अपने आप को एक प्रभावशाली परिचारिका के रूप में देखती हुई अपने सारे संकोचों को त्याग दिया। और फिर वह दिन बहुत जल्दी बीत गया। जैसे ही प्रेम जाने के लिए खड़ा हुआ, मुझे एहसास हुआ कि उसकी अपनी बात प्रकट करने केलिए मैं ने उसे कोई मौका नहीं दिया था। मैंने दो दिन अपने आवाज़, गीत और नृत्य से भर दिए: बस मेरा ही बोलना, गाना और नाचना। और मैं प्रेम की प्रतिक्रिया सुनने में असफल रही।
“ओह, कृपया, कल फिर आइयेगा,” मैंने विनती की। “कल आइए और मुझे अपने बारे में सब कुछ बताइए: आपकी खुशियाँ, आपकी कहानियाँ, आपकी योजनाएँ सब कुछ। कल मैं आप को सुनने के लिए तैयार रहूँगी।”
मौन होकर प्रेम निकल गया।
ख़टख़ट ख़टख़ट…।
“कौन है वहाँ?” जैसे प्रवेश द्वार की दरारों से दिन के उजाले की गर्म और चमकती रोशनी रिस रही थी, मैंने पूछा।
“मैं प्रेम हूँ,” अब तक का वह परिचित उत्तर आया।
“अंदर आ जाइए, आइए न,” मैंने कहा, “आज मैं आपकी आवाज सुनना चाहती हूं।” सच में, पिछले दिनों की थकान के कारण, मुझे बैठने और प्रेम को काम करने की अनुमति देने में बड़ी खुशी थी।
प्रेम अंदर आया और मेरी मेज के बगल में अपनी कुर्सी पर बैठ गया, लेकिन कोई आवाज उसके होठों से निकल नहीं पाई। वह मौन सन्नाटे में रहा। मैं भी खामोश बैठी रही, हालाँकि मैं इस खामोशी से पूरी तरह संतुष्ट नहीं थी। कई बार मैंने अपनी ऊर्जा के अंतिम भंडार के द्वारा उसे आकर्षित करने पर विचार किया, कुछ नई तरकीबों या टूम छल्ले के साथ उन्हें लुभाने का प्रयास किया। फिर मुझे अपना वादा याद आया और मैं उनकी आवाज का इंतजार करती रही। सेकंड मिनटों में बदल गए। मिनट घंटों में बदल गए। ऐसा लग रहा था कि घड़ी रुक गई है, या कम से कम अब आगे बढ़ने में फिर झिझकती है, जिसके कारण मैं इसे बार बार देख रही थी। और प्रेम की आवाज सुनने की तलाश में मेरे कान अन्य सभी तरह की आवाजों से जुड़ गए: कौवा का कांव कांव… अन्य चिड़ियों का चहकना… लोगों का चलना… काम करना… श्वास का आना पाना… यह मौन कभी-कभी, बहरा कर देता था। मैं अपने कामों के कारण थकी हुई, अपने अतिथि के बगल वाली सीट पर बैठी थी। प्रेम की आवाज़ सुनने की मेरी उत्सुकता से ऊबकर मेरी आँखों में झपकी आती रही, जाती रही। फिर, आखिरकार प्रेम जाने के लिए खड़ा हो गया।
हालांकि, इतने लंबे दिन के बाद मुझे पूरा यकीन नहीं था कि कल का क्या होगा। प्रेम की खामोशी ने दोस्ती की अलग अलग भूमिकाओं के बारे में मेरी समझ को भ्रमित कर दिया था। मैं एक अच्छी परिचारिका बनने की अपनी क्षमता पर भरोसा खो रही थी। “शायद, उसे एक अधिक उपयुक्त मित्र खोजना चाहिए,” मैंने अपने मन में विचार किया। मेरा दिल उदास था, इस लिए इस दिन प्रेम को जाने देना आसान लग रहा था।
इसलिए, उसे मेरे पास वापस बुलाने के बजाय, मैंने बस इतना ही कहा, “अलविदा।”
प्रेम निकल गया।
मैंने उसके निकलते ही दरवाजा बंद कर दिया।
पूरी तरह से चकनाचूर होकर, मैंने अपने जूते उतारकर टेबल के नीचे फ़ेंक दिए, अपनी पोशाक को उतारकर फर्श में पड़े कपड़ों के ढेर में गिरा दिया और बिस्तर पर लेटने के लिए तैयार हो गयी। फिर, मैं अपने बिस्तर पर रजाई के नीचे रेंगती रही और एक बड़ी आह भर दी। हो सकता है कि प्रेम और मेरे बीच जो कुछ हुआ था, उसे समझने के लिए मैंने कुछ समय व्यतीत किया हो, लेकिन इस पर अधिक सोच विचार करने की मेरी इच्छा नहीं थी। मैं थकी हुई और उदास थी। नींद आ गई और मैंने निद्रादेवी की गोद में स्वयं को सहज ही समर्पण कर दिया।
भोर में तीन बजकर तैंतीस मिनिट पर, मेरे बंद दरवाजे की दूसरी तरफ एक हल्की सी आवाज सुनाई दी। हालाँकि यह बमुश्किल एक फुसफुसाहट ही थी, इस फुसफुसाहट ने नींद की गहराई से मुझे जगाया। आँखें खुली, मैं एक मिनट के लिए बेसुध पडी रही, जबकि मेरा दिमाग मुझे जगाने के लिए तथा समय और परिस्थिति को समझने की कोशिश कर रहा था।
“कौन है वहाँ? मैं चिल्लायी, जवाब क्या होगा इस डर से।
“मैं प्रेम हूँ,” वहां से जवाब आया।
“प्रेम?” मैंने पूछ लिया। यद्यपि मुझ से भेंट करने आनेवाले एकमात्र अतिथि प्रेम था, ऐसे समय में उनके आगमन से मैं चकित थी। “मैं अभी आपकी खातिरदारी करने की स्थिति में नहीं हूँ,” मैंने कहा। “कल फिर आना, तभी मेरे पास आपके आने पर कुछ न कुछ योजना बनाने का समय मिलेगा, तब आइयेगा।”
प्रेम ने कोई और शब्द नहीं कहा, बल्कि प्रतीक्षा में खड़ा रहा।
थकावट और जिज्ञासा के बीच कुश्ती लडती हुई, आधे मिनट के लिए मैं रजाई के नीचे दुबकी रही। जिज्ञासा ने लड़ाई जीत ली, इसलिए मैं अपने बिस्तर से उठी और दरवाज़े की कुंडी तक नहीं पहुंच पाई, अंधेरे में तब तक लड़खड़ाती रही। अंदर खड़ी होकर, अँधेरे में, मैं रुक गयी। क्योंकि मुझे लगा था कि इस बार प्रेम का प्रवेश कुछ अलग तरीके से होगा। मैं यह नहीं समझ सकी कि मुझे यह कैसे पता चला, लेकिन मेरे दिमाग में यह स्पष्ट था कि अगर मैं प्रेम को उसकी अपनी शर्तों पर आने देती तो मैं कभी भी वाही व्यक्ति नहीं बनी रहती। इसलिए, मैंने एक लंबी सांस ली, जंजीरों को खोला और बड़ी सावधानी से दरवाजा अंदर खींचा।
प्रेम ने प्रवेश किया।
जैसे ही उसके पैर दहलीज को पार कर गए, मेरी कोठरी नरम रोशनी में डूबी हुई थी, हालांकि उसके पास कोई लालटेन नहीं थी। रोशनी ने मेरे कमरे के सबसे दूर के कोने को भी उजागर कर दिया, और कुछ भी अनदेखी नहीं छोड़ी। लज्जित होकर, मैंने अपने फटे-पुराने और उधड़े रूप और अस्त-व्यस्त कमरे के लिए क्षमा माँगना शुरू कर दिया, लेकिन उसने कोमलता से अपना हाथ मेरे कंधे पर रख दिया और मुझे मेरी चिंताओं से मुक्त कर दिया। फिर, वह चुपचाप मुझे मेरी कुर्सी पर ले गया और मैं बैठ गयी।
प्रेम ने कोई बात नहीं कही, फिर भी उसके शब्दों ने मेरे कान भर दिए और मेरी बुद्धि को निर्देश दिया। पिछले दिन के विपरीत, बाहरी मौन ने अब मुझे सभी विकर्षणों से मुक्त कर दिया, जिससे मुझे पूरी तरह से उसकी उपस्थिति में आराम करने की अनुमति मिली। अपनी योजनाओं से अनासक्त और शक्ति विहीन, मैंने प्रेम के प्रति संवेदनशील होने की सुरक्षा और शांति की खोज की। उन्होंने कोई दिखावा नहीं किया और न ही किसी को स्वीकार किया। प्रेम ने मुझे बस अपने आलिंगन में लपेट लिया और जो कुछ पहले था वह सब कुछ टूटकर ख़तम हो गया।
जब प्रेम ने प्रवेश किया था तो उसके हाथ खाली दिखाई दे रहे थे, लेकिन अदृश्य संसाधनों से उसने मेज पर रोटी और दाखरस को रख दिया। प्रेम ने रोटी और दाखरस पर आशीर्वाद दिया और कहा, “लो और खाओ।”
ऐसे बेवक्त खाने का अभ्यस्त न होने के बावजूद, मैं अजीब तरह से भोजन के प्रति आकर्षित हो गयी। अंदर ही अंदर, मैंने ऐसी भूख का अनुभव किया जैसा पहले कभी नहीं हुआ था। यह इच्छा मेरे भीतर गहराई तक प्रवेश कर गई। इसलिए मैंने वह रोटी खाई और उस दाखरस को पिया। मीठी रोटी और मखमली शराब ने भूख को तृप्त किया, फिर भी मुझे एक नई प्यास का अनुभव हुआ, एक ऐसी प्यास जिसे कोई भी सांसारिक उपचार बुझा नहीं सकता था।
मैं कभी नहीं चाहती थी कि प्रेम फिर से मुझसे विदा ले, इसलिए मैंने अपना दरवाजा खुला रखने और रास्ता खाली रखने का फैसला किया।
सुलेमान की तरह मैंने भी विनती की, “मुझे मोहर की तरह अपने हृदय पर लगा लो।”
प्रेम मुस्कुराया, क्योंकि वह पहले से ही अपने ह्रदय पर मुझे लगा चुका था।
'जब मैं अपने घर की सघन सफाई की प्रक्रिया और परिणामों के बारे में सोचती हूँ तो लगता है कि इस से बहुत अच्छा और संतोषजनक परिणाम निकलता है। हफ्तों तक, और कभी-कभी महीनों तक, सफाई की मेरी कोशिशों के दृश्यमान फल का आनंद मेरा पूरा परिवार अनुभव करता हैं। जब पूरे घर की सघन सफाई की इच्छा होती है, तो एक हिस्सा निपट जाने की संतुष्टि अक्सर घर के अन्य हिस्सों पर ध्यान केंद्रित करने की इच्छा जागृत करती है, जिन पर उतना ही ध्यान देने की आवश्यकता होती है।
इस तरह की सफाई अक्सर अनावश्यक वस्तुओं से मुक्त होने के लिए मजबूर करती है और कार उन चीजों के बक्से से लद जाती है जो आखिरकार किफायती दुकान पहुँच जाती हैं। एक दोपहर एक कार लोड के साथ किफायती दुकान की ओर बढ़ते हुए, मैं ने महसूस किया कि मैं ने ही उन बक्सों में पड़ी अधिकांश चीजें खरीदीं थीं। हालाँकि मुझे खरीदारी के समय इसका एहसास नहीं हुआ था, लेकिन मैंने ही खरीदारी करके अपने जीवन और घर को उन बोझिल चीजों से अस्त-व्यस्त करने का काम किया था। इसी तरह, यह विचार मुझ में आया कि यही दुविधा मेरे व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन में भी आ गई है। इतने सालों में मैंने अपने शेड्यूल को इतने सारे “दैनिक कार्यसूची” से भर दिया था कि मैंने अपने जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया था। उस विचार ने मुझे जागरूक किया कि मुझे कुछ बदलाव करने की जरूरत है।
मेरा प्याला लबालब भर के बह निकला
विवाहित जीवन तब शुरू हुआ जब मेरी उम्र कम थी और मैं ऊर्जा से भरपूर थी। ईश्वर ने हमें जल्दी ही संतान देकर अनुग्रहीत किया। हमने बच्चों के साथ आने वाली सभी जरूरतों और कार्य गतिविधियों को अपनाया। इस तरह मैं एक व्यस्ततम पत्नी और माँ बनी। मेरा प्याला न केवल लबालब भरा हुआ था… वह बह निकल रहा था। हालाँकि, मेरा प्याला जितना भरा हुआ लग रहा था, मेरे भीतर उतना ही एक बढ़ता हुआ खालीपन विकसित हो गया।
जीवन अस्त-व्यस्त और अव्यस्थित जैसा महसूस हुआ, लेकिन मेरे पास यह पता लगाने का समय नहीं था कि मेरी आत्मा को बेचैन करने वाली वह कौन सी बात है। परमेश्वर ने मेरे हृदय में एक बढ़ती हुई इच्छा को रखा था कि मैं उसके साथ घनिष्ठ संबंध विकसित करूँ। मैं परमेश्वर के बारे में कई टूटी-फूटी या खंडित बातें जानती थी, लेकिन मुझे उसकी पूरी कहानी या उस कहानी में मेरा अपना स्थान समझ में नहीं आया। मेरे पास ईश्वर के लिए बहुत कम समय था, गुणवत्तापूर्ण समय की तो बात ही छोड़िए।
धीमा प्रभाव
मुझे याद आ रही है कि पंद्रह साल बीतने और चार बच्चों को जन्म देने के बाद, एक सुबह मैं अत्यधिक थकावट महसूस कर रही थी, ऐसी थकावट की भावना जो मेरे अन्दर काफी दिनों से उभर रही थी। यह मामूली थकान से कहीं अधिक था। जीवन की गति निर्मित हुई, तेज हुई और साल-दर-साल बढ़ती गई, जिसने अंततः मेरे मन, शरीर और आत्मा को खाली कर दिया। मैं आखिरकार हताशा में ईश्वर के पास पहुंची। मैं प्रभु के सम्मुख चिल्लायी, “प्रभु… मेरी गति धीमी कर दे! मैं सब कुछ नहीं कर सकती और मैं निश्चित रूप से इसे इस रफ़्तार से नहीं चला पाती। तू कहां है? मुझे पता है कि तू वहाँ है। मुझे तेरी ज़रूरत है!”
मैंने सुना है कि आप जिस चीज के लिए प्रार्थना करते हैं, उससे सावधान रहें, क्योंकि हो सकता है कि आपको वह मिल जाए। खैर, परमेश्वर धैर्यपूर्वक और दयापूर्वक मेरी पुकार के लिए लंबे समय से प्रतीक्षा कर रहा था। मेरी हताशभरी प्रार्थना के बाद, कुछ व्यस्त महीनों के भीतर ही, मुझे एक जहरीली मकड़ी ने काट लिया, जिस कारण मैं विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं के गर्त्त की ओर धकेल दी गयी। सारी गतिविधियाँ सिर्फ धीमी ही नहीं, बल्कि पूरी तरह से रुक गईं। मैं बेहद कमजोर और दर्द से पीड़ित होकर बिस्तर पर पडी हुई थी। एक डॉक्टर के बाद दूसरा डॉक्टर, जांच के बाद जांच, दिन-ब-दिन… मैं धीरे-धीरे बीमारी के निचले पांवदान तक फिसलती और लुढ़कती गयी। आईने से जो कमजोर महिला मेरी ओर देख रही थी, वह एक अजनबी थी; मेरा एक खोल या ढांचा। “प्रभु, मेरी मदद कर,” मैं रोयी।
संजोकर रखने लायक दोस्ती
काम करने की ऊर्जा बिलकुल नहीं रह गई थी, इसलिए मेरे दिन बहुत लम्बे, उबाऊ और बोरियत से भरपूर थे। एक दोपहर को, मेरे बिस्तर के बगल की तिपाई पर धूल भरी बाइबल ने मेरा ध्यान आकर्षित किया। कुछ दिलासा पाने की उम्मीद में, कुछ प्रेरक शब्द की खोज में, मैंने बाइबिल के सुनहरे पन्ने खोले। उसके बाद दिन-ब-दिन, वह पुस्तक एक स्वागत योग्य और क़ीमती मित्र बन गई। हालाँकि, जब मैंने यह समझने की कोशिश की कि यह ईश्वर कौन है, तो मुझे अपने दिमाग में उत्तर से ज्यादा प्रश्न मिले। जो कुछ काम उसने किया था, वैसा काम उसने क्यों किया? अलग अलग घटनाएं एक दूसरे के साथ कैसे संबंधित हैं? मैं, इस बिस्तर पर लेटी लेटी सोचने लगी कि उसकी कहानी में मेरा औचित्य कहाँ और कैसे हो सकता है? वह अब कहाँ है? क्या वह मुझे सुनता है? मेरे प्रश्न पूछने से पहले ही परमेश्वर मेरे जीवन में सही लोगों को बैठाने का काम कर रहा था। मेरे लिए उसकी मदद शायद मार्ग में ही थी।
बीमार होने से कुछ महीने पहले, मैं ने प्रिसिला नाम की एक प्यारी सी बुजुर्ग महिला को मेरे बच्चों और मुझे पियानो सिखाने के काम पर रखा था। वह साप्ताहिक प्रशिक्षण के लिए हमारे घर आती थी। हालाँकि वह अभी भी मेरे बच्चों को पढ़ाने आती है, लेकिन मुझे अपना क्लास रद्द करना पड़ा, क्योंकि मैं बड़ी कमजोरी और थकान का अनुभव करती थी। जब प्रिसिला को पता चला कि मैं बहुत ज़्यादा बीमार हो गयी थी, तो उन्होंने अपने विश्वास को मेरे साथ साझा किया और मेरी चंगाई के लिए मेरे साथ प्रार्थना करने का प्रस्ताव रखा। उस पल हमारे बीच एक ऎसी दोस्ती चालू हो गयी जिसे मैं आज तक संजोकर रखती हूं।
ईश्वर के लिए कुछ
अगले हफ्ते, प्रिसिला ने मेरे स्वास्थ्य के बारे में पूछा। किसी शारीरिक सुधार नहीं दिखाई दे रहा था, लेकिन मैंने उन्हें बताया कि मैंने बाइबल पढ़ना शुरू कर दिया है और इससे मुझे सुकून मिल रहा है। हालाँकि, मैंने स्वीकार किया कि मुझे कुछ ऐसे अंश समझ में नहीं आए, जिसके कारण मुझे निराशा हो रही है। मुझे पता ही नहीं था कि हमारे पियानो प्रशिक्षक पवित्र ग्रन्थ की ज्ञानी थी। परमेश्वर और उसके वचन के लिए अपने प्रेम को समझाते हुए उनकी आँखें चमक उठीं। उन्होंने वादा किया कि वे अगले सप्ताह फिर लौटेंगी और हमारे पियानो क्लास के समय के बदले मेरे साथ बाइबल क्लास के लिए समय देंगी। परमेश्वर मेरे जीवन में प्रिसिला (जिसका अर्थ है प्रभु की प्रसन्नता) को लाया था और दो वर्षों से अधिक समय तक उन्होंने पवित्र ग्रन्थ के बारे में मेरे सवालों का जवाब बड़ी ख़ुशी से दिया। उन्होंने मेरे साथ प्रार्थना की और एक सार्थक प्रार्थना-जीवन विकसित करने में मेरी मदद की। प्रार्थना में समय देने के फलस्वरूप परमेश्वर के साथ मेरा एक सुंदर व्यक्तिगत संबंध पैदा हुआ। वह खोखली बेचैनी धीरे धीरे अदृश्य होने लगी।
अत्यधिक बीमार होने के बावजूद, मेरे मन में यह विचार आया कि मैं अपना ध्यान स्वयं से हटाकर ईश्वर के लिए कुछ करने का प्रयास करूँ। ईश्वर ने मुझे कई प्रतिभाएं दी हैं, लेकिन मेरी हालत ऐसी थी कि मेरे पास उसे देने के लिए बहुत कम बातें थीं। मैंने प्रार्थना की, “हे ईश्वर, मुझे लगता है कि मैं अभी भी बुनाई/कढ़ाई कर सकती हूं”। मुझे पता नहीं था कि मेरी बुनाई-कढाई की कला को ईश्वर किस तरह उपयोग कर सकता है, लेकिन मैंने ऐसी ही प्रार्थना की ।
अगले रविवार, चर्च जाकर मिस्सा बलिदान में भाग लेना बीमारी की हालत में मेरे लिए असंभव जैसा था, इसलिए स्थानीय कैथलिक चैनल पर मिस्सा कार्यक्रम खोजने की उम्मीद में मैंने टीवी ऑन किया। इसके बजाय, उसी क्षण, मेरे घर की गली के नीचे के एक चर्च से एक कार्यक्रम प्रसारित किया जा रहा था। मेरे कुछ दोस्त और पड़ोसी उस चर्च में शामिल हुआ करते थे, इसलिए मैंने सोचा कि क्या उनमें से कोई इस समय वहां मौजूद होगा? जैसे ही आराधना समाप्त हुई, एक महिला यह घोषणा करने के लिए खड़ी हुई कि वे “प्रार्थना शॉल (चादर) सेवा” नामक एक नयी सेवा शुरू करने जा रहे हैं और इसलिए कढाई और बुनाई करनेवालों की ज़रूरत है। आश्चर्य और ख़ुशी से मैं लगभग अपने बिस्तर से गिरनेवाली थी! ईश्वर ने मेरी प्रार्थना सुनी और वह मुझे उसकी सेवा में बुला रहा था। मैं उतनी ही तेजी से नीचे के तल्ले तक उतरकर गयी जितनी तेजी से मेरे कमजोर पैर मुझे ले जा सकते थे और मैंने अपनी एक मित्र को बुलाया जो उस चर्च में जाया करती थी। मैंने फौरन पूछा, “वह महिला कौन थी … और मैं उस सेवाकार्य से कैसे जुड़ सकती हूं?”
ईश्वर ने मुझे बुलाया
मेरे पास जो कुछ था, मैंने उसे भेंट किया और परमेश्वर ने मुझे बुलाहट दी कि मैं अपनी प्रतिभा का उपयोग उस के लिए करूँ। जब उस सेवाकार्य से सम्बंधित बैठक का आयोजन हुआ, तो प्रभु की कृपा से मुझे उस छोटे से सफेद चर्च तक पहुँचने की ताकत मिली और मैंने दूसरों के लिए प्रार्थना शॉल बनाने के करार पर हस्ताक्षर किया। बीमार, एकाकी, मरणासन्न लोगों और जिन्हें दिलासा की ज़रुरत थी उन्हें ऐसा शॉल दी जानी थी, ताकि उन्हें यह याद दिलाया जा सके कि दूसरे उनके लिए फ़िक्र कर रहे हैं और प्रार्थना कर रहे हैं। मैंने कई शॉल की कढाई की और जिसे प्रार्थना की आवश्यकता थी उनके लिए प्रार्थना भी की। उनकी समस्याएँ मेरी समस्याएँ बन गईं, और मैंने उनकी ज़रूरतों को अपनी ज़रूरतों से ज़्यादा महत्त्व दिया। दिलचस्प बात यह है कि इससे मेरी शारीरिक चंगाई की राह खुल गयी।
दिन प्रतिदिन, मेरा भौतिक और आध्यात्मिक जीवन मजबूत होता गया। कुछ ही वर्षों बाद मेरा परिवार न्यू इंग्लैंड के उस ग्रामीण शहर छोड़कर उत्तरी कैलिफोर्निया के एक कस्बे में नया घर लिया। नए स्थान पर, कुछ ही महीनों के भीतर, परमेश्वर ने हमारे नई पल्ली में प्रार्थना शॉल की सेवा शुरू करने के लिए अवसर प्रदान किया, जहां प्रभु ने मुझे याद दिलाया कि उसके लिए काम किया जाना बाकी है।
लूकस के सुसमाचार में (10:38-42) मरथा और मरियम की कहानी मुझे पसंद है, जहां येशु ने मरथा को यह समझने में मदद की कि उसे अपनी प्राथमिकताओं को पुनर्गठित करने की आवश्यकता है। प्रभु ने मरथा से कहा: “तुम बहुत सी बातों के विषय में चिंतित और व्यस्त हो, फिर भी एक ही बात आवश्यक है।” दूसरी ओर, उसकी बहन मरियम, बस “प्रभु के चरणों में बैठकर उसकी शिक्षा सुनती रही” और येशु कहते हैं कि “उसने सबसे उत्तम भाग चुन लिया है, वह उससे नहीं लिया जाएगा।” मुझे लगा कि परमेश्वर मुझे मरथा से मरियम में बदल रहा है।
मेरे स्वास्थ्य की पुनर्प्राप्ति का मार्ग लम्बा और कठिन रहा है। अभी भी मैं कठिन दौर से गुज़र रही हूँ, लेकिन ईश्वर मुझे भयंकर आध्यात्मिक और शारीरिक संकट से बेहतर स्वस्थ जीवन में लाया है। मुझे कई चीजें छोड़नी पड़ीं, जिन्हें मैं कभी महत्वपूर्ण चीज़ें समझ रही थी। मुझे अपने जीवन को गहराई से साफ करना था, अपना प्याला खाली करना था और परमेश्वर को उसे भरने देना था। स्तोत्र ग्रन्थ 46:11 में परमेश्वर हमें बताता है, “शांत हो और जान लो कि मैं ही ईश्वर हूं”। इसलिए अब, मैं एक शांत जीवन व्यतीत करती हूं, ताकि जिस कार्य में ईश्वर मेरी सेवा चाहता है, केवल वही कार्य चुनने के लिए मैं पवित्र आत्मा से विवेक की प्रार्थना कर सकूं। मेरा समय, प्रतिभा और खजाना उसी का है, और मैं अपने जीवन में प्रयास करती हूं कि मैं ईश्वर के साथ रहने केलिए समय और स्थान ढूंढूं, उसकी उपस्थिति को महसूस करूँ और उसकी आवाज सुनूँ। वे ही “आवश्यक बातें हैं।”
जब हम अपने घरों को साफ करते हैं और अच्छे परिणाम प्राप्त करते हैं, तो हम अन्य क्षेत्रों में सुधार करने के लिए प्रेरित होते हैं। यह अवधारणा हमारे आध्यात्मिक जीवन में उसी तरह काम कर सकती है। मेरे अनुभव ने मुझे सिखाया कि जितना अधिक समय मैं ईश्वर के साथ बिताती हूं और उन्हें अपने जीवन में आमंत्रित करती हूं, उतनी ही अधिक सकारात्मक बातें होती हैं। क्योंकि “हम जानते हैं कि जो लोग ईश्वर को प्यार करते हैं, और उसके विधान के अनुसार बुलाये गए हैं, ईश्वर उनके कल्याण लिये सभी बातों में उनकी सहायता करता है” (रोमी 8:28)
इसलिए आज मैं आपको प्रोत्साहित करती हूं कि आप अपने जीवन का एक ऐसा क्षेत्र चुनें जो प्रभु के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने में आप के लिए बाधा बन सकता है। प्रभु को वह क्षेत्र समर्पित करें और प्रभु में आपके विश्वास और उसके साथ संबंध को और गहरा बनाने के लिए उसे आमंत्रित करें।
संत अगस्तीन ने बड़ी सटीक और गहराई से कहा, “हे प्रभु, तू ने हमें अपने लिये बनाया है, और जब तक हमारे ह्रदय तुझ में विश्राम न करें, तब तक वे व्याकुल रहते हैं।”
'नासा के साथ चार अलग-अलग शटल मिशन पर गए डॉ. थॉमस डी. जोन्स के साथ एक विशेष साक्षात्कार। उन मिशनों में से एक पर, वे वास्तव में पवित्र यूखरिस्त को अपने साथ ले जाने में सक्षम थे!
हमें इस बारे में बताएं कि अंतरिक्ष में सितारों को और नीचे पृथ्वी को देखकर कैसा लगता था। येशु में आपका विश्वास इस अनुभव द्वारा कैसे प्रभावित हुआ ?
हर अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष में उड़ान भरने के अपने पेशेवर सपने को साकार करने की उम्मीद करता है, उसी तरह मुझे भी लगभग 30 वर्षों तक इंतजार करना पड़ा। बचपन में हवा में उड़ने का सपना देखा करता था तो मेरी पहली उड़ान से इसी बचपन के सपने का साकार हो गया था। हमारे गृह ग्रह पृथ्वी के आसपास के ब्रह्मांड के इस विशाल दृश्य को देखकर, मुझे यह सोचने का मौका मिला कि मैं वहां क्यों था। यह वास्तव में ब्रह्मांड की अविश्वसनीय सुंदरता को और हमारे गृह ग्रह को इसकी सभी प्यारी विविधता में देखने का एक ऐसा भावनात्मक अनुभव था, – वास्तव में दिल थामकर मैं ने इन अद्भुत दृश्यों को निहारा। शारीरिक रूप से वहाँ रहने का अवसर देने के लिए और ईश्वर की कृपा और उपस्थिति से अभिभूत होकर मैंने लगातार ईश्वर के प्रति अपना आभार प्रकट किया।
आप उन अंतरिक्ष यात्रियों में से एक के रूप में जाने जाते हैं जो पवित्र यूखरिस्त को अंतरिक्ष में लाने में सक्षम थे। हम सभी विश्वासियों के लिए इससे बड़ी प्रेरणा मिलती है। क्या आप वह पूरा अनुभव साझा कर सकते हैं?
यह निश्चित रूप से इसमें भाग लेने वाले हम सभी के लिए आश्चर्यजनक था। कोई भी व्यक्ति न अंतरिक्ष से अधिक दूर कहीं भी जा सकता है और न अपने आध्यात्मिक जीवन को भूल सकता है। विश्वास के कारण मैं पृथ्वी पर सफल था और उसी विश्वास से मैं अंतरिक्ष में सफल होने में मदद की उम्मीद कर रहा था। 1994 में मेरी पहली उड़ान एंडेवर नामक शटल में, दो अन्य कैथलिक अंतरिक्ष यात्री भी थे। जब हम 11 दिवसीय मिशन की तैयारी के लिए एकत्रित हुए, तो हमने इस बारे में बात की कि पवित्र यूखरिस्त को अपने साथ अंतरिक्ष में ले जाना कितना अद्भुत होगा। चूँकि उड़ान में हमारे पायलट, केविन चिल्टन, पवित्र भोज के एक असाधारण अनुष्ठाता थे, इसलिए हम अपने पादरी से परम पवित्र संस्कार को अपने साथ लाने की अनुमति प्राप्त करने में सफल हुए।
ग्यारह दिन की उड़ान के हर पल को बड़ी सूक्ष्मता से निर्धारित किया गया था, लेकिन लगभग सात दिनों के बाद जब हम अपने मिशन में सहज हो चुके थे, तब हमारे कैथलिक कमांडर, सिड गुटियरेज़ कम्युनियन सेवा के लिए इस व्यस्त शेड्यूल में दस मिनट का समय ढूँढने में कामयाब हुए। इसलिए, उस रविवार को (अंतरिक्ष में वह हमारा दूसरा रविवार था) हमने मिशन के सभी कामों से विराम लिया और कॉकपिट में अकेले दस मिनट उस ईश्वर के साथ समय बिताया जिसने यह सब संभव बनाया था, और हमने पवित्र परम प्रसाद को ग्रहण किया। वास्तव में, इसके द्वारा यह पुष्टि हो रही थी कि हमारे बीच उनकी उपस्थिति के बिना हम उस मुकाम तक कभी नहीं पहुंच सकते थे। हमारे विश्वास-जीवन को अंतरिक्ष में लाना और यह जानना कि प्रभु वहां, शारीरिक रूप से हमारे साथ है, यह वास्तव में संतोषजनक था।
क्या विज्ञान और आस्था को एक साथ लाना आप के लिए मुश्किल था? क्या आप विज्ञान और आस्था के बीच संबंध के बारे में विस्तार से बता सकते हैं?
अपने पेशेवर करियर के दौरान, मैंने कई ऐसे वैज्ञानिकों को जाना है जो आध्यात्मिक हैं, और उनकी अपनी आस्था की परम्पराएं हैं। यहीं उत्तरी वर्जीनिया में, मेरे अपने चर्च में कई कैथलिक वैज्ञानिकों और इंजीनियरों से मैं मिला हूं, जो मजबूत विश्वास के जीवन को जीते हैं। वे ईश्वर की सृष्टि में विश्वास करते हैं, और बाइबिल की प्रेरणा से ब्रह्मांड की समझ रखते हैं।
मुझे लगता है कि ज्यादातर लोगों के जीवन में कुछ आध्यात्मिक तत्व होते हैं। मैं ऐसे अंतरिक्ष यात्रियों को जानता हूं जो औपचारिक रूप से धार्मिक नहीं हैं, लेकिन वे सभी अंतरिक्ष यात्रा के आध्यात्मिक अनुभव से प्रभावित थे। इसलिए मैंने देखा है कि ब्रह्मांड और हमारे आस-पास की प्राकृतिक धरती और सृष्टि को समझने के तरीके के संदर्भ में अधिकांश लोग खुली और उदार समझ रखते हैं। सभी मनुष्यों की तरह वैज्ञानिक भी ब्रह्मांड की प्रकृति के बारे में उत्सुक हैं और इससे क्या सीख सकते हैं, इस बारे में बहुत ही उत्सुक हैं।
मेरे लिए, यह एक संकेत है कि विज्ञान और अध्यात्म साथ-साथ चलते हैं। प्रकृति कैसे कार्य करती है, कैसे ब्रह्मांड को एक साथ रखा गया है और इसे कैसे बनाया गया है, इन सब पर तथा प्रकृति के प्रति हमारी जिज्ञासा और रुचि हमें दी गई थी, क्योंकि हम ईश्वर के स्वरूप और प्रतिछाया में बनाए गए हैं। यह जिज्ञासा ईश्वर के व्यक्तित्व का हिस्सा है जो हमें प्रदान किया गया है। इसलिए मुझे लगता है कि प्राकृतिक दुनिया के बारे में सच्चाई की यह खोज मनुष्य के रूप में हमारी सहज प्रकृति का एक हिस्सा है। मेरा मानना है कि ज्ञान की खोज एक ऐसी चीज है जो ईश्वर को बहुत आनंद देती है – ईश्वर ने ब्रह्मांड को किस प्रकार एक साथ रखा, इस रहस्य की तलाश में उसकी सृष्टि, विशेषकर मानव, लगा रहता है तो ईश्वर का आनंद और बढ़ता होगा। ध्यान रहे, वह इसे गुप्त रखने या भेद के रूप में रखने की कोशिश नहीं कर रहा है। वह सिर्फ यह चाहता है कि हम अपने प्रयासों, सरलता और जिज्ञासा के माध्यम से इसका अनावरण करें। तो, मेरे लिए, विज्ञान, प्रकृति और अध्यात्म के बीच बहुत अधिक संघर्ष नहीं है। मुझे लगता है कि उन्हें अलग करने की कोशिश कर रहे लोग मानव स्वभाव का आधा हिस्सा बौद्धिक या तर्कसंगत हिस्से में और दूसरा आधा आध्यात्मिक हिस्से में विभाजित करने का प्रयास कर रहे हैं। बेशक, ऐसा नहीं किया जा सकता है। हर व्यक्ति ऐसा इंसान है जिसकी प्रकृति को अलग अलग नहीं किया जा सकता है।
अपने अंतरिक्ष अभियानों में आप कई मायनों में मानवीय उपलब्धि के निचोड़ या सार को पूरा कर रहे थे। वास्तव में कुछ महान कार्य करना, और वह भी परमेश्वर की सृष्टि की महिमा और प्रताप को इतनी अधिक विस्तार में सामना करना — परमेश्वर की उस महानता की तुलना में अपनी नगण्यता को पहचानते हुए भी इतना कुछ हासिल करना, यह कैसा अनुभव था?
मेरे लिए यह सब मेरे आखिरी मिशन पर निश्चित रूप ले रहा था। मैं अंतरिक्ष में स्पेस स्टेशन बनाने में मदद कर रहा था, डेस्टिनी नामक एक विज्ञान प्रयोगशाला स्थापित करने के लिए तीन स्पेस वॉक कर रहा था। अपने आखिरी स्पेसवॉक के अंत के करीब, मैं स्पेस स्टेशन के बिल्कुल सामने के छोर पर था। चूंकि मैं अपने निर्धारित शेड्यूल से आगे था, नासा के मिशन कंट्रोल ने मुझे वहां लगभग पांच मिनट तक घूमने की अनुमति दी। अपनी उँगलियों से स्पेस स्टेशन के सामने के हिस्से को पकड़ते हुए, मैं चारों ओर घूमने में सक्षम था ताकि मैं अपने आस-पास के अंतरिक्ष की विशालता को देख सकूं।
मेरे पैरों के 220 मील सीधे नीचे प्रशांत महासागर के गहरे नीले रंग में, मैंने पृथ्वी को देखा। मैं वहाँ तैर रहा था और ऊपर की ओर मेरे सिर के ऊपर एक हजार मील दूर, अंतहीन, काला आकाश और क्षितिज की ओर देख रहा था। मुझसे लगभग 100 फीट ऊपर, स्पेस स्टेशन अपने सौर पैनलों से परावर्तित सूर्य के प्रकाश के साथ सोने की तरह चमक रहा था, उस समय हम लोग चुपचाप दुनिया के फेरे में एक साथ मंडरा रहे थे। यह अद्भुत दृश्य इतना अविश्वसनीय रूप से सुंदर था कि मेरी आंखों में आंसू आ गए। मैं इस भावना से अभिभूत था, “यहाँ मैं हूँ, इस अंतरिक्ष स्टेशन पर एक उच्च प्रशिक्षित अंतरिक्ष यात्री, जो पृथ्वी के चारों ओर मंडरा रहा है, फिर भी मैं इस विशाल ब्रह्मांड की तुलना में सिर्फ एक अदना सा इंसान हूँ।“
ईश्वर ने मेरे लिए पर्दे को थोड़ा पीछे खींच लिया, जिससे मुझे व्यक्तिगत रूप से उस शानदार प्रतापपूर्ण और भव्य विशालता को देखने का मौका मिला। मैंने महसूस किया, “हां, तुम बहुत खास हो क्योंकि तुम्हें यह दृश्य देखने को मिल रहा है”, लेकिन उसी समय मुझे याद दिलाया गया कि हम सभी ईश्वर के द्वारा बनाए गए इस विशाल ब्रह्मांड में कितने महत्वहीन हैं। एक ही समय में अपने महत्व को और अपनी नगण्यता को अनुभव करना ईश्वर की ओर से एक विशेष उपहार था। मैंने रोमांचित होकर, मेरे साथ इस दृश्य को साझा करने के लिए, प्रभु को धन्यवाद दिया, तब सचमुच मेरी आंखों में आंसू भर आये। बहुत कम मनुष्यों के पास पृथ्वी को उस दृष्टिकोण से देखने का अनुभव और विशेषाधिकार मिला होगा, और यह सब प्रभु की कृपा से थी।
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इस समय दुनिया में बहुत भ्रम है… बहुत अँधेरा और पीड़ा है; लेकिन जब आप दुनिया को या तो अंतरिक्ष में उस अद्वितीय और अनुकूल प्रेक्षण स्थान से देखते हैं, या अब आपके जीवन की वर्तमान स्थिति में होकर देखते हैं, आपको किस तरह की आशा मिल रही है?
ईश्वर ने हमें बहुत जिज्ञासु दिमाग दिया है। मुझे लगता है कि यही बात मुझे सबसे अधिक प्रेरणा देती है। हमारे पास यह सहज जिज्ञासा है, और इसने हमें समस्या के समाधानकर्ता और खोजकर्ता बना दिया है। इसलिए, आज हम जिन सभी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, चाहे वह महामारी हो, या युद्ध का खतरा हो, या दुनिया भर में सात अरब लोगों को भोजन खिलाने की चुनौती हो, हमारे पास वह कौशल है जो हमें दिया गया है और उस कौशल का सदुपयोग करके इन समस्याओं को हल करने के लिए हम बुलाये गए हैं। यह एक विशाल ब्रह्मांड है, और यह संसाधनों से भरा हुआ है। यह हमें चुनौती देता है, लेकिन अगर हम अपने घर की दुनिया से परे सौर मंडल और ब्रह्मांड की ओर देखें, तो ऐसी बहुत सी चीजें हैं जिनका हम उपयोग कर सकते हैं।
चंद्रमा और आस-पास के क्षुद्रग्रहों पर उपलब्ध विशाल भौतिक संसाधन उन चीज़ों के पूरक हो सकते हैं जिन्हें हम पृथ्वी पर पाते हैं। सौर ऊर्जा की एक विशाल आपूर्ति है जिसे अंतरिक्ष से निकाला जा सकता है और दुनिया के लिए बीमित किया जा सकता है ताकि सभी को कामयाब होने के लिए आवश्यक ऊर्जा और बिजली की आपूर्ति करने में मदद मिल सके। हमारे पास अक्सर पृथ्वी से टकरानेवाले दुष्ट क्षुद्रग्रहों को दूर भगाने का कौशल है, और चूँकि हमारे पास अंतरिक्ष कौशल और हमारे ग्रह की रक्षा करने का एक तरीका विकसित करने के लिए दिमाग है, इसलिए हम इन सब के माध्यम से भयानक प्राकृतिक आपदाओं को रोक सकते हैं। इसलिए, यदि हम अपने द्वारा हासिल किए गए कौशल का उपयोग करते हैं, और खुद को इस कार्य में लगाते हैं, तो हमें डायनासोर के रास्ते पर जाने की ज़रूरत नहीं है ।
हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जो हमें इन समस्याओं को हल करने के लिए अपनी जिज्ञासा और बुद्धि का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करती है। इसलिए मैं बहुत आशावादी हूं कि अपने कौशल और हमारे द्वारा विकसित की जाने वाली तकनीक को लागू करके हम इन सभी चुनौतियों से आगे रह सकते हैं। उदाहरण केलिए, उस वैक्सीन को देखिये, जिसे हमने इस वर्ष ही विषाणु से लड़ने के लिए विकसित किया है। यह इस बात का प्रतीक है कि जब हम किसी चीज़ पर अपना दिमाग लगाते हैं, तब हम क्या क्या हासिल कर सकते हैं, चाहे वह किसी पुरुष को चंद्रमा पर रखने की बात हो या पहली महिला को मंगल ग्रह पर भेजने की बात हो। मुझे लगता है कि हम भविष्य के लिए भी अच्छी स्थिति में हैं।
'परिवर्त्तित होने की तैयारी करें क्योंकि किम ज़म्बर बताती हैं कि कैसे उन्होंने खुद को समलैंगिक जीवन शैली से मुक्त किया
मेरा जन्म और पालन-पोषण दक्षिणी कैलिफोर्निया में दो बड़े भाइयों के साथ एक धर्मनिष्ठ कैथलिक परिवार में हुआ था। मैं ईश्वर और उसके प्रेम को जानकर बड़ी हुई हूं। आठवीं कक्षा तक, मैं एक कैथलिक स्कूल में गयी, जहाँ मैं ईश्वर की कृपा से संरक्षण में थी, लेकिन मैं इसके खिलाफ लडती रही। मैं अन्य सभी लोगों की तरह बनना चाहती थी। मैं ने अपने माता-पिता के सामने बहुत सारी दलीलें दीं थीं कि वे मुझे कैथलिक स्कूल से निकालकर एक पब्लिक हाई स्कूल में स्थानांतरित कर दें। दुर्भाग्य से उन्होंने मेरी दलीलों पर ध्यान दिया। उस नए विद्यालय में मैंने लोगों के साथ बुरा व्यवहार किया, ताकि लोग मेरी ओर आकर्षित हो। लोगों का ध्यान खींचने और उनका आकर्षण पाने की मुझे लालसा थी। मुझे पता था कि प्रभु ने मुझे बड़ी चीजों के लिए और दूसरों की मदद करने के लिए सृष्ट किया है, लेकिन मैं ऊब गयी थी और मैं सिर्फ अपनी ज़रूरतों पर ही ध्यान देती थी।
अपराध बोध से ग्रसित
अपनी हाई स्कूल पढ़ाई के अंतिम वर्ष के दौरान, मुझे स्कूल में ही एक लड़की के प्रति आकर्षण महसूस हुआ। मैं अभी भी नहीं जानती कि वह इच्छा कहाँ से आई। मैंने अपने जीवन में किसी प्रकार के यौन शोषण का अनुभव नहीं किया था या पुरुषों के प्रति मैं ने कोई कटुता नहीं रखी। मैंने एक गुप्त और स्वार्थी तरीके से उस लड़की को एक रोमांटिक रिश्ते में लुभाने के लिए उसका पीछा करना शुरू कर दिया। एक रात, जब हम दोनों नशे में थीं, मैं उसके साथ जिस प्रकार के शारीरिक संबंध को चाह रही थी उसे प्राप्त करने में सफल रही। हमारे इस तरह जुड़ने से पहले, काश, कितना अच्छा होता, यदि कोई मुझे उस क्षण में रोकता और मुझे बताता कि इस तरह का रिश्ता मुझे कहां ले जाएगा।
मैं और अधिक सुख पाने के लिए भूखी थी, जैसे जब मैं ब्राउनी खाती हूं, तो मुझे और ब्राउनी चाहिए, भले ही यह मेरे लिए अच्छा नहीं है और मुझे अस्वस्थ कर देता है। लेकिन वह लडकी जानती थी कि हमने जो किया है उसमें कुछ गड़बड़ है, वह अपराध बोध से भरी हुई थी, और इसके बारे में बात भी नहीं करना चाहती थी। मुझे भी पता था कि यह गलत है, इसलिए मैंने लड़कों के साथ डेटिंग करके लड़कियों के साथ अपने संबंधों को छुपाया, इसलिए नहीं कि कलीसिया ने कहा कि यह गलत है, इसलिए भी नहीं कि मुझे इस बात की परवाह थी कि लोग क्या कहेंगे, बल्कि इसलिए कि मेरे भीतर एक शांत, छोटी आवाज मुझे सुनाने केलिए पुकार कर रो रही थी, “किम, मेरे पास तुम्हारे लिए बेहतर आनंद है।”
दु:ख की बात है कि मैंने उस आंतरिक आवाज़ को दबा दिया, अन्य स्त्रीयों और पैसे का पीछा करके मैं ने उस आवाज़ को बाहर निकाल दिया क्योंकि उन दिनों रियल एस्टेट में मेरा करियर खूब चल रहा था। सतह पर, ऐसा लग रहा था कि मैं अच्छा कर रही हूँ, बहुत पैसा कमा रही हूँ और बहुत से आकर्षक नवजवानों के साथ डेटिंग कर रही हूँ। लेकिन यह सब झूठ की बुनियाद पर खडा था। मैंने एक लड़की से लगभग दो साल तक प्रेम किया, लेकिन इस बात को कोई नहीं जानता था। मैं सभी से झूठ बोली। मैं कोई और व्यक्ति बन रही थी। अपनी प्रेमिका के साथ मैं एक प्रकार की व्यक्ति थी और अन्य लोगों के साथ मैं एक दूसरी प्रकार की व्यक्ति बन रही थी। जो कोई मेरे इर्दगिर्द थे, उन सब के साथ मैं गिरगिट की तरह रंग बदल रही थी।
एक मोड
मेरे लिए सबसे बड़ा आकर्षण महिलाओं के साथ शारीरिक संबंध नहीं था, बल्कि भावनात्मक अंतरंगता थी। वे मुझे समझ पा रहीं थीं; मैं भी उन्हें समझ रही थी। मैंने हमेशा लोगों की मदद करने की इच्छा महसूस की थी, खासकर अगर वे अपने अंदर कुछ तबाही या टूटन महसूस करती हो तो। मैं कभी नहीं जानती थी कि यह एक उपहार था। लेकिन शैतान आपके विशेष उपहार को अपने उद्देश्यों के लिए मोड़ना चाहता है क्योंकि किसी भी चीज़ की सृष्टि शैतान नहीं करता है।
वह हर चीज को तोड़ मरोड़ करता और विकृत करता है, विशेष रूप से ईश्वर की भलाई और उपहार को। महिलाओं के लिए ईश्वर ने मुझे जो स्नेह दिया, वह स्वस्थ दोस्ती बनाने, एक दूसरे का समर्थन करने के लिए इस्तेमाल किया जाना था। लेकिन शैतान ने उसे तब मरोड़ दिया जब मैंने सीमा लांघी और उस स्नेह को अनुचित शारीरिक रूप से व्यक्त किया। मैं जिस किसी भी रिश्ते में थी उस रिश्ते ने विकृत और अस्वस्थ रिश्ता का रूप ले लिया। हालाँकि वे सभी अद्भुत लोग थे और मैं कुछ महत्वपूर्ण तरीकों से उनकी मदद करने में सक्षम थी, जैसे कि मादक द्रव्यों की लत छुड़वाना, नशा का परित्याग कराना आदि। लेकिन सच्चाई यह है कि मैं उन्हें अन्य गहरे तरीकों से चोट पहुँचा रही थी।
मैं एक कैथलिक सलाहकार के पास गयी, उनके सम्मुख मेरी सब समस्याओं को बताया और उन्होंने पुष्टि की कि मैं समलैंगिक हूं। मैं इसे कभी स्वीकार नहीं कर पा रही थी, लेकिन उन्होंने मुझसे कहा कि मैं धर्मग्रन्थ को नहीं समझती। मेरे कानों को इसे सुनना अच्छा लगता था, लेकिन मुझे इससे कभी शांति नहीं मिली क्योंकि मुझे पता था कि यह सच नहीं था, हालाँकि मैंने इसे स्वीकार कर लिया क्योंकि इसका मतलब था कि मैं जो चाहूँ वह कर सकती थी।
धमाका भरा दिल
23 साल की उम्र में, मैं एक अच्छे ईसाई लड़के को प्रेम कर रही थी। मेरा दिल उसकी ओर और प्रभु के लिए उसके प्रेम के प्रति आकर्षित था, इसलिए जब उसने मुझसे कहा कि वह मुझसे प्यार करता है, तो मुझे खुशी होनी चाहिए थी। इसके बजाय, मुझे बहुत गुस्सा आया, क्योंकि मुझे पता था कि मेरे अंदर क्या चल रहा है और एक लड़की के साथ मेरा किस तरह का गुप्त सम्बन्ध है। एक पुरुष जो ईश्वर से इतना जुड़ा हुआ है, मुझसे प्यार कैसे कर सकता है? कोई व्यक्ति जो इतना आध्यात्मिक रूप से प्रेरित है, किसी ऐसे व्यक्ति से प्रेम कैसे कर सकता है, जो भौतिकता में इतनी डूबी हुई है? जब मैंने उससे सवाल किया, तो उसने बस इतना कहा, “मैं तुम्हारे दिल से प्यार करता हूँ, लेकिन अगर तुम अपने दिल को जानना चाहती हो, तो तुम्हें ईश्वर से कहना होगा कि वह तुम्हें अपने दिल की असलियत दिखा दे।”
मैं स्तब्ध रह गयी। मैं अपने कमरे में गयी और अपने दिल की गहराई से चिल्लायी, “हे ईश्वर, मुझे मेरा दिल दिखा दे”। मुझे उम्मीद नहीं थी कि ईश्वर तुरंत जवाब देगा, लेकिन मैंने महसूस किया कि मैं अपने जीवन के एक ऐसे दृश्य की ओर उठाई गई हूं, जिसे मैं पूरी तरह से भूल गयी थी। मैंने खुद को सातवीं कक्षा में पाया, अफ्रीका में अपने मिशन के बारे में बता रहे एक मिशनरी पुरोहित को सुन रही थी, और उन्हें सुनकर मैं मंत्रमुग्ध हो गयी थी। मैंने अपनी माँ का हाथ पकड़ा और उससे कहा, “मैं अफ्रीका जाना चाहती हूँ।” हालाँकि उसने मुझे याद दिलाया कि मुझे गंदगी तथा मक्खियों और असुविधाओं से कितनी नफरत थी। मैंने अपनी इच्छा नहीं छोडी, इसलिए बाद में उस मिशनरी से मिलने गईं। उन्होंने ध्यान से सुना, फिर मुझसे कहा, “अगर प्रभु तुम्हें कभी अफ्रीका में चाहता है, तो वह तुम्हें ले जायेगा, बस प्रार्थना करते रहो”। हालाँकि मुझे इसकी कोई याद नहीं थी, बाद में मेरी माँ ने इसकी पुष्टि की।
मुझे लगा कि मेरा दिल अंदर से फट रहा है। मैंने अपने प्रेमी युवक को फोन किया और घोषणा की, “मैं अफ्रीका जा रही हूँ!” प्रभु बोला और मैं अफ्रीका की ओर भागी। उसने मुझे दिखाया कि मैं किस लिए बनायी गयी थी। यह सारा जोश उंडेला जा सकता है और अन्य लोगों पर इस जोश का व्यापक प्रभाव डाला जा सकता है। आफ्रिका में मैंने उन बच्चों को देखा जिन्होंने अपने माता-पिता को खो दिया था, जिन्हें भोजन नहीं मिल रहा था। जब आप उस बच्चे को गले लगाते हैं, और आपको उस बच्चे से जूँ मिलती हैं या उनकी त्वचा के चकत्ते आपके शरीर में आ जाते हैं – तो वे वास्तव में उपहार हैं। इन बच्चों ने सचमुच मुझे बदल दिया और मेरा दिल खोल दिया।
प्रभु कहता है कि यदि तुम मुझे ढूंढ़ना चाहते हो, तो बेसहारों, विधवाओं, अनाथों, कंगालों, बंदियों में ढूंढो। मैं जीवित और धड़कते हुए दिल के साथ इथोपिया से लौट आयी। मैंने 200,000 डॉलर प्रति वर्ष की कमाई का अपना करियर त्याग दिया, अपना घर, अपनी कार और अपना सब कुछ बेच दिया। मैं उस व्यक्ति के साथ इथियोपिया वापस चली गयी जिसने इन सब के लिए मेरा दिल खोल दिया था। शादी करने से पहले, मैंने जो कुछ भी किया था उसे कबूल कर पाप स्वीकार किया और उसने कहा, “यदि तुम महिलाओं के साथ रहना चाहती हो तो तुम वही चुन सकती हो, लेकिन अगर तुम मेरे साथ रहना चाहती हो, तो मुझे चुनो” और मैंने उसे चुना।
सर्पिल गति से उतार
अपनी शादी की रात मैं अपने घुटनों पर बैठ गयी और बोली “प्रभु, मैं किसी महिला के साथ सम्बन्ध बनाकर इस आदमी को कभी धोखा नहीं दूंगी” और मैं ने अपनी पूरी समझदारी के साथ यह बात कही। जो मुझे समझ में नहीं आया वह यह था कि मेरे पास ऐसा करने की स्वयं की ताकत नहीं थी। मुझे अपने उद्धारकर्ता की सहायता की आवश्यकता थी। मैं उसके वचन में डूबी नहीं थी। मैं बस कुछ गतिविधियों से गुजर रही थी। अपने दांतों को ब्रश करते हुए अपनी प्रार्थना करने, या अपने आप को या अपने बच्चों को मिस्सा बलिदान ले जाने जैसी गतिविधियों के माध्यम से अच्छी आदतें विकसित करना ठीक है, क्योंकि आप अच्छी चीजों को विकसित कर रहे हैं, लेकिन यह सिर्फ एक शुरुआत है।
शादी के ठीक एक साल बाद, जब हम अफ्रीका से लौटे, तो मैंने अपने पति को धोखा दिया, एक विवाहित महिला के साथ मैंने सम्बन्ध बनाया। हम दोनों ने अपने पतियों को छोड़ दिया और तलाक ले लिया। इस कारण मेरे जीवन में तेजी से नीचे की ओर सर्पिल उतार शुरू हुआ। जब वह महिला बच्चा पैदा करना चाही, तो स्थिति बिगड़ने लगी। यहीं पर मैंने रेखा खींची, क्योंकि मुझे पता था कि एक बच्चे को एक पिता की जरूरत होती है और मैं ईश्वर की भूमिका नहीं निभाना चाहती थी, इसलिए हम दोनों अलग हो गयीं। अगले दो वर्षों तक, स्त्रियों के साथ मेरे कई संबंध रहे, लेकिन मैंने सभी के साथ अधिक टूटी हुई महसूस किया। मैं अपना दिल तोड़ रही थी और दूसरे लोगों के दिलों को भी तोड़ रही थी।
इन सब के दौरान, मेरे परिवार के लोगों ने मुझे प्यार दिया, लेकिन उन्होंने कभी भी मेरे गलत कामों को माफ नहीं किया। ईश्वर ने मुझे किस रूप में बनाया है और मुझे उच्च चीजों के लिए बुलाया है इस बात की उन लोगों ने हमेशा पुष्टि की। यह बुरी बात नहीं थी। यही मुझे चाहिए था। उन्होंने हमेशा मुझे याद दिलाया कि मैं और अधिक अच्छाइयों के लिए बनायी गयी थी। जब उन्होंने महसूस किया कि मेरी गर्ल फ्रेंड्स (प्रेमिकाओं) को पारिवारिक समारोहों में शामिल होने के लिए आमंत्रित करने से वे मेरी जीवनशैली की पुष्टि करेंगे, तो उन्होंने यह कहने का कठिन निर्णय लिया कि वे अब ऐसा और नहीं कर सकते। तब मुझे गुस्सा आया, मुझे सज़ा देने का आरोप मैंने उन पर लगाया, और कुछ समय के लिए मैं उनसे दूर रही, लेकिन वे ही थे जो अभी भी मेरे लिए थे चाहे कुछ भी हो जाए।
समर्पण की शक्ति
जब मेरी नवीनतम प्रेमिका ने मुझे धोखा दिया और मैंने अपने आपको सबसे निचले स्तर पर महसूस किया, तो मैं आँसू बहाती हुई ईश्वर के पास वापस आ गयी और इस तरह प्रार्थना कर रही थी, “हे प्रभु, मैं आत्मसमर्पण करती हूं। मुझे विश्वास है कि तू ही ईश्वर है और मैं नहीं। यदि तू मुझे दिखाता है कि तेरे पास मेरे लिए मुझ से ज़्यादा अच्छी योजनाएँ हैं, तो मैं अपने शेष दिनों में तेरी सेवा करूँगी।”
उस रात को, मेरे दोस्त डैनियल मुझे एक अफ्रीकी उपदेशक की प्रार्थना सभा में ले गया, लेकिन जब मैंने देखा कि पियानोवादक कितना सुंदर और आकर्षक था, तो मुझे प्रलोभन से बचने के लिए अपनी आँखें ढँकनी पड़ीं क्योंकि मैं ईश्वर के अलावा और कुछ नहीं देखना चाहती थी। जब उस उपदेशक ने लोगों को प्रार्थना के लिए बुलाया, तो मैं अपने दोस्तों के साथ वेदी तक पहुँच गयी, लेकिन मैं ने अपनी आँखें कसकर बंद कर लीं। जैसे ही हम पंक्ति में सबसे आगे पहुँच गए, मैं दंग रह गयी, क्योंकि उपदेशक डैनियल को फटकार रहे थे मानो वे उसके सभी दोषों को जानते हो। मैंने कभी भविष्यवाणी का अनुभव नहीं किया था और मुझे इस बात का डर था कि उपदेशक मेरे बारे में क्या कहेंगे और सब लोगों को क्या सुनायेंगे।
अगले ही पल, उपदेशक ने मेरे जीवन पर येशु मसीह के नाम से विजय की घोषणा करनी शुरू कर दी। उन्होंने घोषणा की, “आपने अपना जीवन उन्हें समर्पित कर दिया है और अंत में आपने सब कुछ त्याग दिया है। आप हर बात में प्रभु के लिए जियेंगी।” उन्होंने उन वचनों को दुहराया जिन वचनों के द्वारा मैंने अपना समर्पण करते हुए परमेश्वर को पुकारा था, और जो मैंने पुनर्निर्देशन की भीख माँगती हुई उनसे कहा था। मैं जानती थी कि यह सर्वशक्तिमान परमेश्वर उस उपदेशक के माध्यम से मुझसे बात कर रहा था।
इन सभी वर्षों में मैं ईश्वर की कृपा में टिकी हूं और मेरा आध्यात्मिक जीवन पूरी तरह से बदल गया है। स्वतंत्रता में चलने की कुंजी येशु के साथ व्यक्तिगत संबंध रखने से है। दैनिक मिस्सा बलिदान के माध्यम से परम प्रसाद के पवित्र संस्कार द्वारा येशु के साथ गहरी घनिष्ठता, पवित्र धर्मग्रन्थ के साथ प्रतिदिन का समय देना, बार-बार पाप स्वीकार करना, आराधना करना, स्तुति और महिमा के गीत-संगीत बजाना, कैथलिक सम्मेलनों में जाना और ख्रीस्तीय समुदाय में शामिल रहना आदि सभी बातों ने मुझे मसीह के साथ चलने में मदद की है। जैसे-जैसे मैंने इन सब को अधिक से अधिक करना शुरू किया, मैंने देखा कि मैं अन्य पुरानी बुरी आदतों से छुटकारा पा रही हूँ। इस से मुझे पवित्र आत्मा में बढ़ने और मेरे शरीर की वासनाओं से बाहर निकलने में मदद मिली। जब मैं येशु के साथ व्यक्तिगत संबंधों में विकसित हुई, तब मेरे लिए सब कुछ ठीक और व्यवस्थित हो गया। निश्चय ही वह हम सब को अन्धकार से निकालकर अपनी सिद्ध ज्योति की ओर ले जाता है!
मुझे आशा है कि जिसे परमेश्वर के सत्य में खड़े होने के लिए प्रोत्साहन की आवश्यकता है, उसे मेरी तबाही वाली परिस्थिति के बारे में जानकार आशा प्राप्त हो सकती है। क्योंकि परमेश्वर ने जो कहा है वह हमेशा हमारे अपने विचार से बेहतर होगा। ईश्वर को ईश्वर बने रहने दो। जब वह पुरुषों और महिलाओं और संबंधों के लिए अपनी योजनाओं के बारे में बात करता है, तो उसकी बात सुनें। प्रेम क्या है यह उसने हमें क्रूस द्वारा दिखाया। प्रेम बलिदान है। मेरा जीवन मेरा अपना नहीं है। वह हर दिन मुझे उसके साथ एक गहरे रिश्ते के लिए बुला रहा है।
'जब एक प्रोटेस्टेंट पादरी को कैथलिक कलीसिया में एक बड़ा खजाना मिल जाता है, तब क्या होता है?
कैथलिक बनना मेरे लिए आसान नहीं था। कई धर्मान्तरित लोगों की तरह, मेरे पास भी बहुत से पूर्वाग्रह और बाधायें थीं । मेरी सबसे बड़ी बाधा यह थी कि मेरा विश्वास अर्थात कलीसिया के प्रति मेरा दृष्टिकोण ही मेरा करियर था। 20 साल की उम्र में, मैंने एक युवा पादरी के रूप में पूर्णकालीन सेवकाई में प्रवेश किया। सेवकाई में अपने 22 साल के करियर के दौरान, मैंने कई भूमिकाएँ निभाई हैं- वरिष्ठ पादरी, शिक्षक पादरी, अराधना का अगुआ, मिशन समन्वयक आदि।
मेरा विश्वास ही मेरा जीवन था, और कैथलिक बनने के लिए इन सारी बातों को पीछे छोड़ने के विचार के साथ मैं जूझता रहा। मैंने कभी नहीं सोचा था कि कभी ऐसा होगा। मेरे परिवार में कोई कैथलिक नहीं था। यूनाइटेड मेथडिस्ट चर्च के पादरी के बेटे के रूप में बढ़ते हुए, कैथलिक विश्वास से मेरा एकमात्र संपर्क कैथलिक विश्वास से नफरत करने वाले लोगों से था। शादी से पूर्व, जब मैं अपनी पत्नी से मिला, तो मैंने उससे पूछा कि क्या वह चर्च जाती है, तो उसने उत्तर दिया, “मैं एक कैथलिक हूं, लेकिन मैं चर्च नहीं जाती”; इसलिए मैं उसे अपने चर्च ले गया और उसे बहुत अच्छा लगा! हमारी शादी युनाइटेड मेथडिस्ट चर्च में हुई थी, जहाँ मैंने काम किया था; और हमने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। जब तक…
मैं अनजाने में पकड़ा गया
वास्तव में अपने विश्वास को जीने वाले एक कैथलिक व्यक्ति के साथ मेरी पहली मुलाक़ात का अनुभव, जीवन बदलने वाला साबित हुआ। उनका नाम डेविन शैड है। वे ग्राफिक डिजाइनर थे। मैंने उन्हें हमारे युवा सेवकाई के लिए एक लोगो बनाने का काम दिया था, जिस के कारण विश्वास, कलीसिया और अंततः उनके कैथलिक विश्वास के बारे में कुछ दिलचस्प बातचीत हुई। उनके बारे में मेरी पहली धारणा यह थी कि वह येशु से प्यार करते थे और एक जीवंत विश्वास रखते थे। यह मुझे बहुत अजीब लग रहा था, क्योंकि जब मैं उनके भोजन कक्ष में बैठा था, तो मैं उनके घर में मौजूद चिह्नों, चित्रों और अन्य “कैथलिक दिखने वाले” सामानों से बड़े पशोपेश में था। ऐसा कौन करता है? मुझे इस विषय पर डेविन पर दबाव बनाना पड़ा। मैंने कभी किसी कैथलिक को येशु के बारे में उस तरह से बात करते नहीं सुना था जैसा डेविन ने किया था। मैंने यह मान लिया था कि उन्होंने बाइबिल ठीक ढंग से नहीं पढी थी, और यदि पढ़ते तो वे समझ लेते कि उनका कैथलिक विश्वास पवित्र ग्रन्थ की शिक्षा से बिलकुल मेल नहीं खाता है। मैं उनके साथ कुछ वचन साझा करने और सुसमाचार की व्याख्या करने के विचार पर मौके के इंतज़ार में था। मुझे यकीन था कि मेरी ओर से उन्हें वचन सुनाने के कुछ मिनटों के बाद, वे एक “असली” ईसाई बनने, पापी की पश्चाताप की प्रार्थना करने और मेरी तरह प्रोटेस्टेंट बनने के लिए तैयार होंगे। मैंने उनसे पूछा, “डेविन, आप को मुक्ति कब मिली थी?” मैं देखना चाहता था कि एक कैथलिक इस प्रश्न का उत्तर कैसे देगा। मुझे ज्यादा उम्मीद नहीं थी। लेकिन मैं बहुत गलत था।
डेविन के पास न केवल उस प्रश्न का उत्तर था, बल्कि मेरे लिए उनके अपने भी कुछ प्रश्न थे। ऐसे प्रश्न, जिनके लिए मैं बिल्कुल तैयार नहीं था। उदाहरण के लिए, “कीथ, आपकी बाइबल कहाँ से आई?” “इतने सारे प्रोटेस्टेंट संप्रदाय क्यों हैं?” “जब प्रोटेस्टेंट संप्रदायों के बीच इतने सारे अंतर हैं तो हम कैसे जानते हैं कि ईसाई धर्म की सच्चाई को सही ढंग से कौन सिखा रहा है?” और भी बहुत कुछ प्रश्न!
मैंने इनमें से किसी भी विचार को पहले कभी नहीं सुना था, लेकिन हालांकि मैं उत्सुक था, मैं अपने दिमाग को इस संभावना के इर्द–गिर्द नहीं टिका सकता था कि कैथलिक कलीसिया येशु मसीह द्वारा स्थापित एकमात्र सच्ची कलीसिया हो सकती है। यहाँ तक कि ‘येशु मसीह द्वारा स्थापित कोई एक सच्ची कलीसिया थी’, यह भी मेरे लिए एक नया विचार था। मेरा हमेशा से मानना था कि पवित्र ग्रन्थ में किसी व्यक्ति की आस्था और विश्वास ही मायने रखता है, न कि किसी संस्था से कोई संबंध। डेविन मुझे यह देखने में मदद कर रहे थे कि बाइबल स्वयं दिखाती है कि येशु ने न केवल एक कलीसिया की स्थापना की, बल्कि प्रेरितों के अधिकार के माध्यम से वह कलीसिया आज भी अस्तित्व में है क्योंकि प्रेरितों ने विश्वास को आगामी पीढ़ियों को सौंप दिया था। हालाँकि, यह ऐसा कुछ नहीं था जिसे मैं आसानी से स्वीकार कर सकता था।
जब ईश्वर ने मुझे बुलाया
डेविन और मेरे बीच इन वर्षों में बातचीत के कई दौर हुए। हम एक साथ रोम और मेडजुगोरे की तीर्थयात्रा पर निकले। हम जोश से बहस करते रहे। इस दौरान मेरा चर्च में सेवा कार्य का विस्तार हो रहा था और मेरा परिवार भी बढ़ रहा था। मुझे अपने चर्च में अपनी जिम्मेदारियां पसंद थीं। ईश्वर इन कार्यों को आगे बढ़ा रहे थे और सब कुछ अच्छा चल रहा था । हालाँकि ऐसी बहुत सी चीजें थीं जो डेविन ने मुझे दिखाई थीं जो मेरी प्रोटेस्टेंट सोच को चुनौती देती थीं, फिर भी मैं धर्म परिवर्तन के विचार को गंभीरता से लेने से बहुत डरता था। हालाँकि, विशेष रूप से एक रात को ईश्वर ने मुझे बाहर बुलाया।
मैं एक चर्च शिविर में था और मेरा एक मित्र प्रभुभोज के अनुष्ठान में युवाओं की अगुवाई कर रहा था। यह मेरे लिए कोई नई बात नहीं थी, लेकिन जब वह उस अनुष्ठान में आगे बढ़ रहा था और रोटी और रस को पकड़कर कह रहा था “यह येशु का प्रतिनिधित्व करता है“, मुझे पता था कि येशु ने ऐसा नहीं कहा था, और मुझे यह भी पता था कि यह वह नहीं था जिसे ख्रीस्तीय कलीसिया 1500 वर्षों तक विश्वास करती थी। यह ऐसा था मानो ईश्वर मुझे बुला रहा था और मुझ से कह रहा था “घर आओ और मैं तुम्हें और दिखाऊंगा …” मैं रोता रहा और कमरे से निकल गया। मैंने डेविन को फोन किया और उसके सामने कबूल किया कि मैं कैथलिक बनने के लिए अपने अन्दर बुलाहट महसूस कर रहा हूँ। मुझे डर था कि वे इस बात को लेकर मुझे रगड़ देगा कि वे कितने सही थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने बस इतना कहा कि मैं आप की मदद करने के लिए तैयार हूँ।
काश यह मेरी कहानी का वह हिस्सा होता जहां मैं परिवर्तित हुआ, लेकिन ऐसा नहीं है। मैं बहुत डर गया था। धर्म परिवर्त्तन को मैं टालता रहा, क्योंकि मैं निर्णय नहीं ले पा रहा था कि यह कैसे संभव हो पायेगा। मैं कैसे अपने लिए कोई नौकरी ढूंढूंगा? मेरा परिवार क्या सोचेगा? मैं उन्हें कैसे समझा पाऊंगा? मुझे जो दिशा निर्देश मिल रहा था, उस पर ये सभी सवाल हावी हो गये और मैंने कई सालों तक कैथलिक में धर्मांतरण वाली सोच को अपने दिमाग से हटा लिया। और यही मेरे जीवन की सबसे बड़ी ग्लानियों में से एक है।
दस से अधिक वर्षों के बाद, अंततः परमेश्वर का बुलावा कुछ ऐसा दस्तक दे रहा था जिसका मैं अब और अनदेखा नहीं कर पा रहा था। मैं कुछ वर्षों से यूनाइटेड मेथडिस्ट चर्च में “युवाओं और मिशन का पादरी” रहा था, जब ग्रेग नाम के मेरे एक अच्छे दोस्त ने मुझे और मेरी पत्नी को “अपारिशन हिल (दर्शन पहाड़)” की फिल्म प्रदर्शनी में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया। यह फिल्म एक वृत्तचित्र था जिसमें सात अजनबियों द्वारा मेडजुगोरे की तीर्थयात्रा करने के बारे में था। मैंने मेडजुगोरे यात्रा के बारे में काफी समय से नहीं सोचा था, लेकिन जब ग्रेग ने फोन किया तो मैंने सोचा कि मेरा जाना बेहतर होगा, क्योंकि ग्रेग ही वह व्यक्ति था जो मूल रूप से मुझे बहुत वर्षों पहले उस यात्रा पर ले गया था। फिल्म ने मेरे दिमाग में बहुत सी चीजें वापस ला दीं और कई बार मेरी आँखों से आंसू बह आए। धन्य माँ मरियम ने मुझे स्पर्श करने के लिए इस फिल्म का स्पष्ट रूप से उपयोग किया था।
सबसे बुरा हिस्सा
मेरे अपने चर्च में एक तूफान जैसी परिस्थिति थी जिससे मैं जूझ रहा था। हालांकि मेरा स्थानीय चर्च बहुत अच्छा था, लेकिन हमारा यूनाइटेड मेथडिस्ट संप्रदाय बड़ी गड़बड़ी में फंसा था। मेरे लिए यह स्पष्ट हो गया था कि पवित्र ग्रन्थ की व्याख्या करने के लिए एक आधिकारिक आवाज की कमी थी, इसके अलावा हमारे सम्प्रदाय में अराजकता और फूट भी अपरिहार्य थी। युनाइटेड मेथडिस्ट चर्च एक मजबूत संप्रदाय था, लेकिन कुछ स्थानीय सांस्कृतिक परम्पराएं विवाह और पवित्र ग्रन्थ की बातों के विरुद्ध जा रही थीं। मैंने खुद को ऐसे कई लोगों के बीच में फंसा हुआ पाया जो चाहते थे कि चर्च वर्त्तमान समय के बहाव के साथ बहता रहे। इस सत्य से वे चिंतित नहीं थे कि विवाह और मानुषिक कामुकता जैसी बातों को पवित्र ग्रन्थ में स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। “पवित्र ग्रन्थ की विभिन्न व्याख्याओं में यह सिर्फ एक व्याख्या है“; “कलीसिया में पिछले सभी वर्षों में इसे गलत परिभाषित किया है और अब हम इसे ठीक कर देंगे“; “परमेश्वर नफरत नहीं करता, वह हर किसी से प्यार करता है, इसलिए आप किसी पर फैसला नहीं कर सकते;” ऐसे ऐसे कुछ बयान दिए जा रहे थे जिनके खिलाफ मैंने हमेशा अन्दर ही अन्दर संघर्ष किया था, यह जानते हुए कि वास्तव में किसी तरह के बाहरी ईश्वर–प्रदत्त अधिकार के बिना ऐसी गलत बातों के खिलाफ बोलने के लिए मेरा कोई आधार नहीं है। मेरी एक बहुत ही उदार पादरी मित्र के साथ एक बातचीत के दौरान, वह मुझसे बोली, “कीथ, यदि आप चर्च के अधिकार की सारी बातों पर विश्वास करते हैं, तो आप कैथलिक क्यों नहीं बनते?” यह बहुत ही बढ़िया सवाल था!
मैंने उस विचार पर फिर से मनन करना शुरू कर दिया था। ऐसा लग रहा था कि मैंने डेविन के साथ जिन बातों पर मनन-चिंतन किया और बहस की थी, वे सारी बातें अब सही ढंग से समझ में आ रही थीं। मैं किसी बिलकुल अलग जगह पर था। मैंने सीखा था कि ईश्वर की आवाज़ को न सुनना सबसे बुरा काम है। मुझे अभी भी कुछ आपत्तियाँ थीं। मेरे पास अभी भी विरोध और बहस के मुद्दे थे, लेकिन मुझे अपने जीवन में एक नई बुलाहट और एक नई उपस्थिति महसूस होने लगी थी। मुझे इन बातों पर निर्णय लेने में थोड़ा समय लगा, लेकिन यह सब मेरे लिए स्पष्ट हो गया जब मैं येशु के गर्भागमन पर्व पर एक उपदेश देने की तैयारी कर रहा था। (यह आगमन का काल था– इसलिए हम मरियम के बारे में प्रवचन में जिक्र कर सकते थे।) जैसे ही मैंने अपने कार्यालय में बैठकर इस उपदेश पर काम कर रहा था, मैं भावुकता में बह गया। जितना अधिक मैंने मरियम के बारे में सोचा, उतना ही मैं जानता था कि वह कितनी अद्भुत व्यक्ति थी, और पवित्र आत्मा से कितनी जुड़ी हुई थी, और वह अभी भी इसी तरह बनी हुई है। मुझे मरियम की उपस्थिति महसूस हुई। जब मैंने वह प्रवचन दिया, तो मैं पवित्र आत्मा को सक्रिय और गतिशील महसूस कर रहा था। मैंने बताया कि कैसे मरियम “नई हेवा” और “विधान की नयी मंजूषा” थी। मैंने अपने प्रवचन में इस बारे में बात की कि वह स्वर्गदूत, गाब्रियल द्वारा “प्रणाम, प्रभु की कृपापात्री” अभिवादन करने के लिए कितनी योग्य और अद्भुत व्यक्तित्व रही होगी। इस प्रवचन ने लोगों में काफी कौतूहल उत्पन्न किया।
एक व्यक्ति आंसुओं के साथ मेरे पास आया और कहा कि उसने पहले कभी ऐसा कुछ नहीं सुना था। इसके बारे में मैं और भी बहुत कुछ कह सकता हूँ, लेकिन मूल बात यह है: मेरी सैद्धांतिक आपत्तियों का समाधान तर्कों से नहीं हुआ, बल्कि मेरे दिल पर अधिकार जमाकर धन्य माता मरियम ने समाधान ढूंढ कर दिया। हालांकि, मेरे मन में अभी भी यह बड़ा सवाल था कि अगर मैं कैथलिक सम्प्रदाय में परिवर्तित हो गया, तो मेरा जीवन कैसा चलेगा। मेरे पिताजी ने एक बार मुझसे कहा था, “कीथ, कैथलिक बनना तो एक बात है, लेकिन तुम अपनी नौकरी को कैसे छोड़ पाओगे? कोई रास्ता निकालना पडेगा“। उनका मतलब था कि मुझे यह जानने की जरूरत है कि मैं अपने परिवार का भरण–पोषण कैसे करूंगा। मैं जीवन यापन के लिए क्या करूंगा? मेरी सेवकाई का क्या होगा?
आस्था का एक मज़बूत कदम
उन सवालों के जवाब कुछ समय के लिए मुझे प्राप्त नहीं हुए, लेकिन एक रात जब मैंने क्रूसित प्रभु की प्रतिमा के सामने प्रार्थना की, तब मैंने येशु से कहा, “प्रभु, मैं कैथलिक बनने के लिए तैयार हूं, लेकिन मुझे कोई मार्ग ढूँढने की जरूरत है।” येशु ने क्रूस पर से बड़ी स्पष्टता के साथ मुझ से बात की। “मैं ही मार्ग, सत्य और जीवन हूँ। तुम्हारे लिए मेरे द्वारा मार्ग बनाने की जरूरत नहीं है, तुम्हें बस मेरी जरूरत है“। मुझे पता था कि इसका क्या मतलब है। मैंने थोड़ी देर पहले मिस्सा बलिदान के दौरान आशीर्वाद प्राप्त किया था (क्योंकि मैं परम प्रसाद का संस्कार प्राप्त नहीं कर सका था)। येशु मुझे दिखा रहे थे कि वह न केवल परम प्रसाद में वास्तव में उपस्थित थे, बल्कि यह भी कि मेरी प्राथमिक आवश्यकता परमेश्वर के लिए चीजों को आसान या पूरी तरह से प्रकट करने की नहीं थी, बल्कि विश्वास का एक मज़बूत कदम उठाने की थी, जैसे मैंने पहले कभी नहीं लिया था। वह मुझे दिखा रहा था कि मुझे वास्तव में जिस चीज की जरूरत थी वह नियंत्रण या आश्वासन नहीं था। मुझे जो चाहिए था, वह येशु था।
मैं महसूस कर रहा था कि भले ही मैं इस दुनिया में अपना सब कुछ खो दूंगा, लेकिन मैं येशु को पा जाऊंगा तो जीत मेरी होगी! मुझे उस स्थान पर पहुंचना था जहां मुझे धर्मांतरण करने के लिए पूर्णता से काम करने की आवश्यकता नहीं थी। मुझे येशु के प्रति अपना सब कुछ बलिदान करने के लिए तैयार रहना था। एक बार जब मैं वह कदम उठाने में सक्षम हो गया, उसके बाद यह सब कुछ स्पष्ट हो गया। पीछे मुड़कर देखने का सवाल ही नहीं था। येशु ने कहा, “स्वर्ग का राज्य खेत में छिपे हुए खजाने के सदृश है, जिसे कोई मनुष्य पाता है और दुबारा छिपा देता है। तब वह उमंग से जाता और सब कुछ बेचकर उस खेत को खरीद लेता है।” (मत्ती 13:44)
इतने सालों के बाद मैं आखिरकार इस खेत को खरीदने के लिए तैयार हो गया था। मैं बहुत खुश हूं कि मैंने किया। कैथलिक बनने के बाद से, चीजें आसान नहीं रही हैं। मैंने दोस्त, पैसा, सुरक्षा, स्थिरता और बहुत कुछ खो दिया है। लेकिन मैंने जो कुछ भी हासिल किया है, वह जितना मैं कभी मांग सकता था, उससे कहीं अधिक मूल्यवान है। मैंने जो आशीर्वाद प्राप्त किया है, उसकी तुलना मेरे द्वारा किए गए त्याग के साथ नहीं की जा सकती है। परमेश्वर अपने वचन पर खरा उतरा है। मुझे पता है कि इस जीवन में चाहे कुछ भी हो जाए, मैं कभी भी कलीसिया और मेरा नया विश्वास नहीं छोड़ूंगा।
जब आप ईश्वर की पुकार को सुनकर उसका पालन करते हैं, तो इसका मतलब यह नहीं है कि जीवन आसान हो जाता है, बल्कि यह अधिक सार्थक हो जाता है। उसने मुझे जो अनुग्रह दिया है उसके लिए मैं बहुत आभारी हूं, और यह यात्रा मुझे यहां से कहां ले जाएगी, इसका मैं केवल सपना देख सकता हूं ।
'जब मुझे एहसास हुआ कि मैंने अपने बेटे के साथ वही किया है जो मेरी माँ ने मेरे साथ किया था…
मेरे आध्यात्मिक निदेर्शक ने मेरे लिए प्रार्थना करते हुए कहा, “तुम समारी स्त्री की तरह हो।”
उनकी बातों ने मुझे झकझोर दिया।
“मैं समारी स्त्री की तरह हूँ? क्या मतलब?” मैंने पूछ लिया।
उन्होंने सहमति में सिर हिलाया।
उनके शब्द मुझे चोट पहुंचा रहे थे, लेकिन उनकी भूरी आँखें करुणा की झील जैसी थीं। वे कोई साधारण पुरोहित नहीं थे। मैं उनसे वर्षों से मिलती आ रही थी और उनके द्वारा मुझे ईश्वर के कठिन और असाधारण अनुभव हुए थे। जब भी मैं उनसे मिली, उनके कार्यालय के बाहर का प्रतीक्षालय दुनिया के विभिन्न हिस्सों के लोगों से भरा हुआ था, जिन्होंने उनके बारे में सुना था और उपचार या मार्गदर्शन के लिए उनसे मिलने की प्रतीक्षा में बैठे थे। यह शांत, विनम्र और पवित्र व्यक्ति वर्षों से परमेश्वर का साधक था और मैं स्वयं अनगिनत लोगों को उनसे मिलने और परामर्श लेने के लिए लाई थी।
घर जाते समय, उन्होंने मेरी तुलना जो की थी, उस बात को लेकर मैं जूझती रही। समारी स्त्री? मेरे पांच पति नहीं थे और मैं जिस आदमी के साथ रह रही थी वह मेरा पति था। और फिर मेरे मन में यह विचार आया कि शायद मैं समारी स्त्री की तरह थी, क्योंकि मसीह से मिलने के बाद, वह नगर में दौड़कर सभी को यह बताने लगी कि उसकी मुलाकात मसीहा से हुई है। शायद उनका यही मतलब था।
मुझे कम ही पता था कि उनकी तुलना भविष्यवाणी होगी…
प्रतिशोध
वर्षों से, घर में संघर्ष और समस्याएं बढ़ गई और मैं चिकित्सा उपचार केलिए थेरपी लेने लगी। कैथलिक धर्म के बारे में मैं बहुत कुछ ज्ञान रखती थी, लेकिन मुझे आत्म-बोध की बहुत कमी थी। मुझे विश्वास था कि मैं पवित्र थी क्योंकि मैं एक धर्मनिष्ठ कैथलिक थी जो पवित्र संस्कारों का जीवन जीती थी और अपने समय और दूसरों का फ़िक्र करने में उदार थी। फिर भी पापस्वीकार के बाद पापस्वीकार में, मैं बार-बार उन्हीं पापों के बारे में बोलती रही। मेरे पापस्वीकार का अधिकांश समय मेरे सबसे करीबी लोगों के पापों पर और उन्हें कैसे बदलने की जरूरत के बारे केंद्रित था। यहां तक कि जब मैंने मिस्सा बलिदानों में उपदेशों को सुना, तो मैंने उन लोगों के बारे में सोचा जो उपस्थित नहीं थे, और सोचती रही कि जो मैं सुन रही थी उन लोगों को उसे सुनने की जरूरत थी। मुझे यकीन था कि मैं धर्मी हूं, और ईश्वर मेरे साथ है। ….
थेरेपी के कारण व्यक्तिगत अनावरण की यात्रा शुरू हुई। मैं एक कृपा की मंजिल के बजाय एक लज्जा की मंजिल में रह रही थी और मैंने अपने सबसे करीबी लोगों को चोट पहुंचाई थी और हमारे रिश्तों को नुकसान पहुंचायी थी। हर दिन बदलाव के अवसर लेकर आया, लेकिन यह आसान नहीं था।
एक दिन मैंने हाई स्कूल में पढ़ रहे बेटे से पूछा, जो अभी-अभी स्कूल से आया था और सीढ़ियों से ऊपर जा रहा था: “क्या तुम एक या दो घंटे मेरे लिए अपनी बहन की देखभाल कर सकते हो? मुझे अलग अलग घरों में जाने की जरूरत है”। उसने तीखे स्वर में कहा, “नहीं।”
मैंने इसकी अपेक्षा नहीं की थी, और इस कारण मेरा दिमाग बिलकुल गरम हो गया। मैं उसे उसकी जगह पर टिकाना चाहती थी और उस पर आरोप लगाना चाहती थी, ‘तुमने मुझसे इस तरह बात करने की हिम्मत कैसे की! तुम एक अपमानजनक और कृतघ्न बेटे हो। तुम पूरे सप्ताहांत अपने दोस्तों के साथ दूर रहे हो, और तुम अपनी छोटी बहन के साथ एक या दो घंटे तक नहीं बैठ सकते हो? तुम कितने स्वार्थी हो।’
मेरे अहम् के साथ लड़ाई जोरों पर थी। ‘येशु, मेरी मदद कर’, मैंने प्रार्थना की। मुझे अपनी थेरेपी के पहले सत्रों में से एक याद आया। “अपनी पहली भावुकता पर ध्यान न दें।”
मैंने एक सांस ली और अपना ध्यान खुद से हटाकर अपने बेटे पर केंद्रित किया। मैं देख रही थी कि उसकी प्रतिक्रिया मेरे अनुरोध के बराबर नहीं थी। वह गुस्से में था। उसके नाराज़ भरे इनकार के पीछे और भी बहुत कुछ था, और मैं जानना चाहती थी कि वह क्या था।
“तुम सच में पागल हो। अब तक तुम ऐसे नहीं थे। क्या चल रहा है, ” मैंने ईमानदारी से पूछा।
“यह हमेशा मैं ही हूँ। आप मेरे भाइयों से कभी नहीं कहती हैं,” वह बोला।
उसकी आवाज़ ने मेरे दिमाग को जवाबी कार्रवाई के लिए सचेत किया, मं मन ही मन सोचने लगी ‘वह गलत है! जब वह आसपास नहीं होता है तो उसके भाई लोग बच्ची की देखभाल करते हैं। वह मुझ पर भेदभाव करने का गलत आरोप लगा रहा है, यह ठीक नहीं है।’
‘येशु, मेरे अभिमान और मेरे अहंकार पर नियंत्रण करने में मेरी मदद कर।‘
मेरे गाल फूल गए। मुझे लग रहा था कि मेरी ओर उंगली उठ रही है और मैं शर्मिंदा महसूस कर रही थी ।
मैंने अपने आप से पूछा: “क्या मैं अपने आप को सही साबित करना चाहती हूँ, या क्या मैं उसे समझना चाहती हूं और उससे जुड़ना चाहती हूं?” मुझे अपने अंतरतम में यह एहसास था कि मेरा बेटा सही था। मैं अक्सर उसी की मदद मांगती थी, क्योंकि मुझे विश्वास था कि वह सबसे ज्यादा जिम्मेदार था।
“तुम सही कह रहे हो, मैं हमेशा तुमसे कहती हूं,” मैंने स्वीकार किया।
उसका चेहरा नरम हो गया।
“ठीक है, यह उचित नहीं है।” उसका गला रुंध गया और उसकी भावनाएं और तेज हो गईं।
उसने कहा, “जब वह छोटी बच्ची थी, तब आपने उसकी देखभाल करने का पूरा जिम्मा मेरे ऊपर छोड़ दिया था और जब तक आप दूर थी तब तक मैं बिलकुल परेशान था, क्योंकि मुझे लगता था कि मैं इस के लिए सक्षम नहीं हूँ।
मेरे दिमाग में अचानक एक घटना की स्मृति झलकने लगी। मैं बहुत छोटी थी और अपने दो छोटे भाइयों के साथ घर पर मैं अकेली थी। दोनों नन्हे शिशु थे। मुझे वह घबराहट याद आ गई जो उस समय मैंने महसूस की थी। मैं वहाँ खड़ी थी और उसे देखकर हैरान रह गयी कि मैंने उसके साथ वही किया है जो मेरी माँ ने मेरे साथ किया था।
“मुझे इसके बारे में बताओ,” मैंने सौम्यता के साथ बड़बड़ाया।
उसे जो कुछ याद था, उसने गहरी भावुकता के साथ सुनाया।
मैं उसके करीब गयी।
“तुम्हारे साथ बड़ा अन्याय हुआ है। मुझे तुम्हें उस स्थिति में कभी नहीं डालना चाहिए था। मेरी माँ ने मेरे साथ ऐसा ही किया। उसने सोचा कि मैं अपने भाई-बहनों की तुलना में अधिक सक्षम हूं, और वह मुझ पर बहुत अधिक निर्भर थी। मेरी माँ उन चीजों के लिए मुझ पर निर्भर थी जिन जिम्मेदारियों को निभाने में मैं सक्षम नहीं थी। मुझे वास्तव में खेद है,” मैंने थोड़ा डरते हुए अपनी गलती स्वीकार की।
मैंने उसे जो चोट पहुंचाई थी उसके लिए, खेद और दर्द से भरी हुई, मैंने बदलाव करने का संकल्प लिया।
सच्चे आराधक
मैंने याद किया कि एक बच्ची के रूप में मैं कैसा महसूस करती थी। अपनी माँ और भाई-बहनों के प्रति मेरे अन्दर के क्रोध और आक्रोश को स्वीकार करने से मुझे उन सूक्ष्म तरीकों को देखने में मदद मिली, जिस के सहारे मैं अपने इस बेटे पर गलत तरीके से निर्भर हो गयी थी और मैं ने उसके भाइयों को जिम्मेदारी में बढ़ने का अवसर देने से वंचित किया था। इससे भी बदतर, जो कार्य मेरे या मेरे पति के लिए भारी थे उन्हें करने के लिए मैं उस पर निर्भर रहती थी। मैंने इस गलती को समझा और स्वीकार किया।
इसके बाद मैंने जिम्मेदारियों को और अधिक निष्पक्ष रूप से विभाजित करने का एक ठोस प्रयास किया।
हमारे संबंधों में सुधार हुआ, और जैसे-जैसे जिम्मेदारी का दबाव कम हुआ, अपने भाइयों के प्रति उसकी नाराजगी कम हुई।
हालाँकि संघर्षों ने आत्म-बोध के अवसर देना जारी रखा, बेहतर रिश्तों ने मेरे अहंकार को कुचलने, मेरे सिर में आरोपों की आवाज को बुझाने और अपनी खामियों और गलतियों को स्वीकार कर आगे बढ़ने की मेरी इच्छा को बढ़ा दिया।
एक सुबह मिस्सा बलिदान के बाद मेरी ननद ने मुझसे संपर्क किया।
“मुझे एक पुरोहित से एक उद्धरण मिला। जब आप कहती हैं कि आप लज्जा की मंजिल से कृपा की मंजिल की ओर जाना सीख रही हैं, तो यह उद्धरण इस बात के अर्थ को व्यक्त करता है” अपने फोन को स्क्रॉल करते हुए उसने कहा।
“हाँ यहाँ है, मुझे मिल गया,” उसने कहा।
“जब आपकी आध्यात्मिकता की मात्रा उस सत्य की मात्रा के बराबर होती है, जिसे आप सहन कर सकते हैं, तो यह गहरी आध्यात्मिकता का संकेत है। हृदय का परिवर्तन इसी प्रकार होता है। केवल सत्य ही हमें स्वतन्त्र कर सकता है। और तब हम प्रभु के सच्चे आराधक होंगे। हम आत्मा और सच्चाई से प्रभु की आराधना करेंगे,” उसने कहा।
“हां! बस यही सत्य है।” मैंने घोषणा की। “इतने सालों तक मैंने सोचा था कि मुझे केवल कलीसिया की सच्चाई जानने की जरूरत है। लेकिन एक और सच्चाई है जो मुझे जानना चाहिए। यह एक सच्चाई है जिसे मैं आसानी से देख या स्वीकार नहीं कर पाती। यह मेरे दिल और आत्मा के भीतर का संघर्ष है जो लज्जा की मंजिल के बजाय कृपा की मंजिल में रहने का संघर्ष है। और मैं इस संघर्ष को येशु के बिना नहीं कर सकती।”
घर जाते समय मैं सोचती रही कि मैंने यह कहाँ सुना था ‘सच्चे आराधक आत्मा और सच्चाई से प्रभु की आराधना करेंगे’? जैसे ही मैं घर पहुँची, मैंने तुरंत बाइबल ले ली और समारी स्त्री की कहानी के अंत में उन सटीक शब्दों को पाया। मैं स्तब्ध होकर खड़ी रही। जब येशु ने समारी स्त्री के बारे में उसके सामने एक व्यक्तिगत सच्चाई को उजागर किया, तो उसने इनकार करने के बजाय, कृपा और अनुग्रह के द्वार खोलकर इसे स्वीकार किया। “चलिए, एक मनुष्य को देखिये, जिसने मुझे वह सब कुछ बता दिया है, जो मैंने किया था। कहीं वह मसीह तो नहीं है?” (योहन 4:29)
मेरे आध्यात्मिक निदेर्शक सही थे। मैं समारी स्त्री की तरह हूं।
'क्या आपकी चेकबुक अनंत सच्चाइयों का दर्पण है? अगर नहीं, तो स्थायी प्रभाव के लिए निवेश करने का समय आ गया है।
जिस वक्त मैंने कॉलेज में दाखिला लिया उस वक्त मैं अपने पारिवारिक परेशानियों की वजह से अंदर ही अंदर काफी बिखरी हुई थी। इसी वजह से मैंने गलत जगहों में जीवन का मतलब तलाशने की गलती की। हालांकि मैं कैथलिक परिवेश में पली बढ़ी थी, फिर भी उस वक्त मैं ईश्वर और कैथलिक विश्वास से दूर होती जा रही थी। उन दिनों मैंने रविवार के मिस्सा बलिदान में भाग लेना छोड़ दिया था और मेरा जीवन पार्टियों और अन्य सांसारिक चीज़ों में उलझ कर रह गया था।
मुलाकात का वह पल
एक रविवार की बात है, मैं मिस्सा बलिदान में भाग लेने की चाह से जागी। मिस्सा के दौरान जब पुरोहित ने परमप्रसाद को ऊंचा उठाया तब मैंने सच्चे दिल से प्रार्थना की, “हे ईश्वर, मैं इस योग्य नहीं हूं कि तू मेरे यहां आए, किंतु एक शब्द कह दे और मेरी आत्मा चांगी हो जाएगी।” मैं यह जानती थी कि मेरे लिए कृपा प्राप्त करने की आशा थी, पर मैं इस उलझन में थी कि ईश्वर मुझे वह कृपा प्रदान करेगा या नहीं। परमप्रसाद संस्कार के दौरान जब मैं परमप्रसाद ग्रहण कर रही थी तब मुझे येशु के शुद्धीकरण और क्षमा भरे प्रेम का अलौकिक अनुभव प्राप्त हुआ। उस पल मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मुझे सर से पांव तक धो दिया जा रहा है, जिसके बाद मुझे स्वच्छता और गर्माहट महसूस हुई। एक तीव्र प्रेम ने मुझे भर लिया जो मुझे आज भी महसूस होता है। मेरे बिखरेपन में भी ईश्वर ने मुझे अपनाया, गले लगाया। उस पल में मैं खुशी से झूम उठी। इसी तरह मेरे नए जीवन की शुरुआत हुई।
ख्रीस्त के साथ इस अनोखे अनुभव को प्राप्त करने के बावजूद, बाहरी दुनिया अब भी मुझे प्रभावित कर रही थी। अब मैं पार्टियों में जा कर अपना समय बर्बाद नहीं कर रही थी, फिर भी मेरा सम्पूर्ण ध्यान धन, दौलत, मान मर्यादा, नाम और शोहरत को कमाने के तरीकों पर था। मैं ख्रीस्त की राह पर चल रही थी फिर भी खुद में आत्मविश्वास भरने के लिए मुझे स्कूल में अव्वल आने की संतुष्टि पर निर्भर रहना पड़ता था । नर्सिंग में डबल मेजर का प्रशिक्षण सफलता पूर्वक पूरा करने के बाद, अमेरिका के सबसे अच्छे बच्चों के अस्पताल से मुझे नौकरी का प्रस्ताव मिला। मैं अपना लक्ष्य प्राप्त कर चुकी थी, पर तब तक मेरा दिल कुछ और चाहने लगा – अब मेरे अंदर मिशनरी बनने की तीव्र इच्छा जागने लगी।
उस दैविक मुलाकात के बाद से मेरी इच्छा थी कि मैं ईश्वर के प्रेम की वह ज्योति जो मैंने कैथलिक चर्च में प्राप्त की उसे औरों तक पहुंचाऊं। मैं ईश्वर से मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना करने लगी, जिसके बाद मैं जीसस यूथ के एक सदस्य से मिली। जीसस यूथ कलीसिया से जुड़ी हुई एक अंतरराष्ट्रीय मिशनरी मुहिम है। मैं इस विचार से बहुत प्रभावित हुई कि प्रभु ने मेरे जीवन के सभी अनुभवों को ध्यान में रखा और ख्रीस्त के बारे में गहराई से जानने के लिए मुझे प्रेरित किया।
दैनिक प्रेरणा
आखिरकार, मैंने उस नौकरी के प्रस्ताव को मना कर के जीसस यूथ के साथ थाईलैंड के बैंगकॉक शहर जाने का फैसला किया। वहां जाने से पहले मैंने जिस प्रशिक्षण में भाग लिया वह एक अद्भुत अनुभव था। इन सब बातों ने मेरी ज़िंदगी बदल दी और आज भी मेरी दैनिक दिनचर्या में ये बातें मुझे अपने मिशन पर ध्यान केंद्रित रखने की प्रेरणा देती हैं। जैसे कि, मेरी पहली संतान के जन्म के बाद मुझे लाइम नामक बीमारी हो गई थी, लेकिन ईश्वर की कृपा से मुझे सारी दवाइयां और सारी मदद आसानी से प्राप्त हुई जबकि उन दिनों मैं चार एंटीबायोटिक दवाओं पर निर्भर थी। मुझे याद है ट्रेनिंग के दिनों में हमें सिखाया गया था: जब ईश्वर हमें स्वास्थ्य और समृद्धि से अनुग्रहीत करता है, तब हम ईश्वर से कभी नहीं पूछते हैं “प्रभु मैं ही क्यों?” लेकिन जब दुख तकलीफें आती हैं तब हम अक्सर ईश्वर से पूछ बैठते हैं, “प्रभु मैं ही क्यों?”
इसीलिए जब मैं बीमार थी उन दिनों मैंने ईश्वर से अपने दुख तकलीफों की वजह पूछने के बजाय अपनी हालत को स्वीकारा और उन सारी आशीषों के लिए ईश्वर को धन्यवाद दिया जो मुझे ईश्वर से मिली थीं – जैसे की मेरा बच्चा, मेरा परिवार, और मेरा इलाज करने वाले लोग। ईश्वर ने मुझे उनकी अलौकिक मर्ज़ी को समझने की कृपा दी और इसीलिए मैं बार बार दोहराती रही, “तेरी इच्छा जैसे स्वर्ग में है, वैसे इस पृथ्वी पर भी पूरी हो।” मेरे पास यही सिद्ध करने के लिए कई उदाहरण हैं कि कैसे मेरी ट्रेनिंग में बिताए दिनों और मेरे बहुत से मिशनरी अनुभवों ने हर दिन मुझे प्रोत्साहित किया।
मिशनरी जीवन को अनुभव करने से पहले मैं अपनी मर्ज़ी के हिसाब से चलती थी। मैं सिर्फ अपनी ज़रूरतों और अपने लक्ष्यों के बारे में सोचा करती थी। हालांकि मेरे पास काफी अच्छे दोस्त थे, फिर भी उन लोगों को इस बात का अंदाज़ा भी नहीं था कि मेरे दिल में क्या चल रहा होता था। पहले मैंने अपने इर्द गिर्द ऊंची दीवारें खड़ी कर रखी थीं। जब मैंने ट्रेनिंग प्रोग्राम में भाग लिया तब ये दीवारें टूट कर बिखर गईं। येशु के बपतिस्मा के त्योहार के दिन मिस्सा बलिदान में भाग लेते हुए मुझे यह कृपा प्राप्त हुई कि मैं ख्रीस्त को गहराई से जान सकूं और यह समझ सकूं कि बपतिस्मा कैसे मेरे जीवन को परिवर्तित करता है।
स्वर्ग का एक पूर्वाभास
बपतिस्मा संस्कार के द्वारा हम ईश्वर के राज्य के वारिस बन जाते हैं। वह क्षण मेरे लिए जीवन बदलने वाला क्षण था। मैं अक्सर अपने परिवार और दोस्तों की ओर देख कर सोचा करती थी, “मेरे परिवार वाले किस तरह मेरे काम आ सकते हैं?” पर उस दिन मुझे एहसास हुआ कि ईश्वर की प्यारी बेटी के रूप में, मुझे यह सोचना चाहिए कि, “मैं किस तरह उनकी सेवा कर सकती हूं? मैं परमेश्वर के प्रेम को दूसरों को कैसे दे सकती हूँ?” धीरे धीरे मुझे अपने आप में एक बड़ा बदलाव महसूस होने लगा। जीसस यूथ की सदस्य बन कर, मैंने सामुदायिक जीवन का अनुभव किया जो पूरी तरह से मसीह के इर्द-गिर्द घूमता था।
रेक्स बैंड में शामिल होने के बाद, मुझे ईश्वर की महिमा के गीत गाने के अनेक अदभुत अवसर प्राप्त हुए। खासकर पोलैंड में विश्व युवा दिवस का वो समारोह, जहां हम स्टेज पर गीत गा रहे थे, उस वक्त दुनिया के अलग अलग राष्ट्रों से आए लाखों लोगों को ईश्वर की महिमा के लिए झंडे लहराते देखना बड़ा ही विस्मयकारी था। पूरी दुनिया को ईश्वर की स्तुति करने के लिए इकट्ठा होते देखना, एक अद्भुत अनुभव था, जो कि स्वर्ग के एक पूर्वस्वाद की तरह था। वह आनंद, ईश्वर के लिए गीत गाना और मिशन कार्यों को करते हुए साथ रहना, जीवन बदलने वाला अनुभव था!
उस साल जो मैंने जीसस यूथ के साथ मिशन कार्यों को करते हुए बिताया, वह मेरे जीवन में एक महत्वपूर्ण बदलाव ले कर आया। मैंने महसूस किया कि परमेश्वर ने मुझे एक अनोखे उद्देश्य के लिए चुना है और मैंने ख्रीस्त के साथ एक गहरा और मजबूत संबंध स्थापित किया।
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यह लेख शालोम वर्ल्ड कार्यक्रम, “गॉड्स क्रेजी पीपल” के लिए उनकी गवाही पर आधारित है। एपिसोड देखने के लिए यहां जाएं: shalomworld.org/show/gods-crazy-people
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