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परमेश्वर प्रार्थनाओं का उत्तर देता है और कभी-कभी हम ने जिस के होने की संभावना पर सोचा ही नहीं था, परमेश्वर उससे भी बहुत आगे बढ़ता है…
एक लोकप्रिय टेलीविज़न विज्ञापन है जो कई वर्षों तक एक घायल व्यक्ति को चित्रित करते हुए दिखाया गया है, “मेरी मदद करो, मैं गिर गया हूँ और मैं उठ नहीं सकता!” हालांकि वे लोग केवल एक मेडिकल अलर्ट सिस्टम बेचने के लिए प्रचार कर रहे अभिनेता लोग हैं जो किसी आपात स्थिति में मदद की पुकार लगा रहे हैं, हर बार जब मैंने उस विज्ञापन को देखा है तो मैंने सोचा है कि ऐसी हताश-भरे और नाजुक हालत में फँस जाना कितना भयावह होगा। अकेले रहना और गिरने के बाद वापस उठने में असमर्थ होना तनावपूर्ण और भयावह होगा। सौभाग्य से ऐसी कंपनियां और उपकरण हैं जिन पर हम भरोसा कर सकते हैं, ताकि हमारे लिए या खतरे में फंसे हमारे प्रियजनों के लिए सुरक्षा उपाय किए जा सकें।
आवर्ती दुविधा
वह विज्ञापन एक दिन मेरे दिमाग में तब आया जब मैं प्रायश्चित के संस्कार (जिसे मेलमिलाप या पाप स्वीकार के नाम से भी जाना जाता है) प्राप्त करने की तैयारी में अपनी अंतरात्मा की जांच कर रही थी। परमेश्वर की उपस्थिति से मुझे दूर ले जाने वाली अपमानजनक बातों पर चिंतन करने के बाद, मुझे लगा कि यह निराशाजनक था कि मैं बारम्बार पवित्रता के मार्ग से गिर रही हूँ। मुझे ऐसा लगा कि ऐसे गुनाहों को जिन्हें मैं अक्सर पिछले पाप स्वीकार संस्कारों में कबूल किया करती थी, उन्हें मुझे फिर से कबूल करने की ज़रूरत थी। संत पौलुस उसी दुविधा के साथ अपने संघर्षों के बारे में बात करते हैं। रोमियों के नाम पत्र 7:15-19 में उन्होंने कहा, “मैं अपना ही आचरण नहीं समझता हूँ, क्योंकि मैं जो करना चाहता हूँ, वह नहीं, बल्कि वही करता हूँ जिससे मैं घृणा करता हूँ। यदि मैं वही करता हूँ जो मैं नहीं करना चाहता, तो मैं संहिता से सहमत हूँ और उसे कल्याणकारी समझता हूँ, किन्तु मैं कर्ता नहीं रहा, बल्कि कर्ता है, मुझ में निवास करने वाला पाप। मैं जानता हूँ कि मुझमें, आर्थात मेरे दैहिक स्वभाव में थोड़ी भी भलाई नहीं, क्योंकि भलाई करने की इच्छा तो मुझमे विद्यमान है, किन्तु उसे कार्यान्वित करने की शक्ति नहीं है। मैं जो भलाई चाहता हूँ, वह नहीं कर पाता, बल्कि मैं जो बुराई नहीं चाहता, वही कर डालता हूँ।” यह एक संघर्ष है, जिसका हम सभी अनुभव करते हैं। कैथलिक कलीसिया की धर्म-शिक्षा पाप के प्रति इस अवांछित झुकाव को “कामुकता” के रूप में परिभाषित करती है। विज्ञापन में अभिनेता से जुड़ना आसान था, क्योंकि आध्यात्मिक रूप से मैं गिर गयी थी, और ऐसा लगा कि मैं वापस नहीं उठ सकती। परमेश्वर से दूर जाने से मैं एक हताश, नाजुक स्थिति में पहुँच गयी, जो हमें उसके द्वारा दिए जा रहे कई अनुग्रहों से वंचित स्थिति थी। परमेश्वर के साथ मेरा रिश्ता टूट गया था, और उस पतित अवस्था में रहने का विचार तनावपूर्ण और भयावह था। हालाँकि, येशु मुझसे प्यार करता है। वह दयालु है और उसने अभी भी पाप के अवांछित झुकाव से पीड़ित हम सभी के लिए सुरक्षा उपाय किए हैं।
अनवरत प्रार्थना
मेरा परिवार जिस गिरजाघर का हिस्सा था, उस गिरजाघर की ओर से शनिवार की शाम के जागरण मिस्सा बलिदान से एक घंटे पहले पाप स्वीकार के संस्कार का प्रस्ताव रखा गया। मेरे लिए शनिवार को पाप स्वीकार संस्कार में जाना महत्वपूर्ण था क्योंकि मैं ईश्वर के साथ अपने रिश्ते को महत्व देती थी और इसे बहाल करना चाहती थी। मैंने अपने पति से पूछा कि क्या पाप स्वीकार समाप्त होने पर वह मेरे साथ मिस्सा बलिदान में शामिल होंगे। मेरा सौभाग्य था कि वे सहमत हो गए। उनका पालन-पोषण मेथोडिस्ट कलीसिया में हुआ था और 25 से अधिक वर्षों से यह मेरी निरंतर प्रार्थना थी कि ईश्वर उनके दिल में विश्वास की पूर्णता में आने की इच्छा को रखेंगे और उन्हें कैथलिक कलीसिया का सदस्य बनायेंगे। अभी के लिए, मैं ईश्वर के समय की प्रतीक्षा कर रही थी और बस खुश थी कि हम मिस्सा बलिदान में साथ साथ भाग लेंगे। चर्च में भीड़ नहीं थी, इसलिए पहले ही मैं ने पाप स्वीकार करने के लिए पुरोहित के सामने घुटने टेकी थी। पाप स्वीकार करने के लिए नम्रता की आवश्यकता होती है। पाप मुक्ति के आनंद ने मेरे अन्दर नयी ऊर्जा और पुनर्स्फूर्ती महसूस करायी। पुरोहित से प्राप्त प्रायश्चित को करने के बाद, मेरा दिल अब पाप के भार से बोझिल नहीं था। जैसे ही शांति की भावना ने एक बार फिर मेरी आत्मा को घेर लिया, वैसे ही मेरे आस-पास और मेरे अन्दर भी सब कुछ शांत था। बार-बार, मैंने परमेश्वर को उसकी दया के लिए धन्यवाद दिया। मैंने संतोष के साथ आह भरी, “हे ईश्वर, मैं तुझ से कुछ भी मांगकर इस क्षण को खराब नहीं करना चाहती। मैं बस तुझे बार-बार धन्यवाद देना चाहती हूं। मैं उस एक कोढ़ी की तरह बनना चाहती हूँ जो तुझसे चंगाई पाने के बाद तेरा धन्यवाद करने के लिए वापस आया।” मैं घुटने टेककर प्रभु की पवित्र उपस्थिति में समा गयी और समझ गयी कि अनुग्रह की स्थिति में होने का एहसास कितना अच्छा, धन्य और महान है। येशु ने हमारे रिश्ते को बहाल कर दिया था और हम फिर से एक हो गए थे। हालाँकि, मौन और शांत रहना एक ऐसा गुण है जिसके लिए मुझे बराबर संघर्ष करना पड़ता है। मेरे दिमाग में ईश्वर से सिर्फ एक बात मांगने की तीव्र इच्छा जागृत हुई। “प्रभु, सिर्फ एक चीज मांगती हूँ, बल्कि यह मेरे लिए नहीं है। कृपया मेरे पति के दिल और दिमाग में कैथलिक बनने की इच्छा भर दें। मैं चाहती हूं कि उसे पता चले कि कैथलिक बनना कैसा लगता है।” शांत प्रार्थना में समय जल्दी बीत गया और जब मैं ने आँखें खोली तब देखा कि मेरे पति भी कुछ देर से मेरे बगल में बैठे हुए हैं। मैंने यह कहते हुए सुना है कि जब आप अनुग्रह की स्थिति में प्रार्थना करते हैं, तो आपकी प्रार्थनाएँ परमेश्वर द्वारा स्पष्ट रूप से सुनी जाती हैं। आप उसके इतने करीब हैं कि वह आपके दिल की फुसफुसाहट सुन सकता है। मुझे यकीन नहीं है कि यह वास्तव में ठोस कैथलिक सिद्धांत है या नहीं, लेकिन यह उल्लिखित करता है कि ईश्वर के करीब रहना कितना महत्वपूर्ण है। जब उस शाम को मिस्सा शुरू हुआ, तो पुरोहित ने सभी का स्वागत किया और उन्होंने उस शाम के मिस्सा बलिदान में किसी भी व्यक्तिगत निवेदन को समर्पित करने के लिए एक शांत क्षण का अनुभव करने के लिए कहा। जिस तरह से वे आम तौर पर मिस्सा का आरंभ करते थे, उस दिन वैसा नहीं था, उनका उत्साह अद्भुत था। मैं उस पल को खोना नहीं चाहती थी, मैंने तुरंत अपने पति के कैथलिक धर्म में आने के लिए प्रार्थना दोहराई। मैंने उस शाम से पहले या बाद में कभी पुरोहित को इस तरह से मिस्सा शुरू करते हुए नहीं सूना था। अंत में, यह एक अच्छा संकेत था कि मेरी प्रार्थना के लिए परमेश्वर का उत्तर निकट था। बाकी मिस्सा के दौरान भी मेरे दिल में यह निवेदन बना रहा, और मुझे ईश्वर और मेरे पति दोनों से बहुत जुड़ाव महसूस हुआ।
चौंकाने वाली खबर
घर जाते समय, मेरे पति ने अप्रत्याशित रूप से कहा कि उन्हें मुझसे कुछ कहना है। अच्छा हुआ कि वही गाड़ी चला रहे थे, क्योंकि यदि मैं गाडी चलाती, तो उनके शब्द मुझे चौंका दिया होता और गाड़ी अनियंत्रित होकर सड़क से लुढ़क जाती। “मैंने फैसला किया है कि मैं हम लोगों के गिरजा घर में वयस्कों के ख्रीस्तीय बप्तिस्मा संस्कार की प्रारम्भिक दीक्षा कार्यक्रम में नामांकन करूं और देखता हूं कि मैं कैथलिक बनना चाहता हूं या नहीं।” स्तब्ध होकर मैंने कुछ नहीं कहा। विचार और भावनाएँ मेरे मन और शरीर में घूम रही थीं। मैंने प्रभु से बस इतना पूछा: “यह क्या हो रहा है प्रभु? क्या मेरी प्रार्थना सुनने के लिए पाप स्वीकार संस्कार ने तेरे साथ मेरे सम्बन्ध को साफ कर दिया था? क्या मिस्सा बलिदान में मेरा व्यक्तिगत निवेदन सुना गया था? इतने सालों के बाद क्या तू सच में मेरी प्रार्थनाओं का जवाब दे रहा है?” अपने आप को पुनः संभालने के बाद, मैंने अपने पति के साथ उनके इस निर्णय के बारे में विस्तार से बात की। हम अपने दाम्पत्य जीवन के दौरान एक साथ मिस्सा बलिदान में शामिल होते थे और मेरे पति के लिए यह महत्वपूर्ण था कि हमारा परिवार एक साथ एक ही गिरजाघर में जाए। वर्षों से, उनके पास कई प्रश्न थे, लेकिन कैथलिक चर्च को अपने परिवार के रूप में प्यार और विश्वास के साथ देखते थे। पवित्र आत्मा ने उन्हें यह समझने के लिए निर्देशित किया कि उस परिवार का हिस्सा बनने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध होने और सभी संस्कारों और उनके अनुग्रहों में भाग लेने में सक्षम होने का यही सही समय था। प्रारम्भिक दीक्षा कार्यक्रम को पूरा करने के बाद, अंततः अगले पास्का जागरण की रात को, मेरे पति कैथलिक चर्च के सदस्य के रूप में स्वीकार किये गये, जिससे हम दोनों को अपार आनंद हुआ। मेरी प्रार्थना का जो उत्तर पाने के लिए मैं इतने लंबे समय से इंतज़ार कर रही थी, वह उत्तर मुझे सही समय पर देने केलिए ईश्वर का निरंतर धन्यवाद करते हुए, मेरा दिल खुशी से नाच रहा है।
पिटारे में और अधिक आश्चर्य!
रुकिए, और भी बहुत कुछ है! परमेश्वर जानता था कि मैंने उससे पूछा था कि क्या उसने वास्तव में मेरी प्रार्थनाओं को सुना और उत्तर दिया है। परमेश्वर यह सुनिश्चित करना चाहता था कि मैं निश्चित रूप से जानूं कि उसने मेरी प्रार्थना सुनी है, क्योंकि पिटारे में और अधिक आश्चर्य रखे हुए थे। हमारे दोनों बेटे अपने लिए जीवन संगिनी चुन चुके थे। वे दोनों अद्भुत युवतियां थीं जो अपने प्रोटेस्टेंट विश्वास में प्रभु के साथ-साथ चलते हुए बड़ी हुई थीं। कैथलिक धर्म में उनके आगमन के लिए मेरी प्रार्थनाओं में उन्हें भी नियमित रूप से शामिल किया गया था, हालाँकि उस शाम को मैंने उनके लिए विशेष रूप से प्रार्थना नहीं की थी। उस विशेष मिस्सा बलिदान के एक सप्ताह के भीतर, एक दूसरे से स्वतंत्र, दोनों युवतियों ने मुझ से कहा कि उनका इरादा कैथलिक बनने का है। मैं निश्चित रूप से जानती हूं कि मेरे पति का कैथलिक बनने का निर्णय महज संयोग नहीं था और एक अतिरिक्त बोनस के रूप में, अब मेरी बहू बनने वाली वे अद्भुत युवा महिलाएं भी कैथलिक बनेंगी। प्रभु की स्तुति हो! मैं ईश्वर के मन को जानने का दावा नहीं करती। उन तीनों ने, एक-दूसरे से स्वतंत्र होकर, कैथलिक बनने का फैसला कैसे किया, इस पर भी मैं कोई दावा नहीं कर सकती कि मैं ईश्वर का मन जानती हूँ। यह मेरे लिए चमत्कार है और मैं इसे सिर्फ चमत्कार के रूप में देखकर खुश हूं। ठीक है,… एक और बात। मेरा मानना है कि जब हम ऐसा कुछ कार्य करते हैं जिससे परमेश्वर के साथ हमारे रिश्ते को ठेस पहुँचती है, तो हमें पाप स्वीकार के द्वारा उसके पास जाना चाहिए और उससे कहना चाहिए कि हमें खेद है। मेरा मानना है कि जब हम वास्तव में परमेश्वर के साथ अपने संबंध को ठीक करना चाहते हैं, तो वह हमें आशीष देना चाहता है। मेरा मानना है कि प्रार्थना वास्तव में काम करती है और प्रभु हमें जवाब देना चाहता है। मेरा मानना है कि ईश्वर मुझसे प्यार करता है और उसने मुझे एक बार नहीं, दो बार नहीं, बल्कि उस शनिवार को तीन बार आशीर्वाद दिया, लेकिन वह चाहता था कि मैं यह भी जानूँ कि वह मेरी सभी प्रार्थनाओं को हर समय सुनता है, चाहे मैं किसी भी स्थिति में हो।
मुझे पता था कि मैं गिर गयी थी और, विषय वासना के कारण, मेरे फिर से गिरने की संभावना है। अल्लेलुइया, अच्छी खबर है! जब मैं अपने व्यवहार को नहीं समझ सकती; यहां तक कि जब मैं उन अच्छे कामों को करने में असफल हो जाती हूं जो मैं करना चाहती हूं, और उन पापपूर्ण कार्यों को करती हूं जिनसे मैं नफरत करती हूं … तब भी ईश्वर की कृपा से और उसकी क्षमा के माध्यम से, मुझे पता है कि मैं अकेली नहीं हूं, मुझे तनावग्रस्त, भयभीत या गिरे हुए रहने की जरूरत नहीं है। मैं वापस उठ सकती हूँ।
संत पौलुस, हमारे लिए प्रार्थना कर। आमेन।
'हम सभी को समय का उपहार दिया गया है, लेकिन हम इसका क्या करते हैं?
कभी-कभी मुझे यह समझने में परेशानी होती है कि ईश्वर मुझे क्या बताने की कोशिश कर रहा है। जो बात उसने कही है उसे दुहराने केलिए मैं अक्सर उससे बोलती हूँ। पिछले साल, बार-बार मैंने महसूस किया कि प्रभु ये वचन मेरे दिल पर रख रख रहा है – “इसके चारों ओर एक घेरा बनाओ।”
मैंने अंततः स्पष्टीकरण मांगा और पवित्र ग्रन्थ का वचन मन में आया: “किसी भूमिधर ने दाख की बारी लगवाई, उसके चारों ओर घेरा बनवाया, उसमें रस का कुंड खुदवाया और पक्का मचान बनवाया।” (मत्ती 21:33)
मैं जानती थी कि झाड़ियों को आपस में निकटता से उगाये जाने से घेरा या बाड़ा बनता था, यह अक्सर बगीचों या फुलवारियों को घेरने के लिए किया जाता है। जब मैंने ईश्वर से पूछा कि वह मुझसे क्या घेरवाना चाहता है, तो मुझे समझ में आया कि मुझे अपने समय को घेरना है, विशेष रूप से प्रभु के साथ अपने समय की सुरक्षा करनी है।
इसलिए, मैंने अपनी सुबह की दिनचर्या के साथ अधिक सावधान रहना शुरू कर दिया। मैं अपने विचारों, सपनों और मेरे दिमाग में चल रहे गीतों के प्रति अधिक जागरूक हो गयी। मैंने अपनी डायरी में मेरे विचारों को लिखना शुरू किया। मैंने बिस्तर से उठने से पहले ही प्रभु की स्तुति और धन्यवाद के साथ अपने हृदय को प्रभु की ओर उठाने का प्रयास किया। सोशल मीडिया में आ रही टिप्पणियों या खबरों को पढ़ने के बजाय, मैंने अपनी सुबह की कॉफी हाथ में लिए, हर दिन दैनिक मिस्सा बलिदान के पाठों को पढ़ा और मनन-चिंतन में समय बिताया।
मैं अपने आंतरिक जीवन की रक्षा कर रही हूं। मैं प्रभु के साथ अपने समय की रक्षा कर रही हूँ। मैं अपने आप को भोर के सुरक्षा कर्मी की तरह महसूस करती हूँ।
जब मैंने पिछले साल एक आध्यात्मिक निर्देशक की सहायता ली, तो उन्होंने सबसे पहले मुझसे यह सवाल किया कि क्या मेरी अपनी दैनिक प्रार्थना दिनचर्या है। मेरे लिए उनका निर्देश था कि जीवन का सबसे प्रथम लक्ष्य प्रार्थना-जीवन को नियमित और लगातार संपोषित रखना है।
मैं और मेरे पति अब एक दम्पति के रूप में अधिक विश्वासपूर्वक प्रार्थना करते हैं। हमने भोजन से पूर्व, और अधिक जानबूझकर प्रार्थना करना शुरू कर दिया है, जिसमें हम कंठस्थ प्रार्थनाओं के साथ दिल से आने वाली प्रार्थनाओं को भी जोड़ते हैं। हमारा प्रयास यह है कि हम एक परिवार के रूप में प्रार्थना करने की अपनी प्रतिबद्धता को निभायें।
मैं कार चलाते हुए प्रार्थना करती हूँ। मैं चर्च में प्रार्थना करती हूं। मैं अपनी सुबह की सैर पर प्रार्थना करती हूं। कभी-कभी मैं एक पार्क की परिधि में रोजरी या करुणा की माला विनती करते हुए, उसके चारों ओर प्रार्थना का घेरा बनाकर चलती हूं।
मेरा मानना है कि ये नई आदतें फल दे रही हैं। मैंने बगल के पार्क में संदिग्ध और असामाजिक गतिविधियां देखी है। मैंने देखा है कि इन दिनों मेरे पति और मैं समान विचार पर अधिक काम कर रहे हैं, और हंस हंस कर अपने मतभेदों का मुकाबला कर रहे हैं। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मैंने अपने आप में एक बदलाव देखा है। मैं अधिक शांति का अनुभव करती हूं।
जो कुछ प्रभु मेरे हृदय से कह रहा है, मैं उसे सुन पा रही हूँ। मैं प्रत्येक दिन की चुनौतियों का सामना करने के लिए अधिक तैयार हूं।
परमेश्वर चाहता है कि हम सभी बिना रुके प्रार्थना करें, लेकिन पहला कदम यह है कि हम अपने प्रत्येक दिन को प्रार्थना की बाड़ या रक्षा कवच से सुरक्षित रखें। हमें अपने दिन का पहला फल प्रभु को अर्पित करना चाहिए और प्रार्थना के साथ अपने दिन का अंत करना चाहिए। हमारी प्रार्थना के घेरे अलग-अलग तरह के हो सकते हैं, लेकिन शैतान की चालों को हराने के लिए हम उन्हें अवश्य लगाएं।
परमेश्वर हमेशा हमारे करीब आ रहा है, और वह चाहता है कि हम उसके करीब आएं। लेकिन हम आसानी से विचलित हो जाते हैं। हमें लगन से अपने समय की रक्षा करने की आवश्यकता है। प्रार्थना के बाड़े या घेरे हमें अधिक फलदायी स्थान की ओर ले जायेंगे।
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अगर आज आप अपना दिल खोल दें, तो आप दुनिया बदल सकते हैं! डेनिएला स्टीफ़ंस ने प्यार पाने की अपनी अविश्वसनीय और कभी अंत न होनेवाली यात्रा का वर्णन कर रही है।
मैं एक ऐसी कैथलिक थी, जिसे आप ‘पालना कैथलिक’ कह सकते हैं; मैं सात संतानों की कैथलिक परिवार के दिल में पली-बढ़ी हूँ। हम नियमित रूप से मिस्सा बलिदान में जाते थे और मैं अपने विश्वास के बारे में अधिक जानने के लिए, संतों का अनुकरण करती थी, और प्रभु की उपस्थिति को प्रदर्शित करनेवाली उन सुंदर छवियों के प्रति आकर्षित हो जाती थी। प्रभु ने छोटी उम्र से ही मेरे जीवन में प्रेम के बीज बो दिए। जब मुझे अपनी किशोरावस्था में मिस्सा बलिदान में जाने या न जाने का विकल्प दिया गया था, तब भी मैंने मिस्सा जाना जारी रखा, जब कि मेरे कुछ भाई-बहनों ने मिस्सा न जाने का विकल्प चुन लिया था। मैं हमेशा सही काम करना चाहती थी और कभी भी मुसीबत में नहीं पड़ना चाहती थी। मैं अपने माता-पिता को निराश नहीं करना चाहती थी और मुझे पता था कि रविवार के दिन जानबूझकर मिस्सा में न जाना पाप है।
हालाँकि, मैं वास्तव में कभी नहीं समझ पायी कि मेरे साथ क्या हो रहा था। मैं बस मिस्सा बलिदान के विभिन्न हिस्सों के माध्यम से खाना पूर्ती कर रही थी। हालांकि मुझे लगा कि ईश्वर मेरे करीब हैं, मैं व्यक्तिगत रूप से उसे नहीं जानती थी और अभी भी मेरे दिल में एक भारी, धड़कता हुआ खालीपन महसूस कर रही थी। जब मैं सोमवार से लेकर शुक्रवार तक बहुत सारे कामों में व्यस्त रहती थी, और इसलिए मेरे पास इसके बारे में चिंता करने का वक्त नहीं था, लेकिन सप्ताहांत में, मैं इस गहरे अकेलेपन से परेशान रहती थी।
खो गयी प्यार में
सयानी कहलाने की उम्र में पहुंचने के बाद, भौतिक दुनिया जो कुछ दे सकती थी, उन सारी चीज़ों से मैं आकर्षित हो गयी थी, इसलिए मैंने शराब पीकर और दोस्तों के साथ पार्टियों में जाकर अपनी समस्या को हल करने की कोशिश की, लेकिन वह खालीपन वैसे खाली ही रह गई। मैं ने तिरस्कार, अकेलापन और निराशा महसूस किया। हालाँकि मैं अपना काम करने के लिए स्वतंत्र होना चाहती थी, मैं अपने विवेक से जूझ रही थी, जो मुझे बराबर बता रहा था कि मैं जो करना चाहती थी, वह गलत था। ईश्वर ने मेरी सृष्टि इन गलतियों को करने के लिए नहीं की थी। एक स्वर्गदूत के साथ याकूब की कुश्ती के बारे में मैंने बाइबिल में पढ़ा था और मुझे लगा कि यही कहानी मेरी भी है। जब एक रविवार को मिस्सा के दौरान मैं इन सब के बारे में सोचकर प्रार्थना कर रही थी, मुझे सहसा एहसास हुआ कि मैं स्वयं को स्वीकार नहीं कर रही थी। परमेश्वर के पास मेरे जीवन के लिए एक बेहतर योजना थी। येशु के पवित्र हृदय की एक मूर्ति को देखते हुए, मैं समझ पा रही थी कि येशु मेरे दिल के दरवाजे पर दस्तक दे रहे थे, अंदर आने के लिए अनुमति मांग रहे थे, लेकिन मैं इस अद्भुत उपहार को स्वीकार करने से बहुत डर रही थी, क्योंकि मुझे डर था कि येशु मेरे अंदर आएंगे और मेरी आजादी छीन लेंगे। उस क्षण तक, मुसीबत में पड़ने के डर के कारण ही मैं बदतर पापों से बची रही। फिर, किसी तरह, ईश्वर की कृपा से, मैंने खुद को यह कहते हुए पाया, “ठीक है, हे प्रभु, मैं तुझे एक अवसर दूंगी।” उस पल में, मैंने ऊपर की ओर देखा और पहली बार येशु के बपतिस्मा की एक तस्वीर देखी। उस तस्वीर में येशु बहुत मजबूत, विनम्र और सौम्य लग रहे थे। तुरंत मेरा दिल बदल गया। डर दूर हो गया, खालीपन की वह भारी सुराख अविश्वसनीय गर्मजोशी से भर गयी और मुझे येशु से प्यार हो गया। इस पल ने सब कुछ बदल दिया। मैं पूरी तरह जीवित महसूस करते हुए गिरजाघर से बाहर चली गयी। मैं उस महिला की तरह महसूस कर रही थी जिसने, येशु के वस्त्र के किनारे को छुआ और मैं अपने सारे दर्द से मुक्त होकर तुरंत स्वस्थ हो गई। मुझे डर था कि अगर मैंने उसे अपने दिल में बसा लिया, तो वह मेरी आजादी छीन लेगा, लेकिन मैं गलत थी। जिस चट्टान की सुराख में परमेश्वर ने मूसा को रखा था वह उस सुराख के समान है जो मसीह के सीने में छेदा गया है। मैंने महसूस किया कि मसीह ने मुझे अपने पवित्र हृदय में खींच लिया है, जहाँ मैं उसके निकट और सुरक्षित रखी गयी हूँ और प्रभु येशु मुझ से बात कर सकते थे, ठीक उसी तरह, जिस तरह कोई दोस्त अपने दोस्त से बात करता है, जिस तरह मूसा ने प्रभु के साथ बात की थी।
काली सुराख
जितना अधिक मैंने दैनिक मिस्सा पूजा में और आराधना में प्रभु के साथ व्यक्तिगत मुलाकातों की तलाश की, उतना ही मैंने अपने आप को उसके करीब होने का एहसास पाया। इसलिए, मैंने ईशशास्त्र का अध्ययन किया और जैसे-जैसे मैं परमेश्वर को और अधिक गहराई से जानती गयी, उसने अपने आप को मेरे सामने और भी अधिक प्रकट किया, यहाँ तक कि त्रासदी के समय में भी; उदाहरण केलिए मेरे भाई की मृत्यु के मौके पर भी। उन दिनों, मैं अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद अपनी पहचान पाने के लिए संघर्ष कर रही थी और भविष्य को लेकर डर महसूस कर रही थी। मैं अब ईश्वर की उपस्थिति को महसूस नहीं कर पा रही थी और सोचती थी कि क्या प्रभु ने मुझे छोड़ दिया है। मैं येशु के कहे गए उन सारे वचनों को जानती थी, “मैं ही मार्ग, सत्य और जीवन हूँ… मैं पुनरुत्थान और जीवन हूँ।” लेकिन अब मेरे विश्वास की परीक्षा हो रही थी। क्या यह सब सच था? जब मैं अपने भाई के कमरे में चुपचाप बैठ कर उसके खाली बिस्तर को देख रही थी, मुझे याद आया कि कैसे येशु ने मार्था से कहा था, “तुम्हारा भाई फिर जी उठेगा,” और मैं ने महसूस किया कि येशु मुझसे ये शब्द कह रहे थे। जब मैं विश्व युवा दिवस में भाग लेने गयी तो मुझे भारी भीड़ में कुछ कुछ अकेलापन और खोया खोया महसूस हुआ। जब मैंने चारों ओर उन सारे युवा लोगों को देखा, तो मैंने येशु से पूछा, “हे प्रभु, तू कैसे इन सभी लोगों से एक ही समय प्यार कर सकता है और मुझसे भी प्यार करता है?” परमेश्वर ने मुझे दिखाया कि जिसके साथ प्रभु का व्यक्तिगत संबंध है, उस प्रत्येक व्यक्ति को अलग अलग व्यक्ति के रूप में वह कैसे देखता है। ईश्वर हम में से प्रत्येक को एक अद्वितीय और व्यक्तिगत प्रेम की दृष्टि से देखता है। वह आपसे उतना प्यार करता है जितना कोई और नहीं, कर सकता, क्योंकि आपके जैसा दुनिया में और कोई नहीं है। परमेश्वर आपको अद्वितीय रूप से, अभूतपूर्व रूप से, अनोखे रूप से और व्यक्तिगत रूप से प्यार करता है। आदम से लेकर अनंत काल तक कोई भी ऐसा नहीं है, और न रहेगा, जो बिल्कुल आपके जैसा हो। इसलिए, जब आप व्यक्तिगत रूप से उसके प्यार को महसूस करते हैं, तो वह आपको उस अद्वितीय व्यक्ति के रूप में देखता है, जो कोई और नहीं कर सकता। उसने हम में से प्रत्येक के लिए स्वयं को बलिदान कर दिया। जब वे क्रूस पर थे, वे हम में से प्रत्येक के बारे में व्यक्तिगत रूप से नाम लेकर सोच रहे थे।
मेरे डर को दूर कर दिया गया
येशु ने मुझे दिखाया कि पिता ईश्वर के बारे में मेरी छवि और समझ गलत थी। मुझे लगा था कि मैं संकट में हूँ, इस बात के लिए परमेश्वर मुझे दोषी ठहरा रहा है। मुझे उसके दंड का डर था, लेकिन मैं गलत थी। येशु हमारा उद्धार करने के लिए पिता ईश्वर की योजना के अनुसार, हमारे लिए पिता के प्रेम को प्रकट करने के लिए – हमारे बीच रहकर परमेश्वर और मनुष्य के बीच की दरार को ठीक करने के लिए – दुनिया में आए। येशु ने हमें यह भी बताया कि यदि हमने उसे देखा होता, तो पिता को देखा होता। येशु ने मुझे दिखाया कि मेरे हृदय में जो खालीपन है वह परमेश्वर द्वारा भरा जाना चाहिए, और जब मैंने येशु को अंदर जाने दिया, तो उसने मुझे सचमुच मुक्त कर दिया। हम परमेश्वर के द्वारा और परमेश्वर के लिए बनाए गए हैं, इसलिए जब मैंने उसे अंदर बुलाया, तो उसने अपनी गर्मजोशी और प्रेमपूर्ण उपस्थिति से मुझे भर दिया, जो अवसाद और बेचैनी मुझे परेशान कर रही थी, उसे उसने दूर कर दिया। जब हम उस ईश्वर के आकार के छेद को अन्य चीजों से भरने की कोशिश करते हैं, तो वे सभी कम पड़ जाते हैं, क्योंकि वह अनंत और अपूरणीय है। इसने मुझे याद दिलाया कि कैसे हमें चेतावनी दी जाती है कि “वाहन में गलत ईंधन डालने से आपकी यात्रा में तबाही हो सकती है और आपकी कार के इंजन को व्यापक नुकसान होने की संभावना है।” आपका हृदय आपका इंजन है और पाप से होने वाली क्षति को रोकने के लिए इसे सही ईंधन की आवश्यकता है। दैनिक मिस्सा पूजा, नियमित पाप स्वीकार, प्रार्थना, आराधना, बाइबिल पाठ और विश्वास का अध्ययन, और माँ मरियम के साथ एक गहरा रिश्ता, ये सभी मिलकर वह ईंधन रहा है जिसने मेरे दिल को बहाल किया है और जिसके द्वारा मुझे ईश्वर के साथ व्यक्तिगत संपर्क द्वारा अपना जीवन जीने की कृपा मिली है। येशु ने मुझे और अधिक गहराई में जाने के लिए आमंत्रित किया। यद्यपि अक्सर अपना क्रूस उठाना और प्रतिदिन उसका अनुसरण करना पीड़ादायक होता है, फिर भी उसने परीक्षाओं और प्रलोभनों के द्वारा मेरा नेतृत्व किया है और अपने प्रेम को प्राप्त करने और साझा करने की मेरी क्षमता का विस्तार किया है।
संघर्षों के बीच
हर दिन, हमारा दुश्मन शैतान हमें हतोत्साहित करने और हमें परमेश्वर के प्रेम से दूर करने का प्रयास कर रहा है। वह नहीं चाहता कि हम जानें और अनुभव करें कि परमेश्वर हमें क्या देना चाहता है। वह हमारे घमंड को इतना सख्त और कड़ा कर देता है कि हम परमेश्वर की इच्छा के आगे झुकने को तैयार नहीं हैं। जब हम अपने पाप के द्वारा दिए जा रहे उस दर्द और पीड़ा के कारण अपने आप को टूटा हुआ महसूस करते हैं, तो हम खुद को यह सोचकर धोखा देते हैं कि ईश्वर हमसे प्यार नहीं करता। संत तेरेसा ने कहा था कि जब ईश्वर पूर्ण होता है और हम इतने अपूर्ण होने के बावजूद, वह हमसे प्यार कर सकता है; हमारे इस तरह के मज़बूत विश्वास को तोड़ना और नष्ट करना ही शैतान की रणनीति है। जब मैं संघर्ष करती रहती हूँ तो क्या वास्तव में उस समय भी परमेश्वर मुझसे प्रेम करता है? एक बार, येशु ने अपने चेलों को रात भर आंधी के खिलाफ संघर्ष करते हुए छोड़ दिया, जब येशु स्वयं एक पहाड़ पर प्रार्थना कर रहे थे। लेकिन सुबह शिष्यों ने येशु को पानी के ऊपर से अपनी ओर आते हुए देखा। जब आप कठिन समय से गुजर रहे होते हैं, तो प्रभु आपके संघर्ष के बीच में होते हैं। वह आप से यह भी कहता है, “डरो मत।” और जब हम खुद को डूबते हुए महसूस करते हैं, जैसे पतरस ने अपना विश्वास विफल होने पर महसूस किया था, जब वह येशु की ओर, पानी के ऊपर टहलते हुए गया था, उसी तरह हम भी पुकार सकते हैं, “प्रभु मुझे बचा ले।” जब ऐसा लगे कि सब कुछ आपके विरुद्ध हो रहा है, तब उस प्रभु पर ही अपनी नज़रें टिकाए रखें और वह आपको विफल नहीं करेगा। हमेशा एक नया सवेरा होता है। हर दिन फिर से शुरू करने का दिन और अवसर होता है। “रात को भले ही रोना पड़े, भोर में आनन्द–ही–आनद है” (भजन संहिता 30:6)। रात परीक्षण और प्रलोभन का प्रतीक हो सकती है। भोर मसीह का प्रतीक है जो विश्व का प्रकाश है। याद रखें कि ईस्टर के रविवार को, मसीह ने कब्र को प्रकाश से प्रज्वलित करके छोड़ा था। वे हमारे साथ अपना प्रकाश साझा करने आये हैं।
येशु नाम का अर्थ है ‘ईश्वर बचाता है’। वे हमें बचाने आये थे। वे हमारी पीडाओं को साझा करने, हमारे साथ गहरी दोस्ती बनाने और हमें बाहर निकालने के लिए आये थे। विश्वास एक मांस पेशी की तरह है जो कठिन परिस्थितियों और दबाव में बढ़ता है। अच्छा होगा कि मैं अपनी इच्छाओं को ईश्वर को समर्पित करूँ और यह विश्वास करूँ कि वह उन्हें पूरा करेंगे, लेकिन यह कठिन है। “मैं अपनी इच्छा से अधिक, ईश्वर की इच्छा चाहता हूं,” ईमानदारी से ऐसा कहने में सक्षम होना आसान नहीं है, क्योंकि हम जो करना चाहते हैं उसे ही करना पसंद करते हैं। माँ मरियम ने ऐसा ही किया जब उसने कहा, “तेरा कथन मुझ में पूरा हो जाए” (लूकस 1:38)। माँ मरियम अपनी सौम्यता के साथ हमारे साथ खड़ी है, हमारी गहरी इच्छाओं को मानव जाति के कल्याण और अच्छाई के साथ समान बनाने में वह हमारी मदद करती है।
इसलिए, ईश्वर की कृपा से, मैं विश्वास के साथ आगे बढ़ती हूं, यह जानते हुए कि मैं ईश्वर से अपनी सभी जरूरतों के बारे में एक दोस्त और परिवार के सदस्य के रूप में बात कर सकती हूं। मैंने परमेश्वर को एक प्रेममय पिता के रूप में जाना है, जो हमें अपनी सभी खामियों, गलतियों और बारम्बार असफलताओं के बावजूद, बच्चों के समान उसकी प्रेमपूर्ण योजना में भरोसे रखते हुए उसके पास आने के लिए बुलाता है।
“आओ, हम अनुग्रह के सिंहासन के पास जाएं” (इब्रानी 4:16) और “तुम न डरोगे और न घबराओगे, क्योंकि तुम जहां कहीं भी जाओगे प्रभु तुम्हारा ईश्वर तुम्हारे साथ होगा” (योशुआ 1:9)
'क्या आप अपने जीवन में पाप के उस चक्र को तोड़ने के लिए संघर्ष कर रहे हैं? गेब्रियल कैस्टिलो उन सभी पापमय चीजों में उलझा हुआ था, – सेक्स, ड्रग्स, रॉक एंड रोल – जिन चीज़ों को जो दुनिया अच्छी मानती है, लेकिन ऐसा एक अवसर आया जब उन्होंने पाप को छोड़ने और अपने जीवन की सबसे बड़ी लड़ाई का सामना करने का फैसला किया, और उनकी दुनिया ही बदल गयी।
मेरा पालन-पोषण एकल अभिभावक के द्वारा हुआ, जहाँ व्यावहारिक रूप से कोई धार्मिक शिक्षा नहीं थी। मेरी माँ एक अद्भुत महिला हैं और उन्होंने मेरा भरण-पोषण करने के लिए हर संभव कोशिश की, लेकिन यह पर्याप्त नहीं था। जब वह बाहर काम कर रही थी, तब मैं घर पर अकेला केबल टीवी के सामने बैठा करता था। मेरा पालन-पोषण एम.टी.वी. जैसे टेलीविजन नेटवर्क द्वारा किया गया था। एम.टी.वी. ने जिन चीज़ों को महत्व देने के लिए मुझसे कहा, मैं उन चीज़ों को महत्व देता था: लोकप्रियता, मौज मस्ती, संगीत, और अन्य अधर्मी चीजें। मेरी माँ ने मुझे सही दिशा में ले जाने के लिए हर संभव कोशिश की, लेकिन ईश्वर के बिना मैं सिर्फ पाप से पाप की ओर चला गया। बुराई से अत्यधिक बुराई तक। यही कहानी इस देश के आधे से ज्यादा लोगों की है। सच्चाई यही है कि मीडिया द्वारा बच्चों की परवरिश की जा रही है और मीडिया लोगों को इस जीवन में और अगले जीवन में भी दुख की ओर ले जा रहा है।
माँ मरियम की दखल
जब मैं अमेरिका के टेक्सास राज्य के ह्यूस्टन में स्थित सेंट थॉमस विश्वविद्यालय गया तब मेरा जीवन नाटकीय रूप से बदलने लगा। उस विश्वविद्यालय में मैंने धर्मशास्त्र और दर्शनशास्त्र के पाठ्यक्रम लिए, जिस के कारण मेरे दिमाग में वस्तुनिष्ठ सत्य की खोज शुरू हुई। मैंने देखा कि कैथलिक विश्वास में कुछ बौद्धिकता है। मेरे दिमाग में मुझे विश्वास हो गया था कि कैथलिक धर्म वस्तुनिष्ठ रूप से सत्य था, लेकिन बस एक ही समस्या थी … मैं दुनियावी बातों, शारीरिक प्रलोभनों और शैतान का गुलाम था।
उन दिनों सबसे बुरे लड़कों में से सबसे आगे, और सबसे अच्छे लड़कों में सबसे पिछड़े के रूप में मैं कुख्यात था। मेरे बुरे दोस्तों में से बहुत लड़के दृढीकरण संस्कार प्राप्त करने के लिए जा रहे थे और मैंने सोचा “अरे मैं भी एक बुरा कैथलिक हूं … मुझे भी दृढीकरण संस्कार लेना चाहिए”। दृढीकरण के लिए ज़रूरी आत्मिक साधना के दौरान हमने एक शाम पवित्र घड़ी में समय बिताया, मुझे नहीं पता था कि यह पवित्र घड़ी क्या होती है, इसलिए मैंने एक प्रोफेसर से पूछा जिन्होंने मुझे पवित्र यूखरिस्त में येशु को निहारने और येशु के पवित्र नाम को दोहराने की सलाह दी। इस अभ्यास के लगभग 10 मिनट के बाद ईश्वर ने मेरी आत्मा में अपनी उंगली डाल दी और मुझे अपने प्यार से अभिभूत कर दिया, और मेरा पत्थर का दिल पिघल गया। उस घड़ी के बाकी समय पर मैं रोता रहा। उस दिन मुझे पता चला कि कैथलिक धर्म न केवल मेरे दिमाग को, बल्कि मेरे दिल को भी प्रभावित करता है। मुझे अपना जीवन बदलना पड़ा।
एक बार चालीसा काल के दौरान, मैंने हर तरह के गलत रस्ते को त्यागने और हर घातक पाप या महापाप को छोड़ने का संकल्प लिया। मेरे संकल्प के ठीक दो घंटे बाद, मुझे एहसास हुआ कि मैं पहले से ही महापाप कर चुका था, इसलिए मैं पाप के जाल में किस तरह बुरा फंसा हुआ था। मुझे एहसास हुआ कि मैं एक गुलाम था। उस रात ईश्वर ने मुझे मेरे पापों के लिए मुझमें सच्चा पश्चाताप भर दिया और मैंने दया के लिए उसे पुकारा। तभी शैतान बोल उठा। उसकी आवाज स्पष्ट और डरावनी थी। ऊँचे स्वर में गड़गड़ाहट के साथ, उसने मेरे शब्दों को मज़ाक में दोहराया, “प्रभु, मुझे माफ़ कर। मैं तुझसे क्षमा माँगता हूँ प्रभु!” मैंने तुरंत संत जॉन वियांनी से प्रार्थना की। जिस पल मैंने वह प्रार्थना की, वह शैतानी आवाज चली गई। अगली रात मैं अपने कमरे में सोने के लिए बहुत डरा हुआ था, क्योंकि मुझे डर था की कहीं मुझे उस आवाज़ को दोबारा सुनना पडेगा।
इसलिए मैंने एक जपमाला निकाली, जिसे संत पापा जॉन पॉल द्वितीय ने आशीर्वाद दिया था। मैंने माला विनती की पुस्तिका खोली, क्योंकि मुझे नहीं पता था कि माला विनती कैसे की जाती है। जब मैंने प्रार्थना की, “मैं स्वर्ग और पृथ्वी के सृष्टिकर्ता सर्वशक्तिमान पिता ईश्वर पर विश्वास करता हूँ…..”, एक बुरी शक्ति ने मेरे गर्दन को पकड़ लिया, मुझे नीचे दबा दिया और मेरा गला घोंटने लगा। मैंने अपनी माँ को फोन करने की कोशिश की, लेकिन मेरी आवाज़ नहीं निकल पा रही थी। फिर मैं ने अपने सिर के अन्दर एक आवाज सुनी,, “प्रणाम मरिया, कृपापूर्ण… की प्रार्थना करो।” मैंने कोशिश की, लेकिन नहीं कर सका। मेरे सिर के अन्दर फिर आवाज़ सुनाई दी, “अपने मन में वही प्रार्थना कहो।” तो मेरे मन में मैंने कहा “प्रणाम मरिया”। फिर मैंने जोर से आवाज़ निकालने केलिए हांफते हुए कहा, “प्रणाम मरिया”! तुरंत सब कुछ सामान्य हो गया। मैं पूरी तरह से घबरा गया और महसूस किया कि यह दुष्ट शक्ति मेरे अब तक के जीवन में हमेशा मेरे साथ रहा। उसी समय मुझे एहसास हुआ कि मरियम ही मेरी समस्याओं की जवाब है। यहां तक कि उसका नाम पुकारने मात्र से ही मैं एक राक्षस रुपी दुष्टात्मा के वास्तविक चंगुल से मुक्त हो गया। कुछ शोध करने के बाद, दुष्ट शक्तियों के प्रभाव में मेरे रहने के कई कारणों की मैं ने पहचान की: मेरी माँ के पास नव युग की किताबें थीं, मेरे पास पापमय संगीत था, मैंने ऐसी बहुत सारी फिल्में देखी थीं जो सिर्फ बालिगों के लिए थीं, मैं जीवन भर घातक पाप में जी रहा था। शैतान मुझमें आविष्ट था, लेकिन माँ मरियम उसका सिर कुचल देती है। मैं अब माँ मरियम का हूँ।
पापियों को परिवर्तित करने में विफल
मैं रोज माला विनती की प्रार्थना करने लगा। मुझे एक अच्छा पुरोहित मिल गया और मैं लगभग प्रतिदिन, पाप स्वीकार करने जाने लगा। लेकिन बाद में मैं इसे जारी नहीं रख सका, इसलिए मुझे अपने सभी व्यसनों को तोड़ने के लिए माँ मरियम के साथ छोटे-छोटे कदम उठाने पड़े। माँ मरियम ने गुलामी से मुक्त होने में मेरी मदद की और सुसमाचार के संदेशवाहक बनने की इच्छा को मुझ में प्रेरित किया। जब मैंने माला विनती की प्रार्थना की, तो उसने मेरे लतों को तोड़ने में मेरी मदद की और मेरे मन को शुद्ध और पवित्र किया। मेरे अन्दर के क्रांतिकारी परिवर्तन और धार्मिकता की भूख के कारण मैंने धर्मशास्त्र में डिग्री और दर्शनशास्त्र में एक सर्टिफिकेट कोर्स पूरा किया। मैंने एक दिन में कई माला विनती कीं और मरियम को ही हर जगह देखा और शैतान को कहीं नहीं देखा। कॉलेज के बाद, मैंने एक धर्म शिक्षक के रूप में कैथलिक स्कूल प्रणाली में प्रवेश किया; मैं युवाओं को वह सब कुछ सिखाने लगा जो मैं जानता था। हालाँकि वे एक कैथलिक स्कूल में थे, वे मुझसे भी अधिक संघर्ष से गुज़र रहे थे। स्मार्टफोन के आगमन के साथ उनके पास छिपी हुई व्यसनों और गुप्त और गुमनाम जीवन के नए अवसर थे। मैं एक अच्छा शिक्षक था और परमेश्वर के लिए उनका दिल जीतने की पूरी कोशिश कर रहा था, लेकिन मैं असफल हो रहा था।
दो साल के अंदर, मैं एक आत्मिक साधना में गया, जो ऐसे एक बहुत ही पवित्र पुरोहित द्वारा संचालित था जो रूहों की विवेचना और आत्माओं को समझने के आत्मिक वरदानों के लिए विख्यात थे। हमें एक व्यापक पाप स्वीकार करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। जीवन भर के पापों को देखते हुए, मैंने देखा कि ईश्वर की भलाई और दया के बावजूद मैं कितना भयानक था, मैं रोया। उस पुरोहित ने मुझसे पूछा, “तुम क्यों रो रहे हो?” और मैं ने सिसकियाँ भरते हुए कहा, “क्योंकि मैंने अपने बुरे उदाहरण से बहुत से लोगों को चोट पहुंचाई है, और बहुतों को भटका दिया है।” उन्होंने उत्तर दिया, “क्या तुम अपने द्वारा किए गए नुकसान के लिए प्रभावी क्षतिपूर्ति करना चाहते हो? रोज़री माला के सभी भेदों को पूरे एक साल तक हर दिन प्रार्थना करने का संकल्प लो, अपने हर एक बुरे काम में से, और उन सभी व्यक्तियों से जिन्हें आप ने चोट पहुंचाया, उन में से अच्छाई लाने के लिए माँ मरियम से कहो। उसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहिए। जान लो की तुम्हारे सारे कर्ज चुकाए गए हैं और आगे बढ़ो।”
मरियम के साथ सफल होना
मैंने पहले भी कई रोज़ माला विनती की प्रार्थना की थी, लेकिन जीवन के लिए एक सख्त नियम के रूप में कभी नहीं की थी। जब मैंने पूरी माला विनती को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लिया तो सब कुछ बदल गया। ईश्वर की शक्ति हर समय मेरे साथ थी। मरियम मेरे माध्यम से कामयाब हो रही थी। मैं आत्माओं तक पहुंच रहा था, और मेरे छात्रों के जीवन में नाटकीय रूप से बड़े बड़े परिवर्त्तन हो रहे थे। वे मुझसे यू-ट्यूब पर वीडियो डालने के लिए बार बार अनुरोध कर रहे थे। वे शुरुआती दिन थे और मुझमें आत्म विश्वास की कमी थी, इसलिए मैंने दूसरे लोगों के व्याख्यानों और प्रवचनों को तस्वीरों के साथ अपलोड किया।
मरियम ने मुझे एक पड़ोसी पल्ली में काम करने के लिए प्रेरित किया। यह अच्छा हुआ, क्योंकि आत्माओं को पाने के मेरे उत्साह के साथ यह बेहतर रूप से काम आया। वास्तव में उस पुरोहित ने मुझे उन सारे युवाओं को पूरी तरह झकझोरने के लिए प्रोत्साहित किया, इसलिए उस पुरोहित के सहयोग से मैंने वही कार्य किया। मैंने नाजुक और विवादित विषयों पर वीडियो बनाना शुरू किया। मैं एक फिल्म प्रतियोगिता में शामिल हुआ, परिणाम स्वरूप मैंने विश्व युवा दिवस की मुफ्त यात्रा और 4,000 डॉलर के मूल्य के वीडियो उपकरण जीते। मैं आपको बता रहा हूं, माँ मरियम एक विजेता है। स्पेन में विश्व युवा दिवस पर, मैं संत डोमिनिक चर्च में पवित्र मिस्सा में गया था। जब मैं रोज़री की माँ मरियम की एक मूर्ति के सामने खड़े होकर प्रार्थना कर रहा था, तब मुझे संत डोमिनिक की उपस्थिति का एक जबरदस्त एहसास हुआ। यह इतना मजबूत था कि मुझे लगभग ऐसा लगा कि मैं माँ मरियम की मूर्ति के सामने नहीं, बल्कि संत डोमिनिक के सामने खडा हूँ। जो सन्देश मुझे वहां दिया गया, उस सन्देश के शब्दों को मैं दुहरा नहीं सकता, लेकिन यह एक गहरी आंतरिक समझ थी कि रोज़री माला को बढ़ावा देने का एक मिशन मुझे दिया गया है, क्योंकि इसी में दुनिया की समस्याओं का जवाब है।
मैंने उन उपकरणों की मदद से ऐसा करने का संकल्प लिया जो उपकरण संत डोमिनिक के पास नहीं थे। मैंने माला विनती से जुडी सारी बातों का शोध करना शुरू कर दिया – इसका इतिहास, इसकी रचना, इसके विभिन्न पहलू, वे संत जिन्होंने यह प्रार्थना की आदि। जितना अधिक मैंने इसका अध्ययन किया, उतना ही मुझे एहसास हुआ कि इस रोज़री माला ने बहुत सारी समस्याओं का जवाब दिया है। आध्यात्मिक जीवन में परिवर्तन और कामयाबी रोज़री माला के फल थे। जितना अधिक मैंने इसे बढ़ावा दिया, उतना ही मैं सफल हुआ।
इस मिशन के हिस्से के रूप में, मैंने “गैबी आफ्टर ऑवर्स” नाम से एक यू-ट्यूब चैनल विकसित किया, जिसमें बच्चों को विश्वास, उपवास और उद्धार में परवरिश करने पर भी सामग्री है। माला विनती मेरे प्रेरितिक कार्य के लिए ईंधन है। जब हम रोज़री माला की प्रार्थना करते हैं, तो हम माँ मरियम को स्पष्ट रूप से सुन सकते हैं। रोज़री माला तलवार की तरह है, जो उन बेड़ियों को तोड़ देती है, जिनसे शैतान ने हमें बांध रखा है। यह एक सम्पूर्ण और सिद्ध प्रार्थना है।
वर्तमान में अपने जैसे युवाओं के साथ मैं युवा सेवकाई में पूर्णकालिक काम करता हूं। उनमें से अधिकांश वंचित और गरीब परिवारों से आते हैं, जिनमें से कई के घर में माता-पिता के रूप में एक ही व्यक्ति है। चूँकि इनमें से अधिकांश बच्चे अनाथ हैं, इसलिए माताएँ दो-दो काम करती हैं, इसलिए कुछ युवा अपने उन अभिभावकों के अनजाने में ही बुरी आदतों में पड़ जाते हैं, जैसे कि मारिजुआना का धूम्रपान करना या शराब पीना। हालांकि, जब उन्हें कुँवारी मरियम, कार्मेल की माँ मरियम की ताबीज़, चमत्कारी बिल्ला और विशेष रूप से रोज़री माला से परिचित कराया जाता है, तो उनके जीवन में बड़ा आमूल चूल बदलाव देखने को मिलता है। वे पापियों से संतों की ओर रुख कर लेते हैं। शैतान के दासों से लेकर मरियम के सेवकों तक। वे केवल येशु के अनुयायी नहीं बनते, वे येशु के प्रेरित बन जाते हैं।
मरियम के साथ पूर्ण रुपेण आगे बढ़ें। रोज़री माला के साथ सब अंदर जाएँ। सभी महान संत इस बात से सहमत हैं कि मरियम का अनुगमन करने से, आपको येशु मसीह के हृदय तक सबसे तेज़, सबसे सुरक्षित और प्रभावशाली मार्ग पर ले जाता है। संत मैक्सिमिलियन कोल्बे के अनुसार, पवित्र आत्मा का लक्ष्य और कार्य है कि वह मरियम के गर्भ में हमेशा के लिए ख्रीस्त का सृजन करे। यदि आप पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होना चाहते हैं, तो आपको मरियम के समान बनना होगा। पवित्र आत्मा मरियम के भक्त आत्माओं के लिए उड़ान भरता है। यह सफलता का आदर्श है, जिसे हमारा प्रभु चाहता है। जिस तरह येशु ने किया उसी तरह हम भी अपने आप को मरियम को समर्पित करें। हम उससे चिपके रहें, जैसे बालक येशु मरियम से चिपका था। हम छोटे शिशु के रूप में रहें ताकि मरियम हम में रह सकें और ख्रीस्त को दूसरों तक पहुंचा सकें। अगर आप लड़ाई जीतना चाहते हैं तो माँ मरियम के साथ जाएं। वह हमें ख्रीस्त येशु के पास ले आती है और हमें येशु के समान बनने में मदद करती है।
'पोर्न या कामोद्दीपक सामग्रियों की लत ने उन्हें कामुकता और ईश्वर से नफरत करने के लिए प्रेरित किया, लेकिन एक रात सब कुछ बदल गया। अश्लील साहित्य से बाहर निकलने की साइमन कैरिंगटन की मुक्ति यात्रा की खोज करें।
मेरा सौभाग्य था कि मैं एक कैथलिक परिवार में छह बच्चों के बीच तीसरे बच्चे के रूप में जन्मा और पाला गया। मेरे पिताजी एक महान आध्यात्मिक गुरु थे। उन्होंने घर पर शाम की प्रार्थना का नेतृत्व किया और हर रात हमारे सोने से पहले रोज़री माला की प्रार्थना की। हम रविवार को मैरीलैंड्स में स्थित संत मार्गरेट मैरी गिरजाघर गए, और हमने वेदी सेवक के रूप में और गायक मंडली में सेवा दी। तो कुल मिलाकर, परमेश्वर मेरे जीवन के केंद्र में था।
और अधिक पाने की लत
जब मैं 15 साल का था, तब मेरी दादी का देहांत हो गया। मुझे वास्तव में दादी की कमी खलने लगी और महीनों बाद भी हर रात मैं रोता था। गहरे अकेलेपन और दर्द ने मुझे कुछ ऐसा खोजने के लिए प्रेरित किया जो मुझे प्यार का एहसास दिलाए।
तभी मैंने पोर्नोग्राफी (कामोद्दीपक सामग्रियों) की तलाश शुरू की। जितना मैंने देखा, उतना ही मैं और अधक पाने के लिए तरसता रहा। धीरे-धीरे मेरा विश्वास कमजोर होने लगा। स्कूल में, मैं अभी भी अपने दोस्तों के साथ आनंदित था, खेलकूद का आनंद लिया करता था और गिरजाघर जाता था। बाहर से मैं सब कुछ ठीक कर रहा था जैसे कि दिनचर्या के हिस्से के रूप में – मिस्सा में जाना, माला विनती की प्रार्थना करना वगैरह, लेकिन मेरे अंदर विश्वास मर रहा था। मेरा दिल कहीं और था क्योंकि मैं पाप में जी रहा था। यद्यपि मैं पाप स्वीकार संस्कार में जाता था, यह परमेश्वर के प्रेम से कम, नरक के भय से अधिक था।
जीवन का वह मोड़
एक पारिवारिक मित्र के यहाँ मुलाक़ात के दौरान, मुझे उनके यहाँ शौचालय में अश्लील पत्रिकाओं का एक खजाना मिला। पहले वाली पत्रिका को उठाना, और उस पूरी पत्रिका को शुरू से अंत तक पलटने की उस घटना का मैं कभी नहीं भूल सकता हूँ। यही मेरे जीवन का पहला वास्तविक, भौतिक और मूर्त पोर्न था। मैंने महसूस किया कि मेरे अन्दर बहुत सारी भावनाएं उमड़ रही हैं – एक अति उत्साह कि जिस खालीपन को मैं मह्स्सोस कर रहा हूँ, उस का जवाब बस यही है, लेकिन साथ ही गहरी लज्जा भी। लग रहा था कि मेरे दिल में प्यार के लिए जो दर्द है, उस दर्द को संतुष्ट करनेवाला “भोजन” यही है। उस दिन मैं उस बाथरूम से एक अलग व्यक्ति के रूपमें बाहर निकला था। तभी मैंने अवचेतन रूप से ईश्वर से मुंह मोड़ लिया। मैंने ईश्वर के बदले अश्लील साहित्य और अशुद्ध जीवन को चुना।
उस अनुभव के बाद, मैंने अश्लील पत्रिकाएँ खरीदना शुरू किया। चूंकि मैं हर दिन जिम जाता था, इसलिए मुझे इन सभी अश्लील पत्रिकाओं को छिपाकर करने के लिए जिम की दीवार में एक दरार मिली। हर बार जब मैं जिम जाता, तो जिम के रिवाज़ के सत्र की शुरुआत और अंत में, मैं पत्रिकाओं के उस संग्रह में जाकर 20 या 30 मिनट उन्हें पलटकर पढता था। सालों तक यही मेरी जिंदगी की दिनचर्या बनी रही। पोर्नोग्राफी के प्रति मेरा इतना लत लग गया कि काम के दौरान पोर्न देखने के लिए हर घंटे मैं टॉयलेट ब्रेक लेता था और इस तरह मेरी नौकरी लगभग चली गई। इस लत ने मेरे पास मौजूद हर खाली पल को मुझ से छीन लिया।
बेहद ठंडा
मैंने विभिन्न कैथलिक वक्ताओं को सुनने और शुद्धता और लैंगिकता पर किताबें पढ़ने की कोशिश की। मुझे एहसास हुआ कि उन सभी ने कहा कि लैंगिकता या कामुकता ईश्वर का एक उपहार है, लेकिन मैं इसे समझ नहीं पाया। केवल एक चीज जो लैंगिकता ने मुझे दी, वह थी दर्द और खालीपन। मेरे लिए, मेरी कामुकता ईश्वर के उपहार से बिलकुल सबसे दूर की चीज थी। यह एक खूंखार जानवर जैसा था जो मुझे नरक में घसीट रहा था!
मैं अपनी लैंगिकता से घृणा करने लगा और परमेश्वर से घृणा करने लगा। लैंगिकता मेरे दिल में जहर बन गया। जब मेरे परिवार ने माला विनती की प्रार्थना की, तो मैं प्रणाम मरियम और हे संत मरियम प्रार्थना नहीं कह पा रहा था। मैं अनुग्रह की स्थिति में बिलकुल नहीं था। मैं महीनों तक मिस्सा में जाता रहा लेकिन परम प्रसाद को ग्रहण नहीं करता था। यहां तक कि अगर मैं मिस्सा के बाद पाप स्वीकार संस्कार में जाता, तो मैं अगले दिन तक पोर्नोग्राफी के बिना दिन नहीं बिता पाता था। मेरे दिल में किसी प्रकार का प्यार नहीं था। जब मेरी मां मुझे गले लगाती तो मैं चट्टान की तरह तनाव में आ जाता। मुझे नहीं पता था कि प्यार और कोमल स्नेह कैसे प्राप्त करें। बाहर से मैं हमेशा मिलनसार और खुश रहता था, लेकिन अंदर से मैं खाली और मरा हुआ था।
मुझे याद है कि एक दिन पोर्नोग्राफी देखने के बाद मैं अपने कमरे में आया था और आते ही मैंने अपनी दीवार पर क्रूसित प्रभु की मूर्ती को देखा। क्रोध के एक क्षण में मैंने क्रूस पर लटके येशु से कहा, “तू मुझसे कैसे उम्मीद करता है कि लैंगिकता तेरी ओर से दिया जा रहा उपहार है? यह लैंगिकता मुझे बहुत दर्द और खालीपन पैदा कर रहा है। तू झूठा है!” मैंने नीचे से अपनी चारपाई पर छलांग लगा दी और दीवार से सूली को निकाल लिया और उसे अपने घुटने पर मार कर तोड़ दिया। टूटे हुए क्रूस को देखकर मैं गुस्से से फूट पड़ा, “मैं तुझसे नफरत करता हूँ! तू झूठा है।” फिर मैंने उस क्रूस को कमरे में रखे कूड़े दान में फेंक दिया।
जब मेरा जबड़ा फर्श से टकराया
फिर एक दिन, माँ ने मुझसे कहा कि मैं अपने बड़े भाई के साथ जेसन एवर्ट की अध्यात्मिक सभा में जाऊं जहां शुद्धता पर प्रवचन होगा। मैंने उसे विनम्रता से कहा “माँ, मैं नहीं जाना चाहता।“ जब उसने जाने केलिए फिर अनुरोध किया, तो मैंने कहा, “माँ, प्यार असली नहीं है। मैं प्यार में विश्वास नहीं करता!” माँ ने बस इतना कहा, “तुम्हें जाना पडेगा!” अनिच्छा से मैं उस रात की सभा में भाग लेने चला गया।
मुझे याद है कि उस रात जेसन की बात सुनने के बाद मैं आश्चर्य चकित था। एक लाइन ने मेरी जिंदगी बदल दी। उन्होंने कहा, “पोर्न आपके भविष्य के वैवाहिक जीवन को बर्बाद करने का सबसे सुरक्षित तरीका है।”
जैसे ही उसने यह कहा, मुझे एहसास हुआ कि अगर मैंने अपने तरीके नहीं बदले, तो मैं उस महिला को नुकसान पहुँचाऊँगा जिससे भविष्य में मेरी शादी होगी, क्योंकि मुझे नहीं पता था कि उस औरत के साथ ठीक से कैसे व्यवहार किया जाए।
इसके बाद शादी के लिए मेरी जो भी ख्वाहिशें थीं, वे सब मुझमें फिर से प्रकट हो गईं। वास्तव में मैं प्रेम और वैवाहिक जीवन को सबसे अधिक चाहता था, लेकिन मैंने उस चाहत को यौन पाप के साथ दफन कर दिया था।
उस रात मुझे जेसन से व्यक्तिगत रूप से बात करने का मौका मिला और उन्होंने जो सलाह दी उससे मेरी जिंदगी बदल गयी। उन्होंने कहा, “देखो, तुम्हारे हृदय में प्रेम है, और साथ साथ वासना के ये सब प्रलोभन भी हैं। इनमे से जिसे भी तुम अधिक खिला पिलाने का निर्णय लेते हो, वही मजबूत हो जाएगा और अंततः वह दूसरे पर हावी हो जाएगा। अब तक तुम प्यार से अधिक वासना को खिलाते रहे हो, अब प्यार को खिलाने का समय आ गया है।”
मुझे पता था कि उस रात ईश्वर ने मुझे स्पर्श किया था, और मैंने फैसला किया कि मुझे एक साफ-सुथरी शुरुआत की जरूरत है। मैंने पाप स्वीकार संस्कार के लिए एक पुरोहित को बुक किया और उन से मैंने पहले ही कह दिया कि आज का मेरा पाप स्वीकार लंबा समय लेगा! मैंने एक सामान्य पाप स्वीकार किया जिसमें लगभग डेढ़ घंटा लगा। मैंने हर उस यौन पाप को क़बूल किया जिसे मैं संभवतः याद रख पा रहा था, मैंने जिन पोर्न स्टार्स को देखा था, उनके नाम, कितनी बार, कितने घंटे और कितने सालों तक, ये सब मैंने कबूल किया। मुझे लगा कि उस रात पाप स्वीकार संस्कार से एक नया आदमी बाहर निकल रहा है।
एक खूबसूरत खोज
मेरे जीवन में परिवर्तन का तीसरा चरण शुरू हुआ। हालाँकि मैं अभी भी यौन अशुद्धता के उन पापों से जूझ रहा था, फिर भी मैं लगातार संघर्ष में था। धीरे-धीरे, मैं यौन पाप से छुटकारे का अनुभव करने में सक्षम हुआ, और मैंने महसूस किया कि परमेश्वर मुझे वास्तव में निमंत्रण दे रहा है ताकि मैं यह सीखना शुरू कर दूं कि मानव की लैंगिकता के लिए परमेश्वर की योजना क्या थी, और वह चाहता है कि मैं इसे दूसरों के साथ साझा करना शुरू करूँ।
मुझे ऐसे वक्ताओं का सामना करना पड़ा, जिन्होंने संत जॉन पॉल के “शरीर के धर्मशास्त्र” को मेरे सामने जाहिर किया और उस पुस्तक को पढ़ने के दौरान मैं एक शक्तिशाली विचार से प्रभावित हुआ: मेरा शरीर और हर दूसरा शरीर ईश्वर का संस्कार है। मुझे एहसास हुआ कि मैं ईश्वर की छवि या प्रतिछाया हूँ और हर महिला भी ईश्वर की प्रतिछाया है। जब मैंने इस दृष्टि के माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति को ईश्वर के एक जीवित संस्कार के रूप में देखना शुरू किया, तो उन्हें यौन रूप से उनके दोहन करने के बारे में सोचना ही मेरे लिए बहुत कठिन हो गया। अगर मुझे कभी किसी के प्रति वासना पूर्ण इच्छा जागृत होती, और विशेषकर हस्तमैथुन और अश्लील साहित्य के माध्यम से वासना करनी होती, तो मुझे अपने मन और अपने दिल में उन्हें अमानवीय बनाना पड़ता। अपने आप को और अन्य महिलाओं को देखने के इस नए दृष्टिकोण से सबल होकर, मैं एक बड़ा परिवर्तन करने के लिए दैनिक मिस्सा बलिदान और नियमित पाप स्वीकार से प्राप्त अनुग्रहों से सशक्त हो गया।
मैंने हर महिला को यौन सुख के लिए नहीं बल्कि वास्तव में ईश्वर के एक सुंदर संस्कार के रूप में देखना शुरू किया। मैं इस नए संदेश से इतना उत्साहित था कि मैं इसे जहाँ तक संभव था, हर किसी के साथ साझा करना चाहता था। उस समय मैं एक जिम में फिटनेस प्रशिक्षक के रूप में काम कर रहा था, लेकिन मुझे लगा कि ईश्वर मुझे उस माहौल को त्यागकर सीधे उनकी सेवा करने के लिए बुला रहे हैं। मुझे यकीन नहीं था कि मैं कहाँ जा रहा हूँ, लेकिन दरवाजे खुलने लगे। मैं युवा सेवकाई में शामिल हो गया और “परूसिया मीडिया” नामक संस्था के लिए काम करना शुरू कर दिया, जहाँ मैंने विश्वास सम्बन्धी सामग्रियों की पैकिंग और पोस्टिंग किया। जब मैं वहां सेवा दे रहा था, तब वहां मैं पूरे दिन विश्वास की बातें सुनता था, और मेरे अपने व्यक्तिगत विश्वास के बारे में शक्तिशाली तरीके से सीखता था। लगभग हर सप्ताहांत में मैंने हाई स्कूल के छात्रों के बीच एक युवा सेवक के रूप में प्रवचन देना शुरू किया, और मुझे सुसमाचार के प्रचार में बहुत अंड आने लगा और मुझे इस सेवकाई से प्यार हो गया।
पहले से बिलकुल अनोखा प्यार
एक दिन, एक महिला मेरे कार्यालय में पहुंची। वह किसी वक्त की तलाश में थी, जो युवा लोगों से शुद्धता और विशेष रूप से अश्लील साहित्य के बारे में बात कर सकें। पता नहीं कैसे, मैंने उस महिला से कहा कि मैं यह कार्य करूँगा। मैंने उस रात उन युवाओं के सम्मुख अपनी गवाही साझा की, और प्रतिक्रिया बहुत उत्साहजनक थी। मौखिक रूप से प्रचार हुआ, और अधिक से अधिक लोग मुझे और और मेरी कहानी को जानने लगे और अधिक जगहों पर उद्बोधन देने के निमंत्रण आने लगे।
पिछले 10 वर्षों में मैंने शुद्धता, शुद्ध डेटिंग और शरीर के धर्मशास्त्र के आधार पर 30,000 से अधिक लोगों को 600 से अधिक उद्बोधन दिए हैं। इस सेवकाई के माध्यम से, मैं मेडेलीन से मिला जो मेरी पत्नी के रूप में मेरे जीवन में आयी, और प्रभु की आशीष से हमें तीन बच्चे मिल गए। प्रत्येक व्यक्ति ने जिस प्रेम के बारे में सपना देखा था, उस प्रेम का अनुभव करने के लिए, लोगों को आमंत्रित करने के लिए फायर अप मिशन की सेवकाई प्रारम्भ करने हेतु परमेश्वर हम दोनों को विभिन्न स्थानों पर ले गए!
अपने जीवन के इस बिंदु पर, मुझे यौन स्वतंत्रता के उस स्तर का अनुभव करने का सौभाग्य मिला है जो मुझे पहले कभी नहीं मिला था। मैं अब जहां हूं, वहां तक मुझे पहुंचाने के लिए मैं ईश्वर का शुक्रिया अदा करता हूं, और उन दिनों को याद करता हूं जब मैं वास्तव में इस क्षेत्र में बड़े संघर्ष से जूझ रहा था। ऐसे समय भी थे, जब मैंने महसूस किया कि सुरंग के उस छोर से किसी प्रकाश की किरण नहीं आ रही थी, और इसलिए मैंने “क्या पवित्रता संभव है?” कहकर ईश्वर से चिल्लाकर सवाल पूछा था। यह निराशाजनक लग रहा था, और मुझे लगा कि मैं हमेशा के लिए इस तरह जीने को अभिशप्त हो गया था। हालांकि मैंने सोचा था कि मेरे जीवन में कभी नहीं धुलनेवाले काले धब्बे थे, फिर भी ईश्वर ने मुझे प्यार करना कभी नहीं छोड़ा। उसने मेरे साथ धैर्यपूर्वक, क्षमा और कोमलता के साथ काम किया। मैं अभी भी उस यात्रा पर हूँ, और परमेश्वर अब भी मुझे प्रतिदिन चंगा कर रहा है।
“उनके जीवन में कुछ सचमुच अंधेरे क्षण थे, जिसके कारण वे यौन पाप के भारी क्रूस को धो रहे थे, लेकिन जब जब वे इसे मसीह के पास ले गये और उन्होंने उस क्रूस को मसीह को समर्पित कर दिया – तो मसीह उसे मुक्त करने में सक्षम था। साइमन ने ईश्वरीय करुणा का अमन सामना किया और उन्होंने अपने जीवन में मसीह में गहरी चंगाई का अनुभव किया। यह दया और चंगाई के उस उद्गम स्थान से था जहाँ से वे आनंद, प्रेम और सबसे बढ़कर कामुकता के साथ इसी तरह के संघर्ष को झेल रहे अन्य लोगों को आशा दिलाने में वे सक्षम रहे हैं। जब मैं साइमन को इतने सारे लोगों की सेवकाई करते हुए देखती हूँ, तो मैं लगातार इस बात से चकित होती हूँ कि कैसे वे उन सभी लोगों में ख्रिस्त के प्रेम का संचार करते हैं।”
- साइमन की पत्नी मेडेलीन कैरिंगटन
रास्ता बदलने का निर्णय लें, आपका जीवन बदल जाएगा।
जैसे ही हमारी पारिवारिक प्रार्थना समाप्त हुई, हम लोगों ने यिरमियाह नबी के ग्रन्थ के तीसरे अध्याय से पाठ पढ़ने के लिए पवित्र ग्रन्थ बाइबिल उठायी। जैसे जैसे मैं पढ़ रही थी, मेरे अवसाद के दिनों की याद करते हुए मेरा दिमाग पीछे की ओर उड़ान भरने लगा। वे उस दौर के दिन थे, जब दुष्टात्मा की आवाज मेरे सिर में बिल्कुल स्पष्ट रूप से गूँजती थी; दुष्टात्मा मुझे यह संकेत दे रहा था कि मैं प्यार की लायक नहीं हूँ, यहाँ तक कि ईश्वर भी मुझे अस्वीकार कर देगा। अफ़सोस की बात यह है कि मैं इसे ही सच मान रही थी। अपने दुखों और आंसुओं के बीच मैं गिरजाघर जाती थी, इसलिए नहीं कि मैं प्रभु के प्रेम को अनुभव करती थी, बल्कि इसलिए कि मेरे माता-पिता नहीं चाहते थे कि इतवार के दिन मैं घर में रहूँ। जब मैं आधे-अधूरे मन से या अनिच्छा से गिरजाघर और उसके परिसर में घूमती रही, तो मुझे इस बात का एहसास नहीं था कि पूरे दिल से वापस आने के लिए कोई मुझे लगातार कह रहा था। पश्चाताप करने के लिए ईश्वर मुझे निरंतर बुलावा देता रहा।
ईश्वर अपनी वाणी सुनाता है
वस्तविकता यही है कि परमेश्वर हमें सही निर्णय लेने के लिए ढेर सारे मौके देता है। उसने मुझसे पुरोहितों, लोकधर्मियों, सपनों और उद्धरणों के माध्यम से बात की। बार-बार, मुझे एक ही संदेश मिला — परमेश्वर वास्तव में मुझसे प्रेम करता है। वह नहीं चाहता था कि मैं शैतान के झूठ की शिकार हो जाऊं। वह चाहता है कि मुझे पता चले कि मैं उसकी बेटी हूं, चाहे कुछ भी हो और वह मुझे अपने पास वापस आने का निमंत्रण देता रहा। उन कठिन दिनों में से एक दिन, मैंने अपनी बाइबल उठाई और अनायास ही यिरमियाह, अध्याय 3 खुल गया। इन शब्दों पर पहुँचते ही मेरी आँखों में आँसू आ गए:
मैं सोचता था, मैं कितना चाहता हूँ कि तुम लोगों के साथ अपने पुत्रों-जैसा व्यवहार करूँ, और तुम को एक ऐसा सुखद देश प्रदान करूँ, जो किसी भी अन्य देश से सुन्दर है। मैं सोचता था, तुम मुझे पिता कहकर पुकारोगे और तुम फिर मेरा परित्याग नहीं करोगे। (यिरमियाह 3:19)
मैंने इसे बार-बार पढ़ा। आँसू मेरे गालों पर लुढ़क गए और अनियंत्रित होकर मेरी बाइबल के खुले पन्नों पर मोटी बूंदों बनकर गिर गए।
सत्य का एहसास
“मेरे साथ यह क्या हो रहा है?” मैं सोचने लगी। “इन शब्दों ने मुझे इतनी गहराई से क्यों स्पर्श किया?” यह ऐसा था, मानो मेरा हृदय ईश्वर के प्रेम की जलती हुई तीर से छेदा जा रहा था, मेरे चारों ओर बने कठोर आवरण को तोड़कर, वह बाण मुझे मेरी ठंडी उदासीनता से जगा रहा था।
ईश्वर ने मुझे बहुत कुछ दिया है, लेकिन मैंने वापस उसे क्या दिया था?
मैं सोचता था, तुम मुझे पिता कहकर पुकारोगे और तुम फिर मेरा परित्याग नहीं करोगे।
इन शब्दों में दुख झलकता है। “मैं सोचता था, तुम मुझे पिता कहकर पुकारोगे।“
एक प्यार करने वाला पिता, इस बात से हैरान था कि उसकी बेटी उससे दूर हो गई है और उससे बात करने से इंकार कर रही है, वह उसे ‘मेरे पिता‘ कहती हुई सुनने के लिए तरस रहा है।
मेरे ईश्वर, मेरे ईश्वर, मैंने तुम्हें क्यों त्याग दिया? वह मेरा पिताजी है। वह हमेशा मेरा पिता रहा है और उसने मुझे प्यार करना और मुझे संजोना कभी नहीं छोड़ा, तब भी, जब मैंने उसे ‘मेरे पिता‘ कहने से इनकार कर दिया।
“और मैं सोचता था, तुम मुझे पिता कहकर पुकारोगे और तुम फिर मेरा परित्याग नहीं करोगे।”
मैं मुकर गयी थी। मैंने उससे अपनी आँखें हटा ली थीं और उसका पीछा करना छोड़ दिया था। मेरे हाथ को पकडे हुए अपने पिता के उस हाथ को मैंने छोड़ दिया था, उस मार्ग से मैं भटक गयी थी, जिस पर वह मुझे मेरी परेशानियों के माध्यम से सुरक्षित रूप से ले जा सकता था। उसने मुझ पर भरोसा किया, लेकिन मैंने उसे निराश किया। स्वर्ग में मेरे प्यारे पिता का दिल टूट गया था क्योंकि, मैं ने, उसकी प्यारी बेटी ने, उसे छोड़ दिया था।
बिन माप-तौल का प्रेम
मैं अनियंत्रित होकर रोई, इस अहसास से अभिभूत हो गयी, कि हमेशा से मेरा पिता मेरे लिए था, उसे बुलाने केलिए वह धैर्यपूर्वक मेरी प्रतीक्षा कर रहा था। मैं उसकी उपस्थिति को नज़रअंदाज़ करने के लिए अपनी आँखें मूंद करके बहुत अंधी हो गयी थी। अब, मैंने अंत में उसे ढूंढ़ने के लिए अपनी आँखें खोल दीं, और वह खुले हाथों से मुझसे मिलने और मेरा आलिंगन करने की प्रतीक्षा कर रहा था। मैंने अंत में महसूस किया कि मैं उसके आलिंगन में बंधी हुई हूँ और मैंने अपने कंधों से एक भारी बोझ उतारे जाने का अनुभव किया।
हम येशु से इतने परिचित हैं कि हम अक्सर पिता परमेश्वर पर चिंतन नहीं करते हैं। अपनी आँखें बंद कीजिये और उसकी तस्वीर को अपनी भावना में लाइए, किसी दाढ़ी वाले बूढ़े आदमी, या बहुत दूर किसी राजमहल में बैठे राजा के रूप में नहीं, बल्कि प्यार करने वाले पिता के रूप में देखिये जो अपने सभी उडाऊ बच्चों के वापस घर आने की प्रतीक्षा कर रहा है ।
यह वह पिता है जो अपने गोद लिए हुए बच्चों से इतना प्यार करता है कि उसने अपने इकलौते पुत्र को हमारे पास भेजा कि वह हमें अपने पापों से छुटकारा दे। वह अपने पुत्र के साथ एक है। हर हथौड़े का प्रहार, कोड़े की प्रत्येक मार, हर दर्दभरी सांस जिन्हें येशु ने क्रूस पर झेली थी, उसने वे सब अपने पिता के साथ साझा की थी। अनादि काल से पिता जानता था कि येशु हमारे लिए स्वेच्छा से कौन-सी पीड़ा सहेगा।
“पैशन ऑफ द क्राइस्ट” फिल्म में, येशु की मृत्यु के ठीक बाद, आकाश से एक शक्तिशाली छींटे के रूप में एक बूंद गिरती है। स्वर्ग में मेरे पिता के खामोश आँसुओं को और उस पूरे कठिन दौर को, जिसे उसने अपने पुत्र के साथ चुपचाप सहा था, इस दृश्य ने मेरे दिल में इस सच्चाई को चित्रित किया। उसने क्यों यह सब सहा? मेरे लिए, आपके लिए, अंतिम पंक्ति के हर पापी के लिए। पिता हम में से हर एक की प्रतीक्षा कर रहा है कि हम उसकी ओर मुड़ें ताकि वह हमें अपने गर्मजोशी भरे आलिंगन में वापस स्वीकार कर सकें जहाँ हमारा हमेशा स्वागत रहेगा। वह हमारे चेहरे से हर आंसू पोंछने के लिए, पाप के कीचड़ से हमें धोने के लिए और हमें अपने दिव्य प्रेम के लबादे में लपेटने के लिए इंतजार कर रहा है।
प्यारे पिता, आखिरकार मुझे यह महसूस करने में मदद करने के लिए तुझे धन्यवाद कि तू मुझे बिना शर्त प्यार करता है। संदेह और अविश्वास के सभी क्षणों के लिए, मैं तुझसे क्षमा चाहती हूँ। हम में से हर एक की आंखें खोल दे प्रभु, कि हमारे प्रति तेरे प्रेम को हम जान सकें। तेरे सबसे प्रिय पुत्र हमारे प्रभु येशु मसीह के द्वारा। आमेन।
'क्या स्वर्गदूत वास्तव में मौजूद हैं? पेश है एक ऐसी कहानी जो आपको मंत्रमुग्ध कर देगी।
जब मैं हाई स्कूल में थी, मैं फरिश्तों और स्वर्गदूतों की कहानियाँ पढ़कर रोमांचित होती थी। मैंने अपने द्वारा पढ़ी गई उन कहानियों को दोस्तों और साथी छात्रों के साथ साझा करने की हिम्मत की, जो ये कहानियां सुनकर खुश और उत्सुक होते थे। मेरी उम्मीद से परे, एक लड़के ने विशेष दिलचस्पी दिखाई। एक बार जब हम बच्चे स्कूली बस में सवार हुए थे, और बस बच्चों से भरा हुआ था, वह गुंडई कर रहा था, अपशब्द बोलकर गलत व्यवहार कर रहा था। लेकिन जैसे ही अन्य छात्र चले गए और हम दोनों ही बस में रह गए थे, उसने मेरी ओर मुड़कर कहा, “क्या तुम मुझे फरिश्तों की कोई कहानी सुना सकती हो?” मैंने सोचा कि इसे कुछ आशा देने और स्वर्ग के बारे में बताने का यह मेरे लिए एक बढ़िया मौका होगा, और शायद उस लड़के को ठीक उसी समय इसकी बड़ी ज़रुरत थी।
उन्हीं दिनों, मेरे एक बहुत ही अच्छे शिक्षक थे जिन्होंने मेरे साथ एक अविस्मरणीय कहानी साझा की थी। उनका एक दोस्त एक अंधेरी गली में घबराते हुए चल रही थी और ईश्वर से सुरक्षा के लिए प्रार्थना कर रही थी। उसने अचानक देखा कि एक आदमी एक एकांत स्थान में खड़े होकर उसे गौर से देख रहा है। जैसे ही उसने और अधिक तीव्रता से प्रार्थना की, वह आदमी उसकी ओर बढ़ा, लेकिन थोड़ी देर रुक गया, फिर अचानक पीछे हट गया और अपना चेहरा दीवार की ओर कर लिया।
बाद में उसे पता चला कि उस जगह से उसके गुजरने के एक घंटे बाद उसी गली में एक युवती पर हमला किया गया था। यह सुनकर वह पुलिस के पास गई और उन्हें बताया कि उसने दूसरी महिला पर हमले से कुछ देर पहले ही उसी गली में किसी को देखा था। पुलिस ने उसे सूचित किया कि उनके पास हिरासत में कुछ संदिक्त लोग हैं और उससे पूछा कि क्या वह उन संदिग्धों की कतार को देखकर उस आदमी को पहचान कर लेगी। वह आसानी से सहमत हो गई। निश्चित रूप से उन संदिग्धों में वह आदमी था जिसे उसने गली में देखा था।
बाद में उस युवती ने पुलिस से उस आदमी से बात करने की अनुमति मांगी और उसे उस आदमी के कमरे में ले जाया गया। जैसे ही उसने प्रवेश किया, वह आदमी खड़ा हो गया और पहचान की दृष्टि से उसे देखने लगा।
“क्या तुम मुझे पहचानते हो?” उसने पूछा। उस आदमी ने सहमति में सिर हिलाया। “हाँ। मैंने तुम्हें वहाँ गली में देखा था ।”
उस महिला ने हिम्मत के साथ आगे सवाल किया। “तुमने दूसरी महिला के बजाय मुझ पर हमला क्यों नहीं किया?” उसने असमंजस में उसकी ओर देखा। “क्या तुम मेरे साथ मजाक कर रही हो?” उसने कहा, ” तुम्हारे आजू बाजे में दो हट्टे कट्टे लोग चल रहे थे, और मैं तुम पर कैसे हमला कर पाता?”
शायद आपको लगे कि यह कहानी मौलिक न हो, लेकिन मुझे यह कहानी पसंद आई। मेरे उस शिक्षक ने मुझे याद दिलाया कि हमारे बचपन से हम रखवाल दूत की बात सुनते आ रहे हैं, वह सिर्फ सुकून देने वाला कोई विचार या सुखद कल्पना नहीं हैं, वे रखवाल दूत और फ़रिश्ते असली हैं। वे शक्तिशाली और वफादार हैं। और उन्हें हमारी निगरानी करने और हमें परमेश्वर की संगति देकर हमारी रक्षा करने के लिए नियुक्त किया गया है। लेकिन क्या हम अपने इन छिपे हुए मित्रों को हल्के में लेते हैं? और जब हमें वास्तव में उनकी आवश्यकता होती है, तब क्या हम उन पर भरोसा करते हैं?
अपने पसंदीदा संतों में से एक, संत पाद्रे पियो से, मैंने अपने रखवाल दूत के बारे में अधिक बार सोचना और उनसे खुलकर बात करना सीखा। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं था कि मेरा रखवाल दूत पहले से ही कड़ी मेहनत कर रहा था और मेरी ओर से आध्यात्मिक लड़ाई लड़ रहा था, लेकिन एक दिन मैंने उसकी उपस्थिति को शक्तिशाली रूप से अनुभव किया।
मैं सत्रह साल की थी, मेरी बस छूट गई थी, और सर्द मौसम के बावजूद, मैंने अपनी बड़ी, लेकिन जाड़े के दिनों में ठण्ड और बर्फ के दिनों में अति संवेदनशील कार से स्कूल जाने का फैसला किया। एक ऊंची, ग्रामीण पहाड़ी पर गाड़ी चलाते समय, कार धीमी होने लगी। मैंने गैस पेडल को एकदम नीचे तक दबाया लेकिन कार केवल रेंगती रही। आस-पास कोई घर नहीं था और मेरे पास मोबाइल फोन नहीं था। अगर कार का ब्रेकडाउन हो जाता, तो मुझे किसी प्रकार की मदद के लिए ठंड के मौसम में लंबी सैर करनी पड़ती। मुझे याद आया कि सड़क से एक मील या उससे भी कम दूरी पर एक रेस्तरां था और मैं इस उम्मीद में थी कि अगर मैं किसी तरह अपने कार से इस पहाड़ी को पार करती, तो मेरे पास रेस्तरां तक पहुंचने के लिए ढलान से पर्याप्त गति मिल सकती है।
लेकिन कार धीमी हो गई और मुझे पता था कि कोई संभावना नहीं है कि मैं इसे पहाड़ी को पार कर लूंगी। “ठीक है, रखवाल दूत!” मैंने जोर से कहा। “मैं चाहती हूं कि तुम इस कार को धक्का देकर मुझे पहाड़ी के ऊपर तक पहुंचा दो। कृपया, मुझे पहाड़ी के ऊपर तक पहुंचा दो।” कार तेज हो गई। मुझे इसकी गति में अंतर महसूस हुआ, इसलिए मैंने अपने स्वर्गदूत को प्रोत्साहित किया, “हाँ, लगभग पहुँच गए! चलो बढ़ते रहो! कृपया धक्का देते रहो।” कार ऊपर की ओर बढ़ती रही और किसी तरह चोटी पर जा पहुँची। मैं ने पहले कार को तेजी से आगे बढ़ाकर नीचे की ओर उतरना शुरू किया लेकिन जल्द ही गति कम हुई। मैंने दूर से रेस्तरां देखा और मैं अपने रखवाल दूत से कार को धक्का देते रहने की भीख मांगती रही, हालाँकि मुझे नहीं लगा कि मैं रेस्तरां तक पहुँच पाऊँगी।
लेकिन कार को नई गति मिली, बस वह गति पर्याप्त थी, और मैं रेस्तरां की कांच की खिड़की के सामने वाली पार्किंग में जगह निकाल ली। फिर, मानो कि उसे कोई इशारा मिल गया हो, कार बंद हो गई। मैं सोचने लगी, “क्या वह एक संयोग था? मैं आभारी हूं कि सब कुछ इस तरह संभव हुआ।” उसी समय मेरे मन में यह सवाल उठने लगा, “क्या यह वास्तव में मेरे रखवाल दूत का हस्तक्षेप था?” फिर मैंने ऊपर देखा और मैंने रेस्तरां की खिड़की से पीछे की दीवार पर रखवाल दूत की एक विशाल पेंटिंग देखी। यह वह पेंटिंग थी जिसे मैं बचपन से प्यार करती आयी थी, जिसमें दो बच्चों को, उनके रखवाल दूत की चौकस सुरक्षा के तहत, एक खतरनाक पुल को पार करते हुए दिखाया गया है। मैं अभिभूत थी। मुझे बाद में पता चला कि ठण्ड के कारण मेरी कार की ईंधन लाइन पूरी तरह से जम गई थी, इसके बावजूद मैं एक सुरक्षित स्थान पर पहुँच गयी, यही मेरे लिए बड़े आश्चर्य की बात थी।
हो सकता है कि मेरी कहानी मेरे शिक्षक की अविश्वसनीय कहानी जैसी उतनी नाटकीय न हो, लेकिन इस घटना से मेरे विश्वास की पुष्टि हुई कि हमारे रखवाल दूत हम पर नज़र रखते हैं, और हमें मदद मांगने में कभी संकोच नहीं करना चाहिए – भले ही ज़रूरत पड़ने पर यह छोटा सा धक्का ही क्यों न हो।
मेरा मानना है कि इस तरह की कहानियों को साझा करना, उदाहरण के लिए संतों की कहानियों को साझा करना, सुसमाचार की घोषणा करने का एक शक्तिशाली तरीका है। रखवाल दूत हमें आश्वासन देते हैं कि हम अकेले नहीं हैं, कि हमारे पास एक पिता है जो हमें इतना प्यार करता है कि हमारी देखभाल करने के लिए वह हमारी जरूरत के समय में रखवाल दूत और फ़रिश्ते रूपी प्यारे सहयोगियों को हमें सौंप सकता है।
'शालोम टाइडिंग्स के अतिथि संपादक, ग्राज़ियानो मार्चेस्की द्वारा धन्य कार्लो एक्यूटिस की मां एंटोनिया साल्ज़ानो के साथ एक विशेष साक्षात्कार
सात साल की उम्र में उसने लिखा, “हमेशा येशु के करीब रहना ही मेरे जीवन का लक्ष्य है।”
जब वह पंद्रह वर्ष का था, तब तक वह उस प्रभु के घर जा चुका था, जिससे उसने अपने सम्पूर्ण लघु जीवन में अथाह प्रेम किया था।
बीच में है, असाधारण रूप से एक साधारण लड़के की अनोखी और असाधारण कहानी ।
साधारण, क्योंकि वह कोई ख्याति प्राप्त एथलीट नहीं था, न ही कोई खूबसूरत फिल्म सितारा, न ही कोई बुद्धिशाली विद्वान, उसने स्नातक की डिग्री तक हासिल की हो, जब उसकी उम्र के अन्य बच्चे जूनियर-हाई स्कूल की पढ़ाई से संघर्ष कर रहे हो। वह एक सुशील लड़का था, एक शालीन बच्चा। निश्चित रूप से बहुत ही उज्ज्वल: नौ साल की उम्र में उसने कंप्यूटर प्रोग्रामिंग स्वयं सीखने के लिए कॉलेज की पाठ्यपुस्तकें पढ़ीं। लेकिन उसने न तो कोई पुरस्कार जीता और न ही लोगों को ट्विटर पर प्रभावित किया। उसके आसपास के लोगों को बिलकुल पता नहीं था कि वह कौन है – अपने माता-पिता के साथ उत्तरी इटली में रहने वाला उनका एकमात्र बेटा, जो स्कूल जाता था, खेल खेलता था, अपने दोस्तों के साथ आनंद लेता था, और जो जोयस्टिक के माध्यम से डिजिटल गेम खेलता था।
विशिष्ट नहीं, लेकिन असाधारण
बहुत छोटी उम्र में उसे ईश्वर से प्यार हो गया और तब से, एक विलक्षण एकाग्रता के साथ, ईश्वर के प्रति बड़ी भूख के साथ वह रहता था जिसे बहुत ही कम लोग कभी प्राप्त करते हैं। और जब तक उसने इस दुनिया को छोड़ा, तब तक उसने इस पर एक अमिट छाप छोड़ी। वह हमेशा एक मिशन पर केन्द्रित था, उसने कोई समय बर्बाद नहीं किया। उसने जो देखा, उसे अन्य लोग नहीं देख सके, यहाँ तक कि उसकी माँ ने भी नहीं देखा, ऐसे में उसने उनकी आँखें खोलने में मदद की।
ज़ूम के माध्यम से, मैंने उसकी मां, एंटोनिया साल्ज़ानो का साक्षात्कार लिया, और ईश्वर के प्रति उसकी भूख को समझाने के लिए कहा, जिसे पोप फ्रांसिस ने भी “अनमोल भूख” के रूप में वर्णित किया था।
“यह मेरे लिए एक रहस्य है,” उस की माँ ने कहा। “लेकिन कई संतों के जीवन में कम उम्र में ही ईश्वर के साथ उनका विशेष संबंध था, भले ही उनका परिवार धार्मिक न हो।” जब कार्लो साढ़े तीन साल का था, तब वह अपनी माँ को मिस्सा पूजा में भाग लेने के लिए मज़बूर करता था, जबकि उसके पूर्व कार्लो की माँ अपने जीवन में केवल तीन बार मिस्सा जाने की बात कहती है। साल्जानो एक पुस्तक प्रकाशक की बेटी है, वह कलाकारों, लेखकों और पत्रकारों से प्रभावित थी, न कि संत पापा या संतों से। उसे विश्वास के मामलों में कोई दिलचस्पी नहीं थी और अब कहती है कि उसे “भेड़” के बजाय “बकरी” बनना था। लेकिन फिर यह अद्भुत लड़का आया जो “हमेशा आगे दौड़ता रहा – वह तीन महीने की उम्र में अपना पहला शब्द बोला, उसने पाँच महीने में बात करना शुरू किया, और चार साल की उम्र में लिखना शुरू किया।” और विश्वास के मामले में, वह अधिकांश वयस्कों से भी आगे था।
तीन साल की उम्र में, उसने ऐसे प्रश्न पूछना शुरू कर दिया – संस्कारों, पवित्र त्रीत्व, आदि पाप, पुनरुत्थान आदि के बारे में बहुत सारे प्रश्न – जिनका उत्तर उसकी माँ नहीं दे सकती थी। एंटोनिया ने कहा, “इससे मेरे अंदर एक संघर्ष पैदा किया, क्योंकि मैं खुद तीन साल के बच्चे की तरह अज्ञानी थी।” कार्लो की आया, जो पोलैंड की मूल निवासी थी, उसके सवालों का बेहतर जवाब देने में सक्षम थी और अक्सर उसके साथ विश्वास के मुद्दों पर बात करती थी। साल्ज़ानो के शब्दों में उसके बेटे के सवालों का जवाब देने में उसकी असमर्थता, “एक अभिभावक के रूप में मेरे अधिकार को कम कर दिया।” जिस तरह की भक्ति के कार्यों को साल्जानो ने कभी अभ्यास नहीं किया था, जैसे संतों का आदर करना, धन्य माँ मरियम की मूर्ती के सामने फूल सजाना, गिरजाघर में क्रूस और परम प्रसाद की मंजूषा के सम्मुख घंटों बिताना; कार्लो इन सभी भक्ति के कार्यों में शामिल होना चाहता था। अपने बेटे की असाधारण आध्यात्मिकता से कैसे निपटा जाए, इस बात को लेकर वह असमंजस में थी।
एक यात्रा की शुरुआत
दिल का दौरा पड़ने से एंटोनिया के पिता की अप्रत्याशित मृत्यु हुई। इसके बाद ही उसे मृत्यु के बाद के जीवन के बारे में अपने ही प्रश्न पूछने के लिए प्रेरित किया। फिर, एक बुजुर्ग पवित्र पुरोहित फादर इलियो, जो बोलोग्ना के पाद्रे पियो के नाम से जाने जाते हैं, उनसे वह एक मित्र के माध्यम से मिली। उन्होंने एंटोनिया को विश्वास की यात्रा करने के लिए प्रेरित किया, जिस पर कार्लो उसका प्राथमिक मार्गदर्शक बन जाता है। एंटोनियो द्वारा जीवन के सभी पापों को पापस्वीकार संस्कार में क़ुबूल करने से पहले ही फादर इलियो ने उसे इन पापों के बारे में बताया और उस के बाद उन्होंने भविष्यवाणी की कि कार्लो का एक विशेष मिशन है जो कलीसिया के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा।
आखिरकार, एंटोनिया ने ईशशास्त्र का अध्ययन करना शुरू कर दिया, लेकिन कार्लो ही है जिसे वह अपने “धर्मांतरण” का श्रेय देती है, उसे “अपना उद्धारकर्ता” मानती है। कार्लो के कारण, वह प्रत्येक पवित्र मिस्सा में होने वाले चमत्कार को पहचानने लगी। “कार्लो के माध्यम से मैंने समझा कि रोटी और दाखरस हमारे बीच ईश्वर की वास्तविक उपस्थिति बन जाती है। यह मेरे लिए एक शानदार खोज थी,” उसने कहा। युवा कार्लो ने परमेश्वर के प्रति अपना प्रेम और परम प्रसाद के प्रति सम्मान को अपने तक ही सीमित नहीं रखा था। उसकी माँ ने कहा, “साक्षी बनना ही कार्लो की खासियत थी।”… हमेशा खुश, हमेशा मुस्कुराता हुआ, कभी उदास नहीं। कार्लो कहा करता था: ‘उदासी का मतलब स्वयं की ओर देखना है; जबकि आनंद ईश्वर की ओर देखता है।” कार्लो ने अपने सहपाठियों और हर किसी में ईश्वर को देखा। एंटोनिया ने कहा, “क्योंकि वह ईश्वर के इस सान्निध्य से अवगत था, उसने इस सान्निध्य की गवाही दी।”
प्रतिदिन पवित्र परम प्रसाद और दिव्य आराधना द्वारा पोषित होकर, कार्लो ने बेघरों की तलाश की, उन्हें कंबल और भोजन पहुंचाया। उसने उन सहपाठियों का बचाव किया जो साथियों द्वारा धमकाये और उत्पीडित किये जा रहे थे और उन सहपाठी लोगों की मदद की, जिन्हें गृहकार्य करने में सहायता की ज़रुरत थी। उसका एक लक्ष्य था “परमेश्वर के बारे में बोलना और दूसरों को परमेश्वर के करीब आने में मदद करना।”
दिन को जब्त कर लो!
शायद कार्लो को पता था कि उसका जीवन छोटा होगा, इसलिए उस ने समय का सदुपयोग किया। एंटोनिया ने कहा, “जब येशु आया, उसने हमें दिखाया कि कैसे समय बर्बाद नहीं करना है। येशु के जीवन का प्रत्येक क्षण परमेश्वर की महिमा थी।” कार्लो ने इस बात को अच्छी तरह से समझा और उसने वर्तमान में जीने के महत्व पर जोर दिया। उसने आग्रह किया, “दिन को जब्त कर लो! क्योंकि बर्बाद किया गया हर मिनट ईश्वर की महिमा करने के लिए नष्ट किया हुआ एक एक मिनट है।” यही कारण है कि इस किशोर ने वीडियो गेम खेलने केलिए प्रति सप्ताह केवल एक घंटे का समय बिताया!
कार्लो के बारे में पढ़ने वाले कई लोगों ने उसके प्रति जो आकर्षण महसूस किया, वह उसके पूरे जीवन की विशेषता थी। उसकी माँ ने कहा “चूंकि वह एक छोटा लड़का था, लोग स्वाभाविक रूप से उसकी ओर आकर्षित होते थे – इसलिए नहीं कि वह एक नीली आंखों वाला, गोरा-बालों वाला बच्चा था, बल्कि इसलिए कि उसके अंदर कुछ ख़ास था। उसके पास असाधारण लोगों से जुड़ने का एक तरीका था।”
स्कूल में भी वह लोकप्रिय था। “येशु समाजी फादर लोगों ने उसके इस गुण पर ध्यान दिया।” उसके सहपाठी उच्च और कुलीन वर्ग के प्रतिस्पर्धी बच्चे थे, जिनका फोकस उपलब्धि और सफलता पर ही केंद्रित था। “स्वाभाविक रूप से, सहपाठियों के बीच बहुत ईर्ष्या होती है, लेकिन कार्लो के साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ। उसने उन चीजों को जादू की तरह पिघला दिया; अपनी मुस्कान और हृदय की पवित्रता से उसने सभी को जीत लिया। उसमें लोगों के दिलों में जोश भरने, उनके ठंडे दिलों को प्रज्वलित करने की क्षमता थी।”
उसके जीवन का राज़ येशु था। वह येशु से इतना भरा हुआ था, दैनिक मिस्सा बलिदान, मिस्सा से पहले या बाद में आराधना, और मरियम के निर्मल हृदय के प्रति भक्ति के साथ साथ उसने अपना जीवन येशु के साथ, येशु के लिए और येशु में बिताया।
स्वर्ग का एक पूर्वाभास
“वास्तव में, कार्लो ने अपने जीवन में ईश्वर की उपस्थिति को महसूस किया,” उसकी माँ ने कहा, “और इसने लोगों के उसे देखने के तरीके को पूरी तरह से बदल दिया। लोग समझ गए थे कि इस लड़के में कुछ खास है।”
अजनबी, शिक्षक, सहपाठी, एक पवित्र पुरोहित, सभी ने इस लड़के में कुछ अनोखी बात को पहचाना। और वह विशिष्टता परम पवित्र संस्कार के प्रति उसके प्रेम में सबसे अधिक स्पष्ट थी। कार्लो कहता था, “जितना अधिक हम परम प्रसाद ग्रहण करते हैं, उतना अधिक हम येशु के समान बनेंगे, इस तरह हमें पृथ्वी पर स्वर्ग का स्वाद मिलेगा।” उसने अपने पूरे जीवन में स्वर्ग की ओर देखा और वह कहता था कि परम प्रसाद उसका “स्वर्ग का राजमार्ग … हमारे पास उपलब्ध सबसे अलौकिक चीज” था। एंटोनिया ने कार्लो से सीखा कि परम प्रसाद आध्यात्मिक पोषण है जो ईश्वर और पड़ोसी से प्रेम करने की हमारी क्षमता को बढ़ाने में मदद करता है – और पवित्रता में विकसित होता है। कार्लो कहा करता था “जब हम सूर्य का सामना करते हैं तो हमारे त्वचा का रंग बदलता है, लेकिन जब हम परम पवित्र संस्कार में येशु के सामने खड़े होते हैं तो हम संत में बदल जाते हैं।”
कार्लो की सबसे प्रसिद्ध उपलब्धियों में से एक उसकी वेबसाइट है, जो विश्व के सम्प्पोर्ण इतिहास में परम प्रसाद के चमत्कारों का वर्णन करती है। इसी वेबसाइट से विकसित एक प्रदर्शनी, यूरोप से जापान तक, अमेरिका से चीन तक, दुनिया की यात्रा करना जारी रखी हुई है। प्रदर्शनी में आगंतुकों की अद्भुत संख्या के अलावा, कई चमत्कारों का दस्तावेजीकरण किया गया है, इनमे सबसे महत्वपूर्ण चमत्कार यही है कि इसके द्वारा बहुत सारे लोग फिर से संस्कारों को अपनाने और परम प्रसाद को ग्रहण करने केलिए प्रेरित किये गये हैं।
घटाव की प्रक्रिया
कार्लो को धन्य घोषित किया गया है और उसको संत घोषित किया जाना सुनिश्चित है। बस एक दूसरे चमत्कार का प्रमाणीकरण ही बाकी है। लेकिन एंटोनिया ने यह भी बताया कि कार्लो चमत्कारों के कारण नहीं बल्कि उसके पवित्र जीवन के कारण संत घोषित किया जाएगा। पवित्रता किसी के जीवन की गवाही द्वारा निर्धारित की जाती है कि उस व्यक्ति ने सद्गुणों को – विश्वास, आशा, दान, विवेक, न्याय, संयम और धैर्य को – कितनी अच्छी तरह जीया। कैथलिक चर्च की धर्म शिक्षा “गुणों को वीरता से जीने” की परिभाषा इस प्रकार देती है: ‘अच्छे कार्य करने के लिए एक आदत और दृढ़ स्वभाव’ – वही स्वभाव एक संत बनाता है।”
और कार्लो ने ठीक यही करने का प्रयास किया। वह बहुत ज्यादा बात करता था, इसलिए उसने कम बोलने की कोशिश की। जब कभी उसने देखा कि भोजन के प्रति उसका आकर्षण बढ़ रहा है, तब वह कम खाने का प्रयास करता। रात में, सोने से पहले उसने दोस्तों, शिक्षकों, माता-पिता के साथ अपने व्यवहार के बारे में अपनी अंतरात्मा की जांच की। उसकी माँ ने कहा, “वह समझ गया कि मन परिवर्तन जोड़ने की प्रक्रिया नहीं है बल्कि घटाव की प्रक्रिया है।” इतने कम उम्र के बालक केलिए इतना गहन अंतर्दृष्टि! और इसलिए कार्लो ने अपने जीवन से हर लघुपाप के हर निशान को खत्म करने के लिए भी काम किया। वह कहा करता था, “मैं नहीं, बल्कि ईश्वर… मुझे घटने की जरूरत है ताकि मैं ईश्वर को रहने केलिए और जगह छोड़ सकूं।”
इस प्रयास ने उसे इस बात का अहसास कराया कि सबसे बड़ी लड़ाई खुद से होती है। एक सवाल उसके सबसे प्रसिद्ध उद्धरणों में से ख़ास है, “यदि आप एक हजार लड़ाई जीतते हैं, लेकिन अपने स्वयं के भ्रष्ट जुनूनों के खिलाफ नहीं जीत सकते, तो इससे क्या फायदा है?” एंटोनिया ने कहा, “हमें आध्यात्मिक रूप से कमजोर बनाने वाले उन दोषों को दूर करने का प्रयास हृदय की पवित्रता है। जब कार्लो छोटा था, वह जानता था कि “आदि पाप के कारण हमारे अंदर की भ्रष्ट प्रवृत्ति का विरोध करने के हमारे प्रयास के पीछे पवित्रता है।”
एक डरावनी अंतर्दृष्टि
बेशक, अपने इकलौते बच्चे को खोना एंटोनिया के लिए एक भारी क्रूस धोना जैसा अनुभव था। लेकिन सौभाग्य से, जब तक कार्लो की मृत्यु हुई, तब तक एंटोनिया अपने विश्वास में वापस आ गई थी और यह जान चुकी थी कि “मृत्यु ही सच्चे जीवन का मार्ग है।” वह कार्लो को खो देगी, इस सत्य को जानने के झटके के बावजूद, अस्पताल में अपने बेटे के साथ बिताये गए समय के दौरान उसके अंदर जो शब्द गूंजते थे, वे अय्यूब की किताब से थे: “प्रभु ने दिया था, प्रभु ने ले लिया। धन्य है प्रभु का नाम !” (अय्यूब 1:21)।
कार्लो की मृत्यु के बाद, एंटोनिया को अपने बेटे के कंप्यूटर पर उसके द्वारा बनाई गई एक वीडियो दिखाई दी। हालांकि उस समय उसे अपने ल्यूकेमिया बीमारी के बारे में कुछ नहीं पता था, लेकिन वीडियो में वह कहता है कि जब उसका वजन सत्तर किलो हो जाएगा, तब उसकी मृत्यु हो जाएगी। किसी तरह वह अपनी मृत्यु के बारे में जानता था। फिर भी, वह मुस्कुरा रहा है और अपनी भुजाओं को ऊपर उठाकर आकाश की ओर देख रहा है। अस्पताल में, उसने अपनी खुशी और शांति के बीच एक डरावनी अंतर्दृष्टि का खुलासा किया: “याद रखें,” उसने अपनी मां से कहा, “मैं इस अस्पताल से जीवित नहीं निकलूंगा, लेकिन मैं आपको कई, कई संकेत दूंगा।”
और उसने जो संकेत दिए हैं – स्तन कैंसर से पीड़ित एक महिला ने कार्लो की अंत्येष्टि के दौरान उससे प्रार्थना की थी, वह बिना किसी कीमोथेरेपी के स्तन कैंसर से ठीक हो गई। एक 44 वर्षीय महिला, जिसके कभी कोई बच्चा नहीं था, उस ने भी कार्लो के अंतिम संस्कार के समय उससे प्रार्थना की और एक महीने बाद वह गर्भवती हुई। कई मनपरिवर्त्तन हुए हैं, लेकिन एंटोनिया कहती है कि शायद सबसे खास चमत्कार कार्लो ने अपनी “माँ को भेंट किया।” कार्लो के जन्म के वर्षों बाद एंटोनिया ने गर्भ धारण करने की कोशिश की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। कार्लो की मृत्यु के बाद, एक सपने में वह अपनी माँ के पास आया और कहा कि वह फिर से माँ बनेगी। 44 साल की उम्र में, उसकी मृत्यु की चौथी वर्षगांठ पर, एंटोनिया ने जुड़वा बच्चों – फ्रांसिस्का और मिशेल – को जन्म दिया। अपने भाई की तरह, दोनों प्रतिदिन मिस्सा में भाग लेती हैं और माला विनती की प्रार्थना करती हैं, और उम्मीद है कि एक दिन वे अपने भाई के मिशन को आगे बढ़ाने में मदद करेंगी।
जब उसके डॉक्टरों ने उससे पूछा कि क्या उसे दर्द हो रहा है, तो कार्लो ने जवाब दिया कि “ऐसे बहुत से लोग हैं जो मुझसे ज्यादा पीड़ित हैं। मैं प्रभु, संत पापा (बेनेडिक्ट सोलहवें) और कलीसिया के लिए अपना दुख अर्पित करता हूं।” जांच के परिणाम आने के तीन दिन बाद ही कार्लो की मृत्यु हो गई। अपने अंतिम शब्दों के साथ, कार्लो ने स्वीकार किया कि “मैं खुश होकर विदा ले रहा हूँ, क्योंकि मैंने अपने जीवन का कोई भी मिनट उन चीज़ों में नहीं बिताया जो परमेश्वर को पसंद नहीं हैं।”
स्वाभाविक रूप से, एंटोनिया को अपने बेटे की कमी खलती है। उसने कहा, “मुझे कार्लो की अनुपस्थिति महसूस होती है, लेकिन कुछ मायनों में मुझे लगता है कि कार्लो पहले से कहीं अधिक मेरे साथ मौजूद है। मैं उसे एक खास तरीके से, आध्यात्मिक रूप से, उसे महसूस करती हूं। और मैं उसकी प्रेरणा को भी महसूस करती हूं। मैं देख रही हूँ कि उसका आदर्श युवा लोगों के लिए क्या फल ला रहा है। यह मेरे लिए बहुत बड़ी सांत्वना है। कार्लो के माध्यम से, ईश्वर एक उत्कृष्ट कृति बना रहा है और यह बहुत महत्वपूर्ण है, खासकर इस अन्धकार के दौर में जब लोगों का विश्वास इतना कमजोर है, और ईश्वर हमारे जीवन में अनावश्यक प्रतीत होता हैं। मुझे लगता है कि कार्लो बहुत अच्छा काम कर रहा है।”
'कई साल पहले वह एक ठंडी और बर्फीली दोपहर थी, और मेरे मन में इच्छा हुई कि मैं आराधना में जाकर भाग लूं। मेरी अपनी पल्ली में अभी तक सतत-आराधना की व्यवस्था नहीं हुई थी, इसलिए मैं उस गिरजाघर की ओर गाडी चलाती हुई चली गयी, जहां सतत अराधना होती थी। इस गिरजाघर में एक छोटा, बहुत ही अंतरंग प्रार्थनालय है जहां मुझे येशु के साथ समय बिताना और अपने दिल की बात उनके सामने रखना अच्छा लगता था।
जब मैंने दो लोगों को प्रार्थनालय के पीछे बातें करते सुना, तब मेरा समय लगभग समाप्त हो गया था। गिरजाघर की ड्योढ़ी में पड़े एक बेघर व्यक्ति के बारे में वे बात कर रहे थे। उस आदमी के प्रति उनकी असंवेदनशीलता से मैं विचलित और दु:खी थी, इसलिए मैंने वहां से उठने का फैसला किया। वैसे भी मेरी आराधना का एक घंटा लगभग समाप्त हो गया था।
जैसे ही मैं वहां से निकली, मैं गिरजाघर की ड्योढ़ी से गुज़री जहां वही आदमी इतनी गहरी नींद सो रहा था कि जब मैं उसके लिए प्रार्थना करने के लिए रुकी तो उसका शरीर बिलकुल भी नहीं हिला। मुझे राहत महसूस हुई कि प्रभु ने आराधना के लिए दरवाजे खोल दिए थे, ताकि वह आदमी यहाँ आश्रय पा सके। वह बेघर लग रहा था, लेकिन मुझे पक्का पता नहीं था।
मुझे बस इतना पता है कि इस आदमी के लिए चिंता करते हुए मैं आंसू बहा रही थी। जब मैं खुद को रोक नहीं पायी, तब मैं गिरजाघर के बाहर टहलने लगी। वहां पवित्र हृदय की एक मूर्ति खड़ी थी, जो मुझे याद दिला रही थी कि हर व्यक्ति के लिए येशु के दिल में प्रेमपूर्ण चिंता और प्रचुर दया है। मैंने प्रभु से विनती की कि वह मुझे बताए कि मुझे क्या करना है। मेरे दिल में मैंने महसूस किया, कि प्रभु मुझसे कह रहा है कि मैं पास की दुकान में जाऊं और इस आदमी के लिए कुछ जरूरी सामान खरीद लूं। मैंने प्रभु को धन्यवाद दिया और तुरंत दुकान जाकर कुछ ऐसी चीजें खरीदीं जो मुझे लगा कि उस आदमी के लिए ज़रूरी और उपयोगी है।
गिरजाघर की ओर वापस जाते समय, मुझे उम्मीद थी कि वह आदमी अभी भी वहाँ होगा। मैं वास्तव में उसे वह सब देना चाहती थी जिन्हें मैंने खरीदी थी। जब मैं वहां पहुंची तब भी वह सो रहा था। मैंने चुपचाप सामान का बैग उसके पास रख दिया, एक प्रार्थना की, और मैं चलने लगी। मैं लगभग बाहर निकल ही चुकी थी कि मैंने किसी को “बहन, बहन” कहते हुए सुना। मैंने पलट कर जवाब दिया, “जी हां”। वह आदमी अब जाग गया था और मेरे पास आया और पूछा कि क्या मैंने उसके लिए यह बैग छोड़ रखा है। मैंने उत्तर दिया, “जी हाँ, मैंने रखा है।” उसने मुझे यह कहते हुए धन्यवाद दिया कि मेरी यह उदारता कितनी अच्छी थी। ऐसा पहले कभी किसी ने उनके साथ नहीं किया था। मैंने मुस्कुराते हुए कहा, “आपका स्वागत है”। वह आदमी करीब आ रहा था और मुझे लगा जैसे मैं येशु की उपस्थिति में थी। मैंने अपने दिल में बहुत प्यार महसूस किया। फिर उसने कहा, “बहन, स्वर्ग में मेरी मुलाक़ात आपसे होगी।” मुझे लगा कि मैं फूट-फूट कर रोने लगूंगी। उनकी आवाज बहुत दयापूर्ण और प्यार से भरपूर थी। उसके गाल पर चुम्बन देने की प्रेरणा मुझे मिली। हमने एक-दूसरे को अलविदा कहा और अपने-अपने रास्ते चल दिए।
बाहर आने पर भी, मेरा रोना बंद नहीं हुआ। मैं घर पहुँचने तक रोती रही। आज भी, उस दोपहर को याद करते ही मेरे आंसू छलक पड़ते हैं। मुझे एहसास हुआ कि उस ठंडी, बर्फीली दोपहर को, वास्तव में उस खूबसूरत आदमी में मैंने येशु से मुलाक़ात की थी। अब, जब मैं पीछे मुड़कर देखती हूं, तो मैं कल्पना करती हूं कि चेहरे पर एक बड़ी मुस्कान के साथ येशु मुझसे कह रहा है, “यह मैं हूं, येशु!”
धन्यवाद, येशु, मुझे यह याद दिलाने के लिए कि मुझसे मिलने वाले प्रत्येक व्यक्ति जिस से मेरी मुलाक़ात होती है उनमें मैं तेरा दर्शन कर सकती हूं।
'मैं अतीत के उन घावों को ढो रहा था, उन्हीं घावों ने मेरे ऊपर बहुत गहरा असर डाला। अचानक क्रोध के फूटने और पापमय आदतों की लत ने मुझे तब तक गड्ढे में गिरा दिया जब तक…
जब मैं हाई स्कूल की पढ़ाई करने शिकागो गया, तो स्कूल में बहुत अधिक नस्लीय तनाव था। मैं एक अल्पसंख्यक समूह से ताल्लुक रखता हूं और उस दौरान अक्सर मैंने हाई स्कूल में भेदभाव का सामना किया और खूब झेला। उन चार वर्षों के दौरान, सहपाठियों ने मुझे मौखिक रूप से परेशान किया, और मुझे बार बार उनके द्वारा चिढाने और निन्दित करने के कारण भावनात्मक रूप से मैं बहुत अधिक संघर्ष कर रहा था। मैं उस प्रकार का व्यक्ति था जो उपहास और निंदा का शिकार होने पर प्रतिशोध नहीं लेता था, लेकिन मैंने इस मौखिक और शारीरिक उत्पीड़न से सभी नकारात्मक भावनाओं को अपने अन्दर लिया और इसे अपने दिल की गहराई में दफन कर लिया।
हालाँकि, उस सारी नकारात्मकता को अपने अंदर रखने से मुझ पर बहुत ही बुरा असर हुआ। इसके कारण मेरे माता-पिता, भाइयों और अन्य रिश्तेदारों के साथ मेरी बातचीत प्रभावित हुई। कभी-कभी मेरे मन में अचानक से गुस्सा फूट पड़ता था और मैं विद्वेषपूर्ण, क्रूर शब्दों से उन्हें चोट पहुँचाने के लिए फटकार लगाता था। मैं कई पापपूर्ण आदतों का शिकार था।
हालाँकि मैं जानता था कि ये बुरे कार्य थे, और मैं इनसे मुक्त होना चाहता था, फिर भी मैंने खुद को मुक्त करने के लिए व्यर्थ संघर्ष किया। उन्हीं पाप पूर्ण आदतों में पड़ना जारी रहा और मैं अपने गुस्से को नियंत्रित नहीं कर सका। एक पारिवारिक सभा में, मुझे इतना गुस्सा आया कि अपने सबसे छोटे भाई से मेरा झगड़ा हो गया। यह महसूस करते हुए कि मेरे भीतर पड़े इस घृणा और क्रोध के बारे में मुझे कुछ करने की ज़रूरत है, मैं अपने आप से डरने लगा।
मुझे क्या आकर्षित किया?
ईश्वर की कृपा से, हाई स्कूल में अपने प्रथम वर्ष के दौरान, मैंने युवाओं के लिए एक साधना में भाग लिया। इस साधना के दौरान, मैंने ऐसे युवाओं को देखा जो परमेश्वर के बारे में इतने उत्साहित थे कि उनके चेहरे पर परमेश्वर के प्रति गहरा प्रेम खुशी से चमक रहा था। अपने जीवन में पहली बार, मैं ऐसे युवाओं से मिला, जो परमेश्वर के बारे में बातचीत करने या अपने विश्वास के अनुभवों को साझा करने में कोई डर महसूस नहीं करते थे। और वास्तव में इस बात से मैं आकर्षित और मोहित हो गया।
एक अच्छे कैथलिक परिवार में मेरी परवरिश हुई थी और मैं सोचता था कि मैं ईश्वर के बारे में सब कुछ जानता हूं, लेकिन यह ज्ञान बौद्धिक स्तर पर ही बना रहा और कभी भी मेरे दिल की गहराई में स्थानांतरित नहीं हुआ। हालाँकि इस साधना में, मैंने ऐसे युवाओं को देखा जो वास्तव में अपने विश्वास को जीना पसंद करते थे और बहुत खुश थे। उस साधना के दौरान मेरे दोस्त और मैं कभी-कभी हँसते थे क्योंकि हमने पाया कि वे जो कर रहे थे वह हास्यपूर्ण था। इसके बावजूद, जो युवा हमारी सेवा कर रहे थे, वे किसी भी तरह से विचलित नहीं हुए। वे वहां इतने उत्साहित थे और अपने विश्वास के लिए इतने भावुक थे कि मैं वास्तव में चाह रहा था कि उनके पास जो कुछ भी है, आनंद से भरपूर, वह ख़ुशी और उत्साह और जीवन से प्यार, ये सब मुझे भी प्राप्त हो जाए। इसलिए, मैंने प्रार्थना की, “प्रभु मैं उनके जैसा बनना चाहता हूं, मुझे वही चाहिए।
उस साधना के बाद, मुझे कई अन्य साधनाओं में भाग लेने का अवसर मिला। मैं साल में कम से कम एक या दो बार साधनाओं में जाता रहा और युवा सेवकाई में भी सक्रिय होने लगा। मुझे शिकागो में कैथलिक करिश्माई नवीनीकरण के युवा सेवादल का हिस्सा बनने का अवसर मिला और मैंने अन्य युवकों के साथ युवा सेवकाई में काम किया। यह मेरे लिए शानदार समय था।
प्रभु का विरोध
मैं अपने विश्वास में बढ़ने लगा और साथ ही, अपने विश्वास को दूसरों के साथ साझा करने लगा।
लेकिन इतने सारे सेवा कार्य को करते हुए भी, मैं कभी-कभी पापमय आदतों और क्रोध के प्रकोप से जूझता रहा। इन बातों ने मुझे वास्तव में निराश कर दिया क्योंकि मैं दूसरों के साथ मसीह की खुशखबरी साझा करने की कोशिश कर रहा था, लेकिन मेरे अपने पाप मुझे इस कार्य में आगे बढने से रोक रहे थे और मैं अभी भी उन लोगों को माफ नहीं कर सका जिन्होंने मुझे चोट पहुंचाई थी। मैं पाप की इस दासता से मुक्ति चाहता था।
जैसे ही मैंने हताशा में परमेश्वर को पुकारा, मैंने महसूस किया कि प्रभु मुझसे कह रहे हैं “जेनसन, मैं तुम्हें चंगा करना चाहता हूं। मैं तुम्हारे दिल की गहराई में पड़ी इस नकारात्मकता से तुम्हें मुक्त करना चाहता हूं, लेकिन ऐसा करने के लिए, मुझे तुम्हारे साथ उन दर्दनाक परिस्थितियों में से हर एक में प्रवेश करना और साथ साथ चलना होगा और कलवारी में तुम्हारे लिए बहाया गए मेरे रक्त से सने हाथ से उन दर्दनाक यादों को मैं स्पर्श करूंगा।” मैं डर गया और डर डर कर उत्तर दिया, “प्रभु, मैं उन नकारात्मक अनुभवों को फिर से नहीं देखना चाहता। क्योंकि ये अनुभव मेरे लिए बहुत पीड़ादायक हैं।” इसलिए मैं अपने हाई स्कूल की पढ़ाई की पूरी अवधि के दौरान प्रभु का विरोध करता रहा — मैं लगातार दर्दनाक परिस्थितियों का अनुभव करता रहा, प्रभु मुझसे कहते रहे कि वह मुझे ठीक करना चाहते हैं, लेकिन मैं उनका विरोध करता रहा। मैंने युवा सेवकाई में काम करना जारी रखा लेकिन मैं और अधिक निराश होता जा रहा था क्योंकि मुझे स्थायी खुशी नहीं मिल रही थी।
दर्द-पीड़ाओं से फिर से मुलाक़ात
हाई स्कूल के बाद, मैं शिकागो के एक कैथलिक विश्वविद्यालय में पढ़ने गया। वहां का वातावरण बिलकुल अद्भुत था, क्योंकि मैंने अपने जीवन में पहली बार किसी प्रकार के भेदभाव का सामना नहीं किया। जैसे मैं था, वैसा ही लोगों ने मुझे स्वीकार किया। मैं बहुत प्रबल इच्छा जाहिर करने लगा कि जब मुझे प्रभु का आनंद प्राप्त होता है तो वह आनंद का अनुभव अगले दिन या सप्ताह तक बना रहे। लेकिन मुझे बड़ी निराशा हुई, क्योंकि मैं बार बार आदतन पाप और क्रोध के प्रकोप में वापस आता रहा। मैंने प्रभु को पुकार कर कहा, “कुछ तो बदलना होगा। मैं मुक्त होना चाहता हूँ; मैं अपने अतीत से छुटकारा पाना चाहता हूं क्योंकि मेरा अतीत मुझे बंदी बना रहा है।” और प्रभु मुझसे कहता रहा, “मैं तुम्हारे लिए वही करना चाहता हूं, लेकिन तुम्हें मुझे अनुमति देनी होगी कि मैं तुम्हारे लिए वही काम करूँ।” लेकिन मैंने जवाब दिया, “बिल्कुल नहीं!” मैं कभी भी हाई स्कूल के उन घोर दर्द भरे वर्षों को दोबारा नहीं देखना चाहता था।
एक दिन, एक साधना के अंत में, युवा सेवकाई में मेरे साथ काम करने वाले युवकों में से एक (जो मेरे संघर्षों और मेरे अतीत के बारे में सब कुछ जानता था), वह मेरे पास आया और कहा, “जेनसन, मैं चाहता हूं कि तुम मेरे लिए कुछ काम कर दो। मैं चाहता हूं कि तुम अपने दोनों हाथ मेरे कंधों पर रख दो। मैं चाहता हूं कि तुम मेरी आंखों में देखो और तुम उन लोगों में से एक को देखो जिन्होंने तुम्हें हाईस्कूल में चोट और पीड़ा पहुंचाई। मैं चाहता हूं कि तुम उस व्यक्ति को बताओ कि उसने तुम्हारे साथ क्या किया, और फिर मैं चाहता हूं कि तुम कहो, ‘मैं आपको क्षमा करता हूं।“ और उस समय जीवन में पहली बार मैंने विरोध नहीं किया।
मुझमें विरोध करने की शक्ति नहीं थी। मैंने कहा, “मैं अब तैयार हूं। मैं इससे निपटना चाहता हूं।” और इसलिए मैं उनके निर्देश के अनुसार एक-एक करके कार्य करने लगा। अपनी उस मित्र को मैं ने देखा लेकिन मुझे उसका चेहरा नजर नहीं आया। अपनी कल्पना में, हाई स्कूल में मुझे चोट पहुँचाने वाले प्रत्येक व्यक्ति को खोजने और उसके चेहरे की तस्वीर मन में लाने के लिए मैं अपनी स्मृति में गोता लगाता रहा। मैंने उनमें से प्रत्येक को बताया कि उसने मेरे साथ क्या किया है, और फिर मैंने कहा, “मैं तुम्हें क्षमा करता हूं।” जैसे ही मैंने यह करना शुरू किया, मैं बेकाबू होकर रोने लगा। हर बार जब मैं क्षमा के शब्द बोला, “आपने मेरे साथ जो किया उसके लिए मैं आपको क्षमा करता हूं”, मुझे लगा कि मेरे अन्दर से कुछ भारी बोझ उठाया गया है।
प्यार की नदी
यह प्रार्थना की एक लंबी रात थी, लेकिन यह मेरे जीवन का सबसे शक्तिशाली चंगाई का अनुभव था। जैसे-जैसे क्षमा के प्रत्येक कार्य से इस दर्द का भार मुझ पर से उतरा, मुझे बहुत अधिक हल्कापन महसूस हुआ। मेरा एक मित्र, जिसके लम्बे बाल थे, जो येशु से मिलता जुलता था, प्रार्थना समाप्त होते ही वह मेरे करीब आ गया। मुझे इतना हल्का महसूस हुआ कि मैं बस उसके हाथों के सहारे तैरने लगा। जैसे ही वह मुझे पकड़ा रहा, मुझे ऐसा लगा जैसे येशु अपने आँचल में, अपने दिल के करीब मुझे बैठा रहा है, मुझे गले लगा रहा है। जिस बोझ को लम्बे समय से मैं ढो रहा था, उस बोझ को दिल से खाली किये जाने का अनुभव मैं कर रहा था। उस खालीपन में, मैंने अचानक महसूस किया कि परमेश्वर का प्रेम मेरे हृदय में नदी की तरह बह रहा है, जो मुझे शांति, प्रेम और आनंद से भर रहा है। मैंने बस उस पल का आनंद लिया, और अपार शांति का अनुभव पाया जिसे मैं बड़े लंबे समय से तरस रहा था। मुझे यकीन हो गया कि मैं अंततः पाप, अपराधबोध और शर्म के बोझ से पूरी तरह मुक्त हो गया हूँ जो मुझे कुचल रहा था। प्रभु ने उन सभी नकारात्मक चीजों को पूरी तरह से उखाड़ फेंका और उन सारी बातों को मुझसे दूर हटा लिए।
ऐसा क्यों हुआ? क्योंकि मैं हताशा के उस चरम बिंदु पर पहुंच गया था जहां मैंने पाप की जीवन शैली से बचने की मदद के लिए प्रभु को पुकारा था, फिर प्रभु की चंगाई प्राप्त करने के लिए आत्मसमर्पण कर लिया था। प्रभु ने कहा, “मैं तुम्हें स्वतंत्र करना चाहता हूँ। मैं स्वयं घायल चंगाई दाता हूँ। मैं तुमसे प्यार करता हूँ, मैंने तुम्हारे लिए अपनी जान कुर्बान कर ली है।” प्रभु मेरे हर दर्दनाक अनुभव में मेरे साथ चलना चाहते थे, मेरे दर्द में हिस्सा लेना चाहते थे और मैं अपने घावों पर उनकी चंगाई का स्पर्श पाना चाहता था। जब मैंने आखिरकार उन्हें ऐसा करने दिया, तो येशु ने मुझे अकेले नहीं छोड़ा। वे मेरे बगल में चले, मुझे उन सारे दर्दनाक परिस्थितियों में से एक एक पर वापस ले गए, उन्होंने मेरी मदद की कि जिस अमुक व्यक्ति ने मुझे चोट पहुंचाई उस के साथ क्या क्या हुआ था, उसका मैं वर्णन करूँ, और येशु की मदद से मैं ने उन लोगों को माफ कर दिया। प्रभु ने मुझे ऐसा करने के लिए अनुग्रह दिया, और मेरे द्वारा उठाए गए भारी बोझ को स्थायी रूप से मुझ से अलग कर दिया।
वह आपकी प्रतीक्षा में है
परमेश्वर हमें स्थायी रूप से चंगा करना चाहता है और हमें संपूर्ण बनाना चाहता है। वह हम पर आंशिक काम नहीं करता। अगर हम उस पर भरोसा करते हैं, तो वह उस काम को पूरा करेगा, जिसे उसने शुरू किया था और वह हमें पूरी तरह से चंगा करेगा। चूँकि वह स्वयं जख्मी चंगाई दाता है, वह हमसे इतना प्यार करता है कि वह हमारे दर्द और पीड़ा को अपने ऊपर ले लेता है।
प्रभु एक क्षण के लिये भी हमारा तिरस्कार नहीं करता; हमारे जीवन के सभी दर्दनाक और पीड़ादायक क्षणों में हमारे साथ रहता है और हमारे साथ चलता है। जब मैंने प्रभु को अपना बोझ उठाने की अनुमति दी, तो मुझे कृपा मिली कि मुझे गुलाम बनाने वाली उन सारी पापपूर्ण आदतों से मैं अपने जीवन को मुक्त करके आजादी का अनुभव करूँ। हर दिन, मैंने अपने दिल में प्रभु के आनंद को महसूस किया और कोई भी या कुछ भी उस आनंद को मुझसे दूर नहीं कर सकता था।
जब मैंने पाप किया और परमेश्वर से दूर हो गया, तब भी मैं पाप स्वीकार संस्कार के माध्यम से तुरंत मेरे प्रभु की कृपा में वापस आने में सक्षम था। मेलमिलाप संस्कार की कृपा प्राप्त करने से बार-बार पाप स्वीकार के लिए जाने की मेरी प्रतिबद्धता मजबूत हुई। प्रभु मेरे साथ थे और मैं अपने आप को उससे फिर से अलग होने या दूर जाने नहीं दूंगा।
आप लोगों में से जिहोने अपने पापों, या दूसरों के पापों के कारण दुख का अनुभव किया है, मैं आप में से हर एक को आमंत्रित करता हूं कि आप अपने हृदय के द्वार को येशु के लिए खोल दें। प्रभु स्वयं जख्मी चंगाईदाता है। वह आपको फिर से संपूर्ण बना सकता है। वह अपनी चंगाई की शक्ति के द्वारा आपको जीवन की पूर्णता दे सकता है। आपको बस उसे ‘हां’ कहना है। यदि आप उस पर भरोसा करते हैं और उसे आपको चंगा करने की अनुमति देते हैं, तो आप स्थायी अनुग्रह और आनंद प्राप्त करेंगे। यदि आपके जीवन में ऐसा कोई है जिसे आपको क्षमा करने की आवश्यकता है, तो मैं आपको उसके प्रति क्षमा के शब्द कहने के लिए प्रोत्साहित करता हूं; क्योंकि आपके द्वारा किये गए क्षमा का कार्य परमेश्वर की चंगाई के अनुग्रह को आपको सम्पूर्ण बनाने और आपके जीवन में पूर्णता लाने की अनुमति देगा।
'दर्द असहनीय था, लेकिन मैं इस आशा के लंगर को मजबूती से पकड़ी रही, और मैं ने इस चमत्कार का अनुभव किया
मैं 40 साल की थी जब मुझे पता चला कि मुझे अनुवांशिक रूप से विरासत में मिली परिधीय न्यूरोपैथी (सी.एम.टी.) की बीमारी ने जकड़ ली है, जो मेरी तान्त्रिकीय या स्नायु सम्बन्धी व्यवस्था को नुक्सान पहुंचाती है। इस रोग की विशेषता यह है कि यह शरीर के हाथों और पैरों के छोटे और कमज़ोर मांसपेशियों को प्रभावित करता है। पैर का दुर्बल हो जाना इस रोग का लक्षण है। अमूमन यह बीमारी किशोर अवस्था में शुरू होती है। जब इस बीमारी का पता चला तभी मुझे समझ में आया कि मैं स्कूल में अपनी व्यायाम शिक्षा की कक्षा में जाने से क्यों डरती थी, और बार बार मैं क्यों गिर जाती थी, और विभिन्न कार्य करने में मैं क्यों अधिक समय लेती थी। यह बीमारी सदा मेरे साथ रहती थी; बस मुझे इस बीमारी की जानकारी नहीं थी। जब मैं न्यूरोलॉजिस्ट के पास गयी थी, तब तक मेरे पैरों की मांसपेशियां शोषित होने लगी थीं, और मैं खुद को ऊपर खींचे बिना सीढ़ियां नहीं चढ़ सकती थी।
मेरी समस्या के जवाब की खोज के दौरान ही “भविष्य में मेरे साथ क्या होगा”, यह सवाल रूपी बादल मेरे ऊपर छा गया। क्या मैं जीवन भर व्हीलचेयर में बंद और सीमित रहूँगी? क्या मैं अपने हाथों का उपयोग कर पाऊंगी? क्या मैं अपनी देखभाल स्वयं कर पाऊंगी? निदान का परिणाम आते ही, मेरे ऊपर अंधेरा छा गया। मैंने जाना कि कोई इलाज नहीं है, कोई चंगाई नहीं है। दूसरों की दबी दबी आवाजों के बीच मैंने सुना कि इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति के बचने की ”कोई उम्मीद नहीं है”। लेकिन धीरे-धीरे, जैसे सुबह का सूरज अँधेरे में से बाहर झाँकता है, आशा के प्रकाश ने प्रत्याशा के चमत्कार की तरह धीरे-धीरे मुझे दु:ख की मूर्च्छा से जगाया। मुझे एहसास हुआ कि कुछ भी नहीं बदला था; मैं अब भी वही थी। मैंने इस उम्मीद को पकड़ लिया कि प्रगति धीमी बनी रहेगी, जिससे मुझे जीवन की इस नयी परिस्थिति के साथ अपने को व्यवस्थित करने का समय मिल जाएगा। और ऐसा हुआ … जब तक … यह चमत्कार नहीं हुआ था।
मैंने चार साल तक बीमारी को धीमे धीमे, बढ़ने का अनुभव किया, फिर, गर्मी के दिनों में एक बार, यह स्थिति अचानक बिगड़ गयी। विभिन्न जांचों ने पुष्टि की कि मेरी स्थिति बेवजह बिगड़ गयी है। जब कभी हम बाहर गए तो मुझे व्हीलचेयर पर रहना पड़ा। घर पर भी, मैं बहुत कम काम कर पाती थी। मैं एक बार में दो मिनट से ज्यादा खड़ी नहीं हो पाती थी। मैं किसी डिब्बे को खोलने या सब्जी काटने के लिए अपने हाथों का उपयोग नहीं कर पाती थी। यहां तक कि कुछ मिनट से ज्यादा बैठना भी मुश्किल था। दर्द और कमजोरी इतने बढ़ गए कि मैं अपना अधिकांश समय बिस्तर पर बिताने के लिए मजबूर थी। मैं अपने और अपने परिवार की देखभाल करने की क्षमता खोने की वास्तविकता से निपटती हुई बहुत दुःख से भर गयी थी। फिर भी, उस दौरान मुझ पर एक असाधारण कृपा प्राप्त थी।
मैं दैनिक मिस्सा बलिदान में शामिल होने में सक्षम थी। और, गिरजाघर की ओर गाडी में बैठती हुई, मैंने एक नई आदत शुरू की … मैंने कार में माला विनती की प्रार्थना की। कुछ समय से मैं रोज माला विनती की भक्ति करना चाहती थी, लेकिन यह मेरी दिनचर्या में नहीं आया था और इसे बरकरार नहीं रख पाई थी। गिरजाघर की इन दैनिक यात्राओं ने इसे ठीक कर दिया। उन दिनों बड़े संघर्ष और पीड़ा का दौर था लेकिन साथ ही महान अनुग्रह का दौर भी था। मैंने कैथलिक किताबों और संतों के जीवन की कहानियों को पढने में पूरा समय बिताया।
एक दिन, माला विनती पर एक व्याख्यान के लिए शोध करते हुए, मेरी नज़र में पूज्य फादर पैट्रिक पेटन सी.एस.सी. की कहानी आयी। फादर पैट्रिक तपेदिक की बीमारी से पीड़ित थे और माँ मरियम से उनकी मध्यस्थता केलिए प्रार्थना करने के बाद वे चंगे हो गए। उन्होंने अपना शेष जीवन पारिवारिक प्रार्थना के प्रचार में और माला विनती को बढ़ावा देने में बिताया। मैंने यू ट्यूब पर उन विशाल माला विनती की रैलियाँ देखीं जिन्हें वे आयोजित करते थे … कभी-कभी, दस लाख से अधिक लोग प्रार्थना करते हुए दिखाई देते थे। मैंने जो देखा उससे मैं बहुत प्रभावित हुई, और जोश के एक क्षण में, मैंने माँ मरियम से कहा कि वह मुझे भी चंगा कर दे। मैंने उससे वादा किया कि मैं रोजरी माला विनती का प्रचार करूंगी और फादर पेटन की तरह रैलियां और मैराथन दौड़ आयोजित करूंगी। अपना व्याख्यान देने के कुछ दिनों के अन्दर ही इस प्रतिज्ञा के बारे में मैं भूल गयी थी।
सोमवार की सुबह थी, और मैं रोज़ की तरह मिस्सा बलिदान में भाग लेने गयी थी, लेकिन जब मैं घर लौटी तो कुछ अलग महसूस करने लगी। बिस्तर पर वापस जाने के बजाय, मैं बैठक में गयी और सफाई करने लगी। जब मेरे पति ने हैरान होकर मुझसे पूछा कि तुम क्या कर रही हो, तभी मुझे एहसास हुआ कि मेरा सारा दर्द दूर हो गया है। मुझे तुरंत एक सपना याद आया जो मैंने पिछली रात को देखा था: प्रकाश से आलोकित एक पुरोहित मेरे पास आये और उन्होंने मुझे रोगियों का अभ्यंजन दिया। जैसे ही उन्होंने मेरे हाथों में पवित्र तेल के साथ क्रूस का चिन्ह बनाया, उसी समय, मेरे पूरे व्यक्तित्व में एक जोश,उत्साह और शांति की गहरी भावना भर गयी। और फिर मुझे याद आया… मैंने माँ मरियम से मुझे चंगा करने के लिए कहा था। आशा का चमत्कार हुआ और पांच महीने बिस्तर पर रहने के बाद मेरा सारा दर्द दूर हो गया। मेरे पास अभी भी सी.एम.टी. की बीमारी है, लेकिन जहां मैं पांच महीने पहले थी, उसी जगह माँ मरियम मुझे वापस ले आयी।
तब से लेकर आज तक, मैंने अपना समय धन्यवाद देने, माला विनती को बढ़ावा देने और सभी को ईश्वर के प्रेम के बारे में बताने में बिताया है। मेरा मानना है कि माँ मरियम ने इस पुरोहित को मेरा अभिषेक करने और मुझे चंगा करने के लिए भेजा था, हालांकि मैंने जो सोचा था उससे बिलकुल अलग तरीके से मेरी चंगाई हुई। मुझे उस समय इसका एहसास नहीं था, लेकिन जब मैंने आशा को ग्रहण कर लिया, तो मैं वास्तव में ईश्वर की कृपा को ग्रहण कर रही थी। उसने मेरे शरीर को चंगा किया, लेकिन उसने मेरी आत्मा को भी चंगा किया। मैं जानती हूँ कि वह मेरी सुनता है; मुझे पता है कि वह मुझे देखता है। मुझे पता है कि वह मुझसे प्यार करता है, और मैं अकेली नहीं हूँ। आपको जो चाहिए, उसी से मांगिये। वह आपसे प्यार करता है; वह आपको देखता है … आप अकेले नहीं हैं।
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