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अगस्त 12, 2021 1603 0 Shalom Tidings
Encounter

शहादत का जुनून

संत पेर्पेतुआ २२ वर्ष की सुशिक्षित और कुलीन महिला थी और वे एक शिशु की माँ थी | वह दूसरी शताब्दी में उत्तरी आफ्रिका के कार्थेज शहर में निवास करती थी | रोमी बादशाह सेप्तिमियुस सेवेरुस के शासन काल में ईसाइयत में धर्मांतरण करना कानूनी जुर्म था | उन दिनों पेर्पेतुआ को फ़ेलिसिती नामक एक गुलाम युवती के साथ गिरफ्तार किया गया | फ़ेलिसिती आठ महीने से गर्भवती थी | पेर्पेतुआ, फ़ेलिसिती और एनी कुछ दीक्षार्थी एक अँधेरी काल कोठरी में रखे गए और बाद में उन्हें बादशाह के जन्म दिन के अवसर पर विशाल अखाड़े में खूंखार जंगली जानवरों का सामना करने की सजा दी गई |

कारागार में रहने के दौरान अपने भविष्य के बारे में दिए गए दर्शनों को पेर्पेतुआ एक डायरी में लिखा करती थी | एक दर्शन में उसने देखा कि एक बहुत ही ऊँची लेकिन पतली सीढ़ी स्वर्ग जाने के लिए रखी गयी है | उस सीढ़ी के दोनों बगल में तलवार, भाले, कंटिया, और छुरों को भी सीढ़ी से जोड़कर रखा गया था | उस सीढ़ी के नीचे एक बहुत बड़ा परदार सांप था | पेर्पेतुआ के सहेलियों में से एक पहले से सीढ़ी के ऊपर पहुँच चुकी थी | उसके वचनों से प्रेरित होकर पेर्पेतुआ भी ऊपर पहुँच गयी |

गर्भवती महिलाओं को मृत्युदंड देना कानूनन गलत था, इसलिए फेलिसिती को इस बात का डर था कि वह शहादत के सौभाग्य से वंचित रह जायेगी | उसकी सहेलियां लगातार प्रार्थना कर रही थी | जिस  दिन उन लोगों को मृत्यु दंड दिया जाना था, उससे सिर्फ दो दिन पूर्व फेलिसिती ने एक बालिका को जन्म दिया | उन महिलाओं के विश्वास को देखकर कारागार के अधीक्षक इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने ख्रीस्तीय धर्म को स्वीकार किया |

अपनी शहादत के दिन, सारी महिलायें उस विशाल अखाड़े की ओर ख़ुशी से झूमती हुई आगे बढ़ी, और सबके चेहरे पर अभूतपूर्व शांति झलक रही थी |  पेर्पेतुआ और फेलिसिती को एक पगली गाय के सामने फ़ेंक दिया गया ताकि वह गाय इन दोनों को अपने पैरों तले रौंद दें | जैसे ही गाय ने पेर्पेतुआ को उठाकर ज़मीन पर पटक दिया, वह उठकर बैठ गयी, अपने वस्त्र को ठीक करने लगी, चूँकि उसे शरीर के दर्द से अधिक चिंता अपनी शालीनता की थी | इसके बाद पेर्पेतुआ और उनकी सहेलियों को तलवार से मौत के घाट उतारने का आदेश दिया गया | जैसे ही पेर्पेतुआ की बारी आयी उसने तलवारिया के कांपते हाथों को अपने हाथ में लिया और उसे अपने गर्दन की ओर सही ढंग से तलवार चलाने की मदद की |

इस तरह का विश्वास ख्रीस्तीय उन दिनों देखने को मिलता था | उन शहीदों का साहस से हमें भी चुनौती और प्रेरणा मिलती है कि हम भी धैर्य के साथ अपना जीवन त्यागने के लिए तैयार रहे, विश्वास नहीं |

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