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फादर क्रिस दीसूज़ा अंधे थें लेकिन फिर वे फातिमा की माँ मरिया के तीर्थ पर गए जिसके बाद उनके जीवन में एक चमत्कार हुआ, पर यह उनके परिवार में होने वाला आखिरी चमत्कार नही था|
मेरी माँ मरियम पर श्रद्धा जीवन के शुरूआती दिनों से है| मैं ऑस्ट्रेलिया में पैदा हुआ लेकिन मेरे माता पिता पुर्तगाल से यहां आए थे, इसीलिए फातिमा की माँ मरियम पर हमारी हमेशा से श्रद्धा रही है| हम हर दिन घर पर उनकी मूर्ती के रोज़री माला बोलते थे, इसी लिए मुझे हमेशा से उनकी मध्यस्था पर भरोसा रहा है|
मैं जन्म से ही दाहिने आँख से अँधा हूँ और एक बीमारी के चलते साल दर साल मेरी बाईं आँख की रौशनी भी कम होती गयी| इसीलिए बचपन से ही मेरे मातापिता ने मुझे कई आई स्पेशलिस्ट्स को दिखाया, इस उम्मीद में कि उन्हें कहीं ना कहीं मेरी बीमारी का कोई ना कोई इलाज ज़रूर मिल जाएगा, पर हर जगह उन्हें बस निराशा ही हाथ लगी|मुझे जो बीमारी थी उसका कोई इलाज नही था और यह बात तय थी कि मेरे बड़े होने तक मैं पूरी तरह से अँधा हो जाऊँगा|
जब तक मैं बड़ा हुआ मेरी बाईं आँख की रौशनी काफी हद तक जा चुकी थी, जिसकी वजह से मेरी क़ानून की पढ़ाई पर काफी असर पड़ा| मेरे मातापिता जब मुझे अपनी कमज़ोर आँखों से क़ानून की मोटी मोटी किताबों को पढ़ने की कोशिश करते हुए देखते थे, तो उनका दिल दुख से टूट जाता था। इसीलिए मेरी पढ़ाई के आखिरी साल वे दोनो फातिमा की माँ मरियम के तीर्थ पर गए और उन्होंने मेरी आंखों की रौशनी के लिए माँंमरियम से मध्यस्थता मांगी। मैं उनके साथ नही गया क्योंकि मैं अपने आखिरी साल की पढ़ाई के बीच कहीं आ जा नहीं सकता था।
जब वे तीर्थ से दृढ़ विश्वास के साथ और एक नए उत्साह के साथ लौटे, तब उन्हें एक नए स्पेशलिस्ट के बारे में पता चला जो बेल्जियम से एक नई तकनीक सीखकर लौटे थें जो की मेरी मदद कर सकता था।हालांकि उन स्पेशलिस्ट के साथ एक अपॉइंटमेंट मिल पाना नामुमकिन सा लग रहा था, लेकिन माँ मरियम की मध्यस्थता के द्वारा हमें किसी तरह एक कंसल्टेशन मिल ही गई।और हालांकि मुझे यह बचपन से ही समझा दिया गया था कि जल्द ही मैं अपनी दोनो आंखों की रौशनी खो दूंगा, मैं अपने मातापिता की कोशिशों को अनदेखा नही कर सकता था, इसी लिए मैं इस नए डॉक्टर से मिलने केलिए राज़ी हो गया।
मेरी आँखों की जांचकरने के बाद स्पेशलिस्ट डॉक्टर ने कहा कि वे इस बात का दावा नहीं कर सकते थे कि जो नयी तकनीक वह सीख कर आए थे वह मेरे काम आएगी| यह सब काफी रिस्की भी था क्योंकि मेरे पास सरकार की रज़ामंदी नहीं थी और यह इलाज बहुत महंगा था| लेकिन मेरे मातापिता का माँ मरियम की मध्यस्था पर विश्वास इतना मज़बूत था कि वे इस इलाज के लिए तुरंत मान गए और उन्होंने मुझे भी इस इलाज को कराने केलिए मना लिया| मैं मन ही मन अभी भी दुविधा में था पर फिर मैं ने खुद को माँ मरियम देखरेख में छोड़ दिया|
उन्होंने इलाज मेरी दाईं आँख से शुरू किया, वह आँख जिसमे मैं जन्म से ही अँधा था| सर्जन ने हमसे कहा था कि इस इलाज का असर दिखने में कुछ महीने लग सकते थे इसीलिए मैं तुरंत ही अपनी आँखों कीरौशनी केबेहतर होने की उम्मीद नहीं कर रहा था| लेकिन ऑपरेशन के खत्म होने के 15 से 20 मिनट बाद ही मैं अपनी जन्म से खराब आंख से ज़िंदगी में पहली बार सब कुछ साफ साफ देख पा रहा था। मुझे अपनी पूरी ज़िंदगी में सब कुछ इतना साफ, इतना स्पष्ट कभी नही दिखा था।
मैं ऑपरेशन थिएटर से ईश्वर की महिमा गाता, माँ मरियम को उनकी मध्यस्था केलिए धन्यवाद कहता हुआ दौड़ा चला आया। जैसे ही मैंने ख़ुशी में अपने मातापिता को गले लगाया, मेरे सर्जन जिन्हें ईश्वर में विश्वास नही था, वेभी इसे एक चमत्कार मानने से इन्कार नही कर पाए। क्योंकि वे भी हमें यह समझाने में नाकाम थे कि उस आंख पर इस इलाज का इतनी जल्दी असर कैसे हुआ जो जन्म से ही पूरी तरह खराब थी।
एक महीने बाद उन्होंने मेरी दूसरी आंख, मेरी बाईं आंख का ऑपरेशन किया। इस बार भी एक चमत्कार की आशा रखना ईश्वर से कुछ ज़्यादा ही मांगने जैसा था, लेकिन ईश्वर के घर में आशीषों की कभी कमी नही पड़ती। फिर से ऑपरेशन के 15 से 20 मिनट बाद मैं अपनी बाईं आंख से साफ साफ देख पा रहा था। मेरी दोनों आंखों की रौशनी वापस आ चुकी थी। पवित्र कुंवारी मरियम की मध्यस्थता से और मेरे मातापिता के दृढ़ विश्वास के कारण अब मैं एक वकील के तौर पर अपनी नई ज़िंदगी शुरू कर सकता था।
मेरी हमेशा से एक वकील बनने की इच्छा थी, लेकिन फिर मैं ने ईश्वर केलिए अपने दिल को खोला। वे मुझसे क्या चाह रहें थे? मैं जानता था कि ये चमत्कार मेरे जीवन में उनके दिए तोहफे थे जिनकी मुझे कीमत चुकाने की ज़रूरत नहीं थी, लेकिन माँ मरियम की मध्यस्था से मैं उनसे पूछता था कि “हे ईश्वर, आप मुझ से क्या चाहते हैं? आपने मेरी आंखों की रौशनी मुझे क्यों वापस की, क्योंकि दुनिया में ऐसे कई लोग हैं जिन्हें ऐसे एक चमत्कार की ज़्यादा ज़रूरत है। मन में इसी उलझन को लिए मैं ने काम करना शुरू किया। और हालांकि एक वकील की ज़िंदगी जी कर मैं खुश था, और लोगों की नज़र में मैं शादी और खुद का परिवार शुरू करने की राह पर था, फिर भी मुझे मेरे दिल में एक पुरोहित के तौर पर ईश्वर केलिए जीने की बुलाहट तब महसूस हुई जब मैं विश्व युवा दिवस की तीर्थयात्रा पर था।
सच कहूं तो उस वक्त मेरा मन घबराहट से भर गया था और मुझे अपनी इस बुलाहाट को समझने और अपनाने में कई महीने लगें। 13 मई की बात है, फातिमा की माँ मरियम की फीस्ट के मिस्सा के दौरान मैं ने पवित्र कुंवारी मरियम से कहा, “अगर मेरे जीवन केलिए आपके बेटे की यही इच्छा है, तो मुझे यह योजना मेरे आंखों के सामने साफ साफ दिखाइए, उसी तरह जिस तरह पहले सब कुछ साफ साफ देखने में आपने मेरी मदद की। इसके बाद मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी आंखों के सामने से एक पर्दा सा हट गया। मुझे अब यकीन था कि माँ मरियम के बेटे येसु मुझे धार्मिक जीवन जीने केलिए बुला रहे थें। येसुमुझे पुरोहिताई केलिए बुला रहे थे। खुद को माँ के हाथों में सौंप कर मैंने यह तय किया कि मुझे एक सोमस्कन फादर के तौर पर ईश्वर को अपना जीवन समर्पित करना चाहिए।
अपने धार्मिक संगठन के रीति रिवाजों के हिसाब से मैंने निर्धनता, पवित्रता और आज्ञाकारिता की शपथ ली। मैंने ख़ुद को माँ मरियम को भी समर्पित किया और अपने नाम में मारिया नाम शामिल किया। हमारे धार्मिक संगठन के संस्थापक संत जेरोम एमिलियानी को मां मरियम ने चमत्कारिक रूप से तब छुड़ाया था जब वे 500 साल पहले युद्ध में कैद कर लिए गए थें। मुझे भी मां की मध्यस्था ने ही मेरे अंधेपन से छुड़ाया था, जिसकी वजह से मैं येसु को अपना जीवन सौंप पाया।
जब मैं रोम में आपने थियोलॉजी के आखिरी एक्जाम की तैयारी कर रहा था तब मेरे पिता ब्लड कैंसर की वजह से काफी बीमार हो गाएं। जब वह अपनी बीमारी के इलाज की तैयारी में लगे हुए थें तब मैं फातिमा की माँ मरियम के तीर्थ पर गया ताकि मैं अपनी ठीक हो चुकीआंखों केलिए उन्हें धन्यवाद कह सकूं और अपने पिता की अच्छी सेहत केलिए प्रार्थनाक र सकूं। वहां जाकर जिस दिन मैंने घुटनों के बल चलक र वह राह नापीं जहां माँ मरियम ने 100 साल पहले कुछ बच्चों को दर्शन दिए थे, उसी दिन मेरे पिता जिन स्पेशलिस्ट को से अपना इलाज करा रहे थे उन्होंने यह पाया कि मेरे पिता के खून से कैंसर जा चुका था। एक बार फिर से, पवित्र कुंवारी मरियम की मध्यस्था ने एक चमत्कार द्वारा मेरे परिवार के एक सदस्य को चंगा कर दिया था।
इसके बाद कभी भारत तो कभी श्रीलंका तो कभी मोज़ाम्बिक में सेवा काई करने के बाद मैं आखिर कार अपनी पुरोहियाई की दीक्षा पाने केलिए ऑस्ट्रेलिया वापस आया। मेरा दीक्षांत समारोह मां मरियम के महीने, मई महीने में एक शनिवार को रखा गया। मैंने अपनी पुरोहिताई मां के हाथों में समर्पित की। अगले दिन, 13 मई को फातिमा की माँ मरियम की फीस्ट के दिन मैंने अपना पहला मिस्सा चढ़ाया ।इसके बाद, फ्रीमेंटल की सड़कों पे मां मरियम के आदर में मोमबत्तियों के साथ एक सुन्दर सा जुलूस निकाला गया।
हम उसस मय अपने जीवन में खुशियों केशिखर पर थे जब मेरी मां बुरी तरह बीमार पड़ गईं और हमें उन्हें तुरंत एम्बुलेंस में अस्पताल ले जाना पड़ा। मैंभी जल्दी जल्दी अस्पताल पहुंचाता कि मैं उन्हें बीमारों का संस्कार दे पाऊं, जो की चंगाई का संस्कार होता है। मैं वह पहली इन्सान थी जिन्हें मैंने यह संस्कार दिया। उनको यह संस्कार देकर मैंने अपनी पुरोहित को और भी मज़बूत होते हुए महसूस किया क्योंकि उनको इस हालत में देखते हुए भी मैं उनके सामने एक पुरोहित के रूप में उनकी सेवा कर पाया। डॉक्टरों को लगा कि उन्हें दिल का दौरा पड़ा था और इसी वजह से वे उन्हें खून पतलाकरने वाली दवाइयां देने लगें लेकिन उन्हें असल में एन्यूरिज्म था जिसकी वजह से उनके शरीर में अंदर ही अंदर खून बह रहा था।
डॉक्टरों को उन दवाइयों के उल्टे अस र के बारे में कई दिनों बाद पता चला। वह दवाइयां मां के अंदर के है मरेजको और भी बढ़ा रहीं थीं। उन्हें जल्द से जल्द इमरजेंसी ऑपरेशन के लिए ले जाया गया, और उनके बचने की उम्मीद कम ही थीं, पर मां मरियम की मध्यस्थता के द्वारा ईश्वर ने हमें एक और चमत्कार का तो हफा दिया। डॉक्टर यह समझ पाने और समझा पाने में नाकाम थे कि इतने दिन इतना खून बह जाने केबाद भी मेरी मां इस वक्त ज़िंदा कैसे थीं। मेरी मां ने उन्हें समझाया कि पवित्र कुंवारी मरियम ने ईश्वर से हमारे लिए मध्यस्था की थीं। “मेरे बेटे ने एक पुरोहित के रू प में खुद को मां मरियम को सौंपा है और वह हर दिन मेरे लिए मिस्सा चढ़ाता आया है। इसीलिए यह चमत्कार हुआ और मैं ठीक हो पाई।”
इन सारे गहरे अनुभवों ने मां मरियम में मेरी श्रद्धा को और भी मज़बूत कर दिया है। मैं आप लोगों को भी मां की स्वर्गीय मध्यस्था में भरोसा करने केलिए प्रोत्साहित करता हूं।मैं ने उन चमत्कारों का स्वाद चखा है जिन्हें मांने मेरे जीवन केलिए येसु से मांग लिया। वह जिन्होंने पवित्र रूप से गर्भधारण किया, और वे सारी कृपायें पाईं जिन्हें येसु ने क्रूस पर लटक ते हुए उनके लिए निर्धारित किया। उन्होंने ईश्वर की मां बनने केलिए खुद को समर्पित किया, उसी तरह जिस तरह सालों बाद ये सुने गेथसेमिनी बाड़ी में अपने दुखभोग के पहले खुद को ईश्वर को समर्पित किया। पवित्र कुंवारी मरियम की काना के विवाहित जोड़े की मदद करने की इच्छा की वजह से ही येसु ने अपना पहला चमत्कार किया। मां मरियम का दिल दुख से उसी तरह छिदा गया जिस तरह सालों बाद येसु का दिल क्रूस पर बरछे से छेदा गया। इसी लिए हमें मां मरियम पर पूरे दिल से भरोसा रखना चाहिए क्योंकि वह हमें सुख में और दुख में येसु के दिखाएं रास्ते पर चलना सिखातीहैं।
Father Chris da Sousa is the first Australian priest in the Company of the Servants of the Poor – the Somascan Fathers. This article is based on the Shalom World TV program : Mary My Mother https://shalomworld.org/episode/i-was-blind-but-now-i-see-fr-christopher-john-maria-de-sousacrs.
क्या मेरा जीवन कभी सामान्य हो पाएगा? मैं अपना काम कैसे जारी रख सकती हूँ? इन पर विचार करते हुए, मेरे दिमाग में एक अद्भुत समाधान आया... मुझे अपना जीवन बेहद तनावपूर्ण लग रहा था। कॉलेज में अपने पाँचवें वर्ष में, द्विध्रुवी विकार (बाईपोलर डिसऑर्डर) की शुरुआत के कारण पढ़ाई पूरी करने के मेरे प्रयासों में बाधा बन रही थी। मुझे अभी तक कोई निदान नहीं हुआ था, लेकिन मैं अनिद्रा से ग्रस्त थी, और मैं थकी हुई और अव्यवस्थित दिखती थी। इसके कारण शिक्षक के रूप में रोजगार की मेरी संभावनायें बाधित हुई। चूँकि मेरे पास पूर्णतावाद की ओर मजबूत प्राकृतिक प्रवृत्ति थी, इसलिए मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई और डर लगा कि मैं सभी को निराश कर रही हूँ। मैं गुस्से, निराशा और अवसाद में घिर गयी। लोग मेरी गिरावट के बारे में चिंतित थे और मदद करने की कोशिश कर रहे थे। मुझे स्कूल से एम्बुलेंस द्वारा अस्पताल भी भेजा गया था, लेकिन डॉक्टरों को उच्च रक्तचाप के अलावा कुछ भी गलत नहीं मिला। मैंने प्रार्थना की लेकिन कोई सांत्वना नहीं मिली। यहाँ तक कि ईस्टर मिस्सा के दौरान -ईस्टर की रात मेरा सबसे पसंदीदा समय है - भी दुष्चक्र जारी रहा। येशु मेरी मदद क्यों नहीं कर रहा है? मुझे उससे बहुत गुस्सा आया। अंत में, मैंने प्रार्थना करना ही बंद कर दिया। जैसे-जैसे यह चलता रहा, दिन-ब-दिन, महीने-दर-महीने, मुझे नहीं पता था कि क्या करना है। क्या मेरी ज़िंदगी कभी सामान्य हो पाएगी? यह असंभव लग रहा था। जैसे-जैसे मेरे स्नातक की परीक्षा नज़दीक आ रही थी, मेरा डर बढ़ता जा रहा था। पढ़ाना एक मुश्किल काम है जिसमें बहुत कम ब्रेक मिलते हैं, और छात्रों को मेरी ज़रूरत होगी ताकि मैं उनकी कई ज़रूरतों को पूरा करती हुई और सीखने का एक अच्छा माहौल प्रदान करती रहूँ। मैं अपनी मौजूदा स्थिति में यह कैसे कर सकती थी? मेरे दिमाग में एक भयानक समाधान आया: "तुम्हें बस खुद को मार देना चाहिए।" उस विचार को नरक में होना चाहिए, लेकिन उसे त्यागने और उसे सीधे नरक में वापस भेजने के बजाय, मैंने उसे वहीं मेरे मन में ही रहने दिया। यह मेरी दुविधा का एक सरल, तार्किक उत्तर लग रहा था। मैं बस लगातार हमले के बजाय सुन्न होना चाहती थी। अफ़सोस की बात है कि मैंने निराशा को चुना। लेकिन, जब मुझे लगा कि यह मेरे आखिरी पल होंगे, तो मैंने अपने परिवार के बारे में और मेरे उस व्यक्तित्व के बारे में सोची जो मैं कभी थी। सच्चे पश्चाताप में, मैंने अपना सिर आसमान की ओर उठाया और कहा: "मुझे बहुत खेद है, येशु। इन सब बातों केलिए मुझे क्षमा कर। बस मुझे वह दे जिसकी मैं हकदार हूँ।" मुझे लगा कि ये मेरे इस जीवन के आखिरी शब्द होंगे। लेकिन परमेश्वर की कुछ और ही योजना थी। ईश्वर की आवाज़ का श्रवण मेरी माँ, ईश्वर की कृपा से, उसी क्षण करुणा की माला विनती बोल रही थी। अचानक, माँ ने अपने दिल में ज़ोर से और स्पष्ट शब्दों में सुना “एलन को खोजो।” उन्होंने आज्ञाकारी होकर अपनी माला के मोतियों को एक तरफ रख दिया और मुझे गैरेज के फर्श पर पाया। वह जल्दी से समझ गई, और भयभीत होकर बोली: “तुम क्या कर रहे हो?!” और उन्होंने मुझे घर के अंदर खींच लिया। मेरे माता-पिता का दिल टूट गया था। ऐसे समय के लिए कोई नियम पुस्तिका नहीं है, लेकिन उन्होंने मुझे मिस्सा में ले जाने का फैसला किया। मैं पूरी तरह से टूट चुकी थी, और मुझे पहले से कहीं ज़्यादा उद्धारकर्ता प्रभु की ज़रूरत थी। मैं येशु के पास आने के पल के लिए तरस रही थी, लेकिन मुझे यकीन था कि मैं दुनिया की आखिरी इंसान हूँ जिसे वह कभी देखना चाहेगा। मैं यह विश्वास करना चाहती थी कि येशु मेरा चरवाहा है और अपनी खोई हुई भेड़ों को वापस लाएगा, लेकिन यह मुश्किल था क्योंकि कुछ भी नहीं बदला था। मैं अभी भी गहन आत्म-घृणा से ग्रस्त थी, अंधकार से पीड़ित थी। यह लगभग शारीरिक रूप से दर्दनाक था। उपहारों की तैयारी के दौरान, मैं फूट-फूट कर रो पड़ी। मैं बहुत लंबे समय से रोई नहीं थी, लेकिन एक बार जब मैंने रोना शुरू किया, तो मैं रुक नहीं पाई। मैं अपनी ताकत के आखिरी छोर पर थी, मुझे नहीं पता था कि आगे कहाँ जाना है। लेकिन जैसे-जैसे मैं रोती गई, मेरा बोझ धीरे-धीरे कम होता गया, और मैंने खुद को उनकी दिव्य दया में लिपटी हुई महसूस किया। मैं इसके लायक नहीं थी, लेकिन उन्होंने मुझे खुद का उपहार दिया, और मुझे पता था कि वह मेरे सबसे निचले बिंदु पर भी मुझसे उतना ही प्यार करता था जितना कि उन्होंने मेरे सबसे ऊंचे बिंदु पर किया था। प्यार की तलाश में आने वाले दिनों में, मैं मुश्किल से ईश्वर का सामना कर पाती, लेकिन वह छोटी-छोटी चीजों में दिखाई देता रहा और मेरा पीछा करता रहा। मैंने हमारे आतंरिक कक्ष में लगी येशु की दिव्य दया की तस्वीर की मदद से येशु के साथ फिर से संवाद स्थापित किया। मैंने बात करने की कोशिश की, ज्यादातर संघर्ष के बारे में शिकायत की और फिर हाल ही में हुए मेरे बचाव के मद्देनजर इसके बारे में बुरा महसूस किया। अजीब तरह से, मुझे लगा कि मैं एक कोमल आवाज़ को फुसफुसाते हुए सुन सकती हूँ: "क्या तुमने सच में सोचा था कि मैं तुम्हें मरने के लिए छोड़ दूँगा? मैं तुमसे प्यार करता हूँ। मैं तुम्हें कभी नहीं छोडूंगा। मैं तुम्हें कभी नहीं छोडने का वादा करता हूँ। सब कुछ माफ़ है। मेरी दया पर भरोसा रखो।" मैं इस पर विश्वास करना चाहती थी, लेकिन मैं इस बात पर भरोसा नहीं कर पा रही थी कि यह सच था। मैं उन दीवारों से निराश हो रही थी, जिन्हें मैं खादी कर रही थी, लेकिन मैं येशु से बात करती रही: "येशु, मैं तुझ पर भरोसा करना कैसे सीख सकती हूँ?" जवाब ने मुझे चौंका दिया। जब आपको लगता है कि कोई उम्मीद नहीं है, लेकिन आपको जीना जारी रखना है, तो आप कहाँ जायेंगे? जब आप पूरी तरह से अप्रिय महसूस करते हैं, और घमंड के कारण कुछ भी स्वीकार करने में दिक्कत महसूस करते हैं, फिर भी किसी न किसी तरह विनम्र होना चाहते हैं? दूसरे शब्दों में, जब आप पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के साथ पूर्ण सामंजस्य चाहते हैं, लेकिन अपने घर का रास्ता खोजने के लिए प्यार भरे स्वागत से बहुत डरते हैं और अविश्वास करते हैं, तो आप कहाँ जाना चाहते हैं? इसका उत्तर है ईश्वर की माँ और स्वर्ग की रानी धन्य कुँवारी मरियम। जब मैं भरोसा करना सीख रही थी, तो मेरे अजीब प्रयासों ने येशु को नाराज़ नहीं किया। वह मुझे अपनी धन्य माँ के माध्यम से अपने पवित्र हृदय के करीब बुला रहे थे। मैं उनसे और उनकी वफादारी से प्यार करने लगा। मैं माँ मरियम के सामने सब कुछ स्वीकार कर सकती थी। हालाँकि मुझे डर था कि मैं अपनी सांसारिक माँ से किया गया वादा पूरा नहीं कर पाऊँगी क्योंकि, अपने दम पर, मैं अभी भी मुश्किल से जीने की इच्छाशक्ति जुटा पा रही थी, मेरी माँ ने मुझे मरियम को अपना जीवन समर्पित करने के लिए प्रेरित किया, इस विश्वास के साथ कि वह मुझे इससे बाहर निकलने में मदद करेगी। मुझे इस बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं थी कि इसका क्या मतलब है, लेकिन फादर माइकल ई. गेटली, एम.आई.सी. द्वारा लिखित ‘प्रातःकालीन महिमा और येशु के हृदय को सांत्वना देने के लिए 33 दिन’ नामक पुस्तिका ने मुझे समझने में मदद की। धन्य माँ मरियम हमेशा हमारी मध्यस्थ बनने के लिए तैयार रहती हैं, और वह कभी भी किसी बच्चे के अनुरोध को नहीं ठुकराएँगी जो येशु के पास वापस लौटना चाहता है। जैसे-जैसे मैं समर्पण की प्रार्थना कर रही थी, "चाहे कुछ भी हो जाए, मैं हार नहीं मानूँगी " इन्हीं शब्दों के साथ मैंने फिर कभी आत्महत्या का प्रयास न करने का संकल्प लिया। इस बीच, मैंने समुद्र तट पर लंबी सैर करना शुरू कर दिया, जबकि मैं परमेश्वर पिता से बात करती थी, और उड़ाऊ पुत्र के दृष्टांत पर ध्यान करती थी। मैंने खुद को उड़ाऊ पुत्र के स्थान पर रखने की कोशिश की, लेकिन परमेश्वर पिता के करीब आने में मुझे कुछ समय लगा। पहले, मैंने कल्पना की कि वह कुछ दूरी पर है, फिर मेरी ओर चल रहा है। दूसरे दिन, मैंने कल्पना की कि वह मेरी ओर दौड़ रहा है, भले ही यह पिता ईश्वर के दोस्तों और पड़ोसियों के लिए हास्यास्पद लग रहा हो। आखिरकार, वह दिन आया जब मैं खुद को पिता की बाहों में देख सकती थी, फिर न केवल उनके घर में बल्कि स्वर्गीय परिवार की मेज पर मेरे लिए निर्धारित मेरी सीट पर मेरा स्वागत किया जा रहा था। जब मैंने कल्पना की कि वह मेरे लिए एक कुर्सी खींच रहा है, तो मैं अब एक जिद्दी युवती नहीं थी, बल्कि नयी पीढ़ी का मजेदार चश्मा और बॉब हेयरकट वाली 10 वर्षीय लड़की थी। जब मैंने अपने लिए पिता के प्यार को स्वीकार किया, तो मैं फिर से एक छोटे बच्चे की तरह हो गई, मैं वर्तमान क्षण में जी रही थी और पूरी तरह से उन पर भरोसा कर रही थी। मैं परमेश्वर और उनकी वफादारी से प्यार करने लगी। मेरे अच्छे चरवाहे ने मुझे भय और क्रोध की कैद से बचाया है, वह मुझे सुरक्षित मार्ग पर ले जाता है और जब भी मैं लड़खड़ाती हूँ तो वह मुझे सहारा देता है। अब, मैं अपनी कहानी साझा करना चाहती हूँ ताकि हर कोई ईश्वर की अच्छाई और प्रेम को जान सके। उसका पवित्र हृदय सिर्फ़ आपके लिए कोमल प्रेम और दया से भरा हुआ है। वह आपसे भरपूर प्रेम करना चाहता है, और मैं आपको प्रोत्साहित करती हूँ कि बिना किसी डर या संकोच के आप ईश्वर का स्वागत करें। वह आपको कभी नहीं छोड़ेगा या आपको निराश नहीं करेगा। उसके प्रकाश में कदम रखें और उसके आलिंगन में वापस लौटें।
By: Ellen Wilson
Moreमुझे प्रचुर मात्रा में वरदान और आशीर्वाद प्राप्त थे: दोस्त, परिवार, धन-दौलत, छुट्टियाँ — आप कोई भी नाम गिनें, मेरे पास सब कुछ था। तो मेरे जीवन में गड़बड़ियां कैसे आ गयी? वास्तव में मेरा बचपन परियों की कहानी जैसी कोई अद्भुत कहानियों की किताब नहीं थी - क्या ऐसा कोई है जिसका बचपन अद्भुत था ? - लेकिन मैं यह नहीं कहूंगा कि मेरा बचपन भयानक था। मेज़ पर हमेशा खाना, मेरे तन पर कपड़े और सिर पर छत होती थी, लेकिन हमें संघर्ष करना पड़ता था। मेरा मतलब यह नहीं है कि हमने आर्थिक रूप से संघर्ष किया, जो हमने निश्चित रूप से किया, बल्कि मेरा मतलब यह है कि हमने एक परिवार के रूप में अपना रास्ता खोजने और आगे बढ़ने के लिए संघर्ष किया। जब मैं छह साल का था, तब मेरे माता-पिता का तलाक हो गया था और मेरे पिता पहले से कहीं अधिक शराब पीने लगे थे। इस बीच, मेरी माँ को ऐसे पुरुष मिले जो उनके जैसी ही ड्रग्स और अन्य नशीली पदार्थों की बुरी लत में फंसे थे। हालाँकि हमारी ज़िंदगी के सफ़र की शुरुआत कठिन रही, लेकिन यह वैसी ही हमेशा नहीं रही। आख़िरकार, सभी सांख्यिकीय बाधाओं के बावजूद, मेरे माता-पिता और मेरे अब सौतेले पिता दोनों, ईश्वर की कृपा से, बुरी आदतों की लत से मुक्त हो गए और उसी तरह आगे भी बने रहे। रिश्ते फिर से बने, और हमारे जीवन में सूरज फिर से उगने लगा। कुछ साल बीत गए, और एक समय ऐसा आया जब मुझे एहसास हुआ कि मुझे अपने जीवन में कुछ क्रियात्मक, उत्पादक और लीक से कुछ हटकर कोई अलग कार्य करना है, ताकि मैं अपने बचपन के सभी नुकसानों और गलतीयों से मुक्त रहूँ। मैं ने कमर कस लिया और स्कूल वापस चला गया। मैं ने केश कलाकार का कार्य सीख लिया और मुझे नाई के कार्य करने का लाइसेंस मिल गया और मैंने एक अच्छे करियर की दिशा में काम किया। मैंने खूब पैसा कमाया और इस दौरान अपने सपनों की रानी से मेरी मुलाक़ात हुई। अंततः अवसर मिला, और मैंने बाल काटने के पेशे के अलावा, कानून प्रवर्तन में दूसरा करियर शुरू किया। हर कोई मुझे पसंद करता था, बहुत से ऊंचे ओहदे वाले लोग मेरे दोस्त थे, और ऐसा लगता था जैसे आकाश ही मेरी सीमा है। तो, मैं जेल में कैसे पहुंच गया? अविश्वसनीय सत्य एक मिनट रुकिए, यह मेरी जिंदगी नहीं है...यह वास्तविक नहीं हो सकता... यह मेरे साथ कैसे हो रहा है?! आप देखिए, मेरे पास सब कुछ होने के बावजूद, मेरे अन्दर किसी चीज़ की बड़ी कमी थी। इसका सबसे परेशान करने वाली बात यह थी कि मुझे पहले से ही पता था कि वह चीज़ क्या है, लेकिन मैंने इसे नज़रअंदाज कर दिया। ऐसा नहीं है कि मैंने कभी प्रयास नहीं किया, लेकिन मैं ईश्वर को अपना सब कुछ नहीं दे पाया । इसके बजाय, मैंने यह सब खो दिया...क्या वास्तव में खो दिया या....? यह इस प्रकार है: आप जो भी पाप पाल रहे हैं वह अंततः आपकी आत्मा की गहराई तक अपनी जड़ें जमा लेगा और आपको तब तक दबा देगा जब तक आप सांस नहीं ले सकेंगे। यहां तक कि मामूली प्रतीत होने वाले पाप भी धीरे-धीरे आपसे और अधिक की मांग करते हैं, तब तक कि आपका जीवन उथल पुथल न हो जाए, और आप इतने भ्रमित हो जाएं कि आपको पता ही न चले कि इस खाई से निकलकर ऊपर जाने का रास्ता कौन सा है। इस तरह मेरे जीवन की गिरावट की शुरुआत हुई. मैंने शायद जूनियर स्कूल में पढ़ते समय कहीं न कहीं अपने कामुक विचारों के आवेश में रहना और पाप करना शुरू कर दिया। जब मैं कॉलेज में था, तब तक मैं पूरी तरह से लड़कियों को पटानेवाला बन चुका था। आख़िरकार जब तक मैं अपने सपनों की रानी से मिला, तब तक सही और नैतिक कार्य को कर पाने लायक व्यक्ति नहीं रह गया । मेरे जैसा कोई व्यक्ति कैसे वफादार हो सकता है? लेकिन इतना ही नहीं है। कुछ समय के लिए, मैंने मिस्सा बलिदान में जाने और अच्छे कार्य करने की कोशिश की। मैं नियमित रूप से पाप स्वीकार संस्कार के लिए जाता था और अच्छे लोगों के क्लबों और समितियों में शामिल होता था, लेकिन मैं हमेशा अपने पुराने पापों का थोड़ा सा हिस्सा अपने पास रखता था। यह ऐसा नहीं है कि मैं इसी तरह काम करना चाहता था, लेकिन मैं उन पापों से इतना जुड़ा हुआ था, और उन आदतों को मैं त्यागने से डरता था। वक्त बीतता गया, और मैंने धीरे-धीरे मिस्सा बलिदान में जाना बंद कर दिया। मेरे पुराने पापी तरीके प्रकट होने लगे और वे पाप मेरे जीवन में अधिक हावी होने लगे। समय तेज़ी से आगे बढ़ा, और जैसे ही मैंने सावधानियों, पाबंदियों और आत्मसंयम को अलविदा कह दिया, भोग विलास की खुशियाँ मेरे चारों ओर घूमने लगीं। मैं जीवन के शिखर पर था। इन सबके अलावा, मैं बहुत सफल रहा और कई लोगों ने मेरी प्रशंसा की। फिर यह सब ध्वस्त हो कर नीचे गिरने लगा। मैंने कुछ भयानक विकल्प चुने जिसके कारण मुझे 30 साल की जेल की सज़ा काटनी पड़ी। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि मैंने उन लोगों को जीवन भर दर्द सहते हुए पीछे छोड़ दिया जो मुझसे प्यार करते थे और मेरी देखभाल करते थे। आप देखिए, जिस पापपूर्ण अवस्था में आप हैं, उससे भी आगे जाने के लिए आपको मनाने का एक तरीका पाप के पास है, ताकि जैसे आप थे उसकी तुलना में आप और अधिक भ्रष्ट बन जाएँ। आपका नैतिक आत्म संयम भ्रमित हो जाता है। बुरी चीज़ें अधिक रोमांचक लगती हैं, और पुराने पाप अब नए रूपों में हावी रहते हैं। इससे पहले कि आप इसे जानें, आप ऐसे व्यक्ति बन जाते हैं जिसे आप अपने आप को पहचानते भी नहीं हैं। तेजी से आगे बढ़ते हुए वर्त्तमान में ... मैं 11x9 फ़ुट की एक कोठरी में रहता हूँ, और दिन के बाईस घंटे उसमें बंद होकर बिताता हूँ। मेरी चारों ओर अराजकता है। मैंने कभी कल्पना नहीं की थी कि मेरा जीवन इस तरह बिगड़ जाएगा। लेकिन, मैंने ईश्वर को इन दीवारों के भीतर पाया। मैंने पिछले कुछ साल यहां जेल में प्रार्थना करते हुए और अपने लिए जिस मदद की ज़रुरत है, उसे ढूंढते हुए बिताए हैं। मैं पवित्रशास्त्र का अध्ययन कर रहा हूं और बहुत सारी कक्षाओं में भाग ले रहा हूं। मैं ईश्वर की दया और शांति का संदेश, जो मेरी बात को सुनते हैं, उन सभी कैदियों के साथ भी साझा कर रहा हूं। इससे पहले कि मैं अंतत: ईश्वर के प्रति समर्पित हो जाऊं, अत्यधिक जागरण की मेरी एक बुलाहट थी, लेकिन अब जब मैंने उस बुलाहट को पहचान कर उसे स्वीकारा है, तब मेरा जीवन पूरी तरह से बदल गया है। मैं हर सुबह उठकर जीवित रहने के लिए आभार प्रकट करता हूं। कारावास के बावजूद मुझे मिलने वाली अपार आशीर्वाद की वर्षा के लिए मैं हर दिन शुक्रगुज़ार हूं। जीवन में पहली बार मुझे अपनी आत्मा में शांति का अनुभव हुआ। मुझे अपनी आध्यात्मिक स्वतंत्रता पाने के लिए अपनी शारीरिक स्वतंत्रता खोनी पड़ी। ईश्वर की शांति को खोजने और स्वीकार करने के लिए आपको जेल जाने की ज़रूरत नहीं है। आप जहां कहीं भी हों, वह आपसे मिलेगा, लेकिन मैं आपको चेतावनी दूं - यदि आप उससे कुछ भी छिपाएंगे, तो आप जेल में मेरे पड़ोसी बन जायेंगे। यदि आप इस कहानी में खुद को पहचानते हैं, तो कृपया पेशेवर मदद और मार्गदर्शन लेने के लिए इंतजार न करें, शुरुआत अपने स्थानीय पल्ली पुरोहित से करें, लेकिन उन्हीं तक सीमित न रहें, किसी भी अच्छे व्यक्ति से मदद लें। यह स्वीकार करने में कोई शर्म नहीं है कि आपकी कोई समस्या है, और सहायता प्राप्त करने के लिए अभी से बेहतर कोई समय नहीं है। यदि आप जेल में हैं और आप इसे पढ़ रहे हैं, तो मैं चाहता हूं कि आप जान लें कि आपके लिए अभी भी देर नहीं हुई है। ईश्वर आपसे प्यार करता है। आपने जो कुछ भी किया है, वह उसे माफ कर सकता है। हम सभी लोग जो अपने दर्द और टूटेपन के साथ येशु मसीह के पास आते हैं, हम सब को क्षमा प्रदान करने के लिए उन्होंने अपना बहुमूल्य रक्त बहाया। यह पहचानते हुए कि हम उसके बिना दुर्बल हैं, हम शुरुआत कर सकते हैं। चुंगी लेने वाले के शब्दों में हम उसे पुकारें: "ईश्वर, मुझ पापी पर दया कर" (लूकस 18:13)। मैं आपको यह याद दिलाते हुए विदा लेता हूँ: "मनुष्य को इससे क्या लाभ, यदि वह सारा संसार प्राप्त कर ले, लेकिन अपना जीवन ही गंवा दे?" (मत्ती 16:26)
By: Jon Blanco
Moreजीवन की घुमावदार यात्रा में, यह जानकर दिलचस्प लगता है कि, आपके जीवन में कुछ अंधे मोड़ भी हैं जिन पर आपको ध्यान देना चाहिए! हम जानते हैं कि कार से यात्रा करते हुए अंधे मोड़ों की जांच करना कितना महत्वपूर्ण है, खासकर लेन बदलने, वापस मुड़ने या नए मार्ग पर मोड़ने से पहले। दुर्भाग्य से, हम कभी-कभी मुश्किलों से सीखते हैं। हाल ही में, मैं इस धारणा से प्रभावित हुई हूं कि हम सभी में शारीरिक और आध्यात्मिक दृष्टिहीनता होती है। जब येशु ने कहा, ""मैं लोगों के पृथक्करण का निमित्त बनकर संसार में आया हूं, जिससे जो अंधे हैं, वे देखने लगें और जो देखते हैं वे अंधे हो जाएं", तब येशु ने हमें इस दृष्टिहीनता से सावधान रहना सिखाया। जो फरीसी उनके साथ थे, वे यह सुनकर बोले, “क्या? हम भी अंधे हैं?” येशु ने उनसे कहा, “यदि तुम लोग अन्धे होते, तो तुम्हें पाप नहीं लगता, परन्तु तुम तो कहते हो कि हम देखते हैं; इसलिए तुम्हारा पाप बना रहता है” (योहन 9:39-41)। येशु यहाँ हमें क्या बता रहे हैं? हमें बहुत सावधान रहने की ज़रूरत है कि हम येशु के चरणों में बैठे रहें, उनके निर्देशों पर ध्यान दें, उनसे सीखें और उनके द्वारा दिए गए सुधार के निर्देशों को खुले मन से स्वीकार करें। जैसे ही हम सोचते हैं कि हम मुक्ति के मार्ग पर 'आ गए हैं' या हमने 'इस मसीही जीवनशैली को अपना लिया है', हम खतरे के क्षेत्र में हैं। ईश्वर की अनंत प्रेमपूर्ण बुद्धि की तुलना में हमारे सबसे बुद्धिमान विचार, महान बलिदान और सबसे गहरा प्यार, सिर्फ हवा के बराबर है। क्योंकि हम केवल थोडा ही देखते हैं; हम पूरी तस्वीर, या ईश्वर की महायोजना को नहीं देखते हैं। केवल ईश्वर ही ऐसा करता है। संत पौलुस इसे इस प्रकार कहते हैं, ''अभी तो हमें आइने में धुंधला सा दिखाई देता है, परन्तु तब हम आमने सामने देखेंगे। अभी तो मेरा ज्ञान अपूर्ण है; परन्तु तब मैं उसी तरह पूर्ण रूप से जान जाऊंगा, जिस तरह ईश्वर मुझे जान गया है।” (1 कुरिन्थी 13:12)। मुश्किलों से मेरी सीख अपने जीवन को पीछे मुड़कर देखने पर, मुझे याद आता है कि मैं बार बार अपने घमंड, पापों, कमियों, निर्णयों, धारणाओं, पूर्वाग्रहों और भय तथा विश्वास की कमी के बारे में पूरी तरह अनजान थी। शुक्र है, ईश्वर ने कुछ लोगों और कुछ घटनाओं को मेरे जीवन में ला दिया, जिससे आध्यात्मिक अंधेपन के कुछ पहलुओं को उजागर करने में मुझे मदद मिली। मैं मुश्किलों से सीखना चाहती हूँ। वर्षों तक, मैं इस बात को नहीं समझ पायी कि एक महिला मेरा क्यों किनारा कर के निकल जाती थी। इससे बहुत तनाव पैदा हो गया, क्योंकि हम खेलने और प्रार्थना करने वाले एक ही समूह में थे। आख़िरकार, मुझे यह पूछने का साहस और विनम्रता मिली कि मैंने उसे कैसे नाराज किया था। उत्तर दु:खदायी था, और यद्यपि हम कभी दोस्त नहीं बने, कम से कम अब मुझे अपने एक अंधे मोड़ के बारे में पता चला जो पहले रडार के नीचे था। लोगों को हमारी आँखों से धरन हटाने की अनुमति देने के लिए एक विनम्र हृदय की आवश्यकता होती है। और हमारी परेशानी यह है कि हम अक्सर पर्याप्त विनम्र नहीं होते हैं। मेरे जीवन में ऐसे कई उदाहरण हैं जब मैं इस बात से अनजान थी कि मेरी क्षमा न करने की प्रवृत्ति, अहंकार, आत्म संयम की कमी, पाप के प्रति समझौता या आभार भावना की कमी के कारण मुझे कितना नुकसान हुआ है। मैं यहां सार्वजनिक रूप से पाप स्वीकार नहीं कर रही हूँ, लेकिन यह गवाही देना चाहती हूँ कि ईश्वर धीरे-धीरे मुझमें आध्यात्मिक अंधेपन की परत उतार रहा है। हालाँकि यह दर्दनाक प्रक्रिया थी, लेकिन मुझे अधिक आध्यात्मिक स्वतंत्रता प्राप्त हुई है। हर दिन सीखने के लिए और भी बहुत कुछ है मेरी एक बुद्धिमान मित्र ने एक बार मुझसे कहा था कि वह प्रत्येक वर्ष चालीसा या तपस्या काल का इंतजार करती है। मैं कभी भी उसकी जैसी पवित्र व्यक्ति नहीं थी, इसलिए जब उसने ऐसा कहा तो मेरे कान खड़े हो गए। उसने मुझसे कहा कि चालीसा में किस चीज़ का परित्याग करना है, उस पर निर्णय वह स्वयं नहीं लेती है। यह काम वह अपने पति पर छोड़ देती है। मैं उस अवधारणा से बिल्कुल अभिभूत थी । क्या होगा अगर हम अपने जीवनसाथी या किसी भरोसेमंद साथी मसीही के पास जाएं और उनसे पूछें कि हम आध्यात्मिक रूप से कैसे बढ़ सकते हैं या पाप स्वीकार में हमें कौन सी पापपूर्ण आदत के बारे में बताना चाहिए? कई बार, हमारा मूल पाप अधिक स्पष्ट मुद्दों के नीचे दबा रहता है। उदाहरण के लिए, क्षमा न करने के कारण क्रोध हो सकता है, आत्मसंयम की कमी के कारण चिंता उत्पन्न हो सकती है, और अक्सर पूर्णतावाद के कारण घमंड उत्पन्न हो जाता है। ईश्वर की भलाई में विश्वास की कमी से अधिकांश पाप उत्पन्न होते हैं। आत्मिक निर्देशन की शक्ति आपके मूल पाप को चिन्हित करने में सक्षम हो जाने से आपके अन्दर एक वास्तविक शक्ति उत्पन्न होती है। यदि आप इसे पहचान सकते हैं, तो आप पश्चाताप करके इससे मुक्त हो सकते हैं। हालाँकि, मूल पाप पेचीदा हैं; वे नीचे दबे रहना पसंद करते हैं। पाप स्वीकार सुनने वाला कोई अच्छा नियमित व्यक्ति या आध्यात्मिक निर्देशक बड़े मददगार साबित होंगे। संत फॉस्टिना ने लिखा, "ओह, अगर मेरे पास शुरू से ही कोई आध्यात्मिक निर्देशक होते, तो मैं ईश्वर की इतनी सारी कृपा बर्बाद नहीं करती ।" जवाबदेही के लिए हम साझेदारों की तलाश कर सकते हैं। ईश्वर हमें स्वयं को बेहतर ढंग से 'देखने' में मदद करने के लिए अक्सर अन्य लोगों का उपयोग करता है। परिवार के सदस्य, विशेष रूप से वे जो सक्रिय रूप से येशु मसीह का अनुसरण कर रहे हैं, वे अंधे मोड़ों पर महान जांचकर्ता बन सकते हैं, क्योंकि वे हमें हमें सबसे अच्छे और सबसे बुरे रूप में देखते हैं। आइए, हम ईश्वर से यह प्रार्थना करना न भूलें कि वह हमारी जीवन यात्रा के अंधे मोड़ों को हमारे सामने प्रकट कर दे। जिस पाप के प्रति हम बेखबर हैं या अनदेखा करते हैं, यदि हम पवित्र आत्मा से उस पाप को हमें प्रकट करने केलिए कहें और पाप स्वीकार की तैयारी कर लें तो कैसा होगा ? मैं विशेष रूप से आप को सलाह देना चाहती हूँ कि आप बड़े निर्णय लेने से पहले बुद्धिमान मसीहियों से दिशा निर्देश प्राप्त कर ले। जिस तरह जब हम बाहर निकलने या किसी वाहन में दिशा बदलने की योजना बना रहे होते हैं तो अंधे मोड़ की जांच करना अधिक महत्वपूर्ण होता है, उसी तरह जब हम अपने पेशा, जीवन-यात्रा के विकल्पों और अन्य प्रमुख जीवन निर्णयों पर विचार कर रहे होते हैं तो हमें अतिरिक्त सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है। स्वर्गीय पिता, हमें सुनने वाला विनम्र हृदय दे ताकि तू हमें बेहतर जीवन के लिए बदल सके। हमें तेरे प्रति और हमारे पड़ोसियों के प्रति प्यार को बढ़ाने के लिए अपनी दृष्टि प्रदान कर।
By: डेनीस जैसेक
Moreबाइबिल की एक पंक्ति ने किस तरह एक हिंदू लड़की के जीवन और उसकी परिवर्तनकारी यात्रा को बदल दिया, इस सच्ची कहानी को अंत तक पढ़ें ... मेरा जन्म और मेरा पालन-पोषण भारत में एक हिंदू परिवार में हुआ था। एक धार्मिक परिवार में पली-बढ़ी होने के कारण मुझे हमेशा प्रार्थना में समय बिताने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था। बचपन में, मैं कभी भी माथे पर बिंदी लगाए बिना स्कूल नहीं गयी (बिंदी एक निशान है, जो आम तौर पर एक हिंदू के माथे पर लगायी जाती है, जो किसी व्यक्ति के सांप्रदायिक जुड़ाव का संकेत देती है)। मैं हिंदू देवी-देवताओं में विश्वास करती थी, लेकिन यह सिर्फ लेन-देन वाला रिश्ता था। उनसे मेरी प्रार्थनाएँ स्कूल की परीक्षाओं से एक सप्ताह पहले तक ही सीमित थीं। विडंबना यह है कि मैं एक कैथलिक स्कूल में जाती थी जहां मुझे ईसाई धर्म से परिचित कराया गया, लेकिन मैंने हमेशा ईसाई धर्म को इस रूप में देखा कि इसका मुझसे कोई लेना-देना नहीं है। उस कैथलिक स्कूल में बारह साल बिताने के बावजूद, मुझे कभी समझ नहीं आया कि येशु वास्तव में कौन थे और न ही यह कि उन्होंने मेरे लिए क्या किया। मैंने अच्छे अंकों के साथ हाई स्कूल पास किया। मुझे बेहद खुशी हुई कि हिंदू देवी-देवताओं से की गई मेरी प्रार्थनाओं का फल मुझे मिल गया है। मैं शहर के सबसे अच्छे कॉलेज में दाखिला लेने में सफल रही। विरोधाभासी रूप से, यह येशु समाज के पुरोहितों द्वारा संचालित एक कैथलिक कॉलेज था। मैं विस्मित रह गयी कॉलेज के अपने पहले वर्ष के दौरान, मैंने धर्म पर आधारित एक अनिवार्य कक्षा में भाग लिया, जहाँ लोगों ने अपने विश्वास के बारे में बात की। मैंने देखा कि जहां ईसाई छात्रों के पास येशु के बारे में कहने के लिए बहुत कुछ था, वहीं मेरे जैसे हिंदू जब अपने विश्वास को स्वीकार करने की बात आती थी तो चुप रहते थे। मैं भगवद गीता (भगवद गीता हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथों में से एक है) के बारे में कुछ नहीं जानती थी। मुझे बस इतना पता था कि अपनी इच्छाएं पूरी करने के लिए भगवान से कैसे प्रार्थना करनी है। मुझे खुद को हिंदू कहने में शर्मिंदगी महसूस होती थी।' तभी एक ईसाई प्रोफेसर ने ‘द पैशन ऑफ क्राइस्ट’ फिल्म से येशु के बारे में एक वीडियो चलाया। मैंने देखा कि उन्हें कितनी बेरहमी से कोड़े मारे गए थे और जब उन्हें सूली पर चढ़ाया गया तो उन्होंने कितनी पीड़ा सही। मेरी आंखों में आंसू थे. सूली पर चढ़ने का दृश्य मैं बमुश्किल देख सकी। दु:ख की बात है कि तब भी, मुझे वास्तविक कारण नहीं पता था कि कलवारी पर क्रूस पे उनकी मृत्यु क्यों हुई थी। लेकिन उस वीडियो को देखने के बाद, मुझे येशु के बारे में और जानने में दिलचस्पी होने लगी। मैंने बाइबिल की खोज में सार्वजनिक पुस्तकालयों का दौरा किया लेकिन मेरी किस्मत अच्छी नहीं थी। फिर मैंने इंटरनेट पर उपलब्ध बाइबिल का पीडीएफ संस्करण पढ़ने का फैसला किया। मैंने उत्पत्ति ग्रन्थ की पुस्तक से शुरुआत की लेकिन वहां येशु नहीं मिले। फिर, मैंने बेतरतीब ढंग से गूगल पर बाइबिल के वाक्यांश खोजे। संत मत्ती के अनुसार सुसमाचार के एक वाक्यांश ने मुझे प्रभावित किया: “जब तुम्हें अपनी ही आँख की धरन का पता नहीं तो तुम अपने भाई की आँख का तिनका क्यों देखते हो?” (मत्ती 7:3) यह वचन हमें दूसरों का न्याय न करने की शिक्षा देता है। कुछ सप्ताह बाद, हमारे पास एक अलग प्रोफेसर द्वारा पढ़ायी जाने वाली एक और धर्म कक्षा थी। उन्होंने हममें से प्रत्येक से अपने संबंधित धर्मों के बारे में अपनी मान्यताओं और विचारों को साझा करने के लिए कहा। अचानक, मैंने अपना हाथ उठाया और संत मत्ती से लिए उपरोक्त वाक्यांश को समझाया - एक शर्मीली हिंदू लड़की एक ईसाई बाइबिल से लिए गए वाक्यांश के बारे में अपना विचार साझा कर रही थी! मेरा माननाहै कि मेरी निर्भीकता पवित्र आत्मा का कार्य था। प्रोफेसर को इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि मैं एक हिंदू हूं। उन्हें बाइबिल पर मेरा व्याख्यान पसंद आया और उन्होंने अधिक लोगों को अपने धर्म के बारे में बोलने के लिए प्रोत्साहित किया। यह घटना कैथलिक धर्म में मेरे परिवर्तन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। सत्य के क्षण इस दौरान, जब मैं येशु और ईसाई धर्म को जान रही थी, तो मैं अक्सर खुद से पूछती थी, "मुझे गिरजाघर में हमेशा इतनी शांति क्यों महसूस होती है?" हिंदू मंदिरों में मेरा अनुभव बिल्कुल अलग था। वहां दुकानदारों की चीख-पुकार, मंदिर की घंटियों की आवाज, मंत्रोच्चार करते पुजारियों की आवाज़ और बड़ी भीड़ के बीच से देवताओं का चेहरा देखने के लिए लोगों की होड़, आदि की वजह से मैं खुद को विचलित अनुभव करती थी। गिरजाघर में मुझे जो शांति मिली, वह बिल्कुल विपरीत थी। कोविड लॉकडाउन के दौरान एक दिन मेरी नजर यूट्यूब पर एक वीडियो पर पड़ी, जिसमें एक पुरोहित ने स्पष्ट तरीके से समझाया कि हमने अपने जीवन में चाहे कितने भी पाप किए हों, हम ईश्वर के साथ फिर से जुड़ सकते हैं क्योंकि उनके पुत्र ने इसकी कीमत चुकाई है। ईश्वर के पुत्र येशु मसीह मानव बन गये, हमारे बीच रहे, हमसे प्यार किया, हमें ठीक किया, पापों को क्षमा किया, क्रूस पर मरे और मृतकों में से फिर से जी उठे, और अब समय के अंत तक हमारे साथ रहते हैं। सुसमाचार को जानने के बाद मेरा जीवन बदल गया। मुझे पता चला कि येशु मुझे जानते हैं और एक हिंदू होने के बावजूद वे मुझसे प्यार करेंगे। पहले, मैंने येशु को उन कई देवताओं में से एक समझा था जिनकी लोग पूजा करते थे, लेकिन अब मुझे एहसास हुआ कि सच्चा ईश्वर कौन है। जिन हिंदू देवताओं को मैं जानती थी उनमें से किसी ने भी मेरे पापों के कारण दुःख नहीं सहा और अपने प्राण नहीं दिए। मेरा हृदय येशु के प्रति प्रेम से भर गया और उस दिन से मैं स्वयं को येशु मसीह का अनुयायी मानने लगी। खुशी के आंसू पवित्र आत्मा ने मुझे येशु के बारे में और अधिक जानने के लिए मार्गदर्शन किया। मैंने एक बाइबिल खरीदी और उसे पढ़ना शुरू कर दिया। मैं येशु के प्रति बड़े सम्मान, आदर और प्रेम से भर गयी। पहले, ईश्वर के साथ मेरा रिश्ता लेन-देन का था। ईश्वर मुझसे वैसे ही प्यार करता है जैसे मैं हूं, यह सच्चाई मेरे लिए एक अनजान अवधारणा थी। मुझे पता चला कि येशु हर दिन मुझसे बात करना चाहते हैं और मेरे साथ व्यक्तिगत संबंध निभाना चाहते हैं। मेरे पापी होने के बावजूद वे मुझसे प्रेम करते हैं। वे मेरे सभी पापों को माफ करने और मुझे प्यार से अपनी बाहों में स्वीकार करने को तैयार हैं। मैं उनके प्यार के लायक नहीं थी, लेकिन फिर भी वे मुझसे प्यार करते थे। आज, येशु के साथ मेरा व्यक्तिगत संबंध मेरे जीवन की सबसे महत्वपूर्ण चीज़ है। जब मैं उनके साथ व्यक्तिगत संबंध स्थापित करने की इस यात्रा पर थी, तो मुझे एक सपना आया जिसमें मैंने भूरा-लाल लबादा पहने एक आदमी को मेरे सामने सड़क पर चलते हुए देखा। सड़क दोनों ओर राक्षसों से घिरी हुई थी। राक्षस मुझे नुकसान पहुंचाना चाहते थे और भयानक आवाजें निकाल रहे थे। हालाँकि, जो आदमी मेरे आगे चल रहा था, उसकी वजह से इन प्राणियों ने अपनी शक्ति खोनी शुरू कर दी। चूँकि वह इतना शक्तिशाली था, वे मुझे डरा नहीं सकते थे या मुझे चोट नहीं पहुँचा सकते थे। मैं उसकी उपस्थिति में संरक्षित और सुरक्षित महसूस कर रही थी। मुझे समझ नहीं आया कि सपना किस चीज़ के बारे में था। लेकिन बहुत दिनों बाद, मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी की मेरी परिचित एक साध्वी ने मुझे सपने की व्याख्या करने में मदद की। मेरे आगे चलने वाला व्यक्ति येशु था। वह अपने प्रति मेरे विश्वास को मजबूत करने और मुझे शैतान से बचाने के लिए मेरे पास आये। यह महसूस करने के बाद कि सूर्य, चंद्रमा और सितारों का निर्माता मुझे जानता है और मेरी परवाह करता है, मैं खुशी के आँसू बहाती हुई रो पड़ी। मुझे कैथलिक धर्म में परिवर्तित होने में दो साल लग गए, लेकिन जब ईश्वर कोई दरवाजा खोलता है, तो कोई भी व्यक्ति उसे बंद नहीं कर सकता। पवित्र आत्मा ने मेरे कैथलिक धर्म के रास्ते पर पुरुषों और महिलाओं के वेश में स्वर्गदूतों को रखा। 25 जून, 2022 को मैंने बपतिस्मा, परम प्रसाद और दृढ़ीकरण के संस्कार ग्रहण किये। आज, मैं लोगों को बताती हूँ कि येशु ने क्रूस पर उन सब के लिए क्या किया। मैं जिस भी व्यक्ति से मिलती हूँ उसमें मसीह को देखती हूँ। मैं जहां भी संभव हो सुसमाचार का आनंद साझा करना जारी रखना चाहती हूं।
By: Sarina Christina Pradhan
Moreसंत जनुवारियुस (या संत गेनारो, जैसा कि वे अपने देश इटली में जाने जाते हैं) का जन्म दूसरी शताब्दी में नेपल्स में एक धनी और कुलीन परिवार में हुआ था। उन्हें पंद्रह वर्ष की उल्लेखनीय आयु में पुरोहित नियुक्त किया गया था। बीस वर्ष की आयु में, वे नेपल्स के बिशप बने थे। सम्राट डायोक्लेशियन द्वारा शुरू किए गए मसीही उत्पीड़न के दौरान, जनुवारियुस ने अपने पूर्व सहपाठी सोसियुस सहित कई ईसाइयों को छुपाया, बाद में सोसियुस संत बन गए। सोसियुस को एक ईसाई के रूप में उजागर किया गया और उन्हें कैद कर लिया गया। जब जनुवारियुस सोसियुस से जेल में मिलने गए तो उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया। कहानियाँ अलग-अलग हैं कि क्या उन्हें और उनके साथी ईसाइयों को जंगली जानवरों के सामने फेंक दिया गया था (जिन्होंने उन पर हमला करने से इनकार कर दिया था), या उन्हें भट्टी में फेंक दिया गया था जहाँ से वे सुरक्षित निकल आए। लेकिन सभी कहानियाँ इस बात से सहमत हैं कि अंततः जनुवारियुस का सिर वर्ष 305 ई. के आसपास काट दिया गया था और यहीं से कहानी बहुत दिलचस्प मोड़ लेती है। धर्मपरायण अनुयायियों ने उनका कुछ रक्त कांच की शीशियों में इकट्ठा किया और इसे पवित्र अवशेष के रूप में संरक्षित किया। वह रक्त, जो आज तक सुरक्षित रखा गया है, उल्लेखनीय गुण प्रदर्शित करता है। जमा हुआ रक्त द्रवित हो जाने का बड़ा चमत्कार, सन 1389 से लेकर आज तक, प्रत्येक वर्ष तीन अवसरों पर होता आ रहा है। कांच की शीशियों में संग्रहित, बोतल के एक तरफ चिपका हुआ सूखा गहरा लाल रक्त चमत्कारिक ढंग से तरल में बदल जाता है जो बोतल को एक तरफ से दूसरी तरफ भर देता है। यह चमत्कार संत जनुवारियुस के पर्व के दिन, 19 सितंबर के अलावा, उस दिन भी होता है जो 1631 में माउंट वेसुवियस के ज्वालामुखी विस्फोट के प्रभाव से नेपल्स को बचाए जाने की सालगिरह है, जब उनके पवित्र अवशेषों को नेपल्स ले जाया गया था। ठोस रक्त कैसे तरल हो सकता है, इस पर कई वैज्ञानिक जांचों ने यह समझाने की कोशिश की है और उसमें असफल भी हुए। और इसमें किसी भी प्रकार की चालबाज़ी या बेईमानी नहीं सम्मिलित है। "चमत्कार हुआ, महान चमत्कार! " ऐसे हर्षित नारे नेपल्स महागिरजाघर में गूंजने लगते हैं जब संत के रक्त के अवशेष को रखे हुए मंजूषा को श्रद्धालु चूमते हैं। इस उल्लेखनीय संत के रूप में और चमत्कार के रूप में ईश्वर ने कलीसिया को कितना अद्भुत उपहार दिया है, जो हर साल हमें याद दिलाता है कि कैसे जनुवारियुस और कई अन्य लोगों ने अपने प्रभु के लिए अपना खून बहाया। जैसा कि तेर्तुलियन ने कहा है, "शहीदों का खून कलीसिया का बीज है।"
By: Graziano Marcheschi
Moreएक जहरीली मकड़ी के काटने के बाद अर्ध-लकवाग्रस्त मारिसाना अरम्बासिक को लगा कि उसका जीवन समाप्त हो रहा है। वह किसी चमत्कार के इंतज़ार में रोजरी माला का सहारा ली हुई थी| मैं बहुत लंबे समय से पर्थ, ऑस्ट्रेलिया में रह रही हूं, लेकिन मैं मूल रूप से क्रोएशिया की हूं। जब मैं आठ साल की थी तब मैंने एक चमत्कार देखा। माता मरियम की शक्तिशाली मध्यस्थता से अपंग पैरों वाला एक 44 वर्षीय व्यक्ति ठीक हो गया। हम में से कई लोगों ने यह चमत्कार देखा। मुझे अभी भी याद है कि उस आदमी के ठीक होने के बाद मैं उनके पास दौड़कर गयी थी और आश्चर्यचकित होकर उनके पैर छू रही थी। इस अनुभव के बावजूद, जब मैं बड़ी हुई तो मैं परमेश्वर से दूर हो गयी। मुझे विश्वास था कि यह दुनिया और यहाँ की सांसारिकता मेरी सीप है। मुझे केवल अपने जीवन का आनंद लेने की परवाह थी। मेरी माँ चिंतित थी क्योंकि मैं गलत तरीके से जीवन का आनंद ले रही थी। वह नियमित रूप से मेरे लिए प्रार्थना करती थी। उन्होंने माता मरियम से मेरी लिए प्रार्थना की। हालाँकि मेरी माँ ने 15 वर्षों तक उत्साहपूर्वक प्रार्थना की, फिर भी मेरे व्यवहार में कोई सुधार नहीं हुआ। जब मेरी माँ ने मेरे बारे में स्थानीय पुरोहित को बताया, तो उन्होंने कहा, "वह इस समय पाप में जी रही है। एक बार जब वह पाप करना बंद कर देगी, तो परमेश्वर उसे उसके घुटनों पर लाएगा, पवित्र मिस्सा के माध्यम से सभी अनुग्रह बरसाए जाएंगे, और चमत्कार होंगे |" वह विषैला दंश जब मैं 33 वर्ष की हुई तो यह भविष्यवाणी सच हो गई। मैं अपने बच्चे का पालन पोषण अकेली कर रही थी। एक अकेली माँ के रूप में, मैं जीवन के सबसे निचले तह पर पहुंच चुकी थी। धीरे-धीरे, मैं वापस परमेश्वर की ओर मुड़ गयी। मैंने कठिन समय में माता मरियम की सहायता का अनुभव किया। एक दिन, एक सफेद पूंछ वाली मकड़ी ने मेरे बाएं हाथ पर काट लिया। यह ऑस्ट्रेलिया में ख़ास पायी जानेवाली जहरीली मकड़ी थी। हालाँकि मेरा स्वास्थ्य अच्छा था, फिर भी मेरा शरीर इस मकड़ी के काटने से उबर नहीं सका। वह दर्द भयानक था| मेरे शरीर का बायाँ हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया था। मैं अपनी बायीं आँख से नहीं देख सकती थी। मेरी छाती, मेरा दिल और मेरे सभी अंगों में मैं ऐसे महसूस कर रही थी, जैसे उनमें ऐंठन हो रही हो। मैंने विशेषज्ञों से मदद मांगी और उनकी बताई दवाएं लीं, लेकिन मेरी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। अपनी हताशा के समय में, मैंने अपनी रोज़री माला उठाई और ऐसी प्रार्थना की जैसे पहले कभी नहीं की थी। सबसे पहले, मैं प्रतिदिन घुटनों के बल बैठकर माला विनती की प्रार्थना करती थी। जल्द ही मेरी हालत और अधिक खराब हो गई और मैं अब घुटनों के बल नहीं बैठ पा रही थी। मैं ने बिस्तर पकड़ लिया था| मेरे पूरे चेहरे पर छाले पड़ गये थे और लोग मेरी ओर देखने से भी कतराते थे। इससे मेरा दर्द और बढ़ गया. मेरा वजन भारी मात्रा में कम होने लगा। एकमात्र चीज़ जो मैं खा सकती थी वह सेब था। अगर मैं कुछ और चीज़ खाती थी तो मेरे शरीर में ऐंठन होने लगती। मैं एक बार में केवल 15-20 मिनट ही सो पाती थी, और ऐंठन के साथ जाग जाती थी। मेरे स्वास्थ्य का इस तरह बिगड़ना मेरे बेटे के लिए कठिन था, जो उस समय 15 वर्ष का था। उसने वीडियो गेम खेलकर इस मुसीबत से अपने आप को दूर कर लिया। हालाँकि मैं अपने माता-पिता और भाई-बहनों के संपर्क में थी, लेकिन वे सभी विदेश में रहते थे। जब मैंने उन्हें अपनी स्थिति के बारे में बताया, तो मेरे माता-पिता तुरंत मेडजुगोरे गए, जहां वे एक पुरोहित से मिले जिन्होंने मेरे लिए प्रार्थना की। उस समय, मैं अपनी रसोई के फर्श पर एक गद्दे पर लेटी हुई थी, क्योंकि एक कमरे से दूसरे कमरे में जाना मेरे लिए बहुत मुश्किल था। अचानक, उठने और चलने में मैं सक्षम हो गई, हालाँकि मुझे अभी भी कुछ दर्द हो रहा था। मैंने अपनी बहन को फोन किया और तब पता चला कि एक पुरोहित ने मेरे ठीक होने के लिए माता मरियम की मध्यस्थता के लिए प्रार्थना की थी। मैंने सोचना बंद नहीं किया। मैंने तुरंत मेडजुगोरे जाने के लिए टिकट खरीदे। मैं चिकित्सा विशेषज्ञों की सलाह के विरुद्ध जा रही थी। मेरी रोग-प्रतिरोधक-क्षमता कम थी और मेरा शरीर कमजोर था। फिर भी, मैंने जाने का फैसला किया। पहाड़ी पर जब मैं क्रोएशिया पहुंची, तो मेरी बहन ने मुझसे हवाई अड्डे में मुलाकात की और हम उसी शाम मेडजुगोरे पहुंचे। मैं उस पुरोहित से मिली जिसने मेरे माता-पिता के साथ प्रार्थना की थी। उन्होंने मेरे लिए प्रार्थना की और मुझे अगले दिन उस पहाड़ी पर चढ़ने के लिए कहा जिस पर माँ मरियम ने दर्शन दिए थे। उस समय भी, मैं सेब के अलावा कुछ भी नहीं खा पा रही थी और अगर खाती तो मेरा गला बंद हो जाता। उस समय भी मेरे पूरे शरीर पर छाले थे। फिर भी जहां माता मरियम प्रकट हुई थीं, उस पहाड़ी पर चढ़ने के लिए मैं अपने आप को रोक नहीं सकी। मेरी बहन मेरे साथ आना चाहती थी, लेकिन मैं अकेली जाना चाहती थी। मैं नहीं चाहती थी कि कोई मेरा दुःख देखे। जब मैं ऊपर पहुंची तो बर्फबारी हो रही थी। वहां ज्यादा लोग नहीं थे। मैंने माता मरियम के साथ एक खास पल बिताया। मुझे लगा कि वह मेरी प्रार्थना सुन रही है। मैंने माँ से अपने लिए जीवन की दूसरी पारी माँगी और अपने बेटे के साथ अधिक समय बिताने का अवसर मांगा। मैंने प्रार्थना की, "येशु, मुझ पर दया कर।" जैसे ही मैं पहाड़ी से नीचे आयी, मैं ‘हे हमारे पिता’ की प्रार्थना कर रही थी। जैसे ही मैंने 'हमारी प्रतिदिन की रोटी आज हमें दे' कहा तो मुझे दुख हुआ, क्योंकि मैं रोटी नहीं खा सकती थी। मैं परम प्रसाद की रोटी प्राप्त करने के लिए बहुत उत्सुक थी, लेकिन मैं उसे नहीं खा सकती थी। मैंने प्रार्थना की कि मैं फिर से रोटी खा सकूं। उस दिन मैंने कुछ खाने का निश्चय किया और खाना खा लिया। खाने के बाद मेरे शरीर में किसी भी प्रकार की कोई तकलीफ नहीं थी| उसके बाद, मैं लगातार दो घंटे तक सोयी। दर्द और मेरे शरीर में बीमारी के अन्य लक्षण कम हो चुके थे। ऐसा लगा मानो धरती पर स्वर्ग हो। अगले दिन मैं वापस गयी और ‘येशु की पहाड़ी’ पर चढ़ गयी जिसकी चोटी पर एक बड़ा क्रूस है। वहां मुझे अत्यधिक शांति का अनुभव हुआ। मैंने परमेश्वर से मेरे पापों को दिखाने के लिए कहा। जैसे-जैसे मैं चढ़ती गयी, परमेश्वर ने धीरे-धीरे उन पापों को प्रकट किया जिन्हें मैं भूल गयी थी। जैसे ही मैं पहाड़ी से नीचे उतरी, मैं पाप स्वीकार के लिए जाने को उत्सुक थी। मैं खुशी से भरी हुई थी। भले ही बीमारी से मुक्ति पाने में थोड़ा समय लगा, लेकिन अब मैं पूरी तरह ठीक हो गयी हूं। पीछे मुड़कर देखने पर मुझे एहसास होता है कि मेरे सभी कष्टों ने मुझे एक बेहतर इंसान बना दिया है। मैं अब अधिक दयालु और क्षमाशील हूं। जीवन में कष्ट और दुःख पीड़ा, किसी भी व्यक्ति को अकेलापन और हताशा का अनुभव करा सकता है। आपकी आर्थिक स्थिति, विवाह, पारिवारिक जीवन सहित सब कुछ बिखर सकता है। ऐसे समय में, आपको आशा रखने की ज़रूरत है। विश्वास आपको अज्ञात क्षेत्र में कदम रखने की ताकत देता है और तूफान के गुजर जाने तक अपने क्रूस को ढोते हुए, अपरिचित राह पर चलने की अनुमति देता है।
By: Marisana Arambasic
Moreमाँ मरियम की भक्ति अपने आप में एक लक्ष्य नहीं है ... यह एक पवित्र मार्ग है जो हमेशा मसीह की ओर जाता है मेरी माँ और नानी माँ मरियम और पवित्र हृदय के प्रति बड़ी श्रद्धा रखती थीं। जब हम बच्चे थे, उन दिनों हम अक्सर माँ मरियम से उन बहुत सी चीज़ों के लिए प्रार्थना करते थे, जिनकी हमें आवश्यकता होती है। जब हम किसी खोई हुई गुड़िया या चोरी हुई बाइक को खोजने की कोशिश कर रहे थे, तब भी हम माता मरियम की ओर मुड़ते थे। मेरे पिता भवन निर्माण क्षेत्र में काम करते थे। जब काम दुर्लभ था, जो अक्सर हुआ करता था, मेरी माँ ने मरियम से प्रार्थना की और अनिवार्य रूप से, थोड़े समय बाद, कोई न कोई ठेकेदार मेरे पिता के लिए काम की पेशकश करने घर आते थे। क्योंकि हम बच्चों को लगता था रोज़री बड़ी लम्बी प्रार्थना है, हम में से अधिकांश बच्चे जब भी 'रोज़री' शब्द सुनते थे, तो भाग कर छिप जाते थे। लेकिन हमारी माँ अंततः हमें ढूंढ लेती और हमें प्रार्थना करने के लिए साथ ले आती थी। दुर्भाग्य से, जैसे-जैसे हम बड़े होते गए, बचपन के समय की तुलना में माता मरियम हमारे लिए कम महत्वपूर्ण हो गई। वापस मरियम की बाहों में सन 2006 में, सेंट पैट्रिक चर्च का एक दल एक आध्यात्मिक मिशन कार्यक्रम देने के लिए हमारी पल्ली में आया। उनके मिशन कार्य में प्रत्येक दिन सुबह में पवित्र मिस्सा और शाम को प्रवचन और गवाही शामिल थी। सप्ताह के अंत में, मैंने पाया कि मेरा हृदय बदलने लगा था। माता मरियम से प्रार्थना करने की बचपन की यादों की एक लहर मुझ पर छा गई, और मुझे याद आया कि माँ मरियम ने हमारे जीवन में कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। मैं माँ मरियम के साथ अपने बचपन के रिश्ते को फिर से हासिल करना चाहती थी। मिशन के अंतिम दिन, हमने एक अति सुंदर पवित्र मिस्सा में भाग लिया। बाद में, पल्ली के बच्चे जलती मोमबत्तियाँ लेकर माता मरियम के इर्द गिर्द इकट्ठे हो गए। हम वयस्क लोग उनके साथ जुड़ गए। जब हम मोमबत्तियाँ जला रहे थे और प्रार्थना कर रहे थे, तो बच्चों ने धन्य माँ के बारे में कई सवाल पूछे: वे जानना चाहते थे, "वह अब कहाँ हैं?" और "हम उससे कैसे बात कर सकते हैं?" उन्होंने आँखें बंद करके और हाथ जोड़कर, भावपूर्ण प्रार्थना की। उस समय मुझे अपने बचपन की भक्ति और धर्मपरायणता को फिर से प्राप्त करने की इच्छा महसूस हुई। मैंने माता मरियम से उसी तरह बात करना शुरू किया जैसे मैं बचपन में किया करती थी। हम वयस्क लोग कभी-कभी उसके सम्मुख निवेदन रखकर उस से प्रार्थना करने में संतुष्ट होते हैं, लेकिन उसके साथ बात करने या संवाद करने में नहीं। हम उससे उस तरह बात नहीं करते जैसे हम अपनी मां से करते हैं। पल्ली में उस आध्यात्मिक मिशन के दौरान, मैंने फिर से सीखा कि कैसे मैं माता मरियम के पास विश्राम पाऊँ और किस तरह मैं अपनी प्रार्थनाओं को मेरे मन के अन्दर से बाहर प्रवाहित करूँ। एक दिन कार में अपनी छोटी बेटी सारा के साथ यात्रा करते हुए, मैंने कहा कि मुझे माता मरियम से मिलना अच्छा लगेगा। उसने जवाब दिया कि यह "बहुत अच्छा" होगा। फिर उसने कहा, "रुको माँ, हम माता मरियम को बराबर देखते हैं। हम उसे हर दिन देखते हैं, लेकिन कोई भी उसे देखने या उससे बात करने का समय नहीं निकालता है।“ मैं उसकी टिप्पणी से इतना हैरान थी कि मेरी गाड़ी लगभग सड़क से बाहर चली गयी। सारा ने जो कहा वह मुझे तार्किक और विवेकपूर्ण बात लगी। जब मैंने इस बात को मुझे समझाने के लिए कहा, तो उस समय वह अपनी गुड़िया के साथ खेल में लौट चुकी थी। मुझे यकीन था कि उसकी टिप्पणी पवित्र आत्मा से प्रेरित थी। "तूने इन बातों को ज्ञानियों और समझदारों से छिपाकर, निरे बच्चों पर प्रकट किया है।" (मत्ती 11:25)। मरियम के हाथ पकड़े हुए बेशक, हमारी धन्य माँ के प्रति मेरी भक्ति में रोज़री माला विनती शामिल है। हालाँकि यह एक महत्वपूर्ण और सुंदर प्रार्थना है, कई वर्षों तक मुझे इस प्रार्थना को करने के लिए संघर्ष करना पडा, क्योंकि मैं अभी तक अपने बचपन की शिकायत से दूर नहीं हुई थी कि यह प्रार्थना बड़ी लंबी थी। लेकिन मैंने रोज़री माला के महत्व को तब पहचाना जब मैंने येशु के जीवन पर ध्यान देना शुरू किया। इससे पहले, रोज़री माला एक प्रार्थना थी जिसे पूरा करने के लिए मैं जल्दी जल्दी प्रार्थना बोलती थी। लेकिन जैसा कि मैंने येशु के जीवन पर विचार करना शुरू किया, वैसे वैसे माता मरियम ने मुझे सिखाया कि रोज़री माला हमें उसके दिल में गहराई तक ले जाती है। क्योंकि वह ईश्वर की माँ है और हमारी माँ भी, हम उस पर भरोसा कर सकते हैं कि वह हमारी उंगली पकड़कर हमें ले जाए और हमें येशु मसीह के साथ उस गहरी यात्रा में ले जाए जिसे केवल वही पूरी तरह से समझती है। जैसे-जैसे हम जीवन में आगे बढ़ते हैं, हम जिन कठिनाइयों का सामना करते हैं, वे हमें ईश्वर के प्रेम पर संदेह करने या माता मरियम से दूर करने का कारण बन सकती हैं। मेरी भाभी की कैंसर से मृत्यु हो गई जब वह केवल बयालीस वर्ष की थी। वह अपने पीछे अपने पति और तीन बच्चे छोड़ गई। ऐसे समय में "ऐसा क्यों हुआ?" यह सवाल उठाना स्वाभाविक है, लेकिन हमारी परीक्षाओं को मरियम से बेहतर कौन समझ सकता है? क्रूस के नीचे खड़ी होकर उसने अपने बेटे को तड़पते और मरते हुए देखा। हम जिस भी रास्ते पर चलते हैं, दुख के रास्ते में भी, मरियम हमारे लिए एक हमसफ़र हो सकती है। मसीह के हृदय तक जाने का सबसे छोटा मार्ग माता मरियम के माध्यम से ही परमेश्वर ने मुझे मेरे दिल की इच्छा तक पहुँचाया। लेकिन इसमें कुछ समय लगा। उसके माध्यम से मुझे यूखरिस्त का महत्व समझ में आया। कभी-कभी माँ मरियम के प्रति लोगों की भक्ति, मसीह के बारे में अधिक ज्ञान की ओर नहीं ले जाती है। लेकिन माँ मरियम की भक्ति उसके पुत्र के बारे में ही है और हमें येशु के साथ गहरे रिश्ता जोड़ने के बारे में है। माँ मरियम के माध्यम से मैंने येशु के सम्मुख अपना पूर्ण समर्पण किया है। यह मरियम के साथ उसके दिव्य पुत्र की ओर एक व्यक्तिगत यात्रा है। मरियम एक मार्गदर्शक हैं जो हमेशा हमें येशु के पवित्र हृदय तक ले जाती हैं। मेडजुगोरे के छह छोटे बच्चों को माता मरियम दर्शन दे रही हैं यह बात सुनकर सन 2009 में मैं वहां गयी। मेडजुगोरे एक सरल लेकिन सुंदर जगह है जहाँ शांति को मूर्त रूप से अनुभव किया जाता है। मेडजुगोरे में येशु के पवित्र ह्रदय की एक प्रतिमा थी, जिसकी चारों ओर कई तीर्थयात्री प्रार्थना करने के लिए एकत्रित हुए थे। जब उस प्रतिमा के पास जाने की मेरी बारी आई, तो मैं उसके पास गयी, अपनी आँखें बंद कीं, और मूर्ति के कंधे पर हाथ रखकर प्रार्थना की। लेकिन जब मैंने अपनी आँखें खोलीं, तो मैंने पाया कि मेरा हाथ कंधे पर नहीं बल्कि येशु के हृदय पर टिका हुआ था! मेरी सरल प्रार्थना थी, "येशु, मैं जितना तेरी माँ को जानती हूँ, उतना तुझे नहीं जानती।" मेरा मानना है कि माँ मरियम मुझसे कह रही थी, “ठीक है, अब समय आ गया है। यह समय है कि तुम मेरे बेटे के दिल में जाओ।“ मैं इस बात से अनभिज्ञ थी कि अगले दिन येशु के पवित्र हृदय का पर्व था! एक नयी सेवकाई की शुरुआत अगस्त 2009 में, एक अतिथि पुरोहित ने मुझे अपनी पल्ली में ईश्वरीय करुणा की भक्ति शुरू करने के लिए प्रेरित किया। मैंने रोज़री माला से संबंधित कुछ करने की उम्मीद की थी, लेकिन मैंने देखा कि माँ मरियम मुझे सीधे अपने पुत्र येशु के पास ला रही थी। मैंने पूरे आयरलैंड में ईश्वरीय करुणा पर प्रवचनों और यूखरिस्तीय आराधना के कार्यक्रमों का भी आयोजन किया। आखिरकार, आयरलैंड में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय यूखरिस्टिक कांग्रेस की योजना बनाने में मदद करने के लिए मुझे आमंत्रित किया गया। वह सब कुछ, जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी! यूखरिस्तीय कांग्रेस के अंत में मेरे हृदय में मेरी सेवकाई का बीज बोया गया था। क्योंकि मैंने यूखरिस्तीय कांग्रेस से इतना आनंद और अनुग्रह प्रवाहित होते पाया था, मैंने अपने आप से पूछा, “अनुग्रह की वर्षा के एक सप्ताह के बाद क्या इसे समाप्त होने देना है? यह जारी क्यों नहीं रह सकता?” ईश्वर की कृपा से, अनुग्रह की वह वर्षा समाप्त नहीं हुई। पिछले दस वर्षों से, मैं ‘पवित्र संस्कार के बच्चे’ (चिल्ड्रन ऑफ़ द यूखरिस्ट) का समन्वयन कर रही हूँ, जो आयरलैंड में यूखरिस्तीय आराधना की सेवकाई के तत्वावधान में स्थापित किया गया है। इस सेवकाई का उद्देश्य हमारे बच्चों के विश्वास को बढ़ाना और परम प्रसाद की आराधना के माध्यम से उन्हें प्रभु के करीब लाना है। बच्चों को यूखारिस्तीय आराधना के बारे में अधिक जानकारी देने और बच्चों के अनुकूल तरीके से इसे नियमित रूप से अनुभव करने की आवश्यकता को पहचानते हुए मैं ने इस सेवकाई को शुभारम्भ किया। हमारे स्थानीय प्राथमिक विद्यालय में इसका संचालन करने के बाद, यह कार्यक्रम शीघ्र ही पूरे आयरलैंड के कई विद्यालयों में फैल गया। एक किशोरी के रूप में, मैंने नर्सिंग या किसी अन्य पेशे को अपनाने की उम्मीद की थी, लेकिन जब मैंने 22 साल की उम्र में शादी कर ली तो वे सब सपने फीके पड़ गए। बच्चों के बीच यूखरिस्तीय सेवकाई शुरू करने के बाद, एक पुरोहित ने मुझसे कहा, "हो सकता है कि अगर तुम एक नर्स बन गयी होती, तब तुम्हें आत्माओं की सेवा करने का अवसर नहीं मिलता। अब तुम आराधना करने केलिए बच्चों की नर्सिंग कर रही हो, उनकी मदद कर रही हो और उनका सही मार्गदर्शन कर रही हो।" माँ मरियम ने न केवल मुझे अपने पुत्र येशु के करीब पहुंचाया, बल्कि उसने मुझे बच्चों को भी उनके करीब आने में मदद करने के लिए प्रेरित किया। जब हम माता मरियम को उसकी तरह ‘हाँ’ कहते हैं, अपनी गहराई से, ईमानदारी से 'हां' कहते हैं, तो एक यात्रा शुरू होती है। वह हमारे ‘हाँ’ के साथ साथ चलती है, हमें येशु के साथ एक गहरे मिलन में लाती है और हमारे जीवन के लिए येशु की जो भी योजनाएँ हैं उन्हें पूरा करती है।
By: Antoinette Moynihan
Moreएक बच्चे के लिए 22 साल की यातनापूर्ण प्रतीक्षा के बावजूद, माँ मरियम के प्रति विक्टोरिया की भक्ति कम नहीं हुई। और फिर मरियम मुस्कुराई। बचपन में मैं माँ मरियम के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानती थी। क्योंकि मेरे माता-पिता ने मुझे उसके बारे में बहुत कुछ नहीं कहा था। लेकिन जब मैं सलेशियन साध्वियों द्वारा संचालित एक विद्यालय गयी और धर्म शिक्षा की कक्षाओं में पढने लगी, तब मैं माँ मरियम को बेहतर तरीके से जानने लगी, खासकर ख्रीस्तीयों की सहायिका मरियम माँ के रूप में और उसकी भक्ति के बारे में। उन साध्वियों का धन्यवाद जिन्होंने मुझे माला विनती की प्रार्थना करना सिखाया। मैंने सीखा कि माला विनती केवल प्रार्थनाओं को रटना नहीं है, बल्कि ईश्वर के वचन पर मनन चिंतन है, जो हमें येशु के करीब आने में सक्षम बनाता है। तब से, मैंने कभी भी बिना माला विनती किये, बिस्तर पर सोने नहीं गयी। खुशखबरी कहाँ है? अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद, मैं एक अच्छे कैथलिक स्कूल में शिक्षिका बन गयी, जहाँ मैं वहां पढ़ाने वाली साध्वियों के माध्यम से और उनके द्वारा वहां के कर्मचारियों के लिए आयोजित आध्यात्मिक साधनाओं के माध्यम से माँ मरियम के निकट आ गयी। जब मैं घर बसाना चाहती थी और अपने लिए एक जीवन साथी खोजना चाहती थी, तब मैं ने उसकी शक्तिशाली मध्यस्थता मांगी और जल्द ही मैं एक विश्वास प्रशिक्षण कार्यशाला में अपने जीवन साथी क्रिस्टोफर से मिली। माँ मरियम के प्रति हम दोनों आभारी हैं, क्योंकि पिछले 28 वर्षों से हम खुशी-खुशी अपना दाम्पत्य जीवन बिता रहे हैं। हमारी शादी के शुरुआती दिन मौज मस्ती, और प्यार से भरे हुए थे लेकिन जैसे-जैसे महीने बीतते गए, हमारे आस-पास के लोग पूछने लगे, "कोई खुश खबरी क्यों नहीं है?" मैंने उन्हें आश्वासन दिया कि "ईश्वर अपने समय में देगा।" इस जवाब ने मुझे आगे के सवालों से बचाया, लेकिन जैसे-जैसे साल बीतते गए, मेरे दिल में एक डर पैदा हो गया क्योंकि कोई ख़ुश खबरी आई ही नहीं। चिकित्सा जांच में केवल यह पाया गया कि मेरा गर्भाशय पीछे की ओर था, जिस के कारण गर्भ धारण में देरी हो सकती है, लेकिन डॉक्टर ने हमें सलाह दी कि अगर हम उनके दिशानिर्देशों का पालन करते हैं तो यह बदल जाएगा। फिर भी, महीना दर महीना बिना किसी बदलाव के बीतता गया। ऐसे दिन थे जब मैं बहुत उदास और हताश महसूस करती थी, लेकिन माँ मरियम और मेरे पति के प्यार ने मुझे उन हीन भावनाओं से ऊपर उठा दिया। दिल की गहराई से पुकार मैंने अपने दोस्तों और परिवार की सलाह के आधार पर विभिन्न दवाओं पर बहुत पैसा खर्च किया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। फिर मैंने डॉक्टरों के पास जाने के बजाय मरियम से संपर्क करना शुरू किया, मेरे दोस्तों द्वारा सुझाए गए सभी प्रकार के नव रोज़ी प्रार्थनाओं को अपनाया। मैं नौ दिन लगातार संत मरियम महागिरजा के लिए 24 किलोमीटर पैदल चली, फिर भी गर्भधारण का कोई संकेत नहीं था, हालांकि मुझे एक आंतरिक शक्ति दी गई जिस की मदद से हम आगे बढ़े। हमें पुण्य देश की तीर्थयात्रा करने का सौभाग्य मिला जहां हमने अपनी याचिकाएं जारी रखीं। मुझे याद है माँ मरियम का वह तीर्थ स्थान, जिसे दूध का तीर्थ कहा जाता है, जहां परंपरा के अनुसार, पवित्र परिवार ने मिस्र में निर्वासन के मार्ग में शरण मांगी थी। कहा जाता है कि माँ मरियम के स्तन से दूध की एक बूंद गिर गई थी क्योंकि उसने शिशु येशु को वहां स्तन पान कराया था, जिस के कारण लाल पत्थर का वह गुफा खडिया सफेद में बदल गया था। कई महिलाएं यहां संतान प्राप्ति के लिए या दूध की बेहतर आपूर्ति के लिए प्रार्थना करने आती हैं। वहाँ खड़ी होकर, मैं अभाव की गहरी भावना से अभिभूत फूट-फूट कर रोई। अन्य कोई भी तीर्थयात्री मुझे सांत्वना नहीं दे सका। मैंने और मेरे पति ने विदेश में काम करने का फैसला किया, ताकि हम लूर्द्स और दुनिया के अन्य तीर्थ स्थानों और विभिन्न खूबसूरत जगहों की यात्रा का खर्च उठा सकें। 14 साल की सेवा के बाद ऐसे अद्भुत स्कूल से इस्तीफा देना सबसे कठिन कार्य था। लेकिन हम एक बदलाव चाहते थे क्योंकि हमने उम्मीद नहीं छोड़ी थी। कहीं मेरे दिल के कोने में, मुझे अभी भी विश्वास था, हालाँकि मैं नहीं देख पा रही थी कि यह कैसे संभव होगा। हमने दुबई में नौकरी की। जैसे ही हमने इस नई मिट्टी में अपनी जीवन यात्रा जारी रखी, वैसे ही हमने अपनी प्यारी माँ मरियम के जिम्मे में अपना जीवन पूरी तरह से सौंप दिया और उसकी मध्यस्थता माँगी। यद्यपि हम जहाँ रहते थे वहाँ से गिरजाघर बहुत दूर था, फिर भी हमने पवित्र मिस्सा बलिदान को कभी नहीं छोड़ा। आवरण में ढका उपहार सन 2015 के नव वर्ष की पूर्व संध्या, के मिस्सा बलिदान के दौरान, प्रतिज्ञा पत्र से भरी एक तश्तरी पास की गई। मेरे प्रतिज्ञा पत्र में उत्पत्ति, अध्याय 30, पद 23 का पद था, जिसमे राहेल के बाँझपन के बारे में और किस तरह परमेश्वर ने उसके अपमान को दूर किया था, उसका जिक्र था। मैं बस मुस्कुराई। जब सारा ने स्वर्गदूतों को यह कहते सुना कि, "अगले साल इस समय सारा एक बच्चे को जन्म देगी," वह हँसी क्योंकि यह बहुत असंभव लग रहा था। मैंने भी ऐसा ही महसूस किया था, लेकिन मैं घर वापस गयी और उत्पत्ति, अध्याय 30 को पूरा पूरा पढ़ा। यह दो बहनों की कहानी से संबंधित है - लिआ, जो बच्चे पैदा करने में सक्षम थी, और राहेल जो नहीं कर सकती थी। उसने यहोवा से विनती की, कि उसकी कोख खोल दे, और यहोवा ने उसकी प्रार्थना सुनी, जिस से उसके दो पुत्र, यूसुफ और बेनयामीन उत्पन्न हुए। हम छुट्टी मनाने और अपने घर के लोगों से मिलने भारत गए थे, लेकिन वापस लौटने पर मेरी तबीयत खराब हो गई। इसलिए यह सोचकर कि मेरे रक्तचाप में उतार-चढ़ाव हो रहा है, मैं डॉक्टर के पास चेक-अप के लिए गई। डॉक्टर ने जांच का आदेश दिया, जिससे आश्चर्यजनक खबर सामने आई कि मैं गर्भवती हूँ! यह खबर रोमांचक और विचलित करने वाली दोनों थी। हम दोनों ने पांच साल के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए थे, इसलिए अगर हम उन्हें तोड़ते हैं तो हमें भारी जुर्माना देना होगा। मेरी बढ़ती उम्र के कारण, मेरे मातृत्व के लिए कोई बीमा कवरेज भी नहीं था, इसलिए अगर मैं अपने पति के साथ खाड़ी में रहूँ, तो यह बहुत महंगा होगा, और हम अलग भी नहीं हो सकते थे, क्योंकि आखिरकार 22 साल के लंबे समय के बाद एक बच्चे के लिए हमारी प्रार्थना सुनी गयी थी। इसलिए, एक बार फिर, हम अपनी दुविधा के समाधान ढूंढते हुए अपनी प्रिय माता मरियम के पास प्रार्थना करने के लिए गए। एक दिन, हमारी कंपनी की अध्यक्षा ने हमारे फ्लैट पर एक कार भेजी और हमें उनके आवास पर आने के लिए कहा। यह सोचकर कि यह संभवतः किस बारे में हो सकता है, हमने उनके कमरे में प्रवेश किया। हम चकित रह गए, क्योंकि उस महिला ने प्रसन्नतापूर्वक कहा, "यह बेहतर है कि आप दोनों इस्तीफा दे दें और भारत वापस चले जाएं।" हम इतने प्रसन्न और चकित थे कि हम उनकी बातों पर विश्वास ही नहीं कर पा रहे थे। लेकिन हम उस समय प्रार्थना में हमारे साथ रहने के लिए ईश्वर को और अपनी प्यारी माँ को धन्यवाद देना नहीं भूले। क्या आप चमत्कार की प्रतीक्षा में हैं ? बैंगलोर में मेरे डॉक्टरों को मेरे लिए एक कठिन गर्भावस्था की उम्मीद थी, लेकिन मरियम की शक्तिशाली मध्यस्थता के कारण, मेरी गर्भावस्था बिना किसी जटिलता के, एक अद्भुत तरीके से गुजरी। बेशक डॉक्टर हैरान थे कि मैं एक सामान्य प्रसव की ओर बढ़ रही थी, इसके बावजूद वे सिजेरियन ऑपरेशन करना चाहते थे, क्योंकि मैं बढ़ती उम्र में जुड़वा बच्चों को जन्म देने वाली थी। हमने सहयोग किया और ईस्टर रविवार को, जुड़वां बच्चे - कार्लटन और वैनेसा जन्म लिए। इतने बड़े आशीर्वाद देने के लिए हम ईश्वर को धन्यवाद देते हुए बहुत ही आनंदित और उल्लासित थे – क्योंकि यह किसी भी ईस्टर अंडे से भी बेहतर उपहार था। यदि आप अपने जीवन में किसी चमत्कार की प्रतीक्षा कर रहे हैं, तो मैं आपको विश्वास में मजबूत होने के लिए प्रोत्साहित करना चाहती हूं। हिम्मत मत हारिए। अपनी याचिकाओं के साथ ईश्वर के पास बार बार जाते रहें और मरियम से कहें कि वह आपकी प्रार्थना में शामिल हो। ईश्वर हमेशा हमारी प्रार्थना सुनता है और हमें कभी जवाब देने से इनकार नहीं करता है। जय हो मरियम! ईश्वर की महिमा हो!
By: Victoria Christopher
Moreक्या आप अपने जीवन में पाप के उस चक्र को तोड़ने के लिए संघर्ष कर रहे हैं? गेब्रियल कैस्टिलो उन सभी पापमय चीजों में उलझा हुआ था, - सेक्स, ड्रग्स, रॉक एंड रोल – जिन चीज़ों को जो दुनिया अच्छी मानती है, लेकिन ऐसा एक अवसर आया जब उन्होंने पाप को छोड़ने और अपने जीवन की सबसे बड़ी लड़ाई का सामना करने का फैसला किया, और उनकी दुनिया ही बदल गयी। मेरा पालन-पोषण एकल अभिभावक के द्वारा हुआ, जहाँ व्यावहारिक रूप से कोई धार्मिक शिक्षा नहीं थी। मेरी माँ एक अद्भुत महिला हैं और उन्होंने मेरा भरण-पोषण करने के लिए हर संभव कोशिश की, लेकिन यह पर्याप्त नहीं था। जब वह बाहर काम कर रही थी, तब मैं घर पर अकेला केबल टीवी के सामने बैठा करता था। मेरा पालन-पोषण एम.टी.वी. जैसे टेलीविजन नेटवर्क द्वारा किया गया था। एम.टी.वी. ने जिन चीज़ों को महत्व देने के लिए मुझसे कहा, मैं उन चीज़ों को महत्व देता था: लोकप्रियता, मौज मस्ती, संगीत, और अन्य अधर्मी चीजें। मेरी माँ ने मुझे सही दिशा में ले जाने के लिए हर संभव कोशिश की, लेकिन ईश्वर के बिना मैं सिर्फ पाप से पाप की ओर चला गया। बुराई से अत्यधिक बुराई तक। यही कहानी इस देश के आधे से ज्यादा लोगों की है। सच्चाई यही है कि मीडिया द्वारा बच्चों की परवरिश की जा रही है और मीडिया लोगों को इस जीवन में और अगले जीवन में भी दुख की ओर ले जा रहा है। माँ मरियम की दखल जब मैं अमेरिका के टेक्सास राज्य के ह्यूस्टन में स्थित सेंट थॉमस विश्वविद्यालय गया तब मेरा जीवन नाटकीय रूप से बदलने लगा। उस विश्वविद्यालय में मैंने धर्मशास्त्र और दर्शनशास्त्र के पाठ्यक्रम लिए, जिस के कारण मेरे दिमाग में वस्तुनिष्ठ सत्य की खोज शुरू हुई। मैंने देखा कि कैथलिक विश्वास में कुछ बौद्धिकता है। मेरे दिमाग में मुझे विश्वास हो गया था कि कैथलिक धर्म वस्तुनिष्ठ रूप से सत्य था, लेकिन बस एक ही समस्या थी ... मैं दुनियावी बातों, शारीरिक प्रलोभनों और शैतान का गुलाम था। उन दिनों सबसे बुरे लड़कों में से सबसे आगे, और सबसे अच्छे लड़कों में सबसे पिछड़े के रूप में मैं कुख्यात था। मेरे बुरे दोस्तों में से बहुत लड़के दृढीकरण संस्कार प्राप्त करने के लिए जा रहे थे और मैंने सोचा "अरे मैं भी एक बुरा कैथलिक हूं ... मुझे भी दृढीकरण संस्कार लेना चाहिए"। दृढीकरण के लिए ज़रूरी आत्मिक साधना के दौरान हमने एक शाम पवित्र घड़ी में समय बिताया, मुझे नहीं पता था कि यह पवित्र घड़ी क्या होती है, इसलिए मैंने एक प्रोफेसर से पूछा जिन्होंने मुझे पवित्र यूखरिस्त में येशु को निहारने और येशु के पवित्र नाम को दोहराने की सलाह दी। इस अभ्यास के लगभग 10 मिनट के बाद ईश्वर ने मेरी आत्मा में अपनी उंगली डाल दी और मुझे अपने प्यार से अभिभूत कर दिया, और मेरा पत्थर का दिल पिघल गया। उस घड़ी के बाकी समय पर मैं रोता रहा। उस दिन मुझे पता चला कि कैथलिक धर्म न केवल मेरे दिमाग को, बल्कि मेरे दिल को भी प्रभावित करता है। मुझे अपना जीवन बदलना पड़ा। एक बार चालीसा काल के दौरान, मैंने हर तरह के गलत रस्ते को त्यागने और हर घातक पाप या महापाप को छोड़ने का संकल्प लिया। मेरे संकल्प के ठीक दो घंटे बाद, मुझे एहसास हुआ कि मैं पहले से ही महापाप कर चुका था, इसलिए मैं पाप के जाल में किस तरह बुरा फंसा हुआ था। मुझे एहसास हुआ कि मैं एक गुलाम था। उस रात ईश्वर ने मुझे मेरे पापों के लिए मुझमें सच्चा पश्चाताप भर दिया और मैंने दया के लिए उसे पुकारा। तभी शैतान बोल उठा। उसकी आवाज स्पष्ट और डरावनी थी। ऊँचे स्वर में गड़गड़ाहट के साथ, उसने मेरे शब्दों को मज़ाक में दोहराया, “प्रभु, मुझे माफ़ कर। मैं तुझसे क्षमा माँगता हूँ प्रभु!" मैंने तुरंत संत जॉन वियांनी से प्रार्थना की। जिस पल मैंने वह प्रार्थना की, वह शैतानी आवाज चली गई। अगली रात मैं अपने कमरे में सोने के लिए बहुत डरा हुआ था, क्योंकि मुझे डर था की कहीं मुझे उस आवाज़ को दोबारा सुनना पडेगा। इसलिए मैंने एक जपमाला निकाली, जिसे संत पापा जॉन पॉल द्वितीय ने आशीर्वाद दिया था। मैंने माला विनती की पुस्तिका खोली, क्योंकि मुझे नहीं पता था कि माला विनती कैसे की जाती है। जब मैंने प्रार्थना की, "मैं स्वर्ग और पृथ्वी के सृष्टिकर्ता सर्वशक्तिमान पिता ईश्वर पर विश्वास करता हूँ.....", एक बुरी शक्ति ने मेरे गर्दन को पकड़ लिया, मुझे नीचे दबा दिया और मेरा गला घोंटने लगा। मैंने अपनी माँ को फोन करने की कोशिश की, लेकिन मेरी आवाज़ नहीं निकल पा रही थी। फिर मैं ने अपने सिर के अन्दर एक आवाज सुनी,, "प्रणाम मरिया, कृपापूर्ण... की प्रार्थना करो।" मैंने कोशिश की, लेकिन नहीं कर सका। मेरे सिर के अन्दर फिर आवाज़ सुनाई दी, "अपने मन में वही प्रार्थना कहो।" तो मेरे मन में मैंने कहा "प्रणाम मरिया"। फिर मैंने जोर से आवाज़ निकालने केलिए हांफते हुए कहा, "प्रणाम मरिया"! तुरंत सब कुछ सामान्य हो गया। मैं पूरी तरह से घबरा गया और महसूस किया कि यह दुष्ट शक्ति मेरे अब तक के जीवन में हमेशा मेरे साथ रहा। उसी समय मुझे एहसास हुआ कि मरियम ही मेरी समस्याओं की जवाब है। यहां तक कि उसका नाम पुकारने मात्र से ही मैं एक राक्षस रुपी दुष्टात्मा के वास्तविक चंगुल से मुक्त हो गया। कुछ शोध करने के बाद, दुष्ट शक्तियों के प्रभाव में मेरे रहने के कई कारणों की मैं ने पहचान की: मेरी माँ के पास नव युग की किताबें थीं, मेरे पास पापमय संगीत था, मैंने ऐसी बहुत सारी फिल्में देखी थीं जो सिर्फ बालिगों के लिए थीं, मैं जीवन भर घातक पाप में जी रहा था। शैतान मुझमें आविष्ट था, लेकिन माँ मरियम उसका सिर कुचल देती है। मैं अब माँ मरियम का हूँ। पापियों को परिवर्तित करने में विफल मैं रोज माला विनती की प्रार्थना करने लगा। मुझे एक अच्छा पुरोहित मिल गया और मैं लगभग प्रतिदिन, पाप स्वीकार करने जाने लगा। लेकिन बाद में मैं इसे जारी नहीं रख सका, इसलिए मुझे अपने सभी व्यसनों को तोड़ने के लिए माँ मरियम के साथ छोटे-छोटे कदम उठाने पड़े। माँ मरियम ने गुलामी से मुक्त होने में मेरी मदद की और सुसमाचार के संदेशवाहक बनने की इच्छा को मुझ में प्रेरित किया। जब मैंने माला विनती की प्रार्थना की, तो उसने मेरे लतों को तोड़ने में मेरी मदद की और मेरे मन को शुद्ध और पवित्र किया। मेरे अन्दर के क्रांतिकारी परिवर्तन और धार्मिकता की भूख के कारण मैंने धर्मशास्त्र में डिग्री और दर्शनशास्त्र में एक सर्टिफिकेट कोर्स पूरा किया। मैंने एक दिन में कई माला विनती कीं और मरियम को ही हर जगह देखा और शैतान को कहीं नहीं देखा। कॉलेज के बाद, मैंने एक धर्म शिक्षक के रूप में कैथलिक स्कूल प्रणाली में प्रवेश किया; मैं युवाओं को वह सब कुछ सिखाने लगा जो मैं जानता था। हालाँकि वे एक कैथलिक स्कूल में थे, वे मुझसे भी अधिक संघर्ष से गुज़र रहे थे। स्मार्टफोन के आगमन के साथ उनके पास छिपी हुई व्यसनों और गुप्त और गुमनाम जीवन के नए अवसर थे। मैं एक अच्छा शिक्षक था और परमेश्वर के लिए उनका दिल जीतने की पूरी कोशिश कर रहा था, लेकिन मैं असफल हो रहा था। दो साल के अंदर, मैं एक आत्मिक साधना में गया, जो ऐसे एक बहुत ही पवित्र पुरोहित द्वारा संचालित था जो रूहों की विवेचना और आत्माओं को समझने के आत्मिक वरदानों के लिए विख्यात थे। हमें एक व्यापक पाप स्वीकार करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। जीवन भर के पापों को देखते हुए, मैंने देखा कि ईश्वर की भलाई और दया के बावजूद मैं कितना भयानक था, मैं रोया। उस पुरोहित ने मुझसे पूछा, "तुम क्यों रो रहे हो?" और मैं ने सिसकियाँ भरते हुए कहा, "क्योंकि मैंने अपने बुरे उदाहरण से बहुत से लोगों को चोट पहुंचाई है, और बहुतों को भटका दिया है।" उन्होंने उत्तर दिया, "क्या तुम अपने द्वारा किए गए नुकसान के लिए प्रभावी क्षतिपूर्ति करना चाहते हो? रोज़री माला के सभी भेदों को पूरे एक साल तक हर दिन प्रार्थना करने का संकल्प लो, अपने हर एक बुरे काम में से, और उन सभी व्यक्तियों से जिन्हें आप ने चोट पहुंचाया, उन में से अच्छाई लाने के लिए माँ मरियम से कहो। उसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहिए। जान लो की तुम्हारे सारे कर्ज चुकाए गए हैं और आगे बढ़ो।” मरियम के साथ सफल होना मैंने पहले भी कई रोज़ माला विनती की प्रार्थना की थी, लेकिन जीवन के लिए एक सख्त नियम के रूप में कभी नहीं की थी। जब मैंने पूरी माला विनती को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लिया तो सब कुछ बदल गया। ईश्वर की शक्ति हर समय मेरे साथ थी। मरियम मेरे माध्यम से कामयाब हो रही थी। मैं आत्माओं तक पहुंच रहा था, और मेरे छात्रों के जीवन में नाटकीय रूप से बड़े बड़े परिवर्त्तन हो रहे थे। वे मुझसे यू-ट्यूब पर वीडियो डालने के लिए बार बार अनुरोध कर रहे थे। वे शुरुआती दिन थे और मुझमें आत्म विश्वास की कमी थी, इसलिए मैंने दूसरे लोगों के व्याख्यानों और प्रवचनों को तस्वीरों के साथ अपलोड किया। मरियम ने मुझे एक पड़ोसी पल्ली में काम करने के लिए प्रेरित किया। यह अच्छा हुआ, क्योंकि आत्माओं को पाने के मेरे उत्साह के साथ यह बेहतर रूप से काम आया। वास्तव में उस पुरोहित ने मुझे उन सारे युवाओं को पूरी तरह झकझोरने के लिए प्रोत्साहित किया, इसलिए उस पुरोहित के सहयोग से मैंने वही कार्य किया। मैंने नाजुक और विवादित विषयों पर वीडियो बनाना शुरू किया। मैं एक फिल्म प्रतियोगिता में शामिल हुआ, परिणाम स्वरूप मैंने विश्व युवा दिवस की मुफ्त यात्रा और 4,000 डॉलर के मूल्य के वीडियो उपकरण जीते। मैं आपको बता रहा हूं, माँ मरियम एक विजेता है। स्पेन में विश्व युवा दिवस पर, मैं संत डोमिनिक चर्च में पवित्र मिस्सा में गया था। जब मैं रोज़री की माँ मरियम की एक मूर्ति के सामने खड़े होकर प्रार्थना कर रहा था, तब मुझे संत डोमिनिक की उपस्थिति का एक जबरदस्त एहसास हुआ। यह इतना मजबूत था कि मुझे लगभग ऐसा लगा कि मैं माँ मरियम की मूर्ति के सामने नहीं, बल्कि संत डोमिनिक के सामने खडा हूँ। जो सन्देश मुझे वहां दिया गया, उस सन्देश के शब्दों को मैं दुहरा नहीं सकता, लेकिन यह एक गहरी आंतरिक समझ थी कि रोज़री माला को बढ़ावा देने का एक मिशन मुझे दिया गया है, क्योंकि इसी में दुनिया की समस्याओं का जवाब है। मैंने उन उपकरणों की मदद से ऐसा करने का संकल्प लिया जो उपकरण संत डोमिनिक के पास नहीं थे। मैंने माला विनती से जुडी सारी बातों का शोध करना शुरू कर दिया - इसका इतिहास, इसकी रचना, इसके विभिन्न पहलू, वे संत जिन्होंने यह प्रार्थना की आदि। जितना अधिक मैंने इसका अध्ययन किया, उतना ही मुझे एहसास हुआ कि इस रोज़री माला ने बहुत सारी समस्याओं का जवाब दिया है। आध्यात्मिक जीवन में परिवर्तन और कामयाबी रोज़री माला के फल थे। जितना अधिक मैंने इसे बढ़ावा दिया, उतना ही मैं सफल हुआ। इस मिशन के हिस्से के रूप में, मैंने “गैबी आफ्टर ऑवर्स” नाम से एक यू-ट्यूब चैनल विकसित किया, जिसमें बच्चों को विश्वास, उपवास और उद्धार में परवरिश करने पर भी सामग्री है। माला विनती मेरे प्रेरितिक कार्य के लिए ईंधन है। जब हम रोज़री माला की प्रार्थना करते हैं, तो हम माँ मरियम को स्पष्ट रूप से सुन सकते हैं। रोज़री माला तलवार की तरह है, जो उन बेड़ियों को तोड़ देती है, जिनसे शैतान ने हमें बांध रखा है। यह एक सम्पूर्ण और सिद्ध प्रार्थना है। वर्तमान में अपने जैसे युवाओं के साथ मैं युवा सेवकाई में पूर्णकालिक काम करता हूं। उनमें से अधिकांश वंचित और गरीब परिवारों से आते हैं, जिनमें से कई के घर में माता-पिता के रूप में एक ही व्यक्ति है। चूँकि इनमें से अधिकांश बच्चे अनाथ हैं, इसलिए माताएँ दो-दो काम करती हैं, इसलिए कुछ युवा अपने उन अभिभावकों के अनजाने में ही बुरी आदतों में पड़ जाते हैं, जैसे कि मारिजुआना का धूम्रपान करना या शराब पीना। हालांकि, जब उन्हें कुँवारी मरियम, कार्मेल की माँ मरियम की ताबीज़, चमत्कारी बिल्ला और विशेष रूप से रोज़री माला से परिचित कराया जाता है, तो उनके जीवन में बड़ा आमूल चूल बदलाव देखने को मिलता है। वे पापियों से संतों की ओर रुख कर लेते हैं। शैतान के दासों से लेकर मरियम के सेवकों तक। वे केवल येशु के अनुयायी नहीं बनते, वे येशु के प्रेरित बन जाते हैं। मरियम के साथ पूर्ण रुपेण आगे बढ़ें। रोज़री माला के साथ सब अंदर जाएँ। सभी महान संत इस बात से सहमत हैं कि मरियम का अनुगमन करने से, आपको येशु मसीह के हृदय तक सबसे तेज़, सबसे सुरक्षित और प्रभावशाली मार्ग पर ले जाता है। संत मैक्सिमिलियन कोल्बे के अनुसार, पवित्र आत्मा का लक्ष्य और कार्य है कि वह मरियम के गर्भ में हमेशा के लिए ख्रीस्त का सृजन करे। यदि आप पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होना चाहते हैं, तो आपको मरियम के समान बनना होगा। पवित्र आत्मा मरियम के भक्त आत्माओं के लिए उड़ान भरता है। यह सफलता का आदर्श है, जिसे हमारा प्रभु चाहता है। जिस तरह येशु ने किया उसी तरह हम भी अपने आप को मरियम को समर्पित करें। हम उससे चिपके रहें, जैसे बालक येशु मरियम से चिपका था। हम छोटे शिशु के रूप में रहें ताकि मरियम हम में रह सकें और ख्रीस्त को दूसरों तक पहुंचा सकें। अगर आप लड़ाई जीतना चाहते हैं तो माँ मरियम के साथ जाएं। वह हमें ख्रीस्त येशु के पास ले आती है और हमें येशु के समान बनने में मदद करती है।
By: Gabriel Castillo
Moreप्रश्न - मुझे पता है कि हमें मरियम के प्रति भक्ति करनी चाहिए, लेकिन कभी-कभी मुझे ऐसा लगता है कि येशु के साथ मेरे रिश्ते को यह भक्ति विचलित कर देती है। मैं माँ मरियम को अपने बहुत करीब अनुभव नहीं कर पाता हूँ। मैं येशु के प्रति अपने प्रेम से वंचित हुए बिना, माँ मरियम के प्रति गहरी भक्ति कैसे प्राप्त कर सकता हूं? उत्तर – कभी मैं भी अपने जीवन में, इसी प्रश्न से जूझता था। मैं संयुक्त राज्य अमेरिका के एक ऐसे क्षेत्र में पला-बढ़ा हूं जो ज्यादतर प्रोटेस्टेंट था, और मेरे किसी भी प्रोटेस्टेंट मित्र ने कभी भी माँ मरियम के प्रति भक्ति नहीं की थी। एक बार जब मैं किशोर था, वॉल-मार्ट में चेकआउट लाइन में किसी महिला के साथ मेरी बातचीत हुई, और जब उसे पता चला कि मैं कैथलिक पुरोहित बनने के लिए पढ़ाई कर रहा हूं, तो उसने मुझसे पूछा कि कैथलिक लोग मरियम की पूजा क्यों करते हैं! बेशक, कैथलिक लोग माँ मरियम की आराधना या पूजा नहीं करते हैं। केवल ईश्वर ही आराधना और पूजा के योग्य है। बल्कि, हम मरियम को सर्वोच्च सम्मान देते हैं। चूँकि वह पृथ्वी पर येशु के सबसे निकट थी, इसलिए अब वह स्वर्ग में येशु के सबसे निकट है। वह येशु की सम्पूर्ण अनुयायी थी, इसलिए उसका अनुकरण करने से हमें येशु का अधिक विश्वासपूर्वक अनुसरण करने में मदद मिलेगी। जिस तरह हम अपने माता-पिता या किसी मित्र या पुरोहित से हमारे लिए प्रार्थना करने के लिए कहते हैं, उसी तरह हम माँ मरियम से हमारे लिए प्रार्थना करने के लिए कहते हैं - और मरियम की प्रार्थनाएं कहीं अधिक प्रभावी हैं, क्योंकि वह मसीह के बहुत करीब है! मरियम के प्रति एक स्वस्थ भक्ति में बढ़ने के लिए, मैं तीन चीजों की सिफारिश करता हूं। सबसे पहले प्रतिदिन रोज़री माला का जाप करें। संत पापा जॉन पॉल द्वितीय ने कहा कि रोज़री माला के माध्यम से हम "मरियम की आंखों से येशु के जीवन को देखते हैं।" यह एक ख्रीस्त-केंद्रित प्रार्थना है, जिस सबसे अच्छे ह्रदय (निष्कलंक हृदय) से येशु से प्यार किया जाता है, उसी हृदय से येशु से प्रेम करने की महत् प्रार्थना है यह। रोज़री माला ने मेरी ज़िंदगी बदल दी- जब मैं किशोर था तब मैंने इसे चालीसा काल की तपस्या के रूप में लिया था... और मुझे हर दिन इसके प्रति डर लगता था। मेरे लिए, वे सभी दोहराव वाली प्रार्थनाएँ बहुत उबाऊ लग रहा था ...। लेकिन एक बार जब चालीसा काल खत्म हो गया, तो मैंने पाया कि मैं इस रोज़री माला को नीचे नहीं रख सकता। दोहराव अब उबाऊ नहीं, बल्कि शांत करने और सांत्वना देने वाला था। मैंने मसीह के जीवन के दृश्यों में स्वयं की कल्पना की और उन दृश्यों में येशु से मुलाक़ात की। दूसरा, अपने आप को मरियम को समर्पित करें। संत लुइस डी मोंटफोर्ट ने माँ मरियम के प्रति एक समृद्ध 33-दिवसीय समर्पण प्रार्थना बनायी है, या आप हाल ही के "33 डेज़ टू मॉर्निंग ग्लोरी" प्रार्थना का उपयोग कर सकते हैं। जब हम मरियम को अपना जीवन समर्पित करते हैं, तो वह हमें शुद्ध करती और निर्मल बनाती है, और फिर हमारे जीवन को अपने पुत्र के सामने खूबसूरती से प्रस्तुत करती है। “मरियम के प्रति सच्ची भक्ति, पूर्ण समर्पण की तैयारी के साथ” प्रार्थना पुस्तिका के द्वारा संत लुइस डी मोंटफोर्ट आपके प्रश्न का उत्तर देते हैं:: "यदि तब, हम अपनी धन्य माँ मरियम के प्रति ठोस भक्ति स्थापित करते हैं, तो यह येशु मसीह के प्रति अधिक पूर्ण भक्ति स्थापित करना है, और येशु मसीह को खोजने के लिए एक आसान और सुरक्षित साधन प्रदान करना है। अगर आपको लगता है कि माँ मरियम की भक्ति ने आपको येशु मसीह से दूर कर दिया, तो आपको इसे शैतान द्वारा लाया गया भ्रम मानकर अस्वीकार करना चाहिए; लेकिन इस से से विपरीत, येशु मसीह को पूरी तरह से खोजने, उसे कोमलता से प्यार करने, ईमानदारी से उसकी सेवा करने के साधन के रूप में माँ मरियम के प्रति भक्ति हमारे लिए आवश्यक है ...।” अंत में, अपनी दैनिक आवश्यकताओं के लिए माँ मरियम की ओर मुड़ें। एक बार मैं एक बहुत ही पवित्र दम्पति के विवाह के रस्म के पूर्वाभ्यास का नेतृत्व कर रहा था। अचानक हमें एहसास हुआ कि वे अपने विवाह का सिविल लाइसेंस लाना भूल गए हैं! हम सभी मामले की गंभीररा भांपते हुए आतंकित थे। मैं सिविल लाइसेंस के बिना उनके विवाह की धर्मविधि नहीं करा सकता था, लेकिन बहुत देर हो चुकी थी, अगले दिन शादी से पहले इसे पाना संभव नहीं था। मैं दूल्हा-दुल्हन को गिरजाघर के गर्भगृह के पीछे के कक्ष में लाया और मैं ने उन्हें यह खबर दी- जब तक कोई चमत्कार नहीं होता, मैं उनकी शादी नहीं करा पाऊंगा। वे बिलकुल टूट गए! इसलिए, हमने माँ मरियम से प्रार्थना की, जो खुद शादीशुदा थीं और जिन दम्पतियों की सगाई हो चुकी है उन के प्रति मरियम के दिल में विशेष प्यार है। हमने यह समस्या उसे सौंपी थी—और उसने एक चमत्कार किया! पता चला कि हमारी पल्ली का एक सदस्य उस कार्यालय के एक महिला लिपिक को संयोग से जानता था, जो उस दिन छुट्टी पर थी, इसके बावजूद, वह महिला बड़े सबेरे अपने कार्यालय गयी, और लाइसेंस तैयार करके दिया और विवाह का रस्म पूर्व योजना के अनुसार संपन्न हुआ। मरियम सबकी माँ है - हमें अपनी सभी समस्याओं और चिंताओं को अपनी उस माँ के सम्मुख लाना चाहिए! कभी न भूलें- मरियम की सच्ची भक्ति हमें येशु से दूर नहीं ले जाती है, यह हमें मरियम के माध्यम से येशु तक ले जाती है। हम कभी भी मरियम का ज़रुरत से ज्यादा सम्मान नहीं कर सकते क्योंकि हम कभी भी उनका उतना सम्मान नहीं कर सकते जितना येशु ने उनका सम्मान किया। मरियम के पास आवें—और भरोसा रखें कि वह आपको अपने पुत्र के पास ले जाएगी।
By: फादर जोसेफ गिल
Moreसबसे महान प्रचारक, बेशक, येशु स्वयं हैं, और एम्माऊस के रास्ते पर शिष्यों के बारे में लूकस के शानदार वर्णन से बेहतर येशु की सुसमाचार प्रचार तकनीक की कोई और वर्णन नहीं है। गलत रास्ते पर दो लोगों के जाने के वर्णन से कहानी शुरू होती है। लूकस के सुसमाचार में, यरूशलेम आध्यात्मिक गुरुत्वाकर्षण का केंद्र है - अंतिम भोज, क्रूस पर मृत्यु, पुनरुत्थान और पवित्र आत्मा के उतर आने का स्थान यही है। यह वह आवेशित स्थान है जहाँ उद्धार की पूरी योजना का पर्दाफाश होता है। इसलिए राजधानी से दूर जाने के कारण, येशु के ये दो पूर्व शिष्य परम्परा के विपरीत जा रहे हैं। येशु उनकी यात्रा में शामिल हो जाते हैं - हालाँकि हमें बताया जाता है कि उन्हें पहचानने से शिष्यों को रोका गया है - और येशु उन शिष्यों से पूछते हैं कि वे किस बारे में बात कर रहे हैं। अपने पूरे सेवा कार्य के दौरान, येशु पापियों के साथ जुड़े रहे। यार्दन नदी के कीचड़ भरे पानी में योहन के बपतिस्मा के माध्यम से क्षमा मांगने वालों के साथ येशु कंधे से कंधा मिलाकर खड़े थे; बार-बार, उन्होंने बदनाम लोगों के साथ खाया पिया, और यह वहां के धर्मी लोगों के नज़र में बहुत ही निंदनीय कार्य था; और अपने जीवन के अंत में, उन्हें दो चोरों के बीच सूली पर चढ़ा दिया गया। येशु पाप से घृणा करते थे, लेकिन वे पापियों को पसंद करते थे और लगातार उनकी दुनिया में जाने और उनकी शर्तों पर उनसे जुड़ने के लिए तैयार रहते थे। और यही पहली महान सुसमाचारीय शिक्षा है। सफल सुसमाचार प्रचारक पापियों के अनुभव से अलग नहीं रहते, उन पर आसानी से दोष नहीं लगाते, उन पर फैसला पारित नहीं करते, उनके लिए प्रार्थना दूर से नहीं करते; इसके विपरीत, वे उनसे इतना प्यार करते हैं कि वे उनके साथ जुड़ जाते हैं और उनके जैसे चलने और उनके अनुभव को महसूस करते हैं। येशु के जिज्ञासु प्रश्नों से प्रेरित होकर, यात्रियों में से एक, जिसका नाम क्लेओपस था, नाज़रेथ के येशु के बारे में सभी 'बातें' बताता है: "वे ईश्वर और समस्त जनता की दृष्टि में कर्म और वचन के शक्तिशाली नबी थे। हमारे महायाजकों और शासकों ने उन्हें प्राणदंड दिलाया और क्रूस पर चढ़ाया। हम तो आशा करते थे कि वही इस्राएल का उद्धार करनेवाले थे। आज सुबह, ऐसी खबरें आईं कि वे मृतकों में से जी उठे हैं।" क्लेओपस के पास सारे सीधे और स्पष्ट 'तथ्य' हैं; येशु के बारे में उसने जो कुछ भी कहा है, उसमें एक भी बात गलत नहीं है। लेकिन उसकी उदासी और यरूशलेम से उसका भागना इस बात की गवाही देता है कि वह पूरी तस्वीर को नहीं देख पा रहा है। मुझे न्यू यॉर्कर पत्रिका के कार्टून बहुत पसंद हैं, जो बड़ी चतुराई और हास्यास्पद तरीके से बनाए जाते हैं, लेकिन कभी-कभी, कोई ऐसा कार्टून होता है जिसे मैं समझ नहीं पाता। मैं सभी विवरणों को समझ लेता हूँ, मैं मुख्य पात्रों और उनके आस-पास की वस्तुओं को देखता हूँ, मैं कैप्शन को समझ लेता हूँ। फिर भी, मुझे समझ में नहीं आता कि यह हास्य कैसे पैदा करता है। और फिर एक पल आता है जब मुझे समझ में आता है: हालाँकि मैंने कोई और विवरण नहीं देखा है, हालाँकि पहेली का कोई नया टुकड़ा सामने नहीं आया है, लेकिन मैं उस पैटर्न को समझ जाता हूँ जो उन्हें एक सार्थक तरीके से एक साथ जोड़ता है। एक शब्द में, मैं कार्टून को 'समझ' जाता हूँ। क्लेओपस का वर्णन सुनकर, येशु ने कहा: “ओह, निर्बुद्धियो! नबियों ने जो कुछ कहा है, तुम उस पर विश्वास करने में कितने मंदमति हो।” और फिर येशु उनके लिए धर्मग्रन्थ के प्रतिमानों का खुलासा करते हैं, जिन घटनाओं को उन्होंने देखा है, उनका अर्थ बताते हैं। अपने बारे में कोई नया विवरण बताए बिना, येशु उन्हें रूप, व्यापक योजना और सरंचना, और उसका अर्थ दिखाते हैं - और इस प्रक्रिया के माध्यम से वे उसे 'समझना' शुरू करते हैं: उनके दिल उनके भीतर जल रहे हैं। यही दूसरी सुसमाचार शिक्षा है। सफल प्रचारक धर्मग्रन्थ का उपयोग दिव्य प्रतिमानों और विशेषकर उस प्रतिमान को प्रकट करने के लिए करते हैं, जो येशु में देहधारी हुआ है। इन प्रतिमानों का स्पष्टीकरण किये बिना, मानव जीवन एक अस्तव्यस्तता है, घटनाओं का एक धुंधलापन है, अर्थहीन घटनाओं की एक श्रृंखला है। सुसमाचार का प्रभावी प्रचारक बाइबल का व्यक्ति होता है, क्योंकि पवित्र ग्रन्थ वह साधन है जिसके द्वारा हम येशु मसीह को 'पाते' हैं और उसके माध्यम से, हमारे अपने जीवन को भी। जब वे एम्माउस शहर के पास पहुँचते हैं, तो वे दोनों शिष्य अपने साथ रहने के लिए येशु पर दबाव डालते हैं। येशु उनके साथ बैठते हैं, रोटी उठाते हैं, आशीर्वाद की प्रार्थना बोलते हैं, उसे तोड़ते हैं और उन्हें देते हैं, और उसी क्षण वे येशु को पहचान लेते हैं। हालाँकि, वे पवित्र ग्रन्थ के हवाले से देखना शुरू कर रहे थे, फिर भी वे पूरी तरह से समझ नहीं पाए थे कि वह कौन था। लेकिन यूखरिस्तीय क्षण में, रोटी तोड़ने पर, उनकी आँखें खुल जाती हैं। येशु मसीह को समझने का अंतिम साधन पवित्रग्रन्थ नहीं बल्कि पवित्र यूखरिस्त है, क्योंकि यूखरिस्त स्वयं मसीह है, जो व्यक्तिगत रूप से और सक्रिय रूप से उसमें मौजूद हैं। यूखरिस्त पास्का रहस्य का मूर्त रूप है, जो अपनी मृत्यु के माध्यम से दुनिया के प्रति येशु का प्रेम, सबसे हताश पापियों को बचाने के लिए पापी और निराश दुनिया की ओर ईश्वर की यात्रा, करुणा के लिए उनका संवेदनशील हृदय है। और यही कारण है कि यूखरिस्त की नज़र के माध्यम से येशु सबसे अधिक पूर्ण और स्पष्ट रूप से हमारी दृष्टि के केंद्र में आते हैं। और इस प्रकार हम सुसमाचार की तीसरी महान शिक्षा पाते हैं। सफल सुसमाचार प्रचारक यूखरिस्त के व्यक्ति हैं। वे पवित्र मिस्सा की लय की लहरों में बहते रहते हैं; वे यूखरिस्तीय आराधना का अभ्यास करते हैं; जिन्होंने सुसमाचार को स्वीकार किया है, उन लोगों को वे येशु के शरीर और रक्त में भागीदारी के लिए आकर्षित करते हैं। वे जानते हैं कि पापियों को येशु मसीह के पास लाना कभी भी मुख्य रूप से व्यक्तिगत गवाही, या प्रेरणादायक उपदेश, या यहाँ तक कि पवित्रग्रन्थ के व्यापक सरंचना के संपर्क का मामला नहीं होता है। यह मुख्य रूप से यूखरिस्त की टूटी हुई रोटी के माध्यम से ईश्वर के टूटे हुए दिल को देखने का मामला है। तो सुसमाचार के भावी प्रचारको, वही करो जो येशु ने किया। पापियों के साथ चलो, पवित्र ग्रन्थ खोलो, रोटी तोड़ो।
By: बिशप रॉबर्ट बैरन
Moreएक आकर्षक पहली मुलाकात, दूरी, फिर पुनर्मिलन...यह अनंत प्रेम की कहानी है। मुझे बचपन की एक प्यारे दिन की याद आती है, जब मैंने यूखरिस्तीय आराधना में येशु का सामना किया था। एक राजसी और भव्य मोनस्ट्रेंस या प्रदर्शिका में यूखरिस्तीय येशु को देखकर मैं मंत्रमुग्ध हो गई थी। सुगन्धित धूप उस यूखरिस्त की ओर उठ रही थी। जैसे ही धूपदान को झुलाया गया, यूखरिस्त में उपस्थित प्रभु की ओर धूप उड़ने लगी, और पूरी मंडली ने एक साथ गाया: " परम पावन संस्कार में, सदा सर्वदा, प्रभु येशु की स्तुति हो, महिमा हो, आराधना हो।" वह बहुप्रतीक्षित मुलाकात मैं खुद धूपदान को छूना चाहती थी और उसे धीरे से आगे की ओर झुलाना चाहती थी ताकि मैं धूप को प्रभु येशु तक पहुंचा सकूं। पुरोहित ने मुझे धूपदान को न छूने का इशारा किया और मैंने अपना ध्यान धूप के धुएं पर लगाया जो मेरे दिल और आंखों के साथ-साथ यूखरिस्त में पूरी तरह से मौजूद प्रभु की ओर बढ़ रहा था। इस मुलाकात ने मेरी आत्मा को बहुत खुशी से भर दिया। सुंदरता, धूप की खुशबू, पूरी मंडली का एक सुर में गाना, और यूखरिस्त में उपस्थित प्रभु की उपासना का दृश्य... मेरी इंद्रियाँ पूरी तरह से संतुष्ट थीं, जिससे मुझे इसे फिर से अनुभव करने की लालसा हो रही थी। उस दिन को याद करके मुझे आज भी बहुत खुशी होती है। हालाँकि, किशोरावस्था में, मैंने इस अनमोल निधि के प्रति अपना आकर्षण खो दिया, और खुद को पवित्रता के ऐसे महान स्रोत से वंचित कर लिया। हालांकि उन दिनों मैं एक बच्ची थी, इसलिए मुझे लगता था कि मुझे यूख्ररिस्तीय आराधना के पूरे समय लगातार प्रार्थना करनी होगी और इसके लिए एक पूरा घंटा मुझे बहुत लंबा लगता था। आज हममें से कितने लोग ऐसे कारणों से - तनाव, ऊब, आलस्य या यहाँ तक कि डर के कारण - यूखरिस्तीय आराधना में जाने से हिचकिचाते हैं? सच तो यह है कि हम खुद को इस महान उपहार से वंचित करते हैं। पहले से कहीं ज़्यादा मज़बूत अपनी युवावस्था में संघर्षों, परीक्षाओं और पीडाओं के बीच, मुझे याद आया कि मुझे पहले कहाँ से इतनी सांत्वना मिली थी, और उस सांत्वना के स्रोत को याद करते हुए मैं शक्ति और पोषण के लिए यूखरिस्तीय आराधना में वापस लौटी। पहले शुक्रवार को, मैं पूरे एक घंटे के लिए पवित्र संस्कार में येशु की उपस्थिति में चुपचाप आराम करती, बस खुद को उनके साथ रहने देती, अपने जीवन के बारे में प्रभु से बात करती, उनकी मदद की याचना करती और बार-बार तथा सौम्य तरीके से उनके प्रति अपने प्यार का इज़हार करती। यूखरिस्तीय येशु के सामने आने और एक घंटे के लिए उनकी दिव्य उपस्थिति में रहने की संभावना मुझे वापस खींचती रही। जैसे-जैसे साल बीतते गए, मुझे एहसास हुआ कि यूखरिस्तीय आराधना ने मेरे जीवन को गहन तरीकों से बदल दिया है क्योंकि मैं ईश्वर की एक प्यारी बेटी के रूप में अपनी सबसे गहरी पहचान के बारे में अधिक से अधिक जागरूक होती जा रही हूँ। हम जानते हैं कि हमारे प्रभु येशु वास्तव में और पूरी तरह से यूखरिस्त में मौजूद हैं - उनका शरीर, रक्त, आत्मा और दिव्यता यूखरिस्त में हैं। यूखरिस्त स्वयं येशु हैं। यूखरिस्तीय येशु के साथ समय बिताने से आप अपनी बीमारियों से चंगे हो सकते हैं, अपने पापों से शुद्ध हो सकते हैं और अपने आपको उनके महान प्रेम से भर सकते हैं। इसलिए, मैं आप सभी को नियमित रूप से यूखरिस्तीय प्रभु के सम्मुख पवित्र घड़ी बिताने के लिए प्रोत्साहित करती हूँ। आप जितना अधिक समय यूखरिस्तीय आराधना में प्रभु के साथ बिताएँगे, उनके साथ आपका व्यक्तिगत संबंध उतना ही मजबूत होगा। शुरुआती झिझक के सम्मुख न झुकें, बल्कि हमारे यूखरिस्तीय प्रभु, जो स्वयं प्रेम और दया, भलाई और केवल भलाई हैं, उनके साथ समय बिताने से न डरें।
By: पवित्रा काप्पन
Moreजब आपका रास्ता मुश्किलों से भरा हो और आप को आगे का रास्ता नहीं दिखाई दे रहा हो, तो आप क्या करेंगे? 2015 की गर्मी अविस्मरणीय थी। मैं अपने जीवन के सबसे निचले बिंदु पर थी - अकेली, उदास और एक भयानक स्थिति से बचने के लिए अपनी पूरी ताकत से संघर्ष कर रही थी। मैं मानसिक और भावनात्मक रूप से थकी और बिखरी हुई थी, और मुझे लगा कि मेरी दुनिया खत्म होने वाली है। लेकिन अजीब बात यह है कि चमत्कार तब होते हैं जब हम उन चमत्कारों की कम से कम उम्मीद करते हैं। असामान्य घटनाओं की एक श्रृंखला के माध्यम से, ऐसा लग रहा था जैसे परमेश्वर मेरे कान में फुसफुसा रहा था कि वह मुझे संरक्षण दे रहा है। उस विशेष रात को, मैं निराश होकर, टूटी और बिखरी हुई बिस्तर पर लेटने गयी थी। सो नहीं पाने के कारण, मैं एक बार फिर अपने जीवन की दुखद स्थिति पर विचार कर रही थी और मैं अपनी रोज़री माला को पकड़ कर प्रार्थना करने का प्रयास कर रही थी। एक अजीब तरह के दर्शन या सपने में, मेरे सीने पर रखी रोज़री माला से एक चमकदार रोशनी निकलने लगी, जिसने कमरे को एक अलौकिक सुनहरी चमक से भर दिया। जैसे-जैसे यह रोशनी धीरे-धीरे फैलने लगी, मैंने उस चमकदार वृत्त के किनारे पर काले, चेहरेहीन, छायादार आकृतियाँ देखीं। वे अकल्पनीय गति से मेरे करीब आ रहे थे, लेकिन सुनहरी रोशनी तेज होती गई और जब भी वे मेरे करीब आने की कोशिश करते, तो वह सुनहरी रोशनी उन्हें दूर भगा देती। मैं स्तब्ध थी, और उस अद्भुत दृश्य की विचित्रता पर प्रतिक्रिया करने में असमर्थ थी। कुछ पलों के बाद, दृश्य अचानक समाप्त हो गया, कमरे में फिर से गहरा अंधेरा छा गया। बहुत परेशान होकर सोने से डरती हुई , मैंने टी.वी. चालू किया। एक पुरोहित, संत बेनेदिक्त की ताबीज़ (मेडल) पकड़े हुए थे और बता रहे थे कि यह ताबीज़ कैसे दिव्य सुरक्षा प्रदान करता है। जब वे उस ताबीज़ पर अंकित प्रतीकों और शब्दों पर चर्चा कर रहे थे, मैंने अपनी रोज़री माला पर नज़र डाली - यह मेरे दादाजी की ओर से एक उपहार थी - और मैंने देखा कि मेरी रोज़री माला पर टंगे क्रूस में वही ताबीज़ जड़ी हुई थी। इससे एक आभास हुआ। मेरे गालों पर आँसू बहने लगे क्योंकि मुझे एहसास हुआ कि जब मैं सोच रही थी कि मेरा जीवन बर्बाद हो रहा है तब भी परमेश्वर मेरे साथ था और मुझे संरक्षण दे रहा था। मेरे दिमाग से संदेह का कोहरा छंट गया, और मुझे इस ज्ञान में सांत्वना मिली कि मैं अब अकेली नहीं थी। मैंने पहले कभी संत बेनेदिक्त की ताबीज़ के अर्थ को नहीं समझा था, इसलिए इस नए विश्वास ने मुझे बहुत आराम दिया, जिससे परमेश्वर में मेरा विश्वास और आशा मजबूत हुई। अपार प्रेम और करुणा के साथ, परमेश्वर हमेशा मेरे साथ मौजूद था, जब भी मैं फिसली तो मुझे बचाने के लिए वह तैयार था। यह एक सुकून देने वाला विचार था जिसने मेरे अस्तित्व को जकड लिया, मुझे आशा और शक्ति से भर दिया। मेरी आत्मा को प्राप्त नया रूप मेरे दृष्टिकोण में इस तरह के बदलाव ने मुझे आत्म-खोज और विकास की यात्रा पर आगे बढ़ाया। मैंने आध्यात्मिकता को अपने रोजमर्रा के जीवन से दूर की चीज़ के रूप में देखना बंद कर दिया। इसके बजाय, मैंने प्रार्थना, चिंतन और दयालुता के कार्यों के माध्यम से ईश्वर के साथ एक व्यक्तिगत संबंध विकसित करने की कोशिश की, यह महसूस करते हुए कि ईश्वर की उपस्थिति केवल भव्य इशारों तक सीमित नहीं है, बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी के सबसे सरल क्षणों में महसूस की जा सकती है। एक रात में पूरा बदलाव नहीं हुआ, लेकिन मैंने अपने भीतर हो रहे सूक्ष्म बदलावों पर ध्यान देना शुरू कर दिया। मैं अधिक धैर्यवान हो गयी हूं, तनाव और चिंता को दूर करना सीख गयी हूं, और इस तरह मैंने एक नए विश्वास को अपनाया है कि अगर मैं ईश्वर पर अपना भरोसा रखूंगी तो चीजें उसकी इच्छा के अनुसार सामने आएंगी। इसके अलावा, प्रार्थना के बारे में मेरी धारणा बदल गई है, जो इस समझ से उपजी एक सार्थक बातचीत में बदल गई है कि, भले ही उनकी दयालु उपस्थिति दिखाई न दे, लेकिन ईश्वर हमारी बात सुनता है और हम पर नज़र रखता है। जैसे कुम्हार मिट्टी को उत्कृष्ट कलाकृति में ढालता है, वैसे ही ईश्वर हमारे जीवन के सबसे निकृष्ट हिस्सों को ले सकता है और उन्हें कल्पना की जा सकने वाली सबसे सुंदर आकृतियों में ढाल सकता है। उन पर विश्वास और आशा हमारे जीवन में बेहतर चीजें लाएगी जो हम कभी भी अपने दम पर हासिल नहीं कर सकते हैं, और हमें अपने रास्ते में आने वाली सभी चुनौतियों के बावजूद मजबूत बने रहने में सक्षम बनाती हैं। * संत बेनेदिक्त का मेडल उन लोगों को दिव्य सुरक्षा और आशीर्वाद देते हैं जो उन्हें पहनते हैं। कुछ लोग उन्हें नई इमारतों की नींव में गाड़ देते हैं, जबकि अन्य उन्हें रोज़री माला से जोड़ते हैं या अपने घर की दीवारों पर लटकाते हैं। हालाँकि, सबसे आम प्रथा संत बेनेदिक्त के मेडल को ताबीज़ बनाकर पहनना या इसे क्रूस के साथ जोड़ना है।
By: अन्नू प्लाचेई
Moreमैं विश्वविद्यालय की एक स्वस्थ छात्रा थी, अचानक पक्षाघात वाली बन गयी, लेकिन मैंने व्हीलचेयर तक अपने को सीमित रखने से इनकार कर दिया… विश्वविद्यालय के शुरुआती सालों में मेरी रीढ़ की डिस्क खिसक गई थी। डॉक्टरों ने मुझे भरोसा दिलाया कि युवा और सक्रिय होने के कारण, फिजियोथेरेपी और व्यायाम के द्वारा मैं बेहतर हो जाऊंगी, लेकिन सभी प्रयासों के बावजूद, मैं हर दिन दर्द में रहती थी। मुझे हर कुछ महीनों में गंभीर दौरे पड़ते थे, जिसके कारण मैं हफ्तों तक बिस्तर पर रहती थी और बार-बार अस्पताल जाना पड़ता था। फिर भी, मैंने उम्मीद बनाई रखी, जब तक कि मेरी दूसरी डिस्क खिसक नहीं गई। तब मुझे एहसास हुआ कि मेरी ज़िंदगी बदल गई है। ईश्वर से नाराज़! मैं पोलैंड में पैदा हुई थी। मेरी माँ ईशशास्त्र पढ़ाती हैं, इसलिए मेरी परवरिश कैथलिक धर्म में हुई। यहाँ तक कि जब मैं यूनिवर्सिटी की पढ़ाई के लिए स्कॉटलैंड और फिर इंग्लैंड गयी, तब भी मैंने इस धर्म को बहुत प्यार से थामे रखा, करो या मरो के अंदाज़ में शायद नहीं, लेकिन यह हमेशा मेरे साथ था। किसी नए देश में जाने का शुरुआती दौर आसान नहीं था। मेरा घर एक भट्टी की तरह था, जहाँ मेरे माता-पिता अक्सर आपस में लड़ते रहते थे, इसलिए मैं व्यावहारिक रूप से इस अजनबी देश की ओर भाग गयी थी। अपने मुश्किल बचपन को पीछे छोड़कर, मैं अपनी जवानी का मज़ा लेना चाहती थी। अब, यह दर्द मेरे लिए नौकरी करना और खुद को आर्थिक रूप से संतुलित रखना मुश्किल बना रहा था। मैं ईश्वर से नाराज़ थी। फिर भी, वह मुझे जाने देने को तैयार नहीं था। भयंकर दर्द में कमरे के अन्दर फँसे होने के कारण, मैंने एकमात्र उपलब्ध शगल का सहारा लिया—मेरी माँ की धार्मिक पुस्तकों का संग्रह। धीरे-धीरे, मैंने जिन आत्मिक साधनाओं में भाग लिया और जो किताबें पढ़ीं, उनसे मुझे एहसास हुआ कि मेरे अविश्वास के बावजूद, ईश्वर वास्तव में चाहता था कि उसके साथ मेरा रिश्ता मजबूत हो। लेकिन मैं इस बात से पूरी तरह से उबर नहीं पायी थी कि वह अभी तक मुझे चंगा नहीं कर रहां था। आखिरकार, मुझे विश्वास हो गया कि ईश्वर मुझसे नाराज़ हैं और मुझे ठीक नहीं करना चाहता, इसलिए मैंने सोचा कि शायद मैं उन्हें धोखा दे सकती हूँ। मैंने चंगाई के लिए विख्यात और अच्छे 'आँकड़ों' वाले किसी पवित्र पुरोहित की तलाश शुरू कर दी ताकि जब ईश्वर दूसरे कामों में व्यस्त हों तो मैं ठीक हो सकूँ। कहने की ज़रूरत नहीं है, ऐसा कभी नहीं हुआ। मेरी यात्रा में एक मोड़ एक दिन मैं एक प्रार्थना समूह में शामिल थी, मैं बहुत दर्द में थी। दर्द की वजह से एक गंभीर प्रकरण होगा, इस डर से, मैं वहाँ से जाने की योजना बना रही थी, तभी वहाँ के एक सदस्य ने पूछा कि क्या कोई ऐसी बात है जिसके लिए मैं उनसे प्रार्थना की मांग करना चाहूँगी। मुझे काम पर कुछ परेशानी हो रही थी, इसलिए मैंने हाँ कह दिया। जब वे लोग प्रार्थना कर रहे थे, तो उनमें से एक व्यक्ति ने पूछा कि क्या कोई शारीरिक बीमारी है जिसके लिए मुझे प्रार्थना की ज़रूरत है। चंगाई करनेवाले लोगों की मेरी ‘रेटिंग' सूची के हिसाब से वे बहुत नीचे थे, इसलिए मुझे भरोसा नहीं था कि मुझे कोई राहत मिलेगी, लेकिन मैंने फिर भी 'हाँ' कह दिया। उन्होंने प्रार्थना की और मेरा दर्द दूर हो गया। मैं घर लौट आयी, और वह दर्द अभी भी नहीं थी। मैं कूदने, मुड़ने और इधर-उधर घूमने लगी, और मैं अभी भी ठीक थी। लेकिन जब मैंने उन्हें बताया कि मैं ठीक हो गयी हूँ, तो किसी ने मुझ पर विश्वास नहीं किया। इसलिए, मैंने लोगों को बताना बंद कर दिया; इसके बजाय, मैं माँ मरियम को धन्यवाद देने के लिए मेडजुगोरे गयी। वहाँ, मेरी मुलाकात एक ऐसे आदमी से हुई जो रेकी कर रहा था और मेरे लिए प्रार्थना करना चाहता था। मैंने मना कर दिया, लेकिन जाने से पहले उसने अलविदा कहने के लिए मुझे गले लगाया, जिससे मैं चिंतित हो गयी क्योंकि उसने कहा कि उसके स्पर्श में शक्ति है। मैंने डर को हावी होने दिया और गलत तरीके से मान लिया कि इस दुष्ट का स्पर्श ईश्वर से भी अधिक शक्तिशाली है। अगली सुबह मैं भयंकर दर्द में उठी, चलने में असमर्थ थी। चार महीने की राहत के बाद, मेरा दर्द इतना तीव्र हो गया कि मुझे लगा कि मैं वापस ब्रिटेन भी नहीं जा पाऊँगी। जब मैं वापस लौटी, तो मैंने पाया कि मेरी डिस्क नसों को छू रही थी, जिससे महीनों तक और भी ज़्यादा दर्द हो रहा था। छह या सात महीने बाद, डॉक्टरों ने फैसला किया कि उन्हें मेरी रीढ़ की हड्डी पर जोखिम भरी सर्जरी करने की ज़रूरत है, जिसे वे लंबे समय से टाल रहे थे। सर्जरी से मेरे पैर की एक नस क्षतिग्रस्त हो गई, और मेरा बायाँ पैर घुटने से नीचे तक लकवाग्रस्त हो गया। वहाँ और फिर एक नई यात्रा शुरू हुई, एक अलग यात्रा। मुझे पता है कि तू यह कर सकता है जब मैं पहली बार व्हीलचेयर पर घर पहुची, तो मेरे माता-पिता डर गए, लेकिन मैं खुशी से भर गयी। मुझे सभी तकनीकी चीजें पसंद थीं...हर बार जब कोई मेरी व्हीलचेयर पर बटन दबाता था, तो मैं एक बच्चे की तरह उत्साहित हो जाती थी। क्रिसमस की अवधि के दौरान, जब मेरा पक्षाघात ठीक होने लगा, तब मुझे एहसास हुआ कि मेरी नसों को कितना नुकसान हुआ है। मैं कुछ समय के लिए पोलैंड के एक अस्पताल में भर्ती थी। मुझे नहीं पता था कि मैं कैसे जीने वाली थी। मैं बस ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि मुझे एक और उपचार की आवश्यकता है: "तुझे फिर से खोजने की मेरी आवश्यकता है क्योंकि मुझे पता है कि तू यह कर सकता है।" इसलिए, मुझे एक चंगाई सभा के बारे में जानकारी मिली और मुझे विश्वास हो गया कि मैं ठीक हो जाऊंगी। एक ऐसा पल जिसे आप खोना नहीं चाहेंगे वह शनिवार का दिन था और मेरे पिता शुरू में नहीं जाना चाहते थे। मैंने उनसे कहा: "आप अपनी बेटी के ठीक होने पर उस पल को खोना नहीं चाहेंगे।" मूल कार्यक्रम में मिस्सा बलिदान था, उसके बाद आराधना के साथ चंगाई सभा थी। लेकिन जब हम पहुंचे, तो पुरोहित ने कहा कि उन्हें योजना बदलनी होगी क्योंकि चंगाई सभा का नेतृत्व करने वाली टीम वहां नहीं थी। मुझे याद है कि मेरे मन में उस समय यह सोच आई थी कि मुझे किसी टीम की ज़रूरत नहीं है: "मुझे केवल येशु की ज़रूरत है।" जब मिस्सा बलिदान शुरू हुआ, तो मैं एक भी शब्द सुन नहीं पाई। हम उस तरफ बैठे थे जहाँ दिव्य की करुणा की तस्वीर थी। मैंने येशु को ऐसे देखा जैसे मैंने उन्हें पहले कभी नहीं देखा था। यह एक आश्चर्यजनक छवि थी। येशु बहुत सुंदर लग रहे थे! मैंने उसके बाद कभी भी वह तस्वीर नहीं देखी। पूरे मिस्सा बलिदान के दौरान, पवित्र आत्मा मेरी आत्मा को घेरा हुआ था। मैं बस अपने मन में 'धन्यवाद' कह रही थी, भले ही मुझे नहीं पता था कि मैं किसके लिए आभारी हूँ। मैं चंगाई की प्रार्थना का निवेदन नहीं कह पा रही थी, और यह निराशाजनक था क्योंकि मुझे चंगाई की आवश्यकता थी। जब आराधना शुरू हुई तो मैंने अपनी माँ से कहा कि वे मुझे आगे ले जाएँ, जितना संभव हो सके येशु के करीब ले जाएँ। वहाँ, आगे बैठे हुए, मुझे लगा कि कोई मेरी पीठ को छू रहा है और मालिश कर रहा है। मुझे इतनी तीव्रता का अनुभव और साथ साथ आराम भी मिल रहा था कि मुझे लगा कि मैं सो जाऊँगी। इसलिए, मैंने बेंच पर वापस जाने का फैसला किया, लेकिन मैं भूल गयी थी कि मैं 'चल' नहीं सकती। मैं बस वापस चली गई और मेरी माँ मेरी बैसाखियों के साथ मेरे पीछे दौड़ी, ईश्वर की स्तुति करते हुए, माँ कह रही थी: "तुम चल रही हो, तुम चल रही हो।" मैं पवित्र संस्कार में उपस्थित येशु द्वारा चंगी हो गयी थी। जैसे ही मैं बेंच पर बैठी, मैंने एक आवाज़ सुनी: "तुम्हारे विश्वास ने तुम्हें चंगा कर दिया है।" मेरे दिमाग में, मैंने उस महिला की छवि देखी जो येशु के गुजरने पर उनके लबादे को छू रही थी। उसकी कहानी मुझे मेरी कहानी की याद दिलाती है। जब तक मैं इस बिंदु पर नहीं पहुँची जहाँ मैंने येशु पर भरोसा करना शुरू किया, तब तक कुछ भी मदद नहीं कर रहा था। चंगाई तब हुई जब मैंने उसे स्वीकार किया और उससे कहा: "तुम ही मेरी ज़रूरत हो।" मेरे बाएं पैर की सभी मांसपेशियाँ चली गई थीं और वह भी रातों-रात वापस आ गई। यह बहुत महत्वपूर्ण था, क्योंकि डॉक्टर लोग पहले भी इसका माप ले रहे थे और उन्होंने एक आश्चर्यजनक, अवर्णनीय परिवर्तन पाया। ऊंची आवाज़ में गवाही इस बार जब मुझे चंगाई मिली, तो मैं इसे सभी के साथ साझा करना चाहती थी। अब मैं शर्मिंदा नहीं थी। मैं चाहती थी कि सभी को पता चले कि ईश्वर कितना अद्भुत है और वह हम सभी से कितना प्यार करता है। मैं कोई खास नहीं हूँ और मैंने इस चंगाई को प्राप्त करने के लिए कुछ खास नहीं किया है। ठीक होने का मतलब यह भी नहीं है कि मेरा जीवन रातों-रात बहुत आरामदायक हो गया। अभी भी कठिनाइयाँ हैं, लेकिन वे बहुत हल्की हैं। मैं उन कठिनाइयों को यूखरिस्तीय आराधना में ले जाती हूँ और येशु मुझे समाधान देता है, या उनसे कैसे निपटना है इस बारे में विचार देता है, साथ ही आश्वासन और भरोसा भी देता है कि वह स्वयं उनसे निपटेगा।
By: एनिया ग्रेग्लेवस्का
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