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क्या आपके जीवन में ऐसे दरवाजे हैं जो आपके प्रयासों के बावजूद खुलने से इनकार करते हैं? इस हृदयस्पर्शी अनुभव से जानिए उन बंद दरवाजों के पीछे का रहस्य।
मेरे पति और मैं कैथेड्रल ऑफ़ सेंट जूड के दरवाजे पर थे। दरवाज़ा खोलने पर एक बड़ी भीड़ के बीच हम दोनों को सीटें मिलीं। हम एक महिला के अंतिम संस्कार के लिए आये थे, जिनसे बहुत पहले, जब मैं केवल 20 वर्ष की थी, तब मिली थी। वह और उनके पति उस समय कैथलिक करिश्माई प्रार्थना समुदाय के आत्मिक अगुए थे। हालाँकि वह और मैं घनिष्ठ व्यक्तिगत मित्र नहीं थे, लेकिन जब मैं इस गतिशील विश्वास से भरे समूह में शामिल हुई तो उसने मेरे जीवन को महत्वपूर्ण तरीकों से प्रभावित किया था। उनका मंझला बेटा, केन, अब फादर केन थे, और वह अंतिम संस्कार का दिन उनके पुरोहिताई अभिषेक की 25-वीं वर्षगांठ का दिन भी था।
वहां उपस्थित मण्डली को सरसरी निगाहों से देखने पर मेरे अतीत और वर्तमान दोनों दौर के कई परिचित चेहरे सामने आए। फादर केन की अपनी माँ को दी गई मार्मिक श्रद्धांजलि और उनके भाई-बहनों द्वारा की गई प्रेमपूर्ण स्मृति के वचनों ने उनके परिवार पर और साथ ही उस दिन उपस्थित कई लोगों के जीवन में भी प्रार्थना समूह का प्रभाव को प्रतिबिंबित किया। उनके शब्दों ने मेरे दिमाग में यादें ताज़ा कर दीं – कैसे पवित्र आत्मा ने इस समुदाय का उपयोग कई लोगों के जीवन को बदलने के लिए किया, खासकर मेरे जीवन को बदलने के लिए।
मेरा पालन-पोषण बहुत ही समर्पित कैथलिक माता-पिता ने किया था, जो प्रतिदिन मिस्सा बलिदान में भाग लेते थे, लेकिन एक किशोरी के रूप में, मैंने केवल अनिच्छा से कलीसिया के जीवन में भाग लिया। मुझे अपने पिता द्वारा हर रात पारिवारिक माला विनती पर जोर देने और न केवल भोजन से पहले, बल्कि भोजन के बाद भी अनुग्रह की प्रार्थना बोलने पर नाराजगी महसूस होती थी। शुक्रवार की रात 10 बजे परम पवित्र संस्कार की आराधना में भाग लेना मुझ 15 साल की किशोरी की अपनी सामाजिक स्थिति के लिए अच्छा नहीं था, खासकर तब, जब मेरे दोस्त मुझसे पूछते थे कि मैंने सप्ताहांत में क्या किया है। उस समय मेरे लिए कैथलिक होना सिर्फ बहुत सारे नियमों, आवश्यकताओं और अनुष्ठानों के बारे में ही था। प्रत्येक सप्ताह मेरा अनुभव अन्य विश्वासियों के साथ खुशी या संगति का नहीं था, बल्कि कर्तव्य के बोझ का था।
फिर भी, जब मेरी बहन ने मुझे हाई स्कूल से पास होने के बाद अपने कॉलेज के सप्ताहांत अवकाश समारोह में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया, तो मैं सहमत हो गयी। मेरे छोटे से शहर में नए अनुभव बहुत कम मिलते थे और यह निश्चित रूप से मेरे लिए अब तक के अनुभवों से बिलकुल भिन्न था। मैं ने नहीं सोचा था कि यह आत्मिक साधना मेरे शेष जीवन का पथ निर्धारित करेगी!
प्रतिभागियों के सौहार्दपूर्ण मित्रता के साथ-साथ फादर बिल के चेहरे पर छाई भारी मुस्कान के बीच जब उन्होंने प्रभु के बारे में हमारे साथ साझा किया, मैंने कुछ ऐसा देखा जो मैंने अपनी गृह पल्ली में कभी नहीं देखा था, और मुझे पता था कि मैं अपने जीवन में वास्तव में यही चाहती थी : आनंद! सप्ताहांत के अंत में, बाहर शांत समय बिताने के दौरान, मैंने अपना जीवन ईश्वर को अर्पित कर दिया, बिना यह जाने कि इसका वास्तव में क्या मतलब है।
दो साल से भी कम समय के बाद, मैं और मेरी बहन फ्लोरिडा के पूर्वी तट से पश्चिम की ओर चली गयीं, पहले उसकी नौकरी के कारण और बाद में, सेंट पीटर्सबर्ग में एक कॉलेज में पढ़ाई के लिए मुझे एडमिशन मिलने के कारण। अपनी सीमित आर्थिक क्षमता के भीतर रहने के लिए हम दोनों बहनें एक ही बेडरूम को ढूंढ रहे थे। कई अपार्टमेंट प्रबंधकों द्वारा दो लड़कियों को एक ही बेडरूम को किराए पर देने की अनिच्छा के कारण हमारे प्रयास बार-बार विफल हो गए – भले ही हमने अपने पूरे जीवन में एक ही बेडरूम साझा किया था और आखिर हम तो बहनें थीं! एक और इनकार के बाद निराश होकर, हम प्रार्थना करने के लिए संत जूड्स कैथेड्रल के अन्दर चली गयीं। इस संत के बारे में कुछ भी न जानते हुए, हमने एक प्रार्थना कार्ड को पाया जिसमें लिखा था कि संत जूड ‘निराशाजनक मामलों के संरक्षक’ थे।
किफायती आवास की कठिन खोज के बाद, हमारी निरर्थक स्थिति एक निराशाजनक मामला कहा जा सकता था, इसलिए हमने संत जूड की मध्यस्थता मांगने के लिए घुटने टेक दिए। लो और देखो, अगले अपार्टमेंट परिसर में पहुंचने के बाद, हमारे साथ उसी झिझक के साथ व्यवहार किया गया। हालाँकि, इस बार, उस वृद्ध महिला ने मेरी ओर देखा, रुकी और बोली, “तुम मुझे मेरी पोती की याद दिलाती हो। मैं दो महिलाओं को एक-बेडरूम किराए पर नहीं देती, लेकिन… तुम मुझे अच्छी लग रही हो, और इसलिए तुम लोगों के लिए मैं अपने उसूल तोड़ने जा रही हूं!’
हमें पता चला कि हमारे नए घर का निकटतम कैथलिक चर्च होली क्रॉस चर्च था, जहां “ईश्वर की उपस्थिति प्रार्थना समुदाय” नामक एक समूह प्रत्येक मंगलवार की रात को मिलता था। यदि हम किसी अन्य एपार्टमेंट को किराए पर लेने में सक्षम होती, तो हमें खुशी से भरे लोगों के इस समूह से मुलाक़ात नहीं होती, जिसे हम जल्द ही “परिवार” कहने लगी। यह स्पष्ट था कि पवित्र आत्मा काम कर रहा था, और 17 वर्षों में यानी जब तक मैं इस समूह में सक्रिय रूप से शामिल थी तब तक पवित्र आत्मा की उपस्थिति बार–बार प्रकट हुई।
सेंट जूड्स कैथीड्रल चर्च में लौटते हुए, उस दिन जीवन का वह उत्सव न केवल हमारे बहुत पहले के आत्मिक अगुओं का था, बल्कि यह मेरा भी अपना उत्सव था! एक युवती के रूप में अपनी टूटन और उस समय महसूस किए गए अकेलेपन और असुरक्षा को याद करते हुए, मुझे आश्चर्य हुआ कि ईश्वर ने मेरे जीवन को कैसे बदल दिया है। उन्होंने मुझे भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से ठीक करने के लिए अपनी पवित्र आत्मा और अपने लोगों का उपयोग किया, मेरे जीवन को गहरी और समृद्ध मित्रता से भर दिया जो समय की कसौटी पर खरी उतरी है। उन्होंने मुझे जो उपहार पहले से ही दिए थे, न उपहारों को खोजने में मदद की – समुदाय ने मुझे विभिन्न तरीकों से सेवा करने के लिए उचित जगह प्रदान की। तब जाकर मुझे एहसास हुआ कि संगठन की तरह मेरी प्राकृतिक क्षमताओं का उपयोग आध्यात्मिक उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है।
कई वर्षों के बाद, मुझे एक नई आध्यात्मिक टीम में आमंत्रित किया गया जिसके गतिशील नेता ने अपनी स्वयं की मिसाल द्वारा मेरा मार्गदर्शन किया। उनके प्रोत्साहन और समर्थन के माध्यम से, मैंने नेतृत्व कौशल विकसित किया जिसके परिणाम स्वरूप प्रार्थना समुदाय में “आस्था के घर” और गिरजाघर के दरवाजे के बाहर “दीन हीनों” की सेवा के लिए नयी सेवकाई शुरू हुई।
कुछ साल बाद जब पास में एक नया पैरिश शुरू हुआ, तो मुझे वहां संगीत की सेवकाई में शामिल होने के लिए कहा गया, और पवित्र आत्मा की प्रेरणा से, मैंने कई अन्य सेवा इकाइयों में भी भाग लिया। पिछले कुछ वर्षों में मैंने जो कुछ भी सीखा और अनुभव किया है, उसे ध्यान में रखते हुए, मैं कई कार्यक्रम आयोजित करने में सक्षम हुई, जो हमारे पल्ली समुदाय के भीतर चंगाई, मन परिवर्त्तन और अभिवृद्धि के अवसर प्रदान करते हैं। पिछले 14 वर्षों से, मुझे अपने एक दूसरे मित्र द्वारा शुरू किए गए महिला फ़ेलोशिप समूह का आयोजन करने का सौभाग्य मिला है, जो मेरी तरह, मसीही समुदायों के प्यार और देखभाल के द्वारा बदल गयी थी।
मैंने पाया है कि धर्मग्रंथों में परमेश्वर के द्वारा दिए गए सभी वादे मेरे जीवन में सच साबित हुए हैं। वह विश्वासयोग्य, क्षमाशील, दयालु, करूणामय और आनंद का स्रोत है, जितना मैंने कभी कल्पना की थी, उससे कहीं अधिक! उन्होंने मेरे जीवन में अर्थ और उद्देश्य प्रदान किया है, और उनकी कृपा और निर्देशन से, मैं 40 वर्षों से अधिक समय से येशु के साथ सेवकाई में भागीदार बनने में सक्षम हूं। उन वर्षों तक मुझे इस्राएलियों की तरह “रेगिस्तान में भटकना” नहीं पड़ा। वही परमेश्वर जिसने “दिन में बादल के खम्भे और रात में अग्नि-स्तम्भ” के द्वारा अपने लोगों की अगुवाई की (निर्गमन 13:22) उसने दिन–ब–दिन, साल–दर–साल मेरी अगुवाई की, और रास्ते में मेरे लिए अपनी योजनाओं को प्रकट किया।
मेरे प्रार्थना समूह के दिनों का एक गीत मेरे मन में गूंजता है, “ओह, भाई बहनों का एक साथ रहना कितना भला है, कितना सुखद!” (भजन 133:1) उस दिन चारों ओर देखने पर मुझे इसका स्पष्ट प्रमाण दिखाई दिया। फादर केन की माँ में काम करने वाली पवित्र आत्मा, फादर केन के घर और हमारे विश्वास के समुदाय में उनकी माँ के द्वारा बोये गए बीजों से बहुत फल लाए। उसी आत्मा ने वर्षों तक मेरे जीवन में बोए और सींचे गए बीजों से फ़सल पैदा की।
प्रेरित पौलुस ने एफीसियों को लिखे अपने पत्र में इसे सर्वोत्तम रूप से कहा:
“जिसका सामर्थ्य हम में क्रियाशील है और जो वे सब कार्य संपन्न कर सकता है, जो हमारी प्रार्थना और कल्पना से अत्यधिक परे है, उसी को कलीसिया और येशु मसीह द्वारा पीढ़ी-दर-पीढ़ी, युग युगों तक महिमा! आमेन!” (3:20-21)
करेन एबर्ट्स एक सेवानिवृत्त फिजिकल थेरापिस्ट हैं। वे दो युवाओं की मां हैं और अपने पति डैन के साथ फ्लोरिडा के लार्गो में रहती हैं।
आप चाहे जिस भी परिस्थिति से गुज़र रहे हों, परमेश्वर वहाँ भी रास्ता बना देगा जहाँ कोई रास्ता नज़र नहीं आता… आज, मेरा बेटा आरिक अपनी श्रुतलेख की कॉपी (डिक्टेशन बुक) लेकर घर आया। उसे 'अच्छा' टिप्पणी के साथ लाल सितारा मिला। शायद यह किंडरगार्टन में पढनेवाले किसी बच्चे के लिए कोई बड़ी बात नहीं हो सकती है, लेकिन हमारे लिए, यह एक शानदार उपलब्धि है। स्कूल जैसे आरम्भ हुआ, पहले सप्ताह में ही, मुझे उसके क्लास टीचर का फोन आया। मेरे पति और मैं इस कॉल से घबरा गए। जब मैंने उसके शिक्षक को उसके संचार कौशल की कमी के बारे में समझाने की बहुत कोशिश की, तो मैंने कबूल किया था कि जब मैं विकलांगता के साथ जन्मी उसकी बड़ी बहन की विशेष ज़रूरतों की परवाह और देखभाल करती थी, तो मैं मुझसे बिन मांगे ही उसकी ज़रूरतों की पूर्ती केलिए काम करने की आदत में पड़ गई थी। चूँकि आरिक की दीदी एक भी शब्द नहीं बोल पाती थी, इसलिए मुझे उसकी ज़रूरतों का अंदाज़ा लगाना पड़ता था। आरिक के जीवन के शुरुआती दिनों में उसके लिए भी यही तरीका जारी था। इससे पहले कि वह पानी मांगे, मैं उसे पानी पिला देती। हमारे बीच एक ऐसा रिश्ता था जिसे शब्दों की ज़रूरत नहीं थी, यह प्यार की भाषा थी, या ऐसा मुझे लगता था। लेकिन चीज़ें मेरी सोच से बिलकुल उलटकर आ गयी , मैं पूरी तरह से गलत थी! थोड़ी देर बाद, जब उसका छोटा भाई अब्राम तीन महीने का हो गया, तो मुझे स्कूल में काउंसलर से मिलने के लिए फिर से वही भारी कदम उठाने पड़े। इस बार, यह आरिक के खराब लेखन कौशल के बारे में था। उसकी प्यारी क्लास टीचर घबरा गई जब उसने देखा कि उसने अपनी पेंसिल टेबल पर रख दी और ज़िद करते हुए अपने हाथ जोड़ लिए जैसे कि कह रहा हो: “मैं नहीं लिखूँगा।” हमें इसका भी डर था। उसकी छोटी बहन अक्षा दो साल की उम्र में ही लिखने में माहिर थी, लेकिन आरिक पेंसिल भी नहीं पकड़ना चाहता था। उसे लिखना बिल्कुल पसंद नहीं था। पहला कदम काउंसलर से निर्देश प्राप्त करने के बाद, मैं प्रिंसिपल से मिली, जिन्होंने जोर देकर कहा कि अगर उसकी संचार क्षमता कमज़ोर बनी रही, तो हमें उसका गहन जांच करवानी चाहिए। उन दिनों मैं इसके बारे में सोच भी नहीं सकती थी। हमारे लिए, वह एक चमत्कारी बच्चा था। हमारे पहले बच्चे के साथ हमने बहुत कष्ट झेले थे और उसके बाद तीन गर्भपात हुए, लेकिन आरिक ने सभी बाधाओं को पार कर लिया था। डॉक्टरों ने जो भविष्यवाणी की थी, उसके विपरीत, वह पूर्ण अवधि में पैदा हुआ था। जन्म के समय उसकी महत्वपूर्ण अंग सामान्य थे। "यह बच्चा कुछ ज़्यादा ही बड़ा है!" डॉक्टर ने सी-सेक्शन ऑपरेशन के ज़रिए उसे बाहर लाते हुए कहा। हमने उसे लगभग साँस रोककर कदम दर कदम बढाते देखा, यह प्रार्थना करते हुए कि कुछ भी गलत न हो। आरिक ने जल्द ही अपने सभी मील के पत्थर हासिल कर लिए। हालाँकि, जब वह सिर्फ़ एक साल का था, तो मेरे पिता ने कहा था कि उसे स्पीच थेरेपी की ज़रूरत हो सकती है। सिर्फ एक साल की उम्र में यह जांच करना ठीक नहीं है, ऐसा कहकर मैं ने उस सुझाव को टाल दिया। सच तो यह था कि मेरे पास एक और समस्या का सामना करने की ताकत नहीं थी। हम पहले से ही अपने पहले बच्चे के साथ होने वाली सभी परेशानियों से थक चुके थे। अन्ना का जन्म निर्धारित समय से 27 सप्ताह पहले हुआ था। एन.आई.सी.यू. में कई दिनों तक रहने के बाद, तीन महीने की उम्र में उसे गंभीर मस्तिष्क क्षति का पता चला और उसे मिर्गी के दौरे पड़ने लगे। सभी उपचारों और दवाओं के बाद, हमारी 9 वर्षीय बेटी अभी भी सेरेब्रल पाल्सी और बौद्धिक विकलांगता से जूझ रही है। वह बैठने, चलने या बात करने में असमर्थ है। अनगिनत आशीर्वाद अपरिहार्य को टालने की एक सीमा होती है, इसलिए छह महीने पहले, हम अनिच्छा से आरिक को प्रारंभिक जांच परीक्षण के लिए ले गए। ADHD (अवधानता, अतिसक्रियता-आवेगशीलता) का निदान कठिन था। हमें इसे स्वीकार करने में कठिनाई हुई, लेकिन फिर भी हमने उसे स्पीच थेरेपी की प्रक्रिया से गुज़रने दिया। उस अवसर पर, वह सिर्फ कुछ ही शब्द बोल पा रहा था। कुछ दिन पहले, मैंने आरिक के साथ अस्पताल जाने और पूर्ण गहन जांच करने का साहस जुटाया। उन्होंने कहा कि उसे हल्का ऑटिज़्म है। जब हम जांच की प्रक्रिया से गुजर रहे थे, तो कई सवाल पूछे गए। मुझे आश्चर्य हुआ, इनमें से अधिकांश सवालों के लिए मेरी प्रतिक्रिया थी: "वह ऐसा करने में सक्षम नहीं था, लेकिन अब वह कर सकता है।" प्रभु की स्तुति हो! आरिक के अन्दर विराजमान पवित्र आत्मा की शक्ति से, सब कुछ संभव हुआ। मेरा मानना है कि स्कूल जाने से पहले हर दिन उसके लिए प्रार्थना करने और उसे आशीर्वाद देने से एक बड़ा बदलाव लाया। जब उसने बाइबल की आयतें याद करना शुरू किया तो यह बदलाव क्रांतिकारी था। और सबसे अच्छी बात यह है कि वह उन आयतों को ठीक उसी समय पढ़ता है जब मुझे उनकी ज़रूरत होती है। वास्तव में, परमेश्वर का वचन जीवित और सक्रिय है। मेरा मानना है कि परिवर्तन जारी है। जब भी मैं उदास महसूस करती हूँ, तो परमेश्वर मुझे आश्चर्यचकित कर देता है और उसे एक नया शब्द कहलवाता है। उसके नखरे के बीच, और जब सब कुछ बिखरता हुआ लगता है, मेरी छोटी लड़की, तीन साल की अक्षा, बस मेरे पास आती है और मुझे गले लगाती है और मुझे चूमती है। वह वास्तव में जानती है कि अपनी माँ को कैसे दिलासा देना है। मेरा मानना है कि परमेश्वर निश्चित रूप से हस्तक्षेप करेगा और हमारी सबसे बड़ी बेटी, अन्ना को भी ठीक करेगा, क्योंकि उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं है। परिवर्तन पहले से ही दिखाई दे रहा है - मिर्गी के दौरे की संख्या में काफी कमी आई है। हमारे जीवन की यात्रा में, हो सकता है कि चीजें उम्मीद के मुताबिक न चल रही हों, लेकिन ईश्वर हमें कभी नहीं छोड़ता या त्यागता। ऑक्सीजन की तरह जो ज़रूरी तो है लेकिन अदृश्य है, ईश्वर हमेशा मौजूद है और हमें वह जीवन देता है जिसकी हमें बहुत ज़रूरत है। आइए हम उससे चिपके रहें और अंधेरे में संदेह न करें। हमारी गवाही इस सच्चाई को उजागर करे कि हमारा ईश्वर कितना सुंदर, अद्भुत और प्रेममय है और वह हमें कैसे बदल देता है ताकि हम कहें: "मैं ... था, लेकिन अब मैं ... हूँ।"
By: Reshma Thomas
Moreप्रश्न - पवित्र यूखरिस्त में मसीह की वास्तविक उपस्थिति में अधिक विश्वास को प्रेरित करने के प्रयास में इन दिनों संयुक्त राज्य अमेरिका तीन साल का "यूखरिस्तीय पुनर्जागरण" अभियान चला रहा है। ऐसे कौन से पारंपरिक तरीके हैं जिनसे मेरा परिवार यूखरिस्त के प्रति अधिक श्रद्धा का अभ्यास कर सकता है? उत्तर - एक कैथलिक अध्ययन में कहा गया है कि केवल एक-तिहाई कैथलिक विश्वास करते हैं कि येशु मसीह वास्तव में पवित्र यूखरिस्त में मौजूद हैं। इसलिए इस के प्रत्त्युत्तर में, कलीसिया वह बात फिर से जागृत करने की कोशिश कर रही है जिसे संत जॉन पॉल द्वितीय "यूखरिस्तीय विस्मय" कहते हैं - वास्तविक उपस्थिति में एक विस्मय और आश्चर्य: येशु, यूखरिस्त में छिपा हुआ फिर भी वास्तव में मौजूद है। हम एक परिवार के रूप में यूखरिस्त के प्रति श्रद्धा कैसे विकसित कर सकते हैं? यहाँ कुछ सुझाव हैं: पहला, उपस्थिति यदि हमें पता होता कि कोई व्यक्ति किसी निश्चित स्थान पर हर सप्ताह एक हजार डॉलर मुफ्त में दे रहा है, तो हम निश्चित रूप से वहां मौजूद रहेंगे। हमें इससे कहीं अधिक मूल्यवान चीज़ यूखरिस्त में प्राप्त होती है — स्वयं परमेश्वर। वह ईश्वर जिसने ब्रह्मांड का सारा सोना बनाया। वह ईश्वर जिसने आपको प्रेम करके आपके व्यक्तित्व को अस्तित्व में लाया। वह परमेश्वर जो आपके लिए शाश्वत उद्धार को खरीदने के लिए क्रूस पर अपनी जान दी। वह ईश्वर जो अकेले ही हमें अनन्त जीवन में खुश रख सकता है। यूखरिस्तीय जीवन के लिए पहला कदम कम से कम साप्ताहिक (या यदि आवश्यक हो तो और अधिक बार) मिस्सा बलिदान तक पहुंचने के लिए आवश्यक त्याग उठाना है। स्काउट में कैंप-आउट के बाद मेरे पिता अक्सर मुझे और मेरे भाइयों को मिस्सा में ले जाने के लिए हर संभव कोशिश करते थे। मेरा भाई एक विशिष्ट बेसबॉल टीम के ट्रायल में भागीदारी नहीं कर सका क्योंकि ट्रायल रविवार की सुबह था। हम जहां भी छुट्टियों पर जाते थे, मेरे माता-पिता निकटतम कैथलिक चर्च का पता लगाना सुनिश्चित करते थे। यह देखते हुए कि यूखरिस्त कितना मूल्यवान है, वह प्रभु हर त्याग और बलिदान से भी बढ़कर है! दूसरा, पवित्रता यह सुनिश्चित करना कि हमारी आत्माएँ गंभीर पापों की अशुद्धता से विरत हैं, यह यूखरिस्तीय भोज की एक शर्त है। कोई भी व्यक्ति बड़े भोज में अपने हाथ धोए बिना नहीं बैठेगा - न ही किसी मसीही को पाप स्वीकार द्वारा अपने आप को शुद्ध हुए बिना यूखरिस्त या परम प्रासाद के पास जाना नहीं चाहिए। तीसरा, जुनून पूरे इतिहास को पढने से पता चलता है कि कैथलिक लोगों ने मिस्सा बलिदान में भाग लेने के लिए अपनी जान जोखिम में डाली है। आज भी दुनिया में, चीन, उत्तर कोरिया और ईरान जैसे कम से कम 12 देश ऐसे हैं जहां कैथलिकों पर कड़े प्रतिबंध हैं। इन चुनौतियों के बावजूद कैथलिक लोग अभी भी मिस्सा बलिदान में भाग लेने के इच्छुक हैं। क्या हमारे अंदर भी उसके लिए वही भूख है? इस भूख को अपने दिल में जगाओ! एहसास करें कि हमें राजा के सिंहासन कक्ष में बुलाया गया है; हमें कलवारी के बलिदान के लिए अग्रिम पंक्ति की सीट मिलती है। हमें वास्तव में प्रत्येक मिस्सा बलिदान द्वारा स्वर्ग के पूर्वाभास में भाग लेने की अनुमति है! चौथा, प्रार्थना एक बार जब हमने प्रभु को ग्रहण कर लिया, तो हमें प्रार्थना में महत्वपूर्ण समय व्यतीत करना चाहिए। रोम के महान प्रचारक, संत फिलिप नेरी, परम प्रसाद प्राप्त करने के बाद, मिस्सा समाप्ती से पहले गिरजाघर से बाहर निकलने वाले किसी भी व्यक्ति के पीछे जलती हुई मोमबत्तियों के साथ दो वेदी सेवकों को भेजते थे - इस सत्य को पहचानते हुए कि मसीह को प्राप्त करने के बाद वह व्यक्ति सचमुच एक जीवित मंजूषा है ! प्रभु को ग्रहण करने के तुरंत बाद, उसके साथ अपने दिल की बात साझा करने का सौभाग्यशाली समय हमारे पास होता है, क्योंकि वह काफी हद तक हमारे दिल से केवल कुछ इंच नीचे, हमारे शरीर में रहता है! लेकिन मसीह की यूखरिस्तीय उपस्थिति के लिए प्रार्थना मिस्सा समाप्त होने के बाद भी लंबे समय तक चलनी चाहिए। एक बार एक संत थी जो यूखरिस्तीय जीवन जीना चाहती थी, लेकिन केवल रविवार को ही मिस्सा बलिदान में जा पाती थी। उन्होंने गुरुवार, शुक्रवार और शनिवार को पवित्र भोज की आध्यात्मिक तैयारी के लिए समर्पित किया। फिर रविवार को, उन्हें खुशी हुई कि वे प्रभु को ग्रहण कर सकी - और सोमवार, मंगलवार और बुधवार को उसे प्राप्त करने के लिए धन्यवाद देने में बिताया! इसलिए, हमें प्राप्त यूखरिस्त के लिए ईश्वर को धन्यवाद देने और इस उपहार को दोबारा प्राप्त करने के लिए अपने दिलों को तैयार करने के लिए पूरे सप्ताह प्रार्थना में समय बिताना चाहिए! पांचवां, आराधना यूखरिस्तीय जीवन यूखरिस्तीय आराधना के साथ जारी रहता है, जो हमारे यूखरिस्तीय ईश्वर की पूजा को जारी रखता है। जितनी बार संभव हो, आराधना में जाएँ। जैसा कि धन्य कार्लो अक्यूटिस ने कहा, "जब हम सूरज का सामना करते हैं, तो हम भूरे हो जाते हैं, लेकिन जब हम खुद को यूखरिस्तीय येशु के सामने रखते हैं, तो हम संत बन जाते हैं।" वह जानता था कि केवल परमेश्वर ही है जिसने हमें पवित्र बनाया है, और उसकी उपस्थिति में रहकर, येशु कार्य करेगा! मैं इसकी गवाही दे सकता हूं. जब मैं किशोर था तब मेरे पल्ली ने सतत या अनवरत आराधना (प्रति दिन 24 घंटे, सप्ताह के सातों दिन) शुरू की और मैंने साप्ताहिक आराधना में एक घंटा बिताना शुरू कर दिया। वहां मुझे एहसास हुआ कि प्रभु मुझसे कितना प्यार करते हैं और वहीँ मैं एक पुरोहित के रूप में अपना जीवन उन्हें देने के लिए बुलाया गया था। यह मेरे अपने मन परिवर्त्तन का एक बड़ा हिस्सा था। वास्तव में, मेरी गृह पल्ली में, 160 से अधिक वर्षों से किसी युवा पल्लीवासी को धर्मसंघी बुलाहट प्राप्त नहीं हुआ था। सतत आराधना के केवल 20 वर्षों के बाद, हमारी पल्ली से 12 से अधिक धर्मसंघी बुलाहट हुए हैं ! धन्य कार्लो अक्यूटिस हमें फिर से याद दिलाते हैं, "यूखरिस्त स्वर्ग के लिए मेरा राजमार्ग है।" हमें यह जानने के लिए दूर तक देखने की ज़रूरत नहीं है कि ईश्वर कहाँ रहता है और उसे कैसे खोजा जाए - वह दुनिया के हर कैथलिक गिरजाघर के हर पवित्र मंजूषा में रहता है!
By: फादर जोसेफ गिल
Moreहम कितनी बार सोचते हैं कि हमें अपनी पसंद की चीज़ें करने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाता? इस नए साल में, आइए कुछ नया करें। वास्तव में मैं कभी भी नए साल के संकल्प लेने वाली नहीं रही हूँ। मुझे यह बात तब याद आती है जब मैं अपनी मेज़ पर धूल जमी, बिना पढ़ी हुई किताबों के ढेर को देखती हूँ, जिन्हें मैंने पिछले सालों में एक महत्वाकांक्षी, लेकिन बुरी तरह से असफल प्रयास के तहत खरीदा था। एक महीने में एक किताब पढ़ने का संकल्प अधूरा रह गया, और किताबों का ढेर खडा हो गया, उसी तरह बिना पूरे किये गए संकल्पों का भी ढेर खडा हो गया। मेरे पास अपने संकल्प में सफल न होने के लाखों कारण थे, लेकिन समय की कमी उनमें से एक नहीं थी। अब अपने आप में थोड़ी निराशा के साथ खोए हुए वर्षों को देखने पर, मुझे एहसास होता है कि मैं वास्तव में अपने समय का बेहतर उपयोग कर सकती थी। अपने जीवन में मैंने अनगिनत बार शिकायत की है कि मेरे पास उन चीजों को करने के लिए पर्याप्त समय नहीं है जो मैं करना चाहती हूँ। निश्चित रूप से, जितनी मैं गिन सकती हूँ उससे कहीं ज़्यादा! कुछ साल पहले, मेरे पति अस्पताल में अपना नियमित उपचार करवा रहे थे, और मैं नए साल की पूर्व संध्या पर उनके बगल में बैठी हुई थी, तब मेरे दिल में कुछ हलचल हुई। उनकी धमनियों में रक्त चढ़ाया जा रहा था। इस असहज परिस्थिति में, मैंने देखा कि उनकी आँखें बंद थीं, और उनके हाथ प्रार्थना की मुद्रा में जुड़े हुए थे। जाहिर तौर पर मेरी जिज्ञासा भरी निगाहों को महसूस करते हुए, उन्होंने एक आँख को थोड़ा खोला और मेरी तरफ देखते हुए, धीरे से फुसफुसाए: "सभी के लिए।" किसी तरह, उन्होंने मेरे मन की बात पढ़ ली। हम अक्सर अपने आसपास के उन लोगों के लिए प्रार्थना करते थे जिन्हें हम पीड़ित या प्रार्थना की ज़रूरतमंद समझते थे। लेकिन आज, हम अकेले बैठे थे, और मैं हैरान थी कि वे किसके लिए प्रार्थना कर रहे होंगे। यह सोचना भावुक और प्रेरणादायक था कि वे "सभी" के लिए प्रार्थना कर रहे थे, न कि केवल उन लोगों के लिए जिन्हें हम उनके बाहरी रूप के कारण प्रार्थना की ज़रूरतमंद समझते हैं। हम में से हर किसी को प्रार्थना की ज़रूरत है। हम सभी को ईश्वर की कृपा और दया की ज़रूरत है, चाहे हम दुनिया के सामने अपनी छवि कुछ भी पेश करें। यह सच लगता है, खासकर अब जब इतने सारे लोग चुपचाप अकेलेपन, वित्तीय परेशानी और यहाँ तक कि मानसिक स्वास्थ्य संघर्षों से पीड़ित हैं, जिन संघर्षों को अक्सर छिपाया जाता है। कोई भी वास्तव में नहीं जानता कि दूसरा व्यक्ति किस दौर से गुज़र रहा है, गुज़र चुका है या गुज़रेगा। अगर हम सब एक-दूसरे के लिए प्रार्थना करें तो यह कितना शक्तिशाली होगा? यह कितना जीवन को बदलनेवाला, दुनिया को बदलनेवाला हो सकता है। इसलिए इस नए साल में, मैं अपने खाली समय का अधिक बुद्धिमानी और सोच-समझकर उपयोग करने का संकल्प ले रही हूँ - दूसरों की पीड़ा और ज़रूरतों पर प्रार्थनापूर्वक विचार करती हुई, उन लोगों के बारे में जिन्हें मैं जानती हूँ, जिन्हें मैं नहीं जानती, जो मुझसे पहले आए हैं और जो बहुत बाद में आएंगे, सब के लिए प्रार्थना करने का मैं संकल्प लेती हूँ। मैं पूरी मानवता के लिए प्रार्थना करने जा रही हूँ, इस बात पर भरोसा करती हुई कि हमारे प्यारे ईश्वर, अपनी उदारपूर्ण दया और असीम प्रेम से, हम सभी को आशीर्वाद देंगे।
By: मेरी थेरेस एमन्स
More"मैं एक कैथलिक हूं और मैं ख़ुशी ख़ुशी परमेश्वर के लिए मर जाऊंगा। अगर मेरे पास एक हजार जीवन होते, तो मैं वे एक हज़ार जीवन परमेश्वर को अर्पित कर देता।“ ये उस आदमी के मरते हुए शब्द थे जिस को यह निर्णय लेने का अवसर दिया गया था कि उसे जीना है या मरना है। लोरेंजो रुइज़ का जन्म 1594 में मनीला में हुआ था। उनके चीनी पिता और फिलिपिनो माँ दोनों कैथलिक थे। बचपन में उसे डोमिनिकन फादर लोगों ने शिक्षा दी, उसने वेदी सेवक और गिरजाघर- परिचर के रूप में सेवा की, और अंततः एक पेशेवर सुलेखक (कैलीग्राफेर) बन गया। लोरेंजो अति पवित्र रोज़री माला संघ के एक सदस्य थे, उन्होंने रोसारियो के साथ शादी की और उन दोनों के दो बेटे थे। सन १636 में उनके जीवन में एक दुखद मोड़ आया। उन पर हत्या का झूठा आरोप लगाया गया। उन्होंने तीन डोमिनिकन पादरियों की मदद मांगी, जो जापान के लिए एक मिशनरी यात्रा करने वाले थे, जबकि उन दिनों जापान में ईसाइयों पर क्रूर उत्पीड़न का दौर चल रहा था। लोरेंजो को जापान की और यात्रा का तब तक कोई अंदाजा नहीं था। नाव जापान की ओर रवाना होने के बाद ही लोरेंजों को उसके और उसके समूह की यात्रा का मंजिल और वहां के खतरे के बारे में पता चला। जापानियों को डर था कि स्पेन ने जिस तरह फिलीपींस पर आक्रमण किया था, उसी तरह जापान पर भी आक्रमण करने केलिए धर्म का उपयोग किया जाएगा, इसलिए जापान ने ईसाई धर्म का जमकर विरोध किया। मिशनरियों को जल्द ही ढूंढा गया, कैद किया गया, और कई क्रूर यातनाओं के अधीन किया गया। उत्पीडन का एक यह भी तरीका था कि मिशनरियों के गले में भारी मात्रा में पानी डाला जाता, फिर सैनिक बारी-बारी से मिशनरियों के पेट पर रखे बोर्ड के आर-पार खड़े हो जाते, जिससे उनके मुंह, नाक और आंखों से पानी तेजी से बहता। अंत में, उन्हें एक गड्ढे के ऊपर उल्टा लटका दिया गया, उनके शरीर को कसकर बांधे गए, जिससे उनके शरीर में रक्त का धीमी गति से परिसंचरण होता था, लंबे समय तक दर्द और धीमी गति से मृत्यु होती थी। लेकिन पीड़ित का एक हाथ हमेशा खुला छोड़ दिया जाता था, ताकि वह पीछे हटने के अपने इरादे का संकेत दे सके। न तो लोरेंजो और न ही उनके साथी पीछे हटे। वास्तव में, जब उसके उत्पीड़कों ने उससे पूछताछ की और जान से मारने की धमकी दी, तो उसका विश्वास और मजबूत हो गया। ये पवित्र शहीद तीन दिनों तक गड्ढे के ऊपर लटके रहे। तब तक, लोरेंजो मर चुका था और जो तीन पुरोहित अभी भी जीवित थे, उनके सिर काट दिए गए थे। उनके विश्वास का एक त्वरित त्याग उनके जीवन को बचा सकता था। इसके बजाय, उन्होंने शहीद का मुकुट पहनकर मरना चुना। उनकी वीरता हमें साहस के साथ और बिना समझौता किए अपने विश्वास को जीने के लिए प्रेरित करे।
By: Shalom Tidings
More6 अगस्त, सन् 1945 को द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान के हिरोशिमा शहर पर परमाणु बम गिराया गया था। इसमें 140,000 लोग मारे गए या घायल हुए। इस तबाही के बीच भी आठ येशुसंघी मिशनरी बच गए, जो हमले के अवकेंद्र के पास अपने निवास स्थान में थे। विस्फोट के बाद उनमे से कोई भी बहरा नहीं हुआ। उनका गिरजाघर ‘अवर लेडी ऑफ द एसेम्शन चर्च’, की रंगीन काँच खिड़कियाँ चकनाचूर हो गयीं, लेकिन गिरजाघर नहीं गिरा; व्यापक विनाश के बीच खड़ी बहुत कम इमारतों में से एक यह गिरजाघर भी था। ये पुरोहित न केवल शुरुआती विस्फोट से सुरक्षित रहे – बल्कि उनपर हानिकारक विकिरण का कोई बुरा प्रभाव भी नहीं पड़ा। विस्फोट के बाद उनकी देखभाल करने वाले डॉक्टरों ने चेतावनी दी थी कि विकिरण के जहर के संपर्क में आने से उन्हें गंभीर घाव, बीमारी और यहां तक कि उनकी मौत भी हो सकती है। लेकिन आने वाले वर्षों में 200 चिकित्सा परीक्षण में भी कोई बुरा प्रभाव सामने नहीं आया। जिन डॉक्टरों ने गंभीर परिणामों की भविष्यवाणी की थी, वे इस बात से चकित थे। हिरोशिमा पर बम गिराए जाने के समय फादर शिफर केवल 30 वर्ष के थे, उन्होंने 31 साल बाद 1976 में फिलाडेल्फिया में यूखरिस्तीय कांग्रेस में अपनी आपबीती सुनाई। येशुसंघी समुदाय के सभी आठ सदस्य जो बमबारी के बाद जिन्दा बच गए थे, वे सभी उस कांग्रेस के दौरान जीवित थे। फादर शिफर ने यूखरिस्तीय कांग्रेस में एकत्रित विश्वासियों के सामने बयान किया कि वे आठों लोग सुबह-सुबह मिस्सा बलिदान चढ़ाने के बाद नाश्ते के लिए उनके निवास की रसोई में बैठे थे। फादर शिफर ने एक फल को काटकर अपना चम्मच उसमें डाला ही था कि प्रकाश की तेज चमक दिखाई दी। पहले उन्होंने सोचा कि यह विस्फोट पास के बंदरगाह में हुआ होगा। फिर उन्होंने अपने अनुभव का वर्णन किया: “अचानक, एक भयानक विस्फोट ने एक धमाकेदार गड़गड़ाहट के साथ आसमान को भर दिया। एक अदृश्य शक्ति ने मुझे कुर्सी से उठा कर हवा में उछाल दिया, मुझे हिला दिया, मुझे पीटा, मुझे गोल-गोल घुमा दिया, जिस प्रकार शरद ऋतु की हवा के झोंके में एक पत्ता हिलता है।“ अगली बात उन्होंने याद किया कि उन्होंने अपनी आँखें खोलीं और अपने आप को ज़मीन पर पाया। उन्होंने इधर-उधर देखा, और देखा कि किसी भी दिशा में कुछ भी नहीं बचा था: रेलवे स्टेशन और सभी दिशाओं की सारी इमारतें ढह चुकी थीं। वे सभी पुरोहित अपेक्षाकृत मामूली चोटों के साथ न केवल जीवित बच गए, बल्कि वे सभी बिना किसी विकिरण बीमारी के, बहरापन और अन्य छोटे मोटे कुप्रभावों से बचे रहे। यह पूछे जाने पर कि इतने सारे लोग या तो विस्फोट से या उसके बाद के विकिरण से मर गए, ऐसे में वे क्यों मानते हैं कि उन्हें बख्शा गया था, तब फादर शिफर ने अपने और अपने साथियों की ओर से कहा: "हम मानते हैं कि हम बच गए, क्योंकि हम फातिमा के संदेश को जी रहे थे। हम उस घर में रहकर प्रतिदिन रोजरी माला की प्रार्थना करते थे।“
By: Shalom Tidings
Moreकई साल पहले वह एक ठंडी और बर्फीली दोपहर थी, और मेरे मन में इच्छा हुई कि मैं आराधना में जाकर भाग लूं। मेरी अपनी पल्ली में अभी तक सतत-आराधना की व्यवस्था नहीं हुई थी, इसलिए मैं उस गिरजाघर की ओर गाडी चलाती हुई चली गयी, जहां सतत अराधना होती थी। इस गिरजाघर में एक छोटा, बहुत ही अंतरंग प्रार्थनालय है जहां मुझे येशु के साथ समय बिताना और अपने दिल की बात उनके सामने रखना अच्छा लगता था। जब मैंने दो लोगों को प्रार्थनालय के पीछे बातें करते सुना, तब मेरा समय लगभग समाप्त हो गया था। गिरजाघर की ड्योढ़ी में पड़े एक बेघर व्यक्ति के बारे में वे बात कर रहे थे। उस आदमी के प्रति उनकी असंवेदनशीलता से मैं विचलित और दु:खी थी, इसलिए मैंने वहां से उठने का फैसला किया। वैसे भी मेरी आराधना का एक घंटा लगभग समाप्त हो गया था। जैसे ही मैं वहां से निकली, मैं गिरजाघर की ड्योढ़ी से गुज़री जहां वही आदमी इतनी गहरी नींद सो रहा था कि जब मैं उसके लिए प्रार्थना करने के लिए रुकी तो उसका शरीर बिलकुल भी नहीं हिला। मुझे राहत महसूस हुई कि प्रभु ने आराधना के लिए दरवाजे खोल दिए थे, ताकि वह आदमी यहाँ आश्रय पा सके। वह बेघर लग रहा था, लेकिन मुझे पक्का पता नहीं था। मुझे बस इतना पता है कि इस आदमी के लिए चिंता करते हुए मैं आंसू बहा रही थी। जब मैं खुद को रोक नहीं पायी, तब मैं गिरजाघर के बाहर टहलने लगी। वहां पवित्र हृदय की एक मूर्ति खड़ी थी, जो मुझे याद दिला रही थी कि हर व्यक्ति के लिए येशु के दिल में प्रेमपूर्ण चिंता और प्रचुर दया है। मैंने प्रभु से विनती की कि वह मुझे बताए कि मुझे क्या करना है। मेरे दिल में मैंने महसूस किया, कि प्रभु मुझसे कह रहा है कि मैं पास की दुकान में जाऊं और इस आदमी के लिए कुछ जरूरी सामान खरीद लूं। मैंने प्रभु को धन्यवाद दिया और तुरंत दुकान जाकर कुछ ऐसी चीजें खरीदीं जो मुझे लगा कि उस आदमी के लिए ज़रूरी और उपयोगी है। गिरजाघर की ओर वापस जाते समय, मुझे उम्मीद थी कि वह आदमी अभी भी वहाँ होगा। मैं वास्तव में उसे वह सब देना चाहती थी जिन्हें मैंने खरीदी थी। जब मैं वहां पहुंची तब भी वह सो रहा था। मैंने चुपचाप सामान का बैग उसके पास रख दिया, एक प्रार्थना की, और मैं चलने लगी। मैं लगभग बाहर निकल ही चुकी थी कि मैंने किसी को "बहन, बहन" कहते हुए सुना। मैंने पलट कर जवाब दिया, "जी हां"। वह आदमी अब जाग गया था और मेरे पास आया और पूछा कि क्या मैंने उसके लिए यह बैग छोड़ रखा है। मैंने उत्तर दिया, "जी हाँ, मैंने रखा है।" उसने मुझे यह कहते हुए धन्यवाद दिया कि मेरी यह उदारता कितनी अच्छी थी। ऐसा पहले कभी किसी ने उनके साथ नहीं किया था। मैंने मुस्कुराते हुए कहा, "आपका स्वागत है"। वह आदमी करीब आ रहा था और मुझे लगा जैसे मैं येशु की उपस्थिति में थी। मैंने अपने दिल में बहुत प्यार महसूस किया। फिर उसने कहा, "बहन, स्वर्ग में मेरी मुलाक़ात आपसे होगी।" मुझे लगा कि मैं फूट-फूट कर रोने लगूंगी। उनकी आवाज बहुत दयापूर्ण और प्यार से भरपूर थी। उसके गाल पर चुम्बन देने की प्रेरणा मुझे मिली। हमने एक-दूसरे को अलविदा कहा और अपने-अपने रास्ते चल दिए। बाहर आने पर भी, मेरा रोना बंद नहीं हुआ। मैं घर पहुँचने तक रोती रही। आज भी, उस दोपहर को याद करते ही मेरे आंसू छलक पड़ते हैं। मुझे एहसास हुआ कि उस ठंडी, बर्फीली दोपहर को, वास्तव में उस खूबसूरत आदमी में मैंने येशु से मुलाक़ात की थी। अब, जब मैं पीछे मुड़कर देखती हूं, तो मैं कल्पना करती हूं कि चेहरे पर एक बड़ी मुस्कान के साथ येशु मुझसे कह रहा है, "यह मैं हूं, येशु!" धन्यवाद, येशु, मुझे यह याद दिलाने के लिए कि मुझसे मिलने वाले प्रत्येक व्यक्ति जिस से मेरी मुलाक़ात होती है उनमें मैं तेरा दर्शन कर सकती हूं।
By: कैरल ऑसबर्न
Moreमैं 65 वर्ष का था और अपनी जीवन बीमा पॉलिसी बदलना चाह रहा था। जैसा अक्सर होता है, बीमा वालों को मेरे स्वास्थ्य सम्बन्धी कुछ जांच करनी थी। मैंने सोचा, "ठीक है, मैं सहयोग करूंगा।" उस समय तक, मैंने जो भी लैब टेस्ट लिया था, जैसे सीने का एक्स-रे, ईकेजी और कॉलोनोस्कोपी, ये सब सामान्य थे। मेरा रक्तचाप 126/72 था और मेरा बीएमआई 26 था। मैं प्रति सप्ताह चार बार व्यायाम करता था और काफी स्वस्थ भोजन खाता था। मैं अच्छा महसूस कर रहा था और किसी भी प्रकार की बीमारी के लक्षण मुझ में नहीं था। मेरी सभी जांचों का परिणाम सामान्य आए ... मेरे पीएसए को छोड़कर, जो 11 एनजी/एमएल था (सामान्य 4.5 एनजी/एमएल से कम होना चाहिए)। तीन साल पहले यह सामान्य था। एक झटका लगा ! इसलिए मैं अपना पीसीपी देखने गया। मलाशय की जांच के दौरान, उन्होंने पाया कि मेरा प्रोस्टेट बढ़ा हुआ और कुछ हिस्सा सिकुड़ा हुआ है। "मुझे कैंसर का संदेह है, मैं आपको एक मूत्र रोग विशेषज्ञ के पास भेजने जा रहा हूं," उन्होंने कहा। एक और झटका। प्रोस्टेट की ग्यारह बायोप्सियों में से ग्यारहों ने कैंसर पॉजिटीव दिखाया। मेरा ग्लीसन स्कोर 4+5 था जिसका मतलब था कि यह एक उच्च श्रेणी का कैंसर था और यह तेजी से बढ़ सकता है और फैल सकता है। इसलिए, मैंने ल्यूप्रोन के साथ एक गंभीर प्रोस्टेटैक्टोमी, विकिरण चिकित्सा और हार्मोन थेरेपी की। ऊह! वो गर्म गर्म लालिमा! जब मैं यह बोलता हूं तो महिलाएं ज़रूर मुझ पर विश्वास करेंगी; अब मुझे पता है कि आप किस दौर से गुजर रही हैं। एक बार फिर झटका! आप सोचते होंगे कि "झटका" सिर्फ क्यों? "मेरा विश्वास उड़ गया है”, “यह नहीं हो सकता”, “मैं मरने जा रहा हूं”, “ईश्वर मुझे सजा दे रहा है” ऐसे ऐसे प्रलाप क्यों नहीं? अच्छा, मैं बताता हूँ कि ऐसे प्रलाप मेरी तरफ से क्यों नहीं है। मेरी माँ के गुर्दे खराब होने से पहले, घर पर ही उन्हें पेरिटोनियल डायलिसिस की आवश्यकता थी, मेरे माता-पिता काफी यात्रा किया करते थे, खासकर मेक्सिको की तरफ। जब रोजाना डायलिसिस ने यात्राक्रम को रोक दिया, तो उन्होंने घर में बैठकर पहेलियों पर काम करने, अपनी बाइबल पढ़ने और उसका अध्ययन करने में अधिक समय बिताया। इससे वे प्रभु के काफी करीब आ गए। इसलिए, जब माँ के डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि वे उसके स्वास्थ्य के लिए और कुछ नहीं कर सकते, तो माँ विचलित नहीं थी। उसने मुझसे कहा, "मैं थक गई हूँ, मैं अपने स्वर्गिक पिता के साथ रहने के लिए तैयार हूँ। मैं परिवार और दोस्तों के साथ और अपने साथ भी शांति का अनुभव कर रही हूँ, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मैं ईश्वर के साथ शांति का अनुभव करती हूँ।” कुछ दिनों बाद, चेहरे पर मुस्कान के साथ, बड़ी अपार शांति के साथ उसने इस दुनिया से विदा ली। ”मैं ईश्वर के साथ शांति का अनुभव करती हूँ"। मैं भी यही चाहता था। मैं अब केवल रविवारीय मिस्सा में भाग लेने वाला नामधारी कैथलिक बने रहना नहीं चाहता था। उस समय से मैंने उस रास्ते पर चलना शुरू किया जो मुझे ईश्वर के करीब ले आया है: अंग्रेजी और स्पेनिश दोनों भाषाओं में बाइबल पढ़कर उसकी गहराई से अध्ययन करना, प्रार्थना करना, माला विनती करना, जीवन में प्राप्त कृपाओं के लिए धन्यवाद देना, और एक धर्मशिक्षा के अध्यापक के रूप में स्वयंसेवा करना। आशा करता हूं कि जल्द ही, मैं एक अस्पताल के अध्यात्मिक मार्गदर्शक के रूप में अपनी इंटर्नशिप पूरा कर लूँगा और मैं अपना आध्यात्मिक मार्गदर्शन पाठ्यक्रम पूरा करने वाला हूं। तो, हाँ, प्रोस्टेट कैंसर होना एक झटका है, लेकिन वह बस एक झटका मात्र ही है, क्योंकि मैं ईश्वर के साथ शांति का अनुभव करता हूँ।
By: Dr. Victor M. Nava
Moreअसीसी के संत फ्रांसिस को एक समय कोढियों से बहुत भय और घृणा थी। उन्होंने कबूल किया कि कोढ़ी की झलक पाने से ही उनके मन में इतनी घृणा पैदा होती थी कि वे उन कोढियों की बस्ती के पास से गुजरने से कतराते थे। अगर वे अपनी यात्रा के दौरान गलती से किसी कोढ़ी की एक झलक पा लें या किसी कुष्ठरोग आश्रम से गुजरते हैं, तो वे अपना मुंह दूसरी तरफ घुमा देते थे और अपनी नाक बंद कर लेते थे। जैसे-जैसे फ्रांसिस अपने विश्वास में और अधिक गहरे होते गए और उन्होंने अपने सामान दूसरों को प्यार करने की मसीह की नसीहत स्वीकार कर ली, वे अपने इस रवैये पर शर्मिंदा हो गए। एक दिन जब फ्रांसिस घोड़े पर सवार होकर यात्रा कर रहे थे, अचानक कुष्ठ रोग से पीड़ित एक आदमी उसके सामने सड़क पार कर रहा था। फ्रांसिस ने आतंकित भय और घृणा की अपनी भावनाओं पर काबू पा लिया और, बजाय दूर भागने का, वे अपने घोड़े के ऊपर से नीचे कूदे, कोढ़ी को चूमे और उसके हाथ में कुछ पैसे दे दिए। लेकिन जब फ्रांसिस ने फिर से घोड़े पर सवार होकर पीछे मुड़कर देखा, तो उन्हें कहीं भी कोढ़ी नहीं दिखाई दिया। बढती उत्तेजना के साथ, उन्होंने महसूस किया कि मैं ने जिसे चूमा था, वह येशु है। कुछ धन जुटाने के बाद, वे कोढ़ी अस्पताल के पास गए और वहां उपस्थित हर एक कोढ़ी को भिक्षा दे दी, और श्रद्धा के साथ उन कोढियों में से एक एक के हाथ का चुंबन किया। पहले किसी कोढ़ी की दृष्टि या स्पर्श जो उनके लिए अरुचिकर लग रहा था – वह अब मिठास में परिवर्तित हो गया। बाद में फ्रांसिस ने लिखा, “जब मैं पाप में था, कोढ़ियों की मात्र झलक पाने से मेरा जी मचलता था; लेकिन तब परमेश्वर ने स्वयं मुझे उनकी संगति में पहुंचाया, और मेरे अन्दर उन पर करुणा उमड़ पड़ी। जब मैं उनसे परिचित हो गया, तो जिसके कारण मेरा जी मचलता था, वह मेरे लिए आध्यात्मिक और भौतिक सांत्वना का स्रोत बन गया। ” आज हम अक्सर अपने आस-पास ऐसे लोगों को देखते हैं जो आध्यात्मिक कोढ़ से त्रस्त हैं। ज़्यादातर हम उनसे दूर रहने की कोशिश करते हैं, लेकिन हम यह महसूस करने में नाकाम रहते हैं कि यह कोढ़ की बीमारी हमारे दिल में भी है। इसलिए दूसरों पर उंगली उठाने और इशारा करने के बजाय, अपने मन की विकलांगता और दिल की कठोरता पर मुक्ति पावें। यद्यपि हम टूटे हुए और जख्मी हैं, पहले स्थान
By: Shalom Tidings
Moreआप शायद उस शतपति से परिचित हैं जिसने क्रूस पर लटके येशु के बगल में भाला भोंका था। कुछ परंपराओं और किंवदंतियों के अनुसार,उस सैनिक का नाम लोंजिनुस था, एक ऐसा नाम जो निकोदेमुस के गैर प्रामाणिक सुसमाचार में पहली बार उभरा था । इस सैनिक का नाम प्रामाणिक सुसमाचारों में दर्ज नहीं है। किंवदंतियों के अनुसार, इस से पूर्व हुए युद्धों में लोंजिनुस बुरी तरह घायल हुआ था इसलिए उस के साथी सैनिक उसके अंधापन के लिए उसके साथ मजाक किया करते थे। जिस वक्त उसने प्रभु के बगल में छेद किया, खून का बौछार उसकी आँखों में पड़ा। तुरंत उसकी दृष्टि बहाल हुई। संत मारकुस के सुसमाचार में हम उसे सुनते हैं,"वास्तव में, यह परमेश्वर का बेटा था!" किंवदंतियाँ यह भी बताती है कि लोंजिनुस ने सेना छोड़ दी,प्रेरितों से आध्यात्मिक सलाह ली और कप्पादोचिया में एक मठवासी सन्यासी बन गया। वहां वह अपने ख्रीस्तीय विश्वास के लिए गिरफ्तार किया गया,उसके दांतों को बाहर निकाला गया और उसकी जीभ काट दी गई। हालांकि,लोंजिनुस ने चमत्कारिक ढंग से साफ़ साफ बोलना जारी रखा और राज्यपाल की उपस्थिति में कई मूर्तियों को नष्ट करने में कामयाब रहा। मूर्तियों से निकली दुष्ट शक्तियों ने राज्यपाल को अंधा बना दिया था। लोंजिनुस ने राज्यपाल की दृष्टि चमत्कारिक रूप से कैसे बहाल की थी, इसके बारे में बताया जाता है कि उसका का सिर काट दिया गया, उसी समय उसके गर्दन से निकले खून के कुछ बूँद राज्यपाल की आँखों पर पडी और राज्यपाल तुरंत चंगा हो गया। संत लोंजिनुस कलीसिया के पहले शहीदों में से एक है। ख्रीस्त प्रभु से जुड़े कई अवशेषों में से एक लोंजिनुस का भाला भी है और इसे रोम में संत पेत्रुस के महागिरजाघर की मुख्य वेदी के ऊपर के चार स्तंभों में से एक में पाया जा सकता है।
By: Shalom Tidings
Moreक्रिस्टोफर गिरजाघर में बैठकर अपने पिता का इंतजार कर रहा था| पिता ने उसे लेने का वादा किया था। वह अपने धर्म शिक्षा के शिक्षक की बातों पर सोच रहा था। शिक्षक ने कक्षा में ब्लैक मास और शैतान के उपासकों के बारे में बताया था। शैतान के ये उपासक येशु के साथ दुर्व्यवहार करते हैं और पवित्र संस्कार की रोटी या ओस्तिया को अपमानित करते हैं। उसने पहले कभी भी ब्लैक मास के बारे में नहीं सुना था और येशु के लिए उसके ह्रदय में बड़े दुःख का अनुभव हुआ। अपने निर्दोष सोच विचार में, क्रिस्टोफर ने एक रणनीति बनाने की कोशिश की। अचानक एक छिपकली ने उसका ध्यान आकर्षित किया| भूरे रंग का एक चित्तीदार पक्षी छिपकली का शिकार करने के प्रयास में लगा था। उस पक्षी को विचलित करने के लिए छिपकली ने स्वयं अपनी पूंछ को विच्छिन्न कर दिया और उसे त्याग दिया। क्रिस्टोफर ने देखा कि कटी हुई पूंछ उलट पलट कर तड़प रही थी और भूरे रंग के पक्षी ने पूंछ को उठा लिया, यह महसूस किए बिना कि छिपकली वास्तव में वहां से भाग चुकी थी। इसे देखते हुए क्रिस्टोफर ने सोचा, ‘अगर येशु पवित्र संस्कार से बाहर निकल आवें तो अच्छा होगा न? छिपकली की तरह अगर येशु शैतान के उपासकों से बच सके तो बढ़िया होगा न ? येशु को पवित्र संस्कार में अपनी उपस्थिति को त्याग देना चाहिए ताकि उसे दुःख और अपमान झेलना न पडे। यदि येशु ने अपनी उपस्थिति पवित्र संस्कार में से अलग कर दिया, तो प्रतिष्ठित रोटी साधारण रोटी बन जाएगी। इस तरह, शैतान उपासक, या जो लोग ब्लैक मास में भाग लेते हैं, वे येशु को अपमानित करने में सफल नहीं होंगे।‘ दोपहर बाद, जब उनके पिताजी उसे लेने आए, तो क्रिस्टोफर ने पिताजी को येशु के लिए अपनी इस नई योजना को विस्तार से और बड़ी तत्परता के साथ बताया। "पापा, येशु पवित्र संस्कार से क्यों नहीं निकल आ सकते? इस तरह, उसे दुःख झेलना नहीं पड़ेगा, ठीक है न?" क्रिस्टोफर ने पूछा। एक पल के लिए, उसके पिता चुप थे। यह एक विचित्र प्रश्न था और उसके पिता ने इसके बारे में पहले कभी नहीं सोचा था। उसके पिता ने आखिरकार कहा। "मेरे बेटे, यीशु पवित्र संस्कार को त्यागकर बाहर निकल नहीं सकते, क्योंकि वह अपने वचन में और अपने वादे में पक्के हैं। जब पुरोहित पवित्र संस्कार को प्रतिष्ठित करते हैं, तो वे येशु के शब्दों का उपयोग करते हैं। येशुकहते हैं: ‘यह मेरा शरीर है जो तुम्हारे पापों की क्षमा के लिए अर्पित है',इन शब्दों के द्वारा उसने हमसे एक वादा किया है।वह अपने वादे से कभी पीछे नहीं हटेगा। इसलिए, मानव जाति के लिए, वह किसी भी अपमान को सहने के लिए तैयार है। येशु ने दो हज़ार साल पहले मानव जाति को बचाने के लिए कलवारी पर पीड़ा भोगते हुए अपनी जान दे दी। वह अभी भी पीड़ा भोग रहे हैं।” क्या हमें एहसास है कि येशु हमारे पाप, अज्ञानता और अपमानपूर्ण व्यवहार के कारण पवित्र संस्कार में कितनी पीड़ा भोग रहे हैं? आइए हम ब्लैक मास में भाग लेने वाले लोगों के लिए और अन्य सभी पापियों के मन परिवर्तन के लिए प्रार्थना करें । हम संपूर्ण मानव जाति के लिए प्रार्थना करें कि सभी लोग पवित्र संस्कार में येशु का सम्मान और प्यार करें।
By: Rosemaria Thomas
Moreजब मैंने यह प्रभावशाली प्रार्थना शुरू की थी, तो मुझे इतनी उम्मीद नहीं थी... “हे बालक येशु की नन्हीं तेरेसा, कृपया मेरे लिए स्वर्गीय बगीचे से एक गुलाब चुनिए और इसे प्रेम के संदेश के रूप में मुझे भेजिए।” यह निवेदन, जो संत तेरेसा को संबोधित ‘मुझे एक गुलाब भेजो’ नोवेना के तीन निवेदनों में से पहला है; और इस निवेदन ने मेरा ध्यान खींचा। मैं अकेली थी. एक नए शहर में बिलकुल अकेली, नए दोस्तों की चाहत के साथ। आस्था के नए जीवन में अकेली, किसी दोस्त और रोल मॉडल की चाह ली हुई। मैं संत तेरेसा के बारे में पढ़ रही थी। बपतिस्मा के दौरान मुझे यही नाम दिया गया था, लेकिन उस संत के प्रति मेरा कोई विशेष आकर्षण नहीं था। संत तेरेसा 12 साल की उम्र में ही येशु के प्रति भावुक भक्ति में जी रही थी और 15 साल की उम्र में कार्मेलाइट मठ में प्रवेश पाने के लिए संत पापा से विशेष निवेदन किया था। मेरा अपना जीवन बहुत अलग था। मेरा गुलाब कहाँ है? तेरेसा आत्माओं की मुक्ति केलिए जोश से भरी हुई थीं; उसने एक खूंखार अपराधी के मन परिवर्तन के लिए प्रार्थना की थी। कार्मेल के कॉन्वेंट की गुप्त दुनिया में बैठकर, उसने दूर-दराज इलाकों पर ईश्वर के प्रेम को फैलाने वाले मिशनरियों के लिए अपनी प्रार्थना समर्पित की। अपनी मृत्यु शैया पर लेटी हुई, नॉरमंडी की इस पवित्र साध्वी ने मठ की अपनी बहनों से कहा था: "मेरी मृत्यु के बाद, मैं गुलाबों की बारिश करूंगी। मैं स्वर्ग में रहकर पृथ्वी पर भलाई के कार्य करूंगी।" मैंने जो किताब पढ़ी, उसमें लिखा था कि 1897 में उसकी मृत्यु के बाद से, उसने दुनिया को कई आशीषें, चमत्कार और यहां तक कि गुलाब भी दिए हैं। "शायद वह मेरे लिए एक गुलाब भेजेगी," मैंने सोचा। यह मेरे जीवन की पहली नोवेना प्रार्थना थी। मैं ने प्रार्थना के दो अन्य निवेदनों के बारे में अधिक नहीं सोचा- अर्थात् मेरे निवेदनों के लिए ईश्वर से मध्यस्थ प्रार्थना करने की कृपा और मेरे लिए ईश्वर के महान प्रेम में गहरा विश्वास करना ताकि मैं तेरेसा के छोटे मार्ग का अनुकरण कर सकूँ। मुझे याद नहीं कि मेरा निवेदन क्या था और मैं तेरेसा के छोटे मार्ग के बारे में कुछ समझ नहीं पा रही थी। मेरा ध्यान बस गुलाब पर था। नौवें दिन की सुबह, मैंने आखिरी बार नोवेना प्रार्थना की। और इंतज़ार किया। शायद आज कोई फूलवाला मेरे पास आकर मुझे गुलाब दे देगा। या शायद मेरे पति काम से लौटते समय मेरे लिए गुलाब लेकर घर आएँगे। दिन के अंत तक, मेरे दरवाज़े पर आया एकमात्र गुलाब एक कार्ड पर छपा हुआ था जो एक मिशनरी समाज से ग्रीटिंग कार्ड के पैक में आया था। यह एक चमकदार लाल, सुंदर गुलाब था। क्या यह तेरेसा की ओर से मेरा गुलाब था? मेरी अदृश्य मित्र कभी-कभी, मैंने फिर से ‘मुझे गुलाब भेजो’ नोवेना प्रार्थना की। हमेशा परिणाम समान था। गुलाब छोटे, छिपे हुए स्थानों में दिखाई देते थे; मैं रोज़ नाम के किसी व्यक्ति से मिलती, और इसके अलावा मुझे गुलाब दिखाई देता किसी पुस्तक के कवर पर, किसी फ़ोटो की पृष्ठभूमि में, या किसी मित्र की मेज़ पर। आखिरकार, जब भी मैं गुलाब देखती, संत तेरेसा मेरे दिमाग में आती। वह मेरे दैनिक जीवन की सहेली बन गई थी। नोवेना को पीछे छोड़ते हुए, मैंने पाया कि मैं जीवन के संघर्षों में उनसे मध्यस्थता माँग रही हूँ। तेरेसा अब मेरी अदृश्य मित्र थी। मैंने अधिक से अधिक संतों के बारे में पढ़ा, और इन पुरुषों, महिलाओं और बच्चों ने ईश्वर के प्रति भावुक प्रेम को किस तरह से जिया, इस पर आश्चर्यचकित हुई । इन लोगों के समूह को जानना, जिनके निश्चित रूप से स्वर्ग में होने के बारे में कलीसिया ने की घोषणा की है, इन सब बातों ने मुझे आशा दी। हर जगह और हर जीवन में, वीरतापूर्ण सद्गुण के साथ जीना संभव होना चाहिए। पवित्रता मेरे लिए भी संभव है। और ऐसे कई रोल मॉडल थे। बहुत सारे! मैंने संत फ्रांसिस डी सेल्स के धैर्य, संत जॉन बॉस्को में प्रत्येक बच्चे की ध्यानपूर्ण देखभाल और कोमल मार्गदर्शन, और हंगरी की संत एलिजाबेथ की दानशीलता का अनुकरण करने की कोशिश की। भक्ति और परोपकार के मार्ग पर मेरी मदद करनेवाले उनके उदाहरणों के लिए मैं आभारी थी। इनसे परिचित होना महत्वपूर्ण था, लेकिन तेरेसा इन सबसे अधिक थी। वह मेरी दोस्त बन गई थी। एक शुरुआत आखिरकार, मैंने संत तेरेसा की आत्मकथा, द स्टोरी ऑफ़ ए सोल (एक आत्मा की कहानी) पढ़ी। उनके इस व्यक्तिगत गवाही में मैंने पहली बार उनके छोटे मार्ग या ‘लिटिल वे’ को समझना शुरू किया। तेरेसा ने खुद को आध्यात्मिक रूप से एक बहुत ही छोटे बच्चे के रूप में कल्पना की थी जो केवल बहुत ही छोटे कार्य करने में सक्षम थी। लेकिन वह अपने पिता का बहुत सम्मान करती थी और जो उससे प्यार करता था, उन के लिए एक उपहार के रूप में हर छोटी-छोटी चीज को बड़े प्यार से करती थी। प्यार का बंधन उसके उपक्रमों के आकार या सफलता से बड़ा था। यह मेरे लिए जीवन के प्रति एक नया दृष्टिकोण था। उस समय मेरा आध्यात्मिक जीवन एक ठहराव पर था। शायद तेरेसा के छोटे मार्ग से इसकी शुरूआत हो सकती थी। एक बड़े और सक्रिय परिवार की माँ होने के नाते, मेरी परिस्थितियाँ तेरेसा से बहुत अलग थीं। शायद मैं अपने दैनिक कार्यों को उसी प्रेमपूर्ण दृष्टिकोण से करने का प्रयास कर सकती थी। अपने घर की छोटी सी जगह और गुप्तता में, जैसा कि तेरेसा के लिए अपना कॉन्वेंट था, मैं प्रत्येक कार्य को प्रेम से करने का प्रयास कर सकती थी। प्रत्येक कार्य ईश्वर के प्रति प्रेम का उपहार हो सकता था; और विस्तार से, प्रत्येक कार्य मेरे पति, मेरे बच्चे, पड़ोसी के प्रति प्रेम का उपहार हो सकता था। कुछ अभ्यास के साथ, हर बार डायपर परिवर्तन, प्रत्येक भोजन जो मैंने मेज पर रखा, और प्रत्येक कपड़े धोने का भार प्रेम की एक छोटी सी भेंट बन गया। मेरे दिन आसान हो गए, और ईश्वर के प्रति मेरा प्रेम मजबूत हो गया। मैं अब अकेली नहीं थी। अंत में, इसमें नौ दिनों से कहीं अधिक समय लगा, लेकिन गुलाब के लिए मेरे आवेगपूर्ण अनुरोध ने मुझे एक नए आध्यात्मिक जीवन के मार्ग पर स्थापित कर दिया। इसके माध्यम से, संत तेरेसा मुझ तक पहुँचीं। उसने मुझे प्रेम की ओर खींचा, उस प्रेम की ओर जो स्वर्ग में संतों का बंधुत्व है, अपने "छोटे मार्ग" का अभ्यास करने के लिए और सबसे बढ़कर, ईश्वर के प्रति अधिक प्रेम की ओर उसने मुझे खींच लिया। आखिरकार मुझे गुलाब से कहीं ज़्यादा मिला! क्या आप जानते हैं कि संत तेरेसा का पर्व 1 अक्टूबर को है? तेरेसा-नामधारियों को पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ।
By: एरिन राइबिकी
Moreअक्सर, किसी वाद्य यंत्र से सुंदर धुनें बजाने के लिए किसी उस्ताद की ज़रूरत होती है। यह एक भयंकर प्रतिस्पर्धा थी जिसमें खरीदार हर चीज़ के लिए एक-दूसरे से ज़्यादा बोली लगाने की होड़ में थे। उन्होंने उत्सुकता के साथ सभी वस्तुओं को खरीद लिया और नीलामी बंद होने वाली थी, सिवाय एक वस्तु के - एक पुराना वायलिन। खरीदार खोजने के लिए उत्सुक, नीलामीकर्ता ने तार वाले वाद्य को अपने हाथों में लिया और जो कीमत उसे आकर्षक लगी, उसे पेश किया: “अगर किसी को दिलचस्पी है, तो मैं इसे 100 डॉलर में बेचूंगा।” कमरे में मौत जैसी खामोशी छा गई। जब यह स्पष्ट हो गया कि पुराने वायलिन को खरीदने के लिए यह कीमत भी किसी को भी राजी करने के लिए पर्याप्त नहीं थी, तो उसने कीमत घटाकर 80 डॉलर, फिर 50 डॉलर और अंत में, हताश होकर 20 डॉलर कर दी। एक और चुप्पी के बाद, पीछे बैठे एक बुजुर्ग सज्जन ने पूछा: “क्या मैं वायलिन को देख सकता हूँ?” नीलामीकर्ता ने राहत महसूस की कि कोई पुराने वायलिन में दिलचस्पी दिखा रहा है, इसलिए उसने हाँ कह दी। कम से कम उस तार वाले वाद्य को एक नया मालिक और नया घर मिलने की संभावना बन रही थी। एक उस्ताद का स्पर्श बूढ़ा आदमी पीछे की सीट से उठा, धीरे-धीरे आगे की ओर चला, और पुराने वायलिन की सावधानीपूर्वक जांच की। अपना रूमाल निकालकर, उसने उसकी सतह को झाड़ा और जब तक कि एक-एक करके, वे सारे तार सही स्वर में आ गए, तब तक प्रत्येक तार को धीरे-धीरे ट्यून किया। आखिरकार, और केवल तभी, उसने पुराने वायलिन को अपनी ठोड़ी और बाएं कंधे के बीच रखा, अपने दाहिने हाथ से गज़ को उठाया, और संगीत का एक अंश बजाना शुरू किया। पुराने वायलिन से निकलने वाला प्रत्येक संगीत स्वर कमरे में सन्नाटे को भेदता हुआ हवा में खुशी से नाच रहा था। सभी चकित रह गए, और उन्होंने वाद्य से निकल रहे संगीत के कमाल को ध्यान से सुना जो सभी के लिए स्पष्ट था - एक उस्ताद के हाथों का कमाल। उन्होंने एक परिचित शास्त्रीय भजन बजाया। धुन इतनी सुंदर थी कि इसने नीलामी में मौजूद सभी लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया और वे अचंभित रह गए। उन्होंने कभी किसी को इतना सुंदर संगीत बजाते हुए नहीं सुना था या देखा भी नहीं था, एक पुराने वायलिन पर तो बिल्कुल भी नहीं। और उन्होंने एक पल के लिए भी नहीं सोचा था कि नीलामी फिर से शुरू होने पर इससे उन्हें खूब मज़ा आएगा। उन्होंने उस वायलिन को बजाना समाप्त किया और शांत भाव से उसे नीलामीकर्ता को लौटा दिया। इससे पहले कि नीलामीकर्ता कमरे में मौजूद सभी लोगों से पूछ पाता कि क्या वे अब भी इसे खरीदना चाहेंगे, हाथ उठाने की होड़ लग गई। अचानक से किए गए इस शानदार प्रदर्शन के बाद हर कोई तुरंत इसे चाहता था। कुछ समय पहले तक एक अवांछित वस्तु से, पुराना वायलिन अचानक नीलामी की सबसे तीव्र बोली का केंद्र बन गया। 20 डॉलर की शुरुआती बोली से, कीमत तुरंत 500 डॉलर तक बढ़ गई। अंततः उस पुराने वायलिन को 10,000 डॉलर में बेचा गया, जो इसकी सबसे कम कीमत से 500 गुना अधिक था। आश्चर्यजनक परिवर्तन पुराने वायलिन को सबकी नापसंद वास्तु से सबकी पसंदीदा और नीलामी का सितारा बनने में केवल 15 मिनट लगे। और इसके तारों को ट्यून करने और एक अद्भुत धुन बजाने के लिए एक उस्ताद संगीतकार की ज़रूरत पड़ी। उसने दिखाया कि जो बाहर से बदसूरत लग रहा था, वास्तव में उस वाद्य यंत्र के अंदर एक सुंदर और अमूल्य आत्मा थी। शायद, पुराने वायलिन की तरह, हमारे जीवन का पहले तो कोई खास मूल्य नहीं लगता। लेकिन अगर हम उन्हें येशु को सौंप दें, जो सभी उस्तादों से ऊपर उस्ताद हैं, तो वे हमारे ज़रिए सुंदर गीत बजाने में सक्षम होंगे और उनकी धुनें श्रोताओं को और भी ज़्यादा चौंका देंगी। तब हमारा जीवन दुनिया का ध्यान आकर्षित करेगा। तब हर कोई उस संगीत को सुनना चाहेगा जिसे प्रभु येशु हमारे जीवन से उत्पन्न करते हैं। इस पुराने वायलिन की कहानी मुझे मेरी अपनी कहानी की याद दिलाती है। मैं भी उस पुराने वायलिन की तरह ही था और किसी ने नहीं सोचा था कि मैं किसी काम का हो सकता हूँ या अपने जीवन में कुछ सार्थक कर सकता हूँ। वे मुझे ऐसे देखते थे जैसे मेरा कोई मूल्य ही न हो। हालाँकि, येशु को मुझ पर दया आ गई। वह पलटा, मेरी ओर देखा और मुझसे पूछा: "पीटर, तुम अपने जीवन में क्या करना चाहते हो?" मैंने कहा: "गुरुवर, आप कहाँ रहते हैं?" "आओ और देखो," येशु ने उत्तर दिया। इसलिए मैं आया और देखा कि वह कहाँ रहते हैं, और मैं उनके साथ रहा। पिछले 16 जुलाई को, मैंने अपने पुरोहिताई अभिषेक की 30-वीं वर्षगांठ मनाई। मेरे लिए येशु के महान प्रेम को जानने और अनुभव करने के लिए... मैं उनका कितना धन्यवाद कर सकता हूँ? उन्होंने पुराने वायलिन को कुछ नया बना दिया है और उसे बहुत मूल्यवान बना दिया है। हे प्रभु, हमारा जीवन भी उस पुराने वायलिन की तरह तेरा संगीत वाद्य बन जाए, ताकि हम ऐसा सुंदर संगीत बना सकें जिसे लोग तेरे अद्भुत प्रेम के लिए धन्यवाद और प्रशंसा देते हुए हमेशा गा सकें।
By: फादर पीटर हंग ट्रान
Moreएक कैथलिक के रूप में, मुझे सिखाया गया था कि क्षमा करना ईसाई धर्म के पोषित मूल्यों में से एक है, फिर भी मैं इसका अभ्यास करने के लिए संघर्ष करती हूँ। संघर्ष जल्द ही एक बोझ बन गया, क्योंकि मैंने क्षमा करने में अपनी असमर्थता पर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया। पाप स्वीकार संस्कार के दौरान, पुरोहित ने येशु मसीह की क्षमा की ओर इशारा किया: "उसने न केवल उन्हें क्षमा किया, बल्कि उनके उद्धार के लिए प्रार्थना की।" येशु ने कहा: "हे पिता, उन्हें क्षमा कर, क्योंकि वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं।" येशु की यह प्रार्थना अक्सर उपेक्षित अंश को प्रकट करती है। यह स्पष्ट रूप से उजागर करता है कि येशु की निगाह सैनिकों के दर्द या क्रूरता पर नहीं थी, बल्कि सच्चाई के बारे में उनके ज्ञान की कमी पर थी। येशु ने उनकी मध्यस्थता करने के लिए इस अंश को चुना। मुझे यह संदेश मिला कि दूसरे व्यक्ति और यहाँ तक कि खुद के अज्ञात अंशों को जगह देने से मेरी क्षमा अंकुरित होनी चाहिए। अब मैं हल्का और अधिक खुश महसूस करती हूँ क्योंकि पहले, मैं केवल ज्ञात कारकों से निपट रही थी - दूसरों द्वारा पहुँचाई गई चोट, उनके द्वारा बोले गए शब्द और दिलों और रिश्तों का टूटना। येशु ने मेरे लिए क्षमा के द्वार पहले ही खुले छोड़ दिए हैं, मुझे केवल अपने और दूसरों के भीतर के अज्ञात अंशों को विनम्रतापूर्वक स्वीकार करने के इस मार्ग पर चलना है। जब येशु हमें अतिरिक्त मील चलने के लिए आमंत्रित करते हैं, तब येशु का यह कथन हमारे लिए अज्ञात अंशों के बारे में जागरूकता के अर्थ की परतें जोड़ता है। मुझे लगा कि क्षमा करना एक ऐसी यात्रा है जो क्षमा करने के कार्य से शुरू होकर एक ईमानदार मध्यस्थता तक जाती है। जिन्होंने मुझे चोट पहुंचाई है, उन लोगों की भलाई के लिए प्रार्थना करके, गेथसेमेन के माध्यम से मेरा चलना ही अतिरिक्त मील चलने का यह क्षण है। और यह प्रभु की इच्छा के प्रति मेरा पूर्ण समर्पण है। प्रभु ने सभी को अनंत काल के लिए प्रेमपूर्वक बुलाया है और मैं कौन हूँ जो अपने अहंकार और आक्रोश के साथ बाधा उत्पन्न करूँ? अपने दिलों को अज्ञात अंशों के लिए खोलने से एक दूसरे के साथ हमारे संबंधों को सुधारता है और हमें ईश्वर के साथ एक गहरे रिश्ते की ओर ले जाता है, जिससे हमें और दूसरों को उनकी प्रचुर शांति और स्वतंत्रता तक पहुँच मिलती है।
By: एमिली संगीता
Moreरोम..., संत पेत्रुस का महागिरजाघर जाना, संत पापा से मुलाक़ात करना ... क्या जीवन इससे ज़्यादा घटनापूर्ण हो सकता है? हाँ, मैंने पाया कि यह हो सकता है। रोम की यात्रा के दौरान कैथलिक धर्म में मेरा धर्मांतरण हुआ। मैं भाग्यशाली थी कि वहां मैं अपनी स्नातक की पढ़ाई के सिलसिले में गयी थी। जिस कैथलिक विश्वविद्यालय में मैंने अध्ययन किया था, उस विश्वविद्यालय ने यात्रा के हिस्से के रूप में संत पापा फ्रांसिस के साथ कुछ मुलाक़ातों का आयोजन किया था। एक शाम, मैं संत पेत्रुस महागिरजाघर में बैठी थी, लाउडस्पीकर पर लातीनी भाषा में रोज़री माला की प्रार्थना सुन रही थी, जबकि मैं गिरजाघर में आराधना शुरू होने का इंतज़ार कर रही थी। हालाँकि मैं उस समय लातीनी नहीं समझती थी, न ही मुझे पता था कि रोज़री क्या है, मैंने किसी तरह प्रार्थना को पहचान लिया। वह एक रहस्यमय तल्लीनता का क्षण था जिसने अंततः मुझे माँ मरियम की मध्यस्थता के माध्यम से अपना पूरा जीवन येशु को सौंपने के लिए प्रेरित किया। इससे मेरे धर्मांतरण की एक यात्रा शुरू हुई, जो एक साल बाद कैथलिक कलीसिया में मेरे बपतिस्मा में परिणत हुई, और कुछ ही समय बाद वह एक प्रेम कहानी में परिणत हुई। खोज के क्षण मैंने पाया कि मैं धीरे-धीरे येशु के साथ अपने रिश्ते की नींव बना रही हूँ, इस प्रक्रिया में अनजाने में मरियम की नकल कर रही हूँ। मसीह के साथ अपने संबंध को गहरा करने की कोशिश करते हुए मैंने प्रार्थना में उनके चरणों में घुटने टेके, जैसा कि मरियम ने कलवारी में किया होगा। मैं आज भी इस अभ्यास को जारी रखती हूँ, येशु के चेहरे, उनके घावों, उनकी कमज़ोरियों और उनकी पीड़ा का अध्ययन करती हूँ। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मैं उन्हें सांत्वना देने के लिए हर दिन उनसे मिलती हूँ क्योंकि मैं उनके क्रूस पर अकेले होने के विचार को सहन नहीं कर सकती। उनके दु:ख पर ध्यान लगाने से, मैं पाती हूँ कि मैं आज हमारे अंदर बसनेवाले जीवित मसीह के महत्व को और अधिक गहराई से समझ सकती हूँ। जब मैंने खुद को इस अभ्यास के लिए समर्पित किया, तो मैंने महसूस किया कि येशु मेरी दैनिक प्रार्थनाओं में मेरा इंतज़ार कर रहे हैं, मेरी वफ़ादारी के लिए तरस रहे हैं, और मेरी संगति की तलाश में हैं। जितना अधिक मैंने उन्हें मौन प्रार्थना में थामे रखा, उतना ही अधिक मैं अपने जीवन और दूसरों के जीवन के लिए येशु द्वारा चुकाई गई कीमत के लिए गहरा दु:ख और शोक महसूस करने लगी। मैंने उनके लिए आँसू बहाए। मैंने उन्हें अपने दिल में कैद कर लिया। अपने बेटे के लिए मरियम की कोमल देखभाल को प्रतिबिंबित करते हुए मैंने प्रार्थना में उन्हें सांत्वना दी। येशु को क्रूस पर ले जाने वाले बलिदानी प्रेम की अनुभूति ने मेरे भीतर गहरी मातृ भावनाएँ जगाईं, जिससे मुझे सब कुछ उनके प्रति समर्पित करने के लिए मजबूर होना पड़ा। माँ मरियम की कृपा से, जैसे हमारा रिश्ता खिल उठा, मैंने खुद को पूरी तरह से येशु को समर्पित कर दिया, जिससे उन्हें मुझे बदलने की अनुमति मिली। समर्पण जब दो साल पहले मुझे बहुत बड़ा नुकसान हुआ, तो मैंने इस दैनिक अभ्यास को जारी रखा, हालाँकि मेरे दुःख का केंद्र बदल गया था। मैंने जो आँसू बहाए, वे अब उसके लिए नहीं बल्कि अपने लिए थे। मैं अपने पूर्ण संकट और निराशा में हमारे प्रभु के चरणों में गिरने के अलावा कुछ नहीं कर सकती थी, चाहे मैं कितना भी स्वार्थी क्यों न महसूस कर रही थी। तब ईश्वर ने मुझे दिखाया कि कैसे प्रार्थना में उनके बलिदान की साक्षी बनने से ही नहीं, बल्कि उनकी दु:ख पीड़ा में प्रवेश करके भी मुक्तिदायक पीड़ा को साझा किया जा सकता है। अचानक, उनका दुख मेरे लिए अब बाहरी नहीं रहा, बल्कि कुछ ऐसा था जो इतना अंतरंग था कि मैं क्रूस पर मसीह के साथ एक हो गयी। मैं अब अपने दुख में अकेली नहीं थी। बदले में, मैं ने पहचानना की मेरे साथ वे थे जिन्होंने मुझे मौन प्रार्थना में सहारा दिया, जिन्होंने मेरे लिए शोक किया और मेरे दुख को साझा किया। उन्होंने मेरे लिए आँसू बहाए और अपना दिल खोल दिया जहाँ मैं पीछे हट गयी और उनकी कैदी बन गयी। मैं उसके प्यार में बंदी थी। असहज मार्ग पर यात्रा मरियम का अनुकरण करने से हमे सीधे येशु के हृदय की ओर पहुँच जाते हैं, जो हमें सच्चे पश्चाताप और उनके प्रेम से प्रवाहित होने वाली असीम दया का सार सिखाता है। यह यात्रा चुनौतीपूर्ण हो सकती है, जिसके लिए हमें मसीह के क्रूस के बोझ को साझा करना होगा। फिर भी, हमारे परीक्षणों और दु:खों के माध्यम से, हम उनकी आरामदायक उपस्थिति में सांत्वना पा सकते हैं, यह जानते हुए कि वे हमें कभी नहीं छोड़ते। मरियम के आदर्श का अनुसरण करके, हम उन्हें अपने प्रभु और उद्धारकर्ता येशु के साथ हमारे संबंध को गहरा करने और उनके मुक्तिदायी दु:ख को साझा करने में हमारा मार्गदर्शन करने के लिए आमंत्रित करते हैं। ऐसा करने से, हम उन लोगों के दर्द और पीड़ा के लिए जीवित शहीद बन जाते हैं जो अभी तक मसीह से नहीं मिले हैं, और उसी प्रक्रिया में, हम स्वयं ठीक हो जाते हैं। अपने बेटे के लिए मरियम के मातृ प्रेम का जब हम अनुकरण करते हैं, तो हम उनके दु:ख के सार के करीब आते हैं और उनकी उपचारात्मक कृपा के पात्र बन जाते हैं। मसीह के साथ एकता में अपने स्वयं के दुखों को अर्पित करने के माध्यम से, हम उनके प्रेम और करुणा के जीवित गवाह बन जाते हैं, जो उन लोगों को सांत्वना देते हैं जो अभी तक उनसे नहीं मिले हैं। इस पवित्र प्रक्रिया में, हम अपने लिए उपचार पाते हैं और ईश्वर की दया के साधन बनते हैं, जरूरतमंदों तक उनका प्रकाश फैलाते हैं। इसी तरह, हम अपने जीवन में क्रूस को साहस के साथ गले लगाना सीखते हैं, यह जानते हुए कि वे मसीह के साथ एक गहरे मिलन के मार्ग हैं। मरियम की मध्यस्थता के माध्यम से, उस बलिदानी प्रेम की गहन समझ की ओर हमारा मार्गदर्शन किया जाता है जिसके कारण येशु ने हमारे लिए अपना जीवन दे दिया। जब हम शिष्यत्व के मार्ग पर चलते हैं, और मरियम के पदचिन्हों पर चलते हैं, तो हमारे जीवन में उपचार और मुक्ति लाने के लिए उनकी परिवर्तनकारी शक्ति पर भरोसा करते हुए अपने दु:खों और संघर्षों को येशु को अर्पित करने के लिए हमें कहा जाता है।
By: फ़ियोना मैककेना
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