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नवम्बर 03, 2023 195 0 Emily Shaw, Australia
Evangelize

बौद्धिक विश्वास से व्यावहारिक विश्वास तक

मेरे सामने एक पुरुष का सिर और कंधा दिखाई दे रहा था, और इस पुरुष का बाल कन्धों तक लटका हुआ था और उसके माथे के ऊपर कुछ लकीरें थीं |

शाम हो चुकी थी| मैं उस तात्कालिक प्रार्थनालय में बैठी थी जिसे हमने वार्षिक धर्मप्रान्तीय युवा आत्मिक साधना के लिए खड़ा किया था। मैं थक गयी थी। सप्ताह के अंत के तीन दिवसीय कार्यक्रम के आयोजन से, युवा सेवकाई में कार्यकर्ता के रूप में अपनी जिम्मेदारियों से; और इसके अलावा मेरी गर्भावस्था की पहली तिमाही के कारण मैं पूरी तरह थक चुकी थी।

मैं परम प्रसाद की आराधना में यह घंटा बिताने केलिए स्वयं आगे आयी थी। चौबीस घंटे की आराधना का अवसर साधना में भाग लेने वालों के लिए एक बड़ा आकर्षण था। युवाओं को परमेश्वर के साथ समय बिताते हुए देखना मेरे लिए भी एक गहन अनुभव था।

लेकिन मैं थक चुकी थी| मैं जानती थी कि मुझे यहां समय बिताना चाहिए और फिर भी, मुझे लगा कि समय धीरे धीरे सरकता जा रहा है । मैं अपने विश्वास की कमी के लिए खुद को डांटती रही । यहाँ मैं येशु की उपस्थिति में थी, और मैं इतनी थक गयी थी कि अपनी थकावट के आलावा मुझे और कुछ नहीं सूझ रही थी| मैं वहां बिना सोची समझी बैठी थी और मुझे आश्चर्य होने लगा कि क्या मेरा विश्वास बौद्धिक स्तर पर ही सीमित है या उससे अधिक कुछ है । अर्थात विश्वास की बातें मैं केवल दिमाग से जानती थी दिल से नहीं |

मेरा जीवन एक नए मोड़ पर

बीते समय को देखें तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए थी। मैं हमेशा से कुछ हद तक अकादमिक विचारधारा वाली रही हूं-मुझे सीखना पसंद है। जीवन के महत्वपूर्ण और गहन विषयों को पढ़ने और उन पर चर्चा करने से मेरी आत्मा को प्रेरणा मिलती है । दूसरों के विचारों और राय को सुनने से जिस दुनिया में हम रहते हैं, उस दुनिया पर विचार करने या उस पर पुनर्विचार करने का मुझे अवसर मिलता है।

सीखने की इस जूनून के चलते ही मैं कैथलिक आस्था में गहराई से डूबती चली गयी। मैं इसे ‘वापसी’ कहने में संकोच करती हूं क्योंकि मैंने अपनीआस्था का अभ्यास कभी नहीं छोड़ा था, लेकिन मैं निश्चित रूप से सतही स्तर की कैथलिक थी।

हाई स्कूल की पढ़ाई के उपरांत कॉलेज जीवन के मेरे पहले वर्ष के दौरान, मेरे जीवन की दिशा अचानक बदल गयी। मेरे बचपन की पल्ली में एक धर्म समाज की साध्वी लोग आयीं और धार्मिक शिक्षा का कार्य उन लोगों ने संभाला। कैथलिक शिक्षा और सुसमाचार-प्रचार के लिए उनका उत्साह अद्भुत था – उनके उपदेशों के कारण और उनके साथ नियमित बातचीत के कारण एक पक्का कैथलिक होने का मेरा दंभ टूट गया।

जल्द ही मैं कैथलिक धर्म की एक उत्साही और जिज्ञासु छात्रा बन गयी। जितना अधिक मैंने सीखा उतना ही अधिक मुझे एहसास हुआ कि मुझे और सीखने की आवश्यकता है। इस समझ ने मुझे नम्र और ऊर्जावान व्यक्ति बनाया।
मैंने सोमवार से लेकर शनिवार तक मिस्सा बलिदान में भाग लिया। सप्ताह भर पवित्र संस्कार की आराधना और प्रार्थना सभाएं मेरे रोजमर्रा के कार्यक्रम में शामिल हो गयीं और मैंने आत्मिक साधना में भी भाग लेना शुरू किया। इन सबकी सुखद परिसमाप्ति अंतर्राष्ट्रीय विश्व युवा दिवस में मेरी भागीदारी से हुई। मैंने पुरोहिताभिषेक की धर्मविधि, तेलों के अभिषेक का पवित्र मिस्सा आदि समारोहों में भाग लेकर उन सबका आनंद लिया। अधिकांशतः मैं स्वयं ही इनमें भाग लेती थी।

अप्राप्त कड़ी ?

मैंने अपने विश्वास के बारे में ज्ञान बढ़ाया| पत्रकारिता और युवा सेवकाई कार्य के माध्यम से मैंने अपनी बुलाहट को समझा । मैंने विश्वविद्यालय की डिग्रियाँ बदलीं, उस शख्स से मिली जो अब मेरे पति हैं , और मातृत्व की नयी बुलाहट की शुरुआत की|

और फिर भी, विश्वास में डुबकी लेने के पांच साल बाद भी, मेरा विश्वास व्यावहारिक कम बल्कि अकादमिक या बौद्धिक अधिक था। जो ज्ञान मैंने अर्जित किया था वह अभी तक मेरी आत्मा में उतरना शुरू नहीं हुआ था। मैंने वही किया जिसे दुनिया की नज़र में पूरा करने की आवश्यकता थी, लेकिन मैंने अपने हृदय में परमेश्वर के प्रति उस अगाध प्रेम को ‘महसूस’ नहीं किया।

मै इस आस्था सम्बन्धी कार्य को बाकी कार्यों के समान बस निभा रही थी। इस थकावट से तंग आकर फिर मैंने वही किया जो मुझे शुरू से ही करना चाहिए था। मैंने येशु से मदद मांगी। मैंने येशु से प्रार्थना की कि वह मेरे विश्वास को, और उसके प्रति मेरे प्यार को वास्तविक और मूर्तरूप देने में मदद करे।

परछाइयाँ बढ़ती गईं, और पवित्र संस्कार की सोने से अलंकृत प्रदर्शिका के दोनों ओर की मोमबत्तियाँ टिमटिमाने लगीं। मैं अपने प्रभु की ओर निहारती रही, अपने मन को केवल उसी पर केंद्रित रखने की कोशिश करती रही।

उसकी उपस्थिति में प्राप्त प्रेम और आनंद

पवित्र संस्कार पर छा रही परछाइयों से उसकी दाहिनी ओर एक अद्भुत तस्वीर उभरती गयी जो हमारे प्रभु येशु ख्रीस्त के समान प्रतीत हो रही थी। यह उन पुराने विक्टोरियन प्रोफ़ाइल चित्रों जैसा था, जो परछाई में प्रभु के चेहरे की छवि जैसी स्पष्ट तस्वीर थी।

मेरे सामने एक पुरुष का सिर और कंधा दिखाई दे रहा था, उसका सिर झुका हुआ था और वह बाईं ओर देख रहा था। पृष्ठभूमि की कुछ परछाइयों ने मिलकर अस्पष्ट आकृतियाँ बना ली थीं और इसमें कोई संदेह नहीं था कि इस पुरुष का बाल कन्धों तक लटका हुआ था और उसके माथे के ऊपर कुछ लकीरें थीं।

यह वही था। क्रूस पर लटकाया गया प्रभु। वहाँ, पवित्र संस्कार की प्रदर्शिका पर, येशु की वास्तविक उपस्थिति को अतिव्यापित करते हुए, मेरे उद्धारकर्ता की छायादार रूपरेखा थी, जो क्रूस पर मेरे लिए अपना प्यार बरसा रहा था। और मैं उसके प्रेम और आनंद में सराबोर थी |

प्रेम में सुस्थिर

मैं इतनी अभिभूत और अचंभित हो गयी थी कि मैंने प्रभु के साथ निर्धारित समय से अधिक समय बिताया। मेरी थकान दूर हो गई और मैं प्रभु की प्रेममय उपस्थिति का आनंद लेना चाहती थी। मैं कभी भी येशु से उतना प्यार नहीं कर सकती जितना वह मुझसे प्यार करता है, लेकिन मैं नहीं चाहती कि वह कभी भी मेरे प्यार पर संदेह करे।

पंद्रह साल पहले की उस शाम, प्रभु येशु ने हमारे विश्वास पर एक महत्वपूर्ण सच्चाई प्रदर्शित की थी और वह यह थी कि यदि हमारा विश्वास उसके प्रेम में सुरक्षित रूप से सुस्थिर नहीं है तो वह फलदायी नहीं है।
कुछ बातें जो सही हैं उन्हें वैसा करना सही है, लेकिन उन्हीं बातों को परमेश्वर के प्रेम के लिए करना इस संदर्भ में और भी सार्थक हो जाता है |

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Emily Shaw

Emily Shaw ऑस्ट्रेलियाई कैथलिक प्रेस एसोसिएशन की पुरस्कार विजेता संपादक रह चुकी हैं, जो कि अब Youngcatholicmums.com के लिए ब्लॉग लिखा करती है और कैथलिक-लिंक में अपने लेखों द्वारा योगदान करती हैं। वह गृहणी सात बच्चों की मां हैं। वह ग्रामीण ऑस्ट्रेलिया में रहती है और अपनी स्थानीय कैथलिक समुदाय में आध्यात्मिक मदद करना पसंद करती हैं।

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