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मेरे सामने एक पुरुष का सिर और कंधा दिखाई दे रहा था, और इस पुरुष का बाल कन्धों तक लटका हुआ था और उसके माथे के ऊपर कुछ लकीरें थीं |
शाम हो चुकी थी| मैं उस तात्कालिक प्रार्थनालय में बैठी थी जिसे हमने वार्षिक धर्मप्रान्तीय युवा आत्मिक साधना के लिए खड़ा किया था। मैं थक गयी थी। सप्ताह के अंत के तीन दिवसीय कार्यक्रम के आयोजन से, युवा सेवकाई में कार्यकर्ता के रूप में अपनी जिम्मेदारियों से; और इसके अलावा मेरी गर्भावस्था की पहली तिमाही के कारण मैं पूरी तरह थक चुकी थी।
मैं परम प्रसाद की आराधना में यह घंटा बिताने केलिए स्वयं आगे आयी थी। चौबीस घंटे की आराधना का अवसर साधना में भाग लेने वालों के लिए एक बड़ा आकर्षण था। युवाओं को परमेश्वर के साथ समय बिताते हुए देखना मेरे लिए भी एक गहन अनुभव था।
लेकिन मैं थक चुकी थी| मैं जानती थी कि मुझे यहां समय बिताना चाहिए और फिर भी, मुझे लगा कि समय धीरे धीरे सरकता जा रहा है । मैं अपने विश्वास की कमी के लिए खुद को डांटती रही । यहाँ मैं येशु की उपस्थिति में थी, और मैं इतनी थक गयी थी कि अपनी थकावट के आलावा मुझे और कुछ नहीं सूझ रही थी| मैं वहां बिना सोची समझी बैठी थी और मुझे आश्चर्य होने लगा कि क्या मेरा विश्वास बौद्धिक स्तर पर ही सीमित है या उससे अधिक कुछ है । अर्थात विश्वास की बातें मैं केवल दिमाग से जानती थी दिल से नहीं |
बीते समय को देखें तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए थी। मैं हमेशा से कुछ हद तक अकादमिक विचारधारा वाली रही हूं-मुझे सीखना पसंद है। जीवन के महत्वपूर्ण और गहन विषयों को पढ़ने और उन पर चर्चा करने से मेरी आत्मा को प्रेरणा मिलती है । दूसरों के विचारों और राय को सुनने से जिस दुनिया में हम रहते हैं, उस दुनिया पर विचार करने या उस पर पुनर्विचार करने का मुझे अवसर मिलता है।
सीखने की इस जूनून के चलते ही मैं कैथलिक आस्था में गहराई से डूबती चली गयी। मैं इसे ‘वापसी’ कहने में संकोच करती हूं क्योंकि मैंने अपनीआस्था का अभ्यास कभी नहीं छोड़ा था, लेकिन मैं निश्चित रूप से सतही स्तर की कैथलिक थी।
हाई स्कूल की पढ़ाई के उपरांत कॉलेज जीवन के मेरे पहले वर्ष के दौरान, मेरे जीवन की दिशा अचानक बदल गयी। मेरे बचपन की पल्ली में एक धर्म समाज की साध्वी लोग आयीं और धार्मिक शिक्षा का कार्य उन लोगों ने संभाला। कैथलिक शिक्षा और सुसमाचार-प्रचार के लिए उनका उत्साह अद्भुत था – उनके उपदेशों के कारण और उनके साथ नियमित बातचीत के कारण एक पक्का कैथलिक होने का मेरा दंभ टूट गया।
जल्द ही मैं कैथलिक धर्म की एक उत्साही और जिज्ञासु छात्रा बन गयी। जितना अधिक मैंने सीखा उतना ही अधिक मुझे एहसास हुआ कि मुझे और सीखने की आवश्यकता है। इस समझ ने मुझे नम्र और ऊर्जावान व्यक्ति बनाया।
मैंने सोमवार से लेकर शनिवार तक मिस्सा बलिदान में भाग लिया। सप्ताह भर पवित्र संस्कार की आराधना और प्रार्थना सभाएं मेरे रोजमर्रा के कार्यक्रम में शामिल हो गयीं और मैंने आत्मिक साधना में भी भाग लेना शुरू किया। इन सबकी सुखद परिसमाप्ति अंतर्राष्ट्रीय विश्व युवा दिवस में मेरी भागीदारी से हुई। मैंने पुरोहिताभिषेक की धर्मविधि, तेलों के अभिषेक का पवित्र मिस्सा आदि समारोहों में भाग लेकर उन सबका आनंद लिया। अधिकांशतः मैं स्वयं ही इनमें भाग लेती थी।
मैंने अपने विश्वास के बारे में ज्ञान बढ़ाया| पत्रकारिता और युवा सेवकाई कार्य के माध्यम से मैंने अपनी बुलाहट को समझा । मैंने विश्वविद्यालय की डिग्रियाँ बदलीं, उस शख्स से मिली जो अब मेरे पति हैं , और मातृत्व की नयी बुलाहट की शुरुआत की|
और फिर भी, विश्वास में डुबकी लेने के पांच साल बाद भी, मेरा विश्वास व्यावहारिक कम बल्कि अकादमिक या बौद्धिक अधिक था। जो ज्ञान मैंने अर्जित किया था वह अभी तक मेरी आत्मा में उतरना शुरू नहीं हुआ था। मैंने वही किया जिसे दुनिया की नज़र में पूरा करने की आवश्यकता थी, लेकिन मैंने अपने हृदय में परमेश्वर के प्रति उस अगाध प्रेम को ‘महसूस’ नहीं किया।
मै इस आस्था सम्बन्धी कार्य को बाकी कार्यों के समान बस निभा रही थी। इस थकावट से तंग आकर फिर मैंने वही किया जो मुझे शुरू से ही करना चाहिए था। मैंने येशु से मदद मांगी। मैंने येशु से प्रार्थना की कि वह मेरे विश्वास को, और उसके प्रति मेरे प्यार को वास्तविक और मूर्तरूप देने में मदद करे।
परछाइयाँ बढ़ती गईं, और पवित्र संस्कार की सोने से अलंकृत प्रदर्शिका के दोनों ओर की मोमबत्तियाँ टिमटिमाने लगीं। मैं अपने प्रभु की ओर निहारती रही, अपने मन को केवल उसी पर केंद्रित रखने की कोशिश करती रही।
पवित्र संस्कार पर छा रही परछाइयों से उसकी दाहिनी ओर एक अद्भुत तस्वीर उभरती गयी जो हमारे प्रभु येशु ख्रीस्त के समान प्रतीत हो रही थी। यह उन पुराने विक्टोरियन प्रोफ़ाइल चित्रों जैसा था, जो परछाई में प्रभु के चेहरे की छवि जैसी स्पष्ट तस्वीर थी।
मेरे सामने एक पुरुष का सिर और कंधा दिखाई दे रहा था, उसका सिर झुका हुआ था और वह बाईं ओर देख रहा था। पृष्ठभूमि की कुछ परछाइयों ने मिलकर अस्पष्ट आकृतियाँ बना ली थीं और इसमें कोई संदेह नहीं था कि इस पुरुष का बाल कन्धों तक लटका हुआ था और उसके माथे के ऊपर कुछ लकीरें थीं।
यह वही था। क्रूस पर लटकाया गया प्रभु। वहाँ, पवित्र संस्कार की प्रदर्शिका पर, येशु की वास्तविक उपस्थिति को अतिव्यापित करते हुए, मेरे उद्धारकर्ता की छायादार रूपरेखा थी, जो क्रूस पर मेरे लिए अपना प्यार बरसा रहा था। और मैं उसके प्रेम और आनंद में सराबोर थी |
मैं इतनी अभिभूत और अचंभित हो गयी थी कि मैंने प्रभु के साथ निर्धारित समय से अधिक समय बिताया। मेरी थकान दूर हो गई और मैं प्रभु की प्रेममय उपस्थिति का आनंद लेना चाहती थी। मैं कभी भी येशु से उतना प्यार नहीं कर सकती जितना वह मुझसे प्यार करता है, लेकिन मैं नहीं चाहती कि वह कभी भी मेरे प्यार पर संदेह करे।
पंद्रह साल पहले की उस शाम, प्रभु येशु ने हमारे विश्वास पर एक महत्वपूर्ण सच्चाई प्रदर्शित की थी और वह यह थी कि यदि हमारा विश्वास उसके प्रेम में सुरक्षित रूप से सुस्थिर नहीं है तो वह फलदायी नहीं है।
कुछ बातें जो सही हैं उन्हें वैसा करना सही है, लेकिन उन्हीं बातों को परमेश्वर के प्रेम के लिए करना इस संदर्भ में और भी सार्थक हो जाता है |
Emily Shaw ऑस्ट्रेलियाई कैथलिक प्रेस एसोसिएशन की पुरस्कार विजेता संपादक रह चुकी हैं, जो कि अब Youngcatholicmums.com के लिए ब्लॉग लिखा करती है और कैथलिक-लिंक में अपने लेखों द्वारा योगदान करती हैं। वह गृहणी सात बच्चों की मां हैं। वह ग्रामीण ऑस्ट्रेलिया में रहती है और अपनी स्थानीय कैथलिक समुदाय में आध्यात्मिक मदद करना पसंद करती हैं।
आप चाहे जिस भी परिस्थिति से गुज़र रहे हों, परमेश्वर वहाँ भी रास्ता बना देगा जहाँ कोई रास्ता नज़र नहीं आता… आज, मेरा बेटा आरिक अपनी श्रुतलेख की कॉपी (डिक्टेशन बुक) लेकर घर आया। उसे 'अच्छा' टिप्पणी के साथ लाल सितारा मिला। शायद यह किंडरगार्टन में पढनेवाले किसी बच्चे के लिए कोई बड़ी बात नहीं हो सकती है, लेकिन हमारे लिए, यह एक शानदार उपलब्धि है। स्कूल जैसे आरम्भ हुआ, पहले सप्ताह में ही, मुझे उसके क्लास टीचर का फोन आया। मेरे पति और मैं इस कॉल से घबरा गए। जब मैंने उसके शिक्षक को उसके संचार कौशल की कमी के बारे में समझाने की बहुत कोशिश की, तो मैंने कबूल किया था कि जब मैं विकलांगता के साथ जन्मी उसकी बड़ी बहन की विशेष ज़रूरतों की परवाह और देखभाल करती थी, तो मैं मुझसे बिन मांगे ही उसकी ज़रूरतों की पूर्ती केलिए काम करने की आदत में पड़ गई थी। चूँकि आरिक की दीदी एक भी शब्द नहीं बोल पाती थी, इसलिए मुझे उसकी ज़रूरतों का अंदाज़ा लगाना पड़ता था। आरिक के जीवन के शुरुआती दिनों में उसके लिए भी यही तरीका जारी था। इससे पहले कि वह पानी मांगे, मैं उसे पानी पिला देती। हमारे बीच एक ऐसा रिश्ता था जिसे शब्दों की ज़रूरत नहीं थी, यह प्यार की भाषा थी, या ऐसा मुझे लगता था। लेकिन चीज़ें मेरी सोच से बिलकुल उलटकर आ गयी , मैं पूरी तरह से गलत थी! थोड़ी देर बाद, जब उसका छोटा भाई अब्राम तीन महीने का हो गया, तो मुझे स्कूल में काउंसलर से मिलने के लिए फिर से वही भारी कदम उठाने पड़े। इस बार, यह आरिक के खराब लेखन कौशल के बारे में था। उसकी प्यारी क्लास टीचर घबरा गई जब उसने देखा कि उसने अपनी पेंसिल टेबल पर रख दी और ज़िद करते हुए अपने हाथ जोड़ लिए जैसे कि कह रहा हो: “मैं नहीं लिखूँगा।” हमें इसका भी डर था। उसकी छोटी बहन अक्षा दो साल की उम्र में ही लिखने में माहिर थी, लेकिन आरिक पेंसिल भी नहीं पकड़ना चाहता था। उसे लिखना बिल्कुल पसंद नहीं था। पहला कदम काउंसलर से निर्देश प्राप्त करने के बाद, मैं प्रिंसिपल से मिली, जिन्होंने जोर देकर कहा कि अगर उसकी संचार क्षमता कमज़ोर बनी रही, तो हमें उसका गहन जांच करवानी चाहिए। उन दिनों मैं इसके बारे में सोच भी नहीं सकती थी। हमारे लिए, वह एक चमत्कारी बच्चा था। हमारे पहले बच्चे के साथ हमने बहुत कष्ट झेले थे और उसके बाद तीन गर्भपात हुए, लेकिन आरिक ने सभी बाधाओं को पार कर लिया था। डॉक्टरों ने जो भविष्यवाणी की थी, उसके विपरीत, वह पूर्ण अवधि में पैदा हुआ था। जन्म के समय उसकी महत्वपूर्ण अंग सामान्य थे। "यह बच्चा कुछ ज़्यादा ही बड़ा है!" डॉक्टर ने सी-सेक्शन ऑपरेशन के ज़रिए उसे बाहर लाते हुए कहा। हमने उसे लगभग साँस रोककर कदम दर कदम बढाते देखा, यह प्रार्थना करते हुए कि कुछ भी गलत न हो। आरिक ने जल्द ही अपने सभी मील के पत्थर हासिल कर लिए। हालाँकि, जब वह सिर्फ़ एक साल का था, तो मेरे पिता ने कहा था कि उसे स्पीच थेरेपी की ज़रूरत हो सकती है। सिर्फ एक साल की उम्र में यह जांच करना ठीक नहीं है, ऐसा कहकर मैं ने उस सुझाव को टाल दिया। सच तो यह था कि मेरे पास एक और समस्या का सामना करने की ताकत नहीं थी। हम पहले से ही अपने पहले बच्चे के साथ होने वाली सभी परेशानियों से थक चुके थे। अन्ना का जन्म निर्धारित समय से 27 सप्ताह पहले हुआ था। एन.आई.सी.यू. में कई दिनों तक रहने के बाद, तीन महीने की उम्र में उसे गंभीर मस्तिष्क क्षति का पता चला और उसे मिर्गी के दौरे पड़ने लगे। सभी उपचारों और दवाओं के बाद, हमारी 9 वर्षीय बेटी अभी भी सेरेब्रल पाल्सी और बौद्धिक विकलांगता से जूझ रही है। वह बैठने, चलने या बात करने में असमर्थ है। अनगिनत आशीर्वाद अपरिहार्य को टालने की एक सीमा होती है, इसलिए छह महीने पहले, हम अनिच्छा से आरिक को प्रारंभिक जांच परीक्षण के लिए ले गए। ADHD (अवधानता, अतिसक्रियता-आवेगशीलता) का निदान कठिन था। हमें इसे स्वीकार करने में कठिनाई हुई, लेकिन फिर भी हमने उसे स्पीच थेरेपी की प्रक्रिया से गुज़रने दिया। उस अवसर पर, वह सिर्फ कुछ ही शब्द बोल पा रहा था। कुछ दिन पहले, मैंने आरिक के साथ अस्पताल जाने और पूर्ण गहन जांच करने का साहस जुटाया। उन्होंने कहा कि उसे हल्का ऑटिज़्म है। जब हम जांच की प्रक्रिया से गुजर रहे थे, तो कई सवाल पूछे गए। मुझे आश्चर्य हुआ, इनमें से अधिकांश सवालों के लिए मेरी प्रतिक्रिया थी: "वह ऐसा करने में सक्षम नहीं था, लेकिन अब वह कर सकता है।" प्रभु की स्तुति हो! आरिक के अन्दर विराजमान पवित्र आत्मा की शक्ति से, सब कुछ संभव हुआ। मेरा मानना है कि स्कूल जाने से पहले हर दिन उसके लिए प्रार्थना करने और उसे आशीर्वाद देने से एक बड़ा बदलाव लाया। जब उसने बाइबल की आयतें याद करना शुरू किया तो यह बदलाव क्रांतिकारी था। और सबसे अच्छी बात यह है कि वह उन आयतों को ठीक उसी समय पढ़ता है जब मुझे उनकी ज़रूरत होती है। वास्तव में, परमेश्वर का वचन जीवित और सक्रिय है। मेरा मानना है कि परिवर्तन जारी है। जब भी मैं उदास महसूस करती हूँ, तो परमेश्वर मुझे आश्चर्यचकित कर देता है और उसे एक नया शब्द कहलवाता है। उसके नखरे के बीच, और जब सब कुछ बिखरता हुआ लगता है, मेरी छोटी लड़की, तीन साल की अक्षा, बस मेरे पास आती है और मुझे गले लगाती है और मुझे चूमती है। वह वास्तव में जानती है कि अपनी माँ को कैसे दिलासा देना है। मेरा मानना है कि परमेश्वर निश्चित रूप से हस्तक्षेप करेगा और हमारी सबसे बड़ी बेटी, अन्ना को भी ठीक करेगा, क्योंकि उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं है। परिवर्तन पहले से ही दिखाई दे रहा है - मिर्गी के दौरे की संख्या में काफी कमी आई है। हमारे जीवन की यात्रा में, हो सकता है कि चीजें उम्मीद के मुताबिक न चल रही हों, लेकिन ईश्वर हमें कभी नहीं छोड़ता या त्यागता। ऑक्सीजन की तरह जो ज़रूरी तो है लेकिन अदृश्य है, ईश्वर हमेशा मौजूद है और हमें वह जीवन देता है जिसकी हमें बहुत ज़रूरत है। आइए हम उससे चिपके रहें और अंधेरे में संदेह न करें। हमारी गवाही इस सच्चाई को उजागर करे कि हमारा ईश्वर कितना सुंदर, अद्भुत और प्रेममय है और वह हमें कैसे बदल देता है ताकि हम कहें: "मैं ... था, लेकिन अब मैं ... हूँ।"
By: Reshma Thomas
Moreजब मैं तीन साल की थी तब मेरी ज़िंदगी उलट-पुलट हो गई थी। एक दिन मैं उससे मिली, और उसके बाद सब कुछ बदल गया! तीन साल की उम्र में, मुझे तेज़ बुखार हुआ और उसके बाद अचानक दौरा पड़ा, जिसके बाद मेरे चेहरे पर पक्षाघात के लक्षण दिखने लगे। जब मैं पाँच साल की हुई, तब मेरा चेहरा दिखने में बिगड़ा हुआ लगा। ज़िंदगी सहज नहीं रही। जैसे-जैसे मेरे माता-पिता नए-नए अस्पतालों में जाते रहे, मुझे जो दर्द और मानसिक क्षति हुई, उसे सहना बहुत मुश्किल हो गया—बार-बार पूछे जाने वाले सवाल, अजीबोगरीब नज़रें, हर बार नई दवाओं के प्रभाव और दवा खाने के बाद के बुरे असर… तन्हाई में मुझे अकेले रहना सहज था, क्योंकि विडंबना यह है कि, समूहों में मुझे अकेलापन महसूस होता था। मुझे इतना डर लगता था कि अगर मैं उन्हें देखकर मुस्कुराऊँ तो पड़ोस के बच्चे ज़ोर से रो पड़ेंगे। मुझे याद है कि मेरे पिताजी हर रात घर पर मिठाई लाते थे ताकि मुझे कड़वाहट से भरी अप्रिय दवा पीने में मदद मिल सके। फिजियोथेरेपी सत्रों के लिए अस्पताल के गलियारों में मेरी माँ के साथ साप्ताहिक सैर कभी भी सप्ताहांत की यात्रा नहीं थी - हर बार जब उत्तेजक पदार्थ से कंपन मेरे चेहरे पर पड़ती, तो आँसू बहने लगते। कुछ खूबसूरत व्यक्तित्व थे जिन्होंने मेरे डर और दर्द को शांत किया, जैसे मेरे माता-पिता, जिन्होंने कभी मेरा साथ नहीं छोड़ा। वे मुझे हर संभव अस्पताल ले गए, और हमने कई तरह के उपचार आजमाए। बाद में, जब न्यूरोसर्जरी का सुझाव दिया गया मैंने उन्हें तब भी आशंका से टूटते हुए देखा । जीवन में पहली बार मुझे लगा कि मैं कहीं और जी रही हूँ। मुझे कुछ करना था। इसलिए, कॉलेज के पहले सेमेस्टर में, इसे और सहन न कर पाने के कारण, मैंने दवाएँ बंद करने का फ़ैसला किया। सुंदरता की खोज जब मैंने दवाएँ लेना बंद कर दिया, तो मुझे अपने दम पर मेरे जीवन का निर्माण करने की तीव्र इच्छा हुई। मैंने एक नए जीवन का स्वागत किया, लेकिन इसे कैसे जीना चाहिए, इस बारे में मुझे बिलकुल भी जानकारी नहीं थी। मैंने ज़्यादा लिखना, ज़्यादा सपने देखना, ज़्यादा पेंटिंग करना और जीवन के सभी कमज़ोर क्षेत्रों में रंगों की खोज करना शुरू कर दिया। वे दिन थे जब मैंने जीसस यूथ मूवमेंट (वैटिकन द्वारा स्वीकृत एक अंतर्राष्ट्रीय कैथलिक युवा आंदोलन) में सक्रिय रूप से भाग लेना शुरू किया; मैंने धीरे-धीरे सीखना शुरू किया कि कैसे खुद को ईश्वर के प्यार के लिए खोलना है और फिर से प्यार महसूस करना है... कैथलिक जीवनशैली के महत्व के एहसास ने मुझे अपना उद्देश्य समझने में मदद की। मैंने फिर से यह मानना शुरू कर दिया कि मैं अपने साथ हुई हर चीज़ से कहीं बढ़कर हूँ। इन दिनों, जब मैं बंद दरवाज़ों से चिह्नित उन पलों को देखती हूँ, तो मैं स्पष्ट रूप से देख सकती हूँ कि प्रत्येक अस्वीकृति के भीतर, येशु की दयालु उपस्थिति हमेशा मेरे साथ थी, वे मुझे अपने असीम प्रेम और समझ से ढँक रहे थे। मैं कौन या क्या बन गयी हूँ और किन घावों से मेरी चंगाई हुई है, इसे मैं पहचानती हूँ। टिके रहने का कारण हमारा प्रभु कहता है: “तुम मेरी दृष्टि में मूल्यवान हो और महत्त्व रखते हो। मैं तुम्हें प्यार करता हूँ। इसलिए मैं तुम्हारे बदले मनुष्यों को देता हूँ, और तुम्हारे प्राणों के लिए राष्ट्रों को देता हूँ। नहीं डरो, मैं तुम्हारे साथ हूँ।” (इसायाह 43:4-5) अपनी असुरक्षाओं में उसे ढूँढ़ना कभी भी आसान काम नहीं था। आगे बढ़ने के लिए बहुत से कारण होने के बावजूद, टिके रहने का कोई कारण खोजने में मैं व्यस्त रही। और इस कारण मुझे अपनी कमज़ोरियों के बीच जीने की शक्ति और आत्मविश्वास प्राप्त हुआ। मसीह में अपना मूल्य, सम्मान और आनंद पाने की यात्रा बस अद्भुत थी। हम अक्सर संघर्षों से गुजरने के बाद भी अनुग्रह न मिलने की शिकायत करते हैं। मुझे लगता है कि यह सब संघर्षों को समझने के बारे में है। बिना किसी प्रकार के क्रोध के जीवन में थोड़े से भी समायोजन में ईमानदारी व्यक्त करना आपके जीवन में प्रकाश लाता है। यह एक लंबी यात्रा थी। जबकि प्रभु अभी भी मेरी कहानी लिख रहा है, मैं हर दिन और अधिक को अपनाना, बिना किसी बाधा के आगे बढ़ना और जीवन में छोटी-छोटी खुशियों के लिए जगह बनाना सीख रही हूँ। मैं जिन ज़रूरतों की चाह रखती हूँ, अब मेरी प्रार्थनाओं में उन ज़रूरतों की निरंतर मांग नहीं करती हूँ। इसके बजाय, मैं उनसे कहती हूँ कि हे प्रभु मुझे इस तरह से होने वाले बदलावों के लिए 'आमेन' कहने के लिए मज़बूत करें। मैं प्रार्थना करती हूँ कि वह मुझे मेरे भीतर और आस-पास के सभी नकारात्मक प्रभावों से ठीक करे और मुझे बदल दे। मैं प्रभु से अपने उन खो गए हिस्सों को पुनर्जीवित करने के लिए कहती हूँ। जिन मुसीबतों से मैं गुज़री हूँ, उन सभी बातों के लिए , दिन के हर मिनट में मुझे मिलने वाले सभी आशीर्वादों के लिए, और मैं जो व्यक्ति बन गयी हूँ उसके लिए भी प्रभु का शुक्रिया अदा करती हूँ। और मैं अपने पूरे दिल और आत्मा से उससे प्यार करने की पूरी कोशिश कर रही हूँ।
By: एमिलिन मैथ्यू
Moreइस बात का व्यावहारिक अनुभव प्राप्त करें कि ईश्वर स्वर्ग की बातों का संचार करने के लिए पृथ्वी की चीज़ों का उपयोग कैसे कर सकते हैं एक दिन जब मैं कूड़े के डिब्बे लाने के लिए अपने सामने वाले दरवाजे से बाहर निकली, तो मैं डर के मारे वहीं रुक गयी। घर के बगल में नाली के ढक्कन पर साँप की एक ताज़ा खाल पडी हुई थी। मैंने तुरंत अपने पति को बुलाया, क्योंकि मुझे सांपों से बहुत डर लगता है। जब यह स्पष्ट हो गया कि यह मृत साँप की खाल है, आस-पास कोई जीवित साँप नहीं है, तो मैंने निश्चिंत होकर ईश्वर से पूछा कि वह इस दिन मुझे क्या सबक सिखाने की कोशिश कर रहा है। पूरा मामला क्या है? मेरे शिक्षक लोग मुझे ‘गतिज शिक्षार्थी’ कहते हैं। मैं वस्तुओं के साथ घूमने या उनके साथ बातचीत करने से सबसे अच्छा सीख पाती हूं। हाल ही में, मैंने देखा है कि ईश्वर अक्सर भौतिक वस्तुओं के माध्यम से स्वयं को मेरे सामने प्रकट करता है। इस दिव्य शिक्षाशास्त्र का उल्लेख कैथलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा में भी किया गया है। "ईश्वर अपने वचन के द्वारा सभी चीज़ों की रचना और संरक्षण करता है, वह सृजित वास्तविकताओं के द्वारा स्वयं का प्रमाण मानव को निरंतर प्रदान करता है।" (सी.सी.सी., 54) उदाहरण के लिए, परमेश्वर ने इब्राहीम के लिए धूआं देने वाला अग्नि पात्र और धधकती मशाल, याकूब के लिए कुश्ती लड़ने वाला स्वर्गदूत, और मूसा के लिए जलती हुई झाड़ी भेजी। परमेश्वर ने नूह के पास जैतून की शाखा और फिर इंद्रधनुष, गियदोन के लिए कुछ ओस, और एलियाह के लिए रोटी और मांस के साथ कौआ भेजा। इब्राहीम का परमेश्वर, याकूब का परमेश्वर, और मूसा का परमेश्वर हमारा भी परमेश्वर है। समस्त सृष्टि का ईश्वर स्वर्ग की अदृश्य और अमूर्त वास्तविकताओं को संप्रेषित करने के लिए पृथ्वी के दृश्य, मूर्त पदार्थ का उपयोग क्यों नहीं करेगा? फादर जैक्स फिलिप ने लिखा है, "मांस और रक्त के प्राणियों के रूप में, हमें आध्यात्मिक वास्तविकताओं को प्राप्त करने के लिए भौतिक चीज़ों के समर्थन की आवश्यकता है। ईश्वर इसे जानता है, और यही बात ईश्वर के देह्धारण के पूरे रहस्य को समझाती है" (टाइम फॉर गॉड, पृष्ठ 58)। ईश्वर हमें लाइसेंस प्लेट या बम्पर स्टिकर के माध्यम से संदेश भेज सकते हैं। पिछले सप्ताह एक ट्रक के पीछे लिखे शब्द, "चलते रहो," मेरे मन में गूंज उठे। उन शब्दों ने मुझे उस धार्मिक अंतर्दृष्टि की याद दिलाई जो मैंने उसी सुबह सुनी थी - कि हम सुसमाचार साझा करते रहने के लिए बुलाये गए हैं । ईश्वर हमें सिखाने के लिए प्रकृति का भी उपयोग कर सकता है। हाल ही में पेड़ से चेरी या आलूबालू तोड़ते समय, मुझे याद आया कि फसल की बहुतायत, और मजदूरों की कमी कैसे होती हैं। एक तूफानी दिन मन में विचार ला सकता है कि "बड़ी संख्या में हमारे चारों ओर गवाह विद्यमान हैं" (इब्रानी 12:1)। एक सुंदर पक्षी या भव्य सूर्यास्त हमारी शिथिल आत्मा को स्फूर्ती देने के ईश्वर का तरीका हो सकता है। जब कभी मैं किसी चीज़ से विशेष रूप से आश्चर्यचकित होती हूं, तो मैं ईश्वर से पूछने की कोशिश करती हूं कि वह मुझे क्या सबक सिखा रहा होगा। उदाहरण के लिए, एक रात को, जब मेरी बेटी सो रही है या नहीं इसकी जांच करने के लिए मैं बिस्तर से उठने के बारे में मन में बहस कर रही थी, माताओं की संरक्षिका संत मोनिका का सम्मान करने वाला एक प्रार्थना कार्ड अचानक मेरे मेज़ से गिर गया। मैं तुरंत उठी और बेटी के पास जाकर उसकी हालचाल लेने लगी। या इसके अलावा, उस समय जब मैं देर रात या भोर के शुरुआती घंटों में उठी और हाल ही में मृत परिवार के सदस्य की तरफ से माला विनती की प्रार्थना करने के लिए बुलायी गयी और आसमान से सबसे शानदार उल्का पिंड को गिरते देखकर मुझे बड़ी खुशी हुई। कभी-कभी ईश्वर अपना संदेश दूसरे लोगों के माध्यम से भेजता है। आपने कितनी बार किसी ऐसे व्यक्ति से कार्ड, फ़ोन कॉल या टेक्स्ट प्राप्त किया होगा जो आपके लिए आवश्यक प्रोत्साहन था? एक बार गर्मियों में, जब मैं बाइक पर यात्रा कर रही थी और बाइबल अध्ययन बंद करने की संभावना पर विचार कर रही थी, तो मेरी मुलाकात एक मित्र से हुई। अचानक, उसने यह तथ्य सामने रखा कि उसने अपना बाइबल अध्ययन जारी रखने की योजना बनाई है क्योंकि एक बार जब आप कुछ बंद कर देते हैं, तो उसे दोबारा शुरू करना बहुत कठिन होता है। ईश्वर हमें अनुशासित करने या अपने शिष्यत्व में हमारी प्रगति हेतु हमें मदद करने के लिए ठोस वस्तुओं का भी उपयोग कर सकता है। एक सुबह मेरी नज़र तीन बड़ी कीलों पर पड़ी। वे तीनों एक समान थे, लेकिन मैंने उन्हें तीन अलग-अलग स्थानों पर पाया था: एक गैस स्टेशन पर, एक मेरे घर के अन्दर की पगडण्डी पर, और एक सड़क पर। तीसरी कील देखने के बाद मैं रुकी और मैंने ईश्वर से पूछा कि वह मुझे क्या बताना चाह रहा था और मुझे एहसास हुआ कि मुझे अपने जीवन में किसी बात को लेकर पश्चाताप की आवश्यकता है। मैं उस समय को कभी नहीं भूलूंगी जब मैं बाहर निकली और तुरंत एक मक्खी मेरी आंख में घुस गई। मै चाहती हूँ कि उस दिन मैंने जो सबक सीखी उसकी कल्पना आप स्वयं करें । सीखने की शैली ईश्वर हमें हर समय सिखाता है, और वह सभी प्रकार के शिक्षार्थियों को समायोजित करता है। जो चीज़ एक व्यक्ति के लिए काम करती है वह दूसरे के लिए काम नहीं कर सकती। कुछ लोग ईश्वर की आवाज़ को स्पष्ट रूप से प्रार्थना सभा में सुनेंगे, अन्य लोग परम प्रसाद की आराधना में सुनेंगे, कोई और बाइबिल पढ़ते समय सुनेंगे, या अपनी निजी प्रार्थना के समय सुनेंगे। हालाँकि, ईश्वर हमेशा काम पर रहता है और हमारे विचारों, भावनाओं, छवियों, पवित्र ग्रन्थ के वाक्यांशों से, लोगों से, कल्पना से, ज्ञान के शब्दों से, संगीत से और हमारे दिन की प्रत्येक घटना के माध्यम से हमें लगातार सिखाता रहता है। जब ईश्वर भौतिक वस्तुओं के माध्यम से सम्प्रेषण करता है तो व्यक्तिगत रूप से मैं इसकी सराहना करती हूँ, क्योंकि मैं इस तरह से शिक्षा को बेहतर ढंग से याद रखती हूँ। आप सोच रहे होंगे कि मैंने साँप की खाल से क्या सीखा। इस से धर्मग्रंथ का निम्नलिखित वाक्यांश ध्यान में आया: “लोग पुरानी मशकों में नई अंगूरी को नहीं भरते। नहीं तो मशकें फट जाती हैं, अंगूरी बह जाती है, और मशकें बर्बाद हो जाती हैं। लोग नयी अंगूरी नयी मशकों में भरते हैं, इस तरह दोनों ही बची रहती हैं” (मत्ती 9:17)। पवित्र आत्मा, आज तू हमें जो भी सबक सिखा रहा है, उसके बारे में अधिक जागरूक होने में हमारी मदद कर।
By: डेनीस जैसेक
Moreहम में से कई लोग लूकस के सुसमाचार (लूकस 18:9-14) के दृष्टांत से परिचित हैं जो फरीसी और चुंगी लेनेवाले की प्रार्थनाओं को नाटकीय और एक दूसरे से विपरीत रूप से प्रस्तुत करता है। जब हम उनकी प्रार्थनाओं की तुलना करते हैं, तो शायद हम अपनी पहचान फरीसी की प्रार्थना के साथ कर सकते हैं जो ईश्वर को धन्यवाद देता है कि वह उस चुंगी लेने वाले की तरह पापी नहीं था। उस प्रार्थना में निहित आत्मतुष्टि के भाव तथा श्रेष्ठता के भाव को पहचाने बिना ही हमने स्वयं को उदार समझते हुए ऐसी प्रार्थना की होगी। इसके विपरीत येशु चुंगी लेने वाले की विनम्र प्रार्थना की प्रशंसा करते हैं जिसकी विनम्रता और ईमानदारी उसे न्याय के साथ सानंद घर जाने की अनुमति देती है। यदि हम चुंगी लेने वाले का रवैया अपनाएंगे, तो हम अन्य लोगों के साथ अन्याय नहीं करेंगे। यदि हम ईमानदारी से स्वयं को पापी के रूप में देखते हैं, तो हम दूसरे पर दोष कैसे लगा सकते हैं? दूसरों को दोष देना या उनकी अंतिम नियति का आकलन करना श्रेष्ठता के दृष्टिकोण यानि अहंकार की भावना से आता है और हम कह सकते हैं कि यह अहंकार ही पहला पाप और सब से बड़ा पाप था। हमारा प्रभु अंतिम क्षण तक दया का द्वार हमेशा खुला रखता है। जैसे-जैसे हम अपना दिन गुजारते हैं, क्या हम यह विचार करना बंद कर देते हैं कि कितनी बार हम बाहरी धारणाओं के आधार पर दूसरों का मूल्यांकन करते हैं, जब कि प्रभु उनके दिलों के भीतर देखते हैं। क्या आप कभी समाचार देखते या पढ़ते समय स्वयं को दूसरों की निंदा करते हुए पाते हैं? कितनी बार किसी व्यक्ति की जाति, धर्म, यौन रुझान, या कोई अन्य गुण जो हम से भिन्न होता है, हमें उस पर दोष लगाने या नकारात्मक निर्णय देने का कारण बनता है? दुर्भाग्य की बात है कि हम में से बहुत से लोग अपने कार्यों और प्रेरणाओं की बारीकी से जांच करने में विफल रहते हुए दूसरों को आंकने की गंभीरता का एहसास नहीं करते हैं। सुसमाचार में येशु बहिष्कृतों और पापियों को गले लगाते हैं। वह उन लोगों के प्रति प्रेम और स्वीकृति दिखाता है जिन्हें स्व-धर्मी फरीसियों और शास्त्रियों ने अस्वीकार कर दिया था। जब भी हम उन लोगों के साथ व्यवहार कर रहे हैं जो हम से अलग हैं या जिनके कार्यों से हमें ठेस पहुँचती है, तब पापियों के प्रति येशु की करुणा हमारे दिलों में भर जानी चाहिए। जब हम विनम्रता पूर्वक महसूस करते हैं कि हम वास्तव में पापी हैं, तो हम खुद को ईश्वर की दया पर छोड़ देंगे और महसूस करेंगे कि कलवारी पर येशु ने जो खून बहाया था वह हमारे लिए, हमारे दुश्मनों केलिए और उन लोगों केलिए बहाया गया था जिनके लिए हम न्याय करने के इच्छुक हैं। वे भी बहुमूल्य आत्माएँ हैं जिन्हें येशु मुक्त करना चाहते हैं। लोगों केलिए जब हम प्रार्थना करते हैं, तो आइए सब से पहले उनके प्रति अपना अभिवृति देखें। क्या हमारा रवैया करुणामय है या पूरी तरह से आलोचनात्मक है? प्रेमपूर्ण हृदय से निकली प्रार्थना न्याय से उत्पन्न प्रार्थना से अधिक लाभकर होगी। आइए हम प्रभु से उन पलों केलिए क्षमा मांगें, जब हम ने दूसरों के साथ अन्याय किया था और उस से विनती करें कि वह हमें अपने जैसा दयालु हृदय प्रदान करें।
By: Susan Uthup
Moreनासा के साथ चार अलग-अलग शटल मिशन पर गए डॉ. थॉमस डी. जोन्स के साथ एक विशेष साक्षात्कार। उन मिशनों में से एक पर, वे वास्तव में पवित्र यूखरिस्त को अपने साथ ले जाने में सक्षम थे! हमें इस बारे में बताएं कि अंतरिक्ष में सितारों को और नीचे पृथ्वी को देखकर कैसा लगता था। येशु में आपका विश्वास इस अनुभव द्वारा कैसे प्रभावित हुआ ? हर अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष में उड़ान भरने के अपने पेशेवर सपने को साकार करने की उम्मीद करता है, उसी तरह मुझे भी लगभग 30 वर्षों तक इंतजार करना पड़ा। बचपन में हवा में उड़ने का सपना देखा करता था तो मेरी पहली उड़ान से इसी बचपन के सपने का साकार हो गया था। हमारे गृह ग्रह पृथ्वी के आसपास के ब्रह्मांड के इस विशाल दृश्य को देखकर, मुझे यह सोचने का मौका मिला कि मैं वहां क्यों था। यह वास्तव में ब्रह्मांड की अविश्वसनीय सुंदरता को और हमारे गृह ग्रह को इसकी सभी प्यारी विविधता में देखने का एक ऐसा भावनात्मक अनुभव था, - वास्तव में दिल थामकर मैं ने इन अद्भुत दृश्यों को निहारा। शारीरिक रूप से वहाँ रहने का अवसर देने के लिए और ईश्वर की कृपा और उपस्थिति से अभिभूत होकर मैंने लगातार ईश्वर के प्रति अपना आभार प्रकट किया। आप उन अंतरिक्ष यात्रियों में से एक के रूप में जाने जाते हैं जो पवित्र यूखरिस्त को अंतरिक्ष में लाने में सक्षम थे। हम सभी विश्वासियों के लिए इससे बड़ी प्रेरणा मिलती है। क्या आप वह पूरा अनुभव साझा कर सकते हैं? यह निश्चित रूप से इसमें भाग लेने वाले हम सभी के लिए आश्चर्यजनक था। कोई भी व्यक्ति न अंतरिक्ष से अधिक दूर कहीं भी जा सकता है और न अपने आध्यात्मिक जीवन को भूल सकता है। विश्वास के कारण मैं पृथ्वी पर सफल था और उसी विश्वास से मैं अंतरिक्ष में सफल होने में मदद की उम्मीद कर रहा था। 1994 में मेरी पहली उड़ान एंडेवर नामक शटल में, दो अन्य कैथलिक अंतरिक्ष यात्री भी थे। जब हम 11 दिवसीय मिशन की तैयारी के लिए एकत्रित हुए, तो हमने इस बारे में बात की कि पवित्र यूखरिस्त को अपने साथ अंतरिक्ष में ले जाना कितना अद्भुत होगा। चूँकि उड़ान में हमारे पायलट, केविन चिल्टन, पवित्र भोज के एक असाधारण अनुष्ठाता थे, इसलिए हम अपने पादरी से परम पवित्र संस्कार को अपने साथ लाने की अनुमति प्राप्त करने में सफल हुए। ग्यारह दिन की उड़ान के हर पल को बड़ी सूक्ष्मता से निर्धारित किया गया था, लेकिन लगभग सात दिनों के बाद जब हम अपने मिशन में सहज हो चुके थे, तब हमारे कैथलिक कमांडर, सिड गुटियरेज़ कम्युनियन सेवा के लिए इस व्यस्त शेड्यूल में दस मिनट का समय ढूँढने में कामयाब हुए। इसलिए, उस रविवार को (अंतरिक्ष में वह हमारा दूसरा रविवार था) हमने मिशन के सभी कामों से विराम लिया और कॉकपिट में अकेले दस मिनट उस ईश्वर के साथ समय बिताया जिसने यह सब संभव बनाया था, और हमने पवित्र परम प्रसाद को ग्रहण किया। वास्तव में, इसके द्वारा यह पुष्टि हो रही थी कि हमारे बीच उनकी उपस्थिति के बिना हम उस मुकाम तक कभी नहीं पहुंच सकते थे। हमारे विश्वास-जीवन को अंतरिक्ष में लाना और यह जानना कि प्रभु वहां, शारीरिक रूप से हमारे साथ है, यह वास्तव में संतोषजनक था। क्या विज्ञान और आस्था को एक साथ लाना आप के लिए मुश्किल था? क्या आप विज्ञान और आस्था के बीच संबंध के बारे में विस्तार से बता सकते हैं? अपने पेशेवर करियर के दौरान, मैंने कई ऐसे वैज्ञानिकों को जाना है जो आध्यात्मिक हैं, और उनकी अपनी आस्था की परम्पराएं हैं। यहीं उत्तरी वर्जीनिया में, मेरे अपने चर्च में कई कैथलिक वैज्ञानिकों और इंजीनियरों से मैं मिला हूं, जो मजबूत विश्वास के जीवन को जीते हैं। वे ईश्वर की सृष्टि में विश्वास करते हैं, और बाइबिल की प्रेरणा से ब्रह्मांड की समझ रखते हैं। मुझे लगता है कि ज्यादातर लोगों के जीवन में कुछ आध्यात्मिक तत्व होते हैं। मैं ऐसे अंतरिक्ष यात्रियों को जानता हूं जो औपचारिक रूप से धार्मिक नहीं हैं, लेकिन वे सभी अंतरिक्ष यात्रा के आध्यात्मिक अनुभव से प्रभावित थे। इसलिए मैंने देखा है कि ब्रह्मांड और हमारे आस-पास की प्राकृतिक धरती और सृष्टि को समझने के तरीके के संदर्भ में अधिकांश लोग खुली और उदार समझ रखते हैं। सभी मनुष्यों की तरह वैज्ञानिक भी ब्रह्मांड की प्रकृति के बारे में उत्सुक हैं और इससे क्या सीख सकते हैं, इस बारे में बहुत ही उत्सुक हैं। मेरे लिए, यह एक संकेत है कि विज्ञान और अध्यात्म साथ-साथ चलते हैं। प्रकृति कैसे कार्य करती है, कैसे ब्रह्मांड को एक साथ रखा गया है और इसे कैसे बनाया गया है, इन सब पर तथा प्रकृति के प्रति हमारी जिज्ञासा और रुचि हमें दी गई थी, क्योंकि हम ईश्वर के स्वरूप और प्रतिछाया में बनाए गए हैं। यह जिज्ञासा ईश्वर के व्यक्तित्व का हिस्सा है जो हमें प्रदान किया गया है। इसलिए मुझे लगता है कि प्राकृतिक दुनिया के बारे में सच्चाई की यह खोज मनुष्य के रूप में हमारी सहज प्रकृति का एक हिस्सा है। मेरा मानना है कि ज्ञान की खोज एक ऐसी चीज है जो ईश्वर को बहुत आनंद देती है – ईश्वर ने ब्रह्मांड को किस प्रकार एक साथ रखा, इस रहस्य की तलाश में उसकी सृष्टि, विशेषकर मानव, लगा रहता है तो ईश्वर का आनंद और बढ़ता होगा। ध्यान रहे, वह इसे गुप्त रखने या भेद के रूप में रखने की कोशिश नहीं कर रहा है। वह सिर्फ यह चाहता है कि हम अपने प्रयासों, सरलता और जिज्ञासा के माध्यम से इसका अनावरण करें। तो, मेरे लिए, विज्ञान, प्रकृति और अध्यात्म के बीच बहुत अधिक संघर्ष नहीं है। मुझे लगता है कि उन्हें अलग करने की कोशिश कर रहे लोग मानव स्वभाव का आधा हिस्सा बौद्धिक या तर्कसंगत हिस्से में और दूसरा आधा आध्यात्मिक हिस्से में विभाजित करने का प्रयास कर रहे हैं। बेशक, ऐसा नहीं किया जा सकता है। हर व्यक्ति ऐसा इंसान है जिसकी प्रकृति को अलग अलग नहीं किया जा सकता है। अपने अंतरिक्ष अभियानों में आप कई मायनों में मानवीय उपलब्धि के निचोड़ या सार को पूरा कर रहे थे। वास्तव में कुछ महान कार्य करना, और वह भी परमेश्वर की सृष्टि की महिमा और प्रताप को इतनी अधिक विस्तार में सामना करना — परमेश्वर की उस महानता की तुलना में अपनी नगण्यता को पहचानते हुए भी इतना कुछ हासिल करना, यह कैसा अनुभव था? मेरे लिए यह सब मेरे आखिरी मिशन पर निश्चित रूप ले रहा था। मैं अंतरिक्ष में स्पेस स्टेशन बनाने में मदद कर रहा था, डेस्टिनी नामक एक विज्ञान प्रयोगशाला स्थापित करने के लिए तीन स्पेस वॉक कर रहा था। अपने आखिरी स्पेसवॉक के अंत के करीब, मैं स्पेस स्टेशन के बिल्कुल सामने के छोर पर था। चूंकि मैं अपने निर्धारित शेड्यूल से आगे था, नासा के मिशन कंट्रोल ने मुझे वहां लगभग पांच मिनट तक घूमने की अनुमति दी। अपनी उँगलियों से स्पेस स्टेशन के सामने के हिस्से को पकड़ते हुए, मैं चारों ओर घूमने में सक्षम था ताकि मैं अपने आस-पास के अंतरिक्ष की विशालता को देख सकूं। मेरे पैरों के 220 मील सीधे नीचे प्रशांत महासागर के गहरे नीले रंग में, मैंने पृथ्वी को देखा। मैं वहाँ तैर रहा था और ऊपर की ओर मेरे सिर के ऊपर एक हजार मील दूर, अंतहीन, काला आकाश और क्षितिज की ओर देख रहा था। मुझसे लगभग 100 फीट ऊपर, स्पेस स्टेशन अपने सौर पैनलों से परावर्तित सूर्य के प्रकाश के साथ सोने की तरह चमक रहा था, उस समय हम लोग चुपचाप दुनिया के फेरे में एक साथ मंडरा रहे थे। यह अद्भुत दृश्य इतना अविश्वसनीय रूप से सुंदर था कि मेरी आंखों में आंसू आ गए। मैं इस भावना से अभिभूत था, “यहाँ मैं हूँ, इस अंतरिक्ष स्टेशन पर एक उच्च प्रशिक्षित अंतरिक्ष यात्री, जो पृथ्वी के चारों ओर मंडरा रहा है, फिर भी मैं इस विशाल ब्रह्मांड की तुलना में सिर्फ एक अदना सा इंसान हूँ।“ ईश्वर ने मेरे लिए पर्दे को थोड़ा पीछे खींच लिया, जिससे मुझे व्यक्तिगत रूप से उस शानदार प्रतापपूर्ण और भव्य विशालता को देखने का मौका मिला। मैंने महसूस किया, "हां, तुम बहुत खास हो क्योंकि तुम्हें यह दृश्य देखने को मिल रहा है", लेकिन उसी समय मुझे याद दिलाया गया कि हम सभी ईश्वर के द्वारा बनाए गए इस विशाल ब्रह्मांड में कितने महत्वहीन हैं। एक ही समय में अपने महत्व को और अपनी नगण्यता को अनुभव करना ईश्वर की ओर से एक विशेष उपहार था। मैंने रोमांचित होकर, मेरे साथ इस दृश्य को साझा करने के लिए, प्रभु को धन्यवाद दिया, तब सचमुच मेरी आंखों में आंसू भर आये। बहुत कम मनुष्यों के पास पृथ्वी को उस दृष्टिकोण से देखने का अनुभव और विशेषाधिकार मिला होगा, और यह सब प्रभु की कृपा से थी। ------------------------------------------ इस समय दुनिया में बहुत भ्रम है... बहुत अँधेरा और पीड़ा है; लेकिन जब आप दुनिया को या तो अंतरिक्ष में उस अद्वितीय और अनुकूल प्रेक्षण स्थान से देखते हैं, या अब आपके जीवन की वर्तमान स्थिति में होकर देखते हैं, आपको किस तरह की आशा मिल रही है? ईश्वर ने हमें बहुत जिज्ञासु दिमाग दिया है। मुझे लगता है कि यही बात मुझे सबसे अधिक प्रेरणा देती है। हमारे पास यह सहज जिज्ञासा है, और इसने हमें समस्या के समाधानकर्ता और खोजकर्ता बना दिया है। इसलिए, आज हम जिन सभी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, चाहे वह महामारी हो, या युद्ध का खतरा हो, या दुनिया भर में सात अरब लोगों को भोजन खिलाने की चुनौती हो, हमारे पास वह कौशल है जो हमें दिया गया है और उस कौशल का सदुपयोग करके इन समस्याओं को हल करने के लिए हम बुलाये गए हैं। यह एक विशाल ब्रह्मांड है, और यह संसाधनों से भरा हुआ है। यह हमें चुनौती देता है, लेकिन अगर हम अपने घर की दुनिया से परे सौर मंडल और ब्रह्मांड की ओर देखें, तो ऐसी बहुत सी चीजें हैं जिनका हम उपयोग कर सकते हैं। चंद्रमा और आस-पास के क्षुद्रग्रहों पर उपलब्ध विशाल भौतिक संसाधन उन चीज़ों के पूरक हो सकते हैं जिन्हें हम पृथ्वी पर पाते हैं। सौर ऊर्जा की एक विशाल आपूर्ति है जिसे अंतरिक्ष से निकाला जा सकता है और दुनिया के लिए बीमित किया जा सकता है ताकि सभी को कामयाब होने के लिए आवश्यक ऊर्जा और बिजली की आपूर्ति करने में मदद मिल सके। हमारे पास अक्सर पृथ्वी से टकरानेवाले दुष्ट क्षुद्रग्रहों को दूर भगाने का कौशल है, और चूँकि हमारे पास अंतरिक्ष कौशल और हमारे ग्रह की रक्षा करने का एक तरीका विकसित करने के लिए दिमाग है, इसलिए हम इन सब के माध्यम से भयानक प्राकृतिक आपदाओं को रोक सकते हैं। इसलिए, यदि हम अपने द्वारा हासिल किए गए कौशल का उपयोग करते हैं, और खुद को इस कार्य में लगाते हैं, तो हमें डायनासोर के रास्ते पर जाने की ज़रूरत नहीं है । हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जो हमें इन समस्याओं को हल करने के लिए अपनी जिज्ञासा और बुद्धि का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करती है। इसलिए मैं बहुत आशावादी हूं कि अपने कौशल और हमारे द्वारा विकसित की जाने वाली तकनीक को लागू करके हम इन सभी चुनौतियों से आगे रह सकते हैं। उदाहरण केलिए, उस वैक्सीन को देखिये, जिसे हमने इस वर्ष ही विषाणु से लड़ने के लिए विकसित किया है। यह इस बात का प्रतीक है कि जब हम किसी चीज़ पर अपना दिमाग लगाते हैं, तब हम क्या क्या हासिल कर सकते हैं, चाहे वह किसी पुरुष को चंद्रमा पर रखने की बात हो या पहली महिला को मंगल ग्रह पर भेजने की बात हो। मुझे लगता है कि हम भविष्य के लिए भी अच्छी स्थिति में हैं।
By: Dr. Thomas D Jones
Moreअपने आराम क्षेत्र से बाहर निकलना कभी भी आसान काम नहीं होता, तो फिर क्यों परेशानी उठानी है? जीवन के किसी मोड़ पर, येशु हम सभी से पूछते हैं: “क्या तुम मेरे राज्य के लिए बाहर निकलने को तैयार हो?” इसके लिए कोई योग्यता की ज़रुरत नहीं है; कोई नौकरी का विवरण नहीं, कोई बायोडाटा स्क्रीनिंग नहीं… यह एक सरल हाँ या नहीं वाला प्रश्न है। जब मुझे यह बुलावा मिला, तो मेरे पास उसे देने के लिए कुछ भी नहीं था। मैंने जब अपने सेवा क्षेत्र में प्रवेश किया, तब किसी प्रकार का लाभ पाने की मेरी कोई इच्छा नहीं थी। समय ने साबित कर दिया कि येशु के लिए एक इच्छुक और प्रेमपूर्ण हृदय ही वह सब था जिसकी मुझे आवश्यकता थी। उसने बाकी सब संभाल लिया। एक बार जब आप हाँ कहते हैं, तो आप अपने आप में बदलाव देख सकते हैं! जीवन अधिक सार्थक, आनंदमय और रोमांचकारी हो जाता है। इसका मतलब यह नहीं है कि दुख कभी मौजूद नहीं होगा। "जब येशु के लिए इस संसार को छोड़कर अपने पिता के पास लौटने का समय निकट था, तो उसने अपने शिष्यों के पैर धोए। उसने पेत्रुस से कहा: 'यदि मैं तुम्हारे पैर न धोऊँगा, तो तुम्हारा मेरे साथ कोई सम्बन्ध नहीं रह जाएगा।'" उसने आगे कहा: "इसलिए यदि मैं - तुम्हारे प्रभु और गुरु – ने तुम्हारे पैर धोए हैं, तो तुम्हें भी एक दूसरे के पैर धोने चाहिए।" (योहन 13:14) एक तरह से, येशु पूछ रहे हैं: "क्या तुम भीगने के लिए तैयार हो?" पेत्रुस की तरह, हम स्वाभाविक रूप से सूखे और आरामदायक रहना पसंद करते हैं, लेकिन वह हमें अपने प्यार और अनुग्रह के जल में भीगने के लिए बुला रहा है। सबसे खूबसूरत बात यह है कि वह हमें अपने लिए नहीं बुला रहा है... जब येशु अपने शिष्यों के पैर धोने के लिए नीचे झुका, तो न केवल उसके शिष्य भीग गए, बल्कि इस प्रक्रिया में येशु के हाथ भी गीले और गंदे हो गए। जब हम मसीह के पदचिन्हों पर चलते हैं, तो उसके नाम पर दूसरों की सेवा करते हुए, हम भी उस बोझ और दर्द का हिस्सा बनेंगे जिससे दूसरा व्यक्ति गुज़र रहा है। पवित्र बाइबिल हमें निर्देश देती है: “भारी बोझ धोने में एक दूसरे की सहायता करें, और इस प्रकार तुम मसीह की विधि पूरी करें।” (गलाती 6:2) येशु के रूपान्तरण के बाद, पेत्रुस ने कहा: “प्रभु, यहाँ होना हमारे लिए कितना अच्छा है; आप चाहें, तो मैं यहाँ तीन तम्बू खड़ा कर दूंगा - एक आपके लिए, एक मूसा, और एक एलियस के लिए।” (मत्ती 17:4) ऐसा लगता है कि हम कई मायनों में पेत्रुस के जैसे हैं। तंबू लगाना और उस आरामदायक क्षेत्र में रहना हम पसंद करते हैं, चाहे वह हमारा गिरजाघर हो, घर हो या कार्यस्थल। सौभाग्य से, हमारे लिए पवित्र बाइबिल हमें ऐसे कई योग्य उदाहरण प्रदान करती है जिनसे हम सीख सकते हैं। होना या न होना हमारे पल्ली पुरोहित श्रद्धेय क्रिस्टोफर स्मिथ ने एक बार इस बात पर मनन किया कि कैसे योहन बपतिस्ता ने अपने आराम क्षेत्र जंगल को छोड़ दिया और मसीहा के आने की घोषणा करने के लिए शहर में आया। मूसा मिस्र से भाग गया और अपने ससुर के साथ अपने लिए एक तम्बू बनाया लेकिन परमेश्वर ने उसे बाहर निकाला और उसे एक मिशन सौंपा। उसे उसी मिस्र में वापस लाया गया जहाँ से वह भागा था, और परमेश्वर ने उसे अपने लोगों को बचाने के लिए शक्तिशाली रूप से इस्तेमाल किया। एलियस ईज़ेबेल से भाग गया और एक झाड़ी के नीचे शरण ली (1 राजा 19:4), लेकिन परमेश्वर ने उसे अपने लोगों के लिए अपनी योजना को स्थापित करने के लिए वापस लाया। अब्राहम को अपने रिश्तेदारों को छोड़ना पड़ा और यात्रा करनी पड़ी जहाँ परमेश्वर उसे ले गया, लेकिन उस राज्य को देखें जो परमेश्वर में अब्राहम के भरोसे के कारण विकसित हुआ! अगर मूसा घर पर रहता, तो इस्राएलियों का क्या हश्र होता? और अगर एलियस डर के मारे पीछे हट जाता और वापस आने से इनकार कर देता तो क्या होता? पेत्रुस को देखें, जिसने समुद्र में उग्र लहरों पर अपने पैर रखने के लिए नाव से विश्वास की छलांग लगाई। वह बिलकुल अकेला था, डूबने का डर उसके मन में था, लेकिन येशु ने उसे डगमगाने नहीं दिया। बाहर निकलने की उसकी इच्छा ने एक अविस्मरणीय चमत्कार की शुरुआत की, जिसका आनंद नाव के अंदर मौजूद अन्य डर से भरे शिष्यों में से कोई भी नहीं ले सका, क्योंकि उन्होंने अपने आराम के क्षेत्र से बाहर निकलने से इनकार कर दिया था। और इसी तरह, हमारे जीवन में भी, अपने तंबू से बाहर निकलने का पहला कदम उठाने केलिए परमेश्वर हमारा इंतज़ार कर रहा है। जब पवित्र आत्मा ने मुझे लेखन के माध्यम से सुसमाचार प्रचार करने के लिए प्रेरित किया, तो मेरे लिए पहले इसे हाँ कहना बहुत मुश्किल था। मैं स्वभाव से डरपोक और शर्मीली हूँ, और जैसे पेत्रुस लहरों को देखता था, वैसे ही मैं केवल अपनी अक्षमताओं को देखती थी। लेकिन जब मैंने खुद को परमेश्वर की इच्छा के आगे समर्पित कर दिया और उस पर भरोसा करना शुरू कर दिया, तो उसने मुझे अपनी महिमा के लिए इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। आइए हम अपने आराम क्षेत्र से बाहर निकलें और पवित्र आत्मा के अभिषेक में भीगें, क्योंकि यह जलती हुई झाड़ी की शक्तिशाली आग थी जिसने मूसा का अभिषेक किया था। याद रखें कि कैसे (एक मिस्री को मारकर!) इस्राएलियों को 'बचाने' का मूसा का पहला प्रयास उन इस्राएलियों के द्वारा अस्वीकार कर दिया गया था? ऊपर से आने वाले आह्वान का धैर्यपूर्वक इंतज़ार करें, उसका अभिषेक प्राप्त करें, और उसके नाम का प्रचार करने के लिए दुनिया में जाएँ! ------------------------- लिडिया बोस्को एक कार्मेलाइट धर्म बहन हैं जो कैथलिक सेवा ‘अभिषेकाग्नि’ के माध्यम से प्रभु की सेवा करती हैं। वे अपने पति और तीन बच्चों के साथ दक्षिणी यू.एस.ए के दक्षिण कैरोलिना में रहती हैं।
By: लीडिया बोस्को
Moreड्राइविंग सीखना मेरे जीवन में बार-बार आने वाली एक बड़ी बाधा थी। इस घटना ने मेरे लिए इसे बदल दिया! दस साल पहले, ईश्वर ने मुझे पहली बार मेरे होने वाले पति से मुलाक़ात कराई। मैं उस समय श्रीलंका में रह रही थी जबकि वह ऑस्ट्रेलिया में रहता था। प्यार में पड़ने से मिलने वाली नई ऊर्जा से भरकर, श्रीलंका में रहते हुए, ड्राइविंग की तैयारी के लिए एक ड्राइविंग स्कूल में मैंने दाखिला लिया। पहले कभी गाड़ी न चलाने के कारण, मैं चिंतित थी, फिर भी दृढ़ थी, और ईश्वर की कृपा से, मैंने पहले प्रयास में ही अपना ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त कर लिया। छोटी शुरुआत ऑस्ट्रेलिया पहुँचने के तुरंत बाद, मैंने एक स्थानीय ड्राइविंग स्कूल में दाखिला लिया और अभ्यास जारी रखने के लिए एक सेकंड-हैंड कार खरीदी। मेरी पहली गलती यह थी कि मैंने अपने पति को मुझे सिखाने का मौक़ा दिया। आप अच्छी तरह से कल्पना कर सकते हैं कि इसका क्या परिणाम हुआ होगा! चाहे मैं जितनी भी सीखती रही, मेरे अन्दर का डर मुझे पीछे खींचता रहा। मैं तब तक ठीक-ठाक गाडी चलाती थी, जब तक कि कोई कार मेरे पीछे नहीं आ जाती और यह मुझे परेशान कर देता, मानो मैं जांच के दायरे में हूं। मेरी उम्र पच्चीस के आसपास थी| ऐसी उम्र में इस तरह का डर बहुत ही अतार्किक था। पेशेवर ड्राइविंग प्रशिक्षक से सबक लेने से भी कोई मदद नहीं मिली। मैं अभ्यास करने में हिचकिचाने लगी और मेरी कार धीरे-धीरे धूल जमा करने लगी, जबकि मैं खुद को यह समझाने की कोशिश कर रही थी कि ड्राइविंग मेरे लिए नहीं है। काम पर जाने और वापस आने के लिए, मैंने दो बसें और एक ट्रेन ली, लेकिन खुद को ड्राइव करने के लिए मजबूर नहीं कर सकी। मैंने अपनी कार बेच दी। हार मानने को तैयार नहीं यह जीवन शैली स्पष्ट रूप से हमारे लिए काम नहीं कर रही थी, इसलिए मैंने एक बार फिर कोशिश करने का फैसला किया। अब 2017 था और मैंने एक नए प्रशिक्षक के साथ साइन अप किया। लग रहा था कि कुछ सुधार हो रहा है। हालांकि, मेरा पहला ड्राइविंग टेस्ट फिर से बहुत ही बेचैनी भरा था। मेरा प्रशिक्षक काफी क्रोधित था, और जब परीक्षक मेरे स्कोर का मूल्यांकन करने के लिए चला गया, तो उसने कहा “तुम निश्चित रूप से असफल हो जाओगी”। निराश और भारी मन से, मैं फैसला सुनने के लिए ड्राइविंग सेंटर में चली गयी। परीक्षक ने कहा “आप पास हो गयी हैं”! हैरान और अविश्वास में, मैंने पूरे दिल से ईश्वर का शुक्रिया अदा किया। मेरे पति भी बहुत खुश थे और मेरे नए आत्मविश्वास के आधार पर हमने फिर से एक सेकंड-हैंड कार खरीदी, बहुत उम्मीद थी कि इस बार यह काम करेगी। इसकी शुरुआत अच्छी रही और फिर धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से, यह सब वापस आने लगा - घबराहट, डर, झिझक। छह महीने से थोड़ा ज़्यादा समय बीतने के बाद, मैंने फिर से अपना सारा आत्मविश्वास खो दिया। मैंने अपनी कार बेच दी। मेरे धैर्यवान पति का मानना था कि मैं अपनी क्षमताओं के साथ न्याय नहीं कर रही थी, इसलिए उन्होंने न केवल मेरे लिए प्रार्थना की बल्कि जब मैं हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी, तब भी उन्होंने मुझ पर विश्वास बनाए रखा। उस समस्या के जड़ का पर्दाफाश साल बीतते गए...2020 में, हम एक ऑनलाइन आतंरिक चंगाई सेवा में भाग ले रहे थे। वह असरदार और प्रभावशाली सेवा अपने अंत के करीब थी, और तब तक मुझे कुछ खास महसूस नहीं हुआ था। यह मेरे पति की प्रार्थना ही रही होगी जिसने स्वर्ग को हिला दिया, क्योंकि जब पुरोहित आंतरिक घावों की चंगाई के लिए प्रार्थना कर रहे थे, तो मुझे थीम पार्क में बम्पर कार खेलने की एक ज्वलंत घटना की स्पष्ट याद आई। मैं लगभग छह साल की रही होगी और इस खेल को आज़माने के लिए बहुत उत्सुक थी। मैंने एक छोटी गुलाबी कार को चुना, मैं उसमें कूद गई और खुशी से उसे चला रही थी, जब अचानक मुझे लगा कि पीछे वाली कार बार-बार मेरी कार से टकरा रही है। हालाँकि यह खेल का हिस्सा था, मुझे लगा कि मुझ पर हमला हुआ है, और अब उस वर्तमान क्षण में, मैं उस डरावनी और भयंकर भय और बेचैनी को फिर से महसूस कर रही हूँ जो बिल्कुल वैसा ही था जैसा मुझे गाड़ी चलाते समय महसूस होता था! मुझे याद है कि मैं अपने पिता को जल्द से जल्द वहाँ से निकलने के लिए बेचैनी से उकसा रही थी। यह एक ऐसी याद थी जो उस घटना के बाद से इतने सालों में एक बार भी मेरे मन में नहीं आई थी। मेरी समस्या के मूल कारण से हमारे प्रभु येशु मसीह मुझे ठीक कर रहे थे। यह मेरे लिए एक बहुत बड़ा बयान था कि हमारे पिता परमेश्वर ने गाड़ी चलाने की क्षमता के साथ मेरी सृष्टि की है, जिस पर मैं लगातार सवाल उठाती रही थी। सड़क पर वापस आने के लिए उत्सुक, मैंने अपने पति के साथ लंबी दूरी तक गाड़ी चलाई और इस डर से मेरी मुक्ति स्पष्ट थी। ड्राइविंग में मैं ने अच्छी प्रगति कर ली थी और अब मुझे मेरे पीछे वाली कार से कोई परेशानी नहीं थी। कोई सोच सकता है कि यही आखिरी झटका था जिसकी अपनी ज़िंदगी को बदलने के लिए मुझे ज़रूरत थी। मैं जितना भी सुधार करने वाली थी, और चूँकि मेरी ड्राइविंग का अभ्यास लगातार नहीं चल रहा था, मैं अभी भी अपने सर्वश्रेष्ठ स्तर पर नहीं थी। हमारे नवजात शिशु ने मेरे जीवन का अधिक समय ले लिया था, इसलिए मेरी प्राथमिकताएँ बदल गई थीं। हम जिस छोटे से शहर के अपार्टमेंट में रहते थे, वह हमारे छोटे बच्चे के पालन-पोषण के लिए उपयुक्त नहीं था। हम जो परवरिश उसे देना चाहते थे उस केलिए उपनगरीय जीवन ज़्यादा अनुकूल होगा, और जब तक मैं आसानी से गाड़ी नहीं चला पाती हूँ, तब तक हम यह कदम नहीं उठा सकते हैं। सैंतो निनोटो द्वारा मेरा बचाव उस समय मेरी सास हमसे मिलने आई थीं। वे प्राग के शिशु येशु की उत्साही भक्त थी, उन्होंने मुझे शिशु येशु के प्रति नव रोज़ी प्रार्थना (नोवेना) दी, और मैंने चमत्कार के लिए मन्नत रखती हुई प्रतिदिन प्रार्थना की। नोवेना पूरा करने के तुरंत बाद एक प्रथम शुक्रवार को, हम येशु के पवित्र हृदय के सम्मान में पवित्र मिस्सा में भाग लेने के लिए किसी गिरजाघर की तलाश कर रहे थे। हमने जितने भी गिरजाघर देखे वे सभी बंद थे, आखिरकार हम एक ऐसे गिरजाघर में पहुँचे जो न केवल खुला था बल्कि जहां सैंतो निनो* (पवित्र शिशु) का पर्व मनाया जा रहा था। समारोही पवित्र मिस्सा और गिरजाघर की सारी गतिविधियाँ शिशु येशु के प्रति श्रद्धा और प्रेम से भरी हुई थी। समारोह के अंत में गायक मंडली ने एक शक्तिशाली, गूंजती हुई ढोल की थाप बजाई, जिसने पूरे वातावरण को भर दिया। उस ढोल की हर थाप मेरी आत्मा को छेदती थी और मुझे लगता था कि मेरे सारे डर उड़ गए हैं। एक नया साहस और आशा ने डर की जगह ले ली। मेरा आत्मविश्वास अब मेरी अपनी क्षमताओं पर निर्भर नहीं था, बल्कि येशु मेरे भीतर क्या कर सकते हैं, इस पर निर्भर था। मेरी कमियों के बावजूद ईश्वर का अटल प्रेम मेरे पीछे दौड़ रहा था और अब समय आ गया था कि मैं सब कुछ उनके हवाले कर दूँ। ड्राइविंग प्रशिक्षक के साथ प्रशिक्षण के नए सत्रों को पूरा करने के बाद, हमने घर के सारे सामान समेट लिए और उपनगर में चले गए। मेरे पिता और ससुर ने मेरी ड्राइविंग में बाकी बची कुछ कमियों को दूर करने में मेरी मदद की और मेरी माँ ने मेरे लिए प्रार्थना की। लाइसेंस प्राप्त करने के सात साल बाद, मैं अब रोज़ाना आसानी से गाड़ी चला रही हूँ। हाईवे के पाँच लेन वाले हिस्से पर 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से गाड़ी चलाना मुझे हमारे ईश्वर की अथाह शक्ति और दया की निरंतर याद दिलाता है। सारी महिमा, सम्मान और प्रशंसा येशु को मिले, जिसने स्टीयरिंग व्हील संभाला और मेरे परिवार के जीवन को बदल दिया। "जो मुझे बल प्रदान करते हैं, मैं उनकी सहायता से सब कुछ कर सकता हूँ।" – फिलिप्पी 4:13 * सैंतो नीनो डे सेबू शिशु येशु की एक चमत्कारी छवि है, जिसका आदर फिलिपिनो कैथलिक समुदाय द्वारा किया जाता है|
By: मिशेल हेरोल्ड
Moreहमारे पास जो कुछ भी है वह ऊपर से एक उपहार है, लेकिन कभी सोचा है कि जब ईश्वर ने आपको यह दिया तो उसका क्या इरादा था? जब मैं तीन भाइयों में सबसे छोटा था, तब तक मेरा परिवार ख्रीस्तीय परिवार था, लेकिन मेरा परिवार कोई ख्रीस्तीय रीति रिवाज़ का पालन नहीं करता था। मेरे माता-पिता शुरू से कैथलिक नहीं थे, इसलिए मुझे याद है कि प्रोविडेंस कैथलिक हाई स्कूल में एक नए छात्र के रूप में मेरे पहले दिन, मैं बिलकुल डर गया था, क्योंकि कभी किसी पुरोहित या धर्म बहन से मेरी भेंट नहीं हुई थी। मुझे कैथलिक मिस्सा के बारे में कुछ भी नहीं पता था, लेकिन मुझे स्कूल में सभी मिस्साओं में भाग लेने के लिए कहा गया था। मुझे ईश शिक्षा के पाठ्यक्रम में भी हिस्सा लेना था, लेकिन उसके अंतर्गत नियमित रूप से आयोजित बेसबॉल कार्यक्रम में मुझे रूचि थी, इसलिए बेसबॉल खेलने के इरादे से मैं ने ईश शास्त्र की कक्षा में भाग लेने से कोई आपत्ति नहीं जताई। कुछ ढूँढ रहे हो ... 14 साल की उम्र में, मेरे साथियों के सामने विश्वास की बातों को लेकर शर्मिन्दगी का एहसास होने का बड़ा डर मुझे सताता था – मुझे दर था कि मुझसे कैथलिक विश्वास के बारे में बुनियादी सवाल पूछा जाएगा और मैं जवाब नहीं दे पाऊँगा। लेकिन हम नए छात्रों को ईशशास्त्र पढ़ाने वाली सिस्टर मार्गरेट ने कभी भी मुझे असहज नहीं किया। एक दिन कक्षा के बाद, वह मेरे लिए दरवाज़े पर इंतज़ार कर रही थी। मेरा इरादा सीधे उनके बगल से निकल जाने का था, लेकिन उन्होंने मुझे रोका, मेरी आँखों में देखा और कहा: "बर्क, तुम कुछ ढूँढ रहे हो।" मैंने वहाँ से जाने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने फिर से मुझे रोका और कहा: "इसे पढ़ो।" उन्होंने मुझे मेरी पहली बाइबल दी। उस शाम, बेसबॉल का अभ्यास, होमवर्क और रात के खाने के बाद, मैं अपने कमरे में गया, दरवाज़े बंद किए और बाइबल से मत्ती के सुसमाचार को पढ़ना शुरू किया। इसने मुझे वास्तव में इस तरह से आकर्षित किया कि यह मेरी आदत बन गई। धीरे-धीरे, ईशशास्त्र मेरी पसंदीदा कक्षाओं में से एक बन गया। पूरे स्कूल केलिए होने वाले मिस्सा समारोहों के दौरान, मैं अपने दोस्तों को परम प्रसाद स्वीकार करने के लिए जाते हुए देखता था और जिस रोटी के टुकड़े को वे ग्रहण कर रहे थे, उसके प्रति उनकी श्रद्धा के बारे में जानने के लिए मैं उत्सुक रहता था। हम कानिष्ठ लोगों के लिए आयोजित एक साधना के अवसर पर, अंतिम दिन के मिस्सा बलिदान के दौरान, परम प्रसाद से मेरी गहन साक्षात्कार हुआ, इसके द्वारा मेरे भीतर ईश्वर की शक्ति का एहसास हुआ। पुरोहित ने हमें परम प्रसाद की अभिषेक प्रार्थना और वितरण के लिए पवित्र वेदी की चारों ओर इकट्ठा किया; मैं पवित्र वेदी के इतने करीब कभी नहीं गया था। परम प्रसाद वितरण के दौरान, पुरोहित परमप्रसाद लेकर हम में से प्रत्येक के पास आये; मुझे नहीं पता था कि क्या करना है। जैसे ही वे मेरे पास आये और कहा: "ख्रीस्त का शरीर", मेरा इरादा उन्हें यह बताना था कि मैं कैथलिक नहीं हूं। लेकिन यह कहने केलिए जैसे ही मैंने अपना मुंह खोला, उन्होंने परम प्रसाद को मेरी जीभ पर रख दिया। मैंने उस क्षण महसूस किया कि ईश्वर की शक्ति मेरे पूरे शरीर से गुजर रही है। हालाँकि अब मैं जानता हूँ कि बपतिस्मा न पाए हुए व्यक्ति के लिए - यहाँ तक कि जो परम प्रसाद में येशु मसीह की वास्तविक उपस्थिति पर विश्वास नहीं करने वाले बपतिस्मा प्राप्त व्यक्ति के लिए भी – परम प्रसाद ग्रहण करना सही नहीं है, परिस्थितियाँ ऐसी थीं कि मैंने अपना पहला पवित्र संस्कार संयोग से ग्रहण किया! इस घटना ने मेरे जीवन को बहुत गहराई से बदल दिया; मैंने विश्वास के बारे में और अधिक अध्ययन करना शुरू किया, और जब मैं मिसिसिपी चला गया, तब तक मैं एक कैथलिक बन चुका था जो हर दिन वास्तव में येशु मसीह को ग्रहण कर सकता था। उतार-चढ़ाव बेसबॉल अच्छा चल रहा था, और टीम अक्सर राष्ट्रीय स्तर पर रैंक करती थी। अपने अंतिम वर्ष के दौरान, जब मैं ज़ोन में आया, तो मैंने एक ग्रैंड स्लैम मारा (चौका, जो बेसबॉल खेल में बहुत कम लोग मार पाते हैं), जिस के कारण हम कॉलेज वर्ल्ड सीरीज़ में पहुँच गए। मुझे उस टूर्नामेंट का सबसे मूल्यवान खिलाड़ी नामित किया गया। लेकिन अगले तीन खेलों में कुछ त्रुटियों ने सब कुछ खत्म कर दिया। वर्ल्ड सीरीज़ मेजर लीग ड्राफ्ट के दौरान, मेरे आठ साथियों को ड्राफ्ट किया गया, लेकिन मेरे फोन की घंटी नहीं बजी। मैं टूट गया। मैं घर आया और मुझे नहीं पता था कि क्या करना है। मेरे हाई स्कूल के पूर्व बेसबॉल कोच, शिकागो व्हाइट सॉक्स के कोच बन चुके थे। कुछ हफ़्तों बाद उन्होंने मुझे फ़ोन किया और पेशेवर बेसबॉल खेलने के लिए ट्रायल के बारे में बताया। यह मेरे लिए अच्छा रहा, और अगले दिन, मैंने व्हाइट सॉक्स टीम के साथ एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए। लेकिन यह वैसा नहीं हुआ जैसा मैंने योजना बनाई थी। सीज़न के अंत में, उन्होंने कहा: "बर्क, तुम सब कुछ अच्छा करते हो, लेकिन तुम कुछ भी महान नहीं करते, हम महानता की तलाश में हैं।" उन्होंने मेरे अनुबंध को नवीनीकृत नहीं किया। मैं कुछ समय तक कोशिश करता रहा, लेकिन आखिरकार मुझे इस सच्चाई का सामना करना पड़ा कि यह सब खत्म हो चुका है। मैं 23 साल का था और मेरे पास सिर्फ़ गणित की डिग्री थी। किसी ने बताया कि बीमांक विज्ञान (एक्चुरियल साइंस) में करियर बनाना संभव है, इसलिए मैंने वह पढ़ाई की, मुझे नौकरी मिल गई और मैंने खूब पैसे कमाए। लेकिन काम का तनाव इतना कम था कि मैं ऊब गया और मैंने अपनी नौकरी छोड़ दी। ओहियो विश्वविद्यालय से अपनी मास्टर डिग्री पूरी करने के बाद, मुझे एक माइनर लीग बेसबॉल टीम, केन काउंटी कुगर्स, में नौकरी मिल गई। चार साल बाद, मेरे पास दो नौकरियों के प्रस्ताव आये - एक ही समय में बेसबॉल में दो नौकरी! मेरे सपनों के मुताबिक़! मैंने स्टेफ़नी को डेट करना शुरू ही किया था, जिससे मैं स्थानीय गिरजाघर में मिला था। एक रात, हम डिनर के लिए बाहर गए और जब हम रेस्तराँ से निकल रहे थे, तो उसने कहा: "चलो परम प्रसाद की आराधना के लिए गिरजाघर चलते हैं।" हालाँकि मैं कम से कम आठ या नौ साल से कैथलिक था, लेकिन मैंने परम प्रसाद की आराधना के बारे में कभी नहीं सुना था। स्टेफ़नी ने समझाया कि हम परम प्रसाद के संस्कार के सामने एक घंटे की शांत प्रार्थना करेंगे। उस आराधना के दौरान मुझे एहसास हुआ कि मौन में, हमारी मुलाक़ात ईश्वर से होती है। हम हर मंगलवार की रात को एक घंटे की आराधना के लिए जाने लगे, और मौन से मेरा डर मौन की लालसा में बदल गया। यह मेरे हर सप्ताह का सबसे शांतिपूर्ण घंटा बन गया। और मेरे दिल में, पुरोहित बनने की भावना सतह पर उभरती रही। ऐसा लग रहा था जैसे ईश्वर मुझसे पुरोहित बनने के लिए कह रहा था; बार-बार एक सौम्य निमंत्रण। मेरे परिवार के सदस्य, दोस्त और यहाँ तक कि पूरी तरह से अजनबी लोग भी मेरे पास आने लगे और कहने लगे कि उन्हें लगता है कि तुम एक अच्छा पुरोहित बन सकता हो। मुझे लगा कि पवित्र आत्मा आंतरिक और बाहरी दोनों तरह से काम कर रही है। इसलिए, मैंने स्टेफ़नी से बात की, और उसने मुझसे कहा कि अगर यह मेरी बुलाहट है, तो मुझे इसका पालन करना होगा। मेरा इरादा था कि मैं एक साल के लिए सेमिनरी जाऊँ और फिर स्टेफ़नी के पास लौट आऊँ। लेकिन जैसे ही मैं सेमिनरी के दरवाज़े से अंदर गया, मुझे ऐसी शांति महसूस हुई जो कभी खत्म नहीं हुई। मई 1998 में, जब मैं सेमिनरी का पहला साल पूरा कर रहा था, मुझे अपने पिता का फोन आया और उन्होंने मुझे तुरंत घर जाने के लिए कहा, क्योंकि मेरी माँ को फेफड़ों के कैंसर का पता चला था, जो मस्तिष्क और कलेजे तक फैल गया था। मैंने सब कुछ छोड़ दिया और घर चला गया। कैंसर की बीमारी चौथे चरण पर पहुँच चुकी थी। हालाँकि हम उम्मीद करते रहे, दो महीने बाद, माँ टेलीविजन देखती हुई मेरी बाहों में गिर पड़ी और चली गयी। यह भयानक था। जब मैंने खिड़की से बाहर देखा और ड्राइव वे में अपनी माँ की कार देखी, तो मैंने कल्पना की कि मेरी माँ ईश्वर के आमने-सामने आ रही हैं। ईश्वर उनसे यह नहीं पूछ रहा था कि वह किस तरह की कार चलाती हैं या वह कितना पैसा कमाती हैं, बल्कि इसके बजाय, कुछ और बुनियादी बात पूछ रहा था, जैसे: "क्या तुमने अपने पूरे दिल, दिमाग और आत्मा से अपने ईश्वर से प्यार किया है, और अपने पड़ोसी से अपने जैसा प्यार किया है?" भले ही मेरी माँ, गिरजाघर नहीं जाती थीं, फिर भी उन्होंने हमें ईश्वर के प्यार के बारे में सिखाया था। सबसे बेहतर आनंद मैं आस्था के संकट से गुज़रा। मैंने यह भी सोचा कि क्या मृत्यु के बाद भी जीवन है। मैं अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति को मुझसे दूर करने के लिए ईश्वर से नाराज़ था, लेकिन ऐसा हुआ कि ईश्वर ने मुझे इससे बाहर निकाला। मैं सेमिनरी वापस गया और कुछ वर्षों बाद मुझे पुरोहिताई का अभिषेक मिला। मैं ईश्वर का शुक्रिया अदा करता हूँ कि मैं कभी भी बेसबॉल के प्रमुख दलों में नहीं पहुँच पाया, क्योंकि पुरोहित के रूप में मैंने जो आनंद और शांति का अनुभव किया है, वह बेसबॉल के मैदान पर मेरे द्वारा अनुभव की गई किसी भी आनंद से कहीं ज़्यादा है। मैं न केवल शिकागो के बेसबॉल क्लबों के लिए धार्मिक परामर्शदाता रहा हूँ, बल्कि मैंने कैथलिक खेल शिविरों को स्थापित और संचालित किया है, जिनका अब विस्तार हो रहा है। यह ईश्वर का अनोखा तरीका था, जिस तरीके से खेलों में मेरे शौक और मेरी पसंद को आत्मसात करने और इसे अपने सेवा क्षेत्र में लाने की ईश्वर ने मुझे अनुमति दी। ईश्वर हमें एक उद्देश्य के साथ उपहार देता है, और वह चाहता है कि जिन तरीकों से हमने कभी कल्पना भी नहीं की थी, उन तरीकों से हम उनकी महिमा के लिए उन उपहारों का उपयोग करें। ------------------------- फादर बर्क मास्टर्स इलिनोई के हिंसडेल में सेंट आइजैक जोग्स पल्ली में सेवा करते हैं। वे ‘ए ग्रैंड स्लैम फॉर गॉड: ए जर्नी फ्रॉम बेसबॉल स्टार टू कैथलिक प्रीस्ट’ नामक पुस्तक के लेखक हैं।
By: फादर बर्क मास्टर्स
Moreहर क्रिया के साथ, हम एक तीर लक्ष्य की ओर निशाना साध रहे हैं। क्या हम हर बार कहते हैं "अरे निशाने पर सही नहीं गया! क्या मैं इसे फिर से कर सकता हूं?" बातचीत पिछली रात शुरू हुई थी, जैसे कई अन्य बातचीत होती हैं, पूरी तरह से निर्दोष बातचीत। घर के रास्ते पर, मुझे असहजता का एहसास हुआ। उन शब्दों पर विचार करते हुए जो मैंने पहले अपनी दोस्त से साझा किए थे, मुझे लगा कि क्या मैं वही पुराना संकेत महसूस कर रही हूं जो शायद पवित्र आत्मा की ओर से मुझे मिल रहा है। रात के अँधेरे में भी ईश्वर का आत्मा मुझे सलाह देता है, जिसे स्तोत्र 16:7 में वर्णित किया गया है? “मैं अपने परामर्शदाता ईश्वर को धन्य कहता हूँ। रात को भी मेरा अंत:करण मुझे पथ दिखाता है।” गेराज में गाड़ी लगाते हुए, मैंने तुरंत उस विचार को नकार दिया... आखिरकार, यह महिला कुछ अन्य महिलाओं के साथ कुछ समस्या का सामना कर रही थी, इसलिए उसने उन समस्याओं को लेकर मुझसे संपर्क किया, और मैं अपनी प्रतिक्रिया में सहानुभूति और समझदारी दिखाने की कोशिश कर रही थी। अगली सुबह, हालांकि, यह स्पष्ट था कि स्तोत्रकार का अनुभव अब मेरा था: प्रभु वास्तव में “मेरा परामर्शदाता ईश्वर मुझे परामर्श देता है; रात को भी मेरा अंत:करण मुझे पथ दिखाता है।” मुझे कुछ साल पहले शब्दों की शक्ति के बारे में मैंने जो सीखा था, जागते ही वह तुरंत याद आया। हाँ, जो कुछ मैंने पिछली रात साझा किया था, वह सत्य था। यह उस संदर्भ में सहायक भी था, जो मेरी इस व्यक्ति के साथ संबंधों के संदर्भ में था। मेरी प्रतिक्रिया प्रेरणादायक नहीं थी! अफसोस, इसे आवश्यक भी नहीं कहा जा सकता था! सौभाग्य से, मेरा आंकलन सकारात्मक नोट पर समाप्त हुआ, क्योंकि मेरी टिप्पणियों को दयालु माना जा सकता था, क्योंकि जब हम अपनी दोस्त की चिंताओं पर चर्चा कर रहे थे, तब मैंने इन महिलाओं के उन सुंदर गुणों को याद किया। जैसे हम में से अधिकांश किसी न किसी विशेष प्रकार का आइस क्रीम या अन्य पसंदीदा भोजन के स्वाद का बार-बार आनंद लेते हैं, वैसे ही हम में से कुछ के पास एक विशेष पाप होता है जिसका बार-बार स्वाद लेने का हमारा मन करता है। (एक कहानी याद आती है कि एक व्यक्ति पुरोहित के पास जाकर हर बार पाप स्वीकार में यह कहता है कि वह अशुद्ध विचारों में उलझा हुआ था...पुरोहित पूछते हैं: “क्या आपने उन विचारों के साथ रहकर पाप किया ?” पाप स्वीकार करनेवाला व्यक्ति जवाब देता है: “नहीं, लेकिन उन विचारों ने मेरे साथ रहकर पाप किया होगा!”) मैंने महसूस किया कि मैंने अपने विशेष 'स्वाद' वाले पाप के सामने समर्पण कर दिया था, जिसे मैं अक्सर स्वीकार करती थी, लेकिन फिर भी उसे दोहराती रहती थी... लेकिन जैसा कि कहानी में उस आदमी के पापस्वीकार से हमें हंसी आती है, उसी तरह मेरे पापस्वीकार के बारे में सोचकर मुझसे उस तरह की हंसी नहीं निकलती! अपने इस द्वंद्व पर विचार करते हुए, मैंने सोचा कि समान स्थिति में क्या कोई और इस तरह की सोच रख सकते हैं... किसी और का 'पसंदीदा पाप' क्या हो सकता है? क्या उन्होंने भी उसे बार-बार ईश्वर, पुरोहित या यहां तक कि किसी ऐसे दोस्त के सामने, जिसे वे विश्वास करते हैं, इस तरह बार बार पाप स्वीकार किया होगा,? बचपन से बड़े होने के पल बाइबिल में 'पाप' शब्द का यूनानी अनुवाद 'हमार्टानो' है, जिसका मतलब है कि एक व्यक्ति तीर चला रहा है, लेकिन निशाना चूक जाता है। जो व्यक्ति निशाने से चूकता था, उसे पापी कहा जाता था। मेरी सारी कोशिशों के बावजूद, मैं भी निशाने से चूक गयी थी! उस सुबह ईश्वर से बात करने के बाद, मैंने अपनी दोस्त को संदेश भेजा। माफी मांगने के लिए टाइप करते हुए एक ऐसा विचार जो मेरे मन में आया उसे भी साझा करने के बाद, मुझे अंततः अपने 'हमार्टानो' की जड़ समझ में आई। मैंने अपने संदेश में लिखा: “मेरे शब्दों का उपयोग करने और लोगों के साथ कहानियाँ और बातचीत साझा करने की मस्ती मुझ पर हावी थी, जिसके कारण मुझे अनावश्यक और प्रेरणा न देनेवाले कार्यों के लिए इसका उपयोग करने की अपनी इच्छाओं को मैं रोक नहीं पाती थी।” मैंने संदेश समाप्त करते हुए अपनी दोस्त से कहा कि अगर मैं भविष्य में इन 'सीमाओं' से बाहर जाऊं, तो वह मुझे जवाबदेह ठहराए। मुझे जल्द ही जवाब में एक संदेश मिला: "चाहे हम कितने भी समय से येशु के साथ चल रहे हों, हमारे पास हमेशा और प्रगति करने के अवसर होते हैं। तुम माफ़ किए गए हो! मैं सहमत हूँ कि हमारी बातचीत जितनी देर तक चली, उतनी लंबी नहीं होनी चाहिए थी, जिससे हम एक खतरनाक क्षेत्र में पहुंच गए थे। मैं उन परिस्थितियों के प्रति अधिक सचेत रहने की पूरी कोशिश करूंगी और जरूरत पड़ने पर तुम्हें जवाबदेह ठहराऊँगी, और तुम्हारे लिए भी वही करने की उम्मीद करती हूं। प्रभु का धन्यवाद कि उसने हमें अपनी कृपा और दया से दिखाया, और हमें यह समझाया कि हमें कहां बेहतर करने की आवश्यकता है।" मेरी दोस्त की कृपालु प्रतिक्रिया और ईमानदारी की सराहना करते हुए, मुझे 'बेहतर करने' की प्रेरणा मिली! मुझे एहसास हुआ कि चूंकि यह स्पष्ट है कि हमारे भीतर कुछ ऐसा है, जिसे हम अपने सामान्य प्रलोभन में शामिल होकर या उसे बढ़ावा देकर पोषित कर रहे हैं, इसलिए इस परिणामी व्यवहार की जड़ तक पहुंचना अनिवार्य है। पवित्र आत्मा से यह जड़ हमारे सामने प्रकट करने के लिए कहने से, हमें यह समझने में मदद मिलती है कि हम इस क्षेत्र में बार-बार निशाना क्यों चूकते हैं। हमारे साथ अतीत में क्या हुआ था, जिसके कारण हमारे अंदर एक खालीपन पैदा हो गया था, जिसे हम अपने पाप के स्वाद से भरना चाहते हैं? इस भोग-विलास से हम किस ज़रूरत या इच्छा को पूरा कर रहे हैं? क्या हमारे टूटेपन के कारण कोई घाव सड़ रहा है, जिसे भरने की ज़रूरत है? हम किस तरह की स्वस्थ प्रतिक्रिया पर विचार कर सकते हैं, जिससे न केवल दूसरों को चोट पहुँचने से रोका जा सके, बल्कि हम अपनी कमज़ोरियों में खुद के प्रति करुणा और अनुग्रह भी दिखा सकें? यह जानते हुए कि हमें ‘अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम करना है, दूसरों से प्रेम करने की कोशिश करने से खुद से भी प्रेम करने की ज़रूरत बढ़ती है, है न? बोयें, उगाएं और छांटें कभी-कभी, हम सालों तक एक ही व्यवहार में बने रहते हैं। मेरी दोस्त के अन्दर जवाब देने का साहस था, लेकिन बहुत से लोगों के पास ऐसा साहस नहीं होता है, इस कारण, हम ऐसे पैटर्न में बने रहते हैं जो पवित्र आत्मा के प्रयासों को सीमित करते हैं ताकि हम मसीह की प्रतिछाया के अनुरूप बन सकें। हम बदलने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन जब तक हम पर्याप्त रूप से प्रेरित नहीं होते हैं, शायद किसी और को अपना जवाबदेही के भागीदार बनाने के द्वारा, हम हार मान सकते हैं और अपनी पसंद के स्वाद पर वापस जा सकते हैं। चाहे वह रॉकी रोड आइसक्रीम हो, या मेरे द्वारा अनावश्यक शब्दों का चयन, प्रभु चाहते हैं कि हम जानें कि यदि हम उनकी आत्मा को हमें अन्य विकल्पों की ओर ले जाने देते हैं तो हमारा जीवन और हमारे आस-पास के अन्य लोगों का जीवन कितना अधिक सुखद हो सकता है । मुझे पता था कि जिस प्रवृत्ति में मैं इतनी आसानी से फंस गयी थी, उसको बदलने का तरीका खोजने की मुझे ज़रूरत है। जब मेरी दोस्त ने देखा कि मैं फिर से उस परिचित रास्ते पर चलना शुरू कर रही हूँ, तब मैंने उससे जवाबदेह होने में मेरी मदद करने के लिए कहा। चूँकि पाप से बचने के हमारे सभी प्रयास येशु के चरित्र का बेहतर अनुकरण करने की ओर ले जाते हैं, इसलिए गलाती 5:22-23 मेरे मन में आया। मैं पाप के अपने विशेष स्वाद के बजाय आत्मा के फलों में से किसी एक के साथ अपनी भूख को संतुष्ट करना चुन सकती थी। प्रेम, आनंद, शांति, सहनशीलता, मिलनसारी, दयालुता, भलाई, ईमानदारी, सौम्यता और आत्म-संयम के फल उत्पन्न करना येशु मसीह के समान बनने केलिए हमारे प्रयासों में पवित्र आत्मा के साथ हमारी भागीदारी का प्रमाण है। अभ्यास से परिपूर्णता नहीं मिलती, लेकिन यह प्रगति जरूर करता है! इन गुणों में से किसी एक का अभ्यास करने की दिशा में अपने इरादे को निर्देशित करके मुझे पता था कि मैं अंततः धार्मिकता का फल देखूंगी। प्रत्येक फल एक बीज बोने से शुरू होता है, फिर अंततः जब तक कि हम सही प्रकार का फल नहीं देखते, तब तक खाद देकर, उगाकर और छंटाई की जाती है। इस बीच, मैं अपने मन को अनुस्मारकों से खाद देना शुरू करूँगी, ऐसी कहावत के द्वारा: "शब्द तीर की तरह होते हैं; एक बार कमान से छोड़े जाने के बाद उन्हें वापस नहीं बुलाया जा सकता।" जब मैं अपने व्यवहार की जड़ जानती हूँ, और मैंने अपनी मित्र को मुझे जवाबदेह ठहराने के लिए आमंत्रित किया है, तब मैं आत्म-नियंत्रण का अभ्यास करने पर ध्यान केंद्रित करने का विकल्प चुन रही हूँ, जैसा कि मेरी मित्र ने बहुत ही संक्षेप में बताया, उसी तरह जब मुझे लगता है कि दूसरे लोग हमें 'खतरनाक क्षेत्र में डाल रहे हैं', तब उनके साथ बातचीत समाप्त कर रही हूँ। यह देखने और चखने के बाद कि प्रभु अच्छे हैं, मैं जानती हूँ कि केवल वही वास्तव में मेरे दिल की इच्छाओं को पूरा कर सकते हैं। स्तोत्र 16:8 आगे कहता है: "मैं प्रभु को सदा अपनी आँखों के सामने रखता हूँ; वह मेरे दाहिने विराजमान है, मैं विचलित नहीं होऊँगा।" मैं लक्ष्य पर निशाना लगाने के लिए एक बार फिर अपना तीर उठाती हूँ। प्रभु की कृपा से, समय के साथ, मेरा तीर निशाने के करीब पहुँच जाएगा। येशु की शिष्य बनने के लिए प्रतिबद्ध, मैं अपने स्वर्ग रुपी घर का मार्ग येशु का अनुसरण करूँगी। निश्चय ही तेरी भलाई और तेरी कृपा से मैं जीवन भर घिरा रहता हूँ। मैं चिरकाल तक प्रभु के मंदिर में निवास करूँगा। (स्तोत्र 23:6)
By: करेन एबर्ट्स
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