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ईश्वर को आपके जीवन में एक सुंदर कहानी लिखने दें
वह गर्मियों का एक खूबसूरत दिन था जब हम आराम से दोस्तों के साथ बातें कर रहे थे जबकि बच्चे क्रीक में हँसते हुए खेल रहे थे। मेरे दोस्तों ने बड़े गर्व से हमें अपने बड़े बेटे के बारे में बताया जो दंत चिकित्सा में अपना करियर बनाने के लिए मैक्सिको गया था, क्योंकि मैक्सिको में पढ़ाई यहाँ से कहीं अधिक किफायती था। उनके बेटे ने उन्हें अपने नए दोस्त बनाने के बारे में बताया था। वह जिन लड़कियों से मिला, उनमें से एक ने अपने व्यवहार और रवैये से उस लड़के को चकित कर दिया। उस लडकी का व्यवहार मेरे मित्र के बेटे के रूढ़िवादी मूल्यों से बिलकुल मेल नहीं खाता था, इसलिए उसने उस लड़की से दूर रहने का फैसला किया। मेरे मित्रों को अपने बेटे पर इतना गर्व था क्योंकि उनका बेटा यह समझने में सक्षम था कि इस लड़की के साथ दोस्ती या संबंध बनाना अच्छा विचार नहीं है। मैं उसकी सावधानी को समझ सकता था, लेकिन मेरे पास एक अलग दृष्टिकोण था क्योंकि मैं कभी ‘वह लड़की’ थी…
मेरा जन्म कनाडा के क्यूबेक प्रान्त के एक छोटे से शहर में हुआ था, और हमारा गाँव पारिवारिक परवरिश के लिए एक बेहतरीन जगह थी। दुर्भाग्य से, जब मैं केवल दो साल की थी, तब मेरे माता-पिता का तलाक हुआ, इसलिए मैं अपनी माँ और उसके नए जीवन साथी के साथ बड़ी हुई, और केवल पखवाड़े में एक बार अपने पिता से मिलने गयी। मुझे हमेशा प्यार की कमी महसूस होती थी और वास्तव में येशु से मेरा परिचय नहीं हुआ था। हालाँकि मेरे माता-पिता कैथलिक थे, और मेरी माँ ने यह सुनिश्चित किया कि मुझे कैथलिक सम्प्रदाय के सभी संस्कार मिले। लेकिन वह मुझे रविवारीय मिस्सा पूजा में नहीं ले जाती थी, न ही घर में प्रार्थना करती थी, माला विनती या भोजन से पहले की प्रार्थना भी नहीं। मेरा विश्वास काफी छिछला था। मेरे पिता कनाडा में पले-बढ़े इतालवी थे। उनकी मां एक कट्टर कैथलिक थीं और हर दिन प्रार्थना करना कभी नहीं भूलती थी। यह लज्जजनक बात है कि मैं उनके नक्शेकदम पर नहीं चली… फिर भी मुझे लगता है कि ईश्वर के पास मेरे लिए अन्य योजनाएँ थीं।
जैसे-जैसे मैं बड़ी हो रही थी, अपनी त्वचा के रंग के कारण अन्य बच्चों ने मेरा अस्वीकार कर दिया। मेरी माँ कोस्टा-रिका से हैं इसलिए मैं अन्य फ्रेंच कैनेडियन जैसी नहीं थी। हालाँकि, मैं बहुत सारे दोस्त बनाने में कामयाब रही, लेकिन वे सभी मुझ पर अच्छे प्रभाव डालने में सक्षम लोग नहीं थे। यौवन की शुरुआत के रूप में, मैं एक आकर्षक युवा महिला के रूप में विकसित हुई। मैं अपनी उम्र से बड़ी दिखती थी। मैंने अपने आप को लोकप्रिय बनाने के लिए इसका फायदा उठाया और इसलिए मुझे बॉयफ्रेंड पाने में कोई दिक्कत नहीं हुई। मेरी माँ ने मुझे वास्तव में कभी भी वह यौन शिक्षा नहीं दी जिसकी मुझे आवश्यकता थी और मैं जिस वातावरण में रह रही थी वह रूढ़िवादी नहीं था, बल्कि ज़रुरत से ज्यादा उदार, अति-उदार था। जैसे-जैसे समय बीतता गया, मैंने धोखे के बाद धोखे को झेला। मुझे खालीपन और तन्हाई का एहसास हुआ। मेरी “खुशी” हमेशा अस्थायी थी और जल्द ही, मैं किसी और की बाहों में चली गयी….
जब मैंने हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी की, तो मैंने कॉलेज शुरू करने से पहले एक साल की छुट्टी लेने और अपनी मौसी के साथ रहने के लिए कोस्टा रिका जाने का फैसला किया। चूंकि मेरे पास पहले से ही अपने खुद के फैशनेबल कपड़े, मेकअप, परफ्यूम आदि खरीदने के लिए अंशकालिक नौकरी थी, इसलिए मैंने यात्रा का खर्च उठाने और अकादमी में स्पेनिश सीखने के लिए कुछ पैसे बचाए। मैं छुट्टियों के मौसम में कोस्टा-रिका पहुंची, और वहां बहुत सारे उत्सव हो रहे थे। चूंकि पुरुषों के साथ मेरे रिश्ते हमेशा बुरी तरह अंजाम हो रहे थे, इसलिए मैंने (18 साल की उम्र में) तय कर लिया था कि मैं पुरुषों के साथ नहीं रहूंगी। मैंने इसके बजाय परिवार के साथ समय बिताने का संकल्प लिया, लेकिन ईश्वर के पास मेरे लिए कुछ और ही था…
मेरे आने के पाँच दिन बाद, मेरा मौसेरा भाई मुझे एक बार-सह-रेस्तरां में ले गया जहाँ उसकी मुलाक़ात कुछ दोस्तों से होनी थी। जैसे ही हम बैठे, एक बहुत सुन्दर लड़का मुझे देखकर मुस्कुराया। मैं शरमा गयी और वापस मुस्कुरायी। उसने पूछा कि क्या वह हमारे साथ शामिल हो सकता है, और मैंने सहर्ष हाँ कर लिया। हम दोनों ने तत्काल आपसी आकर्षण महसूस किया और अगले दिन फिर से मिलने का जुगाड़ बनाया, और अगले दिन, और अगले दिन… और इसी तरह हमारी मुलाक़ातों का सिलसिला जारी रहा। हमारी सांस्कृतिक भिन्नताओं के बावजूद, हमारे बीच बहुत कुछ समान था और हम इस तरह से जुड़ने में सक्षम थे जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते थे। उसने मुझसे कहा, “मेरे लिए सबसे ज्यादा आपके दिमाग में और आपके दिल में क्या है, यही मायने रखता है।” इससे पहले मुझसे किसी ने कभी ऐसा कुछ नहीं कहा था।
विलियम और मैं एक दुसरे के बहुत ही नज़दीक हो गए। हमारे एक साथ कहीं निकलने से पहले वह मुझे उसके साथ मिस्सा बलिदान में जाने के लिए आमंत्रित करता था। हालाँकि मैंने मिस्सा बलिदान पर अधिक ध्यान नहीं दिया, फिर भी मुझे खुशी हुई क्योंकि मैं उसके साथ थी। फिर उसने मुझे उसके माँ बाप के साथ कार्टागो के महागिरजाघर की तीर्थयात्रा पर जाने के लिए आमंत्रित किया जिसमें चार घंटे की पैदल यात्रा शामिल थी। मैं तीर्थयात्रा में तो गयी, लेकिन मेरा जाना वास्तव में अपने विश्वास से प्रेरित नहीं था।
मैं महागिरजाघर में आने वाले हजारों लोगों को देखकर आश्चर्यचकित थी, जो धन्य कुँवारी मरियम से कोई निवेदन मांग रहे थे, या माँ के द्वारा प्राप्त एहसानों के लिए धन्यवाद दे रहे थे। यह नज़ारा अतुल्य था। उनमें से हर एक व्यक्ति महागिरजाघर में प्रवेश करता, घुटने टेकता और गलियारे में अपने घुटनों पर चलकर यानी रेंगते हुए, वेदी तक पहुंचता। जब हमारी बारी आई, तो मैं बिल्कुल ठीक महसूस कर रही थी, लेकिन जैसे ही मैं नीचे झुकी, मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी हवा खत्म हो गई हो। मेरे गले में एक बड़ी गांठ बन गई और मैं फूट-फूट कर रोने लगी। मैं एक बच्चे की तरह रोती हुई घुटनों पर चलती हुई वेदी तक पहुंची। विलियम ने मेरी ओर देखा, वह सोच रहा था कि यह सब क्या हो रहा है, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। बाद में जब हम बाहर निकले, तो उसकी माँ सांद्रा ने मुझसे पूछा कि क्या हुआ था। “मुझे नहीं पता,” मैं हांफने लगी। उसने कहा कि येशु मेरे दिल में रहने के लिए आए थे। मुझे पता था कि वह सही थी। यह किसी ऐसे व्यक्ति से, जिसे आप गहराई से प्यार करते हैं, उससे लंबे अलगाव के बाद मिलने जैसा था। कुछ अलौकिक, जो मेरे नियंत्रण से बाहर था, मुझ पर हावी हो रहा था।
उस क्षण से, मैं एक नई व्यक्ति की तरह महसूस करने लगी और मेरा जीवन नए सिरे से शुरू हो रहा था। 11 साल की उम्र में मेरे दृढीकरण संस्कार के बाद, अब पहली बार विलियम मुझे पापस्वीकार संस्कार में ले गया। मेरे पापों की सूची बहुत लंबी थी… मुझे लगता है कि पुरोहित मेरे पापों की लम्बी फेहरिस्त को सुनने के बाद कमरे में जाकर आराम करना चाह रहे थे। “मेरे पास बहुत काम है” कहकर वे जल्दी निकल गए!
विलियम और मैंने चार साल बाद शादी की, और ईश्वर ने हमें तीन सुंदर बेटों का वरदान दिया। 2016 में हमने अपने परिवार को मरियम के निष्कलंक हृदय को समर्पित किया। मेरा विश्वास लगातार बढ़ता गया। मैंने विभिन्न सेवकाइयों में कलीसिया की सेवा शुरू की: हाल ही में एक धर्मशिक्षक और प्रचारक के रूप में। परमेश्वर ने वास्तव में मेरे जीवन को एक अलग दिशा में मोड़ दिया है। वह मेरी आत्मा को चमकाना जारी रखता है, वह मुझे अपनी सर्वत्तम कृति में गढ़ता है। चुनौतीपूर्ण अवसर भी उसकी योजना का हिस्सा है। जब मैं अपने जीवन के क्रूस को अपनाती हूँ और उसका अनुगमन करती हूँ, तो वह मुझे अपने राज्य की ओर ले जाता है। येशु ने मुझे अपनी तरह सेवा करने के लिए चुना।
जब मैं अपनी छोटी छोटी झुंझलाहट और छोटे अपमानों को बलिदान में उसको समर्पित करती हूं, तो वह उन्हें मेरी कल्पना से कहीं अधिक अच्छाई में बदल देता है, क्योंकि उसने मुझे बदल दिया है।
उस गर्मी की छुट्टी के दिन अपने दोस्तों द्वारा कही गयी बातों पर जैसे ही मैंने विचार किया, मैंने अपने पुराने व्यक्तित्व के बारे में सोचा, मैं कितनी खो गयी थी, और कैसे विलियम से मिलने के उत्प्रेरक के माध्यम से परमेश्वर ने मेरे जीवन को पूरी तरह से बदल दिया। मैंने उन्हें सलाह दी कि वे अपने बेटे को प्रोत्साहित करें कि वह किसी मित्रता को जल्दबाजी में अस्वीकार न करें, बल्कि अपनी आत्मा में परमेश्वर के प्रकाश को चमकने दें। शायद ईश्वर की कोई अच्छी योजना है…
Claudia D’Ascanio serves the Church remarkably through her active involvement in various ministries over the years. She lives with her husband and three sons in Calgary, Canada.
मेरा पति लाइलाज बीमारी से ग्रसित है, मानो उसे मौत की सज़ा सुनाई गई हो; मैं उसके बिना जीना नहीं चाहती थी, लेकिन उसके दृढ़ विश्वास ने मुझे चौंका दिया। पाँच साल पहले, जब हमें पता चला कि मेरा पति जानलेवा बीमारी से ग्रसित हैं, उसी समय मेरी दुनिया तबाह हो गई। मैंने जीवन और भविष्य की जो कल्पना की थी, वह एक पल में हमेशा के लिए बिखर गया। यह भयानक और भ्रमित करने वाला था; मैंने कभी भी इतना भयंकर निराशा और असहायता महसूस नहीं की थी। ऐसा लग रहा था जैसे मैं लगातार डर और निराशा की खाई में डूबी हुई थी। अपने जीवन के सबसे बुरे दिनों का सामना करने के लिए मेरे पास सिर्फ़ मेरा विश्वास था जिस पर मैं टिकी हुई थी । अपने मरते हुए पति की देखभाल करने के दिन और एक नया तथा अलग जीवन का सामना करने की तैयारी के दिन मेरे पहले की योजना से बिलकुल भिन्न थे। क्रिस और मैं किशोरावस्था से ही साथ थे। हम एक दुसरे के सबसे अच्छे दोस्त थे और दुनिया की कोई भी ताकत हमें अलग नहीं कर सकती थी। हम बीस वर्षों से शादीशुदा थे और अपने चार बच्चों की परवरिश खुशी-खुशी कर रहे थे। हमारा जीवन एक आदर्श जीवन की तरह लग रहा था। अब बीमारी ने मेरे पति को मौत की सज़ा सुनाई और मुझे नहीं पता था कि मैं उसके बिना कैसे रह सकती हूँ। सच में, मैं ऐसा बिलकुल नहीं चाहती थी। एक दिन, टूटे हुए पल में, मैंने क्रिस से कहा कि मुझे लगता है कि अगर मुझे आपके बिना जीना पड़ा तो मैं हृदायाघात से मर जाऊंगी। उसकी प्रतिक्रिया उतनी हताश करने वाली नहीं थी। उसने सख्ती से लेकिन सहानुभूतिपूर्वक मुझसे कहा कि तुम्हें तब तक जीना है जब तक ईश्वर तुम्हें अपने यहाँ नहीं बुला लेता; उसने मुझे यह भी कहा कि तुम अपनी ज़िंदगी को बर्बाद नहीं कर सकती| क्योंकि वह जानता था कि उसका अंत होने वाला था। उसने मुझे पूरे विश्वास के साथ आश्वासन दिया कि वह परलोक से मुझ पर और हमारे बच्चों पर नज़र रखेगा। दुख का दूसरा पहलू क्रिस को ईश्वर के प्यार और दया पर अटूट विश्वास था। वह इस बात पर आश्वस्त था कि हम हमेशा के लिए अलग नहीं होंगे, इसलिए वह अक्सर यह वाक्यांश दोहराता था: "यह बस थोड़ी देर के लिए है।" यह वाक्यांश हमें लगातार याद दिलाता था कि कोई भी दिल का दर्द हमेशा के लिए नहीं रहता है - और इन शब्दों ने मुझे असीम आशा दी। मेरी आशा है कि ईश्वर हमें इस दौरान मार्गदर्शन करेगा, और मेरी आशा यह भी है कि मैं अगले जीवन में क्रिस के साथ फिर से मिल जाऊँगी। इन अंधकारमय दिनों में, हम रोज़री में माँ मरियम से जुड़े रहे - यही एक भक्ति थी जिससे हम पहले से ही परिचित थे। हम लोग दु:ख के रहस्यों पर अधिक बार मनन करते थे, क्योंकि हमारे प्रभु की पीड़ा और मृत्यु पर विचार करने से हम अपने दुख में उनके करीब आ जाते थे। करुणा की माला विनती एक नई भक्ति थी जिसे हमने अपनी दिनचर्या में शामिल किया। रोज़री की तरह, यह इस बात की विनम्र याद दिलाती थी कि येशु ने हमारे उद्धार के लिए स्वेच्छा से क्या सहा, और किसी तरह इस की तुलना में हमें दिया गया क्रूस कम भारी लगने लगा। हमने पीड़ा और बलिदान की सुंदरता को और अधिक स्पष्ट रूप से देखना शुरू कर दिया। मैं दिन के हर घंटे मन ही मन छोटी सी प्रार्थना दोहराती : "ओह, येशु के सबसे पवित्र हृदय, मैं तुझ पर अपना पूरा भरोसा रखती हूँ"। जब भी मुझे अनिश्चितता या भय का अहसास होता, तो यह छोटी प्रार्थना मेरे ऊपर शांति की लहर ले आती। इस दौरान, हमारा प्रार्थना जीवन काफी गहरा हो गया और जैसे हम इस दर्दनाक यात्रा को सहन कर रहे हैं, वैसे हमें उम्मीद थी कि हमारे प्रभु क्रिस और हमारे परिवार पर दया करेगा। आज, मुझे उम्मीद है कि क्रिस शांत है, दूसरी तरफ से हम पर नज़र रख रहा है और हमारे लिए मध्यस्थता कर रहा है - जैसा कि उसने वादा किया था। मेरे नए जीवन के इन अनिश्चित दिनों में, यही आशा मुझे आगे बढ़ने और शक्ति देने में मदद करती है। इस परिस्थिति ने मुझे ईश्वर के अनंत प्रेम और कोमल दया के लिए असीम आभार दिया है। आशा एक जबरदस्त उपहार है; जब हम टूटा हुआ और बिखरा हुआ महसूस करते हैं, तब आशा कभी न बुझने वाली आंतरिक चमक बन जाती है जिस पर हम अपना ध्यान केंद्रित कर पाते हैं । आशा शांत करती है, आशा मजबूत करती है, और आशा ही चंगाई देती है। आशा को थामे रखने के लिए साहस की आवश्यकता होती है। जैसा कि संत जॉन पॉल द्वितीय ने कहा: "मैं आपसे विनती करता हूँ, कभी भी आशा न छोड़ें। कभी संदेह न करें, कभी थक न जाएँ और कभी निराश न हों। डरिये नहीं।"
By: मेरी थेरेस एमन्स
Moreसबसे अंधेरी घाटियों और सबसे कठिन रातों के दौरान, बेलिंडा ने एक आवाज़ सुनी जो उसे वापस बुलाती रही। जब मैं ग्यारह साल की थी, तब मेरी माँ हमें छोड़कर चली गई। उस समय, मुझे लगा कि वह इसलिए चली गई क्योंकि वह मुझे नहीं चाहती थी। लेकिन वास्तव में, वैवाहिक दुर्व्यवहार के कारण चुपचाप वर्षों तक पीड़ित रहने के बाद, वह अब और नहीं टिक सकती थी। वह हमें बचाना चाहती थी, लेकिन मेरे पिता ने माँ को धमकी दी थी कि अगर माँ हमें अपने साथ ले गई तो पिता उसे मार देगा। इतनी कम उम्र में यह सहन करना बहुत मुश्किल था, और जब मैं इस कठिन समय से बाहर निकलने के लिए कड़ी मेहनत कर रही थी, मेरे पिता ने दुर्व्यवहार का एक नया चक्र शुरू किया जो आने वाले वर्षों तक मुझे परेशान करता रहा। घाटियाँ और पहाड़ियाँ अपने पिता के दुर्व्यवहार के दर्द को कम करने और अपनी परित्यक्त माँ के अकेलेपन की भरपाई करने के लिए, मैंने सभी तरह के 'राहत' तंत्रों का सहारा लेना शुरू कर दिया। और एक समय ऐसा आया जब मैं दुर्व्यवहार को और बर्दाश्त नहीं कर सकी, मैं अपने स्कूल के बॉयफ्रेंड चार्ल्स के साथ भाग गई। इस दौरान मैं अपनी माँ से फिर से जुड़ी और कुछ समय तक उनके और उनके नए पति के साथ रही। 17 साल की उम्र में, मैंने चार्ल्स से शादी कर ली। उसके परिवार का जेल में रहने का इतिहास रहा था, और उसने भी जल्द ही यही किया। मैं उन्हीं अपराधी किस्म के लोगों के साथ घूमती रही, और आखिरकार, मैं भी अपराध में फंस गई। 19 साल की उम्र में, मुझे पहली बार जेल की सज़ा सुनाई गई - घातक हमला करने के आरोप में पाँच साल की कैद । जेल में, मैं अपने जीवन में पहले से कहीं ज़्यादा अकेली महसूस कर रही थी। जिस किसी से मुझे प्यार और पालन-पोषण की उम्मीद थी, उन सब ने मुझे छोड़ दिया, मेरा इस्तेमाल किया और मेरे साथ दुर्व्यवहार किया। मुझे याद है कि मैंने हार मान ली थी, यहाँ तक कि मैंने अपना जीवन समाप्त करने की कोशिश भी की थी। लंबे समय तक, हाँ जब तक कि मैं शेरोन और जॉयस से नहीं मिली, मैं नीचे की ओर गिरती रही । उन दोनों ने अपना जीवन प्रभु को समर्पित कर दिया था। हालाँकि मुझे येशु के बारे में कोई जानकारी नहीं थी, लेकिन मैंने सोचा कि मैं इसे आज़माऊँगी क्योंकि मेरे पास और कुछ नहीं था। वहाँ, उन दीवारों के भीतर फँसकर, मैंने मसीह के साथ एक नया जीवन शुरू किया। गिरना, उठना, सीखना... सज़ा के लगभग डेढ़ साल बाद, मेरे पैरोल का अवसर आया। किसी तरह मेरे दिल में, मैं बस इतना जानती थी कि मैं पैरोल पर रिहा होने जा रही हूँ क्योंकि मैं येशु के लिए जी रही थी। मुझे लगा कि मैं सभी सही और अच्छा काम कर रही थी, इसलिए जब एक साल के पैरोल का आवेदन निरस्त किया गया, तो मुझे समझ में नहीं आया। मैंने ईश्वर से सवाल करना शुरू कर दिया और मैं काफी आक्रोश में थी। इसी समय मैं दुसरे सुधार केंद्र में स्थानांतरित कर दी गयी। एक दिन प्रार्थना सभा के अंत में, जब फादर ने हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ मेरी ओर बढ़ाया, तो मैं झिझक गई और पीछे हट गई। वे पवित्र आत्मा से भरे हुए व्यक्ति थे, और पवित्र आत्मा ने उन्हें दिखाया कि मैं घावों से भरी व्यक्ति हूँ। अगली सुबह, उन्होंने मुझसे मिलने के लिए कहा। वहाँ उनके कार्यालय में, जब उन्होंने मुझसे पूछा कि मेरे साथ क्या हुआ था और मैं कैसे चोटिल हो रही थी, तो मैंने अपने जीवन में पहली बार खुलकर अपनी बात साझा की। अंततः, मैं जेल से बाहर आयी और निजी पुनर्वास में, मैंने नौकरी शुरू की और धीरे-धीरे अपने नए जीवन को संभाल रही थी। तब मेरी मुलाकात स्टीवन से हुई। मैंने उसके साथ बाहर जाना शुरू किया, और मैं गर्भवती हो गईं। मुझे याद है कि मैं इसके बारे में उत्साहित थी। स्टीफन की इच्छानुसार, हम दोनों ने शादी कर ली और पारिवारिक जीवन जीना शुरू किया। यह मेरे जीवन के शायद सबसे बुरे 17 वर्षों की शुरुआत थी, क्योंकि इस दौरान स्टीफन द्वारा मेरा शारीरिक शोषण, बेवफाई, ड्रग्स और अपराध के दलदल में मैं निरंतर फंसी रही। वह हमारे बच्चों को भी चोट पहुँचाता था, और एक बार तो मैं गुस्से में आ गयी — मैं उसे गोली मारना चाहती थी। उस समय, मैंने ये आयतें सुनीं: “प्रतिशोध मेरा अधिकार है, मैं ही बदला चुकाऊँगा।” (रोमी 12:19) और “प्रभु ही तुम्हारी ओर से युद्ध करेगा” (निर्गमन 14:14), और इन वचनों ने मुझे उसे जाने देने के लिए प्रेरित किया। कभी अपराधी नहीं मैं कभी भी लंबे समय तक अपराधी नहीं रह पायी; ईश्वर मुझे बस गिरफ्तार कर लेता और मुझे वापस पटरी पर लाने की कोशिश करता। प्रभु के बार-बार प्रयासों के बावजूद, मैं उसके लिए नहीं जी रही थी। मैंने हमेशा ईश्वर को पीछे रखा, हालाँकि मुझे पता था कि वह मेरे सामने है। कई गिरफ्तारियों और रिहाई के बाद, मैं आखिरकार 1996 में हमेशा के लिए घर आ गयी। मैं कलीसिया के संपर्क में वापस आ गयी और आखिरकार येशु के साथ एक सच्चा और ईमानदार रिश्ता बनाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे कलीसिया मेरी ज़िंदगी बन गयी; इससे पहले कभी येशु के साथ मेरा ऐसा रिश्ता नहीं था। मैं इससे तृप्त नहीं हो पायी क्योंकि मैंने देखना शुरू कर दिया कि जो चीज़ मुझे इस मार्ग पर बनाए रखेगा, वह मेरे द्वारा किए गए कार्य नहीं हैं, बल्कि येशु मसीह में मैं कौन हूँ, वही सम्बन्ध होगा। लेकिन, मेरा वास्तविक परिवर्तन ‘ब्रिजेस टू लाइफ’* (जीवन का सेतु) कार्यक्रम के साथ हुआ। मुझसे यह कैसे संभव नहीं होगा ? भले ही मैं एक अपराधी के रूप में कार्यक्रम में भागीदार नहीं थी, लेकिन उन छोटे समूहों में नेतृत्व प्रदान करने में सक्षम होना एक ऐसा आशीर्वाद था जिसकी मैंने उम्मीद नहीं की थी - एक ऐसा आशीर्वाद जिसने मेरे जीवन को खूबसूरत तरीकों से बदल दिया। जब मैंने अन्य महिलाओं और पुरुषों को अपनी कहानियाँ साझा करते हुए सुना, तो मेरे अंदर कुछ क्लिक किया। इसने मुझे पुष्ट किया कि मैं अकेली नहीं हूँ और मुझे बार-बार सामने आने के लिए प्रोत्साहित किया गया। मैं काम से बहुत थक जाती थी और चूर चूर हो जाती थी, लेकिन मैं जेलों में चली जाती और बस तरोताजा हो जाती क्योंकि मुझे पता था कि मुझे वहीं होना चाहिए था। ब्रिजेस टू लाइफ़ खुद को माफ़ करने की सीख पाने के बारे में है; दूसरों की मदद करने से न केवल मुझे संपूर्ण बनने में मदद मिली, बल्कि इससे मुझे चंगा होने में भी मदद मिली...और मैं अभी भी चंगा हो रही हूँ। सबसे पहले, मेरी माँ थी। उन्हें कैंसर था, और मैं उन्हें घर ले आयी; जब तक वे मेरे घर पर थीं तब तक मैंने उनकी देखभाल की। फिर वे शांतिपूर्वक इस दुनिया से चली गईं। 2005 में, मेरे पिता का कैंसर फिर से वापस आ गया, और डॉक्टरों ने अनुमान लगाया कि वे अधिकतम छह महीने तक जीवित रहेंगे। मैं उन्हें भी घर ले आयी। मेरे साथ जो कुछ भी हुआ था, इसके मद्देनज़र, सभी ने मुझे इस आदमी को अपने साथ न लेने के लिए कहा। मैंने पूछा: "मुझसे यह कैसे संभव नहीं होगा ?" येशु ने मुझे माफ़ कर दिया, और मुझे लगता है कि परमेश्वर चाहता है कि मैं ऐसा करूँ। अगर मैंने त्याग और दुर्व्यवहार के लिए अपने माता-पिता के प्रति कड़वाहट या घृणा को बनाए रखने का विकल्प चुनी होती, तो मुझे नहीं पता कि वे अपना जीवन प्रभु को समर्पित करते या नहीं। अपने जीवन पर पीछे मुड़कर नज़र डालने पर, मैं देखती हूँ कि कैसे येशु मेरा पीछा करते रहे और मेरी मदद करने की कोशिश करते रहे। जो कुछ नया था उसे महसूस करने के लिए मेरे अन्दर बहुत प्रतिरोध था, और जो आरामदायक था उसमें रहना मेरे लिए बहुत आसान था, लेकिन मैं येशु की आभारी हूँ कि मैं अंततः पूरी तरह से उनके सामने आत्मसमर्पण करने में सक्षम थी। येशु मेरे उद्धारकर्ता हैं, येशु मेरे चट्टान हैं, और येशु मेरे मित्र हैं। मैं येशु के बिना जीवन की कल्पना ही नहीं कर सकती। * ब्रिजेस टू लाइफ पीड़ितों और अपराधियों के लिए एक आस्था-आधारित कार्यक्रम है, जो ईश्वर के प्रेम और क्षमा की परिवर्तनकारी शक्ति पर ध्यान केंद्रित करता है l
By: Belinda Honey
Moreक्या मेरा जीवन कभी सामान्य हो पाएगा? मैं अपना काम कैसे जारी रख सकती हूँ? इन पर विचार करते हुए, मेरे दिमाग में एक अद्भुत समाधान आया... मुझे अपना जीवन बेहद तनावपूर्ण लग रहा था। कॉलेज में अपने पाँचवें वर्ष में, द्विध्रुवी विकार (बाईपोलर डिसऑर्डर) की शुरुआत के कारण पढ़ाई पूरी करने के मेरे प्रयासों में बाधा बन रही थी। मुझे अभी तक कोई निदान नहीं हुआ था, लेकिन मैं अनिद्रा से ग्रस्त थी, और मैं थकी हुई और अव्यवस्थित दिखती थी। इसके कारण शिक्षक के रूप में रोजगार की मेरी संभावनायें बाधित हुई। चूँकि मेरे पास पूर्णतावाद की ओर मजबूत प्राकृतिक प्रवृत्ति थी, इसलिए मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई और डर लगा कि मैं सभी को निराश कर रही हूँ। मैं गुस्से, निराशा और अवसाद में घिर गयी। लोग मेरी गिरावट के बारे में चिंतित थे और मदद करने की कोशिश कर रहे थे। मुझे स्कूल से एम्बुलेंस द्वारा अस्पताल भी भेजा गया था, लेकिन डॉक्टरों को उच्च रक्तचाप के अलावा कुछ भी गलत नहीं मिला। मैंने प्रार्थना की लेकिन कोई सांत्वना नहीं मिली। यहाँ तक कि ईस्टर मिस्सा के दौरान -ईस्टर की रात मेरा सबसे पसंदीदा समय है - भी दुष्चक्र जारी रहा। येशु मेरी मदद क्यों नहीं कर रहा है? मुझे उससे बहुत गुस्सा आया। अंत में, मैंने प्रार्थना करना ही बंद कर दिया। जैसे-जैसे यह चलता रहा, दिन-ब-दिन, महीने-दर-महीने, मुझे नहीं पता था कि क्या करना है। क्या मेरी ज़िंदगी कभी सामान्य हो पाएगी? यह असंभव लग रहा था। जैसे-जैसे मेरे स्नातक की परीक्षा नज़दीक आ रही थी, मेरा डर बढ़ता जा रहा था। पढ़ाना एक मुश्किल काम है जिसमें बहुत कम ब्रेक मिलते हैं, और छात्रों को मेरी ज़रूरत होगी ताकि मैं उनकी कई ज़रूरतों को पूरा करती हुई और सीखने का एक अच्छा माहौल प्रदान करती रहूँ। मैं अपनी मौजूदा स्थिति में यह कैसे कर सकती थी? मेरे दिमाग में एक भयानक समाधान आया: "तुम्हें बस खुद को मार देना चाहिए।" उस विचार को नरक में होना चाहिए, लेकिन उसे त्यागने और उसे सीधे नरक में वापस भेजने के बजाय, मैंने उसे वहीं मेरे मन में ही रहने दिया। यह मेरी दुविधा का एक सरल, तार्किक उत्तर लग रहा था। मैं बस लगातार हमले के बजाय सुन्न होना चाहती थी। अफ़सोस की बात है कि मैंने निराशा को चुना। लेकिन, जब मुझे लगा कि यह मेरे आखिरी पल होंगे, तो मैंने अपने परिवार के बारे में और मेरे उस व्यक्तित्व के बारे में सोची जो मैं कभी थी। सच्चे पश्चाताप में, मैंने अपना सिर आसमान की ओर उठाया और कहा: "मुझे बहुत खेद है, येशु। इन सब बातों केलिए मुझे क्षमा कर। बस मुझे वह दे जिसकी मैं हकदार हूँ।" मुझे लगा कि ये मेरे इस जीवन के आखिरी शब्द होंगे। लेकिन परमेश्वर की कुछ और ही योजना थी। ईश्वर की आवाज़ का श्रवण मेरी माँ, ईश्वर की कृपा से, उसी क्षण करुणा की माला विनती बोल रही थी। अचानक, माँ ने अपने दिल में ज़ोर से और स्पष्ट शब्दों में सुना “एलन को खोजो।” उन्होंने आज्ञाकारी होकर अपनी माला के मोतियों को एक तरफ रख दिया और मुझे गैरेज के फर्श पर पाया। वह जल्दी से समझ गई, और भयभीत होकर बोली: “तुम क्या कर रहे हो?!” और उन्होंने मुझे घर के अंदर खींच लिया। मेरे माता-पिता का दिल टूट गया था। ऐसे समय के लिए कोई नियम पुस्तिका नहीं है, लेकिन उन्होंने मुझे मिस्सा में ले जाने का फैसला किया। मैं पूरी तरह से टूट चुकी थी, और मुझे पहले से कहीं ज़्यादा उद्धारकर्ता प्रभु की ज़रूरत थी। मैं येशु के पास आने के पल के लिए तरस रही थी, लेकिन मुझे यकीन था कि मैं दुनिया की आखिरी इंसान हूँ जिसे वह कभी देखना चाहेगा। मैं यह विश्वास करना चाहती थी कि येशु मेरा चरवाहा है और अपनी खोई हुई भेड़ों को वापस लाएगा, लेकिन यह मुश्किल था क्योंकि कुछ भी नहीं बदला था। मैं अभी भी गहन आत्म-घृणा से ग्रस्त थी, अंधकार से पीड़ित थी। यह लगभग शारीरिक रूप से दर्दनाक था। उपहारों की तैयारी के दौरान, मैं फूट-फूट कर रो पड़ी। मैं बहुत लंबे समय से रोई नहीं थी, लेकिन एक बार जब मैंने रोना शुरू किया, तो मैं रुक नहीं पाई। मैं अपनी ताकत के आखिरी छोर पर थी, मुझे नहीं पता था कि आगे कहाँ जाना है। लेकिन जैसे-जैसे मैं रोती गई, मेरा बोझ धीरे-धीरे कम होता गया, और मैंने खुद को उनकी दिव्य दया में लिपटी हुई महसूस किया। मैं इसके लायक नहीं थी, लेकिन उन्होंने मुझे खुद का उपहार दिया, और मुझे पता था कि वह मेरे सबसे निचले बिंदु पर भी मुझसे उतना ही प्यार करता था जितना कि उन्होंने मेरे सबसे ऊंचे बिंदु पर किया था। प्यार की तलाश में आने वाले दिनों में, मैं मुश्किल से ईश्वर का सामना कर पाती, लेकिन वह छोटी-छोटी चीजों में दिखाई देता रहा और मेरा पीछा करता रहा। मैंने हमारे आतंरिक कक्ष में लगी येशु की दिव्य दया की तस्वीर की मदद से येशु के साथ फिर से संवाद स्थापित किया। मैंने बात करने की कोशिश की, ज्यादातर संघर्ष के बारे में शिकायत की और फिर हाल ही में हुए मेरे बचाव के मद्देनजर इसके बारे में बुरा महसूस किया। अजीब तरह से, मुझे लगा कि मैं एक कोमल आवाज़ को फुसफुसाते हुए सुन सकती हूँ: "क्या तुमने सच में सोचा था कि मैं तुम्हें मरने के लिए छोड़ दूँगा? मैं तुमसे प्यार करता हूँ। मैं तुम्हें कभी नहीं छोडूंगा। मैं तुम्हें कभी नहीं छोडने का वादा करता हूँ। सब कुछ माफ़ है। मेरी दया पर भरोसा रखो।" मैं इस पर विश्वास करना चाहती थी, लेकिन मैं इस बात पर भरोसा नहीं कर पा रही थी कि यह सच था। मैं उन दीवारों से निराश हो रही थी, जिन्हें मैं खादी कर रही थी, लेकिन मैं येशु से बात करती रही: "येशु, मैं तुझ पर भरोसा करना कैसे सीख सकती हूँ?" जवाब ने मुझे चौंका दिया। जब आपको लगता है कि कोई उम्मीद नहीं है, लेकिन आपको जीना जारी रखना है, तो आप कहाँ जायेंगे? जब आप पूरी तरह से अप्रिय महसूस करते हैं, और घमंड के कारण कुछ भी स्वीकार करने में दिक्कत महसूस करते हैं, फिर भी किसी न किसी तरह विनम्र होना चाहते हैं? दूसरे शब्दों में, जब आप पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के साथ पूर्ण सामंजस्य चाहते हैं, लेकिन अपने घर का रास्ता खोजने के लिए प्यार भरे स्वागत से बहुत डरते हैं और अविश्वास करते हैं, तो आप कहाँ जाना चाहते हैं? इसका उत्तर है ईश्वर की माँ और स्वर्ग की रानी धन्य कुँवारी मरियम। जब मैं भरोसा करना सीख रही थी, तो मेरे अजीब प्रयासों ने येशु को नाराज़ नहीं किया। वह मुझे अपनी धन्य माँ के माध्यम से अपने पवित्र हृदय के करीब बुला रहे थे। मैं उनसे और उनकी वफादारी से प्यार करने लगा। मैं माँ मरियम के सामने सब कुछ स्वीकार कर सकती थी। हालाँकि मुझे डर था कि मैं अपनी सांसारिक माँ से किया गया वादा पूरा नहीं कर पाऊँगी क्योंकि, अपने दम पर, मैं अभी भी मुश्किल से जीने की इच्छाशक्ति जुटा पा रही थी, मेरी माँ ने मुझे मरियम को अपना जीवन समर्पित करने के लिए प्रेरित किया, इस विश्वास के साथ कि वह मुझे इससे बाहर निकलने में मदद करेगी। मुझे इस बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं थी कि इसका क्या मतलब है, लेकिन फादर माइकल ई. गेटली, एम.आई.सी. द्वारा लिखित ‘प्रातःकालीन महिमा और येशु के हृदय को सांत्वना देने के लिए 33 दिन’ नामक पुस्तिका ने मुझे समझने में मदद की। धन्य माँ मरियम हमेशा हमारी मध्यस्थ बनने के लिए तैयार रहती हैं, और वह कभी भी किसी बच्चे के अनुरोध को नहीं ठुकराएँगी जो येशु के पास वापस लौटना चाहता है। जैसे-जैसे मैं समर्पण की प्रार्थना कर रही थी, "चाहे कुछ भी हो जाए, मैं हार नहीं मानूँगी " इन्हीं शब्दों के साथ मैंने फिर कभी आत्महत्या का प्रयास न करने का संकल्प लिया। इस बीच, मैंने समुद्र तट पर लंबी सैर करना शुरू कर दिया, जबकि मैं परमेश्वर पिता से बात करती थी, और उड़ाऊ पुत्र के दृष्टांत पर ध्यान करती थी। मैंने खुद को उड़ाऊ पुत्र के स्थान पर रखने की कोशिश की, लेकिन परमेश्वर पिता के करीब आने में मुझे कुछ समय लगा। पहले, मैंने कल्पना की कि वह कुछ दूरी पर है, फिर मेरी ओर चल रहा है। दूसरे दिन, मैंने कल्पना की कि वह मेरी ओर दौड़ रहा है, भले ही यह पिता ईश्वर के दोस्तों और पड़ोसियों के लिए हास्यास्पद लग रहा हो। आखिरकार, वह दिन आया जब मैं खुद को पिता की बाहों में देख सकती थी, फिर न केवल उनके घर में बल्कि स्वर्गीय परिवार की मेज पर मेरे लिए निर्धारित मेरी सीट पर मेरा स्वागत किया जा रहा था। जब मैंने कल्पना की कि वह मेरे लिए एक कुर्सी खींच रहा है, तो मैं अब एक जिद्दी युवती नहीं थी, बल्कि नयी पीढ़ी का मजेदार चश्मा और बॉब हेयरकट वाली 10 वर्षीय लड़की थी। जब मैंने अपने लिए पिता के प्यार को स्वीकार किया, तो मैं फिर से एक छोटे बच्चे की तरह हो गई, मैं वर्तमान क्षण में जी रही थी और पूरी तरह से उन पर भरोसा कर रही थी। मैं परमेश्वर और उनकी वफादारी से प्यार करने लगी। मेरे अच्छे चरवाहे ने मुझे भय और क्रोध की कैद से बचाया है, वह मुझे सुरक्षित मार्ग पर ले जाता है और जब भी मैं लड़खड़ाती हूँ तो वह मुझे सहारा देता है। अब, मैं अपनी कहानी साझा करना चाहती हूँ ताकि हर कोई ईश्वर की अच्छाई और प्रेम को जान सके। उसका पवित्र हृदय सिर्फ़ आपके लिए कोमल प्रेम और दया से भरा हुआ है। वह आपसे भरपूर प्रेम करना चाहता है, और मैं आपको प्रोत्साहित करती हूँ कि बिना किसी डर या संकोच के आप ईश्वर का स्वागत करें। वह आपको कभी नहीं छोड़ेगा या आपको निराश नहीं करेगा। उसके प्रकाश में कदम रखें और उसके आलिंगन में वापस लौटें।
By: Ellen Wilson
Moreएक किशोरी के रूप में, मैंने वही किया जो हर किशोरी करने की कोशिश करती है- मैंने दूसरों के साथ फिट होने की, यानी दूसरों के अनुकूल बनने की कोशिश की। हालाँकि, मुझे यह एहसास था कि मैं अपने साथियों से अलग हूँ। रास्ते में कहीं, मुझे एहसास हुआ कि मेरी आस्था और धार्मिक विश्वास ने मुझे दूसरों से अलग बनाया। मुझे अपने माता-पिता से नाराजगी थी कि उन्होंने मुझे वह चीज़ दी जो मुझे दूसरों से अलग बनाती थी। मैं विद्रोही हो गयी और पार्टियों, डिस्को और नाइट क्लबों में जाने लगी। मैं अब और प्रार्थना नहीं करना चाहती थी। मैं बस मेकअप करने, बढ़िया बढ़िया कपड़ा पहनने, पार्टियों में कौन कौन आने वाले हैं, इस बारे में सपने देखने, पूरी रात नाचने और सबसे बढ़कर, बस 'वहाँ दूसरों के अनुकूल बनने’ का पूरा रोमांच चाहती थी। लेकिन, रात को घर आकर, अपने बिस्तर पर अकेली बैठी हुई, मुझे अंदर से खालीपन महसूस हुआ। मैं जो बन गयी थी, उससे मुझे नफरत थी; यह एक पूर्ण विरोधाभास था; क्योंकि जहाँ जो मैं थी, मुझे वह पसंद नहीं था, और फिर भी मुझे नहीं पता था कि कैसे बदलना है और खुद को क्या बनाना है। ऐसी एक रात, अकेली रोती हुई, मुझे बचपन का वह सहज आनंद याद आया, जिन दिनों मुझे पता था कि ईश्वर और मेरा परिवार मुझसे प्यार करता है। उन दिनों, यही सब मायने रखता था। इसलिए, उस रात को लंबे दौर के बाद पहली बार, मैंने प्रार्थना की। मैंने प्रभु के सामने रोया और मुझे उस खुशी में वापस लाने के लिए कहा। मैंने उसे एक तरह से अंतिम चेतावनी दे दी थी कि अगर उसने अगले साल तक मुझे खुद को नहीं प्रकट किया, तो मैं कभी उसके पास नहीं लौटूंगी। यह बहुत ही खतरनाक प्रार्थना थी, लेकिन साथ ही, यह बहुत शक्तिशाली भी थी। मैंने यह प्रार्थना की और फिर इसके बारे में पूरी तरह से भूल गयी। कुछ महीने बाद, मुझे होली फैमिली मिशन समुदाय से परिचित कराया गया, यह मिशन समुदाय एक आवासीय समुदाय है जहाँ लोग अपने विश्वास को सीखने और ईश्वर को जानने के लिए आते हैं। वहाँ दैनिक प्रार्थना, पवित्र संस्कारों का जीवन, बार-बार पाप स्वीकार, दैनिक रोजरी माला और पवित्र घंटे की आराधना होती थी। मेरे मन में विचार आया, "एक दिन के लिए इतनी प्रार्थना ज़रुरत से अधिक और बहुत ज़्यादा है!" उस समय, मैं अपने दिन के पाँच मिनट भी ईश्वर को नहीं दे पाती थी। किसी तरह, मैंने मिशन के लिए आवेदन कर दिया। हर एक दिन, मैं पवित्र परम प्रसाद में विराजमान प्रभु के सामने प्रार्थना में बैठती और उनसे पूछती कि मैं कौन हूँ और मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है। धीरे-धीरे, लेकिन निश्चित रूप से, धर्मग्रन्थ के माध्यम से और उनके साथ बिताये गए मौन प्रार्थना में प्रभु ने खुद को मेरे सामने प्रकट किया। मुझे धीरे-धीरे अपने आंतरिक घावों से चंगाई मिली और मैं प्रार्थना और प्रभु के साथ रिश्ते में आगे बढ़ी। अपने आप को पूरी तरह से खोई हुई महसूस करनेवाली वह विद्रोही किशोरी लड़की बदल कर ईश्वर की खुशमिजाज बेटी बन गयी; इस तरह मैं काफी बदलाव से गुज़री। हाँ, ईश्वर चाहता है कि हम उसे जानें। वह खुद को हमारे सामने प्रकट करता है, क्योंकि हम उससे जो भी प्रार्थना करते हैं, उन में से हर एक का वह ईमानदारी से जवाब देता है।
By: Patricia Moitie
Moreजब तक कि यह घटना नहीं हुई, ड्रग्स और सेक्स वर्क के चक्कर में फंसकर मैं खुद को खोती जा रही थी। रात हो चुकी थी। मैं वेश्यालय में थी, "काम" के लिए कपड़े पहनकर मैं तैयार थी। दरवाजे पर हल्की दस्तक हुई, पुलिस की जोरदार धमाका नहीं, बल्कि वास्तव में एक हल्की सी दस्तक। वेश्यालय की मालकिन “मैडम” ने दरवाजा खोला, और अंदर चली आईं... मेरी माँ! मुझे शर्म आ रही थी। मैं इस "काम" के लिए कपडे पहनकर तैयार थी, वह “काम” जिसे मैं महीनों से कर रही थी, और देखो कमरे में मेरी अपनी माँ थी! वह बस वहीं बैठी रही और मुझसे कहा: "प्यारी, कृपया घर आ जाओ।" उसने मुझे प्यार से देखा। उसने मेरे “काम” को सही या गलत नहीं कहा। उसने बस मुझे वापस आने के लिए कहा। मैं उस पल अनुग्रह से अभिभूत थी। मुझे तब घर चले जाना चाहिए था, लेकिन ड्रग्स ने मुझे जाने नहीं दिया। मुझे वास्तव में शर्म आ रही थी। उसने अपना फ़ोन नंबर एक कागज़ पर लिखा, उसे मेरी ओर सरकाया, और मुझसे कहा: "मैं तुमसे प्यार करती हूँ। तुम मुझे कभी भी कॉल कर सकती हो, और मैं आ जाऊँगी।" अगली सुबह, मैंने अपने एक दोस्त से कहा कि मैं हेरोइन से छुटकारा पाना चाहती हूँ। मैं डरी हुई थी। 24 साल की उम्र में, मैं जीवन से थक चुकी थी, और मुझे लगा कि मैं जीवन से ऊब चुकी हूँ। मेरा दोस्त एक डॉक्टर को जानता था जो नशे की लत के रोगियों का इलाज करता था, और मुझे तीन दिन में अपॉइंटमेंट मिल गया। मैंने अपनी माँ को फ़ोन किया, उन्हें बताया कि मैं डॉक्टर के पास जा रही हूँ, और मैं हेरोइन से छुटकारा पाना चाहती हूँ। वह फ़ोन पर रो रही थी। वह तुरन्त कार में बैठ गई और सीधे मेरे पास आई। लम्बे अरसे से वह इस पल केलिए इंतज़ार कर रही थी... यह सब कैसे शुरू हुआ जब मेरे पिता को ब्रिसबेन के एक्सपो 88 में नौकरी मिल गई, तो हमारा परिवार ब्रिस्बेन चला गया। मैं 12 साल की थी। मेरा दाखिला लड़कियों केलिए बने कुलीन प्राइवेट स्कूल में हुआ था, लेकिन मैं वहाँ फिट नहीं बैठती थी। मैं हॉलीवुड जाकर फ़िल्में बनाने का सपना देखती थी, इसलिए मुझे ऐसे स्कूल में जाना था जो फ़िल्म और टीवी में माहिर हो। मुझे फ़िल्म और टीवी के लिए मशहूर एक स्कूल मिला, और मेरे माता-पिता ने स्कूल बदलने के मेरे अनुरोध को आसानी से स्वीकार कर लिया। मैंने उन्हें यह नहीं बताया कि स्कूल के बारे में अख़बारों में खबर भी छपती थी, क्योंकि इस स्कूल की लडकियां गिरोह और ड्रग्स के लिए बदनाम थी। स्कूल ने मुझे बहुत सारे रचनात्मक दोस्त दिए, और मैंने स्कूल में बेहतरीन प्रदर्शन किया। मैंने अपनी कई कक्षाओं में टॉप किया और फ़िल्म, टीवी और ड्रामा के लिए पुरस्कार जीते। मेरे पास यूनिवर्सिटी जाने लायक अंक थे। कक्षा 12 के अंत होने से दो हफ़्ते पहले, किसी ने मेरे सामने मारिजुआना का प्रस्ताव रखा। मैंने हाँ कर दी। स्कूल के अंत में, हम सभी चले गए, और फिर मैंने अन्य ड्रग्स आज़माए... मैं वह बच्ची थी जो स्कूल की पढ़ाई खत्म करने के बारे में पूरी तरह केन्द्रित थी, लेकिन यह क्या हुआ, मैं नीचे की ओर गिरती चली गयी। इसके बावजूद मैं विश्वविद्यालय में गयी, लेकिन दूसरे वर्ष में, मैं एक ऐसे लड़के के साथ रिश्ते में आ गयी जो हेरोइन का आदी था। मुझे याद है कि उस समय मेरे सभी दोस्त मुझसे कहती थी: "तुम नशेड़ी, हेरोइन के आदी बन जाओगी।” दूसरी ओर, मुझे लगा कि मैं उसका उद्धारकर्ता बनने जा रही हूँ। लेकिन सेक्स, ड्रग्स और रॉक एंड रोल के कारण आखिरकार मैं गर्भवती हो गई। हम डॉक्टर के पास गए, मेरा पार्टनर अभी भी हेरोइन के नशे में था। डॉक्टर ने हमें देखा और तुरंत मुझे गर्भपात करवाने की सलाह दी - उन्हें लगा होगा कि हमारे साथ, इस बच्चे की ज़िंदा रहने की कोई उम्मीद नहीं है। तीन दिन बाद, मैंने गर्भपात करवा लिया। मैं दोषी, शर्मिंदा और अकेली महसूस कर रही थी। मैं अपने पार्टनर को हेरोइन लेते हुए देखती, सुन्न हो जाती और बेपरवाह हो जाती। मैंने उससे थोड़ी हेरोइन मांगी, लेकिन वह बस यही कहता रहा: "मैं तुमसे प्यार करता हूँ, मैं तुम्हें हेरोइन नहीं दूँगा।" एक दिन, उसे पैसे की ज़रूरत थी, और मैं बदले में कुछ हेरोइन मोल-तोल करने में कामयाब रही। यह थोड़ा सा ही था, और इसे लेने के बाद मैं बीमार बीमार महसूस करने लगी, लेकिन इससे मुझे कुछ भी ख़ास अनुभूति नहीं हुई। मैं इसका इस्तेमाल करती रही, हर बार खुराक बढ़ती जा रही थी। मैंने अंततः विश्वविद्यालय छोड़ दिया और ड्रग्स का नियमित उपयोगकर्ता बन गयी। मैं प्रतिदिन लगभग सौ डॉलर की हेरोइन का उपयोग कर रही थी और मुझे नहीं पता था कि मैं अगले दिन का भुगतान कैसे कर पाऊँगी। हमने घर में मारिजुआना उगाना शुरू कर दिया; हम इसे बेचते थे और पैसे का उपयोग और अधिक ड्रग्स खरीदने के लिए करते थे। हमने अपना सब कुछ बेच दिया, मुझे मेरे अपार्टमेंट से निकाल दिया गया, और फिर, धीरे-धीरे, मैंने अपने परिवार और दोस्तों से चोरी करना शुरू कर दिया। मुझे शर्म भी नहीं आती थी। जल्द ही, मैं जहां काम करती थी, वहां से चोरी करना शुरू कर दिया। मुझे लगा कि वे नहीं जानते, लेकिन अंततः मुझे वहाँ से भी निकाल दिया गया। अंत में, मेरे पास सिर्फ़ मेरा शरीर ही बचा था। उस पहली रात जब मैंने अजनबियों के साथ सेक्स किया, उसके बाद मैं खुद को रगड़कर साफ़ करना चाहती थी। लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकी! आप खुद को अंदर से साफ़ नहीं कर सकते... लेकिन इस के बावजूद किसी ने मुझे वापस जाने से नहीं रोका। मैं ने एक रात में 300 डॉलर कमाना शुरू किया और अपने साथी और मेरे लिए हेरोइन पर सारा पैसा खर्च करती थी, बाद में मैं एक रात में एक हज़ार डॉलर कमाने लगी; मैंने जो भी पैसा कमाया, पूरा पैसा अधिक ड्रग्स खरीदने में चला गया। इस पतन की ओर बढ़ रहे उस निरंतरता के चक्र के बीच में ही मेरी माँ आ गई और अपने प्यार और दया से मुझे बचाया। लेकिन यह पर्याप्त नहीं था। मेरी आत्मा में छेद डॉक्टर ने मुझसे मेरे ड्रग के इतिहास के बारे में पूछा। जब मैं लंबी कहानी सुना रही थी, मेरी माँ रोती रही - वह मेरी पूरी कहानी सुनकर हैरान थी। डॉक्टर ने मुझे बताया कि मुझे पुनर्वास की आवश्यकता है। मैंने पूछा: "ड्रग के लत लोग ही पुनर्वास केंद्र में जाते हैं न?" वे हैरान थे: "तुम्हें नहीं लगता कि तुम उनमें से एक हो?" फिर, उन्होंने मेरी आँखों में ऑंखें डालकर कहा: "मुझे नहीं लगता कि ड्रग्स तुम्हारी समस्या है। तुम्हारी समस्या यह है कि तुम्हारी आत्मा में एक छेद है जिसे केवल येशु ही भर सकता है।" मैंने जानबूझकर एक ऐसा पुनर्वास केंद्र चुना, जिसके बारे में मुझे यकीन था कि वह ईसाई केंद्र नहीं है। मैं बीमार थी, क्योंकि धीरे-धीरे डिटॉक्स होने लगा था, तभी एक दिन रात के खाने के बाद, उन्होंने हम सभी को प्रार्थना सभा के लिए बुलाया। मैं गुस्से में थी, इसलिए मैं कोने में बैठ गयी और उन्हें मेरे मन से बाहर निकालने की कोशिश की - उनका संगीत, उनका गायन, और उनका येशु सब कुछ। रविवार को, वे हमें गिरजाघर ले गए। मैं बाहर खडी रही और सिगरेट पीती रही। मैं गुस्से में थी, आहत थी, और अकेली थी। नए सिरे से शुरूआत छठे रविवार, 15 अगस्त को, बारिश हो रही थी - आसमान से एक साजिश। मेरे पास गिरजाघर के अंदर जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। अन्दर जाकर मैं पीछे की तरफ रही, यह सोचकर कि ईश्वर मुझे वहाँ नहीं देख पायेगा। मुझे एहसास होने लगा था कि मेरे जीवन के कुछ निर्णय और व्यवहार पाप माने जाएँगे, इसलिए मैं वहीं पीछे की तरफ बैठ गयी। हालाँकि, अंत में, पादरी ने कहा: "क्या यहाँ कोई है जो आज अपना दिल येशु को देना चाहेगा?" उसके बाद मुझे बस इतना याद है कि मैं सामने खडी थी और पादरी को यह कहते हुए सुन रही थी: “क्या तुम अपना दिल येशु को देना चाहती हो? वह तुम्हें तुम्हारे अतीत के लिए माफ़ी दे सकता है, आज एक बिलकुल नया जीवन दे सकता है, और तुम्हारे भविष्य के लिए आशामय नव जीवन दे सकता है।” उस समय तक, मैं लगभग छह सप्ताह तक हेरोइन से दूर थी। लेकिन मुझे यह एहसास नहीं था कि शुद्ध होने और मुक्त होने के बीच बहुत अंतर है। मैंने पादरी के पीछे पीछे उद्धार की प्रार्थना दोहराई, एक ऐसी प्रार्थना जिसे मैं समझ भी नहीं पाया, लेकिन वहाँ, मैंने अपना दिल येशु को दे दिया। उस दिन, मैंने एक परिवर्तन यात्रा शुरू की। मुझे नए सिरे से शुरुआत करने का मौका मिला, उस ईश्वर के प्रेम, अनुग्रह और भलाई की पूर्णता मुझे प्राप्त हुई, जिसने मुझे मेरे पूरे जीवन में जाना और मुझे मुझसे बचाया। आगे का रास्ता गलतियों से रहित नहीं था। मैं पुनर्वास केंद्र में रहती हुई एक नए रिश्ते में फँस गई, और मैं फिर से गर्भवती हो गई। लेकिन इसे मेरे द्वारा किए गए एक गलत निर्णय की सजा के रूप में सोचने के बजाय, हमने घर बसाने का फैसला किया। मेरे साथी ने मुझसे कहा: "चलो शादी कर लेते हैं और अब इसे प्रभु के तरीके से करने की पूरी कोशिश करते हैं।" एक साल बाद ग्रेस यानी कृपा का जन्म हुआ, उसके माध्यम से, मैंने बहुत कृपा पर कृपा का अनुभव किया है। मुझे हमेशा से कहानियाँ सुनाने का शौक और जूनून रहा है; ईश्वर ने मुझे एक ऐसी कहानी दी जिसने बहुत सारे लोगों की जिंदगियां बदलने में कार्य किया है। तब से उसने मुझे अपनी कहानी साझा करने के लिए कई तरीकों से - शब्दों में और लेखन में इस्तेमाल किया है। मैं जिस तरह की ज़िंदगी जी रही थी वैसी ज़िंदगी जी रही बहुत सी महिलाओं के साथ काम करने के लिए, उन्हें अपना सब कुछ देने में प्रभु ने मेरा इस्तेमाल किया है। आज, मैं उनकी कृपा और अनुग्रह से परिवर्त्तित महिला हूँ। मुझे स्वर्ग का और ईश्वर के राज्य का प्यार मिला, और अब मैं जीवन को ऐसे तरीके से जीना चाहती हूँ जो मुझे स्वर्ग राज्य और ईश राज्य के उद्देश्यों के साथ भागीदार बनने की अनुमति और अवसर दे।
By: Bronwen Healey
Moreकई आध्यात्मिक उपहारों से संपन्न संत जॉन बोस्को अक्सर सपने देखते थे जिनमें स्वर्गीय संदेशों का प्रकाशन होता था। उनमें से एक सपने में, उन्हें खेल के मैदान के पास हरी घास में ले जाया गया और एक विशाल सांप घास में लिपटा हुआ दिखाया गया। वास्तव में वे डर गए थे और इसलिए वे भागना चाहते थे, लेकिन उनके साथ गए एक व्यक्ति ने उन्हें रोक लिया और उनसे कह रहा था की निकट जाकर अच्छी तरह से देखें। जॉन डरा हुआ था, लेकिन उनके दोस्त ने उन्हें आगे बढ़ने के लिए मजबूर कर दिया, उसे एक रस्सी दी और उस रस्सी के सहारे सांप को मारने की हिदायत दी। झिझकते हुए, जॉन ने रस्सी का फंदा सांप की पीठ पर फेंकी, लेकिन जैसे ही सांप उछला, वह फंदे में फँस गया। सांप ने फंदे में फंसकर थोड़ा संघर्ष किया और जल्दी ही उसकी मौत हो गई। उसके साथी ने रस्सी उठा कर एक सन्दूक में रख दी; कुछ देर के बाद बक्सा खोलने पर, जॉन ने देखा कि रस्सी ने "प्रणाम मरिया" शब्दों का आकार ले लिया है। साँप, शैतान का प्रतीक, "प्रणाम मरिया" की शक्ति से पराजित हो गया, उसका सर्वनाश हो गया। यदि एक अकेली ‘प्रणाम मरिया’ की प्रार्थना ऐसा कर सकती है, तो पूरी रोज़री माला की शक्ति की कल्पना करें! जॉन बोस्को ने इस सबक को गंभीरता से लिया और यहां तक कि मरियम की मध्यस्थता में उनके विश्वास की और भी पुष्टि हुई। अपने प्रिय शिष्य डोमिनिक सावियो की मृत्यु के बाद, संत जॉन बोस्को को सावियो का स्वर्गीय वेशभूषा में दर्शन हुआ; इस विनम्र शिक्षक ने बाल संत सावियो से पूछा कि मृत्यु के समय उनकी सबसे बड़ी सांत्वना क्या थी। और उसने उत्तर दिया: “मृत्यु के क्षण में जिस बात ने मुझे सबसे अधिक सांत्वना दी, वह उद्धारकर्ता की शक्तिशाली और प्यारी माँ, अति पवित्र माँ मरियम की सहायता थी। आप अपने नवयुवकों से यह कहिये कि जब तक वे जीवित रहें, वे उस से प्रार्थना करना न भूलें!” संत जॉन बोस्को ने बाद में लिखा, "आइए जब भी हमें प्रलोभन दिया जाए, तब हम श्रद्धापूर्वक प्रणाम मरिया कहें, और हम निश्चित रूप से कामयाब होंगे।"
By: Shalom Tidings
Moreजीवन में संकट और विपत्तियाँ थका देने वाली हो सकती हैं... लेकिन जीवन हमें लड़ने और जीवित रहने में मदद करने के लिए संकेत प्रदान करता है। आत्मिक निदेशन के क्षेत्र में वर्षों से सेवा करने के दौरान, जैसा कि मैंने लोगों को अपने संघर्षों को साझा करते हुए सुना है, एक बात अक्सर दोहराई जाती है कि जब वे संकटों से गुज़र रहे होते हैं तो उन्हें लगता है कि ईश्वर ने उन्हें त्याग दिया है या उनसे दूरी बनाए रखने या अलग-थलग रहने का निर्णय लिया है। "मैं क्या गलत कर रहा हूं? ईश्वर ने मुझे इस स्थिति में क्यों डाला है? इन सब विपत्तियों के बीच वह कहाँ है?” अक्सर लोग सोचते हैं कि एक बार जब उनका गंभीर मनपरिवर्त्तन हो जाएगा और वे येशु के करीब आ जाएंगे, तो उनका जीवन समस्या-मुक्त हो जाएगा। परन्तु प्रभु ने कभी इसका वादा नहीं किया। वास्तव में, परमेश्वर का वचन इस पर स्पष्ट है। कांटे और ऊँट कटारे प्रवक्ता ग्रन्थ 2:1 में, यह कहा गया है, "पुत्र, यदि तुम प्रभु की सेवा करना चाहते हो, तो विपत्ति का सामना करने के लिए तैयार हो जाओ" (वैसे, वह पूरा अध्याय पढ़ने लायक है)। प्रेरितों ने सुसमाचार का प्रचार प्रसार करते समय नए मसीहियों को इस सत्य के लिए तैयार करने का भी प्रयास किया। हम प्रेरित चरित 14:22 में पढ़ते हैं, "वे शिष्यों को ढारस बंधाते और यह कहते हुए विश्वास में दृढ रहने के लिए अनुरोध करते कि हमें बहुत से कष्ट सह कर ईश्वर के राज्य में प्रवेश करना है।'" जैसे-जैसे हम परमेश्वर के साथ अपने रिश्ते में आगे बढ़ते हैं और उसके वचन का पालन करने के बारे में अधिक गंभीर होते जाते हैं, हमें कुछ गंभीर चुनौतियों और कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। हमें ऐसे निर्णय लेने और ऐसे रुख अपनाने होंगे जो हमें अलोकप्रिय बना सकते हैं। लोग हमें गलत समझने लगेंगे। हर कोई हमें पसंद नहीं करेगा। यदि आप चाहते हैं कि हर कोई आपको पसंद करे, तो येशु का अनुसरण करने का प्रयास छोड़ दीजिये। क्यों? क्योंकि सुसमाचार का जीवन जीना - जैसा कि येशु ने हमें उपदेश दिया था - हमारी संस्कृति के विरुद्ध जाना है। येशु स्वयं हमें इस बारे में चेतावनी देते हैं “यदि संसार तुम लोगों से बैर करें, तो याद रखो कि तुम से पहले उस ने मुझ से बैर किया। यदि तुम संसार के होते, तो संसार तुम्हें अपना समझकर प्यार करता; परन्तु तुम संसार के नहीं हो, क्योंकि मैं ने तुम्हें संसार में से चुन लिया है, इसलिए संसार तुम से बैर करता है” (योहन 15:18-19)। तो हाँ, हमें इस जीवन में कई संकटों और कठिनाइयों से गुजरना होगा। लेकिन जैसा कि मैं आत्मिक निर्देशन में लोगों को याद दिलाती हूं, ईश्वर हमें उन कठिन क्षणों में कभी भी अकेला नहीं छोड़ता है। वह हमें संकट के मार्ग पर प्रोत्साहन और सहायता देना चाहता है ताकि हम दृढ़ रहें और जीवन के तूफ़ानों से अधिक मजबूत होकर गुजरें और हमारे प्रति उसके गहरे और स्थायी प्रेम के प्रति हम अधिक आश्वस्त हों। ईश्वर भरोसेमंद है! संकेतों की समझ पुराने नियम में भविष्यवक्ता एलियाह के उदाहरण के बारे में सोचें। जब उसने बाल देवता के झूठे भविष्यवक्ताओं का सामना किया तो वह भीड़ के विरुद्ध गया और मूर्तिपूजा के विरुद्ध कड़ा रुख अपनाया। नाटकीय और बेतहाशा सफल टकराव के बाद, रानी इज़ेबेल क्रोधित हो गई और उसने एलियाह को मारने की ठान ली। अपनी जान लिए जाने के डर से एलियाह जल्दबाजी में मरुभूमि की ओर भाग गए। वे थकावट से चूर होकर और उदास होकर एक झाड़ू के पेड़ के नीचे गिर गए और वे वहीँ मरना चाहते थे। तभी ईश्वर ने उनके लिए भोजन और पानी लाने के लिए एक दूत भेजा। देवदूत ने कहा, "उठिए और खाइए, नहीं तो रास्ता आप केलिए अधिक लम्बा हो जाएगा" (1 राजा, 18 और 19)। ईश्वर ठीक-ठीक जानता है कि हमें क्या चाहिए। वह जानता था कि एलियाह को एक तनावपूर्ण घटना के बाद सोने, खाने और ठीक होने की जरूरत थी। प्रभु जानता है कि आपको क्या चाहिए। ईश्वर हमारी आवश्यकताओं को पूरा करना और हमें प्रोत्साहित करना चाहता है। हालाँकि, हमें इस बात पर ध्यान देना होगा कि वह ऐसा कैसे करना चाहता होगा। मुझे लगता है कि कई बार हम अपने साथ संवाद करने के प्रभु के प्रयासों को चूक जाते हैं। प्रभु ने एलियाह से आँधी, भूकम्प, या अग्नि में बात नहीं की। लेकिन "निरंतर मंद समीर की ध्वनि" में, एलियाह ने ईश्वर के दर्शन प्राप्त किये। हर जगह लिली का पुष्प कुछ वर्ष पहले, मैं कठिन परीक्षाओं और अकेलापन के दौर से गुज़र रही थी। जिंदगी बहुत भारी और बोझिल लग रही थी। एक शनिवार, मेरा एक युवा मित्र घुड़सवारी करते हुए बाहर गया और उसे रेगिस्तान में एक सफेद लिली जैसा फूल मिला और उसने उसे वापस लाकर मुझे दे दिया। अगले दिन, मैं एल पासो में सड़क पर चल रही थी और मैंने जमीन पर एक कृत्रिम सफेद लिली पड़ी देखी। मैंने उसे उठाया और अपने साथ घर ले गयी। अगले दिन मुझे फुटपाथ के पास एक और सफेद लिली जैसा फूल उगता हुआ दिखाई दिया। तीन दिनों में तीन सफेद लिली। मैं जानती थी कि इसमें प्रभु की ओर से एक संदेश है, लेकिन मैं ठीक से नहीं जानती थी कि प्रभु क्या कहना चाह रहा था। जैसे ही मैंने इस पर विचार किया, एक स्मृति अचानक मेरे सामने आ गई। कई साल पहले, जब मैं हमारे समुदाय में एक नयी मिशनरी थी, हम अपने युवा केंद्र में मिस्सा बलिदान में भाग ले रहे थे। परमा प्रसाद ग्रहण करने के बाद, मैं आँखें बंद करके प्रार्थना कर रही थी। किसी ने मेरे कंधे को थपथपाया। अपनी प्रार्थना से चौंककर, मैंने ऊपर देखा और पुरोहित को वहाँ खड़ा देखा। उन्होंने मुझसे कहा, “प्रभु चाहता है कि आप यह जान लें कि उसकी दृष्टि में आप एक लिली हो।” और फिर, पुरोहित वेदी पर वापस गये और बैठ गये। मैं वास्तव में अभी तक उस पुरोहित को नहीं जानती हूँ, और उन्होंने फिर कभी मेरे साथ इस तरह का कोई अन्य संदेश साझा नहीं किया। लेकिन मुझे प्रोत्साहित करने के लिए प्रभु के एक विशेष शब्द के रूप में मैंने इसे अपने दिल में संग्रहीत किया। अब, इतने वर्षों के बाद, वह स्मृति मेरे पास वापस आ गई, और अब मैं लिली को समझ गयी हूँ। मैं जिस कठिन समय से गुज़र रही थी, उस दौरान प्रभु मुझे प्रोत्साहित करना चाहता था। वह मुझे याद दिला रहा था कि मैं उसकी लिली हूं और वह मुझसे बहुत प्यार करता है। इसने मेरे दिल को बहुत आवश्यक शांति और इस आश्वासन से भर दिया कि तूफानों के बीच में से मैं अकेली नहीं गुजर रही थी। ईश्वर बड़ी विश्वस्तता के साथ उन तूफानों के बीच में से मुझे देखना चाह रहा था। ध्यान दें ईश्वर आपको नाम से जानते हैं. आप उनकी प्यारी संतान हैं. वह आपको देखता है और जिस मुश्किल से आप गुजर रहे हैं, वह सब जानता है। वह आपसे अपने प्यार का संचार करना चाहता है, लेकिन आम तौर पर संकेत धीरे-धीरे आते हैं। अगर हम ध्यान नहीं देंगे तो वह संकेत आपसे चूक जा सकता है। मैं लिली के साथ प्रेम के उस संदेश को भूल सकती थी। मैं सोच सकती थी कि वे महज़ एक संयोग थे। लेकिन मैं जानती थी कि यह एक संयोग से कहीं अधिक था, और मैं संदेश जानना चाहती थी। जब मैंने अपने दिल में सोचा कि इसका अर्थ क्या हो सकता है तो ईश्वर ने इसे मेरे सामने प्रकट किया। और जब मैंने इसे समझा, तो इससे मुझे सांत्वना और सहने की शक्ति मिली। इसलिए मैं आपको प्रोत्साहित करती हूं — संकटों के दौरान दृढ़ बने रहें। जीवन से न भागें! और रास्ते में ईश्वर के प्यार और प्रोत्साहन के उन छोटे संकेतों को खोजें। मैं आपको गारंटी देती हूं कि वे संकेत उन्हीं मार्गो पर हैं। हमें बस अपनी आंखें और कान खोलकर ध्यान देने की जरूरत है।'
By: एलेन होगार्टी
More1000 हिस्सों वाली पहेली को जोड़ने का खेल शुरू करने और उसे खत्म करने के लिए साहस की जरूरत होती है; जीवन के साथ भी यही होता है। पिछले क्रिसमस पर, मुझे अपने कार्यस्थल पर क्रिस क्रिंगल से 1000 हिस्सों वाली पहेली मिली, जिसमें प्रसिद्ध ग्रेट ओशन रोड (ऑस्ट्रेलिया के दक्षिण-पश्चिमी विक्टोरिया में चट्टानों की संरचनाओं का एक शानदार समूह) के बारह प्रेरितों को दिखाया गया था। मैं शुरू करने के लिए उत्सुक नहीं थी। मैंने कुछ साल पहले अपनी बेटी के साथ उनमें से तीन पहेलियाँ पूरी की थी, इसलिए मुझे पता था कि उन्हें बनाने में कितनी मेहनत करनी पड़ती है। हालाँकि, जब मैंने घर पर लटकी हुई तीन पूरी की गयी पहेलियों को देखा, तो शुरुवाती आलस्य महसूस करने के बावजूद, मुझे "बारह प्रेरितों" पर ध्यान लगाने की आंतरिक प्रेरणा महसूस हुई। अस्थिर जमीन पर मुझे आश्चर्य हुआ कि जब येशु क्रूस पर मर गए और वे प्रेरित उन्हें छोड़ कर चले गए तो उन प्रेरितों को कैसा लगा होगा। सुसमाचार सहित प्रारंभिक ख्रीस्तीय स्रोत बताते हैं कि शिष्य तबाह हो गए थे, अविश्वास और भय से भरे हुए थे और वे छिप गए थे। येशु के जीवन के अंत में वे अपने सर्वश्रेष्ठ रूप में नहीं थे। किसी तरह, मैंने वर्ष की शुरुआत में ऐसा ही महसूस किया - भयभीत, बेचैन, उदास, टूटा हुआ दिल और अनिश्चित। मैं अपने पिता और एक करीबी दोस्त की मृत्यु के दुःख से पूरी तरह से उबर नहीं पायी थी। मुझे स्वीकार करना चाहिए कि मेरा विश्वास अस्थिर जमीन पर खड़ा था। ऐसा लग रहा था जैसे जीवन के प्रति मेरे जुनून और ऊर्जा को सुस्ती, गुनगुनापन और आत्मा की एक अंधेरी रात ने काबू कर लिया था, जिस के कारण मेरे आनंद, ऊर्जा और प्रभु की सेवा करने की इच्छा खत्म हो जाने का खतरा था। मैं बहुत प्रयासों के बावजूद इसे दूर नहीं कर सकी। अगर हम शिष्यों के अपने गुरु से भागने के उस निराशाजनक प्रकरण पर ही नहीं रुकते हैं, तो सुसमाचार के अंत में वही प्रेरित लोग दुनिया से लड़ने और मसीह के लिए मरने के लिए तैयार दिखाई देते हैं। क्या बदल गया? सुसमाचार में लिखा हुआ है कि पुनर्जीवित मसीह को देखने पर शिष्यों में बदलाव आया। जब वे उनके स्वर्गारोहण को देखने के लिए बेथानिया गए, उनके साथ समय बिताया, उनसे सीखा और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया, तो इसका एक शक्तिशाली प्रभाव पड़ा। येशु ने उन्हें न केवल निर्देश दिया बल्कि एक उद्देश्य और एक वादा भी दिया। उन्हें न केवल संदेशवाहक बनना था, बल्कि गवाह भी बनना था। येशु ने उनके मिशन में उनका साथ देने का वादा किया और उन्हें एक शक्तिशाली सहायक दिया। मैं पिछले दिनों में इसी के लिए प्रार्थना कर रही थी - मृतकों में से जी उठे येशु से मुलाक़ात करने ताकि मेरा जीवन दिव्य रूप से नवीनीकृत हो जाए। अंत तक डटे रहें जब मैंने पहेली शुरू की, बारह प्रेरितों के इस सुंदर चमत्कार को एक साथ रखने की कोशिश की, तो मैंने पाया कि हर टुकड़ा महत्वपूर्ण था। इस नए साल में मैं जिस भी व्यक्ति से मिलूँगी वह मेरे विकास में योगदान देगा और मेरे जीवन को रंग देगा। वे अलग-अलग रंगों में आएंगे - कुछ मजबूत, दूसरे सूक्ष्म, कुछ चमकीले रंगों में, दूसरे भूरे, कुछ रंगों के जादुई संयोजन में, जबकि कोई फीके या भयंकर रूप में, लेकिन तस्वीर को पूरा करने के लिए सभी की ज़रूरत है। ऐसी पहेलियों को जोड़ने में समय लगता है, और जीवन में भी ऐसा ही होता है। जब हम एक-दूसरे से जुड़ते हैं, तो हमें बहुत धैर्य की आवश्यकता होती है। जब संपर्क स्थापित हो जाता है, तो आभार प्रकट होता है। और जब टुकड़े फिट नहीं होते हैं, तो उम्मीद है कि हार न मानने के लिए एक भरोसेमंद प्रोत्साहन होगा। कभी-कभी, हमें इससे आराम करने, वापस आने और फिर से प्रयास करने की आवश्यकता हो सकती है। जीवन की तरह पहेली भी हर समय चमकीले, खुशनुमा रंगों से ढकी नहीं रहती। विपरीतता पैदा करने के लिए काले, भूरे और गहरे रंगों की आवश्यकता होती है। पहेली शुरू करने के लिए साहस की आवश्यकता होती है, लेकिन इसे खत्म करने के लिए और भी अधिक। धैर्य, दृढ़ता, समय, प्रतिबद्धता, ध्यान, त्याग और भक्ति की मांग की जाएगी। यह वैसा ही है जैसे जब हम येशु का अनुसरण करना शुरू करते हैं। प्रेरितों की तरह, क्या हम अंत तक डटे रहेंगे? क्या हम अपने प्रभु से आमने-सामने मिल सकेंगे और उन्हें यह कहते हुए सुन सकेंगे: “भले और ईमानदार सेवक” (मत्ती 25:23), या जैसा कि संत पौलुस कहते हैं: “मैं अच्छी लड़ाई लड़ चुका हूँ, अपनी दौड़ पूरी कर चुका हूँ, और पूर्ण रूप से ईमानदार रह चुका हूँ।” (2 तिमथी 4:7) इस साल, आपसे भी पूछा जा सकता है: क्या आपके पास पहेली का वह टुकड़ा है जो किसी के जीवन को बेहतर बना सकता है? क्या आप ही वह टुकड़ा है जो खो गया है?
By: दीना मननक्विल-डेल्फिनो
Moreस्वतंत्र कलाकार, होली रोड्रिगेज़ अपने पूरे जीवन में नास्तिक रहीं और वे कभी भी ईश्वर के बारे में नहीं सोचती थी या किसी धर्म में शामिल होने या यहां तक कि चर्च जाने के बारे में भी नहीं सोचती थी, लेकिन एक दिन ... वह 2016 के दिसंबर का महीना था, मैं सर्दियों की एक सुबह उठी और बस एक कप कॉफी से ज्यादा मैं कुछ नहीं चाह रही थी । मैं अपने जीवन भर नास्तिक थी। मैंने कभी भी परमेश्वर के बारे में नहीं सोचा था और निश्चित रूप से कभी किसी धर्म में शामिल होने या गिरजाघर जाने के बारे में भी नहीं। हालाँकि उस दिन, बिना किसी कारण के, मुझे अचानक गिरजाघर जाने की इच्छा हुई। मेरे जीवन में ऐसा कुछ भी असामान्य नहीं हो रहा था जिससे अचानक मेरा हृदय परिवर्तन हुआ हो। मैं इंग्लैंड के केंट में एक छोटे से समुद्र तटीय शहर में एक स्वतंत्र कलाकार के रूप में काफी सामान्य, शांत जीवन जी रही थी। मैंने निकटतम गिरजाघर की खोज की जो उस दिन खुला था और कुछ कदमों की दूरी पर मुझे एक रोमन कैथलिक गिरजाघर मिला। यह एक आश्चर्य था। हालाँकि मैं उस क्षेत्र से कई बार गुज़री थी, पर मैंने पहले वहाँ कभी गिरजाघर नहीं देखा था। जब हम बंद हृदय से जीवन के पथ पर चलते हैं तो यह आश्चर्यजनक है कि हम परमेश्वर की उपस्थिति के प्रति कितने अंधे हैं, जबकि वह हमारे कितने निकट है। मेरा फोन बज उठा मैंने गिरजाघर के नंबर पर फोन किया और एक दयालु महिला ने फोन उठाया। उसने खुद को पल्ली के सचिव के रूप में पेश किया और मैंने उनसे कुछ सवाल पूछे, जिसका जवाब देने में उन्होंने खुशी प्रकट की। उन्होंने मुझे बताया कि वह कैथलिक गिरजाघर है और वे वहां के फादर को बतायेंगी कि मैंने फोन किया था और हमने एक दुसरे को अलविदा कहा । मैं शर्मीली थी और मुझे नहीं पता था कि क्या उम्मीद की जाए। मैं हमेशा निर्णय लेने से पहले स्थिति के बारे में सबकुछ जानना पसंद करती हूँ। मुझे नहीं पता था कि कैथलिक कलीसिया क्या होती है, और मैं अपने जीवन में कभी किसी फादर से नहीं मिली थी। मैंने काम से छुट्टी लेने और कैथलिक धर्म के बारे में जानने का फैसला किया, और कुछ घंटों के लिए विकिपीडिया पर कैथलिक धर्म के बारे में बहुत कुछ पढ़ा। फिर मेरा फोन बजा। दूसरी लाइन पर एक सौम्य आवाज थी – जिसपर मार्क नामक एक फादर मुझसे बात कर रहे थे। वे बहुत ही मिलनसार और उत्साही थे जो मेरे लिए बहुत बड़ा आश्चर्य था। मैं अपने जीवन में कभी ऐसे किसी व्यक्ति से नहीं मिली थी जो मुझसे मिलने और मेरा स्वागत करने के लिए इतना उत्सुक हो। मैंने अगले दिन गिरजाघर जाकर फादर से मिलने का समय निर्धारित किया। जैसे ही मैं वहां पहुंची, फादर मार्क अपने पुरोहित वाले पोशाक में मेरा अभिवादन करने के लिए वहाँ खड़े थे। यह पहली बार था जब मैंने किसी पुरोहित को व्यक्तिगत रूप से देखा था और मुझे याद है कि मैं वास्तव में उनके पोशाक से मोहित हो गयी थी। मुझे लगता है कि मैंने कभी नहीं सोचा था कि एक पुरोहित कैसा दिखता होगा। मैंने कभी-कभी पोप को केवल टेलीविजन समाचारों पर संक्षिप्त रूप से देखा था, लेकिन इससे आगे कभी कुछ नहीं देखा था। फादर मार्क मेरे साथ बैठे और हमने कुछ घंटों तक बात की, फिर उन्होंने मुझे "आर.सी.आई.ए" कक्षाओं में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि उसी समय से पवित्र मिस्सा में जाना शुरू करना अच्छा विचार होगा, और मैंने वैसा ही किया। मैं उस पहले पवित्र मिस्सा को याद करती हूं जिसमें मैंने भाग लिया था। वह गौदेते यानी आनंद का रविवार था और मैं, शिष्टाचार से एकदम अनजान, बिल्कुल सामने के बेंच पर बैठी थी। मेरे आस-पास हर कोई खड़ा हो रहा था और फिर बैठ रहा था और फिर खड़ा हो रहा था और कभी-कभी घुटने टेककर, धर्मसार और अन्य प्रार्थनाओं का पाठ कर रहा था। मैं नयी थी और मुझे यह थोड़ा डराने वाला लगा, लेकिन आकर्षक और पेचीदा भी। मैंने अपनी क्षमता के अनुसार उसका अनुसरण किया, जो बाकी सभी कर रहे थे। पुरोहित एक सुंदर गुलाबी वस्त्र पहना हुआ था जो बहुत अलंकृत और शोभित लग रहा था। उनको वेदी पर प्रार्थनायें बोलते हुए मैं ने सुना और मैं ने देखा कि सुंगंधित धूप की धुआँ गिरजाघर में भर गयी। अंग्रेजी भाषा में अर्पित किया गया वह मिस्सा बलिदान मुझे बहुत अच्छा लगा और मुझे पक्का मालूम कि मैं इसी जगह वापस आनी वाली हूँ। सीधे दिल की ओर मुझे यह इतना पसंद आया कि मैं हर सप्ताहांत गिरजाघर वापस जाती रही और बाद में प्रति दिन ख्रीस्तयाग में भाग लेने लगी। येशु के लिए मेरा प्यार हर मुलाकात में बढ़ता गया। मेरे पहले क्रिसमस जागरण मिस्सा के दौरान, पुरोहित ने अपने रेशमी वस्त्र से बालक येशु की प्रतिमा को उसी तरह की कोमलता से लिपट कर संभाले हुए थे, जिस तरह पुरोहित पवित्र संस्कार को पकड़ते हैं। गीतों और प्रार्थनाओं के साथ वे जुलूस में गिरजाघर की परिक्रमा करते हुए बालक येशु के साथ चरनी की ओर चले, और मेरी आंखें नम हो गईं थीं । वह सब बहुत प्यारा था। मैंने अपने जीवन में पहले कभी ऐसा कुछ नहीं देखा था। अब मैं कैथलिक कलीसिया में स्वीकार किए जाने के लिए तैयारी कर रही थी, मैंने पल्ली के पुरोहितों द्वारा दी गई धर्मशिक्षा को घर पर पढ़ने में बहुत समय बिताया। विशेष रूप से मेरे बपतिस्मा से एक हफ्ते पहले मुझे बताया गया था कि मुझे अपने दृढ़ीकरण संस्कार के लिए किसी एक स्वर्गिक संरक्षक संत को चुनना होगा। हालाँकि, वहाँ हजारों संत थे, और मुझे नहीं पता था कि मैं उन सभी में से किसे चुनूँगी। संत फिलोमेना के अलावा मैं अन्य संतों के बारे में कुछ नहीं जानती थी क्योंकि एक रविवार को फादर ने उनपर प्रवचन दिया था। परमेश्वर की कृपा से जब मैं पैरिश कैफे में स्वयंसेवा कर रही थी तो मुझे एक आकर्षक पुस्तक मिली जिसका नाम था "इंटीरियर कैसल्स"। वह पुस्तक एक स्पैनिश कार्मेल मठवासिनी साध्वी, अविला की संत तेरेसा द्वारा लिखी गयी थी जिसके बारे में मैंने पहले कभी नहीं सुना था। चूंकि मेरा परिवार स्पेनिश विरासत का है, इसलिए मैंने उसे अपनी संरक्षिका के रूप में चुना, हालांकि मैं उसके बारे में ज्यादा नहीं जानती थी। अंत में, 15 अप्रैल 2017 को पास्का जागरण मिस्सा के दौरान, मुझे कैथलिक गिरजाघर में बपतिस्मा और दृढ़ीकरण संस्कार मिला। मैं इस बात से ज्यादा उत्साहित नहीं थी की पास्का रविवार को मुख्य मिस्सा में गायक मंडली के साथ गाने के लिए मैं सुबह तरोताजा थी और जल्दी उठ गयी थी। लेकिन मैं इतनी उत्साहित इसलिये थी क्यूँकि मैं अब वेदी की रेलिंग पर खड़ी होकर पवित्र संस्कार ग्रहण कर सकती थी। इसके तुरंत बाद, मैं मरियम की सेना में शामिल हो गयी और मैंने रोज़री माला विनती करना, रोज़री बनाना और शहर के चारों ओर मिशन का काम करना शुरू कर दिया ताकि बिछुड़ गए कैथलिकों को पवित्र मिस्सा में वापस लाया जा सके और घर पर लोगों के साथ रोज़री माला विनती की जा सके। संत तेरेसा मेरे जीवन में मार्गदर्शक बनी रहीं, जो मुझे येशु से अधिक से अधिक प्यार करना सिखाती रहीं| लेकिन मुझे कार्मेल मठवासियों के बारे में जानकारी तभी मिली जब मैं आयल्सफोर्ड प्रियोरी में संत साइमन स्टॉक के धर्मस्थल के लिए एक दिन की तीर्थयात्रा पर हमारी पल्ली के लोगों के साथ शामिल हुई| वह कार्मेल मठवासियों का ऐतिहासिक मठ था। आमूलचूल बदलाव वर्षों बाद, मुझे एक अन्य स्पेनवासी, संत जोसेमरिया एस्क्रिवा के बारे में पता चला, जिन्हें अविला की संत तेरेसा और कार्मेल के मठवासियों से बहुत प्यार था। वे ‘ओपुस देई’ नामक कैथलिक संस्था के संस्थापक थे, जिसमें मैं एक सह-संचालक के रूप में शामिल हुई, और जिसमें मेरा दायित्व संस्था के सदस्यों और पुरोहितों के लिए प्रार्थना करना था। मैंने महसूस किया कि परमेश्वर मुझे एक गहरी प्रतिबद्धता के लिए बुला रहा है, लेकिन मुझे यह नहीं पता था कि वह प्रतिबद्धता ओपुस देई के साथ थी, या किसी धर्मसंघ में साध्वी के रूप में। एक पुरोहित मित्र ने मुझे बताया कि मुझे अपना मन बनाना होगा और फैसला करना होगा कि मुझे कौन सा रास्ता चुनना है, जिससे मैं हमेशा के लिए किसी भी अनिश्चितता में न रहूँ। उनका कहना सही था, इसलिए मैं परमेश्वर की पुकार सुनकर प्रार्थना और उपवास करने लगी। मेरा जीवन बहुत कम समय में बहुत सारे परिवर्तनों से गुजरा था और मेरी आत्मा ने एक अंधेरी रात को सहा था। मेरा क्रूस मुझे बहुत भारी लग रहा था, लेकिन मैं जानती थी कि अगर मैं अपने विश्वास में दृढ़ बनी रही, तो सब ठीक हो जाएगा। मुझे अपने ऊपर मेरे द्वारा पूर्ण नियंत्रण को छोड़ देना था, मुझे मार्ग दिखाने केलिए परमेश्वर को मौक़ा देना था और उसकी इच्छा के विरुद्ध लड़ना बंद करना था। मैं अपने अहंकार में बहुत फंस गयी थी और वास्तव में अब परमेश्वर को सुनने की इच्छा मेरे अन्दर है। जब इस समझदारी का प्रकाश उदय हुआ, तब मैंने फैसला किया कि हर दिन जो परमेश्वर की ओर से एक उपहार के रूप में आता है, उसे अच्छे से जी लूंगी, और इस केलिए उससे मार्गदर्शन मांगूंगी। मैंने इस दर्शन को अपनाया कि ईश्वर हमें वहीं रखता है जहाँ हमारा प्रचुर जीवन है क्योंकि उस विशिष्ट समय में उसे हमारी आवश्यकता होती है। मैंने स्वयं को उसकी दिव्य इच्छा का साधन बना लिया। जब मैंने अपने आप को उसके लिए छोड़ दिया, तो परमेश्वर ने मुझे दिखाया कि सब कुछ उसकी इच्छा के अनुकूल हुआ था क्योंकि वह मुझे शुरू से ही बुला रहा था। हे दिव्य ज्योति, मेरा पथ प्रदर्शन कर! मुझे उन संतों से उपहार मिलते रहे जो मुझे कार्मेल तक ले जा रहे थे। एक दिन, मैं सीमेंट के फर्श पर उगते हुए चमकीले लाल गुलाब के फूल को देखकर मंत्रमुग्ध हो गयी। बाद में मुझे पता चला कि वह दिन लिस्यु के संत तेरेसा का जन्मदिन था जिन्होंने कहा था कि वह लोगों को स्वर्ग से एक संकेत के रूप में गुलाब भेजेंगी। उसी दिन, मैं अगरबत्ती की एक दुकान पर थी, जब मुझे सुंदर गुलाब से सुगंधित अगरबत्ती का एक डिब्बा मिला, जिस पर लिस्यु के संत तेरेसा की छवि छपी थी। इन छोटे संकेतों ने मेरे अन्दर बुलाहट और विश्वास के बीज बोने में मदद की। जैसे मैं यह लिख रही हूँ, मैं कैथलिक कलीसिया के सदस्य के रूप में अपनी छठवीं वर्षगांठ मनाने वाली हूं और कार्मेल पर्वत की कुँवारी मरियम के पावन उद्यान में प्रवेश करने की तैयारी कर रही हूं। यदि परमेश्वर चाहता है तो साध्वी के रूप में जीने के इस बुलाहट को स्वीकार करते हुए, मैं अपना जीवन कलीसिया के लिए, दुनिया के लिए और पुरोहितों के लिए प्रार्थना करते हुए बिताऊँगी। यह एक लंबी यात्रा रही है, और मैं रास्ते में बहुत से अद्भुत लोगों से मिली हूँ। लिस्यु के संत तेरेसा ने कार्मेल को अपने उस रेगिस्तान के रूप में वर्णित किया जहां हमारे प्रभु ने मनन चिंतन और प्रार्थना में चालीस दिन बिताए, लेकिन मेरे लिए यह गेथसेमेनी का बाग़ है जहां हमारे प्रभु प्राण-पीड़ा में जैतून के पेड़ों के बीच बैठे थे। मैं निरंकुश प्रेम के साथ उनकी पीड़ा में शामिल होती हूं, और उनके साथ कलवारी के मार्ग पर क्रूस यात्रा करती हूं। हम साथ में आत्माओं के लिए पीड़ित होते हैं और दुनिया को अपना प्यार देते हैं।
By: Holly Rodriguez
Moreपरमेश्वर को “हाँ” कहना आपके जीवन में लिए गए निर्णयों में सबसे अच्छा निर्णय है! मिस्सा बलिदान के बाद उद्घोषणा करने वाली महिला ने निवेदन किया, "कृपया मदद करें, हमें कनिष्ठ उच्च धार्मिक शिक्षा कार्यक्रम के लिए शिक्षकों की सख्त जरूरत है।" मैंने न सुनने का नाटक किया। हम इलिनोय से एरिज़ोना वापस चले गए थे, और हमारे पांच बच्चों में से सबसे बड़ा लड़का हाई स्कूल में प्रवेश कर रहा था। प्रत्येक रविवार, उसी महिला द्वारा मिस्सा के बाद उसी सरल निवेदन की घोषणा! परमेश्वर शायद सप्ताह दर सप्ताह मुझ में कार्य कर रहा था। मुझे पता था कि मैं धर्म शिक्षा स्कूल की तालिका में अपने पांच बच्चों को जोड़ रही हूं; आखिर, शायद मुझे मदद करनी चाहिए। इसमें शरीक न होने का मेरा संकल्प फीका पड़ गया, और मैंने अपना नाम दर्ज कर लिया। मैं हमेशा कहा करती थी कि मैं "हाँ" वाले जीन के साथ पैदा हुई हूं। कुछ करने का मुझ में ज़ज्बा हैं, इसलिए जिन संगठनों से मैं जुड़ी हूँ, वे लोग जानते हैं कि मैं अपनी ज़िम्मेदारी निभाने केलिए मीलों की दूरी तय कर सकती हूँ। इसलिए मैं ने “हाँ” कहा। “मैं एक पालना कैथलिक हूँ; बच्चों को पढ़ाना कितना कठिन हो सकता है?” फिर भी मैं तैयार हो गयी। अगले कुछ वर्षों में, युवाओं के बीच सेवकाई के प्रभारी आते-जाते रहे। सबसे अंतिम युवा सेवक प्रभारी के जाने के बाद, हमारे पल्ली पुरोहित ने मुझसे संपर्क किया और कहा कि आपके साथी स्वयंसेवक शिक्षकों ने आपको युवा सेवक प्रभारी के रूप में पदभार ग्रहण करने की सिफारिश की है। “मुझे?” “हाँ, क्या आप कोशिश करने को तैयार हैं?” फिर से, उस ‘हाँ जीन’ के कारण मैं ने हाँ कह दिया। ईश्वर रहस्यमय तरीके से काम करता है, और कुछ ही हफ्तों के भीतर, मैं धर्मशिक्षा के कनिष्क हाई स्कूल की नई प्रभारी बन गयी थी। मैंने पहले माना था कि कैथलिक कलीसिया के लिए केवल पुरोहित और नन (साध्वी लोग) ही काम कर सकते हैं। मुझे याद है कि पहले मैं सोचा करती थी कि प्रभु की दाखबारी में समान विचारधारा वाले सहकर्मियों के साथ ऐसे पवित्र वातावरण में काम करना कितना शानदार होगा। जल्दी ही वह कल्पना मिट गयी। अपने नए कार्य क्षेत्र में प्रवेश पाते ही, शीघ्र ही मुझे यह दु:खद अहसास हुआ कि कलीसिया के लिए काम करने वाला व्यक्ति ऐसा होना चाहिए जिसके पास कठिन सवालों के जवाब हों और धार्मिक ज्ञान हो। उस विचार ने मुझे भयभीत कर दिया। कलीसिया सम्बन्धी मेरी कोई पृष्ठभूमि या शिक्षा नहीं थी। वास्तविकता यह है कि जब विश्वास की बात आती थी तो हर पल यह सोच मुझ पर आक्रमण करती थी कि मैं एक गूंगी की तरह इस कार्य के लिए अयोग्य थी। कैथलिक होने के चालीस वर्षों में अक्सर उद्धृत की जाने वाली उस पंक्ति से मैं अनभिज्ञ थी कि “परमेश्वर जिन्हें बुलाता है, उन्हें वह सुसज्जित करता है”। हालाँकि, यह वही डर था जिसने मुझे काम करने के लिए प्रेरित किया। कॉलेज जाना कोई विकल्प नहीं था। इसका मतलब था कि मुझे रचनात्मक होने की जरूरत है। जब मेरा एक बेटा अपनी किंडरगार्टन कक्षा में था, तब मुझे सिस्टर ग्लोरिया से एक कैसेट मिला था। आठ साल तक मैंने कभी इसे सुनने का समय नहीं निकाला। एक दिन किसी अदृश्य शक्ति ने मुझे इसे सुनने के लिए मजबूर किया। इसे आप "डॉ. स्कॉट हैन की रूपांतरण कहानी" कह सकते हैं। मुझे नहीं पता था कि डॉ. हैन कौन थे, लेकिन एक शांत क्षण में, मैंने उस कैसेट को सुनना शुरू किया। सत्य की खोज में निकले प्रेस्बिटेरियन कलीसिया के इस पादरी की यात्रा आकर्षक थी, और वह यात्रा उन्हें कैथलिक कलीसिया में ले आई। मुझे और लालसा हुई। उस दौरान, हमें कैलिफोर्निया में उस गर्मी में होने वाले कैथलिक पारिवारिक सम्मेलन के बारे में सूचना दी गयी थी। मैंने अधिकांश वक्ताओं के नाम कभी नहीं सुना था, लेकिन पता चला कि डॉ. हैन रहेंगे। मेरे पति भी उत्सुक थे, और हम पूरे परिवार को ले आए। विख्यात वक्ता टिम स्टेपल्स, जेसी रोमेरो, स्टीव रे, और कई अन्य धर्मान्तरित वक्ताओं ने हमें प्रेरित किया, हमारे दिलों के अंगारों को हवा दी। हमने धर्म मंडन, विश्वास की रक्षा करने की कला सहित कई विषयों पर किताबें और कैसेट खरीदे। बच्चे उत्साहित थे, और हम भी। एक जुनून भरी आग हमारे अंदर सुलगने लगी थी जो हमारे पास पहले नहीं थी। साल-दर-साल, हम अन्य परिवारों को इस पारिवारिक वार्षिक सम्मेलन में शामिल होने के लिए आमंत्रित करते, और वे भी इसी आग से जल उठते। मुझे युवा सेवक के रूप में प्रमाण पात्र प्राप्त करने की आवश्यकता थी। एक बार फिर, ईश्वर ने मुझे मौका दिया और मैंने फ्रांसिस्कन विश्वविद्यालय में संत जॉन बॉस्को ग्रीष्मकालीन सम्मेलन में भाग लिया। यह सब मेरे लिए एक नया रोमांच था। मैंने प्रार्थना, आराधना, पूजा, धर्मशिक्षा और अविश्वसनीय वक्ताओं के माध्यम से कभी भी ईश्वर का इस प्रकार अनुभव प्राप्त नहीं किया था। मेरे अन्दर इन बातों की ऐसी भूख पैदा हुई जिसका मैं ने पहले कभी नहीं अनुभव किया था। मेरे द्वारा खाए गए हर अनमोल निवाला के साथ, मुझे और अधिक खाने की इच्छा हुई। इस ढलती उम्र में मैं परमेश्वर और अपने विश्वास के बारे में इतनी अज्ञानी कैसे हो सकती हूँ? लोगों की कल्पना के विपरीत, परमेश्वर के प्रति अपने ज्ञान और प्रेम का विस्तार करना उबाऊ नहीं है। यह उत्तेजक और प्रेरक है। ईश्वर के साथ मेरा रिश्ता आखिरकार पोषित किया जा रहा था। मिस्सा बलिदान हमारे लिए जीवंत हो गया। मेरे जीवन के जिन आयामों का मैनें सामना किया उन सब में आनंद और विश्वास की वृद्धि स्पष्ट थी। मेरे उत्साही जुनून ने मेरे जीवन के सभी पहलुओं पर आधिपत्य जमाया, विशेषकर सेवकाई के क्षेत्र में। परमेश्वर ने उदारता से मुझे आशीर्वाद दिया, हाँ, और प्रचुर मात्रा में फल मिले। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान, परमेश्वर मुझे अपने और करीब ले जा रहा था, वह मुझे अपने वचन रूपी रोटी के टुकड़े देकर मुझे संपोषित कर रहा था जो मुझे कदम-दर-कदम उसके करीब लाता गया। इक्कीस साल बाद, मैं अभी भी कैथलिक कलीसिया के लिए काम करती हूं लेकिन अब वैवाहिक तैयारी का प्रशिक्षण चलाती हूँ। मैं अभी भी उस आग को जारी रखने के कई तरीकों का अनुसरण करती हूँ जो इतने साल पहले लगी थी। मेरा अंतहीन आभार उन धर्मांतरित लोगों के लिए जाता है, जिन्होंने हर कीमत पर सत्य का अनुसरण किया और जिस दिशा में ईश्वर ने उनकी अगुवाई की, उसी ओर जाने केलिए वे तैयार थे। वे कभी नहीं जान पाएंगे कि परमेश्वर ने कितने लोगों के जीवन को उनकी हाँ के कारण प्रभावित किया, और उनमें से एक मेरा भी जीवन था। और हमारे वे पांच छोटे बच्चे बड़े हो गए, और उनकी शादी गिरजाघर में हुई और उनके अपने बच्चे प्रभु परमेश्वर को अनुभव करते हुए और अपने कैथलिक विश्वास से प्यार करते हुए बड़े हो रहे हैं। मेरे पति भी दस साल से उपयाजक (डीकन) के पद पर हैं। हे परमेश्वर, सारी महिमा और सभी श्रेय मैं तुझे देती हूँ। तू हमारे लिए कितने उदार और अच्छा है; तू मेरे दिल में आग प्रज्वलित करने का सबसे अच्छा तरीका जानता था। इसके लिए तुझे धन्यवाद देने के लिए मेरे पास शब्दों की कमी है। “ईश्वर आप लोगों को प्रचुर मात्रा में हर प्रकार का वरदान देने में समर्थ हैं, जिससे आप को कभी किसी तरह की कोई कमी नहीं हो, बल्कि हर भले काम केलिए चन्दा देने केलिए भी बहुत कुछ बच जाए।“ (2 कुरिन्थी 9:8) पीड़ा और प्रार्थना के माध्यम से, तूने मुझे जो कुछ भी दिया है, वह मुझे तेरे और मेरे मार्ग पर तेरे द्वारा लाये गए उन सभी के करीब ले आया है। धन्यवाद हे प्रभु!
By: बारबरा लिश्को
Moreजब मैंने यह प्रभावशाली प्रार्थना शुरू की थी, तो मुझे इतनी उम्मीद नहीं थी... “हे बालक येशु की नन्हीं तेरेसा, कृपया मेरे लिए स्वर्गीय बगीचे से एक गुलाब चुनिए और इसे प्रेम के संदेश के रूप में मुझे भेजिए।” यह निवेदन, जो संत तेरेसा को संबोधित ‘मुझे एक गुलाब भेजो’ नोवेना के तीन निवेदनों में से पहला है; और इस निवेदन ने मेरा ध्यान खींचा। मैं अकेली थी. एक नए शहर में बिलकुल अकेली, नए दोस्तों की चाहत के साथ। आस्था के नए जीवन में अकेली, किसी दोस्त और रोल मॉडल की चाह ली हुई। मैं संत तेरेसा के बारे में पढ़ रही थी। बपतिस्मा के दौरान मुझे यही नाम दिया गया था, लेकिन उस संत के प्रति मेरा कोई विशेष आकर्षण नहीं था। संत तेरेसा 12 साल की उम्र में ही येशु के प्रति भावुक भक्ति में जी रही थी और 15 साल की उम्र में कार्मेलाइट मठ में प्रवेश पाने के लिए संत पापा से विशेष निवेदन किया था। मेरा अपना जीवन बहुत अलग था। मेरा गुलाब कहाँ है? तेरेसा आत्माओं की मुक्ति केलिए जोश से भरी हुई थीं; उसने एक खूंखार अपराधी के मन परिवर्तन के लिए प्रार्थना की थी। कार्मेल के कॉन्वेंट की गुप्त दुनिया में बैठकर, उसने दूर-दराज इलाकों पर ईश्वर के प्रेम को फैलाने वाले मिशनरियों के लिए अपनी प्रार्थना समर्पित की। अपनी मृत्यु शैया पर लेटी हुई, नॉरमंडी की इस पवित्र साध्वी ने मठ की अपनी बहनों से कहा था: "मेरी मृत्यु के बाद, मैं गुलाबों की बारिश करूंगी। मैं स्वर्ग में रहकर पृथ्वी पर भलाई के कार्य करूंगी।" मैंने जो किताब पढ़ी, उसमें लिखा था कि 1897 में उसकी मृत्यु के बाद से, उसने दुनिया को कई आशीषें, चमत्कार और यहां तक कि गुलाब भी दिए हैं। "शायद वह मेरे लिए एक गुलाब भेजेगी," मैंने सोचा। यह मेरे जीवन की पहली नोवेना प्रार्थना थी। मैं ने प्रार्थना के दो अन्य निवेदनों के बारे में अधिक नहीं सोचा- अर्थात् मेरे निवेदनों के लिए ईश्वर से मध्यस्थ प्रार्थना करने की कृपा और मेरे लिए ईश्वर के महान प्रेम में गहरा विश्वास करना ताकि मैं तेरेसा के छोटे मार्ग का अनुकरण कर सकूँ। मुझे याद नहीं कि मेरा निवेदन क्या था और मैं तेरेसा के छोटे मार्ग के बारे में कुछ समझ नहीं पा रही थी। मेरा ध्यान बस गुलाब पर था। नौवें दिन की सुबह, मैंने आखिरी बार नोवेना प्रार्थना की। और इंतज़ार किया। शायद आज कोई फूलवाला मेरे पास आकर मुझे गुलाब दे देगा। या शायद मेरे पति काम से लौटते समय मेरे लिए गुलाब लेकर घर आएँगे। दिन के अंत तक, मेरे दरवाज़े पर आया एकमात्र गुलाब एक कार्ड पर छपा हुआ था जो एक मिशनरी समाज से ग्रीटिंग कार्ड के पैक में आया था। यह एक चमकदार लाल, सुंदर गुलाब था। क्या यह तेरेसा की ओर से मेरा गुलाब था? मेरी अदृश्य मित्र कभी-कभी, मैंने फिर से ‘मुझे गुलाब भेजो’ नोवेना प्रार्थना की। हमेशा परिणाम समान था। गुलाब छोटे, छिपे हुए स्थानों में दिखाई देते थे; मैं रोज़ नाम के किसी व्यक्ति से मिलती, और इसके अलावा मुझे गुलाब दिखाई देता किसी पुस्तक के कवर पर, किसी फ़ोटो की पृष्ठभूमि में, या किसी मित्र की मेज़ पर। आखिरकार, जब भी मैं गुलाब देखती, संत तेरेसा मेरे दिमाग में आती। वह मेरे दैनिक जीवन की सहेली बन गई थी। नोवेना को पीछे छोड़ते हुए, मैंने पाया कि मैं जीवन के संघर्षों में उनसे मध्यस्थता माँग रही हूँ। तेरेसा अब मेरी अदृश्य मित्र थी। मैंने अधिक से अधिक संतों के बारे में पढ़ा, और इन पुरुषों, महिलाओं और बच्चों ने ईश्वर के प्रति भावुक प्रेम को किस तरह से जिया, इस पर आश्चर्यचकित हुई । इन लोगों के समूह को जानना, जिनके निश्चित रूप से स्वर्ग में होने के बारे में कलीसिया ने की घोषणा की है, इन सब बातों ने मुझे आशा दी। हर जगह और हर जीवन में, वीरतापूर्ण सद्गुण के साथ जीना संभव होना चाहिए। पवित्रता मेरे लिए भी संभव है। और ऐसे कई रोल मॉडल थे। बहुत सारे! मैंने संत फ्रांसिस डी सेल्स के धैर्य, संत जॉन बॉस्को में प्रत्येक बच्चे की ध्यानपूर्ण देखभाल और कोमल मार्गदर्शन, और हंगरी की संत एलिजाबेथ की दानशीलता का अनुकरण करने की कोशिश की। भक्ति और परोपकार के मार्ग पर मेरी मदद करनेवाले उनके उदाहरणों के लिए मैं आभारी थी। इनसे परिचित होना महत्वपूर्ण था, लेकिन तेरेसा इन सबसे अधिक थी। वह मेरी दोस्त बन गई थी। एक शुरुआत आखिरकार, मैंने संत तेरेसा की आत्मकथा, द स्टोरी ऑफ़ ए सोल (एक आत्मा की कहानी) पढ़ी। उनके इस व्यक्तिगत गवाही में मैंने पहली बार उनके छोटे मार्ग या ‘लिटिल वे’ को समझना शुरू किया। तेरेसा ने खुद को आध्यात्मिक रूप से एक बहुत ही छोटे बच्चे के रूप में कल्पना की थी जो केवल बहुत ही छोटे कार्य करने में सक्षम थी। लेकिन वह अपने पिता का बहुत सम्मान करती थी और जो उससे प्यार करता था, उन के लिए एक उपहार के रूप में हर छोटी-छोटी चीज को बड़े प्यार से करती थी। प्यार का बंधन उसके उपक्रमों के आकार या सफलता से बड़ा था। यह मेरे लिए जीवन के प्रति एक नया दृष्टिकोण था। उस समय मेरा आध्यात्मिक जीवन एक ठहराव पर था। शायद तेरेसा के छोटे मार्ग से इसकी शुरूआत हो सकती थी। एक बड़े और सक्रिय परिवार की माँ होने के नाते, मेरी परिस्थितियाँ तेरेसा से बहुत अलग थीं। शायद मैं अपने दैनिक कार्यों को उसी प्रेमपूर्ण दृष्टिकोण से करने का प्रयास कर सकती थी। अपने घर की छोटी सी जगह और गुप्तता में, जैसा कि तेरेसा के लिए अपना कॉन्वेंट था, मैं प्रत्येक कार्य को प्रेम से करने का प्रयास कर सकती थी। प्रत्येक कार्य ईश्वर के प्रति प्रेम का उपहार हो सकता था; और विस्तार से, प्रत्येक कार्य मेरे पति, मेरे बच्चे, पड़ोसी के प्रति प्रेम का उपहार हो सकता था। कुछ अभ्यास के साथ, हर बार डायपर परिवर्तन, प्रत्येक भोजन जो मैंने मेज पर रखा, और प्रत्येक कपड़े धोने का भार प्रेम की एक छोटी सी भेंट बन गया। मेरे दिन आसान हो गए, और ईश्वर के प्रति मेरा प्रेम मजबूत हो गया। मैं अब अकेली नहीं थी। अंत में, इसमें नौ दिनों से कहीं अधिक समय लगा, लेकिन गुलाब के लिए मेरे आवेगपूर्ण अनुरोध ने मुझे एक नए आध्यात्मिक जीवन के मार्ग पर स्थापित कर दिया। इसके माध्यम से, संत तेरेसा मुझ तक पहुँचीं। उसने मुझे प्रेम की ओर खींचा, उस प्रेम की ओर जो स्वर्ग में संतों का बंधुत्व है, अपने "छोटे मार्ग" का अभ्यास करने के लिए और सबसे बढ़कर, ईश्वर के प्रति अधिक प्रेम की ओर उसने मुझे खींच लिया। आखिरकार मुझे गुलाब से कहीं ज़्यादा मिला! क्या आप जानते हैं कि संत तेरेसा का पर्व 1 अक्टूबर को है? तेरेसा-नामधारियों को पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ।
By: एरिन राइबिकी
Moreअक्सर, किसी वाद्य यंत्र से सुंदर धुनें बजाने के लिए किसी उस्ताद की ज़रूरत होती है। यह एक भयंकर प्रतिस्पर्धा थी जिसमें खरीदार हर चीज़ के लिए एक-दूसरे से ज़्यादा बोली लगाने की होड़ में थे। उन्होंने उत्सुकता के साथ सभी वस्तुओं को खरीद लिया और नीलामी बंद होने वाली थी, सिवाय एक वस्तु के - एक पुराना वायलिन। खरीदार खोजने के लिए उत्सुक, नीलामीकर्ता ने तार वाले वाद्य को अपने हाथों में लिया और जो कीमत उसे आकर्षक लगी, उसे पेश किया: “अगर किसी को दिलचस्पी है, तो मैं इसे 100 डॉलर में बेचूंगा।” कमरे में मौत जैसी खामोशी छा गई। जब यह स्पष्ट हो गया कि पुराने वायलिन को खरीदने के लिए यह कीमत भी किसी को भी राजी करने के लिए पर्याप्त नहीं थी, तो उसने कीमत घटाकर 80 डॉलर, फिर 50 डॉलर और अंत में, हताश होकर 20 डॉलर कर दी। एक और चुप्पी के बाद, पीछे बैठे एक बुजुर्ग सज्जन ने पूछा: “क्या मैं वायलिन को देख सकता हूँ?” नीलामीकर्ता ने राहत महसूस की कि कोई पुराने वायलिन में दिलचस्पी दिखा रहा है, इसलिए उसने हाँ कह दी। कम से कम उस तार वाले वाद्य को एक नया मालिक और नया घर मिलने की संभावना बन रही थी। एक उस्ताद का स्पर्श बूढ़ा आदमी पीछे की सीट से उठा, धीरे-धीरे आगे की ओर चला, और पुराने वायलिन की सावधानीपूर्वक जांच की। अपना रूमाल निकालकर, उसने उसकी सतह को झाड़ा और जब तक कि एक-एक करके, वे सारे तार सही स्वर में आ गए, तब तक प्रत्येक तार को धीरे-धीरे ट्यून किया। आखिरकार, और केवल तभी, उसने पुराने वायलिन को अपनी ठोड़ी और बाएं कंधे के बीच रखा, अपने दाहिने हाथ से गज़ को उठाया, और संगीत का एक अंश बजाना शुरू किया। पुराने वायलिन से निकलने वाला प्रत्येक संगीत स्वर कमरे में सन्नाटे को भेदता हुआ हवा में खुशी से नाच रहा था। सभी चकित रह गए, और उन्होंने वाद्य से निकल रहे संगीत के कमाल को ध्यान से सुना जो सभी के लिए स्पष्ट था - एक उस्ताद के हाथों का कमाल। उन्होंने एक परिचित शास्त्रीय भजन बजाया। धुन इतनी सुंदर थी कि इसने नीलामी में मौजूद सभी लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया और वे अचंभित रह गए। उन्होंने कभी किसी को इतना सुंदर संगीत बजाते हुए नहीं सुना था या देखा भी नहीं था, एक पुराने वायलिन पर तो बिल्कुल भी नहीं। और उन्होंने एक पल के लिए भी नहीं सोचा था कि नीलामी फिर से शुरू होने पर इससे उन्हें खूब मज़ा आएगा। उन्होंने उस वायलिन को बजाना समाप्त किया और शांत भाव से उसे नीलामीकर्ता को लौटा दिया। इससे पहले कि नीलामीकर्ता कमरे में मौजूद सभी लोगों से पूछ पाता कि क्या वे अब भी इसे खरीदना चाहेंगे, हाथ उठाने की होड़ लग गई। अचानक से किए गए इस शानदार प्रदर्शन के बाद हर कोई तुरंत इसे चाहता था। कुछ समय पहले तक एक अवांछित वस्तु से, पुराना वायलिन अचानक नीलामी की सबसे तीव्र बोली का केंद्र बन गया। 20 डॉलर की शुरुआती बोली से, कीमत तुरंत 500 डॉलर तक बढ़ गई। अंततः उस पुराने वायलिन को 10,000 डॉलर में बेचा गया, जो इसकी सबसे कम कीमत से 500 गुना अधिक था। आश्चर्यजनक परिवर्तन पुराने वायलिन को सबकी नापसंद वास्तु से सबकी पसंदीदा और नीलामी का सितारा बनने में केवल 15 मिनट लगे। और इसके तारों को ट्यून करने और एक अद्भुत धुन बजाने के लिए एक उस्ताद संगीतकार की ज़रूरत पड़ी। उसने दिखाया कि जो बाहर से बदसूरत लग रहा था, वास्तव में उस वाद्य यंत्र के अंदर एक सुंदर और अमूल्य आत्मा थी। शायद, पुराने वायलिन की तरह, हमारे जीवन का पहले तो कोई खास मूल्य नहीं लगता। लेकिन अगर हम उन्हें येशु को सौंप दें, जो सभी उस्तादों से ऊपर उस्ताद हैं, तो वे हमारे ज़रिए सुंदर गीत बजाने में सक्षम होंगे और उनकी धुनें श्रोताओं को और भी ज़्यादा चौंका देंगी। तब हमारा जीवन दुनिया का ध्यान आकर्षित करेगा। तब हर कोई उस संगीत को सुनना चाहेगा जिसे प्रभु येशु हमारे जीवन से उत्पन्न करते हैं। इस पुराने वायलिन की कहानी मुझे मेरी अपनी कहानी की याद दिलाती है। मैं भी उस पुराने वायलिन की तरह ही था और किसी ने नहीं सोचा था कि मैं किसी काम का हो सकता हूँ या अपने जीवन में कुछ सार्थक कर सकता हूँ। वे मुझे ऐसे देखते थे जैसे मेरा कोई मूल्य ही न हो। हालाँकि, येशु को मुझ पर दया आ गई। वह पलटा, मेरी ओर देखा और मुझसे पूछा: "पीटर, तुम अपने जीवन में क्या करना चाहते हो?" मैंने कहा: "गुरुवर, आप कहाँ रहते हैं?" "आओ और देखो," येशु ने उत्तर दिया। इसलिए मैं आया और देखा कि वह कहाँ रहते हैं, और मैं उनके साथ रहा। पिछले 16 जुलाई को, मैंने अपने पुरोहिताई अभिषेक की 30-वीं वर्षगांठ मनाई। मेरे लिए येशु के महान प्रेम को जानने और अनुभव करने के लिए... मैं उनका कितना धन्यवाद कर सकता हूँ? उन्होंने पुराने वायलिन को कुछ नया बना दिया है और उसे बहुत मूल्यवान बना दिया है। हे प्रभु, हमारा जीवन भी उस पुराने वायलिन की तरह तेरा संगीत वाद्य बन जाए, ताकि हम ऐसा सुंदर संगीत बना सकें जिसे लोग तेरे अद्भुत प्रेम के लिए धन्यवाद और प्रशंसा देते हुए हमेशा गा सकें।
By: फादर पीटर हंग ट्रान
Moreएक कैथलिक के रूप में, मुझे सिखाया गया था कि क्षमा करना ईसाई धर्म के पोषित मूल्यों में से एक है, फिर भी मैं इसका अभ्यास करने के लिए संघर्ष करती हूँ। संघर्ष जल्द ही एक बोझ बन गया, क्योंकि मैंने क्षमा करने में अपनी असमर्थता पर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया। पाप स्वीकार संस्कार के दौरान, पुरोहित ने येशु मसीह की क्षमा की ओर इशारा किया: "उसने न केवल उन्हें क्षमा किया, बल्कि उनके उद्धार के लिए प्रार्थना की।" येशु ने कहा: "हे पिता, उन्हें क्षमा कर, क्योंकि वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं।" येशु की यह प्रार्थना अक्सर उपेक्षित अंश को प्रकट करती है। यह स्पष्ट रूप से उजागर करता है कि येशु की निगाह सैनिकों के दर्द या क्रूरता पर नहीं थी, बल्कि सच्चाई के बारे में उनके ज्ञान की कमी पर थी। येशु ने उनकी मध्यस्थता करने के लिए इस अंश को चुना। मुझे यह संदेश मिला कि दूसरे व्यक्ति और यहाँ तक कि खुद के अज्ञात अंशों को जगह देने से मेरी क्षमा अंकुरित होनी चाहिए। अब मैं हल्का और अधिक खुश महसूस करती हूँ क्योंकि पहले, मैं केवल ज्ञात कारकों से निपट रही थी - दूसरों द्वारा पहुँचाई गई चोट, उनके द्वारा बोले गए शब्द और दिलों और रिश्तों का टूटना। येशु ने मेरे लिए क्षमा के द्वार पहले ही खुले छोड़ दिए हैं, मुझे केवल अपने और दूसरों के भीतर के अज्ञात अंशों को विनम्रतापूर्वक स्वीकार करने के इस मार्ग पर चलना है। जब येशु हमें अतिरिक्त मील चलने के लिए आमंत्रित करते हैं, तब येशु का यह कथन हमारे लिए अज्ञात अंशों के बारे में जागरूकता के अर्थ की परतें जोड़ता है। मुझे लगा कि क्षमा करना एक ऐसी यात्रा है जो क्षमा करने के कार्य से शुरू होकर एक ईमानदार मध्यस्थता तक जाती है। जिन्होंने मुझे चोट पहुंचाई है, उन लोगों की भलाई के लिए प्रार्थना करके, गेथसेमेन के माध्यम से मेरा चलना ही अतिरिक्त मील चलने का यह क्षण है। और यह प्रभु की इच्छा के प्रति मेरा पूर्ण समर्पण है। प्रभु ने सभी को अनंत काल के लिए प्रेमपूर्वक बुलाया है और मैं कौन हूँ जो अपने अहंकार और आक्रोश के साथ बाधा उत्पन्न करूँ? अपने दिलों को अज्ञात अंशों के लिए खोलने से एक दूसरे के साथ हमारे संबंधों को सुधारता है और हमें ईश्वर के साथ एक गहरे रिश्ते की ओर ले जाता है, जिससे हमें और दूसरों को उनकी प्रचुर शांति और स्वतंत्रता तक पहुँच मिलती है।
By: एमिली संगीता
Moreरोम..., संत पेत्रुस का महागिरजाघर जाना, संत पापा से मुलाक़ात करना ... क्या जीवन इससे ज़्यादा घटनापूर्ण हो सकता है? हाँ, मैंने पाया कि यह हो सकता है। रोम की यात्रा के दौरान कैथलिक धर्म में मेरा धर्मांतरण हुआ। मैं भाग्यशाली थी कि वहां मैं अपनी स्नातक की पढ़ाई के सिलसिले में गयी थी। जिस कैथलिक विश्वविद्यालय में मैंने अध्ययन किया था, उस विश्वविद्यालय ने यात्रा के हिस्से के रूप में संत पापा फ्रांसिस के साथ कुछ मुलाक़ातों का आयोजन किया था। एक शाम, मैं संत पेत्रुस महागिरजाघर में बैठी थी, लाउडस्पीकर पर लातीनी भाषा में रोज़री माला की प्रार्थना सुन रही थी, जबकि मैं गिरजाघर में आराधना शुरू होने का इंतज़ार कर रही थी। हालाँकि मैं उस समय लातीनी नहीं समझती थी, न ही मुझे पता था कि रोज़री क्या है, मैंने किसी तरह प्रार्थना को पहचान लिया। वह एक रहस्यमय तल्लीनता का क्षण था जिसने अंततः मुझे माँ मरियम की मध्यस्थता के माध्यम से अपना पूरा जीवन येशु को सौंपने के लिए प्रेरित किया। इससे मेरे धर्मांतरण की एक यात्रा शुरू हुई, जो एक साल बाद कैथलिक कलीसिया में मेरे बपतिस्मा में परिणत हुई, और कुछ ही समय बाद वह एक प्रेम कहानी में परिणत हुई। खोज के क्षण मैंने पाया कि मैं धीरे-धीरे येशु के साथ अपने रिश्ते की नींव बना रही हूँ, इस प्रक्रिया में अनजाने में मरियम की नकल कर रही हूँ। मसीह के साथ अपने संबंध को गहरा करने की कोशिश करते हुए मैंने प्रार्थना में उनके चरणों में घुटने टेके, जैसा कि मरियम ने कलवारी में किया होगा। मैं आज भी इस अभ्यास को जारी रखती हूँ, येशु के चेहरे, उनके घावों, उनकी कमज़ोरियों और उनकी पीड़ा का अध्ययन करती हूँ। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मैं उन्हें सांत्वना देने के लिए हर दिन उनसे मिलती हूँ क्योंकि मैं उनके क्रूस पर अकेले होने के विचार को सहन नहीं कर सकती। उनके दु:ख पर ध्यान लगाने से, मैं पाती हूँ कि मैं आज हमारे अंदर बसनेवाले जीवित मसीह के महत्व को और अधिक गहराई से समझ सकती हूँ। जब मैंने खुद को इस अभ्यास के लिए समर्पित किया, तो मैंने महसूस किया कि येशु मेरी दैनिक प्रार्थनाओं में मेरा इंतज़ार कर रहे हैं, मेरी वफ़ादारी के लिए तरस रहे हैं, और मेरी संगति की तलाश में हैं। जितना अधिक मैंने उन्हें मौन प्रार्थना में थामे रखा, उतना ही अधिक मैं अपने जीवन और दूसरों के जीवन के लिए येशु द्वारा चुकाई गई कीमत के लिए गहरा दु:ख और शोक महसूस करने लगी। मैंने उनके लिए आँसू बहाए। मैंने उन्हें अपने दिल में कैद कर लिया। अपने बेटे के लिए मरियम की कोमल देखभाल को प्रतिबिंबित करते हुए मैंने प्रार्थना में उन्हें सांत्वना दी। येशु को क्रूस पर ले जाने वाले बलिदानी प्रेम की अनुभूति ने मेरे भीतर गहरी मातृ भावनाएँ जगाईं, जिससे मुझे सब कुछ उनके प्रति समर्पित करने के लिए मजबूर होना पड़ा। माँ मरियम की कृपा से, जैसे हमारा रिश्ता खिल उठा, मैंने खुद को पूरी तरह से येशु को समर्पित कर दिया, जिससे उन्हें मुझे बदलने की अनुमति मिली। समर्पण जब दो साल पहले मुझे बहुत बड़ा नुकसान हुआ, तो मैंने इस दैनिक अभ्यास को जारी रखा, हालाँकि मेरे दुःख का केंद्र बदल गया था। मैंने जो आँसू बहाए, वे अब उसके लिए नहीं बल्कि अपने लिए थे। मैं अपने पूर्ण संकट और निराशा में हमारे प्रभु के चरणों में गिरने के अलावा कुछ नहीं कर सकती थी, चाहे मैं कितना भी स्वार्थी क्यों न महसूस कर रही थी। तब ईश्वर ने मुझे दिखाया कि कैसे प्रार्थना में उनके बलिदान की साक्षी बनने से ही नहीं, बल्कि उनकी दु:ख पीड़ा में प्रवेश करके भी मुक्तिदायक पीड़ा को साझा किया जा सकता है। अचानक, उनका दुख मेरे लिए अब बाहरी नहीं रहा, बल्कि कुछ ऐसा था जो इतना अंतरंग था कि मैं क्रूस पर मसीह के साथ एक हो गयी। मैं अब अपने दुख में अकेली नहीं थी। बदले में, मैं ने पहचानना की मेरे साथ वे थे जिन्होंने मुझे मौन प्रार्थना में सहारा दिया, जिन्होंने मेरे लिए शोक किया और मेरे दुख को साझा किया। उन्होंने मेरे लिए आँसू बहाए और अपना दिल खोल दिया जहाँ मैं पीछे हट गयी और उनकी कैदी बन गयी। मैं उसके प्यार में बंदी थी। असहज मार्ग पर यात्रा मरियम का अनुकरण करने से हमे सीधे येशु के हृदय की ओर पहुँच जाते हैं, जो हमें सच्चे पश्चाताप और उनके प्रेम से प्रवाहित होने वाली असीम दया का सार सिखाता है। यह यात्रा चुनौतीपूर्ण हो सकती है, जिसके लिए हमें मसीह के क्रूस के बोझ को साझा करना होगा। फिर भी, हमारे परीक्षणों और दु:खों के माध्यम से, हम उनकी आरामदायक उपस्थिति में सांत्वना पा सकते हैं, यह जानते हुए कि वे हमें कभी नहीं छोड़ते। मरियम के आदर्श का अनुसरण करके, हम उन्हें अपने प्रभु और उद्धारकर्ता येशु के साथ हमारे संबंध को गहरा करने और उनके मुक्तिदायी दु:ख को साझा करने में हमारा मार्गदर्शन करने के लिए आमंत्रित करते हैं। ऐसा करने से, हम उन लोगों के दर्द और पीड़ा के लिए जीवित शहीद बन जाते हैं जो अभी तक मसीह से नहीं मिले हैं, और उसी प्रक्रिया में, हम स्वयं ठीक हो जाते हैं। अपने बेटे के लिए मरियम के मातृ प्रेम का जब हम अनुकरण करते हैं, तो हम उनके दु:ख के सार के करीब आते हैं और उनकी उपचारात्मक कृपा के पात्र बन जाते हैं। मसीह के साथ एकता में अपने स्वयं के दुखों को अर्पित करने के माध्यम से, हम उनके प्रेम और करुणा के जीवित गवाह बन जाते हैं, जो उन लोगों को सांत्वना देते हैं जो अभी तक उनसे नहीं मिले हैं। इस पवित्र प्रक्रिया में, हम अपने लिए उपचार पाते हैं और ईश्वर की दया के साधन बनते हैं, जरूरतमंदों तक उनका प्रकाश फैलाते हैं। इसी तरह, हम अपने जीवन में क्रूस को साहस के साथ गले लगाना सीखते हैं, यह जानते हुए कि वे मसीह के साथ एक गहरे मिलन के मार्ग हैं। मरियम की मध्यस्थता के माध्यम से, उस बलिदानी प्रेम की गहन समझ की ओर हमारा मार्गदर्शन किया जाता है जिसके कारण येशु ने हमारे लिए अपना जीवन दे दिया। जब हम शिष्यत्व के मार्ग पर चलते हैं, और मरियम के पदचिन्हों पर चलते हैं, तो हमारे जीवन में उपचार और मुक्ति लाने के लिए उनकी परिवर्तनकारी शक्ति पर भरोसा करते हुए अपने दु:खों और संघर्षों को येशु को अर्पित करने के लिए हमें कहा जाता है।
By: फ़ियोना मैककेना
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