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उसे क्रोनिक सनकी बाध्यता विकृति (ओ.सी.डी.) का पता चला और उसे जीवन भर दवाएँ देनी पड़ीं। फिर, कुछ अप्रत्याशित घटित हुआ
1990 के दशक में, मुझे ऑब्सेसीव कम्पल्सीव डिसऑर्डर (ओ.सी.डी.) अर्थात सनकी बाध्यता विकृति का पता चला। डॉक्टर ने मुझे दवाएँ दीं और मुझसे कहा कि मुझे जीवन भर उन दवाओं को लेना होगा। कुछ लोग सोचते हैं कि मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं इसलिए होती हैं क्योंकि आप में विश्वास की कमी है, लेकिन मेरे विश्वास में कुछ भी गलत नहीं था। मैं हमेशा ईश्वर से बहुत प्यार करती थी और सभी बातों में उस पर भरोसा करती थी, लेकिन मुझे एक स्थायी अक्षम्य अपराधबोध भी महसूस होता था। दुनिया में जो कुछ भी गलत था वह मेरी गलती थी, ऐसी धारणा से मैं छुटकारा नहीं पा रही थी।
मेरे पास कानून की डिग्री थी, लेकिन मेरा दिल कभी वहां नहीं था। मैंने अपनी मां को खुश करने के लिए कानून की पढ़ाई शुरू की थी। माँ ने सोचा था कि अध्यापन का पेशा मेरे लिए अच्छा नहीं होगा। इसलिए मैं ने क़ानून की पढ़ाई की। लेकिन इस बीच मैंने शादी कर ली थी और पढ़ाई पूरी होने से ठीक पहले मैंने अपने पहले बच्चे को जन्म दिया था, फिर एक के बाद एक, सात खूबसूरत बच्चों को जन्म दिया, इसलिए मुझे कानून के पेशे में काम करने की शिक्षा कम मिली, उसकी तुलना में मां बनने की प्रशिक्षण पाने में अधिक समय मैं ने बिताया। जब हमने ऑस्ट्रेलिया में घर बसाया, तो वहां का कानून अलग था, इसलिए, मैं अंततः अपना पहला प्यार, यानी अध्यापन की पढ़ाई करने के लिए विश्वविद्यालय वापस चली गयी। जब मुझे मेरी पसंदीदा नौकरी मिली, तब भी मुझे लगा कि मैं अपने अस्तित्व को सही ठहराने केलिए पैसा कमाने की कोशिश कर रही हूं। किसी तरह, मुझे नहीं लगा कि अपने परिवार की देखभाल करना और मेरे जिम्मे में सौंपे गए लोगों का पालन-पोषण करना ही काफी था। वास्तव में, मेरे भयावह अपराधबोध और अपर्याप्तता की भावना के साथ, कभी भी मुझे कुछ भी सही और खुशनुमा महसूस नहीं हुआ।
हमारे परिवार के आकार के कारण, छुट्टी पर जाना हमेशा आसान नहीं होता था, इसलिए जब हमने पेम्बर्टन में कैरी होम के बारे में सुना तो हम उत्साहित हो गए, वहां का नियम यह है कि आपकी जितनी क्षमता है उतने ही दान का आप भुगतान करें। यह जंगलों के करीब बसा हुआ एक खूबसूरत इलाका था। हमने सप्ताहांत पारिवारिक साधना पर जाने की योजना बनाई। पर्थ में भी उनका एक प्रार्थना और आराधना समूह था। जब मैं शामिल हुई तब उन्होंने मेरा बहुत अच्छा स्वागत किया।
वहाँ, साधना के दौरान, कुछ बिल्कुल अप्रत्याशित और जबरदस्त घटित हुआ। थोड़ी देर पहले ही मुझ पर प्रार्थना की गयी थी और मैं अचानक ज़मीन पर गिर पड़ी। कोख में पल रहे भ्रूण की तरह फर्श पर लुढ़की हुई, मैं लगातार चिल्लाती रही। वे मुझे बाहर लकड़ी के बने पुराने जर्जर बरामदे में ले गए और तब तक प्रार्थना करते रहे जब तक कि मैंने चिल्लाना बंद नहीं कर दिया।
यह पूरी तरह से अनचाहा और अप्रत्याशित था। लेकिन मैं जानती थी कि उस बंधन से मेरी मुक्ति हो चुकी थी।
मैं बस सुकून देनेवाला खालीपन महसूस कर रही थी, मानो मुझसे कोई बड़ा बोझ उतर कर निकल गया हो। उस साधना के बाद, मेरे दोस्त लोग मेरा हालचाल लेते रहे और मेरे लिए प्रार्थना करने आए और माँ मरियम से मध्यस्थता की प्रार्थना की, ताकि पवित्र आत्मा के वरदान मुझमें प्रकट हो जाएं। मुझे इतना बेहतर महसूस हुआ कि एक या दो सप्ताह के बाद, मैंने दवा की खुराक कम करने का फैसला लिया। तीन महीने के भीतर, मैंने दवा लेना बंद कर दिया और मुझे पहले से बेहतर महसूस हुआ।
मुझे अब खुद को साबित करने या यह दिखावा करने की ज़रूरत महसूस नहीं हुई कि मैं पहले से बेहतर हूँ। मुझे नहीं लगा कि मुझे सभी बातों में उत्कृष्टता हासिल करनी है। मैं जीवन के उपहार, अपने परिवार, अपने प्रार्थनाशील समुदाय और ईश्वर के साथ इस जबरदस्त संबंध के लिए आभारी हूं। अपने अस्तित्व को उचित ठहराने की आवश्यकता से मुक्त होकर, मुझे एहसास हुआ कि इसकी बिलकुल ज़रुरत नहीं है। यह जिन्दगी एक बड़ा उपहार है – जीवन, परिवार, प्रार्थना, ईश्वर के साथ संबंध – ये सभी उपहार हैं, कोई ऐसी चीज़ नहीं जिसे आप कभी अर्जित करने जा रहे हैं। आप इसे स्वीकार करते हैं और ईश्वर को धन्यवाद देते हैं।
मैं एक बेहतर इंसान बन गयी। मुझे दिखावा करने, प्रतिस्पर्धा करने या अहंकारपूर्वक इस बात पर ज़ोर देने की ज़रूरत नहीं थी कि मेरा तरीका सबसे अच्छा था। मुझे एहसास हुआ कि मुझे दूसरे व्यक्ति से बेहतर नहीं बनना है क्योंकि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। ईश्वर मुझसे प्यार करता है, ईश्वर मेरी परवाह करता है। अपने अक्षम करने वाले अपराधबोध की पकड़ से बाहर आकर, मुझे तब से एहसास हुआ है कि “अगर ईश्वर मुझे नहीं चाहता, तो उसने किसी और को बना दिया होता।”
मेरी माँ के साथ मेरा रिश्ता हमेशा ही दुविधापूर्ण रहा। मैं स्वयं एक माँ बनने के बाद भी, अभी भी दुविधा की इन भावनाओं से जूझ रही थी। लेकिन इस अनुभव ने मेरे लिए सब कुछ बदल दिया। जैसे ईश्वर ने येशु को दुनिया में लाने के लिए मरियम को चुना, उसने मेरे रास्ते में मेरी मदद करने के लिए माँ मरियम को चुना। मेरी माँ और बाद में पवित्र माँ मरियम के साथ संबंधों से मेरी समस्याएँ धीरे-धीरे दूर हो गईं।
मैं ने महसूस किया कि मैं सलीब के नीचे खड़े योहन की तरह हूँ; जब येशु ने उससे कहा: “देख यह तुम्हारी माता है।” मैंने माँ मरियम को एक आदर्श माँ के रूप में जाना है। अब, जब कभी मेरा दिमाग विफल हो जाता है, तो रोज़री माला मुझे बचाने के लिए आगे आती है! जब मैंने उसे अपने जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा बना लिया, तभी मुझे एहसास हुआ कि मुझे उसकी कितनी ज़रूरत है। अब, मैं मां से अलग रहने की कल्पना भी नहीं कर सकती।
Susen Regnard
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