Home/Engage/Article

नवम्बर 03, 2023 89 0 Joshua Glicklich
Engage

ईश्वर की फुसफुसाहट

सुबह साढ़े छह बजे, जब सूरज की रोशनी बिलकुल नहीं थी, उस अँधेरे में और बर्फ जमा देने वाली ठंड में, जोशुआ ग्लिक्लिच ने एक फुसफुसाहट सुनी, ऐसी फुसफुसाहट जिसके द्वारा उन्हें नया जीवन मिला।

उत्तरी इंग्लैंड के अन्य ज़्यादतर कैथलिक लड़कों की तरह, मेरा बचपन बहुत ही साधारण तरीके से बीता। मैं एक कैथलिक स्कूल में गया और पहला परमप्रसाद ग्रहण किया। मुझे कैथलिक विश्वास की शिक्षा दी गई और हम अक्सर गिरजाघर जाते थे। जब मेरी उम्र 16 वर्ष की हुई, तो मुझे आगे की पढाई केलिए विद्यालय चुनना था, और मैंने कैथलिक विद्यालय में नहीं, बल्कि एक धर्मनिरपेक्ष स्कूल में पढ़ाई करने का निर्णय लिया। वहीँ से मैंने अपना विश्वास खोना शुरू कर दिया।

ईश्वर प्रेम में और विश्वास में और गहरा उतरने के लिए शिक्षकों और पुरोहितों का वह निरंतर दबाव अब नहीं रहा। मैं विश्वविद्यालय पहुंचा और यहीं पर मेरे विश्वास की वास्तव में परीक्षा हुई। अपने पहले सेमेस्टर में, मैं पार्टियों में जाता रहा। मैं हर प्रकार के अलग-अलग कार्यक्रमों में जा रहा था, और अच्छे और सही मार्ग को नहीं चुन रहा था। मैंने वास्तव में कुछ बड़ी गलतियाँ कीं। मैं बाहर शराब पीने जाता अथा और न जाने सुबह किस समय कमरे में मैं वापस आता था। मैं ने ऐसा पापपूर्ण जीवन जीना शुरू किया जिसका कोई मतलब नहीं था। उस जनवरी में, जब छात्रों को अपने पहले सेमेस्टर की छुट्टी से लौटना था, मैं अन्य छात्रो के पहुँचने से थोड़ा पहले लौट आया।

मेरे जीवन का वह अविस्मरणीय दिन था। मैं सुबह लगभग साढ़े छह बजे उठा। घना अंधेरा और बर्फ जमा देने वाली ठंड थी। यहाँ तक कि वे लोमड़ियाँ भी नहीं दिख रही थीं जिन्हें मैं अपने कमरे के बाहर देखा करता था – वह हालात इतनी ठंडी और भयानक थी। मुझे अपने भीतर एक अश्रव्य आवाज का आभास हुआ। यह कोई धक्का देने वाली आवाज़ नहीं थी, और यह मेरे लिए असहज भी नहीं थी। ऐसा लगा जैसे ईश्वर ने धीमी फुसफुसाहट में कहा हो, “जोशुआ, मैं तुमसे प्यार करता हूँ। तुम मेरे बेटे हो…मेरे पास वापस आओ।” मैं आसानी से इससे दूर जा सकता था और इसे पूरी तरह से नजरअंदाज कर सकता था। मुझे याद आया कि ईश्वर अपने बच्चों को नहीं छोड़ते, चाहे हम कितनी भी दूर क्यों न भटक गए हों।

हालाँकि ओला की बारिश हो रही थी, मैंने उस सुबह गिरजाघर की ओर चल दिया। जैसे ही मैंने एक कदम दूसरे कदम के सामने रखा, मैंने मन में सोचा, “मैं क्या कर रहा हूँ? मेँ कहाँ जा रहा हूँ?” फिर भी ईश्वर मुझे आगे बढ़ाते रहे, और मैं उस ठंडे, और अत्यधिक सर्द दिन में आठ बजे के मिस्सा बलिदान के लिए गिरजाघर पहुँच गया। 15 या 16 साल की उम्र के बाद, पहली बार मैंने मिस्सा बलिदान के शब्दों को अपने अन्दर आत्मसात कर लिया। मैंने सुना – “पवित्र, पवित्र, पवित्र, सेनाओं के प्रभु ईश्वर……।“ उससे ठीक पहले, पुरोहित ने कहा, “स्वर्गदूतों और संतों की गायक मंडली के साथ जुड़कर …………..” मैनें अपना दिल इसमें लगा दिया और अपना पूरा ध्यान हर शब्द पर केन्द्रित किया। मैंने परम प्रसाद में येशु मसीह की वास्तविक उपस्थिति के लिए स्वर्गदूतों को वेदी पर उतरते हुए महसूस किया। मुझे याद है कि मैंने परम प्रसाद ग्रहण किया और ऐसे सोचने लगा, “मैं अब तक कहाँ था, और प्रभु केलिए मेरा जीवन नहीं तो मेरा यह पापपूर्ण जीवन क्या केलिए था?” जैसे ही मैंने परम प्रसाद ग्रहण किया, मेरी आँखों से आंसुओं की बाढ़ बहने लगी। मुझे एहसास हुआ कि मैं मसीह का शरीर प्राप्त कर रहा हूं। वह मेरे भीतर है और मैं उसका पवित्र मञ्जूषा बन गया हूँ —उसका विश्राम स्थल।

तब से मैं नियमित रूप से छात्रों केलिए प्रतिदिन आयोजित मिस्सा बलिदान में भाग लेने लगा। मैं कई कैथलिकों से मिला जो अपने विश्वास से प्यार करते थे। मुझे अक्सर सिएना की संत कैथरीन का यह कथन याद आता है, “परमेश्वर ने तुम्हें जैसा बनाया है वैसा बनो और तुम दुनिया में आग प्रज्वलित कर दोगे।” मैंने इन छात्रों में यही देखा। मैंने देखा कि प्रभु ने इन लोगों को वैसा ही रहने दिया जैसा उन्हें होना चाहिए था। ईश्वर ने एक पिता की तरह धीरे से उनका मार्गदर्शन किया। वे दुनिया में आग प्रज्वलित कर रहे थे – वे कैंपस में दूसरों को अपना विश्वास की गवाही देकर, सुसमाचार की घोषणा कर रहे थे। मैं इसमें शामिल होना चाहता था, इसलिए मैं विश्वविद्यालय के धार्मिक सेवा दल का हिस्सा बन गया। इस दौरान, मैंने अपने विश्वास से प्यार करना और इसे दूसरों के सामने ऐसे तरीके से व्यक्त करना सीखा जो दिखावा नहीं बल्कि येशु मसीह का जैसा था।

कुछ साल बाद, मैं कैथलिक छात्र संघ का अध्यक्ष बन गया। मुझे छात्रों के एक समूह को उनके विश्वास के विकास में नेतृत्व देने का सौभाग्य मिला। इस दौरान मेरा विश्वास बढ़ा. मैं एक वेदी सेवक बन गया. तभी वेदी के करीब होने के कारण मुझे मसीह के साथ निकट रिश्ते का अनुभव हुआ पुरोहित तत्व-परिवर्तन के शब्द कहते हैं, और रोटी और दाखरस मसीह के सच्चे शरीर और रक्त में बदल जाते हैं। एक वेदी सेवक के रूप में यह सब मेरे सामने ही हो रहा था। मेरी आँखों ने उस परिपूर्ण चमत्कार के दर्शन कर लिए, जो हर जगह, हर मिस्सा बलिदान में, हर वेदी पर होता है।

ईश्वर हमारी स्वतंत्र इच्छा और हमारे द्वारा की गई जीवन यात्रा का सम्मान करता है। हालाँकि, सही मंजिल तक पहुँचने के लिए हमें ईश्वर को चुनना होगा। याद रखें कि चाहे हम ईश्वर से कितनी भी दूर क्यों न भटक गए हों, वह हमेशा हमारे साथ है, हमारे बगल में चल रहा है और हमें सही जगह पर ले जा रहा है। हम सिर्फ स्वर्ग की यात्रा पर निकले तीर्थयात्रियों के अलावा और कुछ नहीं हैं।

Share:

Joshua Glicklich

Joshua Glicklich

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

Neueste Artikel