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उन दिनों जब मैं छोटी लड़की थी, मैं एक सुपरहीरो बनना चाहती थी। लेकिन उम्र में आगे बढ़ती हुई, अंततः मैंने स्वीकार कर लिया कि वह एक बच्ची का मूर्खतापूर्ण सपना था, जब तक…
जब मैं बच्ची थी, मैं शनिवार की सुबह जल्दी उठकर कार्टून सीरियल ‘सुपर-फ्रेंड्स’ देखती थी, जो दुनिया को बचाने वाले सूपर हीरो लोगों के एक समूह के बारे में कार्टून था। मैं बड़ी होकर सूपर हीरो बनना चाहती थी। मैं कल्पना करती थी कि मुझे एक संकेत मिलता है कि किसी को मदद की ज़रूरत है और मैं तुरंत उनकी सहायता के लिए उड़ान भरती हूं। मैंने टीवी पर जितने भी सूपर हीरो देखे, वे गुप्त या छिपे छिपे रहते थे। दुनिया को वे उबाऊ जीवन जीने वाले सामान्य लोगों की तरह लग रहे थे। हालाँकि, मुसीबत के समय में, वे तुरंत जुट जाते थे और बुरे लोगों के हाथों से मानवता को बचाने के लिए एकजुट होकर कर काम करते थे।
एक बार जब मैं बड़ी हुई, तो मुझे पता चला कि कार्टूनों के सूपर हीरो काल्पनिक पात्र थे। मैंने अपनी मूर्खतापूर्ण धारणाओं को त्याग दिया… और, एक दिन, मेरी मुलाकात एक सच्चे सूपर हीरो से हुई, जिसने मेरी आँखें खोल दीं। मैं कभी-कभी स्थानीय गिरजाघर में सतत आराधना के प्रार्थनालय में प्रार्थना करने के लिए जाती थी। चूँकि परम प्रसाद की आराधना के दौरान किसी को हर समय उपस्थित रहना होता है, स्वयंसेवक थोड़े-थोड़े अंतराल के लिए साइन-अप करते हैं। अपनी कई यात्राओं के दौरान, मैंने व्हीलचेयर पर एक वृद्ध व्यक्ति को देखा जो प्रार्थनालय में बैठकर घंटों प्रार्थना करते थे। वे लगभग 90 वर्ष के लग रहे थे। समय-समय पर, वे एक बैग से अलग-अलग चीजें निकालते थे – कभी बाइबिल, कभी रोज़री माला, और कभी कागज का एक टुकड़ा जो मुझे लगता है कि एक प्रार्थना सूची थी। मैं सोचने लगी कि जब वे युवावस्था में थे, और शारीरिक रूप से स्वस्थ थे, तो उन्होंने किस तरह का काम किया होगा। उन्होंने पहले जो कुछ भी किया होगा, वह संभवतः उतना महत्वपूर्ण नहीं था जितना वे अब कर रहे थे। मुझे एहसास हुआ कि हममें से अधिकांश लोग इधर-उधर भागने में व्यस्त थे, और हमारी तुलना में व्हीलचेयर पर बैठा यह सज्जन कहीं अधिक महत्वपूर्ण काम कर रहा था।
गुप्त सूपर हीरो सादे वेश में छिपे हुए थे! इसका मतलब यह है कि मैं भी सुपरहीरो बन सकती हूं, हाँ प्रार्थना की सूपर हीरो।
मैंने गिरजा घर की प्रार्थना श्रृंखला में शामिल होने का फैसला किया। यह उन लोगों का एक समूह है जो निजी तौर पर दूसरों के लिए मध्यस्थ प्रार्थना करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इनमें से कई प्रार्थना योद्धा बुजुर्ग हैं। कुछ विकलांग लोग हैं. कुछ लोग जीवन के ऐसे दौर में होते हैं जहां वे विभिन्न कारणों से घर में ही रहते हैं। हमें प्रार्थना का अनुरोध करनेवाले लोगों के नामों की ईमेल सूचनाएं मिलती हैं। जब किसी को मदद की ज़रूरत होती है, तो हमें एक संकेत मिलता है, ठीक उन कार्टूनों के सूपर हीरो की तरह, जिन्हें मैंने बहुत पहले देखा था।
प्रार्थना अनुरोध दिन के हर समय आते हैं: श्रीमान फलाना एक सीढ़ी से गिर गए और उन्हें अस्पताल ले जाया जा रहा है; अमुक श्रीमती को कैंसर हो गया है; किसी का पोता किसी कार दुर्घटना में चोटिल हो गया है; नाइजीरिया में किसी व्यक्ति के भाई का अपहरण कर लिया गया है; तूफानी बवंडर में किसी परिवार ने अपना घर खो दिया है आदि इत्यादि। ज़रूरतों की बहुत लम्बी फेहरिश्त।
हम मध्यस्थ के रूप में अपनी ज़िम्मेदारी को गंभीरता से लेते हैं। जैसे ही हमें प्रार्थना का निवेदन मिलता है, तुरंत हम जो कुछ भी कर रहे हैं उसे रोक देते हैं और प्रार्थना करते हैं। हम प्रार्थना योद्धाओं की एक सेना हैं। हम अंधकार की अदृश्य शक्तियों से लड़ रहे हैं। इस प्रकार, हम परमेश्वर के पूर्ण कवच धारण करते हैं और आध्यात्मिक हथियारों से लड़ते हैं। हम उन लोगों की ओर से प्रार्थना करते हैं जिन्हें ज़रूरत है। दृढ़ता और समर्पण के साथ, हम लगातार अपनी याचिकाएँ ईश्वर को सौंपते हैं।
क्या प्रार्थना से कोई फर्क पड़ता है? समय-समय पर, हमें उन लोगों से प्रतिक्रिया मिलती है जिन्होंने प्रार्थना का अनुरोध किया है। नाइजीरिया में अपहृत व्यक्ति को एक सप्ताह के भीतर रिहा कर दिया गया। कई लोग चमत्कारी चंगाई का अनुभव करते हैं। सबसे बढ़कर, दुख के समय में लोगों को मजबूती मिलती है और उन्हें सांत्वना मिलती है। येशु ने प्रार्थना की, और दुनिया में क्रांति ला दी! प्रार्थना उनकी चंगाई, मुक्ति और जरूरतमंदों को सहायता प्रदान करने की सेवा का हिस्सा थी। येशु पिता के साथ निरंतर संचार-संपर्क में थे। उन्होंने अपने शिष्यों को भी प्रार्थना करना सिखायी।
प्रार्थना हमें ईश्वर के दृष्टिकोण को समझने और अपनी इच्छा को उसके दिव्य स्वभाव के साथ समन्वय स्थापित करने की अनुमति देती है। और जब हम दूसरों के लिए मध्यस्थता करते हैं, तो हम मसीह के प्रेम की सेवा में उसके भागीदार बन जाते हैं। जब हम अपनी चिंताओं को सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, सर्वव्यापी ईश्वर के साथ साझा करते हैं, तो वातावरण में बदलाव होता है। ईश्वर की इच्छा के साथ एकजुट होकर हमारी वफादार प्रार्थना, पहाड़ों को हिला सकती है।
“हे प्रभु, हम तुझसे प्रार्थना करते हैं कि तू हमारी सहायता कर और हमारी रक्षा कर! दीन दुखियों का उद्धार कर! तुच्छ समझे जाने वाले लोगों पर दया कर! गिरे हुए को उठा ले प्रभु! तू अपने आप को जरूरतमंदों के सम्मुख दर्शन दे! बीमारों को ठीक कर! तेरे लोगों में से जो भटक गए हैं, उन्हें वापस ला! भूखे को खाना खिला दे! कमज़ोरों को ऊपर उठा ले! बंदियों की जंजीरें उतार दे! सभी राष्ट्र जान लें कि केवल तू ही ईश्वर हैं, कि येशु तेरा पुत्र है, कि हम तेरे लोग हैं, हम भेड़ें हैं जिन्हें तू चराता है। आमेन।” (संत क्लेमेंट)
Nisha Peters serves in the Shalom Tidings’ Editorial Council and also writes her daily devotional, Spiritual Fitness, at susannapeters.substack.com
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