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जुलाई 27, 2021 1783 0 Stephen and Nicole King
Encounter

एक लम्बी यात्रा

आप अपने साथी को ईश्वर के करीब लाने में एक बड़ी भूमिका निभा सकते है!

उम्मीद है इस राह में स्टीफन किंग द्वारा कैथलिक विश्वास को अपनाने की यात्रा आपकी सहायता करेगी।

वैज्ञानिक रूप से विकलांग

जब स्टीफन किंग उत्तरी आयरलैंड में एक प्रोटेस्टेंट परिवार में बड़े हो रहे थे तब उन्होंने कभी नहीं सोचा होगा कि एक दिन वह अपनी परवरिश की दहलीज़ पार कर कैथलिक बन जाएंगे। उन दिनों उत्तरी आयरलैंड में कैथलिक और प्रोटेस्टेंट लोगों के बीच लगातार मुठभेड़ हुआ करती थी, जिसने स्टीफन और उनके परिवार को धार्मिक बातों से दूर रहने के लिए प्रेरित किया। कभी कभी स्टीफन बाल्यावस्था में संडे स्कूल चले जाते थे, पर ग्यारह साल की उम्र में अपने पिता को खो देने के बाद उनके पूरे परिवार ने ही चर्च जाना छोड़ दिया।

इन सब बातों की वजह से उन्होंने ज़िन्दगी की तरफ एक बहुत ही दुनियाई और भौतिकवादी नज़रिया अपना लिया और उन्होनें विज्ञान को ही अपने सारे सवालों का जवाब मान लिया। उन्हें लगा कि उन्हें ईश्वर की कोई ज़रूरत नहीं है और धर्म ने आजतक लोगों को सिर्फ दुख तकलीफें दी हैं इसीलिए वे उससे दूर ही रहने लगे। “एक भौतिकवादी या विज्ञानवादी किस्म का इन्सान होना आपनेआप में धार्मिक रूप से विकलांग होने जैसा है। क्योंकि यह आपको एक ऐसा गुरूर देता है जिससे छुटकारा पाना बहुत मुश्किल है।”

भूगर्भ शास्त्र में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वे एक कंपनी में काम करने लगे, जो कि ट्रिनिटी कॉलेज, डबलिन में स्थित थी। हालांकि स्टीफन को उस कॉलेज के नाम से कोई लेना देना नहीं था पर ईश्वर को स्टीफन से लेना देना था, क्योंकि उन्होंने अभी तक स्टीफन को त्यागा नहीं था। स्टीफन को काम के सिलसिले में अक्सर देश के बाहर यात्रा करनी पड़ती थी, इसी बीच उन्हें ब्रिसबेन, ऑस्ट्रेलिया भेज दिया गया। जब वे ऑस्ट्रेलिया आए तब वे किसी को नहीं जानते थे पर ईश्वर ने उनका खयाल रखा।

इश्क़ हवाओं में है

एक दिन जब वह ट्रेन में बैठे अपने काम पर जा रहे थे तब उन्होंने एक सुंदर सी, जवान लड़की को देखा जो अन्य औरतों और कुछ मर्दों से भी ज़्यादा लम्बी थी। निकोल डेविस ने भी स्टीफन को देखा क्योंकि वे उन चंद मर्दों में से थे जो उसके खुद के कद से ज़्यादा लम्बे थे।

छह महीने तक स्टीफन को दूर से देखने के बाद आखिरकार निकोल की बहन ने ही उसे स्टीफन से बात करने के लिए हिम्मत दी। “उस दिन, प्लेटफॉर्म पर भी सिर्फ हम दोनों ही मौजूद थे और ट्रेन की उस डिब्बे में भी बस हम दोनों ही थे, लेकिन मेरी उनसे बात करने की हिम्मत ही नहीं हो रही थी। पर जब हम ट्रेन से बाहर निकले और मैंने उन्हें दूर जाते देखा तब मुझे अपनी बहन की कही बातें याद आईं “अगर अब तुम उस इन्सान से बात नहीं कर पाई तो आगे से मेरे सामने उसका ज़िक्र भी मत करना।” तब जा कर निकोल ने हिम्मत जुटाई, स्टीफन को पुकारा और उनसे पूछा कि क्या वह उनके साथ खाने पर चलेंगे। पहले तो स्टीफन ने मना कर दिया, पर फिर मान गए।

धीरे धीरे उन्हें समझ आने लगा कि वे दोनों एक दूसरे को पसंद करते हैं, बात यहां तक आ गई कि निकोल अब शादी की बातें करने लगी थीं। स्टीफन बेशक निकोल से प्यार करने लगे थे पर उन्हें लगा की उस वक्त वे शादी के लिए तैयार नहीं थे। लेकिन निकोल ने इरादा बना लिया था कि अगर अगले डेढ़ साल में उनका रिश्ता शादी की तरफ नहीं बढ़ता तो वह स्टीफन को छोड़कर आगे बढ़ जाएंगी। तो फिर एक साल तक डेट करने के बाद स्टीफन ने निकोल को यूरोप में अपने परिवार से मिलने और सैर सपाटा करने के लिए आमंत्रित किया।

एक बड़ा रहस्योद्घाटन

निकोल कैथलिक विश्वास से मुंह मोड़ चुकी थी पर उनकी मां ने उन दिनों कैथलिक विश्वास को फिर से अपनाया था। यूरोप की यात्रा पर निकलने के ठीक पहले निकोल ने अपनी मां के साथ एक कैथलिक दर्शंनद्रष्टा का प्रवचन सुनने गई। उस रात निकोल के साथ कुछ अनोखा हुआ। उसे ईश्वर की तरफ से एक बड़े दर्शन प्राप्त हुए। बस यह सुन पाना कि येशु उससे प्यार करते हैं उसके जीवन को परिवर्तित करने के लिए काफी था। अब उसे अपनी ज़िन्दगी की उलझनें समझ आने लगीं और इस बात ने उसे अभिभूत कर दिया। उसी दिन से निकोल ने कैथलिक विश्वास में वापसी की और एक मज़बूत विश्वासी होने का प्रण लिया। पर जहां निकोल इस बात से बेहद खुश थी, वह इस बात से भी अनजान थी कि यहीं से उसके और स्टीफन के रिश्ते का कठिन समय भी शुरू हो रहा था।

“द केस फॉर क्राइस्ट” नामक मूवी की कहानी भी कुछ इसी तरह की है जहां एक नास्तिक पत्रकार और उसकी पत्नी के बीच के मतभेद को दिखाया गया है, क्योंकि उसकी पत्नी येशु पर विश्वास करने लगती है। उसी नास्तिक पत्रकार की तरह स्टीफन का मन भी गुस्से और चिढ़ से भर गया। उसे इस बात पर गुस्सा आ रहा था कि निकोल की मां ने निकोल को उस प्रवचन में ले जा कर उसका मन बदल दिया। इसका सीधा असर उनकी यूरोप की यात्रा पर पड़ा। “निकोल आसपास के हर चर्च को देखना चाहती थी और यूरोप तो चर्चों से भरा पड़ा है।” हर दिन किसी ना किसी बात पर लड़ाइयां होने लगीं और हर शाम डिनर टेबल पर आंसुओं के साथ गुज़रती थी। “मुझे लगने लगा था कि अब शायद रेस्टोरेंट के वेटरों तक को मुझसे नफरत हो गई होगी।” आखिर में निकोल ऑस्ट्रेलिया के लिए पहले निकल गई।

स्टीफन को अब लगने लगा था कि यही उनके रिश्ते का अंत है। क्योंकि इतनी लड़ाइयों के बाद कोई कैसे इस रिश्ते को आगे बढ़ा पाता? और हालांकि स्टीफन धार्मिक विश्वास में वापस जाने का सोच भी नहीं रहे थे फिर भी उसे निकोल से प्यार था और उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि निकोल के बगैर उनका गुज़ारा कैसे चलेगा। इसीलिए ऑस्ट्रेलिया वापस आने के बाद स्टीफन ने निकोल से मिल कर सुलह करने की पूरी कोशिश की। और कुछ महीनों बाद उन्होंने शादी कर ली। “हालांकि धार्मिक स्तर पर मैं और मेरी पत्नी एक दूसरे से कोसों दूर थे पर मुझे उससे प्यार था और नैतिक रूप से हम एक जैसे थे, जो कि किसी भी रिश्ते को चलाने के लिए बहुत ज़रूरी होता है।”

निकोल के लिए भी समस्याएं कम नहीं थी क्योंकि उसका कोई भी दोस्त धार्मिक नहीं था। किसी भी चर्चा में वह खुद को अकेला महसूस करती थी क्योंकि उसके सभी दोस्त उसे ग़लत साबित करने में लग जाते थे। लेकिन किसी तरह उसने अपने विश्वास पर टिके रहने की हिम्मत जुटाई। और क्योंकि निकोल के विश्वास की यात्रा एक दर्शनद्रष्टा की गवाही से शुरू हुई थी, इसीलिए स्टीफन के लिए धर्म का यह रूप बिल्कुल अनजान और नया था। स्टीफन को लगता था कि इन दर्शनों और चमत्कारों में कोई सच्चाई नहीं है। जबकि निकोल अपनी मां के साथ धर्म के कार्यों में ज़ोर शोर से हिस्सा ले रही थी। स्टीफन इसलिए भी इन सब चीज़ों से दूर भाग रहे थे क्योंकि जिन धार्मिक लोगों से निकोल का उठना बैठना था उनके प्रति स्टीफन का लगाव नहीं था क्योंकि वे बाहर से धार्मिक दीखते थे लेकिन स्वभाव से अच्छे इंसान नहीं लग रहे थे।

एक एहसान

समय के साथ निकोल और भी चिंतनशील होने लगी और कई चर्चों में जाने के बाद उसने आखिर में लैटिन मिस्सा में जाना शुरू किया। वहां के पुरोहित थे येशु समाजी फादर ग्रेगोरी जे.जॉर्डन और जल्दी ही वे स्टीफन और निकोल के दोस्त के रूप में उनकी ज़िन्दगी का एक अनमोल हिस्सा बन गए। एक दिन उन्होंने स्टीफन से कहा “निकोल मिस्सा के दौरान अपने बच्चों को अकेले नहीं संभाल पा रही है। क्या तुम मुझ पर एक एहसान करोगे? क्या तुम रविवार मिस्सा में आ कर बच्चों को संभालने में निकोल की मदद करोगे? मैं तुमसे मिस्सा में भाग लेने के लिए नहीं कह रहा, बस आ कर निकोल की मदद कर दो, उसकी ज़िन्दगी थोड़ी आसान हो जाएगी।” स्टीफन को बात ठीक लगी इसीलिए उसने हर रविवार निकोल के साथ मिस्सा बलिदान के लिए चर्च आना शुरू किया। धीरे धीरे उसे मिस्सा का समय अपने बच्चों के साथ बिताना और मिस्सा के बाद दोस्तों से बातें करना अच्छा लगने लगा।

“लैटिन मिस्सा सुनना मुझे इसीलिए अच्छा लगने लगा क्योंकि इस धर्मविधि में कोई फ़िज़ूल का दबाव नहीं बनाया जा रहा था। लोग अक्सर लैटिन मिस्सा के बारे में सोच कर ही थोड़ा डर जाते हैं लेकिन मुझे तो इसकी सीधीसादी श्रद्धा ने आकर्षित किया। एक दिन मेरे एक दोस्त ने मुझे “क्या विज्ञान ने ईश्वर को दफना दिया है?” नामक किताब दी। यह किताब प्रोफेसर जॉन लेनोक्स ने लिखी थी जो कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में गणित पढ़ाते थे। इस किताब को पढ़ने के बाद मेरी आंखें धार्मिक विश्वास की ओर खुल गईं। इस किताब ने वे सारे सवाल पूछे जिसका जवाब विज्ञान के पास नहीं था। ईश्वर द्वारा रचित यह सृष्टि हमारी समझ से कहीं ज़्यादा पेचीदा है, और यह बात हम अक्सर भूल जाते हैं। मुझे आज तक समझ नहीं आया कि कोई यह कैसे सोच सकता है कि इतना सब कुछ, कुछ नहीं से सृजित हुआ।

कैथलिक चर्च में इतना समय बिताने के बाद मुझे यह बात स्पष्ट हो गई कि सारे सवालों का जवाब उस एक सच्चे ईश्वर में था। पर मैंने अपने विश्वास की इस यात्रा को धीरे धीरे तय करने का निश्चय किया। ईश्वर ने 2015 में मुझे सबसे बड़ा झटका तब दिया जब मुझे हार्ट अटैक आया और मेरे आसपास की चीज़ें तेज़ी से बदलने लगीं। इसने मेरी सोच को बदला। मुझे अहसास हुआ कि मैं अमर नहीं हूं। मुझे अब जल्द ही उन बातों पर ध्यान देना चाहिए जो कि सच हैं और ज़रूरी भी। अभी तक ईश्वर मुझसे बातें करते आ रहे थे पर मैं उनकी बातें अनसुना करता जा रहा था। तभी शायद ईश्वर को मुझे इतना बड़ा झटका देना पड़ा।”

स्टीफन को ठीक होने में तीन महीने लगे, जिसके लिए उन्हें काम से छुट्टी लेनी पड़ी। इसी बीच उन्होंने बाइबिल पढ़ना शुरू किया। जैसे जैसे वे मनन चिंतन और प्रार्थना करने लगे उन्हें अहसास हुआ कि अब उन्हें एक फैसला लेना पड़ेगा। “मैंने कोई दर्शन प्राप्त नहीं किया पर मुझे अहसास होने लगा कि अब मुझे अपने बच्चों के लिए एक अच्छा पिता होने के लिए और अपनी पत्नी के लिए एक अच्छा पति होने के लिए यह कदम उठाना पड़ेगा।”

तीन महीने बाद उन्होंने खुद को कैथलिक चर्च का हिस्सा बना लिया। यह दिन, सबसे ज़्यादा उनके परिवार के लिए महत्वपूर्ण था क्योंकि इतने सालों बाद उन्होंने आखिरकार चर्च को अपना लिया था। जब स्टीफन ने पहली बार परम प्रसाद ग्रहण किया तब उन्हें अहसास हुआ कि उन्हें ईश्वर की इस शक्ति की कितनी ज़रूरत थी। “मुझे हमेशा से खुद पर पूरा भरोसा था और मुझे लगता था कि इस जीवन को जीने के लिए मेरे पास सबकुछ है। लेकिन परम प्रसाद ग्रहण करने के बाद ही मुझे समझ आया कि यह जीवन जीने के लिए मुझे ईश्वर की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है।”

“पहली बार जब निकोल ने कैथलिक विश्वास को अपनाया था, तब मुझे उस बात से चिढ़ हुई थी, क्योंकि वह हमारी ज़िन्दगी में एक ऐसी चीज़ ले आई थी जिसकी मुझे कोई ज़रूरत नहीं थी। ना ही मेरा इस ओर कोई रुझान ही था। फिर मैं कैथलिक लोगों से मिलने लगा और मुझे उनका व्यवहार, उनकी बातें अच्छी लगने लगी। मुझे समझ आया कि ये अच्छे लोग हैं। फादर जॉर्डन का इन सब में बड़ा हाथ रहा है। उनके बिना शायद मैं आज अपनी ज़िन्दगी के इस मोड़ पर खड़ा नहीं होता।”

“अब मैं हमारे ईश्वर के मार्गदर्शन और उनकी सहायता पर पूरी तरह निर्भर हूं। और मैं अपना जीवन उसी तरह जीने की कोशिश करता हूं जिस तरह उस हर व्यक्ति को, जो ख्रीस्त पर विश्वास करते हैं, अपना जीवन जीना चाहिए। अब मैं अपने परिवार के साथ रोज़री माला बोलता हूं, हर दिन बाइबिल पढ़ता हूं और ईश्वर की कृपाओं पर मनन चिंतन करता हूं। अब जब मैं मिस्सा में भाग लेता हूं तब मैं ईश्वर के बलिदान के बारे में सोच कर मंत्रमुग्ध रह जाता हूं। मेरा जीवन अब पूरी तरह बदल चुका है। और अब जीवन में कठिनाइयों का सामना करना भी पड़े, तो भी मैं जीवन भर कैथलिक रहने का प्रण ले चुका हूं।”

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Stephen and Nicole King

Stephen and Nicole King have been married for 27 years and have 8 children. They live in Brisbane and attend the Oratory parish at Mary Immaculate, Annerley. This article is based on Stephen’s interview on Shalom World TV program, Jesus My Savior https://www.shalomworld.org/episode/why-should-i-believe-stephen-king-jesus-my-saviour

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