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क्या आप एक स्थायी शांति का सपना देख रहे हैं जो आप कितनी भी कोशिश कर लें, आपको मिल नहीं पाती?
यह स्वाभाविक है कि हम एक बदलते, अप्रत्याशित दुनिया में हमेशा महसूस करते हैं कि हम बिना तैयारी के हैं। इस भयावह और थकाऊ समय में, डरना आसान हो जाता है — जैसे एक फंसा हुआ जानवर जिसके पास भागने का कोई रास्ता नहीं है। अगर हम केवल कड़ी मेहनत करते, लंबे समय तक काम करते, या अधिक नियंत्रण में होते, तो शायद चीज़ें हमारी पकड़ में आ जाते और आखिरकार हम आराम कर पाते और शांति पा सकते।
मैंने दशकों तक इस तरह का जीवन बिताया है।
अपने आप पर और अपनी कोशिशों पर निर्भर रहते हुए, मैं कभी वास्तव में ‘पकड़ में’ नहीं ला पायी। धीरे-धीरे मुझे अहसास हुआ कि इस तरह जीना एक भ्रम था।
आखिरकार, मुझे एक समाधान मिला जिसने मेरे जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया। यह उस चीज़ के विपरीत महसूस हो सकता है जो आवश्यक है, लेकिन मुझ पर विश्वास करें जब मैं कहती हूं: शांति की इस श्रमसाध्य खोज का उत्तर समर्पण में ही है।
एक कैथलिक के रूप में, मुझे पता है कि मुझे अपने भारी बोझों को ईश्वर को सौंपना चाहिए। मुझे यह भी पता है कि मुझे ‘येशु को अपनी जीवन गाडी का ‘स्टीयरिंग’ सौंपना चाहिए’ ताकि मेरा बोझ हल्का हो सके।
मेरी समस्या यह थी कि मुझे यह नहीं पता था कि “अपने बोझों को प्रभु को कैसे सौंपें।” मैं प्रार्थना करती, विनती करती, कभी-कभी समझौता करती, और एक बार तो मैंने ईश्वर को समय का डेडलाइन भी दे दिया (यह घटना तब समाप्त हुई जब मुझे संत पाद्रे पियो ने एक साधना के दौरान सन्देश के रूप में समझाया: “ईश्वर को समय का डेडलाइन मत दो।”
तो, हमें क्या करना चाहिए?
मनुष्यों के रूप में, हम हर चीज़ को अपने पास मौजूद एक जानकारी के अंश और सभी प्राकृतिक और अलौकिक कारकों की अत्यंत सीमित समझ के आधार पर रखते हैं। जबकि मेरे पास सर्वोत्तम समाधानों पर अपने विचार हो सकते हैं, मैं अपने मन में उसे स्पष्ट रूप से सुनती हूँ: “मेरे मार्ग तुम्हारे मार्ग नहीं हैं, बार्ब, न ही मेरे विचार तुम्हारे विचार,” भगवान कहते हैं।
समझौता यह है। भगवान भगवान हैं, और हम नहीं। वह सब कुछ जानते हैं—भूत, वर्तमान, और भविष्य। हम कुछ भी नहीं जानते। निश्चित रूप से, भगवान अपनी सर्वव्यापी बुद्धि में, हमसे बेहतर चीज़ों को समझते हैं, जैसे कि समय और इतिहास में सर्वोत्तम कदम उठाना।
यदि आपके जीवन में आपकी सभी मानवीय प्रयासों से कुछ भी सही नहीं हो रहा है, तो उन्हें समर्पण करना आवश्यक है। लेकिन समर्पण का मतलब यह नहीं है कि हम ईश्वर को एक वेंडिंग मशीन की तरह देखें, जिसमें हम अपनी प्रार्थनाएँ डालें और कैसा उत्तर हम उनसे चाहते हैं, उसका फैसला हम करें ।
यदि आप भी मेरी तरह समर्पण करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, तो मैं वह उपाय साझा करना चाहूँगा जो मैंने पाया: वह है समर्पण का नवरोज़ी प्रार्थना।
मुझे इसके बारे में कुछ साल पहले परिचित कराया गया था और इसके लिए मैं बहुत ही आभारी हूँ। प्रभु के सेवक, फादर डॉन डोलिंडो रुओटोला, जो पाद्रे पियो के आध्यात्मिक निदेशक थे, उन्हें यह नोवेना येशु मसीह से प्राप्त हुई थी।
नोवेना का प्रत्येक दिन अद्वितीय रूप से हर व्यक्ति से प्रभु येशु बात करते हैं, और केवल येशु ही जानते हैं कि किस तरह लोगों को संबोधित करना है। हर दिन दोहराए जाने वाले शब्दों के बजाय, जिन बाधाओं के कारण हमें वास्तव में समर्पण करने में दिक्कत होती हैं, या जिस प्रकार प्रभु को अपने काम को अपने सही तरीके और सही समय पर करने में जो बातें बाधा बनकर उन्हें रोकती हैं, उन के बारे में हमें बहुत अच्छी तरह से जानने वाले मसीह, हमें याद दिलाते हैं। नोवेना का समापन कथन है: “हे येशु, मैं खुद को तेरे हवाले करता हूँ, तू हर चीज का ख्याल रखें,” इसे दस बार दोहराया जाता है। क्यों? क्योंकि हमें विश्वास करने और मसीह येशु पर पूरी तरह से भरोसा करने की जरूरत है कि वही हर चीज का सही ख्याल रखेंगे।
बारबरा लिश्को has served the Catholic Church for over twenty years. Married to Deacon Mark for over forty-two years, she is a mother of five, a grandmother of nine, and counting. They live in Arizona, USA, and she frequently blogs at pouredmyselfoutingift.com
चाहे मुश्किल दौर कितना भी बुरा क्यों न हो, अगर उस पर आप काबू पायेंगे, तो आप कभी नहीं डगमगाएंगे। हम बहुत ही बुरे और उलझन भरे समय में जी रहे हैं। बुराई हमारी चारों तरफ है, और जिस समाज और दुनिया में हम रहते हैं, शैतान उसे नष्ट करने की पूरी कोशिश कर रहा है। कुछ मिनटों के लिए भी समाचार देखना बहुत निराशाजनक हो सकता है। जब आपको लगता है कि इससे बुरा कुछ नहीं हो सकता, तो आप दुनिया में किसी नए अत्याचार या दुष्टता के बारे में सुनते हैं। निराश होना और उम्मीद खोना आसान है। लेकिन ख्रीस्तीय होने के नाते, हमें आशावान लोग बनने के लिए कहा जाता है। यह कैसे संभव है? मेरा एक मित्र है जो मूल रूप से रोड आइलैंड का रहने वाला है। एक फादर्स डे पर, उसके बच्चों ने उसे एक टोपी दी जिस पर एक लंगर की तस्वीर थी और उस पर इब्रानी 6:19 कढ़ाई की गई थी। इसका क्या महत्व था? रोड आइलैंड के राज्य ध्वज पर एक लंगर है जिस पर "आशा" शब्द लिखा है। यह इब्रानी 6:19 का संदर्भ है, जिसमें कहा गया है: "वह आशा हमारी आत्मा केलिए एक सुस्थिर एवं सुदृढ़ लंगर के सदृश है, जो उस मंदिर गर्भ में पहुंचता है ..." इब्रानियों के नाम पत्र उन लोगों के लिए लिखा गया था जो बहुत उत्पीड़न झेल रहे थे। यह स्वीकार करने के लिए कि आप येशु के अनुयायी हैं, मृत्यु या पीड़ा, यातना या निर्वासन के लिए बुलाये गए हैं। क्योंकि यह बहुत कठिन था, कई लोग विश्वास खो रहे थे और सोच रहे थे कि क्या मसीह का अनुसरण करना सार्थक है। इब्रानियों को लिखे पत्र के लेखक उन्हें दृढ़ रहने, और विश्वासी जीवन में बने रहने के लिए प्रोत्साहित करने की कोशिश कर रहे थे - कि यह जीवन सार्थक जीवन है। वे अपने पाठकों को बताते हैं कि येशु में आधारित आशा ही उनका लंगर है। ठोस और अचल जब मैं हवाई द्वीप में हाई स्कूल की पढ़ाई कर रही थी, तो मैं एक ऐसे कार्यक्रम की हिस्सा थी जो छात्रों को समुद्री जीव विज्ञान पढ़ाता था। हमने कई हफ़्ते एक नाव पर रहकर और काम करके बिताए। हम जिन जगहों पर गए, उनमें से ज़्यादातर जगहों पर एक जेट्टी या घाट था जहाँ हम नाव को ज़मीन पर सुरक्षित रूप से बाँध सकते थे। लेकिन कुछ दूरदराज के हाई स्कूल थे जो किसी बंदरगाह या खाड़ी के पास नहीं थे जहाँ जेट्टी थी। ऐसी परिस्थिति में, हमें नाव के लंगर का उपयोग करना पड़ता था - जो एक भारी धातु की वस्तु है जिस पर कुछ नुकीले हुक लगे होते हैं। जब लंगर पानी में डाला जाता है, तो यह समुद्र तल के बिलकुल नीचे लग जाता है और नाव को बहने से रोकता है। हम मानव भी नावों की तरह हो सकते हैं, जो रोज़मर्रा की ज़िंदगी के ज्वार और लहरों पर इधर-उधर उछलते और तैरते रहते हैं। हम समाचारों में आतंकवादी हमले, विद्यालयों और गिरजाघरों में गोलीबारी, न्यायालय के बुरे फ़ैसले, आपके परिवार में बुरी ख़बरें या प्राकृतिक आपदाओं के बारे में सुनते हैं। ऐसी बहुत सी चीज़ें हैं जो हमें हिला सकती हैं और हमें खोया हुआ और निराशा से भरा हुआ महसूस करा सकती हैं। जब तक हमारी आत्मा के लिए कोई सहारा नहीं होगा, हम भटकते रहेंगे और हमें कोई शांति नहीं मिलेगी। लेकिन लंगर को काम करने के लिए, उसे कांटे के द्वारा किसी ठोस और अचल चीज़ से फंसाना चाहिए। एक नाव में सबसे मजबूत, सबसे अच्छा लंगर हो सकता है, लेकिन जब तक उसे किसी सुरक्षित और दृढ़ कांटे से नहीं फंसाया जाता, वह नाव अगली लहर में बह जाएगी। बहुत से लोगों को उम्मीद है, लेकिन वे अपनी उम्मीद अपने बैंक खाते, अपने जीवनसाथी के प्यार, अपने अच्छे स्वास्थ्य या सरकार पर लगाते हैं। वे कह सकते हैं: “जब तक मेरे पास मेरा घर, मेरी नौकरी, मेरी कार है, तब तक सब ठीक रहेगा। जब तक मेरे परिवार में हर कोई स्वस्थ है, सब ठीक है।” लेकिन क्या आप को नहीं लगता कि यह कितना अस्थिर हो सकता है? अगर आपकी नौकरी चली जाए, परिवार का कोई सदस्य बीमार हो जाए, या अर्थव्यवस्था विफल हो जाए तो क्या होगा? क्या तब आप ईश्वर में अपना विश्वास खो देंगे? कभी नहीं बह जाए मुझे याद है जब मेरे पिता अपने जीवन के अंतिम कुछ वर्षों में कैंसर से जूझ रहे थे। वह हमारे परिवार के लिए एक तूफानी, अशांत समय था क्योंकि प्रत्येक नई जाँच के साथ, हमें बारी-बारी से अच्छी खबर या बुरी खबर सुनने को मिलती थी। बार बार अस्पताल की ओर यात्राएँ हुईं, और उन्हें एक बार आपातकालीन सर्जरी के लिए दूसरे अस्पताल में भी ले जाया गया। जब हमने अपने पिता को पीड़ित होते और बीमार और कमज़ोर होते देखा तो मैं बहुत बेचैन और अस्थिर महसूस कर रही थी। मेरे पिता एक दृढ़, धर्मनिष्ठ ईसाई थे। वे हर दिन घंटों परमेश्वर के वचन को पढ़ने और उसका अध्ययन करने में बिताते थे, और उन्होंने वर्षों तक बाइबल अध्ययन की कक्षाएं ली थीं। यह सोचने केलिए मैं मजबूर हो गयी कि इन सब में येशु कहाँ थे। जांच का एक और बुरा परिणाम सुनने के बाद, इस नवीनतम तूफानी रिपोर्ट से मेरी आत्मा विचलित हो गई, मैं प्रार्थना करने के लिए एक गिरजाघर गयी। “प्रभु, मैं आशा खो रही हूँ। तू कहाँ है?" जैसे ही मैं चुपचाप बैठी, मुझे एहसास होने लगा कि मैं अपने पिता के ठीक होने की उम्मीद कर रही थी। इसलिए मैं इतना अस्थिर और असुरक्षित महसूस कर रही थी। लेकिन येशु मुझे आमंत्रित कर रहे थे कि मैं अपनी आशा, अपना भरोसा उस पर रखूँ। प्रभु मेरे पिता से प्यार करते थे, जितना प्यार मैं पिता को दे सकती थी उससे ज़्यादा और इस कठिन परीक्षा में प्रभु उनके साथ थे। ईश्वर मेरे पिता को वह सब देंगे जो उन्हें अपनी दौड़ को अच्छी तरह से अंत तक दौड़ने के लिए चाहिए, वह अंत चाहे जब भी हो। मुझे यह याद रखने की ज़रुरत थी और ईश्वर पर और मेरे पिता के लिए ईश्वर के महान प्रेम पर अपनी आशा बनाये रखने की ज़रूरत थी। मेरे पिताजी कुछ सप्ताह बाद घर पर ही प्यार और ढेर सारी प्रार्थनाओं से घिरे हुए चल बसे। मेरी माँ द्वारा उनकी बहुत देखभाल की गई। उनकी मृत्यु के समय उनके चेहरे पर सौम्य मुस्कान थी। वे प्रभु के पास जाने के लिए तैयार थे, अपने उद्धारकर्ता को आखिरकार आमने-सामने देखने के लिए उत्सुक थे। और मैं उस समय शांति का अनुभव कर रही थी, उन्हें जाने देने के लिए मैं तैयार थी। आशा लंगर है, लेकिन लंगर उतना ही मजबूत होता है जितना कि जिस कांटे से वह फंसा या जुदा हुआ है। अगर हमारा लंगर येशु में सुरक्षित है, जो हमारे आगे के मंदिर के पर्दे को पार कर गया है और वे हमारा इंतजार कर रहे हैं, तो चाहे लहरें कितनी भी ऊंची क्यों न हों, चाहे हमारे आस-पास कितने भी भयंकर तूफान क्यों न हों, हम स्थिर रहेंगे और बह नहीं जाएंगे।
By: एलेन होगार्टी
Moreजब कोई अजनबी आपके दरवाज़े 0पर दस्तक दे तो आप क्या करेंगे? अगर वह अजनबी एक कठोर आदमी निकला तो क्या होगा? वह अपना नाम स्पेनिश भाषा में, ज़ोर से, एक निश्चित गर्व और गरिमा के साथ कहता है, ताकि आपको याद रहे कि वह कौन है- जोस लुइस सैंडोवल कास्त्रो। वह रविवार की शाम को कैलिफ़ोर्निया के स्टॉकटन में हमारे दरवाज़े पर यानी सेंट एडवर्ड कैथलिक चर्च में आया, जब हम अपना संरक्षक संत का पर्व मना रहे थे। किसी ने उसे हमारे अपेक्षाकृत गरीब, मज़दूर वर्ग के पड़ोस में छोड़ दिया था। संगीत और लोगों की भीड़ ने जाहिर तौर पर उसे हमारे पल्ली के मैदान की ओर चुंबक की तरह खींचा। सच्चाई का खुलासा वह रहस्यमय जड़ों का व्यक्ति था - हमें नहीं पता था कि वह चर्च में कैसे पहुंचा, यह भी नहीं पता था कि उसका परिवार कौन था और कहां था। हमें बस इतना पता था कि वह 76 साल का था, चश्मा लगाए हुए था, हल्के रंग की बनियान अच्छी तरह से पहना हुआ था, और अपना लगेज हाथ से खींच रहा था। उसके पास आप्रवासन और प्राकृतिककरण सेवा विभाग का एक दस्तावेज था, जिसके बल पर उसे मेक्सिको से देश में प्रवेश करने की अनुमति मिली थी। उसके निजी दस्तावेज लूट लिए गए थे और उसके पास कोई अन्य पहचान पत्र नहीं था। हमने यह पता लगाना शुरू किया कि जोस लुइस कौन था, उसकी जड़ें क्या थीं, उसके रिश्तेदार कौन थे और क्या उनका उससे कोई संपर्क था। वह मेक्सिको के सिनालोआ राज्य के लॉस मोचिस शहर का रहने वाला था। उसके मुंह से गुस्सा, कड़वाहट और जहर निकल रहा था। उसने दावा किया कि उसके रिश्तेदारों ने उसे ठगा है और संयुक्त राज्य अमेरिका में उसकी पेंशन छीन ली है, जहां वह सालों से काम कर रहा था, क्योंकि वह मैक्सिको आता-जाता रहता था। हमने जिन रिश्तेदारों से संपर्क किया, उन्होंने दावा किया कि उन्होंने कई मौकों पर उसकी मदद करने की कोशिश की, फिर भी उसने उन्हें चोर कहा। हम किस पर विश्वास करें? हम बस इतना जानते थे कि हमारे हाथों में मैक्सिको से आया एक भटकता हुआ, नियमित आवारा आदमी था, और हम उसका तिरस्कार नहीं कर सकते थे और न ही उस बूढ़े, बीमार आदमी को सड़क पर छोड़ सकते थे। एक रिश्तेदार ने बेरुखी से, बेरहमी से कहा: "उसे सड़कों पर खुद की देखभाल करने दो।" जोस लुईस घमंडी, बहादुर और कर्कश व्यक्ति था, फिर भी वह बार-बार कमज़ोरी के लक्षण दिखाता था। उसकी आँखों में आँसू आ जाते थे, और वह लगभग रोता हुआ बताता था कि कैसे लोगों ने उसके साथ गलत किया और उसे धोखा दिया। ऐसा लगता था कि वह बिलकुल अकेला था, दूसरों ने उसे छोड़ दिया था। सच्चाई यह थी कि उसकी मदद करना आसान नहीं था। वह चिड़चिड़ा, जिद्दी और घमंडी था। उसे हर चीज़ में खामियाँ नज़र आती थीं: उसके लिए दलिया को या तो बहुत ज़्यादा चबाना पड़ता था या पर्याप्त चिकना नहीं होता था, कॉफी बहुत कड़वी और पर्याप्त मीठी नहीं होती थी। वह एक ऐसा व्यक्ति था जो अपने कंधों पर एक बहुत बड़ा बोझ ढो रहा था, और जीवन से नाराज़ और निराश था। उन्होंने दुख जताते हुए कहा, "लोग बुरे और मतलबी होते हैं, वे आपको चोट पहुँचाएँगे।" इस पर मैंने जवाब दिया कि अच्छे लोग भी होते हैं। वह दुनिया के उस क्षेत्र में था जहाँ अच्छाई और बुराई दोनों एक दूसरे के साथ रहती है, जहाँ अच्छाई और दयालुता के लोग एक साथ मिलते हैं, जैसे सुसमाचार में गेहूँ और भूसा। स्वागत से भी बढ़कर चाहे उसकी कमियाँ कुछ भी हों, उसका रवैया या उसका अतीत कुछ भी हो, हम जानते थे कि हमें उसका स्वागत करना चाहिए और येशु के सबसे दीन हीन भाई-बहनों में से एक के रूप में उसकी मदद करनी चाहिए। “जब तुमने किसी अजनबी का स्वागत किया, तो तुमने मेरा ही स्वागत किया।” हम येशु की सेवा कर रहे थे, उसके लिए आतिथ्य के द्वार खोल रहे थे। हमारी पल्ली के एक सदस्य लालो लोपेज़ ने उसे एक रात के लिए अपने घर में रखा, उसे अपने परिवार से मिलवाया और अपने बेटे के बेसबॉल खेल में ले गए, उन्होंने कहा: "ईश्वर हमें परख रहे हैं कि हम उनके बच्चों के रूप में कितने अच्छे और आज्ञाकारी हैं।" कई दिनों तक, हमने उसे पुरोहित के आवास में रखा। वह कमज़ोर था, हर सुबह बलगम थूकता था। यह स्पष्ट था कि वह अब स्वतंत्र रूप से घूम-फिर नहीं सकता था जैसा कि वह अपने युवावस्था में करता था। उसका रक्तचाप 200 से अधिक था। स्टॉकटन की एक यात्रा पर, उसने कहा कि उसे शहर के एक चर्च के निकट उसके गर्दन के पीछे चोट लगी थी। मेक्सिको के कुलियाकन में उसके एक बेटे ने हमसे कहा कि जोस लुईस ने ज़रूर "मुझे पैदा तो किया" लेकिन उसने कभी भी जोस लुईस को अपने पिता के रूप में नहीं जाना, क्योंकि वह कभी आसपास नहीं था, हमेशा यात्रा करता रहता था, एल नॉर्टे की ओर जाता रहता था। उसके जीवन की कहानी सामने आने लगी। उसने कई साल पहले खेतों में काम किया था, चेरी की कटाई की थी। उसने कुछ साल पहले एक स्थानीय चर्च के सामने आइसक्रीम भी बेची थी। वह, बॉब डायलन के क्लासिक गीत को उद्धृत करते हुए, "बिना किसी दिशा के घर जैसा, पूरी तरह से अज्ञात, लुढ़कते पत्थर जैसा था।" येशु ने एक भटकी हुई भेड़ को बचाने के लिए 99 भेड़ों को पीछे छोड़ दिया, इसी तरह हमारा ध्यान इस एक व्यक्ति पर गया, जो जाहिर तौर पर अपने ही लोगों द्वारा तिरस्कृत था। हमने उसका स्वागत किया, उसे रहने के लिए जगह दी, उसे खाना खिलाया और उससे दोस्ती की। हम उसकी जड़ों और इतिहास को जान पाए, एक व्यक्ति के रूप में उसकी गरिमा और पवित्रता को जान पाए, शहर की सड़कों पर फेंके गए एक और व्यक्ति के रूप में हम ने उसके साथ व्यवहार नहीं किया था । मेक्सिको में गुमशुदा व्यक्तियों के वीडियो संदेश भेजनेवाली एक महिला ने उसकी दुर्दशा को फेसबुक पर प्रचारित किया। लोगों ने पूछा: “हम कैसे मदद कर सकते हैं?” एक आदमी ने कहा: “मैं उसे घर जाने के टिकट का भुगतान करूंगा।” जोस लुइस, एक अनपढ़, असभ्य और अपरिष्कृत व्यक्ति, हमारी पल्ली के त्यौहार में आया था, और ईश्वर की कृपा से, हमने कुछ हद तक, गरीबों, लंगड़ों, बीमारों और दुनिया के बहिष्कृत लोगों का अपने प्रेम के घेरे में, जीवन के भोज में स्वागत करनेवाली संत मदर टेरेसा के उदाहरण का अनुकरण करने की कोशिश की। संत जॉन पॉल द्वितीय के शब्दों में, दूसरों के साथ एकजुटता, उनके दुर्भाग्य पर अस्पष्ट करुणा या उथली पीड़ा की भावना नहीं है। यह हमें याद दिलाती है कि हम सभी की भलाई के लिए प्रतिबद्ध हैं क्योंकि हम सभी एक दूसरे के लिए जिम्मेदार हैं।
By: फ़ादर अल्वारो देलगादो
Moreप्रश्न – मुझे मृत्यु से डर लगता है। हालाँकि मैं येशु में विश्वास करता हूँ और स्वर्ग पर आशा करता हूँ, फिर भी मैं अज्ञात के प्रति चिंता से भरा हुआ हूँ। मैं मृत्यु के इस डर को कैसे काबू कर सकता हूँ? उत्तर – कल्पना करें कि आप एक काल कोठरी में पैदा हुए हैं और बाहर की दुनिया को देखने में असमर्थ हैं। एक दरवाज़ा आपको बाहरी दुनिया से अलग करता है - सूरज की रोशनी, ताज़ी हवा, मौज-मस्ती... लेकिन आपको इन उज्जवल, सुंदर चीज़ों की कोई अवधारणा नहीं है, क्योंकि आपकी दुनिया केवल इस अंधेरा, सड़न से भरा हुआ स्थान है। कभी-कभी, एक व्यक्ति दरवाजे से बाहर चला जाता है, कभी वापस नहीं आता। आप उन्हें याद करते हैं, क्योंकि वे आपके दोस्त थे और आप अपनी पूरी ज़िंदगी उनसे परिचित थे! अब, एक पल के लिए कल्पना करें कि बाहर से कोई अंदर आता है। वह आपको उन सभी अच्छी चीजों के बारे में बताता है जो आप इस काल कोठरी के बाहर अनुभव कर सकते हैं। वह इन चीजों के बारे में जानता है, क्योंकि वह खुद वहां रहा है। चूँकि वह आपसे प्यार करता है, आप उस पर भरोसा कर सकते हैं। वह आपसे वादा करता है कि वह आपके साथ दरवाजे से होकर चलेगा। क्या आप उसका हाथ थामेंगे? क्या आप खड़े होंगे और उसके साथ दरवाजे से होकर चलेंगे? यह डरावना होगा, क्योंकि आप नहीं जानते कि बाहर क्या है, लेकिन आप वह साहस रख सकते हैं जो वह जानता है। यदि आप उसे जानते हैं और उससे प्यार करते हैं, तो आप उसका हाथ थामेंगे और दरवाजे से होकर सूरज की रोशनी में, बाहर की भव्य दुनिया में चलेंगे। यह डरावना है, लेकिन इसमें भरोसा और उम्मीद है। हर मानव संस्कृति को अज्ञात के डर से जूझना पड़ा है, विशेषकर जब हम मृत्यु के उस अंधेरे दरवाजे से गुजरते हैं। हमें अपने आप से, यह नहीं पता कि पर्दे के पीछे क्या है, लेकिन हम किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं जो दूसरी तरफ से हमें यह प्रकट करने के लिए आया है कि अनंत काल कैसा है। और उसने क्या प्रकट किया है? उसने कहा है कि जो बचाए गए हैं “वे परमेश्वर के सिंहासन के सामने खड़े रहते और दिन-रात उसके मंदिर में उसकी सेवा करते हैं। वह, जो सिंहासन पर विराजमान है, इनके साथ निवास करेगा। इन्हें फिर कभी न तो भूखे लगेगी और न प्यास, इन्हें न तो धुप से कष्ट होगा और न किसी प्रकार के ताप से; क्योंकि सिंहासन के सामने विद्यमान मेमना इनका चरवाहा होगा, और इन्हें संजीवन जल के स्रोत के पास ले चलेगा, और परमेश्वर उनकी आँखों से सब आँसू पोंछ डालेगा।” (प्रकाशना ग्रन्थ 7:15-17) हमें विश्वास है कि अनंत जीवन परिपूर्ण प्रेम, भरपूर जीवन और परिपूर्ण आनंद है। वास्तव में, यह इतना अच्छा है कि “ईश्वर ने अपने भक्तों के लिए जो तैयार किया है, उसको किसी ने कभी देखा नहीं, किसी ने सुना नहीं, और न कोई उसकी कल्पना ही कर पाया।” (1 कुरिन्थी 2:9) लेकिन क्या हमें कोई निश्चितता है कि हम मुक्ति पाएँगे? क्या हम उस स्वर्गीय अदन वाटिका में न पहुँच पाएँ, ऐसी कोई संभावना नहीं है ? हाँ, यह सच है कि इसकी गारंटी नहीं है। फिर भी, हम आशा से भरे हुए हैं “क्योंकि "परमेश्वर चाहता है कि सभी मनुष्य मुक्ति प्राप्त करें और सत्य को जानें" (1 तिमथी 2:3-4)। अपने उद्धार की जितनी इच्छा आप रखते हैं उससे ज़्यादा वह आपके लिए इच्छा रखता है! इसलिए, वह हमें स्वर्ग में ले जाने के लिए अपनी शक्ति और सामर्थ्य में जो कुछ संभव है, सब कुछ करेगा। उसने आपको पहले ही निमंत्रण दे दिया है, जो उसके पुत्र के रक्त में लिखा और हस्ताक्षरित है। यह हमारा विश्वास है, जो हमारे जीवन में जीया जाता है, जो इस तरह के निमंत्रण को स्वीकार करता है। यह सच है कि हमारे पास निश्चितता नहीं है, लेकिन हमारे पास आशा है, और "आशा व्यर्थ नहीं होती" (रोमी 5:5)। जो "पापियों को बचाने के लिए संसार में आया था" (1 तिमथी 1:15), उस उद्धारकर्ता की शक्ति को जानते हुए, विनम्रता और भरोसे के साथ चलने के लिए हमें कहा गया है। व्यावहारिक रूप से, हम कुछ तरीकों को अपनाकर मृत्यु के भय पर विजय पा सकते हैं। - सबसे पहले, स्वर्ग के बारे में परमेश्वर के वादों पर ध्यान दें। उसने धर्म ग्रंथों में कई अन्य बातें कही हैं जो हमें उसके द्वारा तैयार किए गए सुंदर अनंत काल को प्राप्त करने की उत्साहित उम्मीद से भर देती हैं। हमें स्वर्ग की चाहत से प्रज्वलित होना चाहिए, जो इस गिरे हुए, टूटे हुए संसार को पीछे छोड़ने के डर को कम करेगा। - दूसरा, परमेश्वर की भलाई और आपके प्रति उसके प्रेम पर ध्यान दें। वह आपको कभी नहीं छोड़ेगा, यहाँ तक कि अज्ञात में जाने पर भी। - अंत में, जब पूर्व में आपको नई-नई और अज्ञात इलाकों में प्रवेश करना पड़ा है - कॉलेज जाना, शादी करना, घर खरीदना, जिन तरीकों से वह आपके साथ मौजूद रहा है, उन तरीकों और मार्गों पर विचार करें । पहली बार कुछ करना डरावना हो सकता है क्योंकि अज्ञात का डर होता है। लेकिन अगर परमेश्वर इन नए अनुभवों में मौजूद रहा है, तो जिस अनंत जीवन में प्रवेश करने केलिए आपने लंबे समय से इच्छा की है, जब आप उस मृत्यु के द्वार से उस नए जीवन में प्रवेश करेंगे, तब वह और भी अधिक आपका हाथ थामेगा!
By: फादर जोसेफ गिल
Moreअक्सर, दूसरों में गलती ढूँढना आसान होता है, लेकिन असली अपराधी का पता लगाना बहुत मुश्किल होता है। मैंने अपनी कार के विंडशील्ड वाइपर पर एक पार्किंग टिकट चिपका हुआ पाया। यह ट्रैफ़िक नियम के उल्लंघन का नोटिस था जिसमें सड़क को अवरुद्ध करने के कारण मुझे $287 का जुर्माना भरना था। मैं परेशान हो गया, और मेरा दिमाग खुद को सही ठहराने की कोशिश में उलझा रहा । मैं सोचता रहा: "गाड़ी तो सिर्फ़ कुछ इंच की दूरी पर थी! क्या गैरेज बंद नहीं था? ऐसा लग रहा था कि गैरेज का बहुत दिन से इस्तेमाल नहीं हो रहा था। मेरी गाड़ी के सामने कोई और व्यक्ति अपनी गाड़ी को लगाकर गया था, जिससे सड़क का ज़्यादातर हिस्सा अवरुद्ध हो गया था। वहाँ कोई पार्किंग की जगह उपलब्ध नहीं थी, इसलिए मुझे अपनी इच्छित मंज़िल से आधा किलोमीटर दूर पार्क करना पड़ा।" गिरने से पहले लेकिन एक मिनट रुकिए! मैं इतने बहाने क्यों बना रहा था? यह स्पष्ट है कि मैंने पार्किंग नियमों का उल्लंघन किया था, और अब मुझे इसके परिणाम भुगतने होंगे। हालाँकि, जब भी मैं कोई गलती करता हूँ, तो खुद को बचाने की कोशिश करना हमेशा मेरी पहली प्रवृत्ति रही है। यह आदत मेरे अंदर गहराई से समाई हुई है। मुझे आश्चर्य है कि इसकी शुरुआत कहाँ से हुई। खैर, यह हमें अदन की वाटिका में वापस ले चलता है। एक और बहाना? शायद। लेकिन मेरा मानना है कि पहला पाप अवज्ञा या ईश्वर में विश्वास की कमी नहीं था, बल्कि जिम्मेदारी से बचकर बहाना ढूंढना था। क्यों? जब आदम और हेवा साँप के जाल में फँसे, तो उससे पहले उन्होंने कभी बुराई का अनुभव नहीं किया था और ना ही ज्ञान के फल का स्वाद चखा था। वे केवल ईश्वर को जानते थे, इसलिए वे कैसे पहचान सकते थे कि साँप दुष्ट था और झूठ बोल रहा था? झूठ क्या होता है, क्या उन्हें इसका पता था? क्या हम उनसे साँप पर अविश्वास करने की उम्मीद कर सकते हैं? क्या वे नाग के साथ खेलने की कोशिश कर रहा शिशु की तरह नहीं थे? हालाँकि, निषिद्ध फल खाने के बाद चीजें बदल गईं। उनकी आँखें खुल गईं, और उन्हें एहसास हुआ कि उन्होंने पाप किया है। फिर भी जब ईश्वर ने उनसे इसके बारे में पूछा, तो आदम ने हेवा को दोषी ठहराया, और हेवा ने साँप को दोषी ठहराया। कोई आश्चर्य नहीं कि हम भी ऐसा ही करते हैं! एक अनमोल अवसर आपकी प्रतीक्षा कर रहा है ईसाई धर्म, एक तरह से, सरल है। यह हमारे पापों के लिए जवाबदेह होने के बारे में है। ईश्वर हमसे केवल हमारे गलत कामों की जिम्मेदारी लेने के लिए कहता है। जब कोई ईसाई पाप में गिर जाता है, तो उसके लिए सबसे उचित कार्य यह होगा कि गलती के लिए वह पूरी जिम्मेदारी लेा, येशु की ओर मुड़े और माफी मांगे। इसके अतिरिक्त, जिम्मेदारी लेने के साथ-साथ गलती को न दोहराने की पूरी कोशिश करने की व्यक्तिगत प्रतिबद्धता भी आती है। येशु स्वयं हमारे पाप अपने ऊपर लेते हैं और अपने बहुमूल्य लहू के द्वारा पापों को धो डालते हैं और इस तरह पिता से हमें पाप क्षमा दिलाते हैं। कल्पना कीजिए कि आपके परिवार के किसी सदस्य ने कोई गलती की जिसके कारण आपके परिवार को बहुत बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ। अगर आपको पता हो कि आपका बैंक नुकसान की भरपाई करने को तैयार है, तो क्या आप उस गलती के लिए एक-दूसरे को दोषी ठहराने में अपना समय बर्बाद करेंगे? क्या वास्तव में हम मसीह से मिलने वाले अनमोल अवसर को जानते हैं? आइए हम शैतान के जाल में न फँसें, जो हमेशा दूसरों को दोषी ठहराता है। इसके बजाय, आइए हम सचेत प्रयास करें कि दूसरों पर उँगली न उठाएँ, बल्कि जब हम लड़खड़ाएँ तो येशु की ओर दौड़ें।
By: आन्टनी कलापुराक्कल
Moreदुनिया की सभी समस्याओं का एकमात्र समाधान! मसीह जी उठे हैं! मसीह सचमुच जी उठे हैं! ईस्टर का उल्लासपूर्ण आनंद सबसे अच्छे ढंग से उस दृश्य के द्वारा प्रकट होता है जहां झील में नाव में खड़ा पेत्रुस, तट पर खड़े येशु तक पहुँचने के लिए उत्साह के साथ नाव से कूद जाता है। ईस्टर के रविवार को हमें येशु की ओर से यह विजयी घोषणा प्राप्त होती है कि हम अब ईश्वर की संतान हैं। इस पुनरुत्थान के चमत्कार की महानता के सामने पेत्रुस की यह प्रतिक्रया ही सबसे उत्तम है। क्या यह पर्याप्त है? हाल ही में, हमारे मठ के एक बुद्धिमान वृद्ध भिक्षु (जिन्हें हम 'बूढ़े दिल वाले' कहते हैं) के साथ मैं इस विषय पर चर्चा कर रहा था। उन्होंने जो कुछ कहा, उससे मैं बहुत प्रभावित हुआ: "हाँ! यह महान घटना आपको किसी को बताने के लिए प्रेरित करती है।" मैं बार-बार उनके इस कथन पर लौटता रहा: "...आपको किसी को बताने के लिए प्रेरित करती है।" यह सच है। हालांकि मेरे एक और दोस्त का नज़रिया कुछ अलग था: "आपको क्या लगता है कि इस विषय में आप सही हैं? क्या आपको नहीं लगता कि “हमारा धर्म सभी के लिए पर्याप्त है" ऐसी सोच रखना अहंकार नहीं है ? मैं इन दोनों टिप्पणियों के बारे में सोच रहा हूँ। मैं सिर्फ़ पुनरुत्थान की इस घटना को साझा नहीं करना चाहता; मैं इसे अन्य लोगों को समझाना चाहता हूँ । क्योंकि यह एक घटना से कहीं ज़्यादा है। यह सभी की समस्याओं का उत्तर है। यह घटना शुभ सन्देश है। संत पेत्रुस कहते हैं, "किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा मुक्ति नहीं मिल सकती, क्योंकि समस्त संसार में येशु नाम के सिवा मनुष्यों को कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया है, जिसके द्वारा हमें मुक्ति मिल सकती है" (प्रेरित चरित 4:12)। तो, मुझे यह स्वीकार करना होगा कि मैं इस मामले में सही हूँ, इस ख़बर को साझा किया जाना चाहिए! क्या ऐसी सोच से आप अहंकारी लगेंगे ? सच तो यह है कि अगर मसीह के पुनरुत्थान की कहानी सच नहीं है, तो मेरे जीवन का कोई मतलब नहीं है - और उससे भी बढ़कर, जीवन का कोई मतलब इसलिए नहीं है क्योंकि मैं, एक ईसाई के रूप में, एक अनोखी संकटमय स्थिति में हूँ। मेरा विश्वास एक ऐतिहासिक घटना की सच्चाई पर टिका है। संत पौलुस कहते हैं: "यदि मसीह नहीं जी उठे, तो आप लोगों का विश्वास व्यर्थ है" (1 कुरिन्थियों 15:14-20)। आपको क्या जानने की आवश्यकता है कुछ लोग इसे ‘विशेषता का कलंक’ कहते हैं। यह बात नहीं है कि यह ‘मेरे लिए सच है’ या ‘आपके लिए सच है’। सवाल यह है कि क्या इसमें किसी प्रकार की सच्चाई है या नहीं। अगर येशु मसीह मृतकों में से जी उठे, तो कोई भी दूसरा धर्म, कोई दूसरा दर्शन, कोई दूसरा पंथ या विश्वास पर्याप्त नहीं है। उनके पास कुछ उत्तर हो सकते हैं, लेकिन जब दुनिया के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना की बात आती है, तो वे सभी कमजोर पड़ जाते हैं। अगर, दूसरी ओर, येशु मृतकों में से नहीं जी उठे - अगर उनका पुनरुत्थान एक ऐतिहासिक तथ्य नहीं है - तो हम सभी को अभी इस तथाकथित विश्वास की मूर्खता को रोकने की जरूरत है। लेकिन मुझे पता है कि वे जी उठे थे, और अगर मैं सही हूं, तो लोगों को यह जानने की जरूरत है। यह हमें इस संदेश के अंधेरे पक्ष की ओर ले जाता है: हम चाहे जितना भी शुभ सन्देश साझा करना चाहें, और इस गारंटी के बावजूद कि अंत में इसकी जीत होगी, हम पाएंगे कि हमारी अपार निराशा के लिए अक्सर ही इस संदेश को अस्वीकार कर दिया जाएगा। सिर्फ़ अस्वीकार ही नहीं किया जाएगा, इसका उपहास किया जाएगा, इस सन्देश के वहाक को बदनाम किया जाएगा, शहीद कर दिया जाएगा। संत योहन कहते हैं: "संसार हमें नहीं पहचानता, क्योंकि उस ने ईश्वर को नहीं पहचाना।" (1 योहन 3:1) फिर भी यह जानना कितना आनंददायक है! विश्वास में कितना आनंद है! स्वयं के पुनरुत्थान की आशा में कितना आनंद है! परमेश्वर मनुष्य बन गया, यह एहसास पाकर कितना आनंद आता है, हमारे उद्धार के लिए क्रूस पर पीड़ा सही और मृत्यु पर विजय प्राप्त की। उसने हमें स्वर्गिक जीवन में भागीदारी का प्रस्ताव दिया! बपतिस्मा से शुरू होने वाले संस्कारों में परमेश्वर हम पर पवित्रतापूर्ण अनुग्रह प्रवाहित करता है। जब वह हमें, अपने परिवार में स्वागत करता है, तो हम वास्तव में मसीह में भाई-बहन बन जाते हैं, उसके पुनरुत्थान में भागीदार बनते हैं। हम कैसे जानते हैं कि यह सच है? कि येशु जी उठे हैं? शायद यह लाखों शहीदों की गवाही है। दो हज़ार साल के ईश शास्त्र और दर्शन द्वारा, पुनरुत्थान में विश्वास के परिणामों का पता चलता हैं। मदर तेरेसा या असीसी के फ्रांसिस जैसे संतों में, हम ईश्वर के प्रेम की शक्ति का एक जीवंत प्रमाण देखते हैं। परम प्रसाद में उसे प्राप्त करना मेरे लिए हमेशा इसकी पुष्टि करता है। क्योंकि मैं उसकी जीवित उपस्थिति प्राप्त करता हूँ, और वह मुझे भीतर से बदल देता है। शायद, अंत में, यह केवल आनंद है: वह परमानंद 'असंतुष्ट तृष्णा है जो किसी भी अन्य संतुष्टि से अधिक श्रेय है।' लेकिन जब परिस्थितियों द्वारा मैं धकेला जाता हूँ, तो मुझे पता है कि मैं इस विश्वास के लिए मरने को तैयार हूँ - या इससे भी बेहतर, इसके लिए जीने को तैयार हूँ: ख्रीस्त जी उठे हैं, ख्रीस्त वास्तव में जी उठे हैं! अल्लेलुया!
By: फादर जे. ऑगस्टीन वेट्टा ओ.एस.बी.
Moreमुझे याद है, मेरी सेवकाई के दौरान मुझे लगा कि मेरे साथी सेवक मुझ से दूरी बनाए रख रहा हैI और इसका कोई कारण भी नहीं दिखाई दे रहा थाI ऐसा लग रहा था कि वह कुछ संघर्ष से गुज़र रहा था, लेकिन वह मुझसे इसके बारे में बताने से हिचक रहा थाI चालीसा काल के दौरान एक दिन अपने कार्यालय में खड़ी होकर प्रभु के सम्मुख मैं ने अपने ह्रदय से पुकारा: “येशु, लगता है कि मैं इस आदमी के जीवन से बाहर धकेली गयी हूँI” तुरंत, मैंने येशु को इन शब्दों में मुझे जवाब देते हुए सुना: मुझे पता है कि तुम किस दर्द से गुज़र रही होI मेरे साथ यह प्रतिदिन होता हैI” ओह, मुझे लगा कि मेरा ह्रदय छेदा गया है, और मेरी आँखों में आंसू भर गए, मैं जानती थी कि ये शब्द एक खजाना थाI महीनों उस कृपा को समझने केलिए मैं प्रयास करती रहीI 20 वर्ष पूर्व मैं ने पवित्रात्मा में बप्तिस्मा प्राप्त किया थाI तब से मैं अपने पाप को सौभाग्यशाली समझती थी, कि येशु के साथ मेरा गहरा व्यक्तिगत और आत्मीय सम्बन्ध हैI मैंने कई महीनों तक उस अनुग्रह को समझने की कोशिश करती रही। बीस साल पहले पवित्र आत्मा में बपतिस्मा लेने के बाद से, मैंने माना था कि येशु के साथ मेरा एक गहरा व्यक्तिगत रिश्ता था। लेकिन मेरे अनमोल उद्धारकर्ता और प्रभु के इस वचन ने येशु के हृदय में एक नई अंतर्दृष्टि खोली। "हाँ, येशु, बहुत से लोग आपको भूल जाते हैं, है न? और मैं भी— कितनी बार मैं अपने कामों में व्यस्त रहती हूँ, अपनी समस्याओं और विचारों को आपके पास लाना भूल जाती हूँ? इस दौरान, आप मेरा इंतज़ार करते हैं कि मैं आपकी ओर लौटूँ, जो मुझे इतने प्यार से देखता है।" अपनी प्रार्थना में, मैं उन शब्दों को दोहराती रही। "अब मैं बेहतर तरीके से जानती हूँ कि जब कोई तुझे अस्वीकार करता है, तुझ पर आरोप लगाता है या तुझे दोषी ठहराता है, या कई दिनों या सालों तक तुझसे बात नहीं करता है, तो तुझे कैसा महसूस होता है।" मैं और अधिक सचेत रूप से अपने दुखों को येशु के पास ले जाती और उनसे कहती: "येशु, मेरे प्रिय, तू भी वही दुख महसूस करता जो मैं महसूस कर रही हूँ। मैं अपने छोटे-छोटे दुखों को तुझे सांत्वना देने के लिए अर्पित करती हूँ, क्योंकि मैं खुद भी कई लोगों के साथ हूँ, जो तुझे सांत्वना देने में विफल रहते हैं।" मैंने एक नए तरीके से येशु की वह छवि देखी, जिसे मैं बहुत पसंद करती हूँ, येशु अपने पवित्र हृदय से प्रेम की किरणों को बहाते हुए, संत मार्गरेट मैरी से विलाप करते हुए कहते हैं: "मेरे हृदय को देखो, जो लोगों से बहुत प्यार करता है - लेकिन बदले में उन लोगों से बहुत कम प्यार पाता है।" सचमुच, येशु मुझे प्रतिदिन छोटी-छोटी परीक्षाएँ देते हैं ताकि मैं उनके द्वारा हमारे लिए सहन की जाने वाली पीड़ा का थोड़ा सा स्वाद ले सकूँ। मैं हमेशा उस पीड़ा के क्षण को याद रखूँगी जिसने मुझे हमारे प्यारे प्रभु येशु के अद्भुत, कोमल, लंबे समय तक पीड़ित रहने वाले प्रेम के करीब ला दिया।
By: Sister Jane M. Abeln SMIC
Moreदूसरों को आंकना आसान है, लेकिन अक्सर हम दूसरों के बारे में अपने फैसले में पूरी तरह से गलत हो जाते हैं। मुझे एक बूढ़ा आदमी याद है जो शनिवार की रात को पवित्र मिस्सा पूजा में आता था। बहुत दिनों से उसने नहाया नहीं था और उसके पास साफ कपडे नहीं थे। सच कहूँ तो, उसके बदन से बदबू आती थी। आप उन लोगों को दोष नहीं दे सकते जो इस भयानक गंध से दूर रहना चाहते थे। वह बूढा प्रतिदिन हमारे छोटे शहर में दो या तीन मील पैदल चलता था, कचरा उठाता था, और एक पुरानी जर्जर झोपड़ी में अकेला रहता था। हमारे लिए किसी के बाह्य रूप के आधार पर निर्णय लेना आसान है। है न? मुझे लगता है कि यह इंसान होने का एक स्वाभाविक हिस्सा है। मुझे नहीं पता कि कितनी बार किसी व्यक्ति के बारे में मेरे निर्णय पूरी तरह से गलत थे। वास्तव में, ईश्वर की मदद के बिना दिखावे से परे देखना काफी मुश्किल है, मगर असंभव नहीं है। उदाहरण के लिए, यह आदमी, अपने अजीब व्यक्तित्व के बावजूद, हर हफ्ते मिस्सा बलिदान में भाग लेने के बारे में बहुत वफादार था। एक दिन, मैंने फैसला किया कि मैं नियमित रूप से मिस्सा में उसके बगल में बैठूंगी। हाँ, उसके देह से बदबू आ रही थी, लेकिन उसे दूसरों के प्यार की भी ज़रूरत थी। ईश्वर की कृपा से, बदबू ने मुझे ज़्यादा परेशान नहीं किया। पुरोहित द्वारा आपस में शांति देने के लिए कहने पर, मैं ने उसकी आँखों में देखा, मुस्कुरायी, और मैं ने ईमानदारी से उसका अभिवादन इन शब्दों में किया : "ख्रीस्त की शांति आपके साथ हो।" इसे कभी न छोड़ें ईश्वर मुझे अवसर देना चाहता है कि मैं दूसरे को उसके शारीरिक ढांचा या बाहरी रूप से परे देखूं और उस व्यक्ति के दिल में झाँकूँ। जब मैं किसी व्यक्ति के बारे में उसके बही रूप के आधार पर निर्णय लेती हूँ, तो मैं वह अवसर खो देती हूँ। यही येशु ने अपनी जीवन यात्रा के दौरान मिले प्रत्येक व्यक्ति के साथ किया, और वह हमारी गंदगी से परे हमारे दिलों को देखना जारी रखता है। मुझे याद है कि एक बार जब मैं अपने कैथलिक विश्वास से कई साल दूर थी, मैं गिरजाघर की पार्किंग में बैठी थी, मिस्सा में भाग लेने के लिए गिरजाघर के दरवाज़े से अंदर जाने के लिए पर्याप्त साहस जुटाने की कोशिश कर रही थी। मुझे इतना डर था कि दूसरे लोग मेरे बारे में गलत निर्णय लेंगे और मेरा स्वागत नहीं करेंगे। मैंने येशु से मेरे साथ चलने के लिए कहा। गिरजाघर में प्रवेश करने पर, एक डीकन ने मेरा अभिवादन किया; उन्होंने मुझे एक बड़ी मुस्कान देकर गले लगाया, और कहा: "आपका स्वागत है।" मुझे मुस्कान और आलिंगन की ज़रूरत थी ताकि मैं महसूस कर सकूँ कि मैं यहाँ की हूँ और फिर से अपने ही घर पर हूँ। उस बूढ़े आदमी के साथ बैठना जो बदबूदार था, मेरे लिए "भुगतान आगे बढ़ाने" का तरीका था। मुझे पता था कि मैं कितनी बेसब्री से स्वागत महसूस करना चाहती थी, यह महसूस करना चाहती थी कि मैं भी शामिल हूँ और मेरा भी महत्व है। हमें एक-दूसरे का स्वागत करने में संकोच नहीं करना चाहिए, खासकर उन लोगों का जिनके साथ रहना मुश्किल है।
By: कॉनी बेकमैन
Moreमैंने एक साल पहले अपना आई-फोन खो दिया था। पहले तो ऐसा लगा जैसे शरीर का कोई अंग कट गया हो। मेरे पास तेरह साल से यह आई-फोन था और यह मेरे स्वयं के एक हिस्से की तरह था। शुरूआती दिनों में, मैंने "नए आई-फोन" को सिर्फ एक फ़ोन की तरह इस्तेमाल किया, लेकिन जल्द ही यह अलार्म घड़ी, कैलकुलेटर, अखबार, मौसम, बैंकिंग और बहुत कुछ बन गया...और फिर...यह हाथ से निकल गया। आई फोन खो जाने के बाद जब मुझे डिजिटल डिटॉक्स, यानी आई फोन के कारण मेरे मन में व्याप्त विष उन्मूलन की प्रक्रिया में जाने के लिए मजबूर किया गया, तो मेरे सामने कई गंभीर समस्याएँ खड़ी हो गईं। अब से मुझे अपनी शॉपिंग की सूची को कागज़ पर लिखने की ज़रूरत पड़ी। मैं ने एक अलार्म घड़ी और एक कैलकुलेटर खरीदा। पूर्व में, मुझे रोज़ाना सन्देश आने पर जो 'पिंग' आवाज़ आई-फोन से सुनाई देती थी और उन संदेशों को जल्दी जल्दी देखने की होड़ थी (और दूसरों द्वारा स्वीकृत किये जाने और चाहने का एहसास), ये सारी बातें अब केवल स्मृतियाँ रह गयीं। लेकिन अब इस छोटे से धातु का टुकड़ा मेरे जीवन पर हावी नहीं हो रही है, और उससे अब मैं अपार शांति महसूस कर रही थी। जब यह यंत्र मेरे हाथ से चला गया, तभी मुझे यह एहसास हुआ कि यह मुझसे कितनी प्रकार की मांग करती थी, और मुझ पर हावी होकर मेरा नियंत्रण करती थी। तब भी दुनिया रुकी नहीं। मुझे बस दुनिया के साथ बातचीत करने के नए-पुराने तरीके सीखने थे, जैसे लोगों से आमने-सामने बात करना और घटनाओं की योजना बनाना। मैं इसे बदलने की जल्दी में नहीं थी। वास्तव में, इसके खत्म होने से मेरे जीवन में एक स्वागत योग्य क्रांति आई। मैंने अपने जीवन में मीडिया का न्यूनतम प्रयोग करना शुरू कर दिया। अब से कोई अखबार, पत्रिकाएँ, रेडियो, टेलीविज़न या फ़ोन नहीं। मैंने काम के ईमेल, सप्ताहांत पर चुनिंदा यू ट्यूब वीडियोज़ और कुछ स्वतंत्र समाचार पोर्टल के लिए एक आइ-पैड रखा। यह एक प्रयोग था, लेकिन इसने मुझे अमन और शांति महसूस कराया, जिससे मैं अपना समय प्रार्थना और धर्म ग्रन्थ के अध्ययन के लिए उपयोग कर सकी। मैं अब और अधिक आसानी से परमेश्वर से जुड़ सकती हूँ, जो "कल, आज और युगानुयुग एकरूप रहते हैं।" (इब्रानी 13:8)। पहली आज्ञा "अपने प्रभु ईश्वर को अपने सारे ह्रदय, अपनी सारी आत्मा, अपनी सारी बुद्धि और सारी शक्ति से प्यार करने और अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करने" के लिए हमें कहती है (मारकुस 12:30-31)। मुझे आश्चर्य होता है कि जब हमारा दिमाग दिन के ज़्यादातर समय हमारे फ़ोन पर लगा रहता है, तब हम ऐसा कैसे कर सकते हैं ! क्या हम वाकई अपनी बुद्धि से परमेश्वर से प्यार करते हैं? रोमी 12:2 कहता है: "आप इस संसार के अनुकूल न बने, बल्कि सब कुछ नयी दृष्टि से देखें और अपना स्वभाव बदल लें।" मैं आपको चुनौती देती हूँ कि आप मीडिया से विरक्त रहें, चाहे थोड़े समय के लिए ही क्यों न हो। अपने जीवन में उस परिवर्तनकारी अंतर को महसूस करें। जब हम खुद को थोड़ा आराम देंगे तभी हम अपने प्रभु परमेश्वर को नवीकृत मन से प्रेम कर पायेंगे।
By: Jacinta Heley
Moreक्या आप दूसरों के बारे में धारणा बनाने में जल्दी करते हैं? क्या आप किसी ज़रूरतमंद की मदद करने में हिचकिचाते हैं? तो, इस पर सोचने का यही उपयुक्त समय है! अन्य दिनों की तरह वह दिन भी मेरे लिए बस एक साधारण सा दिन था। बाज़ार से लौटती हुई, दिन भर की मेहनत से थकी हुई, रूफस को सिनागोग के विद्यालय से साथ लेती हुई… हालाँकि, उस दिन मुझे कुछ अलग महसूस हुआ। हवा मेरे कान में फुसफुसा रही थी, और यहाँ तक कि आसमान भी पहले की तुलना में कुछ अधिक अभिव्यक्ति कर रहा था। सड़कों पर भीड़ के शोर से भी मेरी इस सोच की पुष्टि हो गयी कि आज, कुछ बदलाव होने वाला है। फिर, मैंने उसे देखा - उसका शरीर इतना विकृत हो गया था कि मैंने कोशिश की कि रूफस इस भयावह दृश्य को न देखने पाए। बेचारे रुफुस ने अपनी पूरी ताकत से मेरी बांह पकड़ ली - वह घबरा गया था। जिस तरह से इस आदमी को, खैर, जो कुछ भी उस आदमी में बचा था, उसके साथ व्यवहार किया जा रहा था, इसका मतलब था कि उसने कुछ भयानक किया था। मेरे लिए, सिर्फ वहां खड़ी होकर देखना, यह ठीक नहीं था, लेकिन जैसे ही मैं जाने लगी, मुझे एक रोमन सैनिक ने पकड़ लिया। मुझे तब बड़ा आश्चर्य हुआ जब उस सैनिक ने मुझे इस आदमी को उसका भारी बोझ उठाने में मदद करने का आदेश दिया। मुझे पता था कि इसका मतलब है कि अब परेशानी झेलनी है। मेरे द्वारा मदद का इनकार करने के बावजूद, उन लोगों ने उसकी मदद करने के लिए मुझ पर दबाव डाला। यह कैसी गड़बड़ हालात है! मैं एक पापी के साथ जुड़ना नहीं चाहती थी। उन सभी के देखते हुए एक क्रूस का भारी बोझ उठाकर आगे बढ़ना ? कितना अपमानजनक! मुझे पता था कि हालांकि और कोई रास्ता नहीं है, इसलिए मैंने अपने पड़ोसी वैनेसा से रूफस को घर ले जाने के लिए कहा, क्योंकि इस मुसीबात की घड़ी बीतने में कुछ समय लगेगा। मैं उस आदमी के पास गयी - गंदा, खूनी और विकृत! मुझे आश्चर्य हुआ कि उसने ऐसा कौन सा पाप या अपराध किया था कि वह इस स्थिति का लायक बन गया था। जो भी हो, यह सजा बहुत क्रूर थी। वहां खड़े तमाशबीन लोग चिल्ला रहे थे, 'यह आदमी ईशनिंदा करता है', 'यह झूठा है ' और 'यहूदियों का राजा' जबकि कुछ अन्य लोग उस पर थूक रहे थे और उसे गाली दे रहे थे। मुझे पहले कभी इतना अपमानित और मानसिक रूप से प्रताड़ित नहीं किया गया था। उसके साथ केवल दस से पंद्रह कदम चलने के बाद, वह मुंह के बल जमीन पर गिर पड़ा। इस क्लेश को समाप्त करने के लिए, उसे उठने की जरूरत थी, इसलिए मैं उसे उठाने में मदद करने के लिए झुकी। फिर, उसकी आँखों में, मैंने कुछ ऐसा देखा, जिसने मुझे बदल दिया। मैंने करुणा और प्रेम देखा। यह कैसे संभव है? कोई डर नहीं, कोई गुस्सा नहीं, कोई नफरत नहीं - सिर्फ प्यार और सहानुभूति। मैं हैरान रह गई, जबकि उन आँखों से उसने मेरी तरफ देखा और वापस उठने के लिए मेरा हाथ पकड़ लिया। मैं अब अपने आस-पास के लोगों को सुन या देख नहीं सकती थी। जैसे ही मेरे एक कंधे पर क्रूस था और दूसरे कंधे पर उसने अपना हाथ रखा था। अब मुझे सिर्फ़ उनके दिल की धड़कन और उनकी उखड़ी हुई साँसें सुनाई दे रही थीं... वे संघर्ष कर रहे थे, फिर भी बहुत, बहुत मज़बूत थे। लोगों के चीखने, गाली देने और इधर-उधर भागने के शोर के बीच, मुझे लगा जैसे वे मुझसे बात कर रहे थे। उस समय तक मैंने जो भी किया था, अच्छा या बुरा, सब बेकार लग रहा था। जब रोमन सैनिक उन्हें मुझसे दूर खींचकर क्रूस पर चढ़ाने के स्थान पर ले जा रहे थे, तो उन सैनिकों ने मुझे एक तरफ धकेल दिया और मैं जमीन पर गिर गई । उन्हें अपने आप ही आगे बढ़ना था। मैं वहीं जमीन पर पड़ी रही और लोग मुझे कुचल रहे थे। मुझे नहीं पता था कि आगे क्या करना है। मुझे बस इतना पता था कि जीवन कभी भी वैसा नहीं होने वाला था। मैं अब भीड़ को नहीं सुन सकती थी, केवल सन्नाटा और अपने दिल की धड़कन की आवाज सुन सकती थी। मुझे उनके कोमल हृदय की आवाज की याद आ गई। कुछ घंटों बाद, जब मैं जाने के लिए उठने ही वाली थी, पहले का भावपूर्ण आकाश बोलने लगा। मेरे नीचे की जमीन हिल गई! मैंने आगे कलवारी के शीर्ष पर देखा और वे दिखाई दिये, हाथ फैलाए और सिर झुकाए हुए, मेरे लिए। अब मैं जानती हूँ कि उस दिन मेरे वस्त्र पर जो खून छिड़का गया था, वह परमेश्वर के मेमने का रक्त था, जो संसार के पापों को हर लेता है। उसने मुझे अपने रक्त से शुद्ध किया। *** *** *** मैं इस तरह से किरीन के सिमोन की कल्पना करती हूँ। जिस दिन उसे येशु को क्रूस को कलवरी तक ले जाने में मदद करने के लिए कहा गया था, उस दिन के अपने अनुभव को याद करती हुई मैं कल्पना करती हूँ। सिमोन ने शायद उस दिन तक येशु के बारे में बहुत कम सुना था, लेकिन मुझे पूरा यकीन है कि उस क्रूस को ले जाने में उद्धारकर्ता को मदद करने के बाद वह वही व्यक्ति नहीं रहा। इस चालीसे के तपस्याकाल में, हमें खुद को देखने के लिए सिमोन हमसे कहता है: क्या हम दुसरे लोगों के बारे में धारणा बनाने में बहुत जल्दी कर रहे हैं? कभी-कभी, हम किसी के बारे में अपनी सहज प्रवृत्ति के कारण दिमाग में आई बातों पर विश्वास करने में बहुत जल्दी कर देते हैं। सिमोन की तरह, हम दूसरों की मदद करने के रास्ते में अपनी धारणा को आड़े आने देते हैं। सिमोन ने येशु को कोड़े खाते हुए देखा और मान लिया कि इस आदमी ने कुछ गलत काम ज़रूर किया होगा। ऐसे बहुत से अवसर भी बनते हैं जब येशु की आज्ञा के अनुसार किसी व्यक्ति के साथ प्रेम करने के रास्ते में, हमने उनके प्रति अपनी धारणाओं को बाधा बनने दिया। क्या हम कुछ लोगों की मदद करने में हिचकिचाते हैं? क्या हमें दूसरों में येशु को नहीं देखना चाहिए और उनकी मदद करने के लिए आगे नहीं बढ़ना चाहिए? येशु हमें न केवल अपने दोस्तों से बल्कि अजनबियों और दुश्मनों से भी प्यार करने के लिए कहते हैं। अजनबियों से प्रेम करने का आदर्श नमूना कोलकत्ता की संत मदर तेरेसा हैं। उन्होंने हमें दिखाया कि हर किसी में येशु का चेहरा कैसे देखा जाए। दुश्मनों से प्रेम करने का आदर्श येशु मसीह से बेहतर कौन हो सकता है? येशु ने उनसे प्रेम किया जो उससे नफरत करते थे और उन लोगों के लिए प्रार्थना की जिन्होंने उसे सताया था। सिमोन की तरह, हम अजनबियों या दुश्मनों से संपर्क करने में झिझक महसूस कर सकते हैं, लेकिन मसीह हमें अपने भाइयों और बहनों से वैसा ही प्रेम करने के लिए कहता है जैसा उसने किया था। येशु हमारे पापों के लिए जितना मरा, उतना ही वह उनके पापों के लिए मरा। प्रभु येशु, तेरे मार्ग का अनुसरण करके एक महान गवाह बनने वाले किरीन के सिमोन का नमूना हमें देने के लिए तुझे धन्यवाद। हे स्वर्गीय पिता, जरूरतमंद लोगों तक पहुंचकर तेरे गवाह बनने की कृपा हमें प्रदान कर।
By: Mishael Devassy
Moreप्रकृति की सबसे मंद ध्वनियों को भी ध्यान से सुनें... ईश्वर हर समय आपसे बात कर रहा है। ईश्वर हमेशा हमें अपने प्रेम का संदेश देने की कोशिश कर रहा है—छोटी चीजों में, बड़ी चीजों में, हर चीज में। जीवन की व्यस्तता के कारण, हम अक्सर उस पल में और बाद में भी, जो वह हमें कहना चाहते हैं, उसे सुनने से चूक जाते हैं। हमारा प्रेमी ईश्वर चाहता है कि हम अपने दिलों की चुप्पी में उनके पास आएं। हम वास्तव में उनसे वहीं मिल सकते हैं और उनके साथ अपने संबंधों में आगे बढ़ना शुरू कर सकते हैं—“अच्छे गुरु” (योहन 13:13) को सुनकर। मदर तेरेसा ने सिखाया: “ईश्वर हमारे दिलों की चुप्पी में बोलता है।” पवित्र शास्त्र के ग्रन्थ भी हमें सिखाते हैं कि केवल तेज़ हवा, भूकंप और आग के गायब होने के बाद ही एलियाह “मंद समीर की सरसराहट” (1 राजा 19:9-18) के माध्यम से ईश्वर को सुन और समझ सका। हमें चलाने वाली शक्ति हाल ही में, मैं अपनी भतीजी के साथ उत्तरी वेल्स के एक समुद्र तट पर गया; हम साथ में पतंग उड़ाना चाहते थे। जैसे ही समुद्र लौट रहा था, हमने रेत पर डोरी खोल दी। मैंने पतंग को हवा में फेंका और मेरी भतीजी ने हैंडल को पकड़ कर जितनी तेजी से दौड़ सकती थी दौड़ पड़ी। समुद्र तट चट्टानों से आंशिक रूप से घिरा हुआ था, इसलिए लहरों पर तेज हवा के बावजूद, पतंग अधिक देर तक हवा में नहीं रह सकी। उसने फिर से दौड़ लगाई, इस बार और भी तेज, और हमने बार-बार कोशिश की। कुछ प्रयासों के बाद, हमें एहसास हुआ कि यह काम नहीं हो पायेगा। मैंने इधर-उधर देखा और पाया कि चट्टानों के शीर्ष भाग की ओर एक खुला मैदान और बहुत सारी भूमि थी। तो हम दोनों मिलकर ऊँचाई पर चढ़े। जैसे ही हमने फिर से डोरी खोलनी शुरू की, पतंग चलने लगी; मेरी भतीजी ने हैंडल को कसकर पकड़ रखा था। इससे पहले कि हमें पता चलता, पतंग पूरी तरह से फैली हुई और बहुत ऊँचाई पर उड़ रही थी। इस बार इसकी सुंदरता यह थी कि हम दोनों बहुत कम प्रयास के साथ इस पल का वास्तव में आनंद उठा सके। कुंजी हवा थी, लेकिन उड़ती हुई पतंग की शक्ति का एहसास उस जगह तक पहुँचने में था जहाँ हवा वास्तव में बह सकती थी। उस पल में साझा की गई खुशी, हंसी, मज़ा और प्यार अनमोल था। समय थम सा गया था। ऊँचा उड़ने की सीख बाद में जब मैंने प्रार्थना की, तो ये यादें मेरे पास वापस आ गईं, और मुझे लगा कि मुझे विश्वास में शक्तिशाली पाठ सिखाए जा रहे हैं, विशेष रूप से प्रार्थना के बारे में। जीवन में, हम अपने बल पर चीजें करने की कोशिश कर सकते हैं। हमारे पतित मानव स्वभाव में कुछ ऐसी बातें हैं जो नियंत्रण में पूरी ररह रहना नहीं चाहती। यह कार के स्टीयरिंग व्हील पर होने जैसा है। हम ईश्वर पर भरोसा कर सकते हैं और उन्हें हमारा मार्गदर्शन करने दे सकते हैं, या हम अपनी स्वतंत्र इच्छा का प्रयोग कर सकते हैं। यदि हम चाहते हैं तो ईश्वर हमें चक्के को पकड़ने की अनुमति देता है। लेकिन जब हम उसके साथ यात्रा करते हैं, तो हम देखते हैं कि वास्तव में, वह चाहता है कि हम आराम से यात्रा करें आर हम अत्यधिक कड़ी मेहनत न करें। ईश्वर भी इसे अकेले नहीं करना चाहता। ईश्वर चाहता है कि हम सब कुछ—उनके माध्यम से, उनके साथ, और उनमें करें। प्रार्थना करने का कार्य स्वयं में एक उपहार है, लेकिन इसके लिए हमारे सहयोग की आवश्यकता है। यह प्रभु के बुलावे का जवाब है, लेकिन जवाब देने का विकल्प हमारा है। संत अगस्तीन हमें “हमारी आवाज को उनमें और उनकी आवाज को हम में पहचानने” के लिए शक्तिशाली रूप से सिखाते हैं (सी.सी.सी. 2616)। यह न केवल प्रार्थना के लिए बल्कि जीवन की हर चीज के लिए भी सच है। सच है, येशु कभी-कभी हमें “पूरी रात” मेहनत करने देते हैं और “कुछ भी नहीं पकड़ने” देते हैं। लेकिन इससे हमें यह एहसास होता है कि केवल उनके मार्गदर्शन के माध्यम से ही हम जो चाहते हैं उसे प्राप्त कर पाएंगे। और जब हम अपने दिलों को उनकी बात सुनने के लिए खोलते हैं तो अनंत रूप से अधिक हम प्राप्त कर पायेंगे। (लूका 5:1-11) अगर हमें ऊँचा उड़ना है, तो हमें पवित्र आत्मा की हवा, भगवान की सांस की ज़रूरत है, जो हमें रूपांतरित करती है और ऊपर उठाती है (यूहन्ना 20:22) । क्या पवित्र आत्मा की हवा ही नहीं थी जिसने पेंटेकोस्ट में ऊपरी कमरे में डरे हुए शिष्यों पर उतर कर उन्हें मसीह के विश्वास से भरे, निडर प्रचारक और गवाहों में बदल दिया था (प्रेरितों के काम 1-2)? पूरे दिल से तलाश यह पहचानना आवश्यक है कि विश्वास एक उपहार है जिसे हमें कसकर पकड़ना चाहिए (1 कुरिन्थियों 12:4-11)। अन्यथा, हम कठिन परिस्थितियों में उलझ सकते हैं जो उनकी कृपा के बिना हमारे लिए स्वतंत्र होना असंभव हो सकता है। हमें पवित्र आत्मा की शक्ति के माध्यम से ऊँचाई तक पहुँचते रहना चाहिए—“प्रभु को ढूंढो और तुम जीवित रहोगे” (आमोस 5:4, 6)। संत पॉल हमें इस के लिए प्रेरित करते हैं कि हम लोग “सदैव प्रसन्न रहें, निरंतर प्रार्थना करें, सब बातों केलिए ईश्वर को धन्यवाद दें; क्योंकि येशु मसीह के अनुसार आप लोगों के विषय में ईश्वर की इच्छा यही है” (1 थेसलोनी 5:16-18) । इसलिए, प्रत्येक विश्वासी के लिए यह आह्वान है कि वह प्रार्थना में गहराई से प्रवेश करे, मौन के लिए स्थान बनाए, सभी विकर्षणों और बाधाओं को हटा दे, और फिर पवित्र आत्मा की हवा को वास्तव में बहने और हमारे जीवन में चलने दे। स्वयं ईश्वर हमें इस मुलाकात के लिए आमंत्रित करता है और वादा करता है कि वह जवाब देगा: “यदि तुम मुझे पुकारोगे, और मैं तुम्हें उत्तर दूंगा और तुम्हें ऐसी महान और रहस्यमय बातें बताऊंगा जिन्हें तुम नहीं जानते।” (यिरमियाह 33:3)
By: Sean Booth
Moreअपने आराम क्षेत्र से बाहर निकलना कभी भी आसान काम नहीं होता, तो फिर क्यों परेशानी उठानी है? जीवन के किसी मोड़ पर, येशु हम सभी से पूछते हैं: “क्या तुम मेरे राज्य के लिए बाहर निकलने को तैयार हो?” इसके लिए कोई योग्यता की ज़रुरत नहीं है; कोई नौकरी का विवरण नहीं, कोई बायोडाटा स्क्रीनिंग नहीं… यह एक सरल हाँ या नहीं वाला प्रश्न है। जब मुझे यह बुलावा मिला, तो मेरे पास उसे देने के लिए कुछ भी नहीं था। मैंने जब अपने सेवा क्षेत्र में प्रवेश किया, तब किसी प्रकार का लाभ पाने की मेरी कोई इच्छा नहीं थी। समय ने साबित कर दिया कि येशु के लिए एक इच्छुक और प्रेमपूर्ण हृदय ही वह सब था जिसकी मुझे आवश्यकता थी। उसने बाकी सब संभाल लिया। एक बार जब आप हाँ कहते हैं, तो आप अपने आप में बदलाव देख सकते हैं! जीवन अधिक सार्थक, आनंदमय और रोमांचकारी हो जाता है। इसका मतलब यह नहीं है कि दुख कभी मौजूद नहीं होगा। "जब येशु के लिए इस संसार को छोड़कर अपने पिता के पास लौटने का समय निकट था, तो उसने अपने शिष्यों के पैर धोए। उसने पेत्रुस से कहा: 'यदि मैं तुम्हारे पैर न धोऊँगा, तो तुम्हारा मेरे साथ कोई सम्बन्ध नहीं रह जाएगा।'" उसने आगे कहा: "इसलिए यदि मैं - तुम्हारे प्रभु और गुरु – ने तुम्हारे पैर धोए हैं, तो तुम्हें भी एक दूसरे के पैर धोने चाहिए।" (योहन 13:14) एक तरह से, येशु पूछ रहे हैं: "क्या तुम भीगने के लिए तैयार हो?" पेत्रुस की तरह, हम स्वाभाविक रूप से सूखे और आरामदायक रहना पसंद करते हैं, लेकिन वह हमें अपने प्यार और अनुग्रह के जल में भीगने के लिए बुला रहा है। सबसे खूबसूरत बात यह है कि वह हमें अपने लिए नहीं बुला रहा है... जब येशु अपने शिष्यों के पैर धोने के लिए नीचे झुका, तो न केवल उसके शिष्य भीग गए, बल्कि इस प्रक्रिया में येशु के हाथ भी गीले और गंदे हो गए। जब हम मसीह के पदचिन्हों पर चलते हैं, तो उसके नाम पर दूसरों की सेवा करते हुए, हम भी उस बोझ और दर्द का हिस्सा बनेंगे जिससे दूसरा व्यक्ति गुज़र रहा है। पवित्र बाइबिल हमें निर्देश देती है: “भारी बोझ धोने में एक दूसरे की सहायता करें, और इस प्रकार तुम मसीह की विधि पूरी करें।” (गलाती 6:2) येशु के रूपान्तरण के बाद, पेत्रुस ने कहा: “प्रभु, यहाँ होना हमारे लिए कितना अच्छा है; आप चाहें, तो मैं यहाँ तीन तम्बू खड़ा कर दूंगा - एक आपके लिए, एक मूसा, और एक एलियस के लिए।” (मत्ती 17:4) ऐसा लगता है कि हम कई मायनों में पेत्रुस के जैसे हैं। तंबू लगाना और उस आरामदायक क्षेत्र में रहना हम पसंद करते हैं, चाहे वह हमारा गिरजाघर हो, घर हो या कार्यस्थल। सौभाग्य से, हमारे लिए पवित्र बाइबिल हमें ऐसे कई योग्य उदाहरण प्रदान करती है जिनसे हम सीख सकते हैं। होना या न होना हमारे पल्ली पुरोहित श्रद्धेय क्रिस्टोफर स्मिथ ने एक बार इस बात पर मनन किया कि कैसे योहन बपतिस्ता ने अपने आराम क्षेत्र जंगल को छोड़ दिया और मसीहा के आने की घोषणा करने के लिए शहर में आया। मूसा मिस्र से भाग गया और अपने ससुर के साथ अपने लिए एक तम्बू बनाया लेकिन परमेश्वर ने उसे बाहर निकाला और उसे एक मिशन सौंपा। उसे उसी मिस्र में वापस लाया गया जहाँ से वह भागा था, और परमेश्वर ने उसे अपने लोगों को बचाने के लिए शक्तिशाली रूप से इस्तेमाल किया। एलियस ईज़ेबेल से भाग गया और एक झाड़ी के नीचे शरण ली (1 राजा 19:4), लेकिन परमेश्वर ने उसे अपने लोगों के लिए अपनी योजना को स्थापित करने के लिए वापस लाया। अब्राहम को अपने रिश्तेदारों को छोड़ना पड़ा और यात्रा करनी पड़ी जहाँ परमेश्वर उसे ले गया, लेकिन उस राज्य को देखें जो परमेश्वर में अब्राहम के भरोसे के कारण विकसित हुआ! अगर मूसा घर पर रहता, तो इस्राएलियों का क्या हश्र होता? और अगर एलियस डर के मारे पीछे हट जाता और वापस आने से इनकार कर देता तो क्या होता? पेत्रुस को देखें, जिसने समुद्र में उग्र लहरों पर अपने पैर रखने के लिए नाव से विश्वास की छलांग लगाई। वह बिलकुल अकेला था, डूबने का डर उसके मन में था, लेकिन येशु ने उसे डगमगाने नहीं दिया। बाहर निकलने की उसकी इच्छा ने एक अविस्मरणीय चमत्कार की शुरुआत की, जिसका आनंद नाव के अंदर मौजूद अन्य डर से भरे शिष्यों में से कोई भी नहीं ले सका, क्योंकि उन्होंने अपने आराम के क्षेत्र से बाहर निकलने से इनकार कर दिया था। और इसी तरह, हमारे जीवन में भी, अपने तंबू से बाहर निकलने का पहला कदम उठाने केलिए परमेश्वर हमारा इंतज़ार कर रहा है। जब पवित्र आत्मा ने मुझे लेखन के माध्यम से सुसमाचार प्रचार करने के लिए प्रेरित किया, तो मेरे लिए पहले इसे हाँ कहना बहुत मुश्किल था। मैं स्वभाव से डरपोक और शर्मीली हूँ, और जैसे पेत्रुस लहरों को देखता था, वैसे ही मैं केवल अपनी अक्षमताओं को देखती थी। लेकिन जब मैंने खुद को परमेश्वर की इच्छा के आगे समर्पित कर दिया और उस पर भरोसा करना शुरू कर दिया, तो उसने मुझे अपनी महिमा के लिए इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। आइए हम अपने आराम क्षेत्र से बाहर निकलें और पवित्र आत्मा के अभिषेक में भीगें, क्योंकि यह जलती हुई झाड़ी की शक्तिशाली आग थी जिसने मूसा का अभिषेक किया था। याद रखें कि कैसे (एक मिस्री को मारकर!) इस्राएलियों को 'बचाने' का मूसा का पहला प्रयास उन इस्राएलियों के द्वारा अस्वीकार कर दिया गया था? ऊपर से आने वाले आह्वान का धैर्यपूर्वक इंतज़ार करें, उसका अभिषेक प्राप्त करें, और उसके नाम का प्रचार करने के लिए दुनिया में जाएँ! ------------------------- लिडिया बोस्को एक कार्मेलाइट धर्म बहन हैं जो कैथलिक सेवा ‘अभिषेकाग्नि’ के माध्यम से प्रभु की सेवा करती हैं। वे अपने पति और तीन बच्चों के साथ दक्षिणी यू.एस.ए के दक्षिण कैरोलिना में रहती हैं।
By: लीडिया बोस्को
Moreड्राइविंग सीखना मेरे जीवन में बार-बार आने वाली एक बड़ी बाधा थी। इस घटना ने मेरे लिए इसे बदल दिया! दस साल पहले, ईश्वर ने मुझे पहली बार मेरे होने वाले पति से मुलाक़ात कराई। मैं उस समय श्रीलंका में रह रही थी जबकि वह ऑस्ट्रेलिया में रहता था। प्यार में पड़ने से मिलने वाली नई ऊर्जा से भरकर, श्रीलंका में रहते हुए, ड्राइविंग की तैयारी के लिए एक ड्राइविंग स्कूल में मैंने दाखिला लिया। पहले कभी गाड़ी न चलाने के कारण, मैं चिंतित थी, फिर भी दृढ़ थी, और ईश्वर की कृपा से, मैंने पहले प्रयास में ही अपना ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त कर लिया। छोटी शुरुआत ऑस्ट्रेलिया पहुँचने के तुरंत बाद, मैंने एक स्थानीय ड्राइविंग स्कूल में दाखिला लिया और अभ्यास जारी रखने के लिए एक सेकंड-हैंड कार खरीदी। मेरी पहली गलती यह थी कि मैंने अपने पति को मुझे सिखाने का मौक़ा दिया। आप अच्छी तरह से कल्पना कर सकते हैं कि इसका क्या परिणाम हुआ होगा! चाहे मैं जितनी भी सीखती रही, मेरे अन्दर का डर मुझे पीछे खींचता रहा। मैं तब तक ठीक-ठाक गाडी चलाती थी, जब तक कि कोई कार मेरे पीछे नहीं आ जाती और यह मुझे परेशान कर देता, मानो मैं जांच के दायरे में हूं। मेरी उम्र पच्चीस के आसपास थी| ऐसी उम्र में इस तरह का डर बहुत ही अतार्किक था। पेशेवर ड्राइविंग प्रशिक्षक से सबक लेने से भी कोई मदद नहीं मिली। मैं अभ्यास करने में हिचकिचाने लगी और मेरी कार धीरे-धीरे धूल जमा करने लगी, जबकि मैं खुद को यह समझाने की कोशिश कर रही थी कि ड्राइविंग मेरे लिए नहीं है। काम पर जाने और वापस आने के लिए, मैंने दो बसें और एक ट्रेन ली, लेकिन खुद को ड्राइव करने के लिए मजबूर नहीं कर सकी। मैंने अपनी कार बेच दी। हार मानने को तैयार नहीं यह जीवन शैली स्पष्ट रूप से हमारे लिए काम नहीं कर रही थी, इसलिए मैंने एक बार फिर कोशिश करने का फैसला किया। अब 2017 था और मैंने एक नए प्रशिक्षक के साथ साइन अप किया। लग रहा था कि कुछ सुधार हो रहा है। हालांकि, मेरा पहला ड्राइविंग टेस्ट फिर से बहुत ही बेचैनी भरा था। मेरा प्रशिक्षक काफी क्रोधित था, और जब परीक्षक मेरे स्कोर का मूल्यांकन करने के लिए चला गया, तो उसने कहा “तुम निश्चित रूप से असफल हो जाओगी”। निराश और भारी मन से, मैं फैसला सुनने के लिए ड्राइविंग सेंटर में चली गयी। परीक्षक ने कहा “आप पास हो गयी हैं”! हैरान और अविश्वास में, मैंने पूरे दिल से ईश्वर का शुक्रिया अदा किया। मेरे पति भी बहुत खुश थे और मेरे नए आत्मविश्वास के आधार पर हमने फिर से एक सेकंड-हैंड कार खरीदी, बहुत उम्मीद थी कि इस बार यह काम करेगी। इसकी शुरुआत अच्छी रही और फिर धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से, यह सब वापस आने लगा - घबराहट, डर, झिझक। छह महीने से थोड़ा ज़्यादा समय बीतने के बाद, मैंने फिर से अपना सारा आत्मविश्वास खो दिया। मैंने अपनी कार बेच दी। मेरे धैर्यवान पति का मानना था कि मैं अपनी क्षमताओं के साथ न्याय नहीं कर रही थी, इसलिए उन्होंने न केवल मेरे लिए प्रार्थना की बल्कि जब मैं हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी, तब भी उन्होंने मुझ पर विश्वास बनाए रखा। उस समस्या के जड़ का पर्दाफाश साल बीतते गए...2020 में, हम एक ऑनलाइन आतंरिक चंगाई सेवा में भाग ले रहे थे। वह असरदार और प्रभावशाली सेवा अपने अंत के करीब थी, और तब तक मुझे कुछ खास महसूस नहीं हुआ था। यह मेरे पति की प्रार्थना ही रही होगी जिसने स्वर्ग को हिला दिया, क्योंकि जब पुरोहित आंतरिक घावों की चंगाई के लिए प्रार्थना कर रहे थे, तो मुझे थीम पार्क में बम्पर कार खेलने की एक ज्वलंत घटना की स्पष्ट याद आई। मैं लगभग छह साल की रही होगी और इस खेल को आज़माने के लिए बहुत उत्सुक थी। मैंने एक छोटी गुलाबी कार को चुना, मैं उसमें कूद गई और खुशी से उसे चला रही थी, जब अचानक मुझे लगा कि पीछे वाली कार बार-बार मेरी कार से टकरा रही है। हालाँकि यह खेल का हिस्सा था, मुझे लगा कि मुझ पर हमला हुआ है, और अब उस वर्तमान क्षण में, मैं उस डरावनी और भयंकर भय और बेचैनी को फिर से महसूस कर रही हूँ जो बिल्कुल वैसा ही था जैसा मुझे गाड़ी चलाते समय महसूस होता था! मुझे याद है कि मैं अपने पिता को जल्द से जल्द वहाँ से निकलने के लिए बेचैनी से उकसा रही थी। यह एक ऐसी याद थी जो उस घटना के बाद से इतने सालों में एक बार भी मेरे मन में नहीं आई थी। मेरी समस्या के मूल कारण से हमारे प्रभु येशु मसीह मुझे ठीक कर रहे थे। यह मेरे लिए एक बहुत बड़ा बयान था कि हमारे पिता परमेश्वर ने गाड़ी चलाने की क्षमता के साथ मेरी सृष्टि की है, जिस पर मैं लगातार सवाल उठाती रही थी। सड़क पर वापस आने के लिए उत्सुक, मैंने अपने पति के साथ लंबी दूरी तक गाड़ी चलाई और इस डर से मेरी मुक्ति स्पष्ट थी। ड्राइविंग में मैं ने अच्छी प्रगति कर ली थी और अब मुझे मेरे पीछे वाली कार से कोई परेशानी नहीं थी। कोई सोच सकता है कि यही आखिरी झटका था जिसकी अपनी ज़िंदगी को बदलने के लिए मुझे ज़रूरत थी। मैं जितना भी सुधार करने वाली थी, और चूँकि मेरी ड्राइविंग का अभ्यास लगातार नहीं चल रहा था, मैं अभी भी अपने सर्वश्रेष्ठ स्तर पर नहीं थी। हमारे नवजात शिशु ने मेरे जीवन का अधिक समय ले लिया था, इसलिए मेरी प्राथमिकताएँ बदल गई थीं। हम जिस छोटे से शहर के अपार्टमेंट में रहते थे, वह हमारे छोटे बच्चे के पालन-पोषण के लिए उपयुक्त नहीं था। हम जो परवरिश उसे देना चाहते थे उस केलिए उपनगरीय जीवन ज़्यादा अनुकूल होगा, और जब तक मैं आसानी से गाड़ी नहीं चला पाती हूँ, तब तक हम यह कदम नहीं उठा सकते हैं। सैंतो निनोटो द्वारा मेरा बचाव उस समय मेरी सास हमसे मिलने आई थीं। वे प्राग के शिशु येशु की उत्साही भक्त थी, उन्होंने मुझे शिशु येशु के प्रति नव रोज़ी प्रार्थना (नोवेना) दी, और मैंने चमत्कार के लिए मन्नत रखती हुई प्रतिदिन प्रार्थना की। नोवेना पूरा करने के तुरंत बाद एक प्रथम शुक्रवार को, हम येशु के पवित्र हृदय के सम्मान में पवित्र मिस्सा में भाग लेने के लिए किसी गिरजाघर की तलाश कर रहे थे। हमने जितने भी गिरजाघर देखे वे सभी बंद थे, आखिरकार हम एक ऐसे गिरजाघर में पहुँचे जो न केवल खुला था बल्कि जहां सैंतो निनो* (पवित्र शिशु) का पर्व मनाया जा रहा था। समारोही पवित्र मिस्सा और गिरजाघर की सारी गतिविधियाँ शिशु येशु के प्रति श्रद्धा और प्रेम से भरी हुई थी। समारोह के अंत में गायक मंडली ने एक शक्तिशाली, गूंजती हुई ढोल की थाप बजाई, जिसने पूरे वातावरण को भर दिया। उस ढोल की हर थाप मेरी आत्मा को छेदती थी और मुझे लगता था कि मेरे सारे डर उड़ गए हैं। एक नया साहस और आशा ने डर की जगह ले ली। मेरा आत्मविश्वास अब मेरी अपनी क्षमताओं पर निर्भर नहीं था, बल्कि येशु मेरे भीतर क्या कर सकते हैं, इस पर निर्भर था। मेरी कमियों के बावजूद ईश्वर का अटल प्रेम मेरे पीछे दौड़ रहा था और अब समय आ गया था कि मैं सब कुछ उनके हवाले कर दूँ। ड्राइविंग प्रशिक्षक के साथ प्रशिक्षण के नए सत्रों को पूरा करने के बाद, हमने घर के सारे सामान समेट लिए और उपनगर में चले गए। मेरे पिता और ससुर ने मेरी ड्राइविंग में बाकी बची कुछ कमियों को दूर करने में मेरी मदद की और मेरी माँ ने मेरे लिए प्रार्थना की। लाइसेंस प्राप्त करने के सात साल बाद, मैं अब रोज़ाना आसानी से गाड़ी चला रही हूँ। हाईवे के पाँच लेन वाले हिस्से पर 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से गाड़ी चलाना मुझे हमारे ईश्वर की अथाह शक्ति और दया की निरंतर याद दिलाता है। सारी महिमा, सम्मान और प्रशंसा येशु को मिले, जिसने स्टीयरिंग व्हील संभाला और मेरे परिवार के जीवन को बदल दिया। "जो मुझे बल प्रदान करते हैं, मैं उनकी सहायता से सब कुछ कर सकता हूँ।" – फिलिप्पी 4:13 * सैंतो नीनो डे सेबू शिशु येशु की एक चमत्कारी छवि है, जिसका आदर फिलिपिनो कैथलिक समुदाय द्वारा किया जाता है|
By: मिशेल हेरोल्ड
Moreहमारे पास जो कुछ भी है वह ऊपर से एक उपहार है, लेकिन कभी सोचा है कि जब ईश्वर ने आपको यह दिया तो उसका क्या इरादा था? जब मैं तीन भाइयों में सबसे छोटा था, तब तक मेरा परिवार ख्रीस्तीय परिवार था, लेकिन मेरा परिवार कोई ख्रीस्तीय रीति रिवाज़ का पालन नहीं करता था। मेरे माता-पिता शुरू से कैथलिक नहीं थे, इसलिए मुझे याद है कि प्रोविडेंस कैथलिक हाई स्कूल में एक नए छात्र के रूप में मेरे पहले दिन, मैं बिलकुल डर गया था, क्योंकि कभी किसी पुरोहित या धर्म बहन से मेरी भेंट नहीं हुई थी। मुझे कैथलिक मिस्सा के बारे में कुछ भी नहीं पता था, लेकिन मुझे स्कूल में सभी मिस्साओं में भाग लेने के लिए कहा गया था। मुझे ईश शिक्षा के पाठ्यक्रम में भी हिस्सा लेना था, लेकिन उसके अंतर्गत नियमित रूप से आयोजित बेसबॉल कार्यक्रम में मुझे रूचि थी, इसलिए बेसबॉल खेलने के इरादे से मैं ने ईश शास्त्र की कक्षा में भाग लेने से कोई आपत्ति नहीं जताई। कुछ ढूँढ रहे हो ... 14 साल की उम्र में, मेरे साथियों के सामने विश्वास की बातों को लेकर शर्मिन्दगी का एहसास होने का बड़ा डर मुझे सताता था – मुझे दर था कि मुझसे कैथलिक विश्वास के बारे में बुनियादी सवाल पूछा जाएगा और मैं जवाब नहीं दे पाऊँगा। लेकिन हम नए छात्रों को ईशशास्त्र पढ़ाने वाली सिस्टर मार्गरेट ने कभी भी मुझे असहज नहीं किया। एक दिन कक्षा के बाद, वह मेरे लिए दरवाज़े पर इंतज़ार कर रही थी। मेरा इरादा सीधे उनके बगल से निकल जाने का था, लेकिन उन्होंने मुझे रोका, मेरी आँखों में देखा और कहा: "बर्क, तुम कुछ ढूँढ रहे हो।" मैंने वहाँ से जाने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने फिर से मुझे रोका और कहा: "इसे पढ़ो।" उन्होंने मुझे मेरी पहली बाइबल दी। उस शाम, बेसबॉल का अभ्यास, होमवर्क और रात के खाने के बाद, मैं अपने कमरे में गया, दरवाज़े बंद किए और बाइबल से मत्ती के सुसमाचार को पढ़ना शुरू किया। इसने मुझे वास्तव में इस तरह से आकर्षित किया कि यह मेरी आदत बन गई। धीरे-धीरे, ईशशास्त्र मेरी पसंदीदा कक्षाओं में से एक बन गया। पूरे स्कूल केलिए होने वाले मिस्सा समारोहों के दौरान, मैं अपने दोस्तों को परम प्रसाद स्वीकार करने के लिए जाते हुए देखता था और जिस रोटी के टुकड़े को वे ग्रहण कर रहे थे, उसके प्रति उनकी श्रद्धा के बारे में जानने के लिए मैं उत्सुक रहता था। हम कानिष्ठ लोगों के लिए आयोजित एक साधना के अवसर पर, अंतिम दिन के मिस्सा बलिदान के दौरान, परम प्रसाद से मेरी गहन साक्षात्कार हुआ, इसके द्वारा मेरे भीतर ईश्वर की शक्ति का एहसास हुआ। पुरोहित ने हमें परम प्रसाद की अभिषेक प्रार्थना और वितरण के लिए पवित्र वेदी की चारों ओर इकट्ठा किया; मैं पवित्र वेदी के इतने करीब कभी नहीं गया था। परम प्रसाद वितरण के दौरान, पुरोहित परमप्रसाद लेकर हम में से प्रत्येक के पास आये; मुझे नहीं पता था कि क्या करना है। जैसे ही वे मेरे पास आये और कहा: "ख्रीस्त का शरीर", मेरा इरादा उन्हें यह बताना था कि मैं कैथलिक नहीं हूं। लेकिन यह कहने केलिए जैसे ही मैंने अपना मुंह खोला, उन्होंने परम प्रसाद को मेरी जीभ पर रख दिया। मैंने उस क्षण महसूस किया कि ईश्वर की शक्ति मेरे पूरे शरीर से गुजर रही है। हालाँकि अब मैं जानता हूँ कि बपतिस्मा न पाए हुए व्यक्ति के लिए - यहाँ तक कि जो परम प्रसाद में येशु मसीह की वास्तविक उपस्थिति पर विश्वास नहीं करने वाले बपतिस्मा प्राप्त व्यक्ति के लिए भी – परम प्रसाद ग्रहण करना सही नहीं है, परिस्थितियाँ ऐसी थीं कि मैंने अपना पहला पवित्र संस्कार संयोग से ग्रहण किया! इस घटना ने मेरे जीवन को बहुत गहराई से बदल दिया; मैंने विश्वास के बारे में और अधिक अध्ययन करना शुरू किया, और जब मैं मिसिसिपी चला गया, तब तक मैं एक कैथलिक बन चुका था जो हर दिन वास्तव में येशु मसीह को ग्रहण कर सकता था। उतार-चढ़ाव बेसबॉल अच्छा चल रहा था, और टीम अक्सर राष्ट्रीय स्तर पर रैंक करती थी। अपने अंतिम वर्ष के दौरान, जब मैं ज़ोन में आया, तो मैंने एक ग्रैंड स्लैम मारा (चौका, जो बेसबॉल खेल में बहुत कम लोग मार पाते हैं), जिस के कारण हम कॉलेज वर्ल्ड सीरीज़ में पहुँच गए। मुझे उस टूर्नामेंट का सबसे मूल्यवान खिलाड़ी नामित किया गया। लेकिन अगले तीन खेलों में कुछ त्रुटियों ने सब कुछ खत्म कर दिया। वर्ल्ड सीरीज़ मेजर लीग ड्राफ्ट के दौरान, मेरे आठ साथियों को ड्राफ्ट किया गया, लेकिन मेरे फोन की घंटी नहीं बजी। मैं टूट गया। मैं घर आया और मुझे नहीं पता था कि क्या करना है। मेरे हाई स्कूल के पूर्व बेसबॉल कोच, शिकागो व्हाइट सॉक्स के कोच बन चुके थे। कुछ हफ़्तों बाद उन्होंने मुझे फ़ोन किया और पेशेवर बेसबॉल खेलने के लिए ट्रायल के बारे में बताया। यह मेरे लिए अच्छा रहा, और अगले दिन, मैंने व्हाइट सॉक्स टीम के साथ एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए। लेकिन यह वैसा नहीं हुआ जैसा मैंने योजना बनाई थी। सीज़न के अंत में, उन्होंने कहा: "बर्क, तुम सब कुछ अच्छा करते हो, लेकिन तुम कुछ भी महान नहीं करते, हम महानता की तलाश में हैं।" उन्होंने मेरे अनुबंध को नवीनीकृत नहीं किया। मैं कुछ समय तक कोशिश करता रहा, लेकिन आखिरकार मुझे इस सच्चाई का सामना करना पड़ा कि यह सब खत्म हो चुका है। मैं 23 साल का था और मेरे पास सिर्फ़ गणित की डिग्री थी। किसी ने बताया कि बीमांक विज्ञान (एक्चुरियल साइंस) में करियर बनाना संभव है, इसलिए मैंने वह पढ़ाई की, मुझे नौकरी मिल गई और मैंने खूब पैसे कमाए। लेकिन काम का तनाव इतना कम था कि मैं ऊब गया और मैंने अपनी नौकरी छोड़ दी। ओहियो विश्वविद्यालय से अपनी मास्टर डिग्री पूरी करने के बाद, मुझे एक माइनर लीग बेसबॉल टीम, केन काउंटी कुगर्स, में नौकरी मिल गई। चार साल बाद, मेरे पास दो नौकरियों के प्रस्ताव आये - एक ही समय में बेसबॉल में दो नौकरी! मेरे सपनों के मुताबिक़! मैंने स्टेफ़नी को डेट करना शुरू ही किया था, जिससे मैं स्थानीय गिरजाघर में मिला था। एक रात, हम डिनर के लिए बाहर गए और जब हम रेस्तराँ से निकल रहे थे, तो उसने कहा: "चलो परम प्रसाद की आराधना के लिए गिरजाघर चलते हैं।" हालाँकि मैं कम से कम आठ या नौ साल से कैथलिक था, लेकिन मैंने परम प्रसाद की आराधना के बारे में कभी नहीं सुना था। स्टेफ़नी ने समझाया कि हम परम प्रसाद के संस्कार के सामने एक घंटे की शांत प्रार्थना करेंगे। उस आराधना के दौरान मुझे एहसास हुआ कि मौन में, हमारी मुलाक़ात ईश्वर से होती है। हम हर मंगलवार की रात को एक घंटे की आराधना के लिए जाने लगे, और मौन से मेरा डर मौन की लालसा में बदल गया। यह मेरे हर सप्ताह का सबसे शांतिपूर्ण घंटा बन गया। और मेरे दिल में, पुरोहित बनने की भावना सतह पर उभरती रही। ऐसा लग रहा था जैसे ईश्वर मुझसे पुरोहित बनने के लिए कह रहा था; बार-बार एक सौम्य निमंत्रण। मेरे परिवार के सदस्य, दोस्त और यहाँ तक कि पूरी तरह से अजनबी लोग भी मेरे पास आने लगे और कहने लगे कि उन्हें लगता है कि तुम एक अच्छा पुरोहित बन सकता हो। मुझे लगा कि पवित्र आत्मा आंतरिक और बाहरी दोनों तरह से काम कर रही है। इसलिए, मैंने स्टेफ़नी से बात की, और उसने मुझसे कहा कि अगर यह मेरी बुलाहट है, तो मुझे इसका पालन करना होगा। मेरा इरादा था कि मैं एक साल के लिए सेमिनरी जाऊँ और फिर स्टेफ़नी के पास लौट आऊँ। लेकिन जैसे ही मैं सेमिनरी के दरवाज़े से अंदर गया, मुझे ऐसी शांति महसूस हुई जो कभी खत्म नहीं हुई। मई 1998 में, जब मैं सेमिनरी का पहला साल पूरा कर रहा था, मुझे अपने पिता का फोन आया और उन्होंने मुझे तुरंत घर जाने के लिए कहा, क्योंकि मेरी माँ को फेफड़ों के कैंसर का पता चला था, जो मस्तिष्क और कलेजे तक फैल गया था। मैंने सब कुछ छोड़ दिया और घर चला गया। कैंसर की बीमारी चौथे चरण पर पहुँच चुकी थी। हालाँकि हम उम्मीद करते रहे, दो महीने बाद, माँ टेलीविजन देखती हुई मेरी बाहों में गिर पड़ी और चली गयी। यह भयानक था। जब मैंने खिड़की से बाहर देखा और ड्राइव वे में अपनी माँ की कार देखी, तो मैंने कल्पना की कि मेरी माँ ईश्वर के आमने-सामने आ रही हैं। ईश्वर उनसे यह नहीं पूछ रहा था कि वह किस तरह की कार चलाती हैं या वह कितना पैसा कमाती हैं, बल्कि इसके बजाय, कुछ और बुनियादी बात पूछ रहा था, जैसे: "क्या तुमने अपने पूरे दिल, दिमाग और आत्मा से अपने ईश्वर से प्यार किया है, और अपने पड़ोसी से अपने जैसा प्यार किया है?" भले ही मेरी माँ, गिरजाघर नहीं जाती थीं, फिर भी उन्होंने हमें ईश्वर के प्यार के बारे में सिखाया था। सबसे बेहतर आनंद मैं आस्था के संकट से गुज़रा। मैंने यह भी सोचा कि क्या मृत्यु के बाद भी जीवन है। मैं अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति को मुझसे दूर करने के लिए ईश्वर से नाराज़ था, लेकिन ऐसा हुआ कि ईश्वर ने मुझे इससे बाहर निकाला। मैं सेमिनरी वापस गया और कुछ वर्षों बाद मुझे पुरोहिताई का अभिषेक मिला। मैं ईश्वर का शुक्रिया अदा करता हूँ कि मैं कभी भी बेसबॉल के प्रमुख दलों में नहीं पहुँच पाया, क्योंकि पुरोहित के रूप में मैंने जो आनंद और शांति का अनुभव किया है, वह बेसबॉल के मैदान पर मेरे द्वारा अनुभव की गई किसी भी आनंद से कहीं ज़्यादा है। मैं न केवल शिकागो के बेसबॉल क्लबों के लिए धार्मिक परामर्शदाता रहा हूँ, बल्कि मैंने कैथलिक खेल शिविरों को स्थापित और संचालित किया है, जिनका अब विस्तार हो रहा है। यह ईश्वर का अनोखा तरीका था, जिस तरीके से खेलों में मेरे शौक और मेरी पसंद को आत्मसात करने और इसे अपने सेवा क्षेत्र में लाने की ईश्वर ने मुझे अनुमति दी। ईश्वर हमें एक उद्देश्य के साथ उपहार देता है, और वह चाहता है कि जिन तरीकों से हमने कभी कल्पना भी नहीं की थी, उन तरीकों से हम उनकी महिमा के लिए उन उपहारों का उपयोग करें। ------------------------- फादर बर्क मास्टर्स इलिनोई के हिंसडेल में सेंट आइजैक जोग्स पल्ली में सेवा करते हैं। वे ‘ए ग्रैंड स्लैम फॉर गॉड: ए जर्नी फ्रॉम बेसबॉल स्टार टू कैथलिक प्रीस्ट’ नामक पुस्तक के लेखक हैं।
By: फादर बर्क मास्टर्स
Moreहर क्रिया के साथ, हम एक तीर लक्ष्य की ओर निशाना साध रहे हैं। क्या हम हर बार कहते हैं "अरे निशाने पर सही नहीं गया! क्या मैं इसे फिर से कर सकता हूं?" बातचीत पिछली रात शुरू हुई थी, जैसे कई अन्य बातचीत होती हैं, पूरी तरह से निर्दोष बातचीत। घर के रास्ते पर, मुझे असहजता का एहसास हुआ। उन शब्दों पर विचार करते हुए जो मैंने पहले अपनी दोस्त से साझा किए थे, मुझे लगा कि क्या मैं वही पुराना संकेत महसूस कर रही हूं जो शायद पवित्र आत्मा की ओर से मुझे मिल रहा है। रात के अँधेरे में भी ईश्वर का आत्मा मुझे सलाह देता है, जिसे स्तोत्र 16:7 में वर्णित किया गया है? “मैं अपने परामर्शदाता ईश्वर को धन्य कहता हूँ। रात को भी मेरा अंत:करण मुझे पथ दिखाता है।” गेराज में गाड़ी लगाते हुए, मैंने तुरंत उस विचार को नकार दिया... आखिरकार, यह महिला कुछ अन्य महिलाओं के साथ कुछ समस्या का सामना कर रही थी, इसलिए उसने उन समस्याओं को लेकर मुझसे संपर्क किया, और मैं अपनी प्रतिक्रिया में सहानुभूति और समझदारी दिखाने की कोशिश कर रही थी। अगली सुबह, हालांकि, यह स्पष्ट था कि स्तोत्रकार का अनुभव अब मेरा था: प्रभु वास्तव में “मेरा परामर्शदाता ईश्वर मुझे परामर्श देता है; रात को भी मेरा अंत:करण मुझे पथ दिखाता है।” मुझे कुछ साल पहले शब्दों की शक्ति के बारे में मैंने जो सीखा था, जागते ही वह तुरंत याद आया। हाँ, जो कुछ मैंने पिछली रात साझा किया था, वह सत्य था। यह उस संदर्भ में सहायक भी था, जो मेरी इस व्यक्ति के साथ संबंधों के संदर्भ में था। मेरी प्रतिक्रिया प्रेरणादायक नहीं थी! अफसोस, इसे आवश्यक भी नहीं कहा जा सकता था! सौभाग्य से, मेरा आंकलन सकारात्मक नोट पर समाप्त हुआ, क्योंकि मेरी टिप्पणियों को दयालु माना जा सकता था, क्योंकि जब हम अपनी दोस्त की चिंताओं पर चर्चा कर रहे थे, तब मैंने इन महिलाओं के उन सुंदर गुणों को याद किया। जैसे हम में से अधिकांश किसी न किसी विशेष प्रकार का आइस क्रीम या अन्य पसंदीदा भोजन के स्वाद का बार-बार आनंद लेते हैं, वैसे ही हम में से कुछ के पास एक विशेष पाप होता है जिसका बार-बार स्वाद लेने का हमारा मन करता है। (एक कहानी याद आती है कि एक व्यक्ति पुरोहित के पास जाकर हर बार पाप स्वीकार में यह कहता है कि वह अशुद्ध विचारों में उलझा हुआ था...पुरोहित पूछते हैं: “क्या आपने उन विचारों के साथ रहकर पाप किया ?” पाप स्वीकार करनेवाला व्यक्ति जवाब देता है: “नहीं, लेकिन उन विचारों ने मेरे साथ रहकर पाप किया होगा!”) मैंने महसूस किया कि मैंने अपने विशेष 'स्वाद' वाले पाप के सामने समर्पण कर दिया था, जिसे मैं अक्सर स्वीकार करती थी, लेकिन फिर भी उसे दोहराती रहती थी... लेकिन जैसा कि कहानी में उस आदमी के पापस्वीकार से हमें हंसी आती है, उसी तरह मेरे पापस्वीकार के बारे में सोचकर मुझसे उस तरह की हंसी नहीं निकलती! अपने इस द्वंद्व पर विचार करते हुए, मैंने सोचा कि समान स्थिति में क्या कोई और इस तरह की सोच रख सकते हैं... किसी और का 'पसंदीदा पाप' क्या हो सकता है? क्या उन्होंने भी उसे बार-बार ईश्वर, पुरोहित या यहां तक कि किसी ऐसे दोस्त के सामने, जिसे वे विश्वास करते हैं, इस तरह बार बार पाप स्वीकार किया होगा,? बचपन से बड़े होने के पल बाइबिल में 'पाप' शब्द का यूनानी अनुवाद 'हमार्टानो' है, जिसका मतलब है कि एक व्यक्ति तीर चला रहा है, लेकिन निशाना चूक जाता है। जो व्यक्ति निशाने से चूकता था, उसे पापी कहा जाता था। मेरी सारी कोशिशों के बावजूद, मैं भी निशाने से चूक गयी थी! उस सुबह ईश्वर से बात करने के बाद, मैंने अपनी दोस्त को संदेश भेजा। माफी मांगने के लिए टाइप करते हुए एक ऐसा विचार जो मेरे मन में आया उसे भी साझा करने के बाद, मुझे अंततः अपने 'हमार्टानो' की जड़ समझ में आई। मैंने अपने संदेश में लिखा: “मेरे शब्दों का उपयोग करने और लोगों के साथ कहानियाँ और बातचीत साझा करने की मस्ती मुझ पर हावी थी, जिसके कारण मुझे अनावश्यक और प्रेरणा न देनेवाले कार्यों के लिए इसका उपयोग करने की अपनी इच्छाओं को मैं रोक नहीं पाती थी।” मैंने संदेश समाप्त करते हुए अपनी दोस्त से कहा कि अगर मैं भविष्य में इन 'सीमाओं' से बाहर जाऊं, तो वह मुझे जवाबदेह ठहराए। मुझे जल्द ही जवाब में एक संदेश मिला: "चाहे हम कितने भी समय से येशु के साथ चल रहे हों, हमारे पास हमेशा और प्रगति करने के अवसर होते हैं। तुम माफ़ किए गए हो! मैं सहमत हूँ कि हमारी बातचीत जितनी देर तक चली, उतनी लंबी नहीं होनी चाहिए थी, जिससे हम एक खतरनाक क्षेत्र में पहुंच गए थे। मैं उन परिस्थितियों के प्रति अधिक सचेत रहने की पूरी कोशिश करूंगी और जरूरत पड़ने पर तुम्हें जवाबदेह ठहराऊँगी, और तुम्हारे लिए भी वही करने की उम्मीद करती हूं। प्रभु का धन्यवाद कि उसने हमें अपनी कृपा और दया से दिखाया, और हमें यह समझाया कि हमें कहां बेहतर करने की आवश्यकता है।" मेरी दोस्त की कृपालु प्रतिक्रिया और ईमानदारी की सराहना करते हुए, मुझे 'बेहतर करने' की प्रेरणा मिली! मुझे एहसास हुआ कि चूंकि यह स्पष्ट है कि हमारे भीतर कुछ ऐसा है, जिसे हम अपने सामान्य प्रलोभन में शामिल होकर या उसे बढ़ावा देकर पोषित कर रहे हैं, इसलिए इस परिणामी व्यवहार की जड़ तक पहुंचना अनिवार्य है। पवित्र आत्मा से यह जड़ हमारे सामने प्रकट करने के लिए कहने से, हमें यह समझने में मदद मिलती है कि हम इस क्षेत्र में बार-बार निशाना क्यों चूकते हैं। हमारे साथ अतीत में क्या हुआ था, जिसके कारण हमारे अंदर एक खालीपन पैदा हो गया था, जिसे हम अपने पाप के स्वाद से भरना चाहते हैं? इस भोग-विलास से हम किस ज़रूरत या इच्छा को पूरा कर रहे हैं? क्या हमारे टूटेपन के कारण कोई घाव सड़ रहा है, जिसे भरने की ज़रूरत है? हम किस तरह की स्वस्थ प्रतिक्रिया पर विचार कर सकते हैं, जिससे न केवल दूसरों को चोट पहुँचने से रोका जा सके, बल्कि हम अपनी कमज़ोरियों में खुद के प्रति करुणा और अनुग्रह भी दिखा सकें? यह जानते हुए कि हमें ‘अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम करना है, दूसरों से प्रेम करने की कोशिश करने से खुद से भी प्रेम करने की ज़रूरत बढ़ती है, है न? बोयें, उगाएं और छांटें कभी-कभी, हम सालों तक एक ही व्यवहार में बने रहते हैं। मेरी दोस्त के अन्दर जवाब देने का साहस था, लेकिन बहुत से लोगों के पास ऐसा साहस नहीं होता है, इस कारण, हम ऐसे पैटर्न में बने रहते हैं जो पवित्र आत्मा के प्रयासों को सीमित करते हैं ताकि हम मसीह की प्रतिछाया के अनुरूप बन सकें। हम बदलने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन जब तक हम पर्याप्त रूप से प्रेरित नहीं होते हैं, शायद किसी और को अपना जवाबदेही के भागीदार बनाने के द्वारा, हम हार मान सकते हैं और अपनी पसंद के स्वाद पर वापस जा सकते हैं। चाहे वह रॉकी रोड आइसक्रीम हो, या मेरे द्वारा अनावश्यक शब्दों का चयन, प्रभु चाहते हैं कि हम जानें कि यदि हम उनकी आत्मा को हमें अन्य विकल्पों की ओर ले जाने देते हैं तो हमारा जीवन और हमारे आस-पास के अन्य लोगों का जीवन कितना अधिक सुखद हो सकता है । मुझे पता था कि जिस प्रवृत्ति में मैं इतनी आसानी से फंस गयी थी, उसको बदलने का तरीका खोजने की मुझे ज़रूरत है। जब मेरी दोस्त ने देखा कि मैं फिर से उस परिचित रास्ते पर चलना शुरू कर रही हूँ, तब मैंने उससे जवाबदेह होने में मेरी मदद करने के लिए कहा। चूँकि पाप से बचने के हमारे सभी प्रयास येशु के चरित्र का बेहतर अनुकरण करने की ओर ले जाते हैं, इसलिए गलाती 5:22-23 मेरे मन में आया। मैं पाप के अपने विशेष स्वाद के बजाय आत्मा के फलों में से किसी एक के साथ अपनी भूख को संतुष्ट करना चुन सकती थी। प्रेम, आनंद, शांति, सहनशीलता, मिलनसारी, दयालुता, भलाई, ईमानदारी, सौम्यता और आत्म-संयम के फल उत्पन्न करना येशु मसीह के समान बनने केलिए हमारे प्रयासों में पवित्र आत्मा के साथ हमारी भागीदारी का प्रमाण है। अभ्यास से परिपूर्णता नहीं मिलती, लेकिन यह प्रगति जरूर करता है! इन गुणों में से किसी एक का अभ्यास करने की दिशा में अपने इरादे को निर्देशित करके मुझे पता था कि मैं अंततः धार्मिकता का फल देखूंगी। प्रत्येक फल एक बीज बोने से शुरू होता है, फिर अंततः जब तक कि हम सही प्रकार का फल नहीं देखते, तब तक खाद देकर, उगाकर और छंटाई की जाती है। इस बीच, मैं अपने मन को अनुस्मारकों से खाद देना शुरू करूँगी, ऐसी कहावत के द्वारा: "शब्द तीर की तरह होते हैं; एक बार कमान से छोड़े जाने के बाद उन्हें वापस नहीं बुलाया जा सकता।" जब मैं अपने व्यवहार की जड़ जानती हूँ, और मैंने अपनी मित्र को मुझे जवाबदेह ठहराने के लिए आमंत्रित किया है, तब मैं आत्म-नियंत्रण का अभ्यास करने पर ध्यान केंद्रित करने का विकल्प चुन रही हूँ, जैसा कि मेरी मित्र ने बहुत ही संक्षेप में बताया, उसी तरह जब मुझे लगता है कि दूसरे लोग हमें 'खतरनाक क्षेत्र में डाल रहे हैं', तब उनके साथ बातचीत समाप्त कर रही हूँ। यह देखने और चखने के बाद कि प्रभु अच्छे हैं, मैं जानती हूँ कि केवल वही वास्तव में मेरे दिल की इच्छाओं को पूरा कर सकते हैं। स्तोत्र 16:8 आगे कहता है: "मैं प्रभु को सदा अपनी आँखों के सामने रखता हूँ; वह मेरे दाहिने विराजमान है, मैं विचलित नहीं होऊँगा।" मैं लक्ष्य पर निशाना लगाने के लिए एक बार फिर अपना तीर उठाती हूँ। प्रभु की कृपा से, समय के साथ, मेरा तीर निशाने के करीब पहुँच जाएगा। येशु की शिष्य बनने के लिए प्रतिबद्ध, मैं अपने स्वर्ग रुपी घर का मार्ग येशु का अनुसरण करूँगी। निश्चय ही तेरी भलाई और तेरी कृपा से मैं जीवन भर घिरा रहता हूँ। मैं चिरकाल तक प्रभु के मंदिर में निवास करूँगा। (स्तोत्र 23:6)
By: करेन एबर्ट्स
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