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योहन के सुसमाचार के अध्याय 2 में येशु द्वारा यरूशलेम मंदिर जाने के बारे में और येरूशलेम मंदिर की सफाई के बारे में नाटकीय विवरण मिलता है, जहां येशु व्यापारियों को बैल, भेड़, और कबूतर बेचते हुए और पैसे बदलने वाले साहूकारों को अपनी मेज पर बैठे हुए पाते हैं। रस्सियों से एक कोड़ा बनाकर, येशु उन्हें मंदिर परिसर से बाहर निकालते हैं, साहूकारों की मेजों को उलट देते हैं और उन्हें आदेश देते हैं कि “मेरे पिता के घर को बाज़ार मत बनाओ” (पद.16)।
येशु ने किसी को नहीं मारा, लेकिन पास्का पर्व के इतने करीब की इस नाटकीय कार्रवाई ने निश्चित रूप से भीड़ का ध्यान आकर्षित किया और धर्माधिकारियों से और उन लोगों से एक प्रतिक्रिया को जन्म दिया जिनके आर्थिक हितों को खतरा था।
इस वृत्तांत में येशु का व्यवहार हमें चुनौती देता है कि हम अपने फायदे और स्वार्थी हितों की नहीं, बल्कि उस परमेश्वर की महिमा की तलाश करें जो वास्तव में प्रेम है। येशु के साहसिक हस्तक्षेप ने मंदिर को “कबाड़ के धर्म” से मुक्त कर वास्तविक धर्म के लिए जगह बनाने का कार्य किया। आज के दौर में कबाड़ का धर्म क्या है और कैसा दिखता है?
सीधे शब्दों में कहें तो कबाड़ धर्म कैथलिक परंपरा के वे तत्व हैं, जो हमारे व्यक्तिगत और स्वार्थी परिपाटी का समर्थन करने वाले हैं, और जो कैथलिक तत्व हमारे स्वार्थी एजंडा में नहीं हैं, उन पर पर्दा डालते हैं। हम उन सारी सही कार्य कर सकते हैं – नियमित रूप से मिस्सा में भाग लेना, अच्छी धर्मविधि की सराहना करना, उदारता से दान देना, पवित्र ग्रन्थ को उद्धृत करना, और यहां तक कि ईशशास्त्र के कुछ हिस्से को भी समझ लेना – लेकिन अगर हम सुसमाचार को अपने दिल की गहराई तक नहीं जाने देते हैं, तो हम कैथलिक विश्वास को पालतू बना लेते हैं, और इसे “कबाड़ धर्म” के रूप में सीमित और छोटा बनाते हैं। उस गहरी प्रतिबद्धता के बिना, धर्म सुसमाचार के बारे में कम, बल्कि अपने बारे में और अपने व्यक्तिगत विचारधारा के बारे में अधिक हो जाता है – चाहे हम खुद को किसी भी राजनीतिक परिदृश्य में पाते हैं।
सुसमाचार हमारा आह्वान करता है कि स्वयं को दास का रूप देनेवाला और क्षमाशील येशु के मार्ग को हम अपनावें। हम अहिंसक बनने और न्याय और भलाई को बढ़ावा देने के लिए बुलाये गए हैं। और हमें उन कार्यों को अनुकूल और प्रतिकूल दोनों परिस्थितियों में करने की जरूरत है चाहे वह आसान हो या कठिन हो। जब इस्राएली कनान देश की ओर जा रहे थे और जब यात्रा कठिन हो गई, तो वे मिस्र में अपने पुराने जीवन के आराम और सुरक्षा की ओर लौटना चाहते थे। उनकी तरह, हम धर्म को हमें पहचान देनेवाले एक ऐसे परिधान के रूप में पहनने के प्रलोभन में पड़ सकते हैं, जबकि धर्म एक ऐसा ख़मीर बने जो हमें भीतर से बदल देता है। हमें यह याद रखना चाहिए कि हम ईश्वर के उदार और सुरक्षापूर्ण प्रेम के साधन हैं; हम अपनी इस पुकार के प्रति दृढ़ रहें।
हमारे अनुष्ठान और भक्ति अभ्यास हमें याद दिलाएंगे कि ईश्वर की सच्ची आराधना करना है, जीवन के लिए निरंतर धन्यवाद देना है और दूसरों के साथ अपने जीवन को साझा करके कृतज्ञता व्यक्त करना है। यदि हम ऐसा करते हैं, तो यहां और वर्त्तमान में मौजूद पुनर्जीवित मसीह के देहधारण में हम भी शामिल हो जायेंगे, हम भी उस देह्धारण को अपने जीवन में साकार करेंगे। हम अपने समुदाय में न्याय के साथ शांति की शुरुआत करेंगे। संक्षेप में, हम सच्चे धर्म का पालन करेंगे, अपने आप को एक ऐसे ईश्वर से जोड़ेंगे जो केवल हमसे प्रेम करना चाहता है और बदले में प्रेम पाना चाहता है।
डीकन जिम मैकफैडेन कैलिफोर्निया के फॉल्सम में संत जॉन द बैपटिस्ट कैथलिक चर्च में सेवारत हैं। वह ईशशास्त्र के शिक्षक हैं और वयस्क विश्वास निर्माण और आध्यात्मिक निर्देशन के क्षेत्र में कार्य करते हैं।
चाहे मुश्किल दौर कितना भी बुरा क्यों न हो, अगर उस पर आप काबू पायेंगे, तो आप कभी नहीं डगमगाएंगे। हम बहुत ही बुरे और उलझन भरे समय में जी रहे हैं। बुराई हमारी चारों तरफ है, और जिस समाज और दुनिया में हम रहते हैं, शैतान उसे नष्ट करने की पूरी कोशिश कर रहा है। कुछ मिनटों के लिए भी समाचार देखना बहुत निराशाजनक हो सकता है। जब आपको लगता है कि इससे बुरा कुछ नहीं हो सकता, तो आप दुनिया में किसी नए अत्याचार या दुष्टता के बारे में सुनते हैं। निराश होना और उम्मीद खोना आसान है। लेकिन ख्रीस्तीय होने के नाते, हमें आशावान लोग बनने के लिए कहा जाता है। यह कैसे संभव है? मेरा एक मित्र है जो मूल रूप से रोड आइलैंड का रहने वाला है। एक फादर्स डे पर, उसके बच्चों ने उसे एक टोपी दी जिस पर एक लंगर की तस्वीर थी और उस पर इब्रानी 6:19 कढ़ाई की गई थी। इसका क्या महत्व था? रोड आइलैंड के राज्य ध्वज पर एक लंगर है जिस पर "आशा" शब्द लिखा है। यह इब्रानी 6:19 का संदर्भ है, जिसमें कहा गया है: "वह आशा हमारी आत्मा केलिए एक सुस्थिर एवं सुदृढ़ लंगर के सदृश है, जो उस मंदिर गर्भ में पहुंचता है ..." इब्रानियों के नाम पत्र उन लोगों के लिए लिखा गया था जो बहुत उत्पीड़न झेल रहे थे। यह स्वीकार करने के लिए कि आप येशु के अनुयायी हैं, मृत्यु या पीड़ा, यातना या निर्वासन के लिए बुलाये गए हैं। क्योंकि यह बहुत कठिन था, कई लोग विश्वास खो रहे थे और सोच रहे थे कि क्या मसीह का अनुसरण करना सार्थक है। इब्रानियों को लिखे पत्र के लेखक उन्हें दृढ़ रहने, और विश्वासी जीवन में बने रहने के लिए प्रोत्साहित करने की कोशिश कर रहे थे - कि यह जीवन सार्थक जीवन है। वे अपने पाठकों को बताते हैं कि येशु में आधारित आशा ही उनका लंगर है। ठोस और अचल जब मैं हवाई द्वीप में हाई स्कूल की पढ़ाई कर रही थी, तो मैं एक ऐसे कार्यक्रम की हिस्सा थी जो छात्रों को समुद्री जीव विज्ञान पढ़ाता था। हमने कई हफ़्ते एक नाव पर रहकर और काम करके बिताए। हम जिन जगहों पर गए, उनमें से ज़्यादातर जगहों पर एक जेट्टी या घाट था जहाँ हम नाव को ज़मीन पर सुरक्षित रूप से बाँध सकते थे। लेकिन कुछ दूरदराज के हाई स्कूल थे जो किसी बंदरगाह या खाड़ी के पास नहीं थे जहाँ जेट्टी थी। ऐसी परिस्थिति में, हमें नाव के लंगर का उपयोग करना पड़ता था - जो एक भारी धातु की वस्तु है जिस पर कुछ नुकीले हुक लगे होते हैं। जब लंगर पानी में डाला जाता है, तो यह समुद्र तल के बिलकुल नीचे लग जाता है और नाव को बहने से रोकता है। हम मानव भी नावों की तरह हो सकते हैं, जो रोज़मर्रा की ज़िंदगी के ज्वार और लहरों पर इधर-उधर उछलते और तैरते रहते हैं। हम समाचारों में आतंकवादी हमले, विद्यालयों और गिरजाघरों में गोलीबारी, न्यायालय के बुरे फ़ैसले, आपके परिवार में बुरी ख़बरें या प्राकृतिक आपदाओं के बारे में सुनते हैं। ऐसी बहुत सी चीज़ें हैं जो हमें हिला सकती हैं और हमें खोया हुआ और निराशा से भरा हुआ महसूस करा सकती हैं। जब तक हमारी आत्मा के लिए कोई सहारा नहीं होगा, हम भटकते रहेंगे और हमें कोई शांति नहीं मिलेगी। लेकिन लंगर को काम करने के लिए, उसे कांटे के द्वारा किसी ठोस और अचल चीज़ से फंसाना चाहिए। एक नाव में सबसे मजबूत, सबसे अच्छा लंगर हो सकता है, लेकिन जब तक उसे किसी सुरक्षित और दृढ़ कांटे से नहीं फंसाया जाता, वह नाव अगली लहर में बह जाएगी। बहुत से लोगों को उम्मीद है, लेकिन वे अपनी उम्मीद अपने बैंक खाते, अपने जीवनसाथी के प्यार, अपने अच्छे स्वास्थ्य या सरकार पर लगाते हैं। वे कह सकते हैं: “जब तक मेरे पास मेरा घर, मेरी नौकरी, मेरी कार है, तब तक सब ठीक रहेगा। जब तक मेरे परिवार में हर कोई स्वस्थ है, सब ठीक है।” लेकिन क्या आप को नहीं लगता कि यह कितना अस्थिर हो सकता है? अगर आपकी नौकरी चली जाए, परिवार का कोई सदस्य बीमार हो जाए, या अर्थव्यवस्था विफल हो जाए तो क्या होगा? क्या तब आप ईश्वर में अपना विश्वास खो देंगे? कभी नहीं बह जाए मुझे याद है जब मेरे पिता अपने जीवन के अंतिम कुछ वर्षों में कैंसर से जूझ रहे थे। वह हमारे परिवार के लिए एक तूफानी, अशांत समय था क्योंकि प्रत्येक नई जाँच के साथ, हमें बारी-बारी से अच्छी खबर या बुरी खबर सुनने को मिलती थी। बार बार अस्पताल की ओर यात्राएँ हुईं, और उन्हें एक बार आपातकालीन सर्जरी के लिए दूसरे अस्पताल में भी ले जाया गया। जब हमने अपने पिता को पीड़ित होते और बीमार और कमज़ोर होते देखा तो मैं बहुत बेचैन और अस्थिर महसूस कर रही थी। मेरे पिता एक दृढ़, धर्मनिष्ठ ईसाई थे। वे हर दिन घंटों परमेश्वर के वचन को पढ़ने और उसका अध्ययन करने में बिताते थे, और उन्होंने वर्षों तक बाइबल अध्ययन की कक्षाएं ली थीं। यह सोचने केलिए मैं मजबूर हो गयी कि इन सब में येशु कहाँ थे। जांच का एक और बुरा परिणाम सुनने के बाद, इस नवीनतम तूफानी रिपोर्ट से मेरी आत्मा विचलित हो गई, मैं प्रार्थना करने के लिए एक गिरजाघर गयी। “प्रभु, मैं आशा खो रही हूँ। तू कहाँ है?" जैसे ही मैं चुपचाप बैठी, मुझे एहसास होने लगा कि मैं अपने पिता के ठीक होने की उम्मीद कर रही थी। इसलिए मैं इतना अस्थिर और असुरक्षित महसूस कर रही थी। लेकिन येशु मुझे आमंत्रित कर रहे थे कि मैं अपनी आशा, अपना भरोसा उस पर रखूँ। प्रभु मेरे पिता से प्यार करते थे, जितना प्यार मैं पिता को दे सकती थी उससे ज़्यादा और इस कठिन परीक्षा में प्रभु उनके साथ थे। ईश्वर मेरे पिता को वह सब देंगे जो उन्हें अपनी दौड़ को अच्छी तरह से अंत तक दौड़ने के लिए चाहिए, वह अंत चाहे जब भी हो। मुझे यह याद रखने की ज़रुरत थी और ईश्वर पर और मेरे पिता के लिए ईश्वर के महान प्रेम पर अपनी आशा बनाये रखने की ज़रूरत थी। मेरे पिताजी कुछ सप्ताह बाद घर पर ही प्यार और ढेर सारी प्रार्थनाओं से घिरे हुए चल बसे। मेरी माँ द्वारा उनकी बहुत देखभाल की गई। उनकी मृत्यु के समय उनके चेहरे पर सौम्य मुस्कान थी। वे प्रभु के पास जाने के लिए तैयार थे, अपने उद्धारकर्ता को आखिरकार आमने-सामने देखने के लिए उत्सुक थे। और मैं उस समय शांति का अनुभव कर रही थी, उन्हें जाने देने के लिए मैं तैयार थी। आशा लंगर है, लेकिन लंगर उतना ही मजबूत होता है जितना कि जिस कांटे से वह फंसा या जुदा हुआ है। अगर हमारा लंगर येशु में सुरक्षित है, जो हमारे आगे के मंदिर के पर्दे को पार कर गया है और वे हमारा इंतजार कर रहे हैं, तो चाहे लहरें कितनी भी ऊंची क्यों न हों, चाहे हमारे आस-पास कितने भी भयंकर तूफान क्यों न हों, हम स्थिर रहेंगे और बह नहीं जाएंगे।
By: Ellen Hogarty
Moreआप जहां कही भी हों और जो कुछ भी करें, आप जीवन में इस महान मिशन के लिए बुलाये गए हैं। अस्सी के दशक के मध्य में, ऑस्ट्रेलियाई फिल्म निर्देशक पीटर वियर ने विटनेस नामक अपनी पहली सफल अमेरिकी थ्रिलर फिल्म बनाई, जिसमें हैरिसन फोर्ड ने अभिनय किया था। यह फिल्म एक युवा लड़के के विषय में है जो एक अंडरकवर पुलिस अधिकारी की उसके भ्रष्ट सहकर्मियों द्वारा की गयी हत्या को देखता है, और उस युवक को सुरक्षा के लिए आमिश समुदाय में छिपा दिया जाता है। जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, वह टुकड़ों को एक साथ जोड़कर याद करता है कि क्या हुआ था और फिर, वह हैरिसन फोर्ड द्वारा अभिनीत जॉन बुक नामक किरदार को सब कुछ बताता है (सुसमाचार के प्रतीक पर ध्यान दें)। फिल्म में एक गवाह के चरित्र को दिखाया गया हैं: वह गवाह जो देखता है, याद करता है, और बताता है। परिवृत्त में वापसी येशु ने अपने आतंरिक वृत्त के लोगों को दर्शन दिया ताकि उनके पुनरुत्थान की सच्चाई उन लोगों के माध्यम से सभी तक पहुँच सके। उन्होंने अपने शिष्यों के हृदयों को अपनी मृत्यु और पुनरुत्थान के रहस्य के लिए खोला और कहा: "तुम इन बातों के साक्षी हो" (लूकस 24:48)। उन्हें अपनी आँखों से देखने के बाद, प्रेरित इस अविश्वसनीय अनुभव के बारे में चुप नहीं रह सके। प्रेरितों के लिए जो सत्य है, वह हमारे लिए भी सत्य है, क्योंकि हम कलीसिया के सदस्य हैं, जो मसीह का रहस्यमय शरीर है। येशु ने अपने शिष्यों को आदेश दिया कि “इसलिए तुम लोग जाकर सब राष्ट्रों को शिष्य बनाओ, और उन्हें पिता, और पुत्र, और पवित्र आत्मा के नाम पर बपतिस्मा दो।” (मत्ती 28:19) मिशनरी शिष्यों के रूप में, हम गवाही देते हैं कि येशु जीवित हैं। इस मिशन को उत्साहपूर्वक और लगातार रूप से अपनाने का एकमात्र तरीका यह है कि हम विश्वास की आँखों से देखें कि येशु जी उठे हैं, कि वे जीवित हैं, और हमारे भीतर और हमारे बीच उपस्थित हैं। यही एक गवाह का कार्य है। उस परिवृत्त में लौटते हुए सोचें, कोई व्यक्ति पुनर्जीवित मसीह को कैसे ‘देख सकता है’? येशु ने हमें निर्देश दिया: “जब तक गेहूँ का दाना मिटटी में गिरकर मर नहीं जाता, तब तक वह अकेला ही रहता है; परन्तु यदि वह मर जाता है, तो बहुत फल देता है।” (योहन 12:23-24) सरल शब्दों में कहें तो, यदि हम वास्तव में येशु को ‘देखना चाहते हैं, यदि हम उसे गहराई से और व्यक्तिगत रूप से जानना चाहते हैं, और यदि हम उसे समझना चाहते हैं, तो हमें गेहूँ के दाने को देखना होगा जो मिट्टी में मर जाता है: दूसरे शब्दों में, हमें क्रूस की ओर देखना होगा। क्रूस का चिन्ह आत्म-संदर्भ (अहं के नाटक) से मसीह-केंद्रित (ईश्वर के नाटक) होने की ओर एक क्रांतिकारी बदलाव को दर्शाता है। अपने आप में, क्रूस केवल प्रेम, सेवा और बिना किसी शर्त के आत्म-समर्पण को व्यक्त कर सकता है। ईश्वर की स्तुति और महिमा तथा दूसरों की भलाई के लिए स्वयं को बलिदान के रूप में देने के माध्यम से ही हम मसीह को देख सकते हैं और त्रीत्ववादी प्रेम में प्रवेश कर सकते हैं। केवल इसी तरह से हम 'जीवन के वृक्ष' पर कलम हो सकते हैं और वास्तव में येशु को 'देख' सकते हैं। येशु स्वयं जीवन हैं। और हम जीवन की तलाश करने के लिए कठोर रूप से तैयार हैं क्योंकि हम ईश्वर की छवि में बने हैं। इसलिए हम येशु की ओर आकर्षित होते हैं - येशु को 'देखने' के लिए, उनसे मिलने के लिए, उन्हें जानने के लिए, और उनके साथ प्यार में पड़ने के लिए आकर्षित होते हैं। यही एकमात्र तरीका है जिससे हम पुनर्जीवित मसीह के प्रभावी गवाह बन सकते हैं। छिपा हुआ बीज हमें भी सेवा में समर्पित जीवन की गवाही के साथ जवाब देना चाहिए, एक ऐसा जीवन जो येशु के मार्ग के अनुरूप हो, जो दूसरों की भलाई के लिए बलिदानपूर्ण आत्म-समर्पण का जीवन हो, यह याद दिलाते हुए कि प्रभु हमारे पास सेवक के रूप में आए थे। व्यावहारिक रूप से, हम ऐसा क्रांतिकारी जीवन कैसे जी सकते हैं? यीशु ने अपने शिष्यों से कहा: "पवित्र आत्मा तुम पर उतारेगा, और तुम्हें सामर्थ्य प्रदान करेगा; और मेरे साक्षी होगे" (प्रेरित चरित 1:8)। जिस तरह पवित्र आत्मा ने पहले पेन्तेकोस्त के दिन किया था, वैसे ही वह भय से बंधे हमारे दिलों को मुक्त करता है। वह हमारे पिता की इच्छा को पूरा करने के हमारे प्रतिरोध पर विजय प्राप्त करता है, और वह हमें यह गवाही देने के लिए सशक्त बनाता है कि येशु जी उठे हैं, वे जीवित हैं और वे अभी और हमेशा मौजूद हैं! पवित्र आत्मा यह कैसे करता है? हमारे हृदयों को नवीनीकृत करके, हमारे पापों को क्षमा करके, और हमें सात उपहारों से भरकर जो हमें यीशु के मार्ग पर चलने में सक्षम बनाते हैं। केवल छिपे हुए बीज के क्रूस के माध्यम से, जो मरने के लिए तैयार है, हम वास्तव में यीशु को 'देख' सकते हैं और इसलिए उसकी गवाही दे सकते हैं। केवल मृत्यु और जीवन के इस अंतर्संबंध के माध्यम से ही हम उस प्रेम की खुशी और फलदायीता का अनुभव कर सकते हैं जो जी उठे मसीह के हृदय से बहता है। केवल आत्मा की शक्ति के माध्यम से ही हम उस जीवन की पूर्णता तक पहुँच सकते हैं जो उसने हमें उपहार में दिया है। इसलिए, जैसा कि हम पिन्तेकुस्त मनाते हैं, आइए हम विश्वास के उपहार द्वारा जी उठे प्रभु के गवाह बनने का संकल्प लें और उन लोगों तक खुशी और शांति के पास्का उपहार लाएँ जिनसे हम मिलते हैं। अल्लेलुया!
By: डीकन जिम मैकफैडेन
Moreमेरी नई हीरो मदर अल्फ्रेड मोस हैं। मुझे एहसास है कि वह कैथलिकों के बीच प्रचलित नाम नहीं हैं, लेकिन उन्हें होना चाहिए। वह मेरे रडार स्क्रीन पर तभी आईं जब मैं विनोना-रोचेस्टर धर्मप्रांत का धर्माध्यक्ष बन गया, जहाँ मदर आल्फ्रेड ने अपना अधिकांश काम किया और वहीँ उनका दफन हुआ है। उनका जीवन उल्लेखनीय साहस, विश्वास, दृढ़ता और विशुद्ध साहस की अद्वितीय कहानी है। विश्वास करें, एक बार जब आप उनके कारनामों के विवरण को समझेंगे, तो आपको कई अन्य साहसी कैथलिक माताओं की याद आएगी, जैसे: कैब्रिनी, टेरेसा, ड्रेक्सेल और एंजेलिका। मदर आल्फ्रेड का जन्म 1828 में यूरोप के लक्ज़मबर्ग में मारिया कैथरीन मोस के रूप में हुआ था। एक छोटी लड़की के रूप में, वह उत्तरी अमेरिका के मूलवासी लोगों के बीच मिशनरी कार्य करने की संभावना से मोहित हो गई थी। तदनुसार, वह 1851 में अपनी बहन के साथ अमेरिका की नई दुनिया की यात्रा पर निकल पड़ी। सबसे पहले, वह मिल्वौकी में स्कूल सिस्टर्स ऑफ़ नोट्रेडेम में शामिल हुईं, लेकिन फिर ला पोर्टे, इंडियाना में होली क्रॉस सिस्टर्स में स्थानांतरित हो गईं, जो कि नोट्रेडेम विश्वविद्यालय के संस्थापक फादर सोरिन, सी.एस.सी. से जुड़ा एक समूह था। अपने वरिष्ठों के साथ टकराव के बाद (यह इस बहुत ही उत्साही और आत्मविश्वासी महिला के साथ अक्सर होता था) वह जोलियट, इलिनोई चली गईं, जहाँ वह फ्रांसिस्कन बहनों की एक नई मंडली की सुपीरियर बन गईं, और उन्होंने 'मदर आल्फ्रेड' नाम अपना लिया। जब शिकागो के बिशप फोले ने उनके समुदाय के वित्त और निर्माण परियोजनाओं में हस्तक्षेप करने की कोशिश की, तो वह मिनेसोटा में सेवा के नए क्षेत्र की तलाश में निकल पड़ीं, जहाँ महान आर्चबिशप आयरलैंड ने उनका स्वागत किया और रोचेस्टर में एक स्कूल स्थापित करने की अनुमति दी। दक्षिणी मिनेसोटा के उस छोटे से शहर में ईश्वर ने मदर आल्फ्रेड के माध्यम से शक्तिशाली रूप से काम करना शुरू किया। 1883 में, रोचेस्टर में एक भयानक बवंडर आया, जिसमें कई लोग मारे गए और कई अन्य बेघर और बेसहारा हो गए। एक स्थानीय डॉक्टर विलियम वॉरेल मेयो ने आपदा के पीड़ितों की देखभाल का काम संभाला। घायलों की संख्या से परेशान होकर, उन्होंने मदर आल्फ्रेड और उनकी बहनों से मदद मांगी। हालाँकि वे नर्स नहीं बल्कि शिक्षिका थीं और उन्हें चिकित्सा में कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं था, फिर भी उन्होंने इस मिशन को स्वीकार कर लिया। उस आपदा के बाद, मदर ने बड़ी शांति से डॉक्टर मेयो को बताया कि उनका एक सपना है कि रोचेस्टर में एक अस्पताल बनाया जाना चाहिए, न केवल उस स्थानीय समुदाय की सेवा के लिए, बल्कि पूरे विश्व की सेवा के लिए। पूरी तरह से अवास्तविक इस प्रस्ताव से चकित, डॉक्टर मेयो ने मदर से कहा कि ऐसी सुविधा बनाने के लिए उन्हें $40,000 जुटाने की आवश्यकता होगी। उस समय और स्थान के हिसाब से इस रकम को जुटाना किसी साधारण व्यक्ति के बस की बात नहीं थी। उन्होंने डॉक्टर से कहा कि अगर वे धन जुटाने और अस्पताल बनाने में कामयाब हो जाती हैं, तो वे चाहती हैं कि डॉक्टर और उनके दोनों डॉक्टर बेटे इस अस्पताल में काम करें। थोड़े समय के भीतर, मदर ने धन जुटाया और सेंट मैरी अस्पताल की स्थापना हुई। आप पहले ही अनुमान लगा चुके होंगे, यह वह बीज था जिससे शक्तिशाली मेयो क्लिनिक विकसित हुआ। मदर आल्फ्रेड की बहुत पहले की कल्पना के अनुसार यह वास्तव में मेयो क्लिनिक एक नई अस्पताल प्रणाली बनेगी जो पूरी दुनिया की सेवा करेगी। इस निडर साध्वी ने न केवल अपने द्वारा स्थापित अस्पताल के निर्माता, आयोजक और प्रशासक के रूप में अपना काम जारी रखा, बल्कि सत्तर वर्ष की आयु तक, यानी 1899 में अपनी मृत्यु तक, उन्होंने दक्षिणी मिनेसोटा में कई अन्य संस्थानों के लिए भी काम किया। कुछ हफ़्ते पहले ही, मैंने अपने धर्मप्रांत में पुरोहितों की ज़रूरत के बारे में लिखा था, और मैंने सभी से पुरोहिताई की बुलाहट को बढाने के मिशन का हिस्सा बनने का आग्रह किया था। मदर आल्फ्रेड को ध्यान में रखते हुए, क्या मैं अब महिलाओं के धर्मसंघी जीवन के लिए और अधिक बुलाहटों का आह्वान कर सकता हूँ? किसी तरह महिलाओं की पिछली तीन पीढ़ियों ने धर्म संघी जीवन को अपने विचार के अयोग्य माना है। द्वितीय वेटिकन परिषद के बाद से धर्मसंघी साध्वियों की संख्या में भारी गिरावट आई है। जब इस बारे में पूछा जाता है, तो अधिकांश कैथलिक शायद कहेंगे कि हमारे नारीवादी युग में धर्मसंघी बहन बनना एक व्यवहार्य संभावना नहीं है। मैं कहूंगा कि यह बकवास है! मदर आल्फ्रेड ने बहुत कम उम्र में अपना घर छोड़ दिया, समुद्र पार करके एक विदेशी भूमि पर चली गईं, धर्मसंघी बन गईं, अपनी बुलाहट और मिशन की भावना का पालन किया, तब भी जब इससे उन्हें कई धर्माध्यक्षों सहित शक्तिशाली वरिष्ठों के साथ संघर्ष करना पड़ा, डॉक्टर मेयो को इस धरती का सबसे प्रभावशाली चिकित्सा केंद्र स्थापित करने के लिए प्रेरित किया, और बहनों के एक धर्मसंघी संस्था के विकास का नेतृत्व और अध्यक्षता की। इन साध्वियों ने चिकित्सा और शिक्षण की कई संस्थानों का निर्माण और संचालन किया। मदर आल्फ्रेड असाधारण बुद्धि, प्रेरणा, जुनून, साहस और आविष्कारशीलता वाली महिला थीं। अगर किसी ने उन्हें सुझाव दिया होता कि वे अपने उपहारों के अयोग्य या अपनी गरिमा से नीचे जीवन जी रही हैं, तो मुझे लगता है कि उनके पास जवाब में कुछ चुनिंदा शब्द होंगे। आप एक नारीवादी नायक की तलाश कर रहे हैं? आप शायद ग्लोरिया स्टीनम को चुनेगे; मैं कभी भी मदर आल्फ्रेड को चुनूंगा। इसलिए, अगर आप किसी ऐसी युवती को जानते हैं जो एक अच्छी धर्मसंघी साध्वी बन सकती है, जो बुद्धिमान, ऊर्जावान, रचनात्मक और जोश से भरी हुई है, तो उसके साथ मदर आल्फ्रेड मोस की कहानी साझा करें। और उसे बताएं कि वह भी मदर की तरह की वीरता की आकांक्षा रख सकती है।
By: बिशप रॉबर्ट बैरन
Moreदूसरों को आंकना आसान है, लेकिन अक्सर हम दूसरों के बारे में अपने फैसले में पूरी तरह से गलत हो जाते हैं। मुझे एक बूढ़ा आदमी याद है जो शनिवार की रात को पवित्र मिस्सा पूजा में आता था। बहुत दिनों से उसने नहाया नहीं था और उसके पास साफ कपडे नहीं थे। सच कहूँ तो, उसके बदन से बदबू आती थी। आप उन लोगों को दोष नहीं दे सकते जो इस भयानक गंध से दूर रहना चाहते थे। वह बूढा प्रतिदिन हमारे छोटे शहर में दो या तीन मील पैदल चलता था, कचरा उठाता था, और एक पुरानी जर्जर झोपड़ी में अकेला रहता था। हमारे लिए किसी के बाह्य रूप के आधार पर निर्णय लेना आसान है। है न? मुझे लगता है कि यह इंसान होने का एक स्वाभाविक हिस्सा है। मुझे नहीं पता कि कितनी बार किसी व्यक्ति के बारे में मेरे निर्णय पूरी तरह से गलत थे। वास्तव में, ईश्वर की मदद के बिना दिखावे से परे देखना काफी मुश्किल है, मगर असंभव नहीं है। उदाहरण के लिए, यह आदमी, अपने अजीब व्यक्तित्व के बावजूद, हर हफ्ते मिस्सा बलिदान में भाग लेने के बारे में बहुत वफादार था। एक दिन, मैंने फैसला किया कि मैं नियमित रूप से मिस्सा में उसके बगल में बैठूंगी। हाँ, उसके देह से बदबू आ रही थी, लेकिन उसे दूसरों के प्यार की भी ज़रूरत थी। ईश्वर की कृपा से, बदबू ने मुझे ज़्यादा परेशान नहीं किया। पुरोहित द्वारा आपस में शांति देने के लिए कहने पर, मैं ने उसकी आँखों में देखा, मुस्कुरायी, और मैं ने ईमानदारी से उसका अभिवादन इन शब्दों में किया : "ख्रीस्त की शांति आपके साथ हो।" इसे कभी न छोड़ें ईश्वर मुझे अवसर देना चाहता है कि मैं दूसरे को उसके शारीरिक ढांचा या बाहरी रूप से परे देखूं और उस व्यक्ति के दिल में झाँकूँ। जब मैं किसी व्यक्ति के बारे में उसके बही रूप के आधार पर निर्णय लेती हूँ, तो मैं वह अवसर खो देती हूँ। यही येशु ने अपनी जीवन यात्रा के दौरान मिले प्रत्येक व्यक्ति के साथ किया, और वह हमारी गंदगी से परे हमारे दिलों को देखना जारी रखता है। मुझे याद है कि एक बार जब मैं अपने कैथलिक विश्वास से कई साल दूर थी, मैं गिरजाघर की पार्किंग में बैठी थी, मिस्सा में भाग लेने के लिए गिरजाघर के दरवाज़े से अंदर जाने के लिए पर्याप्त साहस जुटाने की कोशिश कर रही थी। मुझे इतना डर था कि दूसरे लोग मेरे बारे में गलत निर्णय लेंगे और मेरा स्वागत नहीं करेंगे। मैंने येशु से मेरे साथ चलने के लिए कहा। गिरजाघर में प्रवेश करने पर, एक डीकन ने मेरा अभिवादन किया; उन्होंने मुझे एक बड़ी मुस्कान देकर गले लगाया, और कहा: "आपका स्वागत है।" मुझे मुस्कान और आलिंगन की ज़रूरत थी ताकि मैं महसूस कर सकूँ कि मैं यहाँ की हूँ और फिर से अपने ही घर पर हूँ। उस बूढ़े आदमी के साथ बैठना जो बदबूदार था, मेरे लिए "भुगतान आगे बढ़ाने" का तरीका था। मुझे पता था कि मैं कितनी बेसब्री से स्वागत महसूस करना चाहती थी, यह महसूस करना चाहती थी कि मैं भी शामिल हूँ और मेरा भी महत्व है। हमें एक-दूसरे का स्वागत करने में संकोच नहीं करना चाहिए, खासकर उन लोगों का जिनके साथ रहना मुश्किल है।
By: Connie Beckman
Moreप्रकृति की सबसे मंद ध्वनियों को भी ध्यान से सुनें... ईश्वर हर समय आपसे बात कर रहा है। ईश्वर हमेशा हमें अपने प्रेम का संदेश देने की कोशिश कर रहा है—छोटी चीजों में, बड़ी चीजों में, हर चीज में। जीवन की व्यस्तता के कारण, हम अक्सर उस पल में और बाद में भी, जो वह हमें कहना चाहते हैं, उसे सुनने से चूक जाते हैं। हमारा प्रेमी ईश्वर चाहता है कि हम अपने दिलों की चुप्पी में उनके पास आएं। हम वास्तव में उनसे वहीं मिल सकते हैं और उनके साथ अपने संबंधों में आगे बढ़ना शुरू कर सकते हैं—“अच्छे गुरु” (योहन 13:13) को सुनकर। मदर तेरेसा ने सिखाया: “ईश्वर हमारे दिलों की चुप्पी में बोलता है।” पवित्र शास्त्र के ग्रन्थ भी हमें सिखाते हैं कि केवल तेज़ हवा, भूकंप और आग के गायब होने के बाद ही एलियाह “मंद समीर की सरसराहट” (1 राजा 19:9-18) के माध्यम से ईश्वर को सुन और समझ सका। हमें चलाने वाली शक्ति हाल ही में, मैं अपनी भतीजी के साथ उत्तरी वेल्स के एक समुद्र तट पर गया; हम साथ में पतंग उड़ाना चाहते थे। जैसे ही समुद्र लौट रहा था, हमने रेत पर डोरी खोल दी। मैंने पतंग को हवा में फेंका और मेरी भतीजी ने हैंडल को पकड़ कर जितनी तेजी से दौड़ सकती थी दौड़ पड़ी। समुद्र तट चट्टानों से आंशिक रूप से घिरा हुआ था, इसलिए लहरों पर तेज हवा के बावजूद, पतंग अधिक देर तक हवा में नहीं रह सकी। उसने फिर से दौड़ लगाई, इस बार और भी तेज, और हमने बार-बार कोशिश की। कुछ प्रयासों के बाद, हमें एहसास हुआ कि यह काम नहीं हो पायेगा। मैंने इधर-उधर देखा और पाया कि चट्टानों के शीर्ष भाग की ओर एक खुला मैदान और बहुत सारी भूमि थी। तो हम दोनों मिलकर ऊँचाई पर चढ़े। जैसे ही हमने फिर से डोरी खोलनी शुरू की, पतंग चलने लगी; मेरी भतीजी ने हैंडल को कसकर पकड़ रखा था। इससे पहले कि हमें पता चलता, पतंग पूरी तरह से फैली हुई और बहुत ऊँचाई पर उड़ रही थी। इस बार इसकी सुंदरता यह थी कि हम दोनों बहुत कम प्रयास के साथ इस पल का वास्तव में आनंद उठा सके। कुंजी हवा थी, लेकिन उड़ती हुई पतंग की शक्ति का एहसास उस जगह तक पहुँचने में था जहाँ हवा वास्तव में बह सकती थी। उस पल में साझा की गई खुशी, हंसी, मज़ा और प्यार अनमोल था। समय थम सा गया था। ऊँचा उड़ने की सीख बाद में जब मैंने प्रार्थना की, तो ये यादें मेरे पास वापस आ गईं, और मुझे लगा कि मुझे विश्वास में शक्तिशाली पाठ सिखाए जा रहे हैं, विशेष रूप से प्रार्थना के बारे में। जीवन में, हम अपने बल पर चीजें करने की कोशिश कर सकते हैं। हमारे पतित मानव स्वभाव में कुछ ऐसी बातें हैं जो नियंत्रण में पूरी ररह रहना नहीं चाहती। यह कार के स्टीयरिंग व्हील पर होने जैसा है। हम ईश्वर पर भरोसा कर सकते हैं और उन्हें हमारा मार्गदर्शन करने दे सकते हैं, या हम अपनी स्वतंत्र इच्छा का प्रयोग कर सकते हैं। यदि हम चाहते हैं तो ईश्वर हमें चक्के को पकड़ने की अनुमति देता है। लेकिन जब हम उसके साथ यात्रा करते हैं, तो हम देखते हैं कि वास्तव में, वह चाहता है कि हम आराम से यात्रा करें आर हम अत्यधिक कड़ी मेहनत न करें। ईश्वर भी इसे अकेले नहीं करना चाहता। ईश्वर चाहता है कि हम सब कुछ—उनके माध्यम से, उनके साथ, और उनमें करें। प्रार्थना करने का कार्य स्वयं में एक उपहार है, लेकिन इसके लिए हमारे सहयोग की आवश्यकता है। यह प्रभु के बुलावे का जवाब है, लेकिन जवाब देने का विकल्प हमारा है। संत अगस्तीन हमें “हमारी आवाज को उनमें और उनकी आवाज को हम में पहचानने” के लिए शक्तिशाली रूप से सिखाते हैं (सी.सी.सी. 2616)। यह न केवल प्रार्थना के लिए बल्कि जीवन की हर चीज के लिए भी सच है। सच है, येशु कभी-कभी हमें “पूरी रात” मेहनत करने देते हैं और “कुछ भी नहीं पकड़ने” देते हैं। लेकिन इससे हमें यह एहसास होता है कि केवल उनके मार्गदर्शन के माध्यम से ही हम जो चाहते हैं उसे प्राप्त कर पाएंगे। और जब हम अपने दिलों को उनकी बात सुनने के लिए खोलते हैं तो अनंत रूप से अधिक हम प्राप्त कर पायेंगे। (लूका 5:1-11) अगर हमें ऊँचा उड़ना है, तो हमें पवित्र आत्मा की हवा, भगवान की सांस की ज़रूरत है, जो हमें रूपांतरित करती है और ऊपर उठाती है (यूहन्ना 20:22) । क्या पवित्र आत्मा की हवा ही नहीं थी जिसने पेंटेकोस्ट में ऊपरी कमरे में डरे हुए शिष्यों पर उतर कर उन्हें मसीह के विश्वास से भरे, निडर प्रचारक और गवाहों में बदल दिया था (प्रेरितों के काम 1-2)? पूरे दिल से तलाश यह पहचानना आवश्यक है कि विश्वास एक उपहार है जिसे हमें कसकर पकड़ना चाहिए (1 कुरिन्थियों 12:4-11)। अन्यथा, हम कठिन परिस्थितियों में उलझ सकते हैं जो उनकी कृपा के बिना हमारे लिए स्वतंत्र होना असंभव हो सकता है। हमें पवित्र आत्मा की शक्ति के माध्यम से ऊँचाई तक पहुँचते रहना चाहिए—“प्रभु को ढूंढो और तुम जीवित रहोगे” (आमोस 5:4, 6)। संत पॉल हमें इस के लिए प्रेरित करते हैं कि हम लोग “सदैव प्रसन्न रहें, निरंतर प्रार्थना करें, सब बातों केलिए ईश्वर को धन्यवाद दें; क्योंकि येशु मसीह के अनुसार आप लोगों के विषय में ईश्वर की इच्छा यही है” (1 थेसलोनी 5:16-18) । इसलिए, प्रत्येक विश्वासी के लिए यह आह्वान है कि वह प्रार्थना में गहराई से प्रवेश करे, मौन के लिए स्थान बनाए, सभी विकर्षणों और बाधाओं को हटा दे, और फिर पवित्र आत्मा की हवा को वास्तव में बहने और हमारे जीवन में चलने दे। स्वयं ईश्वर हमें इस मुलाकात के लिए आमंत्रित करता है और वादा करता है कि वह जवाब देगा: “यदि तुम मुझे पुकारोगे, और मैं तुम्हें उत्तर दूंगा और तुम्हें ऐसी महान और रहस्यमय बातें बताऊंगा जिन्हें तुम नहीं जानते।” (यिरमियाह 33:3)
By: Sean Booth
Moreकभी-कभी जीवन बहुत कठिन लगता है, लेकिन अगर आप धैर्य रखें और विश्वास करें, तो बहुत से अप्रत्याशित उपहार आपको आश्चर्य चकित कर सकते हैं। “हम तेरी दया से सदा पाप से दूर और हर विपत्ति से सुरक्षित रहें, और उस दिन की प्रतीक्षा करते रहें, जब हमारे मुक्तिदाता येशु ख्रीस्त फिर आकर हमारी धन्य आशा पूरी करेंगे” जीवन भर कैथलिक जीवन जीते हुए, मैंने हर मिस्सा में यह प्रार्थना की है। कई वर्षों से डर मेरा साथी नहीं रहा, हालांकि एक समय था जब ऐसा था। मैंने 1 योहन 4:18 में वर्णित "परिपूर्ण प्रेम" को जाना और मुझे डर को जीतने वाले की वास्तविकता में जीने में मदद मिली। इस समय मेरे जीवन में मुझे शायद ही कभी चिंता होती है, लेकिन एक सुबह कुछ अशुभ होने का अनुभव हुआ। मैं इसका कारण ठीक से नहीं समझ पा रही थी। हाल ही में, एक मोड़ पर ठोकर लगने से मैं जोर से गिर गयी, और मैं अपने कूल्हे और श्रोणि में असुविधा महसूस कर रही थी। हर बार जब मैंने अपने हाथ उठाए तो तीव्र दर्द ने मुझे याद दिलाया कि मेरे कंधों को ठीक होने में और समय लगेगा। नई नौकरी के तनाव और एक प्रिय मित्र के बेटे की अचानक मृत्यु ने मेरी चिंता को बढ़ा दिया। दुनिया की हालात जो सुर्खियों में बहुत दिन बनी रहती है, अपने आप में किसी के लिए भी काफी तनाव पैदा कर सकती है । मेरी बेचैनी के अज्ञात कारण के बावजूद, मुझे पता था कि कैसे प्रतिक्रिया देनी है। अपनी आँखें बंद करके, मैं जिस भारी बोझ को महसूस कर रही थी उसे समर्पित कर दिया । ओवर टाइम काम कर रहे फरिश्ते अगले दिन, जब मैं अपने एक मरीज के घर जा रही थी, तो अचानक एक समुद्री तूफान उठने लगा। ट्रैफिक भारी था, और हेडलाइट की रोशनी के बावजूद और गति को कम करने के बावजूद, बारिश की चादरों से दृश्यता अस्पष्ट हो गई थी। अचानक, मैंने पीछे से किसी दूसरी गाड़ी की टक्कर महसूस की, जिसके कारण मेरी कार दाएं लेन में धकेली गयी! आश्चर्यजनक रूप से, शांत होकर, मैंने एक चपटे टायर के बावजूद एक आपातकालीन लेन की ओर रुख किया। जल्द ही एक अग्निशमन बचाव वाहन आया; एक पैरामेडिक जो भारी बारिश से बचने के लिए मेरी कार में कूद गया, उसने पूछा कि क्या आप को चोट लगी है? नहीं... मुझे चोट नहीं लगी थी! यह बहुत ही असंभाव्य लगा क्योंकि मेरी पिछली बार मेरे गिरने का असर कुछ ही दिन पहले ख़त्म हुए थे। मैंने उस सुबह मौसम का पूर्वानुमान सुनकर सुरक्षा के लिए प्रार्थना की थी। स्पष्ट रूप से, फरिश्ते ओवर टाइम काम कर रहे थे; पहले मेरी पिछली बार के गिरने पर और फिर इस दुर्घटना से मुझे सुरक्षा प्रदान कर रहे थे। मेरी कार अब वर्कशॉप में थी और मरम्मत को बीमा कवर कर रहा था, मेरे पति डैन और मैं लंबे समय से कहीं छुट्टी पर जाने की योजना बनायी थी, अब हमने उस योजना को तामील करने के लिए तैयार हो गए। बस जाने से पहले, मैं यह सुनकर निराश हो गई कि हमारा बीमाकर्ता लगभग निश्चित रूप से मेरी कार के लिए बीमा का कोई रकम न देकर हमें कार केलिए कम मूल्य देकर उसे खरीदने की योजना बना रहा था! मेरी कार केवल पाँच साल पुरानी थी और दुर्घटना से पहले बेदाग हालत में थी, फिर भी वर्तमान में बाज़ार में इसके लिए हमें सिर्फ $8,150 मिलता। यह अच्छी खबर नहीं थी! हम इस ईंधन-कुशल हाइब्रिड कार को तब तक रखना चाहते थे जब तक यह चलती रहे, यहां तक कि हमारी इस योजना को सुनिश्चित करने के लिए हमने एक विस्तारित वारंटी भी खरीदी थी। गहरी सांस लेते हुए, मैंने फिर से उन परिस्थितियों में जो मेरे नियंत्रण से बाहर थीं, उस पर कार्रवाई की: मैंने इसे ईश्वर को सौंप दिया और उसके हस्तक्षेप के लिए प्रार्थना की। निरंतर प्रार्थना एक बार सॉल्ट लेक सिटी पहुँचने के बाद, हमने एक किराये की कार ले ली और तुरन्त ही हम खूबसूरत ग्रैंड टेटन नेशनल पार्क की ओर जा रहे थे। उस शाम होटल के पार्किंग में घुसते हुए, मैंने अनजाने में एक संकीर्ण स्थान पर बैक किया। जबकि डैन ने हमारा सामान उतार दिया, मैंने देखा कि एक टायर में एक पेंच घुसा हुआ है। टायर पंचर होने की चिंता से मेरे पति ने विभिन्न सेवा केंद्रों को फोन किया। वहरविवार का दिन था, कोई भी मरम्मत की दूकान खुली नहीं थी। इसलिए हमने जोखिम उठाते हुए ड्राइविंग पर आगे जाने का फैसला किया। अगले सुबह, हमने प्रार्थना की और निकल गए, इस उम्मीद के साथ कि येलोस्टोन के भीतर और बाहर के संकीर्ण पर्वतीय सड़कों पर ड्राइविंग करते समय टायर टिका रहेगा। सौभाग्य से, दिन सुचारू रहा। हम हैंपटन इन होटल पहुंचे, जहां डैन ने महीनों पहले कमरा आरक्षित कर लिया था, लेकिन हम स्तब्ध रह गए! ठीक बगल में एक टायर मरम्मत की दुकान थी! सोमवार सुबह की तेज सेवा पाने के कारण हम एक घंटे से भी कम समय में सड़क पर थे! यह पता चला कि टायर लीक हो रहा था, इसलिए टायर कि मरममत करके उसे फटने से बचा लिया गया - यह एक आशीर्वाद था, जिसका परिनाम यह था कि हमने उस सप्ताह में 1200 मील से अधिक ड्राइव किया! इस बीच, मेरी वर्कशॉप ने दुर्घटना के कारण अनजान और "छिपी हुई क्षति" की आगे की जांच का आदेश अधिकृत किया। यदि कोई आतंरिक या छिपी हुई क्पाषति पायी गयी, तो मरम्मत की लागत कार के मूल्य से अधिक हो जाएगी और निश्चित रूप से हमारी कार बीमा वाले हथिया लेंगे! प्रतिदिन प्रार्थना करते हुए, मैंने परिणाम को प्रबु के हाथों में समर्पित किया और इंतजार किया। अंततः, मुझे सूचित किया गया कि मरम्मत की लागत ठीक बीमा शुल्क की सीमा के भीतर आ गई है... और वे मेरी कार को ठीक कर देंगे! (कुछ हफ्तों बाद, जब मैं अपनी नवीनीकृत कार लेने गयी, तो मुझे पता चला कि मरम्मत की लागत वास्तव में कार के बाज़ार के मूल्य से अधिक हो गई थी, लेकिन मेरी प्रार्थना भी पूरी हुई थी!) एक अद्भुत अनुग्रह ईश्वर की कृपापूर्ण देखभाल का एक और उदाहरण तब आया जब हम येलोस्टोन नेशनल पार्क की अपनी यात्रा जारी रखे हुए थे! जब हम पहुंचे तो पार्किंग स्थल भरा हुआ था। हमने बेतहाशा चक्कर लगाया जब अचानक, बगल में ही सामने एक स्थान उपलब्ध था! हमने जल्दी से पार्क किया और यह जानने के लिए चले गए कि ‘ओल्ड फेथफुल’* की अगली विस्फोट दस मिनट में होने की उम्मीद थी। जिस स्थान से गीज़र विस्फोट देखा जा सकता है, वहां पहुंचने के लिए पर्याप्त समय था, और सही समय गीजर फट गया! हमने बोर्डवॉक के रास्ते को विभिन्न भूवैज्ञानिक संरचनाओं, झरनों और गीजरों के माध्यम से खोजा। मेरे पति बाह्य दृश्यों के प्रेमी हैं। उन्होंने एक के बाद एक तस्वीरें खींचीं! हमारे चारों ओर के अद्भुत दृश्य पर चकित होते हुए, मैंने अपनी घड़ी देखी... ओल्ड फेथफुल का अगला विस्फोट जल्द ही होने की उम्मीद थी। फुहारें अपेक्षित रूप से हवा में फटकर फैल गयीं! इस बार हम लोग गीजर के पीछे खड़े थे, और पर्यटकों की भीड़ हमारे साथ नहीं थी इसलिए हमें सब कुछ साफ़ साफ़ देखा। आभारी महसूस करते हुए, मैंने दिन के आशीर्वादों के लिए ईश्वर को धन्यवाद दिया - सबसे पहले, टायर की दुकान का सही स्थान, फिर मेरी कार के बारे में बीमा कंपनी से अच्छी खबर, और अंत में, प्रकृति का अद्भुत दृश्य। ईश्वर की सक्रिय उपस्थिति पर विचार करते हुए, मैंने प्रार्थना की: "प्रभु हमसे प्रेम करने के लिए धन्यवाद! मुझे पता है कि तू पृथ्वी पर हर दूसरे व्यक्ति से उतना ही प्यार करता है, लेकिन मेरा पति डैन तुझसे सृष्टि में इतनी मजबूती से जुड़ता है, उसके लिए क्या तू एक बार फिर से स्वयं को प्रकट करेगा?” चलते-फिरते, मेरे पति की कैमरा बैटरी खत्म हो गई। जब वह इसे बदल रहां था, मैं बैठ गयी और एक अजीब आवाज सुनी। मैंने मुड़कर देखा तो एक बड़ा विस्फोट हुआ। यह शानदार था - वह था बीहाइव गीजर! यह विस्फोट ओल्ड फेथफुल से दोगुना ऊँचा था! हमारे गाइडबुक को देखकर, हमने पढ़ा कि यह गीजर सबसे अच्छा था, लेकिन इतना अप्रत्याशित था कि विस्फोट कहीं भी 8 घंटे से लेकर 5 दिनों के बीच एक बार हो सकता था... लेकिन, यह अद्यभुत कार्हय देखिये, यह विस्फोट उस समय हुआ जब हम वहां थे! निश्चित रूप से, ईश्वर ने मेरे पति के सामने खुद को प्रकट किया जैसा कि मैंने माँगा था! हमारा अंतिम पड़ाव कई गीजरों वाला स्थान था जहां एक सज्जन हमारी तस्वीर लेने के लिए तैयार हो गए। जिस क्षण उन्होंने कैमरे का शटर क्लिक किया, ठीक उसी समय उस गीजर का विस्फोट हुआ! हमने परमेश्वर की परिपूर्ण समय और आशीर्वाद की एक और अप्रत्याशित उपहार का अनुभव किया! अविश्वसनीय दृश्यों, झरनों, पहाड़ों, झीलों और नदियों की सुंदरता में नहाने के अलावा, हमने खूबसूरत मौसम का भी अनुभव किया! हर दिन बारिश के पूर्वानुमान के बावजूद, हमें केवल कुछ चोटी बौछारें और दिन और रात के सुंदर तापमान का सामना करना पड़ा! मैं अपनी हाल की तनाव और चिंता से पूरी तरह उभर चुकी थी। प्रभु के हाथों में अपना समर्पण करने से येशु द्वारा मेरी परवाह और देखभाल और हमारे सृष्टिकर्ता की अद्भुतता के अनुभव में डुबो दिया! वह प्रार्थना जो मैंने मिस्सा में कई बार की थी, निश्चित रूप से पूरी हुई थी! डर और गंभीर चोट दोनों से मेरी रक्षा की गई थी, जबकि मुझे चिंता से मुक्त किया गया था। प्रतीक्षा ने वास्तव में आनंदमय आशा का परिणाम दिया था... मेरी आत्मा के लिए लंगर भी प्राप्त हुआ। *ओल्ड फेथफुल संयुक्त राज्य अमेरिका के येलोस्टोन नेशनल पार्क में स्थित एक प्रसिद्ध शंकु गीजर है। यह अपनी अत्यधिक अनुमानित विस्फोटों के लिए प्रसिद्ध है, जो लगभग हर 90 मिनट में होती हैं। यह गीजर गर्म पानी और भाप का एक स्तंभ हवा में फेंकता है, जिसकी ऊंचाई लगभग 106 से 185 फीट (32 से 56 मीटर) तक पहुंचती है।
By: Karen Eberts
Moreबहुत धनी, सर्व-ज्ञानी, अति-सम्मानित और आदरणीय, शक्तिशाली असरदार व्यक्ति ... सूची अंतहीन है, लेकिन आप कौन हैं, इस सवाल की बात जब आती है तो ये सब विशेषण मायने नहीं रखते। 60 के दशक की शुरुआत के दौर में, द बर्ड्स नामक लोक-रॉक समूह का एक प्रचलित और लोकप्रिय गाना था: टर्न! टर्न! टर्न! इसे बाइबिल के उपदेशक ग्रन्थ के तीसरे अध्याय से रूपांतरित किया गया था। मुझे यह गाना बहुत पसंद आया। इसने मुझे पूरा उपदेशक ग्रन्थ को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया, जो मुझे बहुत अजीब लगा। यह इसलिए अजीब था क्योंकि, गाने के बोलों के विपरीत, मेरे लिए ग्रन्थ का बाकी हिस्सा, खासकर पहला अध्याय, मानवीय स्थिति का एक अविश्वसनीय वर्णन था। उपदेशक ग्रन्थ के लेखक कोहेलेथ, अपने आप को बूढ़ा व्यक्ति कहता है जिसने जीवन में भौतिक वस्तुओं का यह सब सुख देखा है, यह सब किया है, और यह सब अनुभव किया है। उसने जीवन की हर चीज का सुख भोगा है: वह बहुत धनी है, उसने बहुत ज्ञान संचित किया है, अपने साथियों द्वारा अच्छी तरह से सम्मानित है, जीवन को सही दिशा में संचालित करने का सामर्थ्य है, और मूल रूप से उसके रास्ते में आ चुके हर सुख को भोगा है। लेकिन, यह सब देखते हुए, वह इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। क्यों नहीं? मुझे लगता है कि उसने गहराई से महसूस किया है कि आपके पास क्या है, उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण है कि आप कौन हैं। ऐसा क्यों? इसका कारण अपेक्षाकृत सीधा और सरल है - दुनिया की चीजें हमेशा हाथ से निकल जाती हैं और गायब हो जाती हैं क्योंकि वे क्षणभंगुर, अस्थाई, सीमित और अल्पकालिक हैं। इससे पहले कि आप का जीवन आपसे ले लिया जाएं हम कौन हैं यह हमारे नैतिक और आध्यात्मिक चरित्र का मामला है, हमारी आत्मा का मामला है। उत्पत्ति ग्रन्थ के शुरुआती अध्यायों में, हमें पता चलता है कि हम ईश्वर के प्रतिरूप और सादृश्य में बनाए गए हैं, जो हमें ईश्वर के असली अस्तित्व और अनंतता में भाग लेने के लिए तैयार करता है। सीधे शब्दों में कहें तो, हम ईश्वर के साथ अपने रिश्ते में वही हैं जो हम हैं, न कि हमारे पास क्या है। हम मूल रूप से आध्यात्मिक और धार्मिक प्राणी हैं। सुसमाचार में धनी मूर्ख के दृष्टांत में, येशु उपरोक्त सत्य से मिलती जुलती बात कहते हैं, लेकिन इससे बढ़कर कहीं आगे जाते हैं। येशु प्रभावी रूप से उस व्यक्ति का मजाक उड़ाते हैं जो अपना पूरा भरोसा अपनी संपत्ति और सुरक्षा के प्रति रखता है, इस गलत धारणा में कि उसकी संपत्ति उसे आनंद देगी। वह व्यक्ति न केवल धनी है, बल्कि उसकी संपत्ति में नाटकीय रूप से वृद्धि होने वाली है क्योंकि उसकी फसल अच्छी हुई है। तो, वह क्या करता है? वह अपने पुराने खलिहानों को गिराने और अपने अतिरिक्त दौलत को संग्रहीत करने के लिए बड़े खलिहान बनाने का संकल्प लेता है। उस मनुष्य ने अपने जीवन को कई बातों पर आधारित किया है: (1) दुनिया की चीज़ें मूल्यवान हैं; (2) कई साल वह ऐसी जीवनशैली जियेगा जो उसकी महत्वाकांक्षाओं को साकार करने में काम आएगी; (3) उसका धन शांति और उन्मुक्त असीमित आनंद की भावना को बढ़ावा देगा। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए, उसके पास किसी बात की कमी नहीं है। इसके विपरीत, हे मूर्ख! कहकर परमेश्वर ने उससे जो वचन कहा, वह उसकी योजनाओं को निरर्थक कर देता है: “हे मूर्ख, इसी रात प्राण तुझ से ले लिए जायेंगे, और तू ने जो इकट्ठा किया है, वह अब किस का होगा?” (लूकस 12:20) येशु उसे बता रहे हैं कि परमेश्वर उसकी सम्पत्ति नहीं, बल्कि उसका जीवन माँग रहा है—वह कौन है! और यह माँग दूर के भविष्य में नहीं, बल्कि यहीं, अभी की जा रही है। इस रात, तुम्हारी आत्मा, तुम्हारा हृदय, तुम्हारा जीवन तुमसे माँग लिया जाएगा। “इसलिए,” येशु कहते हैं, “यही दशा उसकी होती है जो अपने लिए तो धन एकत्र करता है, किन्तु ईश्वर की दृष्टि में धनी नहीं हैं।” (लूकस 12:21) ‘जीवन में सुख’ के बजाय, अर्थात्, संसार की वस्तुओं के संचय के बजाय, येशु उसे अपना जीवन समर्पित करने का प्रस्ताव देते हैं। “ईश्वर के राज्य की खोज में लगे रहो, ये सब चीज़ें भी तुम्हें यों ही मिल जाएँगी।” (लूकस 12:31) अंततः वास्तविक प्रिय पाठक, यह मुख्य बिंदु है - एक मौलिक या तो यह या वह विकल्प: क्या मेरी नज़र ईश्वर पर है या दुनिया की वस्तुओं पर? यदि पहला, तो हम मानव होने की अपनी सच्ची गरिमा को जीएँगे। हम ईश्वर को अपने पूरे दिल और आत्मा से प्यार करेंगे और अपने पड़ोसी को अपने जैसा ही प्यार करेंगे, क्योंकि हमारी नीव अंततः जो वास्तविक है, उसमें निर्मित है । हम ईश्वर, अपने पड़ोसी और पूरी सृष्टि के साथ सही रिश्ते में होंगे। दुनिया की वस्तुओं से जुड़े रहना संभवतः दिल की इच्छा को संतुष्ट नहीं कर सकता, क्योंकि वे हमें प्यार नहीं कर सकते, और प्यार पाना ही आत्मा की मूल इच्छा है। इसके बजाय, दुनिया की वस्तुओं से प्यार पाने का जुनून और लत अधिक भूख का कारण बनती है और चिंता की अत्यधिक बढ़ी हुई भावना को जन्म देती है। सीधे शब्दों में कहें तो, अगर हम अपने जीवन में पवित्र और पारलौकिक को अस्वीकार करते हैं, तो हम अनिवार्य रूप से अपने अस्तित्व के प्रति भय, अपने साथी मनुष्यों से खालीपन और अलगाव की भावना, गहरे अकेलेपन तथा अपराधबोध का अनुभव करेंगे। इसका अंत इस तरह नहीं होना चाहिए। येशु हमें इस बात पर यथार्थवादी नज़र डालने के लिए आमंत्रित करते हैं कि कैसे धन हमारे दिलों को गुलाम बना सकता है, और हमें उस जगह से विचलित कर सकता है जहाँ हमारा सच्चा खजाना है, जिसकी पूर्ती स्वर्ग में परमेश्वर के राज्य के रूप में होती है। इसी तरह, संत पौलुस ने कलोसियों को लिखे अपने पत्र में हमें याद दिलाया कि “आप पृ्थ्वी पर की नहीं, ऊपर की चीज़ों की चिंता किया करें” (3:1-2)। इसलिए, हमारे लिए यह जाँचना ज़रूरी है कि हम वास्तव में किससे प्यार करते हैं। सुसमाचार के अनुसार जिया गया प्रेम सच्ची खुशी का स्रोत है, जबकि भौतिक वस्तुओं और धन की अतिरंजित और बिना किसी प्रतिफल की खोज अक्सर बेचैनी, चिंता, दूसरों के साथ दुर्व्यवहार, हेरफेर और वर्चस्व का कारण बन जाता है। उपदेशक ग्रन्थ, लूकस के सुसमाचार और पौलुस के पत्र से प्राप्त सभी पाठ इस प्रश्न की ओर संकेत करते हैं: ‘मैं कौन हूँ?’, आप कौन है यह आपके पास जो है उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। जो बात मायने रखती है वह यह है कि आप ईश्वर की प्रिय संतान हैं, जिन्हें अंततः ईश्वर के प्रेम में विश्राम करने के लिए बनाया गया है।
By: डीकन जिम मैकफैडेन
Moreजीवन के बोझ हमें दबाकर गिरा सकते हैं, लेकिन हिम्मत रखें! भला सामरी आपका इंतज़ार कर रहा है। पिछले कुछ सालों में, मैंने पोर्टलैंड, ओरेगन से पोर्टलैंड, मेन तक की यात्रा की है, पूरे देश में घूमकर, महिलाओं की आत्मिक साधनाओं में प्रवचन दिया और उन साधनाओं का नेतृत्व किया है। मुझे अपना काम पसंद है और मैं अक्सर इससे अभिभूत हो जाती हूँ। यात्रा करना और इतनी सारी वफादार महिलायें जो अपने घुटनों पर बैठकर ईश्वर का चेहरा तलाशती हैं, उनसे मिलना मैं अपने जीवन की सबसे बड़ी कृपा मानती हूँ। लेकिन इस साल की शुरुआत में, जब मुझे स्तन कैंसर का पता चला, तब मेरा काम रुक गया। मेरे लिए यह इस बीमारी का दूसरा दौरा था। शुक्र है, हमें इसकी जानकारी बहुत पहले ही मिली; यह फैला नहीं था। हमने उपचार के लिए अपने विकल्पों पर विचार किया और डबल मास्टेक्टॉमी पर सहमत हुए। हमें उम्मीद थी कि उस सर्जरी के बाद, आगे के उपचार की आवश्यकता नहीं होगी। लेकिन जब उन्होंने माइक्रोस्कोप के नीचे ट्यूमर को अच्छी तरह से देखा, तो यह निर्धारित किया गया कि निवारक कीमोथेरेपी को ही करना पडेगा ताकि कीमो के कुछ दौर के साथ बीमारी की पुनरावृत्ति दर काफी कम हो जाएगी। मेरा दिल डर से भरा था और मेरे दिमाग में उल्टी और अपने सिर में गंजेपन की तस्वीरें ही घूम रहीं थीं। मैंने ऑन्कोलॉजिस्ट को फोन किया और अपॉइंटमेंट ले लिया। तभी, मेरे पति काम से आए और उन्होंने कहा: "मुझे अभी-अभी नौकरी से निकाल दिया गया है।" जब ऊपरवाला देता है, तब छप्पर फाड़कर देता है। त्रासदी ही त्रासदी इसलिए, बिना किसी आय के और हमारे मेलबॉक्स में आने वाले भारी चिकित्सा बिलों की संभावनाओं के साथ, हमने मेरे उपचार के लिए तैयारी की। मेरे पति ने बड़े लगन से अपना बायोडाटा अलग अलग जगह भेजे और कुछ साक्षात्कार केलिए आमंत्रण प्राप्त किए। हम आशान्वित थे। मेरे लिए, कीमोथेरेपी बहुत ज़्यादा उबकाई नहीं थी, लेकिन बहुत दर्दनाक थी। हड्डी के दर्द से मैं कई बार रो पड़ती थी, और कुछ भी इसे कम नहीं कर सकता था। मैं आभारी थी कि मेरे पति घर पर थे और मेरी देखभाल करने में मदद कर सकते थे। यहां तक कि उन क्षणों में भी जब वे कुछ नहीं कर सकते थे, बस उनका आस-पास होना एक बड़ी राहत थी। उनके नौकरी से निकाले जाने पर यह एक अप्रत्याशित अनुग्रह था। हमने ईश्वर की योजना पर भरोसा किया। सप्ताह बीतते गए। मेरे सर से सारे बाल गायब हो गए, मेरी ऊर्जा कम हो गई, और मैंने बस थोड़ा ही काम किया जो मैं कर सकती थी। मेरे प्रतिभाशाली पति के लिए कोई नौकरी का प्रस्ताव नहीं आया। हमने प्रार्थना की, हमने उपवास किया, हमने प्रभु पर भरोसा किया, और हमने उस त्रासदीपूर्ण समय के तनाव को महसूस करना शुरू कर दिया। गहराई से प्रभावित इस वर्ष, मेरी महिलाओं का प्रार्थना समूह संत मरियम मगदलीनी समुदाय के फादर गेब्रियल की उत्कृष्ट कृति ’दिव्य अंतरंगता’ के माध्यम से प्रार्थना कर रहा है। एक रविवार को, जब मुझे लगा कि मैं इन बोझों का एक और कदम नहीं उठा पाऊंगी, तो भले सामरी पर उनके विचार ने मुझ पर गहरा असर डाला। आपको लूकस 10 से वह लोकप्रिय दृष्टांत याद है जब एक आदमी को लूट लिया जाता है, वह पीटा जाता है, और उसे सड़क के किनारे छोड़ दिया जाता है। एक पुजारी और लेवी कोई सहायता दिए बिना उसके पास से गुजरते हैं। केवल सामरी ही उसकी देखभाल करने के लिए रुकता है। फादर गेब्रियल कहते हैं: “हमें भी अपने रास्ते में लुटेरों का सामना करना पड़ा है। संसार, शैतान और हमारी वासनाओं ने हमें नंगा कर दिया है और घायल कर दिया है... असीम प्रेम के साथ वह सर्वोत्कृष्ट भले सामरी हमारे खुले घावों पर झुके हुए हैं, उन्हें अपनी कृपा के तेल और दाखरस से ठीक किया है... फिर उन्होंने हमें अपनी बाहों में लिया और हमें एक सुरक्षित स्थान पर ले आए।" (दिव्य अंतरंगता #273) इस अंश के बारे में मुझे कितनी उत्सुकता से आत्मिक अनुभूति मिली! मेरे पति और मैं महसूस करते हैं कि हम लूटे गए हैं, पीटे गए हैं और परित्यक्त किये गए हैं। हमसे हमारी आय, हमारा काम, हमारी गरिमा छीन ली गई है। हमसे मेरे स्तन, मेरा स्वास्थ्य, यहाँ तक कि मेरे बाल भी छीन लिए गए हैं। जब मैं प्रार्थना कर रही थी, मुझे ऐसा महसूस हो रहा था कि प्रभु हमारे ऊपर झुक रहे हैं, हमें अभिषेक कर रहे हैं और हमें ठीक कर रहे हैं, और फिर मुझे अपनी बाहों में ले रहे हैं और मेरे पति मेरे और प्रभु के साथ-साथ चल रहे हैं, और प्रभु हम दोनों को सुरक्षित स्थान पर ले जा रहे हैं। मैं राहत और कृतज्ञता के आँसुओं से भर गई। फादर गेब्रियल आगे कहते हैं: "हमें उनसे, भले सामरी से मिलने के लिए मिस्सा बलिदान में जाना चाहिए ... जब वह पवित्र परम प्रसाद में हमारे पास आएंगे, तो वह हमारे घावों को ठीक करेंगे, न केवल हमारे बाहरी घावों को, बल्कि हमारे आंतरिक घावों को भी, उनमें प्रचुर मात्रा में उनकी कृपा का मीठा तेल और मजबूत करने वाला दाखरस की औषधि डालेंगे।" उस दिन शाम को, हम पाप स्वीकार और मिस्सा बलिदान में गए। अफ्रीका से एक आकर्षक पादरी हमारे पल्ली के लोगों से मुलाकात करने आए थे, जिनकी श्रद्धा और सौम्यता ने मुझे एक ही बार में प्रभावित कर दिया। पापस्वीकार संस्कार के दौरान उन्होंने मेरे लिए प्रार्थना की, मेरे दिल की इच्छाएँ पूरी करने के लिए —मेरे पति के लिए सम्मानजनक काम और मुझे ठीक करने के लिए - उन्होंने प्रभु से कहा। जब तक परम प्रसाद के वितरण का समय आया, मैं भले सामरी से मिलने के लिए अपने रास्ते पर खडी खडी रो रही थी, यह जानते हुए कि वह हमें सुरक्षित स्थान पर ले जा रहा है—उसके पास, उसमे। कभी भी मेरे पास से गुज़रता भला सामरी मुझे पता है कि इसका मतलब यह होगा कि मेरे पति को नौकरी मिल जाए, या न मिल जाए और मैं बिना ज़्यादा दर्द के कीमोथेरेपी से गुज़र जाऊँ। लेकिन मेरे मन, दिल या शरीर में इस बात को लेकर कोई संदेह नहीं है कि मैंने उस पवित्र परम प्रसाद में भले सामरी से मुलाक़ात की थी। वह मेरे पास से नहीं गुज़रा, बल्कि उसने रुककर मेरी देखभाल की और मेरे घावों पर मरहम पट्टी बांधी थी। वह भला सामरी मेरे लिए बिलकुल ही वास्तविक था जितना वह पहले कभी था, और यद्यपि मेरे पति और मैं अभी भी पराजित महसूस कर रहे हैं, मैं प्रभु को धन्यवाद देती हूं कि वह हमारे लिए एक भले सामरी के रूप में मौजूद है जो हमें रोकता है, देखभाल करता है, चंगा करता है, और फिर हमें सुरक्षित स्थान पर ले जाता है। उनकी सुरक्षा दुनिया की सुरक्षा नहीं है। इस "हमले" और डकैती के बीच में खडी होकर प्रतीक्षा करना, सबसे कठिन आध्यात्मिक कार्यों में से एक है जिसे करने के लिए मुझे बार बार आमंत्रित किया गया है। ओह, लेकिन मुझे हमारे भले सामरी पर पूरा भरोसा है। वह मुझे ले जाने के लिए वहाँ प्रतीक्षा कर रहा है - किसी को भी इकट्ठा करने के लिए जो लूटा हुआ, पीटा हुआ और परित्यक्त महसूस करता है - और, परम पवित्र संस्कार के माध्यम से, हमारे दिलों और आत्माओं पर सुरक्षा की अपनी मुहर लगाता है।
By: लिज़ केली स्टैंचिना
Moreहम कितनी बार सोचते हैं कि हमें अपनी पसंद की चीज़ें करने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाता? इस नए साल में, आइए कुछ नया करें। वास्तव में मैं कभी भी नए साल के संकल्प लेने वाली नहीं रही हूँ। मुझे यह बात तब याद आती है जब मैं अपनी मेज़ पर धूल जमी, बिना पढ़ी हुई किताबों के ढेर को देखती हूँ, जिन्हें मैंने पिछले सालों में एक महत्वाकांक्षी, लेकिन बुरी तरह से असफल प्रयास के तहत खरीदा था। एक महीने में एक किताब पढ़ने का संकल्प अधूरा रह गया, और किताबों का ढेर खडा हो गया, उसी तरह बिना पूरे किये गए संकल्पों का भी ढेर खडा हो गया। मेरे पास अपने संकल्प में सफल न होने के लाखों कारण थे, लेकिन समय की कमी उनमें से एक नहीं थी। अब अपने आप में थोड़ी निराशा के साथ खोए हुए वर्षों को देखने पर, मुझे एहसास होता है कि मैं वास्तव में अपने समय का बेहतर उपयोग कर सकती थी। अपने जीवन में मैंने अनगिनत बार शिकायत की है कि मेरे पास उन चीजों को करने के लिए पर्याप्त समय नहीं है जो मैं करना चाहती हूँ। निश्चित रूप से, जितनी मैं गिन सकती हूँ उससे कहीं ज़्यादा! कुछ साल पहले, मेरे पति अस्पताल में अपना नियमित उपचार करवा रहे थे, और मैं नए साल की पूर्व संध्या पर उनके बगल में बैठी हुई थी, तब मेरे दिल में कुछ हलचल हुई। उनकी धमनियों में रक्त चढ़ाया जा रहा था। इस असहज परिस्थिति में, मैंने देखा कि उनकी आँखें बंद थीं, और उनके हाथ प्रार्थना की मुद्रा में जुड़े हुए थे। जाहिर तौर पर मेरी जिज्ञासा भरी निगाहों को महसूस करते हुए, उन्होंने एक आँख को थोड़ा खोला और मेरी तरफ देखते हुए, धीरे से फुसफुसाए: "सभी के लिए।" किसी तरह, उन्होंने मेरे मन की बात पढ़ ली। हम अक्सर अपने आसपास के उन लोगों के लिए प्रार्थना करते थे जिन्हें हम पीड़ित या प्रार्थना की ज़रूरतमंद समझते थे। लेकिन आज, हम अकेले बैठे थे, और मैं हैरान थी कि वे किसके लिए प्रार्थना कर रहे होंगे। यह सोचना भावुक और प्रेरणादायक था कि वे "सभी" के लिए प्रार्थना कर रहे थे, न कि केवल उन लोगों के लिए जिन्हें हम उनके बाहरी रूप के कारण प्रार्थना की ज़रूरतमंद समझते हैं। हम में से हर किसी को प्रार्थना की ज़रूरत है। हम सभी को ईश्वर की कृपा और दया की ज़रूरत है, चाहे हम दुनिया के सामने अपनी छवि कुछ भी पेश करें। यह सच लगता है, खासकर अब जब इतने सारे लोग चुपचाप अकेलेपन, वित्तीय परेशानी और यहाँ तक कि मानसिक स्वास्थ्य संघर्षों से पीड़ित हैं, जिन संघर्षों को अक्सर छिपाया जाता है। कोई भी वास्तव में नहीं जानता कि दूसरा व्यक्ति किस दौर से गुज़र रहा है, गुज़र चुका है या गुज़रेगा। अगर हम सब एक-दूसरे के लिए प्रार्थना करें तो यह कितना शक्तिशाली होगा? यह कितना जीवन को बदलनेवाला, दुनिया को बदलनेवाला हो सकता है। इसलिए इस नए साल में, मैं अपने खाली समय का अधिक बुद्धिमानी और सोच-समझकर उपयोग करने का संकल्प ले रही हूँ - दूसरों की पीड़ा और ज़रूरतों पर प्रार्थनापूर्वक विचार करती हुई, उन लोगों के बारे में जिन्हें मैं जानती हूँ, जिन्हें मैं नहीं जानती, जो मुझसे पहले आए हैं और जो बहुत बाद में आएंगे, सब के लिए प्रार्थना करने का मैं संकल्प लेती हूँ। मैं पूरी मानवता के लिए प्रार्थना करने जा रही हूँ, इस बात पर भरोसा करती हुई कि हमारे प्यारे ईश्वर, अपनी उदारपूर्ण दया और असीम प्रेम से, हम सभी को आशीर्वाद देंगे।
By: मेरी थेरेस एमन्स
Moreएक अभिनेता और निर्देशक के रूप में, पैट्रिक रेनॉल्ड्स ने सोचा कि ईश्वर केवल पवित्र लोगों के लिए है। एक दिन जब रोजरी माला की प्रार्थना करते समय उन्हें एक अलौकिक अनुभव हुआ, और उसी दिन वे ईश्वर की योजना समझ पाए। यहां उनकी अविश्वसनीय यात्रा का वर्णन है। मेरा जन्म और पालन-पोषण एक कैथलिक परिवार में हुआ था। हम हर सप्ताह मिस्सा बलिदान के लिए जाते थे, दैनिक प्रार्थना करते थे, कैथलिक स्कूल में जाते थे, और घर में बहुत सारी पवित्र वस्तुएँ रखी थीं, लेकिन किसी भी तरह से विश्वास हमें प्रभावित नहीं कर सका। जब भी हम घर से बाहर निकलते, माँ हम पर पवित्र जल छिड़कती थी, लेकिन दुर्भाग्य से, हमारा येशु के साथ कोई व्यक्तिगत संबंध नहीं था। मैं यह भी नहीं जानता था कि यह संभव है। मैं समझता था कि ईश्वर कहीं बादलों में रहता है। वह वहाँ से हम सभी पर दृष्टि रखता है, लेकिन मेरे दिल और दिमाग में वह बहुत दूर और अप्राप्य था। हालाँकि मैंने ईश्वर के बारे में सीखा, लेकिन मैंने यह नहीं सीखा कि वह कौन और कैसा था। जब मैं लगभग दस साल का था, मेरी माँ ने एक करिश्माई प्रार्थना समूह में जाना शुरू किया, और मैंने देखा कि उनका विश्वास बहुत वास्तविक और व्यक्तिगत हो गया है। वह अवसाद से ठीक हो गई थी, इसलिए मुझे पता था कि ईश्वर की शक्ति वास्तविक थी, परन्तु मैंने सोचा कि ईश्वर केवल मेरी माँ जैसे पवित्र लोगों के लिए थे। जो मुझे दिया जा रहा था उससे कहीं अधिक गहरी चीज़ की मैं चाहने लगा था । जब संतों की बात आई, तो मुझे उनकी भूमिका समझ में नहीं आई और मुझे नहीं लगा कि उनके पास मुझे देने के लिए कुछ है क्योंकि मुझे नहीं लगता था कि मैं भी पवित्र हो सकता हूं। अधूरा और खाली जब मैंने स्कूल छोड़ा, तो मैं अमीर और मशहूर बनना चाहता था ताकि मुझे हर कोई प्यार कर सके। मैंने सोचा कि इससे मुझे खुशी मिलेगी। मैंने निर्णय लिया कि अभिनेता बनना मेरे लक्ष्यों को प्राप्त करने का सबसे आसान तरीका होगा। इसलिए, मैंने अभिनय का अध्ययन किया और अंततः एक सफल अभिनेता और निर्देशक बन गया। इसने मेरे जीवन में एक ऐसे द्वार को खोल दिया जिसका मैंने कभी अनुभव नहीं किया था और मुझे बहुत अधिक पैसा मिला, मुझे नहीं पता था कि इस पैसे का मुझे क्या करना है। इसलिए मैंने इसे उद्योग में जो महत्वपूर्ण लोग हैं उन्हें प्रभावित करने की कोशिश में खर्च कर दिया। मेरा पूरा जीवन लोगों को प्रभावित करने के लिए चीजें खरीदने का एक अनवरत चक्र था, ताकि मैं लोगों को प्रभावित करने के लिए और चीजें खरीदने के लिए और अधिक पैसे कमा सकूं। पूर्णता महसूस करने के बजाय, मुझे खालीपन महसूस हुआ। मैं ठगा सा महसूस करने लगा । मैं अपने पूरा जीवन वैसा बनने का दिखावा करता रहा जैसा दूसरे लोग चाहते थे। मैं कुछ और खोज रहा था लेकिन कभी समझ नहीं पाया कि ईश्वर के पास मेरे लिए कोई योजना थी। मेरा जीवन पार्टियों, शराब पीने और रिश्तों तक ही सीमित था, लेकिन असंतोष से भरा हुआ था। एक दिन, मेरी माँ ने मुझे स्कॉटलैंड में एक बड़े करिश्माई कैथलिक सम्मेलन में आमंत्रित किया। सच कहूँ तो, मैं जाना नहीं चाहता था क्योंकि मुझे लगता था कि मैंने ईश्वर से जुड़ी सभी चीज़ों को अपने पीछे छोड़ दिया है, लेकिन माताएँ भावनात्मक ब्लैकमेल करने में अच्छी होती हैं; वे आपसे वो काम करवा सकती हैं जो कोई और नहीं करा सकता। उन्होंने कहा, “बीटा पैट्रिक, मैं दो साल के लिए अफ़्रीका में सेवा कार्य करने जा रही हूँ। यदि तुम इस साधना में नहीं आओगे, तो मुझे जाने से पहले तुम्हारे साथ कोई समय बिताने का मौका नहीं मिलेगा। उनके ऐसा अपील सुनने के बाद मैं उस सम्मलेन में चला गया। मैं अभी खुश हूं, लेकिन उस समय मुझे असहजता महसूस हो रही थी। इतने सारे लोगों को एक साथ गाते और ईश्वर की स्तुति करते हुए देखना अजीब लगा। जैसे ही मैंने कमरे के चारों ओर आलोचनात्मक रूप से देखा, ईश्वर अचानक मेरे जीवन में आ गया। पुरोहित ने आस्था के बारे में, पवित्र यूखरिस्त में येशु के बारे में, संतों के बारे में, और माँ मरियम के बारे में इतने वास्तविक और ठोस तरीके से बताया कि मुझे अंततः समझ में आ गया कि ईश्वर कहीं बादलों में नहीं, बल्कि वह मेरे बहुत करीब है, और उसके पास मेरे जीवन के लिए एक योजना है। कुछ और मैं समझ गया कि ईश्वर ने मुझे किसी कारण से बनाया है। मैंने उस दिन पहली बार ईमानदारी से प्रार्थना की, “हे ईश्वर, यदि तेरा अस्तित्व है, यदि तेरे पास मेरे लिए कोई योजना है, तो मुझे तेरी सहायता की आवश्यकता है। तेरी योजना को मुझपे इस तरह से प्रकट कर कि मैं उसे समझ सकूँ।“ लोगों ने माला विनती करना शुरू कर दिया, जिसे मैंने बचपन में ही छोड़ दिया था, इसलिए मुझे जो भी प्रार्थना याद आती थी मैं उसमें शामिल हो गया। जब उन्होंने गाना शुरू किया, तो मेरे दिल में कुछ पिघलने लगा और जीवन में पहली बार मुझे ईश्वर के प्रेम का अनुभव हुआ। मैं इस प्यार से इतना अभिभूत हो गया कि मैं रोने लगा। माता मरियम की मध्यस्थता के माध्यम से मैं ईश्वर की उपस्थिति को महसूस कर सका। मैं उस दिन मिस्सा बलिदान के लिए गया लेकिन मुझे पता था कि मैं परमप्रसाद ग्रहण नहीं कर सकता था क्योंकि मैंने लंबे समय से पापस्वीकार नहीं किया था। मेरा दिल ईश्वर के करीब रहने के लिए उत्सुक था, इसलिए मैंने अगले कुछ सप्ताह, एक ईमानदार और अच्छा पापस्वीकार करने की तैयारी में समय बिताया। एक बच्चे के रूप में, मैं नियमित रूप से पापस्वीकार केलिए जाता था, लेकिन मुझे नहीं लगता कि मैं कभी भी वास्तव में ईमानदार था। मैं अपने पापों की खरीदारी की सूची में हर बार वही तीन या चार चीज़ें ले कर जाता था। इस बार जब मुझे पाप क्षमा मिली तो मुझे बहुत शांति और प्रेम का अनुभव हुआ। मैंने निर्णय लिया कि मुझे अपने जीवन में इसकी और अधिक ज़रुरत है। अभिनय करूं या नहीं? एक अभिनेता के रूप में, अपने विश्वास को जीना बहुत कठिन था। मुझे जो भी भूमिका दी जा रही थी, वह एक कैथलिक के रूप में विश्वास का खंडन करता था, लेकिन मेरी आस्था में पर्याप्त प्रशिक्षण नहीं था। मुझे पता था कि मुझे और मदद की ज़रूरत है। मैं एक पेंटेकोस्टल चर्च में जाने लगा, जहाँ मेरी मुलाकात ऐसे लोगों से हुई जिन्होंने मुझे बाइबिल के बारे में और स्तुति और आराधना कैसे करनी है इन सबके बारे में सिखाया । उन्होंने मुझे आत्मिक सलाह, दोस्ती और समुदाय की संगति दी, लेकिन मैं यूखरिस्त में उपस्थित येशु को त्याग नहीं सकता था, इसलिए मैं कैथलिक कलीसिया में ही रहा। हर हफ्ते वे मेरी कैथलिक मान्यताओं को चुनौती देते थे, इसलिए मैं जाता था और उनके लिए उत्तर के साथ वापस आने के लिए अपनी धार्मिक शिक्षा का अध्ययन करता था। उन्होंने मुझे एक बेहतर कैथलिक बनने में मदद की, इससे मैं क्यों विश्वास करता हूँ, इसे समझकर विश्वास करने में मुझे मदद मिली। एक समय, मेरे मन में इस बात को लेकर मानसिक और भावनात्मक अवरोध था कि कैथलिकों को माता मरियम के प्रति इतनी भक्ति क्यों है। उन्होंने मुझसे पूछा, "आप मरियम से प्रार्थना क्यों करते हैं? आप सीधे येशु के पास क्यों नहीं जाते?" यह बात मेरे दिमाग में पहले से ही थी। मुझे ऐसा उत्तर ढूंढने में संघर्ष करना पड़ा जो सार्थक हो। संत पाद्रे पियो एक चमत्कारिक व्यक्ति थे जिनके जीवन ने मुझे एक बेहतर इंसान बनने के लिए प्रेरित किया। जैसा कि मैंने पढ़ा था कि कैसे माता मरियम के प्रति उनकी भक्ति ने उन्हें येशु मसीह और कलीसिया के दिल में गहराई तक पहुंचा दिया। मैंने संत पिता जॉन पॉल द्वितीय के बारे में भी सुना। इन दो महान व्यक्तियों की गवाही ने मुझे माता मरियम पर भरोसा करने और उनके उदाहरण का पालन करने के लिए प्रेरित किया। इसलिए, मैंने मरियम के निष्कलंक हृदय के माध्यम से संत पिता के मतलबों के लिए हर दिन प्रार्थना की। मैं और अधिक जानने के लिए मरियन आत्मिक साधना में भाग लिया। मैंने सुना कि संत लुइस डी मोंटफोर्ट की माता मरियम के प्रति महान भक्ति है, और प्रार्थना में मरियम से बात करना येशु की तरह बनने का सबसे तेज़ और सरल तरीका है। उन्होंने बताया कि मूर्ति बनाने के दो तरीके हैं - इसे हथौड़े और छेनी से किसी सख्त सामग्री से गढ़ना, या एक सांचे में राल भरना और इसे सख्त होने के लिए छोड़ देना। एक साँचे में बनी प्रत्येक मूर्ति अपने आकार का पूर्णतया वही सुन्दर आकार लेती है (जब तक वह भरी हुई है)। माता मरियम वह साँचा है जिसमें येशु मसीह का शरीर बना था। ईश्वर ने उन्हें उस उद्देश्य के लिए परिपूर्ण बनाया। यदि आप माता मरियम द्वारा ढाले गए हैं, तो वह आपको पूर्णता में बनाएगी, बर्शते आप खुद को पूरी तरह से समर्पित कर देंगे। जब मैंने यह सुना तो मैं समझ गया कि यह सच है। जब हमने माला विनती की, तो मैंने केवल शब्दों का उच्चारण करने के बजाय, पूरे ह्रदय से भेदों पर मनन करते हुए प्रार्थना की। कुछ अप्रत्याशित हुआ। मैंने हमारी धन्य माँ के प्रेम का अनुभव किया। यह ईश्वर के प्रेम की तरह था, और मैं जानता था कि यह ईश्वर के प्रेम से आया है। लेकिन यह अनुभव बिलकुल भिन्न था। माँ मरियम ने मुझे ईश्वर से प्रेम करने में इस तरह से मदद की जिस प्रकार मैं अपने आप कभी नहीं कर पाया था। मैं इस प्रेम से इतना अभिभूत हो गया कि मेरी आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े। ऐसा अद्भुत उपहार पाना खेत में खज़ाना मिलने वाले दृष्टान्त के समान था। आप उस खेत को खरीदने के लिए सब कुछ बेचने को तैयार होंगे ताकि आप इस खजाने को पा सकें। उस क्षण से, समझ गया कि मैं अभिनय जारी नहीं रख पाऊंगा। मैं उस धर्म विहीन और धर्म विरोधी दुनिया में रहकर एक अच्छा कैथलिक नहीं बन सकता। मैं यह भी जानता था कि लोगों को ईश्वर के प्रेम के बारे में जानने की ज़रूरत है। इसलिए मैंने अपना करियर एक तरफ रख दिया ताकि मैं प्रचार कर सकूं। गहरी खुदाई मैं ईश्वर से यह पूछने के लिए आयरलैंड में दस्तक देने आया था कि वह मुझसे क्या चाहता है। माता मरियम ने १८७९ में दर्शन दिया था। उस दर्शन में मरियम संत युसूफ, संत योहन और वेदी पर ईश्वर के मेमने के रूप में येशु के साथ स्वर्गदूतों से घिरी हुई थीं। मरियम लोगों को येशु के पास ले जाने के लिए आयी। उनकी भूमिका लोगों को ईश्वर के मेमने के पास ले जाने की है। नॉक में, मैं उस महिला से मिला जिससे मेरी शादी बाद में हुई थी, और मैं उन लोगों से भी मिला जिन्होंने मुझे मिशन कार्य करने के लिए नौकरी की पेशकश की थी। मैं एक सप्ताहांत के लिए आया था, और 20 साल बाद भी, मैं अभी भी आयरलैंड में रह रहा हूँ। एक बार जब मैंने ठीक से माला विनती करना सीख लिया तो धन्य माँ के प्रति मेरा प्रेम बढ़ता गया। मुझे अपने आप से माला विनती करना हमेशा बहुत कठिन लगता था। जब मैं इंग्लैंड के वालसिंघम में राष्ट्रीय तीर्थस्थल पर गया, तब यह कठिनाई दूर हो गयी। वालसिंघम की माँ मरियम के प्रतिमा वाले छोटे प्रार्थनालय में, मैंने धन्य माँ मरियम से प्रार्थना करने और माला विनती को समझने की कृपा मांगी। कुछ अविश्वसनीय घटित हुआ! जैसे ही मैंने आनंद के भेद बोलना शुरू किया, प्रत्येक भेद में, मुझे समझ आया कि माता मरियम सिर्फ येशु की माँ नहीं थी, वह मेरी माँ भी थी, और मैंने महसूस किया कि मैं बचपन में येशु के साथ-साथ बढ़ रहा हूँ। इसलिए जब मरियम ने ईश्वर की माँ होने के सन्देश के लिए मंजूरी में "हाँ" कहा, तो वह मुझे भी "हाँ" कह रही थी, येशु के साथ अपने गर्भ में वह मेरा भी स्वागत कर रही थी। जब मरियम अपनी कुटुम्बिनी एलिज़ाबेथ से मिलने गई, मैंने महसूस किया कि मैं येशु के साथ उसके गर्भ में हूँ। और जब योहन बप्तिस्मा खुशी से उछल पड़ा तब मैं वहाँ मसीह के शरीर में था। येशु मसीह के जन्म के समय, ऐसा महसूस हुआ जैसे मरियम ने मुझे बड़ा करने के लिए "हाँ" कहकर मुझे नया जीवन दिया। जैसे ही उसने और संत युसूफ ने येशु को मंदिर में चढ़ाया, उन्होंने मुझे भी अपने बच्चे के रूप में स्वीकार करते हुए, पिता को अर्पित किया। जब उन्होंने येशु को मंदिर में पाया, तो मुझे लगा कि मरियम मुझे भी ढूंढ रहीं थी। मैं खो गया था, लेकिन मरियम मुझे खोज रहीं थी। मुझे एहसास हुआ कि मरियम इतने वर्षों से मेरी माँ के साथ मेरा विश्वास वापस लौटने के लिए प्रार्थना कर रहीं थी। मैंने होली फ़ैमिली मिशन की स्थापना में मदद की, एक ऐसा घर जहाँ युवा लोग अपने विश्वास के बारे में जानने के लिए आ सकते हैं और जिस शिक्षण को वे बचपन के बाद भूल गए थे उस वे फिर से प्राप्त कर सकते हैं। हमने पवित्र परिवार को अपने संरक्षक के रूप में चुना, यह जानते हुए कि हम मरियम के माध्यम से येशु के दिल में आते हैं। मरियम हमारी मां हैं और हम उनके गर्भ में हम संत युसूफ की देखरेख में येशु मसीह की तरह बने हैं। अनुग्रह पर अनुग्रह हमारी धन्य माँ ने नॉक में मेरी पत्नी को ढूंढने और उसे जानने में मेरी मदद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी क्योंकि हमने यूथ 2000 नामक एक आंदोलन में एक-दूसरे के साथ काम किया था, जो माता मरियम और परम प्रसाद पर केंद्रित था। हमने अपनी शादी के दिन, खुद को, अपने वैवाहिक जीवन को और अपने भावी बच्चों को ग्वाडालूप की माता मरियम को समर्पित कर दिया। अब हमारे नौ खूबसूरत बच्चे हैं, जिनमें से प्रत्येक का माता मरियम के प्रति अद्वितीय विश्वास और समर्पण है, जिसके लिए हम बहुत आभारी हैं। माला विनती मेरे विश्वास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है और मेरे जीवन में बहुत सारी कृपाओं का माध्यम बन गया है। जब भी मेरे पास कोई समस्या होती है, तो सबसे पहले मैं अपनी रोज़री माला उठाता हूँ और माता मरियम की ओर मुड़ता हूँ। संत जॉन पॉल द्वितीय ने कहा कि यह माता मरियम का हाथ थामने जैसा है ताकि वह किसी भी अंधेरे समय में, मुसीबतों में हमारा सुरक्षित मार्गदर्शन सकेगी। एक बार, मेरे एक करीबी दोस्त के साथ मेरी अनबन हो गई और मुझे सामंजस्य बैठाना बहुत मुश्किल हो रहा था। मैं जानता था कि उसने मेरे साथ अन्याय किया है और मुझे माफ करना कठिन लग रहा था। वह व्यक्ति उस चोट को नहीं देख सका जो उसने मुझे और दूसरों को पहुंचाई थी। मेरे अंतरतम का एक हिस्सा इसके बारे में कुछ करना चाहता था, एक दूसरा हिस्सा उससे प्रतिशोध लेना चाहता था। लेकिन इसके बजाय, मैंने अपना हाथ अपनी जेब में डाला और अपनी रोज़री माला के मोती उठा लिए। अभी मैंने केवल मला विनती का एक भेद पूरा किया ही था कि वह मित्र अपने बदले हुए अंतरात्मा के साथ मेरी ओर मुड़ा और मुझसे बोला, "पैट्रिक, मुझे अभी एहसास हुआ कि मैंने तुम्हारे साथ क्या किया और मैंने तुम्हें कितना नुकसान पहुँचाया है। मैं क्षमा चाहता हूं।" जैसे ही हमने गले लगाया और मेल-मिलाप किया, वैसे ही मैंने माता मरियम के पास हमारे दिल को बदलने की उस शक्ति को पहचाना। मरियम वह साधन है जिसे ईश्वर ने इस दुनिया में प्रवेश करने के लिए चुना है, और वह अभी भी उसके माध्यम से हमारे पास आना चाहता है। मैं अब समझ गया हूं कि हम येशु के बजाय मरियम के पास नहीं जाते हैं, हम मरियम के पास जाते हैं क्योंकि येशु उसके अन्दर हैं। पुराने नियम में, विधान की मञ्जूषा में वह सब कुछ था जो पवित्र था। मरियम नई विधान की मञ्जूषा है, सभी पवित्रता का स्रोत, वह स्वयं ईश्वर का जीवित मंदिर है। इसलिए, जब मैं येशु मसीह के करीब रहना चाहता हूं, तो मैं हमेशा मरियम की ओर रुख करता हूं, जिन्होंने येशु के साथ अपने शरीर के भीतर सबसे घनिष्ठ संबंध साझा किया। उनके करीब आने में, मैं येशु के करीब आ जाता हूँ।
By: Patrick Reynolds
Moreसबसे महान प्रचारक, बेशक, येशु स्वयं हैं, और एम्माऊस के रास्ते पर शिष्यों के बारे में लूकस के शानदार वर्णन से बेहतर येशु की सुसमाचार प्रचार तकनीक की कोई और वर्णन नहीं है। गलत रास्ते पर दो लोगों के जाने के वर्णन से कहानी शुरू होती है। लूकस के सुसमाचार में, यरूशलेम आध्यात्मिक गुरुत्वाकर्षण का केंद्र है - अंतिम भोज, क्रूस पर मृत्यु, पुनरुत्थान और पवित्र आत्मा के उतर आने का स्थान यही है। यह वह आवेशित स्थान है जहाँ उद्धार की पूरी योजना का पर्दाफाश होता है। इसलिए राजधानी से दूर जाने के कारण, येशु के ये दो पूर्व शिष्य परम्परा के विपरीत जा रहे हैं। येशु उनकी यात्रा में शामिल हो जाते हैं - हालाँकि हमें बताया जाता है कि उन्हें पहचानने से शिष्यों को रोका गया है - और येशु उन शिष्यों से पूछते हैं कि वे किस बारे में बात कर रहे हैं। अपने पूरे सेवा कार्य के दौरान, येशु पापियों के साथ जुड़े रहे। यार्दन नदी के कीचड़ भरे पानी में योहन के बपतिस्मा के माध्यम से क्षमा मांगने वालों के साथ येशु कंधे से कंधा मिलाकर खड़े थे; बार-बार, उन्होंने बदनाम लोगों के साथ खाया पिया, और यह वहां के धर्मी लोगों के नज़र में बहुत ही निंदनीय कार्य था; और अपने जीवन के अंत में, उन्हें दो चोरों के बीच सूली पर चढ़ा दिया गया। येशु पाप से घृणा करते थे, लेकिन वे पापियों को पसंद करते थे और लगातार उनकी दुनिया में जाने और उनकी शर्तों पर उनसे जुड़ने के लिए तैयार रहते थे। और यही पहली महान सुसमाचारीय शिक्षा है। सफल सुसमाचार प्रचारक पापियों के अनुभव से अलग नहीं रहते, उन पर आसानी से दोष नहीं लगाते, उन पर फैसला पारित नहीं करते, उनके लिए प्रार्थना दूर से नहीं करते; इसके विपरीत, वे उनसे इतना प्यार करते हैं कि वे उनके साथ जुड़ जाते हैं और उनके जैसे चलने और उनके अनुभव को महसूस करते हैं। येशु के जिज्ञासु प्रश्नों से प्रेरित होकर, यात्रियों में से एक, जिसका नाम क्लेओपस था, नाज़रेथ के येशु के बारे में सभी 'बातें' बताता है: "वे ईश्वर और समस्त जनता की दृष्टि में कर्म और वचन के शक्तिशाली नबी थे। हमारे महायाजकों और शासकों ने उन्हें प्राणदंड दिलाया और क्रूस पर चढ़ाया। हम तो आशा करते थे कि वही इस्राएल का उद्धार करनेवाले थे। आज सुबह, ऐसी खबरें आईं कि वे मृतकों में से जी उठे हैं।" क्लेओपस के पास सारे सीधे और स्पष्ट 'तथ्य' हैं; येशु के बारे में उसने जो कुछ भी कहा है, उसमें एक भी बात गलत नहीं है। लेकिन उसकी उदासी और यरूशलेम से उसका भागना इस बात की गवाही देता है कि वह पूरी तस्वीर को नहीं देख पा रहा है। मुझे न्यू यॉर्कर पत्रिका के कार्टून बहुत पसंद हैं, जो बड़ी चतुराई और हास्यास्पद तरीके से बनाए जाते हैं, लेकिन कभी-कभी, कोई ऐसा कार्टून होता है जिसे मैं समझ नहीं पाता। मैं सभी विवरणों को समझ लेता हूँ, मैं मुख्य पात्रों और उनके आस-पास की वस्तुओं को देखता हूँ, मैं कैप्शन को समझ लेता हूँ। फिर भी, मुझे समझ में नहीं आता कि यह हास्य कैसे पैदा करता है। और फिर एक पल आता है जब मुझे समझ में आता है: हालाँकि मैंने कोई और विवरण नहीं देखा है, हालाँकि पहेली का कोई नया टुकड़ा सामने नहीं आया है, लेकिन मैं उस पैटर्न को समझ जाता हूँ जो उन्हें एक सार्थक तरीके से एक साथ जोड़ता है। एक शब्द में, मैं कार्टून को 'समझ' जाता हूँ। क्लेओपस का वर्णन सुनकर, येशु ने कहा: “ओह, निर्बुद्धियो! नबियों ने जो कुछ कहा है, तुम उस पर विश्वास करने में कितने मंदमति हो।” और फिर येशु उनके लिए धर्मग्रन्थ के प्रतिमानों का खुलासा करते हैं, जिन घटनाओं को उन्होंने देखा है, उनका अर्थ बताते हैं। अपने बारे में कोई नया विवरण बताए बिना, येशु उन्हें रूप, व्यापक योजना और सरंचना, और उसका अर्थ दिखाते हैं - और इस प्रक्रिया के माध्यम से वे उसे 'समझना' शुरू करते हैं: उनके दिल उनके भीतर जल रहे हैं। यही दूसरी सुसमाचार शिक्षा है। सफल प्रचारक धर्मग्रन्थ का उपयोग दिव्य प्रतिमानों और विशेषकर उस प्रतिमान को प्रकट करने के लिए करते हैं, जो येशु में देहधारी हुआ है। इन प्रतिमानों का स्पष्टीकरण किये बिना, मानव जीवन एक अस्तव्यस्तता है, घटनाओं का एक धुंधलापन है, अर्थहीन घटनाओं की एक श्रृंखला है। सुसमाचार का प्रभावी प्रचारक बाइबल का व्यक्ति होता है, क्योंकि पवित्र ग्रन्थ वह साधन है जिसके द्वारा हम येशु मसीह को 'पाते' हैं और उसके माध्यम से, हमारे अपने जीवन को भी। जब वे एम्माउस शहर के पास पहुँचते हैं, तो वे दोनों शिष्य अपने साथ रहने के लिए येशु पर दबाव डालते हैं। येशु उनके साथ बैठते हैं, रोटी उठाते हैं, आशीर्वाद की प्रार्थना बोलते हैं, उसे तोड़ते हैं और उन्हें देते हैं, और उसी क्षण वे येशु को पहचान लेते हैं। हालाँकि, वे पवित्र ग्रन्थ के हवाले से देखना शुरू कर रहे थे, फिर भी वे पूरी तरह से समझ नहीं पाए थे कि वह कौन था। लेकिन यूखरिस्तीय क्षण में, रोटी तोड़ने पर, उनकी आँखें खुल जाती हैं। येशु मसीह को समझने का अंतिम साधन पवित्रग्रन्थ नहीं बल्कि पवित्र यूखरिस्त है, क्योंकि यूखरिस्त स्वयं मसीह है, जो व्यक्तिगत रूप से और सक्रिय रूप से उसमें मौजूद हैं। यूखरिस्त पास्का रहस्य का मूर्त रूप है, जो अपनी मृत्यु के माध्यम से दुनिया के प्रति येशु का प्रेम, सबसे हताश पापियों को बचाने के लिए पापी और निराश दुनिया की ओर ईश्वर की यात्रा, करुणा के लिए उनका संवेदनशील हृदय है। और यही कारण है कि यूखरिस्त की नज़र के माध्यम से येशु सबसे अधिक पूर्ण और स्पष्ट रूप से हमारी दृष्टि के केंद्र में आते हैं। और इस प्रकार हम सुसमाचार की तीसरी महान शिक्षा पाते हैं। सफल सुसमाचार प्रचारक यूखरिस्त के व्यक्ति हैं। वे पवित्र मिस्सा की लय की लहरों में बहते रहते हैं; वे यूखरिस्तीय आराधना का अभ्यास करते हैं; जिन्होंने सुसमाचार को स्वीकार किया है, उन लोगों को वे येशु के शरीर और रक्त में भागीदारी के लिए आकर्षित करते हैं। वे जानते हैं कि पापियों को येशु मसीह के पास लाना कभी भी मुख्य रूप से व्यक्तिगत गवाही, या प्रेरणादायक उपदेश, या यहाँ तक कि पवित्रग्रन्थ के व्यापक सरंचना के संपर्क का मामला नहीं होता है। यह मुख्य रूप से यूखरिस्त की टूटी हुई रोटी के माध्यम से ईश्वर के टूटे हुए दिल को देखने का मामला है। तो सुसमाचार के भावी प्रचारको, वही करो जो येशु ने किया। पापियों के साथ चलो, पवित्र ग्रन्थ खोलो, रोटी तोड़ो।
By: बिशप रॉबर्ट बैरन
Moreएक आकर्षक पहली मुलाकात, दूरी, फिर पुनर्मिलन...यह अनंत प्रेम की कहानी है। मुझे बचपन की एक प्यारे दिन की याद आती है, जब मैंने यूखरिस्तीय आराधना में येशु का सामना किया था। एक राजसी और भव्य मोनस्ट्रेंस या प्रदर्शिका में यूखरिस्तीय येशु को देखकर मैं मंत्रमुग्ध हो गई थी। सुगन्धित धूप उस यूखरिस्त की ओर उठ रही थी। जैसे ही धूपदान को झुलाया गया, यूखरिस्त में उपस्थित प्रभु की ओर धूप उड़ने लगी, और पूरी मंडली ने एक साथ गाया: " परम पावन संस्कार में, सदा सर्वदा, प्रभु येशु की स्तुति हो, महिमा हो, आराधना हो।" वह बहुप्रतीक्षित मुलाकात मैं खुद धूपदान को छूना चाहती थी और उसे धीरे से आगे की ओर झुलाना चाहती थी ताकि मैं धूप को प्रभु येशु तक पहुंचा सकूं। पुरोहित ने मुझे धूपदान को न छूने का इशारा किया और मैंने अपना ध्यान धूप के धुएं पर लगाया जो मेरे दिल और आंखों के साथ-साथ यूखरिस्त में पूरी तरह से मौजूद प्रभु की ओर बढ़ रहा था। इस मुलाकात ने मेरी आत्मा को बहुत खुशी से भर दिया। सुंदरता, धूप की खुशबू, पूरी मंडली का एक सुर में गाना, और यूखरिस्त में उपस्थित प्रभु की उपासना का दृश्य... मेरी इंद्रियाँ पूरी तरह से संतुष्ट थीं, जिससे मुझे इसे फिर से अनुभव करने की लालसा हो रही थी। उस दिन को याद करके मुझे आज भी बहुत खुशी होती है। हालाँकि, किशोरावस्था में, मैंने इस अनमोल निधि के प्रति अपना आकर्षण खो दिया, और खुद को पवित्रता के ऐसे महान स्रोत से वंचित कर लिया। हालांकि उन दिनों मैं एक बच्ची थी, इसलिए मुझे लगता था कि मुझे यूख्ररिस्तीय आराधना के पूरे समय लगातार प्रार्थना करनी होगी और इसके लिए एक पूरा घंटा मुझे बहुत लंबा लगता था। आज हममें से कितने लोग ऐसे कारणों से - तनाव, ऊब, आलस्य या यहाँ तक कि डर के कारण - यूखरिस्तीय आराधना में जाने से हिचकिचाते हैं? सच तो यह है कि हम खुद को इस महान उपहार से वंचित करते हैं। पहले से कहीं ज़्यादा मज़बूत अपनी युवावस्था में संघर्षों, परीक्षाओं और पीडाओं के बीच, मुझे याद आया कि मुझे पहले कहाँ से इतनी सांत्वना मिली थी, और उस सांत्वना के स्रोत को याद करते हुए मैं शक्ति और पोषण के लिए यूखरिस्तीय आराधना में वापस लौटी। पहले शुक्रवार को, मैं पूरे एक घंटे के लिए पवित्र संस्कार में येशु की उपस्थिति में चुपचाप आराम करती, बस खुद को उनके साथ रहने देती, अपने जीवन के बारे में प्रभु से बात करती, उनकी मदद की याचना करती और बार-बार तथा सौम्य तरीके से उनके प्रति अपने प्यार का इज़हार करती। यूखरिस्तीय येशु के सामने आने और एक घंटे के लिए उनकी दिव्य उपस्थिति में रहने की संभावना मुझे वापस खींचती रही। जैसे-जैसे साल बीतते गए, मुझे एहसास हुआ कि यूखरिस्तीय आराधना ने मेरे जीवन को गहन तरीकों से बदल दिया है क्योंकि मैं ईश्वर की एक प्यारी बेटी के रूप में अपनी सबसे गहरी पहचान के बारे में अधिक से अधिक जागरूक होती जा रही हूँ। हम जानते हैं कि हमारे प्रभु येशु वास्तव में और पूरी तरह से यूखरिस्त में मौजूद हैं - उनका शरीर, रक्त, आत्मा और दिव्यता यूखरिस्त में हैं। यूखरिस्त स्वयं येशु हैं। यूखरिस्तीय येशु के साथ समय बिताने से आप अपनी बीमारियों से चंगे हो सकते हैं, अपने पापों से शुद्ध हो सकते हैं और अपने आपको उनके महान प्रेम से भर सकते हैं। इसलिए, मैं आप सभी को नियमित रूप से यूखरिस्तीय प्रभु के सम्मुख पवित्र घड़ी बिताने के लिए प्रोत्साहित करती हूँ। आप जितना अधिक समय यूखरिस्तीय आराधना में प्रभु के साथ बिताएँगे, उनके साथ आपका व्यक्तिगत संबंध उतना ही मजबूत होगा। शुरुआती झिझक के सम्मुख न झुकें, बल्कि हमारे यूखरिस्तीय प्रभु, जो स्वयं प्रेम और दया, भलाई और केवल भलाई हैं, उनके साथ समय बिताने से न डरें।
By: पवित्रा काप्पन
Moreजब आपका रास्ता मुश्किलों से भरा हो और आप को आगे का रास्ता नहीं दिखाई दे रहा हो, तो आप क्या करेंगे? 2015 की गर्मी अविस्मरणीय थी। मैं अपने जीवन के सबसे निचले बिंदु पर थी - अकेली, उदास और एक भयानक स्थिति से बचने के लिए अपनी पूरी ताकत से संघर्ष कर रही थी। मैं मानसिक और भावनात्मक रूप से थकी और बिखरी हुई थी, और मुझे लगा कि मेरी दुनिया खत्म होने वाली है। लेकिन अजीब बात यह है कि चमत्कार तब होते हैं जब हम उन चमत्कारों की कम से कम उम्मीद करते हैं। असामान्य घटनाओं की एक श्रृंखला के माध्यम से, ऐसा लग रहा था जैसे परमेश्वर मेरे कान में फुसफुसा रहा था कि वह मुझे संरक्षण दे रहा है। उस विशेष रात को, मैं निराश होकर, टूटी और बिखरी हुई बिस्तर पर लेटने गयी थी। सो नहीं पाने के कारण, मैं एक बार फिर अपने जीवन की दुखद स्थिति पर विचार कर रही थी और मैं अपनी रोज़री माला को पकड़ कर प्रार्थना करने का प्रयास कर रही थी। एक अजीब तरह के दर्शन या सपने में, मेरे सीने पर रखी रोज़री माला से एक चमकदार रोशनी निकलने लगी, जिसने कमरे को एक अलौकिक सुनहरी चमक से भर दिया। जैसे-जैसे यह रोशनी धीरे-धीरे फैलने लगी, मैंने उस चमकदार वृत्त के किनारे पर काले, चेहरेहीन, छायादार आकृतियाँ देखीं। वे अकल्पनीय गति से मेरे करीब आ रहे थे, लेकिन सुनहरी रोशनी तेज होती गई और जब भी वे मेरे करीब आने की कोशिश करते, तो वह सुनहरी रोशनी उन्हें दूर भगा देती। मैं स्तब्ध थी, और उस अद्भुत दृश्य की विचित्रता पर प्रतिक्रिया करने में असमर्थ थी। कुछ पलों के बाद, दृश्य अचानक समाप्त हो गया, कमरे में फिर से गहरा अंधेरा छा गया। बहुत परेशान होकर सोने से डरती हुई , मैंने टी.वी. चालू किया। एक पुरोहित, संत बेनेदिक्त की ताबीज़ (मेडल) पकड़े हुए थे और बता रहे थे कि यह ताबीज़ कैसे दिव्य सुरक्षा प्रदान करता है। जब वे उस ताबीज़ पर अंकित प्रतीकों और शब्दों पर चर्चा कर रहे थे, मैंने अपनी रोज़री माला पर नज़र डाली - यह मेरे दादाजी की ओर से एक उपहार थी - और मैंने देखा कि मेरी रोज़री माला पर टंगे क्रूस में वही ताबीज़ जड़ी हुई थी। इससे एक आभास हुआ। मेरे गालों पर आँसू बहने लगे क्योंकि मुझे एहसास हुआ कि जब मैं सोच रही थी कि मेरा जीवन बर्बाद हो रहा है तब भी परमेश्वर मेरे साथ था और मुझे संरक्षण दे रहा था। मेरे दिमाग से संदेह का कोहरा छंट गया, और मुझे इस ज्ञान में सांत्वना मिली कि मैं अब अकेली नहीं थी। मैंने पहले कभी संत बेनेदिक्त की ताबीज़ के अर्थ को नहीं समझा था, इसलिए इस नए विश्वास ने मुझे बहुत आराम दिया, जिससे परमेश्वर में मेरा विश्वास और आशा मजबूत हुई। अपार प्रेम और करुणा के साथ, परमेश्वर हमेशा मेरे साथ मौजूद था, जब भी मैं फिसली तो मुझे बचाने के लिए वह तैयार था। यह एक सुकून देने वाला विचार था जिसने मेरे अस्तित्व को जकड लिया, मुझे आशा और शक्ति से भर दिया। मेरी आत्मा को प्राप्त नया रूप मेरे दृष्टिकोण में इस तरह के बदलाव ने मुझे आत्म-खोज और विकास की यात्रा पर आगे बढ़ाया। मैंने आध्यात्मिकता को अपने रोजमर्रा के जीवन से दूर की चीज़ के रूप में देखना बंद कर दिया। इसके बजाय, मैंने प्रार्थना, चिंतन और दयालुता के कार्यों के माध्यम से ईश्वर के साथ एक व्यक्तिगत संबंध विकसित करने की कोशिश की, यह महसूस करते हुए कि ईश्वर की उपस्थिति केवल भव्य इशारों तक सीमित नहीं है, बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी के सबसे सरल क्षणों में महसूस की जा सकती है। एक रात में पूरा बदलाव नहीं हुआ, लेकिन मैंने अपने भीतर हो रहे सूक्ष्म बदलावों पर ध्यान देना शुरू कर दिया। मैं अधिक धैर्यवान हो गयी हूं, तनाव और चिंता को दूर करना सीख गयी हूं, और इस तरह मैंने एक नए विश्वास को अपनाया है कि अगर मैं ईश्वर पर अपना भरोसा रखूंगी तो चीजें उसकी इच्छा के अनुसार सामने आएंगी। इसके अलावा, प्रार्थना के बारे में मेरी धारणा बदल गई है, जो इस समझ से उपजी एक सार्थक बातचीत में बदल गई है कि, भले ही उनकी दयालु उपस्थिति दिखाई न दे, लेकिन ईश्वर हमारी बात सुनता है और हम पर नज़र रखता है। जैसे कुम्हार मिट्टी को उत्कृष्ट कलाकृति में ढालता है, वैसे ही ईश्वर हमारे जीवन के सबसे निकृष्ट हिस्सों को ले सकता है और उन्हें कल्पना की जा सकने वाली सबसे सुंदर आकृतियों में ढाल सकता है। उन पर विश्वास और आशा हमारे जीवन में बेहतर चीजें लाएगी जो हम कभी भी अपने दम पर हासिल नहीं कर सकते हैं, और हमें अपने रास्ते में आने वाली सभी चुनौतियों के बावजूद मजबूत बने रहने में सक्षम बनाती हैं। * संत बेनेदिक्त का मेडल उन लोगों को दिव्य सुरक्षा और आशीर्वाद देते हैं जो उन्हें पहनते हैं। कुछ लोग उन्हें नई इमारतों की नींव में गाड़ देते हैं, जबकि अन्य उन्हें रोज़री माला से जोड़ते हैं या अपने घर की दीवारों पर लटकाते हैं। हालाँकि, सबसे आम प्रथा संत बेनेदिक्त के मेडल को ताबीज़ बनाकर पहनना या इसे क्रूस के साथ जोड़ना है।
By: अन्नू प्लाचेई
Moreमैं विश्वविद्यालय की एक स्वस्थ छात्रा थी, अचानक पक्षाघात वाली बन गयी, लेकिन मैंने व्हीलचेयर तक अपने को सीमित रखने से इनकार कर दिया… विश्वविद्यालय के शुरुआती सालों में मेरी रीढ़ की डिस्क खिसक गई थी। डॉक्टरों ने मुझे भरोसा दिलाया कि युवा और सक्रिय होने के कारण, फिजियोथेरेपी और व्यायाम के द्वारा मैं बेहतर हो जाऊंगी, लेकिन सभी प्रयासों के बावजूद, मैं हर दिन दर्द में रहती थी। मुझे हर कुछ महीनों में गंभीर दौरे पड़ते थे, जिसके कारण मैं हफ्तों तक बिस्तर पर रहती थी और बार-बार अस्पताल जाना पड़ता था। फिर भी, मैंने उम्मीद बनाई रखी, जब तक कि मेरी दूसरी डिस्क खिसक नहीं गई। तब मुझे एहसास हुआ कि मेरी ज़िंदगी बदल गई है। ईश्वर से नाराज़! मैं पोलैंड में पैदा हुई थी। मेरी माँ ईशशास्त्र पढ़ाती हैं, इसलिए मेरी परवरिश कैथलिक धर्म में हुई। यहाँ तक कि जब मैं यूनिवर्सिटी की पढ़ाई के लिए स्कॉटलैंड और फिर इंग्लैंड गयी, तब भी मैंने इस धर्म को बहुत प्यार से थामे रखा, करो या मरो के अंदाज़ में शायद नहीं, लेकिन यह हमेशा मेरे साथ था। किसी नए देश में जाने का शुरुआती दौर आसान नहीं था। मेरा घर एक भट्टी की तरह था, जहाँ मेरे माता-पिता अक्सर आपस में लड़ते रहते थे, इसलिए मैं व्यावहारिक रूप से इस अजनबी देश की ओर भाग गयी थी। अपने मुश्किल बचपन को पीछे छोड़कर, मैं अपनी जवानी का मज़ा लेना चाहती थी। अब, यह दर्द मेरे लिए नौकरी करना और खुद को आर्थिक रूप से संतुलित रखना मुश्किल बना रहा था। मैं ईश्वर से नाराज़ थी। फिर भी, वह मुझे जाने देने को तैयार नहीं था। भयंकर दर्द में कमरे के अन्दर फँसे होने के कारण, मैंने एकमात्र उपलब्ध शगल का सहारा लिया—मेरी माँ की धार्मिक पुस्तकों का संग्रह। धीरे-धीरे, मैंने जिन आत्मिक साधनाओं में भाग लिया और जो किताबें पढ़ीं, उनसे मुझे एहसास हुआ कि मेरे अविश्वास के बावजूद, ईश्वर वास्तव में चाहता था कि उसके साथ मेरा रिश्ता मजबूत हो। लेकिन मैं इस बात से पूरी तरह से उबर नहीं पायी थी कि वह अभी तक मुझे चंगा नहीं कर रहां था। आखिरकार, मुझे विश्वास हो गया कि ईश्वर मुझसे नाराज़ हैं और मुझे ठीक नहीं करना चाहता, इसलिए मैंने सोचा कि शायद मैं उन्हें धोखा दे सकती हूँ। मैंने चंगाई के लिए विख्यात और अच्छे 'आँकड़ों' वाले किसी पवित्र पुरोहित की तलाश शुरू कर दी ताकि जब ईश्वर दूसरे कामों में व्यस्त हों तो मैं ठीक हो सकूँ। कहने की ज़रूरत नहीं है, ऐसा कभी नहीं हुआ। मेरी यात्रा में एक मोड़ एक दिन मैं एक प्रार्थना समूह में शामिल थी, मैं बहुत दर्द में थी। दर्द की वजह से एक गंभीर प्रकरण होगा, इस डर से, मैं वहाँ से जाने की योजना बना रही थी, तभी वहाँ के एक सदस्य ने पूछा कि क्या कोई ऐसी बात है जिसके लिए मैं उनसे प्रार्थना की मांग करना चाहूँगी। मुझे काम पर कुछ परेशानी हो रही थी, इसलिए मैंने हाँ कह दिया। जब वे लोग प्रार्थना कर रहे थे, तो उनमें से एक व्यक्ति ने पूछा कि क्या कोई शारीरिक बीमारी है जिसके लिए मुझे प्रार्थना की ज़रूरत है। चंगाई करनेवाले लोगों की मेरी ‘रेटिंग' सूची के हिसाब से वे बहुत नीचे थे, इसलिए मुझे भरोसा नहीं था कि मुझे कोई राहत मिलेगी, लेकिन मैंने फिर भी 'हाँ' कह दिया। उन्होंने प्रार्थना की और मेरा दर्द दूर हो गया। मैं घर लौट आयी, और वह दर्द अभी भी नहीं थी। मैं कूदने, मुड़ने और इधर-उधर घूमने लगी, और मैं अभी भी ठीक थी। लेकिन जब मैंने उन्हें बताया कि मैं ठीक हो गयी हूँ, तो किसी ने मुझ पर विश्वास नहीं किया। इसलिए, मैंने लोगों को बताना बंद कर दिया; इसके बजाय, मैं माँ मरियम को धन्यवाद देने के लिए मेडजुगोरे गयी। वहाँ, मेरी मुलाकात एक ऐसे आदमी से हुई जो रेकी कर रहा था और मेरे लिए प्रार्थना करना चाहता था। मैंने मना कर दिया, लेकिन जाने से पहले उसने अलविदा कहने के लिए मुझे गले लगाया, जिससे मैं चिंतित हो गयी क्योंकि उसने कहा कि उसके स्पर्श में शक्ति है। मैंने डर को हावी होने दिया और गलत तरीके से मान लिया कि इस दुष्ट का स्पर्श ईश्वर से भी अधिक शक्तिशाली है। अगली सुबह मैं भयंकर दर्द में उठी, चलने में असमर्थ थी। चार महीने की राहत के बाद, मेरा दर्द इतना तीव्र हो गया कि मुझे लगा कि मैं वापस ब्रिटेन भी नहीं जा पाऊँगी। जब मैं वापस लौटी, तो मैंने पाया कि मेरी डिस्क नसों को छू रही थी, जिससे महीनों तक और भी ज़्यादा दर्द हो रहा था। छह या सात महीने बाद, डॉक्टरों ने फैसला किया कि उन्हें मेरी रीढ़ की हड्डी पर जोखिम भरी सर्जरी करने की ज़रूरत है, जिसे वे लंबे समय से टाल रहे थे। सर्जरी से मेरे पैर की एक नस क्षतिग्रस्त हो गई, और मेरा बायाँ पैर घुटने से नीचे तक लकवाग्रस्त हो गया। वहाँ और फिर एक नई यात्रा शुरू हुई, एक अलग यात्रा। मुझे पता है कि तू यह कर सकता है जब मैं पहली बार व्हीलचेयर पर घर पहुची, तो मेरे माता-पिता डर गए, लेकिन मैं खुशी से भर गयी। मुझे सभी तकनीकी चीजें पसंद थीं...हर बार जब कोई मेरी व्हीलचेयर पर बटन दबाता था, तो मैं एक बच्चे की तरह उत्साहित हो जाती थी। क्रिसमस की अवधि के दौरान, जब मेरा पक्षाघात ठीक होने लगा, तब मुझे एहसास हुआ कि मेरी नसों को कितना नुकसान हुआ है। मैं कुछ समय के लिए पोलैंड के एक अस्पताल में भर्ती थी। मुझे नहीं पता था कि मैं कैसे जीने वाली थी। मैं बस ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि मुझे एक और उपचार की आवश्यकता है: "तुझे फिर से खोजने की मेरी आवश्यकता है क्योंकि मुझे पता है कि तू यह कर सकता है।" इसलिए, मुझे एक चंगाई सभा के बारे में जानकारी मिली और मुझे विश्वास हो गया कि मैं ठीक हो जाऊंगी। एक ऐसा पल जिसे आप खोना नहीं चाहेंगे वह शनिवार का दिन था और मेरे पिता शुरू में नहीं जाना चाहते थे। मैंने उनसे कहा: "आप अपनी बेटी के ठीक होने पर उस पल को खोना नहीं चाहेंगे।" मूल कार्यक्रम में मिस्सा बलिदान था, उसके बाद आराधना के साथ चंगाई सभा थी। लेकिन जब हम पहुंचे, तो पुरोहित ने कहा कि उन्हें योजना बदलनी होगी क्योंकि चंगाई सभा का नेतृत्व करने वाली टीम वहां नहीं थी। मुझे याद है कि मेरे मन में उस समय यह सोच आई थी कि मुझे किसी टीम की ज़रूरत नहीं है: "मुझे केवल येशु की ज़रूरत है।" जब मिस्सा बलिदान शुरू हुआ, तो मैं एक भी शब्द सुन नहीं पाई। हम उस तरफ बैठे थे जहाँ दिव्य की करुणा की तस्वीर थी। मैंने येशु को ऐसे देखा जैसे मैंने उन्हें पहले कभी नहीं देखा था। यह एक आश्चर्यजनक छवि थी। येशु बहुत सुंदर लग रहे थे! मैंने उसके बाद कभी भी वह तस्वीर नहीं देखी। पूरे मिस्सा बलिदान के दौरान, पवित्र आत्मा मेरी आत्मा को घेरा हुआ था। मैं बस अपने मन में 'धन्यवाद' कह रही थी, भले ही मुझे नहीं पता था कि मैं किसके लिए आभारी हूँ। मैं चंगाई की प्रार्थना का निवेदन नहीं कह पा रही थी, और यह निराशाजनक था क्योंकि मुझे चंगाई की आवश्यकता थी। जब आराधना शुरू हुई तो मैंने अपनी माँ से कहा कि वे मुझे आगे ले जाएँ, जितना संभव हो सके येशु के करीब ले जाएँ। वहाँ, आगे बैठे हुए, मुझे लगा कि कोई मेरी पीठ को छू रहा है और मालिश कर रहा है। मुझे इतनी तीव्रता का अनुभव और साथ साथ आराम भी मिल रहा था कि मुझे लगा कि मैं सो जाऊँगी। इसलिए, मैंने बेंच पर वापस जाने का फैसला किया, लेकिन मैं भूल गयी थी कि मैं 'चल' नहीं सकती। मैं बस वापस चली गई और मेरी माँ मेरी बैसाखियों के साथ मेरे पीछे दौड़ी, ईश्वर की स्तुति करते हुए, माँ कह रही थी: "तुम चल रही हो, तुम चल रही हो।" मैं पवित्र संस्कार में उपस्थित येशु द्वारा चंगी हो गयी थी। जैसे ही मैं बेंच पर बैठी, मैंने एक आवाज़ सुनी: "तुम्हारे विश्वास ने तुम्हें चंगा कर दिया है।" मेरे दिमाग में, मैंने उस महिला की छवि देखी जो येशु के गुजरने पर उनके लबादे को छू रही थी। उसकी कहानी मुझे मेरी कहानी की याद दिलाती है। जब तक मैं इस बिंदु पर नहीं पहुँची जहाँ मैंने येशु पर भरोसा करना शुरू किया, तब तक कुछ भी मदद नहीं कर रहा था। चंगाई तब हुई जब मैंने उसे स्वीकार किया और उससे कहा: "तुम ही मेरी ज़रूरत हो।" मेरे बाएं पैर की सभी मांसपेशियाँ चली गई थीं और वह भी रातों-रात वापस आ गई। यह बहुत महत्वपूर्ण था, क्योंकि डॉक्टर लोग पहले भी इसका माप ले रहे थे और उन्होंने एक आश्चर्यजनक, अवर्णनीय परिवर्तन पाया। ऊंची आवाज़ में गवाही इस बार जब मुझे चंगाई मिली, तो मैं इसे सभी के साथ साझा करना चाहती थी। अब मैं शर्मिंदा नहीं थी। मैं चाहती थी कि सभी को पता चले कि ईश्वर कितना अद्भुत है और वह हम सभी से कितना प्यार करता है। मैं कोई खास नहीं हूँ और मैंने इस चंगाई को प्राप्त करने के लिए कुछ खास नहीं किया है। ठीक होने का मतलब यह भी नहीं है कि मेरा जीवन रातों-रात बहुत आरामदायक हो गया। अभी भी कठिनाइयाँ हैं, लेकिन वे बहुत हल्की हैं। मैं उन कठिनाइयों को यूखरिस्तीय आराधना में ले जाती हूँ और येशु मुझे समाधान देता है, या उनसे कैसे निपटना है इस बारे में विचार देता है, साथ ही आश्वासन और भरोसा भी देता है कि वह स्वयं उनसे निपटेगा।
By: एनिया ग्रेग्लेवस्का
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