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बहुत वर्षों तक मैं लोलुपता से जूझती रही, अपने अधिक खाने की आदत के पीछे मूल कारण का मुझे एहसास ही नहीं हुआ।
कल, जब मैं मिस्सा में जाने के लिए तैयार हो रही थी, मैं अधिक खाने की इच्छा के विरुद्ध अपनी निरंतर संघर्ष के बारे में सोच रही थी। हालांकि कोई औसत व्यक्ति की नज़र में, मैं अधिक वजन वाली नहीं दीखती हूँ, लेकिन मुझे पता है कि मुझे जितना खाना चाहिए उससे अधिक खाती हूं। मैं भूखी न होने पर भी खाती हूं, सिर्फ इसलिए कि खाना उपलब्ध है और मैं उससे ललचा जाती हूं। मेरे पति के तैयार होने से पहले, मैं मिस्सा केलिए कपडे पहन कर तैयार हो गयी थी, इसलिए मैंने संत यूदा के प्रति भक्ति की प्रार्थना पुस्तक खोल ली। इस पुस्तक का उपयोग मैं हर रात की प्रार्थना के लिए करती हूं। मैं यह देखने लगी कि क्या इसमें सुबह की प्रार्थना भी है। जैसे ही मैंने पन्ने पलटे, मुझे व्यसनों के लिए यानी बुरी आदतों से छुटकारा पाने केलिए एक प्रार्थना मिली, जिस पर मैंने पहले कभी ध्यान नहीं दिया था। जैसे ही मैं प्रार्थना बोली, मैंने ईश्वर से, विशेष रूप से मेरे खाने की लत को ठीक करने के लिए कहा। हालाँकि मैंने बरसों से ज़्यादा खाने की इच्छा पर काबू पाने की कोशिश की थी, लेकिन मेरे सारे प्रयास विफल हो गए थे।
मिस्सा बलिदान में, मारकुस 1:21-28 से सुसमाचार पढ़ा गया। मैंने अपने आप से कहा, “जिस तरह येशु इस आदमी से बुरी आत्मा को निकाल सकते हैं, इस पेटूपन की दुष्टात्मा को वे मुझ से निकाल सकते हैं, क्योंकि दुष्टात्मा इसी लत के माध्यम से ही मेरे जीवन पर अभी भी पकड़ रख रहा है।” मुझे लगा कि परमेश्वर मुझे आश्वस्त कर रहा है कि वह लोलुपता की इस दुष्टात्मा को मुझ से निकाल सकता है और निकाल देगा। पुरोहित के प्रवचन से मेरी भावनाओं को और बल मिला।
अपने प्रवचन में, उन्होंने कई प्रकार की बुरी आत्माओं को सूचीबद्ध किया जिनसे हमें छुटकारा चाहिए, जैसे क्रोध, अवसाद, ड्रग्स और शराब। वे पुरोहित स्वयं खाने की लत से सबसे ज्यादा जूझ रहे थे। उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने चालीस पाउंड का वजन घटा लिया, लेकिन फिर तीस पाउंड तुरंत बढ़ गया। उन्होंने आगे कहा कि चाहे उन्होंने खुद को रोकने की कितनी भी कोशिश की हो, वे हमेशा अधिक खाने के प्रलोभन में पड़ जाते हैं, इस प्रकार लोलुपता का पाप करते हैं। उन्होंने जो कुछ भी वर्णित किया वह सीधे मुझसे संबंधित था। उन्होंने हमें आश्वस्त किया कि येशु हमें मुक्त करने के लिए आये और मर गए, इसलिए हम आशा नहीं छोड़ सकते, चाहे हम कितना भी निराशाजनक महसूस करें, क्योंकि हमें हमेशा अपने साथ आशा बनाई रखनी चाहिए। येशु हमें आशा देते हैं क्योंकि उन्होंने मृत्यु पर विजय प्राप्त की और फिर से जी उठे। हम इस प्रकार जीत का दावा कर सकते हैं क्योंकि येशु ने हमारे जीवन में पाप की शक्ति को हरा दिया है। हमें बस इस पर भरोसा करने की जरूरत है कि येशु अपने समय में हमारे बचाव में आएंगे।
जब हमें यह महसूस करने में कठिनाई होती हैं कि हम पारमेश्वर की सहायता के बिना कुछ नहीं कर सकते, तो वह कभी-कभी हमें ऐसी स्थिति में रहने की अनुमति देता है जहाँ हम असहाय महसूस करते हैं। आज सुबह, मेरी प्रात:कालीन प्रार्थना के दौरान, मैंने शांति पाने के विषय पर चिंतन को पढ़ने के लिए अपनी दैनिक मनन चिंतन की पुस्तक खोली। शांति पाने के लिए हमें परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप होना चाहिए। जब हम परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप होते हैं, तो हम अधिक प्रभावी ढंग से दूसरों की मदद कर सकते हैं, और उन्हें प्रभु की ओर ले जा सकते हैं।
अगर मैं पूर्ण हूं तो मैं किसी और की मदद कैसे कर सकती हूं? अगर मैंने संघर्ष नहीं किया है तो क्या मैं किसी और के संघर्षों को समझ सकती हूँ? जब मैं लोलुपता जैसे पाप के विरुद्ध संघर्ष करती हूँ, तो मेरी लड़ाई व्यर्थ नहीं जाती। यह एक उद्देश्य के लिए है। ईश्वर हमें कठिनाइयों का अनुभव करने की अनुमति देता है ताकि हम दूसरों के साथ सहानुभूति रख सकें और उनकी मदद कर सकें और यह महसूस कर सकें कि हम किसी और से बेहतर नहीं हैं। हम सभी को एक दूसरे की जरूरत है, और हम सभी को ईश्वर की जरूरत है।
संत पौलुस ने इस बात को प्रदर्शित किया जब उन्होंने दावा किया कि “शरीर में एक कांटा” उन्हें “घमंड न करने” के लिए चुभा दिया गया था और मसीह ने उनसे कहा था कि “दुर्बलता में सामर्थ्य प्रकट होती है”। इसलिए पौलुस कहते हैं “मैं अपनी दुर्बलताओं पर गौरव करता हूँ जिससे मसीह की सामर्थ्य मुझ पर छाया रहे।” (2 कुरिन्थी 12:7-10)
धर्म ग्रन्थ का यह अंश मुझे सिखाता है कि खाने की मेरी लत से जूझना मुझे विनम्र बनाए रखने के लिए है। मैं किसी से श्रेष्ठ महसूस नहीं कर सकती क्योंकि मैं भी हर किसी की तरह प्रलोभन पर काबू पाने के लिए संघर्ष करती हूं, चाहे वे ईश्वर में विश्वास करें या नहीं। हालाँकि, जब हम ईश्वर में विश्वास करते हैं, तो संघर्ष आसान हो जाता है क्योंकि हम युद्ध को जारी रखने में एक उद्देश्य देखते हैं। बहुत से लोग विभिन्न कारणों से व्यसनों और अन्य समस्याओं से जूझते हैं, जिनमें से पाप का परिणाम एक कारण हो सकता है। हालाँकि, जब कोई व्यक्ति ईश्वर का आस्तिक और सच्चा अनुयायी होता है, तो वह पहचानता है कि उसकी समस्याएं अच्छे के लिए हैं न कि सजा के रूप में। रोमी 8:28 में हमें शिक्षा मिलती है कि “जो लोग ईश्वर को प्यार करते हैं और उसके विधान के अनुसार बुलाये गए हैं, ईश्वर उनके कल्याण केलिए सभी बातों में उनकी सहायता करता है।” सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जो कोई ईश्वर की योजना के अनुसार बुलाए गए हैं, यह उन सभी के लिए एक बड़ी वास्तविकता है। इस सत्य को जानने के बाद समस्याओं, व्यसनों और कष्टों को दंड के रूप में नहीं, बल्कि लंबे समय में हमारी भलाई के लिए कार्य करने वाले आशीर्वाद के रूप में देखने की अंतर्दृष्टि हमें मिलती है। जब परमेश्वर अपने उद्देश्य के अनुसार किसी व्यक्ति को बुलाता है, तो वह व्यक्ति इस पुकार से पूरी तरह वाकिफ होता है, इसलिए वह अपने जीवन में अच्छे और बुरे को परमेश्वर की इच्छा के रूप में स्वीकार करता है।
मैंने याद करने की कोशिश की कि भोजन के प्रति मेरी आसक्ति कब शुरू हुई थी। तब मुझे पता चला कि खाने की मेरी लत तब शुरू हुई जब मैंने अपने ही एक रिश्तेदार से ड्रग्स और शराब की लत के बारे में उसका सामना किया था और उसकी निंदा की थी। इस एहसास से मैं लज्जित हो गयी।
मैं अब यह जान सकती हूँ कि जिस समय मैंने गुस्से में अपने रिश्तेदार की निंदा की थी, उसी समय से मेरे अन्दर धीरे-धीरे खाने के प्रति आसक्ति बढ़ रही थी। अंततः, निंदा और क्षमा की कमी मेरे व्यसन के स्रोत थे। प्रभु को मेरे अपने व्यसन के द्वारा मुझे विनम्र बनाकर बताना पड़ा कि हम सब कमजोर हैं। हम सभी व्यसनों और प्रलोभनों का सामना करते हैं और उनसे कई रूपों में संघर्ष करते हैं। अपने अभिमान में, मैंने सोचा कि मैं अपने दम पर प्रलोभनों को दूर करने के लिए काफी मजबूत हूं, लेकिन अपनी लोलुपता के शिकार होने पर, मैंने पाया कि मैं मज़बूत नहीं थी। आठ साल बाद, मैं अभी भी अपने भोजन की लत और लोलुपता के इस पाप से उबरने के लिए संघर्ष कर रही हूं।
अगर हम किसी भी तरह से अपने को दूसरों से श्रेष्ठ मानते हैं तो ईश्वर अपने कार्य केलिए हमारा उपयोग नहीं कर पाता। जिन्हें हमारी जरूरत है, उन लोगों के स्तर तक नीचे आने के लिए हमें विनम्र होना चाहिए, ताकि जहां वे हैं, वहां हम उनकी मदद कर सकें। दूसरों को उनकी कमजोरियों के लिए दोष लगाने से बचने के लिए, हमें उनके लिए प्रार्थना करनी चाहिए, मदद करनी चाहिए और अपने संघर्षों को उनके प्रति भेंट करना चाहिए। क्या यही कारण नहीं है कि परमेश्वर पापियों और हमें पीड़ा पहुँचाने वालों को हमारे मार्ग में रख देता है? हर बार जब हम किसी से मुलाक़ात करते हैं, तो ईश्वर का चेहरा उन्हें दिखाने का अवसर हमें प्राप्त होता है, इसलिए वे हमारे रास्ते में आने पर, हम उन्हें अधिक आहत या टूटे या बिखरे हुए न बनाकर बेहतर स्थिति में ले आवें। लूकस 6:37 में, येशु ने चेतावनी दी है, “किसी को दोष न दो, और तुम्हारे विरुद्ध दोष नहीं लगाया जाएगा। निंदा करना बंद करो और तुम्हारी निंदा नहीं की जाएगी। क्षमा करो और तुम्हें भी क्षमा दी जाएगी।”
Adeline Jean is an Adjunct Professor of English, Biblical Studies, and World Religion. She is the author of the book, “JESUS Speaks To Me: Whispers of Mercy, Whispers of Love.” and presenter of YouTube video series, “Burning Bush Encounters.” Adeline is the Coordinator of Shalom Media Ministry in South Florida.
किसी घर का सायरन रात के सन्नाटे को चीरता हुआ तेज़ बज रहा था। मैं चौंककर जाग गया। मेरी पहली प्रवृत्ति निराशा की थी, लेकिन जैसे-जैसे पल बीतते गए और सायरन पूरे मोहल्ले में बजता-गूंजता रहा, मुझे एहसास हुआ कि कुछ गड़बड़ है। बहादुरी से ज़्यादा उत्सुकता की वजह से, मैं बाहर निकला ताकि मैं बेहतर तरीके से देख और समझ सकूं। अपने पड़ोसी जॉन को अपनी कार के हुड के नीचे काम करते हुए देखकर, मैंने आवाज़ लगाई और सायरन के बारे में पूछा, लेकिन ऐसा लगा कि उसने इसे बिल्कुल भी नहीं सुना। उसने बस कंधे उचका दिए: "ये चीज़ें हर समय बजती रहती हैं... यह कुछ ही मिनटों में अपने आप बंद हो जाएगी।" मैं उलझन में था। "लेकिन अगर कोई चोर किसी के घर में घुस जाए तो क्या होगा?" "ठीक है, अगर अलार्म कंपनी से उनके अलार्म की सर्विस नियमित रूप से करवाई जाती है, तो कंपनी से कोई आदमी इसे चेक करने के लिए थोड़ी देर में आ जाएगा। लेकिन शायद यह कोई ख़ास बात नहीं है। जैसा कि मैंने कहा, वे हर समय सबसे अजीब कारणों से बजते हैं। अचानक आनेवाले तूफान, कार का बैकफ़ायर... कौन जानता है कि कारण क्या है ?" मैं अपने घर में वापस गया और हमारे सामने के दरवाज़े के पास दीवार पर अलार्म पैनल को देखा। अगर कोई ध्यान ही नहीं देता तो अलार्म का क्या फ़ायदा? हमारे पड़ोस और शहरों में कितनी बार सुसमाचार का संदेश निर्जन प्रदेश में पुकारने वाली आवाज़ की तरह सुनाई देता है, रात भर गूंजने वाले आसन्न ख़तरे की चेतावनी देने वाला अलार्म? वह उपदेश देता है, “परमेश्वर की ओर लौटो।” “पश्चाताप करो। उससे क्षमा माँगो।” फिर भी हम में से कई लोग कंधे उचकाकर, मुंह फेरकर, अपनी कार के हुड के नीचे बैठकर अपनी जीवनशैली, रिश्तों और आरामदेह क्षेत्रों से संतुष्ट रहते हैं। “अरे, क्या तुम सुन नहीं रहे हो?” कभी-कभी कोई बीच में टोक देता है। जवाब शायद यह होगा: “जब से मैं बच्चा था, तब से इसे सुन रहा हूँ। लेकिन चिंता मत करो, यह कुछ ही मिनटों में अपने आप बंद हो जाएगा।” “जब तक प्रभु मिल सकता है, तब तक उसके पास चले जा। जब तक वह निकट है, तब तक उसकी दुहाई देती रह ।” (इसायाह 55:6)
By: Richard Maffeo
Moreयदि आपको ऐसा लगता है कि आपने जीवन में अपने सारे मूल्य और उद्देश्य खो दिए हैं, तो यह लेख आपके लिए है। मेरे 40 वर्षों के पुरोहिताई जीवन में, आत्महत्या करने वाले लोगों के अंतिम संस्कार मेरे लिए सबसे कठिन कार्य रहा है। और यह केवल एक सामान्य कथन नहीं है, क्योंकि हाल ही में मैंने अपने ही परिवार में एक युवा व्यक्ति को खो दिया। उसकी आयु केवल 18 वर्ष थी। उसने अपने जीवन की दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के कारण आत्महत्या कर ली। आजकल आत्महत्या की दर बढ़ रही है, और इसके निवारण के उपायों में दवाएँ, मानसिक चिकित्सा और यहाँ तक कि पारिवारिक प्रणाली चिकित्सा भी शामिल हैं। हालांकि, उन कई चीजों में से एक जो अक्सर चर्चा में नहीं आती है, वह है आध्यात्मिक उपाय। अवसाद और आत्महत्या के पीछे एक मुख्य मनोवैज्ञानिक और दार्शनिक मुद्दा जीवन के आध्यात्मिक अर्थ और उद्देश्य की कमी हो सकती है - यह विश्वास कि हमारे जीवन में आशा और मूल्य है, सबसे अहम् सोच है; इस सोच की कमी खतरनाक है। एक पिता का प्रेम हमारे जीवन का लंगर, हमारे पिता परमेश्वर का प्रेम है, जो हमें उन अंधेरे स्थानों से बाहर निकालता है। मैं यह भी तक कहूंगा कि येशु मसीह ने हमें जो उपहार दिए हैं (हे ईश्वर, वे बहुत सारे उपहार हैं), उनमें सबसे अच्छा और सबसे मूल्यवान उपहार है कि येशु ने अपने पिता को हमारा पिता बना दिया। येशु ने परमेश्वर को एक प्रेममय अभिभावक के रूप में प्रकट किया जो अपने बच्चों से गहरा प्रेम करता है और उनकी परवाह करता है। इस ज्ञान की पुष्टि तीन विशेष तरीकों से होती है: 1. ‘आप कौन हैं’ इसकी पहचान आपकी नौकरी, आपकी सामाजिक सुरक्षा नंबर, आपका ड्राइवर लाइसेंस नंबर या 'सिर्फ' अस्वीकार किए गए कोई प्रेमी, इनमें से कोई भी बात ‘आप कौन है’ इस सवाल का जवाब नहीं हैं। आप परमेश्वर की संतान है- आप परमेश्वर की प्रतिछाया और सादृश्य में बने व्यक्ति हैं। आप वास्तव में उनकी कारीगरी हैं। यही हमारी पहचान है, परमेश्वर में हम यही हैं। 2. परमेश्वर हमें उद्देश्य देता है परमेश्वर में, हमें एहसास होता है कि हम यहाँ क्यों हैं - हमारे जीवन को जो परमेश्वर ने हमें दिया है, उसमें एक योजना, उद्देश्य और संरचना है। परमेश्वर ने हमें इस दुनिया में - उसे जानने, प्यार करने और उसकी सेवा करने के उद्देश्य के लिए बनाया है 3. आपकी एक नियति है हमारी नियति इस दुनिया में रहने के लिए नहीं, बल्कि अनंतता में अपने पिता के साथ रहने और उनके अटूट प्यार को प्राप्त करने के लिए है। पिता को प्रेम की रचयिता के रूप में जानने से हमें उस जीवन को प्राप्त करने, उस जीवन को सम्मान देने और जो ईश्वर हमसे चाहता है उस भरपूर जीवन को साझा करने केलिए आमंत्रण मिलता है । यह हमें इस अर्थ में बढ़ने के लिए प्रेरित करता है कि हम कौन हैं - हमारी अच्छाई, विशिष्टता और सुंदरता क्या है इसे जानने के लिए भी । पिता का प्रेम एक ठोस प्रेम है: "ईश्वर के प्रेम की पहचान इस में है कि पहले हमने ईश्वर को नहीं, बल्कि ईश्वर ने हमको प्यार किया और हमारे पापों के प्रायश्चित के लिए अपने पुत्र को भेजा।" (1 योहन 4:10) ईश्वर का प्रेम इस तथ्य पर विचार नहीं करता है कि हम हर दिन परिपूर्ण होते हैं, या हम कभी उदास या निराश नहीं होते हैं। यह तथ्य कि ईश्वर ने हमसे प्रेम किया है और अपने पुत्र को हमारे पापों के लिए बलिदान के रूप में भेजा है, वह एक प्रोत्साहन है जो हमें अवसाद के अंधेरे का मुकाबला करने में मदद कर सकता है। अपने मूल में, ईश्वर दंड देने वाला कोई न्यायाधीश नहीं, बल्कि प्यार करने वाला माता-पिता है। चाहे हमारे आस-पास कोई भी कुछ भी करे, ईश्वर ने हमसे प्यार किया है और हमें प्यार करता है, यह समझ हमें सहारा देती है। यह वास्तव में हमारी सबसे बड़ी मानवीय आवश्यकता है। हम सब अकेले हैं; हम सभी, कुछ ऐसी चीज़ की खोज और तलाश कर रहे हैं जो यह दुनिया हमें नहीं दे सकती। हर दिन हमारे ईश्वर की प्रेमपूर्ण दृष्टि में शांत बैठें और ईश्वर को आपसे प्रेम करने दें। कल्पना कीजिए कि ईश्वर आपको गले लगा रहा है, आपका पोषण कर रहा है और आपके डर, घबराहट और चिंता को दूर कर रहा है। परमपिता परमेश्वर का प्रेम प्रत्येक कोशिका, मांसपेशी और रक्त की धमनियों में प्रवाहित होने दें। उसी प्रेम को हमारे जीवन से अंधकार और भय को दूर करने दें। दुनिया कभी भी एक आदर्श स्थान नहीं बन सकती, इसलिए हमें ईश्वर को अपनी आशा से भरने के लिए आमंत्रित करने की आवश्यकता है। यदि आप आज संघर्ष कर रहे हैं, तो किसी मित्र के पास पहुंचें और अपने मित्र को ईश्वर के हाथ और आंखें बनने दें, उन्हें आपको गले लगाने दे और आपसे प्यार करने दे। मेरे 72 वर्षों में कई बार ऐसा हुआ है जब मैं उन दोस्तों के पास पहुंचा हूं जिन्होंने मुझे संभाला, मेरा पालन-पोषण किया और मुझे सिखाया। अपनी माँ की गोद में बैठे बच्चे जैसे ईश्वर की उपस्थिति में बैठे रहें, और तब तक संतुष्ट बैठे रहें जब तक कि आपका शरीर और मन यह सच्चाई न सीख ले कि आप ईश्वर की एक अनमोल, सुंदर संतान हैं, कि आपके जीवन का अपना एक मूल्य, उद्देश्य, अर्थ और दिशा है। ईश्वर को अपने जीवन में बहने दे।
By: फादर रॉबर्ट जे. मिलर
More‘पाँच मिनट के लिए टाइमर सेट करें और इस व्यक्ति के लिए ईश्वर का शुक्रिया अदा करें।’ आप सोच रहे होंगे कि मैं किस बारे में बात कर रही हूँ। कभी-कभी, हम ईश्वर से उन लोगों के बारे में बात करना भूल जाते हैं जिन्हें ईश्वर हमारे जीवन में ले आते हैं। कई बार, मैं यह भूल जाती हूँ। ईश्वर की कृपा से, एक दिन मेरे दिल में शांति की कमी के बारे में कुछ करने का मैंने फैसला किया । कई साल पहले, अपने जीवन में एक व्यक्ति के कारण, मैं मुश्किल समय से गुज़र रही थी। इसके बारे में मैं अधिक वर्णन नहीं करूंगी । मेरी समस्या यह थी कि यह मुद्दा वास्तव में मुझे परेशान करता था। क्या आप कभी ऐसी स्थिति में रहे हैं? मैंने इसके बारे में एक पुरोहित से बात करने का फैसला किया और मैं पाप स्वीकार के लिए गई। मेरे पाप स्वीकार को सुनने के बाद, पुरोहित ने मुझे क्षमा दी और प्रायश्चित केलिए कुछ सुझाव दिए । अनुमान लगाइए कि मेरा प्रायश्चित क्या था? उनका सुझाव था: ‘टाइमर सेट करो’! “मैं चाहता हूँ कि आप इस व्यक्ति के लिए ईश्वर का शुक्रिया अदा करने में पाँच मिनट बिताएँ।” पाँच मिनट पाँच मिनट? वाह! दृढ़ निश्चय के साथ मैंने खुद से कहा, मैं यह आसानी से कर सकती हूँ। मैं गिरजाघर से बाहर निकली और अपनी कार में चली गयी। मैंने अपनी घड़ी पाँच मिनट के लिए सेट की, और तुरंत, मैं फंस गयी । वाह, यह वास्तव में कठिन है! लेकिन, धीरे-धीरे, मुझे इस व्यक्ति के लिए ईश्वर को धन्यवाद देने के छोटे-छोटे तरीके मिल गए। मैंने अपनी घड़ी देखी... उफ़, केवल एक मिनट बीता था। मैंने पूरे दिल से प्रार्थना करना जारी रखा। मैं यह करना चाहती हूँ! फिर से, मैंने ईश्वर को धन्यवाद देना शुरू कर दिया। जैसे-जैसे मिनट धीरे-धीरे बीतते गए, यह सरल और आसान होता गया। मेरे पाँच मिनट अभी भी पूरे नहीं हुए थे। दृढ़ निश्चय की नई भावना के साथ आगे बढ़ते हुए, मैंने पाया कि मैं छोटी-छोटी कठिनाइयों के लिए भी ईश्वर को धन्यवाद दे पा रही थी। अंदर, मेरा दिल उछल रहा था! इस व्यक्ति के लिए प्रार्थना करते समय, वास्तव में मेरे दिल को बदलने का काम हो रहा था। मैं इन कठिनाइयों से इतना क्यों घिरी हुई थी? मैं ने अनुभव किया कि वह वास्तव में एक अच्छा व्यक्ति है। स्मृतियाँ मुझे अक्सर वह दिन याद आता है। जब मैं किसी के साथ कठिनाइयों का सामना करती हूँ, तो मैं ने उस विशेष तपस्या से जो सीखा था उसे लागू करने का प्रयास करती हूँ। क्या आपको वह वादा याद है जब हम पश्चाताप के कार्य का पाठ करते हैं? हमारे पापों से मुक्त होने से पहले वे अंतिम शब्द? “… मैं आपकी कृपा की सहायता से अपने पापों को स्वीकार करने, प्रायश्चित करने और अपने जीवन को सुधारने का दृढ़ संकल्प करता हूँ। आमेन।” कोई किसी कठिनाई से गुज़र रहा है, उसके उस अनुभव के बारे में मैं जब सोचती हूँ, तो मैं रुक जाती हूँ, टाइमर सेट करती हूँ, और पाँच मिनट बिताकर उनके लिए ईश्वर का धन्यवाद करती हूँ। यह हमेशा मुझे आश्चर्यचकित करता है कि ईश्वर इतने कम समय में मेरे दिल को कैसे बदल सकता है। येशु ने उन्हें देखा और कहा: “मनुष्यों के लिए यह असंभव है, लेकिन परमेश्वर के लिए सब कुछ संभव है।” (मत्ती 19:26) धन्यवाद येशु, उस पुरोहित के लिए जो कभी-कभी हमें एक कठिन लेकिन बहुत जरूरी प्रायश्चित देता है। धन्यवाद येशु, तेरे स्वास्थ्य दायक स्पर्श के लिए। धन्यवाद, येशु, हर उस व्यक्ति के लिए जिसे तू ने हमारे मार्ग पर रखा। धन्यवाद, येशु, हमें इतना प्यार करने के लिए! पाँच मिनट इतने कम समय थे और दिल की शांति का इतने बड़े इनाम को पाने के लिए वह बहुत कम समय था। "येशु ने उनसे फिर कहा, 'तुम्हें शांति मिले!'" (योहन 20:21)
By: कैरल ऑसबर्न
Moreमुझे याद है, मेरी सेवकाई के दौरान मुझे लगा कि मेरे साथी सेवक मुझ से दूरी बनाए रख रहा हैI और इसका कोई कारण भी नहीं दिखाई दे रहा थाI ऐसा लग रहा था कि वह कुछ संघर्ष से गुज़र रहा था, लेकिन वह मुझसे इसके बारे में बताने से हिचक रहा थाI चालीसा काल के दौरान एक दिन अपने कार्यालय में खड़ी होकर प्रभु के सम्मुख मैं ने अपने ह्रदय से पुकारा: “येशु, लगता है कि मैं इस आदमी के जीवन से बाहर धकेली गयी हूँI” तुरंत, मैंने येशु को इन शब्दों में मुझे जवाब देते हुए सुना: मुझे पता है कि तुम किस दर्द से गुज़र रही होI मेरे साथ यह प्रतिदिन होता हैI” ओह, मुझे लगा कि मेरा ह्रदय छेदा गया है, और मेरी आँखों में आंसू भर गए, मैं जानती थी कि ये शब्द एक खजाना थाI महीनों उस कृपा को समझने केलिए मैं प्रयास करती रहीI 20 वर्ष पूर्व मैं ने पवित्रात्मा में बप्तिस्मा प्राप्त किया थाI तब से मैं अपने पाप को सौभाग्यशाली समझती थी, कि येशु के साथ मेरा गहरा व्यक्तिगत और आत्मीय सम्बन्ध हैI मैंने कई महीनों तक उस अनुग्रह को समझने की कोशिश करती रही। बीस साल पहले पवित्र आत्मा में बपतिस्मा लेने के बाद से, मैंने माना था कि येशु के साथ मेरा एक गहरा व्यक्तिगत रिश्ता था। लेकिन मेरे अनमोल उद्धारकर्ता और प्रभु के इस वचन ने येशु के हृदय में एक नई अंतर्दृष्टि खोली। "हाँ, येशु, बहुत से लोग आपको भूल जाते हैं, है न? और मैं भी— कितनी बार मैं अपने कामों में व्यस्त रहती हूँ, अपनी समस्याओं और विचारों को आपके पास लाना भूल जाती हूँ? इस दौरान, आप मेरा इंतज़ार करते हैं कि मैं आपकी ओर लौटूँ, जो मुझे इतने प्यार से देखता है।" अपनी प्रार्थना में, मैं उन शब्दों को दोहराती रही। "अब मैं बेहतर तरीके से जानती हूँ कि जब कोई तुझे अस्वीकार करता है, तुझ पर आरोप लगाता है या तुझे दोषी ठहराता है, या कई दिनों या सालों तक तुझसे बात नहीं करता है, तो तुझे कैसा महसूस होता है।" मैं और अधिक सचेत रूप से अपने दुखों को येशु के पास ले जाती और उनसे कहती: "येशु, मेरे प्रिय, तू भी वही दुख महसूस करता जो मैं महसूस कर रही हूँ। मैं अपने छोटे-छोटे दुखों को तुझे सांत्वना देने के लिए अर्पित करती हूँ, क्योंकि मैं खुद भी कई लोगों के साथ हूँ, जो तुझे सांत्वना देने में विफल रहते हैं।" मैंने एक नए तरीके से येशु की वह छवि देखी, जिसे मैं बहुत पसंद करती हूँ, येशु अपने पवित्र हृदय से प्रेम की किरणों को बहाते हुए, संत मार्गरेट मैरी से विलाप करते हुए कहते हैं: "मेरे हृदय को देखो, जो लोगों से बहुत प्यार करता है - लेकिन बदले में उन लोगों से बहुत कम प्यार पाता है।" सचमुच, येशु मुझे प्रतिदिन छोटी-छोटी परीक्षाएँ देते हैं ताकि मैं उनके द्वारा हमारे लिए सहन की जाने वाली पीड़ा का थोड़ा सा स्वाद ले सकूँ। मैं हमेशा उस पीड़ा के क्षण को याद रखूँगी जिसने मुझे हमारे प्यारे प्रभु येशु के अद्भुत, कोमल, लंबे समय तक पीड़ित रहने वाले प्रेम के करीब ला दिया।
By: Sister Jane M. Abeln SMIC
Moreदूसरों को आंकना आसान है, लेकिन अक्सर हम दूसरों के बारे में अपने फैसले में पूरी तरह से गलत हो जाते हैं। मुझे एक बूढ़ा आदमी याद है जो शनिवार की रात को पवित्र मिस्सा पूजा में आता था। बहुत दिनों से उसने नहाया नहीं था और उसके पास साफ कपडे नहीं थे। सच कहूँ तो, उसके बदन से बदबू आती थी। आप उन लोगों को दोष नहीं दे सकते जो इस भयानक गंध से दूर रहना चाहते थे। वह बूढा प्रतिदिन हमारे छोटे शहर में दो या तीन मील पैदल चलता था, कचरा उठाता था, और एक पुरानी जर्जर झोपड़ी में अकेला रहता था। हमारे लिए किसी के बाह्य रूप के आधार पर निर्णय लेना आसान है। है न? मुझे लगता है कि यह इंसान होने का एक स्वाभाविक हिस्सा है। मुझे नहीं पता कि कितनी बार किसी व्यक्ति के बारे में मेरे निर्णय पूरी तरह से गलत थे। वास्तव में, ईश्वर की मदद के बिना दिखावे से परे देखना काफी मुश्किल है, मगर असंभव नहीं है। उदाहरण के लिए, यह आदमी, अपने अजीब व्यक्तित्व के बावजूद, हर हफ्ते मिस्सा बलिदान में भाग लेने के बारे में बहुत वफादार था। एक दिन, मैंने फैसला किया कि मैं नियमित रूप से मिस्सा में उसके बगल में बैठूंगी। हाँ, उसके देह से बदबू आ रही थी, लेकिन उसे दूसरों के प्यार की भी ज़रूरत थी। ईश्वर की कृपा से, बदबू ने मुझे ज़्यादा परेशान नहीं किया। पुरोहित द्वारा आपस में शांति देने के लिए कहने पर, मैं ने उसकी आँखों में देखा, मुस्कुरायी, और मैं ने ईमानदारी से उसका अभिवादन इन शब्दों में किया : "ख्रीस्त की शांति आपके साथ हो।" इसे कभी न छोड़ें ईश्वर मुझे अवसर देना चाहता है कि मैं दूसरे को उसके शारीरिक ढांचा या बाहरी रूप से परे देखूं और उस व्यक्ति के दिल में झाँकूँ। जब मैं किसी व्यक्ति के बारे में उसके बही रूप के आधार पर निर्णय लेती हूँ, तो मैं वह अवसर खो देती हूँ। यही येशु ने अपनी जीवन यात्रा के दौरान मिले प्रत्येक व्यक्ति के साथ किया, और वह हमारी गंदगी से परे हमारे दिलों को देखना जारी रखता है। मुझे याद है कि एक बार जब मैं अपने कैथलिक विश्वास से कई साल दूर थी, मैं गिरजाघर की पार्किंग में बैठी थी, मिस्सा में भाग लेने के लिए गिरजाघर के दरवाज़े से अंदर जाने के लिए पर्याप्त साहस जुटाने की कोशिश कर रही थी। मुझे इतना डर था कि दूसरे लोग मेरे बारे में गलत निर्णय लेंगे और मेरा स्वागत नहीं करेंगे। मैंने येशु से मेरे साथ चलने के लिए कहा। गिरजाघर में प्रवेश करने पर, एक डीकन ने मेरा अभिवादन किया; उन्होंने मुझे एक बड़ी मुस्कान देकर गले लगाया, और कहा: "आपका स्वागत है।" मुझे मुस्कान और आलिंगन की ज़रूरत थी ताकि मैं महसूस कर सकूँ कि मैं यहाँ की हूँ और फिर से अपने ही घर पर हूँ। उस बूढ़े आदमी के साथ बैठना जो बदबूदार था, मेरे लिए "भुगतान आगे बढ़ाने" का तरीका था। मुझे पता था कि मैं कितनी बेसब्री से स्वागत महसूस करना चाहती थी, यह महसूस करना चाहती थी कि मैं भी शामिल हूँ और मेरा भी महत्व है। हमें एक-दूसरे का स्वागत करने में संकोच नहीं करना चाहिए, खासकर उन लोगों का जिनके साथ रहना मुश्किल है।
By: कॉनी बेकमैन
Moreमैंने एक साल पहले अपना आई-फोन खो दिया था। पहले तो ऐसा लगा जैसे शरीर का कोई अंग कट गया हो। मेरे पास तेरह साल से यह आई-फोन था और यह मेरे स्वयं के एक हिस्से की तरह था। शुरूआती दिनों में, मैंने "नए आई-फोन" को सिर्फ एक फ़ोन की तरह इस्तेमाल किया, लेकिन जल्द ही यह अलार्म घड़ी, कैलकुलेटर, अखबार, मौसम, बैंकिंग और बहुत कुछ बन गया...और फिर...यह हाथ से निकल गया। आई फोन खो जाने के बाद जब मुझे डिजिटल डिटॉक्स, यानी आई फोन के कारण मेरे मन में व्याप्त विष उन्मूलन की प्रक्रिया में जाने के लिए मजबूर किया गया, तो मेरे सामने कई गंभीर समस्याएँ खड़ी हो गईं। अब से मुझे अपनी शॉपिंग की सूची को कागज़ पर लिखने की ज़रूरत पड़ी। मैं ने एक अलार्म घड़ी और एक कैलकुलेटर खरीदा। पूर्व में, मुझे रोज़ाना सन्देश आने पर जो 'पिंग' आवाज़ आई-फोन से सुनाई देती थी और उन संदेशों को जल्दी जल्दी देखने की होड़ थी (और दूसरों द्वारा स्वीकृत किये जाने और चाहने का एहसास), ये सारी बातें अब केवल स्मृतियाँ रह गयीं। लेकिन अब इस छोटे से धातु का टुकड़ा मेरे जीवन पर हावी नहीं हो रही है, और उससे अब मैं अपार शांति महसूस कर रही थी। जब यह यंत्र मेरे हाथ से चला गया, तभी मुझे यह एहसास हुआ कि यह मुझसे कितनी प्रकार की मांग करती थी, और मुझ पर हावी होकर मेरा नियंत्रण करती थी। तब भी दुनिया रुकी नहीं। मुझे बस दुनिया के साथ बातचीत करने के नए-पुराने तरीके सीखने थे, जैसे लोगों से आमने-सामने बात करना और घटनाओं की योजना बनाना। मैं इसे बदलने की जल्दी में नहीं थी। वास्तव में, इसके खत्म होने से मेरे जीवन में एक स्वागत योग्य क्रांति आई। मैंने अपने जीवन में मीडिया का न्यूनतम प्रयोग करना शुरू कर दिया। अब से कोई अखबार, पत्रिकाएँ, रेडियो, टेलीविज़न या फ़ोन नहीं। मैंने काम के ईमेल, सप्ताहांत पर चुनिंदा यू ट्यूब वीडियोज़ और कुछ स्वतंत्र समाचार पोर्टल के लिए एक आइ-पैड रखा। यह एक प्रयोग था, लेकिन इसने मुझे अमन और शांति महसूस कराया, जिससे मैं अपना समय प्रार्थना और धर्म ग्रन्थ के अध्ययन के लिए उपयोग कर सकी। मैं अब और अधिक आसानी से परमेश्वर से जुड़ सकती हूँ, जो "कल, आज और युगानुयुग एकरूप रहते हैं।" (इब्रानी 13:8)। पहली आज्ञा "अपने प्रभु ईश्वर को अपने सारे ह्रदय, अपनी सारी आत्मा, अपनी सारी बुद्धि और सारी शक्ति से प्यार करने और अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करने" के लिए हमें कहती है (मारकुस 12:30-31)। मुझे आश्चर्य होता है कि जब हमारा दिमाग दिन के ज़्यादातर समय हमारे फ़ोन पर लगा रहता है, तब हम ऐसा कैसे कर सकते हैं ! क्या हम वाकई अपनी बुद्धि से परमेश्वर से प्यार करते हैं? रोमी 12:2 कहता है: "आप इस संसार के अनुकूल न बने, बल्कि सब कुछ नयी दृष्टि से देखें और अपना स्वभाव बदल लें।" मैं आपको चुनौती देती हूँ कि आप मीडिया से विरक्त रहें, चाहे थोड़े समय के लिए ही क्यों न हो। अपने जीवन में उस परिवर्तनकारी अंतर को महसूस करें। जब हम खुद को थोड़ा आराम देंगे तभी हम अपने प्रभु परमेश्वर को नवीकृत मन से प्रेम कर पायेंगे।
By: Jacinta Heley
Moreक्या आप एक स्थायी शांति का सपना देख रहे हैं जो आप कितनी भी कोशिश कर लें, आपको मिल नहीं पाती? यह स्वाभाविक है कि हम एक बदलते, अप्रत्याशित दुनिया में हमेशा महसूस करते हैं कि हम बिना तैयारी के हैं। इस भयावह और थकाऊ समय में, डरना आसान हो जाता है — जैसे एक फंसा हुआ जानवर जिसके पास भागने का कोई रास्ता नहीं है। अगर हम केवल कड़ी मेहनत करते, लंबे समय तक काम करते, या अधिक नियंत्रण में होते, तो शायद चीज़ें हमारी पकड़ में आ जाते और आखिरकार हम आराम कर पाते और शांति पा सकते। मैंने दशकों तक इस तरह का जीवन बिताया है। अपने आप पर और अपनी कोशिशों पर निर्भर रहते हुए, मैं कभी वास्तव में 'पकड़ में' नहीं ला पायी। धीरे-धीरे मुझे अहसास हुआ कि इस तरह जीना एक भ्रम था। आखिरकार, मुझे एक समाधान मिला जिसने मेरे जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया। यह उस चीज़ के विपरीत महसूस हो सकता है जो आवश्यक है, लेकिन मुझ पर विश्वास करें जब मैं कहती हूं: शांति की इस श्रमसाध्य खोज का उत्तर समर्पण में ही है। सर्वश्रेष्ठ कदम एक कैथलिक के रूप में, मुझे पता है कि मुझे अपने भारी बोझों को ईश्वर को सौंपना चाहिए। मुझे यह भी पता है कि मुझे 'येशु को अपनी जीवन गाडी का ‘स्टीयरिंग’ सौंपना चाहिए' ताकि मेरा बोझ हल्का हो सके। मेरी समस्या यह थी कि मुझे यह नहीं पता था कि "अपने बोझों को प्रभु को कैसे सौंपें।" मैं प्रार्थना करती, विनती करती, कभी-कभी समझौता करती, और एक बार तो मैंने ईश्वर को समय का डेडलाइन भी दे दिया (यह घटना तब समाप्त हुई जब मुझे संत पाद्रे पियो ने एक साधना के दौरान सन्देश के रूप में समझाया: "ईश्वर को समय का डेडलाइन मत दो।" तो, हमें क्या करना चाहिए? मनुष्यों के रूप में, हम हर चीज़ को अपने पास मौजूद एक जानकारी के अंश और सभी प्राकृतिक और अलौकिक कारकों की अत्यंत सीमित समझ के आधार पर रखते हैं। जबकि मेरे पास सर्वोत्तम समाधानों पर अपने विचार हो सकते हैं, मैं अपने मन में उसे स्पष्ट रूप से सुनती हूँ: "मेरे मार्ग तुम्हारे मार्ग नहीं हैं, बार्ब, न ही मेरे विचार तुम्हारे विचार," भगवान कहते हैं। समझौता यह है। भगवान भगवान हैं, और हम नहीं। वह सब कुछ जानते हैं—भूत, वर्तमान, और भविष्य। हम कुछ भी नहीं जानते। निश्चित रूप से, भगवान अपनी सर्वव्यापी बुद्धि में, हमसे बेहतर चीज़ों को समझते हैं, जैसे कि समय और इतिहास में सर्वोत्तम कदम उठाना। कैसे समर्पण करें यदि आपके जीवन में आपकी सभी मानवीय प्रयासों से कुछ भी सही नहीं हो रहा है, तो उन्हें समर्पण करना आवश्यक है। लेकिन समर्पण का मतलब यह नहीं है कि हम ईश्वर को एक वेंडिंग मशीन की तरह देखें, जिसमें हम अपनी प्रार्थनाएँ डालें और कैसा उत्तर हम उनसे चाहते हैं, उसका फैसला हम करें । यदि आप भी मेरी तरह समर्पण करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, तो मैं वह उपाय साझा करना चाहूँगा जो मैंने पाया: वह है समर्पण का नवरोज़ी प्रार्थना। मुझे इसके बारे में कुछ साल पहले परिचित कराया गया था और इसके लिए मैं बहुत ही आभारी हूँ। प्रभु के सेवक, फादर डॉन डोलिंडो रुओटोला, जो पाद्रे पियो के आध्यात्मिक निदेशक थे, उन्हें यह नोवेना येशु मसीह से प्राप्त हुई थी। नोवेना का प्रत्येक दिन अद्वितीय रूप से हर व्यक्ति से प्रभु येशु बात करते हैं, और केवल येशु ही जानते हैं कि किस तरह लोगों को संबोधित करना है। हर दिन दोहराए जाने वाले शब्दों के बजाय, जिन बाधाओं के कारण हमें वास्तव में समर्पण करने में दिक्कत होती हैं, या जिस प्रकार प्रभु को अपने काम को अपने सही तरीके और सही समय पर करने में जो बातें बाधा बनकर उन्हें रोकती हैं, उन के बारे में हमें बहुत अच्छी तरह से जानने वाले मसीह, हमें याद दिलाते हैं। नोवेना का समापन कथन है: "हे येशु, मैं खुद को तेरे हवाले करता हूँ, तू हर चीज का ख्याल रखें," इसे दस बार दोहराया जाता है। क्यों? क्योंकि हमें विश्वास करने और मसीह येशु पर पूरी तरह से भरोसा करने की जरूरत है कि वही हर चीज का सही ख्याल रखेंगे।
By: बारबरा लिश्को
Moreएक विजयी संयोजन भीतर पक रहा है। क्या आप उसका स्वाद चखना चाहते हैं? 1953 में, बिशप फुल्टन शीन ने लिखा, "पश्चिमी सभ्यताओं में अधिकांश लोग धन संपत्ति और दौलत प्राप्त करने के कार्य में लगे हुए हैं।" इन शब्दों में आज भी उतनी ही सच्चाई है। हम ईमानदारी से विचार करें। इन दिनों, प्रभावशाली लोगों की एक पूरी उपसंस्कृति है, और जिन विशेष उत्पादों की वे वकालत करते हैं, उन्हें खरीदने केलिए उनके अनुयायियों को सफल रूप से प्रेरित करने हेतु उनकी भव्य और अति महंगी जीवन शैली को प्रायोजित किया जाता है। आज प्रभाव, उपभोक्तावाद और लालच प्रचुर मात्रा में है। हम स्मार्टफ़ोन के नवीनतम मॉडल की चाहत उसके बाज़ार में आने से पहले ही रखते हैं। हम सबसे आधुनिक वस्तुओं पर, प्रचलन में आने से पूर्व ही, अपना हाथ जमाना चाहते हैं। हम जानते हैं कि लगातार बदलते रुझान के पैटर्न को देखते हुए, इन्हीं उत्पादों को 'उत्कृष्ट प्रयुक्त स्थिति में' या इससे भी बदतर, 'टैग के साथ बिल्कुल नया' लेबल वाले वैकल्पिक मीडिया के माध्यम से विज्ञापित किए जाने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। शीन कहती है, “धन का संचयन आत्मा पर एक अजीब प्रभाव डालता है; यह और अधिक पाने की इच्छा को तीव्र करता है।” दूसरे शब्दों में, जितना अधिक हम प्राप्त करते हैं, उतना ही अधिक हम बटोरना चाहते हैं। धन के माध्यम से संतुष्टि की यह अंतहीन खोज हमें थका देती है और हमारे अस्तित्व में थकान पैदा कर देती है, चाहे हमें इसका एहसास हो या न हो। तो फिर, अगर धन इकट्ठा करना अनिवार्य रूप से एक निर्विवाद इच्छा है, तो जिस उपभोक्तावादी दुनिया में हम रहते हैं उसमें हमें खुशी, आत्म-सम्मान और संतुष्टि कैसे मिलेगी? धैर्य और कृतज्ञता संत पौलुस हमें निर्देश देते हैं, “आप लोग हर समय प्रसन्न रहें, निरंतर प्रार्थना करते रहें, सब बातों केलिए ईश्वर को धन्यवाद दें; क्योंकि येशु मसीह के अनुसार आप लोगों के विषय में ईश्वर की इच्छा यही है” (1 थेसलनीकी 5:16-18)। हममें से अधिकांश लोग यह स्वीकार करेंगे कि यह कहना जितना आसान है, करना उतना आसान नहीं है। लेकिन क्या इसका मतलब यह है कि यह असंभव है? जोखिम और संघर्ष का जीवन जीने के बावजूद, मसीही धर्म के पूर्वजों में से एक, संत पौलुस ने नमूना पेश किया। क्या उन्हें मसीही धर्म का प्रचार करने के लिए जेल में डाल दिया गया था? बिल्कुल सही। क्या उसकी जान ख़तरे में थी? निरंतर खतरे में थी। क्या उनका जहाज़ पोतभंग होकर नष्ट किया गया, उन पर पथराव किया गया और उनको ताना मारा गया? जी बिलकुल, बिना किसी संशय के। और इन सब के, और अधिक चुनौतियों के बावजूद, संत पौलुस नियमित रूप से मसीहियों को प्रोत्साहित करते थे, "किसी बात की चिंता न करें। हर ज़रुरत में प्रार्थना करें और विनय तथा धन्यवाद के साथ ईश्वर के सामने अपने निवेदन प्रस्तुत करें और ईश्वर की शांति, जो हमारी समझ से परे है, आपके हृदयों और विचारों को येशु मसीह में सुरक्षित रखेगी” (फिलिप्पियों 4:6-7)। वास्तव में, ईश्वर के प्रति कृतज्ञता और उचित धन्यवाद और प्रशंसा करना, कलीसियाओं के साथ पौलुस के पत्राचार का एक आवर्ती और निरंतर विषय था। रोम से कुरिंथ, एफेसुस से फिलिप्पी तक, प्रारंभिक ईसाइयों को सभी परिस्थितियों में - न कि केवल अच्छे परिस्थितियों में - धन्यवाद देने यानी आभारी होने के लिए प्रोत्साहित किया गया। फिर, जैसा कि अब है, यह प्रोत्साहन सामयिक और संघर्षपूर्ण दोनों है। हालाँकि, सभी परिस्थितियों में आभारी होने के लिए प्रार्थना, प्रयास और दृढ़तापूर्ण निरंतरता की आवश्यकता होती है। आभारी और उदार परोपकार यदि हम संत पौलुस के उदाहरण का अनुसरण करें और जो हमारे पास है उसकी कृतज्ञता के साथ जांच करें, तो वह कैसा दिखेगा? हमारे सिर के ऊपर छत है , बिलों का भुगतान करने और परिवार को खिलाने के लिए पैसा है, और रास्ते में छोटी-छोटी सुविधाओं पर खर्च करने के लिए पर्याप्त पैसा है - क्या हम इसके लिए आभारी होंगे? क्या हम अपने परिवार और आसपास मौजूद अन्य परिवारों, मित्रों, व्यवसायों और ईश्वर द्वारा हमें प्रदान की गई प्रतिभाओं के प्रति आभारी होंगे? क्या हम अब भी जो चलन में है उसका आंख मूंदकर अनुसरण करना चाहेंगे और अपना पैसा, ऊर्जा और खुशियां उन चीजों पर बर्बाद कर देंगे जिनकी हमें जरूरत नहीं है और जिन्हें हम नहीं चाहते हैं? क्या हमारे पास जो कुछ है और जिस पर हम अपना पैसा खर्च करते हैं, उसके प्रति अधिक व्यवस्थित और विवेकपूर्ण दृष्टिकोण अपनाया जा सकता है? बेशक, कृतज्ञता के अभ्यास में हमारी सफलता का माप हमारे द्वारा इसमें लगाई गई ऊर्जा से तय होता है। किसी भी आध्यात्मिक प्रयास की तरह, हम रातोंरात कृतज्ञता में कुशल नहीं बनने जा रहे हैं। इसमें समय और प्रयास लगने वाला है। धीरे-धीरे, लेकिन निश्चित रूप से, कृतज्ञता दुनिया को देखने के हमारे तरीके को बदल देगी। हमारे पास जो कुछ भी है उसकी सराहना करने और उसके लिए आभारी होने और जरूरत से ज्यादा चीज़ों के पीछे न भागने से, हम खुद को अपने लिए चीज़ें बटोरने या पाने के बजाय दूसरों को देने के लिए बेहतर तरीके से प्रवृत्त होते हैं। कृतज्ञता और उदारता से दूसरों को देने का यह संयोजन एक विजयी संयोजन है। एक बार फिर, बिशप फुल्टन शीन सहमत हैं, "लेने की तुलना में देना अधिक धन्य है क्योंकि यह आत्मा को भौतिक और लौकिक से अलग करने में मदद करता है ताकि उसे परोपकारिता और दान की भावना से जोड़ा जा सके जो कि धर्म का सार है।" अपनी भलाई में आनंदित होने की अपेक्षा दूसरों की भलाई में आनंदित होने में अधिक खुशी है। लेने वाला अपनी भलाई से आनन्दित होता है; दाता दूसरों की खुशी में आनन्दित होता है, और इस तरह के लोगों को ऐसी शांति मिलती है जो दुनिया की कोई भी चीज़ नहीं दे सकती है।'' कृतज्ञता को आगे बढ़ाएँ आभार व्यक्त करने में आगे बढ़ने की मानसिकता शामिल होती है। कृतज्ञता में बढ़ने का अर्थ है आत्म-ज्ञान, ईश्वर के ज्ञान और हमारे लिए उनकी योजना में आगे बढ़ना। धन इकट्ठा करने की चक्रीय प्रकृति और खुशी की व्यर्थ खोज से खुद को अलग करके, हम जहां हैं वहीं खुशी खोजने के लिए खुद को खोल देते हैं। हम ईश्वर की भलाई के परिणामस्वरूप अपने और अपने लाभों की सही प्राथमिकता भी सुनिश्चित करते हैं। संत पौलुस की तरह, हम पहचान सकते हैं, "ईश्वर सबकुछ का मूल कारण, प्रेरणा स्रोत तथा लक्ष्य है। उसी को अनंत काल तक महिमा! आमेन!" (रोमी 11:30) कृतज्ञता का यह रवैया - जो जीभ से लयबद्ध और काव्यात्मक रूप से निकलता है - हमें उन चीजों में उम्मीद की किरण देखने में भी मदद करता है जो हमेशा उस तरह से नहीं बनती हैं जैसा हम चाहते हैं। और यह कृतज्ञता का सबसे मार्मिक और सुंदर पहलू है, यह आभार का आध्यात्मिक पहलू है। जैसा कि संत अगस्तीन बताते हैं, "ईश्वर इतना अच्छा है कि उसके हाथ में बुराई भी अच्छाई लाती है। यदि वह अपनी संपूर्ण अच्छाई के कारण इसका उपयोग करने में सक्षम नहीं होता, तो वह कभी भी बुराई घटित नहीं होने देता।”
By: Emily Shaw
Moreअक्सर लोग ऐसी हरकतें करते हैं जो हमें परेशान कर देती हैं। लेकिन अगर हमारा दिल पवित्रता की ओर अग्रसर है, तो हम इन हरकतों से उपजी हमारी कुंठाओ को आध्यात्मिक प्रगति के अवसरों में बदल सकते हैं। काफी लंबे समय तक जहां सिस्टर थेरेस मनन चिंतन के लिए बैठती थी, वह जगह एक ऐसी चंचल सिस्टर के बगल में थी जो हमेशा या तो अपनी रोज़री से या किसी ना किसी चीज़ से खेलती, कुछ आवाज़ निकलती रहती थी। सिस्टर थेरेस ऐसी बेवजह की आवाज़ों को लेकर बड़ी संवेदनशील थी और इस परिस्थिति में उनके लिए मनन चिंतन पर ध्यान केंद्रित करना बहुत मुश्किल हो जाता था। हालांकि सिस्टर थेरेस यह समझती थी कि बाकी लोग उनकी तरह संवेदनशील नही हैं, फिर भी कभी कभी उनका मन होता था कि पलट कर उस सिस्टर को इतनी कड़ी निगाहों से देखूं कि वह सिस्टर फिर कभी इस तरह की आवाज़ निकालने की गलती ना करे। पर इन सब के बीच, दिल ही दिल में सिस्टर थेरेस जानती थी कि उनके लिए धैर्य मन से सब सह जाना ही सही था। क्योंकि ऐसा करने से वह ईश्वर के प्रेम के अनुरूप कार्य करेंगी और उस सिस्टर को तकलीफ भी नही पहुंचाएंगी। इसीलिए वह चुपचाप ध्यान लगाने की कोशिश करने लगी, अपनी ज़बान को काबू में करने की कोशिश करने लगी, पर इसकी वजह से पसीना छूट जाता था, और इस वजह से उन्हें घुटन और सांस लेने में तकलीफ होने लगती थी। उनके मनन चिंतन का समय उनके लिए अनकही पीड़ा का समय बन गया। लेकिन समय के साथ थेरेस इस पीड़ा को शांति और आनंद के साथ सहने लगीं, और उन्हें अपने आसपास की छोटी छोटी आवाज़ों की आदत लगने लगी। पहले वह इन आवाज़ों को ना सुनने की कोशिश करती थीं, जो कि उनके लिए नामुमकिन था, पर अब वे उन्हें ऐसे सुनने लगीं जैसे वे कोई मधुर संगीत हो। अब उनकी "शांति की प्रार्थना" "संगीत रूपी बलिदान" में परिवर्तित हो चुकी थी जिसे वे रोज़ ईश्वर को चढ़ाया करती थी। अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में हम ना जाने कितनी सारी परेशानियों का सामना करते हैं। ये सारी परेशानियां हमारे लिए धैर्य को अपनाने के वे अवसर हैं, जिन्हें हम बार बार छोड़ते जाते हैं। इन अवसरों में हम अपने गुस्से और पसंद नापसंद को प्रकट करने के बजाए अपने अंदर उदारता, समझदारी और धैर्य को जागृत करने की कोशिश कर सकते हैं। इस प्रकार धैर्य परोपकार का कार्य बन जाता है और हमारे अंदर परिवर्तन लाता है। हम सब विश्वास की इस यात्रा में सहभागी हैं, जहां हम हर नए मोड़ पर येशु को उस ईश्वर के रूप में पाते हैं जिसका दिल हमारे लिए धैर्य से भरा हुआ है।
By: Shalom Tidings
Moreएक पुरोहित रोम का दौरा कर रहा था। उन्हें संत पापा जॉन पॉल द्वितीय से निजी मुलाक़ात करने की अनुमति मिल चुकी थी। अपने रास्ते में, उन्होंने रोम के कई सुन्दर महागिरजाघरों में से एक का दौरा किया। हमेशा की तरह, गिरजाघर की सीढ़ियों पर भिखारियों की भीड़ लगी रही, लेकिन उनमें से एक पर उनकी दृष्टि पडी और वे रुक गए। "मैं तुम्हें जानता हूं। क्या हम एक साथ सेमिनरी में नहीं थे?” भिखारी ने पुष्टि में सिर हिलाया। "तो आप का पुरोहिताई अभिषेक हुआ था, है ना?" उस पुरोहित ने उससे पूछा। लेकिन उस भिखारी ने गुस्से से जवाब दिया "अब और कुछ मत बोलना! मुझे अकेला छोड़ दो!" संत पापा के साथ अपनी आसन्न मुलाक़ात को ध्यान में रखते हुए, वह पुरोहित उसके लिए प्रार्थना करने का वादा देकर चलने लगे, लेकिन भिखारी ने उनका उपहास किया, "वाह, तुम्हारी प्रार्थना से बहुत अच्छा परिणाम निकलेगा क्या, जाओ यहाँ से।" आम तौर पर, संत पापा के साथ निजी भेंट बहुत कम लोगों को ही मिलती है – संत पापा अपना आशीर्वाद और एक आशीष की गयी रोज़री माला प्रदान करते हैं, इस दौरान बहुत कम शब्दों का आदान-प्रदान किया जाता है। जब इस पुरोहित की बारी आई, उस भिखारी-पुरोहित के साथ आकस्मिक मुलाक़ात अभी भी उनके दिमाग में चल रही थी, इसलिए उन्होंने संत पापा से अपने उस मित्र के लिए प्रार्थना करने की याचना की, फिर पूरी कहानी सुनाई। संत पापा चिंतित और परेशान थे, और अधिक विवरण मांग रहे थे और उनके लिए प्रार्थना करने का वादा कर रहे थे। इतना ही नहीं, उन्हें और उनके भिखारी-मित्र को संत पापा जॉन पॉल द्वितीय के साथ अकेले रात में भोजन करने का निमंत्रण मिला। भोजन के बाद, संत पापा ने भिखारी के साथ एकांत में बात की। भिखारी आँसुओं के साथ कमरे से बाहर निकला। "क्या हुआ भीतर?" पुरोहित ने उस भिखारी से पूछा। सबसे अप्रत्याशित और अचंभित करनेवाला उत्तर आया। "संत पापा ने अपना पाप स्वीकार सुनने के लिए मुझसे कहा," बोलते बोलते भिखारी पुरोहित का गला अवरुद्ध हो गया। कुछ देर बाद पुनः आत्मसंयमित होकर, उन्होंने बोलना जारी रखा, "मैंने उनसे कहा, 'परम पावन संत पिता, मुझे देखिये। मैं एक भिखारी हूं, पुरोहित नहीं।'” "संत पापा ने कोमलता से मेरी ओर देखा और कहा, 'मेरे बेटे, एक बार पुरोहित के रूप में अभिषिक्त व्यक्ति हमेशा केलिए अभिषिक्त होता है। और हम में से कौन भिखारी नहीं है? मैं भी अपने पापों की क्षमा मांगने के लिए एक भिखारी के रूप में प्रभु के सामने आता हूं।'" एक पाप स्वीकार को सुने हुए इतना लंबा समय बीत चुका था कि पाप मुक्ति की आशीष की प्रार्थाना पूरा करने के लिए संत पापा को भिखारी पुरोहित की मदद करनी पड़ी। सब सुनाने के बाद पुरोहित ने संदेह प्रकट किया, "लेकिन आप इतने लंबे समय से वहां थे। निश्चित रूप से संत पापा को अपना पाप स्वीकार करने में इतना समय तो नहीं लगा होगा।" “नहीं", भिखारी ने कहा, "जब मैंने उनका पाप स्वीकार सुन लिया, उसके बाद मैंने उनसे मेरा पाप स्वीकार भी सुनने के लिए कहा।" दोनों के पाप स्वीकार के उपरांत, एक दूसरे से विदा लेने से पहले, संत पापा जॉन पॉल द्वितीय ने इस उडाऊ पुत्र को एक नए मिशन का दायित्व सौंप दिया – जिस गिरजाघर की सीढ़ियों में बैठकर वे भीख मांगते थे, उसी जगह जाकर वहां जानेवाले बेघरों और भिखारियों के बीच में सेवा कार्य का दायित्व।
By: Shalom Tidings
Moreजब मैंने यह प्रभावशाली प्रार्थना शुरू की थी, तो मुझे इतनी उम्मीद नहीं थी... “हे बालक येशु की नन्हीं तेरेसा, कृपया मेरे लिए स्वर्गीय बगीचे से एक गुलाब चुनिए और इसे प्रेम के संदेश के रूप में मुझे भेजिए।” यह निवेदन, जो संत तेरेसा को संबोधित ‘मुझे एक गुलाब भेजो’ नोवेना के तीन निवेदनों में से पहला है; और इस निवेदन ने मेरा ध्यान खींचा। मैं अकेली थी. एक नए शहर में बिलकुल अकेली, नए दोस्तों की चाहत के साथ। आस्था के नए जीवन में अकेली, किसी दोस्त और रोल मॉडल की चाह ली हुई। मैं संत तेरेसा के बारे में पढ़ रही थी। बपतिस्मा के दौरान मुझे यही नाम दिया गया था, लेकिन उस संत के प्रति मेरा कोई विशेष आकर्षण नहीं था। संत तेरेसा 12 साल की उम्र में ही येशु के प्रति भावुक भक्ति में जी रही थी और 15 साल की उम्र में कार्मेलाइट मठ में प्रवेश पाने के लिए संत पापा से विशेष निवेदन किया था। मेरा अपना जीवन बहुत अलग था। मेरा गुलाब कहाँ है? तेरेसा आत्माओं की मुक्ति केलिए जोश से भरी हुई थीं; उसने एक खूंखार अपराधी के मन परिवर्तन के लिए प्रार्थना की थी। कार्मेल के कॉन्वेंट की गुप्त दुनिया में बैठकर, उसने दूर-दराज इलाकों पर ईश्वर के प्रेम को फैलाने वाले मिशनरियों के लिए अपनी प्रार्थना समर्पित की। अपनी मृत्यु शैया पर लेटी हुई, नॉरमंडी की इस पवित्र साध्वी ने मठ की अपनी बहनों से कहा था: "मेरी मृत्यु के बाद, मैं गुलाबों की बारिश करूंगी। मैं स्वर्ग में रहकर पृथ्वी पर भलाई के कार्य करूंगी।" मैंने जो किताब पढ़ी, उसमें लिखा था कि 1897 में उसकी मृत्यु के बाद से, उसने दुनिया को कई आशीषें, चमत्कार और यहां तक कि गुलाब भी दिए हैं। "शायद वह मेरे लिए एक गुलाब भेजेगी," मैंने सोचा। यह मेरे जीवन की पहली नोवेना प्रार्थना थी। मैं ने प्रार्थना के दो अन्य निवेदनों के बारे में अधिक नहीं सोचा- अर्थात् मेरे निवेदनों के लिए ईश्वर से मध्यस्थ प्रार्थना करने की कृपा और मेरे लिए ईश्वर के महान प्रेम में गहरा विश्वास करना ताकि मैं तेरेसा के छोटे मार्ग का अनुकरण कर सकूँ। मुझे याद नहीं कि मेरा निवेदन क्या था और मैं तेरेसा के छोटे मार्ग के बारे में कुछ समझ नहीं पा रही थी। मेरा ध्यान बस गुलाब पर था। नौवें दिन की सुबह, मैंने आखिरी बार नोवेना प्रार्थना की। और इंतज़ार किया। शायद आज कोई फूलवाला मेरे पास आकर मुझे गुलाब दे देगा। या शायद मेरे पति काम से लौटते समय मेरे लिए गुलाब लेकर घर आएँगे। दिन के अंत तक, मेरे दरवाज़े पर आया एकमात्र गुलाब एक कार्ड पर छपा हुआ था जो एक मिशनरी समाज से ग्रीटिंग कार्ड के पैक में आया था। यह एक चमकदार लाल, सुंदर गुलाब था। क्या यह तेरेसा की ओर से मेरा गुलाब था? मेरी अदृश्य मित्र कभी-कभी, मैंने फिर से ‘मुझे गुलाब भेजो’ नोवेना प्रार्थना की। हमेशा परिणाम समान था। गुलाब छोटे, छिपे हुए स्थानों में दिखाई देते थे; मैं रोज़ नाम के किसी व्यक्ति से मिलती, और इसके अलावा मुझे गुलाब दिखाई देता किसी पुस्तक के कवर पर, किसी फ़ोटो की पृष्ठभूमि में, या किसी मित्र की मेज़ पर। आखिरकार, जब भी मैं गुलाब देखती, संत तेरेसा मेरे दिमाग में आती। वह मेरे दैनिक जीवन की सहेली बन गई थी। नोवेना को पीछे छोड़ते हुए, मैंने पाया कि मैं जीवन के संघर्षों में उनसे मध्यस्थता माँग रही हूँ। तेरेसा अब मेरी अदृश्य मित्र थी। मैंने अधिक से अधिक संतों के बारे में पढ़ा, और इन पुरुषों, महिलाओं और बच्चों ने ईश्वर के प्रति भावुक प्रेम को किस तरह से जिया, इस पर आश्चर्यचकित हुई । इन लोगों के समूह को जानना, जिनके निश्चित रूप से स्वर्ग में होने के बारे में कलीसिया ने की घोषणा की है, इन सब बातों ने मुझे आशा दी। हर जगह और हर जीवन में, वीरतापूर्ण सद्गुण के साथ जीना संभव होना चाहिए। पवित्रता मेरे लिए भी संभव है। और ऐसे कई रोल मॉडल थे। बहुत सारे! मैंने संत फ्रांसिस डी सेल्स के धैर्य, संत जॉन बॉस्को में प्रत्येक बच्चे की ध्यानपूर्ण देखभाल और कोमल मार्गदर्शन, और हंगरी की संत एलिजाबेथ की दानशीलता का अनुकरण करने की कोशिश की। भक्ति और परोपकार के मार्ग पर मेरी मदद करनेवाले उनके उदाहरणों के लिए मैं आभारी थी। इनसे परिचित होना महत्वपूर्ण था, लेकिन तेरेसा इन सबसे अधिक थी। वह मेरी दोस्त बन गई थी। एक शुरुआत आखिरकार, मैंने संत तेरेसा की आत्मकथा, द स्टोरी ऑफ़ ए सोल (एक आत्मा की कहानी) पढ़ी। उनके इस व्यक्तिगत गवाही में मैंने पहली बार उनके छोटे मार्ग या ‘लिटिल वे’ को समझना शुरू किया। तेरेसा ने खुद को आध्यात्मिक रूप से एक बहुत ही छोटे बच्चे के रूप में कल्पना की थी जो केवल बहुत ही छोटे कार्य करने में सक्षम थी। लेकिन वह अपने पिता का बहुत सम्मान करती थी और जो उससे प्यार करता था, उन के लिए एक उपहार के रूप में हर छोटी-छोटी चीज को बड़े प्यार से करती थी। प्यार का बंधन उसके उपक्रमों के आकार या सफलता से बड़ा था। यह मेरे लिए जीवन के प्रति एक नया दृष्टिकोण था। उस समय मेरा आध्यात्मिक जीवन एक ठहराव पर था। शायद तेरेसा के छोटे मार्ग से इसकी शुरूआत हो सकती थी। एक बड़े और सक्रिय परिवार की माँ होने के नाते, मेरी परिस्थितियाँ तेरेसा से बहुत अलग थीं। शायद मैं अपने दैनिक कार्यों को उसी प्रेमपूर्ण दृष्टिकोण से करने का प्रयास कर सकती थी। अपने घर की छोटी सी जगह और गुप्तता में, जैसा कि तेरेसा के लिए अपना कॉन्वेंट था, मैं प्रत्येक कार्य को प्रेम से करने का प्रयास कर सकती थी। प्रत्येक कार्य ईश्वर के प्रति प्रेम का उपहार हो सकता था; और विस्तार से, प्रत्येक कार्य मेरे पति, मेरे बच्चे, पड़ोसी के प्रति प्रेम का उपहार हो सकता था। कुछ अभ्यास के साथ, हर बार डायपर परिवर्तन, प्रत्येक भोजन जो मैंने मेज पर रखा, और प्रत्येक कपड़े धोने का भार प्रेम की एक छोटी सी भेंट बन गया। मेरे दिन आसान हो गए, और ईश्वर के प्रति मेरा प्रेम मजबूत हो गया। मैं अब अकेली नहीं थी। अंत में, इसमें नौ दिनों से कहीं अधिक समय लगा, लेकिन गुलाब के लिए मेरे आवेगपूर्ण अनुरोध ने मुझे एक नए आध्यात्मिक जीवन के मार्ग पर स्थापित कर दिया। इसके माध्यम से, संत तेरेसा मुझ तक पहुँचीं। उसने मुझे प्रेम की ओर खींचा, उस प्रेम की ओर जो स्वर्ग में संतों का बंधुत्व है, अपने "छोटे मार्ग" का अभ्यास करने के लिए और सबसे बढ़कर, ईश्वर के प्रति अधिक प्रेम की ओर उसने मुझे खींच लिया। आखिरकार मुझे गुलाब से कहीं ज़्यादा मिला! क्या आप जानते हैं कि संत तेरेसा का पर्व 1 अक्टूबर को है? तेरेसा-नामधारियों को पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ।
By: एरिन राइबिकी
Moreअक्सर, किसी वाद्य यंत्र से सुंदर धुनें बजाने के लिए किसी उस्ताद की ज़रूरत होती है। यह एक भयंकर प्रतिस्पर्धा थी जिसमें खरीदार हर चीज़ के लिए एक-दूसरे से ज़्यादा बोली लगाने की होड़ में थे। उन्होंने उत्सुकता के साथ सभी वस्तुओं को खरीद लिया और नीलामी बंद होने वाली थी, सिवाय एक वस्तु के - एक पुराना वायलिन। खरीदार खोजने के लिए उत्सुक, नीलामीकर्ता ने तार वाले वाद्य को अपने हाथों में लिया और जो कीमत उसे आकर्षक लगी, उसे पेश किया: “अगर किसी को दिलचस्पी है, तो मैं इसे 100 डॉलर में बेचूंगा।” कमरे में मौत जैसी खामोशी छा गई। जब यह स्पष्ट हो गया कि पुराने वायलिन को खरीदने के लिए यह कीमत भी किसी को भी राजी करने के लिए पर्याप्त नहीं थी, तो उसने कीमत घटाकर 80 डॉलर, फिर 50 डॉलर और अंत में, हताश होकर 20 डॉलर कर दी। एक और चुप्पी के बाद, पीछे बैठे एक बुजुर्ग सज्जन ने पूछा: “क्या मैं वायलिन को देख सकता हूँ?” नीलामीकर्ता ने राहत महसूस की कि कोई पुराने वायलिन में दिलचस्पी दिखा रहा है, इसलिए उसने हाँ कह दी। कम से कम उस तार वाले वाद्य को एक नया मालिक और नया घर मिलने की संभावना बन रही थी। एक उस्ताद का स्पर्श बूढ़ा आदमी पीछे की सीट से उठा, धीरे-धीरे आगे की ओर चला, और पुराने वायलिन की सावधानीपूर्वक जांच की। अपना रूमाल निकालकर, उसने उसकी सतह को झाड़ा और जब तक कि एक-एक करके, वे सारे तार सही स्वर में आ गए, तब तक प्रत्येक तार को धीरे-धीरे ट्यून किया। आखिरकार, और केवल तभी, उसने पुराने वायलिन को अपनी ठोड़ी और बाएं कंधे के बीच रखा, अपने दाहिने हाथ से गज़ को उठाया, और संगीत का एक अंश बजाना शुरू किया। पुराने वायलिन से निकलने वाला प्रत्येक संगीत स्वर कमरे में सन्नाटे को भेदता हुआ हवा में खुशी से नाच रहा था। सभी चकित रह गए, और उन्होंने वाद्य से निकल रहे संगीत के कमाल को ध्यान से सुना जो सभी के लिए स्पष्ट था - एक उस्ताद के हाथों का कमाल। उन्होंने एक परिचित शास्त्रीय भजन बजाया। धुन इतनी सुंदर थी कि इसने नीलामी में मौजूद सभी लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया और वे अचंभित रह गए। उन्होंने कभी किसी को इतना सुंदर संगीत बजाते हुए नहीं सुना था या देखा भी नहीं था, एक पुराने वायलिन पर तो बिल्कुल भी नहीं। और उन्होंने एक पल के लिए भी नहीं सोचा था कि नीलामी फिर से शुरू होने पर इससे उन्हें खूब मज़ा आएगा। उन्होंने उस वायलिन को बजाना समाप्त किया और शांत भाव से उसे नीलामीकर्ता को लौटा दिया। इससे पहले कि नीलामीकर्ता कमरे में मौजूद सभी लोगों से पूछ पाता कि क्या वे अब भी इसे खरीदना चाहेंगे, हाथ उठाने की होड़ लग गई। अचानक से किए गए इस शानदार प्रदर्शन के बाद हर कोई तुरंत इसे चाहता था। कुछ समय पहले तक एक अवांछित वस्तु से, पुराना वायलिन अचानक नीलामी की सबसे तीव्र बोली का केंद्र बन गया। 20 डॉलर की शुरुआती बोली से, कीमत तुरंत 500 डॉलर तक बढ़ गई। अंततः उस पुराने वायलिन को 10,000 डॉलर में बेचा गया, जो इसकी सबसे कम कीमत से 500 गुना अधिक था। आश्चर्यजनक परिवर्तन पुराने वायलिन को सबकी नापसंद वास्तु से सबकी पसंदीदा और नीलामी का सितारा बनने में केवल 15 मिनट लगे। और इसके तारों को ट्यून करने और एक अद्भुत धुन बजाने के लिए एक उस्ताद संगीतकार की ज़रूरत पड़ी। उसने दिखाया कि जो बाहर से बदसूरत लग रहा था, वास्तव में उस वाद्य यंत्र के अंदर एक सुंदर और अमूल्य आत्मा थी। शायद, पुराने वायलिन की तरह, हमारे जीवन का पहले तो कोई खास मूल्य नहीं लगता। लेकिन अगर हम उन्हें येशु को सौंप दें, जो सभी उस्तादों से ऊपर उस्ताद हैं, तो वे हमारे ज़रिए सुंदर गीत बजाने में सक्षम होंगे और उनकी धुनें श्रोताओं को और भी ज़्यादा चौंका देंगी। तब हमारा जीवन दुनिया का ध्यान आकर्षित करेगा। तब हर कोई उस संगीत को सुनना चाहेगा जिसे प्रभु येशु हमारे जीवन से उत्पन्न करते हैं। इस पुराने वायलिन की कहानी मुझे मेरी अपनी कहानी की याद दिलाती है। मैं भी उस पुराने वायलिन की तरह ही था और किसी ने नहीं सोचा था कि मैं किसी काम का हो सकता हूँ या अपने जीवन में कुछ सार्थक कर सकता हूँ। वे मुझे ऐसे देखते थे जैसे मेरा कोई मूल्य ही न हो। हालाँकि, येशु को मुझ पर दया आ गई। वह पलटा, मेरी ओर देखा और मुझसे पूछा: "पीटर, तुम अपने जीवन में क्या करना चाहते हो?" मैंने कहा: "गुरुवर, आप कहाँ रहते हैं?" "आओ और देखो," येशु ने उत्तर दिया। इसलिए मैं आया और देखा कि वह कहाँ रहते हैं, और मैं उनके साथ रहा। पिछले 16 जुलाई को, मैंने अपने पुरोहिताई अभिषेक की 30-वीं वर्षगांठ मनाई। मेरे लिए येशु के महान प्रेम को जानने और अनुभव करने के लिए... मैं उनका कितना धन्यवाद कर सकता हूँ? उन्होंने पुराने वायलिन को कुछ नया बना दिया है और उसे बहुत मूल्यवान बना दिया है। हे प्रभु, हमारा जीवन भी उस पुराने वायलिन की तरह तेरा संगीत वाद्य बन जाए, ताकि हम ऐसा सुंदर संगीत बना सकें जिसे लोग तेरे अद्भुत प्रेम के लिए धन्यवाद और प्रशंसा देते हुए हमेशा गा सकें।
By: फादर पीटर हंग ट्रान
Moreएक कैथलिक के रूप में, मुझे सिखाया गया था कि क्षमा करना ईसाई धर्म के पोषित मूल्यों में से एक है, फिर भी मैं इसका अभ्यास करने के लिए संघर्ष करती हूँ। संघर्ष जल्द ही एक बोझ बन गया, क्योंकि मैंने क्षमा करने में अपनी असमर्थता पर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया। पाप स्वीकार संस्कार के दौरान, पुरोहित ने येशु मसीह की क्षमा की ओर इशारा किया: "उसने न केवल उन्हें क्षमा किया, बल्कि उनके उद्धार के लिए प्रार्थना की।" येशु ने कहा: "हे पिता, उन्हें क्षमा कर, क्योंकि वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं।" येशु की यह प्रार्थना अक्सर उपेक्षित अंश को प्रकट करती है। यह स्पष्ट रूप से उजागर करता है कि येशु की निगाह सैनिकों के दर्द या क्रूरता पर नहीं थी, बल्कि सच्चाई के बारे में उनके ज्ञान की कमी पर थी। येशु ने उनकी मध्यस्थता करने के लिए इस अंश को चुना। मुझे यह संदेश मिला कि दूसरे व्यक्ति और यहाँ तक कि खुद के अज्ञात अंशों को जगह देने से मेरी क्षमा अंकुरित होनी चाहिए। अब मैं हल्का और अधिक खुश महसूस करती हूँ क्योंकि पहले, मैं केवल ज्ञात कारकों से निपट रही थी - दूसरों द्वारा पहुँचाई गई चोट, उनके द्वारा बोले गए शब्द और दिलों और रिश्तों का टूटना। येशु ने मेरे लिए क्षमा के द्वार पहले ही खुले छोड़ दिए हैं, मुझे केवल अपने और दूसरों के भीतर के अज्ञात अंशों को विनम्रतापूर्वक स्वीकार करने के इस मार्ग पर चलना है। जब येशु हमें अतिरिक्त मील चलने के लिए आमंत्रित करते हैं, तब येशु का यह कथन हमारे लिए अज्ञात अंशों के बारे में जागरूकता के अर्थ की परतें जोड़ता है। मुझे लगा कि क्षमा करना एक ऐसी यात्रा है जो क्षमा करने के कार्य से शुरू होकर एक ईमानदार मध्यस्थता तक जाती है। जिन्होंने मुझे चोट पहुंचाई है, उन लोगों की भलाई के लिए प्रार्थना करके, गेथसेमेन के माध्यम से मेरा चलना ही अतिरिक्त मील चलने का यह क्षण है। और यह प्रभु की इच्छा के प्रति मेरा पूर्ण समर्पण है। प्रभु ने सभी को अनंत काल के लिए प्रेमपूर्वक बुलाया है और मैं कौन हूँ जो अपने अहंकार और आक्रोश के साथ बाधा उत्पन्न करूँ? अपने दिलों को अज्ञात अंशों के लिए खोलने से एक दूसरे के साथ हमारे संबंधों को सुधारता है और हमें ईश्वर के साथ एक गहरे रिश्ते की ओर ले जाता है, जिससे हमें और दूसरों को उनकी प्रचुर शांति और स्वतंत्रता तक पहुँच मिलती है।
By: एमिली संगीता
Moreरोम..., संत पेत्रुस का महागिरजाघर जाना, संत पापा से मुलाक़ात करना ... क्या जीवन इससे ज़्यादा घटनापूर्ण हो सकता है? हाँ, मैंने पाया कि यह हो सकता है। रोम की यात्रा के दौरान कैथलिक धर्म में मेरा धर्मांतरण हुआ। मैं भाग्यशाली थी कि वहां मैं अपनी स्नातक की पढ़ाई के सिलसिले में गयी थी। जिस कैथलिक विश्वविद्यालय में मैंने अध्ययन किया था, उस विश्वविद्यालय ने यात्रा के हिस्से के रूप में संत पापा फ्रांसिस के साथ कुछ मुलाक़ातों का आयोजन किया था। एक शाम, मैं संत पेत्रुस महागिरजाघर में बैठी थी, लाउडस्पीकर पर लातीनी भाषा में रोज़री माला की प्रार्थना सुन रही थी, जबकि मैं गिरजाघर में आराधना शुरू होने का इंतज़ार कर रही थी। हालाँकि मैं उस समय लातीनी नहीं समझती थी, न ही मुझे पता था कि रोज़री क्या है, मैंने किसी तरह प्रार्थना को पहचान लिया। वह एक रहस्यमय तल्लीनता का क्षण था जिसने अंततः मुझे माँ मरियम की मध्यस्थता के माध्यम से अपना पूरा जीवन येशु को सौंपने के लिए प्रेरित किया। इससे मेरे धर्मांतरण की एक यात्रा शुरू हुई, जो एक साल बाद कैथलिक कलीसिया में मेरे बपतिस्मा में परिणत हुई, और कुछ ही समय बाद वह एक प्रेम कहानी में परिणत हुई। खोज के क्षण मैंने पाया कि मैं धीरे-धीरे येशु के साथ अपने रिश्ते की नींव बना रही हूँ, इस प्रक्रिया में अनजाने में मरियम की नकल कर रही हूँ। मसीह के साथ अपने संबंध को गहरा करने की कोशिश करते हुए मैंने प्रार्थना में उनके चरणों में घुटने टेके, जैसा कि मरियम ने कलवारी में किया होगा। मैं आज भी इस अभ्यास को जारी रखती हूँ, येशु के चेहरे, उनके घावों, उनकी कमज़ोरियों और उनकी पीड़ा का अध्ययन करती हूँ। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मैं उन्हें सांत्वना देने के लिए हर दिन उनसे मिलती हूँ क्योंकि मैं उनके क्रूस पर अकेले होने के विचार को सहन नहीं कर सकती। उनके दु:ख पर ध्यान लगाने से, मैं पाती हूँ कि मैं आज हमारे अंदर बसनेवाले जीवित मसीह के महत्व को और अधिक गहराई से समझ सकती हूँ। जब मैंने खुद को इस अभ्यास के लिए समर्पित किया, तो मैंने महसूस किया कि येशु मेरी दैनिक प्रार्थनाओं में मेरा इंतज़ार कर रहे हैं, मेरी वफ़ादारी के लिए तरस रहे हैं, और मेरी संगति की तलाश में हैं। जितना अधिक मैंने उन्हें मौन प्रार्थना में थामे रखा, उतना ही अधिक मैं अपने जीवन और दूसरों के जीवन के लिए येशु द्वारा चुकाई गई कीमत के लिए गहरा दु:ख और शोक महसूस करने लगी। मैंने उनके लिए आँसू बहाए। मैंने उन्हें अपने दिल में कैद कर लिया। अपने बेटे के लिए मरियम की कोमल देखभाल को प्रतिबिंबित करते हुए मैंने प्रार्थना में उन्हें सांत्वना दी। येशु को क्रूस पर ले जाने वाले बलिदानी प्रेम की अनुभूति ने मेरे भीतर गहरी मातृ भावनाएँ जगाईं, जिससे मुझे सब कुछ उनके प्रति समर्पित करने के लिए मजबूर होना पड़ा। माँ मरियम की कृपा से, जैसे हमारा रिश्ता खिल उठा, मैंने खुद को पूरी तरह से येशु को समर्पित कर दिया, जिससे उन्हें मुझे बदलने की अनुमति मिली। समर्पण जब दो साल पहले मुझे बहुत बड़ा नुकसान हुआ, तो मैंने इस दैनिक अभ्यास को जारी रखा, हालाँकि मेरे दुःख का केंद्र बदल गया था। मैंने जो आँसू बहाए, वे अब उसके लिए नहीं बल्कि अपने लिए थे। मैं अपने पूर्ण संकट और निराशा में हमारे प्रभु के चरणों में गिरने के अलावा कुछ नहीं कर सकती थी, चाहे मैं कितना भी स्वार्थी क्यों न महसूस कर रही थी। तब ईश्वर ने मुझे दिखाया कि कैसे प्रार्थना में उनके बलिदान की साक्षी बनने से ही नहीं, बल्कि उनकी दु:ख पीड़ा में प्रवेश करके भी मुक्तिदायक पीड़ा को साझा किया जा सकता है। अचानक, उनका दुख मेरे लिए अब बाहरी नहीं रहा, बल्कि कुछ ऐसा था जो इतना अंतरंग था कि मैं क्रूस पर मसीह के साथ एक हो गयी। मैं अब अपने दुख में अकेली नहीं थी। बदले में, मैं ने पहचानना की मेरे साथ वे थे जिन्होंने मुझे मौन प्रार्थना में सहारा दिया, जिन्होंने मेरे लिए शोक किया और मेरे दुख को साझा किया। उन्होंने मेरे लिए आँसू बहाए और अपना दिल खोल दिया जहाँ मैं पीछे हट गयी और उनकी कैदी बन गयी। मैं उसके प्यार में बंदी थी। असहज मार्ग पर यात्रा मरियम का अनुकरण करने से हमे सीधे येशु के हृदय की ओर पहुँच जाते हैं, जो हमें सच्चे पश्चाताप और उनके प्रेम से प्रवाहित होने वाली असीम दया का सार सिखाता है। यह यात्रा चुनौतीपूर्ण हो सकती है, जिसके लिए हमें मसीह के क्रूस के बोझ को साझा करना होगा। फिर भी, हमारे परीक्षणों और दु:खों के माध्यम से, हम उनकी आरामदायक उपस्थिति में सांत्वना पा सकते हैं, यह जानते हुए कि वे हमें कभी नहीं छोड़ते। मरियम के आदर्श का अनुसरण करके, हम उन्हें अपने प्रभु और उद्धारकर्ता येशु के साथ हमारे संबंध को गहरा करने और उनके मुक्तिदायी दु:ख को साझा करने में हमारा मार्गदर्शन करने के लिए आमंत्रित करते हैं। ऐसा करने से, हम उन लोगों के दर्द और पीड़ा के लिए जीवित शहीद बन जाते हैं जो अभी तक मसीह से नहीं मिले हैं, और उसी प्रक्रिया में, हम स्वयं ठीक हो जाते हैं। अपने बेटे के लिए मरियम के मातृ प्रेम का जब हम अनुकरण करते हैं, तो हम उनके दु:ख के सार के करीब आते हैं और उनकी उपचारात्मक कृपा के पात्र बन जाते हैं। मसीह के साथ एकता में अपने स्वयं के दुखों को अर्पित करने के माध्यम से, हम उनके प्रेम और करुणा के जीवित गवाह बन जाते हैं, जो उन लोगों को सांत्वना देते हैं जो अभी तक उनसे नहीं मिले हैं। इस पवित्र प्रक्रिया में, हम अपने लिए उपचार पाते हैं और ईश्वर की दया के साधन बनते हैं, जरूरतमंदों तक उनका प्रकाश फैलाते हैं। इसी तरह, हम अपने जीवन में क्रूस को साहस के साथ गले लगाना सीखते हैं, यह जानते हुए कि वे मसीह के साथ एक गहरे मिलन के मार्ग हैं। मरियम की मध्यस्थता के माध्यम से, उस बलिदानी प्रेम की गहन समझ की ओर हमारा मार्गदर्शन किया जाता है जिसके कारण येशु ने हमारे लिए अपना जीवन दे दिया। जब हम शिष्यत्व के मार्ग पर चलते हैं, और मरियम के पदचिन्हों पर चलते हैं, तो हमारे जीवन में उपचार और मुक्ति लाने के लिए उनकी परिवर्तनकारी शक्ति पर भरोसा करते हुए अपने दु:खों और संघर्षों को येशु को अर्पित करने के लिए हमें कहा जाता है।
By: फ़ियोना मैककेना
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