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अब चूँकि मेरी शादी हो चुकी थी, मैं ने सोचा कि मैं अतीत की घटनाओं को भूलकर जीवन में आगे बढ़ सकती हूँ, मानो कि मेरे साथ अतीत में कुछ भी नहीं हुआ हो, और मेरी सारी पीड़ा समाप्त हो जाएगी, लेकिन मेरे अन्दर के अवसाद और क्रोध के साथ मैं संघर्ष करने लगी।
एक बड़े आइरिश कैथलिक परिवार की नवीं संतान के रूप में मेरा जन्म हुआ था। मेरी माँ एक भक्त कैथलिक महिला थी, लेकिन मेरे पिताजी शराब के प्रति आसक्त थे, और इस कारण बहुत सी समस्याएँ खड़ी हो गयीं, और इस लिए मेरा बचपन बहुत ही नाजुक दौर से गुज़रा। जब मैं चौदह साल की थी, मेरा बलात्कार हुआ, लेकिन मैं ने जब इसके बारे में किसी को बताया, तो उसने कहा, “तुम्हें यह होने नहीं देना चाहिए था, अब तुम एक वेश्या की तरह हो”। उस व्यक्ति का कथन सही नहीं था, फिर भी मैं अपने को पतिता और पापिनी मानने लगी। चूँकि मैं वेश्या नहीं बनना चाहती थी, इसलिए मैं ने एक लड़के को अपना प्रेमी बनाया। मेरे आसपास के समाज की तरह सोचते हुए अनैत्कता के बहाव में बहकर मैं ने नैतिकता की गलत धारणा बना ली, और मैं मानने लगी कि जब तक आप किसी के साथ दोस्ती में है, तो यौन सम्बन्ध बनाने में कोई गलती नहीं है।
जब मैं सोलह साल की हुई, मैं गर्भवती हो गयी। उस लड़के ने मुझे गर्भपात के लिए मजबूर किया, ताकि हम दोनों हाई स्कूल की पढ़ाई पूरा कर सकें। मैं बीमार, विचलित और डरी सहमी थी, लेकिन मैं ने समझा कि मैं समस्या में डूबी हूँ जिसका समाधान ढूंढना पडेगा। जब वह मुझे एबॉर्शन क्लिनिक ले गया, तब मैं डर के मारे इतनी काँप रही थी, कि मुझे शांत करने केलिए नर्स ने मुझे शांत करने के लिए वैलियम का डोज़ दिया। तब उस नर्स ने मुझसे कहा, “चिंता मत करो बेटी, यह बच्चा नहीं है, समझो कि बस कुछ कोशिकाओं का पिण्ड है। मैं पूरी तरह से स्तब्ध रह गयी। लेकिन गर्भपात करनेवाले उस डॉक्टर की अट्टहास भरी आवाज़ “हा हा हा, मैं इसी तरीके से भ्रूण ह्त्या करना चाहता हूँ” मेरे कानों में गूँजता रहता है। मेरे आंसू मेरे गालों से लरज़ते हुए, कागज़ की जिस चादर पर मुझे लिटाया गया था, उस पर फ़ैल गया, जिसकी नमी का एहसास मुझे अभी भी होता है।
जिस दिन मैं स्कूल में लौटी, उस दिन की याद मेरे दिमाग में स्पष्ट अंकित है, मैं बरामदे में खड़ी थी, और एक बच्ची मेरे पास आकर बड़ी दयालुता के साथ मुझे देखकर कहने लगी, “आइलीन, तुम्हें क्या हो गया?” तुरंत इनकार की तरंग मुझ में उठ खड़ी हो गयी और मैं ने तपाक से जवाब दिया, “कुछ नहीं, क्यों ऐसे पूछ रही हो?”
“पता नहीं, तुम ठीक नहीं लग रही हो”।
मेरी ज़िन्दगी नीचे की और लुढ़कती गयी। अपने आप को दूसरों से दूर रखने और उस प्रेमी के साथ समबन्ध को बरकरार रखने के लिए मैं शराब पीने और मादक द्रव्य लेने लगी। जब मैं अठारह साल की हुई तो फिर गर्भवती हो गयी और फिर गर्भपात किया। इस अनुभव से मैं इतना अधिक भयभीत हो गयी थी कि मुझे कुछ भी याद नहीं है, यहाँ तक वह जगह भी नहीं मालूम। लेकिन मेरी बहन और मेरा प्रेमी को सब याद है। मैं इतनी पीड़ा को बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी।
मेरे प्रेमी के साथ संबंध टूट गया और मैं ने नए प्रेमी को ढूंढ लिया और शारीरिक संबंध में रहे। यदि उस समय की मेरी आत्मा की स्थित के बारे बोलूँ, तो बस इतना कह सकती हूँ की वह पूरी तरह नाशवान स्थिति में थी, उस समाज की अपसंस्कृति की तरह जिसे मैं ने अपनाया था।
जब मैं तेईस साल की थी, मेरे जीवन की सबसे खराब घटना के कारण मुझे अपने काहिल जीवन का बड़ा भयंकर धक्का लग गया। एक शराबी ड्राईवर के कारण मेरी माँ एक दुर्घटना में चल बसी। दफ़न विधि के दौरान मैं ने देखा कि ताबूत के ऊपर से धुप का धुवां उठ रहा है। यह ईश्वर की ओर हमारी प्रार्थना के उठने का प्रतीक है, लेकिन मुझे लगा कि मेरी माँ की आत्मा ईश्वर की ओर उड़ान ले रही है। मेरी माँ एक वफादार विश्वासी थी, इसलिए मुझे पक्का विश्वास था कि वह ईश्वर के पास जा रही है । मैं उस से फिर मिलना चाहती थी, इसलिए स्वर्ग जाने की इच्छा मुझ में हुई, लेकिन मुझे पता था कि इस केलिए मुझे अपनी ज़िन्दगी में परिवर्त्तन लाना होगा। उसी समय मैं अपने घुटनों के बल पर झुक गयी और प्रभु को रो रोकर पुकारने लगी। मैं फिर से गिरजाघर जाने लगी, लेकिन एक महीने के अन्दर मैं ने पाया कि मैं फिर से गर्भवती हूँ। मुझे यह डरावनी अनुभूति हुई की मेरी माँ सब कुछ जानती है क्योंकि वह ईश्वर के साथ है।
मेरी बेटी की परवरिश के लिए मैं ने एक नौकरी ढूंढ ली, और मैं ने उसे प्यार दिया और उसकी देखभाल की जिसकी चाहत स्वयं मुझे थी। प्रभु मेरे जीवन में एक अच्छे आदमी लाया, इसलिए विवाह की तैयारी में मैं ने सारे पापों को, उन सारे गर्भ पात के बारे में भी बताकर पाप स्वीकार किया। जब पुरोहित ने मुझे पाप क्षमा दी और मुझसे कहा कि “येशु आपको प्यार करता है” तो मुझे विश्वास नहीं हुआ, क्योंकि मुझे लगा कि मैं ने सबसे घोर अक्षम्य पाप किया है। जितना अधिक पीड़ा को मैं भोग रही थी, उसे मैं नकार रही थी, जबकि प्रतिदिन मैं इस पीड़ा के बारे में सोचती थी।
मेरे अन्दर यह सोच थी कि चूँकि मेरी शादी हो चुकी है, इसलिए अब सब कुछ ठीक हो जाएगा और जिस आनंदमय जीवन की मैं रोज़ आशा करती थी, उसका आनंद मैं अभी उठा सकती हूँ। मैं ने सोचा कि अब मैं आगे बढ़ सकती हूँ, मानो कि मेरे अतीत में कुछ भी न हुआ हो, और सारी पीड़ा अप्रत्यक्ष हो जायेगी ।
लेकिन इसके विपरीत, मैं अवसाद और क्रोध के साथ संघर्ष करने लगी। दूसरों के साथ घनिष्ठता मेरे लिए सबसे बड़ी समस्या थी। इसलिए मुझे अपने व्यक्तित्व को पूरी तरह से जीना कठिन हो गया, और दूसरों से दोस्ती बनाना और उसे निभाना मेरे लिए बहुत ही कठिन कार्य हो गया। अपने बारे में मुझमें एक खंडित समझ थी, जबकि गर्भपात किये गए उन बच्चों के बारे में मैं सोचती थी, लेकिन मैं किसी से उनके बारे में बोलती नहीं थी बात नहीं करती थी।
लेकिन प्रभु ने मेरी उपेक्षा नहीं की। मेरी दोस्ती ग्रेस से हुई, जिसने मुझे सिस्टर हेलेन से परिचय कराया। सिस्टर हेलेन को चंगाई का वरदान प्राप्त था।
जब सिस्टर हेलेन ने मेरे ऊपर प्रार्थना की, उन्होंने मेरे बारे में ऐसी बात कही जिसकी जानकारी होना उनके लिए असंभव था । इस से मैं भयभीत हो गयी। गर्भपात के कारण महिलाओं में विभिन्न स्तर के असर पड़ते हैं और उनमें से एक असर है येशु से भयभीत रहना। जब मैं गिरजाघर जाती हूँ, तो मैं ठीक रहती थी, क्योंकि मुझे लगता था कि येशु दूर कहीं स्वर्ग में विराजमान है। सिस्टर हेलेन ने मुझ से कहा: “आइलीन, पता नहीं, यह क्या है, लेकिन येशु चाहता है कि आप मुझे इसके बारे में बतावें। मैं ने उन्हें गर्भपात के बारे में बताया और में खूब रोई। उन्होंने बड़ी सौम्यता के साथ फुसफुसाया: अच्छा, अब मैं समझ रही हूँ, मैं चाहती हूँ कि पहले आप इसके बारे में प्रार्थना करें। येशु से बोलिए कि वह आपको इन बच्चों के नाम बताएं।´ जैसे मैं ने प्रार्थना की, मुझे लगा कि प्रभु मुझे बोल रहा है कि मेरी एक छोटी बच्ची थी जिसका नाम ऑटम था और एक बेटा जिसका नाम केनेथ था। वे अनंतता तक मेरे जीवन के हिस्से बनेंगे। इसलिए उनको तिरस्कृत करने के बजाय मुझे उन्हें स्वीकार करना होगा। इससे मुझे उनके बारे में सोचकर शोक मनाने का अवसर मिला, तकिये को अपने आंसुओं से भिंगोकर बड़ी गमी के साथ।
एक दिन मेरा पति अपने काम से जल्दी घर आया, और पाया कि मैं घर के तहखाने में साष्टांग प्रणाम की मुद्रा में बैठकर रो रही थी। क्योंकि उस दिन मैं ने आखिरकार स्वीकार किया था कि मैं ने अपने ही बच्चों की जान लेने के जुर्म में भाग लिया था। मेरे पति ने मुझे प्यार से ऊपर उठाया और उन्होंने मुझसे पूछा: “प्रिये, क्या हुआ?” गर्भपात के बारे में अपने पति को खुलकर बताने की कृपा प्रभु ने उस वक्त मुझे दी। उन्होंने मुझे अपनी बाहों में भरकर कहा : सब कुछ ठीक हो जाएगा, मेरा प्यार अब भी तुम्हारे साथ रहेगा।“
जब मैं सिस्टर हेलेन के साथ फिर से और चंगाई प्रार्थना के लिए फिर गयी, तो मैं ने अपने मन की आँखों से देखा कि मैं येशु की गोद में बैठी हूँ, और मेरा सिर येशु के सीने पर टिका हुआ है। तब मैं ने देखा की धन्य माँ मरियम मेरे बच्चों को अपने आँचल में लेकर उन्हें प्यार दे रही है। माँ मरियम उन बच्चों को मेरे पास लाई और मुझे दी। मैं ने उन्हें अपने गोद में लेकर उनसे कहा कि मैं उन्हें बहुत प्यार करती हूँ, और मैं ने उनके साथ जो किया, उसके बारे में सोचकर मैं बहुत दुखी हूँ। उन्हें माँ मरियम के प्रेमभरे हाथों में सौंपने से पहले मैं ने बच्चों से क्षमा माँगी। माँ ने मुझसे वादा इया कि ये बच्चे उसके और येशु के साथ अनंतकाल तक स्वर्ग में रहेंगे। उसके बाद येशु और मरियम ने मेरा आलिंगन किया और येशु को यह कहते हुए मैं ने सुना: “मैं तुम से प्यार करता हूँ“।
ईश्वर की प्रेममय करुणा की गवाही देने वाले लोगों से मुझे प्रेरणा मिली है, इसलिए अब मुझे भी लगा कि मुझे भी अपनी जीवन की गवाही सुनाने की ज़रुरत है। गर्भपात के बुरे प्रभाव से चंगाई पाने की आशा में आ रही महिलाओं के लिए आयोजित ‘रेचल विनियार्ड’ साधना में एक थेरापिस्ट बनकर मैं मदद करने लगी।
जब लोग मुझसे पूछते हैं, “एक थेरापिस्ट के रूप में जब आप इन सब लोगों की दर्द भरी कहानियों को सुनती हैं तो इन पीडाओं को आप अपने अन्दर कैसे संजोकर रख पाती हैं?” मैं उनसे कहती हूँ कि यह कार्य मैं अकेले नहीं करती हूँ। माँ मरियम मेरे साथ रहकर यह कार्य करती है। मैं मरियम के प्रति समर्पित हूँ, इसलिए मैं जो कुछ करती हूँ वह सब मरियम के द्वारा येशु के लिए करती हूँ। रोजाना की रोज़री माला से और मिस्सा में रोज़ाना परम प्रसाद में प्रभु को ग्रहण करने से मुझे ज़रूरी ताकत मिल जाती है। चूँकि मिस्सा बलिदान के दौरान सम्पूर्ण स्वर्ग मिस्सा की वेदी को घेरने केलिए उतर आता है, इसलिए मिस्सा में मैं प्रतिदिन अपने बच्चों से मुलाक़ात करती हूँ।
लगभग तीस से अधिक वर्षों बाद, मेरे गर्भपात किये गए बच्चों के पिता को मैं ने संपर्क किया, ताकि मैं अपनी चंगाई के बारे में उसे बता सकूं और उस उम्मीद की भेंट उन्हें दे सकूं। उसने मुझे धन्यवाद दिया क्योंकि इस से उसके दिशाहीन जीवन के बारे में उस को एक सन्देश मिला और प्रत्याशा मिली कि उसका जीवन बदल सकता है। जैसे उसने मुझसे कहा, “अब तक मुझसे सिर्फ वे दो ही बच्चे पैदा हुए हैं”, उसकी आवाज़ थरथरा रही थी।
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शालोम वर्ल्ड कार्यक्रम “मरियम मेरी माँ” के लिए दी गयी गवाही पर यह लेख आधारित है। आइलीन एक पत्नी, माँ और प्रमाणित काउंसिलर (सलाहकार) हैं। वे पिछले 34 वर्षों से विवाहित हैं, और अपने पति के साथ मिशिगन में रहती हैं। उनकी तीन वयस्क संतान हैं। उस एपिसोड को देखने केलिए shalomworld.org/mary-my-mother पर जाएँ।
Eileen Craig
जब कोई अजनबी आपके दरवाज़े 0पर दस्तक दे तो आप क्या करेंगे? अगर वह अजनबी एक कठोर आदमी निकला तो क्या होगा? वह अपना नाम स्पेनिश भाषा में, ज़ोर से, एक निश्चित गर्व और गरिमा के साथ कहता है, ताकि आपको याद रहे कि वह कौन है- जोस लुइस सैंडोवल कास्त्रो। वह रविवार की शाम को कैलिफ़ोर्निया के स्टॉकटन में हमारे दरवाज़े पर यानी सेंट एडवर्ड कैथलिक चर्च में आया, जब हम अपना संरक्षक संत का पर्व मना रहे थे। किसी ने उसे हमारे अपेक्षाकृत गरीब, मज़दूर वर्ग के पड़ोस में छोड़ दिया था। संगीत और लोगों की भीड़ ने जाहिर तौर पर उसे हमारे पल्ली के मैदान की ओर चुंबक की तरह खींचा। सच्चाई का खुलासा वह रहस्यमय जड़ों का व्यक्ति था - हमें नहीं पता था कि वह चर्च में कैसे पहुंचा, यह भी नहीं पता था कि उसका परिवार कौन था और कहां था। हमें बस इतना पता था कि वह 76 साल का था, चश्मा लगाए हुए था, हल्के रंग की बनियान अच्छी तरह से पहना हुआ था, और अपना लगेज हाथ से खींच रहा था। उसके पास आप्रवासन और प्राकृतिककरण सेवा विभाग का एक दस्तावेज था, जिसके बल पर उसे मेक्सिको से देश में प्रवेश करने की अनुमति मिली थी। उसके निजी दस्तावेज लूट लिए गए थे और उसके पास कोई अन्य पहचान पत्र नहीं था। हमने यह पता लगाना शुरू किया कि जोस लुइस कौन था, उसकी जड़ें क्या थीं, उसके रिश्तेदार कौन थे और क्या उनका उससे कोई संपर्क था। वह मेक्सिको के सिनालोआ राज्य के लॉस मोचिस शहर का रहने वाला था। उसके मुंह से गुस्सा, कड़वाहट और जहर निकल रहा था। उसने दावा किया कि उसके रिश्तेदारों ने उसे ठगा है और संयुक्त राज्य अमेरिका में उसकी पेंशन छीन ली है, जहां वह सालों से काम कर रहा था, क्योंकि वह मैक्सिको आता-जाता रहता था। हमने जिन रिश्तेदारों से संपर्क किया, उन्होंने दावा किया कि उन्होंने कई मौकों पर उसकी मदद करने की कोशिश की, फिर भी उसने उन्हें चोर कहा। हम किस पर विश्वास करें? हम बस इतना जानते थे कि हमारे हाथों में मैक्सिको से आया एक भटकता हुआ, नियमित आवारा आदमी था, और हम उसका तिरस्कार नहीं कर सकते थे और न ही उस बूढ़े, बीमार आदमी को सड़क पर छोड़ सकते थे। एक रिश्तेदार ने बेरुखी से, बेरहमी से कहा: "उसे सड़कों पर खुद की देखभाल करने दो।" जोस लुईस घमंडी, बहादुर और कर्कश व्यक्ति था, फिर भी वह बार-बार कमज़ोरी के लक्षण दिखाता था। उसकी आँखों में आँसू आ जाते थे, और वह लगभग रोता हुआ बताता था कि कैसे लोगों ने उसके साथ गलत किया और उसे धोखा दिया। ऐसा लगता था कि वह बिलकुल अकेला था, दूसरों ने उसे छोड़ दिया था। सच्चाई यह थी कि उसकी मदद करना आसान नहीं था। वह चिड़चिड़ा, जिद्दी और घमंडी था। उसे हर चीज़ में खामियाँ नज़र आती थीं: उसके लिए दलिया को या तो बहुत ज़्यादा चबाना पड़ता था या पर्याप्त चिकना नहीं होता था, कॉफी बहुत कड़वी और पर्याप्त मीठी नहीं होती थी। वह एक ऐसा व्यक्ति था जो अपने कंधों पर एक बहुत बड़ा बोझ ढो रहा था, और जीवन से नाराज़ और निराश था। उन्होंने दुख जताते हुए कहा, "लोग बुरे और मतलबी होते हैं, वे आपको चोट पहुँचाएँगे।" इस पर मैंने जवाब दिया कि अच्छे लोग भी होते हैं। वह दुनिया के उस क्षेत्र में था जहाँ अच्छाई और बुराई दोनों एक दूसरे के साथ रहती है, जहाँ अच्छाई और दयालुता के लोग एक साथ मिलते हैं, जैसे सुसमाचार में गेहूँ और भूसा। स्वागत से भी बढ़कर चाहे उसकी कमियाँ कुछ भी हों, उसका रवैया या उसका अतीत कुछ भी हो, हम जानते थे कि हमें उसका स्वागत करना चाहिए और येशु के सबसे दीन हीन भाई-बहनों में से एक के रूप में उसकी मदद करनी चाहिए। “जब तुमने किसी अजनबी का स्वागत किया, तो तुमने मेरा ही स्वागत किया।” हम येशु की सेवा कर रहे थे, उसके लिए आतिथ्य के द्वार खोल रहे थे। हमारी पल्ली के एक सदस्य लालो लोपेज़ ने उसे एक रात के लिए अपने घर में रखा, उसे अपने परिवार से मिलवाया और अपने बेटे के बेसबॉल खेल में ले गए, उन्होंने कहा: "ईश्वर हमें परख रहे हैं कि हम उनके बच्चों के रूप में कितने अच्छे और आज्ञाकारी हैं।" कई दिनों तक, हमने उसे पुरोहित के आवास में रखा। वह कमज़ोर था, हर सुबह बलगम थूकता था। यह स्पष्ट था कि वह अब स्वतंत्र रूप से घूम-फिर नहीं सकता था जैसा कि वह अपने युवावस्था में करता था। उसका रक्तचाप 200 से अधिक था। स्टॉकटन की एक यात्रा पर, उसने कहा कि उसे शहर के एक चर्च के निकट उसके गर्दन के पीछे चोट लगी थी। मेक्सिको के कुलियाकन में उसके एक बेटे ने हमसे कहा कि जोस लुईस ने ज़रूर "मुझे पैदा तो किया" लेकिन उसने कभी भी जोस लुईस को अपने पिता के रूप में नहीं जाना, क्योंकि वह कभी आसपास नहीं था, हमेशा यात्रा करता रहता था, एल नॉर्टे की ओर जाता रहता था। उसके जीवन की कहानी सामने आने लगी। उसने कई साल पहले खेतों में काम किया था, चेरी की कटाई की थी। उसने कुछ साल पहले एक स्थानीय चर्च के सामने आइसक्रीम भी बेची थी। वह, बॉब डायलन के क्लासिक गीत को उद्धृत करते हुए, "बिना किसी दिशा के घर जैसा, पूरी तरह से अज्ञात, लुढ़कते पत्थर जैसा था।" येशु ने एक भटकी हुई भेड़ को बचाने के लिए 99 भेड़ों को पीछे छोड़ दिया, इसी तरह हमारा ध्यान इस एक व्यक्ति पर गया, जो जाहिर तौर पर अपने ही लोगों द्वारा तिरस्कृत था। हमने उसका स्वागत किया, उसे रहने के लिए जगह दी, उसे खाना खिलाया और उससे दोस्ती की। हम उसकी जड़ों और इतिहास को जान पाए, एक व्यक्ति के रूप में उसकी गरिमा और पवित्रता को जान पाए, शहर की सड़कों पर फेंके गए एक और व्यक्ति के रूप में हम ने उसके साथ व्यवहार नहीं किया था । मेक्सिको में गुमशुदा व्यक्तियों के वीडियो संदेश भेजनेवाली एक महिला ने उसकी दुर्दशा को फेसबुक पर प्रचारित किया। लोगों ने पूछा: “हम कैसे मदद कर सकते हैं?” एक आदमी ने कहा: “मैं उसे घर जाने के टिकट का भुगतान करूंगा।” जोस लुइस, एक अनपढ़, असभ्य और अपरिष्कृत व्यक्ति, हमारी पल्ली के त्यौहार में आया था, और ईश्वर की कृपा से, हमने कुछ हद तक, गरीबों, लंगड़ों, बीमारों और दुनिया के बहिष्कृत लोगों का अपने प्रेम के घेरे में, जीवन के भोज में स्वागत करनेवाली संत मदर टेरेसा के उदाहरण का अनुकरण करने की कोशिश की। संत जॉन पॉल द्वितीय के शब्दों में, दूसरों के साथ एकजुटता, उनके दुर्भाग्य पर अस्पष्ट करुणा या उथली पीड़ा की भावना नहीं है। यह हमें याद दिलाती है कि हम सभी की भलाई के लिए प्रतिबद्ध हैं क्योंकि हम सभी एक दूसरे के लिए जिम्मेदार हैं।
By: फ़ादर अल्वारो देलगादो
Moreमेरा पति लाइलाज बीमारी से ग्रसित है, मानो उसे मौत की सज़ा सुनाई गई हो; मैं उसके बिना जीना नहीं चाहती थी, लेकिन उसके दृढ़ विश्वास ने मुझे चौंका दिया। पाँच साल पहले, जब हमें पता चला कि मेरा पति जानलेवा बीमारी से ग्रसित हैं, उसी समय मेरी दुनिया तबाह हो गई। मैंने जीवन और भविष्य की जो कल्पना की थी, वह एक पल में हमेशा के लिए बिखर गया। यह भयानक और भ्रमित करने वाला था; मैंने कभी भी इतना भयंकर निराशा और असहायता महसूस नहीं की थी। ऐसा लग रहा था जैसे मैं लगातार डर और निराशा की खाई में डूबी हुई थी। अपने जीवन के सबसे बुरे दिनों का सामना करने के लिए मेरे पास सिर्फ़ मेरा विश्वास था जिस पर मैं टिकी हुई थी । अपने मरते हुए पति की देखभाल करने के दिन और एक नया तथा अलग जीवन का सामना करने की तैयारी के दिन मेरे पहले की योजना से बिलकुल भिन्न थे। क्रिस और मैं किशोरावस्था से ही साथ थे। हम एक दुसरे के सबसे अच्छे दोस्त थे और दुनिया की कोई भी ताकत हमें अलग नहीं कर सकती थी। हम बीस वर्षों से शादीशुदा थे और अपने चार बच्चों की परवरिश खुशी-खुशी कर रहे थे। हमारा जीवन एक आदर्श जीवन की तरह लग रहा था। अब बीमारी ने मेरे पति को मौत की सज़ा सुनाई और मुझे नहीं पता था कि मैं उसके बिना कैसे रह सकती हूँ। सच में, मैं ऐसा बिलकुल नहीं चाहती थी। एक दिन, टूटे हुए पल में, मैंने क्रिस से कहा कि मुझे लगता है कि अगर मुझे आपके बिना जीना पड़ा तो मैं हृदायाघात से मर जाऊंगी। उसकी प्रतिक्रिया उतनी हताश करने वाली नहीं थी। उसने सख्ती से लेकिन सहानुभूतिपूर्वक मुझसे कहा कि तुम्हें तब तक जीना है जब तक ईश्वर तुम्हें अपने यहाँ नहीं बुला लेता; उसने मुझे यह भी कहा कि तुम अपनी ज़िंदगी को बर्बाद नहीं कर सकती| क्योंकि वह जानता था कि उसका अंत होने वाला था। उसने मुझे पूरे विश्वास के साथ आश्वासन दिया कि वह परलोक से मुझ पर और हमारे बच्चों पर नज़र रखेगा। दुख का दूसरा पहलू क्रिस को ईश्वर के प्यार और दया पर अटूट विश्वास था। वह इस बात पर आश्वस्त था कि हम हमेशा के लिए अलग नहीं होंगे, इसलिए वह अक्सर यह वाक्यांश दोहराता था: "यह बस थोड़ी देर के लिए है।" यह वाक्यांश हमें लगातार याद दिलाता था कि कोई भी दिल का दर्द हमेशा के लिए नहीं रहता है - और इन शब्दों ने मुझे असीम आशा दी। मेरी आशा है कि ईश्वर हमें इस दौरान मार्गदर्शन करेगा, और मेरी आशा यह भी है कि मैं अगले जीवन में क्रिस के साथ फिर से मिल जाऊँगी। इन अंधकारमय दिनों में, हम रोज़री में माँ मरियम से जुड़े रहे - यही एक भक्ति थी जिससे हम पहले से ही परिचित थे। हम लोग दु:ख के रहस्यों पर अधिक बार मनन करते थे, क्योंकि हमारे प्रभु की पीड़ा और मृत्यु पर विचार करने से हम अपने दुख में उनके करीब आ जाते थे। करुणा की माला विनती एक नई भक्ति थी जिसे हमने अपनी दिनचर्या में शामिल किया। रोज़री की तरह, यह इस बात की विनम्र याद दिलाती थी कि येशु ने हमारे उद्धार के लिए स्वेच्छा से क्या सहा, और किसी तरह इस की तुलना में हमें दिया गया क्रूस कम भारी लगने लगा। हमने पीड़ा और बलिदान की सुंदरता को और अधिक स्पष्ट रूप से देखना शुरू कर दिया। मैं दिन के हर घंटे मन ही मन छोटी सी प्रार्थना दोहराती : "ओह, येशु के सबसे पवित्र हृदय, मैं तुझ पर अपना पूरा भरोसा रखती हूँ"। जब भी मुझे अनिश्चितता या भय का अहसास होता, तो यह छोटी प्रार्थना मेरे ऊपर शांति की लहर ले आती। इस दौरान, हमारा प्रार्थना जीवन काफी गहरा हो गया और जैसे हम इस दर्दनाक यात्रा को सहन कर रहे हैं, वैसे हमें उम्मीद थी कि हमारे प्रभु क्रिस और हमारे परिवार पर दया करेगा। आज, मुझे उम्मीद है कि क्रिस शांत है, दूसरी तरफ से हम पर नज़र रख रहा है और हमारे लिए मध्यस्थता कर रहा है - जैसा कि उसने वादा किया था। मेरे नए जीवन के इन अनिश्चित दिनों में, यही आशा मुझे आगे बढ़ने और शक्ति देने में मदद करती है। इस परिस्थिति ने मुझे ईश्वर के अनंत प्रेम और कोमल दया के लिए असीम आभार दिया है। आशा एक जबरदस्त उपहार है; जब हम टूटा हुआ और बिखरा हुआ महसूस करते हैं, तब आशा कभी न बुझने वाली आंतरिक चमक बन जाती है जिस पर हम अपना ध्यान केंद्रित कर पाते हैं । आशा शांत करती है, आशा मजबूत करती है, और आशा ही चंगाई देती है। आशा को थामे रखने के लिए साहस की आवश्यकता होती है। जैसा कि संत जॉन पॉल द्वितीय ने कहा: "मैं आपसे विनती करता हूँ, कभी भी आशा न छोड़ें। कभी संदेह न करें, कभी थक न जाएँ और कभी निराश न हों। डरिये नहीं।"
By: मेरी थेरेस एमन्स
Moreमुझे याद है, मेरी सेवकाई के दौरान मुझे लगा कि मेरे साथी सेवक मुझ से दूरी बनाए रख रहा हैI और इसका कोई कारण भी नहीं दिखाई दे रहा थाI ऐसा लग रहा था कि वह कुछ संघर्ष से गुज़र रहा था, लेकिन वह मुझसे इसके बारे में बताने से हिचक रहा थाI चालीसा काल के दौरान एक दिन अपने कार्यालय में खड़ी होकर प्रभु के सम्मुख मैं ने अपने ह्रदय से पुकारा: “येशु, लगता है कि मैं इस आदमी के जीवन से बाहर धकेली गयी हूँI” तुरंत, मैंने येशु को इन शब्दों में मुझे जवाब देते हुए सुना: मुझे पता है कि तुम किस दर्द से गुज़र रही होI मेरे साथ यह प्रतिदिन होता हैI” ओह, मुझे लगा कि मेरा ह्रदय छेदा गया है, और मेरी आँखों में आंसू भर गए, मैं जानती थी कि ये शब्द एक खजाना थाI महीनों उस कृपा को समझने केलिए मैं प्रयास करती रहीI 20 वर्ष पूर्व मैं ने पवित्रात्मा में बप्तिस्मा प्राप्त किया थाI तब से मैं अपने पाप को सौभाग्यशाली समझती थी, कि येशु के साथ मेरा गहरा व्यक्तिगत और आत्मीय सम्बन्ध हैI मैंने कई महीनों तक उस अनुग्रह को समझने की कोशिश करती रही। बीस साल पहले पवित्र आत्मा में बपतिस्मा लेने के बाद से, मैंने माना था कि येशु के साथ मेरा एक गहरा व्यक्तिगत रिश्ता था। लेकिन मेरे अनमोल उद्धारकर्ता और प्रभु के इस वचन ने येशु के हृदय में एक नई अंतर्दृष्टि खोली। "हाँ, येशु, बहुत से लोग आपको भूल जाते हैं, है न? और मैं भी— कितनी बार मैं अपने कामों में व्यस्त रहती हूँ, अपनी समस्याओं और विचारों को आपके पास लाना भूल जाती हूँ? इस दौरान, आप मेरा इंतज़ार करते हैं कि मैं आपकी ओर लौटूँ, जो मुझे इतने प्यार से देखता है।" अपनी प्रार्थना में, मैं उन शब्दों को दोहराती रही। "अब मैं बेहतर तरीके से जानती हूँ कि जब कोई तुझे अस्वीकार करता है, तुझ पर आरोप लगाता है या तुझे दोषी ठहराता है, या कई दिनों या सालों तक तुझसे बात नहीं करता है, तो तुझे कैसा महसूस होता है।" मैं और अधिक सचेत रूप से अपने दुखों को येशु के पास ले जाती और उनसे कहती: "येशु, मेरे प्रिय, तू भी वही दुख महसूस करता जो मैं महसूस कर रही हूँ। मैं अपने छोटे-छोटे दुखों को तुझे सांत्वना देने के लिए अर्पित करती हूँ, क्योंकि मैं खुद भी कई लोगों के साथ हूँ, जो तुझे सांत्वना देने में विफल रहते हैं।" मैंने एक नए तरीके से येशु की वह छवि देखी, जिसे मैं बहुत पसंद करती हूँ, येशु अपने पवित्र हृदय से प्रेम की किरणों को बहाते हुए, संत मार्गरेट मैरी से विलाप करते हुए कहते हैं: "मेरे हृदय को देखो, जो लोगों से बहुत प्यार करता है - लेकिन बदले में उन लोगों से बहुत कम प्यार पाता है।" सचमुच, येशु मुझे प्रतिदिन छोटी-छोटी परीक्षाएँ देते हैं ताकि मैं उनके द्वारा हमारे लिए सहन की जाने वाली पीड़ा का थोड़ा सा स्वाद ले सकूँ। मैं हमेशा उस पीड़ा के क्षण को याद रखूँगी जिसने मुझे हमारे प्यारे प्रभु येशु के अद्भुत, कोमल, लंबे समय तक पीड़ित रहने वाले प्रेम के करीब ला दिया।
By: Sister Jane M. Abeln SMIC
Moreदूसरों को आंकना आसान है, लेकिन अक्सर हम दूसरों के बारे में अपने फैसले में पूरी तरह से गलत हो जाते हैं। मुझे एक बूढ़ा आदमी याद है जो शनिवार की रात को पवित्र मिस्सा पूजा में आता था। बहुत दिनों से उसने नहाया नहीं था और उसके पास साफ कपडे नहीं थे। सच कहूँ तो, उसके बदन से बदबू आती थी। आप उन लोगों को दोष नहीं दे सकते जो इस भयानक गंध से दूर रहना चाहते थे। वह बूढा प्रतिदिन हमारे छोटे शहर में दो या तीन मील पैदल चलता था, कचरा उठाता था, और एक पुरानी जर्जर झोपड़ी में अकेला रहता था। हमारे लिए किसी के बाह्य रूप के आधार पर निर्णय लेना आसान है। है न? मुझे लगता है कि यह इंसान होने का एक स्वाभाविक हिस्सा है। मुझे नहीं पता कि कितनी बार किसी व्यक्ति के बारे में मेरे निर्णय पूरी तरह से गलत थे। वास्तव में, ईश्वर की मदद के बिना दिखावे से परे देखना काफी मुश्किल है, मगर असंभव नहीं है। उदाहरण के लिए, यह आदमी, अपने अजीब व्यक्तित्व के बावजूद, हर हफ्ते मिस्सा बलिदान में भाग लेने के बारे में बहुत वफादार था। एक दिन, मैंने फैसला किया कि मैं नियमित रूप से मिस्सा में उसके बगल में बैठूंगी। हाँ, उसके देह से बदबू आ रही थी, लेकिन उसे दूसरों के प्यार की भी ज़रूरत थी। ईश्वर की कृपा से, बदबू ने मुझे ज़्यादा परेशान नहीं किया। पुरोहित द्वारा आपस में शांति देने के लिए कहने पर, मैं ने उसकी आँखों में देखा, मुस्कुरायी, और मैं ने ईमानदारी से उसका अभिवादन इन शब्दों में किया : "ख्रीस्त की शांति आपके साथ हो।" इसे कभी न छोड़ें ईश्वर मुझे अवसर देना चाहता है कि मैं दूसरे को उसके शारीरिक ढांचा या बाहरी रूप से परे देखूं और उस व्यक्ति के दिल में झाँकूँ। जब मैं किसी व्यक्ति के बारे में उसके बही रूप के आधार पर निर्णय लेती हूँ, तो मैं वह अवसर खो देती हूँ। यही येशु ने अपनी जीवन यात्रा के दौरान मिले प्रत्येक व्यक्ति के साथ किया, और वह हमारी गंदगी से परे हमारे दिलों को देखना जारी रखता है। मुझे याद है कि एक बार जब मैं अपने कैथलिक विश्वास से कई साल दूर थी, मैं गिरजाघर की पार्किंग में बैठी थी, मिस्सा में भाग लेने के लिए गिरजाघर के दरवाज़े से अंदर जाने के लिए पर्याप्त साहस जुटाने की कोशिश कर रही थी। मुझे इतना डर था कि दूसरे लोग मेरे बारे में गलत निर्णय लेंगे और मेरा स्वागत नहीं करेंगे। मैंने येशु से मेरे साथ चलने के लिए कहा। गिरजाघर में प्रवेश करने पर, एक डीकन ने मेरा अभिवादन किया; उन्होंने मुझे एक बड़ी मुस्कान देकर गले लगाया, और कहा: "आपका स्वागत है।" मुझे मुस्कान और आलिंगन की ज़रूरत थी ताकि मैं महसूस कर सकूँ कि मैं यहाँ की हूँ और फिर से अपने ही घर पर हूँ। उस बूढ़े आदमी के साथ बैठना जो बदबूदार था, मेरे लिए "भुगतान आगे बढ़ाने" का तरीका था। मुझे पता था कि मैं कितनी बेसब्री से स्वागत महसूस करना चाहती थी, यह महसूस करना चाहती थी कि मैं भी शामिल हूँ और मेरा भी महत्व है। हमें एक-दूसरे का स्वागत करने में संकोच नहीं करना चाहिए, खासकर उन लोगों का जिनके साथ रहना मुश्किल है।
By: Connie Beckman
Moreक्या आप दूसरों के बारे में धारणा बनाने में जल्दी करते हैं? क्या आप किसी ज़रूरतमंद की मदद करने में हिचकिचाते हैं? तो, इस पर सोचने का यही उपयुक्त समय है! अन्य दिनों की तरह वह दिन भी मेरे लिए बस एक साधारण सा दिन था। बाज़ार से लौटती हुई, दिन भर की मेहनत से थकी हुई, रूफस को सिनागोग के विद्यालय से साथ लेती हुई… हालाँकि, उस दिन मुझे कुछ अलग महसूस हुआ। हवा मेरे कान में फुसफुसा रही थी, और यहाँ तक कि आसमान भी पहले की तुलना में कुछ अधिक अभिव्यक्ति कर रहा था। सड़कों पर भीड़ के शोर से भी मेरी इस सोच की पुष्टि हो गयी कि आज, कुछ बदलाव होने वाला है। फिर, मैंने उसे देखा - उसका शरीर इतना विकृत हो गया था कि मैंने कोशिश की कि रूफस इस भयावह दृश्य को न देखने पाए। बेचारे रुफुस ने अपनी पूरी ताकत से मेरी बांह पकड़ ली - वह घबरा गया था। जिस तरह से इस आदमी को, खैर, जो कुछ भी उस आदमी में बचा था, उसके साथ व्यवहार किया जा रहा था, इसका मतलब था कि उसने कुछ भयानक किया था। मेरे लिए, सिर्फ वहां खड़ी होकर देखना, यह ठीक नहीं था, लेकिन जैसे ही मैं जाने लगी, मुझे एक रोमन सैनिक ने पकड़ लिया। मुझे तब बड़ा आश्चर्य हुआ जब उस सैनिक ने मुझे इस आदमी को उसका भारी बोझ उठाने में मदद करने का आदेश दिया। मुझे पता था कि इसका मतलब है कि अब परेशानी झेलनी है। मेरे द्वारा मदद का इनकार करने के बावजूद, उन लोगों ने उसकी मदद करने के लिए मुझ पर दबाव डाला। यह कैसी गड़बड़ हालात है! मैं एक पापी के साथ जुड़ना नहीं चाहती थी। उन सभी के देखते हुए एक क्रूस का भारी बोझ उठाकर आगे बढ़ना ? कितना अपमानजनक! मुझे पता था कि हालांकि और कोई रास्ता नहीं है, इसलिए मैंने अपने पड़ोसी वैनेसा से रूफस को घर ले जाने के लिए कहा, क्योंकि इस मुसीबात की घड़ी बीतने में कुछ समय लगेगा। मैं उस आदमी के पास गयी - गंदा, खूनी और विकृत! मुझे आश्चर्य हुआ कि उसने ऐसा कौन सा पाप या अपराध किया था कि वह इस स्थिति का लायक बन गया था। जो भी हो, यह सजा बहुत क्रूर थी। वहां खड़े तमाशबीन लोग चिल्ला रहे थे, 'यह आदमी ईशनिंदा करता है', 'यह झूठा है ' और 'यहूदियों का राजा' जबकि कुछ अन्य लोग उस पर थूक रहे थे और उसे गाली दे रहे थे। मुझे पहले कभी इतना अपमानित और मानसिक रूप से प्रताड़ित नहीं किया गया था। उसके साथ केवल दस से पंद्रह कदम चलने के बाद, वह मुंह के बल जमीन पर गिर पड़ा। इस क्लेश को समाप्त करने के लिए, उसे उठने की जरूरत थी, इसलिए मैं उसे उठाने में मदद करने के लिए झुकी। फिर, उसकी आँखों में, मैंने कुछ ऐसा देखा, जिसने मुझे बदल दिया। मैंने करुणा और प्रेम देखा। यह कैसे संभव है? कोई डर नहीं, कोई गुस्सा नहीं, कोई नफरत नहीं - सिर्फ प्यार और सहानुभूति। मैं हैरान रह गई, जबकि उन आँखों से उसने मेरी तरफ देखा और वापस उठने के लिए मेरा हाथ पकड़ लिया। मैं अब अपने आस-पास के लोगों को सुन या देख नहीं सकती थी। जैसे ही मेरे एक कंधे पर क्रूस था और दूसरे कंधे पर उसने अपना हाथ रखा था। अब मुझे सिर्फ़ उनके दिल की धड़कन और उनकी उखड़ी हुई साँसें सुनाई दे रही थीं... वे संघर्ष कर रहे थे, फिर भी बहुत, बहुत मज़बूत थे। लोगों के चीखने, गाली देने और इधर-उधर भागने के शोर के बीच, मुझे लगा जैसे वे मुझसे बात कर रहे थे। उस समय तक मैंने जो भी किया था, अच्छा या बुरा, सब बेकार लग रहा था। जब रोमन सैनिक उन्हें मुझसे दूर खींचकर क्रूस पर चढ़ाने के स्थान पर ले जा रहे थे, तो उन सैनिकों ने मुझे एक तरफ धकेल दिया और मैं जमीन पर गिर गई । उन्हें अपने आप ही आगे बढ़ना था। मैं वहीं जमीन पर पड़ी रही और लोग मुझे कुचल रहे थे। मुझे नहीं पता था कि आगे क्या करना है। मुझे बस इतना पता था कि जीवन कभी भी वैसा नहीं होने वाला था। मैं अब भीड़ को नहीं सुन सकती थी, केवल सन्नाटा और अपने दिल की धड़कन की आवाज सुन सकती थी। मुझे उनके कोमल हृदय की आवाज की याद आ गई। कुछ घंटों बाद, जब मैं जाने के लिए उठने ही वाली थी, पहले का भावपूर्ण आकाश बोलने लगा। मेरे नीचे की जमीन हिल गई! मैंने आगे कलवारी के शीर्ष पर देखा और वे दिखाई दिये, हाथ फैलाए और सिर झुकाए हुए, मेरे लिए। अब मैं जानती हूँ कि उस दिन मेरे वस्त्र पर जो खून छिड़का गया था, वह परमेश्वर के मेमने का रक्त था, जो संसार के पापों को हर लेता है। उसने मुझे अपने रक्त से शुद्ध किया। *** *** *** मैं इस तरह से किरीन के सिमोन की कल्पना करती हूँ। जिस दिन उसे येशु को क्रूस को कलवरी तक ले जाने में मदद करने के लिए कहा गया था, उस दिन के अपने अनुभव को याद करती हुई मैं कल्पना करती हूँ। सिमोन ने शायद उस दिन तक येशु के बारे में बहुत कम सुना था, लेकिन मुझे पूरा यकीन है कि उस क्रूस को ले जाने में उद्धारकर्ता को मदद करने के बाद वह वही व्यक्ति नहीं रहा। इस चालीसे के तपस्याकाल में, हमें खुद को देखने के लिए सिमोन हमसे कहता है: क्या हम दुसरे लोगों के बारे में धारणा बनाने में बहुत जल्दी कर रहे हैं? कभी-कभी, हम किसी के बारे में अपनी सहज प्रवृत्ति के कारण दिमाग में आई बातों पर विश्वास करने में बहुत जल्दी कर देते हैं। सिमोन की तरह, हम दूसरों की मदद करने के रास्ते में अपनी धारणा को आड़े आने देते हैं। सिमोन ने येशु को कोड़े खाते हुए देखा और मान लिया कि इस आदमी ने कुछ गलत काम ज़रूर किया होगा। ऐसे बहुत से अवसर भी बनते हैं जब येशु की आज्ञा के अनुसार किसी व्यक्ति के साथ प्रेम करने के रास्ते में, हमने उनके प्रति अपनी धारणाओं को बाधा बनने दिया। क्या हम कुछ लोगों की मदद करने में हिचकिचाते हैं? क्या हमें दूसरों में येशु को नहीं देखना चाहिए और उनकी मदद करने के लिए आगे नहीं बढ़ना चाहिए? येशु हमें न केवल अपने दोस्तों से बल्कि अजनबियों और दुश्मनों से भी प्यार करने के लिए कहते हैं। अजनबियों से प्रेम करने का आदर्श नमूना कोलकत्ता की संत मदर तेरेसा हैं। उन्होंने हमें दिखाया कि हर किसी में येशु का चेहरा कैसे देखा जाए। दुश्मनों से प्रेम करने का आदर्श येशु मसीह से बेहतर कौन हो सकता है? येशु ने उनसे प्रेम किया जो उससे नफरत करते थे और उन लोगों के लिए प्रार्थना की जिन्होंने उसे सताया था। सिमोन की तरह, हम अजनबियों या दुश्मनों से संपर्क करने में झिझक महसूस कर सकते हैं, लेकिन मसीह हमें अपने भाइयों और बहनों से वैसा ही प्रेम करने के लिए कहता है जैसा उसने किया था। येशु हमारे पापों के लिए जितना मरा, उतना ही वह उनके पापों के लिए मरा। प्रभु येशु, तेरे मार्ग का अनुसरण करके एक महान गवाह बनने वाले किरीन के सिमोन का नमूना हमें देने के लिए तुझे धन्यवाद। हे स्वर्गीय पिता, जरूरतमंद लोगों तक पहुंचकर तेरे गवाह बनने की कृपा हमें प्रदान कर।
By: Mishael Devassy
Moreसबसे अंधेरी घाटियों और सबसे कठिन रातों के दौरान, बेलिंडा ने एक आवाज़ सुनी जो उसे वापस बुलाती रही। जब मैं ग्यारह साल की थी, तब मेरी माँ हमें छोड़कर चली गई। उस समय, मुझे लगा कि वह इसलिए चली गई क्योंकि वह मुझे नहीं चाहती थी। लेकिन वास्तव में, वैवाहिक दुर्व्यवहार के कारण चुपचाप वर्षों तक पीड़ित रहने के बाद, वह अब और नहीं टिक सकती थी। वह हमें बचाना चाहती थी, लेकिन मेरे पिता ने माँ को धमकी दी थी कि अगर माँ हमें अपने साथ ले गई तो पिता उसे मार देगा। इतनी कम उम्र में यह सहन करना बहुत मुश्किल था, और जब मैं इस कठिन समय से बाहर निकलने के लिए कड़ी मेहनत कर रही थी, मेरे पिता ने दुर्व्यवहार का एक नया चक्र शुरू किया जो आने वाले वर्षों तक मुझे परेशान करता रहा। घाटियाँ और पहाड़ियाँ अपने पिता के दुर्व्यवहार के दर्द को कम करने और अपनी परित्यक्त माँ के अकेलेपन की भरपाई करने के लिए, मैंने सभी तरह के 'राहत' तंत्रों का सहारा लेना शुरू कर दिया। और एक समय ऐसा आया जब मैं दुर्व्यवहार को और बर्दाश्त नहीं कर सकी, मैं अपने स्कूल के बॉयफ्रेंड चार्ल्स के साथ भाग गई। इस दौरान मैं अपनी माँ से फिर से जुड़ी और कुछ समय तक उनके और उनके नए पति के साथ रही। 17 साल की उम्र में, मैंने चार्ल्स से शादी कर ली। उसके परिवार का जेल में रहने का इतिहास रहा था, और उसने भी जल्द ही यही किया। मैं उन्हीं अपराधी किस्म के लोगों के साथ घूमती रही, और आखिरकार, मैं भी अपराध में फंस गई। 19 साल की उम्र में, मुझे पहली बार जेल की सज़ा सुनाई गई - घातक हमला करने के आरोप में पाँच साल की कैद । जेल में, मैं अपने जीवन में पहले से कहीं ज़्यादा अकेली महसूस कर रही थी। जिस किसी से मुझे प्यार और पालन-पोषण की उम्मीद थी, उन सब ने मुझे छोड़ दिया, मेरा इस्तेमाल किया और मेरे साथ दुर्व्यवहार किया। मुझे याद है कि मैंने हार मान ली थी, यहाँ तक कि मैंने अपना जीवन समाप्त करने की कोशिश भी की थी। लंबे समय तक, हाँ जब तक कि मैं शेरोन और जॉयस से नहीं मिली, मैं नीचे की ओर गिरती रही । उन दोनों ने अपना जीवन प्रभु को समर्पित कर दिया था। हालाँकि मुझे येशु के बारे में कोई जानकारी नहीं थी, लेकिन मैंने सोचा कि मैं इसे आज़माऊँगी क्योंकि मेरे पास और कुछ नहीं था। वहाँ, उन दीवारों के भीतर फँसकर, मैंने मसीह के साथ एक नया जीवन शुरू किया। गिरना, उठना, सीखना... सज़ा के लगभग डेढ़ साल बाद, मेरे पैरोल का अवसर आया। किसी तरह मेरे दिल में, मैं बस इतना जानती थी कि मैं पैरोल पर रिहा होने जा रही हूँ क्योंकि मैं येशु के लिए जी रही थी। मुझे लगा कि मैं सभी सही और अच्छा काम कर रही थी, इसलिए जब एक साल के पैरोल का आवेदन निरस्त किया गया, तो मुझे समझ में नहीं आया। मैंने ईश्वर से सवाल करना शुरू कर दिया और मैं काफी आक्रोश में थी। इसी समय मैं दुसरे सुधार केंद्र में स्थानांतरित कर दी गयी। एक दिन प्रार्थना सभा के अंत में, जब फादर ने हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ मेरी ओर बढ़ाया, तो मैं झिझक गई और पीछे हट गई। वे पवित्र आत्मा से भरे हुए व्यक्ति थे, और पवित्र आत्मा ने उन्हें दिखाया कि मैं घावों से भरी व्यक्ति हूँ। अगली सुबह, उन्होंने मुझसे मिलने के लिए कहा। वहाँ उनके कार्यालय में, जब उन्होंने मुझसे पूछा कि मेरे साथ क्या हुआ था और मैं कैसे चोटिल हो रही थी, तो मैंने अपने जीवन में पहली बार खुलकर अपनी बात साझा की। अंततः, मैं जेल से बाहर आयी और निजी पुनर्वास में, मैंने नौकरी शुरू की और धीरे-धीरे अपने नए जीवन को संभाल रही थी। तब मेरी मुलाकात स्टीवन से हुई। मैंने उसके साथ बाहर जाना शुरू किया, और मैं गर्भवती हो गईं। मुझे याद है कि मैं इसके बारे में उत्साहित थी। स्टीफन की इच्छानुसार, हम दोनों ने शादी कर ली और पारिवारिक जीवन जीना शुरू किया। यह मेरे जीवन के शायद सबसे बुरे 17 वर्षों की शुरुआत थी, क्योंकि इस दौरान स्टीफन द्वारा मेरा शारीरिक शोषण, बेवफाई, ड्रग्स और अपराध के दलदल में मैं निरंतर फंसी रही। वह हमारे बच्चों को भी चोट पहुँचाता था, और एक बार तो मैं गुस्से में आ गयी — मैं उसे गोली मारना चाहती थी। उस समय, मैंने ये आयतें सुनीं: “प्रतिशोध मेरा अधिकार है, मैं ही बदला चुकाऊँगा।” (रोमी 12:19) और “प्रभु ही तुम्हारी ओर से युद्ध करेगा” (निर्गमन 14:14), और इन वचनों ने मुझे उसे जाने देने के लिए प्रेरित किया। कभी अपराधी नहीं मैं कभी भी लंबे समय तक अपराधी नहीं रह पायी; ईश्वर मुझे बस गिरफ्तार कर लेता और मुझे वापस पटरी पर लाने की कोशिश करता। प्रभु के बार-बार प्रयासों के बावजूद, मैं उसके लिए नहीं जी रही थी। मैंने हमेशा ईश्वर को पीछे रखा, हालाँकि मुझे पता था कि वह मेरे सामने है। कई गिरफ्तारियों और रिहाई के बाद, मैं आखिरकार 1996 में हमेशा के लिए घर आ गयी। मैं कलीसिया के संपर्क में वापस आ गयी और आखिरकार येशु के साथ एक सच्चा और ईमानदार रिश्ता बनाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे कलीसिया मेरी ज़िंदगी बन गयी; इससे पहले कभी येशु के साथ मेरा ऐसा रिश्ता नहीं था। मैं इससे तृप्त नहीं हो पायी क्योंकि मैंने देखना शुरू कर दिया कि जो चीज़ मुझे इस मार्ग पर बनाए रखेगा, वह मेरे द्वारा किए गए कार्य नहीं हैं, बल्कि येशु मसीह में मैं कौन हूँ, वही सम्बन्ध होगा। लेकिन, मेरा वास्तविक परिवर्तन ‘ब्रिजेस टू लाइफ’* (जीवन का सेतु) कार्यक्रम के साथ हुआ। मुझसे यह कैसे संभव नहीं होगा ? भले ही मैं एक अपराधी के रूप में कार्यक्रम में भागीदार नहीं थी, लेकिन उन छोटे समूहों में नेतृत्व प्रदान करने में सक्षम होना एक ऐसा आशीर्वाद था जिसकी मैंने उम्मीद नहीं की थी - एक ऐसा आशीर्वाद जिसने मेरे जीवन को खूबसूरत तरीकों से बदल दिया। जब मैंने अन्य महिलाओं और पुरुषों को अपनी कहानियाँ साझा करते हुए सुना, तो मेरे अंदर कुछ क्लिक किया। इसने मुझे पुष्ट किया कि मैं अकेली नहीं हूँ और मुझे बार-बार सामने आने के लिए प्रोत्साहित किया गया। मैं काम से बहुत थक जाती थी और चूर चूर हो जाती थी, लेकिन मैं जेलों में चली जाती और बस तरोताजा हो जाती क्योंकि मुझे पता था कि मुझे वहीं होना चाहिए था। ब्रिजेस टू लाइफ़ खुद को माफ़ करने की सीख पाने के बारे में है; दूसरों की मदद करने से न केवल मुझे संपूर्ण बनने में मदद मिली, बल्कि इससे मुझे चंगा होने में भी मदद मिली...और मैं अभी भी चंगा हो रही हूँ। सबसे पहले, मेरी माँ थी। उन्हें कैंसर था, और मैं उन्हें घर ले आयी; जब तक वे मेरे घर पर थीं तब तक मैंने उनकी देखभाल की। फिर वे शांतिपूर्वक इस दुनिया से चली गईं। 2005 में, मेरे पिता का कैंसर फिर से वापस आ गया, और डॉक्टरों ने अनुमान लगाया कि वे अधिकतम छह महीने तक जीवित रहेंगे। मैं उन्हें भी घर ले आयी। मेरे साथ जो कुछ भी हुआ था, इसके मद्देनज़र, सभी ने मुझे इस आदमी को अपने साथ न लेने के लिए कहा। मैंने पूछा: "मुझसे यह कैसे संभव नहीं होगा ?" येशु ने मुझे माफ़ कर दिया, और मुझे लगता है कि परमेश्वर चाहता है कि मैं ऐसा करूँ। अगर मैंने त्याग और दुर्व्यवहार के लिए अपने माता-पिता के प्रति कड़वाहट या घृणा को बनाए रखने का विकल्प चुनी होती, तो मुझे नहीं पता कि वे अपना जीवन प्रभु को समर्पित करते या नहीं। अपने जीवन पर पीछे मुड़कर नज़र डालने पर, मैं देखती हूँ कि कैसे येशु मेरा पीछा करते रहे और मेरी मदद करने की कोशिश करते रहे। जो कुछ नया था उसे महसूस करने के लिए मेरे अन्दर बहुत प्रतिरोध था, और जो आरामदायक था उसमें रहना मेरे लिए बहुत आसान था, लेकिन मैं येशु की आभारी हूँ कि मैं अंततः पूरी तरह से उनके सामने आत्मसमर्पण करने में सक्षम थी। येशु मेरे उद्धारकर्ता हैं, येशु मेरे चट्टान हैं, और येशु मेरे मित्र हैं। मैं येशु के बिना जीवन की कल्पना ही नहीं कर सकती। * ब्रिजेस टू लाइफ पीड़ितों और अपराधियों के लिए एक आस्था-आधारित कार्यक्रम है, जो ईश्वर के प्रेम और क्षमा की परिवर्तनकारी शक्ति पर ध्यान केंद्रित करता है l
By: Belinda Honey
Moreक्या मेरा जीवन कभी सामान्य हो पाएगा? मैं अपना काम कैसे जारी रख सकती हूँ? इन पर विचार करते हुए, मेरे दिमाग में एक अद्भुत समाधान आया... मुझे अपना जीवन बेहद तनावपूर्ण लग रहा था। कॉलेज में अपने पाँचवें वर्ष में, द्विध्रुवी विकार (बाईपोलर डिसऑर्डर) की शुरुआत के कारण पढ़ाई पूरी करने के मेरे प्रयासों में बाधा बन रही थी। मुझे अभी तक कोई निदान नहीं हुआ था, लेकिन मैं अनिद्रा से ग्रस्त थी, और मैं थकी हुई और अव्यवस्थित दिखती थी। इसके कारण शिक्षक के रूप में रोजगार की मेरी संभावनायें बाधित हुई। चूँकि मेरे पास पूर्णतावाद की ओर मजबूत प्राकृतिक प्रवृत्ति थी, इसलिए मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई और डर लगा कि मैं सभी को निराश कर रही हूँ। मैं गुस्से, निराशा और अवसाद में घिर गयी। लोग मेरी गिरावट के बारे में चिंतित थे और मदद करने की कोशिश कर रहे थे। मुझे स्कूल से एम्बुलेंस द्वारा अस्पताल भी भेजा गया था, लेकिन डॉक्टरों को उच्च रक्तचाप के अलावा कुछ भी गलत नहीं मिला। मैंने प्रार्थना की लेकिन कोई सांत्वना नहीं मिली। यहाँ तक कि ईस्टर मिस्सा के दौरान -ईस्टर की रात मेरा सबसे पसंदीदा समय है - भी दुष्चक्र जारी रहा। येशु मेरी मदद क्यों नहीं कर रहा है? मुझे उससे बहुत गुस्सा आया। अंत में, मैंने प्रार्थना करना ही बंद कर दिया। जैसे-जैसे यह चलता रहा, दिन-ब-दिन, महीने-दर-महीने, मुझे नहीं पता था कि क्या करना है। क्या मेरी ज़िंदगी कभी सामान्य हो पाएगी? यह असंभव लग रहा था। जैसे-जैसे मेरे स्नातक की परीक्षा नज़दीक आ रही थी, मेरा डर बढ़ता जा रहा था। पढ़ाना एक मुश्किल काम है जिसमें बहुत कम ब्रेक मिलते हैं, और छात्रों को मेरी ज़रूरत होगी ताकि मैं उनकी कई ज़रूरतों को पूरा करती हुई और सीखने का एक अच्छा माहौल प्रदान करती रहूँ। मैं अपनी मौजूदा स्थिति में यह कैसे कर सकती थी? मेरे दिमाग में एक भयानक समाधान आया: "तुम्हें बस खुद को मार देना चाहिए।" उस विचार को नरक में होना चाहिए, लेकिन उसे त्यागने और उसे सीधे नरक में वापस भेजने के बजाय, मैंने उसे वहीं मेरे मन में ही रहने दिया। यह मेरी दुविधा का एक सरल, तार्किक उत्तर लग रहा था। मैं बस लगातार हमले के बजाय सुन्न होना चाहती थी। अफ़सोस की बात है कि मैंने निराशा को चुना। लेकिन, जब मुझे लगा कि यह मेरे आखिरी पल होंगे, तो मैंने अपने परिवार के बारे में और मेरे उस व्यक्तित्व के बारे में सोची जो मैं कभी थी। सच्चे पश्चाताप में, मैंने अपना सिर आसमान की ओर उठाया और कहा: "मुझे बहुत खेद है, येशु। इन सब बातों केलिए मुझे क्षमा कर। बस मुझे वह दे जिसकी मैं हकदार हूँ।" मुझे लगा कि ये मेरे इस जीवन के आखिरी शब्द होंगे। लेकिन परमेश्वर की कुछ और ही योजना थी। ईश्वर की आवाज़ का श्रवण मेरी माँ, ईश्वर की कृपा से, उसी क्षण करुणा की माला विनती बोल रही थी। अचानक, माँ ने अपने दिल में ज़ोर से और स्पष्ट शब्दों में सुना “एलन को खोजो।” उन्होंने आज्ञाकारी होकर अपनी माला के मोतियों को एक तरफ रख दिया और मुझे गैरेज के फर्श पर पाया। वह जल्दी से समझ गई, और भयभीत होकर बोली: “तुम क्या कर रहे हो?!” और उन्होंने मुझे घर के अंदर खींच लिया। मेरे माता-पिता का दिल टूट गया था। ऐसे समय के लिए कोई नियम पुस्तिका नहीं है, लेकिन उन्होंने मुझे मिस्सा में ले जाने का फैसला किया। मैं पूरी तरह से टूट चुकी थी, और मुझे पहले से कहीं ज़्यादा उद्धारकर्ता प्रभु की ज़रूरत थी। मैं येशु के पास आने के पल के लिए तरस रही थी, लेकिन मुझे यकीन था कि मैं दुनिया की आखिरी इंसान हूँ जिसे वह कभी देखना चाहेगा। मैं यह विश्वास करना चाहती थी कि येशु मेरा चरवाहा है और अपनी खोई हुई भेड़ों को वापस लाएगा, लेकिन यह मुश्किल था क्योंकि कुछ भी नहीं बदला था। मैं अभी भी गहन आत्म-घृणा से ग्रस्त थी, अंधकार से पीड़ित थी। यह लगभग शारीरिक रूप से दर्दनाक था। उपहारों की तैयारी के दौरान, मैं फूट-फूट कर रो पड़ी। मैं बहुत लंबे समय से रोई नहीं थी, लेकिन एक बार जब मैंने रोना शुरू किया, तो मैं रुक नहीं पाई। मैं अपनी ताकत के आखिरी छोर पर थी, मुझे नहीं पता था कि आगे कहाँ जाना है। लेकिन जैसे-जैसे मैं रोती गई, मेरा बोझ धीरे-धीरे कम होता गया, और मैंने खुद को उनकी दिव्य दया में लिपटी हुई महसूस किया। मैं इसके लायक नहीं थी, लेकिन उन्होंने मुझे खुद का उपहार दिया, और मुझे पता था कि वह मेरे सबसे निचले बिंदु पर भी मुझसे उतना ही प्यार करता था जितना कि उन्होंने मेरे सबसे ऊंचे बिंदु पर किया था। प्यार की तलाश में आने वाले दिनों में, मैं मुश्किल से ईश्वर का सामना कर पाती, लेकिन वह छोटी-छोटी चीजों में दिखाई देता रहा और मेरा पीछा करता रहा। मैंने हमारे आतंरिक कक्ष में लगी येशु की दिव्य दया की तस्वीर की मदद से येशु के साथ फिर से संवाद स्थापित किया। मैंने बात करने की कोशिश की, ज्यादातर संघर्ष के बारे में शिकायत की और फिर हाल ही में हुए मेरे बचाव के मद्देनजर इसके बारे में बुरा महसूस किया। अजीब तरह से, मुझे लगा कि मैं एक कोमल आवाज़ को फुसफुसाते हुए सुन सकती हूँ: "क्या तुमने सच में सोचा था कि मैं तुम्हें मरने के लिए छोड़ दूँगा? मैं तुमसे प्यार करता हूँ। मैं तुम्हें कभी नहीं छोडूंगा। मैं तुम्हें कभी नहीं छोडने का वादा करता हूँ। सब कुछ माफ़ है। मेरी दया पर भरोसा रखो।" मैं इस पर विश्वास करना चाहती थी, लेकिन मैं इस बात पर भरोसा नहीं कर पा रही थी कि यह सच था। मैं उन दीवारों से निराश हो रही थी, जिन्हें मैं खादी कर रही थी, लेकिन मैं येशु से बात करती रही: "येशु, मैं तुझ पर भरोसा करना कैसे सीख सकती हूँ?" जवाब ने मुझे चौंका दिया। जब आपको लगता है कि कोई उम्मीद नहीं है, लेकिन आपको जीना जारी रखना है, तो आप कहाँ जायेंगे? जब आप पूरी तरह से अप्रिय महसूस करते हैं, और घमंड के कारण कुछ भी स्वीकार करने में दिक्कत महसूस करते हैं, फिर भी किसी न किसी तरह विनम्र होना चाहते हैं? दूसरे शब्दों में, जब आप पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के साथ पूर्ण सामंजस्य चाहते हैं, लेकिन अपने घर का रास्ता खोजने के लिए प्यार भरे स्वागत से बहुत डरते हैं और अविश्वास करते हैं, तो आप कहाँ जाना चाहते हैं? इसका उत्तर है ईश्वर की माँ और स्वर्ग की रानी धन्य कुँवारी मरियम। जब मैं भरोसा करना सीख रही थी, तो मेरे अजीब प्रयासों ने येशु को नाराज़ नहीं किया। वह मुझे अपनी धन्य माँ के माध्यम से अपने पवित्र हृदय के करीब बुला रहे थे। मैं उनसे और उनकी वफादारी से प्यार करने लगा। मैं माँ मरियम के सामने सब कुछ स्वीकार कर सकती थी। हालाँकि मुझे डर था कि मैं अपनी सांसारिक माँ से किया गया वादा पूरा नहीं कर पाऊँगी क्योंकि, अपने दम पर, मैं अभी भी मुश्किल से जीने की इच्छाशक्ति जुटा पा रही थी, मेरी माँ ने मुझे मरियम को अपना जीवन समर्पित करने के लिए प्रेरित किया, इस विश्वास के साथ कि वह मुझे इससे बाहर निकलने में मदद करेगी। मुझे इस बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं थी कि इसका क्या मतलब है, लेकिन फादर माइकल ई. गेटली, एम.आई.सी. द्वारा लिखित ‘प्रातःकालीन महिमा और येशु के हृदय को सांत्वना देने के लिए 33 दिन’ नामक पुस्तिका ने मुझे समझने में मदद की। धन्य माँ मरियम हमेशा हमारी मध्यस्थ बनने के लिए तैयार रहती हैं, और वह कभी भी किसी बच्चे के अनुरोध को नहीं ठुकराएँगी जो येशु के पास वापस लौटना चाहता है। जैसे-जैसे मैं समर्पण की प्रार्थना कर रही थी, "चाहे कुछ भी हो जाए, मैं हार नहीं मानूँगी " इन्हीं शब्दों के साथ मैंने फिर कभी आत्महत्या का प्रयास न करने का संकल्प लिया। इस बीच, मैंने समुद्र तट पर लंबी सैर करना शुरू कर दिया, जबकि मैं परमेश्वर पिता से बात करती थी, और उड़ाऊ पुत्र के दृष्टांत पर ध्यान करती थी। मैंने खुद को उड़ाऊ पुत्र के स्थान पर रखने की कोशिश की, लेकिन परमेश्वर पिता के करीब आने में मुझे कुछ समय लगा। पहले, मैंने कल्पना की कि वह कुछ दूरी पर है, फिर मेरी ओर चल रहा है। दूसरे दिन, मैंने कल्पना की कि वह मेरी ओर दौड़ रहा है, भले ही यह पिता ईश्वर के दोस्तों और पड़ोसियों के लिए हास्यास्पद लग रहा हो। आखिरकार, वह दिन आया जब मैं खुद को पिता की बाहों में देख सकती थी, फिर न केवल उनके घर में बल्कि स्वर्गीय परिवार की मेज पर मेरे लिए निर्धारित मेरी सीट पर मेरा स्वागत किया जा रहा था। जब मैंने कल्पना की कि वह मेरे लिए एक कुर्सी खींच रहा है, तो मैं अब एक जिद्दी युवती नहीं थी, बल्कि नयी पीढ़ी का मजेदार चश्मा और बॉब हेयरकट वाली 10 वर्षीय लड़की थी। जब मैंने अपने लिए पिता के प्यार को स्वीकार किया, तो मैं फिर से एक छोटे बच्चे की तरह हो गई, मैं वर्तमान क्षण में जी रही थी और पूरी तरह से उन पर भरोसा कर रही थी। मैं परमेश्वर और उनकी वफादारी से प्यार करने लगी। मेरे अच्छे चरवाहे ने मुझे भय और क्रोध की कैद से बचाया है, वह मुझे सुरक्षित मार्ग पर ले जाता है और जब भी मैं लड़खड़ाती हूँ तो वह मुझे सहारा देता है। अब, मैं अपनी कहानी साझा करना चाहती हूँ ताकि हर कोई ईश्वर की अच्छाई और प्रेम को जान सके। उसका पवित्र हृदय सिर्फ़ आपके लिए कोमल प्रेम और दया से भरा हुआ है। वह आपसे भरपूर प्रेम करना चाहता है, और मैं आपको प्रोत्साहित करती हूँ कि बिना किसी डर या संकोच के आप ईश्वर का स्वागत करें। वह आपको कभी नहीं छोड़ेगा या आपको निराश नहीं करेगा। उसके प्रकाश में कदम रखें और उसके आलिंगन में वापस लौटें।
By: Ellen Wilson
Moreजब तक कि यह घटना नहीं हुई, ड्रग्स और सेक्स वर्क के चक्कर में फंसकर मैं खुद को खोती जा रही थी। रात हो चुकी थी। मैं वेश्यालय में थी, "काम" के लिए कपड़े पहनकर मैं तैयार थी। दरवाजे पर हल्की दस्तक हुई, पुलिस की जोरदार धमाका नहीं, बल्कि वास्तव में एक हल्की सी दस्तक। वेश्यालय की मालकिन “मैडम” ने दरवाजा खोला, और अंदर चली आईं... मेरी माँ! मुझे शर्म आ रही थी। मैं इस "काम" के लिए कपडे पहनकर तैयार थी, वह “काम” जिसे मैं महीनों से कर रही थी, और देखो कमरे में मेरी अपनी माँ थी! वह बस वहीं बैठी रही और मुझसे कहा: "प्यारी, कृपया घर आ जाओ।" उसने मुझे प्यार से देखा। उसने मेरे “काम” को सही या गलत नहीं कहा। उसने बस मुझे वापस आने के लिए कहा। मैं उस पल अनुग्रह से अभिभूत थी। मुझे तब घर चले जाना चाहिए था, लेकिन ड्रग्स ने मुझे जाने नहीं दिया। मुझे वास्तव में शर्म आ रही थी। उसने अपना फ़ोन नंबर एक कागज़ पर लिखा, उसे मेरी ओर सरकाया, और मुझसे कहा: "मैं तुमसे प्यार करती हूँ। तुम मुझे कभी भी कॉल कर सकती हो, और मैं आ जाऊँगी।" अगली सुबह, मैंने अपने एक दोस्त से कहा कि मैं हेरोइन से छुटकारा पाना चाहती हूँ। मैं डरी हुई थी। 24 साल की उम्र में, मैं जीवन से थक चुकी थी, और मुझे लगा कि मैं जीवन से ऊब चुकी हूँ। मेरा दोस्त एक डॉक्टर को जानता था जो नशे की लत के रोगियों का इलाज करता था, और मुझे तीन दिन में अपॉइंटमेंट मिल गया। मैंने अपनी माँ को फ़ोन किया, उन्हें बताया कि मैं डॉक्टर के पास जा रही हूँ, और मैं हेरोइन से छुटकारा पाना चाहती हूँ। वह फ़ोन पर रो रही थी। वह तुरन्त कार में बैठ गई और सीधे मेरे पास आई। लम्बे अरसे से वह इस पल केलिए इंतज़ार कर रही थी... यह सब कैसे शुरू हुआ जब मेरे पिता को ब्रिसबेन के एक्सपो 88 में नौकरी मिल गई, तो हमारा परिवार ब्रिस्बेन चला गया। मैं 12 साल की थी। मेरा दाखिला लड़कियों केलिए बने कुलीन प्राइवेट स्कूल में हुआ था, लेकिन मैं वहाँ फिट नहीं बैठती थी। मैं हॉलीवुड जाकर फ़िल्में बनाने का सपना देखती थी, इसलिए मुझे ऐसे स्कूल में जाना था जो फ़िल्म और टीवी में माहिर हो। मुझे फ़िल्म और टीवी के लिए मशहूर एक स्कूल मिला, और मेरे माता-पिता ने स्कूल बदलने के मेरे अनुरोध को आसानी से स्वीकार कर लिया। मैंने उन्हें यह नहीं बताया कि स्कूल के बारे में अख़बारों में खबर भी छपती थी, क्योंकि इस स्कूल की लडकियां गिरोह और ड्रग्स के लिए बदनाम थी। स्कूल ने मुझे बहुत सारे रचनात्मक दोस्त दिए, और मैंने स्कूल में बेहतरीन प्रदर्शन किया। मैंने अपनी कई कक्षाओं में टॉप किया और फ़िल्म, टीवी और ड्रामा के लिए पुरस्कार जीते। मेरे पास यूनिवर्सिटी जाने लायक अंक थे। कक्षा 12 के अंत होने से दो हफ़्ते पहले, किसी ने मेरे सामने मारिजुआना का प्रस्ताव रखा। मैंने हाँ कर दी। स्कूल के अंत में, हम सभी चले गए, और फिर मैंने अन्य ड्रग्स आज़माए... मैं वह बच्ची थी जो स्कूल की पढ़ाई खत्म करने के बारे में पूरी तरह केन्द्रित थी, लेकिन यह क्या हुआ, मैं नीचे की ओर गिरती चली गयी। इसके बावजूद मैं विश्वविद्यालय में गयी, लेकिन दूसरे वर्ष में, मैं एक ऐसे लड़के के साथ रिश्ते में आ गयी जो हेरोइन का आदी था। मुझे याद है कि उस समय मेरे सभी दोस्त मुझसे कहती थी: "तुम नशेड़ी, हेरोइन के आदी बन जाओगी।” दूसरी ओर, मुझे लगा कि मैं उसका उद्धारकर्ता बनने जा रही हूँ। लेकिन सेक्स, ड्रग्स और रॉक एंड रोल के कारण आखिरकार मैं गर्भवती हो गई। हम डॉक्टर के पास गए, मेरा पार्टनर अभी भी हेरोइन के नशे में था। डॉक्टर ने हमें देखा और तुरंत मुझे गर्भपात करवाने की सलाह दी - उन्हें लगा होगा कि हमारे साथ, इस बच्चे की ज़िंदा रहने की कोई उम्मीद नहीं है। तीन दिन बाद, मैंने गर्भपात करवा लिया। मैं दोषी, शर्मिंदा और अकेली महसूस कर रही थी। मैं अपने पार्टनर को हेरोइन लेते हुए देखती, सुन्न हो जाती और बेपरवाह हो जाती। मैंने उससे थोड़ी हेरोइन मांगी, लेकिन वह बस यही कहता रहा: "मैं तुमसे प्यार करता हूँ, मैं तुम्हें हेरोइन नहीं दूँगा।" एक दिन, उसे पैसे की ज़रूरत थी, और मैं बदले में कुछ हेरोइन मोल-तोल करने में कामयाब रही। यह थोड़ा सा ही था, और इसे लेने के बाद मैं बीमार बीमार महसूस करने लगी, लेकिन इससे मुझे कुछ भी ख़ास अनुभूति नहीं हुई। मैं इसका इस्तेमाल करती रही, हर बार खुराक बढ़ती जा रही थी। मैंने अंततः विश्वविद्यालय छोड़ दिया और ड्रग्स का नियमित उपयोगकर्ता बन गयी। मैं प्रतिदिन लगभग सौ डॉलर की हेरोइन का उपयोग कर रही थी और मुझे नहीं पता था कि मैं अगले दिन का भुगतान कैसे कर पाऊँगी। हमने घर में मारिजुआना उगाना शुरू कर दिया; हम इसे बेचते थे और पैसे का उपयोग और अधिक ड्रग्स खरीदने के लिए करते थे। हमने अपना सब कुछ बेच दिया, मुझे मेरे अपार्टमेंट से निकाल दिया गया, और फिर, धीरे-धीरे, मैंने अपने परिवार और दोस्तों से चोरी करना शुरू कर दिया। मुझे शर्म भी नहीं आती थी। जल्द ही, मैं जहां काम करती थी, वहां से चोरी करना शुरू कर दिया। मुझे लगा कि वे नहीं जानते, लेकिन अंततः मुझे वहाँ से भी निकाल दिया गया। अंत में, मेरे पास सिर्फ़ मेरा शरीर ही बचा था। उस पहली रात जब मैंने अजनबियों के साथ सेक्स किया, उसके बाद मैं खुद को रगड़कर साफ़ करना चाहती थी। लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकी! आप खुद को अंदर से साफ़ नहीं कर सकते... लेकिन इस के बावजूद किसी ने मुझे वापस जाने से नहीं रोका। मैं ने एक रात में 300 डॉलर कमाना शुरू किया और अपने साथी और मेरे लिए हेरोइन पर सारा पैसा खर्च करती थी, बाद में मैं एक रात में एक हज़ार डॉलर कमाने लगी; मैंने जो भी पैसा कमाया, पूरा पैसा अधिक ड्रग्स खरीदने में चला गया। इस पतन की ओर बढ़ रहे उस निरंतरता के चक्र के बीच में ही मेरी माँ आ गई और अपने प्यार और दया से मुझे बचाया। लेकिन यह पर्याप्त नहीं था। मेरी आत्मा में छेद डॉक्टर ने मुझसे मेरे ड्रग के इतिहास के बारे में पूछा। जब मैं लंबी कहानी सुना रही थी, मेरी माँ रोती रही - वह मेरी पूरी कहानी सुनकर हैरान थी। डॉक्टर ने मुझे बताया कि मुझे पुनर्वास की आवश्यकता है। मैंने पूछा: "ड्रग के लत लोग ही पुनर्वास केंद्र में जाते हैं न?" वे हैरान थे: "तुम्हें नहीं लगता कि तुम उनमें से एक हो?" फिर, उन्होंने मेरी आँखों में ऑंखें डालकर कहा: "मुझे नहीं लगता कि ड्रग्स तुम्हारी समस्या है। तुम्हारी समस्या यह है कि तुम्हारी आत्मा में एक छेद है जिसे केवल येशु ही भर सकता है।" मैंने जानबूझकर एक ऐसा पुनर्वास केंद्र चुना, जिसके बारे में मुझे यकीन था कि वह ईसाई केंद्र नहीं है। मैं बीमार थी, क्योंकि धीरे-धीरे डिटॉक्स होने लगा था, तभी एक दिन रात के खाने के बाद, उन्होंने हम सभी को प्रार्थना सभा के लिए बुलाया। मैं गुस्से में थी, इसलिए मैं कोने में बैठ गयी और उन्हें मेरे मन से बाहर निकालने की कोशिश की - उनका संगीत, उनका गायन, और उनका येशु सब कुछ। रविवार को, वे हमें गिरजाघर ले गए। मैं बाहर खडी रही और सिगरेट पीती रही। मैं गुस्से में थी, आहत थी, और अकेली थी। नए सिरे से शुरूआत छठे रविवार, 15 अगस्त को, बारिश हो रही थी - आसमान से एक साजिश। मेरे पास गिरजाघर के अंदर जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। अन्दर जाकर मैं पीछे की तरफ रही, यह सोचकर कि ईश्वर मुझे वहाँ नहीं देख पायेगा। मुझे एहसास होने लगा था कि मेरे जीवन के कुछ निर्णय और व्यवहार पाप माने जाएँगे, इसलिए मैं वहीं पीछे की तरफ बैठ गयी। हालाँकि, अंत में, पादरी ने कहा: "क्या यहाँ कोई है जो आज अपना दिल येशु को देना चाहेगा?" उसके बाद मुझे बस इतना याद है कि मैं सामने खडी थी और पादरी को यह कहते हुए सुन रही थी: “क्या तुम अपना दिल येशु को देना चाहती हो? वह तुम्हें तुम्हारे अतीत के लिए माफ़ी दे सकता है, आज एक बिलकुल नया जीवन दे सकता है, और तुम्हारे भविष्य के लिए आशामय नव जीवन दे सकता है।” उस समय तक, मैं लगभग छह सप्ताह तक हेरोइन से दूर थी। लेकिन मुझे यह एहसास नहीं था कि शुद्ध होने और मुक्त होने के बीच बहुत अंतर है। मैंने पादरी के पीछे पीछे उद्धार की प्रार्थना दोहराई, एक ऐसी प्रार्थना जिसे मैं समझ भी नहीं पाया, लेकिन वहाँ, मैंने अपना दिल येशु को दे दिया। उस दिन, मैंने एक परिवर्तन यात्रा शुरू की। मुझे नए सिरे से शुरुआत करने का मौका मिला, उस ईश्वर के प्रेम, अनुग्रह और भलाई की पूर्णता मुझे प्राप्त हुई, जिसने मुझे मेरे पूरे जीवन में जाना और मुझे मुझसे बचाया। आगे का रास्ता गलतियों से रहित नहीं था। मैं पुनर्वास केंद्र में रहती हुई एक नए रिश्ते में फँस गई, और मैं फिर से गर्भवती हो गई। लेकिन इसे मेरे द्वारा किए गए एक गलत निर्णय की सजा के रूप में सोचने के बजाय, हमने घर बसाने का फैसला किया। मेरे साथी ने मुझसे कहा: "चलो शादी कर लेते हैं और अब इसे प्रभु के तरीके से करने की पूरी कोशिश करते हैं।" एक साल बाद ग्रेस यानी कृपा का जन्म हुआ, उसके माध्यम से, मैंने बहुत कृपा पर कृपा का अनुभव किया है। मुझे हमेशा से कहानियाँ सुनाने का शौक और जूनून रहा है; ईश्वर ने मुझे एक ऐसी कहानी दी जिसने बहुत सारे लोगों की जिंदगियां बदलने में कार्य किया है। तब से उसने मुझे अपनी कहानी साझा करने के लिए कई तरीकों से - शब्दों में और लेखन में इस्तेमाल किया है। मैं जिस तरह की ज़िंदगी जी रही थी वैसी ज़िंदगी जी रही बहुत सी महिलाओं के साथ काम करने के लिए, उन्हें अपना सब कुछ देने में प्रभु ने मेरा इस्तेमाल किया है। आज, मैं उनकी कृपा और अनुग्रह से परिवर्त्तित महिला हूँ। मुझे स्वर्ग का और ईश्वर के राज्य का प्यार मिला, और अब मैं जीवन को ऐसे तरीके से जीना चाहती हूँ जो मुझे स्वर्ग राज्य और ईश राज्य के उद्देश्यों के साथ भागीदार बनने की अनुमति और अवसर दे।
By: Bronwen Healey
Moreअपने बेटे की लत और शराब के अतिमात्र सेवन के कारण अंततः उसकी मृत्यु से भी, वे संघर्ष करते रहे। वे कैसे टिके रहे? भले ही मेरा बपतिस्मा हो गया था, फिर भी बड़े होते समय गिरजाघर से मेरा कोई ख़ास वास्ता नहीं था। मेरी माँ और पिता के कैथलिक चर्च के साथ कुछ गंभीर अनसुलझे मुद्दे थे, इसलिए हम कभी भी मिस्सा बलिदान में नहीं गए, और मुझे कभी भी धर्मशिक्षा नहीं दी गई। हालाँकि, मुझे आध्यात्मिक संबंध की चाहत थी, और मैं ‘द रॉब’, ‘द टेन कमांडमेंट्स’, ‘बेनहर’, ‘ए मैन कॉल्ड पीटर’ और ‘द ग्रेटेस्ट स्टोरी एवर टोल्ड’ जैसी लोकप्रिय बाइबिल फिल्मों की ओर आकर्षित हुआ। उन फिल्मों में ईश्वर को बहुत ही दिलचस्प तरीके से प्रस्तुत किया गया था और मुझमें धीरे-धीरे व्यक्तिगत स्तर पर प्रभु को जानने की भूख विकसित हुई। 60 के दशक के दौरान, लोक गायक जिम क्रोस ने ‘टाइम इन ए बॉटल’ गाया था, जिसमें कहा गया था, "मैंने यह जानने के लिए चारों ओर काफी ढूंढा है कि तू ही वह व्यक्ति है जिसके संग मैं समय की यात्रा करना चाहता हूं।" मैं वास्तव में प्रभु ईश्वर के साथ 'समय की यात्रा' करना चाहता था, लेकिन मुझे नहीं पता था कि उसके साथ कैसे जुड़ूं। घुमावदार पथ सैन फ्रांसिस्को में अब्राहम लिंकन हाई स्कूल में एक कनिष्ठ छात्र के रूप में, मुझे एक आयरिश कैथलिक परिवार के बारे में पता चला जो वास्तव में अपने विश्वास में पक्के और गंभीर थे। उन्होंने रोज़ शाम को रोज़री माला की विनती की (वह भी लातीनी भाषा में!), दैनिक मिस्सा बलिदान में भाग लिया और येशु के शिष्यत्व का जीवन जीने का प्रयास किया। उनका धार्मिक रूप से पालन करने वाला जीवन रहस्यमय और आश्चर्य जनक था। उनके नमूने के माध्यम से, मैंने अंततः कैथलिक धर्म में पूरी तरह से दीक्षित होने का निर्णय लिया। हालाँकि, मेरे माता-पिता मेरे निर्णय से खुश नहीं थे। जब मेरे दृढीकरण और प्रथम पवित्र संस्कार के बड़े समारोह का दिन आया, तो हमारे बीच एक पारिवारिक लड़ाई हुई। पूरे घर में आँसू, क्रोधित शब्द और दोषारोपण गूँज रहे थे। मुझे यह कहते हुए याद है, "माँ और पिताजी, मैं आपसे प्यार करता हूँ, लेकिन मैं येशु की पूजा-आराधना करता हूँ, और मैं दृढ़ीकरण संस्कार पाना चाहता हूँ। कैथलिक कलीसिया मेरा आध्यात्मिक घर जैसा लगता है।'' इसलिए, मैंने घर छोड़ दिया और लेक मर्सिड के पास सेंट थॉमस मोर गिरजाघर में अकेले चला गया, जहां मुझे अपने माता-पिता के आशीर्वाद के बिना संस्कार प्राप्त हुए। इसके तुरंत बाद, मुझे मत्ती के सुसमाचार का एक संदर्भ मिला जिसमें येशु ने कहा था, "जो अपने पिता या अपनी माता को मुझसे अधिक प्रेम करता है, वह मेरे योग्य नहीं ..." (10:37)। मैं ठीक-ठीक जानता था कि उसका क्या मतलब था। हाईवे से भटक कर उप मार्गों पर काश मैं कह पाता कि किशोरावस्था पार करने के बाद भी मैंने येशु के प्रति इतनी गहरी प्रतिबद्धता जारी रखी। मेरा प्रारंभिक मन परिवर्त्तन मेरे जीवन को उसके प्रति समर्पित करने का सिर्फ सतही प्रयास था। मैंने अपने जीवन की गाड़ी को 'सुपर हाइवे येशु' पर यात्रा की शुरुआत की, लेकिन दुनिया के आकर्षक सामान्य चीज़ों का पीछा करते हुए इन उप मार्गों पर मैं अपनी गाड़ी ले चलता रहा: धन और सुरक्षा, पेशेवर सफलता और उपलब्धियां, सुखवादी आनंद और, सबसे ऊपर, नियंत्रण की मेरी अधिग्रहणात्मक खोज जारी रही। ‘बोनफ़ायर ऑफ़ द वैनिटीज़’ में टॉम वोल्फ के किरदार की तरह, मैं वास्तव में अपने ब्रह्मांड का स्वामी बनना चाहता था। मेरी इन सब योजनाओं के बीच येशु का स्थान क्या था? मुझे मूलतः उम्मीद थी कि येशु सवारी केलिए मेरी गाड़ी में बैठेंगे। मैं उनसे अपनी शर्तों पर जुड़ना चाहता था। मैं चाहता था कि येशु मेरे द्वारा बनाई जा रही मेरी आत्म-संदर्भित जीवनशैली को मान्यता दें। यात्रा वापस प्रेम के दायरे में मेरे शाही अहंकार को समायोजित करने के लिए बनाई गई यह मायावी मीनार 30 साल पहले तब ढह गई जब हमारा परिवार हमारे बेटे की नशीली दवाओं की लत से जूझ रहा था। कठिन तथ्य यह है कि उसकी लत, और अंततः घातक ओवरडोज़ ने मुझे एक बहुत ही अंधेरी, खाली जगह में गिरा दिया। मुझे लगा कि मैं बहुत गहरे गड्ढे में गिर गया हूँ जहाँ कुछ भी काम नहीं आ रहा था: मेरा बेटा वापस नहीं आ रहा था, और नुकसान की भावना भारी थी। मैं पूरी तरह से निराश हो गया और महसूस किया कि अंतरंगता, संवाद और संगति की हमारी गहरी भूख का सामना करने में दुनिया की वस्तुएं कितनी बेकार हैं। मैंने येशु से प्रार्थना की कि वह मुझे अंधकार, पीड़ा और तन्हाई के गहरे गड्ढे से बचाए। मैंने उनसे मेरी पीड़ा दूर करने और मेरे जीवन को फिर से व्यवस्थित करने की विनती की। हालाँकि उसने मेरे जीवन को "ठीक" नहीं किया, लेकिन उसने कुछ बेहतर किया: येशु मेरे साथ गड्ढे में आये, उन्होंने मेरे क्रूस को गले लगाया, और मुझे बताया कि वे मुझे, मेरे परिवार या हमारे दिवंगत बेटे को कभी नहीं छोड़ेंगे। मैंने पीड़ित सेवक येशु की प्रेमपूर्ण दया का अनुभव किया, जो अपने लोगों के साथ, यानी कलीसिया के साथ स्वयं पीड़ित रहते हैं। वे ईश्वर हैं जिनसे मैं प्रेम कर सकता हूँ। येशु हमारे सामने परमेश्वर का चेहरा प्रकट करते हैं। जैसा कि संत पौलुस कुलुस्सियों को भेजे अपने पत्र में लिखते हैं, येशु "अदृश्य ईश्वर के प्रतिरूप" हैं (1:15)। इसलिए, हमारे पास अभी यहीं, खुश और प्रसन्न रहने के लिए आवश्यक सभी चीजें मौजूद हैं। येशु में, जो स्वर्ग और पृथ्वी के बीच एकमात्र मध्यस्थ है, सब कुछ ठीक हो जाता है; कुछ भी उसके प्रेम के दायरे से बाहर नहीं है - हमारे प्रभु येशु मसीह हमें ईश्वर के साथ, हमारे भाइयों और बहनों और पूरी सृष्टि के साथ एक गहरे रिश्ते के लिए आमंत्रित करते हैं।
By: डीकन जिम मैकफैडेन
Moreशालोम टाइडिंग्स के नियमित स्तंभकार फादर जोसेफ गिल अपने जीवन की कहानी साझा करने के लिए अपने दिल की बातें खुलकर रखते हैं और बताते हैं कि उन्हें कैसे प्यार हुआ मैं मानता हूं कि मेरी बुलाहट को बुलाहट कम माना जाना चाहिए, बल्कि जिस व्यक्ति ने मुझे बनाया और मेरे दिल को उसने अपनी ओर आकर्षित किया, यह बुलाहट उस व्यक्ति के साथ मेरी प्रेम लीला मानी जानी चाहिए। जब मैं बहुत छोटा था, तभी से मैं प्रभु से प्रेम करता था। मुझे याद है जब मैं आठ या नौ साल का था, तब मैं अपने कमरे में बैठकर बाइबल पढ़ता था। मैं परमेश्वर के वचन से इतना प्रेरित हुआ कि मैंने बाइबल की मेरी अपनी किताब लिखने की भी कोशिश की (कहने की जरूरत नहीं है, यह कोशिश सफल नहीं हुई!)। मैंने मिशनरी या शहीद होने का, उदारतापूर्वक अपना जीवन मसीह को देने का सपना देखा। फिर मेरी किशोरावस्था आ गई और मसीह के प्रति मेरा जुनून सांसारिक चिंताओं के नीचे दब गया। मेरा जीवन बेसबॉल, लड़कियों और संगीत के इर्द-गिर्द घूमने लगा। मेरी नई महत्वाकांक्षा एक अमीर और प्रसिद्ध रॉक संगीतकार या खेल उद्घोषक बनने की थी। आत्मा पर आघात शुक्र है, प्रभु ने मेरा साथ नहीं छोड़ा। जब मैं चौदह वर्ष का था, तो मुझे अपने युवा समूह के साथ रोम की तीर्थयात्रा पर जाने का सौभाग्य मिला। कोलोसियम में खड़े होकर मैंने सोचा, “इस स्थान पर दस हजार से अधिक पुरुषों, महिलाओं और बच्चों ने येशु मसीह के लिए अपना खून बहाया है। मुझे अपने विश्वास की अधिक परवाह क्यों नहीं करना चाहिए?” सिस्टाइन गिरजाघर ने मुझे प्रभावित किया - सुन्दर चित्रों से भरपूर उस छत के कारण नहीं, बल्कि दूर की दीवार पर बनी उस कला के कारण: माइकल एंजेलो द्वारा "अंतिम न्यायविधि” का सुन्दर चित्र वहां अंकित था। वहाँ, जीवन भर लिए गए फैसलों के परिणाम को अर्थात स्वर्ग और नरक को सशक्त रूप से दर्शाया गया है। यह सोचकर मुझे अंदर तक आघात लगा कि मैं उन दो स्थानों में से एक में अनंत काल बिताऊंगा, मैंने सोचा... "तो मैं कहाँ जा रहा हूँ?" जब मैं लौटा, तो मुझे पता था कि मुझे अपने जीवन में कुछ परिवर्त्तन लाने की ज़रूरत है... लेकिन ऐसा करना कठिन हो सकता है। मैं किशोरावस्था में बहुत सारे पाप, गुस्से और नाटकबाजी में फंस गया था। मैंने आधे-अधूरे मन से प्रार्थना जीवन विकसित करने की कोशिश की, लेकिन यह जड़ नहीं जमा सका। मैं यह नहीं कह सकता कि मैं वास्तव में पवित्रता के लिए प्रयासरत हूँ। प्रभु को मेरा दिल जीतने के लिए और अधिक मुठभेड़ों की जरूरत पड़ी। सबसे पहले, मेरी पल्ली ने सतत आराधना शुरू की, जिससे लोगों को परम प्रसाद के पवित्र संस्कार के सामने प्रार्थना करने का 24 x 7 अवसर प्रदान किया गया। मेरे माता-पिता ने आराधना के एक साप्ताहिक घंटे के लिए साइन अप किया और मुझे आने के लिए आमंत्रित किया। पहले तो मैंने मना कर दिया; मैं अपने पसंदीदा टीवी कार्यक्रम छोड़ना नहीं चाहता था! लेकिन फिर मैंने तर्क दिया, "अगर मैं वास्तव में पवित्र परम प्रसाद के बारे में जो कहता हूं और उस पर विश्वास करता हूं - कि यह वास्तव में यीशु मसीह का शरीर और रक्त है - तो मैं उस संस्कार के साथ एक घंटा क्यों नहीं बिताना चाहूंगा?" इसलिए, अनिच्छा से, मैंने आराधना में जाना शुरू किया... और मुझे उससे प्यार हो गया। मौन मनन-चिंतन, धर्मग्रंथ का पाठ और प्रार्थना आदि के उस साप्ताहिक घंटे ने मेरे लिए परमेश्वर के व्यक्तिगत, और भावुक प्रेम का एहसास कराया... और मैं अपने प्यारे प्रभु को अपने पूरे जीवन के माध्यम से वह प्रेम लौटाने की इच्छा करने लगा। केवल सच्ची ख़ुशी लगभग उसी समय, ईश्वर मुझे कुछ आत्मिक साधनाओं में ले गया जो बहुत परिवर्तनकारी थी। एक साधना ओहियो में थी, जो कैथलिक फ़ैमिली लैंड नामक एक ग्रीष्मकालीन कैथलिक पारिवारिक शिविर था। वहाँ, पहली बार, मुझे मेरी ही उम्र के लड़के मिले जिनके मन में येशु के प्रति गहरा प्रेम था, और मुझे एहसास हुआ कि एक युवा व्यक्ति के रूप में पवित्रता के लिए प्रयास करना संभव (और अच्छा भी!) था। फिर मैंने क्रूस वीर के द्वारा आयोजित हाई स्कूल के लड़कों के लिए सप्ताहांत साधना में भाग लेना शुरू किया, और मैंने और भी अधिक दोस्त बनाए। येशु मसीह के प्रति उनके प्रेम को देखकर मेरी आध्यात्मिक यात्रा में वृद्धि हुई। अंततः, हाई स्कूल के एक वरिष्ठ छात्र के रूप में, मैंने एक स्थानीय सामुदायिक कॉलेज की कक्षाओं में जाना शुरू कर दिया। तब तक, मेरी पढ़ाई घर पर ही हुआ करती थी, इसलिए मुझे घर का सुरक्षा कवच और आश्रय मिला हुआ था। लेकिन इन कॉलेज की कक्षाओं में, मेरा सामना नास्तिक प्रोफेसरों और सुखवादी साथी छात्रों से हुआ, जिनका जीवन अगली पार्टी, अगली तनख्वाह और अगले हुकअप के इर्द-गिर्द घूमता था। लेकिन मैंने देखा कि वे बहुत दुखी लग रहे थे! वे लगातार अगली सुखदायक चीज़ के लिए प्रयास कर रहे थे। वे कभी भी अपने स्वार्थ की पूर्ती से बड़ी किसी चीज़ के लिए नहीं जी रहे थे। इससे मुझे एहसास हुआ कि दूसरों के लिए और मसीह के लिए अपना जीवन अर्पित करने में ही एकमात्र सच्ची खुशी है। उस समय से, मुझे पता था कि मेरा जीवन प्रभु येशु और उसके इर्द गिर्द होना चाहिए। मैंने फ्रांसिस्कन विश्वविद्यालय में अपनी पढ़ाई शुरू की और मैरीलैंड में माउंट सेंट मैरी के सेमिनरी में दाखिला लिया। लेकिन एक पुरोहित बनाने के बाद भी मेरी यात्रा जारी है। हर दिन प्रभु अपने प्रेम का और अधिक प्रमाण दिखाता है और मुझे अपने हृदय की गहराई में ले जाता है। यह मेरी प्रार्थना है कि आप सभी, मेरे प्रिय शालोम टाइडिंग्स के पाठको, आप अपने विश्वास को "हमारी आत्माओं के महान प्रेमी" के साथ एक क्रांतिकारी, सुंदर प्रेम संबंध के रूप में देखें!
By: फादर जोसेफ गिल
Moreचाहे मुश्किल दौर कितना भी बुरा क्यों न हो, अगर उस पर आप काबू पायेंगे, तो आप कभी नहीं डगमगाएंगे। हम बहुत ही बुरे और उलझन भरे समय में जी रहे हैं। बुराई हमारी चारों तरफ है, और जिस समाज और दुनिया में हम रहते हैं, शैतान उसे नष्ट करने की पूरी कोशिश कर रहा है। कुछ मिनटों के लिए भी समाचार देखना बहुत निराशाजनक हो सकता है। जब आपको लगता है कि इससे बुरा कुछ नहीं हो सकता, तो आप दुनिया में किसी नए अत्याचार या दुष्टता के बारे में सुनते हैं। निराश होना और उम्मीद खोना आसान है। लेकिन ख्रीस्तीय होने के नाते, हमें आशावान लोग बनने के लिए कहा जाता है। यह कैसे संभव है? मेरा एक मित्र है जो मूल रूप से रोड आइलैंड का रहने वाला है। एक फादर्स डे पर, उसके बच्चों ने उसे एक टोपी दी जिस पर एक लंगर की तस्वीर थी और उस पर इब्रानी 6:19 कढ़ाई की गई थी। इसका क्या महत्व था? रोड आइलैंड के राज्य ध्वज पर एक लंगर है जिस पर "आशा" शब्द लिखा है। यह इब्रानी 6:19 का संदर्भ है, जिसमें कहा गया है: "वह आशा हमारी आत्मा केलिए एक सुस्थिर एवं सुदृढ़ लंगर के सदृश है, जो उस मंदिर गर्भ में पहुंचता है ..." इब्रानियों के नाम पत्र उन लोगों के लिए लिखा गया था जो बहुत उत्पीड़न झेल रहे थे। यह स्वीकार करने के लिए कि आप येशु के अनुयायी हैं, मृत्यु या पीड़ा, यातना या निर्वासन के लिए बुलाये गए हैं। क्योंकि यह बहुत कठिन था, कई लोग विश्वास खो रहे थे और सोच रहे थे कि क्या मसीह का अनुसरण करना सार्थक है। इब्रानियों को लिखे पत्र के लेखक उन्हें दृढ़ रहने, और विश्वासी जीवन में बने रहने के लिए प्रोत्साहित करने की कोशिश कर रहे थे - कि यह जीवन सार्थक जीवन है। वे अपने पाठकों को बताते हैं कि येशु में आधारित आशा ही उनका लंगर है। ठोस और अचल जब मैं हवाई द्वीप में हाई स्कूल की पढ़ाई कर रही थी, तो मैं एक ऐसे कार्यक्रम की हिस्सा थी जो छात्रों को समुद्री जीव विज्ञान पढ़ाता था। हमने कई हफ़्ते एक नाव पर रहकर और काम करके बिताए। हम जिन जगहों पर गए, उनमें से ज़्यादातर जगहों पर एक जेट्टी या घाट था जहाँ हम नाव को ज़मीन पर सुरक्षित रूप से बाँध सकते थे। लेकिन कुछ दूरदराज के हाई स्कूल थे जो किसी बंदरगाह या खाड़ी के पास नहीं थे जहाँ जेट्टी थी। ऐसी परिस्थिति में, हमें नाव के लंगर का उपयोग करना पड़ता था - जो एक भारी धातु की वस्तु है जिस पर कुछ नुकीले हुक लगे होते हैं। जब लंगर पानी में डाला जाता है, तो यह समुद्र तल के बिलकुल नीचे लग जाता है और नाव को बहने से रोकता है। हम मानव भी नावों की तरह हो सकते हैं, जो रोज़मर्रा की ज़िंदगी के ज्वार और लहरों पर इधर-उधर उछलते और तैरते रहते हैं। हम समाचारों में आतंकवादी हमले, विद्यालयों और गिरजाघरों में गोलीबारी, न्यायालय के बुरे फ़ैसले, आपके परिवार में बुरी ख़बरें या प्राकृतिक आपदाओं के बारे में सुनते हैं। ऐसी बहुत सी चीज़ें हैं जो हमें हिला सकती हैं और हमें खोया हुआ और निराशा से भरा हुआ महसूस करा सकती हैं। जब तक हमारी आत्मा के लिए कोई सहारा नहीं होगा, हम भटकते रहेंगे और हमें कोई शांति नहीं मिलेगी। लेकिन लंगर को काम करने के लिए, उसे कांटे के द्वारा किसी ठोस और अचल चीज़ से फंसाना चाहिए। एक नाव में सबसे मजबूत, सबसे अच्छा लंगर हो सकता है, लेकिन जब तक उसे किसी सुरक्षित और दृढ़ कांटे से नहीं फंसाया जाता, वह नाव अगली लहर में बह जाएगी। बहुत से लोगों को उम्मीद है, लेकिन वे अपनी उम्मीद अपने बैंक खाते, अपने जीवनसाथी के प्यार, अपने अच्छे स्वास्थ्य या सरकार पर लगाते हैं। वे कह सकते हैं: “जब तक मेरे पास मेरा घर, मेरी नौकरी, मेरी कार है, तब तक सब ठीक रहेगा। जब तक मेरे परिवार में हर कोई स्वस्थ है, सब ठीक है।” लेकिन क्या आप को नहीं लगता कि यह कितना अस्थिर हो सकता है? अगर आपकी नौकरी चली जाए, परिवार का कोई सदस्य बीमार हो जाए, या अर्थव्यवस्था विफल हो जाए तो क्या होगा? क्या तब आप ईश्वर में अपना विश्वास खो देंगे? कभी नहीं बह जाए मुझे याद है जब मेरे पिता अपने जीवन के अंतिम कुछ वर्षों में कैंसर से जूझ रहे थे। वह हमारे परिवार के लिए एक तूफानी, अशांत समय था क्योंकि प्रत्येक नई जाँच के साथ, हमें बारी-बारी से अच्छी खबर या बुरी खबर सुनने को मिलती थी। बार बार अस्पताल की ओर यात्राएँ हुईं, और उन्हें एक बार आपातकालीन सर्जरी के लिए दूसरे अस्पताल में भी ले जाया गया। जब हमने अपने पिता को पीड़ित होते और बीमार और कमज़ोर होते देखा तो मैं बहुत बेचैन और अस्थिर महसूस कर रही थी। मेरे पिता एक दृढ़, धर्मनिष्ठ ईसाई थे। वे हर दिन घंटों परमेश्वर के वचन को पढ़ने और उसका अध्ययन करने में बिताते थे, और उन्होंने वर्षों तक बाइबल अध्ययन की कक्षाएं ली थीं। यह सोचने केलिए मैं मजबूर हो गयी कि इन सब में येशु कहाँ थे। जांच का एक और बुरा परिणाम सुनने के बाद, इस नवीनतम तूफानी रिपोर्ट से मेरी आत्मा विचलित हो गई, मैं प्रार्थना करने के लिए एक गिरजाघर गयी। “प्रभु, मैं आशा खो रही हूँ। तू कहाँ है?" जैसे ही मैं चुपचाप बैठी, मुझे एहसास होने लगा कि मैं अपने पिता के ठीक होने की उम्मीद कर रही थी। इसलिए मैं इतना अस्थिर और असुरक्षित महसूस कर रही थी। लेकिन येशु मुझे आमंत्रित कर रहे थे कि मैं अपनी आशा, अपना भरोसा उस पर रखूँ। प्रभु मेरे पिता से प्यार करते थे, जितना प्यार मैं पिता को दे सकती थी उससे ज़्यादा और इस कठिन परीक्षा में प्रभु उनके साथ थे। ईश्वर मेरे पिता को वह सब देंगे जो उन्हें अपनी दौड़ को अच्छी तरह से अंत तक दौड़ने के लिए चाहिए, वह अंत चाहे जब भी हो। मुझे यह याद रखने की ज़रुरत थी और ईश्वर पर और मेरे पिता के लिए ईश्वर के महान प्रेम पर अपनी आशा बनाये रखने की ज़रूरत थी। मेरे पिताजी कुछ सप्ताह बाद घर पर ही प्यार और ढेर सारी प्रार्थनाओं से घिरे हुए चल बसे। मेरी माँ द्वारा उनकी बहुत देखभाल की गई। उनकी मृत्यु के समय उनके चेहरे पर सौम्य मुस्कान थी। वे प्रभु के पास जाने के लिए तैयार थे, अपने उद्धारकर्ता को आखिरकार आमने-सामने देखने के लिए उत्सुक थे। और मैं उस समय शांति का अनुभव कर रही थी, उन्हें जाने देने के लिए मैं तैयार थी। आशा लंगर है, लेकिन लंगर उतना ही मजबूत होता है जितना कि जिस कांटे से वह फंसा या जुदा हुआ है। अगर हमारा लंगर येशु में सुरक्षित है, जो हमारे आगे के मंदिर के पर्दे को पार कर गया है और वे हमारा इंतजार कर रहे हैं, तो चाहे लहरें कितनी भी ऊंची क्यों न हों, चाहे हमारे आस-पास कितने भी भयंकर तूफान क्यों न हों, हम स्थिर रहेंगे और बह नहीं जाएंगे।
By: Ellen Hogarty
Moreहम हमेशा अपने कैलेंडर को जितना संभव हो उतना भरने की कोशिश करते हैं, लेकिन क्या होगा अगर कोई अप्रत्याशित अवसर आ जाए? नया साल आने पर हमें ऐसा लगता है कि हमारे सामने एक खाली स्लेट है। आने वाला साल संभावनाओं से भरा है, और हमारे नए-नए छपे कैलेंडर को भरने के लिए हम ढेर सारे संकल्प लेते हैं। हालाँकि, ऐसा होता है कि बेहतरीन साल के लिए कई रोमांचक अवसर और विस्तृत लक्ष्य विफल हो जाते हैं। जनवरी के अंत तक, हमारी मुस्कान फीकी पड़ जाती है, और पिछले सालों की पुरानी आदतें हमारे जीवन में वापस आ जाती हैं। अगर हम इस साल, इस पल को थोड़ा अलग तरीके से लें तो कैसा होगा? अपने कैलेंडर पर खाली जगह को जल्दी जल्दी भरने के बजाय, उन खाली जगहों में जहां हमारे पास पहले से कुछ भी कार्यक्रम निर्धारित नहीं है, वहां थोड़ा और स्थान और समय क्यों न दें? इन्हीं खाली जगहों में हम पवित्र आत्मा को अपने जीवन में काम करने के लिए सबसे अधिक जगह दे सकते हैं। जो कोई भी एक घर से दूसरे घर में स्थानांतरित हुए है, वह जानता है कि एक खाली कमरा कितनी आश्चर्यजनक जगह बना सकता है। जैसे-जैसे फर्नीचर बाहर जाता है, कमरा बढ़ता हुआ प्रतीत होता है। जब पूरा कमरा खाली हो जाता है, तब यह सोचकर आश्चर्य होता है कि पर्याप्त जगह की कमी पहले बड़ी समस्या थी, अब देखो वही कमरा कितना बड़ा हो गया है! कमरा जितना अधिक कालीनों, फर्नीचर, दीवार पर लटकने वाली वस्तुओं और अन्य चीजों से भरा होता है, उतना ही जगह की कमी महसूस होती है। तभी, कोई आपके घर एक उपहार लेकर आता है, और आप सोचने लगते हैं - अब, हम इसे कहां रखेंगे? हमारा कैलेंडर भी लगभग इसी तरह काम कर सकता है। हम अपने कैलेंडर को हर दिन काम, अभ्यास, खेल, प्रतिबद्धता, प्रार्थना, सेवा आदि से भर देते हैं - वे सभी अच्छी और अक्सर ज़रूरी लगने वाले बहुत सारे काम हैं। लेकिन जब पवित्र आत्मा एक ऐसे अवसर के साथ दस्तक देता है जिसकी हमने कल्पना भी नहीं की थी, तब क्या होता है? क्या हमारे कैलेंडर में उसके लिए जगह है? पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन को स्वीकार करने के लिए हम मरियम को एक आदर्श नमूने के रूप में देख सकते हैं। मरियम स्वर्गदूत के शब्दों को सुनती है और उन्हें स्वतंत्र रूप से ग्रहण करती है। अपने जीवन को ईश्वर को अर्पित करके, वह ईश्वर के उपहारों को प्राप्त करने के लिए सही स्वभाव का प्रदर्शन करती है। इसके बारे में सोचने का एक और तरीका है जिसे बिशप बैरन ने 'अनुग्रह की कुंडली' कहा है। ईश्वर हमें भरपूर कृपा और अनुग्रह देना चाहता है। जब हम ईश्वर की प्रेमपूर्ण उदारता के प्रति स्वीकृति देते हैं, तो हम पहचानते हैं कि हमारे पास जो कुछ भी है वह सब ईश्वर का ही उपहार है। खुशी के साथ, हम आभार और धन्यवाद के द्वारा ये उपहार ईश्वर को वापस देते हैं, और इस तरह कुंडली को फिर से चालू करते हैं। ईश्वर मरियम तक पहुँचता है, और मरियम स्वतंत्र रूप से खुद को उसकी इच्छा और उद्देश्य के लिए समर्पित करती है। फिर वह येशु को स्वीकार करती है। हम इसे येशु के जीवन के अंत में फिर से देखते हैं। बहुत दुःख और भयानक दर्द में, मरियम अपने प्यारे बेटे को कलवारी की ओर जाने देती है। जब येशु क्रूस पर लटका हुआ था, तब भी मरियम उससे चिपकी नहीं रहती। उस दर्दनाक क्षण में, सब कुछ खो गया लगता है, और उसका मातृत्व खाली हो जाता है। वह भागती नहीं है, वह अपने बेटे के साथ रहती है, और लगता है कि उसके बेटे येशु ने ही उसे त्याग दिया है। फिर, येशु ने उसे योहन के रूप में न केवल एक बेटा दिया, बल्कि कलीसिया के मातृत्व में अनगिनत बेटे और बेटियाँ दीं। क्योंकि मरियम ईश्वर की योजना के प्रति उदार और ग्रहणशील रही, उन सबसे दर्दनाक क्षणों में भी, इसलिए अब हम उसे हमारी माँ कहकर पुकार सकते हैं। जैसे-जैसे साल आगे बढेगा, शायद अपने सम्पूर्ण कार्य योजना के बारे में प्रार्थना करने के लिए कुछ समय निकालें। क्या आपने अपनी तिथियों को पहले से ही ज़रूरत से ज़्यादा, बहुत ज़्यादा कामों से भर लिए हैं? पवित्र आत्मा से प्रार्थना करें कि वह आपको यह सोचने के लिए प्रेरित करे कि उसके उद्देश्यों के लिए कौन सी गतिविधियाँ ज़रूरी हैं और कौन सी आपकी व्यक्तिगत इच्छाओं और लक्ष्यों के लिए ज़्यादा ज़रूरी हैं। अपनी कार्य योजनाओं को फिर से व्यवस्थित करने के लिए साहस माँगें, ज़रूरत पड़ने पर "नहीं" कहने की बुद्धि माँगें, ताकि जब वह आपके दरवाज़े पर दस्तक दे तो आप खुशी-खुशी और आज़ादी से "हाँ!" कह सकें।
By: Kate Taliaferro
Moreआप जहां कही भी हों और जो कुछ भी करें, आप जीवन में इस महान मिशन के लिए बुलाये गए हैं। अस्सी के दशक के मध्य में, ऑस्ट्रेलियाई फिल्म निर्देशक पीटर वियर ने विटनेस नामक अपनी पहली सफल अमेरिकी थ्रिलर फिल्म बनाई, जिसमें हैरिसन फोर्ड ने अभिनय किया था। यह फिल्म एक युवा लड़के के विषय में है जो एक अंडरकवर पुलिस अधिकारी की उसके भ्रष्ट सहकर्मियों द्वारा की गयी हत्या को देखता है, और उस युवक को सुरक्षा के लिए आमिश समुदाय में छिपा दिया जाता है। जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, वह टुकड़ों को एक साथ जोड़कर याद करता है कि क्या हुआ था और फिर, वह हैरिसन फोर्ड द्वारा अभिनीत जॉन बुक नामक किरदार को सब कुछ बताता है (सुसमाचार के प्रतीक पर ध्यान दें)। फिल्म में एक गवाह के चरित्र को दिखाया गया हैं: वह गवाह जो देखता है, याद करता है, और बताता है। परिवृत्त में वापसी येशु ने अपने आतंरिक वृत्त के लोगों को दर्शन दिया ताकि उनके पुनरुत्थान की सच्चाई उन लोगों के माध्यम से सभी तक पहुँच सके। उन्होंने अपने शिष्यों के हृदयों को अपनी मृत्यु और पुनरुत्थान के रहस्य के लिए खोला और कहा: "तुम इन बातों के साक्षी हो" (लूकस 24:48)। उन्हें अपनी आँखों से देखने के बाद, प्रेरित इस अविश्वसनीय अनुभव के बारे में चुप नहीं रह सके। प्रेरितों के लिए जो सत्य है, वह हमारे लिए भी सत्य है, क्योंकि हम कलीसिया के सदस्य हैं, जो मसीह का रहस्यमय शरीर है। येशु ने अपने शिष्यों को आदेश दिया कि “इसलिए तुम लोग जाकर सब राष्ट्रों को शिष्य बनाओ, और उन्हें पिता, और पुत्र, और पवित्र आत्मा के नाम पर बपतिस्मा दो।” (मत्ती 28:19) मिशनरी शिष्यों के रूप में, हम गवाही देते हैं कि येशु जीवित हैं। इस मिशन को उत्साहपूर्वक और लगातार रूप से अपनाने का एकमात्र तरीका यह है कि हम विश्वास की आँखों से देखें कि येशु जी उठे हैं, कि वे जीवित हैं, और हमारे भीतर और हमारे बीच उपस्थित हैं। यही एक गवाह का कार्य है। उस परिवृत्त में लौटते हुए सोचें, कोई व्यक्ति पुनर्जीवित मसीह को कैसे ‘देख सकता है’? येशु ने हमें निर्देश दिया: “जब तक गेहूँ का दाना मिटटी में गिरकर मर नहीं जाता, तब तक वह अकेला ही रहता है; परन्तु यदि वह मर जाता है, तो बहुत फल देता है।” (योहन 12:23-24) सरल शब्दों में कहें तो, यदि हम वास्तव में येशु को ‘देखना चाहते हैं, यदि हम उसे गहराई से और व्यक्तिगत रूप से जानना चाहते हैं, और यदि हम उसे समझना चाहते हैं, तो हमें गेहूँ के दाने को देखना होगा जो मिट्टी में मर जाता है: दूसरे शब्दों में, हमें क्रूस की ओर देखना होगा। क्रूस का चिन्ह आत्म-संदर्भ (अहं के नाटक) से मसीह-केंद्रित (ईश्वर के नाटक) होने की ओर एक क्रांतिकारी बदलाव को दर्शाता है। अपने आप में, क्रूस केवल प्रेम, सेवा और बिना किसी शर्त के आत्म-समर्पण को व्यक्त कर सकता है। ईश्वर की स्तुति और महिमा तथा दूसरों की भलाई के लिए स्वयं को बलिदान के रूप में देने के माध्यम से ही हम मसीह को देख सकते हैं और त्रीत्ववादी प्रेम में प्रवेश कर सकते हैं। केवल इसी तरह से हम 'जीवन के वृक्ष' पर कलम हो सकते हैं और वास्तव में येशु को 'देख' सकते हैं। येशु स्वयं जीवन हैं। और हम जीवन की तलाश करने के लिए कठोर रूप से तैयार हैं क्योंकि हम ईश्वर की छवि में बने हैं। इसलिए हम येशु की ओर आकर्षित होते हैं - येशु को 'देखने' के लिए, उनसे मिलने के लिए, उन्हें जानने के लिए, और उनके साथ प्यार में पड़ने के लिए आकर्षित होते हैं। यही एकमात्र तरीका है जिससे हम पुनर्जीवित मसीह के प्रभावी गवाह बन सकते हैं। छिपा हुआ बीज हमें भी सेवा में समर्पित जीवन की गवाही के साथ जवाब देना चाहिए, एक ऐसा जीवन जो येशु के मार्ग के अनुरूप हो, जो दूसरों की भलाई के लिए बलिदानपूर्ण आत्म-समर्पण का जीवन हो, यह याद दिलाते हुए कि प्रभु हमारे पास सेवक के रूप में आए थे। व्यावहारिक रूप से, हम ऐसा क्रांतिकारी जीवन कैसे जी सकते हैं? यीशु ने अपने शिष्यों से कहा: "पवित्र आत्मा तुम पर उतारेगा, और तुम्हें सामर्थ्य प्रदान करेगा; और मेरे साक्षी होगे" (प्रेरित चरित 1:8)। जिस तरह पवित्र आत्मा ने पहले पेन्तेकोस्त के दिन किया था, वैसे ही वह भय से बंधे हमारे दिलों को मुक्त करता है। वह हमारे पिता की इच्छा को पूरा करने के हमारे प्रतिरोध पर विजय प्राप्त करता है, और वह हमें यह गवाही देने के लिए सशक्त बनाता है कि येशु जी उठे हैं, वे जीवित हैं और वे अभी और हमेशा मौजूद हैं! पवित्र आत्मा यह कैसे करता है? हमारे हृदयों को नवीनीकृत करके, हमारे पापों को क्षमा करके, और हमें सात उपहारों से भरकर जो हमें यीशु के मार्ग पर चलने में सक्षम बनाते हैं। केवल छिपे हुए बीज के क्रूस के माध्यम से, जो मरने के लिए तैयार है, हम वास्तव में यीशु को 'देख' सकते हैं और इसलिए उसकी गवाही दे सकते हैं। केवल मृत्यु और जीवन के इस अंतर्संबंध के माध्यम से ही हम उस प्रेम की खुशी और फलदायीता का अनुभव कर सकते हैं जो जी उठे मसीह के हृदय से बहता है। केवल आत्मा की शक्ति के माध्यम से ही हम उस जीवन की पूर्णता तक पहुँच सकते हैं जो उसने हमें उपहार में दिया है। इसलिए, जैसा कि हम पिन्तेकुस्त मनाते हैं, आइए हम विश्वास के उपहार द्वारा जी उठे प्रभु के गवाह बनने का संकल्प लें और उन लोगों तक खुशी और शांति के पास्का उपहार लाएँ जिनसे हम मिलते हैं। अल्लेलुया!
By: डीकन जिम मैकफैडेन
Moreमेरी नई हीरो मदर अल्फ्रेड मोस हैं। मुझे एहसास है कि वह कैथलिकों के बीच प्रचलित नाम नहीं हैं, लेकिन उन्हें होना चाहिए। वह मेरे रडार स्क्रीन पर तभी आईं जब मैं विनोना-रोचेस्टर धर्मप्रांत का धर्माध्यक्ष बन गया, जहाँ मदर आल्फ्रेड ने अपना अधिकांश काम किया और वहीँ उनका दफन हुआ है। उनका जीवन उल्लेखनीय साहस, विश्वास, दृढ़ता और विशुद्ध साहस की अद्वितीय कहानी है। विश्वास करें, एक बार जब आप उनके कारनामों के विवरण को समझेंगे, तो आपको कई अन्य साहसी कैथलिक माताओं की याद आएगी, जैसे: कैब्रिनी, टेरेसा, ड्रेक्सेल और एंजेलिका। मदर आल्फ्रेड का जन्म 1828 में यूरोप के लक्ज़मबर्ग में मारिया कैथरीन मोस के रूप में हुआ था। एक छोटी लड़की के रूप में, वह उत्तरी अमेरिका के मूलवासी लोगों के बीच मिशनरी कार्य करने की संभावना से मोहित हो गई थी। तदनुसार, वह 1851 में अपनी बहन के साथ अमेरिका की नई दुनिया की यात्रा पर निकल पड़ी। सबसे पहले, वह मिल्वौकी में स्कूल सिस्टर्स ऑफ़ नोट्रेडेम में शामिल हुईं, लेकिन फिर ला पोर्टे, इंडियाना में होली क्रॉस सिस्टर्स में स्थानांतरित हो गईं, जो कि नोट्रेडेम विश्वविद्यालय के संस्थापक फादर सोरिन, सी.एस.सी. से जुड़ा एक समूह था। अपने वरिष्ठों के साथ टकराव के बाद (यह इस बहुत ही उत्साही और आत्मविश्वासी महिला के साथ अक्सर होता था) वह जोलियट, इलिनोई चली गईं, जहाँ वह फ्रांसिस्कन बहनों की एक नई मंडली की सुपीरियर बन गईं, और उन्होंने 'मदर आल्फ्रेड' नाम अपना लिया। जब शिकागो के बिशप फोले ने उनके समुदाय के वित्त और निर्माण परियोजनाओं में हस्तक्षेप करने की कोशिश की, तो वह मिनेसोटा में सेवा के नए क्षेत्र की तलाश में निकल पड़ीं, जहाँ महान आर्चबिशप आयरलैंड ने उनका स्वागत किया और रोचेस्टर में एक स्कूल स्थापित करने की अनुमति दी। दक्षिणी मिनेसोटा के उस छोटे से शहर में ईश्वर ने मदर आल्फ्रेड के माध्यम से शक्तिशाली रूप से काम करना शुरू किया। 1883 में, रोचेस्टर में एक भयानक बवंडर आया, जिसमें कई लोग मारे गए और कई अन्य बेघर और बेसहारा हो गए। एक स्थानीय डॉक्टर विलियम वॉरेल मेयो ने आपदा के पीड़ितों की देखभाल का काम संभाला। घायलों की संख्या से परेशान होकर, उन्होंने मदर आल्फ्रेड और उनकी बहनों से मदद मांगी। हालाँकि वे नर्स नहीं बल्कि शिक्षिका थीं और उन्हें चिकित्सा में कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं था, फिर भी उन्होंने इस मिशन को स्वीकार कर लिया। उस आपदा के बाद, मदर ने बड़ी शांति से डॉक्टर मेयो को बताया कि उनका एक सपना है कि रोचेस्टर में एक अस्पताल बनाया जाना चाहिए, न केवल उस स्थानीय समुदाय की सेवा के लिए, बल्कि पूरे विश्व की सेवा के लिए। पूरी तरह से अवास्तविक इस प्रस्ताव से चकित, डॉक्टर मेयो ने मदर से कहा कि ऐसी सुविधा बनाने के लिए उन्हें $40,000 जुटाने की आवश्यकता होगी। उस समय और स्थान के हिसाब से इस रकम को जुटाना किसी साधारण व्यक्ति के बस की बात नहीं थी। उन्होंने डॉक्टर से कहा कि अगर वे धन जुटाने और अस्पताल बनाने में कामयाब हो जाती हैं, तो वे चाहती हैं कि डॉक्टर और उनके दोनों डॉक्टर बेटे इस अस्पताल में काम करें। थोड़े समय के भीतर, मदर ने धन जुटाया और सेंट मैरी अस्पताल की स्थापना हुई। आप पहले ही अनुमान लगा चुके होंगे, यह वह बीज था जिससे शक्तिशाली मेयो क्लिनिक विकसित हुआ। मदर आल्फ्रेड की बहुत पहले की कल्पना के अनुसार यह वास्तव में मेयो क्लिनिक एक नई अस्पताल प्रणाली बनेगी जो पूरी दुनिया की सेवा करेगी। इस निडर साध्वी ने न केवल अपने द्वारा स्थापित अस्पताल के निर्माता, आयोजक और प्रशासक के रूप में अपना काम जारी रखा, बल्कि सत्तर वर्ष की आयु तक, यानी 1899 में अपनी मृत्यु तक, उन्होंने दक्षिणी मिनेसोटा में कई अन्य संस्थानों के लिए भी काम किया। कुछ हफ़्ते पहले ही, मैंने अपने धर्मप्रांत में पुरोहितों की ज़रूरत के बारे में लिखा था, और मैंने सभी से पुरोहिताई की बुलाहट को बढाने के मिशन का हिस्सा बनने का आग्रह किया था। मदर आल्फ्रेड को ध्यान में रखते हुए, क्या मैं अब महिलाओं के धर्मसंघी जीवन के लिए और अधिक बुलाहटों का आह्वान कर सकता हूँ? किसी तरह महिलाओं की पिछली तीन पीढ़ियों ने धर्म संघी जीवन को अपने विचार के अयोग्य माना है। द्वितीय वेटिकन परिषद के बाद से धर्मसंघी साध्वियों की संख्या में भारी गिरावट आई है। जब इस बारे में पूछा जाता है, तो अधिकांश कैथलिक शायद कहेंगे कि हमारे नारीवादी युग में धर्मसंघी बहन बनना एक व्यवहार्य संभावना नहीं है। मैं कहूंगा कि यह बकवास है! मदर आल्फ्रेड ने बहुत कम उम्र में अपना घर छोड़ दिया, समुद्र पार करके एक विदेशी भूमि पर चली गईं, धर्मसंघी बन गईं, अपनी बुलाहट और मिशन की भावना का पालन किया, तब भी जब इससे उन्हें कई धर्माध्यक्षों सहित शक्तिशाली वरिष्ठों के साथ संघर्ष करना पड़ा, डॉक्टर मेयो को इस धरती का सबसे प्रभावशाली चिकित्सा केंद्र स्थापित करने के लिए प्रेरित किया, और बहनों के एक धर्मसंघी संस्था के विकास का नेतृत्व और अध्यक्षता की। इन साध्वियों ने चिकित्सा और शिक्षण की कई संस्थानों का निर्माण और संचालन किया। मदर आल्फ्रेड असाधारण बुद्धि, प्रेरणा, जुनून, साहस और आविष्कारशीलता वाली महिला थीं। अगर किसी ने उन्हें सुझाव दिया होता कि वे अपने उपहारों के अयोग्य या अपनी गरिमा से नीचे जीवन जी रही हैं, तो मुझे लगता है कि उनके पास जवाब में कुछ चुनिंदा शब्द होंगे। आप एक नारीवादी नायक की तलाश कर रहे हैं? आप शायद ग्लोरिया स्टीनम को चुनेगे; मैं कभी भी मदर आल्फ्रेड को चुनूंगा। इसलिए, अगर आप किसी ऐसी युवती को जानते हैं जो एक अच्छी धर्मसंघी साध्वी बन सकती है, जो बुद्धिमान, ऊर्जावान, रचनात्मक और जोश से भरी हुई है, तो उसके साथ मदर आल्फ्रेड मोस की कहानी साझा करें। और उसे बताएं कि वह भी मदर की तरह की वीरता की आकांक्षा रख सकती है।
By: बिशप रॉबर्ट बैरन
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